अनुभव: क्यों थी परेश की जिंदगी अजीब

सूरज तेजी से डूबने वाला था. परेश का मन भी शायद सूरज की तरह ही बैठा हुआ था, लेकिन पहाड़ों की जिंदगी उसे बहुत सुकून देती आई थी. जब भी छुट्टी मिलती वह भागा चला जाता था.

परेश की जिंदगी बहुत अजीब थी. नाम, पैसा, शोहरत सब था लेकिन मन के अकेलेपन को दूर करने वाला साथी कोई नहीं था.

पहाड़ों पर सूरज छिपते ही अंधेरा तेजी से पसरने लगता है. जल्दी ही रात जैसा माहौल छाने लगता है. अचानक एक मोड़ पर जैसे ही कार तेजी से घूमी, परेश की नजर घाटी की एक चट्टान पर पड़ी. एक लड़की वहां खड़ी थी. इस मौसम में अकेली लड़की की यह हालत परेश को खटक गई.

उस ने ड्राइवर को कार रोकने को कहा. ड्राइवर ने फौरन कार रोक दी. ‘चर्र… चर्र…’ की तेज आवाज पहाड़ों के शांत माहौल को चीर गई.

ड्राइवर ने हैरानी से परेश की ओर देखा और पूछा, ‘‘क्या हुआ साहबजी?’’

परेश ने बिना कोई जवाब दिए कार का दरवाजा खोला और बिजली की रफ्तार से उस ओर भागा जहां वह लड़की खड़ी दिखी थी.

परेश ज्यों ही वहां पहुंचा लड़की ने नीचे छलांग लगा दी. लेकिन परेश ने गजब की फुरती दिखाते हुए उसे नीचे गिरने से पहले ही पकड़ लिया.

परेश ने फौरन उस लड़की को पीछे खींचा. वह पलटी तो परेश की ओर अजीब सी नजरों से देखने लगी.

‘‘क्या कर रही थी?’’ परेश ने उस लड़की का हाथ पकड़े हुए पूछा.

‘‘कुछ नहीं…’’ लड़की बोली.

‘‘कहां जाना है? इस वक्त सुनसान इलाके में इतनी खतरनाक जगह… क्या करना चाहती थी?’’ परेश ने फिर गुस्से से पूछा.

‘‘अरे, मैं तो सैरसपाटे के लिए… बस यों ही… पैर फिसल गया शायद…’’ कहते हुए लड़की ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया.

परेश उस लड़की को अपनी कार की ओर ले आया. लड़की ने कोई विरोध भी नहीं किया. ड्राइवर उस लड़की को शक भरी नजरों से घूरने लगा. परेश की पूछताछ अभी भी जारी थी. थोड़ी देर बाद वह लड़की अपने मन का गुबार निकालने लगी.

परेश यह जान कर हैरान हुआ कि वह घर से भागी हुई थी और किसी भी कीमत पर वापस लौटने को तैयार नहीं थी. उस के अशांत मन का गुस्सा साफ झलक रहा था.

‘‘अब कहां ठहरी हो आप?’’ परेश ने पूछा.

‘‘मैं… अरे, मुझे मरना है, जीना ही नहीं, इसलिए ठहरने की क्या बात आई?’’ इतना कह कर वह लड़की खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘यह क्या बात हुई. आप को पता है कि आप के मातापिता कितना परेशान होंगे…’’ परेश ने शांत लहजे में उसे समझाते हुए कहा.

‘‘मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता,’’ वह लड़की बेतकल्लुफ अंदाज से बोली.

‘‘मैं परेश… लेखक. यहां किताब पूरी करने आया हूं.’’

‘‘अच्छा, आप लेखक हैं? फिर तो मेरी कहानी भी जरूर लिखना… एक पागल लड़की, जिस ने किसी की खातिर खुद को मिटा दिया.’’

‘‘आप ऐसी बातें न करें. जिंदगी बेशकीमती है, इसे खत्म करने का हक किसी को नहीं,’’ परेश ने कहा.

‘‘मेरा नाम है गरिमा सिंह… एक हिम्मती लड़की जिसे कोई नहीं हरा सकता, पर नकार जरूर दिया.’’

‘‘आप ऐसा मत कहिए…’’ परेश अपनी बात पूरी करता उस से पहले ही गरिमा ने उस की बात काट दी, ‘‘आप मु  झे यहीं उतार दीजिए…’’

‘‘मैं आप को अब कहीं नहीं जाने दूंगा. क्या आप मेरे साथ रहेंगी?’’

गरिमा ने पहले परेश की तरफ देखा, फिर अचकचा कर हंस पड़ी, ‘‘देख लीजिए, कोई नई कहानी न बन जाए?’’

परेश को शायद ऐसे सवाल की उम्मीद न थी. उस की सोच अचानक बदल गई. आखिर था तो वह भी मर्द ही. जोश को दबाते हुए वह बोला, ‘‘कोई नहीं जो कहानी बने, लेकिन अब अपने साथ और खिलवाड़ मत कीजिए.’’

‘‘मरने वाला कभी किसी चीज से डरा है क्या सर…?’’ इस बार गरिमा की आवाज में गंभीरता झलक रही थी.

अचानक ड्राइवर ने कार रोकी. दोनों ने सवालिया नजरों से उसे देखा. कार में कोई खराबी आ गई थी जिसे वह ठीक करने में जुटा था.

अब रात होने लगी थी. तभी ड्राइवर ने परेश को आवाज लगाई, ‘‘साहब, बाहर आइए.’’

परेश हैरानी से कार से बाहर निकला. ड्राइवर बोनट खोले इंजन को दुरुस्त करने में बिजी था. उस ने गरदन ऊपर उठाई और परेश के कान में फुसफुसा कर कहा, ‘‘साहबजी, कार को कुछ नहीं हुआ है. आप को एक बात बतानी थी, इसलिए यह ड्रामा किया.’’

‘‘क्या?’’ परेश ने पूछा.

‘‘साहबजी, यह लड़की मुझे सही नहीं लग रही. आजकल पहाड़ों में… मुझे डर है कि कहीं आप के साथ कुछ गलत न हो जाए.’’

‘‘अरे, तुम चिंता मत करो… मैं सब समझता हूं.’’

‘‘ठीक है साहब, आप की जैसी मरजी,’’ ड्राइवर ने लाचारी से कहा.

‘‘अच्छा, हमें ऐसी जगह ले चलो जहां भीड़भाड़ न हो,’’ परेश ने कहा.

सीजन नहीं होने से भीड़भाड़ नहीं थी. शहर से थोड़ा दूर एक बढि़या लोकेशन पर उन्हें ठहरने की शानदार जगह मिल गई. ड्राइवर उन्हें होटल में छोड़ कर वापस चला गया.

कमरे में आते ही गरिमा का अल्हड़पन दिखने लगा था. अब ऐसा कुछ नहीं था जिस से लगे कि वह थोड़ी देर पहले जान देने जा रही थी.

रात के 9 बज रहे थे. डिनर आ गया था. गरिमा बाथरूम में थी. थोड़ी देर बाद परेश की ड्रैस पहन कर वह बाहर निकली तो एकदम तरोताजा लग रही थी. उस की खूबसूरती परेश को मदहोश करने लगी.

डिनर निबट गया. एक बैड पर लेटे दोनों उस मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे जिस की वजह से गरिमा इतनी परेशान थी.

गरिमा की कहानी बड़ी अजीब थी. कालेज के बाद उस ने जिस कंपनी में काम शुरू किया वहीं उस के बौस ने उसे प्यार के जाल में ऐसा फंसाया कि वह अभी तक उस भरम से बाहर नहीं निकल पा रही थी. अधेड़ उम्र का बौस उसे सब्जबाग दिखाता रहा और उस से खेलता रहा.

जब गरिमा के मम्मीपापा को इस बात की भनक लगी तो उन्होंने उसे बहुत सम  झाया. सख्ती भी की लेकिन एक बार तीर कमान से निकल जाए तो फिर उसे वापस कमान में लौटाना मुमकिन नहीं होता. कुछ परवरिश में भी कमी रही. न पापा को फुरसत और न मम्मी को.

गरिमा को पुलिस का डर नहीं था. वह पहले भी 4 बार ऐसा कर चुकी थी, इसलिए उस के मातापिता अब पुलिस में शिकायत करा कर अपनी फजीहत नहीं कराना चाहते थे.

गरिमा सो चुकी थी. परेश उस के बेहद करीब था. उस की सांसों की उठापटक एक अजीब सा नशा दे रही थी. आहिस्ता से उस का हाथ गरिमा की छाती पर चला गया. कोई विरोध नहीं हुआ. कुछ पल ऐसे ही बीत गए.

परेश कुछ और करता, उस से पहले ही गरिमा ने अचानक अपनी आंखें खोल दीं, ‘‘आप की क्या उम्र है सर?’’

‘‘यही कोई 40 साल…’’ परेश ने जवाब दिया.

‘‘गुड, मैच्योर्ड पर्सन… अच्छा, एक बात बताओ… मैं कैसी लग रही हूं?’’ मुसकराते हुए गरिमा ने पूछा.

‘‘बहुत ज्यादा खूबसूरत,’’ परेश ने जोश में कहा.

इस में कोई शक नहीं था कि गरिमा की अल्हड़ जवानी, मासूमियत से लबरेज खूबसूरती सच में बड़ी दिलकश लग रही थी.

‘‘सच में…?’’

‘‘सच में आप बहुत खूबसूरत हैं,’’ परेश ने अपनी बात दोहराई.

‘‘लेकिन मैं खूबसूरत ही होती तो वह मुझे क्यों छोड़ता… दूध में से मक्खी की तरह निकाल बाहर किया उस ने…’’

‘‘प्लीज गरिमा, आप हकीकत को मान क्यों नहीं लेतीं? जो हुआ सही हुआ. पूरी जिंदगी पड़ी है आप की. वहां उस के साथ क्या फ्यूचर था, यह भी सोचो?’’

‘‘इतना आसान नहीं है सर, किसी को भुला देना. प्यार किया है मैं ने…’’

‘‘मान लिया लेकिन तुम में समझ ही होती तो क्या ऐसे प्यार को अपनाती?’’

‘‘सर, यह सही है कि हम में थोड़ा उम्र का फर्क था लेकिन उस के बीवीबच्चे थे, यह मुझे अब पता चला… धोखा किया उस ने मेरे साथ…’’

‘‘तो फिर तुम उसे अब क्यों याद कर रही हो? बुरा सपना बीत गया. अब तो वर्तमान में लौट आओ?’’

गरिमा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह परेश के बहुत करीब लेटी थी. सच तो यह था कि परेश अब बहुत दुविधा में था.

गरिमा का हाथ परेश की छाती पर था. उस का इस तरह लिपटना उसे असहज कर रहा था. उस के अंदर शांत पड़ा मर्द जागने लगा. गरिमा के मासूम चेहरे पर कोई भाव नहीं थे.

‘‘क्या तुम्हें मुझ से डर नहीं लगता?’’ परेश ने पूछा.

‘‘नहीं, मुझे आप पर भरोसा है,’’ गरिमा ने शांत आवाज में जवाब दिया.

‘‘क्यों… मैं भी मर्द हूं… फिर?’’ परेश ने पूछा.

‘‘कोई नहीं सर… अब मैं इनसान और जानवर में फर्क करना सीख गई हूं.’’

गरिमा के जवाब से परेश को ग्लानि महसूस हुई. वह फौरन संभल गया. गरिमा क्या सोचेगी… हद है मर्द कितना नीचे गिर सकता है? परेश का मन उसे कचोटने लगा.

लेकिन गरिमा का अलसाया बदन परेश में भूचाल ला रहा था. गरिमा का खुलापन अजीब राज बन रहा था. वह सम  झ नहीं पा रहा था कि इस इम्तिहान में कैसे पास हो…

गरिमा अब भी उस से लिपटी हुई थी. उस की आंखों में नींद की खुमारी झलक रही थी.

परेश सोच रहा था कि गरिमा का ऐसा बरताव उस के लिए न्योता था या अपनेपन में खोजता विश्वास…

परेश की दुविधा ज्यादा देर नहीं चली. उस की हालत को समझ कर गरिमा बोली, ‘‘अगर आप इस समय मुझ से कुछ चाहते हैं तो मैं इनकार नहीं करूंगी… आप की मैं इज्जत करती हूं… आप ने मुझे आज नई जिंदगी दी है.’’

‘‘अरे नहीं, प्लीज… ऐसा कुछ भी नहीं… तुम दोस्त बन गई हो… बस यही बड़ा गिफ्ट है मेरे लिए,’’ सकपकाए परेश ने जवाब दिया.

‘‘उम्र में छोटी हूं सर लेकिन एक बात कहूंगी… शरीर का मिलन इनसान को दूर करता है और मन का मिलन हमेशा नजदीक, इसलिए फैसला आप पर है…’’

परेश को महसूस हुआ, सच में समझ उम्र की मुहताज नहीं होती. छोटे भी बड़ी बात कह और समझ सकते हैं. 2 दिन सैरसपाटे में बीत गए. परेश की किताब का काम शुरू ही न हो पाया, लेकिन गरिमा अब बिलकुल ठीक थी. वह वापस अपने घर लौटने को राजी हो गई थी.

परेश ने फोन नंबर ले कर उस के पापा से बात की. घर से गुम हुई जवान लड़की की खबर पा कर गरिमा के मम्मीपापा ने सुकून की सांस ली.

परेश और गरिमा अब दोस्त बन गए थे. पक्के दोस्त, जिन में उम्र का फर्क  तो था लेकिन आपसी समझ कहीं ज्यादा थी. परेश की मेहनत रंग लाई और गरिमा अपने घर वापस लौट गई. कुछ दिन बाद उस की शादी भी हो गई. अब वह अपनी गृहस्थी में खुश थी.

परेश के लिए यह सुकून की बात थी. अकसर उस का फोन आ जाता, वही बिंदास, अल्हड़पन लेकिन अब सच में उस ने जिंदगी जीनी सीख ली थी. दिखावा नहीं बल्कि औरत की सच्ची गरिमा का अहसास और जिम्मेदारी उस में आ गई थी.

परेश सोचता था कि गरिमा को उस ने जीना सिखाया या गरिमा ने उसे? लेकिन यह सच था कि गरिमा जैसी अनोखी दोस्त परेश को औरत के मन की गहराइयों का अहसास करा गई.

ललिता : क्यो गुमसुम रहती थी ललिता

सुनीता बाजार से गुजरी, तो एक सब्जी बेचने वाली की आवाज ने उस का ध्यान खींचा. देखा तो उस की ही हमउम्र एक जवान औरत थी. गरीबी के लिबास में लिपटी एकदम सादा खूबसूरती.

उस औरत को देखते ही सुनीता का मन बरसों लांघ कर चौथी जमात में जा पहुंचा. वहां पहुंच कर मन केवल उसी एक चेहरे को तलाशने लगा. उस मासूम, पर उदास चेहरे को.

वह न सुनीता की दोस्त थी, न ही उसे पसंद थी, फिर भी न जाने कौन सा रिश्ता बना था उन के बीच, जो आज सालों बाद भी वह अकसर अपनी याद के साथ सुनीता के सामने आ जाती थी.

सुनीता को वह तब भी बहुत याद आई थी, जब 8वीं जमात की इंगलिश की किताब में रेशमा की कहानी पढ़ी थी, जिस में लिखा था कि कोई भी देख सकता था कि रेशमा गंदी फ्रौक में भी प्यारी लगती थी और सुनीता को रेशमा का पाठ रटतेरटते लगता था कि वह उसे ही रट रही है.

उस की ही तो कहानी थी यह. हां, उसी की कहानी. उस का नाम ललिता था. वह हफ्ते में 3 दिन ही स्कूल आती थी. पढ़ने में बहुत साधारण, बात करने में पीछे रहना और खेलने से दूर भागना.

ललिता जब भी स्कूल आई, लेट आई. सुनीता ने जब भी उसे देखा, उदास ही देखा. जब भी टीचर ने कुछ पूछा, वह चुप ही रही.

चौथी जमात में सुनीता की ललिता से कभी बातचीत नहीं हुई. जब वह 5वीं जमात में आई, तो एक दिन शनिवार की बालसभा के दौरान कुछ लड़कियां जमीन पर अपनाअपना नाम लिख रही थीं, तो ललिता ने टोका, ‘‘क्या कर रही हो? जमीन पर नाम नहीं लिखते.’’

सुनीता ने पूछा, ‘‘क्यों…?’’

ललिता ने कहा, ‘‘ऐसा करने से पिताजी पर कर्ज चढ़ जाता है.’’

ललिता की इस बात पर कुछ लड़कियां हंस दीं और कुछ लड़कियों ने डर के मारे अपना लिखा नाम मिटा दिया.

सुनीता ने पूछा, ‘‘तुम से यह किस ने कहा?’’

‘‘मेरी मां ने,’’ ललिता ने जवाब दिया.

‘‘उन्हें किस ने बताया?’’ सुनीता की सवाल करने की बुरी आदत बचपन से रही थी.

‘‘मुझे क्या पता…’’ ललिता ने खीज के साथ कहा और चुप हो गई.

उस दिन पहली दफा सुनीता ने ललिता को गौर से देखा था. गोरा मासूम चेहरा, मैले कपड़े, फटेपुराने जूते और बेतरतीब 2 चोटियां.

पता नहीं, क्या था उस पल में कि वह लमहा आज भी तसवीर बन कर यादों की गैलरी में हूबहू सजा है. सुनीता को इसी रूप में ललिता की याद आई.

‘‘तुम नहा कर नहीं आई?’’ सुनीता का अगला सवाल था.

ललिता ने अजीब निगाह से सुनीता को घूरा, जैसे कह रही हो कि तुम्हें

क्या मतलब नहाऊं या न नहाऊं? हो कौन तुम?

लेकिन ऐसा कुछ नहीं कहा ललिता ने और बेहद छोटा सा जवाब दिया, ‘‘रोज नहाती हूं.’’

‘‘तो फिर तुम्हारे कपड़े इतने गंदे क्यों हैं?’’ सुनीता का अगला सवाल इस से भी ज्यादा वाहियात था.

ललिता को सुनीता के इस सवाल पर गुस्सा आया या उबकाई, यह उस के चेहरे के भाव से समझ में नहीं आया, लेकिन उस ने जवाब जरूर दिया, ‘‘मां धोती नहीं हैं मेरे कपड़े  और मुझे इतवार को ही समय मिलता है.’’

‘‘क्यों नहीं धोतीं?’’ सुनीता का सवाल पूछने का रवैया पत्रकारों से भी ज्यादा खतरनाक था.

‘‘वे काम करती हैं,’’ ललिता की तरफ से वही उदासी भरा जवाब आया.

‘‘क्या काम करती हैं?’’ सुनीता का खोजी मन जैसे सब जान लेना चाहता था उस से एक ही दिन में.

‘‘बड़े लोगों के घरों में काम करती हैं, झाड़ूपोंछे का,’’ इस बार जवाब देते समय ललिता के चेहरे पर तल्खी थी.

सुनीता अपने सवालों पर शर्म कर के खुद ही चुप हो गई. उस के बाद कभीकभी ललिता से बात हो जाया करती थी, लेकिन बेहद कम. इस बेहद कम बातचीत से इतनी ही जानकारी

जुटा सकी सुनीता कि वे 6 भाईबहन हैं. पापा की कबाड़ की छोटी सी दुकान है. मम्मी घरों में झाड़ूपोंछे का काम करती हैं.

2 बड़ी बहनों की सगाई कर रखी है. वे दोनों 5वीं जमात तक पढ़ी हैं और ललिता को भी घर वाले 5वीं जमात

तक ही पढ़ाएंगे, ताकि वह कुछ लिखनापढ़ना और पैसों का थोड़ाबहुत हिसाब रखना सीख जाए. 3 छोटे भाई हैं, जिन में 2 अभी स्कूल नहीं जाते, छोटे होने के चलते.

एक दिन ललिता सुबहसुबह स्कूल की प्रार्थना में अपनी आदत के मुताबिक हांफती हुई लेट आई. जब प्रार्थना के बाद सब बच्चों ने आंखें खोलीं, तो वे उसे देख कर हंसने लगे.

ललिता की हालत ही कुछ ऐसी थी. उस की दोनों आंखों में काजल भरा था, जो हाथों की रगड़ से फैल कर पूरे चेहरे पर बिखरा हुआ था. बाल बिना कंघी किए और कपड़े हमेशा की तरह गंदे. जब बच्चे क्लास में जाने लगे, तो सुनीता ने उस से मुंह धो लेने के लिए कहा, तो वह मान गई.

सुनीता और ललिता दोनों पानी के नल तक साथ गईं. सुनीता ने पूछा, ‘‘ललिता, तुम ऐसे क्यों आ जाती हो? कम से कम मुंह तो देख कर आना चाहिए था शीशे में और ये बाल देखो. कंघी तो कर ही सकती हो? तुम्हें अजीब नहीं लगता है?’’

ललिता ने कहा, ‘‘हम तीनों बहनों ने अपनाअपना काम बांट रखा है. मैं आज लेट उठी, तो काम देर से हुआ. कंघी करती तो और ज्यादा देर हो जाती, इसलिए सीधे कपड़े बदल लिए थे, लेकिन पता नहीं था कि काजल इतना ज्यादा चेहरे पर फैला हुआ है.’’

अब जब भी सुनीता ललिता का उस दिन का वह चेहरा याद करती है, तो लगता है जैसे किसी मुझे चित्रकार ने बेहद खूबसूरत चित्र बना कर उस पर गलती से काला रंग गिरा दिया हो.

उस दिन सुनीता ने ललिता से लंच के वक्त पूछा था, ‘‘तुम्हारा सपना क्या है? मतलब, तुम बड़ी हो कर क्या बनना चाहती हो?’’

ललिता ने पलभर के लिए सुनीता को देखा और फिर अपने पैरों से जमी घास को कुरेदने लगी. ऐसा करते हुए उस का जवाब था, ‘‘कुछ नहीं.’’

ऐसे सवाल का ऐसा जवाब सुनीता ने फिर कभी नहीं सुना.

खैर, गरमियां गईं, सर्दियां आईं. एक दिन सुनीता ने ललिता को लंच टाइम में अकेले धूप में बैठे देखा. धूप में बैठी

वह कोई पहाड़ी फूल लग रही थी, जो खिला तो था, पर बस्ती से दूर घने एकांत में होने से उस की खुशबू बस्ती वाले महसूस नहीं कर पा रहे थे.

सुनीता ललिता के बगल में जा कर बैठ गई और पूछा, ‘‘खोखो खेलोगी ललिता?’’

‘‘नहीं,’’ उस की आवाज में कभी भी उल्लास महसूस नहीं किया था सुनीता ने.

‘‘क्यों…?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘मन नहीं है,’’ और ऐसा कह कर ललिता अपने नाखूनों को मुंह से कुतरने लगी.

‘‘अच्छा, तुम कभी खेलती क्यों नहीं?’’ सुनीता सिर्फ सवाल करती थी, ललिता हमेशा जवाब देती थी. उस ने कभी कोई सवाल नहीं किया था.

‘‘बस यों ही. मुझे पसंद नहीं है उछलनाकूदना,’’ इतना कह कर ललिता फिर नाखून कुतरने लगी.

‘‘खेलना पसंद नहीं और हंसना भी पसंद नहीं, है न?’’ सुनीता ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा.

ललिता ने सुनीता इस बात पर चौंक कर उसे ऐसे देखा जैसे किसी ने उस के मन पर मुक्का दे मारा हो.

‘‘तुम हमेशा उदास क्यों रहती हो? बताओ न ललिता,’’ इस बार सुनीता ने उस का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से सवाल किया था.

ललिता ने पहले सुनीता के हाथ को देखा और फिर जमीन को देखते हुए बोली, ‘‘मेरी मां मना करती हैं.’’

‘‘हंसने से…?’’ सुनीता ने बेहद हैरानी से पूछा.

‘‘हां,’’ उस का वही छोटा सा जवाब आया.

‘‘लेकिन क्यों…? वे तुम से ऐसा क्यों कहती हैं?

‘‘मां कहती हैं कि लड़कियों को ज्यादा हंसना नहीं चाहिए. गरीब की बेटी को तो कभी भी नहीं.’’

ललिता ने यह जिस ठंडे भाव से कहा था, वह हमेशा के लिए ठहर गया सुनीता के भीतर.

ललिता की मां की बात का मतलब समझाने की समझ उस समय तो नहीं थी और 5वीं जमात के बाद वे दोनों कभी मिली भी नहीं.

लेकिन उस के बाद जब भी कभी सुनीता के या किसी दूसरी लड़की के खिलखिला कर हंसने के जो अलगअलग मतलब लगाए गए समाज में, ललिता की मां की कही बात के गहरे मतलब समझ आने लगे.

जबतब किसी ने सुनीता को हंसते हुए टोका, तो ललिता ठहर गई उस के जेहन में और कानों में उस की कही बात गूंजती कि ‘मां कहती हैं लड़कियों को ज्यादा नहीं हंसना चाहिए’.

पर क्या कोई बताएगा कि क्यों?

अनोखा बदला : राधिका ने क्यों छोड़ा अपना गांव

‘‘तुम क्याक्या काम कर लेती हो?’’ केदारनाथ की बड़ी बेटी सुषमा ने उस काम वाली लड़की से पूछा.

सुषमा ऊधमपुर से अपने बाबूजी का हालचाल जानने के लिए यहां आई थी.

दोनों बेटियों की शादी हो जाने के बाद केदारनाथ अकेले रह गए थे. बीवी सालभर पहले ही गुजर गई थी. बड़ा बेटा जौनपुर में सरकारी अफसर था.

बाबूजी की देखभाल के लिए एक ऐसी लड़की की जरूरत थी, जो दिनभर घर पर रह सके और घर के सारे काम निबटा सके.

‘‘जी दीदी, सब काम कर लेती हूं. झाड़ूपोंछा से ले कर खाना पकाने तक का काम कर लेती हूं,’’ लड़की ने आंखें मटकाते हुए कहा.

‘‘किस से बातें कर रही हो सुषमा?’’ केदारनाथ अपनी थुलथुल तोंद पर लटके गीले जनेऊ को हाथों से घुमाते हुए बोले. वे अभीअभी नहा कर निकले थे. उन के अधगंजे सिर से पानी टपक रहा था.

‘‘एक लड़की है बाबूजी. घर के कामकाज के लिए आई है, कहो तो काम पर रख लें?’’ सुषमा ने बाबूजी की तरफ देखते हुए पूछा.

केदारनाथ ने उस लड़की की तरफ देखा और सोचने लगे, ‘भले घर की लग रही है. जरूर किसी मजबूरी में काम मांगने चली आई है. फिर भी आजकल घरों में जिस तरह चोरियां हो रही हैं, उसे देखते हुए पूरी जांचपड़ताल कर के ही काम पर रखना चाहिए.’

‘‘बेटी, इस से पूछ कि यह किस जाति की है?’’ केदारनाथ ने थोड़ी देर बाद कहा.

‘‘अरी, किस जाति की है तू?’’ सुषमा ने बाबूजी के सवाल को दोहराया.

‘‘मुझे नहीं मालूम. मां से पूछ कर बता दूंगी. वैसे, मां ने मेरा नाम बेला रखा है,’’ वह लड़की हर सवाल का जवाब फुरती से दे रही थी.

‘‘ठीक है, कल अपनी मां को ले आना,’’ सुषमा ने कहा.

‘‘जी दीदी, मैं कल सुबह ही मां को ले कर आ जाऊंगी,’’ बेला ने कहा और तेजी से वहां से चल पड़ी.

‘‘मां, मु?ो काम मिल गया,’’ खुशी से चीखते हुए बेला अपनी मां राधिका से लिपट गई और बोली, ‘‘बहुत अच्छी हैं सुषमा दीदी.’’

बेला को जन्म देने के बाद राधिका अपने गांव को छोड़ कर शहर में आ गई थी. बेला को पालनेपोसने में उसे बहुत मेहनत करनी पड़ी थी. उसे दूसरों के

घरों की सफाई से ले कर कपड़े धोने तक का काम करना पड़ा था, तब कहीं जा कर वह अपना और बेला का पेट पाल सकी थी.

जब राधिका पेट से थी, तब से अपने गांव में उसे खूब ताने सुनने पड़े थे पर उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. वह अपने पेट में खिले फूल को जन्म देने का इरादा कर बैठी थी.

‘अरे, यह किस का बीज अपने पेट में डाल लाई है? बोलती क्यों नहीं करमजली? कम से कम बाप का नाम ही बता दे ताकि हम बच्चे के हक के लिए लड़ सकें,’ राधिका की मां ने उसे बुरी तरह पीटते हुए पूछा था.

मार खाने के बाद भी राधिका ने अपनी मां को कुछ नहीं बताया क्योंकि वह आदमी पैसे वाला था. समाज में उस की बहुत इज्जत थी और फिर राधिका के पास कोई सुबूत भी तो नहीं था. वह किस मुंह से कहेगी कि वह शादीशुदा है, किसी के बच्चे का बाप है.

‘एक तो हम गरीब, ऊपर से बिनब्याही मां का कलंक… हम किसकिस को जवाब देंगे, किसकिस का मुंह बंद करेंगे,’ राधिका की मां ने खीजते हुए कहा था.

‘क्या सोचा है तू ने, चलेगी सफाई कराने को?’ मां ने उस की चोटी मरोड़ते हुए पूछा था.

‘नहीं मां, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी. चाहो तो तुम लोग मु?ो जान से मार दो, पर जीतेजी मैं इस बेकुसूर की हत्या नहीं होने दूंगी,’ राधिका ने रोते हुए अपनी मां से कहा था.

मां की बातों से तंग आ कर राधिका उसे बिना बताए अपने नानानानी के पास चली गई और उन्हें सबकुछ बता दिया.

राधिका की बातें सुन कर नानी पिघल गईं और गांव वालों के तानों को अनसुना कर उस का साथ देने को तैयार हो गईं.

राधिका की मां व नानी यह नहीं जान पाईं कि आखिर वह चाहती क्या है? बच्चे को जन्म देने के पीछे उस का इरादा क्या था?

‘‘मां, चलना नहीं है क्या? सुबह हो गई है,’’ बेला ने सुबहसुबह मां को नींद से जगाते हुए कहा.

‘‘हां बेटी, चलना तो है. पहले तू तैयार हो जा, फिर मैं भी तैयार हो जाती हूं,’’ यह कह कर राधिका ?ाटपट तैयार होने लगी.

सुषमा ने दरवाजा खोल कर उन दोनों को भीतर बुला लिया. केदारनाथ अभी तक सो रहे थे.

‘‘तो तुम बेला की मां हो?’’ सुषमा ने राधिका की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘जी मालकिन, हम ही हैं,’’ राधिका ने जवाब दिया.

‘‘तुम्हारी बेटी सम?ादार तो लगती है. वैसे, घर का सारा काम कर लेती है न?’’

राधिका ने फौरन जवाब दिया, ‘‘बिलकुल मालकिन, मैं ने इसे सारा काम सिखा रखा है.’’

‘‘तो ठीक है, रख लेते हैं. सारा दिन यहीं रहा करेगी. रात को भले ही अपने घर चली जाए.’’

सुषमा ने बेला को हर महीने 500 रुपए देने की बात तय कर ली.

‘‘कौन आया है बेटी? सुबहसुबह किस से बात कर रही हो?’’ केदारनाथ जम्हाई ले कर उठते हुए बोले.

‘‘कोई नहीं बाबूजी, काम वाली लड़की आई है, उसी से बात कर रही थी,’’ सुषमा ने जवाब दिया.

केदारनाथ बाहर निकले तो राधिका के लंबा सा घूंघट निकालने पर सुषमा को अजीब सा लगा.

‘‘अच्छा तो अब हम चलते हैं,’’ राधिका उठते हुए बोली.

‘‘तो ठीक?है, कल से भेज देना बेटी को,’’ सुषमा ने बात पक्की कर के बेला को आने के लिए कह दिया.

राधिका ने राहत की सांस ली. उसे लगा कि वह कीड़ा जो इतने सालों से उस के जेहन में कुलबुला रहा था, उस से छुटकारा पाने का समय आ गया है.

सुषमा को भी राहत मिली कि बाबूजी की देखभाल के लिए अच्छी लड़की मिल गई है. वह दूसरे दिन ही ससुराल लौट गई.

‘‘ऐ छोकरी, जरा मेरे बदन की मालिश कर दे. सारा बदन दुख रहा है,’’ केदारनाथ ने बादाम के तेल की शीशी बेला के हाथों में पकड़ाते हुए कहा.

बेला ने उन के उघड़े बदन पर तेल से मालिश करनी शुरू कर दी.

‘‘तेरे गाल बहुत फूलेफूले हैं. क्या खिलाती है तेरी मां?’’ केदारनाथ ने अकेलेपन का फायदा उठाते हुए पूछा.

‘‘मां,’’ बेला ने चीख कर अपनी मां को आवाज दी. राधिका वहीं थी.

‘‘शर्म करो केदार,’’ राधिका ने जोर से दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘अपनी

ही बेटी के साथ कुकर्म. बेटी, हट

वहां से…’’

राधिका बोलती रही, ‘‘हां केदारनाथ, बरसों पहले जो कुकर्म तुम ने मेरे साथ किया था, उसी का नतीजा है यह बेला. तुम ने सोचा होगा कि राधिका चुप बैठ गई होगी, पर मैं चुप नहीं बैठी थी. मैं ने इसे जन्म दे कर तुम तक पहुंचाया है.

‘‘यह मेरी सोचीसम?ा चाल थी ताकि तुम्हारी बेटी भी तुम्हारी करतूत को अपनी आंखों से देख सके.’’

केदारनाथ एक मुजरिम की तरह सिर ?ाकाए सबकुछ सुनता रहा.

राधिका ने बोलना बंद नहीं किया, ‘‘हां केदार, अब भी तुम्हारे सिर से वासना का भूत नहीं उतरा है, तो ले तेरी बेटी तेरे सामने खड़ी है. उतार दे इस की भी इज्जत और पूरी कर ले अपनी हवस.

‘‘मैं भी बरसों पहले तुम्हारी हवस का शिकार हुई थी. तब मैं इज्जत की खातिर कितना गिड़गिड़ाई थी, पर तुम ने मु?ो नहीं छोड़ा था. मैं तभी जवाब देती, पर मालकिन ने मेरे पैर पकड़ लिए थे, इसीलिए मैं चुप रह गई थी.

‘‘यह तो अच्छा हुआ कि बेला ने तुम्हारी नीयत के बारे में मु?ो पहले ही सबकुछ बता दिया. इस बार बाजी मेरे हाथ में है.

‘‘क्या कहते हो केदार? शोर मचा कर भीड़ में तुम्हारा तमाशा बनाऊं,’’ राधिका सुधबुध खो बैठी थी और लगातार बोले जा रही थी.

केदारनाथ की अक्ल मानो जवाब दे गई थी. अपनी इज्जत की धज्जियां उड़ती देख वे छत की तरफ भागे और वहां से कूद कर अपनी जिंदगी खत्म कर ली.

बतूल बी : कैसे छला एक अनपढ़गंवार ने सबको

महल्ले की सभी औरतें अच्छी पढ़ीलिखी थीं, पर फिर भी बतूल बी जैसी अनपढ़गंवार औरत उन्हें छल कैसे लेती थी. वह थी तो घरों का काम करने वाली, पर उन घरों में घुस कर वह उन के बारे में जान लेती थी. फिर कुछ ऐसा कर देती थी कि हर घर में उसी की चर्चा छिड़ी रहती थी. बतूल बी ऐसा क्या करती थी?

ट्रक कब का आ चुका था. सीएनजी की लंबी लाइन के चलते निकलने में देर हो गई. रात को साढ़े 11 बजे हम नए शहर के नए मकान में पहुंचे. खाना रास्ते में ही खा लिया था. किसी तरह पलंग डाले और सो गए.

सवेरे हैदर ने फोन कर के थाने से 3 सिपाहियों को बुला लिया. दोपहर तक बहुत सा सामान उन्होंने तरतीब से लगा दिया. एक सिपाही होटल से खाना ले आया. फिर तीनों को छुट्टी देते हुए वहीदा ने किसी मेड को लाने के लिए कहा. रसोईघर का सब सामान धोपोंछ कर लगाना था, जो उस के अकेले के बस का रोग न था.

आधा घंटा आराम कर के वहीदा आसिया और इमरान को मैसेज करने बैठ गई. बदली का हुक्म आने के तुरंत बाद से पार्टियों और भोज के न्योतों का जो सिलसिला बंधा था, वह ट्रक में सामान भर कर रवाना हो जाने के बाद ही रुका था. सवेर नाश्ता एक के यहां, दोपहर का खाना किसी दूसरी जगह तो रात का भोजन तीसरी जगह. रात में वहीदा इतना थक जाती थी कि बच्चों को लंबा मैसेज लिखना भी उस से नहीं हो पाता था.

वहीदा मोबाइल में बिजी थी कि तभी 2 सिपाही आ गए. एक औरत भी साथ आई थी. वहीदा को हैरानी हुई. सिपाही ने बताया कि वह औरत इसी महल्ले में काम करती है. उस ने खुद ही पुकार कर काम करने की इच्छा जाहिर की, तो वे उसे ले आए.

वहीदा को मोबाइल पर बिजी देख कर हैदर ने उस से पूछताछ शुरू की, ‘‘इस महल्ले में किसकिस के घर काम करती हो?’’

‘‘खान मजिस्ट्रेट के यहां, नीली हवेली वालों के यहां, वे जो बड़े इंजीनियर साहब हैं न, उन के यहां और वे जो दोनों कालेज में पढ़ाते हैं, उन के यहां भी. सच तो यह है कि महल्ले में जितने भी बड़े लोग हैं, उन सब के यहां मैं ही काम करती हूं,’’ उस औरत ने बड़ी शान से बताया.

‘‘सामने वालों के घर काम नहीं करतीं क्या?’’ हैदर ने संकेत से पूछा. उन से हैदर की जानपहचान थी. उन्हीं की मदद से हमें यह मकान मिला था.

बहुत ही राजभरे अंदाज से वह औरत आवाज दबा कर बोली, ‘‘सुना है, साहब के चचा ससुर ने किसी गाने वाली से निकाह किया है. मैं ऐसे घरों में काम नहीं करती.’’

वह खनकती हुई आवाज और राजभरा अंदाज देख कर वहीदा को मोबाइल रख देना पड़ा. नजर उठाई तो देखा, बड़ेबड़े लाल फूलों वाली कसी हुई साड़ी, उसी रंग का फैशन वाला आस्तीन का ब्लाउज, छोटे से जूड़े में फूल लगाया हुआ, आंखों में काजल की गहरी लकीर, होंठ पान की लाली से लाल, एक पैर पीछे कर के दीवार से टिकी वह औरत हथेली पर तंबाकू मलते हुए खड़ी थी.

जब उस ने वहीदा को अपनी ओर देखते पाया, तो बोली, ‘‘मैडमजी, हम सैयदों के खानदान से हैं. हमारा काम भी बहुत अच्छा है. इधर एक जज साहब के यहां मैं काम करती थी. बदली हो जाने से वे चले गए. 4 साल बाद और भी बड़े साहब बन कर लौटे तो बोले, ‘बतूल बी को बुलाओ. हमारे घर का काम तो बस वही कर सकती है.’ ऐसा नाम है हमारा.’’

वहीदा ने अनसुनी करते हुए कहा, ‘‘दोनों समय के बरतन, कपड़े होंगे, रोज पोंछा लगाना होगा. सारी शैल्फें भी साफ करोगी. घर में हम

2 ही लोग हैं, पर बरतन 4 के सम झ कर चलो. छुट्टियों में मेहमान आते हैं. हां, बरतनों में प्लास्टिक की सारी बालटियां, कुरसियां भी चमकानी पड़ेंगी. ऐसा न हो कि बाद में तकरार करो कि ये बरतनों में नहीं आते.’’

‘‘नहीं बीबीजी,’’ कल्ले में तंबाकू भरते हुए वह बोली, ‘‘मैं तकरार नहीं करती. मेरा रिकौर्ड है, एक बार जिस का काम पकड़ लिया, फिर छोड़ा नहीं.’’

तब वहीदा क्या जानती थी कि उस ने यह रिकौर्ड कैसे बनाया है. 1,500 रुपए पर बात तय हो गई. बतूल बी काम पर आने लगी.

हैदर पुलिस महकमे में थे. एक जगह पर 2-3 साल से ज्यादा न रह पाते थे. आसिया और इमरान के स्कूल में जाने के काबिल होते ही वहीदा ने उन्हें बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया. हर शहर के माहौल में जो भिन्नता और शिक्षण संस्थाओं में लैवल का जो फर्क होता है, उस से बच्चे तालमेल नहीं बैठा पाते. बच्चों के जाने से वह अकेली हो जाती, तो किसी न किसी प्राइवेट कालेज में समय गुजारने को नौकरी कर लेती.

दूसरे दिन बतूल बी काम पर आई. आते ही पूछा, ‘‘मैडमजी, आप सैयद हैं या शेख?’’

वहीदा ने तेज आवाज में कहा, ‘‘मैं सैयद हूं या शेख, तुम्हें इस से क्या? काम करना है करो, बेकार की बातें पूछने की कोई जरूरत नहीं,’’ वहीदा को गुस्सा तो बहुत आया. चली है काजल की कोठरी में घुसने और चाहती है कालिख भी न लगे.

तीसरे दिन बतूल बी बोली, ‘‘आप के बच्चे नहीं हैं क्या? कितने साल हुए आप की शादी को? मेरे मामू तावीज देते हैं. कहें तो ले आऊं?’’

वहीदा ने कहा, ‘‘तुम्हें फिक्र करने की जरूरत नहीं. मेरे 2 जुड़वां बच्चे हैं आसिया और इमरान, 10 साल के. बोर्डिंग में पढ़ते हैं. छुट्टियों में यहां आते हैं. हम लोग भी मिलने जाते हैं उन से.’’

फर्श पोंछतेपोंछते वह वहीं बैठ गई. कमर में खोंसी हुई थैली निकाल कर वह तंबाकू रगड़ते हुए बोली, ‘‘आप को बच्चों की याद नहीं आती? मुझे तो कोई लाख रुपए दे, तब भी अपने बच्चों को नजरों से दूर न भेजूं. आप का मन कैसे होता है?’’

वहीदा ने उसे घूर कर देखा, ‘‘मेरे बच्चे पढ़ेंगेलिखेंगे, बड़े आदमी बनेंगे, उन का भविष्य बनाने के लिए कुछ बलिदान तो देना ही होगा. तुम्हारी लड़कियां गंदी बहती हुई नाक लिए तुम्हारे साथ बरतन मांजती फिरती हैं. तुम उन्हें स्कूल क्यों नहीं भेजती?’’

‘‘वे जाती ही नहीं तो मैं क्या करूं?’’ वहीदा की बात उड़ा कर वह अपने काम में लग गई.

धीरेधीरे वहीदा बतूल बी को सम झ रही थी. उसे इधर की उधर और उधर की इधर लगाने का बहुत  शौक था. दोपहर का समय वहीदा का लिखनेपढ़ने का होता. तब इस की कैंची की तरह चलती जबान उसे बहुत बुरी लगती.

एक दिन वह बोली, ‘‘आप 2 लोग हैं घर में. पर इतने सारे बरतन निकलते हैं आप के. खान मजिस्ट्रेट के घर में मियांबीवी और 3 बच्चे हैं. मुट्ठीभर चावल पकाती हैं और बैगन की सब्जी.’’

वहीदा ने टोका, ‘‘बतूल बी, दूसरों के घर में क्या पकता है और क्या नहीं, मु झे इस से कोई मतलब नहीं.’’

वह मन मार कर चुप रह गई. वहीदा ने सोचा कि वह उन का स्वभाव सम झ गईर् होगी, पर कुत्ते की दुम तो टेढ़ी रहती है. 3 दिन बाद फिर वही मुद्दा निकाल बैठी.

‘‘आप की मैं सब जगह तारीफ करती हूं मैडमजी. वह 2 नंबर के मकान वाले हैं न, इमली के पेड़ के सामने वाला मकान है, एक से एक बढि़या सिंगार कर के निकलती हैं मांबेटी. पर मकान देखो तो जैसे कबाड़खाना, रसोईघर के बरतन काले कीट…’’

वहीदा ने उसे डांट दिया, ‘‘बतूल बी, मैं ने कह दिया है न तुम से. मेरी तारीफ कहीं मत करो, न दूसरों की बातें मु झे बताओ. और देखो, मु झे कालेज का बहुत काम रहता है. चुपचाप अपना काम कर के चली जाया करो.’’

वैसे, बतूल बी के काम से वहीदा को कोई शिकायत नहीं थी, इसीलिए एक दिन सामने के मकान वाली मिसेज कादरी ने जब कहा कि आप ने बतूल बी को काम पर लगा कर अच्छा नहीं किया, तो वहीदा चौंक गई.

उन्होंने आगे बताया, ‘‘अभी नयानया आप के घर का काम पकड़ा है, इसलिए कुछ दिन बराबर काम पर आएगी, फिर शादीब्याह या बीमारी का बहाना बना कर चली जाया करेगी. समय पर नहीं आएगी. आप उस से कुछ कहेंगी तो काम छोड़ देगी. दूसरी किसी को अपनी जगह पर काम भी नहीं करने देगी. लड़ झगड़ कर, मार कर भगा देगी.

‘‘आप को उसे उस की सभी गलतियों के साथ स्वीकारना पड़ेगा. बड़ी चच्ची और बेगम खान के साथ यही हुआ. महीनाभर दोनों ने खुद काम किया, फिर हार कर उसे बुलाना पड़ा.’’

वहीदा यह सुन कर दंग रह गई. धीरेधीरे महल्ले की दूसरी औरतों से भी बतूल बी की बातें सुनने को मिलीं.

वहीदा ने सोचा, ‘मैं तो उस से ज्यादा बोलती नहीं. जब तकरार की नौबत  आएगी, तब देखा जाएगा.’

उस दिन मिसेज कादरी के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में महल्ले की तकरीबन सभी औरतें आई थीं. वहीदा ने एक खास बात नोट की. बेगम खान और बड़ी चच्ची ने उन से बात नहीं की. खदीजा बेगम के बात करने का ढंग ऐसा था, जैसे किसी बात की टोह में लगी हों.

अगर इन लोगों ने अपने घमंड में ऐसा किया होता तो वहीदा उन को अनदेखा कर देती, पर उन्हें लगा जैसे वे सब उन के बारे में किसी भरम का शिकार हैं.

पार्टी के बाद वहीदा ने मिसेज कादरी को यह बात बता कर सचाई का पता करने को कहा. मिसेज कादरी ने 2 दिन बाद उन्हें जोकुछ बताया, उसे सुन कर वे हैरान रह गई. तुरंत उन्होंने मिसेज खान, बड़ी चच्ची, खदीजा बेगम और उन तीनों को, जिन के घर बतूल बी काम करती थी, अपने घर बुलाया.

कोरोना हटने के बाद जैसे बहुत सारे राज फाश हुए थे, वैसे ही उन सब के मिलबैठने से बतूल बी की लगाईबु झाई के अनेक राज सामने आए. उन सब को मालूम हुआ कि उस अनपढ़गंवार औरत द्वारा वे सब कैसी छली गई हैं.

मिसेज खान को बतूल बी ने बताया कि मैं यानी वहीदा कहती है कि वे एक समय खा कर पैसे बचाती हैं, इसीलिए सोने से लदी रहती हैं, बड़ी चच्ची को बताया कि मैं उन के बनठन कर घूमने पर एतराज करती हूं.

वहीदा ही नहीं, बल्कि सब की पोल वहां खुल गई. जिन घरों में बतूल बी काम करती थी, उन सब की बात वह इधर से उधर करती थी. कभी पूरी सच्ची बात बता कर, कभी बात का बतंगड़ बना कर उस ने सब के मन एकदूसरे की ओर से फेर दिए थे. वैसे भी बात को नमकमिर्च लगा कर बताने की कला पीढ़ी दर पीढ़ी इन लोगों में चली आती है.

सब की बात सुन कर वहीदा ने कहा, ‘‘हमारे लिए यह शर्म की बात है कि एक साधारण मेड द्वारा हम छले जाएं. कुसूर बहुतकुछ हमारा भी है. हम क्यों इसे बढ़ावा देते हैं? हमें चाहिए कि जैसे ही यह दूसरों की बुराइयां करने लगे, इसे रोक दो.

हम दूसरों की बात बड़े शौक से सुनते हैं, पर दूसरे हमारे बारे में कुछ बोलें, यह हमें सहन नहीं होता. हमारी इसी सोच का फायदा बतूल बी ने उठाया है.’’

बड़ी चच्ची ने वहीदा का समर्थन किया. वे बोलीं, ‘‘जो हुआ सो हुआ. अब यह बताओ कि किया क्या जाए? उसे सबक कैसे सिखाया जाए?’’

वहीदा ने कहा, ‘‘हम सब बतूल बी को एक महीने का नोटिस दे दें. इस एक महीने में वह दूसरे महल्ले में काम ढूंढ़ ले. एक महीने में वह अपनी आदतें सुधार लेगी तो उसे काम पर से नहीं हटाएंगे.’’

वहीदा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि बतूल बी वहां आ गई. सब को वहां देख वह कुछ घबराई, कुछ हैरान हुई.

वह सिर  झुका कर बरतन उठाने चली ही थी कि वहीदा ने पुकार लिया और कहा, ‘‘बतूल बी, हम सब को तुम्हारी लगाईबु झाई का पता चल चुका है. अब तुम कहीं और काम ढूंढ़ लो. ठीक एक महीने बाद तुम को इन सातों घरों से जवाब मिल जाएगा.

रही तुम्हारे इस रिकौर्ड की बात कि तुम किसी दूसरी मेड को काम नहीं करने दोगी, तो अच्छी तरह सुन लो कि हम ने उस का भी इंतजाम कर लिया है. एक महीने बाद मेरे 2 सिपाही तुम्हें इस महल्ले में घुसने भी नहीं देंगे.’’

पासा पलट चुका था. बतूल बी खामोश खड़ी रही.

एक हफ्ते बाद हैदर के नाम क्वार्टर अलौट हो गया. वहीदा ने वह महल्ला छोड़ दिया. कोई 2 महीने बाद ईद

मिलने महल्ले में गई तो पता चला कि बतूल बी अब सीधी हो गई है और उस ने मिसेज कादरी के घर का भी काम पकड़ लिया है.

दगाबाज सहेली : चंदा और कोमल की दोस्ती क्या रंग लाई

चंदा सचमुच आसमान के चंदा जैसी खूबसूरत थी. वह सुशील, भोलीभाली, सरल स्वभाव की लड़की थी. 17 साला चंदा की एक झलक पाने को मंझावन गांव के नौजवान उस के घर के आसपास चक्कर काटते थे. उस के घर के पास ही पानकी एक गुमटी थी और वहां अकसर चहलपहल रहती थी.

चंदा अपने मातापिता की तरह सीधीसादी थी. वह रोज सुबह से ही काम पर लग जाती थी और शाम को मां के साथ खाना बनाती थी.

गांव में चंदा की एक ही सहेली थी, जिस का नाम कोमल था. उन दोनों की दोस्ती बचपन से थी. कोमल गुणरूप में चंदा के ठीक उलट मनचली और सांवले रंग की थी. पर उस के बदन में गजब का कसाव था. जब वह चलती थी, तब उस की जवानी अंगअंग से छलकती थी.

यही वजह थी कि कोमल के कई लड़कों से प्रेमसंबंध चल रहे थे, लेकिन चंदा को कोमल की इन हरकतों की कभी भनक नहीं लगी, क्योंकि वह उस पर आंख मूंद कर भरोसा करती थी.

जबजब कोमल के प्रेमी उसे लहंगाचोली, पायल, चूड़ी या झुमकी देते, तो वह उन चीजों को जरूर दिखाती थी. चंदा भी बहुत खुश होती थी. उस के पूछने पर कोमल झूठ बोल जाती थी. कभी वह कहती कि बाजार से खरीदे हैं या गंगा मेले से लाई है, तो कभी कहती कि उस की मौसी, मामी या बूआ ने दिए हैं.

वे दोनों सहेलियां अकसर कुएं पर पानी भरने जाती थीं, रसोई के लिए सूखी लकडि़यां बीनती थीं और खेतों से चारे का गट्ठर सिर पर ढो कर लाती थीं. रास्ते में अगर कोई मनचला चंदा का रास्ता रोकता या हाथ पकड़ने की कोशिश करता, तो वह गुस्से से उसे चेतावनी देती थी.

कोमल को लड़कों द्वारा की गई इस तरह की छेड़छाड़ बहुत सुहाती थी, लेकिन चंदा की खूबसूरती के आगे कोई भी लड़का उस वक्त उसे भाव नहीं देता था, जिस से कोमल को बहुत झुंझलाहट होती थी.

दरअसल, गांव की दूसरी कई लड़कियों की तरह कोमल भी चंदा की खूबसूरती से जलती थी. जहां एक तरफ गांव के ज्यादातर लड़के चंदा को पाने के लिए बेताब रहते थे, वहीं दूसरी तरफ कोमल के सिर्फ 4-5 लड़के ही आशिक थे.

चंदा का लड़कों के प्रति अक्खड़ रवैया कोमल को नागवार गुजरता था. वह चंदा से कह बैठती, ‘‘अरे यार चंदा, यही जवानी के दिन हैं. मौज कर ले, वरना कहीं उम्र बीत गई तो हालचाल पूछना छोड़, तेरी ओर कोई लड़का मुड़ कर देखेगा भी नहीं.’’

कोमल की ऐसी बातों से चंदा नाराज होती और उसे समझाती, ‘‘ब्याह से पहले यह सब सोचना भी गलत है. जब सही समय आएगा, तो हमारे मातापिता एक अच्छा सा लड़का ढूंढ़ कर ब्याह करा देंगे.’’

लेकिन चंदा के नेक विचारों का मनचली कोमल पर कहां फर्क पड़ना था. वह तो ‘आज’ में जीने वाली लड़की थी. चंदा तो कोमल को एक आंख न भाती थी.

कोमल की मां यही मानती थीं कि उन की बेटी भी चंदा की तरह अच्छी गुणों वाली है. बस, इसी बात का फायदा उठा कर कोमल चोरीछिपे लड़कों के साथ मौजमस्ती कर लेती थी.

एक दिन की बात है. गांव के नए चुने गए मुखिया का दौरा हुआ. साथ में उन का लड़का राजकुंवर उर्फ राजा भी था. 22 साल के फिल्मी हीरो जैसे बांके जवान राजा को देख ज्यादातर लड़कियों के दिल मचल उठे थे.

रंगीला राजा अपनी हीरो वाली खूबी जानता था. उस ने इस बात का भरपूर फायदा भी उठाया. कुछ ही महीनों में उस ने दर्जनभर लड़कियों से खूब मजे लूटे, फिर धीरेधीरे उसे ये सब फूल बासी लगने लगे, क्योंकि भौंरे को अब नए फूल की तलाश जो थी.

एक बार राजा पान की गुमटी पर बीड़ा चबा रहा था कि तभी उस की नजर गाय और बछड़े को चारा खिला रही चंदा पर पड़ी. उस की खूबसूरती देख वह अपनी सुधबुध खो बैठा.

पनवाड़ी से चंदा के बारे में जान कर राजा वहां से चला तो गया, लेकिन मन उसी पर ही अटका रहा. उस की याद में सारी रात करवटें बदलने में बीती.

अगली सुबह राजा को चंदा के सिवा कुछ न सूझा और फिर उस बेचैन भौंरे ने इस नए फूल को चखने की ठान ली. अब रोजाना बीड़ा खाने के बहाने वह चंदा के घर का रास्ता नापने लगा.

एक दिन मस्ती में गुनगुनाता हुआ राजा खेतों के रास्ते कहीं जा रहा था कि अचानक उसे सिर पर हरा चारा लिए हुए चंदा आती दिखी. साथ में कोमल को देखा, तो उस की कुटिल मुसकान खिल उठी और फिर बुलंद हौसले से भर कर राजा ने चंदा का रास्ता रोक कर उस की कलाई थाम ली.

राजा की इस हरकत पर चंदा ने हाथ झटक कर उसे कड़ी फटकार लगाई. जिस राजा पर लड़कियां मरती हैं, उस के साथ हमबिस्तरी के लिए तैयार रहती हैं, उस के अहम को एक साधारण सी लड़की ने ही चोट पहुंचाई थी.

राजा से यह बेइज्जती बरदाश्त न हुई और उस ने चंदा से बदला लेने का भी एक प्लान बनाया. चूंकि कोमल पहले से ही राजा के प्रेमजाल में फंसी हुई मैना थी, इसलिए उस से अपनी बात मनवाना बाएं हाथ का खेल था. अपना तनमन राजा कोसौंप चुकी कोमल आखिरकार प्रेमी के खतरनाक प्लान में शामिल हो गई. वैसे भी उसे चंदा से कोई खास लगाव नहीं था.

कुछ दिन बाद एक दोपहर को मौका पा कर कोमल चंदा को बातों में लगाए घर से दूर मुखियाजी के ट्यूबवैल वाले खेत पर ले गई. वहीं फसलों के साथ टिन से घिरे बाड़े में राजा की ऐयाशी का अड्डा था, जहां सिगरेट, शराब, परफ्यूम और जोश बढ़ाने का स्प्रे रखा था. वहां राजा कई लड़कियों के साथ रंगरलियां मना चुका था.

कोमल का इशारा पाते ही बाड़े में छिपे राजा ने पीछे से आ कर बेखबर चंदा को दबोच लिया, फिर बाड़े में बिछे गद्दे पर उसे गिरा कर वहशीपन करने लगा. चंदा के कपड़े फट गए. वह चीखी, बचाने के लिए कोमल से कई बार गुहार लगाई, लेकिन वह तो बड़ी बेशर्मी से मुसकराते हुए तमाशा देखती रही.

आखिरकार भेडि़ए राजा ने अपने शिकार मेमने को पूरी तरह खा कर ही छोड़ा.

बाड़े में अब रोती हुई चंदा और उसे झूठी दिलासा देती हुई कोमल ही रह गई थी. चंदा अपनी इस हालत का जिम्मेदार दगाबाज सहेली कोमल को मानती थी. उस ने गुस्से में कोमल को एक जोर का थप्पड़ जड़ दिया, फिर किसी तरह चुनरी से खुद को ढक कर घर चली गई.

अगली सुबह कोमल को उस की मां ने एक खबर दी, तो वह सहम गई. चंदा ने नदी में कूद कर खुदकुशी कर ली थी.

अब कोमल को यह डर सताने लगा कि कहीं चंदा ने मरने से पहले अपने घर में उस की असलियत न बता दी हो, इसलिए वह काफी दिनों तक चंदा के घर नहीं गई.

जब चंदा को मरे 3 महीने बीत गए और कोई पुलिस कार्यवाही भी नहीं हुई, तब कहीं कोमल को पूरी तरह तसल्ली मिली. अब बदनामी और कोर्टकचहरी का कोई खतरा नहीं रह गया था, लेकिन इस बीच राजा से उस के संबंध बने रहे.

कुछ महीने और मजे करने के बाद एक दिन कोमल को एहसास हुआ कि वह पेट से है, तो उस के चेहरे की रंगत उड़ गई.

अगले दिन कोमल ने ट्यूबवैल वाले अड्डे पर पहुंच कर राजा को यह बात बताई और उसे बदनामी से बचाने के लिए शादी करने को कहा.

इतना सुनते ही राजा भड़क उठा. वह कोमल को गरियाते हुए बोला, ‘‘चल भाग यहां से… न जाने किस का बच्चा लिए यहांवहां फिरती है. मुझे इस का बाप बता कर शादी का दबाव डालती है. भाग जा यहां से… दोबारा मेरे पास आई, तो तुझे मार कर नदी में फिंकवा दूंगा.’’

कोमल अपना सब ‘खजाना’ लुटा चुकी थी. अब कुछ न बचा था उस के पास. ऐयाश राजा की जानमाल की धमकी से वह सकपका गई और फिर रोते हुए घर लौट आई.

खतरनाक हो चुके राजा से मुकाबला करने की हिम्मत और हैसियत कोमल के पास नहीं थी. अब रहरह कर उसे मासूम चंदा की नेक नसीहतें याद आ रही थीं. लेकिन अब क्या फायदा… काफी देर हो चुकी थी.

वैसे भी चंदा की मौत की जिम्मेदार खुद कोमल की ही दगाबाजी थी. वह चंदा की हत्यारिन है. उस ने ही चंदा को मारा है. जब सब को उस की बदचलनी पता चलेगी, तो लोगों को क्या जवाब देगी?

यही सब सोचसोच कर कोमल गहरे तनाव में डूब गई और फिर एक रात उस ने कीटनाशक पी कर खुदकुशी कर ली.

ननकू का रेडियो और फूलमती

“दादू, क्या आप किसी अमीन सयानी को जानते हैं?” 62 साल के ननकू से जब उस की पोती राधा ने सवाल किया, तो उस की आंखों में चमक आ गई.

“क्यों… क्या हुआ?” ननकू ने राधा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

“पहले आप यह बताओ कि उन के नाम से आप को सब से पहले क्या याद आता है?”

“मुझे तो अपना बीता हुआ वह जमाना याद आ गया है, जब किसी घर में रेडियो का होना शान की बात समझा जाता था. खेत में थकाहारा किसान और सरहद पर दुश्मन से रखवाली करता जवान रेडियो को ही अपना पसंदीदा टाइमपास मानता था. हर खास और आम घरों में रेडियो बजता सुनाई दे जाता था…”

“उसी जमाने में एक आवाज ने रेडियो सुनने वालों को अपना दीवाना बना लिया था. वह कोई गायक नहीं था, कोई फिल्म हीरो भी नहीं था, पर उस की आवाज में गजब की खनक और मिठास थी.

“उस भलेमानस का नाम नाम था अमीन सयानी. ‘रेडियो सीलोन’ और फिर ‘विविध भारती’ पर‌ तकरीबन 42 सालों तक चलने वाला हिंदी गीतों का उन का कार्यक्रम ‘बिनाका गीतमाला’ इतना ज्यादा मशहूर हो गया था कि लोग हर हफ्ते उन्हें सुनने के लिए बेकरार रहा करते थे. अरे, बाद में उसी ‘बिनाका गीतमाला’ का नाम बदल कर ‘सिबाका गीतमाला’ कर दिया गया था.”

“दादू, अब वही मखमली आवाज चुप हो गई है. 91 साल की उम्र में अमीन सयानी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. मंगलवार, 20 फरवरी, 2024 की शाम को हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई. उन के बेटे राजिल सयानी ने यह दुखद खबर दी थी,” राधा ने बुझे मन से बताया.

“अरे, बाप रे. यह तो बहुत बुरा हुआ. हुआ क्या था उन्हें?” ननकू ने उदास हो कर पूछा.

“राजिल सयानी ने बताया कि अमीन‌ सयानी को मंगलवार को उन के दक्षिण मुंबई में बने घर पर शाम के 6 बजे हार्ट अटैक आया था. इस के बाद उन्हें दक्षिण मुंबई के एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में ले जाया गया, जहां पर इलाज करने के कुछ देर बाद ही डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.”

राधा की इस खबर ने ननकू को तोड़ कर रख दिया. वह बिस्तर से उठा और अलमारी में रखे एक छोटे से संदूक को बाहर निकाल लाया. वह संदूक था ननकू की मीठी यादों का पिटारा. उस ने टूटेफूटे उस संदूक को खोला और अपनी पोती राधा को पास बुलाया.

राधा हैरान थी कि अमीन सयानी की इस दुखद खबर के बाद दादू ने यह संदूक इतने साल बाद क्यों खोला? उस संदूक में बरसों पुराना सामान रखा था और साथ में था धूल में सना एक रेडियो, जो अब चलने की हालत में नहीं दिख रहा था.

ननकू ने वह रेडियो बाहर निकाला, कांपते हाथों से उस की धूल झाड़ी और खो गया उस जमाने में, जब वह महज 12 साल का था.

आज भले ही ननकू अपने परिवार के साथ लखनऊ शहर में रहता है, पर तब वह बांदा से सटे एक गांव में रहता था. 1974 का साल था. ननकू गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ता था और अपने घर से थोड़ी दूर रहने वाली फूलमती के साथ स्कूल आताजाता था.

फूलमती भी ननकू की हमउम्र थी और पढ़ाई में तेज. पर उन दोनों को रेडियो सुनने का शौक था. हर बुधवार को रात के 8 बजे से रात के 9 बजे तक. यह एक घंटा उन दोनों के लिए अकेले मिलने का जरीया था.

दिन में स्कूल की पढ़ाई, फिर घर के काम निबटाने, थोड़ाबहुत खेतीबारी में हाथ बंटाना और फिर रात को रेडियो पर प्यारभरे नगमे सुनना.

ननकू हर रात चोरीछिपे अपना रेडियो उठाए पहुंच जाता था फूलमती के घर के पिछले हिस्से में, जहां वह अपनी खिड़की से बाहर खड़े ननकू के रेडियो पर ‘सिबाका गीतमाला’ सुनती थी.

एक रात की बात है. साल था 1974. ननकू और फूलमती में शर्त लगी थी कि इस साल ‘सिबाका गीतमाला’ में साल का टौप का गाना कौन सा रहेगा?

फूलमती ने कहा, “तुम मुझ से शर्त मत लगाया करो. पिछले साल भी हार गए थे. तब फिल्म ‘जंजीर’ का गाना ‘यारी है ईमान मेरा…’ बाजी मार गया था.”

इस पर ननकू ने कहा, “हर बार तुक्का नहीं लगता. अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. इस बार तो गाना ‘मेरा जीवन कोरा कागज, कोरा ही रह गया…’ ही सरताज बनेगा.”

इस बार वाकई ननकू का कहा सही साबित हुआ. वही गाना सरताज बना था. ननकू ने फूलमती को देख कर आंख दबा दी. वह शरमा कर खिड़की बंद करते हुए वहां से भाग गई…

“क्या हुआ दादू, आप कहां खो गए?” राधा की आवाज ने ननकू को यादों से बाहर निकाला.

“कुछ नहीं बेटी. अच्छा, यह तो बता खबर में अमीन सयानी के बारे में और क्याक्या छपा है?” झिलमिलाती आंखों से ननकू ने पूछा.

“यही कि अमीन सयानी के नाम पर 54,000 से ज्यादा रेडियो कार्यक्रम प्रोड्यूस, कंपेयर, वौइसओवर करने का रिकौर्ड दर्ज है. तकरीबन 19,000 जिंगल्स के लिए आवाज देने‌ के लिए भी उन का नाम ‘लिम्का बुक्स औफ रिकौर्ड्स’ में दर्ज है.

“अमीन सयानी ने ‘भूत बंगला’, ‘तीन देवियां’, ‘कत्ल’ जैसी फिल्मों में अनाउंसर के तौर पर भी काम किया था. रेडियो पर फिल्मी सितारों पर बना उन का शो ‘एस. कुमार का फिल्मी मुकदमा’ भी काफी मशहूर हुआ था.

“बाद में अमीन सयानी ने कई शो होस्ट किए थे, जिन में ‘फिल्मी मुलाकात’, ‘सैरिडौन के साथी’, ‘बौर्नविटा क्विज कौंटैस्ट’, ‘शालीमार सुपरलैक जोड़ी’, ‘सितारों की पसंद’, ‘चमकते सितारे’, ‘महकती बातें’ और ‘संगीत के सितारों की महफिल’ शामिल रहे थे.

“21 दिसंबर, 1932 को जनमे अमीन सयानी अपने जमाने में रेडियो की दुनिया के सुपरस्टार थे. उन का कार्यक्रम की शुरुआत में ही ‘बहनो और भाइयो’ के साथ रेडियो सुनने वालों को संबोधित करने का तरीका बड़ा फेमस हुआ था. साल 2009 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से भी नवाजा गया था…” राधा बोले जा रही थी, पर ननकू तो फिर से अपनी फूलमती और रेडियो के पास जा पहुंचा था.

रेडियो ने ननकू और फूलमती की दोस्ती गहरी कर दी थी. एक शाम को ननकू खेत से लौट रहा था. रेडियो पर उस का पसंदीदा गाना ‘हायहाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी…’ बज रहा था. इतने में उसे फूलमती दिखाई दी. ननकू ने गाने की आवाज तेज कर दी. फूलमती भी चारा काटते हुए वह गाना गुनगुनाने लगी.

“आज रात को तैयार रहना 8 बजे. बुधवार है न,” ननकू ने कहा.

“ठीक है,” फूलमती बोली. पर वे दोनों नहीं जानते थे कि उन की बातें पास ही पेड़ की आड़ में खड़ी फूलमती की मां सुन रही थीं.

मां ने घर में जाते ही फूलमती के बापू को पूरी बात बता दी. पहले तो बापू को लगा कि यह उन दोनों का बचपना है, क्योंकि वे एकसाथ जो रहते हैं, पर रात को ननकू का घर के पिछवाड़े में आ कर मिलना अखर गया.

रात के 8 बजे ननकू और फूलमती ‘सिबाका गीतमाला’ पर प्यार भरे नगमे सुन रहे थे कि अचानक फूलमती के बापू ने ननकू को दबोच लिया. बस, फिर क्या था. बापू ने ननकू की धुनाई कर दी. इधर, फूलमती की मां ने उसे ताबड़तोड़ थप्पड़ बरसाने शुरू कर दिए.

“अगर तू आज के बाद फूलमती के आसपास भी दिखा तो अच्छा नहीं होगा. गांव का लड़का है, इसलिए पहली गलती मान कर तुझे छोड़ रहा हूं,” फूलमती के बापू ने ननकू को धमकाते हुए कहा.

ननकू ने अपने कपड़े झाड़े, पास रखा रेडियो उठाया और भारी मन से वहां से चला गया. फूलमती की खिड़की बंद हो चुकी थी.

इस के बाद फूलमती का स्कूल जाना बंद हो गया. ननकू की जिंदगी दर्दभरे नगमे सी हो गई थी. उसे पहली बार अहसास हुआ था कि वह फूलमती को पसंद करता है. यही हाल फूलमती का भी था. उन दोनों को जोड़ने वाला रेडियो भी अब शांत रहने लगा था.

इस बात को 3 साल गुजर गए थे. 15 साल की होते ही फूलमती के हाथ पीले कर दिए गए. 1977 का साल था. फिल्म ‘लैला मजनू’ का गाना ‘हुस्न हाजिर है मोहब्बत की सजा पाने को…’ ‘सिबाका गीतमाला’ पर खूब बज रहा था, जो ननकू की नाकाम मोहब्बत पर फिट बैठ रहा था.

उस बुधवार की रात ननकू खूब रोया था. रात जैसेतैसे कटी थी. अगले ही दिन वह अपना रेडियो ले कर फूलमती की ससुराल जा पहुंचा और उस के घर से थोड़ी दूर बैठ कर तेज आवाज में रेडियो पर गाने सुनने लगा.

गाने की आवाज सुन कर फूलमती के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. उस ने मन ही मन कहा, ‘बस, ननकू यहां न आया हो.’

फूलमती डरतीडरती खिड़की पर आई और सामने ननकू को देख कर उस की आह निकल गई. चूंकि घर के आसपास कुछ दुकानें थीं, तो किसी को शक नहीं हुआ कि ये गाने क्यों बज रहे हैं.

यह सिलसिला कई साल चला. ननकू रोज वहां आता और एक चाय की दुकान पर बैठ कर गाने सुनता. फूलमती खिड़की से सब देखती और इशारे से ननकू को वहां से जाने की गुजारिश करती, पर ननकू तो जैसे फूलमती की एक झलक पाने के लिए यह सब कर रहा था…

“दादू, खाना खा लो. आज आप की पसंद की कटहल की सब्जी बनी है,” राधा की आवाज ने ननकू का ध्यान भंग किया.

“मन नहीं है,” ननकू ने इतना ही कहा और अपने रेडियो को ताकने लगा और फिर यादों में खो गया.

ननकू और फूलमती को दूर हुए अब 25 साल बीत चुके थे. एक दिन ननकू को पता चला कि फूलमती को कोई बड़ी बीमारी हो गई है और वह अस्पताल में आखिरी सांसें ले रही है. वह तुरंत अपना वही रेडियो ले कर अस्पताल पहुंचा.

उस समय फूलमती के कमरे में कोई नहीं था. वह आंखें बंद किए लेटी हुई थी. ननकू ने धीरे से रेडियो चला दिया. भूलेबिसरे गानों का प्रोग्राम चल रहा था. शम्मी कपूर की फिल्म ‘पगला कहीं का’ का गाना ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे…’ बज रहा था.

फूलमती ने आंखें खोल दीं और अपने सामने ननकू को देख कर उस की आंखें गीली हो गईं. ननकू ने उस का हाथ पकड़ लिया. फूलमती की हथेली पर ननकू की आंख से आंसू गिरने लगे.

यह वह आखिरी गाना था, जो उन दोनों ने साथ सुना था. फूलमती अब इस दुनिया में नहीं थी.

वह दिन है और आज का दिन, ननकू ने वह रेडियो कभी नहीं चलाया. आज बुधवार को अमीन सयानी की मौत की खबर ने ननकू और फूलमती के अधूरे प्यार को जिंदा कर दिया था.

ननकू ने वह रेडियो चलाया, पर उस में से ‘खरखर’ की आवाज ही आ रही थी, जैसे अमीन सयानी की मौत के बाद उस का गला बैठ गया हो.

आंसू खुशी के: कैसी थी इशहाक की जिंदगी

शाम हो चुकी थी. धीरेधीरे करते हुए इशहाक को पार्क में आए काफी देर हो चुकी थी. न जाने क्या बात थी, जो उसे कसक रही थी. खामोश सा कुछ वह सोचता हुआ चला जा रहा था, ‘आखिर मैं कैसे बताऊं शबाना को कि मैं उस के लायक नहीं हूं. मैं अभी तक बेकार हूं और वह मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी कर रही है.

‘मेरा परिवार गरीब और उस के पिता नामीगिरामी वकील. कहीं भी तो बराबरी नहीं…’ सोचतेसोचते उस का मन किया कि वह शहर से बाहर चला जाए, फिर वह आगे सोचने लगा, ‘अगर मैं बिना बताए बाहर निकल भी जाऊं तो अम्मी का क्या होगा… वे तो सदमे से मर जाएंगी. अब्बा चल भी नहीं पाते, उन्हें कौन सहारा देगा… रुखसार की शादी कैसे होगी… बाहर चले जाने पर भी नौकरी मिलने की कोई गारंटी नहीं है…’

तभी एक आवाज ने इशहाक को चौंका दिया, ‘‘अरे इशहाक साहब, जरा मेरी तरफ भी थोड़ा देख लीजिए, कब से मैं आप के पास खड़ी हूं,’’ यह शबाना थी, जो औफिस से लौट कर इशहाक से मिलने आई थी.

इशहाक मुसकराया और बोला, ‘‘आओ शब्बो, बैठो. तुम्हारे औफिस में आज कुछ देर से छुट्टी हुई… क्या आज काम ज्यादा था?’’

‘‘नहीं, काम तो रोज के हिसाब से था, लेकिन औफिशियल मीटिंग में देर हुई…’’ शबाना ने बैंच पर बैठते हुए कहा, ‘‘तुम्हें मेरे लिए काफी देर तक बैठना पड़ा… सौरी.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं,’’ इशहाक बोला.

शबाना गौर से इशहाक के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘कुछ ऐसा क्यों नहीं करते कि हमारा इंतजार हमेशा के लिए खत्म हो जाता…’’

इशहाक ने शबाना के चेहरे की तरफ एकबारगी देखा और खामोश ही रहा.

शबाना ने दोहराते हुए पूछा, ‘‘कोई बात है क्या? इतने चुप क्यों हो?’’

‘‘नहीं, कोई बात नहीं. और सुनाओ, आज का दिन औफिस में कैसा गुजरा?’’ इशहाक ने बात टालते हुए कहा.

‘‘ईशु मियां, बात टालते हुए अरसा गुजर रहा है. अब हमें अपनी जिंदगी को जवाब देना है. आखिर कब तक हम जिंदगी के सब से अहम सवाल को यों ही टालते रहेंगे?

‘‘तुम अच्छी तरह से जानते हो कि मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकती. अब वक्त बहुत बीत गया है, इसलिए निकाह बहुत जरूरी है. तुम मेरे अब्बू से क्यों नहीं मिलते?’’ शबाना ने इशहाक को झकझोरते हुए कहा.

‘‘शब्बो, यह इतना आसान नहीं है. तुम समझने की कोशिश तो करो, मैं कैसे अब्बू से मिलूं. हजार सवाल पूछे जाएंगे. सब से बड़ा सवाल होगा कि मैं क्या करता हूं? तुम्हीं ही बताओ कि इस सवाल का मैं क्या जवाब दूं?

‘‘कैसे बताऊं कि मैं एमबीए करने के बाद भी बेकार हूं और मेरे पास रहने के लिए अपना घर तक नहीं है. तुम्हारे अब्बू किसी ऐसे आदमी से तुम्हारे निकाह के लिए कैसे हां कर सकते हैं?

‘‘मेरी बात मानो, तो मुझे भूलने की कोशिश करो. मैं तुम्हें कैसे खुश रख सकता हूं, जिस के पास न तो कोई नौकरी है और न ही रहने के लिए घर.

‘‘तुम एक बड़े घर में रहने वाली और बड़ी कंपनी में काम करने वाली खूबसूरत लड़की हो. और मैं…’’ इशहाक की आवाज कांप रही थी. उसे लग रहा था कि वह रो देगा. वह किसी तरह खुद को संभाल पा रहा था.

‘‘ईशू, यह आज क्या हो गया है तुम्हें? कैसी बातें कर रहे हो… तुम बेहद काबिल हो. आज नहीं तो कल नौकरी मिल ही जाएगी. इस तरह निराश मत हो और मुझ से ऐसी बातें मत करो.

‘‘तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगी. रही बात अब्बू की, तो वे वकील हैं और उन की जिंदगी की शुरुआत बहुत ही खराब थी. उन्होंने काफी जद्दोजेहद की है और बहुत दर्द सहने के बाद आज इस मुकाम पर पहुंच सके हैं.

‘‘उन्हें धनदौलत और शोहरत वाला लड़का नहीं चाहिए, बल्कि ऐसा कोई हो, जो मुझे प्यार करे और मेरे जज्बात को तवज्जुह दे.

‘‘वे अकसर कहते हैं कि शबाना की शादी मैं ऐसे लड़के से करूंगा, जो भले ही गरीब हो, लेकिन काबिल हो सब से अहम बात कि वह शबाना से बेहद प्यार करता हो.

‘‘ईशु, तुम एक बार मिल कर बात तो करो. कल इतवार है और सब लोग घर पर ही रहेंगे. तुम कल मेरे घर आ जाओ. तुम बिलकुल मत घबराओ. मैं वहीं रहूंगी और हमेशा तुम्हारे साथ हूं,’’ शबाना ने इशहाक का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा.

‘‘लेकिन शब्बो, कुछ अनहोनी न हो जाए,’’ इशहाक ने घबराहट में कहा.

‘‘जोकुछ भी होगा, हमारे साथ होगा… मैं साथ रहूंगी,’’ शबाना ने बहुत आत्मविश्वास से कहा और थोड़ी देर के बाद वह चली गई.

दूसरे दिन इशहाक बड़ी हिम्मत कर के शबाना के घर पहुंचा. उस समय शबाना के अब्बू बैठक में ही बैठे थे.

‘‘अब्बू, ये इशहाक हैं और मेरे साथ पढ़े हैं. मैं इन्हें अच्छी तरह से जानती

हूं. ये आप से मिलने आए हैं,’’ शबाना

ने कहा.

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है कि तुम इन्हें जानती हो. बैठो बेटा. मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’ अब्बू ने पूछा.

‘‘मैं ने एमबीए फर्स्ट क्लास में पास किया है, पर कितनी कोशिश के बाद भी मुझे नौकरी नहीं मिली,’’ इशहाक बोला.

‘‘इस में परेशान होने की बात नहीं है बेटा, आज नहीं तो कल कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी, बस कोशिश करते रहना चाहिए.’’

‘‘अब्बू, मैं भी इन से यही कहती हूं कि कोशिश करने वाले कभी हारते नहीं,’’ शबाना ने बीच में दखल देते हुए कहा.

‘‘हां, जिंदगी में उतारचढ़ाव तो आते रहते हैं, लेकिन हिम्मत नहीं हारनी चाहिए. वैसे, मेरे एक दोस्त हैं… उन का कुछ असरदार लोगों से परिचय है. मैं उन से बात करूंगा. हो सकता है कि तुम्हारा काम हो जाए. तुम कल शाम को मुझ से मिलो,’’ कहते हुए शबाना के अब्बू उठ कर बाहर चले गए.

बैठक में शबाना और इशहाक रह गए. ‘‘ईशु मियां, ऐसे तो तुम कभी अपनी बात नहीं कह पाओगे,’’ शबाना ने रूठते हुए कहा. खैर, अगले दिन शाम को फिर इशहाक शबाना के घर पहुंचा.

‘‘आओ बेटा, शबाना तुम्हारे बारे में ही बात कर रही थी,’’ शबाना के अब्बू ने कहा.

इशहाक के चेहरे पर कई तरह के भाव आए. कुछ घबराहट सी हुई कि कहीं शबाना ने सारी बात तो नहीं बता दी. वह चुपचाप बैठ गया.

‘‘मैं ने तुम्हारे बारे में बात की है. हो सकता है कि तुम्हारा काम हो जाए, लेकिन तुम्हें मैं जहां भेज रहा हूं, वहां जा कर मेरे दोस्त से मिलना होगा. और जो वे कहें, वह मानना पड़ेगा,’’ शबाना के अब्बू ने इशहाक से कहा.

‘‘जी, मैं तैयार हूं,’’ इशहाक बोला.

‘‘तो ठीक है. मेरा खत ले कर जाओ और उन से मिलो,’’ वकील साहब ने इशहाक को खत देते हुए कहा.

इशहाक खत ले कर वकील साहब के दोस्त के यहां पहुंचा. खत पढ़ कर उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है. मैं आप का काम करा दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है.’’

‘‘कैसी शर्त?’’ इशहाक ने पूछा.

‘‘शर्त यह है कि नौकरी मिलने के बाद आप को मेरी बेटी से शादी करनी होगी.’’

‘‘लेकिन, मैं यह शादी नहीं कर सकता. मैं किसी और से प्यार करता हूं और मैं ने उस से शादी का वादा किया है,’’ इशहाक ने जोर दे कर कहा.

‘‘देखो, मेरी बेटी से शादी करने के बाद ही मैं तुम्हारे लिए कुछ सोच सकता हूं, इसलिए तुम्हें एक दिन का मौका है… सोचसमझ लो और चाहो तो मेरी बेटी से मिल भी सकते हो,’’ वकील साहब के दोस्त ने कड़े लहजे में कहा.

इशहाक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वह शबाना को किसी भी हालत में छोड़ने की सोच भी नहीं सकता था और नौकरी उस के लिए बहुत जरूरी थी. प्यार के नाम पर वह कोई समझौता नहीं कर सकता था.

‘‘ठीक है अंकल, मैं कल सोच कर जवाब दूंगा,’’ कहते हुए इशहाक चला आया. घर पहुंच कर वह सोचने लगा, ‘क्या शबाना के अब्बू ने जानबूझ कर मुझे ऐसे आदमी के पास भेजा था या

मेरी मजबूरी का फायदा उठाते हुए मुझे जानबूझ कर शबाना से अलग करने की चाल है? क्या शबाना को यह सब पता है? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता,’ यह सोचते हुए उसे नींद आ गई.

अगले दिन इशहाक मन में कुछ सोच कर शबाना के अब्बू से मिलने उस के घर गया. शबाना घर पर ही मिल गई. उस ने शबाना को सारी बात बताई.

पहले तो शबाना को यकीन ही नहीं हुआ, फिर वह इशहाक का हाथ पकड़ कर बैठक में गई. वहां उस के अब्बू अपने किसी मुवक्किल से बात कर रहे थे. अचानक ऐसे शबाना के अंदर आने से वे चौंक गए.

‘‘अब्बू, यह आप ने क्या किया है… जब आप को मालूम था कि अंकल ऐसे हैं, तो आप ने इशहाक को उन के पास क्यों भेजा?’’ शबाना ने गुस्से में भर कर कहा.

शबाना के अब्बू को अंदाजा हो गया था कि शबाना और इशहाक एकदूसरे के बहुत करीब हैं, लेकिन मौजूदा हालात की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.

‘‘बेटा, पहले कमरे में चलो. वहां बात करते हैं,’’ कहते हुए वे उन दोनों को भी कमरे में ले आए.

‘‘हां, अब बताओ कि क्या बात है. और इशहाक, तुम्हारे साथ कल क्या हुआ?’’

इशहाक ने सारी बात बताई.

‘‘अब्बू बताइए कि आप ने ऐसे आदमी के पास इशहाक को क्यों भेजा?’’ शबाना ने पूछा.

‘‘बेटा, यह बात मुझे पहले से मालूम थी कि उन की लड़की ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है और मानसिक रूप विकलांग है. लेकिन यह सच नहीं है कि मैं ने इशहाक को उन के पास इसलिए भेजा कि वह नौकरी के लिए उन की लड़की से शादी कर ले. मुझे इस का अंदाजा भी नहीं था कि वे ऐसा करेंगे,’’ वकील साहब ने अपनी बात समझाने की कोशिश की.

‘‘पर अब्बू, इशहाक और मैं शादी करना चाहते हैं और आप हमें इजाजत दीजिए,’’ शबाना ने एकदम से कह दिया.

इशहाक चुपचाप खड़ा रहा. थोड़ी देर तक वहां सन्नाटा पसर गया और वकील साहब भी अवाक खड़े रह गए. फिर वे सामने कुरसी पर बैठ गए और उन दोनों को भी बैठने को कहा.

बैठने से पहले शबाना गिलास में पानी ले कर आई और अब्बू को दिया, फिर वह बोली, ‘‘अब्बू, आप ने ही सिखाया था कि मांबाप से दिल की बात साफसाफ कह देनी चाहिए. इशहाक गरीब जरूर है, लेकिन इस में आत्मसम्मान बहुत ज्यादा है. सब से खास बात तो यह है कि यह काबिल है. हम एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं और हर हाल में खुश रहेंगे,’’ शबाना ने अपने अब्बू से सबकुछ कह डाला.

‘‘अब्बू, मैं वादा करता हूं कि शबाना को हमेशा खुश रखूंगा और चाहे कैसे भी हालात हों, हम मिल कर उन का सामना करेंगे और हमेशा खुश रहेंगे,’’ इशहाक ने भी कहा.

‘‘अच्छा ठीक है. लेकिन, मैं लड़की वाला हूं, तो मुझे तो रिश्ता मांगने इशहाक के मांबाप से मिलने जाना होगा. जब तक शादी की तारीख तय न हो जाए, तब तक के लिए मुझे वक्त चाहिए.

‘‘इशहाक, तुम मेरे साथ 2 दिन बाद चलोगे, जहां तुम्हारी नौकरी की बात शबाना के मामू की कंपनी में करनी है. शादी की तारीख तक मुझे तुम्हारी नौकरी पक्की करानी है. अब तो मेरा काम बढ़ गया है. जल्दी से जल्दी शादी की तारीख निकलवाने की कोशिश करूंगा.’’

इतना कह कर वकील साहब ने शबाना और इशहाक को अपने गले से लगा लिया. शबाना की आंखों में खुशी के आंसू आ गए.

सोनी खातून : इम्तियाज से बनाएं नाजायज संबंध

रात के 2 बजे थे. अचानक सोनी खातून की बेटी शबनम, जो महज 7 साल की थी, की आंख खुली, तो उस ने देखा कि एक कंबल ऊंचा उठा हुआ था और उस में से तरहतरह की आवाजें आ रही थीं.

शबनम ने जब वह कंबल हटाया, तो देखा कि अंदर उस की मां और दूर का मामा इम्तियाज बिना कपड़ों के पड़े थे.

शबनम ने पूछा, ‘‘मां, तुम कपड़े उतार कर इम्तियाज मामा के साथ क्या कर रही हो?’’

सोनी खातून ने शबनम को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, तेरे मामा के सीने में दर्द हो रहा था, तो मैं मालिश कर रही थी.’’

अगले दिन शबनम ने अपने अब्बा ताहिर को इस घटना के बारे में फोन कर के बता दिया.

ताहिर ने घर आ कर जब सोनी से इस बारे में पूछा, तो उस ने बात को टालते हुए कहा, ‘‘शबनम ने कोई बुरा सपना देखा होगा, इसलिए वह ऐसा बोल रही है.’’

सोनी खातून की यह बात सुन कर ताहिर आगबबूला हो गया और गुस्से में उसे उलटासीधा बोलने लगा, तो सोनी खातून भी गुस्से में आ गई और बोली, ‘‘ठीक है, मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना. मैं इम्तियाज के साथ जा रही हूं.’’

सोनी खातून की यह बात सुन कर ताहिर डर गया. वह अपनी बीवी को बहुत प्यार करता था. उस ने उसे सम?ाते हुए कहा, ‘‘ठीक है, तुम मुझे छोड़ कर मत जाओ. तुम्हारा जो दिल करे, वह करो, पर मुझे और मेरे बच्चों को छोड़ कर मत जाना.’’

अब सोनी खातून को हरी झंडी मिल चुकी थी और वह अपनी मरजी से घर में इम्तियाज के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगी.

यह कहानी बिहार के इसलामनगर के नवादा शहर की है, जहां ताहिर अपनी बीवी सोनी खातून और 3 बच्चों के साथ एक किराए के मकान में रहता था.

ताहिर एक ट्रक ड्राइवर था, जो ज्यादातर घर से दूर कोलकाता में रहता था.

सोनी खातून देखने मे बड़ी खूबसूरत और गदराए बदन की औरत थी. उस का खूबसूरत बदन ऐसा था कि जो भी उसे देख ले, बस देखता ही रह जाए.

ताहिर काम के सिलसिले में ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था. यही वजह थी कि सोनी खातून की जवानी मर्द का प्यार पाने के लिए बेचैन रहती थी.

एक दिन सोनी खातून की मुलाकात इम्तियाज से हुई. इम्तियाज ने उस के खूबसूरत बदन की जम कर तारीफ की. अपनी तारीफ सुन कर सोनी खातून उस की तरफ खिंचने लगी. धीरेधीरे उन दोनों में बातचीत होने लगी और यह बातचीत कब प्यार में बदल गई, उन दोनों को पता ही नहीं चला.

इम्तियाज अब ताहिर के घर में सोनी खातून का मुंहबोला भाई बन कर आनेजाने लगा. बच्चे उसे ‘मामा’ कह कर पुकारने लगे.

ठंड का महीना था. इम्तियाज सोनी खातून के घर पर आया हुआ था. हलकीहलकी बारिश हो रही थी. काफी रात होने के बाद भी बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी. सोनी खातून ने कमरे में ही इम्तियाज का बिस्तर लगा दिया.

इम्तियाज अपने बिस्तर पर लेट गया, पर उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह तो सोनी खातून को पाने की लालसा में उस के घर रुका था.

सोनी खातून का भी हाल कुछ ऐसा ही था. ठंड के महीने में उसे पति की गैरमौजूदगी सता रही थी. उस का बदन आज किसी मर्द का प्यार पाने के लिए कुछ ज्यादा ही बेताब हो रहा था.

सोनी खातून ने इम्तियाज की तरफ नजर डाली, तो देखा कि वह भी बिस्तर पर करवट बदल रहा था. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी.

थोड़ी देर में इम्तियाज उठ कर बैठ गया और ठंड के मारे कांपने लगा, तो सोनी खातून भी उठ गई और इम्तियाज के पास जा कर बोली, ‘‘क्या बात है, आप अभी तक सोए क्यों नहीं?’’

इम्तियाज ने उस की ओर आह भरते हुए कहा, ‘‘अकेले नींद नहीं आ रही और ठंड भी काफी हो रही है.’’

सोनी ने कहा, ‘‘तो मैं ठंड दूर कर दूं आप की?’’

इम्तियाज ने कहा, ‘‘मेरी ऐसी किस्मत कहां, जो आप जैसी खूबसूरत हसीना मेरी ठंड दूर करेगी.’’

सोनी खातून ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, ‘‘आप सेवा का मौका तो दो, मैं हाजिर हूं.’’

सोनी के मुंह से यह बात सुनते ही इम्तियाज ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया और उस के बदन पर चुम्मों की बौछार शुरू कर दी.

इम्तियाज की छुअन पाते ही सोनी खातून का बदन कामुक हो उठा. वह भी जल्द ही इम्तियाज को चूमनेचाटने लगी और फिर उस की सिसकियों की आवाज से पूरा कमरा गूंज उठा.

सोनी खातून को इम्तियाज के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाते हुए आज एक अलग ही मजा आया था. यही वजह थी कि वह पूरी तरह से इम्तियाज की दीवानी बन गई.

अब तो उन का यह रोज का काम हो गया था. ताहिर की गैरमौजूदगी में इम्तियाज सोनी खातून के घर आ जाता और दोनों मिल कर खूब मजे करते और एकदूसरे की जिस्मानी प्यास बु?ाते.

अपनी मां को खुलेआम रंगरलियां मनाते देख उस की बेटी शबनम को बहुत गुस्सा आने लगा. वह इम्तियाज को घर आने से मना करने लगी, तो सोनी खातून उसे खूब मारतीपीटती.

एक दिन शबनम अपनी मां से बोली, ‘‘तुम चाहे मुझे जान से मार दो, पर इम्तियाज मामा को मैं घर में नहीं घुसने दूंगी और न ही तुम्हें यह गंदा काम करने दूंगी. अगर अब वे दोबारा यहां आए, तो मैं सब को बता दूंगी कि तुम इम्तियाज मामा के साथ क्याक्या करती हो.’’

शबनम की इस चेतावनी से सोनी खातून परेशान हो उठी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी देह की आग को कैसे ठंडा करे. बाद में उस ने सोचा कि अगर वह अपनी बेटी को रास्ते से हटाती भी है, तो उसे पुलिस पकड़ लेगी और जेल जाना पड़ेगा.

आखिरकार सोनी खातून ने घर से भागने का फैसला कर लिया. घर में रखे जेवर और पैसे ले कर इम्तियाज के साथ अपने पति और बच्चों को छोड़ कर चली गई.

शबनम ने अपनी मां के गायब होने की खबर जब अपने अब्बा ताहिर को दी, तो वह घबरा गया. उस ने फौरन पुलिस स्टेशन जा कर इम्तियाज पर अपनी बीवी को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप लगाया और पुलिस से उसे ढूंढ़ कर लाने की गुजारिश की.

पुलिस ने सोनी खातून को ढूंढ़ने की जांच शुरू कर दी. काफी जद्दोजेहद के बाद पुलिस ने आखिरकार इम्तियाज और सोनी खातून को ढूंढ़ निकाला.

ताहिर को पुलिस स्टेशन बुलाया गया और उस के सामने ही लगाए गए आरोप के बारे में सोनी खातून से पूछा गया, तो उस ने वहां मौजूद सब लोगों के सामने एक हैरान कर देना वाला बयान दिया, जिसे सुन कर पुलिस भी खामोश हो गई.

सोनी खातून बोली, ‘‘मैं एक औरत हूं. मेरी भी कुछ ख्वाहिशें हैं, जो एक मर्द ही पूरी कर सकता है. ताहिर तो कईकई महीने बाहर रहता है और जब घर भी आता है, तो मुझे वह जिस्मानी सुख नहीं दे पाता, जिस की मुझे जरूरत है.’’

सोनी खातून के मुंह से यह बात सुन कर ताहिर का सिर शर्म से झक गया. उस के पास अपनी बीवी के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था.

पुलिस हैरान थी कि अब सोनी खातून और इम्तियाज का क्या किया जाए. ताहिर ने जो इलजाम इम्तियाज पर लगाया था कि वह उस की बीवी को बहलाफुसला कर ले गया है, वह तो गलत निकला, क्योंकि अपने बदन की हवस और जिस्मानी जरूरत पूरी करने के लिए सोनी खातून खुद इम्तियाज के साथ गई थी.

पुलिस ने सोनी खातून और इम्तियाज को छोड़ दिया और ताहिर से कहा कि जब वह अपनी बीवी की जरूरत पूरी नहीं कर सकता और वह उस के साथ नहीं रहना चाहती, तो इस में पुलिस कुछ नहीं कर सकती.

कुछ ही दिनों में सोनी खातून ने ताहिर से अपना रिश्ता तोड़ लिया और इम्तियाज के साथ रहने लगी. ताहिर ने भी कुछ महीने बाद दूसरी शादी कर ली और अपने बच्चों के लिए एक नई मां ले आया. ताहिर और उस के बच्चे भी अब खुश थे.

लूणी घी : हुस्न के चक्कर में बनें घनचक्कर

सुबह के काम से फारिग हो कर सुरेश खिड़की पर खड़ा सब्जी वाले का इंतजार कर रहा था. वह हाथ में मोबाइल पर रील्स देखने में बिजी था कि अचानक ‘लूणी घी चाहिए, लूणी…’ की आवाज ने उसे बाहर देखने को मजबूर कर दिया. खिड़की के बाहर राजस्थानी कुरतेघाघरे में सजी, सिर पर मटकियां रखे 2 अनजान लड़कियां खड़ी पुकार लगा रही थीं.

‘‘क्या है?’’ सुरेश ने बेहद रुखाई से पूछा, लेकिन उन लड़कियों के ठेठ राजस्थानी लहजे में बोले गए शब्द उस के पल्ले नहीं पड़े थे.

‘लूणी चाहिए, लूणी घी. खारा वाला घी लूणी,’ कहते हुए वे दोनों खिड़की के और निकट सरक आईं.

‘‘नहीं चाहिए,’’ कह कर सुरेश ने उन की ओर से पीठ मोड़ ली और फिर अपने मोबाइल में ध्यान लगाना चाहा, पर वे कहां पिंड छोड़ने वाली थीं. उन की आपस में कुछ अपनी भाषा में बात करने की आवाज कानों में आती रही.

‘‘ऐ साहब, सुनो. जरा यह बता दो कि यह मोबाइल नंबर सही है क्या?’’

सुरेश ने बेरुखी से पूछा, ‘‘अब क्या चाहती हो?’’

जवाब में उन में से एक लड़की ने कुरते की जेब से एक परची निकाल कर सुरेश की ओर बढ़ा दी.

‘‘क्या करूं इस का?’’ सुरेश ने पूछा.

उसी पहली वाली लड़की ने जवाब दिया, ‘‘जरा अपने मोबाइल से बात करा दो. यह नंबर एक सरदारजी ने दिया है. साहब, हम तो यहां बिलकुल नएनए आए हैं. वे लूणी घी चाहते हैं और कहा था कि इस नंबर पर फोन कर देना, तो स्कूटर पर वे खुद लेने आ जाएंगे.’’

काफी कोशिश करने पर बड़ी मुश्किल से सुरेश उन की बात कुछकुछ समझ पा रहा था. उन दोनों में बड़ी कशिश थी. उन्होंने ओढ़नी ओढ़ी हुई थी, पर उन के ब्लाउज बेहद छोटे थे. उन्हें भी उन्होंने पीछे से ढीला छोड़ा हुआ था. उन के उभार बाहर निकल रहे थे.

सुरेश देखने से अपने को रोक नहीं सका. अपने मोबाइल से नंबर मिलाया, तो जवाब आया, ‘दिस नंबर डज नौट एग्जिस्ट.’

सुरेश ने परची उस के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘‘नंबर गलत है.’’

वह लड़की अनजान बनते हुए बोली, ‘‘एक सरदारजी ने पिछली बार लूणी घी लिया था. कहा था कि जब भी आऊं उन्हें दे जाऊं. ठीक है न, वह तो पूरा घी मांग रहे थे, पर कह रहे थे कि पैसे वे पेटीएम से भेजेंगे. हम यह तरीका नहीं समझाते न साहब.’’

उन के भोलेपन पर हैरान होते हुए अब तक सुरेश को भी यह जानने की उत्सुकता होने लगी थी कि आखिर यह लूणी घी क्या बला है.

दरवाजा खोल कर सुरेश बाहर निकल आया, ‘‘देखूं, क्या है तुम्हारे पास.’’

मटकियां नीचे उतार कर वे दोनों घाघरे को घुटने के ऊपर कर के बैठ गईं, ‘‘लूणी घी है हमारे पास. लो देखो, ठेठ बीकानेर म्हारा घर है.’’

फिर उन्होंने खूब चहकचहक कर अपनी भाषा में सुरेश को सम?ाया कि  वे बड़ी दूर बीकानेर की रहने वाली

हैं. काफिले के साथ वे निकली थीं. चलतेचलते यहां बिहार तक आ पहुंची हैं. नदी पार उन की गाडि़यां, भैंसें और मर्द हैं. पर अब वे घूमतेघूमते थक चुकी हैं. उन का घी बिक जाए, तो वे लौट जाएंगी.

एक लड़की की आंखों में मोटेमोटे आंसू छलछला आए, ‘‘साहब, यह घी नहीं लोगे, तो यह घी बेकार जाएगा. हम तो सरदारजी के लिए ही लाए थे.’’

उन की भोलीभाली सूरतें, गांव की पोशाक और सैक्सी बोली, बारबार गिरती ओढ़नी से सुरेश का मन ललचा उठा.

‘‘लाओ, एक डब्बा दे दो. कितने का है?’’ कह कर सुरेश पैसे लेने अंदर जाने लगा व साथ में रुपए भी लेता आया, ताकि जल्द से जल्द इन से पीछा छुड़ा कर दरवाजा बंद करे. आजकल अकेले घर में किसी भी अनजान को घुसाना कोई अक्लमंदी नहीं है.

सुरेश लौटा तो वे अपने सारे के सारे डब्बे थैले से निकाल चुकी थीं. एक बोली, ‘‘बस, कोई 5 किलो है. सारा ले लो साहब. हम भी लौट जाएंगी अपने काफिले के पास.’’

‘‘नहीं, इतना घी ले कर मैं क्या करूंगा. कहीं और बेच लेना.’’

पर वे जिद करती रहीं. सुरेश को एका एक अपने दोस्त रोहन का ध्यान आया. क्यों न उसे बुला ले. वह राजस्थानका रहने वाला है. इन की भाषा भी समझ लेगा और इन्हें समझबुझ कर इन की समस्या भी शायद सुलझ दे.

सुरेश को लालच था कि कुछ देर वे ऐसे ही बैठी रहें. उन की खुली टांगें न्योता दे रही थीं.

‘‘रोहन आ जा. अच्छा माल घर आया है,’’ सुरेश ने फोन किया.

रोहन ने आते ही उन लड़कियों को ताड़ा, फिर राजस्थानी भाषा में पूछा कि वे कहां की रहने वाली हैं. अपनी भाषा सुनते ही वे दोनों ऐसी खिल गईं, मानो उन्हें कोई अपना सगा मिल गया हो. हाथमुंह मटकामटका कर उन्होंने कुछ ऐसी बातें की कि रोहन को भी लगा कि ये लड़कियां आसानी से पट जाएंगी.

मटकी में से जरा सा घी निकाल कर अपने हाथ पर रख कर दोनों ने सुरेश और रोहन के मुंह के पास अपने हाथ कर दिए. ‘‘घी तो बिलकुल शुद्ध है. लूणी घी का मतलब ही शुद्ध मक्खन से निकला हुआ घी. देखो न इस का रंग. गाय का दूध पीला होता है न, इसी से यह पीला है. किसी को भी दोगे तो बढि़या लड्डू बनेंगे. सरदारजी ने 8 किलो घी खरीद लिया है, तो जरूर बढि़या होगा,’’ रोहन बोला.

सुरेश खुश था कि ये लड़कियां उन के इतने पास बैठी हैं. ये लड़कियां उसे सैक्सी लगीं, पर वे हमेशा अपने मर्दों से घिरी रहती थीं. उन के बदन से चमेली की सी खुशबू आ रही थी. सुरेश को तो नशा सा होने लगा था.

उन लड़कियों ने मटकी से साथ लाए प्लास्टिक के डब्बों में घी भरना शुरू कर दिया था.

एक लड़की कहने लगी, ‘‘साहब, यह डब्बा एक किलो का है.’’

रोहन कहने लगा कि यह डब्बा तो बहुत बड़ा है. इस में तो डेढ़ 2 किलो घी आ जाएगा, पर वे दोनों एक नहीं मानीं.

‘‘नहींनहीं साहब, हम को बेईमानी मत सिखाओ. हम अभी कुंआरी हैं. हमारे मांबाप ने कहा है कि भूखी मर जाना, पर कभी बेईमानी न करना. हम तो पूरा डब्बा ही भरेंगी.’’

अब तो सुरेश और रोहन उन दोनों की ईमानदारी और सचाई पर कुछ इस कदर फिदा हुए कि सारा घी तुलवाने की सोच बैठे कि 600 रुपए का घी 400 रुपए के भाव में मिल रहा है. यह भी किलो का सवा या डेढ़ किलो. आपस में बांट कर अगले महीने के लिए रख लेंगे, कोई बिगड़ने वाली चीज तो है नहीं.

सुरेश और रोहन ने उन के 5 किलो के डब्बे का घी तुलवा कर रुपए उन के हाथ पर धरे तो उन के खिले हुए चेहरों की चमक देखते ही बनती थी.

सुरेश और रोहन सोच रहे थे कि उन्हें और कैसे रोका जाए, तभी एक लड़की ने जब मटकी जो आधी से कम भरी थी, सिर पर रखी तो फूट गई. घी उस पर बह गया. ??

दूसरी लड़की ने कहा, ‘‘चल, जल्दी चल. डेरे पर जा कर नहाना पड़ेगा.’’

उन दोनों के भोलेपन पर तो सुरेश और रोहन रीझ ही चुके थे. सुरेश ने कहा, ‘‘अरे, ऐसे घी में तर हो कर कहां जाओगी? चलो, यहीं नहा लो. हम कमीज दूसरी दे देंगे. ब्लाउज को घर ले जाना.’’

दोनों लड़कियों ने एकदूसरे को देखा और बोली, ‘‘साहब, आप शरीफ आदमी हैं, इसलिए हम नहा लेते हैं, वरना आज के मर्दों का क्या भरोसा.’’

उस के बाद एक लड़की ने आराम से कोने में खड़े हो कर पीठ कर के ब्लाउज उतार कर निकाल कर रखा, फिर ओढ़नी रखी. लहंगा नहीं उतारा, पर जब गुसलखाने से बाहर फेंका, तो सुरेश और रोहन की हालत बुरी थी.

अब उन दोनों की नजर उस लड़की पर टिकी थी, तो दूसरी लड़की पीछे ही खड़ी थी. थोड़ी देर में नहा कर वापस आई. सुरेश की कमीज पहने वह मौडर्न और चुस्त ही नहीं और सैक्सी लग रही थी. उन्होंने अपना सामान उठाया और चल दीं.

उन में से एक लड़की कहती गई, ‘‘साहब, हमें फोन कर देना. हम आ जाएंगी. इस फोन में रिकौर्डिंग भी है न.’’

सुरेश और रोहन को समझ नहीं आया कि वह क्या कह रही हैं. वह तो बाद में पता चला कि जब वे दोनों नहाने वाली लड़की को देख रहे थे, उन्हीं के फोन से दूसरी लड़की वीडियो बना रही थी. उस ने पीछे से पर्स, लैपटौप, फोन चार्जर अपनी थैली में डाल लिया था. उन की हिम्मत यह थी कि वे सुरेश के फोन पर ही उसे फोन करने को कह गईं.

वे दोनों जानती थीं कि सुरेश पुलिस में तो जाएगा नहीं, क्योंकि अगर वे पकड़ी भी गईं तो कपड़े उतारते हुए वीडियो से सुरेश और रोहन पर उलटा केस बना डालेंगी. लूणी घी के चक्कर में सुरेश अकेला ही नहीं, रोहन भी बुरी तरह फंस गया था.

वह लूणी घी नहीं था, किसी तरह की ग्रीस थी, जो सुरेश और रोहन को फेंकनी पड़ी थी. वे लड़कियां दिनदहाड़े धोखा दे गई थीं. ?

राज : सायरा की खूबसूरती

उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर में एक गांव है चंदनवाला, जहां पर शादाब अपने अम्मीअब्बा और एक छोटे भाई के साथ रहता था. उन की हवेली काफी बड़ी थी. वहीं नजदीक ही शादाब के चाचा अनीस भी अपने परिवार के साथ रहते थे.

दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर में आनाजाना लगा रहता था. शादाब बिजनौर में मोबाइल फोन की दुकान चलाता था. उस की अच्छीखासी कमाई थी. एक दिन उस के लिए नंदपुर गांव की सायरा का रिश्ता आया.

सायरा गजब की खूबसूरत थी, जिसे देखते ही शादाब के अब्बा फुकरान ने उसे अपने घर की बहू बनाने का फैसला कर लिया.

कुछ ही दिनों में शादाब और सायरा का निकाह हो गया. शादी की पहली रात थी. शादाब ने जैसे ही सायरा का घूंघट उठाया, उस के मुंह से खुद ब खुद निकला, ‘‘आप गजब की खूबसूरत हैं.’’

शादाब के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर सायरा शरमा गई और अपने चेहरे को हथेलियों से छिपाने लगी.

शादाब ने बड़े प्यार से सायरा के नाजुक हाथों को उस के चेहरे से हटाया और कहा, ‘‘मेरा चांद हो तुम, जिसे आज जीभर कर देखने दो.’’

सायरा शादी के सुर्ख जोड़े में वाकई कयामत ढा रही थी. उस के सुनहरे बाल, गोरेगोरे गाल, सुर्ख होंठ और बड़ीबड़ी आंखें शादाब को पागल बना रही थीं.

फिर उन दोनों ने एकदूसरे के आगोश में जिस्म की प्यास बुझाई. सुहागरात की उस पहली रात में ही शादाब सायरा का दीवाना बन गया और तनमन से उसे चाहने लगा.

शादी के कई महीनों तक शादाब सायरा के पास अपने घर पर रुका और उसे हर वह खुशी दी, जो एक बीवी को चाहिए.

फिर सायरा पेट से हो गई. यह सुन कर शादाब की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने सायरा का पूरी तरह खयाल रखा, पर उसे अपनी दुकान पर भी जाना था, जो कई महीने से अपने नौकर के भरोसे  छोड़े हुए था.

एक दिन अब्बा ने शादाब से कहा, ‘‘बेटा, अब तू अपना काम देख. सायरा की देखभाल के लिए हम सब हैं न.’’

शादाब बिजनौर में अपनी दुकान पर चला गया. वह हर महीने घर आताजाता था, ताकि सायरा खुद को अकेला महसूस न करे.

आखिरकार वह दिन भी आ गया, जब सायरा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, जिसे पा कर पूरे घर में खुशी का माहौल छा गया.

7वें दिन शादाब ने अपनी बेटी का अकीका बड़ी धूमधाम से मनाया. पूरे गांव को दावत में बुलाया गया और तरहतरह के लजीज खाने का इंतजाम किया गया.

शादाब के अम्मीअब्बा तो पोती पा कर झूम उठे. वे पहली बार दादादादी बने थे, इसलिए उन्होंने सायरा का बहुत खयाल रखा और प्यार दिया. शादाब कुछ दिन गांव में रुक कर अपनी दुकान पर चला गया.

सायरा की बेटी अब 7 महीने की हो गई थी, जिस से पूरे घर में खुशियां ही खुशियां दिखाई देती थीं.

गरमी के दिन थे. रात के 10 बजे थे. सायरा घर में अकेली थी. गरमी के मारे उस का बुरा हाल था. उस के सासससुर छत पर सोए हुए थे, पर सायरा गरमी की वजह से सो नहीं पा रही थी. उस ने अपने कपड़े बदल कर हलकी और ?ानी नाइटी पहन ली, जिस में उस की उभरी हुई गोरीगोरी छाती साफ दिखाई दे रही थी.

सायरा ने गरमी से बचने के लिए अपने कमरे का दरवाजा खोल रखा था और वह आराम से अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी कि तभी उसे अपने बदन पर किसी के हाथ फेरने का अहसास हुआ, जो उस के नाजुक पेट से होते हुए उस की मुलायम छाती को सहला रहा था.

सायरा की आंख खुल गई, पर उसे उन हाथों से जो मजा आ रहा था, वह चाह कर भी कुछ न बोल सकी और यों ही आंखें बंद किए पड़ी रही.

थोड़ी देर के बाद उस ने हलकी सी आंख खोल कर देखा तो पाया कि उस का चचेरा देवर नदीम उस के नाजुक अंगों को सहला रहा था.

सायरा को मजा आ रहा था. उस ने यह जानने के लिए कि नदीम उस के साथ और क्या करेगा, आंखें बंद कर के सोने का नाटक जारी रखा.

नदीम सायरा के बदन को सहलाते हुए उस की उभरी हुई छाती को अपने मुंह में ले कर चूमने लगा, तो सायरा भी मदमस्त हो गई. उस ने नदीम को अपने ऊपर खींच लिया.

नदीम अब सायरा की रजामंदी समझ कर उस पर भूखे भेडि़ए की तरह झपट पड़ा. उस ने सायरा की गरदन पर चुम्मों की ऐसी बौछार कर दी कि वह झूम उठी.

थोड़ी देर बाद नदीम ने सायरा के बदन के एकएक नाजुक अंग को चूमना शुरू कर दिया. जोश में आई सायरा नदीम को अपने ऊपर खींचने लगी.

नदीम ने बिना समय गंवाए सायरा के नाजुक बदन को मसलना शुरू कर दिया. फिर काफी देर तक नदीम सायरा के बदन को रौंदता रहा. संतुष्ट होने के बाद भी वह सायरा को अपनी बांहों में जकड़े हुए एक तरफ निढाल हो कर लेट गया.

सायरा ने नदीम से जो जिस्मानी सुख आज हासिल किया था, वह उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई मर्द उसे इतनी खुशी भी दे सकता है.

सायरा और नदीम का एक बार जिस्मानी रिश्ता बना, तो अब थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. उन्हें जब भी मौका मिलता, वे एकदूसरे से अपने बदन की प्यास बुझाते. उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि जब शादाब को इस का पता चलेगा, तो क्या होगा. ऐसा हुआ भी. एक दिन शादाब ने दोनों को ऐसी हालत में पकड़ा कि वे अपना जुर्म न छिपा सके.

दरअसल, शादाब अपने घर आया हुआ था. घर के सभी लोग छत पर सोए हुए थे, नीचे बस सायरा अकेली सो रही थी. रात के तकरीबन 2 बजे नदीम नीचे आया और सायरा के कमरे में घुस गया.

सायरा नदीम को देख कर उस की बांहों से लिपट गई. दोनों ने बिना समय गंवाए अपने कपड़े उतारे और एकदूसरे को चूमने लगे.

उधर छत पर शादाब की नींद खुल गई. उसे गरमी की वजह से बहुत तेज प्यास लगी थी. वह पानी पीने के लिए नीचे आ गया.

शादाब अभी नल के पास पहुंचा ही था कि उसे अपने कमरे से सायरा की सिसकियों की आवाज सुनाई दी. उस ने कमरे के भीतर झांक कर देखा तो उस का खून खौल उठा.

नदीम और सायरा अपने जिस्म की भूख मिटा रहे थे. जैसे ही उन की नजर शादाब पर पड़ी, वे हड़बड़ा कर एकदूसरे से अलग हो गए. नदीम अपने कपड़े पहन कर वहां से निकल गया और सायरा अपने किए की माफी मांगने लगी, पर शादाब कुछ न बोला. उस के जिस्म का खून मानो जम चुका था. जिसे उस ने सच्चे दिल से इतना प्यार किया, उस ने उस के ही प्यार को धोखा दे दिया.

कुछ देर बाद शादाब वहां से उठा और चुपचाप जा कर छत पर लेट गया. सुबह होते ही वह बिजनौर के लिए रवाना होने लगा, तो उस के अब्बू बोले, ‘‘तू कल ही तो आया है, फिर इतनी जल्दी क्यों जा रहा है?’’

शादाब ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया और अपना रोता हुआ चेहरा उन लोगों से छिपाते हुए अपनी दुकान पर आ गया.

सायरा समझ गई थी कि शादाब को गहरा सदमा लगा है. वह घबरा रही थी कि पता नहीं, अब क्या होगा. उस ने शादाब को कई बार फोन किया, पर शादाब ने उस का फोन नहीं उठाया.

2 महीने ऐसे ही निकल गए, पर शादाब ने न तो सायरा से बात की और न अब अपने घर वापस आया.

3 महीने बाद जब सायरा ने अपने ससुर को बताया कि शादाब उस से बात नहीं कर रहा है और न घर ही आ रहा है, तो उन्हें बड़ी हैरानी हुई.

अगले दिन वे बिजनौर के लिए रवाना हो गए और शादाब से बोले, ‘‘बेटा, ऐसा कौन सा काम आ पड़ा, जो तुम घर पर भी नहीं आ रहे हो और बहू का फोन भी नहीं उठा रहे हो?’’

शादाब बोला, ‘‘मुझे अब सायरा से तलाक चाहिए. मैं उस के साथ अब नहीं रह सकता.’’

यह सुन कर शादाब के अब्बा दंग रह गए और बोले, ‘‘बेटा, सायरा इतनी अच्छी बहू है, सब से कितना प्यार करती है, सब की देखभाल करती है. ऐसी

क्या कमी है उस में, जो तुम ऐसा बोल रहे हो?’’

शादाब ने कहा, ‘‘बस, मुझे उस के साथ कोई रिश्ता नहीं रखना है. मैं उसे तलाक देना चाहता हूं.’’

शादाब के अब्बा गुस्सा करते हुए बोले, ‘‘लगता है, तुम ने किसी और औरत से रिश्ता बना लिया है, जो इतने महीनों से घर नहीं आए और इतनी प्यारी बीवी को छोड़ने की बात कर रहे हो.

‘‘यह बात ध्यान रखो कि मैं अपनी पोती के बिना नहीं रह सकता और मैं तुम्हें बहू को छोड़ने भी नहीं दूंगा. तुम जिस लड़की के लिए मेरी बहू को छोड़ने की सोच रहे हो, वह सिर्फ तुम्हारी दौलत के चक्कर में होगी.’’

शादाब ने कहा, ‘‘मैं बस सायरा के साथ नहीं रह सकता. जब तक वह वहां रहेगी, तब तक मैं घर नहीं आऊंगा.’’

शादाब के अब्बा ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, पर शादाब पर कोई असर नहीं हुआ. अब्बू ने उसे जायदाद से बेदखल करने की धमकी दी, पर वह टस से मस नहीं हुआ.

सायरा के अब्बू को जब शादाब की इस हरकत का पता चला, तो वे आगबबूला हो गए और गांव के कुछ जिम्मेदार लोगों को अपने साथ ले कर शादाब के घर आ गए और उन्हें बुराभला कहने लगे.

शादाब के अब्बू ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘हम तो यही चाहते हैं कि हमारी बहू हमारे साथ रहे, पर शादाब को पता नहीं किस औरत का भूत सवार है, जो वह सायरा को रखने के लिए तैयार ही नहीं.’’

सायरा के अब्बू बोले, ‘‘ठीक है, मैं अपनी बेटी को ले जा रहा हूं. तुम कल आ कर पंचायत में मिलना और शादाब को भी साथ लाना. जब फैसला करना है, तो शादाब का होना भी जरूरी है.’’

अगले दिन शादाब भी आ गया. उस के अब्बा शादाब को ले कर उस की सुसराल पहुंचे. वहां बैठे पंचों में से एक ने शादाब से पूछा, ‘‘तुम सायरा को क्यों छोड़ना चाहते हो?’’

शादाब बोला, ‘‘मुझे इस के साथ नहीं रहना. बस, मैं इसे तलाक देना चाहता हूं.’’

दूसरे पंच ने पूछा, ‘‘अगर तुम सायरा को छोड़ोगे, तो उस मासूम बच्ची का क्या होगा? वह किस के पास रहेगी? कौन उस की जिम्मेदारी उठाएगा?’’

शादाब बोला, ‘‘जिसे आप ठीक सम?ा, बच्ची उस के पास ही रहेगी.’’

तीसरे पंच ने कहा, ‘‘बच्ची को तो मां ही अच्छी तरह पाल सकती है.’’

शादाब बोला, ‘‘जैसी आप सब की मरजी.’’

यह सुनते ही शादाब के अब्बा रोने लगे और बोले, ‘‘क्यों किसी बाजारू औरत के चक्कर में अपना घर बरबाद कर रहा है और अपने खून को ही क्यों किसी को दे रहा है… कल को सायरा शादी करेगी तो बच्ची भी उस के साथ जाएगी. क्या तुझे अच्छा लगेगा कि हमारा खून किसी और के पास जाए?’’

शादाब कुछ न बोला. वह बस सायरा को तलाक देने पर अड़ा रहा. उस ने सायरा की कोई गलती भी नहीं बताई कि वह उसे क्यों छोड़ना चाहता है.

पहले वाले पंच ने शादाब से पूछा, ‘‘ठीक है, हम तुम दोनों का तलाक करा देते हैं, पर तुम सायरा की कोई ऐसी गलती तो बताओ, जो तुम उसे छोड़ना चाहते हो?’’

शादाब बोला, ‘‘वह मेरी बीवी है. मैं उस की बुराई नहीं कर सकता. बस, मैं उस के साथ रहना नहीं चाहता.’’

दूसरे पंच ने पूछा, ‘‘क्या तलाक होने के बाद तुम उस की गलती बताओगे?’’

शादाब ने कहा, ‘‘तलाक के बाद जब वह मेरी बीवी ही नहीं रहेगी, तो मुझे उस की गलती से क्या मतलब, जो मैं उस की बुराई करूं.’’

एक पंच ने कहा, ‘‘इस का मतलब तो यही है कि तुम ने सायरा की जिंदगी से खेला है. उस के साथ इतना समय गुजार कर उसे तनहा छोड़ दिया.

सारी गलती तुम्हारी है, इसलिए तुम्हें 12 लाख रुपए सायरा को देने पड़ेंगे, ताकि वह अपनी और अपनी बच्ची की जिंदगी सही ढंग से गुजार सके और उसे किसी के आगे हाथ न फैलाने पड़ें.’’

शादाब ने कहा, ‘‘मुझे मंजूर है.’’

अगले ही दिन शादाब ने 12 लाख रुपए अदा किए और सायरा से छुटकारा पा लिया. इस तरह वह सब की नजरों में तो बुरा बन गया, पर उस ने सायरा के राज को एक राज रखा कि किस तरह उस ने उस के प्यार को धोखा दे कर नदीम के साथ नाजायज रिश्ता रखा था.

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