विदाई- भाग 2: क्या कविता को नीरज का प्यार मिला?

उस ने आगे बढ़ कर अपनी पत्नी को बांहों में भर लिया. कविता अचानक हिचकियां ले कर रोने लगी. नीरज की आंखों से भी आंसू बह रहे थे.

कविता के शरीर ने जब कांपना बंद कर दिया तब नीरज ने उसे अपनी बांहों के घेरे से मुक्त किया. अब तक अपनी मजबूत इच्छाशक्ति का सहारा ले कर उस ने खुद को काफी संभाल भी लिया था.

‘‘मेरे सामने यह रोनाधोना नहीं चलेगा, जानेमन,’’ उस ने मुसकरा कर कविता के गाल पर चुटकी भरी, ‘‘इन मुसीबत के क्षणों को भी हम उत्साह, हंसीखुशी और प्रेम के साथ गुजारेंगे. यह वादा इसी वक्त तुम्हें मुझ से करना होगा, कविता.’’

नीरज ने अपना हाथ कविता के सामने कर दिया.

कविता शरमाते हुए पहली बार सहज ढंग से मुसकराई और उस ने हाथ बढ़ा कर नीरज का हाथ पकड़ लिया.

उस रात नीरज अपनी ससुराल में रुका. दोनों ने साथसाथ खाना खाया. फिर देर रात तक हाथों में हाथ ले कर बातें करते रहे.

भविष्य के बारे में कैसी भी योजना बनाने का अवसर तो नियति ने उन से छीन ही लिया था. अतीत की खट्टीमीठी यादों को ही उन दोनों ने खूब याद किया.

सुहागरात, शिमला में बिताया हनीमून, साथ की गई खरीदारी, देखी हुई जगहें, आपसी तकरार, प्यार में बिताए क्षण, प्रशंसा, नाराजगी, रूठनामनाना और अन्य ढेर सारी यादों को उन्होंने उस रात शब्दों के माध्यम से जिआ.

हंसतेमुसकराते, आंसू बहाते वे दोनों देर रात तक जागते रहे. कविता उसे यौन सुख देने की इच्छुक भी थी पर कैंसर ने इतना तेज दर्द पैदा किया कि उन का मिलन संभव न था.

अपनी बेबसी पर कविता की रुलाई फूट पड़ी. नीरज ने बड़े सहज अंदाज में पूरी बात को लिया. वह तब तक कविता के सिर को सहलाता रहा जब तक वह सो नहीं गई.

‘‘मैं तुम्हारी अंतिम सांस तक तुम्हारे पास हूं, कविता. इस दुनिया से तुम्हारी विदाई मायूसी व शिकायत के साथ नहीं बल्कि प्रेम व अपनेपन के एहसास के साथ होगी, यह वादा है मेरा तुम से,’’ नींद में डूबी कविता से यह वादा कर के ही नीरज ने सोने के लिए अपनी आंखें बंद कीं.

अगले दिन सुबह नीरज और कविता 2 कमरों वाले एक फ्लैट में  रहने चले आए. यह खाली पड़ा फ्लैट नीरज के एक पक्के दोस्त रवि का था. रवि ने फ्लैट दिया तो अन्य दोस्तों व आफिस के सहयोगियों ने जरूरत के दूसरे सामान भी फ्लैट में पहुंचा दिए.

नीरज ने आफिस से लंबी छुट्टी ले ली. जहां तक संभव होता अपना हर पल वह कविता के साथ गुजारने की कोशिश करता.

उन से मिलने रोज ही कोई न कोई घर का सदस्य, रिश्तेदार या दोस्त आ जाते. सभी अपनेअपने ढंग से सहानुभूति जाहिर कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश करते.

नीरज की समझ में एक बात जल्दी ही आ गई कि हर सहानुभूतिपूर्ण बातचीत के बाद वह दोनों ही उदासी और निराशा का शिकार हो जाते थे. शब्दों के माध्यम से शरीर या मन की पीड़ा को कम करना संभव नहीं था.

इस समझ ने नीरज को बदल दिया. कविता का ध्यान उस की घातक बीमारी पर से हटा रहे, इस के लिए उस ने ज्यादा सक्रिय उपायों को इस्तेमाल में लाने का निर्णय किया.

उसी शाम वह बाजार से लूडो और कैरमबोर्ड खरीद लाया. कविता को ये दोनों ही खेल पसंद थे. जब भी समय मिलता दोनों के बीच लूडो की बाजी जम जाती.

एक सुबह रसोई में जा कर नीरज ने कविता से कहा, ‘‘मुझे भी खाना बनाना सिखाओ, मैं चाय बनाने के अलावा और कुछ जानता ही नहीं.’’

‘‘अच्छा, खाना बनाना सीखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी जनाब,’’ कविता उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए मुसकराई.

‘‘मैडमजी, मैं पूरी लगन से सीखूंगा.’’

‘‘मेरी डांट भी सुननी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे मंजूर है.’’

‘‘तब पहले सब्जी काटना सीखो,’’ कविता ने 4 आलू मजाकमजाक में नीरज को पकड़ा दिए.

नीरज तो सचमुच आलुओं को धो कर उन्हें काटने को तैयार हो गया. कविता ने उसे रोकना भी चाहा, पर वह नहीं माना.

उसे ढंग से चाकू पकड़ना भी कविता को सिखाना पड़ा. नीरज ने आलू के आड़ेतिरछे टुकड़े बड़े ध्यान से काटे. दोनों ने ही इस काम में खूब मजा लिया.

‘‘अब मैं तुम्हें खिलाऊंगा आलू के पकौड़े,’’ नीरज की इस घोषणा को सुन कर कविता ने इतनी तरह की अजीबो- गरीब शक्लें बनाईं कि उस का हंसतेहंसते पेट दुखने लगा.

नीरज ने बेसन खुद घोला. तेल की कड़ाही के सामने खुद ही जमा रहा. कविता की सहायता व सलाह लेना उसे मंजूर था, पर पकौड़े बनाने का काम उसी ने किया.

उस दिन के बाद से नीरज भोजन बनाने के काम में कविता का बराबर हाथ बंटाता. कविता को भी उसे सिखाने में बहुत मजा आता. रसोई में साथसाथ बिताए समय के दौरान वह अपना दुखदर्द पूरी तरह भूल जाती.

‘‘मैं नहीं रहूंगी, तब भी आप कभी भूखे नहीं रहोगे. बहुत कुछ बनाना सीख गए हो अब आप,’’ एक रात सोने के समय कविता ने उसे छेड़ा.

‘‘तुम से मैं ने यह जो खाना बनाना सीखा है, शायद इसी की वजह से ऐसा समय कभी नहीं आएगा, जो तुम मेरे साथ मेरे दिल में कभी न रहो,’’ नीरज ने उस के होंठों को चूम लिया.

नीरज से लिपट कर बहुत देर तक खामोश रहने के बाद कविता ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आप के प्यार के कारण अब मुझे मौत से डर नहीं लगता है.

‘‘जिस से जानपहचान नहीं उस से डरना क्या. जीवन प्रेम से भरा हो तो मौत के बारे में सोचने की फुरसत किसे है,’’ नीरज ने इस बार उस की आंखों को बारीबारी से चूमा.

‘‘आप बहुत अच्छे हो,’’ कविता की आंखें नम होने लगीं.

‘‘थैंक यू. देखो, अगर मैं तुम्हारी तारीफ करने लगा तो सुबह हो जाएगी. कल अस्पताल जाना है. अब तुम आराम करो,’’ अपनी हथेली से नीरज ने कविता की आंखें मूंद दीं.

कुछ ही देर में कविता गहरी नींद के आगोश में पहुंच गई. नीरज देर तक उस के कमजोर पर शांत चेहरे को प्यार से निहारता रहा.

हर दूसरे दिन नीरज अपने किसी दोस्त की कार मांग लाता और कविता को उस की सहेलियों व मनपसंद रिश्तेदारों से मिलाने ले जाता. कभीकभी दोनों अकेले किसी उद्यान में जा कर हरियाली व रंगबिरंगे फूलों के बीच समय गुजारते. एकदूसरे का हाथ थाम कर अपने दिलों की बात कहते हुए समय कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता.

नीरज कितनी लगन व प्रेम से कविता की देखभाल कर रहा है, यह किसी की नजरों से छिपा नहीं रहा. कविता के मातापिता व भाई हर किसी के सामने नीरज की प्रशंसा करते न थकते.

नीरज के अपने मातापिता को उस का व्यवहार समझ में नहीं आता. वे उस के फ्लैट से हमेशा चिंतित व परेशान से हो कर लौटते.

विदाई- भाग 1: क्या कविता को नीरज का प्यार मिला?

नीरज 3 महीने की टे्रनिंग के लिए दिल्ली से मुंबई गया था पर उसे 2 माह बाद ही वापस दिल्ली लौटना पड़ा था.

‘‘कविता की तबीयत बहुत खराब है. डा. विनिता कहती हैं कि उसे स्तन कैंसर है. तुम फौरन यहां आओ,’’ टेलीफोन पर अपने पिता से पिछली शाम हुए इस वार्त्तालाप पर नीरज को विश्वास नहीं हो रहा था.

कविता और उस की शादी हुए अभी 6 महीने भी पूरे नहीं हुए थे. सिर्फ 25-26 साल की कम उम्र में कैंसर कैसे हो गया? इस सवाल से जूझते हुए नीरज का सिर दर्द से फटने लगा था.

एअरपोर्ट से घर न जा कर नीरज सीधे डा. विनिता से मिलने पहुंचा. इस समय उस का दिल भय और चिंता से बैठा जा रहा था.

डा. विनिता ने जो बताया उसे सुन कर नीरज की आंखों से आंसू झरने लगे.

‘‘तुम्हें तो पता ही है कि कविता गर्भवती थी. उसे जिस तरह का स्तन कैंसर हुआ है, उस का गर्भ धारण करने से गहरा रिश्ता है. इस तरह का कैंसर कविता की उम्र वाली स्त्रियों को हो जाता है,’’ डा. विनिता ने गंभीर लहजे में उसे जानकारी दी.

‘‘अब उस का क्या इलाज करेंगे आप लोग?’’ अपने आंसू पोंछ कर नीरज ने कांपते स्वर में पूछा.

बेचैनी से पहलू बदलने के बाद डा. विनिता ने जवाब दिया, ‘‘नीरज, कविता का कैंसर बहुत तेजी से फैलने वाला कैंसर है. वह मेरे पास पहुंची भी देर से थी. दवाइयों और रेडियोथेरैपी से मैं उस के कैंसर के और ज्यादा फैलने की गति को ही कम कर सकती हूं, पर उसे कैंसरमुक्त करना अब संभव नहीं है.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं? मेरी कविता क्या बचेगी नहीं?’’ नीरज रोंआसा हो कर बोला.

‘‘वह कुछ हफ्तों या महीनों से ज्यादा हमारे साथ नहीं रहेगी. अपनी प्यार भरी देखभाल व सेवा से तुम्हें उस के बाकी बचे दिनों को ज्यादा से ज्यादा सुखद और आरामदायक बनाने की कोशिश करनी होगी. कविता को ले कर तुम्हारे घर वालों का आपस में झगड़ना उसे बहुत दुख देगा.’’

‘‘यह लोग आपस में किस बात पर झगड़े, डाक्टर?’’ नीरज चौंका और फिर ज्यादा दुखी नजर आने लगा.

‘‘कैंसर की काली छाया ने तुम्हारे परिवार में सभी को विचलित कर दिया है. कविता इस समय अपने मायके में है. वहां पहुंचते ही तुम्हें दोनों परिवारों के बीच टकराव के कारण समझ में आ जाएंगे. तुम्हें तो इस वक्त बेहद समझदारी से काम लेना है. मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं,’’ नीरज की पीठ अपनेपन से थपथपा कर डा. विनिता ने उसे विदा किया.

ससुराल में कविता से मुलाकात करने से पहले नीरज को अपने सासससुर व साले के कड़वे, तीखे और अपमानित करने वाले शब्दों को सुनना पड़ा.

‘‘कैंसर की बीमारी से पीडि़त अपनी बेटी को मैं ने धोखे से तुम्हारे साथ बांध दिया, तुम्हारे मातापिता के इस घटिया आरोप ने मुझे बुरी तरह आहत किया है. नीरज, मैं तुम लोगों से अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता हूं,’’ गुस्से में उस के ससुर ने अपना फैसला सुनाया.

‘‘इस कठिन समय में उन की मूर्खतापूर्ण बातों को आप दिल से मत लगाइए,’’ थकेहारे अंदाज में नीरज ने अपने ससुर से प्रार्थना की.

‘‘इस कठिन समय को गुजारने के लिए तुम सब हमें अकेले छोड़ने की कृपा करो. बस,’’ उस के साले ने नाटकीय अंदाज में अपने हाथ जोड़े.

‘‘तुम भूल रहे हो कि कविता मेरी पत्नी है.’’

‘‘आप जा कर अपने मातापिता से कह दें कि हमें उन से कैसी भी सहायता की जरूरत नहीं है. अपनी बहन का इलाज मैं अपना सबकुछ बेच कर भी कराऊंगा.’’

‘‘देखिए, आप लोगों ने आपस में एकदूसरे से झगड़ते हुए क्याक्या कहा, उस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. मेरी गृहस्थी उजड़ने की कगार पर आ खड़ी हुई है. कविता से मिलने को मेरा दिल तड़प रहा है…उसे मेरी…मेरे सहारे की जरूरत है. प्लीज, उसे यहां बुलाइए,’’ नीरज की आंखों से आंसू बहने लगे.

नीरज के दुख ने उन के गुस्से के उफान पर पानी के छींटे मारने का काम किया. उस की सास पास आ कर स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरने लगीं.

अब उन सभी की आंखों में आंसू छलक उठे.

‘‘कविता की मौसी उसे अपने साथ ले कर गई हैं. वह रात तक लौटेंगी. तुम तब तक यहां आराम कर लो,’’ उस की सास ने बताया.

अपने हाथों से मुंह कई बार पोंछ कर नीरज ने मन के बोझिलपन को दूर करने की कोशिश की. फिर उठ कर बोला, ‘‘मैं अभी घर जाता हूं. रात को लौटूंगा. कविता से कहना कि मेरे साथ घर लौटने की तैयारी कर के रखे.’’

आटोरिकशा पकड़ कर नीरज घर पहुंचा. उस का मन बुझाबुझा सा था. अपने मातापिता के रूखे स्वभाव को वह अच्छी तरह जानता था इसलिए उन्हें समझाने की उस ने कोई कोशिश भी नहीं की.

कविता की जानलेवा बीमारी की चर्चा छिड़ते ही उस की मां ने गुस्से में अपने मन की बात कही, ‘‘तेरी ससुराल वालों ने हमें ठग कर अपनी सिरदर्दी हमारे सिर पर लाद दी है, नीरज. कविता के इलाज की भागदौड़ और उस की दिनरात की सेवा हम से नहीं होगी. अब उसे अपने मायके में ही रहने दे, बेटे.’’

‘‘तेरे सासससुर ने शादी में अच्छा दहेज देने का मुझे ताना दिया है. सुन, अपनी मां से कविता के सारे जेवर ले जा कर उन्हें दे देना,’’ नीरज के पिता भी तेज गुस्से का शिकार बने हुए थे.

नीरज की छोटी बहन वंदना ने जरूर उस के साथ कुछ देर बैठ कर अपनी आंखों से आंसू बहाए पर कविता को घर लाने की बात उस ने भी अपने मुंह से नहीं निकाली.

अपने कमरे में नीरज बिना कपड़े बदले औंधे मुंह बिस्तर पर गिर पड़ा. इस समय वह अपने को बेहद अकेला महसूस कर रहा था. अपने घर व ससुराल वालों के रूखे व झगड़ालू व्यवहार से उसे गहरी शिकायत थी.

उस के अपने घर वाले बीमार कविता को घर में रखना नहीं चाहते थे और ससुराल में रहने पर नीरज का अपना दिल नहीं लगता. वह कविता के साथ रह कर कैसे यह कठिन दिन गुजारे, इस समस्या का हल खोजने को उसे काफी माथापच्ची करनी पड़ी.

उस रात कविता से नीरज करीब 2 माह बाद मिला. उसे देख कर नीरज को मन ही मन जबरदस्त झटका लगा. उस की खूबसूरत पत्नी का रंगरूप मुरझा गया था.

तुम ऐसी निकलीं – भाग 4: फरेबी आशिक की मोहब्बत

मोनिका नकली सी हंसी के  साथ मुसकरा दी. ‘मोनिका…’ अचानक  उस के मुंह से निकला. उस ने अचानक महसूस किया कि अंतरंग क्षणों में वह उस के कानों में  इसी भावुकता से फुसफुसाता था. ‘मोनिका…’ वह दोबारा मन में बोला. इतने में वह साफसाफ  बोली, ” पैसे, पैसों के  हिसाब के लिए आई हूं.”

“ओह, अच्छा.” वह समझा कि मोनिका बहुत ही सुसंकृत है और  वह सब के सामने बहुत कायदे से पेश आना चाहती है, इसलिए  उस ने गरदन दाएं और बाएं दौडा़ कर देखा. मगर आसपास तो उन दोनों के सिवा और कोई भी था ही नहीं. सो, उस को लगा कि उस की गैरहाजिरी में शायद  वह चादरें पसंद कर  ले गई होगी. तो, आज उन के  पैसे देने आई होगी.

“हां, तो मोनिका…” उस ने आंखें मिला कर कहा तो वह नजर नीची कर के फिर बोली, “आज तुम  मेरा हिसाब पूरा कर दो, 5 बार के मेरे  पैसे दे दो, 2 हजार रुपए के  हिसाब से 10 हजार बनते हैं.  आप, 8 हजार रुपए दे दो.”

मोनिका ऐसा कह कर खामोश हो गई,  पर उस की आंखें नीची ही रहीं. उस के कानों ने यह सुना, तो वह तो जैसे आसमान से गिरा. उस को लगा कि  वह जैसे किसी सडे़ हुए गोबर में फेंक दिया गया हो, छपाक… यह वही मोनिका है  और किस बात के पैसे मांग रही है, उन मुलाक़ातों, ताल्लुकातों के जिन में वह भी  अपनी मरजी से शामिल हुई. मगर वह तो उस से बहुत प्यार करती थी.

“मोनिका,” उस के मुंह से निकला और मुंह खोलते ही जैसे सडा़ हुआ  गोबर सीधा उस के मुंह में गया,  लेकिन उस ने  अपनी आंखों से, पलकों से वह बदबूदार गोबर हटाया और  पलकें झपकाते हुए कहा, “मोनिका, हम तो एकदूसरे की  पूरी सहमति से… है ना… और यह तो प्यार था.”

“मगर, मैं तो  किसी प्रेमव्रेम को बिलकुल भी  नहीं मानती. चादर की  तरह मेरी देह भी, बस, बिक्री के  लिए ही सजतीसंवरती  है.

“तुम, गंदे आदमी,  जिस से पता नहीं कैसीकैसी मछली सी भयानक बदबू आती रहती है. तुम, जो मुझे एक चुन्नी के समान अपने अंग में लपेटे रखना चाहते हो, तुम, जो केवल अपनी शारीरिक वासनाओं को तृप्त करना चाहते हो, तुम, कैसे राक्षस हो, दैत्य हो, मुझे पता है क्योंकि तुम को मैं ने सहा है. और तुम कहते हो  मुझे  प्यार करते हो? तुम…” और वह चुप हो गई.

अब वह गिड़गिडा़ने लगा, “मोनिका, अब तो  मैं ने अपना जीवन तुम्हारे हाथ में दे दिया  है. मेरे पास शब्द नहीं हैं, मेरे मन की  आवाज सुनो. तुम आज मेरे कोमल दिल को लात मार रही हो  पर एक दिन जरूर…”

मगर मोनिका बिलकुल  ही जड़ हो कर बैठी  थी.  अचानक  उस से बेहतर  होने  का तेज मोनिका के हावभाव  में उदित हुआ. विश्वास  और व्यावहारिकता के रंग  उस की आंखों में छा गए. वह जैसे किसी जरूरी काम को याद कर के  उठ खड़ी हुई. उस के इस रूखेपन से  अब तो वह जैसे  दोबारा उस गोबर में सन  कर लथपथ हो गया था. उस  बदबू से बचने के लिए उस ने  जल्दी से 5 हजार रुपए थमा दिए और  उस की तरफ से अपना  मुंह मोड़ लिया.

मोनिका रुपए लपक कर सीधे  अपने रास्ते चलती  गई. अब वह जरा सा दूर थी. लेकिन अब भी गोबर की हलकीहलकी गंध वहां पर  रह गई थी. उस ने पानी से भरा हुआ  एक जग लिया और  अपना मुंह छपाकछपाक कर धो लिया. एक सूखे कपड़े से मुंह साफ कर अब वह छिम्मा को याद कर रहा था. उस को तो गलती से ही  कभीकभार ही  उस पर  प्यार उमड़ता क्योंकि  छिम्मा तो उस के लिए, बस, एक  टाइमपास  ही थी. मगर वह औरत बड़ी  दिलदार थी.  वस्त्र पहनतेपहनते ही  उस के हाथ पर सौदोसौ रुपए रख ही देती थी.  कितनी मधुर मोहरे वाली महक आती थी उस के भीगे बदन से. और एक यह  थी, निर्लज्ज मटर गली वाली लालची. छि: कितना गंदा नाम, बदनाम, मोनिका.

वह टूट कर  बिखरा, बेकार, बेजान  खिलौना सा बन गया था.  जाते हुए मोनिका की  चप्पल दूर से  ही आवाज कर रही थी और  उसे एकाएक लगा कि एक चप्पल ऊपर उठी और उड़ती हुई  सीधी उस के गाल पर चट से  आ लगी है. अपने  कोमल गाल पर मोनिका  की चप्पल खा कर वह दर्द से कराहने  लगा कि उस के कान में सर्कस  के  मैनेजर की  आवाज पड़ी. वह  वहीं पर एक जोकर को समझा रहा था कि, “तू तो है ही इस काबिल कि तेरी जम कर  हंसी उडा़ई जाए.  हमें पता है कि तेरा कौन सा बटन कब और कैसे दबाना है, समझा कि नहीं? तुझे शरबत पिला कर तेरा सत्कार कर रहे हैं, तो ऐसे ही नहीं, हम  तुझ से दोगुना काम भी  निकाल लेंगे, यह मत भूलना.”

उस को लगा कि यह डायलौग उस के लिए फिट था. उस ने दोनों हाथों से अपने  कान बंद कर लिए और मदहोशी वाली हालत  में  कदमताल करताकरता  बाहर निकल पड़ा. और  सर्कस का मैदान छोड़ कर वह आगे  कहीं किसी सड़क पर आ गया.

“अरे, यह  सुराही तो बहुत जतन से सांचे पर ढाल कर पकाई थी.   इस से तो यह उम्मीद नहीं थी. हम ने सोचा था,  यह  बहुत दिन  साथ निभाएगी.  पर  यह शायद नए  पानी की तासीर से   डर गई. ओह, धत तेरी की. चल.”  वहां एक आदमी था जो   टुकड़ेटुकड़े हो गई सुराही को ठिकाने लगा रहा था.

उस ने यह सब अनदेखा किया मगर हर चीज तो वश में नहीं होती न. अचानक  वह अपने सामने देखता है कि  फैला हुआ लंबा उजाड़ रास्ता है.  यह देख कर वह  लड़खडा़ने  सा लगा और उसी रास्ते पर एक जगह लुढ़क गया. उस ने बंद आंखों से कुछ चित्र देखे, रमा और छिम्मा अपने हाथ हिला कर  उसे बुला रही थीं. वह एकाएक उठा और उठ कर खड़ा हो गया. ऐसा लगा कि कोई लतिका उस के  पीछे दौड़ती आ रही थी. फिर वह उस का  हाथ पकड़ कर पूछ रही थी, ‘सुनिए, ये वाली  10 चादरें खरीदनी  हैं, कितना डिस्काउंट मिलेगा?’

मगर उस को कुछ और भी  याद आने  लगा था…उस दिन एक फोन आया था कि नहींनहीं, मैं मोनिका हूं, लतिका नहीं. तो, ऐसे ही सारी जाजिम बिछाई जाती है. पहले चादर देखो, फिर वही चादर बिछा दो.

दिल्लगी बन गई दिल की लगी : भाग 4

परवेज अपनी कोशिश में लगे रहे आखिर उन्हें दुबई की एक अच्छी कंपनी में शानदार जौब मिल गई. वह साफिया बेगम को लाने उन के मायके गए. साफिया के भाई उन से बड़ी बदतमीजी से पेश आए. उन्होंने परवेज को साफिया से मिलने भी नहीं दिया और घर से निकाल दिया. भाइयों ने कुछ अरसे तो साफिया बेगम को अच्छे से खूब लाड़प्यार से रखा, फिर उन की आंखें बदलने लगीं.

मांबाप के मरते ही हालात और बुरे हो गए. भाभियां उन से जुबान चलाने लगीं. उन्हें मनहूस कह कर पुकारने लगीं. एक दिन घर में भाभियों का साफिया से झगड़ा हुआ. भाई वहां होते हुए भी तटस्थ रहे. बीवियों ने साफिया को तमाचे भी मारे.

इसे साफिया बरदाश्त नहीं कर सकीं. अपना सामान समेटा और बच्चे को ले कर कराची का रुख कर गईं. फिर हमारे मुहल्ले में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगीं. गुजारे के लिए वह सिलाईकढ़ाई करने लगीं. जल्द ही उन का काम अच्छा चलने लगा.

उन्हें अब अपनी गलती पर खूब पछतावा हो रहा था. वह समझ गई थीं कि बिना पति के औरत की कद्र नहीं रहती. उन्हें यह शिकायत थी कि दुबई जाते वक्त परवेज ने उसे नहीं पूछा. उसे यह पता ही नहीं चला कि परवेज उन्हें लेने आया था. पर गलती उन के भाइयों की थी, जिन्होंने परवेज को उन से मिलने तक नहीं दिया बल्कि बदतमीजी कर उसे घर से निकाल दिया.

दुबई आने के बाद वह फिर से साफिया के मायके गए. वहां पता चला कि भाइयों ने उसे निकाल दिया. तब उन्होंने साफिया को तमाम जगहों पर खोजा. इतना ही नहीं उन्होंने अखबार तक में इश्तहार निकलवाया पर साफिया का कहीं पता नहीं लगा.

परवेज ने थक के तलाश बंद कर दी और जो कुछ दुबई से कमा कर लाए, उस से एक बिजनैस शुरू कर दिया. रातदिन की मेहनत और ईमानदारी से बिजनैस खूब फैल गया. उन के एक अच्छे दोस्त ने उन की बहुत मदद की. उसी की बहन शमा से परवेज ने दूसरी शादी कर ली.

कराची में एक टेक्सटाइल मिल खरीद ली और बीवी और बेटे समेत कराची शिफ्ट हो गए. यहीं एक शानदार कोठी ले कर चैन से रहने लगे. उन की बीवी बहुत अच्छी समझदार व प्यार करने वाली थी. परवेज ने उसे सब कुछ बता दिया था. परवेज को साफिया याद आती तो वह बेचैन हो जाते क्योंकि वह उन की मोहब्बत थीं.

इतने अरसे के बाद साफिया को सामने देख कर वह हैरान हो गए. अब वह खुद पर काबू न रख सके. दूसरे दिन वह साफिया के घर पहुंच गए. साफिया अपने किए पर शर्मिंदा थीं. वह क्या गिला करतीं. उन्हें सब मालूम हो चुका था. परवेज ने कहा, ‘‘पुरानी बातें दोहराने से कोई फायदा नहीं है. मैं ने तुम्हें लाने की, तुम्हें ढूंढने की बड़ी कोशिश की थी, पर सारी कोशिशें नाकाम रहीं. तुम्हारे भाइयों ने मेरे साथ बड़ा बुरा सलूक किया था. मजबूरन मैं ने दूसरी शादी कर ली. क्या अब भी तुम मुझे कसूरवार ठहराओगी. अब चलो हमारे साथ चल कर रहो.’’

‘‘सच, इस में आप की कोई गलती नहीं है. मैं आप के साथ कैसे रह सकती हूं. आप की बीवी एतराज करेगी और फिर मुझे मंसूर से भी पूछना पड़ेगा, वह राजी होता है या नहीं.’’

‘‘कुछ सोचना नहीं है. फराज की मां को कोई एतराज नहीं होगा. मैं ने बात कर ली है उन से. तुम कल मंसूर के साथ तैयार रहना, मैं लेने आऊंगा.’’

शाम को जब मंसूर घर आया तो साफिया ने उसे सब कुछ बता दिया. पहले तो वह आपे से बाहर हो गया, पर जब साफिया ने उसे समझाया कि भूल उसी की थी, परवेज तो बेकसूर है. मां के बहुत मिन्नत करने पर मंसूर साथ जाने को राजी हो गया.

दूसरे दिन सुबह ही परवेज अपनी बीवी व फराज के साथ पहुंच गए. बहुत मोहब्बत से सब मंसूर व साफिया से मिले. उन्हें मिन्नत कर के अपने साथ घर ले गए. उन दोनों के लिए पहले से ही शानदार कमरे तैयार थे. परवेज ने मंसूर से कहा कि वह फौरन अपनी जौब छोड़ दे और फराज के साथ दफ्तर का काम संभाले. मंसूर तैयार न था, पर बाप ने उस के आगे हाथ जोड़ दिए. इतने अरसे के बाद बाप की चाहत मिली तो वह इनकार नहीं कर सका.

अगले हफ्ते मैं फराज से मिलने दफ्तर गई तो देखा कि फराज की कुरसी पर मंसूर बैठा था. फराज एक छोटी टेबल पर था. मुझे देखते ही मंसूर उठ कर चला गया.

फराज ने कहा, ‘‘शीना तुम हमारे लिए बहुत लकी हो, तुम्हारी मंगनी पर ही मुझे मेरी मां और भाई मिला.’’

इस के बाद मुझे फराज ने सारी कहानी सुनाई. मैं ये सब सुन कर भौचक्का रह गई. क्या किस्मत के खेल हैं, जिस कुरसी की वजह से मैं ने फराज पर डोरे डाले थे आज उसी कुरसी पर मंसूर बैठा था, जिस का प्यार मैं ने ठुकरा दिया था. 2 महीने बाद मेरी शादी थी. अब मुझे ये सोच कर डर लग रहा था कि मैं एक ही घर में मंसूर के साथ कैसे रहूंगी. अगर फराज को इस बात की भनक भी लग गई तो गजब हो जाएगा. वह तो मंसूर से बेहद प्यार करता है.

शादी हो कर मैं फराज की आलीशान कोठी में पहुंच गई. अब मेरा मंसूर से रातदिन का सामना था. मैं उसे इग्नोर नहीं कर सकती थी. हालांकि मेरे दिल में कोई चोर न था पर मैं मंसूर के दिल का हाल खूब समझ रही थी. क्योंकि उस के दिल में मेरी मोहब्बत एक नासूर बन कर पल रही थी.

रिसैप्शन पार्टी के दूसरे दिन जब फराज मेहमानों को छोड़ने स्टेशन गए थे तो मंसूर ने मुझे बुलाया. मुझे बैठने को कह कर गंभीर लहजे में कहने लगा,  ‘‘जानता हूं, हम दोनों एक मुश्किल सूरतेहाल से गुजर रहे हैं. मैं ने इस बारे में बहुत सोचा और इस नतीजे पर पहुंचा कि मुझे मंजर से हट जाना चाहिए. अब तुम मेरे भाई की अमानत हो. मैं तुम्हारे बारे में कोई गलत बात नहीं सोचना चाहता.

‘‘पर इस दिल का क्या करूं, जहां आज भी तुम्हारी तसवीर सजी हुई है. इस से पहले कि कभी कोई ऐसी बात हो जाए कि मैं अपनी ही नजरों में गिर जाऊं. मैं 2 दिनों में कतर की तरफ निकल जाऊंगा. वहां मेरा एक दोस्त अच्छी नौकरी बता रहा है.

‘‘मेरे जाने के बाद तुम सुकून से जिंदगी गुजारना. ये मेरी बदनसीबी है कि लंबे समय के बाद बाप का प्यार मिला पर तुम्हारे सुकून की खातिर ये नए रिश्ते ये बेपनाह प्यार ये दौलत ये दफ्तर सब छोड़ना पड़ेगा. मेरी अम्मी और अब्बा नहीं मानेंगे पर मैं मिन्नत कर के उन्हें मना लूंगा. मोहब्बत की खातिर मुझे इतनी कुर्बानी तो देनी पड़ेगी.

‘‘भले ही मेरी जिंदगी बरबाद हो जाए पर मेरी दुआ है कि तुम हमेशा खुश रहो, आबाद रहो. मेरे भाई को खूब खुश रखना. एक इल्तजा है कि अब ऐसा मजाक किसी और बदनसीब से नहीं करना, वरना मेरी तरह वह भी सारी उम्र का रोगी बन जाएगा.

‘‘मैं बरसों के बाद मिलने वाली खुशी को अधूरा छोड़ कर पराए देश चला जाऊंगा. अगर मुझ से कोई गुस्ताखी हुई हो तो दीवाना समझ कर माफ कर देना.’’ इतना कह कर वह खामोश हो गया. कुछ पल तो मैं सुन्न सी बैठी रही फिर उठ कर कमरे से बाहर आ गई. मेरे पास कहने को कुछ न था. मेरी शरारत ने मंसूर की जिंदगी तबाह कर दी. मैं उसे किस मुंह से रोकती. अब सिवाय पछतावे के कुछ हासिल नहीं है. अब मैं इस अहसास के साथ जिंदगी बसर करूंगी कि मेरी वजह से एक मासूम शख्स बनवास लेने पर मजबूर हो गया. काश! मैं ने वो दिल्लगी न की होती.

तुम ऐसी निकलीं- भाग 3: फरेबी आशिक की मोहब्बत

मोनिका  के बिना यहां इस सर्कस में इतना टिक पाना उस के लिए  तकरीबन असंभव ही  होता. मालिक भी तो यही देख रहा  था कि वह कब तक यहां रहना सहन करता है. कभीकभी उस को यह लगता कि पूरी दुनिया में, बस,  यह एक मोनिका  ही तो  है जो उस के  अकेलेपन को पहचानती  है, उस के भीतर घुमड़ रहे उन खामोश बादलों  को सुन पाती है  जिन्हें केवल उस का उदास बिस्तर सुन पाता है या तकिया  और यह वह मोनिका से पहले शायद  अपने अकेले में सुनता रहा.

पहले जिन महिलाओं के दामन में वह भीग कर तर हुआ था वे सब इतनी मुलायम नहीं थीं, न दिल के  स्तर पर और न ही गुफ्तगू के  स्तर पर.

यों आज तक उस ने कभी भी  अपने लिए एक मनपसंद जीवन की  कामना  नहीं की थी, वह लगभग 40 वर्ष का  हो चला था. मालिक के  पास रह कर काम करतेकरते उस को 20 साल हो गए, पर उस के मन में काम को ले कर कभी खीझ  पैदा नहीं हुई. वह रांची से भोपाल, ओडिशा से  हैदराबाद, गाजियाबाद से लखीमपुर खीरी कहांकहां नहीं रहा.  कोई शहर, गांव या इंसान  उस को सब मजा ही मजा मिलता रहा. रहनसहन के मामले में  तो वह हमेशा एकजैसे ही रहा-  टीशर्ट और जींस. फैशनेबल कपड़ों  के मामले में  उस के मन  का मिजाज  कभी  भी विचलित नहीं होता.  शायद, यही उस का खास अंदाज रहा जो सब, खासकर आजकल मोनिका, को भी मोहित कर जाता है.

मोहित करना भी तो भ्रम  में  रखना ही है  और सच पूछा जाए तो हर एक इंसान को जी सकने के  लिए सांसों के  साथ भरपूर  भ्रम भी  चाहिए, वरना ज़िंदगी उसे सत्य की  पहचान करवा  कर किस अवसाद  में या किस  मुसीबत में डाल दे,  पता नहीं.

बहुत कम लोग हैं जो उस की तरह अपना सच जान कर भी उस को  सम्पूर्ण रूप से किसी भ्रम के  परदे से ढक कर जीवन का फ़ायदा उठा कर आनंद के  द्वार  पर पहुंचते हैं.

वैसे,  अधिकांश लोगों  में उस की  ही तरह ज्यादा होते होंगे. ज़िंदगी की इस रंगीन फिल्म के  आकर्षण  से अपने मन  को रोक पाना इतना आसान तो  है  भी नहीं. कुत्ते  की गरदन में जितना सुंदर पट्टा उस पर   उतनी ही नजरें  टिकी रहती हैं, पर वह तो कुत्ता नहीं है और न ही  किसी  तरह से हलका इंसान. वह मोनिका से सच्चा प्यार करता है,  बहुत सच्चा.

मोनिका को सुखी रखना उस के अलावा और किसी  के वश में है ही नहीं. वह इतने प्यार से उस से जुड़ी है,  तो रिश्ता तो उस को भी  निभाना ही होगा. हां,  यह वफादारी उस को कुछ  बेचैन भी करेगी. आगे और भी  जवान और मदमाते हुए आकर्षण  आएंगे लेकिन मोनिका से गठबंधन उस को एकदम योगी बना देगा. वह अब किसी तरफ नजर ही नहीं डालेगा.

आज उस के पास 20 साल की  पक्की  नौकरी है. मालिक का  इतना स्नेह और दुलार है. अब मोनिका भी उसी की  होगी. वह मोनिका को सम्मान से अपनाने में  कतई पीछे नहीं हटेगा. जब  कुदरत आगे बढ़ कर उस को इतनी मखमली डोरी से बांध रही  है तो वह इस संकेत का अपमान भला कैसे कर सकता है. यह सोच कर ही उस को मीठीमीठी  गुदगुदी सी  होने लगी.

आज की व्यस्त ग्राहकी जितनी होनी थी, वह भी लगभग  हो  चुकी है. अब वह जानेमन के  पास जाएगा, शायद, वह अपने बाल संवार रही होगी या तकिया  सीने पर टिकाए  कुछ सोच कर हंस  रही होगी.  आज उस के लिए कोई सुंदर सी  ना…नहीं…नहीं… यह जरा  जल्दबाजी होगी. जरा रुक जाता हूं,  कल  या परसों ही कोर्ट में विवाह कर के   एक नए दिन  में नई  शाम  होगी, तब सब ले आऊंगा. यह  जिंदगी अब मेहरबान हो गई है, तो  भला हड़बडी़ कर के काम क्यों करना.  देर शाम तक उस से बातें करूंगा और  एक बढ़िया फिल्म दिखाने  हर रविवार को ले जाऊंगा और ढाबे पर छोलेकुलचे  या पावभाजी  हो जाए, तो होने वाले सुंदर लमहे सुनहरे हो जाएंगे.

ये विचार करतेकरते उस के मन  का बोझ हलका होने लगा  और वह खुद को दुनिया का  सब से सुखी मर्द मानने लगा. जिसे इतनी औरतों ने बेहिसाब प्यार किया, उस को  अब एक सलोनी पत्नी मिलने जा रही  है. यहां तो वह बेपनाह इश्क में कोई कमी छोड़ेगा ही नहीं.  मोनिका कितनी कोमलता से 2 चपाती सेंक कर परोस देती है,  स्वाद ऐसा आता है  जैसे सादी रोटी नहीं, घी का  हलवा खा रहे हों. मोनिका ने कितनी उम्मीद से खुद को उस के इंतजार में अब तक  सजाया होगा. यह सब सोचसोच कर वह यों ही लहालोट हुआ जाता था. उसी मखमली अंदाज में वह भी अपनी पत्नी मोनिका में प्यार के   सुरों को पिरोएगा. उसी अंदाज़ में उस के होंठों पर अपने होंठ रख मधुर, मीठा, रसीला, आनंद, सुख आदि ये सब भाव  एकएक कर के उस को गुदगुदा रहे थे. वह ही जानता था कि पिछले 48 घंटे उस ने कैसे काटे थे? मालिक ने उस को 2 दिनों के  लिए यहां से सौ किलोमीटर दूर काशीपुर भेजा था. वहां पर  2 हफ्ते  बाद ही सहकारी समिति का मेला होने वाला था. उस को वहां जा कर 2 बैठकों मे शामिल हो कर सब फाइनल कर के आना था.

वह एक दिन पहले ही  काशीपुर से लौटा था और, बस, दिल में मोनिकामोनिका ही किए जा रहा था. उस पगले  का यह बचाखुचा जीवन जितना भी था, अब, बस, उस के  ही  के दामन  में बेपरवाह  भीग जाना चाहता था और उस में उस के अलावा  अब  किसी और  को बिलकुल भी राजदार, भागीदार नहीं  बनाना चाहता था. बस, यही सब सपने बुनता वह दीवाना एकएक कर  बिखरी चादरें समेट रहा  था,  उन की तहें  बना रहा  था कि मोनिका अचानक  ही आई और आ कर सामने ही  बैठ गई. वह अकबका सा गया, ‘वह तो  यहां आती नहीं थी, फिर कैसे आ गई?’ वह सोचता रहा.

दिल्लगी बन गई दिल की लगी : भाग 3

सैलरी मिलने पर मैं ने कुछ नए कपड़े खरीदे. उन्हें सिलवाने के लिए मैं साफिया खाला के घर गई. क्योंकि मैं उन्हीं से कपड़े सिलवाती थी. जब मैं उन के घर गई तो खाला पड़ोस में गई थीं.

मंसूर ने मुझे बिठा लिया और कोल्डड्रिंक पेश करते हुए बोला, ‘‘अच्छा हुआ तुम आ गई. मैं तुम्हारे इंस्टीट्यूट के चक्कर काटकाट कर परेशान हो गया. तुम से एक जरूरी बात करनी थी.’’

‘‘कैसी जरूरी बात?’’ मैं चौंकते हुए बोली, ‘‘मैं ने फराज के यहां जौब कर ली है.’’

‘‘दरअसल, बात यह है कि अम्मी मेरी शादी करना चाह रही हैं. उन्होंने मुझ से मेरी पसंद पूछी है. तुम से पूछे बगैर भला मैं उन्हें तुम्हारा नाम कैसे बता देता.’’ वह बोला, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी? तुम कहो तो, मैं अम्मी को तुम्हारे घर भेजूं?’’

उस की यह बात सुनते ही मैं एकदम घबरा गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘ये तुम क्या कह रहे हो मंसूर? मैं ने कभी तुम्हें इस नजर से देखा ही नहीं.’’

‘‘फिर वह सब क्या था? वह लगावट और प्यार, मीठे अंदाज में बातें करना, मुझ से चूडि़यां मंगवाना, पहनना, मेरे साथ चलना?’’ वह चौंकते हुए बोला, ‘‘क्या तुम मुझे बेवकूफ बना रही थी?’’

‘‘माफ करना मंसूर, मैं ने तुम्हें बेवकूफ नहीं बनाया, मैं तुम्हें केवल अपना दोस्त समझती हूं.’’

‘‘दोस्ती का नाम ले कर तुम मुझ से आसानी से दामन नहीं छुड़ा सकतीं. तुम्हारे रवैये से साफ जाहिर था कि तुम मुझे पसंद करती हो. अगर ऐसा न था तो तुम मुझे पहले ही दिन रोक देती. बात इतनी आगे न बढ़ती?’’

‘‘हां, ये मुझ से गलती हो गई, मुझे माफ कर दो. मेरे दिल में तुम्हारे लिए ऐसा कोई जज्बा नहीं है. अब इस बात को यहीं खत्म कर दो. तुम भी कोई अच्छी सी लड़की देख कर उस से शादी कर लो. थोड़े दिनों में सब भूल जाओगे.’’ मेरी बात सुन कर उस का चेहरा धुआंधुआं हो गया.

वह मुरझाए लहजे में बोला, ‘‘यह तुम्हारे लिए एक खेल हो सकता है पर मेरे लिए जिंदगी और मौत का सवाल है. तुम्हें भूलना मेरे लिए नामुमकिन है.’’

उसी समय साफिया खाला भी आ गईं. मुझे देख कर वह बहुत खुश हुईं. उन्होंने मुझे नौकरी की मुबारकबाद दी, उन्होंने खुशीखुशी सीने के लिए मेरे कपड़े ले लिए और फिर मैं घर आ गई.

मंसूर की बातें सुन कर मैं परेशान हो गई. मैं ने सोचा भी न था कि मेरा मजाक, एक छोटी सी शरारत किसी की जिंदगी का रोग बन जाएगी. मैं ने अपने जेहन में जिस जीवन साथी की तसवीर बनाई थी, मंसूर उस में फिट नहीं बैठता था. मेरा आइडियल एक खूबसूरत, हैंडसम व अमीर शख्स था, जिस के साथ मैं ऐशभरी जिंदगी गुजार सकूं. अचानक जेहन की स्क्रीन पर एक नाम चमका फराज. हां, वह मेरा मनपसंद साथी हो सकता है.

दूसरे दिन से ही मैं ने अपने मंसूबे पर काम करना शुरू कर दिया. खूबसूरत तो मैं थी ही अब मैं ने बन संवर कर औफिस जाना शुरू कर दिया था. उस दिन मैं हलका गुलाबी सूट और मैचिंग की चूडि़यां और ज्वैलरी पहन कर औफिस गई. फराज मुझे एक लम्हा देखता रहा फिर पूछा, ‘‘क्या आज कोई खास बात है?’’

मैं ने अदा से सिर झटकते हुए कहा, ‘‘हां, मुझे अपनी सहेली की बर्थडे पार्टी में जाना है.’’

उस ने मुझे देखते हुए कहा, ‘‘अच्छी लग रही हो. ऐसे ही रहा करो.’’ फिर मुझे कुछ लेटर टाइप करने को दे दिए. उस दिन जब मैं दोबारा उस के केबिन में गई तो उस ने साथ बिठा कर चाय पिलवाई. मैं धीरे से मुसकुरा दी, किरन ने मुझे फराज के बारे में बताया था कि वह इंतहाई मजबूत कैरेक्टर का बंदा है. कई लड़कियां उस पर मरती थीं, पर उस ने किसी को लिफ्ट नहीं दी. पर मेरा प्लान कामयाबी की मंजिल तय करने लगा था.

कुछ दिनों बाद किरन खास तौर पर मुझ से मिलने घर आई. वह बहाने से मुझे फराज के घर ले गई. उस की महल जैसी कोठी देख कर मैं दंग रह गई. उस के अम्मीअब्बा बहुत प्यार से मिले.

किरन मुझे घर छोड़ने आई तो बोली, ‘‘शीना, तुम ने फराज पर क्या जादू कर दिया? जो बंदा अभी शादी नहीं करना चाहता था, अब वह जल्दी शादी करना चाहता है और पता है तुम उस की पसंद हो. क्या तुम भी उसे पसंद करती हो? बता दो मैं उस की वालिदा के साथ तुम्हारा रिश्ता मांगने तुम्हारे घर आ जाऊं.’’

मैं सिर नीचा कर के धीरे से मुसकरा दी. किरन ने खुश हो कर मुझे गले लगा लिया. 2-3 दिन बाद साफिया खाला हमारे घर आईं. बेहद परेशान थीं.

पूछने पर कहने लगीं, ‘‘क्या बताऊं बेटा मैं मंसूर की वजह से बहुत दुखी हूं. उस ने अजीब हाल बना लिया है. न ढंग से खातपीता है और न किसी से मिलताजुलता है. हंसी तो जैसे उस से रुठ गई है. चुपचाप कमरे में पड़ा रहता है. न जाने क्या रोग लग गया है, उसे तुम जरा उस से पूछो तो कि बात क्या है.’’

मैं उन्हें क्या कहती कि परेशानी की वजह मैं ही हूं. दूसरे दिन किरन और फराज के अम्मीअब्बा रिश्ता ले कर घर आए. फराज के बारे में सारी जानकारी दी. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मेरा ख्वाब इतनी जल्दी पूरा हो जाएगा. मेरे अब्बा फराज के वालिद को अच्छी तरह जानते थे उन्होंने रिश्ता कुबूल कर लिया. फिर सारे मामलात तेजी से तय हो गए. उन्होंने खबर दी कि अगले इतवार को वह लोग तारीख तय करने आएंगे, साथ ही अंगूठी भी पहना देंगे.

इतवार को किरन, फराज के अम्मीअब्बा आए. अम्मी ने शानदार इंतेजाम किया था. अपनी मदद के लिए साफिया खाला को उन्होंने बुला लिया था. खाने के बाद फराज की अम्मी ने हीरे की बहुत खूबसूरत अंगूठी पहनाई. उस वक्त साफिया खाला भी हौल में आ गईं.

साफिया खाला की नजर ज्यों ही फराज के वालिद पर पड़ी, वह पत्थर के बुत की तरह खड़ी रह गईं. फराज के वालिद का भी यही हाल था. हमें समझ न आया कि माजरा क्या है. जो दोनों इस तरह हैरान व परेशान हैं? साफिया खाला फौरन किचन में चली गईं. फराज के वालिद परवेज खान भी जल्दी ही उठे और वो सब निकल गए.

यहां कहानी में एक ऐसा मोड़ आया जिस ने मुझे हिला कर रख दिया. दरअसल साफिया खाला फराज के वालिद परवेज खान की पहली बीवी थीं. जब शादी हुई परवेज खान लाहौर में थे और एक फर्म में अच्छी पोस्ट पर काम करते थे. शुरू के चंद साल बड़े अच्छे गुजरे. मंसूर की पैदाइश के कुछ अरसे बाद फर्म बंद हो गई और परवेज खान की नौकरी चली गई. इस के बाद वह काफी अरसे तक रोजगार ढूंढते रहे.

उन्हें कोई जौब नहीं मिली, इस बीच सारी जमापूंजी भी खत्म हो गई. पेट का दोजख भरने को एक प्राइवेट फर्म में क्लर्क की नौकरी कर ली. इतनी कम तनख्वाह में गुजारा मुश्किल था. साफिया बेगम इस गरीबी की आदी न थीं. वह दौलतमंद बाप की बेटी थीं. शौहर की गरीबी की हालत में वह अपने बाप के घर चली गईं. परवेज खां रोकते रह गए पर वह नहीं मानीं. परवेज खान को भी गुस्सा आ गया उन्होंने तय कर लिया कि जब तक अच्छा कमाएंगे नहीं बीवी को नहीं लाएंगे.

तुम ऐसी निकलीं – भाग 2: फरेबी आशिक की मोहब्बत

मोनिका जिस दोपहर को चादरें ले  गई थी, उसी दिन की शाम उस को बारबार कहीं भगा कर ले जाती. उस रात उस की रात में भी, बस, रात ही रात थी. फिर भोर हुई, दिन चढ़ा और एक फोन आया. हालांकि वह औपचारिक फोन था मगर  जब 2-3 चादरों के  गड़बड़  और उन में कुछकुछ  घिसे हुए प्रिंट को ले कर मोनिका ने शिकायतभरा फोन किया तो उस ने घर का सब अतापता पूछ कर  खुद ही सही, सुंदर, सुघड़ छपाई की नईनई  चादरें उस के घर पर जा कर  अपने हाथों से मोनिका के हाथों में दी थीं.  तब से करीबकरीब वह 4 बार तो  वहां जा ही  चुका था.

एक दिन जब वह मोनिका के  घर पर भोजन और शयन कर के चाय की  चुस्कियां ले रहा था तभी मोनिका के  दरवाजे पर एक बरतन वाला आ गया. पुराने कपड़े के  बदले बरतन बेचने वाला वह धंधेबाज  मोनिका को उस की 3 पुरानी चुन्नियों के  एवज में एक कटोरी पकड़ा गया. उस के जाने के  बाद  मोनिका को  ऐसा  लगा कि वह ठगी गई है.

तब उस ने मोनिका के  गालों को सहलाते  हुए कहा था कि मोना, जाने दो न, भूल जाओ, दूसरों को मूर्ख बना कर खुश होने वाला अंत में पछताता है. हमारी उदासी  और खुशी हमारे सोचने पर और मन की दशा पर निर्भर करती है. अपने कष्ट के  लिए औरों को दोषी कहने वाला रोज कष्ट में रहता है. सुखदुख कुछ नहीं है, हमारा चुनाव है मोना. वह मन ही मन हंस रहा था कि गोवा की डेल्मा का  कहा उस को हूबहू याद रह गया, वाह.

मोनिका ने उस के चुप होने का  इंतजार किया और  यह कीमती सलाह सुन कर उस को  प्यार से एक मधुर  चुंबन दिया. ओह, मोनिका…

वह हौलेहौले  मोनिका का  कितना आदी होता जा रहा था. मोनिका के  साथ उस को  जीवन एकदम से ही सरस और  मधुमय  लगने लगा था. कभी लगता कि इसीलिए हर  मधुरता भी  एक हद तक ही रहती है, कहीं यह समय गुजर न जाए. फिलहाल भले ही चादरों का ही बहाना होता  था मगर उस को लगता कि यह तकदीर का संकेत था. उस के इस तुच्छ से  प्रेमिल संसार में भले ही किसी महान हीरो  वाला  का पुट न हो, भले ही मोनिका को ले कर वह, बस, कोई  सपना ही देख रहा हो  पर आज तो ये सब अनुभूतियां  ही उस के जीवन को रोमांचक बना रही  हैं.

एक रात जब चांदनीरात  जैसे दूध में नहा कर भीग  रही थी और काठगोदाम के कुछ पहाड़ सफेद हो कर दूर से ही चांदी जैसे चमक रहे थे, नीचे रानीबाग की  तरफ गौला नदी का  शोर संगीत सा लग रहा था. उस ने अपना फोन लिया और मोनिका के  नंबर पर लगा दिया. मगर डरकर  दोबारा नहीं किया. तो उसी समय  मोनिका ने ही फोन कर दिया, पूछने लगी, “ओ बुद्धू सेल्समैन.”

“अ,हां,” उस ने घबरा कर कहा.

“इस समय फ़ोन कैसे किया?”

“बस, यह बताना था कि आज शाम ही चादरों की  एक नई गांठ आई है. तुम अपनी किटी की 7-8 सहेलियों के लिए कह रहीं थी न. बिलकुल रोमांटिक छपाई है.”

“कैसी रोमांटिक, यह कैसी छपाई होती है, मैं नहीं समझी?”

“अब यह तो उन को छू कर पता लगेगा.”

“अच्छा, बुद्धू सेल्समैन, जब तुम ने छुआ तो  तुम को कैसा लगा, यह तो बताओ?” मोनिका की आवाज में बहुत शरारत थी.

वह दीवाना हुआ जा रहा था. पर  अब आगे और कुछ भी  बात नहीं करना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि मिनटदोमिनट बाद ही सही फोन तो बंद करना ही होगा. उस ने बहाना बना कर अलविदा कहा, फोन बंद कर  दिया.

पर वह साफसाफ कल्पना कर  पा रहा था कि खुले हुए बाल कभी  मोनिका के गालों से तो  कभी उस की  गरदन पर खेल रहे होंगे.  वह वहां होता तो अभी वह गरमागरम… वह फिर अपना ध्यान हटा कर कहीं कुछ और ही सोचने लगा.

सर्कस की  अपनी भोजन व्यवस्था थी. वहां सुबह चायपोहा, दोपहर में दालरोटीखिचड़ी, शाम को चायपकौड़े और रात को रस  वाले  आलू-तेल के  परांठे मिलते थे.  साथ ही, मालिक उस को एक प्लेट राजमाचावल खाने  के पैसे अलग से रोज  नकद दिया करता था. पर यहां मोनिका के  हाथों के भरवां करेले, आलूशिमलामिर्च, आलूमटरगोभी का  स्वाद ही निराला था.

कुल मिला कर जिंदगी का  हर पल यहां चादर की दुकान और टैंट में मोनिका के बगैर  एक बहुत बरबाद चीज़ ही साबित हो रही  थी. बहुत बोर. रोज़ चादरों की तह करो और  उसी तह में तहमद बनते रहो. कहीं कोई रंग नहीं, कोई रस नहीं. मशीनी हाट और मशीनी काम. यह जीना भी कोई जीना था. हां, अब दुनिया में हर कोई अपना एक जीवन तो चुन ही लेता है और बाकी बारहखडी़ भी उसी हिसाब से तय होती जाती है.

एक दिन उस के लिए कितना भावुक करने वाला पल आया था कि जब मोनिका उस से खुद को कुछ सैकंड के लिए अलग कर के शायद कहीं शून्य में खो गई और एक गीत ‘रोजरोज आंखों तले एक ही सपना चले’ बस, इतना सा टूटाफूटा गुनगुना कर वह  कुछ देर चुप रही और पलंग के  नीचे कच्चे फर्श को ताकने लगी. वहां अपनी आंखों की  कलम  से ज़मीन पर कुछ चित्र बनाती रही,  फिर अचानक   बोली, “हां, जो भी हो, उम्मीद तो बना कर रखनी चाहिए.  सब खत्म होने  तक भी अच्छे होने  की उम्मीद करते रहना, कुदरत का फरमान है.  देह भले ही कितनी  उम्र  पार कर चुकी हो, तो भी उम्मीद को जवानी का  एहसास  छू कर रखना चाहिए, अगर  कहीं यह कमजोर देह डगमगा गई और हमारा आत्मबल मुंह के बल  गिर पड़े. तो चट संभल जाए. इस तरह जीवन के कंधे पर निराशा का बोझ नहीं पड़ता.”

मोनिका से यह सब सुन कर उस को अचंभा हुआ और फिर वह भी मोनिका के  सुर मे सुर मिला कर बोल पड़ा, “हां मोनिका,  हरेक  पल को स्वीकार करना जरूरी है. स्वीकृति ही तो  हर चीज से मुक्त कर देती है. यही रास्ता है. स्वीकृति सहनशीलता से कहीं ज्यादा बेहतर है. लेकिन अगर हम जागरूक नहीं हैं, अगर स्वीकार करना आप के लिए संभव नहीं है और आप हर छोटीछोटी चीज के लिए भी  चिड़चिड़ा जाते हैं तो उस से बचने के  लिए  कम-से-कम कुछ  सहनशीलता तो विकसित कर ही लेनी चाहिए. मैं ने आज तक यही माना कि यह जीवन, बस,  एक सहनशीलता पर ही टिका  है.  मैं खुद कितनी छोटी उम्र से कैसे शहरशहर किसी का  नौकर बन कर  जूझ रहा हूं. मगर मैं हमेशा  यही देख पाता हूं कि कोई  चीज सुविधाजनक नहीं है, तो उस के बारे में शिकायत करने का क्या लाभ. सब स्वीकार कर लो,  यही  सब से अच्छा और आरामदायक  रास्ता है.”

यह सुन कर मोनिका उस से कैसे लता सी लिपटती गई थी.  तब से मोनिका के  हर स्पर्श में उस को  एक कोमलता लगती.  उसे बारबार महसूस होता कि वह एक पोखर है और उस के  समूचे उदास पानी  में वह एक लहर पैदा कर देती है. वह  अब एक ऐसी महत्त्वपूर्ण चीज थी जो परिभाषित तो नहीं हो पा रही थी पर वह कुछ ऐसी तो थी  जो  उस के मर्म पर  और आंतरिक  इच्छा पर राज करने लगी थी.

दिल्लगी बन गई दिल की लगी : भाग 2

मन मार कर मैं मंगनी में पहुंची. जब मैं अपनी कार से उतर रही थी. मैं ने मंसूर को देखा. मेरे दिमाग में बिजली सी चमकी. मैं चेहरे पर वही दिखावे का प्यार लिए मंसूर के पास जा पहुंची. मैं ने उस से कहा, ‘‘प्लीज मंसूर, मेरा एक काम कर दो.’’

‘‘तुम एक नहीं सौ काम बोलो, बंदा हाजिर है.’’ उस ने आशिकाना अंदाज में कहा.

‘‘मेरे पास अंगूरी रंग की चूडि़यां नहीं थीं. अम्मी ने मुझे बाजार जाने नहीं दिया. अभी मंगनी में वक्त है, तुम मुझे बाजार से मेरे सूट के कलर की चूडि़यां ला दो.’’ मैं ने कहा.

मैं पैसे निकालने लगी, पर उस ने मना कर दिया. मेरे सूट को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘मैं चूडि़यां तो ला दूंगा, पर एक शर्त पर.’’

‘‘कैसी शर्त?’’ मैं ने पूछा.

‘‘वह मैं चूडि़यां लाने के बाद ही बताऊंगा.’’ इतना कह कर वह फौरन मोटरसाइकिल ले कर चला गया. मैं अंदर आ कर किरण से मिली. हमारे सभी दोस्त थे, मैं बातों में लग गई कि कानों में हल्की सी आवाज आई, ‘‘शीना.’’

मैं ने मुड़ कर देखा मंसूर था. मैं फौरन उस के पास गई. वहां से दूर हट कर उस ने चूडि़यों का पैकेट मेरे हाथों पर रख दिया. परफेक्ट मैचिंग की बेहद खूबसूरत चूडि़यां लाया था.

जैसे ही मैं चूडि़यां पहनने लगी, उस ने मेरे हाथ से चूडि़यां लेते हुए कहा, ‘‘इन्हें मैं पहनाऊंगा, यही तो मेरी शर्त थी.’’

कुछ कहने की गुंजाइश न थी. उस ने बड़े प्यार से चूडि़यां पहनाईं. मैं उस की आंखों की चमक से डर गई. मैं ने उस से मीठे लहजे में मिन्नत की, ‘‘देखो मंसूर, तुम्हारे साथ मोटरसाइकिल पर जाना या कहीं बैठना ठीक नहीं है. किसी जानने वाले ने देख लिया तो मेरी मुसीबत आ जाएगी. आइंदा मुझे मोटरसाइकिल पर बैठने को मत कहना.’’

‘‘ठीक है, पर तुम अम्मी से मिलने मेरे घर आती रहोगी.’’ उस ने कहा.

मेरे पास सिवाय वादा करने के और कोई रास्ता नहीं था. मैं ने किरण को मजे ले कर सारा किस्सा सुनाया. वह नाराज हो कर बोली, ‘‘किसी के दिल के साथ इस तरह खेलना अच्छी बात नहीं है. क्या तुम उस गरीब से शादी करोगी? नहीं न. जानती है, यह खेल उस की जान का रोग बन जाएगा. इतनी आसानी से वह तुम्हें नहीं छोड़ेगा.’’

मैं ने किरण को यकीन दिलाया कि आगे से ध्यान रखूंगी. मुझे किरण की बात सही लग रही थी, पर मैं अपनी फितरत से मजबूर थी. मुझे इस खेल में मजा आ रहा था. कोई मुझे सराहे, मुझे चाहे, मेरे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए. यह बात भला किसे बुरी लग सकती है.

अपना वादा निभाने के लिए मैं 2 सूट ले कर उस की अम्मी के पास सिलाने गई. मैं ने कहा, ‘‘खाला, मैं ये 2 सूट सिलवाने आई हूं.’’

उसी वक्त मंसूर कमरे से बाहर आ गया. मुझे देख कर वह खुश हो गया. कहने लगा, ‘‘अब अम्मी ने सिलाई का काम बंद कर दिया है. पर ये तुम्हारे सूट हैं, इसलिए जरूर सिलेंगी.’’

उस ने चाहतभरी नजर मुझ पर डाली. खाला ने जल्दी से कहा, ‘‘मेरी बेटी के सूट मैं खूब अच्छे से सीऊंगी, मंसूर जाओ, जल्दी से बेटी के लिए गरम समोसे और जलेबी ले आओ. तब तक मैं चाय बनाती हूं.’’

मेरे ना करने पर भी मंसूर चला गया. हम ने साथ बैठ कर मजे से समोसेजलेबी खाई और चाय पी. मंसूर मुझे देखता रहा. मेरी खातिरदारी करता रहा. जब मैं वापस आने लगी तो वह मुझे दरवाजे तक छोड़ने भी आया. उस ने धीमे से कहा, ‘‘शीना, कल इंस्टीट्यूट के बाहर मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा, मुझे तुम से एक जरूरी बात करनी है.’’

जिस अंदाज में उस ने मुझ से यह बात कही थी मैं चौंक गई. मैं ने कहा, ‘‘मंसूर वह कौन सी जरूरी बात है जो तुम यहां नहीं कर सकते?’’

‘‘नहीं, यहां मुमकिन नहीं है, तुम परेशान न हो, मैं लंबी बात नहीं करूंगा.’’

दूसरे दिन मैं अपने वक्त पर इंस्टीट्यूट से निकली तो मंसूर इंतजार करते हुए मुझे बाहर मिला. उस ने मुझ से रेस्टोरेंट में चलने के लिए कहा तो मैं ने रेस्टोरेंट में जाने से मना कर दिया. वह मुझे एक करीबी पार्क में ले गया. वहां सन्नाटा था. वहां पहुंच कर उस ने एक पैकेट मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘कल मुझे पहली सैलरी मिली. ये गिफ्ट तुम्हारे लिए है.’’

मैं ने कहा, ‘‘मेरे तुम्हारे बीच ऐसा कोई रिश्ता नहीं है कि मैं ये गिफ्ट ले लूं.’’

‘‘रिश्ता भी बन जाएगा. फिलहाल इसे स्वीकार कर लो.’’ वह बोला.

मैं ने पैकेट रख लिया. जब मैं अपने घर की तरफ मुड़ी तो उस ने मेरी तरफ अपनेपन की तरह देखते हुए कहा, ‘‘मुझे उस दिन का इंतजार है जब तुम जिद कर के हक जताते हुए मुझ से तोहफे मांगा करोगी.’’

मुझे यूं लगा जैसे किसी ने मेरे कानों में पिघला हुआ सीसा डाल दिया है. यानी वह मुझ से शादी करने के ख्वाब देख रहा था. दिल तो चाहा कि उस का गिफ्ट उस के मुंह पर मार दूं, मगर मैं चुपचाप गिफ्ट लिए घर आ गई. कमरा बंद कर के मैं बिस्तर पर लेट गई. सोचने लगी कि मैं ने मजाकजाक में एक जंजाल पीछे लगा लिया. लेकिन अब इस से छुटकारा पाना बहुत जरूरी था.

मंसूर के दिल में ये बात बैठ गई है तो वह अपनी मां को रिश्ता ले कर भी भेज सकता है. रिश्ता आने पर मेरी अम्मी और अब्बू जो भी फैसला करें पर मेरे इनकार से मंसूर और साफिया खाला के दिल जरूर टूट जाएंगे. अब मुझे महसूस हो रहा था कि मुझे मंसूर को इस तरह बढ़ावा नहीं देना चाहिए था. मेरे प्यार मेरे व्यवहार से ही वह मेरी तरफ आकर्षित हुआ, वरना पहले तो उस से केवल हायहैलो ही होती थी.

मेरा कंप्यूटर का कोर्स भी 2 दिन में पूरा होने वाला था. इसलिए मैं ने किरण को फोन किया कि वह अपने दोस्त फराज से मेरी जौब की बात करे. उस के वालिद की 2-3 कंपनियां हैं. उस में कहीं मुझे रख ले.

किरण ने कहा, ‘‘फराज मेरा दोस्त ही नहीं कजिन भी है. एक हफ्ते में मैं तुम्हें औफिस में सेट कर दूंगी.’’

उसी की बात से मुझे थोड़ी तसल्ली हुई. पता नहीं क्यों मेरे मेरे दिमाग में बारबार फराज का खयाल आने लगा. मैं अब जौब करना चाहती थी, पर घर का माहौल ऐसा था कि वह जौब नहीं करने देते. मैं ने बड़ी मुश्किल से अपनी अम्मी से जौब करने की इजाजत ली.

मेरे वालिद फराज के वालिद व उन के कारोबार को जानते थे. 3 दिन बाद मुझे कंपनी से अपाइंटमेंट लेटर मिल गया. फराज का औफिस किलीकटन पर था. मैं ने रिसेप्शन पर अपने बारे में बताया तो मुझे फौरन ही बुलाया गया. फराज बेहद स्मार्ट और खूबसूरत था. उस ने इंटरकाम के जरिए एक लड़की को बुलाया और कहा, ‘‘मिस शीना, ये मिस तबंदा हैं. ये जौब से रिजाइन कर रही हैं इन्हीं की जगह पर आप यहां मेरी प्राइवेट सेक्रेटरी का काम करेंगी. मिस तबंदा आप इन्हें काम के बारे में सब बातें अच्छे से समझा दीजिए.’’

वह मुझे ले कर बाहर आ गई. उस ने बताया कि मेरी शादी हो गई और मैं दुबई जा रही हूं. उस ने मुझे अच्छे से सारा काम समझा दिया. वह दिन भर मेरे साथ रही, मुझे गाइड करती रही. दूसरे रोज भी वह मेरे साथ रही. उस के बाद मैं ने बखूबी सारा काम संभाल लिया. मुझे एक केबिन मिला था. मेरी टेबल पर कंप्यूटर भी था, जो मुझे अच्छे से आता था और अपनी काबीलियत के बल पर मैं जल्द ही अच्छे से एडजस्ट हो गई.

इस बीच मेरी फराज से 2-3 मुलाकातें हुईं. उस के औफिस का रास्ता मेरे केबिन से हो कर गुजरता था. वह केवल काम से काम रखने वाला शख्स था. किसी से ज्यादा बात नहीं करता. काम होने पर ही केबिन में बुलाता था. अब उस ने मुझे अपने बिजनेस लेटर्स टाइप करने को दे दिए.

महीना खत्म होने पर मुझे अच्छीखासी सैलरी मिली. मैं खुश हो गई. मुझे फराज बहुत पसंद आया. वह मेरी ख्वाहिश के मुताबिक खूबसूरत होने के साथसाथ दौलतमंद भी था. धीरेधीरे मेरे हुस्न मेरी अदाओं से वह मेरी तरफ आसक्त होने लगा. फराज के वालिद कभीकभार ही औफिस आते थे, वह मुझ से बड़े प्यार से बात करते थे.

तुम ऐसी निकलीं – भाग 1: फरेबी आशिक की मोहब्बत

मन का बोधबिंदु जब  बारबार यह कहने लगता है कि अरे, यह  कहां खप रहे हो, यह कौन सी बेहया सी चीज सोख ली तुम ने, तब ऐसा होता ही है कि कोई तूफान फड़फड़ा कर आ जाता है जो न जाने क्या-क्या उड़ा ले जाता है और जाने क्याक्या थमा जाता है.

दिल्ली के सदर बाजार  से  जाती तंग सी एक छोटी गली को मटर गली कहा जाता था. मटर गली नाम किस ने रखा, यह पता नहीं, पर यहां के सब से बुजुर्ग बुद्धि काका 7-8  दिनों पहले उस को  बता रहे थे  कि उन के दादाजी भी इस जगह को  इसी नाम से पुकारते थे. तब यहां एक  विशाल मंडी हुआ करती थी. उस मंडी में किसान सब्जियां लाते थे- अदरक, हलदी,  लहसुन,  प्याज आदि. ठेठ पहाड़ी रईस अपने टटटू की  आर्मी ले कर मनचाहा माल यानी अदरक, लहसुन, प्याज लाद कर ले जाते. पहाड़ी लोग बगैर इन बेशकीमती लहसुन, प्याज के मांस वगैरह को बेस्वाद ही समझते थे. तब से ही हर  आमओखास की पसंद थी यह मटर गली.

पर, अब इस का चेहरामोहरा  बदल सा गया है. यह जगह अब सब्जी मंडी तो कम बल्कि मिलीजुली मार्केट बन गई है जहां देसी दवाओं से ले कर कपड़े, कफन, वरमाला, मोतियों के हार और जूतेचप्पल आदि सबकुछ मिल जाता है.

यहीं मटर गली से पतली सी  पगडंडी आगे राजपुरा कालोनी की तरफ  जा रही है. पहले यहां सब कैसा था, यह तो  उस को कुछ भी  मालूम नहीं मगर मोनिका ने बताया था कि  पहले भी यह  एकदम कच्ची हुआ करती थी और आज भी  कच्ची  ही रह गई है यह पगडंडी.

वह इसी पगडंडी पर कैसे संभलसंभल कर  चलते हुए पहली बार मोनिका  से मिलने गया था. मोनिका का बाप यहां मटरगली  में ही घड़ी ठीक करने का  काम करता था और कुछ दलाली वाले  वैधअवैध काम भी  करता था. उस दोपहर मोनिका  परदे से सटी  उस का इंतजार कर रही थी जब वह उस के टैंटनुमा घर पर पहुंचा  था.

मगर उस की निगाह न घर पर थी न उस की साजसजावट पर. वह अपनी दोनों आंखों से बस मोनिका पर ही टिका था. उस दिन भी और उस के बाद भी हर दिन. यों मोनिका  से उस की पहली मुलाकात अचानक सर्कस के प्रांगण में तकरीबन एक महीना  पहले ही  हुई थी  जब उस ने अपने मालिक के  साथ बैडशीट और चादरों की  स्टाल सर्कस मैदान में  ही लगा रखी थी.

यह भीड़ बनाने के लिए एक प्रयोग के तहत किया गया था और  चादरों की  यह दुकान सर्कस मालिक से इकरारनामे के अंतर्गत बुकिंग विंडो से सट कर लगाई गई थी. ऐसा प्रयोग सर्कस में पहली बार हुआ था और उस को यह लगता था कि यहां पर सस्ती व मंहगी चादर दिखाएं, फिर बेचने में कामयाब होएं. यह भी तो सर्कस की  विधा यानी  एक कलाबाजी ही थी.

वह और उस का मालिक एक दोपहर यही हिसाब कर रहे थे कि एक दिन में 4 शो हैं और लगभग 2 हजार लोग यहां आ रहे हैं. अभी सर्कस 20 दिन और है. तो क्यों न पानीपत, पिलखुवा  और जयपुर  से चादरों की  एकदो गांठें ऐसी मंगाई जाएं जो सस्ती, सुंदर और टिकाऊ हों. वह एक बात  की चर्चा  कर के मालिक के  साथ हंस  रहा था कि मोनिका अचानक ही  सामने आ गई और पूछने लगी कि, ‘10 चादरों को एकसाथ खरीदने  में कितना डिसकाउंट मिलता है?’ एक युवती को ग्राहक के तौर पर  देखा तो मालिक ने यह बातचीत और बिक्री का पूरा  तूफान उस के भरोसे छोड़ दिया और  सामने से हट गया. कुछ ही लमहों बाद वह दूसरे टैंट  की तरफ निकल गया.

अब मोनिका आराम से   बैठ  गई और एक चादर की  तरफ अपनी उंगली से  इशारा करती हुई उस की डिटेल्स  पूछने लगी. तकरीबन 20 मिनट के वार्त्तालाप में वह साफ जान गया था कि  यह आत्मनिर्भर युवती है और घर की  गाड़ी की  स्टेयरिंग  भलीभांति संभाले है. उस ने दर्जनों चादरों से मोनिका का  परिचय कराया. वह चादरों का  कपड़ा और उन के  प्रिंट देखने के लिए कभीकभी उस के बहुत करीब भी आ रही थी.  उस के बदन से किसी मोगरे  वाले साबुन की  भीनीभीनी महक आ रही थी.  मोनिका कुछ न कुछ बोले जा रही थी, मगर मोगरे की  महक से उस को कुछ याद आ रहा था. हां,  उस को  अब याद आया, 2 साल पहले वह मालिक के  साथ  ओडिशा एक  मेले में गया था, तब वे चादरें, साडी़, कुरते और रंगबिरंगी  ओढ़नी भी बेचा करते थे. वहां मेले में उन की दुकान लगी थी. पास ही के भोजनालय वाली छिम्मा से उस का काफी करीब का यानी दैहिक संबंध बन गया था.

वह जब भी उस को अपने पास बुलाया करती, ऐसे ही किसी साबुन से नहा कर  तैयार रहती थी. मगर वह छिम्मा को ज्यादा बरदाश्त नहीं कर पाया था. 10-12 दिनों  बाद जब वह उस के पास ही था  तो उस को इस महक से उलटी सी आने लगी थी.  तब छिम्मा ने राई और मिर्च से  नजर उतार कर, नींबूपानी मिला कर  उस की कितनी सेवा की  थी. उस के बाद तो जल्दी ही मेला भी उठ गया था  और  अब वह  छिम्मा को गलती से भी याद नहीं किया करता कि कैसे हैदराबाद की  रमा  और गोवा की डेल्मा की  तरह उस पर कोई  रुपया खर्च  ही नहीं करना पड़ा था.

छिम्मा तो हवा, पानी, सूरज की रोशनी की  तरह बिलकुल ही  फोकट में उस को  हासिल हो  गई थी. पर, वह आज,  बस, इसी महक के  कारण छिम्मा  को याद कर रहा था. लेकिन आज बात उलटी थी कि  उसे उलटी नहीं आ रही थी, जबकि उस का दिल बारबार  यह कह रहा था कि मोनिका पर वह महक खूब  भा  रही थी.

जैसे दोपहर की  अपेक्षा शाम को नदी का तट बहुत ही अच्छा लगता है वैसे ही वह इन दिनों जैसे किसी नदी का कोई सूना सा तट था और मोनिका एक  भीनीभीनी  शाम.  तो अब उस को नाम भी पता लग गया क्योंकि कुछ मिनट पहले ही उस का फोन बजा था और वह हौले से बोली थी,  ‘जी नहीं, गलत नंबर लग गया है,  मैं मोनिका हूं, लतिका नहीं. अभी उस का टाइम है.’ यह कह कर मोनिका ने फोन डिस्कनैक्ट किया और फिर उस ने सर्कस के ही एक सहायक लड़के को आवाज  लगा कर कड़क चाय लाने को कहा.

तब उस ने हंस कर मोनिका को  चाय का प्याला पीने का प्रस्ताव दिया  और उस ने पहले तो गरदन हिला कर जरा सा मना किया पर अगले ही पल अच्छा ,”हां चाय ले लूंगी” कह कर   पेशकश स्वीकार की. तब मोनिका ने अपने कोमल होंठों से कप को स्पर्श करते हुए  बताया था कि इस चादर की दुकान का  परिचय करवाया 2 दिनों पहले के  अखबार ने. उस में एक छोटा सा विज्ञापन था.  कलपरसों तो बारिश थी, इसलिए आज आ पाई. उस दिन मोनिका चादरें खरीद कर ले गई और उस ने पहली मुलाकात में  कितनी भारीभरकम छूट दे दी थी, लगभग आधे से कम  दाम.

दिल्लगी बन गई दिल की लगी : भाग 1

मैं बचपन से आजादखयाल, शोख व चंचल थी. हंसीमजाक, छेड़छाड़ और शरारत करना मेरा शौक था. हमारा  परिवार काफी खुशहाल था. पैसे की कोई कमी नहीं थी. घर से मुझे जेब खर्च के लिए अच्छीखासी रकम मिलती थी. मेरा अच्छा रहनसहन देख कर लोग जल्द ही मुझे तवज्जो देने लगे थे.

कालेज में मैं जल्द ही बहुत पापुलर हो गई. अच्छेअच्छे लड़के मुझ से दोस्ती करने आने लगे. मेरी ऐसी आदत थी कि मैं हर एक से दोस्ती कर लेती थी. किसी का दिल तोड़ना मुझे अच्छा नहीं लगता था. मैं सब के साथ घुलमिल कर खुश रहती थी.  सभी दोस्तों के साथ हंसतेखेलते 3 साल गुजर गए. मेरी ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी हो गई.

मैं पोस्ट गै्रजुएशन करना चाहती थी, पर आगे पढ़ने की इजाजत अम्मी ने नहीं दी. उन्होंने कहा, ‘‘बेटा अब तुम घर पर रह कर घर के कामकाज सीखो. जल्द ही अच्छा लड़का देख कर तुम्हारी शादी कर देंगे.’’

एक दिन मैं दोपहर के समय शौपिंग कर के लौट रही थी, तभी रास्ते में औटो खराब हो गया. मैं दूसरे औटो के आने का इंतजार करने लगी. जब कोई औटो नहीं मिला तो सामान उठा कर मैं पैदल ही घर के लिए चल पड़ी.

मैं थोड़ी दूर चली थी कि अचानक मंसूर आ गया. मुझे देख कर वह रुक गया. मुझे पसीने से भीगा देख कर बोला, ‘‘इतनी तेज धूप में सामान लिए पैदल कहां जा रही हो?’’

मैं ने कहा, ‘‘औटोरिक्शा खराब हो गया था, इसलिए पैदल ही घर जा रही हूं.’’

‘‘लाओ सामान मुझे दो. मैं पहुंचाए देता हूं.’’ उस ने कहा.

मैं ने आवाज में मोहब्बत भर कर कहा, ‘‘आप को हमारी इतनी फिक्र कब से होने लगी.’’

उस ने मुझे हैरानी से देखा तो मैं ने रोमांटिक होते हुए कहा, ‘‘आप को देख लिया, यही काफी है. सामान रहने दो.’’

इस के बाद उस ने मुझे कुछ उलझन भरी नजरों से देखा. उस के बाद मेरे हाथ से सामान ले कर साथ चलने लगा. घर पहुंचने पर वह बरामदे में सामान रख कर जाने लगा तो मैं ने कहा, ‘‘शुक्रिया, आओ बैठो, चाय पी कर जाना.’’

‘‘नहीं, रहने दो. फिर कभी पी लूंगा.’’ कह कर वह चला गया.

मंसूर हमारे मोहल्ले की एक गरीब औरत साफिया का एकलौता बेटा था. मोहल्ले के सभी लोग साफिया को खाला कहते थे. साफिया खाला के बारे में हम बस इतना जानते थे कि वह सिलाई कर के गुजरबसर करती हैं. आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने मंसूर को अच्छी तालीम दिलवाई थी. अब वह नौकरी की तलाश में था.

खाला को उम्मीद थी कि मंसूर की नौकरी लगने के बाद उस के बुरे दिन दूर हो जाएंगे. आज मैं ने मजाक में उस के दिल में गलतफहमी डाल दी थी. मेरी दोस्त किरण यूनिवसिर्टी में पढ़ रही थी. उस का घराना लखपति था, बाप के कारखाने थे, पर उसे एक लड़के जमील से मोहब्बत हो गई थी, जबकि जमील ने उस की मोहब्बत को कबूल नहीं किया था.

उस ने कहा था, ‘‘आज जज्बात और मोहब्बत के जोश में आ कर तुम मुझ से शादी कर लोगी. तुम्हारे मांबाप हरगिज मुझे कबूल नहीं करेंगे और मेरी गरीबी से तुम जल्द ही तंग आ जाओगी, क्योंकि तुम जिस तरह ऐशोइशरत में रहती हो, वह तुम्हारी आदत बन चुकी है. इसलिए बेहतर है कि तुम मुझे भूल जाओ और मुझे मेरी मंजिल तलाश करने दो.’’

किरण अपनी नाकाम मोहब्बत की कहानी मुझे सुनाती रहती थी. इस के अलावा फराज और मीना भी. घर के कामकाज निपटाने के बाद मैं खाली हो जाती तो मेरा मन नहीं लगता था. किरण, मीना, फराज मेरे अच्छे दोस्त थे. यह सभी अमीर घरानों से ताल्लुक रखते थे. जब मुझे पता चला कि फराज के बाप की कई कंपनियां हैं तो मैं ने किरण से कहा कि वह फराज से बात कर के कहीं मेरी भी नौकरी लगवा दे.

किरण ने मुझे कंप्यूटर का कोर्स करने की सलाह दी. कोर्स पूरा होने के बाद वह फराज से बात कर लेगी. मैं ने कंप्यूटर कोर्स करने के बारे में अम्मी से बात की. वह मना कर रही थीं, पर मैं ने उन्हें मना लिया और एक अच्छे कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया.

एक दिन मैं जब इंस्टीट्यूट से लौट रही थी तो मुझे मंसूर मिल गया. वह मोटरसाइकिल पर था. उस दिन वह अच्छे और महंगे कपडे़ पहने था. उस ने मोटरसाइकिल रोक कर मुझ से कहा, ‘‘आओ मोटरसाइकिल पर बैठ जाओ, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’’

‘‘इंकार कर के क्यों गरीब का दिल तोड़ती हो.’’ कह कर उस ने बेतकल्लुफी से मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पीछे बैठने पर मजबूर कर दिया. मैं अंदर ही अंदर गुस्सा हुई. मंसूर के इस व्यवहार से मुझे लगा कि उस दिन जो मैं ने इस से मुसकरा कर बात की थी, कहीं उस का इस ने गलत मायने तो नहीं निकाल लिया.

अब मुझे अपनी शरारत और दिखावे की मोहब्बत बहुत बुरी लग रही थी. मैं ने मन ही मन सोच लिया कि अब मैं मंसूर को जरा भी लिफ्ट नहीं दूंगी, वरना यह मेरे पीछे ही पड़ जाएगा.

रास्ते में मंसूर ने मुझे बताया कि उस की एक अच्छी कंपनी में नौकरी लग गई है. यह मोटरसाइकिल उसे कंपनी से ही मिली है. मोटरसाइकिल एक स्टाल के सामने रोक कर उस ने कहा, ‘‘आओ, एकएक कोल्डड्रिंक हो जाए.’’

वहां कुछ अन्य लोग खड़े थे. मैं इंकार कर के उन सब के सामने तमाशा नहीं बनना चाहती थी, इसलिए उस के साथ चली गई. मैं ने उसे जौब की मुबारकबाद दी तो उस ने कहा, ‘‘जौब की मुझे सख्त जरूरत थी. अम्मी बीमार रहती हैं और अब वह अकेले रहतेरहते तंग आ गई हैं. उन्हें किसी के साथ की जरूरत है.’’

यह कह कर मंसूर ने प्यार से मुझे देखा. मैं परेशान हो गई. घर पहुंच कर मैं ने बहुत सोचा. पहले दिन शरारत में मैं ने मंसूर से जो प्यार जताया था, यह उसी का नतीजा था. वह मुझे अपनी मोहब्बत समझ बैठा था. मेरे जमीर ने मुझे चेताया, ‘‘अगर मोहब्बत जताई है तो उसे निभाओ. अब उस का दिल न तोडो. साथ निभाओ.’’

मैं ने सोचा कि मैं जिस तरह की ऐशोआराम की जिंदगी की आदी हूं, लगीबंधी तनख्वाह और छोटे से घर में खुश नहीं रह सकती. माना कि मंसूर एक अच्छा लड़का है, पर उस के पास इतना पैसा नहीं है कि उस के साथ मैं खुश रह सकूंगी. इसलिए मैं ने मन ही मन तय किया कि मैं मंसूर को नहीं अपनाऊंगी.

दिन गुजरते रहे. काफी दिनों तक मंसूर मुझे नजर नहीं आया. बात मेरे दिमाग से निकल गई. मेरी सहेली किरण की मंगनी थी. उस ने बडे़ प्यार से मुझे बुलाया. उस की मंगनी में ग्रुप के सभी दोस्त आने वाले थे. मैं ने अंगूरी कलर का नया सूट पहना था, जो मुझ पर खूब फब रहा था. उसी रंग की ज्वैलरी पहन कर मैं और ज्यादा खूबसूरत लग रही थी, पर मेरे पास अंगूरी रंग की चूडि़यां नहीं थीं. जिस की वजह से सारा शृंगार अधूरा लग रहा था.

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