किसने सोचा था सुहाग पर भारी पड़ेगा प्यार

उस महिला की शक्ल देख कर ही उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना झूंसी के थानाप्रभारी विजय प्रताप सिंह को लगा कि यह किसी भारी मुसीबत में है. उन्होंने उसे बैठा कर उस की परेशानी पूछी तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, कल रात से मेरे पति का कुछ पता नहीं है.’’

‘‘क्या नाम है तुम्हारा, तुम रहती कहां हो?’’ विजय प्रताप सिंह ने पूछा तो महिला ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम आरती है और मैं यहीं पड़ोस में शिवगंगा विहार कालोनी में रहती हूं.’’

‘‘अपने पति के बारे में पूरी बात बताओ. वह कब घर से गए, कहां गए और कब तक रोज घर आते थे? वह करते क्या हैं, उन का नाम क्या है?’’

‘‘साहब, उन का नाम विजयशंकर पांडेय है. वह कल दोपहर बाद घर से निकले थे. शाम तक घर नहीं आए तो मैं ने उन के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन बात नहीं हो सकी, क्योंकि उन का फोन बंद था. एक तो पानी बरस रहा था, दूसरे बात नहीं हो पा रही थी, इसलिए मुझे चिंता हो रही थी. घर के पिछले हिस्से में बाढ़ का पानी भी भरा था, ऐसे में उन का न आना परेशान कर रहा था. बरसात की वजह से मैं उन्हें कहीं खोजने भी नहीं जा सकी. जब वह सवेरे भी नहीं आए और बात भी नहीं हो सकी तो मैं थाने आ गई.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे पति की गुमशुदगी दर्ज करा कर आगे की काररवाई करता हूं.’’ विजय प्रताप सिंह ने कहा और विजयशंकर पांडेय की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

लेकिन जब उन्होंने आरती से आगे पूछताछ की तो उन्हें उस की विरोधाभासी बातों से उसी पर ही संदेह हुआ, क्योंकि उस ने उन के तमाम सवालों के जवाब इस तरह दिए थे, जो पहले दिए जवाबों से मेल नहीं खा रहे थे. इस से उन्हें लगा कि यह कुछ छिपा रही है.

कुछ दिशानिर्देश दे कर विजयप्रताप सिंह ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी एसआई काशीप्रसाद कुशवाहा को सौंप दी. उन्होंने कहा था कि पहले वह आरती के बारे में पता करें कि उस का चरित्र कैसा है? काशीप्रसाद कुशवाहा सिपाहियों को ले कर शिवगंगा विहार कालोनी जाने की तैयारी कर रहे थे कि उन्हें फोन द्वारा सूचना मिली पति की गुमशुदगी दर्ज कराने वाली आरती के घर से थोड़ी दूरी पर बाढ़ के पानी में एक लाश तैर रही है.

काशीप्रसाद ने तुरंत यह जानकारी थानाप्रभारी को दी और खुद मोटरवोट तथा गोताखोरों की व्यवस्था कर के घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश को निकलवा कर बाहर लाया गया तो पता चला कि वह लाश आरती के पति विजयशंकर पांडेय की थी, जिस की कुछ देर पहले ही उस ने गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

लाश मिलने की सूचना पा कर कालोनी वाले तो इकट्ठा थे ही, आरती भी अपने तीनों बच्चों और कुछ शुभचिंतकों के साथ वहां पहुंच गई थी. सूचना पा कर विजय प्रताप सिंह भी आ गए थे.

लाश की शिनाख्त हो ही चुकी थी. पुलिस लाश का निरीक्षण करने लगी तो मृतक के सिर में एक बड़ा सा घाव दिखाई दिया. इस का मतलब था कि मृतक पानी में डूब कर नहीं मरा था, उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार कर के उसे मारा गया था. उस के गले पर भी कसने के निशान थे.

इन बातों से साफ हो गया था कि यह हत्या का मामला था. घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो पता चला कि विजयशंकर की कनपटी और सिर के पिछले हिस्से पर किसी भारी चीज से कई वार किए गए थे, इस के अलावा उस के गले में कोई चीज लपेट कर कसा गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हो गया था कि यह हत्या का मामला था. इस के बाद विजय प्रताप सिंह ने विजयशंकर की गुमशुदगी को हत्या में तब्दील कर आगे की जांच शुरू कर दी. चूंकि उन्हें मृतक की पत्नी आरती पर संदेह था, इसलिए उन्होंने पूछताछ के लिए उसे थाने बुला लिया.

आरती से पूछताछ की जाने लगी, लेकिन वह कुछ भी बताने को राजी नहीं थी. वह अपने पहले वाले बयान को ही बारबार दोहराती रही. जबकि पुलिस को पूरा विश्वास था कि हत्या उसी ने कराई है या खुद ही की है, इसलिए पुलिस ने उस के पिछले बयान पर विश्वास न कर के जब उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि प्रेमी रामेंद्र सिंह उर्फ मिंटू और उस के दोस्त चंद्रमा सिंह उर्फ चंदन के साथ मिल कर उसी ने पति विजयशंकर पांडेय की हत्या की थी. इस के बाद उस ने पति की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

कौशांबी का रहने वाला विजयशंकर पांडेय 8-10 साल पहले परिवार सहित इलाहाबाद आ कर वाराणसी की ओर जाने वाले रोड पर स्थित झूंसी में इलाहाबाद प्राधिकरण द्वारा बनवाई गई शिवगंगा विहार कालोनी में रहने लगा था. उस के परिवार में पत्नी आरती के अलावा 3 बच्चे थे.

गुजरबसर के लिए विजयशंकर ने मकान में ही किराए पर फिल्मों की सीडी देने की दुकान खोल ली थी. इस के अलावा वह थोड़ाबहुत प्रौपर्टी डीलिंग का भी काम कर लेता था. जब कभी वह बाहर चला जाता था, दुकान पर उस की पत्नी आरती बैठ जाती थी.

विजयशंकर दुकान पर अश्लील फिल्मों की भी सीडी रखता था. इस बात की जानकारी आरती को भी थी. मनचले उन्हें लेने आते थे तो वह उन्हें देती भी थी. जो महिलाएं इस का शौक रखती थीं, वे आरती से ही ऐसी फिल्मों की सीडी ले जाती थीं.

विजयशंकर का पड़ोसी रामेंद्र सिंह उर्फ मिंटू भी अश्लील फिल्मों का शौकीन था. चूंकि वह आरती को भाभी कहता था, इसलिए दोनों में हंसीमजाक भी होता रहता था. इसलिए रामेंद्र को आरती से अश्लील सीडी मांगने में संकोच भी नहीं होता था. एक दिन रामेंद्र सीडी लेने आया तो आरती ने कहा, ‘‘देवरजी, कब तक इस तरह की फिल्में देख कर दिन काटोगे? अरे कहीं से घर वाली ले आओ.’’

‘‘भाभी, घरवाली मिलती तो जरूर ले आता. जब तक कोई नहीं मिल रही, फिल्में देख कर ही संतोष करना पड़ रहा है.’’ रामेंद्र ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जब तक घरवाली नहीं मिल रही, इधरउधर से व्यवस्था कर लो.’’ आरती ने रामेंद्र की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

‘‘कौन पूछता है भाभी. भूखे को कोई भोजन नहीं देता. जिस का पेट भरा रहता है, उसी को सब पूछते हैं.’’ रामेंद्र ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘कभी किसी से अपनी परेशानी कही है?’’

‘‘कोई फायदा नहीं भाभी, लोग हंसी ही उड़ाएंगे.’’

‘‘जब तक कहोगे नहीं, कोई तुम्हारी मदद कैसे करेगा?’’ आरती ने कहा.

‘‘आप से कहूं तो क्या आप मेरी मदद करेंगी? 4 गालियां जरूर दे देंगी.’’ रामेंद्र ने आरती के चेहरे पर नजरें गड़ा कर कहा.

आरती ने चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान ला कर कहा, ‘‘एक बार कह कर तो देखो. अरे मैं तुम्हारी पड़ोसन हूं. पड़ोसी पड़ोसी की मदद नहीं करेगा तो क्या दूर वाला मदद करने आएगा.’’

अब इस से ज्यादा आरती क्या कहती. रामेंद्र भी बेवकूफ नहीं था. वह उस की बात का मतलब समझ गया. उस समय न विजयशंकर घर में था और न बच्चे. रामेंद्र आरती के घर में घुस गया. उस के बाद निकला तो बहुत खुश था. पत्नी की मौत के कई सालों बाद उस दिन उसे स्त्रीसुख मिला था.

दूसरी ओर आरती भी खुश थी. रामेंद्र ने उसे पूरी तरह खुश कर दिया था. एक बार दूरी मिटी तो सिलसिला चल निकला. जब भी उन्हें मौका मिलता, इच्छा पूरी कर लेते. दोनों अगलबगल रहते थे, इसलिए उन्हें मिलने में परेशानी भी नहीं होती थी.

आरती और रामेंद्र के बीच अवैध संबंध बने तो उन के बातचीत और हंसीमजाक का लहजा बदल गया. अब आरती उस का खयाल भी खूब रखने लगी, इसलिए आसपड़ोस वालों को संदेह होने लगा तो लोग इस बात को ले कर चर्चा करने लगे. नतीता यह निकला कि इस बात की जानकारी विजयशंकर को भी हो गई.

विजयशंकर को पत्नी पर पूरा विश्वास था, इसलिए उस ने चर्चा पर विश्वास न कर के खुद सच्चाई का पता लगाने का निश्चय किया. वह जानता था कि अगर वह इस बारे में पत्नी से पूछेगा तो वह सच्चाई बताएगी नहीं, बल्कि उस के पूछने से होशियार हो जाएगी. सच्चाई का पता लगाने के लिए वह बाहर जाने के बहाने घर से निकलता और छिप कर पत्नी तथा रामेंद्र पर नजर रखता.

उस की इस मेहनत का उसे जल्दी ही फल मिल गया. एक दिन दोपहर को उस ने आरती और रामेंद्र को रंगेहाथों पकड़ लिया. गुस्से में आरती को वह लातघूंसों से पीटने लगा. आरती के पास सफाई देने को कुछ नहीं था, इसलिए वह गलती के लिए माफी मांगते हुए भविष्य में फ

अपहरण का ऊंचा खेल

डा. श्रीकांत गौड़ पूर्वी दिल्ली के प्रीत विहार स्थित मैट्रो अस्पताल में नौकरी करते थे. 6 जुलाई, 2017 को वह ड्यूटी पूरी कर प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन पर पहुंचे. वहीं से मैट्रो पकड़ कर वह दक्षिणी दिल्ली के गौतमनगर स्थित अपने घर जाते थे. लेकिन उस दिन रात के साढ़े 11 बज चुके थे और आखिरी मैट्रो ट्रेन भी जा चुकी थी. अब घर जाने के लिए औटोरिक्शा या टैक्सी थी. सुरक्षा के लिहाज से उन्होंने टैक्सी से जाना उचित समझा.

उन्होंने गौतमनगर जाने के लिए फोन से ओला कैब बुक की तो कुछ ही देर में ओला कैब प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन के पास आ कर खड़ी हो गई. कैब में बैठ कर डा. श्रीकांत ने अपने साथ काम करने वाले डा. राकेश कुमार को फोन कर के बता दिया कि वह ओला कैब से अपने घर जा रहे हैं. डा. राकेश ही उन्हें अपनी कार से प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन छोड़ कर गए थे.

अगले दिन 7 जुलाई को डा. श्रीकांत गौड़ अपनी ड्यूटी नहीं पहुंचे तो डा. राकेश ने उन्हें फोन किया. उन का फोन स्विच्ड औफ था. दिन में उन का फोन कभी बंद नहीं रहता था. श्रीकांत को हैल्थ प्रौब्लम या कोई काम होता तो वह अस्पताल में फोन कर देते. लेकिन उस दिन उन का अस्पताल में कोई फोन भी नहीं आया था. डा. राकेश ने उन्हें कई बार फोन मिलाया, लेकिन हर बार फोन बंद मिला.

डा. राकेश को डा. श्रीकांत की चिंता हो रही थी. थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर से फोन किया. इस बार उन के फोन पर घंटी बजी तो फोन रिसीव होते ही राकेश ने कहा, ‘‘श्रीकांत भाई, कहां हो, फोन भी बंद कर रखा है. मैं कब से परेशान हो रहा हूं.’’

दूसरी ओर से जो आवाज आई, उसे सुन कर वह चौंके. आवाज उन के दोस्त श्रीकांत के बजाय किसी और की थी. उस ने उन से सीधे बात करने के बजाय गालियों की बौछार कर दी. राकेश ने उस से पूछना चाहा कि कौन बोल रहे हैं और इस तरह बात क्यों कर रहे हैं तो उस ने फोन काट दिया.

उस आदमी की टपोरी जैसी बातों से डा. राकेश को लगा कि श्रीकांत कहीं गलत लोगों के चंगुल में तो नहीं फंस गए हैं? उन्होंने यह बात अपने साथियों को बताई तो उन्हें भी लगा कि डा. श्रीकांत किसी मुसीबत में फंस गए हैं. उन सब की सलाह पर डा. राकेश ने थाना प्रीत विहार जा कर थानाप्रभारी मनिंदर सिंह को सारी बात बताई तो थानाप्रभारी ने 29 वर्षीय डा. श्रीकांत गौड़ की गुमशुदगी दर्ज कर इस की जांच एएसआई तेजवीर सिंह को सौंप दी.

एएसआई तेजवीर सिंह ने इस मामले में वह सारी काररवाई की, जो गुमशुदगी के मामले में की जाती है. 7 जुलाई को ओला कैब के कस्टमर केयर पर सुबह 4 बजे के करीब किसी ने फोन कर के कहा, ‘‘मैं ने आप के एक कस्टमर का अपहरण कर लिया है, आप अपने मालिक से बात कराइए.’’

कस्टमर केयर की जिस युवती ने काल रिसीव की थी, एक बार तो वह असमंजस में पड़ गई कि पता नहीं यह कौन है, जो सुबहसुबह इस तरह की बात कर रहा है. उस ने सोचा कि फोन करने वाला नशे में होगा, जो इस तरह की बात कर रहा है. इसलिए उस ने भी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया.

उसी दिन ओला के कस्टमर केयर सैंटर पर उसी व्यक्ति ने एक बार फिर फोन किया, ‘‘मैडम, मैं ओला कैब का ड्राइवर रामवीर बोल रहा हूं. मेरी कैब नंबर डीएल 1आर टीसी 1611 कंपनी में लगी हुई. यह कैब कल रात दिल्ली के डाक्टर ने प्रीत विहार से गौतम नगर के लिए बुक की थी. मैं ने इन का अपहरण कर लिया है. आप का कस्टमर अब मेरे कब्जे में है, अगर इस की सुरक्षित रिहाई चाहती हैं तो मुझे 5 करोड़ रुपए चाहिए.’’

उस व्यक्ति ने अपनी कैब का जो नंबर बताया था, कस्टमर केयर सैंटर कर्मी ने जब उसे चैक किया तो वास्तव में कैब रामवीर कुमार के नाम से ओला कंपनी में लगी थी. कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव ने यह जानकारी अपने अधिकारियों को दे दी. इस के बाद खबर कंपनी की लीगल सेल को दे दी गई. लीगल सेल ने जांच की तो पाया कि 6 जुलाई की रात 11 बज कर 38 मिनट पर रामवीर की कैब डा. श्रीकांत को प्रीत विहार से ले कर चली तो थी, पर डिफेंस एनक्लेव, स्वास्थ्य विहार के पास से उस का जीपीएस डिसकनेक्ट हो गया था.

रामवीर ने कंपनी में अपना मोबाइल नंबर लिखवा रखा था. लीगल सेल के अधिकारियों ने उस का वह नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. उस ने कस्टमर केयर सैंटर में जिस नंबर से बात की थी, वह डा. श्रीकांत का था. उन्होंने अपने उसी नंबर से कैब बुक कराई थी. मामला गंभीर था, इसलिए लीगल सेल द्वारा यह जानकारी थाना प्रीत विहार पुलिस को दे दी गई.

थाने में डा. राकेश ने श्रीकांत की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. ओला कंपनी के अधिकारियों से मिली जानकारी के बाद थानाप्रभारी मनिंदर सिंह ने डा. श्रीकांत की गुमशुदगी लिखवाने वाले उन के दोस्त डा. राकेश को थाने बुला लिया. अपने दोस्त के अपहरण की जानकारी पा कर वह सन्न रह गए. पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 365 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और सूचना डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई को दे दी.

डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई ने इस केस को खुलासे के लिए एसीपी हेमंत तिवारी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी मनिंदर सिंह, इंसपेक्टर रूपेश खत्री के अलावा थाने के कई एसआई, हैडकांस्टेबल और कांस्टेबलों को शामिल किया गया.

टीम ने सब से पहले यह पता लगाया कि फिरौती के लिए फोन किन जगहों से किए गए थे? उन की लोकेशन खतौली और मेरठ की मिल रही थी. 2 पुलिस टीमें इन जगहों पर भेज दी गईं. फोन डा. श्रीकांत गौड़ के मोबाइल से किए गए थे और फोन करने के बाद मोबाइल बंद कर दिया जाता था. इसलिए वह मोबाइल फोन कहां है, इस का पता लगाना आसान नहीं था.

रामवीर नाम के जिस ड्राइवर ने डा. श्रीकांत का अपहरण किया था, पता चला कि उस की कैब 2 दिन पहले ही ओला कंपनी में लगी थी और डा. श्रीकांत गौड़ उस की पहली सवारी थे. पुलिस ने ओला कंपनी से उस कैब के सभी कागजात निकलवा कर उन की जांच की. वह वैगनआर कार नंबर डीएल 1 आर टीसी 1611 उत्तरपश्चिमी दिल्ली के शालीमार बाग की रहने वाली विनीता देवी के नाम से खरीदी गई थी.

पुलिस शालीमार बाग के उस पते पर पहुंची तो पता चला कि वहां इस नाम की कोई महिला नहीं रहती थी. यानी कार की मालिक का नामपता फरजी था. कंपनी में विनीता के नाम का पैन कार्ड और महाराष्ट्रा बैंक, इंदिरापुरम (गाजियाबाद) में खुले खाते की पासबुक की फोटोकौपी और चैक भी जमा किए गए थे.

विनीता का पैन कार्ड फरजी पाया गया. बैंक से संपर्क किया गया तो पता चला कि विनीता के नाम से वहां बचत खाता तो था, पर वह कोई दूसरी विनीता थी. उस के पिता का नाम भी दूसरा था. खाताधारी असली विनीता अनपढ़ थी, इसलिए उस के नाम से चैकबुक भी जारी नहीं हुई थी. यानी पहले से ही योजना बना कर सब कुछ फरजी तरीके से किया गया था.

ड्राइवर रामवीर ने अपने जो डाक्यूमेंट्स जमा किए थे, पुलिस ने उन की जांच की. उस के आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसैंस पर मयूर विहार का पता लिखा था. वे दोनों भी फरजी पाए गए.

कागजों में जो फोटो लगे थे, बीट कांस्टेबल उन्हें ले कर मयूर विहार में घूमते रहे, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. इतना ही नहीं, गाड़ी का परमिट, फिटनेस सर्टिफिकेट, इंश्योरेंस सारी चीजें फरजी पाई गईं. ड्राइवर रामवीर ने कंपनी को अपना जो फोन नंबर दिया था, पुलिस ने उस की भी काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि वह नंबर भी हाल ही में लिया गया था और उस से उस ने 1-2 लोगों से ही बात की थी. जिन लोगों से उस ने बात की थी, उन से पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वे रामवीर को नहीं जानते. न ही उस से कभी उन की मुलाकात हुई. वहां से भी पुलिस खाली हाथ लौट आई.

इतनी माथापच्ची के बाद पुलिस की जांच जहां से शुरू हुई थी, वहीं रुक गई. कागजों की जांच के बाद पुलिस इतना तो जान गई कि अपहर्त्ता बेहद शातिर हैं, उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम दिया है.

उधर अपहर्त्ता ओला कंपनी के कस्टमर केयर सैंटर में बारबार फोन कर के फिरौती की मांग कर रहे थे. इतना ही नहीं, उन्होंने डा. श्रीकांत की 3 वीडियो भी ओला कंपनी में भेज दीं, जिन में वह खुद को छुड़ाने की विनती कर रहे थे. अपनी साख को देखते हुए ओला कंपनी के अधिकारियों ने फैसला ले लिया कि वह अपने कस्टमर को अपहर्त्ताओं के चंगुल से छुड़ाने के लिए 5 करोड़ रुपए दे देंगे.

जबकि पुलिस इस बात को ले कर परेशान थी कि अपहर्त्ता कहीं डा. श्रीकांत को नुकसान न पहुंचा दें, इसलिए पुलिस ने ओला कंपनी के अधिकारियों से कह दिया कि जब भी अपहर्त्ताओं का फोन आए, वह उन से प्यार से बातें करें.

मामले की गंभीरता को देखते हुए डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई ने इस मामले में एसीपी अंकित सिंह, राहुल अलवल, इंसपेक्टर संजीव वर्मा, डी.पी. सिंह, विदेश सिंघल, प्रशांत यादव, अजय कुमार डंगवाल, मनीष जोशी और कुछ तेजतर्रार सबइंसपेक्टरों को भी लगा दिया.

एडिशनल डीसीपी साथिया सुंदरम और एन. के. मीणा टीम का नेतृत्व कर रहे थे. डीसीपी के निर्देश पर समस्त पुलिस अधिकारी अलगअलग तरीके से अपहर्त्ताओं का पता लगाने में जुट गए.

पुलिस को यह तक पता नहीं लग पा रहा था कि अपहर्त्ताओं ने डा. श्रीकांत को कहां बंधक बना कर रखा है. क्योंकि वे कभी मुरादनगर से फोन कर रहे थे तो कभी मेरठ से. उन की मूवमेंट हरिद्वार और मुजफ्फरनगर की भी पाई गई. बागपत, बड़ौत, बिजनौर, खतौली आदि जगहों से भी उन्होंने फोन किया था. लिहाजा इन सभी जगहों पर दिल्ली पुलिस की टीमें पहुंच गईं.

डा. श्रीकांत का अपहरण हुए कई दिन हो चुके थे. तेलंगाना में डा. गौड़ के घर वालों को भी अपहर्त्ताओं ने उन के वीडियो भेज दिए थे. उन के रिश्तेदार और परिवार वाले भी दिल्ली पहुंच गए थे. मैट्रो अस्पताल के डाक्टरों के साथ वे भी थाना प्रीत विहार पहुंच गए थे.

डीसीपी मामले की अपडेट पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को दे रहे थे. अपहर्त्ताओं की काल डिटेल्स आदि से यही लग रहा था कि बदमाश मेरठ रेंज में ही कहीं हैं, इसलिए पुलिस कमिश्नर ने मेरठ रेंज के आईजी से बात की. आईजी ने डाक्टर को रिहा कराने में हर तरह का सहयोग देने का आश्वासन दिया. उन्होंने मेरठ की एसएसपी मंजिल सैनी और एसटीएफ के एसपी आलोक प्रियदर्शी को दिल्ली पुलिस की मदद के लिए लगा दिया.

पुलिस कमिश्नर के आदेश पर स्पैशल सेल के इंसपेक्टर भूषण, उत्तरपूर्वी दिल्ली के वाहन चोर निरोधी दस्ते के इंसपेक्टर विनय यादव, ऐशवीर सिंह, शाहदरा क्षेत्र के एसीपी मनोज पंत भी अपनीअपनी टीम के साथ इस मामले की जांच में लग गए थे. करीब 100 पुलिसकर्मियों की अलगअलग टीमें केस को सुलझाने में लग गईं.

जिस ओला कैब से डाक्टर का अपहरण किया गया था, उस की फोटो गाड़ी के पेपरों के साथ ओला कंपनी के औफिस में जमा थी. उस फोटो को ध्यान से देखा गया तो उस पर तान्या मोटर्स, मेरठ का स्टीकर लगा था.

पुलिस की एक टीम मेरठ स्थित मारुति के डीलर तान्या मोटर्स पर पहुंची. स्टीकर देख कर यही लग रहा था कि वह वैगनआर उसी शोरूम से खरीदी गई होगी. पुलिस टीम ने उस शोरूम से पता किया कि पिछले एकडेढ़ साल में सफेद रंग की कितनी वैगनआर बेची गईं. पता चला कि करीब 700 कारें सफेद रंग की बेची गई थीं. पुलिस ने उन सभी कारों के रजिस्ट्रेशन नंबर हसिल कर लिए. इस बात की पुष्टि हो चुकी थी कि जिस ओला कैब से डाक्टर का अपहरण हुआ था, उस पर फरजी नंबर लगा था. पुलिस को तान्या मोटर्स से जिन सफेद रंग की वैगनआर कारों की डिटेल्स मिली थी, उन में से यह पता लगाना आसान नहीं था कि उन में अपहर्त्ता की कार थी या नहीं?

पुलिस टीम ने सफेद रंग की सभी कारों की लिस्ट ओला कंपनी को देते हुए यह जानकारी मांगी कि पिछले 2 सालों के अंदर इन कारों में से कोई कार ओला में कैब के रूप में लगी थी या नहीं, साथ ही यह भी जानकारी निकलवाई कि इन 700 कारों में से किसी कार को किसी भी वजह से ओला कंपनी से हटाया तो नहीं गया था.

ओला अधिकारियों ने सभी 700 नंबरों को वेरिफाई किया. इस से पता चला कि 12 मार्च, 2017 को एक ड्राइवर सुशील को कस्टमर्स के साथ अभद्र व्यवहार करने, कंपनी के हिसाब में हेराफेरी करने जैसी शिकायतों के चलते कार सहित ओला से हटाया गया था.

पुलिस ने सुशील कुमार का पता मालूम किया तो जानकारी मिली कि वह खतौली मेरठ रोड पर स्थित गांव दादरी का रहने वाला था. एक पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. पुलिस को जानकारी मिली कि वह वसुंधरा में रहता है. दिल्ली पुलिस की एक टीम तुरंत वसुंधरा में उस का पता लगाने पहुंच गई.

पर वह वहां भी नहीं मिला. मुखबिर द्वारा सुशील के छोटे भाई अनुज का फोन नंबर मिल गया. अब तक दिल्ली पुलिस की टीमें खतौली, हरिद्वार, मुजफ्फरनगर, मेरठ, मीरापुर, बिजनौर, बागपत, बड़ौत आदि जगहों पर पहुंच चुकी थीं. हापुड़ में सुशील की ससुराल थी तो एक टीम हापुड़ में भी तैनात हो गई. पुलिस ने सुशील के भाई अनुज का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा रखा था. पुलिस उस के औन होने का इंतजार कर रही थी.

अपहर्त्ता अभी भी ओला कंपनी के कस्टमर केयर सैंटर पर फोन कर के 5 करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे थे. ओला कंपनी के कारपोरेट प्रेसीडेंट जौय बांदेकर ने 5 करोड़ रुपए पुलिस को दे कर अपने कस्टमर को छुड़ाने की मांग की. अपहर्त्ता वाट्सऐप के अलावा एसएमएस भी कर रहे थे. उन्होंने 5 करोड़ रुपयों के फोटो वाट्सऐप से भेजने को कहा तो पुलिस ने 500-500 रुपए के नोटों के बंडलों की फोटो खींच कर उन्हें भेज दी.

अपहर्त्ताओं ने कहा कि वे यह चिल्लर नहीं लेंगे. उन्होंने 2-2 हजार के नोटों की मांग की. ओला कंपनी के पास उस समय 2-2 हजार के इतने नोट नहीं थे, लिहाजा उन्होंने किसी तरह उन की व्यवस्था की.

15 जुलाई को अपहर्त्ताओं ने कहा कि पैसे कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बताएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि रकम मिल जाने के 4-5 घंटे बाद डाक्टर को छोड़ दिया जाएगा. ओला कंपनी के अधिकारी ने इतनी देर बाद रिहा करने की वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि फिरौती की रकम को पहले गिनेंगे. इस पर ओला के अधिकरी ने कहा कि भले ही आप डाक्टर को 4 घंटे बाद छोड़ें, पर जब हम रकम पूरी दे रहे हैं तो हमें डाक्टर सुरक्षित चाहिए.

‘‘पैसे पूरे हुए तो डाक्टर भी सुरक्षित मिलेगा.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

इस फोन की लोकेशन बागपत के पास की ही थी. पुलिस आयुक्त के निर्देश पर पूर्वी जिले के डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई टीम के साथ बागपत पहुंच गए. डाक्टर की जान को कोई खतरा न हो, इस के लिए पुलिस फूंकफूंक कर कदम रख रही थी.

16 जुलाई को दोपहर के समय अनुज का फोन औन हुआ तो उस की लोकेशन खतौली की मिली. दिल्ली पुलिस की सूचना पर वहां की लोकल पुलिस और एसटीएफ भी वहां पहुंच गई. तभी दौराला के पास वैगनआर कार दिखाई दी. पुलिस ने उस कार का पीछा किया तो वह कार को दौड़ाते हुए सकौती बाजार की तरफ ले गया.

सादे कपड़ों में पुलिस प्राइवेट गाडि़यों में थी. पुलिस ने उस कार का पीछा किया तो वह तेजी से रेलवे फाटक पार कर गई, जबकि पुलिस भीड़ में फंस गई. रास्ते में कई लोगों को टक्कर लगतेलगते बची. इसी बीच पीरपुर गांव के पास वैगनआर का टायर पंक्चर हो गया तो चालक कार को वहीं छोड़ कर गन्ने के खेत में घुस गया.

कुछ ही देर में वहां भारी तादाद में पीएसी पहुंच गई. पुलिस ने कई घंटे तक वहां कौंबिंग की, लेकिन कार का ड्राइवर पुलिस के हाथ नहीं लगा. पुलिस ने वह कार बरामद कर ली. उस समय उस पर वही नंबर लिखा था, जो ओला के कागजों में दर्ज था. इस के बाद पुलिस ने सुशील के घर वालों और रिश्तेदारों पर दबाव बनाया.

16 जुलाई की रात को पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि सुशील का एक साथी है प्रमोद, जो मुजफ्फरनगर के मीरापुर गांव में रहता है. उस के पास दिल्ली के नंबर की एक अल्टो कार है. किसी तरह प्रमोद को भनक लग गई थी कि दिल्ली पुलिस इलाके में डेरा डाले हुए है. इसलिए पुलिस के मीरापुर पहुंचने से पहले ही वह घर से फरार हो गया.

17 जुलाई को पुलिस को सुशील के साथी गौरव के बारे में जानकारी मिली, जो मेरठ शहर में सुभारती अस्पताल के पास रहता है. करीब 2 घंटे की मशक्कत के बाद पुलिस ने उस का कमरा ढूंढ लिया. पर वह भी कमरे पर नहीं मिला. लोगों ने बताया कि वह यहां किराए पर रहता था और 2 दिन पहले जा चुका है.

दिल्ली पुलिस की टीमें वहां डेरा जमाए हुए थीं. 19 जुलाई को मुखबिर से पता चला कि प्रमोद मीरापुर के रहने वाले अमित के साथ 3-4 दिनों से घूम रहा है. किसी तरह से अमित पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने जब उस से डा. श्रीकांत के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि डाक्टर अभी ठीक है. प्रमोद ही डाक्टर को अलगअलग जगहों पर रख रहा है. इस समय वह परतापुर के शताब्दीनगर में है.

पुलिस उसे ले कर शताब्दीनगर पहुंची तो पता चला कि वे सोहनवीर के मकान में हैं. पुलिस ने उस घर को चारों ओर से घेर लिया. भारी संख्या में हथियारबंद पुलिस को देख कर इलाके के लोग हैरान रह गए. पुलिस ने लोगों को हिदायत दी कि काररवाई चलने तक कोई भी अपने घर से बाहर न निकले.

इस के बाद पुलिस ने औपरेशन डाक्टर शुरू किया. सोहनवीर के घर में मौजूद बदमाशों को जब पता चला कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया है तो उन्होंने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. काफी देर तक दोनों ओर से फायरिंग होती रही.

पुलिस की गोली से प्रमोद घायल हो गया. किसी तरह पुलिस उस मकान में घुस गई, जहां डा. श्रीकांत को बंधक बना कर रखा गया था. पुलिस ने डाक्टर को सुरक्षित अपने कब्जे में ले लिया. मौके से पुलिस ने नेपाल, विवेक उर्फ मोदी और प्रमोद को गिरफ्तार कर लिया. प्रमोद ने कांवडि़यों जैसे कपड़े पहन रखे थे. पुलिस ने उसे पास के अस्पताल में भरती करा दिया. मकान मालिक सोहनवीर को भी हिरासत में ले लिया गया.

डा. गौड़ की सुरक्षित बरामदगी से पुलिस ने राहत की सांस ली. डाक्टर के घर वालों और मैट्रो अस्पताल में डा. श्रीकांत गौड़ के सुरक्षित रिहा कराने की जानकारी मिली तो सभी खुश हुए. गिरफ्तार बदमाशों से पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि किडनैपिंग की पूरी वारदात को सुशील, उस के भाई अनुज, गौरव पंडित और विवेक उर्फ मोदी ने अंजाम दिया था. सुशील और अनुज दादरी के रहने वाले थे, जबकि अन्य सभी दौराला के.

पुलिस ने डाक्टर को तो सुरक्षित बरामद कर लिया था, लेकिन योजना को अंजाम देने वाले मुख्य अभियुक्तों सुशील और अनुज का गिरफ्तार होना जरूरी था. पुलिस टीमें इन दोनों अभियुक्तों की तलाश में जुट गईं, पर उन का कहीं पता नहीं चल रहा था. तब दिल्ली पुलिस ने इन दोनों भाइयों की गिरफ्तारी पर 50-50 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया.

दिल्ली पुलिस मुख्य अभियुक्तों को तलाश रही थी तो मेरठ पुलिस भी इन्हें तत्परता से खोज रही थी. इस में सफलता मिली मेरठ की एसटीएफ को. एक सूचना के आधार पर एसटीएफ ने 4 अगस्त, 2017 को सुशील और अनुज को मेरठ में एक मुठभेड़ के बाद नगली गेट के पास से गिरफ्तार कर लिया. प्रीत विहार के थानाप्रभारी मनिंदर सिंह को जब उन की गिरफ्तारी की सूचना मिली तो वह 10 अगस्त को पूछताछ के लिए उन्हें दिल्ली ले आए.

दिल्ली पुलिस ने सुशील और अनुज से पूछताछ की तो उन्होंने डा. श्रीकांत के अपहरण की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

सुशील कुमार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के दौराला थाने के दादरी गांव के रहने वाले सतबीर का बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. किसी दोस्त ने उसे बताया कि ओला कंपनी में टैक्सी के रूप में गाड़ी लगा देने पर महीने में अच्छीखासी कमाई हो जाती है. दोस्त की सलाह उसे पसंद आ गई. उस ने मेरठ की तान्या मोटर्स से एक वैगनआर कार खरीदी और ओला कंपनी में कैब के रूप में लगा दी.

यह सन 2014 की बात है. दिल्ली से रोजाना गांव जाना आसान नहीं था, इसलिए वह वसुंधरा में किराए का फ्लैट ले कर रहने लगा. ओला कंपनी से सुशील को हर महीने अच्छी कमाई होने लगी तो उस ने अपने छोटे भाई अनुज के नाम से भी एक और कार ओला में लगवा दी. दोनों भाई वहां काम कर के खुश थे.

कंपनी ने ड्राइवरों को प्रोत्साहन देने के लिए बोनस देने की योजना चला रखी थी. यह बोनस निर्धारित राइड से ज्यादा राइड पर था.  इसलिए दोनों भाई ज्यादा से ज्यादा चक्कर लगाने की कोशिश करते. इसी दौरान सुशील के दिमाग में लालच आ गया. उस ने फरजी आईडी पर रोजाना 20 बुकिंग करनी शुरू कर दीं. इस से उसे रोजाना 20 हजार रुपए की आमदनी होने लगी.

सुशील मोटी कमाई करने लगा तो उसे घमंड भी गया, जिस से वह ग्राहकों से भी दुर्व्यवहार करने लगा. ये शिकायतें ओला कंपनी तक पहुंची तो उन्होंने जांच कराई. जांच में फरजी आईडी पर बुकिंग करने की बात सामने आ गई.

इस के बाद उस की दोनों गाडि़यां ओला कंपनी से हटा दी गईं. ओला कंपनी से गाडि़यां हटने के बाद दोनों को बहुत बड़ा झटका लगा. उन्होंने तय कर लिया कि वे ओला कंपनी को सबक सिखाएंगे.

दोनों भाई दबंग प्रवृत्ति के तो थे ही, बताया जाता है कि उन्होंने सन 2011 में नोएडा के एक बिजनैसमैन का अपहरण कर के उस के घर वालों से 5 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी थी. फिरौती के 5 करोड़ तो नहीं मिले थे, पर एक करोड़ रुपए में बात फाइनल हो गई थी और रुपए ले कर ही उसे छोड़ा था.

एक बार उन्होंने अखबार में एक खबर पढ़ी थी, ‘दुष्कर्म पीडि़ता ने ऊबर पर ठोका केस’. यह खबर पढ़ने के बाद सुशील के दिमाग में आइडिया आया कि अगर ओला के किसी कस्टमर का अपहरण कर लिया जाए तो उस की फिरौती ओला से मांगी जा सकती है. क्योंकि सवारी की सुरक्षा की जिम्मेदारी कंपनी की हो जाती है. ओला को सबक सिखाने का यह तरीका सुशील को पसंद आया. यह 5 महीने पहले की बात है.

इस के बाद सुशील अपने भाई अनुज के साथ योजना बनाने लगा. चूंकि उन की गाडि़यां ओला से निकाली जा चुकी थीं, इसलिए गाडि़यां उन के नाम से फिर से कंपनी में नहीं लग सकती थीं. यह काम फरजी कागजों द्वारा ही संभव था. एक दिन सुशील को इंदिरापुरम इलाके में महाराष्ट्रा बैंक की एक पासबुक सड़क किनारे मिल गई. वह विनीता देवी की थी. अब सुशील ने अपने दिमागी घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए.

उस ने विनीता के नाम से अपनी वैगनआर कार के फरजी कागज बनवा लिए, जिस में उस ने गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर भी बदल दिया. विनीता के नाम से एक पैन कार्ड और आधार कार्ड भी बनवा लिया. गाड़ी के कागजों के साथ ड्राइवर के कागज भी ओला कंपनी में जमा होने थे.

लिहाजा रामवीर के नाम एक फरजी ड्राइविंग लाइसैंस, आधार कार्ड आदि बनवा लिया. इतना ही नहीं, उस ने एक निजी कंपनी के नाम से गाड़ी के इंश्योरेंस के कागज भी तैयार करा लिए. जिस तरह से फरजी कागज तैयार हुए, उसी तरह से गाड़ी के फिटनेस पेपर भी तैयार हो गए.

सारे कागज तैयार करा कर वसुंधरा में ओला के एक वेंडर को 1500 रुपए दे कर वे फरजी कागज वैरिफाई करा लिए. इस तरह 4 जुलाई, 2017 को वह अपनी कार ओला कंपनी में टैक्सी के रूप में लगाने में सफल हो गया. दोनों भाइयों ने पहले ही तय कर रखा था कि जो भी पहली अकेली सवारी उन की गाड़ी में बैठगी, वह उसी का अपहरण कर ओला कंपनी से 5 करोड़ की फिरौती मांगेंगे.

सवारी को किडनैप कर के कहां ले जाना है, यह योजना उस ने मेरठ के रहने वाले अपने दोस्त प्रमोद कुमार, मुजफ्फरनगर के गांव खादी के अमित कुमार, सहारनपुर के गांव शब्बीरपुर के नेपाल उर्फ गोवर्द्धन, विवेक उर्फ मोदी और गौरव के साथ मिल कर पहले ही बना ली थी.

अब उन्हें पहली सवारी या कहिए शिकार का इंतजार था. इत्तफाक से 4 जुलाई को सुशील को बुकिंग मिल गई. सुशील ने कस्टमर से पूछा कि कितनी सवारी हैं. जब कस्टमर ने बताया कि 3 सवारियां हैं तो उस ने बहाना बना कर जाने से मना कर दिया.

5 जुलाई को उसे कोई बुकिंग नहीं मिली. फिर 6 जुलाई को उसे डा. श्रीकांत गौड़ की बुकिंग मिली. सुशील ने डा. गौड़ से पूछा कि साथ में कितनी सवारियां हैं. जब पता चला कि वह अकेले हैं तो सुशील ने अपने साथियों को अलर्ट कर दिया.

डा. गौड़ को प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन के पास से ले कर चलने के बाद कुछ दूरी चलने पर उस ने गाड़ी में लगा जीपीएस डिसकनेक्ट कर दिया. वह लक्ष्मीनगर की ओर बढ़ा. आगे सैंट्रो कार मिली, जिस में उस का भाई अनुज अपने साथियों गौरव और विवेक उर्फ मोदी के साथ बैठा था.

सैंट्रो कार के पास सुशील ने कैब रोक दी. उस में से अनुज और गौरव उतर कर सुशील की कैब में बैठ गए.

डा. गौड़ ने पूछा कि ये लोग कौन हैं और इन्हें गाड़ी में क्यों बिठाया तो उन बदमाशों ने उन्हें डराधमका कर चुप रहने को कहा. उन का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर उन्हें नशे का इंजेक्शन लगा दिया. इस के बाद वे डाक्टर को वसुंधरा ले गए, जहां उन्होंने सैंट्रो कार छोड़ दी. इस के बाद वे डाक्टर को दौराला ले गए.

सुबह 4 बजे के करीब सुशील ने ओला कंपनी के कस्टमर केयर नंबर पर फोन कर के कस्टमर डा. श्रीकांत का अपहरण करने की सूचना दे दी. इस के बाद सुशील का साथी प्रमोद अपहृत डाक्टर को अलगअलग जगहों पर रखने की व्यवस्था करता रहा. एक जगह पर उन्हें केवल 2-3 दिन ही रखा जाता था. प्रमोद कांवडि़यों की तरह गेरुए रंग के कपड़े पहने रहता था, ताकि उस पर कोई शक न करे.

सुशील अलगअलग जगहों पर जा कर डाक्टर के घर वालों और ओला कंपनी में फोन कर के फिरौती की 5 करोड़ की रकम की डिमांड करता रहा. इतना ही नहीं, डाक्टर के 3 वीडियो भी बना कर भेजे. सुशील ने ओला कंपनी के अधिकारियों को इतना डरा दिया था कि वे 5 करोड़ रुपए देने को तैयार हो गए थे.

सादे कपड़ों में दिल्ली पुलिस 5 करोड़ रुपए ले कर बागपत के पास पहुंची भी थी. पैसे लेने अनुज वैगनआर कार से आया भी था, पर पुलिस की शंका होने पर वह कार छोड़ कर गन्ने के खेत में घुस गया. इस के बाद सुशील को जब पता चला कि उस के कुछ साथी पकड़े जा चुके हैं तो वह खुद अंडरग्राउंड हो गया.

पुलिस ने सुशील और अनुज की पत्नी सहित परिवार के अन्य लोगों को हिरासत में लिया तो वे परेशान हो गए. बाद में मुखबिर की सूचना पर मेरठ के नगली गेट इलाके से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सुशील और अनुज से पूछताछ कर पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अब मामले की जांच इंसपेक्टर रूपेश खत्री कर रहे हैं.

पिता का हत्यारा बेटा

15 जून, 2017 की रात 10 बजे रिटायर्ड एएसआई मदनलाल   अपने घर वालों से यह कह कर मोटरसाइकिल ले निकले थे कि दरवाजा बंद कर लें, वह थोड़ी देर में वापस आ रहे हैं. लेकिन वह गए तो लौट कर नहीं आए. उन के वापस न आने से घर वालों को चिंता हुई. 65 वर्षीय मदनलाल पंजाब के जिला होशियारपुर राज्यमार्ग पर शामचौरासी-पंडोरी लिंक रोड पर स्थित थाना बुल्लेवाल के गांव लंबेकाने के रहने वाले थे.

मदनलाल सीआईएसएफ से लगभग 5 साल पहले रिटायर हुए थे. उन्हें पेंशन के रूप में एक मोटी रकम तो मिलती ही थी, इस के अलावा उन के 3 बेटे विदेश में रह कर कमा रहे थे. इसलिए उन की गिनती गांव के संपन्न लोगों में होती थी. उन के पास खेती की भी 8 किल्ला जमीन थी.

मदनलाल के परिवार में पत्नी निर्मल कौर के अलावा 3 बेटे दीपक सिंह उर्फ राजू, प्रिंसपाल सिंह, संदीप सिंह और एक बेटी थी, जो बीए फाइनल ईयर में पढ़ रही थी. दीपक और प्रिंसपाल कुवैत में रहते थे, जबकि संदीप ग्रीस में रहता था. उन के चारों बच्चों में से अभी एक की भी शादी नहीं हुई थी. बेटे कमा ही रहे थे, इसलिए मदनलाल को अब जरा भी चिंता नहीं थी.

मदनलाल सुबह जल्दी और रात में अपने खेतों का चक्कर जरूर लगाते थे. उस दिन भी 10 बजे वह अपने खेतों का चक्कर लगाने गए थे, लेकिन लौट कर नहीं आए थे. उन का बेटा दीपक एक सप्ताह पहले ही 8 जून को एक महीने की छुट्टी ले कर घर आया था.

सुबह जब दीपक को पिता के रात को घर न लौटने की जानकारी हुई तो वह मां निर्मल कौर के साथ उन की तलाश में खेतों पर पहुंचा. दरअसल उन्हें चिंता इस बात की थी कि रात में पिता कहीं मोटरसाइकिल से गिर न गए हों और उठ न पाने की वजह से वहीं पड़े हों.

खेतों पर काम करने वाले मजदूरों ने जब बताया कि वह रात को खेतों पर आए ही नहीं थे तो मांबेटे परेशान हो गए. वे सोचने लगे कि अगर मदनलाल खेतों पर नहीं गए तो फिर गए कहां  निर्मल कौर कुछ ज्यादा ही परेशान थीं. दीपक ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘मां, तुम बेकार ही परेशान हो रही हो. तुम्हें तो पता ही है कि वह अपनी मरजी के मालिक हैं. हो सकता है, किसी दोस्त के यहां या फिर बगल वाले गांव में चाचाजी के यहां चले गए हों ’’

crime

जबकि सच्चाई यह थी कि दीपक खुद भी पिता के लिए परेशान था. जब खेतों पर मदनलाल के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वह मां के साथ घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में उसे बगल के गांव में रहने वाले चाचा ओंकार सिंह और हरदीप मिल गए. उन के मिलने से पता चला कि मदनलाल उन के यहां भी नहीं गए थे. सभी मदनलाल के बारे में पता करते हुए शामचौरासी-पंडोरी फांगुडि़या लिंक रोड के पास पहुंचे तो वहां उन्होंने एक जगह भीड़ लगी देखी. सभी सोच रहे थे कि आखिर वहां क्यों लगी है, तभी किसी ने आ कर बताया कि वहां सड़क पर मदनलाल की लाश पड़ी है. यह पता चलते ही सभी भाग कर वहां पहुंचे. सचमुच वहां खून से लथपथ मदनलाल की लाश पड़ी थी. लाश देख कर सभी सन्न रह गए. मदनलाल के सिर, गरदन, दोनों टांगों और बाजू पर तेजधार हथियार के गहरे घाव थे.

इस घटना की सूचना तुरंत थाना बुल्लेवाल पुलिस को दी गई. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुखविंदर सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. भीड़ को किनारे कर के उन्होंने लाश का मुआयना किया. इस के बाद अधिकारियों को घटना की सूचना दे कर क्राइम टीम और एंबुलेंस बुलवा ली. उन्हीं की सूचना पर डीएसपी स्पैशल ब्रांच हरजिंदर सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे.

मामला एक रिटायर एएसआई की हत्या का था, इसलिए एसपी अमरीक सिंह भी आ पहुंचे थे. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर दिशानिर्देश दे कर पुलिस अधिकारी चले गए. मृतक मदनलाल का परिवार मौके पर मौजूद था, इसलिए सुखविंदर सिंह ने उन की पत्नी निर्मल कौर और बेटे दीपक से पूछताछ की. इस के बाद निर्मल कौर के बयान के आधार पर मदनलाल की हत्या का मुकदमा अपराध संख्या 80/2017 पर अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

मृतक मदनलाल की पत्नी और बेटे दीपक ने शुरुआती पूछताछ में जो बताया था, उस से हत्यारों तक बिलकुल नहीं पहुंचा जा सकता था. पूछताछ में पता चला था कि मदनलाल की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. गांव वाले उन का काफी सम्मान करते थे. इस की वजह यह थी कि वह हर किसी की परेशानी में खड़े रहते थे. अब तक मिली जानकारी में पुलिस को कोई ऐसी वजह नजर नहीं आ रही थी कि कोई उन की हत्या करता.

इस मामले में लूट की भी कोई संभावना नहीं थी. वह घर में पहनने वाले कपड़ों में थे और मोटरसाइकिल भी लाश के पास ही पड़ी मिली थी. गांव वालों से भी पूछताछ में सुखविंदर सिंह के हाथ कोई सुराग नहीं लगा. घर वालों ने जो बता दिया था, उस से अधिक कुछ बताने को तैयार नहीं थे.

चूंकि यह एक पुलिस वाले की हत्या का मामला था, इसलिए इस मामले पर एसएसपी हरचरण सिंह की भी नजर थी. 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब कोई नतीजा सामने नहीं आया तो उन्होंने डीएसपी हरजिंदर सिंह के नेतृत्व में एक स्पैशल टीम का गठन कर दिया, जिस में थानाप्रभारी सुखविंदर सिंह के अलावा सीआईए स्टाफ इंचार्ज सतनाम सिंह को भी शामिल किया था.

टीम ने नए एंगल से जांच शुरू की. सुखविंदर सिंह ने अपने मुखबिरों को मदनलाल के घरपरिवार के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया था. इस के अलावा मदनलाल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, तलवार जैसे किसी हथियार से गले पर लगे घाव की वजह से सांस नली कट गई थी, जिस से उन की मौत हो गई थी. इस के अलावा शरीर पर 8 अन्य गंभीर घाव थे. पोस्टमार्टम के बाद लाश मिलते ही घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया था.

मुखबिरों से सुखविंदर सिंह को जो खबर मिली, वह चौंकाने वाली थी. मुखबिरों के बताए अनुसार, मृतक के घर में हर समय क्लेश रहता था. घरपरिवार में जैसा माहौल होना चाहिए था, मृतक के घरपरिवार में बिलकुल नहीं था. ऐसा एक भी दिन नहीं होता था, जिस दिन पतिपत्नी में मारपीट न होती रही हो. मदनलाल पत्नी ही नहीं, जवान बेटी को भी लगभग रोज मारतापीटता था.

सुखविंदर सिंह ने सारी बातें एसएसपी और एसपी को बता कर आगे के लिए दिशानिर्देश मांगे. अधिकारियों के ही निर्देश पर सुखविंदर सिंह और सीआईए स्टाफ इंचार्ज सतनाम सिंह ने गांव जा कर मृतक के घर वालों से एक बार फिर अलगअलग पूछताछ की. घर वालों ने इन बातों को झूठा बता कर ऐसेऐसे किस्से सुनाए कि पूछताछ करने गए सुखविंदर सिंह और सतनाम सिंह को यही लगा कि शायद मुखबिर को ही झूठी खबर मिली है.

लेकिन मदनलाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स आई तो निराश हो चुकी पुलिस को आशा की एक किरण दिखाई दी. काल डिटेल्स के अनुसार, 15 जून की रात पौने 10 बजे मदनलाल को उन के बेटे दीपक ने फोन किया था. जबकि दीपक ने पूछताछ में ऐसी कोई बात नहीं बताई थी. इस का मतलब था कि घर वालों ने झूठ बोला था और वे कोई बात छिपाने की कोशिश कर रहे थे.

एसएसपी और एसपी से निर्देश ले कर सुखविंदर सिंह और सतनाम सिंह ने डीएसपी हरजिंदर सिंह की उपस्थिति में मदनलाल के पूरे परिवार को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. तीनों से अलगअलग पूछताछ शुरू हुई. दीपक से जब पिता को फोन करने के बारे में पूछा गया तो उस ने साफ मना करते हुए कहा, ‘‘सर, आप लोगों को गलतफहमी हो रही है. उस रात मैं घर पर ही नहीं था. एक जरूरी काम से मैं होशियारपुर गया हुआ था. अगर मैं गांव में होता तो पापा को खेतों पर जाने ही न देता.’’

‘‘हम वह सब नहीं पूछ रहे हैं, जो तुम हमें बता रहे हो. मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम ने उस रात अपने पिता को फोन किया था या नहीं ’’ सुखविंदर सिंह ने पूछा.

‘‘आप भी कमाल करते हैं साहब, मेरे पापा की हत्या हुई है और आप कातिलों को पकड़ने के बजाय हमें ही थाने बुला कर परेशान कर रहे हैं.’’ दीपक ने खड़े होते हुए कहा, ‘‘अब मैं आप के किसी भी सवाल का जवाब देना उचित नहीं समझता. मैं अपनी मां और बहन को ले कर घर जा रहा हूं. कल मैं आप लोगों की शिकायत एसपी साहब से करूंगा. आप ने मुझे समझ क्या रखा है. मैं भी एक पुलिस अधिकारी का बेटा और एनआरआई हूं.’’

दीपक की धमकी सुन कर एकबारगी तो पुलिस अधिकारी खामोश रह गए. लेकिन डीएसपी साहब ने इशारा किया तो दीपक को अलग ले जा कर थोड़ी सख्ती से पूछताछ की गई. फिर तो उस ने जो बताया, सुन कर पुलिस अधिकारी हैरान रह गए. पता चला, घर वालों ने ही सुपारी दे कर मदनलाल की हत्या करवाई थी, जिस में मदनलाल की निर्मल कौर ही नहीं, विदेश में रह रहे उस के दोनों बेटे भी शामिल थे. इस तरह 72 घंटे में इस केस का खुलासा हो गया.

पुलिस ने दीपक और उस की मां निर्मल कौर को हिरासत में ले लिया. अगले दिन दोनों को अदालत में पेश कर के विस्तार से पूछताछ एवं सबूत जुटाने के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान सब से पहले दीपक की निशानदेही पर इस हत्याकांड में शामिल 2 अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए छापा मारा गया.

इस छापेमारी में अहिराना कला-मोहितयाना निवासी सतपाल के बेटे सुखदीप को तो गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन दूसरा अभियुक्त सोहनलाल का बेटा रछपाल फरार हो गया. तीनों अभियुक्तों से पूछताछ में मदनलाल की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—

यह बात सही थी कि मदनलाल का परिवार रुपएपैसे से काफी सुखी था, लेकिन यह बात भी सही है कि रुपएपैसे से इंसान को वह सुख नहीं मिलता, जिस के लिए वह जीवन भर भागता रहता है. ऐसा ही कुछ मदनलाल के घर भी था. 5 साल पहले रिटायर हो कर वह अपने घर आए तो 2 साल तो बहुत अच्छे से गुजरे. घर का माहौल भी काफी अच्छा रहा.

लेकिन अचानक न जाने क्या हुआ कि मदनलाल डिप्रेशन में रहने लगे. धीरेधीरे उन की यह बीमारी बढ़ती गई. फिर एक समय ऐसा आ गया, जब छोटीछोटी बातों पर वह उत्तेजित हो उठते और आपे से बाहर हो कर घर वालों से मारपीट करने लगते. इस में हैरानी वाली बात यह थी कि मदनलाल का यह व्यवहार केवल घर वालों तक ही सीमित था. बाहर वालों के साथ उन का व्यवहार सामान्य रहता था.

बेटे जब भी छुट्टी पर आते, पिता को समझाते. उन के रहने तक तो वह ठीक रहते, उन के जाते ही वह पहले की ही तरह व्यवहार करने लगते. मदनलाल लगभग रोज ही पत्नी और बेटी के साथ मारपीट तो करते ही थे, इस से भी ज्यादा परेशानी की बात यह थी कि वह उन्हें घर से भी निकाल देते थे. ऐसे में निर्मल कौर अपनी जवान बेटी को ले कर डरीसहमी रात में किसी के घर छिपी रहती थीं.

अपनी परेशानी निर्मल कौर फोन द्वारा बेटों को बताती रहती थीं. पिता के इस व्यवहार से विदेश में रह रहे बेटे भी परेशान रहते थे. कभीकभी की बात होती तो बरदाश्त भी की जा सकती थी, लेकिन लगभग 3 सालों से यही सिलसिला चला रहा था.

पिता सुधर जाएंगे, तीनों बेटे इस बात का इंतजार करते रहे. लेकिन सुधरने के बजाय वह दिनोंदिन बिगड़ते ही जा रहे थे. घर से हजारों मील दूर बैठे बेटे हर समय मां और बहन के लिए परेशान रहते थे. आखिर जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो तीनों भाइयों ने मिल कर एक खतरनाक योजना बना डाली. यह योजना थी पिता के वजूद को ही खत्म करने की.

इस योजना में निर्मल कौर भी शामिल थी. हां, बेटी जरूर मना करती रही थी, पर उसे सभी ने यह कह कर चुप करा दिया कि वह पराया धन है, उसे आज नहीं तो कल इस घर से चली जाना है. वे सब कब तक इस तरह घुटघुट कर जीते रहेंगे  कल शादियां होने पर उन की पत्नियां आएंगी, तब वे क्या करेंगे.

भाइयों का भी कहना अपनी जगह ठीक था, इसलिए बहन खामोश रह गई. अब जो करना था, दीपक और निर्मल कौर को करना था. योजना के अनुसार, 9 जून, 2017 को दीपक कुवैत से घर आ गया. घर आते ही वह अपने दोस्तों सुखदीप सिंह और रछपाल से मिला और उन्हें पिता को रास्ते से हटाने की सुपारी 2 लाख रुपए में दे दी, साथ ही यह भी वादा किया कि वह उन्हें कुवैत में सैटल करा देगा.

इस के बाद दीपक के भाई प्रिंसपाल ने कुवैत से दीपक के खाते में डेढ़ लाख रुपए भेज दिए, जिस में से दीपक ने 1 लाख रुपए सुखदीप और रछपाल को दे दिए. बाकी पैसा उस ने काम होने के बाद देने को कहा.

दीपक के दोस्तों में सुखदीप तो सीधासादा युवक था, लेकिन रछपाल पेशेवर अपराधी था. उस पर सन 2011 से दोहरे हत्याकांड का केस चल रहा है. वह इन दिनों पैरोल पर जेल से बाहर आया हुआ था.

योजना के अनुसार, 15 जून की रात 9 बजे दीपक, सुखदीप और रछपाल शामचौरासी-पंडोरी रोड पर इकट्ठा हुए. वहीं से दीपक ने मदनलाल को फोन किया, ‘‘पापाजी, मेरी गाड़ी पंडोरी के पास खराब हो गई है. आप अपनी मोटरसाइकिल ले कर आ जाइए तो मैं आप के साथ आराम से चला चलूं.’’

मदनलाल किसी समस्या की वजह से मानसिक बीमारी से जरूर परेशान थे, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं था या वह अपना भलाबुरा नहीं समझते था. वह सिर्फ निर्मल कौर को ही देख कर उत्तेजित होते थे. वह ऐसा क्यों करते थे, इस बात को जानने की कभी किसी ने कोशिश नहीं की.

बहरहाल, दीपक का फोन आने के बाद मदनलाल ने कहा कि वह चिंता न करे, मोटरसाइकिल ले कर वह पहुंच रहे हैं. जबकि उस दिन उन की तबीयत ठीक नहीं थी और वह खेतों पर भी नहीं जाना चाहते थे. पर बेटे की परेशानी सुन कर उन्होंने मोटरसाइकिल उठाई और दीपक की बताई जगह पर पहुंच गए.

दीपक, रछपाल और सुखदीप तलवारें लिए वहां छिपे बैठे थे. मदनलाल के पहुंचते ही तीनों उन पर इस तरह टूट पड़े कि उन्हें संभलने का मौका ही नहीं मिला. पलभर में ही मदनलाल सड़क पर गिर कर हमेशा के लिए शांत हो गए. इस तरह बेटे के हाथों मानसिक रूप से बीमार पिता का अंत हो गया.

मदनलाल की हत्या कर सभी अपनेअपने घर चले गए. अगले दिन दीपक ने मां के साथ मिल कर पिता को खोजने का नाटक शुरू किया. लेकिन उस का यह नाटक जल्दी ही पुलिस ने पकड़ लिया.

पुलिस ने दीपक और सुखदीप की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तलवारें बरामद कर ली थीं. निर्मल कौर और उस के कुवैत में रहने वाले बेटे प्रिंसपाल सिंह पर भी पुलिस ने धारा 120 लगाई है. रिमांड खत्म होने पर पुलिस ने निर्मल कौर, दीपक तथा सुखदीप को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. तीसरा अभियुक्त रछपाल सिंह अभी पुलिस की पहुंच से दूर है. पुलिस उस की तलाश कर रही है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपराध, कानून, सजा : कातिलों को मिली सजा

दुनिया के खूबसूरत माने जाने वाले केंद्रशासित आधुनिक शहर चंडीगढ़ के सैक्टर-22 में एक जानामाना रेस्टोरेंट है नुक्कड़ ढाबा. इस रेस्टोरेंट का खाना इतना लजीज है कि दूरदूर से लोग यहां खाना खाने आते हैं, जिस की वजह से वहां हमेशा ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है.

इसी रेस्टोरेंट के मालिक जोगिंदर सिंह की 20 साल की बेटी मनीषा सिंह सैक्टर-34 के एक इंस्टीट्यूट से आर्किटैक्चर का कोर्स कर रही थी. पढ़ने में वह ठीकठाक थी, इसलिए वह एक अच्छी आर्किटैक्ट बनना चाहती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन मनीषा काफी खूबसूरत थी. पिता जोगिंदर सिंह को अपनी इस एकलौती बेटी से लगाव तो था ही, साथ ही नाज भी था कि आगे चल कर वह खानदान का नाम रौशन करेगी.

लेकिन यह सोच कर उन का मन उदास भी हो जाता था कि बेटियां तो पराया धन होती हैं. पढ़ाई पूरी होने के बाद वह मनीषा की शादी कर देंगे तो वह उन्हें छोड़ कर अपनी ससुराल चली जाएगी.

खैर, रोज की तरह 18 अक्तूबर, 2014 की सुबह मनीषा इंस्टीट्यूट जाने के लिए घर से निकली. उस दिन शनिवार था, इसलिए दोपहर तक उसे घर वापस आ जाना था. लेकिन वह शाम तक भी नहीं लौटी तो घर में सभी को उस की चिंता हुई. चिंता की वजह यह थी कि उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ बता रहा था.

जोगिंदर सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को देने के साथ गुमशुदगी एवं किडनैपिंग की आशंका संबंधी एक लिखित शिकायत सैक्टर-22 की पुलिस चौकी जा कर दे दी. यह चौकी सैक्टर-17 स्थित थाना सैंट्रल के अंतर्गत आती थी, इसलिए थाना सैंट्रल में इस की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

पुलिस रात भर मनीषा की तलाश करती रही. जब सफलता नहीं मिली तो पुलिस ने अगले दिन उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर खंगाली. इस से पता चला कि वह शनिवार को सुबह से ही रजत के संपर्क में थी. 21 वर्षीय रजत बेनीवाल चंडीगढ़ के सैक्टर-51ए में रहता था और पंजाब यूनिवर्सिटी के इवनिंग कालेज में बीए द्वितीय वर्ष का छात्र था.

संदेह के आधार पर पुलिस ने रजत को हिरासत में ले कर औपचारिक पूछताछ तो की ही, उस के मोबाइल फोन की लोकेशन भी निकलवाई. इस से पता चला कि उस के और मनीषा के मोबाइल फोन की लोकेशन एक साथ थी.

इसी जानकारी के आधार पर पुलिस ने रजत को विधिवत गिरफ्तार कर पूछताछ शुरू की. पहले तो वह पुलिस को बहकाने की कोशिश करता रहा, लेकिन 2 घंटे की सघन पूछताछ में आखिर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि मनीषा ने किसी नशीले पदार्थ का सेवन कर लिया था, जिस से उस की मौत हो गई थी. डर की वजह से उस ने उस की लाश को चंडीगढ़ से 40 किलोमीटर दूर ले जा कर राजपुरा रोड के एक गंदे नाले में फेंक दिया था.

पुलिस को रजत के इस बयान में पूरी तरह से सच्चाई नजर नहीं आ रही थी. इस के बावजूद डीएसपी सैंट्रल डा. गुरइकबाल सिंह सिद्धू के नेतृत्व में सैंट्रल थाना के कार्यकारी थानाप्रभारी इंसपेक्टर जसबीर सिंह और सैक्टर-22 चौकीप्रभारी देशराज सिंह के अलावा एक विशेष टीम रजत को ले कर राजपुरा रोड पर कस्बे बनूड़ से होते हुए शंभु बैरियर के समीप स्थित गांव टेपला पहुंची, जहां वह बदबूदार गंदा नाला था.

रजत की निशानदेही पर आधे घंटे की कोशिश के बाद गंदे नाले के पास से मनीषा की लाश बरामद की ली गई. लाश पूरी तरह से कीचड़ से सनी थी. पुलिस ने मनीषा के घर वालों को फोन कर के वहीं बुला कर लाश की शिनाख्त करा ली. शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए चंडीगढ़ के सैक्टर-16 स्थित जनरल अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिया.

पुलिस का मानना था कि रजत ने मनीषा की मौत की जो वजह बताई थी, वह सही नहीं हो सकती. इस मामले में अकेला रजत ही नहीं शामिल था, बल्कि कुछ अन्य लोग भी उस के साथ थे. पुलिस यह मान कर चल रही थी कि मनीषा की मौत का रहस्य काफी गहरा है.

चंडीगढ़ लौट कर रात में एक बार फिर रजत से गहन पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने चौंकाने वाला जो खुलासा किया, उस के अनुसार, इस वारदात में उस के अलावा 2 अन्य लोग शामिल थे. वे थे— चंडीगढ़ के सैक्टर-56 का रहने वाला कमल सिंह और मोहाली के फेज-10 का रहने वाला दिलप्रीत सिंह. 29 साल का कमल सिंह एक रेस्तरां का मालिक होने के साथसाथ शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे का बाप भी था. 22 साल का दिलप्रीत सिंह इंटीरियर डिजाइनिंग का डिप्लोमा कर रहा था.

पुलिस ने उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया था. दोनों से हुई पूछताछ में पता चला कि दिलप्रीत मृतका मनीषा का बौयफ्रैंड था. उसी ने उस की जानपहचान अपने दोस्तों रजत और कमल से कराई थी. पुलिस को दिए अपने बयानों में उन्होंने बताया था कि 18 अक्तूबर, 2014 को चारों एक पार्टी में गए थे, जहां सब ने ड्रग्स लिया और शराब भी पी.

सभी आ कर गाड़ी में बैठे थे, तभी अचानक मनीषा की मौत हो गई. इस के बाद वे उस की लाश को ले कर पहले पल्सौरा गांव गए. वहां उन्हें लाश को ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला तो वे लाश को ले कर राजपुरा रोड पर स्थित गंदे नाले पर पहुंचे और वहीं लाश को एक कपड़े में लपेट कर फेंक दिया.

20 अक्तूबर, 2014 को तीनों अभियुक्तों को जिला अदालत में पेश कर के एक दिन के कस्टडी रिमांड पर लिया गया. उसी दिन सैक्टर-16 के जीएमएसएच अस्पताल में मनीषा की लाश का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम के बाद लाश घर वालों के हवाले कर दी गई. लाश पर चोट का कोई निशान नहीं था. उस समय मौत की वजह भी स्पष्ट नहीं हो सकी थी. सीएफएसएल जांच के लिए मृतका के शरीर के कुछ हिस्सों के अलावा विसरा सुरक्षित कर लिया गया था.

21 अक्तूबर को सैक्टर-25 के श्मशानगृह में मनीषा के घर वालों ने उस का दाहसंस्कार कर दिया. उस समय वहां कुछ पत्रकार भी मौजूद थे, जिन से मनीषा के घर वालों ने कहा था कि पुलिस वाले कुछ भी कहें, पर साफ है कि मनीषा की हत्या की गई है, वह भी रंजिशन एवं योजनाबद्ध तरीके से.

क्योंकि मनीषा किसी भी तरह का नशा नहीं करती थी. वह इस तरह के लड़कों के साथ कहीं जाती भी नहीं थी. कमल ने योजनाबद्ध तरीके से उन से बदला लेने के लिए मनीषा की हत्या की थी. क्योंकि एक साल पहले वह उन के ढाबे पर खाना खाने आया था.

तब उस ने बिल न अदा करते हुए उन के ढाबे पर काम करने वाले एक लड़के के साथ मारपीट की थी. उस के बाद उन लोगों ने भी उसे उस की बदतमीजी का थोड़ा सबक सिखाया था. उस ने उस समय काफी बेइज्जती महसूस की थी. अपनी उसी बेइज्जती का बदला लेने के लिए उस ने योजना बना कर दिलप्रीत, जो मनीषा के इंस्टीट्यूट में पढ़ता था, के जरिए मनीषा का अपहरण कर योजनाबद्ध तरीके से उस की हत्या कर दी थी.

दूसरी ओर पुलिस ने जो जांच की थी, उस के अनुसार, रजत, कमल और दिलप्रीत ड्रग्स के आदी थे. मोबाइल पर संदेश भेज कर किसी जिंदर नामक शख्स से उन्होंने ड्रग्स मंगवाया था. जिंदर के बारे में इन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी. हां, पूछताछ में यह जरूर पता चला है कि अभियुक्त कमल पर थाना सैक्टर-39 में हत्या का एक मुकदमा दर्ज था, जो अदालत में विचाराधीन है.

अभियुक्तों का कहना था कि मनीषा भी कभीकभी ड्रग्स लेती थी. उस दिन भी उन चारों ने नशे के लिए एक साथ ड्रग्स लिया था. तभी ओवरडोज की वजह से मनीषा की मौत हो गई थी. उस के बाद डर की वजह से उन्होंने उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए गंदे नाले में फेंक दिया था.

पुलिस की इस कहानी से मनीषा के घर वाले कतई सहमत नहीं थे. उन्होंने पत्रकारों के माध्यम से पुलिस के सामने सवाल खड़े किए थे कि क्या पुलिस ने इस बात की जांच की है कि जिसे ड्रग्स की ओवरडोज से मौत माना जा रहा है, कहीं वह ड्रग्स दे कर हत्या करने का मामला तो नहीं है?

नशेबाजों ने उस की 2 लाख रुपए की ज्वैलरी हथियाने के लिए तो उस की हत्या नहीं की, जो उस ने उस दिन पहन रखी थी? योजना बना कर मनीषा का अपहरण तो नहीं किया गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रभावी परिवारों के लड़कों के पकड़े जाने से पूरी कहानी बदल दी गई हो?

चंडीगढ़ में आम चर्चा थी कि वहां ड्रग पैडलर्स का पूरा रैकेट सक्रिय है. ड्रग्स ओवरडोज मामलों में पहले भी वहां कुछ मौतें हो चुकी थीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि मनीषा को उस रैकेट की जानकारी हो गई थी और इसी वजह से उसे मौत की नींद सुला दिया गया हो? लगातार हो रही इस तरह की मौतों के बाद भी पुलिस नशे के सौदागरों की धरपकड़ कर उन के खिलाफ सख्त काररवाई क्यों नहीं कर रही?

चंडीगढ़ में एक प्रतिष्ठित संस्था है फौसवेक (फेडरेशन औफ सेक्टर वेलफेयर एसोसिएशंज). इस संस्था के सदस्यों ने साफ कहा था कि वे नशे से जुड़े लोगों को पकड़ कर पुलिस के पास ले जाते हैं और पुलिस वाले अकसर उन्हें चेतावनी दे कर छोड़ देते हैं.

मनीषा के मामले को ले कर शहर में प्रदर्शन होते रहे, कैंडल मार्च निकाले जा रहे थे, लेकिन पुलिस ने अपने ढंग से काररवाई करते हुए मनीषा की मौत के ठीक 81 दिनों बाद 8 जनवरी, 2015 को रजत, कमल और दिलप्रीत के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर के अदालत में पेश कर दिया. यह चार्जशीट नशे की अहम धाराओं के तहत दाखिल की गई थी.

लेकिन अदालती काररवाई अपने ढंग से चली. मामले की गहराई में जाने का प्रयास करते हुए अदालत ने तीनों आरोपियों के खिलाफ 4 फरवरी, 2015 को गैरइरादतन हत्या, सबूतों से छेड़छाड़ और किडनैपिंग की धाराओं के आरोप तय कर दिए. सुनवाई की अगली तारीख 24 फरवरी तय की गई.

उस दिन चंडीगढ़ की अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अंशु शुक्ला की अदालत में केस की विधिवत सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के पहले दिन मृतका के भाई 25 वर्षीय ऋषभ सिंह ने अपना बयान दर्ज कराया कि घटना वाले दिन सुबह कार से उस की बहन को लिवाने दिलप्रीत आया था. घर के बाहर मनीषा ने कुछ देर उस से बातचीत की और फिर वह इंस्टीट्यूट जाने की बात कह कर गाड़ी में बैठ गई. कार में पहले से ही 2 अन्य लोग मौजूद थे.

इस के बाद अदालत में मौजूद तीनों अभियुक्तों की उस ने पहचान भी की. इस के बाद केस की तारीख पड़ी 12 मार्च, 2015 को. उस दिन आरोपी दिलप्रीत के वकील तरमिंदर सिंह ने अदालत में अरजी दायर कर के मनीषा के फोन की जांच कराने की मांग की, जो स्वीकार कर ली गई.

लेकिन अगले दिन जब मनीषा का मोबाइल फोन कोर्ट में पेश किया गया तो उस का लौक नहीं खोला जा सका. इस पर मुकदमा 20 मार्च तक के लिए टल गया. कोर्ट ने सीएफएसएल को मोबाइल फोन भेज कर उस की जांच रिपोर्ट सौंपने को कहा.

20 मार्च को यह रिपोर्ट पेश नहीं हो सकी तो अगली तारीख 31 मार्च की पड़ी. उस दिन केस के जांच अधिकारी ने सीएफएसएल की ओर से 5 सीडीज में दिया गया मोबाइल का डाटा कोर्ट को सौंपा. इस के बाद लगातार कई पेशियों तक अन्य गवाहों के बयान दर्ज करने के अलावा उन का क्रौस एग्जामिनेशन हुआ.

6 जून, 2015 को सीएफएसएल ने मनीषा की जनरल विसरा रिपोर्ट अदालत में पेश कर दी, जिस में बताया गया था कि मौत से पहले उस के साथ रेप और अननैचुरल सैक्स किया गया था. वहीं विसरा से एक आरोपी का सीमन भी बरामद कर प्रिजर्व किया गया था. अब आगे तीनों आरोपियों से इस का मिलान कराया जाना था. इस के अलावा सीएफएसएल ने मनीषा के जिस्म के कुछ हिस्सों की गहन जांच के आधार पर अपनी एक विशेष रिपोर्ट भी तैयार की थी.

इस रिपोर्ट के आने के बाद पुलिस की आरोपियों से मिलीभगत अथवा पूछताछ में की गई ढील अब पूरी तरह से सामने आ गई थी. इन तमाम मुद्दों पर बहस होने के बाद 24 जुलाई, 2015 को मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने इस केस में सामूहिक दुराचार और आपराधिक दुराचार के अलावा आपराधिक साजिश रचने की धाराएं क्रमश: 376डी, 377 एवं 120बी जोड़ने की अपील अदालत से की. तीनों आरोपियों का डीएनए सैंपल लेने की भी बात कही गई.

इस विशेष रिपोर्ट में मनीषा की मौत का कारण इंट्राक्रैनियल हैमरेज बताया गया था. सेरोलौजिकल जांच में उस के गुप्तांगों में वीर्य मिला था. विसरा जांच के रासायनिक विश्लेषण में मनीषा के शरीर में 85.57 प्रतिशत इथाइल अल्कोहल की मात्रा पाई गई थी. वहीं नार्पसेयूडोफिड्राइन नामक साइकोट्रोपिक सब्सटांस (नशीला पदार्थ) के मौजूद होने की बात भी कही गई थी. इस सब के अलावा हिस्टोपैथोलौजी रिपोर्ट में ब्रौंकोन्यूमोनिया एवं माइक्रोवेसिकुलर स्टीटोसिस मिलने की बात भी पता चली थी.

सरकारी वकील ने जो नई धाराएं इस केस में जोड़ने की दरख्वास्त अदालत से की थी, उस का विरोध करते हुए बचाव पक्ष के वकील इंदरजीत बस्सी ने अदालत से कहा कि धाराओं में संशोधन अथवा बढ़ोत्तरी की अरजी मान्य नहीं है. केस की जांच करने वालों ने अपनी जांच पूरी कर के चार्जशीट दायर की है और इस समय केस गवाहियों की स्टेज पर है.

अपने इस विरोध के संबंध में बचावपक्ष के वकील ने अपने ये नुक्ते अदालत के सामने रखे थे—

मृतका के साथ यौन प्रताड़ना के मुद्दे पर किसी भी गवाह ने अभी तक अपना बयान दर्ज नहीं कराया है. अभियोजन पक्ष की कहानी के हिसाब से कहीं भी इस का जिक्र नहीं किया गया कि आरोपियों के पीडि़ता के साथ यौनसंबंध बने थे. अभियोजन पक्ष के अनुसार, मृतका खुद आरोपियों के साथ गई थी, जिस में कहीं भी जबरदस्ती का कोई आरोप नहीं लगाया गया है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतका के जिस्म पर कहीं भी चोट के निशान नहीं थे, जिस से उस के साथ जबरदस्ती की बात साबित नहीं होती. सीएफएसएल रिपोर्ट और चार्जशीट में इस बात का जिक्र नहीं है कि यौनसंबंध कब और किस समय बने थे? डीएनए प्रोफाइल के तहत अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के ब्लड सैंपल लेने के लिए अरजी दायर की है, ताकि वीर्य से इस का मिलान किया जा सके. ऐसे में यह प्रतीत होता है कि अभियोजन पक्ष खुद इस बात को ले कर संशय में है कि यह वीर्य किस का है?

यह बहस भी कुछ दिनों तक चलती रही. 29 जुलाई को विद्वान जज अंशु शुक्ला ने इस मुद्दे पर और्डर पास किया कि दुराचार और कुकर्म की अतिरिक्त धाराएं जोड़ने पर फैसला अभियुक्तों की ब्लड सैंपल रिपोर्ट और डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट के आने के बाद होगा. इस के लिए तारीख दी गई 29 अक्तूबर, 2015. लेकिन उस दिन रिपोर्ट न आने की वजह से सुनवाई टल गई.

बाद में रिपोर्ट आई तो नई धाराएं जोड़ कर अदालत की काररवाई फिर से शुरू हुई. देखतेदेखते एक साल से अधिक का समय गुजर गया. 31 जनवरी, 2017 को अदालत ने अपनी काररवाई मुकम्मल कर के इस केस के तीनों अभियुक्तों को दोषी करार दे कर सजा सुनाने की तारीख 4 फरवरी, 2017 तय कर दी.

इस तरह सक्षम एडीजे अंशु शुक्ला ने केस से जुड़े 17 गवाहों के बयान एवं साक्ष्यों के आधार पर अपने 160 पृष्ठों के फैसले में 4 फरवरी, 2017 को मनीषा सिंह केस के तीनों अभियुक्तों रजत बेनीवाल, कमल सिंह और दिलप्रीत सिंह को सामूहिक दुष्कर्म, अप्राकृतिक यौनसंबंध, गैरइरादतन हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप में 20-20 साल की कैद के अलावा तीनों को 5 लाख 22 हजार रुपए प्रति दोषी जुरमाने की सजा सुनाई. अदालत के इस फैसले के खिलाफ दोषियों ने समयावधि के भीतर हाईकोर्ट में अपील की है, जो विचाराधीन है.

बहरहाल, मनीषा के पिता द्वारा जारी किया गया यह संदेश काबिलेगौर है कि अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए मातापिता कोशिश तो करें, लेकिन बच्चे किसी के बहकावे में न आ सकें, इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है. अगर उन की आदतों या व्यवहार में जरा भी बदलाव नजर आए तो बच्चों को एक दोस्त की तरह समझा कर किसी के बहकावे में आने से रोकें. आप का बच्चा कितना भी सही क्यों न हो, उसे बहकाने वाले तब तक उस का पीछा नहीं छोड़ते, जब तक वह उन के जाल में फंस नहीं जाता.

एकतरफा प्यार में पागल प्रेमी

दिल्ली से लगा नोएडा भले ही हाईटेक सिटी के रूप में विकसित हो रहा है, लेकिन आए दिन होने वाले अपराध इस औद्योगिक नगरी के माथे पर कलंक की तरह हैं. 31 मई, 2017 की सुबह नोएडा के सेक्टर-62 स्थित पौश सोसाइटी शताब्दी रेल विहार को भी एक ऐसे आपराधिक कलंक से दोचार होना पड़ा, जो इस सोसायटी के रहवासियों की कल्पना से भी परे था.

उस दिन सुबहसुबह रेलविहार सोसाइटी के पार्किंग के पास एक युवती खून से लथपथ पड़ी मिली. उस के सिर से काफी खून बह चुका था. सोसाइटी में जिस ने भी सुना सन्न रह गया. जरा सी देर में वहां काफी लोग एकत्र हो गए. आननफानन में कुछ लोग उस युवती को नजदीकी अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. वहीं पता चला कि मृतका के सिर में गोली मारी गई थी.

सोसायटी में लोगों की भीड़ लग चुकी थी. उन्हीं में से किसी ने इस वारदात की सूचना थाना सैक्टर-58 को दे दी थी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी दिलीप सिंह बिष्ट और सीओ अजय कुमार वहां आ पहुंचे. पुलिस ने मौका मुआयना किया तो वहां पिस्टल का एक खाली कारतूस पड़ा मिला, जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस ने डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुलवाया, लेकिन उस से कोई खास मदद नहीं मिली.

अलबत्ता इस बीच मृतका की शिनाख्त जरूर हो गई. उस का नाम अंजली राठौर था. 22 वर्षीया अंजली उर्फ अन्नू मूलरूप से हरियाणा के यमुनानगर निवासी तेजपाल सिंह की बेटी थी और नोएडा के सैक्टर-64 स्थित लावा मोबाइल कंपनी में बतौर इंजीनियर नौकरी करती थी.

अंजली सोसाइटी के एक टावर में तीसरी मंजिल पर बने एक फ्लैट में रूममेट युवतियों के साथ रहती थी. पुलिस ने अंजली के मोबाइल से नंबर तलाश कर उस के घर वालों को इस घटना की सूचना दे दी.

हैरानी की बात यह थी कि इस दुस्साहसिक वारदात का किसी को पता तक नहीं चल सका था. घटना का पता तब चला, जब 7 बजे एक युवती बैंक की कोचिंग क्लास में जाने के लिए निकली. सब से पहले उसी ने अंजली को ग्राउंड फ्लोर पर पार्किंग के पास पड़ी देखा. उसे लगा कि अंजली सीढि़यों से गिरी होगी. इस के बाद ही वहां लोग एकत्र हुए और अंजली को अस्पताल ले गए.

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि इतनी बड़ी घटना आखिर क्यों और कैसे हुई? जाहिर था हत्यारा बाहर से ही आया होगा. सोसायटी के गेट पर सिक्योरिटी गार्ड रहते थे, वहां सीसीटीवी कैमरे भी लगे थे. पुलिस ने गार्डों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि सुबह 6 बजे के थोड़ा बाद कंधे पर बैग लटकाए एक युवक आया था और कुछ मिनट बाद ही वापस चला गया था.

उस की गतिविधियों पर कोई शक नहीं हुआ, इसलिए किसी ने भी उसे नहीं रोका. उस ने गेट के रजिसटर में एंट्री भी की थी. पुलिस ने रजिस्टर चैक किया तो उस में सन्नू के नाम से एंट्री थी. युवक का मोबाइल नंबर भी लिखा था. उस नंबर पर काल की गई तो वह स्विच्ड औफ मिला.

पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की रिकौर्डिंग देखनी चाही तो पता चला कि मुख्य गेट के कैमरे का फोकस बिगड़ा हुआ था, जिस की वजह से वह युवक आतेजाते उस की जद में नहीं आ पाया था. अच्छी बात यह थी कि पार्किंग साइड का कैमरा सही था.

उस की रिकौडिंग की जांच की गई तो दो पिलर के बीच की रिकौर्डिंग में दिखाई दिया कि युवती बचाव की मुद्रा में भाग रही थी, जबकि हाथ में हथियार लिए वह युवक उस के पीछे दौड़ रहा था.

युवक के कंधे पर बैग था. इस से यह बात साफ हो गई कि यह वही युवक था, जिस का जिक्र गार्ड ने किया था. कैमरे की रिकौर्डिंग से युवक की पहचान साफ नहीं हो पा रही थी.

इस बीच मृतका के घर वाले और नाते रिश्तेदार भी आ गए थे. उन का रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस ने अंजली के शव का पंचनामा कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि उस युवक की अंजली से आखिर क्या दुश्मनी रही होगी.

मामला प्रेमप्रसंग का भी लग रहा था, क्योंकि वह युवक अंजली की हत्या के इरादे से ही आया था. अंजली भी अपनी मर्जी से उस से मिलने फ्लैट से नीचे आई थी. पुलिस ने अंजली के घर वालों से पूछताछ की, लेकिन उन से कोई सुराग नहीं मिल सका.

अंजली के मोबाइल की जांच से पता चला कि सुबह उस के मोबाइल पर अश्वनी यादव नाम के किसी युवक की काल आई थी. अश्वनी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं चल सका. पुलिस ने गेट रजिस्टर में लिखे मोबाइल नंबर की जांच कराई तो वह अश्वनी के नाम पर ही निकला. पुलिस ने अंजली के पिता तेजपाल सिंह की तहरीर पर अश्वनी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. बड़ा सवाल यह भी था कि ऐसे कौन से हालात थे कि अश्वनी अंजली का हत्यारा बन गया?

मामला सनसनीखेज भी था और एक इंजीनियर की हत्या का भी. एसएसपी लव कुमार ने अपने अधीनस्थ अफसरों को इस मामले में शीघ्र काररवाई करने के निर्देश दिए. हत्या के खुलासे के लिए एसपी सिटी अरुण कुमार सिंह के निर्देशन में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया गया. अगले दिन पुलिस ने अश्वनी व अंजली के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उन के बीच बातें होती रहती थीं.

मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से पुलिस को अश्वनी का पता मिल गया. पता दिल्ली का ही था. पुलिस टीम उस पते पर पहुंची तो जानकारी मिली कि वह पता उस के एक जानने वाले का था, जिस पर उस ने सिमकार्ड लिया था. गनीमत यह रही कि वहां से पुलिस को अश्वनी का पता मिल गया.

वह उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के गांव भावलपुर के रहने वाले शैलेंद्र का बेटा था. उस का मोबाइल भले ही बंद था, लेकिन वारदात के समय और उस के आधे घंटे बाद तक उस की लोकेशन घटनास्थल के आसपास ही थी. इस से यह बात पक्के तौर पर साफ हो गई कि अंजली की हत्या उसी ने की थी.

अगले दिन थानाप्रभारी दिलीप कुमार के नेतृत्व में एक टीम इटावा जा पहुंची. अश्वनी के घर वालों से पूछताछ में पता चला कि वह घटना के बाद घर तो आया था, लेकिन थोड़ी देर रुक कर चला गया था. आशंका थी कि अश्वनी अपने किसी नातेरिश्तेदारों के यहां शरण ले सकता है.

पुलिस ने उस के मोबाइल नंबर हासिल कर के सर्विलांस पर लगा दिए. इस से पुलिस को मोबाइल की लोकेशन के आधार पर अश्वनी के मैनपुरी जिले के गांव अंधियारी में अपने एक रिश्तेदार के यहां छिपे होने की सूचना मिली. पुलिस टीम वहां गई तो 2 जून को वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

उसे पकड़ कर नोएडा लाया गया. प्राथमिक पूछताछ में ही उस ने अपने जुर्म का इकबाल कर लिया. पुलिस ने उस से विस्तृत पूछताछ की तो एकतरफा प्यार में पड़े एक ऐसे जुनूनी आशिक की कहानी निकल कर सामने आई, जो हर हाल में अंजली को अपना बनाना चाहता था.

दरअसल अंजली और अश्वनी ने पंजाब के जालंधर स्थित लवली यूनिवर्सिटी में एक साथ पढ़ाई की थी. दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी. अश्वनी ने बीसीए किया था, जबकि अंजली ने बीटेक. सन 2016 में दोनों ने अपना कोर्स पूरा किया. बीटेक करते ही अंजली की नौकरी लावा कंपनी में लग गई.

दूसरी ओर अश्वनी के परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी. उस के पिता साधारण किसान थे. उन्होंने मुश्किलों से बेटे को पढ़ाया था और उसे अच्छा इंसान बनाना चाहते थे. यह बात अलग थी कि काफी प्रयासों के बाद भी जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उस ने दिल्ली के लाजपतनगर में कपड़े के एक शोरूम में काम करना शुरू कर दिया. वह और अंजली फोन पर बातें किया करते थे. अश्वनी उस का अच्छा दोस्त था, लिहाजा वह उसे अच्छी नौकरी के लिए प्रयास करते रहने की सलाह देती थी.

अंजली को उस की फिक्र है, यह बात अश्वनी को गुदगुदाती थी. वह अपने कैरियर से ज्यादा अंजली के बारे में सोचता रहता था. जबकि अंजली अपनी नई नौकरी से खुश थी और मन लगा कर काम कर रही थी. अंजली को इस की खबर भी नहीं थी कि अश्वनी उसे एकतरफा प्यार करता है. हालांकि कई बार बातों और इशारों में उस ने अंजली के सामने जाहिर करने का प्रयास तो किया था, लेकिन वह समझ नहीं सकी. अश्वनी मन की बात खुल कर इसलिए नहीं कह पाता था कि कहीं अंजली नाराज हो कर उस से दूर न हो जाए.

अंजली के कुछ शुभचिंतक छात्रछात्राओं को पता चला कि अश्वनी उसे एकतरफा प्यार करता है तो उन्होंने उसे उस से सावधान रहने को कहा. बहरहाल, समय अपनी गति से चलता रहा. काम की व्यस्तता में अब अंजली की अश्वनी से बातचीत कम होने लगी.

इसी साल जनवरी, 2017 में अश्वनी की नौकरी छूट गई, जिस के बाद वह अपने गांव चला गया. गांव जा कर उस का दिमाग और भी खाली हो गया. उस ने अपने दिल की बात अंजली को बता कर उसे हासिल करने की सोची. उस ने फोन पर अंजली से प्यारभरी बातें कीं तो उस ने उसे समझा दिया, ‘‘अश्विनी, मैं तुम्हें अपना अच्छा दोस्त मानती हूं, इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’

इस से अश्वनी को झटका लगा. अंजली से उस की बातचीत पहले ही कम हो गई थी. जब किसी इंसान की अपेक्षाओं को चोट पहुंचती है तो कई बार गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं और इंसान बातों का मतलब अपने हिसाब से खोजने लगता है. अश्वनी के साथ भी ऐसा ही हुआ. उसे लगा कि अंजली का नोएडा में किसी युवक से प्रेमप्रसंग चल रहा है, इसलिए अब वह उस से बात नहीं करती. यह सोच कर उस के सिर पर अंजली को पाने का फितूर सवार हो गया. उस के दिल में अंजली के लिए इतना प्यार था कि उस के बिना वह जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था. अंजली के व्यवहार से उसे लगा कि वह अपने नए प्रेमी के चक्कर में उस से दूर हो रही है, इसलिए वह उस प्रेमी को ही रास्ते से हटा देगा.

लेकिन परेशानी यह थी कि वह अंजली के किसी प्रेमी को नहीं जानता था. ऐसी स्थिति में यह जानकारी अंजली ही दे सकती थी. उस ने सोच लिया कि वह नोएडा जा कर अंजली के प्रेमी को तो रास्ते से हटाएगा ही, साथ ही अंजली के सामने भी अपने प्यार का खुल कर इजहार करेगा.

अश्वनी के ही गांव का उस का एक दोस्त था विपुल. उस ने विपुल को सारी बातें बताईं तो वह दोस्ती की खातिर उस का साथ देने को तैयार हो गया. विपुल ने आपराधिक किस्म के एक व्यक्ति कोरा से संपर्क कर के एक सप्ताह के लिए 3 हजार रुपए में किराए पर .32 बोर की पिस्टल ले ली. उस ने अंजली को भी फोन कर दिया कि वह उस से मिलने के लिए आएगा.

30 मई को वह अपने दोस्त के साथ नोएडा पहुंच गया. उस ने अंजली को फोन किया और उस से मिलने की जिद की तो औफिस टाइम के बाद उस ने उसे सोसाइटी में आ कर मिलने को कहा. करीब 8 बजे वह सोसाइटी में उस से मिलने आ गया. दोनों के बीच काफी देर तक बातें हुईं.

अश्वनी ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं अंजली. यही बात तुम्हें समझाना चाहता हूं, लेकिन तुम समझने को तैयार नहीं हो.’’

बदले में अंजली ने हलके गुस्से का इजहार किया, ‘‘क्योंकि तुम ऐसी बात समझाना चाहते हो, जो मैं समझना नहीं चाहती. मेरे सामने कैरियर है अश्वनी. तुम्हें भी इन बातों को छोड़ कर अपना ध्यान अपने कैरियर पर लगाना चाहिए.’’

‘‘दिल को समझाना इतना आसान होता तो मैं कब का संभल गया होता, लेकिन मेरे लिए यह मुमकिन नहीं है. मैं ने दिल से तुम्हें चाहा है.’’ गंभीरता से कही गई उस की बातें सुन कर अंजली हैरान रह गई.

‘‘मैं तुम्हें किस तरह समझाऊं अश्वनी? प्लीज, ऐसी बातों को भूल जाओ. तुम ऐसे ही रहे तो मैं तुम से दोस्ती भी नहीं रख पाऊंगी.’’

अश्वनी को अंजली की एकएक बात कांटे की तरह चुभ रही थी. मन ही मन उस ने जो ढेरों ख्वाब सजाए थे, वे कांच की तरह टूट रहे थे. उसे पक्का यकीन हो गया था कि अंजली जरूर किसी के प्यार में पड़ी है.

‘‘अच्छा, मैं तुम्हें एक रात और सोचने का मौका देता हूं. अच्छी तरह सोच कर सुबह जवाब दे देना, साथ ही अपने जवाब से पहले मुझे उस लड़के का नाम भी बता देना, जिस से तुम प्यार करती हो.’’

अंजली को चूंकि इस मुद्दे पर कुछ सोचना ही नहीं था, इसलिए उस ने पीछा छुड़ाने के लिए कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अब जाओ.’’  इस के बाद वह चला गया.

रात उस ने एक गेस्टहाउस में करवटें बदल कर बिताईं. उस की जिंदगी का एक ही उद्देश्य था अंजली को प्यार के लिए तैयार करना और उस के साथ दुनिया बसाना. दिन निकलते ही 6 बज कर 5 मिनट पर उस ने अंजली को फोन मिला कर कहा, ‘‘मैं आ रहा हूं अंजली.’’

‘‘क्या करोगे आ कर. मैं निर्णय ले चुकी हूं.’’

‘‘क्या?’’ उस ने उत्सुकता से पूछा तो अंजली ने बेरुखी से जवाब दिया, ‘‘यही कि तुम्हें अपने कैरियर पर ध्यान देना चाहिए. एक और बात, मैं तुम से दोस्ती नहीं रखना चाहती.’’

कहने के साथ ही अंजली ने फोन काट दिया तो अश्वनी तड़प उठा. फिर भी उस ने सोसायटी जाने की ठान ली. वह खतरनाक इरादा बना चुका था कि अंजली से आखिरी बार बात जरूर करेगा और अगर उस ने अब भी इनकार किया तो वह उसे गोली मार कर खुद को भी खत्म कर लेगा.

इसी इरादे के साथ वह शताब्दी रेलविहार सोसायटी पहुंच गया. उस का दोस्त विपुल बाहर ही खड़ा रहा. सोसायटी के गेट पर एंट्री रजिस्टर में उस ने सन्नू नाम से एंट्री की और अंदर चला गया. यह उस के घर का नाम था. उस ने अंजली को फोन कर के आखिरी बार नीचे आ कर मिलने को कहा. वह नीचे आ गई. दोनों पार्किंग में सीढि़यों के पास खड़े हो गए.

‘‘तुम किसी और से प्यार करती हो अंजली? मुझे अपने उस प्रेमी का नाम बता दो. मैं उसे खत्म कर दूंगा, ताकि तुम मेरी हो सको.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है अश्वनी. प्लीज, तुम जाओ. और हां, आइंदा मुझे परेशान करने की कोशिश मत करना.’’

अंजली की बात सुन कर अश्वनी बुरी तरह हताश हो गया. उस की हालत हारे हुए जुआरी जैसी हो गई.

‘‘नहीं, मैं आखिरी बार पूछ रहा हूं. उस का नाम बता दो और मेरा दिल मत तोड़ो.’’ उस ने कठोर लहजे में जिद की तो अंजली ने भी वैसा ही रुख अपनाया, ‘‘क्या बकवास कर रहे हो तुम. मुझे कोई बात नहीं करनी.’’

यह सुनते ही अश्वनी गुस्से में बोला, ‘‘बात तो तुम्हें करनी होगी.’’ गुस्से से तिलमिलाते हुए उस ने बैग से पिस्टल निकाल कर अंजली पर तान दी, ‘‘आज मैं तुम्हारा किस्सा ही खत्म कर दूंगा. तुम मेरी नहीं तो किसी और की भी नहीं हो सकती.’’

उस के खतरनाक इरादे भांप कर अंजली के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वह जल्दी में बोली, ‘‘तुम पागल हो गए हो अश्वनी?’’

‘‘हां, मैं पागल हो गया हूं.’’

स्थिति ऐसी बन गई थी कि एकाएक अंजली की समझ में कुछ नहीं आया. कुछ नहीं सूझा तो वह मुड़ कर तेजी से भागी और एक पिलर की आड़ में छिपने की कोशिश करने लगी. अश्वनी भी उस के पीछे दौड़ा और उस के सिर को टारगेट बना कर उस पर गोली चला दी. गोली लगते ही अंजली गिर पड़ी. कुछ ही देर में उस ने दम तोड़ दिया. इस के बाद अश्वनी ने खुद की कनपटी पर पिस्टल तान कर ट्रिगर दबाया, लेकिन गोली नहीं चली. इस पर पिस्टल बैग में रख कर वह वहां से निकल गया.

रास्ते में उस ने सैक्टर-62 स्थित बी ब्लाक की झाडि़यों में पिस्टल फेंक दी. अपना मोबाइल भी उस ने स्विच्ड औफ कर दिया. वह और उस का दोस्त वहां से औटो पकड़ कर सीधे आनंद विहार बसअड्डे पहुंचे और बस से गांव चले गए.

अश्वनी को पता था कि पुलिस उस की तलाश जरूर करेगी, इसलिए वह अपने रिश्तेदारों के यहां छिप कर घूमता रहा. घर वालों से वह दूसरे नंबरों से बात करता था. आखिर वह पुलिस की पकड़ में आ ही गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर 2 कारतूस सहित हत्या में प्रयुक्त .32 बोर की पिस्टल बरामद कर ली.

3 जून को पुलिस अधिकारियों ने प्रेसवार्ता कर के पत्रकारों को उस की करतूत बताई और उसी दिन उसे माननीय न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

अश्वनी की जिद व जुनून ने दोस्ती के रिश्ते को भयानक अंजाम पर पहुंचा दिया. 2 लोगों के बीच दोस्ती हो जाना कोई बात नहीं, लेकिन अश्वनी की उग्र प्रवृत्ति ने अंजली को असमय मौत दे कर उस के परिवार को तो गम दिया ही, साथ ही उस ने उस के खून से हाथ रंग कर अपना भविष्य भी चौपट कर लिया. अश्वनी ने हसरतों को लगाम दे कर विवेक से काम लिया होता या अंजली उस के सनकी मिजाज को भांप गई होती तो शायद ऐसी नौबत कभी न आती.

कथा लिखे जाने तक अश्वनी की जमानत नहीं हो सकी थी. अश्वनी का दोस्त विपुल फरार है. पुलिस उस की तलाश कर रही है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शादी के लिए जब कर दी 6 हत्याएं

पंजाब के जिला होशियारपुर का रहने वाला रघुवीर 18 साल का हो चुका था. उस की शादी की बात भी चलने लगी थी, लेकिन शादी के पहले उसे यह साबित करना था कि वह इस के काबिल हो गया है. इस के लिए उसे लूटपाट करने वाले गैंग में शामिल होना था. क्योंकि वह जिस बिरादरी से था, उस में शादी से पहले लूट की ट्रेनिंग लेनी पड़ती है. दरअसल, रघुवीर बेडि़या जाति से था, जिस में रोजीरोजगार के साधन कम ही होते हैं, जिस की वजह से ज्यादातर पुरुष चोरी और लूट जैसी वारदातें करते हैं. इस के लिए वे गिरोह बना कर अपने इलाके से काफी दूर निकल जाते हैं और लूटपाट करते हैं. ये जिस इलाके में वारदात करने जाते हैं, लोकल लोगों को अपने गिरोह में शामिल कर के ही लूटपाट की वारदात को अंजाम देते हैं.

लूट के दौरान हत्या जैसे जघन्य अपराध करने से लोकल बदमाश घबराते हैं, जबकि ये जरूरत पड़ने पर ही नहीं, आसपास सनसनी फैलाने और लूट में कोई परेशानी न हो, इस के लिए भी घर के किसी न किसी सदस्य की हत्या जरूर करते हैं. इस का मकसद होता है गिरोह के नए सदस्यों में हिम्मत पैदा करना, जिस से वह लूट के दौरान किसी भी तरह से घबराएं न. गिरोह के वरिष्ठ सदस्य इसे शादी और घरगृहस्थी से भी जोड़ देते हैं.

कहते हैं कि बेडि़यों के गिरोह आज भी कबीला संस्कृति का पालन करते हैं, जिस में हत्या करना कोई कठिन काम नहीं माना जाता. गिरोह के वरिष्ठ लोग अपने नए साथी के मन से डर निकालने के लिए इस तरह का काम करने को उकसाते ही नहीं, बल्कि हर हालत में करवाते हैं. शादी के जोश में इस तरह के अपराध करने के लिए किशोर उम्र के लड़के तैयार भी हो जाते हैं.

गिरोह चलाने वाले यानी गिरोह के सरगनाओं का मानना है कि हत्या जैसी घटना को अंजाम देने के बाद किशोर अपराध के दलदल में इस तरह फंस जाते हैं कि चाह कर भी अपराध के इस दलदल से निकल नहीं पाते. वे दूसरों की पोल भी नहीं खोल सकते. किसी को भी जघन्य अपराधी बनाने के लिए उस के हाथ से हत्या कराना कबीला गिरोहों का मुख्य काम होता था. एक तरह से अपराध के साथ यह कुप्रथा भी थी. इन का यह कृत्य सभ्य समाज के लिए खतरा था.

गिरोह चलाने वाले सरगना को सब से ताकतवर माना जाता है. वह एक दो, नहीं कईकई हत्याएं यानी कम से कम 6 हत्याएं कर चुका होता है. इसी वजह से इन के गिरोह को छैमार गिरोह कहा जाता है.

दरअसल, ये लोग अपना खौफ पैदा करने के लिए भी इस तरह के नाम रख लेते हैं, जिस से कोई लूट का विरोध करने की हिम्मत न कर सके. हिम्मत करने वाले को पता होता है कि उस की हत्या हो सकती है. इस डर से जल्दी कोई लूट का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर पाता. अपने नाम का खौफ पैदा करने के बाद ये अपरध करने में सफल रहते हैं.

अपराध कर के ये लोग वह इलाका छोड़ देते हैं. इस के बाद पुलिस के हाथ गिरोह के वही सदस्य लगते हैं, जो नए होते हैं और आमतौर पर वे लोकल लोग होते हैं. चूंकि लोकल अपराधियों को मुख्य अपराधियों के बारे में जानकारी नहीं होती, इसलिए पुलिस कभी भी मुख्य अपराधियों तक पहुंच नहीं पाती.

कुप्रथाएं अपराधी भी बनाती हैं, लखनऊ पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार कर इस बात का परदाफाश कर सब को चौंका दिया है. इस से पता चलता है कि समाज अभी भी कितना पीछे है. लखनऊ पुलिस ने एक ऐसे लुटेरे गिरोह के कुछ लोगों को गिरफ्तार कर के परदाफाश किया है कि बेडि़या गिरोह के लोग शादी के लिए 6 हत्याएं करते हैं.

पंजाब के उस गिरोह को इसी वजह से ‘छैमार गैंग’ के नाम से जाना जाता है. इस गैंग में शामिल सदस्य अपनी शादी से पहले 6 हत्याएं जरूर करते हैं. पंजाब का यह गिरोह लूट के दौरान विरोध करने पर तुरंत हत्या कर देता है. यह गैंग उत्तर प्रदेश में ही नहीं, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में भी डकैती डालने का काम करता था.

लखनऊ पुलिस ने पंजाब से आए इस गिरोह के 4 सदस्यों को एसटीएफ के सहयोग से मडियांव थानाक्षेत्र में पकड़ा था. इन के पास से 2 तमंचे, चाकू, नकदी और गहने बरामद किए थे. 3 साल पहले इस गिरोह ने जौनपुर के शाहगंज इलाके में डकैती डाली थी. जौनपुर पुलिस ने इन के 2 सदस्यों पर 2-2 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया था.

लखनऊ के एएसपी (ट्रांसगोमती) दुर्गेश कुमार ने बताया कि रात को पुलिस को सूचना मिली थी कि पंजाब के छैमार गिरोह के कुछ डकैत घैला पुल के पास मौजूद हैं. एसटीएफ के एसआई विनय कुमार और इंसपेक्टर मडियांव नागेश मिश्रा ने फोर्स के साथ इन की घेराबंदी की.

पुलिस को देखते ही गिरोह के सदस्यों ने गोली चलाना शुरू कर दिया. जवाबी फायरिंग में वे भागने लगे, लेकिन पुलिस ने 4 लोगों को पकड़ लिया, जिन की पहचान कदीम उर्फ पहलवान, अली उर्फ हनीफ, मुन्ना उर्फ बग्गा और सलमान उर्फ अजीम के रूप में हुई. इन के पास से जौनपुर में हुई लूट का सामान भी बरामद हुआ.

दरअसल, ये छैमार गिरोह के सदस्य थे. यह छैमार गिरोह पंजाब के बदमाशों द्वारा तैयार किया गया था. ये लोकल अपराधियों को अपने साथ रैकी के लिए रखते थे, जो उस घर की तलाश करते थे, जहां डकैती डालनी होती थी. इस के बाद का काम छैमार गिरोह का होता था.

लोकल अपराधी कत्ल करने में पीछे हट जाता था, जबकि छैमार गिरोह के क्रूर सदस्य लूट के दौरान कत्ल करने से जरा भी नहीं घबराते थे. ये अपना ठिकाना बदलते रहते थे, जिस से इन की शिनाख्त नहीं हो पाती थी.

6 कत्ल करने के बाद डकैत अपनी शादी कर के गृहस्थी बसा सकता था. लूट के पैसे से ये अपना खर्च चलाते थे. दरअसल आज भी बहुत सारे लोग हत्या जैसे अपराध को बाहुबल से जोड़ कर देखते हैं, जिस की वजह से ऐसी प्रथाएं चल पड़ी हैं. अपराधी खुद का दामन बचाने के लिए ऐसी प्रथाओं का हवाला देता है. ये अपने नाम और गैंग का नाम बदल कर आपराधिक घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं.

दोस्त को गोली मार कर की खुदकुशी

सेना में लांसनायक संतोष कुमार ने मंगलम कालोनी में किराए के मकान में अपने दोस्त रिकेश कुमार सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी. उस के बाद संतोष ने भी गोली मार कर खुदकुशी कर ली.

धायं… धायं… धायं… एक के बाद एक 3 गोलियां चलीं और आसपास के लोगों को कुछ पता ही नहीं चल सका. हैरानी की बात तो यह भी थी कि मकान में रहने वाले मकान मालिक और बाकी किराएदारों को भी गोली चलने की आवाज सुनाई नहीं पड़ी.

24 सितंबर, 2017 को पटना के दानापुर ब्लौक में हुई इस वारदात में किसी ‘तीसरे’ के होने के संकेत ने पुलिस का सिरदर्द बढ़ा दिया है.

दानापुर थाने के बेली रोड पर बसी मंगलम कालोनी में सेना के 32 साला लांसनायक संतोष कुमार सिंह ने लाइसैंसी राइफल से 22 साला दोस्त रिकेश कुमार सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी और उस के बाद खुद को भी गोली मार ली.

संतोष किराए के मकान में अपने परिवार के साथ रहता था. मकान के आसपास के लोगों ने पुलिस को बताया कि हत्या वाले दिन रिकेश कुमार के अलावा एक और आदमी संतोष के घर पर था. किसी ने उस तीसरे शख्स को बाहर निकलते नहीं देखा. पुलिस को उस का कोई अतापता नहीं मिल पा रहा है.

कुछ महीने पहले ही संतोष का तबादला अरुणाचल प्रदेश में हो गया था. उस के बाद दोनों फोन पर ही लंबी बातें किया करते थे. संतोष छुट्टी में घर आता, तो रिकेश से मिलता था.

24 सितंबर, 2017 को संतोष ने रिकेश को फोन कर अपने घर बुलाया. रिकेश ने आने से मना किया और कहा कि घर में काफी काम है. उस के बाद संतोष ने उस से कहा कि उस ने घर पर ही उस के लिए खाना बनवाया हुआ है.

खाने के नाम पर रिकेश ने उस के घर आने के लिए हामी भरी. कुछ देर बाद रिकेश संतोष के घर पहुंच गया और कमरे में बैठ कर टैलीविजन देखने लगा. उसी दौरान वे दोनों बातचीत भी करते रहे. किसी बात को ले कर दोनों में तीखी झड़प शुरू हो गई. कुछ ही देर में संतोष चिल्लाने लगा, पर रिकेश उस की बातों को अनसुना कर टैलीविजन देखता रहा.

संतोष शादीशुदा था और रिकेश की शादी नहीं हुई थी. घर वाले उस के लिए लड़की ढूंढ़ रहे थे.

संतोष कुछ महीने पहले तक बिहार में ही पोस्टैड था. वह बिहार रैजीमैंट के ट्रेनिंग सैंटर में इंस्ट्रक्टर था. रिकेश की भी सेना में सिपाही के पद पर बहाली हुई थी और वह ट्रेनिंग सैंटर में ही ट्रेनिंग ले रहा था. उसी दौरान उस की मुलाकात संतोष से हुई और कुछ ही समय में वे दोनों गहरे दोस्त बन गए.

पुलिस ने उन दोनों के मोबाइल फोन का रिकौर्ड खंगाला, तो दोनों के बीच की बातचीत को सुन कर लगा कि उन की दोस्ती हदें पार कर चुकी थी. दोनों हर तरह की बातें खुल कर किया करते थे.

पुलिस के मुताबिक, रिकेश के एक दोस्त ने बताया कि रिकेश किसी को कुछ बताए बगैर ही बैरक से बाहर निकल गया था. देर तक जब वह बैरक में नहीं पहुंचा, तो उस के साथी जवानों ने रिकेश की मां को फोन कर मामले की जानकारी दी.

रिकेश की मां उस समय भोपाल में थीं. उन्होंने पटना से सटे दानापुर इलाके में रहने वाली अपनी बेटी पिंकी को रिकेश के बारे में पता करने को कहा.

पिंकी अपने पति मनोज को साथ ले कर देर रात संतोष के घर पहुंची. उस ने मकान मालिक राजेंद्र सिंह से संतोष और रिकेश के बारे में पूछा. मकान मालिक ने उन को घर में नहीं घुसने दिया और सुबह आने को कहा.

दूसरे दिन सुबह पिंकी अपने ससुर जगेश्वर सिंह के साथ संतोष के घर पहुंची. पिंकी ने दरवाजा खटखटाया, पर अंदर से कोई जवाब नहीं मिला. उस के बाद उस ने जोर से चिल्ला कर आवाज लगाई. काफी कोशिश के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, तो उस ने मकान मालिक को मामले की जानकारी दी.

मकान मालिक की सहमति के बाद संतोष के मकान का दरवाजा तोड़ा गया. दरवाजा टूटने के बाद जब वे लोग अंदर गए, तो सभी के मुंह से चीखें निकल पड़ीं. कमरे के अंदर संतोष और रिकेश की खून से सनी लाशें पड़ी हुई थीं.

संतोष और रिकेश के परिवार समेत पुलिस भी इस बात से हैरान है कि राइफल की 3 गोलियां चलीं, पर मकान मालिक को उस की आवाज कैसे नहीं सुनाई दी?

हैरानी की बात यह भी है कि मकान में रहने वाले बाकी किराएदारों को भी आवाज नहीं सुनाई पड़ी.

कमरे में संतोष की राइफल के साथ 3 जिंदा कारतूस और 3 खोखे बरामद हुए. कमरे में लगा टैलीविजन चल रहा था. कमरे से पुलिस ने संतोष और रिकेश के मोबाइल फोन बरामद किए.

22 सितंबर को संतोष अपनी बीवी रिंकी देवी और 10 साल के बेटे आयुष को सारण जिले के चकिया थाना के दुरघौली गांव में छोड़ आया था. दुरघौली उस का पुश्तैनी घर है. उस के पिता धर्मदेव सिंह किसान हैं.

रिकेश आरा के दोबाहा गांव का रहने वाला था और उस के पिता का नाम विजय कुमार सिंह है.

रिकेश की बहन पिंकी और बाकी घर वालों ने बताया कि संतोष अपनी बहन से रिकेश की शादी करवाना चाहता था. उस ने अपनी बहन से रिकेश को मिलवाया भी था. उस के बाद रिकेश उस से फोन पर अकसर बातें करने लगा था.

रिकेश के घर वाले संतोष की बहन को पसंद नहीं करते थे और शादी के लिए राजी नहीं हो रहे थे. संतोष लगातार रिकेश पर शादी का दबाव बना रहा था और रिकेश यह कह कर शादी टाल रहा था कि उस के घर वालों को लड़की पसंद नहीं है.

संतोष की बीवी रिंकी देवी का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. उस ने किसी से किसी तरह का झगड़ा होने की बात से साफ इनकार किया.

संतोष के कमरे में टंगे संतोष और रिकेश के हंसतेमुसकराते कई फोटो देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन दोनों के बीच काफी गहरी दोस्ती थी.

रिकेश का सिर बाथरूम के अंदर था और जिस्म का बाकी हिस्सा कमरे में था. ऐसा लग रहा था कि उसे मारने के बाद उस की लाश को घसीट कर बाथरूम की ओर ले जाया गया था.

रिकेश के पैर के पास ही संतोष की लाश पड़ी हुई थी. उस के पेट के ऊपर राइफल रखी हुई थी और उस की नली के आगे के हिस्से में खून के दाग थे.

रिकेश के शरीर में 2 गोलियों के निशान थे और संतोष की ठुड्डी पर गोली का निशान था. उस के सिर के पिछले हिस्से में काफी गहरा जख्म था.

संतोष के गले में रस्सी भी बंधी हुई थी और उस का दूसरा छोर सीलिंग पंखे से बंधा हुआ था. इस से यह पता चलता है कि संतोष ने पहले गले में फंदा डाल कर पंखे से लटक कर जान देने की कोशिश की होगी. उस में कामयाबी नहीं मिलने के बाद उस ने गोली मार कर खुदकुशी कर ली.

प्यार में हत्या का पागलपन

लखनऊ के पारा इलाके की रामविहार कालोनी में रिटायर्ड सूबेदार लालबहादुर सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रेनू के अलावा 2 बेटियां आरती, अंतिमा और बेटा आशुतोष था. वैसे वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले थे. 24 साल का आशुतोष रामस्वरूप कालेज से बीबीए करने के बाद बाराबंकी जिले में एल एंड टी कंपनी में नौकरी करता था. 26 साल की आरती बीटेक की पढ़ाई पूरी कर के बीटीसी के दूसरे साल में पढ़ रही थी. जबकि 17 साल की अंतिमा सेंट मैरी स्कूल में इंटरमीडिएट की छात्रा थी.

लालबहादुर सिंह आर्मी में सूबेदार के पद से एक महीने पहले ही रिटायर हुए थे. वह राजस्थान के जोधपुर छावनी में तैनात थे. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने सब से पहले बड़ी बेटी की शादी करने की योजना बनाई.

9 मई, 2017 को सुबह 8 बजे के करीब लालबहादुर सिंह की पत्नी रेनू की तबीयत अचानक खराब हो गई. वह उन्हें ले कर कैंट एरिया स्थित कमांड अस्पताल गए. दोनों बेटियों को वह घर पर ही छोड़ गए थे. डाक्टर ने रेनू का सीटी स्कैन कराने की सलाह दी, पर उस दिन अस्पताल में सीटी स्कैन की मशीन खराब थी. वह एकडेढ़ घंटे में ही घर आ गए.

करीब साढ़े 9 बजे जब वह पत्नी के साथ घर पहुंचे तो घर का मेनगेट खुला था. अंदर दाखिल होते हुए वह बड़बड़ाए, ‘बच्चियां कितनी लापरवाह हैं, गेट भी बंद नहीं किया.’ जब वे अंदर पहुंचे तो घर में खून ही खून फैला दिखाई दिया. खून देख कर पतिपत्नी घबरा गए.

बेटियों को आवाज देते हुए लालबहादुर सिंह आगे बढे तो उन्होंने देखा ड्राइंगरूम से गैलरी तक खून ही खून फैला है. सहमे हुए वह किचन की ओर बढे़ तो पता चला आरती और अंतिमा किचन में खून से लथपथ घायल पड़ी थीं.

बेटियों की हालत देख कर रेनू चीख पड़ीं, जबकि लालबहादुर सिंह घर से बाहर आ कर मदद के लिए चिल्लाने लगे. पड़ोस में रहने वाला रवि सब से पहले उन की आवाज सुन कर अपने घर से निकला तो उन्होंने उस से रोते हुए कहा, ‘मेरा तो सब कुछ तबाह हो गया.’

रवि समझ गया कि जरूर इन के घर कोई अनहोनी हुई है. कमरे से उन की पत्नी के रोने की आवाज आ रही थी. रवि उन के घर के अंदर गया तो देखा, दोनों बेटियां लहूलुहान पड़ी हैं. तब तक मोहल्ले के और लोग भी आ गए थे. रवि के पास स्विफ्ट डिजायर कार थी. लोगों की सहायता से उस ने दोनों बहनों को अपनी कार में डाला और लालबहादुर सिंह को साथ ले कर कमांड अस्पताल गया.

अस्पताल में डाक्टरों ने अंतिमा को तुरंत मृत घोषित कर दिया, जबकि आरती का इलाज शुरू कर दिया. पर इलाज के दौरान ही उस की भी मौत हो गई. पुलिस केस देखते हुए अस्पताल प्रशासन की तरफ से पुलिस को इत्तिला दी गई. सूचना पा कर तालकटोरा थाने की पुलिस कमांड अस्पताल पहुंच गई.

मामला 2 सगी बहनों की हत्या का था, इसलिए खबर मिलने पर आईजी सतीश गणेश, डीआईजी प्रवीण कुमार, एसएसपी दीपक कुमार भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो लालबहादुर सिंह और आरती के कमरे का सामान बिखरा पड़ा था. लग रहा था कि हत्याएं लूट के लिए की गई थीं. लेकिन जब लालबहादुर सिंह और उन की पत्नी ने घर का सामान देखा तो वहां से कुछ भी गायब नहीं था.

घटनास्थल को देखने से ही लग रहा था कि दोनों बहनों ने मरने से पहले हत्यारे के साथ जम कर मुकाबला किया था. किचन में भगौना, परात और गिलास जमीन पर गिरे पड़े थे. आरती चश्मा लगाती थी, उस का चश्मा टूटा पड़ा था. उस की मुट्ठी में किसी पुरुष के बाल भी मिले थे. आरती और अंतिमा को जिस तरह से शिकार बनाया गया था, उस से साफ लग रहा था कि हमलावर केवल उन की हत्या करने के इरादे से ही आया था.

दोनों ही बहनों की कनपटी और गरदन के पास धारदार हथियार से वार किए गए थे. अंतिमा के हाथ की नस भी काटी गई थी. हत्यारे ने बाथरूम में जा कर अपने हाथ आदि पर लगा खून साफ किया था, जिस से वहां के फर्श और दीवार पर भी खून लग गया था.

पुलिस को वहां मिले दोनों मोबाइल फोन चालू हालत में थे, पर उन पर भी खून लगा था. एक मोबाइल से एसएमएस, काल लौग्स और वाट्सऐप मैसेज डिलीट किए गए थे, जिस से साफ लग रहा था कि हमलावर दोनों का परिचित था.

आरती की शादी तय हो चुकी थी. इस बात को भी ध्यान में रखा गया. लालबहादुर सिंह के मकान के निचले हिस्से में 2 छात्र किराए पर रहते थे. पुलिस ने डौग स्क्वायड के जरिए कुछ सुराग तलाशने की कोशिश की, पर कुछ भी हाथ नहीं लगा. इस दोहरी हत्या से बौखलाए लोगों ने स्थानीय विधायक सुरेशचंद्र श्रीवास्तव के घर पर प्रदर्शन भी किया.

पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली थी. एसएसपी दीपक कुमार ने इस मामले को सुलझाने के लिए एक टीम बनाई, जिस में थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया गया. टीम में क्राइम ब्रांच के एएसपी संजय कुमार, सीओ (आलमबाग) मीनाक्षी गुप्ता, स्वाट टीम के प्रभारी फजलुर्रहमान, सर्विलांस प्रभारी अमरेश त्रिपाठी, एसआई संजय कुमार द्विवेदी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस कई ऐंगल से जांच कर रही थी. एएसपी क्राइम संजय कुमार ने हर पहलू को पैनी नजरों से देखना शुरू किया. आरती के फोन की काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर वह देर तक बातें करती थी. उस नंबर की जांच की गई तो वह नंबर किसी इंद्रजीत का था. पता चला कि उस से ही आरती की शादी होने वाली थी.

हत्या के कुछ देर पहले आरती की जिस नंबर पर बात हुई थी, वह अखिलेश यादव का था. पुलिस ने अखिलेश से बात की तो उस ने आरती से दोस्ती की बात तो स्वीकारी, लेकिन किसी तरह के झगड़े या विवाद से इनकार कर दिया.

अखिलेश ने पुलिस को बताया कि आरती का अपने घर के सामने रहने वाले सौरभ शर्मा से विवाद हुआ था. उस ने कई बार इस का जिक्र उस से किया था. इस से पहले आरती के भाई आशुतोष ने भी सौरभ पर अपना शक जताया था.

क्राइम ब्रांच की टीम सौरभ शर्मा को रात में उस के घर से उठा लाई. पुलिस को उस के लंबे बाल देख कर शक हुआ. उस के हाथ में वैसी ही चोट लगी थी, जैसी उन दोनों बहनों के हाथ में लगी थी. पुलिस ने सौरभ से पूछताछ शुरू की तो पहले वह इधरउधर की बातें करता रहा.

लेकिन जब पुलिस ने उस के कपड़े उतार कर देखा तो उस के शरीर पर कई चोटें लगी दिखीं. सिर के पिछले हिस्से के बाल भी उखड़े मिले. ऐसे में पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू की तो वह टूट गया. फिर उस ने दोनों बहनों की हत्या की बात स्वीकार कर के जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

सौरभ और आरती आमनेसामने के मकानों में रहते थे. इसी वजह से दोनों का एकदूसरे के यहां उठनाबैठना था. दोनों पढ़ाई में एकदूसरे का सहयोग भी लेते थे. दोनों साथ ही कोचिंग भी जाते थे, जिस से उन के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी.

बीटेक सैकेंड सेमेस्टर परीक्षा के दौरान आरती के हाथ में चोट लग गई थी, जिस की वजह से आरती एग्जाम में लिखने में असमर्थ थी. ऐसे में सौरभ उस का राइटर बना था. कालेज से अनुमति के बाद सौरभ ने उस का पेपर दिया था.

आरती सौरभ को अपना अच्छा दोस्त मानती थी. जबकि सौरभ इस दोस्ती को प्यार मान बैठा था. सौरभ पर इश्क का ऐसा भूत सवार हुआ कि उसे आरती का किसी के साथ घूमना या बातचीत करना अच्छा नहीं लगता था. सौरभ के अलावा आरती की दोस्ती इंद्रजीत और अखिलेश से भी थी. सौरभ ने जब उसे उन के साथ बातचीत करते देखा तो उसे बहुत बुरा लगा. इस बात को ले कर आरती और सौरभ के बीच कई बार झगड़ा भी हुआ, जिस से दोनों के बीच होने वाली बातचीत भी बंद हो गई.

इस के बाद भी सौरभ ने कई बार आरती को इंद्रजीत और अखिलेश के साथ अलगअलग देखा. इस से उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. सोमवार 8 मई को शाम के समय आरती और अखिलेश को सौरभ ने फीनिक्स मौल में देख लिया. दोनों ही बाहुबली-2 देख कर निकले थे. उसी समय सौरभ के मन में आरती से बदला लेने का खयाल आ गया.

सौरभ ने बीकौम की पढ़ाई की थी और बैंक औफिसर बनने की तैयारी कर रहा था. रात भर सौरभ गुस्से में जलता रहा. सुबह के समय जब उस ने देखा कि आरती के मातापिता घर से बाहर चले गए हैं तो वह उस के घर जा धमका. सौरभ को पता था कि आरती की छोटी बहन अंतिमा सुबह 7 बजे स्कूल चली गई होगी, इसलिए आरती घर में अकेली होगी.

यही सोच कर उस ने उस दिन आरती को सबक सिखाने की ठान ली. इस के लिए उस ने अपने पास एक कैंची रख ली थी. आरती के घर पर पहुंच कर उस ने कालबैल बजाई तो आरती की छोटी बहन अंतिमा ने दरवाजा खोला. वह उस से बोली कि मम्मीपापा अस्पताल गए हैं और दीदी बाथरूम में हैं.

सौरभ ने बिना कुछ बोले अंतिमा पर कैंची से हमला कर दिया. वह चीखती हुई किचन की तरफ भागी. बहन की चीख सुन कर आरती ने फटाफट कपड़े पहने और बाथरूम से बाहर  आ गई. तब तक सौरभ ने अंतिमा पर अनगिनत वार कर दिए थे.

सौरभ ने जैसे ही आरती को देखा, वह उस पर टूट पड़ा. आरती ने अपना बचाव करने की कोशिश भी की, पर उस की कोशिश सफल नहीं हो सकी. जब उसे लगा कि आरती मर चुकी है तो उस ने खून के निशान आरती के पिता की शर्ट पर लगा दिए, जिस से लोग यह शक करें कि लालबहादुर सिंह ने ही अपनी बेटियों को मार दिया होगा. इस के बाद बाथरूम में हाथ धो कर वह अपने घर चला गया.

लालबहादुर सिंह घर आए और बेटियों को ले कर अस्पताल गए तो उन के साथ सौरभ भी अस्पताल गया था. वह लोगों से ऐसे पेश आ रहा था, जैसे उसे कुछ पता ही न हो. हत्याकांड के बाद विधायक सुरेशचंद्र श्रीवास्तव के घर पर लोग नारेबाजी करने गए तो सौरभ भी उस में था. वह इस बात की भी मोहल्ले में हवा दे रहा था कि दोनों बहनों में किसी बात को ले कर झगड़ा हुआ होगा, जिस से यह घटना घट गई.

सौरभ ने अपने बयान में पुलिस को बताया कि आरती की जान लेने का उसे कोई पछतावा नहीं है. आरती के लिए उस ने क्याक्या नहीं किया. वह छिपछिप कर उसे देखा करता था. कालेज और कोचिंग साथ जाता था. उस के  आनेजाने का इंतजार करता था. इस के बावजूद भी उस ने किसी और से शादी करने का फैसला कर लिया था.

सौरभ का परिवार दबंग किस्म का था. लखनऊ के एसएसपी दीपक कुमार ने बताया कि सौरभ के पिता मुकुंदीलाल शर्मा ट्रांसपोर्टर हैं. घर पर उस के चाचा भी रहते हैं. इन की दबंगई की वजह से मोहल्ले वाले उन से दूर रहते हैं.

एएसपी क्राइम डा. संजय कुमार ने बताया कि सौरभ को कोर्ट में गुनहगार साबित करने के लिए पुलिस के पास पुख्ता सबूत हैं. आरती की मुट्ठी में बाल और नाखूनों में सौरभ की स्किन के टुकड़े मिले हैं. उन्हें डीएनए टेस्ट के लिए भेजा जाएगा.

इस के अलावा हत्या में प्रयुक्त कैंची और खून सने कपड़े व तमाम वैज्ञानिक साक्ष्य उसे गुनहगार साबित करने के लिए काफी हैं. पुलिस टीम ने तत्परता दिखाते हुए 2 दिन में ही इस दोहरे हत्याकांड का खुलासा कर दिया था. एसएसपी दीपक कुमार ने केस को खोलने वाली पुलिस टीम की सराहना की है. पुलिस ने सौरभ से पूछताछ कर उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपहरण के चक्कर में फंस गया मुंबई का किंग

15 मई, 2017 की सुबह की बात है. समय 11-साढ़े 11 बजे सीकर जिले के शहर फतेहपुर के ज्वैलर ललित पोद्दार अपनी ज्वैलरी की दुकान पर थे. उन की पत्नी पार्वती और बेटा ध्रुव ही घर पर थे. बेटी वर्षा किसी काम से बाजार गई थी. उसी समय अच्छी कदकाठी का एक सुदर्शन युवक उन के घर पहुंचा. उस के हाथ में शादी के कुछ कार्ड थे. युवक ने ललित के घर के बाहर लगी डोरबेल बजाई तो पार्वती ने बाहर आ कर दरवाजा खोला. युवक ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘नमस्ते आंटीजी, पोद्दार अंकल घर पर हैं?’’

पार्वती ने शालीनता से जवाब देते हुए कहा, ‘‘नमस्ते भैया, पोद्दारजी तो इस समय दुकान पर हैं. बताइए क्या काम है?’’

‘‘आंटीजी, हमारे घर में शादी है. मैं कार्ड देने आया था.’’ युवक ने उसी शालीनता से कहा.

युवक के हाथ में शादी के कार्ड देख कर पार्वती ने उसे अंदर बुला लिया. युवक ने सोफे पर बैठ कर एक कार्ड पार्वती की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आंटीजी, यह कार्ड पोद्दार अंकल को दे दीजिएगा. आप लोगों को शादी में जरूर आना है. बच्चों को भी साथ लाइएगा.’’

पार्वती ने शादी का कार्ड देख कर कहा, ‘‘भैया आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘आंटीजी, आप नहीं पहचानतीं, लेकिन पोद्दार अंकल मुझे अच्छी तरह से पहचानते हैं.’’ युवक ने कहा.

पार्वती ने घर आए, उस मेहमान से चायपानी के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘चायपानी के तकल्लुफ की कोई जरूरत नहीं है, आंटीजी. अभी एक कार्ड आप के भांजे अश्विनी को भी देना है. मैं उन का घर नहीं जानता. आप अपने बेटे को मेरे साथ भेज देतीं तो वह उन का घर बता देता. कार्ड दे कर मैं आप के बेटे को छोड़ जाऊंगा.’’

बाहर तेज धूप थी. इसलिए पार्वती बेटे को बाहर नहीं भेजना चाहती थीं. इसलिए उन्होंने टालने वाले अंदाज में कहा, ‘‘आप कार्ड हमें दे दीजिए. शाम को अश्विनी हमारे घर आएगा तो हम कार्ड दे देंगे.’’

पार्वती की बात सुन कर युवक ने मायूस होते हुए कहा, ‘‘कार्ड तो मैं आप को दे दूं, लेकिन पापा मुझे डांटेंगे. उन्होंने कहा है कि खुद ही जा कर अश्विनी को कार्ड देना.’’

युवक की बातें सुन कर पार्वती ने ड्राइंगरूम में ही वीडियो गेम खेल रहे अपने 13 साल के बेटे ध्रुव से कहा, ‘‘बेटा, अंकल के साथ जा कर इन्हें अश्विनी का घर बता दे.’’

ध्रुव मां का कहना टालना नहीं चाहता था, इसलिए वह अनमने मन से जाने को तैयार हो गया. वह युवक ध्रुव के साथ घर से निकलते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू आंटीजी.’’

ध्रुव और उस युवक के जाने के बाद पार्वती घर के कामों में लग गईं. काम से जैसे ही फुरसत मिली उन्होंने घड़ी देखी. दोपहर के साढ़े 12 बज रहे थे. ध्रुव को कब का घर आ जाना चाहिए था. लेकिन वह अभी तक नहीं आया था. पार्वती ने सोचा कि ध्रुव वहां जा कर खेलने या चायपानी पीने में लग गया होगा. हो सकता है, अश्विनी ने उसे किसी काम से भेज दिया हो. यह सोच कर वह फिर काम में लग गईं.

थोड़ी देर बाद उन्हें जब फिर ध्रुव का ध्यान आया, तब दोपहर का सवा बज रहा था. ध्रुव को घर से गए हुए डेढ़ घंटे से ज्यादा हो गया था. पार्वती को चिंता होने लगी. 10-5 मिनट वह सेचती रहीं कि क्या करें. कुछ समझ में नहीं आया तो उन्होंने पति ललित पोद्दार को फोन कर के सारी बात बता दी. पत्नी की बात सुन कर ललित को भी चिंता हुई. उन्होंने पत्नी को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘ध्रुव कोई छोटा बच्चा नहीं है कि कहीं खो जाए या इधरउधर भटक जाए. फिर भी मैं अश्विनी को फोन कर के पता करता हूं.’’

ललित ने अश्विनी को फोन कर के ध्रुव के बारे में पूछा तो अश्विनी ने जवाब दिया, ‘‘मामाजी, मेरे यहां न तो ध्रुव आया था और ना ही कोई आदमी शादी का कार्ड देने आया था.’’

अश्विनी का जवाब सुन कर ललित भी चिंता में पड़ गए. वह तुरंत घर पहुंचे और पार्वती से सारी बातें पूछीं. उन्होंने वह शादी का कार्ड भी देखा, जो वह युवक दे गया था. कार्ड पर लियाकत सिवासर का नाम लिखा था. ललित को वह शादी का कार्ड अपने किसी परिचित का नहीं लगा. उन्होंने कार्ड पर लिखे मोबाइल नंबरों पर फोन किया तो वे नंबर फरजी निकले.

ललित को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. उन के मन में बुरे ख्याल आने लगे. उन्हें आशंका इस बात की थी कि कहीं किसी ने पैसों के लालच में ध्रुव का अपहरण न कर लिया हो. इस की वजह यह थी कि वह फतेहपुर के नामीगिरामी ज्वैलर थे. राजस्थान के शेखावटी इलाके में उन का अच्छाखासा रसूख था. बेटे के घर न आने से पार्वती का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था.

ललित ने अपने कुछ परिचितों से बात की तो सभी ने यही सलाह दी कि इस मामले की सूचना पुलिस को दे देनी चाहिए. इस के बाद दोपहर करीब ढाई बजे ललित ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी. पार्वती से पूछताछ की गई. शुरुआती जांच से यही नतीजा निकला कि ध्रुव का अपहरण किया गया है.

अपहर्त्ता प्रोफेशनल अपराधी हो सकते थे. क्योंकि रात तक फिरौती के लिए किसी अपहर्त्ता का फोन नहीं आया था. पुलिस को अनुमान हो गया था कि अपहर्त्ता ने ध्रुव के अपहरण का जो तरीका अपनाया था, उस से साफ लगता था कि उन्होंने रेकी कर के ललित पोद्दार के बारे में जानकारियां जुटाई थीं.

पुलिस ने फिरौती मांगे जाने की आशंका के मद्देनजर पोद्दार परिवार के सारे मोबाइल सर्विलांस पर लगवा दिए. लेकिन उस दिन रात तक ना तो किसी अपहर्त्ता का फोन आया और ना ही ध्रुव को साथ ले जाने वाले उस युवक के बारे में कोई जानकारी मिली. पुलिस ने ललित के घर के आसपास और लक्ष्मीनारायण मंदिर के करीब स्थित उस की दुकान के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, लेकिन उन से पुलिस को कुछ हासिल नहीं हुआ.

पुलिस को अब तक केवल यही पता चला था कि ललित पोद्दार के घर जो युवक शादी का कार्ड देने आया था, उस की उम्र करीब 30 साल के आसपास थी. वह सफेद शर्ट पहने हुए था. अगले दिन सीकर के एसपी राठौड़ विनीत कुमार त्रिकमलाल ने ध्रुव का पता लगाने के लिए अपने अधीनस्थ अधिकारियों को दिशानिर्देश दिए. इस के बाद पुलिस ने उस शादी के कार्ड को आधार बना कर जांच आगे बढ़ाई.

परेशानी यह थी कि शादी के कार्ड पर किसी प्रिंटिंग प्रैस का नाम नहीं लिखा था, जबकि हर शादी के कार्ड पर प्रिंटिंग प्रैस का नाम जरूरी होता है. इस की वजह यह है कि राजस्थान सरकार ने बालविवाह की रोकथाम के लिए यह कानूनी रूप से जरूरी कर दिया है. पुलिस ने शादी के कार्ड छापने वाले प्रिंटिंग प्रैस मालिकों से बात की तो पता चला कि उस कार्ड में औफसेट पेंट का इस्तेमाल किया गया था.

उस पेंट का उपयोग फतेहपुर में नहीं होता था. सीकर में प्रिंटिंग प्रैस वाले उस का उपयोग करते थे. इस के बाद पुलिस ने सीकर, चुरू और झुंझुनूं के करीब डेढ़ सौ प्रैस वालों से पूछताछ की. इस जांच के दौरान एक नया तथ्य यह सामने आया कि ध्रुव के अपहरण से 4 दिन पहले से उसी के स्कूल में पढ़ने वाला छात्र अंकित भी लापता था. अंकित चुरू जिले के रतनगढ़ शहर का रहने वाला था. वह फतेहपुर के विवेकानंद पब्लिक स्कूल में पढ़ता था और हौस्टल में रहता था. गर्मी की छुट्टी में वह रतनगढ़ अपने घर गया था. वह 12 मई को दोपहर करीब सवा बारह बजे बाल कटवाने के लिए घर से निकला था, तब से लौट कर घर नहीं आया था.

तीसरे दिन आईजी हेमंत प्रियदर्शी एवं एसपी राठौड़ विनीत कुमार ने ध्रुव के घर वालों से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि ध्रुव का जल्द से जल्द पता लगा लिया जाएगा. उसी दिन यानी 17 मई को अपहर्त्ता ने ललित पोद्दार को फोन कर के बताया कि उन के बेटे ध्रुव का अपहरण कर लिया गया है. उन्होंने ध्रुव की उन से बात करा कर 70 लाख रुपए की फिरौती मांगी.

उन्होंने चेतावनी भी दी थी कि अगर पुलिस को बताया तो बच्चे को मार दिया जाएगा. ललित ने समझदारी से बातें करते हुए अपहर्त्ता से कहा कि आप तो जानते ही हैं कि नोटबंदी को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. भाइयों, परिवार वालों और रिश्तेदारों से पैसे जुटाने के लिए समय चाहिए. चाहे जितनी कोशिश कर लूं, 70 लाख रुपए इकट्ठे नहीं हो पाएंगे. बैंक से एक साथ ज्यादा पैसा निकाला तो पुलिस को शक हो जाएगा.

ललित ने अपहर्ता को अपनी मजबूरियां बता कर यह जता दिया कि वह 70 लाख रुपए नहीं दे सकते. बाद में अपहर्ता 45 लाख रुपए ले कर ध्रुव को सकुशल छोड़ने को राजी हो गए. अपहर्ताओं ने फिरौती की यह रकम कोलकाता में हावड़ा ब्रिज पर पहुंचाने को कहा. लेकिन बाद में वे फिरौती की रकम मुंबई में लेने को तैयार हो गए.

ललित का मोबाइल पहले से ही पुलिस सर्विलांस पर लगा रखा था. पुलिस को अपहर्ता और ललित के बीच हुई बातचीत का पता चल गया. इसी के साथ पुलिस को वह मोबाइल नंबर भी मिल गया, जिस से ललित को फोन किया गया था.

इसी बीच पुलिस ने शादी के उस कार्ड की जांच एक्सपर्ट से कराई तो पता चला कि वह एविडेक प्रिंटर से छपा था. शेखावटी के सीकर, चुरू व झुंझुनूं जिले में करीब 60 एविडेक प्रिंटर थे. इन प्रिंटर मालिकों से पूछताछ की गई तो पता चला कि वह कार्ड नवलगढ़ के एक प्रिंटर से छपवाया गया था. उस प्रिंटर के मालिक से पूछताछ में पता चला कि वह कार्ड फतेहपुर के किसी आदमी ने उस के प्रिंटर पर छपवाया था. उस आदमी से पूछताछ में पुलिस को अपहर्त्ता युवक के बारे में कुछ सुराग मिले.

इस के अलावा पुलिस ने 15 मई को ललित पोद्दार के मकान के आसपास घटना के समय हुई सभी मोबाइल कौल को ट्रेस किया. इस में मुंबई का एक नंबर मिला. यह नंबर साजिद बेग का था. काल डिटेल्स के आधार पर यह भी पता चल गया कि साजिद के तार फतेहपुर के रहने वाले अयाज से जुड़े थे.

जांच में यह बात भी सामने आ गई कि अपहर्ता मुंबई से जुड़ा है. इस पर पुलिस ने फतेहपुर से ले कर विभिन्न राज्यों के टोल नाकों पर जांच की और उन नाकों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस में सब से पहले शोभासर के टोल पर सफेद रंग की एसेंट कार पर जयपुर का नंबर मिला. अगले टोल नाके मौलासर पर इसी कार पर महाराष्ट्र की नंबर प्लेट लगी हुई पाई गई. आगे के टोल नाकों पर उसी कार पर अलगअलग नंबर प्लेट लगी हुई पाई गई. जांच में ये सारे नंबर फरजी पाए गए.

सीकर के एसपी ने मुंबई के पुलिस कमिश्नर से बात कर के ध्रुव के अपहरण की पूरी जानकारी दे कर अपराधियों को पकड़ने में सहायता करने का आग्रह किया. इसी के साथ एसपी के दिशानिर्देश पर एडिशनल एसपी तेजपाल सिंह ने 3 टीमें गठित कर के 3 राज्यों में भेजी. सब से पहले रामगढ़ शेखावाटी के थानाप्रभारी रमेशचंद्र को टीम के साथ मुंबई भेजा गया. यह टीम मुंबई पुलिस और क्राइम ब्रांच के साथ मिल कर आरोपियों की तलाश में जुट गई.

फतेहपुर कोतवाली के थानाप्रभारी महावीर सिंह ने लगातार जांच कर के ध्रुव के अपहरण में साजिद बेग और फतेहपुर के रहने वाले अयाज के साथ उस के संबंधों के बारे में पता लगाया.

एसपी ध्रुव के घर वालों को सांत्वना देने के साथ यह भी बताते रहे कि उन्हें अपहर्ता को किस तरह बातों में उलझा कर रखना है, ताकि पुलिस बच्चे तक पहुंच सके. पुलिस की एक टीम उत्तर प्रदेश और एक टीम पश्चिम बंगाल भी भेजी गई. पुलिस को संकेत मिले थे कि अपहर्ता धु्रुव को ले कर मुंबई, कोलकाता या कानपुर जा सकते हैं.

लगातार भागदौड़ के बाद सीकर पुलिस ने मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की मदद से 21 मई की आधी रात के बाद मुंबई के बांद्रा  इलाके से ध्रुव को सकुशल बरामद कर लिया. पुलिस ने उस के अपहरण के आरोप में साजिद बेग को मुंबई से गिरफ्तार कर लिया था. इस के अलावा उस की 2 गर्लफ्रैंड्स को भी गिरफ्तार किया गया. पुलिस ने वह एसेंट कार भी बरामद कर ली, जिस से ध्रुव का अपहरण किया गया था. सीकर पुलिस 22 मई की रात ध्रुव और आरोपियों को ले कर मुंबई से रवाना हुई और 23 मई को फतेहपुर आ गई.

पुलिस ने ध्रुव के अपहरण के मामले में मुंबई से साजिद बेग और उस की गर्लफ्रैंड्स यास्मीन जान और हालिमा मंडल को गिरफ्तार किया था. पूछताछ के बाद फतेहपुर के रहने वाले अयाज उल हसन उर्फ हयाज को गिरफ्तार किया गया. इस के बाद सभी आरोपियों से की गई पूछताछ में ध्रुव के अपहरण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

साजिद बेग पेशे से सिविल इंजीनियर था. वह बांद्रा, मुंबई में मछली बाजार में रहता था. उसे हिंदी, अंग्रेजी व मारवाड़ी का अच्छा ज्ञान था. वह मूलरूप से फतेहपुर का ही रहने वाला था. उस के दादा और घर के अन्य लोग मुंबई जा कर बस गए थे. फतेहपुर में साजिद का 2 मंजिला आलीशान मकान था. वह फतेहपुर आताजाता रहता था. उस की पत्नी भी पढ़ीलिखी है. उस का एक बच्चा भी है.

मुंबई स्थित उस के घर पर नौकरचाकर काम करते हैं. उस के पिता के भाई और अन्य रिश्तेदार भी मुंबई में ही रहते हैं. इन के लोखंडवाला, बोरीवली सहित कई पौश इलाकों में आलीशान बंगले हैं. वह मुंबई में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम करता था. मौजमस्ती के गलत शौक और व्यापार में घाटा होने की वजह से साजिद कई महीनों से आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस पर करीब 30 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. इसलिए वह जल्द से जल्द किसी भी तरीके से पैसे कमा कर अपना कर्ज उतारना चाहता था.

करीब 2 महीने पहले साजिद ने फतेहपुर के रहने वाले अपने बचपन के दोस्त अयाज उल हसन उर्फ हयाज को मुंबई बुलाया. वह 5 दिनों  तक मुंबई में रहा. इस बीच साजिद ने उस से पैसे कमाने के तौर तरीकों के बारे में बात की. इस पर अयाज ने कहा कि फतेहपुर में किसी का अपहरण कर के उस के बदले में अच्छीखासी फिरौती वसूली जा सकती है. हालांकि उस समय यह तय नहीं हुआ था कि अपहरण किस का किया जाएगा.

साजिद ने अयाज को यह कह कर फतेहपुर वापस भेज दिया कि वह किसी ऐसी पार्टी का चयन करे, जिस से मोटी रकम वसूली जा सके. अयाज फतेहपुर आ कर योजना बनाने लगा. अयाज ने पिछले साल फतेहपुर के ज्वैलर ललित पोद्दार के मकान पर पेंट का काम किया था. इसलिए उसे ललित के घरपरिवार की सारी जानकारी थी. उस ने साजिद को ललित के बारे में बताया.

इस के बाद दोनों ने ललित के बेटे ध्रुव के अपहण की योजना बना ली. उसी योजना के तहत शादी का फरजी कार्ड नवलगढ़ से छपवाया गया. इस के बाद कार्ड से कैमिकल द्वारा प्रिंटिंग प्रैस का नाम हटा दिया गया. योजनानुसार साजिद 10 मई को मुंबई से कार ले कर फतेहपुर आ गया और दरगाह एरिया में रहने वाले अपने दोस्त अयाज से मिला. इस के बाद ध्रुव के अपहरण की योजना को अंतिम रूप दिया गया.

15 मई को शादी का कार्ड देने के बहाने साजिद ललित के घर से उस के बेटे धु्रव को अश्विनी के घर ले जाने की बात कह कर साथ ले गया और उसे घर के बाहर खड़ी एसेंट कार में बैठा लिया. उस ने धु्रव से कहा कि गाड़ी में पैट्रोल नहीं है, इसलिए पहले पैट्रोल भरवा लें, फिर अश्विनी के घर चलेंगे.

फतेहपुर में पैट्रोल पंप से पहले ही साजिद ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी तो ध्रुव को शक हुआ. वह शीशा खोल कर ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाने लगा. इस पर साजिद ने उसे कोई नशीली चीज सुंघा दी, जिस से वह बेहोश हो गया.

ध्रुव को बेहोशी की हालत में पीछे की सीट पर सुला कर साजिद अपनी कार से मुंबई ले गया. बीचबीच में टोलनाकों से पहले उस ने 5 बार कार की नंबर प्लेट बदलीं.

साजिद ने अपहृत ध्रुव को मुंबई में अपनी 2 गर्लफ्रैंड्स के पास रखा. इन में एक गर्लफ्रैंड यास्मीन जान मुंबई के चैंबूर में लोखंड मार्ग पर रहती थी. तलाकशुदा यास्मीन को साजिद ने बता रखा था कि वह कुंवारा है. उस ने उसे शादी करने का झांसा भी दे रखा था. साजिद ने यास्मीन को धु्रव के अपहरण के बारे में बता दिया था. यास्मीन फिरौती में मिलने वाली मोटी रकम से साजिद के साथ ऐशोआराम की जिंदगी गुजारने का सपना देख रही थी. इसलिए उस ने साजिद की मदद की और धु्रव को अपने पास रखा.

साजिद की दूसरी गर्लफ्रैंड हालिमा मंडल मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली थी. वह पिछले कई सालों से बांद्रा इलाके में बाजा रोड पर रहती थी. उस के 2 बच्चे हैं. साजिद मुंबई पहुंच कर ध्रुव को सीधे हलिमा के घर ले गया था. उस ने उसे ध्रुव के अपहरण के बारे में बता दिया था. हालिमा ने भी फिरौती में मोटी रकम मिलने के लालच में साजिद का साथ दिया और ध्रुव को अपने पास रखा. वह ध्रुव को नींद की गोलियां देती रही, ताकि वह शोर न मचा सके.

फेसबुक पर एक पोस्ट में खुद को मुंबई का किंग बताने वाला साजिद इतना शातिर था कि ललित पोद्दार से या अयाज से बात करने के बाद मोबाइल स्विच औफ कर लेता था, ताकि पुलिस उसे ट्रेस न कर सके. ध्रुव को जहां रखा गया था, वहां से वह करीब सौ किलोमीटर दूर जा कर नए सिम से फोन करता था, ताकि अगर किसी तरह पुलिस मोबाइल नंबर ट्रेस भी कर ले तो उसी लोकेशन पर बच्चे को खोजती रहे.

साजिद के बताए अनुसार, टीवी पर आने वाले आपराधिक धारावाहिकों को देख कर उस ने ध्रुव के अपहरण की साजिश रची थी. सीरियलों को देख कर ही उस ने हर कदम पर सावधानी बरती, लेकिन पुलिस उस तक पहुंच ही गई. जबकि उस ने पुलिस से बचने के तमाम उपाय किए थे.

23 मई को पुलिस ध्रुव को ले कर फतेहपुर पहुंची तो पूरा शहर खुशी से नाच उठा. पुष्पवर्षा और आतिशबाजी की गई. 9 दिनों बाद बेटे को सकुशल देख कर पार्वती की आंखों से आंसू बह निकले. पिता ललित पोद्दार ने बेटे को गले से लगा कर माथा चूम लिया. सालासर मंदिर में लोगों ने फतेहपुर कोतवाली के थानाप्रभारी महावीर सिंह का सम्मान किया.

पुलिस ने ध्रुव के अपहरण के मामले में साजिद के अलावा यास्मीन जान, हालिमा मंडल और फतेहपुर निवासी अयाज को गिरफ्तार किया था. फतेहपुर के एक अन्य युवक की भी इस मामले में भूमिका संदिग्ध पाई गई. इस के अलावा उत्तर प्रदेश के एक गैंगस्टर नसरत उर्फ नागा उर्फ चाचा का नाम भी ध्रुव के अपहरण में सहयोगी के रूप में सामने आया है.

नसरत उर्फ नागा उत्तर प्रदेश के सिमौनी का रहने वाला था. वह फिलहाल मुंबई के गौरी खानपुर में रहता है. साजिद काफी समय से उस के संपर्क में था. उस के साथ नागा भी आया था. उस ने नागा को सीकर में ही छोड़ दिया था.

ध्रुव के अपहरण के बाद नागा साजिद के साथ हो गया था. दोनों ध्रुव को ले कर मुंबई गए थे. नागा पर उत्तर प्रदेश और मुंबई में हत्या के 3 मामले और लूट, चाकूबाजी, हथियार तस्करी, गुंडा एक्ट आदि के दर्जनों मामले दर्ज हैं. वह हिस्ट्रीशीटर है. कथा लिखे जाने तक सीकर पुलिस इस मामले में नागा की तलाश कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तांत्रिकों के मायाजाल से रहें सावधान

सौतन से छुटकारा पाएं, पति या प्रेमी को वश में करें. गृहक्लेश, व्यापार में घाटा, संतान न होना आदि समस्याओं से समाधान’ के स्टीकर सार्वजनिक स्थानों, ट्रेनों, बसों आदि में चिपके दिख जाते हैं. इतना ही नहीं, इस तरह के विज्ञापन विभिन्न समाचारपत्रों में भी छपते रहते हैं.

विज्ञापन छपवाने वाले तथाकथित तांत्रिक खुद को बाबा हुसैनजी, बाबा बंगाली, बाबा मिर्जा, बाबा अमित सूफी आदि बताते हुए चंद घंटों में समस्या का समाधान करने का दावा करते हैं. कुछ तो खुद को गोल्ड मैडलिस्ट, वशीकरण स्पैशलिस्ट बताते हैं. इंसानी जीवन की कोई ऐसी समस्या नहीं होगी, जिस के समाधान का दावा ये तांत्रिक न करते हों.

गाजियाबाद के विजयनगर का रहने वाला मिथुन सिंह पेशे से ट्रक ड्राइवर था. एक दिन वह ट्रक ले कर मेरठ जा रहा था तो गाजियाबाद में ही एक लालबत्ती पर उसे अपना ट्रक रोकना पड़ा. लालबत्ती होते ही चौराहे पर सामान बेचने वाले वहां रुकी गाडि़यों के पास जाजा कर सामान बेचते हैं.

उन्हीं में 18-19 साल का एक लड़का वहां रुकी हर गाड़ी में विजिटिंग कार्ड फेंक रहा था. जिस कार के खिड़कियों के शीशे बंद मिलते, वह विजिटिंग कार्ड कार के आगे के वाइपर में फंसा देता. लड़का अपना काम बड़ी फुरती से कर रहा था. ट्रक में बैठा मिथुन सिंह उसे देख रहा था.

वह लड़का मिथुन के ट्रक के पास आया और एक विजिटिंग कार्ड उस की केबिन में फेंक कर चला गया. उसी वक्त हरी बत्ती जल गई तो मिथुन ने अपना ट्रक आगे बढ़ा दिया. इस से पहले उस ने उस लड़के द्वारा फेंका गया विजिटिंग कार्ड उठा कर अपनी जेब में रख लिया था.

करीब घंटे भर बाद मिथुन ने कुछ खानेपीने के लिए ट्रक एक ढाबे पर रोका. खाने के लिए आता, उस के पहले वह शर्ट की जेब से वह विजिटिंग कार्ड निकाल कर देखा. वह कार्ड बाबा आमिल सूफी नाम के किसी तांत्रिक का था. उस में उस ने हर तरह की समस्या का समाधान करने की बात कही थी.

विजिटिंग कार्ड पढ़ कर कुछ देर तक मिथुन सोचता रहा. उस की भी एक समस्या थी, जिस की वजह से वह काफी परेशान था. दरअसल, मिथुन की अपनी पत्नी से पट नहीं रही थी. कई ऐसी वजहें थीं, जिन की वजह से पतिपत्नी में मतभेद थे. मिथुन थोड़ा जिद्दी स्वभाव का था, इसलिए पत्नी की हर बात को गंभीरता से नहीं लेता था.

मिथुन समझ नहीं पा रहा था कि उस के घर में शांति कैसे आए? विजिटिंग कार्ड पढ़ कर उसे लगा कि बाबा आमिल सूफी उस की समस्या का समाधान कर देंगे. कार्ड में बाबा के मिलने का कोई पता तो नहीं था, केवल 2 मोबाइल नंबर 8447703333 और 9891413333 लिखे थे.

मिथुन ने उसी समय अपने मोबाइल से कार्ड पर लिखा एक नंबर मिला दिया. दूसरी ओर से किसी ने फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘हैलो कौन?’’

‘‘मैं गाजियाबाद से मिथुन सिंह बोल रहा हूं. मुझे बाबा आमिल सूफीजी से बात करनी थी.’’ मिथुन ने कहा.

‘‘देखिए, बाबा तो अभीअभी बाहर से आए हैं. वह 2-3 भक्तों की समस्या का समाधान करने में लगे हैं. मैं रिसैप्शन से बोल रहा हूं. आप की क्या समस्या है, मुझे बता दीजिए.’’ दूसरी तरफ से कहा गया.

मिथुन ने रिसैप्शनिस्ट को बताया कि उस का पत्नी से अकसर झगड़ा होता रहता है, जिस की वजह से घर में अकसर कलह बनी रहती है. वह घर में शांति चाहता है.

‘‘बाबा आप की समस्या का समाधान अवश्य कर देंगे. मैं उन से आप की बात करा दूंगा, पर इस के लिए पहले आप को रजिस्ट्रेशन कराना होगा. रजिस्ट्रेशन के लिए 251 रुपए आप को बैंक एकाउंट में जमा कराने होंगे.’’ उस व्यक्ति ने कहा.

‘‘अभी तो मैं कहीं जा रहा हूं, आप एकाउंट नंबर दे दीजिए, जब भी समय मिलेगा, मैं पैसे जमा करा दूंगा.’’ मिथुन ने कहा.

मोबाइल पर चल रही बातचीत खत्म होते ही मिथुन के मोबाइल पर एक मैसेज आ गया, जिस में बैंक का खाता नंबर दिया हुआ था. वहां आसपास कोई बैंक भी नहीं था और न ही उस समय उस के पास पैसे जमा करने का समय था, इसलिए ढाबे से ट्रक ले कर आगे बढ़ गया.

मेरठ से लौटने के बाद उस ने उस खाते में 251 रुपए रजिस्ट्रेशन के जमा करा दिए. इस के बाद उस ने तांत्रिक के फोन नंबर पर फोन कर के पैसे जमा कराने की जानकारी दी. तब रिसैप्शन पर बैठे व्यक्ति ने बाबा से बात कराने के लिए 2 घंटे बाद का समय दे दिया.

2 घंटे बाद मिथुन ने बाबा आमिल सूफी को अपने गृहक्लेश की सारी बात बता कर कहा, ‘‘बाबा, काफी दिनों से पत्नी से मेरी बन नहीं रही है.’’

उस की बात सुन कर बाबा ने कहा, ‘‘तुम्हारी इस समस्या का समाधान हो जाएगा, पर इस के लिए पूजा करनी पड़ेगी. उस पूजा में करीब 5200 रुपए का खर्च आएगा.’’

मिथुन को बाबा की बातों पर भरोसा था, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘बाबा, पूजा हमारे घर में करेंगे या फिर कहीं और?’’

‘‘हम पूजा अपने यहां ही करेंगे. यहीं से उस का असर हो जाएगा, तुम उसे खुद महसूस करोगे. जितनी जल्दी तुम पैसे भेज दोगे, उतनी जल्दी हम पूजा शुरू कर देंगे.’’ बाबा ने कहा.

‘‘बाबा, मैं पैसे अभी भेज देता हूं. उसी एकाउंट में जमा करा दूं, जिस में पहले जमा कराए थे?’’ मिथुन ने पूछा.

‘‘नहीं, उस में नहीं. तुम खाता नंबर 34241983333 में जमा करा दो.’’ बाबा ने कहा.

मिथुन ने उसी दिन बाबा द्वारा दिए गए एकाउंट नंबर में 5200 रुपए जमा करा दिए और फोन कर के उन्हें बता दिया. पैसे जमा कराने के बाद मिथुन को तसल्ली हो गई कि अब उस के घर के सारे क्लेश दूर हो जाएंगे. पर 15 दिन बाद भी घर के माहौल में कोई फर्क नहीं पड़ा. पत्नी का व्यवहार पहले की तरह ही रहा तो मिथुन ने बाबा आमिल सूफी से इस बारे में बात की.

बाबा आमिल सूफी ने कहा, ‘‘दरअसल, तुम्हारी समस्या बड़ी विकट है. इस का निवारण अब बड़ी पूजा से होगा. एक पूजा और करनी पड़ेगी. उस पूजा का खर्च 5100 रुपए आएगा. तुम्हारे नाम की एक पूजा हो ही चुकी है. यह पूजा और करा लोगे तो जल्द लाभ मिल सकता है.’’

मिथुन और पैसे जमा करने को तैयार हो गया. तब बाबा ने उसे पंजाब नेशनल बैंक का एकाउंट नंबर 4021000100173333 दे कर 5100 रुपए जमा कराने को कहा. मिथुन ने फटाफट रुपए जमा करा दिए.

ये पैसे जमा कराने के महीने भर बाद भी मिथुन के हालात जस के तस रहे. न तो पत्नी के स्वभाव में कोई अंतर आया और न ही उस के घर की कलह दूर हुई. मिथुन ने बाबा से फिर बात की. उस ने कहा कि अभी तक की गई पूजा से घर में कोई फर्क नहीं पड़ा है. पत्नी का स्वभाव आज भी पहले की ही तरह है. चूंकि वह बाबा द्वारा बताए गए खातों में 10 हजार से ज्यादा रुपए जमा कर चुका था, इसलिए उस की बातों में कुछ गुस्सा भी था.

बाबा ने उसे शांति से समझा कर गुस्सा न करने को कहा. बाबा ने उस से कहा कि 4 रातें जागजाग कर उस ने खुद पूजा की है. पूजा का परिणाम कोई इंजेक्शन की तरह तो होता नहीं है, धीरेधीरे होगा. और यदि जल्दी परिणाम चाहते हो तो महाकाल की पूजा करानी होगी. इस में तुम्हारा 5100 रुपए का खर्च और आएगा. आज अमावस्या है. पैसे आज ही जमा करा दोगे तो आज रात ही पूजा शुरू कर दूंगा.

मिथुन सिंह बाबा को 10 हजार रुपए से ज्यादा दे चुका था और फादा उसे रत्ती भर नहीं हुआ था. अगर उसे इस का थोड़ा सा भी लाभ मिल गया होता तो वह फिर से पैसे जमा करने की बात एक बार सोचता. उस ने पैसे जमा न करने की बात तो नहीं कही, पर अभी पास में पैसे न होने का बहाना कर दिया.

मिथुन को लगा कि बाबा आमिल सूफी ने समस्या दूर करने के नाम पर उस से ठगी की है. वह एक बार बाबा से मिल कर यह देखना चाहता था कि वह बाबा है भी या नहीं? इसलिए उस ने फिर से बाबा को फोन किया. तभी बाबा ने उस से 5100 रुपए जमा कराने की बात कही.

‘‘बाबा, मैं आप के दर्शन करना चाहता हूं. पैसे मैं उसी समय नकद दे दूंगा. आप बस अपना पता बता दीजिए.’’ मिथुन ने कहा.

‘‘हम से मुलाकात नहीं होगी, क्योंकि हमारा कोई निश्चित ठिकाना नहीं है. हम इधरउधर आतेजाते रहते हैं. आप का काम जब घर बैठे हो रहा है तो मिलने की क्या जरूरत है?’’ बाबा ने कहा.

‘‘बाबा, आप के दर्शन करने की मेरी अभिलाषा है.’’ मिथुन ने कहा तो बाबा ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने बाबा के नंबर पर कई बार फोन किया, पर बात नहीं हो सकी. बाबा ने शायद उस का नंबर रिजेक्ट लिस्ट में डाल दिया था.

मिथुन ने अगले दिन भी बाबा से बात करने की कोशिश की, लेकिन उस के किसी भी नंबर पर बात नहीं हो सकी. अब उसे पूरा विश्वास हो गया कि उस के साथ ठगी हुई है. उस ने इस बात की शिकायत गाजियाबाद के एसपी से की. मिथुन ने तांत्रिक बाबा आमिल सूफी के जिन मोबाइल नंबरों पर बात की थी, एसपी ने उन नंबरों की जांच सर्विलांस टीम से कराई.

इस जांच में पता चला कि वे फोन नंबर साहिबाबाद थाने के अंतर्गत अर्थला में एक्टिव हैं. लिहाजा मिथुन सिंह की शिकायत पर 15 मई, 2017 को थाना साहिबाबाद में अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 417 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

थानाप्रभारी सुधीर कुमार त्यागी के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई, जिस में एसएसआई अखिलेश गौड़, एसआई मनोज कुमार, हैडकांस्टेबल छीतर सिंह, कांस्टेबल मंगत सिंह, पंकज शर्मा, सुनील कुमार, विपिन सिंह, नारायण राय आदि को शामिल किया गया.

तथाकथित तांत्रिक के फोन नंबरों की जांच में उन की लोकेशन अर्थला की मिल रही थी. अर्थला थाने से पूरब दिशा में करीब 3 किलोमीटर दूर था. उसी लोकेशन के सहारे पुलिस ने एक मकान में छापा मारा तो ग्राउंड फ्लोर पर एक औफिस बना मिला, जिस में 8 युवक बैठे थे.

औफिस का जो बौस था, उस की मेज पर 20 मोबाइल फोन रखे थे. पुलिस ने उन युवकों से सख्ती से पूछताछ की तो पता चला कि वह तांत्रिक दिलशाद का कालसेंटर था. औफिस की तलाशी में तथाकथित तांत्रिक के तमाम विजिटिंग कार्ड, स्टीकर आदि मिले. इस के अलावा दिलशाद की केबिन से 6 लाख 72 हजार 3 सौ रुपए नकद बरामद हुए.

पुलिस की मौजूदगी में ही वहां रखे मोबाइल फोनों पर कई समस्याग्रस्त लोगों के फोन आए. पुलिस ने फोन रिसीव किए तो फोन करने वाले लोग तांत्रिक से अपनी समस्या का निदान पूछ रहे थे. पुलिस सभी को थाने ले आई.

थाने में उन सभी से पूछताछ की गई तो पता चला कि दिलशाद योजनाबद्ध तरीके से कालसैंटर चला कर उस के जरिए पूरे देश में ठगी का अपना धंधा चला रहा था.

मिथुन से जो 10 हजार रुपए से ज्यादा की ठगी की गई थी, वह दिलशाद और उस के साथियों ने ही की थी. इसी कालसैंटर के जरिए लोगों को बेवकूफ बना कर ये लोग महीने में लगभग 20 लाख रुपए की ठगी कर रहे थे. आखिर एक मामूली सा पढ़ालिखा दिलशाद तथाकथित तांत्रिक कैसे बना और उस ने पूरे देश में अपना नेटवर्क कैसे तैयार किया? इस की एक दिलचस्प कहानी है.

गाजियाबाद के थाना साहिबाबाद के अंतर्गत आती है अर्थला कालोनी. दिलशाद इसी कालोनी के रहने वाली अल्लानूर का बेटा था. वह जूनियर हाईस्कूल से आगे नहीं पढ़ सका तो पिता ने उसे एक दुकान पर लगवा दिया. साल, दो साल नौकरी करने के बाद वह घर बैठ गया.

वह पढ़ालिखा भले ज्यादा नहीं था, लेकिन खूब पैसे कमाने के सपने देखता था, इसलिए उसे दुकान पर काम करना पसंद नहीं आया. दिलशाद के घर बैठने पर उस के पिता को जो पैसे मिलते थे, वे बंद हो गए. इसलिए उन्हें उस का घर बैठना पसंद नहीं आया.

उन्होंने किसी से कह कर उस की नौकरी एक फैक्ट्री में लगवा दी. वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, पर ख्वाब अमीरों के देखता था. वह चाहता था कि उस के पास भी सभी तरह की सुखसुविधाएं हों. इन्हीं ख्वाबों की वजह से फैक्ट्री में भी वह ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सका.

फैक्ट्री की नौकरी छोड़ कर वह अपने यारदोस्तों के साथ घूमता रहता. उस का खाली घूमना उस के पिता को अच्छा नहीं लगा. वह बारबार उसे कोई न कोई काम करने को कहते. काम तो दिलशाद भी करना चाहता था, पर उसे उस के मन के मुताबिक काम नहीं मिल रहा था.

उसी दौरान वह अपने एक परिचित के साथ मेरठ चला गया. वह परिचित मेरठ में तथाकथित तांत्रिक बन कर अपना धंधा चला रहा था. दिलशाद उस के औफिस में बैठने लगा. वहां पर दिलशाद का मन लगने लगा. वह बड़े गौर से देखता था कि ग्राहक से कैसे बात की जाती है और किस तरह से उन की जेब से पैसा निकाला जाता है. एकएक कर के सारा काम वह एक साल के अंदर सीख गया.

अब वह खुद का सैंटर चलाना चाहता था, ताकि मोटी कमाई की जा सके. घर लौट कर दिलशाद ने सब से पहले विजिटिंग कार्ड्स छपवाए. विजिटिंग कार्ड में उस ने सभी तरह की समस्याओं का समाधान करने का दावा करते हुए अपने 2 मोबाइल नंबर लिख दिए और खुद को बाबा आमिल सूफी बताया. कार्ड में पता नहीं लिखा था, केवल फोन पर ही समस्या बताने को कहा गया था.

आजकल ज्यादातर लोग किसी न किसी वजह से परेशान हैं. इसी का फायदा यह तथाकथित तांत्रिक उठाते हैं. कुछ ही दिनों में दिलशाद उर्फ बाबा आमिल सूफी के पास लोगों के फोन आने लगे. वह उन लोगों से रजिस्ट्रेशन के 251 रुपए अपने एकाउंट में जमा कराने को कहता. रजिस्ट्रेशन के पैसे जमा कराने के बाद वह पूजा आदि के नाम पर 5100 या ज्यादा रुपए खाते में जमा करा लेता.

जो लोग खाते में पैसे जमा कराते, उन में से कुछ की समस्याएं खुदबखुद कम या खत्म हो जातीं तो वे बाबा का खुद ही प्रचार करते और जिन की समस्या जस की तस रहती, वे उसे दोबारा फोन करते तो दिलशाद उस का फोन नंबर रिजेक्ट लिस्ट में डाल देता.

इस तरह दिलशाद का धंधा चलने लगा तो उस ने बाबा आमिल सूफी, बाबा हुसैनजी, बाबा मिर्जा, बाबा बंगाली आदि कई फरजी नामों से आकर्षक स्टीकर छपवा कर सार्वजनिक स्थानों, ट्रेनों, बसों आदि में चिपकवा दिए. इस का उसे अच्छा रेस्पांस मिलना शुरू हुआ. उस की कमाई बढ़ी तो उस ने अपने भाई इरशाद को भी अपने साथ जोड़ लिया. दिलशाद लोगों को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों में फंसा कर उन से मोटी कमाई करने लगा. उसी कमाई से उस ने अर्थला में ही अपना तीनमंजिला आलीशान घर बनवा लिया.

अब दिलशाद इस क्षेत्र का माहिर खिलाड़ी बन चुका था. हिंदी के अलावा उस ने देश की विभिन्न भाषाओं में अपने स्टीकर छपवाने शुरू कर विभिन्न राज्यों में सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवा दिए. इस का नतीजा यह निकला कि उस के पास सैकड़ों फोन आने लगे. इस के बाद दिलशाद अपने गांव के ही रहने वाले शाहरुख, नासिर, आसिफ, नसीरुद्दीन, शाहरुख पुत्र मंसूर और आसिफ को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. ये सभी युवक कुछ ही दिनों में इतने ट्रेंड हो गए कि कस्टमर की दुखती रग पर बातों का मरहम लगा कर उस की जेब ढीली करा लेते.

अलगअलग बैंकों में इन्होंने 20 एकाउंट खुलवा रखे थे. जैसे ही कस्टमर पैसा जमा करता, दिलशाद तुरंत ही एटीएम से पैसे निकलवा लेता. चूंकि दिलशाद अखबारों, केबल टीवी आदि पर दिए जाने वाले विज्ञापन पर मोटा पैसा खर्च करता था, इसलिए गोविंदपुरम, गाजियाबाद और नोएडा के रहने वाले जयवीर और शीतला प्रसाद ने दिलशाद से संपर्क किया. ये दोनों विज्ञापन एजेंसी चलाते थे. बातचीत के बाद जयवीर और शीतला प्रसाद ने ही दिलशाद के धंधे के विज्ञापन की जिम्मेदारी ले ली.

दिलशाद की महीने भर में जो भी कमाई होती थी, उस का आधा वह विज्ञापन पर खर्च करता था. दिलशाद के कालसैंटर में काम करने वाले सभी लोग दिन भर व्यस्त रहते थे. रोजाना ही उस के कालसैंटर में करीब एक हजार फोन आते थे, जिन से उसे लगभग 20 लाख रुपए की आमदनी होती थी. इस में से 10 लाख रुपए वह विज्ञापन पर खर्च करता था. इस तरह उस का धंधा दिनोंदिन फलफूल रहा था. मिथुन सिंह की तरह ज्यादा घरों में लोग किसी न किसी वजह से परेशान रहते हैं, ऐसे ही लोग तथाकथित तांत्रिकों के चक्कर में फंसते हैं.

दिलशाद और उस के 7 साथियों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने गाजियाबाद के गोविंदपुरम से जयवीर और सैक्टर-25 नोएडा से शीतला प्रसाद को भी गिरफ्तार कर लिया था. सभी 10 अभियुक्तों से व्यापक पूछताछ के बाद 18 जुलाई, 2017 को उन्हें गाजियाबाद के सीजेएम की अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया.  मामले की आगे की विवेचना एसआई मनोज बालियान को सौंप दी गई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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