Valentine’s Day 2024 – सच्चा प्यार : स्कूल में जब दो दिल मिले

अनुपम और शिखा दोनों इंगलिश मीडियम के सैंट जेवियर्स स्कूल में पढ़ते थे. दोनों ही उच्चमध्यवर्गीय परिवार से थे. शिखा मातापिता की इकलौती संतान थी जबकि अनुपम की एक छोटी बहन थी. धनसंपत्ति के मामले में शिखा का परिवार अनुपम के परिवार की तुलना में काफी बेहतर था. शिखा के पिता पुलिस इंस्पैक्टर थे. उन की ऊपरी आमदनी काफी थी. शहर में उन का रुतबा था. अनुपम और शिखा दोनों पहली कक्षा से ही साथ पढ़ते आए थे, इसलिए वे अच्छे दोस्त बन गए थे. दोनों के परिवारों में भी अच्छी दोस्ती थी.

शिखा सुंदर थी अनुपम देखने में काफी स्मार्ट था. उस दिन उन का 10वीं के बोर्ड का रिजल्ट आने वाला था. शिखा भी अनुपम के घर अपना रिजल्ट देखने आई. अनुपम ने अपना लैपटौप खोला और बोर्ड की वैबसाइट पर गया. कुछ ही पलों में दोनों का रिजल्ट भी पता चल गया. अनुपम को 95 प्रतिशत अंक मिले थे और शिखा को 85 प्रतिशत. दोनों अपनेअपने रिजल्ट से संतुष्ट थे. और एकदूसरे को बधाई दे रहे थे. अनुपम की मां ने दोनों का मुंह मीठा कराया.

शिखा बोली, ‘‘अब आगे क्या पढ़ना है, मैथ्स या बायोलौजी? तुम्हारे तो दोनों ही सब्जैक्ट्स में अच्छे मार्क्स हैं?’’ ‘‘मैं तो पीसीएम ही लूंगा. और तुम?’’

‘‘मैं तो आर्ट्स लूंगी, मेरा प्रशासनिक सेवा में जाने का मन है.’’ ‘‘मेरी प्रशासनिक सेवा में रुचि नहीं है. जिंदगीभर नेताओं और मंत्रियों की जीहुजूरी करनी होगी.’’

‘‘मैं तुम्हें एक सलाह दूं?’’ ‘‘हां, बोलो.’’

‘‘तुम पायलट बनो. तुम पर पायलट वाली ड्रैस बहुत सूट करेगी और तुम दोगुना स्मार्ट लगोगे. मैं भी तुम्हारे साथसाथ हवा में उड़ने लगूंगी.’’ ‘‘मेरे साथ?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, पायलट अपनी बीवी को साथ नहीं ले जा सकते, क्या.’’ तब शिखा को ध्यान आया कि वह क्या बोल गई और शर्म के मारे वहां से भाग गई. अनुपम पुकारता रहा पर उस ने मुड़ कर पीछे नहीं देखा. थोड़ी देर में अनुपम की मां भी वहां आ गईं. वे उन दोनों की बातें सुन चुकी थीं. उन्होंने कहा, ‘‘शिखा ने अनजाने में अपने मन की बात कह डाली है. शिखा तो अच्छी लड़की है. मुझे तो पसंद है. तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लो. अगर तुम्हें पसंद है तो मैं उस की मां से बात करती हूं.’’

अनुपम बोला, ‘‘यह तो बाद की बात है मां, अभी तक हम सिर्फ अच्छे दोस्त हैं. पहले मुझे अपना कैरियर देखना है.’’ मां बोलीं, ‘‘शिखा ने अच्छी सलाह दी है तुम्हें. मेरा बेटा पायलट बन कर बहुत अच्छा लगेगा.’’

‘‘मम्मी, उस में बहुत ज्यादा खर्च आएगा.’’ ‘‘खर्च की चिंता मत करो, अगर तुम्हारा मन करता है तब तुम जरूर पायलट बनो अन्यथा अगर कोई और पढ़ाई करनी है तो ठीक से सोच लो. तुम्हारी रुचि जिस में हो, वही पढ़ो,’’ अनुपम के पापा ने उन की बात सुन कर कहा.

उन दिनों 21वीं सदी का प्रारंभ था. भारत के आकाशमार्ग में नईनई एयरलाइंस कंपनियां उभर कर आ रही थीं. अनुपम ने मन में सोचा कि पायलट का कैरियर भी अच्छा रहेगा. उधर अनुपम की मां ने भी शिखा की मां से बात कर शिखा के मन की बात बता दी थी. दोनों परिवार भविष्य में इस रिश्ते को अंजाम देने पर सहमत थे. एक दिन स्कूल में अनुपम ने शिखा से कहा, ‘‘मैं ने सोच लिया है कि मैं पायलट ही बनूंगा. तुम मेरे साथ उड़ने को तैयार रहना.’’

‘‘मैं तो न जाने कब से तैयार बैठी हूं,’’ शरारती अंदाज में शिखा ने कहा. ‘‘ठीक है, मेरा इंतजार करना, पर कमर्शियल पायलट बनने के बाद ही शादी करूंगा.’’

‘‘नो प्रौब्लम.’’ अब अनुपम और शिखा दोनों काफी नजदीक आ चुके थे. दोनों अपने भविष्य के सुनहरे सपने देखने लगे थे. देखतेदेखते दोनों 12वीं पास कर चुके थे. अनुपम को अच्छे कमर्शियल पायलट बनने के लिए अमेरिका के एक फ्लाइंग स्कूल जाना था.

भारत में मल्टीइंजन वायुयान और एयरबस ए-320 जैसे विमानों पर सिमुलेशन की सुविधा नहीं थी जोकि अच्छे कमर्शियल पायलट के लिए जरूरी था. इसलिए अनुपम के पापा ने गांव की जमीन बेच कर और कुछ प्रोविडैंट फंड से लोन ले कर अमेरिकन फ्लाइंग स्कूल की फीस का प्रबंध कर लिया था. अनुपम ने अमेरिका जा कर एक मान्यताप्राप्त फ्लाइंग स्कूल में ऐडमिशन लिया. शिखा ने स्थानीय कालेज में बीए में ऐडमिशन ले लिया.

अमेरिका जाने के बाद फोन और वीडियो चैट पर दोनों बातें करते. समय का पहिया अपनी गति से घूम रहा था. देखतेदेखते 3 वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका था. अनुपम को कमर्शियल पायलट लाइसैंस मिल गया. शिखा को प्रशासनिक सेवा में सफलता नहीं मिली. उस ने अनुपम से कहा कि प्रशासनिक सेवा के लिए वह एक बार और कंपीट करने का प्रयास करेगी.

अनुपम ने प्राइवेट एयरलाइंस में पायलट की नौकरी जौइन की. लगभग 2 साल वह घरेलू उड़ान पर था. एकदो बार उस ने शिखा को भी अपनी फ्लाइट से सैर कराई. शिखा को कौकपिट दिखाया और कुछ विमान संचालन के बारे में बताया. शिखा को लगा कि उस का सपना पूरा होने जा रहा है. एक साल बाद अनुपम को अंतर्राष्ट्रीय वायुमार्ग पर उड़ान भरने का मौका मिला. कभी सिंगापुर, कभी हौंगकौंग तो कभी लंदन. शिखा को दूसरे वर्ष भी प्रशासनिक सेवा में सफलता नहीं मिली. इधर शिखा के परिवार वाले उस की शादी जल्दी करना चाहते थे. अनुपम ने उन से 1-2 साल का और समय मांगा. दरअसल, अनुपम के पिता उस की पढ़ाई के लिए काफी कर्ज ले चुके थे. अनुपम चाहता था कि अपनी कमाई से कुछ कर्ज उतार दे और छोटी बहन की शादी हो जाए.

वैसे तो वह प्राइवेट एयरलाइंस घरेलू वायुसेवा में देश में दूसरे स्थान पर थी पर इस कंपनी की आंतरिक स्थिति ठीक नहीं थी. 2007 में कंपनी ने दूसरी घरेलू एयरलाइंस कंपनी को खरीदा था जिस के बाद इस की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी थी. 2010 तक हालत बदतर होने लगे थे. बीचबीच में कर्मचारियों को बिना वेतन 2-2 महीने काम करना पड़ा था. उधर शिखा के पिता शादी के लिए अनुपम पर दबाव डाल रहे थे. पर बारबार अनुपम कुछ और समय मांगता ताकि पिता का बोझ कुछ हलका हो. जो कुछ अनुपम की कमाई होती, उसे वह पिता को दे देता. इसी वजह से अनुपम की बहन की शादी भी अच्छे से हो गई. उस के पिता रिटायर भी हो गए थे.

रिटायरमैंट के समय जो कुछ रकम मिली और अनुपम की ओर से मिले पैसों को मिला कर उन्होंने शहर में एक फ्लैट ले लिया. पर अभी भी फ्लैट के मालिकाना हक के लिए और रुपयों की जरूरत थी. अनुपम को कभी 2 महीने तो कभी 3 महीने पर वेतन मिलता जो फ्लैट में खर्च हो जाता. अब भी एक बड़ी रकम फ्लैट के लिए देनी थी.

एक दिन शिखा के पापा ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘आज अनुपम से फाइनल बात कर लेता हूं, आखिर कब तक इंतजार करूंगा और दूसरी बात, मुझे पायलट की नौकरी उतनी पसंद भी नहीं. ये लोग देशविदेश घूमते रहते हैं. इस का क्या भरोसा, कहीं किसी के साथ चक्कर न चल रहा हो.’’ अनुपम के मातापिता तो चाहते थे कि अनुपम शादी के लिए तैयार हो जाए, पर वह तैयार नहीं हुआ. उस का कहना था कि कम से कम यह घर तो अपना हो जाए, उस के बाद ही शादी होगी. इधर एयरलाइंस की हालत बद से बदतर होती गई. वर्ष 2012 में जब अनुपम घरेलू उड़ान पर था तो उस ने दर्दभरी आवाज में यात्रियों को संबोधित किया, ‘‘आज की आखिरी उड़ान में आप लोगों की सेवा करने का अवसर मिला. हम ने 2 महीने तक बिना वेतन के अपनी समझ और सामर्थ्य के अनुसार आप की सेवा की है.’’ इस के चंद दिनों बाद इस एयरलाइंस की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों का लाइसैंस रद्द कर दिया गया. पायलट हो कर भी अनुपम बेकार हो गया.

शिखा के पिता ने बेटी से कहा, ‘‘बेटे, हम ने तुम्हारे लिए एक आईएएस लड़का देखा है. वे लोग तुम्हें देख चुके हैं और तुम से शादी के लिए तैयार हैं. वे कोई खास दहेज भी नहीं मांग रहे हैं वरना आजकल तो आईएएस को करोड़ डेढ़करोड़ रुपए आसानी से मिल जाता है.’’

‘‘पापा, मैं और अनुपम तो वर्षों से एकदूसरे को जानते हैं और चाहते भी हैं. यह तो उस के साथ विश्वासघात होगा. हम कुछ और इंतजार कर सकते हैं. हर किसी का समय एकसा नहीं होता. कुछ दिनों में उस की स्थिति भी अच्छी हो जाएगी, मुझे पूरा विश्वास है.’’ ‘‘हम लोग लगभग 2 साल से उसी के इंतजार में बैठे हैं, अब और समय गंवाना व्यर्थ है.’’

‘‘नहीं, एक बार मुझे अनुपम से बात करने दें.’’ शिखा ने अनुपम से मिल कर यह बात बताई. शिखा तो कोर्ट मैरिज करने को भी तैयार थी पर अनुपम को यह ठीक नहीं लगा. वह तो अनुपम का इंतजार भी करने को तैयार थी.

शिखा ने पिता से कहा, ‘‘मैं अनुपम के लिए इंतजार कर सकती हूं.’’ ‘‘मगर, मैं नहीं कर सकता और न ही लड़के वाले. इतना अच्छा लड़का मैं हाथ से नहीं निकलने दूंगा. तुम्हें इस लड़के से शादी करनी होगी.’’

उस के पिता ने शिखा की मां को बुला कर कहा, ‘‘अपनी बेटी को समझाओ वरना मैं अभी के तुम को गोली मार कर खुद को भी गोली मार दूंगा.’’ यह बोल कर उन्होंने पौकेट से पिस्तौल निकाल कर पत्नी पर तान दी. मां ने कहा, ‘‘बेटे, पापा का कहना मान ले. तुम तो इन का स्वभाव जानती हो. ये कुछ भी कर बैठेंगे.’’

शिखा को आखिरकार पिता का कहना मानना पड़ा ही शिखा अब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की पत्नी थी. उस के पास सबकुछ था, घर, बंगला, नौकरचाकर. कुछ दिनों तक तो वह थोड़ी उदास रही पर जब वह प्रैग्नैंट हुई तो उस का मन अब अपने गर्भ में पलने वाले जीव की ओर आकृष्ट हुआ.

उधर, अनुपम के लिए लगभग 1 साल का समय ठीक नहीं रहा. एक कंपनी से उसे पायलट का औफर भी मिला तो वह कंपनी उस की लाचारी का फायदा उठा कर इतना कम वेतन दे रही थी कि वह तैयार नहीं हुआ. इस के कुछ ही महीने बाद उसे सिंगापुर के एक मशहूर फ्लाइंग एकेडमी में फ्लाइट इंस्ट्रक्टर की नौकरी मिल गई. वेतन, पायलट की तुलना में कम था पर आराम की नौकरी थी. ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी थी इस नौकरी में. अनुपम सिंगापुर चला गया. इधर शिखा ने एक बेटे को जन्म दिया. देखतेदेखते एक साल और गुजर गया. अनुपम के मातापिता अब उस की शादी के लिए दबाव बना रहे थे. अनुपम ने सबकुछ अपने मातापिता पर छोड़ दिया था. उस ने बस इतना कहा कि जिस लड़की को वे पसंद करें उस से फाइनल करने से पहले वह एक बार बात करना चाहेगा. कुछ दिनों बाद अनुपम अपने एक दोस्त की शादी में भारत आया. वह दोस्त का बराती बन कर गया. जयमाला के दौरान स्टेज पर ही लड़की लड़खड़ा कर गिर पड़ी. उस का बाएं पैर का निचला हिस्सा कृत्रिम था, जो निकल पड़ा था. पूरी बरात और लड़की के यहां के मेहमान यह देख कर आश्चर्यचकित थे.

दूल्हे के पिता ने कहा, ‘‘यह शादी नहीं हो सकती. आप लोगों ने धोखा दिया है.’’

लड़की के पिता बोले, ‘‘आप को तो मैं ने बता दिया था कि लड़की का एक पैर खराब है.’’ ‘‘आप ने सिर्फ खराब कहा था. नकली पैर की बात नहीं बताई थी. यह शादी नहीं होगी और बरात वापस जाएगी.’’

तब तक लड़की का भाई भी आ कर बोला, ‘‘आप को इसीलिए डेढ़ करोड़ रुपए का दहेज दिया गया है. शादी तो आप को करनी ही होगी वरना…’’ अनुपम का दोस्त, जो दूल्हा था, ने कहा, ‘‘वरना क्या कर लेंगे. मैं जानता हूं आप मजिस्ट्रेट हैं. देखता हूं आप क्या कर लेंगे. अपनी दो नंबर की कमाई के बल पर आप जो चाहें नहीं कर सकते. आप ने नकली पैर की बात क्यों छिपाई थी. लड़की दिखाने के समय तो हम ने इस की चाल देख कर समझा कि शायद पैर में किसी खोट के चलते लंगड़ा कर चल रही है, पर इस का तो पैर ही नहीं है, अब यह शादी नहीं होगी. बरात वापस जाएगी.’’ तब तक अनुपम भी दोस्त के पास पहुंचा. उस के पीछे एक महिला गोद में बच्चे को ले कर आई. वह शिखा थी. उस ने दुलहन बनी लड़की का पैर फिक्स किया. वह शिखा से रोते हुए बोली, ‘‘भाभी, मैं कहती थी न कि मेरी शादी न करें आप लोग. मुझे बोझ समझ कर घर से दूर करना चाहा था न?’’

‘‘नहीं मुन्नी, ऐसी बात नहीं है. हम तो तुम्हारा भला सोच रहे थे.’’ शिखा इतना ही बोल पाई थी और उस की आंखों से आंसू निकलने लगे. इतने में उस की नजर अनुपम पर पड़ी तो बोली, ‘‘अनुपम, तुम यहां?’’ अनुपम ने शिखा की ओर देखा. मुन्नी और विशेष कर शिखा को रोते देख कर वह भी दुखी था. बरात वापस जाने की तैयारी में थी. दूल्हेदोस्त ने शिखा को देख कर कहा, ‘‘अरे शिखा, तुम यहां?’’

‘‘हां, यह मेरी ननद मुन्नी है.’’ ‘‘अच्छा, तो यह तुम लोगों का फैमिली बिजनैस है. तुम ने अनुपम को ठगा और अब तुम लोग मुझे उल्लू बना रहे थे. चल, अनुपम चल, अब यहां नहीं रुकना है.’’

अनुपम बोला, ‘‘तुम चलो, मैं शिखा से बात कर के आता हूं.’’

बरात लौट गई. शिखा अनुपम से बोली, ‘‘मुझे उम्मीद है, तुम मुझे गलत नहीं समझोगे और माफ कर दोगे. मैं अपने प्यार की कुर्बानी देने के लिए मजबूर थी. अगर ऐसा नहीं करती तो मैं अपनी मम्मी और पापा की मौत की जिम्मेदार होती.’’

‘‘मैं ने न तुम्हें गलत समझा है और न ही तुम्हें माफी मांगने की जरूरत है.’’ लड़की के पिता ने बरातियों से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आप लोग क्षमा करें, मैं बेटी के हाथ तो पीले नहीं कर सका लेकिन आप लोग कृपया भोजन कर के जाएं वरना सारा खाना व्यर्थ बरबाद जाएगा.’’

मेहमानों ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में हमारे गले के अंदर निवाला नहीं उतरेगा. बिटिया की डोली न उठ सकी इस का हमें भी काफी दुख है. हमें माफ करें.’’ तब अनुपम ने कहा, ‘‘आप की बिटिया की डोली उठेगी और मेरे घर तक जाएगी. अगर आप लोगों को ऐतराज न हो.’’

वहां मौजूद सभी लोगों की निगाहें अनुपम पर गड़ी थीं. लड़की के पिता ने झुक कर अनुपम के पैर छूने चाहे तो उस ने तुरंत उन्हें मना किया. शिखा के पति ने कहा, ‘‘मुझे शिखा ने तुम्हारे बारे में बताया था कि तुम दोनों स्कूल में अच्छे दोस्त थे. पर मैं तुम से अभी तक मिल नहीं सका था. तुम ने मेरे लिए ऐसे हीरे को छोड़ दिया.’’

मुन्नी की शादी उसी मंडप में हुई. विदा होते समय वह अपनी भाभी शिखा से बोली, ‘‘प्यार इस को कहते हैं, भाभी. आप के या आप के परिवार को अनुपम अभी भी दुखी नहीं देखना चाहते हैं.’’

उस रात: कहां गायब हो गए राकेश और सलोनी

राकेश ने कार रोकी और उतर कर सलोनी के घर का दरवाजा खटखटाया.

सलोनी ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘‘नमस्ते जीजाजी.’’

‘‘नमस्ते…’’ राकेश ने आंगन में घुसते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है सलोनी?’’

‘‘बस, आप का ही खयाल दिल में है,’’ मुसकराते हुए सलोनी ने कहा.

कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘मामीजी दिखाई नहीं दे रही हैं… कहीं गई हैं क्या?’’

‘‘कल पास के एक गांव में गई थीं. वे एक घंटे में आ जाएंगी. कुछ देर पहले मां का फोन आया था. आप बैठो, तब तक मैं आप के लिए चाय बना देती हूं.’’

‘‘राजन तो स्कूल गया होगा?’’

‘‘हां, वह भी 2 बजे तक आ जाएगा,’’ कहते हुए सलोनी जाने लगी.

‘‘सुनो सलोनी…’’

‘‘हां, कहो?’’ सलोनी ने राकेश की तरफ देखते हुए कहा.

राकेश ने उठ कर सलोनी को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया.

सलोनी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह रसोई में चाय बनाने चली गई.

राकेश खुशी के मारे कुरसी पर बैठ गया.

राकेश की उम्र 35 साल थी. सांवला रंग, तीखे नैननक्श. वह यमुनानगर में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी बबीता, 2 बेटे 8 साला राजू और 5 साला दीपू थे. राकेश प्रोपर्टी डीलर था.

सलोनी बबीता के दूर के रिश्ते के मामा की बेटी थी. वह जगतपुरा गांव में रहती थी. उस के पिताजी की 2 साल पहले खेत में सांप के काटने से मौत हो गई थी. परिवार में मां और छोटा भाई राजन थे. राजन 10वीं जमात में पढ़ रहा था. गांव में उन की जमीन थी. फसल से ठीकठाक गुजारा हो रहा था.

सलोनी को पता भी न चला कि कब राकेश उस के प्रति खिंच गया था.

एक दिन तो राकेश ने उस से कह दिया था, ‘सलोनी, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी आंखें देख कर मुझे नशा हो जाता है. दिल करता है कि हर समय तुम्हें अपने साथ रखूं.’

‘मुझे अपने साथ रखोगे तो बबीता दीदी को कब टाइम दोगे?’

‘उसे तो कई साल से टाइम दे रहा हूं. तुम मेरी जिंदगी में देर से आई हो. अगर पहले आती तो अपना बना लेता.’

‘बहुत अच्छे सपने देखते हो आप…’

‘मैं इस सपने को सच करना चाहता हूं.’

‘कैसे?’

‘यही तो समझ में नहीं आ रहा है अभी.’

इस के बाद सलोनी भी राकेश की ओर खिंचती चली गई. वह देखती थी कि राकेश की बहुत बड़ी कोठियां हैं. 2 कारें हैं. धनदौलत की कमी नहीं है. बबीता तो सीधीसादी है. वह घर में ही रहना ज्यादा पसंद करती है. अगर वह बबीता की जगह पर होती तो राकेश के साथ खूब घूमतीफिरती और ऐश करती.

राकेश जब चंडीगढ़ जाता तो सलोनी के साथ कभीकभी राजन को भी साथ ले जाता था. जब राजन साथ होता तो वे केवल घूमतेफिरते व खरीदारी करते थे.

जब कभी राकेश अकेली सलोनी को ले कर चंडीगढ़ जाता तो वे दोनों किसी छोटे होटल में कुछ घंटे के लिए रुकते थे. वहां राकेश उस से जिस्मानी रिश्ता बनाता था. इस के बाद सलोनी को कुछ खरीदारी कराता और शाम तक वे वापस लौट आते.

बबीता व राकेश के बीच कई बार सलोनी को ले कर बहस हुई, झगड़ा हुआ, पर नतीजा कुछ नहीं निकला. राकेश व सलोनी उसी तरह मिलते रहे.

एक दिन बबीता ने सलोनी को फोन कर दिया था, ‘सलोनी, तुझे शर्म नहीं आती जो अपनी बहन का घर उजाड़ रही है. कभी भी चंडीगढ़ चली जाती है घूमने के लिए.’

‘मैं अपने जीजा की साली हूं. साली आधी घरवाली होती है. आधी घरवाली जीजा के साथ नहीं जाएगी तो फिर किस के साथ जाएगी?’

‘आधी नहीं तू तो पूरी घरवाली बनने की सोच रही है.’

‘दीदी, मेरी ऐसी किस्मत कहां? और हां, मैं जीजाजी को बुलाने नहीं जाती, वे ही आते हैं मेरे पास. तुम उन को रोक लो न,’ सलोनी ने कहा था.

सलोनी की मां भी यह सब जानती थीं. पर वे मना नहीं करती थीं क्योंकि राकेश सलोनी पर खूब रुपए खर्च कर रहा था.

सलोनी कमरे में चाय व खाने का कुछ सामान ले कर लौटी.

चाय पीते हुए राकेश ने कहा, ‘‘चंडीगढ़ जा रहा हूं. एक पार्टी से बात करनी है. मैं ने सोचा कि तुम्हें भी अपने साथ ले चलूं.’’

‘‘आप ने फोन भी नहीं किया अपने आने का.’’

‘‘मैं ने सोचा था कि आज फोन न कर के तुम्हें सरप्राइज दूंगा.’’

‘‘तो मिल गया न सरप्राइज. मां भी नहीं हैं. सूना घर छोड़ कर मैं कैसे जाऊंगी?’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं मामीजी के आने का इंतजार कर लेता हूं. मुझे कौन सी जल्दी है. तुम जरा मामीजी को फोन मिलाओ.’’

सलोनी ने फोन मिलाया. घंटी तो जाती रही, पर कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘पता नहीं, मां फोन क्यों नहीं उठा रही?हैं,’’ सलोनी ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं. मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊंगा. अब चंडीगढ़ तुम्हारे बिना जाने को मन नहीं करता. अगर तुम आज न जा पाई तो 2 दिन बाद चलेंगे,’’ राकेश ने सलोनी की ओर देखते हुए कहा.

कुछ देर बाद सलोनी की मां आ गईं. वे राकेश को देख कर बहुत खुश हुईं और बोलीं, ‘‘और क्या हाल है बेटा? बच्चे कैसे हैं? बबीता कैसी है? कभी उसे भी साथ ले आया करो.’’

‘‘वह तो कहीं आनाजाना ही पसंद नहीं करती मामीजी.’’

‘‘पता नहीं, कैसी आदत है बबीता की,’’ कह कर मामी ने मुंह बिचकाया.

‘‘मामीजी, मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं. सलोनी को भी साथ ले जा रहा हूं.’’

‘‘ठीक है बेटा. शाम को जल्दी आ जाना. सलोनी तुम्हारी बहुत तारीफ करती है कि मेरे जीजाजी बहुत अच्छे हैं. वे मेरा बहुत ध्यान रखते हैं.’’

‘‘सलोनी भी तो किसी से कम नहीं है,’’ राकेश ने मुसकरा कर कहा.

कुछ देर बाद राकेश सलोनी के साथ चंडीगढ़ पहुंच गया. एक होटल में कुछ घंटे मस्ती करने के बाद वे रोज गार्डन और उस के बाद झील पहुंच गए.

‘‘शाम हो चुकी है. वापस नहीं चलना है क्या?’’ सलोनी ने झील के किनारे बैठे हुए कहा.

‘‘जाने का मन नहीं कर रहा है.’’

‘‘क्या सारी रात यहीं बैठे रहोगे?’’

‘‘सलोनी के साथ तो मैं कहीं भी सारी उम्र रह सकता हूं.’’

‘‘बबीता दीदी से यह सब कह कर देखना.’

‘‘उस का नाम ले कर क्यों मजा खराब करती हो. सोचता हूं कि मैं हमेशा के लिए उसे रास्ते से हटवा दूं. दूसरा रास्ता है कि उस से तलाक ले लूं. उस के बाद हम दोनों खूब मजे की जिंदगी जिएंगे,’’ राकेश ने सलोनी का हाथ अपने हाथों में पकड़ कर कहा.

‘‘पहला रास्ता तो बहुत खतरनाक है. पुलिस को पता चल जाएगा और हम मजे करने के बजाय जेल में चक्की पीसेंगे.

‘‘बबीता से तलाक ले कर पीछा छुड़ा लो. वैसे भी वह तुम्हारे जैसे इनसान के गले में मरा हुआ सांप है,’’ सलोनी ने कहा.

अब सलोनी मन ही मन खुश हो रही थी कि बबीता से तलाक हो जाने पर राकेश उसे अपनी पत्नी बना लेगा. वह कोठी, कार और जायदाद की मालकिन बन कर खूब ऐश करेगी.

एक रैस्टोरैंट से खाना खा कर जब राकेश व सलोनी कार से चले तो रात के 8 बज रहे थे. राकेश ने बबीता व सलोनी की मां को मोबाइल फोन पर सूचना दे दी थी कि वे 2 घंटे में पहुंच रहे हैं.

रात के 12 बज गए. राकेश व सलोनी घर नहीं पहुंचे तो मां को चिंता हुई. मां ने सलोनी के मोबाइल फोन का नंबर मिलाया. ‘फोन पहुंच से बाहर है’ सुनाई दिया. राकेश का नंबर मिलाया तब भी यही सुनाई दिया.

कुछ देर बाद बबीता का फोन आया, ‘‘मामीजी, राकेश अभी तक चंडीगढ़ से नहीं लौटे हैं. वे आप के पास सलोनी के साथ आए हैं क्या? उन दोनों का फोन भी नहीं लग रहा है. मुझे तो बड़ी घबराहट हो रही?है.’’

‘‘घबराहट तो मुझे भी हो रही है बबीता. चंडीगढ़ से यहां आने में 2 घंटे भी नहीं लगते. सोचती हूं कि कहीं जाम में न फंस गए हों, क्योंकि आजकल पता नहीं कब जाम लग जाए. हो सकता है कि वे कुछ देर बाद आ जाएं,’’ मामी ने कहा.

‘पता नहीं क्यों मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं कुछ अनहोनी न हो गई हो.’

‘‘डर मत बबीता, सब ठीक ही होगा,’’ मामी ने कहा जबकि उन का दिल भी बैठा जा रहा था.

पूरी रात आंखोंआंखों में कट गई, पर राकेश व सलोनी वापस घर नहीं लौटे.

सुबह पूरे गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कल दोपहर सलोनी और राकेश चंडीगढ़ गए थे. रात लौटने की सूचना दे कर भी नहीं लौटे. उन का कुछ पता नहीं चल रहा है.

बबीता व मामी के साथ 3-4 पड़ोसी थाने पहुंचे और पुलिस को मामले की जानकारी दी. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस इंस्पैक्टर ने बताया, ‘‘रात चंडीगढ़ से यहां तक कोई हादसा नहीं हुआ है. यह भी हो सकता है कि वे दोनों कहीं और चले गए हों.

‘‘खैर, मामले की जांच की जाएगी. आप को कोई बात पता चले या कोई फोन आए तो हमें जरूर सूचना देना.’’

वे सभी थाने से लौट आए.

दिन बीतते चले गए, पर उन दोनों का कुछ पता नहीं चल सका.

जितने मुंह उतनी बातें. वे दोनों तो एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते थे. वे तो चंडीगढ़ मजे करने के लिए जाते थे. राकेश का बस चलता तो सलोनी को दूसरी पत्नी बना कर घर में ही रख लेता. सलोनी तो उस की रखैल बनने को भी तैयार थी. सलोनी की मां ने तो आंखें मूंद ली थीं, क्योंकि घर में माल जो आ रहा था. नहीं तो वे अब तक सलोनी की शादी न करा देतीं.

2 महीने बीत जाने के बाद भी जब राकेश व सलोनी का कुछ पता नहीं चला तो सभी ने यह समझ लिया कि वे दोनों किसी दूसरे शहर में जा कर पतिपत्नी की तरह रह रहे होंगे. अब वे यहां कभी नहीं आएंगे.

एक साल बाद…

उस इलाके की 2 लेन की सड़क को चौड़ा कर के 4 लेन के बनाए जाने का प्रदेश सरकार की ओर से आदेश आया तो बहुत तेजी से काम शुरू हो गया.

2 साल बाद…

एक दिन सड़क किनारे मशीन द्वारा जमीन की खुदाई करने का काम चल रहा था तो अचानक मशीन में कुछ फंस गया. देखा तो वह एक सफेद रंग की कार थी जिस का सिर्फ ढांचा ही रह गया था. उस कार में 2 नरकंकाल भी थे. कार की नंबर प्लेट बिलकुल साफसाफ पढ़ी जा रही थी.

देखने वालों की भीड़ लग गई. पुलिस को पता चला तो पुलिस इंस्पैक्टर व कुछ पुलिस वाले भी वहां पहुंच गए. कार की प्लेट का नंबर पढ़ा तो पता चला कि वह कार राकेश की थी. वे 2 नरकंकाल राकेश व सलोनी के थे. बबीता, सलोनी की मां व भाई भी वहां पहुंच गए. वे तीनों रो रहे थे.

पुलिस इंस्पैक्टर के मुताबिक, उस रात राकेश व सलोनी कार से लौट रहे होंगे. पहले उस जगह सड़क के किनारे बहुत दूर तक दलदल थी. हो सकता है कि कार चलाते समय नींद में या किसी को बचाते हुए या किसी दूसरी वजह से उन की कार इस दलदल में जा गिरी. सुबह तक कार दलदल में पूरी तरह समा गई. किसी को पता भी नहीं चला. धीरेधीरे यह दलदल सूख गया. उन दोनों की कार में ही मौत हो गई.

अगर सड़क न बनती तो किसी को कभी पता भी न चलता कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं. दोनों के परिवारों को हमेशा यह उम्मीद रहती कि शायद कभी वे लौट कर आ जाएं. पर अब सभी को असलियत का पता चल गया है कि वे दोनों लौट कर घर क्यों नहीं आए.

अब बबीता व सलोनी की मां के सामने सब्र करने के अलावा कुछ नहीं बचा था.

वो नीली आंखों वाला: वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

story in hindi

वो नीली आंखों वाला : वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी – भाग 2

इतना ही नहीं, वरुण ने स्कूल में होने वाली रैगिंग से भी कई बार मालिनी को बचाया. और तो और रैगिंग को स्कूल से खत्म ही करवा दिया, क्योंकि वह हैडब्वौय था और उस के एक प्रार्थनापत्र ने प्रधानाचार्य को उस की बात स्वीकार करने के लिए राजी कर लिया, क्योंकि बात काफी हद तक सभी विद्यार्थियों के हितार्थ की थी.

अगले दिन मालिनी उस नीली आंखों वाले लड़के का स्वेटर स्कूल में लौटाती है, किंतु हिचक के कारण वही दो शब्द गले में फांस से अटके रह जाते हैं, जिस की टीस उस के मन में बनी रहती है.

शीघ्र ही स्कूल में बोर्ड के पेपर शुरू होने वाले हैं. सभी का ध्यान पूरी तरह से पढ़ाई पर केंद्रित हो जाता है, क्योंकि अच्छे अंक प्राप्त करना हर विद्यार्थी का लक्ष्य होता है.

बस मालिनी की वह वरुण से आखिरी मुलाकात बन कर रह गई, क्योंकि 9वीं और 11वीं के पेपर खत्म होते ही उन की छुट्टी कर दी गई थी, क्योंकि पूरे विद्यालय में 10वीं व 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के लिए उचित व्यवस्था की जा रही थी.

फिर मालिनी चाह कर भी वरुण से नहीं मिल पाई, क्योंकि वह विद्यालय 12वीं तक ही था, जिस के बाद वरुण ने कहीं और दाखिला ले लिया होगा.

समय के साथसाथ मालिनी भी आगे की पढ़ाई में व्यस्त होती चली गई और वह 12वीं क्लास वाला लड़का उस के मन में एक सम्मानित व्यक्ति की छाप छोड़ कर जा चुका था.

धीरेधीरे मालिनी का ग्रेजुएशन पूरा हो गया और उस के पापा ने बड़े ही भले घर में उस का रिश्ता तय कर दिया. बड़े ही सफल बिजनेसमैन मिस्टर गुप्ता, उन्हीं के बेटे शशांक के साथ बात पक्की हो जाती है और आज अपनी खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 20 बरस बिता चुकी है. उस के 2 बेटे और एक प्यारी सी बेटी भी है.

“अरे मालिनी, कहां हो… जल्दी इधर आओ…” तब मालिनी की तंद्रा टूटती है, जो घंटों से खिड़की के पास खड़ेखड़े 20 बरस से हो रही हृदय की बारिश संग उन पुराने पलों को याद कर सराबोर हो रही होती है.

“हां, आती हूं. अरे, आप… इतना कहां भीग गए…?”

“आज कार रास्ते में ही बंद हो गई. बस, फिर वहां से पैदल ही…”

“आप भी बच्चों की तरह जिद करते हैं… फोन कर के औफिस से दूसरी कार या टैक्सी ले लेते.”

“अरे भई, हम बड़ों को भी तो कभीकभी नादानी कर अपने बचपन से मुलाकात कर लेनी चाहिए. वो मिट्टी की सोंधी सी सुगंध, महका रही थी मेरा तन और मन… याद आ रही थीं वो कागज की नावें…”

मालिनी शशांक को चुटकी काटते हुए बोली, “हरसिंगार सी महक उठ रही है…”

“अरे मैडम, आप का आशिक यों ही थोड़ी देर और ऐसे ही खड़ा रहा, तो सच मानिए आप का मरीज हो जाएगा…”

“आप को तो बस हर पल इमरान हाशमी (रोमांस) सूझता है. बच्चे बड़े हो गए हैं…”

“तो क्या हम बूढ़े हो गए हैं… हा… हा… हा… कभी नहीं मालिनी… मेरा शरीर बूढ़ा भले ही हो जाए, पर दिल हमेशा जवान रहेगा… देख लेना… उम्र पचपन की और दिल बचपन का…”

“अब बातें ही होंगी …मेम साहब या गरमागरम चायपकौड़ी भी…”

“बस, अभी लाई…”

“लीजिए हाजिर है… आप के पसंदीदा प्याज के पकौड़े.”

“वाह… मालिनी वाह… मजा आ गया. आज बहुत दिनों बाद ऐसी बारिश हुई और मैं जम कर भीगा…”

वह मन ही मन बोली, ” मैं भी…”

“अरे, एक बात तो तुम्हें बताना ही भूल गया कि कल हमारे औफिस की न्यू ब्रांच का उद्घाटन है, तो हमें सुबह 10 बजे वहां पहुंचना है. काफी चीफ गेस्ट आ रहे हैं. मैं ने खासतौर पर एक बहुत बड़े उद्योगपति हैं, मिस्टर शर्मा… उन्हें आमंत्रित किया है…

“देखो, वे आते भी हैं या नहीं.. बहुत बड़े आदमी हैं…”

मालिनी चेहरे पर प्यारी सी मुसकान लिए शशांक को अपनी बांहों का बधाईरूपी हार पहना देती है.

मालिनी को बांहों में भरते हुए शशांक भी अपना हाल ए दिल बयां करने से पीछे नहीं रहता. वह कहता है, “यह सब तुम्हारे शुभ कदमों का ही प्रताप है.

“मैं बुलंदी की कितनी ही सीढ़ियां हर पल चढ़ता चला गया… न जाने कितनी ख्वाहिशों को होम होना पड़ा. मैं चलता चला चुनौती भरी डगर पर… पाने को आसमां अपना, पूरी उम्मीद के साथ मिलेगा साथ अपनों का, ख्वाब आंखों में संजोए कि किसी दिन उन बिजनेस टायकून के साथ होगा नाम अपना…

“सच अगर तुम मेरी जिंदगी में ना होती, तो मेरा क्या होता…”

मालिनी हंसते हुए बोली, “हुजूर, वही जो मंजूरे खुदा होता…”

“हा… हा… हा.. हा… हाय, मैं मर जावा…”

अगली सुनहरी सुबह मालिनी और शशांक की राह में पलकें बिछाए खड़ी थी. वह कह रहा था, “कमाल लग रही हो… लगता है, सारी कायनात आज मेरी ही नजरों में समाने को आतुर है.
इस लाल सिल्क की कांजीवरम साड़ी में तो तुम नई दुलहन को भी फीका कर दो…”

“चलिए… अब बस भी कीजिए… बच्चे सुन लेंगे…”

“अरे ,सुनने दो… सुनेंगे नहीं तो सीखेंगे कैसे…”

“चलें अब..?”

“वाह, जी वाह, अपना तो सज लीं. अब जरा इस नाचीज पर भी थोड़ा रहम फरमाइए और यह टाई लगाने में हमारी मदद कीजिए.”

“जी, जरूर…”

“सच कहूं मालिनी, आज तुम्हारी आंखों में देख कर फिर मुझे वही 20 साल पुरानी बातें याद आ रही हैं…

“किस तरह मैं ने तुम्हें घुटने के बल बैठ कर गुलाब के साथ प्रपोज किया था…”

“जनाब, अब ख्वाबों की दुनिया से बाहर निकलिए… कहीं आप के चीफ गेस्ट आप के इंतजार में वहीं सूख कर कांटा ना हो जाए…”

“तो आइए, मोहतरमा तशरीफ लाइए…”

शशांक और मालिनी उद्घाटन समारोह के लिए निकलते हैं. वहां पहुंच कर दोनों अपने मुख्य अतिथि मिस्टर शर्मा का स्वागत करने के लिए गेट पर ही पलकें बिछाए खड़े रहते हैं. जैसे ही मि. शर्मा गाड़ी से उतरते हैं, उन्हें देखते ही मालिनी तो जैसे जड़ सी हो जाती है… उधर मिस्टर शर्मा भी…

“आइएआइए मिस्टर वरुण शर्मा… आप ने आज यहां आ कर हमारा सम्मान बढ़ा दिया.”

“अरे नहीं, आप बेतकल्लुफ हो रहे हैं…”

“बाय द वे माय वाइफ मालिनी…”

मालिनी तो सिर्फ उन्हें देख कर ही 20 बरस पीछे लौट गई. नाम तो सुनने की उसे आवश्यकता ही नहीं रही.

क्या इसी को प्यार कहते हैं?

कमरे के अंदर घुसते ही जगमोहन ने चुपके से दरवाजा बंद कर के रेवती को अपनी बांहों में भरा और उसे बेतहाशा चूमने लगा.

रेवती छिटकती हुई बोली, ‘‘क्या करते हो, रुको तो…’’

‘‘रेवती, अब मुझे कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि अब तो हम ने शादी भी कर ली है…’’

रेवती ने ताना कसा, ‘‘वाह जी वाह, तुम तो ऐसे बोल रहे हो, जैसे शादी के इंतजार में ही अब तक रुके हुए थे…’’

‘‘तुम हो ही ऐसी कि देख कर मेरा मन बेकाबू हो जाता है, लेकिन अब तुम बाकायदा मेरी दुलहन हो. आज से हम एकदम नए ढंग से जिंदगी शुरू करेंगे. पहले तुम सज लो…

‘‘अच्छा रुको, मैं खुद तुम्हें सजा कर दुलहन बनाऊंगा, फिर हम दोनों आज अपनी सुहागरात मनाएंगे…’’

यह सुन कर रेवती का चेहरा शर्म से लाल पड़ गया. उस ने मना करना चाहा, पर जगमोहन उस के कपडे़ उतारने लगा. ब्लाउज उतारने के बाद जगमोहन उसे अपने दहकते होंठों से चूमने लगा.

रेवती के पूरे बदन में जैसे आग सुलग उठी. वह तड़प कर जगमोहन से लिपट गई.

जगमोहन ने रेवती को उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया. इस के साथ ही रेवती ने गलबहियां डाल कर उसे भी अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अचानक दरवाजे पर आहट सुन कर जगमोहन ने चौंक कर धीमे से पूछा, ‘‘कौन आया है?’’

‘‘मैं हूं… धर्मशाला का मैनेजर,’’ बाहर से आवाज आई, ‘‘जल्दी से दरवाजा खोलो. बाहर पुलिस वाले खड़े हैं…’’

पुलिस का नाम सुनते ही रेवती एक बार तो डर के मारे पीली पड़ गई. जगमोहन का भी सारा जोश ठंडा पड़ गया. वह बुझबुझ आवाज में रेवती से बोला, ‘‘लगता है, तुम्हारे घर वालों ने थाने में रिपोर्ट कर दी है…’’

इतनी देर में रेवती भी संभल चुकी थी. झटके से उठ कर वह जल्दीजल्दी कपड़े पहनती हुई बोली, ‘‘तो तुम डरते क्यों हो? मैं तुम्हारे साथ हूं न.

‘‘हम दोनों बालिग हैं और कचहरी में शादी कर के कानूनन पतिपत्नी बन चुके हैं. हमें अब कोई नहीं अलग कर सकता…’’

लेकिन दरवाजा खोलते ही रेवती को जैसे सांप सूंघ गया. 2 पुलिस वालों के साथ अपने पिता रमाशंकर और चाचा कृपाशंकर को देखते ही उस की नजर जमीन में गड़ गई.

रेवती के पिता रमाशंकर एक प्राइवेट कंपनी में हिसाबकिताब देखा करते हैं. रेवती उन की सब से बड़ी बेटी है. उस से छोटी 3 और बेटियां थीं शांति, मालती व कांति.

रमाशंकर की पत्नी सालों से बीमार थी, इसलिए अब वे बेटे की ओर से निराश हो चुके थे और बेटियों को ही अपना बेटा सम?ा कर पालपोस रहे थे. उन की सब से छोटी बेटी कांति 8वीं जमात में पढ़ती थी. शांति और मालती इंटर में पढ़ रही थीं. रेवती ने भी घर से भागने के कुछ दिनों पहले ही बीए में दाखिला लिया था.

रमाशंकर चाहते थे कि उन की लड़कियां खूब पढ़लिख कर कुछ बन जाएं. वे समाज को दिखा देना चाहते थे कि बेटियां बेटों से किसी मामले में कम नहीं होतीं और वे भी सच्चे माने में मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती हैं, इसलिए उन्होंने इंटर पास करने के बाद रेवती को आगे की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी में भेज दिया था.

बस, यही उन से चूक हो गई. वे यह भूल गए कि जवान लड़केलड़कियों का रिश्ता आग व फूस जैसा होता है और जहां ये दोनों साथ होंगे, कभी न कभी चिनगारी जरूर उठेगी.

रेवती भी जगमोहन का साथ पा कर सुलग उठी. जगमोहन उस से एक साल सीनियर था. देखने में स्मार्ट और घर से अमीर.

देखते ही देखते मुलाकातें बढ़ने लगीं और दोनों में प्यार हो गया. रेवती सुबह के 9 बजतेबजते कालेज जाने के लिए तैयार होने लगती और शाम को अकसर लाइबे्ररी या जीरो पीरियड लगने का बहाना कर के देर से घर लौटती, लेकिन बीच का सारा समय जगमोहन के साथ घूमने में बीतता था.

ऐसे ही एकांत के क्षणों में एक दिन भावनाओं में बह कर रेवती ने अपना सबकुछ जगमोहन को सौंप दिया था. इस के बाद यह तकरीबन रोज का सिलसिला बन गया था.

एक दिन अचानक रेवती ने बताया कि वह मां बनने वाली है. यह सुन कर जगमोहन चौंका जरूर था, पर उस ने रेवती का हाथ थाम कर कहा था, ‘पहले हम अपने पैरों पर खड़े हो जाते, तो ठीक रहता. लेकिन जो भी हो, बदनामी होने के पहले ही हमें शादी कर लेनी चाहिए, क्या तुम तैयार हो?’

‘मैं तो तैयार हूं, लेकिन मेरे घर वाले इस रिश्ते को कभी नहीं मानेंगे. अब तो बस एक ही उपाय है कि तुम मुझे ले कर यहां से कहीं दूर ले चलो…’

‘यह क्या कह रही हो रेवती? इस से हमारी कितनी बदनामी होगी? हमें घर वालों को मुंह दिखाना भी मुश्किल हो जाएगा…’

‘यानी कि तुम को मुझ से ज्यादा अपने घर वालों की इज्जत प्यारी है? लेकिन एक बात याद रखो, अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं भी कम नहीं हूं, अपनी जान दे दूंगी…’

रेवती के कहने पर ही जगमोहन उसे ले कर ग्वालियर चला गया और एक महीना इधरउधर छिपता हुआ दिन काटता रहा. आखिर एक वकील की मदद से उस की अदालत में शादी हो गई, तब जा कर वह बेफिक्र हो पाया.

लेकिन पकड़े जाते ही रेवती ने अपना असली रंग दिखा दिया और पुलिस के पूछने पर वह सिसकती हुई कहने लगी, ‘‘जगमोहन कई महीनों से डराधमका कर मेरे साथ मुंह काला कर रहा था, फिर जान से मारने की धमकी दे कर वह मुझे यहां भगा लाया. आज डराधमका कर उस ने मेरे साथ कोर्ट में शादी भी कर ली.’’

यह सुनते ही जगमोहन के पैरों तले जमीन सरक गई. वह चिल्ला पड़ा, ‘‘ऐसा मत कहो रेवती, हमारे प्यार को बदनाम मत करो. तुम नहीं जानती कि तुम्हारे बयान से मेरी जिंदगी पूरी तरह से बरबाद हो जाएगी.’’

लेकिन रेवती ने आंख उठा कर उस की ओर देखा भी नहीं. पुलिस वालों के एक सवाल के जवाब में उस ने अपने पिता और चाचा की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मैं अपने घर जाना चाहती हूं.’’

अदालत के आदेश पर रेवती को उस के पिता के हवाले कर दिया.

जगमोहन अपहरण और बलात्कार के आरोप में हिरासत में जेल में बंद है.

रेवती के इस बरताव ने जगमोहन को जैसे गूंगाबहरा बना दिया है. वह हरदम एक ही बात सोचता रहता है, ‘क्या इसी को प्यार कहते हैं?’

वो नीली आंखों वाला : वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी – भाग 1

मधुमास के बाद लंबी प्रतीक्षा और सावनराजा के धरती पर कदम रखते ही हर जर्रा सोंधी सी सुगंध में सराबोर हो रहा है… मानो सब को सुंदर बूंदों की चुनरिया बना कर ओढ़ा दी हो. लेकिन अंबर के सीने से खुशी की फुलझड़ियां छूट रही हैं… जैसे वह अपने हृदय में उमड़ते अपार खुशी के सागर को आज ही धरती से जा आलिंगन करना चाहता है. बरखा रानी हवाई घोड़े पर सवार हैं, रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं. ऐसे बरस रही हैं, जैसे अब के बाद फिर कभी उसे धरती का सीना तरबतर करने और समस्त धरा को अपने स्नेह का कोमल स्पर्श करने आना ही नहीं है. हर पत्ता, हर डाली, हर फूल खुद को वैजयंती माल समझ इतरा रहा हो और इस धरती के रैंप पर मानो कैटवाक कर रहा हो….

घर की दुछत्ती यह सारा मंजर आंखें फाड़फाड़ कर देख रही है मानो ईर्ष्या से दरार पड़ गई हो, और उस का रुदन मालिनी के दिल को भी छलनी कर रहा है, जैसे एक बहन दूसरे के दुख में पसीज रही हो.

ऐसी बारिश जबजब पड़ी, उस ने मालिनी को हर बार उन बीती यादों की सुरंग में पीछे ले जा कर धकेल दिया.

उन यादों के खूबसूरत झूलों के झोटे तनमन में स्पंदन पैदा कर देते हैं.

वह खूबसूरत सा दिखने वाला, नीलीनीली आंखों वाला, लंबा स्मार्ट (कामदेव की ट्रू कौपी) वो 12वीं क्लास वाला लड़का आंखों के आगे घूम ही जाता.

मालिनी ने जब 9वीं कक्षा में स्कूल बदला तो वहां सिर्फ एक वही था, उन सभी अजनबियों के बीच… जिस ने उस की झिझक को समझा कि किस प्रकार एक लड़की को नए वातावरण में एडजस्ट होने में वक्त तो लगता ही है. पर साथ ही साथ किसी अच्छे साथी के साथ की भी आवश्यकता होती है. उस ने हिंदी मीडियम से अंगरेजी मीडियम में प्रवेश जो लिया था, इसी कारण सारी लड़कियां मालिनी को बैकवर्ड और लो क्लास समझ भाव ही नहीं देती थीं. वह जबजब इंटरवल या असेंबली में वरुण को दिख जाती, वही उस की खोजखबर लेता रहता.

“और बताओ… ‘छोटी’, कोई परेशानी तो नहीं…?” उस ने कभी मालिनी का नाम जानने की कोशिश ही नहीं की.

एक तो वह जूनियर थी और ऊपर से कद में भी छोटी और सुंदर. वो उसे प्यार से छोटी ही पुकारता और उस के अंदर हमेशा “मैं हूं ना” कह कर उसे आतेजाते शुक्ल पक्ष के चतुर्थी के चांद सी, छोटी सी मुसकराहट से सराबोर कर जाता. मालिनी का हृदय इस मुसकराहट से तीव्र गति से स्पंदित होने लगता… लेकिन ना जाने क्यों…?

उस को वरुण का हर समय हिफाजत भरी नजरों से देखना… कुछकुछ महसूस कराने लगा था. किंतु क्या…? वह यह समझ ही नहीं पा रही थी. क्या यही प्रेम की पराकाष्ठा थी? या किसी बहुत करीबी के द्वारा मिलने वाला स्नेह और दुलार था…?

किंतु इस सुखद अनुभूति में लिप्त मालिनी भी अब नि:संकोच हो कर मन लगा कर पढ़ने लगी. उसे जब भी कोई समस्या होती, उसी नीली आंखों वाले लड़के से साझा करती. हालांकि इतनी कम उम्र में लड़केलड़कियों में अट्रैक्शन तो आपस में रहता ही है, चाहे वह किसी भी रूप में हो…

सिर्फ दोस्त या सिर्फ प्रेमी या एक भाई जैसा संबोधन… शायद भाई कहना गलत होगा, क्योंकि इस रिश्ते का सहारा ज्यादातर लड़केलड़कियां स्वयं को मर्यादित रखने के चक्कर में लेते हैं.

मालिनी अति रूढ़िवादी परिवार में जनमी घर की दूसरे नंबर की बेटी थी. उस के 2 भाई और 2 बहनें थीं. वह देखने में अति सुंदर गोरी और पतली. सहज ही किसी का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की काबिलीयत रखती थी.

एक दिन मालिनी स्कूल से लौटते वक्त बस स्टाप पर चुपचाप खड़ी थी. बस के आने में अभी टाइम था. खंभे से सट कर वह खड़ी हो गई, तभी वरुण वहां से साइकिल पर अपने घर जा रहा था कि उस की नजर मालिनी पर पड़ी और पास आ कर बोला, “छोटी, अभी बस नहीं आई…”

“नहीं…”

“चलो, मैं तुम्हारे साथ वेट करता हूं… बस के आने का..”

वह चुप ही रही. उस के मुंह से एक शब्द न फूटा.

सर्दियों की शाम में 4 बजे बाद ही ठंडक बढ़ने लगती है. आज बस शायद कुछ लेट थी. वह बारबार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखता, तो कभी बस के इंतजार में आंखें फैला देता.

पर, इतनी देर वह चुपचाप वहीं खड़ी रही जैसे उस के मुंह में दही जम रहा हो… टस से मस नहीं हुई…
दूर से आती बस को देख वह खुश हुआ. बोला, “चलो आ गई तुम्हारी बस. मैं भी निकलता हूं, ट्यूशन के लिए लेट हो रहा हूं.”

स्टाप पर आ कर बस रुक जाती है और सभी लड़कियां चढ़ जाती हैं, किंतु मालिनी वहीं की वहीं… यह देख वरुण आश्चर्यचकित हो अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगता है. बस आगे बढ़ जाती है.

वरुण थोड़ी देर सोचने के बाद… फौरन अपना स्वेटर उतार कर मालिनी को दे देता है. वह कहता है, “यह लो छोटी… इसे कमर पर बांध लो…

“और…”

“पर, आप… यह क्यों…”

“ज्यादा चूंचपड़ मत करो… मैं समझ सकता हूं तुम्हारी परेशानी…”

“पर, आप कैसे…?”

“मेरे घर में 2 बड़ी बहनें हैं. जब वे इस दौर से गुजरी, तभी मेरी मां ने उन दोनों को इस बारे में शिक्षित करने के साथसाथ मुझे भी इस बारे में पूरी तरह निर्देशित किया… जैसे गुलाब के साथ कांटों को भी हिदायत दी जाती है कि कभी उन्हें चुभना नहीं…

“क्योंकि मेरी मां का मानना था कि तुम्हारी बहनों को ऐसे समय में कोई लड़का छेड़ने के बजाय मदद करे, तो क्यों न इस की शुरुआत अपने घर से ही करूं…

“तो मुझे तुम्हारी स्थिति देख कर समझ आ गया था. चलो, अब जल्दी करो… और घर पहुंचो. तुम्हारी मां तुम्हारा इंतजार कर रही होंगी.”

मालिनी उस वक्त धन्यवाद के दो शब्द भी ना बोल पाई. उन्हें गले में अटका कर ही वहां से तेज कदमों से घर की ओर रवाना हुई.

फिर उसे अगले स्टाप पर घर जाने वाली दूसरी बस मिल गई.

उस के घर में दाखिल होते ही उस का हुलिया देख मां ऊपर वाले का लाखलाख धन्यवाद देने लगती है कि जिस बंदे ने आज मेरी बच्ची की यों मदद की है, उस की झोली खुशियों से भर दे. जरूर ही उस की मां देवी का रूप होगी.

कोई लौटा दे मेरे: कैसे उजड़ी अशफाक की दुनिया

‘अशफाक अंसारी, वल्द एसआर अंसारी, ऐशबाग, भोपाल, आप को रिहा किया जाता है और पुलिस की गलती के लिए अदालत आप से खेद जाहिर करती है,’ जज साहब का लिखा यह वाक्य पढ़ कर जेलर ने अशफाक को सुना दिया और शाम के 4 बजे उसे रिहा कर दिया गया.

पुलिस द्वारा दिए गए 15 सौ रुपए के साथ जब अशफाक भोपाल लौटा, तो वहां की दुनिया देख कर दंग रह गया. महज 4 सालों में ही उस की दुनिया उजड़ गई थी.

पुलिस की एक छोटी सी भूल ने अशफाक को सड़क पर ला कर पटक दिया था. वह खो गया यादों में…

आज से 4 साल पहले 45 साला अशफाक मंडी में आलू का कारोबार करता था और अपनी बीवी व 4 बच्चों के साथ सुख की जिंदगी गुजार रहा था.

अशफाक की बड़ी बेटी तकरीबन 18 साल की थी, जिस का निकाह उस ने सलमान भाई के बेटे के साथ ठीकठाक किया था. दोनों परिवारों में हंसीखुशी का माहौल था.

उस दिन मंगनी की रस्म अदा होनी थी कि अचानक अशफाक पर मानो तूफान आ गया. वह मंडी से आलू का कारोबार कर दोपहर के एक बजे नमाज अदा कर के उठा ही था कि एक पुलिस वाले ने उसे झट से पकड़ लिया और बोला, ‘अशफाक मियां, तुम्हें थाने में बुलाया गया है.’

अशफाक घर पर सब को बताता हुआ थाने पहुंचा, पर वहां उस से नाम पूछ कर हवालात में डाल दिया गया.

‘थानेदार साहब, मैं ने किया क्या है?’ अशफाक ने मासूमियत से पूछा. ‘ज्यादा भोला मत बन. लड़कियों को छेड़ना, उन की सोने की चेनें छीनना तुम्हारा काम है,’ इंस्पैक्टर उसे धमकाते हुए बोला.

‘साहब, वह अशफाक दूसरा है. वह गुंडा हमारे साथ वाली गली में रहता है. मैं तो आलू वाला हूं,’ अशफाक अपने बारे में सफाई देते हुए बोला.

‘अबे चुप, मैं तेरी नसनस से वाकिफ हूं. भोला बन कर लूटता है,’ यह कहते हुए इंस्पैक्टर ने अशफाक को मजिस्ट्रेट के पास भेजा, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

उस के बाद तारीख पर तारीख और महीनों गुजरते गए. अशफाक को पहले भोपाल और फिर जबलपुर की जेल में भेज दिया गया. इसी बीच एक दिन उसे पता चला कि उस की बेटी की मंगनी टूट गई है.

‘हमें किसी अपराधी की बेटी ब्याह कर नहीं लानी,’ यह बात खुद सलमान ने उसे जेल में मिल कर बताई.

‘आप को तो पता है कि मैं अपराधी नहीं हूं. मुझे दूसरे शख्स की जगह जेल में डाला गया है,’ यह सफाई देते हुए अशफाक थक गया.

‘कुछ भी कह लो भाई. मुझे माफ करना, लेकिन एक अपराधी की बेटी घर में ला कर मुझे अपनी इज्जत का जनाजा नहीं निकलवाना. आप हमें तो माफ ही करना,’ इतना कह कर बगैर उस की बात सुने सलमान लौट गया.

अब तो अशफाक को दोहरी मार झेलनी पड़ी. बीवी और बच्चे जैसेतैसे कर के घर की गाड़ी खींच रहे हैं और वह जेल में सड़ रहा है.

अशफाक ने मुश्किल से अपनी बात जज साहब को बता डाली, ‘साहब, मेरा नाम अशफाक अंसारी, मेरे पिता का नाम एसआर अंसारी है, जबकि दूसरा अशफाक फइमुद्दीन अंसारी का बेटा है. वह ऐशबाग की गली नंबर 412 में रहता है, जबकि मैं 214 में रहता हूं.

मेरा 20 सालों से सब्जी मंडी में आलू का कारोबार है, जबकि वह गुंडागर्दी करता है.’ अशफाक ने जब इतनी बातें बताईं, तो जज साहब ने पूछा, ‘तुम्हारे पास इस बात का कोई सुबूत है?’

‘जज साहब, आप के रिकौर्ड की सारी बातें उस गुंडे से मेल खाती हैं, जबकि मेरा वोटर आईडी कार्ड, राशनकार्ड वगैरह तमाम कागजात घर से मंगवा कर सचाई पता की जा सकती है,’ अशफाक रोते हुए अपनी बात रख रहा था.

‘देखो मियां, हमें तुम से पूरी हमदर्दी है. अगर तुम सही हो, तो हम तुम्हें यकीनन रिहा कर देंगे,’ जज साहब ने उसे हौसला देते हुए कहा.

अब उसे बाइज्जत वापस जेल भेज दिया गया. इस से जेलर और सभी मुलाजिम इज्जत से पेश आने लगे. फिर तो 3-4 तारीख में मामला साफ हो गया. कोर्ट में वकील की दलीलों ने उसे बेकुसूर और इंस्पैक्टर की गलती साबित कर दी.

इंस्पैक्टर को जब पता चला, तो वह असली मुजरिम की खोज में जुट गया, पर इस सब में 4 साल बीत गए.

अशफाक बीती यादों से बाहर निकल आया. अब उस के बीवीबच्चे झुग्गी में बड़ी मुश्किल से दिन गुजार रहे थे. मां तो पागल सी हो गई थी.

‘‘घबराओ मत, सब ठीक हो जाएगा. मैं काजी साहब से मिल कर सबकुछ सुधार दूंगा. धंधा भी ठीक हो जाएगा.’’ वह सब को दिलासा दे रहा था, पर खुद इंस्पैक्टर पर झंझला रहा था.

जब अशफाक ऐशबाग थाने के सामने से गुजर रहा था, तो वहां उस ने लिखा देखा, ‘पुलिस आप की सुरक्षा में’. हकीकत में पुलिस ने उसे इतनी सुरक्षा दी, जिस की हद नहीं.

यहां नाम ने उसे बदनाम कर दिया. कौन कहता है कि नाम कुछ नहीं है. बस, एकजैसे नाम ने उसे जेल और दूसरे को मौका दिया.

‘बेटीबेटा एकसमान’. इस नारे को पढ़ कर अशफाक टूट गया. उस की बेटी तो बिना गलती के ही पिस गई.

बेटी नहीं होती है, तो सबकुछ ठीक होता है. इस तरह ये सारे फूल उसे शूल की तरह चुभने लगे और वह बिस्तर पर लेट कर फूटफूट कर रोने लगा.

इश्कबाज को सबक : क्या मोड़ लाई वर्तिका और गजाला की दोस्ती

ग्रेजुएशन करने के बाद वर्तिका बैंक में प्रोबेशनरी अफसर बनने की तैयारी में लगी हुई थी. इस के लिए उस ने एक जानेमाने कोचिंग सैंटर में दाखिला ले लिया था. वहीं उस की मुलाकात गजाला से हुई थी. वह भी उसी कोचिंग सैंटर में प्रोबेशनरी अफसर की तैयारी कर रही थी. जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई थी.

एक दिन गजाला ने वर्तिका को अपने भाई के दोस्त विक्रम से मिलवाया, ‘‘वर्तिका, इन से मिलो. ये हैं मेरे भाई के दोस्त विक्रम. काफी हैंडसम हैं न… क्यों?’’ यह कह कर गजाला मुसकराई.

‘‘अरे, हम हैंडसम हैं, तो क्या आप की सहेली कम खूबसूरत हैं? हमें तो आप की सहेली किसी ‘ब्यूटी क्वीन’ से कम नहीं लगतीं,’’ विक्रम ने वर्तिका की खूबसूरती की तारीफ करते हुए कहा.

पहली मुलाकात में ही अपनी खूबसूरती की ऐसी तारीफ सुन कर वर्तिका झोंप गई. विक्रम अब हर रोज ही वर्तिका और गजाला से कोचिंग के बाद मिलने लगा.

एक दिन गजाला जानबूझ कर कोचिंग सैंटर नहीं आई. कोचिंग के छूटने के बाद विक्रम वर्तिका को रास्तेमें मिला.

वर्तिका उस से बचना चाहती थी, फिर भी उस ने वर्तिका का रास्ता रोकते हुए कहा, ‘‘वर्तिकाजी, आज गजाला नहीं आई क्या?’’

‘‘नहीं, वे तो आज नहीं आईं.’’

‘‘तो क्या आज आप हम से बात भी नहीं करेंगी? क्या हम इतने बुरे हैं?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. आप तो काफी हैंडसम हैं.’’

आखिरी शब्द वर्तिका के मुंह से अचानक ही निकल पड़े थे. अब तो विक्रम पर जैसे हैंडसम होने का नशा ही चढ़ गया, जबकि वर्तिका सोचने लगी कि उस की जीभ कैसे फिसल गई.

मौके का फायदा उठाते हुए विक्रम ने कहा, ‘‘वर्तिकाजी, मेरा दिल तो कहता है कि आप इस जहां की सब से हसीन लड़की हो. मेरा दिल तो आप से दोस्ती करने को चाहता है,’’ इतना कह कर वह मोटरसाइकिल स्टार्ट कर वहां से चला गया.

विक्रम के जाने के बाद वर्तिका सोचने लगी, ‘विक्रम हैंडसम है. वह मुझ से दोस्ती भी करना चाहता है. अगर उस से दोस्ती कर ली जाए, तो इस में हर्ज ही क्या है?’

अगले दिन वर्तिका ने बातोंबातों में गजाला से लड़कों से दोस्ती करने की बात कही. गजाला समझ गई कि वर्तिका के मन में क्या चल रहा है. उस ने वर्तिका की बातों पर रजामंदी

का ठप्पा लगाते हुए कहा, ‘‘वर्तिका, लड़कों से दोस्ती करने में आखिर बुराई ही क्या है?’’

फिर गजाला ने वर्तिका के चेहरे को पढ़ते हुए कहा, ‘‘लेकिन वर्तिका, तू यह सब क्यों पूछ रही है? कहीं तेरा मन भी किसी लड़के से दोस्ती करने को तो नहीं चाह रहा है? कहे तो विक्रम से तेरी दोस्ती करा दूं.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘अरे झठी, तेरे चेहरे की मुसकराहट बता रही है कि तेरे मन में विक्रम को ले कर लड्डू फूट रहे हैं.’’

‘‘चल हट, मैं तुझ से बात नहीं करती,’’ वर्तिका ने वहां से चलते हुए कहा.

अब गजाला सब समझ गई थी. उस ने विक्रम और वर्तिका की आपस में दोस्ती करा दी. फिर उन्होंने एकदूसरे से मोबाइल फोन नंबर भी ले लिए.

वर्तिका विक्रम के प्यार में इस कदर डूब चुकी थी कि उस ने विक्रम के बारे में कोई जानकारी जुटाना भी ठीक नहीं समझ.

इस के बाद वर्तिका और विक्रम एकदूसरे को प्यार भरे एसएमएस भेजने लगे. गजाला इश्क की इस आग में घी डालने का काम कर रही थी.

वर्तिका के जन्मदिन पर विक्रम ने उसे एक महंगा मोबाइल फोन गिफ्ट में दिया. जब विक्रम का जन्मदिन आया, तो वर्तिका ने उसे एक महंगी टीशर्ट गिफ्ट में दी.

विक्रम ने एक दिन मौका देख कर वर्तिका से डेटिंग पर चलने को कहा. वर्तिका तो जैसे तैयार ही बैठी थी. उस ने तुरंत हामी भर दी.

अगले दिन वर्तिका सहेली से मिलने का बहाना बना कर विक्रम के साथ डेटिंग पर चली गई.

विक्रम वर्तिका को मोटरसाइकिल पर बैठा कर शहर से दूर झल के किनारे पिकनिक स्पौट पर ले गया.

अभी वर्तिका और विक्रम एक पेड़ की छांव में बैठे ही थे कि तभी विक्रम का मोबाइल फोन बज उठा, लेकिन उस ने फोन काट दिया. थोड़ी देर बाद फिर उस का मोबाइल फोन बज उठा.

वह वहां से उठ कर जाना चाहता था, लेकिन वर्तिका ने रोक लिया. अब विक्रम की मजबूरी हो गई थी कि वहीं पर फोन सुने.

उस ने जल्दबाजी में झठ बोला, ‘‘हैलो, मैं मोटरसाइकिल चला रहा हूं. बाद में बात करूंगा,’’ इतना कह कर उस ने फोन काट दिया.

वर्तिका समझ गई थी कि यह किसी लड़की का फोन था. इसी वजह से विक्रम उस के सामने मोबाइल फोन पर बातें करने से बच रहा था. बस, यहीं से उस के मन में विक्रम के प्रति शक पैदा हो गया.

बातों ही बातों में उस ने असलियत जानने की एक तरकीब सोच ली. उसे कुछ दूरी पर एक आइसक्रीम वाला दिखाई दिया. उस ने विक्रम से कहा, ‘‘मेरा मन तो आइसक्रीम खाने को कर रहा है.’’

‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है. मैं अभी अपने और तुम्हारे लिए आइसक्रीम ले कर आता हूं.’’

इतना कह कर विक्रम जल्दी से वहां से उठा, पर उसे अपना मोबाइल फोन का ध्यान ही नहीं रहा.

जैसे ही विक्रम वहां से गया, वर्तिका ने उस का मोबाइल फोन खंगालना शुरू कर दिया. उस ने जल्दी से दीपा, कंगना और रूबीना के फोन नंबर ले लिए.

अब वर्तिका को पूरा यकीन हो गया था कि दाल में जरूर कुछ काला है. विक्रम के आने पर सिरदर्द का बहाना बना कर वापस चलने को कहा.

विक्रम अभी घर नहीं जाना चाहता था, लेकिन वह वर्तिका को नाराज भी नहीं करना चाहता था. लिहाजा, वह बुझे मन से घर चलने को तैयार हुआ.

अब वर्तिका ने दीपा, कंगना और रूबीना से मिल कर उन से दोस्ती कर ली. लेकिन विक्रम के बारे में उस ने किसी से कोई जिक्र नहीं किया.

एक दिन दीपा ने खुश हो कर वर्तिका को बताया कि अगले दिन वह अपने बौयफ्रैंड के साथ डेटिंग पर जा रही है. वर्तिका तुरंत समझ गई कि वह किस के साथ डेटिंग पर जा रही है.

तब वर्तिका ने दीपा और विक्रम की डेटिंग कन्फर्म करने के लिए विक्रम को फोन लगाया. उस ने विक्रम से डेटिंग पर चलने को कहा, लेकिन उस ने एक जरूरी काम बता कर टाल दिया.

अगले दिन वर्तिका ने विक्रम का पीछा करना शुरू किया. विक्रम मोटरसाइकिल पर था, जबकि वर्तिका अपनी स्कूटी पर. वह जानती थी कि विक्रम दीपा को डेटिंग के लिए झल पर ही ले जाएगा, क्योंकि प्रेमी जोड़ों की डेटिंग के लिए इस से बढि़या जगह कोई दूसरी न थी.

विक्रम दीपा को लेकर झल की ओर चल पड़ा. जब झल पर पहुंच कर दीपा और विक्रम मटरगश्ती करने लगे, तभी दीपा ने वहां पहुंच कर चुपके से अपने मोबाइल फोन में लगे कैमरे से उन की वीडियो फिल्म बना ली और घर चली आई.

वर्तिका ने ऐसी ही वीडियो फिल्में कंगना और रूबीना के साथ भी इश्कबाज विक्रम की बना डालीं.

एक दिन वर्तिका ने दीपा, कंगना और रूबीना को अपने घर बुलाया, फिर उस ने उन वीडियो फिल्मों को कंप्यूटर में डाउनलोड कर के उन तीनों को दिखलाया.

अब विक्रम की इश्कबाजी का कच्चा चिट्ठा खुल चुका था. अब चारों ने विक्रम को सबक सिखाने की ठानी. साथ ही, उन्होंने फैसला किया कि लड़कियों को पे्रमजाल में फंसाने वाली गजाला का भी दिमाग ठिकाने लगाना चाहिए.

वर्तिका ने अपने मम्मीपापा से सब बातें साफसाफ बता दीं और उन से अपनी गलती की माफी भी मांग ली.

पहले वर्तिका के मम्मीपापा उस की बात पर राजी नहीं हुए, लेकिन जब उस ने उन्हें अपनी योजना समझ , तो वे भी ऐसे मक्कार इश्कबाजों को सबक सिखाने के लिए तैयार हो गए.

तब योजना के मुताबिक, वर्तिका ने एक दिन विक्रम और गजाला को अपने घर बुलाया और उन्हें अपने कमरे में ले गई. वहां उस ने उन्हें कंप्यूटर पर दीपा, कंगना और रूबीना वाली वीडियो फिल्में दिखाईं. विक्रम और गजाला की काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई.

वे चुपचाप वहां से खिसकना चाहते थे, लेकिन वर्तिका उन्हें ऐसे कैसे जाने देती. उस ने 3 तालियां बजाईं, जिन्हें सुन कर पास के कमरे में छिपी बैठी दीपा, कंगना और रूबीना भी वहां आ गईं.

कंगना ने विक्रम से पूछा, ‘‘कहिए मियां मजनू, क्या हाल है? और कितनी लड़कियां चाहिए तुम्हें इश्क फरमाने के लिए?’’

विक्रम ने अचानक चाकू निकाल लिया और कंगना की गरदन पर रखते हुए बोला, ‘‘तुम सब कमरे के एक कोने में जाओ, नहीं तो चाकू से कंगना की गरदन हलाल कर दूंगा.’’

इस के बाद गजाला ने वर्तिका, दीपा और रूबीना के मोबाइल फोन अपने कब्जे में कर लिए और विक्रम के कहने पर गजाला ने उन के मुंह व हाथपैरों को कस कर बांधने के बाद सब को बाथरूम में बंद कर दिया.

विक्रम और गजाला घर से निकल कर बाहर की ओर भागे, लेकिन सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े. सामने दरवाजे पर इंस्पैक्टर शोभित रिवाल्वर ताने खड़ा था. उस के ‘हैंड्सअप’ कहते ही विक्रम और गजाला ने अपने हाथ ऊपर कर लिए.

तब इंस्पैक्टर शोभित ने अपने साथ आए पुलिस वालों को आदेश देते हुए कहा, ‘‘रामदीन, इस लड़के की तलाशी लो. और अर्चना, तुम इस लड़की की तलाशी लो.’’

पुलिस को देख कर विक्रम और गजाला चौंक गए. उन की हैरानी को दूर करते हुए इंस्पैक्टर शोभित ने कहा, ‘‘तुम दोनों को जरा भी हैरान होने की जरूरत नहीं है. तुम दोनों जब से इस घर में घुसे हो, तभी से हमारी गिरफ्त में हो.

‘‘वर्तिका के मम्मीपापा के साथ हम यहां पहले से ही मौजूद थे. हम सामने वाले पड़ोसी के घर में छिपे थे.

‘‘हम जानते थे कि तुम जैसे मक्कार लोग कोई न कोई गुस्ताखी जरूर करते हैं, इसलिए घर में घुसने से ले कर बाहर आने तक की तुम्हारी वीडियोग्राफी हम ने तैयार करा ली.

‘‘पड़ोसी की छत से आ कर हमारे फोटोग्राफर ने सारा काम बखूबी अंजाम दिया. अब यह वीडियोग्राफी तुम दोनों को अदालत में सजा दिलवाने में बड़ी काम आएगी.’’

यह सुन कर गजाला और विक्रम के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वे इंस्पैक्टर शोभित के सामने गिड़गिड़ाने लगे, लेकिन इंस्पैक्टर शोभित ने कानून के अनुसार अपना काम किया.

बाथरूम में बंद वर्तिका, दीपा, कंगना व रूबीना के हाथपैरों और मुंह को खोला गया और उन के बयान लिए गए.

वर्तिका की बढि़या योजना और हिम्मत पर शाबाशी देते हुए इंस्पैक्टर शोभित ने कहा, ‘‘अगर हमारे देश की सारी लड़कियां वर्तिका की तरह हिम्मत और होशियारी से काम लें, तो वे ऐसे मक्कार इश्कबाजों से धोखा खाने से बच जाएं.’’

इस के बाद इंस्पैक्टर शोभित गजाला और विक्रम को जीप में बैठा कर अपने साथ आगे की कार्यवाही के लिए थाने ले गया.

मुहब्बत पर फतवा: रजिया की कहानी

रजिया को छोड़ कर उस के वालिद ने दुनिया को अलविदा कह दिया. उस समय रजिया की उम्र तकरीबन 2 साल की रही होगी. रजिया को पालने, बेहतर तालीम दिलाने का जिम्मा उस की मां नुसरत बानो पर आ पड़ा.

खानदान में सिर्फ रजिया के चाचा, चाची और एक लड़का नफीस था. माली हालत बेहतर थी. घर में 2 बच्चों की परवरिश बेहतर ढंग से हो सके, इस का माकूल इंतजाम था. अपने शौहर की बात को गांठ बांध कर नुसरत बानो ने दूसरे निकाह का ख्वाब पाला ही नहीं. वे रजिया को खूब पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाने का सपना देखने लगीं.

‘‘देखो बेटी, तुम्हारी प्राइमरी की पढ़ाई यहां हो चुकी है. तुम्हें आगे पढ़ना है, तो शहर जा कर पढ़ाई करनी पड़ेगी. शहर भी पास में ही है. तुम्हारे रहनेपढ़ाने का इंतजाम हम करा देंगे, पर मन लगा कर पढ़ना होगा… समझी?’’ यह बात रजिया के चाचा रहमत ने कही थी.

दोनों बच्चों ने उन की बात पर अपनी रजामंदी जताई. अब रजिया और उस के चाचा का लड़का नफीस साथसाथ आटोरिकशे से शहर पढ़ने जाने लगे. दोनों बच्चे धीरेधीरे आपस में काफी घुलमिल गए थे. स्कूल से आ कर वे दोनों अकसर साथसाथ रहते थे.

अचानक एक दिन बादल छाए, गरज के साथ पानी बरसने लगा. रजिया ने आटोरिकशे वाले से जल्दी घर चलने को कहा. इस पर आटोरिकशा वाले ने कुछ देर बरसात के थमने का इंतजार करने को कहा, पर रजिया नहीं मानी और जल्दी घर चलने की जिद करने लगी.

भारी बारिश के बीच तेज रफ्तार से चल रहा आटोरिकशा अचानक एक मोड़ पर आ कर पलट गया. ड्राइवर आटोरिकशा वहीं छोड़ कर भाग गया.

रजिया आटोरिकशा के बीच फंस गई, जबकि नफीस यह हादसा होते ही उछल कर दूर जा गिरा. उस ने बहादुरी से पीछे आ रहे अनजान मोटरसाइकिल वाले की मदद से आटोरिकशे में फंसी रजिया को बाहर निकाला.

‘‘मामूली चोट है. उसे 2-3 दिन अस्पताल में रहना होगा,’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘ठीक है. आप भरती कर लें डाक्टर साहब,’’ रजिया के चाचा रहमत ने कहा.

नफीस अपने परिवार वालों के साथ रजिया की तीमारदारी में लग गया. परिवार वाले दोनों के प्यार को देख कर खुश होते.

‘‘नफीस, अब तुम सो जाओ. रात ज्यादा हो गई है. मुझे जब नींद आ जाएगी, तो मैं भी सो जाऊंगी,’’  रजिया ने कहा.

‘‘नहीं, जब तक तुम्हें नींद नहीं आएगी, तब तक मैं भी जागूंगा,’’ नफीस बोला.

नफीस ने रजिया की देखरेख में कोई कसर नहीं छोड़ी. उस की इस खिदमत से रजिया उसे अब और ज्यादा चाहने लगी थी.

‘‘अम्मी देखो, मैं और नफीस मैरिट में पास हो गए हैं.’’

अम्मी यह सुन कर खुश हो गईं. थोड़ी देर के बाद वे बोलीं, ‘‘अब तुम दोनों अलगअलग कालेज में पढ़ोगे.’’

‘‘पर, क्यों अम्मी?’’ रजिया ने पूछा.

‘‘तुम डाक्टर की पढ़ाई करोगी और नफीस इंजीनियरिंग की. दोनों के अलगअलग कालेज हैं. अब तुम दोनों एकसाथ थोड़े ही पढ़ पाओगे. नफीस के अब्बू उसे इंजीनियर बनाना चाहते हैं. हां, पर रहोगे एक ही शहर में,’’ अम्मी ने रजिया को प्यार से समझाया.

‘‘ठीक है अम्मी,’’ रजिया ने छोटा सा जवाब दिया.

उन दोनों का अलगअलग कालेज में दाखिला हो गया. दाखिला मिलते ही वे दोनों अलगअलग होस्टल में रहने लगे. एक रात अचानक 11 बजे नफीस के मोबाइल फोन की घंटी बजी.

‘‘नफीस, सो गए क्या?’’ रजिया ने पूछा.

‘‘नहीं रजिया, तुम्हारी याद मुझे बेचैन कर रही है. साथ ही, अम्मीअब्बू और बड़ी अम्मी की याद भी आ रही है,’’ कह कर नफीस सिसक उठा.

‘‘जो हाल तुम्हारा है, वही हाल मेरा भी है. कैसे बताऊं कि दिनरात तुम्हारे बिना कैसे गुजर रहे हैं,’’ रजिया बोली.

वे दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे और फिर ‘शब्बाखैर’ कह कर सो गए.

‘‘मैडम, यह मेरे देवर का लड़का नफीस है. अब तक इन दोनों बच्चों ने साथसाथ खेलकूद कर पढ़ाई की है. अब ये परिवार से दूर अलगअलग रहेंगे. अगर नफीस अपनी बहन से मिलने आता है, तो इसे आप मिलने की इजाजत दे दें. इस बाबत आप वार्डन को भी बता दें, तो आप की मेहरबानी होगी,’’ रजिया की अम्मी ने कालेज की प्रिंसिपल से कहा.

‘‘ठीक है, पर हफ्ते में सिर्फ छुट्टी के दिन रविवार को ही मिल सकते हैं,’’ प्रिंसिपल ने कहा.

‘‘जी ठीक है, हमें मंजूर है.’’

रविवार का इंतजार करना नफीस को भारी पड़ता था. रविवार आते ही वह रजिया से मिलने उस के होस्टल मोटरसाइकिल से पहुंच जाता था. वे दोनों घंटों बैठ कर बातें करते थे.

जातेजाते नफीस होस्टल के गेटकीपर को इनाम देना नहीं भूलता था. वह वार्डन को भी तोहफे देता था.

एक बार नफीस अपने दोस्त के साथ रजिया से मिलने पहुंचा और बोला, ‘‘रजिया, यह मेरा दोस्त अमान है. हम दोनों एक ही कमरे में रहते हैं.’’

‘‘अच्छा, आप कहां के रहने वाले हैं?’’ रजिया ने अमान से पूछा.

‘‘जी, आप के गांव के पास का.’’

इस तरह नफीस ने अमान का परिचय करा कर उस की खूब तारीफ की.

अब तो अमान भी रजिया से मिलने नफीस के साथ आ जाता था. वे एकदूसरे से इतने घुलमिल गए, जैसे बरसों की पहचान हो. ‘‘रजिया, क्या तुम नफीस को चाहती हो?’’ अमान ने अकेले में रजिया से पूछा.

‘‘हां, कोई शक?’’ रजिया बोली.

‘‘नहीं,’’ अमान ने कहा.

अमान इस फैसले पर नहीं पहुंच पा रहा था कि उन का प्यार दोनों भाईबहन जैसा था या प्रेमीप्रेमिका जैसा.

समय का पहिया घूमा. रजिया के एकतरफा प्यार में डूबा अमान उसे पा लेने के सपने संजोने लगा. इम्तिहान खत्म हो गए थे. बुलावे पर रजिया की मां उसे घर में अपने देवर के भरोसे छोड़ कर मायके चली गई थीं.

टैलीविजन देखने के बहाने नफीस देर रात तक रजिया के कमरे में रहा. ज्यादा रात होने पर रजिया ने कहा, ‘‘तुम यहीं बाहर बरामदे में सो जाओ. मुझे अकेले में डर लगता है.’’

नफीस बरामदे में अपना बिस्तर डाल कर सोने की कोशिश करने लगा, पर आंखों में नींद कहां. वह तो रजिया के प्यार के सपने बुनने लगा था. रात बीतती जा रही थी.

नफीस को अचानक अंदर से रजिया के कराहने की आवाज आई. वह बिस्तर से उठ बैठा. दरवाजे के पास जा कर जोर से दरवाजा खटखटाया. दरवाजा पहले से खुला था. वह अंदर गया.

नफीस ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ रजिया?’’

‘‘पेट में दर्द हो रहा है,’’ रजिया ने कराहते हुए कहा.

‘‘मैं अम्मी को बुला कर लाता हूं,’’ सुन कर नफीस ने कहा.

‘‘नहीं, अम्मी को बुला कर मत लाओ. मैं ने दवा खा ली है. ठीक हो जाऊंगी. किसी को भी परेशान करने की जरूरत नहीं है… तुम मेरे पास आ कर बैठो. जरा मेरे पेट को सहलाओ. इस से शायद मुझे राहत मिले.’’

नफीस उस के पेट को सहलाने लगा. नफीस के हाथ की छुअन पाते ही रजिया के मन में सैक्स उभरने लगा.

इधर नफीस भी आंखें बंद कर के पेट सहलाता जा रहा था, तभी रजिया ने नफीस का हाथ पकड़ कर अपने उभारों पर रख दिया. नफीस के हाथ रखते ही वह गुलाब की तरह खिल उठी.

‘‘जरा जोर से सहलाओ,’’ रजिया अब पूरी तरह बहक चुकी थी. उस ने एक झटके से नफीस को खींच कर अपने बगल में लिटा लिया और ऊपर से रजाई ढक ली.

और वह सबकुछ हो गया, जिस की उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी.

उधर अमान को भी रजिया की जुदाई तड़पा रही थी. जब उस से रहा नहीं गया, तो वह नफीस से मिलने के बहाने उस के गांव जा पहुंचा. नफीस ने उस की खूब खातिरदारी की. वह रजिया से भी मिला.

अमान ने रजिया से उस का मोबाइल नंबर मांगा, पर रजिया ने बहाना बना कर नहीं दिया, न ही फोन पर बात करने को कहा. अमान भारी मन से लौट गया.

पढ़ाई का यह आखिरी साल था. नफीस की उम्र 21 साल की होने जा रही थी, वहीं रजिया 18वां वसंत पार कर 19वें की ओर बढ़ रही थी. उस की बोलचाल किसी को भी अपना बनाने के लिए दावत देती थी.

बादलों के बीच चमकती बिजली सी जब वह घर से बाहर निकलती, तो कई उस के दीवाने हो जाते. कालेज खुल चुके थे. वे दोनों अपनेअपने होस्टल में पहुंच चुके थे.

एक दिन रजिया ने अपनी प्रिंसिपल से कहा, ‘‘मैडम, हमें बाहर खाना खाने के लिए 2 घंटे का समय मिलना चाहिए, क्योंकि होस्टल में शाकाहारी खाना मिलता है और हम…’’

‘‘ठीक है, रविवार को चली जाया करो,’’ प्रिंसिपल ने अपनी रजामंदी दे दी.

इस के बाद नफीस और रजिया मोटरसाइकिल पर सवार हो कर एक होटल पहुंच गए. नफीस ने पहले ही वहां एक कमरा बुक करा रखा था.

अब तो सिलसिला चल पड़ा और वे दोनों अपने तन की प्यास बुझाने होटल आ जाते थे. एक दिन अमान भी होटल में नफीस और रजिया को देख कर पहुंच गया. ‘‘मैनेजर, अभीअभी एक लड़का और एक लड़की आप के होटल में आए हैं. वे किस कमरे में ठहरे हैं?’’ अमान ने पूछा.

‘‘मुझे पता नहीं. कई लोग आतेजाते हैं. आप खुद देख लो,’’ मैनेजर ने कहा.

अमान ने सारा होटल देख डाला, पर उसे वे दोनों नहीं मिले. अब अमान की जिज्ञासा और बढ़ गई.

अगले दिन अमान ने नफीस से पूछा, ‘‘कल मैं ने तुम्हें और रजिया को एक होटल में जाते हुए देखा था, पर तुम वहां अंदर कहीं नहीं दिखे.’’

नफीस चुपचाप सबकुछ सुनता रहा, पर बोला कुछ नहीं.

अमान के जाने के बाद नफीस रजिया से मिला और बोला, ‘‘रजिया, ऐसा लगता है, जैसे अमान हमारी जासूसी कर रहा है. वह हमें ढूंढ़तेढूंढ़ते होटल में जा पहुंचा था.’’

‘‘हमें अब दूरी कम करनी होगी, नहीं तो बवाल खड़ा हो जाएगा,’’ रजिया डरते हुए बोली.

समय तेजी से आगे बढ़ता जा रहा था. कैसे एक साल बीत गया, पता नहीं चला. अमान ने सोचा कि अगर रजिया को पाना है, तो नफीस से दोस्ती बना कर रखनी होगी.

इम्तिहान शुरू हो गए थे. आज रजिया का आखिरी पेपर था. दूसरे दिन घर वापस आना था. अमान का रजिया से मिलने का सपना टूटने लगा.

प्यार से बेखबर रजिया के पेट में नफीस का 4 महीने का बच्चा पल रहा था. कहा गया है कि आदमी जोश में होश खो बैठता है. डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद भी रजिया अपना बचाव नहीं कर पाई.

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनिए. अगर आप ने पेट गिराने की कोशिश की, तो लड़की की जान जा सकती है. आगे आप जानें. आप मरीज को घर ले जाइए,’’ डाक्टर ने रजिया का मुआयना कर के कहा.

डाक्टर की बात सुन कर रजिया की अम्मी, चाचाचाची सकते में आ गए. रजिया को घर ले आए. सभी ने रजिया से पूछा कि किस का पाप पेट में पल रहा है, पर वह खामोश रही. आंसू बहाती रही. नफीस पर कोई शक नहीं कर रहा था.

बात धीरेधीरे गांव में फैल गई. हर किसी की जबान पर रजिया का नाम था. अगर उसे शहर में पढ़ने को नहीं भेजते, तो ऐसा नहीं होता.

अमान पर शक की सूई घूमी, उस से ही निकाह कर दिया जाए. एक रिश्तेदार कासिद को उस के घर भेजा गया, पर वह पैगाम ले कर खाली हाथ लौटा. गांव की जमात इकट्ठा हुई. पंचायत बैठी. मौलाना ने सब के सामने खत पढ़ कर सुनाने को कहा. लिखा था:

‘आप की जमात का पैगाम मिला, पर हम एक बेहया और बदचलन लड़की से अपने लड़के का निकाह कर के खानदान पर दाग नहीं लगाना चाहते. न जाने किस कौम की नाजायज औलाद पाल रखी है उस ने.’

मौलाना कुछ देर खामोश बैठे रहे. कुछ सोचने के बाद मौलाना ने अपना फैसला सुनाया, ‘‘बात सही लिखी है. जमात आज से इन का हुक्कापानी बंद करती है. जमात का कोई भी शख्स इन से कोई ताल्लुक नहीं रखेगा.

‘‘लड़की को फौरन गांव से बाहर कर दिया जाए. मुहब्बत करने चली थी, मजहब के उसूलों का जरा भी खयाल नहीं आया उसे. यही मुहब्बत करने वालों की सजा है.’’ मौलाना का मुहब्बत पर फतवा सुन कर रजिया का खानदान सहम गया. जमात उठ गई.

रजिया के घर मायूसी पसरी थी. रात में सभी फिक्र में डूबे थे. जब सुबह आंख खुली, तो रजिया को न पा कर सब उस की खोजखबर लेने लगे. नफीस और रजिया मौलाना के फतवे को ठोकर मारते हुए दूर निकल गए थे, अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने के लिए.

वर्जिन: कैसे टूटा उन दोनों के सब्र का बांध

रोहित अमला से मिलने उस के कालेज आया था. दोनों कैंटीन में बैठे चाय पी रहे थे. रोहित एमबीए फाइनल ईयर में था और अमला एमए फाइनल में थी. दोनों ने प्लस टू की पढ़ाई एक ही स्कूल से की थी. इस  के बाद वे कालेज की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गए थे. रोहित ग्रेजुएशन के बाद एमबीए करने दूसरे कालेज चला गया था, पर अकसर अमला से मिलने उस के कालेज आता था. उसे कैंपस से अच्छा प्लेसमैंट मिल गया था. दोनों लगभग 6 साल से एकदूसरे को जानते थे और अच्छी तरह परिचित थे.

अमला काफी सुंदर थी और रोहित भी हैंडसम और स्मार्ट था. दोनों पिछले 2 साल से एकदूसरे को चाहने भी लगे थे. दोनों चाय पी रहे थे और टेबल के नीचे अपनी टांगों की जुगलबंदी किए बैठे थे. तभी रोहित का एक दोस्त अशोक भी अपनी गर्लफ्रैंड के साथ वहां आ गया. उस टेबल पर 2 कुरसियां खाली थीं. वे दोनों भी वहीं बैठ गए.

अशोक बोला, ‘‘यार, तुम दोनों की जुगलबंदी हो चुकी हो तो अपनी टांगें हटा लो, अब हमें भी मौका दो.’’

यह सुन कर रोहित और अमला ने अपनेअपने पैर पीछे खींच लिए. अमला थोड़ा झेंप गई थी.

‘‘अच्छा, हम दोनों चाय पी चुके हैं, अब चलते हैं. अब तुम लोगों के जो जी में आए करो,’’ रोहित ने अमला को भी उठने का इशारा किया.

चलतेचलते रोहित ने अमला से पूछा, ‘‘आज शाम मूवी देखने चल सकती हो?’’

‘‘हां, चल सकती हूं.’’

सिनेमाहौल में दोनों मूवी देख रहे थे. रोहित ने अमला का हाथ अपने हाथ में ले कर धीरे से उस के कान में कहा, ‘‘कब तक हम लोग बस हाथपैर मिलाते रहेंगे. इस से आगे भी बढ़ना है कि नहीं?’’

अमला ने संकेत से चुप रहने का इशारा किया और कहा, ‘‘सब्र करो, आसपास और भी लोग हैं. अपना हाथ हटा लो.’’

हाथ हटाते समय रोहित का हाथ अमला के वक्ष को स्पर्श कर गया, हालांकि यह अनजाने में हुआ था. अमला ने मुड़ कर उस की ओर देखा. रोहित को लगा कि अमला की आंखों में कोई शिकायत का भाव नहीं था बल्कि उस की नजरों में खामोशी झलक रही थी.

मूवी देखने के बाद दोनों एक दोस्त मुकेश के यहां डिनर पर गए. वह अपने पिताजी के फ्लैट में अकेला रहता था. उस के पिताजी न्यूजीलैंड में जौब करते थे. मुकेश ने कहा, ‘‘अगले हफ्ते मैं 6 महीने के लिए न्यूजीलैंड और आस्टे्रलिया जा रहा हूं. तुम लोग चाहो तो यहां रह सकते हो. कुछ दिन साथ रह कर भी देखो, आखिर शादी तो तुम्हें करनी ही है. जैसा कि तुम दोनों मुझ से कहते आए हो.’’

यह सुन कर रोहित और अमला एकदूसरे का मुंह देखते रहे. मुकेश बोला, ‘‘तुम लोगों को कोई प्रौब्लम नहीं होनी चाहिए. पिछली बार तुम्हारे पेरैंट्स आए थे तो उन्हें तुम्हारे बारे में पता था. तुम ने खुद बताया था उन्हें. अंकलआंटी दोनों कह रहे थे कि तुम्हारे दादादादी अभी जीवित हैं और बस, उन की एक औपचारिक मंजूरी चाहिए. इत्तेफाक से तुम दोनों सजातीय भी हो तो उन लोगों को भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.’’

‘‘ठीक है, हम सोच कर बताएंगे.’’

डिनर के बाद जब दोनों जाने लगे तो मुकेश बोला, ‘‘तुम एक डुप्लीकेट चाभी रख लो. मैं अपार्टमैंट औफिस में बता दूंगा कि मेरी अनुपस्थिति में तुम लोग यहां रहोगे.’’

इतना कह कर मुकेश ने चाभी रोहित को थमा दी. रास्ते में रोहित से अमला बोली, ‘‘तुम ने चाभी अभी से क्यों रख ली? इस का मतलब हम अभी से साथ रहेंगे क्या? मुझे तो ऐसा ठीक नहीं लगता. मम्मीपापा को शायद उतना बुरा न लगे, पर दादादादी पुराने विचारों के हैं, उन्हें पता चलेगा तो आसमान सिर पर उठा लेंगे.’’

‘‘दादादादी ही पुराने विचारों के हैं, मैं और तुम तो नहीं. और वे गांव में बैठे हैं. उन्हें कौन बताएगा कि हम साथ रह रहे हैं या नहीं. आज जमाना कहां से कहां पहुंच गया है. तुम्हें पता है कि पश्चिमी देशों में अगर कोई युवती 18 साल तक वर्जिन रह जाती है तो उस के घर वाले चिंतित हो जाते हैं, इस का मतलब आमतौर पर लोग यही अंदाजा लगाते हैं कि उस में कोई कमी है.’’

‘‘बेहतर है हम जहां हैं, वहां की बात करें.’’

‘‘तुम किस गलतफहमी में जी रही हो? यहां भी युवकयुवती लिवइन रिलेशन में साल दो साल एकसाथ रहने के बाद एकदूसरे को बायबाय कर देते हैं. वैसे मैं तुम्हें फोर्स नहीं करूंगा. और तुम हां कहोगी तभी हम मुकेश के फ्लैट में शिफ्ट करेंगे. संयोगवश यह मौका मिला है और हम दोनों शादी करने जा ही रहे हैं, पढ़ाई के बाद. तुम कहो तो कोर्ट मैरिज कर लेते हैं इस के पहले.’’

‘‘नो कोर्ट मैरिज. शादी की कोई जल्दबाजी नहीं है. जब भी होगी ट्रैडिशनल शादी ही होगी,’’ अमला ने साफसाफ कहा.

2 हफ्ते तक काफी मनुहार के बाद अमला मुकेश के फ्लैट में रोहित के साथ आ गई. दोनों के कमरे अलगअलग थे. मुकेश की कामवाली और कुक दोनों के कारण खानेपीने या घर के अन्य कामों की कोई चिंता नहीं थी. 4 महीने के अंदर रोहित को नौकरी जौइन करनी थी और उस के पहले अमला को डिग्री भी मिलनी थी.

रोहित और अमला देर रात तक साथ बातें करते और फिर अपनेअपने कमरे में सोने चले जाते थे. धीरेधीरे दोनों और करीब होते गए. अब तो रोहित अमला के बालों से खेलने लगा था, कभीकभी गाल भी सहला लेता. दोनों को यह सब अच्छा लगता. पर एक दिन दोनों के सब्र ने जवाब दे दिया और वे एक हो गए. जब एक बार सब्र का बांध टूट गया तो दोनों इस सैलाब में बह निकले.

कुछ दिन बाद अमला बोली, ‘‘रोहित, इधर कुछ दिनों से मेरे पेट के निचले हिस्से में दर्द सा रहता है. कभीकभी यह ज्यादा ही हो जाता है.’’

‘‘किसी गाइनोकोलौजिस्ट से चैकअप करा लो.’’

‘‘मैं अकेली नहीं जाऊंगी, तुम्हें भी साथ चलना पड़ेगा.’’

‘‘अब लेडी डाक्टर के पास मुझे कहां ले जाओगी?’’

‘‘तब रहने दो, मैं भी नहीं जाती.’’

‘‘अच्छा बाबा, चलो, कल सुबह चलते हैं.’’

अगले दिन सुबह दोनों गाइनोकोलौजिस्ट के पास पहुंचे. वहां कुछ मरीज पहले से ही थे, उन्हें काफी देर तक इंतजार करना पड़ा. इस बीच उन्होंने देखा कि वहां आने वाली ज्यादातर औरतें प्रैग्नैंट थीं और उन के साथ कोई मर्द या प्रौढ़ महिला थी. सब से कम उम्र की पेशैंट अमला ही थी. अमला यह सब देख कर थोड़ी घबरा गई थी. उस की बगल में बैठी एक औरत ने पूछा, ‘‘लगता है तुम्हारा पहला बच्चा है, पहली बार घबराहट सब को होती है. डरो नहीं.’’

रोहित और अमला एकदूसरे को देखने लगे. रोहित बोला, ‘‘डोंट वरी, लेट डाक्टर चैकअप.’’

जब अमला का नाम पुकारा गया तो रोहित भी उस के साथ चैकअप केबिन में जाने लगा. नर्स ने उसे रोक कर कहा, ‘‘आप बाहर वेट करें, अगर डाक्टर बुलाती हैं तो आप बाद में आ जाना.’’

डाक्टर ने अमला को चैक किया. उस की आंखें, पल्स, ब्लडप्रैशर आदि चैक किए. फिर पूछा, ‘‘दर्द कहां होता है?’’

अमला ने पेट के नीचे हाथ रख कर कहा, ‘‘यहां.’’

डाक्टर ने नर्स को पेशैंट का यूरिन सैंपल ले कर प्रैग्नैंसी टैस्ट करने को कहा और पूछा ‘‘शादी हुए कितने दिन हुए.’’

‘‘मैं अनमैरिड हूं डाक्टर.’’

‘‘सैक्स करती हो?’’

अमला ऐसे प्रश्न के जवाब देने के लिए तैयार नहीं थी. उस को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या बोले, वह सिर्फ डाक्टर की ओर देख रही थी. डाक्टर ने नर्स को बुला कर कहा, ‘‘इन के साथ जो आदमी आया है उस को बुला कर लाओ और इन की प्रैग्नैंसी टैस्ट रिपोर्ट लेती आना.’’

रोहित केबिन में गया तो डाक्टर ने पूछा, ‘‘पेशैंट कहती है कि वह अनमैरिड है, पर जब मैं ने सैक्स के बारे में पूछा तो वह कुछ बता नहीं पा रही है. डाक्टर से सच बोलना चाहिए तभी तो इलाज सही होगा.’’

इसी बीच डाक्टर ने उन दोनों से फ्रैंडली होते हुए पूछा कि वे कहां के रहने वाले हैं. बातोंबातों में पता चला कि डाक्टर अमला की मां की सहपाठी रह चुकी हैं. तभी नर्स टैस्ट रिपोर्ट ले कर आई जो पौजिटिव थी. डाक्टर बोली, ‘‘अब तो शक की कोई गुंजाइश नहीं है, अमला तुम प्रैग्नैंट हो. इस का मतलब तुम दोनों अनमैरिड हो लेकिन फिजिकल रिलेशन रखते हो.’’

रोहित और अमला दोनों को यह बात असंभव लगी. उन के बीच रिलेशन तो रहा है, पर उन्होंने सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा है. रोहित अमला की ओर देखे जा रहा था, अमला लगातार सिर हिला कर न का संकेत दे रही थी. रोहित के पास भी अमला पर शक करने की कोई वजह नहीं थी.

रोहित डाक्टर से बोला, ‘‘हम फिजिकल भले रहे हों, पर इस रिपोर्ट पर मुझे भरोसा नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मैं दोबारा टैस्ट करा लेती हूं या फिर बगल में एक दूसरी लैब में भेज दूं अगर तुम लोगों को मुझ पर भरोसा नहीं है,’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘नहीं डाक्टर, भरोसा कर के ही तो हम आप तक आए हैं. फिर भी एक बार और टैस्ट करा लेतीं तो ठीक था.’’

डाक्टर ने नर्स को बुला कर यूरिन का सैंपल दोबारा टैस्ट करने को कहा. नर्स को थोड़ा आश्चर्य हुआ. उस ने रिपोर्ट अपने हाथ में ले कर पढ़ी और कहा, ‘‘सौरी, यह रिपोर्ट इन की नहीं है. दूसरे पेशैंट की है. दरअसल, दोनों के फर्स्ट नेम एक ही हैं और सरनेम में बस, एक लेटर का फर्क है. इन का सरनेम सिन्हा है और यह रिपोर्ट मैडम सिंह की है. आइ एम सो सौरी, अभी इन की रिपोर्ट ले कर आती हूं.’’

यह सुन कर रोहित और अमला की जान में जान आई. नर्स अमला की रिपोर्ट ले कर आई जो निगेटिव थी. तब डाक्टर ने रोहित से कहा, ‘‘आई एम सौरी फौर दिस मेस. आप बाहर, जाएं, मैं पेशैंट को ऐग्जामिन करूंगी.’’

अमला का बैड पर लिटा कर चैकअप किया गया. फिर रोहित को भी अंदर बुला कर डाक्टर ने कहा, ‘‘डौंट वरी, इन के ओवरी में बांयीं ओर कुछ सूजन है. मैं दवा लिख देती हूं, उम्मीद है 2 सप्ताह में आराम मिलेगा. अगर फिर भी प्रौब्लम रहे तो मुझे बताना आगे ट्रीटमैंट चलेगा.’’

अमला ने चलतेचलते डाक्टर को धन्यवाद देते हुए कहा, ‘‘प्लीज डाक्टर, मम्मी को आप यह नहीं बताएंगी.’’

‘‘मेरा तो पिछले 15 साल से उस से कोई संपर्क नहीं रहा है. वैसे पता रहने पर भी नहीं बताती, डौंट वरी, गेट मैरिड सून. अपनी मम्मी का फोन नंबर देती जाना, अगर तुम्हें कोई प्रौब्लम न हो तो.’’

‘‘श्योर, मैं लिख देती हूं, मुझे कोई प्रौब्लम नहीं है.’’

अमला ने अपनी मां का फोन नंबर एक पेपर पर नोट कर डाक्टर को दे दिया.

क्लिनिक से बाहर आ कर अमला ने कहा, ‘‘आज तो हमारे रिश्ते की बात हम दोनों के सिवा इस डाक्टर और नर्स को भी पता चल गई. उस ने मम्मी का कौन्टैक्ट्स भी मुझ से ले लिया है. उम्मीद है कि वह मम्मी को नहीं बताएगी.’’

‘‘बता भी दिया तो क्या हो जाएगा? हम लोग शादी करने जा रहे हैं. मैं अगले महीने नौकरी जौइन करने जा रहा हूं. कंपनी की ओर से फ्लैट और कार भी मिल रही है. जल्द ही हम शादी कर लेंगे.’’

‘‘वो तो ठीक है, पर मम्मी मुझ से कहती आई हैं युवतियों को अपनी वर्जिनिटी शादी तक बचानी चाहिए.’’

‘‘आजकल सबकुछ हो जाने के बाद भी वर्जिनिटी दोबारा मिल सकती है. तुम्हें पता है कि प्लास्टिक सर्जरी से युवतियां अपना खोया हुआ कौमार्य प्राप्त कर सकती हैं.’’

‘‘क्या कह रहे हो?’’

‘‘सही बोल रहा हूं. बस, कुछ हजार रुपए खर्च कर कुछ घंटे प्लास्टिक सर्जन के क्लिनिक पर हाइमनोप्लास्टी द्वारा हाइमन बनाया जाता है और युवतियां फिर से कुंआरी बन जाती हैं.’’

अमला रोहित की तरफ अचरज भरी नजरों से देखने लगी तो फिर वह बोला, ‘‘देश भर के छोटेबड़े शहरों में सैकड़ों क्लिनिक हैं, जो हाइमनोप्लास्टी करते हैं. इन्हें अपने लिए ज्यादा प्रचार भी नहीं करना होता है. यह तो एक कौस्मेटिक सर्जरी है. इतना ही नहीं कुछ बालबच्चों वाली महिलाएं भी वैजिनोप्लास्टी करा कर दांपत्य जीवन के शुरुआती दिनों जैसा आनंद फिर से महसूस करने लगी हैं.’’

‘‘ओह.’’

‘‘जरूरत पड़ी तो तुम्हारी भी हो सकती है, कह कर रोहित हंसने लगा.’’

‘‘मुझे नहीं चाहिए यह सब. अब इस बारे में मुझे और कुछ नहीं सुनना है.’’

रोहित और अमला को अपनी तात्कालिक समस्या का निदान मिल चुका था. दोनों ने खुशीखुशी अपने फ्लैट पर जा कर चैन की सांस ली.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें