मुझे गुमसुम और उदास देख कर मां ने कहा, ‘‘क्या बात है, रति, तू इस तरह मुंह लटकाए क्यों बैठी है? कई दिन से मनोज का भी कोई फोन नहीं आया. दोनों ने आपस में झगड़ा कर लिया क्या?’’
‘‘नहीं, मां, रोज रोज क्या बात करें.’’
‘‘कितने दिनों से शादी की तैयारी कर रहे थे, सब व्यर्थ हो गई. यदि मनोज के दादाजी की मौत न हुई होती तो आज तेरी शादी को 15 दिन हो चुके होते. वह काफी बूढ़े थे. तेरहवीं के बाद शादी हो सकती थी पर तेरे ससुराल वाले बड़े दकियानूसी विचारों के हैं. कहते हैं कि साए नहीं हैं. अब तो 5-6 महीने बाद ही शादी होगी.
‘‘हमारी तो सब तैयारी व्यर्थ हो गई. शादी के कार्ड बंट चुके थे. फंक्शन हाल को, कैटरर्स को, सजावट करने वालों को, और भी कई लोगों को एडवांस पेमेंट कर चुके थे. 6 महीने शादी सरकाने से अच्छाखासा नुकसान हो गया है.’’
‘‘इसी बात से तो मनोज बहुत डिस्टर्ब है, मां. पर कुछ कह नहीं पाता.’’
‘‘बेटा, हम भी कभी तुम्हारी उम्र के थे. तुम दोनों के एहसास को समझ सकते हैं, पर हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. मैं ने तो तेरी सास से कहा भी था कि साए नहीं हैं तो क्या हुआ, अच्छे काम के लिए सब दिन शुभ होते हैं…अब हमें शादी कर देनी चाहिए.
‘‘मेरा इतना कहना था कि वह तो भड़क गईं और कहने लगीं, आप के लिए सब दिन शुभ होते होंगे पर हम तो सायों में भरोसा करते हैं. हमारा इकलौता बेटा है, हम अपनी तरफ से पुरानी मान्यताओं को अनदेखा कर मन में कोई वहम पैदा नहीं करना चाहते.’’
रति सोचने लगी कि मम्मी इस से ज्यादा क्या कर सकती हैं और मैं भी क्या करूं, मम्मी को कैसे बताऊं कि मनोज क्या चाहता है.
नर्सरी से इंटर तक हम दोनों साथसाथ पढ़े थे. किंतु दोस्ती इंटर में आने के बाद ही हुई थी. इंटर के बाद मनोज इंजीनियरिंग करने चला गया और मैं ने बी.एससी. में दाखिला ले लिया था. कालिज अलग होने पर भी हम दोनों छुट्टियों में कुछ समय साथ बिताते थे. बीच में फोन पर बातचीत भी कर लेते थे. कंप्यूटर पर चैट हो जाती थी.
एम.एससी. में आते ही मम्मीपापा ने शादी के लिए लड़का तलाशने की शुरुआत कर दी. मैं ने कहा भी कि मम्मी, एम.एससी. के बाद शादी करना पर उन का कहना था कि तुम अपनी पढ़ाई जारी रखो, शादी कौन सी अभी हुई जा रही है, अच्छा लड़का मिलने में भी समय लगता है.
शादी की चर्चा शुरू होते ही मनोज की छवि मेरी आंखों में तैर गई थी. यों हम दोनों एक अच्छे मित्र थे पर तब तक शादी करने के वादे हम दोनों ने एकदूसरे से नहीं किए थे. साथ मिल कर भविष्य के सपने भी नहीं देखे थे पर मम्मी द्वारा शादी की चर्चा करने पर मनोज का खयाल आना, क्या इसे प्यार समझूं. क्या मनोज भी यही चाहता है, कैसे जानूं उस के दिल की बात.
मुलाकात में मनोज से मम्मी द्वारा शादी की पेशकश के बारे में बताया तो वह बोला, ‘‘इतनी जल्दी शादी कर लोगी, अभी तो तुम्हें 2 वर्ष एम.एससी. करने में ही लगेंगे,’’ फिर कुछ सोचते हुए बोला था, ‘‘सीधेसीधे बताओ, क्या मुझ से शादी करोगी…पर अभी मुझे सैटिल होने में कम से कम 2-3 वर्ष लगेंगे.’’
प्रसन्नता की एक लहर तनमन को छू गई थी, ‘‘सच कहूं मनोज, जब मम्मी ने शादी की बात की तो एकदम से मुझे तुम याद आ गए थे…क्या यही प्यार है?’’
‘‘मैं समझता हूं यही प्यार है. देखो, जो बात अब तक नहीं कह सका था, तुम्हारी शादी की बात उठते ही मेरे मुंह पर आ गई और मैं ने तुम्हें प्रपोज कर डाला.’’
‘‘अब जब हम दोनों एकदूसरे से चाहत का इजहार कर ही चुके हैं तो फिर इस विषय में गंभीरता से सोचना होगा.’’
‘‘सोचना ही नहीं होगा रति, तुम्हें अपने मम्मीपापा को इस शादी के लिए मनाना भी होगा.’’
‘‘क्या तुम्हारे घर वाले मान जाएंगे?’’
‘‘देखो, अभी तो मेरा इंजीनियरिंग का अंतिम साल है. मेरी कैट की कोचिंग भी चल रही है…उस की भी परीक्षा देनी है. वैसे हो सकता है इस साल किसी अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट मिल जाए क्योंकि कालिज में बहुत सी कंपनियां आती हैं और जौब आफर करती हैं. अच्छा आफर मिला तो मैं स्वीकार कर लूंगा और जैसे ही शादी की चर्चा शुरू होगी मैं तुम्हारे बारे में बता दूंगा.’’
प्यार का अंकुर तो हमारे बीच पनप ही चुका था और हमारा यह प्यार अब जीवनसाथी बनने के सपने भी देखने लगा था. अब इस का जिक्र अपनेअपने घर में करना जरूरी हो गया था.
मैं ने मम्मी को मनोज के बारे में बताया तो वह बोलीं, ‘‘वह अपनी जाति का नहीं है…यह कैसे हो सकता है, तेरे पापा तो बिलकुल नहीं मानेंगे. क्या मनोज के मातापिता तैयार हैं?’’
‘‘अभी तो इस बारे में उस के घर वाले कुछ नहीं जानते. फाइनल परीक्षा होने तक मनोज को किसी अच्छी कंपनी में जौब का आफर मिल जाएगा और रिजल्ट आते ही वह कंपनी ज्वाइन कर लेगा. उस के बाद ही वह अपने मम्मीपापा से बात करेगा.’’
‘‘क्या जरूरी है कि वह मान ही जाएंगे?’’
‘‘मम्मी, मुझे पहले आप की इजाजत चाहिए.’’
‘‘यह फैसला मैं अकेले कैसे ले सकती हूं…तुम्हारे पापा से बात करनी होगी…उन से बात करने के लिए मुझे हिम्मत जुटानी होगी. यदि पापा तैयार नहीं हुए तो तुम क्या करोगी?’’
‘‘करना क्या है मम्मी, शादी होगी तो आप के आशीर्वाद से ही होगी वरना नहीं होगी.’’
इधर मेरा एम.एससी. फाइनल शुरू हुआ उधर इंजीनियरिंग पूरी होते ही मनोज को एक बड़ी कंपनी में अच्छा स्टार्ट मिल गया था और यह भी करीबकरीब तय था कि भविष्य मेें कभी भी कंपनी उसे यू.एस. भेज सकती है. मनोज के घर में भी शादी की चर्चा शुरू हो गई थी.
मैं ने मम्मी को जैसेतैसे मना लिया था और मम्मी ने पापा को किंतु मनोज की मम्मी इस विवाह के लिए बिलकुल तैयार नहीं थीं. इस फैसले से मनोज के घर में तूफान उठ खड़ा हुआ था. उस के घर में पापा से ज्यादा उस की मम्मी की चलती है. ऐसा एक बार मनोज ने ही बताया था…मनोज ने भी अपने घर में ऐलान कर दिया था कि शादी करूंगा तो रति से वरना किसी से नहीं.
आखिर मनोज के बहनबहनोई ने अपनी तरह से मम्मी को समझाया था, ‘‘मम्मी, आप की यह जिद मनोज को आप से दूर कर देगी, आजकल बच्चों की मानसिक स्थिति का कुछ पता नहीं चलता कि वह कब क्या कर बैठें. आज के ही अखबार में समाचार है कि मातापिता की स्वीकृति न मिलने पर प्रेमीप्रेमिका ने आत्महत्या कर ली…वह दोनों बालिग हैं. मनोज अच्छा कमा रहा है. वह चाहता तो अदालत में शादी कर सकता था पर उस ने ऐसा नहीं किया और आप की स्वीकृति का इंतजार कर रहा है. अब फैसला आप को करना है.’’
मनोज के पिता ने कहा था, ‘‘बेटा, मुझे तो मनोज की इस शादी से कोई एतराज नहीं है…लड़की पढ़ीलिखी है, सुंदर है, अच्छे परिवार की है… और सब से बड़ी बात मनोज को पसंद है. बस, हमारी जाति की नहीं है तो क्या हुआ पर तुम्हारी मम्मी को कौन समझाए.’’
‘‘जब सब तैयार हैं तो मैं ही उस की दुश्मन हूं क्या…मैं ही बुरी क्यों बनूं? मैं भी तैयार हूं.’’
मम्मी का इरादा फिर बदले इस से पहले ही मंगनी की रस्म पूरी कर दी गई थी. तय हुआ था कि मेरी एम.एससी. पूरी होते ही शादी हो जाएगी.
मंगनी हुए 1 साल हो चुका था. शादी की तारीख भी तय हो चुकी थी. मनोज के बाबा की मौत न हुई होती तो हम दोनों अब तक हनीमून मना कर कुल्लूमनाली, शिमला से लौट चुके होते और 3 महीने बाद मैं भी मनोज के साथ अमेरिका चली जाती.
पर अब 6-7 महीने तक साए नहीं हैं अत: शादी अब तभी होगी ऐसा मनोज की मम्मी ने कहा है. पर मनोज शादी के टलने से खुश नहीं है. इस के लिए अपने घर में उसे खुद ही बात करनी होगी. हां, यदि मेरे घर से कोई रुकावट होती तो मैं उसे दूर करने का प्रयास करती.
पर मैं क्या करूं. माना कि उस के भी कुछ जजबात हैं. 4-5 वर्षों से हम दोस्तों की तरह मिलते रहे हैं, प्रेमियों की तरह साथसाथ भविष्य के सपने भी बुनते रहे हैं किंतु मनोज को कभी इस तरह कमजोर होते नहीं देखा. यद्यपि उस का बस चलता तो मंगनी के दूसरे दिन ही वह शादी कर लेता पर मेरा फाइनल साल था इसलिए वह मन मसोस कर रह गया.
प्रतीक्षा की लंबी घडि़यां हम कभी मिल कर, कभी फोन पर बात कर के काटते रहे. हम दोनों बेताबी से शादी के दिन का इंतजार करते रहे. दूरी सहन नहीं होती थी. साथ रहने व एक हो जाने की इच्छा बलवती होती जाती थी. जैसेजैसे समय बीत रहा था, सपनों के रंगीन समुंदर में गोते लगाते दिन मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे. शादी के 10 दिन पहले हम ने मिलना भी बंद कर दिया था कि अब एकदूसरे को दूल्हादुलहन के रूप में ही देखेंगे पर विवाह के 7 दिन पहले बाबाजी की मौत हमारे सपनों के महल को धराशायी कर गई.
बाबाजी की मौत का समाचार मुझे मनोज ने ही दिया था और कहा था, ‘‘बाबाजी को भी अभी ही जाना था. हमारे बीच फिर अंतहीन मरुस्थल का विस्तार है. लगता है, अब अकेले ही अमेरिका जाना पडे़गा. तुम से मिलन तो मृगतृष्णा बन गया है.’’
तेरहवीं के बाद हम दोनों गार्डन में मिले थे. वह बहुत भावुक हो रहा था, ‘‘रति, तुम से दूरी अब सहन नहीं होती. मन करता है तुम्हें ले कर अनजान जगह पर उड़ जाऊं, जहां हमारे बीच न समाज हो, न परंपराएं हों, न ये रीतिरिवाज हों. 2 प्रेमियों के मिलन में समाज के कायदे- कानून की इतनी ऊंची बाड़ खड़ी कर रखी है कि उन की सब्र की सीमा ही समाप्त हो जाए. चलो, रति, हम कहीं भाग चलें…मैं तुम्हारा निकट सान्निध्य चाहता हूं. इतना बड़ा शहर है, चलो, किसी होटल में कुछ घंटे साथ बिताते हैं.’’
जो हाल मनोज का था वही मेरा भी था. एक मन कहता था कि अपनी खींची लक्ष्मण रेखा को अब मिटा दें किंतु दूसरा मन संस्कारों की पिन चुभो देता कि बिना विवाह यह सब ठीक नहीं. वैसे भी एक बार मनोज की इच्छा पूरी कर दी तो यह चाह फिर बारबार सिर उठाएगी, ‘‘नहीं, यह ठीक नहीं.’’
‘‘क्या ठीक नहीं, रति. क्या तुम को मुझ पर विश्वास नहीं? पतिपत्नी तो हमें बनना ही है. मेरा मन आज जिद पर आया है, मैं भटक सकता हूं, रति, मुझे संभाल लो,’’ गार्डन के एकांत झुटपुटे में उस ने बांहों में भर कर बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया था. मैं ने भी आज उसे यह छूट दे दी थी ताकि उस का आवेग कुछ शांत हो किंतु मनोज की गहरीगहरी सांसें और अधिक समा जाने की चाह मुझे भी बहकाए उस से पूर्व ही मैं उठ खड़ी हुई.
‘‘अपने को संभालो, मनोज. यह भी कोई जगह है बहकने की? मैं भी कोई पत्थर नहीं, इनसान हूं…कुछ दिन अपने को और संभालो.’’
‘‘इतने दिन से अपने को संभाल ही तो रहा हूं.’’
‘‘जो तुम चाह रहे हो वह हमारी समस्या का समाधान तो नहीं है. स्थायी समाधान के लिए अब हाथपैर मारने होंगे. चलो, बहुत जोर से भूख लगी है, एक गरमागरम कौफी के साथ कुछ खिला दो, फिर इस बारे में कुछ मिल कर सोचते हैं.’’
रेस्टोरेंट में बैरे को आर्डर देने के बाद मैं ने ही बात शुरू की, ‘‘मनोज, तुम्हें अब एक ही काम करना है… किसी तरह अपने मातापिता को जल्दी शादी के लिए तैयार करना है, जो बहुत मुश्किल नहीं. आखिर वे हमारे शुभचिंतक हैं, तुम ने उन से एक बार भी कहा कि शादी इतने दिन के लिए न टाल कर अभी कर दें.’’
‘‘नहीं, यह तो नहीं कहा.’’
‘‘तो अब कह दो. कुछ पुराना छोड़ने और नए को अपनाने में हरेक को कुछ हिचक होती है. अपनी इंटरकास्ट मैरिज के लिए आखिर वह तैयार हो गए न. तुम देखना बिना सायों के शादी करने को भी वह जरूर मान जाएंगे.’’
मनोज के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ गई थी, ‘‘तुम ठीक कह रही हो रति, यह बात मेरे ध्यान में क्यों नहीं आई? खाने के बाद तुम्हें घर पर छोड़ देता हूं. कोर्ट मैरिज की डेट भी तो पास आ गई है, उसे भी आगे नहीं बढ़ाने दूंगा.’’
‘‘ठीक है, अब मैरिज वाले दिन कोर्ट में ही मिलेंगे.’’
‘‘मेरे आज के व्यवहार से डर गईं क्या? इस बीच फोन करने की इजाजत तो है या वह भी नहीं है?’’
‘‘चलो, फोन करने की इजाजत दे देते हैं.’’
रजिस्ट्रार के आफिस में मैरिज की फार्र्मेलिटी पूरी होने के बाद हम दोनों अपने परिवार के साथ बाहर आए तो मनोज के जीजाजी ने कहा, ‘‘मनोज, अब तुम दोनों की शादी पर कानून की मुहर लग गई है. रति अब तुम्हारी हुई.’’
‘‘ऐ जमाई बाबू, ये इंडिया है, वह तो वीजा के लिए यह सब करना पड़ा है वरना इसे हम शादी नहीं मानते. हमारे घर की बहू तो रति विवाह संस्कार के बाद ही बनेगी,’’ मेरी मम्मी ने कहा.
‘‘वह तो मजाक की बात थी, मम्मी, अब आप लोग घर चलें. मैं तो इन दोनों से पार्टी ले कर ही आऊंगा.’’
होटल में खाने का आर्डर देने के बाद मनोज ने अपने जीजाजी से पूछा, ‘‘जीजाजी, मम्मी तक हमारी फरियाद अभी पहुंची या नहीं?’’
‘‘साले साहब, क्यों चिंता करते हो. हम दोनों हैं न तुम्हारे साथ. अमेरिका आप दोनों साथ ही जाओगे. मैं ने अभी बात नहीं की है, मैं आप की इस कोर्ट मैरिज हो जाने का इंतजार कर रहा था. आगे मम्मी को मनाने की जिम्मेदारी आप की बहन ने ली है. इस से भी बात नहीं बनी तो फिर मैं कमान संभालूंगा.’’
‘‘हां, भैया, मैं मम्मी को समझाने की पूरी कोशिश करूंगी.’’
‘‘हां, तू कोशिश कर ले, न माने तो मेरा नाम ले कर कह देना, ‘आप अब शादी करो या न करो भैया भाभी को साथ ले कर ही जाएंगे.’’’
‘‘वाह भैया, आज तुम सचमुच बड़े हो गए हो.’’
‘‘आफ्टर आल अब मैं एक पत्नी का पति हो गया हूं.’’
‘‘ओके, भैया, अब हम लोग चलेंगे, आप लोगों का क्या प्रोग्राम है?’’
‘‘कुछ देर घूमघाम कर पहले रति को उस के घर छोडूंगा फिर अपने घर जाऊंगा.’’
मेरे गले में बांहें डालते हुए मनोज ने शरारत से देखा, ‘‘हां, रति, अब क्या कहती हो, तुम्हारे संस्कार मुझे पति मानने को तैयार हैं या नहीं?’’
आंखें नचाते हुए मैं चहकी, ‘‘अब तुम नाइंटी परसेंट मेरे पति हो.’’
‘‘यानी टैन परसेंट की अब भी कमी रह गई है…अभी और इंतजार करना पडे़गा?’’
‘‘उस दिन का मुझे अफसोस है मनोज…पर अब मैं तुम्हारी हूं.’’