
आस्ट्रेलिया में 6 सप्ताह बिताने के बाद जया और राहुल जब वापस आए तो घर खोलते ही उन्हें हलकी सी गंध महसूस हुई. यह गंध इतने दिनों तक घर बंद होने के कारण थी. सफर की थकान के कारण राहुल और जया का मन चाय पीने को कर रहा था, जया बोली, ‘‘जानकी कल शाम पूजा के फ्रिज में दूध रख गई होगी, तुम खिड़कियां व दरवाजे खोलो राहुल, मैं तब तक दूध ले कर आती हूं.’’
‘‘दूध ले कर या चाय का और्डर कर के?’’ राहुल हंसा.
‘‘आस तो नाश्ते की भी है,’’ कह कर जया बाहर निकल गई. बराबर के फ्लैट में रहने वाले कपिल और पूजा से उन की अच्छी दोस्ती थी. कुछ देर बाद जया सकपकाई सी वापस आई और बोली, ‘‘कपिल और पूजा ने यह फ्लैट किसी और को बेच दिया है. मैं ने घंटी बजाई तो दरवाजा एक नेपाली लड़के ने खोला और पूजा के बारे में पूछा तो बोला कि वे तो अब यहां नहीं रहतीं, यह फ्लैट हमारे साहब ने खरीद लिया है.’’
जया अभी राहुल को नए पड़ोसी के बारे में बता ही रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी. जया ने जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा कि जानकी दूध के पैकेट लिए खड़ी थी.
‘‘माफ करना मैडम, आने में थोड़ी देर हो गई, पूजा मैडम का नया फ्लैट…’’
‘‘कोई बात नहीं,’’ जया ने बात काटी, ‘‘यह बता, पूजा मैडम कहां गईं?’’
‘‘7वें माले पर, मगर क्यों, यह नहीं मालूम,’’ जानकी ने रसोई में जाते हुए कहा.
‘‘चलो, है तो सोसायटी में ही, मिलने पर पूछेंगे कि तीसरे माले से 7वें माले पर क्यों चढ़ गई? चाय तो जानकी पिला देगी मगर नाश्ता तो खुद ही बनाना पड़ेगा,’’ जया ने राहुल से कहा.
‘‘नाश्ते के लिए इडलीसांभर और फल ला दूंगा.’’
राहुल के बाजार जाने के बाद दरवाजा बंद कर के जया मुड़ी ही थी कि फिर घंटी बजी. जया ने दरवाजा खोला. बराबर वाले फ्लैट का वही नेपाली लड़का एक ढकी हुई टे्र लिए खड़ा था. ‘‘साहब ने नाश्ता भिजवाया है,’’ कह कर उस ने बराबर वाले फ्लैट की ओर इशारा किया जहां एक संभ्रांत प्रौढ़ सज्जन दरवाजे पर ताला लगा रहे थे. ताला लगा कर वे जया की ओर मुड़े और मुसकरा कर बोले, ‘‘मैं आप का नया पड़ोसी आनंद हूं. मुझे पूजा और कपिल से आप के बारे में सब मालूम हो चुका है. आस्टे्रलिया की लंबी यात्रा के बाद आप थकी हुई होंगी इसलिए पूजा की जगह मैं ने आप के लिए नाश्ता बनवा दिया है.’’
‘‘आप ने तकलीफ क्यों की? राहुल गए हैं न नाश्ता लाने…’’
‘‘तो यह आप लंच में खा लेना,’’ आनंद नौकर की ओर मुड़े. ‘‘मुरली, टे्र अंदर टेबल पर रख दो.’’
मुरली ने लपक कर टे्र अंदर टेबल पर रख दी और फिर आनंद का ब्रीफकेस उठा कर लिफ्ट की ओर चला गया. ‘‘इतना संकोच करने की जरूरत नहीं है, बेटी,’’ आनंद ने प्यारभरे स्वर में कहा, ‘‘अब हम पड़ोसी हैं, एकदूसरे का सुखदुख बांटने वाले.’’
जया भावविह्वल हो गई, ‘‘थैंक यू, अंकल…’’
‘‘साहब, लिफ्ट आ गई,’’ मुरली ने पुकारा.
‘‘शाम को मिलते हैं, टेक केयर,’’ आनंद ने लिफ्ट की ओर जाते हुए कहा.
तभी राहुल आ गया और खुशबू सूंघते हुए बोला, ‘‘मैं गया तो था न नाश्ता लाने फिर तुम ने क्यों बना लिया?’’ ‘‘मैं ने नहीं बनाया, हमारे नए पड़ोस से आया है,’’ जया ने राहुल के मुंह में परांठे का टुकड़ा रखते हुए कहा, ‘‘खा कर देखो, क्या लाजवाब स्वाद है.’’
‘‘सच में मजा आ गया,’’ राहुल बैठते हुए बोला, ‘‘अब तो यही खाएंगे. परांठे तो बढि़या हैं, आनंद साहब कैसे हैं?’’
‘‘तुम्हें उन का नाम कैसे मालूम?’’ जया ने चौंक कर पूछा.
‘‘नीचे सोसायटी का सेके्रटरी श्रीनिवास मिल गया था. उसी ने बताया कि अमेरिकन बैंक के उच्चाधिकारी आनंद विधुर हैं, बच्चे भी कहीं और हैं. बस एक नौकर है जो उन की गाड़ी भी चलाता है इसलिए अकेलापन काटने के लिए ऐसा फ्लैट चाहते थे जिस की बालकनी से वे मेन रोड की रौनक देख सकें. अपनी बिल्ंिडग में जो फ्लैट बिकाऊ हैं उन से मेन रोड नजर नहीं आती. श्रीनिवास के कहने पर उन्होंने 7वें माले का फ्लैट ले तो लिया पर उस में रहने नहीं आए. बाद में श्रीनिवास को बगैर बताए उन्होंने कपिल से अपना फ्लैट बदल लिया. इस अदलाबदली का कमीशन न मिलने से श्रीनिवास बहुत चिढ़ा हुआ है.’’
जया हंसने लगी, ‘‘कपिल से या आनंद अंकल से?’’
‘‘अरे वाह, तुम ने उन्हें अंकल भी बना लिया?’’
‘‘जब उन्होंने मुझे बेटी कहा तो मुझे भी उन्हें अंकल कहना पड़ा. वैसे भी उन की उम्र के व्यक्ति को तो अंकल ही कहना चाहिए.’’ पेट भर नाश्ता करने के बाद दोनों आराम करने लगे. अगले रोज से काम पर जाना था इसलिए दोनों कुछ देर बाद उठे और घर का सामान लाने बाजार चले गए. लौटते समय लिफ्ट में आनंद मिल गए. अपने फ्लैट का ताला खोलने से पहले राहुल ने कहा, ‘‘अंकल, आज हमारे साथ चाय पीजिए.’’
‘‘जरूर पीऊंगा बेटा, मगर फिर कभी.’’
‘‘वह फिर कभी न जाने कब आए, अंकल,’’ जया बोली, ‘‘कल से काम पर जाने के बाद घर लौटने का कोई सही वक्त नहीं रहेगा.’’ आनंद अपने फ्लैट की चाबी मुरली को पकड़ा कर राहुल और जया के साथ अंदर आ गए. उन के चेहरे से लगा कि वे घर की सजावट से बहुत प्रभावित लग रहे हैं.
‘‘आस्ट्रेलिया का ट्रिप कैसा रहा?’’ आनंद ने बातचीत के दौरान पूछा.
‘‘बहुत बढि़या. मेरे छोटे भाई साहिल ने हमें खूब घुमाया. बहुत मजा आया. वैसे भी आस्टे्रलिया बहुत सुंदर है,’’ राहुल ने कहा.
‘‘वहां जा कर बसने का इरादा तो नहीं है?’’
‘‘अरे नहीं अंकल, रहने के लिए अपना देश ही सब से बढि़या है.’’
‘‘यह बात छोटे भाई को नहीं समझाई?’’
‘‘ऐसी बातें किसी के समझाने से नहीं, अपनेआप ही समझ आती हैं, अंकल.’’
‘‘यह बात तो है. मुझे भी औरों की बात समझ नहीं आई थी और जब आई तो बहुत देर हो चुकी थी,’’ आनंद ने लंबी सांस ले कर कहा.
‘‘कौन सी बात, अंकल?’’ जया ने पूछा.
‘‘यही कि अपना देश विदेशों से अच्छा है,’’ आनंद ने सफाई से बात बदली, ‘‘लंबे औफिस आवर्स हैं आप दोनों के?’’
‘‘मेरे तो फिर भी ठीक हैं लेकिन जया रायजादा गु्रप के चेयरमैन की पर्सनल सेके्रटरी है इसलिए यह अकसर देर से आती है,’’ राहुल ने बताया.
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वैसे तो रणबीर ग्रुप ने शहर में कई दर्शनीय इमारतें बनाई थीं, लेकिन उन के द्वारा नवनिर्मित ‘स्वप्नलोक’ वास्तुशिल्प में उन का अद्वितीय योगदान था. उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री एवं अन्य विशिष्ट व्यक्तियों की प्रशंसा के उत्तर में ग्रुप के चेयरमैन रणबीर ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘किसी भी प्रोजैक्ट की कामयाबी का श्रेय उस से जुड़े प्रत्येक छोटेबड़े व्यक्ति को मिलना चाहिए, इसीलिए मैं अपने सभी सहकर्मियों का बहुत आभारी हूं, खासतौर से अपने आर्किटैक्ट विभोर का जिन के बगैर मैं आज जहां खड़ा हूं वहां तक कभी नहीं पहुंचता.’’
समारोह के बाद जब विभोर ने रणबीर को धन्यवाद दिया तो उस ने सरलता से कहा, ‘‘किसी को भी उस के योगदान का समुचित श्रेय न देने को मैं गलत समझता हूं विभोर.’’
‘‘ऐसा है तो फिर मेरी सफलता का श्रेय तो मेरी सासससुर खासकर मेरी सास को मिलना चाहिए सर,’’ विभोर बोला, ‘‘यदि आप का इस सप्ताहांत कोई और कार्यक्रम न हो तो आप सपरिवार हमारे साथ डिनर लीजिए, मैं आप को अपने सासससुर से मिलवाना चाहता हूं.’’
‘‘मैं गरिमा और बच्चों के साथ जरूर आऊंगा विभोर. तुम्हारे सासससुर इसी शहर में रहते हैं?’’
‘‘जी हां, मैं उन के साथ यानी उन के ही घर में रहता हूं सर वरना मेरी इतनी बड़ी कोठी लेने की हैसियत कहां है…’’
‘‘कमाल है, अभी कुछ रोज पहले तो हम तुम्हारी प्रमोशन की पार्टी में तुम्हारे घर आए थे और उस से पहले भी आ चुके हैं, लेकिन उन से मुलाकात नहीं हुई कभी.’’
‘‘वे लोग मेरी पार्टियों में शरीक नहीं होते सर, न ही मेरी निजी जिंदगी में दखलंदाजी करते हैं. लेकिन मेरे बीवीबच्चों का पूरा खयाल रखते हैं. इसीलिए तो मैं इतनी एकाग्रता से अपना काम कर रहा हूं, क्योंकि न तो मुझे बीमार बच्चे को डाक्टर के पास ले जाना पड़ता है और न ही बीवी के अकेलेपन को दूर करने या गृहस्थी के दूसरे झमेलों के लिए समय निकालने की मजबूरी है. जब भी फुरसत मिलती है बेफिक्री से बीवीबच्चों के साथ मौजमस्ती कर के तरोताजा हो जाता हूं,’’ विभोर बोला.
‘‘ऋतिका इकलौती बेटी है?’’
‘‘नहीं सर, उस के 2 भाई अमेरिका में रहते हैं. पहले तो उन का वापस आने का इरादा था, मगर मेरे यहां आने के बाद दोनों लौटना जरूरी नहीं समझते. मिलने के लिए आते रहते हैं. कोठी इतनी बड़ी है कि किसी के आनेजाने से किसी को कोई दिक्कत नहीं होती.’’
रणबीर को ऋतिका के मातापिता बहुत ही सुलझे हुए, संभ्रांत और सौम्य
लगे. खासकर ऋतिका की मां मृणालिनी. न जाने क्यों उन्हें देख कर रणबीर को ऐसा लगा कि उस ने उन्हें पहले भी कहीं देखा है.
उस के यह कहने पर मृणालिनी ने बड़ी सादगी से कहा, ‘‘जरूर देखा होगा ‘दीपशिखा’ महिला क्लब के किसी समारोह या फिर अपनी शादी में,’’ मां की मृत्यु में कहना मृणालिनी ने मुनासिब नहीं समझा.
‘‘ठीक कहा आप ने,’’ रणबीर चहका, ‘‘किसी समारोह की तो याद नहीं, लेकिन बहुत सी तसवीरों में आप हैं मां के साथ.’’
‘‘मां की शादी से पहले की तसवीरों में भी देखा होगा, क्योंकि मैं और रुक्की शादी के पहले एक बार एनसीसी कैंप में मिली थीं और वहीं हमारी दोस्ती हुई थी.’’
रणबीर भावुक हो उठा. उस की मां रुक्मिणी को रुक्की उन के बहुत ही करीबी लोग कह सकते थे. रूप और धन के दंभ में अपने को विशिष्ट समझने वाली मां यह हक किसीकिसी को ही देती थीं यानी मृणालिनी उस की मां की अभिन्न सखी थीं.
‘‘विभोर को मालूम है कि मां आप की सहेली थीं?’’ रणबीर ने पूछा.
‘‘नहीं, क्योंकि उस का हमारे परिवार से जुड़ने से पहले ही रुक्की का देहांत हो गया था. विभोर बहुत मेहनती और लायक लड़का है,’’ मृणालिनी ने दर्प से कहा.
‘‘सही कह रही हैं आप. विभोर के बगैर तो मैं 1 कदम भी नहीं चल सकता. और अब तो मुझे आप का सहारा भी चाहिए मांजी. मां के देहांत के बाद आज आप से मिल कर पहली बार लगा जैसे मैं फिर से सिर्फ रणबीर बन कर जी सकता हूं.’’
‘‘गाहेबगाहे ही क्यों जब जी करे,’’ मृणालिनी ने स्नेह से उस का सिर सहलाते
हुए कहा.
‘‘रणबीर सर से क्या बातें हुईं मां?’’ अगली सुबह विभोर ने पूछा.
‘‘कुछ खास नहीं, बस उस की मां के बारे में,’’ मृणालिनी ने अनमने भाव से कहा.
‘‘पूरी शाम?’’ विभोर ने हैरानी से पूछा.
‘‘रुक्की थी ही ऐसी विभोर, उस के बारे में जितनी भी बातें की जाएं कम हैं, अमीर बाप की बेटी होने के बावजूद उस में रत्ती भर घमंड नहीं था. वह एनसीसी की अच्छी कैडेट थी. उस के बाप ने उसे रिवौल्वर इनाम में दिया था. मेरी निशानेबाजी से प्रभावित हो कर रुक्की ने अपने रिवौल्वर से मुझे प्रैक्टिस करवाई थी. तभी तो मुझे निशानेबाजी की प्रतियोगिता में इनाम मिला था.’’
‘‘लगता है मां अपनी सहेली की याद आने की वजह से विचलित हैं,’’ ऋतिका बोली.
‘‘और अब विचलित होने की बारी मेरी है, क्योंकि हम व्हिस्पर वैली में जो अरेबियन विलाज बना रहे हैं न उस बारे में मुझे आज रणबीर सर से विस्तृत विचारविमर्श करना है और अगर मां की याद में व्यथित होने के कारण उन्होंने मीटिंग टाल दी या दिलचस्पी नहीं ली तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी,’’ विभोर ने कहा.
लेकिन उस का खयाल गलत था. रणबीर ने बड़े उत्साह और दिलचस्पी से विभोर की प्रस्तावना पर विचार किया और सुझाव दिया, ‘‘अपने पास जमीन की कमी नहीं है विभोर. क्यों न तुम 2 को जोड़ कर पहले 1 बड़ा भव्य विला बनाओ. अगर लोगों को पसंद आया तो और वैसे बना देंगे.’’
‘‘लेकिन कीमत बहुत ज्यादा हो जाएगी सर और फिर कोई ग्राहक न मिला तो?’’
‘‘परवाह नहीं,’’ रणबीर ने उत्साह से कहा, ‘‘खुद के काम आ जाएगा. यही सोच कर बनाओ कि यह बेचने के लिए नहीं अपने लिए है. विभोर, तुम दूसरे काम उमेश और दिनेश को देखने दो. तुम इसी प्रोजैक्ट के निर्माण पर ध्यान दो और जल्दी यह काम पूरा करो. मैं सतबीर से कह दूंगा कि तुम्हें पैसे की दिक्कत न हो.’’
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पिछले दिनों मैं दीदी के बेटे नीरज के मुंडन पर मुंबई गई थी. एक दोपहर दीदी मुझे बाजार ले गईं. वे मेरे लिए मेरी पसंद का तोहफा खरीदना चाहती थीं. कपड़ों के एक बड़े शोरूम से जैसे ही हम दोनों बाहर निकलीं, एक गाड़ी हमारे सामने आ कर रुकी. उस से उतरने वाला युवक कोई और नहीं, विजय ही था. मैं उसे देख कर पल भर को ठिठक गई. वह भी मुझे देख कर एकाएक चौंक गया. इस से पहले कि मैं उस के पास जाती या कुछ पूछती वह तुरंत गाड़ी में बैठा और मेरी आंखों से ओझल हो गया. वह पक्का विजय ही था, लेकिन मेरी जानकारी के हिसाब से तो वह इन दिनों अमेरिका में है. मुंबई आने से 2 दिन पहले ही तो मैं मीनाक्षी से मिली थी.
उस दिन मीनाक्षी का जन्मदिन था. हम दोनों दिन भर साथ रही थीं. उस ने हमेशा की तरह अपने पति विजय के बारे में ढेर सारी बातें भी की थीं. उस ने ही तो बताया था कि उसी सुबह विजय का अमेरिका से जन्मदिन की मुबारकबाद का फोन आया था. विजय के वापस आने या अचानक मुंबई जाने के बारे में तो कोई बात ही नहीं हुई थी.
लेकिन विजय जिस तरह से मुझे देख कर चौंका था उस के चेहरे के भाव बता रहे थे कि उस ने भी मुझे पहचान लिया था. आज भी उस की गाड़ी का नंबर मुझे याद है. मैं उस के बारे में और जानकारी प्राप्त करना चाहती थी. लेकिन उसी शाम मुझे वापस दिल्ली आना था, टिकट जो बुक था. दीदी से इस बारे में कहती तो वे इन झमेलों में पड़ने वाले स्वभाव की नहीं हैं. तुरंत कह देतीं कि तुम अखबार वालों की यही तो खराबी है कि हर जगह खबर की तलाश में रहते हो.
दिल्ली आ कर मैं अगले ही दिन मीनाक्षी के घर गई. मन में उस घटना को ले कर जो संशय था मैं उसे दूर करना चाहती थी. मीनाक्षी से मिल कर ढेरों बातें हुईं. बातों ही बातों में प्राप्त जानकारी ने मेरे मन में छाए संशय को और गहरा दिया. मीनाक्षी ने बताया कि लगभग 6 महीनों से जब से विजय काम के सिलसिले में अमेरिका गया है उस ने कभी कोई पत्र तो नहीं लिखा हां दूसरे, चौथे दिन फोन पर बातें जरूर होती रहती हैं. विजय का कोई फोन नंबर मीनाक्षी के पास नहीं है, फोन हमेशा विजय ही करता है. विजय वहां रह कर ग्रीन कार्ड प्राप्त करने के जुगाड़ में है, जिस के मिलते ही वह मीनाक्षी और अपने बेटे विशु को भी वहीं बुला लेगा. अब पता नहीं इस के लिए कितने वर्ष लग जाएंगे.
मैं ने बातों ही बातों में मीनाक्षी को बहुत कुरेदा, लेकिन उसे अपने पति पर, उस के प्यार पर, उस की वफा पर पूरा भरोसा है. उस का मानना है कि वह वहां से दिनरात मेहनत कर के इतना पैसा भेज रहा है कि यदि ग्रीन कार्ड न भी मिले तो यहां वापस आने पर वे अच्छा जीवन बिता सकते हैं. कितन भोली है मीनाक्षी जो कहती है कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए ऐसी चुनौतियों को स्वीकार करना ही पड़ता है.
मीनाक्षी की बातें सुन कर, उस का विश्वास देख कर मैं उसे अभी कुछ बताना नहीं चाह रही थी, लेकिन मेरी रातों की नींद उड़ गई थी. मैं ने दोबारा मुंबई जाने का विचार बनाया, लेकिन दीदी को क्या कहूंगी? नीरज के मुंडन पर दीदी के कितने आग्रह पर तो मैं वहां गई थी और अब 1 सप्ताह बाद यों ही पहुंच गई. मेरी चाह को राह मिल ही गई. अगले ही सप्ताह मुंबई में होने वाले फिल्मी सितारों के एक बड़े कार्यक्रम को कवर करने का काम अखबार ने मुझे सौंप दिया और मैं मुंबई पहुंच गई.
वहां पहुंचते ही सब से पहले अथौरिटी से कार का नंबर बता कर गाड़ी वाले का नामपता मालूम किया. वह गाड़ी किसी अमृतलाल के नाम पर थी, जो बहुत बड़ी कपड़ा मिल का मालिक है. इस जानकारी से मेरी जांच को झटका अवश्य लगा, लेकिन मैं ने चैन की सांस ली. मुझे यकीन होने लगा कि मैं ने जो आंखों से देखा था वह गलत था. चलो, मीनाक्षी का जीवन बरबाद होने से बच गया. मैं फिल्मी सितारों के कार्यक्रम की रिपोर्टिंग में व्यस्त हो गई.
एक सुबह जैसे ही मेरा औटो लालबत्ती पर रुका, बगल में वही गाड़ी आ कर खड़ी हो गई. गाड़ी के अंदर नजर पड़ी तो देखा गाड़ी विजय ही चला रहा था. लेकिन जब तक मैं कुछ करती हरीबत्ती हो गई और वाहन अपने गंतव्य की ओर दौड़ने लगे. मैं ने तुरंत औटो वाले को उस सफेद गाड़ी का पीछा करने के लिए कहा. लेकिन जब तक आटो वाला कुछ समझता वह गाड़ी काफी आगे निकल गई थी. फिर भी उस अनजान शहर के उन अनजान रास्तों पर मैं उस कार का पीछा कर रही थी. तभी मैं ने देखा वह गाड़ी आगे जा कर एक बिल्डिंग में दाखिल हो गई. कुछ पलों के बाद मैं भी उस बिल्डिंग के गेट पर थी. गार्ड जो अभी उस गाड़ी के अंदर जाने के बाद गेट बंद ही कर रहा था मुझे देख कर पूछने लगा, ‘‘मेमसाहब, किस से मिलना है? क्या काम है?’’
‘‘यह अभी जो गाड़ी अंदर गई है वह?’’
‘‘वे बड़े साहब के दामाद हैं, मेमसाहब.’’
‘‘वे विजय साहब थे न?’’
‘‘हां, मेमसाहब. आप क्या उन्हें जानती हैं?’’
गार्ड के मुंह से हां सुनते ही मुझे लगा भूचाल आ गया है. मैं अंदर तक हिल गई. विजय, मिल मालिक अमृत लाल का दामाद? लेकिन यह कैसे हो सकता है? बड़ी मुश्किल से हिम्मत बटोर कर मैं ने कहा, ‘‘देखो, मैं जर्नलिस्ट हूं, अखबार के दफ्तर से आई हूं, तुम्हारे विजय साहब का इंटरव्यू लेना चाहती हूं. क्या मैं अंदर जा सकती हूं?’’
‘‘मेमसाहब, इस वक्त तो अंदर एक जरूरी मीटिंग हो रही है, उसी के लिए विजय साहब भी आए हैं. अंदर और भी बहुत बड़ेबड़े साहब लोग जमा हैं. आप शाम को उन के घर में उन से मिल लेना.’’
‘‘घर में?’’ मैं सोच में पड़ गई. अब भला घर का पता कहां से मिलेगा?
लगता था गार्ड मेरी दुविधा समझ गया. अत: तुरंत बोला, ‘‘अब तो घर भी पास ही है. इस हाईवे के उस तरफ नई बसी कालोनी में सब से बड़ी और आलीशान कोठी साहब की ही है.’’
मेरे लिए इतनी जानकारी काफी थी. मैं ने तुरंत औटो वाले को हाईवे के उस पार चलने के लिए कहा. विजय और उस का सेठ इस समय मीटिंग में हैं. यह अच्छा अवसर था विजय के बारे में जानकारी हासिल करने का. विजय से बात करने पर हो सकता है वह पहचानने से ही इनकार कर दे.
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गार्ड का कहना ठीक था. उस नई बसी कालोनी में जहां इक्कादुक्का कोठियां ही खड़ी थीं, हलके गुलाबी रंग की टाइलों वाली एक ही कोठी ऐसी थी जिस पर नजर नहीं टिकती थी. कोठी के गेट पर पहुंचते ही नजर नेम प्लेट पर पड़ी. सुनहरे अक्षरों में लिखा था ‘विजय’ हालांकि अब विजय का व्यक्तित्व मेरी नजर में इतना सुनहरा नहीं रह गया था.
औटो वाले को रुकने के लिए कह कर जैसे ही मैं आगे बढ़ी, गेट पर खड़े गार्ड ने पहले तो मुझे सलाम किया, फिर पूछा कि किस से मिलना है और मेरा नामपता क्या है?
‘‘मैं एक अखबार के दफ्तर से आई हूं.
मुझे तुम्हारे विजय साहब का इंटरव्यू लेना है,’’ कहते हुए मैं ने अपना पहचानपत्र उस के सामने रख दिया.
‘‘साहब तो इस समय औफिस में हैं.’’
‘‘घर में कोई तो होगा जिस से मैं बात कर सकूं?’’
‘‘मैडम हैं. पर आप रुकिए मैं उन से पूछता हूं,’’ कह उस ने इंटरकौम द्वारा विजय की पत्नी से बात की. फिर उस से मेरी भी बात करवाई. मेरे बताने पर मुझे अंदर जाने की इजाजत मिल गई.
अंदर पहुंचते ही मेरा स्वागत एक 25-26 वर्ष की बहुत ही सुंदर युवती ने किया. दूध जैसा सफेद रंग, लाललाल गाल, ऊंचा कद, तन पर कीमती गहने, कीमती साड़ी. गुलाबी होंठों पर मधुर मुसकान बिखेरते हुए वह बोली, ‘‘नमस्ते, मैं स्मृति हूं. विजय की पत्नी.’’
‘‘आप से मिल कर बहुत खुशी हुई. विजय साहब तो हैं नहीं. मैं आप से ही बातचीत कर के उन के बारे में कुछ जानकारी हासिल कर लेती हूं,’’ मैं ने कहा.
‘‘जी जरूर,’’ कहते हुए उस ने मुझे सोफे पर बैठने का इशारा किया. मेरे बैठते ही वह भी मेरे पास ही सोफे पर बैठ गई.
इतने में नौकर टे्र में कोल्डड्रिंक ले आया. मुझे वास्तव में इस की जरूरत थी. बिना कुछ कहे मैं ने हाथ बढ़ा कर एक गिलास उठा लिया. फिर जैसेजैसे स्मृति से बातों का सिलसिला आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे विजय की कहानी पर पड़ी धूल की परतें साफ होती गईं.
स्मृति विजय को कालेज के समय से जानती है. कालेज में ही दोनों ने शादी करना तय कर लिया था. विजय का तो अपना कोई है नहीं, लेकिन स्मृति के पिता, सेठ अमृतलाल को यह रिश्ता स्वीकार नहीं था. उन का कहना था कि विजय मात्र उन के पैसों की लालच में स्मृति से प्रेम का नाटक करता है. कितनी पारखी है सेठ की नजर, काश स्मृति ने उन की बात मान ली होती. वे स्मृति की शादी अपने दोस्त के बेटे से करना चाहते थे, जो अमेरिका में रहता था. लेकिन स्मृति तो विजय की दीवानी थी.
वाह विजय वाह, इधर स्मृति, उधर मीनाक्षी. 2-2 आदर्श, पतिव्रता पत्नियों का एकमात्र पति विजय, जिस के अभिनयकौशल की जितनी भी तारीफ की जाए कम है. स्मृति से थोड़ी देर की बातचीत में ही मेरे समक्ष पूरा घटनाक्रम स्पष्ट हो गया. हुआ यों कि जिन दिनों स्मृति को उस के पिता जबरदस्ती अमेरिका ले गए थे, विजय घबरा कर मुंबई की नौकरी छोड़ दिल्ली आ गया था और दिल्ली में उस ने मीनाक्षी से शादी कर ली. उधर अमेरिका पहुंचते ही सेठ ने स्मृति की सगाई कर दी, लेकिन स्मृति विजय को भुला नहीं पा रही थी. उस ने अपने मंगेतर को सब कुछ साफसाफ बता दिया. पता नहीं उस के मंगेतर की अपने जीवन की कहानी इस से मिलतीजुलती थी या उसे स्मृति की स्पष्टवादिता भा गई थी, उस ने स्मृति से शादी करने से इनकार कर दिया.
स्मृति की शादी की बात तो बनी नहीं थी. अत: वे दोनों यूरोप घूमने निकल गए. उस दौरान स्मृति ने विजय से कई बार संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी, क्योंकि विजय मुंबई छोड़ चुका था. 6 महीनों बाद जब वे मुंबई लौटे तो विजय को बहुत ढूंढ़ा गया, लेकिन सब बेकार रहा. स्मृति विजय के लिए परेशान रहती थी और उस के पिता उस की शादी को ले कर परेशान रहते थे.
एक दिन अचानक विजय से उस की मुलाकात हो गई. स्मृति बिना शादी किए लौट आई है, यह जान कर विजय हैरानपरेशान हो गया. उस की आंखों में स्मृति से शादी कर के करोड़पति बनने का सपना फिर से तैरने लगा.
मेरे पूछने पर स्मृति ने शरमाते हुए बताया कि उन की शादी को मात्र 5 महीने हुए हैं. मन में आया कि इसी पल उसे सब कुछ बता दूं. धोखेबाज विजय की कलई खोल कर रख दूं. स्मृति को बता दूं कि उस के साथ कितना बड़ा धोखा हुआ है. लेकिन मैं ऐसा न कर सकी. उस के मधुर व्यवहार, उस के चेहरे की मुसकान, उस की मांग में भरे सिंदूर ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया.
मेरे एक वाक्य से यह बहार, पतझड़ में बदल जाती. अत: मैं अपने को इस के लिए तैयार नहीं कर पाई. यह जानते हुए भी कि यह सब गलत है, धोखा है मेरी जबान मेरा साथ नहीं दे रही थी. एक तरफ पलदोपल की पहचान वाली स्मृति थी तो दूसरी तरफ मेरे बचपन की सहेली मीनाक्षी. मेरे लिए किसी एक का साथ देना कठिन हो गया. मैं तुरंत वहां से चल दी. स्मृति पूछती ही रह गई कि विजय के बारे में यह सब किस अखबार में, किस दिन छपेगा? खबर तो छपने लायक ही हाथ लगी थी, लेकिन इतनी गरम थी कि इस से स्मृति का घरसंसार जल जाता. उस की आंच से मीनाक्षी भी कहां बच पाती. ‘बाद में बताऊंगी’ कह कर मैं तेज कदमों से बाहर आ गई.
मैं दिल्ली लौट आई. मन में तूफान समाया था. बेचैनी जब असहनीय हो गई तो मुझे लगा कि मीनाक्षी को सब कुछ बता देना चाहिए. वह मेरे बचपन की सहेली है, उसे अंधेरे में रखना ठीक नहीं. उस के साथ हो रहे धोखे से उसे बचाना मेरा फर्ज है.
मैं अनमनी सी मीनाक्षी के घर जा पहुंची. मुझे देखते ही वह हमेशा की भांति खिल उठी. उस की वही बातें फिर शुरू हो गईं. कल ही विजय का फोन आया था. उस के भेजे क्व50 हजार अभी थोड़ी देर पहले ही मिले हैं. विजय अपने अकेलेपन से बहुत परेशान है. हम दोनों को बहुत याद करता है. दोनों की पलपल चिंता करता है वगैरहवगैरह. एक पतिव्रता पत्नी की भांति उस की दुनिया विजय से शुरू हो कर विजय पर ही खत्म हो जाती है.
मेरे दिमाग पर जैसे कोई हथौड़े चला रहा था. विजय की सफल अदाकारी से मन परेशान हो रहा था. लेकिन जबान तालू से चिपक गई. मुझे लगा मेरे मुंह खोलते ही सामने का दृश्य बदल जाएगा. क्या मीनाक्षी, विजय के बिना जी पाएगी? क्या होगा उस के बेटे विशु का?
मैं चुपचाप यहां से भी चली आई ताकि मीनाक्षी का भ्रम बना रहे. उस की मांग में सिंदूर सजा रहे. उस का घरसंसार बसा रहे. लेकिन कब तक?
‘सदा सच का साथ दो’, ‘सदा सच बोलो’, और न जाने कितने ही ऐसे आदर्श वाक्य दिनरात मेरे कानों में गूंजने लगे हैं, लेकिन मैं उन्हें अनसुना कर रही हूं. मैं उन के अर्थ समझना ही नहीं चाहती, क्योंकि कभी मीनाक्षी और कभी स्मृति का चेहरा मेरी आंखों के आगे घूमता रहता है. मैं उन के खिले चेहरों पर मातम की काली छाया नहीं देख पाऊंगी.
पता नहीं मैं सही हूं या गलत? हो सकता है कल दोनों ही मुझे गलत समझें. लेकिन मुझ से नहीं हो पाएगा. मैं तब तक चुप रहूंगी जब तक विजय का नाटक सफलतापूर्वक चलता रहेगा. परदा उठने के बाद तो आंसू ही आंसू रह जाने हैं, मीनाक्षी की आंखों में, स्मृति की आंखों में, सेठ अमृतलाल की आंखों में और स्वयं मेरी भी आंखों में. फिर भला विजय भी कहां बच पाएगा? डूब जाएगा आंसुओं के उस सागर में.
लेखक- कमल कपूर
भोर हुई तो चिरैया का मीठासुरीला स्वर सुन कर पूर्वा की नींद उचट गई. उस की रिस्टवाच पर नजर गई तो उस ने देखा अभी तो 6 भी नहीं बजे हैं. ‘छुट्टी का दिन है. न अरुण को दफ्तर जाना है और न सूर्य को स्कूल. फिर क्या करूंगी इतनी जल्दी उठ कर? क्यों न कुछ देर और सो लिया जाए,’ सोच कर उस ने चादर तान ली और करवट बदल कर फिर से सोने की कोशिश करने लगी. लेकिन फोन की बजती घंटी ने उस के छुट्टी के मूड की मिठास में कुनैन घोल दी. सुस्त मन के साथ वह फोन की ओर बढ़ी. इंदु भाभी का फोन था.
‘‘इंदु भाभी आप? इतनी सुबह?’’ वह बोली.
‘‘अब इतनी सुबह भी नहीं है पुरवैया रानी, तनिक परदा हटा कर खिड़की से झांक कर तो देख, खासा दिन चढ़ गया है. अच्छा बता, कल शाम सैर पर क्यों नहीं आई?’’
‘‘यों ही इंदु भाभी, जी नहीं किया.’’
‘‘अरी, आती तो वे सब देखती, जो इन आंखों ने देखा. जानती है, तेरे वे संदीप भाई हैं न, उन्होंने…’’
और आगे जो कुछ इंदु भाभी ने बताया उसे सुन कर तो जैसे पूर्वा के पैरों तले की जमीन ही निकल गई. रिसीवर हाथ से छूटतेछूटते बचा. अपनेआप को संभाल कर वह बोली, ‘‘नहीं इंदु भाभी, ऐसा हो ही नहीं सकता. मैं संदीप भाई को अच्छी तरह जानती हूं, वे ऐसा कर ही नहीं सकते. आप से जरूर देखने में गलती हुई होगी.’’
‘‘पूर्वा, मैं ने 2 फुट की दूरी से उस मोटी खड़ूस को देखा है. बस, लड़की कौन है, यह देख न पाई. उस की पीठ थी मेरी तरफ.’’
इंदु भाभी अपने खास अक्खड़ अंदाज में आगे क्या बोल रही थीं, कुछ सुनाई नहीं दे रहा था पूर्वा को. रिसीवर रख कर जैसेतैसे खुद को घसीटते हुए पास ही रखे सोफे तक लाई और बुत की तरह बैठ गई उस पर. सुबहसुबह यह क्या सुन लिया उस ने? साक्षी के साथ इतनी बड़ी बेवफाई कैसे कर सकते हैं संदीप भाई और वह भी इतनी जल्दी? अभी वक्त ही कितना हुआ है उस हादसे को हुए. बमुश्किल 8 महीने ही तो. हां, 8 महीने पहले की ही तो बात है, जब भोर होते ही इसी तरह फोन की घंटी बजी थी. वह दिन आज भी ज्यों का त्यों उस की यादों में बसा है…
उस रात पूर्वा बड़ी देर से अरुण और सूर्य के साथ भाई की शादी से लौटी थी. थकान और नींद से बुरा हाल था, इसलिए आते ही बिस्तर पर लेट गई थी. आंख लगी ही थी कि रात के सन्नाटे को चीरती फोन की घंटी ने उसे जगा दिया. घड़ी पर नजर गई तो देखा 4 बजे थे. ‘जरूर मां का फोन होगा… जब तक बेटी के सकुशल पहुंचने की खबर नहीं पा लेंगी उन्हें चैन थोड़े ही आएगा,’ सोचते हुए वह नींद में भी मुसकरा दी, लेकिन आशा के एकदम विपरीत संदीप का फोन था.
‘पूर्वा भाभी, मैं संदीप बोल रहा हूं,’ संदीप बोला.
वह चौंकी, ‘संदीप भाई आप? इतनी सुबह? सब ठीक तो है न?’
‘कुछ ठीक नहीं है पूर्वा भाभी, साक्षी चली गई,’ भीगे स्वर में वह बोला था.
‘साक्षी चली गई? कहां चली गई संदीप भाई? कोई झगड़ा हुआ क्या आप लोगों में? आप ने उसे रोका क्यों नहीं?’
‘भाभी… वह चली गई हमेशा के लिए…’
‘क्या? संदीप भाई, यह क्या कह रहे हैं आप? होश में तो हैं? कहां है मेरी साक्षी?’ पागलों की तरह चिल्लाई पूर्वा.
‘पूर्वा, वह मार्चुरी में है… हम अस्पताल में हैं… अभी 2-3 घंटे और लगेंगे उसे घर लाने में, फिर जल्दी ही ले जाएंगे उसे… तुम समझ रही हो न पूर्वा? आखिरी बार अपनी सहेली से मिल लेना…’ यह सुनंदा दीदी थीं. संदीप भाई की बड़ी बहन.
फोन कट चुका था, लेकिन पूर्वा रिसीवर थामे जस की तस खड़ी थी. तभी अपने कंधे पर किसी हाथ का स्पर्श पा कर डर कर चीख उठी वह.
‘अरेअरे, यह मैं हूं पूर्वा,’ अरुण ने सामने आ कर उसे बांहों में भर लिया, ‘बहुत बुरा हुआ पूर्वा… मैं ने सब सुन लिया है. अब संभालो खुद को,’ उसे सहारा दे कर अरुण पलंग तक ले गए और तकिए के सहारे बैठा कर कंबल ओढ़ा दिया, ‘सब्र के सिवा और कुछ नहीं किया जा सकता है पूर्वा. मुझे संदीप के पास जाना चाहिए,’ कोट पहनते हुए अरुण ने कहा तो पूर्वा बोली, ‘मैं भी चलूंगी अरुण.’
‘तुम अस्पताल जा कर क्या करोगी? साक्षी तो…’ कहतेकहते बात बदल दी अरुण ने, ‘सूर्य जाग गया तो रोएगा.’
अरुण दरवाजे को बाहर से लौक कर के चले गए. कैसे न जाते? उन के बचपन के दोस्त थे संदीप भाई. उन की दोस्ती में कभी बाल बराबर भी दरार नहीं आई, यह पूर्वा पिछले 9 साल से देख रही थी. पिछली गली में ही तो रहते हैं, जब जी चाहता चले आते. यों तो संदीप अरुण के हमउम्र थे, लेकिन विवाह पहले अरुण का हुआ था. संदीप भाई को तो कोई लड़की पसंद ही नहीं आती थी. खुद तो देखने में ठीकठाक ही थे, लेकिन अरमान पाले बैठे थे स्वप्नसुंदरी का, जो उन्हें सुनंदा दीदी के देवर की शादी में कन्या पक्ष वालों के घर अचानक मिल गई. बस, संदीप भाई हठ ठान बैठे और हठ कैसे न पूरा होता? आखिर मांबाप के इकलौते बेटे और 2 बहनों के लाड़ले छोटे भाई जो थे. लड़की खूबसूरत, गुणवान और पढ़ीलिखी थी, फिर भी मां बहुत खुश नहीं थीं, क्योंकि उन की तुलना में लड़की वालों का आर्थिक स्तर बहुत कम था. लड़की के पिता भी नहीं थे. बस मां और एक छोटी बहन थी.
बिना मंगनीटीका या सगाई के सीधे विवाह कर दुलहन को घर ले आए थे संदीप भाई के घर वाले. साक्षी सुंदर और सादगी की मूरत थी. पूर्वा ने जब पहली बार उसे देखा था, तो संगमरमर सी गुडि़या को देखती ही रह गई थी.
संदीप भाई के विवाह के 18वें दिन बाद सूर्य का पहला जन्मदिन था और साक्षी ने पार्टी का सारा इंतजाम अपने हाथों में ले लिया था.
संदीप भाई बहुत खुश और संतुष्ट थे अपनी पत्नी से, लेकिन घोर अभावों में पली साक्षी को काफी वक्त लगा था उन के घर के साथ सामंजस्य बैठाने में. फिर 5 महीने बाद जब साक्षी ने बताया कि वह मां बनने वाली है तो संदीप भाई खुशी से नाच उठे थे. पलकों पर सहेज कर रखते थे उसे.
डाक्टर ने सुबहशाम की सैर बताई थी साक्षी को और यह जिम्मेदारी संदीप भाई ने पूर्वा को सौंप दी थी यह कहते हुए कि पूर्वा भाभी, आप तो सुबहशाम सैर पर जाती हैं न, मेरी इस बावली को भी ले जाया करें. मेरी तो ज्यादा चलने की आदत नहीं.
और सुबहशाम की सुहानी सैर ने पूर्वा और साक्षी के दिलों के तारों को जैसे जोड़ दिया था. साक्षी चलतेचलते थक जाती तो पार्क की बेंच पर बैठ जाती और छोटी से छोटी बात भी उसे बताती, ‘पूर्वा भाभी, बाकी सब तो ठीक है. संदीप तो जान छिड़कते हैं मुझ पर, लेकिन मम्मीजी मुझे ज्यादा पसंद नहीं करतीं. गाहेबगाहे सीधे ही ताना देती हैं कि मैं खाली हाथ ससुराल आई हूं, एक से एक धन्नासेठ उन के घर संदीप के लिए रिश्ता ले कर आते रहे पर… और दुनिया में गोरी चमड़ी ही सब कुछ नहीं होती वगैरहवगैरह.’
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रक्षाबंधन पर मैं मायके गई तो भैया ने मेरे ननदोई सुधीर जीजाजी के विषय में कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मुझे विश्वास नहीं हुआ.
‘‘नहीं भैया, ऐसा हो ही नहीं सकता, जरूर आप को कोई भ्रम हुआ होगा.’’
‘‘नहीं अनु, मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ. पिछले महीने औफिस के काम से दिल्ली गया तो सोचा, सुधीर से भी मिल लूं क्योंकि उन से मुलाकात हुए काफी अरसा हो चुका था. काम से फारिग होने के बाद जब मैं सुधीर के घर पहुंचा तो वे मुझे अचानक आया हुआ देख कर कुछ घबरा से गए. उन्होंने मेरा स्वागत वैसा नहीं किया जैसा कि मेरे पहुंचने पर अकसर किया करते थे. तभी मेरी नजर शोकेस में रखी एक तसवीर पर गई. उस तसवीर में सुधीर के साथ संध्या नहीं, कोई और युवती थी. जब मैं बाथरूम से फ्रैश हो कर आया तो वह तसवीर वहां से गायब थी लेकिन वह तसवीर वाली युवती ही उन की रसोई में चायनाश्ता तैयार कर रही थी.’’
‘‘भैया, हो सकता है वह उन की मेड हो.’’
‘‘शायद मैं भी यही समझता, अगर मैं ने वह तसवीर न देखी होती.’’
‘‘देखने में कैसी थी वह युवती?’’ मैं अपनी उत्सुकता छिपा न सकी.
देखने में सुंदर मगर बहुत ही साधारण थी. एक बात और मैं ने नोटिस की, मेरे अचानक आ जाने से वह सुधीर की तरह असहज नहीं थी, बिलकुल सामान्य नजर आ रही थी. उस के हाथ की चाय और नाश्ते में आलूप्याज की पकौडि़यों और सूजी के हलवे के स्वाद से ही मैं ने जान लिया था कि वह साक्षात अन्नपूर्णा होने के साथसाथ एक कुशल गृहिणी है.
‘‘सुधीर जीजाजी ने आप का उस से परिचय नहीं करवाया?’’
‘‘उस को चायनाश्ते के लिए कहते वक्त सुधीर शायद मुझे यह दर्शा रहे थे कि वह उन की मेड है लेकिन उन के साथ उस की तसवीर, फिर तसवीर का गायब होना और मेरी उपस्थिति से सुधीर का असहज होना इस बात की तरफ साफ संकेत कर रहा था कि वह युवती उन की मेड नहीं बल्कि कुछ और है.’’
‘‘भैया, इस विषय में हमें संध्या दी को तुरंत बता देना चाहिए,’’ मैं ने उतावले स्वर में कहा.
‘‘नहीं अनु, इस विषय में तुम संध्या दी को कुछ नहीं बताओगी,’’ भैया के बजाय भाभी बड़े ही कठोर और आदेशात्मक लहजे में बोलीं. ‘‘भाभी, आप एक औरत हो कर भी औरत के साथ अन्याय की बात कर रही हैं. संध्या दी मेरे पति की सगी बहन हैं, मेरी ननद हैं. जैसे मैं आप की ननद हूं’’ ‘‘जानती हूं मैं, संध्या आप के पति की सगी बहन है, लेकिन 14 साल पहले वह अपने पति से बुरी तरह लड़झगड़ कर अपनी मरजी से अपनी दोनों बेटियों को ले कर मायके आ गई थी. सुधीर और उन के परिवार वालों ने लाख कोशिश की कि वह लौट आए लेकिन हर बार उन्हें संध्या दी ने अपमानित किया. ऐसी स्थिति में सुधीर के मांबाप ने चाहा भी कि दोनों का तलाक हो जाए लेकिन संध्या दी पर तो जैसे जिंदगीभर सुधीर को परेशान करने का जनून सवार था. शायद इसी वजह से उस ने सुधीर को तलाक भी नहीं दिया.’’
‘‘जानती हो अनु, जब तुम्हारी संध्या दी ने अपना ससुराल छोड़ा था तब अपने पति के मुंह पर थूक कर गई थी. तो भला, कौन पति अपनी ऐसी बेइज्जती सहेगा? इतना सबकुछ हो जाने के बावजूद, सुधीर की इंसानियत और बड़प्पन देखो कि वे उस का और दोनों बेटियों का पूरा खर्चा बिना किसी हीलहुज्जत के नियम से दे रहे हैं. उन की हर सुखसुविधा का खयाल भी रखते हैं. महीने में उन से मिलने भी आते हैं.’’
‘‘यह तो उन का फर्ज है, भाभी. वे एक पिता और पति भी हैं,’’ मैं ने संध्या दी का पक्ष लेते हुए कहा. ‘‘सारे फर्ज सुधीर के ही हैं, तुम्हारी संध्या दी के कुछ भी नहीं,’’ भाभी कड़वे स्वर में बोलीं, ‘‘अनु, तुम ही बताओ तुम्हारी संध्या दी ने शादी के बाद अपने पति को क्या सुख दिया? उन का जीवन खराब कर दिया. कभी उन्हें मानसिक शांति नहीं मिली. मुझे तो आश्चर्य होता है कि उन की बेटियां कैसे हो गईं? उन्हें तो सुधीर के सान्निध्य से ही घिन आती थी. उन के हर काम, व्यवहार में उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश में लगी रहती थीं. उन के कपड़े धोना तो दूर, उन्हें हाथ तक न लगाती थी. उन्हें खाने तक के लिए तरसा दिया था. वे बेचारे मां के पास खाते तो उन पर ताने कसती, उन पर व्यंग्य करती. तो बताओ अनु, क्या ऐसी औरत से हम सहानुभूति रखें? ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो अपने पति और ससुराल वालों
इतना कर्कश व्यवहार रखती हैं. एक अच्छी और सुघड़ औरत वह होती है जो परिवार को तोड़ती नहीं, बल्कि जोड़ती है. लेकिन तुम्हारी संध्या दी ने तो जोड़ना नहीं, तोड़ना सीखा है. प्रेम और मिलनसार व्यवहार जैसे शब्द तो शायद उन के शब्दकोश में हैं ही नहीं. सच पूछो, तो मुझे बेहद खुशी है कि सुधीर उस औरत के साथ हंसीखुशी रह रहे हैं.’’
‘‘भाभी, आप जो कुछ कह रही हैं वह हम सब जानते हैं. न वे व्यवहार की अच्छी हैं न स्वभाव की. जबान की भी बेहद कड़वी हैं या दूसरे शब्दों में कहें वे शुद्ध खालिस स्वार्थ की प्रतिमा हैं. मायके में भी किसी से नहीं बनी, तभी तो किराए के मकान में रह रही हैं. लेकिन एक औरत होने के नाते हमें ऐसा होने से रोकना चाहिए और संध्या दी को सबकुछ बता देना चाहिए.’’
‘‘अनु, इस मामले में मेरी सोच तुम से जुदा है. मैं भी एक औरत हूं लेकिन इस प्रकरण में मैं सुधीर का साथ दूंगी क्योंकि हर जगह आदमी ही गलत नहीं होता. 95 प्रतिशत मामलों में दोषी न होते हुए भी पुरुषों को ही दोषी ठहराया जाता है. अगर एक पति अपनी कर्कशा पत्नी को पूरा खर्चा दे रहा है, अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहा है और इस के एवज में अगर वह अपना एकाकीपन दूर करने के लिए एक औरत के साथ सुखी, संतुष्ट और तनावमुक्त जीवन जी रहा है तो इस में गलत क्या है? वह औरत भी पूरी सचाई से वाकिफ है, तो बुरा क्या है. प्लीज, जैसा चल रहा है, चलने दो. इस बारे में संध्या को बताने का मतलब साफ है कि सुधीर का जीवन पहले से और भी बदतर हो जाना क्योंकि संध्या की फितरत से वाकिफ हूं मैं.’’
‘‘लेकिन भाभी, उस औरत को अंत में क्या हासिल होगा? कानूनी रूप से तो संध्या ही उन की पत्नी हैं. सुधीर जीजाजी के न रहने पर उन की सारी संपत्ति, जमीनजायदाद और पैंशन पर तो संध्या दी का ही हक होगा. यह सब छिपा कर हम उस औरत के साथ भी तो एक तरह से अन्याय ही कर रहे हैं,’’ मैं ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘नहीं अनु, तुम किसी के साथ कोई अन्याय नहीं कर रही हो. मैं जानती हूं, सुधीर जैसे नेकदिल इंसान मात्र अपने सुख और स्वार्थ के लिए उस औरत के साथ कोई धोखा नहीं करेंगे, न ही उसे अंधेरे में रखेंगे. पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ वे अपना रिश्ता निभाएंगे. मुझे पूरा विश्वास है सुधीर जैसे पढ़ेलिखे, समझदार और दूरदर्शी व्यक्ति ने उस के सुखी और सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ न कुछ प्रबंध अवश्य कर दिया होगा.
‘‘रही बात संध्या की, तो ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो बिना वजह अपने पति और ससुराल वालों को प्रताडि़त कर के उन्हें कानूनी धमकी दे कर अपने मायके आ जाती हैं. इस श्रेणी में तुम्हारी संध्या दी भी आती हैं. यह बात मैं ही नहीं, तुम और तुम्हारे ससुराल वाले और यहां तक कि दोनों तरफ के रिश्तेदार व पड़ोसी भी जानते हैं. इसलिए यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ती हूं कि तुम संध्या को बता कर सुधीर की खुशहाल जिंदगी में जहर घुलवाओगी या चुप रह कर उन की वर्तमान खुशियां बरकरार रखोगी,’’ कह कर भाभी चुप हो गईं.
जानती हूं मैं, भाभी ने जो कुछ कहा है वह एकदम सच कहा है क्योंकि सुधीर जीजाजी उन के करीबी रिश्तेदार हैं. उन्होंने अपना दर्द उन से बयां किया है. मैं अजीब कशमकश में हूं कि एक निर्दोष आदमी की खुशियों की खातिर चुप रहूं या फिर एक कटु, कठोर व कर्कशा औरत के न्याय के लिए बोलूं… फिर भी यह तो मैं भी मानती हूं कि पतिपत्नी के रिश्ते को चाहे वह पति हो या पत्नी, कोई एक भी उस रिश्ते को तोड़ने का जिम्मेदार है तो कुसूरवार वही है. ऐसे में दोषी के साथ सहानुभूति दिखाना बेकुसूर के साथ बेइंसाफी होगी. सुधीर जीजाजी को पूरा हक है कि वे अपनी जिंदगी को नए सिरे से संवारें.
कहते हैं इंसान को जब किसी से प्यार होता है तो जिंदगी बदल जाती है. खयालों का मौसम आबाद हो जाता है और दिल का साम्राज्य कोई लुटेरा लूट कर ले जाता है.
प्यार के सुनहरे धागों से जकड़ा इंसान कुछ भी करने की हालत में नहीं होता सिवाए अपने दिलबर की यादों में गुम रहने के. कुछ ऐसा ही होने लगा था मेरे साथ भी. हालांकि मैं सिर्फ अपने एहसासों के बारे में जानती थी.
इत्सिंग क्या सोचता है इस बारे में मुझे जानकारी नहीं थी. इत्सिंग से परिचय हुए ज्यादा दिन भी तो नहीं हुए थे. 3 माह कोई लंबा वक्त नहीं होता.
मैं कैसे भूल सकती हूं 2009 के उस दिसंबर महीने को जब दिल्ली की ठंड ने मुझे रजाई में दुबके रहने को विवश किया हुआ था. कभी बिस्तर पर, कभी रजाई के अंदर तो कभी बाहर अपने लैपटौप पर चैटिंग और ब्राउजिंग करना मेरा मनपसंद काम था.
हाल ही में मैं ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से चाइनीज लैंग्वेज में ग्रैजुएशन कंप्लीट किया था.
आप सोचेंगे मैं ने चाइनीज भाषा ही क्यों चुनी? दरअसल, यह दुनिया की सब से कठिन भाषा मानी जाती है और इसी वजह से यह पिक्टोग्राफिक भाषा मुझे काफी रोचक लगी. इसलिए मैं ने इसे चुना. मैं कुछ चीनी लोगों से बातचीत कर इस भाषा में महारत हासिल करना चाहती थी ताकि मुझे इस के आधार पर कोई अच्छी नौकरी मिल सके.
मैं ने इंटरनैट पर लोगों से संपर्क साधने का प्रयास किया तो मेरे आगे इत्सिंग का प्रोफाइल खुला. वह बीजिंग की किसी माइन कंपनी में नौकरी करता था और खाली समय में इंटरनैट सर्फिंग किया करता.
मैं ने उस के बारे में पढ़ना शुरू किया तो कई रोचक बातें पता चलीं. वह काफी शर्मीला इंसान था. उसे लौंग ड्राइव पर जाना और पेड़पौधों से बातें करना पसंद था. उस की हौबी पैंटिंग और सर्फिंग थी. वह जिंदगी में कुछ ऐसा करना चाहता था जो दुनिया में हमेशा के लिए रह जाए. यह सब पढ़ कर मुझे उस से बात करने की इच्छा जगी. वैसे भी मुझे चाइनीस लैंग्वेज के अभ्यास के लिए उस की जरूरत थी.
काफी सोचविचार कर मैं ने उस से बातचीत की शुरुआत करते हुए लिखा, “हैलो इत्सिंग.”
हैलो का जवाब हैलो में दे कर वह गायब हो गया. मुझे कुछकुछ अजीब सा लगा लेकिन मैं ने उस का पीछा नहीं छोड़ा और फिर से लिखा,” कैन आई टौक टू यू?”
उस का एक शब्द का जवाब आया, “यस”
“आई लाइक्ड योर प्रोफाइल,” कह कर मैं ने बात आगे बढ़ाई.
“थैंक्स,” कह कर वह फिर खामोश हो गया.
उस ने मुझ से मेरा परिचय भी नहीं पूछा. फिर भी मैं ने उसे अपना नाम बताते हुए लिखा,” माय सैल्फ रिद्धिमा फ्रौम दिल्ली. आई हैव डन माई ग्रैजुएशन इन चाइनीज लैंग्वेज. आई नीड योर हैल्प टू इंप्रूव इट. विल यू प्लीज टीच मी चाइनीज लैंग्वेज?”
इस का जवाब भी इत्सिंग ने बहुत संक्षेप में दिया,” ओके बट व्हाई मी? यू कैन टौक टू ऐनी अदर पीपल आलसो.”
“बिकौज आई लाइक योर थिंकिंग. यू आर वेरी डिफरैंट. प्लीज हैल्प मी.”
“ओके,” कह कर वह खामोश हो गया पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. उस से बातें करना जारी रखा. धीरेधीरे वह भी मुझ से बातें करने लगा. शुरुआत में काफी दिन हम चाइनीज लैंग्वेज में नहीं बल्कि इंग्लिश में ही चैटिंग करते रहे. बाद में उस ने मुझे चाइनीज सिखानी भी शुरू की. पहले हम ईमेल के द्वारा संवाद स्थापित करते थे. पर अब तक व्हाट्सएप आ गया था सो हम व्हाट्सएप पर चैटिंग करने लगे.
व्हाट्सएप पर बातें करतेकरते हम एकदूसरे के बारे में काफी कुछ जाननेसमझने लगे. मुझे इत्सिंग का सीधासाधा स्वभाव और ईमानदार रवैया बहुत पसंद आ रहा था. उस की सोच बिलकुल मेरे जैसी थी. वह भी अन्याय बरदाश्त नहीं कर सकता था. शोशेबाजी से से दूर रहता और महिलाओं का सम्मान करता. उसे भी मेरी तरह फ्लर्टिंग और बटरिंग पसंद नहीं थी.
आज हमें बातें करतेकरते 3-4 महीने से ज्यादा समय गुजर चुका था. इतने कम समय में ही मुझे उस की आदत सी हो गई थी. वह मेरी भाषा नहीं जानता था पर मुझे बहुत अच्छी तरह समझने लगा था. उस की बातों से लगता जैसे वह भी मुझे पसंद करने लगा है. मैं इस बारे में अभी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी. पर मेरा दिल उसे अपनाने की वकालत कर चुका था. मैं उस के खयालों में खोई रहने लगी थी. मैं समझ नहीं पा रही थी कि उस से अपनी फीलिंग्स शेयर करूं या नहीं.
एक दिन मेरी एक सहेली मुझ से मिलने आई. उस वक्त मैं इत्सिंग के बारे में ही सोच रही थी. सहेली के पूछने पर मैं ने उसे सब कुछ सचसच बता दिया.
वह चौंक पड़ी,”तुझे चाइनीज लड़के से प्यार हो गया? जानती भी है कितनी मुश्किलें आएंगी? इंडियन लड़की और चाइनीज लड़का…. पता है न उन का कल्चर कितना अलग होता है? रहने का तरीका, खानापीना, वेशभूषा सब अलग.”
“तो क्या हुआ? मैं उन का कल्चर स्वीकार कर लूंगी.”
“और तुम्हारे बच्चे? वे क्या कहलाएंगे इंडियन या चाइनीज?”
“वे इंसान कहलाएंगे और हम उन्हें इंडियन कल्चर के साथसाथ चाइनीज कल्चर भी सिखाएंगे.”
मेरा विश्वास देख कर मेरी सहेली भी मुसकरा पड़ी और बोली,” यदि ऐसा है तो एक बार उस से दिल की बात कह कर देख.”
मुझे सहेली की बात उचित लगी. अगले ही दिन मैं ने इत्सिंग को एक मैसेज भेजा जिस का मजमून कुछ इस प्रकार था,”इत्सिंग क्यों न हम एक ऐसा प्यारा सा घर बनाएं जिस में खेलने वाले बच्चे थोड़े इंडियन हों तो थोड़े चाइनीज.”
“यह क्या कह रही हैं आप रिद्धिमा? यह घर कहां होगा इंडिया में या चाइना में?” इत्सिंग ने भोलेपन से पूछा तो मैं हंस पड़ी,”घर कहीं भी हो पर होगा हम दोनों का. बच्चे भी हम दोनों के ही होंगे. हम उन्हें दोनों कल्चर सिखाएंगे. कितना अच्छा लगेगा न इत्सिंग.”
मेरी बात सुन कर वह अचकचा गया था. उसे बात समझ में आ गई थी पर फिर भी क्लियर करना चाहता था.
“मतलब क्या है तुम्हारा? आई मीन क्या सचमुच?”
“हां इत्सिंग, सचमुच मैं तुम से प्यार करने लगी हूं. आई लव यू.”
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