‘‘ब बा, मैं भी ऐसे ही मजबूत कट्टे बनाऊंगा, जैसे तुम बनाते हो. जैसे तुम्हारे बनाए कट्टे फायर करते समय नहीं फटते, ठीक वैसे ही कट्टे मैं भी बनाऊंगा,’’ करमजीत कार के स्टेयरिंग वाले पाइप को काट कर तराशते हुए अपने बाप गुलाब सिंह की तरफ देखते हुए बोला.

हालांकि, गुलाब सिंह करमजीत के सामने ही कट्टे बनाने का काम करता है, लेकिन उस का लड़का बड़ा हो कर कट्टे बनाएगा, यह बात सुन कर गुलाब सिंह के कान खड़े हो गए. उस के सीने में जैसे किसी ने बरछा मार दिया हो.

महज 13 साल के लड़के के मुंह से ऐसी बात सुन कर गुलाब सिंह को बेहद अचरज हुआ था, लेकिन वह सोच रहा था कि जब करमजीत भी कट्टा बनाएगा, तो उसे भी पुलिस दबिश दे कर खोजेगी, उसे भी जंगलों में महीनों तक रह कर दिन बिताने पड़ेंगे.

पाइप मोड़तेमोड़ते गुलाब सिंह के हाथ वहीं रुक गए. वह यादों के धुंधलके में कहीं गहरे उतरता गया.

गुलाब सिंह का गांव पैतनपुर में जन्म हुआ था. वह बचपन से ही इसी माहौल में पलाबढ़ा था. उस के पिताजी भी कट्टे ही बनाते थे. कोई 300-400 लोग रहते थे इस गांव में. सब का यही धंधा था, कट्टा बनाने का. कानूनी तरीके से यहां कुछ नहीं होता था, सबकुछ परदे के पीछे से होता था.

बहुत कम मेहनत और बहुत कम लागत में बन जाता था कट्टा, फिर उसे बाहर ले जा कर बेचने की भी टैंशन नहीं थी. दूरदराज के अपराधी किस्म के लोग अपनी सुविधा के मुताबिक गुलाब सिंह से कट्टे खरीद कर ले जाते थे खासकर छोटेमोटे दूरदराज के इलाकों में कट्टे की बहुत डिमांड रहती थी.

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