बदसूरत : प्रभा के साथ अविनाश ने क्या किया

‘प्रभा, जल्दी से मेरी चाय दे दो…’

‘प्रभा, अगर मेरा नाश्ता तैयार है, तो लाओ…’

‘प्रभा, लंच बौक्स तैयार हुआ कि नहीं?’

जितने लोग उतनी ही फरमाइशें. सुबह से ही प्रभा के नाम आदेशों की लाइन लगनी शुरू हो जाती थी. वह खुशीखुशी सब की फरमाइश पूरी कर देती थी. उस ने भी जैसे अपने दो पैरों में दस पहिए लगा रखे हों. उस की सेवा से घर का हर सदस्य संतुष्ट था. वर्मा परिवार उस की सेवा और ईमानदारी को स्वीकार भी करता था.

प्रभा थी भी गुणों की खान. दूध सा गोरा और कमल सा चिकना बदन. कजरारे नैन, रसीले होंठ, पतली कमर, सुतवां नाक, काली नागिन जैसे काले लंबे बाल और ऊपर से खनकती हुई आवाज. उस की खूबसूरती उस के किसी फिल्म की हीरोइन होने का एहसास कराती थी.

मालकिन मिसेज वर्मा की बेटी ज्योति, जो प्रभा की हमउम्र थी, के पुराने, मगर मौडर्न डिजाइन के कपड़े जब वह पहन लेती थी, तो उस की खूबसूरती में और भी निखार आ जाता था.

मिसेज वर्मा का बेटा अविनाश तो उस पर लट्टू था. हमेशा उस के आसपास डोलते रहने की कोशिश करता रहता था. वह भी मन ही मन उसे चाहने लगी थी. अब तक दोनों में से किसी ने भी अपनेअपने मन की बात एकदूसरे से जाहिर नहीं की थी.

घर के दूसरे कामों के अलावा मिसेज वर्मा की बूढ़ी सास की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी भी प्रभा के कंधों पर ही थी. दरअसल, मिसेज वर्मा एक इंटर कालेज की प्रिंसिपल थीं. उन्हें सुबह के 9 बजे तक घर छोड़ देना पड़ता था. बड़ा बेटा अविनाश और बेटी ज्योति दोनों सुबह साढ़े 9 बजे तक अपनेअपने कालेज के लिए निकल जाते थे.

घर के मालिक पीके वर्मा पेशे से वकील थे और उन के मुवक्किलों के चायनाश्ते का इंतजाम भी प्रभा को ही देखना पड़ता था. प्रभा सुबह के 8 बजतेबजते वर्मा परिवार के फ्लैट पर पहुंच जाती थी. पूरे 8 घंटे लगातार काम करने के बाद शाम के 5 बजे तक ही वह अपने घर लौट पाती थी.

उस दिन प्रभा मिस्टर वर्मा के घर पर अकेली थी. बूढ़ी अम्मां भी किसी काम से पड़ोस में गई हुई थीं. घर का काम निबटा कर थोड़ा सुस्ताने के लिए प्रभा जैसे ही बैठी, दरवाजे की घंटी बज उठी.

प्रभा ने दरवाजा खोला, तो सामने अविनाश खड़ा था. ‘‘घर में और कोई नहीं है क्या?’’ अविनाश ने अंदर आते हुए पूछा.

‘‘नहीं,’’ प्रभा ने छोटा सा जवाब दिया.

कमरे में खुद के अलावा अविनाश की मौजूदगी ने उस के दिल की धड़कनें बढ़ा दी थीं. वह अपनी नजरें चुरा रही थी. उधर अविनाश का दिमाग प्रभा को अकेला पा कर बहकने लगा था.

अविनाश ने अपने कमरे में जाते हुए प्रभा को एक गिलास पानी देने के लिए आवाज लगाई. वह पानी ले कर कमरे में पहुंची. अविनाश ने उसे गिलास मेज पर रख देने का इशारा किया.

गिलास रख कर जब प्रभा लौटने लगी, तो अविनाश ने उसे पीछे से अपनी बांहों में कस कर जकड़ लिया. एक तो लड़की की गदराई देह, मुश्किल से मिली तनहाई और मालिक होने का रोब… अविनाश पूरी तरह अपने अंदर के हैवान के आगे मजबूर हो चुका था.

‘‘यह आप क्या कर रहे हैं साहब?’’ प्रभा बुरी तरह डर गई थी.

‘‘वही, जो तुम चाहती हो. तुम्हें तो फिल्मों की हीरोइन होना चाहिए था, किन कंगालों के घर पैदा हो गई तुम… कोई बात नहीं. तुम तो किसी बड़े घर की बहू बनने के लायक हो मेरी जान.

‘‘मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ फिर अविनाश ने उसे बिस्तर पर गिरा दिया और उस के जिस्म पर सवार होने लगा.

प्रभा पर ताकत का इस्तेमाल करते हुए अविनाश बड़ी बेशरमी से बोला, ‘‘पहले अपनी जवानी का मजा चखाओ, फिर मैं तुम्हें वर्मा परिवार की बहू बनाता हूं.’’

‘‘लेकिन, शादी के पहले यह सब करना पाप होता है,’’ प्रभा गिड़गिड़ाते हुए बोली.

‘‘पापपुण्य का हिसाब बाद में समझाना बेवकूफ लड़की. पहले मैं जो चाहता हूं, वह करने दे.’’

अविनाश वासना की आग में पूरी तरह दहक रहा था. इस के आगे वह कोई हरकत करता, घर का दरवाजा‘खटाक’ से खुला. सामने मिसेज वर्मा खड़ी थीं.

अपनी मां को देख अविनाश पहले तो झेंपा, फिर पैतरा बदल कर पलंग से उतर गया. प्रभा भी उठ खड़ी हुई.

‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’ मिसेज वर्मा चीखते हुए बोलीं.

‘‘देखिए न मम्मी, कैसी बदचलन लड़की को आप ने घर में नौकरी दे रखी है? अकेला देख कर इस ने मुझे जबरन बिस्तर पर खींच लिया. यह इस घर की बहू बनने के सपने देख रही है,’’ अविनाश ने एक ही सांस में अपना कुसूर प्रभा के सिर पर मढ़ दिया.

‘‘नहीं मालकिन, नहीं. यह सच नहीं है,’’ कहते हुए प्रभा रो पड़ी.

‘‘देख रही हैं मम्मी, कितनी ढीठ है यह लड़की? यह कब से मुझ पर डोरे डाल रही है. आज मुझे अकेला पा कर अपनी असलियत पर उतर ही आई,’’ अविनाश सफाई देता हुआ बोला.

‘‘मैं खूब जानती हूं इन छोटे लोगों को. अपनी औकात दिखा ही देते हैं. अब मैं इसे काम पर नहीं रख सकती,’’ मिसेज वर्मा प्रभा पर आंखें तरेरते हुए बोलीं.

‘‘नहीं मालकिन, ऐसा मत कीजिए. हम लोग भूखे मर जाएंगे,’’ प्रभा बोली.

‘‘भूखे क्यों मरोगे? अपनी टकसाल ले कर बाजार में बैठ जाओ. अपनी

भूख के साथसाथ दूसरों की भी मिटाओ. घरों में झाड़ूपोंछा कर के कितना कमाओगी. चलो, निकलो अभी मेरे घर से. मेरे बेटे पर लांछन लगाती है,’’ मिसेज वर्मा बेरुखी से बोलीं. प्रभा हैरान सी सबकुछ सुनतीदेखती रही. उस का सिर चकराने लगा. कुछ देर में जा कर वह संभली और बिना उन की तरफ देखे दरवाजे से बाहर निकल गई.

घर आ कर उस ने रोतेरोते सारी दास्तान अपनी मां को सुनाई. उस की मां लक्ष्मी हैरान रह गई.

‘‘मां, इस में मेरी कोई गलती नहीं है. यह सच है कि मैं मन ही मन अविनाश बाबू को चाहने लगी थी, पर इन सब बातों के लिए कभी तैयार नहीं थी. वह तो ऐन वक्त पर मालकिन आ गईं और मैं बरबाद होने से बच गई. मुझे माफ कर दो मां,’’ प्रभा रोने लगी.

मां लक्ष्मी ने बेटी प्रभा को खींच कर गले से लगा लिया. प्रभा काफी देर तक मां से लिपट कर रोती रही. रो लेने के बाद उस का जी हलका हो गया. वह लुटतेलुटते बची थी. इस के लिए वह मन ही मन मिसेज वर्मा को धन्यवाद भी दे रही थी. ऐन वक्त पर उन का आ धमकना प्रभा के लिए वरदान साबित हुआ था.

प्रभा को अब अपने सपनों के टूट जाने का कोई गम नहीं था. उस के सपनों का राजकुमार तो अंदर से बड़ा ही बदसूरत निकला था.

‘‘महीने की पगार की आस टूट गई तो क्या हुआ, इज्जत का कोहिनूर तो बच गया. वह अगर लुट जाता, तो किस दुकान पर वापस मिलता?’’ इतना कह कर उस की मां लक्ष्मी ने इतमीनान की एक लंबी सांस ली.

कुछ खोतेखोते बहुतकुछ बच जाने का संतोष प्रभा के चेहरे पर भी दिखने लगा था.

ममता : नवजात शिशु का मोह

दिनेश और महेश अपने घर के सूरजचांद थे. मांबाप ने उन्हीं की रोशनी से अपनी जिंदगी को रोशन करना चाहा. दोनों को कालेज में पढ़ने के लिए लखनऊ भेजा गया.

नवाबों की नगरी को देख कर वे दोनों दंग रह गए. लखनऊ की हवा लगते ही वे पढ़ाईलिखाई भूल गए. वे कभीकभार ही कालेज जाते, बाकी समय मीना बाजार की हवाखोरी में बिताते, जहां हमेशा सुंदरियों का बाजार सा लगा रहता.

उन दोनों के पिताजी फौज में कर्नल थे. वे हर महीने मोटी रकम भेजते और हमेशा चिट्ठियों में लिखते कि पढ़ाई में किसी तरह की लापरवाही न करना, पर लाड़ले तो ऐश कर रहे थे.

उन्होंने 2 कमरे का मकान किराए पर लिया हुआ था. छोटा भाई महेश शुरू में कुछ पढ़तालिखता रहा, पर जब उस ने बड़े भाई को मस्ती करते देखा, तो वह भी उसी रास्ते पर चल पड़ा. वे दोनों अपनीअपनी प्रेमिकाओं को ले कर शहीद पार्क में गपशप करते रहते.

कुछ समय बाद उन के पिता का तबादला जम्मू हो गया. वे दोनों चिट्ठी में ?ाठ लिखते रहते कि उन की पढ़ाई ठीकठाक चल रही है. साथ ही, महंगाई का रोना रोते हुए वे ज्यादा पैसे भेजने को लिखते. उन के पिता अब पहले से भी ज्यादा रुपए भेजने लगे थे.

दिनेश के यहां एक लड़की ममता का काफी दखल रहता था, जो अपनी छोटी बहन के साथ पढ़ने आई थी. वे दोनों खूब सैरसपाटा करते. आखिर में दोनों ने शादी कर ली.

फिर ममता की छोटी बहन की मुहिम भी शुरू हो गई. महेश को लगा कि वह दौड़ में पीछे छूटा जा रहा है. उस ने भी हाथपैर मारे और छोटी बहन के साथ कोर्ट मैरिज कर ली.

प्रेमिकाएं अब पत्नियां बन चुकी थीं. पत्नियों को लिए वे दोनों अपनेअपने कमरों में पड़े रहते. बहाना पढ़ाई का था, सो खर्च के लिए मोटी रकम भी आ रही थी.

एक बार उन के पिता अचानक लखनऊ आ पहुंचे. दोपहर के 2 बजे वे लाड़लों के यहां दाखिल हुए. सब खाना खा कर सो रहे थे.

पिताजी ने दरवाजा खटखटाया, तो ममता ने नाइटी पहने ही दरवाजा खोला.

कर्नल साहब कमरे के अंदर पैर रखते हुए बोले, ‘‘दिनेश नहीं है क्या?’’

पिताजी की आवाज सुनते ही दिनेश पहचान गया. उस की नींद हवा हो गई कि अब आफत आ गई है.

उस ने दौड़ कर पिता के पैर छुए. पिताजी उस लड़की का सिंदूर देख कर सब समझ गए.

दिनेश पैर छू कर सीधा हो ही रहा था कि कर्नल साहब ने उस के गाल पर जोरदार थप्पड़ दे मारा.

थप्पड़ पड़ते ही दिनेश तिलमिला गया और उस ने पिता का हाथ पकड़ लिया. अब कर्नल साहब के गुस्से का पारावार न था. उन्होंने फौजी हाथ दिखाए, तो बेटे की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई.

इस हादसे के बारे में सुन कर छोटा लड़का भी दौड़ कर आया. पीछेपीछे उस की पत्नी भी आ रही थी.

कर्नल साहब ने इस जोड़े को देखा, तो गुस्से की बची आग उन की सारी देह को धधकाने लगी. बड़े बेटे को छोड़ कर वे छोटे बेटे पर टूट पड़े. उसे इतना मारा कि खुद की सांस फूल गई.

अब वे लड़कों को छोड़ बहुओं की ओर बढ़े. वे दोनों पलंगों के नीचे जा घुसी थीं. इस नजारे को देखने के लिए पड़ोसियों की अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई थी.

कुरसी का एक पाया निकाल कर कर्नल साहब उन दोनों बहुओं पर गरजे, ‘‘बताओ, कौन हो तुम दोनों?’’

दोनों बहुओं की हवा निकल चुकी थी. दोनों ने कोर्ट मैरिज की बात दोहराई. कर्नल साहब के डंडे पड़ने से सुकोमल लड़कियां कठोर होती जा रही थीं. ऊपर से नीचे तक कोई जगह बाकी नहीं थी, जहां डंडा न पड़ा हो.

लड़के तो पहले ही भाग गए थे, अब बहुएं भी रोतीबिलखती वहां से भागीं. कर्नल साहब डंडा लिए उन्हें दौड़ाए चले जा रहे थे.

फिर कर्नल साहब लौट कर आए और सारा सामान सड़क पर फेंक दिया. ताला बंद कर उन्होंने चाबी मकान मालिक को दे दी. साथ ही, यह भी कहते गए कि उन में से किसी को अंदर मत घुसने देना.

घर पहुंच कर कर्नल साहब पत्नी पर भी खूब बिगड़े, ‘‘तुम तो मेरी जान खा गई कि बच्चों को पैसों की कमी न पड़े. दोनों नालायक तो वहां स्वयंवर रचाए बैठे हैं. खबरदार, उन निकम्मों को घर के अंदर भी पैर रखने दिया… अगर रखने दिया, तो इस बार तुम्हारा नंबर आएगा.’’

वे बेचारे चारों कुछ दिनों तक यों ही इधरउधर भटकते रहे. पर महेश का बंधन अभी ढीला था, सो उस ने हाथ झटकना ही सही समझ. एक दिन उस की पत्नी भाग खड़ी हुई. बाकी तीनों के सामने खाने के लाले पड़े थे. जैसतैसे 2 महीने काटे, पर अब काम नहीं चल रहा था.

आखिर महेश घर के लिए चल पड़ा. उस ने अपनी गलती कबूल कर ली. माफी मांगने के बाद उसे घर के भीतर जाने की इजाजत मिल गई.

लेकिन बड़ा भाई दूसरी ही मिट्टी का बना था. उस ने घर का खयाल छोड़ ममता के साथ रहने का इरादा किया. उस ने ममता को प्राइवेट स्कूल में नौकरी दिलवाई और खुद ट्यूशन पढ़ाने लगा.

जैसे पानी के मिलने से सीमेंट मजबूत हो जाता है, वैसे ही कंगाली ने दोनों के संबंधों को और भी मजबूत बनाया.

किसी तरह 2 साल बीत गए, पर अभी भी उन दोनों के तन पर पिताजी के दिए कपड़े ही थे. ममता को बच्चा हुआ, तो दिनेश की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई. वह सुबह 5 बजे उठता और रात 11 बजे सोने का मौका मिलता. सुबह से शाम तक काम ही काम था.

काम की मार ने संबंधों में खटास लानी शुरू कर दी, पर नवजात शिशु का मोह दोनों को बंधन में बांधे रहा.

हाय री ममता, दुनिया चाहे भूल जाए, पर मां अपने जाए को कभी नहीं भूलती. मां अपने बेटे का मुंह देखने के लिए बेचैन हो उठी. उस ने चोरी से दिनेश के नाम एक चिट्ठी लिखी.

चिट्ठी पा कर दिनेश घर जाने के लिए तैयार हुआ, तो ममता बोली, ‘‘मैं अकेली यहां क्या करूंगी?’’

‘‘तो तुम भी चलो,’’ वह बोला.

ममता को गांव के बाहर बैठा कर महेश घर पहुंचा. दरवाजे पर मां मिली, जो उसे देखते ही फूटफूट कर रोने लगी. फिर पूछा कि और कोई साथ में है?

दिनेश ने ‘हां’ में सिर हिलाया और गांव के बाहर चल पड़ा. साथ में मां भी चली. ममता और बच्चे को देख कर उस का दिल खुशियों से भर उठा.

मां ने बच्चे को अपनी गोद में ले लिया. लेकिन कर्नल साहब के डर से वह उन्हें घर चलने को न कह सकी.

थोड़ी देर बाद दिनेश अपनी पत्नी और बच्चे के साथ लौट गया. कुछ समय बाद कर्नल साहब घर लौटे, पर दिनेश के आने की बात उन्हें पता न चली.

आखिर मां को एक उपाय सूझ.

उस ने बड़े पोस्ट औफिस से ममता के नाम से अपने घर के पते पर एक तार कर दिया.

अगले दिन वह तार कर्नल साहब को मिला. उन्होंने जब उसे पढ़ा, तो उन के हाथ कांपने लगे, दिल की धड़कनें तेज हो गईं.

तार में लिखा था, ‘आप का लड़का कई दिनों से बीमार था. उस के सिर में तेज दर्द हो रहा था. पर अब दर्द ठंडा हो गया है और आज वह दुनिया से कूच कर गया?है. मैं ने लाश को 2 दिन के लिए रोक रखा है. अगर आप चाहें, तो उस के आखिरी दर्शन कर सकते हैं.’

कर्नल साहब ने घबरा कर पत्नी को बताया, लेकिन वह तो सब जानती थी. उसी का रचा खेल था. मगर रोना भी जरूरी था, सो वह गला फाड़फाड़ कर रोने लगी.

जल्दी ही कर्नल साहब बीवी को साथ ले कर बेटे का दाह संस्कार करने चल दिए. पूछताछ करते हुए एक तंग गली की सीलन भरी कोठरी के सामने जा पहुंचे. फिर खुद ही दरवाजा ठेल कर अंदर पहुंचे.

दिनेश ने उन्हें देखा, तो कलेजा धक से रह गया कि इस बला ने हमारा पीछा यहां भी नहीं छोड़ा. ममता भी उन्हें देख कर कांप उठी, पर फौलादी कर्नल अब मोम बन चुके थे और अपने ही ताप से पिघल रहे थे.

कहां तो वे बेटे के लिए कफन साथ ले कर आए थे, लेकिन जब वह जिंदा हालत में मिला, तो खुशी की सीमा न रही. ऐसा लगा, मानो अंधे को दोनों आंखें मिल गई हों.

दिनेश ने डरतेडरते पिता के पैर छुए. कर्नल साहब उसे गले से लगा कर रोने लगे. उन्हें रोते देख सभी रोने लगे. ये आंसू दुख के नहीं, बल्कि मिलन के थे.

कर्नल साहब हाथ में लिए कफन को फाड़ते हुए बोले, ‘‘मैं अपनी गलती कबूल करता हूं. तुम्हें सबकुछ करने की छूट है, पर पहले घर चलो.’’

जल्दी ही सब घर की ओर चल दिए. आगेआगे पिताजी चल रहे थे, मां बच्चे को गोदी में लिए थी. दिनेश और ममता सामान लिए पीछेपीछे जा रहे थे.

कर्नल साहब मुड़े कि बच्चे को धूप लग रही होगी. उन्होंने अपने सिर से तौलिया उतार कर बच्चे को ढक दिया.

पर कर्नल साहब का जी इतने से नहीं भरा, उन्होंने खुद बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और उसे धूप से बचाने के लिए अपनी रफ्तार तेज कर दी.

तभी दिनेश धीरे से बोला, ‘‘मां, पिताजी में अचानक बदलाव कैसे हो गया?’’

‘‘क्या करूं, मैं तुम्हारे बिना बहुत बेचैन थी. तुम्हें पाने के लिए पहले मैं ने तुम को मरा बताया, तब कहीं जा कर जिंदा पाया.’’

चोट : नेकलेस के चक्कर में रीना की मौत

योगेन नपेतुले कदमों से आगे बढ़ते हुए साफ महसूस कर रहा था कि आगे चल रही महिला उस से डर रही है. उस अंधेरे कौरीडोर में वह बारबार पीछे मुड़ कर देख रही थी. उस की आंखों में एक अंजाना सा डर था और वह बेहद घबराई हुई लग रही थी. शायद उसे लग रहा था कि वह उस का पीछा कर रहा है. बिजनैस सेंटर में ज्यादातर औफिस थे, जिन में अब तक काफी बंद हो चुके थे. इस बिजनैस सेंटर में खास बात यह थी कि इस के औफिस में किसी भी समय आयाजाया जा सकता था. इसीलिए सेंटर के गेट पर एक रजिस्टर रख दिया गया था, जिस में आनेजाने वालों को अपना नामपता और समय लिखना होता था.

महिला रजिस्टर में अपना नामपता और समय लिख कर तेजी से आगे बढ़ गई. उस के बाद योगेन भी नामपता और समय लिख कर महिला के साथ लिफ्ट में सवार हो गया था. लिफ्ट में महिला ने एक बार भी नजर उठा कर उस की ओर नहीं देखा.

शायद वह अपने खौफ पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी. योगेन ने लिफ्ट औपरेटर से कहा, ‘‘सातवीं मंजिल पर जाना है.’’

इस पर महिला ने चौंक कर उस की ओर देखा, क्योंकि उसे भी उसी मंजिल पर जाना था. यह सोच कर उस की सांस रुकने लगी कि यह आदमी क्यों उस के पीछे लगा है?

चंद पलों में ही सातवीं मंजिल आ गई. लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही महिला तेजी से निकली और उसी रफ्तार से आगे बढ़ गई. उस की ऊंची ऐड़ी के सैंडल फर्श पर ठकठक बज रहे थे. तेजी से चलते हुए उस ने पलट कर देखा तो गिरतेगिरते बची.

योगेन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस महिला को कैसे समझाए कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा, इसलिए उसे उस से डरने की कोई जरूरत नहीं है.

आगे बढ़ते हुए योगेन दोनों ओर बने धुंधले शीशे वाले औफिसों पर नजर डालता जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से दरवाजों पर लिखे नंबर ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे. कौरीडोर खत्म होते ही महिला बाईं ओर मुड़ गई. वह भी उसी ओर मुड़ा तो महिला और ज्यादा सहम गई.

वह और तेजी से आगे बढ़ कर एक औफिस के आगे रुक गई. उस की लाइट जल रही थी. दरवाजे के हैंडल पर हाथ रख कर उस ने योगेन की ओर देखा. लेकिन वह उस के करीब से आगे बढ़ गया.

आगे बढ़ते हुए योगेन ने दरवाजे पर नजर डाली थी. उस पर डा. साहिल परीचा के नाम का बोर्ड लगा था. उस के आगे बढ़ जाने से महिला हैरान तो हुई ही, उसे यकीन भी हो गया कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा था.

योगेन अंधेरे में डूबे दरवाजों को पार करते हुए आगे बढ़ता रहा. उस कौरीडोर में आखिरी दरवाजे से रोशनी आ रही थी. आगे बढ़ते हुए उस ने अपनी दोनों जेबें थपथपाई. एक जेब में पिस्तौल था, जिसे इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ी थी. दूसरी जेब में 50 लाख रुपए की कीमत का बहुमूल्य हीरे का नेकलैस मखमल की एक डिब्बी में रखा था. जिसे लेने से पहले योगेन ने अच्छी तरह चैक किया था. वह वही नेकलैस पहुंचाने यहां आया था.

दरवाजा खोलने से पहले योगेन ने पलट कर देखा तो वह महिला अभी तक दरवाजे पर खड़ी उसी को देख रही थी. योगेन ने उसे घूरा तो वह हड़बड़ा कर जल्दी से अंदर चली गई.

योगेन ने एक बार फिर खाली कौरीडोर को देखा और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया. सामने रिसैप्शन में बैठी लड़की उसे देख कर मुसकराते हुए उठी और उस के गले लग गई. योगेन कुछ कहता, उस के पहले ही वह बोली, ‘‘तुम एकदम सही समय साढ़े 8 बजे आए हो डियर. उसे साथ ले आए हो न?’’

‘‘हां, ले आया हूं.’’ योगेन ने जेब पर हाथ फेरते हुए कहा.

‘‘कैसा है, क्या बहुत खूबसूरत है?’’ लड़की ने बेचैनी से पूछा.

योगेन ने लड़की का हाथ पकड़ कर उस के बाएं हाथ की हीरे की अंगूठी देखते हुए कहा, ‘‘रीना, नेकलैस के सारे हीरे इस से बड़े और काफी कीमती हैं.’’

‘‘योगेन फिर कभी ऐसा मत कहना. मेरे लिए यह अंगूठी दुनिया की सब से कीमती चीज है. जानते हो क्यों? क्योंकि इसे तुम ने दिया है. यह तुम्हारे प्यार की निशानी है.’’ रीना योगेन की आंखों में झांकते हुए प्यार से कहा.

रीना की इस बात पर योगेन मुसकराया.

रीना ने अपने बैग से टिशू पेपर निकालते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे गाल पर मेरी लिपस्टिक का निशान लग गया है…’’ रीना इतना ही कह पाई थी कि उस की आंखें हैरानी से फैल गईं और आगे की बात मुंह में ही रह गई.

रीना की हालत से ही योगेन अलर्ट हो गया. वह समझ गया कि उस के पीछे जरूर कोई मौजूद है. उस ने मुड़ने की कोशिश की कि तभी उस के सिर के पिछले हिस्से पर कोई भारी चीज लगी और वह रीना की बांहों में गिर कर बेहोश हो गया.

जब उसे होश आया तो उसे लगा कि वह किसी मुलायम चीज पर लेटा है. सिर के पिछले हिस्से में तेज दर्द हो रहा था. उस के होंठों से कराह निकली. आंखें खोलने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा.

उसे लगा जैसे उस की आंखों पर भारी बोझ रखा है. फिर भी उस ने हिम्मत कर के आंखें खोल दीं. लेकिन तेज रोशनी से उस की आंखें बंद हो गईं. उस के कानों में कुछ आवाजें पड़ रही थीं. कोई कह रहा था, ‘‘ओह गाड, यह क्या हुआ?’’

‘‘पता नहीं, मैं ने इसे इसी तरह पड़ा पाया था.’’ किसी ने जवाब दिया.

‘‘अरे इसे होश आ रहा है.’’ किसी ने कहा.

इस के बाद 2-3 लोगों ने मिल कर योगेन को उठाया तो उस के हलक से कराह निकल गई.

‘‘आराम से, शायद यह जख्मी है. शायद इसे दिमागी चोट आई है. रुको डा. परीचा के औफिस में लाइट जल रही है. मैं उन्हें बुला कर लाता हूं.’’ किसी ने भारी आवाज में कहा.

‘‘ठीक है, डाक्टर को जल्दी ले कर आओ.’’ किसी अन्य ने कहा.

अब तक योगेन को पूरी तरह से होश आ गया था. कोई धीरेधीरे उस के शरीर को टटोल रहा था. शायद चोट तलाश रहा था. जैसे ही उस का हाथ योगेन के सिर के पीछे पहुंचा, उसके मुंह से कराह निकल गई. उस का शरीर कांप उठा.

‘‘इस का मतलब सिर के पिछले हिस्से में काफी गहरी चोट लगी है. इसे उठा कर सोफे पर लिटाओ, उस के बाद देखता हूं.’’

योगेन को उठा कर मुलायम और आरामदेह सोफे पर लिटा दिया गया. इस के बाद कोई उस के जख्म की जांच करने लगा तो उसे तकलीफ हुई और वह दोबारा बेहोश हो गया.

योगेन को दोबारा होश आया तो उस का दर्द काफी कम हो चुका था. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह नींद से जागा हो. किसी की कोमल अंगुलियों ने उस के सिर को छुआ तो उस ने आंखें खोल दीं. उस की आंखों के सामने उसी औरत का चेहरा था, जो कौरीडोर में उस से डर रही थी. लेकिन अब डर की जगह उस के चेहरे पर मुसकराहट थी.

उस ने हमदर्दी से पूछा, ‘‘अब तुम कैसा फील कर रहे हो?’’

‘‘ठीक हूं.’’ योगेन ने मुश्किल से जवाब दिया.

‘‘मुझे पहचाना मैं लिलि… लिलि पराशर. मैं वही हूं, जो तुम्हारे आगेआगे बिजनैस सेंटर में आई थी. तुम मेरे पीछे थे.’’ लिलि ने बेहद नरमी से कहा.

‘‘लेकिन मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था.’’

‘‘तुम्हें याद है, मैं डा. परीचा के औफिस में गई थी?’’ लिलि ने पूछा.

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिला दिया.

‘‘तुम से मेरी एक रिक्वैस्ट है. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो मुझ पर एक बड़ा एहसान करोगे.’’ लिलि ने कहा.

‘‘इस की वजह?’’ योगेन ने पूछा.

‘‘दरअसल, मेरे पति अतुल पराशर बहुत ही शक्की स्वभाव के हैं. मैं और डा. परीचा बहुत अच्छे दोस्त हैं. शादी के पहले से हम एकदूसरे को जानते हैं. अतुल उन से जलता है, इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम यह बात भूल जाओ कि मैं डाक्टर के औफिस में गई थी. इस समय तुम मेरे पति के ही औफिस में हो.’’

योगेन चुपचाप उसे देखता रहा. लिलि ने आगे कहा, ‘‘मेरी बात मानोगे न? बाहर पुलिस आ चुकी है. कहीं ऐसा न हो कि तुम कह दो कि मैं डाक्टर के पास गई थी.’’

‘‘पुलिस… पुलिस क्यों आई है?’’ यह कह योगेन उठा और दरवाजे की ओर बढ़ा. लिलि ने उसे रोकना चाहा, लेकिन वह रुका नहीं. उसे चक्कर आ गया तो उस ने दीवार का सहारा ले कर दरवाजा खोला. दूसरे कमरे में काफी लोग जमा थे. फर्श पर रीना चित लेटी थी. उस की आंखें खुली थीं, चेहरा सफेद पड़ गया था. उस के सीने में चमकदार चीज घुसी थी. वह जोर से चीखा, ‘‘रीना…’’

इसी के साथ वह लड़खड़ा कर गिरने लगा तो 2 लोगों ने उसे संभाल कर सोफे पर लिटा दिया. थोड़ी देर बाद एक स्मार्ट सा आदमी उस के पास आ कर बोला, ‘‘मैं इंसपेक्टर पटेल…क्या तुम इस लड़की को जानते हो?’’

‘‘जी, रीना मेरी मंगेतर थी.’’ उस ने उदासी से कहा.

‘‘जी, मुझे अफसोस है. इस लड़की का कातिल यहीं मौजूद है. वह कौन है? हम पता करने की कोशिश कर रहे हैं.’’ पटेल ने हमदर्दी से कहा, ‘‘मैं उसे जल्दी ही पकड़ लूंगा.’’

योगेन चुपचाप भरी आंखों से पटेल को देखता रहा. इंसपेक्टर पटेल ने पूछा, ‘‘तुम मि. अतुल पराशर को हीरो का नेकलैस डिलीवर करने आए थे न?’’

यह सुन कर योगेन का हाथ जेब पर गया. जेब में न नेकलैस था, न पिस्तौल. उस ने कहा, ‘‘सर, नेकलैस की डिबिया गायब है.’’

‘‘मुझे पता है. मैं तुम्हारी तलाशी ले चुका हूं. तुम्हारी पिस्तौल मेरे पास है. तुम पूरी बात मुझे बताओ.’’ पटेल ने कहा.

योगेन ने शुरू से अंत तक पूरी बात बता दी. उस के बाद पटेल ने कहा, ‘‘तुम्हारे और मृतका लड़की के अलावा बाहर के कमरे में 4 लोग मौजूद हैं. वे चारों इसी फ्लोर पर थे. इन में से किसी ने तुम्हारे ऊपर हमला कर के तुम्हारी मंगेतर का कत्ल किया और तुम्हारी जेब से वह नेकलैस लिया.’’

‘‘क्या, सचमुच कातिल और चोर बाहर मौजूद हैं?’’ योगेन ने पूछा.

‘‘हां, क्योंकि इन लोगों के अलावा यहां कोई और नहीं था. लिफ्ट से कोई आया नहीं, सीढि़यों वाले दरवाजे में ताला बंद था.’’ पटेल ने बताया.

‘‘वे 4 लोग कौन हैं?’’ योगेन ने पूछा.

‘‘मि. अतुल, उन की बीवी लिलि, डा. परीचा और एक इंश्योरैंस एजेंट प्रेमप्रकाश.’’

‘‘आप ने उन लोगों से कुछ पता किया?’’

‘‘हम ने सभी की अच्छी तरह तलाशी ले ली है. डा. परीचा और अतुल के औफिसों की भी अच्छी तरह तलाशी ले ली गई है. लेकिन नेकलैस नहीं मिला. कोई सुराग भी नहीं मिल रहा है.’’ पटेल ने कहा.

‘‘हो सकता है, किसी तरह नेकलैस बाहर पहुंचा दिया गया हो?’’ योगेन ने कहा.

‘‘सवाल ही नहीं उठता. हम ने लगभग सभी दरवाजे लौक करवा दिए हैं. सारे रास्ते बंद करा दिए हैं. सब से जरूरी है कातिल को पकड़ना. नेकलैस को बाद में भी ढूंढ़ लेंगे.’’

‘‘रीना को किस ने और कैसे मारा?’’ योगेन ने रुंधे गले से पूछा.

‘‘किसी ने लिफाफे खोलने वाली छुरी, जो उस की मेज पर रखी रहती थी, उसी को उस के सीने में घोंप कर मार दिया है. तुम्हारे सिर पर पीछे से एक पाइप से वार किया गया था, जिस पर कपड़ा लपेटा हुआ था.’’

‘‘अब आप क्या करेंगे?’’ उस ने पूछा.

‘‘मैं तुम्हारे सामने उन चारों को बुला कर पूछताछ करूंगा. तुम सारी बातें सुनते रहना, शायद उस में काम की कोई बात निकल आए.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इस के बाद उन्होंने लिलि और अतुल को बुलवाया. लिलि ने सवालिया नजरों से योगेन की ओर देखा तो योगेन ने उसे नजरंदाज कर के उस के पति की ओर देखा. वह एक छोटे कद का भारीभरकम आम सा आदमी था, जबकि लिलि काफी खूबसूरत थी. अतुल ने आते ही ऐतराज करते हुए कहा, ‘‘मैं पुलिस का हर तरह से सहयोग कर रहा हूं, फिर भी मुजरिमों की तरह मेरी तलाशी ली जा रही है. मेरी बीवी को भी पूछताछ में शामिल किया गया है.’’

पटेल ने उस के ऐतराज पर ध्यान दिए बगैर योगेन का उस से परिचय कराया. अतुल ने हमदर्दी से कहा, ‘‘तो तुम्हीं से रीना की शादी होने वाली थी?’’

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिलाया.

‘‘उस की मौत का मुझे बहुत अफसोस है. रीना अकसर तुम्हारा जिक्र किया करती थी. उसी के कहने पर मैं ने तुम्हारी फर्म की नेकलैस का और्डर दिया था. काश, मैं ऐसा न करता.’’ अफसोस जाहिर करते हुए अतुल ने कहा.

‘‘इस का मतलब तुम ने रीना की सिफारिश पर नेकलैस का और्डर दिया था?’’ पटेल ने कहा.

‘‘जी, मेरे और्डर पर इस लड़के को फायदा होता. हालांकि यह उस फर्म का सेल्समैन नहीं है, फिर भी रीना के कहने पर मैं ने उस फर्म से संपर्क कर और्डर देते हुए कहा था कि वह नेकलैस योगेन के जरिए मुझे भिजवा दिया जाए, ताकि उसे फायदा हो जाए.’’

‘‘मि. अतुल, सब से पहले तुम ने रीना और योगेन को देखा था?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘मैं अपने औफिस में बैठा था. रिसेप्शन पर मुझे शोर सुनाई दिया तो मैं ने घंटी बजाई कि रीना को बुला कर इस शोर के बारे में पता करूं. लेकिन रीना की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो मैं बाहर निकला. तब ये दोनों मुझे फर्श पर पड़े मिले. रीना के सीने में लिफाफे खोलने वाली छूरी घुसी हुई थी और यह योगेन बेहोश पड़ा था.’’

‘‘फिर…?’’

‘‘मैं मामला समझ ही रहा था कि प्रेमप्रकाश अंदर आए. मैं ने उन से डा. परीचा को बुलाने को कहा. इस के बाद पुलिस को फोन किया.’’

‘‘मिसेज अतुल पराशर मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम अपने पति के औफिस में आने से पहले डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं? और तुम ने योगेन से यह क्यों कहा कि वह इस बात का किसी से जिक्र न करे?’’

लिलि ने गुस्से से योगेन की ओर देखा. उस के बाद बोली, ‘‘इंसपेक्टर योगेन या तो ख्वाबों की दुनिया में रहता है या बहुत बड़ा झूठा है.’’

‘‘ठीक है, हम डा. परीचा से पता कर लेते हैं, लेकिन उस से पहले प्रेमप्रकाश से बात करूंगा. वहीं डा. परीचा को बुलाने गया था. अगर तुम वहां थीं तो उस ने तुम्हें जरूर देखा होगा?’’ पटेल ने रूखेपन से कहा.

‘‘जरूरजरूर, अगर सच में मैं डा. परीचा के पास थी तो प्रेमप्रकाश जरूर बता देगा.’’ लिलि ने कहा.

इस के बाद उस ने अतुल की ओर देखा, जो कभी पटेल को देख रहा था और कभी लिलि को. उस के चेहरे पर उलझन थी. लिलि समझ गई थी कि योगेन ने ही इंसपेक्टर पटेल को यह बताया होगा.

‘‘इंसपेक्टर, आप मुझ से सवाल पर सवाल किए जा रहे हैं और इस आदमी से कुछ नहीं पूछ रहे हैं, जिस के गाल पर अभी तक लिपस्टिक का निशान है.’’ लिलि ने कहा.

‘‘तुम चुपचाप आराम से बैठो. यह पुलिस की जांच है, कोई मजाक नहीं. बेकार की बातें करने के बजाय यह बताओ कि तुम डाक्टर के औफिस में क्यों गई थी?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

‘‘तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए.’’ लिलि ने गुस्से में कहा.

इस बात पर उस का पति अतुल गुस्से में बोला, ‘‘पर मुझे मतलब है लिलि. मुझे बताओ कि तुम डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं?’’

‘‘अतुल, तुम क्यों पागल हो रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हारा पति हूं. मेरा पूरा हक है यह जानने का कि तुम डाक्टर के पास क्यों गई थीं? क्या मैं बेवकूफ हूं कि इतनी बड़ी रकम खर्च कर के तुम्हारे लिए हीरों का नेकलैस खरीद रहा था? मेरी यही मंशा थी कि तुम डाक्टर का खयाल तक न करो, पूरी तरह मेरी वफादार बन जाओ. रीना ने ही मुझ से कहा था कि मैं वह हीरों का नेकलैस इस के मंगेतर योगेन के जरिए खरीदूं, ताकि उस का कुछ भला हो जाए. उसे कमीशन मिल सके. यह इतना कीमती नेकलैस मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा था और इस के बदले मैं तुम्हारी वफा चाहता था, लेकिन मुझे खुशी है कि वह नेकलैस चोरी हो गया. अच्छा हुआ जो तुम जैसी बेवफा औरत को नहीं मिला. वैसे भी मैं ने कौन सी अभी उस की कीमत अदा की है. अच्छा हुआ कि तुम्हारे चेहरे से नकाब उतर गया. तुम्हारी असली सूरत सामने आ गई. शक तो मुझे पहले भी था, अब तो इस का सबूत भी मिल गया.’’

‘‘जहन्नुम में जाओ तुम और तुम्हारा नेकलैस. मामूली सी बात का बतंगड़ बना दिया सब ने.’’ लिलि गुस्से से बोली.

‘‘तुम दोनों लड़नाझगड़ना बंद करो. यह तुम्हारा आपस का मामला है. घर जा कर सुलझाना. यहां जांच हो रही है, उस में अड़ंगे मत डालो.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल ने डा. परीचा और प्रेम प्रकाश को अंदर बुलाया. डा. परीचा सेहतमंद और काफी स्मार्ट था. प्रेमप्रकाश लंबा और स्लिम था. वह इंश्योरैंस एजेंट था.

‘‘प्रेमप्रकाश जब तुम डाक्टर को बुलाने उस के औफिस में गए थे तो वह अकेला था या उस के साथ कोई और था?’’ इंसपेक्टर ने पहला सवाल किया.

‘‘मैं सिर्फ बाहरी कमरे तक ही गया था. वह वहां अकेला ही था. अंदर के कमरे में कोई रहा हो तो मुझे मालूम नहीं.’’ प्रेमप्रकाश ने कहा.

‘‘तुम क्या कहते हो डा. परीचा?’’ पटेल ने डा. परीचा से पूछा.

‘‘मैं अकेला था.’’ डाक्टर धीरे से बोला.

‘‘लिलि पराशर तुम्हारे साथ नहीं थीं?’’

उस ने इनकार में सिर हिला दिया.

‘‘पर लिलि ने तो मान लिया है कि वह तुम्हारे साथ थी.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

पर डाक्टर इनकार करता रहा.

‘‘डाक्टर पुलिस के काम में उलझन मत पैदा करो. तुम्हें अंदाजा नहीं है कि तुम्हारा यह झूठ तुम्हें मुश्किल में डाल सकता है. लिलि और उस के पति ने मान लिया है कि वह तुम्हारे कमरे में थी. पर तुम लगातार इनकार कर रहे हो. आखिर कारण क्या है?’’

‘‘मि. अतुल एक शक्की आदमी है. मैं नहीं चाहता कि मेरे सच बोलने की वजह से लिलि के लिए कोई मुसीबत खड़ी हो. वह पागल आदमी उस का जीना मुश्किल कर देगा.’’ डा. परीचा ने कहा.

‘‘तुम और लिलि शादी के पहले से दोस्त हो?’’

पटेल ने अचानक प्रेमप्रकाश से सवाल किया, ‘‘तुम ने मि. अतुल को इस लड़की और योगेन को करीब खड़े देखा था, ये दोनों फर्श पर पड़े थे, तुम अपने औफिस से इस औफिस में क्यों आए थे?’’

‘‘मैं यहां शोर सुन कर वजह जानने आया था.’’

‘‘तुम्हें नेकलैस के बारे में मालूम था?’’ पटेल ने घूरते हुए पूछा.

‘‘जी, अतुल ने मुझ से ही उस कीमती नेकलैस का इंश्योरैंस करवाया था. मुझे यह भी पता था कि वह नेकलैस आज ही उन्हें मिलने वाला है.’’ प्रेमप्रकाश ने कहा.

‘‘उस नेकलैस के चोरी होने से तुम्हें तो नुकसान होगा?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘मुझे तो नहीं, हां मेरी कंपनी को जरूर नुकसान होगा. इस के लिए पुलिस जांच की रिपोर्ट की जरूरत पड़ेगी.’’ प्रेमप्रकाश ने बताया.

‘‘क्या तुम रेस खेलते हो, घोड़ों पर रकम लगाते हो, यह बहुत महंगा शौक है?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘तुम्हारा मतलब है नेकलैस मैं ने चुराया है?’’ प्रेमप्रकाश ने खीझ कर पूछा.

पटेल ने उसे जवाब देने के बजाय डाक्टर से पूछा, ‘‘तुम इतनी रात तक अपने औफिस में क्या कर रहे थे? लिलि की राह देख रहे थे क्या?’’

‘‘मुझे लिलि के आने के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह जिस वक्त मेरे पास आई, घबराई हुई थी. उस ने बताया कि कोई उस का पीछा कर रहा है. उस ने यह भी कहा कि वह आदमी उस के पति के औफिस में गया है. इस के बाद हम बातें करने लगे. तभी प्रेमप्रकाश आ गया. मैं ने लिलि को अंदर वाले कमरे में भेज दिया और अपना बैग ले कर उस के साथ यहां आ गया. लिलि को मुझे छिपाना नहीं चाहिए था.’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘उस के बाद क्या हुआ?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘जब मैं अतुल के औफिस में पहुंचा तो रीना मर चुकी थी. मगर यह लड़का जिंदा था. इस के सिर पर चोट आई थी. अगर चोट जरा भी गहरी होती तो यह मर भी सकता था.’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘अच्छा, तुम दोनों जा सकते हो.’’ पटेल ने कहा.

‘‘क्या मैं भी जा सकता हूं?’’ योगेन ने पूछा.

इंसपेक्टर पटेल ने उसे भी इजाजत दे दी.

योगेन की चोट तकलीफ दे रही थी. सिर के पिछले हिस्से में दर्द था. उस की नजरों के सामने बारबार रीना की लाश आ रही थी. कैसी हंसतीमुसकराती लड़की मिनटों में मौत की गोद में समा गई. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. रीना से मुलाकात का दृश्य उस की आंखों में घूम रहा था, कानों में उस की आवाज गूंज रही थी.

वह उन आवाजों के बारे में सोचने लगा, जो जरा होश में आने पर उस के कानों में पड़ी थी. अचानक एक आवाज उसे याद आई तो वह उछल पड़ा. उस ने उसी वक्त इंसपेक्टर पटेल को फोन किया. पटेल ने झुंझला कर कहा, ‘‘अभी तुम सो जाओ, सुबह बात करेंगे.’’

‘‘इंसपेक्टर साहब, सुबह तक बहुत देर हो जाएगी. सारा खेल खतम हो जाएगा. हमें अभी और इसी वक्त बिजनैस सेंटर चलना होगा. मुझे उम्मीद है कि नेकलैस भी बरामद कर लेंगे और कातिल को भी पकड़ लेंगे.’’

आधे घंटे बाद दोनों अतुल के औफिस में बैठे थे. इंसपेक्टर पटेल थोड़ा नाराज थे. योगेन जबरदस्ती उन्हें औफिस ले आया था. गार्ड से चाबी ले कर अतुल का औफिस खोल कर दोनों उस में बैठे थे.

‘‘मुझे रीना के कातिल का पता चला गया है.’’ योगेन ने कहा.

‘‘कौन है वह?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

‘‘यह बड़ी होशियारी से तैयार किया गया प्लान था. कातिल किसी का कत्ल नहीं करना चाहता था. उस ने पाइप में भी कपड़ा लपेट रखा था, ताकि अपने शिकार को बेहोश कर के नेकलैस उड़ा सके. न जाने क्यों उस ने लिफाफे खोलने वाली छुरी से रीना पर हमला कर दिया? शायद उसे अंदाजा नहीं था कि यह छुरी किसी को मार भी सकती है.’’

‘‘यह सब छोड़ो, तुम यह बताओ कि हम यहां क्यों आए हैं? रीना का कातिल कौन है?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

‘‘जिस वक्त रीना मेरी बांहों में थी, उसी वक्त उस ने चौंक कर मेरे पीछे देखा था. मतलब उस ने मुझ पर हमला करने वाले को देख लिया था. हमला करने वाला मुझे बेहोश कर के नेकलैस हासिल करना चाहता था. मगर रीना ने उसे देख लिया था, इसलिए हमला करने वाले को मजबूरन उस का कत्ल करना पड़ा.’’ योगेन ने कहा.

‘‘आखिर वह है कौन?’’ पटेल ने झुंझला कर पूछा.

‘‘इस के लिए आप को थोड़ा इंतजार करना होगा. सुबह होते ही कातिल आप की गिरफ्त में होगा.’’ योगेन ने जवाब में कहा.

दोनों बैठे इंतजार करते रहे. जैसे ही सुबह का उजाला फैला, योगेन ने उठ कर अतुल के औफिस के दरवाजे में हलकी सी झिरी कर दी और बाहर झांकने लगा. पटेल भी उसी के साथ खड़ा था. धीरेधीरे लोग आने लगे. सभी अपनेअपने औफिसों में जा रहे थे. कुछ देर बाद डा. परीचा नजर आया, वह भी अपने औफिस का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

अतुल और प्रेमप्रकाश भी नजर आए. दोनों साथसाथ बातें करते आ रहे थे. प्रेमप्रकाश अपने औफिस में चला गया. जैसे ही अतुल ने अपने औफिस के दरवाजे के हैंडल पर हाथ रखा, योगेन ने दरवाजा खोल दिया.

योगेन को अंदर देख कर अतुल हैरान रह गया. कभी वह इंसपेक्टर पटेल को देखता तो कभी योगेन को. योगेन ने कहा, ‘‘अतुलजी अंदर आ जाइए. थोड़ी देर में आप को सब मालूम हो जाएगा.’’

उन दोनों को हैरानी से देखते हुए अतुल अंदर आ गया. फिर वह अंदर के कमरे में चला गया. योगेन झिरी से बाहर की तरफ देखता रहा. अचानक उस ने एकदम से दरवाजा खोल  कर कहा, ‘‘आइए पटेल साहब.’’

दोनों तेजी से दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. सामने ही मरदाना टौयलेट था. योगेन ने पटेल से चाबियों का गुच्छा मांगा, जो उस ने गार्ड से ले रखा था. उस में से एक चाबी ढूंढ़ कर टौयलेट में लगाई, दरवाजा खुल गया, सामने का सीन साफ नजर आने लगा. प्रेमप्रकाश फर्श पर झुका बेसिन के नीचे कुछ तलाश रहा था.

उन दोनों को देख कर वह सीधा खड़ा हो गया. योगेन ने उसे एक तरफ धकेल कर बेसिन के नीचे हाथ डाला तो अगले पल उस के हाथ में वह मखमली डिबिया थी, जिस में हीरों का नेकलैस था. यह वही डिबिया थी, जो रात योगेन अतुल पराशर को देने लाया था.

‘‘मिल गया न इंसपेक्टर साहब नेकलैस.’’ योगेन ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल प्रेमप्रकाश को घूर रहे थे. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. वह हकलाते हुए बोला, ‘‘मैं तो… बस अंदाजे से तलाश रहा था. इस से पहले कि मैं सफल होता, आप लोग आ गए. मैं तो…’’

‘‘प्रेमप्रकाश झूठ मत बोलो.’’ योगेन ने कहा.

‘‘मैं सच कह रहा हूं,’’ उस ने कहा.

‘‘बेकार की बकवास मत करो.’’ पटेल ने घुड़का.

‘‘तुम झूठे हो, पहले तुम ने मेरी मंगेतर रीना का खून किया, उस के बाद नकेलैस ले कर इस बेसिन के नीचे छिपा दिया.’’ योगेन ने कहा.

प्रेमप्रकाश घबरा गया. वह दोनों को देखता रहा. उस की जुबान बंद हो चुकी थी.

‘‘जब मैं नेकलैस ले कर अतुल के औफिस की तरफ जा रहा था, तब तक तुम अपने औफिस में अंधेरा किए खड़े थे और मेरी निगरानी कर रहे थे. जब मैं औफिस में रीना की बांहों में था तो तुम अंदर आए. रीना ने तुम्हें देख लिया. पहले तुम ने मुझ पर हमला किया, उस के बाद रीना को छुरी घोप कर मार दिया, क्योंकि वह तुम्हें देख चुकी थी.

मेरी बेहोशी का फायदा उठा कर तुम नेकलैस ले उड़े. नेकलैस तुम ने मरदाना टौयलेट में छिपा दिया. इस के बाद यहां आ कर ड्रामा करने लगे. तुम्हारी जुबान से निकले एक वाक्य ने तुम्हें फंसवा दिया. बाद में तुम्हारी भारी आवाज पहचान ली थी. जब मुझे थोड़ाथोड़ा होश आ रहा था, तब तुम ने कहा था, ‘पीछे देखो, शायद इस के दिमाग पर चोट आई है.’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मेरे सिर के पीछे चोट लगी थी. हमलावर जा चुका था, हम दोनों फर्श पर पड़े थे. इस से यह साबित होता है कि चोट तुम ने ही मारी थी. इसलिए तुम इस के बारे में जानते थे.’’

योगेन ने सारी बात का खुलासा कर दिया. रीना की मौत का दुख उस की आंखों में छलक आया.

‘‘प्रेमप्रकाश, तुम्हारा खेल खत्म हो चुका हूं. मैं तुम्हें रीना के कत्ल और हीरों के नेकलैस की चोरी के इल्जाम में गिरफ्तार करता हूं.’’ इंसपेक्टर पटेल ने सख्ती से कहा.

प्रेमप्रकाश ने सिर झुका लिया. योगेन ने दरवाजा खोला और आंसू पोंछते हुए चला गया.

चाल : फहीम ने सिखाया हैदर को सबक

कौफी हाउस के बाहर हैदर को देख कर फहीम के चेहरे की रंगत उड़ गई थी. हैदर ने भी उसे देख लिया था. इसलिए उस के पास जा कर बोला, ‘‘हैलो फहीम, बहुत दिनों बाद दिखाई दिए.’’

‘‘अरे हैदर तुम..?’’ फहीम ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘अगर और ज्यादा दिनों बाद मिलते तो ज्यादा अच्छा होता.’’

‘‘दोस्त से इस तरह नहीं कहा जाता भाई फहीम.’’ हैदर ने कहा तो जवाब में फहीम बोला, ‘‘तुम कभी मेरे दोस्त नहीं रहे हैदर. तुम यह बात जानते भी हो.’’

‘‘अब मिल गए हो तो चलो एकएक कौफी पी लेते हैं.’’ हैदर ने कहा.

‘‘नहीं,’’ फहीम ने कहा, ‘‘मैं कौफी पी चुका हूं. अब घर जा रहा हूं.’’

कह कर फहीम ने आगे बढ़ना चाहा तो हैदर ने उस का रास्ता रोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा न कि अंदर चल कर मेरे साथ भी एक कप कौफी पी लो. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो बाद में तुम्हें बहुत अफसोस होगा.’’

फहीम अपने होंठ काटने लगा. उसे मालूम था कि हैदर की इस धमकी का क्या मतलब है. फहीम हैदर को देख कर ही समझ गया था कि अब यह गड़े मुर्दे उखाड़ने बैठ जाएगा. हैदर हमेशा उस के लिए बुरी खबर ही लाता था. इसीलिए उस ने उकताए स्वर में कहा, ‘‘ठीक है, चलो अंदर.’’

दोनों अंदर जा कर कोने की मेज पर आमनेसामने बैठ कर कौफी पी रहे थे. फहीम ने उकताते हुए कहा, ‘‘अब बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

हैदर ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘अब मैं ने सुलतान ज्वैलर के यहां की नौकरी छोड़ दी है.’’

‘‘सुलतान आखिर असलियत जान ही गया.’’ फहीम ने इधरउधर देखते हुए कहा.

हैदर का चेहरा लाल हो गया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मेरी उस के साथ निभी नहीं.’’

फहीम को हैदर की इस बात पर किसी तरह का कोई शक नहीं हुआ. ज्वैलरी स्टोर के मालिक सुलतान अहमद अपने नौकरों के चालचलन के बारे में बहुत सख्त मिजाज था. ज्वैलरी स्टोर में काम करने वाले किसी भी कर्मचारी के बारे में शक होता नहीं था कि वह उस कर्मचारी को तुरंत हटा देता था.

फहीम ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर में 5 सालों तक नौकरी की थी. सुलतान अहमद को जब पता चला था कि फहीम कभीकभी रेस के घोड़ों पर दांव लगाता है और जुआ खेलता है तो उस ने उसे तुरंत नौकरी से निकाल दिया था.

‘‘तुम्हारे नौकरी से निकाले जाने का मुझ से क्या संबंध है?’’ फहीम ने पूछा.

हैदर ने उस की इस बात का कोई जवाब न देते हुए बात को दूसरी तरफ मोड़ दिया, ‘‘आज मैं अपनी कुछ पुरानी चीजों को देख रहा था तो जानते हो अचानक उस में मेरे हाथ एक चीज लग गई. तुम्हारी वह पुरानी तसवीर, जिसे ‘इवनिंग टाइम्स’ अखबार के एक रिपोर्टर ने उस समय खींची थी, जब पुलिस ने ‘पैराडाइज’ में छापा मारा था. उस तस्वीर में तुम्हें पुलिस की गाड़ी में बैठते हुए दिखाया गया था.’’

फहीम के चेहरे का रंग लाल पड़ गया. उस ने रुखाई से कहा, ‘‘मुझे वह तस्वीर याद है. तुम ने वह तस्वीर अपने शराबी रिपोर्टर दोस्त से प्राप्त की थी और उस के बदले मुझ से 2 लाख रुपए वसूलने की कोशिश की थी. लेकिन जब मैं ने तुम्हें रुपए नहीं दिए तो तुम ने सुलतान अहमद से मेरी चुगली कर दी थी. तब मुझे नौकरी से निकाल दिया गया था. मैं ने पिछले 4 सालों से घोड़ों पर कोई रकम भी नहीं लगाई है. अब मेरी शादी भी हो चुकी है और मेरे पास अपनी रकम को खर्च करने के कई दूसरे तरीके भी हैं.’’

‘‘बिलकुल… बिलकुल,’’ हैदर ने हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘और अब तुम्हारी नौकरी भी बहुत बढि़या है बैंक में.’’

यह सुन कर फहीम के चेहरे का रंग उड़ गया, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘तुम क्या समझ रहे हो कि मेरी तुम से यहां हुई मुलाकात इत्तफाक है?’’ हैदर ने भेडि़ए की तरह दांत निकालते हुए कहा.

फहीम ने तीखी नजरों से हैदर की ओर देखते हुए कहा, ‘‘ये चूहेबिल्ली का खेल खत्म करो. यह बताओ कि तुम चाहते क्या हो?’’

हैदर ने बेयरे की ओर देखते हुए धीमे स्वर में कहा, ‘‘बात यह है फहीम कि सुलतान अहमद के पास बिना तराशे हीरों की लाट आने वाली है. उन की शिनाख्त नहीं हो सकती और उन की कीमत करोड़ों रुपए में है.’’

यह सुन कर फहीम के जबड़े कस गए. उस ने गुर्राते हुए कहा, ‘‘तो तुम उन्हें चोरी करना चाहते हो और चाहते हो कि मैं तुम्हारी इस काम में मदद करूं?’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो फहीम,’’ हैदर ने चेहरे पर कुटिलता ला कर कहा, ‘‘लेकिन यह काम केवल तुम करोगे.’’

फहीम उस का चेहरा देखता रह गया.

‘‘तुम्हें याद होगा कि सुलतान अहमद अपनी तिजोरी के ताले का कंबीनेशन नंबर हर महीने बदल देता है और हमेशा उस नंबर को भूल जाता है. जब तुम जहां रहे तुम उस के उस ताले को खोल देते थे. तुम्हें उस तिजोरी को खोलने में महारत हासिल है, इसलिए…’’

‘‘इसलिए तुम चाहते हो कि मैं सुलतान ज्वैलरी स्टोर में घुस कर उस की तिजोरी खोलूं और उन बिना तराशे हीरों को निकाल कर तुम्हें दे दूं?’’ फहीम ने चिढ़ कर कहा.

‘‘इतनी ऊंची आवाज में बात मत करो,’’ हैदर ने आंख निकाल कर कहा, ‘‘यही तो असल हकीकत है. तुम वे हीरे ला कर मुझे सौंप दो और वह तस्वीर, निगेटिव सहित मुझ से ले लो. अगर तुम इस काम के लिए इनकार करोगे तो मैं वह तस्वीर तुम्हारे बौस को डाक से भेज दूंगा.’’

पलभर के लिए फहीम की आंखों में खून उतर आया. वह भी हैदर से कम नहीं था. उस ने दोनों हाथों की मुटिठयां भींच लीं. उस का मन हुआ कि वह घूंसों से हैदर के चेहरे को लहूलुहान कर दे, लेकिन इस समय जज्बाती होना ठीक नहीं था. उस ने खुद पर काबू पाया. क्योंकि अगर हैदर ने वह तसवीर बैंक में भेज दी तो उस की नौकरी तुरंत चली जाएगी.

फहीम को उस कर्ज के बारे में याद आया, जो उस ने मकान के लिए लिया था. उसे अपनी बीवी की याद आई, जो अगले महीने उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. अगर उस की बैंक की नौकरी छूट गई तो सब बरबाद हो जाएगा. हैदर बहुत कमीना आदमी था. उस ने फहीम को अब भी ढूंढ़ निकाला था. अगर उस ने किसी दूसरी जगह नौकरी कर ली तो यह वहां भी पहुंच जाएगा. ऐसी स्थिति में हैदर को हमेशा के लिए खत्म करना ही ठीक रहेगा.

‘‘तुम सचमुच मुझे वह तसवीर और उस की निगेटिव दे दोगे?’’ फहीम ने पूछा.

हैदर की आंखें चमक उठीं. उस ने कहा, ‘‘जिस समय तुम मुझे वे हीरे दोगे, उसी समय मैं दोनों चीजें तुम्हारे हवाले कर दूंगा. यह मेरा वादा है.’’

फहीम ने विवश हो कर हैदर की बात मान ली. हैदर अपने घर में बैठा फहीम का इंतजार कर रहा था. उस के यहां फहीम पहुंचा तो रात के 3 बज रहे थे. उस के आते ही उस ने पूछा ‘‘तुम हीरे ले आए?’’

फहीम ने अपने ओवरकोट की जेब से मखमली चमड़े की एक थैली निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘वह तसवीर और उस की निगेटिव?’’

हैदर ने अपने कोट की जेब से एक लिफाफा निकाल कर फहीम के हवाले करते हुए हीरे की थैली उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया.

‘‘एक मिनट…’’ फहीम ने कहा. इस के बाद लिफाफे में मौजूद तसवीर और निगेटिव निकाल कर बारीकी से निरीक्षण करने लगा. संतुष्ट हो कर सिर हिलाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, ये रहे तुम्हारे हीरे.’’

हैदर ने हीरों की थैली मेज से उठा ली. फहीम ने जेब से सिगरेट लाइटर निकाला और खटके से उस का शोला औन कर के तसवीर और निगेटिव में आग लगा दी. उन्हें फर्श पर गिरा कर जलते हुए देखता रहा.

अचानक उस के कानों में हैदर की हैरानी भरी आवाज पड़ी, ‘‘अरे, ये तो साधारण हीरे हैं.’’

फहीम ने तसवीर और निगेटिव की राख को जूतों से रगड़ते हुए कहा, ‘‘हां, मैं ने इन्हें एक साधारण सी दुकान से खरीदे हैं.’’

यह सुन कर हैदर फहीम की ओर बढ़ा और क्रोध से बोला, ‘‘यू डबल क्रौसर! तुम समझते हो कि इस तरह तुम बच निकलोगे. कल सुबह मैं तुम्हारे बौस के पास बैंक जाऊंगा और उसे सब कुछ बता दूंगा.’’

हैदर की इस धमकी से साफ हो गया था कि उस के पास तसवीर की अन्य कापियां नहीं थीं. फहीम दिल ही दिल में खुश हो कर बोला, ‘‘हैदर, कल सुबह तुम इस शहर से मीलों दूर होगे या फिर जेल की सलाखों के पीछे पाए जाओगे.’’

‘‘क्या मतलब?’’ हैदर सिटपिटा गया.

‘‘मेरा मतलब यह है कि मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को रस्सी से बांध दिया है. छेनी की मदद से तिजोरी पर इस तरह के निशान लगा दिए हैं, जैसे किसी ने उसे खोलने की कोशिश की हो. लेकिन खोलने में सफल न हुआ हो. ऐसे में सुलतान अहमद की समझ में आ जाएगा कि यह हरकत तुम्हारी है.

‘‘इस के लिए मैं ने तिजोरी के पास एक विजीटिंग कार्ड गिरा दिया है, जिस पर तुम्हारा नाम और पता छपा है. वह कार्ड कल रात ही मैं ने छपवाया था. अगर तुम्हारा ख्याल है कि तुम सुलतान अहमद को इस बात से कायल कर सकते हो कि तिजोरी को तोड़ने की कोशिश के दौरान वह कार्ड तुम्हारे पास से वहां नहीं गिरा तो फिर तुम इस शहर रहने की हिम्मत कर सकते हो.

‘‘लेकिन अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो बेहतर यही होगा कि तुम अभी इस शहर से भाग जाने की तैयारी कर लो. मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को ज्यादा मजबूती से नहीं बांधा था. वह अब तक स्वयं को रस्सी से खोलने में कामयाब हो गया होगा.’’

हैदर कुछ क्षणों तक फहीम को पागलों की तरह घूरता रहा. इस के बाद वह अलमारी की तरफ लपका और अपने कपड़े तथा अन्य जरूरी सामान ब्रीफकेस में रख कर तेजी से सीढि़यों की ओर बढ़ गया.

फहीम इत्मीनान से टहलता हुआ हैदर के घर से बाहर निकला. बाहर आ कर बड़बड़ाया, ‘मेरा ख्याल है कि अब हैदर कभी इस शहर में लौट कर नहीं आएगा. हां, कुछ समय बाद वह यह जरूर सोच सकता है कि मैं वास्तव में सुलतान ज्वैलरी स्टोर में गया भी था या नहीं? लेकिन अब उस में इतनी हिम्मत नहीं रही कि वह वापस आ कर हकीकत का पता करे. फिलहाल मेरी यह चाल कामयाब रही. मैं ने उसे जो बता दिया, उस ने उसे सच मान लिया.’

भाभी : वेदना के आगे छोटे सांत्वना के शब्द

अपनी सहेली के बेटे के विवाह में शामिल हो कर पटना से पुणे लौट रही थी कि रास्ते में बनारस में रहने वाली भाभी, चाची की बहू से मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पाई. बचपन की कुछ यादों से वे इतनी जुड़ी थीं जो कि भुलाए नहीं भूल सकती. सो, बिना किसी पूर्वयोजना के, पूर्वसूचना के रास्ते में ही उतर गई. पटना में ट्रेन में बैठने के बाद ही भाभी से मिलने का मन बनाया था. घर का पता तो मुझे मालूम ही था, आखिर जन्म के बाद 19 साल मैं ने वहीं गुजारे थे. हमारा संयुक्त परिवार था. पिताजी की नौकरी के कारण बाद में हम दिल्ली आ गए थे. उस के बाद, इधरउधर से उन के बारे में सूचना मिलती रही, लेकिन मेरा कभी उन से मिलना नहीं हुआ था. आज 25 साल बाद उसी घर में जाते हुए अजीब सा लग रहा था, इतने सालों में भाभी में बहुत परिवर्तन आ गया होगा, पता नहीं हम एकदूसरे को पहचानेंगे भी या नहीं, यही सोच कर उन से मिलने की उत्सुकता बढ़ती जा  रही थी. अचानक पहुंच कर मैं उन को हैरान कर देना चाह रही थी.

स्टेशन से जब आटो ले कर घर की ओर चली तो बनारस का पूरा नक्शा ही बदला हुआ था. जो सड़कें उस जमाने में सूनी रहती थीं, उन में पैदल चलना तो संभव ही नहीं दिख रहा था. बड़ीबड़ी अट्टालिकाओं से शहर पटा पड़ा था. पहले जहां कारों की संख्या सीमित दिखाई पड़ती थी, अब उन की संख्या अनगिनत हो गई थी. घर को पहचानने में भी दिक्कत हुई. आसपास की खाली जमीन पर अस्पताल और मौल ने कब्जा कर रखा था. आखिर घूमतेघुमाते घर पहुंच ही गई.

घर के बाहर के नक्शे में कोई परिवर्तन नहीं था, इसलिए तुरंत पहचान गई. आगे क्या होगा, उस की अनुभूति से ही धड़कनें तेज होने लगीं. डोरबैल बजाई. दरवाजा खुला, सामने भाभी खड़ी थीं. बालों में बहुत सफेदी आ गई थी. लेकिन मुझे पहचानने में दिक्कत नहीं हुई. उन को देख कर मेरे चेहरे पर मुसकान तैर गई. लेकिन उन की प्रतिक्रिया से लग रहा था कि वे मुझे पहचानने की असफल कोशिश कर रही थीं. उन्हें अधिक समय दुविधा की स्थिति में न रख कर मैं ने कहा, ‘‘भाभी, मैं गीता.’’ थोड़ी देर वे सोच में पड़ गईं, फिर खुशी से बोलीं, ‘‘अरे, दीदी आप, अचानक कैसे? खबर क्यों नहीं की, मैं स्टेशन लेने आ जाती. कितने सालों बाद मिले हैं.’’

उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और हाथ पकड़ कर घर के अंदर ले गईं. अंदर का नक्शा पूरी तरह से बदला हुआ था. चाचाचाची तो कब के कालकवलित हो गए थे. 2 ननदें थीं, उन का विवाह हो चुका था. भाभी की बेटी की भी शादी हो गई थी. एक बेटा था, जो औफिस गया हुआ था. मेरे बैठते ही वे चाय बना कर ले आईं. चाय पीतेपीते मैं ने उन को भरपूर नजरों से देखा, मक्खन की तरह गोरा चेहरा अपनी चिकनाई खो कर पाषाण जैसा कठोर और भावहीन हो गया था. पथराई हुई आंखें, जैसे उन की चमक को ग्रहण लगे वर्षों बीत चुके हों. सलवटें पड़ी हुई सूती सफेद साड़ी, जैसे कभी उस ने कलफ के दर्शन ही न किए हों. कुल मिला कर उन की स्थिति उस समय से बिलकुल विपरीत थी जब वे ब्याह कर इस घर में आई थीं.

मैं उन्हें देखने में इतनी खो गई थी कि उन की क्या प्रतिक्रिया होगी, इस का ध्यान ही नहीं रहा. उन की आवाज से चौंकी, ‘‘दीदी, किस सोच में पड़ गई हैं, पहले मुझे देखा नहीं है क्या? नहा कर थोड़ा आराम कर लीजिए, ताकि रास्ते की थकान उतर जाए. फिर जी भर के बातें करेंगे.’’ चाय खत्म हो गई थी, मैं झेंप कर उठी और कपड़े निकाल कर बाथरूम में घुस गई.

शादी और सफर की थकान से सच में बदन बिलकुल निढाल हो रहा था. लेट तो गई लेकिन आंखों में नींद के स्थान पर 25 साल पुराने अतीत के पन्ने एकएक कर के आंखों के सामने तैरने लगे…

मेरे चचेरे भाई का विवाह इन्हीं भाभी से हुआ था. चाचा की पहली पत्नी से मेरा इकलौता भाई हुआ था. वह अन्य दोनों सौतेली बहनों से भिन्न था. देखने और स्वभाव दोनों में उस का अपनी बहनों से अधिक मुझ से स्नेह था क्योंकि उस की सौतेली बहनें उस से सौतेला व्यवहार करती थीं. उस की मां के गुण उन में कूटकूट कर भरे थे. मेरी मां की भी उस की सगी मां से बहुत आत्मीयता थी, इसलिए वे उस को अपने बड़े बेटे का दरजा देती थीं. उस जमाने में अधिकतर जैसे ही लड़का व्यवसाय में लगा कि उस के विवाह के लिए रिश्ते आने लगते थे. भाई एक तो बहुत मनमोहक व्यक्तित्व का मालिक था, दूसरा उस ने चाचा के व्यवसाय को भी संभाल लिया था. इसलिए जब भाभी के परिवार की ओर से विवाह का प्रस्ताव आया तो चाचा मना नहीं कर पाए. उन दिनों घर के पुरुष ही लड़की देखने जाते थे, इसलिए भाई के साथ चाचा और मेरे पापा लड़की देखने गए. उन को सब ठीक लगा और भाई ने भी अपने चेहरे के हावभाव से हां की मुहर लगा दी तो वे नेग कर के, शगुन के फल, मिठाई और उपहारों से लदे घर लौटे तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. भाई जब हम से मिलने आया तो बहुत शरमा रहा था. हमारे पूछने पर कि कैसी हैं भाभी, तो उस के मुंह से निकल गया, ‘बहुत सुंदर है.’ उस के चेहरे की लजीली खुशी देखते ही बन रही थी.

देखते ही देखते विवाह का दिन भी आ गया. उन दिनों औरतें बरात में नहीं जाया करती थीं. हम बेसब्री से भाभी के आने की प्रतीक्षा करने लगे. आखिर इंतजार की घडि़यां समाप्त हुईं और लंबा घूंघट काढ़े भाभी भाई के पीछेपीछे आ गईं. चाची ने  उन्हें औरतों के झुंड के बीचोंबीच बैठा दिया.

मुंहदिखाई की रस्मअदायगी शुरू हो गई. पहली बार ही जब उन का घूंघट उठाया गया तो मैं उन का चेहरा देखने का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी और जब मैं ने उन्हें देखा तो मैं देखती ही रह गई उस अद्भुत सौंदर्य की स्वामिनी को. मक्खन सा झक सफेद रंग, बेदाग और लावण्यपूर्ण चेहरा, आंखों में हजार सपने लिए सपनीली आंखें, चौड़ा माथा, कालेघने बालों का बड़ा सा जूड़ा तथा खुशी से उन का चेहरा और भी दपदपा रहा था.

वे कुल मिला कर किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थीं. सभी औरतें आपस में उन की सुंदरता की चर्चा करने लगीं. भाई विजयी मुसकान के साथ इधरउधर घूम रहा था. इस से पहले उसे कभी इतना खुश नहीं देखा था. उस को देख कर हम ने सोचा, मां तो जन्म देते ही दुनिया से विदा हो गई थीं, चलो कम से कम अपनी पत्नी का तो वह सुख देखेगा.

विवाह के समय भाभी मात्र 16 साल की थीं. मेरी हमउम्र. चाची को उन का रूप फूटी आंखों नहीं सुहाया क्योंकि अपनी बदसूरती को ले कर वे हमेशा कुंठित रहती थीं. अपना आक्रोश जबतब भाभी के क्रियाकलापों में मीनमेख निकाल कर शांत करती थीं. कभी कोई उन के रूप की प्रशंसा करता तो छूटते ही बोले बिना नहीं रहती थीं, ‘रूप के साथ थोड़े गुण भी तो होने चाहिए थे, किसी काम के योग्य नहीं है.’

दोनों ननदें भी कटाक्ष करने में नहीं चूकती थीं. बेचारी चुपचाप सब सुन लेती थीं. लेकिन उस की भरपाई भाई से हो जाती थी. हम भी मूकदर्शक बने सब देखते रहते थे.

कभीकभी भाभी मेरे व मां के पास आ कर अपना मन हलका कर लेती थीं. लेकिन मां भी असहाय थीं क्योंकि चाची के सामने बोलने की किसी की हिम्मत नहीं थी.

मैं मन ही मन सोचती, मेरी हमउम्र भाभी और मेरे जीवन में कितना अंतर है. शादी के बाद ऐसा जीवन जीने से तो कुंआरा रहना ही अच्छा है. मेरे पिता पढ़ेलिखे होने के कारण आधुनिक विचारधारा के थे. इतनी कम उम्र में मैं अपने विवाह की कल्पना नहीं कर सकती थी. भाभी के पिता के लिए लगता है, उन के रूप की सुरक्षा करना कठिन हो गया था, जो बेटी का विवाह कर के अपने कर्तव्यों से उन्होंने छुटकारा पा लिया. भाभी ने 8वीं की परीक्षा दी ही थी अभी. उन की सपनीली आंखों में आंसू भरे रहते थे अब, चेहरे की चमक भी फीकी पड़ गई थी.

विवाह को अभी 3 महीने भी नहीं बीते होंगे कि भाभी गर्भवती हो गईं. मेरी भोली भाभी, जो स्वयं एक बच्ची थीं, अचानक अपने मां बनने की खबर सुन कर हक्कीबक्की रह गईं और आंखों में आंसू उमड़ आए. अभी तो वे विवाह का अर्थ भी अच्छी तरह समझ नहीं पाई थीं. वे रिश्तों को ही पहचानने में लगी हुई थीं, मातृत्व का बोझ कैसे वहन करेंगी. लेकिन परिस्थितियां सबकुछ सिखा देती हैं. उन्होंने भी स्थिति से समझौता कर लिया. भाई पितृत्व के लिए मानसिक रूप से तैयार तो हो गया, लेकिन उस के चेहरे पर अपराधभावना साफ झलकती थी कि जागरूकता की कमी होने के कारण भाभी को इस स्थिति में लाने का दोषी वही है. मेरी मां कभीकभी भाभी से पूछ कर कि उन्हें क्या पसंद है, बना कर चुपचाप उन के कमरे में पहुंचा देती थीं. बाकी किसी को तो उन से कोई हमदर्दी न थी.

प्रसव का समय आ पहुंचा. भाभी ने चांद सी बेटी को जन्म दिया. नन्हीं परी को देख कर, वे अपना सारा दुखदर्द भूल गईं और मैं तो खुशी से नाचने लगी. लेकिन यह क्या, बाकी लोगों के चेहरों पर लड़की पैदा होने की खबर सुन कर मातम छा गया था. भाभी की ननदें और चाची सभी तो स्त्री हैं और उन की अपनी भी तो 2 बेटियां ही हैं, फिर ऐसा क्यों? मेरी समझ से परे की बात थी. लेकिन एक बात तो तय थी कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है. मेरे जन्म पर तो मेरे पिताजी ने शहरभर में लड्डू बांटे थे. कितना अंतर था मेरे चाचा और पिताजी में. वे केवल एक साल ही तो छोटे थे उन से. एक ही मां से पैदा हुए दोनों. लेकिन पढ़ेलिखे होने के कारण दोनों की सोच में जमीनआसमान का अंतर था.

मातृत्व से गौरवान्वित हो कर भाभी और भी सुडौल व सुंदर दिखने लगी थीं. बेटी तो जैसे उन को मन बहलाने का खिलौना मिल गई थी. कई बार तो वे उसे खिलातेखिलाते गुनगुनाने लगती थीं. अब उन के ऊपर किसी के तानों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था. मां बनते ही औरत कितनी आत्मविश्वास और आत्मसम्मान से पूर्ण हो जाती है, उस का उदाहरण भाभी के रूप में मेरे सामने था. अब वे अपने प्रति गलत व्यवहार की प्रतिक्रियास्वरूप प्रतिरोध भी करने लगी थीं. इस में मेरे भाई का भी सहयोग था, जिस से हमें बहुत सुखद अनुभूति होती थी.

इसी तरह समय बीतने लगा और भाभी की बेटी 3 साल की हो गई तो फिर से उन के गर्भवती होने का पता चला और इस बार भाभी की प्रतिक्रिया पिछली बार से एकदम विपरीत थी. परिस्थितियों ने और समय ने उन को काफी परिपक्व बना दिया था.

गर्भ को 7 महीने बीत गए और अचानक हृदयविदारक सूचना मिली कि भाई की घर लौटते हुए सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई है. यह अनहोनी सुन कर सभी लोग स्तंभित रह गए. कोई भाभी को मनहूस बता रहा था तो कोई अजन्मे बच्चे को कोस रहा था कि पैदा होने से पहले ही बाप को खा गया. यह किसी ने नहीं सोचा कि पतिविहीन भाभी और बाप के बिना बच्चे की जिंदगी में कितना अंधेरा हो गया है. उन से किसी को सहानुभूति नहीं थी.

समाज का यह रूप देख कर मैं कांप उठी और सोच में पड़ गई कि यदि भाई कमउम्र लिखवा कर लाए हैं या किसी की गलती से दुर्घटना में वे मारे गए हैं तो इस में भाभी का क्या दोष? इस दोष से पुरुष जाति क्यों वंचित रहती है?

एकएक कर के उन के सारे सुहाग चिह्न धोपोंछ दिए गए. उन के सुंदर कोमल हाथ, जो हर समय मीनाकारी वाली चूडि़यों से सजे रहते थे, वे खाली कर दिए गए. उन्हें सफेद साड़ी पहनने को दी गई. भाभी के विवाह की कुछ साडि़यों की तो अभी तह भी नहीं खुल पाई थी. वे तो जैसे पत्थर सी बेजान हो गई थीं. और जड़वत सभी क्रियाकलापों को निशब्द देखती रहीं. वे स्वीकार ही नहीं कर पा रही थीं कि उन की दुनिया उजड़ चुकी थी.

एक भाई ही तो थे जिन के कारण वे सबकुछ सह कर भी खुश रहती थीं. उन के बिना वे कैसे जीवित रहेंगी? मेरा हृदय तो चीत्कार करने लगा कि भाभी की ऐसी दशा क्यों की जा रही थी. उन का कुसूर क्या था? पत्नी की मृत्यु के बाद पुरुष पर न तो लांछन लगाए जाते हैं, न ही उन के स्वरूप में कोई बदलाव आता है. भाभी के मायके वाले भाई की तेरहवीं पर आए और उन्हें साथ ले गए कि वे यहां के वातावरण में भाई को याद कर के तनाव में और दुखी रहेंगी, जिस से आने वाले बच्चे और भाभी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. सब ने सहर्ष उन को भेज दिया यह सोच कर कि जिम्मेदारी से मुक्ति मिली. कुछ दिनों बाद उन के पिताजी का पत्र आया कि वे भाभी का प्रसव वहीं करवाना चाहते हैं. किसी ने कोई एतराज नहीं किया. और फिर यह खबर आई कि भाभी के बेटा हुआ है.

हमारे यहां से उन को बुलाने का कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहा था. लेकिन उन्होंने बुलावे का इंतजार नहीं किया और बेटे के 2 महीने का होते ही अपने भाई के साथ वापस आ गईं. कितना बदल गई थीं भाभी, सफेद साड़ी में लिपटी हुई, सूना माथा, हाथ में सोने की एकएक चूड़ी, बस. उन्होंने हमें बताया कि उन के मातापिता उन को आने नहीं दे रहे थे कि जब उस का पति ही नहीं रहा तो वहां जा कर क्या करेगी लेकिन वे नहीं मानीं. उन्होंने सोचा कि वे अपने मांबाप पर बोझ नहीं बनेंगी और जिस घर में ब्याह कर गई हैं, वहीं से उन की अर्थी उठेगी.

मैं ने मन में सोचा, जाने किस मिट्टी की बनी हैं वे. परिस्थितियों ने उन्हें कितना दृढ़निश्चयी और सहनशील बना दिया है. समय बीतते हुए मैं ने पाया कि उन का पहले वाला आत्मसम्मान समाप्त हो चुका है. अंदर से जैसे वे टूट गई थीं. जिस डाली का सहारा था, जब वह ही नहीं रही तो वे किस के सहारे हिम्मत रखतीं. उन को परिस्थितियों से समझौता करने के अतिरिक्त कोई चारा दिखाई नहीं पड़ रहा था. फूल खिलने से पहले ही मुरझा गया था. सारा दिन सब की सेवा में लगी रहती थीं.

उन की ननद का विवाह तय हो गया और तारीख भी निश्चित हो गई थी. लेकिन किसी भी शुभकार्य के संपन्न होते समय वे कमरे में बंद हो जाती थीं. लोगों का कहना था कि वे विधवा हैं, इसलिए उन की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए. यह औरतों के लिए विडंबना ही तो है कि बिना कुसूर के हमारा समाज विधवा के प्रति ऐसा दृष्टिकोण रखता है. उन के दूसरे विवाह के बारे में सोचना तो बहुत दूर की बात थी. उन की हर गतिविधि पर तीखी आलोचना होती थी. जबकि चाचा का दूसरा विवाह, चाची के जाने के बाद एक साल के अंदर ही कर दिया गया. लड़का, लड़की दोनों मां के कोख से पैदा होते हैं, फिर समाज की यह दोहरी मानसिकता देख कर मेरा मन आक्रोश से भर जाता था, लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी.

मेरे पिताजी पुश्तैनी व्यवसाय छोड़ कर दिल्ली में नौकरी करने का मन बना रहे थे. भाभी को जब पता चला तो वे फूटफूट कर रोईं. मेरा तो बिलकुल मन नहीं था उन से इतनी दूर जाने का, लेकिन मेरे न चाहने से क्या होना था और हम दिल्ली चले गए. वहां मैं ने 2 साल में एमए पास किया और मेरा विवाह हो गया. उस के बाद भाभी से कभी संपर्क ही नहीं हुआ. ससुराल वालों का कहना था कि विवाह के बाद जब तक मायके के रिश्तेदारों का निमंत्रण नहीं आता तब तक वे नहीं जातीं. मेरा अपनी चाची  से ऐसी उम्मीद करना बेमानी था. ये सब सोचतेसोचते कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

‘‘उठो दीदी, सांझ पड़े नहीं सोते. चाय तैयार है,’’ भाभी की आवाज से मेरी नींद खुली और मैं उठ कर बैठ गई. पुरानी बातें याद करतेकरते सोने के बाद सिर भारी हो रहा था, चाय पीने से थोड़ा आराम मिला. भाभी का बेटा, प्रतीक भी औफिस से आ गया था. मेरी दृष्टि उस पर टिक गई, बिलकुल भाई पर गया था. उसी की तरह मनमोहक व्यक्तित्व का स्वामी, उसी तरह बोलती आंखें और गोरा रंग.

इतने वर्षों बाद मिली थी भाभी से, समझ ही नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करूं. समय कितना बीत गया था, उन का बेटा सालभर का भी नहीं था जब हम बिछुड़े थे. आज इतना बड़ा हो गया है. पूछना चाह रही थी उन से कि इतने अंतराल तक उन का वक्त कैसे बीता, बहुतकुछ तो उन के बाहरी आवरण ने बता दिया था कि वे उसी में जी रही हैं, जिस में मैं उन को छोड़ कर गई थी. इस से पहले कि मैं बातों का सिलसिला शुरू करूं, भाभी का स्वर सुनाई दिया, ‘‘दामादजी क्यों नहीं आए? क्या नाम है बेटी का? क्या कर रही है आजकल? उसे क्यों नहीं लाईं?’’ इतने सारे प्रश्न उन्होंने एकसाथ पूछ डाले.

मैं ने सिलसिलेवार उत्तर दिया, ‘‘इन को तो अपने काम से फुरसत नहीं है. मीनू के इम्तिहान चल रहे थे, इसलिए भी इन का आना नहीं हुआ. वैसे भी, मेरी सहेली के बेटे की शादी थी, इन का आना जरूरी भी नहीं था. और भाभी, आप कैसी हो? इतने साल मिले नहीं, लेकिन आप की याद बराबर आती रही. आप की बेटी के विवाह में भी चाची ने नहीं बुलाया. मेरा बहुत मन था आने का, कैसी है वह?’’ मैं ने सोचने में और समय बरबाद न करते हुए पूछा.

‘‘क्या करती मैं, अपनी बेटी की शादी में भी औरों पर आश्रित थी. मैं चाहती तो बहुत थी…’’ कह कर वे शून्य में खो गईं.’’

‘‘चलो, अब चाचाचाची तो रहे नहीं, प्रतीक के विवाह में आप नहीं बुलाएंगी तो भी आऊंगी. अब तो विवाह के लायक वह भी हो गया है.’’

‘‘मैं भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाह रही हूं,’’ उन्होंने संक्षिप्त उत्तर देते हुए लंबी सांस ली.

‘‘एक बात पूछूं, भाभी, आप को भाई की याद तो बहुत आती होगी?’’ मैं ने सकुचाते हुए उन्हें टटोला.

‘‘हां दीदी, लेकिन यादों के सहारे कब तक जी सकते हैं. जीवन की कड़वी सचाइयां यादों के सहारे तो नहीं झेली जातीं. अकेली औरत का जीवन कितना दूभर होता है. बिना किसी के सहारे के जीना भी तो बहुत कठिन है. वे तो चले गए लेकिन मुझे तो सारी जिम्मेदारी अकेले संभालनी पड़ी. अंदर से रोती थी और बच्चों के सामने हंसती थी कि उन का मन दुखी न हो. वे अपने को अनाथ न समझें,’’ एक सांस में वे बोलीं, जैसे उन्हें कोई अपना मिला, दिल हलका करने के लिए.

‘‘हां भाभी, आप सही हैं, जब भी ये औफिस टूर पर चले जाते हैं तब अपने को असहाय महसूस करती हूं मैं भी. एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानेंगी? कभी आप को किसी पुरुषसाथी की आवश्यकता नहीं पड़ी?’’ मेरी हिम्मत उन की बातों से बढ़ गई थी.

‘‘क्या बताऊं दीदी, जब मन बहुत उदास होता था तो लगता था किसी के कंधे पर सिर रख कर खूब रोऊं और वह कंधा पुरुष का हो तभी हम सुरक्षित महसूस कर सकते हैं. उस के बिना औरत बहुत अकेली है,’’ उन्होंने बिना संकोच के कहा.

‘‘आप ने कभी दूसरे विवाह के बारे में नहीं सोचा?’’ मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी.

‘‘कुछ सोचते हुए वे बोलीं,  ‘‘क्यों नहीं दीदी, पुरुषों की तरह औरतों की भी तो तन की भूख होती है बल्कि उन को तो मानसिक, आर्थिक सहारे के साथसाथ सामाजिक सुरक्षा की भी बहुत जरूरत होती है. मेरी उम्र ही क्या थी उस समय. लेकिन जब मैं पढ़ीलिखी न होने के कारण आर्थिक रूप से दूसरों पर आश्रित थी तो कर भी क्या सकती थी. इसीलिए मैं ने सब के विरुद्ध हो कर, अपने गहने बेच कर आस्था को पढ़ाया, जिस से वह आत्मनिर्भर हो कर अपने निर्णय स्वयं ले सके. समय का कुछ भी भरोसा नहीं, कब करवट बदले.’’

उन का बेबाक उत्तर सुन कर मैं अचंभित रह गई और मेरा मन करुणा से भर आया, सच में जिस उम्र में वे विधवा हुई थीं उस उम्र में तो आजकल कोई विवाह के बारे में सोचता भी नहीं है. उन्होंने इतना समय अपनी इच्छाओं का दमन कर के कैसे काटा होगा, सोच कर ही मैं सिहर उठी थी.

‘‘हां भाभी, आजकल तो पति की मृत्यु के बाद भी उन के बाहरी आवरण में और क्रियाकलापों में विशेष परिवर्तन नहीं आता और पुनर्विवाह में भी कोई अड़चन नहीं डालता, पढ़ीलिखी होने के कारण आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के साथ जीती हैं, होना भी यही चाहिए, आखिर उन को किस गलती की सजा दी जाए.’’

‘‘बस, अब तो मैं थक गई हूं. मुझे अकेली देख कर लोग वासनाभरी नजरों से देखते हैं. कुछ अपने खास रिश्तेदारों के भी मैं ने असली चेहरे देख लिए तुम्हारे भाई के जाने के बाद. अब तो प्रतीक के विवाह के बाद मैं संसार से मुक्ति पाना चाहती हूं,’’ कहतेकहते भाभी की आंखों से आंसू बहने लगे. समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा न करने के लिए कह कर उन का दुख बढ़ाऊंगी या सांत्वना दूंगी, मैं शब्दहीन उन से लिपट गई और वे अपना दुख आंसुओं के सहारे हलका करती रहीं. ऐसा लग रहा था कि बरसों से रुके हुए आंसू मेरे कंधे का सहारा पा कर निर्बाध गति से बह रहे थे और मैं ने भी उन के आंसू बहने दिए.

अगले दिन ही मुझे लौटना था, भाभी से जल्दी ही मिलने का तथा अधिक दिन उन के साथ रहने का वादा कर के मैं भारी मन से ट्रेन में बैठ गई. वे प्रतीक के साथ मुझे छोड़ने के लिए स्टेशन आई थीं. ट्रेन के दरवाजे पर खड़े हो कर हाथ हिलाते हुए, उन के चेहरे की चमक देख कर मुझे सुकून मिला कि चलो, मैं ने उन से मिल कर उन के मन का बोझ तो हलका किया.

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 4

चाची को रोता देख पायल उन्हें चुप कराते हुए बोली, ‘‘चाची प्लीज, ऐसी बातें मत करो. मौत तो जब जिस की लिखी होगी, तभी होगी. किसी के चाहने से कुछ नहीं होता. वह तो हमारे समाज में ऐसा रूढि़वाद है कि हमेशा औरत को ही कुसूरवार सम?ा जाता है, पर यह सब हमें और आप को ही बदलना होगा.’’

चाची पायल की बातें ध्यान से सुने जा रही थीं. पायल ने चाची को हिम्मत बंधाते हुए आगे कहा, ‘‘चाची, आप लोगों के कहे की फिक्र मत करना. आप तो अपने बच्चों के साथ अच्छे से रहो.’’

पायल कुछ दिन गांव में रह कर फिर वापस शहर चली गई थी. जब वह कुछ महीने बाद लौटी तो गांव में फिर से इसी बात को ले कर काफी होहल्ला मचा हुआ था. उस की चाची ने अपनेआप को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. यही नहीं, 2 दिन से तो वे न किसी से बात कर रही थीं और न ही अपने कमरे से बाहर निकल रही थीं.

चाची की ऐसी हालत देख पायल की दादी भी काफी परेशान हो गई थीं. जब पायल को इस बात का पता चला तो वह चाची के कमरे की ओर भागी.

पायल ने चाची के कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर उस की चाची ने दरवाजा नहीं खोला. इस से घबरा कर पायल रोते हुए चाची से दरवाजा खोलने की गुहार लगाने लगी.

काफी देर बाद चाची कुछ पसीजीं और उन्होंने दरवाजा खोल दिया.

चाची के बाल बिखरे हुए और आंखें सूजी हुई थीं. देखने से ही लग रहा था कि वे कई दिनों से सोई नहीं थीं. उन का शरीर कमजोर पड़ गया था.

पायल को सामने देख चाची भी उस से लिपट कर बिलखबिलख कर रो पड़ीं.

पायल ने चाची के आंसू पोंछते हुए और प्यार जताते हुए पूछा, ‘‘चाची, आप ने यह क्या हाल बना रखा है. इस तरह कैसे काम चलेगा. आप मु?ो बताओ कि क्या बात है? आखिर अब फिर इतना बवाल क्यों हो रहा है? अब ऐसा क्या हो गया है?’’

पायल की बातों के जवाब में चाची अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘कुछ नहीं, वही किराएदार को ले कर फिर से…’’ और यह कहतेकहते वे दोबारा फफक पड़ीं.

वे तेजतेज हिचकियां लेते हुए आगे बोलीं, ‘‘मैं ने तो देखा नहीं कि उस ने क्या लिखा था उस चिट्ठी में… लेकिन सुना है कि मेरे बारे में ही कुछ लिखा था और वह चिट्ठी बगल वाली काकी के हाथ लग गई. उन्होंने तो पूरे गांव वालों को ही वह चिट्ठी दिखा दी और मु?ा पर कुलटा होने का ठप्पा भी लगा दिया.

‘‘मैं तो पहले से ही अधमरी थी, अब इन लोगों ने तो मु?ो पूरी तरह से मार डाला. मैं तो पराए मर्द के बारे में कभी सोच भी नहीं सकती.’’

इस पर पायल चाची के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘चाची, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था उस ने, जो इतना बड़ा बवाल खड़ा कर दिया?’’

चाची ने कुछ गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘उस ने लिख दिया कि वह मु?ो पसंद करता है और मु?ा से शादी करना चाहता है…’’ फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हीं बताओ पायल… यह आदमी सचमुच पागल हो गया है.

‘‘उस ने ऐसी चिट्ठी लिखने से पहले यह भी नहीं सोचा कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे. इस विधवा का तो जीना हराम कर दिया उस ने. मेरा तो जी करता है कि कहीं जा कर मर ही जाऊं.’’

चाची की बातें सुन कर पायल ने चाची के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ऐसा न कहो… चाची. आप को पता है न, खुदकुशी करना बहुत बड़ा अपराध है.’’

इस पर चाची बोलीं, ‘‘फिर क्या करूं पायल, तू ही बता? अब तू ही मु?ो सम?ा सकती है इस घर में.’’

पायल से बात कर के चाची के मन का बो?ा कुछ हलका हो गया और उन के सिर से तनाव के बादल छंट गए.

इस के बाद तो पायल के दिमाग में चाची द्वारा कही गई बात कि वह मु?ो पसंद करता है और मु?ा से शादी करना चाहता है, बैठ गई थी.

किराएदार द्वारा कही हुई वह बात पायल के दिमाग में काफी दिनों तक कौंधती रही थी. इस के बाद एक दिन पायल अपनी एक सहेली को ले कर सीधे उस किराएदार के घर जा पहुंची.

पायल उस किराएदार से बोली, ‘‘अंकलजी, मु?ो आप से कुछ बात करनी है. वैसे तो मु?ो इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए, पर मु?ो लगा कि आप की बात और कोई तो सम?ोगा भी नहीं, इसलिए कुछ पूछने चली आई हूं.’’

पायल की बातों के जवाब में वह किराएदार कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘बोलो बेटी, क्या पूछना है मु?ा से?’’

इस पर कुछ गंभीर होते हुए पायल ने कहा, ‘‘क्या यह सच है कि आप मेरी चाची को पसंद करते है? क्या आप उन से शादी करना चाहते हैं?’’

पायल की बातों से किराएदार की आंखों में चमक आ गई. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘हांहां, बेटी. मेरी अभी

तक शादी नहीं हुई है और मैं तुम्हारी चाची से शादी करना चाहता हूं. उन की बेरंग जिंदगी में मैं नए रंग भर देना चाहता हूं.’’

किराएदार की बातों से पायल की आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गई. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों के साथ घर आ कर चाची से बात की. उस ने उन से पूछा, ‘‘चाची, वह किराएदार सचमुच आप से शादी करना चाहता है. अब आप बताओ कि क्या चाहती हो?’’

पायल की बातें सुन कर चाची ने पायल को चुप कराते हुए कहा, ‘‘पायल, ऐसी बातें मत कर… देख… कोई सुन लेगा.’’

इस पर पायल ने चाची को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप किसी बात की फिक्र मत करो, मैं हूं न,’’ और फिर वह चाची के जवाब के इंतजार में उन्हें पकड़ कर ?ाक?ोरने लगी थी.

पायल की बातों से चाची ?ां?ालाते हुए बोलीं, ‘‘पायल, यह तू कैसी बातें कर रही है? बिना बात के तो बतंगड़ बन रहा है, तू ऐसी बातें करेगी तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

चाची की इस बात पर पायल ने उन्हें सम?ाते हुए कहा, ‘‘अब तो बात का बतंगड़ बन ही गया है तो आप उस किराएदार से शादी कर लो तो सब ठीक हो जाएगा. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.’’

इतने में ही पायल की दादी भी वहां आ पहुंचीं. उन्होंने उन की सारी बातें सुन ली थीं. वे आगबबूला होते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या कह रही है तू छोरी. तू कौन सी नई रीत निकाल रही है. विधवा की भी कोई शादी होती है.’’

इस पर पायल अपनी दादी से लाड़ में बोली थी, ‘‘क्यों नहीं दादी, जब एक मर्द की दूसरी शादी हो सकती है, तो औरत की क्यों नहीं?’’

पायल की सहेलियां भी उस की हां में हां मिलाने लगीं. अब तक उस के पापा ने भी ये सब बातें सुन ली थीं. उन्हें पायल की बात उचित लग रही थी. कुछ कोशिश के बाद उन्होंने अपनी मां को पायल की चाची की दूसरी शादी के लिए मना लिया. कुछ दिनों बाद चाची की शादी उस किराएदार से हो गई. पायल ने अपनी चाची की बेरंग जिंदगी में सतरंगी रंग भर दिए थे.

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 3

पायल की बातों पर चाची कुछ भावुक होते हुए बोलीं, ‘‘जब मैं बाहर छत पर खड़ी होती हूं तो वह किराएदार मेरा हालचाल पूछने लगता है, मैं भी उस को कुछ जवाब दे देती हूं. पर गांव के ये लोग भी पता नहीं क्यों मेरी हर बात का बतंगड़ बना देते हैं…’’

चाची एक लंबी सांस लेती हुई बोलीं, ‘‘अच्छा… पायल तू ही बता, इस में मेरी क्या गलती है?’’

चाचा को रोता देख पायल उन्हें चुप कराते हुए बोली, ‘‘चाची प्लीज, ऐसी बातें न करो. मौत तो जब जिस की लिखी होगी, तभी होगी. किसी के चाहने से कुछ नहीं होता. वह तो हमारे समाज में ऐसा रूढि़वाद है कि हमेशा औरत को ही कुसूरवार सम झा जाता है. पर यह सब हमें और आप को ही बदलना होगा.’’

चाची पायल की बातें ध्यान से सुने जा रही थीं. पायल ने चाची को ढांढस बंधाते हुए आगे कहा, ‘‘चाची, आप लोगों के कहे की फिक्र मत करना. आप तो अपने बच्चों के साथ अच्छे से रहो.’’

पायल कुछ दिनों गांव में रह कर फिर वापस शहर चली गई थी. जब वह कुछ महीने बाद लौटी तो गांव में फिर से इसी बात को ले कर काफी होहल्ला मचा हुआ था. उस की चाची ने अपनेआप को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. यही नहीं 2 दिन से तो वे न किसी से बात कर रही थीं और न ही अपने कमरे से बाहर निकल रही थीं.

चाची को ऐसी हालत देख कर पायल की दादी भी काफी परेशान हो गई थीं. जब पायल को इस बात का पता चला तो वह चाची के कमरे की ओर भागी. उस ने चाची के कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर उस की चाची ने दरवाजा नहीं खोला. इस से घबरा कर पायल रोते हुए चाची से दरवाजा खोलने की गुहार लगाने लगी.

काफी देर बाद चाची कुछ पसीजीं और उन्होंने दरवाजा खोल दिया. चाची के बाल बिखरे और आंखें सूजी हुई थीं. देखने से ही लग रहा था कि वे कई दिनों से सोई नहीं थीं. उन का शरीर कमजोर पड़ गया था.

पायल को सामने देख कर चाची भी उस से लिपट कर बिलखबिलख कर रो पड़ीं.

पायल ने चाची के आंसू पोंछते हुए और प्यार जताते हुए पूछा, ‘‘चाची, आप ने यह क्या हाल बना रखा है. इस तरह कैसे काम चलेगा. आप मु झे बताओ क्या बात है? आखिर अब फिर इतना बवाल क्यों हो रहा है? अब ऐसा क्या हो रहा है?’’

पायल की बातों के जवाब में चाची अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘कुछ नहीं, वही किराएदार को ले कर फिर से…’’ और यह कहतेकहते वे दोबारा फफक पड़ीं. वे तेजतेज हिचकियां लेते हुए आगे बोलीं, ‘‘मैं ने तो देखा नहीं कि उस ने क्या लिखा था उस चिट्ठी में… लेकिन सुना है कि मेरे बारे में ही कुछ लिखा था और वह चिट्ठी बगल वाली काकी के हाथ लग गई. उन्होंने तो पूरे गांव वालों को ही वह चिट्ठी दिखा दी और मु झ पर कुलटा होने का ठप्पा भी लगा दिया. मैं तो पहले से ही अधमरी थी अब इन लोगों ने तो मु झे पूरी तरह से मार डाला. मैं तो पराए मर्द के बारे में कभी सोच भ्ी नहीं सकती.’’

इस पर पायल चाची के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘चाची, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था उस ने, जो इतना बड़ा बवाल खड़ा कर दिया.’’

चाची ने कुछ गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘उस ने लिख दिया कि वह मु झे पसंद करता है और मु झ से शादी करना चाहता है…’’ फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हीं बताओ पायल… यह आदमी सचमुच पागल हो गया है. उस ने ऐसी चिट्ठी लिखने से पहले यह भी नहीं सोचा कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे. इस विधवा का तो जीना हराम कर दिया उस ने. मेरा तो जी करता है कि कहीं जा कर मर ही जाऊं.’’

चाची की बातें सुन कर पायल ने चाची के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ऐसा न कहो… चाची. पता है खुदकुशी करना बहुत बड़ा अपराध है.’’

इस पर चाची फफक कर रोते हुए बोलीं, ‘‘फिर क्या करूं पायल, तू ही बता? तू ही मु झे सम झ सकती है इस घर में.’’

पायल से बात कर के चाची के मन का बो झ कुछ हलका हो गया और उन के सिर से तनाव के बादल छंट गए.

इस के बाद तो पायल के दिमाग में चाची द्वारा कही गई बात कि वह मु झे पसंद करता है और मु झ से शादी करना चाहता है, बैठ गई थी. किराएदार द्वारा कही हुई वह बात पायल के दिमाग में काफी दिनों तक कौंधती रही थी. इसके बाद एक दिन पायल अपनी एक सहेली को ले कर सीधे उस किराएदार के घर जा पहुंची.

पायल उस किराएदार से हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘अंकलजी. आप से मु झे कुछ बात करनी है. वैसे तो मु झे इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए. पर मु झे लगा कि आप की बात और कोई तो सम झेगा भी नहीं, इसलिए कुछ पूछने चली आई हूं.’’

पायल की बातों के जवाब में किराएदार कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘बोलो बेटी, क्या पूछना है तुम्हें मु झ से?’’

इस पर कुछ गंभीर होते हुए पायल ने कहा, ‘‘क्या यह सच है कि आप मेरी चाची को पसंद करते है? क्या आप उन से शादी करना चाहते है?’’

पायल की बातों से किराएदार की आंखों में चमक आ गई, उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘हांहां, बेटी. मेरी अभी तक शादी नहीं हुई है और मैं तुम्हारी चाची से शादी करना चाहता हूं. उन की बेरंग जिंदगी में मैं नए रंग भर देना चाहता हूं.’’

किराएदार की बातों से पायल की आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गई. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों के साथ घर आ कर चाची से बात की. उस ने उन से पूछा, ‘‘चाची, वह किराएदार सचमुच आप से शादी करना चाहता है. अब आप बताओ आप क्या चाहती हो?’’

पायल की बातें सुन कर चाची ने पायल को चुप कराते हुए कहा, ‘‘पायल, ऐसी बातें मत कर… देख… कोई सुन लेगा.’’

इस पर पायल ने चाची को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप किसी बात की फिक्र मत करो, मैं हूं न,’’ और फिर वह चाची के जवाब के इंतजार में उन्हें पकड़ कर  झक झोरने लगी थी.

पायल की बातों से चाची  झुं झलाते हुए बोली, ‘‘पायल, यह तू कैसी बातें कर रही है? बिना बात के तो बतंगड़ बन रहा है, तू ऐसी बातें करेगी तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

चाची की इस बात पर पायल ने उन्हें सम झाते हुए कहा, ‘‘अब तो बात का बतंगड़ बन ही गया तो आप उस किराएदार से शादी कर लो. तो सब ठीक हो जाएगा. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.’’

इतने में ही पायल की दादी भी वहां आ पहुंची. उन्होंने उन की सारी बातें सुन ली थीं. वे आगबबूला होते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या कह तू छोरी. तू कौन सी नई रीत निकाल रही है. विधवा की भी कोई शादी होती है.’’

इस पर पायल अपनी दादी से लाड़ में बोली थी, ‘‘क्यों नहीं दादी. जब एक मर्द की दूसरी शादी हो सकती है, तो औरत की क्यों नहीं?’’

पायल की सहेलियां भी उस की हां में हां मिलाने लगीं. अब तक उस के पापा ने भी यह सब बातें सुन ली थीं. उन्हें पायल की बात उचित लग रही थी. कुछ कोशिश के बाद उन्होंने अपनी मां को पायल की चाची की दूसरी शादी के लिए मना लिया. कुछ दिनों के बाद चाची की शादी उस किराएदार से हो गई. पायल ने अपनी चाची की बेरंग जिंदगी में सतरंगी रंग भर दिए थे.

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 2

वहां मौजूद औरतें उस की चाची के भाग्य को कोसे जा रही थीं कि ये बेचारी कितनी अभागिन है. भरी जवानी में ही विधवा हो गई.

एक औरत चाची को उलाहना देते हुए बोली, ‘‘खा गई अपने पति को… यह चुड़ैल.’’

ये सब बातें सुन कर पायल बौखला गई. उसे इन औरतों पर बहुत गुस्सा आया था. उस ने आगे देखा न पीछे और इन औरतों पर  झुं झलाते हुए बरस पड़ी, ‘‘आप सब को इस तरह की बातें करते शर्म नहीं आती. एक तो मेरी चाची ने अपना पति खो दिया है, ऊपर से आप उन का दर्द बांटने के बजाय उन्हें पता नहीं क्याक्या बोले जा रही हैं.’’

‘‘हां… ठीक ही तो कह रही हैं वे,’’ उन में से एक औरत बोली.

पायल दोबारा उन पर बरसते हुए बोली, ‘‘हांहां, तो बताओ कि क्या मतलब है अपने पति को खा गई? मेरी चाची ने क्या मेरे चाचा का खून किया है, जो आप सब इस तरह की बातें कर रही हो? प्लीज, आप सब यहां से चली जाओ, वरना ठीक नहीं होगा.’’

पायल की इस बात पर एक औरत बोली, ‘‘चलो… चलो… यहां से सब… यह लड़की चार अक्षर क्या पढ़ गई, शहर की मैम बन गई है… अरे भाषण देना भी सीख गई है यह तो.’’

उस औरत की इस बात पर तो पायल का गुस्सा सातवें आसमान पर ही पहुंच गया. वह उन औरतों से बोली, ‘‘जब मेरी मां मरी थीं, तब आप सब ने ही तो कहा था न कि मेरी मां बड़ी सौभाग्यशाली हैं, फिर इस हिसाब से तो आज मेरे चाचा को भी सौभाग्यशाली होना चाहिए न?’’

पायल की इस बात पर उन में से एक औरत बोली, ‘‘अरे, जब औरत की अर्थी पति के कंधों पर जाती है, तो उसे बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है, जबकि किसी औरत का पति मर जाता है, तो वह औरत विधवा हो जाती है. यह सब तो सदियों से होता रहा है. हम सब कोई नई बात तो नहीं कह रही हैं.’’

इस पर पायल  झल्लाते हुए बोली, ‘‘पर काकी, जरूरी तो नहीं जो अब तक होता रहा है, वही सही हो और वही आगे भी होता रहे. आज जो मेरी चाची के साथ हुआ है, वह किसी के साथ भी हो सकता है…’’ और फिर वह सभी औरतों की ओर उंगली दिखाते हुए बोल पड़ी, ‘‘…आप के साथ… आप के साथ… और आप के साथ भी…’’ वह बोलती चली गई.

पायल का इतना कहना था कि उन औरतों के मुंह सिल गए और सब की गरदनें नीचे लटक गईं.

बहुत देर से उन सब की बातें सुन रही दादी अचानक चिल्लाते हुए वहां आईं और बोलीं, ‘‘पायल, तू ने यह क्या लगा रखा है. तेरे चाचा को ले जा रहे हैं. आखिरी बार उन के दर्शन कर ले.’’

दादी की बातें सुन कर पायल  झट से अपने चाचा की लाश के पास जा कर बैठ गई और वहां मौजूद अपनी चाची को चुप कराने लगी.

13 दिनों तक रस्मोरिवाज चलते रहे. उन्हीं में से एक रस्म ने पायल को अंदर तक  झक झोर दिया था. उस रस्म के दौरान एक दिन नाइन को बुलाया गया और फिर उस ने चाची का पूरा सोलह शृंगार किया. उस के बाद उन्हें नहलाधुला कर सफेद साड़ी में लपेट दिया गया और इस के बाद ही चाची की जिंदगी बेरंग कर दी गई.

पायल वापस होस्टल चली गई. कुछ महीने बाद जब पायल किसी काम से गांव आई तो उस के कानों में एक अजीब सी बात सुनाई दी. उस की दादी उस की चाची की तरफ इशारा करते हुए उन के बारे में बताते हुए बोलीं, ‘‘इस कलमुंही ने तो हमारी नाक ही कटा दी है.’’इस बात पर पायल कुछ मजाकिया अंदाज में बोली, ‘‘दादी, आप की नाक तो जैसी की तैसी लगी हुई है, पर आखिर हुआ क्या है? चाची से आप की इतनी नाराजगी क्यों है?’’

इस पर दादी गुस्सा होते हुए बोलीं, ‘‘इसी कलमुंही से पूछ ले… पूरा गांव हम पर थूथू कर रहा है.’’

दादी की बातें सुन कर चाची फूटफूट कर रो पड़ीं और अपने कमरे में चली गईं.

चाची के जाते ही पायल खीजते हुए बोली, ‘‘देखा दादी, आप ने चाची को रुला दिया न. आखिर हुआ क्या है… कुछ बताओगी भी या यों ही पहेलियां बु झाती रहोगी.’’

इस पर दादी ने पायल के कान में फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘अरे, बगल वाले ठाकुर साहब हैं न. उन के यहां कोई किराएदार आया है. उसी से नैनमटक्का करती रहती है यह कलमुंही आजकल.’’

दादी की बातों पर पायल कुछ  झुं झलाते हुए बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रही हो दादी. तुम तो जो भी मन में आया, बोलती रहती हो चाची के बारे में.’’

जवाब में दादी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘तेरी चाची रोज शाम को बाहर जा कर खड़ी हो जाती है. अरे विधवा है… विधवा की तरह रहे. इधरउधर देखने की क्या जरूरत है… किसी से बात करने की भी क्या जरूरत है. घर में दो रोटी चैन से खाए और पड़ी रहे एक कोने में.’’

दादी की बातें सुन कर पायल उन के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘दादी, यह आप क्या कह रही हो? यह बात आप अपनी बहू के लिए कह रही हो…’’

पायल के मन में अपनी मां के जाने बाद अपने पापा की जिंदगी की यादें घूमने लगीं. मां के जाने के बाद तो पापा की जिंदगी पर कोई फर्क नहीं पड़ा. उन का तो गांव में घूमनाफिरना, किसी से भी बातचीत करना, पहननाओढ़ना सबकुछ पहले जैसा ही रहा. उन की तो तुरंत ही दूसरी शादी भी हो गई. फिर वह मन ही मन बुदबुदाई, ‘अच्छा, वे मर्द जो ठहरे.’

उन यादों से बाहर आतेआते पायल का मन बहुत कसैला हो गया. उस की आंखों के कोरों से ढेर सारा पानी बह निकला. उस ने दादी से कहा, ‘‘दादी, आप को अपनी सोच बदलनी चाहिए. अब बहुत हो गया औरतमर्द में फर्क. चाची भी पापा की ही तरह इनसान हैं. उन्हें भी उतना ही जीने का हक है, जितना पापा को है. आप नहीं सम झती हो कि इस तरह की बातें कर के आप चाची के साथ नाइंसाफी कर रही हैं.’’

इस पर दादी  झुं झलाते हुए बोलीं, ‘‘ओए छोरी, तू पागल हो गई है क्या. औरत मर्द की बराबरी कभी नहीं कर सकती है. ये बड़ीबड़ी बातें किताबों में ही अच्छी लगती हैं.’’

पायल अपनी दादी के गालों को प्यार से पकड़ते हुए बोली, ‘‘दादी, आप चाहो तो सबकुछ बदल सकती हो. चाची को भी अपनी जिंदगी जी लेने दो. मत दो, उन्हें बिना अपराध की कोई सजा.’’

अब तक दादी थोड़ा नरम पड़ गईं. उन्हें पायल की बात कुछकुछ ठीक भी लगने लगी थी.

थोड़ी देर बाद पायल चाची के कमरे में जा कर उन के पास बैठ गई. चाची जमीन पर घुटनों के बीच सिर रख कर उदास बैठी थीं. पायल ने जब उन के कंधे पर हाथ रखा, तो वे चौंक गईं.

पायल ने हमदर्दी का मरहम लगाते हुए चाची से कहा, ‘‘चाची, इस तरह कब तक बैठी रहोगी.’’

फिर चाची का दिल बहलाने के मकसद से उस ने इधरउधर की बातें करनी शुरू कर दीं. इस के बाद पायल बात को आगे बढ़ाते हुए चाची से पूछ बैठी, ‘‘चाची, आखिर कौन किराएदार आया है ठाकुर चाचा के यहां? और गांव के लोग इतनी बातें क्यों बना रहे हैं?’’

फिर कुछ सोचते हुए पायल आगे बोली, ‘‘चाची, आप मु झे गलत मत सम झना, पर आप से इस बारे में जानना मेरी मजबूरी है.’’

गणतंत्र दिवस स्पेशल: एक 26 जनवरी ऐसी भी

हर रविवार की तरह आज भी मयंक देर तक सोता रहा. दोपहर के तकरीबन 12 बजे आंख खुली तो उस ने अपना मोबाइल फोन टटोलना शुरू किया. मोबाइल फोन का लौक ओपन कर के ह्वाट्सएप चैक किया. देखा कि आज कुछ ज्यादा ही लोगों ने स्टेट्स अपडेट कर रखा है.

देखने से पता चला कि आज 26 जनवरी है, जिस की वजह से सब ने देशभक्ति से जुड़े स्टेटस डाले. तब उसे याद आई कि आज तो उस की पत्नी स्नेहा ने सोसाइटी में एक रंगारंग कार्यक्रम भी रखा है.

हर रविवार को उठने से पहले ही बिस्तर पर चाय मिल जाया करती थी, आज स्नेहा लेट कैसे हो गई? कुछ देर इंतजार करने के बाद उस ने आवाज लगाई, ‘‘स्नेहा, मेरी चाय कहां है?’’

पर कोई जवाब न मिलने से मयंक खीज गया. बैडरूम से निकल कर बाहर जा कर देखा तो कोई था ही नहीं. न बच्चे और न ही स्नेहा. मयंक और ज्यादा गुस्सा होते हुए तेज कदमों से वापस कमरे में गया और फोन उठाया.

जैसे ही उस ने स्नेहा को फोन लगाया, उस की नजर स्टडी टेबल पर बहुत ही बेहतरीन तरीके से सजाए हुए एक लिफाफे पर पड़ी, जिस पर बहुत ही खूबसूरत तरीके से लिखा हुआ था, ‘एक त्योहार ऐसा भी’.

मयंक ने बिना समय गंवाए वह लिफाफा खोला और पढ़ना शुरू किया:

‘डियर हसबैंड,

‘आज मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. मैं यह घर छोड़ कर जा रही हूं. हमेशा के लिए नहीं, लेकिन 2 महीने के लिए जरूर. कल रात तुम ने मुझ पर हाथ उठाया था. मुझे उस का कोई गम नहीं है, क्योंकि यह कोई पहली दफा नहीं हुआ था जो तुम ने मुझ पर हाथ उठाया, पर कल रात तुम ने बिना मुझे समझे यह दर्द दिया.

‘आप यह भी मत सोचो कि मैं आप से नाराज हूं, इसलिए जा रही हूं. मैं आप से नाराज नहीं हूं. बस मैं जा रही हूं लौट आने के लिए, क्योंकि जब हम बीमार होते हैं तो न चाहते हुए भी कड़वी दवा लेते हैं, क्योंकि हम अच्छे से जानते हैं कि कड़वी दवा ही हमें ठीक कर सकती है. शायद कुछ दिन की ये दूरियां हमारी जिंदगी में हमेशा के लिए नजदीकियां ला दें.

‘कल से जब आप औफिस जाएंगे, तो शायद आप को आप का सामान देने वाला कोई नहीं होगा. बाथरूम में तौलिया भी खुद ले जाना पड़ेगा. शायद आप की जुराब भी जगह पर न मिले, गाड़ी की चाबी भी खुद ही ढूंढ़नी पड़े, शाम को घर आते ही आप की नाइट डै्रस भी जगह पर न हो कर बाथरूम में ही उलटी टंगी मिले. बैड पर एक भी सिलवट पसंद न करने वाले को वैसा ही बैड मिलेगा, जैसा कि वह छोड़ कर गया था.

‘एक आवाज पर चायपानी हाथ में न मिले, खाना खाते वक्त कोई नहीं होगा जो रिमोट ढूंढ़ कर आप को दे दे, रात को नींद खुलने पर प्यास लगने पर पानी का जग भरा हुआ न मिले, सुबह मोबाइल फोन भी डिस्चार्ज मिले, क्योंकि कोई नहीं होगा, जो तुम्हारा मोबाइल फोन चार्ज कर दे.

‘मैं आप को यह नहीं जता रही हूं कि आप मेरे बिना यह काम नहीं कर पाएंगे. बेशक, आप सब हैंडल कर लेंगे, बस यही कि यह सब करते वक्त आप को अहसास होगा कि कोई था जो मेरे बिना कहे सब समझाया करता था कि मुझे कब किस चीज की जरूरत है. क्या मुझे भी उसे पूरा नहीं तो थोड़ा तो समझने की जरूरत है.

‘पिछले 8 सालों से मैं हर रोज तुम्हें और अपने बच्चों को हर तरह की खुशियां देने में ही लगी हूं. मैं तुम से शिकायत नहीं कर रही हूं. बस एक गुजारिश है कि मैं तुम्हारे लिए ही आई हूं, तो क्या तुम मुझे थोड़ा भी नहीं सम झ सकते.

‘मांबाबा के गुजर जाने के बाद जब भैयाभाभी ने मेरी तुम से शादी की थी, तब से तुम ही मेरे लिए सबकुछ हो. तुम्हारे औफिस में बिजी रहने के चलते इस अनजान शहर मैं हर सामान लेने के लिए भटकती हूं.

‘‘मैं तुम्हें कोई दोष नहीं दे रही हूं, बस यही कहना चाहती हूं कि तुम मुझे समझ जाओ, क्योंकि तुम ही हो जो मुझे समझ सकते हो. मेरे लिए भी यहां से जाना इतना आसान नहीं था, पर मैं यहां से जा रही हूं. अपना खयाल रखना.

‘तुम्हारी संगिनी.’

यह चिट्ठी पढ़ने के बाद मयंक के चेहरे का तो जैसे रंग ही उड़ गया. उस ने फौरन मोबाइल पर स्नेहा का नंबर डायल किया और आवाज आई, ‘जिस नंबर से आप संपर्क करना चाहते हैं, वह या तो अभी बंद है या नैटवर्क क्षेत्र से बाहर है. लगातार डायल करने पर भी यही जवाब मिला.

अलमारी चैक की तो स्नेहा का पर्स भी नहीं था. स्कूटी भी घर में ही थी. घर से बाहर निकल कर पड़ोसी मिश्राजी से पूछा कि स्नेहा कुछ बोल कर गई है क्या?

मिश्राजी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं मयंक बेटा, कुछ बोल कर तो नहीं गई, पर जाते वक्त मैं ने उसे देखा था. दोनों बच्चों के साथ और एक बैग ले कर गई है.’’

मयंक के तो हाथपैरों ने जैसे जवाब ही दे दिया. उसे हर वह बात याद आ रही थी, जब उस ने स्नेहा पर अपना गुस्सा निकाला. उसे अपशब्द बोले.

बालों में हाथ फेरता हुआ मयंक वहीं बरामदे में बैठ गया. न जाने कौनकौन सी बातें उस के जेहन में आ रही थीं. वक्त का तो जैसे उसे पता ही नहीं चला. बेमन से उठ कर रूम में आया तो देखा कि गैलरी का गेट खुला होने के चलते रूम पर जैसे मच्छरों ने ही कब्जा कर लिया हो. मच्छर भागने की मशीन चालू करने गया तो देखा रिफिल खत्म हो चुकी है और कमरे में तो मच्छरों की पार्टी शुरू हो गई थी.

बहुत ढूंढ़ने के बाद फास्ट कार्ड मिला, उसे जलाया और लेट गया. पर फास्ट कार्ड की बदबू उसे और भी गुस्सा दिला रही थी. कुछ अजीब सा मुंह बनाने के बाद उसे अहसास हुआ कि कुछ अच्छी महक आ रही है. उस ने तेज कदमों के साथ नीचे जा कर देखा तो स्नेहा किचन में काम कर रही थी. उसे कुछ भी समझ नहीं आया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि खुश होवे या गुस्सा करे.

मयंक ने स्नेहा का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘तुम तो चली गई थी न, फिर वापस क्यों आई?’’

स्नेहा बोली, ‘‘कहां चली गई थी? मुझे कुछ सम झ नहीं आ रहा है. क्या बोल रहे हो? कहां चली गई थी?’’

मयंक चिढ़ते हुए बोला, ‘‘अच्छा तो दिनभर से कहां थी? बैग ले कर गई थी न, और वह चिट्ठी जो मेरे लिए छोड़ कर गई थी.’’

स्नेहा फिर बोली, ‘‘मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है कि तुम क्या बोल रहे हो और कौन सी चिट्ठी की बात कर रहे हो?’’

मयंक और गुस्से में आ कर बोला, ‘‘स्नेहा, अब मुझे गुस्सा मत दिलाओ. सचसच बताओ.’’

स्नेहा थोड़ा सा चिढ़ते हुए बोली, ‘‘क्या बताऊं?’’

मयंक ने बिना देर लगाए जेब से चिट्ठी निकाल कर स्नेहा को पकड़ाई और कहा, ‘‘यह चिट्ठी.’’

चिट्ठी हाथ में लेते ही स्नेहा की तो मानो हंसी ही नहीं रुक रही थी. मयंक आंखें फाड़फाड़ कर देख रहा था. कुछ देर तक स्नेहा को हंसते हुए देखकर मयंक ने कहा, ‘‘स्नेहा, जवाब दो मुझे.’’

स्नेहा कुछ मजाकिया अंदाज में बोली, ‘‘मैनेजर साहब, यह चिट्ठी आप के लिए नहीं है. यह तो आज 26 जनवरी पर हमारी महिला मंडली ने सुबह झंडा फहराने और उस के बाद उसे सैलिब्रेट करने और उस में मेहंदी या बैस्ट डै्रस प्रतियोगिता की जगह एक कहानी प्रतियोगिता रखी है, जिस में सब को एक कहानी लिखनी है.

‘‘जो चिट्ठी तुम ने पकड़ रखी है, वह मेरी लिखी हुई कहानी है. सुबह से सब 26 जनवरी को सैलिब्रेट करने की तैयारी के लिए इकट्ठा हुए थे, तो मैं वहां गई थी. और वैसे भी आज छुट्टी थी, तो बच्चे ख्वाहमख्वाह तुम्हें परेशान करते, तो मैं इन्हें भी अपने साथ ले गई.

‘‘पास में ही जाना था तो स्कूटी भी नहीं ले गई. अब प्रतियोगिता टाइम हुआ है तो तैयार होने और यह लिफाफा लेने आई हूं.

‘‘वैसे, तुम्हें क्या हो गया है? ऐसे क्यों बरताव कर रहे हो? चाय नहीं मिली इसलिए क्या? तुम सोए थे तो मैं ने तुम्हें जगाया नहीं… सौरी.’’

कुछ सोचने के बाद मयंक बोला, ‘‘तुम्हारा फोन क्यों स्विच औफ आ रहा था?’’

स्नेहा खीजते हुए बोली, ‘‘यह है न तुम्हारी औलाद, गेम खेलखेल कर बैटरी ही खत्म कर देती है.’’

मयंक मुसकराते हुए बोला, ‘‘ओके, कोई बात नहीं. तुम तैयार हो जाओ, मैं तुम्हें छोड़ आऊंगा और बच्चों को भी मैं संभाल लूंगा. वैसे भी आज तो तुम्हें थोड़ा ज्यादा ही सजना होगा.’’

स्नेहा तैयार हो कर जब सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी, तो मयंक ने कुछ आशिकाना अंदाज में कहा, ‘‘नजर न लग जाए मेरी जान को. बहुत खूबसूरत लग रही हो.’’

स्नेहा हलकी सी मुसकराहट के साथ बोली, ‘‘वैसे, मैं ने कुछ कहा ही नहीं, उस से पहले ही बोल दिए जनाब.’’

पूरे रास्ते मयंक मंदमंद मुसकराता रहा. स्नेहा के पूछने पर भी कुछ नहीं बोला.

जैसे ही स्नेहा कार्यक्रम वाली जगह पर पहुंची, तो मयंक ने पीछे से आवाज लगाई और उस का हाथ पकड़ कर माथे को चूम कर कहा, ‘‘आज तुम यह प्रतियोगिता जीतो या न जीतो, पर आज तुम ने मुझे जरूर जीत लिया है. तुम ने अपने नाम की तरह मुझे बहुत स्नेह दिया है. मैं भी आज तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें कभी कोई दुख नहीं दूंगा. हमेशा तुम्हें खुश रखूंगा.’’

स्नेहा की आंखों से आंसू आ रहे थे. वह कुछ भी बोल नहीं पाई. बस उस का मन यही कह रहा था. एक 26 जनवरी ऐसी थी, जिस ने मुझे समझने वाला मेरा हमसफर लौटा दिया.

26 जनवरी स्पेशल : जाएं तो जाएं कहां – चार कैदियों का दर्द

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