‘उत्तर प्रदेश में पुलिस भरती परीक्षा के अभ्यर्थियों के लिए रेलवे का प्रयागराज डिवीजन 20 स्पैशल ट्रेन चला रहा है. प्रयागराज जंक्शन पर माघ मेला हेतु बने ‘यात्री आश्रयों’ को भी खोल दिया गया है…’
मध्य प्रदेश में रीवां जिले में रहने वाले 27 साल के मनोज जाटव को जब यह खबर मिली, तब उस ने राहत की सांस ली. वह भी तो कांस्टेबल की पोस्ट के लिए पिछले 2 साल से कड़ी मेहनत कर रहा था. सतना से प्रयागराज के लिए भी स्पैशल ट्रेन चलाई गई थी.
लंबेचौड़े कद का मनोज गोरे रंग का नौजवान था और अपने मांबाप का एकलौता बेटा भी. वह पढ़ने में काफी होशियार था और गणित के सवाल हल करना तो उस के बाएं हाथ का खेल था.
मनोज के पिता मऊगंज तहसील के एक गांव में खेतीबारी करते थे. ज्यादा जमीन तो नहीं थी, पर जैसेतैसे गुजारा हो जाता था. मनोज रीवां शहर में सरकारी नौकरी की कोचिंग ले रहा था. खाली समय में वह एक गैराज में मोटरसाइकिल की मरम्मत का काम भी देखता था. उसे इस काम में महारत हासिल थी, पर सरकारी नौकरी के तो अपने ही ठाठ होते हैं, फिर पुलिस में तो ‘ऊपरी कमाई’ का जलवा है ही.
मनोज समय पर रेलवे स्टेशन पहुंच गया. सतना से आई ट्रेन ठसाठस भरी हुई थी. इतना बड़ा हुजूम देख कर मनोज ठगा सा रह गया. यह था कांस्टेबल की नौकरी के लिए सरकारी इंतजाम? पर जाना तो था ही, तो उस ने कमर कस ली और जिस भी डब्बे में जगह मिली, वह घुस ही गया.
इतनी भीड़ की वजह यह थी कि उत्तर प्रदेश कांस्टेबल भरती के कुल पद 60,244 थे और तकरीबन 50 लाख नौजवानों ने इन पदों को पाने का आवदेन दे रखा था. इन में से 35 लाख पुरुष और 15 लाख महिला उम्मीदवार थीं यानी एक पद के लिए पुरुष वर्ग में 66, जबकि महिला वर्ग में 125 दावेदार.
इधर, मनोज ट्रेन में घुस तो गया, पर शौचालय से आगे बढ़ ही नहीं पाया. उस ने जैसेतैसे शौचालय के बंद दरवाजे से कमर टिकाई और अपना बैग संभालते हुए खड़ा हो गया.
थोड़ी ही देर में मनोज की नजर एक लड़की पर पड़ी. अच्छे नैननक्श की लंबी, शरीर किसी खिलाड़ी जैसा खिला हुआ और रंगरूप भी बढि़या. पर वह तो जैसे ‘रजिया फंस गई गुंडों में’ वाली हालत में थी.
उस लड़की को कई लड़कों ने जैसे घेर रखा था और इस भयंकर भीड़ का फायदा उठा कर वे उसे मसल रहे थे. एक लड़के ने अपने दोस्त को दबी जबान से कहा भी था, ‘‘रगड़ दे इस की जांघ पर अपना घुटना.’’
मनोज समझ गया था कि यह लड़की काफी देर से इन छिछोरों से जूझ रही है. उस ने अपना दिमाग लगाया और अपना बैग उस लड़की को देते हुए बोला, ‘‘आप अपना बैग यहां नीचे भूल गई हैं. संभाल लें, वरना कोई ले उड़ेगा.’’
वह लड़की पहले तो कुछ समझ नहीं, पर मनोज के दोबारा जोर दे कर कहने पर उस ने वह बैग लिया और अपनी छाती से सटा लिया. इस से उन मनचलों और उस के बीच दूरी बन गई.
तकरीबन सवा 3 घंटे के बाद ट्रेन प्रयागराज स्टेशन पहुंची. मनोज और वह लड़की बड़ी मशक्कत के साथ ट्रेन से बाहर आए.
प्लेटफार्म पर उस लड़की ने मनोज को उस का बैग दिया और बोली, ‘‘थैंक्स. आज आप ने मुझे उन घटिया लड़कों की बेहूदा हरकतों से बचा लिया.
‘‘वैसे, मेरा नाम संतोष यादव है और मैं सतना के पास एक गांव में रहती हूं. आप का क्या नाम है?’’
‘‘जी, मेरा नाम मनोज जाटव है और मैं कांस्टेबल के इम्तिहान के लिए प्रयागराज आया हूं,’’ मनोज ने अपना बैग लेते हुए कहा.
‘‘अच्छा, एससी कोटे से हो. तुम्हारा ऐग्जाम तो क्लियर हो ही जाएगा,’’ संतोष ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘ओह, तो संतोषजी यह सोचती हैं मेरे बारे में. पर शायद आप को पता नहीं है कि मैं हमेशा से होनहार बच्चा रहा हूं. देखना, मैरिट से पास हो जाऊंगा.’’
‘‘खुद पर इतना ज्यादा यकीन… देखते हैं.’’
‘‘अच्छा, तुम्हारी कौन सी शिफ्ट है?’’ मनोज ने बात बदलते हुए कहा, ‘‘मेरी तो सुबह 10 से 12 बजे वाली शिफ्ट है.’’
‘‘मेरी तो दोपहर की. 3 से 5 बजे वाली.’’
‘‘फिर तो हमारी राहें अलग हो जाएंगी,’’ मनोज बोला.
‘‘अभी एकसाथ सफर ही कहां शुरू किया है,’’ संतोष ने स्टेशन से बाहर निकलते हुए कहा.
उस दिन संतोष अपनी सहेली के घर रुकी थी और मनोज एक धर्मशाला में. अगले दिन 17 फरवरी को दोनों का कांस्टेबल का ऐग्जाम था.
अगली सुबह मनोज समय पर सैंटर पहुंच गया था. वहां कड़े इंतजाम थे. जैमर लगा हुआ था. हर तरह की जांचपड़ताल की जा रही थी. सीसीटीवी कैमरे लगे थे और पूरा स्टाफ एकदम चाकचौबंद दिख रहा था.
मनोज का ऐग्जाम बढि़या हुआ था. गणित के सवाल उस के लिए बहुत आसान थे. 150 सवाल पूछे गए थे. इस इम्तिहान में सामान्य हिंदी, सामान्य ज्ञान, संख्यात्मक और मानसिक योग्यता परीक्षण और मानसिक योग्यता, जिस में बुद्धिमत्ता और तर्क शामिल थे. हर गलत जवाब के लिए 0.5 की नैगेटिव मार्किंग होनी थी.
उधर, संतोष अपनी शिफ्ट पर समय से पहुंच गई थी. उस का ऐग्जाम भी ठीकठाक हुआ था. बस, थोड़ा गणित कमजोर रह गया था. शाम को 5 बजे जब वह बाहर निकली, तो मनोज को वहां देख कर हैरान रह गई.
‘‘अरे, पढ़ाकू बच्चा यहां क्या कर रहा है?’’ संतोष ने अपनी खुशी छिपाते हुए कहा.
‘‘शाम 7 बजे की ट्रेन है. सोचा, तुम्हारा हालचाल ले लूं,’’ मनोज बोला.
‘‘ऐग्जाम तो सही रहा. पास हो गई तो फिजिकल में तो बाजी मार ही लूंगी. मेरी जबरदस्त प्रैक्टिस है,’’ संतोष बोली.
‘‘चलो, स्टेशन चलते हैं. समय पर पहुंच कर सीट घेर लेंगे. मुझे अब शौचालय के आगे खड़े हो कर नहीं जाना,’’ मनोज ने कहा.
‘‘भीड़ तो होगी ही. इस अखबार की कटिंग देखो. इस में लिखा है कि राज्य के सभी 75 जिलों के 2,385 केंद्रों पर परीक्षा आयोजित की जा रही है, जहां 48,17,441 अभ्यर्थी परीक्षा देंगे.
‘‘समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से 6 लाख से ज्यादा उम्मीदवारों ने आवेदन किया है, जिस में बिहार से 2,67,305, हरियाणा से 74,769, झारखंड से 17,112, मध्य प्रदेश से 98,400, दिल्ली से 42,259, उम्मीदवार शामिल हैं. 97,277 राजस्थान से, 14,627 उत्तराखंड से, 5,512 पश्चिम बंगाल से, 3,151 महाराष्ट्र से और 3,404 पंजाब से.’’
‘‘तुम्हें बड़ी अच्छी जानकारी है,’’ मनोज ने ताली बजाते हुए कहा.
‘‘यह मजाक की बात नहीं है. देश में बेरोजगारी की हद है. इस ऐग्जाम में आधे पद तो जनरल और इकोनौमिकली वीकर सैक्शन के हैं. ओबीसी के तकरीबन 16,000, एससी और एसटी के 12,000 पद हैं.
‘‘तुम ही बताओ, जनरल वालों को कांस्टेबल बनने की जरूरत ही क्या है? उन के पास तो बड़ी नौकरी पाने के खूब मौके होते हैं.’’
‘‘बोल तो तुम सही रही हो. अच्छा, बाकी सब छोड़ो… तुम्हारा गणित का ऐग्जाम तो ठीकठाक ही हुआ है, पर तुम्हें अपना मोबाइल नंबर तो अच्छे से याद होगा न?’’
‘‘ओह, तो जनाब को मेरा मोबाइल नंबर चाहिए. बात को इतना घुमा क्यों रहे हो मनोज बाबू,’’ कहते हुए संतोष ने अपना मोबाइल नंबर दे दिया.
मनोज ने उस नंबर पर मिसकाल दे दी और सेव कर लिया. बातें करतेकरते वे दोनों प्रयागराज स्टेशन जा पहुंचे.
इस बार उन दोनों को डब्बे में चढ़ने के बाद जगह तो मिल गई थी, पर भीड़ का आलम तकरीबन वही था. रेलवे के बड़े अफसरों ने कोशिश की थी कि भगदड़ के हालात न बनें.
संतोष और मनोज दोनों सटे हुए खड़े थे, तभी मनोज ने संतोष को देखते हुए कहा, ‘‘क्या यह हमारी पहली और आखिरी मुलाकात है?’’
‘‘ऐसा क्यों कहा?’’ संतोष ने पूछा.
‘‘संतोष, एक बात कहूं?’’ मनोज ने उस के चेहरे के एकदम करीब हो कर कहा.
संतोष का दिल एकदम से धड़क गया. उस का हाथ मनोज के हाथ से छू गया. मनोज ने हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मुझे तुम्हारे साथ हमेशा रहना है. मैं चाहता हूं कि हमारी जिंदगी का सफर भी ऐसे ही एकदूसरे के करीब रह कर गुजरे.’’
इतना सुनते ही संतोष ने अपना सिर मनोज की छाती पर टिका दिया. मनोज का दिल भी ट्रेन की रफ्तार सा दौड़ने लगा था.
‘‘कांस्टेबल के ऐग्जाम के रिजल्ट का इंतजार करते हैं. मनोज, हम 3 बहनें हैं. मैं सब से बड़ी हूं. पिता की आमदनी इतनी ज्यादा नहीं है कि उन से भी अपनी शादी का जिक्र कर सकूं. पहले हमें अपने पैरों पर खड़ा होना होगा,’’ संतोष बोली.
उन दोनों का वापसी का सफर बातों और वादों में गुजर गया. 17 और 18 फरवरी को कांस्टेबल का ऐग्जाम हुआ था. इस के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर वायरल हो गया कि पेपर लीक हुआ था.
हालांकि, सरकार की ओर से कहा गया कि ऐसी अफवाहों पर ध्यान न दें, पर धुआं उठ रहा था, तो कहीं आग जरूर लगी होगी.
दरअसल, इस ऐग्जाम के दौरान तकरीबन 244 ‘सौल्वर’ और ऐग्जाम में सेंध लगाने की कोशिश में जुटे गिरोह के कई लोग पकड़े गए थे. इस मामले में कई जगह एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी.
एक दिन संतोष ने मनोज को फोन किया, ‘‘सुना तुम ने. हमारी सारी मेहनत बेकार गई. पेपर लीक हो गया है. मुझे तो पहले से ही आइडिया था, जब मेरी एक सहेली मीना ने बताया था कि उस ने पैसे दे कर पेपर खरीदा था. काफी पैसे भी दिए थे. तब मुझे लगा था कि वह ऐसे ही बोल रही है, पर अब दाल में काला लग रहा है.’’
दूसरी ओर से मनोज ने कहा, ‘पेपर तो लीक हुआ ही है. पुलिस कई जगह छापेमारी कर रही है. इस मामले में एसओजी सर्विलांस सैल, एसटीएफ यूनिट गोरखपुर और इटावा पुलिस ने 4 आरोपियों को गिरफ्तार किया है. उन के पास से अभ्यर्थियों की मार्कशीट, एडमिट कार्ड, ब्लैंक चैक, मोबाइल फोन और लैपटौप जैसा दूसरा सामान बरामद हुआ है.
‘इस से पहले इस मामले में पेपर लीक के आरोपी नीरज यादव को भी गिरफ्तार किया जा चुका है. वह बलिया का रहने वाला है और पहले मर्चैंट नेवी में नौकरी करता था. हालांकि, बाद में उस ने नौकरी छोड़ दी थी. उसे ही मथुरा के एक शख्स ने ‘आंसर की’ भेजी थी. एसटीएफ इस मामले में भी जांच कर रही है.’
‘‘अरे यार, सुना है कि पेपर के दौरान ही गड़बड़ी करने वाले 244 लोग गिरफ्तार किए गए थे. कहीं कोई दूसरे की जगह बैठ कर ऐग्जाम दे रहा था, तो कहीं कोई ‘सौल्वर गैंग’ पकड़ा गया था. सोशल मीडिया पर पेपर लीक की खबरें भी तैरती रही थीं,’’ संतोष ने अपनी भी जानकारी जोड़ी.
‘मेरी तो पूरी मेहनत मिट्टी में मिल गई. सुना है कि 6 महीने बाद ऐग्जाम दोबारा होगा, पर न जाने क्यों मेरा मन अब सरकारी नौकरी से हट गया है. ये सब गड़बडि़यां भी तो बेरोजगारी को बढ़ाने वाली होती हैं. बहुत से नौजवान हिम्मत हार जाते हैं. कोचिंग में दिए गए उन के पैसे बरबाद हो जाते हैं. मांबाप के सपने पूरे होने से पहले ही टूट जाते हैं,’ मनोज बोला.
‘‘तुम सही कह रहे हो, पर अगर नौकरी नहीं करोगे तो क्या करोगे? हमारा भविष्य दांव पर लग जाएगा,’’ संतोष ने दिल की बात कही.
‘कल मैं सतना आ रहा हूं, तुम स्टेशन पर मिलने आ जाना. फिर बताऊंगा कि हमें क्या करना है,’ मनोज बोला.
‘‘ठीक है,’’ संतोष ने इतना ही कहा और फोन काट दिया.
अगले दिन ट्रेन आने से पहले ही संतोष स्टेशन पर आ चुकी थी. थोड़ी देर में वे दोनों एक चाय स्टाल पर खड़े चाय पी रहे थे.
‘‘संतोष, मैं ने सोच लिया है कि अब मैं बाइक मरम्मत का अपना काम शुरू करूंगा. मेरे एक दोस्त के पास खाली जगह है. उस ने हां बोल दिया है. शुरू में थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी होगी, पर मुझे अपनी बाजुओं पर यकीन है. क्या तुम मेरा साथ दोगी?’’ मनोज ने अपना इरादा जाहिर कर दिया.
संतोष ने मनोज को बड़े गौर से देखा, फिर उस का हाथ कस कर पकड़ते हुए कहा, ‘‘मंजूर है, पर तुम्हारा सारा अकाउंट मैं ही संभालूंगी.’’
‘‘पर, तुम्हारा गणित तो कमजोर है,’’ मनोज ने चुटकी ली.
‘‘प्रेमिका का गणित कमजोर हो सकता है, पर जीवनसाथी का नहीं. समझे मेरे मनोज बाबू,’’ संतोष के इतना कहते ही वे दोनों खिलखिला कर हंस दिए.
‘‘कहां तो हम दोनों कांस्टेबल बन कर अपना और देश का भला करना चाहते थे, पर ऐसा हो नहीं पाया. हमारी तो ‘ऊपरी कमाई’ भी गई,’’ मनोज ने संतोष को कनखियों से देखते हुए कहा.
‘‘सच है, पहले हम दूसरों से रिश्वत लेते और अब जब कोई कांस्टेबल हमारे गैराज पर आएगा, तो उस के हाथ गरम करने पड़ेंगे,’’ संतोष बोली, तो मनोज धीरे से मुसकराया और उस के होंठों को चूम लिया.