Hindi Kahani: दो चुटकी सिंदूर – सविता की क्या थी गलती

Hindi Kahani: ‘‘ऐ सविता, तेरा चक्कर चल रहा है न अमित के साथ?’’ कुहनी मारते हुए सविता की सहेली नीतू ने पूछा. सविता मुसकराते हुए बोली, ‘‘हां, सही है. और एक बात बताऊं… हम जल्दी ही शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘अमित से शादी कर के तो तू महलों की रानी बन जाएगी. अच्छा, वह सब छोड़. देख उधर, तेरा आशिक बैजू कैसे तुझे हसरत भरी नजरों से देख रहा है.’’

नीतू ने तो मजाक किया था, क्योंकि वह जानती थी कि बैजू को देखना तो क्या, सविता उस का नाम भी सुनना तक पसंद नहीं करती.

सविता चिढ़ उठी. वह कहने लगी, ‘‘तू जानती है कि बैजू मुझे जरा भी नहीं भाता. फिर भी तू क्यों मुझे उस के साथ जोड़ती रहती है?’’

‘‘अरे पगली, मैं तो मजाक कर रही थी. और तू है कि… अच्छा, अब से नहीं करूंगी… बस,’’ अपने दोनों कान पकड़ते हुए नीतू बोली.

‘‘पक्का न…’’ अपनी आंखें तरेरते हुए सविता बोली, ‘‘कहां मेरा अमित, इतना पैसे वाला और हैंडसम. और कहां यह निठल्ला बैजू.

‘‘सच कहती हूं नीतू, इसे देख कर मुझे घिन आती है. विमला चाची खटमर कर कमाती रहती हैं और यह कमकोढ़ी बैजू गांव के चौराहे पर बैठ कर पानखैनी चबाता रहता है. बोझ है यह धरती पर.’’

‘‘चुप… चुप… देख, विमला मौसी इधर ही आ रही हैं. अगर उन के कान में अपने बेटे के खिलाफ एक भी बात पड़ गई न, तो समझ ले हमारी खैर नहीं,’’ नीतू बोली.

सविता बोली, ‘‘पता है मुझे. यही वजह है कि यह बैजू निठल्ला रह गया.’’

विमला की जान अपने बेटे बैजू में ही बसती थी. दोनों मांबेटा ही एकदूसरे का सहारा थे. बैजू जब 2 साल का था, तभी उस के पिता चल बसे थे. सिलाईकढ़ाई का काम कर के किसी तरह विमला ने अपने बेटे को पालपोस कर बड़ा किया था.

विमला के लाड़प्यार में बैजू इतना आलसी और निकम्मा बनता जा रहा था कि न तो उस का पढ़ाईलिखाई में मन लगता था और न ही किसी काम में. बस, गांव के लड़कों के साथ बैठकर हंसीमजाक करने में ही उसे मजा आता था.

लेकिन बैजू अपनी मां से प्यार बहुत करता था और यही विमला के लिए काफी था. गांव के लोग बैजू के बारे में कुछ न कुछ बोल ही देते थे, जिसे सुन कर विमला आगबबूला हो जाती थी.

एक दिन विमला की एक पड़ोसन ने सिर्फ इतना ही कहा था, ‘‘अब इस उम्र में अपनी देह कितना खटाएगी विमला, बेटे को बोल कि कुछ कमाएधमाए. कल को उस की शादी होगी, फिर बच्चे भी होंगे, तो क्या जिंदगीभर तू ही उस के परिवार को संभालती रहेगी?

‘‘यह तो सोच कि अगर तेरा बेटा कुछ कमाएगाधमाएगा नहीं, तो कौन देगा उसे अपनी बेटी?’’

विमला कहने लगी, ‘‘मैं हूं अभी अपने बेटे के लिए, तुम्हें ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है… समझी. बड़ी आई मेरे बेटे के बारे में सोचने वाली. देखना, इतनी सुंदर बहू लाऊंगी उस के लिए कि तुम सब जल कर खाक हो जाओगे.’’

सविता के पिता रामकृपाल डाकिया थे. घरघर जा कर चिट्ठियां बांटना उन का काम था, पर वे अपनी दोनों बेटियों को पढ़ालिखा कर काबिल बनाना चाहते थे. उन की दोनों बेटियां थीं भी पढ़ने में होशियार, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि उन की बड़ी बेटी सविता अमित नाम के एक लड़के से प्यार करती है और वह उस से शादी के सपने भी देखने लगी है.

यह सच था कि सविता अमित से प्यार करती थी, पर अमित उस से नहीं, बल्कि उस के जिस्म से प्यार करता था. वह अकसर यह कह कर सविता के साथ जिस्मानी संबंध बनाने की जिद करता कि जल्द ही वह अपने मांबाप से दोनों की शादी की बात करेगा.

नादान सविता ने उस की बातों में आ कर अपना तन उसे सौंप दिया. जवानी के जोश में आ कर दोनों ने यह नहीं सोचा कि इस का नतीजा कितना बुरा हो सकता है और हुआ भी, जब सविता को पता चला कि वह अमित के बच्चे की मां बनने वाली है.

जब सविता ने यह बात अमित को बताई और शादी करने को कहा, तो वह कहने लगा, ‘‘क्या मैं तुम्हें बेवकूफ दिखता हूं, जो चली आई यह बताने कि तुम्हारे पेट में मेरा बच्चा है? अरे, जब तुम मेरे साथ सो सकती हो, तो न जाने और कितनों के साथ सोती होगी. यह उन्हीं में से एक का बच्चा होगा.’’

सविता के पेट से होने का घर में पता लगते ही कुहराम मच गया. अपनी इज्जत और सविता के भविष्य की खातिर उसे शहर ले जा कर घर वालों ने बच्चा गिरवा दिया और जल्द से जल्द कोई लड़का देख कर उस की शादी करने का विचार कर लिया.

एक अच्छा लड़का मिलते ही घर वालों ने सविता की शादी तय कर दी. लेकिन ऐसी बातें कहीं छिपती हैं भला.

अभी शादी के फेरे होने बाकी थे कि लड़के के पिता ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘बंद करो… अब नहीं होगी यह शादी.’’

शादी में आए मेहमान और गांव के लोग हैरान रह गए. जब सारी बात का खुलासा हुआ, तो सारे गांव वाले सविता पर थूथू कर के वहां से चले गए.

सविता की मां तो गश खा कर गिर पड़ी थीं. रामकृपाल अपना सिर पीटते हुए कहने लगे, ‘‘अब क्या होगा… क्या मुंह दिखाएंगे हम गांव वालों को? कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा इस लड़की ने हमें. बताओ, अब कौन हाथ थामेगा इस का?’’

‘‘मैं थामूंगा सविता का हाथ,’’ अचानक किसी के मुंह से यह सुन कर रामकृपाल  अचकचा कर पीछे मुड़ कर देखा, तो बैजू अपनी मां के साथ खड़ा था.

‘‘बैजू… तुम?’’ रामकृपाल ने बड़ी हैरानी से पूछा.

विमला कहने लगी, ‘‘हां भाई साहब, आप ने सही सुना है. मैं आप की बेटी को अपने घर की बहू बनाना चाहती हूं और वह इसलिए कि मेरा बैजू आप की बेटी से प्यार करता है.’’

रामकृपाल और उन की पत्नी को चुप और सहमा हुआ देख कर विमला आगे कहने लगी, ‘‘न… न आप गांव वालों की चिंता न करो, क्योंकि मेरे लिए मेरे बेटे की खुशी सब से ऊपर है, बाकी लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, उस से मुझे कोई फर्कनहीं पड़ता है.’’

अब अंधे को क्या चाहिए दो आंखें ही न. उसी मंडप में सविता और बैजू का ब्याह हो गया.

जिस बैजू को देख कर सविता को उबकाई आती थी, उसे देखना तो क्या वह उस का नाम तक सुनना पसंद नहीं करती थी, आज वही बैजू उस की मांग का सिंदूर बन गया. सविता को तो अपनी सुहागरात एक काली रात की तरह दिख रही थी.

‘क्या मुंह दिखाऊंगी मैं अपनी सखियों को, क्या कहूंगी कि जिस बैजू को देखना तक गंवारा नहीं था मुझे, वही आज मेरा पति बन गया. नहीं… नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, इतनी बड़ी नाइंसाफी मेरे साथ नहीं हो सकती,’ सोच कर ही वह बेचैन हो गई.

तभी किसी के आने की आहट से वह उठ खड़ी हुई. अपने सामने जब उस ने बैजू को खड़ा देखा, तो उस का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

बैजू के मुंह पर अपने हाथ की चूडि़यां निकालनिकाल कर फेंकते हुए सविता कहने लगी, ‘‘तुम ने मेरी मजबूरी का फायदा उठाया है. तुम्हें क्या लगता है कि दो चुटकी सिंदूर मेरी मांग में भर देने से तुम मेरे पति बन गए? नहीं, कोई नहीं हो तुम मेरे. नहीं रहूंगी एक पल भी इस घर में तुम्हारे साथ मैं… समझ लो.’’

बैजू चुपचाप सब सुनता रहा. एक तकिया ले कर उसी कमरे के एक कोने में जा कर सो गया.

सविता ने मन ही मन फैसला किया कि सुबह होते ही वह अपने घर चली जाएगी. तभी उसे अपने मातापिता की कही बातें याद आने लगीं, ‘अगर आज बैजू न होता, तो शायद हम मर जाते, क्योंकि तुम ने तो हमें जीने लायक छोड़ा ही नहीं था. हो सके, तो अब हमें बख्श देना बेटी, क्योंकि अभी तुम्हारी छोटी बहन की भी शादी करनी है हमें…’

कहां ठिकाना था अब उस का इस घर के सिवा? कहां जाएगी वह? बस, यह सोच कर सविता ने अपने बढ़ते कदम रोक लिए.

सविता इस घर में पलपल मर रही थी. उसे अपनी ही जिंदगी नरक लगने लगी थी, लेकिन इस सब की जिम्मेदार भी तो वही थी.

कभीकभी सविता को लगता कि बैजू की पत्नी बन कर रहने से तो अच्छा है कि कहीं नदीनाले में डूब कर मर जाए, पर मरना भी तो इतना आसान नहीं होता है. मांबाप, नातेरिश्तेदार यहां तक कि सखीसहेलियां भी छूट गईं उस की. या यों कहें कि जानबूझ कर सब ने उस से नाता तोड़ लिया. बस, जिंदगी कट रही थी उस की.

सविता को उदास और सहमा हुआ देख कर हंसनेमुसकराने वाला बैजू भी उदास हो जाता था. वह सविता को खुश रखना चाहता था, पर उसे देखते ही वह ऐसे चिल्लाने लगती थी, जैसे कोई भूत देख लिया हो. इस घर में रह कर न तो वह एक बहू का फर्ज निभा रही थी और न ही पत्नी धर्म. उस ने शादी के दूसरे दिन ही अपनी मांग का सिंदूर पोंछ लिया था.

शादी हुए कई महीने बीत चुके थे, पर इतने महीनों में न तो सविता के मातापिता ने उस की कोई खैरखबर ली और न ही कभी उस से मिलने आए. क्याक्या सोच रखा था सविता ने अपने भविष्य को ले कर, पर पलभर में सब चकनाचूर हो गया था.

‘शादी के इतने महीनों के बाद भी भले ही सविता ने प्यार से मेरी तरफ एक बार भी न देखा हो, पर पत्नी तो वह मेरी ही है न. और यही बात मेरे लिए काफी है,’ यही सोचसोच कर बैजू खुश हो उठता था.

एक दिन न तो विमला घर पर थी और न ही बैजू. तभी अमित वहां आ धमका. उसे यों अचानक अपने घर आया देख सविता हैरान रह गई. वह गुस्से से तमतमाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की?’’

अमित कहने लगा, ‘‘अब इतना भी क्या गुस्सा? मैं तो यह देखने आया था कि तुम बैजू के साथ कितनी खुश हो? वैसे, तुम मुझे शाबाशी दे सकती हो. अरे, ऐसे क्या देख रही हो? सच ही तो कह रहा हूं कि आज मेरी वजह से ही तुम यहां इस घर में हो.’’

सविता हैरानी से बोली, ‘‘तुम्हारी वजह से… क्या मतलब?’’

‘‘अरे, मैं ने ही तो लड़के वालों को हमारे संबंधों के बारे में बताया था और यह भी कि तुम मेरे बच्चे की मां भी बनने वाली हो. सही नहीं किया क्या मैं ने?’’ अमित बोला.

सविता यह सुन कर हैरान रह गई. वह बोली, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? बोलो न? जानते हो, सिर्फ तुम्हारी वजह से आज मेरी जिंदगी नरक बन चुकी है. क्या बिगाड़ा था मैं ने तुम्हारा?

‘‘बड़ा याद आता है मुझे तेरा यह गोरा बदन,’’ सविता के बदन पर अपना हाथ फेरते हुए अमित कहने लगा, तो वह दूर हट गई.

अमित बोला, ‘‘सुनो, हमारे बीच जैसा पहले चल रहा था, चलने दो.’’

‘‘मतलब,’’ सविता ने पूछा.

‘‘हमारा जिस्मानी संबंध और क्या. मैं जानता हूं कि तुम मुझ से नाराज हो, पर मैं हर लड़की से शादी तो नहीं कर सकता न?’’ अमित बड़ी बेशर्मी से बोला.

‘‘मतलब, तुम्हारा संबंध कइयों के साथ रह चुका है?’’

‘‘छोड़ो वे सब पुरानी बातें. चलो, फिर से हम जिंदगी के मजे लेते हैं. वैसे भी अब तो तुम्हारी शादी हो चुकी है, इसलिए किसी को हम पर शक भी नहीं होगा,’’ कहता हुआ हद पार कर रहा था अमित.

सविता ने अमित के गाल पर एक जोर का तमाचा दे मारा और कहने लगी, ‘‘क्या तुम ने मुझे धंधे वाली समझ रखा है. माना कि मुझ से गलती हो गई तुम्हें पहचानने में, पर मैं ने तुम से प्यार किया था और तुम ने क्या किया?

‘‘अरे, तुम से अच्छा तो बैजू निकला, क्योंकि उस ने मुझे और मेरे परिवार को दुनिया की रुसवाइयों से बचाया. जाओ यहां से, निकल जाओ मेरे घर से, नहीं तो मैं पुलिस को बुलाती हूं,’’ कह कर सविता घर से बाहर जाने लगी कि तभी अमित ने उस का हाथ अपनी तरफ जोर से खींचा.

‘‘तेरी यह मजाल कि तू मुझ पर हाथ उठाए. पुलिस को बुलाएगी… अभी बताता हूं,’’ कह कर उस ने सविता को जमीन पर पटक दिया और खुद उस के ऊपर चढ़ गया.

खुद को लाचार पा कर सविता डर गई. उस ने अमित की पकड़ से खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश की, पर हार गई. मिन्नतें करते हुए वह कहने लगी, ‘‘मुझे छोड़ दो. ऐसा मत करो…’’

पर अमित तो अब हैवानियत पर उतारू हो चुका था. तभी अपनी पीठ पर भारीभरकम मुक्का पड़ने से वह चौंक उठा. पलट कर देखा, तो सामने बैजू खड़ा था.

‘‘तू…’’ बैजू बोला.

अमित हंसते हुए कहने लगा, ‘‘नामर्द कहीं के… चल हट.’’

इतना कह कर वह फिर सविता की तरफ लपका. इस बार बैजू ने उस के मुंह पर एक ऐसा जोर का मुक्का मारा कि उस का होंठ फट गया और खून निकल आया.

अपने बहते खून को देख अमित तमतमा गया और बोला, ‘‘तेरी इतनी मजाल कि तू मुझे मारे,’’ कह कर उस ने अपनी पिस्तौल निकाल ली और तान दी सविता पर.

अमित बोला, ‘‘आज तो इस के साथ मैं ही अपनी रातें रंगीन करूंगा.’’

पिस्तौल देख कर सविता की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई.

बैजू भी दंग रह गया. वह कुछ देर रुका, फिर फुरती से यह कह कह अमित की तरफ लपका, ‘‘तेरी इतनी हिम्मत कि तू मेरी पत्नी पर गोली चलाए…’’पर तब तक तो गोली पिस्तौल से निकल चुकी थी, जो बैजू के पेट में जा लगी.

बैजू के घर लड़ाईझगड़ा होते देख कर शायद किसी ने पुलिस को बुला लिया था. अमित वहां से भागता, उस से पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.खून से लथपथ बैजू को तुरंत गांव वालों ने अस्पताल पहुंचाया. घंटों आपरेशन चला.

डाक्टर ने कहा, ‘‘गोली तो निकाल दी गई है, लेकिन जब तक मरीज को होश नहीं आ जाता, कुछ कहा नहीं जा सकता.’’

विमला का रोरो कर बुरा हाल था. गांव की औरतें उसे हिम्मत दे रही थीं, पर वे यह भी बोलने से नहीं चूक रही थीं कि बैजू की इस हालत की जिम्मेदार सविता है.

‘सच ही तो कह रहे हैं सब. बैजू की इस हालत की जिम्मेदार सिर्फ मैं ही हूं. जिस बैजू से मैं हमेशा नफरत करती रही, आज उसी ने अपनी जान पर खेल कर मेरी जान बचाई,’ अपने मन में ही बातें कर रही थी सविता.

तभी नर्स ने आ कर बताया कि बैजू को होश आ गया है. बैजू के पास जाते देख विमला ने सविता का हाथ पकड़ लिया और कहने लगी, ‘‘नहीं, तुम अंदर नहीं जाओगी. आज तुम्हारी वजह से ही मेरा बेटा यहां पड़ा है. तू मेरे बेटे के लिए काला साया है. गलती हो गई मुझ से, जो मैं ने तुझे अपने बेटे के लिए चुना…’’

‘‘आप सविता हैं न?’’ तभी नर्स ने आ कर पूछा.डबडबाई आंखों से वह बोली, ‘‘जी, मैं ही हूं.’’

‘‘अंदर जाइए, मरीज आप को पूछ रहे हैं.’’

नर्स के कहने से सविता चली तो गई, पर सास विमला के डर से वह दूर खड़ी बैजू को देखने लगी. उस की ऐसी हालत देख वह रो पड़ी. बैजू की नजरें, जो कब से सविता को ही ढूंढ़ रही थीं, देखते ही इशारों से उसे अपने पास बुलाया और धीरे से बोला, ‘‘कैसी हो सविता?’’

अपने आंसू पोंछते हुए सविता कह लगी, ‘‘क्यों तुम ने मेरी खातिर खुद को जोखिम में डाला बैजू? मर जाने दिया होता मुझे. बोलो न, किस लिए मुझे बचाया?’’ कह कर वह वहां से जाने को पलटी ही थी कि बैजू ने उस का हाथ पकड़ लिया और बड़े गौर से उस की मांग में लगे सिंदूर को देखने लगा.

‘‘हां बैजू, यह सिंदूर मैं ने तुम्हारे ही नाम का लगाया है. आज से मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी हूं,’’ कह कर वह बैजू से लिपट गई. Hindi Kahani

Hindi Kahani: अंधा मोड़ – प्यार का दलदल

Hindi Kahani: ‘‘सौरभ, ऐसे कब तक चलेगा?’’

‘‘तुम्हारा क्या मतलब है माधवी?’’

‘‘मेरा मतलब यह है कि सौरभ…’’ माधवी ने एक पल रुक कर कहा, ‘‘अब हम ऐसे कब तक छिपछिप कर मिला करेंगे?’’

‘‘जब तक तुम्हारा और मेरा सच्चा प्यार है…’’ समझाते हुए सौरभ बोला, ‘‘फिर तुम क्यों घबराती हो?’’

‘‘मैं घबराती तो नहीं हूं सौरभ, मगर इतना कहती हूं कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए,’’ माधवी ने जब यह प्रस्ताव रखा, तब सौरभ सोचने पर मजबूर हो गया.

हां, सौरभ ने माधवी से प्यार किया है, शादी भी करना चाहता है, मगर इस के लिए उस ने अपना मन अभी तक नहीं बनाया है. उस के इरादे कुछ और ही हैं, जो वह माधवी को बताना नहीं चाहता है. उस ने माधवी को अपने प्रेमजाल में पूरी तरह से फांस लिया है. अब मौके का इंतजार कर रहा है.

उसे चुप देख कर माधवी फिर बोली, ‘‘क्या सोच रहे हो सौरभ?’’

‘‘सोच रहा हूं कि हमें अब शादी कर लेनी चाहिए.’’

‘‘बताओ, कब करें शादी?’’

‘‘तुम तो जानती हो माधवी, मेरे मांबाप बचपन में ही गुजर गए थे. अंकल ने मुझे पालापोसा और पढ़ाया, इसलिए वे जैसे ही अपनी सहमति देंगे, हम शादी कर लेंगे.’’

‘‘मगर, डैडी मेरी शादी के लिए जल्दी कर रहे हैं…’’ समझाते हुए माधवी बोली, ‘‘मैं टालती जा रही हूं. आखिर कब तक टालूंगी?’’

‘‘बस माधवी, अंकल हां कर दें, तो हम फौरन शादी कर लेंगे.’’

‘‘पता नहीं, तुम्हारे अंकल न जाने कब हां करेंगे.’’

‘‘जब हम ने इतने दिन निकाल दिए, थोड़े दिन और निकाल लो. मुझे पक्का यकीन है कि अंकल जल्दी ही हमारी शादी की सहमति देंगे,’’ कह कर सौरभ ने विश्वास जताया, मगर माधवी को उस के इस विश्वास पर यकीन नहीं हुआ.

यह विश्वास तो सौरभ उसे पिछले 6-7 महीनों से दे रहा है, मगर हर बार ढाक के तीन पात साबित होते हैं. आखिर लड़की होने के नाते वह कब तक सब्र रखे.

माधवी जरा नाराजगी से बोली, ‘‘नहीं सौरभ, तुम ने मुझ से प्यार किया है और मैं प्यार में धोखा नहीं खाना चाहती हूं. आज मैं अपना फैसला सुनना चाहती हूं कि तुम मुझ से शादी करोगे या नहीं?’’

‘‘देखो माधवी, मैं ने तो तुम से उतना ही प्यार किया है, जितना कि तुम ने मुझ से किया है…’’ समझाते हुए सौरभ बोला, ‘‘मगर, तुम मेरे हालात को क्यों नहीं समझ रही हो.’’

‘‘मगर मेरे हालात को तुम क्यों नहीं समझ रहे हो सौरभ. तुम लड़के हो, मैं एक लड़की हूं. मुझ पर मांबाप का कितना दबाव है, यह तुम नहीं समझोगे…’’

एक बार फिर माधवी समझाते हुए बोली, ‘‘कितना परेशान कर रहे हैं वे शादी के लिए, यह तुम नहीं समझोगे.’’

‘‘अपने पिता को जोर दे कर क्यों नहीं कह देती हो कि मैं ने शादी के लिए लड़का देख लिया है,’’ सौरभ बोला.

‘‘बस यही तो मैं नहीं कर सकती हूं सौरभ. तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे हो?’’

‘‘और तुम मेरे हालात को समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रही हो…’’ सौरभ जरा नाराजगी से बोला.

माधवी ने भी उसी नाराजगी में जवाब दिया, ‘‘ठीक है, तुम लड़के हो कर डरपोक बन कर रहते हो, तो मैंतो लड़की हूं. फिर भी मैं तुम्हारे फैसले का इंतजार करूंगी,’’ कह कर माधवी चली गई.

सौरभ भी उसे जाते हुए देखता रहा. दोनों का प्यार कब परवान चढ़ा, यह उन को अच्छी तरह पता है.

वैसे, सौरभ एक बिगड़ा हुआ नौजवान था, जबकि माधवी गरीब परिवार की लड़की. वह अपने माता पिता की एकलौती बेटी थी. उस से 2 छोटे भाई जरूर थे.

माधवी अब जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. जब लड़की जवान हो जाती है, तब हर मातापिता के लिए चिंता की बात हो जाती है. माधवी के लिए लड़के की तलाश जारी थी. कुछ लड़के मिले, मगर वे दहेज के लालची मिले.

माधवी के पिता रघुनाथ इतना ज्यादा दहेज नहीं दे सकते थे. वे चाहते थे कि माधवी का साधारण घर में ब्याह कर दें, जहां वह सुख से रह सके. मगर ऐसा लड़का उन्हें कई सालों तक नहीं मिला.

माधवी सौरभ से शादी करना चाहती थी. वह बिना सोचेसमझे उसे अपना दिल दे बैठी थी. इन 6-7 महीनों में वह सौरभ के बहुत करीब आई, मगर उसे समझ नहीं पाई. उस ने उस पर प्यार भी खूब जताया. जरूरत की चीजें भी उसे खरीद कर दीं, मगर इस की हवा अपने मांबाप तक को नहीं लगने दी. इस के लिए उस ने 2-3 ट्यूशनें भी कर रखी थीं, ताकि मांबाप को यह एहसास हो कि वह ट्यूशन के पैसों से चीजें खरीद कर ला रही है.

जब भी सौरभ का फोन आता, वह फौरन उस से मिलने चली जाती. तब घंटों बातें करती.

शादी के बाद क्याक्या करना है, सपनों के महल बनाती, मगर कभीकभी वह यह भी सोचती कि यह सब फिल्मों में होता है, असली जिंदगी में यह सब नहीं चलता है. मगर जब भी वह उस से शादी की बात करती, वह अंकल का बहाना बना कर टाल देता. आखिर ये अंकल थे कौन? इस का जवाब उस के पास नहीं था.

तभी माधवी को एहसास हुआ कि कोई उस के पीछेपीछे बहुत देर से चला आ रहा है. उस ने पीछे मुड़ कर देखा, तो एक बूढ़ा आदमी था.

माधवी ने ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर गुस्से से बोली, ‘‘आप मेरे पीछेपीछे क्यों चल रहे हैं?’’

‘‘मैं जानना चाहता हूं बेटी, जिस लड़के को तुम ने छोड़ा है, उस के बारे में क्या जानती हो?’’ उस बूढ़े ने यह सवाल पूछ कर चौंका दिया.

माधवी पलभर के लिए यह सोचती रही, ‘यह आदमी कौन है? और यह सवाल क्यों पूछ रहा है?’

कुछ देर तक माधवी कुछ जवाब नहीं दे सकी. तब उस बूढ़े ने फिर पूछा, ‘‘तुम ने जवाब नहीं दिया बेटी.’’

‘‘मगर, आप यह क्यों पूछना चाहते हैं बाबा?’’

‘‘इसलिए बेटी कि तुम्हारी जिंदगी बरबाद न हो जाए.’’

‘‘क्या मतलब है आप का? वह मेरा प्रेमी है और जल्दी ही हम शादी करने जा रहे हैं.’’

‘‘बेटी, मैं ने तुम्हारी सारी बातें सुन ली थीं, आड़ में रह कर…’’ वह बूढ़ा आदमी जरा खुल कर बोला, ‘‘जैसे ही तुम वहां से चली थीं, तभी से मैं तुम्हारे पीछेपीछे चला आ रहा हूं.

‘‘बेटी, जिस लड़के से तुम शादी करना चाहती हो, वह ठीक नहीं है.’’

‘‘यह आप कैसे कह सकते हैं?’’

‘‘क्योंकि मैं उस का बाप हूं.’’

‘‘इस बुढ़ापे में झूठ बोलते हुए आप को शर्म नहीं आती? क्यों हमारे प्यार के बीच दुश्मन बन कर खड़े हो गए,’’ झल्ला पड़ी माधवी.

‘‘मुझे तो सौरभ ने बताया है कि उस के मांबाप बचपन में ही गुजर गए. एक अंकल ने उन्हें पालापोसा और आप उस के बाप बन कर कहां से टपक पड़े?’’ माधवी गुस्से से बोली.

‘‘तुझे कैसे यकीन दिलाऊं बेटी…’’ उस बूढ़े की बात में दर्द था. वह आगे बोला, ‘‘मगर, मैं सच कह रहा हूं बेटी, सौरभ मेरा नालायक बेटा है, जिसे मैं ने अपनी जमीनजायदाद से भी कानूनन अलग कर दिया है.

‘‘वह तुम से शादी नहीं करेगा बेटी, बल्कि शादी के नाम पर तुम्हें कहीं ले जा कर किसी कोठे पर बेच देगा. सारे गैरकानूनी धंधे वह करता है. अफीम की तस्करी में वह जेल की हवा भी खा चुका है. तुम से प्यार का नाटक कर के तुम्हारे पिता को ब्लेकमैल करेगा.

‘‘जिसे तुम प्यार समझ रही हो, वह धोखा है. छोड़ दे उस नालायक का साथ. वहीं शादी कर बेटी, जहां तेरे पिता चाहते हैं.

‘‘एक बार फिर हाथ जोड़ कर कह रहा हूं कि बेटी, छोड़ दे उसे. मैं तुझे बरबादी के रास्ते से बचाना चाहता हूं.’’

इतना कह कर वह बूढ़ा रो पड़ा. माधवी को लगा कि कहीं बूढ़ा नाटक तो नहीं कर रहा है.

इतने में वह बूढ़ा आगे बोला, ‘‘बेटी, तुझे विश्वास न हो, तो घर जा कर सारे सुबूत मैं दिखा सकता हूं.’’

‘‘आप मेरे पिता समान हैं बाबा, झूठ नहीं बोलेंगे. मगर…’’ कह कर माधवी पलभर के लिए रुकी, तो वह बूढ़ा बोला, ‘‘मगर बेटी, न तुम मुझे जानती हो और न मैं तुम्हें जानता हूं. मगर जब मैं ने तुम को अपने नालायक बेटे के साथ देखा, तब मैं ने तुम्हें उस के चंगुल से छुड़ाने का सोच लिया. तभी से मैं ने तुम्हारे घर आने की योजना बनाई थी, ताकि तुम्हारे मांबाप को सारी हकीकत बता सकूं.

‘‘मेरा विश्वास करो, कहीं ऐसा न हो कि तुम प्यार में धोखा खा जाओ. मैं ने इसलिए पूछा था कि जिस लड़के से तुम प्यार करती हो, उसे अच्छी तरह परख लिया होगा. मगर तुम ने उस का केवल बाहरी रूप देखा है, भीतरी रूप तुम नहीं समझ सकी.’’

‘‘आप झूठ तो नहीं बोल रहे हैं बाबा? शायद आप मुझे अपनी बहू नहीं बनाना चाहते हैं. आप को भी दहेज वाली बहू चाहिए, इसलिए आप भी

मेरे और सौरभ के बीच दीवार खड़ी करना चाहते हैं,’’ माधवी ने यह सवाल पूछा.

‘‘तू अच्छे घराने की है. मैं तेरी जिंदगी बचाना चाहता हूं. मेरी बात पर यकीन कर बेटी. जिस के प्यार के जाल में तू उलझी हुई है, वह शिकारी एक दिन तुझे बेच देगा.’’

बाबा ने माधवी को बड़ी दुविधा में डाल दिया था. वे उसे सौरभ के अंधे प्रेमजाल से क्यों निकालना चाहते हैं? वह किसी अनजान आदमी की बातों को क्यों मान ले? उसे चुप देख कर बाबा फिर बोले, ‘‘क्या सोच रही हो बेटी?’’

‘‘मैं आप पर कैसे यकीन कर लूं कि आप सच कह रहे हैं. यह आप का नाटक भी तो हो सकता है?’’ एक बार माधवी फिर बोली, ‘‘मैं सौरभ का दिल नहीं तोड़ सकती हूं. इसलिए अगर आप मेरे पीछे आएंगे, तो मैं पुलिस में शिकायत कर दूंगी.’’

इतना कह कर बुरा सा मुंह बना कर माधवी चली गई. बूढ़ा चुपचाप वहीं खड़ा रह गया. कुछ दिनों बाद सौरभ ने माधवी को ऐसी जगह बुलाया, जहां से वे भाग कर किसी मंदिर में शादी करेंगे. वह भी अपनी तैयारी से तय जगह पर पहुंच गई. वहां सौरभ किसी दूसरे लड़के के साथ बात करता हुआ दिखाई दे रहा था. वह चुपचाप आड़ में रह कर सब सुनने लगी.

वह लड़का सौरभ से कह रहा था, ‘‘माधवी अभी तक नहीं आई.’’

‘‘वह अभी आने वाली है. अरे, इन 6-7 महीनों में मैं ने उस से प्यार कर के विश्वास जीता है. अब तो वह आंखें मूंद कर मुझे चाहती है. शादी के बहाने उसे ले जा कर चंपाबाई के कोठे पर बेच आऊंगा.’’

‘‘ठीक है, तुम अपनी योजना में कामयाब रहो,’’ कह कर वह लड़का दीवार फांद कर कूद गया. सौरभ बेचैनी से माधवी का इंतजार करने लगा. अब माधवी सौरभ की सचाई जान चुकी थी. इस समय उसे बाबा का चेहरा याद आ रहा था. बाबा ने जो कुछ कहा था, सच था. अब सौरभ के प्रति उसे नफरत हो गई.

सौरभ बेचैनी से टहल रहा था, मगर वह उस से नजर बचा कर बाहर निकल गई. वह सचमुच आज अंधे मोड़ से निकल गई थी. Hindi Kahani

Story In Hindi: मोबाइल पर फिल्म – हथकंडेबाज प्रेमी

Story In Hindi: ऐसे टुकुरटुकुर क्या देख रहा है?’’ अपना दुपट्टा संभालते हुए धन्नो ने जैसे ही पूछा, तो एक पल के लिए सूरज सकपका गया.

‘‘तुझे देख रहा हूं. सच में क्या मस्त लग रही है तू,’’ तुरंत संभलते हुए सूरज ने जवाब दिया. धन्नो के बदन से उस की नजरें हट ही नहीं रही थीं.

‘‘चल हट, मुझे जाने दे. न खुद काम करता है और न ही मुझे काम करने देता है…’’ मुंह बनाते हुए धन्नो वहां से निकल गई.

सूरज अब भी उसे देख रहा था. वह धन्नो के पूरे बदन का मुआयना कर चुका था.

‘‘एक बार यह मिल जाए, तो मजा आ जाए…’’ सूरज के मुंह से निकला.

सूरज की अकसर धन्नो से टक्कर हो ही जाती थी. कभी रास्ते में, तो कभी खेतखलिहान में. दोनों में बातें भी होतीं. लेकिन सूरज की नीयत एक ही रहती… बस एक बार धन्नो राजी हो जाए,

फिर तो…

धन्नो को पाने के लिए सूरज हर तरह के हथकंडे अपनाने को तैयार था.

‘‘तू कुछ कामधंधा क्यों नहीं करता?’’ एक दोपहर धन्नो ने सूरज से पूछा.

‘‘बस, तू हां कर दे. तेरे साथ घर बसाने की सोच रहा हूं,’’ सूरज ने बात छेड़ी, तो धन्नो मचल उठी.

‘‘तू सच कह रहा है,’’ धन्नो ने खुशी में उछलते हुए सूरज के हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

सूरज को तो जैसे करंट मार गया. वह भी मौका खोना नहीं चाहता था. उस ने झट से उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘सच धन्नो, मैं तुम्हें अपनी घरवाली बनाना चाहता हूं. तू तो जानती है कि मेरा बाप सरपंच है. नौकरी चाहूं, तो आज ही मिल जाएगी.’’

सूरज ने भरोसा दिया, तो धन्नो पूछ बैठी, ‘‘तो नौकरी क्यों नहीं करते? फिर मेरे मामा से मेरा हाथ मांग लेना. कोई मना नहीं करेगा.’’

सूरज ने हां में सिर हिलाया. धन्नो उस के इतना करीब थी कि वह अपनी सुधबुध खोने लगा.

‘‘यहां कोई नहीं है. आराम से लेट कर बातें करते हैं,’’ सूरज ने इधरउधर देखते हुए कहा.

‘‘मैं सब जानती हूं. तुम्हारे दिमाग का क्या भरोसा, कुछ गड़बड़ कर बैठे तो…’’ धन्नो ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘ब्याह से पहले यह सब ठीक नहीं… मरद जात का क्या भरोसा?’’ इतना कहते हुए वह तीर की मानिंद निकल गई. जातेजाते उस ने सूरज के हाथ को कस कर दबा दिया था. सूरज इसे इशारा समझने लगा.

‘‘फिर निकल गई…’’ सूरज को गुस्सा आ गया. उसे पूरा भरोसा था कि आज उस की मुराद पूरी होगी. लेकिन धन्नो उसे गच्चा दे कर निकल गई.

अब तो सूरज के दिलोदिमाग पर धन्नो का नशा बोलने लगा. कभी उस का कसा हुआ बदन, तो कभी उस की हंसी उसे पागल किए जा रही थी. वैसे तो वह सपने में कई बार धन्नो को पा चुका था, लेकिन हकीकत में उस की यह हसरत अभी बाकी थी.

सरपंच मोहन सिंह का बेटा होने के चलते सूरज के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. सो, उस ने एक कीमती मोबाइल फोन खरीदा और उस में खूब ब्लू फिल्में भरवा दीं. उन्हें देखदेख कर धन्नो के साथ वैसे ही करने के ख्वाब देखने लगा.

‘‘अरे, तू इतने दिन कहां था?’’ धन्नो ने पूछा. उस दिन हैंडपंप के पास पानी भरते समय दोनों की मुलाकात हो गई.

‘‘मैं नौकरी ढूंढ़ रहा था. अब नौकरी मिल गई है. अगले हफ्ते से ड्यूटी पर जाना है,’’ सूरज ने कुछ सोच कर कहा, ‘‘अब तो ब्याह के लिए हां कर दे.’’

‘‘वाह… वाह,’’ नौकरी की बात सुनते ही धन्नो उस से लिपट गई. सूरज की भावनाएं उफान मारने लगीं. उस ने तुरंत उसे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘हां कर दे. और कितना तरसाएगी,’’ सूरज ने उस की आंखों में आंखें डाल

कर पूछा.

‘‘तू गले में माला डाल दे… मांग भर दे, फिर जो चाहे करना.’’

सूरज उसे मनाने की जीतोड़ कोशिश करने लगा.

‘‘अरे वाह, इतना बड़ा मोबाइल फोन,’’ मोबाइल फोन पर नजर पड़ते ही धन्नो के मुंह से निकला, ‘‘क्या इस में सिनेमा है? गानेवाने हैं?’’

‘‘बहुत सिनेमा हैं. तू देखेगी, तो चल उस झोंपड़े में चलते हैं. जितना सिनेमा देखना है, देख लेना,’’ सूरज धन्नो के मांसल बदन को देखते हुए बोला, तो

वह उस के काले मन के इरादे नहीं भांप सकी.

धन्नो राजी हो गई. सूरज ने पहले तो उसे कुछ हिंदी फिल्मों के गाने दिखाए, फिर अपने मनसूबों को पूरा करने के लिए ब्लू फिल्में दिखाने लगा.

‘‘ये कितनी गंदी फिल्में हैं. मुझे नहीं देखनी,’’ धन्नो मुंह फेरते हुए बोली.

‘‘अरे सुन तो… अब अपने मरद से क्या शरमाना? मैं तुम से शादी करूंगा, तो ये सब तो करना ही होगा न, नहीं तो हमारे बच्चे कैसे होंगे?’’ उसे अपनी बाजुओं में भरते हुए सूरज बोला.

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन शादी करोगे न? नहीं तो मामा मेरी चमड़ी उतार देगा,’’ नरम पड़ते हुए धन्नो बोली.

‘‘मैं कसम खाता हूं. अब जल्दी से घरवाली की तरह बन जा और चुपचाप सबकुछ उतार कर लेट जा,’’ इतना कहते हुए सूरज अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा. उस के भरोसे में बंधी धन्नो विरोध न कर सकी.

‘‘तू सच में बहुत मस्त है…’’ आधा घंटे बाद सूरज बोला, ‘‘किसी को कुछ मत बताना. ले, यह दवा खा ले. कोई शक नहीं करेगा.’’

‘‘लेकिन, मेरे मामा से कब बात करोगे?’’ धन्नो ने पूछा, तो सूरज की आंखें गुस्से से लाल हो गईं.

‘‘देख, मजा मत खराब कर. मुझे एक बार चाहिए था. अब यह सब भूल जा. तेरा रास्ता अलग, मेरा अलग,’’ जातेजाते सूरज ने कहा, तो धन्नो पर जैसे बिजली टूट गई.

अब धन्नो गुमसुम सी रहने लगी. किसी बात में उस का मन ही नहीं लगता.

‘‘अरे, तेरे कपड़े पर ये खून के दाग कैसे?’’ एक दिन मामी ने पूछा, तो धन्नो को जैसे सांप सूंघ गया. ‘‘पिछले हफ्ते ही तेरा मासिक हुआ था, फिर…’’

धन्नो फूटफूट कर रोने लगी. सारी बातें सुन कर मामी का चेहरा सफेद पड़ गया. बात सरपंच मोहन सिंह के पास पहुंची. पंचायत बैठी.

मोहन सिंह के कड़क तेवर को सभी जानते थे. उस के लिए किसी को उठवाना कोई बड़ी बात नहीं थी.

‘‘तो तुम्हारा कहना है कि सूरज ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है?’’ सरपंच के आदमी ने धन्नो से पूछा.

‘‘नहीं, सूरज ने कहा था कि वह मुझ से ब्याह करेगा, इसलिए पहले…’’

‘‘नहींनहीं, मैं ने ऐसा कोई वादा नहीं किया था…’’ सूरज ने बीच में टोका, ‘‘यह झूठ बोल रही है.’’

‘‘मैं भी तुम से शादी करूंगा, तो क्या तू मेरे साथ भी सोएगी,’’ एक मोटे से आदमी ने चुटकी ली.

‘‘तू है ही धंधेवाली…’’ भीड़ से एक आवाज आई.

‘‘चुप करो,’’ मोहन सिंह अपनी कुरसी से उठा, तो वहां खामोशी छा गई. वह सीधा धन्नो के पास पहुंचा.

‘‘ऐ छोकरी, क्या सच में मेरे सूरज ने तुझ से घर बसाने का वादा किया था?’’ उस ने धन्नो से जानना चाहा.

मोहन सिंह के सामने अच्छेअच्छों की बोलती बंद हो जाती थी, लेकिन न जाने क्यों धन्नो न तो डरी और न ही उस की जबान लड़खड़ाई.

‘‘हां, उस ने मुझे घरवाली बनाने की कसम खाई थी, तभी तो मैं राजी…’’ यह सुनते ही सरपंच का सिर झुक गया. भीड़ अब भी शांत थी.

‘‘बापू, तू इस की बातों में न आ…’’ सूरज धन्नो को मारने के लिए दौड़ा.

‘‘चुप रह. शर्म नहीं आती अपनी घरवाली के बारे में ऐसी बातें करते हुए. खबरदार, अब धन्नो के बारे में कोई एक शब्द कहा तो… यह हमारे घर की बहू है. अब सभी जाओ. अगले लगन में हम सूरज और धन्नो का ब्याह रचाएंगे.’’

धन्नो मोहन सिंह के पैरों पर गिर पड़ी. उस के मुंह से इतना ही निकला, ‘‘बापू, तुम ने मुझे बचा लिया.’’ Story In Hindi

Hindi Family Story: खडूस मकान मालकिन – क्या था आंटी का सच

Hindi Family Story: ‘‘साहबजी, आप अपने लिए मकान देख रहे हैं?’’ होटल वाला राहुल से पूछ रहा था. पिछले 2 हफ्ते से राहुल एक धर्मशाला में रह रहा था. दफ्तर से छुट्टी होने के बाद वह मकान ही देख रहा था. उस ने कई लोगों से कह रखा था. होटल वाला भी उन में से एक था. होटल का मालिक बता रहा था कि वेतन स्वीट्स के पास वाली गली में एक मकान है, 2 कमरे का. बस, एक ही कमी थी… उस की मकान मालकिन.

पर होटल वाले ने इस का एक हल निकाला था कि मकान ले लो और साथ में दूसरा मकान भी देखते रहो. उस मकान में कोई 2 महीने से ज्यादा नहीं रहा है.

‘‘आप मकान बता रहे हो या डरा रहे हो?’’ राहुल बोला, ‘‘मैं उस मकान को देख लूंगा. धर्मशाला से तो बेहतर ही रहेगा.’’

अगले दिन दफ्तर के बाद राहुल अपने एक दोस्त प्रशांत के साथ मकान देखने चला गया. मकान उसे पसंद था, पर मकान मालकिन ने यह कह कर उस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया कि रात को 10 बजे के बाद गेट नहीं खुलेगा.

राहुल ने सोचा, ‘मेरा तो काम ही ऐसा है, जिस में अकसर देर रात हो जाती है…’ वह बोला, ‘‘आंटी, मेरा तो काम ही ऐसा है, जिस में अकसर रात को देर हो सकती है.’’

‘‘ठीक है बेटा,’’ आंटी बोलीं, ‘‘अगर पसंद न हो, तो कोई बात नहीं.’’

राहुल कुछ देर खड़ा रहा और बोला, ‘‘आंटी, आप उस हिस्से में एक गेट और लगवा दो. उस की चाबी मैं अपने पास रख लूंगा.’’

आंटी ने अपनी मजबूरी बता दी, ‘‘मेरे पास खर्च करने के लिए एक भी पैसा नहीं है.’’

राहुल ने गेट बनाने का सारा खर्च खुद उठाने की बात की, तो आंटी राजी हो गईं. इस के साथ ही उस ने झगड़े की जड़ पानी और बिजली के कनैक्शन भी अलग करवा लिए. दोनों जगहों के बीच दीवार खड़ी करवा दी. उस में दरवाजा भी बनवा दिया, लेकिन दरवाजा कभी बंद नहीं हुआ.

सारा काम पूरा हो जाने के बाद राहुल मकान में आ गया. उस ने मकान मालकिन द्वारा कही गई बातों का पालन किया. राहुल दिन में अपने मकान में कम ही रहता था. खाना भी वह होटल में ही खाता था. हां, रात में वह जरूर अपने कमरे पर आ जाता था. उस के हिस्से में ‘खटखट’ की आवाज से आंटी को पता चल जाता और वे आवाज लगा कर उस के आने की तसल्ली कर लेतीं.

उन आंटी का नाम प्रभा देवी था. वे अकेली रहती थीं. उन की 2 बेटियां थीं. दोनों शादीशुदा थीं. आंटी के पति की मौत कुछ साल पहले ही हुई थी. उन की मौत के बाद वे दोनों बेटियां उन को अपने साथ रखने को तैयार थीं, पर वे खुद ही नहीं रहना चाहती थीं. जब तक शरीर चल रहा है, तब तक क्यों उन के भरेपूरे परिवार को परेशान करें.

अपनी मां के एक फोन पर वे दोनों बेटियां दौड़ी चली आती थीं. आंटी और उन के पति ने मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार को पाला था. उन के पास अब केवल यह मकान ही बचा था, जिस को किराए पर उठा कर उस से मिले पैसे से उन का खर्च चल जाता था.

एक हिस्से में आंटी रहती थीं और दूसरे हिस्से को वे किराए पर उठा देती थीं. पर एक मजदूर के पास मजदूरी से इतना बड़ा मकान नहीं हो सकता. पतिपत्नी दोनों ने खूब मेहनत की और यहां जमीन खरीदी. धीरेधीरे इतना कर लिया कि मकान के एक हिस्से को किराए पर उठा कर आमदनी का एक जरीया तैयार कर लिया था.

राहुल अपने मांबाप का एकलौता बेटा था. अभी उस की शादी नहीं हुई थी. नौकरी पर वह यहां आ गया और आंटी का किराएदार बन गया. दोनों ही अकेले थे. धीरेधीरे मांबेटे का रिश्ता बन गया.

घर के दोनों हिस्सों के बीच का दरवाजा कभी बंद नहीं हुआ. हमेशा खुला रहा. राहुल को कभी ऐसा नहीं लगा कि आंटी गैर हैं. आंटी के बारे में जैसा सुना था, वैसा उस ने नहीं पाया. कभीकभी उसे लगता कि लोग बेवजह ही आंटी को बदनाम करते रहे हैं या राहुल का अपना स्वभाव अच्छा था, जिस ने कभी न करना नहीं सीखा था. आंटी जो भी कहतीं, उसे वह मान लेता.

आंटी हमेशा खुश रहने की कोशिश करतीं, पर राहुल को उन की खुशी खोखली लगती, जैसे वे जबरदस्ती खुश रहने की कोशिश कर रही हों. उसे लगता कि ऐसी जरूर कोई बात है, जो आंटी को परेशान करती है. उसे वे किसी से बताना भी नहीं चाहती हैं. उन की बेटियां भी अपनी मां की समस्या किसी से नहीं कहती थीं.

वैसे, दोनों बेटियों से भी राहुल का भाईबहन का रिश्ता बन गया था. उन के बच्चे उसे ‘मामामामा’ कहते नहीं थकते थे. फिर भी वह एक सीमा से ज्यादा आगे नहीं बढ़ता था. लोग हैरान थे कि राहुल अभी तक वहां कैस टिका हुआ है.

आज रात राहुल जल्दी घर आ गया था. एक बार वह जा कर आंटी से मिल आया था, जो एक नियम सा बन गया था. जब वह देर से घर आता था, तब यह नियम टूटता था. हां, तब आंटी अपने कमरे से ही आवाज लगा देती थीं.

रात के 11 बज रहे थे. राहुल ने सुना कि आंटी चीख रही थीं, ‘मेरा बच्चा… मेरा बच्चा… वह मेरे बच्चे को मुझ से छीन नहीं सकता…’ वे चीख रही थीं और रो भी रही थीं.

पहले तो राहुल ने इसे अनदेखा करने की कोशिश की, पर आंटी की चीखें बढ़ती ही जा रही थीं. इतनी रात को आंटी के पास जाने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी, भले ही उन के बीच मांबेटे का अनकहा रिश्ता बन गया था.

राहुल ने अपने दोस्त प्रशांत को फोन किया और कहा, ‘‘भाभी को लेता आ.’’

थोड़ी देर बाद प्रशांत अपनी बीवी को साथ ले कर आ गया. आंटी के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. यह उन के लिए हैरानी की बात थी. तीनों अंदर घुसे. राहुल सब से आगे था. उसे देखते ही पलंग पर लेटी आंटी चीखीं, ‘‘तू आ गया… मुझे पता था कि तू एक दिन जरूर अपनी मां की चीख सुनेगा और आएगा. उन्होंने तुझे छोड़ दिया. आ जा बेटा, आ जा, मेरी गोद में आ जा.’’

राहुल आगे बढ़ा और आंटी के सिर को अपनी गोद में ले कर सहलाने लगा. आंटी को बहुत अच्छा लग रहा था. उन को लग रहा था, जैसे उन का अपना बेटा आ गया. धीरेधीरे वे नौर्मल होने लगीं.

प्रशांत और उस की बीवी भी वहीं आ कर बैठ गए. उन्होंने आंटी से पूछने की कोशिश की, पर उन्होंने टाल दिया. वे राहुल की गोद में ही सो गईं. उन की नींद को डिस्टर्ब न करने की खातिर राहुल बैठा रहा.

थोड़ी देर बाद प्रशांत और उस की बीवी चले गए. राहुल रातभर वहीं बैठा रहा. सुबह जब आंटी ने राहुल की गोद में अपना सिर देखा, तो राहुल के लिए उन के मन में प्यार हिलोरें मारने लगा. उन्होंने उस को चायनाश्ता किए बिना जाने नहीं दिया.

राहुल ने दफ्तर पहुंच कर आंटी की बड़ी बेटी को फोन किया और रात में जोकुछ घटा, सब बता दिया. फोन सुनते ही बेटी शाम तक घर पहुंच गई. उस बेटी ने बताया, ‘‘जब मेरी छोटी बहन 5 साल की हुई थी, तब हमारा भाई लापता हो गया था. उस की उम्र तब 3 साल की थी. मांबाप दोनों काम पर चले गए थे.

‘‘हम दोनों बहनें अपने भाई के साथ खेलती रहतीं, लेकिन एक दिन वह खेलतेखेलते घर से बाहर चला गया और फिर कभी वापस नहीं आया. ‘‘उस समय बच्चों को उठा ले जाने वाले बाबाओं के बारे में हल्ला मचा हुआ था. यही डर था कि उसे कोई बाबा न उठा ले गया हो.

‘‘मां कभीकभी हमारे भाई की याद में बहक जाती हैं. तभी वे परेशानी में अपने बेटे के लिए रोने लगती हैं.’’ आंटी की बड़ी बेटी कुछ दिन वहीं रही. बड़ी बेटी के जाने के बाद छोटी बेटी आ गई. आंटी को फिर कोई दौरा नहीं पड़ा.

2 दिन हो गए आंटी को. राहुल नहीं दिखा. ‘खटखट’ की आवाज से उन को यह तो अंदाजा था कि राहुल यहीं है, लेकिन वह अपनी आंटी से मिलने क्यों नहीं आया, जबकि तकरीबन रोज एक बार जरूर वह उन से मिलने आ जाता था. उस के मिलने आने से ही आंटी को तसल्ली हो जाती थी कि उन के बेटे को उन की फिक्र है. अगर वह बाहर जाता, तो कह कर जाता, पर उस के कमरे की ‘खटखट’ बता रही थी कि वह यहीं है. तो क्या वह बीमार है? यही देखने के लिए आंटी उस के कमरे पर आ गईं.

राहुल बुखार में तप रहा था. आंटी उस से नाराज हो गईं. उन की नाराजगी जायज थी. उन्होंने उसे डांटा और बोलीं, ‘‘तू ने अपनी आंटी को पराया कर दिया…’’ वे राहुल की तीमारदारी में जुट गईं. उन्होंने कहा, ‘‘देखो बेटा, तुम्हारे मांबाप जब तक आएंगे, तब तक हम ही तेरे अपने हैं.’’

राहुल के ठीक होने तक आंटी ने उसे कोई भी काम करने से मना कर दिया. उसे बाजार का खाना नहीं खाने दिया. वे उस का खाना खुद ही बनाती थीं.

राहुल को वहां रहते तकरीबन 9 महीने हो गए थे. समय का पता ही नहीं चला. वह यह भी भूल गया कि उस का जन्मदिन नजदीक आ रहा है. उस की मम्मी सविता ने फोन पर बताया था, ‘हम दोनों तेरा जन्मदिन तेरे साथ मनाएंगे. इस बहाने तेरा मकान भी देख लेंगे.’

आज राहुल की मम्मी सविता और पापा रामलाल आ गए. उन को चिंता थी कि राहुल एक अनजान शहर में कैसे रह रहा है. वैसे, राहुल फोन पर अपने और आंटी के बारे में बताता रहता था और कहता था, ‘‘मम्मी, मुझे आप जैसी एक मां और मिल गई हैं.’’

फोन पर ही उस ने अपनी मम्मी को यह भी बताया था, ‘‘मकान किराए पर लेने से पहले लोगों ने मुझे बहुत डराया था कि मकान मालकिन बहुत खड़ूस हैं. ज्यादा दिन नहीं रह पाओगे. लेकिन मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं देखा.’’ तब उस की मम्मी बोली थीं, ‘बेटा, जब खुद अच्छे तो जग अच्छा होता है. हमें जग से अच्छे की उम्मीद करने से पहले खुद को अच्छा करना पड़ेगा. तेरी अच्छाइयों के चलते तेरी आंटी भी बदल गई हैं,’ अपने बेटे के मुंह से आंटी की तारीफ सुन कर वे भी उन से मिलने को बेचैन थीं.

राहुल मां को आंटी के पास बैठा कर अपने दफ्तर चला गया. दोनों के बीच की बातचीत से जो नतीजा सामने आया, वह हैरान कर देने वाला था.

राहुल के लिए तो जो सच सामने आया, वह किसी बम धमाके से कम नहीं था. उस की आंटी जिस बच्चे के लिए तड़प रही थीं, वह खुद राहुल था. मां ने अपने बेटे को उस की आंटी की सचाई बता दी और बोलीं, ‘‘बेटा, ये ही तेरी मां हैं. हम ने तो तुझे एक बाबा के पास देखा था. तू रो रहा था और बारबार उस के हाथ से भागने की कोशिश कर रहा था. हम ने तुझे उस से छुड़ाया. तेरे मांबाप को खोजने की कोशिश की, पर वे नहीं मिले.

‘‘हमारा खुद का कोई बच्चा नहीं था. हम ने तुझे पाला और पढ़ाया. जिस दिन तू हमें मिला, हम ने उसी दिन को तेरा जन्मदिन मान लिया. अब तू अपने ही घर में है. हमें खुशी है कि तुझे तेरा परिवार मिल गया.’’ राहुल बोला, ‘‘आप भी मेरी मां हैं. मेरी अब 2-2 मांएं हैं.’’ इस के बाद घर के दोनों हिस्से के बीच की दीवार टूट गई. Hindi Family Story

Story In Hindi: गर्भपात – क्या रमा अनजाने भय से मुक्त हो पाई?

Story In Hindi: सुबह उठते ही रमा की नजर कैलेंडर पर पड़ी. आज 7 तारीख थी. उस के मन ने अपना काम शुरू कर दिया. झट से रमा के मन ने गणना की कि आज उस के गर्भ का तीसरा महीना पूरा और चौथा शुरू होता है जबकि रमा इसी गणना को मन में नहीं लाना चाहती थी क्योंकि मन में इस विचार के आते ही उस पर उस का पुराना भय हावी हो जाता और वह इस भय से बचना चाहती थी.

रमा डरतेडरते बाथरूम गई. वेस्टर्न स्टाइल की सीट पर बैठते ही उस का गला सूखना शुरू हो गया. उसे लग रहा था कि यदि उसे जल्दी से पानी नहीं मिला तो उस का दम घुट जाएगा. सामने ही नल था और वह पूरा जोर लगा कर उठने की कोशिश करने लगी. फिर भी उस से उठा नहीं गया.

तभी अचानक उस के पेट में दर्द उठा और नीचे पूरा पाट खून से भर गया. ऐसा उस के साथ दूसरी बार हो रहा था. रमा की रुलाई फूट पड़ी और वह अपनी प्यास भूल गई. उस ने किसी तरह से उठ कर दरवाजा खोला और अपने पति को पुकारा. उस की दर्द भरी आवाज सुन कर रवि बिस्तर छोड़ कर भागे. किसी तरह रमा को संभाला और उसे कार में डाल कर अस्पताल ले गए. डाक्टर ने रमा के गर्भ को साफ किया और घर भेज दिया. रमा फिर से खाली हाथ घर लौट आई थी.

रमा की शादी को 3 साल बीत चुके थे और इन 3 सालों में दूसरी बार उस का गर्भपात हुआ था. जब वह पहली बार गर्भवती हुई थी तो घर में खुशी की लहर दौड़ गई थी. पति रवि और सास मीना खुशी से झूम उठे थे. पर तब भी कहीं भीतर से रमा उदास हो गई थी. एक अनजाना सा डर तब भी उस के मन में था. उस के मन में यही डर था कि कहीं बच्चे के जन्म के समय उस की मृत्यु न हो जाए. इस डर के कारण उस की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रही थी. उस का खानापीना भी कम हो गया था. दूध और फल उसे हजम ही नहीं होते थे. केवल पेट भरने के लिए वह सूखी चपाती खाती थी.

रमा के इस व्यवहार को देख कर उस की सास मीना सोचतीं कि शुरूशुरू में ऐसा सभी औरतों के साथ होता है पर धीरेधीरे सब ठीक हो जाता है लेकिन तीसरा महीना खत्म होते ही जब रमा का गर्भपात हो गया था तो उस का रोना देख कर मांबेटा दोनों ही घबरा गए. डाक्टर ने जांच के बाद गर्भाशय साफ किया और उसे घर भेज दिया.

इस घटना के बाद कुछ दिनों तक रमा उदास रही थी लेकिन सास का अपनापन भरा व्यवहार और पति के प्यार में वह इस हादसे को भूल गई. 8 महीने बाद फिर रमा ने गर्भ धारण किया. इस बार रवि उसे ले कर डा. प्रेमा के पास पहुंच गए.

डा. प्रेमा स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं. उन्होंने दोनों को तसल्ली दी, ‘‘देखिए, डरने की कोई बात नहीं है. मैं ने ठीक से जांच कर ली है. रमा के गर्भाशय की स्थिति जरा ठीक नहीं है. वह थोड़ा नीचे की ओर खिसका हुआ है. ऐसे में उन को फुल बेडरेस्ट की जरूरत है. ज्यादा समय लेटे ही रहना है. पैरों के नीचे भी तकिया लगा कर रखना है और केवल शौच जाने के लिए उठना है. शौच जाते समय भी ध्यान रखें कि जोर नहीं लगाना है.’’

‘‘देखो रमा, जैसे डाक्टर बता रही हैं वैसे ही करना है और खुश रहना है,’’ रवि ने प्यार से कहा.

‘‘हां, खुश रहना बहुत जरूरी है,’’ डा. प्रेमा ने भी सलाह दी, ‘‘अच्छी किताबें पढ़ो, मधुर संगीत सुनो और सुखद भविष्य की कल्पना कर के खुश रहो,’’ रवि ने प्यार से कहा.

‘‘डाक्टर, मेरी जान को तो खतरा नहीं है?’’ रमा ने डरतेडरते पूछा था.

‘‘तुम ने ऐसा क्यों सोचा?’’

डा. प्रेमा ने पूछा.

‘‘मुझे डर लगता है.’’

‘‘किस बात का?’’

‘‘मैं दर्द सहन नहीं कर पाऊंगी और मर जाऊंगी.’’

‘‘सभी औरतें मर जाती हैं क्या?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो आप इस तरह का क्यों सोच रही हैं?’’

रमा और रवि खुशीखुशी वापस घर आए. मां को सारी बातें बताईं. रवि मां से बोले, ‘‘मां, अब रमा का ध्यान आप को ही रखना है. मैं तो सारा दिन बाहर रहता हूं.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है. रमा तो मेरी बेटी है. अब मैं इस की सहेली भी बन जाऊंगी और इसे खुश रखूंगी.’’

मीना अब जीजान से रमा के साथ हो लीं. उसे बिस्तर से बिलकुल उठने नहीं देतीं. सहारा दे कर शौचालय ले जातीं. टानिक और विटामिन की गोलियां समय पर देतीं. बातबात पर उसे हंसाने की कोशिश करतीं. 3 महीने ठीक से निकले. पर चौथा शुरू होते ही शौचालय में फिर से रमा का गर्भपात हो गया. रवि फिर उसे ले कर अस्पताल गए और रमा इस बार फिर वहां से खाली हो कर घर आ गई.

रवि एक दिन अकेले जा कर डाक्टरसे मिले, ‘‘डाक्टर, अब की बार क्या हुआ? ऐसा बारबार क्यों होता है?’’

‘‘सब ठीक चल रहा था,’’ डा. प्रेमा ने बताया, ‘‘मैं नहीं जानती, ऐसा क्यों हुआ. अगली बार जब यह गर्भवती हों तो आप शुरू में ही मुझ से संपर्क करें. इन के कुछ टैस्ट करवाने पड़ेंगे, उस के बाद ही गर्भपात के कारणों का पता चलेगा.’’

दूसरी बार गर्भपात होने के बाद से रमा की उदासी और भी बढ़ गई. उस का शरीर काफी कमजोर हो गया था. इस बार रवि ने मन ही मन फैसला कर लिया कि यह तमाशा और अधिक नहीं चलेगा. रमा मानसिक और शारीरिक रूप से संतुलित हो जाए उस के बाद ही बच्चे की बात सोची जाएगी. जरूरत पड़ी तो वह किसी बच्चे को गोद ले लेंगे.

जीवन अपनी गति से चलने लगा. धीरेधीरे रमा सामान्य हो चली. इस बीच वह अपने भाई की शादी के लिए अपने मायके गई तो 2 महीने रह कर वापस लौटी.

मायके से लौटने पर रमा बहुत प्रसन्नचित्त थी. घर के कामकाज में वह अपनी सास के साथ लगातार हाथ बंटाती. खाली समय में ‘जिम’ भी जाती. उस की सहेलियों का दायरा भी बढ़ गया था. एक बड़े पुस्तकालय की वह सदस्य भी बन गई थी. एक बार माइंड पावर नामक एक पुस्तक उस के हाथ लगी. उस पुस्तक में जब उस ने पढ़ा कि हमारा मन हमारा कितना बड़ा मित्र बन सकता है और उतना ही बड़ा शत्रु भी बन सकता है तो वह हैरान रह गई. अपने मन में बैठे डर का उस ने विश्लेषण किया और सोचा, क्या उस का मन ही उसे मां  नहीं बनने दे रहा है? क्या उस का मन ही हर तीसरे माह के समाप्त होते ही उस का गर्भपात करवा रहा है? एक दिन उस ने रवि से इस बारे में बात की.

‘‘रवि, इस किताब में जो भी लिखा है क्या वह सच है?’’

‘‘इतने बड़े मशहूर लेखक की किताब है, उस की यह किताब बेस्ट सैलर भी है. कितने ही लोग इसे पढ़ कर अपना जीवन सुधार चुके हैं.’’

‘‘मैं नहीं मानती. मैं ने तो हमेशा ही बच्चा चाहा है, फिर गर्भपात क्यों हुआ? अगर मेरा मन बच्चा नहीं चाहता तो मुझे भी गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग करना आता था.’’

‘‘मुझे लगता है तुम्हारा मन 2 भागों में बंटा हुआ है. एक मन तो मां बनना चाहता है और दूसरा प्रसव पीड़ा से डरता है.’’

‘‘हां, तुम ठीक कहते हो पर मुझे बताओ, मैं क्या करूं?’’

रमा परेशान हो उठी थी. शादी हुए 7 साल बीत चुके थे. वे दोनों अब बच्चे की बात ही नहीं करते. पर मन ही मन रमा के अंदर एक संघर्ष चल रहा था. वह उस संघर्ष पर विजय पाना चाहती थी. उस का एक ही तरीका था कि वह पूरी सच्ची बात रवि को बताए. एक रात वह रवि से बोली, ‘‘रवि, मैं तुम्हें एक बात बताना चाहती हूं जोकि मैं ने आज तक तुम्हें नहीं बताई है. जब मैं 10 साल की थी तो मेरी बूआ प्रसव के लिए मायके आई थीं. जिस दिन उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हुई उस दिन घर में कोई नहीं था. केवल मैं और बूआ ही थीं. मां और पिताजी बाहर गए हुए थे.

‘‘डाक्टर के अनुसार बूआ के प्रसव में अभी 10-15 दिन बाकी थे पर अचानक ही उन्हें दर्द शुरू हो गया. भयानक दर्द से बूआ तड़पती रहीं और मैं उन्हें देख कर रोती रही. तड़पतेतड़पते बूआ बिस्तर से नीचे उतर आई थीं. दर्द के कारण चिल्लाने से उन का गला सूख गया था. उन्होंने मुझ से पानी मांगा पर मैं इतनी डर गई कि ऐसा लगा जैसे मैं वहां से हिल नहीं पाऊंगी.

‘‘बूआ ‘पानीपानी’ चिल्लाती रहीं पर मैं उन्हें पानी नहीं दे पाई और कुछ देर बाद सब शांत हो गया. बूआ खून और पानी के ढेर में शांत सी हो कर सो गईं. तभी मां आ गईं. उन्हें देख कर मैं जहां डर कर बैठी थी वहीं चिल्लाई,  ‘मां,’ देखो तो बूआ को क्या हुआ? उन्हें पानी दो.’

‘‘मां ने बूआ को देखा तो पाया कि वह सदा के लिए ही शांत हो गई थीं, पर मेरे नन्हे मन में यह बैठ गया कि अगर मैं बूआ को पानी दे देती तो शायद वह बच जातीं, मेरा मन अपराधबोध से भर गया.

‘‘तीसरा महीना शुरू होते ही वह अपराधबोध मुझ पर इस कदर हावी हो जाता है कि मैं रात में कितनी बार उठ कर पानी पीती हूं. बूआ का पानी मांगना मेरे दिलोदिमाग में छा जाता है. मेरी बूआ मेरे कारण ही बिना मां बने ही इस दुनिया से चल बसीं. इसलिए मैं सोचती हूं कि शायद अतीत का अपराधबोध और प्रसव पीड़ा का वह भयावह दृश्य ही मुझे डराता है और डर के मारे मेरा गर्भपात हो जाता है.’’

‘‘पहले क्यों नहीं बताया यह सब,’’ रवि बोले ‘‘बूआ की मौत की जिम्मेदार तुम नहीं हो. यह अपराधबोध तो मन से बिलकुल ही निकाल दो. एक 10 साल की बच्ची किसी की मौत का कारण कैसे बन सकती है और तुम्हारा दूसरा डर तो बिलकुल बेकार है. उस का सामना तो हम आसानी से कर सकते हैं. हम पहले से ही डाक्टर से बात कर लेंगे कि तुम्हारा बच्चा आपरेशन द्वारा ही हो. तुम्हें प्रसव पीड़ा होगी ही नहीं.’’

‘‘अगर डाक्टर नहीं मानी तो?’’

‘‘जरूर मानेंगी, जब तुम्हारी कहानी सुनेगी तो उन्हें मानना ही पड़ेगा.’’

दूसरे दिन ही रमा और रवि डा. कांता के पास पहुंचे. डा. कांता एक प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं. उन के पास जच्चाबच्चा से संबंधित एक से एक कठिन केस आते थे. अनुभवों के आधार पर वह इतना ज्ञान प्राप्त कर चुकी थीं कि जब रमा और रवि उन के पास सलाह के लिए आए तो उन्होंने सब से पहले रमा के पिछले सभी गर्भपातों के बारे में जानकारी हासिल की और रमा के लिए कुछ जरूरी टैस्ट लिख दिए. जब टैस्टों की रिपोर्ट आई तो उन्हें पता चला कि रमा को टोक्सो प्लाज्मा है. डा. कांता ने बताया कि रुबैला और टोक्सो प्लाज्मा ये 2 ऐसी बीमारियां हैं जो किसी गर्भवती महिला के लिए घातक होती हैं.

रुबैला अगर गर्भवती स्त्री को हो तो उस के कीटाणु पेट में पल रहे शिशु तक पहुंच कर उसे नुकसान पहुंचाते हैं. पर रमा के खून की जांच के बाद पता चला कि उसे टोक्सो प्लाज्मा हुआ है. यह खून में फैला हुआ इन्फेक्शन है जो ज्यादातर चूहों और बिल्लियों में पाया जाता है, पर कई बार यह मनुष्यों में भी आ जाता है और गर्भवती स्त्री के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए घातक होता है. रमा के साथ भी यही हो रहा था. डाक्टर ने रमा को सलाह दी कि अगली बार गर्भ का निश्चय होते ही वह तुरंत अस्पताल में भर्ती हो जाए.

रमा गर्भ ठहरते ही डा. कांता के नर्सिंग होम में दाखिल हो गई. डा. कांता ने शुरू से ही रमा को उचित दवाइयां देनी शुरू कर दीं. रमा को बिलकुल बेडरेस्ट पर रखा. देखते ही देखते 4 महीने सही से निकल गए. अब तो रमा पूरी तरह आशा से भर गई थी.

डाक्टर की निगरानी, उचित दवाओं और अपने सकारात्मक विचारों और भावनाओं के कारण रमा के 9 महीने पूरे हुए. पूर्वनिश्चित समय पर डाक्टर ने आपरेशन किया और जीताजागता, रोताचिल्लाता प्यारा सा बच्चा उसकी गोद में थमा दिया. Story In Hindi

Story In Hindi: बेरंग – श्रुति से मुलाकात कहां हुईं थी

Story In Hindi: मेरा गला सूख रहा था. मैं ने अपने छोटे भाई को आवाज दी लेकिन कोई जवाब न पा कर मैं समझ गई कि सोनू सो चुका है. उसे न जगा कर मैं ने स्वयं ही पानी ढूंढ़ने की कोशिश की थी, उस रात पानी तो नहीं मिला लेकिन ‘ठक’ की तेज आवाज हुई. ‘‘दीदी, आप ठीक हो न,’’ सोनू की घबराई आवाज सुन कर मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई. आखिर जगा ही दिया न मैं ने. ‘‘पूरा गिलास पानी पी लिया आप ने. इतनी प्यास थी फिर भी मुझे नहीं उठाया.

दीदी, मैं यहां आप का ध्यान रखने आता हूं. प्लीज, मेरी नींद का मत सोचा करो.’’ सोनू की मीठी सी हक भरी झिड़की सुनना मुझे अच्छा लग रहा था. ‘अब तो शायद जिंदगी भर केवल सुनना ही सुनना हो,’ मैं बुदबुदाई थी. अजीब सी हालत थी उस वक्त दिल की. कल क्या होगा यही सोचसोच कर मेरे पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी. रात के 3 बज रहे थे लेकिन नींद नहीं आ रही थी. रहरह कर श्रुति की याद आ रही थी. श्रुति, क्या अपनी आंखों से अब उस को कभी नहीं देख पाऊंगी? श्रुति मेरी स्कूल के समय की सहेली, मुझे अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी थी.

लेकिन आज लग रहा है कि अपनों से कहीं ज्यादा प्यार श्रुति मुझे करती थी. कुदरत का यह कैसा नियम है कि इनसान को जब नींद नहीं आती तो वह अपने अतीत को ही बारबार याद करता रहता है. मैं ने सोचा, चलो यह भी अच्छा है, कम से कम समय तो आसानी से कट जाएगा, वरना पिछले 18 दिन तो पहाड़ जैसे कटे थे. क्या करती मैं उन 18 दिनों में? चुपचाप लेटे रहने के अलावा मेरे पास और चारा भी क्या था. सारा शरीर, यहां तक कि मेरी आत्मा भी घायल हो चुकी थी.

कुछ भी करने लायक नहीं थी उस समय. एक गिलास पानी तक के लिए तो मैं दूसरों पर निर्भर थी. लेकिन हां, मेरी सोच पर तो मेरा बस था. मैं एक उच्च मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुई. मम्मी और पापा मुझे और छोटे भाई को बहुत प्यार करते हैं. बूआ, जो भरी जवानी में ही विधवा हो गई थीं, अपनी कोई औलाद न होने का दर्द, वह मुझे भरपूर प्यार दे कर दूर करती हैं. बूआ, पापा से उम्र में काफी बड़ी हैं. मैं इसलिए भी बूआ के बहुत करीब रही हूं क्योंकि उन की बातें मुझे बहुत अच्छी लगती थीं.

यह सच है कि बच्चे की जिस तरह परवरिश होती है वैसा ही वह बन जाता है. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. बूआ बहुत कम पढ़ीलिखी थीं. अंधविश्वासी भी बहुत थीं. बस, मुझ पर भी उन का अंधविश्वास हावी होता चला गया. बूआ का मानना था कि लड़की के लिए जो काम हैं वह हैं, सुंदर लगना, सजधज कर बैठना, पति की सेवा करना और बच्चे पालना. और भी जाने कितनी ही ऐसी बातें थीं जो बूआ ने मुझे बचपन में बताईं और मैं उन की सब बातें ग्रहण करती चली गई.

मैं स्कूल से लौटती तो बूआ को बताती, ‘बूआ, पता है आज वह सायरा मेरे साथ बैठी थी. वही काली सी.’ तब बूआ कहतीं, ‘अरे, हम ब्राह्मण लोग हैं, तू टीचर से नहीं कह सकती थी कि उस मलेच्छ के साथ न बैठाएं. एक तो काली, ऊपर से जाति की नीच.’ फिर बूआ मुझ पर गंगाजल छिड़कतीं और अच्छी तरह नहलातीं. श्रुति से मेरी मुलाकात छठी क क्षा में हुई थी. यों तो कक्षा में और भी लड़कियां थीं पर श्रुति सुंदर थी, शायद यही पहली खूबी थी जिस वजह से मैं ने उस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था. पहली बार श्रुति मेरे साथ घर आई थी तो मैं बोली थी, ‘बूआ, यह श्रुति है.

पढ़ने में बहुत तेज है.’ बूआ को पढ़ाईलिखाई से क्या लेनादेना था. वह बोलीं, ‘संजू, तेरी सहेली तो बहुत सुंदर और गोरी है.’ 12वीं कक्षा अच्छे नंबरों से पास कर के मैं ने कालिज में दाखिला लिया. श्रुति भी उसी कालिज में थी. हम ने सोचा हुआ था कि कभी भी अलग नहीं होंगे. समय के साथ हमारी दोस्ती बहुत मजबूत हो गई थी.

मैं कालिज में ‘ब्यूटी क्वीन’ क्या बनी कि सब मुझे ‘क्वीनी’ कह कर पुकारने लगे. बस, श्रुति ही मुझे ‘सजल’ कह कर पुकारती थी. सजल, तू क्या ले रही है, एन.सी.सी या एन.एस.एस. हमें इन दोनों में से किसी एक को चुनना था. मैं ने एन.सी.सी (नेशनल कैडेट कोर) ही चुना क्योंकि उस में कालिज के बाहर स्टेडियम आदि में ले जाया जाता था. लेकिन श्रुति ने एन.एस.एस (नेशनल सोशल सर्विस) लिया. उस के तहत उस ने ब्लाइंड स्टूडेंट प्रोजेक्ट लिया. उस का काम था खाली पीरियड में नेत्रहीन लड़कियों को पढ़ाना.

एक दिन उस ने मुझे कुछ बताया तो मैं खीज कर बोली थी, ‘देख श्रुति, तू उन्हें पढ़ाती है यह भलाई का काम है. लेकिन ये ‘डोनर कार्ड’ का क्या चक्कर डाल दिया है तू ने.’ ‘सजल, इन नेत्रहीन लड़कियों की तकलीफें देख कर मन बहुत भर आता है. इन से हम कुछ भी बात कर सकते हैं, लेकिन जानती है, मैं पूरापूरा ध्यान रखती हूं कि ‘देखो’ जैसे शब्द इन के आगे न बोलूं.’ ‘हां, श्रुति, मुझे भी इन्हें देख कर बहुत तरस आता है.’ ‘नहीं, सजल, इन के बारे में गलत धारणा बना बैठी है. ये दया के पात्र नहीं हैं.

बस, इन्हें हमारी मदद की थोड़ी जरूरत होती है, जो हम दे सकते हैं. ये लड़कियां बहुत मेहनती हैं. जानती है, हमें तो बने बनाए नोट्स गाइड के रूप में दुकानों पर मिल जाते हैं लेकिन ये लोग सारे उत्तर पहले बे्रल की मदद से लिखते हैं फिर उन्हें याद करते हैं.’ ‘तू डोनर कार्ड क्यों भर रही है?

मैं जानती हूं कि किसी के मरने के बाद उस की आंखें कुछ घंटों के भीतर दान करनी होती हैं. बस, ऐसा सोच कर ही तब मेरा मन दुखी हो गया था.’ श्रुति हंस पड़ी थी, ‘सजल, मरना तो सभी को है एक दिन. जीतेजी तो चल, हम अच्छे काम करते हैं और सब के काम आते हैं. लेकिन सोच, मरने के बाद भी अगर हम किसी के काम आएं तो मेरे खयाल में यह एक बहुत अच्छा काम है.’ ‘तुझे नहीं लगता कि ये डोनर कार्ड हर वक्त मौत का एहसास दिलाता रहेगा.?’ श्रुति कुछ बोली नहीं तो मैं गुस्से से वहां से चल पड़ी.

‘सुन, सजल, मेरी मान और तू भी कार्ड भर दे,’ वह हंसी तो मैं भुनभुनाती हुई वहां से चली आई. घर पहुंच कर बूआ को बताया तो वह हैरान थीं कि मेरी सहेली ऐसा कह सकती है. ‘इस में बुराई क्या है, दीदी?’ मम्मी के यह कहते ही बूआ भड़क उठी थीं, ‘बुराई की बात कर रही है, सुदेश? जानती भी है, अगर मौत के बाद कोई अंग निकल जाए तो अगले जन्म में उस अंग के बगैर जन्म होता है.’ बूआ की बात पर हमेशा की तरह मम्मी ने सिर हिलाया और चली गई थीं.

वैसे भी मम्मी की बूआ के आगे नहीं चलती थी. लेकिन बूआ के मुंह से पुनर्जन्म में अंगहीन होने की बात सुन कर मैं भयभीत हो गई थी. उम्र ही क्या थी मेरी, 18 साल. कालिज का पहला साल ही तो था. इस के बाद मैं ने श्रुति को बहुत समझाने की कोशिश की थी लेकिन वह टस से मस नहीं हुई थी और उस ने ‘डोनर कार्ड’ भर कर ही दम लिया था. श्रुति ने कालिज के पहले और दूसरे साल में 260 घंटे पढ़ाया था. वह अपनेआप में एक रिकार्ड था. मुझे एन.सी.सी. में कोई सर्टिफिकेट नहीं मिला था.

दरअसल परेड आदि से मेरी गोरी त्वचा झुलस जाती. बूआ ने जब मेरा रंग सांवला होते देखा तो मुझे परेड आदि में जाने से रोकने लगीं. मन से मैं भी यही चाहती थी. एक दिन श्रुति कालिज आई तो उसे देख कर मुझे हंसी आ गई. फिर 3 दिन बाद मैं उसे एक दुकान पर ले गई. ‘यह कहां ले आई मुझे?’ श्रुति ने हैरानी से पूछा. दुकान पर लगे बोर्ड की तरफ इशारा करते हुए मैं बोली, ‘पढ़, कहां खड़े हैं?’ वह कांटेक्ट लैंस की दुकान थी. दरअसल श्रुति को चश्मा लग गया था और मुझे उस का चश्मा लगाना पसंद नहीं आ रहा था.

मेरी बहुत जिद करने पर भी श्रुति लैंस लगवाने के लिए राजी नहीं हुई. तब मैं ने गुस्से में आ कर उस से बोलना बंद कर दिया. आखिर एक दिन उस ने हार मान अपने लिए लैंस बनवा लिए. मैं जानती थी वह मुझ से बात किए बगैर नहीं रह सकती थी.

तीसरे साल भी उस ने ब्लाइंड स्टूडेंट प्रोजेक्ट जारी रखा था. श्रुति कार चलाना सीख रही थी. जब वह अच्छी तरह सीख गई तब मैं यदाकदा उस के साथ कालिज आनेजाने लगी. एक दिन श्रुति घर आई हुई थी. बातोंबातों में पापा ने उसे बताया कि उन के एक दोस्त की बेटी की शादी है. वह तो आफिस से सीधे चले जाएंगे लेकिन हम सब को भी पहुंचना था.

अब समस्या यह थी कि शादी शहर से बाहर थी और टैक्सी से जाने के लिए बूआ तैयार नहीं थीं. तब श्रुति ने हम को सपरिवार छोड़ने की बात पापा से कही थी. उस दिन श्रुति दोपहर को ही हमारे घर आ गई थी पर वह कुछ थकीथकी सी लग रही थी. उस की आंखें भी सूजी हुई थीं, सो वह देर शाम तक सोती रही. जब मैं ने उसे जगाया और बताया कि उठ, अंधेरा होने लगा है तो वह हड़बड़ा कर उठी और जल्दील्दी तैयार होने लगी. तैयार होते समय श्रुति ने अपना बैग मुझे पकड़ा दिया था, जिसे मैं ने अपने पलंग पर रख दिया.

मैं, मम्मी व बूआ के साथ बाहर आई तो देखा श्रुति कार की पिछली सीट पर पड़े सामान को हटा रही थी. मैं श्रुति के साथ आगे बैठ गई. मम्मी, बूआ और सोनू पीछे बैठे हुए थे. कुछ देर बाद श्रुति ने मुझ से अपना बैग मांगा. ‘सौरी श्रुति, वह तो शायद घर पर ही रह गया.’ ‘सजल, मैं ने कहा था न कि बैग को कार में रख दो.’ ‘श्रुति बेटे, अगर बहुत जरूरी है तो अभी बहुत आगे नहीं आए हैं, वापस चलते हैं,’ मम्मी ने कहा तो बूआ भड़क गईं. ‘सुदेश, ऐसे आधे रास्ते मुड़ना बहुत बड़ा अपशकुन होता है,’ बूआजी लगातार बोले जा रही थीं. मम्मी का उतरा चेहरा श्रुति ने शीशे में देख लिया था.

वह शांत भाव से मम्मी से बोली, ‘नहीं, आंटी, ठीक है, वापसी में ले लूंगी.’ अभी हम रास्ते में ही थे कि पापा का मोबाइल पर फोन आ गया. बूआ ने उन से बात की. ‘श्रुति तेज चला न, क्या बैलगाड़ी चला रही है. आनंद हैरान हो रहा है कि हम अभी तक नहीं पहुंचे हैं.’ ‘जी बूआ,’ श्रुति तेज गाड़ी चलाने लगी. कार की रफ्तार अच्छीखासी थी पर बूआ को कुछ न कुछ कहना था सो बोलीं, ‘कल तक तो पहुंच ही जाएंगे न श्रुति, गाड़ी चलानी तो आती है न?’ बूआ का यों बोलना सोनू को अच्छा नहीं लगा.

सो वह बूआ को चुप होने के लिए बोलने लगा. बस, बूआ भड़क गईं. इधर मम्मी दोनों का बीचबचाव करने लगीं. तभी मैं चिल्लाई, ‘श्रुति, देख सामने….’ और फिर तेज धमाका हुआ, दर्द की लहर पूरे शरीर में फैल गई और फिर चारों ओर अंधेरा छा गया. मेरे पूरे बदन में दर्द हो रहा था. सिर में भी भारीपन महसूस हो रहा था. हाथ उठाने की कोशिश की तो उठा नहीं. आंखें खोलनी चाहीं तो खुलीं नहीं. अचानक मुझे याद आया कि हमारा तो एक्सीडेंट हुआ है. मैं जोर से चिल्लाई. ‘सोनू, सोनू, मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा, मेरा हाथ नहीं उठ रहा?’ मैं हांफने लगी थी.

फिर ध्यान आया कि सोनू भी तो पीछे ही बैठा था. पूछा, ‘हम कहां हैं सोनू, हमारी तो ट्रक से टक्कर हुई थी न? क्या हम अभी भी कार में ही हैं और तू ठीक है न?’ उस के हां कहने पर मुझे कुछ तसल्ली हुई. फिर मैं ने बाकी का पूछा. अचानक एक आवाज आई, ‘सिस्टर, इन्हें इंजेक्शन लगा दिया?’ ‘यह आवाज किस की थी, सोनू? कोई सिस्टर कह रहा था. हम कहां हैं?’ ‘दीदी,’ सोनू ने धीरे से कहा, ‘हम अस्पताल में हैं.’ ‘और मम्मी, बूआ और श्रुति?’ ‘वे सब अलगअलग कमरों में हैं.’

तभी माथे पर स्पर्श महसूस हुआ, ‘सजल, कैसी हो बेटा.’ ‘पापा, मैं ठीक नहीं हूं. मुझे बहुत दर्द हो रहा है. मैं आप को नहीं देख सकती. पापा, मुझे क्या हुआ है?’ मैं तेजतेज चिल्लाने लगी. तब 2 हाथों ने मुझे तेजी से पकड़ा और बांह पर इंजेक्शन लगाने का दर्द महसूस हुआ. इस के बाद मेरा दिमाग सुन्न हो गया. फिर ऐसे ही कई दिनों तक चलता रहा.

मैं अपनी आंखों के बारे में पूछती तो कोई संतोषजनक जवाब न मिलता. मेरी दुनिया तो केवल पीड़ा व आवाजों तक ही सीमित रह गई थी. कौन आ रहा है, जा रहा है, मुझे कुछ भी नहीं पता होता. बस, कदमों की आहट बता देती कि कोई है मेरे आसपास. कुछ दिनों बाद मम्मी मिलने आईं. मेरी आंखों पर बंधी पट्टी को धीरे से उन्होंने छुआ था. उन के कांपते हाथ उन की कमजोरी और दुख बता रहे थे. फिर 12 दिनों बाद बूआ भी मिलने आईं.

खिड़की के पास बैठे होने की वजह से शीशे के टुकड़े उन की कनपटी में घुस गए थे. वह मुझ से मिलते ही रोने लगी थीं. ‘दीदी, सजल ठीक है.’ मम्मी इतना ही बोल पाई थीं, ‘सोनू, बूआ को ले जाओ.’ ‘मम्मी, श्रुति कैसी है? वह अभी तक मिलने नहीं आई मुझ से.’ ‘जैसे तुम्हें बहुत चोटें आई हैं वैसे ही श्रुति को भी बहुत चोटें लगी थीं. बस, ठीक होते ही वह अवश्य आएगी,’ मम्मी का कांपता स्वर गूंजा था. इस के बाद मैं प्रतीक्षा कर रही थी उस दिन की, जब मेरी आंखों से पट्टी हटनी थी.

मम्मीपापा ने मुझे धीरेधीरे बताया था कि मैं 4 दिनों तक बेहोश रही थी. सामने से तेजी से आते ट्रक को श्रुति देख न सकी की. जब देखा तब तक संभलना बहुत मुश्किल था. हमारी और ट्रक की बहुत तेज टक्कर हुई थी. हमें अस्पताल में 3 घंटे लग गए थे. कांच के बारीक टुकडे़ मेरे चेहरे में घुस गए थे. घड़ी में 5 का घंटा बजा. सुबह होने वाली थी. पिछले कई दिनों से मेरे लिए दिनरात एक समान थे. सिर्फ घंटे की आवाज से ही दिन या रात होने का आभास होता था. उन दिनों एक ही सवाल मन में आता था, कैसे होती होगी उन लोगों की जिंदगी जो जन्मजात नेत्रहीन हैं.

मुझे तो फिर भी आस दिलाई गई है कि कल मेरी पट्टी खुलेगी और मैं फिर से देख सकूंगी. लेकिन वे लोग किस उम्मीद में जीते होंगे. क्या श्रुति जैसे लोगों के नेत्रदान की आस में? हां, वरना वे लोग कै से हंसते होंगे. मैं तब कितनी छटपटाई थी जब कुछ देख नहीं पा रही थी. आंखों से भले ही न रोई लेकिन दिल तो मेरा हर पल रोता रहा था. कितनी बेबस हो गई थी मैं. हो सकता है कुछ घंटों बाद जब पट्टी खुलेगी, मैं देख पाऊं और हो सकता है…. न भी देख पाऊं.

एक बार फिर से मेरा समूचा शरीर कांप उठा था. कुछ दिनों का अंधेरा मुझे बहुत कुछ सिखा गया था. सोचने लगी थी कि उस अंधेरे से यदि मैं उजाले की ओर न भी पहुंच सकी तो भी कुछ गम नहीं. कम से कम इस रंगीन दुनिया के कई रंग तो मैं देख पाई. अब तो मुझे यही रंग उन खास लोगों को भी दिखाने होंगे जो अब तक इन्हें देखने से वंचित रहे हैं. सोनू उठा और प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा तो मेरी तंद्रा भंग हुई. वह बोला, ‘‘दीदी, सुबह हो गई है. आप बैठना चाहेंगी.’’

मैं ने इशारे से कहा तो सोनू ने मुझे सहारा दे कर बैठा दिया. मेरी पट्टी खोली गई तो हलकी सी रोशनी भी चुभ रही थी. सामने मम्मी, पापा, मेरा भाई धुंधले से ही सही, लेकिन दिख रहे थे. मैं ने दोबारा आंखें बंद कर लीं. कुछ दिनों बाद मैं घर पर आराम कर रही थी. अभी मुझे बाहर निकलना मना था. मुझे श्रुति की बहुत याद आ रही थी. मैं ने उस के घर फोन मिलाया. फोन उस के नौकर ने उठाया था.

श्रुति को बुलाने के लिए कहा तो उस ने ऐसी बात कह दी कि मुझे सारा कमरा घूमता नजर आया. इतना बड़ा धोखा. मुझ से इतना बड़ा सच छिपाया गया था. श्रुति, मेरी सब से प्यारी सहेली, इस दुनिया में न थी. वह मुझ से बहुत दूर जा चुकी थी. मैं फूटफूट कर रो रही थी. ‘‘पापा, आप लोगों ने मुझ से झूठ क्यों बोला?’’ कुछ देर बाद मम्मी ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए सारी बात बताई. मुझे उस की मौत की खबर ने अंदर तक तोड़ दिया था.

इन दिनों मम्मी, बूआ को मेरे पास नहीं आने देती थीं. क्यों, मैं अच्छी तरह जानती थी. मेरा पूरा चेहरा चोटों की वजह से कुरूप हो गया था. मगर मुझे अब इस की परवा नहीं थी. असली सुंदरता क्या होती है, यह मैं अब जान चुकी थी. मेरी आंखों पर पट्टी क्या चढ़ी, बूआ की पढ़ाई हुई हर पट्टी उतर गई. एक दिन बूआ मेरे कमरे में आईं. उन का मुंह कुछ उतरा हुआ था. मैं चुपचाप बैठी रही. वह मेरे पास आईं और मेरे हाथ में कुछ रख दिया. जैसे ही मेरी नजर उस चीज पर पड़ी, मेरी रुलाई फूट पड़ी.

‘‘यह तो श्रुति का वही बैग है न बूआ, जिसे मैं जल्दी में घर पर ही भूल गई थी.’’ मैं ने कांपते हाथों से बैग खोला और अंदर हाथ डाला तो मेरे हाथ में कुछ चीजें आईं. उन चीजों को देख कर मुझे लगा कि धरती फटे और मैं उस में समा जाऊं. मेरे सामने उस का आई डोनर कार्ड, चश्मा, कांटेक्ट लैंस और किसी नेत्र विशेषज्ञ का पर्चा था. श्रुति को आंखों में इन्फैक्शन हो गया था. मुझे याद आया कि उस दिन उस की आंखें लाल हो रही थीं. इसीलिए उस ने लैंस नहीं पहने होंगे. मैं उस का बैग घर पर ही भूल गई थी. काश, मैं यह बैग लेना न भूली होती. उफ, यह मैं ने क्या किया, हमारी दोस्ती, उस का मुझे नाराज न करना ही उस की मौत का कारण बन गया. मैं तड़पती रही.

अगले दिन बूआ, मम्मी और पापा मेरे पास बैठे हुए थे. मेरी आंखों से अभी भी आंसू बह रहे थे. मम्मी ने धीरे से मेरे हाथ में कुछ रखा. आंसू पोंछ कर ध्यान से देखा तो मेरी आंखें फिर छलछला गईं. वह और कुछ नहीं उन तीनों के कार्ड थे. बूआ की आंखों में पश्चात्ताप के आंसू थे. मैं उन के गले लग गई. यह अंत नहीं है. श्रुति का डोनर कार्ड मेरे घर रहने के कारण उस की आंखें दान करने की इच्छा तो पूरी नहीं हो पाई थी, लेकिन कहना नहीं होगा कि मेरा डोनर कार्ड तो उस की नेत्रदान की इच्छा पूर्ण कर सकता है. मैं खुद को उस के मातापिता की गुनाहगार मानती हूं. जबतब मैं उन से मिलती रहती हूं. श्रुति की जगह तो नहीं ले सकती लेकिन उस की कमी का एहसास मैं एक प्रतिशत भी कर सकूं, यह मेरी कोशिश रहती है.मेरी जानपहचान वालों में से अब कई लोगों ने नेत्रदान का फैसला ले लिया है. मैं उसी कालिज से एम.ए. कर रही हूं और ब्लाइंड स्टूडेंट प्रोजेक्ट, जो श्रुति की जिंदगी का एक अटूट हिस्सा रहा है, से भी जुड़ी हुई हूं. जी चाहता है कि सारी दुनिया को बता दूं कि अंधविश्वास में डूबे लोग, मौत के बाद भी उजाले की आस रखते हैं, शायद इसीलिए नेत्रदान करने के खयाल मात्र से ही कांप जाते हैं. लेकिन एक बार, सिर्फ एक बार, केवल 1 घंटे के लिए अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर देखें. तब मेरी तरह शायद उन्हें भी पता चलेगा कि रंगों से दूर रह वह काली, अंधेरी दुनिया कैसी बेरंग होती है. Story In Hindi

Story In Hindi: एक ही आग में – एक विधवा की अधूरी चाह

Story In Hindi: ‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं सुगंधा?’’ मीना ने जब यह बात कही, तब सुगंधा बोली, ‘‘क्या सुन रही हो मीना?’’

‘‘तुम्हारा पवन के साथ संबंध है…’’

‘‘हां है.’’

‘‘यह जानते हुए भी कि तुम विधवा हो और एक विधवा किसी से संबंध नहीं रख सकती,’’ मीना ने समझाते हुए कहा. पलभर रुक कर वह फिर बोली, ‘‘फिर तू 58 साल की हो गई है.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ सुगंधा ने कहा, ‘‘औरत बूढ़ी हो जाती है तब उस की इच्छा नहीं जागती क्या? तू भी तो 55-56 साल के आसपास है. तेरी भी इच्छा जब होती होगी तो क्या भाई साहब के साथ हमबिस्तर नहीं होती होगी?’’

मीना कोई जवाब नहीं दे पाई. सुगंधा ने जोकुछ कहा सच कहा है. वह भी तो इस उम्र में हमबिस्तर होती है, फिर सुगंधा विधवा है तो क्या हुआ? आखिर औरत का दिल ही तो है. उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

तब सुगंधा बोली, ‘‘जवाब नहीं दिया तू ने?’’

‘‘तू ने जो कहा सच कहा है,’’ मीना अपनी रजामंदी देते हुए बोली.

‘‘औरत अगर विधवा है तो उस के साथ यह सामाजिक बंधन क्यों?’’ उलटा सुगंधा ने सवाल पूछते हुए कहा. तब मीना पलभर के लिए कोई जवाब नहीं दे पाई.

सुगंधा बोली, ‘‘अगर किसी की पत्नी गुजर जाती है तो वह इधरउधर मुंह मारता फिरे, तब यह समाज उसे कुछ न कहे, क्योंकि वह मर्द है. मगर औरत किसी के साथ संबंध बनाए, तब वह गुनाह हो जाता है.’’

‘‘तो फिर तू पवन के साथ शादी क्यों नहीं कर लेती?’’ मीना ने सवाल किया.

‘‘आजकल लिव इन रिलेशनशिप का जमाना है,’’ सुगंधा बोली, ‘‘क्या दोस्त बन कर नहीं रह सकते हैं?’’

‘‘ठीक है, ठीक है, तेरी मरजी जो आए वह कर. मैं ने जो सुना था कह दिया,’’ नाराज हो कर मीना बोली, ‘‘मगर तू 3 बच्चों की मां है. वे सुनेंगे तब उन पर क्या गुजरेगी, यह सोचा है?’’

‘‘हां, सब सोच लिया है. क्या बच्चे नहीं जानते हैं कि मां के दिल में भी एक दिल छिपा हुआ है. उस की इच्छा जागती होगी,’’ समझाते हुए सुगंधा बोली, ‘‘देखो मीना, इस बारे में मत सोचो. तुम अपनी लगी प्यास भाई साहब से बुझा लेती हो. काश, ऐसा न हो, मगर तुम मुझ जैसी अकेली होती तो तुम भी वही सबकुछ करती जो आज मैं कर रही हूं. समाज के डर से अगर नहीं भी करती तो तेरे भीतर एक आग उठती जो जला कर तुझे भीतर ही भीतर भस्म करती.’’

‘‘ठीक है बाबा, अब इस बारे में तुझ से कुछ नहीं पूछूंगी. तेरी मरजी जो आए वह कर,’’ कह कर मीना चली गई.

मीना ने जोकुछ सुगंधा के बारे में कहा है, सच है. सुगंधा पवन के साथ संबंध बना लेती है. यह भी सही है कि सुगंधा 3 बच्चों की मां है. उस ने तीनों की शादी कर गृहस्थी भी बसा दी है. सब से बड़ी बेटी शीला है, जिस की शादी कोटा में हुई है. सुगंधा के दोनों बेटे सरकारी नौकरी में हैं. एक सागर में इंजीनियर है तो दूसरा कटनी में तहसीलदार.

सुगंधा खुद अपने पुश्तैनी शहर जावरा में अकेली रहती है. अकेले रहने के पीछे यही वजह है कि मकान किराए पर दे रखा है.

सुगंधा के दोनों बेटे कहते हैं कि अम्मां अकेली मत रहो. हमारे साथ आ कर रहो, तब वह कभीकभी उन के पास चली जाती है. महीने दो महीने तक जिस बेटे के पास रहना होता है रह लेती है. मगर रहतेरहते यह एहसास हो जाता है कि उस के रहने से वहां उन की आजादी में बाधा आ रही है, तब वह वापस पुश्तैनी शहर में आ जाती है.

यहां बड़ा सा मकान है सुगंधा का, जिस के 2 हिस्से किराए पर दे रखे हैं, एक हिस्से में वह खुद रहती है. पति की पैंशन भी मिलती है. उस के पति शैलेंद्र तहसील दफ्तर में बड़े बाबू थे. रिटायरमैंट के सालभर के भीतर उन का दिल की धड़कन रुकने से देहांत हो गया.

आज 3 साल से ज्यादा समय बीत गया है, तब से वह खुद को अकेली महसूस कर रही है. अभी उस के हाथपैर चल रहे हैं. सामाजिक जिम्मेदारी भी वह निभाती है. जब हाथपैर चलने बंद होंगे, तब वह अपने बेटों के यहां रहने चली जाएगी. फिर किराएदारों से किराया भी समय पर वसूलना पड़ता है. इसलिए उस का यहां रहना भी जरूरी है.

ज्यादातर सुगंधा अकेली रहती है, मगर जब गरमी की छुट्टियां होती हैं तो बेटीबेटों के बच्चे आ जाते है. पूरा सूना घर कोलाहल से भर जाता है. अकेले में दिन तो बीत जाता है, मगर रात में घर खाने को दौड़ता है. तब बेचैनी और बढ़ जाती है. तब आंखों से नींद गायब हो जाती है. ऐसे में शैलेंद्र के साथ गुजारी रातें उस के सामने चलचित्र की तरह आ जाते हैं. मगर जब से वह विधवा हुई है, शैलेंद्र की याद और उन के साथ बिताए गए पल उसे सोने नहीं देते.

पवन सुगंधा का किराएदार है. वह अकेला रहता है. वह पौलीटैक्निक में सिविल मेकैनिक पद पर है. उस की उम्र 56 साल के आसपास है. उस की पत्नी गुजर गई है. वह अकेला ही रहता है. उस के दोनों बेटे सरकारी नौकरी करते हैं और उज्जैन में रहते हैं. दोनों की शादी कर के उन का घर बसा दिया है.

रिटायरमैंट में 6 साल बचे हैं. वह किराए का मकान तलाशने आया था. धीरेधीरे दोनों के बीच खिंचाव बढ़ने लगा. जिस दिन चपरासी रोटी बनाने नहीं आता, उस दिन सुगंधा पवन को अपने यहां बुला लेती थी या खुद ही वहां बनाने चली जाती थी.

पवन ऊपर रहता था. सीढि़यां सुगंधा के कमरे के गलियारे से ही जाती थीं. आनेजाने के बीच कई बार उन की नजरें मिलती थीं. जब सुगंधा उसे अपने यहां रोटी खाने बुलाती थी, तब कई बार जान कर आंचल गिरा देती थी. ब्लाउज से जब उभार दिखते थे तब पवन देर तक देखता रहता था. वह आंचल से नहीं ढकती थी.

अब सुगंधा 58 साल की विधवा है, मगर फिर भी टैलीविजन पर अनचाहे सीन देखती है. उस के भीतर भी जोश पैदा होता है. जोश कभीकभी इतना ज्यादा हो जाता है कि वह छटपटा कर रह जाती है.

एक दिन सुगंधा ने पवन को अपने यहां खाना खाने के लिए बुलाया. उसे खाना परोस रही थी और कामुक निगाहों से देखती भी जा रही थी. वह आंचल भी बारबार गिराती जा रही थी. मगर पवन संकेत नहीं समझ पा रहा था. वह उम्र में उस से बड़ी भी थी. उस की आंखों पर लाज का परदा पड़ा हुआ था.

सुगंधा ने पहल करते हुए पूछ लिया, ‘‘पवन, अकेले रहते हो. बीवी है नहीं, फिर भी रात कैसे गुजारते हो?’’

पवन कोई जवाब नहीं दे पाया. एक विधवा बूढ़ी औरत ने उस से यह सवाल पूछ कर उस के भीतर हलचल मचा दी. जब वह बहुत देर तक इस का जवाब नहीं दे पाया, तब सुगंधा फिर बोली, ‘‘आप ने जवाब नहीं दिया?’’

‘‘तकिया ले कर तड़पता रहता हूं,’’ पवन ने मजाक के अंदाज में कहा.

‘‘बीवी की कमी पूरी हो सकती है,’’ जब सुगंधा ने यह बात कही, तब पवन हैरान रह गया, ‘‘आप क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘मैं हूं न आप के लिए,’’ इतना कह कर सुगंधा ने कामुक निगाहों से पवन की तरफ देखा.

‘‘आप उम्र में मुझ से बड़ी हैं.’’

‘‘बड़ी हुई तो क्या हुआ? एक औरत का दिल भी है मेरे पास.’’

‘‘ठीक है, आप खुद कह रही हैं तो मुझे कोई एतराज नहीं.’’

इस के बाद तो वे एकदूसरे के बैडरूम में जाने लगे. जल्दी ही उन के संबंधों को ले कर शक होने लगा. मगर आज मीना ने उन के संबंधों को ले कर जो बात कही, उसे साफसाफ कह कर सुगंधा ने अपने मन की सारी हालत बता दी. मगर एक विधवा हो कर वह जो काम कर रही है, क्या उसे शोभा देता है? समाज को पता चलेगा तब सब उस की बुराई करेंगे. उस पर ताने कसेंगे.

मीना ने तो सुगंधा के सामने पवन से शादी करने का प्रस्ताव रखा. उस का प्रस्ताव तो अच्छा है, शादी समाज का एक लाइसैंस है. दोनों के भीतर एक ही आग सुलग रही है.

मगर इस उम्र में शादी करेंगे तो मजाक नहीं उड़ेगा. अगर इस तरह से संबंध रखेंगे तब भी तो मजाक ही बनेगा.

सुगंधा बड़ी दुविधा में फंस गई. उस ने आगे बढ़ कर संबंध बनाए थे. इस से अच्छा है कि शादी कर लो. थोड़े दिन लोग बोलेंगे, फिर चुप हो जाएंगे. उस ने ऐसे कई लोग देखे हैं जो इस उम्र में जा कर शादी भी करते हैं. क्यों न पवन से बात कर के शादी कर ले?

‘‘अरे सुगंधा, आप कहां खो गईं?’’ पवन ने आ कर जब यह बात कही, तब सुगंधा पुरानी यादों से आज में लौटी, ‘‘लगता है, बहुत गहरे विचारों में खो गई थीं?’’

‘‘हां पवन, मैं यादों में खो गई थी.’’

‘‘लगता है, पुरानी यादों से तुम परेशानी महसूस कर रही हो.’’

‘‘हां, सही कहा आप ने.’’

‘‘देखो सुगंधा, यादों को भूल जाओ वरना ये जीने नहीं देंगे.’’

‘‘कैसे भूल जाऊं पवन, आप से आगे रह कर जो संबंध बनाए… मैं ने अच्छा नहीं किया,’’ अपनी उदासी छिपाते हुए सुगंधा बोली. फिर पलभर रुक कर वह बोली, ‘‘लोग हम पर उंगली उठाएंगे, उस के पहले हमें फैसला कर लेना चाहिए.’’

‘‘फैसला… कौन सा फैसला सुगंधा?’’ पवन ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘हमारे बीच जो संबंध है, उसे तोड़ दें या परमानैंट बना लें.’’

‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा?’’

‘‘मतलब यह कि या तो आप मकान खाली कर के कहीं चले जाएं या फिर हम शादी कर लें.’’

सुगंधा ने जब यह प्रस्ताव रखा, तब पवन भीतर ही भीतर खुश हो गया. मगर यह संबंध कैसे होगा. वह बोला, ‘‘हम शादी कर लें, यह बात तो ठीक है सुगंधा. मगर आप की और हमारी औलादें सब घरगृहस्थी वाली हो गई हैं. ऐसे में शादी का फैसला…’’

‘‘नहीं हो सकता है, यही कहना चाहते हो न,’’ पवन को रुकते देख सुगंधा बोली, ‘‘मगर, यह क्यों नहीं सोचते कि हमारी औलादें अपनेअपने घर में बिजी हैं. अगर हम शादी कर लेंगे, तब वे हमारी चिंता से मुक्त हो जाएंगे. जवानी तो मौजमस्ती और बच्चे पैदा करने की होती है. मगर जब पतिपत्नी बूढ़े हो जाते हैं, तब उन्हें एकदूसरे की ज्यादा जरूरत होती है. आज हमें एकदूसरे की जरूरत है. आप इस बात को क्यों नहीं समझते हो?’’

‘‘आप ने ठीक सोचा है सुगंधा. मेरी पत्नी गुजर जाने के बाद मुझे अकेलापन खूब खलने लगा. मगर जब से आप मेरी जिंदगी में आई हैं, मेरा वह अकेलापन दूर हो गया है.’’

‘‘सच कहते हो. मुझे भी अपने पति की रात को अकेले में खूब याद आती है,’’ सुगंधा ने भी अपना दर्द उगला.

‘‘मतलब यह है कि हम दोनों एक ही आग में सुलग रहे हैं. अब हमें शादी किस तरह करनी चाहिए, इस पर सोचना चाहिए.’’

‘‘आप शादी के लिए राजी हो गए?’’ बहुत सालों के बाद सुगंधा के चेहरे पर खुशी झलकी थी. वह आगे बोली, ‘‘शादी किस तरह करनी है, यह सब मैं ने सोच लिया है.’’

‘‘क्या सोचा है सुगंधा?’’

‘‘अदालत में गुपचुप तरीके से खास दोस्तों की मौजूदगी में शादी करेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मगर, इस की हवा किसी को भी नहीं लगनी चाहिए. यहां तक कि अपने बच्चों को भी नहीं.’’

‘‘मगर, बच्चों को तो बताना ही पड़ेगा,’’ पवन ने कहा, ‘‘जब हमारे हाथपैर नहीं चलेंगे, तब वे ही संभालेंगे.’’

‘‘शादी के बाद एक पार्टी देंगे. जिस का इंतजाम हमारे बच्चे करेंगे,’’ जब सुगंधा ने यह बात कही, तब पवन भी सहमत हो गया.

इस के ठीक एक महीने बाद कुछ खास दोस्तों के बीच अदालत में शादी कर के वे जीवनसाथी बन गए. सारा महल्ला हैरान था. उन्होंने अपनी शादी की जरा भी हवा न लगने दी थी. 2 बूढ़ों की अनोखी शादी पर लोगों ने उन की खिल्ली उड़ाई. मगर उन्होंने इस की जरा भी परवाह नहीं की.

कोई खुश हो या न हो, मगर उन की औलादें इस शादी से खुश थीं, क्योंकि उन्हें मातापिता की नई जोड़ी जो मिल गई थी. Story In Hindi

Hindi Kahani: नहीं बचे आंसू – सुधा ने कैसे उठाया जवानी का फायदा

Hindi Kahani: सुधा का पति राम सजीवन दूरसंचार महकमे में लाइनमैन था. एक दिन काम के दौरान वह खंभे से गिर गया. उसे गहरी चोट लगी. अस्पताल ले जाते समय रास्ते में उस ने दम तोड़ दिया.

सुधा की जिंदगी में अंधेरा छा गया. वह कम पढ़ीलिखी देहाती औरत थी. उस के 2 मासूम बच्चे थे. बड़ा बेटा पहली क्लास में पढ़ता था और छोटा 2 साल का था.

पति का क्रियाकर्म हो गया, तो सुधा ससुराल से मायके चली आई. वहां उस के बड़े भाई सुखनंदन ने कहा, ‘‘बहन, जो होना था, वह तो हो ही गया. गम भुलाओ और आगे की सोचो. बताओ कि नौकरी करोगी? बहनोई की जगह तुम्हें नौकरी मिल जाएगी. एक नेता मेरे जानने वाले हैं. उन से कहूंगा तो वे जल्दी ही तुम्हें नौकरी पर रखवा देंगे.’’

‘‘कुछ तो करना ही होगा भैया, वरना इन बच्चों का क्या होगा? लेकिन, मैं 8वीं जमात तक ही तो पढ़ी हूं. क्या मुझे नौकरी मिल जाएगी?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘चपरासी की नौकरी तो मिल ही जाएगी. मैं आज ही नेता से मिलता हूं,’’ सुखनंदन बोला.

सुखनंदन की दौड़धूप काम आई और सुधा को जल्दी ही नौकरी मिल गई. ‘‘बहन, तुम बच्चों को ले कर शहर में रहो. मैं वहां आताजाता रहूंगा. कोई चिंता की बात नहीं है. तुम्हारी तरह बहुत सी औरतें हैं दुनिया में, जो हिम्मत से काम ले कर अपनी और बच्चों की जिंदगी संवार रही हैं,’’ सुखनंदन ने बहन का हौसला बढ़ाया.

सुधा शहर आ गई और किराए के मकान में रह कर चपरासी की नौकरी करने लगी. उस ने पास के स्कूल में बड़े बेटे का दाखिला करा दिया.

सुखनंदन सुधा का पूरा खयाल रखता था. वह बीचबीच में गांव से राशन वगैरह ले कर आया करता था. फोन पर तो रोज ही बात कर लिया करता था.

सुधा खूबसूरत और जवान थी. महकमे के कई अफसर और बाबू उसे देख कर लार टपकाते रहते थे. उस से नजदीकी बनाने के लिए भी कोई उस के प्रति हमदर्दी जताता, तो कोई रुपएपैसे का लालच देता.

सुधा का मकान मालिक भी रसिया किस्म का था. वह नशेड़ी भी था. सुधा पर उस की नीयत खराब थी. कभीकभी शराब के नशे में वह आधी रात में उस का दरवाजा खटखटाया करता था. आतेजाते कई मनचले भी सुधा को छेड़ा करते थे. किसी तरह दिन कटते रहे और सुधा खुद को बचाती रही. उस के साथ राजू नाम का एक चपरासी काम करता था. वह उस का दीवाना था, लेकिन दिल की बात जबान पर नहीं ला पा रहा था.

राजू बदमाश किस्म का आदमी था और शराब का नशा भी करता था. वह अकसर लोगों के साथ मारपीट किया करता था, लेकिन सुधा से बेहद अच्छी बातें किया करता था.

राजू उसे भरोसा दिलाता था, ‘‘मेरे रहते चिंता बिलकुल मत करना. कोई आंख उठा कर देखे तो बताना… मैं उस की आंख निकाल लूंगा.’’

सुधा को राजू अकसर घर भी छोड़ दिया करता था. कुछ दिनों बाद राजू सुधा को घुमानेफिराने भी लगा. सुधा को भी उस का साथ भाने लगा. वह राजू से खुल कर हंसनेबोलने लगी.

जल्दी ही दोनों के बीच प्यार हो गया. अब तो राजू उस के घर आ कर उठनेबैठने लगा. सुधा के बच्चे उसे ‘अंकल’ कहने लगे. वह बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें भी लाया करता था.

सुधा के पड़ोस में एक और किराएदार रहता था. राजू ने उस से दोस्ती कर ली.

एक दिन वह किराएदार अपने गांव जाने लगा, तो राजू ने उस से मकान की चाबी मांग ली. दिन में उस ने सुधा से कहा, ‘‘आज रात मैं तुम्हारे साथ गुजारूंगा.’’

‘‘लेकिन, कैसे? बच्चे भी तो हैं,’’ सुधा ने समस्या रखी.

‘‘उस की चिंता तुम बिलकुल न करो…’’ यह कह कर उस ने जेब से चाबी निकाली और कहा, ‘‘यह देखो, मैं ने सुबह ही इंतजाम कर लिया है. आज तुम्हारा पड़ोसी गांव चला गया है. रात को मैं आऊंगा और उसी के कमरे में…’’

सुधा मुसकराई और फिर शरमा कर उस ने सिर झुका लिया. उस की भी इच्छा हो रही थी और वह राजू की बांहों में समा जाना चाहती थी.

राजू देर रात शराब के नशे में आया. उस ने सुधा के पड़ोसी के मकान का दरवाजा खोला. आहट मिली तो सुधा जाग गई. उस के दोनों बेटे सो रहे थे. उस ने आहिस्ता से अपना दरवाजा बंद किया और पड़ोसी के कमरे में चली गई.

राजू ने फौरन दरवाजा बंद कर लिया. उस के बाद जो होना था, वह देर रात तक होता रहा. लंबे अरसे बाद उस रात सुधा को जिस्मानी सुख मिला था. वह राजू की बांहों में खो गई थी. तड़के राजू चला गया और सुधा अपने कमरे में आ गई.

सुधा और पड़ोसी के मकान के बीच जो दीवार थी, उस में दरवाजा लगा था. पहले जो किराएदार रहता था, उस ने दोनों कमरे ले रखे थे. वह जब मकान छोड़ कर गया, तो मालिक ने दोनों कमरों के बीच का दरवाजा बंद कर दिया और ज्यादा किराए के लालच में 2 किराएदार रख लिए. अब उसे एक हजार की जगह 2 हजार रुपए मिलने लगे.

उस रात के बाद राजू अकसर सुधा के घर देर रात आने लगा. कई बार सुधा का भाई सुबहसुबह ही आ जाता और राजू अंदर. ऐसी हालत में बीच का दरवाजा काम आता था. राजू उस दरवाजे से पड़ोसी के मकान में दाखिल हो जाता था.

सुधा के भाई को कभी शक ही नहीं हुआ कि बहन क्या गुल खिला रही है. वह तो उसे सीधीसादी, गांव की भोलीभाली औरत मानता था. राजू का अपना भी परिवार था. बीवी थी, 4 बच्चे थे. परिवार के साथ वह किसी झुग्गी बस्ती में रहता था. बीवी उस से बेहद परेशान थी, क्योंकि वह पगार का काफी हिस्सा शराबखोरी में उड़ा दिया करता था.

बीवी मना करती, तो राजू उस के साथ मारपीट भी करता था. पैसों के बिना न तो ठीक से घर चल रहा था और न ही बच्चे पढ़लिख पा रहे थे.

पहले तो राजू कुछ रुपए घर में दे दिया करता था, लेकिन जब से उस की सुधा से नजदीकी बढ़ी, तब से पूरी तनख्वाह ला कर उसे ही थमा दिया करता था.

सुधा उस के पैसों से अपना शहर का खर्च चलाती और अपनी तनख्वाह बैंक में जमा कर देती. वह काफी चालाक हो गई थी. राजू डालडाल तो सुधा पातपात थी.

उधर राजू की बीवी घर चलाने के लिए कई बड़े लोगों के घरों में नौकरानी का काम करने लगी थी. वह खून के आंसू रो रही थी. लेकिन उस ने कोई गलत रास्ता नहीं चुना, मेहनत कर के किसी तरह बच्चों को पालती रही.

कुछ साल बाद रकम जुड़ गई, तो सुधा ने ससुराल में अपना मकान बनवा लिया. ससुराल वालों ने हालांकि उस का विरोध किया कि वह गांव में न रहे, वे उस का हिस्सा हड़प कर जाना चाहते थे, लेकिन पैसा मुट्ठी में होने से सुधा में ताकत आ गई थी. उस ने जेठ को धमकाया, तो वह डर गया. सुधा का बढि़या मकान बन गया.

‘‘भैया, तुम मेरा पास के टैलीफोन के दफ्तर में ट्रांसफर करा दो नेता से कह कर. इस से मैं घर और खेतीबारी भी देख सकूंगी,’’ एक दिन सुधा ने भाईर् से कहा.

‘‘मैं कोशिश करता हूं,’’  सुखनंदन ने उसे भरोसा दिलाया.

कुछ महीने बाद सुधा का तबादला उस के गांव के पास के कसबे में हो गया. यह जानकारी जब राजू को हुई, तो वह बेहद गुस्सा हुआ और बोला, ‘‘मेरे साथ इतनी बड़ी गद्दारी? तुम्हारे चलते मैं ने अपने बालबच्चे छोड़ दिए और तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी? ऐसा कतई नहीं होगा. या तो मैं तुम्हें मार डालूंगा या खुद ही जान दे दूंगा. तुम्हारी जुदाई मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘राजू, तुम मरो या जीओ, इस से मेरा कोई मतलब नहीं. यह मेरी मजबूरी थी कि मैं ने तुम से संबंध बनाया. तमाम लोगों से बचने के लिए मैं ने तुम्हारा हाथ पकड़ा. अब मेरा सारा काम बन चुका है. मुझे हाथ उठाने के बारे में सोचना भी नहीं, वरना जेल की हवा खाओगे. आज के बाद मुझ से मिलना भी नहीं,’’ सुधा ने धमकाया.

राजू डर गया. वह सुधा के सामने रोनेगिड़गिड़ाने लगा, लेकिन सुधा का दिल नहीं पसीजा. अगले ही दिन वह मकान खाली कर गांव चली गई.

प्यार में पागल राजू सुधा का गम बरदाश्त नहीं कर सका. कुछ दिन बाद उस ने फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली. जब राजू की पत्नी को उस के मरने की खबर मिली, तो वह बोली, ‘‘मेरे लिए तो वह बहुत पहले ही मर गया था. उस ने मुझे इतना रुलाया कि आज उस की मिट्टी के सामने रोने के लिए मेरी आंखों में आंसू नहीं बचे हैं,’’ यह कह कर वह बेहोश हो कर गिर पड़ी.

राजू के घर के सामने लोगों की भीड़ लग गई. लोग पानी के छींटे मार कर उस की पत्नी को होश में लाने की कोशिश कर रहे थे. Hindi Kahani

Story In Hindi: बेवफाई – हीरा ने दिया रमइया को धोखा

Story In Hindi: रमइया गरीब घर की लड़की थी. सुदूर बिहार के पश्चिमी चंपारण की एक छोटी सी पिछड़ी बस्ती में पैदा होने के कुछ समय बाद ही उस की मां चल बसीं. बीमार पिता भी दवादारू की कमी में गुजर गए. अनाथ रमइया को दादी ने पालपोस कर बड़ा किया. वे गांव में दाई का काम करती थीं. इस से दादीपोती का गुजारा हो जाया करता था. रमइया जब 7 साल की हुई, तो दादी ने उसे सरकारी स्कूल में पढ़ने भेजा, पर वहां उस का मन नहीं लगा. वह स्कूल से भाग कर घर आ जाया करती थी. दादी ने उसे पढ़ाने की बहुत कोशिश की, पर हठीली पोती को नहीं पढ़ा पाईं. रमइया अब 16 साल की हो गई. चिकने बाल, सांवली रंगत और बड़ीबड़ी पनीली आंखों में एक विद्रोह सा झलकता हुआ.

अब दादी को रातों में नींद नहीं आती थी. रमइया के ब्याह की चिंता हर पल उन के दिलोदिमाग पर हावी रहने लगी. कहां से पैसे आएंगे? कैसे ब्याह होगा? वगैरह. जायदाद के नाम पर सिकहरना नदी के किनारे जमीन के छोटे से टुकड़े पर बनी झोंपड़ी और शादी के वक्त के कुछ चांदी के जेवर और सिक्के… यही थी दादी की जिंदगीभर की जमापूंजी.

रातदिन इसी चिंता में घुल कर बुढि़या की कमर ही झुकने लगी. गांवबिरादरी के ही कुछ लोगों ने बुढि़या पर तरस खा कर पड़ोस के गांव के हीरा के साथ रमइया का ब्याह करवा दिया. हीरा सीधासादा और मेहनती था, जो अपनी मां के साथ दलितों की बस्ती में रहता था. घर में मांबेटे के अलावा एक गाय भी थी, जिस का दूध बेच कर कुछ पैसे आ जाते थे. इस के अलावा फसलों की रोपाईकटाई के समय मांबेटे दूसरे के खेतों में काम किया करते थे.

शादी के बाद 3 जनों का पेट भरना मुश्किल होने लगा, तो हीरा गांव के ही कुछ नौजवानों के साथ परदेश चला गया.

पंजाब जा कर हीरा खेतों पर काम करने लगा. वहां हर दिन कहीं न कहीं काम मिलता, जिस से रोजाना अच्छी कमाई होने लगी.

हीरा जी लगा कर काम करता, जिस से मालिक हीरा से बहुत खुश रहते. हीरा ने 8 महीने में ही काफी पैसे इकट्ठे कर लिए थे. पंजाब आए साथी जब गांव वापस जाने लगे, तो वह भी वापस आ गया. गांव आने से पहले हीरा ने रमइया और मां के लिए घरेलू इस्तेमाल की कुछ चीजें खरीदीं. अपने लिए उस ने एक मोबाइल फोन खरीदा.

घर आ कर हीरा ने बड़े जोश से रमइया को फोन दिखाया और शान से बोला, ‘‘यह देख… इसे मोबाइल फोन कहते हैं. देखने में छोटा है, पर इस के अंदर ऐसे तार लगा दिए हैं कि हजारों मील दूर रह कर एक बटन दबा दो और जितनी भी चाहे बातें कर लो.’’

यह सुन कर रमइया की आंखें चौड़ी हो गईं. उस ने फोन लेने के लिए हीरा की ओर हाथ बढ़ाया.

‘‘अरे, संभाल कर,’’ कह कर हीरा ने रमइया के हाथों में मोबाइल फोन थमाया.

रमइया थोड़ी देर उलटपलट कर फोन को देखती रही, फिर उस ने हीरा से कहा, ‘‘सुनो, हमें साड़ीजेवर कुछ नहीं चाहिए. तुम जाने से पहले हमें यह फोन देते जाना. वहां जा कर अपने लिए दूसरा फोन खरीद लेना. फिर हम दिनरात फोन पर बात करेंगे.’’

हीरा पत्नी रमइया के भोलेपन पर जोर से हंस पड़ा. रमइया के सिर पर एक प्यार भरी चपत लगाते हुए वह बोला, ‘‘पगली, बातें मुफ्त में नहीं होतीं. उस में पैसा भरवाना पड़ता है.’’

इस तरह हंसतेबतियाते कई महीने गुजर गए. गांव के साथियों के साथ हीरा फिर से वापस काम पर पंजाब जाने की तैयारी करने लगा. इस बार रमइया ज्यादा दुखी नहीं थी.

हीरा के जाने के बाद अब सास की डांट खा कर भी रमइया रोती नहीं थी. वह मां बनने वाली थी और यह खबर वह हीरा को सुनाने के लिए बेचैन थी. वह मोबाइल फोन ले कर किसी कोने में पड़ी रहती और हीरा के फोन के आने का इंतजार करती रहती.

हीरा चौथी क्लास तक पढ़ालिखा था, सो उस ने रमइया को मोबाइल फोन की सारी बारीकियां समझा दी थीं. 2 महीने बाद आखिर वह दिन भी आया, जब मोबाइल फोन की घंटी घनघना कर बज उठी. रमइया का दिल बल्लियों उछल पड़ा. थरथराते हाथों से उस ने फोन का बटन दबाया और जीभर कर हीरा से बातें कीं. सास से भी हीरा की बात करवाई गई. जब पैसे खत्म हो गए, तो फोन कट गया. देर तक फोन को गोद में ले कर रमइया बैठी रही.

वक्त गुजरता गया. हीरा फिर से गांव वापस आया. वह इस बार भी अपने साथ कपड़े, सामान और पैसे ले कर आया था. रमइया का पीला चेहरा देख कर हीरा को चिंता हुई. इस बार रमइया में वह चंचलता भी नहीं दिख रही थी. वह बिस्तर पर चुपचाप सी पड़ी रहती.

हीरा ने जब इस बारे में मां से बात की, तो मां ने कहा कि ऐसा होता ही है, चिंता की कोई बात नहीं. रमइया के वहां से जाने के बाद मां ने बेटे हीरा को एकांत में बुला कर कहा, ‘‘बेटा, रमइया को इस की दादी के पास छोड़ आ. काम न धाम, यहां दिनभर पड़ी रहती है… दादी बहुत अनुभवी हैं, उन की देखरेख में रहेगी तो सबकुछ ठीक रहेगा. जब तू दोबारा आएगा, तो इस को वहां से ले आना.’’

‘‘ठीक है मां,’’ कहते हुए हीरा ने सहमति में सिर हिला दिया.

तीसरे ही दिन हीरा रमइया को उस की दादी के पास पहुंचा कर अपने गांव लौट आया. अब हीरा को रमइया के बिना घर सूनासूना सा लगता. वह चुपचाप किसी काम में लगा रहता या फोन से खेलता रहता. एक दिन हीरा ने अपने किसी साथी को फोन लगाया. ‘हैलो’ कहते ही उधर से किसी औरत की आवाज सुन कर हीरा हड़बड़ाया और उस ने जल्दी से फोन काट दिया.

थोड़ी देर बाद उसी नंबर से हीरा के मोबाइल फोन पर 4 बार मिस्ड काल आईं. हीरा की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे… थोड़ी देर बाद उस ने फिर से उसी नंबर पर फोन लगाया. बात हुई… वह नंबर उस के दोस्त का नहीं, बल्कि कोई रौंग नंबर था. जिस औरत ने फोन उठाया था, वह उसी बस्ती से आगे शहर में रहती थी. उस का पति रोजीरोटी के सिलसिले में दिल्ली में रहता था.

उस औरत का नाम प्रीति था. उस की आवाज में मिठास थी और बात करने का तरीका दिलचस्प था. रात के 10 बजे से 2 बजे के बीच हीरा के फोन पर 3 बार मिस्ड काल आईं. अब यह रोज का सिलसिला बन गया. हीरा जबजब अपने, रमइया और प्रीति के बारे में सोचता, तो उसे लगता कि कहीं कुछ गलत हो रहा है. ऐसे में सारा दिन उसे खुद को संभालने में लग जाता, पर फिर जब रात होती, प्रीति की मिस्ड काल आती, तो हीरा का दिल फिर से उस मीठी आवाज की चपेट में आ कर रुई की तरह बिखर जाता.

अब उन में हर रोज बात होने लगी, फिर एक दिन मुलाकात तय की गई. शहर के पार्क में शाम के 4 बजे हीरा को आने को कहा गया. जहां हीरा समय से पहले ही पहुंच गया, वहीं प्रीति 15 मिनट देर से आई. गोरा रंग और छरहरे बदन की प्रीति की अदाओं में गजब का खिंचाव था. कुरती और चूड़ीदार पाजामी में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. वह 5वीं जमात तक पढ़ीलिखी थी.

दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदलते चले गए. रमइया एक बेटी की मां बन गई और इधर हीरा के गांव के साथी फिर से काम पर लौटने की तैयारी करने लगे. परदेश जाने से पहले मां ने हीरा से रमइया और बच्ची को देख आने को कहा. हीरा 5-6 दिनों के लिए ससुराल पहुंचा. रमइया का पीला और बीमार चेहरा देख कर हीरा के मन में एक ऊब सी हुई. काली और मरियल सी बच्ची को देख कर उस का मन बैठ सा गया.

हीरा का मन एक दिन में ही ससुराल से भाग जाने को हुआ. खैर, जैसेतैसे उस ने 4 दिन बिताए और 5वें दिन जेल से छूटे कैदी सा घर भाग आया. पंजाब जाने से पहले हीरा प्रीति से मिला, तो उस की सजधज और चेहरे की ताजगी ने उसे रिरियाती बच्ची और रमइया के पीले चेहरे के आतंक से बाहर निकाल लिया.

एक साल गुजर गया. हीरा वहीं रह कर दूसरा रोजगार भी करने लगा. अब वह प्रीति को पैसे भी भेजने लगा था. इधर रमइया की सास से नहीं बनने के चलते वह मायके में ही पड़ी रही. उम्र बढ़ने के साथसाथ रमइया की दादी का शरीर ज्यादा काम करने में नाकाम हो रहा है.

अपना और बेटी का पेट भरने के लिए रमइया ने बस्ती से आगे 2-3 घरों में घरेलू काम करना शुरू कर दिया. बच्ची जनने से टूटा जिस्म और उचित खानपान की कमी में वह दिनोंदिन कमजोर और चिड़चिड़ी होने लगी. इधर तकरीबन एक साल से भी ज्यादा समय बाद हीरा जब वापस घर आया, तो आते ही प्रीति से मिलने चल पड़ा. न तो उस ने रमइया की खबर ली, न ही मां ने उसे रमइया को घर लाने को कहा.

अब प्रीति भी उस से मिलने बस्ती की ओर चली आती. कभी बस्ती के बाहर वाले स्कूल में, कभी खेतों के पीछे, तो कभी कहीं और मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा. पोती की हालत और अपनी बढ़ती उम्र को देखते हुए रमइया की दादी ने हीरा की मां के पास बहू को लिवा लाने के लिए कई संदेश भिजवाए. आखिर में मां के कहने पर हीरा रमइया को लिवाने ससुराल पहुंचा.

ससुराल आ कर रमइया ने देखा कि हीरा या तो घर में नहीं रहता और अगर रहता भी है, तो हमेशा कहीं खोयाखोया सा या फिर अपने मोबाइल फोन के बटनों को दबाता रहता है. पता नहीं, क्या करता रहता है.ऐसे में एक रात रमइया की नींद खुली, तो उसे लगा कि हीरा किसी से बातें कर रहा है. आधी रात बीत चु की थी. इस वक्त हीरा किस से बातें कर रहा है? बातों का सिलसिला लंबा चला. रमइया दीवार से कान लगा कर सुनने की कोशिश करने लगी, पर उस की समझ में ज्यादा कुछ नहीं आ सका.

दूसरे दिन रमइया मौका पा कर हीरा का फोन ले कर बगल वाले रतन काका के पोते, जो छठी जमात में पढ़ता था, के पास गई और उसे सारे मैसेज पढ़ कर सुनाने को कहा.

मैसेज सुन कर रमइया गुस्से से सुलग उठी. वह हीरा के पास पहुंची और उस नंबर के बारे में जानना चाहा. एक पल के लिए हीरा सकपकाया, पर दूसरे ही पल संभल गया. वह बोला, ‘‘अरे पगली, मुझ पर शक करती है. यह तो मेरे साथ काम करने वाले की घरवाली का नंबर है. वह इस दफा घर नहीं आया, इसलिए उस का हालचाल पूछ रही थी.’’

रमइया चुप रही, पर उस के चेहरे पर संतोष के भाव नहीं आए. वह हीरा और उस के मोबाइल फोन पर नजर रखने लगी थी. 2 दिन बाद ही रात को रमइया ने हीरा को प्रीति से फोन पर यह कहते हुए सुन लिया कि कल रविवार है. स्कूल पर आ जाना. 2-3 दिनों के बाद फिर मुझे वापस भी लौटना होगा. दूसरे दिन हीरा 12 बजे के आसपास घर से निकल गया और स्कूल पर प्रीति के आने का इंतजार करने लगा.

थोड़ी ही देर में प्रीति दूर से आती दिखी. कुछ देर तक दोनों खेतों में ही खड़ेखड़े बातें करते रहे, फिर स्कूल के भीतर आ गए. प्रीति थोड़ी बेचैन हो कर बोल उठी, ‘‘ऐसे छिपछिप कर हम आखिर कब तक मिलते रहेंगे हीरा. हमेशा ही डर लगा रहता है. अब मैं तुम्हारे साथ ही रहना चाहती हूं.’’

हीरा प्यार से बोला, ‘‘मैं भी तो यही चाहता हूं. बस, महीनेभर रुक जाओ… दोस्तों के साथ तुम्हें नहीं रख सकता… इस बार जाते ही कोई अलग कमरा लूंगा, फिर आ कर तुम्हें ले जाऊंगा. उस के बाद छिपछिप कर मिलने की कोई जरूरत नहीं होगी.’’

प्रीति ने कहा, ‘‘और तुम जो यहां आ कर 3-3 महीने तक रुकते हो, उस वक्त मैं क्या करूंगी? परदेश में कैसे अकेली रहूंगी और अपना घर कैसे चलाऊंगी?’’ हीरा बोला, ‘‘अरे, 3-3 महीने तो मैं यहां तुम्हारी खातिर पड़ा रहता हूं. जब मेरी प्रीतू मेरे पास होगी, तो मुझे यहां आने की जरूरत ही क्यों पड़ेगी. यहां कभीकभार खर्च के पैसे भेज दिया करूंगा, बाकी जो भी कमाऊंगा, वह सब तुम्हारा.’’

प्रीति ने बड़ी अदा से पूछा, ‘‘अच्छा… तुम कितने पैसे कमा लेते हो कि वहां भी घर चलाओगे, यहां भी भेजोगे?’’

हीरा ने थोड़ा इतरा कर कहा, ‘‘इतना तो कमा ही लेता हूं कि 2 घर आराम से चला लूं,’’ कहते हुए हीरा ने जैकेट उतार कर अपनी दोनों बांहें किसी बौडी बिल्डर के अंदाज में ऊपर उठा कर दिखाईं. प्रीति ने आंखें झुका कर मुंह फेर लिया. हीरा की मजबूत हथेलियों ने प्रीति को कमर से थाम कर अपने करीब कर लिया और उस प्यारे चेहरे से बालों को हटाते हुए आगे झुका. प्रीति ने आंखें बंद कर लीं.

उधर टोकरे में गंड़ासा रख और पल्लू से चेहरे को ढक कर रमइया सीधा स्कूल जा पहुंची. गुस्से से जलती आंखों ने दोनों को एकसाथ ही देख लिया. फुफकारती हुई रमइया ने प्रीति के ऊपर गंड़ासा फेंका, जो सीधा जा कर हीरा को लगा. देखते ही देखते पूरी बस्ती में कुहराम मच गया. जैसेतैसे हीरा को अस्पताल पहुंचाया गया. रमइया को पुलिस पकड़ कर ले गई. प्रीति बड़ी मुश्किल से जान बचा कर वहां से भाग निकली.

गरदन की नस कट जाने से हीरा की मौत हो गई. सुनवाई के बाद अदालत ने रमइया को उम्रकैद की सजा सुनाई. डेढ़ साल की मरियल सी बच्ची को अनाथ बना कर, पेट में एक बच्चे को साथ ले कर रमइया हमेशा के लिए जेल की सलाखों के पीछे कैद कर दी गई. Story In Hindi

Hindi Kahani: राजू बन गया जैंटलमैन – एक कैदी की कहानी

Hindi Kahani: कानों में जानीपहचानी सी आवाज सुन कर मैं चौंक गई. देखा… अरे, यह तो राजू है. यहां दोबारा कैसे आ गया? मैं यह जानने के लिए बेचैन हो गई.

माफ कीजिए, पहले मैं आप को अपने बारे में बता तो दूं. मैं देश की सब से मजबूत दीवारों में से एक हूं. यह किसी कंपनी का इश्तिहार नहीं है. मैं तिहाड़ जेल की दीवार हूं. हिंदी में कहावत है न कि दीवारों के भी कान होते हैं. मैं भी सुनती हूं, देखती हूं, महसूस कर हूं, पर बोल नहीं पाती, क्योंकि मैं गूंगी हूं.

एक बार जो मेरी दहलीज के बाहर कदम रख देता है, वह मेरे पास दोबारा न आने की कसम खाता है. न जाने कितनों ने मेरे सीने पर अपने आंसुओं से अपनी इबारत लिखी है.

कैदियों के आपसी झगड़ों की वजह से अनगिनत बार उन के खून के छींटे मेरे दामन पर भी लगे, फिर दोबारा रंगरोगन कर मुझे नया रूप दे दिया गया.

समय को पीछे घुमाते हुए मैं वह दिन याद करने लगी, जब राजू ने पहली बार मुझे लांघ कर अंदर कदम रखा था. चेहरे पर मासूमियत, आंखों में एक अनजाना डर और होंठों पर राज भरी खामोशी ने मेरा ध्यान उस की ओर खींचा था. मैं उस के बारे में जानने को बेताब हो गई थी.

‘‘नाम बोल…’’ एक अफसर ने डांटते हुए पूछा था.

‘‘जी… राजू,’’ उस ने मासूमियत से जवाब दिया था.

‘‘कौन से केस में आया है?’’

‘‘जी… धारा 420 में.’’

‘‘किस के साथ चार सौ बीसी कर दी तू ने?’’

‘‘जी, मेरे बिजनैस पार्टनर ने मेरे साथ धोखा किया है.’’

‘‘और बंद तुझे करा दिया. वाह रे हरिश्चंद्र की औलाद,’’ अफसर ने ताना मारा था.

अदालत ने उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में यहां मेरे पास भेज दिया था. पुलिस वाले राजू को भद्दी गालियां देते हुए एक बैरक में छोड़ गए थे. बैरक में कदम रखते ही कई जोड़ी नजरें उसे घूरने लगी थीं. अंदर आते ही उस के आंसुओं के सैलाब ने पलकों के बांध को तोड़ दिया था. सिसकियों ने खामोश होंठों को आवाज की शक्ल दे दी थी.

मन में दर्द कम होने के बाद जैसे ही राजू ने अपना सिर ऊपर उठाया, उस ने अपने चारों ओर साथी कैदियों का जमावड़ा देखा था. कई हाथ उस के आंसुओं को पोंछने के लिए आगे बढ़े. कुछ ने उसे हिम्मत दी, ‘शांत हो जा… शुरूशुरू में सब रोते हैं. 2-3 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’

‘‘घर की… बच्चों की याद आ रही है,’’ राजू ने सहमते हुए कहा था.

‘‘अब तो हम ही एकदूसरे के रिश्तेदार हैं,’’ एक कैदी ने जवाब दिया था.

‘‘चल, अब खाना खा ले,’’ दूसरे कैदी ने कहा था.

‘‘मुझे भूख नहीं है,’’ राजू ने सिसकते हुए जवाब दिया था.

‘‘भाई मेरे, कितने दिन भूखा रहेगा? चल, सब के साथ बैठ.’’

एक कैदी उस के लिए खाना ले कर आ गया और बाकी सब उसे खाना खिलाने लगे थे.

राजू को उम्मीद थी कि उस के सभी दोस्त व रिश्तेदार उस से मुलाकात करने जरूर आएंगे, लेकिन जल्दी ही उस की यह गलतफहमी दूर हो गई. हर मुलाकात में उसे अपनी पत्नी के पीछे सिर्फ सन्नाटा नजर आता था. हर मुलाकात उस के हौसले को तोड़ रही थी.

राजू की हिरासत के दिन बढ़ने लगे थे. इस के साथ ही उस का खुद पर से भरोसा गिरने लगा था. उस के जिस्म में जिंदगी तो थी, लेकिन यह जिंदगी जैसे रूठ गई थी.

हां, साथी कैदियों के प्यार भरे बरताव ने उसे ऐसे उलट हालात में भी मुसकराना सिखा दिया था.

इंजीनियर होने की वजह से जेल में चल रहे स्कूल में राजू को पढ़ाने का काम मिल गया था. उस के अच्छे बरताव के चलते स्कूल में पढ़ने वाले कैदी उस से बात कर अपना दुख हलका करने लगे थे.

यह देख कर एक अफसर ने राजू को समझाया था, ‘‘इन पर इतना यकीन मत किया करो. ये लोग हमदर्दी पाने के लिए बहुत झूठ बोलते हैं.’’

‘‘सर, ये लोग झूठ इसलिए बोलते हैं, क्योंकि ये सच से भागते हैं…’’ राजू ने उन से कहा, ‘‘सर, किसी का झूठ पकड़ने से पहले उस की नजरों से उस के हालात समझिए, आप को उस की मजबूरी पता चल जाएगी.’’

अपने इन्हीं विचारों की वजह से राजू कैदियों के साथसाथ जेल के अफसरों का भी मन जीतने लगा था.

एक दिन जमानत पाने वाले कैदियों की लिस्ट में अपना नाम देख कर वह फूला न समाया था. परिवार व रिश्तेदारों से मिलने की उम्मीद ने उस के पैरों में जैसे पंख लगा दिए थे.

वहां से जाते समय जेल के बड़े अफसर ने उसे नसीहत दी थी, ‘‘राजू, याद रखना कि बारिश के समय सभी पक्षी शरण तलाशते हैं, मगर बाज बादलों से भी ऊपर उड़ान भर कर बारिश से बचाव करता है. तुम्हें भी समाज में ऐसा ही बाज बनना है. मुश्किलों से घबराना नहीं, क्योंकि कामयाबी का मजा लेने के लिए यह जरूरी है.’’

‘‘सर, मैं आप की इन बातों को हमेशा याद रखूंगा,’’ कह कर राजू खुशीखुशी मुझ दीवार से दूर अपने घर की ओर चल दिया था.

राजू को आज दोबारा देख कर मेरी तरह सभी लोग हैरानी से भर उठे. वह सभी से गर्मजोशी से गले मिल कर अपनी दास्तान सुना रहा था. मैं ने भी अपने कान वहीं लगा दिए.

राजू ने बताया कि बाहर निकल कर दुनिया उस के लिए जैसे अजनबी बन गई थी. पत्नी के उलाहने व बड़े होते बच्चों की आंखों में तैरते कई सवाल उसे परिवार में अजनबी बना रहे थे. वह समझ गया था कि उस की गैरहाजिरी में उस के परिवार ने किन हालात का सामना किया है.

राजू के रिश्तेदार व दोस्त उस से मिलने तो जरूर आए, लेकिन उन की नजरों में दिखते मजाक उस के सीने को छलनी कर रहे थे. उस की इज्जत जमीन पर लहूलुहान पड़ी तड़प रही थी.

राजू के होंठों ने चुप्पी का गहना पहन लिया था. उस की चुनौतियां उसे आगे बढ़ने के लिए कह रही थीं, लेकिन मतलबी दोस्त उस की उम्मीद को खत्म कर रहे थे.

राजू इस बात से बहुत दुखी हो गया था. जेल से लौटने के बाद घरपरिवार और यारदोस्त ही तो उस के लिए सहारा बन सकते थे, पर बाहर आ कर उसे लगा कि वह एक खुली जेल में लौट आया है.

दुख की घनघोर बारिश में सुख की छतरी ले कर आई एक सुबह के अखबार में एक इश्तिहार आया. कुछ छात्रों को विज्ञान पढ़ाने के लिए एक ट्यूटर की जरूरत थी.

राजू ने उन बच्चों के मातापिता से बात कर ट्यूशन पढ़ाने का काम शुरू कर दिया. अपनी जानकारी और दोस्ताना बरताव के चलते वह जल्दी ही छात्रों के बीच मशहूर हो गया. उस ने साबित कर दिया कि अगर कोशिश को मेहनत और लगन का साथ मिले, तो वह जरूर कामयाबी दिलाएगी.

छात्रों की बढ़ती गिनती के साथ उस का खुद पर भी भरोसा बढ़ने लगा. यह भरोसा ही उस का सच्चा दोस्त बन गया.

प्यार और भरोसा सुबह और शाम की तरह नहीं होते, जिन्हें एकसाथ देखा न जा सके. धीरेधीरे पत्नी का राजू के लिए प्यार व बच्चों का अपने पिता के लिए भरोसा उसे जिंदगी के रास्ते पर कामयाब बना रहा था.

यह देख कर राजू ने अपनी जिंदगी के उस अंधेरे पल में रोशनी की अहमियत को समझा और एक एनजीओ बनाया.

यह संस्था तिहाड़ जेल में बंद कैदियों को पढ़ालिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए जागरूक करेगी. अपने इसी मकसद को पूरा करने के लिए ही राजू ने मेरी दहलीज के अंदर दोबारा कदम रखा, लेकिन एक अलग इमेज के साथ. मुझे राजू के अंदर चट्टान जैसे हौसले वाला वह बाज नजर आया, जो अपनी हिम्मत से दुख के बादलों के ऊपर उड़ रहा था. Hindi Kahani

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