केशव ने घूर कर अपने बेटे अंगद को देखा. वह सहम गया और सोचने लगा कि उस ने ऐसा क्या कह दिया जो उस के पिता को खल गया. अगर उसे कुछ चाहिए तो वह अपने पिता से नहीं मांगेगा तो और किस से मांगेगा. रानी बेटे की बात समझती है पर वह केवल उस की सिफारिश ही तो कर सकती है. निर्णय तो इस परिवार में केशव ही लेता है.
रानी ने मुसकरा कर केशव को हलकी झिड़की दी, ‘‘अब घूरना बंद करो और मुंह से कुछ बोलो.’’
केशव ने रानी को मुंह सिकोड़ कर देखा और फिर सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘क्या समय आ गया है.’’
‘‘क्यों, क्या तुम ने अपने पिता से कभी कुछ नहीं मांगा?’’ रानी ने हंस कर कहा, ‘‘बेकार में समय को दोष क्यों देते हो?’’
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‘‘मांगा?’’ केशव ने तैश खा कर कहा, ‘‘मांगना तो दूर हमारा तो उन के सामने मुंह भी नहीं खुलता था. इतनी इज्जत करते थे उन की.’’
‘‘इज्जत करते थे या डरते थे?’’ रानी ने व्यंग्य से कहा.
केशव ने लापरवाही का नाटक किया, ‘‘एक ही बात है. अब हमारी औलाद हम से डरती कहां है?’’
अवसर का लाभ उठाते हुए अंगद ने शरारत से पूछा, ‘‘पिताजी, क्या आप के समय में आजकल की तरह जन्मदिन मनाया जाता था?’’
केशव ने व्यंग्य से हंस कर कहा, ‘‘जनाब, ऐसी फुजूलखर्ची के बारे में सोचना ही गुनाह था. ये तो आजकल के चोंचले हैं.’’
‘‘फिर भी पिताजी,’’ अंगद ने कहा, ‘‘कभी न कभी तो आप को जन्मदिन पर कुछ तो विशेष मिला होगा.’’
रानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘मिला था, एक पाजामा. क्यों, ठीक है न?’’
केशव भी हंसा, ‘‘ठीक है, तुम्हें तो मेरा राज मालूम है.’’
‘‘पाजामा?’’ अंगद ने चकित हो कर पूछा, ‘‘क्या यह भी कोई उपहार है?’’
‘‘बहुत बड़ा उपहार था, बेटे,’’ केशव ने यादों में खोते हुए कहा, ‘‘पिताजी से तो बात करने का सवाल ही नहीं था. जब मैं ने मां से हठ की तो उन्होंने अपने हाथों से नया पाजामा सिल कर दिया था. मैं बहुत खुश था. रानी, तुम भी अंगद को एक पाजामा सिल
कर दो, पर…पर तुम्हें तो सिलना आता ही नहीं.’’
‘‘सारे दरजी मर गए क्या?’’ रानी ने चिढ़ कर कहा.
‘‘पाजामावाजामा नहीं,’’ अंगद ने जोर दे कर कहा, ‘‘अगर कुछ देना है तो मोपेड दीजिए. मेरे सारे दोस्तों के पास है. सब मोपेड पर ही स्कूल आते हैं. बस, एक मैं ही हूं, खटारा साइकिल वाला.’’
के शव ने तनिक नाराजगी से कहा, ‘‘साइकिल की इज्जत करना सीखो. उस ने 20 साल मेरी सेवा की है.’’
‘‘दहेज में जो मिली थी,’’ रानी ने टांग खींची.
‘‘क्या करता,’’ केशव चिढ़ कर बोला, ‘‘अगर स्कूटर मांगता तो तुम्हारे पिताजी को घर बेचना पड़ जाता.’’
‘‘अरे, जाओ भी,’’ रानी ने चोट खाए स्वर में कहा, ‘‘लेने वाले की हैसियत भी देखी जाती है.’’
अंगद ने महसूस किया कि बातों का रुख बदल रहा है इसीलिए बीच में पड़ कर बोला, ‘‘आप लोग तो
फिर लड़ने लगे. मेरे लिए मोपेड लेंगे या नहीं?’’
‘‘बरखुरदार,’’ केशव ने फिर से घूरते हुए कहा, ‘‘जब हम तुम्हारे बराबर थे तो पैदल स्कूल जाते थे. स्कूल भी कोई पास नहीं था. पूरे 3 मील दूर था. उन दिनों घर में बिजली भी नहीं थी इसलिए सड़क के किनारे लैंपपोस्ट के नीचे बैठ कर पढ़ते थे. जेबखर्च के पैसे भी नहीं मिलते थे. दिन भर कुछ नहीं खाते थे. घर आ कर 5 बजे तक रात का खाना निबट जाता था. समझे जनाब? आप मोपेड की बात करते हैं.’’
रानी इस भाषण को कई बार सुनसुन कर उकता चुकी थी इसलिए ताना मार कर बोली, ‘‘तो यह है आप की सफलता का रहस्य. देखो बेटे, ऐसा करोगे तो पिताजी की तरह एक दिन किसी कारखाने के महाप्रबंधक बन जाओगे.’’
अंगद मूर्खों की तरह मांबाप को देख रहा था. उस के मन में विद्रोह की आग सुलग रही थी. बड़ी बहन मानिनी जब भी कुछ मांगती थी तो उसे तुरंत मिल जाता था. एक वही है इस घर में दलित वर्ग का शोषित प्राणी.
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नाश्ता समाप्त होने पर केशव कार्यालय जाने की तैयारी में लग गया और नौकरानी के आ जाने से रानी घर की सफाई कराने में व्यस्त हो गई. अंगद कब स्कूल चला गया किसी को पता ही नहीं चला.
कार निकालते समय केशव ने रोज के मुकाबले कुछ फर्क महसूस किया, पर समझ नहीं पाया. बहुत दूर निकल जाने पर उसे ध्यान आया कि आज अंगद की साइकिल अपनी जगह पर ही खड़ी थी. वैसे अकसर साइकिल खराब होने पर अंगद साइकिल घर छोड़ कर बस से चला जाता था.
घर का काम निबट जाने के बाद रानी ने देखा कि अंगद का लंच बाक्स मेज पर ही पड़ा था. वैसे आमतौर पर वह लंच बाक्स ले जाना भूलता नहीं है क्योंकि रानी हमेशा बेटे का मनपसंद खाना ही रखती थी. खैर, कोई बात नहीं, अंगद की जेब में इतने रुपए तो होते ही हैं कि वह कुछ ले कर खा ले.
शाम को रानी को च्ंिता हुई क्योंकि अंगद हमेशा 3 बजे तक घर आ जाता था, पर आज 5 बज रहे थे. केशव के फोन से वह जान चुकी थी कि आज अंगद साइकिल भी नहीं ले गया था, पर बस से भी इतनी देर नहीं लगती. उस वक्त 6 बज रहे थे जब अंगद ने घर में प्रवेश किया. उस का चेहरा लाल हो रहा था और जूते धूलधूसरित हो गए थे. थकान के लक्षण भी स्पष्ट थे.
‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’ रानी ने बस्ता संभालते हुए पूछा.
‘‘बस, हो गई देर, मां,’’ अंगद ने टालते हुए कहा, ‘‘जल्दी से खाना दो. बहुत भूख लगी है.’’
‘‘खाना क्यों नहीं ले गया?’’ रानी ने शिकायत की.
‘‘भूल गया था,’’ अंगद का झूठ पता चल रहा था.
‘‘भूल गया या ले नहीं गया?’’ रानी ने तनिक क्रोध से पूछा.
‘‘कहा न, भूल गया,’’ अंगद चिढ़ कर बोला.
रानी ने अधिक जोर नहीं दिया. बोली, ‘‘जा, जल्दी से कपड़े बदल और हाथमुंह धो कर आ. आलू के परांठे और गाजर का हलवा बना है.’’
अंगद के चेहरे पर झलकती प्रसन्नता से रानी को संतोष हुआ. उसे लगा कि वह वाकई बहुत भूखा है. अंगद के आने से पहले ही उस ने खाना मेज पर लगा दिया था.
अंगद ने भरपेट खाया. कुछ देर तक टीवी देखा और फिर पढ़ाई करने अपने कमरे में चला गया.
8 बजे केशव कार्यालय से आया.
आराम से बैठने के बाद केशव ने रानी से पूछा, ‘‘बच्चे कहां हैं? बहुत शांति है घर में.’’
‘‘मन्नू तो शालू के यहां गई है,’’ रानी ने सामने बैठते हुए कहा, ‘‘कोई पार्टी है. देर से आएगी.’’
‘‘अकेली आएगी क्या?’’ केशव ने चिंता से पूछा.
‘‘नहीं,’’ रानी ने उत्तर दिया, ‘‘शालू का भाई छोड़ने आएगा.’’
‘‘उफ, ये बच्चे,’’ केशव ने अप्रसन्नता से कहा, ‘‘इतनी आजादी भी ठीक नहीं. जब मैं छोटा था तो बहन को तो छोड़ो, मुझे भी देर से आने नहीं दिया जाता था. आगे से ध्यान रखना. वैसे मन्नू कब तक आएगी?’’
‘‘अब क्यों च्ंिता करते हो,’’ रानी ने कहा, पर केशव की मुद्रा देख कर बोली, ‘‘ठीक है, फोन कर के पूछ लूंगी.’’
‘‘और साहबजादे कहां हैं?’’ केशव ने पूछा.
‘‘पढ़ रहा है,’’ रानी ने उत्तर दिया.
‘‘पर मुझे तो कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही,’’ केशव ने पुकारा, ‘‘अंगद…अंगद?’’
‘‘ओ हो, पढ़ने दो न,’’ रानी ने झिड़का, ‘‘कल परीक्षा है उस की.’’
‘‘तो जवाब नहीं देगा क्या?’’ केशव ने क्रोध से पुकारा, ‘‘अंगद?’’
अंगद का उत्तर नहीं आया. केशव अब अधिक सब्र नहीं कर सका. उठ कर अंगद के कमरे की ओर गया और झटके से अंदर घुसा.
‘‘यहां तो है नहीं,’’ केशव ने क्रोध से कहा.
‘‘नहीं है,’’ रानी को विश्वास नहीं हुआ, ‘‘थोड़ी देर पहले ही तो मैं उस के मांगने पर चाय देने गई थी.’’
केशव ने व्यंग्य से कहा, ‘‘हां, चाय का प्याला तो है, पर जनाब नहीं हैं. गया कहां?’’
‘‘मुझ से तो कुछ कह कर नहीं गया,’’ रानी ने च्ंिता से कहा, ‘‘मन्नू के कमरे में देखो.’’
‘‘मन्नू के कमरे में भी होता तो जवाब देता न,’’ केशव ने क्रोध से कहा, ‘‘बहरा तो नहीं है.’’
रानी ने तसल्ली के लिए मन्नू के कमरे में देखा और बोली, ‘‘पता नहीं कहां गया. शायद अखिल के यहां चला गया होगा. उस के साथ ही पढ़ता है न.’’
‘‘कह कर तो जाना था,’’ केशव भी अब च्ंितित था, ‘‘अखिल का घर कहां है?’’
‘‘वह राममनोहरजी का लड़का है,’’ रानी ने कहा, ‘‘309 नंबर में रहता है.’’
‘‘ओह,’’ केशव ने कहा, ‘‘उन के यहां तो फोन भी नहीं है.’’
‘‘थोड़ी देर देख लो,’’ रानी ने अपनी चिंता छिपाते हुए कहा, ‘‘आ जाएगा.’’
‘‘और मन्नू…’’
केशव का वाक्य समाप्त होेने से पहले ही रानी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मन्नू के पीछे पड़ गए. कभी तो चैन से बैठा करो.’’
झिड़की खा कर केशव कुरसी पर बैठ कर पत्रिका पढ़ने का नाटक करने लगा.
‘‘खाना लगाऊं क्या?’’ रानी ने कुछ देर बाद पूछा.
‘‘नहीं,’’ केशव ने कहा, ‘‘बच्चों को आने दो.’’
‘‘मन्नू तो खा कर आएगी,’’ रानी ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘अंगद बाद में खा लेगा. स्कूल से आ कर कुछ ज्यादा ही खा लिया था.’’
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘2 की जगह पूरे 4 परांठे खा लिए,’’ रानी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘उसे आलू के परांठे अच्छे लगते हैं न.’’
कुछ और समय बीतने पर केशव उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं राममनोहरजी के घर हो कर आता हूं.’’
उसी समय घंटी बजी और मानिनी ने प्रवेश किया. वह बहुत प्रसन्न थी.
‘‘शालू की पार्टी में बहुत मजा आया,’’ मानिनी ने हंसते हुए पूछा, ‘‘यह अंगद सड़क के किनारे क्यों बैठा है? क्या आप ने सजा दी है?’’
‘‘सड़क के किनारे?’’ केशव और रानी ने एकसाथ पूछा, ‘‘कहां?’’
‘‘साधना स्टोर के सामने,’’ मानिनी ने उत्तर दिया, ‘‘क्या मैं उसे बुला कर ले आऊं?’’
इस से पहले कि रानी कुछ कहती केशव ने गंभीरता से कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. शायद पढ़ रहा होगा.’’
‘‘क्या घर में बिजली नहीं है?’’ मानिनी ने पूछा, पर फिर ध्यान आया कि बिजली तो है.
रानी ने खाना लगा दिया. केशव हाथ धो कर बैठने ही वाला था कि अंगद ने आहिस्ताआहिस्ता घर में प्रवेश किया.
केशव ने घूरते हुए पूछा, ‘‘इतनी दूर पढ़ने क्यों गए थे?’’
‘‘क्योंकि पास में कोई लैंपपोस्ट नहीं था,’’ अंगद ने मासूमियत से कहा.
केशव को हंसी भी आई और क्रोध भी. रानी भी हंस कर रह गई.
‘‘चलो, खाने के लिए बैठो,’’ रानी ने कहा.
‘‘स्कूल से आते ही खा तो लिया था,’’ अंगद ने कहा और अपने कमरे में चला गया.
केशव और रानी को अंगद का व्यवहार अब समझ में आ रहा था. लगता था कि नाटक की शुरुआत है.
मानिनी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस ने पूछा, ‘‘बात क्या है? आज अंगद के तेवर क्यों बिगड़े हुए हैं?’’
‘‘कुछ नहीं,’’ रानी हंसी, ‘‘शीत- युद्ध है.’’
‘‘क्यों?’’ मानिनी ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘मोपेड चाहिए जनाब को,’’ केशव ने कहा, ‘‘हमारे जमाने में…’’
‘‘ओ हो, पिताजी,’’ मानिनी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मैं समझ गई. न आप कभी बदलेंगे, न आप का जमाना. ठीक है, मैं चंदा इकट्ठा करती हूं.’’
एक मानिनी ही थी जो केशव से बेझिझक हो कर बात कर सकती थी.
केशव ने उसे घूर कर देखा और फिर उठ कर चला गया.
सुबह की चाय हो चुकी थी. जब नाश्ता लगा तो अंगद जा चुका था.
उस की साइकिल पर धूल जम गई थी और हवा भी निकल गई थी.
शाम को थकामांदा अंगद 6 बजे आया.
‘‘क्यों, बस नहीं मिली क्या?’’ रानी ने क्रोध से पूछा.
‘‘बसें तो आतीजाती रहती हैं.’’
‘‘तो फिर?’’ रानी ने पूछा.
‘‘तो फिर क्या? मुझे भूख लगी है. खाना तो मिलेगा न?’’
रानी को अब क्रोध नहीं आया. जानती थी कि वह भूखा होगा. उस के लिए खीर, पूडि़यां और गोभी की
सब्जी बनाई थी. अंगद ने प्रसन्न हो कर भरपेट खाया और कमरे में चला गया.
केशव जब आया तब अंगद घर में नहीं था. आते वक्त केशव ने लैंपपोस्ट के नीचे निगाह डाली थी. अंगद धुंधली रोशनी में आंखें गड़ाए पढ़ रहा था.
3 दिन तक यह नाटक चलता रहा.
आज अंगद का जन्मदिन था. हर साल इस दिन रौनक छा जाती थी. पार्टी में आने वाले मित्रों की सूची बनती थी. लजीज व्यंजन बनाए जाते थे. मानिनी कुछ दिन पहले ही से उसे छेड़ने लगती थी और इस छेड़छाड़ में लड़ाई भी हो जाती थी. वैसे अंगद को इस बात का बहुत मलाल रहता था कि मानिनी का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाता है.
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नींद खुलते ही अंगद की नजर पास पड़े लिफाफे पर पड़ी. लिफाफे को उठाते ही उस में से एक चाबी गिरी. चाबी से लटका एक छोटा सा कार्ड था. उस पर लिखा था, ‘जन्मदिन पर छोटा सा उपहार.’
अंगद की आंखों में चमक आ गई. यह तो मोपेड की चाबी थी. आधी रात को वह एक चिट्ठी खाने की मेज पर छोड़ कर आया जिस में लिखा था :
पूज्य पिताजी और मां, क्या आप मुझे क्षमा करेंगे? मोपेड के लिए हठ करना मेरी भूल थी. मुझे सिवा आप के आशीर्वाद और प्यार के कुछ नहीं चाहिए.
आप का पुत्र अंगद.
जब अंगद नीचे पहुंचा तो पत्र मां के हाथ में था और वह पढ़ कर सुना रही थीं. केशव और मानिनी हंस रहे थे.
‘‘पिताजी, आप ने भी जल्दी कर दी. बेकार में मोपेड की चपत पड़ी,’’ मानिनी हंस कर कह रही थी.
अंगद सिर झुकाए शर्मिंदा सा खड़ा था.
‘‘तो आप को मोपेड नहीं चाहिए,’’ केशव ने नकली गंभीरता से पूछा.
‘‘नहीं,’’ अंगद ने दृढ़ता से उत्तर दिया.
‘‘क्यों?’’ केशव ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘क्योंकि,’’ अंगद ने गंभीरता से शरारती अंदाज में कहा, ‘‘अब मुझे स्कूटर चाहिए.’’
‘‘क्या?’’ केशव ने मारने के अंदाज में हाथ उठाते हुए पूछा, ‘‘क्या कहा?’’
मानिनी ने बीच में आते हुए कहा, ‘‘पिताजी, छोडि़ए भी. हमारा अंगद अब छोटा नहीं है.’’
‘‘पर जब मैं छोटा था…’’
होहल्ले में केशव अपना वाक्य पूरा न कर सका.