12 लाख के पैकेज वाले बाल चोर

19 जून, 2017 को मनोज चौधरी की बेटी की शादी थी. वह रीयल एस्टेट के एक बड़े कारोबारी हैं. गुड़गांव में उन का औफिस है. उन्होंने बेटी की शादी एक संभ्रांत परिवार में तय की थी. अपनी और वरपक्ष की हैसियत को देखते हुए उन्होंने शादी के लिए दक्षिणपश्चिम दिल्ली के बिजवासन स्थित आलीशान फार्महाउस ‘काम्या पैलेस’ बुक कराया था.

बेटी की शादी के 3 दिनों बाद ही उन के बेटे की भी शादी थी. बेटे की लगन का दिन भी 19 जून को ही था, इसलिए उस का कार्यक्रम भी उन्होंने वहीं रखा था.

मनोज चौधरी की राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक क्षेत्र के लोगों से अच्छी जानपहचान थी, इसलिए बेटे की लगन और बेटी की शादी में सैकड़ों लोग शामिल हुए थे. मेहमानों के लिए उन्होंने बहुत अच्छी व्यवस्था कर रखी थी. वह आने वाले मेहमानों का बड़ी ही गर्मजोशी से स्वागत कर रहे थे.

बारात के काम्या पैलेस में पहुंचने से पहले ही उन्होंने बेटे की लगन का कार्यक्रम निपटा दिया था. इस के बाद जैसे ही बारात पहुंची, मनोज चौधरी और उन के घर वालों ने धूमधाम से उस का स्वागत किया. रीतिरिवाज के अनुसार शादी की सभी रस्में पूरी होती रहीं. रात करीब पौने 12 बजे फेरे की रस्में चल रही थीं. उस समय तक बारात में आए ज्यादातर लोग सो चुके थे. ज्यादातर मेहमान खाना खा कर जा चुके थे. फेरों के समय केवल कन्या और वरपक्ष के खासखास लोग ही मंडप में बैठे थे. मंडप के नीचे बैठा पंडित मंत्रोच्चारण करते हुए अपना काम कर रहा था. जितने लोग मंडप में बैठे थे, पंडित ने सभी की कलाइयों में कलावा बांधना शुरू किया. वहां बैठे मनोज चौधरी ने भी अपना दाहिना हाथ पंडित की ओर बढ़ा दिया. कलावा बंधवाने के बाद उन्होंने पंडित को दक्षिणा दी. तभी उन का ध्यान बगल में रखे सूटकेस की तरफ गया. सूटकेस गायब था.

सूटकेस गायब होने के बारे में जान कर मनोज चौधरी हडबड़ा गए. वह इधरउधर सूटकेस को तलाशने लगे, क्योंकि उस सूटकेस में 19 लाख रुपए नकद और ढेर सारे गहने थे.

कलावा बंधवाने में उन्हें मात्र 4 मिनट लगे थे और उतनी ही देर में किसी ने उन का सूटकेस उड़ा दिया था. परेशान मनोज चौधरी मंडप से बाहर आ कर सूटकेस तलाशने लगे. इस काम में उन के घर वाले भी उन का साथ दे रहे थे. सभी हैरान थे कि जब मंडप में दरजनों महिलाएं और पुरुष बैठे थे तो ऐसा कौन आदमी आ गया, जो सब की आंखों में धूल झोंक कर सूटकेस उड़ा ले गया.

बहरहाल, वहां अफरातफरी जैसा माहौल बन गया. जब उन का सूटकेस नहीं मिला तो उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना देने के साथ लैपटौप से औनलाइन रिपोर्ट दर्ज करा दी. कुछ ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुुंच गई. पुलिस कंट्रोल रूम से मिली सूचना के बाद थाना कापसहेड़ा से भी पुलिस काम्या पैलेस पहुंच गई. मनोज चौधरी ने पूरी बात पुलिस को बता दी.

चूंकि मामला एक अमीर परिवार का था, इसलिए पुलिस अगले दिन से गंभीर हो गई. दक्षिणपश्चिम जिले के डीसीपी सुरेंद्र कुमार ने थाना कापसहेड़ा पुलिस के साथ एंटी रौबरी सेल को भी लगा दिया. उन्होंने औपरेशन सेल के एसीपी राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की, जिस में इंसपेक्टर सतीश कुमार, सुबीर ओजस्वी, एसआई अरविंद कुमार, प्रदीप, एएसआई राजेश, महेंद्र यादव, राजेंद्र, हैडकांस्टेबल बृजलाल, उमेश कुमार, विक्रम, कांस्टेबल सुधीर, राजेंद्र आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने सब से पहले फार्महाउस काम्या पैलेस में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इन में एक फुटेज में एक छोटा बच्चा मनोज चौधरी के पास से सूटकेस उठा कर बाहर गेट की ओर ले जाता दिखाई दिया. इस के कुछ सैकेंड बाद दूसरा बच्चा भी उस के पीछेपीछे जा रहा था. उस के बाद काले रंग की टीशर्ट पहने एक अन्य लड़का सीट से उठ कर उन दोनों के पीछे जाता दिखाई दिया. सभी फुरती से बाहरी गेट की तरफ जाते दिखाई दिए थे.

पुलिस ने उन तीनों बच्चों के बारे में मनोज चौधरी और उन के घर वालों से पूछा. सभी ने बताया कि ये तीनों लड़के उन के परिवार के नहीं थे. ये शाम 8 बजे के करीब काम्या पैलेस में आए थे. कार्यक्रम में ये बहुत ही बढ़चढ़ कर भाग ले रहे थे. डीजे पर भी ये ऐसे नाच रहे थे, जैसे शादी इन के परिवार में हो रही है. जब ये परिवार की लड़कियों और महिलाओं के डीजे पर जाने के बावजूद भी वहां से नहीं हटे तो परिवार के एक आदमी ने इन से डीजे से उतरने के लिए कहा था.

मनोज ने पुलिस को बताया कि छोटा वाला बच्चा महिलाओं के कमरे के पास भी देखा गया था. वह समझ रहे थे कि ये बच्चे शायद किसी मेहमान के साथ आए होंगे. बहरहाल, उन्होंने उन की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया था और उसी बच्चे ने उन का सूटकेस साफ कर दिया था. उन के कार्यक्रम में जो फोटोग्राफर और वीडियोग्राफर थे, उन के द्वारा खींचे गए फोटो में भी वे बच्चे दिखाई दिए थे.

पुलिस टीम ने उन्हीं फोटो की मदद से सूटकेस चोरों का पता लगाना शुरू किया. पुलिस ने वे फोटो अलगअलग लोगों को दिखाए. उन फोटो को पहचान तो कोई नहीं सका, पर कुछ लोगों ने यह जरूर बता दिया कि ये बच्चे मध्य प्रदेश के हो सकते हैं.

इस के अलावा पुलिस की सर्विलांस टीम 19-20 जून की रात के डंप डाटा की जांच में जुट गई. पुलिस ने सब से पहले यह पता लगाया कि काम्या पैलेस का इलाका किनकिन मोबाइल टावरों के संपर्क में आता है. इस के बाद यह जानकारी हासिल की गई कि उस टावर के संपर्क में उस रात कितने फोन थे. पता चला कि उस रात कई हजार फोन वहां के फोन टावरों के संपर्क में थे. इसी को डंप डाटा कहा जाता है.

पुलिस को पता लग चुका था कि चोरी करने वाले लड़के मध्य प्रदेश के हो सकते हैं, इसलिए उस डंप डाटा से उन मोबाइल नंबरों को चिह्नित किया गया, जो उस रात मध्य प्रदेश के नंबरों के संपर्क में थे. ऐसे 300 फोन नंबर सामने आए. सर्विलांस टीम ने उन फोन नंबरों की जांच की. अब तक पुलिस को एक  नई जानकारी यह मिल गई थी कि मध्य प्रदेश के जिला राजगढ़ के थाना पचौड और बोड़ा के गुलखेड़ी और कडि़या ऐसे गांव हैं, जहां के गैंग बच्चों के सहयोग से शादी समारोह आदि के मौकों पर चोरियां करते हैं.

यह जानकारी मिलते ही एसीपी (औपरेशन) राजेंद्र सिंह ने 26 जून, 2017 को एक टीम मध्य प्रदेश के लिए भेज दी. टीम में इंसपेक्टर सतीश कुमार, एसआई अरविंद कुमार, एएसआई महेंद्र यादव आदि को शामिल किया गया था. टीम ने सब से पहले राजगढ़ जिले में रहने वाले मुखबिर को चोरों के फोटो दिखाए. उस मुखबिर ने 2-3 घंटे में ही पता लगा कर बता दिया कि ये लड़के गुलखेड़ी और कडि़या गांव के हैं और ये दोनों गांव थाना बोड़ा के अंतर्गत आते हैं.

यह जानकारी टीम के लिए अहम थी. इस जानकारी से उन्होंने एसीपी राजेंद्र सिंह को अवगत करा दिया. उन के निर्देश पर टीम थाना बोड़ा पहुंची. वहां के थानाप्रभारी को टीम ने दिल्ली में हुई घटना के बारे में बताते हुए अभियुक्तों को गिरफ्तार करने में मदद मांगी. थानाप्रभारी ने बताया कि यहां पर कभी मुंबई की तो कभी पंजाब की तो कभी उत्तराखंड तो कभी यूपी की पुलिस आती रहती है. पर चाह कर भी वह इन गांवों में दबिश डालने नहीं जा सकते.

इस की वजह यह है कि इन गांवों में सांसी रहते हैं. जब पुलिस इन के यहां पहुंचती है तो गांव के आदमी और औरतें यहां तक कि बच्चे भी इकट्ठा हो कर पुलिस पर हमला कर देते हैं. महिलाएं पुलिस से भिड़ जाती हैं. कभीकभी ये लोग आपस में ही किसी के पैर पर देसी तमंचे से गोली चला देते हैं. इसलिए इन गांवों में पुलिस नहीं जाती.

थानाप्रभारी ने बताया कि कुछ दिनों पहले पंजाब पुलिस भी आई थी. पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला के परिवार की शादी में किसी ने नकदी और ज्वैलरी का बैग उड़ा दिया था. पंजाब पुलिस भी ऐसे ही वापस लौट गई थी.

स्थानीय पुलिस की मदद के बिना किसी भी राज्य की पुलिस सीधे दबिश नहीं दे सकती. दिल्ली पुलिस की टीम असमंजस में पड़ गई कि ऐसी हालत में क्या किया जाए? सीधे दबिश दे कर दिल्ली पुलिस कोई लफड़ा नहीं करना चाहती थी. पुलिस टीम को यह तो पता चल ही गया था कि सूटकेस चुराने वाले बच्चे किस गांव के हैं. अब पुलिस टीम ने उसी मुखबिर की सहायता से उन चोरों के बारे में अन्य जानकारी निकलवाई.

मुखबिर ने बताया कि इन गांवों में चोरों के अनेक गैंग हैं. चूंकि बच्चों पर कोई शक नहीं करता, इसलिए ये लोग अपने रिश्तेदारों या गांव के दूसरे लोगों के बच्चों को साल भर या 6 महीने के कौंट्रैक्ट पर ले लेते हैं. यह कौंट्रैक्ट लाखों रुपए का होता है. उन बच्चों को ट्रेनिंग देने के बाद उन के सहयोग से ही विवाह पार्टियों में चोरियां करते हैं. दिल्ली में जिन बच्चों ने सूटकेस चुराया था, वे बच्चे राका और नीरज के गैंग में काम करते हैं और राका इस समय अपने घर पर नहीं है. वह दिल्ली के पौचनपुर में कहीं किराए पर रहता है.

यह जानकारी ले कर पुलिस टीम दिल्ली लौट आई. पौचनपुर गांव दक्षिणपश्चिम जिले के द्वारका सेक्टर-23 के पास है. अपने स्तर से पुलिस राका को खोजने लगी. कई दिनों की मशक्कत के बाद पहली जुलाई, 2017 को पुलिस ने उसे ढूंढ निकाला.

राका को हिरासत में ले कर पुलिस ने उस से काम्या पैलेस में हुई चोरी के बारे में सख्ती से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के आगे राका ने अपना मुंह खोल दिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि काम्या पैलेस की शादी में उसी की गैंग के बच्चों ने सूटकेस चुराया था. बच्चों के अलावा नीरज भी गैंग में शामिल था. इस के बाद उस ने चोरी की जो कहानी बताई, वह दिलचस्प कहानी इस प्रकार थी—

मध्य प्रदेश के जिला राजगढ़ के थाना बोड़ा के अंतर्गत स्थित हैं कडि़या और गुलखेड़ी गांव. दोनों ही गांव की आबादी करीब 5-5 हजार है. राका गुलखेड़ी गांव का रहने वाला था, जबकि नीरज गांव कडि़या में रहता था. इन दोनों गांवों की विशेषता यह है कि यहां पर सांसी जाति के लोग रहते हैं. बताया जाता है कि यहां के ज्यादातर लोग चोरी करते हैं. इन के निशाने पर अकसर शादी समारोह होते हैं. एक खास बात यह होती है कि इन के गैंग में छोटे बच्चे या महिलाएं भी होती हैं.

चूंकि समारोह आदि में बच्चे आसानी से हर जगह पहुंच जाते हैं, जो आराम से बैग या सूटकेस चोरी कर गेट के बाहर पहुंचा देते हैं. ये बच्चे कोई ऐसेवैसे नहीं होते, उन्हें बाकायदा चोरी करने की ट्रेनिंग दी जाती है. जिन बच्चों को गैंग में रखा जाता है, उन के चुनाव का तरीका भी अलग है.

गैंग का मुखिया सब से पहले अपनी रिश्तेदारी या फिर जानने वाले के बच्चे को तलाशने की कोशिश करता है. वहां न मिलने पर गांव के ही किसी बच्चे का चुनाव करता है. गांव के लोग बचपन से ही अपने बच्चे को छोटीमोटी चोरी करने की प्रैक्टिस कराते हैं. चोरी की प्राथमिक पढ़ाई घर वालों से पढ़ने के बाद हाथ आजमाने के लिए घर वाले इन्हें गैंग के लोगों को 6 महीने या साल भर के लिए सौंप देते हैं.

इन बच्चों के हुनर के अनुसार, उन का पैकेज 6 लाख से 12 लाख रुपए तक होता है. बच्चों के घर वालों को 25 प्रतिशत धनराशि एडवांस में नकद दे दी जाती है, बाकी की हर महीने की किस्तों में. इस तरह यहां के बच्चे बड़े पैकेज पर काम करते हैं.

राका ने पुलिस को बताया कि काम की शुरुआत करने से पहले उन्हें 3 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग में उन्हें सिखाया जाता है कि लड़की या लड़के की शादी में ज्वैलरी या कैश का बैग किस तरह उड़ाना है.

राका और नीरज, दोनों साझे में काम करते थे. नीरज ने गैंग में अपने बेटे को भी शामिल कर रखा था. इन्होंने गांव के ही बच्चे चीमा (परिवर्तित नाम) को 10 लाख रुपए साल के पैकेज पर अपने गैंग में शामिल किया था. इस के बाद इन्होंने चीमा को बातचीत करने, खानेपीने, कपड़े पहनने, डांस करने की ट्रेनिंग दी. उस की मदद के लिए इन्होंने गांव के ही कुलजीत को अपने गैंग में शामिल कर लिया था.

ये दिल्ली के अलगअलग इलाकों में किराए का कमरा ले कर रहते थे. ये अकसर मोटा हाथ मारने की फिराक में रहते थे. इन्हें पता था कि पैसे वाले लोग अपने बच्चों की शादियां कहां करते हैं. बच्चों को महंगे कपड़े पहना कर ये शाम होते ही औटोरिक्शा से छतरपुर, कापसहेड़ा, महरौली स्थित फार्महाउसों की तरफ घूम कर तलाश करते थे कि शादी कहां हो रही है. फार्महाउसों में ज्यादातर रईसों के बच्चों की ही शादियां होती हैं.

जिस फार्महाउस में शादी हो रही होती, उस के बाहर ही एक साइड में ये औटोरिक्शा खड़ा कर देते और तीनों बच्चे शादी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अंदर चले जाते, जबकि राका और नीरज औटो में ही बैठे रहते. औटो वाले को ये मुंहमांगा पैसा देते थे, इसलिए वह भी कुछ नहीं कहता था.

19 जून को भी इन्होंने ऐसा ही किया. राका और नीरज काम्या पैलेस के बाहर औटो में बैठे रहे और कुलजीत, चीमा तथा नीरज का बेटा मनोज चौधरी की बेटी की शादी समारोह में शामिल होने अंदर चले गए. वे उन के बेटे की लगन के कार्यक्रम में शामिल हुए.

लगन चढ़ने के बाद तीनों को 100-100 रुपए शगुन के तौर पर भी मिले थे. बेटी की शादी की वजह से मनोज चौधरी सूटकेस में अपने घर से कैश और ज्वैलरी ले आए थे. उस समय उन के सूटकेस में ज्वैलरी के अलावा 19 लाख रुपए नकद थे, इसलिए वह उस सूटकेस को अपने हाथ में ही लिए हुए थे.

तीनों बच्चों की टोली ने ताड़ लिया था कि माल इसी सूटकेस में है, इसलिए वे उस सूटकेस पर हाथ साफ करने के लिए उन के इर्दगिर्द ही मंडराते रहे.

शादी में आए मेहमानों की तरह उन्होंने खाना खाया और डीजे पर डांस भी किया. उन की गतिविधियां देख कर कोई शक भी नहीं कर सकता था कि बिन बुलाए मेहमान के रूप में ये चोर हैं.

जब कुलजीत डीजे पर डांस कर रही लड़कियों के साथ डांस कर रहा था, तब कन्यापक्ष के लोगों ने जरूर उस से डीजे से उतर जाने को कहा था. वह मनोज चौधरी का सूटकेस उड़ाने का मौका तलाशते रहे, पर उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी.

रात साढ़े 11 बजे के बाद जब फेरों का कार्यक्रम शुरू हुआ तो उस समय भी वे उन के मेहमानों के बीच बैठ गए तो चीमा मंडप के इर्दगिर्द घूमता रहा. उसी दौरान जैसे ही मनोज ने हाथ में कलावा बंधवाने के लिए हाथ पंडित के आगे किया, तभी चीमा उन के सूटकेस को ले कर फुरती से निकल गया. उस के पीछे कुलजीत और फिर नीरज का बेटा भी निकल गया.

काम्या पैलेस से निकल कर वे सीधे औटो के पास पहुंचे, जहां राका और नीरज इंतजार कर रहे थे. इस के बाद वे औटो से द्वारका स्थित अपने कमरे पर गए और अगले दिन मध्य प्रदेश स्थित अपने घर चले गए. उन्होंने चुराए पैसे आपस में बांट लिए. राका के हिस्से में 4 लाख रुपए आए थे. कुछ दिन गांव में रह कर राका पैसे ले कर दिल्ली में अपने कमरे पर लौट आया.

वारदात करने के बाद ये किसी दूसरे इलाके में कमरा ले लेते थे. पूछताछ में राका ने बताया कि उस ने मुंबई के एक कार्यक्रम में शिल्पा शेट्टी का बैग चुराया था. उस ने बताया कि उस के गांव के लोग देश के तमाम बड़े शहरों में यही काम करते हैं. किसी गैंग में छोटे बच्चों के साथ महिला को भी रखा जाता है. लेकिन सारा कमाल ये बच्चे ही करते हैं.

राका से विस्तार से पूछताछ के बाद एंटी रौबरी सेल ने उस की निशानदेही पर 4 लाख रुपए कैश और कुछ ज्वैलरी बरामद कर ली. इस के बाद उसे कापसहेड़ा थाना पुलिस के हवाले कर दिया गया, क्योंकि इस मामले की रिपोर्ट उसी थाने में दर्ज थी.

इस मामले की जांच एसआई प्रदीप को सौंपी गई थी. एसआई प्रदीप ने राका से पूछताछ की तो उस ने गुड़गांव की एक घटना का खुलासा किया है. कथा संकलन तक पुलिस उस से पूछताछ कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एलईडी बल्ब का काला कारोबार

भले ही देश में लाइट एमिटिंग डियोड्स यानी एलईडी बल्ब का बाजार 10 हजार करोड़ रुपए से ऊपर चला गया है, लेकिन घीरेधीरे यह काले कारोबार में तबदील हो रहा है, जो निश्चितरूप से चिंता की बात है. मौजूदा समय में एलईडी बल्ब का बाजार नकली उत्पादों से भरा पड़ा है. कंपनियां इसे मुनाफा कमाने का एक बड़ा साधन मान कर चल रही हैं.

इलैक्ट्रिक लैंप ऐंड कंपोनैंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन यानी एलकोमा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2010 में एलईडी लाइटिंग का भारतीय बाजार महज 500 करोड़ रुपए का था, जो अब बढ़ कर 10 हजार करोड़  रुपए का हो गया है. यह 22 हजार करोड़ रुपए की पूरी लाइटिंग इंडस्ट्री का लगभग 45 प्रतिशत से भी ज्यादा है. दरअसल, एलईडी बल्ब में विद्युत ऊर्जा की कम खपत होती है और इस की रोशनी पारंपरिक बल्ब से ज्यादा होती है, फिर भी यह आंखों को नहीं चुभती है, जिस के कारण इस की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हो रहा है.

वैश्विक स्तर की ख्यातिप्राप्त एजेंसी नीलसन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि घरेलू बाजार में उलब्ध एलईडी बल्ब के 76 और एलईडी डाउनलाइटर के 71 प्रतिशत ब्रैंड सुरक्षामानकों के अनुकूल नहीं हैं. गौरतलब है कि ये मानक भारतीय मानक ब्यूरो यानी बीआईएस और इलैक्ट्रौनिक्स एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय ने तैयार किए हैं. नीलसन ने अपने सर्वेक्षण में दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और हैदराबाद में बिजली के उत्पादों की खुदरा बिक्री करने वाली 200 दुकानों के एलईडी बल्बों को नमूने के तौर पर शामिल किया था.

एलकोमा के अनुसार, बीआईएस मानकों के उल्लंघन के सब से ज्यादा मामले दिल्ली में देखे गए हैं. एलकोमा की मानी जाए तो अधिकृत मापदंडों पर खरा नहीं उतरने वाले उत्पादों से उपभोक्ता गंभीररूप से बीमार हो सकते हैं.

अमेरिकन मैडिकल एसोसिएशन यानी एएमए द्वारा 14 जून, 2016 को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार एलईडी द्वारा निकलने वाली रोशनी मानवस्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है. नकली उत्पाद से जोखिम की गंभीरता और भी ज्यादा बढ़ जाती है.

दूसरी तरफ नकली उत्पादों को बेचने से सरकार को भारीभरकम राजस्व का नुकसान हो रहा है क्योंकि ऐसे उत्पादों का निर्माण व उन की बिक्री गैरकानूनी तरीके से की जा रही है. देखा जाए तो नकली एलईडी बल्ब के कारोबार से सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ संकल्पना को भी नुकसान हो रहा है.

उल्लेखनीय है कि अगस्त 2017 में बीआईएस ने एलईडी बल्ब निर्माताओं को उन के उत्पाद की सुरक्षा जांच के लिए बीआईएस में पंजीकृत कराने का निर्देश दिया था, लेकिन कंपनियां इस आदेश की अनदेखी कर रही हैं. एलईडी बल्ब के काले कारोबार में बढ़ोतरी का एक बहुत बड़ा कारण भारतीय बाजार का चीन के उत्पादों से भरा हुआ होना भी है. आज की तारीख में एलईडी बल्ब बड़े पैमाने पर चीन से भारत गैरकानूनी तरीके से लाए जा रहे हैं.

सर्वेक्षण के मुताबिक, एलईडी बल्ब के 48 प्रतिशत ब्रैंडों पर बनाने वाली कंपनी का पता दर्ज नहीं है, जबकि 31 प्रतिशत ब्रैंडों की पैकिंग पर कंपनी का नाम नहीं लिखा है. साफ है, इन का निर्माण गैरकानूनी तरीके से किया जा रहा है. इसी तरह एलईडी डाउनलाइटर्स के मामले में भी 45 प्रतिशत ब्रैंडों की पैकिंग पर निर्माता का नाम दर्ज नहीं है और 51 प्रतिशत ब्रैंडों के उत्पादों पर कंपनी का नाम नहीं लिखा हुआ है.

नीलसन की रिपोर्ट के अनुसार, सर्वे में शामिल दिल्ली में बिकने वाले एलईडी बल्ब के तकरीबन तीनचौथाई ब्रैंड बीआईएस मानकों के अनुरूप नहीं हैं. एलईडी डाउनलाइटर्स के मामले की भी लगभग ऐसी ही स्थिति है. वर्तमान में घर, बाजार और दफ्तर में धड़ल्ले से एलईडी बल्बों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसी वजह से रोशनी के बाजार में इस की हिस्सेदारी बढ़ कर आज 50 प्रतिशत हो गई है.

हाल ही में सरकार ने ‘उजाला’ योजना के तहत देशभर में 77 करोड़ पारंरिक बल्बों की जगह एलईडी बल्ब इस्तेमाल करने का लक्ष्य रखा है. इस आलोक में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो ने आपूर्ति करने वाले निर्माताओं या डीलरों को स्टार रेटिंग वाले एलईडी बल्ब की आपूर्ति करने का निर्देश दिया है ताकि उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े.

बहरहाल, मौजूदा परिदृश्य में सरकार को नकली एलईडी बल्बों के प्रसार को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए, खासकर चीन से गैरकानूनी तरीके से आने वाले नकली व बिना ब्रैंड वाले उत्पादों को. नकली या बिना ब्रैंड वाले एलईडी बल्ब ईमानदार कारोबारियों, सरकार व उपभोक्ताओं सभी के लिए नुकसानदेह हैं.

बेटे के कातिल पर आया मां को रहम

बिहार के गया शहर के हाईप्रोफाइल आदित्य मर्डर केस में अदालत ने हत्यारे रौकी उर्फ राकेश रंजन यादव (25 साल), उस के साथी टेनी यादव उर्फ राजीव कुमार (23 साल), उस की मां मनोरमा देवी के सरकारी बौडीगार्ड राजेश कुमार (32 साल) को उम्रकैद तथा रौकी के पिता बिंदी यादव (55 साल) को 5 साल की कैद की सजा सुनाई है.

जदयू की निलंबित एमएलसी मनोरमा देवी और पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष बिंदी यादव के बिगड़ैल बेटे रौकी उर्फ राकेश रंजन यादव ने पिछले साल 7 मई को गया के बड़े कारोबारी श्याम सचदेवा के बेटे आदित्य सचदेवा की गोली मार कर हत्या कर दी थी.

आदित्य की गलती सिर्फ इतनी थी कि वह रौकी की लैंडरोवर कार को ओवरटेक कर के आगे निकल गया था. सत्ता और दौलत के नशे में चूर रौकी को आदित्य की इस हरकत पर इतना गुस्सा आया कि उस ने उसे गोली मार दी थी.

मृतक आदित्य की मां चंदा सचदेवा ने अदालत से अनुरोध किया था कि उन के मासूम बेटे के हत्यारों को फांसी की सजा न दी जाए. वह नहीं चाहतीं कि फांसी दे कर उन की तरह एक और मां की गोद सूनी कर दी जाए.

31 अगस्त को जब आदित्य की हत्या के मामले में रौकी और उस के साथियों को दोषी ठहरा दिया गया तो चंदा सचदेवा ने रोते हुए कहा था कि आखिर उन के बेटे का क्या कसूर था, जो उसे इस तरह मार दिया गया? उस ने तो अभी ठीक से दुनिया भी नहीं देखी थी. बेटे की मौत के बाद से आज तक उन के आंसू नहीं थमे हैं.

society

शायद जिंदा रहने तक थमेंगे भी नहीं, इसीलिए वह नहीं चाहती थीं कि ऐसा दर्द किसी अन्य मां को मिले. उन्होंने अदालत का फैसला आने से पहले ही कहा था, ‘‘मेरा बेटा तो चला गया, पर मैं किसी और मां को ऐसा दर्द देने या दिलाने के बारे में कतई नहीं सोच सकती. रौकी को अदालत कड़ी से कड़ी सजा दे, पर फांसी न दे.’’ बाद में फैसला आने पर उन्होंने कहा, ‘‘अदालत ने जो फैसला सुनाया है, उस से मैं संतुष्ट हूं.’’

चंदा सचदेवा का कहना सही भी है. जवान बेटे के खोने का दर्द उन से बेहतर और कौन जान सकता है. वह अपना दर्द कम करने के लिए अन्य मां का बेटा नहीं छीनना चाहती थीं.

सरकारी वकील सरताज अली ने बहस के दौरान कहा था कि यह बहुत जघन्यतम मामला है, इसलिए हत्यारे रौकी को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. जज ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा था कि यह मामला रेयरेस्ट औफ रेयर नहीं है, इसलिए 3 आरोपियों को उम्रकैद और एक को 5 साल की कैद की सजा दी जाती है.

आदित्य के पिता श्याम सचदेवा कहते ने कहा कि सरकार, पुलिस और प्रशासन ने उन का पूरा साथ दिया. इसी का नतीजा है कि आज उन्हें इंसाफ मिला है. इस हत्याकांड की जांच और सुनवाई के दौरान तमाम उतारचढ़ाव आए. वारदात के 3 दिनों बाद 10 मई को रौकी को गिरफ्तार किया गया था. 6 जून को सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई थी. मुख्य आरोपी रौकी की जमानत की अर्जी को गया सिविल कोर्ट ने खारिज कर दिया था. इस के बाद रौकी ने पटना हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी.

19 अक्तूबर, 2016 को वहां से जमानत मिल गई थी. हाईकोर्ट द्वारा जमानत देने के विरोध में बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट गई, जहां रौकी की जमानत रद्द कर दी गई तो उसे दोबारा जेल जाना पड़ा. इस मामले में 29 लोगों की गवाही हुई थी.

क्यों मारा गया आदित्य

पिछले साल 7 मई की रात 8-9 बजे के बीच गया के कारोबारी श्याम कुमार सचदेवा का बेटा आदित्य सचदेवा अपने दोस्त की मारुति स्विफ्ट कार बीआर-02ए सी2699 से बोधगया से गया स्थित अपने घर की ओर आ रहा था.

वह अपने दोस्तों के साथ बर्थडे पार्टी में बोधगया गया था. रास्ते में जेल के पास ही सत्तारूढ़ दल जदयू की एमएलसी मनोरमा देवी के बेटे रौकी अपनी लैंडरोवर कार से आदित्य की कार को ओवरटेक करने की कोशिश करने लगा.

काफी देर तक आदित्य ने उसे आगे नहीं जाने दिया. जब खाली सड़क मिली, रौकी ने उस की कार को ओवरटेक कर के आदित्य की कार रुकवा ली. इस के बाद उस ने उसे कार से उतार कर जम कर पिटाई की.

पिटाई के बाद आदित्य और उस के साथियों ने उन से माफी मांग ली. वे अपनी कार की अेर जाने लगे तो बाहुबली बाप के बिगड़ैल बेटे रौकी ने पीछे से गोली चला दी, जो आदित्य के सिर में जा लगी. वह जमीन पर गिर पड़ा. थोड़ी देर तक वह तड़पता रहा, उस के बाद प्राण त्याग दिए.

आदित्य के दोस्तों के बताए अनुसार, रात पौने 8 बजे के करीब उन की कार ने एक लैंडरोवर एसयूवी कार को ओवरटेक किया. इस के बाद वह कार उन की गाड़ी के आगे जाने के लिए रास्ता मांगने लगी. उस कार से आगे निकल कर उन की कार सिकरिया मोड़ से गया शहर में पुलिस लाइन की ओर मुड़ गई.

इस के कुछ देर बाद लैंडरोवर कार आदित्य की स्विफ्ट कार के बगल में आई तो उस में बैठे लोगों ने शोर मचाते हुए कार रोकने का इशारा किया. कार चला रहे नासिर ने गाड़ी रोक दी तो उस कार से 4 लोग नीचे उतरे. उन में रौकी, बौडीगार्ड, ड्राइवर और एक अन्य आदमी था, जिसे वे नहीं पहचानते थे.

society

रौकी ने आदित्य की पिटाई तो की ही, पिस्तौल की बट से नासिर पर भी हमला किया, जिस से उस ने गाड़ी को भगाने की कोशिश की. गाड़ी कुछ ही दूर गई थी कि पीछे से गोली चलने की आवाज आई. वह गोली आदित्य को लगी, जिस वह सीट पर ही लुढ़क गया.

हत्यारे की गिरफ्तारी

हत्या के इस मामले में पुलिस ने रौकी उर्फ राकेश रंजन यादव, उस के पिता और मनोरमा देवी के पति बिंदेश्वरी यादव उर्फ बिंदी यादव को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. मनोरमा देवी का सरकारी बौडीगार्ड राजेश कुमार भी हत्या के इस मामले में शामिल था.

पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया था. उस के पास से 70 राउंड गोली और कारबाइन जब्त कर ली गई थी. उस पर आरोप था कि उस ने रौकी को गोली चलाने से रोका नहीं था.

एडीजे मुख्यालय सुनील कुमार ने बताया था कि हथियार की फोरैंसिक जांच में पता चला था कि बौडीगार्ड के हथियार से गोली नहीं चलाई गई थी. पूछताछ में बौडीगार्ड ने बताया था कि रौकी ने ही आदित्य पर गोली चलाई थी.

रौकी के पिता बिंदी यादव का पुराना आपराधिक रिकौर्ड रहा है. वह और उस का बेटा रौकी, दोनों ही रिवौल्वर रखते थे. गया के थाना रामपुर में आदित्य के भाई आकाश सचदेवा की ओर से आदित्य की हत्या का मुकदमा अपराध संख्या 130/2016 पर आईपीसी की धारा 341, 323, 307, 427, 120बी और 27 आर्म्स एक्ट के तहत दर्ज किया गया था.

जबकि पुलिस यह मुकदमा दर्ज करने में टालमटोल कर रही थी. लेकिन आदित्य के घर वालों का कहना था कि जब तक मुकदमा दर्ज नहीं होगा, वे लाश का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे. सियासी और प्रशासनिक दांवपेच चलते रहे. पुलिस ने 5 बार मुकदमे का मजमून बदलवाया.

आदित्य के पिता श्याम कुमार सचदेवा गया के बड़े कारोबारी हैं. वह मूलरूप से पंजाब के रहने वाले हैं. थाना कोतवाली के स्वराजपुरी रोड पर महावीर स्कूल के पास उन की सचदेवा इंटरप्राइजेज के नाम से पाइप की दुकान है.

कौन था आदित्य

आदित्य ने गया के नाजरथ एकेडमी कौनवेंट स्कूल से 12वीं की परीक्षा दी थी. उस की मौत के बाद उस का परीक्षाफल आया था. आदित्य के चाचा राजीवरंजन के अनुसार, उन का परिवार करीब 65 साल पहले पाकिस्तान से आ कर गया में बसा था.

आदित्य से पहले उन के परिवार के एक अन्य सदस्य की हत्या हो चुकी थी. सन 1987 में उन के बड़े भाई हरदेव सचदेवा के बेटे डिंपल की हत्या पतरातू में कर दी गई थी. इस के बाद उन के छोटे भाई के छोटे बेटे को मार दिया गया.

7 मई को आदित्य की हत्या हुई थी. 10 और 11 मई की रात 2 बजे के करीब रौकी को उस के पिता बिंदी यादव के मस्तपुरा स्थित मिक्सचर प्लांट से गिरफ्तार किया गया था. उस के पास से हत्या में इस्तेमाल की गई विदेशी रिवौल्वर और गोलियों से भरी मैगजीन बरामद की गई थी. उस के पिस्तौल का लाइसैंस दिल्ली से जारी किया गया था.

पूछताछ में रौकी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. लेकिन बाद में वह अपने अपराध से मुकर गया था. उस का कहना था कि उस ने आदित्य की हत्या नहीं की. घटना के समय वह दिल्ली में था. वह तो मां के बुलाने पर गया आया था. अपनी मां के कहने पर ही उस ने आत्मसमर्पण किया था, पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया.

जबकि एसएसपी का कहना था कि रौकी को गिरफ्तार किया गया था. आदित्य की हत्या के बाद एमएलसी मनोरमा देवी का पूरा परिवार और राजनीति चौपट हो गई. पहले बेटा रौकी हत्या के मामले में जेल गया, उस के बाद उस के पति बिंदी यादव को भी पुलिस ने हत्यारों को छिपाने और भगाने के आरोप में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था.

इस के बाद रौकी की खोज में जब पुलिस ने मनोरमा के घर छापा मारा तो रौकी तो वहां नहीं मिला, लेकिन उन के घर से विदेशी शराब की 6 बोतलें बरामद हुई थीं. राज्य में शराबबंदी के बाद सत्तारूढ़ दल के एमएलसी के घर से शराब की बोतलें मिलने से सरकार को छीछालेदर से बचाने के लिए तुरंत मनोरमा देवी को जदयू से निलंबित कर दिया गया था.

हत्यारे की मां भी जेल में

मनोरमा देवी के घर से शराब मिलने के बाद आननफानन उन की गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया गया था. 11 मई को जिला प्रशासन, पुलिस और उत्पाद विभाग के अफसरों की मौजूदगी में मनोरमा देवी के घर को सील कर दिया गया था, जबकि वह फरार थीं. जिस घर से शराब बरामद हुई थी, वह मनोरमा देवी के नाम था, इसलिए इस मामले में उन्हें आरोपी बनाया गया. बाद में उन्हें गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया था.

पुलिस जांच से पता चला था कि रौकी ने जिस रिवौल्वर से आदित्य की हत्या की थी, वह इटली की बरेटा कंपनी का था. वह .380 बोर का था. पुलिस सूत्रों के अनुसार, आदित्य की हत्या करने के बाद रौकी पटना समेत राज्य के कई स्थानों पर छिपता रहा.

हत्या करने के तुरंत बाद रौकी भाग गया था. इस के बाद वह दिल्ली जाना चाहता था, लेकिन अचानक उस का प्लान बदल गया और वह गया चला गया. गिरफ्तारी के बाद उसे गया सैंट्रल जेल में रखा गया था, जहां उसे कैदी नंबर 22774 की पहचान मिली थी.

उस के बाहुबली पिता बिंदी यादव को कैदी नंबर 22758 की पहचान मिली थी. दोनों को जेल के एक ही वार्ड में रखा गया था. आदित्य हत्याकांड की जांच के दौरान यह भी खुलासा हुआ था कि देशद्रोह के आरोपी बिंदी यादव को किस तरह से सरकारी बौडीगार्ड मुहैया कराया गया था.

जिला सुरक्षा समिति ने 9 फरवरी, 2016 को बिंदी यादव को भुगतान के आधार पर एक पुलिसकर्मी मुहैया कराया था. बिंदी पर आरोप था कि उस ने प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा-माओवादी को प्रतिबंधित बोर की कई हजार गोलियां और हथियार उपलब्ध कराए थे. इस मामले में वह लंबे समय तक गया जेल में बंद रहा था.

बिचौलिए: क्यों मिला वंदना को धोखा- भाग 4

दिनेश साहब स्कूटर पर अपने घर की तरफ जाते ताजा देखी फिल्म का एक रोमांटिक गीत सारे रास्ते गुनगुनाते रहे. समीर और वंदना के मध्य बिचौलियों की भूमिका निभाते हुए दोनों खुद भी प्रेम की डोरी में बंध गए थे, यह बात दोनों की समझ में आ गई थी. सीमा के अनुमान के मुताबिक, वंदना और समीर के बीच खेले जा रहे नाटक का अंत हुआ जरूर पर उस अंदाज में नहीं जैसा सीमा ने सोच रखा था.

वंदना को दिनेशजी के पीछे स्कूटर पर बैठ कर लौटते देख समीर किलसता है, इस की जानकारी उस के तीनों सहयोगियों को थी. वे पूरा दिन समीर के मुंह से उन के खिलाफ निकलते अपशब्द भी सुनते रहते थे. सीमा को नहीं, पर ओमप्रकाश और महेश को समीर से कुछ सहानुभूति भी हो गई थी.

उन्हें भी अब लगता था कि वंदना और दिनेश साहब के बीच कुछ अलग तरह की खिचड़ी पक रही थी. वे उस की बातों पर कुछ ज्यादा ध्यान देते थे. गुरुवार को भोजनावकाश में दिनेशजी और वंदना साथसाथ सीमा के पास किसी कार्यवश आए, तो समीर अचानक खुद पर से नियंत्रण खो बैठा.

‘‘सर, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं,’’ अपना खाना छोड़ कर समीर उन तीनों के पास पहुंच, तन कर खड़ा हो गया.

‘‘कहो, क्या कहना चाहते हो,’’ उन्होंने गंभीर लहजे में पूछा.

ओमप्रकाश और महेश उत्सुक दर्शक की भांति समीर की तरफ देखने लगे. सीमा के चेहरे पर तनाव झलक उठा. वंदना कुछ घबराई सी नजर आ रही थी.

‘‘सर, आप जो कर रहे हैं, वह आप को शोभा नहीं देता,’’ समीर चुभते स्वर में बोला.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारी इस बात का?’’ वे गुस्सा हो उठे.

‘‘वंदना और आप की कोई जोड़ी नहीं बनती. आप को उसे फंसाने की गंदी कोशिशें छोड़नी होंगी.’’

‘‘यह क्या बकवास…’’

‘‘सर, एक मिनट आप शांत रहिए और मुझे समीर से बात करने दीजिए,’’ दिनेश साहब से विनती करने के बाद सीमा समीर की तरफ घूम कर तीखे लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें वंदना के मामले में बोलने का कोई अधिकार नहीं, समीर. वह अपना भलाबुरा खुद पहचानने की समझ रखती है.’’

‘‘मुझे पूरा अधिकार है वंदना के हित को ध्यान में रख कर बोलने का. तुम लाख वंदना को भड़का लो, पर हमें अलग नहीं कर पाओगी, मैडम सीमा.’’

‘‘अलग मैं नहीं करूंगी तुम दोनों को, मिस्टर. तुम ही उसे धोखा दोगे, इस बात को ले कर वंदना के दिमाग में कोई शक नहीं रहा है,’’ सीमा भड़क कर बोली.

‘‘यह झूठ है.’’

‘‘तुम ही राजेशजी की बेटी को देखने गए थे. फिर तुम्हारी बात पर कौन विश्वास करेगा?’’ सीमा ने मुंह बिगाड़ कर पूछा.

‘‘वह…वह मेरी गलती थी,’’ समीर वंदना की तरफ घूमा, ‘‘मुझे अपने मातापिता के दबाव में नहीं आना चाहिए था, वंदना. पर उस बात को भूल जाओ. यह सीमा तुम्हें गलत सलाह दे रही है. दिनेश साहब के साथ तुम्हारा कोई मेल नहीं बैठता.’’

‘‘तो किस के साथ बैठता है?’’ वंदना को कुछ कहने का अवसर दिए बिना सीमा ने तेज स्वर में पूछा.

‘‘म…मेरे साथ. मैं वंदना से प्यार करता हूं,’’ समीर ने अपने दिल पर हाथ रखा.

‘‘तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता, समीर.’’

‘‘मैं वंदना से शादी करूंगा.’’

‘‘तुम ऐसा करोगे, क्या प्रमाण है इस बात का?’’

‘‘प्रमाण यह है कि मेरे मातापिता हमारी शादी को राजी हो गए हैं. उन्हें मैं ने राजी कर लिया है. पर…पर मुझे लगता है कि मैं वंदना का प्यार खो बैठा हूं,’’ समीर एकाएक उदास हो गया.

‘‘कब तक कर लोगे तुम वंदना से शादी?’’ सीमा ने उस के आखिरी वाक्य को नजरअंदाज कर सख्त लहजे में पूछा.

‘‘इस महीने की 25 तारीख को.’’

‘‘यानी 10 दिन बाद?’’ सीमा ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां.’’

सीमा, वंदना और दिनेश साहब फिर इकट्ठे एकाएक मुसकराने लगे. समीर आर्श्चयभरी निगाहों से उन्हें देखने लगा.

‘‘समीर, वंदना और मेरे संबंध पर शक मत करो,’’ दिनेश साहब ने कदम बढ़ा कर दोस्ताना अंदाज में समीर के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘वंदना सिर्फ मेरी है, मेरे दिल का यह विश्वास तुम्हारी पिछले दिनों की हरकतों से डगमगाया है, वंदना,’’ समीर आहत स्वर मेें बोला.

‘‘वे सब बातें मेरे निर्देशन में हुई थीं, समीर,’’ सीमा मुसकराते हुए बोली, ‘‘वह सब एक सोचीसमझी योजना थी. सर और मेरी मिलीभगत थी इस मामले में. वह सब नाटक था.’’

‘‘मैं कैसे विश्वास कर लूं तुम्हारी बातों  का, सीमा?’’ समीर अब भी परेशान व चिंतित नजर आ रहा था.

‘‘मैं कह रही हूं न कि वंदना और दिनेश साहब के बीच कोई चक्कर नहीं है,’’ सीमा खीझ भरे स्वर में बोली.

समीर फिर भी उदास खड़ा रहा. वातावरण फिर तनाव से भर उठा.

‘‘भाई, तुम्हारा विश्वास जीतने का अब एक ही तरीका मुझे समझ में आता है,’’ दिनेश साहब कुछ झिझकते हुए बोले, ‘‘मैं प्रेम करता हूं, पर वंदना से नहीं. कल शाम ही सीमा और मैं ने जीवनसाथी बनने का निर्णय लिया है,’’

‘‘सच, सीमा दीदी?’’ वंदना के इस प्रश्न के जवाब में सीमा का गोरा चेहरा शर्म से गुलाबी हो उठा.

‘‘हुर्रे,’’ एकाएक समीर जोर से चिल्ला उठा, तो सब उस की तरफ आश्चर्य से देखने लगे.

‘‘बहुत खुश हो न, वंदना को पा कर तुम, समीर,’’ दिनेश साहब हंस कर बोले, ‘‘तुम्हें सीमा का दिल से धन्यवाद करना चाहिए. वह एक समझदार बिचौलिया न बनती, तो वंदना और तुम्हारी शादी की तारीख इतनी जल्दी निश्चित न हो पाती.’’

‘‘शादी हमारी तो बहुत पहले से निश्चित है, सर. मुझे ही नहीें, हम सब को इस वक्त जो बेहद खुशी का अनुभव हो रहा है, वह इस बात का कि सीमा और आप ने जीवनसाथी बनने का निर्णय ले लिया है,’’ कहते हुए समीर अपनी मेज के पास पहुंचा और दराज में से एक कार्ड निकाल कर उस ने उन को पकड़ाया. कार्ड वंदना और समीर की शादी का था जो वाकई 25 तारीख को होने जा रही थी. कार्ड पढ़ कर सीमा और दिनेश साहब  के मुंह हैरानी से खुले रह गए. वंदना मुसकराती हुई समीर के पास आ कर खड़ी हो गई. समीर उस का हाथ अपने हाथ में ले कर प्रसन्नस्वर में बोला, ‘‘सर, वंदना और मेरी अनबन नकली थी. सीमा और आप के जीवन के एकाकीपन को समाप्त करने को पिछले कई दिनों से हम सब ने एक शानदार नाटक खेला है.

‘‘हमारी योजना में बड़े बाबू, महेशजी, वंदना और मैं ही नहीं, मेरे मातापिता, सीमा की मां, मामाजी और मामाजी के पड़ोसी राजेशजी तक शामिल थे. मेरे लड़की देखने जाने की झूठी खबर से हमारी योजना का आरंभ हुआ था. वंदना और मैं नहीं, सीमा और आप हमारे इशारों पर चल रहे थे. अब कहिए. बढि़या बिचौलिए हम रहे या आप?’’ ‘‘धन्यवाद तुम सब का,’’ दिनेशजी ने लजाती सीमा का हाथ थामा तो सभी ने तालियां बजा कर उन्हें सुखी भविष्य के लिए अपनीअपनी शुभकामनाएं देना आरंभ कर दिया.

ब्लैकमेलिंग का साइड इफेक्ट

‘‘रजनी, क्या बात है आजकल तुम कुछ बदलीबदली सी लग रही हो. पहले की तरह बात भी नहीं करती.

मिलने की बात करो तो बहाने बनाती हो. फोन करो तो ठीक से बात भी नहीं करतीं. कहीं हमारे बीच कोई और तो नहीं आ गया.’’ कमल ने अपनी प्रेमिका रजनी से शिकायती लहजे में कहा तो रजनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और आ भी नहीं सकता.’’

रजनी और कमल लखनऊ जिले के थाना निगोहां क्षेत्र के गांव अहिनवार के रहने वाले थे. दोनों का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था.

‘‘रजनी, फिर भी मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. देखो, तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई बात हो तो मुझे बताओ. हो सकता है, मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं.’’ कमल ने रजनी को भरोसा देते हुए कहा.

‘‘कमल, मैं ने तुम्हें बताया नहीं, पर एक दिन हम दोनों को हमारे फूफा गंगासागर ने देख लिया था.’’ रजनी ने बताया.

‘‘अच्छा, उन्होंने घर वालों को तो नहीं बताया?’’ कमल ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘अभी तो उन्होंने नहीं बताया, पर बात छिपाने की कीमत मांग रहे हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘कितने पैसे चाहिए उन्हें?’’ कमल ने पूछा.

‘‘नहीं, पैसे नहीं बल्कि एक बार मेरे साथ सोना चाहते हैं. वह धमकी दे रहे हैं कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वह मेरे घर में पूरी बात बता कर मुझे घर से निकलवा देंगे.’’ रजनी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस एक बार तुम मुझ से मिलवा दो. हम उस की ऐसी हालत कर देंगे कि वह बताने लायक ही नहीं रहेगा. वह तुम्हारा सगा रिश्तेदार है तो यह बात कहते उसे शरम नहीं आई?’’ रजनी को चिंता में देख कमल गुस्से से भर गया.

‘‘अरे नहीं, मारना नहीं है. ऐसा करने पर तो हम ही फंस जाएंगे. जो बात हम छिपाना चाह रहे हैं, वही फैल जाएगी.’’ रजनी ने कमल को समझाते हुए कहा.

‘‘पर जो बात मैं तुम से नहीं कह पाया, वह उस ने तुम से कैसे कह दी. उसे कुछ तो शरम आनी चाहिए थी. आखिर वह तुम्हारे सगे फूफा हैं.’’ कमल ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. मैं उन की बेटी की तरह हूं. वह शादीशुदा और बालबच्चेदार हैं. फिर भी वह मेरी मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, अगर वह फिर कोई बात करे तो बताना. हम उसे ठिकाने लगा देंगे.’’ कमल गुस्से में बोला.  इस के बाद रजनी अपने घर आ गई पर रजनी को इस बात की चिंता होने लगी थी.

ब्लैकमेलिंग में अवांछित मांग

38 साल के गंगासागर यादव का अपना भरापूरा परिवार था. वह लखनऊ जिले के ही सरोजनीनगर थाने के गांव रहीमाबाद में रहता था. वह ठेकेदारी करता था. रजनी उस की पत्नी रेखा के भाई की बेटी थी.

उस से उम्र में 15 साल छोटी रजनी को एक दिन गंगासागर ने कमल के साथ घूमते देख लिया था. कमल के साथ ही वह मोटरसाइकिल से अपने घर आई थी. यह देख कर गंगासागर को लगा कि अगर रजनी को ब्लैकमेल किया जाए तो वह चुपचाप उस की बात मान लेगी. चूंकि वह खुद ही ऐसी है, इसलिए यह बात किसी से बताएगी भी नहीं. गंगासागर ने जब यह बात रजनी से कही तो वह सन्न रह गई. वह कुछ नहीं बोली.

गंगासागर ने रजनी से एक दिन फिर कहा, ‘‘रजनी, तुम्हें मैं सोचने का मौका दे रहा हूं. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो घर में तुम्हारा भंडाफोड़ कर दूंगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे मांबाप कितने गुस्से वाले हैं. मैं उन से यह बात कहूंगा तो मेरी बात पर उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और बिना कुछ सोचेसमझे ही वे तुम्हें घर से निकाल देंगे.’’

रजनी को धमकी दे कर गंगासागर चला गया. समस्या गंभीर होती जा रही थी. रजनी सोच रही थी कि हो सकता है उस के फूफा के मन से यह भूत उतर गया हो और दोबारा वह उस से यह बात न कहें.

यह सोच कर वह चुप थी, पर गंगासागर यह बात भूला नहीं था. एक दिन रजनी के घर पहुंच गया. अकेला पा कर उस ने रजनी से पूछा, ‘‘रजनी, तुम ने मेरे प्रस्ताव पर क्या विचार किया?’’

‘‘अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं. देखिए फूफाजी, आप मुझ से बहुत बड़े हैं. मैं आप के बच्चे की तरह हूं. मुझ पर दया कीजिए.’’ रजनी ने गंगासागर को समझाने की कोशिश की.

‘‘इस में बड़ेछोटे जैसी कोई बात नहीं है. मैं अपनी बात पर अडिग हूं. इतना समझ लो कि मेरी बात नहीं मानी तो भंडाफोड़ दूंगा. इसे कोरी धमकी मत समझना. आखिरी बार समझा रहा हूं.’’ गंगासागर की बात सुन कर रजनी कुछ नहीं बोली. उसे यकीन हो गया था कि वह मानने वाला नहीं है.

रजनी ने यह बात कमल को बताई. कमल ने कहा, ‘‘ठीक है, किसी दिन उसे बुला लो.’’

इस के बाद रजनी और कमल ने एक योजना बना ली कि अगर वह अब भी नहीं माना तो उसे सबक सिखा देंगे. दूसरी ओर गंगासागर पर तो किशोर रजनी से संबंध बनाने का भूत सवार था.

सुबह होते ही उस का फोन आ गया. फूफा का फोन देखते ही रजनी समझ गई कि अब वह मानेगा नहीं. कमल की योजना पर काम करने की सोच कर उस ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘फूफाजी, आप कल रात आइए. आप जैसा कहेंगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

रजनी इतनी जल्दी मान जाएगी, गंगासागर को यह उम्मीद नहीं थी. अगले दिन शाम को उस ने रजनी को फोन कर पूछा कि वह कहां मिलेगी. रजनी ने उसे मिलने की जगह बता दी.

अपने आप बुलाई मौत

18 जुलाई, 2018 को रात गंगासागर ने 8 बजे अपनी पत्नी को बताया कि पिपरसंड गांव में दोस्त के घर बर्थडे पार्टी है. अपने साथी ठेकेदार विपिन के साथ वह वहीं जा रहा है.

गंगासागर रात 11 बजे तक भी घर नहीं लौटा तो पत्नी रेखा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. रेखा ने सोचा कि हो सकता है ज्यादा रात होने की वजह से वह वहीं रुक गए होंगे, सुबह आ जाएंगे.

अगली सुबह किसी ने फोन कर के रेखा को बताया कि गंगासागर का शव हरिहरपुर पटसा गांव के पास फार्महाउस के नजदीक पड़ा है. यह खबर मिलते ही वह मोहल्ले के लोगों के साथ वहां पहुंची तो वहां उस के पति की चाकू से गुदी लाश पड़ी थी. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और गंगासागर के पिता श्रीकृष्ण यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

कुछ देर बाद पुलिस को सूचना मिली कि गंगासागर की लाल रंग की बाइक घटनास्थल से 22 किलोमीटर दूर असोहा थाना क्षेत्र के भावलिया गांव के पास सड़क किनारे एक गड्ढे में पड़ी है. पुलिस ने वह बरामद कर ली.

जिस क्रूरता से गंगासागर की हत्या की गई थी, उसे देखते हुए सीओ (मोहनलाल गंज) बीना सिंह को लगा कि हत्यारे की मृतक से कोई गहरी खुंदक थी, इसीलिए उस ने चाकू से उस का शरीर गोद डाला था ताकि वह जीवित न बच सके.

पुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस के अलावा पुलिस ने उस की सालियों, साले, पत्नी सहित कुछ साथी ठेकेदारों से भी बात की. एसएसआई रामफल मिश्रा ने काल डिटेल्स खंगालनी शुरू की तो उस में कुछ नंबर संदिग्ध लगे.

लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह के निर्देशन में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अजय कुमार राय के साथ अपराध शाखा के ओमवीर सिंह, सर्विलांस सेल के सुधीर कुमार त्यागी, एसएसआई रामफल मिश्रा, एसआई प्रमोद कुमार, सिपाही सरताज अहमद, वीर सिंह, अभिजीत कुमार, अनिल कुमार, राजीव कुमार, चंद्रपाल सिंह राठौर, विशाल सिंह, सूरज सिंह, राजेश पांडेय, जगसेन सोनकर और महिला सिपाही सुनीता को शामिल किया गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घटना की रात गंगासागर की रजनी, कमल और कमल के दोस्त बबलू से बातचीत हुई थी. पुलिस ने रजनी से पूछताछ शुरू की और उसे बताया, ‘‘हमें सब पता है कि गंगासागर की हत्या किस ने की थी. तुम हमें सिर्फ यह बता दो कि आखिर उस की हत्या करने की वजह क्या थी?’’

रजनी सीधीसादी थी. वह पुलिस की घुड़की में आ गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर की थी.

उस ने बताया कि उस के फूफा गंगासागर ने उस का जीना दूभर कर दिया था, जिस की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा. रजनी ने पुलिस को हत्या की पूरी कहानी बता दी.

गंगासागर की ब्लैकमेलिंग से परेशान रजनी ने उसे फार्महाउस के पास मिलने को बुलाया था. वहां कमल और उस का साथी बबलू पहले से मौजूद थे. गंगासागर को लगा कि रजनी उस की बात मान कर समर्पण के लिए तैयार है और वह रात साढ़े 8 बजे फार्महाउस के पीछे पहुंच गया.

रजनी उस के साथ ही थी. गंगासागर के मन में लड्डू फूट रहे थे. जैसे ही उस ने रजनी से प्यारमोहब्बत भरी बात करनी शुरू की, वहां पहले से मौजूद कमल ने अंधेरे का लाभ उठा कर उस पर लोहे की रौड से हमला बोल दिया. गंगासागर वहीं गिर गया तो चाकू से उस की गरदन पर कई वार किए. जब वह मर गया तो कमल और बबलू ने खून से सने अपने कपड़े, चाकू और रौड वहां से कुछ दूरी पर झाड़ के किनारे जमीन में दबा दिया.

दोनों अपने कपड़े साथ ले कर आए थे. उन्हें पहन कर कमल गंगासागर की बाइक ले कर उन्नाव की ओर भाग गया. बबलू रजनी को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव ले आया और उसे उस के घर छोड़ दिया. कमल ने गंगासागर की बाइक भावलिया गांव के पास सड़क किनारे गड्ढे में डाल दी, जिस से लोग गुमराह हो जाएं. पुलिस ने बड़ी तत्परता से केस की छानबीन की और हत्या का 4 दिन में ही खुलासा कर दिया. एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

बिचौलिए: क्यों मिला वंदना को धोखा- भाग 3

‘‘सर, घबराइए मत. आप को ऐसा दर्शाने का सिर्फ अभिनय करना है. वंदना के साथ कुछ नहीं करना पड़ेगा आप को. बस, समीर को दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होना चाहिए जैसे वंदना और आप दिनप्रतिदिन एकदूसरे के ज्यादा नजदीक आते जा रहे हो. उस के दिल में ईर्ष्याग्नि भड़काने की जिम्मेदारी मेरी होगी.’’

‘‘कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए?’’

‘‘कुछ नहीं होगा, सर. मैं ने इस योजना पर खूब सोचविचार कर लिया है.’’

‘‘वंदना और समीर की जोड़ी को सलामत रखने को तुम बिचौलिए की भूमिका बखूबी निभा रही हो, सीमा.’’

‘‘बिचौलिए के इस कार्य में आप मेरे बराबर के साथी हैं, यह मत भूलिए, सर,’’ सीमा की इस बात पर उन दोनों का सम्मिलित ठहाका कक्ष में गूंज उठा.

‘‘चाय पियोगी न?’’ एकाएक उन्होंने पूछा तो सीमा से हां या न कुछ भी कहते नहीं बना.

दिनेश साहब के कक्ष में उस ने पहले कभी चाय इसलिए नहीं पी थी क्योंकि कभी उन्होंने ऐसा प्रस्ताव उस के सामने रखा ही नहीं. उस के मौन को स्वीकृति समझ उन्होंने चपरासी को बुला कर 2 कप चाय लाने को कहा. सीमा और वे फिर काफी देर तक एकदूसरे की व्यक्तिगत, घरेलू जिंदगी के बारे में वार्त्तालाप करते रहे. इस पूरे सप्ताह समीर ने वंदना के साथ खुल कर बातें करने के कई प्रयास किए, पर हर बार वह असफल रहा. वंदना उस से कुछ कहनेसुनने को तैयार नहीं थी.

समीर की बेचैन नजरें बारबार वंदना के कक्ष की तरफ उठती देख कर सीमा मन ही मन मुसकरा उठती थी. दिनेश साहब की पीठ को गुस्सेभरे अंदाज में समीर को घूरता देख कर तो उस का दिल खिलखिला कर हंसने को करता था. अपनी योजना को आगे बढ़ाने के इरादे से उस ने दूसरे शनिवार को मिलने वाली आधे दिन की छुट्टी का फायदा उठाने का कार्यक्रम बनाया.

‘‘वंदना, कल शनिवार है और तुझे दिनेश साहब के साथ फिल्म देखने जाना है. मैं आज शाम 2 टिकट लेती जाऊंगी,’’ सीमा का यह प्रस्ताव सुन कर वंदना घबरा उठी.

‘‘यह मुझ से नहीं होगा, दीदी,’’ वंदना ने परेशान लहजे में कहा.

‘‘देख, समीर से तेरे दूर रहने के कारण वह अब पूरा दिन तेरे बारे में ही सोचता रहता है. दिनेश साहब और तेरे बीच कुछ चक्कर चल रहा है, इस वहम ने उसे परेशान कर रखा है. अब अगर तू दिनेश साहब के साथ फिल्म देखने चली जाती है तो वह बिलकुल ही बौखला उठेगा. तू ऐसे ही मेरे कहने पर चलती रही, तो वह बहुत जल्दी ही तेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखने को मजबूर हो जाएगा,’’ सीमा ने उसे समझाया.

कुछ देर सोच में डूबी रह कर वंदना ने कहा, ‘‘दीदी, आप की बात में दम है, पर मैं अकेली उन के साथ फिल्म देखने नहीं जाऊंगी. मुझे शर्म आएगी. हां, एक बात जरूर हो सकती है.’’

‘‘कौन सी बात?’’

‘‘आप भी हमारे साथ चलना. आप की उपस्थिति से मैं सहज रहूंगी और समीर को जलाने की हमारी योजना भी कामयाब रहेगी.’’ सीमा ने कुछ सोचविचार कर इस प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी. दिनेश साहब की रजामंदी हासिल करना उस के लिए कोई कठिन नहीं था. वे तीनों फिल्म देखने जा रहे हैं, यह जानकारी सीमा द्वारा समीर को तब मिली जब उस ने बड़े बाबू को ऊंचे स्वर में यह बात शनिवार की सुबह बताई. समीर के चेहरे का पहले गुस्से से तमतमाना और फिर उस के चेहरे पर उड़ती नजर आती हवाइयां, ये दोनों बातें ही सीमा की नजरों से छिपी नहीं रही थीं. उन तीनों का इकट्ठा फिल्म देखने का कार्यक्रम सफल नहीं हुआ, पर यह बात समीर नहीं जान सका था. वह तो आंखों से भालेबरछियां बरसाता उन्हें तब तक कुछ दूरी पर खड़ा घूरता रहा था, जब तक सीमा और वंदना को ले कर तिपहिया स्कूटर व दिनेश साहब का स्कूटर औफिस के कंपाउंड से चल नहीं पड़े थे.

हाल में प्रवेश करने से कुछ ही मिनट पूर्व वंदना का छोटा भाई दीपक उसे बुला कर घर ले गया था. वंदना की मां की तबीयत अचानक खराब हो जाने के कारण उस का बुलावा आया था. फिल्म सीमा और दिनेश साहब को ही देखने को मिली. सीमा झिझकते हुए अंदर घुसी थी उन के साथ. उन के शालीन व सभ्य व्यवहार के कारण वह जल्दी ही सामान्य हो गई थी. लोग उन्हें यों साथसाथ देख कर क्या कहेंगे व क्या सोचेंगे, इस बात की चिंता करना भी उसे तब मूर्खतापूर्ण कार्य लगा था. फिल्म की समाप्ति के बाद दोनों एक रेस्तरां में कौफी पीने भी गए. वार्त्तालाप वंदना और समीर के आपसी संबंधों के विश्लेषण से जुड़ा रहा था. दोनों ही इस बात से काफी उत्साहित व उत्तेजित नजर आते थे कि समीर अब वंदना का प्यार व विश्वास फिर से हासिल करने को काफी बेचैन नजर आने लगा था.

‘‘मैं समझती हूं कि अगले सप्ताह के अंत तक समीर और वंदना के केस में सफलता मिल जाएगी,’’ सीमा ने विश्वासभरे स्वर में आशा व्यक्त की.

‘‘तुम्हारा मतलब है समीर वंदना के साथ शादी का प्रस्ताव रख देगा?’’

‘‘हां.’’

‘‘तब तो हम बिचौलियोें का काम भी समाप्त हो जाएगा?’’

‘‘वह तो हो ही जाएगा.’’

‘‘पर इस का मुझे कुछ अफसोस रहेगा. मजा आ रहा था मुझे तुम्हारे निर्देशन में काम करने में, सीमा. तुम्हारा दिल सोने का बना है.’’

‘‘प्रशंसा के लायक मैं नहीं, आप हैं. आप के सहयोग के बिना कुछ भी होना संभव नहीं होता, सर.’’ ‘‘मेरी एक बात मानोगी, सीमा?’’ सीमा ने प्रश्नसूचक निगाहों से उन की तरफ देखा, ‘‘औफिस के बाहर मुझे ‘सर’ मत कहा करो. मेरा नाम ले सकती हो तुम.’’ सीमा से कोई जवाब देते नहीं बना. अचानक उस की दिल की धड़कनें तेज हो गईं.

‘‘तुम मुझे औफिस के बाहर दिनेश बुलाओगी, तो मुझे अच्छा लगेगा,’’ यह कहते हुए उन का गला सूख गया.

‘‘मैं…मैं कोशिश करूंगी, सर,’’ कह कर सीमा हंस पड़ी तो उन के बीच का माहौल फिर सहज हो गया था. रेस्तरां से निकल कर वे कुछ देर बाजार में घूमे. फिर उन के स्कूटर पर बैठ कर सीमा घर लौटी.

‘‘आप, अंदर आइए न.’’

उस के इस निमंत्रण पर दिनेश साहब का सिर इनकार में हिला, ‘‘मैं फिर कभी आऊंगा सीमा, और जब आऊंगा, खाना खा कर जाऊंगा.’’

‘‘अवश्य स…नहीं, दिनेश,’’ सीमा मुसकराई, ‘‘मेरी आज की शाम बहुत अच्छी गुजरी है, इस के लिए धन्यवाद, दिनेश. अच्छा, शुभरात्रि.’’

सीमा जिस अंदाज में लजा कर तेज चाल से अपने घर के मुख्यद्वार की तरफ गई, उस ने दिनेश साहब के बदन में झनझनाहट पैदा कर दी. दरवाजे पर पहुंच सीमा मुड़ी और एक हाथ हिलाने के बाद मुसकराती हुई घर में प्रवेश कर गई.

कैसे लुटा 27 किलो सोना

21 जुलाई, 2017 की बात है. जयपुर पुलिस उस दिन कुछ ज्यादा ही चाकचौबंद थी. उस दिन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 3 दिन के दौरे पर जयपुर आ रहे थे. इसी के मद्देनजर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल उस दिन जल्दी उठ गए थे. उन्होंने अपने मातहत वरिष्ठ अधिकारियों को वायरलैस और फोन पर आवश्यक निर्देश दिए ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी की कोई गुंजाइश न रहे. सीआईडी, इंटेलीजेंस और पुलिस की विशेष शाखा के जवान अपनेअपने मोर्चे पर नजरें जमाए हुए थे. शहर के प्रमुख मार्गों पर पुलिस ने नाकेबंदी कर रखी थी ताकि आपराधिक प्रवृत्ति के लोग बाहर से शहर में आ न सकें.

दोपहर करीब पौने 2 बजे के आसपास पुलिस कमिश्नर अग्रवाल जब अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन्हें जयपुर शहर में एक बड़ी वारदात की सूचना मिली. मातहत अधिकारियों ने बताया कि मानसरोवर में मुथूट फाइनैंस की शाखा में दिनदहाड़े डकैती हुई है. 4 बदमाश करोड़ों रुपए का सोना और लाखों रुपए नकद लूट ले गए हैं.

वारदात की सूचना मिलने पर पुलिस कमिश्नर खीझ उठे. शहर में सभी प्रमुख जगहों पर पुलिस तैनात होने के बावजूद बदमाश करोड़ों रुपए का सोना लूट ले गए थे. खास बात यह थी कि जयपुर में दिनदहाड़े बैंक लूट के 28 घंटे बाद ही गोल्ड लूट की बड़ी वारदात हो गई थी. पुलिस कमिश्नर ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए अधिकारियों को तुरंत मौके पर भेजा. साथ ही शहर के सभी मार्गों पर कड़ी नाकेबंदी कराने के भी निर्देश दिए.

मुथूट फाइनैंस की शाखा जयपुर के मानसरोवर इलाके में रजतपथ चौराहे पर पहली मंजिल पर है. उस दिन दोपहर करीब एक बजे की बात है. उस समय लंच शुरू होने वाला था. मुथूट के कार्यालय में मैनेजर सत्यनारायण तोषनीवाल अपने केबिन में बैठे थे. बंदूकधारी गार्ड दीपक सिंह गेट पर खड़ा था. कर्मचारी टीना शर्मा एवं मीनाक्षी अपने काउंटरों पर बैठी थीं. 2 ग्राहक नंदलाल गुर्जर और घनश्याम खत्री भी मुथूट के औफिस में मौजूद थे. मुथूट के उस औफिस में कुल 5 कर्मचारी थे. उस दिन एक कर्मचारी फिरोज छुट्टी पर था.

इसी दौरान एक युवक मुथूट के कार्यालय में आया. युवक ने सिर पर औरेंज कलर की कैप लगा रखी थी. उस ने अपने गले में पहनी एक चेन महिला कर्मचारी मीनाक्षी को दिखाई और कहा कि सोने की इस चेन के बदले मुझे लोन चाहिए, कितना लोन मिल सकता है?

मीनाक्षी उस युवक को दस्तावेज लाने की बात कह रही थी, तभी हेलमेट पहने 2 युवक अंदर आए. इन के तुरंत बाद चेहरे पर रूमाल बांधे तीसरा युवक अंदर गेट के पास आ कर खड़ा हो गया. उन तीनों युवकों के आने पर चेन दिखा रहा वह युवक भी उन के साथ हो गया.

उन में से हेलमेटधारी बदमाशों ने पिस्तौल निकाल ली और वहां मौजूद कर्मचारियों और ग्राहकों को धमका कर चुपचाप एक कोने में बैठने को कहा. इतनी देर में गेट के पास चेहरे पर रूमाल बांधे खड़े बदमाश ने गार्ड दीपक सिंह से उस की बंदूक छीन ली और उसे जमीन पर बैठने को कहा. बदमाशों के डर से गार्ड चुपचाप नीचे बैठ गया.

society

कर्मचारियों व ग्राहकों को धमकाने के बाद पिस्तौल लिए एक बदमाश मैनेजर तोषनीवाल के पास पहुंचा. बदमाश ने उन की कनपटी पर पिस्तौल तानते हुए स्ट्रांगरूम की चाबी मांगी. मैनेजर ने चिल्लाते हुए अपने केबिन से निकल कर भागने की कोशिश की, लेकिन गेट पर खड़े बदमाश ने उन से मारपीट की और बंदूक दिखा कर अंदर धकेल दिया. साथ ही गोली मारने की धमकी भी दी.

खुद को चारों तरफ से घिरा देख कर भी मैनेजर ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने बदमाशों को गुमराह करने के लिए कहा, ‘‘मेरे पास एक ही चाबी है. स्ट्रांगरूम 2 चाबियों से खुलता है. दूसरी चाबी कैशियर के पास है, वह बैंक गया हुआ है.’’

बदमाशों ने मैनेजर से एक ही चाबी ले कर स्ट्रांगरूम खोलने की कोशिश की. मामूली कोशिश के बाद स्ट्रांगरूम खुल गया तो 2 बदमाशों ने स्ट्रांगरूम का सोना और नकदी निकाल कर अपने साथ लाए एक बैग में भर ली. 2 बदमाश जब स्ट्रांगरूम से बैग में सोना भर रहे थे तो मैनेजर ने बदमाशों से खुद को बीमार बताते हुए बाथरूम जाने देने की याचना की. इस पर बदमाशों ने मैनेजर को बाथरूम जाने दिया. मैनेजर सत्यनारायण तोषनीवाल ने बाथरूम में घुसते ही अंदर से गेट बंद कर लिया.

कंपनी के बाथरूम में इमरजेंसी अलार्म लगा हुआ था, मैनेजर ने वह अलार्म बजा दिया. साथ ही उन्होंने बाथरूम से ही मुथूट फाइनैंस कंपनी के जयपुर के ही एमआई रोड स्थित कार्यालय और पुलिस कंट्रोल रूम को फोन भी कर दिया. अलार्म बजने पर दोपहर करीब 1.22 बजे चारों बदमाश सोना व नकदी ले कर तेजी से सीढि़यों से नीचे उतर कर चले गए. बाद में पता चला कि बदमाश 2 मोटरसाइकिलों पर आए थे और मोटरसाइकिलों पर ही चले गए थे.

सूचना मिलने पर डीसीपी क्राइम डा. विकास पाठक, एसीपी देशराज यादव के अलावा मानसरोवर थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुला लिया गया. पुलिस ने जांचपड़ताल की. कर्मचारियों व वारदात के दौरान मौजूद रहे ग्राहकों से पूछताछ की.

पुलिस ने मौके पर एक काउंटर से दस्ताने बरामद किए. ये दस्ताने एक बदमाश छोड़ गया था. मैनेजर ने स्ट्रांगरूम और अन्य नकदी का हिसाबकिताब लगाने के बाद प्रारंभिक तौर पर पुलिस अधिकारियों को बताया कि बदमाश 31 किलोग्राम सोना और 3 लाख 85 हजार रुपए नकद लूट ले गए थे.

मैनेजर ने पुलिस को बताया कि अलार्म बज जाने से लुटेरे करीब 10 करोड़ रुपए कीमत का 35 किलो सोना नहीं ले जा सके थे. वारदात के समय स्ट्रांगरूम में 65 किलो से ज्यादा सोना रखा था. लुटेरे अपने साथ 2-3 बैग लाए थे, लेकिन वे एक बैग में ही सोना भर पाए थे, तभी अलार्म बज गया और जल्दी से भागने के चक्कर में वे बाकी सोना छोड़ गए.

मुथूट कंपनी की इस शाखा से करीब ढाई हजार ग्राहक जुडे़ हुए थे. लुटेरे इन में से करीब एक हजार ग्राहकों का सोना ले गए थे. हालांकि बाद में कंपनी के अधिकारियों ने सारा रिकौर्ड देखने के बाद बताया कि लूटे गए सोने का वजन करीब 27 किलो था.

वारदात के बाद मुथूट की महिला कर्मचारी टीना शर्मा बहुत डरी हुई थी. गर्भवती टीना शर्मा वारदात के बारे में पुलिस को बताते हुए रोने लगी. कर्मचारियों में से मीनाक्षी ने बताया कि बदमाश बोलचाल से उत्तर प्रदेश या हरियाणा के लग रहे थे. उन में एक की उम्र करीब 35 साल थी, जबकि बाकी लुटेरे 25 से 30 साल के थे.

मानसरोवर के भीड़भाड़ वाले इलाके में दिनदहाड़े इतनी बड़ी लूट हो गई, लेकिन किसी को इस का पता तक नहीं चला. इस का कारण यह था कि मुथूट फाइनैंस के पहली मंजिल स्थित औफिस में पहुंचने के लिए सीढि़यां दुकानों के पीछे से हैं. मानसरोवर में रजतपथ चौराहे के कौर्नर पर 2 मंजिला इमारत में ग्राउंड फ्लोर पर भारतीय स्टेट बैंक की शाखा और कपड़ों के शोरूम हैं. पहली मंजिल पर मणप्पुरम गोल्ड लोन कंपनी और एक तरफ मुथूट फाइनैंस के औफिस हैं. यह पूरा इलाका भीड़भाड़ वाला है.

पुलिस ने मुथूट फाइनैंस कार्यालय में तथा आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले. इन फुटेज में सब से पहले अंदर आए औरेंज टोपी वाले बदमाश का चेहरा साफ नजर आ रहा था. बाकी तीनों बदमाशों की कदकाठी और हावभाव ही नजर आए थे. आसपास की फुटेज से पता चला कि बदमाश 2 मोटरसाइकिलों से आए थे. उन की मोटरसाइकिलों पर नंबर नहीं थे. इन्हीं मोटरसाइकिलों से वे सोना और नकदी ले कर भाग गए थे.

मुथूट के औफिस से लूटपाट के बाद सीढि़यों से उतरते हुए बदमाशों ने स्ट्रांगरूम की चाबी फेंकी थी. चाबी को सूंघ कर पुलिस के डौग ने बदमाशों का उन की गंध के आधार पर पीछा किया. डौग स्क्वायड रजतपथ चौराहे से मध्यम मार्ग से हो कर स्वर्णपथ चौराहे पर पहुंचा. वहां से वह न्यू सांगानेर रोड की तरफ गया, लेकिन कुछ देर पहले तेज बारिश होने से वहां पानी भर गया था. इस से डौग स्क्वायड को बदमाशों की आगे की गंध नहीं मिल सकी. बदमाशों की तलाश में पुलिस ने शहर में चारों तरफ कड़ी नाकेबंदी कराई, लेकिन लुटेरों का कोई सुराग नहीं मिला. कंपनी के गार्ड को थाने ले जा कर पुलिस ने पूछताछ की, लेकिन उस से भी कुछ खास जानकारी नहीं मिली. अंतत: पुलिस ने उसे छोड़ दिया. पुलिस ने कंपनी के अन्य कर्मचारियों की भूमिका की भी जांचपड़ताल की.

दूसरी ओर, लूट की वारदात होने के बाद मुथूट फाइनैंस में सोने के जेवर रख कर लोन लेने वाले ग्राहकों का तांता लग गया. ये ग्राहक अपने सोने के जेवर लूटे जाने की बात से चिंतित थे. इस पर कंपनी के अधिकारियों ने ग्राहकों को बताया कि लूटे गए सोने का बीमा करवाया हुआ है. किसी भी ग्राहक का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा.

मुथूट फाइनैंस से करीब 8 करोड़ का सोना और इस से एक दिन पहले आदर्श नगर के राजापार्क में धु्रव मार्ग स्थित यूको बैंक की तिलक नगर शाखा में हुई 15 लाख रुपए की लूट ने जयपुर पुलिस की नींद उड़ा दी थी.

पुलिस ने बदमाशों की तलाश में जयपुर शहर सहित आसपास के जिलों में नाकेबंदी कराई, लेकिन बदमाशों का पता नहीं चला. पुलिस ने अनुमान लगाया कि लुटेरे जयपुर-आगरा हाईवे या जयपुर-दिल्ली हाईवे पर हो कर निकल भागे थे.

इन दोनों हाईवे की दूरी बैंक से दो-ढाई किलोमीटर है. जिस तरीके से वारदात हुई थी, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि बदमाशों ने कई दिन रैकी होगी. यह भी अनुमान लगाया गया कि बदमाशों के कुछ अन्य सहयोगी भी थे, जो बाहर खडे़ रह कर नजर रखे हुए थे.

society

पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने मातहत अधिकारियों की बैठक कर वारदात का पता लगाने के लिए विशेष टीम का गठन किया. मुथूट फाइनैंस में हुई 8 करोड़ के सोने की लूट का राज फाश करने की जिम्मेदारी डीसीपी क्राइम डा. विकास पाठक, डीसीपी साउथ योगेश दाधीच और एसओजी के एएसपी करण शर्मा के नेतृत्व वाली टीम को सौंपी गई. पुलिस ने पूरे राजस्थान सहित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व हरियाणा पुलिस से लूट और डकैती की वारदातों और उन्हें अंजाम देने वाले गिरोहों की जानकारी मांगी.

पुलिस को शक था कि वारदात करने वाले बदमाश लूटे गए सोने को कहीं किसी कंपनी में गिरवी न रख दें. पुलिस राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों में संचालित ऐसी कंपनियों से संपर्क बनाए हुए थे. जयपुर में कुछ साल पहले गोल्ड लोन फर्म में हुई डकैती के लूटे गए सोने को बदमाशों ने दूसरी गोल्ड लोन कंपनी में गिरवी रख कर रकम ले ली थी.

दिलचस्प बात यह है कि देश का करीब 47 प्रतिशत सोना केरल की 3 कंपनियों मुथूट फाइनैंस, मणप्पुरम फाइनैंस व मुथूट फिनकौर्प के पास है. सितंबर 2016 तक इन कंपनियों के पास 263 टन सोना था. सोने की कीमत 7 खरब 36 अरब 40 करोड़ रुपए आंकी गई थी. इन में मुथूट फाइनैंस की गोल्ड होल्डिंग करीब 150 टन है. यह सोना कई अमीर देशों के स्वर्ण भंडार से भी ज्यादा है. मणप्पुरम फाइनैंस के पास 65.9 टन एवं मुथूट फिनकौर्प के पास 46.88 टन सोना होने का अनुमान है. जबकि भारत की कुल गोल्ड होल्डिंग 558 टन है.

देश की सब से बड़ी गोल्ड फाइनैंसिंग कंपनी के रूप में पहचान रखने वाली मुथूट फाइनैंस कंपनी की विभिन्न शाखाओं में 4 साल के दौरान लूट व डकैती की 7 वारदातें हुई हैं. इन में करीब डेढ़ क्विंटल सोना लूटा गया है. सन 2013 में 21 फरवरी को लखनऊ में इस कंपनी की शाखा से 6 करोड़ रुपए से ज्यादा का करीब 20 किलो सोना लूटा गया था. सन 2015 में 22 फरवरी को ढाई करोड़ रुपए से अधिक के करीब 10 किलो सोने की डकैती हुई. वर्ष 2016 में 30 जनवरी को पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना जिले में 9 करोड़ रुपए मूल्य का 30 किलो सोना लूटा गया.

पिछले साल ही 16 मई, 2016 को पंजाब के पटियाला में करीब 3 करोड़ रुपए के 11 किलो सोने की लूट हुई. 28 दिसंबर, 2016 को हैदराबाद में 12 करोड़ रुपए का करीब 40 किलो सोना लूटा गया. 23 फरवरी, 2017 को पश्चिम बंगाल के पूर्वी कोलकाता स्थित बेनियापुकुर में 5 करोड़ से ज्यादा के करीब 20 किलो सोने की डकैती हुई.

जयपुर पुलिस ने 21 जुलाई, 2017 को मुथूट फाइनैंस की शाखा से करीब 27 किलो सोना लूटने के मामले में 21 अगस्त, 2017 को बिहार की राजधानी पटना से 3 आरोपियों शुभम उर्फ सेतू उर्फ शिब्बू भूमिहार, पंकज उर्फ बुल्ला यादव और विशाल कुमार उर्फ विक्की उर्फ रहमान यादव को गिरफ्तार किया. ये तीनों आरोपी बिहार के वैशाली जिले के हाजीपुर के रहने वाले थे. इन लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने यह वारदात गिरोह के सरगना सुबोध उर्फ राजीव और अन्नू उर्फ राहुल के साथ मिल कर की थी. लूट का सोना सुबोध के पास था.

योजना के अनुसार, इन लोगों ने 3 जुलाई को जयपुर आ कर मुथूट की शाखाओं की रैकी की. इस में मानसरोवर की शाखा को वारदात के लिए चुना गया. इस के बाद वारदात के लिए उन्होंने आगरा से एक नई और एक पुरानी मोटरसाइकिल खरीदी. इस के बाद वारदात से 5 दिन पहले राजस्थान के टोंक जिले के कस्बा निवाई पहुंच कर शुभम, पंकज व विशाल ने खुद को नेशनल हाईवे बनाने वाली कंपनी का अधिकारी बता कर निवाई में साढ़े 4 हजार रुपए महीना किराए पर मकान लिया था.

निवाई में उन्होंने दिल्ली से एक कार मंगवाई. यह पुरानी कार 40 हजार रुपए में खरीदी गई थी. 21 जुलाई को कार व चालक को निवाई में छोड़ कर वहां से 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर विशाल, सुबोध, अन्नू व शुभम जयपुर में मानसरोवर स्थित मुथूट फाइनैंस की शाखा पर पहुंचे.

सब से पहले विशाल अंदर घुसा. फिर सुबोध, अन्नू व शुभम अंदर गए. सुबोध व अन्नू ने बैग में सोना भरा. वारदात के बाद भागने के लिए इन्होंने पहले ही गूगल मैप देख कर रूट तय कर लिया था. वारदात के बाद विशाल व सुबोध एक मोटरसाइकिल से निवाई पहुंचे और कार में सोना रख कर पटना चले गए.

अन्नू व शुभम दूसरी मोटरसाइकिल से जयपुर से अजमेर पहुंचे और हाईवे पर बाइक छोड़ कर बस से आगरा गए. आगरा से ये लोग पटना चले गए. रैकी करने जयपुर आने और वारदात के बाद पटना में व्यवस्था संभालने में पंकज जुटा हुआ था. इस वारदात के लिए सुबोध ने अन्नू को 8 लाख रुपए, विशाल को 5 लाख और शुभम को एक लाख रुपए दिए थे.

3 आरोपियों की गिरफ्तारी के 2 दिन बाद पुलिस ने चौथे आरोपी अन्नू को यूपी की एसटीएफ की मदद से झारखंड के धनबाद से पकड़ लिया. बाद में 20 जनवरी, 2018 को जयपुर पुलिस ने पटना एसटीएफ की मदद से मुथूट फाइनैंस से सोना लूट के मास्टरमाइंड सुबोध सिंह उर्फ राजीव को पकड़ लिया. उस की निशानदेही पर 15 किलो सोना बरामद किया गया. सुबोध ने नागपुर व कोलकाता में भी डकैती की वारदातें करना कबूल किया.

society

पुलिस का मानना है कि वह करीब 15 साल से इस तरह की वारदातें कर रहा है. उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक व छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों की पुलिस उसे तलाश रही थी. इस से पहले वह छत्तीसगढ़ में पकड़ा जा चुका था. 10-12 साल पहले सुबोध ने चेन्नै में बैंक लूटा था, तब वहां की पुलिस ने मुठभेड़ में उस के 3-4 साथी मार दिए थे, लेकिन सुबोध बच गया था.

सुबोध की निशानदेही पर पुलिस ने वह कार भी बरामद कर ली, जिस में सोना रख कर वह निवाई से पटना गया था. सुबोध के भाई रणजीत सिंह पर बिहार में हजारों लोगों से ठगी करने का आरोप है.

सुबोध पटना जिले का टौपर स्टूडेंट था. 10वीं में उस के 94 प्रतिशत अंक आए थे, लेकिन उसे नेपाल में कैसीनो जाने का शौक लग गया, जिस में वह लाखों रुपए हार गया था. इस के बाद उस ने लूट की वारदातें शुरू कीं. फिर गिरोह बना कर बैंक व गोल्ड लोन कंपनियों में डकैती डालने लगा. अब उस की महत्त्वाकांक्षा बिहार में चुनाव लड़ने की थी.

2 फरवरी को पुलिस ने इस मामले में पटना के रहने वाले छठे आरोपी राजसागर को गिरफ्तार कर लिया. वह लग्जरी कारों से अपने साथियों को घटनास्थल पर छोड़ने व वारदात के बाद वापस ले जाने का काम करता था. उस के खिलाफ लूट व डकैती के कई मामले दर्ज हैं. राजसागर ही सुबोध को कार से निवाई से पटना ले गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों व विभिन्न रिपोर्ट्स पर आधारित

बिचौलिए: क्यों मिला वंदना को धोखा – भाग 2

सीमा के अत्यधिक गुस्से की जड़ में उस के अपने अतीत का अनुभव था. विनोद नाम के एक युवक से उस का प्रेमसंबंध 3 वर्षों तक चला था. कभी उस का साथ न छोड़ने का दम भरने वाला उस का वह प्रेमी अचानक हवाई जहाज में बैठ कर विदेश रवाना हो गया था. उस धोखेबाज, लालची व अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी इंसान को विदेश भेजने का खर्चा उस के भावी ससुर ने उठाया था.

यह दुखद घटना सीमा की जिंदगी में 2 वर्ष पूर्व घटी थी. वह अब 28 वर्ष की हो चली थी. विनोद की बेवफाई ने उस के दिल  को गहरा आघात पहुंचाया था. अपने सभी हितैषियों के लाख समझाने के बावजूद उस ने कभी शादी न करने का फैसला अब तक नहीं बदला था. समीर की राजेशजी की लड़की देखने जाने वाली हरकत ने उस के अपने दिल का घाव हरा कर दिया था.

वंदना को वह अपनी छोटी बहन मानती थी. अपनी तरह उसे भी धोखे का शिकार होते देख उसे समीर पर बहुत गुस्सा आ रहा था. कुछ देर बाद वंदना के आंसू थम गए. फिर उदास खामोशी ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. भोजनावकाश तक इस उदासी की जगह क्रोध व कड़वाहट ने ले ली थी. यह देख कर उस के तीनों सहयोगियों को काफी आश्चर्य हुआ.

‘‘मैं समीर के सामने रोनेगिड़गिड़ाने वाली नहीं,’’ वंदना ने तीखे स्वर में सब से कहा, ‘‘वह मुझ से कटना चाहता है, तो शौक से कटे. ऐसे धोखेबाज के गले मैं जबरदस्ती पड़ भी गई, तो कभी सुखी नहीं रह पाऊंगी. वह समझता क्या है खुद को?’’ वंदना के बदले मूड के कारण उसे समझानेबुझाने के बजाय उस के तीनोें सहयोगियों ने समीर को पीठ पीछे खरीखोटी सुनाने का कार्य ज्यादा उत्साह से किया. भोजनावकाश की समाप्ति से कुछ पहले वंदना ने सीमा को अकेले में ले जा कर उस से प्रार्थना की, ‘‘सीमा दीदी, मेरा एक काम करा दो.’’

‘‘मुझ से कौन सा काम कराना चाहती है तू?’’ सीमा ने उत्सुक स्वर में पूछा.

‘‘दीदी, मैं कुछ दिनोें के लिए इस कमरे में नहीं बैठना चाहती.’’

‘‘तो कहां बैठेगी तू?’’

‘‘बड़े साहब दिनेशजी की पीए छुट्टी पर गई हुई है न. आप दिनेश साहब से कह कर कुछ दिनों के लिए वहां पर मेरी बदली करा दो. मैं कुछ दिनों तक समीर की पहुंच व नजरों से दूर रहना चाहती हूं.’’

‘‘ऐसा करने से क्या होगा?’’ सीमा ने उलझनभरे स्वर में पूछा.

‘‘दीदी, समीर के सदा आगेपीछे घूमते रह कर मैं ने उसे जरूरत से ज्यादा सिर पर चढ़ा लिया है. वह मुझे प्यार करता है, यह मैं बखूबी जानती हूं, पर उस के सामने मेरे सदा बिछबिछ जाने के कारण उस की नजरों में मेरी कद्र कम हो गई है.’’ ‘‘तो तेरा यह विचार है कि अगर तू कुछ दिन उस की नजरों व पहुंच से दूर रहेगी तो समीर का तेरे प्रति आकर्षण बढ़ जाएगा?’’ ‘‘यकीनन ऐसा ही होगा, सीमा दीदी. हमारे कमरे में शादीशुदा बड़े बाबू और महेशजी के अलावा समीर की टक्कर का एक अविवाहित नवयुवक और होता तो मैं उस से ‘फ्लर्ट’ करना भी शुरू कर देती. ईर्ष्या का मारा समीर तब मेरी कद्र और ज्यादा जल्दी समझता.’’ कुछ पल सीमा खामोश रह वंदना के कहे पर सोचविचार करने के बाद गंभीर लहजे में बोली, ‘‘मैं तेरे कहे से काफी हद तक सहमत हूं, वंदना. मैं तेरी सहायता करना चाहूंगी, पर सवाल यह है कि दिनेश साहब मेरे कहने भर से तुझे अपनी पीए भला क्यों बनाएंगे?’’

‘‘दीदी, यह काम तो आप को करना ही पड़ेगा. आप उन को विश्वास में ले कर मेरी सोच और परिस्थितियों से अवगत करा सकती हैं. मैं समीर से बहुत प्यार करती हूं, सीमा दीदी. उसे खोना नहीं चाहती मैं. उस से दूर होने का सदमा बरदाशत नहीं कर पाएगा मेरा दिल,’’ वंदना अचानक भावुक हो उठी थी.

‘‘ठीक है, मैं जा कर दिनेशजी से बात करती हूं,’’ कह कर सीमा ने वंदना की पीठ थपथपाई और फिर दिनेश साहब के कक्ष की तरफ बढ़ गई. वंदना की समस्या के बारे में पूरे 10 मिनट तक दिनेश साहब सीमा की बातें बड़े ध्यान से सुनने के बाद गंभीर स्वर में बोले, ‘‘अगर समीर के मन में खोट आ गया है तो यह बहुत बुरी बात है. वंदना बड़ी अच्छी लड़की है. मैं उस की हर संभव सहायता करने को तैयार हूं. तुम बताओ कि मुझे क्या करना होगा?’’ वंदना कुछ दिन उन की पीए का कार्यभार संभाले, इस बाबत उन को राजी करने में सीमा को कोई दिक्कत नहीं आई. ‘‘वंदना की बदली के आदेश मैं अभी निकलवा देता हूं. सीमा, और क्या चाहती हो तुम मुझ से?’’

‘‘समीर, मुझे कुछ दिनों के लिए बिलकुल मत छेड़ो. तुम्हारी लड़की देखने जाने की हरकत के बाद मैं तुम्हारे व अपने प्रेमसंबंध के बारे में बिलकुल नए सिरे से सोचने को मजबूर हो गई हूं. मैं जब भी किसी फैसले पर पहुंच जाऊंगी, तब तुम से खुद संपर्क कर लूंगी,’’ वंदना की यह बात सुन कर समीर नाराज हालत में पैर पटकता उस के केबिन से निकल आया था. सीमा से वह वैसे ही नहीं बोल रहा था. महेश और ओमप्रकाश भी उस से खिंचेखिंचे से बातें करते. उस ने इन दोनों को समझाया भी था कि वह वंदना को प्यार में धोखा देने नहीं जा रहा, पर इन के शुष्क व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया था. औफिस में वह सब से अलगथलग तना हुआ सा बना रहता. काम के 7-8 घंटे औफिस में काटना उसे भारी लगने लगे थे. चिढ़ कर उस ने सभी से बात करना बंद कर दिया था. अगले सप्ताह उस की चिंता में और बढ़ोतरी हो गई. सोमवार की शाम वंदना दिनेशजी के साथ उन के स्कूटर की पिछली सीट पर बैठ कर औफिस से गई है, यह उस ने अपनी आंखों से देखा था.

‘‘सीमा, यह वंदना दिनेश साहब के साथ कहां गई है?’’ बगल से गुजर रही सीमा से समीर ने विचलित स्वर में प्रश्न किया.‘‘मुझे नहीं मालूम, समीर. वैसे तुम ने यह सवाल क्यों किया?’’ सीमा के होंठों पर व्यंग्यभरी मुसकान उभरी.

‘‘यों ही,’’ कह कर समीर माथे पर बल डाले आगे बढ़ गया. सीमा मन ही मन मुसकरा उठी. वंदना के सिर में दर्द था, भोजनावकाश में यह उस के मुंह से सुन कर वह सीधी दिनेश साहब के कक्ष में घुस गई.

‘‘सर, आज शाम वंदना को आप अपने स्कूटर से उस के घर छोड़ देना. उस की तबीयत ठीक नहीं है,’’ उन से ऐसा कहते हुए सीमा की आंखों में उभरी चमक उन की नजरों से छिपी नहीं रही.

‘‘सीमा, तुम्हारी आंखें बता रही हैं कि तुम्हारे इस इरादे के पीछे कुछ छिपा मकसद भी है,’’ उन्होंने मुसकरा कर टिप्पणी की.

‘‘आप का अंदाजा बिलकुल ठीक है, सर. आप के ऐसा करने से समीर ईर्ष्या महसूस करेगा और फिर उसे सही राह पर जल्दी लाया जा सकेगा.’’

‘‘यानी कि तुम चाहती हो कि समीर वंदना और मेरे बीच के संबंध को ले कर गलतफहमी का शिकार हो जाए?’’ दिनेश साहब फौरन हैरानपरेशान नजर आने लगे.

बिचौलिए: क्यों मिला वंदना को धोखा – भाग 1

सोमवार की सुबह सीमा औफिस पहुंची तो अपनी सीट की तरफ जाने के बजाय वंदना की मेज के सामने जा खड़ी हुई. उस के चेहरे पर तनाव, चिंता और गुस्से के भाव अंकित थे. अपना सिर झुका कर मेज की दराज में से कुछ ढूंढ़ रही वंदना से उस ने उत्तेजित लहजे में कहा, ‘‘वंदना, वह तुझे बेवकूफ बना रहा है.’’ वंदना ने झटके से सिर उठा कर हैरान नजरों से सीमा की तरफ देखा. उस के कहे का मतलब समझने में जब वह असमर्थ रही, तो उस की आंखों में उलझन के भाव गहराते चले गए. कमरे में उपस्थित बड़े बाबू ओमप्रकाश और सीनियर क्लर्क महेश की दिलचस्पी का केंद्र भी अब सीमा ही थी.

‘‘क….कौन मुझे बेवकूफ बना रहा है, सीमा दीदी?’’ वंदना के होंठों पर छोटी, असहज, अस्वाभाविक मुसकान उभर कर लगभग फौरन ही लुप्त हो गई.

‘‘समीर तुझे बेवकूफ बना रहा है. प्यार में धोखा दे रहा है वह चालाक इंसान.’’

‘‘आप की बात मेरी समझ में कतई नहीं आ रही है, सीमा दीदी,’’ मारे घबराहट के वंदना का चेहरा कुछ पीला पड़ गया.

‘‘मर्दजात पर आंखें मूंद कर विश्वास करना हम स्त्रियों की बहुत बड़ी नासमझी है. मैं धोखा खा चुकी हूं, इसीलिए तुझे आगाह कर भावी बरबादी से बचाना चाहती हूं.’’

‘‘सीमा दीदी, आप जो कहना चाहती हैं, साफसाफ कहिए न.’’ ‘‘तो सुन, मेरे मामाजी के पड़ोसी हैं राजेशजी. कल रविवार को समीर उन्हीं की बेटी रजनी को देखने के लिए अपनी माताजी और बहन के साथ पहुंचा हुआ था. रजनी की मां तो पूरे विश्वास के साथ सब से यही कह रही हैं कि समीर ही उन का दामाद बनेगा,’’ सीमा  की बात का सुनने वालों पर ऐसा प्रभाव पड़ा था मानो कमरे में बम विस्फोट हुआ हो.

ओमप्रकाश और महेश अब तक सीमा के दाएंबाएं आ कर खड़े हो गए थे. दोनों की आंखों में हैरानी, अविश्वास और क्रोध के मिश्रित भाव झलक रहे थे.

‘‘मैं आप की बात का विश्वास नहीं करती, जरूर आप को कोई गलतफहमी हुई होगी. मेरा समीर मुझे कभी धोखा नहीं दे सकता,’’ अत्यधिक भावुक होने के कारण वंदना का गला रुंध गया.

‘‘मेरी मां कल मेरे मामाजी के यहां गई थीं. उन्होंने अपनी आंखों से समीर को राजेशजी के यहां देखा था. समीर को पहचानने में वे कोई भूल इसलिए नहीं कर सकतीं क्योंकि उसे उन्होंने दसियों बार देख रखा है,’’ सीमा का ऐसा जवाब सुन कर वंदना का चेहरा पूरी तरह मुरझा गया. उस की आंखों से आंसू बह निकले. किसी को आगे कुछ भी टिप्पणी करने का मौका इसलिए नहीं मिला क्योंकि तभी समीर ने कमरे के भीतर प्रवेश किया. ‘नमस्ते,’  समीर की आवाज सुनते ही वंदना घूमी और उस की नजरों से छिपा कर उस ने अपने आंसू पोंछ डाले. उस के नमस्ते के जवाब में किसी के मुंह से कुछ नहीं निकला. इस बात से बेखबर समीर बड़े बाबू ओमप्रकाश के पास पहुंच कर मुसकराता हुआ बोला, ‘‘बड़े बाबू, यह संभालिए मेरा आज की छुट्टी का प्रार्थनापत्र, इसे बड़े साहब से मंजूर करा लेना.’’

‘‘अचानक छुट्टी कैसे ले रहे हो?’’ उस के हाथ से प्रार्थनापत्र ले कर ओमप्रकाश ने कुछ रूखे लहजे में पूछा.

‘‘कुछ जरूरी व्यक्तिगत काम है, बड़े बाबू.’’

‘‘कहीं तुम्हारी सगाई तो नहीं हो रही है?’’ सीमा कड़वे, चुभते स्वर में बोली, ‘‘ऐसा कोई समारोह हो, तो हमें बुलाने से…विशेषकर वंदना को बुलाने से घबराना मत. यह बेचारी तो ऐसे ही किसी समारोह में शामिल होने को तुम्हारे साथ पिछले 1 साल से प्रेमसंबंध बनाए हुए है.’’

‘‘यह…यह क्या ऊटपटांग बोल रही हो तुम, सीमा?’’ समीर के स्वर की घबराहट किसी से छिपी नहीं रही.

‘‘मैं ने क्या ऊटपटांग कहा है? कल राजेशजी की बेटी को देखने गए थे तुम. अगर लड़की पसंद आ गई होगी, तो अब आगे ‘रोकना’ या ‘सगाई’ की रस्म ही तो होगी न?’’

‘‘समीर,’’ सीमा की बात का कोई जवाब देने से पहले ही वंदना की आवाज सुन कर समीर उस की तरफ घूमा.

वंदना की लाल, आंसुओं से भरी आंखें देख कर वह हड़बड़ाए अंदाज में उस के पास पहुंचा और फिर चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘तुम रो रही हो क्या?’’

‘‘इस मासूम के दिल को तुम्हारी विश्वासघाती हरकत से गहरा सदमा पहुंचा है, अब यह रोएगी नहीं, तो क्या करेगी?’’ सीमा का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा.

‘‘यह आग तुम्हारी ही लगाई लग रही है मुझे. अब कुछ देर तुम खामोश रहोगी तो बड़ी कृपा समझूंगा मैं तुम्हारी,’’ सीमा  को गुस्से से घूरते हुए समीर नाराज स्वर में बोला.

‘‘समीर, तुम मेरे सवाल का जवाब दो, क्या तुम कल लड़की देखने गए थे?’’ वंदना ने रोंआसे स्वर में पूछा.

‘‘अगर तुम ने झूठ बोलने की कोशिश की, तो मैं इसी वक्त तुम्हें व वंदना को राजेशजी के घर ले जाने को तैयार खड़ी हूं,’’ सीमा ने समीर को चेतावनी दी. सीमा के कहे पर कुछ ध्यान दिए बगैर समीर नाराज, ऊंचे स्वर में वंदना से बोला, ‘‘अरे, चला गया था तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है? मांपिताजी ने जोर डाला, तो जाना पड़ा मुझे मैं कौन सा वहां शादी को ‘हां’ कर आया हूं. बस, इतना ही विश्वास है तुम्हें मुझ पर. खुद भी खामखां आंखें सुजा कर तमाशा बन रही हो और मुझे भी लोगों से आलतूफालतू की बकवास सुनवा रही हो.’’ समीर की क्रोधित नजरों से प्रभावित हुए बगैर सीमा व्यग्ंयभरे स्वर में बोली, ‘‘इश्क वंदना से कर रहे हो और सुनते हो मातापिता की. कल को जनाब मातापिता के दबाव में आ कर शादी भी कर बैठे, तो इस बेचारी की तो जिंदगी बरबाद हो जाएगी या नहीं?’’

‘‘समीर, तुम गए ही क्यों लड़की देखने और मुझे बताया क्यों नहीं इस बारे में कुछ?’’ वंदना की आंखों से फिर आंसू छलक उठे.

‘‘मुझे खुद ही कहां मालूम था कि ऐसा कुछ कार्यक्रम बनेगा. कल अचानक ही मांपिताजी जिद कर के मुझे जबरदस्ती उस लड़की को दिखाने ले गए.’’

‘‘झूठा, धोखेबाज,’’ सीमा बड़बड़ाई और फिर पैर पटकती अपनी सीट की तरफ बढ़ गई.

‘‘सीमा की बातों पर ध्यान न देना, वंदना. तुम्हारी और मेरी ही शादी होगी…जल्दी ही मैं उचित माहौल बना कर तुम्हें अपने घरवालों से मिलाने ले चलूंगा. अभी जल्दी में हूं क्योंकि बाहर मांपिताजी टैक्सी में बैठे इंतजार कर रहे हैं मेरा. कल मिलते हैं, बाय,’’  किसी और से बिना एक भी शब्द बोले समीर तेज चाल से चलता हुआ कक्ष से बाहर निकल गया. उस के यों चले जाने से सब को ही ऐसा एहसास हुआ मानो वह वहां से उन सब से पीछा छुड़ा कर भागा है. ओमप्रकाश और महेश रोतीसुबकती वंदना को चुप कराने के प्रयास में जुट गए. सीमा क्रोधित अंदाज में समीर को भलाबुरा कहती लगातार बड़बड़ाए जा रही थी.

बाबाओं की अंधभक्ति का चक्रव्यूह

कुछ समय पहले की बात है. टैलीविजन के खबरिया चैनल और अखबार चीखचीख कर कह रहे थे कि डेरा सच्चा सौदा के गुरु राम रहीम को दिए जज के फैसले के चलते उन के अनुयायियों ने पंचकुला को धूंधूं कर जला डाला. हर तरफ आग ही आग, हिंसा पसरी हुई थी. सवाल उठा कि ये बाबा के कैसे अनुयायी हैं, जो हिंसक हो उठे? क्या यह भारत की ऐसी पहली घटना थी? क्या इस से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था?

एक जानेमाने अखबार से मालूम हुआ कि अदालतों में चल रहे ऐसे मुकदमों की फेहरिस्त बहुत लंबी है.

पिछले साल उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के एक बाबा परमानंद को गिरफ्तार किया गया था. औरतों के साथ जिस्मानी संबंध बनाते हुए उन के वीडियो सोशल मीडिया पर आए थे. अगर दक्षिण भारत की बात करें, तो स्वामी नित्यानंद की सैक्स सीडी साल 2010 में सामने आई थी.

इस तरह की घटनाएं बारबार होती हैं और हर बार अंधभक्ति की चपेट में आई जनता छली जाती रही है. कैसी धर्मांधता है यह? क्या हमारी सोचनेसमझने की ताकत खत्म हो चुकी है?

जिस उम्र में बच्चे खेलते हैं, जवान होती लड़कियां आनी वाली जिंदगी के सपने बुनती हैं, उस उम्र में उन को धार्मिक जगहों पर सेवा के काम में भेज कर क्या सच में पुण्य कमाया जा सकता है?

सड़क पर घायल पड़े किसी इनसान को देख लोग मुंह मोड़ कर चल देते हैं, मुसीबत में पड़े शख्स से किनारा कर लेते हैं, पर किसी बाबा पर आंच आ जाए, तो बवाल कर देते हैं. क्या यही धर्म है?

क्या वजह है इस धर्मांधता की? इस बारे में कई संस्थानों से जुड़े लोगों से बात की गई, तो मालूम हुआ कि कहीं न कहीं लोग शांति की तलाश में इन आश्रमों का रुख करते हैं.

भेदभाव भरा बरताव

आज समाज में फैले जातिगत भेदभाव, ऊंचनीच व अमीरीगरीबी का फर्क क्या लोगों को मजबूर नहीं करता इन बाबाओं की शरण में जाने को? अमीर दिनोंदिन अमीर व गरीब और गरीब होता जा रहा है. ऐसे में इन आश्रमों से अगर किसी गरीब को मुट्ठीभर अनाज और तन ढकने को कपड़ा मिल जाए, तो ये लोग उसे अपना मंदिर समझने लगते हैं और समाज से कटे हुए दलित, बाबा से मिली इज्जत के बदले व समाज से बदला लेने के लिए हिंसा करने पर उतारू हो जाते हैं.

अमीर अपने काले धन से किसी को दो गज जमीन नहीं देगा, पर इन मठों के नाम पर धर्मशालाएं बनवाएगा व जमीनें दान कर देगा, ताकि उस का काला धन भी ठिकाने लग जाए और समाज में रुतबा भी बढ़ जाए.

इस तरह यहां गरीब व अमीर सभी तरह के अंधभक्तों का स्वागत होता है. पर भेदभाव भी होता है. अमीर झाड़ू ले कर सेवा के नाम पर सिर्फ तसवीरें खिंचवाते हैं और गरीब को तसवीरें दिखा कर वही झाड़ू हमेशा के लिए थमा दी जाती है.

घरेलू हिंसा जिम्मेदार

क्या आएदिन घरपरिवारों में होने वाली हिंसा औरतों व बच्चों को इस अंधभक्ति की तरफ नहीं खींचती है? क्यों कोई अपने बच्चे इन बाबाओं व आश्रमों के सुपुर्द कर देता है? क्यों कोई औरत अपने परिवार को हाशिए पर रख कर इन बाबाओं के मायाजाल में फंसती चली जाती है?

अगर गंभीरता से सोचा जाए, तो शायद वह अपने वजूद की तलाश में यह रफ्तार पकड़ लेती है. जहां परिवारों में औरतों को इज्जत नहीं मिलती, उन्हें यहां प्यार के दो बोल भले महसूस होते हैं और वे सत्संग व प्रवचनों के बहाने इन की ओर खिंची चली जाती हैं और वहां पर हाजिरी देना अपना धर्म समझने लगती हैं.

टूटते परिवार व समाज

कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इन आश्रमों में जाने वाले ऊंचे तबके के भक्तों की देखादेखी ऐसा करने लगते हैं और इन से जुड़ते चले जाते हैं. अमीर लोग भी इन के कार्यक्रमों व सत्संगों में जाना पसंद करते हैं.

यह सही है कि यह सामाजिक होने का एक जरीया भर है और इनसान सजधज कर कर रहना व संगीत सुनना पसंद करता है, इसलिए इन सत्संगों में उसे क्षणिक खुशी मिलती है.

पर सोचने की बात यह भी है कि यही खुशी वह इन के अनुयायी न बन कर अपने परिवार, दोस्तों व रिश्तेदारो में भी तो ढूंढ़ सकता है? क्या टूटते परिवार, बदलता सामाजिक माहौल इन बाबाओं को राह दिखाने के लिए जिम्मेदार नहीं है?

पीढ़ी दर पीढ़ी अंधभक्ति

कई घरों में इन बाबाओं के लिए खास दर्जा होता है. घर में कुछ अशुभ हुआ, तो बाबा से सलाहमशवरा किया जाता है और अगर कुछ शुभ हुआ, तो भी बाबा को चढ़ावा चढ़ाया जाता है. घर के बड़ेबुजुर्ग यह सब करते हैं व अपनी अगली पीढ़ी को भी मजबूर करते हैं कि वह इस का पालन करे.

ऐसा अकसर अपना कारोबार करने वाले परिवारों में होता है, जहां अगली पीढ़ी पहली पीढ़ी पर निर्भर होती है, इसलिए अगली पीढ़ी न चाहते हुए भी इस अंधभक्ति के चक्रव्यूह में फंस जाती है और इन बाबाओं के आश्रम फलतेफूलते रहते हैं.

कम मेहनत में शौहरत

आजकल इन आश्रमों में दान व चंदे के नाम पर खूब पैसा जमा होता है. इन्हें भी लोगों की जरूरत पड़ती है, ताकि इन का प्रचारप्रसार किया जा सके, इन के नाम के डंके बजाए जा सकें. ऐसे में पढ़ीलिखी बेरोजगार नौजवान पीढ़ी या वे औरतें, जो किसी वजह से नौकरी नहीं कर रही हैं, भी इन संगठनों से खूब जुड़ रही हैं.

जिन औरतों ने कभी सोचा भी न था कि शादी के बाद वे महज घरेलू औरत बन सिर्फ बच्चे ही पालती रह जाएंगी, उन्हें कुछ अलग करने की चाह इन आश्रमों से जुड़ने को मजबूर करती है.

ऐसी औरतें बड़ेबड़े स्टेजों पर खड़ी हो कर भीड़ को संबोधित कर अपनेआप को ऊंचा समझने की गलतफहमी में इन से जुड़ी रहती हैं और इस अंधभक्ति के चक्रव्यूह में फंसती चली जाती हैं.

ऐसी औरतें अपने आसपड़ोस की औरतों के लिए मिसाल बन जाती हैं और देखादेखी दूसरी औरतें भी इन आश्रमों से जुड़ने लगती हैं, जबकि इन के खुद के बच्चे दाइयों के भरोसे पलते हैं. वे भूल जाती हैं कि अपने बच्चे पालने का काम कोई छोटा काम नहीं है, बल्कि बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.

हिम्मत हारना

कई बार अपने काम में बारबार नाकाम होने पर भी लोग मठोंमंदिरों का रुख करने लगते हैं. जो काम लगन व मेहनत से होना चाहिए, उस के लिए वे इन बाबाओं से आशीर्वाद लेने पहुंच जाते हैं. वहां आशीर्वाद के साथ मन को बहलाने वाली बातें सुन कर कभीकभार उन के काम बन भी जाते हैं और ऐसे लोग ही इस कामयाबी को बाबा का आशीर्वाद समझ कर उन के अनुयायी हो जाते हैं, जबकि यह हिम्मत, हौसला अगर उन के अपने परिवार से मिला होता, तो वह परिवार एकता के सूत्र में जुड़ जाता और वह सदस्य बाबा से न जुड़ता.

शांति की तलाश में

जब कभी परिवार के किसी सदस्य को कोई लंबी व बड़ी बीमारी का सामना करना पड़ता है, तो पूरा परिवार निराश हो जाता है. ऐसे में जब सभी दरवाजे बंद हों, तो वे इन बाबाओं का दरवाजा खटखटाते हैं और परिवार का सदस्य ठीक हुआ या नहीं, वह तो दूसरी बात है, पर वे अपना समय व दौलत इन आश्रमों में जरूर लुटाते हैं. हो सकता है कि इस से उन्हें शांति मिलती हो, पर यह शांति उन्हें किसी दूसरे नेक काम को कर के भी मिल सकती है.

कुलमिला कर एक इनसान दूसरे इनसान के लिए मददगार साबित हो, तो शायद इन बाबाओं, मठाधीशों का साम्राज्य खत्म हो जाए. धर्म के नाम पर हो रहे इस पाखंड का खात्मा होना चाहिए, तभी सही माने में इनसान अपने इनसानियत के धर्म को समझ सकेगा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें