दिल आशना है : तीसरा भाग

लेखक- सिराज फारूकी

यह खयाल कर के वह बाग में इधर से उधर टहलते हुए तौफीक से बोली, ‘‘आज से हम यह रिश्ता नहीं रखेंगे…’’

‘‘फिर कौन सा रखेंगे…?’’

‘‘वह पहले वाला…’’

‘‘मुमकिन है…?’’

‘‘मुमकिन नहीं है… लेकिन, मुमकिन बनाया जा सकता है…’’ मुबीना ने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा.

‘‘देखेंगे…’’ तौफीक ने लापरवाही से कहा.

‘‘देखेंगे नहीं…’’ मुबीना ने तौफीक की खुली शर्ट का बटन लगाते हुए कहा, ‘‘देखो तौफीक, वह तुम्हारा भी जिगरी दोस्त है और मेरा तो शौहर ही है. हम को इस चीज पर गंभीरता से सोचना होगा. इस में तुम्हारी भी इज्जत का सवाल है और मेरी भी.

‘‘आज तक जो हम लोगों ने किया, अब भूल जाएं. मुझे अब बहुत डर लग रहा है. वह कह रहा था कि उस की कंपनी बंद होने वाली है. अब तो वह कभी भी आ सकता है…’’

‘‘आने दो…’’ तौफीक ने सीना फुला कर कहा.

‘‘नहीं, ऐसा मत कहो… जुदा हो जाओ…’’ मुबीना के चेहरे पर खौफ का साया आ गया था.

‘‘अरे, हम तो जुदा ही हैं…’’ तौफीक ने उस के कान से मुंह लगा कर शरारती लहजे में कहा, ‘‘आने दो उसे…चांस मारते रहेंगे गाहेबगाहे… क्या वह तुम्हारे साथ चौबीसों घंटे रहेगा…?’’

‘‘नहीं, अब छोड़ो भी. मुझे डर लगने लगा है…’’ मुबीना ने उस से दूरी बनाई.

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‘‘तुम बुजदिल हो…’’ तौफीक उसे घूरते हुए बोला.

मुबीना को जैसे यह बात बुरी लगी. उस ने नाक सिकोड़ कर कहा, ‘‘नहीं, दमदार हूं. तभी तो यह रिश्ता रखा और इतने दिनों तक निभाया… लेकिन, अब नहीं होता है. किसी को उतना ही छलो, जितना वह समझ न सके…’’

‘‘हां, तुम एक काम करो. मुझे

2 लाख रुपए दे दो…’’

‘‘क्यों…?’’ मुबीना ऐसे चौंकी, जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो.

‘‘तुम को भूल जाने की कीमत…?’’

‘‘तो क्या यह तुम्हारे प्यार की कीमत है…?’’

‘‘नहीं जानता… बस मुझे रुपए चाहिए…’’

मुबीना को उस की यह बात बुरी लगी. उस ने गुर्रा कर कहा, ‘‘तुम ने दोस्त की बीवी को भोगा, उस के पैसे इस्तेमाल किए. अब उस की हड्डियों का गूदा भी खाना चाहते हो… शर्म नहीं आती…नमकहराम…’’

यह सुन कर वह कुछ नहीं बोला. बस मुंह बिसुरता खड़ा रहा.

मुबीना ने दोनों बच्चों का हाथ पकड़ा और बाग से ले कर जाने लगी और घूर कर बोली, ‘‘तुम अब मुझे कभी नहीं मिलोगे…’’

तौफीक हाथ बांधे मुसकराता खड़ा रहा.

मुबीना अपने दोनों बच्चों का हाथ पकड़े घसीटती चली जा रही थी.

तौफीक उस के पीछे खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा और मन में कहा, ‘औरत कितना हसीन धोखा है. अब इसे देख कर कोई कह सकता है? यह धोखेबाज है… बदमाश है… कल को इस का शौहर आएगा और उस के साथ ऐसे घुलमिल कर रहेगी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं…?’

अब मुबीना तौफीक से नहीं मिलती है. फोन आता है तो काट देती है. दरवाजे पर आने के बाद दरवाजा नहीं खोलती है. उस ने पक्का इरादा कर लिया है कि वह उस से नहीं मिलेगी.

एक दिन मुबीना बाजार से गुजर रही थी, तो तौफीक ने उसे देख लिया और दौड़ कर उस के करीब आ कर बोला, ‘‘मुबीना… सुनो तो… सुनो तो सही…’’

मगर वह रुकी नहीं और अनसुना कर के चलती रही. वह लपक कर उस के आगे आ गया, ‘‘अरे रुको तो… ऐसा लगता है, जैसे मुझे जानती ही नहीं…’’

‘‘हां बिलकुल, मैं तुम्हें नहीं जानती…’’ मुबीना दांत पीस कर बोली, ‘‘और जानना भी नहीं चाहती हूं…’’ वह तकरीबन चिल्लाने के लहजे में बोली. गुस्सा उस के सिर चढ़ कर बोल रहा था.

तौफीक डर कर इधरउधर देखने लगा. बाजार का मामला था. लोग आजा रहे थे. उसे खौफ हुआ. कहीं उस की ऊंची आवाज सुन कर लोग जमा हो गए और पूछ बैठे तो हो गई धुनाई.

उस ने जरा धीमे लहजे में कहा, ‘‘अरे, जरा धीरे तो बोल…’’

‘‘क्यों…?’’ मुबीना और जोर से चिल्लाई.

वह सहम कर उस का मुंह देखता रह गया और समझ गया कि अब दाल नहीं गलने वाली है. मुबीना का चेहरा तमतमाया हुआ था. ऐसा लग रहा था कि वह बहुत गुस्से में है.

तौफीक डरते हुए बोला, ‘‘मिलती भी नहीं… फोन भी नहीं उठाती… दरवाजे पर जाओ तो दरवाजा भी नहीं खोलती…’’

‘‘क्यों…?’’ वह घूर कर बोली, ‘‘तू मेरा क्या लगता है…?’’

‘‘पहले क्या लगता था…?’’ तौफीक ने भी गुस्सा दिखाया.

‘‘वह सब खत्म…’’

‘‘इतना जल्दी…?’’

‘‘हां…’’

‘‘सोच लो…?’’

‘‘क्या धमका रहे हो…?’’

‘‘नहीं, समझा रहा हूं…’’

‘‘एक बात याद रख, जो कुछ हुआ सो हुआ. अच्छा या बुरा सपना समझ कर भुला दें. और मैं भी भुला दूं. मेरा शौहर आज या कल आने वाला है. मैं यह नहीं चाहती. तू भी जलील हो और मैं भी. अब मुझे गुनाह के दलदल में घसीटने की कोशिश मत कर.

हट जा, वरना एक बार चिल्ला दूंगी तो जूते इतने पड़ेंगे कि जिंदा भी नहीं रह पाएगा…’’

मुबीना की यह धमकी कारगर साबित हुई और तौफीक रास्ते से हट गया. मुबीना ने उसे जाते हुए देख कर कहा, ‘‘और अब कभी मुझे फोन मत करना… कहीं देखा तो पीछा भी मत करना. आज से तू यह समझ कि मैं तेरी कोई नहीं हूं और तू मेरा कोई नहीं है… हम दोनों एकदूसरे के लिए मर गए हैं और वह रिश्ता भी खत्म हो गया है…समझा…’’

मुबीना जब घर आई तो उसे उलटियां होने लगीं. वह चौंक गई, अरे यह कैसे…? वह शक के गहरे कुएं में गिर गई. हम ने तो पूरी एहतियात बरती थी. अगले दिन वह ‘नर्सिंगहोम’ गई, तो मालूम हुआ 2 महीने का पेट है. वह हैरान हुई. पसीना आने लगा.

लेडी डाक्टर ने सवाल किया, ‘‘क्या हुआ? अपना ही है न…?’’

न…न करते हां कर दी, ‘‘हां, अपना ही है…’’

‘‘तो इस में घबराने वाली कौन सी बात है…?’’

‘‘नहीं…’’ वह हकलाते हुए बोली, ‘‘मैं फैमिली प्लानिंग अपना रही थी, तो कैसे हो गया…?’’

‘‘क्या अपनाया था…’’ लेडी डाक्टर ने सवाल किया.

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‘‘कंडोम…’’

‘‘कंडोम…’’ लेडी डाक्टर ने संतोष की सांस ली, ‘‘आप को एक बात बताऊं. कोई भी चीज सौ फीसदी सेफ नहीं है…’’

‘‘अब देखो न… 2 महीने हो रहे हैं. मुझे पता ही न चला. कल जब उलटी हुई तो शक हुआ. वैसे, यह कई दिनों से एहसास हो चला था. मगर मैं समझी नहीं…’’

‘‘कोई दिक्कत… अभी भी बहुतकुछ हो सकता है…’’

‘‘हो सकता है…?’’ मुबीना ने तड़प कर सवालिया निगाहों से डाक्टर को देखा.

‘‘हां… लेकिन थोड़ा रिस्क है…’’

‘‘रिस्क को पूरी जिंदगी ही है…’’ मुबीना मन में बुदबुदाई और गंभीर हो गई.

लेडी डाक्टर ने उसे कुछ सोचता देख कर कहा, ‘‘क्या हुआ मैडम…?’’

वह कुछ नहीं बोली. बस थके कदमों से घर की ओर चल पड़ी.

मुबीना कई बार इस अस्पताल में आई थी. मगर ऐसा हाल कभी नहीं हुआ था. खुशीखुशी आई थी और खुशीखुशी गई थी. उस के दोनों बच्चे इसी अस्पताल में हुए थे.

आज जब थके कदमों से जा रही थी तो ऐसा लग रहा था, कब्रिस्तान की तरफ जा रही है. घर जाने का उस का मन कतई नहीं हो रहा था. वह नीम बेहोशी की हालत में एक अलग ही रास्ते पर निकल गई. जब उसे एहसास आया तो काफी अंधेरा हो चुका था. सड़कों की पीली लाइटें रोशन हो चुकी थीं.

अचानक उसे खयाल आया कि उस के बच्चे घर में अकेले हैं. और मां की ममता ने जोर मारा और वह रिकशा पकड़ कर सीधा अपने घर में पहुंची, जब

वह घर पहुंची तो बच्चे चिल्लाचिल्ला कर सो गए थे. उस ने मासूम बच्चों को देखा. उन की पेशानी पर उड़ आए बालों को हटाया और उन का माथा बड़े ही प्यार से चूम लिया.

अगले दिन अकील का फोन आया, ‘मैं कल आ रहा हूं…’

बारबार मुबीना के कानों में उस की आवाज गूंज रही थी, ‘मैं कल आ रहा हूं… मैं कल आ रहा हूं…’

उस ने खयाल किया कि कल सुबह अकील एयरपोर्ट से घर में होगा. फिर उसे खयाल आया कि 2 महीने का पेट… अब क्या होगा…? वह अपने शौहर को क्या मुंह दिखाएगी…? वह इतने दिनों बाद आ रहा है. वह उसे क्या देगी? जूठा प्यार. जूठी औरत. रौंदा हुआ शरीर. कुचली हुई जवानी.

मुबीना छत पर घूमते हुए पंखे को बारबार देखती रही और शरीर पसीने में भीगता रहा. सुबह अकील टैक्सी से अपनी बिल्डिंग के सामने आ पहुंचा. वहां उस ने देखा कि लोगबाग जमीन पर पड़ी किसी चीज को गौर से देख रहे थे. वह टैक्सी से उतर कर भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा.

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अकील की नजर जैसे ही उस चीज पर गई, उस के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई, क्योंकि उस की बीवी मुबीना वहां मुरदा पड़ी थी. उस की नाक व मुंह से खून बह रहा था.

दिल आशना है : दूसरा भाग

लेखक- सिराज फारूकी

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : अकील अपने 2 बच्चों और खूबसूरत पत्नी मुबीना के साथ रह रहा था. उस की किराने की छोटी सी दुकान थी. चूंकि आमदनी कम थी, इसलिए मुबीना के कहने पर वह अपने जिगरी दोस्त तौफीक के भरोसे अपने परिवार को छोड़ कर कामधंधे के लिए सऊदी अरब चला गया. धीरेधीरे मुबीना और तौफीक में जिस्मानी रिश्ता बन गया. इसी बीच अकील ने भारत लौटने की सोची तो मुबीना की चिंता बढ़ गई.  अब पढि़ए आगे…

‘‘सोतो है…’’ तौफीक ने एक बार फिर मुबीना के नंगे शरीर पर चिकोटी काटी. वह उस दर्द को पी गई.

‘अच्छा फोन रखता हूं… कंपनी भी अब बंद होने वाली है. बहुत गड़बड़ चल रही है… देखते हैं, आगे क्या होता है…?’ अकील बोला.

‘‘तो चले आओ न…’’ तौफीक ने बेदिली से कहा.

‘यही तो सोच रहा हूं… यह बात तुम मुबीना से मत कहना, वरना उसे दुख होगा…’

‘‘हां… शायद…?’’ वह मुबीना की तरफ देख कर मुसकराया.

फोन कट गया. फोन बंद होने के बाद तौफीक हंसते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे शौहर का फोन था रानी साहिबा…’’ और उस ने शरारत से उस के गालों को खींच लिया.

‘‘क्या कहा उन्होंने…?’’ मुबीना ने सवाल किया.

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‘‘वह कह रहा था कि मेरी बीवी का खूब खयाल रखना…’’

‘‘तो तुम ने क्या कहा?’’

‘‘यही कि खयाल ही रख रहा हूं…’’

‘‘अच्छा खयाल रख रहे हैं…’’ मुबीना उसे चूमते हुए बोली.

थोड़ी देर बाद मुबीना का मोबाइल फोन बज उठा. अकील का फोन था.

तौफीक बोला, ‘‘लगता है, आज यह चैन से रहने नहीं देगा…’’

मुबीना ने फोन उठा लिया.

उधर से कुछ दर्द और खुशी में मिलीजुली आवाज आई, ‘हैलो मेरी रानी, कैसी हो…?’

‘‘पूछो मत…’’ वह तौफीक के दबाव से कराहते हुए बोली और उसे अपने ऊपर से धकेलने की नाकाम कोशिश की लेकिन उस ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी.

अकील बोला, ‘मेरी याद आ रही है…?’

‘‘क्यों नहीं जी…’’

‘जाग रही हो अभी तक…’

‘‘हां, आप की यादों में करवटें बदल रही हूं… फोटो के सहारे…?’’

अकील हंसा, ‘फोटो के सहारे…’’ और उसे जैसे मजाक सूझा. उस ने कहा, ‘अरे मेरा दोस्त है न तौफीक… वह किस दिन काम देगा. बुलवा लिया होता…’

मुबीना को काटो तो खून नहीं. उस के दिल पर घूंसा सा लगा. उस ने सोचा ‘क्या अकील को पता चल गया है?’ मुबीना के दिल में आया कि कह दे, बुलवा लिया है. लेकिन उस ने कहा, ‘‘क्या गंदा मजाक करते हैं आप भी…’’

‘हाहा… तुम सही मान गई क्या…?’

‘‘नहीं…’’ मुबीना ने कहा, ‘‘सोचो, अगर ऐसा हो गया तो…?’’

‘मार डालूंगा उसे…’ अकील ने गुस्सा दिखाया.

‘‘और मुझे…?’’ मुबीना ने सवाल उठाया.

‘तुझे तो जिंदा दफन कर दूंगा…’ उस का लहजा सख्त था.

मुबीना सहम सी गई.

‘बीवी शौहर की अमानत होती है. उसे हर हालत में अपनी आबरू बचा कर रखनी चाहिए…’

‘‘बचा कर रखूंगी… आप बेफिक्र रहिए…’’ मुबीना सहम कर बोली.

‘हां, मुझे यही उम्मीद है. मैं तो बात की बात कर रहा था.’

‘‘ठीक है… कोई बात नहीं…’’

‘अच्छा, फोन रखूं…?’

‘‘हां… रखिए…’’

‘अपना और बच्चों का खयाल रखना. और हां, रकम की जरूरत पड़े तो तौफीक को भी दे देना. पहले तो वह मांगेगा नहीं. अगर मांगे तो मना मत कहना…’

अकील ने दुख भरे लहजे में कहा, ‘मुबीना, मैं जिस कंपनी में काम कर रहा था. वह बहुत जल्द बंद होने वाली है… अब मेरा भी दिल यहां नहीं लगता है… सोचता हूं, वतन चला आऊं… तुम्हारे पास आने को दिल हर घड़ी मचलता रहता है…’

‘‘मत आओ…’’ मुबीना हड़बड़ा कर बोली, ‘‘अभी कितने प्रोजैक्ट अधूरे हैं. अगर तुम वापस आ गए तो सब अधूरा रह जाएगा… अगर वह कंपनी बंद हो रही है, तो कहीं और काम तलाश करो. ज्यादा नहीं, बस 1-2 साल और रह लो. उस के बाद आ जाओ. मैं तुम्हारी हूं. कहीं भागी थोड़ी जा रही हूं. कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है.’’

‘सो तो ठीक है रानी…’ वह कुम्हलाई हुई आवाज में बोला, ‘कोशिश करता हूं. मगर मुमकिन नहीं लगता है…’ और सर्द आह भर कर वह बोला, ‘मुबीना, मेरी रानी… तुम्हारी याद बहुत सताती है…’

मुबीना हलके से सिसकी. पता नहीं, तौफीक के शरीर का दबाव था या कुछ और ही. मगर यह सिसकी इतनी धीमी थी कि मोबाइल से आवाज अकील तक नहीं पहुंच पाई.

अकील ने सवाल किया, ‘मुबीना, तुम पहले से और हसीन हो गई हो या…?’

मुबीना मुसकरा पड़ी, ‘‘आ कर देख लेना…’’

‘बता दो न…’ उस ने जैसे बाल हठ किया.

‘‘हूं…’’ मुबीना ने तौफीक के दबाव को कम करने की कोशिश की. अकील समझा शरमा रही है.

फोन कट गया.

मुबीना का मूड खराब हो चुका था. उस ने तौफीक से कहा, ‘‘लगता है, वह आएगा…’’

तौफीक ने कहा, ‘‘उसे रोको…’’

‘‘वही तो कोशिश कर रही थी…’’

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‘‘वह आएगा तो हमारा काम बिगड़ जाएगा…’’

‘‘शायद…?’’

फिर थोड़ा गंभीर होते हुए मुबीना ने कहा, ‘‘लगता है… अब हम को यह खेल बंद कर देना चाहिए…’’

‘‘नामुमकिन…’’ तौफीक ने कहा.

‘‘क्यों…?’’ वह झुंझला सी गई.

‘‘मैं तुम को भूल नहीं पाऊंगा…’’

‘‘वही हाल तो अब अपना भी है… तुम्हारे बगैर नींद नहीं आती है… जिस्म को चैन नहीं मिलता है…’’

‘‘तो फिर क्या होगा…?’’

‘‘तुम उसे तलाक दे दो…’’

‘‘नामुमकिन…’’

‘‘क्यों…?’’

‘‘आखिर कोई तो वजह हो…’’

‘‘निकालो न…’’ तौफीक ने उस की नाक को पकड़ कर हिलाया और कहा, ‘‘तुम औरत हो… कहते हैं औरत के पास त्रिया चरित्र होता है…’’

‘‘होगा किसी और के पास… लेकिन मेरे पास नहीं है…’’

तौफीक ने सिर पकड़ लिया, ‘‘बड़ा गंभीर मसला है…’’

और फिर दोनों करवट बदल कर लेट गए. लेटेलेटे तौफीक ने कहा, ‘‘इस नए फ्लैट का उद्घाटन तो महंगा पड़ा…’’

‘‘हां…’’ मुबीना ने उस के पीछे से लिपट कर कहा, ‘‘इश्क में अड़ंगा लग गया…’’

कुछ पल के बाद जैसे मुबीना को मजाक सूझा, उस ने उसे अपनी ओर खींचते हुए उस के सीने पर सिर रख कर कहा, ‘‘आखिर दोस्त की बीवी को कब तक खाओगे…?’’

‘‘जब तक जिंदा रहूंगा…’’ तौफीक ने ढिठाई से जवाब दिया और झपट कर उसे अपनी बांहों में भींच लिया.

मुबीना ने चुहल करने के अंदाज में कहा, ‘‘हराम का माल खाने का मजा ही कुछ और है…क्यों?’’

‘‘हां, फिर…’’ तौफीक बेशर्मी से मुसकराया.

‘‘एक बात बताओ… तुम्हें शर्म आती है…’’

‘‘नहीं…’’ तौफीक उस के गालों को नीबू के जैसे निचोड़ते हुए बोला, ‘‘तुम को आती है…?’’

‘‘हां…’’

वह उसे घूरने लगा था.

मुबीना कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘थोड़ीथोड़ी…’’

‘‘बड़ी बेशर्म हो…’’

‘‘क्यों…?’’

‘‘शौहर के दोस्त के साथ ऐयाशी करती हो…’’

मुबीना कुछ नाराज होते हुए बोली, ‘‘और तुम को नहीं आती, तो दोस्त की बीवी के साथ गुलछर्रे उड़ाते हो…’’

तौफीक ने उस की बातों का कोई जवाब नहीं दिया और उस का सिर पकड़ कर जोरों से अपने में समाने लगा. उस के बाद हवस तूफान में ऐसे गोते खाने लगा, जैसे फिर मिलें या न मिलें. शायद दोनों का एक ही हाल था.

मुबीना आज कई दिनों से सोचविचार कर रही थी. उसे यह रिश्ता रखना चाहिए या नहीं? धीरेधीरे उस का ध्यान उन सब औरतों की ओर चला गया, जिन के शौहर परदेश में हैं. कैसे अपनी इज्जत की हिफाजत करती हैं? क्या वे मेरी ही तरह ढोंग रचाती हैं तो कोई बात नहीं. लेकिन नहीं रचातीं तो…?

मगर, मैं ऐसा नहीं कर सकी. मैं कितनी कमजोर औरत हूं. क्या मैं रुक सकती थी? आखिर इस में गुनाहगार कौन है? तौफीक या वह या मैं? कौन ज्यादा कुसूरवार है?

वह इस नतीजे पर पहुंची कि सब से ज्यादा उस का शौहर ही कुसूरवार है, जो इतने दिनों से परदेश में पड़ा है. मैं ने लाख मना किया, मगर उसे आना चाहिए था. भूखीप्यासी अगर बकरी है तो रस्सी जरूर तुड़ाएगी और अगर तुड़ा कर सामने का हरा चारा खा लिया तो कुसूर किस का है? हरे चारे का या खाने वाले का?

मेरा खयाल है घर मालिक का, जिस ने अपने जानवर को भरपेट चारा नहीं खिलाया. बस एक बार नांद में चारा डाल दिया और रफूचक्कर हो गया.

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आखिरकार मुबीना इस नतीजे पर पहुंची कि उसे यह रिश्ता नहीं रखना चाहिए. अभी वक्त है. कुछ बिगड़ा नहीं है. कितनी ऐसी औरतों और लड़कियों को वह जानती है, जो शादी से पहले और बाद में बहक गई थीं. मगर छुपा ले गई और आज इज्जतदार औरत बन कर समाज के सिंहासन पर बैठी शान से राज कर रही हैं.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

एक रात : भाग 5

लेखक- मृणालिका दूबे

हैरानपरेशान विक्रम ने नीता को काल लगाया तो उस के मोबाइल की रिंग बैडरूम में ही बज उठी. नीता अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ कर गई थी.

अब तो विक्रम की हालत खराब हो गई. वह कुछ देर स्तब्ध बैठा रहा फिर लपक कर साहिल को काल करने लगा, ‘‘हैलो…हैलो साहिल, प्लीज जल्दी आओ यहां.’’

विक्रम की घबराहट महसूस कर साहिल भी बदहवास हो गया. उस ने जल्दी से कहा, ‘‘ओके, मैं बस अभी आया.’’

साहिल को देखते ही विक्रम फूटफूट कर रो पड़ा, ‘‘मेरी नीता…नीता पता नहीं कहां चली गई है यार.’’

साहिल ने सारी स्थिति का मुआयना किया. फिर सोचते हुए बोला, ‘‘देखे विक्रम, मुझे तो लगता है कि नीता तुझ से नाराज हो कर घर छोड़ कर चली गई है. तूने उस के परिवार वालों और दोस्तों से पूछताछ की?’’

हताश स्वर में विक्रम ने कहा, ‘‘मुझे तो उस के किसी रिश्तेदार के बारे में कुछ भी नहीं पता यार. उस ने बताया था कि वह अनाथ है. और नीता की तो कोई भी सहेली दोस्त नहीं था.’’

साहिल ने यह सुनते ही कहा, ‘‘कमाल है यार, ऐसे कैसे अचानक ही घर छोड़ कर चली गई नीता भाभी.’’

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विक्रम की हालत इस कदर बिगड़ गई कि साहिल को उसे दिलासा भी देते नहीं बन पा रहा था. वाचमैन से सिर्फ इतना ही पता चल सका कि नीता शाम 4 बजे एक बड़ा बैग लिए बिल्डिंग से बाहर चली गई.

रात के 9 बजने वाले थे विक्रम और साहिल सोच के सागर में डूब उतरा रहे थे कि अचानक ही विक्रम का मोबाइल बजने लगा.

उस ने जल्दी से लपक कर देखा तो उस के कलीग रोहित का काल था.

विक्रम ने बड़ी बेजारी से कहा, ‘‘हैलो.’’

उधर से रोहित की धीमी आवाज सुनाई दी, ‘‘फौरन पहुंचो इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर. मैं गेट नंबर 2 पर इंतजार कर रहा हूं.’’

विक्रम ने तुरंत कहा, ‘‘सौरी रोहित, मैं इस वक्त बड़ी परेशानी में हूं, नहीं आ सकता.’’ रोहित अब जोर देते हुए बोला, ‘‘इसी वक्त निकलो घर से, नहीं तो फिर सारी उम्र पछताते रहोगे.’’ और काल कट हो गई.

हैरान विक्रम ने साहिल को जब बताया इस बारे में तो वह भी हैरत में पड़ गया. फिर सोचते हुए कहा, ‘‘विक्रम, चल जल्दी से चलते हैं एयरपोर्ट. रोहित ने जरूर ही किसी खास वजह से वहां बुलाया है.’’

गेट के करीब बड़ा सा काउबाय हैट और गौगल्स लगाए एक सैलानी दिखा, जो विक्रम को देखते ही उस की ओर बढ़ा. विक्रम और साहिल के करीब पहुंच उस ने इशारे में उन्हें अपने पीछे आने का संकेत दिया. साहिल और विक्रम दोनों ही अचरज में डूबे उस सैलानी के पीछेपीछे चल दिए.

जल्दी ही वे सब एयरपोर्ट के अंदर लाउंज की ओर बढ़ने लगे. तभी सैलानी ने विक्रम का हाथ दबाते हुए सामने इशारा किया. विक्रम ने जैसे ही उधर देखा, उस के तो होश ही उड़ गए. सामने कुछ दूरी पर ही एक ताबूत के पास काले वस्त्रों में नीता बैठी थी.

विक्रम की आंखें फैल गईं. उस का दिमाग जैसे ब्लैंक हो गया. उस के पैरे लड़खड़ाने लगे. उस ने सहारे के लिए साहिल का कंधा थामा.

साहिल तो खुद ही सामने का नजारा देख हतप्रभ खड़ा था.

तभी सैलानी ने अपना मोबाइल निकाला और कुछ इंस्ट्रक्शन दिए. पलक झपकते ही कई पुलिसकर्मी नीता के चारों ओर पहुंच गए.

नीता हड़बड़ाती हुई उठ खड़ी हुई. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. तभी सैलानी ने अपना हैट और गौगल्स उतार दिया.

उस का असली रूप देखते ही विक्रम और साहिल चिल्लाए, ‘‘रोहित…’’

रोहित ने मुसकराते हुए सिर हिलाया. फिर नीता के कुछ समझने से पहले ही पुलिसकर्मी उसे ताबूत सहित अरेस्ट कर पुलिस हैडक्वार्टर ले आए.

विक्रम और साहिल भी रोहित के साथ वहां पहुंच गए. विक्रम ने हैरानी से नीता का हाथ पकड़ते हुए पूछा.

‘‘नीता, क्यों छोड़ कर जा रही थी मुझे तुम? और ये सब क्या है? ये ताबूत किस का है?’’ नीता ने बस एक हिकारत भरी नजर विक्रम पर डाली और दूसरी ओर देखने लगी.

अब वहां खड़े एक सीनियर औफिसर ने कहा, ‘‘विक्रम, ये तुम्हारी बीवी नीता दरअसल कबीर की फियांसे शीना है.’’

‘‘शीनाऽऽ…’’ विक्रम चीखते हुए बोला, ‘‘यह कैसे हो सकता है सर? मैं ने पिछले महीने ही इस से शादी की है.’’

तभी एक दूसरा औफिसर बोल पड़ा, ‘‘ये नीता नहीं शीना ही है. सिंगापुर की कंपनी में 500 करोड़ का घपला कर के भाग कर इंडिया आ गई. और यहां पहचान छिपाने के लिए नीता बन कर तुम से शादी कर ली ताकि वह पुलिस और कानून की नजर में न आ सके. और कबीर के साथ उस का संपर्क आराम से बना रहे.’’

अब सीनियर औफिसर ने इशारा किया और 2 पुलिसकर्मियों ने ताबूत को खोल दिया. उस में कबीर जिंदा लेटा हुआ था. वह ताबूत खुलते ही वहां से भाग निकलने की कोशिश करते हुए चीखा, ‘‘मुझे जाने दो यहां से. तुम लोग जानते नहीं हो कि मैं क्या चीज हूं.’’

औफिसर ने मुसकराते हुए कबीर की बांह मरोड़ते हुए कहा, ‘‘हम बहुत अच्छी तरह जानते हैं कबीर कि तुम कितने बड़े फ्रौड हो. अपनी फियांसे शीना को अपनी 300 करोड़ की इंश्योरेंस पौलिसी को नौमिनेट बना कर तुम ने एक टुच्चे भ्रष्ट पुलिस वाले को अपनी योजना में मिला कर ये पूरा खेल रचा.

‘‘तुम्हें लगा था कि नकली गोली से मरने का नाटक कर तुम उस पुलिस वाले की मदद से पोस्टमार्टम का ड्रामा कर डेथ सर्टिफिकेट ले लेंगे और तुम 300 करोड़ के मालिक बन जाओगे. क्यों, सच कहा न?’’

अब कबीर चीखते हुए बोला, ‘‘हां, मैं ने ही प्लान बनाया था ये सब. शीना जब सिंगापुर से भाग कर यहां आई तो मैं ने उस से कहा कि वह विक्रम से शादी कर ले.

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ताकि वह मेरे करीब भी रह सके और हम विक्रम के जरिए अपने प्लान को अंजाम दे सकें. इसलिए एक स्ट्रगलिंग ऐक्ट्रैस निया को बुक किया ताकि वह विक्रम को मूर्ख बना कर उलझा सके. पर उस को कहां पता था कि हमारे प्लान की कामयाबी के लिए उस को मरना था.’’

‘‘पर एक गड़बड़ हो गई तुम से.’’ रोहित ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘जब कल रात विक्रम और साहिल उस ऐक्ट्रैस निया की गाड़ी में लिफ्ट ले कर चले तो थोड़ी देर बाद मैं भी घर जाने के लिए अपनी बाइक से निकला था. रास्ते में मैं ने देखा कि पुलिस उस गाड़ी को घेर कर सवालजवाब कर रही थी. मैं ने असलियत जानने के लिए अपनी बाइक दूर पार्क की और पैदल ही चल पड़ा.

लेकिन तभी साहिल और विक्रम गुस्से में पैदल जाते दिखे, इसलिए मैं यह सोच कर अपनी बाइक लेने चला गया कि उन्हें बाइक पर उन के घर छोड़ दूंगा. पर जब बाइक के पास पहुंच कर मैं ने पलट कर देखा तो दंग रह गया.

वह पुलिस वाला उस लड़की के गले पर चाकू से वार कर रहा था.

‘‘यह देख हालत इतनी खराब हो गई कि वहीं स्टैच्यू की तरह जम गया. जब बाइक ले कर मैं वहां पहुंचा तो लड़की मरी हुई पड़ी थी, और पुलिस जीप जा चुकी थी.’’

एक सीनियर औफिसर ने कहना शुरू किया, ‘‘मिस्टर रोहित ने जैसे ही इस बारे में हमें सूचना दी, हम समझ गए कि ये कोई बड़ा ड्रामा खेला जा रहा है.

हम ने उस भ्रष्ट औफिसर की हर बात रिकौर्ड करवाई. पर हम इस कबीर और शीना को रंगेहाथ पकड़ना चाहते थे, इसीलिए हम पूरी सतर्कता से हर कदम आगे बढ़ा रहे थे.

‘‘और जैसे ही हमें पता चला कि उस मक्कार पुलिस वाले ने कबीर की बौडी शीना उर्फ नीता को सौंप दी है तो हम शीना का पीछा करते हुए एयरपोर्ट आ गए. आज आधी रात की फ्लाइट से ये दोनों दुबई जाने वाले थे. पर अब…अब इन की पूरी जिंदगी कालकोठरी में बीतेगी.’’

तभी कुछ पुलिसकर्मी उस भ्रष्ट पुलिस औफिसर को गिरफ्तार कर के ले आए. उस ने जब कबीर और शीना को देखा तो समझ गया कि उस का खेल खत्म हो चुका है.

जल्दी ही विक्रम और साहिल दोनों रोहित के साथ पुलिस हेडक्वार्टर से निकल कर अपने घर की ओर चल पड़े.

तीनों के ही दिल में शीना उर्फ नीता की मासूम छवि घूम रही थी. किस कदर जहरीली थी ये मासूमियत.

एक रात : भाग 4

लेखक- मृणालिका दूबे

विक्रम और साहिल को काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई थी. वे कभी एकदूसरे को देखते तो कभी सामने खड़े पुलिस अफसर को.

तभी औफिसर ने दोनों को तीखी नजरों से घूरते हुए कहा, ‘‘अब एकएक शब्द गौर से सुनो, आज शाम को 5 बजे मिस्टर कबीर की होटल हौलीडे इन में कौन्फ्रैंस है. वहां वह पौने 5 बजे तक पहुंच ही जाएंगे. तुम दोनों को पार्किंग में पहले से ही छिप कर खड़े रहना है. और जैसे ही मिस्टर कबीर अपनी गाड़ी से बाहर निकलेंगे, तुम निशाना लगा कर उन पर साइलेंसर लगी पिस्टल से गोली चला देना. वहां अफरातफरी मच जाएगी. इसी का फायदा उठा कर तुम दोनों वहां से भाग कर गेट तक पहुंच जाना. गेट के पास मेरा एक आदमी गाड़ी ले कर खड़ा रहेगा. उस गाड़ी में बैठ कर सीधे अपने घर चले जाना. बस किस्सा खत्म.’’

‘‘पर हम निशाना लगाएंगे कैसे? हम ने तो कभी पिस्टल तक हाथ में नहीं पकड़ा पहले.’’ साहिल रुआंसे स्वर में बोल पड़ा.

औफिसर ने तिरछी मुसकान के साथ नरमी से कहा, ‘‘ये कोई बड़ी मुश्किल नहीं. बस कबीर की ओर गन तान कर फायर कर देना. निशाना खुदबखुद लग जाएगा.’’

विक्रम कुछ बोलने जा ही रहा था कि औफिसर ने अपने टेबल की ड्राअर से एक पिस्टल निकाल कर उस के हाथ में थमा दी.

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विक्रम गन हाथ में आते ही यूं चौंका मानो उस के हाथ में जहरीला सांप आ गया हो.

औफिसर ने खड़े होते हुए ठंडे लहजे में कहा, ‘‘ओके, नाउ यू कैन गो. और वक्त पर पहुंच जाना दोनों होटल हौलीडे इन में. आज रात टीवी न्यूज की हैडलाइन कबीर की सनसनीखेज हत्या से ही शुरू होनी चाहिए. नहीं तो कल सुबह की हैडलाइन में तुम दोनों के ही फोटो होंगे. ऐक्ट्रैस निया के हत्यारे गिरफ्तार.’’

विक्रम और साहिल हारे हुए जुआरी की तरह पिस्टल जेब में डाल कर पुलिस स्टेशन से बाहर चल दिए. बाहर जाते ही विक्रम ने साहिल की ओर देखा फिर धीमे स्वर में बोला, ‘‘चलो, तुम्हारे फ्लैट में चलते हैं. वहां शांति से बैठ कर सोचेंगे.’’

साहिल ने सिर हिला कर हामी भरी और दोनों एक आटो में सवार हो कर साहिल के फ्लैट की ओर चल दिए. फ्लैट के अंदर पहुंचते ही विक्रम हताशा से वहीं फर्श पर लेट गया. लग रहा था मानो उस में कोई जान ही न हो. साहिल फ्रिज से पानी ले कर आया और विक्रम को देते हुए निराश स्वर में बोला, ‘‘यार, अब यूं हताश होने से कोई फायदा नहीं. हम ऐसे फंस गए हैं कि निकलने का कोई रास्ता नहीं है अब.’’

यह सुनते ही विक्रम उठ कर बैठ गया. फिर साहिल को घूरते हुए जोर से बोला, ‘‘तो क्या तू ये कहना चाहता है कि हम दोनों अपने ही हाथों से अपने बौस की हत्या कर दें?’’

‘‘और कोई रास्ता बचा है क्या? बता तू ही.’’ साहिल ने झल्लाते हुए कहा.

विक्रम अपना सिर थामते हुए चीखा, ‘‘उफ्फ क्यों? कल क्यों हम ने निया की गाड़ी में लिफ्ट ली?’’

साहिल कुछ बोलने ही वाला था कि उस के मोबाइल की रिंग बजने लगी, ‘‘हैलो!’’

कहते ही उधर से रोहित की आवाज आई, ‘‘हैलो साहिल, कहां हो यार? पता है आज मिस्टर कबीर ने होटल हौलीडे इन में कौन्फ्रैंस रखी है. मतलब कि आज औफिस से छुट्टी.’’

साहिल का दिल धड़क उठा. वह पसीना पोंछते हुए बोला, ‘‘अभी मैं बाहर मार्केट में हूं, तुझ से थोड़ी देर बाद काल करता हूं.’’

और उस ने काल कट कर दी.

फिर विक्रम और साहिल दोनों ही खामोशी से विचार करते हुए बैठे रहे.

सोचविचार करने के बाद आखिर दोनों इसी नतीजे पर पहुंचे कि 3 बजे ही यहां से निकल कर होटल हौलीडे इन चलते हैं. वहां पहुंचने में एक घंटा तो लग ही जाएगा, फिर पार्किंग की ओर जा कर किसी गाड़ी के पीछे छिप जाएंगे. जैसे ही कबीर वाहं आएगा तो उसे गोली मार कर भाग निकलेंगे.

पूरा प्लान डिसकस करने के बाद विक्रम और साहिल निकल पड़े होटल की ओर.

4 बजे के करीब विक्रम और साहिल आटो से होटल के कुछ पहले ही उतर गए. फिर पैदल ही होटल की ओर चल दिए. गेट के पास खड़े सिक्योरिटी गार्ड्स के पास से धड़कते दिल से गुजर कर दोनों पार्किंग की ओर चल दिए.

वहां कई गाडि़यां खड़ी थीं और 2 गार्ड्स भी तैनात थे.

वे दोनों के गार्ड्स के पास से यूं गुजरे मानो किसी की तलाश कर रहे हों. फिर मौका पाते ही वे दोनों एक ब्लैक औडी के पीछे छिप कर पौने 5 बजने का इंतजार करने लगे.

एकएक पल किसी युग की तरह बीत रहा था. दोनों की ही निगाहें बेसब्री से कबीर की प्रतीक्षा कर रही थीं. तभी 5 बजने से कुछ ही मिनट पहले कबीर की मर्सिडीज होटल के पार्किंग की ओर आती हुई दिखी.

विक्रम की अंगुलियां जेब में पड़ी हुई पिस्टल के ट्रिगर पर कस गईं. उस के दिल की धड़कनें इस कदर बढ़ गई थीं मानो दिल अभी सीने से निकल कर बाहर आ जाएगा.

साहिल फुसफुसाते हुए बोला, ‘‘विक्रम, घबराना मत. बस कबीर को देखते ही ट्रिगर दबा देना.’’

विक्रम ने कोई जवाब नहीं दिया. वह तो बस टकटकी लगाए कबीर की गाड़ी की ओर देख रहा था जो अभी पार्किंग में आ कर रुकी थी.

और तभी ड्राइवर ने जल्दी से उतर कर पिछला दरवाजा खोला और शानदार सूट में सजेधजे कबीर ने बाहर कदम रखा.

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विक्रम ने पिस्टल निकाली और औडी के पीछे छिपेछिपे ही उस ने कबीर के सीने का निशाना ले कर पूरी ताकत से ट्रिगर दबा दिया.

अगले ही क्षण कबीर सीने पर हाथ रखे चीखता हुआ नीचे गिर पड़ा.

कबीर के पास खड़ा ड्राइवर जोर से चिल्लाते हुए उन्हें उठाने दौड़ा. पलभर में ही कबीर के इर्दगिर्द भीड़ जमा हो गई. विक्रम और साहिल इसी भीड़ का फायदा उठाते हुए होटल के बाहर वाले गेट की ओर दौड़ पड़े.

गेट के बाहर ही एक गाड़ी खड़ी थी. उस में बैठे ड्राइवर ने हाथ हिला कर इशारा किया और विक्रम और साहिल उस गाड़ी की ओर तेजी से लपके.

कुछ ही मिनटों में गाड़ी फर्राटे भरती हुई सड़क पर भागने लगी. पिछली सीट पर बदहवास बैठे विक्रम और साहिल इस कदर  सहमे हुए थे कि उन के मुंह से बोल तक नहीं फूट रहा था.

कोई एक घंटे बाद गाड़ी एक पुरानी सी इमारत के पास जा कर रुक गई.

गाड़ी रुकते ही ड्राइवर ने पीछे मुड़ कर कहा, ‘‘उतरिए, आप की मंजिल आ गई.’’

विक्रम और साहिल ने नीचे उतर कर देखा, उस पुरानी इमारत के सामने ही वह पुलिस औफिसर खड़ा था. उस ने आगे बढ़ कर विक्रम और साहिल का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘वेलकम वेलकम. वैरी गुड. क्या निशाना लगाया है तुम ने. एक्सीलेंट. लाओ अब वह गन मुझे वापस कर दो. तुम्हारे लिए खतरा साबित हो सकती है.’’

विक्रम ने कांपते हाथों से गन अपने पौकेट से निकाली और औफिसर को देते हुए बोला, ‘‘अब तो हम लोग आजाद हैं न? हम अपने घर जा सकते हैं न?’’

‘‘ओह श्योर. बिलकुल जा सकते हो अब अपनेअपने घर. बट एक बात का ध्यान रखना कि कभी भूल से भी किसी के सामने आज और कल रात की घटना का जिक्र भी न करना, क्योंकि इस पिस्टल पर तुम्हारी अंगुलियों के ही निशान हैं, इसलिए भलाई इसी में है कि ये सब भूल कर अब नई जिंदगी की शुरुआत करो. ये ड्राइवर तुम्हें तुम्हारे स्टौप पर ड्रौप कर देगा. ओके.’’

जल्दी ही विक्रम और साहिल को उन के एड्रैस पर छोड़ कर वह ड्राइवर चला गया.

डरेसहमे विक्रम ने किसी तरह अपने को संभाला और नौर्मल दिखने की पूरी कोशिश करते हुए अपने फ्लैट की डोरबैल बजाई.

अंदर से जब कोई रिप्लाई नहीं मिला तो विक्रम ने अपने पास की चाबी से लौक खोला और फ्लैट में घुसा. अंदर एकदम अंधेरा छाया हुआ था. इस नीरव खामोशी से घबरा कर विक्रम ने लाइट औन करते हुए जोर से नीता को पुकारा, ‘‘नीता…कहां हो तुम?’’

पर नीता को फ्लैट में न पा कर विक्रम एकदम हैरान हो उठा. फिर उस की हैरानी तब और बढ़ गई जब उस ने देखा कि नीता का कपबर्ड खुला हुआ है और उस में रखी उस की पर्सनल चीजें और कई कपड़े गायब हैं.

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जिम्मेदारी बनती है कि नहीं: भाग 1

पापा और बूआ की बातें मैं सुन रहा था. अकसर ऐसा होता है न कभीकभी जब आप बिना कुछ पूछे ही अपने सवालों के जवाब पा जाते हैं. कहीं का सवाल कहीं का जवाब बन कर सामने चला आता है. नातेरिश्तेदारी की कटुता दोस्ती की कटुता से कहीं ज्यादा दुखदायी होती है क्योंकि रिश्तेदार को हम बदल नहीं सकते जबकि दोस्ती में ऐसी कोई मजबूरी नहीं होती. न पसंद आए तो दोस्त को बदल दो, छोड़ दो उसे, ऐसी क्या मजबूरी कि निभाना ही पड़े?

‘‘मनुष्य हैं हम और समाज में हर तरह के प्राणी से हमारा वास्ता पड़ता है,’’ पापा बूआ को समझाते हुए बोले, ‘‘जहां रिश्ता बन जाए वहां अगर कटुता आ जाए तो वास्तव में बहुत तकलीफ होती है. न तो छोड़ा जाता है और न ही निभाया जाता है. बस, एक बीच का रास्ता बच जाता है. फीकी बेजान मुसकान लिए स्वागत करो और दिल का दरवाजा सदा के लिए बंद. अरे भई, हमारा दिल तो प्यार के लिए है न, जहां नफरत नहीं रह सकती क्योंकि हमें भी तो जीना है न. नफरत पाल कर हम कैसे जिएं. किसी इनसान का स्वभाव यदि सामने वाले को नंगा करना ही है तो हम कब तक नंगा होना सह पाएंगे?’’

बूआ के घर कोई उत्सव है और उन का देवर जबतब उन के हर काम में बाधा डाल रहा है. बचपन से बूआ उस के साथ थीं, मां बन कर बूआ ने अपने देवर को पाला है. जब बूआ की शादी हुई तब उन का देवर मात्र 5 साल का था.

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मांबाप नहीं थे, इसलिए जब भी बूआ मायके आती थीं तो वह भी उंगली पकड़े साथ होता था. हम अकसर सोचते थे कि बूआ तो नई ब्याही लगती ही नहीं. शादी होते ही वह एकदम से सयानी सी लगने लगी हैं. मैं तब 7-8 साल का था जब बूआ की शादी हुई थी. अकसर मां का बूआ से वार्तालाप कानों में पड़ जाता था :

‘सजासंवरा तो कर गायत्री. तू तो नई ब्याही लगती ही नहीं.’

‘इतना बड़ा बच्चा साथ चले तो क्या नई ब्याही बन कर चलना अच्छा लगता है, भाभी. सभी राजू को मेरा बच्चा समझते हैं. क्या 5 साल के बच्चे की मां दुलहन की तरह सजती है?’

मात्र 20 साल की मेरी बूआ मंडप से उठते ही 5 साल के जिस बच्चे की मां बन चुकी थीं वही बच्चा आज बातबेबात बूआ का मन दुखा रहा है…जिस पर वह परेशान हैं. बूआ के बेटे की शादी थी. बूआ न्योता देने गई थीं जिस पर उस ने रुला दिया था.

‘‘आज याद आई मेरी.’’

‘‘कल ही तो कार्ड छप कर आए हैं. आज मैं आ भी गई.’’

‘‘कुछ सलाहमशविरा तक नहीं, मुझ से रिश्ता करने से पहले…कार्ड तक छप गए और मुझे पता तक नहीं कि बरात का इंतजाम कहां है और लड़की काम क्या करती है.’’

स्तब्ध बूआ हैरानपरेशान रह गई थीं. इस तरह के व्यवहार की नहीं न सोची थी. बूआ कुछ कार्ड साथ भी ले गई थीं देवर के मित्रों और रिश्तेदारों के लिए.

‘‘रहने दो, रहने दो, भाभी, बेइज्जती करती हो और न्योता भी देने चली आईं, न मैं आऊंगा और न ही मेरे ससुराल वाले. कोई नहीं आएगा तुम्हारे घर पर…तुम ने हमारे रिश्तेदारों की बेइज्जती की है… पहले जा कर उन से माफी मांगो.’’

‘‘बेइज्जती की है मैं ने? लेकिन कब, किस की बेइज्जती की है मैं ने?’’

‘‘भाभी, तुम ने अपने बेटे का रिश्ता करने से पहले हम से नहीं पूछा, मेरे ससुराल वालों से नहीं पूछा.’’

‘‘मेरे घर में क्या होगा उस का फैसला क्या तुम्हारे ससुराल वाले करेंगे या तुम करोगे? हम लड़की देखने गए, पसंद आई…हम ने उस के हाथ पर शगुन रख दिया. 15 दिन में ही शादी हो रही है. तुम्हारे भैया और मैं अकेले किसी तरह पूरा इंतजाम कर रहे हैं…राहुल को छुट्टी नहीं मिली. वह सिर्फ 2 दिन पहले आएगा, अब हम तुम्हारे ससुराल वालों से माफी मांगने कब जाएं? और क्यों जाएं?’’

‘‘भाभी, तुम लोग जरा भी दुनियादारी नहीं समझते. तुम ने अपने घर का मुहर्त किया, वहां भी मेरे ससुराल वालों को नहीं बुलाया.’’

‘‘वहां तो किसी को भी नहीं बुलाया था. तुम भी तो वहीं थे. सिर्फ घर के लोग थे और हम ने पूजा कर ली थी, फिर उस बात को तो आज 2 साल हो गए हैं. आज याद आया तुम्हें गिलाशिकवा करना जब मैं तुम्हें शादी का न्योता देने आई हूं.’’

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पुत्र समान देवर का कूदकूद कर लड़ना बूआ समझ नहीं पा रही थीं. न जाने कबकब की नाराजगी और नाराजगी भी वह अपने ससुराल वालों को ले कर जता रहा था जिन से बूआ का कोई वास्ता न था.

समधियाना तो फूलों की खुशबू की तरह होता है जहां हमें सिर्फ इज्जत देनी है और लेनी है. फूल की सुंदरता को दूर से महसूस करना चाहिए तभी उस की सुंदरता है, हाथ लगा कर पकड़ोगे तो उस का मुरझा जाना निश्चित है और हाथ भी कुछ नहीं आता.

कुछ रिश्ते सिर्फ फूलों की खुशबू की तरह होते हैं जिन के ज्यादा पास जाना उचित नहीं होता. पुत्र या पुत्री के ससुराल वाले, जिन से हमारा मात्र तीजत्योहार या किसी कार्यविशेष में मिलना ही शोभा देता है. ज्यादा आनाजाना या दखल देना अकसर किसी न किसी समस्या या मनमुटाव को जन्म देता है क्योंकि यह रिश्ता फूल की तरह नाजुक है जिसे बस दूर से ही नमस्कार किया जाए तो बेहतर है.

देवर बातबेबात अपने ससुराल वालों को घर पर बुलाना चाहता था जिस पर अकसर बूआ चिढ़ जाया करती थीं. हर पल उन का बूआ के घर पर पसरे रहना फूफाजी को अखरता था. हर घर की एक मर्यादा होती है जिस में बाहर वाले का हर पल का दखल सहन नहीं किया जा सकता. अति हो जाने पर फूफाजी ने भाई को अलग हो जाने का संदेशा दे दिया था जिस पर काफी बावेला मचा था. जिसे पुत्र बना कर पाला था वही देवर बराबर की हिस्सेदारी मांग रहा था.

‘‘कौन सा हिस्सा? हमारे मांबाप जब मरे तब हम किराए के घर में रहते थे और तुम 2 साल तक ननिहाल में पलते रहे. अपनी शादी के बाद मैं तुम्हें अपने घर लाया और पालपोस कर बड़ा किया. अपने बेटे के मुंह का निवाला छीन कर अकसर तुम्हारे मुंह में डाला…कौन सा हिस्सा दूं मैं तुम्हें? हमारे मातापिता कौन सी दौलत छोड़ कर मरे थे जिसे तुम्हारे साथ बांटूं. मैं ने यह सबकुछ अपने हाथ से कमाया है. तुम भी कमाओ. मेरी तुम्हारे लिए अब कोई जिम्मेदारी नहीं बनती.’’

‘‘आप ने कोई एहसान नहीं किया जो पालपोस कर बड़ा कर दिया.’’

‘‘मैं ने जो किया वह एहसान नहीं था और अब जो तुम करने को कह रहे हो उस की मैं जरूरत नहीं समझता. हमें माफ करो और जाओ यहां से…हमें चैन से जीने दो.’’

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फूफाजी ने जो उस दिन हाथ जोड़े, उन्हीं पर अड़े रहे. मन ही मर गया उन का. क्या करते वह अपने भाई का?

‘‘यह कल का बच्चा ऐसी बकवास कर गया. आखिर क्या कमी रखी मैं ने? न लाता ननिहाल से तो कोई मेरा क्या बिगाड़ लेता, पलता वहीं मामा के परिवार का नौकर बन कर. आज इज्जत से जीने लायक बन गया तो मेरे ही सिर पर सवार…हद होती है बेशर्मी की.’’

वह अलग घर में चला गया था लेकिन मौकेबेमौके उस ने जहर उगलना नहीं छोड़ा था. बूआ के बेटे की शादी का नेग उस ने उठा कर घर से बाहर फेंक दिया था. बीमार हो गई थीं बूआ.

‘‘क्या हो गया है इस लड़के की बुद्धि को. हमारा ही दुश्मन बना बैठा है. हम ने क्या नुकसान कर दिया है इस का. इज्जत के सिवा और क्या चाहते हैं इस से,’’ बूआ का स्वर पुन: कानों में पड़ा.

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जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

जिम्मेदारी बनती है कि नहीं: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- जिम्मेदारी बनती है कि नहीं: भाग 1

‘‘भूल जाओ न उसे,’’ पापा बोले थे, ‘‘समझ लो उस का कोई भी अस्तित्व कहीं है ही नहीं. शरीर का जो हिस्सा सड़गल जाए उसे काट कर अलग करना ही पड़ता है वरना तो सारा शरीर गलने लगता है… तुम्हारा अपना बेटा शादी कर के अपने घर में खुश है न, तुम पतिपत्नी चैन से जीते क्यों नहीं? क्यों उठतेबैठते उसी का रोना ले कर बैठे रहते हो?’’

‘‘अपना बेटा खुश है और यह कौन सा पराया था. भैया, हम ने कभी इस की खुशी पर कोई रोक नहीं लगाई. अपने बेटे पर उतना खर्च नहीं किया जितना इस पर करते रहे. इस की पढ़ाई का कर्ज हम आज तक उतार रहे हैं. अपना बेटा तो वजीफे से ही पढ़ गया. जहां इस ने कहा, वहीं इस की शादी की. अब और क्या करते. कम से कम अपने घर में चैन से जीने तो देता हमें…हमारे पीछे हाथ धो कर पड़ना उस ने अपना अधिकार बना लिया है. हम खुश हुए नहीं कि जहर उगलना शुरू. चार लोगों में तमाशा बनाना जैसे शगल है उस का…अभी राहुल के घर बच्चा होगा…’’

‘‘तब मत बुलाना न उसे. जब तुम जानती हो कि वह तुम्हारा तमाशा बनाता है तब काट कर फेंक क्यों नहीं देतीं उसे.’’

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‘‘भैया, वह अपना है.’’

‘‘अपना समझ कर सब सहन करती हो उसी का तो वह फायदा उठाता है. शायद वह तुम पर वही अधिकार चाहता है, जो तब था जब तुम ब्याह कर उस घर में गई थीं. तुम ने अपनी संतान तब पैदा की थी जब तुम्हारा देवर 10 साल का था. इतने साल का उस का एकाधिकार छिन जाना उस से सहा नहीं गया. अपनी सीमा रेखा भूल गया.

‘‘ऐसी मानसिकता धीरेधीरे प्रबल होती गई. उस का अपमानित करना बढ़ता गया और तुम्हारी सहनशक्ति बढ़ती गई. मोहममता की मारी तुम उसे बालहठ समझती रहीं. दबी आवाज में मैं ने तुम से पहले भी कहा था, ‘अपने बेटे और देवर में उचित तालमेल रखो. जिस का जितना हक बनता है उसे न उस से ज्यादा दो और न ही कम.’ अब त्याग दो उसे. अपने जीवन से निकाल दो अभी.’’

स्तब्ध रह गया हूं मैं आज. मेरे पिता जो सदा निभाना सिखाते रहे, आज काट कर फेंक देना सिखाने लगे.

‘‘वो जमाना नहीं रहा अब जब हम आग का दरिया पचा जाया करते थे और समुंदर के समुंदर पी कर भी जाहिर नहीं होने देते थे. आज का इनसान इतना सहनशील नहीं रहा कि बुराई पर बुराई सहता रहे और खून के घूंट पी कर भी मुसकराता रहे.

‘‘आज हर तीसरा इनसान अवसाद में जी रहा है. आखिर क्यों? पढ़ाईलिखाई ने तहजीब में रहना सिखाया है न इसीलिए तहजीब ही निभातेनिभाते हम अवसाद का शिकार हो जाते हैं. जो लोग कुत्तेबिल्ली की तरह लड़ा करते हैं वे तो अपनी भड़ास निकाल चुकते हैं न, भला वे क्यों जाएंगे अवसाद में.

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‘‘संस्कारी और तहजीब वाला इनसान खुद पर ही जुल्म करे, क्या इस से यह अच्छा नहीं कि वह उस इनसान से ही किनारा कर ले. भूल जाओ उस 5 साल के बच्चे को जो कभी तुम्हारा हर पल का साथी था. अब बहुत बदल चुका है वह. समझ लो वह इस शहर में ही नहीं रहता. सोच लो अमेरिका चला गया है…दिल को खुश रखने को यह खयाल क्या बुरा है गायत्री?’’

कुछ कचोटने लगा है मुझे. मेरे आफिस में मेरा एक घनिष्ठ मित्र है जो आजकल बदलाबदला सा लगने लगा है. पिछले 10 साल से हम साथसाथ हैं. अच्छी दोस्ती थी हम में. जब से मेरा प्रोमोशन हुआ है, वह नाखुश सा है. जलन वाली तो कोई बात ही नहीं है क्योंकि उस का क्षेत्र मेरे क्षेत्र से सर्वदा अलग है. ऐसा तो है ही नहीं कि उस की कोई शह मेरी गोद में चली आई हो. कटाकटा सा भी रहता है और मौका मिलते ही चार लोगों के बीच अपमानित भी करता है. पिछले 6 महीने से मैं उस का यह व्यवहार देख रहा हूं, कोशिश भी की है कि बैठ कर पूछूं मगर पता नहीं क्यों वह अवसर भी नहीं देता. कभीकभी लगता है वह मुझ से दुश्मनी भी निकाल रहा है. अपना व्यवहार भी मैं पलपल परख रहा हूं कि कहीं मैं ही कोई भूल तो नहीं कर रहा.

हैरान हूं मैं. मैं तो आज भी वहीं खड़ा हूं जहां कल खड़ा था, ऐसा लगता है वही दूर जा कर खड़ा हो गया है और बातबेबात मेरा उपहास उड़ा रहा है. धीरेधीरे दुखी रहने लगा हूं मैं. आखिर मैं कहां भूल कर रहा हूं. काम में जी नहीं लगता. ऐसा लगता है कोई प्यारी चीज हाथ से निकली जा रही है. शायद मेरे स्नेह का निरादर कर उसे अच्छा लगता है.

‘‘अपनेआप के लिए भी तुम्हारी कोई जिम्मेदारी बनती है न गायत्री. अपने पति के प्रति, अपनी सेहत के प्रति… अपने लिए जीना सीखो, बच्ची.’’

पापा अकसर प्यार से बूआ को बच्ची कहते हैं. बूआ की अपने देवर के प्रति ममता तो मैं बचपन से देखता आ रहा हूं आज ऐसी नौबत चली आई कि उसी से बूआ को हाथ खींचना पड़ेगा… क्योंकि बूआ अवसाद में जा चुकी है. डिप्रेशन का मरीज जब तक डिप्रेशन की वजह से दूर न होगा, जिएगा कैसे.

‘‘कोई भी रिश्ता तभी तक निभ सकता है जब तक दोनों ही निभाने के इच्छुक हों. अमृत का भरा कलश केवल एक बूंद जहर से विषाक्त हो जाता है. हमारा मन तो मानवीय मन है जिस पर इन बूंदों का निरंतर गिरना हमें मार न दे तो क्या करे.

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‘‘अपना निरादर कराना भी तो प्रकृति का अपमान है न. सहना भी तभी तक उचित है जब तक आप सह पाएं. सहने की अति यदि आप को या हमें मारने लग जाए तो क्यों न हाथ खींच लिया जाए, क्योंकि रिश्तों के साथसाथ अपने प्रति भी हमारी कोई जिम्मेदारी है न. क्यों कोई आप के प्यार और अपनत्व का तिरस्कार करता रहे, क्यों आप के वात्सल्य और स्नेह को कोई अपनी जागीर ही समझ कर जब चाहे पैर के नीचे रौंद दे और जब चाहे जरा सा पुचकार दे.

‘‘अब छोटा बच्चा नहीं है वह कि तुम हाथ खींच लोगी तो मर जाएगा. 2 बच्चों का बाप है. अपने आलीशान घर में रहता है. तुम्हारे घर से कहीं बड़ा घर है उस का. क्या कभी बुलाता है वह तुम्हें? क्या तुम से कभी पूछता है वह कि तुम जिंदा हो या मर गईं?

‘‘उसे उतना ही महत्त्व दो जिस के वह लायक है. संकरे बर्तन में ज्यादा वस्तु डाली जाए तो वह छलक कर बाहर निकलती है. यह इनसानी फितरत है बच्ची, पास पड़ी शह की मनुष्य कद्र नहीं करता. जो मिल जाए वह मिट्टी और जो खो जाए वह सोना, तो सोना बनो न पगली…मिट्टी क्यों बनती हो?’’

चुप हो गए पापा. शायद बूआ पर नींद की गोली का असर हो चुका है. गहरी पीड़ा में हैं बूआ. क्षमता से ज्यादा जो सह चुकी हैं.

फूफाजी और पापा बाहर चले आए. हमारा पूरा परिवार बूआ की वजह से दुखी है. निर्णय हुआ कि कुछ दिन दोनों राहुल के पास बंगलौर चले जाएंगे इस माहौल से दूर. शायद जगह बदल कर बूआ को अच्छा लगे.

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हफ्ता भर बीत चुका है. अब मैं अपने नाराज चल रहे मित्र की तरफ देखता ही नहीं हूं. जरूरी बात भी नहीं करता. पास से निकल जाता हूं जैसे उसे देखा ही नहीं. पहले उस के लिए रोज जूस मंगवाता था, अब सिर्फ अपने ही लिए मंगवाता हूं. नतीजा क्या होगा मैं नहीं जानता मगर मैं चैन से हूं. कुंठा तंग नहीं करती, ऐसा लगता है अपनेआप पर दया कर रहा हूं. क्या करूं मेरे लिए भी तो मेरी कोई जिम्मेदारी बनती है न. पापा सच ही तो कह रहे थे, किसी के लिए मिट्टी भी क्यों बना जाए. सहज उपलब्ध हो कर क्यों अपना मान घटाया जाए. आखिर हमारे आत्मसम्मान के प्रति भी हमारी कोई जिम्मेदारी बनती है कि नहीं.

लड़ाई जारी है : भाग 3

‘भाभी, अगर आपके ऐसे ही विचार हैं तो क्यों यहाँ इसे लेकर डाक्टरी की परीक्षा दिलवाने लाई, अरे, कोई भी लड़का देखकर बाँध देती उससे…वह इसे चाहे जैसे भी रखता….’ मन कड़ा करके मनीषा ने कहा था .

भाभी कुछ बोल नहीं पाई थीं पर उस दिन के बाद से सुकन्या उसके और करीब आ गई थी, कोई भी परेशानी होती, उससे सलाह लेती . बाद में उसने सुकन्या को समझाते हुए कहा था,‘ बेटा, औरत का चरित्र एक ऐसा शीशा है जिस पर लगी जरा सी किरच पूरी जिंदगी को बदरंग कर देती है और फिर तेरी माँ तो गाँव की भोली-भाली औरत है, दुनिया की चकाचौंध से दूर…अपने आँचल के साये में फूल की तरह सहेज कर तुझे पाला है, तभी तो जरा से झटके से वह विचलित हो उठी हैं…. तू उसे समझने की कोशिश कर .’

भाभी सुकन्या को लेकर चली गईं . दादी ने जब सुकन्या के विवाह का प्रस्ताव रखा तो वह मना नहीं कर पाईं . सुकन्या अपनी लड़ाई अपने आप लड़ रही थी . इसी बीच रिजल्ट निकल आया . सुकन्या का नाम मेडिकल के सफल प्रतियोगी की लिस्ट में पाकर दादाजी बेहद प्रसन्न हुये . दादी के विरोध के बावजूद उन्होंने उन्हें यह कर मना लिया,‘ जरा सोचो हमारी सुकन्या न केवल हमारे घर वरन् हमारे गाँव की पहली डाक्टर होगी . मेरा सीना तो गर्व से चौड़ा हो गया है .’

पिताजी के मन में द्वन्द था तो सिर्फ इतना कि सुकन्या शहर में अकेली कैसे रहेगी ? तब उसने कहा था,‘ सुकन्या गैर नहीं, मेरी भी बेटी है, अगर आप सबको आपत्ति है तो उसकी जिम्मेदारी मैं लेती हूँ  .’

संयोग से उसके शहर के मेडिकल कालेज में ही सुकन्या का एडमीशन हो गया . अनुराधा भी सुकन्या का हौसला बढ़ाने लगी पर माँ का वही हाल रहा .

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इसी बीच पिताजी चल बसे….सुकन्या टूट गई थी . एक वही तो थे जो उसका हौसला बढ़ाते थे वरना माँ के व्यंग्य बाण तो उसके कोमल मन को तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे . पता नहीं किस जन्म का बैर वह उसके साथ निकाल रही थीं . उन्हें लगता था कि घर की सारी परेशानी की जड़ सुकन्या ही है, पढ़ लिख कर नाक ही कटवायेगी….. अनुराधा असमंजस में थी न वह सास को कुछ कह पाती थी और न ही बेटी का पक्ष ले पाती थी क्योंकि अगर वह ऐसा करती तो सुकन्या के साथ सास के व्यंग्यबाणों का शिकार उसे भी होना पड़ता था… . जल में रहकर मगर से बैर कैसे लेती…? धीरे-धीरे सुकन्या ने घर जाना बंद कर दिया जब भी छुट्टी मिलती वह उसके पास आ जाती थी .

‘ आपका गंतव्य आ गया .’  जी.पी.एस. ने सूचना दी .

मनीषा कार पार्क करके रिसेप्शनिस्ट से जानकारी लेकर, आई़.सी.यू. में पहुँची . उसे देखकर सुकन्या उसके पास आई तथा रूआँसे स्वर में बोली,‘ बुआ मेरी वजह से दादी की आज ये हालत है….’

‘ ऐसा नहीं सोचते बेटा, अगर तू नहीं होती तो हो सकता है, उनकी हालत और भी ज्यादा खराब हो जाती.’

विजिंटग आवर था अतः सुकन्या उसे लेकर आई.सी.यू में गई…

‘ पानी….’ दादी की आवाज सुनकर सुकन्या उन्हें चम्मच से पानी पिलाने लगी….

उसे देखकर माँ ने कुछ बोलना चाहा तो सुकन्या ने कहा,‘ दादी, आपकी तबियत ठीक नहीं है, आप कुछ मत बोलिये…. बुआ आप दादी के पास रहिये, मैं जरा डाक्टर से मिलकर आती हूँ .’

माँ की आँखों से बहते आँसू न चाहते हुये भी बहुत कुछ कह गये थे वरना जिस तरह का सीवियर अटैक आया था, अगर उन्हें तुरंत सहायता नहीं मिली होती तो न जाने क्या होता… जो माँ  कभी उसकी पढ़ाई की विरोधी थीं वही आज उसे दुआयें देती प्रतीत हो रही थीं .

विजिटिंग आवर समाप्त होते ही वह बाहर आई तथा अनुराधा भाभी के पास बैठ गई .

‘ दीदी, अगर सुकन्या न होती तो पता नहीं क्या हो जाता .’

‘ माँ दवा ले लो वरना तुम्हारी तबियत भी खराब हो जायेगी .’ सुकन्या पानी की बोतल के साथ माँ को दवाई देती हुई बोली . अनुराधा भाभी उसे ममत्व भरी निगाहों से देख रही थीं .

‘ लेकिन यह हुआ कैसे ?’ मनीषा ने पूछा .

‘ दीदी, माँ ने सुकन्या को बुलाया था . इस बार वह उनकी बात मानकर आ भी गई . उसके आते ही माँ ने उसके विवाह की बात छेड़ दी . जब उसने कहा कि अभी मैं तीन चार वर्ष विवाह के लिये सोच भी भी नहीं सकती क्योंकि मुझे पी.जी. करनी है . उसकी बात सुनकर वह बहुत नाराज हुईं . अचानक उनका शरीर पसीने से लथपथ हो गया तथा वह अपना सीना कसकर दबाने लगीं . सुकन्या उनकी दशा देखकर घबड़ा गई, उसने उन्हें चैक कराना चाहा तो माँ ने उसे झटक दिया…. तब सुकन्या ने रोते हुये कहा दादी प्लीज मुझे अपना इलाज करने दीजिये, अगर आपको कुछ हो गया तो मैं स्वयं को कभी माफ नहीं कर पाऊँगी .

माँ को हार्ट अटैक आया है . सुकन्या ने उन्हें वहीं दवा देकर स्थिति पर काबू पाया . उसने तुरंत हेल्पलाइन नम्बर मिलाकर अपनी परेशानी फोन उठाने वाले व्यक्ति को बताकर तुरंत एम्बुलेंस भिवानी की प्रार्थना की . उस भले मानस ने एम्बुलेंस भेज दी वरना कोरोना वायरस द्वारा हुये लॉक  डाउन के कारण आना ही मुश्किल हो जाता . जैसे ही हम चले , सुकन्या ने अस्पताल में किसी से बात की, उसकी पहचान के कारण तुरंत माँजी को एडमिट कर डाक्टरों ने उनकी चिकित्सा प्रारंभ कर दी . दीदी, सुकन्या ने तबसे पलक भी नहीं झपकाई है . समय पर दवा देना, लाना सब वही कर रही है . दीदी, उचित चिकित्सा के अभाव में पिताजी को तो बचा नहीं पाये पर माँ को नहीं खोना चाहती हूँ .’ भाभी के दिल का दर्द जुबान पर आ गया था .

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सुदेश की वजह से उसका रोज जाना तो नहीं हो पा रहा था पर फोन से हालचाल लेती रहती थी .  माँ ठीक हो रही हैं, सुनकर उसे संतोष मिलता . आखिर  सुदेश का क्वारेंन्टाइन भी पूरा हो गया था . सब ठीक रहा . माँ को भी अस्पताल से छुट्टी मिल गईं . माँ अभी काफी कमजोर थीं . सुकन्या को अपनी सेवा करता देख एक दिन वह उसका हाथ पकड़कर बोलीं,‘ बेटी मुझे क्षमा कर दे . मैंने तुझे सदा गलत समझा, बार-बार तुझे रोका टोका….’

‘ दादी प्लीज, आप दिल पर कोई बात न लें, अभी आप कमजोर हैं, आप आराम करें .’

‘ मुझे कुछ नहीं होगा बेटा, गलती मेरी ही है जो सदा अपने विचार तुझ पर थोपती रही…मैंने क्या-क्या नहीं कहा तुझे, पर तूने मेरी जान बचाई…मुझे नाज है तुझ पर….’ माँ ने कमजोर आवाज में उसे देखते हुये कहा .

‘ प्लीज दादी, अभी आपको आराम की विशेष आवश्यकता है….यह दवा ले लीजिए और सोने की कोशिश कीजिये .’ हाथ के सहारे माँ को उठाकर दवा खिलाते हुये सुकन्या ने कहा

माँ की तीमारदारी के साथ, इधर-उधर भागदौड़ करती, गाँव की भोली -भाली लड़की सुकन्या को अदम्य आत्मविश्वास से माँ की सेवा करते देख मनीषा सोच रही थी कि अगर मन में लगन हो तो औरत क्या नहीं कर सकती…!! उसे दया आती है उन दम्पत्तियों पर जो बेटों के लिये बेटियों का गर्भ में ही नाश कर देते हैं . वह क्यों भूल जाते हैं…बचपन से लेकर मृत्यु तक विभिन्न रूपों में समाज की सेवा में लगी नारी  हर रूप में अतुलनीय है . बदलते समय के साथ  सुकन्या जैसी नारियाँ अपने आत्मबल से आज समाज द्वारा निर्मित लक्ष्मण रेखा को तोड़ने में काफी हद तक कामयाब हो रही हैं…यह बात अलग है कि आज भी पुरूष तो पुरूष स्वयं स्त्रियाँ भी, ऐसी स्त्रियों के मार्ग में काँटे बिछा रही हैं….फिर भी लड़ाई जारी है की तर्ज पर ये लड़कियाँ आज अपना अस्तित्व कायम करने के लिये तत्पर हैं और करती रहेंगी…

लड़ाई जारी है : भाग 2

मेट्रिक में सुकन्या के 95 प्रतिशत अंक आये तो उसने भी डाक्टर बनने की अपनी इच्छा दादाजी के सामने प्रकट की . दादाजी जब तक कुछ कहते दादी कह उठीं,‘ लड़कियों को शिक्षा इसलिये दी जाती है जिससे उनका विवाह उचित जगह हो सके . कोई आवश्यकता नहीं डाक्टरी पढ़ने की…घर के काम में मन लगा, घर संभालने में तेरी पढ़ाई नहीं वरन् तेरी घर संभालने की योग्यता ही काम आयेगी .’

‘अरे भाग्यवान, अब समय बदल गया है, आजकल लड़कियाँ भी लड़कों की तरह पढ़ रही हैं और घर भी संभाल रही हैं . मनीषा तेरी वजह से ज्यादा नहीं पढ़ पाई किन्तु ससुराल में अपनी पढ़ाई पूरी कर कितने ही छात्रों को विद्यादान दे रही है . अपनी बहू की देख अगर यह पढ़ी होती तो क्या तेरे कटु वचन सुनती !! यह भी मनीषा की तरह ही नौकरी करते हुये अपने बच्चों का भविष्य संवार रही होती . मेट्रिक में हमारे घर में किसी के इतने अच्छे अंक नहीं आये जितने मेरी पोती के आये हैं…इसके बावजूद तुम ऐसा कह रही हो .’

‘ लड़की जात है ज्यादा सिर पर मत चढ़ाओ, बाद में पछताओगे .’ दादी बड़बड़ाती हुई अंदर चली गईं .

दादाजी बहुत दिनों से अम्माजी का सुकन्या के साथ रूखा व्यवहार देख रहे थे आज वह स्वयं पर संयम न रख पाये तथा दिल की बात जुबां पर आ ही गई . उन्होंने सुकन्या को उसकी इच्छानुसार मेडिकल में जाने के लिये अपनी स्वीकृति दे दी .

दादाजी से हरी झंडी मिलते ही सुकन्या ने बारहवीं की पढ़ाई करते हुये मेडिकल की तैयारी प्रारंभ कर दी . इसके लिये शहर से किताबें भी मँगवा लीं थीं . समय पर फार्म भी भर दिया . आखिर वह दिन भी आ गया जब उसे परीक्षा देने जाना था . वह अपने दादाजी के साथ परीक्षा देने जाने वाली थी कि अचानक दादी की तबियत खराब हो गई, आखिर दादाजी ने मनीषा को फोन कर अपने नौकर के साथ अनुराधा और सुकन्या को भेज दिया . साथ ही कहा बेटा, अगर तू न होती तो ऐसे अकेले इतने बड़े शहर में बहू को कभी अकेला न भेजता . उसने भी उन्हें चिंता न करने का आश्वासन दे दिया .

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परीक्षा वाले दिन मनीषा उसे परीक्षा सेंटर पर छोड़ने जाने लगी तो अनुराधा ने सुकन्या को दही चीनी खिलाते हुए  कहा,‘  बड़ा शहर है, अकेले इधर-उधर मत जाना…परीक्षा के बाद भी जब तक चंद्रेश, न पहुँच जाये तब तक इंतजार करना .’

मनीषा की एक मीटिंग थी जिसकी वजह से उसने चंद्रेश, अपने पुत्र को सुकन्या को एक्जामिनेशन सेंटर से लाने के लिये कह दिया था . शाम को परीक्षा समाप्त होने पर सुकन्या नियत स्थान पर खड़ी हो गई . लड़के-लड़कियाँ अपने-अपने घरों की ओर चल दिये . दस मिनट बीता, पंद्रह मिनट बीते…यहाँ तक कि आधा घंटा बीत गया . स्कूल का परिसर खाली होने लगा था…सूना परिसर उसे डराने लगा था . सुकन्या ने सोचा कि लगता हैं भइया किसी काम में फँस गये होंगे आखिर कब तक वह इसी तरह खडी रहेगी…!! शहर की भीड़-भाड़, चकाचौंध उसे आश्चर्यचकित कर रहे थे . गाँव से अलग एक नई दुनिया नजर आ रही थी . यहाँ लड़के -लड़कियाँ अपने स्कूटर से स्वयं आना जाना कर रहे थे जिनके पास स्वयं के वाहन नहीं थे ,वे आटो से जा रहे थे . अचानक उसे लगा अगर वह शहर की आत्मनिर्भर लड़कियों की तरह नहीं बन पाई तो पिछड़ जायेगी . कुछ हासिल करना है, तो हर परिस्थिति का मुकाबला करना होगा …  डर-डर कर नहीं वरन् हिम्मत से काम लेना होगा तभी वह जीवन में अपना लक्ष्य प्राप्त कर पायेगी .

बुआ का पता उसके पास ही था उसने आटो किया और चल दी . चंद्रेश वहाँ पहुँचा , सुकन्या को नियत स्थान पर न पाकर पूरे कालेज का चक्कर लगाकर घर पहुँचा .  उसे अकेले आया देखकर अनुराधा भाभी के तो होश ही उड़ गये . पहली बार सुकन्या घर से बाहर निकली है…इतना बड़ा शहर, पता नहीं कहाँ चली गई…? परीक्षा में मोबाइल ले जाना मना था अतः वह मोबाइल भी नहीं ले गई थी .

सुदेश चंद्रेश को डाँटने लगे कि वह समय पर क्यों नहीं पहुँचा . वह बेचारा भी सिर झुकाये बैठा था . वह करता भी तो क्या करता, ट्रेफिक जाम में ऐसा फँसा कि चाहकर भी समय पर नहीं पहुँच पाया . उसने तो सुकन्या से कहा भी था कि अगर देर भी हो जाये तो उसका इंतजार कर लेना पर उसके पहुँचने से पूर्व ही चली गई . इसी बीच मनीषा आ गई . मनीषा ने चंद्रेश को एक बार फिर सुकन्या को देखकर आने के लिये कहा . अनुराधा भाभी रोये जा रही थी…मनीषा भी डर गई थी पर भाभी को समझाने के अतिरिक्त कर भी क्या सकती थी . चंद्रेश जाने ही वाला था कि घंटी बजी . दरवाजा खोलते ही सुकन्या ने अंदर प्रवेश किया उसे देखकर भाभी तो मानो पागल हो उठी…

वह उसे मारती जा रही थीं तथा कह रही थीं,‘ अकेले क्यों आई ? कुछ और देर इंतजार नहीं कर सकती थी…कहीं कुछ हो जाता तो मैं क्या जबाब देती तेरे दादाजी को….बस हो गई पढ़ाई, नहीं बनाना तुझे डाक्टर, बस तेरा विवाह कर दूँ , मुझे मुक्ति मिल जाए .’

सुदेश अनुराधा के इस अप्रत्याशित रूप को देखकर अवाक् थे वहीं मनीषा ने भाभी की मनःस्थिति समझकर उन्हें शांत कराने का प्रयत्न करने लगी…इसके बावजूद भाभी स्वयं पर काबू नही रख पा रही थीं .

सुकन्या उससे लिपटकर रोती हुई कह रही थी,‘ बुआ, आखिर गलती क्या है मेरी, कब तक मैं किसी की बैसाखी के सहारे चलती रहूँगी…? आखिर ये बंदिशें सिर्फ लड़की के लिये ही क्यों हैं..? क्यों उसे ही सदा अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है…? मैं लड़की हूँ इसलिये मुझे शहर पढ़ने के लिये नहीं भेजा गया…गाँव के ही स्कूल में मैंने जैसे तैसे पढ़ा जबकि मुझसे दो वर्ष छोटा भाई, उसे इंजीनियर बनना है इसलिये उसका शहर के अच्छे स्कूल दाखिला करवा दिया . वह हॉस्टल में रहता है, अकेले आता जाता है, उस पर तो कोई बंदिश नहीं है….फिर मुझ पर क्यों ?’

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‘ भाभी, सुकन्या छोटी नहीं है, उसे अच्छे, बुरे का ज्ञान है . कब तक उसे अपने आँचल से बाँधकर रखोगी ? मुक्त कर दो उसे इन बंधनों से…तभी वह जीवन में कुछ कर पायेगी . क्या तुम चाहती हो कि वह भी तुम्हारी तरह ही घुट-घुट कर जीये…जिसके पल्लू से तुम उसे बाँध दो, उसी पर अपनी पूरी जिंदगी अर्पित कर दे . अपना अच्छा बुरा भी न सोच पाये . भाभी तुमने तो अपनी जिंदगी काट ली पर भगवान न करे इसकी जिंदगी में कोई हादसा हो जाए तो….उसे आत्मनिर्भर बनने दो .’ कहकर मनीषा ने सुकन्या को अपनी बाहों में भर लिया था .

भाभी की परेशानी वह समझ सकती थी . वह उन्हें ठेस नहीं पहुँचना चाहती थी पर उस समय अगर भाभी का पक्ष लेती तो सुकन्या के आत्मविश्वास और भावना को ही चोट पहुँचती जिससे वह अपने लक्ष्य से भटक सकती थी . वह उसे टूटते हुये नहीं वरन् सफल होते देखना चाहती थी तथा यह भी जानती थी कि सुकन्या का पक्ष लेना भाभी को खटकेगा, हुआ भी यही…अनुराधा भाभी आश्चर्य से उसकी ओर देखती रह गई, फिर धीरे से बोली,‘ दीदी, आपके दोनों बेटे हैं, आप नहीं समझ पाओगी, लड़की की माँ का दिल…..’

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

लड़ाई जारी है : भाग 1

‘बुआ, दादीं की तबियत ठीक नहीं है . वह तो एम्बुलेंस मिल गई वरना लॉक डाउन के कारण आना भी कठिन हो जाता . उन्हें मेडिकल कॉलेज में एडमिट करवा दिया है . पल्लव भी नहीं आ पा रहा है, माँ को तो आप जानती ही है, ऐसी स्थिति में नर्वस हो जाया करती हैं, यदि आप आ जायें तो….’ फोन पर परेशान सी सुकन्या ने कहा .

क्या, माँ बीमार है…पहले क्यों नहीं बताया ? शब्द निकलने को आतुर थे कि मनीषा ने अपनी शिकायत मन में दबाकर कहा …

‘ तू चिंता मत कर, मैं शीध्र से शीध्र पहुँचने का प्रयत्न करती हूँ….’

सुदेश जो आफिशियल कार्य से विदेश गये थे,  कल ही लौटे थे . उन्हें चौदह दिन का क्वारेंन्टाइन पूरा करना है . मनीषा ने उनके लिये खाना, पानी तथा फल इत्यादि कमरे के दरवाजे पर रखे स्टूल पर रख दिया तथा सुकन्या की बात उन्हें बताते हुये उनसे कहा कि वह जल्दी से जल्दी घर लौटने का प्रयत्न करेगी . आवश्यकता के समय लॉक डाउन में एक व्यक्ति तो जा ही सकता है…सोचकर उसने गाड़ी निकाली और चल पड़ी…. गाड़ी के चलने के साथ ही बिगड़ैल बच्चे की तरह मन अतीत की ओर चल पड़ा….

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सुकन्या, उसकी पुत्री न होकर भी उसके दिल के बहुत करीब है . वह उसके भाई शशांक और अनुराधा भाभी की पहली संतान है . घर में बीस वर्ष पश्चात् जब बेटी ने जन्म लिया तो सिवाय माँ के सबने उसका उत्साह से स्वागत किया था . भाई की तो वह आँखों का तारा थी….नटखट और चुलबुली….अनुप्रिया भाभी के लिये वह खिलौना थी . माँ की एक ही रट थी कि उन्हें घर का वारिस चाहिये . उनकी जिद का परिणाम था कि एक वर्ष पश्चात् वारिस आ भी गया . माँ तो पल्लव के आने से अत्यंत प्रसन्न हुई . भाभी पल्लव का सारा काम करके यदि सुकन्या की ओर ध्यान देती तो माँ खीज कर कहती, ‘न जाने कैसी माँ है, जो बेटे पर ध्यान ही नहीं देती है, अरे, बेटी तो पराया धन है, ज्यादा लाड़ जतायेगी तो बाद में पछतायेगी….’

‘ माँ इसीलिये तो इसे ज्यादा प्यार देना चाहती हूँ . बेटा तो सदा मेरे पास रहेगा…तब इसके हिस्से का प्यार भी तो वही पायेगा….’ कहकर वह मुस्करा देती और माँ खीजकर रह जाती .

कहते हैं कि खुशी की मियाद कम होती है, यही भाभी के साथ हुआ…तीस वर्ष की कमसिन उम्र में ही राजन भइया दो फूल उनकी झोली में डाल कर, एक एक्सीडेंट में चल बसे . भाभी की अच्छी भली जिंदगी बदरंग हो गई थी . कच्ची उम्र में विवाह हो जाने के कारण, भाभी की शिक्षा अधूरी रह गई थीं . मामूली नौकरी कर शहर में रहना पिताजी, उनके ससुरजी को नहीं भाया था . वैसे भी वे उन लोगों में थे जिन्हें औरतों का घर से निकलना पसंद नहीं था .

पिताजी भाभी और बच्चों को अपने साथ गाँव ले आये . यह सच है कि उन्होने भाभी को किसी तरह की कमी नहीं होने दी किन्तु माँ उन्हें सदा भाई की मृत्यु का दोषी मानतीं रहीं इसलिये उनके कोप का भाजन भाभी के साथ नन्हीं सुकन्या भी होती . यह सब पापा की अनुपस्थिति में होता…नतीजा यह हुआ कि भाभी तो चुप हो ही गई जबकि नन्हीं दस वर्षीया सुकन्या डरी-डरी अपने ही अंतःकवच में कैद होने लगी थी .

पिताजी के सामने खुश रहने का नाटक करते-करते भाभी थक गई थीं . रात के अँधेरे में मन चीत्कार कर उठता तो वह अवश बैठी चीत्कार को मन ही मन में दबाते हुए अपनी खुशी सुकन्या और पल्लव में ढूँढने का प्रयास करती . उसकी जिंदगी एक ऐसी कटी पतंग के समान बन गई थी जिसकी कोई मंजिल नहीं थी…बस दूसरों की सोच एवं सहारे जीना ही उनका आदि और अंत हो चला था . ससुराल के अलावा उनका कोई और था भी नहीं, माता पिता बचपन में चल बसे थे, जिन चाचा ने उन्हें पाला पोसा, विवाह किया, वे भी नहीं रहे थे . चाची अपने बेटों के सहारे जीवन बसर कर रही थीं . शशांक भाई की मृत्यु पर वह शोक जताने आई थीं…साथ में अपनी विवशता भी जता गईं . आज के युग में जब अपने भी पराये हो जाते हैं तो किसी अन्य से क्या आशा…!! भाभी ने स्वयं को वक्त के हाथों सौंप दिया था.

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जब भी मनीषा जाती तो भाभी दिल का दर्द उसके साथ बाँटकर हल्की हो लेती थी . भाभी के लाइलाज दर्द को वह भी कैसे कम कर पाती…? माँ से इस संदर्भ में बात करती तो वह कह देतीं कि तू अपना घर देख, मुझे अपना घर देखने दे . वह पापा को सारी बातें बताकर घर में दरार नहीं डालना चाहती थी अतः चुप ही रहती .

माँ सदा से ही डोमिनेंटिग थी . उन्हीं की इच्छा के कारण वह भी ज्यादा नहीं पढ़ पाई थी किन्तु उसका भाग्य अच्छा था जो पिता की मजबूत स्थिति के कारण उसके ससुर ने अपने आई.आई.टियन बेटे के लिए न केवल उसे चुना वरन उसकी इच्छानुसार पढ़ने की इजाजत भी दी थी . आज वह पी.एच.डी करके महिला विद्यालय में प्रोफेसर है .

पल्लव अपने पिता के समान तीक्ष्ण बुद्धि का था . वह इंजीनियर बनना चाहता था . जब वह पढ़ने बैठता तो दादी का प्यार उस पर उमड़ आता . वह स्वयं उसे अपने हाथ से खिलातीं जबकि सुकन्या को कुछ खिलाना तो दूर, जब भी वह पढ़ने बैठती, माँ कहतीं,‘ अरे, घर का काम सीख, किताबों में आँखें न फोड़, हमारे घर की लड़कियाँ नौकरी नहीं करतीं, हाँ, ससुराल वाले करवाना चाहें तो बात दूसरी है .’

एक बार मनीषा घर गई…सुकन्या सो गई थी तथा ननद भाभी अपने सुख-दुख बाँट रहीं थीं तभी सुकन्या बड़बड़ाने लगी…मुझे कोई प्यार क्यों नहीं करता…मुझे कोई प्यार नहीं करता … है भगवान मुझे पैदा ही क्यों किया…इसके साथ ही उसका पूरा शरीर पसीने से लथ-पथ हो गया था…. अस्फुट स्वर में कहे उसके शब्द मनीषा के मर्म को चोट पहुंचाने लगे . उसकी ऐसी हालत देखकर मनीषा ने अनुराधा से पूछा तो उसने कहा पिछले एक वर्ष से इसकी यही हालत है दीदी…शायद माँजी के व्यवहार ने इसे भयभीत कर दिया है . यह डरपोक और दब्बू बनती जा रही है…अब तो बात करने में हकलाने भी लगी है .

सुकन्या की हालत देखकर मनीषा ने माँ को समझाते हुये कहा, ‘ माँ तुम्हारा अपने प्रति ऐसा रवैया मैं आज तक नहीं भूली हूँ …. सुकन्या तुम्हारी पोती है तुम्हारे बेटे का अंश…. क्या तुम उसे दुख पहुँचकर अपने बेटे की स्मृतियों के साथ छल नहीं कर रही हो…? अगर भइया आज जीवित होते तो क्या वह अपनी बेटी के साथ तुम्हारा व्यवहार सह पाते ?  इस बच्ची से तुमने इसकी सारी मासूमियत छीन ली है…देखो कैसी डरी, सहमी रहती है . भाई की असामयिक मृत्यु तथा तुम्हारी प्रताड़ना से भाभी का जीवन तो बदरंग बन ही गया है, अब इस मासूम का जीवन बदरंग मत बनाओ .’

‘ तू अपनी सीख अपने पास ही रख, मुझे शिक्षा मत दे….’ तीखे स्वर में माँ ने कहा .

‘ माँ अब मैं पहले वाली मनीषा नहीं हूँ, मुझे पता है पापा को कुछ पता नहीं होगा…मैं तुम्हारी सारी बातें पापा को बता दूँगी .’

मनीषा की धमकी काम आई थी . माँ का सुकन्या के प्रति रवैया बदला था किन्तु अनु भाभी पर माँ बेटी में दरार डालने का आरोप भी लगा दिया .

मनीषा ने जाते हुए पल्लवी से कहा था, ‘बेटा, रो-रोकर जिंदगी नहीं जीई जाती…मेहनत कर…पढ़ाई में मन लगा, अच्छे नम्बर ला…. जब तू कुछ बन जायेगी तो तेरी यही दादी तुझे प्यार करेंगी . वह तुझे कमजोर करने के लिये नहीं वरन् मजबूत बनाने के लिये डाँटती हैं .’

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मनीषा ने उसके नन्हें दिल में विश्वास की नन्हीं लौ जगाई थी . वह जानती थी कि वह झूठ बोल रही है पर सुकन्या में आशा का संचार करने के लिये उसे यही उपाय समझ में आया था . सुकन्या ने उसकी बात कितनी समझी किन्तु अनुराधा कहती कि अब वह पढ़ाई में मन लगाने लगी है .

परिस्थतियों ने पल्लव को समय से पहले परिपक्व बना दिया था . पल्लव अपने पापा के समान इंजीनियर बनना चाहता था अतः दादाजी ने उसका दाखिला शहर के बोर्डिंग स्कूल में करवा दिया था . सुकन्या भी धीरे-धीरे अपने डर से निजात पाकर पढाई में मन लगाने की कोशिश करने लगी थी .

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

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