Family Story : 9वीं फेल

Family Story : शोभा अपने भैया शोभन की बात सुन कर एकदम से हैरान रह गई. पापा को भैया यह क्या कह गए कि 9वीं फेल वे क्या जानें कि पढ़ाई और डिगरी क्या चीज होती है.

पापा 9वीं फेल हैं या पास हैं, यह तो बाद की बात है, पर उन्होंने जो इतना बड़ा कारोबार अपने बूते खड़ा किया है, क्या वह ऐसे ही कर दिया है? क्या वे नहीं देख और जान रहे हैं कि न जाने कितने नौजवान मैडिकल और इंजीनियरिंग की बड़ीबड़ी डिगरियां लिए सड़कों पर धूल फांक रहे हैं?

आंगन में खड़े शोभा के पापा जगदीश एकदम से जड़ हो कर आसमान की तरफ देखते रह गए. उन्हें ऐसा लग रहा था कि उन्होंने जोकुछ पाया है, क्या वह सब बेकार गया है? उन्होंने जोकुछ बिना किसी डिगरी के हासिल किया है, क्या वह यों ही भाग्य भरोसे मिल गया है?

नहीं, यह संयोग नहीं है कि जगदीश शहर के जानेमाने कारोबारी हैं. वे शहर की एक मशहूर साड़ी दुकान के मालिक हैं, जिन के तहत स्टाफ के 20-20 लोग खटते हैं… और भैया उन्हें 9वीं फेल बता रहे हैं.

9वीं फेल… मतलब क्या है? यही न कि पापा कमअक्ल हैं और उन की समाज में कोई इज्जत नहीं है?

‘‘भैया, यह आप क्या कह रहे हैं…? क्या आप को पापा के बारे में जानकारी नहीं है कि गांव का स्कूल बनवाने में इन का कितना बड़ा योगदान है? स्कूल की जमीन खरीदने से ले कर उस की इमारत बनवाने तक में इन्होंने पैसे से भरपूर मदद की है…’’

शोभा अपने भैया शोभन को जैसे झकझोर रही थी, ‘‘इस शहर में न जाने कितनी ही सभासोसाइटियों के वे सदस्य हैं. ठीक है कि ज्यादा बिजी होने की वजह से वे हर जगह नहीं जा पाते हैं, लेकिन पापा ने फर्श से अर्श तक का एक लंबा फासला तय किया है और तुम इन को कह रहे हो कि ये 9वीं फेल हैं. क्या डिगरियों से ही अक्ल का वास्ता रहता है?’’

‘‘शोभा, तुम अपना ज्यादा ज्ञान मत झाड़ो…’’ शोभन अपनी बाइक स्टार्ट करते हुए बोला, ‘‘जो सच है, वह सच है. मैं ने क्या गलत कहा है?’’

‘‘हां, तुम गलत कह रहे हो. जरा, सुनो तो…’’

मगर, तब तक शोभन अपनी बाइक ले कर जा चुका था.

शोभा की मां शारदा रसोईघर में थीं. उन्होंने यह बात सुनी ही नहीं या फिर शायद अनसुनी कर दी. उन्हें हमेशा ऐसा लगता है कि शोभन कभी गलत नहीं कह सकता. बेटे गलत नहीं हो सकते.

आज रविवार को साप्ताहिक बंदी की वजह से जगदीश घर पर ही थे. उन्हें कहीं जाना था. शायद किसी फंक्शन में. उस के लिए उन्होंने बढि़या कपड़े भी निकाले थे, मगर अब उन का मूड खराब हो चुका था. वे कुरतापाजामा पहन कर बाहर निकल गए. अब शायद वे शाम की सैर करने के लिए पार्क जाना चाह रहे थे.

शोभा शुरू से ही ऐसा देखती आई है. जब भी पापा तनाव में होते हैं, तब वे या तो पार्क में चले जाते हैं या फिर गंगा किनारे टहलने निकल जाते हैं.

‘‘पापा, आप रुकिए, मैं चाय बना कर लाती हूं…’’ शोभा जगदीश से मनुहार करते हुए बोली, ‘‘आप के साथ मैं भी चाय ले लूंगी. आप से मुझे बहुत सारी बातें करनी हैं.’’

मगर जब तक शोभा चाय बना कर लाती, तब तक जगदीश कपड़े पहन कर निकल चुके थे.

शोभा ने चाय के दोनों प्याले वहीं रख दिए. अब चाय क्या पीना. पापा तो निकल चुके हैं. उन्हें भैया की बातों से गहरी चोट लगी थी. भैया ने उन पर जो आरोप लगाया, वह क्या सही है? क्या सिर्फ डिगरी ही कामयाबी का पैमाना है?

भैया यह जानते हैं, फिर भी वे बोल कर निकल गए. ठीक है कि पापा कुछ पुराने जमाने के हैं, जींसटीशर्ट की जगह साधारण पैंटशर्ट पहनते हैं, मगर वे किसी भी मामले में किसी से कम हैं क्या, जो उन्हें अनदेखा किया जाए?

इधर शोभा अपने भैया शोभन की हरकतों को देख और महसूस कर रही थी कि पापा की बातें और बरताव उन्हें अच्छा नहीं लगता. उन्हें लगता है कि पापा किसी सरकारी औफिस के बड़े अफसर होते, तो कितना अच्छा रहता. पढ़ेलिखे लोगों का कुछ अलग ही रुतबा होता है. लेकिन इतनी बड़ी दुकान चलाने के लिए भी तो पढ़ाईलिखाई जरूरी है.

शोभन को पापा से हजार शिकायतें थीं… जैसे पापा की बातों में गंवई पुट है. उन में वह आत्मविश्वास नहीं है, जो किसी स्मार्ट इनसान में होना चाहिए. उन के कपड़े पहनने और चलने का ढंग भी ठीक नहीं है. पता नहीं, लोग उन्हें कैसे झेल लेते हैं. पहली ही नजर में दिख जाता है कि वे 9वीं फेल हैं.

अपने पापा की पढ़ाई के प्रति शोभन की हीनभावना कोई एक दिन में नहीं उपजी थी. उसे याद है, जब उस ने 12वीं पास करने के बाद एक कालेज में फार्म भरा था, तब पापा उस के साथ गए थे.

वहां दिए गए फार्म के एक कौलम में जब पापा ने 8वीं पास लिखा था, तब कालेज का बाबू मुसकरा कर बोला था, ‘चलो, अच्छा है. बाप 8वीं पास है, तो बेटा 12वीं पास कर गया. सबकुछ ठीकठाक रहा, तो कालेज भी पास कर ही जाएगा.’

तब शोभन खुद कमउम्र का था, इसलिए उस क्लर्क को वह जवाब नहीं दे पाया था, मगर अब तो वह सबकुछ देखसमझ रहा है. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद वह पुणे से मैनेजमैंट की पढ़ाई कर रहा है.

शोभा सोच रही थी कि आजकल की पढ़ाई में कितना खर्च है, इसे तो शोभन भैया समझ ही रहे होंगे. उन के पीछे वह भी तो पढ़ाई कर रही है. अपनी पढ़ाई के वक्त वह भी पापा के साथ कालेज गई थी. पापा की बड़ी इच्छा थी कि शोभा मैडिकल की पढ़ाई करे.

‘‘देख रही हो न कि पटना का माहौल कितना खराब है. लोगों की सेहत भी अच्छी नहीं रहती है. बुढ़ापे में तो और भी दिक्कत होती है. तुम डाक्टर बनोगी, तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी. नहीं तो डाक्टरों के चोंचले और नखरों से माथा खराब रहता है,’’ जगदीश ने शोभा से कहा था.

शोभा का सिर दर्द करने लगा था. उस ने टैलीविजन औन कर दिया. वहां भी वही रूटीन टाइप की चीजें. मोबाइल फोन में भी उस का मन नहीं लगा. वह बिस्तर पर लेट गई और आंखें बंद कर लीं.

जबजब शोभा घर आती है, तो एक चक्कर वह गांव का भी लगा लेती है. वहां उस के बड़े पापा और चाचा रहते हैं. वहां उसे कोई दिक्कत नहीं होती. आराम से वह खेतबागानों में घूमती है, तो उसे बड़ा अच्छा लगता है.

ठीक है कि गांव में बड़ी गंदगी है, मगर इन शहरों में क्या कम गंदगी है. बड़ी सड़कों को छोड़ कर जरा गलियों में घुसने से ही शहर की चमकदमक और हकीकत का पता चल जाता है.

गांव में एक ठहरी हुई सी जिंदगी जरूर है, मगर उस में कुछ तो अपनापन है ही. ठीक है कि वहां गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी भी है. सड़कें टूटीफूटी और गलियां काले कीचड़ से बजबजाती बदबू छोड़ती हैं. लेकिन वहां के घर कोई माचिस के डब्बों की तरह नहीं हैं, जो आदमी उसांस भरने लगे. ज्यादातर लोग वहां भी ऊबे हुए से हैं, फिर भी लोगों के चेहरे पर एक निश्चिंतता सी है. कोई भागादौड़ी नहीं है.

चाचा शोभा से हंस कर कहते, ‘‘तुम को गांव बहुत अच्छा लगता है. चलो, अच्छा है. पर गांव में डाक्टर की कमी है. तुम यहीं आ कर अपनी प्रैक्टिस करना. जगदीश तो गांव छोड़ कर पटना भाग गया. तुम उस की कमी पूरी कर देना.’’

‘‘तुम भी क्या बात करते हो. शादी के बाद शोभा अपने ससुराल जाएगी कि यहां रहेगी…’’ बड़े ताऊजी हंस कर कहते, ‘‘वैसे, शोभा बेटी जहां भी जाएगी, वहां की शोभा ही बढ़ाएगी. इस के जन्म के साथ ही मंझले के कारोबार में इजाफा हुआ था. तभी तो उस ने अपनी दुकान का नाम ‘शोभा साड़ी शौप’ रखा है. और तुम देखना, वह इस की शादी भी किसी बड़े शहर में ही करेगा.’’

‘‘मगर, शोभा तो खेत और बागानों में ही घूम कर खुश होती है. कहती है कि यहां बड़ी शांति है. उसे नहीं पता कि यहां धर्म और जाति में गांव कितना बंटा हुआ है. बहुत राजनीति है गांव में,’’ चाचा शोभा से कहते.

‘‘शहर भी धर्म और जाति में बंटे हुए हैं चाचाजी…’’ शोभा हंस कर कहती, ‘‘आप ने वहां के अंदरूनी हालात को नहीं देखा है न. बस, उस के ऊपर प्रशासनिक अनुशासन या डर का एक मुलम्मा चढ़ा हुआ है, इसलिए वह दिखाई नहीं देता. और वहां के राजनीतिक हालात के बारे में तो पूछिए ही मत.’’

‘‘मगर, वहां कोई एकदूसरे के काम में दखलअंदाजी नहीं करता,’’ चाचा बोले, ‘‘तभी तो जगदीश अपने कारोबार में कामयाब हुआ है.’’

‘‘सो तो है ही. बाबूजी के मरने के बाद हम अनाथ हो गए थे. उस समय जगदीश 8वीं क्लास में पढ़ता था. अब घर कैसे चले, सो उस की चिंता हमें खाने लगी थी. मैं तो निरा बेवकूफ ठहरा. खेतीबारी करने के अलावा कुछ जानता ही नहीं था.

‘‘ऐसे में जगदीश ने हिम्मत कर के दुर्गापूजा के वक्त पंडाल के पास ही एक खिलौने की दुकान लगा ली थी. उस में उसे कुछ मुनाफा हुआ, तो उस ने दीवाली में पटाकों की दुकान खोल ली.

‘‘इस तरह वह छोटेछोटे काम करता रह गया. इस चक्कर में वह मुश्किल से 8वीं जमात ही पास कर पाया था. मगर उसे दुकानदारी कर कमाई करने का जो भूत सवार हुआ, तो उस में लगता ही गया.

‘‘बाद में उस ने स्कूल के पास ही एक स्टेशनरी की दुकान खोल ली थी. इस का असर यह हुआ कि उस की दुकान तो चल गई, लेकिन वह 9वीं जमात पास नहीं कर पाया. मगर लेनदेन में वह काफी कुशल था, सो महाजन भी उसे रुपए देने में आनाकानी नहीं करते थे.

‘‘आगे चल कर जब वह पटना से माल उठाने लगा, तो काम और भी चल निकला. देखतेदेखते उस की दुकान बहुत बढ़ गई थी, लेकिन उस की पढ़ाई चौपट हो गई थी,‘‘ ताऊजी ने कहा.

‘‘लेकिन, जगदीश ने मेरी पढ़ाई पर बहुत ध्यान दिया था…’’ चाचा बोले, ‘‘उस ने मुझे कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. वह तो मेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता था, इसलिए ज्यादा पढ़ नहीं पाया. फिर भी उस के दबाव की वजह से मैं मैट्रिक पास कर गया था.

‘‘पढ़ाई के लिए जगदीश की जो लगन थी, उसी ने शायद तुम लोगों को पढ़ाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी है. उसे लगता था कि नई पीढ़ी का पढ़ालिखा होना बहुत जरूरी है, इसलिए वह तुम को और शोभन को पढ़ाने में कोई कमी नहीं कर रहा था.’’

‘‘सो तो है ही चाचाजी…’’ शोभा गर्व से बोली, ‘‘हमारी पढ़ाई के लिए पापा हमेशा सजग रहे. हम ने जो पढ़ना और बनना चाहा, उस के लिए वे हमेशा तैयार रहे. कभी कोई कमी नहीं होने दी.

‘‘शोभन भैया इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए कोटा जाना चाहते थे. सो, वहां भी उन्हें भेज कर पूरी तैयारी कराई. खर्च की तो कभी उन्होंने परवाह ही नहीं की.’’

‘‘तुम तो सब जानती हो शोभा बेटी. अब तुम्हें क्या बताना…’’ ताऊजी बोले.

मगर आज वही शोभन भैया पापा को क्या कह गए. क्या वे नहीं जानते कि पापा ने यहां तक पहुंचने के लिए कितनी मेहनत की है. ठीक है कि वे ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं हैं, मगर इस के लिए क्या वे ही कुसूरवार हैं? क्या उन दिनों के हालात कुसूरवार नहीं हैं, जिन की वजह से वे आगे पढ़ नहीं पाए थे?

फिर भी पापा ने थोड़ी सी पूंजी से अपना कारोबार गांव में शुरू किया था. सीजनल टाइम में वे पटना से अपने गांव में सामान लाते थे और बेचते थे. इस के लिए उन्हें गांव के महाजन से सूद पर पैसा लेना पड़ता था.

बाद में पापा सीजनल धंधों को दरकिनार कर सिर्फ कपड़े के कारोबार में हाथ आजमाने लगे थे. कपड़ों की पहचान और ग्राहकों की पसंद को ध्यान में रख कर उन्होंने अपनी दुकान को खूब आगे बढ़ा लिया था.

धीरेधीरे पापा को पटना आतेजाते वहां के हाटबाजार का भी हाल मालूम चल गया था. तब उन्हें लगा था कि अगर वे पटना में अपनी एक दुकान खोल लें, तो उन्हें अपने कारोबार में अच्छा फायदा हो सकता है.

एक कारोबारी को जब रुपए की जरूरत हुई, तो उसे अपनी दुकान बेचनी पड़ी. तब पापा ने अपनी जमापूंजी लगा कर वह दुकान खरीद ली थी. दुकान का नाम भी उन्होंने शोभा के नाम पर ‘शोभा साड़ी शौप’ रखा था.

पापा का मानना था कि जैसे ही शोभा का जन्म हुआ, तो उन के कारोबार में तरक्की हुई थी और वे इस दुकान को खरीदने में कामयाब हुए थे. फिर तो धीरेधीरे वे कारोबार को बढ़ाते ही चले गए थे. जिस के बाद सब से पहले किराए का मकान ले कर अपने परिवार को बुलाया.

शोभा उस समय छोटी सी प्यारी बच्ची थी. पूरे प्यार के साथ उन्होंने उस का दाखिला एक नर्सरी स्कूल में कराया था. शोभन भैया उन दिनों गांव के एक सरकारी स्कूल में दूसरी क्लास में पढ़ते थे. फिर काफी भागदौड़ के बाद एक अच्छे स्कूल में शोभन का दाखिला मोटा डोनेशन दे कर हुआ था.

एक तो भैया पहले ये ही फुजूलखर्च थे, उन की पढ़ाई भी महंगी होती थी. उन के लिए पापा ने ट्यूशनें रखीं. पढ़ाई में औसत होने के चलते उन की पढ़ाई पर खर्च भी खूब होता था. इस सब के बावजूद पापा ने कभी खर्चों में नानुकर नहीं की. समय निकाल कर वे शोभन की किताबकौपियां देख लिया करते थे.

उधर उन की दुकान चल निकली थी. अब पापा एक मकान भी खरीद चुके थे और दुकान भी बड़ी हो चुकी थी. दुकान में 5-5 नौकर थे, जिन्हें वे अपना स्टाफ कहते थे.

समय किस रफ्तार से आगे बढ़ता है. गांवघर कब के पीछे छूट गए. शोभा पढ़ाई में होशियार तो थी ही, पापा की हमेशा से यही इच्छा रही थी कि वह डाक्टर बने, तो इस दिशा में उस ने अपनी कोशिश जारी रखी.

यही वजह थी कि शोभा खुद अच्छी पढ़ाई कर मैडिकल का ऐंट्रैंस ऐग्जाम पास कर मुजफ्फरपुर के एक सरकारी मैडिकल कालेज में पढ़ाई कर रही थी, जबकि शोभन कोलकाता के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज में बीटैक की पढ़ाई कर रहा था.

इस के लिए शोभन ने कोटा में 2 साल रह कर आईआईटी के लिए कोचिंग ली थी. अभी तो खैर वह पुणे में एमबीए की पढ़ाई कर रहा है.

इस बीच पापा को कभी इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि वे 9वीं फेल हैं. और आज शोभन उन पर ताना कस रहा है कि वे कुछ नहीं जानते.

अचानक शोभा को कुछ खटका सा हुआ, तो वह जाग गई.

‘‘अरे, तुम इतनी जल्दी सो गई?’’ शोभन उस से पूछ रहा था, ‘‘अभी तो 9 ही बजे हैं. तबीयत ठीक नहीं है क्या तुम्हारी? छुट्टियों में आई हो, तो कहीं घूमनेटहलने जाना चाहिए.

‘‘बाजार की रंगीनियों की तरफ तो देखो. चारों तरफ साफसफाई है. दुकानें कितनी सजीधजी हैं. चौकचौराहों पर पंडाल लगे हैं. सड़कें रोशनियों से जगमगा रही हैं. बाहर लोगों के हुजूम के हुजूम खरीदारी के लिए निकले हुए हैं. कितना भला और अच्छा दिख रहा है शहर.’’

‘‘वह तो ठीक है भैया कि सबकुछ अच्छाभला दिख रहा है, मगर तुम ने पापा को जो कहा, वह अच्छा था क्या? पापा खुद पढ़ नहीं पाए, इस के पीछे की वजह को हमें जानना चाहिए कि नहीं? तुम ने उन्हें 9वीं फेल कहा. उन को इस बात से कितनी चोट लगी होगी, इस का अंदाजा तुम्हें है क्या?’’

‘‘तुम ने ठीक कहा शोभा…’’ शोभन बोला, ‘‘पढ़ाई के लिए कीमत चुकानी होती है और जब पैसा न हो, तो कोई कैसे पढ़ सकता है? अब देखो न, मैं अविनाश के घर गया था. उस ने अपनी बीटैक की पढ़ाई छोड़ दी है.

‘‘वह कह रहा था कि उस के पापा के रैस्टोरैंट में जबरदस्त घाटा हुआ है, जिस से उन पर भारी कर्ज है. उन्होंने अपने कई स्टाफ की छुट्टी कर दी है. और वह बता रहा था कि अब वह पापा के रैस्टोरैंट में ही उन की मदद करेगा.’’

‘‘शायद तुम नहीं जानते कि हमारे पापा के साथ भी ऐसे हालात कई बार हो चुके हैं, लेकिन उन्होंने हमारी पढ़ाई छुड़वाने की बात कभी नहीं की. तुम ने उन पर इतना बड़ा आरोप लगा दिया. कितने दुखी होंगे वे, इस का अंदाजा है तुम्हें?’’ शोभा बोली.

‘‘सौरी शोभा, अब तुम मेरा अपराधबोध और ज्यादा न बढ़ाओ. मैं पापा से माफी मांग लूंगा.’’

‘‘तो यह काम अभी होना चाहिए,’’ शोभा ने कहा.

‘‘इस की कोई जरूरत नहीं है…’’ अचानक पापा अंदर आए, ‘‘मैं तो अपने अंदर के अधूरेपन को तुम्हारी पढ़ाई से पूरा कर रहा हूं. तुम खुश रहो, मुझे कुछ और नहीं चाहिए.’’

शोभन सिर झुकाए खड़ा था.

पापा शोभा को अपने गले से लगाते हुए बोले, ‘‘मेरी छोटी सी गुडि़या अब बड़ी और समझदार हो गई है.’’

Social Story : करारा जवाब

Social Story : अशरफ महक को ब्याह तो लाया था, पर बिस्तर पर जाते ही वह ढेर हो जाता था. महक के अरमान पूरे नहीं होते थे. वह हवस की आग में जलने लगी थी. तभी सलीम उस की जिंदगी में आया और दोनों में नाजायज रिश्ता बन गया. एक दिन अशरफ को इस की भनक लग गई. आगे क्या हुआ?

उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर का रहने वाला अशरफ नईनई शादी कर के महक को अपने घर लाया था. महक जैसी खूबसूरत बीवी पा कर उस की खुशी का ठिकाना नहीं था.

अशरफ खुश होता भी क्यों न, महक तो सचमुच की महक थी. गोरा बदन, गुलाबी होंठ, सुर्ख गाल, काले घने लंबे बाल और जब वह हंसती थी, तो उस के सफेद दांत ऐसे लगते थे, जैसे मोती बिखर रहे हों.

सुहागरात पर जब अशरफ ने महक का घूंघट उठाया, तो उस के मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘‘वाह, क्या बेशकीमती तोहफा मिला है मुझे…’’

अशरफ से अपनी तारीफ सुन कर महक शरमा गई और अपनी हथेली से अपने चेहरे को ढकते हुए बोली, ‘‘इतनी तारीफ मत करो मेरी.’’

‘‘मैं तो सिर्फ तुम्हारे उस हुस्न की तारीफ कर रहा हूं, जिस पर सिर्फ मेरा हक है. सम?ा में नहीं आता कि इस हुस्न को यों ही रातभर देख कर गुजारूं या इस का स्वाद चखूं…’’

महक धीरे से बोली, ‘‘आप बड़े शरारती हो.’’

अशरफ ने कहा, ‘‘शरारत अभी की ही कहां है. अभी तो तुम्हारे हुस्न को देख कर आंखों को ठंडक पहुंचाई है, दिल की ठंडक दूर करना तो अभी बाकी है.’’

इस के बाद अशरफ ने बड़े प्यार से महक के गहने उतारने शुरू किए. वह एकएक कर महक के गहने उतारता रहा और उस के हुस्न की तारीफ करता रहा.

इसी तरह महक के हुस्न की तारीफ करतेकरते आधी रात गुजर गई, पर अशरफ आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहा था.

महक का दिल जोरों से धड़क रहा था. अशरफ के एकएक अल्फाज और उस के हाथों की छुअन से महक के बदन में सरसराहट दौड़ रही थी.

काफी रात बीत जाने के बाद अशरफ ने महक के कपड़े उतारने शुरू किए.

महक के गोरे और कमसिन बदन को देख कर अशरफ धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था. वह उस की नाभि पर अपने गरमागरम होंठ रख कर उसे चूम रहा था.

महक मदहोश होती जा रही थी. उस ने हिम्मत कर के अशरफ को अपने ऊपर खींच लिया. पर यह क्या, अशरफ अभी उस के शरीर में उतरा ही था कि तभी ढेर हो गया. वह करवट ले कर लेट गया.

महक अशरफ की इस हरकत पर हैरान रह गई. उस के तनबदन में तो मानो आग लगी हुई थी, पर उस का शौहर तो शुरू होने से पहले ही ढेर हो गया था.

महक अशरफ के उठने का इंतजार कर रही थी, क्योंकि अशरफ उस के तनबदन में आग सुलगा कर खुद लुढ़क गया और उसे हवस की आग में जलता हुआ छोड़ दिया.

काफी देर बाद अशरफ फिर उठा और महक से बोला, ‘‘मैं थक गया हूं. आज मूड सही नहीं है. हम कल सारी कसर पूरी करेंगे.’’

महक अशरफ के चेहरे को गौर से देख रही थी और सोच रही थी, ‘क्या अरमान संजोए थे सुहागरात के और क्या हो गया…?’

यह अब रोज की बात हो गई. अशरफ बिस्तर पर बातों से महक को खुश करने की कोशिश करता रहता था. कभी उस की खूबसूरती की तारीफ कर के, तो कभी उसे गले लगा कर या फिर उसे अपनी बांहों में भर कर, पर जब महक का दिल करता कि अशरफ उस की जिस्मानी भूख मिटाए, तो अशरफ वक्त से पहले ही ढेर हो जाता और महक के तनबदन में आग लगा कर उसे जलता हुआ छोड़ देता.

काफी दिनों तक ऐसा ही चलता रहा. अब महक को अशरफ की हरकतों पर गुस्सा आने लगा था और उस ने एक दिन अशरफ से बोल ही दिया, ‘‘तुम अपनी आग को तो शांत कर लेते हो, पर मेरी आग को भड़का कर बीच रास्ते में ही मुझे तनहा छोड़ देते हो. ऐसा कब तक चलेगा?’’

अशरफ बोला, ‘‘मैं रोज तो तुम्हें खुश करने के लिए सैक्स करता हूं. बताओ, क्या हम एक भी दिन बिना सैक्स के रहे हैं? और मैं कितना सैक्स करूं?’’

महक बोली,‘‘हां, सैक्स करते हो, पर तुम सिर्फ अपनी ख्वाहिश का खयाल रखते हो, मेरा नहीं. तुम्हारा तो रोज हो जाता है, पर मुझे संतुष्ट कौन करेगा?

‘‘मेरा भी दिल है, मेरी भी उमंगें हैं. तुम तो अपना कर के एक तरफ को मुंह कर के सो जाते हो और मुझे सुलगता हुआ बीच रास्ते में ही छोड़ देते हो.’’

अशरफ झल्लाते हुए बोला, ‘‘करता तो मैं रोज हूं. और कितना करूं. मैं भी इनसान हूं, कोई जानवर नहीं.’’

महक समझ गई कि उसे खुश करना अशरफ के बस की बात नहीं है. वह सिर्फ बातों से ही उसे खुश करना जानता है.

महक अशरफ की बात सुन कर हैरान रह गई. उस ने अपने जज्बात को दफन कर दिया और चुप रहना ही बेहतर समझ.

कई महीनों तक ऐसा ही चलता रहा. जिस्मानी सुख न मिलने की वजह से और दिनरात अशरफ की अधूरी हरकत सोचते रहने से महक के सिर में दर्द रहने लगा.

महक पूरी तरह टूट चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, किस से अपना दुखड़ा रोए. कौन उस की सुनेगा, उलटा उसे ही बदचलन सैक्स की प्यासी कहेगा.

एक दिन महक अपनी छत पर कपड़े उतारने गई. शाम का समय था. महक ने हलका गुलाबी रंग का सूट पहना हुआ था. वह छत पर टंगे कपड़े उतार ही रही थी कि उस का दुपट्टा नीचे गिर गया.

महक ने इधरउधर देखा कि कोई है तो नहीं कि तभी उस की नजर पड़ोस वाली छत पर खड़े सलीम पर पड़ी, जो अपनी हसरत भरी निगाहों से महक की खूबसूरती को ताड़ रहा था.

दुपट्टा हटते ही महक के बडे़बड़े उभार दिखने लगे. सलीम से रहा नहीं गया और वह बोल उठा, ‘‘भाभी, आप तो कसम से कयामत ढा रही हो.’’

अपनी तारीफ सुन कर महक मुसकरा दी और जल्दी से नीचे चली गई.

सलीम मन ही मन सोच रहा था कि महक उस के प्यार के जाल में फंस सकती है और अपने खूबसूरत बदन की खुशबू उसे भी दे सकती है.

सलीम वैसे तो अशरफ के घर पर कम ही आताजाता था, पर अब वह किसी न किसी बहाने उस के घर आनेजाने लगा.

सलीम एक अमीर बाप की औलाद था, जो अपने रहनसहन और घूमनेफिरने पर काफी ज्यादा पैसा खर्च करता था.

जब अशरफ काम के सिलसिले में घर से बाहर जाता, तो सलीम कुछ न कुछ ले कर अशरफ के घर चला जाता और ‘भाभीभाभी’ कह कर महक को गिफ्ट देता रहता था.

धीरेधीरे सलीम की दोस्ती महक से बढ़ती गई. अब सलीम कभी महक के लिए कपड़े, तो कभी कोई दूसरा गिफ्ट लाने लगा.

महक सलीम की इस अदा पर फिदा होती जा रही थी. शादी के 3 महीने गुजर जाने के बाद भी अशरफ ने अभी तक महक को कोई गिफ्ट तो दूर की बात है, एक जोड़ी कपड़ा तक न दिया था.

सर्दी के दिन थे. सलीम अपनी छत पर कसरत कर रहा था. उस ने अंडरवियरबनियान पहन रखा था और उठकबैठक लगा रहा था, तभी महक किसी काम से छत पर गई और सलीम के मजबूत बदन को आंखें फाड़ कर देखने लगी.

सलीम ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, क्या देख रही हो?’’

महक बोली, ‘‘कुछ नहीं, बस देख रही हूं कि तुम ने अपनी देह तो अच्छी बना रखी है. पर, पता नहीं कि कोई दम भी है या नहीं.’’

सलीम मौका भांपते हुए बोला, ‘‘भाभी, एक मौका दे कर तो देखो, दम का भी पता चल जाएगा.’’

महक ने इठलाते हुए कहा, ‘‘सब मर्द ऐसे ही बोलते हैं, पर वक्त आने पर ढेर हो जाते हैं. औरत को खुश करना हर किसी के बस की बात नहीं.’’

सलीम ने भी जवाब दिया, ‘‘भाभी, अभी तुम ने हमारा जलवा देखा ही कहां है. इजाजत दो तो मैं अभी आ जाऊं तुम्हारी छत पर?’’

महक हंसते हुए बोली, ‘‘ठीक है, तो आ जाओ. हम भी तो देखें कि कितना दम है तुम्हारे अंदर.’’

सलीम ने बिना वक्त गंवाए दीवार फांदी और महक को अपनी मजबूत बांहों में जकड़ लिया.

इस से पहले कि महक कुछ बोल पाती, सलीम ने अपने गरम होंठ महक के गुलाबी होंठों पर रख दिए और
चूसने लगा.

सलीम की इस हरकत से महक मदहोश होने लगी, तो उस ने भी सलीम के मजबूत शरीर को अपनी बांहों में कस कर भर लिया.

सलीम महक की गरदन को चूमते हुए उस के उभारों को सहलाने लगा. वह उसे तकरीबन दबोच चुका था. दोनों के बदन एकदूसरे से रगड़ खाने लगे थे. वह महक पर हावी होने लगा था. दोनों की गरम सांसें एकदूसरे से टकराने लगी थीं.

महक सिसक उठी. सलीम ने तभी महक को छत पर लिटा दिया और उस के कपड़े उतार कर बदन से
खेलने लगे.

थोड़ी ही देर में वे दोनों सर्दी के इस मौसम में पसीने से सराबोर हो गए. सलीम महक पर पूरी तरह हावी हो चुका था. महक थक चुकी थी, पर सलीम अभी भी नहीं रुका था. कुछ देर के बाद वे दोनों निढाल हो गए.

सलीम ने जल्दी से कपड़े पहने और फौरन दीवार फांद कर अपनी छत पर चला गया.

महक ने जल्दीजल्दी अपने कपड़े पहने और वह भी नीचे आ गई. वह अपने बिस्तर पर लेट कर सलीम के बारे में सोचने लगी और मुसकराने लगी.

अब तो महक पूरी तरह से सलीम की कायल हो चुकी थी. सलीम से मिले जिस्मानी सुख को वह भूल नहीं पा रही थी. अब महक और सलीम को जब भी मौका मिलता, वे एकदूसरे से अपनी जिस्मानी जरूरत पूरी कर लिया करते थे.

महक के सिर का दर्द खुद ब खुद ठीक हो गया. अब वह महकने और चहकने लगी.

सलीम महक को जिस्मानी सुख तो दे ही रहा था, साथ ही उस पर काफी पैसा भी लुटा रहा था.

दोनों की प्रेमकहानी अब तूल पकड़ने लगी, तो अशरफ को भी इस बात का पता चल गया. उस ने महक को काफी समझाया, पर वह नहीं मानी.

थकहार कर अशरफ ने पंचायत बुलाई, जिस में सलीम और अशरफ के साथ महक भी आई.

सरपंच ने महक से सवाल किया, ‘‘तुम अपने शौहर के होते हुए सलीम से नाजायज रिश्ता क्यों रखती हो?’’

महक काफी देर तक चुप रही, फिर उस ने पंचायत को एक ऐसा करारा जवाब दिया, जिसे सुन कर पूरी पंचायत क्या अशरफ भी हैरान रह गया.

महक सारी शर्म छोड़ कर बोली, ‘‘जब अशरफ अपनी बीवी को जिस्मानी सुख दे ही नहीं सकता, तो मैं क्या करती. मेरी भी तमन्ना है, जज्बात हैं. मुझे भी किसी ऐसे मर्द की जरूरत है, जो मेरे बदन की प्यास बुझ सके.

‘‘हर शादीशुदा औरत की तमन्ना होती है कि उसे अपने शौहर से जिस्मानी सुख मिले, पर अशरफ तो मेरे बदन की आग भड़का कर खुद ढेर हो जाता है. अपने शरीर को तो वह ठंडा कर लेता है, पर मैं अपने शरीर की आग को कैसे ठंडा करूं?

‘‘बस, इसीलिए मैं ने सलीम से अपनी जरूरत पूरी की, जिस ने मुझे वह सुख दिया, जो अशरफ के बस की बात नहीं थी.’’

महक की बातें सुन कर पंचायत खामोश हो गई. अशरफ का सिर भी शर्म से झुक गया.

पंचायत के लोग अपनेअपने घर चले गए. अशरफ भी उठा और अपना सिर झुकाए घर चला गया, क्योंकि उस के पास महक के इस करारे जवाब का कोई जवाब नहीं था.

Social Story : नशा

Social Story : बड़ा बेटा शंकर शराबी निकला और पत्नी को लकवा मार गया. इस बात से गणपत की कमर टूट गई. घर में बेटी की कमी न हो, तो गणपत ने शंकर का ब्याह करा दिया. पर बहू ललिता पति का प्यार पाने को तरस गई. क्या गणपत के घर में खुशियां लौटीं?

वह तीनों ही टाइम नशे में चूर रहता था. कभीकभी बेहद नशे में उसे देखा जाता था. वह चलने की हालत में नहीं होता था. पूरे शरीर पर मक्खियां भिनभिना रही होती थीं. उसे कोई कुछ नहीं कहता था. न घर वाले खोजखबर लेते थे और न बाहर वालों का उस से कोई मतलब होता था.

शरीर सूख कर ताड़ की तरह लंबा हो गया था. खाने पर कोई ध्यान ही नहीं रहता था उस का. कभी घर आया तो खा लिया, नहीं तो बस दे दारू, दे दारू.

वह सुबह दारू से मुंह धोता तो दोपहर तक दारू पीने का दौर ही चलता रहता था. दोपहर के बाद गांजे का जो दौर शुरू होता, तो शाम तक रुकने का नाम नहीं लेता था.

दोस्त न के बराबर थे. एक था बीरबल, जो उस के साथ देखा जाता था और दूसरा था एक ?ाबरा कुत्ता, जो हमेशा उस के इर्दगिर्द डोलता रहता था.

‘बहिरा दारू दुकान’ उस का मुख्य अड्डा होता था. वहीं से उस की दिन की शुरुआत होती और रात भी वहीं से शुरू होती, जिस का कोई पहर नहीं होता था. लोगों को अकसर ही वह वहीं मिल जाता था.

सुबहसुबह बहिरा भी उस का मुंह देखना नहीं चाहता था, लेकिन ग्राहक देवता होता है, उसे भगा भी नहीं सकता. पीता है तो पैसे भी पूरे दे देता है और बहिरा को तो पैसे से मतलब था. पीने वाला आदमी हो या कुत्ता, उसे क्या फर्क पड़ता?

अब कहोगे कि बिना नाम उसे रबड़ की तरह खींचते जा रहे हो… ऐसा नहीं था कि मांबाप ने उस का नाम नहीं रखा था या नाम रखना भूल गए थे.

मांबाप ने बड़े प्यार से उस का नाम शंकर रखा था, पर उन्हें क्या पता था कि बड़ा हो कर शंकर ऐसा निकलेगा.

कोई बुरा बनता है, तो लोग उसे नहीं, बल्कि उस की परवरिश को गाली देते हैं. किसी बच्चे को अच्छी परवरिश और अच्छी तालीम नहीं मिले, तो वह बिगड़ ही जाता है. मतलब कि बिगड़ने की पूरी गारंटी रहती है.

लेकिन शंकर के साथ ऐसा नहीं था. बचपन में जितना लाड़प्यार उसे मिलना चाहिए था, वह मिला था. जैसी परवरिश और जिस तरह की पढ़ाईलिखाई उसे मिलनी चाहिए थी, उस का भी पूरापूरा इंतजाम किया गया.
जब तक शंकर गांव के स्कूल में पढ़ा, तब तक घर में ट्यूशन पढ़ाने रोजाना शाम को एक मास्टर आया करता था, ताकि पढ़ाई में बेटा पीछे न रहे.

ऐसी सोच रखने वाले मांबाप गांव में कम ही मिलते हैं. जब वह बड़ा हुआ, तो रांची जैसे शहर के एक नामी स्कूल आरटीसी में उस का दाखिला करा दिया और होस्टल में ही उस के रहने का इंतजाम भी कर दिया. यहां भी ट्यूशन का इंतजाम कर दिया गया.

बस, यहीं से शंकर पर से मांबाप का कंट्रोल खत्म होना शुरू हो गया था. हालांकि, हर महीने उस का बाप गणपत उस से मिलने जाता था और घर की बनी ऐरसाठोंकनी रोटी बना कर उस की मां तुलसी देवी बाप के हाथों भिजवा देती थी, ताकि बेटे को कभी घर की कमी महसूस न हो और बाजार की बासी चीजें खाने से भी बचे.

पर न जाने क्या था या शायद समय ठीक नहीं था, शंकर बाहरी चीजें खाने पर ज्यादा जोर देने लगा था. घर की बनी रोटियां उसे उबाऊ लगती थीं और बक्से में पड़ीपड़ी रोटियां सूख कर रोटा हो जाती थीं. बाद में शंकर उसे बाहर फेंक देता था.

यह बात मां को पता चली, तो उसे बड़ा दुख हुआ और तब उस ने घर से कुछ भी भेजना बंद कर दिया.

‘‘खाओ बाजार की चीजें जितनी खानी हों. एक दिन बीमार पड़ोगे, तब समझोगे तुम,’’ तुलसी देवी ने एक दिन झल्ला कर कह दिया था.

शंकर का बाप गणपत एक कंपनी में डोजर औपरेटर था. हर महीने घर में 80-90 हजार रुपए ले कर आता था. वह चाहता था कि इन पैसों से उस का बेटा पढ़लिख कर डाक्टरइंजीनियर बने, बड़ा आदमी बने, तभी उस के पैसे का मान रहेगा, नहीं तो यह पैसा बेकार है उस के लिए, पर बेटे का चालचलन देख कर उस का मन घबरा उठता था.

इसी बीच तुलसी देवी को लकवा मार गया. उसे तत्काल रांची के एक अस्पताल में भरती कराया गया. पूरा शरीर लकवे की चपेट में आ गया था.

शंकर को भी इस की खबर मिली, पर रांची में रहते हुए भी वह मां को देखने तक नहीं आया. इम्तिहान का बहाना बना कर और पहले से तय दोस्तों के संग पिकनिक मनाने हुंडरू फाल चला गया. शाम को होस्टल लौटा, तो नशे में उस के पैर लड़खड़ा रहे थे.

होस्टल इंचार्ज ने जोर से फटकार लगाई, ‘‘पिकनिक मनाने की छुट्टी लोगे और बाहर जो मरजी करोगे, आगे से ऐसा नहीं होगा.’’

‘‘सौरी सर, आगे से ऐसा नहीं होगा,’’ शंकर ने कहा. बहकने की यह उस की शुरुआत थी.

लकवाग्रस्त पत्नी के गम में डूबे गणपत की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि उस के घरपरिवार की गाड़ी कैसे चलेगी? घर की देखरेख, खानेपीने का इंतजाम कैसे होगा? आज उसे अपनेआप पर भी कम गुस्सा नहीं आ रहा था.

आज एक बेटी होती तो कम से कम रसोई की चिंता तो नहीं होती उसे. 2 बेटों के बाद ही उस ने पत्नी की नसबंदी करवा दी थी.

बड़ा बेटा शंकर और छोटा बेटा गुलाबचंद था, जो डीएवी स्कूल मकोली में क्लास 6 में पढ़ रहा था.

तुलसी देवी कहती रही, ‘‘कम से कम एक बेटी तो होने देता.’’

गणपत ने तब उस की एक नहीं सुनी थी, ‘‘बहुएं आएंगी, उन्हीं को तुम अपनी बेटी मान लेना.’’

आज गणपत का दिमाग कुछ काम नहीं कर रहा था. बिस्तर पर लेटी पत्नी को वह बारबार देखता और कुछ सोचने सा लगता.

तभी उसे छोट साढ़ू भाई की कही एक बात याद आई, ‘‘आप की कोई बेटी नहीं है तो क्या हुआ, मेरी 3 बेटियों में से एक आप रख लीजिए. बेटी की कमी भी पूरी हो जाएगी और उस की पढ़ाईलिखाई भी यहां ठीक से हो पाएगी.’

अचानक गणपत ने छोटे साढ़ू को फोन लगा दिया, ‘‘साढ़ू भाई, नमस्कार. आप लोगों को तो मालूम हो ही चुका है कि शंकर की मां को लकवा मार गया है और इस वक्त वह अस्पताल में पड़ी है.’’

‘जी हां, हमें यह जान कर बहुत दुख हुआ. अभी वे कैसी हैं? डाक्टर का क्या कहना है?’

‘‘कुछ सुधार तो है, पर डाक्टर का कहना है कि लंबा इलाज चलेगा. कई साल भी लग सकते हैं. हो सकता कि वह पूरी तरह कभी ठीक न हो पाए, यह भी डाक्टर कहता है…’’

गणपत एक पल को रुका था, फिर बोला, ‘‘साढ़ू भाई, याद है, आप ने एक बार मुझ से कहा था कि आप के 2 बेटे हैं और मेरी 3 बेटियां हैं, मेरी एक बेटी आप अपने पास रख लीजिए, बेटी की कमी भी पूरी हो जाएगी.

‘‘आज मैं सरिता को मांगता हूं. आप मुझे सरिता को दे दीजिए, उस की पढ़ाईलिखाई और शादीब्याह की सारी जिम्मेदारी मेरी. इस समय एक बेटी की मुझे सख्त जरूरत है साढ़ू भाई.’’

‘ठीक है, मैं सरिता की मां से बात करूंगा.’

2 दिन बाद गणपत के साढ़ू भाई का फोन आया, ‘माफ करना साढ़ूजी, सरिता की मां इस के लिए तैयार नहीं हैं.’

‘‘ओह, कोई बात नहीं है साढ़ू भाई. सब समय का फेर है. समस्या मेरी है तो समाधान भी मू?ो ही ढूंढ़ना होगा,’’ यह कह कर गणपत ने फोन काट दिया था.

तुलसी देवी के लकवे की तरह गणपत की सोच को भी उस वक्त लकवा मार गया था, जब शंकर के स्कूल वालों की ओर से एक दिन सुबहसुबह फोन पर कहा गया, ‘आप के बेटे शंकर को स्कूल और होस्टल से निकाल दिया गया है. जितना जल्दी हो सके, आ कर ले जाएं.’

यह सुन कर गणपत को लगा कि उस का संसार ही उजड़ गया है और उस के लहलहाते जीवन की बगिया में आसमानी बिजली गिर पड़ी हो.

गणपत अस्पताल के कौरिडोर से हड़बड़ी में उतरा और सड़क पर पैदल ही स्कूल की ओर दौड़ पड़ा. अपने समय में वह फुटबाल का अच्छा खिलाड़ी हुआ करता था. अभी जिंदगी उस के साथ फुटबाल खेल रही थी.

स्कूल पहुंच कर गणपत स्कूल वालों के आगे साष्टांग झक गया और बोला, ‘‘बेटे ने जो भी गलती की हो, आखिरी बार माफ कर दीजिए माईबाप. दोबारा ऐसा नहीं होगा.’’

‘‘आप की सज्जनता को देखते हुए इसे माफ किया जाता है. ध्यान रहे, फिर ऐसा न हो,’’ स्कूल के प्रिंसिपल की ओर से कहा गया.

स्कूल गलियारे में ही गणपत को शंकर के गुनाह का पता चल गया था. स्कूल में होली की छुट्टी की सूचना निकल चुकी थी.

2 दिन बाद स्कूल का बंद होना था. उस के पहले स्कूल होस्टल में एक कांड हो गया, जिस में शंकर भी शामिल था.

दरअसल, लड़के के भेष में बाजार में सड़क किनारे बैठ हंडि़या बेचने वाली 2 लड़कियों को कुछ लड़के चौकीदार की मिलीभगत से होस्टल के अंदर ले आए थे. रातभर महफिल जमी, दारूमुरगे का दौर चला. दो जवान जिस्मों को दारू में डुबो कर उन के साथ खूब मस्ती की गई.

अभी महफिल पूरे उफान पर ही थी कि तभी होस्टल पर प्रबंधन की दबिश पड़ी. होस्टल इंचार्ज समेत 5 लड़के इस कांड में पकड़े गए.

होस्टल इंचार्ज और चौकीदार को तो स्कूल प्रबंधन ने तत्काल काम से हटा दिया और छात्रों के मांबाप को फोन कर हाजिर होने को कहा गया.

गणपत माथे पर हाथ रख कर वहीं जमीन पर बैठ कर रोने लगा. बेटे को ले कर उस ने जो सपना देखा था, वह सब खाक होता दिख रहा था.

फिर भी उस ने शंकर से इतना जरूर कहा, ‘‘अगले साल तुम को मैट्रिक का इम्तिहान देना है, बढि़या से तैयारी करो,’’ और वह अस्पताल लौट आया.

3 महीने बाद तुलसी देवी को अस्पताल के बिस्तर से घर के बिस्तर पर शिफ्ट कर दिया गया.

घर में तुलसी देवी की देखभाल के लिए कोई तो चाहिए? इस सवाल ने गणपत को परेशान कर दिया.

बड़ी भागदौड़ कर के वह प्राइवेट अस्पताल की एक नर्स को मुंहमांगे पैसे देने की बात कर घर ले आया.

तुलसी देवी को अपनी सेवा देते हुए अभी नर्स गीता को 2 महीने ही पूरे हुए थे कि एक दिन उस ने सुबहसुबह गणपत को यह कह कर चौंका दिया, ‘‘अब मैं यहां काम नहीं कर सकूंगी.’’

‘‘क्यों…? किसी ने कुछ कहा क्या या हम से कोई भूल हुई?’’ गणपत ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘नहीं, पर यहां की औरतें अच्छी नहीं हैं.’’

‘‘मैं समझ गया. बगल वाली करेला बहू ने कोई गंदगी फैलाई होगी. ठीक है, तुम जाना चाहती हो, जाओ. मैं रोकूंगा नहीं. कब जाना है, बता देना…’’

गणपत जैसे सांस लेने को रुका था, फिर शुरू हो गया, ‘‘आप को अस्पताल में ‘सिस्टर गीता’ कहते होंगे लोग, और मैं आप को अपनी छोटी बहन समझता हूं…’’ बोलतेबोलते गणपत का गला भर आया और आंखें छलक पड़ीं.

इसी के साथ गणपत तुरंत बाहर चला गया. गीता उसे जाते हुए देखती रह गई.

शंकर ने बेमन से मैट्रिक बोर्ड का इम्तिहान दिया और 3 महीने बाद उस का नतीजा भी आ गया. वह सैकंड डिवीजन से पास हुआ था.

रिजल्ट कार्ड ला कर बाप के हाथ में रखते हुए उस ने कहा, ‘‘इस के आगे मैं नहीं पढ़ूंगा. पढ़ाई में मेरा मन नहीं लगता. यह रिजल्ट आप रख लीजिए,’’ इसी के साथ वह घर से निकल पड़ा. गणपत हैरान सा बेटे को जाते हुए देखता रहा.

एक हफ्ते तक जब शंकर घर नहीं लौटा, तब किसी ने कहा कि वह कोलकाता चला गया है.

गणपत के साथ यह सब क्यों हो रहा था? वह हैरान था. परेशानी के चक्रव्यूह ने चारों तरफ से उसे घेर रखा था और वह रो भी नहीं सकता था, मर्द जो ठहरा.

दोपहर को गणपत काम से घर लौटा. गीता तुलसी देवी को खाना खिला रही थी. साबुनतौलिया लिए वह सीधे बाथरूम में चला गया. नहा कर आया, तो गीता ने खाना लगा दिया.

‘‘इस घर में बहू आ जाएगी, तभी मैं जाऊंगी,’’ गीता बोली.

‘‘बहू…’’ कहते हुए गणपत ने गीता पर नजर डाली और खाना खाने लगा. उस की मरी हुई भूख जाग उठी थी.

खाना खा कर उठा तो गणपत फिर बुदबुदाया, ‘‘बहू…’’ उसे भी लगा कि शंकर को सुधारने का अब एक ही रास्ता है कि उस की शादी करा दी जाए. बहू अच्छेअच्छे नशेबाजों की सवारी करने में माहिर होती है, ऐसा गणपत का मानना था.

शंकर के लिए शादी जरूरी थी या नहीं, पर उस घर को एक बहू की सख्त जरूरत थी. यही सोच कर गणपत ने संगीसाथियों के बीच बात चलाई और एक दिन नावाडीह की पढ़ीलिखी, सुशील और संस्कारी किसान की बेटी ललिता के साथ बेटे की शादी तय कर दी गई.

ललिता बहुत खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन बदसूरत भी नहीं थी. वह किसी के शरीर में उबाल ला सकती है, ऐसी जरूर थी.

एक दिन गणपत ने शंकर से कहा, ‘‘हम ने तुम्हारे लिए एक लड़की पसंद की है, किसी दिन जा कर देख लो और शादी का दिन पक्का कर लो.’’

‘‘आप की पसंद ही मेरी पसंद है,’’ शंकर ने कहा.

शंकर की बरात में उस के साथी नशे में झूम रहे थे. बरात जब दुलहन के दरवाजे पर पहुंची, तो घराती हैरान थे कि न जाने ललिता के लिए यह कैसा दूल्हा पसंद किया है.

शादी का मुहूर्त निकला जा रहा था और शंकर अपने साथियों के साथ डीजे पर अब भी नाच रहा था. वह भूल चुका था कि वह बराती नहीं, बल्कि दूल्हा है और उसे शादी भी करनी है.

तभी वहां शंकर के होने वाले 2 साले आए और चावल की बोरी की तरह शंकर को उठाया और सीधे मंडप में ले जा कर धर दिया. तब भी शंकर का नशा कम नहीं था.

पंडित बैठा विवाह के श्लोक पढ़ रहा था, पर शंकर अपनी ही दुनिया में जैसे मगन था. वह न पंडित की किसी बात को सुन रहा था और न ही उस की तरफ उस का ध्यान था. उसे देख कर लगता नहीं था कि वह शादी करने आया है.

दुलहन विवाह मंडप में लाई गई. तब भी शंकर होश में नहीं था. जब सिंदूरदान की बेला आई, सभी उठ खड़े हुए और जब शंकर को उठने को बोला गया, तो वह बड़ी मुश्किल से उठ खड़ा हुआ था. तभी गणपत आगे बढ़ा और बेटे के हाथ से दुलहन की मांग भरी गई.

बेटी का बाप करीब आ कर गणपत से बोला, ‘‘समधीजी, मैं आप के भरोसे अपनी बेटी दे रहा हूं. देखना कि इसे कोई तकलीफ न हो.’’

‘‘आप निश्चिंत रहें, आप की बेटी हमारे घर में राज करेगी, राज,’’ गणपत ने बेटी के बाप से कहा.
दुलहन के बाप के दिल में ठंडक पड़ी. दोनों एकदूसरे के गले लगे.

घर में बहू आ गई. गणपत ने नर्स गीता को ढेर सारे उपहार दे कर बहन की तरह विदाई करते हुए कहा, ‘‘बहुत याद आओगी, आती रहना.’’

‘‘इस घर को मैं कभी भुला नहीं पाऊंगी,’’ गीता ने कहा.

ललिता को इस घर में आए सालभर हो चुका था, पर और बहुओं की तरह उस की जिंदगी में अभी तक सुहागरात नहीं आई थी. दो दिलों में बहार का आना अभी बाकी था, पर जैसेजैसे समय बीतता गया, शादी उस के लिए एक पहेली बन गई.

देखने के लिए तो पूरा घर और सोचने के लिए खुला आसमान था. काम के नाम पर रातभर तारे गिनना और दिनभर सास की सेवा में गुजार देना होता. परंतु पति का प्यार अभी तक उस के लिए किसी सपने की तरह था. कुलटा बनना उस के संस्कार में नहीं था.

‘घर के बाहर जिस औरत की साड़ी एक बार खुल जाती है, तो बाद में समेटने का भी मौका नहीं मिलता…’ विदा करते हुए बेटी के कान में मां ने कहा था.

सालभर में ही ललिता ने रसोई से ले कर रिश्तों तक को सूंघ लिया था. सास तुलसी देवी को लकवा मारे 2 साल से ऊपर का समय हो चला था. अब करने को कुछ बचा नहीं था.

सासससुर के मधुर संबंधों को भी जैसे लकवा मार गया था. इस कमी को ललिता का ससुर कभी सोनागाछी तो कभी लछीपुर जा कर पूरा कर आता था.

शुरू में तो ललिता को इस पर यकीन ही नहीं हुआ, लेकिन पड़ोस की एक काकी ने एक दिन जोर दे कर कह ही दिया था, ‘‘यह झूठ नहीं है, सारा गांव जानता है.’’

फिर भी ललिता चुप रही. अब उस ने रिश्तों की जमीन टटोलनी शुरू कर दी थी.

शंकर में कोई बदलाव नहीं हुआ था. जैसा पहले था, वैसा ही आज भी था. आज भी उसे नूनतेल और लकड़ी से कोई मतलब नहीं था. पत्नी को वह उबाऊ और बेकार की चीज समझने लगा था.

ललिता रंग की सांवली थी, पर किसी को भी रिझ सकती थी. कमर तक लहराते उस के लंबेलंबे काले बाल किसी का भी मन भटकाने के लिए काफी थे. उस का गदराया बदन पानी से लबालब भरे तालाब की तरह था, लेकिन शंकर था कि वह उस की तरफ देखता तक नहीं था.

ऐसे में जब शंकर घर से जाने लगता, तो ललिता उस का रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती और कहती, ‘‘कहां चले, अब कहीं नहीं जाना है, घर में रहिए.’’

‘‘देखो, तुम मुझे रोकाटोका मत करो, खाओ और चुपचाप सो जाओ.

तुम मुझ से ऐसी कोई उम्मीद न करना, जो मैं दे न सकूं. नाहक ही तुम को तकलीफ होगी.’’

इस के बाद शंकर घर से निकल जाता, तो लौटने में कभी 10-11 बज जाते, तो कभी आधी रात निकल जाती थी. ललिता छाती पर हाथ रख कर सो जाती. आंसू उस का तकिया भिगोते रहते. कैसा होता है पहला चुंबन और कैसा होता है उभारों का पहला छुअन… उन का मसला जाना. उस की सारी इच्छाएं अधूरी थीं.

छुट्टी के दिन गणपत घर से बाहर निकल रहा था कि ललिता ने टोक दिया, ‘‘हर हफ्ते जिस जगह आप जाते है, वहां नहीं जाना चाहिए.’’

‘‘बहू, इस तरह टोकने और कहने का क्या मतलब है…?’’ गणपत ठिठक कर खड़ा हो गया.

‘‘मैं सब जान चुकी हूं. सास को लकवा मारना और हर हफ्ते आप का बाहर जाना, यह इत्तिफाक नहीं है. उसे जरूरत का नाम दिया जा सकता है. पर जरा सोचिए, जो बात आज सारा गांव जान रहा है, कल वही बात छोटका बाबू गुलाबचंद को मालूम होगी, तब उस पर क्या गुजरेगी, इस पर कभी सोचा है आप ने?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है, जैसा तुम समझ रही हो बहू.’’

‘‘आप को नहीं मालूम कि गांव में कैसी चर्चा है. सब बोलते हैं कि पैसे ने बापबेटे का चालचलन बिगाड़ दिया है. बेटा नशेबाज है और बाप औरतबाज.’’

‘‘बहू…’’ गणपत चीख उठा था, ‘‘कौन है, जो इस तरह बोलता है? किस ने तुम से यह बात कही? मुझे बताओ…’’

‘‘इस से क्या होगा? गंदगी से गुलाब की खुशबू नहीं आएगी… बदबू ही फैलेगी.’’

सालभर में ऐसा पहली बार हुआ था, जब छुट्टी के दिन गणपत कहीं बाहर नहीं गया. बहू की बातों ने उसे इस कदर झकझोर डाला कि वह सोच में पड़ गया. वापस कमरे में पहुंचा और कपड़े बदल कर सो गया, पर बहू की बातों ने यहां भी उस का पीछा नहीं छोड़ा, ‘बेटा नशेबाज और बाप औरतबाज…’

लेटेलेटे गणपत को झपकी आ गई और वह सो गया. दोपहर को उसे जोर से प्यास लगी. उस ने बहू को आवाज दी. वह पानी ले कर आई.

गणपत ने गटागट पानी पी लिया. ललिता जाने लगी, तो उस ने कहा, ‘‘तुम्हारा कहा सही है, मैं जो कर रहा था गलत है, आगे से ऐसा नहीं होगा.’’

ललिता के मुंह से भी निकल गया, ‘‘मैं यह मानती हूं कि आप अभी भरपूर जवान हैं, बूढ़े नहीं हुए हैं. आप का शरीर जो मांगता है, उसे मिलना चाहिए. लेकिन, आप जिस जगह जा रहे हैं, वह जगह सही नहीं है.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो बहू.’’

‘‘आप बाहर की दौड़ लगाना छोडि़ए और घर में रहिए. आप को किसी चीज की कमी नहीं होगी,’’ कहते हुए ललिता अपने कमरे में चली गई.

गणपत पहली बार ललिता को गौर से देख रहा था और उस की कही बातों का मतलब निकाल रहा था.

उस दिन के बाद से गणपत ने बाहर जाना छोड़ दिया. छुट्टी के दिन वह या तो घर में रहता या फिर किसी रिश्तेदार के यहां चला जाता. इस बदलाव से खुद तो वह खुश था ही, भूलते रिश्तों को भी टौनिक मिल गया था.

उस दिन भी गणपत घर में ही था. दोपहर का समय था. पत्नी के कमरे में बैठा उस की देह सहला रहा था. मुद्दतों के बाद तुलसी देवी पति का साथ पा कर बेहद खुश थी.

कमरा शांत था. किसी का उधर आने का भी कोई चांस नहीं था. शंकर अपनी मां के कमरे में कभी आता नहीं था. अपनी मां को कब उस ने नजदीक से देखा है, उसे याद नहीं. ललिता अपने कमरे में लेटी ‘सरिता’ पत्रिका पढ़ रही थी. पत्रिका पढ़ने की उस की यह आदत नई थी. उस वक्त तुलसी देवी का हाथ पति की जांघ पर था.

उसी पल खाना ले कर ललिता कमरे में दाखिल हुई. अंदर का नजारा देख कर वह तुरंत बाहर जाने लगी. तभी उसे ससुर की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘रुको, सास को खाना खिलाओ, मैं बाहर जा रहा हूं.’’

रात के 10 बज चुके थे. ललिता ने सास को खाना और दवा खिला कर सुला दिया था. ससुर को खाना देने के लिए बहू बुलाने गई, तो उन्हें कमरे के बाहर बेचैन सा टहलते पाया. बहू ललिता बोली, ‘‘खाना खा लेते, रोटी ठंडी हो जाएगी.’’

‘‘खाने की इच्छा नहीं है. तुम जाओ और खा कर सो जाओ…’’

‘‘आप को क्या खाने की इच्छा है, बोलिए, बना दूंगी.’’

‘‘कुछ भी नहीं, मेरा मन ठीक नहीं है,’’ कह कर गणपत अपने कमरे में जाने लगा. तभी ललिता की आवाज सुनाई दी, ‘‘आप का मन अब मैं ही ठीक कर सकती हूं. मैं ने एक दिन आप से कहा था कि जब घर में खाने के लिए शुद्ध और स्वादिष्ठ भोजन रखा हो, तो खाने के लिए बाहर नहीं जाना चाहिए. वह घड़ी आ चुकी है,’’ कह कर ललिता अपने कमरे की तरफ मुड़ गई. उस की चाल में एक नशा था.

गणपत बड़ी देर तक वहीं खड़ा रहा. नहीं… नहीं… ऐसा ठीक नहीं होगा, दुनिया क्या कहेगी… रिश्तों का क्या होगा… समाज जानेगा… उस का कौन जवाब देगा… देखो, घर की बात है और दोनों को एकदूसरे की जरूरत भी है…

आगे बढ़ने के लिए जैसे कोई उसे उकसा रहा था, पीछे से धकिया रहा था… आगे बढ़ो… आगे बढ़ो… दुनिया जाए भाड़ में…

अंदर से कमरे का दरवाजा बंद कर गणपत ने सामने देखा, अंगड़ाई लेता हुआ एक जवां जिस्म बांहें फैलाए खड़ा था.

गणपत बेकाबू हो चुका था. शायद वह भी इसी पल के इंतजार में था. वह ललिता के कमरे में चला गया.

थोड़ी देर के बाद शंकर ने घर में कदम रखा. पहले वह रसोई में गया. उस ने 2 रोटी खाई और अपने कमरे की ओर बढ़ा. दरवाजा अंदर से बंद था. धक्का दिया, पर खुला नहीं.

शंकर बाहर जाने को मुड़ा कि तभी अंदर से हलकीहलकी आवाजें सुनाई पड़ीं.

‘‘तुम दोनों कभी मिले नहीं थे क्या?’’ गणपत ललिता से पूछ रहा था.

‘‘नहीं… आह… आप तो बुलडोजर चला रहे हैं,’’ ललिता बोली.

‘‘अब तो यह बुलडोजर हर दिन चलेगा.’’

‘‘और शंकर का क्या होगा?’’

‘‘अब तुम उस के बारे में सोचना छोड़ दो.’’

‘‘फिर मैं किस की रहूंगी?’’

‘‘अभी किस की हो?’’

‘‘आप को क्या कहूंगी? ससुर या शाहजहां?’’

‘‘शाहजहां… आज से तुम मेरी और मैं तुम्हारा. अब से तुम्हारी सारी जिम्मेदारी मेरी.’’

बाहर खड़े शंकर ने अंदर की सारी बातें सुनीं. इस से पहले कि कोई उसे वहां देख ले, दबे पैर वह घर से जो निकला, लौट कर फिर कभी उस घर में नहीं आया.

गणपत की बगिया में ललिता ने अपना घोंसला बना लिया था.

लेखक – श्यामल बिहारी महतो

Family Story : मुखियाजी की छोटी पतोहू

Family Story : 70 साल के मुखियाजी दिलफेंक इनसान थे. वे अपने कुएं पर पानी भरने आई औरतों को खूब ताड़ते थे. निचली जाति की रामकली पर तो वे फिदा थे. एक दिन रामकली के पति रामलाल को पुलिस पकड़ कर ले गई. रामकली मुखियाजी के पास गई. आगे क्या हुआ.

मुखियाजी थे तो 70 साल के, लेकिन उन का कलेजा किसी जवान छोकरे जैसा ही जवान था. उन के कुएं पर पानी भरने के लिए जब औरतें आतीं, तब वे हुक्का पीते रहते और उन को निहारते रहते.

मुखियाजी को इस बात से कोई मतलब नहीं था कि कौन सी औरत उन के बारे में क्या सोच रही है. वे किसी औरत को कभी कनखियों से भी देखते थे. उन की नजर हमेशा गांव की औरतों के घूंघट पर ही रहती थी.

मुखियाजी हमेशा इस ताक में रहते थे कि कब पानी खींचने में घूंघट खिसके और वे उस औरत का चेहरा अच्छी तरह से देख कर तर हो जाएं. वे इस बात को जानते थे कि कोई औरत उन पर इस उम्र में दिलफेंक होने का लांछन नहीं लगाएगी.

अगर पानी भरने वाली औरत किसी निचली जाति की होती, तब तो मुखियाजी चहक उठते. सोचते, ‘भला इस की क्या मजाल, जो मेरे बारे में कुछ भी कह सके.’ अगर उस समय कुएं पर कोई और नहीं होता, तब वे तुरंत उस औरत के साथ बालटी की रस्सी खींचना शुरू कर देते. वे बोलते, ‘‘अरी रामलाल
की बहुरिया, तू इतनी बड़ी बालटी नहीं खींच सकती. रामलाल से कह कर छोटी बालटी मंगवा लेना. लेकिन वह क्यों लाएगा? वह तो अभी तक सो रहा होगा.’’

तब रामलाल की बहुरिया रामकली लाज के मारे सिकुड़ जाती थी, लेकिन वह रस्सी छोड़ भी नहीं सकती थी, क्योंकि मुखियाजी रस्सी को इसलिए नहीं पकड़ते थे कि वह उस रस्सी को छोड़ दे, वरना बालटी कुएं में गिरने का डर था.

रामकली लजा कर उस कुएं से पानी भर ले जाती. फिर सोचती कि अब यहां से पानी नहीं ले जाएगी, लेकिन बेचारी करती भी क्या? लाचार थी. उस गांव में दूसरा कुआं ऐसा नहीं था, जिस का पानी मीठा हो.

मुखियाजी रोज रामकली की बाट जोहते. रामकली सुबहसवेरे जल्दी आ कर पहले पानी भर लाती. फिर झाड़ूबुहारी करती और तब पति को जगाती.

रामकली सोचती कि सवेरेसवेरे कुएं पर मुखियाजी आ जाते हैं, इसलिए घर की झाड़ूबुहारी बाद में कर लिया करेगी, पानी पहले लेती आएगी.

अगले दिन जब रामकली भोर में मुखियाजी के कुएं पर पानी लाने गई, तब मुखियाजी हुक्का छोड़ कर उस के पास जा पहुंचे और बोले, ‘‘रामकली, आजकल तुम बड़ी देर से आती हो. रामलाल तुम को देर तक नहीं छोड़ता है क्या?’’ और फिर उन्होंने उस का हाथ पकड़ लिया.

रामकली लजा गई. वह धीरे से बोली, ‘‘बाबाजी, यह क्या कर रहे हो, कुछ तो शर्मलिहाज करो.’’

फिर भी मुखियाजी नहीं हटे. वे किसी बेहया की तरह बोले, ‘‘रामकली, तेरा दुख मुझ से अब नहीं देखा जाता है.

तू इतनी ज्यादा मेहनत करती है, जबकि रामलाल घर में पड़ा रहता है.’’

तकरीबन 35 साल पहले मुखियाजी की घरवाली 3 बेटों को छोड़ कर चल बसी थी. उस के बाद मुखियाजी ने किसी तरह जवानी काट दी. 2 बेटों को पुलिस महकमे में जुगाड़ लगा कर भरती करा दिया. एक बेटा शहर का कोतवाल बन गया था, जबकि दूसरा छोटा बेटा थानेदार था और तीसरा बेटा गांव में खेतीबारी करता था.

एक दिन मुखियाजी रामकली से बोले, ‘‘कोतवाल की अम्मां से तेरा चेहरा पूरी तरह मिलता है. तेरी ही उम्र में तो वह चली गई थी. जब मैं तुझे देखता हूं, तब मुझे कोतवाल की अम्मां याद आ जाती है.’’

सचाई यह थी कि कोतवाल की अम्मां काले रंग की थी. वह मुखियाजी को कभी पसंद नहीं आई थी, जबकि रामकली गोरीचिट्टी और खूबसूरत होने के चलते उन को खूब अच्छी लगती थी.

जब रामकली कुएं के पास आती, तब मुखियाजी अपनी घोड़ी के पास पहुंच कर कहते, ‘‘आज तो तेरे ऊपर सवारी करूंगा.’’

मुखियाजी इसी तरह के और भी फिकरे कसते थे. तब बेचारी रामकली लाज के मारे सिकुड़ जाती. वह सोचती कि बूढ़ा पागल हो गया है.

एक दिन रामकली ने सहम कर अपने पति रामलाल से कहा, ‘‘सुनोजी, ये मुखियाजी कैसे आदमी हैं? हर समय मुझे ही निहारते रहते हैं.’’

तब रामलाल खड़ा हो गया और बौखला कर बोला, ‘‘देख रामकली, तू अपनेआप को बड़ी सुंदरी समझती?है, बडे़बूढ़ों पर भी आरोप लगाने से नहीं चूकती है. आगे से कभी ऐसी बात कही तो समझ लेना…’’

मुखियाजी के पास तो इलाके के दारोगाजी, तहसीलदार सभी आते थे. गांव वालों का काम उन दोनों के दफ्तरों से पड़ता है. अपना काम निकलवाने के लिए मुखियाजी सिपाही को भी ‘दारोगाजी’ कहते थे.

कोतवाल के बाप से ‘दारोगाजी’ सुन कर सिपाही फूले न समाते थे. मुखियाजी का हुक्म मानने में वे तब भी नहीं हिचकिचाते थे.

रामकली को देख कर मुखियाजी के दिमाग में एक कुटिल बात आई, ‘क्यों न रामलाल को किसी केस में फंसा दिया जाए? जब रामलाल जेल में होगा, तब रामकली मदद के लिए मेरे पास खुद ही चली आएगी.’

मुखियाजी ने उन सिपाहियों को समझाया, ‘‘रामलाल देर रात कहीं से लौट कर आता है. ऐसा मालूम पड़ता है कि यह बदमाशों से मेलजोल बढ़ा रहा है. काम कुछ नहीं करता है, फिर भी उन सब का खानापीना ठीक चल रहा है.’’

यह सुन कर सिपाही चहक उठे. उन्होंने सोचा कि मुखियाजी कोतवाल साहब से इनाम दिलवाएंगे. अगर मौका लग गया, तो तरक्की दिलवा कर हवलदार भी बनवा देंगे.

अंधियारी रात में चौपाल से लौटते समय रामलाल को पकड़ कर सिपाही थाने ले गए. सुबह सारी बात मालूम होने पर रामकली मुखियाजी के पास आई और पूरी बात बताई.

तब अनजान बने मुखियाजी ने गौर से सारी बातें सुनीं. वे बोले, ‘‘ठीक है, ठीक है, आज मैं बड़े दारोगाजी के पास जाऊंगा. तू 2 घंटे बाद कुछ खर्चेपानी के लिए रुपए लेती आना.’’

2 घंटे बाद रामकली 300 रुपए ले कर मुखियाजी के पास आई, तब वे बोले, ‘‘आजकल 300 रुपए को कौन पूछता है? कम से कम 1,000 रुपए तो चाहिए.’’

थोड़ी देर रुकने के बाद मुखियाजी बोले, ‘‘कोई बात नहीं, एक बात सुन…’’ और फिर घर की दीवार की ओट में मुखियाजी ने रामकली का हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘तू बिलकुल कोतवाल की अम्मां जैसी लगती है.’’

उसी समय मुखियाजी की पतोहू दूध का गिलास ले कर उन की तरफ धीरे से आई. अपने बूढ़े ससुर को जवान रामकली का हाथ पकड़े देख कर वह हैरान रह गई. उस के हाथ से दूध का गिलास छूट गया. रामकली की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे.

मुखियाजी ने पलटा खाया और बोले, ‘‘मेरे छोटे बेटे की तो 4 बेटियां ही हैं. उस का भी तो खानदान चलाना है. मैं तो अपने बेटे का दूसरा ब्याह करूंगा.’’

‘‘रामकली…’’ मुखियाजी बोले, ‘‘तू बिलकुल चिंता मत कर. तेरा रामलाल आएगा और आज ही आएगा, चाहे 1,000 रुपए मुझे ही क्यों न देने पड़ें. मेरे रहते पुलिस की क्या मजाल, जो रामलाल को पकड़ कर ले जाए. मैं तो तुझे देख रहा था, तू तो इस गांव की लाज है.’’

कुछ घंटे बाद मुखियाजी रामलाल को छुड़ा लाए. रामलाल और रामकली दोनों मुखियाजी के सामने सिर झुका कर खड़े थे. वे अहसानों तले दबे थे.

कुछ दिनों के बाद मुखियाजी ने अपने छोटे बेटे की सगाई पड़ोस के गांव के लंबरदार की बेटी से कर दी. बरात विदा हो रही थी. बरातियों में चर्चा थी, ‘मुखियाजी को अपने छोटे बेटे का वंश भी चलाना है.’

दूसरी तरफ अंदर कोठे में छोटे थानेदार की बहुरिया टपटप आंसू बहा कर अपने कर्मों को कोस रही थी. उस की चारों बेटियां अपनी सौतेली मां के आने का इंतजार डरते हुए कर रही थीं.

लेखक – बृजबाला

Social Story : गलत रास्ता

Social Story : ‘‘अरे निपूती, कब तक सोती रहेगी… चाय के लिए मेरी आंखें तरस गई हैं और ये महारानी अभी तक बिस्तर में घुसी है. न बाल, न बच्चे… ठूंठ को शर्म भी नहीं आती,’’ कमला का अपनी बहू सलोनी को ताने देना जारी था.

अब क्या ही करे, सलोनी को तो कुछ समझ ही नहीं आता था. सुबह जल्दी उठ जाए तो सुनती कि सुबहसुबह बांझ का मुंह कौन देखे. देर से उठे तो भी बवाल. अब ये ताने सलोनी की जिंदगी का हिस्सा थे.

पति राकेश के होते भी सलोनी की विधवा जैसी जिंदगी थी. राकेश मुंबई में रहता था और सलोनी ससुराल में सास और देवर महेश के साथ रहती थी. बेचारी पति के होते हुए भी अब तक कुंआरी थी.

शादी की पहली रात को ही सलोनी को माहवारी आ गई थी, फिर उस की सास ने उसे अलग कोठरी में डाल दिया था. 7 दिन बाद जब उसे कोठरी से निकाला गया, तो राकेश मुंबई जाने की तैयारी कर रहा था.
दूसरी बार जब राकेश नए घर आया, तो उस के आते ही उसे मायके भेज दिया गया था.

ऐसे ही सालभर का समय निकल गया था. सलोनी का राकेश के साथ कोई रिश्ता बन ही नहीं पाया था. उस के बाद भी निपूती और बांझ का कलंक झेलना, सो अलग.

अब सलोनी ने सोचा कि राकेश से बात करे, पर राकेश के हिसाब से तो मां बिलकुल भी गलत नहीं हैं. शादी के बाद तो बच्चा होना ही चाहिए. अब उसे कौन समझाए कि बच्चा शादी करने भर से नहीं हो सकता, उस के लिए साथ में सोना भी पड़ता है.

धीरेधीरे सलोनी को पता चला कि राकेश नामर्द है और उस के साथ सो कर भी वह बच्चा पैदा नहीं कर
सकती. शायद इसीलिए वह उस से दूर भागता है और अपनी मां के साथ मिला हुआ है.

अब सलोनी को कोई हल नजर नहीं आ रहा था. मायके में मां नहीं थीं. पिता से क्या कहे. एक भाई था, वह भी काफी छोटा था. उस से भी कुछ नहीं कहा जा सकता था.

सलोनी का देवर महेश अपने भाई और मां के बरताव के बारे में सबकुछ जानता था. उस के मन में कई बार आता कि मां को खरीखोटी सुना दे, पर वह चुप रह जाता था.

आखिर एक दिन जब राकेश घर आया, उस दिन काफी देर तक पतिपत्नी में नोकझोंक हुई. उस बातचीत के कुछ हिस्से महेश के कानों में भी पड़े, पर वह चुप ही रहा.

2-3 दिन रह कर राकेश वापस मुंबई लौट गया था. सलोनी की सास अपनी बहन के घर गई थी. घर पर सलोनी और महेश ही थे.

अचानक सलोनी ने देखा कि महेश उस के कमरे में आ कर चुपचाप उस के पास खड़ा हो गया था. उस ने अपनी भाभी से कहा, ‘‘तुम इस घर से भाग जाओ.’’

सलोनी ने कहा, ‘‘मैं अब कहां जाऊंगी. पिताजी ने बड़ी मुश्किल से मेरी शादी की है. मैं वापस जा कर उन का दुख नहीं बढ़ा सकती.’’

सलोनी ने अब अपने पैरों पर खड़ा होने की ठान ली. हालांकि वह सिर्फ 12वीं जमात पास थी. उस ने एक औनलाइन शौपिंग कंपनी की पार्सल डिलीवरी का काम शुरू किया. लड़की होने की वजह से उसे यह काम आसानी से मिल गया.

शुरूशुरू में सलोनी पास के एरिया में ही डिलीवरी के लिए जाती थी, बाद में उस ने एक स्कूटी खरीद ली और दूरदूर तक पार्सल डिलीवर करने के लिए जाने लगी.

पैसा आने और लोगों से मिलनेजुलने से सलोनी में एक अलग तरह का आत्मविश्वास आने लगा, जिस से उस की रंगत बहुत ही निखर गई. अब उस की सास भी उसे कम ताने देती थी, पर उसे बांझ कहने से नहीं चूकती थी.

एक रविवार की दोपहर को सलोनी आराम कर के उठी, तो उस ने देखा कि महेश चोर नजरों से उसे ही देख रहा था.

सलोनी ने सोचा कि अपने पैरों पर तो वह खड़ी हो गई है, अब उसे अपने माथे पर लगे कलंक को भी धोना है. उस ने मौका देख कर एक दिन महेश से कहा, ‘‘तुम मुझे एक बच्चा दे दो.’’

महेश सोच में पड़ गया. उसे लगा कि यह पाप है. उसे सोच में देख कर सलोनी बोली, ‘‘देवरजी, इस पाप के साथ ही मैं अपने माथे पर लगे कलंक को धो सकती हूं. यही मेरे लिए सब से बड़ा पुण्य है.

‘‘मैं उस अपराध की सजा क्यों भुगतूं, जो मैं ने किया ही नहीं है. इस से तो अच्छा होगा कि मैं पाप कर के अपने माथे पर लगे बांझ वाले कलंक को धो दूं.’’

अब कमरे में पाप हो रहा था, जिस से एक कलंक को धुलना था. महेश की बांहों में समाते हुए सलोनी सोच रही थी, पाप और पुण्य की नई परिभाषा.

धीरेधीरे सलोनी अपने देवर महेश से वह सुख हासिल करने लगी, जो उसे पति ने कभी नहीं दिया था और महेश और उस पर कोई उंगली न उठा सके, इस के लिए सलोनी ने अपने देवर की शादी एक बिना पढ़ीलिखी गरीब लड़की से करा दी.

सास सब समझती, इसलिए वह अपनी छोटी बहू को रीतिरिवाज और पूजापाठ के बहाने अकसर घर से दूर ही रखती थी, जिस से उसे अपने पति और जेठानी के बीच के नाजायज रिश्ते की कोई भनक तक नहीं लगे.

समय के साथसाथ सलोनी एक बच्चे की मां बन गई और उस की नौकरी भी अब पक्की हो गई थी. राकेश सब जानतेसमझते हुए भी चुप ही रहता था और अब तो वह सामाजिक रूप से एक बच्चे का पिता भी बन गया था.

सलोनी ने अपनी जिंदगी से भागने का रास्ता नहीं चुना, बल्कि उसी ससुराल में डट कर मुकाबला किया और अब बड़े ही सुकून से रह रही थी. कभीकभी गलत रास्ता भी जिंदगी की गाड़ी को पटरी पर ला देता है.

Social Story : लैला और मोबाइल मजदूर

Social Story : ‘‘अरे वाह रे भैया… यह पुल का काम तो द्रौपदी के चीर की तरह हो गया है… एक बार शुरू तो हो गया, पर खत्म होने का नाम ही नहीं लेता है,’’ पेड़ के नीचे बैठे लड़कों से एक बूढ़े चाचा ने कहा.

‘‘हां चाचा… यह सब तो सरकारी कामकाज है… कभी काम शुरू तो कभी काम बंद.’’

‘‘पर कुछ भी कहो… जब भी इस पुल का काम शुरू होता है, तो फायदा तो गांव के बेरोजगार मजदूर लड़के और लड़कियों का होता है, जो उन को घर बैठे ही कामधाम मिल जाता है.’’

गांव के कुछ ही दूर पर बहने वाली नदी पर पुल बनने का काम चल रहा था, जिस में कई इंजीनियर, ठेकेदार और मजदूर आते थे, दिनभर काम करते और अस्थायी रूप से घर बना कर रहते.

इन्हीं मजदूरों में एक मजदूर रणबीर नाम का भी था. पता नहीं क्यों पर वह ठेकेदार का मुंह लगा हुआ मजदूर था, तभी तो कामधाम तो बस दिखावे का और दिनभर गांव में घूमघूम कर तसवीरें उतारा करता पूरे गांव की.

और कभी किसी ने कुछ पूछ भी लिया कि भाई ये तसवीरें क्यों खींचते रहते हो तो बड़ी होशियारी से जवाब देता कि मैं तो शहरी मजदूर हूं, पर थोड़ाबहुत मोबाइल का शौक है, इसलिए गांवों की तसवीरें फेसबुक पर डालता रहता हूं… इस से तुम्हारे गांव को लोग शहर में भी जानेंगे और तुम्हारी भी पहचान बनेगी.

रणबीर हमेशा ही मोबाइल हाथ में रखता था, इसलिए उस का नाम ही पड़ गया था मोबाइल मजदूर.

रणबीर को जब भी कभी राह में गांव की लड़कियां मिल जातीं तो उन के फोटो भी उन की नजर बचा कर उतार लेता.

रणबीर की यह हरकत गांव की कुछ लड़कियों को सख्त नागवार थी, पर उन के पास कोई सुबूत नहीं था और एक अजनबी का तसवीर खींच लेना उन के शरीर को रोमांच से भी भर देता था, इसलिए वे सीधा विरोध न कर पाती थीं.

‘‘सुरीली… एक बात तो बता… यह जो मोबाइल वाला मजदूर है न… इस की शक्ल देख कर ऐसा लगता है कि इस को पहले भी कहीं देखा है,’’ लैला ने अपनी आंखों को गोल करते हुए कहा.

‘‘हां यार, लगता तो मुझे भी है… और यह वैसे भी मुझे फूटी आंख नहीं भाता है, जब देखो यहांवहां के फोटो खींचता रहता है,’’ सुरीली ने अपनी सहेली लैला से कहा.

पता नहीं क्यों लैला को उस मोबाइल वाले मजदूर का चेहरा बारबार पहचाना सा लग रहा था और बड़ी देर से वह उसे पहचानने के लिए अपने दिमाग पर जोर डाल रही थी.

अचानक से लैला को जैसे कुछ याद आया हो, ‘‘अरे सुनो सब की सब… यह जो मोबाइल वाला मजदूर है न, इस के चेहरे को ध्यान से देखो और अगर इस की घनी दाढ़ी हटा दें, तो ये वही मजदूर लगता है, जो पिछली बार भी आया था जब पुल का काम शुरू हुआ था और कुछ दिन बाद हमारी प्यारी सहेली शन्नो को भगा कर ले गया था. तब से शन्नो कभी वापस नहीं लौटी. आखिर लफड़ा क्या है?’’ लैला ने कहा.

‘‘नहींनहीं… लैला, हमारा भला उस से क्या लफड़ा होगा… हां, इतना जरूर है कि एक बार जब हम भूसे के ढेर के पास बैठे थे, तब वह मोबाइल अपने हाथों में ले कर आया और बड़े अदब से मेरी एक तसवीर खींचते हुए बोला कि अगर मैं शहर में होती तो किसी फिल्म की हीरोइन होती…’’ शरमाते हुए सांवरी ने कहा.

‘‘और उस से कोई भी मदद मांगो तो पीछे न हटता है वह… और ऐसे कैसे किसी भले आदमी पर तुम्हारा यों आरोप लगा देना ठीक भी नहीं है,’’ सांवरी की बातें बड़ी हमदर्दी भरी थीं उस मोबाइल मजदूर के लिए.

सांवरी का एक अजनबी मजदूर के प्रति इतनर प्यार भरी बातें बोलना लैला और उस की सहेलियों को कुछ अजीब सा जरूर लग रहा था.

बरसात हो रही थी, पुल पर चल रहा काम भी आज बंद था, गांव और कसबे के स्कूलकालेजों में भी छुट्टी थी.

लैला भी अपने कमरे की खिड़की पर फुरसत में बैठी थी कि तभी उस ने देखा कि सांवरी छतरी ताने बरसात में कहीं जा रही है. एक जवान लड़की इतनी तेज बरसात में कहां जा रही है, वह भी गांव से बाहर जाने वाले रास्ते पर.

अपने मन में कुछ सोच कर, मां को अभी वापस आने को बोल कर लैला सांवरी का पीछा करने लगी.

सांवरी गांव के बाहर बने पुराने स्कूल में आ गई थी.

लैला का शक ठीक निकला. वहां पर रणबीर बैठा हुआ पहले से इंतजार कर रहा था, सांवरी स्कूल के अंदर एक खाली क्लास में घुस गई और रणबीर उस के पीछेपीछे घुस गया.

लैला ने उन की जासूसी करने की गरज से अपनी एक आंख दरवाजे में बनी दरार पर टिका दी. अंदर चल रहे दृश्य देख कर उस के कुंआरे जिस्म में भी झुरझुरी दौड़ गई.

रणबीर सांवरी को अपनी बांहों में कस कर उस के गीले होंठों को अपने होठों से सुखाने की कोशिश कर रहा था और सांवरी भी किसी बेल की तरह रणबीर से चिपकी हुई थी.

लैला की आंखें हैरत से फैल गई थीं, अंदर कमरे में रणबीर और सांवरी दोनों ही लगातार एकदूसरे में समा जाने की कोशिश कर रहे थे. सांवरी और रणबीर के उत्साह में कोई कमी नहीं थी.

लैला समझ गई थी कि दोनों एकदूसरे के जिस्मानी सुख का मजा लेना चाहते हैं, इसलिए लैला ने वहां से हट जाना ही उचित समझा, पर इतने में उस की आंखों ने जो देखा, उस ने लैला को वहीं पर रुकने को मजबूर कर दिया.

सांवरी की आंखें जोश से बंद थीं और रणबीर अपना मोबाइल हाथ में  ले कर सांवरी के बदन का वीडियो बनाने लगा.

चौंक पड़ी थी लैला… प्यार में जिस्मानी संबंध बन जाना आम बात है, पर यह कोई प्रेमी नहीं, बल्कि यह तो कोई धोखेबाज है… नहीं तो भला सांवरी के जिस्म का वीडियो क्यों बनाता?

सांवरी तो घोर संकट में फंसने वाली?है. लैला का मन किया कि अभी कमरे में अंदर घुस जाए और चीखचीख कर गांव वालों को बुला ले और रणबीर का हिसाब अभी बराबर करवा दे, पर ऐसा करने में सांवरी की बदनामी का डर था.

लैला ने मन ही मन रणबीर का राज फाश करने की बात सोची. वह कोई भोलीभाली लड़की नहीं थी, जिस का कोई भी फायदा उठा सकता था, लैला भले ही गांव में रहती थी पर नए से नए मोबाइल का इस्तेमाल करना अच्छी तरह जानती थी और इसी के सहारे उस ने  इस मोबाइल मजदूर का राज खोलने की बात सोची.

इतने में रणबीर और सांवरी अपनी मंजिल पर पहुंच चुके थे और अंदर से बाहर आने की आहट हुई, तो लैला तेज कदमों से वहां से घर वापस लौट गई.

आज लैला जानबूझ कर रणबीर के आनेजाने वाले रास्ते पर खड़ी हो गई. कुछ देर बाद जब रणबीर वहां से गुजरा तो लैला जैसी खूबसूरत लड़की को देख कर उस के मुंह में पानी आ गया.

‘‘सुनो… मेरा नाम रणबीर है. मैं यहां बन रहे पुल पर मजदूरी करता हूं और खाली वक्त में इस गांव की खूबसूरत चीजों को अपने मोबाइल में कैद करता हूं… तुम कहो तो तुम्हारा एक फोटो अपने मोबाइल में खींच लूं.’’

रणबीर से तो मेलजोल बढ़ाना लैला का मकसद था, इसलिए वह फोटो खिंचवाने के लिए तैयार हो गई. इतना ही नहीं, बल्कि दोस्ती बढ़ाने की गरज से दोनों ने एकदूसरे से फेसबुक पर दोस्ती भी कर ली. इस के पीछे लैला की मंशा रणबीर की पर्सनल बातें जानने की  ही थी.

घर पहुंचते ही लैला ने रणबीर की फेसबुक प्रोफाइल खंगाली और उस पर डाली गई पुरानी तसवीरें देखीं. उस का शक सही निकला कि यह दाढ़ी वाला मजदूर वही था, जो कुछ समय पहले शन्नो को इसी गांव से भगा ले गया था.

फेसबुक पर दोस्त बन जाने के बाद तो रणबीर की बेचैनी और भी बढ़ गई थी. वह आएदिन लैला को प्यार भरे मैसेज भेजा करता. कभीकभी उन में कुछ बेहूदगी भी होती.

लैला को रणबीर की फेसबुक प्रोफाइल से यह भी पता चला कि रणबीर के संबंध शहर के कुछ दूसरे लोगों से भी हैं. कभी तो लैला को यह भी लगता कि रणबीर जो दिखता है, वह नहीं है.

तेजतर्रार लैला को शन्नो का पता लगाना था और रणबीर की हकीकत भी जाननी थी, इसलिए लैला ने अपनेआप को ही एक प्लान के तहत दांव पर लगा दिया.

‘‘हां, रणबीर… फेसबुक से पता चला कि आज तुम्हारा जन्मदिन है, तो सोचा बधाई दे दूं,’’ लैला ने रणबीर से फोन कर के कहा.

‘‘अरे धन्यवाद… पर खाली बधाई देने से क्या होगा… कुछ पार्टी दो तो बात बने. वैसे भी पुल का कामकाज 2 दिन के लिए बंद है,’’ रणबीर ने रोमांटिक मूड में लैला से कहा.

‘‘हांहां… दे दूंगी पार्टी… पर समय और जगह तुम बताओ,’’ लैला ने कहा.

‘‘शाम को 8 बजे… गांव के बाहर वाले स्कूल में आ जाओ, फिर जम कर पार्टी करते हैं.’’

रणबीर की आंखों में चमक आ गई थी. लैला को अभी शाम के प्लान की तैयारी करनी थी, इसलिए सब से पहले तो उस ने अपने मांबाप को विश्वास में लिया, उन्हें सारी बात बताई और यह भी बताया कि उसे शन्नो का पता लगाने के लिए यह सब करना जरूरी है.

मांबाप को अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था, इसलिए उन्होंने उसे जाने की इजादत दे दी.

लैला ने अपनी सहेलियों को भी बता दिया था कि वह कहां जा रही है और अगर रात 10 बजे तक वापस नहीं आए तो वे सब गांव वालों को ले कर पुराने स्कूल में आ जाएं.

उस का प्लान सुन कर उस की सहेलियां भी चिंतित हुईं, पर लैला ने उन को समझाया और अकेले ही स्कूल में आ गई.

ठीक 8 बजे लैला बाहर वाले स्कूल पहुंच गई. रणबीर वहां पर पहले से मौजूद था और सिगरेट के कश लगा रहा था. लैला को देख कर रणबीर उस की तरफ झपटा.

‘‘चलो हटो… अपनेआप को मजदूर कहते हो… दिन के 200 रुपए कमाने वाले इतनी महंगी सिगरेट नहीं पिया करते.’’

‘‘अरे… मैं कौन हूं, क्या हूं… यह सब छोड़ो… मेरी बांहों में आ जाओ और जवानी का मजा लो,’’ रणबीर कामुक आवाज में बोला.

‘‘पर, पहले मूड तो बना लो,’’ शराब से भरा गिलास रणबीर के होंठों से लगाते हुए लैला ने कहा.

‘‘वाह मेरी जान… तुम्हें कितना खयाल है मेरा,’’ शराब का गिलास खाली करते हुए रणबीर ने कहा.

आज रणबीर काफी जोश में था, क्योंकि उस के सामने लैला जैसी खूबसूरत और जवान लड़की थी, पर लैला ने अभी तक अपने शरीर को छूने तक नहीं दिया था, लेकिन एक काम वह लगातार कर रही थी कि रणबीर को लगातार पैग पर पैग दे रही थी और नजर बचा कर एक नींद की गोली भी उस ने शराब में मिला दी थी.

रणबीर भी अपनी शराब पीने की सीमा को पार कर चुका था, आंखें भारी हो रही थीं और जब वह बेहोश सा होने लगा, तो लैला उस से ऐसे प्यार जताने लगी जैसे कि वह भी उस के प्यार की प्यासी है.

कुछ ही देर में जब रणबीर पूरी तरह नींद में चला गया, तो लैला ने तेजी से अपना काम शुरू किया. सब से पहले उस ने रणबीर का मोबाइल चैक किया और उस में मौजूद फोन की रिकौर्डिंग सुनी. काफी फोन तो औपचारिक थे, कुछ और फोन की रिकौर्डिंग को लैला ने सुना, जिस से उसे पता चला कि शहर में रणबीर के एक बीवी और बच्चा भी है, जबकि रणबीर ने कभी भी यहां के लोगों को इस बारे में कुछ नहीं बताया था, बल्कि वह अपनेआप को कुंआरा ही बताया करता था.

लैला अब भी तेजी से फोन की रिकौर्डिंग चैक कर रही थी, एक नंबर की काल थी, जिसे ‘साहब’ के नाम से सेव किया गया था और उस की रिकौर्डिंग सुन कर दंग रह गई थी लैला.

वह साहब नाम का शहर में लड़कियों को बाहर के देशों में बेचने का काम करता था और इस के लिए वह रणबीर जैसे गुरगों को गांव में काम करने के बहाने से भेजता और रणबीर मजदूर के वेश में रहता, ताकि गांव के लोगों का विश्वास आसानी से जीत सके और वहां की सीधीसादी लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसा सके.

उस के बाद वह पहले तो उन का यौन शोषण करता और फिर उन के वीडियो भी बना लेता, जिन के बल पर वह उन्हें ब्लैकमेल करने का काम भी करता और अकसर तो लड़कियों से शादी करने के बहाने से उन्हें शहर ले आता और उस ‘साहब’ नाम के आदमी को पेश कर देता और इस के बदले में रणबीर को काफी पैसे भी मिलते, शन्नो को भी कहीं बेच दिया गया था.

लैला समझ गई थी कि यह कोई मजदूर नहीं, बल्कि एक आदमी की खाल में भेडि़या है, जो दलाली का काम करता है.

लैला ने देखा कि रणबीर के मोबाइल में गांव के बाहर की दूसरी लड़कियों के साथ सैक्स करने के वीडियो भी थे, जिन्हें भी रणबीर ने लड़कियों की नजर बचा कर बनाया गया था यानी रणबीर का प्लान अभी और लड़कियों का सौदा करने का भी था.

लैला को अब लगने लगा था कि सुबूत रणबीर को सजा दिलाने के लिए काफी हैं, तो वह रणबीर के मोबाइल के साथ वहां से पुलिस के पास गई.

सुबह जब रणबीर होश में आया, तब तक सूरज सिर पर चढ़ चुका था और लैला पुलिस में रिपोर्ट करने के बाद पुलिस को अपने साथ ले भी आई थी.

पुलिस ने मोबाइल की काल डिटेल्स को आधार मानते हुए रणबीर को गिरफ्तार कर लिया और रणबीर के माध्यम से ही पुलिस ने शहर में मौजूद ‘साहब’ नाम के आदमी को दबोच लिया.

इस तरह से लैला ने अपनी सूझबूझ से एक बड़े अपराधी गैंग का खात्मा कर दिया था और न जाने कितनी लड़कियों को देह धंधे के दलदल में जाने से बचा लिया था.

माना कि गांव की लड़कियां सीधीसादी होती हैं, पर बात अगर उन की इज्जत की होती है तो वे तेजतर्रार भी बनना जानती हैं और बोल्ड भी.

Love Story : मनचला – जवान लड़की को देख बेकाबू हुआ कपिल का मन

Love Story : इंद्राणी की मुसकान पर मुसकराते हुए कपिल जब लालबत्ती पर रुका तो वह कुछ गुनगुना रहा था. उम्र 50 भी हो तो क्या हुआ, मर्द हमेशा खुद को जवान महसूस करता है. कुछ सप्ताह पहले ही उस की पदोन्नति भी हुई थी. सबकुछ रंगीन था.

‘‘सर,’’ सहसा एक मीठे स्वर ने उस का ध्यान आकर्षित किया.

कपिल ने देखा, बिंदास और एक स्मार्ट लड़की उसे देख रही है. उस की छवि और अदा में अच्छा आकर्षण था, अंदाजन वह 20-22 वर्ष की होगी.

‘‘सर, क्या आप मुझे लिफ्ट देंगे?’’ लड़की ने पूछा.

लड़की अच्छी लगी और फिर कपिल का मूड भी अच्छा था, क्योंकि चलते समय ही उस का मन खुश हो गया था. उस समय वह अच्छे मूड में था क्योंकि इंद्राणी की मुसकान ने उस की मुसकान को दोहरा कर दिया था.

मनपसंद नाश्ता हो और घर की मुरगी मादक मुसकान फेंक कर विदा करे तो हर मौसम रोमानी लगता है. 45 वर्ष की उम्र में भी इंद्राणी उर्फ नूमा खुद को इतना चुस्तदुरुस्त रखती कि कोई आसानी से

भी अंदाजा नहीं लगा सकता कि वह

2 जवान बच्चों की मां है. जब वह अपनी बेटी के साथ होती तो अकसर लोग दोनों को किसी सौंदर्य साबुन के विज्ञापन का मौडल कहते.

अत: उस ने पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘वैसे तो मैं साऊथ दिल्ली जा रही हूं,’’ लड़की ने अपनी मीठी मुसकान का लाभ उठाते हुए कहा, ‘‘आप मुझे रास्ते में कहीं भी उतार दीजिए.’’

‘‘बैठो,’’ कपिल हंसा, ‘‘पर मुझे ब्लैकमेल तो नहीं करोगी?’’

लड़की हंस पड़ी. उस की हंसी में मधुर खनखनाहट थी. उस ने ध्यान से कपिल को देखा, मानो उस के चरित्र का मूल्यांकन कर रही हो. फिर बैठने के लिए पीछे का दरवाजा खोलने लगी.

कपिल ने अपने पास का दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘पीछे नहीं, यहां बैठो. लोग मुझे कहीं तुम्हारा ड्राइवर न समझ बैठें.’’

लड़की फिर हंस पड़ी और अगली सीट पर जल्दी से बैठ गई.

हरीबत्ती हो चुकी थी और पीछे वाले बेचैनी से हौर्न पर हौर्न बजा रहे थे. कपिल ने जल्दी से कार आगे बढ़ा दी.

कपिल के दिमाग में बहुत सारी बातें एकसाथ चल रही थीं. कुछ दिनों पहले ही समाचारपत्रों में यौन अपराध संबंधी कई समाचार आए थे. साउथ दिल्ली और रोहिणी में कई लड़कियां धंधा करते रंगेहाथों पकड़ी गई थीं. इन में से अधिकतर लड़कियां शिक्षित व अच्छे घरों की थीं. यही नहीं, एक तो 2-3 वर्ष पहले मिस इंडिया भी रह चुकी थी. कालेज की लड़कियों को फैशन या मादक द्रव्यों की आदत के कारण ऊपरी आमदनी के अतिरिक्त कमाई का आसान रास्ता और क्या हो सकता है?

जब से फिल्म ‘आस्था’ परदे पर आई है, तब से पता चला कि शादीशुदा औरतें भी मौका पा कर, अपना जीवन स्तर ऊंचा करने के लिए, देहव्यापार करने लगी हैं.

कपिल ने सोचा, तो क्या यह लड़की भी उन में से एक है? क्या यह उपलब्ध है? क्यों न जानने की कोशिश की जाए? शारीरिक रिश्तों में विविधता का अपना अलग ही आकर्षण होता है.

टोह लेने के लिए कपिल ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘मारिया,’’ लड़की ने कहा.

‘‘अच्छा नाम है,’’ कपिल मुसकराया, ‘‘पढ़ती हो?’’

‘‘पढ़ती थी, पर अब कालेज छोड़ दिया,’’ मारिया ने नीचे देखते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ कपिल ने पूछा

‘‘पिता टीबी के मरीज हैं, नौकरी नहीं करते,’’ मारिया ने कहा, ‘‘और मां को दमा है. छोटा भाई स्कूल में पढ़ता है. सारे घर की जिम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी है.’’

‘‘बड़े दुख की बात है,’’ कपिल ने देखा, मारिया बहुत उदास दिखाई दे रही है.

अचानक मारिया मुसकरा दी, ‘‘सर, दुनिया है, सब चलता है… दुखी होने से क्या होगा?’’

‘‘सो तो ठीक है,’’ कपिल ने पूछा, ‘‘पर फिर करती क्या हो?’’

‘‘बस, ऐसे ही,’’ मारिया ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा, ‘‘गुजारा कर लेती हूं…कुछ न कुछ काम मिल ही जाता है.’’

‘‘कैसा काम?’’ कपिल ने कुरेदा.

‘‘सर,’’ मारिया ने एक क्षण रुक कर कपिल को देखा और धीरे से कहा, ‘‘क्या आप 500 रुपए उधार देंगे?’’

कपिल का अनुमान सही था कि वह लड़की उपलब्ध है. उस के जीवन में यह पहला अनुभव है. शरीर में फुरफुरी दौड़ गई. जो केवल पढ़ा और सुना था, वास्तविक बन कर सामने आ गया था.

‘‘यह क्या तुम्हारी फीस है?’’ कपिल ने पूछा.

‘‘नहीं, हजार, 2 हजार रुपए भी मिल जाते हैं, पर आज बहुत जरूरत है. 500 रुपए से काम चला लूंगी…राशन नहीं लूंगी तो खाना नहीं बनेगा.’’

कपिल ने मारिया के शरीर पर नजर दौड़ाई. जो कुछ देखा, बहुत अच्छा लगा, फिर पूछा, ‘‘कोई ठिकाना है क्या?’’

‘‘है तो,’’ मारिया ने कहा, ‘‘साउथ दिल्ली में एक गैस्टहाउस है, पर किराए के अतिरिक्त वहां के प्रबंधकों को भी कुछ अलग से देना पड़ता है.’’

कपिल ने मन ही मन अनुमान लगाया कि ऐसे सौदे में क्रैडिट कार्ड से काम नहीं चलेगा. इस समय जेब में लगभग 1,200 रुपए हैं, क्या इतना काफी होगा?

इस से पहले कि कपिल आगे पूछता, उस के मोबाइल फोन की ‘पिप…पिप… पिप…’ ने चौंका दिया.

‘‘हैलो,’’ उस ने कहा.

‘‘हाय पप्पा,’’ बेटी मृदुला के स्वर में उत्साह था.

‘‘हाय, मेरी प्यारी गुडि़या,’’ कपिल ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘कैसे याद आ गई? अभीअभी तो घर से निकला हूं. रुपए चाहिए तो मां से ले लो.’’

‘‘अरे, नहीं पप्पा,’’ मृदुला ने कहा, ‘‘आप को याद दिला रही थी, मम्मा का जन्मदिन आ रहा है, एक सुंदर सा कार्ड और एक बहुत बढि़या उपहार खरीदने चलना है. आज चलेंगे न?’’

कपिल ने मारिया की ओर देखा. वह चुपचाप बैठी थी. बेटी मृदुला भी इतनी ही बड़ी होगी. अचानक एक अपराधबोध की भावना ने जन्म लिया, क्या जो वह करने जा रहा है, उचित है?

‘‘पापा,’’ मृदुला ने बेसब्री से पूछा, ‘‘सुन रहे हैं?’’

‘‘सुन रहा हूं, गुडि़या रानी,’’ कपिल ने उत्तर दिया, ‘‘पर आज नहीं, कल चलेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’ कपिल ने फोन बंद कर दिया.

कुछ देर तक कार चलती रही. दोनों चुप थे.

‘‘सर,’’ सहसा मारिया ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘आप ने क्या सोचा?’’

‘‘तुम्हारे गैस्टहाउस वाले मैनेजर को कितना रुपया देना होगा?’’ कपिल ने पूछा. मारिया से संबंध बनाने की

इच्छा ने फिर जोर मारा. सोचा, क्या उचित है और क्या अनुचित, बाद में देखा जाएगा.

मारिया ने कहा, ‘‘कुछ ज्यादा रुपया नहीं लगेगा.’’

‘‘फिर भी,’’ कपिल ने कहा, ‘‘वहां पहुंच कर मूर्ख नहीं बनना है, वैसे जगह सुरक्षित तो है न?’’

यह प्रश्न वह रोज सुनती थी और उत्तर उस ने तोते की तरह रट रखा था. इस से पहले कि वह उत्तर देती, कपिल का मोबाइल फोन फिर से रिंग हुआ.

‘‘हैलो,’’ कपिल ने आहिस्ता से कहा.

‘‘हाय,’’ पत्नी नूमा का परिचित स्वर सुनाई दिया.

‘‘हाय,’’ कपिल ने पूछा, ‘‘क्या कोई आदेश देना बाकी रह गया?’’

‘‘एक अच्छी खबर है,’’ नूमा ने पुलकित स्वर में कहा, ‘‘सोचा, तुम्हें दफ्तर पहुंचने से पहले ही सुना दूं.’’

‘‘तुम से अच्छी खबर की उम्मीद तो नहीं है,’’ कपिल ने मंद मुसकान से कहा, ‘‘मुझे बहुत डर लगता है.’’

‘‘हिश्श…’’ नूमा ने कहा, ‘‘बेशर्म कहीं के. बल्लू का फोन अभीअभी आया था.’’

‘‘बल्लू का?’’ कपिल के स्वर में हर्ष और आश्चर्य का मिश्रण था, ‘‘क्या कहा, उस ने?’’

‘बल्लू’ यानी बलराम, उन का पुत्र सेना में कप्तान था और जोधपुर के पास सीमा पर तैनात था.

‘‘बोला…’’ नूमा ने गद्गद कंठ से कहा, ‘‘इस बार मेरे जन्मदिन पर अवश्य आएगा. एक सप्ताह की छुट्टी मिल गई है.’’

‘‘वाह,’’ कपिल ने खुश हो कर कहा, ‘‘ठीक है, खूब जश्न मनाएंगे.’’

‘‘सुनो,’’ नूमा ने कहा.

‘‘हां, सुन रहा हूं, पर जल्दी कहो, ट्रैफिक बहुत है,’’ कपिल ने कहा.

‘‘तो ठीक है, जब घर आओगे, तभी कहूंगी.’’

‘‘अब कह भी दो,’’ कपिल ने कहा.

‘‘बल्लू के लिए जो लड़कियां हम ने चुनी हैं, उन के अभिभावकों से हम मिलने का समय ले लेते हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ कपिल ने कहा, ‘‘तुम जो ठीक समझो, वही करो. अब फोन बंद करता हूं.’’

कपिल ने फोन बंद कर दिया और सोचा, इतना सुनहरा अवसर मिला है और सब बाधाएं खड़ी कर रहे हैं. खैर, दफ्तर भी फोन करना है कि आने में

देर होगी. इतना दुर्लभ अवसर चूकना नहीं चाहिए?

‘‘तो फिर किधर चलना है?’’ कपिल ने कहा, ‘‘मुझे खेद है. यह फोन बहुत तंग कर रहा है.’’

मारिया ने मादक मुसकान से कहा, ‘‘तो फिर फोन बंद कर दीजिए या बैटरी निकाल लीजिए.’’

‘‘बहुत समझदार और चतुर हो,’’ कपिल ने हंसते हुए कहा, ‘‘बस, एक फोन दफ्तर में करना है, ताकि बाकी समय चैन से गुजरे.’’

इस से पहले कि कपिल दफ्तर का नंबर लगाता, फोन बज उठा.

‘‘अब कौन है?’’ कपिल ने नाराजगी दिखाते हुए कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘सर,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘मैं मनोहर बोल रहा हूं.’’

मनोहर महाप्रबंधक का निजी सचिव था. उस के स्वर में घबराहट थी.

‘‘हां, बोलो मनोहर, क्या बात है?’’ कपिल ने कहा, ‘‘जल्दी बोलो, मुझे

एक जरूरी काम है, आने में देर हो सकती है.’’

‘‘सर, आप तुरंत यहां आ जाइए,’’ मनोहर ने जरा ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मजदूरों ने साहब का घेराव कर रखा है और नारे लगा रहे हैं.’’

‘‘ओह,’’ कपिल ने क्रोध से कहा, ‘‘क्या सबकुछ आज ही होना है? ठीक है, मैं आ रहा हूं. तुम पुलिस को सूचना दे दो. शायद जरूरत पड़ जाए.’’

‘‘जी, सर,’’ मनोहर ने कहा, ‘‘पर आप जल्दी से जल्दी आइए.’’

कपिल ने खेदपूर्वक एक बार फिर मारिया को देखा और सोचा, क्या गजब की लड़की है, क्या फिर मुलाकात होगी?

‘‘मुझे खेद है,’’ कपिल ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘आज का मुहूर्त शायद ठीक नहीं है. तुम्हें कहां छोड़ दूं?’’

मारिया के चेहरे से कुछ पढ़ पाना कठिन था, न तो मायूसी का भाव था और न ही खेद का. उस ने हौले से कहा, ‘‘यहीं उतार दीजिए.’’

कपिल ने कार सड़क के किनारे ला कर रोक दी तो मारिया ने दरवाजा खोला और बाहर निकल गई.

‘‘एक मिनट रुको,’’ कपिल ने जेब से पर्स निकालते हुए कहा, ‘‘लो, कुछ रुपए रख लो.’’

सौसौ के नोट थे, जिन्हें न तो कपिल ने गिना और न ही मारिया ने.

मारिया ने नोट हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘धन्यवाद, आप बहुत अच्छे हैं.’’

‘‘अब कहां मिलोगी?’’ कपिल ने पूछा.

‘‘ऐसे ही किसी चौराहे पर,’’ मारिया ने दोनों हाथ हवा में फैला दिए.

‘‘फिर भी, कोई टैलीफोन या मोबाइल नंबर तो होगा?’’ कपिल ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ मारिया ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘मेरा कोई फोन नंबर नहीं है.’’

‘‘ओह,’’ कपिल ने खेद से कहा.

‘‘हां, आप अपना नंबर दे दीजिए,’’ मारिया ने शरारतभरी मुसकान से कहा, ‘‘कभीकभी फोन करती रहूंगी.’’

कपिल की आंखों में चमक आ गई. सोचा, घर का नंबर देना तो ठीक नहीं होगा, मोबाइल नंबर…नहीं, यह भी ठीक नहीं है. कहीं ब्लैकमेल ही करने लगे तो? अपनी सुरक्षा की उतनी ही चिंता थी जितनी कि मारिया की संगति का आकर्षण.

‘‘सुनो, क्या कल इसी समय इसी जगह मिल सकती हो?’’

‘‘सर, कल की कौन जानता है,’’ मारिया ने खनखनाती हंसी से कहा, ‘‘कल इस राह से आप गुजरें और मुझे पहचानें तक नहीं?’’

‘‘तो फिर कहां?’’ कपिल हंसा, ‘‘बहुत शरारती हो.’’

‘‘कोशिश कर लीजिएगा,’’ मारिया ने कहा और भीड़ में गायब हो गई.

अगले 2-3 दिनों तक कपिल उसी जगह उसी समय बेकरारी से मारिया को ढूंढ़ता रहा. अचानक अच्छाखासा पारिवारिक आदमी नए यौनाकर्षण का शिकार हो गया. दिमाग पर धुंध सी छा गई थी.

चौथे दिन कुछ देर प्रतीक्षा के बाद…

‘‘सर, अच्छे तो हैं?’’ एक नई खुशबू का झोंका आया.

‘‘हाय,’’ कपिल ने कहा.

‘‘हाय,’’ मारिया ने मुसकरा कर कहा और बिना निमंत्रण के कार का दरवाजा खोल कर कपिल के पास बैठ गई.

‘‘तुम्हारी मां अब कैसी है?’’ कपिल ने पूछा.

‘‘छोडि़ए सर,’’ मारिया ने हाथ घुमाते हुए कहा, ‘‘आप तो सब समझते हैं. अपनी बताइए, क्या इरादा है?’’

‘‘तुम्हारा गुलाम हूं,’’ कपिल ने रोमानी अंदाज में कहा, ‘‘जहां चाहो, ले चलो.’’

‘‘आप को कोई डर तो नहीं है?’’ मारिया ने पूछा.

‘‘डर तो है, पर तुम्हारे ऊपर विश्वास करने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है.’’

‘‘आप बहुत समझदार हैं,’’ मारिया ने कहा और गैस्टहाउस का रास्ता बताया.

जब कार गैस्टहाउस के आगे रुकी तो कपिल का मन गुदगुदा रहा था, पर दिल पहली बेवफाई के एहसास से कुछ अधिक गति से धड़क रहा था.

अंदर पहुंच कर मारिया ने एक आदमी से कुछ बातें कीं और फिर कपिल को एक कमरे में ले गई. ऐशोआराम का सारा सामान कमरे में मौजूद था. कपिल को सोफे पर बैठने का संकेत करते हुए मारिया ने फ्रिज का दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘बीयर चलेगी?’’

कपिल ने स्वीकृति में सिर हिलाया.

मारिया ने 2 गिलासों में बीयर डाली.

‘‘चीयर्स,’’ मारिया ने कहा.

‘‘चीयर्स,’’ कपिल मुसकराया.

तभी उसी आदमी ने, जो बाहर था, भीतर प्रवेश किया. कपिल ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे देखा.

‘‘अपना पहचानपत्र दिखाइए,’’ उस ने आदेश दिया.

‘‘पहचानपत्र?’’ कपिल ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘हमें यह देखना है कि आप पुलिस के आदमी तो नहीं हैं?’’ उस ने उत्तर दिया.

‘‘पर मारिया जानती है,’’ कपिल ने बौखला कर कहा, ‘‘मैं पुलिस का आदमी नहीं हूं.’’

‘‘आप को पहचानपत्र दिखाना होगा,’’ उस ने जोर दे कर कहा.

‘‘मेरे पास कोई पहचानपत्र नहीं है.’’

‘‘कोई और सुबूत होगा?’’

‘‘नहीं, मेरे पास कुछ नहीं है,’’ कपिल ने झूठ कहा.

तभी एक दूसरे आदमी ने भीतर प्रवेश किया. उस के हाथ में कैमरा था.

‘‘इन का फोटो ले लो,’’ पहले आदमी ने कहा.

‘‘मैं फोटो नहीं खिंचवाऊंगा,’’ कपिल ने घबरा कर कहा, ‘‘आप का मतलब क्या है?’’

‘‘20 हजार रुपए चाहिए,’’ उस ने कहा.

‘‘मेरे पास रुपए नहीं हैं,’’ कपिल ने कहा.

‘‘कोईर् बात नहीं,’’ उस आदमी ने शांति से कहा, ‘‘कपड़े उतार लेते हैं. मारिया, चलो अपना काम करो.’’

कपिल ने घबरा कर कहा, ‘‘ठहरो, मैं रुपए देता हूं, पर इतने नहीं हैं.’’

‘‘कितने हैं?’’

‘‘मेरे ब्रीफकेस में हैं, और ब्रीफकेस कार में है.’’

‘‘अपना पर्स और घड़ी दो,’’ उस आदमी ने कहा.

कपिल ने चुपचाप पर्स में से रुपए निकाल कर दे दिए. फिर घड़ी

उतार दी. उस की सांस तेजी से चल रही थी.

‘‘साहब के साथ जाओ,’’ उस आदमी ने मारिया से कहा, ‘‘और ब्रीफकेस ले कर आओ. होशियारी मत करना. मुन्ना साथ जा रहा है. हमें रुपए वसूल करना आता है.’’

कपिल ने गहरी सांस ले कर उन्हें देखा और फिर चुपचाप बाहर आ गया. उस के पीछे मारिया और मुन्ना भी थे.

कार के पास पहुंच कर कपिल ने चाबी से दरवाजा खोला और अंदर बैठ गया. पीछे की सीट पर रखे ब्रीफकेस की ओर देखा. इस से पहले कि वे कुछ करते, उस ने कार स्टार्ट कर दी. मुन्ना ने कार रोकने के लिए आगे पैर बढ़ा दिया, पर कपिल ने फौरन गति बढ़ा दी. चलती कार ने मुन्ना को पीछे फेंक दिया. कुछ ही क्षणों में वह आंखों से ओझल हो गया.

काफी दूर पहुंच कर कपिल ने गहरी सांस ली कि क्षणिक कमजोरी कितनी यातना देती है. अब मैं कभी इस चक्कर में नहीं पड़ूंगा.

शाम को जब वह घर पहुंचा तो ऐसा लग रहा था, मानो कोई कैदी जेल से भाग कर आया हो. कभी भी पुलिस द्वार पर दस्तक दे सकती है.

रात में जब घंटी बजी तो कपिल का दिल दहल गया.

‘‘इतनी रात गए कौन होगा?’’ इंद्राणी ने कहा.

‘‘देखता हूं,’’ कपिल ने उठते हुए कहा. दिल तेजी से धड़क रहा था. घबराते हुए दरवाजा खोला तो देखा, सामने बेटा बल्लू खड़ा है.

‘‘अरे,’’ कपिल ने उसे छाती से लगा लिया.

‘‘ऐसे ही आता है,’’ मां ने गदगद कंठ से कहा, ‘‘मुझे लग रहा था कि बल्लू ही होगा.’’

सुबह नाश्ते की मेज पर कहकहे लग रहे थे. अचानक कपिल की निगाह समाचारपत्र पर गई. पहले पृष्ठ पर ही समाचार छपा था कि साउथ दिल्ली के एक गैस्टहाउस में ब्लैकमेल करने व लूटने वाले एक गिरोह को गिरफ्तार किया गया. गिरोह में एक लड़की भी शरीक थी.

‘‘कोई खास बात है क्या?’’ पत्नी ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं,’’ कपिल ने समाचारपत्र नीचे फेंकते हुए कहा, ‘‘वही आम बातें…’’

Crime Story : डांसर के इश्क में – जिस्म की चाहत में हुई भूल

Crime Story : मैक्स बीयरबार में सैक्स रैकेट चलने की सूचना मिलते ही नौदर्न टाउन थाने के सबइंस्पैक्टर भीमा सिंह ने अपने दलबल के साथ वहां छापा मारा. वहां किसी शख्स के जन्मदिन का सैलिब्रेशन हो रहा था. खचाखच भरे हाल में सिगरेट, शराब और तेज परफ्यूम की मिलीजुली गंध फैली हुई थी. घूमते रंगीन बल्बों की रोशनी में अधनंगी बार डांसरों के साथ भौंड़े डांस करते मर्द गदर सा मचाए हुए थे.

सबइंस्पैक्टर भीमा सिंह हाल में घुसा और चारों ओर एक नजर फेरते हुए तेजी से दहाड़ा, ‘‘खबरदार… कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा. बंद करो यह तमाशा और बत्तियां जलाओ.’’

तुरंत बार में चारों ओर रोशनी बिखर गई. सबकुछ साफसाफ नजर आने लगा.

सबइंस्पैक्टर भीमा सिंह एक बार डांसर के पास पहुंचा और उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए एक जोरदार तमाचा उस के गाल पर मारा. वह बार डांसर गिर ही पड़ती कि भीमा सिंह ने उसे बांहों का सहारा दे कर थाम लिया और बार मालिक को थाने में मिलने का आदेश देते हुए वह उस बार डांसर को अपने साथ ले र बाहर निकल गया.

भीमा सिंह ने सोचा कि उस लड़की को थाने में ले जा कर बंद कर दे, फिर कुछ सोच कर वह उसे अपने घर ले आया. उस रात वह बार डांसर नशे में चूर भीमा सिंह के बिस्तर पर ऐसी सोई, जैसे कई दिनों से न सोई हो.

दूसरे दिन भीमा सिंह ने उसे नींद से जगाया और गरमागरम चाय पीने को दी. उस ने चालाक हिरनी की तरह बिस्तर पर पड़ेपड़े अपने चारों ओर नजर फेरी. अपनेआप को महफूज जान उसे तसल्ली हुई. उस ने कनखियों से सामने खड़े उस आदमी को देखा, जो उसे यहां उठा लाया था.

भीमा सिंह उस बार डांसर से पुलिसिया अंदाज में पेश हुआ, तो वह सहम गई. मगर जब वह थोड़ा मुसकराया, तो उस का डर जाता रहा और खुल कर अपने बारे में सबकुछ सचसच बताने लगी कि वह जामपुर की रहने वाली है. वह पढ़ीलिखी और अच्छे घर की लड़की है. उस के पिता ने उस की बहनों की शादी अच्छे घरों में की है.

वह थोड़ी सांवली थी, इसलिए उस की अनदेखी कर दी. इस से दुखी हो कर वह एक लड़के के साथ घर से भाग गई. रास्ते में उस लड़के ने भी धोखा देते हुए उसे किसी और के हाथ बेचने की कोशिश की. वह किसी तरह से उस के चंगुल से भाग कर यहां आ गई और पेट पालने के लिए बार में डांस करने लगी.

भीमा सिंह बोला, ‘‘तुम्हारे जैसी लड़कियां जब रंगे हाथ पकड़ी जाती हैं, तो यही बोलती हैं कि वे बेकुसूर हैं. ‘‘ठीक है, तुम्हारा केस थाने तक नहीं जाएगा. बस, तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. मैं तुम्हारा खयाल रखूंगा.’’

‘‘मुझे क्या करना होगा?’’ उस बार डांसर के मासूम चेहरे पर चालाकी के भाव तैरने लगे थे. भीमा सिंह ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘तुम मेरे लिए मुखबिरी करोगी.’’ उस बार डांसर को अपने बचाव का कोई उपाय नहीं दिखा. वह बेचारगी का भाव लिए एकटक भीमा सिंह की ओर देखने लगी.

भीमा सिंह एक दबंग व कांइयां पुलिस अफसर था. रिश्वत लिए बिना वह कोई काम नहीं करता था. जल्दी से वह किसी पर यकीन नहीं करता था. भ्रष्टाचार की बहती गंगा में वह पूरा डूबा हुआ था. लड़कियां उस की कमजोरी थीं. शराब के नशे में डूब कर औरतों के जिस्म के साथ खिलवाड़ करना उस की आदतों में शुमार था.

भीमा सिंह पकड़ी गई लड़कियों से मुखबिरी का काम कराता था. लड़कियां भेज कर वह मुरगा फंसाता था. पकड़े गए अपराधियों से केस रफादफा करने के एवज में उन से हजारों रुपए वसूलता था. शराब के नशे में कभीकभी तो वह बाजारू औरतों को घर पर भी लाने लगा था, जिस के चलते उस की पत्नी उसे छोड़ कर मायके में रहने लगी थी.

इस बार डांसर को भी भीमा सिंह यही सोच कर लाया था कि उसे इस्तेमाल कर के छोड़ देगा, पर इस लड़की ने न जाने कौन सा जादू किया, जो वह अंदर से पिघला जा रहा था.

भीमा सिंह ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘रेशमा.’’

‘‘जानती हो, मैं तुम्हें यहां क्यों लाया हूं?’’

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘क्योंकि थाने में औरतों की इज्जत नहीं होती. तुम्हारी मोनालिसा सी सूरत देख कर मुझे तुम पर तरस आ गया है. मैं ने जितनी लड़कियों को अब तक देखा, उन में एक सैक्स अपील दिखी और मैं ने उन से भरपूर मजा उठाया. मगर तुम्हें देख कर…’’

भीमा सिंह की बातों से अब तक चालाक रेशमा भांप चुकी थी कि यह आदमी अच्छी नौकरी करता है, मगर स्वभाव से लंपट है, मालदार भी है, अगर इसे साध लिया जाए… रेशमा ने भोली बनने का नाटक करते हुए एक चाल चली.

‘‘मैं क्या सचमुच मोनालिसा सी दिखती हूं?’’ रेशमा ने पूछा.

‘‘तभी तो मैं तुम्हे थाने न ले जा कर यहां ले आया हूं.’’

रेशमा को ऐसे ही मर्दों की तलाश थी. उस ने मन ही मन एक योजना तैयार कर ली. एक तिरछी नजर भीमा सिंह की ओर फेंकी और मचल कर खड़ी होते हुए बोली, ‘‘ठीक है, तो अब मैं चलती हूं सर.’’ ‘‘तुम जैसी खूबसूरत लड़की को गिरफ्त में लेने के बाद कौन बेवकूफ छोड़ना चाहेगा. तुम जब तक चाहो, यहां रह सकती हो. वैसे भी मेरा दिल तुम पर आ गया है,’’ भीमा सिंह बोला.

‘‘नहींनहीं, मैं चाहती हूं कि आप अच्छी तरह से सोच लें. मैं बार डांसर हूं और क्या आप को मुझ पर भरोसा है?’’

‘‘मैं ने काफी औरतों को देखा है, लेकिन न जाने तुम में क्या ऐसी कशिश है, जो मुझे बारबार तुम्हारी तरफ खींच रही है. तुम्हें विश्वास न हो, तो फिर जा सकती हो.’’

रेशमा एक शातिर खिलाड़ी थी. वह तो यही चाहती थी, लेकिन वह हांड़ी को थोड़ा और ठोंकबजा लेना चाहती थी, ताकि हांड़ी में माल भर जाने के बाद ले जाते समय कहीं टूट न जाए.

वह एकाएक पूछ बैठी, ‘‘क्या आप मुझे अपनी बीवी बना सकते हैं?’’

‘‘हां, हां, क्यों नहीं. मैं नहीं चाहता कि मैं जिसे चाहूं, वह कहीं और जा कर नौकरी करे. आज से यह घर तुम्हारा हुआ,’’ कह कर भीमा सिंह ने घर की चाबी एक झटके में रेशमा की ओर उछाल दी. रेशमा को खजाने की चाबी के साथ सैयां भी कोतवाल मिल गया था. उस के दोनों हाथ में लड्डू था. वह रानी बन कर पुलिस वाले के घर में रहने लगी.

भीमा सिंह एक फरेबी के जाल में फंस चुका था. अगले दिन रेशमा ने भीमा सिंह को फिर परखना चाहा कि कहीं वह उस के साथ केवल ऐशमौज ही करना चाहता है या फिर वाकई इस मसले पर गंभीर है. कहीं वह उसे मसल कर छोड़ न दे. फिर तो उस की बनीबनाई योजना मिट्टी में मिल जाएगी.

रेशमा घडि़याली आंसू बहाते हुए कहने लगी, ‘‘मैं भटक कर गलत रास्ते पर चल पड़ी थी. मैं जानती थी कि जो मैं कर रही हूं, वह गलत है, मगर कर भी क्या सकती थी. घर से भागी हुई हूं न. और तो और मेरे पापा ने ही मेरी अनदेखी कर दी, तो मैं क्या कर सकती थी. मैं घर नहीं जाना चाहती. मैं अपनी जिंदगी से हारी हुई हूं.’’

‘‘रेशमा, तुम अपने रास्ते से भटक कर जिस दलदल की ओर जा रही थी, वहां से निकलना नामुमकिन है. तुम ने अपने मन की नहीं सुनी और गलत जगह फंस गई. खैर, मैं तुम्हें बचा लूंगा, पर तुम्हें मेरे दिल की रानी बनना होगा,’’ भीमा सिंह उसे समझाते हुए बोला.

‘‘तुम मुझे भले ही कितना चाहते हो, लेकिन मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. मैं बार डांसर बन कर ही अपनी बाकी की जिंदगी काट लूंगी. तुम मेरे लिए अपनी जिंदगी बरबाद मत करो. तुम एक बड़े अफसर हो और मैं बार डांसर. मुझे भूल जाओ,’’ रेशमा ने अंगड़ाई लेते हुए अपने नैनों के बाण ऐसे चलाए कि भीमा सिंह घायल हुए बिना नहीं रह सका.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो रेशमा? अगर भूलना ही होता, तो मैं तुम्हें उस बार से उठा कर नहीं लाता. तुम ने तो मेरे दिल में प्यार की लौ जलाई है.’’

रेशमा के मन में तो कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी. उस ने भीमा सिंह को अपने रूपजाल में इस कदर फांस लिया था कि वह आंख मूंद कर उस पर भरोसा करने लगा था. भीमा सिंह के बाहर जाने के बाद रेशमा ने पूरे घर को छान मारा कि कहां क्या रखा है. वह उस के पैसे से अपने लिए कीमती सामान खरीदती थी. भीमा सिंह को कोई शक न हो, इस के लिए वह पूरे घर को साफसुथरा रखने की कोशिश करती थी.

भीमा सिंह को भरोसे में ले कर रेशमा अपना काम कर चुकी थी. अब भागने की तरकीब लगाते हुए एक शाम उस ने भीमा सिंह की बांहों में झूलते हुए कहा, ‘‘एक अच्छे पति के रूप में तुम मिले, इस से अच्छा और क्या हो सकता है. मैं तो जिंदगीभर तुम्हारी बन कर रहना चाहती हूं, लेकिन कुछ दिनों से मुझे अपने घर की बहुत याद आ रही है.

‘‘मैं तुम्हें भी अपने साथ ले जाना चाहती थी, मगर मेरे परिवार वाले बहुत ही अडि़यल हैं. वे इतनी जल्दी तुम्हें अपनाएंगे नहीं. ‘‘मैं चाहती हूं कि पहले मैं वहां अकेली जाऊं. जब वे मान जाएंगे, तब उन लोगों को सरप्राइज देने के लिए मैं तुम्हें खबर करूंगी. तुम गाड़ी पकड़ कर आ जाना.

‘‘ड्रैसिंग टेबल पर एक डायरी रखी हुई है. उस में मेरे घर का पता व फोन नंबर लिखा हुआ है. बोलो, जब मैं तुम्हें फोन करूंगी, तब तुम आओगे न?’’

‘‘क्यों नहीं जानेमन, अब तुम ही मेरी रानी हो. तुम जैसा ठीक समझो करो. जब तुम कहोगी, मैं छुट्टी ले कर चला आऊंगा,’’ भीमा सिंह बोला. रेश्मा चली गई. हफ्ते, महीने बीत गए, मगर न उस का कोई फोन आया और न ही संदेश. भीमा सिंह ने जब उस के दिए नंबर पर फोन मिलाया, तो गलत नंबर बताने लगा.

भीमा सिंह ने जब अलमारी खोली, तो रुपएपैसे, सोनेचांदी के गहने वगैरह सब गायब थे. घबराहट में वह रेशमा के दिए पते पर उसे खोजते हुए पहुंचा, तो इस नाम की कोई लड़की व उस का परिवार वहां नहीं मिला. भीमा सिंह वापस घर आया, फिर से अलमारी खोली. देखा तो वहां एक छोटा सा परचा रखा मिला, जिस में लिखा था, ‘मुझे खोजने की कोशिश मत करना. तुम्हारे सारे पैसे और गहने मैं ने पहले ही गायब कर दिए हैं.

‘मैं जानती हूं कि तुम पुलिस में नौकरी करते हो. रिपोर्ट दर्ज कराओगे, तो खुद ही फंसोगे कि तुम्हारे पास इतने पैसे कहां से आए? तुम ने पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी कब की?’

भीमा सिंह हाथ मलता रह गया.

Social Story : कहर – दोस्त ने अजीत की पत्नी के साथ लिया मजा

Social Story : अजीत की रेलगाड़ी 8 घंटे लेट थी. क्या करे? टिकटघर से टिकट लेते वक्त रेलगाड़ी को महज एक घंटा लेट बताया गया था. अब एक के बाद एक हो रही एनाउंसमैंट से रेलगाड़ी 8 घंटे लेट थी. टिकट वापस करने पर 10 फीसदी किराया कट जाता. बस स्टैंड जाने पर 50 रुपए खर्च होते, साथ ही समय ज्यादा लगता. टी स्टौल पर चाय की चुसकी लेता अजीत अभी सोच ही रहा था कि वह क्या करे, तभी उस का मोबाइल फोन घरघराया.

फोन अजीत की पत्नी का था, ‘तुम बस से चले आओ.’

‘‘देखता हूं,’’ अजीत बोला.

चाय के पैसे चुका कर अजीत जैसे ही मुड़ा, तभी उस से एक शख्स टकराया. दोनों एकदूसरे को देख कर चौंके. वह अजीत के स्कूल का सहपाठी कुलदीप था.

‘‘अरे अजीत,’’ इतना कह कर कुलदीप ने उसे गले लगा लिया और पूछा, ‘‘कहां जा रहा है?’’

‘‘अपने शहर और कहां… रेलगाड़ी 8 घंटे लेट है,’’ अजीत ने कहा.

‘‘मेरे होते क्या दिक्कत है,’’ कुलदीप बोला.

‘‘मगर तू तो मालगाड़ी का ड्राइवर है,’’ अजीत ने कहा.

‘‘तो क्या…? मेरे साथ इंजन में बैठ जाना. तेरे शहर से ही हो कर गुजरना है.’’

‘‘मेरे पास टिकट भी है.’’

‘‘वापस कर आ. तेरा किराया भी बचेगा.’’

अजीत टिकट खिड़की पर चला गया. कुलदीप चाय पीने लगा. 10 मिनट बाद मालगाड़ी चल पड़ी. मालगाड़ी के इंजन में बैठ कर सफर करना अजीत के लिएरोमांचक था. कुलदीप 12वीं जमात पास कर के रेलवे में भरती हो गया था. अजीत आगे पढ़ा व अब एक दवा कंपनी में मैडिकल प्रतिनिधि था. अजीत के शहर का रेलवे स्टेशन आने वाला था. आउटर पर गाड़ी एक पल को रुकी. अजीत अपना बैग पकड़ कर रेलवे पटरी के दूसरी तरफ कूद गया.

अजीत रेलवे लाइन के एक तरफ बनी पगडंडी पर आगे बढ़ा. रेलवे स्टेशन का चौराहा अभी दूर था. उस ने अपना मोबाइल फोन निकाला और पत्नी को फोन मिलाया. फोन स्विच औफ था. चौराहे पर कई आटोरिकशा खड़े थे. अजीत एक आटोरिकशा में बैठ गया. कालोनी के बाहर सन्नाटा पसरा था. अजीत ग्राउंड फ्लोर पर बने अपने फ्लैट के बाहर पहुंचा. वह घंटी बजाने को हुआ कि तभी उस के कानों में किसी अनजान मर्द की आवाज गूंजी.

अजीत ने घंटी पर से हाथ हटा लिया और दबे पैर फ्लैट के पिछवाड़े में पहुंचा. चारदीवारी ज्यादा ऊंची नहीं थी. वह दीवार फांद कर अंदर कूदा और चुपचाप बैडरूम के पिछवाड़े की खिड़की से अंदर झांका, तो हैरान रह गया.

भीतर अजीत की पत्नी उस के एक दोस्त के साथ रंगरलियां मना रही थी. अजीत कुछ देर तक भीतर का सीन देखता रहा, फिर धीरेधीरे पीछे हटता चारदीवारी के साथ पीठ लगा कर खड़ा हो गया. ऐसा तो उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.

अजीत स्वभाव का बड़ा सीधासादा था. उस की पत्नी सुंदर, सुघड़ और घरेलू थी. उन के 2 प्यारे बच्चे थे. अजीत के शहर से बाहर होने पर पत्नी मोबाइल फोन से उस का हालचाल पूछती थी. घर आने पर उस की सेवा में बिछ जाती थी. लेकिन अब जो सामने था, वह सब अजीत की सोच से बाहर था.

अजीत का माथा गुस्से से भिनभिनाने लगा था. वह बौखलाया हुआ सा इधरउधर देखने लगा. लौन में एक खुरपा पड़ा था. वह झुका और खुरपा उठा लिया. अजीत हाथ में खुरपा थामे आगे बढ़ा. कमरे के बंद दरवाजे को हलके से थपथपाया. सिटकिनी लगी थी. उस ने कंधे का एक तगड़ा वार किया. दरवाजा खुल कर एक तरफ हो गया.

सैक्स की मस्ती में डूबे वे दोनों घबरा कर अलग हो गए. अजीत खुरपा थामे आगे बढ़ा. उस का दोस्त पलंग से कूदा और उस को परे धकेल कर बिना कपड़ों के ही बाहर दौड़ गया. डर से थरथर कांपती अजीत की पत्नी कमरे के एक कोने में सिमटती सी खड़ी हो गई और बोली, ‘‘मुझे मत मारना.’’

‘‘भाग जा यहां से,’’ अजीत ने दांत भींचते हुए कहा.

सलवारकमीज उठा कर पत्नी भी बाहर दौड़ गई. अजीत थोड़ी देर खड़ा इधरउधर देखता रहा, फिर वह भी बाहर लौन में आया और खुरपा एक तरफ रख दिया. उस ने अपना बैग उठाया और अंदर आ गया.अजीत के दोनों बच्चे प्रियंका और एकांश सो रहे थे. इतने मासूम बच्चों की मां पति के दोस्त के साथ रंगरलि यां मना रही थी. पता नहीं, यह सिलसिला कब से चल रहा था.

इस के बाद वही हुआ, जिस का डर था. अजीत का अपनी पत्नी से तलाक हो गया. बच्चों की सरपरस्ती पत्नी को मिली. अजीत ने उसे भत्ता देना मंजूर किया और हर महीने एक तय रकम का चैक भेज देता था. एक दिन अजीत फ्लैट बेच कर दूसरे शहर में जा बसा. वह तरक्की करता हुआ मैनेजर बन गया. कंपनी के मालिक राजेंद्र की गैरहाजिरी में उन की पत्नी गीता कभीकभार दफ्तर में आ कर काम संभालती थीं. धीरेधीरे उन की अजीत से अच्छी जानपहचान हो गई.

‘‘अजीत, आप का तलाक हो गया है. आप दोबारा शादी क्यों नहीं करते?’’ एक शाम दफ्तर का काम खत्म होने पर गीता ने पूछा.

‘‘बस, दिल नहीं मानता,’’ अजीत बोला.

‘‘अकेले कब तक रहोगे?’’ गीता ने फिर पूछा.

अजीत खामोश रहा. उस के उदास चेहरे को गीता ने अपने हाथों में भरा और उस का माथा चूम लिया. अजीत हैरान सा खड़ा उन की तरफ देखने लगा. पत्नी के मुकाबले गीता भारी जिस्म की सांवले रंग की थीं. उन की आंखों में काम वासना के डोरे तैर रहे थे.

गीता ने अजीत की तुलना अपने पति से की. एक तरफ 30 साला नौजवान था, दूसरी ओर 50 साल की उम्र का अधेड़. अजीत को औरत की दरकार थी और गीता को अपनी संतुष्टि के लिए नौजवान मर्द की. कुछ ही दिनों में उन के बीच के सारे फासले मिट गए.

राजेंद्र कई कंपनियों के मालिक थे. काम के सिलसिले में वे ज्यादातर बाहर रहते थे. उन की गैरहाजिरी में गीता काम संभालती थीं. उन के 2 बच्चे थे, जो एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते थे. हैदराबाद में एक बड़ी कंपनी की मीटिंग खत्म हुई. राजेंद्र के सचिव ने ट्रैवल एजेंट को फोन किया.

‘सौरी सर, कल सुबह से पहले किसी फ्लाइट में भी सीट नहीं है,’ ट्रैवल एजेंट ने बताया.

इस पर राजेंद्र अपने होटल में चले गए. ‘घर आ रहे हो?’ गीता ने उन्हें फोन कर के पूछा.

‘‘कल सुबह आऊंगा,’’ राजेंद्र ने जवाब दिया.

अभी राजेंद्र होटल के कमरे में दाखिल हुए ही थे कि ट्रैवल एजेंट का फोन आ गया. ‘सर, एक पैसेंजर ने अपनी सीट कैंसिल कराई है. आप आधा घंटे में एयरपोर्ट आ जाएं.’

राजेंद्र तुरंत एयरपोर्ट पहुंचे. 2 घंटे बाद वे अपने शहर में थे. राजेंद्र ने मोबाइल फोन निकाला, फिर इरादा बदलते हुए सोचा कि अब आधी रात को क्यों ड्राइवर को तकलीफ दें. लिहाजा, वे टैक्सी से अपनी कोठी पहुंचे. वहां उन्हें अपने मैनेजर अजीत की कार खड़ी दिखी, तो वे चौंक गए. राजेंद्र ने इधरउधर देखा, फिर वे अपने घर के पिछवाड़े में पहुंचे. एक कार उन की कोठी के पिछवाड़े की दीवार को छूती खड़ी थी. वे उस की छत पर जा चढ़े और फिर दीवार पर चढ़ गए और लौन में कूद गए.

उन के अंदर कूदते ही पालतू कुत्ता भूंका, फिर मालिक को पहचानते हुए चुप हो कर उन के कदमों में लोटने लगा. राजेंद्र ब्रीफकेस थामे दबे पैर चोरी से पिछवाड़े के कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुए. उन के कानों में ऊपर की मंजिल पर बने अपने बैडरूम से हंसनेखिलखिलाने की आवाज आई.

वे दबे पैर सीढि़यां चढ़ते हुए ऊपर पहुंचे. खिड़की से अंदर झांका. बैड पर मैनेजर अजीत के साथ उन की पत्नी गीता मस्ती कर रही थीं. अब वे क्या करें? दोनों को रंगे हाथ पकड़ें? नतीजा साफ था. शादी का टूटना. मैनेजर कहीं और नौकरी पा लेगा. पत्नी गुजारा भत्ता ले कर कहीं और जा बसेगी और उम्र के इस पड़ाव पर वे खुद क्या करेंगे?

दोबारा शादी करेंगे? दूसरी पत्नी भी ऐसी ही निकली तो? वे धीरेधीरे पीछे हटते गए. दूसरे कमरे में चले गए और कुरसी पर बैठ गए. उधर कमरे में जब वासना का ज्वार शांत हुआ, तो अजीत व गीता अलग हो गए.

‘‘क्या तुम्हारी बीवी ने दूसरी शादी कर ली?’’ गीता ने पूछा.

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘औरत बदनाम हो जाए, तो दोबारा घर बसाना मुश्किल होता है.’’

‘‘और मर्द?’’

‘‘मर्द पर बदनामी का असर नहीं पड़ता.’’

‘‘तो तुम ने दोबारा शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘मुझे किसी भी औरत पर अब भरोसा नहीं रहा.’’

इस पर गीता एकटक उस की तरफ देखने लगीं. साथ वाले कमरे में राजेंद्र उन की बातचीत सुन रहे थे. अजीत के जवाब ने गीता का सैक्स का मजा किरकिरा कर दिया था. वह उन के साथ जिस्मानी रिश्ता तो बना सकता था, पर उन्हें वफादार साथी नहीं मान रहा था. इस बीच राजेंद्र को शरारत सूझी. उन्होंने अपना मोबाइल फोन निकाला, पत्नी का नंबर मिलाया और धीमी आवाज में कहा, ‘मैं एयरपोर्ट पर हूं. दूसरी फ्लाइट में सीट मिल गई थी. 10 मिनट में घर पहुंच जाऊंगा.’

गीता ने अजीत को बताया. वे दोनों हड़बड़ाहट में कपड़े पहनने लगे. पालतू कुत्ता अभी तक मालिक के पास बैठा था. राजेंद्र ने उस को इशारा किया और धीमे से दरवाजा खोल कर उस को बाहर निकाल दिया.

अजीत सीढि़यां उतरता नीचे लौन में आया, तभी पालतू कुत्ता उस पर झपट पड़ा. बचाव के लिए गीता लपकीं, मगर तब तक कुत्ते ने अजीत को 3-4 जगह पर काट खाया था. अजीत किसी तरह अपनी कार में सवार हुआ. गेट बंद कर गीता कुत्ते की तरफ लपकीं और चेन पकड़ कर उस को एक जगह बांध दिया.

इस के बाद गीता अपने पति का इंतजार करने लगीं. ड्राइंगरूम में बैठेबैठे उन की आंख लग गई. मौका देखते ही राजेंद्र चुपचाप बैडरूम में जा कर सो गए. सुबह जब गीता जागीं, तो उन्होंने राजेंद्र को बैडरूम में पा कर घबराते हुए पूछा, ‘‘आप कब आए?’’

‘‘3 बजे. तब तुम ड्राइंगरूम में सो रही थीं.’’

‘‘अपना डौगी अब खतरनाक हो गया है. उस को निकाल दो,’’ गीता ने बताया.

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘कल एक पड़ोसी पर झपट पड़ा.’’

‘‘चेन से बांध कर रखना था…’’ इतना कह कर राजेंद्र बाथरूम में चले गए.

तैयार हो कर वे अपने दफ्तर पहुंचे. अब तक अजीत नहीं आया था. ‘‘कल किसी कुत्ते ने अजीत को काट खाया है,’’ असिस्टैंट मैनेजर ने राजेंद्र को बताया.

राजेंद्र के दफ्तर जाने के बाद गीता घर की सफाई करने लगीं. बैडरूम के साथ वाले कमरे में सिगरेट के जले टुकड़ों का ढेर लगा था. वे चौंकीं कि कल शाम तक तो कमरा साफसुथरा था, फिर इतनी सारी सिगरेटें किस ने पी? वे सारा माजरा समझ गईं. उन्होंने एयरपोर्ट इनक्वायरी फोन किया. वहां से पता चला कि राजेंद्र तो रात को ही घर आ गए थे. वे बेचैन हो गईं.

अजीत अस्पताल में था. उस के हाथपैरों पर पट्टियां बंधी थीं, तभी उस का मोबाइल फोन बजा. ‘मेरा अंदाजा है कि राजेंद्र को हमारे संबंध का पता चल चुका है. कल रात को वे 12 बजे ही घर आ गए थे,’ गीता ने बताया.

‘‘अब हम क्या करें?’’

‘खामोश रहो.’

7 दिन बाद अजीत दफ्तर आया.

‘‘आवारा कुत्ते आजकल कम होते हैं… आप पर कोई कुत्ता कैसे झपटा?’’ राजेंद्र के सवाल पर अजीत चुप रहा.

‘‘आप सिगरेट कौन सी पीते हैं?’’

अजीत ने अपना सिगरेट का पैकेट निकाल कर दिखाया. तब राजेंद्र ने अपनी मेज की दराज खोली और एक पैकेट निकाल कर सामने रखते हुए कहा, ‘‘यह पैकेट मेरी कोठी में कोई छोड़ गया था. आप का ही ब्रांड है. मेरा ब्रांड दूसरा है. आप ले लो.’’

अजीत को काटो तो खून नहीं. उस को राजेंद्र से ऐसे हमले की उम्मीद नहीं थी. वह चुपचाप अपने चैंबर में चला गया. अगले दिन उस ने इस्तीफा दे दिया. पत्नी को तलाक देने के बाद अजीत ने कभी उस के बारे में नहीं सोचा था. आज पहली बार सोच रहा था. अजीत का मालिक समझदार था. बदनामी और जगहंसाई से बचने के लिए उस ने कोई ऐसा कदम नहीं उठाया, जिस से बात और बिगड़ जाए.

Romantic Story : खुद ही – नरेन और रेखा के बीच क्या था

Romantic Story : रात के साढ़े 10 बजे थे. नरेन के आने का कोई अतापता नहीं था. हालांकि उस ने विभा को फोन कर दिया था कि उसे आने में देर हो जाएगी, सो वह खाना खा कर, दरवाजा बंद कर सो जाए, उस का इंतजार न करे. चाबी उस के पास है ही. वह आ कर दरवाजा खोल कर जोकुछ खाने को रखा है, खा कर सो जाएगा. यह जानते हुए भी विभा नरेन के आने के इंतजार में करवटें बदल रही थी. वह देखना चाहती थी कि आखिर उस के आने में कितनी देर होती है, जबकि बेटी अंशिता सो चुकी थी.

समय काटने के लिए विभा ने रेडियो पर पुराने गाने लगा दिए थे, जिन्हें सुनतेसुनते उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला. एकाएक विभा की नींद टूटी. उस ने चालू रेडियो को बंद करना चाहा कि उस गाने को सुन कर उस के हाथ रेडियो बंद करतेकरते रुक गए. गाने के बोल थे, ‘अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं. बीच भंवर में नाव है मेरी कैसे पार लगाऊं…’ गाने ने जैसे मन की बात कह दी. गाने जैसी खींचातानी उस की जिंदगी में भी हो रही थी.

‘कोई कामधाम नहीं है, यह सब बहानेबाजी है,’ विभा ने मन ही मन कहा. दरअसल, नरेन उस रेखा के चक्कर में है जिस से वह उस से एक बार मिलवा भी चुका था. विभा से वह घड़ी आज भी भुलाए नहीं भूलती. कितना जोश में आ कर उस ने परिचय कराया था. ‘इन से मिलो विभा, ये मेरे औफिस में ही हैं, हमारे साथ काम करने वाली रेखा. बहुत अच्छा स्वभाव है इन का… और रेखा, ये हैं मेरी पत्नी विभा…’

विभा को शक हो गया था. एक पराई औरत के प्रति ऐसा खिंचाव. और तो और बाद में वह उसे छोड़ने भी गया था. चाहता तो किसी बस में बिठा कर विदा भी कर सकता था, पर नहीं. गाना खत्म हुआ तो विभा ने रेडियो बंद कर दिया और सोने की कोशिश करने लगी. आखिरकार नींद लग ही गई.

पता नहीं, कितना समय हुआ कि उस ने अपने शरीर पर किसी का हाथ महसूस किया. उसे लग गया था कि यह नरेन ही है. उस ने उस के हाथ को अपने पर से हटाया और उनींदी में कहने लगी, ‘‘सोने दो. नींद आ रही है. कहां थे इतनी देर से. समय से आना चाहिए न.’’ ‘‘क्या करूं डार्लिंग, कोशिश तो जल्दी आने की ही करता हूं,’’ नरेन ने विभा को अपनी ओर खींचते हुए कहा.

‘‘आप रेखा से मिल कर आ रहे हैं न…’’ विभा ने अपनेआप को छुड़ाते हुए ताना सा कसा, ‘‘इतनी अच्छी है तो मुझ से शादी क्यों की? कर लेते उसी से…’’ ‘‘विभा, छोड़ो भी न. यह भी कोई समय है ऐसी बातों का. आज अच्छा मूड है, आओ न.’’

‘‘तुम्हारा तो अच्छा मूड है, पर मेरा तो मूड नहीं है न. चलो, सो जाओ प्लीज,’’ विभा दूसरी ओर मुंह कर के सोने की कोशिश करने लगी. ‘‘तुम पत्नियां भी न… कब समझोगी अपने पति को,’’ नरेन ने निराश हो कर कहा.

‘‘पहले तुम मेरे हो जाओ.’’ ‘‘तुम्हारा ही तो हूं बाबा. पिछले

15 सालों से तुम्हारा ही हूं विभा. मेरा यकीन मानो.’’ ‘‘तो सच बताओ, इतनी देर तक उस रेखा के साथ ही थे न?’’

‘‘देखो, जब तक मैं उस कंपनी में था, उस के पास था. जब मैं वहां से जौब छोड़ कर अपनी खुद की कौस्मैटिक की मार्केटिंग का काम कर रहा हूं तो अब वह यहां भी कहां से आ गई?’’ ‘‘मुझे तो यकीन नहीं होता. अच्छा बताओ कि तुम ने नहीं कहा था कि अब जब मैं अपना काम कर रहा हूं तब तो मैं समय से आ जाया करूंगा. तुम तो अब भी ऐसे ही आ रहे हो जैसे उसी कंपनी में काम करते हो.’’

‘‘अपना काम है न. सैट करने में समय तो लगता ही है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. मेरी बात मानो. अब सब तुम्हारे हिसाब से चलने लगेगा. ठीक है, अच्छा अब तो मान जाओ.’’ ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. मुझे तो बिलकुल यकीन नहीं होता. तुम एक नंबर के झूठे हो. मैं कई बार तुम्हारा झूठ पकड़ चुकी हूं.’’

‘‘तो तुम नहीं मानोगी?’’ ‘‘जब तक मुझे पक्का यकीन नहीं हो जाता,’’ निशा ने कहा.

‘‘तो तुम्हें यकीन कैसे होगा?’’ ‘‘बस, सच बोलना शुरू कर दो और समय से घर आना शुरू कर दो.’’

‘‘अच्छी बात है. कोशिश करता हूं,’’ रंग में भंग पड़ता देख नरेन ने अपने कदम पीछे खींच लेने में ही भलाई समझी. वह नहीं चाहता था कि बात आगे बढ़े. वह भी करवट बदल कर सोने की कोशिश करने लगा. विभा का शक नरेन के प्रति यों ही नहीं था. दरअसल, कुछ महीने पहले की बात है. वह और विभा बच्ची अंशिता के साथ शहर के एक बड़े गार्डन में घूमने गए थे जहां वह रेखा के साथ भी घूमने जाता रहा था. वहां से वे अपने एक परिचित भेल वाले के यहां नाश्ते के लिए चले गए.

भेल वाले ने सहज ही पूछ लिया था कि आज आप के साथ वे बौबकट बालों वाली मैडमजी नहीं हैं? बस, यह सुनते ही विभा के तनबदन में आग लग गई थी और घर लौट कर उस ने नरेन की अच्छे से खबर ली थी.

नरेन ने लाख सफाई दी, पर विभा नहीं मानी थी. जैसेतैसे आगे न मिलने की कसम खा कर नरेन ने अपना पिंड छुड़ाया था. विभा की बातों में सचाई थी इसलिए नरेन कमजोर पड़ता था. नरेन रेखा के चक्कर में इस कदर पड़ा था कि वह चाह कर भी खुद को रेखा से अलग नहीं कर पा रहा था.

रेखा का खूबसूरत बदन और कटार जैसे तीखे नैन. नरेन फिदा था उस पर. अब एक ही रास्ता था कि रेखा शादी कर ले और अपना घर बसा ले, पर एक तरह से रेखा यह जानते हुए कि नरेन शादीशुदा है, वह खुद को उसे सौंप चुकी थी. नरेन में उसे पता नहीं क्या नजर आता था. यहां तक कि जब विभा गांव में कुछ दिनों के लिए अपनी मां के यहां जाती तो रेखा नरेन के यहां आ जाती और फिर दोनों मजे करते.

पर विभा को किसी तरह इस बात की भनक लग गई थी, इसलिए उस ने अब मां के यहां जाना कम कर दिया था. विभा संबंधों की असलियत को समझ नहीं पा रही थी क्योंकि जहां एक ओर वह मां बनने के बाद नरेन से प्यार में कम दिलचस्पी लेती थी या लेती ही नहीं थी, वहीं दूसरी ओर नरेन अब भी विभा से पहले वाले प्यार की उम्मीद रखता था. उस की तो इच्छा होती थी कि हर रात सुहागरात हो. पर जब विभा से उस की मांग पूरी नहीं होती तो वह रेखा की तरफ मुड़ जाता था. इस तरह नरेन का रेखा से जुड़ाव एक मजबूरी था जिसे विभा समझ नहीं पा रही थी.

विभा ने रेखा वाली सारी बातें अपने तक ही सीमित रखी थीं. अगर वह नरेन के रेखा से प्रेम संबंध वाली बात अपने मां या बाबूजी को बताती तो उन्हें बहुत दुख पहुंचता, जो वह नहीं चाहती थी. विभा के सामने यह जो रेखा वाली उलझन है वह इसे खुद ही सुलझा लेना चाहती थी.

2 बच्चों में से एक बच्चा यानी अंशिता से बड़ा लड़का अर्पित तो अपने ननिहाल में पढ़ रहा है, क्योंकि यहां पैसे की समस्या है. अभी मकान हो जाएगा, तो हो जाएगा, फिर बच्चों का कैरियर, उन की शादी का काम आ पड़ेगा. ऐसे में खुद का मकान तो होने से रहा. नरेन के प्यार के इस तेज बहाव को ले कर विभा एक बार डाक्टर से मिलने की कोशिश भी कर चुकी थी कि प्यार में अति का भूत उस पर से किसी तरह उतरे. ऐसा होने पर वह रेखा से भी दूर हो सकेगा. उस ने यह भी जानने की कोशिश की थी कि कहीं वह कुछ करता तो नहीं है, पर ऐसी कोई बात नहीं थी. अब वह अंशिता को ज्यादातर अपने आसपास ही रखती थी ताकि नरेन को भूल कर भी एकांत न मिले.

अगले दिन नरेन ने काम पर जाते हुए विभा के हाथ में 200 रुपए रखे और मुसकराते हुए उस की कलाई सहलाई. विभा ने आंखें तरेरीं. नरेन सहमते हुए बोला, ‘‘जानू, आज साप्ताहिक हाट है. सब्जी के लिए पैसे दे रहा हूं. भूलना मत वरना फिर रोज आलू खाने पड़ेंगे,’’ कहते हुए टीवी देख रही अंशिता को प्यार से अपने पास बुलाते हुए उस से शाम को आइसक्रीम खिलाने का वादा करते हुए अपने बैग को थामते हुए बाहर निकल गया. विभा दरवाजा बंद कर अपने काम में जुट गई. उसे तो याद ही नहीं था कि सचमुच आज तो हाट का दिन है और उसे हफ्तेभर की सब्जी भी लानी है. वह अंशिता की मदद ले कर फटाफट काम पूरा करने में जुट गई.

कामकाज खत्म कर अंशिता को पढ़ाई की हिदायत दे कर बड़ा सा झोला उठाए विभा दरवाजा लौक कर बाजार की ओर निकल गई. उसे अंशिता के चलते घर जल्दी लौटने की फिक्र थी. अभी विभा कुछ सब्जियां ही ले पाई थी और एक सब्जी का मोलभाव कर रही थी कि किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रखा. विभा पलटी तो एक अजनबी औरत को देख कर अचरज करने लगी.

‘‘तुम विभा ही हो न,’’ उस अजनबी औरत ने विभा को हैरानी में देखा तो पूछा, ‘‘जी. पर, आप कौन हैं? ‘‘अरे, तारा दीदी आप… दरअसल, आप को जूड़े में देखा तो…’’ झटपट विभा ने तारा टीचर के पैर छू लिए.

‘‘सही पहचाना तुम ने. कितनी कमजोर थी तुम पढ़ने में, जब तुम मेरे घर ट्यूशन लेने आती थी. इसी से तुम मुझे याद हो वरना एक टीचर के पास से कितने स्टूडैंट पढ़ कर निकलते हैं. कितनों को याद रख पाते हैं हम लोग,’’ आशीर्वाद देते हुए तारा दीदी ने कहा. ‘‘मेरा घर यहां नजदीक ही है. आइए न. घर चलिए,’’ विभा ने कहा.

‘‘नहींनहीं, फिर कभी. अब मैं रिटायर हो चुकी हूं और पास की कालोनी में रहती हूं. लो, यह है मेरा विजिटिंग कार्ड. घर आना. खूब बातें करेंगे. अभी इस वक्त थोड़ा जल्दी है वरना रुकती. अच्छा चलती हूं विभा.’’ विभा ने कार्ड पर लिखा पता पढ़ा और अपने पर्स में रख कर सब्जी के लिए आगे बढ़ गई.

विभा ने तय किया कि वह अगले दिन तारा दीदी से मिलने उन के घर जरूर जाएगी. उसे लगा कि तारा दीदी उस की उलझन को सुलझाने में मदद कर सकती हैं. अगले दिन सारा काम निबटा कर वह अंशिता को पड़ोस में रहने वाली उस की हमउम्र सहेली के पास छोड़ कर तारा दीदी के घर की ओर चल पड़ी. उसे घर ढूंढ़ने में जरा भी परेशानी नहीं हुई. उस ने डोर बेल बजाई तो दरवाजा खोलने वाली तारा दीदी ही थीं.

‘‘आओ विभा,’’ कह कर अपने साथ अंदर ड्राइंगरूम में ले जा कर बिठाया. सबकुछ करीने से सजा हुआ था. शरबत वगैरह पीने के बाद तारा दीदी ने विभा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए पूछा, ‘‘कहो, क्या बात है विभा. सबकुछ ठीकठाक है. जिंदगी किस तरह चल रही है? तुम्हारे मिस्टर, तुम्हारे बच्चे…’’ विभा फिर जो शुरू हुई तो बोलती चली गई. तारा दीदी बड़े गौर से सारी बातें सुन रही थीं. उन्हें लगा कि विभा की मुश्किल हल करने में अभी भी एक टीचर की जरूरत है. स्कूल में विभा सवाल ले कर जाती थी, आज वह अपनी उलझन ले कर आई है.

अपनी उलझन बता देने से विभा काफी हलका महसूस हो रही थी जैसे कोई सिर पर से बोझ उतर गया हो. तारा दीदी ने गहरी सांस ली. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे गर्व है कि तुम मेरी स्टूडैंट हो. अपना यह सब्र बनाए रखना. ऐसा कोई गलत कदम मत उठाना जिस से घर बरबाद हो जाए. आखिर ये 2 बच्चों के भविष्य का भी सवाल है.’’

‘‘तो बताओ न दीदी, मुझे क्या करना चाहिए?’’ विभा ने पूछा. ‘‘देखो विभा, समस्या होती तो छोटी है, केवल हमारी सोच उसे बड़ा बना देती है. एक तो तुम अपनी तरफ से किसी तरह से नरेन की अनदेखी मत करो. उसे सहयोग करो. आखिर तुम बीवी हो उस की. अगर वह तुम से प्यार चाहता है तो उसे दो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. रहा सवाल रेखा का तो इतना समझ लो इस मामले में जो भी मुझ से हो सकेगा मैं करूंगी.’’

‘‘मैं अब आप के भरोसे हूं दीदी. अच्छा चलती हूं क्योंकि घर पर अंशिता अकेली है.’’ ‘‘बिलकुल जाओ, अपना फर्ज, अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाओ.’’

विभा अब ठीक थी. उसे लगा नरेन पर से अब रेखा का साया उठ जाएगा और उस की जिंदगी में खुशहाली छा जाएगी. शाम को जब नरेन घर लौटा तो उन के साथ एक साहब भी थे. नरेन ने विभा से उन का परिचय कराया और बताया, ‘‘आज जब मैं एक बड़े मौल में मार्केटिंग के काम से गया था तो एक शौप पर इन से मुलाकात हुई.

‘‘दरअसल, इन का वडोदरा में कौस्मैटिक का कारोबार है और इन्हें वहां एक मैनेजर की सख्त जरूरत है. जब इन्होंने उस दुकानदार से मेरा बातचीत का लहजा और स्टाइल देखी तो ये बहुत प्रभावित हुए. मुझ से मेरा सारा जौब ऐक्सपीरियंस सुना. मेरी लाइफ के बारे में जाना और कहने लगे कि तुम में मुझे मैनेजर की सारी खूबियां दिखती हैं. मैं तुम्हें अपने यहां मैनेजर की पोस्ट औफर करता हूं. अच्छी तनख्वाह, फ्लेट, गाड़ी, सब सहूलियतें मिलेंगी. ‘‘मैं ने इन से कहा कि अपनी पत्नी से बात किए बिना मैं कोई फैसला नहीं ले सकता, इसलिए इन्हें यहां ले आया हूं. क्या कहती हो. क्या मैं इन का प्रस्ताव स्वीकार कर लूं?’’

‘‘पहले तुम कुछ दिनों के लिए वहां जा कर सारा कामकाज देख लो, समझ लो. अच्छा लगे तो स्वीकार कर लो,’’ विभा ने खुश होते हुए कहा. विभा को यह अच्छा लगा कि नरेन कितनी तवज्जुह देते हैं उसे. आज पहली बार उसे लगा कि वह अब तक नरेन से बुरा बरताव करती रही है, वह भी सिर्फ एक रेखा के पीछे. और यह उलझन भी अब उसे सुलझती नजर आ रही थी.

नरेन वडोदरा की ओर निकल पड़ा था. रोज रात को विभा से बात करने का नियम था उस का. विभा भी बातचीत में पूरी दिलचस्पी लेती. प्रतिदिन के कामकाज के बारे में, मालिक के बरताव के बारे में वह सबकुछ बताता. नए मिलने वाले फ्लैट जो वह देख भी आया था, के बारे में बताया और कहा कि अब वडोदरा शिफ्ट होने में फायदा ही है. विभा ने झटपट तारा दीदी के घर की ओर रुख किया. उन्हें नरेन के वडोदरा की जौब और वहीं शिफ्ट होने के बारे में बताया.

तारा दीदी के मुंह से निकला, ‘‘तब तो तुम्हारी सारी उलझनें अपनेआप ही सुलझ रही हैं विभा. जब तुम लोग शहर ही बदल रहे हो तो रेखा इतनी दूर तो वहां आने से रही.’’ सबकुछ इतना जल्दी तय हुआ कि विभा का इस पहलू की ओर ध्यान ही नहीं गया. तारा दीदी की इस बात में दम था. एक तीर से दो शिकार हो रहे थे. अब इस के पहले कि रेखा के पीछे नरेन का मन पलट जाए, उस ने वडोदरा जाना ही सही समझा.

रात को नरेन का फोन आया तो उस ने झटपट यह काम कर लेने को कहा. अभी छुट्टियां भी चल रही हैं. नए सैक्शन में बच्चों के एडमिशन में भी दिक्कत नहीं होगी. लगे हाथ अर्पित को भी मां के यहां से बुलवा लिया जाएगा. अब वह उस के पास ही रह कर आगे की पढ़ाईलिखाई करेगा. आननफानन यह काम कर लिया जाने लगा. पूरी गृहस्थी के साथ नरेन ने शिफ्ट कर लिया. विभा नए शहर में नया घर देख कर अवाक थी. ऐसे ही घर का तो उस ने कभी सपना देखा था. दोनों बच्चे तो यह सब देख कर चहक उठे.

नरेन में शुरूशुरू में उदासी जरूर नजर आई. विभा समझ गई थी कि ऐसा क्यों है. पर उस ने अब अपना प्यार नरेन पर उड़लेना शुरू कर दिया था. एक शाम जब नरेन काम से घर लौटा तो बुझाबुझा सा था. यह कामकाज की वजह से नहीं हो सकता था. उसे कुछ खटका हुआ जिसे उस ने जाहिर नहीं होने दिया. बालों में उंगलियां घुमाते हुए विभा ने बस इतना ही कहा, ‘‘क्यों न एकएक कप कौफी हो जाए.’’

नरेन ने हामी भरी. विभा कुछ सोचते हुए किचन में दाखिल हो गई. अगले ही दिन दोपहर में कामकाज से फुरसते पाते ही उस ने तारा दीदी को फोन घुमा दिया.

तब तारा दीदी ने उसे यह सूचना सुनाई कि रेखा की शादी हो गई है. सुन कर विभा उछल पड़ी, ‘‘थैंक्यू,’’ बस इतना ही कह पाई विभा और फोन बंद कर बिस्तर पर बिछ गई.

अब उसे नरेन के बुझे चेहरे की वजह भी समझ में आ गई थी. लेकिन अब सबकुछ ठीक भी हो गया था. गृहस्थी की गाड़ी बिना रुकावट एक बार फिर पटरी पर सरपट दौड़ने के लिए तैयार थी.

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