
देखतेदेखते 2 वर्ष बीत गए और अदिति अपनी टीचर की भूमिका में अच्छी तरह ढल गई थी. जब कभी वह सुबहसुबह दौड़ लगाती अपनी बस की तरफ तो सोसाइटी में चलतेफिरते लोग पूछ ही लेते ‘‘आप टीचर हैं क्या किसी स्कूल में?’’
पर अब अदिति मुसकरा कर बोलती, ‘‘जी, तभी तो सुबहसवेरे का सूर्य देखना का मु झे समय नहीं मिलता है.’’
स्कूल अब स्कूल नहीं है उस का दूसरा घर हो गया है. उस की परी भी उस के साथ ही स्कूल जाती है और आती है. औरों की तरह उसे परी की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं रहती है. जब उस के पढ़ाई हुए विद्यार्थी उस से मिलने आते हैं तो वह गर्व से भर उठती है. वह टीचर ही तो है, जिंदगी से भरपूर क्योंकि हर वर्ष नए विद्यार्थियों के साथ उस की उम्र साल दर साल बढ़ती नहीं घटती जाती है.
उधर अनुराग भी बहुत खुश था, परी के जन्म के समय से ही उस की प्रोमोशन लगभग निश्चित थी पर किसी न किसी कारण से वह टलती ही जा रही थी. आज उस के हाथ में प्रोमोशन लैटर था. पूरे 20 हजार की बढ़ोतरी और औफिस की तरफ से कार भी मिल गई. इधर अदिति के साथ परी के आनेजाने से डे केयर का खर्चा भी बच रहा था.
अनुराग ने मन ही मन निश्चिय कर लिया कि इस बार विवाह की वर्षगांठ पर वह और अदिति गोवा जाएंगे. वह सबकुछ पता कर चुका था, पूरे 60 हजार में पूरा पैकेज हो रहा था. अनुराग ने घर पहुंच कर ऐलान किया कि वे आज डिनर बाहर करेंगे और वह अदिति को उस की मनपसंद शौपिंग भी कराना चाहता है.
अदिति आज बहुत दिनों बाद खिलखिला रही थी और परी भी एकदम आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी. अदिति की वर्षों से एक प्योर शिफौन साड़ी की तम्मना थी. जब दुकानदार ने साड़ी दिखानी शुरू कीं, तो अदिति मूल्य सुन कर बोली, ‘‘अनुराग कहीं और से लेते हैं.’’
तब अनुराग ने अपना प्रोमोशन लैटर दिखाया और बोला, ‘‘इतना तो मैं अब कर सकता हूं.’’
डिनर के समय अनुराग अदिति का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘अदिति बस 1-2 साल की तपस्या और है, फिर मैं अपनी कंपनी में डाइरैक्टर के ओहदे पर पहुंच जाऊंगा.’’
दोनों शायद आज काफी समय बाद घोड़े बेच कर सोए थे. दोनों ने ही आज छुट्टी कर रखी थी. दोनों ही इन लमहों को जी भर कर जीना चाहते थे.
आज अदिति अनुराग से कुछ और भी बात करना चाहती थी. वह अब परी के लिए एक भाई या बहन लाना चाहती थी. इस से पहले कि वह अनुराग से इस बारे में बात करती, उस ने उस के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘जानता हूं पर इस के लिए प्यार भी जरूरी है,’’ और फिर दोनों प्यार में सराबोर हो गए.’’
1 माह पश्चात अदिति के हाथ में अपनी प्रैगनैंसी रिपोर्ट थी जो पौजिटिव थी. वे बहुत खुश थे. उस ने तय कर लिया था, इस बार वे अपने बच्चे के साथ पूरा समय बिताएगी और जब दोनों ही बच्चे थोड़े सम झदार हो जाएंगे तभी अपने काम के बारे में सोचेगी. अनुराग भी उस की बात से सहमत था. अब अनुराग भी थोड़ा निश्चित हो गया था क्योंकि अब उस की अगले वर्ष प्रोमोशन तय थी.
रविवार की ऐसी ही कुनकुनी दोपहरी में दोनों पक्षियों की तरह गुटरगूं कर रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उधर से अनुराग की मां घबराई सी बोल रही थीं, ‘‘अनुराग के ?झ को हार्ट अटैक आ गया है और उन्हें हौस्पिटल में एडमिट कर लिया गया है.’’
वहां पहुंच कर पता चला 20 लाख का पूरा खर्च है. अनुराग ने दफ्तर से अपनी तनख्वाह से एडवांस लिया, हिसाब लगाने पर उसे अनुमान हो गया था कि उस की पूरी तनख्वाह बस अब इन किस्तों में ही निकल जाएगी, फिर से कुछ वर्षों तक.
घर पहुंच कर जब उस ने अदिति को सारी बात से अवगत कराया तो वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं अनुराग, मैं हूं न, हम मिल कर सब संभाल लेंगे.’’
हालांकि मन ही मन वह खुद भी परेशान थी. पर यह दोनों को ही सम झ आ गया था कि यही जीवन है, फिर चाहे हंस कर गुजारो या रो कर आप की मरजी है.
अनुराग अपनी मां के साथ हौस्पिटल के गलियारे में चहलकदमी कर रहा था. अदिति को प्रसवपीड़ा शुरू हो गई थी. आधे घंटे पश्चात नर्स उन के बेटे को ले कर आई. उसे हाथों में ले कर अनुराग की आंखों में आंसू आ गए.
फिर से 3 माह पश्चात अदिति अपने युवराज को घर छोड़ कर स्कूल जा रही हैं, पर आज वह घबरा नहीं रही है क्योंकि अब अनुराग के मां और पापा उन के साथ ही रह रहे हैं. उधर अदिति के मांपापा ने बच्चों की देखभाल और घर की देखरेख के लिए कुछ समय के लिए अपनी नौकरानी उन के घर भेज दी. जिंदगी बहुत आसान नहीं थी पर मुश्किल भी नहीं थी.
इस बार विवाह की वर्षगांठ पर अनुराग फिर से अदिति को गोवा ले जाना चाहता था और उसे पूरी उम्मीद थी कि इस बार अदिति का वह सपना पूरा कर पाएगा. रास्तों पर चलते हुए वे जीवन के इस सफर को शायद हंसतेखिलखिलाते पूरा कर ही लेंगे.
अदिति अगले दिन कक्षा में गई और पढ़ाने लगी. आधे से ज्यादा बच्चे उसे न सुन कर अपनी बातों में ही व्यस्त थे. एकदम उसे बहुत तेज गुस्सा आया और उस ने बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया. बाहर खड़े हो कर दोनों बच्चे फील्ड में चले गए और खेलने लगे. छुट्टी की घंटी बजी, तो उस ने बैग उठाया तभी चपरासी आ कर उसे सूचना दे गया कि उन्हें प्रिंसिपल ने बुलाया है.
अदिति भुनभुनाती हुई औफिस की तरफ लपकी. प्रिंसिपल ने उसे बैठाया और कहा, ‘‘अदिति तुम ने आज 2 बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया… तुम्हें मालूम है वे पूरा दिन फील्ड में खेल रहे थे. एक बच्चे को चोट भी लग गई है. कौन जिम्मेदार है इस का?’’
अदिति बोली, ‘‘मैडम, आप उन बच्चों को नहीं जानतीं कि वे कितने शैतान हैं.’’
प्रिंसिपल ठंडे स्वर में बोलीं, ‘‘अदिति बच्चे शैतान नहीं हैं, आप उन को संभाल नहीं पाती हैं, यह कोई औफिस नहीं है… आप टीचर हैं, बच्चों की रोल मौडल, ऐसा व्यवहार इस स्कूल में मान्य नहीं है.’’
बस जा चुकी थी और वह बहुत देर तब उबेर की प्रतीक्षा में खड़ी रही. जब 4 बजे उस ने डे केयर में प्रवेश किया तो उस की संचालक ने व्यंग्य किया, ‘‘आजकल टीचर को भी लगता है कंपनी जितना ही काम रहता है.’’
अदिति बिना बोले परी को ले कर अपने घर चल पड़ी. वह जब शाम को उठी तो देखा अंधेरा घिर आया था. उस ने रसोई में देखा जूठे बरतनों का ढेर लगा था और अनुराग फोन पर अपनी मां से गप्पें मार रहा था.
उस ने चाय बनाई और लग गई काम पर. रात 10 बजे जब वह बैडरूम में घुसी तो थक कर चूर हो गई थी. उस ने अनुराग से बोला, ‘‘सुनो एक मेड रखनी होगी… मैं बहुत थक जाती हूं.’’
अनुराग बोला, ‘‘अदिति टीचर ही तो हो… करना क्या होता है तुम्हें, सुबह तो सब कामों में मैं भी तुम्हारी मदद करने की कोशिश करता हूं… पहले जब तुम कंपनी में थी तब बात अलग थी… रात हो जाती थी… अब तो सारा टाइम तुम्हारा है.’’
तभी मोबाइल की घंटी बजी. कल उसे 4 बच्चों को एक कंपीटिशन के लिए ले कर जाना था. अदिति इस से पहले कुछ और पूछती, मोबाइल बंद हो गया. बच्चों को ले कर जब वह प्रतियोगिता स्थल पर पहुंची तो पला चला कि उन्हें अभी 4 घंटे प्रतीक्षा करनी होगी. उन 4 घंटों में अदिति अपने विद्यार्थियों से बात करने लगी और कब 4 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला. उसे महसूस हुआ ये बच्चे जैसे घर पर अपनी हर बात मातापिता से बांटते हैं, वैसे ही स्कूल में अध्यापकों से बांटते हैं. पहली बार उसे लगा टीचर का कार्य बस पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है.
आज फिर घर पहुंचने में देर हो गई क्योंकि सब विद्यार्थियों को घर पहुंचा कर ही वह अपने घर पहुंच सकी. डे केयर पहुंच कर देखा, परी बुखार से तप रही थी. वह बिना खाएपीए उसे डाक्टर के पास ले गई और अनुराग भी वहां ही आ गया. बस आज इतनी गनीमत थी कि अनुराग ने रात का खाना बना दिया.
रात खाने पर अनुराग बोला, ‘‘अदिति तुम 2-3 दिन की छुट्टी ले लो.’’
अदिति ने स्कूल में फोन किया तो पता चला कि कल उसी के विषय की परीक्षा है तो कल तो उसे जरूर आना पड़ेगा, परीक्षा के बाद भले ही चली जाए.
सुबह पति का फूला मुंह छोड़ कर वह स्कूल चली गई. परीक्षा समाप्त होते ही वह विद्यार्थियों की परीक्षा कौपीज ले कर घर की तरफ भागी. घर पहुंच कर देखा तो परी सोई हुई थी और सासूमां आई हुई थीं, शायद अनुराग ने फोन कर के अपनी मां से उस की यशोगाथा गाई होगी.
उसे देखते ही सासूमां बोली, ‘‘बहू लगता है स्कूल की नौकरी तुम्हें अपनी परी से भी ज्यादा प्यारी है. मैं घर छोड़ कर आ गई हूं और देखा मां ही गायब.’’
अदिति किसकिस को सम झाए और क्या सम झाए जब वह खुद ही अभी सब सम झ रही है.
वह कैसे यह सम झाए उस की जिम्मेदारी अब बस परी की तरफ ही नहीं, अपने विद्यालय के हर 1 बच्चे की तरफ है. उस का काम बस स्कूल तक सीमित नहीं है. वह 24 घंटे का काम है जिस की कहीं कोई गणना नहीं होती. बहुत बार ऐसा भी हुआ कि अदिति को लगा कि वह नौकरी छोड़ कर परी की ही देखभाल करे पर हर माह कोई न कोई मोटा खर्च आ ही जाता.
अदिति की नौकरी का तीनचौथाई भाग तो घर के खर्च और डे केयर की फीस में ही खर्च हो जाता और एकचौथाई भाग से वह अपने कुछ शौक पूरे कर लेती. वहीं अनुराग का हाल और भी बेहाल था. उस की तनख्वाह का 80% तो घर और कार की किस्त में ही निकल जाता और बाकी का 20% उन अनदेखे खर्चों के लिए जमा कर लेता जो कभी भी आ जाते थे. उस के सारे शौक तो न जाने कहां खो गए थे.
अदिति जानेअनजाने अनुराग को अपनी बड़ी बहन और बहनोई का उदाहरण देती रहती जो हर वर्ष विदेश भ्रमण करते हैं और उन के पास खाने वाली से ले कर बच्चों की देखभाल के लिए भी आया थी. उन के रिश्तों में प्यार की जगह अब चिड़चिड़ाहट ने ले ली थी. कभीकभी अदिति की भागदौड़ देख कर उस का मन भी भर जाता. ऐसा नहीं है अनुराग अदिति को आराम नहीं देना चाहता था पर क्या करे वह कितनी भी कोशिश कर ले, हर माह महंगाई बढ़ती ही जाती.
साहस रोजाना आरुषी को कालेज पहुंचाने और लेने जाने लगा. फिर भी वे लड़के आरुषी को परेशान कर ही रहे थे. आरुषी उन के ध्यान में तो थी, पर साहस ने उन के खिलाफ कालेज में शिकायत कर रखी थी, इसलिए वे ज्यादा कुछ कर नहीं पा रहे थे.
उस दिन आरुषी कालेज के गेट नंबर एक की ओर जा रही थी, तभी कैंटीन में काम करने वाला एक लड़का आरुषी को एक चिट्ठी दे गया. जिस में लिखा था कि आरुषी आज तुम गेट नंबर 2 की ओर आना. वहां बसस्टाप पर मैं तुम्हें मिलूंगा-साहस.
आरुषी गेट नंबर 2 के पास बने बसस्टाप पर खड़ी हो कर साहस का इंतजार करने लगी. तभी वे गुंडे मोटरसाइकिल से आ कर आरुषी को घेर कर उस के साथ छेड़छाड़ करने लगे.
गेट नंबर 2 की ओर कोई आताजाता नहीं था, इसलिए वहां सुनसान रहता था. इसीलिए उन गुंडों ने साहस के नाम से फरजी चिट्ठी लिख कर कैंटीन के लड़के को भेज कर आरुषी को धोखे से वहां बुलाया था.
रोज की तरह साहस गेट नंबर एक पर खड़े हो कर आरुषी का इंतजार कर रहा था. पर जब आरुषी को आने में देर होने लगी तो वह कालेज के अंदर जा कर आरुषी को खोजने लगा.
दूसरी ओर आरुषी को अपनी सुंदरता पर बड़ा घमंड है, कह कर वे लड़के आरुषी को डराधमका रहे थे. अंत में जो लड़का आरुषी को काफी समय से प्रपोज कर रहा था, उस ने आरुषी के चेहरे पर एसिड फेंकते हुए कहा, ‘‘अगर तू मेरी नहीं हुई तो मैं तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’
इस के बाद सभी गुंडे मोटरसाइकिल से भाग गए. आरुषी दर्द और जलन से जोरजोर चीखते हुए जमीन पर पड़ी तड़प रही थी. पर उन गुंडों के डर और धाक की वजह से कोई मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था. साहस को आरुषी की चीख सुनाई दी तो वह गेट नंबर 2 की ओर भागा. आरुषी की हालत देख कर उस के पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई.
आरुषी को उस ने अपनी गाड़ी से नजदीक के अस्पताल पहुंचाया, जहां तत्काल उस का इलाज शुरू किया गया. उस की आंखें तो बच गईं, पर उस का नाजुक कोमल चेहरा भयानक हो चुका था. मम्मीपापा की परी अब परी नहीं रही.
जितना हो सका, उतनी सर्जरी कर के आरुषी को घर लाया गया. अपने कमरे में लगे आईने में अपना चेहरा देख कर आरुषी जिंदा लाश बन गई. आईने के सामने घंटों बैठने वाली आरुषी अब आईने के सामने जाने से डरने लगी थी. अब वह सब से दूर भागने लगी थी.
आरुषीकी हालत देख कर साहस भी परेशान रहने लगा था. आरुषी पर एसिड अटैक करने वाले सभी के सभी लड़कों को साहस ने जेल भिजवा दिया था, साथ ही साथ आरुषी को भी संभाल रहा था.
आरव जो आरुषी को चिढ़ाने के लिए चुहिया कहता था, अब उसी तरह आरुषी चूहे की तरह कोने में छिप गई थी. जो लड़की हाथ पर दाल गिरने से मां से लिपट कर रोने लगी थी, अब वही असह्य पीड़ा सहते हुए मां के पास बैठी रोती रहती थी.
आरुषी और साहस की शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी. एक दिन साहस ने आरुषी के पास आ कर कहा, ‘‘आरुषी शादी की तारीख नजदीक आ गई है, चलो आज थोड़ी शौपिग कर आते हैं. अभी तक हम ने शादी की कोई तैयारी नहीं की है.’’
आरुषी जोरजोर से रोने लगी. उस ने साहस से शादी के लिए मना कर दिया और कहा कि वह किसी दूसरी सुंदर लड़की से शादी कर ले. इस के बाद वह साहस से दूर रहने लगी, जो साहस से सहन नहीं हो रहा था.
आरुषी के इस व्यवहार से दुखी हो कर एक दिन साहस ने कहा, ‘‘आरुषी, तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम देखने में कैसी लगती हो. मैं ने तुम्हें पहली बार देखा था, तभी तुम्हारा भोलापन मुझे बहुत भा गया था. उसी समय तुम मेरे दिल में उतर गई थी. तुम अपनी ही कही बात भूल गई?
‘‘तुम ने ही तो कहा था कि अपना जीवनसाथी खूब प्यार करने वाला होना चाहिए. प्रेम करना आसान है, पर किसी का प्रेम पाना बहुत मुश्किल है. आरुषी, मैं सचमुच तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. जितना तुम मुझे करती हो, उस से भी बहुत ज्यादा. इसी तरह का जीवनसाथी चाहती थीं न तुम?’’
‘‘साहस, तब की बात अलग थी. अब मैं तुम्हारे लायक नहीं रही.’’ आरुषी ने कहा.
‘‘ऐसा क्यों कहती हो आरुषी? अगर यही घटना मेरे साथ घटी होती तो..? तो क्या तुम मुझे छोड़ देती? अगर शादी के बाद ऐसा होता तो… जवाब दो?’’
‘‘साहस, तुम समझने की कोशिश करो. अब मैं पहले जैसी नहीं रही.’’ आरुषी ने साहस को समझाने की कोशिश की.
आरुषी के इस व्यवहार से नाराज हो कर साहस वहां से चला गया. उस के जाने के लगभग एक घंटे बाद आरुषी के यहां फोन आया. आरुषी सहित घर के सभी लोग तुरंत अस्पताल भागे. अस्पताल पहुंच कर पता चला कि साहस ने लोहे का सरिया गरम कर के अपना चेहरा उतना ही दाग लिया था, जितना आरुषी का जला था. आरुषी ने साहस के पास जा कर उस का हाथ पकड़ कर रोते हुए कहा, ‘‘साहस, तुम ने यह क्या किया?’’
‘‘अब तो हम दोनों एक जैसे हो गए हैं न? अब मैं तुम्हारे लायक हो गया न? अब तो तुम शादी के लिए मना नहीं करोगी न?’’ साहस ने कहा.
‘‘सौरी साहस, तुम सचमुच मुझे बहुत प्यार करते हो. मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूं, तुम से भी ज्यादा. मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूंगी, कभी नहीं.’’
इस दृश्य को देख कर दोनों ही परिवारों के सभी लोगों की आंखें भर आईं. शायद इसे ही सच्चा प्यार कहते हैं. प्यार सुंदरता का मात्र आकर्षण नहीं होना चाहिए, प्यार तो एक दिल से दूसरे दिल तक पहुंचने का कठिन जरिया है.
साहस को देखते ही आरुषी के मम्मीपापा के मन में बेटी की शादी का विचार आ गया. आखिर आता क्यों न. साहस राजकुमार की तरह सुंदर था. फिर वह डाक्टर भी था. शादी में शामिल होने के लिए साहस के मम्मीपापा भी आए थे.
साहस ने आरुषी के मम्मीपापा से अपने मम्मीपापा को मिलवाया. बातचीत में उन लोगों का काफी पुराना परिचय निकल आया. साहस और आरुषी की शादी की बात चल निकली. 2 दिन बाद साहस अपनी मम्मीपापा के साथ शादी की बात करने आरुषी के घर आ पहुंचा.
उस दिन आरुषी और साहस बहुत खुश थे. सभी ने दोनों को बात करने के लिए घर के बाहर लौन में भेज दिया. लौन में लगे झूले पर बैठते हुए साहस ने पूछा, ‘‘अब तुम्हारा हाथ कैसा है आरुषी?’’
‘‘अब तो काफी ठीक है. आप ने बहुत सही समय पर बर्फ ला कर लगा दी थी, इसलिए ज्यादा तकलीफ नहीं हुई.’’ आरुषी ने कहा.
‘‘जरा अपना हाथ दिखाओ, देखूं तो कैसा है?’’
खूब शरमाते हुए आरुषी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो बहुत ही आराम से उस का हाथ पकड़ कर साहस देखने लगा. साहस के हाथ पकड़ने से आरुषी कुछ अलग तरह का रोमांच अनुभव कर रही थी, जिसे शायद साहस ने महसूस कर लिया था.
इस के बाद अपना दूसरा हाथ उस के हाथ पर रख कर सहलाने लगा. आरुषी ने अपनी नजरें झुका लीं. पर अपना हाथ साहस के हाथों से छुड़ाने की कोशिश नहीं की.
उसे साहस का स्पर्श अच्छा लग रहा था. इसी छोटी सी मुलाकात में साहस ने आरुषी के दिल की स्थिति समझ ली थी. उस ने पूछा, ‘‘आरुषी तुम्हें कैसा जीवनसाथी चाहिए?’’
‘‘बस, इस तरह का कि जितना प्यार मैं उस से करूं, वह उस से ज्यादा मुझे प्यार करे.’’ आरुषी ने कहा.
‘‘मैं समझा नहीं,’’ साहस ने कहा.
‘‘किसी को प्यार करना आसान है. पर किसी का प्यार पाना उतना ही मुश्किल है. आप किसी को प्यार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं. इसलिए मुझे इस तरह का जीवनसाथी चाहिए, जो मुझे बहुत ज्यादा प्यार करे. मैं जैसी हूं, मुझे उसी रूप में अपना सके.
‘‘मेरा रूप देख कर कोई मेरी ओर आकर्षित हो, मैं इसे जरा भी प्यार नहीं समझती. यह सुंदरता जीवन भर साथ थोड़े ही साथ देने वाली है. जो जीवनसाथी मुझे बदले बगैर प्यार कर सके, वही सच्चा प्यार है. मैं सुंदरता में जरा भी विश्वास नहीं करती. चेहरे की सुंदरता के बजाय हृदय सुंदर होना चाहिए.’’ आरुषी ने दिल की बात कह दी.
साहस एकटक आरुषी को ताकता रहा. अभी दोनों के हाथ एकदूसरे के हाथ में ही थे. दोनों में से किसी ने भी हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की थी. अपने दिल की बात कहने के बाद आरुषी ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसा जीवनसाथी चाहिए?’’
साहस ने छूटते ही कहा, ‘‘तुम्हारे जैसा.’’
‘‘क्या?’’ आरुषी चौंकी.
दोनों एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर एकदूसरे को ताकते रहे. तभी आरुषी और साहस की मम्मी दोनों को बुलाने लौन में आ गईं. दोनों के हाथों में एकदूसरे के हाथ देख कर वे समझ गईं कि इन के जवाब क्या होंगे. दोनों ही एकदूसरे की ओर देख कर मुसकराईं. इस के बाद आरुषी की मम्मी ने कहा, ‘‘आरुषी बेटा अंदर आओ, नाश्ता करने.’’
आरुषी और साहस ने जल्दी से अपनेअपने हाथ अलग किए और सामान्य होने की कोशिश करने लगे. थोड़ा सामान्य होने के बाद आरुषी बोली, ‘‘हां मम्मी, आप चलें, हम आते हैं.’’
आरुषी झूले से उठ कर घर के अंदर जातेजाते पलट कर साहस की ओर देख कर शरमा गई. दोनों को ही एकदूसरे का जवाब मिल चुका था. दोनों के मातापिता को भी उन के जवाब मिल गए थे. 10 दिन बाद उन की सगाई की तारीख रख दी गई.
दोनों के ही घर यह पहला शुभ प्रसंग था, इसलिए उन की सगाई खूब धूमधाम से हुई. अपने पापा की परी आरुषी उस दिन सचमुच परी सी लग रही थी. बड़ी खुशी और शांति के साथ आरुषी और साहस की सगाई की रस्म संपन्न हो गई थी. सभी बहुत खुश थे.
सगाई हो जाने के बाद आरुषी और साहस अकसर मिलने लगे थे. एक दिन आरुषी एक कैफे में बैठी साहस का इंतजार कर रही थी, तभी उस के कालेज के 4 लड़के उस के अगलबगल बैठ कर उस से छेड़छाड़ करने लगे. तभी साहस आ गया और उन लड़कों की हरकत देख कर गुस्से में बोला, ‘‘तुम लोग यहां क्या कर रहे हो, किसी लड़की से कोई इस तरह की हरकत करता है?’’
उन लड़कों में से एक लड़के ने कहा, ‘‘तू कौन है बे, जो बीच में आ टपका. हम आरुषी को 4 साल से जानते हैं.’’
‘‘मेहरबानी कर के ढंग से बात करो. तुम जिस तरह बात कर रहे हो, यह क्या कोई बात करने का तरीका है?’’ साहस ने कहा, ‘‘आरुषी, तुम इन लोगों को जानती हो?’’
‘‘हां, ये मेरे कालेज के गुंडे हैं. 4 साल से मुझे परेशान कर रहे हैं. मुझे अकेली देख कर यहां भी मुझे परेशान करने आ गए.’’
इस के बाद तो साहस और उन गुंडों के बीच हाथापाई शुरू हो गई. अंत में पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस के आने पर मामला शांत हुआ. जातेजाते वे गुंडे आरुषी को धमका गए. उस दिन पहली बार जिस सुंदरता पर आरुषी को घमंड था, उस पर उसे अफसोस हुआ.
आरुषी बहुत डर गई. साहस ने उसे तसल्ली दी. आरुषी ने कहा, ‘‘साहस इन लड़कों में एक लड़का मुझे बहुत दिनों से प्रपोज कर रहा था. पर मैं ने कभी उस की ओर ध्यान नहीं दिया. इसलिए अब वह गुंडागर्दी और धमकी पर उतर आया है.’’
‘‘आरुषी इन लोगों से डरने की जरूरत नहीं है. ये लोग तुम्हारा कुछ नहीं कर सकते.’’ साहस ने कहा.
‘‘साहस, ये ऐसेवैसे लड़के नहीं हैं. बहुत ही खतरनाक लोग हैं. सभी के सभी बड़े बाप की बिगड़ी औलादें हैं. हम लोग घर पहुंचेंगे, उस के पहले ही ये थाने से छूट जाएंगे. अब मैं कालेज नहीं जाऊंगी.’’ आरुषी ने कहा.
‘‘डरने की कोई बात नहीं है आरुषी. मैं तुम्हें कालेज से ले आने और ले जाने रोजाना आऊंगा.’’ साहस ने कहा.
पिछले एक घंटे से ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी आरुषी अभी सज ही रही थी. उस के पूरे कमरे में कपड़े ही कपड़े बिखरे हुए थे. अचानक किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया. पलट कर दरवाजे की ओर देखते हुए आरुषी ने पूछा, ‘‘कौन है?’’
दरवाजे के बाहर से आवाज आई, ‘‘बेटा मैं हूं, तुम्हारी मम्मी, अभी और कितनी देर लगेगी?’’
‘‘मम्मी अंदर आ जाइए, दरवाजा खुला है.’’ आरुषी ने ड्रेसिंग टेबल में लगे आईने में खुद को निहारते हुए कहा.
आरुषी के कमरे के अंदर आ कर इधरउधर देखते हुए मम्मी ने कहा, ‘‘यह क्या है आरुषी, कमरे की हालत तो देखो, किस तरह अस्तव्यस्त कर रखा है. अभी तुम शीशे के सामने ही बैठी हो. हमें 10 बजे तक शादी में पहुंचना था. घड़ी तो देखो, साढ़े 10 बज रहे हैं. इतनी सुंदर तो हो, फिर इतना सजने की क्या जरूरत है. इतने कपड़े पहनपहन कर फेंके हैं, तुम्हें थकान नहीं लगी?’’
आरुषी मम्मी के सामने आ कर दाहिने हाथ से आगे आई बाल की लट को पीछे धकेलते हुए बोली, ‘‘सांस ले लो मम्मी, मैं सारे कपड़े तह कर के रख दूंगी. तुम इस की चिंता मत करो. जरा यह बताओ, मैं कैसी लग रही हूं?’’
मम्मी ने आगे बढ़ कर ड्रेसिंग टेबल पर रखी काजल की डिब्बी से अंगुली में काजल लगा कर आरुषी के कान के पीछे टीका लगा दिया. मम्मी का हाथ पकड़ कर हटाते हुए आरुषी ने कहा, ‘‘मम्मी, तुम ने तो मेरे बाल ही खराब कर दिए, अब ये फिर से संवारने पड़ेंगे.’’
‘‘अब बस करो बेटा, देर हो रही है.’’
मम्मी की बात पूरी ही हुई थी कि आरुषी का छोटा भाई आरव उस के कमरे के बाहर आ कर चीखते हुए कहने लगा, ‘‘अभी कितनी देर लगेगी चुहिया दीदी, तुम्हारी वजह से पापा मुझ पर नाराज हो रहे हैं. जल्दी करो न दीदी.’’
‘‘चलो आ रही हूं. पापा मुझे कुछ नहीं कहेंगे. मैं तो लाडली हूं उन की. तुम ने कोई कांड किया होगा, इसलिए तुझ पर खीझे होंगे. कौवा कहीं का.’’
आरव कमरे के अंदर आ कर बोला, ‘‘मम्मी इस चुहिया से कह दो मुझे कौवा न कहे. इस के मुकाबले मेरा रंग थोड़ा गहरा जरूर है, पर कौवे की तरह तो नहीं है. सुन चुहिया, तेरी शादी नहीं है, जो इस तरह सज रही है. अरे, अपने रिश्तेदार की शादी है, जल्दी कर न.’’
आरुषी जल्दी से भाग कर पापा के पास पहुंची. पापा की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं पापा?’’
‘‘तू तो मेरा चांद है मेरी लाडली. भगवान ने तुझे फुरसत में बनाया है बेटा.’’
‘‘पापा चांद में तो दाग है. आप की लाडली के चेहरे पर तो एक खरोंच तक नहीं है.’’ आरुषी ने कहा.
पापा ने आरुषी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘नाराज हो गई मेरी बेटी, तू तो मेरी परी है. एक दिन कोई राजकुमार आ कर मेरी लाडली को अपने साथ ले जाएगा.’’
‘‘बस, पापा बस,’’ आरुषी ने पैर पटकते हुए कहा, ‘‘मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाली समझ गए न. और हां, मम्मी और आप का बेटा आरव कितनी देर लगा रहे हैं तैयार होने में.’’
दरवाजे से बाहर आते हुए आरव ने आरुषी की बात सुन ली थी. वह वहीं से चिल्लाया, ‘‘पापा, दीदी एकदम झूठ बोल रही है. यही एक घंटे से शीशे के सामने बैठ कर तैयार हो रही थी. और अब मेरा और मम्मी का नाम लगा रही है… चुहिया.’’
‘‘आरव बड़ी बहन को कोई इस तरह कहता है.’’ पापा ने कहा.
आरुषी खुश हो कर पापा न देख पाएं इस तरह जीभ निकाल कर आरव को चिढ़ाया. इस के बाद सभी कार में सवार हो कर जहां शादी हो रही थी, वहां के लिए रवाना हो गए.
आरुषी विवाह स्थल पर पहुंच कर जैसे ही कार से निकल कर बाहर खड़ी हुई, सभी की नजरें उसी पर टिक गईं.
रूप का अंबार, पापा की परी आरुषी अब शादी लायक हो चुकी थी. इसलिए हर कोई आरुषी को अपने घर की बहू बनाना चाहता था. और हर युवा दिल तो उसे देख कर अपनी धड़कन बना लेना चाहता था.
एक ओर विवाह की रस्में हो रही थीं तो दूसरी ओर खाना चल रहा था. आरुषी को बहुत जोर की भूख लगी थी. आरुषी खाना खाने के लिए प्लेट ले कर लाइन में लग गई. एक अंजान लड़का उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया. आरुषी उसे नजरअंदाज करते हुए खाने की चीजें उठाउठा कर प्लेट में रखती जा रही थी.
दाल काफी गरम थी. चमचा भर कर दाल वह प्लेट में डालने लगी तो चमचा पलट गया और सारी दाल उस के हाथ पर गिर गई. उस के मुंह से जोर की चीख निकल गई.
पीछे खड़ा लड़का दौड़ कर शरबत के काउंटर से बर्फ ले आया और आरुषी के हाथ पर रगड़ने लगा. आरुषी को थोड़ा आराम हुआ तो उस ने उस लड़के का आभार व्यक्त करते हुए उसे धन्यवाद कहा. इस के बाद उस लड़के ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘हाय, आई एम साहस. आई एम ए डाक्टर.’’
‘‘साहसजी, आप का बहुतबहुत आभार.’’ आरुषी ने कहा.
तभी आरुषी के मम्मीपापा आ गए. आरुषी छोटे बच्चे की तरह मम्मी से लिपट कर रोते हुए बताने लगी कि वह दाल से जल गई है. मम्मी ने उस के आंसू पोंछते हुए उसे सांत्वना दी तो वह शांत हुई. इस के बाद उस ने अपने मम्मीपापा से साहस का परिचय कराया.
इक्कीस वर्षीया पीहू ने जब कहा, ”मम्मी, प्लीज, डिस्टर्ब न करना, जरा एक कौल है,” तो नंदिता को हंसी आ गई. खूब जानती है वह ऐसी कौल्स. वह भी तो गुजरी है उम्र के इस पड़ाव से.
”हां, ठीक है,” इतना ही कह कर नंदिता ने पास में रखी पत्रिका उठा ली. पर मन आज अपनी इकलौती बेटी पीहू में अटका था.
पीहू सीए कर रही है. उस की इसी में रुचि थी तो उस ने और उस के पति विनय ने बेटी को अपना कैरियर चुनने की पूरी छूट दी थी. मुंबई में ही एसी बस से वह कालेज आयाजाया करती थी. पीहू और नंदिता की आपस की बौन्डिंग कमाल की थी. पीहू के कई लड़के, जो स्कूल से उस के दोस्त थे, के घर आनेजाने में कोई पाबंदी या मनाही नहीं रही. अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि नंदिता को यह लगा हो कि पीहू की किसी विशेष लड़के में कोई खास रुचि है. उलटा, लड़कों के जाने के बाद नंदिता ही पीहू को छेड़ती, ‘पीहू, इन में से कौन तुम्हें सब से ज्यादा अच्छा लगता है?’
पीहू अपनी बड़ी बड़ी खूबसूरत आंखों से मां को घूरती और फिर हंस देती, ‘आप क्यों पूछ रही हैं, मुझे पता है. जासूसी करने की कोई जरूरत नहीं. इन में से कोई मुझे अलग से वैसे पसंद नहीं है जैसे आप सोच रही हैं.’
नंदिता हंस पड़ती और बेटी के गाल पर किस कर देती.
इधर 6 महीनों से पीहू में अगर कोई बदलाव आता तो यह कैसे संभव होता कि उस की दोस्त जैसी मां नंदिता से छिपा रहता. नंदिता ने नोट किया था कि अब पीहू घर आने के बाद अपने फोन से चिपकी रहती है. कहीं भी फोन इधरउधर नहीं रखती है. पहले उस का फोन कहीं भी पड़ा रहता था. वह अपने काम करते हुए कभी फोन नहीं देखती थी. अब तो मम्मी, पापा से बात करते हुए भी वह अकसर फोन चैक करती रहती. हां, यह नया बदलाव था.
नंदिता पूरी तरह से समझ रही थी कि किसी लड़के से बात करती है पीहू और यह उन लड़कों में से नहीं है जो घर आते रहे हैं. पीहू के बचपन के दोस्त हैं क्योंकि पीहू बाकी सब से उस के पास बैठ कर भी फोन करती रहती पर यह जो नया फोन आता है, इस पर पीहू अलर्ट हो जाती है.
आजकल नंदिता को पीहू को औब्ज़र्व करने में बड़ा मजा आता. पीहू के कालेज जाने के बाद अगर नंदिता कभी उसे फोन करती तो वह हमेशा ही बहुत जल्दी में रख देती. विनय एक व्यस्त इंसान थे. नंदिता के मन में पीहू के साथ चल रहा यह खेल उस ने विनय को नहीं बताया था. कुछ बातें मां और बेटी की ही होती हैं, यह मानती थी नंदिता. नंदिता एक दिन जोर से हंस पड़ी जब उस ने देखा, पीहू नहाने जाते हुए भी फोन ले कर जा रही थी. नंदिता ने उसे छेड़ा, ‘अरे, फोन को भी नहलाने जा रही हो क्या? बाथरूम में भी फोन?’
पीहू झेंप गई, ‘मम्मी, गाने सुनूंगी.’ नंदिता को हंसी आ गई.
पीहू का फोन अकसर रात 9 बजे जरूर आता. उस समय पीहू अपने रूम में बिलकुल अकेली रहने की कोशिश करती. कभीकभी शरारत में यों ही नंदिता किसी काम से उस के रूम में जाती तो पीहू के अलर्ट चेहरे को देख मन ही मन नंदिता को खूब हंसी आती. मेरी बिटिया, तुम अभी इतनी सयानी नहीं हुई कि अपने चेहरे के बदलते रंग अपनी मां से छिपा लोगी. फोन किसी लड़के का ही है, यह बहुत क्लियर हो गया था क्योंकि पीहू के पास से निकलते हुए फोन से बाहर आती आवाज नंदिता को सुनाई दे गई तो शक की गुंजाइश थी ही नहीं.
एक दिन विनय भी औफिस की तैयारी कर रहे थे, पीहू के भी निकलने का टाइम था. उस ने जल्दीजल्दी में किचन में ही फोन चार्ज होने लगा दिया और नहाने चली गई. फोन बजा तो नंदिता ने नजर डाली और हंस पड़ी. नंबर ‘माय लव’ के नाम से सेव्ड था. फिर ‘माय लव’ की व्हाट्सऐप कौल भी आ गई. नंदिता मुसकरा रही थी. आज पकड़े गए, बच्चू, व्हाट्सऐप कौल पर लड़के की फोटो थी. नंदिता ने गौर से देखा, लड़का तो काफी स्मार्ट है, ठीक है पीहू की पसंद. इतने में भागती सी पीहू आई, तनावभरे स्वर में पूछा, ”मम्मी, मेरा फोन बजा क्या?”
”हां, बज तो रहा था.”
”किस का था?” पीहू ने चौकन्ने स्वर में पूछा. नंदिता समझ गई कि बेटी जानना चाह रही है कि मां को तो कुछ पता तो नहीं चला.
पीहू बेदिंग गाउन में खड़ी अब तक फोन चार्जर से निकाल चुकी थी. नंदिता ने अपनेआप को व्यस्त दिखाते हुए कहा, ”पता नहीं, टाइम नहीं था देखने का, रोटी बना रही थी. इस समय कुछ होश नहीं रहता मुझे फोनवोन देखने का.”
पीहू ने सामान्य होते हुए छेड़ा, ”हां, हां, पता है, आप इस समय 2 टिफ़िन और नाश्ता बना रही हैं, बहुत बिजी हैं,” और नंदिता को किस कर के किचन से निकल गई. विनय और पीहू के जाने के बाद नंदिता अपने खयालों में गुम हो गई, ठीक है, अगर पीहू के जीवन में कोई लड़का आया भी है तो इस में कोई बुराई वाली बात तो है नहीं. उम्र है प्यार की, प्यार होगा ही, कोई अच्छा लगेगा ही. आखिरकार मैं ने और विनय ने भी तो प्रेम विवाह किया था. आह, क्या दिन थे, सब नयानया लगता था. अगर कोई लड़का पीहू को पसंद है तो अच्छा है. इस उम्र में प्यार नहीं होगा तो कब होगा. रात को सोते समय उस की ख़ास स्माइल देख विनय ने पूछा, ”क्या बात है?”
सारांश ने बैठक में जा कर सब से क्षमा मांगी और अपने स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति को बैठा कर औफिस से सीधा चुनमुन के पास आ गया. उसे देखते ही चुनमुन खिल उठा. शीतल भी मन ही मन राहत महसूस कर रही थी. चुनमुन ने सारांश को अपने घर कपड़े बदलने भी तभी जाने दिया जब उस ने रात को चुनमुन के घर ठहरने का वादा किया. शीतल के आग्रह पर सारांश रात का खाना उन के साथ ही खाने को तैयार हो गया.
तेज बुखार के कारण चुनमुन की नींद बारबार खुल रही थी, इसलिए शीतल और सारांश उस के पास ही बैठे थे. अपनेपन की एक डोर दोनों को बांध रही थी. अपने जीवन के पिछले दिन दोनों एकदूसरे के साथ सा झा कर रहे थे. सारांश का जीवन तो कमोबेश सामान्य ही बीता था, पर शीतल एक भयंकर तूफान से गुजर चुकी थी. कुछ वर्षों पहले वह अपनी दादी के घर हिमाचल के सुदूर गांव में गई थी. उन का गांव मैक्लोडगंज के पास पड़ता था जहां अकसर सैलानी आतेजाते रहते हैं. एक रात वह ठंडी हवा का आनंद लेती हुई कच्ची सड़क पर मस्ती से चली जा रही थी. अचानक एक कार उस के पास आ कर रुकी. पीछे से किसी ने उस का मुंह दबोच लिया और उसे स्त्री जन्म लेने की सजा मिल गई.
अंधेरे में वह उस दानव का चेहरा भी न देख पाई और वह तो अपने पुरुषत्त्व का दंभ भरते हुए चलता बना. उसे तो पता भी नहीं कि एक नन्हा अंकुर वह वहीं छोड़ कर जा रहा है. शीतल का नन्हा चुनमुन. मातापिता ने शीतल पर चुनमुन को अनाथाश्रम में छोड़ कर विवाह करने का दबाव बनाया पर वह नहीं मानी. लोग तरहतरह की बातें कर के उस के मातापिता को तंग न करें, इसलिए उस ने घर से दूर आ कर रहने का निर्णय कर लिया. चुनमुन उस के लिए अपनी जान से बढ़ कर था.
चुनमुन का बुखार कम हुआ तो दोनों थोड़ी देर आराम करने के लिए लेट गए. सारांश की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह रहरह कर शीतल के बारे में सोच रहा था, ‘कितनी दर्दभरी जिंदगी जी रही हो तुम, जैसे कोई फिल्मी कहानी हो. इतनी पीड़ा सह कर भी चुनमुन का पालनपोषण ऐसा कि यह बाग का खिला हुआ फूल लगता है, टूट कर मुर झाया हुआ नहीं.
पुरुष के इतने वीभत्स रूप को देखने के बाद भी तुम मु झ से अपना दर्द बांट पाई. तुम शायद यह जानती हो कि हर पुरुष बलात्कारी नहीं होता. तुम्हारे इस विश्वास के लिए मैं तुम्हारा जितना सम्मान करूं, वह कम है. स्वयं जीवन की नकारात्मकता में जी रही हो और दूसरों को सकारात्मक ऊर्जा दे रही हो. तुम कितनी अच्छी हो, शीतल.’ शीतल को मन ही मन इस तरह सराहते हुए सारांश उस का सब से बड़ा प्रशंसक बन चुका था.
2-3 दिनों में चुनमुन का बुखार कम होना शुरू हो गया. औफिस के अलावा सारांश अपना सारा समय आजकल चुनमुन के साथ ही बिता रहा था. शीतल ने स्कूल से छुट्टियां ली हुई थीं, इसलिए बाहर से सामान आदि लाने का काम भी सारांश ही कर दिया करता था. उस का सहारा शीतल के लिए एक परिपक्व वृक्ष के समान था, फूलों से लदी बेल सी वह उस के बिना अधूरा अनुभव करने लगी थी स्वयं को. स्त्री एक लता ही तो है जो पुरुष का आश्रय पा कर और भी खिलती है तथा निस्वार्थ हो कर सब के लिए फलनाफूलना चाहती है.
चुनमुन का बुखार उतरा तो कामवाली बाई बीमार पड़ गई. दोनों घरों का काम लक्ष्मी ही देखती थी. उस ने शीतल को फोन पर सूचना दी और यह सूचना जब वह सारांश को देने पहुंची तो वह सिर पकड़ कर बैठ गया. रात को उस की मां नीलम का फोन आया था कि वे सुरभि के साथ 2 दिनों के लिए चमोली आ रही हैं. सिर्फ एक सप्ताह के लिए भारत आई थी सुरभि और सारांश से बिना मिले वापस नहीं जाना चाहती थी.
‘‘लगता है दोनों यहां आ कर काम में ही लगी रहेंगी,’’ सारांश ने निराश हो कर शीतल से कहा.
‘‘तुम क्यों फिक्र करते हो, मैं सब देख लूंगी,’’ शीतल के इन शब्दों से सारांश को कुछ राहत मिली और वह घर की चाबी शीतल को सौंप कर औफिस चला गया. सारांश की मां नीलम और सुरभि दोपहर को पहुंचने वाली थीं. शीतल ने चुनमुन की बीमारी के कारण पहले ही पूरे सप्ताह की छुट्टियां ली हुई थीं विद्यालय से.
सुरभि और मां सारांश की अनुपस्थिति में घर पहुंच गईं. शीतल के रहते उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हुई. सारांश के आने पर भी वह सारा घर संभाल रही थी. चुनमुन भी सारांश की मां से बहुत जल्दी घुलमिल गया.
2 दिन कैसे बीत गए, किसी को पता ही नहीं लगा. जाने से एक दिन पहले रात का खाना खाने के लिए शीतल ने सब को अपने घर पर बुलाया. घर की साजसज्जा, खाने का स्वाद, रहने का सलीका आदि से सारांश की मां शीतल से प्रभावित हुए बिना न रह सकीं. बैडरूम में पुराने गानों की सीडी और विभिन्न विषयों पर पुस्तकों का खजाना देख कर सुरभि को शीतल के शौक अपने जैसे ही लगे और वह प्रसन्नता से चहकती हुई हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ का आनंद लेने लगी. चुनमुन सारांश की मां से कहानियां सुन रहा था.
देररात भारी मन से वे शीतल के घर से आए. घर आ कर भी वे दोनों सारांश से शीतल और चुनमुन के बारे में ही बातें कर रही थीं. मौका पा कर सारांश ने शीतल की जिंदगी की दुखभरी कहानी दोनों को सुनाई और शीतल को घर की बहू बनाने का आग्रह किया. किंतु उसे जो शंका थी, वही हुआ. मां ने इस रिश्ते के लिए साफ इनकार कर दिया. सारांश के इस फैसले से सुरभि यद्यपि सहमत थी किंतु मां ने विभिन्न तर्क दे कर उस का मुंह बंद कर दिया. अगले दिन दोनों दिल्ली वापस चली गईं.