Family Story : सुबह 10 बजे

Family Story : मेघाआज फिर जाम में फंस गई थी. औफिस से आते समय उस के कई घंटे ऐसे ही बरबाद हो जाते हैं, प्राइवेट नौकरी में ऐसे ही इतनी थकान हो जाती है, उस पर इतनी दूर स्कूटी से आनाजाना.

मेघा लोअर व टौप ले कर बाथरूम में घुस गई, कुछ देर बाद कपड़े बदल कर बाहर आई. उस के कानों में अभी भी सड़क की गाडि़यों के हौर्न गूंज रहे थे. तभी उस ने लौबी में अपनी मां को कुछ पैकेट फैलाए देखा, वे बड़ी खुश दिख रही थीं. मेघा भी उन के पास बैठ गई. मम्मी उत्साह से पैकेट से साड़ी निकाल कर उसे

दिखाने लगीं, ‘‘यह देखो अब की अच्छी साड़ी लाई हूं.’’

पर मम्मी अभी कुछ दिन पहले ही तो 6 साडि़यों का कौंबो मैं ने और 6 का रिया ने तुम्हें औनलाइन मंगा कर दिया था.’’

‘‘वे तो डेली यूज की हैं. कहीं आनेजाने पर उन्हें पहनूंगी क्या? लोग कहेंगे कि 2-2 बेटियां कमा रही हैं और कैसी साडि़यां पहनती हैं,’’ कह कर उन्होंने प्यार से मेघा के गाल पर धीरे से एक चपत लगा दी.

मेघा मुसकरा दी.

तभी वे फिर बोलीं, ‘‘और देख यह बिछिया… ये मैचिंग चूडि़यां और पायलें… अच्छी हैं न?’’

‘‘हां मां बहुत अच्छी हैं. आप खुश रहें बस यही सब से अच्छा है, अब मैं बहुत थक गई हूं. चलो खाना खा लेते हैं. मुझे कल जल्दी औफिस जाना है,’’ मेघा बोली.

‘‘ठीक है तुम चलो मैं आई,’’ कह कर मम्मी अपना सामान समेटने लगीं.

उन के चेहरे पर खिसियाहट साफ दिखाई दे रही थी. सभी ने हंसीमजाक करते हुए खाना खाया. फिर अपनेअपने बरतन धो कर रैक में रख दिए. उन के घर में शुरू से ही यह नियम है कि खाना खाने के बाद हर कोई अपने जूठे बरतन खुद धोता है.

खाना खा कर मेघा लेटने चली गई, पर आंखों से नींद कोसों दूर थी, वह सोचने लगी कि हर नारी अपने को किसी के लिए समर्पित करने में ही सब से बड़ी खुशी महसूस करती है. कल की ही बात है. मेघा की दोस्त सोनल उस से कह रही थी कि यार तू भी 30 पार कर रही है. क्या शादी करने का इरादा नहीं है? मगर मेघा उसे कैसे बताती कि जब से उस ने नौकरी शुरू की है घर थोड़ा अच्छे से चलने लगा है.

अब कोई उस की शादी की बात उठाता ही नहीं, क्योंकि उन्हें उस से ज्यादा घर खर्च की चिंता रहती है… छोटी बहनों की पढ़ाई कैसे होगी… वे 4 बहनें हैं. पापा का काम कुछ खास चलता नहीं है. इसलिए उन्होंने बचपन अभाव में काटा है. जब से मेघा से छोटी रिया भी सर्विस करने लगी है, मम्मी अपनी कुछ इच्छाएं पूरी कर पा रही हैं वरना तो घर खर्च की खींचतान में ही लगी रहती थीं.

मेघा की दोस्त सोनल की 2 साल पहले ही शादी हुई है. औफिस में वह मेघा की कुलीग है. उसे खुश देख कर मेघा को बड़ा अच्छा लगता है. कभीकभी उस का मन कहता है, मेघा क्या तू भी कभी यह जीवन जी सकेगी?

आज सोनल ने फिर बात उठाई थी, ‘‘मेघा पिछले साल हम लोग औफिस टूर पर बाहर गए थे तो मयंक तुझ से कितना मिक्स हो गया था… यार तेरी ही कास्ट का है. तुझ से फोन पर तो अकसर बात होती रहती है. अच्छा लड़का है… क्यों नहीं मम्मी से कह कर उस से बात चलवाती हो? अगर बात बन गई तो दहेज का भी चक्कर नहीं रहेगा. फिर मयंक की तुझ से अंडरस्टैंडिंग भी अच्छी है. अच्छा ऐसा कर तू पहले मयंक से पूछ. अगर वह तैयार हो जाता है, तो अपने घर वालों को उस के घर भेज देना.’’

मेघा को सोनल की बात में दम लगा.

1-2 दिन पहले ही उस की मयंक से बात हुई थी, तो वह बता रहा था कि घर वाले उस की शादी के मूड में हैं. हर दूसरे दिन कोई न कोई रिश्ता ले कर आ रहा है.

मेघा सोचने लगी, ‘कल मयंक से बात करती हूं. यह तो मुझे भी महसूस होता है कि शादी करना जीवन में जरूरी होता है, पर कोई अच्छा लड़का मिले. मुझे जीवन में खुशियां देने के साथसाथ मेरे घर वालों को भी सपोर्ट करे, तो इस से अच्छी और क्या बात होगी,’ सोचतेसोचते उसे नींद आ गई.

सुबह नींद खुली तो 7 बज रहे थे. उसे 8 बजे औफिस पहुंचना था. वह जल्दी से फ्रैश होने के लिए बाथरूम की ओर भागी. जब तक वह तैयार हुई तब तक मम्मी ने मेज पर नाश्ता लगा दिया. टिफिन भी वहीं रख दिया. मेघा ने दौड़तेभागते 2 ब्रैड पीस खा कर चाय पी और फिर स्कूटी निकाल औफिस के लिए निकल गई. काम के चक्कर में उसे कुछ याद ही नहीं रहा.

लंच के समय सोनल ने फिर वही बात छेड़ी तो उसे कल रात की बात याद आई. लंच खत्म कर के उस ने मयंक को फोन लगाया.

सोनल सामने ही बैठी थी. वह इशारे से कह रही थी कि शादी के लिए पूछ. मेघा ने हिम्मत कर के पूछा तो मयंक हंस दिया, ‘‘अरे यार तुझे पा कर कौन खुश नहीं होगा भला… तुम ने मुझे अपने लायक समझा तो संडे को अपने मम्मीपापा को मेरे घर भेजो, बाकी सब मैं देख लूंगा.’’

‘‘ठीक है कह कर मेघा ने फोन काट दिया और फिर सोनल को सब बताया तो वह भी बहुत खुश हुई.

‘‘पर सोनल मैं अपनी शादी के बारे में अपने मम्मीपापा से कैसे बात कर पाऊंगी?’’

मेघा को परेशान देख कर सोनल बोली, ‘‘तू घर पहुंच उन से मेरी बात करा देना.’’

मेघा शाम 4 बजे ही औफिस से चल दी. घर पहुंच चाय पी कर बैठी ही थी कि सोनल का फोन आ गया. उसे दिन की सारी बातें याद आ गई. उस ने फोन मम्मी की ओर बढ़ा दिया. सोनल ने मम्मी को सब बता उन्हें संडे को मयंक के घर जाने के लिए कहा.

मम्मी के चेहरे पर मेघा को कुछ खास खुशी की झलक नहीं दिख रही थी. वे केवल हांहां करती जा रही थीं.

फोन कटने पर वे मेघा की तरफ घूम कर बोलीं, ‘‘हम लोगों के पास तो दहेज के लिए पैसे नहीं हैं. फिर हम रिश्ता ले कर कैसे जाएं? तुम्हें पहले मुझ से बात करनी चाहिए थी.’’

यह सुन कर मेघा हड़बड़ा गई. बोली, ‘‘मैं ने कुछ नहीं कहा. सोनल ने ही मयंक से बात की थी… आप और पापा उस के घर हो आओ… देखो घर में और लोग कैसे हैं… मयंक तो बहुत सुलझा हुआ है.’’

तभी पापा भी आ गए. जब उन्हें सारी बात पता लगी तो उन के चेहरे पर खुशी के भाव आ गए, ‘‘ठीक है हम लोग संडे को ही मयंक के घर जाएंगे,’’ कह उन्होंने खुशी से मेघा की पीठ थपथपाई.

फिर सब बहनों ने मिल कर आगे की प्लानिंग की. यह तय हुआ कि सोनल के हसबैंड, मम्मीपापा और छोटी बहन मयंक के घर चले जाएंगे. छोटी बहन के मयंक के घर जाने से वहां क्या बात हुई, कैसा व्यवहार रहा, सब पता लग जाएगा. मम्मी से तो पूछते नहीं बनेगा. पापा से भी पूछने में संकोच होगा.

मेघा की छोटी तीनों बहनें मन से उस की शादी के लिए सोचती रहती थीं, पर आज की महंगाई और दहेज के बारे में सोच कर चुप हो जाती थीं. मयंक के बारे में सुन कर सब को जोश आ गया था.

‘‘मैं अब अपना पैसा बिलकुल खर्च नहीं करूंगी,’’ यह रिया की आवाज थी.

‘‘मुझे भी कुछ ट्यूशन बढ़ानी पड़ेंगी, तो बढ़ा लूंगी,’’ यह तीसरे नंबर की ज्योति बोली.

‘‘मैं भी अब कोई फरमाइश नहीं करूंगी,’’ छोटी कैसे पीछे रहती.

‘‘ठीक है ठीक है, सब लोगों को जो करना है करना पर पहले मयंक के घर तो हो आओ,’’ कह कर मेघा टीवी खोल कर बैठ गई.

संडे परसों था, पापा समय बरबाद नहीं करना चाहते थे. उन्होंने जाने की पूरी तैयारी कर ली. मम्मी ने भी कौन सी साड़ी पहननी है, छोटी क्या पहनेगी सब तय कर लिया.

दूसरे दिन शनिवार था. मेघा ने सोनल को बता दिया कि उस के हसबैंड को साथ जाना पड़ेगा.

वह तैयार हो गई. बोली, कोई इशू नहीं. एक अंकल का स्कूटर रहेगा एक इन की मोटरसाइकिल हो जाएगी… आराम से सब लोग मयंक के घर पहुंच जाएंगे.

मेघा ने फोन कर के मयंक से उस के पापा का फोन नंबर ले लिया. शाम को पापा ने मयंक के पापा को फोन कर के संडे को उन के घर पहुंचने का समय ले लिया. सुबह 10 बजे मिलना तय हुआ.

मेघा की मम्मी बड़ी उलझन में थी कि अगर वे लोग तैयार हो गए तो कैसे मैनेज करेंगे. कुछ नहीं पर अंगूठी तो चाहिए ही. मेरे सारे जेवर तो धीरेधीरे कर के बिक गए… बरात की खातिरदारी तो करनी ही पड़ेगी.

मेघा की मां को परेशान देख उस के पापा बोले, ‘‘अभी से क्यों परेशान हो? पहले वहां मिल तो आएं.’’

रविवार सुबह ही चुपके से मेघा ने मयंक को फोन मिला कर कहा, ‘‘मयंक, तुम घर में ही रहना… कोई बात बिगड़ने न पाए… सब संभाल लेना.’’

‘‘हांहां ठीक है. मेरे मम्मीपापा बहुत सुलझे हुए हैं… उन्हें अपने बेटे की खुशी के आगे कुछ नहीं चाहिए… जिस में मैं खुश उस में वे भी खुश.’’

मेघा बेफिक्र हो कर अंदर आ गई. देखा मम्मी तैयार हो गई थीं.

‘‘चलो, जल्दी लौट आएंगे वरना आज दुकान बंद रह जाएगी.’’ मेघा की मां बोली.

कुछ दिन पहले ही मेघा के पापा ने एक दुकान खोली थी.

करीब 12 बजे सभी लौट आए. पापा बहुत खुश थे. सभी बातें कायदे से हुई थीं. बस मयंक के पापा कुंडली मिला कर बात आगे बढ़ाना चाहते थे. वे पापा से बोले कि आप बिटिया की कुंडली भिजवा देना.

जब सब लोग खाना खा कर लेट गए तो सब बहनों ने छोटी को बुला कर वहां का सारा हाल पूछा. छोटी ने वहां की बड़ी तारीफ की. बताया कि अगर कुंडली मिल गई तो शादी पक्की हो जाएगी.

मम्मी ने तो वहां साफसाफ कह दिया कि हम लोग पैसा नहीं दे सकते. किसी तरह जोड़ कर बरात की खातिरदारी कर देंगे. दहेज देने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है.

सुन कर रिया गुस्सा गई. बोली, ‘‘ये सब कहने की पहले ही दिन क्या जरूरत थी? आगे बात चलती तो बता देतीं.’’

‘‘दूसरे दिन मेघा की तबीयत ठीक नहीं थी. औफिस से छुट्टी ले कर जल्दी घर आ गई. दवा खा कर चादर ओढ़ कर लेट गई. थोड़ी देर बाद रिया और मम्मी की आवाज उस के कानों में पड़ी. रिया बोली, ‘‘दीदी की शादी फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए. मयंक अच्छा लड़का है. एक बार मैं भी उस से मिली हूं.’’

मम्मी तुरंत बोली,‘‘अरे नहीं बहुत मौडर्न परिवार है. हम उन के स्तर का खर्च ही नहीं कर पाएंगे. तभी तो मैं उस दिन सब साफ कह आई थी. अगर मयंक मेघा से शादी का इच्छुक है, तो कुछ खर्च उसे भी तो करना चाहिए. सगाई, शादी सारे खर्च को आधाआधा बांट लें… जेवर भी… मैं ने कह दिया है हमारे पास नहीं हैं… जेवर तो आप को ही लाने पड़ेंगे… फिर मेरी तो 4 लड़कियां हैं. मुझे तो सब पर बराबर ध्यान देना पड़ेगा. आप के तो केवल एक लड़का है. आप को तो बस उसी के लिए सोचना है.’’

सुनते ही रिया गुस्सा हो गई, ‘‘मम्मी, आप को इस तरह नहीं बोलना चाहिए था. इस तरह तो शादी तय ही नहीं हो पाएगी.’’

‘‘तो न हो… कौन मेरी बेटी सड़क पर खड़ी भीग रही है. वह अपने घर में अपने मांबाप के साथ है. एक मयंक ही थोड़े हैं. हजार लड़के मिलेंगे. आखिर वह सर्विस कर रही है. हजार लड़के उस के आगेपीछे घूमेंगे.’’

‘‘मम्मी यह कहना आसान है, पर ऐसा संभव नहीं होता है,’’ रिया झल्ला कर बोली और फिर वहां से चली गई. मम्मी भी भुनभुनाती हुई किचन में चली गईं.

मेघा सारी बातें सुन कर सकपका गई कि आखिर मम्मी क्या चाहती हैं? क्या लड़की की शादी की बात करने जाने पर पहली बार ही इस तरह की बातें की जाती हैं… इस से तो इमेज खराब ही होगी. फिर मयंक भी कैसे बात संभाल पाएगा.

कल ही सोनल बता रही थी कि उस ने शादी के पहले 4 साल सर्विस की थी और उस की मम्मी ने उस की ही सैलरी से 2 अंगूठियां, 1 चेन और 1 जोड़ी पायल बनवा ली थीं. हर महीने कोई न कोई सामान उस के पीछे पड़ कर औनलाइन और्डर करा देती थी. साडि़यां, पैंटशर्ट, ऊनी सूट सब धीरेधीरे इकट्ठे कर लिए थे. बरतन, मिक्सी, बैडसीट्स कुछ भी शादी के समय नहीं खरीदना पड़ा था. सोनल के घर की हालत तो उन के घर से भी बदतर थी.

आज सोनल अपनी छोटी सी गृहस्थी में बहुत खुश है. एक प्यारा सा बेटा भी है. जीजाजी भी बहुत सुलझे हुए हैं. वे सोनल के मम्मीपापा का भी बहुत खयाल रखते हैं.

इसी बीच 8-10 दिन बीत गए. न यहां से किसी ने फोन किया, न मयंक के यहां से फोन आया. सोनल ने मेघा से पूछा तो वह बोली, ‘‘बारबार मेरा कहना अच्छा नहीं लगता.’’

तब सोनल ने ही मम्मी को फोन मिला कर पूछा तो वे बोलीं, ‘‘उन लोगों ने मेघा की कुंडली मांगी है… वह तो हम ने बनवाई नहीं… हमें कुंडली में विश्वास नहीं है.’’

तब सोनल बोली, ‘‘आंटी आप किसी से कुंडली चक्र बनवा कर भेज दीजिए. आप को तो वही करना पड़ेगा जो वे चाहते हैं. आखिर वे लड़के वाले हैं.’’

‘‘तो क्या हमारी लड़की कमजोर है? वह भी कमाती है. हम उन के हिसाब से क्यों चलें? वे रिश्ता बराबरी का समझें तभी ठीक है.’’

सुन कर सोनल ने फोन काट दिया.

दूसरे दिन मयंक का फोन आया, ‘‘अरे यार अपनी कुंडली तो भिजवाओ. उस दिन तो मैं ने सब संभाल लिया था पर बिना कुंडली के बात कैसे आगे बढ़ाऊं?’’

मेघा ने पापा से कहा तो उन्होंने अगले दिन दे कर आने की बात कही. मेघा के मन में यह बात चुभ रही थी कि मम्मी के मन में क्या यह इच्छा नहीं होती कि उन की बेटियों की भी शादी हो… कल ही पड़ोस की आंटी आई थीं तो मम्मी उन से कह रही थीं, ‘‘मैं तो कहती हूं चारों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं… कमाएं और आराम से साथ रहें. क्या दुनिया में सभी की शादी होती है? अपनी कमाई से ऐश करें.’’

सुन कर मेघा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई कि केवल उस को ही नहीं ये तो चारों बेटियों की शादी न करने के पक्ष में है. क्या कोई इतना स्वार्थी भी हो सकता है? उधर पापा जन्मकुंडली बनवा कर मयंक के घर दे आए.

4-5 दिन बाद मयंक के पापा का मेघा के पापा के पास फोन आया. उन्होंने कुंडली मिलवा ली थी. मिल गई थी. आगे की बात करने के लिए पापा को अपने घर बुलाया था.

पापा ने खुशीखुशी रात के खाने पर सब को यह बात बताई तो सभी बहनें खुशी से तालियां बजाने लगीं.

‘‘तो आप लोग कब जा रहे हैं? रिया ने पूछा.’’

‘‘आप लोग नहीं अकेले मैं जाऊंगा,’’ कह कर पापा खाना खाने लगे.

मम्मी हैरानी से उन का मुंह देखने लगीं. फिर बोली, ‘‘अकेले क्यों?’’

‘‘अभी भीड़ बढ़ाने से कोई फायदा नहीं. पता नहीं बात बने या नहीं. फिर दुकान तुम देख लेना… बंद नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘आप साफ बात कर भी पाएंगे?’’

मम्मी की आवाज सुन कर पापा खाना खातेखाते रुक गए. बोले, ‘‘हां, ऐसी साफसाफ भी नहीं करूंगा कि बात ही साफ हो जाए.’’

सुन कर हम बहनें हंस पड़ी. मम्मी गुस्सा कर किचन में चली गईं.

रात में फिर चारों बहनों की मीटिंग हुई. पापा अकेले मयंक के घर जाएंगे, इस बात से सभी बहुत खुश थीं.

Short Story : मुआवजा – आखिर कब मिलेगा इन्हें मुआवजा

Short Story : दोपहर को कलक्टर साहब और उन के मुलाजिमों का काफिला आया था. शाम तक जंगल की आग की तरह खबर फैल गई कि गांव और आसपास के खेतखलिहान, बागबगीचे सब शहर विकास दफ्तर के अधीन हो जाएंगे. सभी लोगों को बेदखल कर दिया जाएगा.

रामदीन को अच्छी तरह याद है कि शाम को पंचायत बैठी थी. शोरशराबा और नारेबाजी हुई. सवाल उठा कि अपनी पुश्तैनी जमीनें छोड़ कर हम कहां जाएंगे  हम खेतिहर मजदूर हैं. गायभैंस का धंधा है. यह छोड़ कर हम क्या करेंगे

पंचायत में तय हुआ कि सब लोग विधायकजी के पास जाएंगे. उन्हें अपनी मुसीबतें बताएंगे. रोएंगे. वोट का वास्ता देंगे.

इस के बाद मीटिंग पर मीटिंग हुईं. बड़े जोरशोर से एक धुआंधार प्लान बनाया गया, जो इस तरह था:

* जुलूस निकालेंगे. नारेबाजी करेंगे. जलसे करेंगे.

* लिखापढ़ी करेंगे. मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखेंगे.

* विधायकजी से फरियाद करेंगे. उन्हें खबरदार करेंगे.

* कोर्टकचहरी जाएंगे.

* सरकारी मुलाजिमों को गांव या उस के आसपास तक नहीं फटकने देंगे.

* चुनाव में वोट नहीं डालेंगे.

* आखिर में सब गांव वाले बुलडोजर व ट्रकों के सामने लेट जाएंगे. नारे लगाएंगे, ‘पहले हमें मार डालो, फिर बुलडोजर चलाओ’.

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. जब नोटिस आया, तो कुछ ने लिया और बहुतों ने वापस कर दिया. नोटिस देने वाला मुलाजिम पुलिस के एक सिपाही को साथ ले कर आया था. वह सब को समझाता था, ‘नोटिस ले लो, नहीं तो दरवाजे पर चिपका देंगे. लोगे तो अच्छा मुआवजा मिलेगा, नहीं तो सरकार जमीन मुफ्त में ले लेगी. न घर के रहोगे और न घाट के.’

आज रामदीन महसूस करता है कि मुलाजिम की कही बात में सचाई थी. अपनेआप को जनता का सेवक कहने वाले सरपंचजी कन्नी काटने लगे थे. विधायकजी वोट ले कर फरार हो गए थे.

रामदीन पढ़ालिखा न था. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

‘‘इस कागज का हम क्या करेंगे ’’ रामदीन पूछ बैठा.

‘‘अपने पट्टे के कागज ले कर दफ्तर जाना. वहां तुम्हारी जमीन की कीमत आंकी जाएगी. उस के बाद सरकार अपना भाव निकालेगी और तुम्हें उसी के मुताबिक ही भुगतान होगा,’’ डाकिए ने समझाया.

3 गांवों पर इस का असर पड़ा था. इतमतपुर, इस्माइलपुर और गाजीपुर. गांव वाले खेतों से ध्यान हटा कर सरकारी दफ्तर के चक्कर काटने लगे. उन्हें तमाम सवालों का दोटूक जवाब मिलता, ‘फाइलें खुल रही हैं. जानते हो न, सरकारी कामकाज कैसे चलता है… चींटी की चाल.’

दफ्तर के बाहर ‘सरकारी काम में रुकावट न डालें’ का नोटिस भी लगा दिया गया था.

गांव वाले दफ्तर के बाहर से ही उलटे पैर लौटा दिए जाने लगे थे. लोहे की सलाखों वाला फाटक ऐसे बंद कर दिया गया था मानो जेल हो.

6 महीने बीते. अचानक चारों तरफ ट्रैक्टर, ट्रक, बुलडोजर और टिड्डियों की तरह आदमी मंडराने लगे. खड़ी फसल, आम और अमरूद के बाग देखते ही देखते उजाड़ दिए गए. जहां हरियाली थी, वहां अब पीली मिट्टी का सपाट मैदान हो गया था.

गुस्साए गांव वालों ने ‘पहले पैसा दो, फिर जमीन लो’, ‘हम कहां जाएंगे’, ‘हायहाय’ के नारे लगाए थे. नारेबाजी हुई, फिर पत्थरबाजी भी हुई थी.

पुलिस आई. गिरफ्तारियां हुईं. पुलिस ने जीभर कर लोगों की पिटाई की. मुकदमा चला सो अलग.

25 आदमी कुसूरवार पाए गए. 6-6 महीने की सजा हुई. रामदीन भी उन में से एक था.

जब रामदीन घर लौट कर आया, तब तक सबकुछ बदल चुका था. दरवाजे पर नोटिस चिपका हुआ था. जहां उस का बगीचा था, वहां ‘इंदिरा आवास योजना’ का बड़ा सा बोर्ड लगा था. जिस ने गरीबी मिटाने का नारा लगाया था, उसी के नाम पर कालोनी बन रही है.

घर में खाने के लाले पड़े हुए थे. आमदनी के नाम पर 4 भैंसें व 2 गाएं ही बची थीं. रामदीन दिहाड़ी के लिए निकल पड़ा था. वह भी कभी मिलती और कभी नहीं.

सोतेसोते रामदीन चौंक कर उठ बैठता. वह टकटकी बांधे छत को ताकता रहता. यह मकान भी खाली करना था. खुले आसमान की छत ही उस की जिंदगी का अगला पड़ाव होगा.

फिर दफ्तर के चक्कर लगाना रामदीन का रोज का काम हो गया था. दफ्तर के बरामदे में ‘नोटिस पर भुगतान के लिए मिलें’ का दूसरा नोटिस लग चुका था, इसीलिए वह दफ्तर में घुस गया था.

एक बाबू ने बताया, ‘‘सरकार के पास पैसा नहीं है.’’

दूसरा बाबू बोला, ‘‘तुम्हारा तो नाम ही नहीं है.’’

तीसरे ने कहा, ‘‘फाइलें बन गई हैं.’’

चौथे ने हंस कर कहा था, ‘‘मैं ही सब करूंगा… पहले मेरी दराज में तो कुछ डालो.’’

जितने मुंह उतनी ही बातें. रामदीन को तो खुद ही खाने के लाले पड़े थे, फिर किसी को चायपानी क्या कराता  उन की जेबें कैसे गरम करता

चपरासी भी बख्शिश के चक्कर में बड़े साहब से मिलाने के लिए टालमटोल कर रहा था. 50 रुपए जेब में रखने के बाद ही उस ने साहब के कमरे का दरवाजा खोला था.

रामदीन साहब के पैरों में गिर कर रो पड़ा था. गिड़गिड़ाते हुए उस ने कहा था, ‘‘साहब, 3 साल हो गए हैं, एक पैसा भी नहीं मिला है. मैं पढ़ालिखा नहीं हूं. घर में खाने के लाले पड़े हैं.’’

साहब ने हमदर्दी दिखाई थी, वादा भी किया था, ‘‘घर से बेदखल करने से पहले तुम्हें कुछ न कुछ जरूर भुगतान किया जाएगा.’’

रामदीन इस तरह खुश हो कर घर लौटा था, जैसे दुनिया ही जीत ली हो. लेकिन जल्दी ही भरम टूटा. 6 महीने बाद भी वह वादा वादा ही रहा.

पुलिस घरों में घुसघुस कर सामान बाहर फेंकने लगी. सरकारी हुक्म की तामील जो हो रही थी.

रामदीन अपने घर वालों और जानवरों को ले कर अपने मौसेर भाई के यहां कुकरेती जा कर बस गया.

एक दिन रामदीन को लोगों ने बताया कि मामला कोर्ट में पहुंच गया है. जनता का भला करने वाले कुछ लोगों ने वहां अर्जी लगाई थी.

बातबात में रामदीन ने एक दिन अपने एक ग्राहक, जो एक दारोगा की बीवी थी, को अपनी कहानी सुना दी. दारोगाइन को उस पर तरस आ गया. दारोगाजी ने कागज देखे, 2-3 अर्जियां लिखीं. वे उस के साथ भी गए.

इस से दफ्तर के बाबुओं की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई थी. रामदीन की फाइलें दौड़ने लगी थीं.

एक महीने में ही रामदीन के नाम के 3 चैक बने. एक 50,000 का, दूसरा 20,000 का और तीसरा 30,000 का. ये तीनों चैक खेत, मकान और बगीचे के एवज में थे.

पहला चैक मिलते ही रामदीन के दिन फिर गए. दारोगाजी उस के लिए भले इनसान साबित हुए थे. वह उन्हें दुआएं देता रहा और मुफ्त में दूध भी.

बाकी चैक पाने के लिए दफ्तर के चक्कर काटना रामदीन का अब रोजाना का काम बन गया था. बहुत से बाबू व अफसर उसे अच्छी तरह पहचान गए थे. वह उन्हें पान, सिगरेट, गुटका भी देता या कभी चाय भी पिलाता.

बाबू रामदीन को खबर देते. उसे बताया गया था कि पहले 8 रुपए वर्गफुट के हिसाब से मिलने वाले थे, अब शायद 10 रुपए वर्गफुट के हिसाब से मिलेंगे.

एक दिन दफ्तर में रामदीन को उस का पड़ोसी राम खिलावन मिल गया. बातचीत से उसे पता चला कि शायद कोर्ट जमीन के भाव बढ़ा कर 10 या 13 रुपए वर्गफुट कर दे.

राम खिलावन ने बताया, ‘‘जानते हो रामदीन, सरकार हम से 10 रुपए वर्गफुट के हिसाब से जमीन खरीद कर सौ या 150 रुपए तक के भाव में बेच रही है.’’

दूसरी किस्त का चैक कुछ ही दिनों में मिलने वाला था. आखिरी चैक तो कोर्ट के फैसले के बाद ही मिलेगा.

रामदीन दुखी हो कर सोचने लगा, ‘सरकार 10 रुपए दे कर सौ रुपए में बेच रही है. एक फुट पर 90 रुपए का फायदा. महाजन को भी मात दे दी. क्या यही है जनता का राज ’

दारोगा साहब का तबादला हो गया था, लेकिन वह उसे एक समाजसेवक से मिलवा गए थे.

अब बाबुओं के तेवर बदल गए, ‘तुम उस के बूते पर बहुत कूदते थे, अब लेना ठेंगा.’

कुछ तो कहते, ‘इतनी सी बात भी तुम्हारी समझ में नहीं आती कि हम सरकारी मुलाजिम हैं. हमारे पास कलम है, ताकत है.’

उस समाजसेवक की कोशिशों के बावजूद दूसरी किस्त लेने के लिए 5,000 रुपए बाबुओं की जेबों में डालने पड़े और इतना ही समाजसेवक साहब को भी खर्चापानी देना पड़ा.

रामदीन दौड़ता रहा. कभी दफ्तर में तो कभी कोर्टकचहरी में. उस ने मकान बनवा लिया था. अब उस के पास

10 भैंसें, 4 गाएं, 2 बैल और 2 बीघा जमीन भी थी.

जिंदगी में नई सुबह आई थी. लेकिन सब से ज्यादा फर्क रामदीन की सोच में आया था. वह जान गया था कि अनपढ़ होना मुसीबत की जड़ है.

रामदीन के 4 में से 3 बच्चे स्कूल में पढ़ते थे. पहला छठी में, दूसरा तीसरी में, तीसरी बिटिया पहले दर्जे में. चौथा बेटा 3 साल का था. वह अगले साल उस का दाखिला कराएगा. वह खुद भी अपने बच्चों से पढ़ता था.

कोर्ट का फैसला जल्दी ही आ गया. अदालत ने 13 रुपए वर्गफुट का भाव लगाया था. साथ ही, एक अधबना मकान लोगों से आधा पैसा ले कर देना था. 10 साल के इंतजार के बाद उस के और दूसरे गांव वालों के चेहरों पर मुसकान दिखी थी.

कोर्ट में अर्जी लगाने वाली संस्था के वकीलों के हाथों में चैक थे और चेहरों पर गहरी मुसकान. कुल 15 फीसदी देना होगा. 6 फीसदी वकीलों को, 5 फीसदी बाबुओं व अफसरों को और 4 फीसदी गैरसरकारी संस्था को.

सभी भोलेभाले लोग हैरान रह गए थे. सरपंच, नेता, पार्टी, पंडा, वकील, सरकारी दफ्तर क्या ये सभी दलाल हैं, मुरदों के भी कफन खसोटने वाले

फर्क सिर्फ इतना है कि पंडे धर्म के नाम पर पूजा कराने, वकील कचहरी में फैसला कराने, नेता, समाजसेवक लोगों का भला कराने, बाबू दफ्तरों के काम कराने के पैसे लेते हैं.

दलाली के भी अलगअलग नाम हैं. जैसे चढ़ावा, दक्षिणा, फीस, चंदा और चायपानी. सभी का एक ही मकसद है, लोगों की जेब खाली कराना.

लोगों में बातचीत हो रही थी. जलसे हुए. बाद में कुल 10 फीसदी पर आम राय हो गई.

10 साल बीत चुके थे, पर मुआवजे की किस्तें अभी भी अधूरी थीं. चींटियों की चाल चल रही थी सारी सरकारी कार्यवाही.

जब तक सांस है, आस भी है. कभी न कभी मुआवजा तो मिलेगा ही.

Family Story : अपनी अपनी खुशियां

Family Story : ‘कौन कहता है कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं? आदमी में समझ होनी चाहिए,’ रूपेश ने दिल ही दिल में कहा. फिर उस ने अर्चना के सुंदर मुखड़े की ओर ताका व उस के बाद उस की नजरें अपनी पत्नी शिखा के चेहरे पर पड़ीं. शिखा अपनी प्लेट में धीरेधीरे उंगलियां चला रही थी. अर्चना से रूपेश की मुलाकात अपने एक मित्र के कार्यालय में हुई थी, जो उसे इंतजार करने को कह कर खुद कहीं चला गया था. एकडेढ़ घंटे की बातचीत के बाद अर्चना और रूपेश में इतनी घनिष्ठता हो गई थी कि रूपेश को अर्चना के बगैर रहना कठिन महसूस होने लगा था.

कुछ दिनों तक सिनेमाघरों, पार्कों और होटलों में मुलाकातों के बाद रूपेश उसे अपने घर लाने की लालसा को न दबा पाया. शिखा को रूपेश ने जब यह कहा कि वह अर्चना को भी अपने घर में रहने दे तो शिखा पर मानो बिजली गिर पड़ी थी. वह काफी चीखीचिल्लाई थी किंतु रूपेश ने उस को समझाया था कि जब हम अपने हर रिश्तेदार, मित्रों और जानपहचान वालों की खुशियों के लिए सबकुछ करने को तैयार रहते हैं, तब यह कितनी अजीब बात है कि पतिपत्नी, जिन का रिश्ता संसार में सब से बड़ा और गहरा होता है, एकदूसरे की खुशियों का खयाल न रखें.

रूपेश ने शिखा से कहा कि अर्चना पर और घर पर उसे पूरा अधिकार होगा. उस को अपनी हर इच्छा को पूरा करने का अधिकार होगा. बस, वह अर्चना को उस के साथ इस घर में रहने पर आपत्ति न उठाए. पड़ोसियों को वह यही बताए कि अर्चना उस की मामी की या चाची की लड़की है और वह, यहां पर नौकरी करने आई है तथा अब उन लोगों के साथ ही रहेगी. आखिर जब शिखा ने देखा कि रूपेश को समझानेबुझाने का अब कोई फायदा नहीं है तो एक हफ्ते की खींचतान के बाद उस ने रूपेश की इच्छा के आगे सिर झुका दिया.

रूपेश के पांव धरती पर न टिकते थे. वह उसी दिन जा कर अर्चना को अपने घर ले आया. पड़ोसियों से कहा गया कि वह शिखा की बहन है. रिश्तेदारों ने आपत्ति उठाई तो रूपेश ने यह कह कर मुंह बंद कर दिया कि जब मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी. शिखा ने अर्चना का खुले दिल से स्वागत किया. उस के रहने की व्यवस्था रूपेश के कमरे में कर दी गई. अर्चना को नहानेधोने के लिए शिखा स्नानघर में खुद ले गई. अपने हाथों से तौलिया, साबुन, तेल वहां पहुंचाया. बाथरूम स्लीपर खुद अर्चना के पांव के पास रख दिए. रूपेश मानो खुशियों के हिंडोलों में झूल रहा था. नहाने के बाद नाश्ते की मेज पर बड़े आग्रह के साथ शिखा ने अर्चना को खिलायापिलाया. शिखा से ऐसे बरताव की आशा रूपेश को कभी न थी.

रूपेश मन ही मन मुसकरा रहा था और अपने सुंदर जीवन की कल्पना में डूबतैर रहा था. औटोरिकशा की भड़भड़ाहट से उस की कल्पना में सहसा विघ्न पड़ा. औटोरिकशा से एक लंबाचौड़ा खूबसूरत युवक उतरा और ‘हैलो शिखा’ बोलते हुए घर में घुस गया. शिखा एकाएक उस की तरफ बढ़ी. किंतु फिर थोड़ा रुक गई. उस नौजवान ने आगे बढ़ कर शिखा के कंधे पर अपनी बांह रख दी.

‘‘रूपेश भैया, जरा औटोरिकशा से सामान तो उतार लाना,’’ उस नवयुवक ने रूपेश की तरफ मुंह फेर कर कहा.

कुछ न समझते हुए भी रूपेश ने औटोरिकशे वाले से उस नवयुवक का सामान अंदर रखवाया और उसे पैसे दे कर चलता किया. शिखा और वह युवक सोफे पर पासपास बैठे बातों में मग्न थे जैसे जिंदगीभर की सारी बातें आज ही खत्म कर के दम लेंगे.

‘‘आप की तारीफ,’’ रूपेश ने शिखा से पूछा. शिखा थोड़ा सा मुसकराई और शर्म से सिमटसिकुड़ गई. फिर उस ने एक बार उस नवयुवक के सुंदर मुखड़े की ओर ताका.

‘‘यह संजय है. तुम्हें शायद याद होगा कि एक बार तुम्हारे बहुत जोर देने पर मैं ने स्वीकार किया था कि शादी से पहले मैं भी किसी से प्यार करती थी. मेरी अधूरी प्रेमकहानी का हीरो यही है.’’

रूपेश को झटका सा लगा. उस की आंखें फैल गईं.

‘‘जब मैं ने अर्चना को साथ रखने की बात सुनी और तुम ने मेरा पूरा हक और मेरी खुशियां मुझे देने का वचन दे दिया, तब मैं ने संजय को अपने साथ रखने का फैसला कर लिया,’’ शिखा ने अपनी आंखों को नचाते हुए कहा, ‘‘अपने मिलनेजुलने वालों से हम यही कहेंगे कि संजय आप के मामाजी, फूफाजी या चाचाजी का बेटा है और यह नौकरी के सिलसिले में यहां आया हुआ है और अब हमारे साथ ही रहेगा.’’

‘‘अरे, शिखा डार्लिंग, पहले तो मुझे यकीन ही नहीं आया. किंतु जब तुम ने बताया कि तुम लोग एकदूसरे की खुशियों के लिए झूठे रस्मोरिवाज तोड़ रहे हो तब मैं ने उस महान आदमी के दर्शन करने के लिए यहां आने का निश्चय कर ही लिया,’’ संजय बोला.

‘‘अब तुम इन से खुद पूछ लो,’’ शिखा ने संजय की तरफ देखा और फिर वह अपने पति की तरफ घूम गई, ‘‘क्यों जी, है न यही बात? आप मेरी खुशियों के आगे दीवार तो नहीं बनेंगे? प्यार की जिस प्यास से मैं आज तक तड़पती रही हूं, अब उसे बुझाने में आप मुझे पूरा सहयोग देंगे न?’’

‘‘हांहां.’’ रूपेश आगे कुछ न कह सका.

‘‘डार्लिंग, तुम थकेहारे आए हो. आओ, नहाधो लो ताकि थकावट दूर हो जाए.’’

‘‘स्नानघर किधर है?’’ संजय ने पूछा.

‘‘जाइए जी, इन को स्नानघर बताइए,’’ शिखा ने कहा, ‘‘और हां, यह तौलिया और साबुन वहां रख दीजिएगा.’’ रूपेश ने तौलिया और साबुन हाथ में ले लिया और स्नानघर की ओर मुड़ा. संजय उस के पीछेपीछे चल पड़ा.

‘‘अरे हां, यह बाथरूम स्लीपर भी साथ ले जाइए.’’ शिखा ने संजय का ब्रीफकेस खोल कर उस में से बाथरूम स्लीपर निकाले.

संजय बाथरूम से स्लीपर लेने के लिए पलटा.

‘‘अरे, नहीं. आप चलिए. ये ले कर आते हैं.’’ शिखा ने बाथरूम स्लीपर रूपेश की तरफ बढ़ा दिए. रूपेश ने कंधे उचकाए और फिर बाथरूम स्लीपर पकड़ कर आगे बढ़ गया.

स्नानघर से पानी गिरने की आवाज आ रही थी और संजय मग्न हो कर गुनगुना रहा था.

‘‘यह क्या मजाक है?’’ रूपेश ने शिखा से कमरे में लौटते ही कहा.

‘‘कैसा मजाक, क्या आप को संजय का यहां आना अच्छा नहीं लगा?’’ शिखा ने पूछा.

‘‘नहीं, यह बात नहीं, मैं पूछता हूं कि संजय के बाथरूम स्लीपर मुझ से उठवाना क्या तुम्हें शोभा देता है?’’

‘‘डार्लिंग, मैं आप की खुशी के लिए अर्चना बहन की दिल से सेवा कर रही हूं. आप मेरी खुशी के लिए माथे पर बल न डालिए. कहीं ऐसा न हो कि संजय के दिल को चोट पहुंचे. वह बहुत भावुक है,’’ शिखा ने कहा.

रूपेश मन ही मन ताव खाए कंधे हिला कर रह गया.

‘‘अब ऐसा करिए, दो?पहर के खाने के लिए कुछ सब्जी वगैरह लेते आइए. आप डब्बों में बंद सब्जी ले आइए.’’

रूपेश ने अर्चना की तरफ देखा.

‘‘यदि अर्चना बहन आराम करना चाहती हैं तो आराम करें या आप के साथ जाना चाहती हैं तो बाजार घूम आएं. मैं रसोई की तैयारी करती हूं.’’

‘‘नहीं, अर्चना यहीं रहेगी,’’ रूपेश ने जल्दी से कहा.

‘‘क्या आप मुझे संजय के साथ अकेले छोड़ते हुए डरते हैं?’’ शिखा ने तीखी नजरों से रूपेश की तरफ देखा.

‘‘नहीं, मैं ऐसा तंगदिल नहीं हूं. मैं तो इसलिए कह रहा हूं कि यह काम में तुम्हारी मदद करेगी,’’ रूपेश ने जल्दी से कहा और फिर थैला उठा कर बाहर निकल गया.

रूपेश ताव खाते हुए बाजार की ओर जा रहा था. उस के घर में उस की पत्नी उस से किसी के जूते उठवाए, यह कहां तक ठीक था. शिखा ने यदि अर्चना के लिए तौलिया, साबुन, स्लीपर स्नानघर में पहुंचा दिए तो अपनी खुशी से. उस ने उसे मजबूर तो नहीं किया था? संजय को बुलाने से पहले वह उस से पूछ तो लेती, सलाह तो कर लेनी चाहिए थी. और अब नौकर की तरह थैला थमा कर उसे बाजार की ओर ठेल दिया है. यह ठीक है कि शिखा को उस ने घर में पूरा हक देने का वादा जरूर किया था, मगर उसे एकदूसरे की बेइज्जती करने का तो अधिकार नहीं है.

इस की कुछ न कुछ सजा जरूर संजय और शिखा को मिलनी चाहिए. वे दोनों फूड पौयजन से बीमार हो जाएं तो कैसा रहे? रूपेश के दिमाग में एकदम विचार उभरा. हां, यह ठीक रहेगा. उस के कदम एक डिपार्टमैंटल स्टोर की ओर बढ़े.

‘‘आप के यहां कोई ऐसी डब्बाबंद सब्जी है जिस से फूड पौयजन होने का खतरा हो?’’ उस ने सेल्समैन से सीधा सवाल किया.

‘‘क्या मजाक करते हैं, साहब? हमारे यहां तो बिलकुल ताजा स्टौक है,’’ सेल्समैन ने दांत निकालते हुए कहा.

‘‘एकआध डब्बा भी नहीं?’’

‘‘क्या आप स्वास्थ्य विभाग से आए हैं?’’ सेल्समैन ने सतर्क हो कर पूछा.

‘‘नहीं, डरो नहीं. हां, यह बताओ कि कोई ऐसा डब्बा…’’

‘‘जी नहीं. हम इमरजैंसी से पहले और इमरजैंसी के बाद भी अच्छा ही माल बेचते रहे हैं,’’ सेल्समैन ने कहा.

‘‘अच्छा, कोई ऐसी दुकान का पता बता दो जहां ऐसी डब्बाबंद सब्जी मिल जाए.’’ अपनी बेइज्जती के बाद की भावना से पागल हो रहे रूपेश ने 500 रुपए का नोट सेल्समैन की तरफ सरकाया.

‘‘क्रांति बाबू, जरा पुलिस को फोन करना. यह पागल आदमी किसी की हत्या करना चाहता है,’’ सेल्समैन ने टैलीफोन के करीब बैठे एक नौजवान से कहा.

पुलिस का नाम सुन कर रूपेश उड़नछू हो गया. 500 रुपए का नोट काउंटर से उठाने की भी उसे सुध न रही, संजय व शिखा को बीमार कर देने का विचार भी उस के दिमाग से उड़ गया. अब तो वह उन दोनों की सेहत ठीक रहने की ख्वाहिश कर रहा था. उस के डरे हुए मस्तिष्क में यह विचार उभरा कि संजय व शिखा को कुछ हो गया तो सेल्समैन की गवाही पर वह पकड़ लिया जाएगा.

रात को खाने के बाद कौफी का दौर चला. वे चारों बैठक में बैठे थे. संजय अपने चुटकुलों से सब को हंसाता रहा.

‘‘क्या बात है, डार्लिंग, तुम कुछ नहीं बोल रहे हो?’’ अर्चना ने रूपेश के करीब सरकते हुए कहा.

‘‘मैं तो कहता हूं, रूपेशजी, यदि सब लोग आप की तरह समझदार हो जाएं तो प्रेम के कारण होने वाली सारी समस्याएं समाप्त हो सकती हैं,’’ संजय ने कहा.

‘‘और प्रेम में निराश हो कर आत्महत्याएं भी कोई न करे,’’ अर्चना बोली.

‘‘मानव जाति को कितना अच्छा सुझाव दिया है रूपेशजी ने,’’ शिखा ने कहा.

‘‘मगर पहले तो तुम अडि़यल घोड़े की तरह दुलत्तियां झाड़ रही थीं, मरनेमारने की धमकियां दे रही थीं,’’ रूपेश ने शिखा की तरफ देख कर कहा.

‘‘तब मैं तुम्हारे दिल की गहराई नाप नहीं पाई थी.’’

‘‘अच्छा भई, तुम दिल की गहराइयां नापो. हम तो नींद की गहराइयों में उतरने चले,’’ संजय उठ खड़ा हुआ, ‘‘शिखा डार्लिंग, सोने का कमरा किधर है?’’

‘‘वह बाएं कोने वाला इन का है और दाएं वाला हमारा.’’

‘‘अच्छा भई, गुडनाइट,’’ स्लीपिंग गाउन सरकाता हुआ संजय दाईं ओर के सोने के कमरे की ओर बढ़ गया.

संजय के चले जाने के बाद कुछ देर तक अर्चना अंगरेजी पत्रिका के पन्ने पलटती रही. फिर वह भी अंगड़ाई ले कर उठ खड़ी हुई.

‘‘सोना नहीं है, रूपेश डार्लिंग?’’

‘‘तुम चलो, मैं थोड़ी देर और बैठूंगा.’’ रूपेश ने अनमने स्वर में कहा.

‘‘ओके, गुडनाइट.’’

‘‘गुडनाइट,’’ रूपेश कुछ नहीं बोला लेकिन शिखा ने स्वेटर पर सलाई चलाते हुए कहा.

फिर बैठक में खामोशी छा गई. घड़ी की टिकटिक और शिखा की सलाइयों की टकराहट इस खामोशी को तोड़ देती. रूपेश अनमना सा कुरसी पर बैठा रहा.

‘‘अब सो जाइए, 1 बजने को है, मुझे तो नींद आ रही है,’’ शिखा ऊन के गोलों में सलाइयां खोंसती हुई बोली.

शिखा ने स्वेटर और ऊन के गोलों को कारनेस पर टिका कर एक अंगड़ाई ली, रूपेश की तरफ देखा और और फिर पलट पड़ी दाएं कोने वाले सोने के कमरे की ओर.

‘‘रुक जाओ, शिखा,’’ रूपेश तड़प कर शिखा और कमरे के दरवाजे के बीच बांहें फैला कर खड़ा हो गया, ‘‘बेशर्मी की भी हद होती है.’’

‘‘बेशर्मी, कैसी बेशर्मी? रूपेश डार्लिंग, तुम ने मुझे जो हक दिया है मैं उसी का इस्तेमाल कर रही हूं. हट जाओ, मेरी वर्षों से मुरझाई हुई खुशियों के बीच दीवार न बनो. मुझे खुशियों का रास्ता दिखा कर राह में कांटे न बिछाओ.’’

‘‘अपने पति के सामने ऐसा कदम उठाते हुए तुझे डर नहीं लगता? शर्म नहीं आती?’’

‘‘डर, शर्म आप से? क्यों? यह तो बराबरी का सौदा है. रात काफी हो चुकी है, सो जाइए. आप का कमरा उधर है,’’ शिखा ने बाएं कोने में कमरे की ओर इशारा किया, ‘‘छोडि़ए, मेरा रास्ता.’’

‘‘बेशर्म, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम इतनी गिर सकती हो. तुम्हारी इस हरकत से एक पति के दिल पर क्या गुजर सकती है, यह तुम ने कभी सोचा है?’’ रूपेश की आंखें क्रोध से जल उठीं.

‘‘मर्द जब दूसरी पत्नी ब्याह कर लाता है तब क्या अपनी पहली पत्नी के दिल में उठने वाली चीखों की शहनाइयों के शोर को सुनता है? रातरातभर कोठों पर ऐश की शमाएं जलाने वाले पति कभी अपनी पत्नी के दिल के अंधेरों में झांक कर देखते हैं? हर जवान लड़की पर लार टपकाने वाला पति कभी यह भी सोचता है कि उस की पत्नी के गालों पर आंसू के निशान क्यों बने रहते हैं? आप ने जब अर्चना को लाने की तजवीज पेश की थी, तब मैं भी रोईचिल्लाई थी. अब मैं संजय के पास जा रही हूं तो आप क्यों चीख उठे?’’

‘‘मैं उस का सिर तोड़ दूंगा,’’ रूपेश कमरे की तरफ बढ़ा.

‘‘अरे, रुको तो,’’ शिखा ने उस की बांह पकड़ ली.

‘‘मैं कुछ सुनना नहीं चाहता. उसे इसी वक्त चलता कर दो.’’

‘‘और अर्चना?’’

‘‘वह भी जाएगी. मेरा फैसला गलत था. मैं अंधे जज्बात की धारा में बह गया था,’’ रूपेश ने हथियार डाल दिए.

‘‘अंधे जज्बात नहीं, वासना ने तुम्हें अंधा कर दिया था. रूपेश भैया,’’ संजय  पूरे कपड़े पहन अतिथिकक्ष के दरवाजे पर खड़ा था.

रूपेश कभी सोने के कमरे की तरफ और कभी अतिथिकक्ष के दरवाजे पर खड़े संजय की ओर देख रहा था.

‘‘जी हां, आप का खयाल ठीक है. मैं सोने के कमरे में स्लीपिंग सूट पहन कर गया जरूर था. किंतु दूसरे दरवाजे से बाहर निकल गया था,’’ संजय ने कहा, ‘‘आप को फिर कोई शो करना हो तो याद कीजिएगा. यह रहा मेरा कार्ड.’’

‘नितिन…निर्देशक तथा स्टेज आर्टिस्ट,’ रूपेश कार्ड की पहली पंक्ति पर अटक गया.

‘‘आगे हमारे ड्रामा क्लब का पता भी लिखा है. नोट कर लीजिए,’’ नितिन मुसकरा दिया.

रूपेश मुंह फाड़ कभी कार्ड को तो कभी उस युवक को देख रहा था, जो संजय से नितिन बन गया था.

‘‘यह नितिन है, हमारे शहर के माने हुए कलाकार और भैया के जिगरी दोस्त. जब मैं ने भैया को आप की अर्चना को साथ रखने की जिद के बारे में लिखा तब उन्होंने नितिन की सहायता से यह सारा नाटक रचवाया,’’ शिखा ने सारी बात समझाते हुए कहा.

‘‘ओह,’’ रूपेश ने एक लंबी सांस ली और धम से सोफे पर बैठ गया.

Social Story : वक्त के धमाके – क्या पूरे हो पाए रवि के सपने?

Social Story : एक तरफ प्रशांत महासागर की अथाह गहराइयां और दूसरी ओर माउंट फूजी की बर्फ से ढकी गगनचुंबी चोटियों के बीच दूर तक फैली हरियाली का सीना चीरती हुई ‘शिनकानसेन’ (बुलेट ट्रेन का जापानी नाम) तेज रफ्तार से भागती जा रही थी. आरक्षित कोच की शानदार सीट पर सिर रखे, आंखें बंद किए रवि का मन उस से भी तेज गति से अतीत की ओर भाग रहा था.

तकरीबन 1 साल हुआ जब उस से रवि की मुलाकात हुई थी. बी.ए. प्रथम वर्ष की परीक्षा परिणाम का अखबार हाथ में आते ही पिताजी ने आसमान सिर पर उठा लिया था. मां ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उन का फैसला पत्थर की लकीर जो था. चंद जरूरी कपड़े साथ में ले जाने की उसे इजाजत मिली थी. घर से निकलते समय अपने ही जन से नजरें मिलाने की भी उस में हिम्मत न थी. आखिर उन की तकलीफों से वह वाकिफ था.

सरकारी महकमे का एक ईमानदार बाबू किस प्रकार परिवार की गाड़ी खींचता था, उस से छिपा तो न था. बड़ा बेटा होने के नाते उस से उम्मीदें भी बहुत थीं. ‘पढ़ नहीं सकते हो तो महकमे से लोन ले कर एक छोटीमोटी दुकान खुलवा सकता हूं’, कहा था पिताजी ने, लेकिन वह जिंदगी जीना उस का ख्वाब होता तब न. बचपन से एक ही सपना पाल रखा था कि विदेश जाऊंगा, कुछ बनूंगा.

जून की तपती दोपहरी में कुछ सुकून के पल तलाश करने के लिए वह दिल्ली स्थित ‘जापान कल्चरल सेंटर’ के बाहर एक पेड़ की छांव में बैठा ही था कि तभी गेट से एक जापानी बाला बाहर आई और फुटपाथ के पास खड़ी हो गई. उसे शायद किसी टैक्सी का इंतजार था. भीषण गरमी से उस का सफेद दूध सा दमकता चेहरा लाल हो गया था. उस जापानी युवती को परेशान देख कर रवि के मन में परमार्थ की भावना जागी. कुछ ठिठकते कदमों के साथ उस के थोड़ा नजदीक गया और धड़कते दिल से अंगरेजी में पूछा कि क्या तुम अंगरेजी में बातचीत कर सकती हो. उस ने बेहद पतली आवाज में अंगरेजी में जवाब दिया, ‘यस अफकोर्स.’ और इसी के साथ ही उस में साहस का संचार हुआ, बोला, ‘डू यू नीड ऐनी हेल्प?’ ‘नो थैंक्स, एक्चुली आई अराइव्ड हियर लास्ट नाइट एंड बाई टुमारो मार्निंग आई हैव टु फ्लाई फौर जयपुर, सो ड्यूरिंग दीज फ्यू आवर्स आई विश टू सी सम गुड प्लेसिज हियर.’

उस की बातें खत्म होने से पहले वह बोल उठा, ‘इफ यू डोंट माइंड एंड फील कंफर्टेबल, इट वुड बी माई प्लेजर टु शो यू सम ब्यूटीफुल एंड हिस्टोरिकल प्लेसिज?’

एक पल के लिए गहरी खामोशी छा गई थी, उस युवती के मुंह से निकलने वाली हां या ना पर रवि के पूरे सपने पल भर टिके रहे. ‘ओह श्योर,’ ने रवि की तंद्रा भंग की और वह सातवें आसमान पर जा पहुंचा था.

शाम होतेहोते दिल्ली की वे तमाम ऐतिहासिक चीजें रवि ने जापानी युवती को दिखाईं जिन से एक पर्यटक वाकई अभिभूत हो उठता है. रवि के लिए सब से महत्त्वपूर्ण था उस का सुखद सामीप्य. एक वाक्य बोलने से पहले उस के खूबसूरत होंठों से जो खिलखिलाहट उभरती थी और बातोंबातों में रवि की नाक को पकड़ कर हिला देने का जो उस का अंदाज था, उस ने उसे रवि के दिल के बेहद करीब पहुंचा दिया.

दिल्ली के कई पर्यटन स्थलों को देखतेदेखते उन्हें शाम हो गई. दोनों को भूख लगी थी. एक अच्छे रेस्तरां में खाना खाने के बाद वे टहलते हुए इंडिया गेट की ओर निकल गए थे. चांदनी चारों ओर बिखरी थी, बोट क्लब की ओर से आती ठंडी हवाएं, माहौल को और भी खुशनुमा बना रही थीं. चलतेचलते मिकी ने उस की उंगलियों को अपनी हथेली में भर कर बहुत ही गंभीर स्वर में कहा था, ‘रवि, मैं दुनिया के बहुत से देशों में गई हूं और अनेक दोस्त भी बनाए हैं लेकिन तुम वास्तव में उन दोस्तों में एक बेहतरीन दोस्त हो. मैं तुम्हारे देश से मधुर यादों को ले कर जापान जाऊंगी. मेरी इच्छा है कि तुम जापान आओ. भविष्य में यदि तुम कभी अपने देश को छोड़ कर जापान आने के लिए मानसिक रूप से तैयार होना तो मुझे लिखना, मैं तुम्हारे लिए टिकट और वीजा के लिए जरूरी पेपर भेज दूंगी. कल सुबह 8 बजे से पहले तुम मुझे पार्क होटल के रिसेप्शन पर आ कर मिलना. मैं तुम्हें अपना जापान का पता व टेलीफोन नंबर दे दूंगी.’

बहुत मुश्किल से रवि तब  सिर्फ ‘यस’ बोल सका था. चेतना जा चुकी थी वह सिर्फ जड़वत सा खड़ा रह गया था. शायद इतनी बड़ी खुशी का बोझ उस से उठाया नहीं जा रहा था. बचपन का एक सपना शायद सच होने जा रहा था. तभी उस की नाक को पकड़ कर मिकी ने हिलाया तो मानो वह नींद से जाग गया.

‘रवि, अब तुम जाओ, उम्मीद करती हूं कि कल सुबह मुलाकात होगी.’ इतना कह कर मिकी चली गई थी और रवि उस के कदमों की आखिरी आवाज भी सुनने को बेचैन ठगा सा वहीं खड़ा रहा.

कुछ देर बाद रवि अपने ठिकाने पर जा कर सो गया. वह पास की एक बेंच पर लेट गया था. रात सरकती रही और वह मिकी और अपने भविष्य के बारे में सोचता ही जा रहा था. सोचतेसोचते कब आंख लग गई पता ही नहीं चला और सुबह आंख खुली रवि ने सब से पहले घड़ी को देखा तो 8 बज चुके थे. वह हांफते हुए होटल के रिसेप्शन पर पहुंचा तो पता चला कि मिकी की फ्लाइट 8.45 बजे की थी और वह 8 बजे से पहले ही होटल से जा चुकी थी. जिस बेल ब्वाय ने उस का कमरा साफ किया था उस ने बताया कि मिकी काफी देर तक लौबी में बैठी थी. उस की मायूस निगाहें मानो किसी को तलाश रही थीं.

रवि को लगा कि उस का सबकुछ लुट चुका है. वह भीतर से बिलकुल टूट गया, फिर भी उसे जीना है क्योंकि अब तो उसे जिंदगी का मकसद मिल गया था. मिकी को पाने की एक अटूट चाहत ने उस के भीतर जन्म ले लिया था.

हलके झटके के साथ ट्रेन रुकी तो रवि ने आंखें खोलीं और उस का मन अतीत से वर्तमान में आ गया. एक सहयात्री ने रवि के पूछने पर बताया कि यह हमामातसुचो स्टेशन है. लगभग आधा सफर खत्म हो चुका है. भारत के स्टेशनों से कितना भिन्न, जगमगाता प्लेटफार्म, कोई शोरशराबा नहीं, इतना साफसुथरा फर्श कि पैर भी रखने को दिल न करे. उतरने और चढ़ने वालों का अनुशासन देख जापान की सभ्यता से रवि थोड़ाबहुत परिचित हो रहा था. ट्रेन सरकने लगी और कुछ ही क्षणों में फिर तूफानी रफ्तार पकड़ ली. रवि एक बार फिर आंखें बंद कर अतीत में खो गया.

तब दोचार दिन तलाश करने पर रवि को पास ही के एक छोटे से रेस्तरां में काम मिल गया था जिस से पेट की भूख और छत की समस्या का हल हो गया. लगभग रोजाना समय निकाल कर एक उम्मीद दिल में लिए रवि उसी पेड़ के नीचे आ बैठता था. इस दौरान उस ने बहुत जापानी चेहरे देखे लेकिन वह चेहरा दोबारा देखने की चाहत लिए एक साल गुजर गया.

ऐसे ही एक दिन शाम को रवि पेड़ के नीचे उदास बैठा था कि तभी एक आटोरिकशा ब्रेक की तेज आवाज के साथ आ कर रुका तो उस की तंद्रा भंग हुई. रवि ने देखा कि एक जापानी नौजवान आटो से उतरा और आटो वाले को किराया देने के बाद अपने मोटे से पर्स को तंग जींस की पिछली जेब में खोंस कर लापरवाह ढंग से सीढि़यों की तरफ बढ़ा. महज 2 सीढि़यां चढ़ते ही उस युवक का पर्स जेब से निकल कर वहीं गिर गया, लेकिन उस से अनजान वह जापानी नौजवान आगे बढ़ता गया. रवि ने आसपास किसी को न देख कर धीरे से जा कर पर्स उठाया और पेड़ के नीचे आ कर उसे खोल कर देखा तो उस में हजार के नोट भरे थे. धड़कते दिल से रवि ने उसे तुरंत बंद किया. उस के अनुमान से लगभग 40-50 नोट रहे होंगे. इस का मतलब भारतीय करेंसी में तो ये लाखों में होंगे. एक पल को उस के दिमाग में आया कि ये रुपए अगर वह पिताजी को जा कर दे दे तो उन की तमाम परेशानियां दूर हो सकती हैं, लेकिन दूसरे ही पल उस की आत्मा धिक्कार उठी कि रवि, यदि यह धन तुम ने अपने पास रखा तो शायद जीवन भर अपने को माफ न कर सकोगे. इस को वापस करना होगा. तभी बेचैनी की हालत में वह जापानी नौजवान बाहर आता दिखाई पड़ा. उस की निगाहें जमीन के भीतर से भी कुछ निकाल लेने को आतुर थीं. रवि हौले से उस के करीब आ कर बोला, ‘एक्सक्यूज मी, आई हैव योर वालेट. यू ड्राप्ड इट हियर,’ कह कर पर्स उस के हाथों में थमा दिया.

उस जापानी नौजवान के चेहरे पर जो खुशी और कृतज्ञता के भाव आए और धन्यवाद से संबंधित जितने भी शब्द उसे आते थे, कहे. उन्हें सुन कर रवि गौरवान्वित हो उठा था. पर्स निकाल कर युवक ने चंद नोट उसे थमाने चाहे थे, लेकिन उस ने जो किया था उस के बदले में कुछ पैसे ले कर खुद से शर्मिंदा नहीं होना चाहता था. रवि की ऐसी अभि- व्यक्ति को सुन कर जापानी नौजवान ने आश्चर्यमिश्रित ढंग से उस की ओर देखा और बोला, ‘आई एम वेरी मच इंप्रेस्ड, मे आई डू समथिंग फौर यू?’

इसी सवाल का तो रवि को इंतजार था और एक झटके में उस के मुंह से निकला, ‘आई विश टु कम टु जापान?’

एक पल को उन दोनों के बीच गहरी खामोशी छा गई. फिर उस जापानी नौजवान ने धीरे से रवि के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘डू यू नो एनी रेस्टोरेंट अराउंड दिस एरिया? आई एम हंग्री.’

करीब 5 मिनट पैदल चलते ही रवि का रेस्टोरेंट था, संयोग से कोने की एक मेज खाली थी. उस ने रवि को जबरदस्ती अपने पास बिठाया और भोजन के दौरान ही रवि ने अपनी जिंदगी के हर पहलू, हर सपने को खोल कर उस के सामने रख दिया.

इस दौरान जापानी नौजवान कुछ भी नहीं बोला, सिर्फ खाता रहा और रवि की बातें सुनता रहा. भोजन समाप्त करने के बाद वह रवि को अपने बारे में बताने लगा. अभी हाल ही में उस की शादी हुई है और करीब एक बरस पहले उस के पिता प्लास्टिक के एक छोटेमोटे कारखाने को उस के कंधों पर छोड़ कर हार्टअटैक से चल बसे थे.

पिछले एक साल में उस के अथक परिश्रम से उस की ‘खायशा’ (कंपनी) की काफी तरक्की हुई. घूमनेफिरने का उसे बचपन से शौक है, इसलिए काम की जिम्मेदारी अपनी पत्नी को सौंप कर वह एक सप्ताह की भारत यात्रा पर निकल पड़ा था. एक पल रुक कर उस ने गिलास में रखा पानी पीया और आगे बताने लगा कि आने वाले दिनों में उस की कंपनी में काफी काम बढ़ने वाला है, लिहाजा उसे कुछ नए कर्मचारियों की जरूरत है. अगर तुम लंबे अरसे तक जापान में रहना चाहते हो और मेरे साथ काम करना पसंद करो तो मैं तुम्हें अपनी कंपनी में जगह दे सकता हूं, लेकिन जापान में बहुत मेहनत से काम करना होता है, जहां तक तुम्हारी ईमानदारी का सवाल है उस से तो मैं परिचित हो चुका हूं और तमाम नसीहतें देता चला गया.

रवि के कानों में सीटियां बज रही थीं. एक साल में दूसरी बार ऐसा अवसर आया था. वह अपनी सुध खो बैठा था ‘व्हाट डू यू डिसाइड?’ चौंक कर यथार्थ में आया रवि उस का हाथ थाम कर थरथराते होंठों से सिर्फ इतना बोल सका, ‘आई विल डू माई बेस्ट.’

मेरे ऐसे भाग्य होंगे, यह मैं ने सोचा न था. उस के रेस्तरां का पता नोट कर वह जापानी नौजवान बोला, ‘आई हैव टु फ्लाई फौर मुंबई टुनाइट एंड आफ्टर स्पेंडिंग 2 डेज ओवर दियर आई विल बी बैक टु जापान, सून आई विल सेंड औल द डाक्यूमेंट्स, सो जस्ट वेट फौर माई लेटर.’ उसे टैक्सी में बिठा कर एक उमंग मन में लिए रवि तब वापस रेस्तरां में आ गया था. भीड़ बढ़ने लगी थी.

उस जापानी नौजवान के जाने के बाद हरेक दिन रवि के लिए एक बरस की तरह गुजरा और ठीक 15वें दिन रेस्टोरेंट के काउंटर पर कैशियर ने उसे बड़ा सा लिफाफा पकड़ाया. एक कोने में जापान लिखा देख वह भागता हुआ अंदर गया और कांपती उंगलियों से लिफाफा खोला. वीजा से संबंधित सारे कागजात और एक ‘ओपन डेटेड’ एयर टिकट था. छोटे से पत्र में उस ने लिखा था कि शीघ्र आने की कोशिश करो.

खुशी के मारे उस की आंखों में आंसू आ गए.

आगे के 10 दिन तूफान की सी तेजी से गुजरे.

लगातार 5 दिन तक जापानी दूतावास के चक्कर काटने के बाद वीजा मिला और फिर जाने का समय आ गया था. पिताजी के स्नेहयुक्त नसीहत भरे अल्फाज ‘बेटा रवि, ईमानदारी का साथ मत छोड़ना तो खुशियां तुम से दूर नहीं रह पाएंगी,’ को रवि ने आत्मसात कर लिया था. छोटी बहन को सीने से लगा कर द्रवित हृदय से विदा ली थी.

ओसाका इंटरनेशनल एअरपोर्ट से क्लियरेंस की तमाम औपचारिकताएं पूरी होने के बाद उसे कार्यक्रम के अनुसार ओसाका स्टेशन से टोकियो के लिए बुलेट ट्रेन पर सफर करना था.

आंखें खुलीं तो रवि अतीत से बाहर आया. बाहर अंधेरा हो चला था. दूर टिमटिमाती रोशनियां दिखाई पड़ने लगी थीं. सहयात्री ने बताया कि टोकियो आने वाला है. फ्रेश होने की नीयत से रवि टायलेट गया. जब वह बाहर आया तो चारों तरफ जगमगाता शहर था. ट्रेन टोकियो में प्रवेश कर चुकी थी. आगामी कुछ ही मिनटों में ट्रेन रवि के अंतिम पड़ाव यानी वेनो स्टेशन पर पहुंचने वाली थी.

पश्चिम के दरवाजे से बाहर निकलते ही आरक्षण काउंटर के पास वह जापानी नौजवान रवि का इंतजार कर रहा था. दोनों गले मिले. रवि को उस ने बताया कि महज 10 मिनट की दूरी पर उस का अपार्टमेंट है. जगमगाता शहर और उस पर से आतिशबाजियों का मंजर (कुछ ही दूर पर बहती सुमिदा नदी के तट पर हर साल इसी दिन आतिशबाजी का उत्सव होता है जिसे ‘हानाबी’ कहते हैं) किसी भी नए इनसान को भौंचक कर देने के लिए पर्याप्त था.

कार उस शानदार अपार्टमेंट के पोर्च में जा लगी थी. रवि अब कुछ थकान का अनुभव कर रहा था. ड्राइंगरूम से अटैच्ड बाथरूम में गरम पानी के बाथटब में नहा कर रवि ने थकान उतारी और जब फ्रेश हो कर बाहर निकला तो देखा वह जापानी नौजवान अपना पसंदीदा पेय ले कर बैठा था. रवि ने सिर्फ एक कप कौफी पीने की इच्छा जाहिर की.

वह अंदर गया और रवि सोफे की पुश्त पर सिर टिका कर आंखें बंद कर दिल के उस हिस्से को छूने लगा जिस पर मिकी का नाम लिखा था. किसी भी सूरत में उसे ढूढ़ना होगा, रवि ने सोचा.

‘‘मि. रवि, प्लीज मीट टु माई वाइफ, मिकी,’’ और साथ में बेहद पतली आवाज में ‘हेलो’ के स्वर ने रवि की तंद्रा भंग की. झटके के साथ आंखें खोलीं और वह चेहरा जिसे रवि करोड़ों में भी पहचान सकता था, उस के सामने था. उस की मिकी उस के सामने खड़ी थी. नजरें मिलाते ही मिकी ने आंखें जमीन में गाड़ दी थीं. बहुत संयम के साथ वह सिर्फ ‘हेलो’ बोल सका था. दोस्त से मुखातिब हो कर बोला, ‘आई एम सौरी, ड्यू टु जेटलैक (टाइम जोन बदलने से होने वाली भारी थकान) आई एम फीलिंग अनवेल,’ इतना कह कर रवि सोफे में धंस सा गया. दूर सुमिदा नदी के तट पर हानाबी के धमाके कानों में गूंज रहे थे.

Love Story : मनचला – जवान लड़की को देख बेकाबू हुआ कपिल का मन

Love Story : इंद्राणी की मुसकान पर मुसकराते हुए कपिल जब लालबत्ती पर रुका तो वह कुछ गुनगुना रहा था. उम्र 50 भी हो तो क्या हुआ, मर्द हमेशा खुद को जवान महसूस करता है. कुछ सप्ताह पहले ही उस की पदोन्नति भी हुई थी. सबकुछ रंगीन था.

‘‘सर,’’ सहसा एक मीठे स्वर ने उस का ध्यान आकर्षित किया.

कपिल ने देखा, बिंदास और एक स्मार्ट लड़की उसे देख रही है. उस की छवि और अदा में अच्छा आकर्षण था, अंदाजन वह 20-22 वर्ष की होगी.

‘‘सर, क्या आप मुझे लिफ्ट देंगे?’’ लड़की ने पूछा.

लड़की अच्छी लगी और फिर कपिल का मूड भी अच्छा था, क्योंकि चलते समय ही उस का मन खुश हो गया था. उस समय वह अच्छे मूड में था क्योंकि इंद्राणी की मुसकान ने उस की मुसकान को दोहरा कर दिया था.

मनपसंद नाश्ता हो और घर की मुरगी मादक मुसकान फेंक कर विदा करे तो हर मौसम रोमानी लगता है. 45 वर्ष की उम्र में भी इंद्राणी उर्फ नूमा खुद को इतना चुस्तदुरुस्त रखती कि कोई आसानी से

भी अंदाजा नहीं लगा सकता कि वह

2 जवान बच्चों की मां है. जब वह अपनी बेटी के साथ होती तो अकसर लोग दोनों को किसी सौंदर्य साबुन के विज्ञापन का मौडल कहते.

अत: उस ने पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘वैसे तो मैं साऊथ दिल्ली जा रही हूं,’’ लड़की ने अपनी मीठी मुसकान का लाभ उठाते हुए कहा, ‘‘आप मुझे रास्ते में कहीं भी उतार दीजिए.’’

‘‘बैठो,’’ कपिल हंसा, ‘‘पर मुझे ब्लैकमेल तो नहीं करोगी?’’

लड़की हंस पड़ी. उस की हंसी में मधुर खनखनाहट थी. उस ने ध्यान से कपिल को देखा, मानो उस के चरित्र का मूल्यांकन कर रही हो. फिर बैठने के लिए पीछे का दरवाजा खोलने लगी.

कपिल ने अपने पास का दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘पीछे नहीं, यहां बैठो. लोग मुझे कहीं तुम्हारा ड्राइवर न समझ बैठें.’’

लड़की फिर हंस पड़ी और अगली सीट पर जल्दी से बैठ गई.

हरीबत्ती हो चुकी थी और पीछे वाले बेचैनी से हौर्न पर हौर्न बजा रहे थे. कपिल ने जल्दी से कार आगे बढ़ा दी.

कपिल के दिमाग में बहुत सारी बातें एकसाथ चल रही थीं. कुछ दिनों पहले ही समाचारपत्रों में यौन अपराध संबंधी कई समाचार आए थे. साउथ दिल्ली और रोहिणी में कई लड़कियां धंधा करते रंगेहाथों पकड़ी गई थीं. इन में से अधिकतर लड़कियां शिक्षित व अच्छे घरों की थीं. यही नहीं, एक तो 2-3 वर्ष पहले मिस इंडिया भी रह चुकी थी. कालेज की लड़कियों को फैशन या मादक द्रव्यों की आदत के कारण ऊपरी आमदनी के अतिरिक्त कमाई का आसान रास्ता और क्या हो सकता है?

जब से फिल्म ‘आस्था’ परदे पर आई है, तब से पता चला कि शादीशुदा औरतें भी मौका पा कर, अपना जीवन स्तर ऊंचा करने के लिए, देहव्यापार करने लगी हैं.

कपिल ने सोचा, तो क्या यह लड़की भी उन में से एक है? क्या यह उपलब्ध है? क्यों न जानने की कोशिश की जाए? शारीरिक रिश्तों में विविधता का अपना अलग ही आकर्षण होता है.

टोह लेने के लिए कपिल ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘मारिया,’’ लड़की ने कहा.

‘‘अच्छा नाम है,’’ कपिल मुसकराया, ‘‘पढ़ती हो?’’

‘‘पढ़ती थी, पर अब कालेज छोड़ दिया,’’ मारिया ने नीचे देखते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ कपिल ने पूछा

‘‘पिता टीबी के मरीज हैं, नौकरी नहीं करते,’’ मारिया ने कहा, ‘‘और मां को दमा है. छोटा भाई स्कूल में पढ़ता है. सारे घर की जिम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी है.’’

‘‘बड़े दुख की बात है,’’ कपिल ने देखा, मारिया बहुत उदास दिखाई दे रही है.

अचानक मारिया मुसकरा दी, ‘‘सर, दुनिया है, सब चलता है… दुखी होने से क्या होगा?’’

‘‘सो तो ठीक है,’’ कपिल ने पूछा, ‘‘पर फिर करती क्या हो?’’

‘‘बस, ऐसे ही,’’ मारिया ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा, ‘‘गुजारा कर लेती हूं…कुछ न कुछ काम मिल ही जाता है.’’

‘‘कैसा काम?’’ कपिल ने कुरेदा.

‘‘सर,’’ मारिया ने एक क्षण रुक कर कपिल को देखा और धीरे से कहा, ‘‘क्या आप 500 रुपए उधार देंगे?’’

कपिल का अनुमान सही था कि वह लड़की उपलब्ध है. उस के जीवन में यह पहला अनुभव है. शरीर में फुरफुरी दौड़ गई. जो केवल पढ़ा और सुना था, वास्तविक बन कर सामने आ गया था.

‘‘यह क्या तुम्हारी फीस है?’’ कपिल ने पूछा.

‘‘नहीं, हजार, 2 हजार रुपए भी मिल जाते हैं, पर आज बहुत जरूरत है. 500 रुपए से काम चला लूंगी…राशन नहीं लूंगी तो खाना नहीं बनेगा.’’

कपिल ने मारिया के शरीर पर नजर दौड़ाई. जो कुछ देखा, बहुत अच्छा लगा, फिर पूछा, ‘‘कोई ठिकाना है क्या?’’

‘‘है तो,’’ मारिया ने कहा, ‘‘साउथ दिल्ली में एक गैस्टहाउस है, पर किराए के अतिरिक्त वहां के प्रबंधकों को भी कुछ अलग से देना पड़ता है.’’

कपिल ने मन ही मन अनुमान लगाया कि ऐसे सौदे में क्रैडिट कार्ड से काम नहीं चलेगा. इस समय जेब में लगभग 1,200 रुपए हैं, क्या इतना काफी होगा?

इस से पहले कि कपिल आगे पूछता, उस के मोबाइल फोन की ‘पिप…पिप… पिप…’ ने चौंका दिया.

‘‘हैलो,’’ उस ने कहा.

‘‘हाय पप्पा,’’ बेटी मृदुला के स्वर में उत्साह था.

‘‘हाय, मेरी प्यारी गुडि़या,’’ कपिल ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘कैसे याद आ गई? अभीअभी तो घर से निकला हूं. रुपए चाहिए तो मां से ले लो.’’

‘‘अरे, नहीं पप्पा,’’ मृदुला ने कहा, ‘‘आप को याद दिला रही थी, मम्मा का जन्मदिन आ रहा है, एक सुंदर सा कार्ड और एक बहुत बढि़या उपहार खरीदने चलना है. आज चलेंगे न?’’

कपिल ने मारिया की ओर देखा. वह चुपचाप बैठी थी. बेटी मृदुला भी इतनी ही बड़ी होगी. अचानक एक अपराधबोध की भावना ने जन्म लिया, क्या जो वह करने जा रहा है, उचित है?

‘‘पापा,’’ मृदुला ने बेसब्री से पूछा, ‘‘सुन रहे हैं?’’

‘‘सुन रहा हूं, गुडि़या रानी,’’ कपिल ने उत्तर दिया, ‘‘पर आज नहीं, कल चलेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’ कपिल ने फोन बंद कर दिया.

कुछ देर तक कार चलती रही. दोनों चुप थे.

‘‘सर,’’ सहसा मारिया ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘आप ने क्या सोचा?’’

‘‘तुम्हारे गैस्टहाउस वाले मैनेजर को कितना रुपया देना होगा?’’ कपिल ने पूछा. मारिया से संबंध बनाने की

इच्छा ने फिर जोर मारा. सोचा, क्या उचित है और क्या अनुचित, बाद में देखा जाएगा.

मारिया ने कहा, ‘‘कुछ ज्यादा रुपया नहीं लगेगा.’’

‘‘फिर भी,’’ कपिल ने कहा, ‘‘वहां पहुंच कर मूर्ख नहीं बनना है, वैसे जगह सुरक्षित तो है न?’’

यह प्रश्न वह रोज सुनती थी और उत्तर उस ने तोते की तरह रट रखा था. इस से पहले कि वह उत्तर देती, कपिल का मोबाइल फोन फिर से रिंग हुआ.

‘‘हैलो,’’ कपिल ने आहिस्ता से कहा.

‘‘हाय,’’ पत्नी नूमा का परिचित स्वर सुनाई दिया.

‘‘हाय,’’ कपिल ने पूछा, ‘‘क्या कोई आदेश देना बाकी रह गया?’’

‘‘एक अच्छी खबर है,’’ नूमा ने पुलकित स्वर में कहा, ‘‘सोचा, तुम्हें दफ्तर पहुंचने से पहले ही सुना दूं.’’

‘‘तुम से अच्छी खबर की उम्मीद तो नहीं है,’’ कपिल ने मंद मुसकान से कहा, ‘‘मुझे बहुत डर लगता है.’’

‘‘हिश्श…’’ नूमा ने कहा, ‘‘बेशर्म कहीं के. बल्लू का फोन अभीअभी आया था.’’

‘‘बल्लू का?’’ कपिल के स्वर में हर्ष और आश्चर्य का मिश्रण था, ‘‘क्या कहा, उस ने?’’

‘बल्लू’ यानी बलराम, उन का पुत्र सेना में कप्तान था और जोधपुर के पास सीमा पर तैनात था.

‘‘बोला…’’ नूमा ने गद्गद कंठ से कहा, ‘‘इस बार मेरे जन्मदिन पर अवश्य आएगा. एक सप्ताह की छुट्टी मिल गई है.’’

‘‘वाह,’’ कपिल ने खुश हो कर कहा, ‘‘ठीक है, खूब जश्न मनाएंगे.’’

‘‘सुनो,’’ नूमा ने कहा.

‘‘हां, सुन रहा हूं, पर जल्दी कहो, ट्रैफिक बहुत है,’’ कपिल ने कहा.

‘‘तो ठीक है, जब घर आओगे, तभी कहूंगी.’’

‘‘अब कह भी दो,’’ कपिल ने कहा.

‘‘बल्लू के लिए जो लड़कियां हम ने चुनी हैं, उन के अभिभावकों से हम मिलने का समय ले लेते हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ कपिल ने कहा, ‘‘तुम जो ठीक समझो, वही करो. अब फोन बंद करता हूं.’’

कपिल ने फोन बंद कर दिया और सोचा, इतना सुनहरा अवसर मिला है और सब बाधाएं खड़ी कर रहे हैं. खैर, दफ्तर भी फोन करना है कि आने में

देर होगी. इतना दुर्लभ अवसर चूकना नहीं चाहिए?

‘‘तो फिर किधर चलना है?’’ कपिल ने कहा, ‘‘मुझे खेद है. यह फोन बहुत तंग कर रहा है.’’

मारिया ने मादक मुसकान से कहा, ‘‘तो फिर फोन बंद कर दीजिए या बैटरी निकाल लीजिए.’’

‘‘बहुत समझदार और चतुर हो,’’ कपिल ने हंसते हुए कहा, ‘‘बस, एक फोन दफ्तर में करना है, ताकि बाकी समय चैन से गुजरे.’’

इस से पहले कि कपिल दफ्तर का नंबर लगाता, फोन बज उठा.

‘‘अब कौन है?’’ कपिल ने नाराजगी दिखाते हुए कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘सर,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘मैं मनोहर बोल रहा हूं.’’

मनोहर महाप्रबंधक का निजी सचिव था. उस के स्वर में घबराहट थी.

‘‘हां, बोलो मनोहर, क्या बात है?’’ कपिल ने कहा, ‘‘जल्दी बोलो, मुझे

एक जरूरी काम है, आने में देर हो सकती है.’’

‘‘सर, आप तुरंत यहां आ जाइए,’’ मनोहर ने जरा ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मजदूरों ने साहब का घेराव कर रखा है और नारे लगा रहे हैं.’’

‘‘ओह,’’ कपिल ने क्रोध से कहा, ‘‘क्या सबकुछ आज ही होना है? ठीक है, मैं आ रहा हूं. तुम पुलिस को सूचना दे दो. शायद जरूरत पड़ जाए.’’

‘‘जी, सर,’’ मनोहर ने कहा, ‘‘पर आप जल्दी से जल्दी आइए.’’

कपिल ने खेदपूर्वक एक बार फिर मारिया को देखा और सोचा, क्या गजब की लड़की है, क्या फिर मुलाकात होगी?

‘‘मुझे खेद है,’’ कपिल ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘आज का मुहूर्त शायद ठीक नहीं है. तुम्हें कहां छोड़ दूं?’’

मारिया के चेहरे से कुछ पढ़ पाना कठिन था, न तो मायूसी का भाव था और न ही खेद का. उस ने हौले से कहा, ‘‘यहीं उतार दीजिए.’’

कपिल ने कार सड़क के किनारे ला कर रोक दी तो मारिया ने दरवाजा खोला और बाहर निकल गई.

‘‘एक मिनट रुको,’’ कपिल ने जेब से पर्स निकालते हुए कहा, ‘‘लो, कुछ रुपए रख लो.’’

सौसौ के नोट थे, जिन्हें न तो कपिल ने गिना और न ही मारिया ने.

मारिया ने नोट हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘धन्यवाद, आप बहुत अच्छे हैं.’’

‘‘अब कहां मिलोगी?’’ कपिल ने पूछा.

‘‘ऐसे ही किसी चौराहे पर,’’ मारिया ने दोनों हाथ हवा में फैला दिए.

‘‘फिर भी, कोई टैलीफोन या मोबाइल नंबर तो होगा?’’ कपिल ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ मारिया ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘मेरा कोई फोन नंबर नहीं है.’’

‘‘ओह,’’ कपिल ने खेद से कहा.

‘‘हां, आप अपना नंबर दे दीजिए,’’ मारिया ने शरारतभरी मुसकान से कहा, ‘‘कभीकभी फोन करती रहूंगी.’’

कपिल की आंखों में चमक आ गई. सोचा, घर का नंबर देना तो ठीक नहीं होगा, मोबाइल नंबर…नहीं, यह भी ठीक नहीं है. कहीं ब्लैकमेल ही करने लगे तो? अपनी सुरक्षा की उतनी ही चिंता थी जितनी कि मारिया की संगति का आकर्षण.

‘‘सुनो, क्या कल इसी समय इसी जगह मिल सकती हो?’’

‘‘सर, कल की कौन जानता है,’’ मारिया ने खनखनाती हंसी से कहा, ‘‘कल इस राह से आप गुजरें और मुझे पहचानें तक नहीं?’’

‘‘तो फिर कहां?’’ कपिल हंसा, ‘‘बहुत शरारती हो.’’

‘‘कोशिश कर लीजिएगा,’’ मारिया ने कहा और भीड़ में गायब हो गई.

अगले 2-3 दिनों तक कपिल उसी जगह उसी समय बेकरारी से मारिया को ढूंढ़ता रहा. अचानक अच्छाखासा पारिवारिक आदमी नए यौनाकर्षण का शिकार हो गया. दिमाग पर धुंध सी छा गई थी.

चौथे दिन कुछ देर प्रतीक्षा के बाद…

‘‘सर, अच्छे तो हैं?’’ एक नई खुशबू का झोंका आया.

‘‘हाय,’’ कपिल ने कहा.

‘‘हाय,’’ मारिया ने मुसकरा कर कहा और बिना निमंत्रण के कार का दरवाजा खोल कर कपिल के पास बैठ गई.

‘‘तुम्हारी मां अब कैसी है?’’ कपिल ने पूछा.

‘‘छोडि़ए सर,’’ मारिया ने हाथ घुमाते हुए कहा, ‘‘आप तो सब समझते हैं. अपनी बताइए, क्या इरादा है?’’

‘‘तुम्हारा गुलाम हूं,’’ कपिल ने रोमानी अंदाज में कहा, ‘‘जहां चाहो, ले चलो.’’

‘‘आप को कोई डर तो नहीं है?’’ मारिया ने पूछा.

‘‘डर तो है, पर तुम्हारे ऊपर विश्वास करने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है.’’

‘‘आप बहुत समझदार हैं,’’ मारिया ने कहा और गैस्टहाउस का रास्ता बताया.

जब कार गैस्टहाउस के आगे रुकी तो कपिल का मन गुदगुदा रहा था, पर दिल पहली बेवफाई के एहसास से कुछ अधिक गति से धड़क रहा था.

अंदर पहुंच कर मारिया ने एक आदमी से कुछ बातें कीं और फिर कपिल को एक कमरे में ले गई. ऐशोआराम का सारा सामान कमरे में मौजूद था. कपिल को सोफे पर बैठने का संकेत करते हुए मारिया ने फ्रिज का दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘बीयर चलेगी?’’

कपिल ने स्वीकृति में सिर हिलाया.

मारिया ने 2 गिलासों में बीयर डाली.

‘‘चीयर्स,’’ मारिया ने कहा.

‘‘चीयर्स,’’ कपिल मुसकराया.

तभी उसी आदमी ने, जो बाहर था, भीतर प्रवेश किया. कपिल ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे देखा.

‘‘अपना पहचानपत्र दिखाइए,’’ उस ने आदेश दिया.

‘‘पहचानपत्र?’’ कपिल ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘हमें यह देखना है कि आप पुलिस के आदमी तो नहीं हैं?’’ उस ने उत्तर दिया.

‘‘पर मारिया जानती है,’’ कपिल ने बौखला कर कहा, ‘‘मैं पुलिस का आदमी नहीं हूं.’’

‘‘आप को पहचानपत्र दिखाना होगा,’’ उस ने जोर दे कर कहा.

‘‘मेरे पास कोई पहचानपत्र नहीं है.’’

‘‘कोई और सुबूत होगा?’’

‘‘नहीं, मेरे पास कुछ नहीं है,’’ कपिल ने झूठ कहा.

तभी एक दूसरे आदमी ने भीतर प्रवेश किया. उस के हाथ में कैमरा था.

‘‘इन का फोटो ले लो,’’ पहले आदमी ने कहा.

‘‘मैं फोटो नहीं खिंचवाऊंगा,’’ कपिल ने घबरा कर कहा, ‘‘आप का मतलब क्या है?’’

‘‘20 हजार रुपए चाहिए,’’ उस ने कहा.

‘‘मेरे पास रुपए नहीं हैं,’’ कपिल ने कहा.

‘‘कोईर् बात नहीं,’’ उस आदमी ने शांति से कहा, ‘‘कपड़े उतार लेते हैं. मारिया, चलो अपना काम करो.’’

कपिल ने घबरा कर कहा, ‘‘ठहरो, मैं रुपए देता हूं, पर इतने नहीं हैं.’’

‘‘कितने हैं?’’

‘‘मेरे ब्रीफकेस में हैं, और ब्रीफकेस कार में है.’’

‘‘अपना पर्स और घड़ी दो,’’ उस आदमी ने कहा.

कपिल ने चुपचाप पर्स में से रुपए निकाल कर दे दिए. फिर घड़ी

उतार दी. उस की सांस तेजी से चल रही थी.

‘‘साहब के साथ जाओ,’’ उस आदमी ने मारिया से कहा, ‘‘और ब्रीफकेस ले कर आओ. होशियारी मत करना. मुन्ना साथ जा रहा है. हमें रुपए वसूल करना आता है.’’

कपिल ने गहरी सांस ले कर उन्हें देखा और फिर चुपचाप बाहर आ गया. उस के पीछे मारिया और मुन्ना भी थे.

कार के पास पहुंच कर कपिल ने चाबी से दरवाजा खोला और अंदर बैठ गया. पीछे की सीट पर रखे ब्रीफकेस की ओर देखा. इस से पहले कि वे कुछ करते, उस ने कार स्टार्ट कर दी. मुन्ना ने कार रोकने के लिए आगे पैर बढ़ा दिया, पर कपिल ने फौरन गति बढ़ा दी. चलती कार ने मुन्ना को पीछे फेंक दिया. कुछ ही क्षणों में वह आंखों से ओझल हो गया.

काफी दूर पहुंच कर कपिल ने गहरी सांस ली कि क्षणिक कमजोरी कितनी यातना देती है. अब मैं कभी इस चक्कर में नहीं पड़ूंगा.

शाम को जब वह घर पहुंचा तो ऐसा लग रहा था, मानो कोई कैदी जेल से भाग कर आया हो. कभी भी पुलिस द्वार पर दस्तक दे सकती है.

रात में जब घंटी बजी तो कपिल का दिल दहल गया.

‘‘इतनी रात गए कौन होगा?’’ इंद्राणी ने कहा.

‘‘देखता हूं,’’ कपिल ने उठते हुए कहा. दिल तेजी से धड़क रहा था. घबराते हुए दरवाजा खोला तो देखा, सामने बेटा बल्लू खड़ा है.

‘‘अरे,’’ कपिल ने उसे छाती से लगा लिया.

‘‘ऐसे ही आता है,’’ मां ने गदगद कंठ से कहा, ‘‘मुझे लग रहा था कि बल्लू ही होगा.’’

सुबह नाश्ते की मेज पर कहकहे लग रहे थे. अचानक कपिल की निगाह समाचारपत्र पर गई. पहले पृष्ठ पर ही समाचार छपा था कि साउथ दिल्ली के एक गैस्टहाउस में ब्लैकमेल करने व लूटने वाले एक गिरोह को गिरफ्तार किया गया. गिरोह में एक लड़की भी शरीक थी.

‘‘कोई खास बात है क्या?’’ पत्नी ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं,’’ कपिल ने समाचारपत्र नीचे फेंकते हुए कहा, ‘‘वही आम बातें…’’

Social Story : ये भोलीभाली लड़कियां – हर लड़का जालसाज नजर आता है

Social Story : सचमुच लड़कियां बड़ी भोली होती हैं. हाय, इतनी भोलीभाली लड़कियां हमारे जमाने में नहीं होती थीं. होतीं तो क्या हम प्यार का इजहार करने से चूकते. तब लड़कियां घरों से बाहर भी बहुत कम निकलती थीं. इक्कादुक्का जो घरों से निकलती थीं, वे बस 8वीं तक पढ़ने के लिए. मैं गांवदेहात की बात कर रहा हूं. शहर की बात तो कुछ और रही होगी.

हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में मेरे साथ एक भी लड़की नहीं पढ़ती थी. निगाहों के सामने जो भी जवान लड़की आती थी, वह या तो अपने गांव की कोई बहन होती थी या फिर कोई रिश्तेदार जिस से नजर मिलाते हुए भी शर्म आती थी. इस का मतलब यह नहीं कि गांव में प्रेमाचार नहीं होता था. कुछ हिम्मती लड़केलड़कियां हमारे जमाने में भी होते थे जो चोरीछिपे ऐसा काम करते थे और उन के चर्चे भी गांव वालों की जबान पर चढ़े रहते थे.

लेकिन तब की लड़कियां इतनी भोली नहीं होती थीं, क्योंकि उन को बहलानेफुसलाने और भगा कर ले जाने के किस्से न तो आम थे, न ही खास. अब जब मैं बुढ़ापे के पायदान पर खड़ा हूं तो आएदिन न केवल अखबारों में पढ़ता हूं, टीवी पर देखता हूं, बल्कि लोगों के मुख से भी सुनता हूं कि हरदिन बहुत सारी लड़कियां बलात्कार का शिकार होती हैं. लड़कियां बयान देती हैं कि फलां व्यक्ति या लड़के ने बहलाफुसला कर उस के साथ बलात्कार किया और अब शादी करने से इनकार कर रहा है. यहां वास्तविक घटनाओं को अपवाद समझिए.

तभी तो कहता हूं कि आजकल की पढ़ीलिखी, ट्रेन, बस और हवाई जहाज में अकेले सफर करने वाली, अपने मांबाप को छोड़ कर पराए शहरों में अकेली रह कर पढ़ने वाली लड़कियां बहुत भोली हैं.

बताइए, अगर वे भोली और नादान न होतीं तो क्या कोई लड़का उन को मीठीमीठी बातें कर के बहलाफुसला कर अपने प्रेमजाल में फंसा सकता है और अकेले में ले जा कर उन के साथ बलात्कार कर सकता है.

पुलिस में लिखाई गई रिपोर्ट और लड़कियों के बयानों के आधार पर यह तथ्य सामने आता है कि आजकल की लड़कियां इतनी भोलीभाली हैं कि वे किसी भी जानपहचान और कई बार तो किसी अनजान व्यक्ति की बातों तक में आ जातीं और उस के साथ कार में बैठ कर कहीं भी चली जाती हैं.

वह व्यक्ति उन को बड़ी आसानी से होटल के कमरे या किसी सुनसान फ्लैट में ले जाता है और वहां उस के साथ बलात्कार करता है. बलात्कार के बाद लड़कियां वहां से बड़ी आसानी से निकल भी आती हैं. 3-4 दिनों तक  उन्हें अपने साथ हुए बलात्कार से पीड़ा या मानसिक अवसाद नहीं होता, लेकिन फिर जैसे अचानक ही वे किसी सपने से जागती हैं और बिलबिलाती हुई बलात्कार का केस दर्ज करवाने पुलिस थाने पहुंच जाती हैं.

लड़कियां केवल इस हद तक ही भोली नहीं होती हैं. वे किसी भी अनजान लड़के की बातों पर विश्वास कर लेती हैं और उस के साथ अकेले जीवन गुजारने के लिए तैयार हो जाती हैं. लड़कों की मीठीमीठी बातों में आ कर वे अपने शरीर को भी उन्हें समर्पित कर देती हैं. दोचार साल लड़के के साथ रहने पर उन्हें अचानक लगता है कि लड़का अब उन से शादी करने वाला नहीं है, तो वे पुलिस थाने पहुंच कर उस लड़के के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा देती हैं.

सच, आज लड़कियां क्या इतनी भोली हैं कि उन्हें यह तक समझ नहीं आता कि जिस लड़के को बिना शादी के ही मालपुआ खाने को मिल रहा हो और जिस मालपुए को जूठा कर के वह फेंक चुका है, वह उस जमीन पर गिरे मैले मालपुए को दोबारा उठा कर क्यों खाएगा.

मैं तो ऐसी लड़कियों का बहुत कायल हूं, मैं उन की बुद्धिमता की दाद देता हूं जो मांबाप की बातों को तो नहीं मानतीं, लेकिन किसी अनजान लड़के की बातों में बड़ी आसानी से आ जाती हैं. हाय रे, आज की लड़कियों का भोलापन.

लड़कियां इतनी भोली होती हैं कि वे अनजान या अपने साथ पढ़ने वाले लड़कों की बातों में तो आ जाती हैं, लेकिन अपने मांबाप की बातों में कभी नहीं आतीं. जवान होने पर वे उन का कहना नहीं मानतीं, उन की सभी नसीहतें उन के कानों में जूं की तरह रेंग जाती हैं और वे अपनी चाल चलती रहती हैं. वे अपने लिए कोई भी टुटपुंजिया, झोंपड़पट्टी में रहने वाला टेढ़ामेढ़ा, बेरोजगार लड़का पसंद कर लेती हैं, लेकिन मांबाप द्वारा चुना गया अच्छा, पढ़ालिखा, नौकरीशुदा, संभ्रांत घरपरिवार का लड़का उन्हें पसंद नहीं आता. इस में उन का भोलापन ही झलकता है, वरना मांबाप द्वारा पसंद किए गए लड़के के साथ शादी कर के हंसीखुशी जीवन न गुजारतीं. फिर उन को किसी लड़के के साथ कुछ सालों तक बिना शादी के रहने के बाद बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराने की नौबत नहीं आती.

आजकल की लड़कियों को तब तक अक्ल नहीं आती, जब तक कोई लड़का उन के शरीर को पके आम की तरह पूरी तरह चूस कर उस से रस नहीं निचोड़ लेता. जब लड़का उस को छोड़ कर किसी दूसरी लड़की को अपने प्रेमजाल में फंसाने के लिए आतुर दिखता है, तब वे इतने भोलेपन से भोलीभाली बन कर जवाब देती हैं कि आश्चर्य होता है कि इतनी पढ़ीलिखी और नौकरीशुदा लड़की इतनी भोली भी हो सकती है कि कोई भी लड़का उसे बहलाफुसला कर, शादी का झांका दे कर उस के साथ 4 साल तक लगातार बलात्कार करता रहता है.

हाय रे, मासूम लड़कियो, इतने सालों तक कोई लड़का तुम्हारे शरीर से खेल रहा था, लेकिन तुम्हें पता नहीं चल पाया कि वह तुम्हारे साथ बलात्कार कर रहा है.

अगर शादी करने के लिए ही लड़की उस लड़के के साथ रहने को राजी हुई थी तो पहले शादी क्यों नहीं कर ली थी. बिना शादी के वह लड़के के साथ रहने के लिए क्यों राजी हो गई थी.

एक बार शादी कर लेती, तब वह उस के साथ रहने और अपने शरीर को सौंपने के लिए राजी होती. लेकिन क्या किया जाए, लड़कियां होती ही इतनी भोली हैं कि उन्हें जवानी में अच्छाबुरा कुछ नहीं सूझता और वे हर काम करने को तैयार हो जाती हैं जिसे करने के लिए उन्हें मना किया जाता है.

वे खुलेआम चिडि़यों को दाना चुगाती रहती हैं और जब चिडि़यां उड़ जाती हैं तब उन के दाना चुगने की शिकायत करती हैं. ऐसे भोलेपन का कौन नहीं लाभ उठाना चाहेगा. यह तो मानना पड़ेगा कि लड़कियों के मुकाबले लड़के ज्यादा होशियार होते हैं, तभी तो वे लड़कियों के भोलेपन का फायदा उठाते हैं. लड़कियां भोली न होतीं तो क्या अपने घर से अपनी मां के जेवर और बाप की पूरी कमाई ले कर लड़के के साथ रफूचक्कर हो जातीं.

लड़के तो कभी अपने घर से कोई मालमत्ता ले कर उड़नछू नहीं होते. वे लड़की के साथसाथ उस के पैसे से भी मौज उड़ाते हैं और जब मालमत्ता खत्म हो जाता है तो लड़की उन के लिए बासी फूल की तरह हो जाती है और तब लड़के की आंखें उस से फिर जाती हैं. उस की आंखों में कोई और मालदार लड़की आ कर बस जाती है. तब लूटी गई लड़की की अक्ल पर पड़ा पत्थर अचानक ही हट जाता है. तब भारतीय दंड संहिता की सारी धाराएं उसे याद आती हैं और वह लड़के के खिलाफ सारे हथियार उठा कर खड़ी हो जाती है. वह लड़का जो उसे दुनिया का सब से प्यारा इंसान लगता था, अचानक अब उसे वह बद से बदतर लगने लगता है.

लड़कियां अगर जीवनभर भोली बनी रहीं तो पुलिस का काम आसान हो जाए. उन के क्षेत्र में होने वाली बलात्कार की घटनाएं समाप्त हो जाएंगी, क्योंकि तब कोई लड़की बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाने के लिए थाने नहीं जाएगी. कई साल तक लड़के के साथ बिना शादी के रहने पर भी उसे शादी का खयाल तक नहीं आएगा. जब लड़की शादी ही नहीं करना चाहेगी तो फिर उस के साथ बलात्कार होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

रही बात दूसरी लड़कियों की जो बिना कुछ सोचेविचारे लड़कों के साथ, रात हो या दिन, कहीं भी चल देती हैं, पढ़लिख कर भी उन की बुद्धि पर पत्थर पड़े रहते हैं तो उन का भला कोई नहीं कर सकता.

Short Story : फाइनैंसर – आखिर किसने की शरद की मदद

Short Story : शरद टैक्सी ड्राइवर था. वह उसी टैक्सी से अपने परिवार को पाल रहा था. उस के 3 बच्चे थे जिन्हें वह हमेशा ही ऊंची से ऊंची पढ़ाई कराना चाहता था ताकि वे उस की तरह अनपढ़ न रह जाएं.

शरद हमेशा सुबह ही टैक्सी ले कर निकल जाता था. इधर बच्चे बड़े होने लगे. उन की पढ़ाईलिखाई पर उस की एक बड़ी रकम खर्च होने लगी. उसे हमेशा यही फिक्र रहती थी कि बच्चे किसी भी तरह पढ़लिख लें.

शरद की टैक्सी धीरेधीरे पुरानी होने लगी थी. हर साल उस के रखरखाव पर 25 से 30 हजार रुपए खर्च हो जाते थे.

शरद की बीवी बीमार थी. उस की किडनी में दिक्कत थी. वह इलाज कराने में हमेशा कोताई बरतती थी.शरद जितना कमाता था उस से ज्यादा घर में खर्च हो जाता था, फिर भी वह संतुष्ट था. लेकिन इस बार उस की बेटी का कालेज में आखिरी साल था और एक बड़ी रकम बतौर फीस भरनी थी. बैंक पुरानी टैक्सी पर कर्ज देने से इनकार कर चुका था. शरद एक फाइनैंसर पप्पू सेठ के पास गया. पप्पू सेठ ने आसानी से उसे कर्ज दे दिया.

शरद अब और भी मेहनत करने लगा था और बराबर किस्त भरता था. कभीकभार जब समय पर किस्त नहीं पहुंचती थी, तब भी पप्पू सेठ कभी नाराज नहीं होते थे और मुसकरा कर ‘कोई बात नहीं’ कह देते थे. धीरेधीरे परेशानियों ने चारों तरफ से शरद को घेरना शुरू कर दिया. बेटी की पढ़ाई, पत्नी की बीमारी और कुछ प्राइवेट कंपनियों की टैक्सी आ जाने के चलते उस के धंधे पर बुरा असर पड़ने लगा और वह 4-5 हफ्तों तक किस्त नहीं दे पाया. पप्पू सेठ ने न चाहते हुए भी शरद की टैक्सी अपने पास रख ली.

शरद ने यह बात अपने घर में किसी को नहीं बताई और हमेशा की तरह सुबह घर से जल्दी निकल कर किसी दूसरे की टैक्सी चलाने लगा. अब वह अकसर देर रात ही घर आता था.

वक्त पंख लगा कर बहुत तेजी से आगे जा रहा था. पप्पू सेठ की बेटी की शादी होने वाली थी. उन्होंने न सिर्फ रिश्तेदारदोस्तों, बल्कि उन लोगों को भी न्योता दिया था जिन्होंने उन से कर्ज लिया था.

विदाई के वक्त अचानक पप्पू सेठ की तबीयत बिगड़ने लगी. उन के सीने में तेज दर्द व माथे पर पसीना आने लगा जो हार्टअटैक के लक्षण थे. सारे मेहमान घबरा गए. पूरा माहौल गमगीन हो चुका था. तब पप्पू सेठ की बेटी की सहेली सरिता ने न केवल उन्हें संभाला, बल्कि एंबुलैंस का इंतजाम किया और फोन से अस्पताल को पूरी जानकारी भी दी.

जब एंबुलैंस अस्पताल पहुंची तो पहले से अस्पताल में डाक्टरों की एक पूरी टीम तैयार थी जो पप्पू सेठ को आईसीयू में ले गई. सब को यह जान कर हैरानी हुई कि उस डाक्टर टीम की हैड सरिता ही थी और चंद घंटों में ही पप्पू सेठ पहले से बेहतर हो चुके थे.

जब पप्पू सेठ पूरी तरह ठीक हो गए तब एक मौके पर उन के दोस्तरिश्तेदारों ने सरिता को सम्मानित करना चाहा. यह सुन कर सरिता ने कहा, ‘‘अगर आप को सम्मानित करना ही है तो मेरे पिता को कीजिए जिन की जिंदगी में तमाम उतारचढ़ाव आने के बाद भी उन्होंने मुझे इस काबिल बनाया.’’

जिस दिन डाक्टर सरिता के पिता को सम्मान देने के लिए बुलाया गया तो उन्हें देख कर पप्पू सेठ अनायास ही अपनी सीट से खड़े हो गए और उन्होंने सरिता के पिता को गले लगा लिया.

डाक्टर सरिता के पिता कोई और नहीं, बल्कि टैक्सी ड्राइवर शरद ही थे. उस दिन से पप्पू सेठ और भी दयालु हो गए. उन्हें लगा कि शायद उन से अनजाने में कुछ गलती हुई होगी क्योंकि किसी की टैक्सी वापस लेने के बाद वे नहीं जान पाए कि उस परिवार पर क्या बीतती है.

पप्पू सेठ अब अपना ज्यादातर समय जरूरतमंदों की मदद करने में लगाते हैं. उन्होंने अपने बेटे लकी, जो एक गैराज चलाता था, से कह दिया है, ‘‘हमारे पास मजबूरी में लोग आते हैं. उन का हर तरह से सहयोग करना.’’

शरद और पप्पू सेठ का परिवार एकदूसरे के घर पर आताजाता रहता है, क्योंकि डाक्टर सरिता को पप्पू सेठ अपनी बेटी की तरह स्नेह करते हैं.

Crime Story : डांसर के इश्क में – जिस्म की चाहत में हुई भूल

Crime Story : मैक्स बीयरबार में सैक्स रैकेट चलने की सूचना मिलते ही नौदर्न टाउन थाने के सबइंस्पैक्टर भीमा सिंह ने अपने दलबल के साथ वहां छापा मारा. वहां किसी शख्स के जन्मदिन का सैलिब्रेशन हो रहा था. खचाखच भरे हाल में सिगरेट, शराब और तेज परफ्यूम की मिलीजुली गंध फैली हुई थी. घूमते रंगीन बल्बों की रोशनी में अधनंगी बार डांसरों के साथ भौंड़े डांस करते मर्द गदर सा मचाए हुए थे.

सबइंस्पैक्टर भीमा सिंह हाल में घुसा और चारों ओर एक नजर फेरते हुए तेजी से दहाड़ा, ‘‘खबरदार… कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा. बंद करो यह तमाशा और बत्तियां जलाओ.’’

तुरंत बार में चारों ओर रोशनी बिखर गई. सबकुछ साफसाफ नजर आने लगा.

सबइंस्पैक्टर भीमा सिंह एक बार डांसर के पास पहुंचा और उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए एक जोरदार तमाचा उस के गाल पर मारा. वह बार डांसर गिर ही पड़ती कि भीमा सिंह ने उसे बांहों का सहारा दे कर थाम लिया और बार मालिक को थाने में मिलने का आदेश देते हुए वह उस बार डांसर को अपने साथ ले र बाहर निकल गया.

भीमा सिंह ने सोचा कि उस लड़की को थाने में ले जा कर बंद कर दे, फिर कुछ सोच कर वह उसे अपने घर ले आया. उस रात वह बार डांसर नशे में चूर भीमा सिंह के बिस्तर पर ऐसी सोई, जैसे कई दिनों से न सोई हो.

दूसरे दिन भीमा सिंह ने उसे नींद से जगाया और गरमागरम चाय पीने को दी. उस ने चालाक हिरनी की तरह बिस्तर पर पड़ेपड़े अपने चारों ओर नजर फेरी. अपनेआप को महफूज जान उसे तसल्ली हुई. उस ने कनखियों से सामने खड़े उस आदमी को देखा, जो उसे यहां उठा लाया था.

भीमा सिंह उस बार डांसर से पुलिसिया अंदाज में पेश हुआ, तो वह सहम गई. मगर जब वह थोड़ा मुसकराया, तो उस का डर जाता रहा और खुल कर अपने बारे में सबकुछ सचसच बताने लगी कि वह जामपुर की रहने वाली है. वह पढ़ीलिखी और अच्छे घर की लड़की है. उस के पिता ने उस की बहनों की शादी अच्छे घरों में की है.

वह थोड़ी सांवली थी, इसलिए उस की अनदेखी कर दी. इस से दुखी हो कर वह एक लड़के के साथ घर से भाग गई. रास्ते में उस लड़के ने भी धोखा देते हुए उसे किसी और के हाथ बेचने की कोशिश की. वह किसी तरह से उस के चंगुल से भाग कर यहां आ गई और पेट पालने के लिए बार में डांस करने लगी.

भीमा सिंह बोला, ‘‘तुम्हारे जैसी लड़कियां जब रंगे हाथ पकड़ी जाती हैं, तो यही बोलती हैं कि वे बेकुसूर हैं. ‘‘ठीक है, तुम्हारा केस थाने तक नहीं जाएगा. बस, तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. मैं तुम्हारा खयाल रखूंगा.’’

‘‘मुझे क्या करना होगा?’’ उस बार डांसर के मासूम चेहरे पर चालाकी के भाव तैरने लगे थे. भीमा सिंह ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘तुम मेरे लिए मुखबिरी करोगी.’’ उस बार डांसर को अपने बचाव का कोई उपाय नहीं दिखा. वह बेचारगी का भाव लिए एकटक भीमा सिंह की ओर देखने लगी.

भीमा सिंह एक दबंग व कांइयां पुलिस अफसर था. रिश्वत लिए बिना वह कोई काम नहीं करता था. जल्दी से वह किसी पर यकीन नहीं करता था. भ्रष्टाचार की बहती गंगा में वह पूरा डूबा हुआ था. लड़कियां उस की कमजोरी थीं. शराब के नशे में डूब कर औरतों के जिस्म के साथ खिलवाड़ करना उस की आदतों में शुमार था.

भीमा सिंह पकड़ी गई लड़कियों से मुखबिरी का काम कराता था. लड़कियां भेज कर वह मुरगा फंसाता था. पकड़े गए अपराधियों से केस रफादफा करने के एवज में उन से हजारों रुपए वसूलता था. शराब के नशे में कभीकभी तो वह बाजारू औरतों को घर पर भी लाने लगा था, जिस के चलते उस की पत्नी उसे छोड़ कर मायके में रहने लगी थी.

इस बार डांसर को भी भीमा सिंह यही सोच कर लाया था कि उसे इस्तेमाल कर के छोड़ देगा, पर इस लड़की ने न जाने कौन सा जादू किया, जो वह अंदर से पिघला जा रहा था.

भीमा सिंह ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘रेशमा.’’

‘‘जानती हो, मैं तुम्हें यहां क्यों लाया हूं?’’

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘क्योंकि थाने में औरतों की इज्जत नहीं होती. तुम्हारी मोनालिसा सी सूरत देख कर मुझे तुम पर तरस आ गया है. मैं ने जितनी लड़कियों को अब तक देखा, उन में एक सैक्स अपील दिखी और मैं ने उन से भरपूर मजा उठाया. मगर तुम्हें देख कर…’’

भीमा सिंह की बातों से अब तक चालाक रेशमा भांप चुकी थी कि यह आदमी अच्छी नौकरी करता है, मगर स्वभाव से लंपट है, मालदार भी है, अगर इसे साध लिया जाए… रेशमा ने भोली बनने का नाटक करते हुए एक चाल चली.

‘‘मैं क्या सचमुच मोनालिसा सी दिखती हूं?’’ रेशमा ने पूछा.

‘‘तभी तो मैं तुम्हे थाने न ले जा कर यहां ले आया हूं.’’

रेशमा को ऐसे ही मर्दों की तलाश थी. उस ने मन ही मन एक योजना तैयार कर ली. एक तिरछी नजर भीमा सिंह की ओर फेंकी और मचल कर खड़ी होते हुए बोली, ‘‘ठीक है, तो अब मैं चलती हूं सर.’’ ‘‘तुम जैसी खूबसूरत लड़की को गिरफ्त में लेने के बाद कौन बेवकूफ छोड़ना चाहेगा. तुम जब तक चाहो, यहां रह सकती हो. वैसे भी मेरा दिल तुम पर आ गया है,’’ भीमा सिंह बोला.

‘‘नहींनहीं, मैं चाहती हूं कि आप अच्छी तरह से सोच लें. मैं बार डांसर हूं और क्या आप को मुझ पर भरोसा है?’’

‘‘मैं ने काफी औरतों को देखा है, लेकिन न जाने तुम में क्या ऐसी कशिश है, जो मुझे बारबार तुम्हारी तरफ खींच रही है. तुम्हें विश्वास न हो, तो फिर जा सकती हो.’’

रेशमा एक शातिर खिलाड़ी थी. वह तो यही चाहती थी, लेकिन वह हांड़ी को थोड़ा और ठोंकबजा लेना चाहती थी, ताकि हांड़ी में माल भर जाने के बाद ले जाते समय कहीं टूट न जाए.

वह एकाएक पूछ बैठी, ‘‘क्या आप मुझे अपनी बीवी बना सकते हैं?’’

‘‘हां, हां, क्यों नहीं. मैं नहीं चाहता कि मैं जिसे चाहूं, वह कहीं और जा कर नौकरी करे. आज से यह घर तुम्हारा हुआ,’’ कह कर भीमा सिंह ने घर की चाबी एक झटके में रेशमा की ओर उछाल दी. रेशमा को खजाने की चाबी के साथ सैयां भी कोतवाल मिल गया था. उस के दोनों हाथ में लड्डू था. वह रानी बन कर पुलिस वाले के घर में रहने लगी.

भीमा सिंह एक फरेबी के जाल में फंस चुका था. अगले दिन रेशमा ने भीमा सिंह को फिर परखना चाहा कि कहीं वह उस के साथ केवल ऐशमौज ही करना चाहता है या फिर वाकई इस मसले पर गंभीर है. कहीं वह उसे मसल कर छोड़ न दे. फिर तो उस की बनीबनाई योजना मिट्टी में मिल जाएगी.

रेशमा घडि़याली आंसू बहाते हुए कहने लगी, ‘‘मैं भटक कर गलत रास्ते पर चल पड़ी थी. मैं जानती थी कि जो मैं कर रही हूं, वह गलत है, मगर कर भी क्या सकती थी. घर से भागी हुई हूं न. और तो और मेरे पापा ने ही मेरी अनदेखी कर दी, तो मैं क्या कर सकती थी. मैं घर नहीं जाना चाहती. मैं अपनी जिंदगी से हारी हुई हूं.’’

‘‘रेशमा, तुम अपने रास्ते से भटक कर जिस दलदल की ओर जा रही थी, वहां से निकलना नामुमकिन है. तुम ने अपने मन की नहीं सुनी और गलत जगह फंस गई. खैर, मैं तुम्हें बचा लूंगा, पर तुम्हें मेरे दिल की रानी बनना होगा,’’ भीमा सिंह उसे समझाते हुए बोला.

‘‘तुम मुझे भले ही कितना चाहते हो, लेकिन मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. मैं बार डांसर बन कर ही अपनी बाकी की जिंदगी काट लूंगी. तुम मेरे लिए अपनी जिंदगी बरबाद मत करो. तुम एक बड़े अफसर हो और मैं बार डांसर. मुझे भूल जाओ,’’ रेशमा ने अंगड़ाई लेते हुए अपने नैनों के बाण ऐसे चलाए कि भीमा सिंह घायल हुए बिना नहीं रह सका.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो रेशमा? अगर भूलना ही होता, तो मैं तुम्हें उस बार से उठा कर नहीं लाता. तुम ने तो मेरे दिल में प्यार की लौ जलाई है.’’

रेशमा के मन में तो कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी. उस ने भीमा सिंह को अपने रूपजाल में इस कदर फांस लिया था कि वह आंख मूंद कर उस पर भरोसा करने लगा था. भीमा सिंह के बाहर जाने के बाद रेशमा ने पूरे घर को छान मारा कि कहां क्या रखा है. वह उस के पैसे से अपने लिए कीमती सामान खरीदती थी. भीमा सिंह को कोई शक न हो, इस के लिए वह पूरे घर को साफसुथरा रखने की कोशिश करती थी.

भीमा सिंह को भरोसे में ले कर रेशमा अपना काम कर चुकी थी. अब भागने की तरकीब लगाते हुए एक शाम उस ने भीमा सिंह की बांहों में झूलते हुए कहा, ‘‘एक अच्छे पति के रूप में तुम मिले, इस से अच्छा और क्या हो सकता है. मैं तो जिंदगीभर तुम्हारी बन कर रहना चाहती हूं, लेकिन कुछ दिनों से मुझे अपने घर की बहुत याद आ रही है.

‘‘मैं तुम्हें भी अपने साथ ले जाना चाहती थी, मगर मेरे परिवार वाले बहुत ही अडि़यल हैं. वे इतनी जल्दी तुम्हें अपनाएंगे नहीं. ‘‘मैं चाहती हूं कि पहले मैं वहां अकेली जाऊं. जब वे मान जाएंगे, तब उन लोगों को सरप्राइज देने के लिए मैं तुम्हें खबर करूंगी. तुम गाड़ी पकड़ कर आ जाना.

‘‘ड्रैसिंग टेबल पर एक डायरी रखी हुई है. उस में मेरे घर का पता व फोन नंबर लिखा हुआ है. बोलो, जब मैं तुम्हें फोन करूंगी, तब तुम आओगे न?’’

‘‘क्यों नहीं जानेमन, अब तुम ही मेरी रानी हो. तुम जैसा ठीक समझो करो. जब तुम कहोगी, मैं छुट्टी ले कर चला आऊंगा,’’ भीमा सिंह बोला. रेश्मा चली गई. हफ्ते, महीने बीत गए, मगर न उस का कोई फोन आया और न ही संदेश. भीमा सिंह ने जब उस के दिए नंबर पर फोन मिलाया, तो गलत नंबर बताने लगा.

भीमा सिंह ने जब अलमारी खोली, तो रुपएपैसे, सोनेचांदी के गहने वगैरह सब गायब थे. घबराहट में वह रेशमा के दिए पते पर उसे खोजते हुए पहुंचा, तो इस नाम की कोई लड़की व उस का परिवार वहां नहीं मिला. भीमा सिंह वापस घर आया, फिर से अलमारी खोली. देखा तो वहां एक छोटा सा परचा रखा मिला, जिस में लिखा था, ‘मुझे खोजने की कोशिश मत करना. तुम्हारे सारे पैसे और गहने मैं ने पहले ही गायब कर दिए हैं.

‘मैं जानती हूं कि तुम पुलिस में नौकरी करते हो. रिपोर्ट दर्ज कराओगे, तो खुद ही फंसोगे कि तुम्हारे पास इतने पैसे कहां से आए? तुम ने पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी कब की?’

भीमा सिंह हाथ मलता रह गया.

Social Story : कहर – दोस्त ने अजीत की पत्नी के साथ लिया मजा

Social Story : अजीत की रेलगाड़ी 8 घंटे लेट थी. क्या करे? टिकटघर से टिकट लेते वक्त रेलगाड़ी को महज एक घंटा लेट बताया गया था. अब एक के बाद एक हो रही एनाउंसमैंट से रेलगाड़ी 8 घंटे लेट थी. टिकट वापस करने पर 10 फीसदी किराया कट जाता. बस स्टैंड जाने पर 50 रुपए खर्च होते, साथ ही समय ज्यादा लगता. टी स्टौल पर चाय की चुसकी लेता अजीत अभी सोच ही रहा था कि वह क्या करे, तभी उस का मोबाइल फोन घरघराया.

फोन अजीत की पत्नी का था, ‘तुम बस से चले आओ.’

‘‘देखता हूं,’’ अजीत बोला.

चाय के पैसे चुका कर अजीत जैसे ही मुड़ा, तभी उस से एक शख्स टकराया. दोनों एकदूसरे को देख कर चौंके. वह अजीत के स्कूल का सहपाठी कुलदीप था.

‘‘अरे अजीत,’’ इतना कह कर कुलदीप ने उसे गले लगा लिया और पूछा, ‘‘कहां जा रहा है?’’

‘‘अपने शहर और कहां… रेलगाड़ी 8 घंटे लेट है,’’ अजीत ने कहा.

‘‘मेरे होते क्या दिक्कत है,’’ कुलदीप बोला.

‘‘मगर तू तो मालगाड़ी का ड्राइवर है,’’ अजीत ने कहा.

‘‘तो क्या…? मेरे साथ इंजन में बैठ जाना. तेरे शहर से ही हो कर गुजरना है.’’

‘‘मेरे पास टिकट भी है.’’

‘‘वापस कर आ. तेरा किराया भी बचेगा.’’

अजीत टिकट खिड़की पर चला गया. कुलदीप चाय पीने लगा. 10 मिनट बाद मालगाड़ी चल पड़ी. मालगाड़ी के इंजन में बैठ कर सफर करना अजीत के लिएरोमांचक था. कुलदीप 12वीं जमात पास कर के रेलवे में भरती हो गया था. अजीत आगे पढ़ा व अब एक दवा कंपनी में मैडिकल प्रतिनिधि था. अजीत के शहर का रेलवे स्टेशन आने वाला था. आउटर पर गाड़ी एक पल को रुकी. अजीत अपना बैग पकड़ कर रेलवे पटरी के दूसरी तरफ कूद गया.

अजीत रेलवे लाइन के एक तरफ बनी पगडंडी पर आगे बढ़ा. रेलवे स्टेशन का चौराहा अभी दूर था. उस ने अपना मोबाइल फोन निकाला और पत्नी को फोन मिलाया. फोन स्विच औफ था. चौराहे पर कई आटोरिकशा खड़े थे. अजीत एक आटोरिकशा में बैठ गया. कालोनी के बाहर सन्नाटा पसरा था. अजीत ग्राउंड फ्लोर पर बने अपने फ्लैट के बाहर पहुंचा. वह घंटी बजाने को हुआ कि तभी उस के कानों में किसी अनजान मर्द की आवाज गूंजी.

अजीत ने घंटी पर से हाथ हटा लिया और दबे पैर फ्लैट के पिछवाड़े में पहुंचा. चारदीवारी ज्यादा ऊंची नहीं थी. वह दीवार फांद कर अंदर कूदा और चुपचाप बैडरूम के पिछवाड़े की खिड़की से अंदर झांका, तो हैरान रह गया.

भीतर अजीत की पत्नी उस के एक दोस्त के साथ रंगरलियां मना रही थी. अजीत कुछ देर तक भीतर का सीन देखता रहा, फिर धीरेधीरे पीछे हटता चारदीवारी के साथ पीठ लगा कर खड़ा हो गया. ऐसा तो उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.

अजीत स्वभाव का बड़ा सीधासादा था. उस की पत्नी सुंदर, सुघड़ और घरेलू थी. उन के 2 प्यारे बच्चे थे. अजीत के शहर से बाहर होने पर पत्नी मोबाइल फोन से उस का हालचाल पूछती थी. घर आने पर उस की सेवा में बिछ जाती थी. लेकिन अब जो सामने था, वह सब अजीत की सोच से बाहर था.

अजीत का माथा गुस्से से भिनभिनाने लगा था. वह बौखलाया हुआ सा इधरउधर देखने लगा. लौन में एक खुरपा पड़ा था. वह झुका और खुरपा उठा लिया. अजीत हाथ में खुरपा थामे आगे बढ़ा. कमरे के बंद दरवाजे को हलके से थपथपाया. सिटकिनी लगी थी. उस ने कंधे का एक तगड़ा वार किया. दरवाजा खुल कर एक तरफ हो गया.

सैक्स की मस्ती में डूबे वे दोनों घबरा कर अलग हो गए. अजीत खुरपा थामे आगे बढ़ा. उस का दोस्त पलंग से कूदा और उस को परे धकेल कर बिना कपड़ों के ही बाहर दौड़ गया. डर से थरथर कांपती अजीत की पत्नी कमरे के एक कोने में सिमटती सी खड़ी हो गई और बोली, ‘‘मुझे मत मारना.’’

‘‘भाग जा यहां से,’’ अजीत ने दांत भींचते हुए कहा.

सलवारकमीज उठा कर पत्नी भी बाहर दौड़ गई. अजीत थोड़ी देर खड़ा इधरउधर देखता रहा, फिर वह भी बाहर लौन में आया और खुरपा एक तरफ रख दिया. उस ने अपना बैग उठाया और अंदर आ गया.अजीत के दोनों बच्चे प्रियंका और एकांश सो रहे थे. इतने मासूम बच्चों की मां पति के दोस्त के साथ रंगरलि यां मना रही थी. पता नहीं, यह सिलसिला कब से चल रहा था.

इस के बाद वही हुआ, जिस का डर था. अजीत का अपनी पत्नी से तलाक हो गया. बच्चों की सरपरस्ती पत्नी को मिली. अजीत ने उसे भत्ता देना मंजूर किया और हर महीने एक तय रकम का चैक भेज देता था. एक दिन अजीत फ्लैट बेच कर दूसरे शहर में जा बसा. वह तरक्की करता हुआ मैनेजर बन गया. कंपनी के मालिक राजेंद्र की गैरहाजिरी में उन की पत्नी गीता कभीकभार दफ्तर में आ कर काम संभालती थीं. धीरेधीरे उन की अजीत से अच्छी जानपहचान हो गई.

‘‘अजीत, आप का तलाक हो गया है. आप दोबारा शादी क्यों नहीं करते?’’ एक शाम दफ्तर का काम खत्म होने पर गीता ने पूछा.

‘‘बस, दिल नहीं मानता,’’ अजीत बोला.

‘‘अकेले कब तक रहोगे?’’ गीता ने फिर पूछा.

अजीत खामोश रहा. उस के उदास चेहरे को गीता ने अपने हाथों में भरा और उस का माथा चूम लिया. अजीत हैरान सा खड़ा उन की तरफ देखने लगा. पत्नी के मुकाबले गीता भारी जिस्म की सांवले रंग की थीं. उन की आंखों में काम वासना के डोरे तैर रहे थे.

गीता ने अजीत की तुलना अपने पति से की. एक तरफ 30 साला नौजवान था, दूसरी ओर 50 साल की उम्र का अधेड़. अजीत को औरत की दरकार थी और गीता को अपनी संतुष्टि के लिए नौजवान मर्द की. कुछ ही दिनों में उन के बीच के सारे फासले मिट गए.

राजेंद्र कई कंपनियों के मालिक थे. काम के सिलसिले में वे ज्यादातर बाहर रहते थे. उन की गैरहाजिरी में गीता काम संभालती थीं. उन के 2 बच्चे थे, जो एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते थे. हैदराबाद में एक बड़ी कंपनी की मीटिंग खत्म हुई. राजेंद्र के सचिव ने ट्रैवल एजेंट को फोन किया.

‘सौरी सर, कल सुबह से पहले किसी फ्लाइट में भी सीट नहीं है,’ ट्रैवल एजेंट ने बताया.

इस पर राजेंद्र अपने होटल में चले गए. ‘घर आ रहे हो?’ गीता ने उन्हें फोन कर के पूछा.

‘‘कल सुबह आऊंगा,’’ राजेंद्र ने जवाब दिया.

अभी राजेंद्र होटल के कमरे में दाखिल हुए ही थे कि ट्रैवल एजेंट का फोन आ गया. ‘सर, एक पैसेंजर ने अपनी सीट कैंसिल कराई है. आप आधा घंटे में एयरपोर्ट आ जाएं.’

राजेंद्र तुरंत एयरपोर्ट पहुंचे. 2 घंटे बाद वे अपने शहर में थे. राजेंद्र ने मोबाइल फोन निकाला, फिर इरादा बदलते हुए सोचा कि अब आधी रात को क्यों ड्राइवर को तकलीफ दें. लिहाजा, वे टैक्सी से अपनी कोठी पहुंचे. वहां उन्हें अपने मैनेजर अजीत की कार खड़ी दिखी, तो वे चौंक गए. राजेंद्र ने इधरउधर देखा, फिर वे अपने घर के पिछवाड़े में पहुंचे. एक कार उन की कोठी के पिछवाड़े की दीवार को छूती खड़ी थी. वे उस की छत पर जा चढ़े और फिर दीवार पर चढ़ गए और लौन में कूद गए.

उन के अंदर कूदते ही पालतू कुत्ता भूंका, फिर मालिक को पहचानते हुए चुप हो कर उन के कदमों में लोटने लगा. राजेंद्र ब्रीफकेस थामे दबे पैर चोरी से पिछवाड़े के कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुए. उन के कानों में ऊपर की मंजिल पर बने अपने बैडरूम से हंसनेखिलखिलाने की आवाज आई.

वे दबे पैर सीढि़यां चढ़ते हुए ऊपर पहुंचे. खिड़की से अंदर झांका. बैड पर मैनेजर अजीत के साथ उन की पत्नी गीता मस्ती कर रही थीं. अब वे क्या करें? दोनों को रंगे हाथ पकड़ें? नतीजा साफ था. शादी का टूटना. मैनेजर कहीं और नौकरी पा लेगा. पत्नी गुजारा भत्ता ले कर कहीं और जा बसेगी और उम्र के इस पड़ाव पर वे खुद क्या करेंगे?

दोबारा शादी करेंगे? दूसरी पत्नी भी ऐसी ही निकली तो? वे धीरेधीरे पीछे हटते गए. दूसरे कमरे में चले गए और कुरसी पर बैठ गए. उधर कमरे में जब वासना का ज्वार शांत हुआ, तो अजीत व गीता अलग हो गए.

‘‘क्या तुम्हारी बीवी ने दूसरी शादी कर ली?’’ गीता ने पूछा.

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘औरत बदनाम हो जाए, तो दोबारा घर बसाना मुश्किल होता है.’’

‘‘और मर्द?’’

‘‘मर्द पर बदनामी का असर नहीं पड़ता.’’

‘‘तो तुम ने दोबारा शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘मुझे किसी भी औरत पर अब भरोसा नहीं रहा.’’

इस पर गीता एकटक उस की तरफ देखने लगीं. साथ वाले कमरे में राजेंद्र उन की बातचीत सुन रहे थे. अजीत के जवाब ने गीता का सैक्स का मजा किरकिरा कर दिया था. वह उन के साथ जिस्मानी रिश्ता तो बना सकता था, पर उन्हें वफादार साथी नहीं मान रहा था. इस बीच राजेंद्र को शरारत सूझी. उन्होंने अपना मोबाइल फोन निकाला, पत्नी का नंबर मिलाया और धीमी आवाज में कहा, ‘मैं एयरपोर्ट पर हूं. दूसरी फ्लाइट में सीट मिल गई थी. 10 मिनट में घर पहुंच जाऊंगा.’

गीता ने अजीत को बताया. वे दोनों हड़बड़ाहट में कपड़े पहनने लगे. पालतू कुत्ता अभी तक मालिक के पास बैठा था. राजेंद्र ने उस को इशारा किया और धीमे से दरवाजा खोल कर उस को बाहर निकाल दिया.

अजीत सीढि़यां उतरता नीचे लौन में आया, तभी पालतू कुत्ता उस पर झपट पड़ा. बचाव के लिए गीता लपकीं, मगर तब तक कुत्ते ने अजीत को 3-4 जगह पर काट खाया था. अजीत किसी तरह अपनी कार में सवार हुआ. गेट बंद कर गीता कुत्ते की तरफ लपकीं और चेन पकड़ कर उस को एक जगह बांध दिया.

इस के बाद गीता अपने पति का इंतजार करने लगीं. ड्राइंगरूम में बैठेबैठे उन की आंख लग गई. मौका देखते ही राजेंद्र चुपचाप बैडरूम में जा कर सो गए. सुबह जब गीता जागीं, तो उन्होंने राजेंद्र को बैडरूम में पा कर घबराते हुए पूछा, ‘‘आप कब आए?’’

‘‘3 बजे. तब तुम ड्राइंगरूम में सो रही थीं.’’

‘‘अपना डौगी अब खतरनाक हो गया है. उस को निकाल दो,’’ गीता ने बताया.

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘कल एक पड़ोसी पर झपट पड़ा.’’

‘‘चेन से बांध कर रखना था…’’ इतना कह कर राजेंद्र बाथरूम में चले गए.

तैयार हो कर वे अपने दफ्तर पहुंचे. अब तक अजीत नहीं आया था. ‘‘कल किसी कुत्ते ने अजीत को काट खाया है,’’ असिस्टैंट मैनेजर ने राजेंद्र को बताया.

राजेंद्र के दफ्तर जाने के बाद गीता घर की सफाई करने लगीं. बैडरूम के साथ वाले कमरे में सिगरेट के जले टुकड़ों का ढेर लगा था. वे चौंकीं कि कल शाम तक तो कमरा साफसुथरा था, फिर इतनी सारी सिगरेटें किस ने पी? वे सारा माजरा समझ गईं. उन्होंने एयरपोर्ट इनक्वायरी फोन किया. वहां से पता चला कि राजेंद्र तो रात को ही घर आ गए थे. वे बेचैन हो गईं.

अजीत अस्पताल में था. उस के हाथपैरों पर पट्टियां बंधी थीं, तभी उस का मोबाइल फोन बजा. ‘मेरा अंदाजा है कि राजेंद्र को हमारे संबंध का पता चल चुका है. कल रात को वे 12 बजे ही घर आ गए थे,’ गीता ने बताया.

‘‘अब हम क्या करें?’’

‘खामोश रहो.’

7 दिन बाद अजीत दफ्तर आया.

‘‘आवारा कुत्ते आजकल कम होते हैं… आप पर कोई कुत्ता कैसे झपटा?’’ राजेंद्र के सवाल पर अजीत चुप रहा.

‘‘आप सिगरेट कौन सी पीते हैं?’’

अजीत ने अपना सिगरेट का पैकेट निकाल कर दिखाया. तब राजेंद्र ने अपनी मेज की दराज खोली और एक पैकेट निकाल कर सामने रखते हुए कहा, ‘‘यह पैकेट मेरी कोठी में कोई छोड़ गया था. आप का ही ब्रांड है. मेरा ब्रांड दूसरा है. आप ले लो.’’

अजीत को काटो तो खून नहीं. उस को राजेंद्र से ऐसे हमले की उम्मीद नहीं थी. वह चुपचाप अपने चैंबर में चला गया. अगले दिन उस ने इस्तीफा दे दिया. पत्नी को तलाक देने के बाद अजीत ने कभी उस के बारे में नहीं सोचा था. आज पहली बार सोच रहा था. अजीत का मालिक समझदार था. बदनामी और जगहंसाई से बचने के लिए उस ने कोई ऐसा कदम नहीं उठाया, जिस से बात और बिगड़ जाए.

Family Story : काला धन – क्या वाकई में आ पाया काला धन

Family Story : और मौतों सरीखी वह भी एक मौत थी. एकदम साधारण. किसी 45 से 48 साल के आदमी की जो किसी प्राइवेट फैक्टरी में नाइट शिफ्ट में सुपरवाइजर था.

उस दिन जब उस ने मंत्रीजी को यह कहते सुना था कि काले धन को बाहर लाने के लिए हमें यह कड़ा कदम उठाना पड़ रहा है और यह फैसला लेना पड़ रहा है कि 500 व 1,000 के नोट बंद किए जाते हैं, तब दीपक कुमार, हां यही नाम था उस का, बहुत खुश हुआ था. वह फैक्टरी

में अपने साथियों से कहने लगा था, ‘‘देखना, अब अच्छे दिन जरूर आएंगे और धन्ना सेठों को अपना काला पैसा निकालना ही पड़ेगा.

‘‘अपनी फैक्टरी का मालिक भी कम थोड़े ही है. इन के पास भी बहुत काला धन है. अब तो सब सामने लाना ही पड़ेगा. देखना दोस्तो, अब तनख्वाह भी समय पर मिल जाया करेगी. अब तो कभी 10 तो कभी 15 तारीख को मिलती है.’’

उस महीने दीपक की बात सौ फीसदी सच हो गई थी. सभी मुलाजिमों को 25 तारीख को ही तनख्वाह मिल

गई थी, वह भी 500 व 1,000 के कड़कड़ाते नोट. सभी खुश थे.

दीपक तो सभी से कह रहा था, ‘‘देखो, मेरी बात सच हो गई न? अब आगेआगे देखो, होता है क्या.’’

वैसे, दीपक पिछले 17 सालों से इस फैक्टरी में काम कर रहा था. उस की समय पर सही फैसले लेने की कूवत को देखते हुए उसे परमानैंट नाइट शिफ्ट ही दे दी गई थी.

तनख्वाह के अलावा 2,000 रुपए हर महीने नाइट शिफ्ट भत्ता भी मिल जाता था. दीपक इसी में खुश था. नाइट शिफ्ट में तेज रफ्तार से हुए प्रोडक्शन

के चलते कई बार मैनेजमैंट ने ‘मजदूर दिवस’ पर उस का सम्मान भी किया था.

मैनेजमैंट तो मैनजमैंट ही होता है. निजी संस्थानों का मैनेजमैंट तो और भी सख्त होता है. यहां पर भी मैनेजमैंट द्वारा रखे गए आंखों और कानों ने दीपक की बातों का ब्योरा सभी मसालों के साथ मैनेजमैंट के सामने रख दिया.

हिंदी की एक कहावत है न कि दूध देती गाय की लात भी सहन की जाती है, शायद उसी तर्ज पर दीपक पर कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की गई थी.

अगले महीने की पहली तारीख आतेआते तक हालात साफ होने लगे. कारखाने में कच्चे माल की कमी होने लगी. इसी वजह से 5 तारीख से रात की पाली बंद करने का फैसला लेना पड़ा.

दीपक ने जब यह सूचना सुनी तो वह कारखाने के मैनेजर से मिलने पहुंचा.

‘‘दीपक, तुम… नाइट शिफ्ट के बेताज बादशाह. आज दिन में कैसे?’’ मैनेजर ने बनावटी स्वांग के साथ पूछा.

‘‘सर, नाइट शिफ्ट का प्रोडक्शन का सामान न होने के चलते कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया है. मैं चाहता हूं कि इस दौरान मुझे दिन में ड्यूटी दी जाए,’’ दीपक गुजारिश करता हुआ बोला.

‘‘देखो दीपक, दिन में पूरा स्टाफ है और उसे डिस्टर्ब करना ठीक नहीं होगा. और फिर तुम ने भी तो सुना है कि मंत्रीजी ने कहा है कि महीने 2 महीने

की दिक्कत है, फिर सब पहले जैसा हो जाएगा. बस, थोड़ा इंतजार करो.

‘‘वैसे भी तुम कई दिनों से अपने गांव नहीं गए हो, जरा गांव तक ही घूम आओ. जैसे ही नाइट शिफ्ट चालू होगी, तुम्हें सूचित कर दिया जाएगा,’’ मैनेजर ने उसे समझाने वाले लहजे में कहा.

दीपक ने सोचा कि यह भी ठीक है. मातापिता से भी वह कई दिनों से नहीं मिला. उन से मिलने चला जाता हूं. मातापिता से आराम से कुछ बातें भी हो जाएंगी.

गांव में दीपक के पिता के पास 10 बीघा जमीन है जिस में मातापिता का गुजारा आराम से हो जाता है.

जिस समय दीपक गांव में पहुंचा उस समय पिताजी घर के आंगन में ही खटिया डाल कर बैठे हुए थे. उन्होंने दूर से ही आते हुए दीपक को पहचान लिया और आवाज दे कर दीपक की मां को भी बाहर बुलवा लिया.

वे दोनों दीपक को इस तरह से बिना सूचना आए देख कर खुश भी थे और हैरान भी. जब दीपक ने अपने आने की वजह बताई और यह बताया कि वह इस बार लंबे समय तक रहेगा तो सभी खुश हो गए और मंत्री को दुआएं देने लगे.

वे दिन दीपक की जिंदगी के सब से अच्छे दिन गुजरे. गांव की ताजा व खुली हवा, पुराने यारदोस्त, मां के हाथ की ज्वार की रोटी. हालांकि पिताजी को फसलों के दाम पिछले साल की तुलना में कम मिले थे, फिर भी वे खुश थे.

धीरेधीरे एक महीना गुजर गया, पर दीपक के कारखाने से कोई फोन नहीं आया. वैसे, दीपक ने खुद कई बार फोन लगाया, पर जल्दी सूचना देने के सिर्फ आश्वासन ही मिले.

दीपक ने वापस शहर जाने का फैसला ले लिया, क्योंकि मातापिता की माली हालत भी बहुत अच्छी नहीं थी.

शहर में घर का किराया वगैरह चुकाने के बाद उस के पास नाममात्र के पैसे बचे थे, क्योंकि शहर से जाते समय वह मातापिता के लिए कपड़े व कुछ जरूरी सामान भी ले गया था. उसे यकीन था कि फैक्टरी में रात की पाली जल्दी ही चालू हो जाएगी.

दोपहर के तकरीबन 12 बजे दीपक फैक्टरी पहुंच गया. उसे फैक्टरी मैनेजर साहब औफिस के बाहर ही मिल गए. वह उन से अपनी ड्यूटी के सिलसिले में बातें करने लगा और वह हमेशा की तरह उसे उम्मीद बंधाने वाले जवाब दे रहे थे.

‘‘बस, अगले 15-20 दिनों में माली हालत में सुधार होते ही फैक्टरी की नाइट शिफ्ट चालू कर दी जाएगी. अभी तो जो लोग काम कर रहे हैं उन की तनख्वाह ही समय पर होना मुश्किल है.

‘‘मैं इसी उधेड़बुन में बाहर निकला हूं कि कारखाने का कौन सा स्क्रैप बेच कर मुलाजिमों की तनख्वाह निकाल सकूं. तुम्हारी जानकारी में ऐसा कोई स्क्रैप हो तो बताओ,’’ आश्वासन देते हुए मैनेजर ने दीपक से पूछा.

दीपक मैनेजर को अपनी जानकारी के मुताबिक स्क्रैप के बारे में बताने लगा. तभी एक लंबी चमचमाती सफेद कार कारखाने में दाखिल हुई.

‘‘अरे, सेठजी आ गए,’’ कहते हुए मैनेजर कार की तरफ लपका.

चूंकि दीपक उस कारखाने का पुराना मुलाजिम था, इसी वजह से मालिक भी उसे पहचानते थे.

‘‘नमस्ते सर,’’ दीपक ने मालिक को देखते ही हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘कैसे हो दीपक?’’ कार से उतर कर मालिक ने पूछा.

‘‘मैं ठीक हूं सर,’’ दीपक ने जवाब दिया.

‘‘कैसे आना हुआ?’’ मालिक ने पूछा.

‘‘सर, पिछले डेढ़ महीने से नाइट शिफ्ट बंद है. यही जानकारी लेने आया था कि कब तक फिर से चालू हो जाएंगी,’’ दीपक ने जवाब दिया.

मालिक ने इशारे से उसे अपने औफिस में आने को कहा. दीपक को लगा कि अब तो उस की ड्यूटी फिर से चालू हो ही जाएगी. आखिर इतने दिनों तक उस ने अकेले रातरात भर जाग कर अच्छा प्रोडक्शन जो दिया था. कई बार मुश्किल हालात में भी कारखाने को अच्छे से चलाए रखने का इनाम शायद आज उसे मिल जाए.

औफिस के अंदर सिर्फ 2 ही लोग थे कारखाने के मालिक और दीपक.

मालिक ने ही बात शुरू की और बोले, ‘‘हां, तो दीपक उस दिन वर्करों

से क्या कह रहे थे तुम? सेठ का काला धन अब बाहर निकल आएगा… और देखो, निकल आया.

‘‘जिसे तुम काला धन कह रहे थे, उसी धन से तुम्हारे जैसे कितने लोगों के घर के चूल्हे जल रहे थे. तुम्हारे घर वालों को दवादारू मिल रही थी. तुम्हें मिलने वाला पैसा तुम्हारे जीने का आधार था.

‘‘अब बताओ कि इस से क्या साबित हुआ? काला धन किस के पास था? मेरे पास या तुम्हारे पास? मैं तो जितना खाना तब खाता था उतना ही अब भी खा रहा हूं. भूखा कौन मर रहा है? तुम्हारे जैसे मेहनती लोग न? तो फिर काला धन किस के पास हुआ और किस का निकला? तुम्हारा ही न?

‘‘देखो, मैं जो देख रहा हूं उस के मुताबिक कम से कम 6 महीने तक तो यह फैक्टरी पूरे तौर पर नहीं चल पाएगी. तुम चाहो तो दूसरी नौकरी ढूंढ़ लो, पर मैं जहां तक जानता हूं तकरीबन हर इंडस्ट्री की हालत ऐसी ही है. अब तुम जा सकते हो.’’

दीपक भारी कदमों से औफिस के बाहर निकल गया. घर जाते समय सोच रहा था कि इस से तो काला धन ही बेहतर था. कम से कम करोड़ों मजदूरों को रोजगार तो मिला हुआ था. घर चल रहा था, बच्चे पढ़ रहे थे.

सोचतेसोचते दीपक एक बगीचे में पहुंच गया. यहां लोग सुबहशाम घूमने के लिए आते हैं. पर इस दोपहरी में भी वहां पर कई लोग बैठे थे जो उस के जैसे ही थे. वे भी आसपास की फैक्टरियों में रोजगार तलाश रहे थे.

अब दीपक को मालिक के शब्द सही लगने लगे थे. पहले जो लोग मलाई खा रहे थे, वे तो अब भी गाढ़ा दूध पी रहे हैं, पर जो लोग सूखी रोटी खा रहे थे, वे बेचारे तो भूखे ही मर रहे हैं. गलती कौन कर रहा है और सजा कौन पा रहा है. ठीक है कि अगले 10-15 सालों का भारत अलग होगा, पर आज जो मर रहे हैं, उन का क्या? इस माहौल में जो बच्चे बड़े हो रहे हैं, क्या वे इन कमियों की वजह से अपराधी नहीं बनेंगे?

बेहतर होता कि इस के दूरगामी नतीजों की जांचपड़ताल कर इस फैसले को धीरेधीरे असरदार ढंग से लागू किया जाता. एक अपराध को रोकने की वजह दूसरे अपराधों की जन्मदाता तो नहीं होती.

पता नहीं, दीपक को कब गहरी नींद लग गई. इतनी गहरी कि फिर कभी उठ ही नहीं पाया. लोग कह रहे थे, दिल के दौरे से मौत हुई थी, पर असलियत…

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