बिसात शतरंज की : कैसा था राठी का बेटा

राठीजी को अपने होनहार बेटे आरव पर बड़ा नाज था और होता भी क्यों नहीं, पूरे महल्ले में अकेला आरव ही तो था, जो राष्ट्रीय शतरंज टूर्नामैंट जीत कर आया था और अब शहर की शतरंज एकेडमी में आगे की प्रतियोगिताओं के लिए तैयारी कर रहा था.

तकरीबन 6 फुट लंबा आरव बहुत हंसमुख था और सब से अच्छे से मिलता था. हर कोई उस के अच्छे बरताव का कायल हो जाता था. उसे अपनी कामयाबी पर बिलकुल भी घमंड नहीं था.

22 साल के आरव के घर में उस के मांबाप और एक बहन रूही रहते थे. राठीजी के इस परिवार में उस दिन खलबली मच गई, जब एक दिन दोपहर को 25 साल के आसपास की उम्र की एक लड़की ने उन के घर का दरवाजा खटखटाया.

मिसेज राठी ने दरवाजा खोला, तो सामने देखा कि एक लड़की आंसुओं में डूबी हुई खड़ी थी.

एक अनजान लड़की को सामने देख कर मिसेज राठी के चेहरे पर सवालिया निशान का भाव आ गया, जिसे पढ़ कर वह लड़की खुद ही बोलने लगी, ‘‘आंटीजी, मेरा नाम रीमा है. आप मु?ो नहीं जानतीं, पर मैं आप को जानती हूं.’’

मिसेज राठी ने रीमा को अंदर बुला कर बिठाया और पूछा कि वह किस से मिलने और किस काम से आई है?

यह बात सुन कर रीमा तेज आवाज में रोने लगी और आरव का नाम लेते हुए इलजाम लगा दिया कि आरव ने उस का रेप किया है.

‘‘क्या बकवास कर रही हो तुम? होश में तो हो न तुम, अभी दफा हो जाओ यहां से,’’ मिसेज राठी ने चिल्लाते हुए कहा.

मिसेज राठी की तेज आवाज सुन कर मिस्टर राठी और रूही भी वहां आ गए और सम?ाने में लग गए कि आखिर माजरा क्या है. रीमा अब भी रोए जा रही थी.

इतने में आरव भी वहां आ गया और रीमा को देख कर वह भी बुरी तरह से चौंक गया.

आरव को इस तरह से डरा हुआ देख कर उस के पापा ने रीमा से पूछा, ‘‘तुम जोकुछ भी कह रही हो, उस का कोई सुबूत है तुम्हारे पास?’’

इस बात को सुनते ही रीमा ने अपने बैग में से कुछ तसवीरें निकाल कर मिस्टर राठी की तरफ बढ़ा दीं, जिन में आरव और रीमा बेहद करीब दिखाई दे रहे थे. उन तसवीरों को देख कर साफ लग रहा था कि आरव ने रीमा का रेप किया है.

‘‘यह सब क्या है आरव?’’ पापा ने पूछा, तो आरव की जबान से एक शब्द न निकला और वह वहीं जड़ बन कर खड़ा हो गया.

पूरा परिवार खड़ा हुआ तमाशा देख रहा था. मिस्टर राठी ने पूछा कि आखिर यह सब हुआ कैसे, तो रीमा ने सुबकते हुए बताया, ‘‘मैं भी शतरंज की खिलाड़ी हूं और शतरंज में ही अपना कैरियर बनाना चाहती हूं. मैं ने आरव को शतरंज एकेडमी में देखा था और इसीलिए इस से कुछ टिप्स लिया करती थी.

‘‘मैं कभीकभार फोन कर के भी मदद लिया करती थी, आप चाहें तो आरव के मोबाइल में मेरे नंबर से आई हुईं काल्स चैक कर सकते हैं,’’ रीमा बहुत यकीन से सब बातें कह रही थी.

मिस्टर राठी को अपने होनहार बेटे से इस तरह की उम्मीद नहीं थी.

‘‘और वैसे भी मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है. अब मेरे सामने दो ही रास्ते हैं, या तो मैं खुदकुशी कर लूं या फिर पुलिस में जा कर आरव के खिलाफ रेप का केस दर्ज करा दूं,’’ रीमा की आवाज में छिपी हुई धमकी थी, जिसे सुन कर राठी परिवार बदनामी के डर से घबरा गया.

‘‘नहींनहीं, पुलिस में मत जाओ. पुलिस हमारे घर पूछताछ करने आएगी, मीडिया का जमावड़ा होगा, हमारी तो बहुत बदनामी हो जाएगी,’’ आरव के पापा ने कहा.

‘‘तो आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?’’ रीमा ने पूछा.

अपने बेटे को पुलिस से बचाने के लिए मिस्टर राठी ने दिमाग लगाया कि पुलिस के पास जाने से रोकने के लिए एक रास्ता है कि इस लड़की को यहीं घर में ही रोक लिया जाए.

चूंकि यह लड़की अनाथ है, इसलिए इसे कोई पूछने वाला तो होगा नहीं और कल को किसी बहाने से

इस का बच्चा गिरवा देंगे और इस को बहलाफुसला कर आरव के खिलाफ सुबूत गायब करा देंगे, तो सारा ?ां?ाट ही खत्म हो जाएगा.

‘‘आरव से गलती हो गई बेटी. वैसे, तुम चाहो तो यहीं हमारे घर में ही रुक जाओ,’’ मिस्टर राठी की इस बात पर भला रीमा को क्या एतराज होता, वह अपना सामान ला कर राठी परिवार में रहने लगी.

कुछ दिनों तक तो रीमा सहमीसहमी सी रही, पर कुछ दिनों के बाद एक रात को वह आरव के कमरे में सोने के लिए पहुंच गई.

आरव ने विरोध भी किया, तो रीमा ने जवाब दिया, ‘‘यह सब तब क्यों नहीं सोचा था, जब तुम मेरा रेप कर रहे थे. किसी भी तरह से तुम ने मेरे शरीर को छुआ है, तो तुम मेरे पति ही हुए, इसलिए मैं आज से तुम्हारे कमरे में ही सोऊंगी.’’

अगली सुबह आरव की उदासी देख कर मां ने वजह पूछी, तो आरव ने रात की बात बता दी. इस बात को जान कर मां गुस्से में आ गईं और आरव के कमरे में जा कर रीमा को डांटने लगीं, तो बदले में रीमा ने मां के पैर छू लिए. उस के इस बरताव से मां थोड़ा सकपका गईं.

‘‘चौंकिए मत मांजी, अब से मैं ही आप की बहू हूं, यह मान लीजिए, क्योंकि मैं मां बनने वाली हूं,’’ रीमा ने डाक्टर की रिपोर्ट मां की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

रीमा पेट से थी और इस के बच्चे का बाप कोई और नहीं, बल्कि राठी परिवार का होनहार बेटा आरव था. मिसेज राठी का मन घबराने लगा था.

शाम को जब आरव के पापा घर आए, तो रीमा ने किसी आदर्श बहू की तरह उन के भी पैर छुए और एक प्लेट में रख कर उन की तरफ मिठाई बढ़ा दी. उन के पूछने से पहले ही उन्हें बता दिया कि वे दादा बनने वाले हैं.

‘‘अब आप लोगों को मु?ो अपनी बहू मानना ही पड़ेगा,’’ रीमा ने कहा.

मिस्टर राठी रीमा का यह अजीब बरताव और राठी परिवार की बहू कहलाने की जिद को सम?ा नहीं पा रहे थे, पर अगले दिन ही उन्हें ये बातें सम?ा में आने लगीं, जब रीमा ने उन से 10,000 रुपए मांगे.

‘‘तुम्हे भला इतने सारे पैसों की क्या जरूरत?’’

‘‘कमाल करते हैं… मैं बहू हूं इस घर की, मु?ो भी अपना कमरा सजाना है,’’ रीमा ने इठलाते हुए कहा.

राठी परिवार भले ही रीमा के ब्लैकमेल करने के चलते डरा हुआ जरूर था, पर इतना सम?ा गया था कि दाल में कुछ काला जरूर है.

आरव कई दिन से सदमे की हालत में था और अपने परिवार को कुछ बता नहीं पा रहा था, इसलिए आरव के पापा ने कुछ सोच कर कहा, ‘‘और अगर मैं पैसे देने से मना कर दूं तो?’’

रीमा ने तुरंत ही उन तसवीरों की तरफ इशारा किया. उन तसवीरों और पुलिस का जिक्र आते ही मिस्टर राठी घबरा गए और उन्होंने पैसे दे दिए, पर 2 दिन बाद जब फिर से रीमा ने 5,000 रुपए की डिमांड की, तो उन्होंने पैसा देने से साफ मना कर दिया.

रीमा अपने असली रंग में आ गई और मिस्टर राठी को धमकी देते हुए बोली, ‘‘अगर आप पैसे नहीं दोगे तो मैं पैसों का अपनेआप ही इंतजाम कर लूंगी,’’ और इतना कहते ही उस ने अपने मोबाइल फोन से घर की कीमती चीजों की तसवीरें लेनी शुरू कर दीं और उन्हें औनलाइन बिक्री के लिए इंटरनैट की साइट्स पर अपलोड करने लगी.

रीमा की यह हरकत देख कर मिस्टर और मिसेज राठी घबरा गए और तुरंत ही उन लोगों ने रीमा से अपलोड की गई तसवीरों को डिलीट करने को कहा और उस के सामने हार मान ली. वे उसे पैसे देने को राजी हो गए.

रीमा इतने पर ही नहीं रुकी, बल्कि अब तो रोज रात को वह आरव को अपने कमरे में जबरदस्ती ले जाती और उस से अपने शरीर की मालिश करवाती और अपने नाजुक अंगों को सहलाने और मसलने के लिए कहती. अगर आरव उसे जिस्मानी सुख देने में आनाकानी करता, तो रीमा उसे धमकी देते हुए अपनी बात मनवा लेती.

आरव अपनेआप को बुरी तरह से फंसा हुआ महसूस कर रहा था. एक तरफ तो उस का खेल से ध्यान हट चुका था और वह आने वाली चैंपियनशिप की तैयारी नहीं कर पा रहा था, तो वहीं दूसरी तरफ अपने ही परिवार के सामने उस की किरकिरी और बेइज्जती हो रही थी.

एक दिन की बात है. रीमा बाहर वाले पार्क में हवाखोरी करने के लिए गई हुई थी कि तभी आरव अपने पापा के पास आया और उन के गले से लिपट कर बोला, ‘‘मु?ो बचा लो पापा. मैं ने कुछ नहीं किया है. यह लड़की मु?ो बेवजह बदनाम कर रही है. अगर ऐसा ही चलता रहा, तो मैं खुदकुशी कर लूंगा.’’

आरव की बात उस के पापा ने बड़े ध्यान से सुनी, फिर बोले, ‘‘पर बेटा, वे तसवीरें तो कुछ और ही बयान कर रही हैं.’’

‘‘पापा, रीमा की नजर बचा कर रूही रीमा की प्रेग्नैंसी की रिपोर्ट ले कर उसी क्लिनिक में गई थी, जहां का नाम उस रिपोर्ट पर लिखा हुआ था. रिपोर्ट देखने के बाद डाक्टर ने रूही को बताया कि यह रिपोर्ट नकली है.’’

रिपोर्ट नकली है, इस बात ने आरव को थोड़ी हिम्मत दी और वह ठंडे दिमाग से गुजरे हुए समय की कडि़यां जोड़ने में लग गया. वह तकरीबन 3 महीने पहले की एक बात को याद करने लगा. उस के फोन पर अकसर एक नंबर से किसी लड़की का फोन आता था. वह लड़की शतरंज के बारे में जिज्ञासा दिखाती थी और खेल के टिप्स पूछा करती थी.

एक खिलाड़ी होने के नाते आरव उसे शतरंज की बारीकियां बताता रहता था और एक दिन जब उस लड़की ने आरव से मिलने की इच्छा जाहिर की, तो आरव को इस में कोई बुराई नजर नहीं आई और वह शतरंज एकेडमी के बाहर उस लड़की से मिलने चला गया.

वह लड़की और कोई नहीं, बल्कि रीमा ही थी. दोनों ने जूस कौर्नर पर खड़े हो कर जूस पिया, फिर आरव से विदा ले कर रीमा अपनी स्कूटी की तरफ चल पड़ी, पर अचानक वह चक्कर खा कर गिर गई. उसे गिरा देख कर आरव उसे पास के एक अस्पताल में ले गया और उस के बाद रीमा ने उसे घर तक छोड़ कर आने को कहा.

रीमा को उस के घर पहुंचाने के बाद जब आरव वापस जाने के लिए मुड़ा, तब रीमा ने उसे चाय पी कर जाने को कहा.

आरव चाय पीते ही बेहोश हो गया और फिर शायद यही वह समय रहा होगा, जब रीमा ने उस के शरीर के साथ मनचाही हालत में तसवीरें अपने मोबाइल फोन से खींच ली होंगी और उस के कुछ दिन बाद ही रीमा बनेबनाए प्लान के साथ राठी परिवार को ब्लैकमेल कर रही थी.

‘‘पर बेटे, यह सब तुम पहले भी तो बता सकते थे.’’

‘‘हां पापा, बता तो सकता था, पर मैं खुद वे तसवीरें देख कर सदमे जैसी हालत में था, पर जब रूही ने रिपोर्ट के नकली होने का पता लगा लिया, तब मेरे अंदर हिम्मत आ गई और मैं सारी बातें आप से कह पा रहा हूं.’’

सारी बातें सुनने के बाद आरव के पिता ने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, पहली चोट तो रीमा ने की है, पर आखिरी चोट हम करेंगे,’’ इस के बाद पूरा राठी परिवार योजना बनाने में लग गया.

उस दिन जब रीमा घर लौटी तो पूरा राठी परिवार उस से सामान्य बरताव करता नजर आया, जिसे देख कर रीमा सम?ा गई कि ये सारे लोग उस की गीदड़भभकी में आ गए हैं और अब उसे उस की मनमरजी चलाने से कोई नहीं रोक सकता.

रात में रीमा औंधी हो कर बिस्तर पर लेट गई और आरव का इंतजार करने लगी कि वह आए और उस के जिस्म की मालिश करे.

थोड़ी देर में आरव अपने हाथ में एक महंगी वाली शराब की पूरी बोतल ले कर आया और रीमा के सामने रख कर उस के बदन को दबाने लगा.

रीमा की नजर शराब पर पड़ी, तो उस के मुंह में पानी आ गया और उस ने आरव से 2-4 पैग उसे भी पिलाने को कहा.

आरव को तो मानो इसी बात का इंतजार था. उस ने एक के बाद एक कई पैग रीमा को पिलाए और जब रीमा भरपूर नशे में हो गई, तो आरव ने उस की नंगी पीठ पर मसाज देना शुरू किया और पूछा, ‘‘अच्छा, यह तो बताओ कि जब मैं ने तुम्हारे शरीर को हाथ तक नहीं लगाया, तब तुम पेट से कैसे हो गई और वे तसवीरें तुम्हारे पास कहां से आ गईं?’’

रीमा पर नशा हावी हो रहा था. वह एक के बाद एक कई राज बताती चली गई कि वह छोटे कसबे से शहर में  मौडल बनने आई थी.

?1-2 छोटीमोटी कंपनियों के लिए काम करने का मौका मिला और वह मौडल बन भी गई, पर मौडलिंग में बढ़ते कंपीटिशन में वह टिक नहीं पाई और उस का रोजीरोटी कमाना मुश्किल हो रहा था, इसलिए उस ने भोलेभाले लड़कों को इसी तरह अपने जाल में फंसा कर, उन के घर में घुस कर तसवीरें और नकली प्रेग्नैंसी रिपोर्ट दिखा कर ब्लैकमेल करना शुरू किया.

अपनी इज्जत बचाने के लिए कोई भी परिवार पुलिस में नहीं जाता था और रीमा की कमाई बदस्तूर चलती रहती थी.

रीमा तो नींद के आगोश में चली गई, पर आरव को तो खुशी के मारे नींद ही नहीं आई, क्योंकि उस ने रीमा को अपने जुर्मों को खुद अपनी जबान से बताते हुए आरव ने उस की वीडियो अपने मोबाइल फोन में रिकौर्ड कर ली थी और अब वह इसे ले कर पुलिस में जाने वाला था.

सुबह जब रीमा जागी, तो रोज की तरह उस ने बिस्तर पर ही चाय मांगी.

‘‘अब तुम जेल में ही जा कर चाय पीना,’’ आरव ने इतना कह कर रात वाली वीडियो चला दी, जिसे देख कर रीमा के होश उड़ गए. वह माफी मांगने लगी, पर तब तक बहुत देर हो चुकी

थी. मिस्टर राठी पुलिस के साथ आ चुके थे और पुलिस ने सब की बात सुनने और सम?ाने के बाद रीमा को गिरफ्तार कर लिया.

राठी परिवार ने रीमा की चाल के खिलाफ अगर आवाज नहीं उठाई होती, तो न जाने कब तक वे रीमा को ढोते रहते और उस की नाजायज मांगें भी मानते रहते.

आरव अब नौर्मल हो चुका था और उस ने अपना पूरा ध्यान शतरंज चैंपियनशिप पर लगा रखा था. वह मन ही मन ठान चुका था कि शतरंज खेलेगा जरूर, पर आगे से किसी धोखेबाज की शतरंज की बिसात में नहीं फंसेगा.

News Kahani: सैक्स स्कैंडल और साजिश

उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के एक गांव रत्न खेड़ा में चौधरी सुमेर सिंह का दबदबा था. वे गांव के मुखिया थे और उन की अंटी भी मजबूत थी. घर क्या पूरी कोठी थी और नौकरचाकर भी हमेशा काम पर लगे रहते थे.

चौधरी सुमेर सिंह का एकलौता बेटा था सुमित, जो अपने घर के पीछे बने एक बड़े से कमरे में एनजीओ चलाता था, जहां गरीब दलित घरों की जवान लड़कियों को सिलाईकढ़ाई सिखाई जाती थी. पर यह सब काम लोगों को भरमाने के लिए किया जाता था. सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक एनजीओ का काम होता था, पर उस के बाद वही कमरा सैक्स का दंगल बन जाता था.

दरअसल, सुमित अपनी कुछ खास गरीब लड़कियों और चमचों के साथ मिल कर पोर्न फिल्में बनाता था और अपने परमानैंट ग्राहकों को भेजता था. वे ग्राहक देशी अनब्याही लड़कियों के पोर्न वीडियो देखने के शौकीन थे और सुमित को पैसा भी देते थे. फिर वे उन वीडियो को चाहे देश में बेचें या विदेश में, सुमित को इस बात से कोई मतलब नहीं था.

सुमित के पिता चौधरी सुमेर सिंह को इस धंधे की खबर थी या नहीं, यह वही बता सकते थे, पर यह जरूर था कि सुमित अपने पिताजी की बहुत इज्जत करता था. वह अपनी मां का लाड़ला था और दिखने में बड़ा हैंडसम था.

सुमित की टीम में 2 लड़कियां खास थीं, माला और सुनहरी. 21 साल की माला गोरी थी और उस के नैननैक्श भी अच्छे थे. 24 साल की सुनहरी के आने से पहले वही सुमित की चहेती थी, पर जब से सुनहरी आई थी, तब से माला के भाव कम हो गए थे.

माला माल थी, तो सुनहरी कमाल थी. वह भले ही गरीब घर की दलित लड़की थी और उस का रंग भी दबा हुआ था, पर देह की खरा सोना थी. बड़े उभार, लंबे बाल और मदमस्त चाल सुनहरी को गजब का रूप देते थे.

सुमित को भी सुनहरी बड़ी पसंद थी और वह उसे माला से भी ज्यादा पैसे देता था. यह बात माला को खाए जा रही थी. उसे सुनहरी से जलन होने लगी थी.

एक दिन माला ने सुमित से पूछा, ‘‘आप सुनहरी को इतना सिर पर क्यों चढ़ा रहे हो? आप और मैं ऊंची जाति के हैं और वह दलित घर की गरीब लड़की, फिर वह सब से ज्यादा पैसे क्यों लेती है? मुझ में क्या कोई कमी है?’’

‘‘तुम में कोई कमी नहीं है, पर वह बिस्तर पर एकदम खुल जाती है. उस का सैक्स वाला वीडियो एकदम असली लगता है और तुम बर्फ सी ठंडी पड़ी रहती हो. शूट करने में मजा ही नहीं आता है. और फिर उस के वीडियो की आज मार्केट में डिमांड है,’’ सुमित ने हकीकत बता दी.

माला को यह बात खल गई. उस ने सुनहरी को सबक सिखाने की सोच ली. उधर, जब से सुनहरी इस धंधे में आई थी, तब से उस की जिंदगी बदल गई थी. घर वाले खुश थे और अब भूखों मरने की नौबत नहीं आती थी.

सुनहरी की मां को वैसे तो घर आता पैसा बुरा नहीं लगता था, पर बेटी के लक्षण देख कर वे थोड़ा चिंतित थीं. एक दिन उन्होंने सुनहरी को टोक दिया, ‘‘बेटी, जब से तू एनजीओ में जाने लगी है, तब से हमें दो वक्त की रोटी तो वक्त पर मिल रही है, पर तू कोई गलत काम तो नहीं कर रही है न?’’

‘‘अरे मां, गलतसही के चक्कर में मत पड़ो और जिंदगी का मजा लो. आज से 6 महीने पहले कोई इस घर में    झांकता तक नहीं था और आज मेरे लिए रिश्ते आ रहे हैं. मां, यह सब पैसे की ही माया है और फिलहाल इस माया का मजा उठाओ,’’ सुनहरी ने इतना कहा और एनजीओ के लिए निकल गई.

एनजीओ में अभी सुमित नहीं आया था. माया को मौका मिल गया और उस ने सुनहरी को छेड़ते हुए कहा, ‘‘ऐसी क्या घुट्टी पिला दी, जो सुमित सर तेरे ही सुर में सुर मिला रहे हैं? यह चार दिन की चांदनी है मेरी जान, फिर कब उन की नजर से उतरेगी, तुझे पता भी नहीं चलेगा.’’

‘‘तू अपनी देख. मु   झे क्या करना है, मैं जानती हूं. बड़ी आई सलाह देने वाली,’’ सुनहरी भी मुंहफट थी, तो एकदम से बोल पड़ी.

यह सुन कर माला सुलग गई. हद तो तब हो गई, जब सुमित ने पीछे से आ कर यह बात सुन ली और माला को ही डांट दिया.

सब के सामने अपनी इज्जत उतरते देख कर माला को बड़ा गुस्सा आया और उस ने बदला लेने की ठान ली. वह जानती थी कि सुमित सारे वीडियो एक पैन ड्राइव में संभाल कर रखता है,

तो उस ने मौका ताड़ कर एक दिन वह पैन ड्राइव चुरा ली और चौधरी सुमेर सिंह के जानी दुश्मन जगत सेठ के यहां जा पहुंची.

जगत सेठ को सुमेर सिंह का दबदबा रास नहीं आता था. दरअसल, वह गांव का मुखिया बनना चाहता था, पर गांव वाले सुमेर सिंह पर आंख मूंद कर भरोसा करते थे. वह हमेशा इस फिराक में रहता था कि किसी तरह सुमेर सिंह को नीचा दिखा दे, पर उसे मौका नहीं मिल रहा था.

आज माला को अपने पास देख कर जगत सेठ पहले तो हैरान हुआ, फिर अपनी खीज मिटाते हुए बोला, ‘‘तुम इस समय यहां क्या कर रही हो? मैं ने तुम्हें मना किया है न कि ऐसे ही मेरे पास मत आया करो.’’

माला बड़ी बेचैन थी. वह सुनहरी की उस दिन की बात पर आज भी सूखी लकड़ी की तरह सुलग रही थी, ‘‘कल की आई यह कल्लो, मु   झे भाषण दे रही है. इस की औकात क्या है मेरे आगे. सुमित ने पता नहीं क्यों इस के इतने ज्यादा रेट बढ़ा रखे हैं. न शक्ल और न सूरत, बस इसे इज्जत की जरूरत.’’

‘‘मैं सम   झा नहीं कि तुम क्या कह रही हो. तुम तो सुमित की मुंहलगी हो, फिर आज मेरे दरवाजे पर कैसे आई?’’ जगत सेठ ने माला से पूछा.

‘‘देखो जगत सेठ, सारा गांव जानता है कि आप का और चौधरी सुमेर सिंह का छत्तीस का आंकड़ा है. आप को वह फूटी आंख नहीं सुहाता है. आप का बस चले तो आज ही उस के घर के दरवाजे पर कुर्की का परचा चिपकवा दो,’’ माला ने कहा.

‘‘तो तू क्या आज उस की कुर्की कराने यहां आई है?’’ जगत सेठ ने    झल्लाते हुए माला से पूछा.

‘‘उस से बड़ा कांड है जगत सेठजी, बस आप की मदद चाहिए. फिर देखना कि मैं कैसे इस सुनहरी का सारा सुनहरापन मिट्टी में मिलाती हूं,’’ माला जैसे बदले की आग में सुलग रही थी.

‘‘पहेलियां मत बु   झाओ. कोई अंदर की खबर है तो दो, वरना अपना रास्ता नापो. मेरे पास फालतू समय नहीं है तेरी राम कहानी सुनने का,’’ जगत सेठ ने दोटूक कहा.

माला ने समय न गंवाते हुए वह पैन ड्राइव जगत सेठ के हाथ में थमा दी, जिस में बेहूदा वीडियो की भरमार थी. माला इतनी शातिर थी कि उस ने अपने वीडियो पहले ही अलग कर दिए थे. इस पैन ड्राइव में दूसरी लड़कियों के वीडियो थे, जिन्हें सुमित और उस के चमचे शूट किया करते थे.

सारे वीडियो देख कर जगत सेठ की आंखों में चमक आ गई, ‘‘अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे…’’ वह बुदबुदाया और फिर माला से बोला, ‘‘वाह, मेरी जानेमन, आज तो तू ने मेरा दिल ही जीत लिया. अब मैं चौधरी सुमेर सिंह को कैसे कंगाल और अपनी माला को मालामाल बनाता हूं, बस तू देखती रहना.’’

माला उछल कर जगत सेठ से लिपट गई और उसे चूम लिया. जगत सेठ ने वह पैन ड्राइव अपनी इलैक्ट्रोनिक तिजोरी में रखी और माला को बैडरूम में ले गया.

अगले दिन जगत सेठ अपने खास दोस्त इंस्पैक्टर ताराचंद के साथ थाने में चाय पी रहा था. ताराचंद वह पैन ड्राइव देख चुका था. उस ने जगत सेठ से पूछा, ‘‘अब आगे क्या करना है? सुबूत तो एकदम पक्का है. सुमित एनजीओ की आड़ में लड़कियों के गंदे वीडियो बनाने का धंधा कर रहा है. उस के बाप को इस गोरखधंधे की भनक तो होगी, पर आंख बंद किए बैठा होगा.’’

‘‘ताराचंद, मुझे उन दोनों के चेहरे झुके देखने हैं तेरे थाने में. बड़ी अकड़ दिखाते हैं अपने चौधरी होने की. उन की सारी हेकड़ी न निकाल दी, तो मेरा नाम भी जगत सेठ नहीं.’’

उसी शाम को चौधरी सुमेर सिंह के घर पर पुलिस की रेड पड़ गई. सुमित को अंदाजा नहीं था कि माला उसे जहरीली नागिन की तरह डस लेगी. कोठी के उस खास कमरे का सारा सामान जब्त कर लिया, जहां पर सारे वीडियो शूट हुए थे.

सुनहरी और बाकी लड़कियों को उस कमरे से धर दबोचा था. सुमित का बाकी स्टाफ भी पुलिस के हत्थे चढ़ चुका था. चौधरी सुमेर सिंह उस समय कोठी में नहीं थे. उन्हें तो इस सारे कांड की भनक तक नहीं थी.

थोड़ी देर में सब थाने में थे. सुनहरी सम   झ चुकी थी कि माला ने ही यह मुखबिरी की है और हो न हो, इस में जगत सेठ का भी हाथ है. वे दोनों कई दिनों से एकसाथ देखे गए थे. पर माला यह कह कर टाल जाती थी कि जगत सेठ उसे अपनी रातें रंगीन करने के लिए बुलाता है और इनाम भी खूब देता है.

पुलिस इंस्पैक्टर ताराचंद ने सुमित को हड़काते हुए कहा, ‘‘यह क्या रायता फैला रखा है तुम ने… एनजीओ की आड़ में पोर्न वीडियो बनाए जा रहे हैं. अपने बाप की इज्जत का तो लिहाज कर लिया होता.’’

सुमित जानता था कि ताराचंद एक नंबर का घूसखोर है, पर फिलहाल उस के हाथ में सुमित की दुखती रग थी, तो उस ने कहा, ‘‘अरे थानेदार साहब, आप भी पता नहीं किस पैन ड्राइव की बात कर रहे हैं. वैसे भी हमारे यहां काम करने वाली सब लड़कियां बालिग हैं और अपनी मरजी से लोगों के मनोरंजन के लिए ऐसी फिल्में बनाती हैं.

‘‘पूछ लो किसी से भी कि हम ने किसी के साथ कोई जोरजबरदस्ती की हो. सब को अपनी मेहनत का पैसा एडवांस में मिल जाता है और किसी को इस काम से कोई शिकायत नहीं है.’’

‘‘हां भई, तुम तो पुण्यात्मा हो और समाज की भलाई का काम कर रहे हो. ये तुम्हारी साथी सब दूध की धुली हैं और देश की तरक्की के लिए नए रोजगार पैदा कर रही हैं. पैन ड्राइव में जो सैक्स का नंगा नाच दिख रहा है, वह तो आजकल बहुत मामूली बात है न,’’ इंस्पैक्टर ताराचंद ने सुमित पर ताना कसा.

‘‘साहब, आप चाहते क्या हो, यह बताओ? मु   झे पता है कि यह सब माला की करतूत है. लड़ाई मेरे और उस के बीच की थी, फिर वह हम सब के पेट पर क्यों लात मारना चाहती है…’’ सुमित कुछ बोलता, उस से पहले ही सुनहरी ने अपनी बात रख दी.

‘‘आप की तारीफ?’’ इंस्पैक्टर ताराचंद ने सुनहरी को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए देखा. सुनहरी का रंग जरूर काला था, पर उस के जिस्म में अजीब सी कसावट थी.

‘‘जी, मेरा नाम सुनहरी है और मैं दलित समाज की लड़की हूं. सुमित साहब ने हम से कभी कोई जबरदस्ती नहीं की है, बल्कि ये तो हमारे घरपरिवार का पेट पाल रहे हैं.’’

‘‘मतलब, जो तुम लोग कर रहे हो, वह कानूनन गलत नहीं है?’’ इंस्पैक्टर ताराचंद ने पूछा.

‘‘कानून का तो आप जानो, पर हम ने कुछ गलत नहीं किया है. यह तो हर जगह हो रहा है. न जाने कितने वीडियो बनाने वाले रोज पकड़े जाते हैं. हाल ही में कर्नाटक में एक तथाकथित बड़ा स्कैंडल सामने आया है, जिस में एचडी देवेगौड़ा के बेटे एचडी रेवन्ना और पोते प्रज्वल रेवन्ना का नाम शामिल है.’’

इंस्पैक्टर ताराचंद ने आंखें तरेरते हुए सुनहरी से पूछा, ‘‘तुझे पूरा मामला पता भी है?’’

सुनहरी बोली, ‘‘साहब, बेशक मैं इस धंधे में देह खपा रही हूं, पर दीनदुनिया में कौन सी खबर गरम तवे पर तेल सी उछल रही है, इस की पूरी तह में जाती हूं. 10वीं जमात पास हूं, इस का मतलब यह नहीं है कि मु   झ में पढ़ने की ललक नहीं है.’’

इंस्पैक्टर ताराचंद ने उबासी लेते हुए कहा, ‘‘ज्यादा ज्ञान मत बांच, खबर क्या जानती है यह बता…’’

सुनहरी ने बताया, ‘‘खबर में छपा था कि कार्तिक गौड़ा नाम का एक आदमी रेवन्ना परिवार का पुराना ड्राइवर हुआ करता था. उस ने तकरीबन 15 साल तक रेवन्ना परिवार की गाडि़यां चलाई थीं, पर फिर न जाने क्यों धीरेधीरे रेवन्ना परिवार से उस के रिश्ते खराब होने लगे.

‘‘इस के बाद कार्तिक ने नौकरी छोड़ दी. उस की मानें तो रेवन्ना परिवार ने उस की जमीन पर कब्जा कर लिया था और इस बात की खिलाफत करने पर प्रज्वल ने उस के और उस की पत्नी के साथ मारपीट भी की थी. वह अपने साथ हुई इस ज्यादती के खिलाफ इंसाफ चाहता था.

‘‘चूंकि कार्तिक को रेवन्ना परिवार की काली करतूतों की खबर थी, उस ने अलगअलग लड़कियों के साथ रेवन्ना के बेहूदा वीडियो से भरा एक पैन ड्राइव हासिल कर लिया. इस पैन ड्राइव के साथ उस ने भारतीय जनता पार्टी के एक नेता देवराज गौड़ा से मुलाकात की.

‘‘उधर, प्रज्वल ने 1 जून, 2023 को इसे ले कर अदालत में दस्तक दी थी और कहा था कि वीडियो के सहारे उस की इमेज खराब की जा रही है.’’

‘‘पर, प्रज्वल रेवन्ना को किसी का गंदा वीडियो बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ी?’’ इंस्पैक्टर ताराचंद अब इस मामले की परतें प्याज की तरह खोलना चाहता था.

सुनहरी ने थूक गटका और बोली, ‘‘दरअसल, यह मामला तब शुरू हुआ था, जब रेवन्ना परिवार में रसोइए के तौर पर काम कर चुकी एक औरत ने एफआईआर दर्ज करवाई है, जो एचडी रेवन्ना की पत्नी भवानी की रिश्तेदार बताई जाती है.

‘‘उस औरत ने अपनी शिकायत में बताया है कि जब उस ने रेवन्ना परिवार में रसोइए के तौर पर काम करने की शुरुआत की, उस के 4 महीने बाद उस का जिस्मानी शोषण शुरू हो गया था.

‘‘प्रज्वल रेवन्ना उस औरत की बेटी को फोन कर के उस के साथ गंदी बातें किया करता था. पीडि़ता ने बताया है कि साल 2019 में जब रेवन्ना परिवार के बेटे सूरज की शादी थी, तब उसे काम के लिए बुलाया गया था, लेकिन इस के बाद से जबजब मौका मिलता, रेवन्ना उसे अपने कमरे में अकेले बुलाया करते थे.

‘‘उस परिवार में 6 औरतें और काम करती थीं. सभी की सभी डरी होती थीं खासकर प्रज्वल रेवन्ना के घर आने पर औरतें सहम जाती थीं. यहां तक कि घर में काम करने वाले कुछ मर्द नौकरों ने भी उन्हें सावधान रहने को कहा था. इस तरह सभी डरेसहमे अपनी बारी का इंतजार किया करते थे.

‘‘पीडि़ता ने यह भी आरोप लगाया है कि जब रेवन्ना की पत्नी घर पर नहीं होती थीं, तो वे उसे स्टोररूम में बुला कर फल देने के बहाने उस के साथ गलत हरकत करता था. उस का यौन शोषण करता था.

‘‘कई बार उस के किचन में काम करने के दौरान रेवन्ना ने उस के साथ ज्यादती की थी, जबकि प्रज्वल उस की बेटी को वीडियो काल कर उस से गंदी बातें करता था, जिस के बाद उस की बेटी ने उस का नंबर ब्लौक कर दिया था.’’

‘‘हो सकता है, उस औरत ने आपसी रजामंदी से यह सब किया हो और बाद में रेवन्ना परिवार से फायदा उठाने के लिए यह नाटक रचा हो?’’ इंस्पैक्टर ताराचंद को अब सुनहरी से अपने इस सवाल का जवाब चाहिए था.

‘‘देखो साहब, मुझे यह तो नहीं पता कि कौन सच्चा है और कौन    झूठा, पर इतना तो सम   झ में आता ही है कि दाल में कुछ तो काला है. इस मामले में आईपीसी की धारा 354 (ए) यानी यौन शोषण, 354 (डी) यानी पीछा करना, 506 यानी जान से मारने की धमकी देना और 509 यानी बातें या इशारों से महिला की गरिमा का अपमान करना जैसी धाराएं शामिल हैं.

‘‘पुलिस सूत्रों की मानें, तो रेवन्ना की शिकार लड़कियों और औरतों में ज्यादातर वे ही शामिल हैं, जो किसी राजनीतिक सपने को पूरा करने या फिर अपने किसी काम को ले कर उन से मिलने आया करती थीं.’’

‘‘कानून का बड़ा ज्ञान है तुझे तो. धाराएं रटी हुई हैं. इन का मतलब भी समझती है?’’ इंस्पैक्टर ताराचंद ने सुनहरी की जानकारी से कुढ़ कर कहा.

ताराचंद ऊंची जाति का था और जातिवाद उस की रगरग में भरा था. वह यह बात कैसे सहन कर लेता कि एक दलित लड़की थाने में खड़ी हो कर धड़ल्ले से अपनी बात रख दे.

‘‘साहब, आप ने पूछा तो बता दिया. वैसे भी हम लोगों के पढ़नेलिखने की कद्र ही कहां है. हमारे समाज में तो औरत को घर की जूती समझा जाता है. ऐसी जूती जिसे किसी भी समाज का कोई भी ऐरागैरा पहनना अपना जन्मजात हक सम   झता है.

‘‘आज हम जितनी भी लड़कियां पकड़ी गई हैं न, उन में से ज्यादातर वंचित समाज की हैं और उन की इज्जत तो कम उम्र में ही लुट जाती है. मुझे तो कई साल पहले ही एक दबंग की बिगड़ैल औलाद ने खेत में धर लिया था. मना किया तो लातघूंसों से मेरी खातिरदारी की थी, रेप किया सो अलग.’’

‘‘पर, अब तो तू अपनी मरजी से वीडियो बनवा रही थी न?’’

‘‘बिलकुल बनवा रही थी और मु   झे इस का कोई अफसोस भी नहीं है. पैसा इनसान की हर कमजोरी को ताकत में बदल देता है. चौधरी साहब के बेटे ने भले ही हमारी वीडियो बनवाई हैं, पर हमें इस का कोई मलाल नहीं है. पैसा भी तो दिया है. और फिर आज की तारीख में कोई भी हमें पैसे से कमजोर नहीं कह सकता है. घर में सुखसुविधा का सारा सामान है. छोटी बहन पढ़ रही है. मांबाप को दो वक्त की रोटी मिल रही है.

‘‘साहब, इस देश में जो औरतों और लड़कियों की तरक्की का ढोल पीटा जा रहा है न, उस की पोल तो वाराणसी का रैडलाइट एरिया मंडुआडीह ही खोल देता है. देश का सब से ताकतवर नेता वहां से लोकसभा का इलैक्शन लड़ता है, पर क्या यह सामाजिक कोढ़ खत्म हो पाया? नहीं न. और होगा भी नहीं.

‘‘प्रज्वल मामले में भी शायद लीपापोती कर दी जाए, तो क्यों न हमें भी शांति से जीने दिया जाए. सब खाकमा रहे हैं, तो किसी के बाप का क्या जाता है.’’

सुनहरी के मुंह से इतना सुन कर इंस्पैक्टर ताराचंद ने चौधरी सुमेर सिंह के बेटे सुमित की ओर देखा और बोला, ‘‘लड़की की बात में दम है. आज मामला थाने में और फिर कल कोर्ट में जाएगा, तो बदनामी तो इस गांव की ही होगी न. किसी को कुछ नहीं मिलेगा.

‘‘ऐसा करो कि इस मामले को यहीं रफादफा करने के 2 लाख रुपए दे दो. तुम लोग कुछ दिन शांत रहना और फिर दोबारा जुट जाना वीडियो बनाने के धंधे में.

‘‘पर, एक बात का खयाल रखना कि दोबारा अपनी निजी लड़ाई को इस तरह थाने में मत घसीटना, वरना मैं लिहाज नहीं करूंगा. बाकी हमें भी कभीकभार अपनी जवानी का रस चखा देना,’’ सुनहरी को ताड़ते हुए इंस्पैक्टर ताराचंद ने अपनी बात खत्म की.

सुनहरी ने एक आंख दबाते हुए कहा, ‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है. आप हमारा खयाल रखें और हम आप का. आप की सेवा करने में तो अलग ही मजा है. जब भी फोन कर देंगे, आप की सेवा में हाजिर हो जाऊंगी.’’

सुमित ने थोड़ी देर में ही इंस्पैक्टर ताराचंद को 2 लाख रुपए पकड़ा दिए और अपनी लड़कियों और दूसरे स्टाफ को ले कर वहां से चला गया. अब उन्हें बेखौफ हो कर वीडियो जो बनाने थे.

मौत को बांध रखा था : क्यों खुश था सौरभ

करनाल में नामी फर्नीचर शोरूम, “लाल फर्नीचर” जिसकी करनाल, कुरूक्षेत्र, लाडवा, समालखा में कई ब्रांच थी.

शोरूम के मालिक शाह जी के नाम से जाने जाते, शाह जी का एक छोटा भाई अतुल इंग्लैंड रहता था.

यहां इंडिया में शाह जी का पत्नी और एक बेटी के अलावा और कोई रिश्तेदार नहीं था.

शाह जी बहुत बार छोटे भाई अतुल को इंडिया आने को कहते मगर अतुल एक ही जवाब देता,” भाई यहां इन्सान की कद्र उसके हुनर से है, उसकी पहचान उसकी काबलियत से है, इंडिया में इन्सान को केवल प्रापर्टी, धन-दौलत, जायदाद से ही अच्छा और बड़ा समझा जाता है, उसके हुनर की कोई कद्र नहीं, फिर ऐसे में कैसा भविष्य होगा इन्सान का? ”

और शाह जी चुप हो जाते, ऐसा नहीं वो ये बातें मानते थे, मगर वो बहस ना करना चाहते, वो समझते थे कि इन्सान की कीमत उसके गुणों से है.

शाह जी की बेटी निहारिका, शाह जी की ही तरह, किसी से कोई फालतू बात ना करनी, बस केवल अपने काम से काम रखना.

निहारिका ने जब कालिज में एडमिशन लिया, उसी की क्लास में सौरभ नाम का एक लड़का सुन्दर, सजीला जवान, जब वो निहारिका को देखता है तो देखता ही रह जाता है, बेशक निहारिका साधारण सी, ना कोई मेकअप, ना कोई स्टाइलिश कपड़े.

फिर भी ना जाने उसमें क्या कशिश थी, वो निहारिका की तरफ खिंचने लगा, उसने कई बार कोशिश की, कि निहारिका से बात करे, और भी बहुत से लड़के निहारिका से बात करने की कोशिश करते, यहां तक कि कोई -कोई तो धमकी भी देता कि उससे बात करें, वरना वो उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं.

कालिज ऐसा स्थान होता है जहां जोड़ियां बनते देर नहीं लगती. लेकिन निहारिका किसी को भी बात करने का अवसर तक ना देती. बस सुबह एक गाड़ी आती जिसमें एक अधेड़ उम्र का शख्स दिखने में ड्राइवर जैसा वो गाड़ी उसे छोड़ कर जाती और क्लास खत्म होते ही गाड़ी आ जाती और निहारिका चुपचाप उस गाड़ी में बैठ कर चली जाती.

ग्रेजुएशन के बाद सौरभ ने इंटिरियर डिजाइनर का कोर्स चुना जब सेंटर में गया तो देखा इत्तेफ़ाकन निहारिका भी इंटिरियर डिजाइनर का कोर्स करने आई है.

दोनों में हाए हैलो होती है, लेकिन इतना समय साथ रहने के बावजूद भी निहारिका ने किसी को भी अभी तक अपना फोन नंबर नही दिया था, किसी से अगर बात करनी हो तो केवल इंटरनेट से ही करती थी मैसेज द्वारा. इंटिरियर डिजाइनर का कोर्स दो साल का था, सौरभ को खुशी हुई कि इस बहाने दो साल निहारिका के साथ और रहने का मौका मिला.

इधर शाह जी की तबीयत कुछ खराब रहने लगी थी, कितनी बार पत्नी और बेटी ने डाक्टर को दिखाने को कहा, लेकिन शाह जी टालते रहे, उन्हें लगा शायद काम की अधिकता से थकावट हो जाती है.

लेकिन एक दिन निहारिका, ” पापा आज मैं क्लास नहीं जा रही, आप  जल्दी से तैयार हो जाएं, हम डाक्टर के पास चल रहे हैं”

शाह जी,” अच्छा बाबा मैं आज, अभी डाक्टर के पास जाऊंगा मगर तुम अपनी क्लास मिस मत करो”

निहारिका पापा से प्रोमिस लेकर क्लास चली गई और शाह जी चले बेटी से किया वादा निभाने डाक्टर के पास.

डाक्टर चैकअप करने के बाद कुछ टैस्ट करवाते हैं और रिपोर्ट आने पर शाह जी को पता चलता है कि उन्हें गुर्दे का कैंसर है, जो काफी ज्यादा फैल चुका है. शाह जी दवाई लेकर आते हैं, मगर यह बात किसी को नहीं बताते, बस इतना कहते हैं कि हल्का सा किडनी इनफैक्शन है जो डायलिसिस के बाद ठीक हो जाएगा. लेकिन अब उन्हें निहारिका की चिंता सताती है, निहारिका का इंटिरियर का दूसरा साल चल रहा है, शाह जी उसे साथ-साथ एडवांस कम्प्यूटर कोर्स भी  करवाते हैं और उसकी सरकारी नौकरी की कोशिश करते हैं लेकिन यहां किस्मत साथ नहीं देती.

कहीं अगर शादी की बात करते हैं तो इकलौती बेटी होने की वजह से सबका ध्यान उनकी प्रोपर्टी की ओर जाता है. अक्सर यही सुनने में मिलता है कि निहारिका बहुत साधारण सी है लेकिन चलो प्रोपर्टी तो अच्छी खासी है इसलिए अच्छी जगह रिश्ता हो सकता है, अर्थात जो भी देखता प्रोपर्टी ही देखता.

इन‌सब बातों से शाह जी का मन खिन्न हो गया उन्होंने इंग्लैंड में अपने भाई से बात की तो उन्होंने कहा कि आइलेट का कोर्स करवा दें निहारिका को और यहां इंग्लैंड भेज दें वहां इन्सान की दौलत की नहीं,  इन्सान की कद्र है, उसके हुनर की कद्र है.

शाह जी निहारिका को आइलट्स का कोर्स करवा देते हैं, जिसमें निहारिका अच्छा रैंक लाती है.

शाह जी के पास समय बहुत कम रह गया है लेकिन किसी को भी इस बात की भनक नहीं. एक महीने बाद ही निहारिका को इंग्लैंड जाना है.

निहारिका पापा से बार-बार किडनी चेंज कराने को कहती हैं, लेकिन शाह जी नहीं मानते, क्योंकि वो जानते हैं ये कैंसर है किडनी चेंज भी होगा तो भी कैंसर फिर से होगा, इसलिए कहते हैं,” बस थोड़ी सी डायलिसिस और उसके बाद हमेशा के लिए छुट्टी, बिल्कुल ठीक”

धीरे-धीरे निहारिका के जाने का दिन नज़दीक आ रहा है, निहारिका पैकिंग करते हुए, ईश्वर से प्रार्थना भी कर रही है कि पापा को जल्द ठीक कर दें, और बार-बार पापा को भी देखती है. उसके पापा खुश हैं कि उनकी बेटी दहेज के कलंक से बच गई. यहां तो बेटियों को दहेज के खर्चे की लिस्ट और लड़कों को घर बैठे कमाई का जरिया माना जाता है.

आज निहारिका की फ्लाइट है और शाह जी की डायलिसिस की टर्न भी.

निहारिका, ” पापा आप जाईए अस्पताल, मैं एअरपोर्ट खुद चली जाऊंगी”

” ठीक है बेटा जाओ, खुश रहो”

निहारिका को आशीर्वाद देते हुए शाह जी अस्पताल के लिए चल दिए, लेकिन ना जाने क्यों निहारिका का मन बैचैन था, उसे ऐसा लगा जैसे वो पापा को आखिरी बार मिल रही है, शायद फिर कभी मेल ना हो.

सौरभ को रात को बुखार था  इसलिए रात भर अच्छे से नींद नहीं आई, सुबह जब कुछ बुखार कम हुआ तो नींद की झपकी आ गई, लेकिन अचानक मोबाइल की घररर-घरररर से नींद खुली तो देखा मैसेंजर काॅल था.

जैसे ही फोन उठाया हैलो बोलने से पहले ही उधर से आवाज़ आई,” पापा चले गए छोड़कर हमेशा के लिए”

सौरभ कुछ ना बोल सका, केवल सोचता रहा उस शख्स के बारे में जिसने अपनी बेटी को एक अच्छा भविष्य देने के लिए अपनी मौत को बांध कर रख लिया था. अपनी बेटी का सुनहरा भविष्य बनाकर अब वो फ्री हो गया, मुक्त हो गया हर चिंता से.

पासा पलट गया : कैसाथा विक्रम

आभा गोरे रंग की एक खूबसूरत लड़की थी. उस का कद लंबा, बदन सुडौल और आंखें बड़ीबड़ी व कजरारी थीं.

उस की आंखों में कुछ ऐसा जादू था कि उसे जो देखता उस की ओर खिंचा चला जाता. विक्रम भी पहली ही नजर में उस की ओर खिंच गया था.

उन दिनों विक्रम अपने मामा के घर आया हुआ था. उस के मामा का घर पटना से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर एक गांव में था.

विक्रम तेजतर्रार लड़का था. वह बातें भी बहुत अच्छी करता था. खूबसूरत लड़कियों को पहले तो वह अपने प्रेमजाल में फंसाता था, फिर उन्हें नौकरी दिलाने का लालच दे कर हुस्न और जवानी के रसिया लोगों के सामने पेश कर पैसे कमाता था. इसी प्लान के तहत उस ने आभा से मेलजोल बढ़ाया था.

उस दिन जब आभा विक्रम से मिली तो बेहद उदास थी. विक्रम कई पलों तक उस के उदास चेहरे को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘क्या बात है आभा, आज बड़ी उदास लग रही हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘विक्रम, मैं अब आगे पढ़ नहीं पाऊंगी और अगर पढ़ नहीं पाई तो अपना सपना पूरा नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘कैसा सपना?’’

‘‘पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होने का सपना ताकि अपने मांबाप को गरीबी से छुटकारा दिला सकूं.’’

‘‘बस, इतनी सी बात है.’’

‘‘तुम बस इसे इतनी सी ही बात समझाते हो?’’

‘‘और नहीं तो क्या…’’ विक्रम बोला, ‘‘तुम पढ़लिख कर नौकरी ही तो करना चाहती हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘वह तो तुम अब भी कर सकती हो.’’

‘‘लेकिन, भला कम पढ़ीलिखी लड़की को नौकरी कौन देगा? मैं सिर्फ इंटर पास हूं,’’ आभा बोली.

‘‘मैं कई सालों से पटना की एक कंपनी में काम करता हूं, इस नाते मैनेजर से मेरी अच्छी जानपहचान है. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे बारे में उस से बात कर सकता हूं.’’

‘‘तो फिर करो न…?’’ आभा बोली, ‘‘अगर तुम्हारे चलते मुझे नौकरी मिल गई तो मैं हमेशा तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी.’’

आभा विक्रम के साथ पटना आ गई थी. एक होटल के कमरे में विक्रम ने एक आदमी से मिलवाया. वह तकरीबन 45 साल का था.

जब विक्रम ने उस से आभा का परिचय कराया तो वह कई पलों तक उसे घूरता रहा, फिर अपने पलंग के सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

आभा ने एक नजर कुरसी के पास खड़े विक्रम को देखा, फिर कुरसी पर बैठ गई.

उस के बैठते ही विक्रम उस आदमी से बोला, ‘‘सर, आप आभा से जो कुछ पूछना चाहते हैं, पूछिए. मैं थोड़ी देर में आता हूं,’’ कहने के बाद विक्रम आभा को बोलने का कोई मौका दिए बिना जल्दी से कमरे से निकल गया.

उसे इस तरह कमरे से जाते देख आभा पलभर को बौखलाई, फिर अपनेआप को संभालते हुए तथाकथित मैनेजर को देखा.

उसे अपनी ओर निहारता देख वह बोला, ‘‘तुम मुझे अपने सर्टिफिकेट दिखाओ.’’

आभा ने उसे अपने सर्टिफिकेट दिखाए. वह कुछ देर तक उन्हें देखने का दिखावा करता रहा, फिर बोला, ‘‘तुम्हारी पढ़ाईलिखाई तो बहुत कम है. इतनी कम क्वालिफिकेशन पर आजकल नौकरी मिलना मुश्किल है.’’

‘‘पर, विक्रम ने तो कहा था कि इस क्वालिफिकेशन पर मुझे यहां नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘ठीक है, मैं विक्रम के कहने पर तुम्हें अपनी फर्म में नौकरी दे तो दूंगा, पर बदले में तुम मुझे क्या दोगी?’’ कहते हुए उस ने अपनी नजरें आभा के खूबसूरत चेहरे पर टिका दीं.

‘‘मैं भला आप को क्या दे सकती हूं?’’ आभा उस की आंखों के भावों से घबराते हुए बोली.

‘‘दे सकती हो, अगर चाहो तो…’’

‘‘क्या…?’’

‘‘अपनी यह खूबसूरत जवानी.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हैं आप?’’ आभा झटके से अपनी कुरसी से उठते हुए बोली, ‘‘मैं यहां नौकरी करने आई हूं, अपनी जवानी का सौदा करने नहीं.’’

‘‘नौकरी तो तुम्हें मिलेगी, पर बदले में मुझे तुम्हारा यह खूबसूरत जिस्म चाहिए,’’ कहता हुआ वह आदमी पलंग से उतर कर आभा के करीब आ गया. वह पलभर तक भूखी नजरों से उसे घूरता रहा, फिर उस के कंधे पर हाथ रख दिया.

उस आदमी की इस हरकत से आभा पलभर को बौखलाई, फिर उस के जिस्म में गुस्से और बेइज्जती की लहर दौड़ गई. वह बोली, ‘‘मुझे नौकरी चाहिए, पर अपने जिस्म की कीमत पर नहीं,’’ कहते हुए आभा दरवाजे की ओर लपकी.

पर दरवाजे पर पहुंच कर उसे झटका लगा. दरवाजा बाहर से बंद था. आभा दरवाजा खोलने की कोशिश करती रही, फिर पलट कर देखा.

‘‘अब यह दरवाजा तभी खुलेगा जब मैं चाहूंगा,’’ वह आदमी अपने होंठों पर एक कुटिल मुसकान बिखेरता हुआ बोला, ‘‘और मैं तब तक ऐसा नहीं चाहूंगा जब तक तुम मुझे खुश नहीं कर दोगी.’’

उस आदमी का यह इरादा देख कर आभा मन ही मन कांप उठी. वह डरी हुई आवाज में बोली, ‘‘देखो, तुम जैसा समझाते हो, मैं वैसी लड़की नहीं हूं. मैं गरीब जरूर हूं, पर अपनी इज्जत का सौदा नहीं कर सकती. प्लीज, दरवाजा खोलो और मुझे जाने दो.’’

‘‘हाथ आए शिकार को मैं यों ही कैसे जाने दूं…’’ बुरी नजरों से आभा के उभारों को घूरता हुआ वह बोला, ‘‘तुम्हारी जवानी ने मेरे बदन में आग लगा दी है और मैं जब तक तुम्हारे तन से लिपट कर यह आग नहीं बुझा लेता, तुम्हें जाने नहीं दे सकता,’’ कहते हुए वह झपट कर आगे बढ़ा, फिर आभा को अपनी बांहों में दबोच लिया.

अगले ही पल वह आभा को बुरी तरह चूमसहला रहा था. साथ ही, वह उस के कपड़े भी नोच रहा था. ऐसे में जब आभा का अधनंगा बदन उस के सामने आया तो वह बावला हो उठा. उस ने आभा को गोद में उठा कर पलंग पर डाला, फिर उस पर सवार हो गया.

आभा रोतीछटपटाती रही, पर उस ने उसे तभी छोड़ा जब अपनी मनमानी कर ली. ऐसा होते ही वह हांफता हुआ आभा पर से उतर गया.

आभा कई पलों तक उसे नफरत से घूरती रही, ‘‘तू ने मुझे बरबाद कर डाला. पर याद रख, मैं इस की सजा दिला कर रहूंगी. तेरी काली करतूतों का भंडाफोड़ पुलिस के सामने करूंगी.’’

‘‘तू मुझे सजा दिलाएगी, पर मैं तुझे इस लायक छोड़ूंगा ही नहीं,’’ कहते हुए उस ने झपट कर आभा की गरदन पकड़ ली और उसे दबाने लगा.

आभा उस के चंगुल से छूटने की भरपूर कोशिश कर रही थी, पर थोड़ी ही देर में उसे यह अहसास हो गया कि वह उस से पार नहीं पा सकती और वह उसे गला घोंट कर मार डालेगा.

ऐसा अहसास करते ही उस ने अपने हाथपैर पटकने बंद कर दिए, अपनी सांसें रोक लीं और शरीर को शांत कर लिया.

जब तथाकथित मैनेजर को इस बात का अहसास हुआ तो उस ने आभा की गरदन छोड़ दी और फटीफटी आंखों से आभा के शरीर को देखने लगा. उसे लगा कि आभा मर चुकी है. ऐसा लगते ही उस के चेहरे से बदहवासी और खौफ टपकने लगा.

तभी दरवाजा खुला और विक्रम कमरे में आया. ऐसे में जैसे ही उस की नजर आभा पर पड़ी, उस के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकल गई. वह कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘यह क्या किया आप ने? इसे तो जान से मार डाला आप ने?’’

‘‘नहीं,’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘मैं इसे मारना नहीं चाहता था, पर यह पुलिस में जाने की धमकी देने लगी तो मैं ने इस का गला दबा दिया.’’

‘‘और यह मर गई…’’ विक्रम उसे घूरता हुआ बोला.

‘‘जरा सोचिए, मगर इस बात का पता होटल वालों को लगा तो वह पुलिस बुला लेंगे. पुलिस आप को पकड़ कर ले जाएगी और आप को फांसी की सजा होगी.’’

‘‘नहीं…’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘ऐसा कभी नहीं होना चाहिए.’’

‘‘वह तो तभी होगा जब चुपचाप इस लाश को ठिकाने लगा दिया जाए.’’

‘‘तो लगाओ,’’ वह आदमी बोला.

‘‘यह इतना आसान नहीं है,’’ कहते हुए विक्रम की आंखों में लालच की चमक उभरी, ‘‘इस में पुलिस में फंसने का खतरा है और कोई यह खतरा यों ही नहीं लेता.’’

‘‘फिर…?’’

‘‘कीमत लगेगी इस की.’’

‘‘कितनी?’’

‘‘5 लाख?’’

‘‘5 लाख…? यह तो बहुत ज्यादा रकम है.’’

‘‘आप की जान से ज्यादा तो नहीं,’’ विक्रम बोला, ‘‘और अगर आप को कीमत ज्यादा लग रही है तो आप खुद इसे ठिकाने लगा दीजिए, मैं तो चला,’’ कहते हुए विक्रम दरवाजे की ओर बढ़ा.

‘‘अरे नहीं…’’ वह हड़बड़ाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें 5 लाख रुपए दूंगा, पर इस मामले में तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगा. तुम्हें सबकुछ अकेले ही करना होगा.’’

विक्रम ने पलभर सोचा, फिर हां में सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘कर लूंगा, पर पैसे…?’’

‘‘काम होते ही पैसे मिल जाएंगे.’’

‘‘पर याद रखिए, अगर धोखा देने की कोशिश की तो मैं सीधे पुलिस के पास चला जाऊंगा.’’

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगा,’’ कहते हुए वह कमरे से निकल गया.

इधर वह कमरे से निकला और उधर उस ने बेसुध पड़ी आभा को देखा. वह उसे ठिकाने लगाने के बारे में सोच ही रहा था कि आभा उठ बैठी.

अपने सामने आभा को खड़ी देख विक्रम की आंखें हैरानी से फटती चली गईं. उस के मुंह से हैरत भरी आवाज फूटी, ‘‘आभा, तुम जिंदा हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘पर, अब तुम जिंदा नहीं रहोगे. तुम भोलीभाली लड़कियों को नौकरी का झांसा दे कर जिस्म के सौदागरों को सौंपते हो. मैं तुम्हारी यह करतूत लोगों को बतलाऊंगी, तुम्हारी शिकायत पुलिस में करूंगी.’’

आभा का यह रूप देख कर पहले तो विक्रम बौखलाया, फिर उस के सामने गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘‘ऐसा मत करना.’’

‘‘क्यों न करूं मैं ऐसा, तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी और कहते हो कि मैं ऐसा न करूं.’’

‘‘क्योंकि, तुम्हारे ऐसा न करने से मेरे हाथ एक मोटी रकम लगेगी जिस में से आधी रकम मैं तुम्हें दे दूंगा.’’

‘‘मतलब…?’’

विक्रम ने उसे पूरी बात बताई.

‘‘सच कह रहे हो तुम?’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘अपनी बात से तुम पलट तो नहीं जाओगे?’’

‘‘ऐसे में तुम बेशक पुलिस में मेरी शिकायत कर देना.’’

‘‘अगर तुम ने मुझे धोखा नहीं दिया तो मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं ऐसा करूंगी.’’

तीसरे दिन आभा के हाथ में ढाई लाख की मोटी रकम विक्रम ने ला कर रख दी. उस ने एक चमकती नजर इन नोटों पर डाली, फिर विक्रम की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘अगर दोबारा कोई ऐसा ही मोटा मुरगा फंसे तो मुझ से कहना. मैं फिर से यह सब करने को तैयार हो जाऊंगी,’’ कहते हुए आभा मुसकराई.

‘‘जरूर,’’ कहते हुए विक्रम के होंठों पर भी एक दिलफरेब मुसकान खिल उठी.

नसीब : वैदेही की दर्द भरी कहानी

वैदेही फार्मेसी के आखिरी साल में थी. वह मोहिते परिवार की सबसे शांत और सुशील बेटी थी. घर में कोई मेहमान भी आ जाए तो गिलास का पानी ले कर बाहर नहीं आती थी. कुछ सवालों के जवाब देने के अलावा वह कभी किसी से बात नहीं करती थी.

वैदेही पढ़ाईलिखाई में होशियार थी. देखने में भी वह खूबसूरत थी इसलिए हर कोई उस के लिए एक अच्छा रिश्ता चाहता था. घर में दादादादी थे. छोटी बहन अक्षरा 8वीं जमात में पढ़ती थी. पिता की किराना की दुकान थी और मां मालिनी खुशमिजाज. इस तरह से वैदेही का एक सुंदर परिवार था.

‘‘अरे ओ मालिनी, 8 बज गए, नाश्तापानी दोगी कि ऐसे ही भूखा मारोगी?’’

‘‘हांहां लाती हूं. हम लोग मरमर के काम करते हैं, फिर भी भूख नहीं लगती है और इन्हें चारपाई पर बैठेबैठे ही भूख लग जाती है. 2 बेटों को जन्म दिया है तो दोनों के घर जा कर रहना चाहिए न. मैं ने अकेले ठेका ले रखा है क्या इन बूढ़ेबुजुर्गों का?’’

‘‘अब चुप हो जा मां, क्या सवेरेसवेरे तुम दोनों का बड़बड़ाना शुरू हो जाता है.’’

‘‘बहू, चाय रख दे. वामन काका आए हैं.’’

‘‘12 बजे तक 4 कप चाय पी कर जाएगा यह बुड्ढा. पूरी जिंदगी बीत गई यही सब करने में.’’

‘‘बहू, चाय ला रही हो न?’’

‘‘हां, ला रही हूं बाबा.’’

दादादादी के साथ मां की होने वाली किचकिच देख कर वैदेही का शादी से मन ही उठ गया था. हम पढ़ेलिखे हैं, खुद कमाखा सकते हैं, शादी कर के दूसरे के परिवार में नौकर की तरह क्यों रहना? वैदेही शाम को कालेज से आई. मातापिता कमरे में ही बैठे थे.

‘‘क्यों न हम 4-5 दिन के लिए कहीं घूम आएं? अब तो बच्चे भी बड़े हो गए हैं.’’

‘‘मालिनी, मैं ने कितनी बार कहा है कि पैसे ले लो और बच्चों को ले कर कहीं घूमने चली जाओ. मांपिताजी को छोड़ कर मैं कहीं बाहर नहीं जा सकता हूं.’’

‘‘हां, हमेशा की तरह बहाना बनाओ. उन्हें 4-5 दिन के लिए अपने छोटे भाई के पास क्यों नहीं भेज देते?’’

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगा और आगे से इस मुद्दे पर किसी तरह की कोई बात नहीं होगी,’’ ऐसा बोलते हुए नितिन हाथ में पकड़ा अखबार फेंकते हुए घर से बाहर निकल गया. मालिनी हमेशा की तरह रसोई में जा कर रोने लगी.

‘‘मेरा नसीब ही फूटा है. यह बंगला, गाड़ी और पैसा होने के बावजूद कोई फायदा नहीं है. कभी थिएटर में फिल्म देखने तक नहीं गई. होटल में खाना, सैरसपाटा करना किसी तरह का कोई मजा नहीं है जिंदगी में.’’

‘‘मां, मेरी शादी होने के बाद मेरे साथ भी तो ऐसा ही होगा?’’

‘‘ऐसा नहीं है बेटी. औरत का जन्म ही दूसरों के लिए हुआ है. तुम दोनों

मेरी प्यारी बेटियां हो, यही मेरा असली सुख है.’’

मेहमानों का देखने आना, सिर पर पल्लू रख कर चलना, दहेज की मांग करना, शादी के बाद सासननद के ताने सुनना और उन के छोटेछोटे बच्चों की सेवा करना, बड़ों के पैर छूना वगैरह कितनी बकवास परंपराएं हैं.

इस के अलावा किसी की मौत हो जाने के बाद 10-10 दिन तक नातेरिश्तेदारों का जमावड़ा लगने पर सभी को खाना बना कर खिलाना वगैरह.

एक बहू को लगातार घर का काम करते हुए वैदेही ने करीब से देखा. एक बार शादी हो गई तो हम इस परंपराओं में पूरी तरह से फंस जाएंगे, जिस से छुटकारा मिलना मुश्किल है. इस से बेहतर है कि मैं शादी ही न करूं.

एक दिन दूध लेने वैदेही बाहर गई. पड़ोस के ही सार्थक से उस की टक्कर हो गई. सार्थक हैंडसम था. 10वीं के बाद डिप्लोमा कर के 2 साल से वह पुणे की एक कंपनी में नौकरी करता था. इस समय वह 2 महीने की छुट्टी ले कर गांव आया था. वैदेही उसे अच्छी लगती थी, इसलिए वह अलगअलग तरीके से उस का ध्यान खींचने की कोशिश करता था.

दूसरे दिन वैदेही कालेज जाने के लिए निकली. सार्थक भी उस के पीछेपीछे मोटरसाइकिल से गया. वैदेही ने अपनी गाड़ी के शीशे में से सार्थक को आते हुए देखा और नजरअंदाज कर के चली गई.

सार्थक पूरा दिन उस के फार्मेसी कालेज में बैठा रहा. शाम को कालेज से निकलते ही उस ने वैदेही को रोक लिया, ‘‘वैदेही, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘पागल हो क्या तुम? काम क्या करते हो?’’

‘‘पुणे की एक कंपनी में नौकरी करता हूं. 15,000 रुपए तनख्वाह है मेरी. तुम भी वहां 12,000 से 13,000 रुपए कमा सकती हो. सुखी संसार होगा हमारा.’’

‘‘चुप… घर वाले सुनेंगे तो मुझे ही मार डालेंगे.’’

‘‘क्यों मारेंगे? अभीअभी मेरे फ्रैंड की लव मैरिज हुई है. पहले रजिस्टर मैरिज करेंगे, फिर जान को खतरा है बता कर पुलिस स्टेशन में एफआईआर कर देंगे. कुछ नहीं होता है.’’

‘‘बहुत प्रैक्टिस किए लगते हो. चलो हटो रास्ते से.’’

‘‘तो क्या मैं हां समझ?’’

‘‘मैं ने हां बोला क्या?’’

‘‘लेकिन, न भी तो नहीं कहा अभी तुम ने.’’

वैदेही मन ही मन हंसते हुए अपनी गाड़ी पर बैठ के निकल गई. सार्थक अकसर अपनी खिड़की से उस के घर की तरफ देखता रहता था.

वैदेही के बाहर निकलने पर हाथ हिला कर इशारा करता था. मोबाइल फोन पर गाने बजाता था. उसे कालेज में जा कर गिफ्ट देता था. उस के बाहर जाते ही वह भी मोटरसाइकिल ले कर उस के पीछे लग जाता था.

‘‘तुम बस हां कह दो वैदेही. कुछ दिक्कत नहीं होगी. मेरा एक दोस्त पुणे में पुलिस विभाग में है. वह हमारी मदद करेगा. मैं तुम्हें जिंदगीभर खुश रखूंगा. तुम जैसा कहोगी वैसे ही होगा. तुम्हें कभी बिना खाए सोना नहीं पड़ेगा.

‘‘मुझ से ज्यादा तुम्हें कोई प्यार नहीं करेगा. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं. सिर्फ तुम हां कह दो.’’

सार्थक की रोमांटिक कविताएं, मैसेज सबकुछ वैदेही को अच्छे लगते थे. दादादादी की रोजरोज की किचकिच, मांपिता के बीच आपसी मनमुटाव देख कर वह सोचने लगी, अरैंज मैरिज करने के बाद मेरे साथ भी यही होगा. ऐसे में भाग कर सार्थक से शादी कर लेने में क्या बुराई है.

इसी विचार के साथ एक दिन वैदेही सार्थक के साथ भाग कर पुणे आ गई. इस के बाद दोनों परिवारों की खूब बदनामी हुई.

सार्थक वैदेही के साथ अपने एक दोस्त के फ्लैट में रहने लगा. 10-15 दिन अच्छे से बीते. इस के बाद वैदेही नौकरी करने की जिद करने लगी.

‘‘अभी इस की जरूरत नहीं है. पैसे की कमी होगी तो मैं खुद तुम्हारे लिए नौकरी देखूंगा स्वीट हार्ट.’’

एक दिन सार्थक कोल्डड्रिंक की बोतल ले कर आया, जिसे देखते ही वैदेही ने मुंह लगाया और आधी बोतल खाली कर दी. 5-10 मिनट बाद उसे नींद आने लगी.

‘‘सार्थक, मुझे कुछ हो रहा है यार.’’

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम बैड पर चुपचाप सो जाओ. मैं यहीं हूं.’’

दूसरे दिन जब वैदेही उठी तो देखा कि उस की बगल में कोई दूसरा लड़का सोया हुआ है. वैदेही के साथ जो हुआ, उसे वह समझ गई. वह जल्दी से कमरे से बाहर आई.

‘‘धोखेबाज, तुम ने मुझे फंसाया है. मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगी. पुलिस में शिकायत करूंगी,’’ वैदेही ने सार्थक से कहा.

‘‘जा, पुलिस के पास जा. वे लोग तुम्हें खड़ा भी करेंगे क्या. 10 दिन पहले वही पुलिस तुम्हें अपने मांपिता के पास जाने की कह रही थी तो तुम ने नहीं सुना.’’

‘‘कितने गिरे हुए इनसान हो तुम. एक लड़की की जिंदगी से खेलते हुए तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आई?’’

‘‘अरे ओ लड़की, जो अपने जन्म देने वाले मांपिता की नहीं हुई तो वह भविष्य में मेरा क्या होगी? मांपिता के चेहरे पर कालिख लगाते हुए तुम्हें जरा भी लाजशर्म नहीं आई. और अब तुम मुझ से लाजशर्म की बात करती हो?’’

वैदेही फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस के पास जाने में उसे शर्म आ रही थी. सार्थक के अलावा जिंदगी में कभी किसी पर यकीन नहीं किया था. अब मैं यहां से कहां जाऊंगी. लेकिन यहां रहूंगी तो धंधा करना पड़ेगा.

‘‘मांपिता को दुख दे कर दुनिया में कोई खुश नहीं रह सकता, यह सच है. मुझे माफ कर दो, लेकिन किसी तरह सार्थक के चंगुल से बाहर निकालो,’’ वैदेही मन ही मन खुद को कोस रही थी.

सार्थक बाहर चला गया था. थोड़ी देर बाद ही उन्मेष बैडरूम से बाहर आया.

‘‘मैं ने सब सुन लिया है. इस लफंगे के साथ घर छोड़ कर तुम आई थी. तुम ने कभी सोचा कि तुम्हारे इस बरताव से मांपिता की समाज में कितनी बदनामी होगी. जिंदगी के 20 साल साथ रहने वाले मांपिता को छोड़ कर 2 महीने की पहचान के इस गुंडेमवाली के जाल में कैसे फंस गई तुम? ऐसे में तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का क्या फायदा है?’’

‘‘मैं सब समझ रही हूं, लेकिन अब क्या करूं?’’

‘‘तुम्हारे लिए एक प्रस्ताव है मेरे पास. मेरी बीवी के बच्चा नहीं हो सकता है. क्या तुम मुझे बच्चा दोगी? मैं जिंदगीभर तुम्हें प्यार और इज्जत दूंगा.’’

‘‘सार्थक के साथ रहने के बजाय अगर मेरी जिंदगी किसी के काम आ जाए तो इस में क्या गलत है. मैं तैयार हूं तुम्हारे साथ रहने के लिए. लेकिन, सार्थक…?’’

‘‘उसे मैं देख लूंगा. उस के मुंह पर पैसे फेंक कर मैं तुम्हें उस से आजाद करा लूंगा.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे साथ आने के लिए तैयार हूं.’’

वैदेही बैग ले कर उन्मेष के साथ एक नए सफर पर निकल गई.

नहीं हुई मुन्नी बदनाम : रमेश और चंदू की अनबन

चंदू पहली बार रमेश से मवेशियों के हाट में मिला था. दोनों भैंस खरीदने आए थे. अब चंदू के पास कुल 2 भैंसें हो गई थीं. दोनों भैंसों से सुबहशाम मिला कर 30 लिटर दूध हो जाता था, जिसे बेच कर घर का गुजारा चलता था. इस के अलावा कुछ खेतीबारी भी थी.

चंदू अपनी बीवी और बेटी के साथ खुश था. तीनों मिल कर खेतीबारी से लेकर भैंसों की देखभाल और दूध बेचने का काम अच्छी तरह संभाले हुए थे.

एक दिन चंदू अपनी भैंसों को चराने कोसी नदी के तट पर ले गया. वहां एक खास किस्म की घास होती थी जिसे भैंसें बड़े चाव से चरती थीं और दूध भी ज्यादा देती थीं.

रमेश भी वहां पर भैंस चराने जाता था. रमेश से मिल कर चंदू खुश हो गया. दोनों अपनी भैंसों को चराने रोजाना कोसी नदी के तट पर ले जाने लगे. भैंसें घास चरती रहतीं, चंदू और रमेश आपस में गपें लड़ाते रहते.

रमेश के पास एक अच्छा मोबाइल फोन था. वह उस में गाना लगा देता था. दोनों गानों की धुन पर मस्त रहते. कभी कोई अच्छा वीडियो होता तो रमेश चंदू को दिखाता.

चंदू भी ऐसा ही मोबाइल फोन लेने की सोचता था, पर कभी उतने पैसे न हो पाते थे. उस के पास सस्ता मोबाइल फोन था जिस से सिर्फ बात हो पाती थी.

कुछ दिनों से एक चरवाहा लड़की अपनी 20-22 बकरियों को चराने कोसी नदी के तट पर लाने लगी थी. वह 20 साल की थी. शक्लसूरत कोई खास नहीं थी, लेकिन नई जवानी की ताजगी उस के चेहरे पर थी.

रमेश ने जल्दी ही उस लड़की से दोस्ती बढ़ा ली थी. अब वह चंदू के साथ कम ही रहता था. वह हमेशा उस लड़की को दूर ले जा कर बातें करता रहता था.

रमेश से ही चंदू को मालूम हुआ था कि उस चरवाहा लड़की का नाम मुन्नी है, जो पास के गांव में अपनी विधवा मां के साथ रहती है.

चंदू को हमेशा चिंता रहती थी कि भैंसों का पेट भरा या नहीं. मौका देख जहां अच्छी घास मिलती वह काट लेता ताकि घर लौट कर भैंसों को खिला सके. लेकिन रमेश मुन्नी के चक्कर में अपनी भैंसों की भी परवाह नहीं करता था. वह चंदू को ही अपनी भैंसों की देखरेख करने को कह कर खुद मुन्नी के साथ दूर झाड़ियों की ओट में चला जाता था.

चंदू को रमेश और मुन्नी पर बहुत गुस्सा आता. दोनों मटरगश्ती करते रहते और उसे दोनों के मवेशियों की देखभाल करनी पड़ती.

एक दिन चंदू ने गौर किया कि एक काली और ऊंचे सींग वाली बकरी गायब है. उस ने इधरउधर ढूंढ़ा पर वह कहीं नहीं मिली. वह घबरा गया और दौड़तेदौड़ते उन   झाडि़यों के पास जा पहुंचा जिन की ओट में रमेश और मुन्नी थे ताकि उन्हें बकरी के खोने के बारे में बता दे. लेकिन चंदू के अचरज और नफरत का ठिकाना न रहा जब उस ने उन दोनों को आधे कपड़ों में एकदूसरे से लिपटे देखा.

चंदू उलटे पैर लौट गया. थोड़ी देर और ढूंढ़ने पर चंदू को वह खोई हुई बकरी एक गड्ढे में बैठ कर जुगाली करते हुए मिल गई. वह शांत हो गया लेकिन उसे रमेश पर रहरह कर गुस्सा आ रहा था.

काफी देर बाद रमेश चंदू के पास आया तो चंदू उस पर उबल पड़ा, ‘‘तुम जो भी कर रहे हो वह ठीक नहीं है. तुम 2 बच्चों के बाप हो. घर पर तुम्हारी बीवी है, फिर भी ऐसी हरकत. अगर कहीं कुछ गलत हो गया तो मुन्नी से कौन शादी करेगा?’’

रमेश सब सुन रहा था. वह बेहयाई से बोला, ‘‘तुम्हें भी मजा करना है तो कर ले. मैं ने कोई रोक थोड़ी लगा रखी है,’’ इतना कह कर वह एक गाना गुनगुनाते हुए अपनी भैंसों की तरफ चल पड़ा.

धीरेधीरे 5 महीने बीत गए. मुन्नी पेट से हो गई थी. उस के पेट का उभार दिखने लगा था.

रमेश ने भी अब मुन्नी से मिलनाजुलना कम कर दिया था. मुन्नी खुद बुलाती तभी जाता और तुरंत वापस आ जाता. उस ने मुन्नी को   झाडि़यों में ले जाना भी बंद कर दिया था.

कुछ दिनों के बाद रमेश ने कोसी नदी के तट पर भैंस चराने आना भी छोड़ दिया. जब रमेश कई दिनों तक नहीं आया तो एक दिन मुन्नी ने चंदू के पास आ कर रमेश के बारे में पूछा.

चंदू ने जवाब दिया, ‘‘मु  झे नहीं मालूम कि रमेश अब क्यों नहीं आ रहा है.’’

मुन्नी रोने लगी. वह बोली, ‘‘अब इस हालत में मैं कहां जाऊंगी. किसे अपना मुंह दिखाऊंगी. कौन मु  झे अपनाएगा. रमेश ने शादी का वादा किया था और इस हालत में छोड़ गया.’’

थोड़ी देर आंसू बहाने के बाद मुन्नी दोबारा बोली, ‘‘अगर रमेश कहीं मिले तो एक बार उसे मु  झ से मिलने को कहना.’’

‘‘ठीक है. वह मिला तो मैं जरूर कह दूंगा,’’ चंदू ने कहा.

इस के बाद मुन्नी धीरे से उठी और बकरियों के पीछे चली गई.

उस दिन से चंदू रमेश पर नजर रखने लगा.

एक दिन चंदू ने रमेश को मोटरसाइकिल पर शहर की ओर जाते देखा. मोटरसाइकिल पर दूध रखने के कई बड़े बरतन लटके हुए थे.

‘‘कहां जा रहे हो रमेश? आजकल तुम दिखाई नहीं देते?’’ चंदू ने पूछा.

‘‘आजकल काम बहुत बढ़ गया है. शहर में 200 घरों में दूध पहुंचाने जाता हूं इसीलिए समय नहीं मिलता,’’ रमेश ने दोटूक जवाब दिया.

‘‘200 घर… पर तुम्हारी तो 2 ही भैंसें हैं. वे 30-40 लिटर से ज्यादा दूध नहीं देती होंगी, फिर 200 घरों में दूध कैसे देते हो?’’ चंदू ने पूछा.

‘‘ऐसा है…’’ रमेश अटकते हुए बोला, ‘‘मैं गांव के कई लोगों से दूध खरीद कर शहर में बेच देता हूं.’’

‘‘इसीलिए इतनी तरक्की हो गई है. मोटरसाइकिल की सवारी करने लगे हो…’’ चंदू ने कहा, ‘‘खैर, एक बात बतानी थी. मुन्नी तुम्हें याद कर रही थी. तुम्हें जल्दी से जल्दी मिलने को कह रही थी.’’

मुन्नी का जिक्र आते ही रमेश परेशान हो गया. वह बोला, ‘‘इन फालतू बातों को छोड़ो. मेरे पास समय नहीं है. मु  झे शहर जाना है. देर हो रही है,’’ कह कर उस ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और चला गया.

चंदू को बहुत गुस्सा आया. कोई लड़की परेशानी में है और रमेश को जरा भी परवाह नहीं है. लेकिन चंदू क्या कर सकता था.

एक दिन चंदू अपनी भैंसें कोसी नदी के तट पर चरा रहा था कि तभी उस ने किसी के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुनी. उस समय वहां कोई नहीं था.

चंदू आवाज की दिशा में आगे बढ़ा. कुछ दूर चलने के बाद उस ने   झाडि़यों के पीछे मुन्नी को लेटे देखा जो रहरह कर चीख रही थी. चंदू कुछकुछ सम  झ गया कि शायद मुन्नी को बच्चा जनने का दर्द हो रहा था.

मुन्नी की हालत खराब थी. वह बेसुध हो कर जमीन पर पड़ी थी. कभीकभी वह अपने हाथपैर पटकने लगती थी. चंदू ने सोचा कि लौट जाए, लेकिन मुन्नी को इस हाल में छोड़ कर जाना उसे ठीक नहीं लगा. वह हिम्मत कर के मुन्नी के पास पहुंचा और उसे ढांढस बंधाने लगा.

थोड़ी देर बाद बच्चे का जन्म हो गया. चंदू ने लाजशर्म छोड़ कर मुन्नी की देखभाल की. बच्चे को साफ कर अपने गमछे में लपेट कर मुन्नी के पास लिटा दिया. मुन्नी को बेटा हुआ था.

जब सूरज डूबने को आया तब जा कर मुन्नी कुछ ठीक महसूस करने लगी. लेकिन बच्चे को देख कर वह रो पड़ी. बिना शादी के पैदा हुए बच्चे को वह अपने पास कैसे रख सकती थी?

मुन्नी रोते हुए बोली, ‘‘मैं इस बच्चे को अपने साथ नहीं रख सकती. लोग क्या कहेंगे? इसे यहीं छोड़ जाती हूं या कोसी में बहा देती हूं.’’

यह सुन कर चंदू कांप गया. कुछ सोच कर वह बोला, ‘‘अगर तुम बच्चे को अपने साथ नहीं रखना चाहती तो मैं इसे अपने पास रख लूंगा.’’

‘‘ठीक है भैया, जैसा आप चाहो. लेकिन इस बारे में किसी को पता नहीं चलना चाहिए, नहीं तो मैं बदनाम हो जाऊंगी,’’ कह कर मुन्नी लड़खड़ाते कदमों से अपनी बकरियों को हांक कर घर की ओर चल पड़ी.

बच्चे को गोद में उठा कर चंदू भी भैंसों के साथ घर लौट आया. बच्चे को देख कर उस की पत्नी बोली, ‘‘यह किस का बच्चा उठा लाए हो?’’

चंदू ने   झूठ बोला, ‘‘पता नहीं किस का बच्चा है. मु  झे तो यह   झाडि़यों के पीछे मिला था. शायद अनचाहा बच्चा है. इस की मां इसे झाड़ियों के पीछे फेंक गई होगी.’’

चंदू की पत्नी बोली, ‘‘चलो, बच्चे की जिंदगी बच गई. हमारी एक ही बेटी है, अब बेटे की कमी पूरी हो गई.’’

पत्नी की बात सुन कर चंदू ने राहत की सांस ली. लेकिन चंदू को रमेश का मतलबी रवैया खटकता था. कोई कुंआरी लड़की के प्रति इतना लापरवाह कैसे हो सकता है?

रमेश बहुत तरक्की कर रहा था. चंदू ने गांव वालों से सुना कि उस ने काफी सारी जमीन और एक ट्रैक्टर खरीद लिया था. वह पक्का मकान भी बनवा रहा था. लेकिन चंदू को यह सम  झ में नहीं आता था कि 200 घरों में दूध देने के लिए कम से कम 200 लिटर दूध चाहिए, जबकि उस की भैंसें 30-40 लिटर से ज्यादा दूध नहीं देती होंगी.

हैरानी की बात यह भी थी कि गांव वाले भी रमेश को दूध नहीं बेचते थे क्योंकि गांव में दूध की कमी थी.

धीरेधीरे 6 महीने बीत गए. चंदू पहले की तरह अपनी भैंसों को चराने कोसी नदी के तट पर ले जाता था, पर मुन्नी ने वहां आना छोड़ दिया था.

एक शाम चंदू अपनी भैंसों को चरा कर लौट रहा था तो रास्ते में उस ने एक बरात जाती देखी. पता किया तो मालूम हुआ कि बगल के गांव में मुन्नी नाम की किसी लड़की की शादी है.

चंदू समझ गया कि उसी मुन्नी की शादी है. वह खुश हो गया. बेचारी मुन्नी बदनाम होने से बच गई.

घर पहुंचा तो चंदू ने एक और नई बात सुनी. गांव में कई पुलिस वाले आए थे और रमेश को गिरफ्तार कर के ले गए थे.

रमेश अपने घर में नकली दूध बनाता था. उस से खरीदा हुआ दूध पी कर शहर के कई लोग बीमार पड़ गए थे. चंदू को रमेश की तरक्की का राज अब अच्छी तरह समझ में आ गया था.

महादान : कैसा था मनकूलाल

सर्दी का मौसम था. धूप खिली हुई थी. गांव की चौपाल पर बैठे लोग कहकहे लगा रहे थे कि लेकिन अचानक वे चुप हो गए. थोड़ी ही दूरी पर कंजूस मनकूलाल आता दिखाई दिया. सिर पर पुरानी टोपी, सस्ती सूती कमीज, धोती और टूटी चप्पलों को पैरों में घसीटता सा वह चला आ रहा था.

मनकूलाल पहले से ही जानता था कि चौपाल पर बैठे लोग उस पर ताने कसेंगे, इसलिए वह दूर से ही मुसकराने लगा. जैसे ही वह करीब आया, एक नौजवान ने पूछा, ‘‘क्यों कंजूस चाचा, आज इधर कैसे?’’

‘‘हाट जा रहा हूं भाई,’’ मनकूलाल ने उसी तरह मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अरे, तो पैदल क्यों जा रहे हो? बस भी तो आने वाली है.’’

‘‘मैं तो पैदल ही जाऊंगा. बेकार में 25 रुपए खर्च हो जाएंगे. हाट यहां से है ही कितना दूर. इतनी दूर तो शहर के लोग सैर करने जाते हैं.’’

‘‘अरे, तो जनाब सैर करने जा रहे हैं?’’ दूसरे नौजवान ने ताना कसते हुए कहा.

तभी वहां एक जोरदार ठहाका गूंज उठा. पर मनकूलाल पर इस का कोई असर नहीं हुआ. वह उसी तरह मुसकराता चला गया.

चौपाल पर बैठे लोगों में से एक ने कहा, ‘‘यह कभी नहीं सुधरेगा.’’

‘‘उस के पास बहुत रुपए हैं, पर खर्च तो वह एक पाई भी नहीं करता,’’ दूसरा आदमी बोला.

‘‘अरे, यह सब कहने की बातें हैं…’’ एक अधेड़ आदमी बुरा सा मुंह बना कर बोला, ‘‘कंजूस का धन कौए खाते हैं. अभी पिछले दिनों उस के घर चोरी हो गई थी. अभीअभी उस का छोटा बेटा बीमार पड़ गया था. एक हफ्ते तक अस्पताल में भरती रहा. न जाने कितना रुपया खर्च हुआ होगा…’’

मनकूलाल के बारे में ऐसी बातें आएदिन होती थीं. गांव के लोग उसे नफरत की नजर से देखते थे. वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. गांव में उस की

20 बीघा जमीन थी. उसी से उस की गृहस्थी चलती थी.

उत्तर प्रदेश के दूरदराज इलाके में बसे इस गांव में कोई भी अमीर नहीं था. सभी मनकूलाल की तरह मामूली किसान थे. वह गांव के लोगों की नजरों में इसलिए भी गिरा हुआ था, क्योंकि वह किसी धरमकरम के मामले में कभी दान नहीं देता था. गांव में नौटंकी हो या रामलीला, मंदिर बन रहा हो या मसजिद, वह कभी चंदा नहीं देता था. गांव में कोई भी साधुसंत आया हो, तो मनकूलाल उस के सामने नाक रगड़ने नहीं जाता था.

आज तक उस ने किसी ब्राह्मण से पूजापाठ नहीं करवाया था. एक बार गांव में साधुओं की टोली चंदा मांगने के लिए आई. गांव में इतने साधु एकसाथ चंदा लेने कभी नहीं आए थे, इसलिए गांव वाले उन के साथ घूम कर चंदा दिलवा रहे थे. गांव वालों की श्रद्धा देख कर साधु फूले नहीं समा रहे थे.

उन्हें लग रहा था कि इस गांव में तो खूब दानदक्षिणा मिलेगी. जब से गांवदेहात में मंदिरों की कायाकल्प होने लगी थी, तब से साधुसंतों की खूब आवभगत होने लगी थी.

जब साधुसंतों की टोली मनकूलाल के घर पहुंची, तब वह खेतों की ओर जाने की तैयारी कर रहा था. साधु सीधे उस के पास पहुंच कर चंदा मांगने लगे, पर मनकूलाल ने चंदा देने से साफ इनकार कर दिया. गांव वालों के समझाने पर भी वह टस से मस नहीं हुआ.

तब एक साधु तैश में आ कर बोला, ‘‘अधर्मी, हम कोई अपने लिए चंदा नहीं मांग रहे हैं, बल्कि हम यज्ञ करने के लिए पैसा इकट्ठा कर रहे हैं.’’

‘‘यज्ञ करने से क्या होगा बाबा?’’ मनकूलाल ने पूछा.

‘‘अरे मूर्ख, इतना भी नहीं जानता कि यज्ञ करने से क्याक्या फायदे होते हैं? राम ने अश्वमेध यज्ञ क्यों करवाया

था? युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ क्यों करवाया था?’’

साधु के रुकते ही मनकूलाल बोला, ‘‘बाबा, वे राजा लोग थे. उन के कई चोंचले होते थे. हम तो अपना पेट ही बड़ी मुश्किल से भर रहे हैं, फिर बेकार में इन चोंचलों में पैसा खर्च कर के क्या फायदा?’’

साधु मनकूलाल का मुंह देखते रह गए. उन से कुछ बोलते नहीं बना. पर गांव वालों के सामने अपनी हेठी न हो जाए, यह सोच कर एक साधु बोला, ‘‘अरे, वे सब चोंचले नहीं करते थे. सुन, यज्ञ से आदमी का बहुत भला होता है, दुनिया में शांति होती है, देवता खुश होते हैं, पानी अच्छा बरसता है,’’ कह कर उस साधु ने अपने पीछे खड़े गांव के लोगों की तरफ देखा.

‘‘मैं इतना जानकार तो नहीं हूं और दुनियादारी की बात नहीं जानता. पर आज से पहले भी तो बहुत से यज्ञ करवाए गए हैं, उन से क्या हुआ? कौन सी शांति आई? गरीबी कहां दूर हुई? हमारे गांव में तो रोज ही झगड़े होते हैं. लोग हर साल ही तंगी में जीते हैं. हर साल बारिश कम होती है,’’ कह कर मनकूलाल खामोश हो गया.

साधु खिसिया गए और उसे अधर्मी, पापी वगैरह कहते हुए चले गए. उस दिन से गांव वाले मनकूलाल से ज्यादा ही नफरत करने लगे. वे सोचते थे कि मनकू को साधुओं का ‘शाप’ जरूर लगेगा. पूरा साल गुजर गया, पर उस का कुछ नहीं बिगड़ा.

अगले साल उस इलाके में बारिश न होने के चलते अकाल जैसी हालत पैदा हो गई. लोग भूखे मरने लगे. ऐसी हालत में साहूकारों ने भी मुंह फेर लिया. सरकारी दावों में खूब प्रचार किया गया कि इतने करोड़ भूखों का पेट भरा गया है, पर हकीकत में सरकारी मदद गांव तक पहुंच ही नहीं पाई थी.

मनकूलाल के गांव वाले पहले ही गरीब थे. गांव में ऐसा एक भी परिवार नहीं था, जो दूसरे परिवार की मदद कर सके. पूरे गांव में हाहाकार मचा हुआ था. पर गांव के 10-12 परिवार, जो मजदूरी कर के गुजारा करते थे, बहुत ही बुरी हालत में दिन बिता रहे थे. वे परिवार गांव से शहर जाने के लिए मजबूर हो गए थे. इस के चलते गांव के सभी लोग बेहद दुखी थे, पर वे कर भी क्या सकते थे, क्योंकि वे तो खुद ही बड़ी मुश्किल से दिन गुजार रहे थे. जिस दिन वे मजदूर परिवार ट्रैक्टरट्रौली पर अपना सामान लाद कर रवाना होने वाले थे, तब गांव के सभी लोग वहां इकट्ठे हो गए थे.

उसी समय मनकूलाल वहां आया. उस के हाथ में लाल कपड़े की छोटी सी पोटली थी. गांव के मुखिया को वह गठरी देते हुए मनकूलाल ने कहा, ‘‘यह मेरी 10 सालों की जमापूंजी है. रुपया मुसीबत के समय ही काम आता है. आज अपने गांव में भी मुसीबत आई हुई है. ऐसे समय में मेरा पैसा गांव के काम आ जाए, तो मैं खुद को धन्य समझूंगा.’’

मुखिया हैरान रह गया. वह कभी मनकूलाल की तरफ देखता, तो कभी पोटली में लिपटे रुपयों की तरफ. वहां खड़े सभी लोगों की भी यही हालत थी. एक आदमी ने खुश हो कर रुपए गिने, तो उस की खुशी की सीमा न रही. वे इतने रुपए थे कि उन से तंगहाली में आ गए सभी परिवारों के लिए सालभर का अनाज आ सकता था. मुखिया ने यह बात गांव के सब लोगों को बताई, तो वे वाहवाह कर उठे.

कुछ लोग तो शर्म के मारे मनकूलाल से आंखें नहीं मिला पा रहे थे. गांव छोड़ कर जाने वाले परिवार रुक गए. मनकूलाल के लिए उन के दिल इज्जत से भर गए थे. पूरा गांव जिस इनसान को अधर्मी, कंजूस और न जाने क्याक्या समझता था, वही आज मुसीबत के समय गांव के काम आया था.

अब गांव वाले सोच रहे थे कि मनकूलाल कंजूस नहीं, किफायती था. थोड़े खर्चे से काम चलाता था. वह उन की तरह अंधविश्वासी और मूर्ख नहीं था. वह जानता था कि दान कहां देना है. मुसीबत के समय दिया जाने वाला दान ही ‘महादान’ है. वही सच्चा धर्म है. बाकी सब बेकार की बातें हैं.

सब लोगों ने मनकूलाल को यकीन दिलाया कि अब वे भी बचत करेंगे और उस की पाईपाई सूद समेत सालभर में चुका देंगे.

मनकूलाल ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारा भला चाहिए, सूद नहीं.’’

इस पर मुखिया बोला, ‘‘सूद तो तुम्हारा हक है. भला तुम इन गरीबों

को बिना लिखतपढ़त के उधार दे कर

ही क्या कम कर रहे हो… यह पैसा तो तुम्हें लेना ही होगा, जब भी वे लोग

दे सकेंगे.’’

मनकूलाल मुसकरा कर रह गया. उस ने मुखिया की बात का मान रखा.

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