Hindi Story : कारागार – जेलर ने इकबाल को जिंदगी जीने की दी हिम्मत

Hindi Story : महिला एवं बाल विकास संबंधी संयुक्त समिति विधानमंडल दल, उत्तर प्रदेश की सभापति होने के नाते मैं समिति द्वारा विभिन्न जिलों में विभिन्न विभागों का स्थलीय निरीक्षण करने पहुंची थी. उसी सिलसिले में बिजनौर जिले में चिकित्सा, बाल कल्याण, समाज कल्याण, शिक्षा इत्यादि विभागों का निरीक्षण करने के बाद हम जिला कारागार पहुंचे.

जिला कारागार में हम लोग 17 नवंबर, 2018 की सुबह पहुंचने वाले थे, लेकिन 16 नवंबर, 2018 का कार्यक्रम समय से खत्म हो जाने के चलते हम लोग 16 की शाम को ही जिला कारागार पहुंच गए. तय समय से पहले पहुंच जाने पर भी जेल अधीक्षक ने बहुत व्यवस्थित ढंग से पूरी जेल का निरीक्षण कराया और जब तक हम लोग जेल का निरीक्षण कर के वापस हुए, तब तक जेल के प्रांगण में माइक, मेज, कुरसी, दरी वगैरह चीजें लगा कर प्रांगण को सभा स्थल जैसा बना दिया गया था. मेज पर कुछ शील्ड और मैडल भी रखे गए थे.

जेलर आकाश शर्मा ने आग्रह करते हुए कहा, ‘‘सभापति महोदयाजी, जेल में पिछले दिनों कुछ प्रतियोगिताएं हुई थीं. हम चाहते हैं कि विजेताओं को आप अपने हाथों द्वारा पुरस्कृत करें.’’

‘‘ठीक है, मैं कर दूंगी. किसकिस चीज की प्रतियोगिताएं हुई हैं?’’

‘‘जी, गायन, रंगोली, डांस, कैरम, शतरंज और निबंध प्रतियोगिताएं कराई गई थीं.’’

‘‘इतनी सारी प्रतियोगिताएं… यह तो बहुत अच्छी बात है.’’

बातचीत करते हुए हम लोग मंच तक पहुंचे और अपनीअपनी जगह पर बैठ गए.

जेलर महोदय ने अपने हाथ में माइक लिया और संचालन शुरू किया. सब से पहले दीप जला कर मेरा और समिति के सभी सदस्यों को मालाएं पहनाई गईं.

इस के बाद संचालक महोदय ने गायन और नृत्य प्रतियोगिता के पहले विजेता की पेशकश दिखाने की मु झ से इजाजत मांगी. मैं ने मुसकरा कर हां बोल दिया.

संचालक ने गायन प्रतियोगिता में पहले नंबर पर आए मुहम्मद इकबाल को आवाज दी. मुहम्मद इकबाल ने हंसतेमुसकराते माइक हाथ में लिया और जब गाना शुरू किया तो सब की नजरें उसी पर टिक गईं.

मुहम्मद इकबाल ने अपने गाने से सब का ध्यान खींच लिया था. ऐसा लगा, मानो दर्द में डूबा हुआ कोई अपनी दास्तान सुना रहा है.

चेहरे पर हलकी दाढ़ी रखे हुए, टीशर्ट और लोअर पहने हुए 34-35 साल का इकबाल बहुत सरल स्वभाव का दिख रहा था. उस के चेहरे के भाव में उस के अंदर समाया उस का दर्द साफ दिख रहा था. उस ने जो गाना गाया, उस के बोल थे, ‘बाकी सब सपने होते हैं अपने तो अपने होते हैं…’

बीच में कुछ लाइनें आईं. ‘सारी बंदिशों को तू पल में मिटा दे,

बीते गुजरे लमहों की सारी बातें तड़पाती हैं.

दिल की सुर्ख दीवारों पर बस यादें ही रह जाती हैं.’

लग रहा था कि यह गाना मुहम्मद इकबाल के लिए ही लिखा गया है. वह अपने बीते हुए कल को याद करता है. उस सुनहरे कल को फिर से जीना चाहता है, पर अब उस के अपने उस से दूर हो गए हैं. वह उन की यादों के सहारे ही अपनी जिंदगी गुजार रहा है. ‘आजा आ भी जा, मु झ को गले से लगा ले…’ लाइन में तो ऐसा लगा, जैसे उस का दुखी मन अपने घरपरिवार को ढूंढ़ रहा है.

पूरा गाना खत्म होने के बाद हम सब ने जोरदार तालियां बजाईं. सारे लोग उस के गाने की तारीफ कर रहे थे. लोगों के इसी प्यार और स्नेह से उस की जिंदगी की सांसें चल रही थीं.

जब मुहम्मद इकबाल ने गाना शुरू किया था, तभी जेलर महोदय ने उस के बारे में मुझे बताया कि यह मर्डर केस में बंद है और इस के घर से कोई मिलने नहीं आता. यह बहुत दुखी और तनाव में रहता था. इस के जीने की इच्छा खत्म हो गई थी. जिंदगी से निराश यह हमेशा मरने की सोचता था, लेकिन अब यह ठीक है.

गाना खत्म होने के बाद मुहम्मद इकबाल बोला, ‘‘मैडम, आप लोगों को अपने बीच पा कर हम लोग बहुत खुश हैं. एक और बात कहना चाहूंगा कि मैं जिंदगी से हार गया था, इन्होंने (जेलर महोदय की तरफ देखते हुए) मुझे जिंदगी जीने की हिम्मत दी.’’

मुहम्मद इकबाल ने जब अपने जीने की वजह जेलर महोदय को बताई तो ‘दुनिया में आज भी अच्छे लोगों की कमी नहीं है’, यह बात सच होती हुई दिखी.

मुहम्मद इकबाल के बाद डांस में पहले नंबर पर रहे लड़के ने अपना डांस दिखाया. उस ने बेहतरीन डांसर की तरह डांस किया था. वह लड़का चोरी के केस में जेल में बंद था. उस की उम्र 21 साल की रही होगी.

गायन और डांस प्रतियोगिता के प्रथम विजेताओं की पेशकश के बाद अलगअलग प्रतियोगिताओं के विजेताओं को शील्ड और प्रमाणपत्र दिए गए.

इसी बीच मु झे किसी ने बताया कि जेलर महोदय अच्छे गायक हैं. यह जान कर मैं ने उन से गाने की गुजारिश की. उन्होंने एक गीत सुनाया. जेलर महोदय की गायकी ने कार्यक्रम की खूबसूरती बढ़ा दी.

कार्यक्रम के आखिर में अपने संबोधन में मैं ने सभी विजेताओं को बधाई दी और नाकाम रहे प्रतिभागियों को अपनी प्रतिभा में और निखार लाने के लिए कहा.

इस कार्यक्रम के बाद भी मेरे मन में चल रहा था कि मुहम्मद इकबाल ने अपराध किया है या इसे फंसाया गया है, यह तो यही जानता होगा, पर इस एक मुहम्मद इकबाल को नहीं ऐसे हजारों मुहम्मद इकबाल की सोच में बरताव ला कर उन्हें जिंदगी की जंग लड़ने की राह सभी जिम्मेदार लोगों को दिखानी होगी, ताकि लोग वहां आ कर सुधार की सोच की ओर बढ़ें और मेरा विचार है कि कारागार का नाम सुधारगृह हो, ताकि कैदियों में अच्छे भाव लाए जा सकें. वे अपनी गलत और आपराधिक सोच को बदल कर अपनेआप में सुधार लाएं.

मैं ने कैदियों से एक बात खासतौर पर कही, ‘‘आप जब कारागार से बाहर निकलें तो जिंदगी में हुई गलतियों पर आंसू बहाने से अच्छा उस से सबक लेते हुए अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कीजिएगा.

‘‘जैसा कि मुहम्मद इकबाल ने बताया और आप लोगों के चेहरों को देख कर पता भी चल रहा है कि आप लोग हमें अपने बीच पा कर बहुत खुश हैं और सच पूछिए तो आप लोगों से मिल कर हमें भी बहुत खुशी हो रही है. एक होस्टल की तरह आप यहां रह रहे हैं.’’

कार्यक्रम पूरा होने के बाद जब हम लोग चलने को हुए तो सारे कैदी हाथ जोड़ कर खड़े हो गए. एक ने कहा, ‘‘आप लोगों का आना हमें बहुत ही अच्छा लगा.’’

दूसरे ने कहा ‘‘दोबारा आइएगा.’’

इसी तरह किसी ने ‘धन्यवाद’ कहा.

उन की इस तरह की भावनात्मक बातों के बीच हम कारागार से बाहर तो जरूर निकले, पर उन के स्नेह, सम्मान और वहां के शानदार इंतजाम के चलते वहां के सभी लोग मन में ऐसे बस गए कि आज भी याद हैं.

लेखिका-  डा. संगीता बलवंत

Hindi Kahani : मजा या सजा – एक रात में बदली किशन की जिंदगी

Hindi Kahani : वह उस रेल से पहली बार बिहार आ रहा था. इंदौर से पटना की यह रेल लाइन बिहार और मध्य प्रदेश को जोड़ती थी. वह मस्ती में दोपहर के 2 बजे चढ़ा. लेकिन 13-14 घंटे के सफर के बाद वह एक हादसे का शिकार हो गया. पूरी रेल को नुकसान पहुंचा था. वह किसी तरह जान बचा कर उतरा. उसे कम ही चोट लगी थी. उसे पता नहीं था कि अब वह कहां है कि तभी एक बूढ़ी अम्मां ने उस का हाथ थाम कर कहा, ‘‘बेटा, अम्मां से रूठ कर तू कहां भाग गया था?’’

उस ने चौंक कर पीछे की ओर देखा. तकरीबन 64-65 साल की वे अम्मां उसे अपना बेटा समझ रही थीं. फिर तो आसपास के सारे लोगों ने उसे बुढि़या का बेटा साबित कर दिया.

उसे जबरदस्ती बुढि़या के घर जाना पड़ा. उस बुढि़या के बेटे की शक्ल और उम्र पूरी तरह उस से मिलतीजुलती थी.

‘चलो, थोड़ा मजा ले लेते हैं,’ उस ने मन ही मन सोचा.

रात को खाना खाने के बाद जैसे ही वह सोने के लिए कमरे में पहुंचा, तो चौंक गया. बुढि़या की बहू गरमागरम दूध ले कर उस के पास आई. वह भरेपूरे बदन की सांवले रंग की औरत थी.

‘‘अब मैं कभी आप से नहीं लड़ूंगी. आप की हर बात मानूंगी,’’ वह औरत उस से लिपटते हुए बोली.

‘‘क्यों, क्या हुआ था?’’ उस ने बड़ी हैरानी से पूछा.

‘‘आप शादी के 2 महीने बाद अचानक गायब हो गए थे. सब ने आप को बहुत ढूंढ़ा, पर आप कहीं नहीं मिले. इस गम में बाबूजी चल बसे,’’ वह रोते हुए बता रही थी.

‘‘मैं सब भूल चुका हूं. मुझे कुछ याद नहीं है. मैं किसी को नहीं पहचानता,’’ वह शांत भाव से बोला. उस औरत ने रात को उसे भरपूर देह सुख दिया. सुबह के तकरीबन 8 बजे उस की नींद खुली. उस ने ब्रश कर के चाय पी.

दिन में पता चला कि वह दुकान चलाता था. वह दिनभर में अपनी इस जिंदगी के बारे में काफीकुछ जान गया. उस की 5 बहनें थीं और वह एकलौता भाई है. उस की पत्नी चौथी बहन की ननद है.

तकरीबन 6 साल पहले शादी हुई थी. उस का बेटा लापता हो गया है. शायद सड़क हादसे में या किसी दूसरे हादसे में अपनी औलाद खो चुका है. बेटा वह भी एकलौता, इसलिए यह दर्द दिखाया नहीं जा सकता.

दूसरी ओर अनपढ़ और देहाती बहू है, जो 16-17 साल की उम्र में ही ब्याह कर यहां आई थी. कुछ ही दिनों में पति गुजर गया, इसलिए बड़ी मुश्किल से मिले इस पति को वह संभाल कर रखना चाह रही है. कितना भी बड़ा हादसा हो, सरकार बस एक जांच कमीशन बिठा देगी. इस से ज्यादा करेगी, तो इस पीडि़त या उस के परिवार को 2-3 लाख रुपए का मुआवजा दे देगी.

मगर उसे न तो मुआवजा मिला था, न ही लाश. वैसे भी जनरल डब्बे में सफर करने वाले लोगों की जिंदगी की कोई कीमत है क्या?

काफी दिन न मिलने के चलते उस ने मरा मान लिया था. क्या पता, कहीं जिंदा हो और लौट आया हो. उस हादसे में क्या पता याददाश्त चली गई हो, इसलिए सासबहू दोनों ही अपनेअपने तरीके से उसे याद दिलाने की कोशिश में थीं.

2 दिन बाद ही सभी बहनें, बहनोई और बच्चे आ गए

‘‘अम्मां, यह तो अपना ही भाई है,’’ चौथी बहन उसे ढंग से देखते हुए उस के हाथपैरों को छू कर बोली.

‘‘क्या मैं अपने साले को नहीं पहचानता… पक्का वही है. मुझे तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं दिखती है.’’

‘‘बालकिशन, मैं तेरा तीसरे नंबर का जीजा हूं. साथ ही, तेरी पत्नी का बड़ा भाई भी,’’ जीजा उस के कंधे पर हाथ रखते हुए बोल उठा.

‘‘जी,’’ कह कर वह चुप हो गया. बस वह सब को बड़े ही ध्यान से देख रहा था, मानो उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहा हो.

‘‘अरी अम्मां, यह हादसे में अपनी याददाश्त बिलकुल ही खो बैठा है. बाद में इसे सब याद आ जाएगा,’’ इतना कह कर उस की बहन उस का हाथ सहलाने लगी.

वह इंदौर में अकेला रहता था. वहीं रह कर छोटामोटा काम करता था, जबकि यहां उसे पत्नी, भरापूरा परिवार मिल रहा था. वह बालकिशन का हूबहू था. पासपड़ोस वालों के साथसाथ सारे नातेरिश्तेदार उसे बालकिशन बता रहे थे और याददाश्त खोया हुआ भी.

पत्नी एकदम साए की तरह उस के साथ रहती, ताकि वह दोबारा न भाग जाए. एक दिन दोपहर का खाना खाने के तकरीबन डेढ़ घंटे बाद वह अपना काम समझने की कोशिश कर रहा था. यहां उस की पान की दुकान थी. कोई रजिस्टर या कागज… पता चला कि सभी अंगूठाछाप थे. बस, वही 10वीं फेल था. अब कैसे बताए कि वह बीटैक है. लेकिन छोटामोटा चोर है. मोटरसाइकिल पर मास्क लगा कर जाना, औरतों के जेवर उड़ाना और घरों में चोरी करना उस का पेशा है.

मगर, इस परिवार में सभी सीधेसादे हैं. उस की तीसरे नंबर की बहन ने पूरे 5 तोले का सोने का हार पहना हुआ था. गोरा रंग, दोहरा बदन. भारीभरकम शरीर पर वह हार जंच रहा था. जब वह गौर से उस हार को देखने लगा, तो झट से बहनोई बोला, ‘‘क्यों साले साहब, पसंद है तो रख लो इस हार को.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है,’’ वह सकपका कर बोला था.

‘‘फिर भी, तुम मेरी बहन के सुहाग हो. अगर कुछ चाहिए तो बोलो? मेरी बहन की वीरान जिंदगी में बहार आ चुकी है,’’ जीजा भावुक होते हुए बोला.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है,’’ वह मना करते हुए बोला.

शाम को उस का साला जब जाने लगा, तो कुछ रुपए उस की पत्नी को देने लगा और बोला, ‘‘दुकान काफी दिनों से बंद पड़ी हुई है. मैं कल ही जा कर दुकान को सही कर दूंगा.’’

‘‘न भैया, मेरे पास पैसे हैं. इन के पास भी जेब में 20 हजार रुपए हैं,’’ वह भाई को पैसे देने से मना करते हुए बोली.

‘मगर, मैं तो पान की दुकान चलाना भूल गया हूं. पान लगाना तक नहीं आता मुझे. कैसे बेचूंगा?’ उस के दिमाग में तेजी से कुछ चलने लगा. ‘‘क्या सोच रहे हो साले साहब?’’ जीजा मानो उस के चेहरे को गौर से पढ़ते हुए बोला.

‘‘पान की दुकान मैं ने कभी चलाई नहीं है. मैं तो टैलीविजन, ट्रांजिस्टर, फ्रिज सुधारना जरूर जानता हूं,’’ वह जीजा को समझाते हुए बोला.

‘‘फिर तो हमारे पड़ोस में दुकान ले लेते हैं. 5-10 किलोमीटर में एक भी दुकान नहीं है. खूब चलेगी,’’ जीजा हंसते हुए बोला. अगले दिन सुबह घर से तकरीबन डेढ़ किलोमीटर दूर बंद पड़ी दुकान उसे सौंपी गई, तो दिनभर में उसे सुधार कर दुकान की शक्ल दे दी. जरूरी सामान का इंतजाम किया गया.

पहले दिन वह 5 सौ रुपए कमा कर लाया, तो बहुत खुश था. जीजा भी उस के काम से खुश था. वह उसे खुद घर छोड़ने आया था. ‘‘अम्मां, यह तो कुशल कारीगर है. देखो, आज ही इस ने 5 सौ रुपए कमा लिए. अब तक यह 4 और्डर पा चुका है,’’ जीजा जोश में बोल रहा था. ‘‘अब बेटा आ गया है न, मेरी सारी गरीबी दूर हो जाएगी,’’ अम्मां तकरीबन रोते हुए कह रही थीं.

‘‘रो मत अम्मां. मैं सब ठीक कर लूंगा,’’ वह पहली बार बोला था. रात को खाना खाने के बाद जब वह बिस्तर पर सोने पहुंचा, तो पत्नी खुशी से भरी थी, ‘‘अरे, आप तो बहुत ही कुशल कारीगर निकले,’’ वह चुहल करते हुए पूछ रही थी.

‘‘कुछ नहीं. बस यों ही थोड़ाबहुत जानता हूं.’’

सोते समय वह सोचने लगा, ‘अब तक मैं चोरउचक्का था. गंदे काम से पैसे कमाने वाला. अब मैं मेहनत से पैसा कमाऊंगा और परिवार का पेट भरूंगा,’ इतना सोचतेसोचते उस ने पत्नी के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोला, ‘‘मैं तुम्हें अब कभी नहीं छोड़ूंगा… कभी नहीं.’’

इतना कहते ही उसे सुख की नींद आने लगी. सच कहें, तो इस सजा में भी मजा था.

Hindi Story : प्रेमिका की तलाश – क्या पूरी हुई प्रेम की तलाश

Hindi Story : प्रेम का कालेज में आखिरी साल था और वह बिलकुल सहीसलामत था. मतलब, वह किसी लड़की के चक्कर में नहीं पड़ा था, इसीलिए उस के मातापिता को उस पर नाज था. लेकिन सच कहें तो प्रेम को यह मंजूर न था. बात यह थी कि उस के दोस्त अकसर किसी न किसी लड़की के साथ कभी पार्क में, कभी बाजार में तो कभी चर्च के पीछे दिख जाते थे. उन्हें मटरगश्ती करते देख प्रेम को बहुत बुरा लगता था. मन में हीनभावना भर जाती थी, क्योंकि उस की कोई प्रेमिका जो नहीं थी, इसीलिए उसे अपने लिए एक अदद प्रेमिका की शिद्दत से तलाश थी.

एक दिन प्रेम कालेज जा रहा था. अचानक रास्ते में कुछ लड़कियों को उस ने कहीं जाते देखा. उन सब के बीच एक लड़की को देख कर वह अपनी सुधबुध खो बैठा. तभी वह लड़की तिरछी नजर से प्रेम को देख कर मुसकराई, फिर अपनी सहेलियों के साथ आगे बढ़ गई. उस की इस अदा पर वह निहाल हो गया. उसे लगा, इसी लड़की का उसे इंतजार था.

प्रेम कालेज जा रहा था, लेकिन अब उस का इरादा बदल गया. उस ने उस हसीना का पताठिकाना जानने का निश्चय कर लिया और उस के पीछे चल पड़ा. उस का पीछा करतेकरते तकरीबन आधा घंटे के बाद प्रेम एक अनजान महल्ले में पहुंचा. एकएक कर उस की सारी सहेलियां उस से अलग होती गईं. आखिर में वह लड़की सड़क से लगे एक खूबसूरत घर में दाखिल हो गई. प्रेम समझ गया कि यही उस का घर है.

उस लड़की के घर का पता जान कर प्रेम बहुत खुश हुआ. उस ने तय किया कि अब धीरेधीरे वह उस हसीना से मेलजोल बढ़ाएगा. अगले दिन प्रेम कालेज जाने के बजाय उस हसीना के घर के सामने जा पहुंचा. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. क्या पता उस का दीदार होगा भी या नहीं? लेकिन वह गूलर के फूल की तरह कहीं दिखी ही नहीं.

प्रेम कभी उस लड़की के घर के सामने किराना की दुकान के पास खड़ा हो जाता तो कभी इधरउधर आनेजाने का नाटक करता ताकि लोग समझें कि वह किसी काम से कहीं आजा रहा है. वह 2 घंटे वहीं मंडराता रहा. लेकिन वह हसीना कहीं नजर नहीं आई. वह निराश हो कर वहां से लौटने लगा.

लेकिन प्रेम कुछ दूर ही चला था कि देखा वह हसीना एक औरत के साथ रिकशे में बैठी कहीं से आ रही थी. हाथ में बड़ेबड़े थैले थे. शायद वे बाजार से लौट रही थीं. वह औरत शायद उस की मां थी. उसे देख कर प्रेम बहुत खुश हो गया. काली घटा सी जुल्फों के बीच झांकता उस का चांद सा मुखड़ा प्रेम को अजीब सी खुशी दे गया.

‘काश, यह मुझे मिल जाए तो मेरी जिंदगी में बहार आ जाए,’ यह सोच कर प्रेम मुसकराया. अपने घर के सामने गेट पर वह लड़की उस औरत के साथ रिकशे से उतर गई और अपने घर के अंदर चली गई.

प्रेम ने सोचा, ‘अब कालेज चलता हूं…’ लेकिन यह सोच कर कि क्लास अब खत्म हो गई होगी, कालेज जाने के बजाय वह वापस घर लौट आया. प्रेम अब उस हसीना को पटाने की जुगत भिड़ाने लगा. अगले दिन उस ने काले रंग की शर्ट और जींस पहन ली. भैया का काला चश्मा चुपके से उठा लिया और पापा की मोटरसाइकिल ले कर निकल लिया और सीधे उस हसीना के घर के सामने पहुंच गया.

मोटरसाइकिल किराना की दुकान के पास खड़ी कर प्रेम ने चश्मा आंखों पर लगाया और रितिक रोशन के स्टाइल में खड़ा हो कर इधरउधर देखते हुए मोबाइल फोन पर बिना काल किए किसी से बात करने का नाटक करने लगा ताकि कोई यह न कहे कि वह बिना काम के वहां खड़ा है. लेकिन एक घंटे से ज्यादा समय बीत गया, लेकिन वह लड़की नजर नहीं आई. तभी पता नहीं कहां से एक कुत्ता आ गया और प्रेम पर भूंकने लगा. उस की आवाज सुन कर कहीं से 2 कुत्ते और दौड़े आए उस पर गुर्राने और भूंकने लगे. प्रेम की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. शायद उन्हें उस का काला लिबास और काला चश्मा पसंद नहीं आया था.

प्रेम डर कर एक तरफ भागा. भागतेभागते वह एक पत्थर से टकरा कर गिर गया और नाक से खून निकलने लगा. उस की पैंट और शर्ट पर धूल लग गई. बाल बिखर गए. प्रेम की यह हालत देख कर बगल से गुजरने वाले एक राहगीर ने उन कुत्तों को डरा कर भगा दिया, तब जा कर उस की जान में जान आई. लेकिन इस हालत में उस हसीना का दीदार करने की उस की इच्छा नहीं रही. वह घर लौट गया.

अगले दिन जब प्रेम उस हसीना के घर के सामने पहुंचा तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. वह अपने घर के बाहर ही किसी सहेली से बात कर रही थी. प्रेम का मन किया कि अभी जा कर उसे अपना हालेदिल कह सुनाए और अपने प्यार का इजहार कर दे. पर सोचा, ‘जल्दबाजी ठीक नहीं होगी. क्या पता कहीं उस की सैंडिल मेरी मुहब्बत के जोश को ठंडा न कर दे.’

थोड़ी देर बाद वह लड़की सहेली से बात खत्म कर घर के अंदर चली गई. उस के बाद कई दिनों तक प्रेम उस हसीना के घर का चक्कर लगाता रहा. कभी छत पर, कभी गेट पर, कभी कहीं आतेजाते वह दिख जाती.

एक दिन प्रेम ने हिम्मत कर एक चुंबन उस की तरफ उछाल दिया. जवाब में वह मुसकरा दी और तुरंत घर के अंदर चली गई. प्रेम खुशी से पागल हो गया. लगा, अब वह उस से पट जाएगी, इसीलिए कालेज जाना तकरीबन छोड़ दिया और उस हसीना के घर के सामने 2-3 घंटे मंडराता रहता. जब भी वह लड़की प्रेम को दिखती, वह उस की तरफ चुंबन उछाल देता. वह हर बार मुसकरा देती.

एक दिन प्रेम बहुत देर तक उस के घर के सामने मंडराता रहा लेकिन वह नजर ही नहीं आई और न बाहर निकली. बहुत इंतजार के बाद वह निराश हो कर लौटने लगा. प्रेम कुछ ही कदम आगे बढ़ा था कि अचानक पीछे से 2-3 लड़कों ने उस पर लातघूंसों की बौछार कर दी. उन में से एक चिल्ला कर कह रहा था, ‘‘लड़की पर लाइन मारता है, आज तेरी इश्कबाजी का नशा उतार दूंगा.’’

प्रेम घबरा गया, ‘‘मैं ने यहां कोई लड़की नहीं देखी है. किस लड़की पर लाइन मारने की बात कह रहे हो तुम?’’ एक मुस्टंडे लड़के ने दुकान के पीछे की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘उधर देखो, वहां मेरी बहन खड़ी रहती है और तुम यहां से लाइन मारते हो. 20-25 दिन से तुम्हारी हरकतें बरदाश्त कर रहा हूं. आज के बाद से कभी यहां नजर आए तो तुम्हारी हड्डीपसली एक कर दूंगा.’’

उन लोगों की पिटाई से प्रेम की आंखों के आगे अंधेरा घिर रहा था, फिर भी उस ने कोशिश कर दुकान के पीछे की तरफ देखा. सचमुच वहां एक लड़की नजर आई. वह पहली बार उसे देख रहा था. दुकान के पीछे की तरफ कोई लड़की रहती है, यह इतने दिनों तक उसे पता ही नहीं था. वह तो दुकान के सामने वाले मकान में रहने वाली लड़की के चक्कर में यहां भटक रहा था. ‘‘मुझे छोड़ दो. मैं ने वहां किसी लड़की को पहले नहीं देखा है. लाइन मारने की बात तो दूर है,’’ प्रेम ने गिड़गिड़ाते हुए उन से कहा.

‘‘झूठ मत बोलो…’’ एक लड़के ने प्रेम के सूजे हुए गाल पर जोरदार तमाचा मारते हुए कहा, ‘‘अगर लाइन नहीं मारते हो तो तुम यहां क्या करने आते हो?’’ प्रेम के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था. पिटाई से बचने के लिए उस ने कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो. अब से मैं कभी इधर नहीं आऊंगा.’’

इतना कह कर प्रेम ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और भाग लिया. ‘‘बेटे, तेरा यह हाल किस ने किया?’’ प्रेम घर पहुंचा तो मां उस की हालत देख कर रोने लगीं.

प्रेम ने मां को समझाया, ‘‘तुम्हें अपने शेर जैसे बेटे पर भरोसा नहीं है क्या? तुम्हारे बेटे पर हाथ उठाने की किसी में हिम्मत नहीं है. मोटरसाइकिल सड़क के एक गड्ढे में फंस कर गिर गई, इसीलिए मुझे चोट लग गई.’’ शरीर में दर्द और सूजन के चलते प्रेम कई दिनों तक कहीं नहीं जा सका. उन लोगों ने झूठे आरोप में उसे बहुत मारा था. उस हसीना की भी उसे बहुत याद आती थी. प्रेम ने कान पकड़ लिए कि अब दोबारा उस के महल्ले में कदम नहीं रखेगा. लेकिन ज्योंज्यों वह ठीक हो रहा था उसे देखने और प्यार का इजहार करने की इच्छा फिर जोर मारने लगी.

कुछ दिनों के बाद प्रेम हिम्मत कर के फिर उस हसीना के घर के सामने पहुंच गया. पर यह क्या? उस हसीना के घर के आगे कारों का काफिला लगा था. बहुत सारे लोग इधरउधर मंडरा रहे थे. पास ही एक शामियाना लगा था जिसे अब खोला जा रहा था. शायद यहां कोई शादी थी. तभी कई औरतें उस हसीना के घर से एक दुलहन को घेरे हुए गाना गाती हुई बाहर निकलीं और एक कार की तरफ बढ़ गईं. सब रो रही थीं. दुलहन भी रो रही थी.

दुलहन को गौर से देखा तो प्रेम के होश उड़ गए. वह तो उस की हसीना थी. वह सपनों के महल सजाता रहा और उस की शादी भी हो गई. यह देख कर वह बहुत निराश हुआ. तभी प्रेम को खयाल आया कि वह बहुत दिनों से कालेज नहीं गया है, इसीलिए बुझे मन से कालेज के लिए चल पड़ा.

रास्ते में प्रेम ने सोचा, ‘मुझे अपने जीवन को संवारने पर ध्यान देना चाहिए, वरना मैं सपनों के महल सजाता रह जाऊंगा और सब की शादी होती जाएगी. और क्या पता, लड़कियों के चक्कर में मैं कहीं निकम्मा और बेरोजगार रह गया तो शायद सारी जिंदगी कुंआरा भी रहना पड़ सकता है. नहीं, मैं यह नहीं होने दूंगा. कैरियर पर पहले ध्यान दूंगा.’ प्रेम तेज रफ्तार से कालेज चल पड़ा. क्लास शुरू होने में थोड़ी ही देर थी.

Hindi Story : मूंछ की दीवार – इश्क में मूंछ बन गई दीवार

Hindi Story : जब नेहा अपने मायके से ब्याह कर ससुराल आई, तो मनोहर का बरताव उसे बेहद पसंद आया. क्यों न हो, घर में किसी चीज की कमी जो नहीं थी.

मनोहर के पिता कारोबारी थे. ससुर प्रताप राणा व सास देवयानी का स्वभाव इतना सरल था कि नेहा को वह अपना ही घर लगा.

नेहा की ननद सुधा अपनी भाभी को खुश रखने के लिए चुटकुले सुनाते हुए हंसीठिठोली भी कर लेती. ऐसा लगता, जैसे वे दोनों सहेलियां हों.

मनोहर काम नहीं करता था. पिता की अच्छीखासी आमदनी थी. फिलहाल तो वह कारोबार में भी हाथ नहीं बंटाता था. उस के ऊपर राजनीति का नशा चढ़ गया था.

पंचायत का चुनाव नजदीक आ रहा था. मनोहर को मुखिया का चुनाव लड़ने का नशा छा गया.

एक दिन एक ज्योतिषी ने उसे सलाह दे दी, ‘‘आप चुनाव से पहले अपनी मूंछों को बढ़ाइए. बड़ीबड़ी मूंछें राजनीति में आप को कामयाबी दिला सकती हैं.’’

फिर क्या था, मनोहर ने ज्योतिषी के बताए नियम से खुद को वैसा ही बना लिया, पर चुनाव के बाद वह मामूली वोटों से हार गया, फिर भी वह अपनी मूंछों को कामयाबी की वजह मानता रहा, क्योंकि वह बहुत ही कम वोटों से हारा था.

एक दिन बातों ही बातों में नेहा बोली, ‘‘आप तब कितने हैंडसम लगते थे, जब आप के चेहरे पर दाढ़ीमूंछें नहीं थीं. पर जब से आप ने अपना यह रूप बदला है, तब से आप का चेहरा डरावना सा लगता है. आप इसे हटवा लीजिए. अब तो कोई भी चुनाव नहीं है. जब चुनाव आएगा, तब फिर बढ़ा लीजिएगा.’’

मनोहर ने पत्नी की बातों को सुना और कहा, ‘‘देखो, भले ही ज्योतिषी की भविष्यवाणी थोड़ी गलत हो गई, पर तुम ने देखा, मैं जीततेजीतते हारा, इसलिए अब मुझे मूंछें ही पहचान दिलाएंगी.’’

नेहा थोड़ा झुंझला कर बोली, ‘‘तो इस के लिए ये 2-3 इंच की मूंछें रखने की क्या जरूरत है? जब आप चायदूध पीते हैं, तब आप की ये मूंछें कप व गिलास में घुस जाती हैं. चाय पीने के बाद कई बूंदें चाय आप की मूंछों से टपक पड़ती हैं.’’

‘‘देखो नेहा, मैं तुम्हारा पति हूं. मुझ से ऐसी बातें मत किया करो. ये मूंछें मेरे लिए भाग्यशाली साबित हो रही हैं,’’ मनोहर ने थोड़ा गुस्से से कहा.

‘‘मैं आप को कैसे समझाऊं. मूंछों से कोई भाग्यशाली नहीं होता. आप नहीं जानते, जब आप मुझे बांहों में ले कर होंठों को चूमते हैं, तो आप की ये मूंछें दीवार बन कर खड़ी हो जाती हैं. चूमते वक्त कई बार आप की मूंछें मेरे मुंह और नाक में घुस जाती हैं. उस समय मुझे कितना दर्द होता है, आप ने कभी सोचा है?’’ नेहा थोड़ा गुस्से में आ कर बोली.

‘‘मैं अपनी मूंछों से छेड़छाड़ करने की सोच भी नहीं सकता, पर तुम पत्नी हो, तुम्हारी सलाह पर नीचे की तरफ बढ़ रही मूंछों को मैं रोजाना सुबह ऊपर की तरफ मोड़ूंगा. कुछ दिनों बाद मूंछें खुदबखुद नीचे से ऊपर की तरफ मुड़ जाएंगी, फिर चूमते वक्त शायद तुम्हें उतना दर्द नहीं होगा, जितना अभी हो रहा है,’’ मनोहर ने पत्नी से समझौता किया. थकहार कर नेहा ने चुप्पी साध ली.

एक शाम मनोहर घर से बाहर अपने एक रिश्तेदार के घर जा रहा था. उस समय रात के 9 बजने वाले थे. रास्ता कीचड़ से भरा था, क्योंकि गांवदेहात की सड़कें वैसे भी बारिश के महीनों में खराब रहती हैं. वजह, लोग मवेशियों को भी सड़क के किनारे बांध देते हैं. सड़क के अगलबगल गोबर का ढेर लगा देते हैं. सड़क के ऊबड़खाबड़ होने के चलते कई महीनों तक परेशानी रहती है.

मनोहर की मोटरसाइकिल भी खराब हो गई. लाइट ठीक से नहीं जल रही थी. उस गांव में घुसने से पहले एक आदमी के दरवाजे पर मोटरसाइकिल खड़ी कर दी थी. अंधेरा घिर गया था. मनोहर पैदल ही गांव में आगे बढ़ रहा था. अचानक गांव में ही 2 गाएं चोरी हो गईं. चारों तरफ शोर मच गया… चोर…चोर…चारों तरफ से लोग हाथों में लाठी, टौर्च ले कर दौड़े. जब तक मनोहर कुछ समझता, तब तक लोगों की भीड़ उस के करीब आ गई. टौर्च की रोशनी में मनोहर का चेहरा देखा.

अनजान चोर समझ कर किसी ने उसे दबोच लिया. जब तक वह कुछ समझता, तब तक लोगों की भीड़ उस के और करीब आ गई.

गुस्साए लोगों में से एक ने कहा, ‘‘यही है चोर और इस के साथी मवेशी ले कर निकल गए हैं. इस की मूंछें उखाड़ लो.’’

यह कहने भर की देर थी कि लोगों में जैसे होड़ सी मच गई मूंछें उखाड़ने की. मूंछों की लंबाई भी इतनी ज्यादा थी कि लोगों की मुट्ठी में आसानी से आ गईं. मनोहर जब तक कुछ बोलता, तब तक लोगों ने उस की सभी मूंछें उखाड़ दीं. उसी समय उस के रिश्तेदार भी वहां आ गए. उस ने मनोहर को पहचान लिया, फिर लोगों को शांत करते हुए उस की सचाई बताई.

सच जान कर लोग पछतावा करने लगे, पर तब तक मनोहर की मूंछें बुरी तरह उखड़ गई थीं. मनोहर का रिश्तेदार उसे घर लाया. गांव के डाक्टर को बुला कर दवा दिला दी.

मनोहर ने पूरी रात बेचैनी की हालत में गुजारी. सुबह वह मुंह पर गमछा बांधे घर पहुंचा. उस ने धीरे से पत्नी से कहा, ‘‘थोड़ा गरम पानी व सूती कपड़ा ले आओ.’’

नेहा गरम पानी व सूती कपड़ा ले कर उस के पास पहुंची. मनोहर ने गमछा हटाया. नेहा ने देखा कि मनोहर के चेहरे से मूंछें नदारद हैं. वह दौड़ कर उस से लिपट गई और उस के होंठों को चूमते हुए बोली, ‘‘यह चमत्कार कैसे हुआ?’’

‘‘अरे, पहले गरम पानी व सूती कपड़े से सेंक लगाओ, फिर तुम्हें सारी कहानी बताऊंगा.’’

नेहा ने उस की भरपूर सेवा की. जब उस की पीड़ा कुछ कम हुई, तो उस ने रात की सारी बात बता दी.

‘‘धन्य हैं उस गांव के लोग, जो आज उन्होंने मुझे मेरा असली मनोहर लौटा दिया,’’ नेहा खुश होते हुए बोली.

‘‘नेहा, उस ढोंगी ज्योतिषी की बातों में पड़ कर मैं राह से भटक गया था. अब मेरी आंखें खुल गई हैं. मैं राजनीति से भी हमेशा के लिए तोबा करता हूं. अब मैं पिताजी के साथ उन के कारोबार में हाथ बंटाऊंगा. अब कभी तुम्हारे और मेरे बीच मूंछों की दीवार नहीं आएगी,’’ मनोहर ने विश्वास के साथ कहा. नेहा खुश थी, क्योंकि उसे अपना असली मनोहर जो मिल चुका था.

Hindi Kahani : मामला कुछ और था

Hindi Kahani : सुबह का वक्त था. शहर के किनारे बसे गांव की बड़ी सड़क पर भीड़ जमा थी. कुछ अखबारों के पत्रकार भी खड़े थे और थोड़ी ही देर में पुलिस भी वहां आ पहुंची. लोकल अखबार के एक पत्रकार ने अपने एक दोस्त को भी फोन कर के वहीं बुला लिया, जो लोकल न्यूज चैनल में पत्रकार था. सड़क पर बारिश का पानी भरा पड़ा था. एक गड्ढे के पास एक जोड़ी चप्पलें पड़ी हुई थीं, जो किसी औरत की थीं. पत्रकारों ने कैमरे से उन चप्पलों की कई तसवीरें पहले ही खींच ली थीं. पुलिस भी उन चप्पलों को देख कर तरहतरह की कानाफूसी कर रही थी. कुछ ही देर में सारे पत्रकार एक नौजवान लड़के के पास जमा हो गए, जो लोटे में पानी लिए खड़ा था. शायद वह शौच के लिए जा रहा होगा, लेकिन तब तक पत्रकारों की टोली ने उसे रोक लिया. थोड़ी ही देर में पता चला कि उस नौजवान लड़के की वजह से ही यहां भीड़ जमा थी.

दरअसल, कुछ देर पहले जब वह लड़का शौच के लिए जा रहा था, तभी उस की नजर इन एक जोड़ी चप्पलों पर पड़ी थी, जो किसी औरत की ही थीं. उसे किसी अनहोनी का डर हुआ.

उस नौजवान लड़के ने झट से अपना कैमरे वाला मोबाइल फोन निकाला और उन चप्पलों की तसवीर खींच कर सोशल साइट पर डाल दी. नीचे लिख दिया, ‘आज फिर एक औरत दरिंदों की शिकार हो गई.’

चप्पलें भी इस तरह पड़ी हुई थीं, मानो सचमुच में वे किसी औरत के भागने के दौरान ही उतरी हों.

जब लोगों ने उन चप्पलों वाली तसवीर को इंटरनैट पर नीचे लिखी हुई लाइन समेत देखा, तो हल्ला मच गया.

अखबार के एक पत्रकार की नजर भी इस तसवीर पर पड़ गई. वह तुरंत इस जगह आ पहुंचा. उस के पहुंचते ही दूसरे कई पत्रकार और पुलिस भी पहुंच गई. पत्रकारों और पुलिस के पहुंचते ही गांव के लोगों की भीड भी जमा हो गई.

गांव की कुछ औरतें, जो भीड़ में खड़ी थीं, अलगअलग तरह की बातें कर रही थीं. उन में से कुछ का कहना था कि उन्होंने रात को किसी जनाना चीख को अपने कानों से सुना था. इतना कहना था कि भीड़ में यह बात आग की तरह फैल गई.

पत्रकारों के कान में जब यह बात पड़ी, तो उन्होंने उन औरतों की तरफ अपना ध्यान लगा दिया. सब के सब औरतों से यही पूछते थे कि उन्होंने कितने बजे चीख सुनी थी? कितनी औरतों की चीख थी या सिर्फ एक औरत की चीख थी?

औरतें भरी भीड़ में अपना घूंघट भी ठीक से नहीं उठा पा रही थीं, तो बोलतीं क्या?

अखबारों के पत्रकार तो कौपी में खबर लिख रहे थे, तसवीरे खींच रहे थे, लेकिन लोकल टीवी चैनल के पत्रकार का कैमरा और माइक अभी तक इस जगह पर पहुंचा नहीं था. वैसे, उस ने फोन कर दिया था, तो थोड़ी ही देर में उस का कैमरामैन उस के पास पहुंचने ही वाला था.

पुलिस के आला अफसरों को भी इस घटना की खबर हो गई थी. वे वहां मौजूद पुलिस वालों से पलपल की जानकारी ले रहे थे. वह कौन औरत थी, जिस के साथ अनहोनी हुई थी, यह अभी तक पता नहीं चल सका था, जबकि पुलिस इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही थी.

पुलिस ने अब उस नौजवान लड़के से पूछताछ शुरू कर दी, जिस ने सब से पहले इन चप्पलों को पड़े हुए देखा था. नौजवान जितना खुल कर पत्रकारों से बोल रहा था, पुलिस से उतना ही दब कर बोल रहा था.

उस लड़के ने बताना शुरू किया, ‘‘साहब, मैं सुबह शौच के लिए जा रहा था कि तभी मेरी नजर इन बिखरी पड़ी चप्पलों पर पड़ गई.

‘‘मैं ने टैलीविजन पर अभी कुछ दिन पहले ही खबर देखी थी कि एक जगह इसी तरह औरतों के कपड़े बिखरे पड़े थे. बाद में पता चला कि वहां औरतों के साथ घिनौनी हरकत हुई थी.

‘‘यही सोच कर मैं ने इन चप्पलों की तसवीर खींच कर सोशल साइट पर डाल दी, फिर बाकी का तो आप जानते ही हैं.’’

उस नौजवान को ज्यादा बातें पता नहीं थीं, उस ने केवल चप्पलों को वहां  देख कर ही अंदाजा लगा लिया था. लेकिन औरतों की मंडली की तरफ से रात की चीख वाली खबर से लोगों की सोच यकीन में बदल गई.

गांव के लोग पत्रकारों से गांव की तारीफ कर कहते थे कि इस गांव में आज से पहले इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है, लेकिन आजकल पता नहीं चलता कि कब क्या हो जाए, पर एक बात पक्की है, यह जो भी हुआ है, इस को हमारे गांव के किसी आदमी ने अंजाम नहीं दिया होगा, यह जरूर कोई बाहर का आदमी होगा, जो इतनी घिनौनी हरकत कर गया.

इस बात पर गांव के सभी लोगों का एक मत था. औरतें भी यही कह रही थीं. उन का कहना था कि वे आधी रात को भी सड़कों पर निकली हैं, लेकिन गांव के किसी भी आदमी ने उन को बुरी नजर से नहीं देखा. यहां तक कि रात को गांव के कुत्ते भी औरतों पर नहीं भूंकते. हां, कोई मर्द रात में आए तो कुत्ते उसे घर का रास्ता दिखा देते हैं.

टैलीविजन चैनल के पत्रकार का कैमरा आ चुका था, जिसे उस का कैमरामैन ले कर आया था. पत्रकार और कैमरामैन दोनों ने मिल कर झटपट तैयारी की और कैमरा उन चप्पलों पर फोकस कर दिया.

कैमरा चालू हुआ. पत्रकार ने बोलना शुरू किया. इतने में लोगों का हुजूम टैलीविजन चैनल के पत्रकार के पीछे जा खड़ा हुआ.

लोगों को खुद को टैलीविजन पर दिखने का खासा खौक था. टीवी चैनल का पत्रकार जिस अंदाज में खबर को कह रहा था, उस के कहने के अंदाज से लोगों के सीने में धड़कनों का औसत बढ़ गया था.

कुछ की तो हालत ऐसी थी कि अगर वह दरिंदा इस वक्त उन के सामने आ जाता, तो वे उस का खून पी जाते. औरतें उस का मुंह नोच कर उसे चप्पलों से पीटपीट कर मार डालतीं, बच्चे उस की आंखें फोड़ देते.

लेकिन पुलिस वाले सहमे हुए खड़े थे. उन्हें देख कर लगता था, जैसे वे उस दरिंदे को बचा लेते या उसे छोड़ कर खुद यहां से भाग जाते.

टैलीविजन चैनल के पत्रकार ने उस नौजवान लड़के से कैमरे के सामने बात की, जिस ने सब से पहले इन चप्पलों को देखा था. वह नौजवान कैमरे के सामने 2-4 बातों को बढ़ाचढ़ा कर कह चुका था. पुलिस वाले भी उस की बातों को ध्यान से सुन रहे थे.

नौजवान लड़के ने अभी जो कहा, वह पुलिस के बारबार पूछने पर भी नहीं बताया था. शायद सारी बड़ी खबर वह टैलीविजन पर ही देना चाहता होगा.

नौजवान लड़के से पूछने के बाद पत्रकार ने पुलिस के दारोगा से बात करनी शुरू कर दी. नौजवान शौच के लिए खेतों की तरफ खिसकने लगा, शायद उस से अब रुका नहीं जा रहा था.

लेकिन, उस लड़के ने जातेजाते 2-3 लोगों को खुद के टैलीविजन पर आने की खबर फोन पर दे दी. अगर इस समय उसे शौच के लिए जाने की जल्दी न होती, तो वह यहीं पर खड़ा होता, लेकिन मामला उस के हाथ में नहीं था.

पूरा रास्ता लोगों से भर गया था. जो भी इस खबर को सुनता, सीधा वहीं दौड़ा चला आता.

गहमागहमी का माहौल चल रहा था, तभी एक 20 साल की लड़की भीड़ में आ खड़ी हुई. उस की नजर उन चप्पलों पर पड़ी, तो बरबस ही उन की तरफ बढ़ गई. जब तक कोई उस से कुछ कहता, उस ने झट से दोनों चप्पलें उठा लीं.

लड़की के चप्पलें उठाते ही पुलिस वालों ने उसे रोक दिया. दारोगा कड़क आवाज में बोले, ‘‘ऐ लड़की, ये चप्पलें कहां लिए जाती हो…’’

लड़की को देख कर लगता था कि वह नींद से उठ कर आई थी.

वह भर्राई आवाज में बोली, ‘‘ये मेरी चप्पलें हैं. आप को यकीन न हो, तो

मेरे घर में जा कर पूछ लो.’’

लड़की के इतना कहते ही पुलिस वाले सतर्क हो गए. पत्रकारों का हुजूम लड़की के बगल में आ कर खड़ा हो गया. भीड़ भी लड़की के इर्दगिर्द जमा हो गई.

दारोगा लड़की की बात ध्यान से सुन रहे थे. उन्होंने फिर से सवाल किया, ‘‘लेकिन, तुम्हारी चप्पलें यहां कैसे आ गईं? क्या तुम्हारे साथ कोई हादसा  हुआ था?’’

लड़की ने फिर सहमी सी आवाज में बताया, ‘‘रात में मेरी भैंस खुल गई थी और इसी तरफ भाग आई. उस को पकड़ने के चक्कर में मैं भी उस के पीछे भाग ली, लेकिन भागते समय मेरी चप्पलें यहीं रह गईं.

‘‘भैंस को तो मैं पकड़ कर ले गई, लेकिन चप्पलों को डर के मारे लेने न आई. मैं ने सोचा कि सुबह ले जाऊंगी.’’

पत्रकारों और पुलिस वालों के मुंह हैरत से खुले हुए थे. दारोगा ने लड़की को ध्यान से देखा. उसे देख कर लगता था कि वह सच बोल रही है.

दारोगा ने पक्का करने के लिए फिर से पूछा, ‘‘बेटी, क्या सचमुच यही बात है? तुम कोई बात छिपा तो नहीं रही हो? अगर कोई बात हो, तो तुम बिना डरेसहमे हम से कह सकती हो.’’

लड़की अब खुद हैरत में पड़ गई. वह बोली, ‘‘मैं सच बोल रही हूं.’’

दारोगा ने उस लड़की और उस के पिता का नाम पूछ लिया, जिस से बाद में कोई बात होने पर उस से पूछताछ की जा सके.

यह देख कर पत्रकारों ने अपना सिर पीट लिया. उन में से एक कह रहा था कि अगर यह लड़की अभी न आती, तो न जाने कितना बड़ा बवाल खड़ा हो गया होता.

टैलीविजन चैनल के पत्रकार ने भी अपना कैमरा बंद कर दिया. भीड़ से भी लोगों के सवालजवाब की आवाजें आने लगीं. पुलिस के पास फिर से बड़े अफसर का फोन आया. इस बार दारोगा ने पूरी बात उन्हें बताई.

बड़े अफसर ने सोशल साइट पर उस नौजवान लड़के की डाली हुई तसवीर हटवाने की बात कह कर फोन काट दिया.

दारोगा ने उस नौजवान लड़के को तलाशना शुरू कर दिया, लेकिन वह कहीं नहीं दिखा. दारोगा ने सिपाहियों को उसे ढूंढ़ने का आदेश दे दिया.

किसी लड़की ने बताया कि वह नौजवान उस तरफ के खेत में बैठा है. सिपाही भागते हुए उस नौजवान लड़के को पकड़ने के लिए खेत की तरफ जा पहुंचे.

सिपाहियों को अपनी तरफ आता देख वह जल्दी से उठ खड़ा हुआ और कपड़े ठीक कर खेत से बाहर निकल आया. सिपाही उस नौजवान लड़के को ले कर दारोगा के पास आ पहुंचे.

दारोगा ने उस नौजवान लड़के को फटकारते हुए कहा, ‘‘क्यों भाई, तुम ने बिना कुछ जाने ही चप्पलों की तसवीर खींच कर नीचे लिख दिया कि किसी औरत के साथ दरिंदगी हो गई है, जबकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है.

‘‘आज तो तुम्हें छोड़ दे रहे हैं, पर आगे से ऐसा कुछ हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं. अब जल्दी से उन तसवीरों को सोशल साइट से हटा दो.’’

लड़के ने फटाफट मोबाइल फोननिकाला और कुछ ही देर में अपनी डाली हुई तसवीरें हटा लीं. दारोगा ने उस लड़के को जाने के लिए कह दिया और खुद भी उस जगह से चल दिए.

पत्रकारों की टोली भी वहां से चल दी. हर आदमी के पास किसी न किसी का फोन आ रहा था. लोग पूछ रहे थे कि क्या हुआ और हर आदमी यही कह रहा था कि मामला कुछ और था.

Hindi Story : दिल वालों का दर्द

Hindi Story : उस दिन मनोज फटी आंखों से उसे एकटक देखता रह गया. उस के होंठ खुले के खुले रह गए. इस से पहले उस ने ऐसा हसीन चेहरा कभी नहीं देखा था.

मनोज ने डाक्टर की डिगरी हासिल कर के न तो किसी अस्पताल में नौकरी करनी चाही और न ही प्राइवेट प्रैक्टिस की ओर ध्यान दिया, क्योंकि पढ़ाई और डाक्टरी के पेशे से उस का मन भर गया था.

किसी के कहने पर मनोज एक फैक्टरी में मुलाजिम हो गया. वहां के दूसरे लोग मिलनसार थे. औरतें और लड़कियां भी लगन से काम करती थीं. कइयों ने मनोज के साथ निकट संबंध बनाने चाहे, पर उन्हें निराशा ही मिली. वजह, मनोज शादी, प्यारमुहब्बत वगैरह से हमेशा भागता रहा और उस की उम्र बढ़ती गई.

उसी फैक्टरी में एक कुंआरी अफसर मिस सैलिना विलियम भी थीं, जिन्होंने कह रखा था कि मनोज के लिए उन के घर के दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे. शराब पीना उन की सब से बड़ी कमजोरी थी, जो मनोज को नापसंद था.

दूसरी मारिया थीं, जो मनोज को अकसर होटल ले जातीं. वहीं खानापीना होता, खूब बातें भी होतीं. वे शादीशुदा थीं या नहीं, उन का घर कहां था, न मनोज ने जानने की कोशिश की और न ही उन्होंने बताया.

इसी तरह दिन गुजरतेगुजरते 15 साल का समय निकल गया. न मनोज ने शादी करने के लिए सोचा और न इश्कमुहब्बत करने के लिए आगे बढ़ा.

यारदोस्तों ने उसे चेताया, ‘कब तक कुंआरा बैठा रहेगा. किसी को तो बुढ़ापे का सहारा बना ले, वरना दुनिया में आ कर ऐसी जिंदगी से क्या मिलेगा…’

दोस्तों की बातों का मनोज पर गहरा असर पड़ा. उस ने आननफानन एक दैनिक अखबार व विदेशी पत्रिका में अपनी शादी का इश्तिहार निकलवा दिया. यह भी लिखवा दिया कि फोन पर रात 10 बजे के बाद ही बात करें या अपना पूरा पता लिख कर ब्योरा भेजें.

4 दिन के बाद रात के 10 बजे से 2 बजे तक लगातार फोन आने शुरू हुए, तो फोन की घंटी ने मनोज का सोना मुश्किल कर दिया.

पहला फोन इंगलैंड के बर्मिंघम शहर से एक औरत का आया, ‘मैं हिंदुस्तानी हो कर भी विदेशी बन गई हूं. मेरा हाथ पकड़ोगे, तो सारी दौलत तुम्हारी होगी. तुम्हें खाना खिला कर खुश रखूंगी. मैं होटल चलाती हूं.

‘मैं विदेश में ब्याही गई केवल नाम के लिए. चंद सालों में मेरा मर्द चल बसा और सारी दौलत छोड़ गया. सदमा पहुंचा, फिर शादी नहीं की. अब मन हुआ, तो तुम्हारा इश्तिहार पसंद आया.’

‘‘मैं विचार करूंगा,’’ मनोज ने कहा.

दूसरा फोन मनोज की फैक्टरी की अफसर मिस सैलिना विलियम का था, ‘अजी, मैं तो कब से रट लगाए हुए हूं, तुम ने हां नहीं की और अब अखबार में शादी का इश्तिहार दे डाला. मेरी 42 की उम्र कोई ज्यादा तो नहीं. मेरे साथ इतनी बेरुखी मत दिखाओ. तुम अपनी मस्त नजरों से एक बार देख लोगे, तो मैं शराब पीना छोड़ दूंगी.’

‘‘ऐसा करना तुम्हारे लिए नामुमकिन है.’’

‘मुझ से स्टांप पेपर पर लिखा लो.’

‘‘सोचने के लिए कुछ समय तो दो,’’ मनोज ने कहा.

4 दिन बाद निलंजना का फोन आया, ‘मेरी उम्र 40 साल है. मेरी लंबाई 5 फुट, 7 इंच है. मैं ने कंप्यूटर का डिप्लोमा कोर्स किया है.’

‘‘आप ने इतने साल तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘मुझे पढ़ाई के आगे कुछ नहीं सूझा. जब फुरसत मिली, तो लड़के पसंद नहीं आए. अब आप से मन लग जाएगा…’

‘‘ठीक है. मैं आप से बाद में बात करूंगा.’’

आगरा से यामिनी ने फोन किया, ‘मैं आटोरिकशा चलाती हूं. मैं हर तरह के आदमी से वाकिफ हो चुकी हूं, इसीलिए सोचा कि अब शादी कर लूं. आप का इश्तिहार पसंद आया.’

‘‘कभी मिलने का मौका मिला, तो सोचूंगा.’’

‘मेरा पता नोट कर लीजिए.’

‘‘ठीक है.’’

मुमताज का फोन रात 3 बजे आया. वह कुछकुछ कहती रही. मनोज नींद में था, सो टाल गया. बाद में उस की एक लंबी चिट्ठी मिली. उस ने गुस्से में लिखा था, ‘मेरी फरियाद नहीं सुनी गई. कब तक ऐसा करोगे? मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी. मैं ख्वाबों में आ कर तुम्हें जगा दूंगी. इस तरह सजा दूंगी.

‘मैं पढ़ीलिखी हूं. यह तो तुम पर मेरा मन आ गया, इसलिए शादी को तैयार हो गई, वरना कितने लड़के मुझे पाने के लिए मेरे घर के चक्कर लगाते रहे. मैं ने किसी को लिफ्ट नहीं दी. मेरी फोटो चिट्ठी के साथ है. उम्र में तुम से थोड़ी कम हूं, दिल की हसरतें पूरी करने में एकदम ऐक्सपर्ट हूं.’

नूरजहां ने तो हद पार कर दी, जब सिसकती हुई रात के 1 बजे बहुत सारी बातें करने के बाद वह बोली, ‘अब तो यह हालत है कि कोई मेरे दरवाजे पर दस्तक देने नहीं आता. कभी लोगों की लाइन लगी रहती थी. अब तो कभी खटका हुआ, तो पता चलता है कि हवा का झोंका था.

‘जिंदगी का एक वह दौर था कि लोग हर सूरत में ब्याहने चले आते. जितनी मांग की जाए, उन के लिए कम थी और एक आज मायूसी का दिन है. खामोशी का ऐसा दौर चल पड़ा, जो सन्नाटा बन कर खाए जाता है. हर समय की कीमत होती है.’

‘‘क्या आप तवायफ हैं?’’

‘अजी, यों कहिए मशहूर नर्तकी. मेरा मुजरा सुनने के लिए दूरदूर से लोग आते हैं और पैसे लुटा जाते हैं.’

‘‘तो आप कोठे वाली हैं?’’

‘अब वह जमाना नहीं रहा. पुलिस वालों ने सब बंद करा दिया. तुम से मिलने कब आऊं मैं?’

‘‘थोड़ा सोचने का वक्त दो.’’

फूलमती तो घर पर ही मिलने चली आई. मैं फैक्टरी में था. वह लौट गई, फिर रात को फोन किया, ‘मैं पीसीओ बूथ से बोल रही हूं. मैं फूलमती हूं. बड़े खानदान वाले लोग नीची जाति वालों को फूटी आंखों देखना पसंद नहीं करते, जैसे हम लोग उन के द्वारा बेइज्जत होने के लिए पैदा हुए हैं.

‘सब के सामने हमें छू कर उन का धर्म खराब होता है, लेकिन जब रात को दिल की प्यास बुझाने के लिए वे हमारे जिस्म को छूते हैं, तब उन का धर्म, जाति खराब नहीं होती…

एक दिन एक हताश सरदारनी का फोन आया, ‘मैं जालंधर से मोहिनी कौर बोल रही हूं. शादी के एक साल बाद मेरा तलाक हो गया. मुझे वह सरदार पसंद नहीं आया. मैं ने ही उसे तलाक दे दिया.

‘वह ऐयाश था. ट्रक चलाता था और लड़कियों का सौदा करता था. फिर मैं ने शादी नहीं की. उम्र ढलने लगी और 40 से ऊपर हो चली, तो दिल में तूफान उठने लगा. बेकरारी और बेसब्री बढ़ने लगी. तुम्हारे जैसा कुंआरा मर्द पा कर मैं निहाल हो जाऊंगी.’

‘‘तुम्हें पंजाब में ही रिश्ता ढूंढ़ना चाहिए.’’

‘अजी, यही करना होता, तो तुम से इतने किलोमीटर दूर से क्यों बातें करती?’

‘‘थोड़ा सब्र करो, मैं खुद फोन करूंगा.’’

‘अजी, मेरा फोन नंबर तो लो, तभी तो फोन करोगे.’

‘‘बता दो,’’ मनोज बोला.

एक दिन फोन आया, ‘मैं पौप सिंगर विशाखा हूं. मेरा चेहरा ताजगी का एहसास कराता है. कभी किशोरों के दिल की धड़कन रही, अब पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी हूं, मैं ने इसलिए गायकी छोड़ दी और आरामतलब हो गई. इस की भी एक बड़ी वजह थी. मेरे गले की आवाज गायब हो गई. इलाज कराने पर भी फायदा न हुआ. तुम अगर साथी बना लोगे, तो मेरा गला ठीक हो जाएगा. मेरी उम्र 40 साल है.’

‘‘तुम्हारा मामला गंभीर है, फिर भी मैं सोचूंगा.’’

‘कब उम्मीद करूं?’

‘‘बहुत जल्दी.’’

एक फोन वहीदा खान का आया. वह लाहौर से बोली, ‘मेरे पास काफी पैसा है, लेकिन मुझे यहां पर कोई पसंद नहीं आया. मैं चाहती हूं कि आप हमारा धर्म अपना लें और यहां आ जाएं, तो मेरा सारा कारोबार आप का हो जाएगा.

‘मैं रईस नवाब की एकलौती बेटी हूं. न मेरे अब्बा जिंदा बचे हैं और न अम्मी. मेरी उम्र 40 साल है.’

‘‘आप के देश में आना मुमकिन नहीं होगा.’’

‘क्यों? जब आप को शादी में सबकुछ मिलने वाला हो, तो मना नहीं करना चाहिए.’

‘‘क्योंकि मुझे अपना देश पसंद है.’’

इस के बाद मुंबई से अंजलि का फोन आया. वह बोली, ‘मैं इलैक्ट्रिकल इंजीनियर हूं और एमबीए भी कर रही हूं. मेरी उम्र 35 साल है. मैं ने अभी तक शादी नहीं की. पर अब शादी करने की दिली ख्वाहिश है.

‘इस उम्र में भी मुझे लौन टैनिस और गोल्फ खेलने का शौक है. आप अपने बारे में बताइए?’

‘‘मैं रमी का खिलाड़ी हूं और बैडमिंटन खेलने का शौक रखता हूं.’’

‘मैं भी वही सीख लूंगी. एक दिन आप मिलिए. बहुत सी बातें होंगी. मुझे भरोसा है कि हम दोनों एकदूसरे को जरूर पसंद करेंगे. मुझे आप की उम्र पर शक है. आप 40 साल से ज्यादा के हो ही नहीं सकते.’

‘‘आप ने ऐसा अंदाजा कैसे लगा लिया?’’

‘आप के बोलने के ढंग से.’

‘‘अगर मैं आप को सर्टिफिकेट दिखा दूं, तो यकीन करेंगी?’’

‘नहीं.’

‘‘क्यों?’’

‘वह भी बनवा लिया होगा. जो लोग 45 से ऊपर हो चुके हों, वे ऐसा इश्तिहार नहीं निकलवाते. या तो आप ने औरतों का दिल आजमाने के लिए इश्तिहार दिया है या फिर कोई खूबसूरत औरत आप के दिमाग में बसी होगी, जिसे अपनी ओर खींचने के लिए ऐसा किया.’

मनोज ठहाका मार कर हंस पड़ा. वह भी फोन पर जोर से हंस पड़ी और बोली, ‘लगता है, मैं ने आप की चोरी पकड़ ली है.’

मनोज ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘आप की उम्र कुछ भी हो, मुझे फर्क नहीं पड़ता. क्या आप मुझ से हैंगिंग गार्डन में आ कर मिलना चाहेंगे?’

‘‘वहां आने के लिए मुझे एक महीने पहले ट्रेन या हवाईजहाज से रिजर्वेशन कराना पड़ेगा.’’

‘तारीख बता दीजिए, मैं यहीं से आप का टिकट करा कर पोस्ट कर दूंगी. मेरे जानने वाले रेलवे और एयरपोर्ट में हैं.’

‘‘आप जिद करती हैं, तो अगले हफ्ते की किसी भी तारीख पर बुला लें. मुझे देखते ही आप को निराश होना पड़ेगा,’’ कह कर मनोज फिर हंस पड़ा.

‘मैं बाद में फोन करूंगी.’

‘‘गुडबाय.’’

‘बाय.’

मनोज की फैक्टरी की मुलाजिम मारिया बहुत खूबसूरत थी, जो अकसर मनोज को अपने साथ होटल ले जाती थी. उसे खिलातीपिलाती और चहकते हुए हंसतीमसखरी करती. उस ने कभी अपने बारे में नहीं बताया कि वह कहां रहती है. शादीशुदा है या कुंआरी या फिर तलाकशुदा.

मनोज ने ज्यादा जानने में दिलचस्पी नहीं ली. उस की उम्र ज्यादा नहीं थी. मनोज के इश्तिहार पर उस की नजर नहीं पड़ी, लेकिन उसे किसी ने शादी करने की इच्छा बता दी.

बहुत दिनों बाद मारिया मनोज को होटल में ले गई और बोली, ‘‘क्या तुम शादी करना चाहते हो?’’

‘‘क्यों? अभी तो सोचा नहीं.’’

‘‘झूठ बोलते हो. तुम ने अखबार में इश्तिहार दिया है.’’

मनोज की चोरी पकड़ी जा चुकी थी. उस ने कहा, ‘‘मेरी उम्र बढ़ने लगी थी. एकाएक मन में आया कि शायद कोई पसंद कर ले. अखबार में यों ही इश्तिहार दे दिया. तमाम दिलवालियों से फोन पर बात हुई और चिट्ठियां भी आईं.’’

‘‘तो किसे पसंद किया?’’

‘‘किसी को नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘तुम्हें बताने लगूंगा, तो समय कम पड़ जाएगा. इसे अभी राज रहने दो.’’

‘‘नहीं बताओगे, तो मैं तुम्हारे साथ उठनाबैठना बंद कर दूंगी. तुम मुझे अपना जीवनसाथी बना लो, दोनों को शांति मिलेगी.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो मारिया.’’

‘‘मुझे भी उस लिस्ट में रख लो. मैं ने अभी तक किसी से रिश्ता नहीं जोड़ा. मैं अकेली रहती हूं.’’

‘‘मैं ने तो समझा था कि तुम शादीशुदा हो.’’

‘‘नहीं. मेरा भी ध्यान रखना.’’

मारिया की उम्र 35 साल से कुछ ज्यादा थी.

मनोज को डाक से अंजलि का लिफाफा मिला. उस के अंदर एक चिट्ठी, मिलने की जगह और लखनऊ से मुंबई तक हवाईजहाज का रिजर्वेशन टिकट था. ताज होटल के कमरा नंबर 210 में ठहरने व खानेपीने का इंतजाम भी उसी की ओर से किया गया था.

अंजलि ने अपना कोई फोटो भी नहीं भेजा, जिसे मुंबई पहुंच कर वह पहचान लेता. एयरपोर्ट से ताज होटल तक के लिए जो कार भेजी जाने वाली थी, उस का नंबर भी लिखा था. कहां खड़ी मिलेगी, वह भी जगह बताई गई थी.

जब मनोज मुंबई पहुंचा, तो उसे उस जगह पहुंचा दिया गया. वह बेसब्री से अंजलि का इंतजार करने लगा, जिस ने इस तरह न्योता भेजा था.

मिलने पर अंजलि ने खुद अपना परिचय दिया. उसे देखने पर मनोज को ऐसा लगा, मानो कोई हुस्न की परी सामने खड़ी हो. वह कुछ देर तक उसे देखता रह गया.

अंजलि मुसकराते हुए बोली, ‘‘मेरा अंदाजा सही निकला कि आप 30-40 से ऊपर नहीं हो सकते. आप का इश्तिहार महज एक ढकोसला था, जो औरतों को लुभाने का न्योता था.’’

मनोज को उस की बातों पर हंसी आ गई. उस ने शायद उस के झूठ को पकड़ लिया था.

‘‘क्या आप ने सचमुच अभी तक शादी नहीं की?’’

‘‘मेरी झूठ बोलने की आदत नहीं है. मैं शादी करना ही नहीं चाहता था. मुझे मस्तमौला रहना पसंद है.’’

‘‘अब कैसे रास्ते पर आ गए?’’

‘‘यह भी एक इत्तिफाक समझिए. लोगों ने मजबूर किया, तो सोचा कि देखूं किस तरह की औरतें मुझे पसंद करेंगी, इसलिए इश्तिहार दे दिया.’’

‘‘क्या अभी भी शादी करने का कोई इरादा नहीं है?’’

‘‘ऐसा कुछ होता, तो यहां तक दौड़ लगाने की जरूरत नहीं थी. आप अपना परिचय देना चाहेंगी?’’

‘‘मैं ने अपने मांबाप को कभी नहीं देखा. मैं अनाथालय में पलीबढ़ी हूं. एक शख्स ने खुश हो कर मुझे गोद ले लिया. मैं अनाथालय छोड़ कर उन के साथ रहने लगी. मुझे शादी करने के लिए मजबूर नहीं किया गया. वह मेरी पसंदनापसंद पर छोड़ दिया गया.

‘‘उस शख्स के कोई औलाद न थी. उस ने शादी नहीं की, लेकिन एक बेटी पालने का शौक था, इसलिए मुझे ले आया. मैं ने भी उसे एक बेटी की तरह पूरी मदद देते हुए खुश रखा.

‘‘मैं ने शादी का जिक्र किया, तो वह खुश भी हुआ और उदास भी. खुश इसलिए कि उसे कन्यादान करने का मौका मिलेगा, दुखी इसलिए कि सालों का साथ एक ही पल में छूट जाएगा.’’

‘‘तो क्या सोचा है आप ने?’’

‘‘मैं इतना जानती हूं कि सात फेरे लेने के बाद पतिपत्नी का हर सुखदुख समझा जाता है. लंबी जिंदगी कैदी के पैर से बंधी हुई वह बेड़ी है, जिस का वजन बदन से ज्यादा होता है. बंधनों के बोझ से शरीर की मुक्ति ज्यादा बड़ा वरदान है. मैं आप को इतना प्यार दूंगी, जो कभी नहीं मिलेगा.’’

उन दोनों में काफी देर तक इधरउधर की बातें हुईं. उस ने इजाजत मांगी और चली गई.

अगले दिन वह मनोज से फिर मिली. उस के चेहरे की ताजगी सुबह घास पर गिरी ओस की तरह लग रही थी. उस की नजरों में ऐसी शोखी थी,

जो उस के पढ़ेलिखे होने की सूचना दे रही थी.

अंजलि को कोई काम था. उस ने जल्दी जाने की इजाजत मांगी. मनोज उसे जाते हुए देखता रहा, जब तक कि वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

शाम का धुंधलका गहराने लगा था. मनोज बोझिल पलकों और भारी कदमों से उठा और लौटने के लिए एयरपोर्ट की ओर चल दिया.

जिंदगी में किसी न किसी से एक बार प्यार जरूर होता है, चाहे वह लंबा चले या पलों में सिकुड़ जाए, लेकिन पहला प्यार एक ऐसा एहसास है, जिसे कभी भूला नहीं जा सकता. उस की यादें मन को तरोताजा जरूर बना देती हैं.

Hindi Story : पिछवाड़े की डायन – क्या था उस रात का सच

Hindi Story : इस वीरान घाटी में रहते हुए मुझे तकरीबन एक साल हो गया था. वहां तरहतरह के किस्से सुनने को मिलते थे. घाटी के लोग तमाम अंधविश्वासों को ढोते हुए जी रहे थे. तांत्रिक और पाखंडी लोग अपने हिसाब से तरहतरह की कहानियां गढ़ कर लोगों को डराते रहते थे. वह घाटी ओझाओं और पुजारियों की ऐशगाह थी. पढ़ाईलिखाई का वहां माहौल ही नहीं था.

जब मैं घाटी में आया था, तो लोगों द्वारा मुझे तमाम तरह की चेतावनियां दी गईं. मुझे बताया गया कि मधुगंगा के किनारे दिन में पिशाच नाचते रहते हैं और रात में भूत सड़क पर खुलेआम बरात निकालते हैं.

एकबारगी तो मैं बुरी तरह से डर गया था, लेकिन नौकरी की मजबूरी थी, इसलिए मुझे वहां रुकना पड़ा. बस्ती से तकरीबन सौ मीटर दूर मेरा सरकारी मकान था. वहां से मधुगंगा साफ नजर आती थी. मेरे घर और मधुगंगा के बीच 2 सौ मीटर चौड़ा बंजर खेत था, जिस में बस्ती के जानवर घास चरते थे.

मेरे घर से एकदम लगी कच्ची सड़क आगे जा कर पक्की सड़क से जुड़ती थी. अस्पताल भी मेरे घर से आधा किलोमीटर दूर था. मैं एक डाक्टर की हैसियत से वहां पहुंचा था. जाते ही डरावनी कहानियां सुन कर मेरे होश उड़ गए. कुछ दिनों तक मैं वहां पर अकेला रहा, लेकिन मुझे देर रात तक नींद नहीं आती थी.

विज्ञान पढ़ने के बावजूद वहां का माहौल देख कर मैं भी डरने लगा था. रात को जब खिड़की से मधुगंगा की लहरोें की आवाज सुनाई देती, तो मेरी घिग्घी बंध जाती थी.

आखिरकार मैं ने गांव के ही एक नौजवान को नौकर रख लिया. वह भग्गू था. बस्ती के तमाम लोगों की तरह वह भी घोर अंधविश्वासी निकला.

मेरे मना करने के बावजूद वह उन्हीं बातों को छेड़ता रहता, जो भूतप्रेतों और तांत्रिकों के चमत्कारों से जुड़ी होती थीं. भग्गू के आने से मुझे बड़ा सुकून मिला था. वह मजेदार खाना बनाता था और घर के तमाम काम सलीके से करता था. वह रहता भी मेरे साथ ही था. उसे साथ रखना मेरी मजबूरी भी थी. उस बड़े घर में अकेले रहना ठीक नहीं था.

कहीसुनी बातों से कोई खौफ न भी हो, तो भी बात करने के लिए एक सहारा तो चाहिए ही था. भग्गू ने मेरा अकेलापन दूर कर दिया था.

वहां नौकरी करते हुए एक साल बीत गया. इस बीच मैं ने पिशाचों की कहानियां तो खूब सुनीं, पर ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी भूतपिशाच या चुड़ैल का सामना करना पड़ा हो. अब तो मैं वहां रहने का आदी हो गया था. इलाके के लोग मुझ से खुश रहते थे. दिन हो या रात, मैं मरीजों को हर समय देखने के लिए तैयार रहता था. मुझे इन गरीब लोगों की सेवा करने में बड़ा सुकून मिलता था.

आमतौर पर मेरे पास मरीज तब आते थे, जब बहुत देर हो चुकी होती थी. पहले वे लोग झाड़फूंक कराते थे, फिर तंत्रमंत्र आजमाते थे और आखिर में अस्पताल आते थे. इसी वजह से कई लोग भयानक बीमारियों की चपेट में आ गए थे.

मैं ने महसूस किया था कि तांत्रिक, ओझा और नीमहकीम जानबूझ कर लोगों का सही इलाज न कर अपने जाल में फंसा लेते हैं और फिर उन का जम कर शोषण करते हैं.

घाटी में मैं इलाज के लिए मशहूर हो गया था. मुझ से उन पाखंडी लोगों को बेहद चिढ़ होती थी. स्वोंगड़ शास्त्री की अगुआई में उन्होंने मेरी खिलाफत भी की, लेकिन वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हुए. यहां तक कि उन्होंने मुझे नीचा दिखाने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाए. आखिरकार उन्होंने हार मान ली.

स्वोंगड़ शास्त्री के लिए मेरे मन में ऐसी नफरत भर गई थी कि मैं ने उस से बात करना ही बंद कर दिया था. उस धूर्त से शायद मैं कभी नहीं बोलता, मगर एक घटना ने मेरा मुंह खुलवा दिया.

वह पूर्णिमा की रात थी. धरती चांदनी की दूधिया रोशनी में नहा रही थी. घर के पिछवाड़े की खिड़की से मैं मधुगंगा की मचलती लहरों को साफ देख सकता था. धरती का यह रूप कभीकभार ही देखने को मिलता था. उस रात को मैं ने जो कुछ भी देखा, वह रोंगटे खड़ा कर देने वाला था.

रात के 10 बज चुके थे. बस्ती के लोग गहरी नींद में सो रहे थे. पिछली रात भयंकर तूफान आया था, इसलिए बिजली गुल थी. मैं चारपाई पर बैठा पिछवाड़े की खिड़की से बाहर का नजारा देख रहा था.

अभी मैं मस्ती में डूबा ही था कि सामने बंजर खेत में झाडि़यों के बीच एक चेहरा दिखाई दिया. सफेद धोती में लिपटी एक औरत घुटनों के बल बैठी थी. उस के सिर का पल्लू पूरे मुंह को ढके हुए था. उस का दायां हाथ नहीं हिल रहा था, लेकिन बायां हाथ लगातार हिलता जा रहा था. ऐसा लगता था, मानो अपना हाथ हिला कर वह मुझे अपनी तरफ बुला रही है.

मेरी रगों में दौड़ता खून जैसे जम कर बर्फ बन गया. मेरे माथे पर पसीने की बूंदें निकल आईं. काफी देर तक मैं उस चेहरे को देखता रहा. वह अपनी जगह उसी तरह बैठी हाथ हिला रही थी. मैं टौर्च जला कर भग्गू के कमरे की ओर गया. वह सो रहा था. मैं ने उसे जोर से हिला कर जगाना चाहा, पर वह बारबार ‘घूंघूं’ करता और करवट बदल कर मुंह फेर लेता था.

हार कर मैं ने उस के कान में फुसफुसाया, ‘‘उठो भग्गू, पिछवाड़े में देखो तो क्या है?’’

‘‘क्या है…?’’ उस की नींद उड़ गई. वह सकपका कर उठ बैठा.

‘‘चलो मेरे साथ… अपनी आंखों से देख लो…’’ कहते हुए मैं भग्गू को अपने कमरे तक ले आया.

भग्गू ने ज्यों ही उस चेहरे को देखा, वह कांपता हुआ मुझ से लिपट गया. सामने का नजारा देखते ही वह देर तक हांफता रहा और फिर बोला, ‘‘आज तो मौत सामने आ गई, साहब. डायन है वह. उस ने हमें देख लिया है, इसलिए हाथ हिला कर बुला रही है.

‘‘अब स्वोंगड़ शास्त्री ही हमें बचा सकते हैं. पर उन के घर जाएं कैसे? बाहर निकलते ही दुष्ट डायन हमारा खून पी जाएगी. मर गए आज…’’

अचानक बाहर सड़क से खांसी की आवाज सुनाई दी. मेरी जान लौट आई. जान बचाने को आतुर भग्गू ने लपक कर दरवाजा खोला और बाहर झांका. अचानक उस का चेहरा खिल उठा. कंधे पर झोला लटकाए स्वोंगड़ शास्त्री आते हुए दिखे.

उन्हें देखते ही भग्गू जोर से चिल्लाया, ‘‘बचाओबचाओ… शास्त्रीजी, इस दुष्ट डायन से हमें बचाओ…’’ मैं ने पिछवाड़े की ओर देखा. वह डायन अभी भी हाथ हिला कर हमें बुला रही थी. इसी बीच स्वोंगड़ शास्त्री भी वहां आ गया.

डरा हुआ भग्गू उन के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘किस्मत से ही आप इतनी रात को दिख गए, शास्त्रीजी. आप नहीं आते, तो डायन हमें मार डालती…’’

‘‘मैं तो पास वाले गांव से पूजा कर के लौट रहा था, भग्गू. तू चिल्लाया तो चला आया, वरना साहबों की चौखट लांघना मेरे जैसे तांत्रिक की हैसियत में कहां…?’’

शास्त्री मुझे ही सुना रहा था, लेकिन मेरी समस्या यह थी कि उस समय मुझे उस की मदद चाहिए थी. मैं ने मुड़ कर पिछवाड़े की ओर देखा. डायन अभी भी हाथ हिलाए जा रही थी.

मैं डर गया और माफी मांगते हुए बोला, ‘‘माफ करना, शास्त्रीजी. भूलचूक हो ही जाती है. इस समय आप ही हमें बचा सकते हैं. वह देखिए पिछवाड़े में. 2 घंटे बीत गए, पर वह डायन अभी भी वहीं बैठी है. आप कुछ कीजिए.’’

पिछवाड़े में बैठी डायन का चेहरा देख कर एकबारगी स्वोंगड़ शास्त्री भी डर गया. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. डर के मारे उस का हलक सूख गया. भग्गू से एक लोटा पानी मांग कर उस ने पूरा लोटा गटक लिया.

फिर स्वोंगड़ शास्त्री बोला, ‘‘पहली बार मैं इतनी अनाड़ी चुड़ैल को देख रहा हूं. आज यह यहां तक आ पहुंची है. बहुत भयंकर है यह… लेकिन, तुम चिंता न करो. मैं मंत्र पढ़ता हूं.’’

स्वोंगड़ शास्त्री मंत्र पढ़ने लगा. मंत्र पढ़ते हुए उस का चेहरा इतना भयानक हो रहा था कि डायन से कम, उस से ज्यादा डर लग रहा था. उस ने आंखें मूंद ली थीं और मंत्रों की आवाज के साथ हाथों से अजीबअजीब इशारे भी कर रहा था.

अचानक जोर की हवा चली और पिछवाड़े में बैठी डायन ने दिशा बदल ली. उस ने सिर झुका लिया और उस का हिलता हाथ भी थम गया. भग्गू के चेहरे पर मुसकान तैर गई, लेकिन मेरा माथा ठनक गया.

‘‘धन्यवाद शास्त्रीजी, आप ने बहुत मंत्र पढ़ लिए, लेकिन यह डायन अपनी जगह से हिल नहीं रही है. अब मैं खुद जा कर इस से निबटता हूं,’’ कहते हुए मैं बाहर को लपका.

‘‘पगला गया है क्या? खून चूस डालेगी वह तेरा…’’ शास्त्री ने गुस्से में आ कर कहा, लेकिन मैं बाहर निकल कर डायन की ओर बढ़ा.

‘‘रुक जाओ साहब…’’ भग्गू चिल्लाया, मगर तब तक मैं डायन के एकदम सामने जा पहुंचा था. एक सूखी झाड़ी पर पुरानी धोती कुछ इस तरह से लिपटी थी कि दूर से देखने पर वह घुटनों के बल बैठी किसी औरत की तरह लगती थी. टहनी पर लटका पल्लू जब हवा के झोंकों से डोलता, तो ऐसा लगता था जैसे वह हाथ हिला कर किसी को बुला रही हो.

सचाई जान कर मुझे अपनी बेवकूफी पर हंसी आने लगी. मैं ने झाड़ी पर लिपटी वह पुरानी धोती समेटी और वापस लौट आया. मुझे देखते ही स्वोंगड़ शास्त्री का चेहरा उतर गया. सिर झुकाए चुपचाप वह अपने घर को चल दिया.

‘‘इस निगोड़ी झाड़ी ने कितना डराया साहब, मैं तो डर के मारे अकड़ ही गया था,’’ भग्गू ने कहा.

‘‘तुम ने अपने मन को इस तरह की किस्सेकहानियां सुनसुन कर इतना डरा लिया है कि तुम्हारी नजर भूतप्रेतों के अलावा अब कुछ देखती ही नहीं. तुम्हारे इसी डर के सहारे स्वोंगड़ शास्त्री जैसे लोग चांदी काट रहे हैं,’’ मैं ने भग्गू को समझाया.

‘‘ठीक कहते हो साहब…’’ घड़ी की ओर देख कर भग्गू ने कहा.

रात के 12 बज चुके थे. मैं रातभर यही सोचता रहा कि भूतों का भूत इन सीधेसादे लोगों के दिमाग से कब भागेगा? स्वोंगड़ शास्त्री जैसे तांत्रिकों की दुकानदारी आखिर कब तक चलती रहेगी.

Hindi Story : जलन – रमा को अपनी बहू से क्यों दुश्मनी थी?

Hindi Story : पिछले कुछ दिनों से सरपंच का बिगड़ैल बेटा सुरेंद्र रमा के पीछे पड़ा हुआ था. जब वह खेत पर जाती, तब मुंडे़र पर बैठ कर उसे देखता रहता था. रमा को यह अच्छा लगता था और वह जानबूझ कर अपने कपड़े इस तरह ढीले छोड़ देती थी, जिस से उस के उभार दिखने लगते थे. लेकिन गांव और समाज की लाज के चलते वह उसे अनदेखा करती थी. सुरेंद्र को दीवाना करने के लिए इतना ही काफी था. रातभर रमेश के साथ कमरे में रह कर रमा की बहू सुषमा जब बाहर निकलती, तब अपनी सास रमा को ऐसी निगाह से देखती थी, जैसे वह एक तरसती हुई औरत है.

रमा विधवा थी. उस की उम्र 40-42 साल की थी. उस का बदन सुडौल था. कभीकभी उस के दिल में भी एक कसक सी उठती थी कि किसी मर्द की मजबूत बांहें उसे जकड़ लें, जिस से उस के बदन का अंगअंग चटक जाए, इसी वजह से वह अपनी बहू सुषमा से जलती भी थी.

शाम का समय था. हलकी फुहार शुरू हो गई थी. रमा सोच रही थी कि जमींदार के खेत की बोआई पूरी कर के ही वह घर जाए. उसे सुरेंद्र का इंतजार तो था ही. सुरेंद्र भी ऐसे ही मौके के इंतजार में था. उस ने पीछे से आ कर रमा को जकड़ लिया.

रमा कसमसाई और उस ने चिल्लाने की भी कोशिश की, लेकिन फिर उस का बदन, जो लंबे समय से इस जकड़न का इंतजार कर रहा था, निढाल हो गया.

सुरेंद्र जब उस से अलग हुआ, तब रमा को लोकलाज की चिंता हुई. उस ने जैसेतैसे अपने को समेटा और जोरजोर से रोते हुए सरपंच के घर पहुंच गई और आपबीती सुनाने लगी. लेकिन सुरेंद्र की दबंगई के आगे कोई मुंह नहीं खोल रहा था.

इधर बेटा रमेश और बहू सुषमा भी सरपंच के यहां पहुंच गए. रमा रो रही थी, लेकिन सुषमा से आंखें मिलाते ही एक कुटिल मुसकान उस के चेहरे पर फैल गई.

गांव में चौपाल बैठ गई थी. सरपंच और 3 पंच इकट्ठा हो गए थे. एक तरफ रमा खड़ी थी, तो दूसरी तरफ सुरेंद्र था. गांव के और भी लोग वहां मौजूद थे.

रामू ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘जो हुआ सो हुआ. अब रमा  जो बोलेगी वही सब को मंजूर होगा.’’

तभी दीपू ने कहा, ‘‘हां, रमा बोल, कितना पैसा लेगी? बात को यहीं खत्म कर देते हैं.’’

पैसे की बात सुनते ही बहू सुषमा खुश हो गई कि सास 2-4 लाख रुपए मांग ले, तो घर की गरीबी दूर हो जाए. लेकिन रमा बिना कुछ बोले रोते ही जा रही थी.

जब सब ने जोर दिया, तब रमा ने कहा, ‘‘मेरी समझ में सरपंचजी सुरेंद्र का जल्दी से ब्याह रचा दें, जिस से यह इधरउधर मुंह मारना बंद कर दे.’’

रमा की बात पर सहमत तो सभी थे, पर सुरेंद्र की हरकतों और बदनामी को देखते हुए भला कौन इसे अपनी बेटी देगा. इस बात पर सरपंच भी चुप हो गए.

सुरेंद्र भी अब 45 साल के आसपास हो चला था, इसलिए चाहता था कि घरवाली मिल जाए, तो जिंदगी सुकून से कट जाए.

रामू ने कहा, ‘‘रमा, तुम्हारी बात सही है, लेकिन इसे कौन देगा अपनी बेटी?’’

कांटा फंसता जा रहा था और चौपाल किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी. इस का सीधा मतलब होता कि सुरेंद्र को या तो गांव से निकाले जाने की सजा होती या उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होती.

मामले की गंभीरता को देखते हुए अब सुरेंद्र ने ही कहा, ‘‘मैं यह मानता हूं कि मुझ से गलती हुई है और मैं शर्मिंदा भी हूं. अगर रमा चाहे, तो मैं इस से ब्याह रचाने को तैयार हूं.’’

रमा को तो मनमानी मुराद मिल गई थी, लेकिन तभी बहू सुषमा ने कहा, ‘‘सरपंचजी, यह कैसे हो सकता है? आप के बेटे की सजा मेरी सासू मां क्यों भुगतें? आप तो बस पैसा लेदे कर मामले को सुलझाएं.’’

तब दीपू ने कहा, ‘‘हम रमा की बात सुन कर ही अपनी बात कहेंगे.’’

रमा ने कहा, ‘‘गांव की बात गांव में ही रहे, इसलिए मैं दिल से तो नहीं लेकिन गांव की खातिर सुरेंद्र का हाथ थामने को तैयार हूं.’’

सरपंच और चौपाल ने चैन की सांस ली.

बहू सुषमा अपना सिर पकड़ कर वहीं बैठ गई. वहीं बेटा रमेश खुश था, क्योंकि उस की मां को सहारा मिल गया था. अब मां का अकेलापन दूर हो जाएगा. थोड़े दिनों के बाद ही उन दोनों की चुपचाप शादी करा दी गई. पहली रात रमा सुरेंद्र के सीने से लगते हुए कह रही थी, ‘‘विधवा होते ही औरत को अधूरी बना दिया जाता है. वह घुटघुट कर जीने को मजबूर होती है. अरे, अरमान तो उस के भी होते हैं.

‘‘और फिर मेरी बहू सुषमा की निगाहों ने हमेशा मेरी बेइज्जती की है. उस के लिए मेरी जलन ने ही हम दोनों को एक करने का काम किया है.’’

खुशी में सराबोर सुरेंद्र की मजबूत होती पकड़ रमा को जीने का संबल दे रही थी. जो खेत में हुआ वही अब हुआ, पर अब दोनों को चिंता नहीं थी, क्योंकि रमा सुरेंद्र की ब्याहता जो थी.

Hindi Kahani : अभिलाषा – रूपी क्यों भागकर शादी करना चाहती थी?

Hindi Kahani : एक दिन रूपी मोहल्ले के ही रामू के साथ भाग गई. इस के बाद तो जितने लोग, उतनी तरह की बातें होने लगीं. अधिकतर लोग रूपी  के मातापिता को ही इस का दोष दे रहे थे. मामला लड़की के भागने का था, इसलिए रूपी के पिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी थी.

करीब एक महीना बीत गया. काफी दौड़धूप और खोजबीन के बाद भी उन दोनों का कुछ पता नहीं चला. सब हैरान थे. आश्चर्य की बात तो यह थी कि रामू शादीशुदा था, इस के बावजूद भी उस ने ऐसा काम किया था.

रामू और रूपी शहर से दूर चले गए थे. वे कहां चले गए, यह बात मोहल्ले का कोई भी व्यक्ति नहीं जानता था. बेटी की हरकत से रूपी के मातापिता अपने संबंधियों, मोहल्ले वालों और समाज की दृष्टि में गिर चुके थे. वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं थे.

लोग उन के सामने ही उन्हें ताने देते थे. इस से उन का घर से निकलना दूभर हो गया था. ऐसे में वे बेचारे कर भी क्या सकते थे? लोगों की तरहतरह की बातें सुनने को वे लाचार थे.

अचानक एक दिन सुनने में आया कि रामू और रूपी जयपुर में पकड़े गए हैं. मोहल्ले के एक प्रोफेसर माथुर ने जयपुर में अपने रिश्तेदार भरत माथुर के घर रामू और रूपी को देख लिया था. फिर क्या था, उन्होंने इस बात की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस ने रामू और रूपी को पकड़ लिया था.

पुलिस ने रूपी को तो उस के मातापिता के घर पहुंचा दिया, जबकि रामू को हिरासत में ले लिया. रामू को उम्मीद थी कि रूपी कभी भी उस के खिलाफ बयान नहीं देगी, क्योंकि वह उस के साथ करीब 6 महीने पत्नी की तरह रही थी. पर बात एकदम इस के विपरीत निकली. रूपी ने अपने मातापिता की भावनाओं और दबाव में आ कर कोर्ट में अपने प्रेमी रामू के खिलाफ ही बयान दिया था. रूपी नाबालिग थी, इसलिए कोर्ट ने रामू को एक नाबालिग लड़की को भगाने के जुर्म में 3 साल की सजा सुनाई.

इस बीच रूपी की शादी एक आवारा लड़के से कर दी गई, क्योंकि समाज में कोई भी शरीफ लड़का उस से शादी करने को तैयार नहीं था. 3 साल की सजा काट कर रामू घर आया तो मेरे दिमाग में तरहतरह की शंकाओं के बीच वही प्रश्न बारबार आ रहा था कि शादीशुदा रामू ने ऐसा क्यों किया?

मुझे उस पर रहरह कर गुस्सा भी आ रहा था, क्योंकि रामू को मैं बचपन से जानता था. वह एक चरित्रवान और शरीफ लड़का था. सब उस का सम्मान करते थे. फिर उस ने ऐसा नीच कार्य क्यों किया? यह हकीकत जानने के लिए एक दिन मैं उस के घर चला गया.

‘‘कहो, भाई क्या हालचाल है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हाल तो ठीक है, पर चाल खराब हो गई है.’’ उस ने टूटे दिल से कहा, ‘‘तुम अपना हाल बताओ.’’

‘‘मेरा हाल तो ठीक है. तुम्हारा हाल जानने आया हूं.’’ मैं ने कहा.

‘‘मेरा हाल तो एक खुली किताब की तरह है, जिसे दुनिया ने पढ़ा है, तुम ने भी पढ़ा होगा.’’ एक मायूसी मिश्रित लंबी आह भर कर रामू ने कहा और शून्य में न जाने क्या खोजने लगा.

रामू की इस ‘आह’ में कितनी विवशता, कितनी कसक और कितनी दुखभरी वेदना थी, यह मैं खुद देख रहा था. वह आंखों में छलक आए आंसुओं को रूमाल से पोंछने लगा. उस के छलकते आंसू रूमाल के धागों में विलीन हो गए.

‘‘छोड़ो बीती बातों को.’’ मैं ने सांत्वना देते हुए कहा.

‘‘यह भी एक संयोग है.’’ उस ने आगे कहा, ‘‘तुम तो जानते ही हो कि मेरी शादी हुए करीब 6 साल हो गए हैं, परंतु हम दोनों के जीवन में कोई फूल नहीं खिला. तुम्हारी भाभी के प्यार का साथ ही मेरे जीवन का सर्वस्व था. मैं सुखी था, प्रसन्न था, परंतु वह न जाने क्यों अंदर ही अंदर घुटती रहती थी. उस का सौंदर्य, उस का स्वास्थ्य धीरेधीरे उस से दामन छुड़ाने लगा था.

‘‘मैं ने इस राज को जानने का बहुत प्रयत्न किया. एक दिन तुम्हारी भाभी ने विनीत भाव से कहा, ‘कितना अच्छा होता कि हमारे आंगन में भी बच्चा होता.’

‘‘यह सुन कर उस दिन से मुझे भी अपने घर में बच्चे का अभाव अखरने लगा. डाक्टर ने तुम्हारी भाभी का परीक्षण करने के बाद बताया कि यह कभी मां नहीं बन सकती. इस बात से वह बड़ी दुखी हुई. उस ने मुझे दूसरी शादी के लिए प्रेरित किया. लेकिन मैं ने शादी करने से साफ मना कर दिया.

‘‘उस दिन से मैं उसे और अधिक प्रेम करने लगा. जिस से वह इस मानसिक दुख से छुटकारा पा सके. लेकिन वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है. उन्हीं दिनों हमारे पड़ोस में रहने वाली रूपी तुम्हारी भाभी के पास आनेजाने लगी. दोनों एकांत में घंटों बैठी न जाने क्याक्या बातें करती रहतीं. एक दिन रात को सोने से पहले तुम्हारी भाभी ने मुझ से कहा, ‘रूपी कितनी सुशील और सुंदर लड़की है. तुम रूपी से शादी क्यों नहीं कर लेते.’

‘‘पागल हो गई हो क्या? ऐसा कभी हो सकता है?’’ मैं ने उसे बांहों में कसते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं, क्या आप एक बच्चे के लिए इतना भी नहीं कर सकते?’’ कह कर वह फूटफूट रोने लगी.

‘‘मैं ने तुम्हारी भाभी को बहुत समझाया कि एक विवाहित व्यक्ति के साथ कोई भी पिता अपनी लड़की का विवाह नहीं करेगा. यह असंभव है. मैं तुम्हारी सौत नहीं ला सकता. पर वह अपनी जिद पर अड़ी रही. वह फफकफफक कर रोने लगी. दूसरे दिन जब रूपी हमारे घर आई तो मैं उसे निहारने लगा.

‘‘रूपी की शोख जवानी और सुंदरता ने मुझ पर ऐसा जादू किया कि तनमन से मैं उस की ओर खिंचता चला गया. तुम्हारी भाभी ने हमें संरक्षण दिया और हमारे प्रेम को पलने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया.’’

इतना कह कर रामू न जाने किन स्वप्नों में खो गया. थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह फिर कहने लगा, ‘‘रूपी मुझ से शादी करने के लिए तैयार थी, लेकिन मैं उस के मातापिता से यह सब कहने का साहस नहीं कर सका. रूपी मुझ से जिद करती रही और मैं टालता रहा.

‘‘एक दिन शाम के समय रूपी जब हमारे घर आई तो उस ने कहा, ‘रामू, ऐसे कब तक चलेगा. चलो, हम कहीं भाग चलें.’ यह सुन कर मैं कांप उठा. रूपी मुझे देखती रही और हंसती रही.

‘‘उस ने फिर कहा, ‘बस, एक साल की बात है. एक बच्चा हो जाएगा तो हम लौट आएंगे. उस के बाद पिताजी भी मजबूर हो कर मेरी शादी तुम्हारे साथ कर देंगे.’ कह कर उस ने अपना चेहरा मेरे सीने पर रख दिया.’’

रामू न जाने किन खयालों में खो गया. मैं भी कहीं खो चुका था. मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए रामू ने आगे कहा, ‘‘लेकिन स्वप्न साकार नहीं हुए. हम दोनों जोधपुर छोड़ कर जयपुर भाग गए और दोस्त भरत के यहां रहने लगे. 6 महीने बाद हम पुलिस द्वारा पकड़े गए. तुम्हारी भाभी की चिरपोषित अभिलाषा भी एक स्वप्न बन कर रह गई.’’ इतना कह कर वह चुप हो गया.

मैं ने भी इस से अधिक पूछताछ करनी उचित नहीं समझी और उस से विदा ले कर अपने घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में सोचता रहा कि क्या रामू दोषी है, जो समाज के ताने सहन न कर सका और संतान की चाह ने उसे अंधा बना दिया. शादीशुदा होते हुए भी वह नाबालिग रूपी के साथ भाग गया.

क्या रामू की पत्नी दोषी है, जिस ने अपने पति को गलत राह पर चलने की सलाह दी? या फिर रूपी का पिता दोषी है, जिस ने 2 प्रेमियों को मिलने से रोक कर अपनी लड़की का किसी आवारा लड़के के साथ ब्याह रचा दिया? मैं अभी तक तय नहीं कर पाया हूं कि आखिर दोषी कौन है?

Hindi Story : एक थी मालती

Hindi Story : यकीन करना मुश्किल था कि बीस साल पहले मैं उस कमरे में रहता था. पर बात तो सच थी. सन 1990 से 1993 तक छपरा में पढ़ाई के दौरान मैने रहने के कई ठिकाने बदले पर जो लगाव शिव शंकर पंडित के मकान से हुआ वो बहुत हद तक आज भी कायम है. छोटे छोटे आठ दस खपरैल कमरों का वो लाॅज था. उन्हीं में से एक में मैं रहता था. किराया 70 रूपये से शुरू होकर मेरे वहां से हटते हटते 110 तक पहुंचा था. यह बात दीगर है कि मैने कभी समय पर किराया दिया नहीं. पंडित का वश चले तो आज भी सूद समेत मुझसे कुछ उगाही कर लें. एक बार तो पंडित ने मेरे कुछ मित्रों से आग्रह किया था कि भाई उनसे कहिए कि उल्टा हमसे दो महीने का किराया ले लें और हमारा मकान खाली कर दें.

पंडित का होटल भी था जहां पांच रुपये में भर पेट खाने का प्रावधान था. मेरा खाना भी अक्सर वहीं होता था. पंडिताइन लगभग आधा दिन गोबर और मिट्टी में ही लगी रहती. कभी उपले बनाती कभी मिट्टी के बर्तन. जब खाने जाओ, झट से हाथ धोती और चावल परोसने लगती. सच कहूं उस वक्त बिल्कुल घृणा नहीं होती थी. बल्कि गोबर और मिट्टी की खुशबु से खाने में और स्वाद आ जाता.

उनकी एक बेटी थी.. मालती.

1993 उधर उसकी शादी हुई, इधर मैने उसका मकान खाली किया. वैसे मालती से मेरा कोई खास अंतरंग रिश्ता नहीं था. मगर उसके जाने के बाद एक अजीब सा सूनापन नजर आ रहा था. मन उचट सा गया था. इसलिए मैंने वहां से हटने का निश्चय किया. इसके पहले कि दुसरा ठिकाना खोजता, नौकरी लग गई और मैंने छपरा को अलविदा कह दिया.

बीस साल बाद छपरा में एक दिन मैं बारिश में घिर गया और मेरी मोटरसाइकिल बंद हो गई. सोचा क्यों न बाइक को पंडित के घर रख दें। कल फिर आकर ले जाएंगे.

मै बाइक को धकेलते और बारिश में भीगते वहां पहुंचा. पंडित का होटल अब मिठाई की दुकान में तब्दील हो गया था.

पंडिताइन मुझे देखते ही पहचान गयी. चाय बनाने लगी. मैंने उनसे कहा- भौजी आप चाय बनाइए तब तक मैं अपना कमरा देखकर आता हूँ जहाँ मैं रहता था.

पीछे लाॅज की ओर गया. सारे कमरे लगभग गिर चुके थे. अपने कमरे के दरवाजे को मैं आत्मीयता से सहलाने लगा. तभी मेरी नजर एक चित्र पर गयी. दिल का रेखाचित्र और बीच में अंग्रेजी का एम. यादें ताजी हो गयी. एक दिन मैंने मालती से कहा था- अबे वो बौनी, नकचढी, नाक से बोलने वाली लडकी, तेरा ये मकान मैं तभी खाली करूंगा जब तू ससुराल चली जाएगी.

इसपर वो बनावटी गुस्से में बोली- ये मेरा मकान है। जब चाहें तब निकाल दे तुम्हे, ये लो, और उसने खुरपी से दरवाजे पर दिल का रेखाचित्र बनाया और बीच में एम लिख दिया.

मालती का कद काफी छोटा था. लाॅज के सारे लडके उसे बौनी कहते थे मगर उसके पीछे. वो जानते थे कि मालती खूंखार है, सुन लेगी तो खूरपी चला देगी. ये हिम्मत मैने की. एक दिन उससे कहा- ऐ तीनफुटिया, जरा अपनी दुकान से चाय लाकर तो दे.

उसने कहा –  चाय नहीं, जहर लाकर दूंगी भालू.

नहाने का कार्यक्रम खुले में होता था नल के नीचे और मालती ने बालों से भरा मेरा बदन देख लिया था, इसलिए मुझे वो भालू कहती थी.

मैं समझ गया कि उसे बुरा नहीं लगा था. कुछ मस्ती मै कर रहा था, कुछ वो। फिर तो मस्ती का सिलसिला चल पड़ा.

पंडित के घर के पिछले हिस्से में लाॅज था. अगले हिस्से में वो रहते थे। बीच में एक पतली गली थी.

मालती हम लोगों के लिए अलार्म का काम भी करती थी.

सुबह सुबह गाय लेकर उस गली से  गुजरती तो जोर से आवाज लगाती.. कौन कौन जिन्दा है? जो जिन्दा है, वो उठ जाए, जो मर गया उसका राम नाम सत्य.

मै जानता था कि मरने वाली बात वो मेरे लिए बोलती थी क्योंकि मैं सुबह देर तक सोता था. खैर उसके इसी डायलॉग से मेरी नींद खुलती थी। फिर भी कभी अगर नींद नहीं खुलती तो मारटन टाफी चलाकर मारती.

उन दिनों बिहार में मारटन टाफी का खूब प्रचलन था. उनका एक राशन दुकान भी था जहां उनका बेटा यानि मालती का बड़ा भाई बैठता था. उस समय मैं महज उन्नीस का था. इतनी मैच्योरिटी नहीं थी. मैंने मालती के राशन दुकान का भरपूर फायदा उठाया. जब कभी वो गली से गुजरती में अपने आप से ही जोर जोर से कहता.. यार कोलगेट खत्म हो गया, पैसे भी नहीं, मालती बहुत अच्छी लडकी है, उससे कह दो तो कोलगेट क्या पूरी दुकान लाकर दे दे. फिर क्या थोड़ी देर बाद दरवाजे पर कोलगेट पड़ा मिलता. फिर तो कभी साबुन कभी कभी चीनी कभी कुछ मै अपनी जुगत से हासिल करने लगा.

एक दिन वो गली में टकरा गयी. बोली- तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो? दिन रात जो तारीफ करते हो. क्या सचमुच मैं उतनी अच्छी और सुंदर हूँ?

मैने उससे मुस्करा कर कहा-  तुम तो बहुत सुंदर हो. सिर्फ थोड़ा कद छोटा है, नाक थोड़ी टेढ़ी है, दांत खुरपी जैसे हैं और गर्दन कबूतर जैसी. बाकी कोई कमी नहीं. सर्वांग सुंदरी हो.

वह लपकी.. तुम किसी दिन मेरी खुरपी से कटोगे. अब खा लेना मारटन टाफी.

शरारतों का सिलसिला यूंही चलता रहा. एक दिन उसका रिश्ता आया. बाद में पता चला कि लडके वालों ने उसे नापसंद कर दिया.

यह मालती के लिए सदमे जैसा था. कई दिनों तक वो घर से निकली नहीं और जब निकली तो बदल चुकी थी. वो वाचाल और चंचल लडकी अब मूक गुडिया बन चुकी थी।. उसका ये शांत रूप मुझे विचलित करने लगा. एक दिन मैंने उसे गली में घेर लिया। पूछा-  तू आजकल इतनी शांत कैसे हो गई?

वो बोली-  तुम झूठे हो। कहते थे कि मालती सुंदरी है. लडके वाले रिजेक्ट करके चले गये.

मैने उसे समझाया- धत पगली वो लडका ही तेरे लायक नहीं था। तेरे नसीब में तो कोई राजकुमार है.

वो भोली भाली मालती फिर से मेरी बातों का यकीन कर बैठी. अब फिर वो पहले की तरह चहकने लगी और कुछ दिनों बाद सचमुच उसकी शादी तय हो गई.

उसने मुझसे पूछा- तुम मेरी शादी में आओगे न?

मैने चिर परिचित अंदाज में जवाब दिया- चाहे धरती इधर की उधर हो जाये, मैं तेरी शादी जरूर अटेंड करूंगा.

उसकी शादी हो गई. संयोग देखिए, जिस दिन शादी थी उसी दिन मेरा पटना में इम्तिहान था. मैं अटेंड नहीं कर सका. मालती चली गई थी अपने साथ समस्त उर्जा लेकर.

मालती के जाने के बाद, कुछ खाली खाली सा लगने लगा था. समझ में नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है. कहां चली गई उर्जा. ऐसा कबतक चल सकता था?

कुछ दिनों बाद मैने भी वो कमरा खाली कर दिया.

भौजी की चाय तैयार थी. मै चाय पी ही रहा था कि पंडित जी भी आ गए. बातों बातों में मैंने उनसे पूछा.. मालती कैसी है? कहां है आजकल?

तब पंडिताइन ने बताया-  मालती…. वो अब दुनिया में नहीं.

मेरे पैर तले जमीन खिसक गई. कांपते स्वर में पूछा-  कब हुआ ये सब?

पंडिताइन ने आंखें पोंछते हुए कहा-  शादी के दो साल बाद ही. डिलीवरी के दौरान जच्चा बच्चा दोनों.

ओह…… तब मैंने सोचा कितना बदनसीब हूँ मैं. एक लड़की जो मुझे बेइंतहा चाहती थी, न मैं उसकी शादी में शामिल हो सका न जनाजे में.

और तो और उसकी मौत की खबर भी मिली उसके मरने के 15 साल बाद.

लेखक- दीपक कुमार

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