Valentine’s Special- वेलेंटाइन डे: वो गुलाब किसका था

अपने देश में विदेशी उत्पाद, पहनावा, विचार, आचारसंहिता आदि का चलन जिस तरह से जोर पकड़ चुका है उस में वेलेंटाइन डे को तो अस्तित्व में आना ही था. वैसे अब यह बताने की जरूरत नहीं है कि वेलेंटाइन डे के दिन होता क्या है. फिर भी बात चली है तो खुलासा कर देते हैं कि चाहने वाले जवान दिलों ने इस दिन को प्रेम जाहिर करने का कारगर माध्यम बना लिया है. इस अवसर पर बाजार सजते हैं, चहकते, इठलाते लड़केलड़कियों की सड़कों पर आवाजाही बढ़ जाती है, वातावरण में खुमार, खनक, खुशी भर जाती है.

सेंट जोंसेफ कानवेंट स्कूल के कक्षा 11 के छात्र अभिराम ने इसी दिन अपनी सहपाठिनी निष्ठा को ग्रीटिंग कार्ड के ऊपर चटक लाल गुलाब रख कर भेंट किया था. निष्ठा ने अंदरूनी खुशी और बाहरी झिझक के साथ भेंट स्वीकार की थी तो कक्षा के छात्रछात्राओं ने ध्वनि मत से उन का स्वागत कर कहा, ‘‘हैप्पी फोर्टीन्थ फैब.’’

विद्यालय का यह पहला इश्क कांड नहीं था. कई छात्रछात्राओं का इश्क चोरीछिपे पहले से ही परवान चढ़ रहा था. आप जानिए, वे पढ़ाई की उम्र में पढ़ाई कम दीगर हरकतें ज्यादा करते हैं. चूंकि यह विद्यालय अपवाद नहीं है इसलिए यहां भी तमाम घटनाएं हुआ करती हैं.

एक छात्रा स्कूल आने और उस के निर्धारित समय का लाभ ले कर किसी के साथ भाग चुकी है. एक छात्रा को रसायन शास्त्र के अध्यापक ने लैब में छेड़ा था. इस के विरोध में विद्यार्थी तब तक हड़ताल पर बैठे रहे जब तक उन को प्रयोगशाला से हटा नहीं दिया गया. इस के बावजूद स्कूल का जो अनुशासन, प्रशासन और नियमितता होती है वह आश्चर्यजनक रूप से यहां भी है.

हां, तो बात निष्ठा की चल रही थी. उस ने दिल की बढ़ी धड़कनों के साथ ग्रीटिंग की इबारत पढ़ी- ‘निष्ठा, सेंट वेलेंटाइन ने कहा था कि प्रेम करना मनुष्य का अधिकार है. मैं संत का बहुत आभारी हूं-अभिराम.’

प्रेम की घोषणा हो गई तो उन के बीच मिलनमुलाकातें भी होने लगीं. दोनों एकदूसरे को मुग्धभाव से देखने लगे. साथसाथ ट्यूशन जाने लगे, फिल्म देखने भी गए.

कक्षा की सहपाठिनें निष्ठा से पूछतीं, ‘‘प्रेम में कैसा महसूस करती हो?’’

‘‘सबकुछ अच्छा लगने लगा है. लगता है, जो चाहूंगी पा लूंगी.’’

‘‘ग्रेट यार.’’

अपने इस पहले प्रेम को ले कर उत्साहित अभिराम कहता, ‘‘निष्ठा, मेरे मम्मीपापा डाक्टर हैं और वे मुझे भी डाक्टर बनाना चाहते हैं. यही नहीं वे बहू भी डाक्टर ही चाहते हैं तो तुम्हें भी डाक्टर बनना होगा.’’

‘‘और न बन सकी तो? क्या यह तुम्हारी भी शर्त है?’’

‘‘शर्त तो नहीं पर मुझे ले कर मम्मीपापा ऐसा सोचते हैं,’’ अभिराम बोला, ‘‘तुम्हारे घरवालों ने भी तो तुम्हें ले कर कुछ सोचा होगा.’’

‘‘यही कि मेरी शादी कैसे होगी, दहेज कितना देना होगा? आदि…’’ सच कहूं अभिराम तो पापामम्मी विचित्र प्राणी होते हैं. एक तरफ तो वे दहेज का दुख मनाएंगे, किंतु लड़की को आजादी नहीं देंगे कि वह अपने लिए किसी को चुन कर उन का काम आसान करे.’’

‘‘यह अचड़न तो विजातीय के लिए है हम तो सजातीय हैं.’’

‘‘देखो अभिराम, धर्म और जाति की बात बाद में आती है, मांबाप को असली बैर प्रेम से होता है.’’

‘‘मैं अपनी मुहब्बत को कुरबान नहीं होने दूंगा,’’ अभिराम ने बहुत भावविह्वल हो कर कहा.

‘‘बहुत विश्वास है तुम्हें अपने पर.’’

‘‘हां, मेरे पापामम्मी ने तो 25 साल पहले प्रेमविवाह किया था तो मैं इस आधुनिक जमाने में तो प्रेमविवाह कर ही सकता हूं.’’

‘‘अभि, तुम्हारी बातें मुझे भरोसा देती हैं.’’

अभिराम और निष्ठा अब फोन पर लंबीलंबी बातें करने लगे. अभि के मातापिता दिनभर नर्सिंग होम में व्यस्त रहते थे अत: उस को फोन करने की पूरी आजादी थी. निष्ठा आजाद नहीं थी. मां घर में होती थीं. फोन मां न उठा लें इसलिए वह रिंग बजते ही रिसीवर उठा लेती थी.

मां एतराज करतीं कि देख निष्ठा तू घंटी बजते ही रिसीवर न उठाया कर. आजकल के लड़के किसी का भी नंबर डायल कर के शरारत करते हैं. अभी कुछ दिन पहले मैं ने एक फोन उठाया तो उधर से आवाज आई, ‘‘पहचाना? मैं ने कहा कौन? तो बोला, तुम्हारा होने वाला.’’

इस तरह अभिराम और निष्ठा का प्रेम अब एक साल पुराना हो गया.

अभिराम ने योजना बनाई कि निष्ठा, वेलेंटाइन डे पर कुछ किया जाए.

निष्ठा ने सवालिया नजरों से अभिराम को देखा, जैसे पूछ रही हो क्या करना है?

‘‘देखो निष्ठा, इस छोटे से शहर में कोई बीच या पहाड़ तो है नहीं,’’ अभिराम बोला. ‘‘अपना पुष्करणी पार्क अमर रहे.’’

‘‘पार्क में हम क्या करेंगे?’’

‘‘अरे यार, कुछ मौजमस्ती करेंगे. और कुछ नहीं तो पार्क में बैठ कर पापकार्न ही खा लेंगे.’’

‘‘नहीं बाबा, मैं वेलेंटाइन डे पर तुम्हारे साथ पार्क में नहीं जा सकती. जानते हो हिंदू संस्कृति के पैरोकार एक संगठन के कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है, जो लोग वेलेंटाइन डे मनाते हुए मिलेंगे उन्हें परेशान किया जाएगा.’’

‘‘निष्ठा, यही उम्र है जब मजा मार लेना चाहिए. स्कूल में यह हमारा अंतिम साल है. इन दिनों की फिर वापसी नहीं होगी. हम कुछ तो ऐसा करें जिस की याद कर पूरी जिंदगी में रौनक बनी रहे. हम पार्क में मिलेंगे. मैं तुम्हें कुछ गिफ्ट दूंगा, इंतजार करो,’’ अभिराम ने साहबी अंदाज में कहा.

निष्ठा आखिर सहमत हो गई. मामला मुहब्बत का हो तो माशूक की हर अदा माकूल लगती है.

शाम को दोनों पार्क में मिले. निष्ठा खास सजसंवर कर आई थी. पार्क के कोने की एकांत जगह पर बैठ कर अभिराम निष्ठा को वाकमैन उपहार में देते हुए बोला, ‘‘इस में कैसेट भी है जिस पर तुम्हारे लिए कुछ रिकार्ड किया है.’’

‘‘वाह, मुझे इस की बहुत जरूरत थी. अब मैं अपने कमरे में आराम से सोते हुए संगीत सुन सकूंगी.’’

अभिराम ने निष्ठा के गले में बांहें डाल कर कहा, ‘‘भारतीय संस्कृति ही नहीं बल्कि विकसित और आधुनिक देशों की संस्कृति भी प्रेम को बुरा कहती रही है. कैथोलिक ईसाइयों में प्रेम और शादी की मनाही थी. तब वेलेंटाइन ने कहा था कि मनुष्य को प्रेम की अभिव्यक्ति का अधिकार है. तभी से 14 फरवरी के दिन प्रेमी अपने प्रेम का इजहार करते हैं.’’

संगठन के कुछ कार्यकर्ता प्रेमियों को खदेड़ने आ पहुंचे हैं, इस से बेखबर दोनों प्रेम के सागर में हिचकोले ले रहे थे कि अचानक संगठन के कार्यकर्ताओं को लाठी, हाकी, कालारंग आदि लिए देख अभिराम व निष्ठा हड़बड़ा कर खड़े हो गए. कुछ लोग पार्क छोड़ कर भाग रहे थे, तो कुछ तमाशा देख रहे थे.

उधर संगठन के ऐलान को ध्यान में रख स्थानीय मीडिया वाले रोमांचकारी दृश्य को कैमरे में उतारने के लिए शाम को वहां आ डटे थे. उन्होंने कैमरा आन कर लिया. अभिराम व निष्ठा स्थिति को भांपते इस के पहले कार्यकर्ताओं ने दोनों के चेहरे काले रंग से पोत दिए.

निष्ठा ने बचाव में हथेलियां आगे कर ली थीं. अत: चेहरे पर पूरी तरह से कालिख नहीं पुत पाई थी.

‘‘क्या बदतमीजी है,’’ अभिराम चीखा तो एक कार्यकर्ता ने हाकी से उस की पीठ पर वार कर दिया.

हाकी पीठ पर पड़ते ही अभिराम भाग खड़ा हुआ. उसे इस तरह भागते देख निष्ठा असहाय हो गई. वह किस तरह अपमानित हो कर घर पहुंची यह तो वही जानती है. डंडा पड़ते ही भगोड़े का इश्क ठंडा हो गया. वेलेंटाइन डे मना कर चला है क्रांतिकारी बनने. अरे अभिराम, अब तो मेरी जूती भी तुझ से इश्क न करेगी.

निष्ठा देर तक अपने कमरे में छिपी रही. वह जब भी पार्क की घटना के बारे में सोचती उस का मन अभिराम के प्रति गुस्से से भर जाता. बारबार मन में पछतावा आता कि उस ने प्रेम भी किया तो किस कायर पुरुष से. फिल्मों में देखो, हीरो अकेले ही कैसे 10 को पछाड़ देते हैं. वे तो कुल 4 ही थे.

तभी उस के कानों में बड़े भाई विट्ठल की आवाज सुनाई पड़ी जो मां से हंस कर कह रहा था, ‘‘मां, कुछ इश्कमिजाज लड़केलड़कियां पुष्करणी पार्क में वेलेंटाइन डे मना रहे थे. एक संगठन के लोगों ने उन के चेहरे काले किए हैं. रात को लोकल चैनल की खबर जरूर देखना.’’

खबर देख विट्ठल चकित रह गया, जिस का चेहरा पोता गया वह उस की बहन निष्ठा है?

‘‘मां, अपनी दुलारी बेटी की करतूत देखो,’’ विट्ठल गुस्से में भुनभुनाते हुए बोला, ‘‘यह स्कूल में पढ़ने नहीं इश्क लड़ाने जाती है. इस के यार को तो मैं देख लूंगा.’’

मां और बेटा दोनों ही निष्ठा के कमरे में घुस आए. मां गुस्से में निष्ठा को बहुत कुछ उलटासीधा कहती रहीं और वह ग्लानि से भरी चुपचाप सबकुछ सुनती व सहती रही. उस के लिए प्रेम दिवस काला दिवस बन गया था.

उधर अभिराम को पता ही नहीं चला कि वह पार्क से कैसे निकला, कैसे मोटरसाइकिल स्टार्ट की और कैसे भगा. उसे अब लग रहा था जैसे सबकुछ अपने आप हो गया. निष्ठा उस की कायरता पर क्या सोच रही होगी? बारबार यह प्रश्न उसे बेचैन किए जा रहा था.

पिताजी घर में थे, रात को टेलीविजन पर बेटे को देख कर वह चौंके और फौरन उन की आवाज गूंजी, ‘‘अभिराम, इधर तो आना.’’

‘‘जी पापा…’’

‘‘तो तुम पढ़ाई नहीं इश्क कर रहे हो. मैं तुम्हें डाक्टर बनाना चाहता हूं और तुम रोड रोमियो बन रहे हो.’’

‘‘पापा, वो… मैं वेलेंटाइन डे मना रहा था.’’

‘‘बता तो ऐसे गौरव से रहे हो जैसे एक तुम्हीं जवान हुए हो. मैं तो कभी जवान था ही नहीं. देखो, मैं इस शहर का मशहूर सर्जन हूं. क्या कभी तुम ने इस बारे में सोचा कि तुम्हें टेलीविजन पर देख कर लोग क्या कहेंगे कि इतने बड़े सर्जन का बेटा इश्क में मुंह काला करवा कर आ गया. जाओ पढ़ो, चार मार्च से सालाना परीक्षा है और तुम इश्क में निकम्मे बन रहे हो. आज से इश्कबाजी बंद.’’

अभिराम अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर पड़ गया. इन बाप लोगों की चरित्रलीला समझ में नहीं आती. खुद इश्क लड़ाते रहे तो कुछ नहीं अब बेटे की बारी आई तो बड़ा बुरा लग रहा है. फिल्मों में बचपन का इश्क भी शान से चलता है और यहां सिखाया जा रहा है, इश्क में निकम्मे मत बनो. निष्ठा तुम ठीक कहती हो कि इन बड़े लोगों को असली बैर प्रेम से है.

बेचैन अभिराम निष्ठा को फोन करना चाह रहा था पर न साहस था न स्फूर्ति, न स्थिति.

4 मार्च को पहले परचे के दिन दोनों ने एकदूसरे को पत्र थमाए. अभिराम ने लिखा था, ‘निष्ठा, मैं तुम से सच्चा प्रेम करता हूं, साबित कर के रहूंगा.’

निष्ठा ने लिखा था, ‘यह सब प्रेम नहीं छिछोरापन है, और छिछोरेपन में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं.’.

शैतान भाग 2 : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

वह ड्राइंगरूम में पहुंची तो वहां सोनिया की सहेली कंजा सोफे पर अरसलान से सटी बैठी थी. रानिया को उस का यह अंदाज बड़ा बुरा लगा. वहीं पर सोनिया के वकील भी मौजूद थे. वकील ने कहा, ‘‘मिस रानिया, आप कल 11 बजे यहां हाजिर रहिएगा.’’

‘‘मैं तो यहीं रहती हूं साहब, जब आप कहेंगी, आ जाऊंगी.’’

‘‘मुझे बताया गया था कि आज आप अपने घर चली जाएंगी.’’ वकील साहब ने कहा.

कंजा बीच में बोल पड़ी, ‘‘दरअसल, मैं ने और अरसलान ने सोचा कि फिजा को जेहनी सुकून के लिए मेरे घर मेरे बच्चे और उस की ट्रेंड आया के पास छोड़ दिया जाए. क्योंकि फिजा के दिलोदिमाग में सोनिया की मौत का असर पड़ सकता है. जब फिजा हमारे यहां चली जाएगी तो रानिया की यहां क्या जरूरत रहेगी.’’

उस की इस बात पर रानिया को गुस्सा आ गया. उस ने तीखे स्वर में कहा, ‘‘मेरे खयाल से अभी घर में फिजा के बड़े मौजूद हैं, वे इस बारे में फैसला लेंगे. आप का ताल्लुक सिर्फ इतना है कि आप सोनिया मैम की सहेली हैं.’’

‘‘मैं तो सोनिया की सहेली हूं, लेकिन तुम तो मुलाजिम के अलावा कुछ नहीं हो.’’

रानिया ने तड़प कर अरसलान की ओर देखा कि वह उस का कुछ सपोर्ट करेगा. पर वह चुप बैठा था. वहां मौजूद सोनिया की खाला ने कहा, ‘‘मैं फिजा को अपने घर भेज देती हूं, वहां मेरी बेटियां उसे संभाल लेंगी.’’

वकील ने कहा, ‘‘आप लोग बेकार की बहस कर रहे हैं. सोनिया की वसीयत के मुताबिक वसीयत खोलते वक्त सिर्फ 3 लोग मौजूद रहेंगे. इन में एक हैं मिस रानिया, इसलिए इन का यहां रहना जरूरी है, इसलिए यही बेहतर होगा कि फिजा उन्हीं के पास रहे. इतने दिनों से वही उस की देखभाल कर रही हैं और इस वक्त इन्हीं की जरूरत भी है. क्यों अरसलान साहब, यह बात सही है न?’’

अरसलान ने अनमने ढंग से कहा, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं वकील साहब.’’

कंजा ने बेकरार हो कर उस की तरफ देखा तो अरसलान ने धीरे से उस का हाथ दबा दिया. रानिया ने उठ कर कहा, ‘‘क्या अब मैं फिजा के पास जाऊं?’’

‘‘हां, आप जाएं और आप यहीं रुकेंगी. बच्ची के पास.’’ वकील ने मजबूत लहजे में कहा.

इस के बाद रानिया फिजा के पास लेट गई. अरसलान की बेरुखा और दोगला बर्ताव देख कर वह बहुत दुखी थी. उस की आंखों से आंसू बहने लगे. उसे याद आया कि एक बार सोनिया ने उस से कहा था, ‘‘मेरी कंजा से कोई खास दोस्ती नहीं है. पता नहीं यह तलाकशुदा महिला क्यों बारबार मेरे घर चली आती है?’’

शायद सोनिया को अंदाजा था कि वह अरसलान के पीछे लगी है. इन 8 महीनों में सोनिया से रानिया की अच्छी दोस्ती हो गई थी. रानिया की यह अच्छी आदत थी कि वह चुपचाप सब सुनती थी, इसलिए सोनिया उस से अपने मन की बातें कर के दिल हलका कर लेती थी.

एक बार उस ने अपनी मोहब्बत की पूरी कहानी बताई थी. उस ने कहा था, ‘‘यह सच है कि मुझे अरसलान से पहली नजर में मोहब्बत हो गई थी. पहली बार जब अरसलान कार्टन सप्लाई के लिए हमारी फैक्टरी में आया था, तब उस का कारोबार बहुत छोटा था. मैं ने उसे पार्टनरशिप का औफर दिया था, ताकि उस का काम बड़े पैमाने पर हो सके और आमदनी भी बढ़े. उस के बाद हम ने साथ मिल कर बिजनैस बढ़ाया.

‘‘उसी दौरान मुझे मालूम हुआ कि अरसलान की मंगनी उस की कजिन रूही से हो चुकी है. मैं पीछे हट गई और अरसलान को भूल जाना चाहा, पर उसी दौरान रूही का किडनैप हो गया. अरसलान ने बताया कि अपहर्त्ताओं ने 50 लाख रुपए मांगे हैं. 50 लाख रुपए उस ने मुझ से इस वादे के साथ मांगे कि रूही के छूट जाने के बाद वह मुझ से शादी कर लेगा.

‘‘मैं ने अरसलान को 50 लाख रुपए दे दिए. मैं ने पुलिस को भी खबर कर दी. जांच करते हुए पुलिस वहां पहुंची तो अपहर्त्ता भाग चुके थे. रूही रस्सियों से बंधी थी. उस की आंखों पर पट्टी बंधी थी. रूही ने बताया कि अपहर्त्ता 3 थे और उन्होंने मास्क पहन रखे थे, इसलिए वह किसी को पहचान नहीं सकी.’’

सोनिया का कहना था कि उसे शक है कि यह किडनैपिंग का प्रोपेगैंडा अरसलान का था. उसी ने सारा खेल खेला था.

‘‘आप अपने शौहर पर इलजाम लगा रही हैं. यह जान लेने के बाद भी आप ने उन से शादी की?’’

‘‘क्योंकि मैं उस वक्त उस के इश्क में अंधी थी.’’

सोनिया ने आगे कहा, ‘‘अरसलान कंजा के साथ मिल कर मेरी मौत का इंतजार कर रहा है. मैं अपनी दौलत इस लालची इंसान और उस बेशर्म औरत के लिए नहीं छोड़ूंगी.’’

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उस वक्त कंजा का नाम सुन कर रानिया मन ही मन हंसी, क्योंकि कंजा खुद को अरसलान की महबूबा समझ रही थी. उसी वक्त सोनिया की खाला उस के कमरे में आ गईं. आते ही उन्होंने कहा, ‘‘अरे, तुम यहां बैठी हो रानिया. तुम परेशान न हो, मैं अरसलान से कहूंगी कि फिजा की सही देखभाल के लिए तुम्हारा यहां रहना जरूरी है.’’

रानिया चुपचाप बैठी रही.

खाला ने आगे कहा, ‘‘कंजा फिजा के मामले में बेकार में टांग अड़ा रही है. पर मैं उस की एक नहीं चलने दूंगी. वह बेवजह अरसलान पर डोरे डाल रही है. एक बार मेरी बेटी शीना इस घर में दुलहन बन कर आ जाए तो मैं कंजा का पत्ता ही काट दूंगी. ऐसा हो गया तो तुम्हारी जौब भी सेफ रहेगी.’’

रानिया समझ गई कि सब लोग अपनीअपनी चाल चल रहे हैं. शीना शादी कर के करोड़ों की मालकिन हो जाएगी.  सोनिया की मौत हो गई. लाश घर में पड़ी थी और सभी लोग अपनाअपना उल्लू सीधा करने में लगे थे.

सोनिया की मौत के गम में रानिया कमरे में बैठी थी, तभी अरसलान की बड़ी बहन कमरे में आ कर बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि अरसलान कम से कम फिजा का खयाल करते हुए उस बेशर्म औरत के चंगुल से निकल जाए. दौलत के पीछे भागना छोड़ कर वह ऐसी लड़की से शादी करे, जो फिजा को दिल से प्यार करे और बिखरा घर संभाले. मैं उस से तुम्हारा जिक्र जरूर करूंगी.’’

उस की बात पर रानिया कुछ नहीं बोली. उस की झुकी आंखों व लाल होते चेहरे से शायद उस की रजामंदी मिल गई थी.

उस ने आगे कहा, ‘‘मैं जानती हूं कि अरसलान दिलफेंक है. कई लड़कियों से अफेयर चला चुका है. मैं उसे बहुत समझाती थी कि सोनिया से बेवफाई न करे, पर वह नहीं माना.’’

इस से रानिया को लगा कि अरसलान ने मोहब्बत का जाल फेंक कर उसे भी बेवकूफ बनाया है. उसी वक्त बाहर से आवाजें आनी लगीं. सब लोग कब्रिस्तान से वापस आ गए थे. वह फिजा के बालों में हाथ फेरती वहीं बैठी रही. दरवाजा खटखटा कर के अरसलान कमरे में आया. फिजा को देख कर बोला, ‘‘फिजा तो अच्छी है न, तुम ने उसे संभाल लिया है न?’’

‘‘जी वह अब ठीक है.’’

इस के बाद अरसलान ने रूखे लहजे में पूछा, ‘‘तुम ने आपा को क्या पढ़ाया है?’’

‘‘मैं ने… मैं ने तो कुछ नहीं कहा.’’ रानिया चौंक कर बोली.

‘‘मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम ने मेरी आपा के दिमाग में यह बात भरी है कि फिजा के लिए मुझे तुम से ही शादी करनी चाहिए. रानिया, मैं ने रात के अंधेरे में तुम से जो वादे किए थे, उन्हें दिन के उजाले में भूल जाओ. झूठे वादे करना मेरी आदत है, उस पर यकीन न करना.’’ इस के बाद वह कहकहा लगा कर हंस पड़ा.

रानिया उस का असली चेहरा देख कर दंग रह गई. अरसलान ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं ने पहले दिन ही तुम्हारी आंखों में अपने लिए पसंदगी देख ली थी. जो लड़की खुद पसंद करे, उसे फंसाना मेरे लिए बड़ा आसान होता है. 2-3 मोहब्बत भरी मुलाकातों के बाद शादी के झूठे ख्वाब दिखा कर तुम्हारा जिस्म हासिल कर लिया. बस इतना ही मेरा मकसद था.’’

रानिया का चेहरा गुस्से से लाल पड़ गया. वह तीखे स्वर में बोली, ‘‘बिलकुल उसी तरह, जिस तरह तुम ने रूही की नजर पहचानी थी, सोनिया की नजर पहचानी थी. अपने दोस्तों के जरिए रूही को अगवा करवा कर उस की भी इज्जत लूट ली और उस के वापस आने पर ऐसी बेरुखी दिखाई कि उस मासूम ने मजबूर हो कर खुदकशी कर ली.’’

अरसलान की आंखों में हैरत थी. वह गुस्से से चीखा, ‘‘यह क्या बकवास कर रही हो? यह कहानी तुम्हें सोनिया ने ही सुनाई होगी? तुम इस का कोई सबूत नहीं दे सकती. अब चुप हो जाओ और मैं कहता हूं कि तुम यहां रह सकती हो. हमारे रात के अंधेरे का ताल्लुक वैसा ही रहेगा या फिर खामोशी से 5 लाख रुपए ले कर यहां से निकल जाओ. पर अपनी जुबान बंद रखना.’’

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‘‘मैं ने तुम्हें देवता समझा था, तुम तो शैतान निकले. तुम्हारी हर बात मानती रही, यहां तक कि अपनी इज्जत भी गंवा दी और उस का तुम यह बदला दे रहे हो मुझे?’’

‘‘मैं तुम से शादी क्यों करूं? जरा अक्ल से सोचो, तुम्हारे पास देने को अब बचा ही क्या है?’’ यह कह कर वह कमरे से बाहर निकल गया.

रानिया रो पड़ी. एक आवारा आदमी के पीछे उस ने अपना सब कुछ लुटा दिया. उस का दिल चाहा खुदकुशी कर के मर जाए. तभी उस ने सोचा कि अगर वह मर गई तो फिजा एकदम अकेली व बेसहारा हो जाएगी. उसे सही मायनों में फिजा से मोहब्बत हो गई थी. वह कुछ देर सोचती रही, उस के बाद उस ने एक फैसला लिया और बात करने कमरे से बाहर निकली.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

New Year 2022: नई जिंदगी की शुरुआत

फूलमनी जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही बुतरू के स्टाइल पर फिदा हो गई. प्यार के झांसे में आ कर एक दिन बिना सोचेसमझे वह अपना घर छोड़ उस के साथ शहर भाग आई. शादीशुदा जिंदगी क्या होती है, दोनों ही इस का ककहरा भी नहीं जानते थे. भाग कर शहर तो आ गए, लेकिन बुतरू कोई काम ही नहीं करना चाहता था. वह बस्ती के बगल वाली सड़क पर दिनभर हंडि़या बेचने वाली औरतों के पास निठल्ला बैठा बातें करता और हंडि़या पीता रहता था. इसी तरह दिन महीनों में बीत गए और खाने के लाले पड़ने लगे.

फूलमनी कब तक बुतरू के आसरे बैठे रहती. उस ने अगल बगल की औरतों से दोस्ती गांठी. उन्होंने फूलमनी को ठेकेदारी में रेजा का काम दिलवा दिया. वह काम करने जाने लगी और बुतरू घर संभालने लगा. जल्द ही दोनों का प्यार छूमंतर हो गया.

बुतरू दिनभर घर में अकेला बैठा रहता. शाम को जब फूलमनी काम से घर लौटती, वह उस से सारा पैसा छीन लेता और गालीगलौज पर आमादा हो जाता, ‘‘तू अब आ रही है. दिनभर अपने भरतार के घर गई थी पैसा कमाने… ला दे, कितना पैसा लाई है…’’

फूलमनी दिनभर ठेकेदारी में ईंटबालू ढोतेढोते थक कर चूर हो जाती. घर लौट कर जमीन पर ही बिना हाथमुंह धोए, बिना खाना खाए लेट जाती. ऊपर से शराब के नशे में चूर बुतरू उस के आराम में खलल डालते हुए किसी भी अंग पर बेधड़क हाथ चला देता. वह छटपटा कर रह जाती.

एक तो हाड़तोड़ मेहनत, ऊपर से बुतरू की मार खाखा कर फूलमनी का गदराया बदन गलने लगा था. तरहतरह के खयाल उस के मन में आते रहते. कभी सोचती, ‘कितनी बड़ी गलती की ऐसे शराबी से शादी कर के. वह जवानी के जोश में भाग आई. इस से अच्छा तो वह सुखराम मिस्त्री है. उम्र में बुतरू से थोड़ा बड़ा ही होगा, पर अच्छा आदमी है. कितने प्यार से बात करता है…’

सुखराम फूलमनी के साथ ही ठेकेदारी में मिस्त्री का काम करता था. वह अकेला ही रहता था. पढ़ालिखा तो नहीं था, पर सोचविचार का अच्छा था. सुबहसवेरे नहाधो कर वह काम पर चला आता. शाम को लौट कर जो भी सुबह का पानीभात बचा रहता, उसे प्यार से खापी कर सो जाता.

शनिवार को सुखराम की खूब मौज रहती. उस दिन ठेकेदार हफ्तेभर की मजदूरी देता था. रविवार को सुखराम अपने ही घर में मुरगा पकाता था. मौजमस्ती करने के लिए थोड़ी शराब भी पी लेता और जम कर मुरगा खाता.

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फूलमनी से सुखराम की नईनई जानपहचान हुई थी. एक रविवार को उस ने फूलमनी को भी अपने घर मुरगा खाने के लिए बुलाया, पर वह लाज के मारे नहीं गई.

साइट पर ठेकेदार का मुंशी सुखराम के साथ फूलमनी को ही भेजता था. सुखराम जब बिल्डिंग की दीवारें जोड़ता, तो फूलमनी फुरती दिखाते हुए जल्दीजल्दी उसे जुगाड़ मसलन ईंटबालू देती जाती थी.

सुखराम को बैठने की फुरसत ही नहीं मिलती थी. काम के समय दोनों की जोड़ी अच्छी बैठती थी. काम करते हुए कभीकभी वे मजाक भी कर लिया करते थे. लंच के समय दोनों साथ ही खाना खाते. खाना भी एकदूसरे से साझा करते. आपस में एकदूसरे के सुखदुख के बारे में भी बतियाते थे.

एक दिन मुंशी ने सुखराम के साथ दूसरी रेजा को काम पर जाने के लिए भेजा, तो सुखराम उस से मिन्नतें करने लगा कि उस के साथ फूलमनी को ही भेज दे.

मुंशी ने तिरछी नजरों से सुखराम को देखा और कहा, ‘‘क्या बात है सुखराम, तुम फूलमनी को ही अपने साथ क्यों रखना चाहते हो?’’

सुखराम थोड़ा झेंप सा गया, फिर बोला ‘‘बाबू, बात यह है कि फूलमनी मेरे काम को अच्छी तरह समझती है कि कब मुझे क्या जुगाड़ चाहिए. इस से काम करने में आसानी होती है.’’

‘‘ठीक है, तुम फूलमनी को अपने साथ रखो, मुझे कोई एतराज नहीं है. बस, काम सही से होना चाहिए… लेकिन, आज तो फूलमनी काम पर आई नहीं है. आज तुम इसी नई रेजा से काम चला लो.’’

झक मार कर सुखराम ने उस नई रेजा को अपने साथ रख लिया, मगर उस से उस के काम करने की पटरी नहीं बैठी, तो वह भी लंच में सिरदर्द का बहाना बना कर हाफ डे कर के घर निकल गया. दरअसल, फूलमनी के नहीं आने से उस का मन काम में नहीं लग रहा था.

दूसरे दिन सुखराम ने बस्ती जा कर फूलमनी का पता लगाया, तो मालूम हुआ कि बुतरू ने घर में रखे 20 किलो चावल बेच दिए हैं. फूलमनी से उस का खूब झगड़ा हुआ है. गुस्से में आ कर बुतरू ने उसे इतना मारा कि वह बेहोश हो गई. वह तो उसे मारे ही जा रहा था, पर बस्ती के लोगों ने किसी तरह उस की जान बचाई.

सुखराम ने पड़ोस में पूछा, ‘‘बुतरू अभी कहां है?’’

किसी ने बताया कि वह शराब पी कर बेहोश पड़ा है. सुखराम हिम्मत कर के फूलमनी के घर गया. चौखट पर खड़े हो कर आवाज दी, तो फूलमनी आवाज सुन कर झोंपड़ी से बाहर आई. उस का चेहरा उतरा हुआ था.

सुखराम से उस की हालत देखी न गई. वह परेशान हो गया, लेकिन कर भी क्या सकता था. उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘क्या हुआ, जो 2 दिन से काम पर नहीं आ रही हो?’’

दर्द से कराहती फूलमनी ने कहा, ‘‘अब इस चांडाल के साथ रहा नहीं जाता सुखराम. यह नामर्द न कुछ करता है और न ही मुझे कुछ करने देता है. घर में खाने को चावल का एक दाना तक नहीं छोड़ा. सारे चावल बेच कर शराब पी गया.’’

‘‘जितना सहोगी उतना ही जुल्म होगा तुम पर. अब मैं तुम से क्या कहूं. कल काम पर आ जाना. तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लगता है,’’ इतना कह कर सुखराम वहां से चला आया.

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सुखराम के जाने के बाद बहुत देर तक फूलमनी के मन में यह सवाल उठता रहा कि क्या सचमुच सुखराम उसे चाहता है? फिर वह खुद ही लजा गई. वह भी तो उसे चाहने लगी है. कुछ शब्दों के एक वाक्य ने उस के मन पर इतना गहरा असर किया कि वह अपने सारे दुखदर्द भूल गई. उसे ऐसा लगने लगा, जैसे सुखराम उसे साइकिल के कैरियर पर बैठा कर ऐसी जगह लिए जा रहा है, जहां दोनों का अपना सुखी संसार होगा. वह भी पीछे मुड़ कर देखना नहीं चाह रही थी. बस आगे और आगे खुले आसमान की ओर देख रही थी.

अचानक फूलमनी सपनों के संसार से लौट आई. एक गहरी सांस भरी कि काश, ऐसा बुतरू भी होता. कितना प्यार करती थी वह उस से. उस की खातिर अपने मांबाप को छोड़ कर यहां भाग आई और इस का सिला यह मिल रहा है. आंखों से आंसुओं की बूंदें टपक आईं. बुतरू का नाम आते ही उस का मन फिर कसैला हो गया.

अगले दिन सुबहसवेरे फूलमनी काम पर आई, तो उसे देख कर सुखराम का मन मयूर नाच उठा. काम बांटते समय मुंशी ने कहा, ‘‘सुखराम के साथ फूलमनी जाएगी.’’

साइट पर सुखराम आगेआगे अपने औजार ले कर चल पड़ा, पीछेपीछे फूलमनी पाटा, बेलचा, सीमेंट ढोने वाला तसला ले कर चल रही थी.

सुखराम ने पीछे घूम कर फूलमनी को एक बार फिर देखा. वह भी उसे ही देख रही थी. दोनों चुप थे. तभी सुखराम ने फूलमनी से कहा, ‘‘तुम ऐसे कब तक बुतरू से पिटती रहोगी फूलमनी?’’

‘‘देखें, जब तक मेरी किस्मत में लिखा है,’’ फूलमनी बोली.

‘‘तुम छोड़ क्यों नहीं देती उसे?’’ सुखराम ने सवाल किया.

‘‘फिर मेरा क्या होगा?’’

‘‘मैं जो तुम्हारे साथ हूं.’’

‘‘एक बार तो घर छोड़ चुकी हूं और कितनी बार छोडंू? अब तो उसी के साथ जीना और मरना है.’’

‘‘ऐसे निकम्मे के हाथों पिटतेपिटाते एक दिन तुम्हारी जान चली जाएगी फूलमनी. क्या तुम मेरा कहा मानोगी?’’

‘‘बोलो…’’

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‘‘बुतरू एक जोंक की तरह है, जो तुम्हारे बदन को चूस रहा है. कभी आईने में तुम ने अपनी शक्ल देखी है. एक बार देखो. जब तुम पहली बार आई थीं, कैसी लगती थीं. आज कैसी लग रही हो. तुम एक बार मेरा यकीन कर के मेरे साथ चलो. हमारी अपनी प्यार की दुनिया होगी. हम दोनों इज्जत से कमाएंगेखाएंगे.’’

बातें करतेकरते दोनों उस जगह पहुंच चुके थे, जहां उन्हें काम करना था. आसपास कोई नहीं था. वे दोनों एकदूसरे की आंखों में समा चुके थे.

New Year 2022: नई जिंदगी- भाग 1: क्यों सुमित्रा डरी थी

लेखक-अरुणा त्रिपाठी

कई बार इनसान की मजबूरी उस के मुंह पर ताला लगा देती है और वह चाह कर भी नहीं कह पाता जो कहना चाहता है. सुमित्रा के साथ भी यही था. घर की जरूरतों के अलावा कम उम्र के बच्चों के भरणपोषण का बोझ उन की सोच पर परदा डाले हुए था. वह अपनी शंका का समाधान बेटी से करना चाहती थीं पर मन में कहीं डर था जो बहुत कुछ जानसमझ कर भी उन्हें नासमझ बनाए हुए था.

पति की असामयिक मौत ने उन की कमर ही तोड़ दी थी. 4 छोटे बच्चों व 1 सयानी बेटी का बोझ ले कर वह किस के दरवाजे पर जाएं. उन की बड़ी बेटी कल्पना पर ही घर का सारा बोझ आ पड़ा था. उन्होंने साल भर के अंदर बेटी के हाथ पीले करने का विचार बनाया था क्योंकि बेटी कल्पना को कांस्टेबल की नौकरी मिल गई थी. आज बेटी की नौकरी न होती तो सुमित्रा के सामने भीख मांगने की नौबत आ गई होती.

बच्चे कभी स्कूल फीस के लिए तो कभी यूनीफार्म के लिए झींका करते और सुमित्रा उन पर झुंझलाती रहतीं, ‘‘कहां से लाऊं इतना पैसा कि तुम सब की मांग पूरी करूं. मुझे ही बाजार में ले जाओ और बेच कर सब अपनीअपनी इच्छा पूरी कर लो.’’

कल्पना कितनी बार घर में ऐसे दृश्य देख चुकी थी. आर्थिक तंगी के चलते आएदिन चिकचिक लगी रहती. उस की कमाई से दो वक्त की रोटी छोड़ खर्च के लिए बचता ही क्या था. भाई- बहनों के सहमेसहमे चेहरे उस की नींद उड़ा देते थे और वह घंटों बिस्तर पर पड़ी सोचा करती थी.

कल्पना की ड्यूटी गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर थी. वह रोज देखती कि उस के साथी सिपाही किस प्रकार से सीधेसादे यात्रियों को परेशान कर पैसा ऐंठते थे. ट्रेन से उतरने के बाद सभी को प्लेटफार्म से बाहर जाने की जल्दी रहती है. बस, इसी का वे वरदी वाले पूरा लाभ उठा रहे थे.

‘‘कोई गैरकानूनी चीज तो नहीं है. खोलो अटैची,’’ कह कर हड़काते और सीधेसादे यात्री खोलनेदिखाने और बंद करने की परेशानी से बचने के लिए 10- 20 रुपए का नोट आगे कर देते. सिपाही मुसकरा देते और बिना जांचेदेखे आगे बढ़ जाने देते.

यदि कोई पैसे देने में आनाकानी करता, कानून की बात करता तो वे उस की अटैची, सूटकेस खोल कर सामान इस कदर इधरउधर सीढि़यों पर बिखेर देते कि उसे समेट कर रखने में भी भारी असुविधा होती और दूसरे यात्रियों को एक सबक मिल जाता.

ऐसे ही एक युवक का हाथ एक सिपाही ने पकड़ा जो होस्टल से आ रहा था. सिपाही ने कहा, ‘‘अपना सामान खोलो.’’

लड़का किसी वीआईपी का था, जिसे सी.आई.एस.एफ. की सुरक्षा प्राप्त थी. इस से पहले कि लड़का कुछ बोलता उस के पिता के सुरक्षादल के इंस्पेक्टर ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘अरे, यह मेरे साहब का लड़का है.’’

तुरंत सिपाही के हाथों की पकड़ ढीली हो गई और वह बेशर्मी से हंस पड़ा. एक बुजुर्ग यह कहते हुए निकल गए, ‘‘बरखुरदार, आज रिश्वतखोरी में नौकरी से हाथ धो बैठते.’’

कल्पना यह सबकुछ देख कर चकित रह गई लेकिन उस सिपाही पर इस का कुछ असर नहीं पड़ा था. उस ने वह वैसे ही अपना धंधा चालू रखा था. जाहिर है भ्रष्ट कमाई का जब कुछ हिस्सा अधिकारी की जेब में जाएगा तो मातहत बेखौफ तो काम करेगा ही.

कल्पना का जब भी अपनी मां सुमित्रा से सामना होता, वह नजरें नहीं मिलाती बल्कि हमेशा अपने को व्यस्त दर्शाती. उस के चेहरे की झुंझलाहट मां की प्रश्न भरी नजरों से उस को बचाने में सफल रहती और सुमित्रा चाह कर भी कुछ पूछने का साहस नहीं कर पातीं.

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कमाऊ बेटी ने घर की स्थिति को पटरी पर ला दिया था. रोजरोज की परेशानी और दुकानदार से उधार को ले कर तकरार व कहासुनी से सुमित्रा को राहत मिल गई थी. उसे याद आता कि जब कभी दुकानदार पिछले कर्ज को ले कर पड़ोसियों के सामने फजीहत करता, वह शर्म से पानीपानी हो जाती थीं पर छोटेछोटे बच्चों के लिए तमाम लाजशर्म ताक पर रख उलटे  हंसते हुए कहतीं कि अगली बार उधार जरूर चुकता कर दूंगी. दुकानदार एक हिकारत भरी नजर डाल कर इशारा करता कि जाओ. सुमित्रा तकदीर को कोसते घर पहुंचतीं और बाहर का सारा गुस्सा बच्चों पर उतार देती थीं.

आज उन को इस शर्मिंदगी व झुंझलाहट से नजात मिल गई थी. कल्पना ने घर की काया ही पलट दी थी. उन्हें बेटी पर बड़ा प्यार आता. कुछ समय तक तो उन का ध्यान इस ओर नहीं गया कि परिस्थिति में इतना आश्चर्यजनक बदलाव इतनी जल्दी कैसे और क्यों आ गया किंतु धीरेधीरे उन के मन में कुछ शंका हुई. कई दिनों तक अपने से सवालजवाब करने की हिम्मत बटोरी उन्होंने और से पूछा, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता कल्पना बेटी कि तुम दिन की ड्यूटी के बाद फिर रात को क्यों जाती हो…’’

अभी सुमित्रा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कल्पना ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘मां, मैं डबल ड्यूटी करती हूं. और कुछ पूछना है?’’

कल्पना ने यह बात इतने रूखे और तल्ख शब्दों में कही कि वह चुप हो गईं. चाह कर भी आगे कुछ न पूछ पाईं और कल्पना अपना पर्स उठा कर घर से निकल गई. हर रोज का यह सिलसिला देख एक दिन सुमित्रा का धैर्य टूट गया. कल्पना आधी रात को लौटी तो वह ऊंचे स्वर में बोलीं, आखिर ऐसी कौन सी ड्यूटी है जो आधी रात बीते घर लौटती हो. मैं दिन भर घर के काम में पिसती हूं, रात तुम्हारी चिंता में चहलकदमी करते बिताती हूं.

मां की बात सुन कर कल्पना का प्रेम उन के प्रति जाग उठा था पर फिर पता नहीं क्या सोच कर पीछे हट गई, मानो मां के निकट जाने का उस में साहस न हो.

‘‘मां, तुम से कितनी बार कहा है कि मेरे लिए मत जागा करो. एक चाबी मेरे पास है न. तुम अंदर से लाक कर के सो जाया करो. मैं जब ड्यूटी से लौटूंगी, खुद ताला खोल कर आ जाया करूंगी.’’

‘‘पहले तुम अपनी शक्ल शीशे में देखो, लगता है सारा तेज किसी ने चूस लिया है,’’ सुमित्रा बेहद कठोर लहजे में बोलीं.

कल्पना के भीतर एक टीस उठी और वह अपनी मां के कहे शब्दों का विरोध न कर सकी.

सुबह का समय था. पक्षियों की चहचहाहट के साथ सूर्य की किरणों ने अपने रंग बिखेरे. सुमित्रा का पूरा परिवार आंगन में बैठा चाय पी रहा था. उन की एक पड़ोसिन भी आ गई थीं. कल्पना को देख वह बोली, ‘‘अरे, बिटिया, तुम तो पुलिस में सिपाही हो, तुम्हारी बड़ी धाक होगी. तुम ने तो अपने घर की काया ही पलट दी. तुम्हें कितनी तनख्वाह मिलती है?’’

कल्पना ऐसे प्रश्नों से बचना चाहती थी. इस से पहले कि वह कुछ बोलती उस की छोटी बहन ने अपनी दीदी की तनख्वाह बढ़ाचढ़ा कर बता दी तो घर के बाकी लोग खिलखिला कर हंस दिए और बात आईगई हो गई.

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सुमित्रा बड़ी बेटी की मेहनत को देख कर एक अजीब कशमकश में जी रही थीं. इस मानसिक तनाव से बचने के लिए सुमित्रा ने सिलाई का काम शुरू कर दिया पर बडे़ घरों की औरतें अपने कपड़े सिलने को न देती थीं और मजदूर घरों से पर्याप्त सिलाई न मिलती इसलिए उन्होंने दरजी की दुकानों से तुरपाई के लिए कपडे़ लाना शुरू कर दिया. शुरुआत में हर काम में थोड़ीबहुत कठिनाई आती है सो उन्हें भी संघर्ष करना पड़ा.

जैसेजैसे सुमित्रा की बाजार में पहचान बनी वैसेवैसे उन का काम भी बढ़ता गया. अब उन्हें घर पर बैठे ही आर्डर मिलने लगे तो उन्होंने अपनी एक टेलरिंग की दुकान खोल ली.

5 सालों के संघर्ष के बाद सुमित्रा को दुकान से अच्छीखासी आय होने लगी. अब उन्हें दम मारने की भी फुरसत नहीं मिलती. कई कारीगर दुकान पर अपना हाथ बंटाने के लिए रख लिए थे.

शैतान भाग 3 : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

किचन के पास उसे अरसलान मिल गया. उस ने उसे देखते ही कहा, ‘‘अरसलान, मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं तुम्हारी जिंदगी से निकल जाऊंगी, पर तुम फिजा को मुझे दे दो.’’

‘‘यह क्या बकवास है?’’ वह उलझ कर बोला.

‘‘यह बकवास नहीं है, वकील से कह कर एक दस्तावेज तैयार कराओ, जिस में लिखा हो, अगले 10 सालों तक तुम मुझे फिजा का गार्जियन रख रहे हो. मैं जहां रहूंगी, फिजा वहीं रहेगी. तुम हर महीने खर्चे की रकम देते रहोगे? मैं एक फ्लैट अलग ले लूंगी.’’

‘‘मैं तुम्हें वहीं फ्लैट दे दूंगा, जहां हम मिलते थे.’’

‘‘पर तुम वहां नहीं आ सकोगे. हफ्ते में एक बार आप बच्ची को बाहर ले जा सकते हो.’

‘‘ठीक है, मैं वकील से बात करता हूं.’’ उस ने कहा.

ठीक 11 बजे रानिया ड्राइंगरूम में पहुंच गई, जहां सब लोग इकट्ठे थे. वह एक कोने के सोफे पर फिजा को गोद में ले कर बैठ गई. वहां सोनिया के डाक्टर व उस के दफ्तर के मैनेजर राशिदी भी थे. वकील ने वसीयत के बारे में कहना शुरू किया, ‘‘वसीयत के मुताबिक जिन को यहां होना चाहिए, वे यहां हैं, पर यहां ज्यादा लोग नहीं रह सकते. इसलिए मिस कंजा और खाला आप बाहर चली जाएं प्लीज. यह कानूनी मामला है.’’

कंजा ने घूर कर वकील को देखा, फिर अरसलान की तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वह रोक लेगा. पर वह सिर झुकाए बैठा रहा. दोनों गुस्से से बाहर निकल गईं.

वकील ने कहना शुरू किया, ‘‘वसीयत डेढ़ माह पहले लिखी गई थी. डाक्टर साहब और मैनेजर राशिदी इस के गवाह हैं. इस पर सिविल जज के साइन करवा लिए गए हैं. सारा काम पक्का है.’’

अरसलान बेचैन हो कर बोला, ‘‘यह सारी बातें छोडि़ए, आप वसीयत पढ़ कर सुनाइए.’’

‘‘वसीयत के मुताबिक सोनिया मैडम की तमाम जायदाद की वारिस उन की बेटी फिजा है.’’ वकील ने कहा.

‘‘बकवास है, इतनी सी बच्ची यह बिजनैस और कारखाना कैसे चला सकती है?’’ अरसलान ने गुस्से से कहा.

‘‘इस की चिंता आप मत कीजिए अरसलान मियां. इस के लिए सोनिया मैडम ने 4 लोगों की एक कमेटी बना दी है. जिस में मैनेजर राशिदी, डाक्टर साहब, उन के पापा के दोस्त अजमल साहब और मैं शामिल हूं. हम सब के काम की निगरानी रानिया को सौंपी गई है.’’ वकील ने कहा.

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‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ अरसलान ने चिढ़ कर कहा.

‘‘यह इस तरह हो सकता है अरसलान साहब कि सोनिया को आप पर भरोसा नहीं था. वह जानती थी कि आप अपनी नई जिंदगी में मगन हो कर फिजा को भूल जाएंगे या आप उसे अपने रास्ते से हटा देंगे.’’

‘‘वसीयत में मेरे लिए क्या हुक्म है?’’ अरसलान ने धीरे से पूछा.

‘‘आप की किस्मत का फैसला रानिया मैडम के हाथों है, क्योंकि सोनिया मैडम सारे अधिकार उन्हें दे गई हैं.’’ वकील साहब ने कहा, ‘‘कमेटी के सारे काम भी रानिया मैडम से पूछ कर उन की ही सलाह से होंगे. सोनिया मैडम एक खत भी रानिया मैडम के लिए छोड़ गई हैं.’’

यह सुन कर रानिया मन ही मन शर्मिंदा हो गई. उस ने दिल ही दिल में सोनिया का शुक्रिया अदा किया.

वकील साहब ने कागजात देख कर कहा, ‘‘अरसलान, आप के लिए वसीयत में खास हिदायतें हैं. आप जनरल मैनेजर राशिदी और रानिया की इजाजत से ही औफिस जा सकते हैं और इन की मरजी से ही आप को काम मिलेगा. एक खास शर्त उन्होंने यह रखी है कि इस कोठी में आप तभी रह सकते हैं, जब आप रानियाजी से शादी कर लेंगे और बाहर कोई अफेयर नहीं चलाएंगे.’’

अरसलान गुस्से से तिलमिला कर बोला, ‘‘यह आप सब की मिलीभगत है. आप सब ने मेरे खिलाफ साजिश रची है. मैं इस के खिलाफ अदालत जाऊंगा.’’

‘‘अरसलान साहब, आप कोर्ट जाने की तो बात भी न करें, मेरे पास इस की रिपोर्ट मौजूद है कि सोनियाजी को दवा के कैप्सूल में जहर दिया गया था.’’ डाक्टर साहब बोले.

यह सुन कर अरसलान डर कर चुप हो गया. सोनिया ने एक खत रानिया के लिए भी लिखा था. उस खत को पढ़ने के लिए वह दूसरे कमरे में चली गई. खत खोल कर उस ने उसे पढ़ना शुरू किया—

‘मेरी दोस्त रानिया, शायद मेरी सौंपी गई जिम्मेदारी बहुत ज्यादा है, पर मुझे यकीन है कि मोहब्बत में तुम सब निभा लोगी. अरसलान सिर्फ दौलत से प्यार करता है, इसलिए मैं ने उसे अपनी वसीयत में कुछ नहीं दिया है. अब यह तुम्हारे हाथ में है कि तुम उस के झांसे में न आओ और मेरे बिजनैस से उसे दूर रखो. वह एक बेवफा अय्याश इंसान है.’

रानिया ने इतना ही पढ़ा था कि उसे दरवाजे पर आहट महसूस हुई. देखा तो अरसलान सामने खड़ा था. वह धीरे से बोला, ‘‘रानिया, मैं अपनी भूलों का प्रायश्चित करता हूं. अब मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. सारी उम्र मैं तुम्हारा वफादार रहूंगा, यह वादा है.’’

‘‘अरसलान, मेरा दिल सोनिया जितना बड़ा नहीं है, फिर भी मैं एक फैसले पर पहुंच गई हूं. यह फैसला मैं सब के सामने सुनाना चाहती हूं.’’ कह कर रानिया ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ी. वह पीछे चलतेचलते गिड़गिड़ाया, ‘‘रानिया, मुझे एक मौका दो.’’

‘‘मेरे पास अब तुम्हें देने को कुछ नहीं है.’’

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‘‘तुम किसी से शादी तो करोगी ही, फिर मैं क्या बुरा हूं. देखो मैं फिजा का बाप हूं. कम से कम इस बात को तो ध्यान में रखो.’’

‘‘मैं ने इंकार नहीं किया है अरसलान. अभी मेरा फैसला सुनाना बाकी है.’’ वह बोली.

ड्राइंगरूम में सब मौजूद थे. वकील साहब ने कहा, ‘‘मिस रानिया, हम सब आप का फैसला जानना चाहते हैं.’’

रानिया ने आत्मविश्वास से कहा, ‘‘मैं सपनों में रहने वाली एक आम सी लड़की थी. मैं ने भी अरसलान साहब जैसे खूबसूरत इंसान को अपने ख्वाबों में बसाया था. जब यह भी मुझ पर मेहरबान हुए तो मैं ने इन्हें देवता समझ कर इन की हर बात मानी, पर मुझे नहीं पता था कि यह देवता के रूप में एक शैतान हैं.’’

‘‘रानिया मेरी बात सुनो…’’ अरसलान ने बीच में टोका.

‘‘अरसलान साहब, मुझे अपनी बात पूरी करने दीजिए.’’ अरसलान को चुप कराते हुए रानिया बोली, ‘‘सब कुछ लुट जाने के बाद आज मेरी आंखें खुलीं तो अरसलान साहब चाहते हैं कि मैं वही गलती दोबारा करूं. लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी. मेरी मंजिल फिजा की अच्छी देखभाल और बेहतरीन परवरिश है.’’

रानिया का फैसला सुन कर अरसलान का चेहरा लटक गया. उस ने आगे कहा, ‘‘अरसलान साहब, हर सूरत में आप आज शाम 5 बजे से पहले यह घर छोड़ देंगे. और जब तक आप घर नहीं छोड़ेंगे, ये तमाम लोग यहीं रहेंगे. फिजा की गार्जियन होने के नाते उस की हिफाजत के लिए यह मैं जरूरी समझती हूं.’’

अरसलान एकदम से उठ खड़ा हुआ और गुस्से से बोला, ‘‘यह मेरा घर है, मुझे यहां से कोई नहीं निकाल सकता और तेरी तो औकात ही क्या है?’’

रानिया ने वकील की तरफ देख कर कहा, ‘‘वकील साहब, इन्हें बताइए कि जब तक फिजा बालिग नहीं हो जाती, तब तक इस घर की मालिक मैं हूं और उस की भलाई और हिफाजत के लिए मेरा यह फैसला जरूरी है.’’

वकील ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘अरसलान साहब, आप वसीयत लागू करवाने में जरा सी भी अड़चन डालेंगे तो हम पुलिस व कोर्ट की मदद लेंगे. फिर आप का क्या अंजाम होगा, आप समझ सकते हैं.’’

अरसलान बैठ गया. रानिया ने कागजात देखते हुए कहा, ‘‘अरसलान साहब, आप अपने साथ अपनी जरूरत की चीजें ले जा सकते हैं. अगर आप इसी शहर में रहना चाहते हैं तो मैनेजर राशिदी आप को हर महीने 10 हजार रुपए देंगे और अगर आप दुबई वाले औफिस में काम करना चाहते हैं तो हर माह आप को तनख्वाह 4 हजार दरहम मिलेगी. रहने का इंतजाम औफिस की तरफ से होगा. यह आप की मरजी है, जहां आप जाना चाहें.’’

अरसलान के चेहरे पर मुर्दनी छा गई. उस ने मरी सी आवाज में कहा, ‘‘मैं दुबई के औफिस जाना चाहूंगा.’’

‘‘राशिदी साहब, आप अरसलान साहब को दुबई भिजवाने का इंतजाम करा दीजिए. इन्हें खर्च वगैरह दे दीजिएगा. मैं काम से बाहर जा रही हूं. 5 बजे तक आ जाऊंगी. तब तक घर साफ हो जाना चाहिए.’’ रानिया ने मजबूत लहजे में कह कर फिजा को गोद में लिया और बाहर निकल गई. राशिदी उसे बाहर तक छोड़ने आए. चलतेचलते उन्होंने कहा, ‘‘मैडम, यह अच्छा हुआ कि वह दुबई जा रहा है. वहां का जीएम बहुत तेज है. वह उसे सही तरीके से हैंडल करेगा और हमारी भी परेशानी खत्म हो गई.’’

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‘‘हां राशिदी साहब, सोनियाजी ने जो कुछ किया, बहुत सोचसमझ कर किया. अगर वह यहीं रहता तो दिमाग पर एक बोझ सा रहता.’’

रानिया ने गाड़ी में बैठते हुए ड्राइवर से कहा, ‘‘कब्रिस्तान चलो.’’

राशिदी ने सोचा कि सोनिया के पास जा कर उस के एहसानों का शुक्रिया अदा करेंगी. कब्रिस्तान में सोनिया की कब्र के पास बैठ कर रानिया ने कहा था कि अब वह ख्वाबों की दुनिया से निकल कर हकीकत की जमीन पर खड़ी है. वह फिजा की पूरे दिल से देखभाल व परवरिश करेगी. उसे मां का प्यार देगी. कभी पीछे मुड़ कर मोहब्बत की तरफ नहीं देखेगी. कभी कोई शिकायत का मौका नहीं देगी. यही उस का मरहूमा सोनिया से वादा था.

डुप्लीकेट- भाग 1: आखिर क्यों दुखी था मनोहर

कल्पना सिनेमाघर में काफी पुरानी फिल्म ‘अपना कौन’ चल रही थी. बहुत कम दर्शक थे. मनोहर भी फिल्म देखने आया था. जैसेजैसे वह सीन निकट आ रहा था, उस के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. एक घंटे बाद वह सीन आया. अचानक फिल्म की हीरोइन सीढि़यों से लुढ़कती हुई फर्श पर आ गिरती है.

यह देखते हुए मनोहर के मुंह से दुखभरी चीख निकली. वह बुरी तरह कांप उठा. उस का मन बहुत भारी हो गया. वह सीट से उठा और सिनेमाघर से बाहर निकल गया. वह बस इतनी ही फिल्म देखने आया था.

सिनेमाघर से बाहर आ कर मनोहर ने एक रिकशा वाले को जनकपुरी चलने को कहा.

मनोहर के चेहरे पर दुख की रेखाएं फैलती जा रही थीं. 20 साल पहले बनी थी यह फिल्म ‘अपना कौन’. किसी को क्या पता था कि सीढि़यों से लुढ़क कर फर्श पर गिरने वाली हीरोइन नहीं, बल्कि हीरोइन की डुप्लीकेट नीलू थी. नीलू उस की पत्नी ऊंचे जीने से बुरी तरह लुढ़कती हुई फर्श पर गिरी. उस के बाद वह कभी उठ ही न पाई.

फिल्म नगरी की नकली सुनहरी चमकदमक. खिंचे चले जा रहे हैं अनेक नौजवान. न जाने कितने चेहरे इस चमक के पीछे छिपे गहरे अंधकार में हमेशा के लिए खो जाते हैं.

मनोहर विचारों के सागर में गोते लगाने लगा

मनोहर विचारों के सागर में गोते लगाने लगा. उसे याद आ रहा था जब वह नौजवान था, हैंडसम था. उसे ऐक्टिंग करने का शौक था. शहर के कुछ मंचों पर नाटकों में भी ऐक्टिंग की थी. उसे भी फिल्मों में काम करने का भूत सवार हो गया था. वह घर से मुंबई भाग आया था. महीनों मारामारा घूमता रहा. जो रुपए लाया था, खत्म हो गए.

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तभी उस की दोस्ती विजय से हो गई जो फिल्मों में डुप्लीकेट का काम करता था. विजय उसे भी स्टूडियो में साथ ले जाने लगा. वहां वह फिल्मों की शूटिंग देखता और सोचता कि काश, मुझे भी किसी फिल्म में काम मिल जाता.

वह दिन मनोहर की खुशी का दिन था जब एक फिल्म में विजय ने उसे भी डुप्लीकेट का काम दिला दिया था. उस ने मन ही मन सोचा था कि आज वह डुप्लीकेट बना है, कल हीरो भी जरूर बनेगा.

पर, यह सोचना कितना गलत रहा, क्योंकि फिल्म नगरी में हीरो कभी डुप्लीकेट नहीं बनता और डुप्लीकेट कभी हीरो नहीं बनता. जो जिस लाइन पर चल निकला, सो चल निकला. जिस पर जो लेबल यानी ठप्पा लग गया, सो लग गया.

फिल्मी दुनिया में मनोहर भी एक डुप्लीकेट बन कर रह गया

फिल्मी दुनिया में मनोहर भी एक डुप्लीकेट बन कर रह गया था. वह कुछ नामचीन हीरो के लिए काम करने लगा था. शीशे तोड़ कर कमरे में घुसता. ऊंचीऊंची इमारतों पर विलेन के डुप्लीकेट से लड़ाई के शौट देता. कभी वह पहाडि़यों से लुढ़कता तो कभीकभी ऐसे स्टंट भी करने पड़ते जिन्हें देख कर दर्शक अपनी सांसें रोक लेते.

फिल्मों की शूटिंग पर मनोहर सुंदर सलोनी सी एक लड़की को देखा करता था. एक दिन जब उस से बात की गई, तो उस ने बताया था कि उस का नाम नीलिमा है. पर सभी उसे नीलू कहते हैं. उसे भी थोड़ीबहुत ऐक्टिंग आती थी. वह भी अपने शहर में कई नाटकों में रोल कर चुकी थी. वह भी फिल्मों में हीरोइन बनना चाहती थी.

यहां मुंबई में नीलू के दूर के एक रिश्ते का मामा रहता है. उस से फोन पर बात हुई तो उस ने एकदम कह दिया कि आ जाओ, मेरी बहुत जानपहचान है फिल्म नगरी में.

नीलू ने जब मम्मीपापा को मुंबई में जाने के बारे में बताया तो दोनों ने साफ मना कर दिया था. फिल्मी दुनिया में फैली अनेक बुराइयों व परेशानियों के बारे में भी उसे समझाया था.

पापा ने कहा था, ‘नए लोगों को वहां पैर जमाने में बहुत संघर्ष करना पड़ता है. उन लड़कियों के लिए दलदल में गिरने जैसी बात हो जाती है जिन का फिल्म नगरी या मुंबई में कोई अपना नहीं होता.’

‘वहां पर मामा जगत प्रसाद तो हैं. उन्होंने फोन पर मुझ से कहा है कि उन की बहुत जानपहचान है,’ नीलू बोली थी.

‘नीलू बेटी, वह तेरा सगा मामा तो है नहीं. दूर के रिश्ते में मेरा भाई लगता है. तू फिल्मी दुनिया के सपने छोड़ कर यहीं पढ़ाईलिखाई में अपना ध्यान दे,’ मम्मी ने कहा था.

पर नीलू नहीं मानी. उस की जिद के सामने वे मजबूर हो गए. उन दोनों को नाराज कर वह मुंबई पहुंच गई. जगत मामा व मामी उसे देख कर बहुत खुश हुए.

जगत मामा ने नीलू को फिल्मी दुनिया के अनेक लोगों के साथ अपने फोटो भी दिखाए. उसे पूरा विश्वास हो गया था कि मामा उसे जल्द ही किसी न किसी फिल्म में रोल दिला देंगे.

एक दिन मामी बाजार गई हुई थीं. मामा और वह घर पर अकेले ही थे. वह एक फिल्मी पत्रिका पढ़ रही थी.

‘नीलू, एक दिन तुम्हारी तसवीरें भी इसी तरह पत्रिकाओं व अखबारों में छपेंगी.’

‘सच, मामाजी,’ नीलू की आंखों में खुशी भरी चमक तैरने लगी मानो उस की फिल्म की शूटिंग हो रही है. उसे हीरोइन की सहेली का रोल मिला है. उस के फोटो भी अखबारों में छप रहे हैं.

तभी नीलू चौंक उठी. मामा ने एक झटके से उसे अपनी तरफ खींचना चाहा था. वह एकदम बोल उठी, ‘यह क्या करते हो आप मामाजी?’

मामा ने मुसकरा कर उस की ओर देखा था. मामा की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे.

‘मामाजी, आप से मैं क्या कहूं? आप को तो शर्म आनी चाहिए. आप अपनी भांजी के साथ ऐसी हरकत कर रहे हो.’

‘अरे, तुम मेरी सगी भांजी तो हो नहीं. मेरी 2-3 निर्माताओं से बात चल रही है. उन्होंने कहा है कि वे जल्द ही तुम्हें स्क्रीन टैस्ट के लिए बुला लेंगे. स्क्रीन टैस्ट के नाम पर यह सब होना मामूली बात है.

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‘अगर तुम इस से बचना चाहोगी तो नामुमकिन हो जाएगा काम मिलना. अखबारमैगजीनों में तुम ने पढ़ा होगा कि बहुत सी हीरोइन अपने इंटरव्यू में बता देती हैं कि फिल्मों में काम देने के नाम पर उन का यौन शोषण हुआ है.’

Romantic Story in Hindi- रिश्तों की परख: भाग 3

लेखक- शैलेंद्र सिंह परिहार

हमेशा ठंडे दिमाग से काम लेने वाली मम्मी क्रोधित हो गई थीं, ‘नहीं करना किसी के फोनवोन का इंतजार, दूसरा लड़का देखना शुरू कर दीजिए.’

‘पागल न बनो,’ पापा ने समझाया था, ‘अपनी बेटी को यह सपना तुम ने ही दिखाया था, पल भर में उसे कैसे तोड़ दोगी? कभी सोचा है उस के दिल को कितनी ठेस लगेगी?’

एक दिन मां ने मुझ से कहा था, ‘बेटी, कमल शादी के लिए तैयार नहीं है. कहता है कि यदि उस की जबरन शादी की गई तो वह आत्महत्या कर लेगा, अब तू ही बता, हम लोग क्या करें?’

मैं इतना ही पूछ पाई थी, ‘वह इस समय कहां है?’

‘कहां होगा…वहीं…इलाहाबाद में मर रहा है,’ मम्मी ने गुस्से से कहा था.

‘मैं उस से एक बार मिलूंगी…एक बार मां…बस, एक बार,’ मैं ने रोते हुए कहा था.

पापा मुझे ले कर इलाहाबाद गए थे. वह अपने कमरे में ही मिला था. बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी हुई, कपड़े अस्तव्यस्त, हालत पागलों की तरह लग रही थी. पापा मुझे छोड़ कर कमरे से बाहर चले गए. औपचारिक बातचीत होने के बाद वह मुझ से बोला था, ‘तुम लड़कियों को क्या चाहिए, बस, एक अच्छा सा पति, एक सुंदर सा घर, बालबच्चे और घरखर्च के लिए हर महीने कुछ पैसे. लेकिन मेरे सपने दूसरे हैं. अभी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकता. तुम जहां मन करे शादी कर लो.’

कमल की बातें सुन कर मुझे भी क्रोध आ गया था, ‘तुम मुझे अपने पास न रखो, लेकिन शादी तो कर सकते हो, मेरे मांबाप भी चिंतामुक्त हों, कब तक वह लोग तुम्हारे आई.ए.एस. बन जाने का इंतजार करते रहेंगे?’

मेरी बात सुनते ही वह गुस्से से चीख पड़ा, ‘इंतजार नहीं कर सकती हो तो मर जाओ लेकिन मेरा पीछा छोड़ो…प्लीज…’

उस की बात सुन मैं सन्न रह गई थी. एक ही पल में 10 सालों से संजोया हुआ स्वप्न बिखर गया था. सोच रही थी, क्या यह वही कमल है? मन से निकली हूक तब शब्दों में इस तरह फूटी थी कि मरूंगी तो नहीं लेकिन एक बात कहती हूं, जब किसी बेबस की ‘आह’ लगती है तो मौत भी नसीब नहीं होती मिस्टर कमलकांत वर्मा, और इसे याद रखना.

घर आ कर मैं मम्मी से बोली थी, ‘आप लोग जहां भी मेरी शादी करना चाहें कर सकते हैं, लेकिन जिस से भी कीजिएगा उसे मेरी पिछली जिंदगी के बारे में पता होना चाहिए.’

1 वर्ष के अंदर ही मेरी शादी सुप्रीम कोर्ट के वकील गौरव के साथ हो गई. एक जमाने में उन के पापा वहीं के जानेमाने वकील थे. हम लोग दिल्ली में ही रहने लगे. गौरव जैसा चाहने वाला पति पा कर मैं कमल को भूल सी गई. साल भर में एक बार ही मायके जाना हो पाता था. इस बार तो अकेली ही जा रही थी. गौरव को कोर्ट का कुछ आवश्यक काम निकल आया था.

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मैं ने घड़ी की तरफ देखा, रात के 3 बज रहे थे. ट्रेन अपनी गति से चली जा रही थी कि अचानक कर्णभेदी धमाका हुआ और आंखों के सामने अंधेरा सा छाता चला गया. जब होश आया तो खुद को अस्पताल में पाया. गौरव भी आ चुके थे. एक ही ट्रैक पर 2 ट्रेनें आ गई थीं. आमनेसामने की टक्कर थी. कई लोग मारे गए थे. सैकड़ों लोग घायल हुए थे. मैं जिस बोगी में थी वह पीछे थी इसलिए कोई खास क्षति नहीं हुई थी फिर भी बेटे की हालत गंभीर थी. उसे 5-6 घंटे बाद होश आया था. 2 दिन बाद जब मैं डिस्चार्ज हो कर जा रही थी तो नर्स ने मुझे एक खत ला कर यह कहते हुए दिया कि मैडम, यह आप के लिए है…देना भूल गई थी…माफ कीजिएगा.

मैं ने आश्चर्य से पूछा था, ‘‘किस ने दिया?’’

‘‘वही, जो आप लोगों को यहां तक ले कर आया था. क्या आप नहीं जानतीं?’’

‘‘नहीं?’’

‘‘कमाल है,’’ नर्स आश्चर्य से बोल रही थी, ‘‘उस ने आप की मदद की, आप के बेटे को अपना खून भी डोनेट किया और आप कहती हैं कि आप उस को नहीं जानतीं?’’

मैं आतुरता से खत को पढ़ने लगी :

‘स्नेह,

सोचा था कि अपने किए की माफी मांग लूंगा लेकिन मृत्यु के इस तांडव ने मौका ही नहीं दिया. रिजर्वेशन टिकट पर ही गौरव का मोबाइल नंबर था. उन्हें फोन कर दिया है. वह जब तक नहीं आते मैं यहां रहूंगा. हो सके तो मुझे माफ कर देना. तुम्हारा गुनाहगार कमल.’

पत्र को गौरव ने भी पढ़ा था. ‘‘अच्छा तो वह कमल था…’’

गौरव खोएखोए से बोले थे, ‘‘सचमुच उस ने बड़ी मदद की, हमारे बेटे को एक नया जीवन दिया है.’’

बात आईगई हो गई. पीछे गौरव को एक केस में काफी व्यस्त पाया था. पूछने पर बस यही कहते, ‘‘समझ लो स्नेह, एक महत्त्वपूर्ण केस है. यदि जीत गया तो बड़ा आत्मिक सुख मिलेगा.’’

1 वर्ष तक केस चलता रहा, फैसला हुआ, गौरव के पक्ष में ही. वह उस दिन खुशी से पागल हो रहे थे. शाम को आते ही बोले, ‘‘यार, जल्दी से अच्छी- अच्छी चीजें बना लो, मेरा एक दोस्त आ रहा है, आई.ए.एस. है.’’

‘‘कौन दोस्त?’’ मैं ने पूछा था.

‘‘जब आएगा तो खुद ही उसे देख लेना, मैं उसी को लेने जा रहा हूं.’’

कुछ देर बाद गौरव वापस आए थे और अपने साथ जिसे ले कर आए थे उसे देख कर मैं अवाक् रह गई. यह तो ‘कमल’ है लेकिन यह कैसे हो सकता है?

‘‘स्नेह,’’ गौरव ने प्यार से कहा था, ‘‘तुम्हें आहत कर के इस ने भी कोई सुख नहीं पाया है. हमारी शादी के 1 साल बाद इस का आई.ए.एस. में चयन हुआ था. लेकिन तब तक लगातार मिलती असफलताओं ने इसे विक्षिप्त कर दिया था. यह पागलों की तरह हरकतें करने लगा था. इस कारण आयोग ने इस की नियुक्ति को भी निरस्त कर दिया था.

‘‘3 साल तक मेंटल हास्पिटल में रहने के बाद जब यह ठीक हुआ तो सब से पहले तुम्हारे ही घर गया, तुम से माफी मांगने के लिए. लेकिन पापाजी ने इसे हमारा पता ही नहीं दिया था और फिर जीवन से निराश, जीवनयापन के लिए इस ने टी.सी. की नौकरी कर ली. आज मैं इसी का केस जीता हूं, अदालत ने इस की पुन: नियुक्ति का फैसला दिया है. आज यह फिर तुम से माफी मांगने ही आया है.’’

वर्षों बाद मुझे वही कमल दिखा था, जिस से मैं पहली बार मिली थी, शर्मीला और संकोची. उस ने अपने दोनों हाथ मेरे सामने जोड़ दिए थे. मुझ से नजर मिलाने का साहस नहीं कर पा रहा था. उस की आंखों से प्रायश्चित्त के आंसू बह निकले, ‘‘स्नेह, मैं तुम्हारा अपराधी हूं, एक लक्ष्य पाने के लिए जीवन के ही लक्ष्य को भूल गया था…आप के कहे शब्द…आज भी मेरे हृदय में कांटे की तरह चुभते हैं…लगता है आज भी एक आह मेरा पीछा कर रही है…हो सके तो मुझे माफ कर दो.’’

‘‘कमल,’’ मैं ने भरे गले से कहा, ‘‘मैं ने तो तुम्हें उसी दिन माफ कर दिया था जिस दिन तुम ने मेरी ममता की रक्षा की थी. अब तुम से कोई शिकायत नहीं…तुम जहां भी रहो खुश रहो, यह मेरे मन की आवाज है.’’

‘‘हां, कमल,’’ गौरव भी उसे समझाते हुए बोले थे, ‘‘कल तुम ने एक रिश्ते को परखने में भूल की थी, आज फिर से वही भूल मत करना, मातापिता को खुश रखना, अपना घरसंसार बसाना और अपनी शादी में हमें भी बुलाना…भूल तो न जाओगे?’’

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वह गौरव के गले लग रो पड़ा. निर्मल जल के उस शीतल प्रवाह ने हमारे हृदय के सारे मैल को एक ही पल में धो दिया.

‘‘7 वर्षों तक दिशाहीन और पागलों सा जीवन व्यतीत किया है मैं ने, मर ही चुका था, आप ने तो मुझे नया जीवन ही दिया…कैसे भूल जाऊंगा.’’

कमल के जाने के बाद मैं गौरव के सीने से लगते हुए बोली थी, ‘‘गौरव, सचमुच मुझे आप पर गर्व है…लेकिन यह क्या, आप की आंखों में भी आंसू.’’

‘‘हां…खुशी के हैं, जानती हो सच्चा प्रायश्चित्त वही होता है जब आंसू उस की आंखों से भी निकलें जिन के लिए प्रायश्चित्त किया गया हो, आज कमल का प्रायश्चित्त पूरा हुआ.’’

पति की बात सुन कर स्नेह भी अपनेआप को रोने से न रोक सकी.

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रिश्तों की परख: भाग 2

लेखका- शैलेंद्र सिंह परिहार

वार्षिक परीक्षा समाप्त होते ही मैं नानीजी के पास आ गई. रिजल्ट आया तो मैं फर्स्ट डिवीजन में पास हुई थी. गणित में अच्छे नंबर मिले थे. मैं अपने रिजल्ट से संतुष्ट थी. कुछ दिनों बाद कमल का भी रिजल्ट आया था. उसे मैरिट लिस्ट में दूसरा स्थान मिला था. उसे बधाई देने के लिए मेरा मन बेचैन हो रहा था. मैं जल्द ही नानी के घर से वापस लौट आई थी. कमल से मिली लेकिन उसे प्रसन्न नहीं देखा. वह दुखी मन से बोला था, ‘नहीं स्नेह, मैं पीछे नहीं रहना चाहता हूं, मुझे पहली पोजीशन चाहिए थी.’

वह कालिज पहुंचा और मैं 11वीं में. मैं ने अपनी सुविधानुसार कामर्स विषय लिया और उस ने आर्ट. अब उसे आई.ए.एस. बनने की धुन सवार थी.

‘आप को इस तरह विषय नहीं बदलना चाहिए था,’  मौका मिलते ही एक दिन मैं ने उसे समझाना चाहा.

‘मैं आई.ए.एस. बनना चाहता हूं और गणित उस के लिए ठीक विषय नहीं है. पिछले सालों के रिजल्ट देख लो, साइंस की तुलना में आर्ट वालों का चयन प्रतिशत ज्यादा है.’

मैं उस का तर्क सुन कर खामोश हो गई थी. मेरी बला से, कुछ भी पढ़ो, मुझे क्या करना है लेकिन मैं ने जल्द ही पाया कि मैं उस की तरफ खिंचती जा रही हूं. धीरेधीरे वह मेरे सपनों में भी आने लगा था, मेरे वजूद का एक हिस्सा सा बनता जा रहा था. अकेले में मिलने, उस से बातें करने को दिल चाहता था. समझ नहीं पा रही थी कि मुझे उस से प्यार होता जा रहा है या फिर यह उम्र की मांग है.

वह मेरे सपनों का राजकुमार बन गया था और एक शाम तो मेरे सपनों को एक आधार भी मिल गया था. आंटीजी बातों ही बातों में मेरी मम्मी से बोली थीं, ‘मन में एक बात आई थी, आप बुरा न मानें तो कहूं?’

‘कहिए न,’ मम्मी ने उन्हें हरी झंडी दे दी.

‘आप अपनी बेटी मुझे दे दीजिए, सच कहती हूं मैं उसे अपनी बहू नहीं बेटी बना कर रखूंगी,’ यह सुन मम्मी खामोश हो गई थीं. इतना बड़ा फैसला पापा से पूछे बगैर वह कैसे कर लेतीं. उन्हें खामोश देख कर और आगे बोली थीं, ‘नहीं, जल्दी नहीं है, आप सोचसमझ लीजिए, भाई साहब से भी पूछ लीजिएगा, मैं तो कमल के पापा से पूछ कर ही आप से बात कर रही हूं. कमल से भी बात कर ली है, उसे भी स्नेह पसंद है.’

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उस रात मम्मीपापा में इसी बात को ले कर फिर तकरार हुई थी.

‘क्या कमी है कमल में,’ मम्मी पापा को समझाने में लगी हुई थीं, ‘पढ़नेलिखने में होशियार है, कल को आई.ए.एस. बन गया तो अपनी बेटी राज करेगी.’

‘तुम समझती क्यों नहीं हो,’ पापा ने खीजते हुए कहा था, ‘अभी वह पढ़ रहा है, अभी से बात करना उचित नहीं है. वह आई.ए.एस. बन तो नहीं गया न, मान लो कल को बन भी गया और उसे हमारी स्नेह नापसंद हो गई तो?’

‘आप तो बस हर बात में मीनमेख निकालने लगते हैं, कल को उस की शादी तो करनी ही पड़ेगी, दोनों बच्चों को पढ़ालिखा कर सेटल करना होगा, कहां से लाएंगे इतना पैसा? आज जब बेटी का सौभाग्य खुद चल कर उस के पास आया है तो दिखाई नहीं पड़ रहा है.’

पापा हमेशा की तरह मम्मी से हार गए थे और उन का हारना मुझे अच्छा भी लग रहा था. वह बस, इतना ही बोले थे, ‘लेकिन स्नेह से भी तो पूछ लो.’

‘मैं उस की मां हूं. उस की नजर पहचानती हूं, फिर भी आप कहते हैं तो कल पूछ लूंगी.’

दूसरे दिन जब मम्मी ने पूछा तो मैं शर्म से लाल हो गई थी, चाह कर भी हां नहीं कह पा रही थी. मैं ने शरमा कर अपना चेहरा झुका लिया था. वह मेरी मौन स्वीकृति थी. फिर क्या था, मैं एक सपनों की दुनिया में जीने लगी थी. जब भी वह हमारे घर आता तो छोटे भाई मुझे चिढ़ाते, ‘दीदी, तुम्हारा दूल्हा आया है.’

देखते ही देखते 2 साल का समय गुजर गया, मैं ने भी हायर सेकंडरी पास कर उसी कालिज में दाखिला ले लिया था जिस में कमल पढ़ता था. 1 साल तक एक ही कालिज में पढ़ने के बावजूद हम कभी अकेले कहीं घूमनेफिरने नहीं गए. बस, घर से कालिज और कालिज से सीधे घर. ऐसा नहीं था कि मैं उसे मना कर देती, लेकिन उस ने कभी प्रपोज ही नहीं किया. और मुझे लड़की का एक स्वाभाविक संकोच रोकता था.

ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद उसे कंपीटीशन की तैयारी के लिए इलाहाबाद जाना था. सुनते ही मैं सकते में आ गई. उसे रोक भी नहीं सकती थी और जाते हुए भी नहीं देख सकती थी. जिस शाम उसे जाना था उसी दोपहर को मैं उस के घर पहुंची थी. वह जाने की तैयारी कर रहा था. आंटीजी रसोई में थीं. मैं ने पूछा था, ‘मुझे भूल तो न जाओगे?’

उस ने कोई जवाब नहीं दिया था, जैसे मेरी बात सुनी ही न हो. उस की इस बेरुखी से मेरी आंखें भर आई थीं. उस ने देखा और फिर बोला था, ‘यदि कुछ बन गया तो नहीं भूलूंगा और यदि नहीं बन पाया तो शायद…भूल भी जाऊंगा,’ सुनते ही मैं वहां से भाग आई थी.

लगभग 4 माह बाद वह इलाहाबाद से वापस आया था. बड़ा परिवर्तन देखा. हेयर स्टाइल, बात करने का ढंग, सबकुछ बदल गया था. एक दिन कमल ने कहा था, ‘मेरे साथ फिल्म देखने चलोगी?’

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‘क्या,’ मुझे आश्चर्य हुआ था. मन में एक तरंग सी दौड़ गई थी.

‘लेकिन बिना पापा से पूछे…’

‘ओह यार, पापा से क्या पूछना… आफ्टर आल यू आर माई वाइफ…अच्छा ठीक है, मैं पूछ भी लूंगा.’

कमल ने पापा से क्या कहा मुझे नहीं मालूम पर पापा मान गए थे. वह शाम मेरी जिंदगी की एक यादगार शाम थी. 3 से 6 पिक्चर देखी. ठंड में भी हम दोनों ने आइसक्रीम खाई. लौटते समय मैं ने उस से कहा था, ‘तुम्हें इलाहाबाद पहले ही जाना चाहिए था.’

समय गुजरता गया. मैं भी ग्रेजुएट हो गई. सुनने में आया कि कमल का चयन मध्य प्रदेश पी.सी.एस. में नायब तहसीलदार की पोस्ट के लिए हो गया था, लेकिन उस ने नियुक्ति नहीं ली. उस का तो बस एक ही सपना था आई.ए.एस. बनना है. 2 बार उस ने मुख्य परीक्षा पास भी की लेकिन इंटरव्यू में बाहर हो गया.

मेरे पापा का ग्वालियर तबादला हो गया. एक बार फिर हम लोगों को अपना पुराना शहर छोड़ना पड़ा. अंकल और आंटी दोनों ही स्टेशन तक छोड़ने आए थे.

मेरी पोस्ट गे्रजुएशन भी हो चुकी थी, अब तो पापा को सब से अधिक चिंता मेरी शादी की थी. जब भी यू.पी.एस.सी. का रिजल्ट आता वह पेपर ले कर घंटों देखा करते थे. मम्मी उन्हें समझातीं, ‘जहां इतने दिनों तक सब्र किया वहां एकाध साल और कर लीजिए.’

पापा गुस्से में बोले थे, ‘ये सब तुम्हारी ही करनी का फल है. बड़ी दूरदर्शी बनती थीं न…अब भुगतो.’

‘आप वर्माजी से बात तो कीजिए, कोई अपनी जबान से थोड़े ही फिर जाएगा, शादी कर लें, लड़का अपनी तैयारी करता रहेगा.’

‘तुम मुझे बेवकूफ समझती हो,’ पापा गुस्से से चीखे थे, ‘उस सनकी को अपनी बेटी ब्याह दूं, अच्छीखासी पोस्ट पर सलेक्ट हुआ था, लेकिन नियुक्ति नहीं ली. यदि कल को कुछ नहीं बन पाया तो?’

‘ऐसा नहीं है. वह योग्य है, कुछ न कुछ कर ही लेगा. आप की बेटी भूखी नहीं मरेगी.’

पापा दूसरे दिन आफिस से छुट्टी ले कर जबलपुर चले गए. मैं धड़कते हृदय से उन की प्रतीक्षा कर रही थी. 2 दिन बाद लौट कर आए तो मुंह उतरा हुआ था. आते ही आफिस चले गए. पूरे दिन मां और मैं ने प्रतीक्षा की. पापा शाम को आए तो चुपचाप खाना खा कर अपने बेडरूम में चले गए. उन के पीछेपीछे मम्मी भी. मैं उन की बात सुनने के लिए बेडरूम के दरवाजे के ही पास रुक गई थी.

‘क्या हुआ? क्या उन्होंने मना कर दिया?’

‘नहीं…’  पापा कुछ थकेथके से बोले थे, ‘वर्माजी तो आज भी तैयार हैं, लेकिन लड़का नहीं मान रहा है, कहता है आई.ए.एस. बनने के बाद ही शादी करूंगा. हां, वर्माजी ने थोड़े दिनों की और मोहलत मांगी है, लड़के को समझा कर फोन करेंगे.

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