Short Story: गुलाब यूं ही खिले रहें

शादी की शहनाइयां बज रही थीं. सभी मंडप के बाहर खड़े बरात का इंतजार कर रहे थे. शिखा अपने दोनों बच्चों को सजेधजे और मस्ती करते देख कर बहुत खुश हो रही थी और शादी के मजे लेते हुए उन पर नजर रखे हुए थी. तभी उस की नजर रिया पर पड़ी जो एक कोने में गुमसुम सी अपनी मां के साथ चिपकी खड़ी थी. रिया और शिखा दूर के रिश्ते की चचेरी बहनें थीं. दोनों बचपन से ही अकसर शादीब्याह जैसे पारिवारिक कार्यक्रमों में मिलती थीं. रिया को देख शिखा ने वहीं से आवाज लगाई, ‘‘रिया…रिया…’’

शायद रिया अपनेआप में ही खोई हुई थी. उसे शिखा की आवाज सुनाई भी न दी. शिखा स्वयं ही उस के पास पहुंची और चहक कर बोली, ‘‘कैसी है रिया?’’

रिया ने जैसे ही शिखा को देखा, मुसकरा कर बोली, ‘‘ठीक हूं, तू कैसी है?’’

‘‘बिलकुल ठीक हूं, कितने साल हुए न हम दोनों को मिले, शादी क्या हुई बस, ससुराल के ही हो कर रह गए.’’

शिखा ने कहा, ‘‘आओ, मैं तुम्हें अपने बच्चे से मिलवाती हूं.’’

रिया उन्हें देख कर बस मुसकरा दी. शिखा को लगा रिया कुछ बदलीबदली है. पहले तो वह चिडि़या सी फुदकती और चहकती रहती थी, अब इसे क्या हो गया? मायके में है, फिर भी गम की घटाएं चेहरे पर क्यों?

जब वह सभी रिश्तेदारों से मिली तो उसे मालूम हुआ कि रिया की उस के पति से तलाक की बात चल रही है. वह सोचने लगी, ‘ऐसा क्या हो गया, शादी को इतने वर्ष हो गए और अब तलाक?’ उस से रहा न गया इसलिए मौका ढूंढ़ने लगी कि कब रिया अकेले में मिले और कब वह इस बारे में बात करे.

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शिखा ने देखा कि शादी में फेरों के समय रिया अपने कमरे में गई है तो वह भी उस के पीछेपीछे चली गई. शिखा ने कुछ औपचारिक बातें कर कहा, ‘‘मेरी प्यारी बहना, बदलीबदली सी क्यों लगती है? कोई बात है तो मुझे बता.’’

पहले तो रिया नानुकर करती रही, लेकिन जब शिखा ने उसे बचपन में साथ बिताए पलों की याद दिलाई तो उस की रुलाई फूट पड़ी. उसे रोते देख शिखा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, पति से तलाक क्यों ले रही है, तुझे परेशान करता है क्या?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं, वे तो बहुत नेक इंसान हैं.,’’ रिया ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर क्या बात है रिया, तलाक क्यों?’’ शिखा ने पूछा.

रिया के नयनों की शांत धारा सिसकियों में बदल गई, ‘‘कमी मुझ में है, मैं ही अपने पति को वैवाहिक सुख नहीं दे पाती.’’ मुझे पति के पास जाना भी अच्छा नहीं लगता. मुझे उन से कोई शिकायत नहीं, लेकिन मेरा अतीत मेरा पीछा ही नहीं छोड़ता.’’

‘‘कौन सा अतीत?’’

आज रिया सबकुछ बता देना चाहती थी, वह राज, जो बरसों से घुन की मानिंद उसे अंदर से खोखला कर रहा था. जब उस ने अपनी मां को बताया था तो उन्होंने भी उसे कितना डांटा था. उस की आधीअधूरी सी बात सुन कर शिखा कुछ समझ न पाई और बोली, ‘‘रिया, मैं तुम्हारी मदद करूंगी, मुझे सचसच बताओ, क्या बात है?’’

रिया उस के गले लग खूब रोई और बोली, ‘‘वे हमारे दूर के रिश्ते के दादा हैं न गांव वाले, किसी शादी में हमारे शहर आए थे और एक दिन हमारे घर भी रुके थे. मां को उस दिन डाक्टर के पास जाना था. मां को लगा कि दादा हैं इसलिए मुझे भाई के भरोसे घर में छोड़ गईं. जब भैया खेलने गए तो दादा मुझे छत पर ले गए और…’’ कह कर वह रोने लगी.

उस की बात सुन कर शिखा की आंखों में मानो खून उतर आया. उस के मुंह से अनायास ही निकला, ‘‘राक्षस, वहशी, दरिंदा और न जाने कितनी युवतियों को उस ने अपना शिकार बनाया होगा. तुम्हें मालूम है वह बुड्ढा तो मर चुका है. उस ने सिर्फ तुम्हें ही नहीं मुझे भी अपना शिकार बनाया था. मैं एक शादी में गई थी. वह भी वहां आया हुआ था. मेरी मां मुझे शादी के फेरों के समय कमरे में अकेली छोड़ गई थीं. सभी लोग फेरों की रस्म में व्यस्त थे. उस ने मौका देख मेरे साथ बलात्कार किया. मात्र 15 वर्ष की थी मैं उस वक्त, जब मेरे चीखने की आवाज सुनाई दी तो मेरी मां दौड़ कर आईं और पिताजी ने उन दादाजी को खूब भलाबुरा कहा, लेकिन रिश्तेदारों और समाज में बदनामी के डर से यह बात छिपाई गईं.’’

‘‘वही तो,’’ रिया कहने लगी, ‘‘मेरी मां ने तो उलटा मुझे ही डांटा और कहा कि यह तो बड़ा अनर्थ हो गया. बिन ब्याहे ही यह संबंध. न जाने अब कोई मुझ से विवाह करेगा भी या नहीं.

‘‘जैसे कुसूर मेरा ही हो, मैं क्या करती. उस समय सिर्फ 15 वर्ष की थी, इस लिए समझती भी नहीं थी कि बलात्कार क्या होता है, लेकिन शादी के बाद जब भी मेरे पति नजदीक आए तो मुझे बारबार वही हादसा याद आया और मैं उन से दूर जा खड़ी हुई. जब वे मेरे नजदीक आते हैं तो मुझे लगता है एक और बलात्कार होने वाला है.’’

शिखा ने पूछा, ‘‘तो फिर वे तुम से जबरदस्ती तो नहीं करते?’’

‘‘नहीं, कभी नहीं,’’ रिया बोली.

‘‘तब तो तुम्हारे पति सच में बहुत नेक इंसान हैं.’’

‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरे कारण वे दुख की जिंदगी जिएं इसलिए मैं ने ही उन से तलाक मांगा है. मैं तो उन्हें वैवाहिक सुख नहीं दे पाती पर उन्हें तो आजाद करूं इस बंधन से.’’

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‘‘ओह, तो यह बात है. मतलब तुम मन ही मन उन्हें पसंद तो करती हो?’’

‘‘हां,’’ रिया बोली, ‘‘मुझे अच्छे लगते हैं वे, किंतु मैं मजबूर हूं.’’

‘‘तुम ने मुझे अपना सब से बड़ा राज बताया है, तो क्या तुम मुझे एक मौका नहीं दोगी कि मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं. देखो रिया, मेरे साथ भी यह हादसा हुआ लेकिन मांपिताजी ने मुझे समझा दिया कि मेरी कोई गलती नहीं, पर तुम्हें तो उलटा तुम्हारी मां ने ही कुसूरवार ठहरा दिया. शायद इसलिए तुम अपनेआप को गुनाहगार समझती हो,’’ शिखा बोली.

‘‘तुम कहो तो मैं तुम्हारे पति से बात करूं इस बारे में?’’

‘‘नहींनहीं, तुम ऐसा कभी न करना,’’ रिया ने कहा.

‘‘अच्छा नहीं करूंगी, लेकिन अभी हम 3-4 दिन तो हैं यहां शादी में, तो चलो, मैं तुम्हें काउंसलर के पास ले चलती हूं.’’

‘‘वह, क्यों?’’ रिया ने पूछा

‘‘तुम मेरा विश्वास करती हो न, तो सवाल मत पूछो. बस, सुबह तैयार रहना.’’

अगले दिन शिखा सुबह ही रिया को एक जानेमाने काउंसलर के पास ले गई. काउंसलर ने बड़े प्यार से रिया से सारी बात पूछी. एक बार तो रिया झिझकी, लेकिन शिखा के कहने पर उस ने सारी बात काउंसलर को बता दी. यह सुन कर काउंसलर ने रिया के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘देखो बेटी, तुम बहुत अच्छी हो, जो तुम ने अपनी मां की बात मान कर यह राज छिपाए रखा, लेकिन इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं. तुम अपनेआप को दोषी क्यों समझती हो? क्या हो गया अगर किसी ने जोरजबरदस्ती से तुम से संबंध बना भी लिए तो?’’

रिया बोली, ‘‘मां ने कहा, मैं अपवित्र हो गई, अब मुझे अपनेआप से ही घिन आती है. इसलिए मुझे अपने पति के नजदीक आना भी अच्छा नहीं लगता.’’

काउंसलर ने समझाते हुए कहा, ‘‘लेकिन इस में अपवित्र जैसी तो कोईर् बात ही नहीं और इस काम में कुछ गलत भी नहीं. यह तो हमारे समाज के नियम हैं कि ये संबंध हम विवाह बाद ही बनाते हैं.

‘‘लेकिन समाज में बलात्कार के लिए तो कोई कठोर नियम व सजा नहीं. इसलिए पुरुष इस का फायदा उठा लेते हैं और दोषी लड़कियों को माना जाता है. बेचारी अनखिली कली सी लड़कियां फूल बनने से पहले ही मुरझा जाती हैं. अब तुम मेरी बात मानो और यह बात बिलकुल दिमाग से निकाल दो कि तुम्हारा कोई दोष है और तुम अपवित्र हो. चलो, अब मुसकराओ.’’

रिया मुसकरा उठी. शिखा उसे अपने साथ घर लाई और बोली, ‘‘अब तलाक की बात दिमाग से निकाल दो और अपने पति के पास जाने की पहल तुम खुद करो, इतने वर्ष बहुत सताया तुम ने अपने पति को. अब चलो, प्रायश्चित्त भी तुम ही करो.’’

रिया विवाह संपन्न होते ही ससुराल चली गई. उस ने अपने पति के पास जाने की पहल की और साथ ही साथ काउंसलर ने भी उस का फोन पर मार्गदर्शन किया. उस के व्यवहार में बदलाव देख उस के पति भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने रिया को एक दिन अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘क्या बात है रिया, आजकल तुम्हारा चेहरा गुलाब सा खिला रहता है?’’

वह जवाब में सिर्फ मुसकरा दी और बोली, ‘‘अब मैं सदा के लिए तुम्हारे साथ खिली रहना चाहती हूं, मैं तुम से तलाक नहीं चाहती.’’

उस के पति ने कहा, ‘‘थैंक्स रिया, लेकिन यह मैजिक कैसे?’’

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वह बोली, ‘‘थैंक्स शिखा को कहो. अभी फोन मिलाती हूं उसे,’’ कह कर उस ने शिखा का फोन मिला दिया.

उधर से शिखा ने रिया के पति से कहा, ‘‘थैंक्स की बात नहीं. बस, यह ध्यान रखना कि गुलाब यों ही खिले रहें. ’’

Valentine’s Special- अंतराल: पंकज ने क्यों किया शादी से इनकार

Valentine’s Special- अंतराल: भाग 3

कुछ दिन बाद उन के फोन करने पर पापा, मां और चारू को ले कर मुंबई आ गए थे क्योंकि सोफिया के मम्मीपापा भी भारत आ गए थे.

मुंबई पहुंचने पर निश्चित हुआ कि अगले दिन लंच सब लोग एक ही होटल में करेंगे और दोनों परिवार वहीं एकदूसरे से मिल कर विवाह की संक्षिप्त रूपरेखा तय कर लेंगे. दोनों परिवार जब मिले तो सामान्य शिष्टाचार के बाद पापा ने ही बात शुरू की थी, ‘आप को मालूम ही है कि आप की बेटी और मेरा बेटा एकदूसरे को पसंद करते हैं. हम लोगों ने उन की पसंद को अपनी सहमति दे दी है. इसलिए आप अपनी सुविधा से कोई तारीख निश्चित कर लें जिस से दोनों विवाह सूत्र में बंध सकें.

पापा के इस सुझाव के उत्तर में सोफिया के पापा ने कहा था, ‘पर इस के लिए मेरी एक शर्त है कि शादी के बाद आप के बेटे को हमारे साथ जरमनी में ही रहना होगा और इन की जो संतान होगी वह भी जरमन नागरिक ही कहलाएगी. आप अपने बेटे से पूछ लें, उसे मेरी शर्त स्वीकार होने पर ही इस शादी के लिए मेरी अनुमति हो सकेगी.’

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उन की शर्त सुन कर सभी चौंक गए थे. सोफिया को भी अपने पापा की यह शर्त अच्छी नहीं लगी थी. उधर वह सोच रहे थे कि नहीं, इस शर्त के लिए वह हरगिज सहमत नहीं हो सकते. वह क्या इतने खुदगर्ज हैं जो अपनी खुशी के लिए अपने मांबाप और बहन को छोड़ कर विदेश में रहने चले जाएं? पढ़ते समय वह सोचा करते थे कि जिस तरह मम्मीपापा ने उन के जीवन को संवारने में कभी अपनी सुखसुविधा की ओर ध्यान नहीं दिया, उसी तरह वह भी उन के जीवन के सांध्यकाल को सुखमय बनाने में कभी अपने सुखों को बीच में नहीं आने देंगे.

उन्होंने दूर खड़ी उदास सोफिया से कहा, ‘तुम्हारे पापा की शर्त के अनुसार मुझे अपने परिवार और देश को छोड़ कर जाना कतई स्वीकार नहीं है, इसलिए अब आज से हमारे रास्ते अलग हो रहे हैं, पर मेरी शुभकामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ हैं.’

दरवाजे की घंटी बजी तो अपने अतीत में खोए पंकज अचानक वर्तमान में लौट आए. देखा, पोस्टमैन था. पत्नी की कुछ पुस्तकें डाक से आई थीं. पुस्तकें प्राप्त कर, अधूरे पत्र को जल्द पूरा किया और पोस्ट करने चल दिए.

कुछ दिनों बाद, देर रात्रि में टेलीफोन की घंटी बजी. उठाया तो दूसरी ओर से सोफिया की आवाज थी. कह रही थी कि पत्र मिलने पर बहुत खुशी हुई. अगले मंडे को बेटी के साथ वह मुंबई पहुंच रही है. उसी पुराने होटल में कमरा बुक करा लिया है, पर व्यस्तता के कारण केवल एक सप्ताह का समय ही निकाल पाई है. उम्मीद है आप का परिवार भी घूमने में हमारे साथ रहेगा.

टेलीफोन पर हुई पूरी बात, सुबह पत्नी और बेटे को बतलाई. वे दोनों भी घूमने के लिए सहमत हो गए. सोफिया के साथ घूमते हुए पत्नी को भी अच्छा लगा. अभिषेक और जूली ने भी बहुत मौजमस्ती की. अंतिम दिन मुंबई घूमने का प्रोग्राम था. पर सब लोगों ने जब कोई रुचि नहीं दिखाई तो अभिषेक व जूली ने मिल कर ही प्रोग्राम बना लिया.

रात्रि में दोनों देर से लौटे. सोते समय सोफिया ने अपनी बेटी से पूछा, ‘‘आज अभिषेक के साथ तुम दिन भर, अकेले ही घूमती रहीं. तुम्हारे बीच बहुत सी बातें हुई होंगी? क्या सोचती हो तुम उस के बारे में? कैसा लड़का है वह?’’

‘‘मम्मी, अभि सचमुच बहुत अच्छा और होशियार है. एम.बी.ए. के पिछले सत्र में उस ने टाप किया है. आगे बढ़ने की उस में बहुत लगन है.’’

‘‘इतनी प्रशंसा? कहीं तुम्हें प्यार तो नहीं हो गया?’’

‘‘हां, मम्मी, आप का अनुमान सही है.’’

‘‘और वह?’’

‘‘वह भी.’’

‘‘तो क्या अभि के पापा से तुम दोनों के विवाह के बारे में बात करूं?’’

‘‘हां, मम्मी, अभि भी ऐसा ही करने को कह रहा था.’’

‘‘पर जूली, तुम्हारे पापा को तो ऐसा लड़का पसंद है, जो उन के साथ रह कर बिजनेस में उन की मदद कर सके. क्या अभि इस के लिए तैयार होगा.’’

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‘‘क्यों नहीं, यह तो आगे बढ़ने की उस की इच्छा के अनुकूल ही है. फिर वह क्यों मना करने लगा?’’

‘‘भारत छोड़ देने पर, क्या उस के मम्मीपापा अकेले नहीं रह जाएंगे?’’

‘‘तो क्या हुआ? भारत में इतने वृद्धाश्रम किस लिए हैं?’’

‘‘क्या इस बारे में तुम ने अभि के विचारों को जानने का भी प्रयत्न किया?’’

‘‘हां, वह इस के लिए खुशी से तैयार है. कह भी रहा था कि यहां भारत में रह कर तो उस की तमन्ना कभी पूरी नहीं हो सकती. लेकिन मम्मी, अभि की इस बात पर आप इतना संदेह क्यों कर रही हैं?’’

‘‘कुछ नहीं, यों ही.’’

‘‘नहीं मम्मी, इतना सब पूछने का कुछ तो कारण होगा? बतलाइए.’’

‘‘इसलिए कि बिलकुल ठीक ऐसी ही परिस्थितियों में अभि के पापा ने भारत छोड़ने से मना कर दिया था.’’

‘‘पर तब आप ने उन्हें समझाया नहीं?’’

‘‘नहीं, शायद इसलिए कि मुझे भी उन का मना करना गलत नहीं लगा था.’’

‘‘ओह मम्मी, आप और अभि के पापा दोनों की बातें और सोच, मेरी समझ के तो बाहर की हैं. मैं तो सो रही हूं. सुबह जल्दी उठना है. अभि कह रहा था, वह सुबह मिलने आएगा. उसे आप से भी कुछ बातें करनी हैं.’’

बेटी की सोच और उस की बातों के अंदाज को देख, सोफिया को लग रहा था कि पीढ़ी के ‘अंतराल’ ने तो हवा का रुख ही बदल दिया है.

Valentine’s Special- अंतराल: भाग 2

दोपहर में चारू तो अपनी सहेली के साथ बाजार चली गई, मां को फुरसत में देख, वह उन के पास जा कर बैठ गए और बोले, ‘मां, आप से कुछ बात करनी है.’

‘ऐसी कौन सी बात है जिसे मां से कहने में तू इतना परेशान दिख रहा है?’

‘मां…दरअसल, बात यह है कि मुझे मुंबई में एक लड़की पसंद आ गई है.’

मां कुछ चौंकीं तो पर खुश होते हुए बोलीं, ‘अरे, तो अब तक क्यों नहीं बताया? कैसी लगती है वह? बहुत सुंदर होगी. फोटो लाया है? क्या नाम है? उस के मांबाप भी क्या मुंबई में ही रहते हैं? क्या करते हैं वे?’

मां की उत्सुकता और उन के सवालों को सुन कर वह तब मौन हो गए थे. उन्हें इस तरह खामोश देख कर मां बोली थीं, ‘अरे, चुप क्यों हो गया? बतला तो, कौन है, कैसी है?’

‘मां, वह एक जरमन लड़की है, जो रिसर्च के सिलसिले में मुंबई आई हुई है और मेरे होस्टल के पास ही होटल में रहती है. हमारी मुलाकात अचानक ही एक यात्रा के दौरान हो गई थी. मां, कहने को तो सोफिया जरमन है पर देखने में उस का नाकनक्श सब भारतीयों जैसा ही है.’

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अपने बेटे की बात सुन कर मां एकदम सकते में आ गई थीं. कहने लगीं, ‘बेटा, तुम्हारी यह पसंद मेरी समझ में नहीं आई. तुम्हें अपने परिवार में सब संस्कार भारतीय ही मिले पर यह कैसी बात कि शादी एक विदेशी लड़की से करना चाहते हो? क्या मुंबई जा कर लोग अपनी परंपराओं और संस्कृति को भूल कर महानगर के मायाजाल में इतनी जल्दी खो जाते हैं कि जिस लड़की से शादी करनी है उस के घरपरिवार के बारे में जानने की जरूरत भी महसूस नहीं करते? क्या अपने देश में सुंदर लड़कियों की कोई कमी है, जो एक विदेशी लड़की को हमारे घर की बहू बनाना चाहते हो?’

फिर यह कहते हुए मां उठ कर वहां से चली गईं कि एक विदेशी बहू को वह स्वीकार नहीं कर पाएंगी.

शाम को चाय पर फिर एकसाथ बैठे तो मां ने समझाते हुए बात शुरू की, ‘देखो बेटा, शादीविवाह के फैसले भावावेश में लेना ठीक नहीं होता. तुम जरा ठंडे दिमाग से सोचो कि जिस परिवेश में तुम पढ़लिख कर बड़े हुए और तुम्हारे जो आचारविचार हैं, क्या कोई यूरोपीय संस्कृति में पलीबढ़ी लड़की उन के साथ सामंजस्य बिठा पाएगी? माना कि तुम्हें मुंबई में रहना है और वहां यह सब चलता है पर हमें तो यहां समाज के बीच ही रहना है. जब हमारे बारे में लोग तरहतरह की बातें करेंगे तब हमारा तो लोगों के बीच उठनाबैठना ही मुश्किल हो जाएगा. फिर चारू की शादी भी परेशानी का सबब बन जाएगी.’

‘मां, आप चारू की शादी की चिंता न करें,’ वह बोले थे, ‘वह मेरी जिम्मेदारी है और मैं ही उसे पूरी करूंगा. लोगों का क्या? वे तो सभी के बारे में कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं. रही बात सोफिया के विदेशी होने की तो वह एक समझदार और सुलझेविचारों वाली लड़की है. वह जल्दी ही अपने को हमारे परिवार के अनुरूप ढाल लेगी. मां, आप एक बार उसे देख तो लें, वह आप को भी अच्छी लगेगी.’

बेटे की बातों से मां भड़कते हुए बोलीं, ‘तेरे ऊपर तो उस विदेशी लड़की का ऐसा रंग चढ़ा हुआ है कि तुझ से कुछ और कहना ही अब बेकार है. तुझे जो अच्छा लगे सो कर, मैं बीच में नहीं बोलूंगी.’

पापा के आफिस से लौटने पर जब उन के कानों तक सब बातें पहुंचीं, तो पहले वह भी विचलित हुए थे फिर कुछ सोच कर बोले, ‘बेटे, मुझे तुम्हारी समझदारी पर पूरा विश्वास है कि तुम अपना तथा परिवार का सब तरह से भला सोच कर ही कोई निर्णय करोगे. यदि तुम्हें लगता है कि सोफिया के साथ विवाह कर के ही तुम सुखी रह सकते हो, तो हम आपत्ति नहीं करेंगे. हां, इतना जरूर है कि विवाह से पहले एक बार हम सोफिया और उस के मातापिता से मिलना अवश्य चाहेंगे.’

पापा की बातों से उन के मन को तब बहुत राहत मिली थी पर वह यह समझ नहीं पाए थे कि उन की बातों से आहत हुई मां को वह कैसे समझाएं?

उन के मुंबई लौटने पर जब सोफिया ने उन से घर वालों की राय के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने कहा था, ‘मैं ने तुम्हारे बारे में मम्मीपापा को बताया तो उन्होंने यही कहा यदि तुम खुश हो तो उन की भी सहमति है और तुम्हारे मम्मीपापा के भारत आने पर उन से मिलने वे मुंबई आएंगे.’

सोफिया से यह सब कहते हुए उन्हें अचानक ऐसा लगा था कि सोफिया के साथ विवाह का निर्णय कर कहीं उन्होंने कोई गलत कदम तो नहीं उठा लिया? लेकिन सोफिया के सौंदर्य और प्यार से अभिभूत हो जल्दी ही उन्होंने अपने इस विचार को झटक दिया था.

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उन के मुंबई लौटने के बाद घर में एक अजीब सी खामोशी छा गई थी. मां और चारू दोनों ही अब घर से बाहर कम ही निकलतीं. उन्हें लगता कि यदि किसी ने बेटे की शादी का जिक्र छेड़ दिया तो वे उसे  क्या उत्तर देंगी?

पापा यह कह कर मां को समझाते, ‘मैं तुम्हारी मनोस्थिति को समझ रहा हूं, पर जरा सोचो कि मेरे अधिक जोर देने पर यदि वह सोफिया की जगह किसी और लड़की से विवाह के लिए सहमत हो भी जाता है और बाद में अपने वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट रहता है तो न वह ही सुखी रह पाएगा और न हम सभी. इसलिए विवाह का फैसला उस के स्वयं के विवेक पर ही छोड़ देना हम सब के हित में है.’

Valentine’s Special- अंतराल: भाग 1

25 साल बाद जरमनी से भेजा सोफिया का पत्र मिला तो पंकज आश्चर्य से भर गए. पत्र उन के गांव के डाकखाने से रीडाइरेक्ट हो कर आया था. जरमन भाषा में लिखे पत्र को उन्होंने कई बार पढ़ा. लिखा था, ‘भारतीय इतिहास पर मेरे शोध पत्रों को पढ़ कर, मेरी बेटी जूली इतना प्रभावित हुई है कि भारत आ कर वह उन सब स्थानों को देखना चाहती है जिन का शोध पत्रों में वर्णन आया है, और चाहती है कि मैं भी उस के साथ भारत चलूं.’

‘तुम कहां हो? कैसे हो? यह वर्षों बीत जाने के बाद कुछ पता नहीं. भारत से लौट कर आई तो फिर कभी हम दोनों के बीच पत्र व्यवहार भी नहीं हुआ, इसलिए तुम्हारे गांव के पते पर यह सोच कर पत्र लिख रही हूं कि शायद तुम्हारे पास तक पहुंच जाए. पत्र मिल जाए तो सूचित करना, जिस से भारत भ्रमण का ऐसा कार्यक्रम बनाया जा सके जिस में तुम्हारा परिवार भी साथ हो. अपने मम्मीपापा, पत्नी और बच्चों के बारे में, जो अब मेरी बेटी जूली जैसे ही बडे़ हो गए होंगे, लिखना और हो सके तो सब का फोटो भी भेजना ताकि हम जब वहां पहुंचें तो दूर से ही उन्हें पहचान सकें.’

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पत्नी और बेटा अभिषेक दोनों ही उस समय कालिज गए हुए थे. पत्नी हिंदी की प्रोफेसर है और बेटा एम.बी.ए. फाइनल का स्टूडेंट है. शनिवार होने के कारण पंकज आज बैंक से जल्दी घर आ गए थे. इसलिए मन में आया कि क्यों न सोफिया को आज ही पत्र लिख दिया जाए.

पंकज ने सोफिया को जब पत्र लिखना शुरू किया तो उस के साथ की पुरानी यादें किसी चलचित्र की तरह उन के मस्तिष्क में उभरने लगीं.

तब वह मुंबई के एक बैंक में प्रोबेशनरी अधिकारी के पद पर कार्यरत थे. अभी उन की शादी नहीं हुई थी इसलिए वह एक होस्टल में रह रहे थे.

सोफिया से उन की मुलाकात एलीफेंटा जाते हुए जहाज पर हुई थी. वह भारत में पुरातत्त्व महत्त्व के स्थानों पर भ्रमण के लिए आई थी और उन के होस्टल के पास ही होटल गेलार्ड में ठहरी थी. सोफिया को हिंदी का ज्ञान बिलकुल नहीं था और अंगरेजी भी टूटीफूटी ही आती थी. उन के साथ रहने से उस दिन उस की भाषा की समस्या हल हो गई तो वह जब भी ऐतिहासिक स्थानों को घूमने के लिए जाती, उन से भी चलने का आग्रह करती.

सोफिया को भारत के ऐतिहासिक स्थानों के बारे में अच्छी जानकारी थी. उन से संबंधित काफी साहित्य भी वह अपने साथ लिए रहती थी, इसलिए उस के साथ रहने पर चर्चाओं में उन को आनंद तो आता ही था साथ ही जरमन भाषा सीखने में भी उन्हें उस से काफी मदद मिलती.

साथसाथ रहने से उन दोनों के बीच मित्रता कुछ ज्यादा बढ़ने लगी. एक दिन सोफिया ने अचानक उन के सामने विवाह का प्रस्ताव रख उन्हें चौंका दिया, और जब वह कुछ उत्तर नहीं दे पाए तो मुसकराते हुए कहने लगी, ‘जल्दी नहीं है, सोच कर बतलाना, अभी तो मुझे मुंबई में कई दिनों तक रहना है.’

यह सच है कि सोफिया के साथ रहते हुए वह उस के सौंदर्य और प्रतिभा के प्रति अपने मन में तीव्र आकर्षण का अनुभव करते थे पर विवाह की बात उन के दिमाग में कहीं दूर तक भी नहीं थी, ऐसा शायद इसलिए भी कि सोफिया और अपने परिवार के स्तर के अंतर को वह अच्छी तरह समझते थे. कहां सोफिया एक अमीर मांबाप की बेटी, जो भारत घूमने पर ही लाखों रुपए खर्च कर रही थी और कहां सामान्य परिवार के वह जो एक बैंक में अदने से अधिकारी थे. प्रेम के मामले में सदैव दिल की ही जीत होती है, इसलिए सबकुछ जानते और समझते हुए भी वह अपने को सोफिया से प्यार का इजहार करने से नहीं रोक पाए थे.

उन दिनों मां ने अपने एक पत्र में लिखा था कि आजकल तुम्हारे विवाह के लिए बहुत से लड़की वालों के पत्र आ रहे हैं, यदि छुट्टी ले कर तुम 2-4 दिन के लिए घर आ जाओ तो फैसला करने में आसानी रहेगी. तब उन्होंने सोचा था कि जब घर पहुंच कर मां को बतलाएंगे कि मुंबई में ही उन्होंने एक लड़की सोफिया को पसंद कर लिया है तो मां पर जो गुजरेगी और घर में जो भूचाल उठेगा, क्या वह उसे शांत कर पाएंगे पर कुछ न बतलाने पर समस्या क्या और भी जटिल नहीं हो जाएगी…

तब छोटी बहन चारू ने फोन किया था, ‘भैया, सच कह रही हूं, कुछ लड़कियों की फोटो तो बहुत सुंदर हैं. मां तो उन्हें देख कर फूली नहीं समातीं. मां ने कुछ से तो यह भी कह दिया कि मुझे दानदहेज की दरकार नहीं है, बस, घरपरिवार अच्छा हो और लड़की उन के बेटे को पसंद आ जाए…’

बहन की इन चुहल भरी बातों को सुन कर जब उन्होंने कहा कि चल, अब रहने दे, फोन के बिल की भी तो कुछ चिंता कर, तो चहकते हुए कहने लगी थी, ‘उस के लिए तो मम्मीपापा और आप हैं न.’

मां को अपने आने की सूचना दी तो कहने लगीं, ‘जिन लोगों के प्रस्ताव यहां सब को अच्छे लग रहे हैं उन्हें तुम्हारे सामने ही बुला लेंगे, जिस से वे लोग भी तुम से मिल कर अपना मन बना लें और फिर हमें आगे बढ़ने में सुविधा रहे.’

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‘नहीं मां, अभी किसी को बुलाने की जरूरत नहीं है. अब घर तो आ ही रहा हूं इसलिए जो भी करना होगा वहीं आ कर निश्चित करेंगे…’

‘जैसी तेरी मरजी, पर आ रहा है तो कुछ निर्णय कर के ही जाना. लड़की वालों का स्वागत करतेकरते मैं परेशान हो गई हूं.’

घर पहुंचा तो चारू चहकती हुई लिफाफों का पुलिंदा उठा लाई थी, ‘देखो भैया, ये इतने प्रपोजल तो मैं ने ही रिजेक्ट कर दिए हैं…शेष को देख कर निर्णय कर लो…किनकिन से आगे बात करनी है.’

उन्होंने उन में कोई रुचि नहीं दिखाई, तो रूठने के अंदाज में चारू बोली, ‘क्या भैया, आप मेरा जरा भी ध्यान नहीं रखते. मैं ने कितनी मेहनत से इन्हें छांट कर अलग किया है, और आप हैं कि इस ओर देख ही नहीं रहे. ज्यादा भाव खाने की कोशिश न करो, जल्दी देखो, मुझे और भी काम करने हैं.’

जब वह उन के पीछे ही पड़ गई तो वह यह कहते उठ गए थे कि चलो, पहले स्नान कर भोजन कर लें…मां भी फ्री हो जाएंगी…फिर सब आराम से बैठ कर देखेंगे. मां ने भी उन का समर्थन करते हुए चारू को डपट दिया, ‘भाई ठीक ही तो कह रहा है, छोड़ो अभी इन सब को, आया नहीं कि चिट्ठियों को ले कर बैठ गई.’

Valentine’s Special- हरिनूर: नीरज और शबीना की प्रेम कहानी

Valentine’s Special- हरिनूर: भाग 2

जब नई अम्मी को बेटा हुआ, तो जोया आपा और अम्मी को बेदखल कर उसी हवेली में नौकरों के रहने वाली जगह पर एक कोना दे दिया गया.

अम्मी दिनभर सिलाईकढ़ाई करतीं और जोया आपा भी दूसरों के घर का काम करतीं तो भी दो वक्त की रोटी मुहैया नहीं हो पाती थी.

अम्मी 30 साल की उम्र में 50 साल की दिखने लगी थीं. ऐसा नहीं था कि अम्मी खूबसूरत नहीं थीं. वे हमेशा अब्बू की दीवानगी के किस्से बयां करती रहती थीं.

सभी ने अम्मी को दूसरा निकाह करने को कहा, पर अम्मी तैयार नहीं हुईं. पर इधर कुछ दिनों से वे काफी परेशान थीं. शायद जोया आपा के सीने पर बढ़ता मांस परेशानी का सबब था. मेरे लिए वह अचरज, पर अम्मी के लिए जिम्मेदारी.

‘‘शबीना… ओ शबीना…’’ जोया आपा की आवाज ने शबीना को यादों से वर्तमान की ओर खींच दिया.

‘‘ठीक है, उस लड़के को ले कर आना, फिर देखते हैं कि क्या करना है.’’

लड़के का फोटो देख शबीना खुशी से उछल गई और चीख पड़ी. भविष्य के सपने संजोते हुए वह सोने चली गई.

अकसर उन दोनों की मुलाकात शहर के बाहर एक गार्डन में होती थी. आज जब वह नीरज से मिली, तो उस ने कल की सारी घटना का जिक्र किया, ‘‘जनाब, आप मेरे घर चल रहे हैं. अम्मी आप से मुलाकात करना चाह रही हैं.’’

‘‘सच…’’ कहते हुए नीरज ने शबीना को अपनी बांहों में भर लिया. शबीना शरमा कर बड़े प्यार से नीरज को देखने लगी, फिर नीरज की गाड़ी से ही घर पहुंची.

नीरज तो हैरान रह गया कि इतनी बड़ी हवेली, सफेद संगमरमर सी न शीदार दीवारें और एक मुगलिया संस्कृति बयां करता हरी घास का लान, जरूर यह बड़ी हैसियत वालों की हवेली है.

नीरज काफी सकुचाते हुए अंदर गया, तभी शबीना बोली, ‘‘नीरज, उधर नहीं, यह अब्बू की हवेली है. मेरा घर उधर कोने में है.’’

हैरानी से शबीना को देखते हुए नीरज उस के पीछेपीछे चल दिया. सामने पुराने से सर्वैंट क्वार्टर में शबीना दरवाजे पर टंगी पुरानी सी चटाई हटा कर अंदर नीरज के साथ दाखिल हुई.

नीरज ने देखा कि वहां 2 औरतें बैठी थीं. उन का परिचय शबीना ने अम्मी और जोया आपा कह कर कराया.

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अम्मी ने नीरज को देखा. वह उन्हें बड़ा भला लड़का लगा और बड़े प्यार से उसे बैठने के लिए कहा.

अम्मी ने कहा, ‘‘मैं तुम दोनों के लिए चाय बना कर लाती हूं. तब तक अब्बू और भाईजान भी आते होंगे.’’

‘‘अब्बू, अरे… आप ने उन्हें क्यों बुलाया? मैं ने आप से पहले ही मना किया था,’’ गुस्से से चिल्लाते हुए शबीना अम्मी पर बरस पड़ी.

अम्मी भी गुस्से में बोलीं, ‘‘चुपचाप बैठो… अब्बू का फैसला ही आखिरी फैसला होगा.’’

शबीना कातर निगाहों से नीरज को देखने लगी. नीरज की आंखों में उठे हर सवाल का जवाब वह अपनी आंखों से देने की कोशिश करती.

थोड़ी देर तक वहां सन्नाटा पसरा रहा, तभी सामने की चटाई हिली और भरीभरकम शरीर का आदमी दाखिल हुआ. वे सफेद अचकन और चूड़ीदार पाजामा पहने हुए थे. साथ ही, उन के साथ 17-18 साल का एक लड़का भी अंदर आया.

आते ही उस आदमी ने नीरज का कौलर पकड़ कर उठाया और दोनों लोग नीरज को काफी बुराभला कहने लगे.

नीरज एकदम अचकचा गया. उस ने संभलने की कोशिश की, तभी उस में से एक आदमी ने पीछे से वार कर दिया और वह फिर वहीं गिर गया.

शबीना कुछ समझ पाती, इस से पहले ही उस के अब्बू चिल्ला कर बोले, ‘‘खबरदार, जो इस लड़के से मिली. तुझे शर्म नहीं आती… वह एक हिंदू लड़का है और तू मुसलमान…’’ नीरज की तरफ मुखातिब हो कर बोले, ‘‘आज के बाद शबीना की तरफ आंख उठा कर मत देखना, वरना तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का वह हाल करेंगे कि प्यार का सारा भूत उतर जाएगा.’’

नीरज ने समय की नजाकत को समझते हुए चुपचाप चले जाना ही उचित समझा.

अब्बू ने शबीना का हाथ झटकते हुए अम्मी की तरफ धक्का दिया और गरजते हुए बोले, ‘‘नफीसा, शबीना का ध्यान रखो और देखो अब यह लड़का कभी शबीना से न मिले. इस किस्से को यहीं खत्म करो,’’ और यह कहते हुए वे उलटे पैर वापस चले गए.

अब्बू के जाते ही जो शबीना अभी तक तकरीबन बेहोश सी पड़ी थी, तेजी से खड़ी हो गई और अम्मी से बोली, ‘‘अम्मी, यह सब क्या है? आप ने इन लोगों को क्यों बुलाया? अरे, मुझे तो समझ में नहीं आ रहा है कि ये इतने सालों में कभी तो हमारा हाल पूछने नहीं आए. हम मर रहे हैं या जी रहे हैं, पेटभर खाना खाया है कि नहीं, कैसे हम जिंदगी गुजार रहे हैं. दोदो पैसे कमाने के लिए हम ने क्याक्या काम नहीं किया.

‘‘बोलो न अम्मी, तब ये कहां थे? जब हमारी जिंदगी में चंद खुशियां आईं, तो आ गए बाप का हक जताने. मेरा बस चले, तो आज मैं उन का सिर फोड़ देती.’’

‘‘शबीना…’’ कहते हुए अम्मी ने एक जोरदार चांटा शबीना को रसीद कर दिया और बोलीं, ‘‘बहुत हुआ… अपनी हद भूल रही है तू. भूल गई कि उन से मेरा निकाह ही नहीं हुआ है, दिल का रिश्ता है. मैं उन के बारे में एक भी गलत लफ्ज सुनना पसंद नहीं करूंगी. कल से तुम्हारा और नीरज का रास्ता अलगअलग है.’’

Valentine’s Special- हरिनूर: भाग 3

शबीना सारी रात रोती रही. उस की आंखें सूज कर लाल हो गईं. सुबह जब अम्मी ने शबीना को इस हाल में देखा, तो उन्हें बहुत दुख हुआ. वे उस के बिखरे बालों को समेटने लगीं. मगर शबीना ने उन का हाथ झटक दिया.

बहरहाल, इसी तरह दिनहफ्ते, महीने बीतने लगे. शबीना और नीरज की कोई बातचीत तक नहीं हुई. न ही नीरज ने मिलने की कोशिश की और न ही शबीना ने.

इसी तरह एक साल बीत गया. अब तक अम्मी ने मान लिया था कि शबीना अब नीरज को भूल चुकी है.

उसी दौरान शबीना ने अपनी फैशन डिजाइन के काम में काफी तरक्की कर ली थी और घर में अब तक सब नौर्मल हो गया था. सब ने सोचा कि अब तूफान शांत हो चुका है.

वह दिन शबीना की जिंदगी का बहुत खास दिन था. आज उस के कपड़ों की प्रदर्शनी थी. वह तेजतेज कदमों से लिफ्ट की तरफ बढ़ रही थी, तभी लिफ्ट का दरवाजा खुला, तो सामने खड़े शख्स को देख कर उस के पैर ठिठक गए.

‘‘कैसी हो शबीना?’’ उस ने बोला, तो शबीना की आंखों से आंसू आ गए. बिना कुछ बोले भाग कर वह उस के गले लग गई.

‘‘तुम कैसे हो नीरज? उस दिन तुम्हारी इतनी बेइज्जती हुई कि मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि तुम से कैसे बात करूं, पर सच में मैं तुम्हें कभी भी नहीं भूली…’’

नीरज ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया, ‘‘वह सब छोड़ो, यह बताओ कि तुम यहां कैसे?

‘‘आज मेरे सिले कपड़ों की प्रदर्शनी लगी है, पर तुम…’’

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‘‘मैं यहां का मैनेजर हूं.’’

शबीना ने मुसकराते हुए प्यारभरी निगाहों से नीरज को देखा. नीरज को लगा कि उस ने सारे जहां की खुशियां पा ली हैं.

‘‘अच्छा सुनो, मैं यहां का सारा काम खत्म कर के रात में 8 बजे तुम से यहीं मिलूंगी.’’

आज शबीना का मन अपने काम में नहीं लग रहा था. उसे लग रहा था कि जल्दी से नीरज के पास पहुंच .

शबीना को देखते ही नीरज बोला, ‘‘कुछ इस कदर हो गई मुहब्बत तनहाई से अपनी कि कभीकभी इन सांसों के शोर को भी थामने की कोशिश कर बैठते हैं जनाब…’’

शबीना मुसकराते हुए बोली, ‘‘शिकवा तो बहुत है मगर शिकायत कर नहीं सकते… क्योंकि हमारे होंठों को इजाजत नहीं है तुम्हारे खिलाफ बोलने की,’’ और वे दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.

‘‘नीरज, तुम्हें पता नहीं है कि आज मैं मुद्दतों बाद इतनी खुल कर हंसी हूं.’’

‘‘शायद मैं भी…’’ नीरज ने कहा. रात को दोनों ने एकसाथ डिनर किया और दोनों चाहते थे कि इतने दिनों की जुदाई की बातें एक ही घंटे में खत्म कर दें, जो कि मुमकिन नहीं था. फिर वे दोनों दिनभर के काम के बाद उसी पुराने गार्डन या कैफे में मिलने लगे.

लोग अकसर उन्हें साथ देखते थे. शबीना के घर वालों को भी पता चल गया था, पर उन्हें लगता था कि वे शादी नहीं करेंगे. वे इस बारे में शबीना को समयसमय पर हिदायत भी देते रहते थे.

इसी तरह साल दर साल बीतने लगे. एक दिन रात के अंधेरे में उन दोनों ने अपना शहर छोड़ एक बड़े से महानगर में अपनी दुनिया बसा ली, जहां उस भीड़ में उन्हें कोई पहचानता तक नहीं था. वहीं पर दोनों एक एनजीओ में नौकरी करने लगे.

उन दोनों का घर छोड़ कर अचानक जाना किसी को अचरज भरा नहीं लगा, क्योंकि सालों से लोगों को उन्हें एकसाथ देखने की आदत सी पड़ गई थी. पर अम्मी को शबीना का इस तरह जाना बहुत खला. वे काफी बीमार रहने लगीं. जोया आपा का भी निकाह हो गया था.

इधर शबीना अपनी दुनिया में बहुत खुश थी. समय पंख लगा कर उड़ने लगा था. एक दिन पता चला कि उस की अम्मी को कैंसर हो गया और सब लोगों ने यह कह कर इलाज टाल दिया था कि इस उम्र में इतना पैसा इलाज में क्यों बरबाद करें.

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शबीना को जब इस बात का पता चला, तो उस ने नीरज से बात की.

नीरज ने कहा, ‘‘तुम अम्मी को अपने पास ही बुला लो. हम मिल कर उन का इलाज कराएंगे.’’

शबीना अम्मी को इलाज कराने अपने घर ले आई. अम्मी जब उन के घर आईं, तो उन का प्यारा सा संसार देख कर बहुत खुश हुईं.

नीरज ने बड़ी मेहनत कर पैसा जुटाया और उन का इलाज कराया और वे धीरेधीरे ठीक होने लगीं. अब तो उन की बीमारी भी धीरेधीरे खत्म हो गई. मगर अम्मी को बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती. नीरज उन की परेशानी को समझ गया.

एक दिन शाम को अम्मी शबीना के साथ बैठी थीं, तभी नीरज भी पास आ कर बैठ गया और बोला, ‘‘अम्मी, जिंदगी में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं है, पर रिश्तों में ज्यादा जिंदगी होना जरूरी है. अम्मी, जब बनाने वाले ने कोई फर्क नहीं रखा, तो हम कौन होते हैं फर्क रखने वाले.

‘‘अम्मी, मेरी तो मां भी नहीं हैं, मगर आप से मिल कर वह कमी भी पूरी हो गई.’’

अम्मी ने प्यार से नीरज को गले लगा लिया, तभी नीरज बोला, ‘‘आज एक और खुशखबरी है, आप जल्दी ही नानी बनने वाली हैं.’’

अब अम्मी बहुत खुश थीं. वे अकसर शबीना के घर आती रहतीं. समय के साथ ही शबीना ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम शबीना ने हरिनूर रखा.

शबीना ने यह नाम दे कर उसे हिंदूमुसलमान के झंझावातों से बरी कर दिया था.

Valentine’s Special- हरिनूर: भाग 1

‘‘अरे, इस बैड नंबर8 का मरीज कहां गया? मैं तो इस लड़के से तंग आ गई हूं. जब भी मैं ड्यूटी पर आती हूं, कभी बैड पर नहीं मिलता,’’ नर्स जूली काफी गुस्से में बोलीं.

‘‘आंटी, मैं अभी ढूंढ़ कर लाती हूं,’’ एक प्यारी सी आवाज ने नर्स जूली का सारा गुस्सा ठंडा कर दिया. जब उन्होंने पीछे की तरफ मुड़ कर देखा, तो बैड नंबर 10 के मरीज की बेटी शबीना खड़ी थी.

शबीना ने बाहर आ कर देखा, फिर पूरा अस्पताल छान मारा, पर उसे वह कहीं दिखाई नहीं दिया और थकहार कर वापस जा ही रही थी कि उस की नजर बगल की कैंटीन पर गई, तो देखा कि वे जनाब तो वहां आराम फरमा रहे थे और गरमागरम समोसे खा रहे थे.

शबीना उस के पास गई और धीरे से बोली, ‘‘आप को नर्स बुला रही हैं.’’

उस ने पीछे घूम कर देखा. सफेद कुरतासलवार, नीला दुपट्टा लिए सांवली, मगर तीखे नैननक्श वाली लड़की खड़ी हुई थी. उस ने अपने बालों की लंबी चोटी बनाई हुई थी. माथे पर बिंदी, आंखों में भरापूरा काजल, हाथों में रंगबिरंगी चूडि़यों की खनखन.

वह बड़े ही शायराना अंदाज में बोला, ‘‘अरे छोडि़ए ये नर्सवर्स की बातें. आप को देख कर तो मेरे जेहन में बस यही खयाल आया है… माशाअल्लाह…’’

‘‘आप भी न…’’ कहते हुए शबीना वहां से शरमा कर भाग आई और सीधे बाथरूम में जा कर आईने के सामने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया. फिर हाथों को मलते हुए अपने चेहरे को साफ किया और बालों को करीने से संवारते हुए बाहर आ गई.

तब तक वह मरीज, जिस का नाम नीरज था, भी वापस आ चुका था. शबीना घबरा कर दूसरी तरफ मुंह कर के बैठ गई.

नीरज ने देखा कि शबीना किसी भी तरह की बात करने को तैयार नहीं है, तो उस ने सोचा कि क्यों न पहले उस की मम्मी से बात की जाए.

शबीना की मां को टायफायड हुआ था, जिस से उन्हें अस्पताल में भरती होना पड़ा था. नीरज को बुखार था, पर काफी दिनों से न उतरने के चलते उस की मां ने उसे दाखिल करा दिया था.

नीरज की शबीना की अम्मी से काफी पटती थी. परसों ही दोनों को अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी, पर तब तक नीरज और शबीना अच्छे दोस्त बन चुके थे.

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शबीना 10वीं जमात की छात्रा थी और नीरज 11वीं जमात में पढ़ता था. दोनों के स्कूल भी आमनेसामने थे. वैसे भी फतेहपुर एक छोटी सी जगह है, जहां कोई भी आसानी से एकदूसरे के बारे में पता लगा सकता है. सो, नीरज ने शबीना का पता लगा ही लिया.

एक दिन स्कूल से बाहर आते समय दोनों की मुलाकात हो गई. दोनों ही एकदूसरे को देख कर खुश हुए. उन की दोस्ती और गहरी होती गई.

इसी बीच शबीना कभीकभार नीरज के घर भी जाने लगी, पर वह नीरज को अपने घर कभी नहीं ले गई.

ऐसे ही 2 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. अब यह दोस्ती इश्क में बदल कर रफ्तारफ्ता परवान चढ़ने लगी.

एक दिन जब शबीना कालेज से घर में दाखिल हुई, तो उसे देखते ही अम्मी चिल्लाते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हें बताया था न कि तुम्हें देखने के लिए कुछ लोग आ रहे हैं, पर तुम ने वही किया जो 2 साल से कर रही हो. तुम्हारी जोया आपा ठीक ही कह रही थीं कि तुम एक लड़के के साथ मुंह उठाए घूमती रहती हो.’’

‘‘अम्मी, आप मेरी बात तो सुनो… वह लड़का बहुत अच्छा है. मुझ से बहुत प्यार करता है. एक बार मिलकर तो देखो. वैसे, तुम उस से मिल भी चुकी हो,’’ शबीना एक ही सांस में सबकुछ कह गई.

‘‘वैसे अम्मी, अब्बू कौन होते हैं हमारी निजी जिंदगी का फैसला करने वाले? कभी दुखतकलीफ में तुम्हारी खैर पूछने आए, जो आज इस पर उंगली उठाएंगे? हम मरें या जीएं, उन्हें कोई फर्क पड़ता है क्या?

‘‘शायद आप भूल गई हो, पर मेरे जेहन में वह सबकुछ आज भी है, जब अब्बू नई अम्मी ले कर आए थे. ब नई अम्मी ने अब्बू के सामने ही कैसे हमें जलील किया था.

‘‘इतना ही नहीं, हम सभी को घर से बेदखल भी कर दिया था.’’ तभी जोया आपा घर में आईं.

‘‘अरे जोया, तुम ही इस को समझाओ. मैं तुम दोनों के लिए जल्दी से चाय बना कर लाती हूं,’’ ऐसा कहते हुए अम्मी रसोईघर में चली गईं.

रसोईघर क्या था… एक बड़े से कमरे को बीच से टाट का परदा लगा कर एक तरफ बना लिया गया था, तो दूसरी तरफ एक पुराना सा डबल बैड, टूटी अलमारी और अम्मी की शादी का एक पुराना बक्सा रखा था, जिस में अम्मी के कपड़े कम, यादें ज्यादा बंद थीं. मगर सबकुछ रखा बड़े करीने से था.

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तभी अम्मी चाय और बिसकुट ले कर आईं और सब चाय का मजालेने लगे.

शबीना यादों की गहराइयों में खो गई… वह मुश्किल से 6-7 साल की थी, जब अब्बू नई अम्मी ले कर आए थे. वह अपनी बड़ी सी हवेली के बगीचे में खेल रही थी. तभी नई अम्मी घर में दाखिल हुईं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है. उस की अम्मी हर वक्त रोती क्यों रहती हैं?

सबसे बड़ा सुख: भाग 2

‘‘हम दोनों ने सोचा है कि तुम्हें ‘वृद्ध आश्रम’ में भेज दें. वहां तुम्हारी देखभाल भी हो जाएगी और मन भी लग जाएगा. तुम्हारी सुखसुविधा का सभी प्रबंध हम कर देंगे. पैसे की कोई चिंता नहीं है. वैसे सबकुछ तुम्हारा ही है,’’ फिर खिसियानी हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘हम दोनों तो देखरेख के लिए तुम्हारे मैनेजर हैं.’’

वे अवाक पागलों के समान बेटे का मुंह ताकती रहीं. थोड़ी देर के लिए उन्हें लगा कि शरीर का खून  किसी ने खींच लिया है, पर जल्द ही उन का स्वाभिमान जाग उठा. उन्होंने गरदन उठा कर कहा, ‘‘ठीक है बेटा, तुम दोनों ने ठीक ही सोचा होगा. वैसे भी इस घर को मेरी कोई आवश्यकता नहीं रह गई है.’’ अपमान से दुखी पलकों के ऊपर विवशता के जल की बूंदें टपक पड़ीं.

थोड़ी देर बाद ब्रजेश बोला, ‘‘इसी शहर में यह आश्रम खुला है. यहां सुखसुविधा का सब इंतजाम है. बड़ेबड़े लोग इसे मन लगाने का स्थान समझ कर रह रहे हैं. वैसे भी, जब तुम्हारा मन न लगे तो घर तो है ही, वापस चली आना.’’

पोते के चलते समय के शब्द उन्हें याद आने लगे. उस ने कैसे विश्वास से कहा था, ‘दादी, आज मातापिता मुझे घर से निकाल कर होस्टल भेज रहे हैं, किसी दिन ये तुम्हें भी घर से निकाल देंगे.’ पोते की भविष्यवाणी सचमुच सत्य साबित हो गई थी. उन्होंने अभिमान से गरदन उठा कर कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. तुम ने सभी इंतजाम पहले से कर लिया होगा. वैसे भी, यहां रुकने की तुक नहीं है. मैं भी चाहती हूं कि अपनी जिम्मेदारी से तुम दोनों को मुक्त कर दूं.’’

ब्रजेश मां से आंखें न मिला सका. चलतेचलते बोला, ‘‘इतनी जल्दी भी क्या है. 2-4 दिनों बाद चली जाना.’’

कमला ने कहा, ‘‘मैं 2 घंटे बाद चली जाऊंगी, ड्राइवर को स्थान बता देना.’’

लगभग 60 सालों तक सुख की शय्या पर सोई उन की काया ने कांटों की चुभन का अनुभव नहीं किया था. जीवन के 2 पहलू भी होते हैं, यह अब उन्होंने जाना. अपने खून से सींची औलाद भी पराई हो सकती है, यह भी आज ही उन्हें पता चला. उन के अंतर्मन से आवाज आई, ‘मैं तो तन से स्वस्थ तथा धन से परिपूर्ण होते हुए भी इतनी सी चोट से घबरा उठी हूं, पर उन वृद्धों की मनोस्थिति क्या होती होगी, जो तन, मन तथा धन तीनों से वंचित हैं.’ अब उन्हें अपना दुख नगण्य लगा. एक अदम्य उत्साह तथा विश्वास से उन्होंने अपना पथ चुन लिया था. चैकबुक और अपना जरूरी सामान उन्होंने सूटकेस में रख लिया और बिना बेटाबहू की तरफ देखे गाड़ी में बैठ गईं.

वृद्धाश्रम शहर से दूर एकांत स्थान पर था. चारों तरफ हरियाली से घिरा वह भवन मन को शांति देने वाला था. अंदर जा कर उन्होंने देखा कि जीवन की सभी आवश्यकताओं का सामान वहां उपलब्ध है. जिस ने भी उसे बनवाया था, बहुत सोचविचार कर ही बनवाया था. चूंकि अभी वह नया ही बना था, इसी कारण 10-12 ही स्त्रीपुरुष वहां थे. सभी वृद्धों के चेहरों पर अपने अतीत की छाया मंडरा रही थी.

कमला ने मुसकराते हुए सब से अभिवादन किया. उन्हें प्रफुल्लित तथा मुसकराते देख सभी चकित रह गए. सभी वृद्ध समृद्ध परिवारों के सदस्य थे. पैसे की उन के पास कमी न थी, पर अपमान की वेदना सहतेसहते वे टूट चुके थे.

कमला उन के पास बैठ कर बोलीं, ‘‘देखिए, अगर मैं कुछ कहूं और उस से आप को पीड़ा पहुंचे तो इस के लिए मैं क्षमा चाहती हूं. मैं इसी शहर के सफल व्यवसायी प्रताप सिंह की पत्नी कमला हूं. 8 साल पहले मेरे पति की मृत्यु हो चुकी है. मैं अपने बेटे ब्रजेश के साथ रहती हूं. आप सब के समान मुझे भी घर का फालतू प्राणी समझ कर यहां भेज दिया गया है.

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‘‘थोड़ी देर के लिए मैं भी बहुत मायूस हो गई थी पर जब मैं ने सोचा कि मेरे पास तो धन और स्वास्थ्य दोनों ही हैं, पर उन वृद्धों की मनोस्थिति क्या होती होगी जो तन, मन तथा धन तीनों से वंचित होंगे, तो यह महसूस करते ही मुझ में एक अदम्य उत्साह जागृत हो गया. फिर मुझे यह अपमान, अपमान न लग कर वरदान लगा. हम सब को प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए कि कुछ तो हमारे पास है, जिस का उपयोग हम कर सकते हैं.

‘‘हमें यह नहीं दिखना है कि हम टूट चुके हैं. जीवन में यही समय है जब हम खाली हैं और कुछ सत्कार्य करने में सक्षम हैं. आप सब के पास दौलत की कमी नहीं है. यह सभी दौलत आप ने अपने पुरुषार्थ से संचित की है. इसे उपयोग में लाने का आप को पूरा हक है. अपने बच्चों के लिए तो सभी करते हैं पर किसी ने जीवन के अंतिम पड़ाव पर खड़े उन वृद्धों के बारे में सोचा है, जो तिलतिल कर मर रहे हैं? चूंकि उन के पास पैसा नहीं है, इस कारण उन की जिंदगी कुत्तों से बदतर हो गई है. अपना ही खून सफेद हो गया है. क्या हम उन के लिए कुछ नहीं कर सकते?

‘‘अगर हम ने एक दुखी को अंत समय शांति तथा सुख दिया तो इस से बड़ा नेक कार्य और क्या हो सकता है. देने से बढ़ कर और कोई सुख नहीं है. मैं ने अपने बेटे को इस योग्य बना दिया है कि वह स्वयं कमा सकता है. मैं अपनी समस्त संपत्ति उन वृद्धों पर खर्च करूंगी जो इस वृद्ध आश्रम में पैसे के कारण नहीं आ सकते. हम उन से वही कार्य करवाएंगे, जिन में उन की रुचि होगी, ताकि वे अपने को दूसरों पर आश्रित समझ कर हीनभावना से ग्रसित न होने पाएं. हम अपने पैसे से दुत्कारे हुए वृद्धों को नवजीवन दे सकें तो इस से क्या सब को संतोष तथा प्रसन्नता नहीं होगी?’’

उन वृद्धों के पोपले मुखों पर संतुष्टि की एक स्मित रेखा सी खिंच गई. पूरा हौल तालियों से गूंज उठा. अब तक खाली बैठेबैठे उन की आंखों के आगे अतीत चलचित्र की भांति कौंध जाता था जब उन्हें पालतू प्राणी समझ कर उन की उपेक्षा की जाती थी. पर अब उन्हें अपने अस्तित्व की शक्ति का भान हुआ था. सभी बारीबारी से बोल उठे कि हमारी बड़ीबड़ी कोठियां हैं, उन्हें हम वृद्धों का निवासस्थान बना देंगे. वहां ऊंचनीच व जातपांत का भेदभाव नहीं रहेगा.

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