कालेज में कृष्णकांत से कोई लड़की बात करती और रमा देख लेती तो वह ढेरों प्रश्न पूछती. रमा भी किसी प्रोफैसर या प्रिंसिपल के साथ कहीं जाती या उन से हंसते हुए बात करती तो वह भी प्रश्नों की झड़ी लगा देता. 3-4 वर्षों के भरपूर वैवाहिक आनंद लूटने के बाद रमा शंकित रहने लगी कृष्णकांत की तरफ से और कृष्णकांत का रमा के प्रति आकर्षण धीरेधीरे कमजोर होने लगा.
एमए में पहुंचने पर कृष्णकांत को अपने रोजगार की चिंता सताने लगी. शायद इसीलिए वह रमा की पूछताछ और संदेहभरे प्रश्नों को झेल जाता कि रमा नहीं होगी तो उस की आर्थिक जरूरतें कैसे पूरी होंगी. वह रमा से जुड़ा रहा. रमा ने उस पर लगाम लगाए रखी ताकि घोड़े को बिदकने का मौका न मिले.
एक समय वह भी आया जब उस कालेज में अस्थायी रूप से कृष्णकांत को असिस्टैंट प्रोफैसर की नौकरी मिल गई. रमा ने दबाव बनाया कि वह अपने घर वालों को अपनी शादी के बारे में बता दे. कृष्णकांत ने कहा, ‘कोई स्वीकार नहीं करेगा इस शादी को. पता चल गया तो तलाक करवा कर मानेंगे. अच्छा है कि यह बात घर तक न पहुंचे.’
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‘और तुम्हारे घर वालों ने तुम्हारी शादी कहीं और तय कर दी, तब क्या होगा?’
‘ऐसा तो वे करेंगे ही. उन्हें हमारी शादी के बारे में थोड़े पता है. लेकिन मैं करूंगा नहीं. तुम स्वयं को असुरक्षित महसूस करना बंद कर दो.’
‘मैं क्यों असुरक्षित महसूस करने लगी भला. पक्की सरकारी नौकरी है मेरे पास. मैं आर्थिकरूप से स्वतंत्र हूं. तुम कालेज की लड़कियों से बहुत घुलमिल कर बातें करते हो. मुझे पसंद नहीं.’
‘तुम भी तो करती हो.’
‘तो क्या मैं चरित्रहीन हो गई बात करने से?’
‘तो क्या मैं हो गया?’
‘तुम क्यों होने लगे. मर्द जो ठहरे. यह ठप्पा तो हम स्त्रियों पर ही लगता है.’
‘तुम बात का बतंगड़ बना रही हो.’
‘जो देख रही हूं, वही कह रही हूं.’
‘तुम चाहती क्या हो? मैं ने सब तुम्हारे हिसाब से किया.’
‘मैं ने भी सब तुम्हारे हिसाब से किया.’
‘फिर पहले जैसा प्यार क्यों नहीं करते? कहां गया वह जोश?’
‘शारीरिक संबंध बनाना ही प्यार नहीं है.’
‘पहले जैसी प्यारभरी बातें भी तो नहीं करते. खिंचेखिंचे से रहते हो.’
‘तुम्हें शक की बीमारी है.’
‘शक नहीं, यकीन है मुझे.
‘हुआ करे. मैं क्या कर सकता हूं.’
‘हां, अब तो तुम जो भी करोगे, पूनम के लिए ही करोगे.’
‘खबरदार, जो पूनम का नाम बीच में लाई तो.’
‘क्यों, मिर्ची लगी क्या?’
‘पूनम अच्छी लड़की है.’
‘वह तुम्हारी स्टूडैंट है.’
‘लेकिन हमउम्र भी है.’
आएदिन दोनों में तकरार बढ़ती रहती. कृष्णकांत के पिता उस के रिश्ते की खबर कई बार पहुंचा चुके थे. आ जाओ, लड़की देख लो. कृष्णकांत हर बार टालता रहता था. रमा के साथ उस ने
12 वर्ष गुजार दिए थे. बाद के कुछ वर्षों में वह रमा से बचने लगा था. उस के आकर्षण का केंद्र थी पूनम.
रमा की तरफ से उस का आकर्षण पूरी तरह खत्म हो चुका था.
वह समझ चुका था कि रमा से उसे जो प्यार था वह मात्र दैहिक आकर्षण था. प्यार तो उसे अब पूनम से था, जिस की उम्र 27 वर्ष के आसपास थी. जो एमए फाइनल की छात्रा थी. पूनम उसे और वह पूनम को छिपछिप कर देखते थे शुरू में. फिर नजरें बारबार मिलतीं और वे मुसकरा देते. यह अच्छा था कि रमा ने कालेज में स्वयं नहीं बताया था कि कृष्णकांत उस का पति है ताकि लोग उम्र के इस अंतर को मजाक न बनाएं.
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रमा समझ रही थी कि उस ने कृष्णकांत के साथ अपनी जिस्मानी जरूरतें पूरी कर ली हैं. वह यह भी जानती थी कि उम्र के इस अंतर को मिटाया नहीं जा सकता. वह 45 साल की मोटी, सांवली, अधेड़ औरत लगती है और कृष्णकांत 30 वर्ष का जवान. लेकिन फिर भी वह अपना शिकंजा कसने की भरपूर कोशिश करती, लेकिन वह जानती थी कि एक न एक दिन यह शिकंजा ढीला पड़ ही जाएगा.
कृष्णकांत ने एक दिन पूनम से कहा, ‘‘मैं तुम से अकेले में कुछ जरूरी बात करना चाहता हूं. अपने विषय में.’’ पूनम ने खुश हो कर तुरंत ‘हां’ कह दी. दोनों शाम को शहर के बाहर बने कौफीहाउस में मिले.
कृष्णकांत ने कहा, ‘‘पूनम, मुझे बचा लो रमा मैडम से. मैं 18 वर्ष का था जब रमा ने मुझे अपने दैहिक आकर्षण में फंसा लिया था. मुझे कोर्टकचहरी की धमकी दी. मैं मजबूर हो गया. घर में गरीब मांबाप हैं. रमा ने मुझ से जबरदस्ती शादी की. वे
18 वर्ष की मेरी कच्ची उम्र से ही मेरा दैहिक शोषण कर रही हैं. मैं क्या करूं?’’
ये सब इतने भावुक और रोने वाले अंदाज में कहा कृष्णकांत ने कि पूनम की आंखे भर आईं. पूनम ने कहा, ‘‘शादी का कोई प्रूफ है?’’
‘‘रमा के पास हो सकता है.’’
‘‘तुब सब नष्ट कर दो और उस से अलग हो जाओ. अगर वह तुम्हें कोर्टकचहरी की धमकी दे, तो तुम भी दे सकते हो. मैं खड़ी हूं तुम्हारे साथ. कुछ न हो तो तलाक तो ले ही सकते हो.’’
‘‘तुम अपनाओगी न मुझे?’’
‘‘हां, क्यों नहीं, मैं आप से प्यार करती हूं और किसी भी हद तक जाने को तैयार हूं.’’
कृष्णकांत आश्वस्त हुआ. गवाहों का तो अतापता नहीं था. बरसों पुरानी बात थी. शादी के सुबूत रमा की अलमारी में थे. जिन्हें तलाश कर कृष्णकांत ने नष्ट कर दिए.
रमा को जब पूनम के साथ कृष्णकांत ज्यादा समय गुजारते दिखने लगा तो रमा ने उसे लंपट, आवारा, नीच कहा. कृष्णकांत ने पलट कर कहा, ‘‘तुम क्या हो? तुम ने अपनी दैहिक जरूरतों के लिए मुझे फंसा कर रखा. शर्म आनी चाहिए तुम्हें. तुम सैक्स की भूखी हो.’’
‘‘मैं तुम्हें कोर्ट में घसीटूंगी, दैहिक शोषण का आरोप लगा कर जेल भिजवाऊंगी.’’
‘‘और मैं छोड़ दूंगा तुम्हें. मैं भी तुम पर दैहिक शोषण का आरोप लगा सकता हूं. तुम्हारे घर वालों को, अपने घर वालों को बता दूंगा सबकुछ. लोग तुम पर हंसेंगे, न कि मुझ पर.’’
‘‘शादी हुई है हमारी.’’
‘‘सुबूत कहां हैं? कोर्ट मंदिर में की गई शादी नहीं मानता और उस समय मेरी उम्र 18 वर्ष भी नहीं हुई थी. अवयस्क उम्र के लड़के से विवाह करने के अपराध में तुम्हें सजा भी हो सकती है. सारा शहर तमाशा देखेगा. यदि शादी साबित कर भी देती हो तुम, तब भी मैं तलाक तो मांग ही सकता हूं. अब तुम पर है कि हंगामा खड़ा करना है या शांति से मसले को सुलझाना है.’’
रमा समझ चुकी थी कि तीर कमान से निकल चुका है. अब कुछ नहीं हो सकता. फिर बेमेल संबंधों को कब तक खींचा जा सकता है. अच्छा यह हुआ कि सावधानी रखने के कारण उन की कोई संतान नहीं थी.
रमा के मातापिता भी अब कहने लगे थे, ‘बेटी, अपना फर्ज निभा लिया. भाईबहनों को पढ़ालिखा कर कामधंधे में लगा दिया. उन का विवाह कर दिया. अब कोई अपने हिसाब का लड़का तलाश और शादी कर ले.’
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रमा वापस अपने शहर आ गई. उस ने कृष्णकांत से जुड़ी सारी यादें मिटा दीं. शादी के और उस के बाद के सारे फोटो नष्ट कर दिए. कृष्णकांत भी आजाद हो गया.
पूनम को देख कर कृष्णकांत सोचता, ‘इसे कहते हैं लड़की. पता नहीं क्यों मैं रमा के आकर्षण में बंध गया था? प्यार करने लायक तो पूनम है. सांचे में ढला हुआ दुबलापतला, आकर्षक शरीर. चेहरे पर चमक. जिस्म के पोरपोर में जवानी की महक. यही है उस के सपनों की रानी.’