प्रेम का निजी स्वाद- भाग 1: महिमा की जिंदगी में क्यों थी प्यार की कमी

प्रेम… कहनेसुनने और देखनेपढ़ने में यह जितना आसान शब्द है, समझने में उतना ही कठिन. कठिन से भी एक कदम आगे कहूं तो यह कि यह समझ से परे की शै है. इसे तो केवल महसूस किया जा सकता है.

दुनिया का यह शायद पहला शब्द होगा जिस के एहसास से मूक पशुपक्षी और पेड़पौधे तक वाकिफ हैं. बावजूद इस के, इस की कोई तय परिभाषा नहीं है. अब ऐसे एहसास को अजूबा न कहें तो क्या कहें?

बड़ा ढीठ होता है यह प्रेम. न उम्र देखे न जाति. न सामाजिक स्तर न शक्लसूरत. न शिक्षा न पेशा. बस, हो गया तो हो गया. क्या कीजिएगा. तन पर तो वश चल सकता है, उस पर बंधन भी लगाया जा सकता है लेकिन मन को लगाम कैसे लगे? सात घोड़ों पर सवार हो कर दिलबर के चौबारे पहुंच जाए, तो फिर मलते रहिए अपनी हथेलियां.

महिमा भी आजकल इसी तरह बेबसी में अपनी हथेलियां मसलती रहती है. जबजब वतन उस के सामने आता है, वह तड़प उठती है. एक निगाह अपने पति कमल की तरफ डालती और दूसरी वतन पर जा कर टिक जाती है.

ऐसा नहीं है कि कमल से उसे कोई शिकायत रही थी. एक अच्छे पति होने के तमाम गुण कमल में मौजूद हैं. न होते तो क्या पापा अपने जिगर का टुकड़ा उसे सौंपते? लेकिन क्या भौतिक संपन्नता ही एक आधार होता है संतुष्टि का? मन की संतुष्टि कोई माने नहीं रखती? अवश्य रखती है, तभी तो बाहर से सातों सुखों की मालकिन दिखने वाली महिमा भीतर से कितनी याचक थी.

महिमा कभीकभी बहुत सोचती है प्रेम के विषय में. यदि वतन उस की जिंदगी में न आता तो वह कभी इस अलौकिक एहसास से परिचित ही न हो पाती. अधिकांश लोगों की तरह वह भी इस के सतही रूप को ही सार्थक मानती रहती. लेकिन वतन उस की जिंदगी में आया कहां था? वह तो लाया गया था. या कहिए कि धकेला गया था उस की तनहाइयों में.

कमल को जब लगने लगा कि अपनी व्यस्तता के चलते वह पत्नी को उस के मन की खुशी नहीं दे पा रहा है तो उस ने यह काम वतन के हवाले कर दिया. ठीक वैसे ही जैसे अपराधबोध से ग्रस्त मातापिता समय की कमी पूरी करने के लिए बच्चे को खिलौनों की खेप थमा देते हैं.

हालांकि महिमा ने अकेलेपन की कभी कोई शिकायत नहीं की थी लेकिन कमल को दिनभर उस का घर में रह कर पति का इंतजार करना ग्लानि से भर रहा था. किट्टी पार्टी, शौपिंग और सैरसपाटा महिमा की फितरत नहीं थी. फिल्में और साहित्य भी उसे बांध नहीं पाता था. ऐसे में कमल ने उसे पुराने शौक जीवित करने का सुझाव दिया. प्रस्ताव महिमा को भी जंच गया और अगले ही रविवार तरुण सपनों में खुद को संगीत की भावी मल्लिका समझने वाली महिमा ने बालकनी के एक कोने को अपनी राजधानी बना लिया. संगीत से जुड़े कुछ चित्र दीवार की शोभा बढ़ाने लगे. गमलों में लगी लताएं रेलिंग पर झूलने लगीं. ताजा फूल गुलदस्ते में सजने लगे. कुल मिला कर बालकनी का वह कोना एक महफ़िल की तरह सज गया.

महिमा ने रियाज करना शुरू कर दिया. पहलेपहल यह मद्धिम स्वर में खुद को सुनाने भर जितना ही रहा. फिर जब कुछकुछ सुर नियंत्रण में आने लगे तो एक माइक और स्पीकर की व्यवस्था भी हो गई. कॅरिओके पर गाने के लिए कुछ धुनों को मोबाइल में सहेजा गया. महिमा का दोपहर के बाद वाला समय अब बालकनी में गुजरने लगा.

कला चाहे कोई भी हो, कभी भी किसी को संपूर्णरूप से प्राप्त नहीं होती. यह तो निरंतर अभ्यास का खेल है और अभ्यास बिना गुरु के मार्गदर्शन के संभव नहीं. तभी तो कहा गया है कि गुरु बिना ज्ञान नहीं. ऐसा ही कुछ यहां भी हुआ. महिमा कुछ दिनों तो अपनेआप को बहलाती रही लेकिन फिर उसे महसूस होने लगा मानो मन के भाव रीतने लगे हैं. सुरों में एक ठंडापन सा आने लगा है. बहुत प्रयासों के बाद भी जब यह शिथिलता नहीं टूटी तो उस ने अपने रियाज को विश्राम दे दिया. जहां से चले थे, वापस वहीं पहुंच गए. महिमा फिर से ऊबने लगी.

और तब, उस की एकरसता तोड़ने के लिए कमल ने उसे वतन से मिलाया. संगीतगुरु वतन शहर में एक संगीत स्कूल चलाता है. समयसमय पर उस के विद्यार्थी स्टेज पर भी अपनी कला का प्रदर्शन करते रहते हैं. कंधे तक लंबे बालों को एक पोनी में बांधे वतन सिल्क के कुरते और सूती धोती में बेहद आकर्षक लग रहा था.

‘कौन पहनता है आजकल यह पहनावा.’ महिमा उसे देखते ही सम्मोहित सी हो गई और मन में उस के यह विचार आया. युवा जोश से भरपूर, संभावनाओं से लबरेज वतन स्वयं को संगीत का विद्यार्थी कहता था. नवाचार करना उस की फितरत, चुनौतियां लेना उस की आदत, नवीनता का झरना अनवरत उस के भीतर फूटता रहता. एक ही गीत पर अनेक कोणों से संगीत बनाने वाला वतन आते ही धूलभरे गुबार की तरह महिमा के सुरों को अपनी आगोश में लेता चला गया. महिमा तिनके की तरह उड़ने लगी.

मैं सुहागिन हूं: क्यों पति की मौत के बाद भी सुहागन रही वो

जटपुर गांव के चौधरी देशराज के 5 बेटे बेगराज, लेखराज, यशराज, मोहनराज और धनराज और 4 बेटियां कमला, विमला, सुफला और निर्मला हुईं. भरापूरा परिवार, लंबीचौड़ी खेतीबारी और चौधरी देशराज का दबदबा. दालान पर बैठते तो किसी महाराजा की तरह. बड़े चौधरियों की तरह हुक्के की चिलम कभी बुझने का नाम न ले. दालान पर 4 चारपाई और दर्जनभर मूढ़े उन की चौधराहट की शान बढ़ाते थे. शाम को दालान का नजारा किसी पंचायत का सा होता था.

चौधरी देशराज ने सब से छोटे बेटे धनराज को छोड़ कर अपने सभी बेटे और बेटियों की शादी बड़ी धूमधाम से की थी. चौधरी देशराज का उसूल था कि बेटियों की शादियां बड़े चौधरियों में करो, तो वे अपने से बड़ा घराना पा कर खुश रहेंगी और अपने पिता व किस्मत पर फख्र करेंगी. बहुएं हमेशा छोटे चौधरियों की लाओ तो वे कहने में रहेंगी और बेटों का अपनी ससुरालों में दबदबा बना रहेगा.

सब से छोटे बेटे धनराज के कुंआरे रहने की कोई खास वजह नहीं थी. कितने ही चौधरी अपनी बहनबेटियों के रिश्ते धनराज के लिए ले कर आ चुके थे, लेकिन देशराज सदियों से चली आ रही गांव की ‘पांचाली प्रथा’ के मकड़जाल में फंसे हुए थे.

गांव की परंपरा के मुताबिक, वे चाहते थे कि धनराज अपने किसी बड़े भाई के साथ सांझा कर ले, जिस से जोत के 4 ही हिस्से हों, 5 नहीं. गांव के अनेक परिवार अपनी जोत के छोटा होने से इसी तरह बचाते चले आ रहे थे.

धनराज के बड़े भाइयों ने भी यही कोशिश की, लेकिन धनराज की अपनी किसी भाभी से नहीं पटी. हालांकि ‘पांचाली प्रथा’ के मुताबिक भाभियों ने धनराज पर अपनेअपने हिसाब से डोरे डाले, लेकिन धनराज कभी भाभियों के चंगुल में फंसा ही नहीं.

अब देशराज के सामने धनराज की शादी करने का दबाव था, क्योंकि बड़े बेटे बेगराज का बड़ा बेटा प्रताप भी शादी के लायक हो गया था.

असल में जब धनराज पैदा हुआ था, उस के कुछ दिनों बाद ही प्रताप का जन्म हुआ था. चाचाभतीजे के आगेपीछे जन्म लेने पर देशराज की बड़ी जगहंसाई हुई थी.

गांव के हमउम्र लोग मजाक ही मजाक में कह देते थे, ‘चौधरी साहब, अब तो होश धरो. हुक्के की गरमी ने आप के अंदर की गरमी बढ़ा रखी है, लेकिन उम्र का तो खयाल करो.’

इस के बाद चौधरी देशराज ने बच्चे पैदा करने पर रोक लगा दी. दादा बनने के बाद अपने बरताव में बदलाव लाए और दूसरी जिम्मेदारियों का दायरा बढ़ा लिया.

बेगराज ने अपने बड़े बेटे का नाम प्रताप जरूर रखा था, लेकिन प्रताप का मन पढ़ाईलिखाई, खेतीबारी में कम लगता था, मौजमस्ती में ज्यादा था. दिनभर खुले सांड़ की तरह प्रताप गांवभर में घूमताफिरता. उस के इस बरताव को देख कर गांव वालों ने उस का दूसरा नाम ‘सांड़ू’ ही रख दिया.

बड़ा परिवार होने के नाते घर में काम तो बहुत थे, लेकिन प्रताप ने न तो उन में कभी कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही कोई जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने की कोशिश की. इस वजह से बेगराज उस की जल्दी से जल्दी शादी कर के परिवार का जिम्मेदार सदस्य बनाना चाहता था.

गांव से उस की शिकायतें कोई न कोई ले कर आता रहता था. इस से भी बेगराज परेशान था. लेकिन पहले धनराज की शादी हो, तब वे प्रताप की शादी के बारे में सोचें.

देशराज ने जल्दी ही इस समस्या का हल निकाल दिया. धनराज की शादी पास के ही गांव जगतपुर के चौधरी शक्ति सिंह की बेटी सविता के साथ हुई.

धनराज और सविता सुखभरी जिंदगी गुजारने लगे. धनराज के हिस्से में जो जमीन आई, उस में वह जीतोड़ मेहनत करने लगा. सविता भी उस का खूब साथ निभाने लगी.

धनराज खेतों में बैल बना खूब पसीना बहाता. उस की कोशिश थी कि वह भी जल्दी से जल्दी अपने भाइयों के लैवल पर पहुंच जाए.

इस जद्दोजेहद में वह भूल गया कि उस के घर में छुट्टे सांड़ प्रताप ने घुसपैठ शुरू कर दी है. वह छुट्टा सांड़ कब उस की गाय सविता के पीछे लग गया, उसे पता ही नहीं चला. गांव में भी एक खुला सांड़ था, जो इस और उस के खेत में मुंह मारता फिरता था.

धनराज की शादी में आया दहेज का सामान अभी नया था. प्रताप कभी गाने सुनने के बहाने और कभी फिल्म देखने के बहाने दहेज में आई नई एलईडी पर कार्यक्रम देखने के बहाने धनराज के कमरे में आ धमकता था.

सविता नईनवेली दुलहन थी, इसलिए वह कुछ कह पाने में हिचक रही थी. कोई और भी प्रताप को नहीं टोकता था. धनराज का वह हमउम्र भी था और बचपन का साथी था, इसलिए धनराज को भी कोई एतराज नहीं था.

सविता भी इस की आदी हो गई. उस ने सोचा कि जब किसी को प्रताप के इस बरताव से कोई एतराज नहीं तो वही क्यों प्रताप पर एतराज करे. सविता और प्रताप धीमेधीमे आपस में बातचीत भी करने लगे. अगर सविता प्रताप से कभी किसी बात को कहती तो प्रताप उसे कभी न टालता.

धीरेधीरे दोनों की दोस्ती बढ़ने लगी. प्रताप पहले से ज्यादा समय सविता के कमरे में गुजारने लगा. आग और घी का यह रिश्ता धीरेधीरे चाचीभतीजे के रिश्ते को पिघलाने लगा. हवस की आंधी में एक दिन यह रिश्ता पूरी तरह से उड़ गया.

जब तक सविता और प्रताप के इस नए रिश्ते का एहसास धनराज और परिवार के दूसरे सदस्यों को होता, तब तक बात बहुत आगे तक बढ़ गई थी.

धनराज और परिवार के दूसरे लोगों ने सविता और प्रताप पर रोक लगाने की कोशिश की, तो उन दोनों ने दूसरे तरीके ढूंढ़ लिए. हर कोई तो 24 घंटे चौकीदार बन कर घूम नहीं सकता. दोनों का मिलन कभी खेतों में तो कभी खलिहानों में, कभी गौशाला में तो कभी बिटौड़ों के पीछे होने लगा. गांव के खुले सांड़ को भी कहीं भी आनेजाने की आजादी थी.

देशराज तजरबेकार थे. वे जानते थे कि एक खुला सांड़ किसी औरत के लिए सब से अच्छा प्रेमी होता है. उस के पास अपनी प्रेमिका के लिए वह अनमोल वक्त होता है, जो किसी कामकाजी बैल के पास कभी नहीं हो सकता है. यही वजह है कि ज्यादातर लड़कियों के प्रेमी आवारा और लफंगे होते हैं. सांड़ के पास यहांवहां मुंह मारने के लिए बहुत सा खाली वक्त होता है, जबकि कामकाजी बैल की गरदन हमेशा काम के तले दबी रहती है.

देशराज ने एक दिन बेगराज को बुला कर कहा, ‘‘बेगराज, अपने प्रताप को संभाल ले. इसे कामधंधे में लगा, नहीं तो जो आग घर में सुलग रही है, पूरे परिवार को ले डूबेगी. भविष्य में इस घर में कोई रिश्ता नहीं आएगा. आगे की सोच, प्रताप घर को आग लगा रहा है.’’

‘‘बाबूजी, मैं ने कितनी ही कोशिश कर ली, लेकिन लगता है ऐसे बात बनने वाली नहीं.’’

‘‘बेगराज, पहले समझाबुझा. बात न बने तो सख्ती से परहेज मत करना. नहीं तो तेरा प्रताप पूरे परिवार का सत्यानाश कर देगा. पहले ही गांव में काफी फजीहत हो चुकी है. कैसे भी कर, प्रताप पर लगाम लगा.’’

‘‘जी बाबूजी.’’

उधर धनराज ने सविता को हर तरह से समझा लिया. लेकिन हर बात पर वह धनराज की ‘हां’ में ‘हां’ मिलाती या चुप्पी साध जाती. धनराज के सामने वह ऐसी नौटंकी करती, जैसे वह इस दुनिया में धनराज के लिए ही आई है और बाकी सब बातें बेसिरपैर की हैं. लेकिन धनराज के घर से बाहर कदम रखते ही वह गिरगिट की तरह रंग बदलती.

धनराज और परिवार के लोग जितना सविता और प्रताप को समझाते, उन की इश्क की आग उतनी ही ज्यादा भड़कती. समझानेबुझाने की सीमा जब पार हो गई, तो बेगराज और लेखराज ने एक दिन प्रताप को कमरे में बंद कर के जम कर तुड़ाई की, तो सविता ने उस के घावों पर अपनी मुहब्बत का मरहम लगा दिया. यही हाल एक दिन धनराज ने सविता का किया, तो प्रताप ने उस के घावों पर अपनी मुहब्बत के फूल बरसा दिए.

धनराज ने सविता को घर छोड़ने से ले कर तलाक देने तक की धमकियां दे डालीं, लेकिन सविता के सिर चढ़ा इश्क का भूत उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था.

एक दिन धनराज घर में रखी पुराने समय की तलवार उठा लाया और गुस्से में नंगी तलवार से सविता की ‘बोटीबोटी’ काट डालने की धमकी देने लगा, तो सविता ने नंगी तलवार के आगे गरदन करते हुए कहा, ‘‘काटो. पहले मेरी गरदन काटो, फिर मेरे शरीर की बोटीबोटी काट डालो. लेकिन, यह याद रखना, मेरे मरने के बाद इस घर में तबाही मचेगी, कलह मचेगा, मौत नाचेगी, किसी को जरा सा भी चैन न मिलेगा.’’

‘‘बदजात…’’ कह कर जैसे ही धनराज ने तलवार प्रहार के लिए उठाई, परिवार के लोगों ने उसे किसी तरह रोका. इस आपाधापी में यशराज और उस की घरवाली तलवार से घायल हो गए.

लेकिन सविता लाख गालियां खा कर भी टस से मस न हुई. इश्क की ताकत का भी उसे अब एहसास हुआ कि इतना सबकुछ होने पर भी उस पर किसी बात का कोई असर क्यों नहीं हो रहा है. वह चाहे तो एक पल में सबकुछ ठीक कर सकती है, लेकिन इश्क की गुलामी उसे कुछ करने दे तब न.

इन सब बातों से धनराज की गांव में इतनी जगहंसाई हो रही थी कि उस का गांव में निकलना दूभर हो गया था. उसे हर कोई ऐसा लगता था मानो वह सविता और प्रताप की ही मुहब्बत की बातें कर रहा हो.

धनराज की यह हालत हो गई कि न तो वह किसी के पास जाता था और न ही किसी को अपने पास बुलाता था. दुनिया से उस का मन उचटने लगा था. न तो उसे अच्छे कपड़े पहनना सुहाता था और न ही फैशन करना. अच्छा खाना तो उसे जहर की तरह लगता था.

उस का शरीर सूख कर कांटा होता जा रहा था. घर उसे खाने को दौड़ता था, इसलिए वह अपना ज्यादातर समय खेतों में गुजारता था. कोई उस को समझाने की कोशिश करता, तो उस को ऐसा लगता जैसे वह उस के जले पर नमक छिड़क रहा हो. परिवार के लोगों से भी वह कटाकटा सा रहने लगा था.

खेतीबारी के काम में भी उस का मन अब बिलकुल नहीं लगता था. गांव में जो एक खुला सांड़ था पहले वह उस के खेत में घुसता था तो उसे डंडा मार कर भगाता और अपनी फसल को बचाता, लेकिन अब वह उस सांड़ को फसल चरने देता और बैठाबैठा उसे देखता रहता.

धनराज बड़ी उलझन में था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे. हताशा और निराशा ने उसे चारों तरफ से घेर लिया था. उस ने सुना था कि आदमी को अपने कर्मों की सजा भुगतनी पड़ती है.

काफी सोचने के बाद भी उसे यह समझ में नहीं आया कि आखिर उस ने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया था, जिस की उसे इतनी बड़ी सजा मिली?है.

फिर उसे खेत में बैठेबैठे ध्यान में आया कि सारी समस्या की जड़ सविता ही है, तो फिर क्यों न उसे ही रास्ते से हटा दिया जाए. आज रात को उसे खाने में धतूरे के बीज पीस कर खिला दूं तो सारे खटराग की जड़ ही खत्म.

वह इसी मंशा के साथ खलिहान में गया, जहां बहुत सारे धतूरे के पौधे थे. वहां से वह बहुत सारे धतूरे के बीज ले आया. एक पेड़ की छाया में बैठ कर धनराज उन्हें पीसने लगा.

धतूरे के बीज पीसते हुए उसे खयाल आया कि सविता को रास्ते से हटा कर क्या वह चैन की बंसी बजा सकेगा? क्या इस के बाद उस की नाक ऊंची हो जाएगी? लोग क्या उसे इज्जत की नजर से देखने लगेंगे? प्रताप के सामने क्या वह सिर उठा सकेगा?

इन सवालों ने उस के दिमाग में घमासान मचा दिया. सचाई पता चलने पर लोग उसे पत्नी का हत्यारा भी बताएंगे. फिर कौन औरत उस से शादी करेगी? वह अपने भाइयों और भाभियों पर बोझ बन जाएगा. इस से अच्छा तो यह है कि वह अपनी ही जान दे दे. कितना आसान तरीका है इन सभी मुसीबतों से छुटकारा पाने का.

यह इनसान की फितरत होती है कि वह हमेशा हर समस्या के आसान उपाय ढूंढ़ता है. धनराज ने भी यही किया. पिसे हुए धतूरे के बीज उस ने खुद फांक लिए, लेकिन तुरंत कुछ नहीं हुआ. इस से धनराज की परेशानी और बढ़ गई. वह मरने का इंतजार देर तक नहीं कर सकता था. उस ने आम के एक ऊंचे पेड़ में रस्सी लटकाई, फांसी का फंदा बनाया और उस पर झूल गया.

धनराज को किसी ने फांसी के फंदे पर झूलता देखा, तो गांव में जा कर शोर मचा दिया. ग्राम प्रधान ने हकीकत जानने पर पुलिस को सूचना दी और गांव वालों को चेतावनी दी कि पुलिस के आने तक कोई भी उस पेड़ के पास न फटके, जहां धनराज फांसी के फंदे पर लटका पड़ा है.

आननफानन ही पुलिस की जीप आ गई. धनराज की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया.

इस बीच देशराज के परिवार पर पुलिस ने अपनी हनक दिखानी शुरू की. महक सिंह के बीच में पड़ने से 2 लाख रुपए में मामला तय हो गया, नहीं तो पुलिस को खुदकुशी का केस हत्या में बदलने में कितनी देर लगती.

दोपहर के बाद धनराज के अंतिम संस्कार के लिए पुलिस ने परिवार के सुपुर्द कर दिया. पूरा गांव देशराज के घर पर इकट्ठा हो गया. शाम ढलने को थी इसलिए शव को गंगाघाट पर ले जाने की जल्दी थी.

परिवार की औरतें सविता को ले कर अंतिम दर्शनार्थ धनराज के शव के पास ले कर पहुंची, तो भीड़ में हलचल पैदा हो गई. शव के पास जब घर की औरतों ने सविता की कलाई की चूड़ी तोड़ने और बिछुवे उतारने की कोशिश की, तो उस ने अपनी कलाई छुड़ाते हुए चीख कर कहा, ‘‘मुझ से नहीं होगा यह सब पाखंड. जब तक प्रताप जिंदा है, मैं सुहागिन हूं. यह बात मैं नहीं कह रही सारा गांव जानता है. न मैं अपनी मांग का सिंदूर मिटाऊंगी, न चूडि़यां तुड़वा कर अपनी कलाई नंगी करूंगी और न ही बिछुवे उतारूंगी.

‘‘प्रताप जिंदा है, तो मैं सधवा हूं, विधवा नहीं. धनराज तो मुझे मंझधार में छोड़ कर चला गया. अब प्रताप ही मेरा सहारा है.’’

सविता की बात सुन कर भीड़ ने अपनेअपने तरीके से खुसुरफुसुर की, लेकिन किसी औरत के ऐसे तेवर उन्होंने पहली बार देखे थे. दुख की इस घड़ी में कोई अड़चन नहीं डालना चाहता था.

सविता के विरोध में कुछ आवाजें उठीं, तो उन्हें समझदारी से दबा दिया गया. धनराज का शव चार कंधों पर उठा तो सब की आंखें गमगीन हो गईं. गांव में कौन ऐसा था, जो धनराज की शवयात्रा में न रोया हो.

तेरहवीं और शोक के दिन गुजरने के बाद सविता और प्रताप ने कोर्टमैरिज कर ली. सविता और प्रताप गांव की अपनी जमीनजायदाद बेच कर दूर के किसी गांव में जा बसे.

सविता प्रताप के साथ वहां रहने लगी. उन के जाने के बाद गांव वालों ने राहत की सांस ली. गांव का खुला सांड़ अब बैल बन के रह गया था.

सौदा इश्क का: क्या दीपक और बाती अलग हुए?

Writer -हरीश जायसवाल

रात के 11 बज चुके थे और बाती अपने बैडरूम में चहलकदमी कर रही थी. बैड पर उस का 2 साल का बेटा ऊष्मित सो रहा था. इस तरह से चहलकदमी करते हुए दीपक का इंतजार करना पिछले 6 महीनों से बाती की आदत बन चुका था. उसे पता था कि आजकल दीपक के आने का यही समय है… बाती सोच ही रही थी कि सन्नाटे को चीरती हुई डोरबैल बजी.

“आखिर यह कब तक चलेगा दीपक?” बाती ने कहा, “आज ऊष्मित को अचानक हलका बुखार आ गया था. सोचा कि तुम्हारे साथ जा कर डाक्टर को दिखा दूंगी. इसी वजह से शाम को तकरीबन साढ़े 6 बजे तुम्हें फोन लगाया था, मगर तुम्हारा फोन स्विच औफ आ रहा था.

“तब मैं ने तुम्हारे औफिस फोन लगाया तो पता चला कि तुम तो औफिस से 6 बजे ही निकल गए हो और पिछले दिनों कभी भी 6 बजे से ज्यादा नहीं रुके हो.”

“चलो अच्छा ही हुआ जो तुम्हें पता चल गया. वैसे मैं खुद ही बताने वाला था. अब हम साथ में नहीं रह सकते,” दीपक का जवाब भी नपातुला था.

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“साथ में नहीं रह सकते? क्या मतलब है तुम्हारा? क्या कोई दूसरा अफेयर है तुम्हारा?” बाती की आवाज अभी भी संयमित ही थी. शायद दीपक के औफिस से सूचना मिलने के बाद वह समझ गई थी कि ऐसा ही कुछ होने वाला है.

“हां, मेरा ज्योति के साथ कालेज के दिनों से ही अफेयर है. उस की और मेरी सरकारी नौकरी भी एक ही साथ लगी थी. पर दोनों के महकमे अलगअलग थे. उस की पोस्टिंग 400 किलोमीटर दूर शहर में हो गई थी.अभी 8 महीने पहले ही उस का ट्रांसफर यहां हुआ है. कलक्टर औफिस में मीटिंग के दौरान ही उस से मुलाकात हुई थी.

“ज्योति ने अभी तक मेरे इंतजार में शादी नहीं की है. मैं उसे आज भी उतना ही चाहता हूं, जितना 5 साल पहले चाहता था,” दीपक सिर झुकाए बोल रहा था.

“मुझे इसी बात का डर था…” बाती की  आंखों में आंसू थे, मगर आवाज अभी भी कंट्रोल में थी, ”आज कम से कम तुम्हारे साथ नहीं सो सकती. प्लीज, तुम दूसरे बैडरूम में सो जाओ.”

“सौरी बाती, तुम में कोई कमी नहीं है. तुम बहुत ही अच्छी पत्नी और बेहतरीन मां हो. मगर मैं अपने पुराने प्यार को भुला नहीं सकता, वह भी तब जबकि वह मेरे लिए इंतजार कर रही हो.

“अगर मैं उस के साथ न रहूं तो यह मेरी खुदगर्जी होगी. मुझे माफ कर दो बाती,” दीपक पछतावे से भरी आवाज में बोला.

“यह तो मैं भी जानती हूं दीपक कि मुझे उस गुनाह की सजा मिली रही है जो मैं ने किया ही नहीं. लेकिन मैं खुद 21वीं सदी की एक पढ़ीलिखी औरत हूं और इस बात की भी हिमायती हूं कि हर इनसान को उस की पसंद की जिंदगी जीने का हक है. मैं तुम्हारी इस करतूत पर चीखूंगीचिल्लाऊंगी नहीं, पर मैं अपने हकों को छोड़ूंगी भी नहीं.

“मैं अकेली होती तब भी कोई बात नहीं थी, मगर अब मुझ पर ऊष्मित की जवाबदारी भी है,” बाती मजबूती के साथ यकीन भरी आवाज में बोली, “अब मुझे अकेला छोड़ दो और तुम दूसरे बैडरूम में सो जाओ,” यह कहतेकहते बाती की आंखों में आंसू आ गए.

दीपक अपराधियों की तरह सिर झुकाए दूसरे कमरे में चला गया.

“आज मैं तुम्हारा लंच बनाने की हालत में नहीं हूं. शाम को लौटते समय अपने साथ ज्योति को भी लेते आना. मैं इस बारे में तुरंत फैसला करना चाहती हूं,” अगली सुबह बाती ने औफिस जाते हुए दीपक से कहा.

“मेरी भी यही इच्छा है कि तुम दोनों आपस में रजामंदी से कोई फैसला कर लो,” दीपक भी धीमी आवाज में बोला. शायद उसे अपने अपराध  का एहसास हो रहा था.

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शाम को दीपक अपने साथ ज्योति को भी ले कर आ गया. ज्योति लंबे व पतले शरीर वाली सांवली मगर आकर्षक नैननक्श की लड़की थी. उस की उम्र तकरीबन दीपक के ही बराबर थी.

“नमस्ते बातीजी, मेरा नाम ज्योति है. इस से ज्यादा मैं अपना परिचय आप के सामने दे नहीं सकती,” ज्योति अपने चेहरे पर एक जबरन ओढ़ी हुई फीकी सी मुसकान के साथ बोली. वैसे, यह सब कहते हुए ज्योति की आवाज कंपकपा रही थी, जो इस बात का सुबूत था कि उसे भी अपने अपराधी होने का एहसास है.

“शायद मैं तो खुद अपना परिचय खो चुकी हूं. पता नहीं मैं अपने आप को बाती दीपक कुमार कहूं या सिर्फ बाती  कहूं,” बाती रूखी आवाज में बोली.

“देखिए बातीजी, जोकुछ हुआ, उस के लिए हम सब सिर्फ समय को ही दोष दे सकते हैं. वैसे मैं अपनी तरफ से चाहती हूं कि हम दोनों एक ही घर में रहे. मैं हम तीनों की जिंदगी को कंट्रोल करने वाली सभी चाबियां आप को सौंपने को तैयार हूं.

“यहां तक कि मेरी और दीपक की जो तनख्वाह आती है उस पर भी सौ फीसदी आप का ही हक रहेगा. आप जैसा चाहेंगी मैं वैसा तालमेल बैठाने को तैयार हूं,” ज्योति की आवाज में मानो पछतावा झलक रहा था.

“एक औरत का सब से बड़ा हक उस का अपना पति ही होता है. मुझे यकीनी तौर पर मालूम है कि तुम मुझे मेरा यह हक देने वाली नहीं हो. रही बात साथ रहने की तो अब मैं अकेली नहीं हूं, मेरी एक जवाबदारी और भी है 2 साल के ऊष्मित के रूप में.

“अगर ऊष्मित बचपन से ही झूठ और नाइंसाफी को अपनी आंखों के सामने फलतेफूलते देखेगा तो उस के बाल मन पर गलत असर पड़ेगा. मेरा सपना है कि मैं उसे एक अच्छा नागरिक बनाऊं. ऐसे माहौल में मैं उसे संस्कारवान बनने की सीख कैसे दे पाऊंगी? बड़ा हो कर क्या वह अपने पिता को माफ कर पाएगा?

“भविष्य में तुम्हारे भी बच्चे होंगे ही. तब हकों की लड़ाई होगी. उस समय मैं खुद शायद कोई एकतरफा फैसला लूं, इसलिए अलग होना ही बेहतर होगा,” बाती ने भविष्य के सवालों के साथ जवाब दिया.

“तब तुम ही बताओ कि इस समस्या का हल कैसे होगा?” दीपक ने पूछा.

“आज जबकि ऊष्मित छोटा है और मेरी माली जरूरतें कम हैं, पर जैसेजैसे ऊष्मित बड़ा होता जाएगा, वैसेवैसे मेरी जरूरतें बढ़ती जाएंगी. मैं चाहती हूं कि इन्हीं सब बातों को ध्यान में रख कर ही कोई फैसला लिया जाए,” बाती ने अपना पक्ष रखते हुए कहा.

“मैं भी बातीजी की बातों से सहमत हूं. आमतौर पर अदालतों में जो रकम तय की जाती है, वह बहुत कम होती है,” ज्योति बोली.

“ऐसा तो तभी मुमकिम है जब बाती को कोई नौकरी दिलवा दी जाए, जिस से हर साल तनख्वाह में कुछ न कुछ इजाफा होता रहे,” दीपक बोला.

“आज की कंडीशन में ऊष्मित को अकेले छोड़ कर नौकरी करना मेरे लिए मुमकिन नहीं है. वैसे भी प्राइवेट नौकरी में जाने का समय तो तय होता है, मगर लौटने में कई बार घंटों की देरी हो जाती है. शादी से पहले मैं जिस कंपनी में काम करती थी, उस में कई बार मुझे 12-12 घंटे काम करना होता था,” बाती बोली.

“बातीजी ठीक कह रही हैं. प्राइवेट नौकरी में टैंशन भी बहुत ज्यादा रहती है,” ज्योति बाती की बातों से सहमत होते हुए बोली.

“लेकिन ज्योति, मैं और तुम सरकारी नौकरी में हैं और यह भी जानते हैं कि सरकारी नौकरी मिलना आज की तारीख में एक मुश्किल काम है,” दीपक की आवाज में मजबूरी झलक रही थी.

“मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं. मैं बातीजी के लिए एक निश्चित उपाय चाहती हूं,” ज्योति बोली.

“मतलब? तुम क्या कहना चाहती हो ज्योति?” दीपक ने पूछा.

“दीपक, सही कहूं तो मैं तुम्हें पाने की आस खो चुकी थी. तुम मुझे दोबारा मिले हो. मैं बातीजी की भी शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मेरी भावनाओं का मान रखते हुए तुम्हें मुझे सौंपने का हिम्मत से भरा फैसला लिया.

“अब मेरी बारी है कि मैं उन्हें एक बेहतरीन जिंदगी जीने के लिए रिटर्न गिफ्ट दूं, चाहे इस के लिए मुझे किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े…” ज्योति की आवाज में एक मजबूती थी, “पर इस के लिए दीपक तुम्हें एक बार मरना पड़ेगा.”

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“मरना पड़ेगा मतलब?” दीपक ने हैरानी से पूछा.

“यहां पर बैठेबैठे और बातीजी से बात करतेकरते मेरे दिमाग में एक योजना आई है. इस से सभी की समस्याएं सुलझ जाएंगी और किसी तरह की कोई दिक्कत भी नहीं आएगी, क्योंकि यह एक हादसा होगा और इस की गवाह एक सरकारी अफसर मतलब मैं खुद होंगी.”

“हादसा? कैसा हादसा? और अगर मैं मर ही जाऊंगा तो तुम्हारे साथ रहेगा कौन?” दीपक का हैरान होना इस बार दोगुना था. वह किसी बेवकूफ की तरह ज्योति की तरफ देखने लगा.

“देखो दीपक, चाहे हम दोनों मानें या न मानें, मगर सामाजिक नजरिए से हमारा रिश्ता गलत है और समाज में इसे आसानी से मंजूरी नहीं मिलेगी. हमें साथ रहने के लिए या तो अपना धर्म बदलना होगा या अपनी पहचान ही बदलनी होगी.

“अगर हम कानूनी झमेलों में पड़ेंगे तो कई साल निकल जाएंगे और तीनों के हाथ में कुछ नहीं आएगा,” ज्योति बोली.

“तो फिर तुम ने क्या सोचा है?” दीपक ने पूछा.

“मैं आज जिस ओहदे पर हूं, उस में मेरे एक इशारे पर मैं किसी भी आदमी को एक नई पहचान दिलवा सकती हूं. मतलब मैं किसी भी आदमी के आधारकार्ड में बदलाव करवा सकती हूं, जिस के आधार पर वह अपनी एक नई पहचान बनवा सकता है,” ज्योति ने अपनी योजना के कुछ अंशों का खुलासा किया.

“मैं अभी भी नहीं समझा,” दीपक एकटक ज्योति को देखते हुए बोला.

“बातीजी की पैसों को ले कर ही समस्या है न? हम उसी का हल कर रहे हैं. मेरी योजना यह है कि तुम और बातीजी अगले रविवार को शहर से दूर जो नहर है उस पर पिकनिक मनाने जाओ. रुकने के लिए उस जगह को चुनो जहां पर पानी का बहाव तेज हो और तुम दोनों के अलावा वहां कोई न हो.

“उसी जगह पर मस्ती करते हुए दीपक का पैर फिसल जाएगा. बहाव तेज होने के चलते दीपक दूर बह जाएगा. इस बात का खास ध्यान रखा जाए कि बातीजी दीपक की मस्ती करने वाली घटना का वीडियो बना लेंगी,” ज्योति ने योजना को समझाया.

“बहते हुए मैं जाऊंगा कहां? मुझे तो तैरना भी नहीं आता,” दीपक परेशान होते हुए बोला.

“इस के बाद इस ड्रामे का दूसरा पार्ट स्टार्ट होगा. यहां आने से पहले मैं जिस जगह पोस्टेड थी वह यहां से 400 किलोमीटर दूर है. वहां का सरकारी बंगला भी मैं ने अभी तक खाली नहीं किया है. तुम तैरना नहीं जानते हो यह बात हमारे लिए प्लस पौइंट होगी.

“15-20 फुट बहने के बाद मेरे बुलाए हुए आदमी तुम्हें बचा लेंगे और तुम्हें अपनी ही गाड़ी से उस सरकारी बंगले पर छोड़ देंगे,” ज्योति ने अपनी योजना का और खुलासा किया.

“मगर वहां पर मुझे बचाने की टीम पहुंचेगी किस के कहने पर?” दीपक ने पूछा.

“वह टीम लोकल नहीं होगी और उसी जगह से आएगी जहां पर मैं पहले पोस्टेड थी. बचाने वाली टीम और गाड़ी का इंतजाम मैं कर दूंगी. मैं खुद भी उस जगह से कुछ दूर मौजूद रहूंगी,” ज्योति योजना पर से परदा हटाते हुए बोली.

“मगर तुम्हारे वहां आने की वजह क्या होगी?” दीपक एक बार फिर हैरान था.

“अरे भई, मैं भी इनसान हूं और अपनी छुट्टी के दिन आउटिंग के लिए तो जा ही सकती हूं न? बस, उस दिन भी अपना मूड चेंज करने के लिए आउटिंग पर आ जाऊंगी और तुम्हारे पानी में बहने के बाद जब बातीजी मदद के लिए चिल्लाएंगी, तब सब से पहले मैं ही वहां पर पहुंचूंगी.

“इस तरह से मैं एक चश्मदीद गवाह का काम भी करूंगी. सरकारी अफसर की गवाही पर कोई भी सवाल नहीं उठाएगा,” ज्योति बोली.

“हांहां, अब मैं तुम्हारी योजना को समझ गया. उधर तुम्हारी गाड़ी और तुम्हारे लोग मुझे ले कर तुम्हारे उस बंगले पर जाएंगे और इधर तुम मुझे मृत घोषित करवा कर मेरी जगह बाती को मेरी जगह नौकरी और मेरे बीमे के पैसे दिलवा दोगी,” दीपक योजना समझते हुए बोला.

“एकदम सही. वहां पर तुम्हारा रहनेखाने का सारा इंतजाम होगा. यहां पर ज्यादा से ज्यादा 6 महीनों में मैं यह काम खत्म कर दूंगी. उस के बाद वापस उसी जगह पर अपना ट्रांसफर करवा लूंगी,” ‘ज्योति बोली.

“लेकिन वहां पहुंचने के बाद भी मैं रहूंगा तो दीपक ही न? मेरी पहचान अभी तक बदली नहीं है,” दीपक कुछ बेचैन होते हुए बोला.

“अभी मेरी योजना पूरी नहीं हुई है. वहां पहुंचने के बाद तुम्हें घर पर नहीं बैठना है, बल्कि तुम्हें अपना नाम बदलवाने के सिलसिले में एक शपथपत्र बनवा कर कलक्टर औफिस में देना है. इस तरह के शपथपत्र बनवाना कोई मुश्किल काम नहीं है. तुम्हें अपना नाम बदल कर लौ कुमार रखना होगा.

“चूंकि नहर के तेज बहाव में बहने के बाद तुम्हारी लाश नहीं मिली होगी, इसलिए श्मशान घाट पर तुम्हारे नाम की कोई ऐंट्री नहीं होगी. मतलब तुम्हारा आधारकार्ड अलाइव रहेगा और हम उस में बदले हुए नाम का अपडेट आसानी से करवा पाएंगे,” ज्योति ने योजना का खुलासा किया.

“क्या सिर्फ कलक्टर के औफिस में शपथपत्र देने भर से नाम बदल जाता है?” दीपक ने पूछा.

“नहीं, इस की एक प्रक्रिया होती है. सब से पहले इस बारे में किसी नामी अखबार में जाहिर सूचना के जरीए नाम बदलवाने के लिए इश्तिहार छपवाना होता है, जिस में वजह देनी होती है. हम तुम्हारा नया नाम लौ कुमार रखेंगे.

“उस के बाद कलक्टर के औफिस में सभी कागजात के साथ अर्जी देनी होती है. कलक्टर की सिफारिश पर राज्य शासन इसे गजट में छापता है. एक बार गजट में नाम आने के बाद उसी नाम से बाकी कागजात में नाम आसानी से बदलवाया जा सकता है,” ज्योति ने पूरा ब्योरा दिया.

“मगर लौ कुमार नाम कुछ अटपटा नहीं होगा?” दीपक ने पूछा.

“नहीं, यह नाम बहुत सोचसमझ कर रखा गया है. अगर कभी तुम्हारा कोई पुराना जानकार मिल जाता है तो यह सफाई देने में आसानी होगी कि छात्र जीवन में दोस्तों को लौ कुमार बोलने में परेशानी होती थी, इसलिए उन्होंने लौ कुमार का पर्यायवाची दीपक कुमार तुम्हारा नाम रख दिया और वे तुम्हें इसी नाम से बुलाते हैं.

“वैसे बेहतर तो यही होगा कि तुम अपने किसी पुराने जानपहचान वाले से मिलो ही नहीं,” ज्योति की आवाज में चेतावनी और समझाइश दोनों ही थीं.

“यकीनन यह योजना तो काफी अच्छी और आकर्षक है. तुम्हारे कारण से सुरक्षित भी. इस योजना से हम सभी की समस्याएं भी हल हो रही हैं. तुम्हें तो कोई परेशानी नहीं है न बाती?”दीपक ने पूछा.

“मैं एतराज कर के करूंगी भी क्या? मेरे सामने अब सिर्फ ऊष्मित का भविष्य है. मैं यहां साफ कर देना चाहती हूं कि मुझे किसी कानूनी झमेले में मत फंसाना,” बाती की आवाज में रूखापन साफ झलक रहा था.

“वैसे तो मैं और दीपक मिल कर भी यह योजना बना सकते थे, मगर आप की जानकारी में भी सारी बातें रहें इसी वजह से यह योजना आप के सामने बनाई जा रही है, ताकि भविष्य में कोई शक न रहे,” ज्योति ने अपना रुख साफ करते हुए कहा.

“वैसे भी बाती, तुम्हें जोकुछ मिल रहा है वह तुम्हारी उम्मीदों से कहीं ज्यादा है,” दीपक ज्योति की बातों से सहमत होते हुए बोला.

15 दिनों के बाद अखबारों में इस हादसे का पूरा ब्योरा छपा, साथ ही छपी ज्योति की आंखों देखी गवाही.

तकरीबन 4 महीने के बाद ज्योति की मदद से बाती को दीपक की जगह नौकरी मिल गई और बीमे का पैसा भी. लौ कुमार और ज्योति भी अपनी नई जिंदगी में बिजी हो गए. ज्योति ने लौ कुमार को भी सरकारी मदद से लोन दिलवा कर एक फैक्टरी डलवा दी.

क्षमादान : अदिति और रवि के बीच कैसे पैदा हुई दरार

रवि 3 महीने से दीवाली पर बोनस और प्रमोशन की आस लगाए बैठा था. 2 साल की कड़ी मेहनत, कम छुट्टियां और ओवर टाइम से उस ने अपने बौस का दिल जीत लिया था. वह अपने बौस मिस्टर राकेश का फेवरेट एंप्लोई बन चुका था. उस ने सोचा था कि इस बार दीवाली पर एक महीने की लंबी छुट्टी ले कर मम्मीपापा के साथ रहेगा. मम्मी पिछले साल से ही उस की शादी की कोशिश में जुटी थीं.

अपने साथ काम करने वाले मुकेश को कई बार वह अपनी छुट्टियों की प्लानिंग बता चुका था. उस के सारे सहकर्मियों को भरोसा था कि उसे अब की बार दीवाली पर बोनस के साथसाथ प्रमोशन भी मिलेगा. मिस्टर राकेश ने प्रमोशन की लिस्ट में रवि का नाम सब से ऊपर लिखा हुआ था और उसे वे कई बार बता भी चुके थे. हालांकि हैड औफिस से फाइनल लिस्ट आनी बाकी थी.

सप्ताह का पहला दिन था. रवि अपने सहकर्मियों को गुड मौर्निंग कहता हुआ अपने कैबिन में जा रहा था, तभी चपरासी गुड्डू रवि से बोला, ‘‘रवि साहब, आप को बौस ने बुलाया है.’’

‘‘मुझे,’’ रवि के मुंह से अचानक निकला था.

पास के कैबिन में बैठा मुकेश रवि की तरफ ही देख रहा था. उस का सवाल सुन कर वह बताने लगा, ‘‘अरे रवि, तुम्हें पता चला हमारे बौस राकेश साहब की मदर की तबीयत ज्यादा खराब है. इसलिए वे छुट्टी पर चले गए हैं.’’

‘‘अच्छा, कब तक के लिए,’’ रवि के चेहरे पर थोड़ी परेशानी झलक रही थी और सहानुभूति भी. परेशानी खुद की छुट्टी को ले कर थी. वह सोच रहा था कि अगर बौस छुटट्ी पर चले गए हैं तो उस की छुट्टी की कौन मंजूरी देगा और सहानुभूति अपने बौस के लिए थी.

‘‘यार, फिलहाल तो उन्होंने एक हफ्ते की ऐप्लिकेशन दी है, लेकिन कुछ नहीं कह सकते कि वे कब तक लौटेंगे,’’ मुकेश ने बताया.

रवि के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह अपनी छुट्टियां को ले कर संशय में था. अब जब उस के बौस छुट्टी पर थे, तो उसे पता नहीं ज्यादा दिन की छुट्टी मिल सकेगी या नहीं.

मुकेश ने उस के चेहरे के भावों को भांपते हुए कहा, ‘‘तू फिक्र मत कर, तुझे छुट्टी तो मिल ही जाएगी. 2 साल से लगातार हार्डवर्क जो कर रहा है तू.’’

रवि इस पर मुसकरा दिया. फिर धीमे से बोला, ‘‘फिर यह नया बौस कौन है, जो मुझे बुला रहा है?’’

‘‘कोई नई मैडम राकेश सर की जगह टैंपरेरी अपौइंट हुई हैं. सुना है मुंबई से हैं,’’ मुकेश ने बताया और बोला, ‘‘तू मिल ले जा कर, औफिस का वर्क इंट्रोड्यूस करवाने के लिए बुलवा रही होंगी तुझे.’’

‘‘चल, फिर मैं उन से मिल कर आता हूं,’’ रवि के चेहरे पर अब थोड़ी राहत झलक रही थी.

मुकेश की इस बात से उसे राहत पहुंची थी कि 2 साल से वह हार्डवर्क कर रहा था. कंपनी के पास उस की छुट्टी कैंसिल करने की कोई वजह भी नहीं थी.

ये सब सोचतेसोचते रवि बौस के रूम का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

‘‘प्लीज, मे आई कम इन मैम,’’ रवि कैबिन के दरवाजे को आधा खोल कर धीरे से बोला.

‘‘कम इन,’’ मैडम किसी फाइल को सिर झुका कर देख रही थीं.

रवि चुपचाप उन की टेबल के सामने जा कर खड़ा हो गया.

मैडम ने अचानक अपना सिर उठाया और शायद ‘सिट डाउन, प्लीज’ कहने ही वाली थीं कि रुक गईं.

रवि भी अपनी जगह बस खड़े का खड़ा ही रह गया. उसे इस बात की बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि वह उसे आज यहां अचानक इस तरह मिलेगी. वह अदिति थी. कालेज की पुरानी दोस्त नहीं, कालेज के दिनों की रवि की एकमात्र दुश्मन. दोनों ने कभी एकदूसरे से कालेज में बात भी नहीं की थी, लेकिन उन का झगड़ा फेसबुक चैटिंग पर पहले हो चुका था.

रवि का कालेज में पहला साल था. वह पढ़ाकू किस्म का लड़का था. उन दिनों वह अदिति की तरफ आकर्षित हो गया था, लेकिन उसे उस से बात करने में न जाने क्यों बहुत ज्यादा झिझक महसूस होती थी. अदिति अच्छी होस्ट होने के साथसाथ कविताएं लिखती और सुनाती भी थी. ऐसी कई बातों ने रवि को प्रभावित कर दिया था. लेकिन रवि चुप रहने वाला लड़का था. वह अदिति से बात करना तो चाहता था, पर कर नहीं पाता था.

2 सैमेस्टर पूरे होने के बाद रवि के कालेज में कुछ दिनों के लिए छुट्टियां हो गई थीं.

तभी एकाएक उसे फेसबुक जैसे माध्यम का साथ मिल गया. उस ने इंटरनैट पर फेसबुक आईडी बना ली और अदिति को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. अदिति ने उसे ऐक्सैप्ट भी कर लिया. अब जैसे रवि को नया आसमान मिल गया था, थोड़ाबहुत जो भी लिख लिया करता था, फेसबुक पर पोस्ट करता, उस के क्लासमेट्स भी अब उसे नोटिस करने लगे थे. फिर वह एकाएक अदिति को अकसर उस की कविताओं की तारीफ लिख कर भेजा करता, उस की तसवीरों पर कमैंट कर दिया करता. बदले में अदिति भी रिप्लाई करती थी.

एक दिन उस ने अदिति की एक तसवीर देखी और उस पर उसे कुछ पंक्तियां लिखने का मन हुआ. उस दिन उस ने कमैंट में अपनी वे पंक्तियां न लिख कर अदिति की उस तसवीर को डाउनलोड कर अपनी टाइमलाइन से उन पंक्तियों के साथ अपलोड कर दिया और अदिति की टाइमलाइन पर वह तसवीर टैग के जरिए भेज दी. यह सब देखते ही अदिति ने रवि को मैसेज किया ‘अपलोड करने से पहले पूछ तो लेते.’

रवि ने रिप्लाई किया, ‘जी, सौरी. आप को बुरा लगा हो तो मैं उस तसवीर को हटा देता हूं.’

रवि फेसबुक का नौसिखिया संचालक था. उसे मालूम नहीं था कि उस फोटो को पूरी तरह से हटाने के लिए उसे डिलीट के औप्शन पर जाना होगा. उस ने सामने दिख रहे ‘रिमूव’ के औप्शन से उस तसवीर को अपने प्रोफाइल से हटा लिया और सोचने लगा कि तसवीर पूरी तरह से हट चुकी है.

थोड़ी देर बाद अदिति का फिर मैसेज आया, ‘फोटो अभी तक हटा क्यों नहीं?’

रवि तो समझ रहा था कि वह हट चुका है, इसलिए रिप्लाई किया, ‘हटा तो दिया है.’

अदिति का इस बार थोड़ा तीखा रिप्लाई आया, ‘अपने मोबाइल अपलोड में देख.’

रवि ‘मोबाइल अपलोड’ नाम की बला को उस समय जानता ही नहीं था. उस ने फिर रिप्लाई किया, ‘कहां?’

‘मोबाइल अपलोड में देख,’ अदिति का रिप्लाई अब सख्त लग रहा था.

‘ओके,’ रवि ने नपातुला जवाब दिया.

उसे हलका सा धक्का लगा था. उसे अदिति के ‘अपने अपलोड में देख’ जैसे शब्दों से ठेस पहुंची थी, क्योंकि अब तक उन दोनों की बातचीत में हर जगह ‘आप देखिए’ जैसे शब्द ही शामिल थे.

रवि ने जैसेतैसे ‘मोबाइल अपलोड’ ढूंढ़ा. अब वह उस तसवीर पर गया, लेकिन वहां भी उसे डिलीट का औप्शन नहीं दिख रहा था.

तब तक अदिति का एक और तीखा रिप्लाई आ चुका था, ‘फोटो अभी तक नहीं हटा.’

फिर एक बार अदिति ने मैसेज किया, ‘मिस्टर, क्या चल रहा है यह सब?’

रवि ने रिप्लाई किया, ‘कुछ टैक्निकल प्रौब्लम आ रही है. साइबर कैफे जा कर जल्दी ही उस मनहूस फोटो को हटाता हूं.’

रवि अब थोड़ा झुंझला सा गया था. उसे अदिति का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा था.

‘मनहूस…’ इस के आगे कुछ अपशब्द थे अदिति के रिप्लाई में.

अब रवि ने सब से पहले साइबर कैफे में एक व्यक्ति से पूछ कर उस फोटो को डिलीट किया. फिर अदिति को मैसेज किया, ‘आप का वह फोटो डिलीट हो चुका है. एक बात कहूंगा कि वह मेरी गलती थी, पर आप को यों ‘तू तड़ाक’ से तो पेश नहीं आना चाहिए.’

अब बात गरमा गई थी. धीरेधीरे रिप्लाई में भयंकर झगड़ा हो गया और फिर रवि जिस एकमात्र लड़की को अपनी क्लास में पसंद करता था, उस की फेसबुक फ्रैंड लिस्ट से बाहर हो चुका था.

आखिर में रवि ने थोड़ा सोचा और एक लंबा सौरी मैसेज भेज दिया लेकिन तब तक वह अदिति की फ्रैंड लिस्ट से बाहर हो चुका था.

छुट्टियों के बाद जब कालेज खुला, तो कालेज में बातें चल रही थीं कि रवि ने अदिति को प्रपोज किया था. रवि ने चुपचाप सब सुन लिया लेकिन इस बारे में कोई रिप्लाई नहीं किया.

वह जैसे अपनी ही नजरों में गिरता जा रहा था. अदिति ने ही शायद कालेज में यह बात फैलाई थी. फेसबुक से हुई एक गलती ने उसे संजीदा छात्रों की फेहरिस्त से बाहर कर दिया था और हर ओर कुछ महीने तक उस की हंसी उड़ाई गई थी.

एक दिन क्लास में उस के पीछे की सीट पर बैठ कर अदिति ने उस के दोस्तों के साथ मिल कर अप्रत्यक्ष रूप से रवि पर कई कटाक्ष कर दिए थे. वह उस की हंसी उड़ा रही थी, पर रवि कुछ नहीं बोला. वह अब तक खुद की ही गलती मान रहा था, लेकिन उस दिन से उस

ने अदिति से नफरत करना शुरू कर दिया था. अब अदिति को भी उस ने अपनी फ्रैंडलिस्ट से हटा दिया था और एकएक कर अदिति के दोस्त भी ब्लौक होते चले गए.

फिर न उस की अदिति से सामने कभी बात हुई और न ही फेसबुक पर, आज इतने साल बाद फिर वह उस के सामने थी और अब उस की बौस थी.

दोनों लगभग 10 मिनट तक स्तब्ध हो कर एकदूसरे को देख रहे थे. अदिति ने अपना चश्मा ठीक करते हुए कहा, ‘‘सिट डाउन, प्लीज.’’

रवि चुपचाप बैठ गया. 5 मिनट तक कैबिन में खामोशी छाई रही. अदिति अभी फिर से अपनी फाइल में उलझ गई थी या शायद नाटक कर रही थी.

फिर नजरें उठा कर बोली, ‘‘रवि, मुझे कल तक इस औफिस की सभी जरूरी फाइलें दे दो.’’

‘‘जी मैम,’’ रवि ने धीमे से कहा. उस की नजरें झुकी हुई थीं.

‘‘ओके, आप जा सकते हैं,’’ अदिति ने कहा, इस बार उस की नजरें भी झुकी हुई थीं.

रवि कैबिन से बाहर आ गया था लेकिन अपने अतीत से नहीं.

उस रात उसे नींद नहीं आ रही थी. गुजरे हुए कल में जो हुआ था उसे तो वह नजरअंदाज कर चुका था, लेकिन अब उस से उस की वर्तमान जिंदगी प्रभावित होती दिख रही थी.

रवि को फिक्र सता रही थी कि उस की छुट्टियां अदिति अस्वीकृत न कर दे. वह लंबे समय से छुट्टियों का इंतजार कर रहा था और अब अदिति के रहते उसे छुट्टी मिलना मुश्किल लगने लगा था. उसे लग रहा था कि अदिति उस से पुरानी दुश्मनी जरूर निकालेगी.

अगले दिन वह परेशान सा औफिस पहुंचा. चपरासी ने पिछले दिन की तरह ही उसे आज फिर बताया कि बौस यानी अदिति ने उसे कैबिन में बुलाया है.

रवि वे जरूरी फाइलें ले कर कैबिन में पहुंचा, जो उसे पिछले दिन अदिति ने छांटने को कही थीं.

‘‘मे आई कम इन मैम,’’ रवि ने औपचारिकता निभाई.

‘‘यसयस,’’ अदिति ने उस की तरफ आज पहली बार मुसकरा कर देखा था. ‘‘वे फाइल्स?’’

‘‘जी मैम, ये रहीं,’’ रवि ने फाइलों का एक ढेर अदिति की टेबल पर रख दिया.

‘‘आप को एक महीने की छुट्टी चाहिए?’’ अदिति तीखी मुसकराहट के साथ कह रही थी.

‘‘जी मैम,’’ रवि सिर नीचे किए हुए था.

‘‘इस वक्त औफिस में राकेशजी नहीं हैं, तो आप को इतनी लंबी छुट्टी

मिलना तो मुश्किल है,’’ अदिति रवि की तरफ अब गंभीरता से देखते हुए कह रही थी.

‘‘ओके, मैम. आप जैसा कहें,’’ रवि ने हलका सा सिर उठा कर कहा.

‘‘रविजी, आप हमारी कंपनी के बैस्ट एंप्लोई हैं,’’ अदिति इतना कहते हुए रुकी और फिर एक कागज हाथ में उठा कर बोली, ‘‘और आप की छुट्टी मैं भी आप से नहीं छीन सकती.’’

अदिति मुसकरा रही थी. अब रवि ने वह कागज अदिति मैम के हाथ से ले लिया और उसे पढ़ कर अब वह भी मुसकरा उठा, ‘‘थैंक्यू मैम,’’ रवि ने खुश होते हुए कहा. रवि की आंखों में कृतज्ञता झलक रही थी.

‘‘इट्स ओके रवि,’’ अदिति अब गंभीर मुद्रा में कह रही थी

कैबिन में कुछ लमहों तक खामोशी छा गई थी. अदिति ने उस खामोशी को तोड़ा, ‘‘रवि, ये ‘इट्स ओके’ तुम्हारे उस 10 साल पहले के सौरी के लिए है, जो तुम ने फेसबुक पर मैसेज किया था.’’

रवि चुपचाप खड़ा हो गया था. फिर कुछ देर बाद बोला, ‘‘दरअसल, वह मेरी नासमझी थी. मैं ने फेसबुक माध्यम को समझने में ही गलती कर दी थी. मुझे नहीं मालूम था कि किसी की तसवीर बिना पूछे अपलोड कर देना गलत है.’’

‘‘आई एम आलसो सौरी,’’ अदिति कह रही थी.

‘‘किसलिए मैम,’’ रवि जैसे अब सारी नफरत भुला चुका था.

‘‘गलती मेरी भी थी. मैं जरूरत से ज्यादा ही तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार कर रही थी. मुझे वह प्रपोज वाली बात भी नहीं उड़ानी चाहिए थी,’’ अदिति की आंखों में भी जैसे कुछ पिघल रहा था, ‘‘मैं ने तुम्हें गलत समझा था.’’

‘‘इट्स ओके मैम,’’ रवि इतना कह कर चुप हो गया था.

अदिति ने फिर चुप्पी तोड़ी, ‘‘मैं चाहती तो तुम से बदला लेती. तुम्हारी छुट्टियां कैंसिल कर देती. एक बार मैं ने सोचा भी, पर…’’

कुछ देर चुप रहने के बाद अदिति जैसे कोई सटीक बात ढूंढ़ कर बोली, ‘‘कल को हो सकता है तुम मेरी जगह हो और मैं तुम्हारी जगह. इस तरह नफरत से जिंदगी नहीं जी जाती.’’

कुछ देर तक फिर खामोशी छाई रही और अदिति ने फिर कहा, ‘‘उम्मीद है, तुम ने मुझे माफ कर दिया होगा.’’

‘‘औफकोर्स मैम,’’ रवि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘तो कल से तुम छुट्टी पर हो,’’ अदिति ने मुसकराते हुए रवि से पूछा.

‘‘जी मैम,’’ रवि ने भी हंस कर जवाब दिया.

‘‘ओके, ऐंजौय यौर्स हौलीडेज. तुम जा सकते हो,’’ अदिति इतना कह कर आंख बंद कर अपनी कुरसी पर पीठ टेक कर बैठ गई जैसे कोई भारी बोझ कंधे से उतार दिया हो.

रवि जब बाहर जाने के लिए कैबिन का दरवाजा खोल रहा था, तब मुसकराते हुए अदिति ने उसे रोक कर कहा, ‘‘रवि, हैप्पी दीवाली.’’

रवि भी मुसकरा दिया और बोला, ‘‘आप को भी, अदिति मैम.’’

इतना कहते हुए रवि मुसकराता हुआ बाहर आ गया. उन दोनों के बीच खड़ी कई साल पुरानी दीवारें अचानक ढह गई थीं. जिंदगी खुशियां बांट कर, उन का कारण बन कर चलती है, नफरतें पाल कर नहीं.

दीवाली के इस अवसर पर क्षमादान के दीपकों की जलती हुई लौ में रवि और अदिति के दिलों में नफरतों से भरे कुछ अंधेरे कोने रोशन हो चुके थे.

ई-ग्रुप

‘‘वाह, इसे कहते हैं कि आग लेने गए थे और पैगंबरी मिल गई,’’ रवि और पूनम के लौन में अन्य दोस्तों को बैठा देख कर विकास बोला, ‘‘हम लोग तो तुम्हें दावत देने आए थे, पर अब खुद ही खा कर जाएंगे.’’

‘‘दावत तो शौक से खाइए पर हमें जो दावत देने आए थे वह कहीं हजम मत कर जाइएगा,’’ पूनम की इस बात पर सब ठहाका लगा कर हंस पड़े.

‘‘नहीं, ऐसी गलती हम कभी नहीं कर सकते. वह दावत तो हम अपनी जिंदगी का सब से अहम दिन मनाने की खुशी में कर रहे हैं यानी वह दिन जिस रोज मैं और रजनी दो से एक हुए थे,’’ विकास बोला.

‘‘ओह, तुम्हारी शादी की सालगिरह है. मुबारक हो,’’ पूनम ने रजनी का हाथ दबा कर कहा.

‘‘मुबारकबाद आज नहीं, शुक्रवार को हमारे घर आ कर देना,’’ रजनी अब अन्य लोगों की ओर मुखातिब हुईं, ‘‘वैसे, निमंत्रण देने हम आप के घर…’’

‘‘अरे, छोडि़ए भी, रजनीजी, इतनी तकलीफ और औपचारिकता की क्या जरूरत है. आप बस इतना बताइए कि कब आना है. हम सब स्वयं ही पहुंच जाएंगे,’’ रतन ने बीच में ही टोका.

‘‘शुक्रवार को शाम में 7 बजे के बाद कभी भी.’’

‘‘शुक्रवार को पार्टी देने की क्या तुक हुई? एक रोज बाद शनिवार को क्यों नहीं रखते?’’ राजन ने पूछा.

‘‘जब शादी की सालगिरह शुक्रवार की है तब दावत भी तो शुक्रवार को ही होगी,’’ विकास बोला.

‘‘सालगिरह शुक्रवार को होने दो, पार्टी शनिवार को करो,’’ रवि ने सुझाव दिया.

‘‘नहीं, यार. यह ईद पीछे टर्र अपने यहां नहीं चलता. जिस रोज सालगिरह है उसी रोज दावत होगी और आप सब को आना पड़ेगा,’’ विकास ने शब्दों पर जोर देते हुए कहा.

‘‘हां, भई, जरूर आएंगे. हम तो वैसे ही कोई पार्टी नहीं छोड़ते, यह तो तुम्हारी शादी की सालगिरह की दावत है. भला कैसे छोड़ सकते हैं,’’ राजन बोला.

‘‘पर तुम यह पार्टी किस खुशी में दे रहे हो, रवि?’’ विकास ने पूछा.

‘‘वैसे ही, बहुत रोज से राजन, रतन वगैरा से मुलाकात नहीं हुई थी, सो आज बुला लिया.’’

रजनी और विकास बहुत रोकने के बाद भी ज्यादा देर नहीं ठहरे. उन्हें और भी कई जगह निमंत्रण देने जाना था. पूनम ने बहुत रोका, ‘‘दूसरी जगह कल चले जाना.’’

‘‘नहीं, पूनम, कल, परसों दोनों दिन ही जाना पड़ेगा.’’

‘‘बहुत लोगों को बुला रहे हैं क्या?’’

‘‘हां, शादी की 10वीं सालगिरह है, सो धूमधाम से मनाएंगे,’’ विकास ने जातेजाते बताया.

‘‘जिंदादिल लोग हैं,’’ उन के जाने के बाद राजन बोला.

‘‘जिंदादिल तो हम सभी हैं. ये दोनों इस के साथ नुमाइशी भी हैं,’’ रवि हंसा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘शादी की सालगिरह इतने हल्लेगुल्ले के साथ मनाना मेरे खयाल में तो अपने प्यार की नुमाइश करना ही है. दोस्तों को बुलाने के लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं होती.’’

‘‘तो आप के विचार में शादी की सालगिरह नहीं मनानी चाहिए?’’ शोभा ने पूछा.

‘‘जरूर मनानी चाहिए, लेकिन अकेले में, एकदूसरे के साथ,’’ रवि पूनम की ओर आंख मार कर मुसकराया, ‘‘पार्टी के हंगामे में नहीं.’’

‘‘तभी आज तक तुम्हारी शादी की सालगिरह की दावत नहीं मिली. वैसे, तुम्हारी शादी की सालगिरह होती कब है, रवि?’’ रतन ने पूछा.

‘‘यह बिलकुल खुफिया बात है,’’ राजन हंसा, ‘‘रवि ने बता दिया तो तुम उस रोज मियांबीवी को परेशान करने आ पहुंचोगे.’’

‘‘लेकिन, यार, इंसान शादी करता ही बीवी के साथ रहने को है और हमेशा रहता भी उस के साथ ही है. फिर अगर खुशी के ऐसे चंद मौके दोस्तों के साथ मना लिए जाएं तो हर्ज ही क्या है? खुशी में चारचांद ही लग जाते हैं,’’ रतन ने कहा.

‘‘यही तो मैं कहती हूं,’’ अब तक चुप बैठी पूनम बोली.

‘‘तुम तो कहोगी ही, क्योंकि तुम भी उसी ‘ई ग्रुप’ की जो हो,’’ रवि ने व्यंग्य से कहा.

‘‘ई ग्रुप? वह क्या होता है, रवि भाई?’’ शोभा ने पूछा.

‘‘ई ग्रुप यानी एग्जिबिशन ग्रुप, अपने प्यार की नुमाइश करने वालों का जत्था. मियांबीवी को शादी की सालगिरह मना कर अपने लगाव या मुहब्बत का दिखावा करने की क्या जरूरत है? रही बात दोस्तों के साथ जश्न मनाने की, तो इस के लिए साल के तीन सौ चौंसठ दिन और हैं.’’

‘‘इस का मतलब यह है कि शादी की सालगिरह बैडरूम में अपने पलंग पर ही मनानी चाहिए,’’ राजन ने ठहाका लगा कर फब्ती कसी.

‘‘जरूरी नहीं है कि अपने घर का ही बैडरूम हो,’’ रवि ने ठहाकों की परवा किए बगैर कहा.

‘‘किसी हिल स्टेशन के शानदार होटल का बढि़या कमरा हो सकता है, किसी पहाड़ी पर पेड़ों का झुंड हो सकता है या समुद्रतट का एकांत कोना.’’

‘‘केवल हो ही सकता है या कभी हुआ भी है, क्यों, पूनम भाभी?’’ रतन ने पूछा.

‘‘कई बार या कहिए हर साल.’’

‘‘तब तो आप लोग छिपे रुस्तम निकले,’’ राजन ने ठहाका लगाते हुए कहा.

शोभा भी सब के साथ हंसी तो सही, लेकिन रवि का सख्त पड़ता चेहरा और खिसियाई हंसी उस की नजर से न बच सकी. इस से पहले कि वातावरण में तनाव आता, वह जल्दी से बोली, ‘‘भई, जब हर किसी को जीने का अंदाज जुदा होता है तो फिर शादी की सालगिरह मनाने का तरीका भी अलग ही होगा. उस के लिए बहस में क्यों पड़ा जाए. छोडि़ए इस किस्से को. और हां, राजन भैया, विकास और रजनी के आने से पहले जो आप लतीफा सुना रहे थे, वह पूरा करिए न.’’

विषय बदल गया और वातावरण से तनाव भी हट गया, लेकिन पूनम में पहले वाला उत्साह नहीं था.

कोठी के बाहर खड़ी गाडि़यों की कतारें और कोठी की सजधज देख कर यह भ्रम होता था कि वहां पर जैसे शादी की सालगिरह न हो कर असल शादी हो रही हो. उपहारों और फूलों के गुलदस्ते संभालती हुई रजनी लोगों के मुबारकबाद कहने या छेड़खानी करने पर कई बार नईनवेली दुलहन सी शरमा जाती थी.

कहकहों और ठहाकों के इस गुलजार माहौल की तुलना पूनम अपनी सालगिरह के रूमानी मगर खामोश माहौल से कर रही थी. उस रोज रवि अपनी सुहागरात को पलदरपल जीता है, ‘हां, तो ठीक इसी समय मैं ने पहली बार तुम्हें बांहों में भरा था, और तुम…तुम एक अधखिले गुलाब की तरह सिमट गई थीं और… और पूनम, फिर तुम्हारी गुलाबी साड़ी और तुम्हारे गुलाबी रंग में कोई फर्क ही नहीं रह गया था. तुम्हें याद है न, मैं ने क्या कहा था…अगर तुम यों ही गुलाबी हो जाओगी तो तुम्हारी साड़ी उतारने के बाद भी मैं इसी धोखे में…ओह, तुम तो फिर बिलकुल उसी तरह शरमा गईं, बिलकुल वैसी ही छुईमुई की तरह छोटी सी…’ और उस उन्माद में रवि भी उसी रात का मतवाला, मदहोश, उन्मत्त प्रेमी लगने लगता.

‘‘पूनम, सुन, जरा मदद करवा,’’ रजनी उस के पास आ कर बोली, ‘‘मैं अकेली किसेकिसे देखूं.’’

‘‘हां, हां, जरूर.’’ पूनम उठ खड़ी हुई और रजनी के साथ चली गई.

मेहमानों में डाक्टर शंकर को देख कर वह चौंक पड़ी. रवि डाक्टर शंकर के चहेते विद्यार्थियों में से था और इस शहर में आने के बाद वह कई बार डाक्टर शंकर को बुला चुका है, पर हमेशा ही वह उस समय किसी विशेष कार्य में व्यस्त होने का बहाना बना, फिर कभी आने का आश्वासन दे, कर रवि को टाल देते थे. पर आज विकास के यहां कैसे आ गए? विकास से तो उन के संबंध भी औपचारिक ही थे और तभी जैसे उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया.

‘‘क्यों, डाक्टर, हम से क्या नाराजगी है? हमारा निमंत्रण तो हमेशा इस बेदर्दी से ठुकराते हो कि दिल टूट कर रह जाता है. यह बताओ, विकास किस जोर पर तुम्हें खींच लाया?’’ एक गंजा आदमी डाक्टर शंकर से पूछ रहा था.

‘‘क्या बताऊं, गणपतिजी, व्यस्त तो आज भी बहुत था, लेकिन इन लोगों की शादी की सालगिरह थी. अब ऐसे खास मौके पर न आना भी तो बुरा लगता है.’’

‘‘यह बात तो है. मेरी पत्नी का भी इन लड़केलड़कियों के जमघट में आने को दिल नहीं था पर रजनी की जिद थी कि शादी की 10वीं सालगिरह पर उसे हमारा आशीर्वाद जरूर चाहिए, सो, आना पड़ा वरना मुझे भी रोटरी मीटिंग में जाना था.’’

पूनम को मेहमानों की आवभगत करते देख कर रवि उस के पास आया, ‘‘पूनम, जरा डाक्टर शंकर को आने के लिए कहो न कभी घर पर.’’

‘‘वे मेरे कहने से नहीं आने वाले.’’ पूनम अवहेलना से मुसकराई.

‘‘फिर कैसे आएंगे?’’

‘‘मेरे साथ आओ, बताती हूं.’’ पूनम ने रवि को अपने पीछेपीछे पैंट्री में आने का इशारा किया और वहां जा कर डाक्टर शंकर और गणपतिजी के बीच हुई बातचीत दोहरा दी.

‘‘तो इस का मतलब है कि वे लोग मजबूरन आए हैं. किसी को जबरदस्ती बुलाना और वह भी अपने प्यार की नुमाइश कर के, हम से नहीं होगा भई, यह सब.’’

‘‘मेरे खयाल में तो बगैर मतलब के पार्टी देने को ही आजकल लोग पैसे की नुमाइश समझते हैं,’’ पूनम कुछ तलखी से बोली.

‘‘तो आज जो कुछ हो रहा है उस में पैसे की नुमाइश नहीं है क्या? तुम्हारे पास पैसा होगा, तभी तो तुम दावत दोगी. लेकिन किसी निहायत व्यक्तिगत बात को सार्वजनिक रूप देना और फिर व्यस्त लोगों को जबरदस्ती खींच कर लाना मेरी नजर में तो ई ग्रुप की ओर से की जाने वाली अपनी प्रतिष्ठा की नुमाइश ही है. जहां तक मेरा खयाल है, विकास और रजनी में प्यार कभी रहा ही नहीं है. वे इकट्ठे महज इसीलिए रह रहे हैं कि हर साल धूमधाम से एकदूसरे की शादी की सालगिरह मना सकें,’’ कह कर रवि बाहर चला गया.

तभी रजनी अंदर आई, ‘‘कर्नल प्रसाद कोई भी तली हुई चीज नहीं खा रहे और अपने पास तकरीबन सब ही तली हुई चीजें हैं.’’

‘‘डबलरोटी है क्या?’’ पूनम ने पूछा, ‘‘अपने पास 3-4 किस्में की चटनियां हैं, पनीर है, उन के लिए 4-5 किस्मों के सैंडविच बना देते हैं.’’

‘‘डबलरोटी तो है लेकिन तेरी साड़ी गंदी हो जाएगी, पूनम. ऐसा कर, मेरा हाउसकोट पहन ले,’’ रजनी बोली, ‘‘उधर बाथरूम में टंगा होगा.’’ कह कर रजनी फिर बाहर चली गई. पूनम ने बाथरूम और बैडरूम दोनों देख लिए पर उसे हाउसकोट कहीं नजर नहीं आया. वह रजनी को ढूंढ़ते हुए बाहर आई.

‘‘भई, यह जश्न तो कुछ भी नहीं है, असली समारोह यानी सुहागरात तो मेहमानों के जाने के बाद शुरू होगी,’’ लोग रजनी और विकास को छेड़ रहे थे.

‘‘वह तो रोज की बात है, साहब,’’ विकास रजनी की कमर में हाथ डालता हुआ बोला, ‘‘अभी तो अपना हर दिन ईद और हर रात शबेरात है.’’

‘‘हमेशा ऐसा ही रहे,’’ हम तो यही चाहते हैं मिर्जा हसन अली बोले.

‘‘रजनी जैसे मिर्जा साहब की शुभकामनाओं से वह भावविह्वल हो उठी हो. पूनम उस से बगैर बोले वापस रसोईघर में लौट आई और सैंडविच बनाने लगी.

‘‘तू ने हाउसकोट नहीं पहना न?’’ रजनी कुछ देर बाद आ कर बोली.

‘‘मिला ही नहीं.’’

‘‘वाह, यह कैसे हो सकता है. मेरे साथ चल, मैं देती हूं.’’

रजनी को अतिथिकक्ष की ओर मुड़ती देख कर पूनम बोली, ‘‘मैं ने तुम लोगों के कमरे में ढूंढ़ा था.’’

‘‘लेकिन मैं आजकल इस कमरे में सोती हूं, तो यही बाथरूम इस्तेमाल करती हूं.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘विकास आजकल आधी रात तक उपन्यास पढ़ता है और मुझे रोशनी में नींद नहीं आती.’’

‘‘लेकिन आज तो तू अपने ही बैडरूम में सोएगी,’’ पूनम शरारत से बोली, ‘‘आज तो विकास उपन्यास नहीं पढ़ने वाला.’’

‘‘न पढ़े, मैं तो इतनी थक गई हूं कि मेहमानों के जाते ही टूट कर गिर पड़ूंगी.’’

‘‘विकास की बांहों में गिरना, सब थकान दूर हो जाएगी.’’

‘‘क्यों मजाक करती है, पूनम.

यह सब 10 साल पहले होता था. अब तो उलझन होती है इन सब चोचलों से.’’

पूनम ने हैरानी से रजनी की ओर देखा, ‘‘क्या बक रही है तू? कहीं तू एकदम ठंडी तो नहीं हो गई?’’

‘‘यही समझ ले. जब से विकास के उस प्रेमप्रसंग के बारे में सुना था…’’

‘‘वह तो एक मामूली बात थी, रजनी. लोगों ने बेकार में बात का बतंगड़ बना दिया था.’’

‘‘कुछ भी हो. उस के बाद विकास के नजदीक जाने की तबीयत ही नहीं होती और अब, पूनम, करना भी क्या है यह सब खेल खेल कर 2 बच्चे हो गए, अब इस सब की जरूरत ही क्या है?’’ पूनम रजनी की ओर फटीफटी आंखों से देखती हुई सोच रही थी कि रवि की ई ग्रुप की परिभाषा कितनी सही है.

नो प्रौब्लम: भाग 3- क्या बेटी के लिए विधवा नीरजा ने ठुकरा दिया रोहित का प्यार?

काफी लंबी खामोशी के बाद नीरजा ने धीमे स्वर में उसे अपने मन की चिंता बताई, ‘‘बात तो तुम्हारी ठीक है पर मेरा दिल बहुत दुखेगा उसे होस्टल भेज कर.’’

‘‘मैं तुम्हें उस से मिलाने के लिए जल्दीजल्दी ले जाया करूंगा.’’

‘‘पक्का वादा करते हो?’’

‘‘बिलकुल पक्का.’’

कुछ लमहों की खामोशी के बाद नीरजा ने कहा, ‘‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं रहती, नहीं तो एक रास्ता यह भी था कि हमारी शादी होने के बाद कुछ दिनों के लिए महक को उन के पास छोड़ देते. तब उसे होस्टल भेजने की जरूरत भी नहीं रहती.’’

‘‘नहीं, ऐसा करने से यह समस्या हल नहीं होगी, नीरजा. वह आसपास होगी तो उस का रोनाचिल्लाना तुम से सहन नहीं होगा.

शादी के बाद जो एकांत हमें चाहिए, वह नहीं मिल पाएगा, क्योंकि तुम महक को अपने पास बुला लोगी,’’ रोहित को उस का प्रस्ताव जंचा नहीं.

‘‘मुझे लगता है कि मम्मीपापा भी महक को होस्टल भेजने को राजी नहीं होंगे, रोहित,’’ नीरजा और ज्यादा सुस्त हो गई.

‘‘तुम यह क्या कह रही हो,’’ रोहित कुछ नाराज हो उठा, ‘‘उन्हें तुम्हारी बात माननी पड़ेगी. जब मैं भी उन्हें ऐसा करने के फायदे समझाऊंगा तो वे जरूर राजी

हो जाएंगे.’’

‘‘अगर वे फिर भी नहीं माने तो?’’

‘‘बेकार की बात मत करो, नीरजा. अरे, उन्हें तुम्हारी बात माननी ही पड़ेगी. वे तुम्हें नाराज नहीं कर सकते, क्योंकि अपनी देखभाल के लिए वे तुम पर निर्भर करते हैं न कि तुम उन के ऊपर.’’

‘‘उन की देखभाल से याद आया कि हमारी शादी हो जाने के बाद उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहेगा. उन्हें डाक्टर के पास दिखा लाने का काम मैं ही करती हूं. घर का सामान और दवाएं वगैरह मैं ही खरीदती हूं. इस समस्या का भी कोई हल ढूंढ़ना पड़ेगा.’’

‘‘नो प्रौब्लम, माई डियर. उन दोनों की देखभाल करने वाली सिर्फ एक काबिल मेड हमें ढूंढ़नी पड़ेगी. उस मेड की पगार हम दिया करेंगे तो तुम्हारे पापा की पैंशन भी उन्हें पूरी मिलती रहेगी. कहो, कैसा लगा मेरा सुझाव?’’

‘‘हम दोनों के हिसाब से तो अच्छा है, पर…’’

‘‘परवर के चक्कर में ज्यादा मत घुसो. सिर्फ औरों की ही नहीं, तुम्हें अपनी खुशियों के बारे में भी सोचना चाहिए, नीरजा,’’ उसे टोकते हुए रोहित ने सलाह दी.

‘‘क्या अपनी खुशियों के बारे में सोचना स्वार्थीपन नहीं कहलाएगा?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं, अरे, जब मैं खुश नहीं हूं तो किसी अपने की जिंदगी में मैं क्या खाक खुशियां भर सकूंगा?’’ रोहित ने तैश में आ कर यह सवाल पूछा.

‘‘खुशियों के मामले में क्या इतना ज्यादा कुशल हिसाबीकिताबी बनना ठीक रहता है, रोहित?’’

‘‘यार, तुम तो बेकार में बहस किए जा रही हो,’’ रोहित अचानक चिढ़ उठा.

‘‘लो, मैं चुप हो गई,’’ नीरजा ने अपने होंठों पर उंगली रखी और एकाएक ही तनावमुक्त हो कर मुसकराने लगी.

‘‘मेरी बात सुनोगी और मेरे सुझावों पर चलोगी तो हमेशा खुश ही रहोगी.’’

‘‘अब विदा लें?’’

‘‘मैं सब से मिल तो लूं.’’

‘‘आज रहने दो.’’

‘‘ओ.के. गुडनाइट, डियर.’’

‘‘गुडनाइट.’’

नीरजा से हाथ मिलाने के बाद रोहित अपनी कार की तरफ बढ़ गया.

वह उसे विदा कर घर के अंदर आई तो महक उस की छाती से लिपट कर जोरजोर

से रो पड़ी. नीरजा को उसे चुप कराने में काफी देर लगी.

महक के सो जाने के बाद उस ने अपने मम्मीपापा को अपना निर्णय गंभीर स्वर में बता दिया, ‘‘मैं ने रोहित से शादी न करने का फैसला किया है.’’

‘‘क्यों?’’ उस के मम्मी व पापा दोनों ने एकसाथ पूछा.

‘‘क्योंकि पिछले दिनों जैसे उस ने अपने अच्छे व्यवहार से हम सब का मन जीता था, वह मुझे पाने के लिए किया गया अभिनय भर था. वह अपनी भावनाओं के स्विच को अपने फायदेनुकसान को ध्यान में रख कर खोलने व बंद करने में माहिर है.

‘‘मुझ से शादी हो जाने के बाद वह निश्चित रूप से बदल जाता. तब उसे महक

व आप दोनों बोझ लगने लगते. मैं ने परख लिया है कि हर समस्या को ‘नो प्रौब्लम’

बनाने की कुशलता रोहित के दिमाग को हासिल है. जिस इनसान का दिल उस के दिमाग का पूरी तरह गुलाम हो, मुझे वैसा जीवनसाथी कभी नहीं चाहिए. अब आप दोनों भी उस के साथ मेरी शादी होने के सपने देखना बंद कर देना, प्लीज,’’ अपना यह फैसला सुनाते हुए नीरजा पूरी तरह से तनावमुक्त और शांत नजर आई.

उस ने अपने मम्मीपापा के गले से लग कर प्यार किया. फिर सोफे पर सो रही महक  का माथा कई बार प्यार से चूमने के बाद उस ने उसे गोद में उठाया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी.

नो प्रौब्लम: भाग 2- क्या बेटी के लिए विधवा नीरजा ने ठुकरा दिया रोहित का प्यार?

‘‘किसी दिन तुम्हारी मम्मी को छोड़ कर यहां आएंगे और खूब सारी चीजें खरीदेंगे,’’ रोहित के इस प्रस्ताव का महक ने तालियां बजा कर स्वागत किया था.

शाम को विदा होने के समय सावित्री और उमाकांत ने रोहित को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद दिए.

‘‘रोहित अंकल, आप बहुत अच्छे हो. मेरे साथ खेलने के लिए आप जल्दी से फिर आना,’’ महक से ऐसा निमंत्रण पाने के बाद रोहित ने जब विजयी भाव से नीरजा की तरफ देखा तो वह प्रसन्न अंदाज में मुसकरा उठी.

आगामी 3 रविवारों को लगातार रोहित इन सब से मिलने आया. उस ने बहुत कम समय में सभी के साथ मधुर संबंध बनाने में अच्छी सफलता प्राप्त की.

‘‘महक बेटे, अगर हम सब साथ रहने लगें तो कैसा रहेगा?’’ रोहित ने खेलखेल में महक से यह सवाल सब के सामने पूछा.

‘‘बहुत मजा आएगा, अंकल,’’ महक की आंखों की खुशी देख कर कोई भी यह कह सकता था कि उसे रोहित अंकल का साथ बहुत अच्छा लगने लगा है. उस दिन जब रोहित अपने घर जाने लगा तो नीरजा ने उस की तारीफ की,

‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इतनी अच्छी तरह से इन तीनों के साथ घुलमिल जाओगे. महक तो तुम्हारी बहुत बड़ी प्रशंसक बन गई है.’’

‘‘अब तुम्हारे मन की सारी चिंताएं खत्म हो गईं न?’’ रोहित ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर पूछा. ‘‘काफी हद तक.’’

‘‘रहीसही कसर भी मैं जल्दी पूरी कर दूंगा, माई डियर. आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारे साथ ढेर सारी बातें करने का मन कर रहा है. चलो, कहीं घूमने चलें.’’

‘‘कहां?’’

‘‘महत्त्व तुम्हारे साथ का है, जगह का नहीं. जहां तुम कहोगी, वहीं चलेंगे.’’

‘‘मैं तैयार हो कर आती हूं,’’ बड़े अपनेपन से रोहित का हाथ दबाने के बाद नीरजा अपने कमरे की तरफ चली गई. अपनी मां को बाहर जाने के लिए तैयार होते देख महक साथ चलने के लिए मचल उठी. इस मामले में उस ने न अपने नानानानी की सुनी, न अपनी मां की.

‘‘महक, चलो मैं तुम्हें पहले बाहर घुमा लाता हूं. फिर तो मम्मी को मेरे साथ जाने दोगी न?’’ रोहित ने उसे लालच दिया पर वह नहीं मानी और साथ चलने की अपनी जिद पर अड़ी रही.

‘‘अच्छा, चल. तेरे अंकल ने तुझे जो इतना ज्यादा सिर चढ़ाया हुआ है, तेरा यह जिद्दीपन उसी का नतीजा है,’’ साथ चलने के लिए नीरजा की इजाजत पा कर महक तो खुश हुई पर रोहित का चेहरा यह कह रहा था कि उस का मूड खराब हो गया.

‘‘आई एम सौरी, रोहित. अगली बार मैं पक्का तुम्हारे साथ अकेली घूमने चलूंगी,’’ ऐसा वादा कर नीरजा ने उस का मूड ठीक करने की कोशिश की.

‘‘अगली बार भी महक ऐसे ही झंझट खड़ा करेगी, नीरजा. तुम्हें आज ही उस के साथ सख्ती दिखानी थी,’’ रोहित अभी तक नाखुश नजर आ रहा था.

‘‘सख्ती तो मैं अभी भी दिखा सकती हूं, पर वह रोरो कर सारा घर सिर पर उठा लेगी.’’

‘‘तो क्या हुआ? बच्चे के रोने के डर से उसे अनुशासनहीन नहीं बनने दिया जा सकता है.’’

‘‘ओ.के. मैं ऐसा ही करती हूं,’’  नीरजा का स्वर सख्त हो गया और उस ने महक को पास बुला कर घर बैठने का हुक्म सुना दिया.

नीरजा का अंदाजा ठीक ही निकला. महक ने खूब जोरजोर से रोना शुरू कर दिया.

‘‘तुम मन कड़ा कर के निकल चलो. हम जल्द ही लौट आएंगे, पर एक बार बाहर जाना महक की सही टे्रनिंग के लिए जरूरी है,’’ रोहित की इस सलाह पर चलते हुए नीरजा अपनी बेटी को रोता छोड़ कर घर से बाहर निकल आई.

इस वक्त शाम के 5 बज रहे थे. रोहित ने किसी रेस्तरां में चल कर कौफी पीने का प्रस्ताव रखा पर बुझीबुझी सी नजर आ रही नीरजा ने इनकार कर दिया.

‘‘अभी कुछ खानेपीने का दिल नहीं कर रहा है. चलो, किसी पार्क में कुछ देर बैठते हैं,’’ नीरजा की इच्छा का आदर करते हुए रोहित ने कार एक सुंदर से पार्क के सामने रोक दी.

कुछ देर बाद खामोश और सुस्त नजर आ रही नीरजा ने परेशान लहजे में महक का जिक्र छेड़ा, ‘‘महक मुझ से बहुत ज्यादा अटैच है, रोहित. देखा, आज कितना ज्यादा

रोई है वह साथ आने के लिए. समझ में नहीं आता कि आने वाले समय में यह समस्या कैसे हल होगी?’’

‘‘माई डियर, हर समस्या का समाधान मौजूद है पर इस वक्त तुम महक के बारे में सोचना बंद करो और मुझ से गप्पें मारो,’’

रोहित ने मुसकरा कर अपनी इच्छा बताई तो नीरजा के होंठों पर भी छोटी सी मुसकान उभर आई.

कुछ ही देर में रोहित नीरजा का मूड ठीक करने में सफल हो गया. पार्क में कुछ देर घूमने के बाद वे बाजार आ गए. वहां रोहित ने उसे पसंदीदा सैंट का उपहार दिया. बाद में उन्होंने एक रेस्तरां में कौफी पी. फिर घूमतेटहलते वे बातें करते रहे. उस के साथ बातें करते हुए रोहित का दिल भर ही नहीं रहा था. तब देर होने लगी तो वे वापस चल पड़े और 9 बजे के बाद घर पहुंचे.

‘‘अब देखना, महक तुम से कितना लड़ेगी,’’ घर में घुसने से पहले तनावग्रस्त नजर आ रही नीरजा ने रोहित को आगाह किया तो वह एकदम से गंभीर हो गया.

‘‘तुम ने शाम को मुझ से जो महक वाली समस्या का हल पूछा था, उस के बारे में मेरे पास एक सुझाव है,’’ रोहित ने गेट के पास नीरजा को रोक कर यह बात कही.

‘‘किस समस्या की बात कर रहे हो?’’ नीरजा ने अपना पूरा ध्यान उसी की तरफ लगा दिया.

‘‘महक जो तुम से बहुत ज्यादा अटैच है, मैं उसी के बारे में बात कर रहा हूं.’’

‘‘हां, हां, प्लीज बताओ न कि यह समस्या कैसे हल हो सकती है. आज उसे बुरी तरह रोता देख मैं तो बहुत दुखी हो गई थी.’’

‘‘समस्या का हल तो सीधासादा है पर वह शायद तुम्हें पसंद नहीं आएगा,’’ रोहित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘अगर तुम महक को सचमुच स्वावलंबी बनाना चाहती हो तो उसे होस्टल भेज दो.’’

‘‘वह तो अभी सिर्फ 7 साल की ही है, रोहित,’’ नीरजा चौंक पड़ी.

‘‘तो क्या हुआ? उस से छोटे बच्चे भी होस्टल में जा कर रहते हैं, नीरजा. वहां उसके व्यक्तित्व का संतुलित विकास होगा और इधर तुम और मैं भी फ्री हो कर हमारी शादी के साथ होने वाली जिंदगी की नई शुरुआत का भरपूर आनंद ले सकेंगे, आपसी संबंधों को मधुर और मजबूत बना सकेंगे,’’ रोहित ने कोमल लहजे में उसे समझाया.

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नो प्रौब्लम: भाग 1- क्या बेटी के लिए विधवा नीरजा ने ठुकरा दिया रोहित का प्यार?

लंच टाइम होते ही रोहित नीरजा के कक्ष में उस से मिलने आ पहुंचा. सामने पड़ी कुरसी पर बैठते ही उस ने अपना फैसला नीरजा को सुना दिया, ‘‘शादी की बात करने मैं कल इतवार की सुबह तुम्हारे मम्मीपापा से मिलने आ रहा हूं.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘कोशिश मत करो मेरा मन बदलने की, नीरजा. अगर मैं तुम्हारे भरोसे रहा तो दूल्हा बनने का इंतजार करतेकरते बूढ़ा हो जाऊंगा,’’ रोहित ने उसे अपने फैसले के विरोध में कुछ कहने नहीं दिया.

‘‘रोहित, जरा शांत हो कर मेरी बात सुनो. तुम से शादी करने का फैसला अभी मैं ने ही नहीं किया है. मेरे मम्मीपापा इस मामले में जब किसी तरह की रुकावट नहीं डाल रहे हैं तो फिर तुम उन दोनों से मिल कर क्या करोगे?’’

‘‘हम सब मिल कर तुम्हें समझाएंगे कि अकेले जिंदगी काटना न तुम्हारी बेटी महक के लिए अच्छा है, न तुम्हारे लिए. देखो, तुम मुझे एक बात साफसाफ बताओ, मैं जीवनसाथी के रूप में तुम्हें पसंद हूं या नहीं?’’

‘‘मैं तुम्हें पसंद करती हूं पर मेरे लिए दूसरी शादी करने का फैसला करना इतना आसान और सीधा मामला नहीं है.’’

‘‘तुम्हें ‘हां’ कहने में प्रौब्लम क्या है?’’

‘‘मैं कई बार तो तुम्हें समझा चुकी हूं. मेरे ऊपर एक तो अपने मम्मीपापा की देखभाल करने की जिम्मेदारी है, क्योंकि मैं उन की इकलौती संतान हूं. दूसरी बात यह कि महक की खुशियों के ऊपर… उस के समुचित मानसिक व भावनात्मक विकास पर मेरी शादी से कोई विपरीत प्रभाव पड़े, यह मुझे कभी स्वीकार नहीं होगा.’’

‘‘ये दोनों बातें तो कोई प्रौब्लम हैं ही नहीं, नीरजा. देखो, मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं तो जो भी मेरे दिल के करीब है, उस को मैं कैसे कोई दुखतकलीफ उठाते देख सकता हूं. तीनों का दिल जीत लेना मेरे लिए आसान काम है, मैडम.’’

‘‘रियली?’’

‘‘यस,’’ रोहित ने आत्मविश्वास भरे लहजे में जवाब दिया.

‘‘मेरे मन की इन 2 चिंताओं को अगर तुम दूर कर दो तो…’’ नीरजा ने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ी और उस का हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराई.

‘‘नो प्रौब्लम, लेकिन जब ये तीनों मुझे तुम्हारे जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करने को खुशी से तैयार हो जाएंगे, तब तो ‘हां’ कह दोगी न?’’

‘‘श्योर,’’ नीरजा का जवाब सुन कर रोहित खुश हो गया.

शाम को घर लौट कर नीरजा ने अपने मम्मीपापा को अगले दिन सुबह रोहित के घर आने की खबर दी तो उन दोनों की आंखों में आशा भरी चमक उभर आई.

‘‘यह लड़का सचमुच अच्छा है, नीरजा. उस के हावभाव से साफ जाहिर होता है कि वह तुम्हें और महक को खुश और सुखी रखेगा. अब की बार ‘हां’ कह कर हमारे मन की चिंता दूर कर दे, बेटी,’’ अपनी इच्छा जाहिर करते हुए उस की मां सावित्री की आंखें भर आईं.

‘‘मां, मुझे दोबारा शादी करने से कोई ऐतराज नहीं है, पर सिर्फ शादीशुदा कहलाने भर के लिए मैं किसी के साथ सात फेरे नहीं लूंगी. मैं अपने पैरों पर अच्छी तरह से खड़ी हूं और तुम दोनों व महक की बढि़या देखभाल करने में पूरी तरह से सक्षम हूं. अगर मेरा दिल ‘हां’ बोलेगा तो ही मेरी शादी होगी. किसी तरह के दबाव में आ कर मैं दुलहन नहीं बनूंगी,’’ नीरजा का यह जवाब सुन कर सावित्री आगे कोई दलील नहीं दे पाई थीं.

‘‘बेटी, तुम्हारे दिल में महक के दिवंगत पापा की जगह कोई नहीं ले सकता है, यह मैं समझता हूं. लेकिन यह भी ठीक नहीं है कि तुम बिना जीवनसाथी के बाकी की जिंदगी काटो. विवेक जैसे सीधेसच्चे इनसान बारबार नहीं मिलते. अगर तुम रोहित की तुलना विवेक से नहीं करोगी, तो अच्छा रहेगा. बाकी तुम खुद बहुत समझदार हो,’’ नीरजा के पापा उमाकांतजी गला भर आने के कारण आगे नहीं बोल सके थे.

‘‘पापा, आप टैंशन न लो. रोहित ने अगर यह साबित कर दिया कि वह हम सब की देखभाल की जिम्मेदारियां अच्छी तरह से उठा सकता है तो मैं इस शादी के लिए खुशी से ‘हां’ कह दूंगी,’’ नीरजा के इस जवाब से उस के मातापिता काफी हद तक संतुष्ट नजर आए.

अगले दिन रविवार को रोहित सुबह 10 बजे के करीब उन के यहां आ गया. सावित्री, उमाकांत और महक के ऊपर अच्छा प्रभाव जमाने के लिए वह काफी तैयारी के साथ आया था.

वह फल और मिठाई के अलावा महक के लिए उस की मनपसंद ढेर सारी चौकलेट भी ले कर आया था. नीरजा को उस ने फूलों का सुंदर गुलदस्ता भेंट किया. इस में कोई शक नहीं कि उस के आने से घर का माहौल खुशगवार हो उठा था.

‘‘इस प्यारी सी गुडि़या के लिए मैं एक प्यारी सी गुडि़या भी लाया हूं,’’ ऐसा कहते हुए रोहित ने जब महक को जापानी गुडि़या पकड़ाई तो वह खुशी के मारे उछलने लगी.

‘‘नीरजा को आप दोनों की व महक की बहुत फिक्र रहती है. इस मामले में मैं आप दोनों को विश्वास दिलाता हूं कि नीरजा की हर जिम्मेदारी को पूरा करने में मैं उस का पूरा साथ निभाऊंगा,’’ रोहित की ऐसी बातों को सुन कर सावित्री और उमाकांत के दिल खुशी व राहत से भर उठे.

महक के साथ रोहित ने काफी देर तक कैरमबोर्ड खेला. दोनों खेलते हुए बहुत शोर मचा रहे थे. रोहित ने महक के साथ अच्छी दोस्ती करने में ज्यादा वक्त बिलकुल नहीं लिया.

‘‘मेरे आज के प्रदर्शन के लिए मुझे 10 में से कितने नंबर दोगी?’’ बहुत खुश व संतुष्ट नजर आ रहे रोहित ने अकेले में नीरजा से यह सवाल पूछा था.

‘‘20 नंबर,’’ नीरजा ने हंस कर सवाल का सीधा जवाब देना टाल दिया.

‘‘मुझे तुम्हारे मम्मीपापा के साथ निभाने में कभी कोई प्रौब्लम नहीं आएगी. वे दोनों बहुत सीधेसच्चे इनसान हैं, नीरजा.’’

‘‘मुझे यह बात सुन कर खुशी हुई, रोहित.’’

‘‘और मैं दावे के साथ कह रहा हूं कि महक के साथ मैं अपने संबंध कुछ ही दिनों में इतने अच्छे कर लूंगा कि वह मुझे तुम से ज्यादा पसंद करने लगेगी.’’

‘‘तुम्हारे इस दावे ने मेरी खुशियों को और ज्यादा बढ़ा दिया है.’’

‘‘तो फिर मुहूर्त निकलवाने के लिए पंडित से मिल लूं?’’

‘‘जल्दी का काम शैतान का,’’ नीरजा के इस जवाब पर रोहित जोर से हंसा, लेकिन उस की आंखों में उभरे हलकी मायूसी के भाव नीरजा की नजरों से छिपे नहीं रहे.

सावित्री ने खाने में कई चीजें बड़ी मेहनत से बनाई थीं. रोहित ने भरपेट खाना खाया और दिल खोल कर भोजन की तारीफ भी की.

शाम को वह सब को अपनी कार में बाजार घुमाने ले गया. वहां महक की फरमाइश पूरी करते हुए उस ने सब को आइसक्रीम खिलाई. वहां एक शो केस में लगी सुंदर सी फ्राक खरीद कर वह महक को गिफ्ट करना चाहता था, पर नीरजा ने उसे ऐसा नहीं करने दिया.

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‘‘नहीं अम्मी, बिलकुल नहीं. अपने निकाह में मैं तुम्हें साउथहौल की दुकान के कपड़े नहीं पहनने दूंगी’’, नाहिद काफी तल्ख आवाज में बोली, ‘‘जानती भी हो ज्योफ के घर वाले कितने अमीर हैं? उन का महल जितना बड़ा तो घर है.’’

‘‘हांहां, मैं समझती हूं. जैसा तू चाहेगी,

वैसा ही होगा,’’ जोया ने दबी आवाज में जवाब दिया.

‘‘और हां, प्लीज उन लोगों से यह मत कह डालना कि तुम उस फटीचर दुकान को चलाती हो. मैं ने उन से कहा है कि तुम फैशन डिजाइनिंग की दुनिया से सरोकार रखती हो.’’

नाहिद के कथन पर जोया ने सिर्फ एक आह भरी. 20 बरस पहले जिस दुकान ने उन की लड़खड़ाती गृहस्थी को संभाला था, वही आज उस के बच्चों के लिए शर्मिंदगी का कारण बन गई थी. आज भी वे उन दिनों को भुला नहीं पातीं जब उन की शादी इरफान से हुई थी. सहारनपुर की लड़की का निकाह लंदन में कार्यरत लड़के के साथ होना सभी के लिए फख्र की बात थी. बड़े धूमधाम से निकाह होने के बाद इरफान 15 दिन जोया के पास रह कर लंदन चला गया था और जोया के पिता उस का पासपोर्ट, वीजा बनवाने में जुट गए थे. पड़ोस की लड़कियां जोया से रश्क करने लगी थीं.

लंदन आ कर जोया को वहां की भाषा और संस्कृति को अपनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा था. एबरडीन में एक छोटे से घर से उन्होंने अपनी गृहस्थी की शुरुआत की थी. इरफान की तनख्वाह लंदन की महंगी जिंदगी में गुजारा करने लायक नहीं थी, किंतु जोया की कुशलता से इरफान की गृहस्थी ठीकठाक चलने लगी थी.

2  लोगों का गुजारा तो हो जाता था लेकिन तीसरे से तंगी बढ़ सकती थी. नाहिद के जन्म के बाद जब ऐसा ही हुआ तो इरफान कुछ उदास रहने लगा. उस की अपनी तनख्वाह पूरी नहीं पड़ती थी और जोया दूसरे मर्दों के साथ काम करे, यह उसे बरदाश्त न था.

नाहिद जब 3 वर्ष की थी और ओमर 8 महीने का, तभी इरफान यह कह कर चला गया कि घरगृहस्थी का झंझट उस के बस की बात नहीं. कुल 5 वर्ष ही तो हुए थे जोया को वहां बसे और फिर इरफान कहां गया, इस की उन्हें आज तक खबर नहीं हुई. उन दिनों घर का सामान बेचबेच कर जोया ने काम चलाया था. पर ऐसा कब तक चलता? यदि नौकरी करने की सोचतीं तो दोनों बच्चों को किस के सहारे छोड़तीं?

‘‘ज्योफ की मां एक कंप्यूटर कंपनी में काम करती हैं, डैरीफोर्ड रोड पर’’, नाहिद बोली, ‘‘और उस के पिता सहकारी दफ्तर में अधीक्षक हैं.’’

जोया ने कोई उत्तर न दिया. ‘यदि उन की साउथहौल वाली दुकान न होती तो नाहिद ज्योफ से कहां टकराती? 6 महीने पहले नाहिद दुकान आई थी तो वहीं उसे ज्योफ मिला था. वह पास की दुकान में पड़े ताले की पूछताछ करने आया था.’

‘‘यह दुकान आप की है?’’ उस ने काफी अदब से नाहिद से पूछा था.

‘‘नहींनहीं, मैं तो यहां बस यों ही…’’, नाहिद फौरन बात टाल गई थी.

दुकान से जाते वक्त ज्योफ ने नाहिद से अपनी गाड़ी में चलने का प्रस्ताव रखा था, जिसे नाहिद ने स्वीकार कर लिया था.

‘‘उस के दादा पुरानी चीजों की दुकान चलाते हैं,’’ नाहिद ने कहा.

‘‘पुरानी चीजों की दुकान तो मैं भी चलाती हूं,’’ नाहिद की बात पर जोया बोल पड़ी, ‘‘पुराने कपड़े…’’

‘‘बेवकूफी की बात मत करो, अम्मी.’’

बरसों पहले जब गृहस्थी खींचने के जोया के सभी तरीके खत्म हो चुके थे और वे इसी उधेड़बुन में रहती थीं कि क्या करें, तभी एक दिन एक पड़ोसिन के साथ वे यों ही फैगन बाजार चली गई थीं अपनी पड़ोसिन के लिए ईवनिंग ड्रैस लेने. वहां पहुंच कर वे तो जैसे हतप्रभ रह गई थीं. इस कबाड़ी बाजार में क्याक्या नहीं बिकता. बिना इस्तेमाल किए हुए तोहफे, पहने जूते, कपड़े, स्वैटर वगैरह. इस के अलावा और भी बहुत कुछ.

बस फिर क्या था जोया ने साउथहौल में एक दुकान किराए पर ले ली. हर शाम वे फैगन बाजार से कपड़े खरीद लातीं, फिर उन कपड़ों को घर ला कर धोतीं, सुखातीं और प्रैस कर के नया बना देतीं. जोया की इस कारीगरी का अंजाम यह होता कि कौडि़यों के दाम की चीजें कई पौंड की हो जातीं.

‘‘और हां, तुम्हें उन का घर देखना चाहिए. हमारा पूरा घर उन की बैठक में समा जाएगा,’’ नाहिद बोली.

उस के स्वर के उतारचढ़ाव ने जोया को यह सोचने पर विवश कर दिया कि आज तक उन्होंने हजारों कपड़े सिर्फ इसलिए खरीदे बेचे थे कि नाहिद और ओमर को अपने दोस्तों को घर लाने में शर्मिंदगी न महसूस हो. और सिर्फ अपनी बेटी की खुशी के लिए जोया ने उस के एक ईसाई से शादी करने के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं की थी. शादी भी ईसाई ढंग से हो रही थी और शादी की दावत ज्योफ के घर ही निश्चित हुई थी. ज्योफ की मां ने एक पत्र द्वारा जोया से यह पूछा था कि इस पर उन्हें कोई एतराज तो नहीं? इस पर जोया का उत्तर था कि दावत भले ही वहां हो, भोजन का खर्च वे उठाएंगी.

‘‘अब इस छोटे से घर में तुम्हें अधिक दिन तो रहना नहीं है,’’ जोया ने नाहिद से कहा.

‘‘नहीं अम्मी, यह बात नहीं है. आप ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है. वह तो बस…’’

‘‘बस मुझे अपनी मां कहने में तुम्हें शर्म आती है,’’ जोया बीच में ही बोल पड़ीं.

‘‘अम्मी, ऐसी बात नहीं है,’’ कह कर नाहिद ने जोया के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘तुम तो सब से अच्छी अम्मी हो, ज्योफ की मां से कहीं ज्यादा खूबसूरत. बस वह दुकान…’’

‘‘दुकान क्या घटिया है?’’

‘‘हां,’’ कह कर नाहिद हंसने लगी.

‘‘जोया की दुकान से बहुत सी मध्यवर्गीय परिवार की स्त्रियां कपड़े खरीदती थीं. मैडम ग्रांच तो वहां जब भी किसी धारियों वाली ड्रैस को देखतीं, फौरन खरीद लेतीं. इतने वर्षों में अपनी ग्राहकों की नाप, चहेते रंग और पसंद जानने के बाद जोया ऐसी ही पोशाकें लातीं जिन्हें वे पसंद करतीं. उन में से कुछ किसी जलसे या पार्टी से पहले जोया को अपने लिए अच्छी डै्रस लाने को कह जातीं. एक बार तो अखबार में शहर के मेयर के घर हुए जलसे की तसवीर में उन की एक ग्राहक का चित्र भी था, जिस ने उन्हीं की दुकान की डै्रस पहनी हुई थी. वह ड्रैस जोया केवल 15 पैन्स में लाई थीं और उस पर थोड़ी मेहनत के बाद वही पोशाक 10 पौंड की थी.’’

सहारनपुर में जब भी कोई निकाह होता तो सभी सहेलियों के कपड़ों पर सजावट जोया ही तो करतीं. फिर चाहे वह तल्हा का शरारा हो या समीना की कुरती, सभी को जरीगोटे से सुंदर बनाने की कला सिर्फ जोया ही दिखातीं. और इतनी मेहनत के बाद भी जो कारीगरी जोया के कपड़ों पर होती, वही नायाब होती.

‘‘वे लोग ईसाई हैं और शादी भी ईसाई ढंग से होगी. यह तुम जानती ही हो. इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम कोई बढि़या सा ईवनिंग गाउन खरीद लो अपने लिए. सभी औरतें अच्छी से अच्छी पोशाकों में होंगी. आखिर इतने अमीर लोग हैं वे. ऐसे में तुम्हारा सूट या शरारा पहनना कितना खराब लगेगा.’’

नाहिद की हिदायत पर जोया ने अपने लिए एक विदेशी गाउन तैयार करने की सोची. नाहिद को बताए बिना ही जोया ने अपनी दुकान की एक पोशाक चुनी. वे जानती थीं कि नाहिद कभी उन्हें अपनी दुकान की पोशाक नहीं पहनने देगी. लेकिन सिर्फ एक शाम के लिए पैसे बरबाद करने के लिए जोया कतई तैयार न थीं. और फिर जब उन जैसे अमीर घरों की औरतें उन की दुकान से पोशाकें खरीदती हैं, तो यह कहां की अक्लमंदी होगी कि वे खुद दूसरी दुकान से पोशाक खरीदें.

काफी सोचविचार के बाद उन्होंने अपने लिए एक नीली ड्रैस चुनी, जो कुछ महीने पहले फैगन बाजार से ली थी. पर वह इतनी घेरदार थी कि तंग कपड़ों का फैशन की वजह से उसे किसी ने हाथ तक न लगाया था. जोया ने उसे काट कर काफी छोटा और अपने नाप का बनाया. फिर बचे हुए कपड़े की दूधिया सफेदी हैट के चारों तरफ छोटी झालर लगा दी.

शादी के बाद जोया दावत के लिए ज्योफ के घर पहुंचीं. वहां की चमकदमक देख वे काफी प्रभावित हुईं. भव्य, आलीशान बंगले के चारों तरफ खूबसूरती व करीने से पेड़ लगे हुए थे. उन पर बल्बों की झालर यों पड़ी थी मानो नाहिद के साथसाथ आज उन की भी शादी हो.

जोया अपनी बेटी की पसंद पर खुश हो ही रही थीं कि ज्योफ की मां मौरीन वहां आ पहुंचीं, ‘‘जोया, क्या खूब शादी थी न. नाहिद कितनी खूबसूरत लग रही है. आप को गर्व होता होगा अपने बच्चों पर. बच्चों को अकेले ही पालपोस लेना कोई छोटी बात नहीं. नाहिद से पता चला कि आप के पति सालों पहले ही… मुझे खेद है.’’

मौरीन बातचीत और हावभाव से एक बड़े घराने की सभ्य स्त्री मालूम पड़ती थीं, ‘‘मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती विदेश में अपने पति की गैरमौजूदगी में बच्चों को अकेले पालने की. मैं वाकई आप से बहुत प्रभावित हूं. कैसे संभाल लिया आप ने सब कुछ? आप के बच्चे आप की कुशलता के तमगे हैं.’’

‘‘शुक्रिया मौरीन’’, जोया खुश अवश्य थीं किंतु कुछ असंतुष्ट भी. कहीं न कहीं उन का मन यह मना रहा था कि उन की कोई ग्राहक ज्योफ की रिश्तेदार निकल आए. ऐसे में वे अपने कार्य के प्रति नाहिद के दृष्टिकोण को बदल पातीं. किंतु ऐसा हुआ नहीं.

तभी मौरीन जोया की बांह में बांह डालते हुए कहने लगीं, ‘‘नाहिद ने मुझे बताया था कि आप फैशन की दुनिया से सरोकार रखती हैं. कितना आकर्षक लगता है यह सब. यह ड्रैस जो आप ने पहनी है ‘हिलेयर बैली’ से ली है न?’’

जोया ने खामोशी से सिर हिला हामी भर दी.

‘‘क्या खूब फब रही है आप पर. मुझे नहीं पता था कि वे घेरदार के अलावा तंग नाप की भी ड्रैसेज बेचते हैं या इस के साथ हैट भी मिलती है. कितने आश्चर्य की बात है कि मेरे पास भी ऐसी एक घेरदार ड्रैस थी, रंग भी बिलकुल यही. लेकिन वह इतनी घेरदार थी कि आजकल उसे पहनना मुमकिन नहीं था. आप से क्या कहना, आजकल का फैशन आप से बेहतर भला कौन जानेगा,’’ फिर कुछ सोचते हुए मौरीन बोलीं, ‘‘पता नहीं मैं ने उस ड्रैस के साथ क्या किया.’’

‘‘हां, पता नहीं…’’ जोया ने अपनी भोलीभाली आंखों को मटकाते हुए कहा

और इतना कह कर अपनी कारीगरी पर मुसकरा उठीं.

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