Romantic Story in Hindi: भोर- भाग 3: क्यों पति का मजाक उड़ाती थी राजवी?

Writer- Kalpana Mehta

अक्षय को लगा कि राजवी कुछ छिपा रही है. कहीं वह मां तो नहीं बनने वाली? पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो कहती रही है कि बच्चे के बारे में तो अभी 5 साल तक सोचना भी मत. पहले मैं कैरियर बनाऊंगी, लाइफ को ऐंजौय करूंगी, उस के बाद ही सोचूंगी. फिर कौन सी बात छिपा रही है यह मुझ से? क्या इस के साथ वाकई रेप हुआ होगा? दुखी हो गया अक्षय यह सोच कर. उसे जीवन का यह नया रंग भयानक लग रहा था. 2 दिन बाद अक्षय जब शाम को घर आया तो देखा कि राजवी फिर से बेहोश जैसी पड़ी थी. उसे तेज बुखार था. अक्षय परेशान हो गया. फिर बिना कुछ सोचे वह उसे अस्पताल ले गया. डाक्टर ने जांचपड़ताल करने के बाद उस के जरूरी टैस्ट करवाए और उन की रिपोर्ट्स निकलवाईं.

लेकिन रिपोर्ट्स हाथ में आते ही अक्षय के होश उड़ गए. राजवी की बच्चेदानी में सूजन थी और इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी. डाक्टर ने बताया कि उसे कोई संक्रामक रोग हो गया है.

चेहरा हाथों में छिपा कर अक्षय रो पड़ा. यह क्या हो गया है मेरी राजवी को? वह शुरू से ही कुछ बता देती या खुद ट्रीटमैंट करवा लेती तो बात इतनी बढ़ती नहीं. ये तू ने क्या किया राजवी? मेरे प्यार में तुझे कहां कमी नजर आई कि प्यार की खोज में तू भटक गई? काश तू मेरे दिल की आवाज सुन सकती. अक्षय को डाक्टर ने सांत्वना दी कि लुक मिस्टर अक्षय, अभी भी उतनी देर नहीं हुई है. हम उन का अच्छे से अच्छा ट्रीटमैंट शुरू कर देंगे. शी विल बी औल राइट सून… और वास्तव में डाक्टर के इलाज और अक्षय की केयर से राजवी की तबीयत ठीक होने लगी. लेकिन अक्षय का धैर्य और प्यार भरा बरताव राजवी को गिल्टी फील करा देता था.

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अस्पताल से घर लाने के बाद अक्षय राजवी की हर छोटीमोटी जरूरत का ध्यान रखता था. उसे टाइम पर दवा, चायनाश्ता व खाना देना और उस को मन से खुश रखने के लिए तरहतरह की बातें करना, वह लगन से करता था. और राजवी की इन सब बातों ने आंखें खोल दी थीं. नासमझी में उस ने क्याक्या नहीं कहा था अक्षय को. दोस्तों के सामने उस का तिरस्कार किया था. उस के रंग को ले कर सब के बीच उस का मजाक उड़ाया था और कई बार गुस्से और नफरत के कड़वे बोल बोली थी वह. यह सब सोच कर शर्म सी आती थी उसे.

अपनी गोरी त्वचा और सौंदर्य के गुमान की वजह से उस ने अपना चरित्र भी जैसे गिरवी रख दिया था. अक्षय सांवला था तो क्या हुआ, उस के भीतर सब कुछ कितना उजला था. उस के इतने खराब ऐटिट्यूड के बाद भी अक्षय के बरताव से ऐसा लगता था जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. वह पूरे मन से उस की केयर कर रहा था. राजवी सोचती थी मेरी गलतियों, नादानियों और अभिमान को अनदेखा कर अक्षय मुझे प्यार करता रहा और मुझे समझाने की कोशिश करता रहा. लेकिन मैं अपनी आजादी का गलत इस्तेमाल करती रही. कुछ दिनों में राजवी के जख्म तो ठीक हो गए पर उन्होंने अपने गहरे दाग छोड़ दिए थे. जब भी वह आईना देखती थी सहम जाती थी.

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पूरी तरह से ठीक होने के बाद राजवी ने अक्षय के पास बैठ कर अपने बरताव के लिए माफी मांगी. अक्षय गंभीर स्वर में बोला, ‘‘देखो राजवी, मैं जानता हूं कि तुम मेरे साथ खुश नहीं हो. मैं यह भी जानता हूं कि मैं शक्लसूरत में तुम्हारे लायक नहीं हूं. काश मैं अपने शरीर का रंग बदलवा सकता पर वह मुमकिन नहीं है. तब एक ही रास्ता नजर आता है मुझे कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती रहने के बजाय अपना मनपसंद रास्ता खोज लो.’’ इस बात पर राजवी चौंकी मगर अक्षय बोला, ‘‘मेरा एक कुलीग है. मेरे जैसी ही पोस्ट पर है और मेरी जितनी ही सैलरी मिलती है उसे. प्लस पौइंट यह है कि वह हैंडसम दिखता है. तुम्हारे जैसा गोरा और तुम्हारे जैसा ही फ्री माइंडेड है. अगर तुम हां कहो तो मैं बात कर सकता हूं उस से. और हां, वह भी इंडिया का ही है. खुश रखेगा तुम्हें…’’

‘‘अक्षय, यह क्या बोल रहे हो तुम?’’ राजवी चीख उठी. अक्षय ऐसी बात करेगा यह उस की सोच से परे था.

‘‘मैं ठीक ही तो कह रहा हूं. इस झूठमूठ की शादी में बंधे रहने से अच्छा होगा कि हम अलग हो जाएं. मेरी ओर से आज से ही तुम आजाद हो…’’

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अक्षय के होंठों पर अपनी कांपती उंगलियां रखती राजवी कांपती आवाज में बोली, ‘‘इस बात को अब यहीं पर स्टौप कर दो अक्षय. मैं ने कहा न कि मैं ने जो कुछ भी किया वह मेरी भूल थी. मेरा घमंड और मेरी नासमझी थी. अपने सौंदर्य पर गुमान था मुझे और उस गुमान के लिए तुम जो चाहे सजा दे सकते हो. पर प्लीज मुझे अपने से अलग मत करना. मैं नहीं जी पाऊंगी तुम्हारे बिना. तुम्हारे प्यार के बिना मैं अधूरी हूं. जिंदगी का और रिश्तों का सच्चा सुख बाहरी चकाचौंध में नहीं होता वह तो आंतरिक सौंदर्य में ही छिपा होता है, यह सच मुझे अच्छी तरह महसूस हो चुका है.’’

इस के आगे न बोल पाई राजवी. उस की आंखों में आंसू भर गए. उस ने हाथ जोड़ लिए और बोली, ‘‘मेरी गलती माफ नहीं करोगे अक्षय?’’ राजवी के मुरझाए गालों पर बह रहे आंसुओं को पोंछता अक्षय बोला, ‘‘ठीक है, तो फिर इस में भी जैसी तुम्हारी मरजी.’’  और यह कह कर वह मुसकराया तो राजवी हंस पड़ी. फिर अक्षय ने अपनी बांहें फैलाईं तो राजवी उन में समा गई.

अटूट प्यार- भाग 1: यामिनी से क्यों दूर हो गया था रोहित

‘कितने मस्ती भरे दिन थे वे…’ बीते दिनों को याद कर यामिनी की आंखें भर आईं.

कालेज में उस का पहला दिन था. कैमिस्ट्री की क्लास चल रही थी. प्रोफैसर साहब कुछ भी पूछते तो रोहित फटाफट जवाब दे देता. उस की हाजिरजवाबी और विषय की गहराई से समझ देख यामिनी के दिल में वह उतरता चला गया.

कालेज में दाखिले के बाद पहली बार क्लास शुरू हुई थी. इसीलिए सभी छात्रछात्राओं को एकदूसरे को जाननेसमझने में कुछ दिन लग गए. एक दिन यामिनी कालेज पहुंची तो रोहित कालेज के गेट पर ही मिल गया. उस ने मुसकरा कर हैलो कहा और अपना परिचय दिया. यामिनी तो उस पर पहले दिन से ही मोहित थी. उस का मिलनसार व्यवहार देख वह खुश हो गई.

‘‘और मैं यामिनी…’’ उस ने भी अपना परिचय दिया तो रोहत ने उसे कैंटीन में अपने साथ कौफी पीने का औफर कर दिया. वह मना नहीं कर सकी.

साथ कौफी पीते हुए रोहित टकटकी लगा कर यामिनी को देखने लगा. यामिनी उस की नजरों का सामना नहीं कर पा रही थी. लेकिन उस के दिल में खुशी का तूफान उमड़ रहा था. क्लास में भी दोनों साथ बैठे रहे.

शाम को घर लौटते समय रोहित ने यामिनी से अचानक प्यार का इजहार कर दिया. वह भौंचक्की रह गई. लेकिन अगले ही पल शर्म से लाल हो गई और भाग कर रिकशे पर बैठ गई. थोड़ी देर बाद यामिनी ने पीछे मुड़ कर देखा. रोहित अब तक अपनी जगह पर खड़ा उसे ही देख रहा था.

यामिनी के दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं. खुशी से उस के होंठ लरज रहे थे. उस की आंखों में सिर्फ रोहित का मासूम चेहरा दिख रहा था. न जाने क्यों वह हर पल उसे करीब महसूस करने लगी.

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अगले दिन सुबह यामिनी की नींद खुली तो आदतन उस ने अपना मोबाइल चेक किया. रोहित ने मैसेज भेजा था, ‘सुप्रभात, आप का दिन मंगलमय हो.’

यामिनी देर  तक उस मैसेज को देखती रही और रोमांचित होती रही. वह भी उसे एक खूबसूरत सा जवाब देना चाहती थी. लेकिन क्या जवाब दे, सोचने लगी. मैसेज टाइप करने के लिए अनजाने में उस की उंगलियां आगे बढ़ीं. लेकिन वे कांपने लगीं.

यामिनी फिर रोहित के मैसेज को प्यार से देखने लगी और जवाब के लिए कोई अच्छा सा मैसेज सोचने लगी. लेकिन दिमाग जैसे जाम सा हो गया. अच्छा मैसेज सूझ ही नहीं रहा था. आखिरकार उस ने ‘आप को भी सुप्रभात’ टाइप कर मैसेज भेज दिया.

यामिनी की जिंदगी की एक नई शुरुआत हो चुकी थी. रोहित से मिलना, उसे देखना और प्यार भरी बातें करना यामिनी को अच्छा लगने लगा. एकदूसरे से मिले बिना उन्हें चैन नहीं आता. जिस दिन किसी प्रोफैसर के छुट्टी पर रहने के कारण क्लास नहीं रहती, उस दिन दोनों आसपास के किसी पार्क में चले जाते या बाजार घूमते. मस्तियों में उन के दिन गुजर रहे थे. हालांकि कालेज में दोनों को ले कर तरहतरह की बातें होने लगी थीं. लेकिन उन दोनों को कोई परवाह नहीं थी.

बातों ही बातों में यामिनी को मालूम हुआ कि रोहित के मातापिता इस दुनिया में नहीं हैं. एक ऐक्सीडैंट में उन की मौत हो गई थी. रोहित के चाचाचाची ही उस की देखभाल कर रहे थे. रोहित का घर शहर से दूर एक गांव में था. वह यहां किराए का कमरा ले कर कालेज की पढ़ाई कर रहा था. रोहित पढ़ाई में अच्छा था. इसीलिए यामिनी को उस से मदद मिल जाती थी पढ़ाई में.

एक दिन यामिनी कालेज गई तो पाया कि रोहित कालेज नहीं आया है. बहुत देर इंतजार करने के बाद यामिनी ने उसे फोन किया, लेकिन रोहित ने फोन नहीं उठाया. जब यामिनी ने कई बार फोन किया तब रोहित ने काल रिसीव किया और दबी आवाज में बोला, ‘‘यामिनी, मैं कालेज नहीं आ पाऊंगा. बुखार है मुझे. तुम परेशान नहीं होना. मैं ठीक होते ही आऊंगा.’’

दूसरे दिन भी रोहित कालेज नहीं आया. इसीलिए कालेज में यामिनी का मन नहीं लग रहा था. उसे रहरह कर रोहित का खयाल आता. उस ने सोचा, ‘कहीं रोहित की बीमारी बढ़ न जाए. उस से मिलने जाना चाहिए. पता नहीं अकेले किस हाल में है? दवा ले रहा है या नहीं. खाना कैसे खा रहा है.’

बहुत मुश्किल से ढूंढ़तेढूंढ़ते यामिनी रोहित के कमरे पर पहुंची. देर तक दस्तक देने के बाद रोहित ने दरवाजा खोला. उस का बदन तप रहा था. उस की हालत देख कर दया से ज्यादा गुस्सा आ गया यामिनी को. बोली, ‘‘इतनी तेज बुखार है और तुम ने बताया भी नहीं. दवा ली क्या? घर पर किसी को बताया?’’

रोहित अधखुली पलकों से यामिनी को देखते हुए शिथिल आवाज में बोला, ‘‘नहीं. चाचाचाची को कष्ट नहीं देना चाहता और डाक्टर के पास जाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई.’’

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2 दिनों में ही बहुत कमजोर पड़ गया था रोहित. आंखों के नीचे कालापन दिखने लगा था. यामिनी का मन रो पड़ा. रोहित ने शायद कुछ खाया भी नहीं था, क्योंकि खाना वह खुद बनाता था. होटल से लाया हुआ खाना एक स्टूल पर पड़ा था और सूख चुका था. एक शीशे के गिलास में थोड़ा सा पानी था. एक बिस्कुट का अधखुला पैकेट बगल में पड़ा था. कमरा भी अस्तव्यस्त था.

यह सब देख यामिनी से रहा नहीं गया. वह कमरा साफ करने लगी. रोहित हाथ के इशारे से मना करता रहा. पर यामिनी उसे आराम करने को कह कर सफाई में लगी रही. कमरे की सफाई करने के बाद वह पास की दुकान से ब्रैड और दूध ले आई और रोहित को खाने को दिया. रोहित एक ही ब्रैड खा पाया.

रोहित की हालत ठीक नहीं थी. वह अकेला था. यामिनी पास के एक डाक्टर से संपर्क कर दवा ले आई और रोहित को खिलाई. वह शाम तक उसी के पास बैठी रही. रोहित आंखों में आंसू लिए यामिनी को देखता रहा. यामिनी उसे बारबार समझाती, ‘‘मुझ से जितना होगा करूंगी. रोते क्यों हो?’’

‘‘तुम कितनी अच्छी हो यामिनी. बचपन से मैं प्यार को तरसा हूं. मम्मीपापा मुझे छोड़ कर चले गए. साथ में मेरी सारी खुशियां भी ले गए. चाचाचाची ने मुझे आश्रय जरूर दिया. लेकिन एक बोझ समझ कर. उन से प्यार कभी नहीं मिला. जब तुम मेरी जिंदगी में आई तो मैं ने जाना कि प्यार क्या होता है? तुम्हारा प्यार, तुम्हार सेवाभाव देख कर मुझे अपने मम्मीपापा की याद आ गई. इसीलिए मेरी आंखों में आंसू आ गए.

‘‘खैर मुझे अपने चाचाचाची से कोई शिकायत नहीं है. मैं उन की अपनी औलाद तो नहीं हूं. लेकिन बचपन से मुझे किसी का साया तो नसीब हुआ,’’ रोहित की आंखों से आंसू की धारा बह रही थी.

‘‘बस करो रोहित. अभी यह सब सोचने का वक्त नहीं. स्वास्थ्य पर ध्यान दो. खुद को अकेला नहीं समझो. मैं साथ देने से कभी पीछे नहीं हटूंगी,’’ कहते हुए यामिनी ने दुपट्टे से रोहित के आंसू पोंछ दिए.

वह करीब 2 घंटे तक रोहित के पास बैठी रही. शाम होने को आ गई थी. दवा के प्रभाव से रोहित को पसीना आ गया था. बुखार कम हुआ तो वह कुछ अच्छा महसूस करने लगा था. यामिनी ने कहा, ‘‘अब मैं चलूंगी. घर पर सब मेरा इंतजार कर रहे होंगे. तुम रात में दूध गरम कर ब्रैड के साथ ले लेना. दवा भी ले लेना. किसी तरह की परेशानी हो तो फोन जरूर करना. यह नहीं सोचना कि मैं क्या कर पाऊंगी? तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

रोहित को ढांढ़स बंधा कर यामिनी अपने घर आ गई. लेकिन उसे चिंता होती रही. रात में वह सब की नजर बचा कर घर की छत पर गई और फोन कर रोहित का हाल पूछा. रोहित ने कहा कि अभी वह ठीक महसूस कर रहा है. यह जान कर यामिनी को राहत महसूस हुई.

चौथे दिन रोहित ठीक हो गया. यामिनी पिछले 2 दिन उस के घर गई थी. सब से नजर बचा कर वह रोहित के लिए घर से खाना ले जाती थी और घंटों उस के पास बैठ कर बातें करती थी. 5वें दिन रोहित कालेज आया तो यामिनी बहुत खुश हुई. उस के ठीक होने की खुशी में वह उस के गले से लिपट गई. यामिनी अब रोहित के बहुत करीब आ चुकी थी.

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ऐसे ही 3 साल कब बीत गए उन्हें एहसास ही न हुआ. खुशियों के वे पल जैसे पंख लगा कर उड़ गए और उन के जुदाई के दिन आ गए. दरअसल, उन की कालेज की पढ़ाई पूरी हो गई थी. रोहित ने आगे की पढ़ाई के लिए कालेज में ही पुन: दाखिला ले लिया. वह प्रोफैसर बनना चाहता था. लेकिन यामिनी के आगे की पढ़ाई के लिए उस के पापा ने मना कर दिया. इसीलिए अब उस का रोहित से मिलनाजुलना बेहद मुश्किल हो गया. हर पल उसे रोहित की याद आती. रोहित से दूर रहने के कारण उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता.

यामिनी के मम्मीपापा अब उस की शादी कर के अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे. इसीलिए यामिनी के लिए लड़का ढूंढ़ा जाने लगा था. उस का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया गया था. रोहित से दिल की बात कहना भी कठिन हो गया उस के लिए. मोबाइल फोन का ही आसरा रह गया था. वह जब भी मौका पाती, रोहित को फोन कर देती और उसे कुछ करने के लिए कहती ताकि दोनों हमेशा के लिए एक हो जाएं. लेकिन रोहित को कोई उपाय नहीं दिखता.

जब घर में शादी की बात चलती तो यामिनी की हालत बुरी हो जाती. रोहित से दूर होने की बात सोच कर उस का मन अजीब हो जाता. अपने मम्मीपापा को रोहित के बारे में बताने की उस की हिम्मत नहीं होती थी. पापा पुलिस में थे. इसीलिए गरम मिजाज के थे. हालांकि शायद ही वह कभी गुस्सा हुए हों यामिनी पर. वह उन की इकलौती बेटी जो थी.

एक दिन यामिनी को उस की मां ने बताया कि उसे देखने कुछ मेहमान आएंगे. लड़का डाक्टर है. यह जान कर यामिनी की आंखों से आंसू निकल गए. वह किसी तरह सब से बच कर रोहित से मिलने गई. उस के गले से लिपट कर रो पड़ी. जब उस ने अपने लिए लड़का देखे जाने की बात बताई तो रोहित भी अपने आंसू नहीं रोक पाया.

तभी यामिनी बोली, ‘‘रोहित, तुम मुझे मेरे पापा से मांग लो. तुम्हारे बिना मैं जी नहीं पाऊंगी.’’

उलझे रिश्ते- भाग 2: क्या प्रेमी से बिछड़कर खुश रह पाई रश्मि

Writer- Ravi

‘‘जानती हूं पर यह कौन सा तरीका है?’’ रश्मि ने प्यार से समझाने की कोशिश की,  ‘‘कुछ दिन इंतजार करो मिस्टर. रश्मि तुम्हारी है. एक दिन पूरी तरह तुम्हारी हो जाएगी.’’ परंतु सुधीर पर कोई असर नहीं हुआ. हद से आगे बढ़ता देख रश्मि ने सुधीर को धक्का दिया और हिरणी सी कुलांचे भरती हुई घर से बाहर निकल गई. उस रात रश्मि सो नहीं पाई. उसे सुधीर का यों बांहों में लेना अच्छा लगा. कुछ देर और रुक जाती तो…सोच कर सिहरन सी दौड़ गई. और एक दिन ऐसा आया जब पढ़ाई की आड़ में चल रहा प्यार का खेल पकड़ा गया. दोनों अब तक बी.कौम अंतिम वर्ष में प्रवेश कर चुके थे और एकदूजे में इस कदर खो चुके थे कि उन्हें आभास भी नहीं था कि इस रिश्ते को रश्मि के पिता और भाई कतई स्वीकार नहीं करेंगे. उस दिन रश्मि के घर कोई नहीं था. वह अकेली थी कि सुधीर पहुंच गया. उसे देख रश्मि की धड़कनें बढ़ गईं. वह बोली,  ‘‘सुधीर जाओ तुम, पापा आने वाले हैं.’’

‘‘तो क्या हो गया. दामाद अपने ससुराल ही तो आया है,’’ सुधीर ने मजाकिया लहजे में कहा.

‘‘नहीं, तुम जाओ प्लीज.’’

‘‘रुको डार्लिंग यों धक्के मार कर क्यों घर से निकाल रही हो?’’ कहते हुए सुधीर ने रश्मि को अपनी बांहों में भर लिया. तभी जो न होना चाहिए था वह हो गया. रश्मि के पापा ने अचानक घर में प्रवेश किया और दोनों को एकदूसरे की बांहों में समाया देख आगबबूला हो गए. फिर पता नहीं कितने लातघूंसे सुधीर को पड़े. सुधीर कुछ बोल नहीं पाया. बस पिटता रहा. जब होश आया तो अपने घर में लेटा हुआ था. सुधीर और रश्मि के परिवारजनों की बैठक हुई. सुधीर की मम्मी ने प्रस्ताव रखा कि वे रश्मि को बहू बनाने को तैयार हैं. फिर काफी सोचविचार हुआ. रश्मि के पापा ने कहा,  ‘‘बेटी को कुएं में धकेल दूंगा पर इस लड़के से शादी नहीं करूंगा. जब कोई काम नहीं करता तो क्या खाएगाखिलाएगा?’’ आखिर तय हुआ कि रश्मि की शादी जल्द से जल्द किसी अच्छे परिवार के लड़के से कर दी जाए. रश्मि और सुधीर के मिलने पर पाबंदी लग गई पर वे दोनों कहीं न कहीं मिलने का रास्ता निकाल ही लेते. और एक दिन रश्मि के पापा ने घर में बताया कि दिल्ली से लड़के वाले आ रहे हैं रश्मि को देखने. यह सुन कर रश्मि को अपने सपने टूटते नजर आए. उस ने कुछ नहीं खायापीया.

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भाभी ने समझाया, ‘‘यह बचपना छोड़ो रश्मि, हम इज्जतदार खानदानी परिवार से हैं. सब की इज्जत चली जाएगी.’’

‘‘तो मैं क्या करूं? इस घर में बच्चों की खुशी का खयाल नहीं रखा जाता. दोनों दीदी कौन सी सुखी हैं अपने पतियों के साथ.’’

‘‘तेरी बात ठीक है रश्मि, लेकिन समाज, परिवार में ये बातें माने नहीं रखतीं. तेरे गम में पापा को कुछ हो गया तो…उन्होंने कुछ कर लिया तो सब खत्म हो जाएगा न.’’

रश्मि कुछ नहीं बोल पाई. उसी दिन दिल्ली से लड़का संभव अपने छोटे भाई राजीव और एक रिश्तेदार के साथ रश्मि को देखने आया. रश्मि को देखते ही सब ने पसंद कर लिया. रिश्ता फाइनल हो गया. जब यह बात सुधीर को रश्मि की एक सहेली से पता चली तो उस ने पूरी गली में कुहराम मचा दिया,  ‘‘देखता हूं कैसे शादी करते हैं. रश्मि की शादी होगी तो सिर्फ मेरे साथ. रश्मि मेरी है.’’ पागल सा हो गया सुधीर. इधरउधर बेतहाशा दौड़ा गली में. पत्थर मारमार कर रश्मि के घर की खिड़कियों के शीशे तोड़ डाले. रश्मि के पिता के मन में डर बैठ गया कि कहीं ऐसा न हो कि लड़के वालों को इस बात का पता चल जाए. तब तो इज्जत चली जाएगी. सब हालात देख कर तय हुआ कि रश्मि की शादी किसी दूसरे शहर में जा कर करेंगे. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होगी. अब एक तरफ प्यार, दूसरी तरफ मांबाप के प्रति जिम्मेदारी. बहुत तड़पी, बहुत रोई रश्मि और एक दिन उस ने अपनी भाभी से कहा, ‘‘मैं अपने प्यार का बलिदान देने को तैयार हूं. परंतु मेरी एक शर्त है. मुझे एक बार सुधीर से मिलने की इजाजत दी जाए. मैं उसे समझाऊंगी. मुझे पूरी उम्मीद है वह मान जाएगा.’’

भाभी ने घर वालों से छिपा कर रश्मि को सुधीर से आखिरी बार मिलने की इजाजत दे दी. रश्मि को अपने करीब पा कर फूटफूट कर रोया सुधीर. उस के पांवों में गिर पड़ा. लिपट गया किसी नादान छोटे बच्चे की तरह,  ‘‘मुझे छोड़ कर मत जाओ रश्मि. मैं नहीं जी  पाऊंगा, तुम्हारे बिना. मर जाऊंगा.’’ यंत्रवत खड़ी रह गई रश्मि. सुधीर की यह हालत देख कर वह खुद को नहीं रोक पाई. लिपट गई सुधीर से और फफक पड़ी, ‘‘नहीं सुधीर, तुम ऐसा मत कहो, तुम बच्चे नहीं हो,’’ रोतेरोते रश्मि ने कहा.

‘‘नहीं रश्मि मैं नहीं रह पाऊंगा, तुम बिन,’’ सुबकते हुए सुधीर ने कहा.

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‘‘अगर तुम ने मुझ से सच्चा प्यार किया है तो तुम्हें मुझ से दूर जाना होगा. मुझे भुलाना होगा,’’ यह सब कह कर काफी देर समझाती रही रश्मि और आखिर अपने दिल पर पत्थर रख कर सुधीर को समझाने में सफल रही. सुधीर ने उस से वादा किया कि वह कोई बखेड़ा नहीं करेगा. ‘‘जब भी मायके आऊंगी तुम से मिलूंगी जरूर, यह मेरा भी वादा है,’’ रश्मि यह वादा कर घर लौट आई. पापा किसी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे, इसलिए एक दिन रात को घर के सब लोग चले गए एक अनजान शहर में. रश्मि की शादी दिल्ली के एक जानेमाने खानदान में हो गई. ससुराल आ कर रश्मि को पता चला कि उस के पति संभव ने शादी तो उस से कर ली पर असली शादी तो उस ने अपने कारोबार से कर रखी है. देर रात तक कारोबार का काम निबटाना संभव की प्राथमिकता थी. रश्मि देर रात तक सीढि़यों में बैठ कर संभव का इंतजार करती. कभीकभी वहीं बैठेबैठे सो जाती. एक तरफ प्यार की टीस, दूसरी तरफ पति की उपेक्षा से रश्मि टूट कर रह गई. ससुराल में पासपड़ोस की हमउम्र लड़कियां आतीं तो रश्मि से मजाक करतीं  ‘‘आज तो भाभी के गालों पर निशान पड़ गए. भइया ने लगता है सारी रात सोने नहीं दिया.’’ रश्मि मुसकरा कर रह जाती. करती भी क्या, अपना दर्द किस से बयां करती? पड़ोस में ही महेशजी का परिवार था. उन के एक कमरे की खिड़की रश्मि के कमरे की तरफ खुलती थी. यदाकदा रात को वह खिड़की खुली रहती तो महेशजी के नवविवाहित पुत्र की प्रणयलीला रश्मि को देखने को मिल जाती. तब सिसक कर रह जाने के सिवा और कोई चारा नहीं रह जाता था रश्मि के पास.

संभव जब कभी रात में अपने कामकाज से जल्दी फ्री हो जाता तो रश्मि के पास चला आता. लेकिन तब तक संभव इतना थक चुका होता कि बिस्तर पर आते ही खर्राटे भरने लगता. एक दिन संभव कारोबार के सिलसिले में बाहर गया था और रश्मि तपती दोपहर में  फर्स्ट फ्लोर पर बने अपने कमरे में सो रही थी. अचानक उसे एहसास हुआ कोई उस के बगल में आ कर लेट गया है. रश्मि को अपनी पीठ पर किसी मर्दाना हाथ का स्पर्श महसूस हुआ. वह आंखें मूंदे पड़ी रही. वह स्पर्श उसे अच्छा लगा. उस की धड़कनें तेज हो गईं. सांसें धौंकनी की तरह चलने लगीं. उसे लगा शायद संभव है, लेकिन यह उस का देवर राजीव था. उसे कोई एतराज न करता देख राजीव का हौसला बढ़ गया तो रश्मि को कुछ अजीब लगा. उस ने पलट कर देखा तो एक झटके से बिस्तर पर उठ बैठी और कड़े स्वर में राजीव से कहा कि जाओ अपने रूम में, नहीं तो तुम्हारे भैया को सारी बात बता दूंगी, तो वह तुरंत उठा और चला गया. उधर सुधीर ने एक दिन कहीं से रश्मि की ससुराल का फोन नंबर ले कर रश्मि को फोन किया तो उस ने उस से कहा कि सुधीर, तुम्हें मैं ने मना किया था न कि अब कभी मुझ से संपर्क नहीं करना. मैं ने तुम से प्यार किया था. मैं उन यादों को खत्म नहीं करना चाहती. प्लीज, अब फिर कभी मुझ से संपर्क न करना. तब उम्मीद के विपरीत रश्मि के इस तरह के बरताव के बाद सुधीर ने फिर कभी रश्मि से संपर्क नहीं किया.

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Romantic Story in Hindi- रिश्तों की परख: भाग 3

लेखक- शैलेंद्र सिंह परिहार

हमेशा ठंडे दिमाग से काम लेने वाली मम्मी क्रोधित हो गई थीं, ‘नहीं करना किसी के फोनवोन का इंतजार, दूसरा लड़का देखना शुरू कर दीजिए.’

‘पागल न बनो,’ पापा ने समझाया था, ‘अपनी बेटी को यह सपना तुम ने ही दिखाया था, पल भर में उसे कैसे तोड़ दोगी? कभी सोचा है उस के दिल को कितनी ठेस लगेगी?’

एक दिन मां ने मुझ से कहा था, ‘बेटी, कमल शादी के लिए तैयार नहीं है. कहता है कि यदि उस की जबरन शादी की गई तो वह आत्महत्या कर लेगा, अब तू ही बता, हम लोग क्या करें?’

मैं इतना ही पूछ पाई थी, ‘वह इस समय कहां है?’

‘कहां होगा…वहीं…इलाहाबाद में मर रहा है,’ मम्मी ने गुस्से से कहा था.

‘मैं उस से एक बार मिलूंगी…एक बार मां…बस, एक बार,’ मैं ने रोते हुए कहा था.

पापा मुझे ले कर इलाहाबाद गए थे. वह अपने कमरे में ही मिला था. बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी हुई, कपड़े अस्तव्यस्त, हालत पागलों की तरह लग रही थी. पापा मुझे छोड़ कर कमरे से बाहर चले गए. औपचारिक बातचीत होने के बाद वह मुझ से बोला था, ‘तुम लड़कियों को क्या चाहिए, बस, एक अच्छा सा पति, एक सुंदर सा घर, बालबच्चे और घरखर्च के लिए हर महीने कुछ पैसे. लेकिन मेरे सपने दूसरे हैं. अभी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकता. तुम जहां मन करे शादी कर लो.’

कमल की बातें सुन कर मुझे भी क्रोध आ गया था, ‘तुम मुझे अपने पास न रखो, लेकिन शादी तो कर सकते हो, मेरे मांबाप भी चिंतामुक्त हों, कब तक वह लोग तुम्हारे आई.ए.एस. बन जाने का इंतजार करते रहेंगे?’

मेरी बात सुनते ही वह गुस्से से चीख पड़ा, ‘इंतजार नहीं कर सकती हो तो मर जाओ लेकिन मेरा पीछा छोड़ो…प्लीज…’

उस की बात सुन मैं सन्न रह गई थी. एक ही पल में 10 सालों से संजोया हुआ स्वप्न बिखर गया था. सोच रही थी, क्या यह वही कमल है? मन से निकली हूक तब शब्दों में इस तरह फूटी थी कि मरूंगी तो नहीं लेकिन एक बात कहती हूं, जब किसी बेबस की ‘आह’ लगती है तो मौत भी नसीब नहीं होती मिस्टर कमलकांत वर्मा, और इसे याद रखना.

घर आ कर मैं मम्मी से बोली थी, ‘आप लोग जहां भी मेरी शादी करना चाहें कर सकते हैं, लेकिन जिस से भी कीजिएगा उसे मेरी पिछली जिंदगी के बारे में पता होना चाहिए.’

1 वर्ष के अंदर ही मेरी शादी सुप्रीम कोर्ट के वकील गौरव के साथ हो गई. एक जमाने में उन के पापा वहीं के जानेमाने वकील थे. हम लोग दिल्ली में ही रहने लगे. गौरव जैसा चाहने वाला पति पा कर मैं कमल को भूल सी गई. साल भर में एक बार ही मायके जाना हो पाता था. इस बार तो अकेली ही जा रही थी. गौरव को कोर्ट का कुछ आवश्यक काम निकल आया था.

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मैं ने घड़ी की तरफ देखा, रात के 3 बज रहे थे. ट्रेन अपनी गति से चली जा रही थी कि अचानक कर्णभेदी धमाका हुआ और आंखों के सामने अंधेरा सा छाता चला गया. जब होश आया तो खुद को अस्पताल में पाया. गौरव भी आ चुके थे. एक ही ट्रैक पर 2 ट्रेनें आ गई थीं. आमनेसामने की टक्कर थी. कई लोग मारे गए थे. सैकड़ों लोग घायल हुए थे. मैं जिस बोगी में थी वह पीछे थी इसलिए कोई खास क्षति नहीं हुई थी फिर भी बेटे की हालत गंभीर थी. उसे 5-6 घंटे बाद होश आया था. 2 दिन बाद जब मैं डिस्चार्ज हो कर जा रही थी तो नर्स ने मुझे एक खत ला कर यह कहते हुए दिया कि मैडम, यह आप के लिए है…देना भूल गई थी…माफ कीजिएगा.

मैं ने आश्चर्य से पूछा था, ‘‘किस ने दिया?’’

‘‘वही, जो आप लोगों को यहां तक ले कर आया था. क्या आप नहीं जानतीं?’’

‘‘नहीं?’’

‘‘कमाल है,’’ नर्स आश्चर्य से बोल रही थी, ‘‘उस ने आप की मदद की, आप के बेटे को अपना खून भी डोनेट किया और आप कहती हैं कि आप उस को नहीं जानतीं?’’

मैं आतुरता से खत को पढ़ने लगी :

‘स्नेह,

सोचा था कि अपने किए की माफी मांग लूंगा लेकिन मृत्यु के इस तांडव ने मौका ही नहीं दिया. रिजर्वेशन टिकट पर ही गौरव का मोबाइल नंबर था. उन्हें फोन कर दिया है. वह जब तक नहीं आते मैं यहां रहूंगा. हो सके तो मुझे माफ कर देना. तुम्हारा गुनाहगार कमल.’

पत्र को गौरव ने भी पढ़ा था. ‘‘अच्छा तो वह कमल था…’’

गौरव खोएखोए से बोले थे, ‘‘सचमुच उस ने बड़ी मदद की, हमारे बेटे को एक नया जीवन दिया है.’’

बात आईगई हो गई. पीछे गौरव को एक केस में काफी व्यस्त पाया था. पूछने पर बस यही कहते, ‘‘समझ लो स्नेह, एक महत्त्वपूर्ण केस है. यदि जीत गया तो बड़ा आत्मिक सुख मिलेगा.’’

1 वर्ष तक केस चलता रहा, फैसला हुआ, गौरव के पक्ष में ही. वह उस दिन खुशी से पागल हो रहे थे. शाम को आते ही बोले, ‘‘यार, जल्दी से अच्छी- अच्छी चीजें बना लो, मेरा एक दोस्त आ रहा है, आई.ए.एस. है.’’

‘‘कौन दोस्त?’’ मैं ने पूछा था.

‘‘जब आएगा तो खुद ही उसे देख लेना, मैं उसी को लेने जा रहा हूं.’’

कुछ देर बाद गौरव वापस आए थे और अपने साथ जिसे ले कर आए थे उसे देख कर मैं अवाक् रह गई. यह तो ‘कमल’ है लेकिन यह कैसे हो सकता है?

‘‘स्नेह,’’ गौरव ने प्यार से कहा था, ‘‘तुम्हें आहत कर के इस ने भी कोई सुख नहीं पाया है. हमारी शादी के 1 साल बाद इस का आई.ए.एस. में चयन हुआ था. लेकिन तब तक लगातार मिलती असफलताओं ने इसे विक्षिप्त कर दिया था. यह पागलों की तरह हरकतें करने लगा था. इस कारण आयोग ने इस की नियुक्ति को भी निरस्त कर दिया था.

‘‘3 साल तक मेंटल हास्पिटल में रहने के बाद जब यह ठीक हुआ तो सब से पहले तुम्हारे ही घर गया, तुम से माफी मांगने के लिए. लेकिन पापाजी ने इसे हमारा पता ही नहीं दिया था और फिर जीवन से निराश, जीवनयापन के लिए इस ने टी.सी. की नौकरी कर ली. आज मैं इसी का केस जीता हूं, अदालत ने इस की पुन: नियुक्ति का फैसला दिया है. आज यह फिर तुम से माफी मांगने ही आया है.’’

वर्षों बाद मुझे वही कमल दिखा था, जिस से मैं पहली बार मिली थी, शर्मीला और संकोची. उस ने अपने दोनों हाथ मेरे सामने जोड़ दिए थे. मुझ से नजर मिलाने का साहस नहीं कर पा रहा था. उस की आंखों से प्रायश्चित्त के आंसू बह निकले, ‘‘स्नेह, मैं तुम्हारा अपराधी हूं, एक लक्ष्य पाने के लिए जीवन के ही लक्ष्य को भूल गया था…आप के कहे शब्द…आज भी मेरे हृदय में कांटे की तरह चुभते हैं…लगता है आज भी एक आह मेरा पीछा कर रही है…हो सके तो मुझे माफ कर दो.’’

‘‘कमल,’’ मैं ने भरे गले से कहा, ‘‘मैं ने तो तुम्हें उसी दिन माफ कर दिया था जिस दिन तुम ने मेरी ममता की रक्षा की थी. अब तुम से कोई शिकायत नहीं…तुम जहां भी रहो खुश रहो, यह मेरे मन की आवाज है.’’

‘‘हां, कमल,’’ गौरव भी उसे समझाते हुए बोले थे, ‘‘कल तुम ने एक रिश्ते को परखने में भूल की थी, आज फिर से वही भूल मत करना, मातापिता को खुश रखना, अपना घरसंसार बसाना और अपनी शादी में हमें भी बुलाना…भूल तो न जाओगे?’’

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वह गौरव के गले लग रो पड़ा. निर्मल जल के उस शीतल प्रवाह ने हमारे हृदय के सारे मैल को एक ही पल में धो दिया.

‘‘7 वर्षों तक दिशाहीन और पागलों सा जीवन व्यतीत किया है मैं ने, मर ही चुका था, आप ने तो मुझे नया जीवन ही दिया…कैसे भूल जाऊंगा.’’

कमल के जाने के बाद मैं गौरव के सीने से लगते हुए बोली थी, ‘‘गौरव, सचमुच मुझे आप पर गर्व है…लेकिन यह क्या, आप की आंखों में भी आंसू.’’

‘‘हां…खुशी के हैं, जानती हो सच्चा प्रायश्चित्त वही होता है जब आंसू उस की आंखों से भी निकलें जिन के लिए प्रायश्चित्त किया गया हो, आज कमल का प्रायश्चित्त पूरा हुआ.’’

पति की बात सुन कर स्नेह भी अपनेआप को रोने से न रोक सकी.

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‘‘मैं आप का दर्द समझता हूं. मैं भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजर रहा हूं. कितनी खूबसूरत थी मेरी जिंदगी और आज क्या हो गई,’’ कौस्तुभ ने कहा. एकदूसरे का दर्द बांटतेबांटते कौस्तुभ और प्रिया ने एकदूसरे का नंबर भी शेयर कर लिया. फिर अकसर दोनों के बीच बातें होने लगीं. दोनों को एकदूसरे का साथ पसंद आने लगा. वैसे भी दोनों की जिंदगी एक सी ही थी. एक ही दर्द से गुजर रहे थे दोनों. एक दिन घर वालों के सुझाव पर दोनों ने शादी का फैसला कर लिया. कोर्ट में सादे समारोह में उन की शादी हो गई.कौस्तुभ को एक नाइट कालेज में नौकरी मिल गई. साथ ही वह शिक्षा से जुड़ी किताबें भी लिखने लगा और अनुवाद का काम भी करने लगा. 2 साल के अंदर उन के घर एक चांद सा बेटा हुआ. बच्चा पूर्ण स्वस्थ था और चेहरा बेहद खूबसूरत. दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा. बेटे को अच्छी शिक्षा दिला कर ऊंचे पद पर पहुंचाना ही अब उन का लक्ष्य बन गया था. बच्चा पिता की तरह तेज दिमाग का और मां की तरह आकर्षक निकला. मगर थोड़ा सा बड़ा होते ही वह मांबाप से कटाकटा सा रहने लगा. वह अपना अधिकांश वक्त दादादादी या रामू काका के पास ही गुजारता, जिसे उस की देखभाल के लिए रखा गया था.

कौस्तुभ समझ रहा था कि वह बच्चा है, इसलिए उन के जले हुए चेहरों को देख कर डर जाता है. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. लेकिन 8वीं कक्षा के फाइनल ऐग्जाम के बाद एक दिन उस ने अपने दादा से जिद की, ‘‘बाबा, मुझे होस्टल में रह कर पढ़ना है.’’

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‘‘पर ऐसा क्यों बेटे?’’ बाबा चौंक उठे थे.कौस्तुभ तो अपने बेटे को शहर के सब से अच्छे स्कूल में डालने वाला था. इस के लिए कितनी कठिनाई से दोनों ने पैसे इकट्ठा किए थे. मगर बच्चे की बात ने सभी को हैरत में डाल दिया. दादी ने लाड़ लड़ाते हुए पूछा था, ‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो बेटा, भला यहां क्या प्रौब्लम है तुम्हें? हम इतना प्यार करते हैं तुम से, होस्टल क्यों जाना चाहते हो?’’ मोहित ने साफ शब्दों में कहा था, ‘‘मेरे दोस्त मुझे चिढ़ाते हैं. वे कहते हैं कि तुम्हारे मांबाप कितने बदसूरत हैं. इसीलिए वे मेरे घर भी नहीं आते. मैं इन के साथ नहीं रहना चाहता.’’ मोहित की बात पर दादी एकदम से भड़क उठी थीं, ‘‘ये क्या कह रहे हो? तुम तो जानते हो कि मम्मीपापा कितनी मेहनत करते हैं तुम्हारे लिए, तभी तुम्हें नएनए कपड़े और किताबें ला कर देते हैं. और तुम्हें कितना प्यार करते हैं, यह भी जानते हो तुम. फिर भी ऐसी बातें कर रहे हो.’’ तभी कौस्तुभ ने मां का हाथ दबा कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और दबे स्वर में बोला, ‘‘ये क्या कर रही हो मम्मी? बच्चा है, इस की गलती नहीं.’’

मगर कई दिनों तक मोहित इसी बात पर अड़ा रहा कि उसे होस्टल में रह कर पढ़ना है, यहां नहीं रहना. दादादादी इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. आखिर पूरे घर में चहलपहल उसी की वजह से तो रहती थी. तब एक दिन कौस्तुभ ने अपनी मां को समझाया, ‘‘मां, मैं चाहता हूं, हमारा बच्चा न सिर्फ शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहे और इस के लिए जरूरी है कि हम उसे अपने से दूर रखें. वह हमारे साथ रहेगा तो जाहिर है कभी भी खुश और मानसिक रूप से मजबूत नहीं बन सकेगा. मेरी गुजारिश है कि वह जो चाहता है, उसे वैसा ही करने दो. मैं कल ही देहरादून के एक अच्छे स्कूल में इस के दाखिले का प्रयास करता हूं. भले ही वहां फीस ज्यादा है पर हमारे बच्चे की जिंदगी संवर जाएगी. उसे वह मिल जाएगा, जिस का वह हकदार है और जो मुझे नहीं मिल सका.’’

2 सप्ताह के अंदर ही कौस्तुभ ने प्रयास कर के मोहित का ऐडमिशन देहरादून के एक अच्छे स्कूल में करा दिया, जहां उसे 70 हजार डोनेशन के देने पड़े. पर बच्चे की ख्वाहिश पूरी करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था. मोहित को विदा करने के बाद प्रिया बहुत रोई थी. उसे लग रहा था जैसे मोहित हमेशा के लिए उस से बहुत दूर जा चुका है. और वास्तव में ऐसा ही हुआ. छुट्टियों में भी मोहित आता तो बहुत कम समय के लिए और उखड़ाउखड़ा सा ही रहता. उधर उस के पढ़ाई के खर्चे बढ़ते जा रहे थे जिन्हें पूरा करने के लिए कौस्तुभ और प्रिया को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही थी. समय बीतते देर नहीं लगती. मोहित अब बड़ा हो चुका था. उस ने बीए के बाद एम.बी.ए. करने की जिद की. अबतक कौस्तुभ के मांबाप दिवंगत हो चुके थे. कौस्तुभ और प्रिया स्वयं ही एकदूसरे की देखभाल करते थे. उन्होंने एक कामवाली रखी थी, जो घर के साथ बाहर के काम भी कर देती थी. इस से उन्हें थोड़ा आराम मिल जाता था. मगर जब मोहित ने एम.बी.ए. की जिद की तो कौस्तुभ के लिए पैसे जुटाना एक कठिन सवाल बन कर खड़ा हो गया. कम से कम 3-4 लाख रुपए तो लगने ही थे. इतने रुपयों का वह एकसाथ इंतजाम कैसे करता?

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तब प्रिया ने सुझाया, ‘‘क्यों न हम घर बेच दें? हमारा क्या है, एक छोटे से कमरे में भी गुजारा कर लेंगे. मगर जरूरी है कि मोहित ढंग से पढ़ाईलिखाई कर किसी मुकाम तक पहुंचे.’’ ‘‘शायद ठीक कह रही हो तुम. घर बेच देंगे तो काफी रकम मिल जाएगी,’’ कौस्तुभ ने कहा. अगले ही दिन से वह इस प्रयास में जुट गया. अंतत: घर बिक गया और उसे अच्छी रकम भी मिल गई. उन्होंने बेटे का ऐडमिशन करा दिया और स्वयं एक छोटा घर किराए पर ले लिया. बाकी बचे रुपए बैंक में जमा करा दिए ताकि उस के ब्याज से बुढ़ापा गुजर सके. 1 कमरे और किचन, बाथरूम के अलावा इस घर में एक छोटी सी बालकनी थी, जहां बैठ कर दोनों धूप सेंक सकते थे.

बेटे के ऐडमिशन के साथ खर्चे भी काफी बढ़ गए थे, अत: उन्होंने कामवाली भी हटा दी और दूसरे खर्चे भी कम कर दिए. अब उन्हें इंतजार था कि बेटे की पढ़ाई पूरी होते ही उस की अच्छी सी नौकरी लग जाए और वे उस के सपनों को पूरा होते अपनी आंखों से देखें. फिर एक खूबसूरत सी लड़की से उस की शादी करा दें और पोतेपोतियों को खिलाएं. मगर एक दिन मोहित के आए फोन ने उन के इस सपने पर भी पल में पानी फेर दिया, जब उस ने बताया कि पापा मुझे सिंगापुर में एक अच्छी जौब मिल गई है और अगले महीने ही मैं हमेशा के लिए सिंगापुर शिफ्ट हो जाऊंगा. ‘‘क्या? सिंगापुर जा रहा है? पर क्यों बेटे?’’ कौस्तुभ की जबान लड़खड़ा गई, ‘‘अपने देश में भी तो अच्छीअच्छी नौकरियां हैं, फिर तू बाहर क्यों जा रहा है?’’ लपक कर प्रिया ने फोन ले लिया था, ‘‘नहींनहीं बेटा, इतनी दूर मत जाना. तुझे देखने को आंखें तरस जाएंगी. बेटा, तू हमारे साथ नहीं रहना चाहता तो न सही पर कम से कम इसी शहर में तो रह. हम तेरे पास नहीं आएंगे, पर इतना सुकून तो रहेगा कि हमारा बेटा हमारे पास ही है. कभीकभी तो तेरी सूरत देखने को मिल जाएगी. पर सिंगापुर चला गया तो हम…’’ कहतेकहते प्रिया रोने लगी थी.

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‘‘ओह ममा कैसी बातें करती हो? भारत में कितनी गंदगी और भ्रष्टाचार है. मैं यहां नहीं रह सकता. विदेश से भी आनाजाना तो हो ही जाता है. कोशिश करूंगा कि साल दो साल में एक दफा आ जाऊं,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया था. प्रिया के आंसू आंखों में सिमट गए. उस ने रिसीवर रखा और बोली, ‘‘वह फैसला कर चुका है. वह हम से पूरी तरह आजादी चाहता है, इसलिए जाने दो उसे. हम सोच लेंगे हमारी कोई संतान हुई ही नहीं. हम दोनों ही एकदूसरे के दुखदर्द में काम आएंगे, सहारा बनेंगे. बस यह खुशी तो है न कि हमारी संतान जहां भी है, खुश है.’’ उस दिन के बाद कौस्तुभ और प्रिया ने बेटे के बारे में सोचना छोड़ दिया. 1 माह बाद मोहित आया और अपना सामान पैक कर हमेशा के लिए सिंगापुर चला गया. शुरुआत में 2-3 माह पर एकबार फोन कर लेता था, मगर धीरेधीरे उन के बीच एक स्याह खामोशी पसरती गई. प्रिया और कौस्तुभ ने दिल पत्थर की तरह कठोर कर लिया. खुद को और भी ज्यादा कमरे में समेट लिया. धीरेधीरे 7 साल गुजर गए. इन 7 सालों में सिर्फ 2 दफा मोहित का फोन आया. एक बार अपनी शादी की खबर सुनाने को और दूसरी दफा यह बताने के लिए कि उस का 1 बेटा हो गया है, जो बहुत प्यारा है.

Social Story in Hindi: डुप्लीकेट- भाग 3: आखिर क्यों दुखी था मनोहर

निशा के साथ मनोहर का मेलजोल बढ़ता रहा. वह भी फिल्म नगरी के इस अंधकार से ऊब चुकी थी. वह भी यहां से कहीं दूर जाना चाहती थी, पर अकेली कहां जाए? हर जगह इनसान के रूप में ऐसे भेडि़ए मौजूद हैं जो उस जैसी अकेली को नोचनोच कर खा जाना चाहते हैं.

मनोहर व निशा को एकदूसरे के सहारे की जरूरत थी. सो, उन्होंने शादी कर ली.

कुछ दिनों बाद वे दोनों मुंबई से हजारों किलोमीटर दूर इस शहर में आ गए थे.

यहां आ कर अपने पैर जमाने के लिए मनोहर को बहुत मेहनत करनी पड़ी थी.

15 साल बीत गए. इस बीच निशा ने एक बेटी को जन्म दिया, जिसे मधुरिमा कहा जाने लगा. मधुरिमा अब 10वीं में और कमल बीए फाइनल में पढ़ रहा था.

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जनकपुरी में रिकशा रुका तो मनोहर यादों से बाहर निकला. रिकशे वाले को पैसे दे कर वह भारी मन से घर पहुंचा. एक कमरे में सोफे पर जा कर वह पसर गया. उस ने आंखें बंद कर लीं. बारबार आंखों के सामने वही सीन आ रहा था, जब नीलू सीढि़यों से लुढ़क कर गिरती है.

मनोहर के पास आ कर निशा सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘देख आए वह सीन. सचमुच देखा नहीं जाता. बहुत दुख होता है. उस समय नीलू को कितना दर्द सहना पड़ा होगा.’’

मनोहर कुछ नहीं बोला.

‘‘मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर निशा रसोईघर की ओर चल दी.

मनोहर की नजर दीवार पर लगी नीलू की तसवीर पर चली गई. वह एकटक उस की ओर ही देखता रहा.

निशा ने चाय मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘चाय पी लीजिए. मन ज्यादा दुखी करने से कुछ नहीं होगा.’’

मनोहर ने चाय पीते हुए पूछा, ‘‘कमल अभी तक नहीं आया? कहां रह गया वह? उस का कोई फोन आया या नहीं?’’

‘‘हां, एक घंटा पहले आया था कि अभी पहुंच रहा हूं.’’

‘‘फिल्म की शूटिंग देखने वह लखनपुर गया है?’’

‘‘हां, मैं ने तो उसे बहुत मना किया था, पर वह माना नहीं, बच्चों की तरह जिद करने लगा. कह रहा था कि पहली बार फिल्म की शूटिंग देखने जा रहा हूं. बचपन में मुंबई में देखी होगी, वह तो अब याद नहीं. साथ में उस का दोस्त सूरज भी जा रहा है. बस शाम तक लौट आएंगे?’’

‘‘फिल्मी दुनिया की चमकदमक किसे अच्छी नहीं लगती,’’ मनोहर ने कह कर लंबी सांस छोड़ी.

मधुरिमा दूसरे कमरे में पढ़ाई कर रही थी, तभी घर के बाहर मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज आई तो मनोहर समझ गया कि कमल आ गया है.

कमल कमरे में घुसा. उस के माथे पर पट्टी बंधी देख मनोहर व निशा बुरी तरह चौंक उठे.

‘‘यह क्या हुआ? कोई हादसा हो गया था क्या?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘नहीं पापा…’’

‘‘फिर यह चोट…? तू तो लखनपुर शूटिंग देखने गया था न? वहां किसी से झगड़ा तो नहीं हो गया?’’ निशा ने कमल की ओर देखते हुए पूछा.

तभी मधुरिमा भी कमरे से बाहर निकल आई. उस ने भी एकदम पूछा, ‘‘यह क्या हुआ भैया?’’

कमल ने कहा, ‘‘मैं शूटिंग देखने ही गया था. जैसे ही शूटिंग शुरू हुई तो हीरो के डुप्लीकेट के पेट में भयंकर दर्द हो गया. जब दवा से भी आराम नहीं हुआ तो उसे शहर के एक बड़े अस्पताल में भेज दिया. प्रोड्यूसर माथा पकड़ कर बैठ गया, तभी डायरैक्टर की नजर मुझ पर पड़ी…’’

‘‘फिर…?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘डायरैक्टर ने मुझे अपने पास बुलाया. नीचे से ऊपर तक देखा और कहा कि एक छोटा सा काम करोगे. काम बहुत आसान है. हीरोइन नाराज हो कर जाती है. हीरो आवाज देता है, पर हीरोइन सुनती नहीं और चली जाती है. हीरो उस के पीछे दौड़ता है. पैर फिसलता है और छोटी सी पहाड़ी से लुढ़क कर नीचे गिरता है. बस यही काम था उस डुप्लीकेट का.

‘‘मैं मना नहीं कर सका. सीन ओके हो गया. तब डायरैक्टर ने मेरी पीठ थपथपा कर मुझे 10,000 रुपए भी दिए थे. सिर में मामूली सी चोट लग गई है. 2-4 दिन में ठीक हो जाएगी,’’ कमल ने बताया.

यह सुन कर मनोहर ने एक जोरदार थप्पड़ कमल के मुंह पर मारा और चीखते हुए कहा, ‘‘तू भी बन गया डुप्लीकेट. दफा हो जा मेरी नजरों के सामने से. मैं तेरी सूरत भी नहीं देखना चाहता. जा, भाग जा… चला जा मुंबई. वहां जा कर देख कि किस तरह कीड़ेमकोड़े की जिंदगी जीते हैं ये डुप्लीकेट.

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‘‘मेरे साथ चल कर देख फिल्म ‘अपना कौन’ में तेरी मम्मी डुप्लीकेट का काम करतेकरते हमेशा के लिए हमें छोड़ कर चली गई. मुझे इस काम से क्यों नफरत हो गई थी. मैं यह काम छोड़ कर क्यों मुंबई से यहां आ गया था? तुझे भी तो यह सब मालूम है, फिर तू ने क्यों जानबूझ कर अपने माथे पर डुप्लीकेट का लेबल लगा लिया?

‘‘अगर तुझे आज कुछ हो जाता तो हमारा क्या होता? यह सब नहीं सोचा होगा तू ने,’’ कहतेकहते मनोहर का गला भर्रा उठा.

कमल को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. वह बोला, ‘‘माफ कर देना पापा, मुझे दुख है कि मैं ने आप का दिल दुखाया. यह मेरी पहली और आखिरी भूल है.’’

Romantic Story in Hindi- बात एक रात की: भाग 3

लेखक : श्री प्रकाश

तपन चित्रा को विदा करने स्टेशन गया. चलते समय चित्रा ने कहा, ‘‘आगे जब कोलकाता आएं तो मुझ से जरूर मिलना. फिलहाल मेरे साल्ट लेक फ्लैट में ही मेरी कंपनी है,’’ और फिर अपना कार्ड तपन को दे दिया.

‘‘श्योर,’’ कह तपन ने भी अपना कार्ड चित्रा को दे दिया.

चित्रा कोलकाता लौट गई. अब वे अकसर फोन पर बातें करते थे. तपन ज्यादातर चित्रा के काम और स्वास्थ्य के बारे में पूछता, तो चित्रा तपन और उस की मां के बारे में. कभी चित्रा मां से बात करती तो हर बार मां यही पूछतीं कि उस ने अपने भविष्य के बारे में क्या फैसला लिया है? चित्रा भी हर बार यही कहती कि अभी कोई फैसला नहीं लिया.

एक बार जब चित्रा का फोन आया तो मां ने उस से पूछा, ‘‘मेरा तपन तुम्हें कैसा लगता है?’’

चित्रा इस सवाल के लिए तैयार नहीं थी, फिर भी उस ने कहा, ‘‘तपन तो बहुत ही अच्छे इनसान हैं.’’

‘‘वह हमेशा तुम्हारी तारीफ करता रहता है. कहता है कि बहुत मेहनती लड़की है. खूब तरक्की करेगी,’’ मां बोलीं.

‘‘यही तो उन का बड़प्पन है.’’

कुछ दिनों के बाद तपन को कोलकाता जाना पड़ा. वह चित्रा से मिला. चित्रा ने उसे अपने हाथों से खाना खिलाया. दोनों ने काफी देर तक बातें कीं, पर केवल काम से संबंधित. चलते समय चित्रा ने उसे फिर आने को कहा और हाथ मिला कर विदा किया. यह तपन और चित्रा का दूसरा दैहिक स्पर्श था. पहला स्पर्श रिकशे पर हुआ था. इधर चित्रा का प्रोजैक्ट पूरा होने जा रहा था. उस का टैस्ट चल रहा था, जिस के बाद प्रोजैक्ट को अमेरिकन कंपनी को बेचा जाना था. इधर तपन की मां की तबीयत काफी खराब थी. चित्रा भी सुन कर आई थी. बोकारो में बड़े अस्पताल नहीं थे, तो चित्रा ने तपन को उन्हें कोलकाता ले चलने को कहा. वह स्वयं टैक्सी बुक कर मां और तपन के साथ कोलकाता आई. मां को बड़े अस्पताल में भरती कराया गया. 2 हफ्ते में तपन की मां को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. इस बीच तपन चित्रा के फ्लैट में रहा. चित्रा और तपन अब थोड़ा करीब आ चुके थे. दोनों एकदूसरे को बेहतर समझ रहे थे.

तपन की मां को अस्पताल से छुट्टी मिली तो चित्रा उन्हें भी अपने घर ले आई थी और कहा था कि यहां कुछ दिन आराम करने के बाद ही लौटना. 1 हफ्ते तक वे चित्रा के फ्लैट में ही रहे.

1 सप्ताह बाद तपन मां के साथ बोकारो लौट रहा था. पर चलते समय मां ने चित्रा से फिर कहा, ‘‘बेटी, तुम ने तो अपनी बेटी से भी बढ़ कर मेरा खयाल रखा है. कुदरत तुम्हारी हर मनोकामना पूरी करे… पर मेरी बात पर भी सोचना.’’

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‘‘कौन सी बात मां?’’ चित्रा ने पूछा.

‘‘अपने और तपन के बारे में.’’

आप के आशीर्वाद से मेरा प्रोजैक्ट पूरा हो गया है. 2 हफ्तों के अंदर ही इस के

अच्छे परिणाम मिलने की आशा है. फिर आप की बात भी मान लूंगी.

तपन और मां दोनों चित्रा की ओर देखने लगे. चित्रा की तरफ से पहला पौजिटिव संकेत मिला था.

इधर चित्रा के मातापिता भी उस के लिए चिंतित रहते थे. चित्रा ने तपन की चर्चा उन से कर रखी थी. उस ने कहा था कि बोकारो जाने वाली एक रात की बात ने चित्रा को काफी इंप्रैस किया है. इतना ही नहीं, चित्रा के पिता ने एक बार चुपके से बोकारो आ कर तपन के बारे में जानकारी भी ले ली थी. वे तपन से संतुष्ट थे. उन्होंने अपनी सहमति चित्रा को बता दी थी.

इस के 1 महीने के अंदर ही चित्रा ने तपन को फोन पर बताया कि उस का प्रोडक्ट अमेरिका की कंपनी ने अच्छी कीमत दे कर खरीद लिया है. उस की कंपनी के चारों पार्टनर्स को 5-5 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है.

तपन की मां ने चित्रा से फोन पर कहा, ‘‘तुम्हारी सफलता पर बहुतबहुत बधाई. देखा तपन ने ठीक ही कहा था कि तुम बहुत मेहनती लड़की हो और जल्द ही तुम्हें तरक्की मिलेगी.’’

‘‘सब आप लोगों के आशीर्वाद से है.’’

‘‘अब तो तेरा प्रोजैक्ट भी पूरा हो गया तो बता तपन के बारे में क्या सोचा है?’’

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‘‘मैं ने कहा था न कि तपन बहुत अच्छे इनसान हैं. मुझे भी अच्छे लगते हैं. इस के आगे मैं क्या बोलूं? हां, एक और सरप्राइज है, मेरी कंपनी को अमेरिका से बहुत बड़ा और्डर मिला है.’’

मां ने जब यह बात तपन को बताई तो उस ने फोन मां के हाथ से ले कर चित्रा से कहा, ‘‘बहुतबहुत बधाई इस दूसरी कामयाबी पर और एक सरप्राइज मेरी ओर से भी है. मुझे प्रमोशन दे कर कंपनी ने कोलकाता औफिस में पोस्टिंग की है. 1 हफ्ते के अंदर जौइन करना होगा.’’

फिर मां ने चित्रा से कहा, ‘‘अब तो और इंतजार नहीं कराना है?’’

‘‘नो मोर इंतजार मांजी. अब आगे आप की मरजी का इंतजार है. आप जो कहेंगी वैसा ही करूंगी,’’ और हंसते हुए फोन काट दिया.

इधर मां की आंखों में भी खुशी के आंसू छलक आए थे.

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कायरता का प्रायश्चित्त: भाग 1

लेखक-  शुचिता श्रीवास्तव

डा. मिहिर ने जैसे ही अपने चेहरे के सामने से किताब हटाई और सामने बैठे मरीज की तरफ देखा तो वह चौंक गए.

चौंकी तो मिताली भी थी पर उस ने अपनेआप को संयत कर लिया था.

‘‘अरे मिहिर, आप?’’ मिताली बोली, ‘‘मैं ने तो सोचा भी नहीं था कि आप यहां हो सकते हैं.’’

‘‘कहो, मिताली, कैसी हो और क्या हुआ तुम्हें जो एक डाक्टर की जरूरत पड़ गई?’’ डा. मिहिर सामान्य स्वर में बोले.

‘‘मिहिर, मैं तो ठीक हूं पर यहां मैं अपने पति नवीन को दिखाने आई हूं,’’ मिताली बोली, ‘‘पिछले 3-4 माह से उन की तबीयत कुछकुछ खराब रहती थी पर इधर कुछ दिनों से काफी अधिक अस्वस्थ रहने लगे हैं,’’ कह कर मिताली ने

डा. मिहिर का परिचय नवीन से करवाया, ‘‘नवीन, डा. मिहिर का घर कानपुर में मेरी बूआ के घर के बगल में है. मेरे फूफाजी और मिहिर के डैडी बचपन के दोस्त हैं.’’

डा. मिहिर ने नवीन का चेकअप किया व कुछ टेस्ट करवाने का परामर्श दिया जिस की रिपोर्ट ले कर अगले दिन आने को कहा.

मिताली व नवीन चले गए पर

डा. मिहिर का मन उचट गया. एक बार उन के मन में आया कि वह घर लौट जाएं लेकिन जब अपने मरीजों का ध्यान आया जो कई दिन पहले नंबर लगवा चुके थे और काफी दूरदूर से आए थे तो उन्होंने अपनेआप को संभाल लिया और चपरासी से मरीजों को अंदर भेजने के लिए कह दिया.

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शाम के समय मिहिर को किसी दोस्त के घर पार्टी में जाना था पर वह वहां न जा कर सीधे घर आ कर चुपचाप बिस्तर पर लेट गए.

डा. मिहिर को बारबार एक ही बात चुभ रही थी कि जिस मिताली के कारण अपना घर, डैडी का अच्छाखासा नर्सिंग होम छोड़ कर उसे इस अनजान शहर में आ कर अपनी प्रैक्टिस जमानी पड़ी वही मिताली उन के शांत जीवन में कंकड़ फेंकने के लिए यहां भी आ गई.

‘‘साहब, चाय लेंगे या कौफी?’’ हरिया ने अंदर आ कर पूछा.

‘‘नहीं, मैं कुछ नहीं लूंगा,’’ मिहिर ने छोटा सा जवाब दिया तो वह चला गया.

उस के जाते ही मिहिर का मन अतीत के सागर में गोते लगाने लगा.

मिताली को पहली बार मिहिर ने रस्तोगी अंकल की बेटी रानी के जन्मदिन की पार्टी में देखा था. यों तो वह रानी के घर वालों के मुंह से मिताली की सुंदरता की चर्चा पहले भी सुन चुका था पर उस दिन जो देखा तो बस देखता ही रह गया था.

हालांकि मिहिर भी कम सुंदर न था. उस पर संपन्न परिवार का इकलौता लड़का, साथ में डाक्टरी की पढ़ाई. पार्टी में आई तमाम लड़कियों की नजरें उस पर टिकी थीं और वे उस से बातें करने को आतुर थीं. पर मिहिर जिस से बात करना चाहता था वह अपनी सहेलियों से बातें करने में व्यस्त थी.

काफी देर बाद मिहिर को मिताली से बात करने का मौका मिला.

‘आप का नाम मिताली है?’ बातचीत शुरू करने के उद्देश्य से मिहिर ने पूछा.

‘हां, पर आप को मेरा नाम कैसे पता चला?’ मिताली ने उसे आश्चर्य से देखते हुए प्रतिप्रश्न किया.

‘सिर्फ नाम ही नहीं, मैं तो आप के बारे में और भी बहुत कुछ जानता हूं,’ मिहिर ने कहा तो मिताली की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘अच्छा, और क्याक्या जानते हैं आप मेरे बारे में?’ उस ने पूछा.

‘यही कि आप रानी के मामा की बेटी हैं और एम.बी.ए. की छात्रा हैं. संगीत सुनना, बैडमिंटन खेलना, कविताएं लिखना आप की हौबी है,’ मिहिर बोला.

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‘हां, आप कह तो सच रहे हैं पर मेरे बारे में इतना सबकुछ आप कैसे जानते हैं? क्या मैं आप का परिचय जान सकती हूं?’ मिताली ने कहा.

‘मैं रानी का पड़ोसी हूं. मेरा नाम मिहिर है. मैं मेडिकल अंतिम वर्ष का छात्र हूं. आजकल छुट्टियों में घर आया हूं,’ मिहिर ने अपना परिचय दिया.

तभी मिताली को किसी ने पुकारा और वह वहां से चली गई. मिहिर भी घर लौट आया. उस की आंखों की नींद व मन का चैन उड़ चुका था. दिनरात, सोते- जागते, उठतेबैठते बस उसे मिताली ही नजर आती थी.

उस दिन मिहिर अपनी छोटी बहन रूपाली के साथ शापिंग करने गया था. रूपाली बुटीक में अपने लिए कपड़े पसंद कर रही थी. मिहिर बोर होने लगा तो वह बाहर आ गया. अचानक उस की नजर सामने की गिफ्ट शाप की तरफ गई तो वह चौंक पड़ा. वहां मिताली कुछ खरीद रही थी. मिहिर उस ओर बढ़ चला.

‘हाय, मिताली, कैसी हो और यहां कैसे?’ मिताली के करीब जा कर मिहिर ने पूछा.

‘अरे मिहिर, आप और यहां. दरअसल आज मेरी एक फैं्रड का जन्मदिन है. मैं उसी के लिए गिफ्ट खरीदने आई हूं, और आप?’ मिताली ने उस से कहा.

‘मैं अपनी बहन रूपाली के साथ आया हूं. वह सामने की दुकान से कपड़े खरीद रही है. बोर होने लगा तो अंदर से बाहर आ गया और तुम यहां दिख गईर्ं.’

मिताली ने एक टेबल लैंप पैक करवा लिया. वह पैसे देने के लिए मुड़ी तो मिहिर ने उसे फिर शो केसों की तरफ बुला लिया और एक सफेद संगमरमर से बने ताजमहल की तरफ इशारा करते हुए बोला, ‘मिताली, देखो तो जरा यह कैसा लग रहा है?’

‘बहुत खूबसूरत है,’ मिताली बोली.

मिहिर ने सोचा, क्यों न वह अपने प्यार का इजहार मिताली को यह सुंदर उपहार दे कर करे? यह सोच कर उस ने वह ताजमहल और साथ में एक खूबसूरत पत्थर का बना कीमती ब्रेसलेट भी खरीद लिया.

तभी मिहिर को ढूंढ़ते हुए वहां रूपाली भी आ गई और मिताली को देख कर उस से बातें करने लगी.

मिहिर मन ही मन खुश हुआ कि चलो वह सफाई देने से बच गया वरना न जाने कितनी देर तक उस की छोटी बहन उस से सिर्फ इसलिए लड़ती कि वह उसे बिना बताए क्यों चला आया.

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‘अच्छा अब मैं चलती हूं,’ घड़ी की तरफ नजर डालते हुए मिताली बोली.

‘मिताली, हमारे साथ ही चलो न, मुझे मेरी दोस्त के घर छोड़ कर मिहिर भैया तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देंगे.’

Family Story in Hindi: विश्वास- भाग 2: क्या अंजलि अपनी बिखरती हुई गृहस्थी को समेट पाई?

अंजलि ने शिखा के गाल पर थप्पड़ मारने के लिए उठे अपने हाथ को बड़ी कठिनाई से रोका और गहरीगहरी सांसें ले कर अपने क्रोध को कम करने के प्रयास में लग गई. दूसरी तरफ तनी हुई शिखा आंखें फाड़ कर चुनौती भरे अंदाज में उसे घूरती रहीं.

कुछ सहज हो कर अंजलि ने उस से पूछा, ‘‘वंदना के घर मेरे जाने की खबर तुम्हें उन के घर के सामने रहने वाली रितु से मिलती है न?’’

‘‘हां, रितु मुझ से झूठ नहीं बोलती है,’’ शिखा ने एकएक शब्द पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया.

‘‘यह अंदाजा उस ने या तुम ने किस आधार पर लगाया कि मैं वंदना की गैर- मौजूदगी में कमल से मिलने जाती हूं?’’

‘‘आप कल सुबह उन के घर गई थीं और परसों ही वंदना आंटी ने मेरे सामने कहा था कि वह अपनी बड़ी बहन को डाक्टर के यहां दिखाने जाएंगी, फिर आप उन के घर क्यों गईं?’’

‘‘ऐसा हुआ जरूर है, पर मुझे याद नहीं रहा था,’’ कुछ पल सोचने के बाद अंजलि ने गंभीर स्वर में जवाब दिया.

‘‘मुझे लगता है कि वह गंदा आदमी आप को फोन कर के अपने पास ऐसे मौकों पर बुलाता है और आप चली जाती हो.’’

‘‘शिखा, तुम्हें अपनी मम्मी के चरित्र पर यों कीचड़ उछालते हुए शर्म नहीं आ रही है,’’ अंजलि का अपमान के कारण चेहरा लाल हो उठा, ‘‘वंदना मेरी बहुत भरोसे की सहेली है. उस के साथ मैं कैसे विश्वासघात करूंगी? मेरे दिल में सिर्फ तुम्हारे पापा बसते हैं, और कोई नहीं.’’

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‘‘तब आप उन के पास लौट क्यों नहीं चलती हो? क्यों कमल अंकल के भड़काने में आ रही हो?’’ शिखा ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘बेटी, तेरे पापा के और मेरे बीच में एक औरत के कारण गहरी अनबन चल रही है, उस समस्या के हल होते ही मैं उन के पास लौट जाऊंगी,’’ शिखा को यों स्पष्टीकरण देते हुए अंजलि ने खुद को शर्म के मारे जमीन मेें गड़ता महसूस किया.

‘‘मुझे यह सब बेकार के बहाने लगते हैं. आप कमल अंकल के कारण पापा के पास लौटना नहीं चाहती हो,’’ शिखा अपनी बात पर अड़ी रही.

‘‘तुम जबरदस्त गलतफहमी का शिकार हो, शिखा. वंदना और कमल मेरे शुभचिंतक हैं. उन दोनों का बहुत सहारा है मुझे. दोस्ती के पवित्र संबंध की सीमाएं तोड़ कर कुछ गलत न मैं कर रही हूं न कमल अंकल. मेरे कहे पर विश्वास कर बेटी,’’ अंजलि बहुत भावुक हो उठी.

‘‘मेरे मन की सुखशांति की खातिर आप अंकल से और जरूरी हो तो वंदना आंटी से भी अपने संबंध पूरी तरह तोड़ लो, मम्मी. मुझे डर है कि ऐसा न करने पर आप पापा से सदा के लिए दूर हो जाओगी,’’ शिखा ने आंखों में आंसू ला कर विनती की.

इस घटना के बाद मांबेटी के संबंधों में आया खिंचाव

‘‘तुम्हारे नासमझी भरे व्यवहार से मैं बहुत निराश हूं,’’ ऐसा कह कर अंजलि उठ कर अपने कमरे में चली आई.

इस घटना के बाद मांबेटी के संबंधों में बहुत खिंचाव आ गया. आपस में बातचीत बस, बेहद जरूरी बातों को ले कर होती. अपने दिल पर लगे घावों को दोनों नाराजगी भरी खामोशी के साथ एकदूसरे को दिखा रही थीं.

शिखा की चुप्पी व नाराजगी वंदना और कमल ने भी नोट की. अंजलि उन के किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकी. वह कैसे कहती कि शिखा ने कमल और उस के बीच नाजायज संबंध होने का शक अपने मन में बिठा रखा था.

करीब 4 दिन बाद रात को शिखा ने मां के कमरे में आ कर अपने मन की बातें कहीं.

‘‘आप अंदाजा भी नहीं लगा सकतीं कि मेरी सहेली रितु ने अन्य सहेलियों को सब बातें बता कर मेरे लिए इज्जत से सिर उठा कर चलना ही मुश्किल कर दिया है. अपनी ये सब परेशानियां मैं आप के नहीं, तो किस के सामने रखूं?’’

मुझ से ज्यादा तुम्हें अपनी सहेली पर विश्वास क्यों है

‘‘मुझे तुम्हारी सहेलियों से नहीं सिर्फ तुम से मतलब है, शिखा,’’ अंजलि ने शुष्क स्वर में जवाब दिया, ‘‘तुम ने मुझे चरित्रहीन क्यों मान लिया? मुझ से ज्यादा तुम्हें अपनी सहेली पर विश्वास क्यों है?’’

‘‘मम्मी, बात विश्वास करने या न करने की नहीं है. हमें समाज में मानसम्मान से रहना है तो लोगों को ऊटपटांग बातें करने का मसाला नहीं दिया जा सकता.’’

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‘‘तब क्या दूसरों को खुश करने के लिए तुम अपनी मां को चरित्रहीन करार दे दोगी? उन की झूठी बातों पर विश्वास कर के अपनी मां को उस की सब से प्यारी सहेली से दूर करने की जिद पकड़ोगी?’’

‘‘मुझ पर क्या गुजर रही है, इस की आप को भी कहां चिंता है, मम्मी,’’ शिखा चिढ़ कर गुस्सा हो उठी, ‘‘मैं आप की सहेली नहीं बल्कि सहेली के चालाक पति से आप को दूर देखना चाहती हूं. अपनी बेटी की सुखशांति से ज्यादा क्या कमल अंकल के साथ जुडे़ रहना आप के लिए जरूरी है?’’

‘‘कमल अंकल मेरे लिए तुम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कैसे हो सकते हैं, शिखा? मुझे तो अफसोस और दुख इस बात का है कि मेरी बेटी को मुझ पर विश्वास नहीं रहा. मैं पूछती हूं कि तुम ही मुझ पर विश्वास क्यों नहीं कर रही हो?  अपनी सहेलियों की बकवास पर ध्यान न दे कर मेरा साथ क्यों नहीं दे रही हो? मेरे मन में खोट नहीं है, इस बात को मेरे कई बार दोहराने के बावजूद तुम ने उस पर विश्वास न कर के मेरे दिल को जितनी पीड़ा पहुंचाई है, क्या उस का तुम्हें अंदाजा है?’’ बोलते हुए अंजलि का चेहरा गुस्से से लाल हो गया.

‘‘यों चीखचिल्ला कर आप मुझे चुप नहीं कर सकोगी,’’ गुस्से से भरी शिखा उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘चित भी मेरी और पट भी मेरी का चालाकी भरा खेल मेरे साथ न खेलो.’’

‘‘क्या मतलब?’’ अंजलि फौरन उलझन का शिकार बन गई.

‘‘मतलब यह कि पापा ने अपनी बिजनेस पार्टनर सीमा आंटी को ले कर आप को सफाई दे दी तब तो आप ने उन की एक नहीं सुनी और यहां भाग आईं, और जब मैं आप से कमल अंकल के साथ संबंध तोड़ लेने की मांग कर रही हूं तो किस आधार पर आप मुझे गलत और खुद को सही ठहरा रही हो?’’

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