सोनी खातून : इम्तियाज से बनाएं नाजायज संबंध

रात के 2 बजे थे. अचानक सोनी खातून की बेटी शबनम, जो महज 7 साल की थी, की आंख खुली, तो उस ने देखा कि एक कंबल ऊंचा उठा हुआ था और उस में से तरहतरह की आवाजें आ रही थीं.

शबनम ने जब वह कंबल हटाया, तो देखा कि अंदर उस की मां और दूर का मामा इम्तियाज बिना कपड़ों के पड़े थे.

शबनम ने पूछा, ‘‘मां, तुम कपड़े उतार कर इम्तियाज मामा के साथ क्या कर रही हो?’’

सोनी खातून ने शबनम को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, तेरे मामा के सीने में दर्द हो रहा था, तो मैं मालिश कर रही थी.’’

अगले दिन शबनम ने अपने अब्बा ताहिर को इस घटना के बारे में फोन कर के बता दिया.

ताहिर ने घर आ कर जब सोनी से इस बारे में पूछा, तो उस ने बात को टालते हुए कहा, ‘‘शबनम ने कोई बुरा सपना देखा होगा, इसलिए वह ऐसा बोल रही है.’’

सोनी खातून की यह बात सुन कर ताहिर आगबबूला हो गया और गुस्से में उसे उलटासीधा बोलने लगा, तो सोनी खातून भी गुस्से में आ गई और बोली, ‘‘ठीक है, मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना. मैं इम्तियाज के साथ जा रही हूं.’’

सोनी खातून की यह बात सुन कर ताहिर डर गया. वह अपनी बीवी को बहुत प्यार करता था. उस ने उसे सम?ाते हुए कहा, ‘‘ठीक है, तुम मुझे छोड़ कर मत जाओ. तुम्हारा जो दिल करे, वह करो, पर मुझे और मेरे बच्चों को छोड़ कर मत जाना.’’

अब सोनी खातून को हरी झंडी मिल चुकी थी और वह अपनी मरजी से घर में इम्तियाज के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगी.

यह कहानी बिहार के इसलामनगर के नवादा शहर की है, जहां ताहिर अपनी बीवी सोनी खातून और 3 बच्चों के साथ एक किराए के मकान में रहता था.

ताहिर एक ट्रक ड्राइवर था, जो ज्यादातर घर से दूर कोलकाता में रहता था.

सोनी खातून देखने मे बड़ी खूबसूरत और गदराए बदन की औरत थी. उस का खूबसूरत बदन ऐसा था कि जो भी उसे देख ले, बस देखता ही रह जाए.

ताहिर काम के सिलसिले में ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था. यही वजह थी कि सोनी खातून की जवानी मर्द का प्यार पाने के लिए बेचैन रहती थी.

एक दिन सोनी खातून की मुलाकात इम्तियाज से हुई. इम्तियाज ने उस के खूबसूरत बदन की जम कर तारीफ की. अपनी तारीफ सुन कर सोनी खातून उस की तरफ खिंचने लगी. धीरेधीरे उन दोनों में बातचीत होने लगी और यह बातचीत कब प्यार में बदल गई, उन दोनों को पता ही नहीं चला.

इम्तियाज अब ताहिर के घर में सोनी खातून का मुंहबोला भाई बन कर आनेजाने लगा. बच्चे उसे ‘मामा’ कह कर पुकारने लगे.

ठंड का महीना था. इम्तियाज सोनी खातून के घर पर आया हुआ था. हलकीहलकी बारिश हो रही थी. काफी रात होने के बाद भी बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी. सोनी खातून ने कमरे में ही इम्तियाज का बिस्तर लगा दिया.

इम्तियाज अपने बिस्तर पर लेट गया, पर उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह तो सोनी खातून को पाने की लालसा में उस के घर रुका था.

सोनी खातून का भी हाल कुछ ऐसा ही था. ठंड के महीने में उसे पति की गैरमौजूदगी सता रही थी. उस का बदन आज किसी मर्द का प्यार पाने के लिए कुछ ज्यादा ही बेताब हो रहा था.

सोनी खातून ने इम्तियाज की तरफ नजर डाली, तो देखा कि वह भी बिस्तर पर करवट बदल रहा था. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी.

थोड़ी देर में इम्तियाज उठ कर बैठ गया और ठंड के मारे कांपने लगा, तो सोनी खातून भी उठ गई और इम्तियाज के पास जा कर बोली, ‘‘क्या बात है, आप अभी तक सोए क्यों नहीं?’’

इम्तियाज ने उस की ओर आह भरते हुए कहा, ‘‘अकेले नींद नहीं आ रही और ठंड भी काफी हो रही है.’’

सोनी ने कहा, ‘‘तो मैं ठंड दूर कर दूं आप की?’’

इम्तियाज ने कहा, ‘‘मेरी ऐसी किस्मत कहां, जो आप जैसी खूबसूरत हसीना मेरी ठंड दूर करेगी.’’

सोनी खातून ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, ‘‘आप सेवा का मौका तो दो, मैं हाजिर हूं.’’

सोनी के मुंह से यह बात सुनते ही इम्तियाज ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया और उस के बदन पर चुम्मों की बौछार शुरू कर दी.

इम्तियाज की छुअन पाते ही सोनी खातून का बदन कामुक हो उठा. वह भी जल्द ही इम्तियाज को चूमनेचाटने लगी और फिर उस की सिसकियों की आवाज से पूरा कमरा गूंज उठा.

सोनी खातून को इम्तियाज के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाते हुए आज एक अलग ही मजा आया था. यही वजह थी कि वह पूरी तरह से इम्तियाज की दीवानी बन गई.

अब तो उन का यह रोज का काम हो गया था. ताहिर की गैरमौजूदगी में इम्तियाज सोनी खातून के घर आ जाता और दोनों मिल कर खूब मजे करते और एकदूसरे की जिस्मानी प्यास बु?ाते.

अपनी मां को खुलेआम रंगरलियां मनाते देख उस की बेटी शबनम को बहुत गुस्सा आने लगा. वह इम्तियाज को घर आने से मना करने लगी, तो सोनी खातून उसे खूब मारतीपीटती.

एक दिन शबनम अपनी मां से बोली, ‘‘तुम चाहे मुझे जान से मार दो, पर इम्तियाज मामा को मैं घर में नहीं घुसने दूंगी और न ही तुम्हें यह गंदा काम करने दूंगी. अगर अब वे दोबारा यहां आए, तो मैं सब को बता दूंगी कि तुम इम्तियाज मामा के साथ क्याक्या करती हो.’’

शबनम की इस चेतावनी से सोनी खातून परेशान हो उठी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी देह की आग को कैसे ठंडा करे. बाद में उस ने सोचा कि अगर वह अपनी बेटी को रास्ते से हटाती भी है, तो उसे पुलिस पकड़ लेगी और जेल जाना पड़ेगा.

आखिरकार सोनी खातून ने घर से भागने का फैसला कर लिया. घर में रखे जेवर और पैसे ले कर इम्तियाज के साथ अपने पति और बच्चों को छोड़ कर चली गई.

शबनम ने अपनी मां के गायब होने की खबर जब अपने अब्बा ताहिर को दी, तो वह घबरा गया. उस ने फौरन पुलिस स्टेशन जा कर इम्तियाज पर अपनी बीवी को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप लगाया और पुलिस से उसे ढूंढ़ कर लाने की गुजारिश की.

पुलिस ने सोनी खातून को ढूंढ़ने की जांच शुरू कर दी. काफी जद्दोजेहद के बाद पुलिस ने आखिरकार इम्तियाज और सोनी खातून को ढूंढ़ निकाला.

ताहिर को पुलिस स्टेशन बुलाया गया और उस के सामने ही लगाए गए आरोप के बारे में सोनी खातून से पूछा गया, तो उस ने वहां मौजूद सब लोगों के सामने एक हैरान कर देना वाला बयान दिया, जिसे सुन कर पुलिस भी खामोश हो गई.

सोनी खातून बोली, ‘‘मैं एक औरत हूं. मेरी भी कुछ ख्वाहिशें हैं, जो एक मर्द ही पूरी कर सकता है. ताहिर तो कईकई महीने बाहर रहता है और जब घर भी आता है, तो मुझे वह जिस्मानी सुख नहीं दे पाता, जिस की मुझे जरूरत है.’’

सोनी खातून के मुंह से यह बात सुन कर ताहिर का सिर शर्म से झक गया. उस के पास अपनी बीवी के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था.

पुलिस हैरान थी कि अब सोनी खातून और इम्तियाज का क्या किया जाए. ताहिर ने जो इलजाम इम्तियाज पर लगाया था कि वह उस की बीवी को बहलाफुसला कर ले गया है, वह तो गलत निकला, क्योंकि अपने बदन की हवस और जिस्मानी जरूरत पूरी करने के लिए सोनी खातून खुद इम्तियाज के साथ गई थी.

पुलिस ने सोनी खातून और इम्तियाज को छोड़ दिया और ताहिर से कहा कि जब वह अपनी बीवी की जरूरत पूरी नहीं कर सकता और वह उस के साथ नहीं रहना चाहती, तो इस में पुलिस कुछ नहीं कर सकती.

कुछ ही दिनों में सोनी खातून ने ताहिर से अपना रिश्ता तोड़ लिया और इम्तियाज के साथ रहने लगी. ताहिर ने भी कुछ महीने बाद दूसरी शादी कर ली और अपने बच्चों के लिए एक नई मां ले आया. ताहिर और उस के बच्चे भी अब खुश थे.

लूणी घी : हुस्न के चक्कर में बनें घनचक्कर

सुबह के काम से फारिग हो कर सुरेश खिड़की पर खड़ा सब्जी वाले का इंतजार कर रहा था. वह हाथ में मोबाइल पर रील्स देखने में बिजी था कि अचानक ‘लूणी घी चाहिए, लूणी…’ की आवाज ने उसे बाहर देखने को मजबूर कर दिया. खिड़की के बाहर राजस्थानी कुरतेघाघरे में सजी, सिर पर मटकियां रखे 2 अनजान लड़कियां खड़ी पुकार लगा रही थीं.

‘‘क्या है?’’ सुरेश ने बेहद रुखाई से पूछा, लेकिन उन लड़कियों के ठेठ राजस्थानी लहजे में बोले गए शब्द उस के पल्ले नहीं पड़े थे.

‘लूणी चाहिए, लूणी घी. खारा वाला घी लूणी,’ कहते हुए वे दोनों खिड़की के और निकट सरक आईं.

‘‘नहीं चाहिए,’’ कह कर सुरेश ने उन की ओर से पीठ मोड़ ली और फिर अपने मोबाइल में ध्यान लगाना चाहा, पर वे कहां पिंड छोड़ने वाली थीं. उन की आपस में कुछ अपनी भाषा में बात करने की आवाज कानों में आती रही.

‘‘ऐ साहब, सुनो. जरा यह बता दो कि यह मोबाइल नंबर सही है क्या?’’

सुरेश ने बेरुखी से पूछा, ‘‘अब क्या चाहती हो?’’

जवाब में उन में से एक लड़की ने कुरते की जेब से एक परची निकाल कर सुरेश की ओर बढ़ा दी.

‘‘क्या करूं इस का?’’ सुरेश ने पूछा.

उसी पहली वाली लड़की ने जवाब दिया, ‘‘जरा अपने मोबाइल से बात करा दो. यह नंबर एक सरदारजी ने दिया है. साहब, हम तो यहां बिलकुल नएनए आए हैं. वे लूणी घी चाहते हैं और कहा था कि इस नंबर पर फोन कर देना, तो स्कूटर पर वे खुद लेने आ जाएंगे.’’

काफी कोशिश करने पर बड़ी मुश्किल से सुरेश उन की बात कुछकुछ समझ पा रहा था. उन दोनों में बड़ी कशिश थी. उन्होंने ओढ़नी ओढ़ी हुई थी, पर उन के ब्लाउज बेहद छोटे थे. उन्हें भी उन्होंने पीछे से ढीला छोड़ा हुआ था. उन के उभार बाहर निकल रहे थे.

सुरेश देखने से अपने को रोक नहीं सका. अपने मोबाइल से नंबर मिलाया, तो जवाब आया, ‘दिस नंबर डज नौट एग्जिस्ट.’

सुरेश ने परची उस के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘‘नंबर गलत है.’’

वह लड़की अनजान बनते हुए बोली, ‘‘एक सरदारजी ने पिछली बार लूणी घी लिया था. कहा था कि जब भी आऊं उन्हें दे जाऊं. ठीक है न, वह तो पूरा घी मांग रहे थे, पर कह रहे थे कि पैसे वे पेटीएम से भेजेंगे. हम यह तरीका नहीं समझाते न साहब.’’

उन के भोलेपन पर हैरान होते हुए अब तक सुरेश को भी यह जानने की उत्सुकता होने लगी थी कि आखिर यह लूणी घी क्या बला है.

दरवाजा खोल कर सुरेश बाहर निकल आया, ‘‘देखूं, क्या है तुम्हारे पास.’’

मटकियां नीचे उतार कर वे दोनों घाघरे को घुटने के ऊपर कर के बैठ गईं, ‘‘लूणी घी है हमारे पास. लो देखो, ठेठ बीकानेर म्हारा घर है.’’

फिर उन्होंने खूब चहकचहक कर अपनी भाषा में सुरेश को सम?ाया कि  वे बड़ी दूर बीकानेर की रहने वाली

हैं. काफिले के साथ वे निकली थीं. चलतेचलते यहां बिहार तक आ पहुंची हैं. नदी पार उन की गाडि़यां, भैंसें और मर्द हैं. पर अब वे घूमतेघूमते थक चुकी हैं. उन का घी बिक जाए, तो वे लौट जाएंगी.

एक लड़की की आंखों में मोटेमोटे आंसू छलछला आए, ‘‘साहब, यह घी नहीं लोगे, तो यह घी बेकार जाएगा. हम तो सरदारजी के लिए ही लाए थे.’’

उन की भोलीभाली सूरतें, गांव की पोशाक और सैक्सी बोली, बारबार गिरती ओढ़नी से सुरेश का मन ललचा उठा.

‘‘लाओ, एक डब्बा दे दो. कितने का है?’’ कह कर सुरेश पैसे लेने अंदर जाने लगा व साथ में रुपए भी लेता आया, ताकि जल्द से जल्द इन से पीछा छुड़ा कर दरवाजा बंद करे. आजकल अकेले घर में किसी भी अनजान को घुसाना कोई अक्लमंदी नहीं है.

सुरेश लौटा तो वे अपने सारे के सारे डब्बे थैले से निकाल चुकी थीं. एक बोली, ‘‘बस, कोई 5 किलो है. सारा ले लो साहब. हम भी लौट जाएंगी अपने काफिले के पास.’’

‘‘नहीं, इतना घी ले कर मैं क्या करूंगा. कहीं और बेच लेना.’’

पर वे जिद करती रहीं. सुरेश को एका एक अपने दोस्त रोहन का ध्यान आया. क्यों न उसे बुला ले. वह राजस्थानका रहने वाला है. इन की भाषा भी समझ लेगा और इन्हें समझबुझ कर इन की समस्या भी शायद सुलझ दे.

सुरेश को लालच था कि कुछ देर वे ऐसे ही बैठी रहें. उन की खुली टांगें न्योता दे रही थीं.

‘‘रोहन आ जा. अच्छा माल घर आया है,’’ सुरेश ने फोन किया.

रोहन ने आते ही उन लड़कियों को ताड़ा, फिर राजस्थानी भाषा में पूछा कि वे कहां की रहने वाली हैं. अपनी भाषा सुनते ही वे दोनों ऐसी खिल गईं, मानो उन्हें कोई अपना सगा मिल गया हो. हाथमुंह मटकामटका कर उन्होंने कुछ ऐसी बातें की कि रोहन को भी लगा कि ये लड़कियां आसानी से पट जाएंगी.

मटकी में से जरा सा घी निकाल कर अपने हाथ पर रख कर दोनों ने सुरेश और रोहन के मुंह के पास अपने हाथ कर दिए. ‘‘घी तो बिलकुल शुद्ध है. लूणी घी का मतलब ही शुद्ध मक्खन से निकला हुआ घी. देखो न इस का रंग. गाय का दूध पीला होता है न, इसी से यह पीला है. किसी को भी दोगे तो बढि़या लड्डू बनेंगे. सरदारजी ने 8 किलो घी खरीद लिया है, तो जरूर बढि़या होगा,’’ रोहन बोला.

सुरेश खुश था कि ये लड़कियां उन के इतने पास बैठी हैं. ये लड़कियां उसे सैक्सी लगीं, पर वे हमेशा अपने मर्दों से घिरी रहती थीं. उन के बदन से चमेली की सी खुशबू आ रही थी. सुरेश को तो नशा सा होने लगा था.

उन लड़कियों ने मटकी से साथ लाए प्लास्टिक के डब्बों में घी भरना शुरू कर दिया था.

एक लड़की कहने लगी, ‘‘साहब, यह डब्बा एक किलो का है.’’

रोहन कहने लगा कि यह डब्बा तो बहुत बड़ा है. इस में तो डेढ़ 2 किलो घी आ जाएगा, पर वे दोनों एक नहीं मानीं.

‘‘नहींनहीं साहब, हम को बेईमानी मत सिखाओ. हम अभी कुंआरी हैं. हमारे मांबाप ने कहा है कि भूखी मर जाना, पर कभी बेईमानी न करना. हम तो पूरा डब्बा ही भरेंगी.’’

अब तो सुरेश और रोहन उन दोनों की ईमानदारी और सचाई पर कुछ इस कदर फिदा हुए कि सारा घी तुलवाने की सोच बैठे कि 600 रुपए का घी 400 रुपए के भाव में मिल रहा है. यह भी किलो का सवा या डेढ़ किलो. आपस में बांट कर अगले महीने के लिए रख लेंगे, कोई बिगड़ने वाली चीज तो है नहीं.

सुरेश और रोहन ने उन के 5 किलो के डब्बे का घी तुलवा कर रुपए उन के हाथ पर धरे तो उन के खिले हुए चेहरों की चमक देखते ही बनती थी.

सुरेश और रोहन सोच रहे थे कि उन्हें और कैसे रोका जाए, तभी एक लड़की ने जब मटकी जो आधी से कम भरी थी, सिर पर रखी तो फूट गई. घी उस पर बह गया. ??

दूसरी लड़की ने कहा, ‘‘चल, जल्दी चल. डेरे पर जा कर नहाना पड़ेगा.’’

उन दोनों के भोलेपन पर तो सुरेश और रोहन रीझ ही चुके थे. सुरेश ने कहा, ‘‘अरे, ऐसे घी में तर हो कर कहां जाओगी? चलो, यहीं नहा लो. हम कमीज दूसरी दे देंगे. ब्लाउज को घर ले जाना.’’

दोनों लड़कियों ने एकदूसरे को देखा और बोली, ‘‘साहब, आप शरीफ आदमी हैं, इसलिए हम नहा लेते हैं, वरना आज के मर्दों का क्या भरोसा.’’

उस के बाद एक लड़की ने आराम से कोने में खड़े हो कर पीठ कर के ब्लाउज उतार कर निकाल कर रखा, फिर ओढ़नी रखी. लहंगा नहीं उतारा, पर जब गुसलखाने से बाहर फेंका, तो सुरेश और रोहन की हालत बुरी थी.

अब उन दोनों की नजर उस लड़की पर टिकी थी, तो दूसरी लड़की पीछे ही खड़ी थी. थोड़ी देर में नहा कर वापस आई. सुरेश की कमीज पहने वह मौडर्न और चुस्त ही नहीं और सैक्सी लग रही थी. उन्होंने अपना सामान उठाया और चल दीं.

उन में से एक लड़की कहती गई, ‘‘साहब, हमें फोन कर देना. हम आ जाएंगी. इस फोन में रिकौर्डिंग भी है न.’’

सुरेश और रोहन को समझ नहीं आया कि वह क्या कह रही हैं. वह तो बाद में पता चला कि जब वे दोनों नहाने वाली लड़की को देख रहे थे, उन्हीं के फोन से दूसरी लड़की वीडियो बना रही थी. उस ने पीछे से पर्स, लैपटौप, फोन चार्जर अपनी थैली में डाल लिया था. उन की हिम्मत यह थी कि वे सुरेश के फोन पर ही उसे फोन करने को कह गईं.

वे दोनों जानती थीं कि सुरेश पुलिस में तो जाएगा नहीं, क्योंकि अगर वे पकड़ी भी गईं तो कपड़े उतारते हुए वीडियो से सुरेश और रोहन पर उलटा केस बना डालेंगी. लूणी घी के चक्कर में सुरेश अकेला ही नहीं, रोहन भी बुरी तरह फंस गया था.

वह लूणी घी नहीं था, किसी तरह की ग्रीस थी, जो सुरेश और रोहन को फेंकनी पड़ी थी. वे लड़कियां दिनदहाड़े धोखा दे गई थीं. ?

राज : सायरा की खूबसूरती

उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर में एक गांव है चंदनवाला, जहां पर शादाब अपने अम्मीअब्बा और एक छोटे भाई के साथ रहता था. उन की हवेली काफी बड़ी थी. वहीं नजदीक ही शादाब के चाचा अनीस भी अपने परिवार के साथ रहते थे.

दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर में आनाजाना लगा रहता था. शादाब बिजनौर में मोबाइल फोन की दुकान चलाता था. उस की अच्छीखासी कमाई थी. एक दिन उस के लिए नंदपुर गांव की सायरा का रिश्ता आया.

सायरा गजब की खूबसूरत थी, जिसे देखते ही शादाब के अब्बा फुकरान ने उसे अपने घर की बहू बनाने का फैसला कर लिया.

कुछ ही दिनों में शादाब और सायरा का निकाह हो गया. शादी की पहली रात थी. शादाब ने जैसे ही सायरा का घूंघट उठाया, उस के मुंह से खुद ब खुद निकला, ‘‘आप गजब की खूबसूरत हैं.’’

शादाब के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर सायरा शरमा गई और अपने चेहरे को हथेलियों से छिपाने लगी.

शादाब ने बड़े प्यार से सायरा के नाजुक हाथों को उस के चेहरे से हटाया और कहा, ‘‘मेरा चांद हो तुम, जिसे आज जीभर कर देखने दो.’’

सायरा शादी के सुर्ख जोड़े में वाकई कयामत ढा रही थी. उस के सुनहरे बाल, गोरेगोरे गाल, सुर्ख होंठ और बड़ीबड़ी आंखें शादाब को पागल बना रही थीं.

फिर उन दोनों ने एकदूसरे के आगोश में जिस्म की प्यास बुझाई. सुहागरात की उस पहली रात में ही शादाब सायरा का दीवाना बन गया और तनमन से उसे चाहने लगा.

शादी के कई महीनों तक शादाब सायरा के पास अपने घर पर रुका और उसे हर वह खुशी दी, जो एक बीवी को चाहिए.

फिर सायरा पेट से हो गई. यह सुन कर शादाब की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने सायरा का पूरी तरह खयाल रखा, पर उसे अपनी दुकान पर भी जाना था, जो कई महीने से अपने नौकर के भरोसे  छोड़े हुए था.

एक दिन अब्बा ने शादाब से कहा, ‘‘बेटा, अब तू अपना काम देख. सायरा की देखभाल के लिए हम सब हैं न.’’

शादाब बिजनौर में अपनी दुकान पर चला गया. वह हर महीने घर आताजाता था, ताकि सायरा खुद को अकेला महसूस न करे.

आखिरकार वह दिन भी आ गया, जब सायरा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, जिसे पा कर पूरे घर में खुशी का माहौल छा गया.

7वें दिन शादाब ने अपनी बेटी का अकीका बड़ी धूमधाम से मनाया. पूरे गांव को दावत में बुलाया गया और तरहतरह के लजीज खाने का इंतजाम किया गया.

शादाब के अम्मीअब्बा तो पोती पा कर झूम उठे. वे पहली बार दादादादी बने थे, इसलिए उन्होंने सायरा का बहुत खयाल रखा और प्यार दिया. शादाब कुछ दिन गांव में रुक कर अपनी दुकान पर चला गया.

सायरा की बेटी अब 7 महीने की हो गई थी, जिस से पूरे घर में खुशियां ही खुशियां दिखाई देती थीं.

गरमी के दिन थे. रात के 10 बजे थे. सायरा घर में अकेली थी. गरमी के मारे उस का बुरा हाल था. उस के सासससुर छत पर सोए हुए थे, पर सायरा गरमी की वजह से सो नहीं पा रही थी. उस ने अपने कपड़े बदल कर हलकी और ?ानी नाइटी पहन ली, जिस में उस की उभरी हुई गोरीगोरी छाती साफ दिखाई दे रही थी.

सायरा ने गरमी से बचने के लिए अपने कमरे का दरवाजा खोल रखा था और वह आराम से अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी कि तभी उसे अपने बदन पर किसी के हाथ फेरने का अहसास हुआ, जो उस के नाजुक पेट से होते हुए उस की मुलायम छाती को सहला रहा था.

सायरा की आंख खुल गई, पर उसे उन हाथों से जो मजा आ रहा था, वह चाह कर भी कुछ न बोल सकी और यों ही आंखें बंद किए पड़ी रही.

थोड़ी देर के बाद उस ने हलकी सी आंख खोल कर देखा तो पाया कि उस का चचेरा देवर नदीम उस के नाजुक अंगों को सहला रहा था.

सायरा को मजा आ रहा था. उस ने यह जानने के लिए कि नदीम उस के साथ और क्या करेगा, आंखें बंद कर के सोने का नाटक जारी रखा.

नदीम सायरा के बदन को सहलाते हुए उस की उभरी हुई छाती को अपने मुंह में ले कर चूमने लगा, तो सायरा भी मदमस्त हो गई. उस ने नदीम को अपने ऊपर खींच लिया.

नदीम अब सायरा की रजामंदी समझ कर उस पर भूखे भेडि़ए की तरह झपट पड़ा. उस ने सायरा की गरदन पर चुम्मों की ऐसी बौछार कर दी कि वह झूम उठी.

थोड़ी देर बाद नदीम ने सायरा के बदन के एकएक नाजुक अंग को चूमना शुरू कर दिया. जोश में आई सायरा नदीम को अपने ऊपर खींचने लगी.

नदीम ने बिना समय गंवाए सायरा के नाजुक बदन को मसलना शुरू कर दिया. फिर काफी देर तक नदीम सायरा के बदन को रौंदता रहा. संतुष्ट होने के बाद भी वह सायरा को अपनी बांहों में जकड़े हुए एक तरफ निढाल हो कर लेट गया.

सायरा ने नदीम से जो जिस्मानी सुख आज हासिल किया था, वह उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई मर्द उसे इतनी खुशी भी दे सकता है.

सायरा और नदीम का एक बार जिस्मानी रिश्ता बना, तो अब थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. उन्हें जब भी मौका मिलता, वे एकदूसरे से अपने बदन की प्यास बुझाते. उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि जब शादाब को इस का पता चलेगा, तो क्या होगा. ऐसा हुआ भी. एक दिन शादाब ने दोनों को ऐसी हालत में पकड़ा कि वे अपना जुर्म न छिपा सके.

दरअसल, शादाब अपने घर आया हुआ था. घर के सभी लोग छत पर सोए हुए थे, नीचे बस सायरा अकेली सो रही थी. रात के तकरीबन 2 बजे नदीम नीचे आया और सायरा के कमरे में घुस गया.

सायरा नदीम को देख कर उस की बांहों से लिपट गई. दोनों ने बिना समय गंवाए अपने कपड़े उतारे और एकदूसरे को चूमने लगे.

उधर छत पर शादाब की नींद खुल गई. उसे गरमी की वजह से बहुत तेज प्यास लगी थी. वह पानी पीने के लिए नीचे आ गया.

शादाब अभी नल के पास पहुंचा ही था कि उसे अपने कमरे से सायरा की सिसकियों की आवाज सुनाई दी. उस ने कमरे के भीतर झांक कर देखा तो उस का खून खौल उठा.

नदीम और सायरा अपने जिस्म की भूख मिटा रहे थे. जैसे ही उन की नजर शादाब पर पड़ी, वे हड़बड़ा कर एकदूसरे से अलग हो गए. नदीम अपने कपड़े पहन कर वहां से निकल गया और सायरा अपने किए की माफी मांगने लगी, पर शादाब कुछ न बोला. उस के जिस्म का खून मानो जम चुका था. जिसे उस ने सच्चे दिल से इतना प्यार किया, उस ने उस के ही प्यार को धोखा दे दिया.

कुछ देर बाद शादाब वहां से उठा और चुपचाप जा कर छत पर लेट गया. सुबह होते ही वह बिजनौर के लिए रवाना होने लगा, तो उस के अब्बू बोले, ‘‘तू कल ही तो आया है, फिर इतनी जल्दी क्यों जा रहा है?’’

शादाब ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया और अपना रोता हुआ चेहरा उन लोगों से छिपाते हुए अपनी दुकान पर आ गया.

सायरा समझ गई थी कि शादाब को गहरा सदमा लगा है. वह घबरा रही थी कि पता नहीं, अब क्या होगा. उस ने शादाब को कई बार फोन किया, पर शादाब ने उस का फोन नहीं उठाया.

2 महीने ऐसे ही निकल गए, पर शादाब ने न तो सायरा से बात की और न अब अपने घर वापस आया.

3 महीने बाद जब सायरा ने अपने ससुर को बताया कि शादाब उस से बात नहीं कर रहा है और न घर ही आ रहा है, तो उन्हें बड़ी हैरानी हुई.

अगले दिन वे बिजनौर के लिए रवाना हो गए और शादाब से बोले, ‘‘बेटा, ऐसा कौन सा काम आ पड़ा, जो तुम घर पर भी नहीं आ रहे हो और बहू का फोन भी नहीं उठा रहे हो?’’

शादाब बोला, ‘‘मुझे अब सायरा से तलाक चाहिए. मैं उस के साथ अब नहीं रह सकता.’’

यह सुन कर शादाब के अब्बा दंग रह गए और बोले, ‘‘बेटा, सायरा इतनी अच्छी बहू है, सब से कितना प्यार करती है, सब की देखभाल करती है. ऐसी

क्या कमी है उस में, जो तुम ऐसा बोल रहे हो?’’

शादाब ने कहा, ‘‘बस, मुझे उस के साथ कोई रिश्ता नहीं रखना है. मैं उसे तलाक देना चाहता हूं.’’

शादाब के अब्बा गुस्सा करते हुए बोले, ‘‘लगता है, तुम ने किसी और औरत से रिश्ता बना लिया है, जो इतने महीनों से घर नहीं आए और इतनी प्यारी बीवी को छोड़ने की बात कर रहे हो.

‘‘यह बात ध्यान रखो कि मैं अपनी पोती के बिना नहीं रह सकता और मैं तुम्हें बहू को छोड़ने भी नहीं दूंगा. तुम जिस लड़की के लिए मेरी बहू को छोड़ने की सोच रहे हो, वह सिर्फ तुम्हारी दौलत के चक्कर में होगी.’’

शादाब ने कहा, ‘‘मैं बस सायरा के साथ नहीं रह सकता. जब तक वह वहां रहेगी, तब तक मैं घर नहीं आऊंगा.’’

शादाब के अब्बा ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, पर शादाब पर कोई असर नहीं हुआ. अब्बू ने उसे जायदाद से बेदखल करने की धमकी दी, पर वह टस से मस नहीं हुआ.

सायरा के अब्बू को जब शादाब की इस हरकत का पता चला, तो वे आगबबूला हो गए और गांव के कुछ जिम्मेदार लोगों को अपने साथ ले कर शादाब के घर आ गए और उन्हें बुराभला कहने लगे.

शादाब के अब्बू ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘हम तो यही चाहते हैं कि हमारी बहू हमारे साथ रहे, पर शादाब को पता नहीं किस औरत का भूत सवार है, जो वह सायरा को रखने के लिए तैयार ही नहीं.’’

सायरा के अब्बू बोले, ‘‘ठीक है, मैं अपनी बेटी को ले जा रहा हूं. तुम कल आ कर पंचायत में मिलना और शादाब को भी साथ लाना. जब फैसला करना है, तो शादाब का होना भी जरूरी है.’’

अगले दिन शादाब भी आ गया. उस के अब्बा शादाब को ले कर उस की सुसराल पहुंचे. वहां बैठे पंचों में से एक ने शादाब से पूछा, ‘‘तुम सायरा को क्यों छोड़ना चाहते हो?’’

शादाब बोला, ‘‘मुझे इस के साथ नहीं रहना. बस, मैं इसे तलाक देना चाहता हूं.’’

दूसरे पंच ने पूछा, ‘‘अगर तुम सायरा को छोड़ोगे, तो उस मासूम बच्ची का क्या होगा? वह किस के पास रहेगी? कौन उस की जिम्मेदारी उठाएगा?’’

शादाब बोला, ‘‘जिसे आप ठीक सम?ा, बच्ची उस के पास ही रहेगी.’’

तीसरे पंच ने कहा, ‘‘बच्ची को तो मां ही अच्छी तरह पाल सकती है.’’

शादाब बोला, ‘‘जैसी आप सब की मरजी.’’

यह सुनते ही शादाब के अब्बा रोने लगे और बोले, ‘‘क्यों किसी बाजारू औरत के चक्कर में अपना घर बरबाद कर रहा है और अपने खून को ही क्यों किसी को दे रहा है… कल को सायरा शादी करेगी तो बच्ची भी उस के साथ जाएगी. क्या तुझे अच्छा लगेगा कि हमारा खून किसी और के पास जाए?’’

शादाब कुछ न बोला. वह बस सायरा को तलाक देने पर अड़ा रहा. उस ने सायरा की कोई गलती भी नहीं बताई कि वह उसे क्यों छोड़ना चाहता है.

पहले वाले पंच ने शादाब से पूछा, ‘‘ठीक है, हम तुम दोनों का तलाक करा देते हैं, पर तुम सायरा की कोई ऐसी गलती तो बताओ, जो तुम उसे छोड़ना चाहते हो?’’

शादाब बोला, ‘‘वह मेरी बीवी है. मैं उस की बुराई नहीं कर सकता. बस, मैं उस के साथ रहना नहीं चाहता.’’

दूसरे पंच ने पूछा, ‘‘क्या तलाक होने के बाद तुम उस की गलती बताओगे?’’

शादाब ने कहा, ‘‘तलाक के बाद जब वह मेरी बीवी ही नहीं रहेगी, तो मुझे उस की गलती से क्या मतलब, जो मैं उस की बुराई करूं.’’

एक पंच ने कहा, ‘‘इस का मतलब तो यही है कि तुम ने सायरा की जिंदगी से खेला है. उस के साथ इतना समय गुजार कर उसे तनहा छोड़ दिया.

सारी गलती तुम्हारी है, इसलिए तुम्हें 12 लाख रुपए सायरा को देने पड़ेंगे, ताकि वह अपनी और अपनी बच्ची की जिंदगी सही ढंग से गुजार सके और उसे किसी के आगे हाथ न फैलाने पड़ें.’’

शादाब ने कहा, ‘‘मुझे मंजूर है.’’

अगले ही दिन शादाब ने 12 लाख रुपए अदा किए और सायरा से छुटकारा पा लिया. इस तरह वह सब की नजरों में तो बुरा बन गया, पर उस ने सायरा के राज को एक राज रखा कि किस तरह उस ने उस के प्यार को धोखा दे कर नदीम के साथ नाजायज रिश्ता रखा था.

बीवी एक तोहफा : शबनम का पति

शबनम और सीमा बचपन से ही साथ पढ़ी थीं. शबनम शुरू से ही सहमीसहमी सी रहती थी. वह किसी से भी ज्यादा बात नहीं करती थी. लेदे कर बस एक सीमा ही थी उस की खास सहेली, जिस से वह अपने सुखदुख की बातें कर लिया करती थी.

एक लड़का रोज शबनम का पीछा करता था और उसे छेड़ता था. शबनम को यह सब अच्छा नहीं लगता था. वह उसे बिलकुल पसंद नहीं करती थी.

एक दिन शबनम स्कूल नहीं आई. सीमा उस से मिलने उस की कोठी पर गई. शबनम गुमसुम बैठी थी और किसी बात पर रोए जा रही थी.

सीमा ने शबनम की बदहवासी की वजह पूछी, तो उस ने बताया, ‘‘बबलू नाम का एक लड़का मेरे बड़े अब्बू के बेटे राज का दोस्त है, जो मुझे हर समय परेशान करता है और राज भी उसे कुछ नहीं कहता है.

‘‘मेरे अब्बू बहुत तेज मिजाज के हैं. उन्हें भनक भी हुई तो वे मेरी तालीम रुकवा देंगे. मैं क्या करूं, कुछ सम?ा नहीं पा रही हूं. अब तू ही कोई बेहतर रास्ता सुझ.’’

सीमा ने उस से कहा, ‘‘कल हम दोनों साथ ही स्कूल चलेंगी.’’

अगले दिन हम एकसाथ स्कूल गईं. वह लड़का बबलू फिर शबनम के सामने आ गया और उस का हाथ पकड़ लिया.

सीमा ने शबनम को हिम्मत दिलाई और उस ने बबलू को एक जोरदार तमाचा जड़ दिया. उस दिन के बाद से बबलू दिखाई नहीं दिया.

समय गुजरा और एक दिन शबनम का निकाह राज से तय हो गया. शबनम तैयार न थी, फिर भी घर वालों के दबाव में उस ने यह निकाह कर लिया.

सुहागरात पर एक लड़की कितने ही सपने संजोती है, आखिर अरमान तो सब के दिल में मचलते हैं. सुहाग सेज पर आने वाली नई जिंदगी के सपनों में खोई शबनम राज का इंतजार कर रही थी. पूरे कमरे में अगरबत्ती की खुशबू में मिली मोगरे और गुलाब के फूलों की खुशबू मदहोश करने वाली थी.

बिस्तर के एक तरफ की टेबल पर बादाम, काजू जैसे मेवों से भरी प्लेट और साथ में एक गिलास दूध का रखा था और दूसरी तरफ की टेबल पर एक देशी ब्रांड की शराब की बोतल के साथ कांच के 2 गिलास थे.

शबनम मन ही मन सोचने लगी, ‘जब राज आएगा तो क्या वह दूध का गिलास आधाआधा कर के पीएगा या आजकल के लोग दूध के बजाय शराब के पैग टकराना पसंद करते हैं, तो क्या राज भी ऐसा करेगा? लेकिन अगर ऐसा हुआ तो मैं ने तो कभी पी ही नहीं, तब तो मुझे जल्दी ही नशा हो जाएगा.’

इतने में अचानक हुई आहट से शबनम चौंक गई. जैसे ही दरवाजा खुला उस के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, पलकें शर्म से झक गईं, चेहरे पर इश्क की रंगत की लाली झलकने लगी, सांसें भी तेजी से चलने लगीं, दिल की धड़कन इतनी तेज हो गई कि उसे ‘धकधक’ सुनाई देने लगी.

आज शबनम बला की खूबसूरत लग रही थी. सुर्ख लाल जोड़े में उस का गोरा बदन और भी निखर कर आ रहा था. खूबसूरत जड़ाऊ हार उस की सुराहीदार गरदन को निखार रहा था. माथे का टीका चांद से मुखड़े को चार चांद लगा रहा था. सीना तेज सांस की वजह से ऊपरनीचे ऐसे हो रहा था, मानो कोई 2 गेंद उछाल रहा हो. आज शबनम कयामत ढा रही थी.

जैसेजैसे कदमों की आहट नजदीक आ रही थी, वैसेवैसे शबनम का दिल भी उछल कर बाहर आने को बेताब हो रहा था. लेकिन उस ने खुद पर काबू रखा, अपने अरमानों को अपनी मुट्ठी में दबाए वह राज की छुअन का बेसब्री से इंतजार करने लगी. उस के अरमान मचलने लगे. मन चाहा कि राज जल्दी से आए और उसे अपनी मजबूत बांहों में कस कर बांध ले.

शबनम के होंठ राज के होंठों को अपना रस पिलाने के लिए तड़प उठे कि अचानक उस का घूंघट उठाने के लिए एक हाथ जैसे ही बढ़ा, तो शबनम हाथ के इशारे से रोकते हुए बोली, ‘‘हाय, पहले दरवाजा तो बंद कीजिए.’’

जैसे ही शबनम ने यह कहा, तो जवाब में वह एक अनजान आवाज से चौंकी. वह आवाज बबलू की थी.

बबलू अपने हाथ पर बंधे गजरे की खुशबू सूंघते हुए बोला, ‘‘जानेमन, दरवाजा बंद हो या खुला रहे क्या फर्क पड़ता है, बाहर पहरे पर आप का शौहर राज बैठा है न.’’

शबनम घबरा कर बिस्तर से छलांग लगा कर उठी और बाहर की तरफ भागने लगी, तो बबलू ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘जा कहां रही हो? इतने सालों से जो दिल में आग लगी है, उसे तो बु?ा दो, फिर चली जाना जहां जाना हो.’’

शबनम छटपटाते हुए राज को आवाज लगाने लगी. आवाज सुन कर राज अंदर आया और बोला, ‘‘क्यों शोर मचा रखा है… बबलू अपना यार ही तो है, कोई गैर थोड़े ही है. अपना मुंह बंद रखो और चुपचाप बबलू की बात मानो.

‘‘और हां, मैं कहीं काम से जा रहा हूं, सुबह तक आ जाऊंगा. आने पर कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए,’’ ऐसा कह कर राज बाहर जाते हुए दरवाजा बंद कर गया.

यह सुन कर शबनम की आंखों से केवल आंसू नहीं निकल रहे थे, बल्कि दर्द बह रहा था. क्या करे और क्या न करे, उसे कुछ समझ नहीं आया.

बबलू ने शबनम को अपनी बांहों में जकड़ लिया. शबनम जल बिन मछली की तरह तड़प कर रह गई. उस की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे और बबलू उस के जिस्म को भूखे भेडि़ए की तरह नोंचनेखसोटने लगा था.

अचानक राज घर पर वापस किसी काम से आया, तो जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, तो शबनम दौड़ कर राज के पास आ गई.

‘‘आप ने किस गुनाह की सजा दी है मुझे? मैं ने आप का क्या बिगाड़ा था, जो आप ने इतनी घिनौनी हरकत की? क्या कोई इस तरह सुहागरात पर अपनी बीवी के साथ ऐसा सुलूक करता है, जैसा आप कर रहे हैं?’’

‘‘अरे जानेमन, इस में इतना नाराज होने की क्या बात है? तुम्हें सुहागरात ही तो मनानी थी न, तो मैं या बबलू हो, क्या फर्क पड़ता है?

‘‘बबलू अपना जिगरी यार है. अगर उसे कोई चीज पसंद आए और उसे वह हासिल न करे, ऐसा आज तक हुआ नहीं, तो भला अब कैसे होता? और उस ने मुंहमांगी कीमत भी तो दी है… देख कितने रुपए हैं. तुम ने सारी जिंदगी इतने रुपयों की शक्ल नहीं देखी होगी…’’

ऐसा कहते हुए राज नोटों के बंडल उस के सामने रखते हुए आगे बोला, ‘‘अरे, अब मैं भी परिवार वाला हो गया हूं, भला मेरी तनख्वाह से परिवार कहां से पालूंगा? इसलिए कुछ इंतजाम तो करना था. मुझे यह रास्ता बहुत बढि़या लगा. इस में कमाई अच्छी है. बस, तुम साथ देती रहना.’’

यह सुन कर शबनम के रोंगटे खड़े हो गए कि राज क्या करने की सोच रहा है. हर रात उस के जिस्म का सौदा?

इधर राज को देख बबलू को भी गुस्सा आ गया, ‘‘राज, क्या यार तू इतनी जल्दी वापस आ गया. अभी तो मजा लेना शुरू भी नहीं किया. अभी तक तो देख हम दोनों ने कपड़े पहने हुए हैं.’’

‘‘यार बबलू, माफ कर दे. तेरा मजा खराब करने का मेरा कोई इरादा नहीं था. मैं रोज रात को दवा लेता हूं, तब मेरी रात कटती है. अगर मैं दवा न लेता तो सारी रात तड़पता रहता. मैं वही दवा लेना भूल गया था. बस, वही लेने आया हूं.’’

‘‘चलचल, अब जल्दी से अपनी दवा उठा और चलता बन. मुझ से अब और बरदाश्त नहीं हो रहा. मैं इस कली को मसलने के लिए कब से तड़प रहा हूं,’’ बबलू बोला.

राज जब बिस्तर की दराज में से दवा निकालने लगा, तो उस की नजर शराब की बोतल पर पड़ी, जो ज्यों की त्यों रखी थी.

‘‘यार बबलू, इस के 2 पैग लगा और इसे भी थोड़ी सी पिला दे, फिर देख कैसा मजा आएगा,’’ राज बोला.

‘‘हां यार, यह तो मैं ने देखी ही नहीं. जहां शबनम नाम की बोतल हो, वहां कोई दूसरी बोतल किसे नजर आएगी,’’ बबलू ने कहा, तो वे दोनों हंसने लगे.

राज दवा ले कर चला गया, तो बबलू ने 2 पैग बनाए.

इधर बबलू शराब के पैग बना रहा था, उधर शबनम के दिमाग में भी कुछ चल रहा था. वह सोच रही थी कि अगर आज ?ाक गई, तो राज रोज यही खेल खेलेगा उस के साथ. उसे इस जहन्नुम से निकलने के लिए कुछ न कुछ करना ही होगा.

बबलू ने 2 गिलास में शराब डाल कर एक गिलास शबनम की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आज तुम भी इस का स्वाद चख कर देखो. इस के अंदर जाते ही तुम्हें जन्नत का नजारा दिखने लगेगा.’’

जब बबलू शबनम के साथ जबरदस्ती करने लगा, तो शबनम ने चुपचाप गिलास ले कर उसे बातों में उलझ दिया और इस तरह बबलू ने गटागट 4 पैग पी लिए, मगर शबनम ने शराब को छुआ तक नहीं.

बबलू ने नशे में अपने हाथ पर बंधे गजरे की महक को सूंघा और फिर शबनम के बदन को सूंघने लगा, फिर अपने हाथ पर बंधी फूलों की वेणी उतार कर फेंकते हुए कहने लगा, ‘‘इन फूलों में वह महक कहां, जो तेरे बदन में है. तेरे सामने ये फूल सब बेमानी हैं.’’

अब बारी थी शबनम को अपने प्लान को अंजाम देने की. जैसे ही बबलू शराब के नशे में शबनम को पकड़ने लगा, वह शराब की बोतल से उस के सिर पर लगातार वार करने लगी, जिस से उस के सिर से खून की जबरदस्त धारा बहने लगी और कुछ ही पलों में बबलू का शरीर शांत हो कर लुढ़क गया.

इस के बाद शबनम ने राज को फोन कर के खुद ही बुलाया. राज बबलू की लाश और शबनम के हाथ में बोतल देख कर घबरा गया. इस से पहले वह कुछ कहता, शबनम बोल उठी, ‘‘ज्यादा तमाशा करने की जरूरत नहीं है. मैं ने जो किया है, सोचसमझ कर किया है. मैं ने पुलिस को फोन कर के बुला लिया है.’’

राज कुछ सोच कर अचानक से शबनम के कपड़ों को थोड़ा सा कहींकहीं से फाड़ने लगा और उस के बाद खुद के शरीर पर भी चोटें लगाने लगा.

‘‘राज, तुम यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘शबनम, तुम्हें जो ठीक लगा वह तुम ने किया, अब मुझे जो सही लग रहा है, वह मैं कर रहा हूं.’’

थोड़ी ही देर में पुलिस आ गई. तब तक शबनम के अब्बूअम्मी और बहुत से रिश्तेदार भी आ गए. सब को अचरज था कि नईनई ब्याहता के कमरे में किसी बाहरी आदमी की लाश पड़ी थी.

एक नए जोड़े के कमरे के हालात बेतरतीब से थे. दुलहन के अधफटे कपड़े थे और दूल्हे के शरीर पर चोटें लगी थीं. सब से अचरज वाली बात यह थी कि एक पराए मर्द की लाश सुहागरात वाले कमरे में कहां से आई?

इंस्पैक्टर के पूछने पर शबनम ने बताया, ‘‘यह आवारा मुझे पहले से ही छेड़ता था और आज पहली रात को मुझे बदनाम करने के लिए कमरे में घुस आया.

‘‘मैं ने समझ कि राज आया है. मैं राज के इंतजार में तड़प रही थी और मैं ने राज के अंदर आते ही बत्ती बुझा दी और अपने ऊपर के कपड़े उतार कर लेट गई.

‘‘इसी बीच कमरे में आया बबलू बिना कुछ बोले मेरे जिस्म के साथ खेलने लगा, तो मैं ने झट से चादर से बदन ढक कर बत्ती जला दी और फटाफट कपड़े पहनने लगी कि तभी राजू भी आ गया और बबलू से उस की लड़ाई होने लगी.

‘‘बबलू राज पर लगातार हमला कर रहा था. किसी अनहोनी के डर से न जाने मुझे क्या सूझ कि मैं ने पास पड़ी शराब की बोतल उठाई और बबलू के सिर पर वार करने लगी. इस तरह बबलू मारा गया.’’

शबनम का पुलिस को इस तरह का बयान दे कर राज को बेगुनाह साबित करना, राज को अंदर तक सालने लगा. जिस शबनम का वह सौदा कर रहा था, आज वही उसे बचा कर खुद सूली पर चढ़ रही थी.

लेकिन न तो पुलिस और न ही शबनम के अम्मीअब्बा शबनम की बात पर यकीन कर रहे थे. पुलिस दोनों को पकड़ कर ले गई.

आखिर में राज को गुनाह कबूल करना पड़ा कि उस ने खुद ही सुहागरात के लिए बबलू को बुला कर शबनम का सौदा किया था.

राज को अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई, लेकिन जातेजाते वह शबनम के लिए अदालत में ही ‘तलाक, तलाक, तलाक’ कह कर उसे इस निकाह से आजाद कर गया.

शबनम ने कुछ समय के बाद दूसरा निकाह कर लिया और अपने नए शौहर के साथ दूसरे शहर में जा बसी.

खोटी झांझरें : पंडित जी की पूजा

दालान में पंडितजी बड़े भैया को सामान लिखवा रहे थे, ‘‘ढाई मीटर कपड़ा, एक पसेरी शुद्ध घी, 5 मन लकड़ी, थोड़ी चंदन की लकड़ी, 3 लोटे, 13-13 नग, गीता, तुलसी की माला. तौलिए और खाट वगैरह तो होगी ही बड़े भैया, अगर एक शाल रामसिया की देह के ऊपर डालोगे तो अच्छा रहेगा… आखिरकार बिरादरी में चौधरी खानदान की इज्जत का सवाल है.’’ बड़े भैया ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘मगर पंडितजी, इस में तो बहुत खर्च हो जाएगा. कुछ कम पैसों में सारे काम पूरे करवा दीजिए. आखिर अभी तेरहवीं का भोज भी तो करना पड़ेगा.’’

पंडितजी का चमकता चेहरा कुछ बुझने सा लगा. वे बोले, ‘‘जैसा आप ठीक समझें बड़े भैया. आप तो चौधरी घराने के बड़े बेटे ठहरे, आप को क्या कमी.’’ बड़े भैया ने कुछ मायूसी से जवाब दिया, ‘‘आप को तो पता ही है कि रामसिया मेरे मंझले चाचा का एकलौता बेटा था. पुरखों का कमाया हुआ घर में क्या कुछ नहीं था, पर वह बचपन से बिगड़ गया. ‘‘बिना बाप का बेटा मां के लाड़ और बुरी संगत में पड़ कर बचपन से ही शराब और जुए में बरबाद होता गया,

जिस से धीरेधीरे सारी जायदाद खत्म हो गई. ‘‘अब ऐसे वक्त बूढ़ी चाची से रुपया तो मांगा नहीं जा सकता. अपनी जेब से ही खर्चा करना होगा.’’ पंडितजी ऊपर से मातमी सूरत बना रहे थे, पर मन ही मन हिसाब लगाते जा रहे थे कि कहां से, किस तरह से रुपया, दान वगैरह ऐंठा जा सकता है. वे बोले, ‘‘बड़े भैया, आप कुछ भी कहें, हाथी मरता भी है तो सवा लाख का होता ही है.’’ बड़े भैया ने अपने नौकर को बुलाया और कहा, ‘‘पंडितजी को माधव शाह की दुकान पर ले जाओ.

उस से कहना कि मेरे उधार खाते में हिसाब लिख कर, जो भी जरूरी सामान हो दे दे. ‘‘तुम खुद ही लेते आना, ताकि पंडितजी को कोई कष्ट न हो. तब तक मैं दूसरे इंतजाम देखता हूं.’’ बाहर वाले दालान में आदमी और अंदर वाले दालान में औरतें जमा थीं. बीच में कोठा पड़ता था, जहां से लोग आजा रहे थे. कुछ बच्चे भी वहीं बैठ कर अपनीअपनी तरह से बातें कर रहे थे.

अंदर दालान के एक ओर रामसिया की देह बर्फ की सिल्लियों पर रखी हुई थी. बहनों और बहनोइयों का इंतजार किया जा रहा था. बूढ़ी मां एक कोने में देह के सिरहाने बैठी जारजार रो रही थीं. कभीकभी बड़बड़ाना जारी कर देतीं, ‘‘अरी कुलच्छिनी, खा लिया मेरे बेटे को. अब मैं कैसे जी पाऊंगी… मेरा लाड़ला, मेरा रामसिया… रे, तू कहां चला गया.

तेरे बदले मुझे क्यों न मौत आ गई,’’ और वे सिर और छाती पीटना शुरू कर देतीं. महल्ले, बिरादरी की औरतों से भी एक मां का यह बिलखना देखा न जा रहा था. वे भी साथसाथ सुबकती जाती थीं और हमदर्दी जताती जा रही थीं. दूसरे कोने में रामसिया की पत्नी रामसुंदरी बेजान मूरत बनी बैठी थी. उस की आंखों के आंसू सूख चुके थे. जैसे सोचनेसमझने की ताकत ही बाकी न रही हो. न तो उसे रोना आ रहा था और न ही वह यह सोच पा रही थी कि वह विधवा हो चुकी है.

रामसुंदरी को बीते दिन याद आ रहे थे, जिस में उस ने सुहागिन होने का सुख जाना ही न था. बीते हुए दिन आंखों के सामने घूम रहे थे. इस घर में जब रामसुंदरी दुलहन बन कर आई थी, वह दिन उसे आज भी अच्छी तरह याद है. घूंघट के अंदर से वह आवाजें सुन रही थी. कोई औरत कह रही थी, ‘‘मझले चौधरी आज जिंदा होते तो खुशी से फूले न समाते कि कैसी हीरे की कनी सी बहू पाई है. सचमुच रामसिया तो मजनूं बन जाएगा.’’ रूपरंग में सभी बहुओं में बढ़चढ़ कर है,’’

शायद यह बड़ी चौधरानी यानी उस की बड़ी खास होगी, उस ने मन ही मन अंदाज लगाया था. सुना था, उस के 3 भाई थे. बड़े और छोटे अभी भी अच्छे ओहदों पर मुलाजिम थे. उस के अपने मंझले ससुर रियासत के दरबार में मुलाजिम थे. वे 9 साल के बेटे रामसिया और 4 बेटियों को पीछे छोड़ कर जवानी में ही चल बसे थे. मां से रामसुंदरी ने ब्याह से पहले यही सब सुन रखा था.

जब गोदभराई के वक्त उस की सास एक जोड़ी चांदी की खूबसूरत झांझरें उस के पैरों में पहनाने लगी थीं, तो वे बोली थीं, ‘‘बहू, इन झांझरों की शक्ल में मैं अपनी सास की दी हुई धरोहर तुम्हें सौंपती हूं. इन घुंघरुओं से निकलने वाली आवाज की तरह ही तुम्हारी जिंदगी में भी झंकार गूंजती रहे. मेरे लाड़ले को अपने बस में कर के बगिया हरीभरी कर देना.’’

रामसुंदरी तब सास के चरण छूने को उन के पैरों पर झुक गई थी. सांझ ढलने तक रामसुंदरी की 2 शादीशुदा और 2 कुंआरी ननदें दूसरी औरतों के साथ हंसीठिठोली करते हुए रस्में पूरी कराती रहीं. वे जब फूलों से सजे पलंग पर उसे बैठा कर चल दीं, तो अनजाने ही मन में डर के साथसाथ पति से पहले मिलन के खयाल से वह चंचल हो उठी. चूडि़यां जब झनझन बज उठतीं तो वह अपनेआप से शरमा जाती. रामसुंदरी ने गजब की देह पाई थी. जितनी वह सुंदर थी, उतनी ही मादक भी. उस के उभार देखने लायक थे. आज अपनी सुहागरात पर वह शर्म के मारे लाल हो गई थी. देह में अजीब सा रोमांच भर गया था. तभी दरवाजे पर आहट हुई. रामसुंदरी की सांसें ऊपरनीचे होने लगीं.

आज वह कली से फूल जो बनने वाली थी. घूंघट की ओट से पति को आते देखा तो और भी सिकुड़सिमट कर बैठ गई. तभी आवाज आई, ‘‘क्या गठरी सी बनी बैठी है. चल, यह दारू की बोतल पकड़ और गिलास में डाल कर मुझे पिला.’’ रामसुंदरी चौंक कर हैरानी से देखने लगी और सोचा, ‘तो क्या यही हैं चौधरी खानदान के चिराग? जो सपने मैं देख रही थी, क्या वे सब झूठे थे?’

उस रात रामसिया शराब पीता रहा और बड़बड़ाता रहा, ‘‘चल री पैर दबा मेरे. क्या नाम है तेरा? रामसुंदरी या रामप्यारी? खैर, क्या फर्क पड़ता है… मुझे तो काम से मतलब है… नाम कुछ भी हो.’’ शराब की बदबू रामसुंदरी से सहन नहीं होती थी, लेकिन वह मजबूर थी. रामसिया की याद आते ही रामसुंदरी का अल्हड़ मन कसैला हो उठता. जहां तक हो सकता, वह रामसिया की परछाईं से भी बचती रहती. इसी तरह उस की जिंदगी गुजरने लगी. जबजब दोनों ननदों के ब्याह की बात होती, तो रामसिया की बुरी आदतों के चलते रिश्ता टल जाता. कोई कहता, ‘भाई कुछ करता तो है नहीं, शराबी भाई से कैसे निभेगी?’ तो कोई कुछ कह कर टाल देता. एक जगह बात कुछ जमी, तो उन लोगों में से एक ने साफसाफ कह दिया,

‘‘भाई से तो कुछ उम्मीद नहीं है, पिता की जायदाद में बेटी का जो हिस्सा है, अंदाज से उतने जेवर उसे दे देना. हम ब्याह करने को तैयार हैं.’’ रामसुंदरी के जेठ, जिन्हें सभी बड़े भैया कहा करते थे, ने ही बात तय करवाई. यह उम्मीद ले कर कि सुंदरी बहू अपने रूप के बल पर बिगड़ैल बेटे को बांध कर रख सकेगी और बुरी आदतें छुड़वा सकेगी. रामसुंदरी को सोनेचांदी के जेवरों से मढ़ कर मंझली चाची ब्याह लाई थीं. परंतु कुछ सुधार न देख और बहू को बेटे से दूरदूर अलगअलग देख कर उन का सारा गुस्सा रामसुंदरी पर ही उतरता. बातबात में वे बहू को डांटतीं, फटकारतीं.

अब जब बेटी की शादी पर गहनों की बात आई, तो उन्होंने रामसुंदरी के 3-4 गहने उतरवा लिए. कुछ नकद जमापूंजी थी, सो वह बरातियों के स्वागतसत्कार व दूसरे खर्चों में लग गई. जब विदाई हुई, तो रामसुंदरी थकान से चूर कमरे में ही एक कोने में गठरी सी बन कर लेट गई. कुछ ही देर सोई होगी कि रामसिया शराब पी कर आ गया. रिश्तेदारों के बीच शोर मचाता हुआ वह कमरे में आ गया. तब एक ही पल में रामसुंदरी चौकन्नी हो उठी और पास में पड़ी लंबीचौड़ी दरी में लिपट कर आननफानन छिप गई, ताकि कोई यह न जान सके कि वह कहां है. रामसिया ने बहुत ढूंढ़ा. रामसुंदरी को सांस लेने में भी घुटन होने लगी. फिर भी वह बाहर नहीं निकली.

न जाने क्यों वह रामसिया की शराबी बिगड़ैल सूरत को ‘पति परमेश्वर’ का दर्जा न दे पाती थी. फिर रामसिया खर्राटे भरता पलंग पर औंधा सो गया. दबे कदमों से बाहर आते ही रामसुंदरी को देख उस की सास बुरी तरह झुंझलाई, ‘‘क्यों री, कहां छिपी बैठी थी? रामसिया की गरज नहीं सुनाई दी तुझे. यही हैं सुहागिनों के लच्छन?’’ दिन बीतते रहे, चौथी ननद के ब्याह के समय हवेली भी गिरवी रखी गई. रामसुंदरी के पैरों में बस वही झांझरें बची रहीं, बाकी सब गहने एकएक कर के शराब की भेंट चढ़ते गए. रामसुंदरी को सिर्फ लगाव था तो इन्हीं झांझरों से.

आखिर उस के ब्याह की निशानी जो थी. जब पति बिना शराब पिए घर में आता तो मानमनुहार करती और अपना फर्ज निभाती. तीजत्योहार पर अपने सुहाग की निशानी यानी झांझरें जरूर पैरों में पहनती. पहनने से पहले उन्हें खूब चमका कर साफ करती. सारा दिन हंसीखुशी से बीतता. लेकिन शाम ढले रामसिया फिर शराब पी कर आ जाता. दालान से ही उस की ऊंची आवाज सुन कर वह घबरा उठती.

झांझरें बज न उठें, इसलिए जल्दी से उन्हें उतार कर संदूकची में मलमल के कपड़े में लपेट कर रख देती और कहीं किसी कोने में छिप आती. रामसिया शोर मचाता रहता. इसी तरह उन झांझरों से जैसे उस का एक गहरा रिश्ता जुड़ गया. पिछली रात रामसिया घर से निकला तो लौटा ही नहीं. लौटी तो सिर्फ उस की देह, जो एक ट्रक से बुरी तरह कुचली हुई थी.

पुलिस के पूछने पर लोगों ने यही कहा कि शराब पी कर डगमगाता हुआ रामसिया सामने से आते हुए ट्रक के बीचोंबीच घुस गया. शायद उसे तब दीनदुनिया की खबर नहीं थी. जिस ने सुना, दौड़ा आया. सभी मातम मना रहे थे. रामसुंदरी तो जैसे रोरो कर सब से यही पूछ रही थी कि मेरा कुसूर क्या है? आज जैसे उस के लिए सभी मुजरिम थे. चाहे उस की मां हो, सास या ननदें. अपने साथ किए छल से उस का दिल फटा जा रहा था. अचानक रामसुंदरी चौंक उठी.

उस की सास दहाड़ें मारमार कर रो रही थीं, ‘‘मेरा लंबाचौड़ा गबरू जवान बेटा चला गया और यह मनहूस ज्यों की त्यों बैठी है, दो बूंद आंसू भी न बहा सकी, उस के लिए. मैं ही क्यों न चली गई तेरे साथ, ओ मेरे राजा बेटा रे…’’ तभी बड़े भैया आए और बोले, ‘‘चाची, तुम्हें तो पता ही है, मुझ पर कितनी जिम्मेदारियां हैं. जो बन सकेगा, मैं करूंगा ही… फिर भी कुछ रुपए दे देती तो ठीक रहता.’’ सुन कर रामसिया की मां दुखी आवाज में बोली, ‘‘एक वही झांझरें बची हैं बेटा,

जो बहू को गोदभराई में दी थीं, सो ले जा कर बेच दे. अब आखिरी काम में कोई कमी न रखना,’’ फिर आह भर कर वह अपनेआप से कहने लगी, ‘‘मुझ दुखियारी को यह दिन देखना था.’’ चाची का इशारा पा कर 2 औरतें उठीं. वे रामसुंदरी को उठा कर भीतर की ओर चल दीं, जहां संदूकची में झांझरें रखी थीं. रामसुंदरी ने चाबी कमर से निकाल कर संदूकची का ताला खोल दिया.

ढक्कन खोला तो देखा, संदूकची खाली पड़ी है. घबरा कर उस ने लाल मलमल का कपड़ा उठा कर हाथ में ले लिया और संदूकची पलट दी. अचानक ही कपड़े में से शराब की बदबू का भभका उठा और रामसुंदरी के सामने सारी बात साफ कर गया. कल दोपहर को जब वह सो रही थी, तब शायद रामसिया ने चाबी पार कर दी थी और झांझरें बेच कर शराब की शक्ल में मौत खरीद लाया था. तभी तो वह कल शराबखाने में आधी रात तक बैठा रहा था. रामसुंदरी की झांझरें भी आज खोटी निकल गईं. उसे लगा कि अब वह सचमुच ही अनाथ और विधवा हो गई है. रामसुंदरी दहाड़ें मारमार कर रोने लगी, ‘‘हाय रे, मैं लुट गई… बरबाद हो गई… मेरी झांझरें खोटी थीं रे

मजाक: वर्मा साहब गए पानी में

इसी महीने की 30 तारीख को अपने महल्ले के वर्मा साहब रिटायर हो कर गले में अपने भार से ज्यादा भारी फूलों की मालाएं लादे साहब के बगल में पसरे गाड़ी में आए, तो पूरे महल्ले ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं. गले में फूलों की मालाएं डाले उस वक्त उन के बगल में उन के साहब उन के पद वाले लग रहे थे, तो वे अपने साहब के पद वाले.

तब उन्होंने अपने गले की मालाएं बड़ी कस कर पकड़ी हुई थीं.वर्मा साहब को उस वक्त चिंता थी तो बस यही कि कहीं उन के साहब उन के गले से माला निकाल कर अपने गले में न डाल लें. जब उन के साहब उन की गले की माला ठीक करने लगते, तो उन्हें लगता जैसे वे उन के गले से माला छीनने की कोशिश कर रहे हों.बहुत शातिर हैं वर्मा साहब के साहब.

सभी के फायदे को यों डकार जाते हैं कि किसी को उस की हवा भी नहीं लगने देते. जितने को हवा लगती है, उतने का साहब हाथ साफ करने के बाद धो भी चुके होते हैं. ये मालाओं का मोह होता ही ऐसा है कमबख्त. जिस के गले में एक बार जैसेकैसे पड़ गईं, उस के बाद उन्हें बचाना बहुत मुश्किल होता है.तब महल्ले वाले वर्मा साहब के गले में उन के भार से ज्यादा भारी मालाएं देख कर इशारों ही इशारों में एकदूसरे से बातें करने लगे,

‘अरे, हम तो वर्मा साहब को यों ही समझते थे कि वे औफिस में क्लास थ्री हैं, पर ये तो इस वक्त साहब के भी बाप लग रहे हैं. हम ने तो सोचा था कि ये रिटायरमैंट वाले दिन भी रोज की तरह पैदल ही घर आएंगे, जैसे रोज आया करते थे,

पर…’महल्ले वाले उन को महल्ले की दाल समझते हों तो समझते रहें, पर वे पकौड़े से कम नहीं, वह भी बेसन वाले नहीं, पनीर वाले. ये तो अपने वर्मा साहब का भला हो कि… जो बाहर को कोई उन के पद जितना ऊंचा मुलाजिम होता,

तो सारे महल्ले को नाकों चने चबवाया करता दिन में 10-10 बार.जैसे ही वर्मा साहब अपने घर के बाहर सड़क पर अपने दफ्तर की गाड़ी से अपनी परवाह किए बिना अपने गले की मालाओं को संभालते उतरे, तो उन की बीवी ने उन की आरती यों उतारी जैसे बलि के बकरे की बलि देने से पहले पुजारी उस की आरती उतारता है.उस के बाद बड़ी देर तक वर्मा साहब के घर में चहलपहल रही.

कुछ देर बाद उन के औफिस वाले खापी कर उन को हाथ जोड़ उन के आगे की बची जिंदगी को शुभकामनाओं में लपेट कर हमदर्दी देते दुम दबाए चलते बने. उस के बाद भी बड़ी देर तक उन के यहां खूब पार्टी उड़ती रही. महल्ले वालों ने डट कर खाया.

उन्होंने भी जो 30 साल तक औफिस में डट कर अपने हिस्से का खाया था, उस में से दिल खोल कर महल्ले वालों को डट कर खिलाया, ताकि औफिस में खाए के पाप को महल्ले वालों के सिर पर भी थोड़ाबहुत डाला जा सके.बड़ी देर तक वर्मा साहब दिल खोल कर अपने औफिस के वे किस्से भी अपने साथ बैठों को कौफी पीते सुनाते रहे, जो उन्होंने बौस के डर के मारे आज तक खुद को भी न सुनाए थे.

मुझे पता था कि कल तक जो ऊंट औफिस में हर काम करवाने वाले को अपने नीचे ले कर ही रखता था, कल से वही ऊंट पहाड़ के नीचे आने वाला नहीं, जब तक जिंदा रहेगा, अब तब तक पहाड़ के नीचे ही रहेगा.आखिरकार जब पार्टी खत्म हुई, तो वर्मा साहब के सब यारदोस्त खापी कर अपनेअपने घर निकल गए, तब उन की बीवी ने उन को समझाते हुए कहा,

‘‘देखोजी, अब ध्यान से सुनो. कान खोल कर सुनो. अब तुम रिटायर पति हो, औफिस वाले पति नहीं…’’‘‘तो क्या हो गया? पति तो हूं न?’’‘‘तो अब हो यह गया कि अपने गले से सारी मालाएं निकाल कर अपनी सामने वाली तसवीर पर डाल दो और यह पकड़ो लिस्ट…’’

‘‘काहे की लिस्ट? तुम्हें पता नहीं कि मैं लिस्ट लेता नहीं, लिस्ट देता रहा हूं…’’‘‘डियर पति, घर के कामों की. लिस्ट देने वाले दिन बीत गए अब. बहुत धमाचौकड़ी कर ली औफिस में.

अब से तुम्हारा औफिस यह होगा और ड्यूटी टाइम 11 से 4 नहीं, बल्कि सुबह 5 बजे से रात को 10 बजे तक रहेगा. जिस दिन काम ज्यादा हुआ, उस दिन रात के 12 भी बज सकते हैं.’’

‘‘मतलब कि ओवर टाइम?’’ वर्मा साहब को काटो तो खून नहीं.‘‘जी हां, ओवर टाइम. पर उस की न छुट्टी, न अलग से पैमेंट. अब तुम्हें कल से ये सारे काम करने हैं. लिस्ट गले में डाल लो, ताकि याद करने में आसानी रहे.’’बीवी ने उन्हें 2 फुट लंबी घर के कामों की लिस्ट थमाई,

तो उन्हें उन के पैर के नीचे से उन्हीं के नाम की रजिस्ट्री हुई जमीन सरकती लगी.‘‘कुछ देर आराम कर लो. दोस्तों से गपें मार कर थक गए होंगे. 30 साल तक बहुत करवा ली सब से अपनी सेवा, अब कल से तुम मेरी सेवा करोगे. पता नहीं फिर अगले जन्म में मुझे तुम से अपनी सेवा करवाने का मौका मिले या न मिले,’’ वर्मा साहब की बीवी ने कहा और सोने चली गई.

तब वर्मा साहब कभी अपने हाथ में बीवी द्वारा थमाई गई कामों की लिस्ट देखते, तो कभी अपनी तसवीर पर अपने गले से उतार कर चढ़ाई गई फूलों की मालाएं. जब उन का रोना निकल आया, तो वे अपनेआप से बोले, ‘‘जरा इन फूलों की खुशबू तो खत्म होने देती,’’

पर उन के सिवा उन की सुनने वाला वहां था ही कौन, जो ऐसा होने देता.सुबह ज्यों ही वर्मा साहब की बीवी ने बांग दी तो वे उछल कर नहीं, छल कर जागे.

फटाफट घर के कामों की लिस्ट देखी. सब से ऊपर वाला काम बीवी के बांग देते ही होना था, सो बेचारे अधजगे ही करने लगे.10 बजे के आसपास मैं ने भी सोचा, ‘चलो, वर्मा साहब के दर्शन कर लेते हैं. बेचारे औफिस जाने को फड़फड़ा रहे होंगे…’मैं उन के घर गया उन की रिटायरमैंट के बाद की जिंदगी का लाइव देखने. उस वक्त वे कमरे में झाड़ू लगा रहे थे. उन्होंने मुझे देखा, तो वे झाड़ू कोने की ओर फेंकते हुए ठिठके तो मैं ने उन से हंसते हुए कहा,

‘‘शरमाओ मत वर्मा साहब. यही होना है अब तो जब तक जिंदा हैं. इसी बहाने अब थोड़ीबहुत एक्सरसाइज भी हो जाया करेगी… और रिटायरमैंट के बाद हर मर्द को देरसवेर कुशल गृहिणी होना ही पड़ता है.’’‘‘पर यार…’’ वे कोने से झाड़ू उठा कर मुझे पकड़ाने की कोशिश करने लगे, तो मैं ने कहा,

‘‘मैं अपने घर में कर के आ गया हूं वर्मा साहब. सोचा, अब आप का भी हालचाल पूछ आऊं. इस बहाने मुझे जरा आराम भी मिल जाएगा. उस के बाद तो…’’‘‘रिटायरमैंट के बाद क्या यह सब के साथ होता है यार?’’ वर्मा साहब ने रुंधे गले पूछा, तो मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां, अपने महल्ले में तो तकरीबन हर क्लास वन से ले कर क्लास फोर रिटायरी के साथ यही हो रहा है…’’‘‘मतलब…?’’‘‘सब समझ जाओगे वर्मा साहब. 2-4 दिन और ठहरो,’’ मैं ने कहा, तो उन्होंने चैन की इतनी लंबी सांस ली कि उस वक्त वे मेरे नाक की सारी हवा भी खींच ले गए जालिम कहीं के

विश्वास : अजय राजेश के विश्वास को क्यों नहीं टूटने देना चाहता था

श्वे ता इतनी खूबसूरत थी कि जो कोई भी उसे देखता, तो बस देखता ही रह जाता. वह ग्रेजुएट थी. दूसरे लोगों की तरह अजय भी श्वेता की खूबसूरती पर लट्टू हुए बिना न रह सका. उस ने राजेश की तकदीर पर ईर्ष्या भी की. इस के बावजूद अजय ने श्वेता के प्रति अपने मन में बुरी भावना का जन्म नहीं होने दिया.

देवरभाभी के रिश्ते के चलते वह उस से हंसीमजाक तो कर लेता था,

मगर उस के जिस्म से छेड़छाड़ नहीं करता था.

शादी के बाद राजेश जब कभी कंपनी के काम से शहर से बाहर जाता था, तो श्वेता की देखरेख की जिम्मेदारी अजय को ही दे जाता था. उसे अजय पर पूरा विश्वास था.

अजय और राजेश की दोस्ती उस समय से थी, जब वे दोनों 5वीं जमात में पढ़ते थे. दोनों का घर एकदूसरे से तकरीबन 10 किलोमीटर की दूरी पर था. वे दोनों कोलकाता के रहने वाले थे.

बीकौम करने के बाद अजय को बैंक में नौकरी मिल गई. राजेश ने बीएससी किया था. उस ने दवा बनाने वाली एक बड़ी कंपनी जौइन कर ली.

कंपनी के काम से राजेश हर महीने 5-7 दिनों के लिए किसी न किसी शहर में चला जाता था.

एक हादसे में राजेश के मातापिता का देहांत हो गया था. उस के कोई भाईबहन नहीं थे.

अजय ने राजेश को तुरंत शादी करने की सलाह दी, तो उस ने उस की सलाह मान ली. मातापिता के देहांत के कुछ महीने बाद उस ने श्वेता से शादी कर ली.

अजय राजेश के विश्वास को नहीं टूटने देना चाहता था.

राजेश महीने में 2 हफ्ते टूर पर जाता, पर अजय को रात में अपने घर रोक लेता था. दोनों देर रात तक खूब बातें करते थे. उस दिन भी राजेश ने अजय को रात में अपने घर रोक लिया था.

अगले दिन सुबह 8 बजे अजय बाथरूम जाने के पहले आदमकद आईने के सामने जा कर खड़ा हो गया. उस समय उस ने कमर पर तौलिया लपेट रखा था. कमर से ऊपर उस ने कुछ नहीं पहना था.

वह आईने में अपने गठीले बदन को देख रहा था. उस की छाती शेर के समान चौड़ी और कमर पतली थी. उस का कसरती बदन पत्थर के समान कठोर था.

उसी समय श्वेता उस के लिए चाय ले आई और अजय को आईने में अपना बदन निहारते देख मुसकरा उठी.

‘‘अगर आप आईने को इस तरह से देखेंगे, तो वह टूट कर चकनाचूर हो जाएगा. जरा रहम कीजिए इस आईने पर,’’ अपनी बात खत्म कर श्वेता

वहां रुकी नहीं. वह वहां चाय रख कर चली गई.

उस के जाने के बाद अजय काफी देर तक यह सोचने की कोशिश करता रहा कि श्वेता ने ऐसा क्यों कहा?

उस घटना के 4 दिन बाद अजय जब राजेश की गैरमौजूदगी में उस के घर गया, तो बातों ही बातों में श्वेता ने उस से कहा, ‘‘आप को शादी से पहले देख लेती, तो मैं आप के दोस्त से कतई शादी नहीं करती, बल्कि आप से ही शादी करती.’’

अजय को लगा कि श्वेता ने यह बात मजाक में कही है. उस ने भी मजाक में कह दिया, ‘‘आप के हुस्न का जादू मु?ा पर इतना ज्यादा छाया हुआ है कि मैं अब भी आप से शादी करने को तैयार हूं.’’

‘‘अब शादी तो नहीं हो सकती है, मगर आप चाहें तो मेरे हुस्न का रसपान कर के अपने मन को शांत कर सकते हैं,’’ श्वेता ने हंसहंस कर दोहरी होते हुए कहा.

यह सुन कर अजय चौंक गया. उसे लगा कि यह बात श्वेता ने मजाक में नहीं कही है. वह उस से कुछ कहता, उस से पहले पड़ोस की एक औरत किसी काम से उस के घर आ गई. उस के बाद उस बारे में कोई बात नहीं हुई.

उस रात अजय ठीक से सो नहीं पाया. उसे बारबार श्वेता की बात याद आती रही.

15 दिन बाद भी अजय राजेश की मौजूदगी में रात में उस के घर रह गया था.

राजेश सुबह 8 बजे के बाद सो कर उठता था. उस के बाद चाय पीता था. मगर अजय को सुबह 6 बजे चाय पीने की आदत थी.

उस की आदत श्वेता जानती थी, इसलिए जब अजय रात में उस के घर रह जाता था, तो वह सुबह 6 बजे उठ कर चाय बना कर उसे दे आती थी. मगर उस दिन श्वेता ने रसोई से ही आवाज दे कर उसे चाय ले जाने के लिए कहा.

अजय रसोई में गया, तो श्वेता चाय बना रही थी. उस समय उस ने गाउन पहन रखा था. वह ?ाक कर चाय बनाने में इस तरह मसरूफ थी कि उस के उभार साफसाफ दिखाई पड़ रहे थे.

इस रोमांचक नजारे को देख कर अजय ने अपना आपा खो दिया. मगर इस विचार को यह सोच कर उस ने अपने दिमाग से अलग कर दिया कि श्वेता उस के दोस्त की बीवी है. उस के साथ जिस्मानी संबंध बनाने की सोचना भी पाप है.

थोड़ी देर बाद श्वेता ने मुसकरा कर उसे चाय दी और कहा, ‘‘बेडरूम से सीधे किचन में आ गई थी. कपड़े बदल नहीं पाई, इसलिए आप को ही यहां बुला लिया.’’

अजय ने कुछ नहीं कहा और चाय ले कर चुपचाप अपने कमरे में चला आया.

3 महीने तक अजय का समय कश्मकश में बीता. इस बीच उस की हालत पागलों जैसी हो गई?थी.

श्वेता अजय के दिलोदिमाग पर कुछ इस तरह छा गई थी कि न तो वह दफ्तर में ठीक से काम कर पाता था और न ही रात में उसे ठीक से नींद आती थी.

फैसला लेने के 2 दिन बाद अजय रात के 8 बजे श्वेता के घर गया. राजेश उसी दिन कंपनी के काम से हैदराबाद गया था.

चाय पीने के बाद अजय ने मौका पा कर श्वेता से कहा, ‘‘मैं आप को इतना ज्यादा प्यार करने लगा हूं कि मु?ो लगता है कि जब तक आप का प्यार नहीं पा लूंगा, चैन नहीं मिलेगा.’’

श्वेता तो अजय को चाहती ही थी, इसलिए बगैर देर किए उस ने कह दिया कि वह उसे प्यार करती है. अगर वह उसे नहीं मिलेगा, तो वह मर जाएगी.

खुशी में आ कर अजय ने उसे बांहों में भर लिया.

अजय को श्वेता उस दिन से चाहने लगी थी, जब उस ने उसे अजीबोगरीब हालत में देखा था. उस समय राजेश से उस की शादी हुए महज 10 दिन हुए थे.

दूसरे दिनों की तरह उस दिन भी अजय उस के घर रुक गया था. अगले दिन सुबह नहाने के बाद अजय अपने कमरे में कपड़े बदल रहा था.

उस समय अजय ने अपनी कमर से नीचे तौलिया लपेट रखा था. कमर से ऊपर अभी उस ने कुछ नहीं पहना था.

वह अंडरवियर पहनने जा रहा था कि अचानक उस की पकड़ से तौलिया छूट कर जमीन पर गिर पड़ा और वह ?ोंप सा गया.

श्वेता ठीक उसी समय दरवाजे पर आई और हैरान हो कर वहीं खड़ी हो गई.

अजय का गठीला बदन देख कर श्वेता की आंखें हैरानी से फैल गईं. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई मर्द इतना ज्यादा गठीला हो सकता है.

नतीजतन, श्वेता के दिल में हलचल मच गई. हालांकि वह तुरंत वहां से चली गई. अजय उसे आते या जाते नहीं देख पाया था.

उस दिन पहली बार श्वेता को लगा कि अजय के सामने उस का पति बेकार है.

वैसे भी अजय राजेश से बहुत ज्यादा स्मार्ट था. वह शादी के दिन से ही उस से प्रभावित थी.

उस दिन के बाद श्वेता जब भी राजेश के साथ हमबिस्तर होती, तो उसे उस में कमी नजर आती. उस से वह खुशी महसूस नहीं करती.

अब अजय के सामने श्वेता ऐसेऐसे कपड़े पहनती, ऐसीऐसी हरकतें करती, जिस से उस के बदन का एकएक अंग दिखाई पड़ जाता.

बात यह थी कि श्वेता उसे पाना तो चाहती थी, मगर पहल वह खुद नहीं करना चाहती थी. वह चाहती थी कि पहल अजय की तरफ से हो.

आखिरकार जैसा उस ने सोचा वैसा ही हुआ. अजय उस पर री?ा गया और अब वह उस के साथ बिस्तर पर थी.

अजय इस बारे में सोच ही रहा था कि अचानक उस का विवेक उस पर हावी हो गया. उस ने फैसला किया कि वह श्वेता से जिस्मानी संबंध नहीं बनाएगा.

उस के बाद श्वेता को छोड़ कर अजय पलंग से उतर आया और अपने कपड़े ठीक करने लगा.

यह देख कर श्वेता हैरानी से तड़प कर रह गई.

श्वेता हैरान होते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ अजय? आप ने मु?ो छोड़ क्यों दिया?’’

‘‘यह सब गलत है भाभीजी. मु?ो एहसास हो गया है कि मेरी चाहत

गलत थी. आप मेरे दोस्त की बीवी हैं. आप के साथ मेरा जिस्मानी संबंध बनाना गलत होगा.’’

‘‘आसमान की ऊंचाई पर चढ़ा कर आप मु?ो यों ही नहीं छोड़ सकते. आप को मेरी प्यास बु?ानी ही होगी. अगर आप मु?ो छोड़ कर चले जाएंगे, तो मैं पागल हो जाऊंगी.’’

‘‘आप कुछ भी कहें भाभीजी, मगर मैं दोस्त को धोखा नहीं दे सकता.’’

‘‘प्लीज, मु?ो छोड़ कर मत जाइए. बड़ी मुश्किल से मैं ने मर्यादा की

सीमा लांघ कर आप को पाने का मन बनाया है.

‘‘अब आप को पाने की कामना से मेरा बदन जल रहा है, तो आप मु?ो छोड़ कर जाना चाहते हैं.

‘‘विश्वास कीजिए, आप के दोस्त को कभी भी पता नहीं चलेगा कि आप ने मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाया है.’’

‘‘किसी को पता चले या न चले, मगर मु?ो तो जिंदगीभर पता रहेगा कि मैं ने अपने दोस्त के साथ धोखा किया है. उस की बीवी के साथ मैं ने गलत काम किया है.

‘‘मेरी मानिए, तो आप भी अपने पति का विश्वास बनाए रखिए. अपने मर्द को छोड़ कर पराए मर्दों में सुख मत ढूंढि़ए.’’

यह सुन कर श्वेता हैरान रह गई. तब तक अजय घर का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया था.

थोड़ा थोड़ा : जयकिशन का साहस क्या रंग लाया

जयकिशन ईमानदार और मेहनती था. उसे मेहनत से गुजरबसर करना ही पसंद था, लेकिन खुद की ताकत और काबिलीयत पर भरोसा न था. इसी कारण उसे कहीं भी काम नहीं मिल रहा था. जब भी कोई उसे काम देता, वह घबरा जाता और कहता कि इतना काम तो मैं कर ही न पाऊंगा.

जयकिशन के पड़ोस में मदन लाल रहता था. उस की गल्ले की दुकान थी. जयकिशन हर रोज मदन लाल की दुकान के बरामदे में जा कर बैठा रहता.

मदन लाल जयकिशन के अच्छे स्वभाव और ईमानदारी की तारीफ किया करता था, इसलिए उस ने जयकिशन में आत्मविश्वास जगाने के लिए एक नायाब तरकीब सोची.

एक दिन मदन लाल ने जयकिशन से पूछा, ‘‘मेरे साथ काम करोगे?’’

यह सुनते ही जयकिशन ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या कहा?’’

‘‘मेरे लिए बोझ उठाने का काम करोगे,’’ मदन लाल ने दोबारा पूछा.

जयकिशन कुछ सोचता हुआ बोला, ‘‘काम तो करूंगा, मगर पता नहीं बोझ उठा भी सकूंगा या नहीं…’’

‘‘ज्यादा बोझ उठाने वाला काम नहीं दूंगा,’’ मदन लाल ने उसे यकीन दिलाया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी ही जयकिशन मदन लाल की दुकान पर जा पहुंचा. मदन लाल भी उसी का इंतजार कर रहा था.

अपनी तरकीब के मुताबिक, मदन लाल ने 5 किलो वजन वाला थैला बरामदे में रखा हुआ था. जयकिशन को देख कर मदन लाल ने कहा, ‘‘अनाज के इस थैले को कसबे की मेरी दुकान में पहुंचा दो और उस दुकान से जो मिले, उसे ला कर यहां पहुंचा दो.’’

जयकिशन ने थैला उठाया और चल दिया. मदन लाल की 2 दुकानें थीं. एक दुकान अपने महल्ले में थी और दूसरी कसबे में थी. कसबे की दुकान उस का भाई सदन लाल संभालता था.

जयकिशन ने अनाज का थैला सदन लाल के पास पहुंचा दिया.

सदन लाल ने 8 किलो वजन वाले शक्कर के थैले की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘इसे ले कर जाओ.’’ जयकिशन ने थैला उठाया और वहां से चल दिया.

कसबे से मदन लाल की दुकान 2 किलोमीटर दूर थी, इसलिए जयकिशन को पहले दिन थोड़ी तकलीफ महसूस हुई थी.

दूसरे दिन मदन लाल ने 10 किलो वजन वाली बोरी दिखा दी. जयकिशन उसे आसानी से उठा कर चल दिया.

उस ने कसबे की दुकान पर जा कर बोरी रख दी. तब सदन लाल ने उसे 14 किलो वजन वाली साबुन की पेटी ले जाने को कहा.

तीसरे दिन मदन लाल ने 16 किलो वजन की मसूर की दाल वाली बोरी दिखाई, जिसे उठा कर वह चल दिया.

कसबे से वापस आ कर जयकिशन ने 20 किलो वजन के गुड़ के ढेले ला कर मदन लाल की दुकान में रख दिए.

हर रोज और हर खेप में 2 से 4 किलो वजन बढ़ जाता था, लेकिन जयकिशन को बढ़ते वजन का बोझ मालूम नहीं पड़ रहा था. उस के अंदर ज्यादा से ज्यादा मेहनत करने के लिए आत्मविश्वास बढ़ रहा था.

इसी तरह एक हफ्ता बीत गया. जयकिशन की हिम्मत और जोश बढ़ता ही जा रहा था. अब वह 40-45 किलो तक वजन उठाने लगा था.

बरसात के दिन थे. रात के समय आसमान में घने बादल घिर आए थे और सुबह तक जाने का नाम नहीं ले रहे थे. तभी अनाज की बोरियों से लदा एक ट्रक दुकान के सामने आ कर रुका.

‘‘सेठजी, जल्दी से गाड़ी में लदी बोरियां उतरवाइए, वरना अनाज भीग जाएगा. गाड़ी में तिरपाल नहीं है,’’ ड्राइवर ने मदन लाल से कहा.

ड्राइवर की बात सुनते ही मदन लाल का चेहरा लटक गया, क्योंकि किसी भी वक्त बारिश हो सकती थी और कोई मजदूर भी वहां दिखाई नहीं दे रहा था.

तभी जयकिशन आ पहुंचा. मदन लाल का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह सारा माजरा समझ गया और बोला, ‘‘फिक्र मत कीजिए, मैं ट्रक से बोरियां उतार कर गोदाम में रख दूंगा.’’

जयकिशन की बात सुन कर मदन लाल की चिंता दूर हो गई.

जयकिशन जल्दीजल्दी ट्रक से बोरियां उतारने लगा. देखते ही देखते ट्रक खाली हो गया और गोदाम भर गया.

यह देख कर मदन लाल को बेहद खुशी हुई. दरअसल, उस की तरकीब कामयाब हो गई थी.

जब अनाज की बोरियां गोदाम में उतार कर जयकिशन दुकान में पहुंचा, तब मदन लाल ने कहा, ‘‘आज से तुम्हारी नौकरी पक्की. तुम्हारी पगार भी तय कर दूंगा.’’

जयकिशन की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह बोला, ‘‘सच?’’

‘‘बिलकुल सच. जयकिशन, तुम्हारे अंदर मेहनत करने की लगन तो थी, मगर अपनेआप पर भरोसा नहीं था. मैं तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास जगाना चाहता था, इसीलिए एक तरकीब निकाली.

‘‘मैं हर रोज थोड़ाथोड़ा वजन बढ़ाता था, ताकि तुम्हें ज्यादा तकलीफ न हो. इस तरकीब में भाई सदन लाल ने भी मेरा साथ निभाया,’’ मदन लाल ने मुसकरा कर बताया.

‘‘वह कैसे?’’ जयकिशन ने हैरानी से पूछा.

‘‘पहले दिन मैं ने तुम से 5 किलो वजन वाला थैला उठवाया. उसी दिन ही सदन लाल ने 8 किलो वजन उठवाया. पहले दिन तुम 8 किलो वजन उठाने में कामयाब हुए.

‘‘तुम्हारी हिम्मत देख कर दूसरे दिन मैं ने 10 किलो वजन उठवाया और सदन लाल ने 14 किलो वजन उठवाया. उस दिन तुम ने 14 किलो बोझ भी उठा लिया.

‘‘इसी तरह हर रोज हम दोनों भाई वजन बढ़ा देते थे, ताकि तुम्हें अचानक इस बात का एहसास न हो.

‘‘इसी बीच धीरेधीरे तुम्हारे अंदर की कमजोरी ताकत में बदलती गई और आत्मविश्वास बढ़ने लगा. 2 हफ्तों के अंदर ही तुम 50 किलो तक वजन उठाने लगे.’’

मदन लाल की यह बात सुन कर जयकिशन बहुत खुश हुआ. उस ने मदन लाल के पैर छू कर कहा, ‘‘आप के इस उपकार को मैं कभी नहीं भूल सकूंगा.’’

अब जयकिशन के अंदर एक नया जोश पैदा हो गया था.

आसमान से बादल साफ हो गए थे. जयकिशन ने नए जोश व उमंग के साथ 50 किलो वाली अनाज की बोरी गोदाम से निकाली और कसबे की दुकान के लिए चल पड़ा.

थोड़े दिनों में जयकिशन ने अपनी खुद की दुकान खोल ली. लेकिन वह हर सुबह खुद 10 बोरियां उठा कर बाहर जरूर रखता, ताकि उसे खुद पर भरोसा बना रहे.

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