सुहागरात पर मसाज का मजा लिया क्या?

अमूमन यह माना जाता है कि सुहागरात पर जिस्मानी रिश्ता तो हर कीमत पर बनना ही चाहिए. दूल्हे के दिमाग में तो यह भर दिया जाता है कि पहली रात को ही अपनी दुलहन को अपने जिस्म से मसल देना. बहुत सी लड़कियां भी सुहागरात पर ऐसा ही कुछ चाहती हैं कि उन का दूल्हा बादाम का दूध पीने के बाद उस की पूरी कीमत वसूले.

लेकिन एक बड़ा सच यह भी होता है कि अपनी शादी की रस्मों की थकावट के बाद दूल्हा और दुलहन इस कदर परेशान हो चुके होते हैं कि वे सुहारागत पर सेक्स से ज्यादा मसाज की चाहत रखते हैं. लिहाजा, जब दूल्हा-दुलहन अपने कमरे में बंद होते हैं तो वे एकदूसरे को मसाज दे कर शुरू होने वाले रिश्ते को नई गरमाहट दे सकते हैं.

उत्तर प्रदेश के एक नौजवान ने यही तरीका अपनाया था. उस की बरात बहुत दूर किसी ठेठ देहात में गई थी. शादी हुई और दुलहन चल पड़ी अपने ससुराल. हालांकि वह नौजवान कार से अपनी दुलहन को घर ला रहा था, पर रास्तेभर उस ने देखा कि उस की नई नवेली दुल्हन अपने भारी लहंगे और नींद की खुमारी में हद से ज्यादा परेशान थी.

ससुराल में भी रस्मों के नाम पर दुलहन की चकरघिन्नी बना दी गई. रात हुई तो उसे सुहाग सेज के लिए सजा दिया गया, पर असल में तो यह उस के लिए बहुत बड़ी सजा थी.

रात को जब पति कमरे में आया तो दुल्हन की सांसें ऊपर-नीचे होने लगीं, पर वह नौजवान बड़ा समझदार निकला. उस ने चंद बातें करने के बाद अपनी दुलहन को एक नाइटी गिफ्ट की और खुद भी कपड़े बदल कर बिस्तर पर एक तरफ लेट गया.

जब दुलहन नाइटी पहन कर कमरे में आई तो उस का हाथ पकड़ कर अपने पास लिटा लिया. थोड़ी देर में ही उस नौजवान के हाथ अपनी पत्नी के बदन से ऐसे खेलने लगे जैसे कोई मसाज करता है. पत्नी को थोड़ा आराम मिला तो पति ने लाइट बंद कर के उस की अपने मजबूत हाथों से इस तरह अच्छी मसाज की कि पत्नी उस के आगोश में ही सो गई. पत्नी की सारी थकावट जो उतर गई थी.

इस के बाद तो पत्नी की नींद सुबह 5 बजे ही टूटी. पति बगल में सो रहा था. पत्नी ने उसे प्यार से चूम लिया. पति की नींद खुल गई. उस ने दोबारा अपनी पत्नी को गले से लगा लिया.

पत्नी ने कहा, ‘‘अब मेरी बारी. आप भी तो बहुत थके हुए लग रहे हैं.’’

रात को पति से जो मसाज करने का गुर सीखा था, पत्नी ने वही अपनाया. कुछ देर बाद ही पति की नींद काफूर हो गई. अब तो वे दोनों पूरी तरह खुल चुके थे और बड़े तरोताजा लग रहे थे. पति ने इसी बात का फायदा उठाते हुए अपनी पत्नी को चूम लिया. इस के बाद उन दोनों के बीच वही हुआ जिस की सुहागरात पर उन से उम्मीद की जा रही थी और हुआ भी बड़े अच्छे तरीके से.

अंग का आकार : क्या बड़ा है तो बेहतर है?

काफी समय पहले की बात है. करन जौहर अपने इंगलिश टेलीविजन शो ‘कौफी विद करन’ में अक्षय कुमार और उन की पत्नी ट्विंकल खन्ना से सवालजवाब कर रहे थे.

करन जौहर ने ट्विंकल खन्ना से पूछा कि अक्षय में ऐसा क्या है जो खान (शाहरुख, आमिर और सलमान वगैरह) में नहीं है?

इस पर ट्विंकल खन्ना ने तपाक से कहा, “कुछ इंच ज्यादा का फर्क है.”

यह सुन कर अक्षय शरमा से गए और करन अपने चिरपरिचित अंदाज में खीसें निपोरने लगे.

उस समय बाद में चाहे ट्विंकल खन्ना ने कहा कि वे अक्षय के पैरों (जूते) के साइज का जिक्र कर रही थीं, पर उन की इस डबल मीनिंग वाली बात ने दर्शकों को हैरान के साथसाथ हंसने पर भी मजबूर कर दिया था.

आम जिंदगी की बात करें तो जवानी फूटते ही लड़कों को यह बात ज्यादा हैरानपरेशान करती है कि क्या उन के अंग का साइज इतना है कि वे अपनी पत्नी या प्रेमिका को जिस्मानी तौर पर संतुष्ट कर पाएंगे?

कभीकभी तो अपने अंग के साइज को ले कर नौजवान इतने आतंकित हो जाते हैं कि सार्वजनिक शौचालयों में चिपके नीमहकीमों के अंग के फौलादी और लंबे होने के इश्तिहारों पर इतने मुग्ध हो जाते हैं कि बिना सोचेसमझे उन से अधकचरी जानकारी ले लेते हैं और अपना पैसा लुटवा देते हैं.

रमेश के साथ ऐसा ही हुआ. शादी से पहले उस के दोस्तों ने उसे एक ब्लू फिल्म दिखा दी. उस फिल्म के मर्द कलाकार का अंग बहुत बड़ा था और इस वजह से औरत कलाकार को खूब मजे आए थे.

चूंकि रमेश का अंग उतना बड़ा नहीं था तो वह तनाव में आ गया. सुहागरात पर उस के मन में डर बैठ गया कि वह अपनी पत्नी को बड़े अंग का सुख नहीं दे पाएगा और उस की शादी शुरुआत में ही नरक बन जाएगी.

इस का नतीजा यह हुआ कि रमेश सुहागरात पर पत्नी के नजदीक जाने से कतराने लगा. उस रात तो पत्नी ने ज्यादा कुछ नहीं सोचा, पर जब हर रात रमेश उस से दूर रहने लगा तो उस का माथा ठनका.

ज्यादा जोर देने पर रमेश ने इस समस्या की तरफ इशारा किया. पत्नी पढ़ीलिखी और बहुत समझदार थी तो उस ने रमेश का यह वहम दूर करने के लिए एक काबिल सैक्स डाक्टर का सहारा लिया.

जब डाक्टर को यह बात पता चली तो उस ने रमेश को समझाते हुए कहा, “रमेश, यह अकेले तुम्हारी ही समस्या नहीं है, बल्कि बहुत से लोग इस छोटी सी बात का बड़ा बना कर अपनी शादीशुदा जिंदगी को खराब कर लेते हैं.

“दुनिया में हर मर्द के अंग का साइज, उस का मोटापन अलगअलग हो सकता है. अमूमन यह सख्त होने पर औसतन 5 से 6 इंच का होता है. किसी का अंग इस से छोटा या बड़ा भी हो सकता है. वैसे, अगर किसी का सख्त अंग, अगर वह 2 इंच का भी हो तो, औरत को संतुष्ट करने के लिए काफी होता है.”

यह सुन कर रमेश के कान खड़े हुए और उस ने पूछा, “वह कैसे?”

इस पर डाक्टर ने बताया, “किसी औरत का उस के अंग का अगला डेढ़ से 2 इंच का हिस्सा ही संवेदनशील होता है, जहां मरदाना अंग की रगड़ से उसे मजा आता है. बात अंग के साइज की नहीं रगड़ की होती है कि वह आप ने कितनी बार किया है.”

“मतलब?” रमेश ने पूछा.

मतलब यह कि तुम अपनी पत्नी के साथ कितनी देर तक जिस्मानी रिश्ता बनाते हो, वह ज्यादा जरूरी है न कि तुम्हारा अंग कितना बड़ा है. इस में फोरप्ले और आफ्टरप्ले का रोल भी बड़ा अहम होता है.”

“फोरप्ले और आफ्टरप्ले क्या बला है?

रमेश के यह पूछने पर डाक्टर ने कहा, “जिस्मानी रिश्ता बनाने से पहले और बाद का प्यार. फोरप्ले में पत्नी के अंगों को चूमना, मसलना, उन्हें सहलाना, प्यार भरी बातें करना होता है, जिस से तुम्हारे अंग में पूरा तनाव आ जाएगा और पत्नी को जोश. बहुत सी औरतों को यह फोरप्ले इतना पसंद आता है कि वे इस में पति का भरपूर साथ देती हैं और रात को रंगीन बना देती हैं. इस से जिस्मानी रिश्ता भी काफी देर तक टिक पाता है.

“जब पतिपत्नी जिस्मानी रिश्ता बना कर संतुष्ट हो चुके होते हैं, तब बहुत से थकेहारे मर्द मुंह फेर कर सो जाते हैं और पत्नी बेचारी सिसकती रहती है. यहां पर आफ्टरप्ले काम आता है. इस में भी पतिपत्नी का एकदूसरे की बांहों में समाना, बालों को सहलाना, चूमना और नींद के आगोश में ले जाना शामिल होता है.

“जब यह सब पूरा होता है तो इस से पतिपत्नी का प्यार ज्यादा बढ़ जाता है और वे जिस्मानी रिश्ता बनाने का भरपूर मजा लेते हैं.”

“इस का मतलब मेरे अंग के साइज में कोई दिक्कत नहीं है?”

बिलकुल नही, बल्कि कभीकभार तो ज्यादा बड़े और मोटे साइज का अंग औरत को दर्द दे सकता है और जिस्मानी सुख को फीका कर सकता है.”

यह सुन कर रमेश को बड़ी राहत मिली. उस ने उसी रात अपनी सुहागरात मनाई और फोरप्ले और आफ्टरप्ले का भी ध्यान रखा. इस का बड़ा ही सुखद नतीजा रहा, पति और पत्नी दोनों के लिए.

शादी से पहले सैक्स, क्या रोमांस बढ़ाएगा दोगुना

आजकल लगभग सभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में पाठकों की समस्याओं वाले स्तंभ में युवकयुवतियों के पत्र छपते हैं, जिस में वे विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बना लेने के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान पूछते हैं.

विवाहपूर्व प्रेम करना या स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाना कोई अपराध नहीं है, मगर इस से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विचार अवश्य करना चाहिए. इन बातों पर युवकों से ज्यादा युवतियों को ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में उन्हें दिक्कतों का सामना न करना पड़े :

विवाहपूर्व शारीरिक संबंध भले ही कानूनन अपराध न हो, मगर आज भी ऐसे संबंधों को सामाजिक मान्यता नहीं है. विशेष कर यदि किसी लड़की के बारे में समाज को यह पता चल जाए कि उस के विवाहपूर्व शारीरिक संबंध हैं तो समाज उस के माथे पर बदचलन का टीका लगा देता है, साथ ही गलीमहल्ले के आवारा लड़के लड़की का न सिर्फ जीना दूभर कर देते हैं, बल्कि खुद भी उस से अवैध संबंध बनाने की कोशिश करते हैं.

युवती के मांबाप और भाइयों को इन संबंधों का पता चलने पर घोर मानसिक आघात लगता है. वृद्ध मातापिता कई बार इस की वजह से बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें दिल का दौरा तक पड़ जाता है. लड़की के भाइयों द्वारा प्रेमी के साथ मारपीट और यहां तक कि प्रेमी की जान लेने के समाचार लगभग रोज ही सुर्खियों में रहते हैं. युवकों को तो अकसर मांबाप समझा कर सुधरने की हिदायत देते हैं, मगर लड़की के प्रति घर वालों का व्यवहार कई बार बड़ा क्रूर हो जाता है. प्रेमी के साथ मारपीट के कारण लड़की के परिवार को पुलिस और कानूनी कार्यवाही तक का सामना करना पड़ता है.

अधिकतर युवतियों की समस्या रहती है कि उन्हें शादीशुदा व्यक्ति से प्यार हो गया है व उन्होंने उस से शारीरिक संबंध भी कायम कर लिए हैं. शादीशुदा व्यक्ति आश्वासन देता है कि वह जल्दी ही अपनी पहली पत्नी से तलाक ले कर युवती से शादी कर लेगा, मगर वर्षों बीत जाने पर भी वह व्यक्ति युवती से या तो शादी नहीं करता या धीरेधीरे किनारा कर लेता है. ऐसे किस्से आजकल आम हो गए हैं.

इस तरह के हादसों के बाद युवतियां डिप्रेशन में आ जाती हैं व नौकरी छोड़ देती हैं. इस से उबरने में उन्हें वर्षों लग जाते हैं. कई बार युवक पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी कर लेते हैं. मगर याद रखें, ऐसी शादी को कानूनी मान्यता नहीं है और बाद में बच्चों के अधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है जिस का फैसला युवती के पक्ष में आएगा, इस की संभावना बहुत कम रहती है.

शारीरिक संबंध होने पर गर्भधारण एक सामान्य बात है. विवाहित युवती द्वारा गर्भधारण करने पर दोनों परिवारों में खुशियां मनाई जाती हैं वहीं अविवाहित युवती द्वारा गर्भधारण उस की बदनामी के साथसाथ मौत का कारण भी बनता है.

अभी हाल ही में मेरी बेटी की एक परिचित के किराएदार के घर उन के भाई की लड़की गांव से 11वीं कक्षा में पढ़ने के लिए आई. अचानक एक शाम उस ने ट्रेन से कट कर अपनी जान दे दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि लड़की गर्भवती थी. उसे एक अन्य धर्म के लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने शारीरिक संबंध कायम कर लिए, मगर जब लड़के को लड़की के गर्भवती होने का पता चला तो वह युवती को छोड़ कर भाग गया. अब युवती ने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. ऐसे मामलों में अधिकतर युवतियां गर्भपात का रास्ता अपनाती हैं, लेकिन कोई भी योग्य चिकित्सक पहली बार गर्भधारण को गर्भपात कराने की सलाह नहीं देगा.

अधिकतर अविवाहित युवतियां गर्भपात चोरीछिपे किसी घटिया अस्पताल या क्लिनिक में नौसिखिया चिकित्सकों से करवाती हैं, जिस में गर्भपात के बाद संक्रमण और कई अन्य समस्याओं की आशंका बनी रहती है. दोबारा गर्भधारण में भी कठिनाई हो सकती है. अनाड़ी चिकित्सक द्वारा गर्भपात करने से जान तक जाने का खतरा रहता है.

युवती का विवाह यदि प्रेमी से हो जाता है तब तो विवाहोपरांत जीवन ठीकठाक चलता है, मगर किसी और से शादी होने पर यदि भविष्य में पति को किसी तरह से पत्नी के विवाहपूर्व संबंधों की जानकारी हो गई तो वैवाहिक जीवन न सिर्फ तबाह हो सकता है, बल्कि तलाक तक की नौबत आ सकती है.

विवाहपूर्व शारीरिक संबंधों में मुख्य खतरा यौन रोगों का रहता है. कई बार एड्स जैसा जानलेवा रोग भी हो जाता है. खास बात यह है कि इस रोग के लक्षण काफी समय तक दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन बाद में यह रोग उन के पति और होने वाले बच्चे को हो जाता है. प्रेमी और उस के दोस्तों द्वारा ब्लैकमेल की घटनाएं भी अकसर होती रहती हैं. उन के द्वारा शारीरिक यौन शोषण व अन्य तरह के शोषण की आशंकाएं हमेशा बनी रहती हैं.

युवती का विवाह यदि अन्यत्र हो जाता है और वैवाहिक जीवन ठीकठाक चलता रहता है, घर में बच्चे भी आ जाते हैं, लेकिन यदि भविष्य में बच्चों को अपनी मां के किसी दूसरे पुरुष से संबंधों के बारे में पता चले तो उन्हें गंभीर मानसिक आघात पहुंचेगा, खासकर तब जब बच्चे टीनएज में हों. मां के प्रति उन के मन में घृणा व उन के बौद्धिक विकास पर भी इस का असर पड़ता है.

इन संबंधों के कारण कई बार पारिवारिक, सामाजिक व धार्मिक विवाद व लड़ाईझगड़े भी हो जाते हैं, जिन में युवकयुवती के अलावा कई और लोगों की जानें जाती हैं. इस के बावजूद यदि युवकयुवती शारीरिक संबंध बना लेने का निर्णय कर ही लेते हैं, तो गर्भनिरोधक विशेषकर कंडोम का प्रयोग अवश्य करें, क्योंकि इस से गर्भधारण व यौन संक्रमण का खतरा काफी हद तक खत्म हो जाता है.

अधूरी है सैक्स नौलेज, तो ले पूरी जानकारी

प्रेमिका को खुश रखने की युवा हर संभव कोशिश करते हैं, लेकिन जब सेक्स संबंधी समस्या हो तो उसे भी दूर करना होगा. युवा प्रेमियों को लगता है कि सेक्स का अधूरा ज्ञान उन्हें मंझधार में ले जा सकता है. सेक्स संबंधों के दौरान सेक्स क्षमता का बहुत महत्त्व है. सहवास करने की क्षमता ही व्यक्ति को पूर्ण पुरुष के रूप में स्थापित करती है.

कई ऐसे कारण हैं जिन पर हम खुल कर चर्चा नहीं करते न ही उन्हें दूर करने का उपाय खोजते हैं. नतीजतन, सेक्स लाइफ का मजा काफूर हो जाता है. ऐसी  कई समस्याएं हैं जिन्हें दूर कर हम वैवाहिक जिंदगी जी सकते हैं.

1. झिझक 

सहवास की पूर्ण जानकारी न होना, सेक्स के बारे में झिझक, संबंध बनाने से पहले ही घबराना, यौन दुर्बलता से सेक्स इच्छा की कमी, मानसिकरूप से खुद को सेक्स के प्रति तैयार न कर पाना, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, मोबाइल सेक्स आदि समस्याओं से युवावर्ग पीडित है. सेक्स में मंझधार में न रहें, समस्याओं को समझें व इन्हें दूर करें और सेक्स का भरपूर आनंद उठाएं.

2. सैक्स इच्छा में मानसिक कारणों को दूर करें

आज की भागदौड़भरी जिंदगी में धनपदयश पाने की उलझन में फंसे युवा एक खास मुकाम तक पहुंचने के चक्कर में सहवास के बारे में अंत में सोचते हैं. वे इस तनाव से ऐसे ग्रस्त हो गए हैं कि उन का वैवाहिक जीवन इस से प्रभावित हुआ है.

3. सैक्स में डरें नहीं

डर यौनसुख को सब से ज्यादा प्रभावित करता है. इस की वजह से शीघ्र स्खलित होना, कोई देख लेगा, कमरे के बाहर आवाज सुनाई देने का डर, पार्टनर द्वारा उपहास, गर्भ ठहरने का खतरा आदि युवाओं की यौनक्षमता पर प्रश्नचिह्न लगा देते हैं. युवावस्था में यौन इच्छा चरम पर होती है इसलिए सेक्स संबंध जल्दीजल्दी बना लेते हैं, लेकिन धीरेधीरे समय में ठहराव कम हो जाता है, क्योंकि विवाह से पहले प्रेमिका से संबंध बनाना उसे अपराधबोध लगता है और वह शीघ्र स्खलित हो जाता है. इन सभी बातों को नजरअंदाज करते हुए सेक्स संबंध बनाएं.

4. मोबाइल सैक्स

इंटरनैट के परिवेश में आज का युवा मोबाइल पर सैक्सी फिल्में देखता है और खुद को भी सेक्स में लिप्त कर लेता है. यही कारण है कि वह वास्तविक जीवन में सेक्स का भरपूर आनंद नहीं उठा पाता.

5. स्वयं पर विश्वास करें

कुछ युवा स्वस्थ होते हुए भी सेक्स के प्रति आत्मविश्वासी नहीं होते. सहवास के दौरान वे धैर्य खो बैठते हैं. ऐसे युवाओं में कोई कुंठा छिपी होती है, जो उन्हें पूर्ण सेक्स करने से रोकती है. खुद पर विश्वास रखें, अन्यथा किसी अच्छे सैक्सोलौजिस्ट एवं मनोचिकित्सक को दिखाएं.

6. यौनांग पर चोट

किसी ऐक्सिडैंट या अत्यंत तेजी से शारीरिक संबंध बनाते हुए या कष्टप्रद आसनों से यौनांग को चोट पहुंचती है. इस से युवती का सेक्स से मन हटने लगता है. अत: यौनांग पर चोट न पहुंचे, ऐसा प्रयास करें.

7. शारीरिक कारण

आज युवाओं का सेक्स में सफल न हो पाना दवाओं का दुष्प्रभाव है. बीटा रिसेप्टार्स, प्रोपेनोलोल, मिथाइल डोपा, सिमेटिडिन आदि दवाएं सेक्स इच्छा में कमी लाती हैं. खुद को बीमारी से दूर रखने का प्रयास करें. यौनांग में कसावट होने (फिमोसिस) के फलस्वरूप दर्द, जलन होना, तनाव व स्खलन के कारण सहवास में कमी आ जाती है. अत: शल्यक्रिया द्वारा इसे दूर किया जा सकता है.

8. गुप्तांग में तनाव न आना

सहवास के दौरान तनाव न आना और यदि  तनाव आता भी है तो कम समय के लिए आता है. युवावस्था में ऐसा होने के कई कारण हैं, जैसे मातापिता का व्यवहार व मानसिक तनाव सेक्स क्रिया में असफलता की मुख्य वजह है.

9. सीमेन की मात्रा कम होना

कई बार स्खलन का समय सामान्य होता है, लेकिन सीमेन काफी कम मात्रा में निकलने से सेक्स के दौरान पूर्णआनंद नहीं आता. युवा यदि इस समस्या से पीडि़त हों तो चरमोत्कर्ष तक नहीं पहुंच पाते. ऐसे में सैक्सोलौजिस्ट से मिलें. मानसिक रूप से खुद को तैयार कर के सहवास करें, समस्या अवश्य दूर होगी.

10. इजाक्युलेशन

जब युवा अपने पार्टनर को संतुष्ट किए बिना ही स्खलित हो जाते हैं तो इसे इजाक्यूलेशन कहा जाता है. सैक्सुअल संबंधों के दौरान ऐसा होने से वैवाहिक जीवन में कड़वाहट आती है.

11. प्रीमैच्योर इजाक्युलेशन

युवाओं में सेक्स में और्गेज्म की अनुभूति इजाक्युलेशन से पूरी होती है. सहवास शुरू करने के 30 सैकंड से 1 मिनट पहले स्खलित होने पर उसे प्रीमैच्योर इजाक्युलेशन कहते हैं. गुप्तांग की कठोरता खत्म हो जाती है और इस वजह से पार्टनर की इच्छा पूरी नहीं हो पाती है. यह वास्तव में समस्या नहीं बल्कि चिंता, संतुष्ट न कर पाने का डर, मानसिक अशांति, मानसिक तनाव, डायबिटीज या यूरोलौजिकल डिसऔर्डर के कारण होता है. इस के लिए ऐंटीडिप्रैंसेट दवाओं का सेवन डाक्टर की सलाह ले कर करें.

12. ड्राइ इजाक्युलेशन

इस में पुरुषों की ब्लैडर मसल्स ठीक से काम नहीं करतीं, जिस कारण सीमेन बाहर नहीं निकल पाता. इस से फर्टिलिटी प्रभावित होती है, लेकिन आर्गेज्म या सेक्स संतुष्टि पर कोई असर नहीं पड़ता.

13. पौष्टिक आहार व पर्याप्त नींद लें

संतुलित व पर्याप्त पौष्टिक भोजन के अभाव में शरीर परिपुष्ट नहीं हो पाता. ऐसे में सीमेन का पतलापन और इजाक्युलेशन जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है. पर्याप्त नींद और भोजन से शरीर में सेक्स हारमोन का स्तर काफी बढ़ जाता है, जो सफल सहवास के लिए जरूरी है.

14. तनाव से दूर रहें

तनाव के दौरान कभी भी सेक्स संबंध न बनाएं. तनाव सेक्स प्रक्रिया को पूरी तरह प्रभावित करता है और इंसान को कई बीमारियों से ग्रसित कर देता है. मुंबई की मशहूर मनोचिकित्सक डा. यदुवीर पावसकर का मानना है कि युवाओं के एक बहुत बडे़ वर्ग, जिसे तनाव ने अपने घेरे में ले लिया है, को सेक्स से अरुचि होने लगी है. इस का मुख्य कारण भागदौड़ भरी दिनचर्या है.

15. फोरप्ले को समझें

शारीरिक संबंध बनाने से पहले पूर्ण शारीरिक स्पर्श, मुखस्पर्श, नख, दंत क्रीड़ा करने के बाद ही सहवास शुरू करें. सेक्स प्रक्रिया का पहला चरण फोरप्ले है. बिना फोरप्ले युवकों को उतनी समस्या नहीं आती लेकिन ज्यादा नोचनेखसोटने से युवती को पीड़ा हो सकती है. उस का सहवास से मन हट सकता है. इसलिए शारीरिक संबंध बनाते समय पार्टनर की भावनाओं की भी कद्र करें और अगर उसे इस दौरान दर्द हो रहा है तो अपने ऐक्शंस पर थोड़ा कंट्रोल करें.

16. सैक्स ऐंजौय करने के कुछ उपाय

–       पूरी नींद लें.

–       पौष्टिक आहार लें.

–       नियमित व्यायाम करें.

–       शराब या तंबाकू का सेवन न करें.

–       नियमित रूप से हैल्थ चैकअप करवाएं.

–       साल में 1-2 बार किसी हिल स्टेशन पर जाएं.

–       शारीरिक संबंध तभी बनाएं जब पार्टनर भी तैयार हो.

हयात : जज्बातों का समंदर

‘‘कल जल्दी आ जाना.’’

‘‘क्यों?’’ हयात ने पूछा.

‘‘कल से रेहान सर आने वाले हैं और हमारे मिर्जा सर रिटायर हो रहे हैं.’’

‘‘कोशिश करूंगी,’’ हयात ने जवाब तो दिया लेकिन उसे खुद पता नहीं था कि वह वक्त पर आ पाएगी या नहीं.

दूसरे दिन रेहान सर ठीक 10 बजे औफिस में पहुंचे. हयात अपनी सीट पर नहीं थी. रेहान सर के आते ही सब लोगों ने खड़े हो कर गुडमौर्निंग कहा. रेहान सर की नजरों से एक खाली चेयर छूटी नहीं.

‘‘यहां कौन बैठता है?’’

‘‘मिस हयात, आप की असिस्टैंट, सर,’’ क्षितिज ने जवाब दिया.

‘‘ओके, वह जैसे ही आए उन्हें अंदर भेजो.’’

रेहान लैपटौप खोल कर बैठा था. कंपनी के रिकौर्ड्स चैक कर रहा था. ठीक 10 बज कर 30 मिनट पर हयात ने रेहान के केबिन का दरवाजा खटखटाया.

‘‘में आय कम इन, सर?’’

‘‘यस प्लीज, आप की तारीफ?’’

‘‘जी, मैं हयात हूं. आप की असिस्टैंट?’’

‘‘मुझे उम्मीद है कल सुबह मैं जब आऊंगा तो आप की चेयर खाली नहीं होगी. आप जा सकती हैं.’’

हयात नजरें झुका कर केबिन से बाहर निकल आई. रेहान सर के सामने ज्यादा बात करना ठीक नहीं होगा, यह बात हयात को समझे में आ गई थी. थोड़ी ही देर में रेहान ने औफिस के स्टाफ की एक मीटिंग ली.

‘‘गुडआफ्टरनून टू औल औफ यू. मुझे आप सब से बस इतना कहना है कि कल से कंपनी के सभी कर्मचारी वक्त पर आएंगे और वक्त पर जाएंगे. औफिस में अपनी पर्सनल लाइफ को छोड़ कर कंपनी के काम को प्रायोरिटी देंगे. उम्मीद है कि आप में से कोई मुझे शिकायत का मौका नहीं देगा. बस, इतना ही, अब आप लोग जा सकते हैं.’’

‘कितना खड़ूस है. एकदो लाइंस ज्यादा बोलता तो क्या आसमान नीचे आ जाता या धरती फट जाती,’ हयात मन ही मन रेहान को कोस रही थी.

नए बौस का मूड देख कर हर कोई कंपनी में अपने काम के प्रति सजग हो गया. दूसरे दिन फिर से रेहान औफिस में ठीक 10 बजे दाखिल हुआ और आज फिर हयात की चेयर खाली थी. रेहान ने फिर से क्षितिज से मिस हयात को आते ही केबिन में भेजने को कहा. ठीक 10 बज कर 30 मिनट पर हयात ने रेहान के केबिन का दरवाजा खटखटाया.

‘‘मे आय कम इन, सर?’’

‘‘जी, जरूर, मुझे आप का ही इंतजार था. अभी हमें एक होटल में मीटिंग में जाना है. क्या आप तैयार हैं?’’

‘‘जी हां, कब निकलना है?’’

‘‘उस मीटिंग में आप को क्या करना है, यह पता है आप को?’’

‘‘जी, आप मुझे कल बता देते तो मैं तैयारी कर के आती.’’

‘‘मैं आप को अभी बताने वाला था. लेकिन शायद वक्त पर आना आप की आदत नहीं. आप की सैलरी कितनी है?’’

‘‘जी, 30 हजार.’’

‘‘अगर आप के पास कंपनी के लिए टाइम नहीं है तो आप घर जा सकती हैं और आप के लिए यह आखिरी चेतावनी है. ये फाइल्स उठाएं और अब हम निकल रहे हैं.’’

हयात रेहान के साथ होटल में पहुंच गई. आज एक हैदराबादी कंपनी के साथ मीटिंग थी. रेहान और हयात दोनों ही टाइम पर पहुंच गए. लेकिन सामने वाली पार्टी ने बुके और वो आज आएंगे नहीं, यह मैसेज अपने कर्मचारी के साथ भेज दिया. उस कर्मचारी के जाते ही रेहान ने वो फूल उठा कर होटल के गार्डन में गुस्से में फेंक दिए. ‘‘आज का तो दिन ही खराब है,’’ यह बात कहतेकहते वह अपनी गाड़ी में जा कर बैठ गया.

रेहान का गुस्सा देख कर हयात थोड़ी परेशान हो गई और सहमीसहमी सी गाड़ी में बैठ गई. औफिस में पहुंचते ही रेहान ने हैदराबादी कंपनी के साथ पहले किए हुए कौंट्रैक्ट के डिटेल्स मांगे. इस कंपनी के साथ 3 साल पहले एक कौंट्रैक्ट हुआ था लेकिन तब हयात यहां काम नहीं करती थी, इसलिए उसे वह फाइल मिल नहीं रही थी.

‘‘मिस हयात, क्या आप शाम को फाइल देंगी मुझे’’ रेहान केबिन से बाहर आ कर हयात पर चिल्ला रहा था.

‘‘जी…सर, वह फाइल मिल नहीं रही.’’

‘‘जब तक मुझे फाइल नहीं मिलेगी, आप घर नहीं जाएंगी.’’

यह बात सुन कर तो हयात का चेहरा ही उतर गया. वैसे भी औफिस में सब के सामने डांटने से हयात को बहुत ही इनसल्टिंग फील हो रहा था. शाम के 6 बज चुके थे. फाइल मिली नहीं थी.

‘‘सर, फाइल मिल नहीं रही है.’’

रेहान कुछ बोल नहीं रहा था. वह अपने कंप्यूटर पर काम कर रहा था. रेहान की खामोशी हयात को बेचैन कर रही थी. रेहान का रवैया देख कर वह केबिन से निकल आईर् और अपना पर्स उठा कर घर निकल गई. दूसरे दिन हयात रेहान से पहले औफिस में हाजिर थी. हयात को देखते ही रेहान ने कहा, ‘‘मिस हयात, आज आप गोडाउन में जाएं. हमें आज माल भेजना है. आई होप, आप यह काम तो ठीक से कर ही लेंगी.’’

हयात बिना कुछ बोले ही नजर झुका कर चली गई. 3 बजे तक कंटेनर आए ही नहीं. 3 बजने के बाद कंटेनर में कंपनी का माल भरना शुरू हुआ. रात के 8 बजे तक काम चलता रहा. हयात की बस छूट गई. रेहान और उस के पापा कंपनी से बाहर निकल ही रहे थे कि कंटेनर को देख कर वे गोडाउन की तरफ मुड़ गए. हयात एक टेबल पर बैठी थी और रजिस्टर में कुछ लिख रही थी.

तभी मिर्जा साहब के साथ रेहान गोडाउन में आया. हयात को वहां देख कर रेहान को, कुछ गलत हो गया, इस बात का एहसास हुआ.

‘‘हयात, तुम अभी तक घर नहीं गईं,’’ मिर्जा सर ने पूछा.

‘‘नहीं सर, बस अब जा ही रही थी.’’

‘‘चलो, जाने दो, कोई बात नहीं. आओ, हम तुम्हें छोड़ देते हैं.’’

अपने पापा का हयात के प्रति इतना प्यारभरा रवैया देख कर रेहान हैरान हो रहा था, लेकिन वह कुछ बोल भी नहीं रहा था. रेहान का मुंह देख कर हयात ने ‘नहीं सर, मैं चली जाऊंगी’ कह कर उन्हें टाल दिया. हयात बसस्टौप पर खड़ी थी. मिर्जा सर ने फिर से हयात को गाड़ी में बैठने की गुजारिश की. इस बार हयात न नहीं कह सकी.

‘‘हम तुम्हें कहां छोड़ें?’’

‘‘जी, मुझे सिटी हौस्पिटल जाना है.’’

‘‘सिटी हौस्पिटल क्यों? सबकुछ ठीक तो है?’’

‘‘मेरे पापा को कैंसर है, उन्हें वहां ऐडमिट किया है.’’

‘‘फिर तो तुम्हारे पापा से हम भी एक मुलाकात करना चाहेंगे.’’

कुछ ही देर में हयात अपने मिर्जा सर और रेहान के साथ अपने पापा के कमरे में आई.

‘‘आओआओ, मेरी नन्ही सी जान. कितना काम करती हो और आज इतनी देर क्यों कर दी आने में. तुम्हारे उस नए बौस ने आज फिर से तुम्हें परेशान किया क्या?’’

हयात के पापा की यह बात सुन कर तो हयात और रेहान दोनों के ही चेहरे के रंग उड़ गए.

‘‘बस अब्बू, कितना बोलते हैं आप. आज आप से मिलने मेरे कंपनी के बौस आए हैं. ये हैं मिर्जा सर और ये इन के बेटे रेहान सर.’’

‘‘आप से मिल कर बहुत खुशी हुई सुलतान मियां. अब कैसी तबीयत है आप की?’’ मिर्जा सर ने कहा.

‘‘हयात की वजह से मेरी सांस चल रही है. बस, अब जल्दी से किसी अच्छे खानदान में इस का रिश्ता हो जाए तो मैं गहरी नींद सो सकूं.’’

‘‘सुलतान मियां, परेशान न हों. हयात को अपनी बहू बनाना किसी भी खानदान के लिए गर्व की ही बात होगी. अच्छा, अब हम चलते हैं.’’

इस रात के बाद रेहान का हयात के प्रति रवैया थोड़ा सा दोस्ताना हो गया. हयात भी अब रेहान के बारे में सोचती रहती थी. रेहान को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए सजनेसंवरने लगी थी.

‘‘क्या बात है? आज बहुत खूबसूरत लग रही हो,’’ रेहान का छोटा भाई आमिर हयात के सामने आ कर बैठ गया. हयात ने एकबार उस की तरफ देखा और फिर से अपनी फाइल को पढ़ने लगी. आमिर उस की टेबल के सामने वाली चेयर पर बैठ कर उसे घूर रहा था. आखिरकार हयात ने परेशान हो कर फाइल बंद कर आमिर के उठने का इंतजार करने लगी. तभी रेहान आ गया. हयात को आमिर के सामने इस तरह से देख कर रेहान परेशान तो हुआ लेकिन उस ने देख कर भी अनदेखा कर दिया.

दूसरे दिन रेहान ने अपने केबिन में एक मीटिंग रखी थी. उस मीटिंग में आमिर को रेहान के साथ बैठना था. लेकिन वह जानबूझ कर हयात के बाजू में आ कर बैठ गया. हयात को परेशान करने का कोई मौका वह छोड़ नहीं रहा था. लेकिन हयात हर बार उसे देख कर अनदेखा कर देती थी. एक दिन तो हद ही हो गई. आमिर औफिस में ही हयात के रास्ते में खड़ा हो गया.

‘‘रेहान तुम्हें महीने के 30 हजार रुपए देता है. मैं एक रात के दूंगा. अब तो मान जाओ.’’

यह बात सुनते ही हयात ने आमिर के गाल पर एक जोरदार चांटा जड़ दिया. औफिस में सब के सामने हयात इस तरह रिऐक्ट करेगी, इस बात का आमिर को बिलकुल भी अंदाजा नहीं था. हयात ने तमाचा तो लगा दिया लेकिन अब उस की नौकरी चली जाएगी, यह उसे पता था. सबकुछ रेहान के सामने ही हुआ.

बस, आमिर ने ऐसा क्या कर दिया कि हयात ने उसे चाटा मार दिया, यह बात कोई समझ नहीं पाया. हयात और आमिर दोनों ही औफिस से निकल गए.

दूसरे दिन सुबह आमिर ने आते ही रेहान के केबिन में अपना रुख किया.

‘‘भाईजान, मैं इस लड़की को एक दिन भी यहां बरदाश्त नहीं करूंगा. आप अभी और इसी वक्त उसे यहां से निकाल दें.’’

‘‘मुझे क्या करना है, मुझे पता है. अगर गलती तुम्हारी हुई तो मैं तुम्हें भी इस कंपनी से बाहर कर दूंगा. यह बात याद रहे.’’

‘‘उस लड़की के लिए आप मुझे निकालेंगे?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘यह तो हद ही हो गई. ठीक है, फिर मैं ही चला जाता हूं.’’

रेहान कब उसे अंदर बुलाए हयात इस का इंतजार कर रही थी. आखिरकार, रेहान ने उसे बुला ही लिया. रेहान अपने कंप्यूटर पर कुछ देख रहा था. हयात को उस के सामने खड़े हुए 2 मिनट हुए. आखिरकार हयात ने ही बात करना शुरू कर दिया.

‘‘मैं जानती हूं आप ने मुझे यहां बाहर करने के लिए बुलाया है. वैसे भी आप तो मेरे काम से कभी खुश थे ही नहीं. आप का काम तो आसान हो गया. लेकिन मेरी कोई गलती नहीं है. फिर भी आप मुझे निकाल रहे हैं, यह बात याद रहे.’’

रेहान अचानक से खड़ा हो कर उस के करीब आ गया, ‘‘और कुछ?’’

‘‘जी नहीं.’’

‘‘वैसे, आमिर ने किया क्या था?’’

‘‘कह रहे थे एक रात के 30 हजार रुपए देंगे.’’

आमिर की यह सोच जान कर रेहान खुद सदमे में आ गया.

‘‘तो मैं जाऊं?’’

‘‘जी नहीं, आप ने जो किया, बिलकुल ठीक किया. जब भी कोई लड़का अपनी मर्यादा भूल जाए, लड़की की न को सम?ा न पाए, फिर चाहे वह बौस हो, पिता हो, बौयफ्रैंड हो उस के साथ ऐसा ही होना चाहिए. लड़कियों को छेड़खानी के खिलाफ जरूर आवाज उठानी चाहिए. मिस हयात, आप को नौकरी से नहीं निकाला जा रहा है.’’

‘‘शुक्रिया.’’

अब हयात की जान में जान आ गई. रेहान उस के करीब आ रहा था और हयात पीछेपीछे जा रही थी. हयात कुछ समझ नहीं पा रही थी.

रेहान ने हयात का हाथ अपने हाथ में ले लिया और आंखों में आंखें डालते हुए बोला, ‘‘मिस हयात, आप बहुत सुंदर हैं. जिम्मेदारियां भी अच्छी तरह से संभालती हैं और एक सशक्त महिला हैं. इसलिए मैं तुम्हें अपनी जीवनसाथी बनाना चाहता हूं.’’

हयात कुछ समझ नहीं पा रही थी. क्या बोले, क्या न बोले. बस, शरमा कर हामी भर दी.

कटी पतंग: बुशरा मलिक की डायरी पढ़कर इंस्पेक्टर क्यों हैरान हुआ

बिस्तर पर एक औरत की लाश पड़ी थी. इंस्पैक्टर ने कमरे का जायजा लेना शुरू किया. कमरे में एक छोटी सी खिड़की थी, जिस पर एक मोटा परदा डला था.

इंस्पैक्टर लाश के नजदीक पहुंच कर ठिठक गई. बैड के पास एक डायरी गिरी हुई थी. उस ने कौंस्टेबल को इशारा कर डायरी अपने पास मंगवाई और पन्ने पलटने लगी. उन पन्नों में लिखी कहानी इंस्पैक्टर की आंखों के सामने चलचित्र की तरह चलनी लगी…

“1जनवरी, 2007

“थैंक यू अब्बू… इस सुंदर डायरी के लिए.

“बुशरा मलिक,

मकान नंबर 10, करीमगंज.”

“3 जनवरी, 2007

“ठीक तो कहता है फैजल कि मैं खूबसूरत हूं, मुझे फिल्मों में होना चाहिए. आज उस की बात सुन कर पहली बार इतने गौर से खुद को आईने में निहारा.

“सुन डायरी, तू तो मेरी दोस्त है ना…इसलिए तुझे आज अपने दिल की बात बताती हूं. फैजल मुझे बेइंतहा मोहब्बत करता है लेकिन बताता नहीं. सब जानती हूं मैं. मुझे जलाने के लिए रूखसाना से बातें करता रहता है जैसेकि मैं सच में जलूंगी…

“मुझे तो मुंबई जाना है. मौका देख कर अब्बू से बात करूंगी लेकिन तब तक यह बात अपने दिल में छिपाए रखना, समझ गई ना…

“चल अब सोती हूं.”

“5 जनवरी,2007

“अब्बू ने आज मुझे बहुत डांटा. बस, इतना ही तो कहा था कि मुझे औडिशन देना है मौडलिंग के लिए. अब्बू कहते हैं कि यह काम शरीफ घरानों की लड़कियों के लिए नहीं है. अब्बू यह क्या बात हुई भला, आप इतने पढेलिखे हैं फिर भी ऐसी बातें करते हैं? आप तो बिलकुल दकियानूसी नहीं थे.

“मैं एक दिन मुंबई जरूर जाऊंगी और देखना, अब्बू आप को अपनी बुशरा पर नाज होगा.”

“10जनवरी, 2007

“आज जन्मदिन है मेरा. अब्बू ने मुझे सोने के झुमके दिए हैं तोहफे में. बहुत प्यार करते हैं मुझे अब्बू. फैजल ने मेकअप बौक्स दिया है. मगर छिपा लिया मैं ने. कोई देख लेता तो तुफान आ जाता.”

“14फरवरी, 2007

“तूझे पता है कि आज फैजल ने मुझे आई लव यू कहा. मुझे बहुत शर्म आई. 4 महीने हो गए हैं फैजल को हमारे शहर में नौकरी करते. बता रहा था कि मुंबई में घर है उस का. मुझ से कहता है कि मुझे हीरोइन बनाएगा, चाहे कुछ भी करना पड़े.

“कह रहा था कि तुम्हारे लिए खुद को भी गिरवी रख दूंगा लेकिन तुम्हारा ख्वाब जरूर पूरा करूंगा…पागल है सच में. ऐसे भी कोई इश्क करता है क्या?”

“20 मार्च, 2007

“आज फिर अम्मी से बात करने की कोशिश की कि अब्बू को समझाए. लेकिन मेरी बात तो हिमाकत लगती है सब को. कह रही थीं कि 19 साल की हो गई हो अब निकाह कर के रूखसत कर देंगी घर से.

“मेरी ख्वाहिश, मेरे अरमानों की फिक्र बस फैजल को है. बेइंतहा मोहब्बत करता है मुझ से. मेरी आंखों में जानें क्या ढूंढ़ते रहता है…बावला है पूरा.

“देख, तुझे बता रही हूं अपने दिल का हाल, लेकिन तू किसी को न कहना.

अब तू भी सो जा. कल फिर तुझ पर मेरी कलम मेरा हाल लिखेगी…”

“5 अप्रैल, 2007

“कल फैजल मुंबई जा रहा है और मैं भी उस के साथ ही चली जाऊंगी. जब सपनों को पूरा कर लूंगी तभी लौट कर आऊंगी. थोड़े से गहने रख लिए हैं साथ में. जरूरत पड़ गई तो बेचारा फैजल कितना करेगा?

“क्या कहा, यह गलत है? अरे, यह गहने अम्मी के नहीं हैं. मेरे निकाह के लिए ही तो बनवाए हैं अम्मी ने. तो इन पर मेरा हक हुआ न…और फिर एक बार हीरोइन बन गई तो ऐसे कितने ही गहने खरीदवा दूंगी अम्मी को…हाय, आज की रात न जाने कैसे बीतेगी.

“तू बहुत बातें करती है डायरी. मुझे भी उलझा देती है नामुराद. चल अब सोती हूं, कल बहुत तैयारी करनी है.”

“10 जनवरी, 2008

“बहुत दिनों बाद तुझे उठा रही हूं डायरी. क्या करती, हिम्मत न थी इन नापाक हाथों से तुझे हाथ लगाने की.

अब्बू बहुत मोहब्बत से मेरे लिए लाए थे तुझे. “आज तुझे सीने से लगाया तो लगा कि अब्बू करीब हैं. मैं मुंबई आ कर अपने अब्बू की बुशरा न रही. अब रोज नए किरदार में खुद को ढालती हूं. रोज बिछती हूं, रोज सिकुड़ती हूं. मरना चाहती हूं लेकिन एक बार अपने अम्मीअब्बू को देख लूं बस.

“किसी तरह मुझे मौका मिल जाए यहां से निकलने का. हीरोइन बनने आई थी लेकिन मालूम न था यह ख्वाहिश मुझे यों तबाह कर देगी. सीने में दर्द उठ रहा है लेकिन तुझ से भी न कहूंगी. यह तो मुझे ही सहना होगा.”

“6 फरवरी, 2008

“जल्दी वापस चली जाऊंगी अपने शहर. एक बार जीभर देख लूं सब को. बस एक बार. फिर तो मर जाऊंगी. 10 बज रहे हैं और मैं यहां अकेली… थकी हुई. आज अगर घर में होती तो अम्मी की गोद में सिर रख कर लेटी होती. अब्बू की लाई कुल्फी खा रही होती लेकिन अब…”

“14 मार्च, 2008

“आज लौट आई हूं वापस अपने शहर लेकिन घर नहीं जा सकती. क्या मुंह दिखाऊंगी किसी को? कैसे कर सकूंगी अब्बू का सामना? कैसे कहूंगी कि आप की बुशरा सब खो चुकी है उस शहर में…

“कैसे कहूं कि फैजल ने नोच दी आप के घर की आबरू. वह बेच गया मुझे मंडी में. बन गई मैं धंधेवाली. नीलाम कर दी बुशरा ने आप की इज्जत. अब तो बस मरने का इंतजार है. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“20 जून, 2008

“अखबार में आज अपनी गुमशुदगी की खबर पढी. 1 साल से अधिक हो गए मुझे घर छोड़े लेकिन वे आज भी मुझे याद करते हैं.

“मन करता है जा कर अम्मी के गले लग जाऊं. अब्बू के कदमों में बैठ कर रो लूं. लेकिन नहीं कर सकती ऐसा. मेरे गुनाह इतने छोटे नहीं. मैं इन्हीं अंधेरे में सही हूं. कम से कम मुझे ढूंढ़ तो ना पाएंगे

“मैं अपनी नापाक शरीर ले कर आप के पास नहीं आ सकती, अब्बू. अकेली बैठी हूं इस छोटे से कमरे में. दम घुटता है मेरा यहां. क्या बनना चाहा और क्या बन गई मैं…

“जिस्म से रोज कपड़े उतरते हैं, रोज आदमी बदलते हैं लेकिन मैं तो वही रहती हूं बेशर्म की पुतली बुशरा. कीड़े रेंगते हैं मेरे जिस्म पर. घिनौनी हो गई हूं मैं. क्यों जिंदा हूं? काश कि मौत आ जाए मुझे…”

“20 जुलाई, 2008

“जी न माना तो चली गई आज चुपचाप अब्बू की दुकान पर. बस दूर से देख आई उन्हें. उन की आंखों में दर्द था…

“कितना नाज था उन्हें मुझ पर लेकिन मैं ने… मैं उन से नजरें नहीं मिला सकती.

“काश कि कुदरत मेरे गुनाहों को माफ कर दे, मेरे अब्बू के चेहरे पर हंसी खिला दे. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“8 सितंबर, 2008

“दुल्हा बना कितना सुंदर लग रहा था मेरा भाई. मन कर रहा था झूम कर नाचूं…लेकिन…बस दूर से ही देख सकी मैं.

“आज अम्मी ने हरा लिबास पहना था. वैसा ही लिबास जैसा मुझे पसंद है. पर वे बुझी हुई लग रही थीं…वे मुझे भूली नहीं.

“बस एक बार भाभी का चेहरा देख पाती लेकिन यह नापाक साया उन पर नहीं डाल सकती. मैं रो रही हूं अब्बू. मुझे ले जाओ यहां से.

“अम्मी मुझे माफ कर दो. मुझे पनाह दे दो अम्मी…

“यह मैं क्या कह रही हूं? नहीं… नहीं… मुझे मरना होगा. अपनी गंदगी का साया अपने घर पर न डालूंगी. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“6 अक्तूबर, 2008

“बुखार से बदन तप रहा है लेकिन मुझ से ज्यादा तपन इन भूखों के शरीर में लगी है. इस शरीर से बेइंतहा मोहब्बत थी मुझे, इस पर गुरूर कर फैजल पर यकीन किया था… लेकिन अब… अब नफरत हो गई… कुदरत अब किसी और बुशरा को उस कमीने के चंगुल में न फंसने देना.

“अब्बू, आप की बुशरा से गुनाह हो गया… मुझे माफ कर दो अब्बू…आप सही कहते थे कि मुंबई बहुत गंदा शहर है. काश, मौत आ जाए मुझे…”

“10 अक्तूबर, 2008

“अपने इस जिस्म पर गुमान कर घर से निकल गई थी… देखो अब्बू… आप की बुशरा इलाज से भी महरूम है. मेरी छींक पर भी बेचैन हो उठते थे आप और आज कैसी गलीच जिंदगी जी रही हूं मैं… काश, मुझे मौत आ जाए…”

“15 अक्तूबर, 2008

“हिम्मत नहीं बची है अब. मौत करीब लग रही है. आज मैं मर जाऊंगी. कुदरत का बुलावा आ गया है. लेकिन मेरे बारे में मेरे परिवार को पता न चले. उन्हें पता न चले कि अब्बू की बुशरा अब धंधेवाली…

“काश, कोई इस जिस्म को लावारिस समझ खाक में मिला दे…”

उस के मासूम चेहरे पर अब भी नजामत दिख रही थी, भले ही प्राण नहीं था शरीर में. इंस्पैक्टर को आंखों में कुछ नमी सी महसूस हुई. डायरी को बंद कर उस ने एक ठंडी सांस ली और फिर मोहब्बत की शिकार ख्वाब देखने वाली बुशरा के मरे जिस्म को उस ने लवारिस लाश में शामिल कर दिया.

युवाओं के लिए बेहद जरूरी है सेक्स एजुकेशन

आज जिस तेजी से युवाओं की सोच बदल रही है, उन में जो खुलापन आया है वह मानसिक विकास के लिए तो जरूरी है, लेकिन खुलापन शारीरिक स्तर तक बढ़ जाए, यह गलत है. गलत इसलिए है क्योंकि हर कार्य को करने का समय होता है. किसी काम को समय से पहले ही अंजाम दिया जाए, तो उस का परिणाम भी गलत ही होता है. आज युवाओं में सेक्स के प्रति बढ़ती रुचि का ही नतीजा है कि युवतियां प्रैग्नैंट हो जाती हैं और अपनी जान तक गंवा देती हैं.

किशोरों के शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ विकास के लिए सब से जरूरी है, उन्हें सेक्स से संबंधित हर तरह की जानकारी से अवगत कराया जाए. खासकर पेरैंट्स को अपने जवान होते बच्चों को सेक्स से संबंधित जानकारी देने में जरा भी संकोच नहीं करना चाहिए, लेकिन अपने देश में बहुत कम ऐसे पेरैंट्स होते होंगे, जो अपने बच्चों को इस बारे में जागरूक और सचेत करने की पहल करते हों. यही कारण है कि हमारे देश में अधिकतर बच्चे सेक्स ऐजुकेशन से संबंधित जानकारी दोस्तों, किताबों, पत्रिकाओं, पौर्नोग्राफिक वैबसाइट्स और अन्य कई साधनों के जरिए चोरीछिपे हासिल करते हैं. उन्हें यह नहीं मालूम कि सेक्स से संबंधित ऐसी अधकचरी जानकारी मिलने से नुकसान भी होता है.

दरअसल, किशोर या युवा इन स्रोतों के जरिए सेक्स के प्रति अपने मन में गलत धारणाएं विकसित कर लेते हैं. उन्हें लगता है कि सेक्स मात्र ऐंजौय करने की चीज है, जिस से उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा.

एशिया के तमाम देशों जैसे भारत में सेक्स ऐजुकेशन को पाठ्यक्रम में शामिल करने के सफल प्रयास किए गए हैं, लेकिन यह आज भी एक बहस का मुद्दा बना हुआ है. यदि ऐसा संभव हुआ तो सेक्स ऐजुकेशन के जरिए बच्चों को इस की पूरी जानकारी दी जा सकेगी, जिस से किशोरों का विकास सही रूप में हो सकेगा.

1. सेक्स ऐजुकेशन क्यों जरूरी

सेक्स के प्रति युवाओं की अधूरी जानकारी न केवल सेक्स के प्रति धारणाओं को बदल रही है बल्कि इन पर शारीरिक और मानसिक रूप से नकारात्मक असर को भी उन्हें झेलना पड़ता है.

साइकोलौजिस्ट अरुणा ब्रूटा कहती हैं, ‘‘सेक्स ऐजुकेशन किशोरों को सब से पहले घर से ही मिलनी चाहिए, लेकिन पेरैंट्स आज भी इस विषय पर बात करना पसंद नहीं करते. उन्हें इस बारे में बात करने पर शर्म महसूस होती है, लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि युवाओं को सेक्स की पूरी जानकारी न होने से उन का भविष्य खराब भी हो सकता है.

‘‘आज बच्चे लैपटौप, टैलीफोन, कंप्यूटर आदि पर निर्भर हो गए हैं और इस का कहीं न कहीं वे गलत इस्तेमाल भी कर रहे हैं. मुझे याद है कि एक बार मेरे पास एक 8वीं कक्षा में पढ़ने वाले लड़के का केस आया था. वह लड़का प्रौस्टीट्यूट एरिया में पकड़ा गया था.

‘‘जब मैं ने उस से पूछताछ की कि तुम वहां कैसे पहुंचे, तो उस का कहना था कि वह 11वीं क्लास के एक छात्र के कहने पर वहां चला गया था. उस बच्चे का कहना था कि वह औरत का शरीर देखना चाहता था. इस तरह की जिज्ञासा किशोर में तभी संभव है, जब वह दोस्तों की गलत संगत में रह कर चोरीछिपे उन की बातें सुनता है.

‘‘यदि किशोर ऐसा करता है, तो युवा होतेहोते सेक्स के प्रति उस का ऐटीट्यूड वल्गर होता चला जाएगा. हालांकि सेक्स कोई वल्गर चीज नहीं है. यह एक नैचुरल प्रोसैस है, जो स्त्रीपुरुष के जीवन का एक अहम हिस्सा है.

‘‘यह सिर्फ मीडिया का ही नतीजा है कि बच्चे सेक्स को गलत रूप में लेते हैं. ऐसे में पेरैंट्स को चाहिए कि वे युवा होते बच्चों को सही और पूरी जानकारी दें. किशोरों को भी ऐसी वर्कशौप अटैंड करनी चाहिए, जिस में 10-15 किशोरों का समूह हो और जहां खुल कर सेक्स से संबंधित मुद्दों पर चर्चा होती हो. इस से बच्चे भी शांत माहौल में सब कुछ समझ सकेंगे.’’

‘‘किशोरावस्था के दौरान खासकर यौनांगों का विकास होता है और साथ ही शरीर में हारमोनल बदलाव भी होते हैं, जो किशोरों को यह जानने के लिए उत्तेजित करते हैं कि वे इन बदलावों को ऐक्सप्लोर कर सकें. जो उन्होंने मीडिया के जरिए ऐक्सपीरियंस किया है, उसे वे सही में ट्राई कर बैठते हैं. ऐसे किशोरों के बीच ‘सैक्सुअल ऐरेना’ हौट टौपिक होता है. सही जानकारी न होने से इस से किशोरों को शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचता है.’’

2. पेरैंट्स की भूमिका

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सेक्स ऐजुकेशन उन सभी बच्चों को देनी चाहिए, जो 12 वर्ष और इस से ऊपर के हैं. खासकर जिस तरह से देश में टीनएज प्रैग्नैंसी और एचआईवी के मामले सामने आ रहे हैं, ऐसे में यह काफी गंभीर विषय बनता जा रहा है.

लगातार स्कूलों या आसपास के इलाकों में बलात्कार, यौन शोषण, स्कूली छात्रछात्राओं को डराधमका कर उन के साथ जबरदस्ती करना, उन्हें अश्लील वीडियो, पिक्चर्स देखने पर मजबूर किया जाता है. इसलिए पेरैंट्स की भूमिका काफी बढ़ जाती है कि वे अपनी युवा होती बेटी को उस के शरीर के बदलावों के बारे में समय रहते ही जानकारी दें ताकि वह खुद को सुरक्षित रख सके, अच्छेबुरे लोगों की पहचान कर सके, सेक्स और प्यार में फर्क समझ सके.

यह बताना भी जरूरी है कि सेक्स जैसे विषय पर शर्म नहीं बल्कि खुल कर बात करें. इस तरह की शर्म और भय को अपने मन से निकाल दें कि कहीं आप का युवा होता बच्चा असमय ही इस ज्ञान का अनुचित लाभ न उठा ले.

ऐसी स्थिति को पैदा ही न होने दें कि जब उस की शादी हो तो उसे अपने हसबैंड के पास जाने में घबराहट हो. मां की सही भूमिका निभाते हुए आप बेटेबेटियों को शरीर से संबंधित ज्ञान, विकास, काम से संबंधित थोड़ीबहुत जानकारी, प्रैग्नैंसी, कौंट्रासैप्टिव पिल्स, ऐबौर्शन आदि के नकारात्मक असर के बारे में जरूर बता दें. इस से वे जिंदगी में कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं. वह अपनी शारीरिक सुरक्षा और जीवन के सभी सुखों को प्राप्त कर सकते हैं.

3. स्कूलों में शामिल हो सेक्स ऐजुकेशन

कई अध्ययनों से पता चला है कि प्रभावकारी ढंग से जब किशोरों को सेक्स ऐजुकेशन के बारे में जानकारी दी गई, तो उन्होंने सही उम्र में ही सेक्स का आनंद लेना ठीक समझा. हालांकि देश में आज भी स्कूलों में सेक्स ऐजुकेशन को पाठ्यक्रम के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है. आज भी हमारी शिक्षा प्रणाली स्कूलों में सेक्स ऐजुकेशन से संबंधित वर्कशौप और प्रोग्राम्स आयोजित करने में असहमति दिखाती है. इस की मुख्य वजह पेरैंट्स, समाज के कुछ रूढि़वादी तत्त्वों और स्कूल के शिक्षकों का मानना है कि सेक्स ऐजुकेशन से किशोर लड़केलड़कियां और भी ज्यादा आजाद खयालों के हो जाएंगे, जिस से वे सैक्सुअल इंटरकोर्स में ज्यादा फ्री हो कर लिप्त होंगे.

4. सेक्स ऐजुकेशन का फायदा

द्य इस से टीनएज प्रैग्नैंसी में बहुत हद तक कमी आएगी. युवतियां हैल्थ, शिक्षा, भविष्य यहां तक कि गर्भ में पलने वाले भू्रण पर होने वाले अप्रत्यक्ष परिणामों से भी बच सकती हैं. उन में सेक्स के प्रति जागरूकता आएगी.

समय पर सेक्स ऐजुकेशन की जानकारी होने से आगे चल कर बहुत हद तक तनाव से बचा जा सकता है.

यहां तक कि यदि कोई किशोर सैक्सुअल इंटरकोर्स में शामिल होता है, तो भी कौंट्रासैप्टिव मैथड्स जैसे कंडोम का इस्तेमाल, कौंट्रासैप्टिव पिल्स की जानकारी होने पर सैक्सुअल ट्रांसमिटेड डिसीज और टीनएज प्रैग्नैंसी से बचा जा सकता है.

सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज जैसे गौनोरिया, पैल्विक इंफ्लैमैटरी डिसीज और सिफिलिस से बचाव होता है.

युवाओं और किशोरों में सेक्स ऐजुकेशन की जानकारी इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि उन्हें गर्भनिरोधक और मौर्निंग पिल्स, कंडोम और ऐबौर्शन के बारे में जानकारी मिल सकती है.

बनते बिगड़ते रिश्ते : दाने-दाने को मुहताज हुआ रमेश

उन दिनों रमेश बहुत ज्यादा माली तंगी से गुजर रहा था. उसे कारोबार में बहुत ज्यादा घाटा हुआ था. मकान, दुकान, गाड़ी, पत्नी के गहने सब बिकने के बाद भी बाजार की लाखों रुपए की देनदारियां थीं. आएदिन लेनदार घर आ कर बेइज्जत करते, धमकियां देते और घर का जो भी सामान हाथ लगता, उठा कर ले जाते.

रमेश ने भी अनेक लोगों को उधार सामान दिया था और बदले में उन्होंने जो चैक दिए, वे बाउंस हो गए. वह उन के यहां चक्कर लगातेलगाते थक गया, मगर किसी ने भी न तो सामान लौटाया और न ही पैसे दिए.

थकहार कर रमेश ने उन लोगों पर केस कर दिए, मगर केस कछुए की चाल से चलते रहे और उस की हालत बद से बदतर होती चली गई.

जब दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया, तो रमेश को अपने पुराने दोस्तों की याद आई. बच्चों की गुल्लक तोड़ कर किराए का इंतजाम किया. कुछ पैसे पत्नी कहीं से ले आई और वह अपने शहर की ओर चल दिया.

पृथ्वी रमेश का सब से अच्छा दोस्त था. रमेश को पूरी उम्मीद थी कि वह उस की मदद जरूर करेगा.

अपने शहर बीकानेर आ कर रमेश सीधा अपनी मौसी के घर चला गया. वहां से नहाधो कर व खाना खा कर वह पृथ्वी के घर की ओर चल दिया.

शनिवार का दिन था. रमेश को पृथ्वी के घर पर मिलने की पूरी उम्मीद थी. वह मिला भी और इतना खुश हुआ, जैसे न जाने कितने सालों बाद मिले हों. इस के बाद वे पूरे दिन साथ रहे. रमेश पृथ्वी से पैसे के बारे में बात करना चाहता था, मगर झिझक की वजह से कह नहीं पा रहा था.

वे एक रैस्टोरैंट में बैठ गए. रमेश ने हिम्मत जुटाई और बोला, ‘‘यार पृथ्वी, एक बात कहनी थी.’’

‘‘हांहां, बोल न,’’ पृथ्वी ने कहा.

इस के बाद रमेश ने उसे अपनी सारी कहानी सुनाई. पृथ्वी गंभीर हो गया और बोला, ‘‘तेरी हालत तो खराब ही है. तू बता, मुझ से क्या चाहता है?’’

‘‘यार, वैसे तो मुझे लाखों रुपए की जरूरत है, मगर तू भी सरकारी नौकरी करता है, इसलिए फिलहाल अगर तू मुझे 3 हजार रुपए भी उधार दे देगा, तो मैं घर में राशन डलवा लूंगा.’’

‘‘कोई बात नहीं. सुबह ले लेना.’’

‘‘तो फिर मैं कितने बजे फोन करूं?’’

‘‘तू मत करना, मैं खुद ही कर लूंगा.’’

रमेश के सिर से एक बड़ा बोझ सा उतर गया था. उस ने चैन की सांस ली. इस के बाद उन्होंने काफी देर तक बातचीत की और बाद में वह रमेश को उस की मौसी के घर तक अपनी मोटरसाइकिल पर छोड़ गया.

रमेश ने पृथ्वी को बताया कि उस की ट्रेन दोपहर 2 बजे जाएगी. उस ने रमेश को भरोसा दिलाया कि वह सुबह ही 3 हजार रुपए पहुंचा देगा.

रमेश ऐसी गहरी नींद सोया कि आंखें 9 बजे ही खुलीं. नहाधो कर तैयार होने तक साढ़े 10 बज गए. पृथ्वी का फोन अभी तक नहीं आया था.

रमेश ने फोन किया, तो पृथ्वी का मोबाइल स्विच औफ ही मिला.

रमेश की ट्रेन आई और उस की आंखों के सामने से चली भी गई. उस का मन बुझ सा गया था. उस ने कोशिश करना छोड़ दिया. उस की सूरत ऐसी लग रही थी, जैसे किसी ने गालों पर खूब चांटे मारे हों. उस की आंखों में आंसू तो नहीं थे, मगर एक सूनापन उन में आ कर जम सा गया था. वह काफी देर तक प्लेटफार्म के एक बैंच पर बैठा रहा.

‘‘अरे, रमेश? तू रमेश ही है न?’’

रमेश ने आंखें उठा कर देखा. वह सत्यनारायण था. उस का एक पुराना दोस्त. वह एक गरीब घर से था और रमेश ने कभी भी उसे अहमियत नहीं दी थी.

‘‘हां भाई, मैं रमेश ही हूं,’’ उस ने बेमन से कहा.

‘‘रमेश, मुझे पहचाना तू ने? मैं सत्यनारायण. तुम्हारा दोस्त सत्तू…’’

‘‘क्या हालचाल है सत्तू?’’ रमेश थकीथकी सी आवाज में बोला.

‘‘मैं तो ठीक हूं, मगर तू ने यह क्या हाल बना रखा है? दाढ़ी बढ़ी हुई है और कितना दुबला हो गया है. चल, बाहर चल कर चाय पीते हैं.’’

रमेश की इच्छा तो नहीं थी, मगर सत्यनारायण का जोश देख कर वह उस के साथ हो लिया. वे एक रैस्टोरैंट में आ बैठे और चाय पीने लगे.

‘‘और सुना रमेश, कैसे हालचाल हैं?’’ सत्यनारायण ने पूछा.

‘‘हालचाल क्या होंगे? जिंदा बैठा हूं न तेरे सामने,’’ रमेश ने बेरुखी से कहा.

यह सुन कर सत्यनारायण गंभीर

हो गया, ‘‘बात क्या है रमेश? मुझे बताएगा?’’

‘‘क्या बताऊं? यह बताऊं कि वहां मेरे बच्चे भूखे बैठे हैं और सोच रहे हैं कि पापा आएंगे, तो घर में राशन आएगा. पापा आएंगे, तो वे फिर से स्कूल जाएंगे. पापा आएंगे, तो नए कपड़े सिला देंगे. क्या बताऊं तुझे?’’

सत्यनारायण हक्काबक्का सा रमेश का चेहरा देख रहा था.

‘‘मैं तुझ से कुछ नहीं पूछूंगा रमेश. कितने पैसों की जरूरत है तुझे?’’ सत्यनारायण ने पूछा.

रमेश ने सत्यनारायण को ऊपर से नीचे तक देखा. साधारण से कपड़े, साधारण सी चप्पलें, यह उस की क्या मदद करेगा?

‘‘2 लाख रुपए चाहिए, क्या तू देगा मुझे?’’ रमेश ने कहा.

‘‘रमेश, मैं ने अपना सारा पैसा कारोबार में लगा रखा है. अगर तू मुझे कुछ दिन पहले कहता, तो मैं तुझे

2 लाख रुपए भी दे देता. यह बता कि फिलहाल तेरा कितने पैसों में काम चल जाएगा?’’ सत्यनारायण ने पूछा.

‘‘3 हजार रुपए में.’’

‘‘तू 10 मिनट यहां बैठ. मैं अभी आया,’’ कह कर सत्यनारायण वहां से चला गया.

रमेश को यकीन नहीं था कि सत्यनारायण लौट कर आएगा. अब तो लगता है कि चाय के पैसे भी मुझे ही देने पड़ेंगे.

इसी उधेड़बुन में 10 मिनट निकल गए. रमेश उठ ही रहा था कि उस ने सत्यनारायण को आते देखा.

सत्यनारायण की सांसें तेज चल रही थीं. बैठते ही उस ने जेब में हाथ डाला और 50 के नोटों की एक गड्डी रमेश के सामने रख दी.

‘‘यह ले पैसे…’’

रमेश को यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘मगर, मुझे तो सिर्फ 3 हजार…’’ रमेश मुश्किल से बोला.

‘‘रख ले, तेरे काम आएंगे.’’

‘‘सत्तू, मैं तेरा एहसान कभी नहीं भूलूंगा.’’

‘‘क्या बकवास कर रहा है? दोस्ती में कोई एहसान नहीं होता है.’’

‘‘लेकिन, मैं ये पैसे तुझे 3-4 महीने से पहले नहीं लौटा पाऊंगा.’’

‘‘जब तेरे पास हों, तब लौटा देना. मैं कभी मांगूंगा भी नहीं. तुझ पर मुझे पूरा भरोसा है,’’ सत्यनारायण ने कहा, तो रमेश कुछ बोल नहीं पाया.

‘‘अब मैं निकलता हूं. चाय के पैसे दे कर जा रहा हूं. तुझे 5 बजे वाली ट्रेन मिल जाएगी, तू भी निकल. बच्चे तेरा इंतजार कर रहे होंगे.’’

सत्यनारायण चला गया. रमेश उसे दूर तक जाते देखता रहा. इस वक्त ये 5 हजार रुपए उस के लिए लाखों रुपए के बराबर थे. वह जिस इनसान को हमेशा छोटा समझता रहा, आज वही उस के काम आया.

रमेश वापस अपने घर लौट गया. 2-3 महीने का तो इंतजाम हो गया था. इस के बाद उस ने फिर से काम की तलाश शुरू कर दी.

एक दिन रमेश को कपड़े की दुकान पर सेल्समैन का काम मिल गया. तनख्वाह कम थी, मगर जीने के लिए काफी थी.

इस के बाद समय अचानक बदला. 3 मुकदमों का फैसला रमेश के हक में गया. जेल जाने से बचने के लिए लोगों ने उस की रकम वापस कर दी. कुछ दूसरे लोग डर की वजह से फैसला होने से पहले ही पैसे दे गए. 6 महीने में ही पहले जैसे अच्छे दिन आ गए.

रमेश ने फिर से कारोबार शुरू कर दिया. इस वादे के साथ कि पहले जैसी गलतियां नहीं दोहराएगा.

रमेश ने सत्यनारायण के पैसे भी लौटा दिए. उस ने ब्याज देना चाहा, तो सत्यनारायण ने साफ मना कर दिया.

इन सब बातों को आज 10 साल से भी ज्यादा हो गए हैं. रमेश कारोबार के सिलसिले में अपने शहर जाता रहता है. किसी शादी या पार्टी में पृथ्वी से भी मुलाकात हो ही जाती है. पूरे समय वह अपने नए मकान या नई गाड़ी के बारे में ही बताता रहता है और रमेश सिर्फ मुसकराता रहता है.

रमेश का पूरा समय तो अब सिर्फ सत्यनारायण के साथ ही गुजरता है. वह जितने दिन वहां रहता है, उसी के घर में ही रहता है.

रमेश ने बहुत बुरा वक्त गुजारा. ये बुरे दिन हमें बहुतकुछ सिखा भी जाते हैं. हमारी आंखों पर जमी भरम की धुंध मिट जाती है और हम सबकुछ साफसाफ देखने लगते हैं.

जुआरी : महबूबा के प्यार ने बना दिया बेईमान

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है.

इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं.

हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है.

इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था.

जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था. उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया.

इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था.

योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया. कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता.

इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके. लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके.

पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है.

जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया. आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई.

उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था. उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए.

ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.’’

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया. ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे.

भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे. दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई.

हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

‘‘कोई खास खबर?’’ मालिनी ने पूछा.

‘‘अभी देखता हूं.’’ पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है डियर?’’

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, ‘‘समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.’’

‘‘हां संयोग ही है,’’ वह मुंह सिकोड़ कर बोला, ‘‘जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.’’

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढ़ने लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’ इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है.

पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया. इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है. सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’

कॉलगर्ल: होटल में उस रात क्या हुआ

मैं दफ्तर के टूर पर मुंबई गया था. कंपनी का काम तो 2 दिन का ही था, पर मैं ने बौस से मुंबई में एक दिन की छुट्टी बिताने की इजाजत ले ली थी. तीसरे दिन शाम की फ्लाइट से मुझे कोलकाता लौटना था. कंपनी ने मेरे ठहरने के लिए एक चारसितारा होटल बुक कर दिया था. होटल काफी अच्छा था. मैं चैकइन कर 10वीं मंजिल पर अपने कमरे की ओर गया.

मेरा कमरा काफी बड़ा था. कमरे के दूसरे छोर पर शीशे के दरवाजे के उस पार लहरा रहा था अरब सागर.

थोड़ी देर बाद ही मैं होटल की लौबी में सोफे पर जा बैठा.

मैं ने वेटर से कौफी लाने को कहा और एक मैगजीन उठा कर उस के पन्ने यों ही तसवीरें देखने के लिए पलटने लगा. थोड़ी देर में कौफी आ गई, तो मैं ने चुसकी ली.

तभी एक खूबसूरत लड़की मेरे बगल में आ कर बैठी. वह अपनेआप से कुछ बके जा रही थी. उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि वह गुस्से में थी.

मैं ने थोड़ी हिम्मत जुटा कर उस से पूछा, ‘‘कोई दिक्कत?’’

‘‘आप को इस से क्या लेनादेना? आप अपना काम कीजिए,’’ उस ने रूखा सा जवाब दिया.

कुछ देर में उस का बड़बड़ाना बंद हो गया था. थोड़ी देर बाद मैं ने ही दोबारा कहा, ‘‘बगल में मैं कौफी पी रहा हूं और तुम ऐसे ही उदास बैठी हो, अच्छा नहीं लग रहा है. पर मैं ने ‘तुम’ कहा, तुम्हें बुरा लगा हो, तो माफ करना.’’

‘‘नहीं, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा. माफी तो मुझे मांगनी चाहिए, मैं थोड़ा ज्यादा बोल गई आप से.’’

इस बार उस की बोली में थोड़ा अदब लगा, तो मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब कौफी पीने में तुम मेरा साथ दोगी.’’

और उस के कुछ बोलने के पहले ही मैं ने वेटर को इशारा कर के उस के लिए भी कौफी लाने को कहा. वह मेरी ओर देख कर मुसकराई.

मुझे लगा कि मुझे शुक्रिया करने का उस का यही अंदाज था. वेटर उस के सामने कौफी रख कर चला गया. उस ने कौफी पीना भी शुरू कर दिया था.

लड़की बोली, ‘‘कौफी अच्छी है.’’

उस ने जल्दी से कप खाली करते हुए कहा, ‘‘मुझे चाय या कौफी गरम ही अच्छी लगती है.’’

मैं भी अपनी कौफी खत्म कर चुका था. मैं ने पूछा, ‘‘किसी का इंतजार कर रही हो?’’

उस ने कहा, ‘‘हां भी, न भी. बस समझ लीजिए कि आप ही का इंतजार है,’’ और बोल कर वह हंस पड़ी.

मैं उस के जवाब पर थोड़ा चौंक गया. उसी समय वेटर कप लेने आया, तो मुसकरा कर कुछ इशारा किया, जो मैं नहीं समझ पाया था.

मैं ने लड़की से कहा, ‘‘तुम्हारा मतलब मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘सबकुछ यहीं जान लेंगे. क्यों न आराम से चल कर बातें करें,’’ बोल कर वह खड़ी हो गई.

फिर जब हम लिफ्ट में थे, तब मैं ने फिर पूछा, ‘‘तुम गुस्से में क्यों थीं?’’

‘‘पहले रूम में चलें, फिर बातें होंगी.’’

हम दोनों कमरे में आ गए थे. वह अपना बैग और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर सोफे पर आराम से बैठ गई.

मैं ने फिर उस से पूछा कि शुरू में वह गुस्से में क्यों थी, तो जवाब मिला, ‘‘इसी फ्लोर पर दूसरे छोर के रूम में एक बूढ़े ने मूड खराब कर दिया.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘बूढ़ा 50 के ऊपर का होगा. मुझ से अननैचुरल डिमांड कर रहा था. उस ने कहा कि इस के लिए मुझे ऐक्स्ट्रा पैसे देगा. यह मेरे लिए नामुमकिन बात थी और मैं ने उस के पैसे भी फेंक दिए.’’

मुझे तो उस की बातें सुन कर एक जोर का झटका लगा और मुझे लौबी में वेटर का इशारा समझ में आने लगा था.

फिर भी उस से नाम पूछा, तो वह उलटे मुझ से ही पूछ बैठी, ‘‘आप मुंबई के तो नहीं लगते. आप यहां किसलिए आए हैं और मुझ से क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं तो बस टाइम पास करना चाहता हूं. कंपनी के काम से आया था. वह पूरा हो गया. अब जो मरजी वह करूं. मुझे कल शाम की फ्लाइट से लौटना है. पर अपना नाम तो बताओ?’’

‘‘मुझे कालगर्ल कहते हैं.’’

‘‘वह तो मैं समझ सकता हूं, फिर भी तुम्हारा नाम तो होगा. हर बार कालगर्ल कह कर तो नहीं पुकार सकता. लड़की दिलचस्प लगती हो. जी चाहता है कि तुम से ढेर सारी बातें करूं… रातभर.’’

‘‘आप मुझे प्रिया नाम से पुकार सकते हैं, पर आप रातभर बातें करें या जो भी, रेट तो वही होगा. पर बूढ़े वाली बात नहीं, पहले ही बोल देती हूं,’’ लड़की बोली.

मैं भी अब उसे समझने लगा था. मुझे तो सिर्फ टाइम पास करना था और थोड़ा ऐसी लड़कियों के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुछ कोल्डड्रिंक वगैरह मंगाऊं?’’

‘‘मंगा लो,’’ प्रिया बोली, ‘‘हां, कुछ सींक कबाब भी चलेगा. तब तक मैं नहा लेती हूं.’’

‘‘बाथरूम में गाउन भी है. यह तो और अच्छी बात है, क्योंकि हमाम से निकल कर लड़कियां अच्छी लगती हैं.’’

‘‘क्यों, अभी अच्छी नहीं लग रही क्या?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बात नहीं है. नहाने के बाद और अच्छी लगोगी.’’

मैं ने रूम बौय को बुला कर कबाब लाने को कहा. प्रिया बाथरूम में थी.

थोड़ी देर बाद ही रूम बौय कबाब ले कर आ गया था. मैं ने 2 लोगों के लिए डिनर भी और्डर कर दिया.

इस के बाद मैं न्यूज देखने लगा, तभी बाथरूम से प्रिया निकली. दूधिया सफेद गाउन में वह सच में और अच्छी दिख रही थी. गाउन तो थोड़ा छोटा था ही, साथ में प्रिया ने उसे कुछ इस तरह ढीला बांधा था कि उस के उभार दिख रहे थे.

प्रिया सोफे पर आ कर बैठ गई.

‘‘मैं ने कहा था न कि तुम नहाने के बाद और भी खूबसूरत लगोगी.’’

प्रिया और मैं ने कोल्डड्रिंक ली और बीचबीच में हम कबाब भी ले रहे थे.

मैं ने कहा, ‘‘कबाब है और शबाब है, तो समां भी लाजवाब है.’’

‘‘अगर आप की पत्नी को पता चले कि यहां क्या समां है, तो फिर क्या होगा?’’

‘‘सवाल तो डरावना है, पर इस के लिए मुझे काफी सफर तय करना होगा. हो सकता है ताउम्र.’’

‘‘कल शाम की फ्लाइट से आप जा ही रहे हैं. मैं जानना चाहती हूं कि आखिर मर्दों के ऐसे चलन पर पत्नी की सोच क्या होती है.’’

‘‘पर, मेरे साथ ऐसी नौबत नहीं आएगी.’’

‘‘क्यों?’’

मैं ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं अपनी पत्नी को खो चुका हूं. 27 साल का था, जब मेरी शादी हुई थी और 5 साल बाद ही उस की मौत हो गई थी, पीलिया के कारण. उस को गए 2 साल हो गए हैं.’’

‘‘ओह, सो सौरी,’’ बोल कर अपनी प्लेट छोड़ कर वह मेरे ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी और आगे कहा, ‘‘तब तो मुझे आप का मूड ठीक करना ही होगा.’’

प्रिया ने अपने गाउन की डोरी की गांठ जैसे ही ढीला भर किया था कि जो कुछ मेरी आंखों के सामने था, देख कर मेरा मन कुछ पल के लिए बहुत विचलित हो गया था.

मैं ने इस पल की कल्पना नहीं की थी, न ही मैं ऐसे हालात के लिए तैयार था. फिर भी अपनेआप पर काबू रखा.

तभी डोर बैल बजी, तो प्रिया ने अपने को कंबल से ढक लिया था. डिनर आ गया था. रूम बौय डिनर टेबल पर रख कर चला गया.

प्रिया ने कंबल हटाया, तो गाउन का अगला हिस्सा वैसे ही खुला था.

प्रिया ने कहा, ‘‘टेबल पर मेरे बैग में कुछ सामान पड़े हैं, आप को यहीं से दिखता होगा. आप जब चाहें इस का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप का मूड भी तरोताजा हो जाएगा और आप के मन को शायद इस से थोड़ी राहत मिले.’’

‘‘जल्दी क्या है. सारी रात पड़ी है. हां, अगर कल दोपहर तक फ्री हो तो और अच्छा रहेगा.’’

इतना कह कर मैं भी खड़ा हो कर उस के गाउन की डोर बांधने लगा, तो वह बोली, ‘‘मेरा क्या, मुझे पैसे मिल गए. आप पहले आदमी हैं, जो शबाब को ठुकरा रहे हैं. वैसे, आप ने दोबारा शादी की? और आप का कोई बच्चा?’’

वह बहुत पर्सनल हो चली थी, पर मुझे बुरा नहीं लगा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘डिनर लोगी?’’

‘‘क्या अभी थोड़ा रुक सकते हैं? तब तक कुछ बातें करते हैं.’’

‘‘ओके. अब पहले तुम बताओ. तुम्हारी उम्र क्या है? और तुम यह सब क्यों करती हो?’’

‘‘पहली बात, लड़कियों से कभी उम्र नहीं पूछते हैं…’’

मैं थोड़ा हंस पड़ा, तभी उस ने कहना शुरू किया, ‘‘ठीक है, आप को मैं अपनी सही उम्र बता ही देती हूं. अभी मैं 21 साल की हूं. मैं सच बता रही हूं.’’

‘‘और कुछ लोगी?’’

‘‘अभी और नहीं. आप के दूसरे सवाल का जवाब थोड़ा लंबा होगा. वह भी बता दूंगी, पर पहले आप बताएं कि आप ने फिर शादी की? आप की उम्र भी ज्यादा नहीं लगती है.’’

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहा, ‘‘मैं अभी 34 साल का हूं. मेरा कोई बच्चा नहीं है. डाक्टरों ने सारे टैस्ट ले कर के बता दिया है कि मुझ में पिता बनने की ताकत ही नहीं है. अब दूसरी शादी कर के मैं किसी औरत को मां बनने के सुख के लिए तरसता नहीं छोड़ सकता.’’

इस बार प्रिया मुझ से गले मिली और कहा, ‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ.’’

मैं ने उस की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘दुनिया में सब को सबकुछ नहीं मिलता. पर कोई बात नहीं, दफ्तर के बाद मैं कुछ समय एक एनजीओ को देता हूं. मन को थोड़ी शांति मिलती है. चलो, डिनर लेते हैं.’’

डिनर के बाद मुझे आराम करने का मन किया, तो मैं बैड पर लेट गया. प्रिया भी मेरे साथ ही बैड पर आ कर कंबल लपेट कर बैठ गई थी. वह मेरे बालों को सहलाने लगी.

‘‘तुम यह सब क्यों करती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कोई अपनी मरजी से यह सब नहीं करता. कोई न कोई मजबूरी या वजह इस के पीछे होती है. मेरे पापा एक प्राइवेट मिल में काम करते थे. एक एक्सीडैंट में उन का दायां हाथ कट गया था. कंपनी ने कुछ मुआवजा दे कर उन की छुट्टी कर दी. मां भी कुछ पढ़ीलिखी नहीं थीं. मैं और मेरी छोटी बहन स्कूल जाते थे.

‘‘मां 3-4 घरों में खाना बना कर कुछ कमा लेती थीं. किसी तरह गुजर हो जाती थी, पर पापा को घर बैठे शराब पीने की आदत पड़ गई थी. जमा पैसे खत्म हो चले थे…’’ इसी बीच रूम बौय डिनर के बरतन लेने आया और दिनभर के बिल के साथसाथ रूम के बिलों पर भी साइन करा कर ले गया.

प्रिया ने आगे कहा, ‘‘शराब के कारण मेरे पापा का लिवर खराब हुआ और वे चल बसे. मेरी मां की मौत भी एक साल के अंदर हो गई. मैं उस समय 10वीं जमात पास कर चुकी थी. छोटी बहन तब छठी जमात में थी. पर मैं ने पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स कर लिया था.

‘‘हम एक छोटी चाल में रहते थे. मेरे एक रिश्तेदार ने ही मुझे ब्यूटीपार्लर में नौकरी लगवा दी और शाम को एक घर में, जहां मां काम करती थी, खाना बनाती थी. पर उस पार्लर में मसाज के नाम पर जिस्मफरोशी भी होती थी. मैं भी उस की शिकार हुई और इस दुनिया में मैं ने पहला कदम रखा था,’’ बोलतेबोलते प्रिया की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

मैं ने टिशू पेपर से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं ने तुम्हारी दुखती रगों को बेमतलब ही छेड़ दिया.’’

‘‘नहीं, आप ने मुझे कोई दुख नहीं पहुंचाया है. आंसू निकलने से कुछ दिल का दर्द कम हो गया,’’ बोल कर प्रिया ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘पर, यह सब मैं अपनी छोटी बहन को सैटल करने के लिए कर रही हूं. वह भी 10वीं जमात पास कर चुकी है और सिलाईकढ़ाई की ट्रेनिंग भी पूरी कर ली है. अभी तो एक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन दे रखी है. घर बैठेबैठे कुछ पैसे वह भी कमा लेती है.

‘‘मैं ने एक लेडीज टेलर की दुकान देखी है, पर सेठ बहुत पगड़ी मांग रहा है. उसी की जुगाड़ में लगी हूं. यह काम हो जाए, तो दोनों बहनें उसी बिजनेस में रहेंगी…’’ फिर एक अंगड़ाई ले कर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को बोर कर रही हूं न? आप ने तो मुझे छुआ भी नहीं. आप को मुझ से कुछ चाहिए तो कहें.’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी सारी रात पड़ी है, मुझे अभी कोई जल्दी नहीं. जब कोई जरूरत होगी कहूंगा. पर पार्लर से होटल तक तुम कैसे पहुंचीं?’’

‘‘पार्लर वाले ने ही कहा था कि मैं औरों से थोड़ी अच्छी और स्मार्ट हूं, थोड़ी अंगरेजी भी बोल लेती हूं. उसी ने कहा था कि यहां ज्यादा पैसा कमा सकती हो. और पार्लरों में पुलिस की रेड का डर बना रहता है. फिर मैं होटलों में जाने लगी.’’

इस के बाद प्रिया ने ढेर सारी बातें बताईं. होटलों की रंगीन रातों के बारे में कुछ बातें तो मैं ने पहले भी सुनी थीं, पर एक जीतेजागते इनसान, जो खुद ऐसी जिंदगी जी रहा है, के मुंह से सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था.

इसी तरह की बातों में ही आधी रात बीत गई, तब प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे अब जोरों की नींद आ रही है. आप को कुछ करना हो…’’

प्रिया अभी तक गाउन में ही थी. मैं ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम दूसरे बैड पर जा कर आराम करो. और हां, बाथरूम में जा कर पहले अपने कपड़े पहन लो. बाकी बातें जब तुम्हारी नींद खुले तब. तुम कल दिन में क्या कर रही हो?’’

‘‘मुझ से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई. सर, आप ने मुझ पर इतना पैसा खर्च किया और…’’

‘‘नहींनहीं, मैं तो तुम से बहुत खुश हूं. अब जाओ अपने कपड़े बदल लो.’’

मैं ने देखा कि जिस लड़की में मेरे सामने बिना कुछ कहे गाउन खोलने में जरा भी संकोच नहीं था, वही अब कपड़े पहनने के लिए शर्मसार हो रही थी.

प्रिया ने गाउन के ऊपर चादर में अपने पूरे शरीर को इतनी सावधानी से लपेटा कि उस का शरीर पूरी तरह ढक गया था और वह बाथरूम में कपड़े पहनने चली गई.

थोड़ी देर बाद वह कपड़े बदल कर आई और मेरे माथे पर किस कर ‘गुडनाइट’ कह कर अपने बैड पर जा कर सो गई.

सुबह जब तक मेरी नींद खुली, प्रिया फ्रैश हो कर सोफे पर बैठी अखबार पढ़ रही थी.

मुझे देखा, तो ‘गुड मौर्निंग’ कह कर बोली, ‘‘सर, आप फ्रैश हो जाएं या पहले चाय लाऊं?’’

‘‘हां, पहले चाय ही बना दो, मुझे बैड टी की आदत है. और क्या तुम शाम 5 बजे तक फ्री हो? तुम्हें इस के लिए मैं ऐक्स्ट्रा पैसे दूंगा.’’

‘‘सर, मुझे आप और ज्यादा शर्मिंदा न करें. मैं फ्री नहीं भी हुई तो भी पहले आप का साथ दूंगी. बस, मैं अपनी बहन को फोन कर के बता देती हूं कि मैं दिन में नहीं आ सकती.’’

प्रिया ने अपनी बहन को फोन किया और मैं बाथरूम में चला गया. जातेजाते प्रिया को बोल दिया कि फोन कर के नाश्ता भी रूम में ही मंगा ले.

नाश्ता करने के बाद मैं ने प्रिया से कहा, ‘‘मैं ने ऐलीफैंटा की गुफाएं नहीं देखी हैं. क्या तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘बेशक दूंगी.’’

थोड़ी देर में हम ऐलीफैंटा में थे. वहां तकरीबन 2 घंटे हम साथ रहे थे. मैं ने उसे अपना कार्ड दिया और कहा, ‘‘तुम मुझ से संपर्क में रहना. मैं जिस एनजीओ से जुड़ा हूं, उस से तुम्हारी मदद के लिए कोशिश करूंगा. यह संस्था तुम जैसी लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने में जरूर मदद करेगी.

‘‘मैं तो कोलकाता में हूं, पर हमारी ब्रांच का हैडक्वार्टर यहां पर है. थोड़ा समय लग सकता है, पर कुछ न कुछ अच्छा ही होगा.’’

प्रिया ने भरे गले से कहा, ‘‘मेरे पास आप को धन्यवाद देने के सिवा कुछ नहीं है. इसी दुनिया में रात वाले बूढ़े की तरह दोपाया जानवर भी हैं और आप जैसे दयावान भी.’’

प्रिया ने भी अपना कार्ड मुझे दिया. हम दोनों लौट कर होटल आए. मैं ने रूम में ही दोनों का लंच मंगा लिया. लंच के बाद मैं ने होटल से चैकआउट कर एयरपोर्ट के लिए टैक्सी बुलाई.

सामान डिक्की में रखा जा चुका था. जब मैं चलने लगा, तो उस की ओर देख कर बोला, ‘‘प्रिया, मुझे तुम्हें और पैसे देने हैं.’’

मैं पर्स से पैसे निकाल रहा था कि इसी बीच टैक्सी का दूसरा दरवाजा खोल कर वह मुझ से पहले जा बैठी और कहा, ‘‘थोड़ी दूर तक मुझे लिफ्ट नहीं देंगे?’’

‘‘क्यों नहीं. चलो, कहां जाओगी?’’

‘‘एयरपोर्ट.’’

मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘एयरपोर्ट?’’

‘‘क्यों, क्या मैं एयर ट्रैवल नहीं कर सकती? और आगे से आप मुझे मेरे असली नाम से पुकारेंगे. मैं पायल हूं.’’

और कुछ देर बाद हम एयरपोर्ट पर थे. अभी फ्लाइट में कुछ वक्त था. उस से पूछा, ‘‘तुम्हें कहां जाना है?’’

‘‘बस यहीं तक आप को छोड़ने आई हूं,’’ पायल ने मुसकरा कर कहा.

मैं ने उसे और पैसे दिए, तो वह रोतेरोते बोली, ‘‘मैं तो आप के कुछ काम न आ सकी. यह पैसे आप रख लें.’’

‘‘पायल, तुम ने मुझे बहुत खुशी दी है. सब का भला तो मेरे बस की बात नहीं है. अगर मैं एनजीओ की मदद से तुम्हारे कुछ काम आऊं, तो वह खुशी शानदार होगी. ये पैसे तुम मेरा आशीर्वाद समझ कर रख लो.’’

और मैं एयरपोर्ट के अंदर जाने लगा, तो उस ने झुक कर मेरे पैरों को छुआ. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन की 2 बूंदें मेरे पैरों पर भी गिरीं.

मैं कोलकाता पहुंच कर मुंबई और कोलकाता दोनों जगह के एनजीओ से लगातार पायल के लिए कोशिश करता रहा. बीचबीच में पायल से भी बात होती थी. तकरीबन 6 महीने बाद मुझे पता चला कि एनजीओ से पायल को कुछ पैसे ग्रांट हुए हैं और कुछ उन्होंने बैंक से कम ब्याज पर कर्ज दिलवाया है.

एक दिन पायल का फोन आया. वह भर्राई आवाज में बोली, ‘सर, आप के पैर फिर छूने का जी कर रहा है. परसों मेरी दुकान का उद्घाटन है. यह सब आप की वजह से हुआ है. आप आते तो दोनों बहनों को आप के पैर छूने का एक और मौका मिलता.’

‘‘इस बार तो मैं नहीं आ सकता, पर अगली बार जरूर मुंबई आऊंगा, तो सब से पहले तुम दोनों बहनों से मिलूंगा.’’

आज मुझे पायल से बात कर के बेशुमार खुशी का एहसास हो रहा है और मन थोड़ा संतुष्ट लग रहा है.

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