Story in Hindi

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दर्द से उसे यों तड़पता देख कर उस ने दूध मेज पर रखा तथा उस के पास ‘क्या हुआ’ कहती हुई आई. उस के आते ही उस ने हाथपैर ढीले छोड़ दिए तथा सांस रोक कर ऐसे लेट गया मानो जान निकल गई हो. वह बचपन से तालाब में तैरा करता था, अत: 5 मिनट तक सांस रोक कर रखना उस के बाएं हाथ का खेल था.
सुलेखा ने उस के शांत पड़े शरीर को छूआ, थोड़ा झकझोरा, कोई हरकत न पा कर बोली, ‘‘लगता है, यह तो मर गए…अब क्या करूं…किसे बुलाऊं?’’
मनीष को उस की यह चिंता भली लगी. अभी वह अपने नाटक का अंत करने की सोच ही रहा था कि सुलेखा की आवाज आई :
‘‘सुयश, हमारे बीच का कांटा खुद ही दूर हो गया.’’
‘‘क्या, तुम सच कह रही हो?’’
‘‘विश्वास नहीं हो रहा है न, अभीअभी हार्टअटैक से मनीष मर गया. अब हमें विवाह करने से कोई नहीं रोक पाएगा…मम्मी, पापा के कहने से मैं ने मनीष से विवाह तो कर लिया पर फिर भी तुम्हारे प्रति अपना लगाव कम नहीं कर सकी. अब इस घटना के बाद तो उन्हें भी कोई एतराज नहीं होगा.
‘‘देखो, तुम्हें यहां आने की कोई आवश्यकता नहीं है. बेवजह बातें होंगी. मैं नीलेश भाई साहब को इस बात की सूचना देती हूं, वह आ कर सब संभाल लेंगे…आखिर कुछ दिनों का शोक तो मुझे मनाना ही होगा, तबतक तुम्हें सब्र करना होगा,’’ बातों से खुशी झलक रही थी.
‘पहले दूध पी लूं फिर पता नहीं कितने घंटों तक कुछ खाने को न मिले,’ बड़बड़ाते हुए सुलेखा ने दूध का गिलास उठाया और पास पड़ी कुरसी पर बैठ कर पीने लगी.
मनीष सांस रोके यह सब देखता, सुनता और कुढ़ता रहा. दूध पी कर वह उठी और बड़बड़ाते हुए बोली, ‘अब नीलेश को फोन कर ही देना चाहिए…’ उसे फोन मिला ही रही थी कि मनीष उठ कर बैठ गया.’
‘‘तुम जिंदा हो,’’ उसे बैठा देख कर अचानक सुलेखा के मुंह से निकला.
‘‘तो क्या तुम ने मुझे मरा समझ लिया था…?’’ मनीष बोला, ‘‘डार्लिंग, मेरे शरीर में हलचल नहीं थी पर दिल तो धड़क रहा था. लेकिन खुशी के अतिरेक में तुम्हें नब्ज देखने या धड़कन सुनने का भी ध्यान नहीं रहा. तुम ने ऐसा क्यों किया सुलेखा? जब तुम किसी और से प्यार करती थीं तो मेरे साथ विवाह क्यों किया?’’
‘‘तो क्या तुम ने सब सुन लिया?’’ कहते हुए वह धम्म से बैठ गई.
‘‘हां, तुम्हारी सचाई जानने के लिए मुझे यह नाटक करना पड़ा था. अगर तुम उस के साथ रहना चाहती थीं तो मुझ से एक बार कहा होता, मैं तुम दोनों को मिला देता, पर छिपछिप कर उस से मिलना क्या बेवफाई नहीं है.
‘‘10 महीने मेरे साथ एक ही कमरे में मेरी पत्नी बन कर गुजारने के बावजूद आज अगर तुम मेरी नहीं हो सकीं तो क्या गारंटी है कल तुम उस से भी मुंह नहीं मोड़ लोगी…या सुयश तुम्हें वही मानसम्मान दे पाएगा जो वह अपनी प्रथम विवाहित पत्नी को देता…जिंदगी एक समझौता है, सब को सबकुछ नहीं मिल जाता, कभीकभी हमें अपनों के लिए समझौते करने पड़ते हैं, फिर जब तुम ने अपने मातापिता के लिए समझौता करते हुए मुझ से विवाह किया तो उस पर अडिग क्यों नहीं रह पाईं…अगर उन्हें तुम्हारी इस भटकन का पता चलेगा तो क्या उन का सिर शर्म से नीचा नहीं हो जाएगा?’’
‘‘मुझे माफ कर दो, मनीष. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई,’’ सुलेखा ने उस के कदमों पर गिरते हुए कहा.
‘‘अगर तुम इस संबंध को सच्चे दिल से निभाना चाहती हो तो मैं भी सबकुछ भूल कर आगे बढ़ने को तैयार हूं और अगर नहीं तो तुम स्वतंत्र हो, तलाक के पेपर तैयार करवा लेना, मैं बेहिचक हस्ताक्षर कर दूंगा…पर इस तरह की बेवफाई कभी बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा.’’
उसी समय सुलेखा का मोबाइल खनखना उठा…
‘‘सुयश, आइंदा से तुम मुझे न तो फोन करना और न ही मिलने की कोशिश करना…मेरे वैवाहिक जीवन में दरार डालने की कोशिश, अब मैं बरदाश्त नहीं करूंगी,’’ कहते हुए सुलेखा ने फोन काट दिया तथा रोने लगी.
उस के बाद फिर फोन बजा पर सुलेखा ने नहीं उठाया. रोते हुए बारबार उस के मुंह से एक ही बात निकल रही थी, ‘‘प्लीज मनीष, एक मौका और दे दो…अब मैं कभी कोई गलत कदम नहीं उठाऊंगी.’’
उस की आंखों से निकलते आंसू मनीष के हृदय में हलचल पैदा कर रहे थे पर मनीष की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस की बात पर विश्वास करे या न करे. जो औरत उसे पिछले 10 महीने से बेवकूफ बनाती रही…और तो और जिसे उस की अचानक मौत इतनी खुशी दे गई कि उस ने डाक्टर को बुला कर मृत्यु की पुष्टि कराने के बजाय अपने प्रेमी को मृत्यु की सूचना ही नहीं दी, अपने भावी जीवन की योजना बनाने से भी नहीं चूकी…उस पर एकाएक भरोसा करे भी तो कैसे करे और जहां तक मौके का प्रश्न है…उसे एक और मौका दे सकता है, आखिर उस ने उस से प्यार किया है, पर क्या वह उस से वफा कर पाएगी या फिर से वह उस पर वही विश्वास कर पाएगा…मन में इतना आक्रोश था कि वह बिना सुलेखा से बातें किए करवट बदल कर सो गया.
दूसरा दिन सामान्य तौर पर प्रारंभ हुआ. सुबह की चाय देने के बाद सुलेखा नाश्ते की तैयारी करने लगी तथा वह पेपर पढ़ने लगा. तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा मनीष ने खोला तो सामने किसी अजनबी को खड़ा देख वह चौंका पर उस से भी अधिक वह आगंतुक चौंका.
वह कुछ कह पाता इस से पहले ही मनीष जैसे सबकुछ समझ गया और सुलेखा को आवाज देते हुए अंदर चला गया, पर कान बाहर ही लगे रहे.
सुलेखा बाहर आई. सुयश को खड़ा देख कर चौंक गई. वह कुछ कह पाता इस से पहले ही तीखे स्वर में सुलेखा बोली, ‘‘जब मैं ने कल तुम से मिलने या फोन करने के लिए मना कर दिया था उस के बाद भी तुम्हारी यहां मेरे घर आने की हिम्मत कैसे हुई. मैं तुम से कोई संबंध नहीं रखना चाहती…आइंदा मुझ से मिलने की कोशिश मत करना.’’
सुयश का उत्तर सुने बिना सुलेखा ने दरवाजा बंद कर दिया और किचन में चली गई. आवाज में कोई कंपन या हिचक नहीं थी.
वह नहाने के लिए बाथरूम गया तो सबकुछ यथास्थान था. तैयार हो कर बाहर आया तो नाश्ता लगाए सुलेखा उस का इंतजार कर रही थी. नाश्ता भी उस का मनपसंद था, आलू के परांठे और मीठा दही.
आफिस जाते समय उस के हाथ में टिफिन पकड़ाते हुए सुलेखा ने सहज स्वर में पूछा, ‘‘आज आप जल्दी आ सकते हैं. रीजेंट में बाबुल लगी है…अच्छी पिक्चर है.’’
‘‘देखूंगा,’’ न चाहते हुए भी मुंह से निकल गया.
गाड़ी स्टार्ट करते हुए मनीष सोच रहा था कि वास्तव में सुलेखा ने स्वयं को बदल लिया है या दिखावा करने की कोशिश कर रही है. सचाई जो भी हो पर वह उसे एक मौका अवश्य देगा.
अलीना बाजी के बेटे की सालगिरह फरवरी में थी. उन्होंने फोन कर के कहा कि वह अपने बेटे अशर की सालगिरह नानी के घर मनाएंगी. मैं और अम्मी बहुत खुश हुए. बडे़ उत्साह से पूरे घर को ब्राइट कलर से पेंट करवाया. कुछ नया फर्नीचर भी लिया. एक हफ्ते बाद अलीना आपी अपने शौहर समर के साथ आ गईं. घर के डेकोरेशन को देख कर वह बहुत खुश हुईं.
सालगिरह के दिन सुबह से ही सब काम शुरू हो गए. दोस्तोंरिश्तेदारों सब को बुलाया. मैं और अम्मी नाश्ते के बाद इंतजाम के बारे में बातें करने लगे. खाना और केक बाहर से आर्डर पर बनवाया था. उसी वक्त अलीना आपी आईं और अम्मी से कहने लगीं, ‘‘अम्मी, ये लीजिए झूमर संभाल कर रख लीजिए और मुझे वे कर्णफूल दे दीजिए. आज मैं अशर की सालगिरह में पहनूंगी.’’
अम्मी ने मुझ से कहा, ‘‘जाओ मलीहा, वह डिबिया निकाल कर ले आओ.’’ मैं ने डिबिया ला कर अम्मी के हाथ पर रख दी. आपी ने बड़ी बेसब्री से डिबिया उठा कर खोली. लेकिन डिबिया खुलते ही वह चीख पड़ीं, ‘‘अम्मी कर्णफूल तो इस में नहीं है.’’
अम्मी ने झपट कर डिबिया उन के हाथ से ले ली. वाकई डिबिया खाली थी. अम्मी एकदम हैरान सी रह गईं. मेरे तो जैसे हाथोंपैरों की जान ही निकल गई. अलीना आपी की आंखों में आंसू आ गए थे. उन्होंने मुझे शक भरी नजरों से देखा तो मुझे लगा कि काश धरती फट जाए और मैं उस में समा जाऊं.
अलीना आपी गुस्से में जा कर अपने कमरे में लेट गईं. मैं ने और अम्मी ने अलमारी का कोनाकोना छान मारा, पर कहीं भी कर्णफूल नहीं मिले. अजब पहेली थी. मैं ने अपने हाथ से डिबिया अलमारी में रखी थी. उस के बाद कभी निकाली भी नहीं थी. फिर कर्णफूल कहां गए?
एक बार ख्याल आया कि कुछ दिनों पहले चाचाचाची आए थे और चाची दादी के जेवरों की वजह से अम्मी से बहुत जलती थीं. क्योंकि सब कीमती चीजें उन्होंने अम्मी को दी थीं. कहीं उन्होंने ही तो मौका देख कर नहीं निकाल लिए कर्णफूल. मैं ने अम्मी से कहा तो वह कहने लगीं, ‘‘मुझे नहीं लगता कि वह ऐसा कर सकती हैं.’’
फिर मेरा ध्यान घर पेंट करने वालों की तरफ गया. उन लोगों ने 3-4 दिन काम किया था. संभव है, भूल से कभी अलमारी खुली रह गई हो और उन्हें हाथ साफ करने का मौका मिल गया हो. अम्मी कहने लगीं, ‘‘नहीं बेटा, बिना देखे बिना सुबूत किसी पर इलजाम लगाना गलत है. जो चीज जानी थी, चली गई. बेवजह किसी पर इलजाम लगा कर गुनहगार क्यों बनें.’’
सालगिरह का दिन बेरंग हो गया. किसी का दिल दिमाग ठिकाने पर नहीं था. अलीना आपी के पति समर भाई ने सिचुएशन संभाली, प्रोग्राम ठीकठाक हो गया. दूसरे दिन अलीना ने जाने की तैयारी शुरू कर दी. अम्मी ने हर तरह से समझाया, कई तरह की दलीलें दीं, समर भाई ने भी समझाया, पर वह रुकने के लिए तैयार नहीं हुईं. मैं ने उन्हें कसम खा कर यकीन दिलाना चाहा, ‘‘मैं बेकुसूर हूं, कर्णफूल गायब होने के पीछे मेरा कोई हाथ नहीं है.’’
लेकिन उन्हें किसी बात पर यकीन नहीं आया. उन के चेहरे पर छले जाने के भाव साफ देखे जा सकते थे. शाम को वह चली गईं तो पूरे घर में एक बेमन सी उदासी पसर गईं. मेरे दिल पर अजब सा बोझ था. मैं अलीना आपी से शर्मिंदा भी थी कि अपना वादा निभा न सकी.
पिछले 2 सालों में अलीना आपी सिर्फ 2 बार अम्मी से मिलने आईं, वह भी 2-3 दिनों के लिए. आती तो मुझ से तो बात ही नहीं करती थीं. मैं ने बहन के साथ एक अच्छी दोस्त भी खो दी थी. बारबार सफाई देना फिजूल था. खामोशी ही शायद मेरी बेगुनाही की जुबां बन जाए. यह सोच कर मैं ने चुप्पी साध ली. वक्त बड़े से बड़ा जख्म भर देता है. शायद ये गम भी हलका पड़ जाए.
मामूली सी आहट पर मैं ने सिर उठा कर देखा, नर्स खड़ी थी. वह कहने लगी, ‘‘पेशेंट आप से मिलना चाहती हैं.’’
मैं अतीत की दुनिया से बाहर आ गई. मुंह धो कर मैं अम्मी के पास आईसीयू में पहुंच गई. अम्मी काफी बेहतर थीं. मुझे देख कर उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकराहट आ गईं. वह मुझे समझाने लगीं, ‘‘बेटी, परेशान न हो, इस तरह के उतारचढ़ाव तो जिंदगी में आते ही रहते हैं. उन का हिम्मत से मुकाबला कर के ही हराया जा सकता है.’’
मैं ने उन्हें हल्का सा नाश्ता कराया. डाक्टरों ने कहा, ‘‘इन की हालत काफी ठीक है. आज रूम में शिफ्ट कर देंगे. 2-4 दिन में छुट्टी दे दी जाएगी. हां, दवाई और परहेज का बहुत खयाल रखना पड़ेगा. ऐसी कोई बात न हो, जिस से इन्हें स्ट्रेस पहुंचे.’’
शाम तक अलीना आपी भी आ गईं. मुझ से बस सलामदुआ हुई. वह अम्मी के पास रुकीं. मैं घर आ गई. 3 दिनों बाद अम्मी भी घर आ गई. अब उन की तबीयत अच्छी थी. हम उन्हें खुश रखने की भरसक कोशिश करते रहे. एक हफ्ता तो अम्मी को देखने आने वालों में गुजर गया.
मैं ने औफिस जौइन कर लिया. अम्मी के बहुत इसरार पर आपी कुछ दिन रुकने को राजी हो गईं. जिंदगी सुकून से गुजरने लगी. अब अम्मी हलकेफुलके काम कर लेती थीं. अलीना आपी और उन के बेटे की वजह से घर में अच्छी रौनक थी.उस दिन छुट्टी थी, मैं घर की सफाई में जुट गई. अम्मी कहने लगीं, ‘‘बेटा, गाव तकिए फिर बहुत सख्त हो गए हैं. एक बार खोल कर रुई तोड़ कर भर दो.’’
अन्नामां तकिए उठा लाईं और उन्हें खोलने लगीं. फिर मैं और अन्नामां रुई, तोड़ने लगीं. कुछ सख्त सी चीज हाथ को लगीं तो मैं ने झुक कर नीचे देखा. मेरी सांस जैसे थम गईं. दोनों कर्णफूल रुई के ढेर में पड़े थे. होश जरा ठिकाने आए तो मैं ने कहा, ‘‘देखिए अम्मी ये रहे कर्णफूल.’’
आपी ने कर्णफूल उठा लिए और अम्मी के हाथ पर रख दिए. अम्मी का चेहरा खुशी से चमक उठा. जब दिल को यकीन आ गया कि कर्णफूल मिल गए और खुशी थोड़ी कंट्रोल में आई तो आपी बोलीं, ‘‘ये कर्णफूल यहां कैसे?’’
अम्मी सोच में पड़ गईं. फिर रुक कर कहने लगीं, ‘‘मुझे याद आया अलीना, उस दिन भी तुम लोग तकिए की रुई तोड़ रहीं थीं. तभी मैं कर्णफूल निकाल कर लाई थी. हम उन्हें देख ही रहे थे, तभी घंटी बजी थी. मैं जल्दी से कर्णफूल डिबिया में रखने गई, पर हड़बड़ी में घबरा कर डिबिया के बजाय रुई में रख दिए और डिबिया तकिए के पीछे रख दी थी.
‘‘कर्णफूल रुई में दब कर छिप गए. कश्मीरी शाल वाले के जाने के बाद डिबिया तो मैं ने अलमारी में रखवा दी, लेकिन कर्णफूल रुई में दब कर रुई के साथ तकिए में भर गए. मलीहा ने तकिए सिले और कवर चढ़ा कर रख दिए. हम समझते रहे कि कर्णफूल डिबिया में अलमारी में रखे हैं. जब अशर की सालगिरह के दिन अलीना ने तुम से कर्णफूल मांगे तो पता चला कि उस में कर्णफूल है ही नहीं. अलीना तुम ने सारा इलजाम मलीहा पर लगा दिया.’’
अम्मी ने अपनी बात खत्म कर के एक गहरी सांस छोड़ी. अलीना के चेहरे पर फछतावा था. दुख और शर्मिंदगी से उन की आंखें भर आईं. वह दोनों हाथ जोड़ कर मेरे सामने खडी हो गईं. रुंधे गले से कहने लगीं, ‘‘मेरी बहन मुझे माफ कर दो. बिना सोचेसमझे तुम पर दोष लगा दिया. पूरे 2 साल तुम से नाराजगी में बिता दिए. मेरी गुडि़या, मेरी गलती माफ कर दो.’’
मैं तो वैसे भी प्यारमोहब्बत को तरसी हुई थी. जिंदगी के रेगिस्तान में खड़ी हुई थी. मेरे लिए चाहत की एक बूंद अमृत के समान थी. मैं आपी से लिपट कर रो पड़ी. आंसुओं से दिल में फैली नफरत व जलन की गर्द धुल गई. अम्मी कहने लगीं, ‘‘अलीना, मैं ने तुम्हें पहले भी समझाया था कि मलीहा पर शक न करो. वह कभी भी तुम से छीन कर कर्णफूल नहीं लेगी. उस का दिल तुम्हारी चाहत से भरा है. वह कभी तुम से छल नहीं करेगी.’’
आपी बोलीं, ‘‘अम्मी, आप की बात सही है, पर एक मिनट मेरी जगह खुद को रख कर सोचिए, मुझे एंटिक ज्वैलरी का दीवानगी की हद तक शौक है. ये कर्णफूल बेशकीमती एंटिक पीस हैं, मुझे मिलने चाहिए. पर आप ने मलीहा को दे दिए. मुझे लगा कि मेरी इल्तजा सुन कर वह मान गई, फिर उस की नीयत बदल गई. उस की चीज थी, उस ने गायब कर दी, ऐसा सोचना मेरी खुदगर्जी थी, गलती थी. इस की सजा के तौर पर मैं इन कर्णफूल का मोह छोड़ती हूं. इन पर मलीहा का ही हक है.’’
मैं जल्दी से आपी से लिपट कर बोली, ‘‘ये कर्णफूल आप के पहनने से मुझे जो खुशी होगी, वह खुद के पहनने से नहीं होगी. ये आप के हैं, आप ही लेंगी.’’
अम्मी ने भी समझाया, ‘‘बेटा जब मलीहा इतनी मिन्नत कर रही है तो मान जाओ, मोहब्बत के रिश्तों के बीच दीवार नहीं आनी चाहिए. रिश्ते फूलों की तरह नाजुक होते हैं, नफरत व शक की धूप उन्हें झुलसा देती है, फिर खुद टूट कर बिखर जाते हैं.’’
मैं ने खुलूसे दिल से आपी के कानों में कर्णफूल पहना दिए. सारा माहौल मोहब्बत की खुशबू से महक उठा.???
”हां, और आप भी समय पर दवाएं खाते रहिएगा. ज्यादा तलाभुना भी मत खाइएगा,” रूबी ने परेशानी के भाव चेहरे पर लाते हुए कहा.
रणबीर के आ जाने से कई दिनों तक रूबी और अजय सिंह मिल नहीं पा रहे थे. अब आज रणबीर के जाने के बाद उन्हें जी भर कर जिस्म का सुख उठाने का मौका मिलने वाला था.
रूबी के फोन करते ही अजय सिंह उस के घर आ गया और दोनों ही पूरी तरह सैक्स सुख लेने लगे. इन पूरे 2 दिनों में अजय सिंह रूबी के घर में ही रहा.
2 दिन के बाद रणबीर का फोन आया कि वह शहर में आ चुका है और घर पहुंचने वाला है. अजय सिंह यह जान कर वहां से निकल लिया.
रणबीर मुसकराते हुए घर आया. रूबी ने उस के गले लगते हुए कहा कि वह उस के लिए चाय बना कर लाती है.
चाय पीते समय रणबीर ने उसे बताया कि कल शाम को उसे गुजरात जाना है. रूबी ने सामने से तो हैरानी दिखाई, पर मन ही मन वह रणबीर के जाने की बात सुन कर बहुत खुश हो रही थी.
अगले दिन रणबीर गुजरात के लिए निकल गया.
रणबीर के जाने के करीब एक हफ्ते बाद उसे एक चिट्ठी मिली, जिसे पढ़ कर रूबी बुरी तरह चौंक गई :
‘मैं तुम्हारे और तुम्हारे उस ‘फ्रैंड’ के संबंधों के बारे में सबकुछ जान चुका हूं. मैं ने तुम्हें बहुत प्यार किया, पर तुम से बेवफाई ही मिली. अब मेरे पास तुम्हें तलाक देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है.
‘2 दिन के लिए बाहर जाने का बहाना कर के मैं ने तुम्हारे बैडरूम में कैमरा लगा कर तुम्हारी हकीकत जान ली है. मेरे पास गैरमर्द के साथ तुम्हारी सैक्स वीडियो भी है, जिस को मैं ने सोशल मीडिया में वायरल कर दिया है. जल्द ही तुम पूरे शहर में फेमस हो जाओगी और अब तुम अपने प्रेमी के पास चली जाना, क्योंकि मैं ने यह मकान भी बेच दिया है.’
चिट्ठी पढ़ कर रूबी सकते में आ गई थी. बदहवास हालत में वह अस्पताल जा कर अजय सिंह से मिलने पहुंची, पर वहां जा कर उसे पता चला कि उन दोनों का फूहड़ वीडियो सोशल मीडिया के द्वारा शहर में वायरल हो चुका है और बदनामी के डर से डाक्टर साहब ने उसे नौकरी से निकाल दिया है.
परेशान रूबी ने अजय सिंह को फोन लगाया.
‘तू ने मेरी ही सैक्स की वीडियो बना डाली और पूरे शहर में बदनामी करवा दी है, और इस के चलते मुझे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ गया है,’ अजय सिंह चीख रहा था.
‘बीवीबच्चों को भी मेरे नाजायज संबंधों के बारे में पता चल गया है और इन सब की जिम्मेदार सिर्फ तुम हो, पर, इतनी जिल्लत के साथ मेरा जी पाना बहुत मुश्किल है, इसलिए मैं यह दुनिया ही छोड़ कर जा रहा हूं,’ यह कह कर फोन कट गया था.
आतेजाते लोग रूबी को रोते हुए देख रहे थे. नौजवान लड़के और पान की दुकानों पर खड़े आदमी कभी मोबाइल की स्क्रीन पर देखते तो कभी रूबी के चेहरे की तरफ.
रूबी को उस की बेवफाई की सजा मिल गई थी.
उधर मनीष, नीलेश के प्रति अपने व्यवहार के लिए स्वयं को धिक्कार रहा था. पहली बार ऐसा हुआ था कि कोई प्रोग्राम बनने से पूर्व ही अधर में लटक गया था पर वह करता भी तो क्या करता. नीलेश की बातें सुन कर उस के दिल में शक का कीड़ा कुलबुला कर नागफनी की तरह डंक मारते हुए उसे दंशित करने लगा था.
वह जानता था कि उसे महीने में 10-12 दिन घर से बाहर रहना पड़ता है. ऐसे में हो सकता है सुलेखा की किसी के साथ घनिष्ठता हो गई हो. इस में कुछ बुरा भी नहीं है पर उसे यही विचार परेशान कर रहा था कि सुलेखा ने उस सुयश नामक व्यक्ति से उसे क्यों नहीं मिलवाया, जबकि नीलेश के अनुसार वह उस से मिलती रहती है. और तो और उस ने उस का नीलेश से अपना ममेरा भाई बता कर परिचय भी करवाया…जबकि उस की जानकारी में उस का कोई ममेरा भाई है ही नहीं…उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे पर सिर्फ अनुमान के आधार पर किसी पर दोषारोपण करना उचित भी तो नहीं है.
एक दिन जब सुलेखा बाथरूम में थी तो वह उस का सैलफोन सर्च करने लगा. एक नंबर उसे संशय में डालने लगा क्योंकि उसे बारबार डायल किया गया था. नाम था सुश…सुश. नीलेश की जानकारी में सुलेखा का कोई दोस्त नहीं है फिर उस से बारबार बातें क्यों किया करती है और अगर उस का कोई दोस्त है तो उस ने उसे बताया क्यों नहीं. मन ही मन मनीष ने सोचा तो उस के अंतर्मन ने कहा कि यह तो कोई बात नहीं कि वह हर बात तुम्हें बताए या अपने हर मित्र से तुम्हें मिलवाए.
पर जीवन में पारदर्शिता होना, सफल वैवाहिक जीवन का मूलमंत्र है. अपने अंदर उठे सवाल का वह खुद जवाब देता है कि वह तुम्हारा हर तरह से तो खयाल रखती है, फिर मन में शंका क्यों?
‘शायद जिसे हम हद से ज्यादा प्यार करते हैं, उसे खो देने का विचार ही मन में असुरक्षा पैदा कर देता है.’
‘अगर ऐसा है तो पता लगा सकते हो, पर कैसे?’
मन तर्कवितर्क में उलझा हुआ था. अचानक सुश और सुयश में उसे कुछ संबंध नजर आने लगा और उस ने वही नंबर डायल कर दिया.
‘‘बोलो सुलेखा,’’ उधर से किसी पुरुष की आवाज आई.
पुरुष स्वर सुन कर उसे लगा कि कहीं गलत नंबर तो नहीं लग गया अत: आफ कर के पुन: लगाया, पुन: वही आवाज आई…
‘‘बोलो सुलेखा…पहले फोन क्यों काट दिया, कुछ गड़बड़ है क्या?’’
उसे लगा नीलेश ठीक ही कह रहा था. सुलेखा उस से जरूर कुछ छिपा रही है… पर क्यों, कहीं सच में तो उस के पीछे उन दोनों में… अभी वह यह सोच ही रहा था कि सुलेखा नहा कर आ गई. उस के हाथ में अपना मोबाइल देख कर बोली, ‘‘कितनी बार कहा है, मेरा मोबाइल मत छूआ करो.’’
‘‘मेरे मोबाइल से कुछ नंबर डिलीट हो गए थे, उन्हीं को तुम्हारे मोबाइल से अपने में फीड कर रहा था,’’ न जाने कैसे ये शब्द उस की जबान से फिसल गए.
अपनी बात को सिद्ध करने के लिए वह ऐसा ही करने लगा जैसा उस ने कहा था. इसी बीच उस ने 2 आउटगोइंग काल, जो सुश को करे थे उन्हें भी डिलीट कर दिया, जिस से अगर वह सर्च करे तो उसे पता न चले.
अब संदेह बढ़ गया था पर जब तक सचाई की तह में नहीं पहुंच जाए तब तक वह उस से कुछ भी कह कर संबंध बिगाड़ना नहीं चाहता था. उस की पत्नी का किसी के साथ गलत संबंध है तथा वह उस से चोरीछिपे मिला करती है, यह बात भी वह सह नहीं पा रहा था. न जाने उसे ऐसा क्यों लगने लगा कि वह नामर्द तो नहीं, तभी उस की पत्नी को उस के अलावा भी किसी अन्य के साथ की आवश्यकता पड़ने लगी है.
‘तुम इतने दिन बाहर टूर पर रहते हो, अपने एकाकीपन को भरने के लिए सुलेखा किसी के साथ की चाह करने लगे तो इस में क्या बुराई है?’ अंतर्मन ने पुन: प्रश्न किया.
‘बुराई, संबंध बनाने में नहीं बल्कि छिपाने में है, अगर संबंध पाकसाफ है तो छिपाना क्यों और किस लिए?’
‘शायद इसलिए कि तुम ऐसे संबंध को स्वीकार न कर पाओ…सदा संदेह से देखते रहो.’
‘क्या मैं तुम्हें ऐसा लगता हूं…नए जमाने का हूं…स्वस्थ दोस्ती में कोई बुराई नहीं है.’
‘सब कहने की बात है, अगर ऐसा होता तो तुम इतने परेशान न होते… सीधेसीधे उस से पूछ नहीं लेते?’
‘पूछने पर मन का शक सच निकल गया तो सह नहीं पाऊंगा और अगर गलत निकला तो क्या मैं उस की नजरों में गिर नहीं जाऊंगा.’
‘जल्दबाजी क्यों करते हो, शायद समय के साथ कोई रास्ता निकल ही आए.’
‘हां, यही ठीक रहेगा.’
इस सोच ने तर्कवितर्क में डूबे मन को ढाढ़स बंधाया…उन के विवाह को 10 महीने हो चले थे. वह अपने पी.एफ. में उसे नामिनी बनाना चाहता था, उस के लिए सारी औपचारिकता पूरी कर ली थी. बस, सुलेखा के साइन करवाने बाकी थे. एक एल.आई.सी. भी खुलवाने वाला था, पर इस एपीसोड ने उसे बुरी तरह हिला कर रख दिया. अब उस ने सोचसमझ कर कदम उठाने का फैसला कर लिया.
यद्यपि सुलेखा पहले की तरह सहज, सरल थी पर मनीष के मन में पिछली घटनाओं के कारण हलचल मची हुई थी. एक बार सोचा कि किसी प्राइवेट डिटेक्टर को तैनात कर सुलेखा की जासूसी करवाए, जिस से पता चल सके कि वह कहां, कब और किस से मिलती है पर जितना वह इस के बारे में सोचता, बारबार उसे यही लगता कि ऐसा कर के वह अपनी निजी जिंदगी को सार्वजनिक कर देगा…आखिर ऐसी संदेहास्पद जिंदगी कोई कब तक बिता सकता है. अत: पता तो लगाना ही पड़ेगा, पर कैसे, समझ नहीं पा रहा था.
हफ्ते भर में ही ऐसा लगने लगा कि वह न जाने कितने दिनों से बीमार है. सुलेखा पूछती तो कह देता कि काम की अधिकता के कारण तबीयत ढीली हो रही है…वैसे भी सुलेखा का उस की चिंता करना दिखावा लगने लगा था. आखिर, जो स्त्री उस से छिप कर अपने मित्र से मिलती रही है वह भला उस के लिए चिंता क्यों करेगी?
उस दिन मनीष का मन बेहद अशांत था. आफिस से छुट्टी ले ली थी. सुलेखा ने पूछा तो कह दिया, ‘‘तबीयत ठीक नहीं लग रही है, अत: छुट्टी ले ली.’’
सुलेखा ने डाक्टर को दिखाने की बात कही तो वह टाल गया. आखिर बीमारी मन की थी, तन की नहीं, डाक्टर भी भला क्या कर पाएगा. रात का खाना भी नहीं खाया. सुलेखा के पूछने पर कह दिया कि बस, एक गिलास दूध दे दो, खाने का मन नहीं है. सुलेखा दूध लेने चली गई. उस के कदमों की आहट सुन कर उसे न जाने क्या सूझा कि अचानक अपनी छाती को कस कर दबा लिया तथा दर्द से कराहने लगा.
20-25 दिन की छुट्टी करने के बाद मैं ने जौब पर जाना शुरू कर दिया. मैं संभल तो गई, पर खामोशी व उदासी मेरे साथी बन गए. अम्मी मेरा बेहद खयाल रखती थीं. अलीना आपी भी आ गईं. हर तरह से मुझे ढांढस बंधातीं. वह काफी दिन रुकीं. जिंदगी अपने रूटीन से गुजरने लगी.
अलीना आपी ने इस विपत्ति से निकलने में बड़ी मदद की. मैं काफी हद तक सामान्य हो गई थी. उस दिन छुट्टी थी, अम्मी ने दो पुराने गावतकिए निकाले और कहा, ‘‘ये तकिए काफी सख्त हो गए हैं. इन में नई रुई भर देते हैं.’’
मैं ने पुरानी रुई निकाल कर नीचे डाल दी. फिर मैं ने और अलीना आपी ने रुई तख्त पर रखी. हम दोनों रुई साफ कर रहे थे और तोड़ते भी जा रहे थे. अम्मी उसी वक्त कमरे से आ कर हमारे पास बैठ गईं. उन के हाथ में एक प्यारी सी चांदी की डिबिया थी. अम्मी ने खोल कर दिखाई, उस में बेपनाह खूबसूरत एक जोड़ी जड़ाऊ कर्णफूल थे. उन पर बड़ी खूबसूरती से पन्ना और रूबी जड़े हुए थे. इतनी चमक और महीन कारीगरी थी कि हम देखते रह गए.
आलीना आपी की आंखें कर्णफूलों की तरह जगमगाने लगीं. उन्होंने बेचैनी से पूछा, ‘‘अम्मी ये किसके हैं?’’
अम्मी बताने लगीं, ‘‘बेटा, ये तुम्हारी दादी के हैं, उन्होंने मुझ से खुश हो कर मुझे ये कर्णफूल और माथे का जड़ाऊ झूमर दिया था. माथे का झूमर तो मैं ने अलीना की शादी पर उसे दे दिया था. अब ये कर्णफूल हैं, इन्हें मैं मलीहा को देना चाहती हूं. दादी की यादगार निशानियां तुम दोनों बहनों के पास रहेंगी, ठीक है न.’’
अलीना आपी के चेहरे का रंग एकदम फीका पड़ गया. उन्हें जेवरों का शौक जुनून की हद तक था, खास कर के एंटीक ज्वैलरी की तो जैसे वह दीवानी थीं. वह थोड़े गुस्से से कहने लगीं, ‘‘अम्मी, आप ने ज्यादती की, खूबसूरत और बेमिसाल चीज आपने मलीहा के लिए रख दी. मैं बड़ी हूं, आप को कर्णफूल मुझे देने चाहिए थे. ये आप ने मेरे साथ ज्यादती की है.’’
अम्मी ने समझाया, ‘‘बेटी, तुम बड़ी हो, इसलिए तुम्हें कुंदन का सेट अलग से दिया था, साथ में दादी का झूमर और सोने का एक सेट भी दिया था. जबकि मलीहा को मैं ने सोने का एक ही सेट दिया था. इस के अलावा एक हैदराबादी मोती का सेट था. उसे मैं ने कर्णफूल भी उस वक्त नहीं दिए थे, अब दे रही हूं. तुम खुद सोच कर बताओ कि क्या गलत किया मैं ने?’’
अलीना आपी अपनी ही बात कहती रहीं. अम्मी के बहुत समझाने पर कहने लगीं, ‘‘अच्छा, मैं दादी वाला झूमर मलीहा को दे दूंगी, तब आप ये कर्णफूल मुझे दे दीजिएगा. मैं अगली बार आऊंगी तो झूमर ले कर आऊंगी और कर्णफूल ले जाऊंगी.’’
अम्मी ने बेबसी से मेरी तरफ देखा. मेरे सामने अजीब दोराहा था, बहन की मोहब्बत या कर्णफूल. मैं ने दिल की बात मान कर कहा, ‘‘ठीक है आपी, अगली बार झूमर मुझे दे देना और आप ये कर्णफूल ले जाना.’’
अम्मी को यह बात पसंद नहीं आई, पर क्या करतीं, चुप रहीं. अभी ये बातें चल ही रहीं थीं कि घंटी बजी. अम्मी ने जल्दी से कर्णफूल और डिबिया तकिए के नीचे रख दी.
पड़ोस की आंटी कश्मीरी सूट वाले को ले कर आई थीं. सब सूट व शाल वगैरह देखने लगे. हम ने 2-3 सूट लिए. उन के जाने के बाद अम्मी ने कर्णफूल वाली चांदी की डिबिया निकाल कर देते हुए कहा, ‘‘जाओ मलीहा, इसे संभाल कर अलमारी में रख दो.’’
मैं डिबिया रख कर आई. उस के बाद हम ने जल्दीजल्दी तकिए के गिलाफ में रुई भर दी. फिर उन्हें सिल कर तैयार किया और कवर चढ़ा दिए. 3-4 दिनों बाद अलीना आपी चली गईं. जातेजाते वह मुझे याद करा गईं, ‘‘मलीहा, अगली बार मैं कर्णफूल ले कर जाऊंगी, भूलना मत.’’
दिन अपने अंदाज में गुजर रहे थे. चाचाचाची और उन के बच्चे एक शादी में शामिल होने आए. वे लोग 5-6 दिन रहे, घर में खूब रौनक रही. खूब घूमेंफिरे. मेरी चाची अम्मी को कम ही पसंद करती थीं, क्योंकि मेरी अम्मी दादी की चहेली बहू थीं. अपनी खास चीजें भी उन्होंने अम्मी को ही दी थीं. चाची की दोनों बेटियों से मेरी खूब बनती थी, हम ने खूब एंजौय किया.
नादिर की मम्मी 2-3 बार आईं. बहुत माफी मांगी, बहुत कोशिश की कि किसी तरह इस मसले का कोई हल निकल जाए. पर जब आत्मा और चरित्र पर चोट पड़ती है तो औरत बरदाश्त नहीं कर पाती. मैं ने किसी भी तरह के समझौते से साफ इनकार कर दिया.
अपने बनाए हुए प्लान में रूबी और अजय सिंह कामयाब हो रहे थे और वे ये सोच कर खुश हो रहे थे कि रणबीर को अपने गुप्त रोगी होने का एहसास होगा और अब वह रूबी के शरीर को हाथ नहीं लगा पाएगा और गुजरात जल्द वापस लौट जाएगा, जबकि दूसरी तरफ रणबीर बहुत परेशान था.
रणबीर अपनी पत्नी से भले ही महीनों दूर रहता था, पर किसी भी बाजारू औरत से कभी भी उस ने संबंध नहीं बनाए थे. ऐसे में उस के शरीर पर किसी भी प्रकार के इंफैक्शन का हो जाना उसे परेशानी और हैरत में डाल रहा था और उस पर उस की पत्नी भी उसे बारबार गुप्त रोगी होने का ताना दे रही थी, इसलिए वह सीधा शहर के एक अच्छे डाक्टर के पास पहुंचा और अपनी समस्या बताई.
”क्या आप ने सड़क के किनारे तंबू लगा कर दवा या तेल बेचने वालों से किसी तरह की दवा ली है?” डाक्टर ने पूछा.
”नहीं सर, नीमहकीम से तो बिलकुल नहीं, पर, एक दोस्त ने जरूर एक तेल दिया था, जिसे मैं ने ताकत बढ़ाने वाला तेल समझ कर लगा लिया है. ये घाव और जलन तब से ही हैं,” रणबीर ने अपनी पत्नी का नाम छिपा लिया, क्योंकि उस की पत्नी ने ही उस के अंग पर तेल से मसाज की है, ऐसा कहने में भी उसे शर्म लग रही थी.
उस डाक्टर ने रणबीर को हिम्मत दी और वह तेल उन्हें ला कर दिखाने को कहा, ताकि वे उस को जांच सकें.
जब रणबीर ने तेल की वह शीशी डाक्टर को ला कर दिखाई, तो तेल का शुरुआती टैस्ट करते ही डाक्टर चौंक गए. उन्होंने रणबीर को जो बताया, उसे सुन कर रणबीर के पैरों तले जमीन ही खिसक गई.
”यह एक ऐसा तेल है, जिस के पीएच का मान बहुत कम है और इतने कम पीएच का कोई भी मलहम या तेल हमारी चमड़ी को नुकसान पहुंचा सकता है. साथ ही, इस में कुछ हानिकारक कैमिकल भी मिले हुए हैं. इतना ही नहीं, बल्कि इस के रोजाना इस्तेमाल से आप नामर्द भी हो सकते हैं,” डाक्टर ने कहा.
‘रूबी तो मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकती, तो क्या रूबी के साथ किसी ने नकली तेल दे कर धोखा किया है?’ इसी सोचविचार में उलझा रणबीर घर आया, तो उस ने रूबी को फोन पर किसी से बात करते हुए पाया.
रूबी उस समय अजय सिंह से ही बात कर रही थी. रणबीर को अचानक घर आया देख कर वह हड़बड़ा सी गई और उस ने फोन काट दिया.
परेशान रणबीर सोफे पर पसर गया और रूबी से एक कप चाय बना लाने को कहा. वह खुद अपनी मर्ज की दवा ढूंढऩे के लिए इंटरनैट खंगालने लगा, पर उस का मोबाइल हैंग कर रहा था, इसलिए रणबीर ने किचन में जा कर रूबी का मोबाइल मांगा, तो रूबी के चेहरे का रंग ही उतर गया.
रूबी ने मोबाइल देने में हिचकिचाहट भी दिखाई, पर भारी मन से उस ने अपना मोबाइल रणबीर को दे दिया. उस की यह परेशानी रणबीर से भी छिपी न रह सकी, इसलिए मोबाइल को अपने हाथ में लेते ही रणबीर ने मोबाइल के हाल में डायल किए गए नंबरों पर सरसरी नजर डाली, तो उस में पिछले डायल किए गए एक नंबर को ‘फ्रैंड’ नाम से सेव किया गया था.
उत्सुकतावश रणबीर ने मोबाइल के ह्वाट्सएप पर ‘फ्रैंड’ नाम की डीपी देखी, तो वह एक आदमी की तसवीर थी.
‘भला यह आदमी कौन है, जिस का नंबर रूबी के मोबाइल में ‘फ्रैंड’ के नाम से सेव है?’ यह सवाल बारबार रणबीर के मन में शक पैदा कर रहा था.
रणबीर ने घाटघाट का पानी पी रखा था. उसे कुछ शक हुआ, तो मोबाइल काल की रिकौर्डिंग सुनने लगा और ‘फ्रैंड’ नाम के आदमी से हुई कई काल की रिकौर्डिंग रणबीर ने सुन डाली और उसे सारा माजरा समझते देर नहीं लगी. उस की नसों में बहता खून बारबार उस की कनपटियों तक जोर मार रहा था. उस का मन कर रहा था कि वह जा कर रूबी की गरदन मरोड़ दे, पर कुछ सोच कर उस ने ऐसा नहीं किया.
रणबीर ने शांत भाव से मोबाइल को टेबल पर रख दिया और अपनी आंखें बंद कर के बैठ गया.
रूबी जब चाय ले कर आई, तो उस ने रणबीर को सोता हुआ देखा तो उस की जान में जान आई. उस ने अपना मोबाइल अपने कब्जे में कर लिया.
1-2 दिन तक रणबीर बहुत ही शांत रहा और अपने को खुश दिखाता रहा, फिर एक दिन उस ने रूबी से कहा, ”मैं काम के सिलसिले में 2 दिन के लिए बाहर जा रहा हूं, इस बीच तुम अपना ध्यान रखना.”
‘मेरी बहन ने, जब से राखी पोस्ट की है तभी से मां के पीछे पड़ी है, भैया से पूछो न, कैसी लगी? आप तो जानते हैं एक संडे ही मिलता हैं फोन करने को, ऊपर से इतनी लंबी लाइन रहती है कि 4-5 मिनट से ज्यादा बात ही नहीं हो सकती. इसलिए सोचा कि आप की आ गई होगी तो हमारी डाक भी आ ही गई होगी. जाऊं डाक का पता कर के आ जाऊं?’
‘आज शुक्रवार है. अगर शाम तक मिल गई तो ठीक, वरना संडे को मीतू से कह देना कि राखी मिल गई, बहुत सुंदर है. तुम्हारी बहन तो अभी छोटी है. यही 10-11 साल की होगी. है न? उसे फुसलाना आसान है. मगर मेरी बहन तो मुझ से केवल 2 साल छोटी है और मुझे ही चरा देती है. पिछले साल मैं ने यही बोला था तो कहने लगी, लिफाफे का कलर बताओ, राखी पर क्या लिखा है, बताओ?’ बड़ी मुश्किल से मैं ने फोन की लंबी लाइन का बहाना बना मां को फोन देने को कहा था.
‘हां सर, ये बहनों की आदत होती है. हर बात की उन्हें पूरी डिटेल चाहिए’ मोहित और मैं दोनों ही हंस पड़े थे.
‘किस बात पर हंस रहे हो दोनों?,’ सोमेश ने कमरे में प्रवेश कर पूछा था,
‘यहां बहनों की आदतों पर चर्चा हो रही है.’
‘मेरी तो कोई भी बहन है नहीं, और न ही कोई भाई. तभी तो मां पूरे समय मेरी ही चिंता करती रहती हैं, यदि होती तो वे अपना ध्यान उन की तरफ कर लेतीं. वे तो हर समय खड़कवासला आने को, मेरा मतलब यहां आने को तैयार बैठी रहती हैं. वे तो पापा मना करते हैं कि 6 महीने में घर तो आ ही जाता है, वहां जा कर क्या करोगी? सिवा उसे डिस्टर्ब करने के, तो पता है क्या कहती हैं?’
‘क्या?’
‘यही, कि पता नहीं वहां कैसे रहता है. मनपसंद खाने को मिलता भी है कि नहीं. मैं ढेर सारा सूखा नाश्ता बना कर ले चलूंगी. उसे मेरे हाथ के बेसन की पिन्नियां बहुत पसंद हैं. वहां उस का रूम भी देखूंगी कि कैसे रहता है. पापा ने समझाबुझा कर रखा है कि अभी इतनी दूर पंजाब से जाओगी, 1-2 घंटे से ज्यादा अंदर रह भी नहीं पाओगी और वह हमारे साथ भी नहीं आ सकता. फिर क्या करोगी जा कर? मगर मां, हर 15-20 दिनों बाद अपनी तैयारियां शुरू कर देती हैं और रोधो कर शांत बैठ जाती हैं.’
‘यह हाल तो मेरी बहन का है. अभी मेरी पासिंगआउट परेड के 2 साल बाकी हैं मगर मेरी बहन की रोज ड्रैस फाइनल हो जाती है कि मुझे यह पहनना है तो कभी वह पहनना है. पापा कहते हैं भाईर् की परेड होगी या तेरी?’ मोहित की बात सुन दोनों हंस पड़े.
‘अरे भाई, हम दोनों की तो 4 महीने बाद ही पासिंगआउट परेड है. सोच रहा हूं, इस वीकैंड पुणे से एक बढि़या कैमरा खरीद लूं. जातेजाते कुछ यादगार रिकौर्डिंग और फोटो तो सहेज ही लूं. जब अपनी परेड होगी तो बहन को पकड़ा दूंगा वह पूरी रिकौर्डिंग कर ही देगी,’ राघव ने अपना प्लान बताया.
‘सर, आप लोग तो सीनियरमोस्ट बैच के हो, आप तो कैमरा रख सकते हैं. सर, मेरे भी कुछ फोटो खींच लीजिएगा और मुझे मेल कर दीजिएगा. वैसे भी सर, आप को ही सब से ज्यादा फोटोग्राफी का शौक है. आप ही हर बार फोटोग्राफर से सब से ज्यादा फोटो खरीदते हैं,’ मोहित ने कहा.
‘हां, मेरी बहन भी चिढ़ाती हुए कहती है कि भाईर् की उंगली भी अगर किसी फोटो में दिख जाए तो वे फोटो खरीद लेंगे. हर 6 महीने में इतनी फोटो जमा कर लेता हूं कि अब तक 200 फोटो तो हो ही गई होंगी. अभी मां से कैमरे के लिए पूछूंगा तो कहेंगी, घर में कैमरा है तो हम वही ले आएंगे. मगर मुझे उस पुराने कैमरे से नहीं, बल्कि लेटैस्ट मौडल के कैमरे से फोटो खींचनी है, आखिर 15 यादगार दिनों की फोटो जो सहेज कर रखनी हैं,’ राघव बोला.
‘ठीक कह रहा है यार, तेरे कैमरे से ही फोटो खीच लेंगे. बाद में तू छांट कर अच्छी वाली मेल कर देना हम सब को,’ सोमेश बोला.
‘ठीक है, यार.’
अब फोटो ही तो बची हैं केवल. मोहित और सोमेश दोनों ही शहीद हो चुके हैं. अपने फोल्डर को खोल कर राघव सोचने लगा. उस की पहली पोस्ंिटग उड़ी में हुई थी. मोहित और सोमेश की भी पहली पोस्ंिटग बौर्डर की थी. वे लगातार आतंकवादी हमले और सीजफायर उल्लंघन झेलते रहे. उन की शहादत पर वह फड़फड़ा कर रह गया था. दोनों को ताबूत में विदा कर कितना रोया था. यह साथ इतना छोटा होगा, उसे अंदाजा नहीं था. मौत यहां हरपल मंडराती रहती है. कब उस पार से बरसे मोर्टार्स किस का खून पिएंगे, कुछ पता नहीं चलता.
यहां तो नहीं, हां, देहरादून में कितने शौक से उस ने अपनी पासिंगआउट परेड के लिए कैमरा भी खरीदा और खूब रिकौर्डिंग भी की और अपनी बहन महिमा को यह कह कर पकड़ा दिया था, ‘इस का 4 जीबी मैमोरी कार्ड भर गया है. इसे संभाल कर रखना और इस 8 जीबी के नए मैमोरी कार्ड से अपनी फोटो खींचना. दोनों कार्ड की फोटो अलग भी रहेंगी और सुरक्षित भी.’ मगर उस ने वह मैमोरी कार्ड ही कहीं गुम कर दिया. आईएमए देहरादून की सारी फोटो चली गईं. लखनऊ पहुंच कर जब उसे पता चला कि मैमोरी कार्ड ही खो दिया महिमा ने, तो लगातार 2 दिनों तक अपनी बहन पर चिल्लाता रहा था और उस बेचारी की रोरो कर आंखें सूज गईं. फिर तो मां बहन के पक्ष में आ गईं.
‘क्या आफत हो गई है. कल से तेरा ड्रामा चल रहा है, क्या हो गया? अगर मैमोरी कार्ड खो भी गया तो क्या हो गया,’ मां गुस्से में बोली.
‘अरे मम्मी, मैं ने कैमरा खरीदा ही इसलिए था कि मैं अपनी परेड, अपने साथियों और सब से महत्त्वपूर्ण वह यादगार पल जब आप और पापा ने मेरे कंधे पर लैफ्टिनैंट के स्टार लगाए, की फोटो खींच सकूं. वे सभी फोटो महिमा की लापरवाही से चले गए.’
‘ठीक है. एक बार बोला, दो बार बोला और कितनी बार कहेगा उसे? उसे भी तो अपनी गलती पता है. माफी भी मांग चुकी है और तू है कि चिल्लाता ही जा रहा है.’