प्रेम के 11 टुकड़े : पति और सास ससुर ने की बहू की हत्या

6 मई, 2017 की बात है. दिन के यही कोई 9 बज रहे थे. नवी मुंबई के उपनगर रबाले के शिलफाटा रोड स्थित एमआईडीसी के बीच से बहने वाले नाले पर एक सुनसान जगह पर काफी लोग इकट्ठा थे. इस की वजह यह थी कि नाले की घनी झाडि़यों के बीच प्लास्टिक का एक बैग पड़ा था. उस में एक मानव धड़ भर कर फेंका गया था. उस का सिर, दोनों हाथ और पैर गायब थे.

यह हत्या का मामला था. इसलिए किसी जागरूक नागरिक ने इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी.

चूंकि घटनास्थल नवी मुंबई के थाना एमआईडीसी के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिलते ही थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने चार्जरूम में ड्यूटी पर तैनात सहायक इंसपेक्टर अमर जगदाले को बुला कर डायरी बनवाई और तुरंत सहायक इंसपेक्टर प्रमोद जाधव, अमर जगदाले और कुछ सिपाहियों को ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने वहां एकत्र भीड़ को हटा कर उस प्लास्टिक के बैग को झाडि़यों से बाहर निकलवाया. बैग में भरा धड़ बाहर निकलवाया गया. वह धड़ किसी महिला का था. हत्या के बाद लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस का सिर और हाथपैर काट कर केवल धड़ वहां फेंका गया था. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर चंद्रकांत काटकर ने धड़ को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लेकिन पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले उन्होंने डीएनए जांच के लिए सैंपल सुरक्षित करवा लिया था.

मृतका के बाकी अंग न मिलने से पुलिस समझ गई कि हत्यारा कोई ऐरागैरा नहीं, काफी होशियार और शातिर था. खुद को बचाने के लिए उस ने सबूतों को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

धड़ के साथ ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती. धड़ के निरीक्षण में पुलिस को उस की बची बांह पर सिर्फ गणेश भगवान का एक टैटू दिखाई दिया था. इस से यह तो स्पष्ट हो गया था कि मृतका हिंदू थी, लेकिन सिर्फ एक टैटू से शिनाख्त होना संभव नहीं था. फिर भी पुलिस को उम्मीद की एक किरण तो मिल ही गई थी.

घटनास्थल की काररवाई निपटा कर थानाप्रभारी थाने लौटे और सहायकों के साथ बैठ कर विचारविमर्श के बाद इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी इंसपेक्टर प्रमोद जाधव को सौंप दी थी.

मामले की जांच की जिम्मेदारी मिलते ही प्रमोद जाधव ने तुरंत मुंबई और उस के आसपास के सभी छोटेबड़े थानों को वायरलैस संदेश भिजवा कर यह पता लगाने की कोशिश की कि किसी थाने में किसी महिला की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. इसी के साथ उन्होंने मृतका की बाजू पर बने गणेश भगवान के टैटू को हाईलाइट करते हुए महानगर के सभी प्रमुख दैनिक अखबारों में फोटो छपवा कर उस धड़ की शिनाख्त की अपील की.

अखबार में छपी इस अपील का पुलिस को फायदा यह मिला कि धड़ की शिनाख्त हो गई. वह धड़ प्रियंका गुरव का था. उस की गुमशुदगी मुंबई के पौश इलाके के थाना वरली में दर्ज थी. ठाणे के डोंबिवली कल्याण की रहने वाली कविता दूधे और उन के भाई गणेश दूधे ने उस धड़ को अपनी छोटी बहन प्रियंका का धड़ बताया था.

अखबार में खबर छपने के अगले दिन सवेरे कविता दूधे अपने भाई गणेश दूधे के साथ थाना एमआईडीसी पहुंची और चंद्रकांत काटकर से मिल कर बांह पर बने गणेश भगवान के टैटू से आशंका व्यक्त की थी कि वह धड़ उन की बहन प्रियंका का हो सकता है. क्योंकि 5 मई, 2017 से वह गायब है.

ससुराल वालों के अनुसार, वह सुबह किसी नौकरी के लिए इंटरव्यू देने घर से निकली थी तो लौट कर नहीं आई थी. कविता ने बरामद धड़ देखने की इच्छा जाहिर की, क्योंकि वह उस टैटू को पहचान सकती थी. प्रियंका ने अपनी बांह पर वह टैटू उसी के सामने बनवाया था.

चंद्रकांत काटकर ने कविता और गणेश को धड़ दिखाने के लिए इंसपेक्टर प्रमोद जाधव के साथ अस्पताल के मोर्चरी भिजवा दिया. धड़ देखते ही कविता और गणेश फूटफूट कर रो पड़े थे. इस से साफ हो गया था कि वह धड़ प्रियंका का ही था. इस तरह धड़ की शिनाख्त हो गई तो जांच आगे बढ़ाने का रास्ता मिल गया.अब पुलिस को यह पता लगाना था कि प्रियंका की हत्या क्यों और किस ने की? पूछताछ में प्रियंका की बहन कविता और भाई गणेश ने बताया था कि प्रियंका ने वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी के सरकारी आवास में अपने परिवार के साथ रहने वाले सिद्धेश गुरव से 30 अप्रैल, 2017 को प्रेम विवाह किया था.

भाईबहन ने प्रियंका को इस विवाह से मना किया था. इस की वजह यह थी कि न सिद्धेश उस से विवाह करना चाहता था और न ही उस के घर वाले चाहते थे कि सिद्धेश प्रियंका से विवाह करे. आखिर वही हुआ, जिस की उन्हें आशंका थी. प्रियंका के हाथों की मेहंदी का रंग फीका होता, उस से पहले ही उस की जिंदगी का रंग फीका हो गया.

इस के बाद पुलिस ने मृतका के पति सिद्धेश और उस के घर वालों को थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने भी वही सब बताया, जो कविता और गणेश बता चुके थे. उन का कहना था कि 5 मई की सुबह इंटरव्यू के लिए गई प्रियंका रात को भी घर लौट कर नहीं आई तो उन्हें चिंता हुई. सभी पूरी रात उस की तलाश करते रहे. जब कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने अगले दिन यानी 6 मई को थाना वर्ली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

थाना एमआईडीसी पुलिस तो इस मामले की जांच कर ही रही थी, क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी भी इस मामले की जांच कर रहे थे. प्रियंका की ससुराल वालों ने जो बयान दिया था, उस में उन्हें दाल में कुछ काला नजर आ रहा था. जब उन्होंने प्रियंका के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई तो उन्हें पूरी दाल ही काली नजर आई.

ससुराल वालों ने जिस दिन प्रियंका के बाहर जाने की बात बताई थी, मोबाइल फोन की लोकेशन के अनुसार उस दिन पूरे दिन प्रियंका घर पर ही थी. वह घर से बाहर गई ही नहीं थी. इस के अलावा किसी संपन्न परिपवार की बहू विवाह के मात्र 5 दिनों बाद ही नौकरी के लिए किसी कंपनी में इंटरव्यू देने जाएगी, यह भी विश्वास करने वाली बात नहीं थी. उस समय तो वह पति के साथ खुशियां मनाएगी.

मामला संदिग्ध लग रहा था. लेकिन परिवार सम्मनित था, इसलिए उन पर हाथ डालने से पहले इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने अधिकारियों से राय ली. अधिकारियों ने आदेश दे दिया तो वह प्रियंका के पति सिद्धेश, ससुर मनोहर गुरव और मां माधुरी गुरव को क्राइम ब्रांच के औफिस ले आए.

सभी से अलगअलग पूछताछ की गई तो आखिर में प्रियंका की हत्या का खुलासा हो गया. पता चला कि इन्हीं लोगों ने प्रियंका की हत्या की थी. इस पूछताछ में प्रियंका की हत्या से ले कर उस की लाश को ठिकाने लगाने तक की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

25 वर्षीय सिद्धेश गुरव का परिवार मुंबई से सटे ठाणे के उपनगर कल्याण बासिंद में रहता था. उस के पिता का नाम मनोहर गुरव और मां का माधुरी गुरव था. परिवार छोटा और सुखी था. मनोहर गुरव सरकारी नौकरी में थे. रहने के लिए सरकारी आवास मिला था. सिद्धेश गुरव उन का एकलौता बेटा था, जिसे पढ़ालिखा कर वह सीए बनाना चाहते थे.

सिद्धेश पढ़ाईलिखाई में तो ठीकठाक था ही, महत्त्वाकांक्षी भी था. वह सीए तो नहीं बन सका, लेकिन पढ़ाई पूरी होते ही उसे मुंबई के विक्रोली स्थित टीसीएस कंपनी में उसे अच्छी नौकरी मिल गई थी. बेटे को नौकरी मिलते ही मनोहर गुरव का भी प्रमोशन हो गया था. इस के बाद उन्हें रहने के लिए मुंबई के वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी कालोनी में बढि़या सरकारी आवास मिल गया. इस के बाद वह अपना बासिंद का घर छोड़ कर वर्ली स्थित सरकारी आवास में रहने आ गए.

22 साल की प्रियंका सिद्धेश के साथ ही पढ़ती थी. खूबसूरत प्रियंका की पहले सिद्धेश से दोस्ती हुई, उस के बाद दोनों में प्यार हो गया. आकर्षक शक्लसूरत और शांत स्वभाव का सिद्धेश प्रियंका को भा गया था. ऐसा ही कुछ सिद्धेश के साथ भी था.

प्रियंका अपनी बड़ी बहन कविता दूधे, भाई गणेश दूधे और बूढ़ी मां के साथ कल्याण के उपनगर दिवा गांव में रहती थी. पिता की बहुत पहले मौत हो चुकी थी. मां ने किसी तरह दोनों बेटियों और बेटे को पालपोस कर बड़ा किया था. कविता सयानी हुई तो मां की सारी जिम्मेदारी उस ने अपने कंधों पर ले ली. उस ने प्रियंका और भाई को पढ़ाया-लिखाया, जबकि वह खुद ज्यादा पढ़लिख नहीं पाई थी. लेकिन वह प्रियंका और गणेश को पढ़ालिखा कर उन्हें अच्छी जिंदगी देने का सपना जरूर देख रही थी.

प्रियंका और सिद्धेश की प्रेमकहानी की शुरुआत 3 साल पहले सन 2014 में हुई थी. उस समय डोंबिवली कालेज में दोनों एक साथ पढ़ रहे थे. दोनों में प्यार हुआ तो साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खाई गईं. इस के बाद दोनों में शारीरिक संबंध भी बन गए.

लेकिन जब सिद्धेश को नौकरी मिल गई और उस के पिता का प्रमोशन हो गया तो वह परिवार के साथ वर्ली रहने चला गया. इस के बाद कुछ दिनों तक तो वह प्रियंका से मिलता रहा और शादी करने की बात करता रहा, लेकिन धीरेधीरे उस ने प्रियंका से मिलनाजुलना कम कर दिया.

इस के बाद वह सिर्फ फोन पर ही प्रियंका से बातें कर के रह जाता था. प्रियंका जब भी उस से मिलने की बात करती, कोई न कोई बहाना बना कर वह टाल देता था. वह शादी की बात करती तो कहता कि अभी शादी की इतनी जल्दी क्या है, जब समय आएगा, शादी भी कर लेंगे.

अचानक प्रियंका को जो जानकारी मिली, उस से उस का सारा अस्तित्व ही हिल उठा. उसे कहीं से पता चला कि सिद्धेश के जीवन में कोई और लड़की आ गई है, जिस में उस के मांबाप की भी सहमति है. इस से वह परेशान हो उठी. जब इस बात की जानकारी उस के घर वालों को हुई तो उन्होंने उसे समझाया कि ऐसे में उस का सिद्धेश से विवाह करना ठीक नहीं है.

लेकिन प्रियंका ने तो ठान लिया था कि वह विवाह सिद्धेश से ही करेगी. क्योंकि वह मर्यादाओं की सारी सीमाएं तोड़ चुकी थी, इसलिए उस ने अपने घर वालों की बात भी नहीं मानी.

निश्चय कर के एक दिन प्रियंका सिद्धेश से मिली और विवाह के बारे में पूछा. सिद्धेश ने यह कह कर टालना चाहा कि वह उस के मांबाप को पसंद नहीं है, इसलिए वह उस से शादी नहीं कर सकता. इस पर प्रियंका ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे मांबाप पसंद नहीं करते तो न करें, तुम तो मुझे पसंद करते हो. शादी के बाद हम मांबाप को राजी कर लेंगे.’’

प्रियंका की इस बात का सिद्धेश के पास कोई जवाब नहीं था. कुछ देर तक चुप बैठा वह सोचता रहा, उस के बाद बोला, ‘‘मैं मजबूर हूं. मैं अपने मांबाप के खिलाफ नहीं जा सकता. तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘तुम मुझे भूल सकते हो, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूल सकती. तुम ने मुझे खिलौना समझ रखा है क्या कि जब तक मन में आया खेला और जब मन भर गया तो फेंक दिया? शादी का वादा कर के मेरे मन और तन से खेलते रहे. देखा जाए तो एक तरह से मेरा यौनशोषण करते रहे. अब तुम्हें कोई दूसरी लड़की मिल गई है तो मुझ से पीछा छुड़ा रहे हो. अगर तुम ने शादी नहीं की तो मैं तुम्हारे खिलाफ शादी का झांसा दे कर यौनशोषण का मुकदमा दर्ज कराऊंगी.’’

प्रियंका की इस धमकी से सिद्धेश और उस के घर वाले घबरा गए. समाज और नातेरिश्तेदारों में बदनामी से बचने के लिए सिद्धेश ने प्रियंका से शादी कर ली. इस में घर वालों ने भी रजामंदी दे दी. इस तरह सिद्धेश और प्रियंका ने प्रेम विवाह कर लिया.

सिद्धेश ने विवाह तो कर लिया, लेकिन यह एक तरह की जबरदस्ती की शादी थी. इसलिए प्रियंका को ससुराल में जो प्यार और सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला. सम्मान देने की कौन कहे, उस के पति और सासससुर तो किसी तरह उस से पीछा छुड़ाने की सोच रहे थे.

इस के लिए सिद्धेश और उस के मांबाप ने साजिश रच कर 4-5 मई, 2017 की रात प्रियंका जब गहरी नींद में सो रही थी, तब सिद्धेश ने उस के मुंह पर तकिया रख कर उसे हमेशा के लिए सुला दिया.

प्रियंका की हत्या के बाद जब उस की लाश को ठिकाने लगाने की बात आई तो सिद्धेश और उस के मांबाप ने डोंबिवली के रहने वाले अपने परिचित अपराधी प्रवृत्ति के दुर्गेश कुमार पटवा से संपर्क किया. प्रियंका की लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस ने एक लाख रुपए मांगे.

सौदा तय हो गया तो दुर्गेश ने मदद के लिए डोंबिवली के ही रहने वाले अपने मित्र विशाल सोनी को सैंट्रो कार सहित बुला लिया. विशाल के आने पर दुर्गेश ने प्रियंका की लाश को बाथरूम में ले जा कर उस के 11 टुकड़े किए. लाश के टुकड़े करने के लिए हथियार वे अपने साथ लाए थे.

लाश के टुकड़ों को अलगअलग प्लास्टिक के बैग में अच्छी तरह से पैक कर विशाल ने उन्हें कार में रखा और 5-6 मई, 2017 की रात धड़ को रबाले के नाले में तो सिर को ले जा कर शाहपुर के जंगल में फेंका. कमर के नीचे के हिस्से और हाथों को अमरनाथ-बदलापुर रोड के बीच स्थित खारीगांव की खाड़ी में ले जा कर पैट्रोल डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लग गई तो 6 मई को सिद्धेश अपने मांबाप के साथ थाना वर्ली पहुंचा और प्रियंका की गुमशुदगी दर्ज करा दी. उन्होंने तो सोचा था कि सब ठीक हो गया है, लेकिन 3 दिनों बाद ही सब गड़बड़ हो गया, जब क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने पूछताछ के लिए उन्हें अपने औफिस बुला लिया. मामले का खुलासा होने के बाद उन्होंने सभी को थाना एमआईडीसी पुलिस के हवाले कर दिया.

सिद्धेश, उस के पिता मनोहर तथा मां माधुरी से पूछताछ कर मामले की जांच कर रहे प्रमोद जाधव ने 12 मई, 2017 को दुर्गेश पटवा को डोंबिवली से तो 14 मई को विशाल सोनी को भी उस के घर से सैंट्रो कार सहित गिरफ्तार कर लिया. इन की निशानदेही पर पुलिस ने प्रियंका के सिर तथा बाकी अंगों की राख बरामद कर ली थी.

सबूत जुटा कर पुलिस ने सिद्धेश गुरव, उस के पिता मनोहर गुरव, मां माधुरी गुरव, दुर्गेश कुमार पटवा और विशाल सोनी को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

  • कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जानलेवा चुनौती: अमीर को कौनसा सबक मिला

यह कहानी बंटवारे से पहले अंगरेजी राज की है. उस समय लोगों के स्वास्थ्य बहुत अच्छे हुआ करते थे. बीड़ीसिगरेट, वनस्पति घी का प्रयोग नहीं हुआ करता था. उस जमाने के लोग बहुत निडर होते थे. हत्या, डकैती की कोई घटना हो जाती थी तो पुलिस और जनता उस में रुचि लिया करती थी. गांवों में पुलिस आ जाती तो पूरे गांव में खबर फैल जाती कि थाना आया हुआ है.

एक अंगरेज डिप्टी कमिश्नर इंग्लैंड से रावलपिंडी स्थानांतरित हो कर आया था. जब भी कोई नया अंगरेज अधिकारी आता तो उसे उस इलाके की पूरी जानकारी कराई जाती थी, जिस से वह अच्छा कार्य कर के अपनी सरकार का नाम ऊंचा कर सके. उस अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को बताया गया कि भारत में अनोखी घटनाएं होती हैं, जिन में डाके और चोरियां शामिल हैं. अपराधियों की खोज करना बहुत कठिन होता है. कई घटनाएं ऐसी होती हैं कि सुन कर हैरानी होती है.

नए अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने एसपी से कहा कि मेरे बंगले पर 24 घंटे पुलिस की गारद रहती है साथ ही 2 खूंखार कुत्ते भी. इस के अलावा मेरे इलाके में पुलिस भी रहती है. रात भर लाइट जलती है, क्या ऐसी हालत में भी चोर मेरे घर में चोरी कर सकता है?

एसपी ने जवाब दिया कि ऐसे में भी चोरी की संभावना हो सकती है. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने कहा, ‘‘मैं इस बात को नहीं मानता, इतनी सावधानी के बावजूद कोई चोरी कैसे कर सकता है?’’

एसपी ने कहा, ‘‘अगर आप आजमाना चाहते हैं तो एक काम करें. एक इश्तहार निकलवा दें, जिस में यह लिखा जाए कि अंगरेज डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर अगर कोई चोरी कर के निकल जाए, तो उसे 500 रुपए का नकद ईनाम दिया जाएगा. अगर वह पुलिस या कुत्तों द्वारा मारा जाता है तो अपनी मौत का वह स्वयं जिम्मेदार होगा. अगर वह मौके पर पकड़ा या मारा नहीं गया तो पेश हो कर अपना ईनाम ले सकता है. उसे गिरफ्तार भी नहीं किया जाएगा और न ही कोई सजा दी जाएगी.’’

डिप्टी कमिश्नर ने एसपी की बात मान ली. इश्तहार छपा कर पूरे शहर में लगा दिए गए. इश्तहार निकलने के 2 महीने बाद यह बात उड़तेउड़ते चकवाल गांव भी पहुंची. उस जमाने में गांवों के लोग शाम को चौपालों पर एकत्र हो कर गपशप किया करते थे. चकवाल की एक ऐसी चौपाल पर अमीर नाम का आदमी बैठा हुआ था, जो 10 नंबरी था.

उस ने वहीं डिप्टी कमिश्नर के इश्तहार वाली बात सुनी. उस ने लोगों से पूछा कि 2 महीने बीतने पर भी वहां चोरी करने कोई नहीं आया क्या? एक आदमी ने उसे बताया कि पिंडी से आए एक आदमी ने बताया था कि उस बंगले में किसी की हिम्मत नहीं है जो चोरी कर सके. वहां चोरी करने का मतलब है अपनी मौत का न्यौता देना.

अमीर ने उसी समय फैसला कर लिया कि वह उस बंगले में चोरी जरूर करेगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को वह ऐसा सबक सिखाएगा कि वह पूरी जिंदगी याद रखेगा. उस ने अपनी योजना के बारे में सोचना शुरू कर दिया.

कुत्तों के लिए उस ने बैलों के 2 सींग लिए और देशी घी की रोटियों का चूरमा बना कर उन सींगों में इस तरह से भर दिया कि कुत्ते कितनी भी कोशिश करें, रोटी न निकल सकें. उस जमाने में रेल के अलावा सवारी का कोई साधन नहीं था. गांव के लोग 30-40 मील तक की यात्रा पैदल ही कर लिया करते थे.
चूंकि अमीर 10 नंबरी था इसलिए कहीं बाहर जाने से पहले इलाके के नंबरदार से मिलता था. इसलिए अमीर सुबह जा कर उस से मिला, जिस से उसे लगे कि अमीर गांव में ही है. चकवाल से रावलपिंडी का रास्ता ज्यादा लंबा नहीं था. अमीर दिन में ही पैदल चल कर डिप्टी कमिश्नर की कोठी के पास पहुंच गया.
उस ने संतरियों को कोठी के पास ड्यूटी करते हुए देखा. बंगले के बाहर की दीवार आदमी की कमर के बराबर ऊंची थी. बंगले के अंदर संतरों के पेड़ थे, और बड़ी संख्या में फूलों के पौधे भी थे.

बंगले के चारों ओर लंबेलंबे बरामदे थे, बरामदे के 4-4 फुट चौड़े पिलर थे. अमीर को अंदर जा कर कोई भी चीज चुरानी थी और यह साबित करना था कि भारत में एक ऐसी भी जाति है, जो बहुत दिलेर है और जान की चिंता किए बिना हर चैलेंज कबूल करने के लिए तैयार रहती है.
जब आधी रात हो गई तो वह बंगले की दीवार से लग कर बैठ गया और संतरियों की गतिविधि देखने लगा. जिन सींगों में घी लगी रोटियों का चूरमा भरा था, उस ने वे सींग बड़ी सावधानी से अंदर की ओर रख दिए. वह खुद दीवार से 10-12 गज दूर सरक कर बैठ गया. कुत्तों को घी की सुगंध आई तो वे सींगों में से चूरमा निकालने में लग गए. फिर दोनों कुत्ते सींगों को घसीटते हुए काफी दूर अंदर ले गए.
अब अमीर ने संतरियों को देखा, वे 4 थे. बरामदे में इधर से उधर घूमते हुए थोड़ीथोड़ी देर के बाद एकदूसरे को क्रौस करते थे. संतरी रायफल लिए हुए थे और उन्हें ऐसा लग रहा था कि 2 महीने से भी ज्यादा बीत चुके हैं. अब किसी में यहां आने की हिम्मत नहीं है. वैसे भी वह थके हुए लग रहे थे.

अमीर दीवार फांद कर पौधों की आड़ में बैठ गया. वह ऐसे मौके की तलाश में था जब संतरियों का ध्यान हटे और वह बरामदे से हो कर अंदर चला जाए. उसे यह मौका जल्दी ही मिल गया. क्रौस करने के बाद जब संतरियों की पीठ एकदूसरे के विपरीत थी, अमीर जल्दी से कूद कर बरामदे के पिलर की आड़ में खड़ा हो गया.

अमीर फुर्तीला था. दौड़ता हुआ ऐसा लगता था, मानो जहाज उड़ा रहा हो. उसे यकीन था कि काम हो जाने के बाद अगर वह बंगले के बाहर निकल गया तो संतरियों का बाप भी उसे पकड़ नहीं पाएगा.
दूसरा अवसर मिलते ही वह कमरे का जाली वाला दरवाजा खोल कर कमरे में पहुंच गया. लकड़ी का दरवाजा खुला हुआ था. चारों ओर देख कर वह बंगले के बीचों बीच वाले कमरे के अंदर पहुंचा. उस ने देखा कमरे के बीच में बहुत बड़ा पलंग था. उस पर एक ओर साहब सोया हुआ था और दूसरी ओर उस की मेम सो रही थी. मध्यम लाइट जल रही थी.

कमरे में लकड़ी की 2-3 अलमारियां थीं, चमड़े के सूटकेस भी थे. उस ने एक सूटकेस खोला, उस में चांदी के सिक्के थे. उस ने एकएक कर के सिक्के अपनी अंटी में भरने शुरू कर दिए. जब अंटी भर गई तो उस ने मजबूती से गांठ बांध ली. वह निकलने का इरादा कर ही रहा था कि उस की नजर सोई हुई मेम के गले की ओर गई, जिस में मोतियों की माला पड़ी थी.

मध्यम रोशनी में भी मोती चमक रहे थे. उस ने सोचा अगर यह माला उतारने में सफल हो गया तो चैलेंज का जवाब हो जाएगा. मेम और साहब गहरी नींद में सोए हुए थे. उस ने देखा कि माला का हुक मेम की गरदन के दाईं ओर था. उस ने चुपके से हुक खोलने की कोशिश की. हुक तो खुल गया, लेकिन मेम ने सोती हुई हालत में अपना हाथ गरदन पर फेरा और साथ ही करवट बदल कर दूसरी ओर हो गई.
अब माला खुल कर उस की गरदन और कंधे के बीच बिस्तर पर पड़ी थी, अमीर तुरंत पलंग के नीचे हो गया. 5 मिनट बाद उसे लगा कि अब मेम फिर गहरी नींद में सो गई. उस ने पलंग के नीचे से निकल कर धीरेधीरे माला को खींचना शुरू कर दिया. माला निकल गई. उस ने माला अपनी लुंगी की दूसरी ओर अंटी में बांध ली.

अमीर जाली वाले दरवाजे की ओट में देखता रहा कि संतरी कब इधरउधर होते हैं. उसे जल्दी ही मौका मिल गया. वह जल्दी से खंभे की ओट में खड़ा हो कर बाहर निकलने का मौका देखने लगा. कुत्ते अभी तक सींग में से रोटी निकालने में लगे हुए थे.

उसे जैसे ही मौका मिला, वह दीवार फांद कर बाहर की ओर कूद कर भागा. संतरी होशियार हो गए और जल्दबाजी में अंटशंट गोलियां चलाने लगे. लेकिन उन की गोली अमीर का कुछ नहीं बिगाड़ सकीं. वह छोटे रास्ते से पगडंडियों पर दौड़ता हुआ रात भर चल कर अपने घर पहुंच गया.

बाद में अमिर को पता लगा कि गोलियों की आवाज सुन कर मेम और साहब जाग गए थे. जागते ही उन्होंने कमरे में चारों ओर देखा. सिक्कों की चोरी को उन्होंने मामूली घटना समझा. लेकिन जब मेम साहब ने अपनी माला देखी तो उस ने शोर मचा दिया. वह कोई साधारण माला नहीं थी, बल्कि अमूल्य थी.

एसपी साहब और नगर के सभी अधिकारी एकत्र हो गए. उन्होंने नगर का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन चोर का पता नहीं लगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर हैरान था कि इतनी सिक्योरिटी के होते हुए चोरी कैसे हो गई. उस ने कहा कि चोर हमारी माला वापस कर दे और अपनी 5 सौ रुपए के इनाम की रकम ले जाए. साथ में उसे एक प्रमाणपत्र भी मिलेगा.
इश्तहार लगाए गए, अखबारों में खबर छपाई गई लेकिन 6 माह गुजरने के बाद भी चोर सामने नहीं आया. दूसरी तरफ मेमसाहब तंग कर रही थी कि उसे हर हालत में अपनी माला चाहिए. माला की फोटो हर थाने में भिजवा दी गई. साथ ही कह दिया गया कि चोर को पकड़ने वाले को ईनाम दिया जाएगा.

उधर अमीर चोरी के पैसों से अपने घर का खर्च चलाता रहा, उस समय चांदी का एक रुपया आज के 2-3 सौ से ज्यादा कीमत का था. अमीर के घर में पत्नी और एक बेटी थी, बिना काम किए अमीर को घर बैठे आराम से खाना मिल रहा था. उस ने सोचा, पेश हो कर अपने लिए क्यों झंझट पैदा करे, हो सकता है उसे जेल में डाल दिया जाए.

उस की पत्नी ने माला को साधारण समझ कर एक मिट्टी की डोली में डाल रखा था. एक दिन उस ने उस माला के 2 मोती निकाले और पास के एक सुनार के पास गई. उस ने सुनार से कहा कि उस की बेटी के लिए 2 बालियां बना दे और उन में एक मोती डाल दे. सुनार ने उन मोतियों को देख कर अमीर की पत्नी से कहा, ‘‘यह मोती तो बहुत कीमती हैं. तुम्हें ये कहां से मिले?’’

उस ने झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘मेरा पति गांव के तालाब की मिटटी खोद रहा था, ये मोती मिट्टी में निकले हैं. मैं ने सोचा बेटी के लिए बालियां बनवा कर उस में ये मोती डाल दूं, इसलिए तुम्हारे पास आई हूं.’’ सुनार ने उस की बातों पर यकीन कर के बालियां बना दीं. उस ने अपनी बेटी के कानों में बालियां पहना दीं.
दुर्भाग्य से एक दिन अमीर की बेटी अपने घर के पास बैठी रो रही थी. तभी एक सिपाही जो किसी केस की तफ्तीश के लिए नंबरदार के पास जा रहा था, उस ने रास्ते में अमीर के घर के सामने लड़की को रोते हुए देखा. देख कर ही वह समझ गया कि किसी गरीब की बच्ची है, मां इधरउधर गई होगी. इसलिए रो रही होगी.

लेकिन जब उस की नजर बच्ची के कानों पर पड़ी तो चौंका. उस की बालियों में मोती चमक रहे थे. उसे लगा कि वे साधारण मोती नहीं हैं. उस ने नंबरदार से पूछा कि यह किस की लड़की है. उस ने बता दिया कि वह अमीर की लड़की है, जो दस नंबरी है.

हवलदार को कुछ शक हुआ. उस ने पास जा कर मोतियों को देखा तो वे मोती फोटो वाली उस माला से मिल रहे थे. जो थाने में आया था.

उस ने अमीर को बुलवा कर कहा कि वह बच्ची की बालियां थाने ले जा रहा है, जल्दी ही वापस कर लौटा देगा. थाने ले जा कर उस ने चैक किया तो वे मोती मेम साहब की माला के निकले. अमीर पहले से ही संदिग्ध था, नंबरी भी. उसे थाने बुलवा कर पूछा गया कि ऊपर से 10 मोती उसे कहां से मिले. सब सचसच बता दे, नहीं तो मारमार कर हड्डी पसली एक कर दी जाएगी.
पहले तो अमीर थानेदार को इधरउधर की बातों से उलझाता रहा, लेकिन जब उसे लगा कि बिना बताए छुटकारा नहीं मिलेगा तो उस ने पूरी सचाई उगल दी. उस के घर से माला भी बरामद कर ली गई.
थानेदार बहुत खुश था कि उस ने बहुत बड़ा केस सुलझा लिया है, अब उस की पदोन्नति भी होगी और इनाम भी मिलेगा. अमीर को एसपी रावलपिंडी के सामने पेश किया गया. साथ ही डिप्टी कमिश्नर को सूचना दी गई कि मेम साहब की माला मिल गई है.

डीसी और मेम साहब ने उन्हें तलब कर लिया. मेम साहब ने माला को देख कर कहा कि माला उन्हीं की है. डिप्टी कमिश्नर ने अमीर के हुलिए को देख कर कहा कि यह चोर वह नहीं हो सकता, जिस ने उन के बंगले पर चोरी की है. क्योंकि उस जैसे आदमी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती कि माला गले से उतार कर ले जाए.

एसपी ने अमीर से कहा कि अपने मुंह से साहब को पूरी कहानी सुनाए. अमीर ने पूरी कहानी सुनाई और बीचबीच में सवालों के जवाब भी देता रहा. उस ने यह भी बताया कि सोते में मेम साहब ने अपनी गरदन पर हाथ भी फेरा था. डिप्टी कमिश्नर ने उस की कहानी सुन कर यकीन कर लिया, साथ ही हैरत भी हुई.
उन्होंने कहा, ‘‘तुम ने हमें बहुत परेशान किया है, अगर तुम उसी समय हमारे पास आ जाते तो हमें बहुत खुशी होती, लेकिन हम चूंकि वादा कर चुके हैं, इसलिए तुम्हें तंग नहीं किया जाएगा. हम तुम्हें सलाह देते हैं कि बाकी की जिंदगी शरीफों की तरह गुजारो.’’

अमीर ने वादा किया कि अब वह कभी चोरी नहीं करेगा. वह एक साधू का चेला बन गया और उस की बात पर अमल करने लगा. लेकिन कहते हैं कि चोर चोरी से जाए, पर हेराफेरी से नहीं जाता. वह छोटीमोटी चोरी फिर भी करता रहा. धीरेधीरे उस में शराफत आती गई.

प्यार पर टूटा पंचायत का कहर

बिहार के जिला भागलपुर स्थित कजरैली इलाके का एक गांव है गौराचक्क. वैसे तो इस गांव में सभी जातियों के लोग रहते हैं. लेकिन यहां बहुतायत यादवों की है. यहां के यादव साधनसंपन्न हैं. उन में एकता भी है. उन की एकजुटता की वजह से पासपड़ोस के गांवों के लोग उन से टकराने से बचते हैं.

इसी गांव में परमानंद यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 1 बेटी और 2 बेटे थे. बेटी बड़ी थी, जिस का नाम सोनी था. साधारण शक्लसूरत और भरेपूरे बदन की सोनी काफी मिलनसार और महत्त्वाकांक्षी थी. उस के अंदर काफी कुछ कर गुजरने की जिजीविषा थी.

2 बेटों के बीच एकलौती बेटी होने की वजह से सोनी को घर में सभी प्यार करते थे. उस की हर एक फरमाइश वह पूरी करते थे. सोनी के पड़ोस में हिमांशु यादव रहता था. रिश्ते में सोनी उस की बुआ लगती थी. यानी दोनों में बुआभतीजे का रिश्ता था. दोनों हमउम्र थे और साथसाथ पलेबढे़ पढ़े भी थे.

वह बचपन से एकदूसरे के करीब रहतेरहते जवानी में पहुंच कर और ज्यादा करीब आ गए. यानी बचपन के रिश्ते जवानी में आ कर सभी मर्यादाओं को तोड़ते हुए प्यार के रिश्ते की माला में गुथ गए.

सोनी और हिमांशु एकदूसरे से प्यार करते थे. इतना प्यार कि एकदूसरे के बिना जीने की सोच भी नहीं सकते थे. वे जानते थे कि उन के बीच बुआभतीजे का रिश्ता है. इस के बावजूद अंजाम की परवाह किए बगैर प्यार की पींग बढ़ाने लगे. बुआभतीजे का रिश्ता होने की वजह से घर वालों ने भी उन की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया.

एक दिन दोपहर का वक्त था. सोनी से मिलने हिमांशु उस के घर गया. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. सोनी सोफे पर अकेली बैठी कुछ सोच रही थी. हिमांशु को देखते ही मारे खुशी के उस का चेहरा खिल उठा. हिमांशु के भी चेहरे पर रौनक आ गई. वह भी मुसकरा दिया. तभी सोनी ने उसे पास बैठने का इशारा किया तो वह उस के करीब बैठ गया.

‘‘क्या बात है सोनी, घर में इतना सन्नाटा क्यों है?’’ हिमांशु चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए बोला, ‘‘चाचाचाची कहीं बाहर गए हैं क्या?’’

‘‘हां, आज सुबह ही मम्मीपापा किसी काम से बाहर चले गए. वे शाम तक ही घर लौटेंगे और दोनों भाई भी स्कूल गए हैं.’’ वह बोली.

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‘‘इस एकांत में बैठी तुम क्या सोच रही थी?’’  हिमांशु ने पूछा.

‘‘यही कि सामाजिक मानमर्यादाओं को तोड़ कर जिस रास्ते पर हम ने कदम बढ़ाए हैं, क्या समाज हमारे इस रिश्ते को स्वीकार करेगा?’’ सोनी बोली.

‘‘शायद समाज हमारे इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगा.’’ हिमांशु ने तुरंत कहा.

‘‘फिर क्या होगा हमारे प्यार का? मुझे तो उस दिन की सोच कर डर लगता है, जिस दिन हमारे इस रिश्ते के बारे में मांबाप को पता चलेगा तो पता नहीं क्या होगा?’’ सोनी ने लंबी सांस लेते हुए कहा.

‘‘ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, वे हमें जुदा करने की कोशिश करेंगे.’’ सोनी की आंखों में आंखें डाले हिमांशु आगे बोला, ‘‘इस से भी जब उन का जी नहीं भरेगा तो हमें सूली पर चढ़ा देंगे. अरे हम ने प्यार किया है तो डरना क्या? सोनी, मेरे जीते जी तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘सच में इतना प्यार करते हो मुझ से?’’ वह बोली.

‘‘चाहो तो आजमा लो, पता चल जाएगा.’’ हिमांशु ने तैश में कहा.

‘‘ना बाबा ना. मैं ने तो ऐसे ही तुम्हें तंग करने के लिए पूछ लिया.’’

‘‘अच्छा, अभी बताता हूं, रुक.’’ कहते हुए हिमांशु ने सोनी को बांहों में भींच लिया. वह कसमसाती हुई उस में समाती चली गई. एकदूसरे के स्पर्श से उन के तनबदन की आग भड़क उठी. कुछ देर तक वे एकदूसरे में समाए रहे, जब होश आया तो वे नजरें मिला कर मुसकरा पड़े. फिर हिमांशु वहां से चला गया.

लेकिन उन का यह प्यार और ज्यादा दिनों तक घर वालों की आंखों से छिपा हुआ नहीं रह सका. सोनी के पिता को जब जानकारी मिली तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. परमानंद यादव बेटी को ले कर गंभीर हुए तो दूसरी ओर उन्होंने हिमांशु से साफतौर पर मना कर दिया कि आइंदा वह न तो सोनी से बातचीत करेगा और न ही उन के घर की ओर मुड़ कर देखने की कोशिश करेगा. अगर उस ने दोबारा ऐसी ओछी हरकत करने की कोशिश की तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा.

प्रेम प्रसंग की बातें गांवमोहल्ले में बहुत तेजी से फैलती  हैं. परमानंद ने बहुत कोशिश की कि यह बात वह किसी और के कानों तक न पहुंचे पर ऐसा हो नहीं सका. लाख छिपाने के बावजूद पूरे मोहल्ले में सोनी और हिमांशु की प्रेम कहानी के चर्चे होने लगे. इस से परमानंद का मोहल्ले में निकलना दूभर हो गया.

परमानंद ने सोनी पर कड़ा पहरा बिछा दिया. सोनी के घर से बाहर अकेला जाने पर पाबंदी लगा दी. पत्नी से भी उन्होंने कह दिया कि सेनी को अगर घर से बाहर जाना भी पड़ेगा तो उस के साथ घर का कोई एक सदस्य जरूर जाएगा.

पिता द्वारा पहरा बिठा देने से हिमांशु और सोनी की मुलाकात नहीं हो पा रही थी. सोनी की हालत जल बिन मछली की तरह हो गई थी. उसे न तो खानापीना अच्छा लगता था और न ही किसी से मिलनाजुलना. उस के लिए एकएक पल काटना पहाड़ जैसा लगता था.

सोनी की एक झलक पाने के लिए वह बेताब था. पागलदीवानों की तरह वह यहांवहां भटकता फिरता था. उस की हालत देख कर मां जेलस देवी काफी परेशान रहती थी. मां ने भी बेटे को काफी समझाया कि उस ने जो किया, उसे समाजबिरादरी कभी मान्यता नहीं दे सकती. रिश्ते के बुआभतीजे की शादी को कोई स्वीकार नहीं करेगा. बेहतर है, तुम इसे बुरा सपना समझ कर भूल जाओ.

मगर हिमांशु मां की बात को मानने को तैयार नहीं था. उधर सोनी ने भी अपनी मां से कह दिया कि वह हिमांशु के अलावा किसी और लड़के से शादीनहीं करेगी. मां ने बहुत समझाया लेकिन प्रेम में अंधी सोनी की समझ में नहीं आया. वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

मां भी क्या करती, जब समझातेसमझाते वह थक गई तो उस ने कुछ भी कहना छोड़ दिया. काफी देर बाद सोनी की समझ में आया कि उसे आजादी पानी है तो पहले घर वालों को विश्वास दिलाना होगा कि वह हिमांशु को पूरी तरह भूल चुकी है. घर वालों को जब उस पर विश्वास हो जाएगा तब वह इस का फायदा उठा कर हिमांशु तक पहुंच सकती है. अगर एक बार वह उस के पास पहुंच गई तो उसे कोई रोक नहीं पाएगा.

ये दिमाग में विचार आते ही सोनी का चेहरा खिल उठा और वह घडि़याली आंसू बहाते हुए मां की गोद में जा कर समा गई, ‘‘मां मुझे माफ कर दो. वाकई मुझ से बड़ी भूल हो गई थी. मैं ने आप की बात नहीं मानी, इसलिए आप के मानसम्मान को ठेस पहुंची. मेरी ही वजह से आप को और पापा को बेइज्जती का सामना करना पड़ा. पता नहीं ये सब कैसे हो गया. बताओ अब मैं क्या करूं.’’

‘‘देख बेटी, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते. फिर तू तो मेरा अपना खून है.’’ मां ने सोनी को समझाया, ‘‘मैं तो कहती हूं बेटी कि जो हुआ उसे बुरा सपना समझ कर भूल जा. तेरी शादी मैं अच्छे से अच्छे खानदान में करूंगी.’’

उस के बाद मांबेटी एकदूसरे के गले मिल कर पश्चाताप के आंसू पोंछती रहीं. मां को विश्वास में ले कर सोनी मन ही मन खुश थी. उस के होंठों पर एक अजीब सी कुटिल मुसकान थिरक उठी थी.

मांबाप को भी जब पक्का यकीन हो गया कि सोनी ने हिमांशु से बात तक करनी बंद कर दी है तो उन्होंने धीरेधीरे उस के ऊपर की पाबंदी हटा ली. पिता परमानंद अब उस के लिए लड़का ढूंढने लगे ताकि वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकें.

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परमानंद को इस बात की जरा भी भनक नहीं थी, उन की बेटी मांबाप की आंखों में धूल झोंक रही है. जबकि उस की योजना प्रेमी के साथ फुर्र हो जाने की है.

योजना मुताबिक, सोनी ने मां के सामने ननिहाल जाने की इच्छा प्रकट की तो मां उसे मना नहीं कर सकी. सोचा कि बेटी ननिहाल घूम आएगी तो मन भी बदल जाएगा. यही सोच कर सितंबर, 2016 में उसे बेटे के साथ ननिहाल भेजवा दिया.

ननिहाल पहुंचते ही सोनी आजाद पंछी की तरह हो गई. उस ने हिमांशु को फोन कर दिया कि वह ननिहाल में आ गई है. यहां उस पर किसी तरह की कोई पाबंदी या बंदिश नहीं है. इसलिए वह यहां आ कर उस से मिल सकता है. यह खबर मिलते ही हिमांशु उस की ननिहाल पहुंच गया.

महीनों बाद दोनों एकदूसरे से मिले थे. उन्होंने पहले जी भर कर एकदूसरे को प्यार किया. उसी वक्त सोनी ने हिमांशु से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वो उसे यहां से कहीं दूर ऐसी जगह ले चले, जहां उन के अलावा कोई तीसरा न हो. हिमांशु भी यही चाहता था कि सोनी को ले कर वह इतनी दूर चला जाए, जहां अपनों का साया तक न पहुंच सके.

सोनी घर से भागने के लिए हिमांशु पर दबाव बनाने लगी. प्यार के सामने विवश हिमांशु यार दोस्तों से कुछ रुपयों का बंदोबस्त कर के उसे ले कर दिल्ली भाग गया. परमानंद को जब पता चला तो वह आगबबूला हो उठा. उस ने हिमांशु और उस के घर वालों के खिलाफ कजरैली थाने में बेटी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

अपहरण का मुकदमा दर्ज होते ही कजरैली  थाने की पुलिस सक्रिय हुई. पुलिस ने हिमांशु के घर पर दबिश दी. हिमांशु घर से गायब मिला तो पुलिस हिमांशु की मां जेलस देवी को थाने ले आई. उस से सख्ती से पूछताछ की लेकिन वह कुछ नहीं बता पाई. तब पुलिस ने जेलस देवी को घर भेज दिया.

कई महीने बाद भी जब सोनी का पता नहीं चला तो पुलिस हिमांशु और सोनी को हाजिर कराने के लिए जेलस देवी पर बारबार दबाव बनाती रही. कहीं से यह बात हिमांशु को पता चल गई कि पुलिस उस की मां को बारबार परेशान कर रही है. तब 8 महीने बाद हिमांशु सोनी को ले कर घर लौट आया.

सोनी ने अदालत में हाजिर हो कर न्यायाधीश के सामने यह बयान दिया कि वह बालिग हो चुकी है. अपनी मनमरजी से कहीं आजा सकती है. उसे अच्छेबुरे का ज्ञान है. अब रही बात मेरे अपहरण करने की तो मैं अपने मरजी से ननिहाल गई थी. वहीं रह रही थी, हिमांशु ने मेरा अपहरण नहीं किया था. बल्कि मैं अपनी मरजी से कहीं गई थी. हिमांशु निर्दोष है.

भरी अदालत में सोनी के बयान सुन कर परमानंद और उन के साथ आए लोग दंग रह गए, क्योंकि उस ने हिमांशु के पक्ष में बयान दिया था. सोनी के बयान के आधार पर अदालत ने उसे मुक्त दिया.

यह सब सोनी की वजह से ही हुआ था. इसलिए परमानंद भीतर ही भीतर जलभुन कर रह गया. उस समय तो उस ने समझदारी से काम लिया. वह सोनी को ले कर घर आ गया और हिमांशु अपने घर चला गया. घर ला कर परमानंद ने सोनी को बंद कमरे में खूब मारापीटा. फिर उसे उसी कमरे में बंद कर के बाहर से ताला लगा दिया.

इस के बाद परमानंद ने ठान लिया कि हिमांशु की वजह से ही पूरे समाज में उस के परिवार की नाक कटी है, इसलिए वह उसे ऐसा सबक सिखाएगा कि सब देखते रह जाएंगे. वह धीरेधीरे गांव के लोगों को भी हिमांशु के खिलाफ भड़काने लगा कि उस की वजह से ही पूरे गांव की बदनामी हुई है.

योजना को अंजाम देने के लिए परमानंद ने एक योजना बनाई. योजना के अनुसार, वह और उस का परिवार एकदम शांति से रहने लगा ताकि हिमांशु को रास्ते से हटाने के बाद सभी को यही लगे कि इस में उस का कोई हाथ नहीं है. परमानंद अभी यह तानाबाना बुन ही रहा था कि एक नई घटना घट गई.

20 अप्रैन, 2017 को सोनी फिर हिमांशु के साथ भाग गई. इस बार हिमांशु के साथ हिमांशु का परिवार भी खड़ा था. दोनों का प्यार देख कर घर वालों ने दोनों की सहमति से मंदिर में शादी करा दी थी. शादी के 15 दिनों बाद हिमांशु और सोनी फिर गांव लौट आए. इस बार सोनी अपने घर के बजाय हिमांशु के घर गई.

हिमांशु और सोनी के लौटने की खबर पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई. गांव वाले दोनों की हिम्मत देख कर हतप्रभ थे कि हिम्मत तो देखिए रिश्तों को कलंकित करते कलेजे को ठंडक नहीं पहुंची जो गांव को बदनाम करने फिर से यहां आ गए. खैर, जैसे ही ये खबर परमानंद को मिली तो उस का खून खौल उठा. वह आपे से बाहर हो गया.

अगले दिन यानी 5 जून, 2017 को सुबह के करीब 10 बजे गांव में पंचायत बुलाई गई. पंचायत परमानंद के दरवाजे के सामने रखी गई. उस में सैकड़ों की तादाद में गांव वालों के अलावा 21 पंच जुटे. सभी पंच परमानंद के पक्ष में खड़े उस की हां में हां मिला रहे थे. पंचायत में हिमांशु के परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं था.

पंचायत की अगुवाई गांव का गणेश यादव कर रहा था. एक दिन पहले ही गणेश यादव जेल से जमानत पर रिहा हुआ था. पंचायत में प्रताप यादव सिपाही भी था. वह बक्सर में तैनात था और कुछ दिनों की छुट्टी पर घर आया था. इसी की मध्यस्थता में पंचायत शुरू हुई थी.

10 बजे शुरू हुई पंचायत शाम 5 बजे तक चली. अंत में पंचों ने एकमत हो कर हिमांशु के खिलाफ तुगलकी फरमान सुना दिया कि हिमांशु ने जो किया वह बहुत गलत किया. उस की करतूतों से गांव की भारी बदनामी हुई है. उसे उस की गलती की सजा तो मिलनी ही चाहिए ताकि आइंदा गांव का कोई दूसरा युवक ऐसी जुर्रत करने के बारे में सोच भी न सके.

सभी पंचों ने कहा कि हिमांशु की गलती की सजा मौत है. उसे जान से मार देना चाहिए. इस पर पंचायत के सभी लोग सहमत हो गए. सभी ने लाठी, डंडा, तलवार, पिस्टल, ईंट आदि ले कर उस के घर पर एकाएक हमला बोल दिया.

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हिमांशु यादव घर पर ही था. उस के घर का दरवाजा बंद था. दरवाजे को तोड़ कर लोग उसे घर के भीतर से खींच लाए और उस का शरीर गोलियों से छलनी कर के पूरी भड़ास निकाल दी. इस के बाद महिलाएं उस की गर्भवती पत्नी सोनी को भी कमरे से खींच कर कहीं ले गईं. उस दिन के बाद से आज तक उस का कहीं पता नहीं चला कि वह जिंदा भी है या उस के साथ कोई अनहोनी हो चुकी है.

बेटे और बहू को बचाने गई हिमांशु की मां जेलस देवी भी पंचों के कोप का शिकार बन गई. उसे भी मारमार कर अधमरा कर दिया गया. पंच बने आतताइयों का जब इस से भी जी नहीं भरा तो उन्होंने उस के घर को आग लगा दी और फरार हो गए.

दिल दहला देने वाली घटना की सूचना जैसे ही थाना कजरैली के थानाप्रभारी विजय कुमार को मिली तो उन के हाथपांव फूल गए. वह तत्काल मयफोर्स के घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. मौके पर पहुंचते ही सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएसपी मनोज कुमार, एसपी (सिटी)  और सीओ गौराचक्क गांव पहुंच गए. पीडि़त परिवार के लोगों से मिलने के बाद पुलिस ने आतताइयों के घर दबिश दी लेकिन वे सभी अपनेअपने घरों से फरार मिले.

पुलिस ने हिमांशु की घायल मां जेलस देवी को इलाज के लिए मायागंज अस्पताल पहुंचवा दिया. हिमांशु की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. मौके से कई खाली खोखे बरामद हुए. गांव का तनावपूर्ण माहौल देखते हुए एसएसपी ने वहां पीएसी की 2 टुकडि़यां तैनात कर दीं ताकि शांति व्यवस्था बनी रहे.

पुलिस ने अस्पताल में जेलस देवी के बयान लिए तो उस ने पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी. उस के बयान के आधार पर कजरैली थाने में हत्या, हत्या का प्रयास और बलवा करने की विभिन्न धाराओं में 21 आरोपियों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज हुआ.

मामले में बहू सोनी के पिता और मुख्य आरोपी परमानंद यादव सहित सुनील यादव, भितो यादव, सुमन यादव, सीताराम यादव, विवेक यादव, प्रकाश यादव उर्फ विक्की, पूसो यादव, राजा यादव, पंकज यादव, प्रकाश यादव, अधिक यादव, प्रताप यादव (सिपाही), विजय यादव, अजब लाल यादव, गणेश यादव, वरुण यादव, सुमन यादव, अरुण यादव, कुशी यादव और गोपाल यादव को नामजद आरोपी बनाया गया.

हिमांशु यादव की पत्नी सोनी यादव के अपहरण का अलग से मुकदमा दर्ज किया गया. इस मुकदमे में आरोपी आशा देवी, राधा देवी, रुक्मिणी देवी, मनीषा देवी, अंजू देवी, अन्नू देवी, नागो यादव और अब्बो देवी को नामजद दिया गया. यह सब भी अपनेअपने घर से फरार मिलीं. पर 2 हमलावर प्रकाश यादव और राजा यादव पुलिस के हत्थे चढ़ गए. पुलिस ने उन से पूछताछ कर उन्हें जेल भेज दिया. घटना के बाद गांव के लोग 2 खेमों में बंट गए.

धीरेधीरे 10-12 दिन बीत गए. हिमांशु हत्याकांड और सोनी अपहरण के आरोपियों का पुलिस पता तक नहीं लगा सकी. समाचार पत्र इस लोमहर्षक घटना की खबरें छापछाप कर पुलिस की नाक में दम कर रहे थे. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने 20 जून, 2017 को न्यायालय से आरोपियों की संपत्ति के कुर्कीजब्ती के आदेश ले लिए.

आरोपियों को जब पता चला कि पुलिस ने न्यायालय से उन की संपत्ति के कुर्कीजब्ती के आदेश ले लिए हैं तो सीताराम यादव, सुनील यादव, विवेक यादव, अरुण यादव, कुशो यादव और सुमन यादव ने 14 जुलाई, 2017 को अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रंजन कुमार मिश्रा की कोर्ट में सरेंडर कर दिया. कोर्ट से सभी आरोपियों को जेल भेज दिया.

इस के पहले भी 2 आरोपियों ने कोर्ट में सरेंडर किया था और 3 को पुलिस पहले गिरफ्तार कर चुकी थी. बाकी अभियुक्तों को भी पुलिस तलाशती रही. 30 जुलाई, 2017 को मुख्य आरोपी परमानंद यादव को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर बांका जिले से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उस से सोनी के बारे में पूछताछ की तो उस ने अनभिज्ञता जताई.

इस केस में अजब लाल यादव भी आरोपी था. जबकि उस के घर वालों का कहना है कि उस का इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है. उस की बेटी अनुष्ठा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयेग को पत्र लिख कर कहा कि उस के पिता को गलत फंसाया गया है. मानवाधिकार आयोग ने 8 जनवरी, 2018 को एसएसपी मनोज कुमार से हिमांशु हत्याकांड की ताजा रिपोर्ट देने को कहा.

आयोग के सवालों के जवाब देने के लिए एसएसपी ने डीएसपी (सिटी) को अधिकृत कर दिया. कथा लिखे जाने तक जवाब तैयार नहीं हुआ था. अपहृत सोनी का कुछ पता नहीं चल सका था. हिमांशु के घर वालों ने अपहरण कर के सोनी की हत्या की आशंका जताई है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पैसे के लिए वन्यजीवों की तस्करी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक होने की वजह से पुलिस प्रशासन काफी सख्त था. नतीजा यह हुआ कि अन्य राज्यों की सीमाओं से गुजरने वाले वाहनों पर खास नजर रखी जाने लगी. मीरजापुर के एसपी कलानिधि नैथानी ने भी अपने यहां सभी थानाप्रभारियों को सख्त निर्देश दे रखा था कि बाहर से आने वाले वाहनों पर सख्त नजर रखी जाए. 8 जनवरी, 2017 को यातायात प्रभारी देवेंद्र प्रताप सिंह मंगला सिंह, दिनेश यादव, गोविंद चौबे तथा भरूहना चौकीप्रभारी पंकज कुमार राय के साथ भरूहना चौराहे पर आनेजाने वाले वाहनों की जांच कर रहे थे. जांच के दौरान चुनार-वाराणसी की ओर से आने वाली एक इनोवा कार को रोका गया.

इस की वजह यह थी कि उस की नंबर प्लेट पर इस तरह मिट्टी लगाई गई थी ताकि उस का नंबर जल्दी से दिखाई न दे. सिपाहियों ने कार रुकवाई तो उस में ड्राइवर सहित 3 लोग सवार थे. सिपाहियों ने कार में पीछे झांका तो उस में 4-5 बड़ेबड़े कार्टून रखे दिखाई दिए.

सिपाहियों ने नंबर प्लेट की मिट्टी पैर से हटाई तो पता चला कि कार आंध्र प्रदेश की थी. उस में बैठे लोग संदिग्ध लगे तो पुलिस ने कार में बैठे लोगों से कार की डिक्की खोलने को कहा. जब उन लोगों ने डिक्की खोलने में आनाकानी की तो पुलिस का शक बढ़ गया. पुलिस को मामला कुछ गड़बड़ लगा.

मीरजापुर जनपद नक्सल प्रभावित सोनभद्र और चंदौली जिलों से सटा होने के साथसाथ मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड से ले कर छत्तीसगढ़ के नजदीक है, इसलिए मादक पदार्थों, विस्फोटक पदार्थों से ले कर वन्यजीवों की खाल, अवैध शस्त्र आदि के तस्कर इधर से गुजरते हैं.

इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर पुलिस ने थोड़ी सख्ती से डिक्की खोलने को कहा तो ड्राइवर बोला, ‘‘साहब, उस में कुछ खास नहीं है. थोड़ा घरेलू सामान है, जिसे हम घर ले जा रहे हैं.’’

‘‘घरेलू सामान है तो दिखाने में क्या हर्ज है. चलो, तुम डिक्की नहीं खोलना चाहते तो हमीं खोल कर देख लेते हैं.’’ कार के पास खड़े एक सिपाही ने कहा ही नहीं, बल्कि आगे बढ़ कर उस ने डिक्की खोल भी दी. इसी के साथ उस ने कार के पिछले हिस्से में रखे कार्टूनों में से जैसे ही एक कार्टून पर पड़ा बोरा उठाया, अंदर से शेर के गुर्राने जैसी आवाज आई. सिपाही डर कर पीछे हट गया.

जानवर के गुर्राने की आवाज वाहनों की जांच में लगे अन्य पुलिसकर्मियों और अधिकारियों ने ही नहीं, वहां खड़े तमाशा देख रहे अन्य लोगों ने भी सुन ली थी. इसलिए पुलिस अधिकारी जहां कार के करीब पहुंच गए, वहीं तमाशबीन भी नजदीक आ गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने जब सभी कार्टूनों पर पड़ा बोरा हटाया तो अंदर जो दिखाई दिया, उसे देख कर सब के सब हैरान रह गए. सभी कार्टूनों में पिंजरे रखे थे, जिन में दुर्लभ प्रजाति के जानवर बंद थे. पुलिस उन्हें गौर से देख रही थी कि तभी मौका पा कर गाड़ी में सवार 3 लोगों में से 2 लोग कार की चाबी ले कर भाग निकले. संयोग से एक आदमी पुलिस के हाथ लग गया.

दुर्लभ वन्यजीवों के साथ एक आदमी के पकड़े जाने की सूचना देवेंद्र प्रताप सिंह ने एसपी कलानिधि नैथानी को देने के साथ पुलिस लाइन से क्रेन मंगवा भी ली. क्रेन की मदद से इनोवा कार संख्या एपी28डी सी-3173 को पुलिस लाइन ले जाया गया.

सूचना पा कर डीएफओ के.के. पांडेय, सीओ (नगर) बृजेश कुमार तथा क्राइम ब्रांच प्रभारी विजय प्रताप सिंह भी पुलिस लाइन पहुंच गए. देखतेदेखते शेर जैसे दिखने वाले दुर्लभ जीव के बरामद होने की सूचना पूरे शहर में फैल गई.

इस के बाद पुलिस लाइन के आसपास की सड़कों पर भीड़ लगने लगी. सूचना पा कर एसपी कलानिधि नैथानी, एएसपी आशुतोष शुक्ल, सीओ बी.के. त्रिपाठी भी पुलिस लाइन पहुंच गए थे. अधिकारियों की उपस्थिति में कार से पिंजरे बाहर निकाले गए. कार की तलाशी में 32 बोर का एक रिवौल्वर और कुछ कारतूस भी बरामद हुए.

इस सब से साफ हो गया कि यह दुर्लभ प्रजाति के जानवरों की तस्करी का मामला है. पुलिस ने इन जानवरों के साथ जिस आदमी को पकड़ा था, उस का नाम अब्दुल आरिफ था. वह हैदराबाद का रहने वाला था. पूछताछ में पता चला कि उस के फरार हुए साथियों के नाम फहीम और इमरान थे.

अगले दिन एसपी कलानिधि नैथानी और वन अधिकारियों की उपस्थिति में पकड़े गए वन्यजीव तस्कर अब्दुल आरिफ से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने वन्यजीवों की तस्करी से जुड़ी चौंकाने वाली जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी—

आंध्र प्रदेश के जिला हैदराबाद के थाना कालापत्थर का एक गांव है ताड़वन. इसी गांव में मोहम्मद अब्दुल वाशिद अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. अब्दुल वाशिद ने समय से सभी बच्चों की शादी कर के अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली थी.

शादियां हुईं तो परिवार बढ़ा, परिवार बढ़ा तो खर्चे भी बढ़े. ऐसे में अब्दुल वाशिद के 2 बेटे हैदराबाद जा कर रोजीरोजगार से लग गए. लेकिन सब से छोटे बेटे अब्दुल आरिफ को छोटेमोटे कामों से जैसे नफरत थी. वह हमेशा बड़ा आदमी बनने और करोड़ों में खेलने के सपने देखता था. यही वजह थी कि लोग उसे शेखचिल्ली कहने लगे थे.

इसी सब के चलते उस की मुलाकात फिरोज से हुई. दोनों की सोच एक जैसी थी, इसलिए जल्दी ही उन में दोस्ती हो गई. काम की बात चली तो फिरोज ने कहा, ‘‘मेरा कहा मानो तो मैं तुम्हें एक काम बताऊं. उस में थोड़ा रिस्क तो है, लेकिन पैसा बहुत है. अगर चालाकी से काम किया जाएगा तो रिस्क भी खत्म हो जाएगा.’’

‘‘पहले काम तो बताओ. बिना रिस्क के वैसे भी पैसा कहां मिलता है. अगर मोटी कमाई करनी है तो रिस्क तो उठाना ही पड़ेगा.’’ आरिफ ने कहा.

‘‘काम कोई खास मेहनत का नहीं है, उस में सिर्फ सावधानी की जरूरत है. काम करने लगोगे तो पैसों की बरसात होने लगेगी.’’ फिरोज ने कहा.

‘‘यार पहेलियां मत बुझाओ, काम बताओ. मैं पैसों के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ आरिफ ने उत्तेजित हो कर कहा.

‘‘काम कोई मुश्किल नहीं है, सिर्फ जंगली जानवरों को कार से ले आना है.’’

‘‘तुम कह रहे हो कि काम कोई मुश्किल वाला नहीं है. मैं जंगली जानवरों को कैसे पकड़ कर लाऊंगा?’’ आरिफ ने हैरानी से कहा.

‘‘जंगली जानवरों को तुम्हें पकड़ना नहीं है. पकड़ेगा कोई और, तुम्हें सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह कार से पहुंचाना है. इस के लिए तुम्हें आनेजाने के खर्च के साथसाथ जानवर जरूरत की जगह पहुंचाने के लिए मोटी रकम मिलेगी.’’ फिरोज ने कहा.

फिरोज द्वारा बताया गया यह काम अब्दुल आरिफ को पसंद आ गया तो वह काम करने को तैयार हो गया. इस के बाद फिरोज ने उस की मुलाकात मोहम्मद अब्दुल रहमान से करा दी. वह कालापत्थर के अलीबाग के रहने वाले अब्दुल अजीज का बेटा था. बातचीत के बाद आरिफ काम पर लग गया.

रहमान ने ही आरिफ को फहीम और इमरान के साथ पटना के रहने वाले डब्लू के यहां भेजा. आरिफ और उस के साथी उस इनोवा कार पर वाराणसी से सवार हुए थे. उस कार में जानवर हैं, इस की गंध किसी को न मिले, इस के लिए उस में तेज सुगंध वाला परफ्यूम छिड़क दिया गया था.

इन वन्यजीवों को बिहार से हैदराबाद तक पहुंचाने के लिए आरिफ को 50 हजार रुपए के अलावा रास्ते का पूरा खर्च दिया जाता. इस के अलावा प्रति जानवर 6 हजार रुपए इनाम भी मिलता. लेकिन आरिफ पुलिस को यह नहीं बता सका कि इन जानवरों का क्या किया जाएगा.

पूछताछ के बाद वन्यजीवों को वनविभाग को सौंप दिया गया. आरिफ के बयान के आधार पर देहात कोतवाली में उस के अलावा रहमान, इमरान, डब्लू और फहीम के खिलाफ भादंवि की धारा 9/51, 40, 39डी, 43, 48ए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत मुकदमा दर्ज कर के आरिफ को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अब्दुल आरिफ तो पकड़ा गया था, लेकिन उस के साथी फरार हो गए थे. एसपी कलानिधि नैथानी उन्हें भी पकड़ना चाहते थे. उन्हें उन के मोबाइल नंबर आरिफ से मिल गए थे. इसलिए उन्हें पकड़ने के लिए स्वाट, सर्विलांस तथा देहात कोतवाली पुलिस की संयुक्त टीम बना कर उन के पीछे लगा दी गई थी.

इस का नतीजा यह निकला कि 18 जनवरी को भरूहना चौकीप्रभारी पंकज कुमार राय ने आरिफ के साथी फहीम को मीरजापुर रेलवे स्टेशन से पकड़ लिया. पूछताछ के बाद उसे भी जेल भेज दिया गया.

फहीम और आरिफ से पूछताछ में जो जानकारी मिली, उस के अनुसार ये जो जानवर ले जा रहे थे, उन्हें बंगाल के जंगलों से पकड़ा गया था. हैदराबाद इस तरह के जानवरों का बड़ा बाजार है. बिहार और बंगाल के जंगलों से पकड़े गए वन्यजीवों का उपयोग शक्तिवर्धक दवा बनाने में किया जाता है.

इन्हें पकड़ने के लिए पूरा एक रैकेट काम करता है. कुछ वनकर्मियों से भी इन की मिलीभगत होती है. इस रैकेट के बारे में किसी को भी पूरी जानकारी नहीं होती. हर व्यक्ति का काम बंटा होता है और हर आदमी को सिर्फ अपने काम के बारे में जानकारी होती है.

गिरफ्तार आरिफ और फहीम से 6 दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीव बरामद हुए थे. इन में 5 कैरेकल कैट (जंगली बिल्ली) तथा 1 लैपर्ड कैट का बच्चा था. इन्हें न्यायालय के आदेश पर लखनऊ स्थित नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान भेज दिया गया था.

इन जंगली जानवरों को हैदराबाद से पानी के जहाज से अन्य देशों में भेजा जाना था. वन्यजीव तस्करों का नेटवर्क भारत ही नहीं, नेपाल तक फैला है. तस्कर अपने एजेंटों के माध्यम से दुर्लभ और खूंखार जानवरों को खरीद कर लाखों कमाते हैं.

खूंखार जंगली जावरों को 10 लाख से एक करोड़ रुपए तक में बेचा जाता है. अब तक ये शेर, कैरेकल (एक प्रकार की जंगली बिल्ली), चीता, तेंदुआ सहित कई अन्य जानवरों की तस्करी कर चुके हैं.

तस्करों के पास से बरामद जंगली बिल्लियां दुर्लभ प्रजाति की थीं. उन की संख्या देश भर में 200 से भी कम है. पता चला है कि कुछ निजी चिडि़याघर चलाने वाले भी ऐसे जानवरों को खरीद कर अपने यहां रखते हैं. इस के लिए वे तस्करों को लाखों रुपए देते हैं.

– कथा पुलिस व मीडिया सूत्रों पर आधारित

प्यार में हुई तकरार, प्राइवेट पार्ट पर वार

29 साला सूर्य भूषण कुमार क्या अब जिंदगी में कभी सैक्स कर पाएगा? इस सवाल का जवाब तो अब उस का इलाज कर रहे डाक्टर कुछ दिन बाद ही दे पाएंगे, क्योंकि उस का प्राइवेट पार्ट तकरीबन 60 फीसदी कट चुका है.

यह सुन कर किसी को भी हैरत के साथ उस से हमदर्दी होना कुदरती बात है, क्योंकि मर्दानगी की निशानी प्राइवेट पार्ट किसी और ने नहीं, बल्कि उम्र में उस से 4 साल छोटी माशूका प्रिया (बदला नाम) ने पूरी बेरहमी से चाकू से काटा था.

आखिर प्रिया ने ऐसा खतरनाक कदम क्यों उठाया और इस से उसे हासिल क्या हुआ? यह समझने के लिए 3 साल पीछे चलना पड़ेगा, जब इन दोनों की लव स्टोरी शुरू हुई थी.

पटना में रह कर पढ़ाई कर रही प्रिया दरभंगा की रहने वाली है. सूर्य कुमार सीतामढ़ी का बाशिंदा है, जिस की तैनाती छत्तीसगढ़ के सुकमा में है. इस नक्सल प्रभावित इलाके में सूर्य कुमार सीआरपीएफ का जवान है. ये दोनों आपस में रिश्तेदार भी हैं. लिहाजा, कभीकभार मेलमुलाकातें होती रहती थीं, लेकिन प्यार कब हो गया, यह दोनों को पूरी तरह उस वक्त पता चला, जब सूर्य कुमार नौकरी पर सुकमा चला गया.

अब यह कहने भर की बात रह गई है कि प्यार में नजदीकियां और रोजरोज या कभी भी मिलना जरूरी है. सूर्य कुमार के सुकमा जाने से इन दोनों के प्यार पर कोई असर नहीं पड़ा, उलटे वह दिनोंदिन बढ़ता ही गया, क्योंकि रोज बात करने के अलावा वीडियो काल भी होते रहे और चैटिंग करने के लिए ह्वाट्सएप है ही, जिस में दोनों घंटों मशगूल रहते थे.

यही इन दोनों के बीच हो रहा था. वादोंइरादों में ही सही जिंदगी मजे में कट रही थी कि एक दिन प्रिया को पता चला कि सूर्य कुमार की शादी उस के घर वालों ने शिवहर की एक लड़की से तय कर दी है और शादी इसी 23 जून को होना तय हुई है, तो वह चोट खाई नागिन की तरह बिफर उठी.

प्रिया किसी भी सूरत में अपने आशिक को किसी दूसरी लड़की का होते नहीं देखना चाहती थी, क्योंकि दोनों शादी का वादा बहुत पहले ही कर चुके थे.

सुहागरात पर काटा प्राइवेट पार्ट

सूर्य कुमार ने लाख सफाई और दुहाई अपने प्यार और वफा की दी, लेकिन प्रिया टस से मस नहीं हुई. उसे अपने प्रेमी की इस बात या दलील से भी कोई मतलब नहीं था कि शिवहर वाली लड़की से शादी उस की मरजी के खिलाफ घर वालों ने तय कर दी है और अब मना किया तो रिश्तेदारी और समाज में काफी बदनामी होगी.

शादी के पहले ही अपना सबकुछ सूर्य कुमार को सौंप चुकी प्रिया खुद को ठगा सा महसूस कर रही थी. उसे अपने आशिक की बुजदिली पर भी गुस्सा आ रहा था. उस ने फोन पर बहुत साफ लहजे में सूर्य कुमार को धौंस सी दी कि तुम पहले पटना आओ, नहीं तो मैं अपनी जान दे दूंगी.

प्रिया जब जिद पर अड़ गई, तो सूर्य कुमार भी पटना आने के लिए राजी हो गया. उस ने सोचा था कि किसी तरह प्रिया को मना लेगा या इस समस्या का कोई दूसरा हल निकाल लेगा.

तयशुदा प्रोग्राम के मुताबिक सूर्य कुमार बीती 3 जून को सुकमा से पटना पहुंचा और गांधी मैदान के पास एक होटल में ठहर गया. वे दोनों होटल में मिले तो फिर वही कलह शुरू हो गई, जिस का आज तक कोई हल नहीं निकला था.

प्रिया ने फिर जिद पकड़ ली कि वादे के मुताबिक मुझ से शादी करो, नहीं तो मैं खुदकुशी कर लूंगी. आगे तुम जानो और तुम्हारा काम जाने.

सूर्य कुमार प्रिया के खतरनाक तेवर देख पहले से ही हलकान था, लिहाजा उसे भलाई इसी बात में लगी कि चुपचाप प्रिया से शादी कर ली जाए, आगे जो होगा देखा जाएगा. दोनों ने 5 जून को पटना सिटी कोर्ट में शादी कर ली और होटल वापस आ गए.

लेकिन शादी के बाद भी वे दोनों टैंशन में थे. सूर्य कुमार यह सोचसोच कर परेशान था कि अब 23 जून को क्या होगा, जब घर वालों और होने वाली ससुराल में प्रिया से उस की शादी की बात आम हो जाएगी? कहीं दोनों पक्षों में घमासान न हो जाए, क्योंकि बात तो दोनों की ही खराब हो रही थी. शादी की तैयारियां भी दोनों घरों में जोरशोर से चल रही थीं और सारी खरीदारी हो चुकी थी.

प्रिया ने अपनी जिद पूरी कर ली थी. अब वह सूर्य कुमार की माशूका नहीं, बल्कि ब्याहता हो गई थी. इस के बाद भी उस के दिल में 23 जून को ले कर खटका था कि कहीं ऐसा न हो कि सूर्य कुमार उस लड़की से भी शादी कर ले. हालांकि, वह यह भी समझ रही थी कि ऐसा होना अब नामुमकिन है. फिर भी वह अपने नएनवेले पति से सौ फीसदी प्यार और वफा की गारंटी चाहती थी.

अब दोनों के पास अपनी टैंशन दूर करने का एक ही तरीका बचा था कि हालफिलहाल तो सबकुछ भूलभाल कर सुहागरात मनाई जाए. रात गहरातेगहराते सूर्य कुमार ने तो पूरे मूड में आते हुए अपने कपड़े भी उतार दिए थे. अब वह केवल बनियान और अंडरवियर में था.

सूर्य कुमार शुरुआत कर पाता, इस के पहले ही प्रिया ने 3 दिनों के अंदर तीसरी जिद यह पकड़ ली कि पहले शिवहर वालों को फोन पर कहो कि तुम ने मुझ से शादी कर ली है.

इस पर झल्लाया सूर्य कुमार नहीं माना तो प्रिया ने तीसरी बार ही उसे खुदकुशी कर लेने की धमकी दे डाली. इस बार उस ने धमकी यह भी दी कि खुद की जान दे दूंगी या फिर तुम्हारी ले लूंगी.

यह धमकी सुनसुन कर आजिज आ चुके सूर्य कुमार ने जब साफतौर पर मना कर दिया और हमबिस्तरी करने की गरज से प्रिया को अपने पास खींचा तो प्रिया ने बिजली की फुरती से अपने साथ लाए बैग में से चाकू निकाला और उस से सूर्य कुमार के प्राइवेट पार्ट को एक झटके में काट डाला.

हड़बड़ाया सूर्य कुमार दर्द से कराहता उसी हालत में कमरे के बाहर निकला और मदद के लिए चिल्लाया तो होटल के मुलाजिम दौड़े आए, लेकिन उस

की तरफ देख कर सकते में आ गए, क्योंकि उस की जांघों के बीच से खून बह रहा था.

ऐसा नजारा जाहिर है उन्होंने जिंदगी में पहली बार देखा था. जैसेतैसे संभलते वे सूर्य कुमार को पीएमसीएच ले गए. खबर मिलने पर पुलिस अस्पताल

पहुंची तो सूर्य कुमार के बयान से सारी कहानी उजागर हुई. प्रिया को पुलिस ने आईपीसी की धारा 326 के तहत गिरफ्तार कर लिया.

सुबह जब बात आम हुई, तो सुनने वाले हैरान रह गए कि सुहागरात पर यह क्या तोहफा पत्नी ने पति को दिया कि उस का प्राइवेट पार्ट ही काट डाला?

प्रिया का गुस्सा और जिद अपनी जगह जायज थे, लेकिन तभी तक जब तक सूर्य कुमार ने उस से शादी नहीं की थी. इस के बाद प्रिया ने गलती नहीं, बल्कि गुनाह ही कर डाला जिस की सजा अदालत से उसे मिलेगी, लेकिन उस ने अपने साथसाथ सूर्य कुमार की भी जिंदगी खराब कर दी है.

ऐसी कुछ अहम घटनाओं पर नजर डालें तो समझ आता है कि माशूका की मंशा आशिक को न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी वाली कहावत की तर्ज पर कहीं न कहीं सबक सिखाने की रहती है. कटे प्राइवेट पार्ट वाला जिंदगीभर कसकता रहेगा और अपने प्यार को कोसते हुए खून के आंसू बहाने पर मजबूर रहेगा. अब ऐसे हिंसक प्यार को किस बिना पर प्यार कहा जाए, यह तय कर पाना और भी मुश्किल काम है.

हादसे ओडिशा के पटना सरीखे ही 2 सनसनीखेज और चर्चित मामले साल 2019 में आदिवासी बाहुल्य राज्य ओडिशा से सामने आए थे. राजधानी भुवनेश्वर से तकरीबन 525 किलोमीटर दूर नवरंगपुर जिले में एक पत्नी को शक था कि उस के पति के किसी और औरत से नाजायज संबंध हैं.

पूछने पर पति सफाई देता था, लेकिन गलत नहीं कहा जाता कि शक का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नहीं. जनवरी की एक सर्द रात में शक की आग में जलती पत्नी का जब सब्र का बांध टूट गया, तो उस ने गहरी नींद में सोए पति का प्राइवेट पार्ट तेज धारदार हथियार से काट डाला.

पति जब दर्द से बिलबिला कर चिल्लाया, तो पड़ोसी भागेभागे आए और उसे अस्पताल ले गए. पुलिस ने आरोपी औरत को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. यह पति तमिलनाडु में मजदूरी करता था और 3 महीने पहले ही नवरंगपुर आया था.इस हादसे के चंद महीनों बाद ही ओडिशा के क्योंझर जिले में एक औरत ने अपने बौयफ्रैंड का प्राइवेट पार्ट काटा था.

इस मामले में भी बौयफ्रैंड गहरी नींद में सोया हुआ था और इत्तिफाक की बात यह है कि वह भी तमिलनाडु में ही काम करता था. औरत शादीशुदा थी, जिस के नाजायज संबंध इस नौजवान से थे, जो चेन्नई से जब भी क्योंझर आता था, अपनी उम्रदराज माशूका से सैक्स सुख लेने पहुंच जाता था.

हादसे की रात दोनों में किसी बात को ले कर खासी कहासुनी हुई थी, जिस से माशूका को इतना गुस्सा आया कि सोते हुए आशिक का प्राइवेट पार्ट काटने के बाद ही शांत हुआ. खुद सरासर पति से बेवफाई कर रही यह औरत अपने आशिक से वफा चाहने की उम्मीद लगाए बैठी थी.

पहले गला काटा, फिर प्राइवेट पार्ट

छत्तीसगढ़ के दुर्ग के अमलेश्वर की रहने वाली संगीता सोनवानी का दर्द यह था कि पति अनंत सोनवानी उसे प्यार नहीं करता था. वह उसे काली और बदसूरत कहते हुए ताने मारता था और कभीकभी घर से निकल जाने को कहता था.

आएदिन की ही तरह पिछले साल 22 सितंबर को भी उस ने संगीता की जम कर ठुकाई की और फिर सो गया. इस बार संगीता का सब्र टूट गया और उस ने गुस्से में दीवार पर टंगी कुल्हाड़ी उठाई और अनंत की हत्या कर दी. इस पर भी भड़ास पूरी नहीं निकली, तो उस ने पति का प्राइवेट पार्ट काट डाला.

पुलिस ने संगीता को गिरफ्तार किया, तो पता चला कि दोनों की ही यह दूसरी शादी है और अनंत को अपनी पहली पत्नी से 12 साल का एक बेटा भी है. संगीता का गुस्सा अनंत के गले से ज्यादा उस के प्राइवेट पार्ट पर ज्यादा उतरा, जिस के उस ने कई टुकड़े कर दिए थे.

इस ने तो चबा ही डाला पति या प्रेमी के प्राइवेट पार्ट पर गुस्सा उतारने का एक अजब किस्सा मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की जौरा तहसील के गांव उम्मेदगढ़ से भी 24 मई, 2023 को सामने आया था. इस मामले में चाकू, कुल्हाड़ी या ब्लेड का इस्तेमाल नहीं किया गया था, बल्कि पति के प्राइवेट पार्ट को पत्नी ने दांतों से ही चबा डाला था.

पीडि़त ने जनसुनवाई में जिला एसपी को अपनी शिकायत में बताया कि उस की बीवी का चालचलन ठीक नहीं है. वह कभी भी अपने दोस्तों को फोन कर के घर बुला लेती है. इस पर टोका तो वह लड़ाईझगड़ा करने लगी और पुलिस में झूठी रिपोर्ट लिखाने की धमकी दी. इतना ही नहीं, उस ने 75 साला बूढ़े ससुर के खिलाफ भी छेड़छाड़ की रिपोर्ट लिखा रखी थी.

घटना के दिन जब उस आदमी ने पत्नी को डांटा, तो मारे गुस्से के वह आपे से बाहर हो गई और गुस्से में ही उस के प्राइवेट पार्ट को दांतों से चबा डाला. पीडि़त जब बेसुध सा हो गया, तो पत्नी ने लातों से भी प्राइवेट पार्ट पर ताबड़तोड़ प्रहार किए. इलाज के लिए उसे ग्वालियर ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उस के प्राइवेट पार्ट के 3 आपरेशन किए.

प्राइवेट पार्ट से बदला क्यों?

ऐसे दर्जनों नहीं, बल्कि सैकड़ों मामले हैं, जिन में औरत का गुस्सा मर्द के प्राइवेट पार्ट पर उतरा. इस से तो लगता है कि एक औरत की नजर में किसी मर्द के लिए यही सब से बड़ी सजा है कि उस का प्राइवेट पार्ट ही काट डाला जाए, जो मूंछों से पहले भी मर्दानगी की निशानी माना जाता है. तमाम मामलों में बीवियां या माशूकाएं गुस्से और नफरत की सारी हदें पार कर चुकी थीं.

इस के अलावा 90 फीसदी मामलों में पति या आशिक का प्राइवेट पार्ट उस वक्त काटा गया, जब वे नींद में थे. मर्दों का प्राइवेट पार्ट बाहर की तरफ निकला हुआ रहता है और नाजुक भी बहुत होता है, इसलिए उसे आसानी से काटा जा सकता है.

इस तरह के बढ़ते मामले पतियों और प्रेमियों के लिए सिगनल हैं कि प्यार और शादीशुदा जिंदगी में उन्हें संभल कर रहना चाहिए. अगर औरत सैक्स सुख दे सकती है, तो उसे हमेशा के लिए छीन भी सकती है.

औरत से बेवफाई, उस की बेइज्जती और अनदेखी उस के गुस्से के चलते इतनी महंगी भी पड़ सकती है कि आप जिंदगीभर सैक्स सुख के लिए तरसते रह सकते हैं.

शिकार: काव्या के लिए रंजन की नफरत

वह एक बार फिर उस के सामने खड़ा था. लंबाचौड़ा काला भुजंग. आंखों से झांकती भूख. एक ऐसी भूख जिसे कोई भी औरत चुटकियों में ताड़ जाती है. उस आदमी के लंबेचौड़े डीलडौल से उस की सही उम्र का पता नहीं लगता था, पर उस की उम्र 30 से 40 साल के बीच कुछ भी हो सकती थी.

वहीं दूसरी ओर काव्या गोरीचिट्टी, छरहरे बदन की गुडि़या सी दिखने वाली एक भोलीभाली, मासूम सी लड़की थी. मुश्किल से अभी उस ने 20वां वसंत पार किया होगा. कुछ महीने पहले दुख क्या होता है, तकलीफ कैसी होती है, वह जानती तक न थी.

मांबाप के प्यार और स्नेह की शीतल छाया में काव्या बढि़या जिंदगी गुजार रही थी, पर दुख की एक तेज आंधी आई और उस के परिवार के सिर से प्यार, स्नेह और सुरक्षा की वह पिता रूपी शीतल छाया छिन गई.

अभी काव्या दुखों की इस आंधी से अपने और अपने परिवार को निकालने के लिए जद्दोजेहद कर ही रही थी कि एक नई समस्या उस के सामने आ खड़ी हुई.

उस दिन काव्या अपनी नईनई लगी नौकरी पर पहुंचने के लिए घर से थोड़ी दूर ही आई थी कि उस आदमी ने उस का रास्ता रोक लिया था.

एकबारगी तो काव्या घबरा उठी थी, फिर संभलते हुए बोली थी, ‘‘क्या है?’’

वह उसे भूखी नजरों से घूर रहा था, फिर बोला था, ‘‘तू बहुत ही खूबसूरत है.’’

‘‘क्या मतलब…?’’ उस की आंखों से झांकती भूख से डरी काव्या कांपती आवाज में बोली.

‘‘रंजन नाम है मेरा और खूबसूरत चीजें मेरी कमजोरी हैं…’’ उस की हवस भरी नजरें काव्या के खूबसूरत चेहरे और भरे जिस्म पर फिसल रही थीं, ‘‘खासकर खूबसूरत लड़कियां… मैं जब भी उन्हें देखता हूं, मेरा दिल उन्हें पाने को मचल उठता है.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो…’’ अपने अंदर के डर से लड़ती काव्या कठोर आवाज में बोली, ‘‘मेरे सामने से हटो. मुझे अपने काम पर जाना है.’’

‘‘चली जाना, पर मेरे दिल की प्यास तो बुझा दो.’’

काव्या ने अपने चारों ओर निगाह डाली. इक्कादुक्का लोग आजा रहे थे. लोगों को देख कर उस के डरे हुए दिल को थोड़ी राहत मिली. उस ने हिम्मत कर के अपना रास्ता बदला और रंजन से बच कर आगे निकल गई.

आगे बढ़ते हुए भी उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था. ऐसा लगता था जैसे रंजन आगे बढ़ कर उसे पकड़ लेगा.

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस ने कुछ दूरी तय करने के बाद पीछे मुड़ कर देखा. रंजन को अपने पीछे न पा कर उस ने राहत की सांस ली.

काव्या लोकल ट्रेन पकड़ कर अपने काम पर पहुंची, पर उस दिन उस का मन पूरे दिन अपने काम में नहीं लगा. वह दिनभर रंजन के बारे में ही सोचती रही. जिस अंदाज से उस ने उस का रास्ता रोका था, उस से बातें की थीं, उस से इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि रंजन की नीयत ठीक नहीं थी.

शाम को घर पहुंचने के बाद भी काव्या थोड़ी डरी हुई थी, लेकिन फिर उस ने यह सोच कर अपने दिल को हिम्मत बंधाई कि रंजन कोई सड़कछाप बदमाश था और वक्ती तौर पर उस ने उस का रास्ता रोक लिया था.

आगे से ऐसा कुछ नहीं होने वाला. लेकिन काव्या की यह सोच गलत साबित हुई. रंजन ने आगे भी उस का रास्ता बारबार रोका. कई बार उस की इस हरकत से काव्या इतनी परेशान हुई कि उस का जी चाहा कि वह सबकुछ अपनी मां को बता दे, लेकिन यह सोच कर खामोश रही कि इस से पहले से ही दुखी उस की मां और ज्यादा परेशान हो जाएंगी. काश, आज उस के पापा जिंदा होते तो उसे इतना न सोचना पड़ता.

पापा की याद आते ही काव्या की आंखें नम हो उठीं. उन के रहते उस का परिवार कितना खुश था. मम्मीपापा और उस का एक छोटा भाई. कुल 4 सदस्यों का परिवार था उस का.

उस के पापा एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे और उन्हें जो पैसे मिलते थे, उस से उन का परिवार मजे में चल रहा था. जहां काव्या अपने पापा की दुलारी थी, वहीं उस की मां उस से बेहद प्यार करती थीं.

उस दिन काव्या के पापा अपनी कंपनी के काम के चलते मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे कि पीछे से एक कार वाले ने उन की मोटरसाइकिल को तेज टक्कर मार दी.

वे मोटरसाइकिल से उछले, फिर सिर के बल सड़क पर जा गिरे. उस से उन के सिर के पिछले हिस्से में बेहद गंभीर चोट लगी थी.

टक्कर लगने के बाद लोगों की भीड़ जमा हो गई. भीड़ के दबाव के चलते कार वाले ने उस के घायल पापा को उठा कर नजदीक के एक निजी अस्पताल में भरती कराया, फिर फरार हो गया.

पापा की जेब से मिले आईकार्ड पर लिखे मोबाइल से अस्पताल वालों ने जब उन्हें फोन किया तो वे बदहवास अस्पताल पहुंचे, पर वहां पहुंच कर उन्होंने जिस हालत में उन्हें पाया, उसे देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

उस के पापा कोमा में जा चुके थे. उन की आंखें तो खुली थीं, पर वे किसी को पहचान नहीं पा रहे थे.

फिर शुरू हुआ मुश्किलों का न थमने वाला एक सिलसिला. डाक्टरों ने बताया कि पापा के सिर का आपरेशन करना होगा. इस का खर्च उन्होंने ढाई लाख रुपए बताया.

किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया गया. पापा का आपरेशन हुआ, पर इस से कोई खास फायदा न हुआ. उन्हें विभिन्न यंत्रों के सहारे एसी वार्ड में रखा गया था, जिस की एक दिन की फीस 10,000 रुपए थी.

धीरेधीरे घर का सारा पैसा खत्म होने लगा. काव्या की मां के गहने तक बिक गए, फिर नौबत यहां तक आई कि उन के पास के सारे पैसे खत्म हो गए.

बुरी तरह टूट चुकी काव्या की मां जब अपने बच्चों को यों बिलखते देखतीं तो उन का कलेजा मुंह को आ जाता, पर अपने बच्चों के लिए वे अपनेआप को किसी तरह संभाले हुए थीं. कभीकभी उन्हें लगता कि पापा की हालत में सुधार हो रहा है तो उन के दिल में उम्मीद की किरण जागती, पर अगले ही दिन उन की हालत बिगड़ने लगती तो यह आस टूट जाती.

डेढ़ महीना बीत गया और अब ऐसी हालत हो गई कि वे अस्पताल के एकएक दिन की फीस चुकाने में नाकाम होने लगे. आपस में रायमशवरा कर उन्होंने पापा को सरकारी अस्पताल में भरती कराने का फैसला किया.

पापा को ले कर सरकारी अस्पताल गए, पर वहां बैड न होने के चलते उन्हें एक रात बरामदे में गुजारनी पड़ी. वही रात पापा के लिए कयामत की रात साबित हुई. काव्या के पापा की सांसों की डोर टूट गई और उस के साथ ही उम्मीद की किरण हमेशा के लिए बुझ गई.

फिर तो उन की जिंदगी दुख, पीड़ा और निराशा के अंधकार में डूबती चली गई. तब तक काव्या एमबीए का फाइनल इम्तिहान दे चुकी थी.

बुरे हालात को देखते हुए और अपने परिवार को दुख के इस भंवर से निकालने के लिए काव्या नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उसे एक प्राइवेट बैंक में 20,000 रुपए की नौकरी मिल गई और उस के परिवार की गाड़ी खिसकने लगी. तब उस के छोटे भाई की पढ़ाई का आखिरी साल था. उस ने कहा कि वह भी कोई छोटीमोटी नौकरी पकड़ लेगा, पर काव्या ने उसे सख्ती से मना कर दिया और उस से अपनी पढ़ाई पूरी करने को कहा.

20 साल की उम्र में काव्या ने अपने नाजुक कंधों पर परिवार की सारी जिम्मेदारी ले ली थी, पर इसे संभालते हुए कभीकभी वह बुरी तरह परेशान हो उठती और तब वह रोते हुए अपनी मां से कहती, ‘‘मम्मी, आखिर पापा हमें छोड़ कर इतनी दूर क्यों चले गए जहां से कोई वापस नहीं लौटता,’’ और तब उस की मां उसे बांहों में समेटते हुए खुद रो पड़तीं.

धीरेधीरे दुख का आवेग कम हुआ और फिर काव्या का परिवार जिंदगी की जद्दोजेहद में जुट गया.

समय बीतने लगा और बीतते समय के साथ सबकुछ एक ढर्रे पर चलने लगा तभी यह एक नई समस्या काव्या के सामने आ खड़ी हुई.

काव्या जानती थी कि बड़ी मुश्किल से उस की मां और छोटे भाई ने उस के पापा की मौत का गम सहा है. अगर उस के साथ कुछ हो गया तो वे यह सदमा सहन नहीं कर पाएंगे और उस का परिवार, जिसे संभालने की वह भरपूर कोशिश कर रही है, टूट कर बिखर जाएगा.

काव्या ने इस बारे में काफी सोचा, फिर इस निश्चय पर पहुंची कि उसे एक बार रंजन से गंभीरता से बात करनी होगी. उसे अपनी जिंदगी की परेशानियां बता कर उस से गुजारिश करनी होगी

कि वह उसे बख्श दे. उम्मीद तो कम थी कि वह उस की बात समझेगा, पर फिर भी उस ने एक कोशिश करने का मन बना लिया.

अगली बार जब रंजन ने काव्या का रास्ता रोका तो वह बोली, ‘‘आखिर तुम मुझ से चाहते क्या हो? क्यों बारबार मेरा रास्ता रोकते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं,’’ रंजन उस के खूबसूरत चेहरे को देखता हुआ बोला, ‘‘मेरा यकीन करो. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. आंखें बंद करता हूं तो तुम्हारा खूबसूरत चेहरा सामने आ जाता है.’’

‘‘सड़क पर बात करने से क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम किसी रैस्टोरैंट में चल कर बात करें.’’

काव्या के इस प्रस्ताव पर पहले तो रंजन चौंका, फिर उस की आंखों में एक अनोखी चमक जाग उठी. वह जल्दी से बोला, ‘‘हांहां, क्यों नहीं.’’

रंजन काव्या को ले कर सड़क के किनारे बने एक रैस्टोरैंट में पहुंचा, फिर बोला, ‘‘क्या लोगी?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘कुछ तो लेना होगा.’’

‘‘तुम्हारी जो मरजी मंगवा लो.’’

रंजन ने काव्या और अपने लिए कौफी मंगवाईं और जब वे कौफी पी चुके तो वह बोला, ‘‘हां, अब कहो, तुम क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘देखो, मैं उस तरह की लड़की नहीं हूं जैसा तुम समझते हो,’’ काव्या ने गंभीर लहजे में कहना शुरू किया, ‘‘मैं एक मध्यम और इज्जतदार परिवार से हूं, जहां लड़की की इज्जत को काफी अहमियत दी जाती है. अगर उस की इज्जत पर कोई आंच आई तो उस का और उस के परिवार का जीना मुश्किल हो जाता है.

‘‘वैसे भी आजकल मेरा परिवार जिस मुश्किल दौर से गुजर रहा है, उस में ऐसी कोई बात मेरे परिवार की बरबादी का कारण बन सकती है.’’

‘‘कैसी मुश्किलों का दौर?’’ रंजन ने जोर दे कर पूछा.

काव्या ने उसे सबकुछ बताया, फिर अपनी बात खत्म करते हुए बोली, ‘‘मेरी मां और भाई बड़ी मुश्किल से पापा की मौत के गम को बरदाश्त कर पाए हैं, ऐसे में अगर मेरे साथ कुछ हुआ तो मेरा परिवार टूट कर बिखर जाएगा…’’ कहतेकहते काव्या की आंखों में आंसू आ गए और उस ने उस के आगे हाथ जोड़ दिए, ‘‘इसलिए मेरी तुम से विनती है कि तुम मेरा पीछा करना छोड़ दो.’’

पलभर के लिए रंजन की आंखों में दया और हमदर्दी के भाव उभरे, फिर उस के होंठों पर एक मक्कारी भरी मुसकान फैल गई.

रंजन काव्या के जुड़े हाथ थामता हुआ बोला, ‘‘मेरी बात मान लो, तुम्हारी सारी परेशानियों का खात्मा हो जाएगा. मैं तुम्हें पैसे भी दूंगा और प्यार भी. तू रानी बन कर राज करेगी.’’

काव्या को समझते देर न लगी कि उस के सामने बैठा आदमी इनसान नहीं, बल्कि भेडि़या है. उस के सामने रोने, गिड़गिड़ाने और दया की भीख मांगने का कोई फायदा नहीं. उसे तो उसी की भाषा में समझाना होगा. वह मजबूरी भरी भाषा में बोली, ‘‘अगर मैं ने तुम्हारी बात मान ली तो क्या तुम मुझे बख्श दोगे?’’

‘‘बिलकुल,’’ रंजन की आंखों में तेज चमक जागी, ‘‘बस, एक बार मुझे अपने हुस्न के दरिया में उतरने का मौका दे दो.’’

‘‘बस, एक बार?’’

‘‘हां.’’

‘‘ठीक है,’’ काव्या ने धीरे से अपना हाथ उस के हाथ से छुड़ाया, ‘‘मैं तुम्हें यह मौका दूंगी.’’

‘‘कब?’’

‘‘बहुत जल्द…’’ काव्या बोली, ‘‘पर, याद रखो सिर्फ एक बार,’’ कहने के बाद काव्या उठी, फिर रैस्टोरैंट के दरवाजे की ओर चल पड़ी.

‘तुम एक बार मेरे जाल में फंसो तो सही, फिर तुम्हारे पंख ऐसे काटूंगा कि तुम उड़ने लायक ही न रहोगी,’ रंजन बुदबुदाया.

रात के 12 बजे थे. काव्या महानगर से तकरीबन 3 किलोमीटर दूर एक सुनसान जगह पर एक नई बन रही इमारत की 10वीं मंजिल की छत पर खड़ी थी. छत के चारों तरफ अभी रेलिंग नहीं बनी थी और थोड़ी सी लापरवाही बरतने के चलते छत पर खड़ा कोई शख्स छत से नीचे गिर सकता था.

काव्या ने इस समय बहुत ही भड़कीले कपड़े पहन रखे थे जिस से उस की जवानी छलक रही थी. इस समय उस की आंखों में एक हिंसक चमक उभरी हुई थी और वह जंगल में शिकार के लिए निकले किसी चीते की तरह चौकन्नी थी.

अचानक काव्या को किसी के सीढि़यों पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी. उस की आंखें सीढि़यों की ओर लग गईं.

आने वाला रंजन ही था. उस की नजर जब कयामत बनी काव्या पर पड़ी, तो उस की आंखों में हवस की तेज चमक उभरी. वह तेजी से काव्या की ओर लपका. पर उस के पहले कि वह काव्या के करीब पहुंचे, काव्या के होंठों पर एक कातिलाना मुसकान उभरी और वह उस से दूर भागी.

‘‘काव्या, मेरी बांहों में आओ,’’ रंजन उस के पीछे भागता हुआ बोला.

‘‘दम है तो पकड़ लो,’’ काव्या हंसते हुए बोली.

काव्या की इस कातिल हंसी ने रंजन की पहले से ही भड़की हुई हवस को और भड़का दिया. उस ने अपनी रफ्तार तेज की, पर काव्या की रफ्तार उस से कहीं तेज थी.

थोड़ी देर बाद हालात ये थे कि काव्या छत के किनारेकिनारे तेजी से भाग रही थी और रंजन उस का पीछा कर रहा था. पर हिरनी की तरह चंचल काव्या को रंजन पकड़ नहीं पा रहा था.

रंजन की सांसें उखड़ने लगी थीं और फिर वह एक जगह रुक कर हांफने लगा.

इस समय रंजन छत के बिलकुल किनारे खड़ा था, जबकि काव्या ठीक उस के सामने खड़ी हिंसक नजरों से उसे घूर रही थी.

अचानक काव्या तेजी से रंजन की ओर दौड़ी. इस से पहले कि रंजन कुछ समझ सके, उछल कर अपने दोनों पैरों की ठोकर रंजन की छाती पर मारी.

ठोकर लगते ही रंजन के पैर उखड़े और वह छत से नीचे जा गिरा. उस की लहराती हुई चीख उस सुनसान इलाके में गूंजी, फिर ‘धड़ाम’ की एक तेज आवाज हुई. दूसरी ओर काव्या विपरीत दिशा में छत पर गिरी थी.

काव्या कई पलों तक यों ही पड़ी रही, फिर उठ कर सीढि़यों की ओर दौड़ी. जब वह नीचे पहुंची तो रंजन को अपने ही खून में नहाया जमीन पर पड़ा पाया. उस की आंखें खुली हुई थीं और उस में खौफ और हैरानी के भाव ठहर कर रह गए थे. शायद उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की मौत इतनी भयानक होगी.

काव्या ने नफरत भरी एक नजर रंजन की लाश पर डाली, फिर अंधेरे में गुम होती चली गई.

अपराध: क्या थी नीलकंठ की गलती

ऐलिस का साथ पाने के लिए नीलकंठ ने अपनी दम तोड़ती पत्नी सुरमा को बचाने की कोई कोशिश नहीं की.

एंबुलैंस का सायरन बज रहा था. लोग घबरा कर इधरउधर भाग रहे थे. छुट्टी का दिन होने से अस्पताल का आपातकालीन सेवा विभाग ही खुला था, शोरशराबे से डाक्टर नीलकंठ की तंद्रा भंग हो गई.

घड़ी पर निगाह डाली, रात के 10 बज कर 20 मिनट हो रहे थे. उसे ऐलिस के लिए चिंता हो रही थी और उस पर क्रोध भी आ रहा था. 9 बजे वह उस के लिए कौफी बना कर लाती थी. वैसे, उस ने फोन पर बताया था कि वह 1-2 घंटे देर से आएगी.

‘‘सर,’’ वार्ड बौय ने आ कर कहा, ‘‘एक गंभीर केस है, औपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया है.’’

‘‘आदमी है या औरत?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा.

‘‘औरत है,’’ वार्ड बौय ने उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि आत्महत्या का मामला है.’’

‘‘पुलिस को बुलाना होगा,’’ नीलकंठ ने पूछा, ‘‘साथ में कौन है?’’

‘‘2-3 पड़ोसी हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ औपरेशन की तैयारी करने को कहो. मैं आ रहा हूं. और हां, सिस्टर ऐलिस आई हैं?’’

‘‘जी, अभीअभी आई हैं. उस घायल औरत के साथ ही ओटी में हैं,’’ वार्ड बौय ने जाते हुए कहा.

राहत की सांस लेते हुए नीलकंठ ने कहा, ‘‘तब तो ठीक है.’’

वह जल्दी से ओटी की ओर चल पड़ा. दरअसल, मन में ऐलिस से मिलने की जल्दी थी, घायल की ओर ध्यान कम ही था.

ऐलिस को देखते ही वह बोला, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी? मैं तो चिंता में पड़ गया था.’’

‘‘सर, जल्दी कीजिए,’’ ऐलिस ने उत्तर दिया, ‘‘मरीज की हालत बहुत खराब है. और…’’

‘‘और क्या?’’ नीलकंठ ने एप्रन पहनते हुए पूछा, ‘‘सारी तैयारी कर दी है न?’’

‘‘जी, सब तैयार है,’’ ऐलिस ने गंभीरता से कहा, ‘‘घायल औरत और कोई नहीं, आप की पत्नी सुरमा है.’’

‘‘सुरमा,’’ वह लगभग चीख उठा.

सुबह ही नीलकंठ का सुरमा से खूब झगड़ा हुआ था. झगड़े का कारण ऐलिस थी. नीलकंठ और ऐलिस का प्रणय प्रसंग उन के विवाहित जीवन में विष घोल रहा था. सुबह सुरमा बहुत अधिक तनाव में थी, क्योंकि नीलकंठ के कोट पर 2-4 सुनहरे बाल चमक रहे थे और रूमाल पर लिपस्टिक का रंग लगा था. सुरमा को पूरा विश्वास था कि ये दोनों चिह्न ऐलिस के ही हैं. कुछ कहने को रह ही क्या गया था? पूरी कहानी परदे पर चलती फिल्म की तरह साफ थी.

झुंझला कर क्रोध से पैर पटकता हुआ नीलकंठ बाहर निकल गया.

जातेजाते सुरमा के चीखते शब्द कानों में पड़े, ‘आज तुम मेरा मरा मुंह देखोगे.’

ऐसी धमकियां सुरमा कई बार दे

चुकी थी. एक बार नीलकंठ ने

उसे ताना भी दिया था, ‘जानेमन, जीना जितना आसान है, मरना उतना ही मुश्किल है. मरने के लिए बहुत बड़ा दिल और हिम्मत चाहिए.’

‘मर कर भी दिखा दूंगी,’ सुरमा ने तड़प कर कहा था, ‘तुम्हारी तरह नाटकबाज नहीं हूं.’

‘देख लूंगा, देख लूंगा,’ नीलकंठ ने विषैली मुसकराहट के साथ कहा था, ‘वह शुभ घड़ी आने तो दो.’

आखिर सुरमा ने अपनी धमकी को हकीकत में बदल दिया था. उन का घर 5वीं मंजिल पर था. वह बालकनी से नीचे कूद पड़ी थी. इतनी ऊंचाई से गिर कर बचना बहुत मुश्किल था. नीचे हरीहरी घास का लौन था. उस दिन घास की कटाई हो रही थी. सो, कटी घास के ढेर लगे थे. सुरमा उसी एक ढेर पर जा कर गिरी. उस समय मरी तो नहीं, पर चोट बहुत गहरी आई थी.

शोर मचते ही कुछ लोग जमा हो गए, उन्होंने सुरमा को पहचाना और यही ठीक समझा कि उसे नीलकंठ के पास उसी के अस्पताल में पहुंचा दिया जाए.

काफी खून बह चुका था. नब्ज बड़ी मुश्किल से पकड़ में आ रही थी. शरीर का रंग फीका पड़ रहा था. नीलकंठ के मन में कई प्रश्न उठ रहे थे, ‘सुरमा से पीछा छुड़ाने का बहुत अच्छा अवसर है. इस के साथ जीवन काटना बहुत दूभर हो रहा है. हमेशा की किटकिट से परेशान हो चुका हूं. एक डाक्टर को समझना हर औरत के वश की बात नहीं, कितना तनावपूर्ण जीवन होता है. अगर चंद पल किसी के साथ मन बहला लिया तो क्या हुआ? पत्नी को इतना तो समझना ही चाहिए कि हर पेशे का अपनाअपना अंदाज होता है.’

सहसा चलतेचलते नीलकंठ रुक गया.

‘‘क्या हुआ, सर?’’ ऐलिस ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं यह औपरेशन नहीं कर सकता,’’ नीलकंठ ने लड़खड़ाते स्वर में कहा, ‘‘कोई डाक्टर अपनी पत्नी या सगेसंबंधी का औपरेशन नहीं करता, क्योंकि वह उन से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. उस के हाथ कांपने लगते हैं.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’ ऐलिस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जल्दी से डाक्टर जतिन को बुला लो,’’ नीलकंठ ने वापस मुड़ते हुए कहा. वह सोच रहा था कि औपरेशन में जितनी देर लगेगी, उतनी जल्दी ही सुरमा इस दुनिया से दूर चली जाएगी.

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ ऐलिस ने तनिक ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘डाक्टर जतिन को आतेआते एक घंटा तो लगेगा ही. लेकिन इतना समय कहां है? मैं मानती हूं कि आप के लिए पत्नी को इस दशा में देखना बड़ा कठिन होगा और औपरेशन करना उस से भी अधिक मुश्किल, पर यह तो आपातस्थिति है.’’

‘‘नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘यह डाक्टरी नियमों के विरुद्ध होगा और यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो.’’

‘‘ठीक है, कम से कम आप कुछ देखभाल तो करें,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘मैं अभी डाक्टर जतिन को संदेश भेजती हूं.’’

डाक्टर नीलकंठ जब ओटी में घुसा तो आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, कितने ही उद्गार मन में उठते और फिर बादलों की तरह गायब हो जाते थे.

सामने सुरमा का खून से लथपथ शरीर पड़ा था, जिस से कभी उस ने प्यार किया था. वे क्षण कितने मधुर थे. इस समय सुरमा की आंखें बंद थीं, एकदम बेहोश और दीनदुनिया से बेखबर. इतना बड़ा कदम उठाने से पहले उस के मन में कितना तूफान उठा होगा? एक क्षण अपराधभावना से नीलकंठ का हृदय कांप उठा, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उस के शरीर को झंझोड़ रही हो.

नीलकंठ ने कांपते हाथों से सुरमा के बदन से खून साफ किया. उस का सिर फट गया था. वह कितने ही ऐसे घायल व्यक्ति देख चुका था, पर कभी मन इतना विचलित नहीं हुआ था. वह सोचने लगा, क्या सुरमा की जान बचा सकना उस के वश में है?

लेकिन डाक्टर जतिन के आने से पहले ही सुरमा मर चुकी थी. नीलकंठ सूनी आंखों से उसे देख रहा था, वह जड़वत खड़ा था.

जतिन ने शव की परीक्षा की और धीरे से नीलकंठ के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘मुझे दुख है, सुरमा अब इस दुनिया में नहीं है. ऐलिस, नीलकंठ को केबिन में ले जाओ, इसे कौफी की जरूरत है.’’

ऐलिस ने आहिस्ता से नीलकंठ का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए ओटी से बाहर ले गई. कमरे में ले जा कर उसे कुरसी पर बैठाया.

‘‘सर, मुझे दुख है,’’ ऐलिस ने आहत स्वर में कहा, ‘‘सुरमा के ऐसे अंत की मैं ने कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी. मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.’’

नीलकंठ ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारा कोई दोष नहीं, कुसूर मेरा है.’’

नीलकंठ आंखें बंद किए सोच रहा था, ‘शायद सुरमा को बचा पाना मेरे वश से बाहर था, पर कोशिश तो कर ही सकता था. लेकिन मैं टालता रहा, क्योंकि सुरमा से छुटकारा पाने का यह सुनहरा अवसर था. मैं कलह से मुक्ति पाना चाहता था. अब शायद ऐलिस मेरे और करीब आ जाएगी.’

ऐलिस सामने कौफी का प्याला लिए खड़ी थी. वह आकर्षक लग रही थी.

पुलिस सूचना पा कर आ गई थी. औपचारिक रूप से पूछताछ की गई. यह स्पष्ट था कि दुर्घटना के पीछे पतिपत्नी के बिगड़ते संबंध थे, परंतु नीलकंठ का इस दुर्घटना में कोईर् हाथ नहीं था. नैतिक जिम्मेदारी रही हो, पर कानूनी निगाह से वह निर्दोष था. पोस्टमार्टम के बाद शव नीलकंठ को सौंप दिया गया. दोनों ओर के रिश्तेदार सांत्वना देने और घर संभालने आ गए थे. दाहसंस्कार के बाद सब के चले जाने पर एक सूनापन सा छा गया.

नीलकंठ को सामान्य होने में सहायता दी तो केवल ऐलिस ने. अस्पताल में ड्यूटी के समय तो वह उस की देखभाल करती ही थी, पर समय पा कर अपनी छोटी बहन अनीषा के साथ उस के घर भी चली जाती थी. चाय, नाश्ता, भोजन, जैसा भी समय हो, अपने हाथों से बना कर देती थी. धीरेधीरे नीलकंठ के जीवन में शून्य का स्थान एक प्रश्न ने ले लिया.

कई महीनों के बाद नीलकंठ ने एक दिन ऐलिस से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जैसी पत्नी ही पाना चाहता था. तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिलीं. यह सोच कर कभीकभी आश्चर्य होता है.’’

‘‘सर,’’ ऐलिस बोली, ‘‘सर.’’

नीलकंठ ने टोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे ‘सर’ मत कहा करो. अब तो हम दोनों अच्छे दोस्त हैं. यह औपचारिकता मुझे अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘क्या करूं,’’ ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘सर, आदत सी पड़ गई है, वैसे कोशिश करूंगी.’’

‘‘तुम मुझे नील कहा करो,’’ उस ने ऐलिस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मुझे अच्छा लगेगा.’’

ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘कोशिश करूंगी, वैसे है जरा मुश्किल.’’

‘‘कोई मुश्किल नहीं,’’ नीलकंठ हंसा, ‘‘आखिर मैं भी तो तुम्हें ऐलिस कह कर बुलाता हूं.’’

‘‘आप की बात और है,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘आप किसी भी संबंध से मुझे मेरे नाम से पुकार सकते हैं.’’

‘‘तो फिर किस संबंध से तुम मेरा नाम ले कर मुझे बुलाओगी?’’ नीलकंठ के स्वर में शरारत थी.

‘‘पता नहीं,’’ ऐलिस ने निगाहें फेर लीं.

‘‘तुम जानती हो, मेरे मन में तुम्हारे लिए क्या भावना है,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरे सूने जीवन में बहार बन कर प्रवेश करो.’’

‘‘यह तो अभी मुमकिन नहीं,’’ ऐलिस ने छत की ओर देखा.

‘‘अभी नहीं तो कोई बात नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘पर वादा तो कर सकती हो?’’ नीलकंठ को विश्वास था कि ऐलिस इनकार नहीं करेगी, शक की कोई गुंजाइश नहीं थी.

‘‘यह कहना भी मुश्किल है,’’ ऐलिस ने मेज पर पड़े चम्मच से खेलते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ नीलकंठ ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘आखिर हम अच्छे दोस्त हैं?’’

‘‘बस, दोस्त ही बने रहें तो अच्छा है,’’ ऐलिस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘यही कि अगर शादी कर ली तो इस बात की क्या गारंटी है,’’ ऐलिस ने एकएक शब्द तोलते हुए कहा, ‘‘कि मेरा भी वही हश्र नहीं होगा, जो सुरमा का हुआ? आखिर दुर्घटना तो सभी के साथ घट सकती है?’’

यह सुनते ही नीलकंठ को मानो सांप सूंघ गया. उस ने कुछ कहना चाहा, पर जबान पर मानो ताला पड़ गया था. ऐलिस ने साथ देने से इनकार जो कर दिया था.

मसला: जामताड़ा हो या नूह – साइबर क्रिमिनलों का गढ़

झारखंड अपने आदिवासी समाज के साथसाथ कीमती खनिजों और हरेभरे जंगलों के लिए मशहूर है. इस राज्य का एक जिला है जामताड़ा, जिस का मतलब है सांपों का इलाका. दरअसल, जामताड़ा, ‘जामा’ और ‘ताड़’ शब्द से बना है. संथाली भाषा में ‘जामा’ का मतलब होता है सांप और ‘ताड़’ का मलतब होता है घर. वैसे, जामताड़ा को बौक्साइट की खदानों के लिए भी जाना जाता है.

लेकिन कुछ साल पहले यही जामताड़ा एक ऐसे कांड के लिए बदनाम हुआ था, जिस का जहर सांपों के जहर से भी जानलेवा साबित हुआ था. इस में कुछ शातिर लोगों ने भोलेभाले लोगों की मासूमियत का फायदा उठा कर उन्हें चूना लगाया था.

कोई फोन पर ‘हैलो’ बोलता था और सामने वाले के बैंक खाते से रकम सफाचट हो जाती थी. वह फोन इसी जामताड़ा के किसी गांव में बैठे साइबर क्रिमिनल के यहां से आता था, तभी से इस जगह को ‘साइबर ठगी का गढ़’ माना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि देश में हो रही साइबर ठगी के 80 फीसदी मामले जामताड़ा से जुड़े हुए हैं.

याद रहे कि कुछ साल पहले ‘सदी के महानायक’ अमिताभ बच्चन के बैंक खाते से 5 लाख रुपए गायब हो गए थे. वही अमिताभ बच्चन, जो टैलीविजन पर भारतीय रिजर्व बैंक की साइबर क्राइम से आगाह करती लाइन ‘जानकार बनिए, सतर्क रहिए’ को दोहराते रहते हैं. साइबर ठगों ने उन्हें भी नहीं बख्शा था.

इस गोरखधंधे की शुरुआत तकरीबन 13 साल पहले जामताड़ा के एक गांव सिंदरजोरी में रहने वाला सीताराम मंडल से हुई थी, जो रोजीरोटी की तलाश में मुंबई गया था. वहां उस ने मोबाइल रिचार्ज की दुकान में नौकरी की और अपने शातिर दिमाग से ठगी करना सीखा.

जब सीताराम मंडल अपने गांव लौटा, तो उस ने जाली सिमकार्ड लगा कर, नकली बैंक मैनेजर बन कर ग्राहकों को फोन लगाने की चाल चली. इस के तहत वह लोगों से कहता था कि आप का कार्ड ब्लौक हो गया है. जो लोग उस के झांसे में आ जाते थे, वह उन से एटीएम नंबर, ओटीपी और सीवीवी नंबर जैसी जानकारियां मांग लेता था. फोन कट होतेहोते ग्राहक की जेब भी खाली हो चुकी होती थी.

इस पैसे को सीताराम मोबाइल रिचार्ज रिटेलर की आईडी में ट्रांसफर करता था. उस पैसे का 30 फीसदी अपने पास रख कर रिटेलर उसे बाकी का

70 फीसदी कैश दे देता था. आज उसी सीताराम मंडल के शागिर्दों ने गांव में कई गैंग बना रखे हैं, जो यहीं से देशभर में साइबर ठगी को अंजाम दे रहे हैं.

सीताराम मंडल और उस के गिरोह पर आज क्यों बात हो रही है? क्यों जामताड़ा आज फिर सुर्खियों में है? इन दोनों सवालों का जवाब यह है कि हरियाणा का एक इलाका ‘मिनी जामताड़ा’ के नाम से बदनाम हो रहा है. वहां के बेरोजगार नौजवान सरकार से तो रोजगार पाने की उम्मीद खो चुके हैं, पर सीताराम मंडल की दिखाई राह पर चल कर वे भी जुर्म की दुनिया में घुसपैठ कर चुके हैं.

दरअसल, हरियाणा के नूह इलाके में मई, 2023 में हरियाणा पुलिस ने खुलासा किया था कि वहां से 35 राज्यों के 28,000 लोगों के साथ तकरीबन 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी की गई थी.

पुलिस ने यह भी बताया था कि ये साइबर महाठग फर्जी सिमकार्ड, आधारकार्ड और पैनकार्ड के जरीए देशभर में लोगों के साथ धोखाधड़ी करते थे. इन लोगों ने दिल्ली से अंडमाननिकोबार से ले कर केरल तक के लोगों को साइबर ठगी के अपने जाल में फंसाया था.

हरियाणा के नूह जिले के पुलिस सुपरिंटैंडैंट वरुण सिंगला ने इस कांड का खुलासा करते हुए बताया था कि 27-28 अप्रैल, 2023 की रात 5,000 पुलिस वालों की 102 टीमों ने जिले के 14 गांवों में एकसाथ छापेमारी की थी. इस दौरान तकरीबन 125 हैकरों को हिरासत में लिया गया था. इन में से 66 आरोपियों की पहचान कर उन्हें गिरफ्तार किया गया था.

पुलिस सुपरिंटैंडैंट वरुण सिंगला ने यह भी बताया कि ये महाठग फेसबुक बाजार ओएलऐक्स और दूसरी साइटों पर मोटरसाइकिल, कार, मोबाइल फोन जैसे सामान पर आकर्षक औफर का लालच दे कर धोखाधड़ी को अंजाम देते थे. ये लोग पुराने सिक्के खरीदनेबेचने के बहाने, सैक्सटोर्शन के जरीए, केवाईसी और कार्ड ब्लौक के नाम पर भी ठगी करते थे.

मेवात में ठगी का पुराना चलन

हरियाणा के नूह और मेवात इलाके में ठगी करना नई बात नहीं है. पुलिस के मुताबिक, तकरीबन 20 साल पहले मेवात के नौजवान दूरदराज के लोगों को नकली सोने की ईंट को असली बता कर ठग लिया करते थे.

इस धंधे को आज भी ‘टटलू’ के नाम से जाना जाता है. इस में शिकार को यह यकीन दिलाया जाता है कि वे लोग (ठग) मकान बनाने के लिए बुनियाद खोद रहे थे, यह ईंट उस में मिली है. वे गरीब आदमी हैं, बाजार में इसे बेच नहीं सकते. सोने की नकली ईंट को सस्ते में मिलने के चलते लोग झांसे में आ जाते थे.

जब ऐसे कांड ज्यादा होने लगे, तो ‘टटलू’ गिरोह के खिलाफ हरियाणा और राजस्थान पुलिस ने नकली सोने की ईंट खरीदनेबेचने वालों से सावधान रहने के लिए चेतावनी वाले बोर्ड लगाए थे, जिस से लोग सावधान होने लगे.

इस से ‘टटलू’ का धंधा करने वाले लोगों ने ओएलऐक्स पर ठगी का धंधा शुरू कर दिया. ये ठग ओएलऐक्स पर किसी गाड़ी का फोटो डाल कर सस्ते में बेचने का झांसा देते और खुद को फौजी या कोई बड़ा अफसर बताते. पहले खाते में कुछ पैसे डलवाए जाते, जिस से सौदा पक्का हो जाए. उस के बाद पीडि़त को मेवात बुला कर उस के सारे पैसे, घड़ी, गहने, एटीएम वगैरह छीन कर उसे मारपीट कर भगा देते थे.

जब राजस्थान और मेवात की पुलिस ने ओएलऐक्स पर की गई ठगी करने वालों पर शिकंजा कसा तो, ये लोग अश्लील वीडियो बना कर लोगों को ठगने लगे. जब इस पर भी पुलिस ने शिकंजा कसा, तो ये लोग साइबर ठगी के काले धंधे में उतर आए.

क्या है वजह

झारखंड का जामताड़ा हो या हरियाणा का नूह इलाका, यहां पर गरीबी का ही ज्यादा असर रहा है. जब तक जामताड़ा में साइबर अपराध नहीं होते थे, तब तक वहां के लोग दो वक्त की रोटी के लिए तरसते दिखाई देते थे. कच्चे घरों के गांवों में लोगों के पास एक अदद साइकिल नहीं होती थी.

इसी तरह मेवात एक मुसलिम बहुल इलाका है, जो हरियाणा के पलवल, नूह जिला, राजस्थान के अलवर, भरतपुर और उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले तक फैला है. इस की तकरीबन 70 लाख की आबादी है. यहां पर पढ़ाईलिखाई की कमी है और रोजगार के मौके बेहद कम हैं. यही वजह है कि नौजवान ठगी जैसे अपराध की ओर आसानी से मुड़ जाते हैं.

साइबर क्रिमिनल इसी बात का फायदा उठाते हैं. नूह में जब पुलिस ने साइबर अपराधियों की कारगुजारियों का परदाफाश किया था, तब यह भी खुलासा किया था कि हरियाणा और राजस्थान बौर्डर के साथ लगते गांवों में साइबर क्राइम की ट्रेनिंग दी जाती है. वहां नौजवान केवल एक लैपटौप, एक मोबाइल फोन और फर्जी सिमकार्ड के जरीए साइबर क्राइम की ट्रेनिंग लेते हैं.

नूह में पकड़े गए नौजवानों को राजस्थान के भरतपुर जिले के जुड़वा गांवों जुरेहेरा और घामड़ी में ट्रेंड किया गया था. वे इस के लिए 15,000 रुपए की फीस भी देते थे.

नौजवानों का साइबर क्राइम की ओर यह झुकाव बड़ा ही खतरनाक है. ‘डबल इंजन’ की सरकार इस समस्या पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. आपदा में अवसर का यह घिनौना रूप है, जो देश की तरक्की में बहुत बड़ी रुकावट है.

दहशत: क्या सामने आया चोरी का सच

Story in Hindi

सलाखों में हलाला एक्सपर्ट

24 अगस्त, 2017 को पुलिस की गिरफ्त में आए नीले रंग का लिबास पहने और सिर पर गोल टोपी लगाए उस शख्स की बातें वरदी वालों को हैरान कर रही थीं.

उस का गुनाह इतना था कि वह सजायाफ्ता मुजरिम था और कई सालों से फरार था. उस ने न सिर्फ जादूटोना, तावीजगंडों के नाम पर अपने अंधविश्वासी मुरीदों को लूटा था, बल्कि वह औरतों की आबरू से भी खेलता था और इस काम के पैसे लेता था.

धर्म की आड़ में खुद को वह हलाला ऐक्सपर्ट मौलवी बताता था. अपने पाखंड के जाल व हलाला को उस ने मौजमस्ती व रोजीरोटी का जरीया बना लिया था.

हलाला को बनाया धंधा

दरअसल, पकड़ा गया मौलाना करीम खुद को धर्म का बहुत बड़ा जानकार और तंत्रमंत्र का माहिर बताता था. लोगों को भूतप्रेत व निजी परेशानियों को दूर करने के नाम पर वह तावीजगंडे बांटता था. उस के अंधभक्तों की खासी तादाद थी.

मौलाना करीम मुंबई, सूरत, अजमेर शरीफ, फर्रुखाबाद वगैरह जगहों पर जा कर रुकता था. चेलेचपाटे ही उस का प्रचारप्रसार किया करते थे. बदले में वह उन्हें छल से कमाई दौलत का कुछ हिस्सा देता था.

मौलाना करीम ने 20 साल से ले कर 50 साल तक की औरतों के हलाला किए. हलाला का काम वह कभी लोगों के घर जा कर, तो कभी होटलों में कर दिया करता था.

जिस औरत पर उस का ज्यादा दिल आ जाता, उसे वह कई दिनों तक अपने पास रखता था और मन भर जाने पर उसे उस के परिवार वालों के हवाले कर देता था.

इतना ही नहीं, करीम खुद को धर्मगुरु बताता था. हलाला करने के पहले वह सामने वाले की माली हालत के हिसाब से पैसे लिया करता था. उस ने एकदो नहीं, बल्कि 38 से ज्यादा औरतों का हलाला किया था. चेले खुश रहें, इसलिए वह उन्हें भी औरतों से मजे कराता था.

करीम के चेले बहलाते थे कि जो कोई मौलाना से हलाला कराएगा, उस शख्स को जन्नत नसीब होगी. साथ ही, रिश्ते में कभी कड़वाहट पैदा नहीं होगी.

करीम की सभी मुरादें बैठेबिठाए पूरी हो रही थीं. तंत्रमंत्र और हलाला उस के लिए धंधा था, जिस से होने वाली कमाई वह खुद भी रखता था और अपने चेलों में भी बांटता था.

पुराना अपराधी था पाखंडी

मौलाना करीम का असली नाम आफताब उर्फ नाटे था. न तो वह कोई पहुंचा हुआ धार्मिक गुरु था और न ही तंत्रमंत्र का जानकार, बल्कि वह सजायाफ्ता एक भगौड़ा अपराधी था.

पुलिस से बचने के लिए आफताब उर्फ नाटे ने धर्म का चोला पहना और धार्मिक जगहों को ठिकाना बना कर लोगों की आंखों में धूल झोंकने लगा.

दरअसल, आफताब उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जनपद के शाहगंज थाना इलाके का रहने वाला था. वह जवानी में दबंग व आपराधिक सोच का था.

साल 1981 में आफताब ने एक नौजवान मोहम्मद अजमत की गोली मार कर हत्या कर दी थी. हत्या के इस मामले में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

एक साल बाद जनपद कोर्ट से उसे हत्या का कुसूरवार पाते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी गई. उस के परिवार वालों ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, तो साल 1985 में उसे कुछ समय के लिए जमानत मिल गई.

आफताब जेल की जिंदगी से ऊब चुका था. बाहर आते ही वह हमेशा के लिए फरार हो गया. उस ने अपना नाम बदल कर मौलाना करीम रखा और यह धंधा आबाद करने लगा.

यों आया शिकंजे में

आफताब भले ही धर्म की आड़ में मौज काट रहा था, लेकिन उस के परिवार वालों ने उस के कहने पर पहले तो उस से संबंध न होने की बात फैलाई, फिर कुछ साल बाद यह कहना शुरू कर दिया कि शायद आफताब किसी हादसे का शिकार हो कर मर चुका है. यह सब उस की सािजश का हिस्सा था.

दरअसल, आफताब परिवार की खैरखबर रखता था. वह लगातार मोबाइल फोन के जरीए उन के संपर्क में रहने लगा.

आफताब शातिर था. कुछ ही महीनों में वह सिमकार्ड बदल दिया करता था. वह इलाहाबाद समेत आसपास के जिलों में होने वाले धार्मिक जलसों में पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर घूमता था.

4 साल पहले हाईकोर्ट ने आफताब की फरारी को संज्ञान में ले कर पुलिस से उसे कोर्ट में पेश करने को कहा, तो पता चला कि वह फरार है.

जब पुलिस उसे खोजने में नाकाम रही, तो हाईकोर्ट ने किसी तरह उसे 3 महीने में पेश करने को कहा. उस के बाद इलाहाबाद परिक्षेत्र के आईजी एसवी सावंत ने उसे तलाशने के निर्देश दिए और उस पर 12 हजार रुपए का इनाम भी ऐलान कर दिया.

पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ मीना ने इंस्पैक्टर अनिरुद्ध सिंह समेत पुलिस की टीमों को उस की खोज में लगाया. पुलिस को सूचना मिली कि आफताब कौशांबी के एक प्रोग्राम में आने वाला है. पुलिस ने घेराबंदी की, लेकिन वह चकमा दे कर भाग गया.

पुलिस ने आफताब के परिवार वालों के फोन नंबर सर्विलांस पर ले लिए, जिस से पता चला कि वह एक मजार में शरण लिए हुए है. इस के बाद इंस्पैक्टर अनिरुद्ध सिंह ने खुद को झाड़फूंक करवाने वाला मरीज बता कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ मीना ने बताया, ‘‘आफताब तंत्रमंत्र का ढोंग कर के लोगों से पैसा ऐंठता था. उस ने झांसा दे कर 38 से ज्यादा औरतों का हलाला करवाने की बात कबूल की है. उस की पहचान एक सिद्ध मौलाना के रूप में बन रही थी.’’

सामाजिक कार्यकर्ता ताहिरा हसन कहती हैं कि मुसलिम धर्म में प्रचलित हलाला को ले कर मौलानाओं पर तमाम आरोप लगते रहे हैं, लेकिन यह बड़ी हकीकत खुल कर उजागर हुई है कि हलाला के नाम पर धर्म की आड़ में पाखंडी क्याकुछ नहीं करते हैं.

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