सामाजिक अनदेखी की शिकार युवतियां, क्या है इस की जड़ में

‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते…’ जैसे जुमले कह कर स्त्री को मानसम्मान का प्रतीक मानने वाले कट्टरपंथी देश में आज स्त्री की पूजा होती है रेप से, एकतरफा प्यार में कैंची द्वारा गोदगोद कर उस की हत्या से, निर्भया की तरह मौत के बाद भी इंसाफ न मिलने से या फिर गुरमेहर की तरह अभिव्यक्ति की आजादी का दमन कर गालियां व रेप की धमकी दे कर. इस के बाद खुद को जगत गुरु कहा जाता है. ये तो चंद मामले हैं जो सर्वविदित हैं जबकि आएदिन सुर्खियों में ऐसे मामले आते हैं जिन का सीधा संबंध नारी से होता है लेकिन पुरुषवादी मानसिकता, कट्टरतावादी धर्म पर चलता समाज उस के छींटे भी नारी पर ही डालता है और कहा जाता है कि ये सब होने की वजह युवतियों का घर से निकलना, छोटे कपड़े पहनना, पुरुषों संग मेलजोल बढ़ाना है.

अगर ये सब बातें ही इन जघन्य अपराधों का कारण हैं तो छोटीछोटी बच्चियों के साथ बलात्कार के इतने सारे मामले क्यों प्रकाश में आते हैं? गांवों में जहां लड़कियां न तो पढ़ रही हैं और न छोटे कपड़े पहन रही हैं, वे क्यों वहां मर्दों की शिकार बनती हैं?

समाज में निरंतर बढ़ते अपराध का कारण भी हमारे धर्म की जड़ों में है जहां जन्म से ही लड़के के जन्म पर खुशी और लड़की होने पर शोक मनाया जाता है. बड़े होने पर दहेज हत्याएं, समाज में दकियानूसी सोच का उन्हें शिकार होना पड़ता है. इन्हीं कारणों के चलते एक और अपराध जन्म लेता है भ्रूण हत्या का.

अगर परीक्षण कर पता चला कि गर्भ में लड़की है तो उसे वहीं मार दिया जाता है. इतने साल बाद भी हम समाज की कुरीतियों को बदल नहीं पाए, दहेज प्रथा, बाल विवाह, लड़कियों को कम शिक्षा दिलाना आदि कुरीतियां आज भी समाज में व्याप्त हैं.

नारी को सदा धर्म में भोग की वस्तु माना गया और उसे पुरुष से कमतर आंका गया है. स्त्री निंदा में भी कसर नहीं छोड़ी गई, लेकिन जब हम समाज में यह भेदभाव देखते हैं तो भी आवाज नहीं उठाते, कारण यह भी है कि आवाज कैसे दबाई जाए सब को पता है.

निर्भया कांड को ही ले लीजिए. इस कांड के बाद पूरे देश में धरनाप्रदर्शन, कैंडिल मार्च हुए, नई समितियां गठित की गईं, नए कानून बने, फास्ट ट्रैक अदालतों का निर्माण हुआ, लेकिन बलात्कारियों के पता होने व पकड़े जाने पर भी क्या हम निर्भया को न्याय दिला पाए?

एक दूसरे मामले में कैंची से गोद कर एक सिरफिरा सरेराह युवती को मार देता है तो क्या हुआ? ताजा मामला गुरमेहर का है. आखिर उस का गुनाह क्या है? सिर्फ यही न कि उस ने अपने मन की बात कही? यही कि कट्टरपंथी एबीवीपी का विरोध किया? उस के खिलाफ उसे गालियां दी गईं और उसे अपमानित किया गया. रेप करवा देंगे जैसी धमकियां मिलीं, क्यों?

रेप, एसिड अटैक, दहेज हत्या जैसी बातों की शिकार युवतियां ही हो रही हैं. न्याय के इतने पैर पसारने, सिक्योरिटी की नई तकनीक, आत्मरक्षा के तरीकों और पुलिस की चौकस निगाह के बावजूद आज ये सब हो रहा है.

हाल ही में एक और मामला प्रकाश में आया है जिस में दिल्ली से सटे ग्रेटरनोएडा के लौयड कालेज के निदेशक ने युवतियों के क्लास में 20 मिनट देर से पहुंचने पर उन्हें गालियां दीं. यहां तक कि जूता उठा कर मारने के लिए उन के पीछे भी दौड़े. भले ही उन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कार्यवाही की गई और अगले दिन उन का इस्तीफा ले कर तत्काल प्रभाव से उन्हें हटा दिया गया, लेकिन युवतियों का अपमान तो हुआ न.

गुरमेहर कौर का मामला

 गुरमेहर कौर दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कालेज की छात्रा है और बहुत बोल्ड भी. रामजस कालेज में इतिहास विभाग ने 2 दिन का ‘कल्चरर औफ प्रोटैस्ट’ सैमिनार आयोजित किया था, जिस में पिछले साल विवादों में आए जेएनयू के छात्र उमर खालिद और छात्रसंघ के पूर्व सदस्य को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन एबीवीपी के विरोध के चलते कार्यक्रम रद्द करना पड़ा. कार्यक्रम रद्द होते ही दोनों गुटों यानी एबीवीपी और आईसा में तनातनी हो गई, जिस में कईर् छात्र घायल हो गए.

ये सब गुरमेहर से देखा नहीं गया और उस ने इस हिंसा के विरोध में एबीवीपी के खिलाफ सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाया, जिसे छात्रों का खूब समर्थन मिला, जिस से एबीवीपी बौखला गई. उसे लगा कि लड़की होते हुए उस ने हमारे खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत की, जो उन के लिए खौफ पैदा करने वाली थी.

बदले में एबीवीपी ने साल भर पुराना मुद्दा उछाला और भारतपाकिस्तान शांति के प्रयास के लिए डाले गए गुरमेहर के एक वीडियो, जिस में गुरमेहर ने कहा था, ‘मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं युद्ध ने मारा’ को उभारा गया और गुरमेहर को राष्ट्रविरोधी करार दिया गया. उसे न केवल रेप जैसी धमकी मिली बल्कि भद्दी गालियों का भी सामना करना पड़ा.

गुरमेहर इस से डरी नहीं और उस ने कहा कि जो सच था मैं ने वही कहा, मैं एबीवीपी से नहीं डरती. भले ही मैं इस अभियान से अलग हो रही हूं लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि मैं डर गई, बल्कि मैं किसी भी तरह की हिंसा नहीं चाहती.

विचारों की कैसी स्वतंत्रता

आज हर व्यक्ति को विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन यह कैसी स्वतंत्रता जहां अपनी बात रखने पर बवाल मच जाता है. यह सिर्फ महिलाओं के साथ है पुरुषों के साथ नहीं, क्योंकि जब समाज में पुरुष कुछ गलत कहें या करें तो उस मामले को दबा दिया जाता है, लेकिन अगर महिला कुछ कहे तो यह समाज को बरदाश्त नहीं होता बल्कि उसे शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त करने की धमकी दे कर चुप कराने की कोशिश की जाती है.

किसी भी महिला के लिए यह धमकी काफी डरावनी होती है, क्योंकि एक बार अगर उस का रेप हो जाए तो समाज उसे हेयदृष्टि से देखता है और यहां तक कि पढ़ीलिखी होने के बाद भी कोई उस से शादी करना पसंद नहीं करता, भले ही उस की कोई गलती न हो.

इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि महिलाओं को आज भी विचारों की स्वतंत्रता नहीं है और अगर कोई बोलने की जुर्रत करती भी है तो उसे भी गुरमेहर की तरह बिना किसी गलती के अपने घर वापस लौटना पड़ता है.

महिलाओं के हिस्से गालियां ही क्यों

बात चाहे बौयफ्रैंड की इच्छापूर्ति की हो या फिर घर में पति की बात मानने की, जहां भी महिला ने किसी बात को मनाने से इनकार किया तो उसे मांबहन की गालियां दे कर अपनी बात को मनवाने की कोशिश की जाती है और अगर फिर भी उस ने इनकार किया तो ब्लैकमेलिंग की धमकी दी जाती है आखिर ऐसा क्यों?

जब रिश्ता आपसी सहमति से बना हो तो उस में जबरदस्ती कैसी? क्या महिलाएं सिर्फ  भोग की वस्तु हैं जब चाहे उन्हें यूज करो और जब मन भर जाए तो निकाल कर फेंक दो? अपनी इस मानसिकता को जब तक पुरुष नहीं बदलेंगे तब तक समाज व देश का भला नहीं हो पाएगा और पलपल पर महिलाओं को अपमानित हो कर अपने पैदा होने पर ही पछताने पर मजबूर होना पड़ेगा.

आवाज को दबाने वाले दबंग

लाठीपत्थर बरसाने वाले, होहल्ला मचाने वाले ज्यादा दबंग हैं. उन में से ज्यादातर किसी धर्म के मानने वाले ही नहीं परम भक्त और उन के सेवक, दुकानदार हैं. वे धर्म के नाम पर रोब झाड़ते हैं और जबरन चंदा वसूली करते हैं. इन के सामने पुलिस भी नतमस्तक हो जाती है.

इन दबंगों को प्रशासन या सरकार का खुला संरक्षण प्राप्त होता है. ये साफ कह देते हैं कि अगर बात बिगड़ती दिखी तो हम पैसों और पावर के दम पर सब संभाल लेंगे, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं. ऐसे में इन के हौसले तो और बुलंद होंगे ही.

पुरुष हमेशा प्रत्यक्षदर्शी ही क्यों

 जब पुरुष समाज में खुद का अहम रोल मानते हैं और समझते हैं कि उन के बिना महिला का कोई वजूद नहीं तो अकसर ऐसा देखने में आता है कि जब भी कोई बदतमीजी या फिर रेप वगैरा की घटना होती है या फिर मुसीबत में होेने पर महिला हैल्प मांगती है तो पुरुष क्यों चुप्पी साध लेते हैं. तब क्यों नहीं मर्दानगी दिखाते?

दोषी घूमते हैं आजाद

 आज माहौल ऐसा बन गया है कि जो निर्दोष है वह सजा भुगतता है, लोगों के घटिया कमैंट का शिकार होता है और जो वास्तव में दोषी है वह खुलेआम आजाद घूम कर और खौफ पैदा करता है.

असल में इस का दोष हमारी कानूनव्यवस्था में है, क्योंकि कभी रेप के आरोपी को नाबालिग के नाम पर छोटीमोटी सजा दे कर छोड़ दिया जाता है तो कभी दोषी मोटी रकम चढ़ा कर अफसरों का मुंह बंद करवा कर आजाद घूमता है.

फ्रीडम औफ स्पीच का समर्थन जरूरी

 डीयू में जहां देशविदेश से छात्र पढ़ कर अपना कैरियर संवारते हैं, जहां न पढ़ाई में और न ही किसी और चीज में भेदभाव होता है तो फिर वहां जब महिलाएं सच के खिलाफ आवाज उठाती हैं तो उन का हमेशा विरोध क्यों होता है.

विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ ही है कुछ अप्रिय कहने की स्वतंत्रता, तारीफ करनी हो तो किसी स्वतंत्रता की जरूरत ही नहीं. यह तो सऊदी अरब में भी कर सकते हैं और उत्तर कोरिया में भी, भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है अप्रिय सच बोलना, तथ्यों पर सही बेबाक समीक्षा करना. देशभक्ति के नाम पर धर्मभक्ति को थोपने की कोशिश की जा रही है

और हिंदू या इसलामी झंडे की जगह तिरंगा लहरा कर धर्मभक्ति को राष्ट्रभक्ति कहने की कोशिश भारत, इसलामी देशों और कम्युनिस्ट देशों में जम कर हो रही है.

महिलाओं को तो फ्रीडम औफ स्पीच का अधिकार है ही नहीं. आज भले ही गुरमेहर अभियान से पीछे हट गई है, लेकिन फिर भी उस ने अपनी आवाज बुलंद कर दुनिया को बहुत पावरफुल मैसेज दिया है कि अगर आप सही हैं तो डरें नहीं. अगर इस तरह हर किशोरी, युवती, महिला सोचेगी तो कोई भी नारीशक्ति को कमजोर नहीं कर पाएगा और न ही रेप, मारने जैसी धमकियां दे कर डरा पाएगा.

प्यार में जाति-धर्म की दीवार का नहीं काम

प्यार दो दिलों का मेल है. जब किसी को किसी से प्यार होता है तो वह उस की जातिधर्म से परे होता है. लेकिन जब प्यार को परवान चढ़ाने की बात आती है तो जातिधर्म की दीवार आड़े आ जाती है. ऐसे में कई प्रेमी युगलों को अपने प्यार को दफन करना पड़ता है. क्या इस नफरत की दीवार को तोड़ा नहीं जा सकता?

हमारे देश में जाति और धर्म इस कदर हावी है कि वे दिलों के रिश्तों को समझ ही नहीं पाते. जब कभी किसी अन्य धर्मावलंबी लड़के या लड़की से प्यार की बात सामने आती है तो दोनों ही पक्ष के लोग इसे सिरे से नकार देते हैं.

कट्टरपंथी लोग, चाहे वे किसी भी जातिधर्म के क्यों न हों, अपने धर्म से इतर रिश्ते को कुबूल नहीं करते. उन की सोच को बदलना नामुमकिन है. यदि उन की जातिधर्म का लड़का या लड़की दूसरी जातिधर्म की लड़की या लड़के से शादी कर भी ले तो वे उस के साथ कोई रिश्ता नहीं रखते. वे उसे अपनी धनसंपत्ति से बेदखल या वंचित कर देते हैं. कुछ तो ऐसे जोड़े को अपने जाति और समाज से अलग कर देते हैं.

यदि लड़का और लड़की वयस्क हैं, अपनी मरजी से अन्य जातिधर्म की लड़की से शादी करना चाहते हैं तो लड़की के परिजन लड़के के विरुद्ध अपहरण या बहलाफुसला कर भगा कर ले जाने की एफआईआर दर्ज कराते हैं. यही नहीं, प्रेमी पर बलात्कार या यौनशोषण का मामला भी दर्ज करने से नहीं हिचकते. ऐसे में लड़की लाख दुहाई दे, परिजनों के हाथपैर जोड़े पर वे अपना निर्णय नहीं बदलते.

हमारे एक परिचित हैं. उन की लड़की को दूसरे धर्म के लड़के से प्रेम हो गया. दोनों ने अपने परिजनों को मनाने की कोशिश की. क्योंकि दोनों ही चाहते थे कि उन के परिजन इस खुशी में शामिल हो कर उन्हें अपना प्यार दें. लेकिन दोनों के ही परिजनों ने इस रिश्ते के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की. मजबूर हो कर उन्हें कोर्ट मैरिज करनी पड़ी.

विडंबना देखिए कि न तो वह किसी की बहू के रूप में स्वीकार की गई और न ही बेटी बनी रह सकी, क्योंकि मातापिता ने उस से अपना रिश्ता तोड़ लिया. दोनों ने शादी तो की लेकिन शादी की खुशियां न मिलीं.

हमारे एक मित्र हैं. उन का बेटा डाक्टर है. उसे अपने साथ पढ़ने वाली दूसरे धर्म की लड़की से प्यार हो गया. लड़की वालों ने भले ही रिश्ते के लिए हां कर दी हो लेकिन लड़के वाले अपनी जिद पर अड़ गए कि हम तो अपने धर्म में ही शादी करेंगे. परिणामस्वरूप प्रेमी युगल का संजोया सपना टूट गया.

अमेरिकी थिंकटैंक प्यू रिसर्च सैंटर के अनुसार, भारत में ज्यादातर लोग दूसरे धर्मों में शादी करने के फैसले को सही नहीं मानते हैं. इन में 80 प्रतिशत मुसलिम और 67 प्रतिशत हिंदू हैं. सैंटर ने देश के 26 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों के 30 हजार लोगों पर सर्वे किया है. सर्वे का शीर्षक ‘भारत में धर्म: सहिष्णुता और अलगाव’ था, जिस में देश में 17 भाषाएं बोलने वाले लोगों को शामिल किया गया. इस में 67 प्रतिशत हिंदुओं का कहना था कि यह जरूरी है कि हिंदू महिलाओं को दूसरे धार्मिक समुदायों में शादी करने से रोका जाए. वहीं 65 प्रतिशत हिंदुओं ने कहा कि ‘हिंदू पुरुषों को भी दूसरे धर्म में शादी नहीं करनी चाहिए.’

उन लोगों की भी कमी नहीं है जो कि अपने ही धर्म में जाति के हिसाब से रिश्ते को मंजूर करते हैं. रिश्ता समान बिरादरी का होना जरूरी है. अपनी बिरादरी से नीचे बिरादरी वाले लड़के को बेटी ब्याहना वे अपनी तौहीन समझते हैं. इसी प्रकार, ऊंची जाति या कुल के लोग अपने से नीची जाति या कुल की लड़की को अपनी बहू बनाना नहीं चाहते. यहां जाति की ऊंचनीच प्यार में बाधक बन जाती है.

ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ हिंदू या मुसलिमों में ही कट्टरपंथी लोग हैं. अन्य धर्म जैसे सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध धर्म में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है. विडंबना देखिए कि उन्हें विदेशी दामाद या विदेशी बहू तो मंजूर है लेकिन अपने ही देश की अन्य जातिधर्म में रिश्ता मंजूर नहीं. जब वे विदेशी लड़केलड़की को अपना सकते हैं तो स्वदेशी खून को अपनाने में क्या बुराई है?

ऐसा एक नहीं, सैंकड़ों उदाहरण हैं जिन में जाति, धर्म की दीवार के कारण युवाओं को अपने प्यार का गला घोंटना पड़ा. इतिहास इस बात का साक्षी है. समय के साथ बहुतकुछ बदल गया है. आज कंप्यूटर, इंटरनैट का युग है. नहीं बदली तो जातिधर्म को ले कर लोगों की सोच.

लोगों को यह बात समझ में क्यों नहीं आती कि न तो कोई धर्म ऊंचा है और न ही कोई नीचा. इसी प्रकार, ऊंचीनीची जाति का भेद हम ने ही बनाया है. इंसान चाहे वह किसी भी जातिधर्म या कुल में पैदा हुआ हो, न किसी से श्रेष्ठ है और न कमतर. हमें अपनी सोच बदलनी चाहिए.

प्यार और शादी एक पवित्र बंधन है. रिश्ते की मिठास तभी है जब हम दूसरी जातिधर्म के रिश्ते को कुबूल करें. अपनी संतानों की खुशी में ही मांबाप को खुशी होनी चाहिए, न कि अपने अडि़यल रवैए की वजह से उन के प्यार और दांपत्य में जहर घोलना चाहिए.

हमें जाति और धर्म के बीच सहिष्णुता बरतनी होगी. जातिधर्म को ले कर नफरत त्यागनी होगी. शादी के बाद यदि लड़की ससुराल के धर्म के साथ अपने धर्म का भी पालन करे तो इस में क्या बुराई है? जब वह ऐसा कर सकती है तो लड़का क्यों नहीं?  उसे भी लड़की की जातिधर्म के प्रति आदरसम्मान प्रकट करना चाहिए.

कोई भी धर्म नफरत फैलाने की बात नहीं करता. हर धर्म में शांति, सौहार्द की बात कही गई है तो फिर जातिधर्म को ले कर नफरत क्यों? आप चाहे जिस जातिधर्म या कुल के हों, आप पहले इंसान और भारतीय हैं. यही आप की पहचान है.

यदि आप पर लव जिहाद कानून लागू होता है तो बिना कानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन किया विवाह गैरकानूनी माना जाएगा. जैसे उत्तर प्रदेश धर्मांतरण निषेध अध्यादेश 2020 का पालन होना चाहिए. गैरकानूनी तरीके से किए गए धर्म परिवर्तन के बाद की गई शादी को मान्यता नहीं दी जा सकती. अध्यादेश, जो कि अब अधिनियम बन चुका है, की धारा 8 और 9 का अनुपालन करना जरूरी है.

कानून की धारा 8 में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है उसे कम से कम 60 दिनों पहले संबंधित जिले के जिलाधिकारी या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को अपनी इच्छा व्यक्त करने के लिए एक निर्धारित फार्म में घोषणापत्र देना होगा. धर्म को बलपूर्वक, जबरदस्ती, किसी प्रभाव या प्रलोभन से बदला नहीं जा सकता.

कानून की धारा 9 में कहा गया है कि धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को संबंधित जिलाधिकारी को धर्म परिवर्तन करने की तिथि के 60 दिनों के भीतर एक निर्धारित फार्म में घोषणापत्र भरना होगा. तभी यह कानूनी माना जाएगा. वैसे, 10 राज्यों में इस तरह के कानून लागू हैं.

ये हैं क्रिकेट के नेक्स्ट जेन स्टार प्लेयर्स

एक समय किस ने सोचा था कि सचिन, सौरभ गांगुली और राहुल द्रविड़ के बिना क्रिकेट देखा जाएगा. इन के बाद भी कोई इंडियन क्रिकेट टीम को लीड कर पाएगा. ये तीनों इंडियन टीम के पिलर माने जाते थे. पर समय बदला. क्रिकेट ने अपने नए हीरो ढूंढें और बदलती जैनरेशन के हाथ में टीम की कमान गई. धौनी, विराट कोहली और रोहित शर्मा आए. इन्होंने इंडियन क्रिकेट टीम को पहले से अधिक ऊंचाई दी. कई पुराने रिकौर्ड टूटे.

आज धौनी इंडियन क्रिकेट टीम का हिस्सा नहीं हैं. अब जेनजी के लिए धौनी इतना बड़ा नाम नहीं हैं. उन के लिए कोहली और रोहित शर्मा बड़े नाम हैं. कुछ सालों बाद ये नाम भी समय के साथ हलके होते जाएंगे और फिर नए नाम सामने आएंगे. इंडिया में क्रिकेट का क्रेज इसीलिए है क्योंकि यहां हीरो वार्शिप है. यह वार्शिप कल्चर है. हमें बचपन से ही हीरो ढूंढ़ना सिखाया जाता है.

पुराने नामों के धूमिल होते ही युवा अपने लिए नया हीरो तलाश लेंगे और फिर से उन में से कोई धौनी, कोहली या रोहित शर्मा बन कर उभर ही आएगा. जानिए ऐसे पोटैंशियल स्टार प्लेयर्स के बारे में जो हाल के समय में उभर कर आए हैं, जिन्होंने आईपीएल से ले कर डोमेस्टिक में अपनी धाक जमाई है और अब इंडियन क्रिकेट टीम का हिस्सा बन सकते हैं.

आईपीएल का क्रेज इस समय जोरों पर है. आईपीएल ने ऐसे प्लेयरों को पहचान दिलाई है जो भविष्य में इंडियम टीम के दावेदार हैं.

 रितुराज गायकवाड़

रितुराज गायकवाड़ इंडियन टीम का फ्यूचर है. इस समय आईपीएल में चेन्नई सुपरकिंग्स जैसी सफल टीम को लीड कर रहा है. उस के अंडर में महेंद्र सिंह धौनी जैसा दिग्गज प्लेयर खेल रहा है. रितुराज महाराष्ट्र से आता है. विजय हजारे ट्रौफी में एक ओवर में 7 छक्के लगाने वाला पहला बैट्समैन है. 26 वर्षीय रितुराज सीरियस प्लेयर के रूप में जाना जाता है. इंडियन क्रिकेट टीम में उस के लिए बहुत स्कोप है.

सरफराज खान

बहुत लंबा सफर तय करने के बाद सरफराज खान इंडियन क्रिकेट टीम में शामिल हुआ. बताया जाता है कि वह क्रिकेट पौलिटिक्स का शिकार हुआ, जिस के चलते लगातार अच्छा खेलने के बावजूद टीम में शामिल नहीं हो पाया. लेकिन इंगलैंड के साथ टैस्ट मैच में उस ने अपनी जगह बनाई. सरफराज आजमगढ़ का रहने वाला है. सरफराज के पिता नौशाद क्रिकेट ट्रेनिंग देते हैं. सरफराज को ट्रेनिंग भी उन्होंने दी. अगर वह इंडियन क्रिकेट पौलिटिक्स से बचा रह गया तो टीम में अपनी पक्की जगह बना सकता है.

शिवम दुबे

शिवम आईपीएल 24 में चेन्नई सुपरकिंग्स का हिस्सा है. अपनी विस्फोटक बैटिंग के लिए जाना जाता है. कहते हैं, महेंद्र सिंह धौनी जिसे अपना शागिर्द मान ले वह आगे बढ़ जाता है. शिवम दुबे के साथ ऐसा ही है. शिवम दुबे को अगला युवराज कहा जा रहा है. सनराइजर्स हैदराबाद का अभिषेक शर्मा भी इसी कड़ी में कहीं है. दोनों प्लेयर बढि़या हैं. शिवम की निजी जिंदगी भी चर्चाओं में थी जब उस ने मुसलिम लड़की अंजुम खान से शादी की. यह शादी हिंदू और मुसलिम दोनों रीतियों से हुई. शिवम भविष्य में टीम इंडिया का बड़ा नाम हो सकता है.

 शुभमन गिल

पंजाब के फाजिल्का में जन्मे शुभमन गिल की तुलना भारत के स्टार बैट्समैन विराट कोहली से की जाती है. महज 24 साल का यह प्लेयर आईपीएल में गुजरात टाईटैंस टीम का कैप्टन बन गया है. उस ने इंडियन क्र्रिकेट टीम में भी अपनी जगह बना ली है. जितने स्टाइल से वह खेलता है उतना ही स्टाइलिस्ट दिखता भी है. यूथ के बीच वह खासा चर्चा में रहता है.

सूर्यकुमार यादव

मिस्टर 360 के नाम से मशहूर सूर्यकुमार इंडियन क्रिकेट टीम का चमकता प्लेयर है. ऐसा कोई एरिया नहीं जहां वह शौट नहीं लगाता. वह सिर्फ नैक्स्ट जेन प्लेयर नहीं बल्कि उस ने क्रिकेट को ही नैक्स्ट जेन में पहुंचा दिया है. उस के रचनात्मक शौट्स पर लंबी चर्चाएं होती हैं. ट्रैडिशनल गेम से हट कर वह खेलता है. सूर्यकुमार क्रिकेट टीम का राइजिंग स्टार है.

 यशस्वी जयसवाल

22 साल का यशस्वी जयसवाल पिछले 2 सालों के भीतर सब से चर्चित लेफ्टहैंडेड बैट्समैन है. आईपीएल ने उसे पहचान दी. हाल ही में इंगलैंड के साथ हुई टैस्ट सीरीज में यशस्वी ने अपना पोटैंशियल दिखाया. बचपन में यशस्वी ने गरीबी को भी करीब से देखा पर अपने दम पर आज उस ने इंडियन क्रिकेट टीम में अपनी जगह बनाई है.

ईशान किशन

लैफ्टहैंडेड बैट्समैन ईशान किशन के पास टैलेंट तो भरपूर है पर अनुशासन की कमी है. हाल में चर्चा गरम भी थी कि उस पर अनुशासनहीनता के चलते कार्यवाही की गई. हालांकि कोच राहुल द्रविड़ ने इस का खंडन किया. उस ने 2016 में भारतीय अंडर 19 टीम उस की कप्तानी में खेली थी. वह आईपीएल में मुंबई इंडियन के साथ खेलता है. ईशान के पास वनडे में सब से तेज दोहरा शतक लगाने का रिकौर्ड है.

रिंकू सिंह

रिंकू टी20 स्पैशलिस्ट है. हर गेंद को बाउंडरी पार मारने की क्षमता रखता है. वह चर्चा में तब आया जब आईपीएल 2023 में उस ने गुजरात के साथ लगभग हार चुके मैच को जिताया. जीत मामूली नहीं थी. प्रैशर मैच के बीच उस ने आखिरी ओवर में 5 छक्के लगाए. इस मैच के बाद रिंकू की जाति पर खूब विवाद हुआ. 26 साल का रिंकू बेहद साधारण परिवार से आया था. उस के पिता घरघर सिलैंडर पहुंचाने का काम करते थे और बड़ा भाई औटो चलाता था. अभी उस की परीक्षा होनी बाकी है पर वह इंडियन टीम में शामिल होने का दम रखता है.

मयंक यादव

आईपीएल 2024 में मयंक यादव हौट टौपिक बन गया है. 21 साल का यह बौलर लखनऊ सुपर जौइंट्स का स्टार प्लेयर है. 2024 आईपीएल में डैब्यू करने वाले इस बौलर ने अपनी कंसिस्टैंट स्पीड से सब को हैरान कर दिया है. उस के लिए 150 किलोमीटर प्रति घंटे से बौल डालना मामूली बात है. इस सीजन में उस ने सब से तेज 156.7 की स्पीड से बौल डाली. उस के पास स्पीड तो है ही, साथ में संतुलन भी है. इंडियन टीम में शामिल होने वाला वह पोटैंशियल प्लेयर है. बताते हैं कि क्रिकेट खेलने के जनून के चलते उस ने स्कूल छोड़ने का रिस्क लिया था.

रिषभ पंत

रिषभ पंत का नाम यहां लेना इसलिए जरूरी है कि टीम में जगह बना चुका यह प्लेयर ऐसी सिचुएशन से वापस आया जहां से लौटना लगभग नामुमकिन माना जाता है. साल 2022 में रिषभ का भयंकर ऐक्सिडैंट हुआ था. वह दिल्ली से रुड़की कार से जा रहा था. कार डिवाइडर से टकराई, जिस कारण उसे गंभीर चोट आई. इस हादसे के बाद वापस लौट आना किसी हैरानी से कम नहीं. भारतीय क्रिकेट टीम में वह विकेटकीपर बैट्समैन के रूप में अपनी जगह बना सकता है. अभी वह दिल्ली कैपिटल का कैप्टन है.

क्या बला है बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट और यह फेल क्यों हुआ

तकरीबन 13 वर्षों पहले सोशल मीडिया पर शुरू हुआ बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट ‘मी टू’ मूवमैंट की तरह दम तोड़ चुका है. हां, अब युवा खुद को ज्यादा एक्सपोज करते हैं. सोशल मीडिया पर हो रही ट्रोलिंग कहती है कि लोगों की मेंटैलिटी इस मामले में नहीं बदली है.

‘तू मोटी है, तू काली है, तू नाटा है, इस की नाक देखो कैसी पकौड़े जैसी है, इस का पेट देखो कितना बाहर निकला हुआ है’ इसी तरह के कमैंट इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं. ऐसा लगता है मानो कुछ लोग बस दूसरों को यह बताना चाहते हैं कि उन की बौडी, उन की पर्सनैलिटी सही नहीं है. उस में कुछ न कुछ कमी है.

इसी का एक उदाहरण इलियाना डिक्रूज है. एक बार इलियाना (इलियाना प्रैग्नैंसी न्यूज) ने अपने इंस्टाग्राम पर ‘आस्क एनीथिंग’ सैशन रखा था. तब एक यूजर ने उन से पूछा कि आप अपनी अजीब बौडीटाइप से कैसे डील करती हैं? इस पर ऐक्ट्रैस ने जवाब देते हुए कहा, ‘‘पहली बात मेरी बौडीटाइप अजीब नहीं है. मेरी क्या किसी की नहीं होती. दूसरी बात मैं अपनी बौडीटाइप को ले कर बहुत क्रिटिसाइज हुई हूं. लेकिन मैं अपनेआप से प्यार करना सीख रही हूं और किसी दूसरे के आदर्शों के अनुरूप नहीं बनना चाहती हूं.’’

कहने का अर्थ यह है कि आम नागरिक क्या, सैलिब्रिटीज भी यानी सभी अपनी बौडी, स्किन के लिए कभी न कभी क्रिटिसाइज जरूर हुए हैं लेकिन युवाओं ने इस मुद्दे को ऐड्रैस किया और साल 2012 के आसपास एक मूवमैंट की शुरुआत हुई जिसे बौडी पौजिटिवटी मूवमैंट कहा गया. इस का उद्देश्य अपनी शारीरिक बनावट को स्वीकार करना और आत्मसम्मान को बढ़ावा देना था.

मूवमैंट की शुरुआत

यह मूवमैंट 2012 में इंस्टाग्राम पर उभरा था. इस मूवमैंट के शुरू होने के बाद इंस्टाग्राम पोस्ट पर बड़ी संख्या में बौडी पौजिटिविटी हैशटैग देखने को मिले. बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट बौडी की शेप को बेहतर बनाने की कोशिश में शरीर के प्रति प्यार और एक्स्पैक्टेशन को बढ़ावा देता है. साथ ही, यह सभी शारीरिक आकृतियों, साइज, लिंग और त्वचा टोन की स्वीकृति को बढ़ावा देता है. लेकिन 13 वर्षों बाद यह मूवमैंट फेल होता दिखाई दे रहा है. इस के फेल होने के कई कारण रहे.

बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट के फेल होने का एक कारण यह है कि शरीर के अतिरिक्त वजन उठाने से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को बौडी पौजिटिविटी की अवधारणा नजरअंदाज करती है. आलोचकों का कहना था बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट के चलते लोग मोटापे को इग्नोर करेंगे और मोटापे से होने वाली बीमारियों से घिर जाएंगे, जो उन की हैल्थ के लिए बिलकुल भी सही नहीं है.

दूसरा कारण यह था कि बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट के हैशटैग का यूज करने वाले ज्यादातर इंस्टाग्राम पोस्ट युवा, श्वेत, पारंपरिक रूप से आकर्षक, गैरविकलांग, सिजैंडर महिलाओं को दर्शाता था. जो बाकी जातीय लोगों, पुरुषों, एलजीबीक्यूटी प्लस समुदायों के लोगों और बूढ़े लोगों को सही प्रतिनिधित्व नहीं देता है.

तीसरा कारण यह था कि बहुत से लोग सोशल मीडिया पर जो फोटो और वीडियो पोस्ट करते हैं वह एडिट किया गया होता था, ऐसे में दूसरों के लिए यह जान पाना बहुत मुश्किल हो गया कि सच क्या है और ?ाठ क्या.

चौथा कारण यह था कि कुछ लोग इसे सिर्फ अभिनेत्रियों की एक प्रकार की पहचान मानते थे. इस का मतलब है कि वे उन्हें केवल उन की शारीरिक सुंदरता के आधार पर मापते थे.  बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट का मुख्य उद्देश्य यह था कि सभी शरीरों को स्वीकार किया जाए, लेकिन यह मूवमैंट कुछ लोगों के लिए बस एक विदेशी कला बन गया था.

पांचवां कारण यह था कि कुछ लोगों का मानना था कि इस में शारीरिक सुंदरता के आधार पर महिलाओं को अधिक प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिस से कि यह केवल महिलाओं के बारे में ही सिमट कर रह गया है. बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट को सामाजिक समता के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए था, लेकिन कुछ लोगों ने इसे एक महिला आंदोलन के सिवा कुछ और नहीं सम?ा था.

हवाहवाई बन गया कैंपेन

यह मूवमैंट इसलिए भी फेल रहा क्योंकि कुछ लोग इसे एक सामाजिक सुधार प्रक्रिया की तरह देखते थे, जिस में शारीरिक सुंदरता और हैल्थ के मानकों को सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तन के साथ जोड़ा गया. कुछ लोग इस मूवमैंट को एक संघर्ष के रूप में देखते थे जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के बीच एक विवाद का विषय बन गया.

इस ने सोसाइटी के अलगअलग ग्रुप्स के लोगों के बीच एक खाई पैदा कर दी. बजाय इस के कि यह एक ग्रुप के रूप में मिल कर बौडी पौजिटिविटी के उद्देश्यों के लिए काम करता, बल्कि इस ने उन गु्रप्स के बीच विरोधात्मक भावना पैदा कर दी.

बौडी पौजिटिविटी को बढ़ावा देना आमतौर पर एक अच्छी बात है. लेकिन जरूरी यह है कि इस पौजिटिविटी की धारा में समाज के सभी सेगमैंट्स को जोड़ा जाए न कि इक्कादुक्का और फिल्मी सैलिब्रिटी को. अगर इन कारणों को नहीं सुधारा गया तो जबजब बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट आएंगे, फेल ही कहलाएंगे.

बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट आखिर क्यों फेल हुआ. अगर इस सवाल का जवाब ढूंढ़ा जाए तो इस का सब से बड़ा जवाब यही है कि यह मूवमैंट एक हवाहवाई मूवमैंट था, बिलकुल वैसे ही जैसे कुछ सालों पहले ‘मी टू’ मूवमैंट आया था, जिस ने हल्ला खूब मचाया पर उस से निकला क्या, किसी को कुछ नहीं पता. इस मूवमैंट का भी कोई सिरपैर न था. हालांकि यह सच है कि इस मूवमैंट के जरिए लोगों में सैल्फ कौन्फिडैंस आया लेकिन उस कौन्फिडैंस का क्या फायदा जो आप को बीमारियों का घर बना दे.

कमियों को स्वीकारना जरूरी

अगर आप मोटे हैं, आप का शरीर थुलथुला है, आप की तोंद आप की पैंट में नहीं फंसती तो आप के लिए यह एक समस्या है, न कि इसे पौजिटिव माना जाए. ऐसे में आप को शरीर पर काम करना चाहिए न कि बौडी पौजिटिविटी के नाम पर प्राउड.

याद रखें, अगर आप मोटे हैं तो लोग आप को मोटा ही कहेंगे. आप के सामने नहीं तो आप के पीठपीछे ही सही, पर कहेंगे जरूर. आप उन की आवाज पर रोक लगा सकते हैं पर सोच पर नहीं. यही उन की मानसिकता है. लेकिन आप औरों के लिए नहीं, खुद के लिए, खुद को बदलें. इस से न सिर्फ आप हैल्दी रहेंगे बल्कि बीमारियों से आप की दोस्ती भी नहीं होगी.

वहीं अगर आप बौडी पौजिटिविटी के नाम पर मोटापे को अपनी बौडी पर कब्जा करने देंगे तो आप भविष्य में जरूर पछताएंगे. मोटापा कोई अच्छी चीज नहीं है. इस से पर्सनैलिटी और कौन्फिडैंस खराब ही होता है.

बौडी पौजिटिविटी उन मानो में अच्छा है जहां यह रंगत की बात करता हो. अगर आप काले हैं, आप की स्किन पर निशान हैं, आप की बौडी पर ज्यादा हेयर हैं और लोग आप को इन चीजों के लिए चिढ़ा रहे हैं तो यहां आप का बौडी पौजिटिविटी वाला एटिट्यूड काम आएगा क्योंकि रंगत से आप की हैल्थ को कोई नुकसान नहीं होगा.

यंग सक्सेस एंटरप्रेन्योर, ऐसे हो रहे मालामाल

पिछले कुछ सालों में यंग एंटरप्रेन्योर की एक लहर सी दौड़ पड़ी है, जिसे देखो वह इस दौड़ में गोते लगा रहा है. यंग जनरेशन अपनी जौब छोड़ कर एंटरप्रेन्योर बन रही है. वहीं कुछ स्कूलकालेज में पढ़ने वाले स्टूडैंट ऐसेऐसे ऐप्स और बिजनैस क्रिएट कर रहे हैं जो न सिर्फ फ्यूचर में उन्हें एक अच्छी मार्केट देंगे बल्कि लोगों के लिए भी काफी यूजफुल होंगे. ऐसे ही कुछ यंग एंटरप्रेन्योर के बारे में यहां चर्चा करते हैं.

श्रेयान डागा

श्रेयान डागा एक स्किल डैवलपमैंट कंपनी के फाउंडर हैं. वे स्टूडैंट्स को टीचर्स की हैल्प से कुछ वैरिफाइड कोर्स करवाते हैं. इन कोर्सेज को एक्सट्रा करिकुलम एक्टिविटीज की तरह बच्चों को पढ़ाया जाता है. ये क्लासेस औनलाइन प्रोवाइड की जाती हैं. श्रेयान का दावा है कि एक्स्ट्रा करिकुलम होने के साथसाथ ये कोर्सेज फ्यूचर में एक जरूरी स्किल के रूप में बच्चों के काम आएंगे.

श्रेयान की एक्स्ट्रा करिकुलम क्लासेस के हर बैच में 5 से 15 स्टूडैंट्स के साथ लाइव क्लासेस होती हैं. इस में एक घंटे की क्लास की फीस सिर्फ 133 रुपए ली जाती है. इस के अलावा, हर स्टूडैंट को यूनेस्को और एसटीईएम का सर्टिफिकेट भी दिया जाता है. आज डागा का औनलाइन लाइव लर्निंग (ओएलएल) वाराणसी, वाकड, ओडिशा, पुणे, लखनऊ, ठाणे और मुंबई के साथसाथ इंडिया के 20+ शहरों में है.

शैली बुलचंदानी

शैली बुलचंदानी राजस्थान के अजमेर की रहने वाली हैं. उन्होंने अगस्त 2020 में हेयर स्टार्टअप ‘द शैल हेयर’ कंपनी की शुरुआत महज 20 साल की उम्र में की. ‘द शैल हेयर’ की खास बात यह है कि इस के प्रोडक्ट में भारतीय रेमी हेयर (सिंगल डोनर के बाल) से बने होते हैं.

वहीं बाकी कंपनियों की तुलना में इन के प्रोडक्ट्स की कीमत भी 30-40 परसैंट कम है. इस कंपनी की एक और खास बात है कि यह कंपनी महिलाओं द्वारा ही चलाई जाती है. इस से कई महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है.

साल 2021-22 में शैली बुलचंदानी की कंपनी ने लगभग 36 लाख रुपए की बिक्री दर्ज की थी. शैली खुद को हेयर इंडस्ट्री में एक विश्वसनीय ब्रैंड के रूप में स्थापित करने की दौड़ में आ चुकी हैं.

हिमांशु अग्रवाल

24 साल के हिमांशु अग्रवाल की आज 3 कंपनियां हैं. इन में इंटरनैट कोचिंग एम्पायर, बैकएंड क्लोजर्स और मेलजर शामिल हैं.

हिमांशु की कंपनी इंटरनैट कोचिंग एम्पायर अलगअलग तरह की सेवाएं देती है. इन में वर्कशौप, कंसल्टिंग सर्विस, एजुटैक नौलेज शामिल हैं. यह कस्टमर बेस कंपनी है. हिमांशु की इन 3 कंपनियों में कई यंग काम करते हैं. बैकएंड क्लोजर्स एक सेल्स एजेंसी है और मेलजर एक सौफ्टवेयर कंपनी है. हिमांशु यंग एंटरप्रेन्योर के लिए प्रेरणा बन चुके हैं.

तिलक मेहता

कहते हैं सफलता किसी उम्र की मुहताज नहीं होती है. तिलक मेहता जब 13 साल के थे तब उन्होंने पेपर-एन-पार्सल नाम की अपनी कंपनी की जो शिपिंग और लौजिस्किल से जुड़ी सेवाएं देती है. शुरुआत की. तिलक ने जब अपना बिजनैस आइडिया अपने पिता के साथ शेयर किया तो उन्होंने तिलक को शुरुआती फंड दिया. फिर तिलक को बैंक अधिकारी घनश्याम पारेख से मिलवाया, जिन्होंने तिलक के बिजनैस में इन्वैस्ट किया.

पारेख को तिलक का आइडिया इतना पसंद आया कि उन्होंने अपनी बैंक की नौकरी छोड़ दी और तिलक का बिजनैस जौइन  कर लिया. तिलक ने घनश्याम पारेख को कंपनी का सीईओ बना दिया. मेहता ने अपनी पढ़ाई के साथसाथ बिजनैस को जारी रखा और

2 सालों में एक सक्सैस स्टोरी लिख डाली. 13 साल की उम्र में मेहता 100 करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक बन गए थे. आज इतनी कम उम्र में तिलक 200 से ज्यादा लोगों को रोजगार दे रहे हैं. वर्तमान समय में तिलक की उम्र महज 17 साल है.

रितेश अग्रवाल

शार्क टैंक-3 में जज की कुरसी संभाल रहे रितेश अग्रवाल को आज कौन नहीं जानता. हर महीने 22 करोड़ रुपए का टर्नओवर करने वाले रितेश आज एक यंग सक्सैसफुल एंटरप्रेन्योर हैं. रितेश होटल्स की चेन ओयो के मालिक हैं. इन का नैटवर्क देश के 100 शहरों से भी ज्यादा में फैला हुआ है. इन की कंपनी 2,200 होटल्स के साथ काम करती है. रितेश फोर्ब्स की 30 ‘अंडर 30’ अचीवर्स की लिस्ट में शामिल एक इंडियन सीईओ हैं.

रितेश ने यह मुकाम महज 29 साल में पाया है. रितेश की ओयो रूम्स देश की कामयाब इंटरनैट कंपनियों की लिस्ट में तीसरी कंपनी बन गई है. साथ ही, यह देश की सब से बड़ी होटल चेन भी है.

अद्वैत ठाकुर

अद्वैत एक टैक्नोलौजी एंटरप्रेन्योर हैं. उन्होंने 12 साल की उम्र में अपनी टैक कंपनी एपेक्स इंफोसिस की शुरुआत की थी. यह एक ग्लोबल टैक्नोलौजी और इनोवेशन कंपनी है जो इंटरनैट औफ थिंग्स संबंधित सेवाओं और उत्पादों, एआई और हैल्थटैक सैक्टर में अपनी सेवाएं देती है.

अद्वैत सब से यंग गूगल, हब स्पौट और बिंग सर्टिफाइड प्रोफैशनल भी हैं. 2017 में जब अद्वैत 14 साल के थे तो उन्होंने ‘टैक्नोलौजी क्विज’ का निर्माण किया. यह ऐप बच्चों को साइंस और टैक्नोलौजी के बारे में जानने में हैल्प करता है. अद्वैत द स्टार्टअप इंडिया के ‘टौप 10 यंग एंटरप्रेन्योर इन इंडिया 2018’ की लिस्ट में शामिल थे.

अंगद दरयानी

मुंबई के अंगद दरयानी ने 8 साल की उम्र में अपना पहला रोबोट बनाया. इस के बाद ब्लाइंड लोगों के लिए एक ईरीडर (वर्चुअल बे्रलर) बनाया. फिर सोलर एनर्जी से चलने वाली नाव, इस के बाद गार्डुइनो नाम का एक औटोमैटिक बागबानी सिस्टम बनाया.

इस के अलावा अंगद ने शार्कबोट नाम का इंडिया का सब से सस्ता 3डी प्रिंटर बनाने के लिए ओपन सोर्स सौफ्टवेयर तैयार किया. अंगद बच्चों के लिए सस्ती डीआईवाई किट की कंपनी चला रहे हैं. जिस उम्र में बच्चे पढ़ाई करते है उस उम्र में अंगद ने दुनिया को अपना हुनर दिखाया. आज अंगद को लोग भारत के एलन मस्क के नाम से जानते हैं.

श्रीलक्ष्मी सुरेश

3 साल की उम्र में बच्चे मां का आंचल नहीं छोड़ते पर इस उम्र में श्रीलक्ष्मी ने कंप्यूटर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था.

4 साल की उम्र में उन्होंने डिजाइन करना शुरू कर दिया और 6 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली वैबसाइट डिजाइन कर दी. इस के बाद 11 साल की उम्र में अपना एक स्टार्टअप शुरू कर दिया.

आज श्रीलक्ष्मी सुरेश को सब से युवा सीईओ और सब से कम उम्र के वैब डिजाइनरों में से एक माना जाता है. अपने स्टार्टअप ईडिजाइन के अलावा श्रीलक्ष्मी एक अन्य कंपनी ‘टिनीलोगो’ जोकि एक लोगो आधारित सर्च इंजन है, की ओनर हैं. श्रीलक्ष्मी सुरेश ने अब तक 100 से ज्यादा वैबसाइटें बनाई हैं. श्रीलक्ष्मी को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं. श्रीलक्ष्मी सुरेश को एसोसिएशन औफ अमेरिकन वैबमास्टर्स की सदस्यता से भी सम्मानित किया गया. वे इन्फो ग्रुप की ब्रैंड एंबेसेडर भी हैं. श्रीलक्ष्मी अब 26 साल की हो गई हैं.

सोशल मीडिया पर एंटी ट्रांसजैंडर कंटैंट से मचा बवाल, किस की जिम्मेदारी

मीडिया में एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के राइट्स की वकालत करने वाली ग्रुप ‘ग्लाड’ ने अपनी रिपोर्ट में फेसबुक, इंस्टाग्राम और थ्रेड्स सहित मेटा के टौप सोशल प्लेटफौर्मों पर एंटी ट्रांसकंटैंट के बारे में बताया. यह रिपोर्ट जून 2023 से ले कर मार्च 2024 के बीच की है.

रिपोर्ट में बताया गया कि इन प्लेटफौर्म्स पर ट्रांस विरोधी चीजें डाली जाती हैं और मेटा पौलिसी के बावजूद प्लेटफौर्म इस पर कोई कार्यवाही नहीं करता. इस में एंटी ट्रांस स्लर, प्रोपगंडा, डीह्यूउमनाइजिंग स्टीरियोटाइप, लेबलिंग ट्रांस, सेक्सुअल प्रीडेटर्स जैसा कंटैंट देखने को मिला है. विज्ञापन वाली सरकार गूगल और मेटा में सोशल मीडिया विज्ञापनों में बढ़ोतरी देखी गई है.

गूगल विज्ञापन पारदर्शिता केंद्र के आंकड़ों के अनुसार, 1 जनवरी, 2024 से 19 मार्च, 2024 के बीच पौलिटिकल विज्ञापनों पर कुल 101.28 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं. जिस में से अकेले भाजपा ने सोशल मीडिया कैम्पेन के लिए 31 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. इस के अलावा मेटा एड लाइब्रेरी के अनुसार भाजपा ने पिछले 90 दिनों में 1198 ऐड के लिए 7 करोड़ के लगभग पैसा खर्च किए हैं. कोचिंग का धंधा जेईई की तैयारी के लिए फेमस कोचिंग इंस्टिट्यूट फिटजी अपने विज्ञापन के चलते विवाद में घिर गया है.

यह विवाद सोशल मीडिया पर खूब गरमाया है. दरअसल फिटजी ने एक विज्ञापन बनाया जिस में उस ने एक स्टूडैंट को पौइंट करते दिखाया कि अगर वह फिटजी से ही अपनी पढ़ाई जारी रखती बजाय किसी और इंस्टिट्यूट जाने के तो ज्यादा स्कोर करती. इस विज्ञापन के बाद सोशल मीडिया ने फिटजी को आड़े हाथों ले लिया. एलन मस्क पर मुकदमा सोशल मीडिया प्लेटफौर्म एक्स, जो पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था, के पूर्व सीईओ पराग अग्रवाल और एक्स के कई एक्स औफिशियल्स ने एलन मस्क के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया है.

मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसा दावा किया गया है कि यह मुकदमा नौकरी से निकाले जाने के बाद हर्जाने के तौर पर दिए जाने वाले वेतन को ले कर है. पराग अग्रवाल के अलावा एलन मस्क के खिलाफ मुकदमा करने वाले 4 टौप एक्स औफिशियल भी हैं. मुकदमा लगभग 12.8 करोड़ के भुगतान को ले कर है. इन्फ्लुएंसर्स की रेज बैटिंग हाल के वर्षों में, इंटरनैट वर्ल्ड से ‘रेज बैटिंग’ शब्द ज्यादा सुनाई देने लगा है. सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के लिए यह जल्दी फेमस होने का मीडियम बन गया है. रेज बैटिंग तब होती है जब कोई सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स जानबू?ा कर यूजर्स का ध्यान पाने के लिए ऐसे पोस्ट डालता है जिस से उसे नैगेटिव रैस्पौंस मिलें. यह काम इन्फ्लुएंसर्स खूब करते हैं वे क्रिंज वीडियो बनाते हैं.

यह टिकटौक, इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफौर्म्स में देखा जा रहा है. सोशल मीडिया लती टीनएजर्स 26 सितंबर से 23 अक्तूबर, 2023 तक किए गए प्यू रिसर्च के सर्वे के अनुसार लगभग तीनचौथाई टीनएजर्स तब ज्यादा खुश रहते हैं जब वे अपने फोन के बिना रहते हैं. इस दौरान वे खुद को शांत और खुश महसूस करते हैं. रिसर्च में यह भी पता चला है कि टीनएजर्स यह जानते हुए भी कि वे अपनी स्क्रीन टाइम के साथ कोम्प्रोमाइज करने को तैयार नहीं है.

किशोरों की आत्महत्या : माता पिता दोषी कैसे?

यह सोच से बाहर है कि मांबाप के दबाव के चलते कोई बच्चा खुदकुशी कर ले, मगर समाज में अकसर ऐसी घटनाएं घट जाती हैं, जो एक सीख दी जाती हैं कि मांबाप को बच्चों के प्रति अपना बरताव अच्छा रखना चाहिए. हम कुछ ऐसी घटनाओं के साथ आप को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर हम मांबाप हैं, तो हमें बहुत ही सोचसमझ कर अपना बरताव उन के प्रति रखना होगा.

पहली घटना

बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में एक लड़के ने सिर्फ इसलिए खुदकुशी कर ली, क्योंकि मां उसे अकसर जल्दी उठने और हर काम समय से करने के लिए कहा करती थीं.

दूसरी घटना

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में एक लड़की में खुदकुशी कर ली. पुलिस की जांचपड़ताल में यह सामने आया कि मांबाप उस की पढ़ाई और ट्यूशन पर ज्यादा जोर दे रहे थे और उसे मोबाइल से भी दूर रखा जा रहा था.

तीसरी घटना

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक गांव में एक किशोर ने इसलिए खुदकुशी कर ली, क्योंकि मांबाप उसे अनुशासन का पाठ पढ़ाया करते थे.

ताजा मामले में मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में 17 साल एक लड़की ने कथिततौर से अपने बाप की शराब पीने की लत और मां के प्रति उस के हिंसक बरताव से परेशान हो कर खुदकुशी कर ली.

खरगोन के बड़वाह थाने के प्रभारी निर्मल श्रीवास ने बताया कि को रावत पलासिया गांव में एक किशोरी ने खुदकुशी कर ली. उन के मुताबिक, लड़की का एक तथाकथित सुसाइड नोट मिला है, जिस में उस ने तफसील से लिखा है कि उस के पिता शराब पीने के आदी हैं और अकसर उस की मां के साथ मारपीट करते हैं.

अफसर ने सुसाइड नोट का हवाला देते हुए बताया कि किशोरी ने पुलिस पर उस के पिता के खिलाफ शिकायत के बावजूद कार्यवाही न करने का भी आरोप भी लगाया. हालांकि, अभिवाहक ने पुलिस के खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार किया है. उन्होंने कहा कि पुलिस ने लड़की के पिता के खिलाफ शिकायत पर कार्यवाही की और उस से अच्छे बरताव के लिए बौंड भरवाया है.

खरगोन के पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीना के मुताबिक, लड़की के पिता के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी. उन्होंने आगे कहा कि पुलिस ने पहले भी शिकायतों पर कार्यवाही की थी और उसे गिरफ्तार भी किया था. उन के मुताबिक, खुदकुशी करने वाली लड़की की छोटी बहन ने भी अपने पिता पर बहुत ज्यादा शराब पीने और उन की मां पर हमला करने का आरोप लगाया था.

इस सिलसिले में पुलिस अफसर विवेक शर्मा कहते हैं कि दरअसल शराब ही इस की खास वजह है.

डाक्टर जीआर पंजवानी कहते हैं कि अशिक्षा के चलते इस तरह की घटनाएं समाज में घट रही हैं और आज जागरूकता फैलाने की जरूरत है.

जीवन की राह आसान बनाएं पेरेंट्स के फैसले

इच्छा और जरूरत का अंतर जेब में रखे पैसों से निर्धारित होता है. बच्चों की कौन सी इच्छा पूरी करनी है और उन की क्या जरूरत है, यह मातापिता से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. उन के फैसले अनुभव और जरूरत के हिसाब से होते हैं.

अक्षत का मूड बहुत खराब था. वह 12वीं के बाद अपने दोस्त कनिष्क की तरह विदेश में पढ़ने जाना चाहता था. पर अक्षत के मम्मीपापा ने एजुकेशन लोन के लिए साफ मना कर दिया था. अक्षत के पापा के अनुसार, ‘‘विदेश में पढ़ने के लिए 30 लाख रुपए का लोन लेने से अच्छा है कि अक्षत भारत के ही किसी अच्छे कालेज से ग्रेजुएशन कर ले.

लेकिन आज, अक्षत के शब्दों में, ‘‘उस समय मैं मम्मीपापा से बेहद नाराज था पर उन्होंने एकदम सही फैसला लिया था. नहीं तो आज मैं और मेरा पूरा परिवार एजुकेशन लोन के कर्ज में डूबा रहता. कोरोना के कारण वैसे ही भविष्य अंधकार में है.’’

ऊर्जा अपनी जन्मदिन की पार्टी अपनी दूसरी फ्रैंड्स की तरह महंगे फाइवस्टार होटल में देना चाहती थी. लेकिन उस की मम्मी ने कहा कि वे लोग एक जन्मदिन के लिए 50 हजार रुपए का खर्च वहन नहीं कर सकते. ऊर्जा ने गुस्से में जन्मदिन पर किसी को नहीं बुलाया. पर उस की जन्मदिन की रात को 12 बजे जब उस की सारी सहेलियां केक ले कर पहुंचीं, तो ऊर्जा की खुशी का ठिकाना न रहा. ऊर्जा की मम्मी ने उस की सभी दोस्तों के मम्मीपापा से परमिशन ले ली थी. पूरी रात ऊर्जा दोस्तों के साथ धमाचौकड़ी करती रही. रात में मम्मीपापा के गले लगते हुए ऊर्जा बोली, ‘‘मम्मी, यह जन्मदिन अब तक का सब से अच्छा जन्मदिन था. जगह से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है लोगों का साथ.’’

काविश को एप्पल का फोन लेने का कितना मन था. उस के ग्रुप में सब के पास एप्पल का ही मोबाइल था. पर उस के पापा ने उस के लिए अपने बजट के हिसाब से उसे एक अपडेटेड एंड्रोइड मोबाइल दिला दिया था. काविश ने गुस्से में उस मोबाइल को यूज नहीं किया था. तभी लौकडाउन हो गया और अचानक से लैपटौप लेना जरूरी हो गया था. काविश के पापा का बिजनैस भी नहीं चल पा रहा था. काविश को समझ नहीं आया था कि वह लैपटौप कैसे लेगा? लेकिन उस के पापा अगले दिन ही काविश के लिए लैपटौप खरीद कर ले आए थे. उन्होंने काविश को सम झाते हुए कहा, ‘‘बेटा, मोबाइल तुम्हारी इच्छा थी जिसे पूरा करना जरूरी नहीं था, मगर लैपटौप तुम्हारी आवश्यकता थी. अगर मैं अपनी जेब के अनुसार फैसला नहीं लेता और तुम्हें महंगा मोबाइल दिला देता तो अब तुम्हारे लिए लैपटौप नहीं खरीद पाता.’’

बहुत बार ऐसा होता है कि हम अपने मम्मीपापा के फैसलों से सहमत नहीं होते हैं. ऐसा हो भी सकता है कि उन के फैसले आप को आज के समय के हिसाब से अनुकूल न लगें, लेकिन एक बात अवश्य याद रखें कि उन के फैसले उन के अनुभव के हिसाब से होंगे. अगर उन के फैसलों से आप को लाभ नहीं होगा तो नुकसान भी कदापि नहीं होगा.

चलिए अब जानते हैं कुछ कारण कि क्यों हमारे मातापिता हमारे फैसले अपनी जेब को देख कर लेते हैं.

जितनी चादर उतने ही पैर फैलाएं : अगर मम्मीपापा आप की जिद मान कर अपनी चादर से बाहर पैर फैलाएंगे तो बाद में वह आप के लिए ही नुकसानदेह होगा. ऐसा हो सकता है कि आप की जिद पूरी करने के चक्कर में वे अपने जरूरी खर्चों में कटौती कर दें. इसलिए अपने मम्मीपापा के फैसलों को सम झने की कोशिश करें, इस में सब की भलाई ही छिपी हुई होती है.

अनुभव है महत्त्वपूर्ण : मांबाप के हर निर्णय में उन के अनुभव की सीख होती है. उन्होंने आप से अधिक दुनिया देखी है. मम्मीपापा घर की आर्थिक हालत के हिसाब से ही आप की जरूरत और इच्छाओं को पूरा करते हैं. इसलिए उन के फैसलों को दिल से स्वीकार करें.

दूसरों से न करें तुलना : अपने दोस्तों से अपनी तुलना कभी न करें. हर किसी के परिवार का आर्थिक स्तर अलग होता है और सब का रहनसहन भी आर्थिक स्तर के हिसाब से ही तय होता है. अगर आप के दोस्त के पास एप्पल का फोन है तो जरूरी नहीं कि आप भी वही लें. बेवजह की तुलना आप को नकारात्मक ही बनाएगी.

जरूरत और इच्छाओं में फर्क करना सीखें : यह बात अवश्य याद रखें कि जरूरतों और इच्छाओं में फर्क करना सीख लें. आप के मम्मीपापा आप की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही बाध्य हैं. अपनी इच्छाओं को पूरा करना आप की जिम्मेदारी है. अगर अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से आप फर्क करना नहीं सीखेंगे तो सदा ही दुखी रहेंगे.

खुल कर करें बातचीत : कभीकभी ऐसा भी हो सकता है कि आप के लिए कोई वस्तु आवश्यक हो लेकिन मम्मीपापा की नजरों में वह जरूरी न हो. ऐसे में आप परेशान न हों. मम्मीपापा से खुल कर बातचीत करें. अगर आप की बात में उन्हें वजन लगा तो वे अवश्य आप को वह वस्तु दिलाने से गुरेज नही करेंगे.

झूठी शान बढ़ाती हैं मुश्किलें : अगर आप के मम्मीपापा आप की  झूठी शान के कारण अपनी जेब से अधिक खर्च करेंगे तो भविष्य में आप की ही मुश्किलें बढ़ेंगी.  झूठी आनबानशान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है सादा और सरल जीवन. अपनी जेब के अनुसार किए गए फैसले भविष्य की खुशियों को सदा के लिए सुनिश्चित कर लेते हैं.

आज का कर्ज भविष्य का मर्ज : यह बात गांठ बांध कर रख लें कि कर्ज से बड़ा कोई मर्ज नहीं होता है. आप के कहे अनुसार, अगर आप के मम्मीपापा आप के सपनों को पूरा करने के लिए कर्ज भी ले लेंगे तो उन के साथसाथ आप भी इस मर्ज का शिकार हो जाएंगे. अगर अपने जीवनकाल में वे इस मर्ज से उबर न पाए तो आप भी इस मर्ज का शिकार हो जाएंगे. तनावरहित जीवन जीने के लिए, कर्ज नामक मर्ज से सदैव दूर रहें. जेब के अनुसार किए गए मम्मीपापा के फैसले आप के जीवन की राह को आसान बनाते हैं.

मेहमान बनें, सिरदर्द नहीं : रखें इन बातों का खयाल

अपने किसी जानपहचान वाले या सगेसंबंधी के यहां छुट्टियां मनाने जाना एक सुखद अनुभव है. भागदौड़ भरी जिंदगी में वहां कई ऐसे पल मिल जाते हैं, जब हमें चैन की सांसें मिलती हैं. आबोहवा बदलने से बहुत सी परेशानियां तो अपनेआप ही चली जाती हैं. चाहे कोई भी उम्र हो, सब के लिए कुछ न कुछ जरूर होता है. हम खुद को तरोताजा महसूस करने लगते हैं.

आसान शब्दों में कहें तो हमारा तनमन आने वाले समय के लिए रीचार्ज हो जाता है, इसलिए हमारा भी यह फर्ज है कि जिन लोगों के चलते हम को इतना सब मिला, उन के लिए हम भी थोड़ा सोचें.

चलिए, जिक्र करते हैं उन बातों की, जिन का हमें मेहमान बनते वक्त हमेशा खयाल रखना चाहिए:

* अगर हमारा कार्यक्रम लंबा है यानी 15-20 दिन या महीनेभर का है, तो कोशिश की जानी चाहिए कि उसी शहर में जाएं, जहां एक से ज्यादा रिश्तेदार हों. 2-2, 3-3 दिन तक बारीबारी से सब के यहां रुकते रहने से किसी पर ज्यादा बोझ भी नहीं पड़ेगा और सभी से मुलाकात भी हो जाएगी.

* छुट्टियों में किसी खास के पास जाने की आदत नहीं बनानी चाहिए. इस से उस के मन में आप के लिए नयापन लगातार कम होता जाता है, भले ही वह आप का मायका या पुश्तैनी घर ही क्यों न हो. समय के साथ लोगों की पसंद और प्राथमिकताएं लगातार बदलती हैं.

* बहुत से लोगों की आदत होती है कि किसी के भी घर पहुंच जाते हैं. लोग भले ही ऊपर से कुछ न कहें, लेकिन आज की गलाकाट प्रतियोगिता के जमाने में हर कोई इतना फ्री नहीं होता कि उस को बारबार किसी की खातिरदारी करने में दिलचस्पी हो, वह भी दूर के जानपहचान वालों की. खुद को किसी के सिर पर थोपने की लत अपनी इज्जत के लिए भी खतरा है.

* हम अपने घर में तो बच्चों को खूब रोकटोक करते हैं, लेकिन किसी के घर मेहमान बन कर जाते ही उन पर से ध्यान हटा लेते हैं. ऊपर से उन के सामने ही यह बोल कर कि ‘यह तो बहुत शरारती है’ एक तरह से उन को खुली छूट दे देते हैं.

मेजबान खुद आप को संभालने में जुटा हुआ है, ऐसे में अगर आप के बच्चे उस के घर में धमाचौकड़ी, तोड़फोड़ करते रहेंगे, तो झिझक के मारे वह उन को तो कुछ नहीं कहेगा, लेकिन आप के अगली बार न आने की बात मन में जरूर सोचने लगेगा.

* अकसर देखा गया है कि अपने से कम पैसे वाले मेजबान को मेहमान अपना रोब दिखाने का ‘सौफ्ट टारगेट’ समझ लेते हैं. आप कितने महंगे कपड़े पहनते हैं, कितने का खाते हैं. इस का गैरजरूरी हिसाब देना मेजबान के मन में आप के लिए नेगेटिव भाव पैदा करता है.

* मेजबान के बच्चों की तुलना ज्यादा नंबर लाने वाले अपने बच्चे से मत कीजिए. इस से वे बच्चे आप से कन्नी काटने लगेंगे. बच्चों को असहज देख उन के मांबाप भी असहज हो जाएंगे.

अगर आप मेजबान के बच्चों का सचमुच भला चाहते हैं, तो उन्हें कभीकभार दोस्त की तरह सलाह दे दें. अपने बच्चों के सामने इशारोंइशारों में छोटा कतई न दिखाएं.

* हर किसी का अपना स्वभाव होता है. हो सकता है कि किसी को ज्यादा लोगों से मिलनाजुलना पसंद न हो या वह आप से न मिलना चाहे. घर में जिन से आप की अच्छी अंडरस्टैंडिंग है, उन तक ही सीमित रहिए. इस से आप को भरपूर स्वागत का अनुभव होगा.

* जिस मेजबान की जो हैसियत है, उसे उस की जरूरत के हिसाब से उपहार दें. सभी जगह आधा किलो मिठाई का डब्बा ले कर चलने की आदत सही नहीं है. हर कोई आप से प्यार किसी न किसी उम्मीद के साथ ही करता है, इस सच को स्वीकार करना सीखें.

* मेजबान से बहुत ज्यादा प्यार जताना वह भी केवल शब्दों के जरीए, उन के मन में आप की इमेज पर बुरा असर डालेगा. सच्चा प्यार है तो उस को अपने काम से दिखलाइए, वरना बदलाव सामान्य रखिए. खोखली बातें कुछ दिनों तक ही अच्छी लगती हैं.

इन बातों का ध्यान रखें और देखें कि हर मेजबान खुद ही कहेगा, ‘‘आप का हमारे घर में स्वागत है.’’

झूठे प्रचार की मिली सजा : रामदेव की सुप्रीम कोर्ट में माफी

योग के जरीए देशदुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले बाबा रामदेव ने सुप्रीम कोर्ट में हाथ जोड़ कर माफी मांग कर देश की जनता को जता दिया है कि अपने झूठे विज्ञापनों के चलते वे देश से माफी मांग रहे हैं और ऐसा काम आगे नहीं करेंगे.

दरअसल, कोरोना काल में कोरोनील नाम की एक दवा आई थी, जिसे लोगों ने विश्वास कर के खरीदा और रामदेव ने करोड़ों रुपए कमा लिए. यह सीधासीधा किसी लूट से कम नहीं था, मगर नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार ने तब आंखें बंद कर ली थीं.

इस का सीधा सा मतलब यह है कि अगर आप हमारे काम आते हैं तो आप का सारा अपराध माफ है. यह कल्पना की जा सकती है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव के बरताव और काम करने के तरीके पर ध्यान नहीं दिया होता तो रामदेव आज भी मुसकराते हुए बड़ेबड़े दावे कर के अपनी उन दवाओं को देश की जनता को बेचते रहते, जिसे सीधेसीधे झूठ और ठगी काम कहा जा सकता है. इतना ही नहीं, देशभर के बड़े चैनलों में विज्ञापन को दे कर अपनी बात को सच बताना भी कोई छोटामोटा अपराध नहीं है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट में इसे गंभीरता से लिया और आखिरकार रामदेव ने वहां हाजिर हो कर माफी मांग ली.

इस तरह जो काम नरेंद्र मोदी की सरकार नहीं कर पाई उसे देश के सुप्रीम कोर्ट ने देश की जनता के सामने ला कर रख दिया और चेहरे पर से नकाब उतार दी या कहें कि रामदेव के तन से वह चोला उतार दिया, जिस के भरोसे वे देश की जनता और कानून को ठेंगा दिखाते रहे हैं. यह साबित हो गया है कि रामदेव कोई जनसेवा या देश की जनता के हमदर्द नहीं हैं, बल्कि वे भी एक ऐसे व्यापारी हैं, जो सिर्फ मुनाफा कमाना चाहता है.

आप को बता दें कि पहले भ्रामक विज्ञापन के मामले में पतंजलि आयुर्वेद को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई थी और बाबा रामदेव व कंपनी के एमडी आचार्य बालकृष्ण को पेशी पर बुलाया था. आखिर तय तारीख पर रामदेव और बालकृष्ण दोनों ही बड़ी अदालत पहुंचे. इस दौरान सुनवाई शुरू हुई तो बाबा रामदेव के वकील ने कहा कि हम ऐसे विज्ञापन के लिए माफी मांगते हैं. आप के आदेश पर खुद योगगुरु रामदेव अदालत आए हैं और वे माफी मांग रहे हैं और आप उन की माफी को रिकौर्ड में दर्ज कर सकते हैं.

बाबा रामदेव के वकील ने आगे कहा, ‘हम इस अदालत से भाग नहीं रहे हैं. क्या मैं यह कुछ पैराग्राफ पढ़ सकता हूं? क्या मैं हाथ जोड़ कर यह कह सकता हूं कि जैंटलमैन खुद अदालत में मौजूद हैं और अदालत उन की माफी को दर्ज कर सकती है.

सुनवाई के दौरान पतंजलि के वकील ने भ्रामक विज्ञापन को ले कर कहा कि हमारे मीडिया विभाग को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी नहीं थी, इसलिए ऐसा विज्ञापन चला गया.

इस पर बैंच में शामिल जस्टिस अमानुल्लाह और जस्टिस हिमा कोहली की बैंच ने कहा कि यह मानना मुश्किल है कि आप को इस की जानकारी नहीं थी.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर, 2023 में ही रामदेव के पतंजलि को आदेश दिया था कि वह भ्रामक दावे करने वाले विज्ञापनों को वापस ले. यदि ऐसा नहीं किया गया तो फिर हम ऐक्शन लेंगे. ऐसी हालत में पतंजलि के हर गलत विज्ञापन पर 1 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा.

इस दौरान जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि रामदेव ने योग के मामले में बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन एलोपैथी दवाओं को ले कर ऐसे दावे करना ठीक नहीं है, जबकि इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के वकील ने कहा कि वे अपना विज्ञापन करें, लेकिन उस में एलोपैथी चिकित्सा पद्धति की बेवजह आलोचना नहीं होनी चाहिए.

सुनवाई के दौरान जस्टिस हिमा कोहली ने केंद्र सरकार की भी खिंचाई की. उन्होंने कहा कि हमें हैरानी है कि आखिर इस मामले में केंद्र सरकार ने अपनी आंखें बंद रखीं.

इस पूरे मामले पर अगर देश की जनता गौर करे तो यह साफ है कि रामदेव ने सिर्फ रुपए कमाने के लिए झूठा विज्ञापन जारी किया और सीधेसीधे जनता को ठग लिया. दरअसल, ये सारे पैसे सरकार को वसूल लेने चाहिए, ताकि देश में यह संदेश चला जाए कि ठगी करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा.

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