उज्ज्वला: क्या सुनील ने उज्ज्वला को पत्नी के रूप में स्वीकारा

सुनील के जाते ही उज्ज्वला कमरे में आ गई और तकिए में मुंह गड़ा कर थकी सी लेट गई. सुनील के व्यवहार से मन का हर कोना कड़वाहट से भर गया था. जितनी बार उस ने सुनील से जुड़ने का प्रयत्न किया था उतनी बार सुनील ने उसे बेदर्दी से झटक डाला था. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जीवन में यह मोड़ भी आ सकता है.

शादी से पहले कई बार उपहास भरी नजरें और फब्तियां झेली थीं, पर उस समय कभी ऐसा नहीं सोचा था कि स्वयं पति भी उस के प्रति उपेक्षा और घृणा प्रदर्शित करते रहेंगे. बचपन कितना आनंददायी था. स्कूल में बहुत सारी लड़कियां उस की सहेलियां बनने को आतुर थीं. अध्यापिकाएं भी उसे कितना प्यार करती थीं. वह हंसमुख, मिलनसार होने के साथसाथ पढ़ने में अव्वल जो थी. पर ऐसे निश्चिंत जीवन में भी मन कभीकभी कितना खिन्न हो जाया करता था.

उसे बचपन की वह बात आज भी कितनी अच्छी तरह याद है, जब पहली बार उस ने अपनेआप में हीनता की भावना को महसूस किया था. मां की एक सहेली ने स्नेह से गाल थपथपा कर पूछा था, ‘क्या नाम है तुम्हारा, बेटी?’ ‘जी, उज्ज्वला,’ उस ने सरलता से कहा. इस पर सहेली के होंठों पर व्यंग्यात्मक हंसी उभर आई और उस ने पास खड़ी महिला से कहा, ‘लोग न जाने क्यों इतने बेमेल नाम रख देते हैं?’ और वे दोनों हंस पड़ी थीं. वह पूरी बात समझ नहीं सकी थी. फिर भी उस ने खुद को अपमानित महसूस किया था और चुपचाप वहां से खिसक गई थी.

फिर तो कई बार ऐसे अवसर आए, जब उस ने इस तरह के व्यवहार से शर्मिंदगी महसूस की. उसे अपने मातापिता पर गुस्सा आता था कि प्रकृति ने तो उसे रंगरूप देने में कंजूसी की ही पर उन्होंने क्यों उस के काले रंग पर उज्ज्वला का नाम दे कर व्यंग्य किया और उसे ज्यादा से ज्यादा उपहास का पात्र बना दिया. मात्र नाम दे कर क्या वे उज्ज्वला की निरर्थकता को सार्थकता में बदल पाए थे.

जब वह स्कूल के स्नेहिल प्रांगण को छोड़ कर कालिज गई थी तो कितना तिरस्कार मिला था. छोटीछोटी बातें भी उस के मर्म पर चोट पहुंचा देती थीं. अपने नाम और रंग को ले कर किया गया कोई भी मजाक उसे उत्तेजित कर देता था. आखिर उस ने किसी से भी दोस्ती करने का प्रयत्न छोड़ दिया था. फिर भी उसे कितने कटु अनुभव हुए थे, जो आज भी उस के दिल में कांटे की तरह चुभते हैं.

सहपाठी विनोद का हाथ जोड़ कर टेढ़ी मुसकान के साथ ‘उज्ज्वलाजी, नमस्ते’ कहना और सभी का हंस पड़ना, क्या भूल सकेगी कभी वह? शर्म और गुस्से से मुंह लाल हो जाता था. न जाने कितनी बातें थीं, जिन से उस का हर रोज सामना होता था. ऐसे माहौल में वह ज्यादा से ज्यादा अंतर्मुखी होती गई थी.

वे दमघोंटू वर्ष गुजारने के बाद जब कुछ समय के लिए फिर से घर का सहज वातावरण मिला तो मन शांत होने लगा था. रेणु और दीपक उस की बौद्धिकता के कायल थे और उसे बहुत मानते थे. मातापिता भी उस के प्रति अतिरिक्त प्यार प्रदर्शित करते थे. ऐसे वातावरण में वह बीते दिनों की कड़वाहट भूल कर सुखद कल्पनाएं संजोने लगी थी.

उज्ज्वला के पिता राजकिशोर जूट का व्यापार करते थे और व्यापारी वर्ग में उन की विशेष धाक थी. उन के व्यापारी संस्कार लड़कियों को पढ़ाने के पक्ष में न थे. पर उज्ज्वला की जिद और योग्यता के कारण उसे कालिज भेजा था. अब जल्दी से जल्दी उस की शादी कर के निवृत्त हो जाना चाहते थे. अच्छा घराना और वर्षों से जमी प्रतिष्ठा के कारण उज्ज्वला का साधारण रंगरूप होने के बावजूद अच्छा वर और समृद्ध घर मिलने में कोई विशेष दिक्कत नहीें हुई.

दीनदयाल, राजकिशोर के बचपन के सहपाठी और अच्छे दोस्त भी थे. दोस्ती को संबंध में परिवर्तित कर के दोनों ही प्रसन्न थे. दीनदयाल कठोर अनुशासन- प्रिय व्यक्ति थे तथा घर में उन का रोबदाब था. वह लड़कालड़की को आपस में देखनेदिखाने तथा शादी से पूर्व किसी तरह की छूट देने के सख्त खिलाफ थे.

सुनील सुंदर, आकर्षक और सुशिक्षित नौजवान था. फिर सी.ए. की परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर तो वह राजकिशोर की नजरों में और भी चढ़ गया था. ऐसा सुदर्शन जामाता पा कर राजकिशोर फूले नहीं समा रहे थे. सुनील को भी पूरा विश्वास था कि उस के पिता जो भी निर्णय लेंगे, उस के हित में ही लेंगे. पर सुहागरात को दुबलीपतली, श्यामवर्ण, आकर्षणहीन उज्ज्वला को देखते ही उस की सारी रंगीन कल्पनाएं धराशायी हो गईं. वह चाह कर भी प्यार प्रदर्शित करने का नाटक नहीं कर सका.

बाबूजी के प्रति मन में बेहद कटुता घुल गई और बिना कुछ कहे एक ओर मुंह फेर कर नाराज सा सो गया. पैसे वाले प्रतिष्ठित व्यापारियों का समझौता बेमेल वरवधू में सामंजस्य स्थापित नहीं करा पाया था. उज्ज्वला धड़कते दिल से पति की खामोशी के टूटने का इंतजार करती रही. सबकुछ जानते हुए भी इच्छा हुई थी कि सुनील की नाराजगी का कारण पूछे, माफी भी मांगे, पर सुनील के आकर्षक व्यक्तित्व से सहमी वह कुछ नहीं बोल पाई थी. आखिर घुटनों में सिर रख कर तब तक आंसू बहाती रही थी जब तक नींद न आ गई थी.

‘‘बहू, खाना नहीं खाना क्या?’’ सास के स्वर से उज्ज्वला अतीत के उन दुखद भंवरों से एक झटके से निकल कर पुन: वर्तमान से आ जुड़ी. न जाने उसे इस तरह कितनी देर हो गई. हड़बड़ा कर गीली आंखें पोंछ लीं और अपनेआप को संयत करती नीचे आ गई. वह खाने के काम से निवृत्त हो कर फिर कमरे में आई तो सहज ही चांदी के फ्रेम में जड़ी सुनील की तसवीर पर दृष्टि अटक गई. मन में फिर कोई कांटा खटकने लगा. सोचने लगी, इन 2 सालों में किस तरह सुनील छोटीछोटी बातों से भी दिल दुखाते रहे हैं. कभीकभार अच्छे मूड में होते हैं तो दोचार औपचारिक बातें कर लेते हैं, वरना उस के बाहुपाश को बेदर्दी से झटक कर करवट बदल लेते हैं.

अब तक एक बार भी तो संपूर्ण रूप से वह उस के प्रति समर्पित नहीं हो पाए हैं. आखिर क्या गलती की है उस ने? शिकायत तो उन्हें अपने पिताजी से होनी चाहिए थी. क्यों उन के निर्णय को आंख मूंद कर सर्वोपरि मान लिया? यदि वह पसंद नहीं थी तो शादी करने की कोई मजबूरी तो नहीं थी. इस तरह घुटघुट कर जीने के लिए मजबूर कर के वह मुझे किस बात की सजा दे रहे हैं? बहुत से प्रश्न मन को उद्वेलित कर रहे थे. पर सुनील से पूछने का कभी साहस ही नहीं कर सकी थी.

नहीं, अब नहीं सहेगी वह. आज सारी बात अवश्य कहेगी. कब तक आज की तरह अपनी इच्छाएं दबाती रहेगी? उस ने कितने अरमानों से आज रेणु और दीपक के साथ पिकनिक के लिए कहीं बाहर जाने का कार्यक्रम बनाया था. बड़े ही अपनत्व से सुबह सुनील को सहलाते हुए बोली थी, ‘‘आज इतवार है. मैं ने रेणु और दीपक को बुलाया है. सब मिल कर कहीं पिकनिक पर चलते हैं.’’

‘‘आज ही क्यों, फिर कभी सही,’’ उनींदा सा सुनील बोला. ‘‘पर आज आप को क्या काम है? मेरे लिए न सही उन के लिए ही सही. अगर आप नहीं चलेंगे तो वे क्या सोचेंगे? मैं ने उन से पिकनिक पर चलने का कार्यक्रम भी तय कर रखा है,’’ उज्ज्वला ने बुझे मन से आग्रह किया.

‘‘जब तुम्हारे सारे कार्यक्रम तय ही थे तो फिर मेरी क्या जरूरत पड़ गई? तुम चली जाओ, मेरी तरफ से कोई मनाही नहीं है. मैं घर पर गाड़ी भी छोड़ दूंगा,’’ कह कर सुनील ने मुंह फेर लिया. उसे बेहद ठेस पहुंची. पहली बार उस ने स्वेच्छा से कोई कार्यक्रम बनाया था और सुनील ने बात को इस कदर उलटा ले लिया. न तो वह कोई कार्यक्रम बनाती और न ही यह स्थिति आती. उज्ज्वला ने उसी समय दीपक को फोन कर के कह दिया, ‘‘तेरे जीजाजी को कोई जरूरी काम है, इसलिए फिर कभी चलेंगे.’’

मन बहुत खराब हो गया था. फिर किसी भी काम में जी नहीं लगा. बारबार अपनी स्थिति को याद कर के आंखें भरती रहीं. क्या उसे इतना भी अधिकार नहीं है कि अपने किसी शौक में सुनील को भी शामिल करने की सोच सके? आज वह सुनील से अवश्य कहेगी कि क्यों वह उस से इस कदर घृणा करते हैं और उस के साथ कहीं भी जाना पसंद नहीं करते.

शाम उतरने लगी थी. लंबी परछाइयां दरवाजों में से रेंगने लगीं तो उज्ज्वला शिथिल कदमों से रसोई में आ कर खाना बनाने में जुट गई. हाथों के साथसाथ विचार भी तेज गति से दौड़ने लगे. रोज की यह बंधीबंधाई जिंदगी, जिस में जीवन की जरा भी हसरत नहीं थी. बस, भावहीनता मशीनी मानव की तरह से एक के बाद एक काम निबटाते रहो. कितनी महत्त्वहीन और नीरस है यह जिंदगी.

मातापिता खाना खा चुके थे. सुनील अभी तक नहीं आया था. उज्ज्वला बचा खाना ढक कर मन बहलाने के लिए टीवी के आगे बैठ गई. घंटी बजी तो भी वैसे ही कार्यक्रम में खोई बैठी रहने का उपक्रम करती रही. नौकर ने दरवाजा खोला. सुनील आया और जूते खोल कर सोफे पर लेट सा गया. ‘‘बड़ी देर कर दी. चल, हाथमुंह धो कर खाना खा ले. बहू इंतजार कर रही है तेरा,’’ मां ने कहा.

‘‘बचपन का एक दोस्त मिल गया था. इसलिए कुछ देर हो गई. वह खाना खाने का बहुत आग्रह करने लगा, इसलिए उस के घर खाना खा लिया था,’’ सुनील ने लापरवाही से कहा.

उज्ज्वला अनमनी सी उठी और थोड़ाबहुत खा कर, बाकी नौकर को दे कर अपने कमरे में आ गई, ‘सुनील जैसे आदमी को कुछ भी कहना व्यर्थ होगा. यदि मन की भड़ास निकाल ही देगी तो भी क्या ये दरारें पाटी जा सकेंगी? कहीं सुनील उस से और ज्यादा दूर न हो जाए? नहीं, वह कभी भी अपनी कमजोरी जाहिर नहीं करेगी. आखिर कभी न कभी तो उस के अच्छे बरताव से सुनील पिघलेंगे ही,’ मन को सांत्वना देती उज्ज्वला सोने का प्रयत्न करने लगी. सुबह का सुखद वातावरण, ठंडी- ठंडी समीर और तरहतरह के पक्षियों के मिलेजुले स्वर जैसे कानों में रस घोलते हुए.

‘सुबह नींद कितनी जल्दी टूट जाती है,’ बिस्तर से उठ कर बेतरतीब कपड़ों को ठीक करती उज्ज्वला सोचने लगी, ‘कितनी सुखी होती हैं वे लड़कियां जो देर सुबह तक अलसाई सी पति की बांहों में पड़ी रहती हैं.’ वह कमरे के कपाट हौले से भिड़ा कर रसोई में आ गई. उस ने घर की सारी जिम्मेदारियों को स्वेच्छा से ओढ़ लिया था. उसे इस में संतोष महसूस होता था. वह सासससुर की हर जरूरत का खयाल रखती थी, इसलिए थोड़े से समय में ही दोनों का दिल जीत लिया था.

भजन कब के बंद हो चुके थे. कोहरे का झीना आंचल हटा कर सूरज आकाश में चमकने लगा था. कमरे के रोशनदानों से धूप अंदर तक सरक आई थी. ‘‘सुनिए जी, अब उठ जाइए. साढ़े 8 बज रहे हैं,’’ उज्ज्वला ने हौले से सुनील की बांह पर हाथ रख कर कहा. चाह कर भी वह रजाई में ठंडे हाथ डाल कर अधिकारपूर्वक छेड़ते हुए नहीं कह सकी कि उठिए, वरना ठंडे हाथ लगा दूंगी.

बिना कोई प्रतिकार किए सुनील उठ गया तो उज्ज्वला ने स्नानघर में पहनने के कपड़े टांग दिए और शेविंग का सामान शृंगार मेज पर लगाने लगी. जरूरी कामों को निबटा कर सुनील दाढ़ी बनाने लगा. उज्ज्वला वहीं खड़ी रही. शायद किसी चीज की जरूरत पड़ जाए. सोचने लगी, ‘सुनील डांटते हैं तो बुरा लगता है. पर खामोश हो कर उपेक्षा जाहिर करते हैं, तब तो और भी ज्यादा बुरा लगता है.’ ‘‘जरा तौलिया देना तो,’’ विचारों की शृंखला भंग करते हुए ठंडे स्वर में सुनील ने कहा.

उज्ज्वला ने चुपचाप अलमारी में से तौलिया निकाल कर सुनील को थमा दिया. सुनील मुंह पोंछने लगा. अचानक ही उज्ज्वला की निगाह सुनील के चेहरे पर बने हलकेहलके से सफेद दागों पर अटक गई. मुंह से खुद ब खुद निकल गया, ‘‘आप के चेहरे पर ये दाग पहले तो नहीं थे.’’

‘‘ऐसे ही कई बार सर्दी के कारण हो जाते हैं. बचपन से ही होते आए हैं,’’ सुनील ने लापरवाही से कहा. ‘‘फिर भी डाक्टर से राय लेने में हर्ज ही क्या है?’’

‘‘तुम बेवजह वहम मत किया करो. हमेशा अपनेआप मिटते रहे हैं,’’ कह कर सुनील स्नानघर में घुस गया तो उज्ज्वला भी बात को वहीं छोड़ कर रसोई में आ गई और नाश्ते की तैयारी में लग गई. पर इस बार सुनील के चेहरे के वे दाग ठीक नहीं हुए थे. धीरेधीरे इतने गहरे होते गए थे कि चेहरे का आकर्षण नष्ट होने लगा था. सुनील पहले जितना लापरवाह था, अब उतना ही चिंतित रहने लगा. इस स्थिति में उज्ज्वला बराबर सांत्वना देती और डाक्टरों की बताई तरहतरह की दवाइयां यथासमय देती रही.

अब सुनील उज्ज्वला से चिढ़ाचिढ़ा नहीं रहता था. अधिकतर किसी सोच में डूबा रहता था, पर उज्ज्वला जो भी पूछती, शांति से उस का जवाब देता था. उज्ज्वला को न जाने क्यों इस आकस्मिक परिवर्तन से डर लगने लगा था. रात गहरा चुकी थी. सभी टीवी के आगे जमे बैठे थे. आखिर उकता कर उज्ज्वला ऊपर अपने कमरे में आ गई तो सुनील भी मातापिता को हाल में छोड़ कर पीछेपीछे आ गया. हमेशा की तरह उज्ज्वला चुपचाप लेट गई थी. चुपचाप, मानो वह सुनील की उपेक्षा की आदी हो गई हो. सुनील ने बत्ती बंद कर के स्नेह से उसे बांहों में कस लिया और मीठे स्वर में बोला, ‘‘सच बताओ, उज्ज्वला, तुम मुझ से नफरत तो नहीं करतीं?’’

उस स्नेहस्पर्श और आवाज की मिठास से उज्ज्वला का रोमरोम आनंद से तरंगित हो उठा था. पहली बार प्यार की स्निग्धता से परिचित हुई थी वह. खुशी से अवरुद्ध कंठ से फुसफुसाई, ‘‘आप ने ऐसा कैसे सोच लिया?’’

‘‘अब तक बुरा बरताव जो करता रहा हूं तुम्हारे साथ. पिताजी के प्रति जो आक्रोश था, उस को तुम पर निकाल कर मैं संतोष महसूस करता रहा. सोचता था, मेरे साथ धोखा हुआ और बेवजह ही इस के लिए मैं तुम को दोषी मानता रहा. पर तुम मेरे लिए हमेशा प्यार लुटाती रहीं. मैं मात्र दैहिक सौंदर्य की छलना में मन के सौंदर्य से अनजान बना रहा. अब मैं जान गया कि तुम्हारा मन कितना सुंदर और प्यार से लबालब है. मैं तुम्हें सिर्फ कांटों की चुभन ही देता रहा और तुम सहती रहीं. कैसे सहन किया तुम ने मुझे? मैं अपनी इन भूलों के लिए माफी मांगने लायक भी नहीं रहा.’’

‘‘बस, बस, आगे कुछ कहा तो मैं रो पडूँगी,’’ सुनील के होंठों पर हथेली रखते हुए उज्ज्वला बोली, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि एक न एक दिन मुझे मेरी तपस्या का फल अवश्य मिलेगा. आप ऐसा विचार कभी न लाना कि मैं आप से घृणा करती हूं. मेरे मन में आप का प्यार पाने की तड़प जरूर थी, पर मैं ने कभी भी अपनेआप को आप के काबिल समझा ही नहीं. आज मुझे ऐसा लगता है मानो मैं ने सबकुछ पा लिया हो.’’

‘‘उज्ज्वला, तुम सचमुच उज्ज्वला हो, निर्मल हो. मैं तुम्हारा अपराधी हूं. आज मैं अपनेआप को कंगाल महसूस कर रहा हूं. न तो मेरे पास सुंदर दिल है और न ही वह सुंदर देह रही जिस पर मुझे इतना घमंड था,’’ सुनील ने ठंडी सांस ले कर उदासी से कहा.

‘‘जी छोटा क्यों करते हैं आप? हम इलाज की हर संभव कोशिश करेंगे. फिर भी ये सफेद दाग ठीक नहीं हुए तो भी मुझे कोई गम नहीं. यह कोई खतरनाक बीमारी नहीं है. प्यार इतना सतही नहीं होता कि इन छोटीछोटी बातों से घृणा में बदल जाए. मैं तो हमेशाहमेशा के लिए आप की हूं,’’ उज्ज्वला ने कहा. सुनील ने भावविह्वल हो कर उसे इस तरह आलिंगनबद्ध कर लिया मानो अचानक उसे कोई अमूल्य निधि मिल गई हो.

सबसे बड़ा गिफ्ट: नेहा ने राहुल को कौन-सा तोहफा दिया?

राहुल रविवार के दिन सुबह जब नींद से जागा तो टैलीफोन की घंटी लगातार बज रही थी. अकसर ऐसी स्थिति में नेहा टैलीफोन अटैंड कर लेती थी. रोज जो बैड टी, बैड के पास के टेबल पर रख कर उसे जगाया जाता था, आज वह भी मिसिंग थी.

नेहा को आवाज लगाई तो भी कोई उत्तर न पा राहुल खुद बिस्तर से उठ कर टैलीफोन तक गया.

‘‘हैलो, मैं नेहा बोल रही हूं,’’ दूसरी तरफ से नेहा की ही आवाज थी.

‘‘कहां से बोल रही हो?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘मैं ने एक अपार्टमैंट किराए पर ले लिया है. अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती.’’

‘‘देखो, तुम ऐसा नहीं कर सकतीं,’’ राहुल ने कहा.

‘‘मैं वैसा ही करूंगी जैसा मैं सोच चुकी हूं,’’ नेहा ने बड़े इतमीनान से कहा, ‘‘तुम चाहते हो कि तुम कोई काम न करो, मैं कमा कर लाऊं और घर मेरी कमाई से ही चले, ऐसा कब तक चलेगा? मैं तुम से तलाक नहीं लूंगी. बस तब तक अकेली रहूंगी, जब तक तुम कोई काम नहीं ढूंढ़ लोगे. मैं तुम्हें जीजान से चाहती हूं, मगर तुम्हें इस स्थिति में नहीं देखना चाहती कि तुम मेरे रहमोकरम पर ही रहो. मैं तुम्हारे नाम के साथ तभी जुड़ूंगी, जब तुम कुछ कर दिखाओगे.’’

‘‘तुम अपने मांबाप के घर भी तो रह सकती हो. वे बहुत अमीर हैं. वहां आराम से और सब सुखसुविधाओं के बीच रहोगी,’’ राहुल ने सलाह दी तो बगैर तैश में आए नेहा का उत्तर था, ‘‘मैं उन के पास तो बिलकुल नहीं जाऊंगी. मेरे आत्मसम्मान को यह मंजूर नहीं है. हां, मैं संपर्क सब के साथ रखूंगी, लेकिन तुम्हारे साथ रहना मुझे तभी मंजूर होगा जब तुम जिंदगी में किसी काबिल बन जाओगे.’’

क्षण भर के लिए राहुल किंकर्तव्यविमूढ हो  गया. उस ने ऐसा कभी सोचा भी न था कि नेहा इस तरह उसे अचानक छोड़ कर अकेले जीवन बिताने का कदम उठा लेगी. उस ने नेहा से कहा, ‘‘यदि तुम ने अलग रहने का फैसला कर ही लिया है तो अपने पापा को इस विषय में सूचना दे दो.’’

नेहा ने राहुल की सलाह मान ली. उस के पापा ने जब उसे मायके आने के लिए कहा तो नेहा ने कहा, ‘‘पापा, आप ने पढ़ालिखा कर मुझे इस काबिल बनाया है कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं. मैं राहुल को तलाक नहीं दे रही हूं. आप को पता है कि मैं राहुल को बहुत चाहती हूं. आप के और ममा के विरोध के बावजूद मैं ने राहुल से विवाह किया. मैं तो बस इतना चाहती हूं कि राहुल को उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दूं, जहां वह कुछ बन कर दिखाए.’’

नेहा की बात उस के पापा की समझ में आ गई. उन्होंने कहा, ‘‘नेहा, इस रचनात्मक कदम पर मैं तुम्हारे साथ हूं. फिर भी यदि कभी सहायता की जरूरत हो तो संकोच न करना, मुझे बता देना.’’

राहुल को इस तरह नेहा का अचानक उसे छोड़ कर जाना अच्छा नहीं लगा, लेकिन उसे इस बात से बहुत राहत मिली कि नेहा ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि स्थिति बदली और राहुल ने या तो कोई व्यवसाय कर लिया या अपनी काबिलीयत के आधार पर कोई अच्छी नौकरी कर ली, तो वह उस की जिंदगी में फिर वापस आएगी. नेहा ने राहुल को यह भी स्पष्ट कर दिया कि उसे सारा ध्यान अपने बेहतर भविष्य और कैरियर पर लगाना चाहिए. वह उस से मिलने की भी कोशिश न करे, न ही मोबाइल पर लंबीचौड़ी बातें करे. राहुल को तब बहुत बुरा लगा जब उस ने अपना पता तो बता दिया, लेकिन साथ में यह भी कह दिया कि वह उस के घर पर न आए. वह तब ही आ कर उस से मिल सकता है, जब आय के अच्छे साधन जुटा ले और जिंदगी में उस की उपलब्धियां बताने लायक हों.

नेहा को इस बात का बहुत संतोष था कि अब तक उस की कोई औलाद नहीं थी और वह स्वतंत्रतापूर्वक दफ्तर के कार्य पर पूरा ध्यान और समय दे सकती थी. नेहा के बौस उम्रदराज और इंसानियत में यकीन रखने वाले सरल स्वभाव के व्यक्ति थे, इसलिए नेहा को दफ्तर के वातावरण में पूरी सुरक्षा और सम्मान हासिल था. एक योग्य, स्मार्ट और आधुनिक महिला के रूप में उस की छवि बहुत अच्छी थी, दफ्तर के सहकर्मी उस का आदर करते थे.

कालेज की कैंटीन में राहुल ने नेहा को पहली बार देखा था. वह अपनी बहन सीमा का दाखिला बी.ए. में करवाने के लिए वहां गया था. पहली नजर में नेहा उसे बहुत सुंदर लगी. वह अपनी सहेलियों के साथ कैंटीन में थी. बाद में उसे देखने के लिए वह सीमा को कालेज छोड़ने के बहाने से जाने लगा. नेहा को भी बारबार दिखने पर राहुल का व्यक्तित्व, चालढाल, तौरतरीका आकर्षक लगा. फिर सीमा से कह कर उस ने नेहा से परिचय कर ही लिया. बाद में जब उन्होंने शादी की तब राहुल पोस्ट ग्रैजुएट था लेकिन कोई नौकरी नहीं कर रहा था और नेहा एम.बी.ए. करने के बाद नौकरी करने लगी थी.

राहुल से अलग रहने में नेहा ने कोई कष्ट अनुभव नहीं किया, क्योंकि यह उस का अपना सोचासमझा फैसला था. दृढ़ निश्चय और स्पष्ट सोच के कारण अपने बौस की पर्सनल सैक्रेटरी का काम वह बखूबी कर रही थी. धीरेधीरे औफिस में बौस के साथ उस की नजदीकियां बढ़ रही थीं. ऐसे में उन्हें कोई गलतफहमी न हो जाए, इस के लिए उस ने अपने संबंध के विषय में स्पष्ट करते हुए एक दिन उन से कहा, ‘‘सर, मैं अपने पति से अलग भले ही रह रही हूं किंतु मेरा पति के पास वापस जाना निश्चित है. फ्लर्टिंग में मैं यकीन नहीं रखती हूं.

‘‘हां, महीने में 1-2 बार डिनर या लंच पर मैं आप के साथ किसी अच्छे रेस्तरां में जाना पसंद करूंगी. वह भी इस खयाल से कि अगर इस बात की खबर राहुल को पहुंची या कभी आप के साथ आतेजाते उस ने देख लिया तो या तो उसे आप से ईर्ष्या होगी या इस बात का टैस्ट हो जाएगा कि वह मुझ पर कितना विश्वास करता है. दूर रहने पर संदेह पैदा होने में देर नहीं लगती.’’

उधर अपनी योग्यता के बल पर और कई इंटरव्यू दे कर राहुल एक अच्छी नौकरी पा चुका था. एक मल्टीनैशनल कंपनी में उसे पब्लिक रिलेशन औफिसर के पद पर काम करने का अवसर मिल चुका था.

नौकरी शुरू करने के 2 महीने बाद राहुल ने नेहा को फोन पर इस विषय में सूचना दी, ‘‘नेहा, मैं पिछले 2 महीने से नौकरी कर रहा हूं.’’

‘‘बधाई हो राहुल, मुझे पता था कि तुम्हारी अच्छाइयां एक दिन जरूर रंग लाएंगी.’’

राहुल को बहुत समय बाद नेहा से बात करने का मौका मिला था. उस की खुशी फोन पर बात करते समय नेहा को महसूस हो रही थी. वह भी बहुत खुश थी. राहुल ने कहा, ‘‘अभी फोन मत काटना, कुछ और भी कहना चाहता हूं. बातें और करनी हैं. नेहा, वापस मेरे पास आने के बारे में जल्दी फैसला करना…’’

राहुल अपने विषय में बहुत कुछ बताना चाहता था लेकिन नेहा बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘मेरे बौस अपने चैंबर में मेरा इंतजार कर रहे हैं. एक मीटिंग के लिए मुझे पेपर्स तैयार करने हैं. जो बातें तुम पूछ रहे हो, उस विषय में मैं बाद में बात करूंगी.’’

जिस तरह सोना आग में तपतप कर कुंदन बनता है, ठीक वैसे ही राहुल ने जीजान से मेहनत की. उसे कंपनी ने विदेशों में प्रशिक्षण के लिए भेजा और 1 वर्ष के भीतर ही पदोन्नति दी. राहुल, जिस में शुरुआत में आत्मविश्वास व इच्छाशक्ति की कमी थी, अब एक सफल अधिकारी बन चुका था. उस के पास आने की बात का नेहा से कोई उत्तर न मिलने पर उस में क्रोध जैसी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह नेहा को उस के प्रति छिपे प्यार को पहचान रहा था.

मन से नेहा उस के पास आने को आतुर थी, मगर इस बात के लिए न तो वह पहल करना चाहती थी, न ही जल्दबाजी में कोई निर्णय लेना चाहती थी.

नेहा के पापा और ममा ने कभी ऐसी भूमिका नहीं अदा की कि वे नेहा और राहुल के आत्मसम्मान के खिलाफ कोई काम करें. नेहा को पता भी नहीं चला कि उस के पापा राहुल को फोन कर के उस का हालचाल जानते रहते हैं और अपनी तरफ से उसे उस के अच्छे कैरियर के लिए मार्गदर्शन देते रहते हैं. राहुल के पिता का देहांत उस के बचपन में ही हो चुका था. राहुल के घर पर उस की मां और बहन के अलावा और कोई नहीं था. बहुत छोटी फैमिली थी उस की.

नेहा के बौस ने एक दिन नेहा को बताया कि उसे उन के साथ एक मीटिंग में दिल्ली चलना है. लैपटौप पर कुछ रिपोर्ट्स बना कर साथ ले जानी हैं और कुछ काम दिल्ली के कार्यालय में भी करना होगा. वहां जाने पर कामकाज की बेहद व्यस्तता होने पर भी वे समय निकाल कर नेहा को डिनर के लिए कनाट प्लेस के एक अच्छे रेस्तरां में ले गए. डिनर तो एक बहाना था. दरअसल, वे संक्षेप में अपने जीवन के बारे में कुछ बातें नेहा के साथ शेयर करना चाहते थे.

‘‘नेहा, तुम ने एक दिन मुझ से स्पष्ट बात की थी कि तुम फ्लर्ट करने में विश्वास नहीं करती हो. लेकिन किसी को पसंद करना फ्लर्ट करना नहीं होता. मैं तुम्हारे निर्मल स्वभाव और अच्छे कामकाज की वजह से तुम्हें पसंद करता हूं. तुम स्मार्ट हो, हर काम लगन से समय पर करती हो, दफ्तर में सब सहकर्मी भी तुम्हारी बहुत तारीफ करते हैं.’’ बौस के ऐसा कहने पर नेहा ने बहुत आदर के साथ अपने विचार कुछ इस तरह व्यक्त किए, ‘‘सर, जो बातें आप बता रहे हैं उन्हें मैं महसूस करती हूं. आप को ले कर मुझे औफिस में कोई असुरक्षा की भावना नहीं है. आप ने मेरा पूरा खयाल रखा है.’’

वे आगे बोले, ‘‘मैं अपनी पर्सनल लाइफ किसी के साथ शेयर नहीं करता. लेकिन न जाने क्यों दिल में यह बात उठी कि तुम से अपने मन की बात कहूं. तुम में मुझे अपनापन महसूस होता है. अगर मेरा विवाह हुआ होता तो शायद तुम्हारी जैसी मेरी एक बेटी होती. बचपन में ही मांबाप का साया सिर से उठ गया था. तब से अब तक मैं बिलकुल अकेला हूं. घर पर जाता हूं तो घर काटने को दौड़ता है. दोस्त हैं लेकिन कहने को. सब स्वार्थ से जुड़े हैं. कोई रिश्तेदार शहर में नहीं है. शायद तुम्हें मेरे हावभाव या व्यवहार से ऐसा लगा हो कि मेरी तरफ से फ्लर्ट करने जैसी कोई कोशिश जानेअनजाने में हो गई है. लेकिन ऐसा नहीं है. मैं ने मांबाप को खोने के बाद मन में कभी यह बात आने नहीं दी कि मैं विवाह करूंगा. मेरी जिंदगी में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं है.’’

नेहा भी थोड़ी भावुक हो गई. उसे लगा कि जिंदगी में सच्चे मित्र की आवश्यकता सभी को होती है. उस ने अपने पति में भी एक सच्चे दोस्त की ही तलाश की थी.

मीटिंग के बाद नेहा अपने बौस के साथ चंडीगढ़ लौट आई. अपने बौस जैसे इंसान को करीब से देखने, परखने का यह अवसर उसे जीवन के अच्छे मूल्यों और अच्छाइयों के प्रति आश्वस्त करा गया. उन्होंने नेहा से यह भी कहा कि जहां तक संभव होगा वे उसे राहुल के जीवन में वापस पहुंचाने में पूरी मदद करेंगे. नेहा मन ही मन बहुत खुश थी. उसे ऐसा लग रहा था जैसे बौस के रूप में उसे एक सच्चा दोस्त मिल गया हो.

वे दिल्ली में मैनेजिंग डायरैक्टर से विचारविमर्श कर के नेहा को पदोन्नति देने के विषय में निर्णय ले चुके थे. लेकिन यह बात उन्होंने गुप्त ही रखी थी. सोचा था किसी अच्छे मौके पर वह प्रमोशन लैटर नेहा को दे देंगे.

कंपनी की ऐनुअल जनरल मीटिंग की तिथि निश्चित हो चुकी थी, जो सभी कर्मचारियों और शेयर होल्डर्स द्वारा अटैंड की जानी थी. भव्य प्रोग्राम के दौरान उन्होंने प्रमोटेड कर्मचारियों के नामों की घोषणा की, जिस में नेहा का नाम भी था. नेहा ने देखा कि उस का पति राहुल भी हौल में बैठा था. नेहा की खुशी का ठिकाना न था. नेहा ने बौस से इस विषय में पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि राहुल को मैं ने आमंत्रित किया है. वैसे इस कंपनी के कुछ शेयर्स भी इस ने खरीदे हैं. आज का दिन तुम्हारे लिए आश्चर्य भरा है. जरा इंतजार करो. मैं वास्तव में तुम्हारे गार्जियन की तरह कुछ करने वाला हूं. नेहा कुछ समझ नहीं पाई. उस ने चुप रहना बेहतर समझा.

घोषणाओं का सिलसिला चलता रहा. फिर नेहा के बौस ने घोषणा की, ‘‘फ्रैंड्स, आप को जान कर खुशी होगी कि यहां आए राहुल की योग्यता और अनुभव के आधार पर उस का चयन हमारी कंपनी में असिस्टैंट जनरल मैनेजर पद के लिए हो चुका है. राहुल और उस की पत्नी नेहा को बधाई हो.’’

नेहा की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली. सब आमंत्रित लोगों के जाने के बाद, राहुल और नेहा दोनों उन के पास गए और उन को धन्यवाद प्रकट किया. खुशनुमा माहौल था.

‘‘कैन आई हग यू?’’ उन्होंने नेहा से पूछा.

‘‘ओ श्योर, वाई नौट’’ कहते हुए नेहा उन से ऐसे लिपट गई, जैसे वह अपने पापा से लाड़प्यार में लिपट जाया करती थी. उन की आंखें भर आई थीं. उन्हें लगा जैसे एक पौधा जो मुरझा रहा था, उन्होंने उस की जड़ें सींच दी हैं.

आंसुओं के बीच उन्होंने नेहा से कहा, ‘‘आज की शाम का सब से बड़ा गिफ्ट मैं तुम्हें दे रहा हूं. राहुल के साथ आज ही अपने घर लौट जाओ. अब तुम दोनों की काबिलीयत प्रूव हो चुकी है.’’

दिव्या आर्यन: जब दो अनजानी राहों में मिले धोखा खा चुके हमराही

‘पता नहीं बस और गाड़ियों में रात में भी एसी क्यों चलाया जाता है, माना कि गरमी से नज़ात पाने के लिए एसी का चलाया जाना ज़रूरी है पर तब क्यों जब ज्यादा गरमी न हो,’ बस की खिड़की से बाहर देखती हुई दिव्या सोच रही थी. मन नहीं माना तो उस ने खिड़की को ज़रा सा खिसका भर दिया, एक हवा का झोंका आया और दिव्या की ज़ुल्फों से अठखेलियाँ करते हुए गुज़र गया.

कोई टोक न दे, इसलिए धीरे से खिड़की को वापस बंद कर दिया दिव्या ने. दिव्या जो आज अपने कसबे लालपुर से शहर को जा रही थी. वहां उसे कुछ दिन रुकना था. उस ने शहर के एक होटल में एक सिंगल रूम की बुकिंग पहले से ही करा रखी थी.

चर्रचर्र की आवाज़ के साथ बस रुकी. दिव्या ने बाहर की ओर देखा तो पाया कि पुलिसचेक है. शायद स्वतंत्रता दिवस करीब है, इसीलिए पुलिस वाले हर बस को रोक कर गहन तलाशी करते हैं. हरेक व्यक्ति की तलाशी और आईडी चेक होती है. पुलिस की चेकिंग के बाद बस आगे बढ़ी.

अब भी आधा सफर बाकी था. ‘अब तो लगता है मुझे पहुंचने में काफी रात हो जाएगी. तब, बसस्टैंड से होटल तक जाने में परेशानी होगी,’ दिव्या सोच रही थी.

ऐसा हुआ भी.बस को शहर पहुंचने में काफी रात हो गई. दिव्या ने अपना सामान उठाया और किसी रिकशे या कैब वाले को देखने लगी. कई औटो रिकशे वाले खड़े थे पर उन में से कुछ ने होटल तक जाने से मना कर दिया तो कुछ औटो में ही सो रहे थे जबकि कुछ में ड्राइवर थे ही नहीं.

परेशान हो उठी दिव्या, ‘अगर कोई सवारी नहीं मिली तो मैं होटल कैसे जाऊंगी और बाकी की रात यहां कैसे बिताऊंगी!’

तभी उस की नज़र कोने में खड़े एक औटो पर पड़ी. दिव्या उस की तरफ गई तो देखा कि ड्राइवर उस के अंदर बैठबैठे हुआ सो रहा है.

“ए औटो वाले, खाली हो, होटल रीगल तक चलोगे?” दिव्या का स्वर पता नहीं क्यों तेज़ हो गया था. उस की आवाज़ सुन कर वह उठ गया और इधरउधर देखने लगा.

“ज…जी, वह आखिरी बस आ गई क्या? मैं ज़रा सो गया था. हां, बताइए मैडम, कहां जाना है?”

“होटल रीगल जाना है मुझे,” दिव्या बोली थी.

“हां जी, बैठिए,” कह कर उस ने औटो स्टार्ट कर के आगे बढ़ा दिया.

“होटल रीगल यहां से कितनी दूर होगा?” दिव्या ने पूछा

“वह मैडम, कुछ नहीं तो 16 किलोमीटर तो पड़ ही जाएगा. बात ऐसी है न मैडम, कि यह बसस्टैंड शहर के काफी बाहर और सुनसान जगह पर बनवा दिया गया है, इसीलिए यहां से हर चीज़ दूर पड़ती है. पर, आप घबराइए मत, हम अभी पहुंचाए देते हैं,” औटो वाले ने जवाब दिया.

औटो वाले का चेहरा तो नहीं दिख रहा था पर उस के कान में एक चेन में पिरोया हुआ कोई बुंदा पहना हुआ था, जो बारबार बाहर की चमक पड़ने पर रोशनी बिखेर देता था. उस चमक से बारबार दिव्या का ध्यान औटो वाले के कानों पर चला जाता.

अचानक से औटो के अंदर रोशनी सी भर गई. औटो वाले और दिव्या दोनों का ध्यान उस रोशनी पर गया. 4 लड़के थे जो अपनी बाइक की हेडलाइट को जानबूझ कर औटो के अंदर तक पंहुचा रहे थे .

इन को भी कहीं जाना होगा, ऐसा सोच कर दिव्या ने अपना ध्यान वहां से हटा लिया पर औटो वाले की आंखें लगातार पीछे आने वाली बाइकों पर थीं और वह उन लोगों की नीयत भांप चुका था.

अचानक से औटो वाले ने अपनी गति बढ़ा दी जितनी बढ़ा सकता था और औटो को मुख्य सड़क से हटा कर किसी और सड़क पर चलाने लगा.

“क्या हुआ, यह तुम इतनी तेज़ क्यों चला रहे हो और औटो को किस दिशा में ले जा रहे हो? बात क्या है आखिर?” दिव्या ने कई सवाल दाग दिए.

“जी, कुछ नहीं मैडम, आप डरिए नहीं. दरअसल, इस शहर में कुछ भेड़िए इंसानी भेष में रोज़ रात को लड़कियों का मांस नोचने के लिए निकल पड़ते हैं और आज इन लोगों ने आप को अकेले देख लिया है. पर आप घबराइए नहीं, मैं इन के मंसूबे कामयाब नहीं होने दूंगा,” आंखों को रास्ते और साइड मिरर पर जमाए हुए औटो वाला बोल रहा था.

पीछे आती हुई बाइकों ने अपनी गति और बढ़ा दी और वे औटो के बराबर में आने लगे .

औटो वाले ने अचानक औटो को एक दिशा में लहरा दिया और औटो के लहराने से बाइक वाला संभल नहीं पाया और बाइक कंट्रोल से बाहर हो गई. और वह लहराता हुआ गिर गया.

अपने साथी को गिरा देख कर दूसरा गुस्से में भर गया और बाइक चलाते हुए अंदर बैठी दिव्या के बराबर हाथ पहुंचाया. तुरंत ही दिव्या ने अपने साथ में लाए हुए लेडीज़ छाते का एक ज़ोरदार वार उस के हेलमेट पर कर दिया. इस अप्रत्याशित वार से वह भी बाइक समेत गिर गया. अपने 2 साथियों के चोटिल होने के बाद बाकी के दोनों सवारों का हौसला टूट गया उन दोनों ने पीछे आना छोड़ कर अपनी बाइकों को मोड़ लिया.

उन गुंडों से पीछा छुड़ाने के चक्कर में औटो मुख्य सड़क से भटक कर पास में छोटी सड़क पर चलने लगा था और औटोवाला ड्राइवर बगैर इस बात का ध्यान करे औटो भगाता जा रहा था. और अब जब उसे इस बात का भान हुआ तब तक औटो शहर के किसी दूसरे हिस्से में आ गया था. वहां चारों और घुप्प अंधेरा था. बस, जितनी दूर औटो की रोशनी जाती उतना ही रास्ता दिखाई दे रहा था.

औटो चला जा रहा था. तभी अचानक औटो से खटाक की आवाज़ आई और औटो रुक गया. औटो ड्राइवर को जितनी तकनीक मालूम थी वह सबकुछ अपना लिया. पर कुछ न हो सका .

“मैडम, अफ़सोस की बात है, हम शहर के किसी बाहरी हिस्से में आ गए हैं और वापसी का कोई उपाय नहीं है. अब हमें रात यही कहीं काटनी होगी.”

“क्या मतलब, यहां कहां और कैसे?”

“अब क्या करें मैडम, मजबूरी है,” औटोवाला युवक बोला, फिर कहने लगा, “वह सामने आसमान में ऊंचाई पर एक लाल बल्ब चमक रहा है, वहां चलते हैं. ज़रूर वहां हमे सिर छिपाने लायक जगह मिल जाएगी.” अपनी उंगली दिखाते हुए उस ने कहा और एक झटके से दिव्या का बैग उठा लिया और तेज़ी से चल पड़ा.

उस का अंदाज़ा सही था. यह एक निर्माणाधीन बहुमंज़िली इमारत थी, जिस के एक हिस्से में कुछ मज़दूर सो रहे थे और बाकी की इमारत खाली थी. दोनों चलते हुए ऊपर वाले फ्लोर पर पहुंचे और एक कोने में सामान रख दिया.

यह सब दिव्या को बड़ा अजीब लग रहा था और वह यह भी सोच रही थी, एक अजनबी के साथ वह इतनी देर से है, फिर भी उसे कोई असुरक्षा का भाव क्यों नहीं आ रहा है?

“इधर आ जाइए, हवा अच्छी आ रही है,” युवक ने बालकनी में आवाज़ देते हुए कहा.

“वैसे, तुम्हारा नाम क्या है?” अचानक से दिव्या ने पूछा.

“ज जी, मेरा नाम आर्यन है,” युवक ने थोड़ा झिझकते हुए उत्तर दिया.

” भाई वाह, क्या नाम है, वैरी गुड़,” दिव्या ने अपने पर्स में रखे हुए बिस्कुट निकाल कर आर्यन की ओर बढ़ाते हुए कहा.

“जी मैडम, बात ऐसी है कि मेरी मां शाहरुख खान की बहुत बड़ी फैन थी और जब ‘मोहब्बतें’ फिल्म रिलीज़ हुई न, तब मैं उस के पेट में था और तभी उस ने सोच लिया था कि अगर बेटा पैदा हुआ तो उस का नाम आर्यन रखेगी.”

आर्यन की सरल बातें सुन कर बिना मुसकराए न रह सकी दिव्या. पानी पीते हुए घड़ी पर निगाह डाली तो अभी रात का 2 बज रहा था. अभी तो पूरी रात यहीं काटनी है, इस गरज से दिव्या ने बातचीत जारी रखी.

“दिखने में तो खूबसूरत लगते हो और पढ़े लिखे भी. फिर, यह औटो चलाने की जगह कोई नौकरी क्यों नहीं करते?” दिव्या ने पूछा.

“मैडम, मैं ने एमए किया है वह भी इंग्लिश में. पर आजकल इस पढ़ाई से कुछ नहीं होता. या तो बहुत बड़ी डिग्री हो या फिर किसी की सिफारिश. और अपने पास दोनों ही नहीं. मरता क्या न करता, इसलिए औटो लाने लगा.

“ऊं…मोहब्बतें… तो कुछ अपनी मोहब्बत के बारे में भी बताओ. किसी लड़की से प्यारव्यार भी हुआ है या फिर…?” दिव्या ने पूछा.

उस की इस बात पर पहले तो आर्यन कुछ शरमा सा गया, फिर उस की आंखों में गुस्सा उत्तर आया, बोला, “हां मैडम, मुझे भी प्यार हुआ तो था पर अफ़सोस कि लड़की ने धोखा दे दिया…एक दिन मैं औटो ले कर घर वापस जा रहा था. तभी सड़क के किनारे मैं ने देखा कि एक लड़का पड़ा हुआ है. उस के सिर से खून बह रहा है और भीड़ मोबाइल से वीडियो बना रही है. कोई उस लड़के को अस्पताल ले कर नहीं जा रहा. उस लड़के के साथ एक बदहवास सी लड़की भी थी. मुझे उन दोनों पर दया आई और इंसानियत के नाते मैं ने उन दोनों को अस्पताल पहुंचाया. “अस्पताल में उस लड़के को जब खून की ज़रूरत पड़ी तो उस लड़की ने मुझ से मदद मांगी. मुझ से कहा कि वह लड़का उस का भाई है और खून का इंतज़ाम करना है.

“मैं क्या करता, मैं ने अपना खून उस लड़के को दिया और उस की जान बचाई. उस लड़की ने मुझे शुक्रिया कहा और बदले में मेरे को अपने घर का पता व अपना मोबाइल नंबर दिया, साथ ही मेरा नंबर लिया भी. और फिर रोज़ सुबह ही उस लड़की का व्हाट्सऐप्प पर मैसेज आता और चैटिंग भी करती. वह मुझ से पूछती कि वह उसे कैसी लगती है. और इसी तरह की कई दूसरी बातें भी पूछती थी.

“एक दिन मेरे मोबाइल पर उसी लड़की का फोन आया और उस ने मुझे अपने घर पर बुलाया. मैं उस से मिलने के लिए आतुर था, इसलिए तैयार हो कर उस के घर पहुंच गया. पता नहीं क्यों मुझे लगने लगा था कि वह लड़की मुझ से प्यार करने लगी है, इसलिए मैं उस के लिए एक लाल गुलाब भी ले कर गया था. जब मैं वहां पहुंचा तो उस ने मेरा खूब स्वागत भी किया. उस के घर में सिर्फ उस की मां ही रहती थी पर उस दिन वह कहीं गई हुई थी.

“जब मैं ने उस लड़की से पूछा कि उस का वह भाई कहां है तो उस ने बताया कि वह भी मां के साथ ही कहीं गया है. अकेलापन देख कर मैं ने उस लड़की को शादी का प्रस्ताव दे डाला.

“अभी तक उस लड़की ने मेरा नाम नहीं पूछा था. नाम पूछने पर जब मैं ने उसे अपना नाम आर्यन डिसूजा बताया तब उस ने मेरे ईसाई होने पर सवाल खड़ा कर दिया और निराश हो कर कहने लगी, ‘मुझे भूल जाओ. मैं शादी तुम से नहीं कर सकती क्योंकि मेरी मां और पापा कट्टर हिंदू हैं, वे किसी गैरधर्म वाले लड़के से मेरी शादी नहीं करेंगे.’ हालांकि उस के भाई को खून देने को ले कर किसी को कोई एतराज नहीं था पर शादी की बात आते ही जातिधर्म सब आ गया. बस मैडम, मेरी पहली और आखिरी कहानी यही थी,” यह कह कर आर्यन चुप हो गया.

“काफी अजीब कहानी है तुम्हारे प्यार की. पर है बहुत ही इमोशनल और नई सी. इस पर कोई फिल्म वाला एक फिल्म बना सकता है,” दिव्या ने हंसते हुए कहा.

“हां जी, हो सकता है. पर आप ने कुछ अपने बारे में नहीं बताया, मसलन आप के मांबाप?” आर्यन भी दिव्या की प्रेमकथा ही जानना चाहता था, पर वह बात कहने की हिम्मत नहीं कर पाया, इसलिए मांबाप का नाम ले लिया.

“मेरे बाप एक फार्मा कंपनी में काम करते थे. उन का सेल्स का काम था, तो अकसर घर के बाहर रहते. घर में सबकुछ था, ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं. जब वे घर आते तो हम सब को खूब समय और तोहफे भी देते…” कहतेकहते चुप हो गई दिव्या.

“जी, और आप की मां?”

“मां, अब उस के बारे में क्या बताऊं. उस का पेट हर तरह से भरा हुआ था- रुपए से, पैसे से. पर कुछ औरतों को अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए रोज़ एक नया मर्द चाहिए होता है न, कुछ ऐसी ही थी मेरी मां. वह कहीं भी जाती तो अपने लिए गुर्गा तलाश ही लेती और उसे अपना फोन नंबर दे देती. और जब वह आदमी घर तक आ जाता तो मुझे किसी बहाने से घर के बाहर भेज देती और उस आदमी के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बनाती.

“धीरेधीरे उस की बेशर्मी इतनी बढ़ गई थी कि वह मेरे सामने ही किसी भी गैरमर्द के साथ प्रेम की अठखेलियां करने लगती. उस की ये हरकतें पापा को पता चलीं, तो उन्होंने तुरंत ही उसे तलाक़ दे दिया और मुझे मां के पास ही छोड़ दिया. तलाक़ के बाद मां को सम्भल जाना चाहिए था, पर वह और भी निरंकुश हो गई. “अब तो आदमी आते और घर पर ही पड़े रहते, बल्कि आदमी लोग शिफ्टों में आने लगे थे और मेरी मां जीभर सेक्स का मज़ा लेती थी. मां की हरकतें देख कर मैं ने अपने घर की छत पर जा कर आत्महत्या करने की कोशिश की, पर तभी मेरे पड़ोस में रहने वाले लड़के ने अपनी जान पर खेलते हुए मेरी जान बचाई.

“मुझे किसी का सहारा चाहिए था. मैं उस लड़के के कंधे पर सिर रख कर खूब रोई. मैं सिसकियों में बंध सी गई थी.

उस लड़के ने मुझे ऐसे वक्त में सहारा दिया कि मुझे उस से प्यार हो जाना स्वाभाविक ही था. प्यार तो उस को भी मुझ से हो गया था पर हमारी शादी के बीच मेरी मां का दुष्चरित्र आ गया और उस लड़के ने मुझ से साफ कह दिया कि उस के मांबाप किसी ऐसी लड़की से उस की शादी नहीं कराना चाहते जिस की तलाकशुदा मां कई मर्दों से सम्बन्ध रखती हो,” इतना कह कर चुप हो गई थी दिव्या.

दोनों चुप थे. रात का सन्नाटा भी बखूबी उन का साथ दे रहा था. हवा आआ कर अब भी कभीकभी दिव्या की ज़ुल्फों को उड़ा दे रही थी, जिन्हें वह परेशान हो कर बारबार संभालती थी.

“पर मैडम, मेरी कहानी कुछ नई लग सकती है आप को पर आप की कहानी में तो दर्द के अलावा कुछ नहीं है” पास में बैठे हुए आर्यन ने कहा.

प्रतिउत्तर में कोई जवाब नहीं आया, सिर्फ एक छोटी सी सिसकी ही आई जिसे चाह कर भी दिव्या छिपा न सकी थी.

“क्या तुम रो रही हो?” आर्यन ने पूछा.

बिना कोई उत्तर दिए ही आर्यन के सीने से लिपट गई दिव्या…रोती रही…शायद बचपन से ले कर अब तक कोई कंधा नहीं नसीब हुआ था उसे जिस पर वह सिर रख सके. रोती रही वह जब तक उस का मन हलका नहीं हो गया.

और आर्यन ने भी अपनी मज़बूत बांहों का घेरा दिव्या के गिर्द डाल दिया था. और दिव्या के माथे पर चुम्बन अंकित कर दिया. वह खामोश इमारत अब उन के मिलन की गवाह बन रही थी.

सूरज की पहली किरण फूटी पर वे दोनों अब भी किसी लता की तरह एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

तभी दूर से एक दुग्ध वाहन आता हुआ दिखाई दिया. दिव्या ने आर्यन का हाथ पकड़ा और आर्यन ने बैग उठाया और दोनों ने दौड़ कर उस वाहन में लिफ्ट मांगी.

“हम कहां जा रहे हैं …और मेरा औटो तो वहीं रह गया मैडम,” आर्यन ने पूछा.

“अगर तुम्हें कोई और काम मिले तो क्या तुम करोगे ?” दिव्या ने आर्यन की आंखों में झांकते हुए कहा.

“हां मैडम, क्यों नहीं करूंगा.”

“पर हो सकता है तुम्हें उम्रभर मेरा साथ देना पड़े?”

“हां, पर तुम्हें साथ देना होगा तो ही करूंगा मैडम.”

“मैडम नहीं, दिव्या नाम है मेरा,” दिव्या ने कहा.

बदले में आर्यन सिर्फ मुसकरा कर रह गया.

शहर आ गया था. दोनों पूछतेपाछते होटल रीगल पहुंच गए.

रिसेप्शन पर जा कर दिव्या ने मैनेजर से कहा, “जी, मैं ने अपने लिए एक सिंगल बैडरूम बुक कराया था. मुझे आने में देर हो गई. पर, अब मुझे सिंगल नहीं बल्कि डबल बैडरूम चाहिए.”

“जी मैडम, किस नाम से रूम बुक था?” मैनेजर ने पूछा.

“मेरा कमरा दिव्या नाम से बुक था. पर अब आप रजिस्टर में मेरे पति आर्यन डिसूजा और दिव्या डिसूजा का नाम लिख सकते हैं,” दिव्या ने आर्यन की तरफ देखते हुए कहा.

सबक: संध्या का कौनसा राज छिपाए बैठा था उसका देवर

संध्या की आंखों में नींद नहीं थी. बिस्तर पर लेटे हुए छत को एकटक निहारे जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, जिस से वह आकाश के चंगुल से निकल सके. वह बुरी तरह से उस के चंगुल में फंसी हुई थी. लाचार, बेबस कुछ भी नहीं कर पा रही थी. गलती उस की ही थी जो आकाश को उसे ब्लैकमेल करने का मौका मिल गया. वह जब चाहता उसे एकांत में बुलाता और जाने क्याक्या करने की मांग करता. संध्या का जीना दूभर हो गया था. आकाश कोई और नहीं उस का देवर ही था. सगा देवर. एक ही घर, एक ही छत के नीचे रहने वाला आकाश इतना शैतान निकलेगा, संध्या ने कल्पना भी नहीं की थी. वह लगातार उसे ब्लैकमेल किए जा रहा था और वह कुछ भी नहीं कर पा रही थी. बात ज्यादा पुरानी नहीं थी. 2 माह पहले ही संध्या अपने पति साहिल के साथ यूरोप ट्रिप पर गई थी. 50 महिलापुरुषों का गु्रप दिल्ली इंटरनैशनल एअरपोर्ट से रवाना हुआ.

15 दिनों की यात्रा से पूर्व सब का एकदूसरे से परिचय कराया गया. संध्या को उस गु्रप में नवविवाहित रितू कुछ अलग ही नजर आई. उसे लगा रितू के विचार काफी उस से मिलते हैं. बातबात पर खिलखिला कर हंसने वाली रितू से वह जल्द ही घुलमिल गई. रितू का पति प्रणव भी काफी विनोदी स्वभाव का था. हर बात को जोक्स से जोड़ कर सब को हंसाने की आदत थी उस की. एक तरह से रितू और प्रणव में सब को हंसाने की प्रतिस्पर्धा चलती थी. संध्या इस नवविवाहित जोड़े से खासी प्रभावित थी. संध्या और उस के पति साहिल के बीच वैसे तो सब कुछ सामान्य था, लेकिन जब भी वह रितू और प्रणव की जोड़ी को देखती आहें भर कर रह जाती. प्रणव के विपरीत साहिल गंभीर स्वभाव का इंसान था, जबकि संध्या साहिल से अलग खुले विचारों वाली थी. यूरोप यात्रा के दौरान ही संध्या, रितू और प्रणव इतना घुलमिल गए कि विभिन्न पर्यटन स्थलों में घूम आने के बाद भी होटल के रूम में खूब बातें करते, हंसीमजाक होता. साहिल संध्या का हाथ पकड़ खींच कर ले जाता. वह कहता कि चलो संध्या, बहुत देर हो गई. इन्हें भी आराम करने दो. हम भी सो लेते हैं. गु्रप लीडर ने सुबह जल्दी उठने को बोला है.

मगर संध्या को कहां चैन मिलता. वह अपने रूम में आ कर भी मोबाइल पर शुरू हो जाती. वहाट्सऐप पर शुरू हो जाता रितू से जोक्स, कौमैंट्स भेजने का सिलसिला. रितू ने संध्या के फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज डाली. संध्या ने तुरंत स्वीकार कर ली. दिन में जो फोटोग्राफी वे लोग करते उसे वे व्हाट्सऐप पर एकदूसरे को भेजते. फोटो पर कौमैंट्स भी चलते. रात को रितू और संध्या के बीच व्हाट्सऐप पर घंटों बातें चलतीं. जोक्स से शुरू हो कर, समाजपरिवार की बातें होतीं. धीरेधीरे यह सिलसिला व्यक्तिगत स्तर पर आ गया. एकदूसरे की पसंद, रुचि से ले कर स्कूलकालेज की पढ़ाई, बचपन में बीते दिनों की बातें साझा करने लगीं.

एक रात रितू ने व्हाट्सऐप पर संध्या के सामने दिल खोल कर रख दिया. शादी से पहले के प्यार और शादी तक सब कुछ बता दिया. शादी से पहले रितू की लाइफ में प्रणव था. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों का परिवार अलगअलग धर्म और जाति का था. उन के प्यार में कुछ अड़चनें आईं. शादी को ले कर दोनों परिवारों में तकरार हुई पर आखिर रितू और प्रणव ने सूझबूझ दिखाते हुए अपनेअपने परिवार को मना लिया. रितू और प्रणव की शादी हो गई.व्हाट्सऐप पर रितू की लव स्टोरी पढ़ कर संध्या के मन में हलचल पैदा हो गई. उसे अपना अतीत याद हो आया. उस रात उस का मन किया वह भी रितू को वह सब कुछ बता दे जो उस का अतीत है, लेकिन वह हिम्मत नहीं कर पाई कि पता नहीं रितू क्या सोचेगी. वह उस के बारे में न जाने क्या धारणा बना ले. अजीब सी हलचल मन में लिए संध्या सो गई.

अगली रात संध्या अपनेआप को रोक नहीं पाई. रोज की तरह व्हाट्सऐप पर बातों का सिलसिला चल ही रहा था कि मौका देख कर संध्या ने लिख डाला कि मेरा भी एक अतीत है रितू. मैं भी किसी से प्यार करती थी. पर वह प्यार मुझे नहीं मिल सका.

रितू ने आश्चर्य वाला स्माइली भेजा और लिखा कि बताओ कौन था वह? क्या लव स्टोरी है तुम्हारी?

फिर संध्या ने रितू को अपनी लव स्टोरी बताने का सिलसिला शुरू कर दिया. वह मेरे कालेज में ही था. उस का नाम संजय था. हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे. हर 1-2 घंटे में मोबाइल पर हमारी बातें नहीं होतीं, तो लगता बहुत कुछ अधूरा है लाइफ में. दोनों में खूब बातें होतीं और तकरार भी. दुनिया से बेखबर हम अपने प्यार की दुनिया में खोए रहते. हमारा प्यार सारी हदें पार कर गया. विश्वास था कि घर वाले हमारी शादी को राजी हो जाएंगे. इसी विश्वास को ले कर मैं ने खुद को संजय को सौंप दिया. संध्या ने रितू को व्हाट्सऐप पर आगे लिखा, उस दिन पापा ने मुझ से कहा कि बेटी, तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो चुकी है. हम चाहते हैं कि अब अच्छा सा लड़का देख कर तुम्हारी शादी कर दें. मैं एकाएक पापा से कुछ नहीं बोल पाई. बस, इतना ही कहा कि पापा मुझे नहीं करनी शादी. अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है.

इस पर पापा ने कहा कि उम्र और क्या होगी? 25 साल की तो हो चुकी हो. जब मैं ने कहा कि नहीं पापा, मुझे नहीं करनी शादी तो वे हंस पड़े. बोले सच में अभी बच्ची हो. मैं ने पापा की बात को गंभीरता से नहीं लिया, पर वे मेरी शादी को ले कर गंभीर थे. एक दिन पापा ने मुझे बताया कि एक अच्छे परिवार का लड़का है तेरे लायक. किसी बड़ी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर है. 25 लाख का पैकेज है. वे अगले हफ्ते तुझे देखने आ रहे हैं. पापा की बात सुन कर मैं अवाक रह गई. मुझ से रहा नहीं गया. मैं ने हिम्मत जुटा कर पापा से कहा कि पापा, मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. आप उन से बात कर लीजिए. पापा मेरी तरफ देखते रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि उन की नजर में मैं सीधीसादी नजर आने वाली लड़की किस हद तक आगे बढ़ चुकी हूं.

पापा ने पूछा कि कौन है वह लड़का? मैं ने संजय का नाम, पता बताया तो पापा का गुस्सा बढ़ गया कि कभी उस परिवार में अपनी बेटी का रिश्ता नहीं करूंगा. मैं अंदर तक हिल गई. मुझे लगा मेरे सपने रेत से बने महल की तरह धराशायी हो जाएंगे. मैं ने तो संजय को सब कुछ सौंप दिया था. धरती हिलती हुई नजर आई उस दिन मुझे.

पापा और सब घर वालों ने 2-4 दिन में ऐसा माहौल बनाया कि मेरी और संजय की शादी नहीं हो पाई. अगले हफ्ते ही साहिल और उस के घर वाले मुझे देखने आ गए. मुझे पसंद कर लिया गया. रिश्ता पक्का हो गया. पापा ने सख्त हिदायत दी कि संजय का जिक्र भूल कर भी कभी न करूं. इस तरह मेरी शादी साहिल से हो गई. मैं अतीत भूल कर अपना घर बसाने में लग गई. शादी को 2 साल हो चुके हैं. संध्या ने रितू से व्हाट्सऐप पर अपने अतीत की बातें शेयर की और संजय का वह फोटो भेजा जो उस ने संजय के फेसबुक अकाउंट से डाउनलोड किया था.

‘‘अरे वाह, मैडम तुम ने तो बखूबी हैंडल कर लिया लाइफ को,’’ रितू ने संध्या की कहानी सुन कर लिखा.

इसी तरह हंसीमजाक और व्यक्तिगत बातें शेयर करते हुए यूरोप का ट्रिप पूरा हो गया. जब वे वापस घर पहुंचे तो संध्या और साहिल थक कर चूर हो चुके थे. तब रात के 2 बज रहे थे. सुबह देर तक सोते रहे. सास ने दरवाजा खटखटाया कि संध्या, साहिल उठ जाओ… सुबह के 11 बज चुके हैं. नहा कर नाश्ता कर लो. संध्या हड़बड़ा कर उठी. फटाफट फ्रैश हो कर तैयार हुई और किचन में आ गई. नाश्ता तैयार कर डाइनिंग टेबल पर लगाया तब तक साहिल भी तैयार हो चुका था. दोनों ने नाश्ता किया. तभी संध्या को खयाल आया कि मोबाइल कहां है. उस ने इधरउधर देखा पर नहीं मिला. आखिर कहां गया मोबाइल? उसे ध्यान आ रहा था कि रात को जब आई थी तो डाइनिंग टेबल पर रखा था.

‘‘संध्या मैं औफिस जा रहा हूं. आज बौस आ रहे हैं. 3 बजे उन के साथ मीटिंग है,’’ साहिल ने घर से निकलते हुए कहा.

‘‘ठीक है.’’

साहिल के जाने के बाद संध्या मोबाइल ढूंढ़ने में जुट गई. हर जगह देखा. वह अपने देवर आकाश के कमरे में जा पहुंची कि कहीं उस ने देखा हो. वह उस के कमरे में पहुंची तो मोबाइल आकाश के हाथों में देखा. वह मोबाइल स्क्रीन पर व्हाट्सऐप पर मैसेज पढ़ रहा था. वह मैसेज जो संध्या ने रितू को लिखे थे. वह सब कुछ पढ़ चुका था और मोबाइल को साइड में रखने ही जा रहा था.

‘‘आकाश, क्या कर रहे हो? मेरा मोबाइल तुम्हारे पास कहां से आया? क्या देख रहे थे इस में?’’ संध्या ने पूछा तो हमउम्र देवर आकाश के होंठों पर कुटिल मुसकान दौड़ गई.

‘‘कुछ नहीं भाभी, बस आप की लव स्टोरी पढ़ रहा था. आप के लवर का फोटो भी देखा. बहुत स्मार्ट है वह. क्या नाम था उस का संजय?’’ आकाश ने कहा तो संध्या की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

‘‘कुछ नहीं है… आकाश वे सब मजाक की बातें थीं,’’ संध्या ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘अगर भैया को ये सब मजाक की बातें बता दूं तो…?’’ आकाश ने तिरछी नजरें करते हुए कहा. उस की आंखों में शरारत साफ नजर आ रही थी.

संध्या को आकाश के इरादे नेक नहीं लगे. उसे अफसोस था कि उस ने किसी अनजानी दोस्त के सामने क्यों अपने अतीत की बातें व्हाट्सऐप पर लिखी. लिख भी दी थीं तो डिलीट क्यों नहीं कीं.

‘‘तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे आकाश. यह मजाक अच्छा नहीं है तुम्हारे लिए,’’ संध्या ने सख्त लहजे में कहा.

यह सुन कर आकाश अपनी औकात पर उतर आया, ‘‘भाभी जान, क्यों घबराती हो, ऐसा कुछ नहीं करूंगा. आप बस देवर को खुश कर दिया करो.’’

संध्या गुस्सा पीते हुए बोली, ‘‘मुझे क्या करना होगा? तुम क्या चाहते हो?’’

‘‘भाभी, इतना बताना पड़ेगा क्या आप को? आप शादीशुदा हैं. शादी से पहले भी आप काफी ज्ञान रखती थीं,’’ आकाश ने बेशर्मी से कहा.

संध्या को लगा वह बहुत बड़े जाल में फंसने जा रही है. अब करे भी तो क्या करे?

‘‘क्या सोच रही हो संध्या? आकाश अचानक भाभी से संध्या के संबोधन पर उतर आया.

‘‘मुझे सोचने का वक्त दो आकाश,’’ संध्या ने कहा.

‘‘ओके, नो प्रौब्लम. जैसा तुम्हें ठीक लगे. पर याद रखना मेरे पास बहुत कुछ है. भैया को पता चल गया तो धक्के मार कर घर से निकाल देंगे तुम्हें.’’

‘‘पता है, तुम किस हद तक नीचता कर सकते हो,’’ संध्या ने रूखे स्वर में कहा.

संध्या अब क्या करे? कैसे पीछा छुड़ाए आकाश से? वह देवरभाभी के रिश्ते को कलंकित करने पर उतारू था. वह जब भी मौका मिलता संध्या का रास्ता रोक कर खड़ा हो जाता कि क्या सोचा तुम ने?

आकाश मोबाइल पर संध्या को कौल करता, ‘‘इतने दिन हो गए, अभी तक सोचा नहीं क्या? क्यों तड़पा रही हो?’’

संध्या पर आकाश लगातार दबाव बढ़ा रहा था. उस का जीना दूभर हो गया. इसी उधेड़बुन में वह करवटें बदल रही थी. उस की नींद उड़ चुकी थी. वह सुबह तक किसी निर्णय पर पहुंचना चाहती थी. उस के सामने दुविधा यह थी कि वह खुद को बचाए या आकाश की वजह से परिवार में होने वाले विस्फोट से बचे. वह चाहती थी किसी तरह आकाश को समझा सके, ताकि यह बात अन्य सदस्यों तक नहीं पहुंचे, लेकिन करे तो क्या करें. अचानक उस के दिमाग में एक विचार कौंधा. हां, यही ठीक रहेगा. उस ने मन ही मन सोचा और गहरी नींद में सो गई. अगले दिन संध्या ने घर का कामकाज निबटाया और अपनी सास से बोली, ‘‘मम्मीजी, मुझे मार्केट जाना है कुछ घर का सामान लाने. घंटे भर में वापस जा जाऊंगी.’’

फिर संध्या जब घर लौटी तो उस के चेहरे पर चिंता की लकीरों के बजाय चमक थी. उस ने पढ़ा था कि राक्षस को मारने के लिए मायावी होना ही पड़ता है. वह आकाश को भी उसी के हथियार से मारेगी… उस का सामना करेगी. मार्केट से वह अपने मोबाइल में वायस रिकौर्डिंग सौफ्टवेयर डलवा आई. कुछ देर बाद ही आकाश ने घर से बाहर जा कर संध्या के मोबाइल पर कौल की. संध्या पूरी तरह तैयार थी.

‘‘हैलो संध्या क्या सोचा तुम ने?’’ आकाश ने पूछा.

‘‘मुझे क्या करना होगा?’’ संध्या ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं बस वही सब… तुम्हें बताना पड़ेगा क्या?’’

‘‘हां, बताना पड़ेगा. मुझे क्या पता तुम क्या चाहते हो?’’

‘‘तुम मेरे साथ…’’ और फिर सब कुछ बताता चला गया आकाश. कब, कहां, क्या करना होगा.

‘‘और अगर मैं मना कर दूं तो क्या करोगे?’’ संध्या ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं तुम्हारी लव स्टोरी सब को बता दूंगा.’’

संध्या गुस्से से चिल्ला पड़ी, ‘‘जाओ, सब को बताओ. परंतु एक बात याद रखना तुम जो मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो न मैं इस की शिकायत पुलिस में करूंगी. ऐसी हालत कर दूंगी कि कई जन्मों तक याद रखोगे.’’

‘‘कैसे करोगी?’’ क्या प्रूफ है तुम्हारे पास?’’ आकाश ने कहा.

‘‘घर आ कर देख लेना यों कायरों की तरह घर से बाहर जा कर क्या बात कर रहे हो,’’ संध्या का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था.

शाम को आकाश घर आया. संध्या ने मौका मिलते ही धीमे से कहा ‘‘पू्रफ दूं या वैसे ही मान जाओगे? तुम ने जो भी बातें की हैं वह सब मोबाइल में रिकौर्ड हैं और इस की सीडी अपने लौकर में रख ली है.’’

आकाश को विश्वास नहीं हो रहा था कि संध्या इस कदर पलटवार करेगी. वह चुपचाप अपने कमरे में खिसक गया. संध्या आज अपनी जीत पर प्रसन्न थी. व्हाट्सऐप के जरीए जो मुसीबत उस पर आई थी, वह उस से छुटकारा पा चुकी थी.

एक किन्नर की लव स्टोरी : रानो की कहानी

रानो बहुत खुश थी कि उसे भी कोई चाहने वाला मिल गया है. किन्नरों की जिंदगी में ऐसा कम ही होता है. किन्नरों के ऊपर पैसे फेंकने वाले तो बहुत होते हैं, मगर उन के ऊपर कोई अपना दिल फेंक दे, ऐसा कभी देखा नहीं. राजू एक आटोरिकशा ड्राइवर था. रानो रात के 10 बजे सहेलियों के साथ सड़क पर खड़ी थी. राजू की सांसें तेज चल रही थीं. उस से रानो का खुला हुआ कंधा देखा नहीं जा रहा था. वह गजब की खूबसूरत दिख रही थी. रानो अपनी सहेलियों से हंसहंस कर बातें कर रही थी. कुछ बातें राजू के कानों में भी पड़ रही थीं, मगर पता नहीं क्यों राजू उन बातों को सुनना नहीं चाह रहा था. उस की आंखों में इस वक्त रानो का गोरा कंधा घुसा हुआ था.

स्ट्रीट लाइट की रोशनी में रानो की ड्रैस रहरह कर चमक जाती थी. उस की ड्रैस पर ढेर सारे सितारे लगे हुए थे. रानो ने अपने बालों को खुला छोड़ रखा था. वह रहरह कर अपने बालों को कंधे के पीछे करती और कभीकभी अपनी छाती की ओर कर उंगलियों से अपनी लटों के साथ खेलती.

राजू को पता नहीं था कि उस के आटोरिकशे में कौन जाने वाला है, मगर वह पूरे मन से यही चाह रहा था कि रानो उस की सवारी बन जाए. वैसा ही हुआ. रानो हंसती हुई राजू के आटोरिकशे में बैठ गई.

राजू ने पहली ही नजर में उसे अपना दिल दे दिया था, एक लड़की समझ कर. लेकिन जब उसे पता चला कि रानो एक किन्नर है, तब भी वह उस की खूबसूरती के आगे सबकुछ भूल गया. ‘‘बहुत खूबसूरत लग रही हो,’’

राजू ने आटोरिकशे के साइड मिरर में देख कर रानो से कहा. यह सुन कर रानो हंस दी और बोली, ‘‘ऐसे मत देख पगले, प्यार हो जाएगा.’’

रानो ने राजू की हंसी उड़ाई, मगर उसे नहीं पता था कि राजू सच कह रहा है. वह तो पहले ही फंस चुका था उस के हुस्न के जाल में. रानो ने देखा कि राजू ने उस की बात का जवाब नहीं दिया, मगर बीचबीच में वह उसे देख जरूर रहा था.

रानो ने महसूस किया कि राजू एक सीधासादा लड़का है. उस की नजर में फूहड़पन नहीं था. वह उसे ऐसे देख रहा था, जैसे कोई एक खूबसूरत लड़की को देखता है. रानो ने अपने मन में कुछ सोचा कि तभी होटल आ गया. आटोरिकशे से उतर कर रानो ने ड्राइवर को पैसे दिए. राजू ने देखा भी नहीं कि उस ने कितने पैसे दिए. उस ने एक हाथ में पैसे पकड़े और रानो को देखता रहा. उसे रानो को कुछ पैसे वापस करने थे. रानो इंतजार कर रही थी, मगर उस ने देखा कि राजू उदास लग रहा है. रानो समझ गई.

‘‘कल 10 बजे वहीं आना, जहां से आज मुझे बैठाया है,’’ इतना कह कर रानो मुसकराते हुए होटल के अंदर चली गई.

यह सुन कर राजू खुश हुआ कि रानो ने उसे कल भी बुलाया है. अगले दिन ठीक 10 बजे राजू उसी नुक्कड़ पर पहुंच गया, जहां से रानो उस के आटोरिकशे में बैठी थी.

‘‘चलो,’’ यह सुन कर राजू चौंक गया. उस ने पीछे मुड़ कर देखा, तो रानो उस के आटोरिकशे में बैठ चुकी थी. ‘‘किधर से आईं तुम? मैं तो सामने देख रहा था,’’ राजू थोड़ा खुल सा

गया था आज. फिर उस ने आटोरिकशा स्टार्ट किया और साइड मिरर से उसे देखने लगा. आज रानो ने बैंगनी रंग की ड्रैस पहनी हुई थी. वैसी ही मादक ड्रैस, जिसे देखते ही नशा चढ़ जाए.

रानो मेकअप करती थी. वह छोटे से आईने में अपने मेकअप को देख रही थी. जल्दीजल्दी में आज वह ठीक से तैयार नहीं हो पाई थी, तभी उस की नजर राजू से टकरा गई. ‘‘सामने देख कर चलाओ…’’ रानो ने मुसकरा कर कहा. राजू समझ गया कि वह क्या कहना चाह रही थी.

‘‘तुम जैसी खूबसूरत लड़की साथ बैठी हो, तो नजर भटकेगी ही न,’’ राजू ने भी कह दिया. ‘‘क्यों मजाक उड़ा रहे हो. मैं लड़की नहीं हूं,’’ रानो के मन में जैसे कुछ चुभ सा गया था.

‘‘कम भी नहीं हो. कोई भी देखे, तो एकदम पगला जाएगा,’’ राजू ने अपनी बात कही. ‘‘मेरी तरफ से ध्यान हटाओ. मैं तुम्हारे किसी काम की नहीं,’’ रानो ने राजू को आगे बढ़ने से रोका.

‘‘तुम इतनी खूबसूरत हो कि मैं तुम्हारे लिए जिंदगीभर आटोरिकशा चला सकता हूं,’’ राजू बोला, तो रानो हंस दी. राजू ने उस के मन को छू लिया था. अब रानो राजू के आटोरिकशे को ही अपने आनेजाने के लिए इस्तेमाल करती थी. राजू को अब कुछ की जगह बहुत सारे पैसे मिलने लगे. बड़ीबड़ी पार्टियों में उस का आनाजाना होने लगा.

रानो के मना करने के बावजूद राजू नहीं माना और इस बात पर अड़ा रहा कि वह उस से प्यार करता है. उस दिन पता नहीं क्या हुआ. रानो होटल में गई, मगर कुछ ही देर में गुस्से से भरी हुई बाहर निकली. राजू का आटोरिकशा उसे वहीं खड़ा मिला.

‘‘तुम गए नहीं अब तक?’’ रानो ने आटोरिकशे में बैठते हुए गुस्से से कहा. ‘‘पता नहीं क्यों आज मन नहीं हुआ जाने का,’’ राजू बोला.

‘‘घर ले चलो,’’ आज रानो पहली बार इतनी जल्दी घर जा रही थी. आटोरिकशे से उतरने के बाद रानो अपनी बिल्डिंग में जाने लगी, तभी उस ने देखा कि राजू भी उस के पीछेपीछे आ रहा है.

‘‘तुम को घर नहीं जाना है क्या?’’ रानो ने पूछा. ‘‘नहीं, आज तुम्हारे पास रुकने का मन है.’’

‘‘अच्छा…’’ कह कर रानो आगे बढ़ गई. वह बड़े से घर में अकेले रहती थी. घर में घुसते ही रानो ने अपनी ड्रैस ऐसे उतारी, जैसे वह इस ड्रैस से खूब नाराज हो. उसे यह भी खयाल नहीं आया कि आज उस के साथ कोई और भी आया है.

राजू बड़ीबड़ी आंखों से रानो को कपड़े उतारते देख रहा था. उस ने पीले रंग की ड्रैस पहनी थी, जो उस ने अभीअभी उतारी थी. अब उस के भरे हुए सीने पर काले रंग की ब्रा दिख रही थी, जिस से उस का हुस्न जितना ढका हुआ था, उस से ज्यादा दिख रहा था. यह देख राजू के मुंह में पानी आ गया. उस से रहा नहीं गया और उस ने रानो के पूरे जिस्म पर अपनी नजर दौड़ा दी. पूरी औरत तो लगती थी रानो.

रानो सोफे पर ऐसे बैठ गई, मानो उसे राजू से कोई शर्म नहीं आ रही थी. ‘‘कुछ खाओगे?’’ पूछ कर रानो ने राजू का ध्यान भंग किया.

राजू ने भी कह दिया, ‘‘हां.’’ राजू इस वक्त रानो की खुली जांघों को घूर रहा था, जो एकदूसरे पर चढ़ी हुई थीं. रानो को उस ने पहली बार इतना खुल कर देखा था.

रानो की तरफ से कोई मनाही न देख उस का हौसला बढ़ गया और वह रानो के पास बैठ गया. रानो ने अपनी आंखें बंद कर लीं. राजू ने उस के होंठों को अपनी उंगली से छुआ. फिर उस ने रानो के पूरे जिस्म को अपनी उंगली से छुआ. राजू को अपने पास पा कर रानो बहुत खुश थी.

अब यह सिलसिला बहुत तेजी से आगे बढ़ने लगा. दोनों एकदूसरे की बांहों में घंटों पड़े रहते. अपने धंधे के बाद भी रानो अब खुश रहने लगी थी. उस का बड़ेबड़े अमीरों से वास्ता पड़ता था. बड़ेबड़े लोग भी अजीब शौक रखते हैं और ऐसे ही एक अजीब शौक को पूरा करने के लिए रानो जैसी किन्नरों की जरूरत पड़ती है.

रानो बस कहने को किन्नर थी, वरना उस के हुस्न के आगे अच्छीअच्छी लड़कियां पानी भरें. यही वजह थी कि उसे उस के काम के औरों से ज्यादा पैसे मिलते थे. इतनी कम उम्र में उस ने इतना पैसा कमा लिया था कि उसे पैसे से अब कोई मोह नहीं रह गया था. मगर जब रानो पूरी तरह राजू के प्यार में गिरफ्त हो गई, तब राजू के मन में लालच आ गया. अब वह किसी न किसी काम के बहाने उस से पैसे मांगने लगा था.

रानो ने पहले मना नहीं किया. राजू के ऊपर खूब पैसे लुटाए. मगर लालच का पेट इतना बड़ा होता है कि बड़े से बड़ा खजाना भी खाली हो जाए. फिर एक दिन रानो की दौलत भी कम पड़ गई. रानो ने बहुत समझाया, मगर राजू को बात समझ नहीं आई. आखिर में रानो ने साफसाफ कह दिया कि अब वह पैसे नहीं दे सकती. मगर तब तक राजू के मन में शैतान आ चुका था. रानो के पास बहुत पैसा था और राजू उस के सारे भेद जान चुका था.

राजू ने पूरी योजना बनाई और एक दिन रानो के पास पहुंचा और कहा कि उसे उस की बात समझ में आ गई है. रानो बहुत खुश हुई. दोनों में प्यार हुआ. इस के बाद उन्होंने खाना खाया. फिर प्यार हुआ.

जब रानो एकदम मस्त हो गई, तब राजू ने उस की हसरत भी पूरी की. राजू ने रानो की पीठ सहलाते हुए उस के बालों को आगे की तरफ सरका दिया, जिस से रानो को अब फर्श के सिवा कुछ नहीं दिख रहा था. रानो के बाल बहुत घने थे. जब भी वह घर में बिना कपड़ों के रहती, अपने बालों को संवारती रहती. उसे आईने में अपने उभारों को देखना अच्छा लगता था. फिर लंबे काले बालों से अपने गोरेगोरे उभारों को ढकती थी.

कभीकभी तो राजू के सामने भी वह ऐसा करती थी. क्या करती, प्यार में पड़ गई थी न. रानो के शरीर में बस एक ही कमी थी कि वह औरत हो कर भी औरत नहीं थी. वह राजू को एक औरत का सुख देना चाहती थी. राजू ने रानो को महसूस नहीं होने दिया था कि वह एक किन्नर है. वह उसे एक लड़की की ही नजर से देखता था.

रानो अब उस के सामने पूरी कोशिश करती कि एक लड़की ही दिखे. कपड़े भी उस ने शरीफ लड़कियों वाले खरीद लिए थे. जब वह राजू के साथ बाहर निकलती, तो सब देखते रह जाते. रानो ने राजू को अपना पति ही मान लिया था और उसे खुश रखने की भरपूर कोशिश करती थी. आज भी रानो बहुत खुश थी कि राजू ने उस की बात मान ली है. पैसे की उस के पास कमी नहीं थी. वह बस राजू के मन से लालच दूर कर देना चाहती थी.

इस वक्त भी रानो और राजू प्यार करने में मस्त थे. अपने घने बालों की वजह से रानो को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. तभी राजू ने जेब से चाकू निकाला और रानो की छाती में एक जोरदार वार किया. रानो चीखती हुई निढाल हो कर फर्श पर गिर पड़ी. थोड़ी देर में उस की मौत हो गई. घर में जितनी भी दौलत थी, राजू ले कर फरार हो गया.

मिस्टर बेचारा : कैसा था उस लड़की का खुमार?

दरवाजा खुला. जिस ने दरवाजा खोला, उसे देख कर चंद्रम हैरान रह गया. वह अपने आने की वजह भूल गया. वह उसे ही देखता रह गया.

वह नींद में उठ कर आई थी. आंखों में नींद की खुमारी थी. उस के ब्लाउज से उभार दिख रहे थे. साड़ी का पल्लू नीचे गिरा जा रहा था. उस का पल्लू हाथ में था. साड़ी फिसल गई. इस से उस की नाभि दिखने लगी. उस की पतली कमर मानो रस से भरी थी.

थोड़ी देर में चंद्रम संभल गया, मगर आंखों के सामने खुली पड़ी खूबसूरती को देखे बिना कैसे छोड़ेगा? उस की उम्र 25 साल से ऊपर थी. वह कुंआरा था. उस के दिल में गुदगुदी सी पैदा हुई.

वह साड़ी का पल्लू कंधे पर डालते हुए बोली, ‘‘आइए, आप अंदर आइए.’’

इतना कह कर वह पलट कर आगे बढ़ी. पीछे से भी वह वाकई खूबसूरत थी. पीठ पूरी नंगी थी.

उस की चाल में मादकता थी, जिस ने चंद्रम को और लुभा दिया था. उस औरत को देखने में खोया चंद्रम बहुत मुश्किल से आ कर सोफे पर बैठ गया. उस का गला सूखा जा रहा था.

उस ने बहुत कोशिश के बाद कहा, ‘‘मैडम, यह ब्रीफकेस सेठजी ने आप को देने को कहा है.’’

चंदम ने ब्रीफकेस आगे बढ़ाया.

‘‘आप इसे मेज पर रख दीजिए. हां, आप तेज धूप में आए हैं. थोड़ा ठंडा हो जाइएगा,’’ कहते हुए वह साथ वाले कमरे में गई और कुछ देर बाद पानी की बोतल, 2 कोल्ड ड्रिंक ले आई और चंद्रम के सामने वाले सोफे पर बैठ गई.

चंद्रम पानी की बोतल उठा कर सारा पानी गटागट पी गया. वह औरत कोल्ड ड्रिंक की बोतल खोलने के लिए मेज के नीचे रखे ओपनर को लेने के लिए झुकी, तो फिर उस का पल्लू गिर गया और उभार दिख गए. चंद्रम की नजर वहीं अटक गई.

उस औरत ने ओपनर से कोल्ड ड्रिंक खोलीं. उन में स्ट्रा डाल कर चंद्रम की ओर एक कोल्ड ड्रिंक बढ़ाई.

चंद्रम ने बोतल पकड़ी. उस की उंगलियां उस औरत की नाजुक उंगलियों से छू गईं. चंद्रम को जैसे करंट सा लगा.

उस औरत के जादू और मादकता ने चंद्रम को घायल कर दिया था. वह खुद को काबू में न रख सका और उस औरत यानी अपनी सेठानी से लिपट गया. इस के बाद चंद्रम का सेठ उसे रोजाना दोपहर को अपने घर ब्रीफकेस दे कर भेजता था. चंद्रम मालकिन को ब्रीफकेस सौंपता और उस के साथ खुशीखुशी हमबिस्तरी करता. बाद में कुछ खापी कर दुकान पर लौट आता. इस तरह 4 महीने बीत गए.

एक दोपहर को चंद्रम ब्रीफकेस ले कर सेठ के घर आया और कालबेल बजाई, पर घर का दरवाजा नहीं खुला. वह घंटी बजाता रहा. 10 मिनट के बाद दरवाजा खुला.

दरवाजे पर उस की सेठानी खड़ी थी, पर एक आम घरेलू औरत जैसी. आंचल ओढ़ कर, घूंघट डाल कर.

उस ने चंद्रम को बाहर ही खड़े रखा और कहा, ‘‘चंद्रम, मुझे माफ करो. हमारे संबंध बनाने की बात सेठजी तक पहुंच गई है. वे रंगे हाथ पकड़ेंगे, तो हम दोनों की जिंदगी बरबाद हो जाएगी.

‘‘हमारी भलाई अब इसी में है कि हम चुपचाप अलग हो जाएं. आज के बाद तुम कभी इस घर में मत आना,’’ इतना कह कर सेठानी ने दरवाजा बंद कर दिया.

चंद्रम मानो किसी खाई में गिर गया. वह तो यह सपना देख रहा था कि करोड़पति सेठ की तीसरी पत्नी बांहों में होगी. बूढ़े सेठ की मौत के बाद वह इस घर का मालिक बनेगा. मगर उस का सपना ताश के पत्तों के महल की तरह तेज हवा से उड़ गया. ऊपर से यह डर सता रहा था कि कहीं सेठ उसे नौकरी से तो नहीं निकाल देगा. वह दुकान की ओर चल दिया.

सेठानी ने मन ही मन कहा, ‘चंद्रम, तुम्हें नहीं मालूम कि सेठ मुझे डांस बार से लाया था. उस ने मुझ से शादी की और इस घर की मालकिन बनाया. पर हमारे कोई औलाद नहीं थी. मैं सेठ को उपहार के तौर पर बच्चा देना चाहती थी. सेठ ने भी मेरी बात मानी. हम ने तुम्हारे साथ नाटक किया. हो सके, तो मुझे माफ कर देना.’ इस के बाद सेठानी ने एक हाथ अपने बढ़ते पेट पर फेरा. दूसरे हाथ से वह अपने आंसू पोंछ रही थी.

मुलाकात : विनीत और सुधा का ब्याह

विनीत प्लेटफार्म पर बेतहाशा भागता जा रहा था, क्योंकि ट्रेन चल पड़ी थी. अगर यह गाड़ी छूट जाती तो पूरे 6 घंटे बाद ही उसे दूसरी गाड़ी मिलती. यही सोच कर उस ने आखिरी डब्बा पकड़ना चाहा.

अगर वह लड़की उस पल विनीत का हाथ न पकड़ती, तो शायद वह गाड़ी के नीचे ही आ जाता.

उस लड़की का नाम सुधा था. उस ने कहा, ‘‘अगर आप का हाथ छूट जाता तो क्या होता?’’

विनीत कुछ नहीं बोला, बस एहसान जताती निगाहों से उसे देखता रहा.

‘‘अरे, आप तो हांफ रहे हैं… चलिए, मेरी सीट पर बैठ जाइए,’’ कहते हुए सुधा चल पड़ी.

विनीत सुधा के पीछेपीछे चल पड़ा. वह अपनी मंडली में आते हुए बोली, ‘‘वनी, हटना. इन्हें बिठाना है.’’

एक अनजान नौजवान को सुधा के साथ देख कर वनी सवालिया निगाहों से उसे घूरते हुए थोड़ा खिसक गई.

सुधा ने पानी का गिलास विनीत की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लीजिए, गला तर कर लीजिए,’’ फिर उस ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘वनी, ये साहब भागतेभागते डब्बा पकड़ रहे थे. अगर मैं सहारा…’’

‘‘तो बेचारे चारों खाने चित हो जाते,’’ हंसते हुए सुधा की सहेली वनी ने बात पूरी की, ‘‘अरे सुधा, तू भी बैठ जा हमारे पास.’’

सुधा विनीत के पास बैठ गई.

ट्रेन तेज रफ्तार से भागती जा रही थी. थोड़ी देर चुप्पी छाई रही, फिर विनीत ने पूछा, ‘‘आप कहां तक जाएंगी?’’

‘‘चंडीगढ़,’’ सुधा ने कहा.

‘‘मुझे भी तो वहीं जाना है. वहां किस जगह?’’

‘‘कालेज की ओर से खेलों में हिस्सा लेने जाना है,’’ वनी ने कहा.

‘‘मैं भी तो वहां बैडमिंटन खेलने जा रहा हूं,’’ विनीत ने मुसकराते हुए कहा.

विनीत के सजीलेपन से सुधा बहुत खुश हुई. रास्ते में जहां भी ट्रेन रुकती, चायनाश्ता लेने विनीत ही उतरता था. पूरे 7 घंटे बाद सभी चंडीगढ़ जा पहुंचे.

सुधा और वनी की हौकी की टीम जीत चुकी थी. इधर विनीत का खेल भी बहुत अच्छा रहा.

इन 2-3 दिनों में सुधा और विनीत बहुत करीब आ चुके थे. एक दिन खेल खेलने के बाद शाम को दोनों घूमने निकल पड़े. आसमान पर कालेकाले बादल तैर रहे थे. ठंडी हवा चल रही थी. वे एक पार्क में आ बैठे. रंगबिरंगे फूलों के बीच फुहारे बड़े सुंदर लग रहे थे. विनीत आइसक्रीम ले आया.

सुधा ने कहा, ‘‘इस को लाने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘देखती नहीं, अभी कितनी गरमी पड़ रही है.’’

फिर वह आइसक्रीम का मजा लेते हुए बोला, ‘‘सुधा, 2-3 दिन पता ही नहीं चले कि कैसे कट गए.’’

‘‘हां,’’ सुधा ने धीरे से कहा.

‘‘घर जा कर कहीं तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगी?’’

‘‘नहीं, अब मैं भला तुम्हें कैसे भुला सकती हूं. तुम तो मेरी धड़कन बन चुके हो,’’ विनीत के पास सिमटते हुए सुधा ने जवाब दिया.

‘‘तो मैं समझूं कि मैं तुम्हें प्यार कर सकता हूं?’’

सुधा शरमा गई. जिंदगी में पहली बार उसे किसी से प्यार हुआ था.

अचानक रिमझिम पानी बरसने लगा. विनीत बोला, ‘‘आओ सुधा, चलें. लगता है, तेज बारिश होगी.’’

सुधा उठने लगी तो जोर की बिजली कड़की. सुधा डर कर विनीत से लिपट गई, तो विनीत ने भी उसे बांहों में जकड़ लिया.

पार्क खाली होने लगा था. थोड़ी देर रुकने के लिए वे दोनों वहीं पास की खाली कोठरी में चले गए.

अब जोरों से बारिश होने लगी. उन्हें उम्मीद थी कि बिन मौसम की बरसात है, इसलिए जल्दी ही बादल छंट जाएंगे, लेकिन उन का सोचना गलत था.

रात बहुत हो चुकी थी. बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. भीगने की वजह से सुधा ठंड से कांप रही थी.

विनीत ने सुधा का हाथ अपने हाथ में ले लिया. इतना भीगने पर भी सुधा के जिस्म से आग बरस रही थी.

विनीत सुधा को अपने आगोश में लेने लगा, तो वह बोली, ‘‘नहीं, अभी नहीं विनीत.’’

‘‘लेकिन, इस मौसम ने मुझे पागल बना दिया है. मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह पाऊंगा,’’ विनीत हवस की आग में जल रहा था.

सुधा का तेजी से दिल धड़क उठा. उस के जिस्म में तूफान उमड़ रहा था. वह भी जैसे सोचनेसमझने की ताकत खो चुकी थी. उस ने खुद को विनीत के हवाले कर दिया.

काफी देर बाद जब बारिश रुकी, तो वे किसी तरह होस्टल में पहुंचे और चुपचाप अपनेअपने कमरे में जा कर दुबक गए.

घर आ कर सुधा को लगा कि वह बहुत बड़ा जुर्म कर के आई है. कहीं विनीत बेवफा निकला, तो क्या होगा. नहीं, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था. लेकिन अब सोचने से क्या फायदा था. तीर कमान से निकल चुका था.

सुधा अंदर ही अंदर घुटने लगी. अगर कुछ हो गया तो वह अपने पिताजी को क्या बताएगी, जिन्होंने उसे इतनी आजादी दे रखी थी. वह क्यों इस चक्रव्यूह में फंस गई?

तकरीबन एक महीने बाद डाकिया एक लिफाफा दे गया. जब उसे खोला तो सुधा खुशी से झूम उठी. उस में लिखा था, ‘सुधा, अगले महीने मेरे बाबूजी तुम्हारे यहां रिश्ता तय करने आ रहे हैं. दूसरी खुशखबरी है कि मुझे नौकरी भी मिल गई है. तुम्हारा, विनीत.’

जब विनीत के पिता सुधा को देख कर लौटे, तो उन का चेहरा गुस्से से लालपीला हो रहा था. आते ही वे बोले, ‘‘एक बात कान खोल कर सुन लो. तुम्हारी शादी उस बदनाम लड़की से कभी नहीं हो सकती.’’

‘‘लेकिन क्या हुआ? कुछ बताइए न. पिताजी, मुझे पूरी उम्मीद है कि सुधा ऐसी नहीं हो सकती,’’ विनीत जल्दी से बोला.

‘‘मैं कहता हूं, उस लड़की को भूल जाओ. वह तो अच्छा हुआ कि मेरा पुराना दोस्त डाक्टर मदन मिल गया. अगर वह समय पर नहीं बताता, तो

हम अपनी बिरादरी में नाक कटा बैठते. जानते हो, वह लड़की मां बनने वाली है.’’

‘‘लेकिन पिताजी, आप मेरी बात सुन लीजिए,’’ गुजारिश करते हुए विनीत ने कहा.

‘‘नहीं बेटा, मेरे जीतेजी यह रिश्ता नहीं हो सकता,’’ नफरत से उन्होंने मुंह फेर लिया.

‘‘नहीं पिताजी, मेरे जुर्म की सजा आप सुधा को मत दीजिए. गलती मेरी ही है. उस की होने वाली औलाद का पिता मैं ही हूं.’’

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’ फिर थोड़ी देर रुक कर वह मुसकराते हुए बोले, ‘‘बेटा, मुझे खुशी है कि इतना सब होते हुए भी तुम ने उस लड़की को अपनाने की बात की है.’’

विनीत के चेहरे पर मुसकान तैर गई. कुछ दिनों बाद विनीत और सुधा का ब्याह हो गया.

बेवफाई: नैना को कैसे हुआ अपनी गलती का अहसास

नैना रसोईघर में रात का खाना पकाने की तैयारी कर रही थी. उस के मोबाइल फोन पर काल आ रहा था. रिंगटोन नहीं बजे, इसलिए उस ने मोबाइल फोन को साइलैंट मोड पर रखा था. वह नहीं चाहती थी कि उस के पति मुकेश को काल करने वाले के बारे में पता चले.

नैना ने मोबाइल फोन उठा कर देखा तो पाया कि उस का आशिक दीपक काल कर रहा था. हालांकि वह अभी उसे कुछ दिन तक काल करने से मना कर चुकी थी, फिर भी उस का बारबार काल आ रहा था. वह मुकेश के डर से कई दिनों से उस का काल नहीं रिसीव कर पा रही थी.

मुकेश कई सालों से गुजरात में प्राइवेट नौकरी कर रहा था. वह 3 महीने पहले घर वापस आ चुका था. कोरोना के वायरस से जितना लोगों को नुकसान नहीं हो रहा था, उस से ज्यादा नैना के लिए उस के पति की घर वापसी से आफत आई हुई थी. वह अपने आशिक दीपक से बात नहीं कर पा रही थी.

जब मुकेश कमाने के लिए गुजरात चला गया था, तो वह लंबे समय तक घर नहीं आ पाया था. वह पैसा मोबाइल से ही ट्रांसफर कर देता था. ऐसे में उसे अकेले ही घर में अकेले जिंदगी गुजारनी पड़ रही थी.

घर में नैना की एकमात्र सास थीं, जो काफी बूढ़ी हो चुकी थीं. वे अकसर बीमार रहती थीं. घर में 2 छोटेछोटे बच्चे होने के चलते उसे ही बाजार से सब्जी और घर के लिए जरूरी सामान लाना पड़ रहा था.

उस दिन दीपक शहर से पढ़ाई कर अपने बाइक से गांव की ओर लौट रहा था, तो नैना पैदल ही भारी थैले उठा कर पास के बाजार से वापस आ रही थी. तभी दीपक की नजर नैना पर पड़ी थी. वह पहले से नैना को जानता था, लेकिन उस से कभी भी बात करने का मौका नहीं मिला था.

नैना को देखते ही दीपक पहचान गया था, इसलिए वह बड़े प्यार से बोला था, ‘भाभीजी, आइए बैठ जाइए. अभी आटोरिकशा नहीं मिल पाएगा. वैसे, आप मुकेश भाई साहब की घरवाली हो न?’

‘हां…’ नैना सिर्फ इतना ही बोल पाई थी. वह दीपक के बारे में नहीं जानती थी, लेकिन उसे अंदाजा था कि इस रास्ते पर जाने वाला कोई न कोई उस के गांव का ही होगा, क्योंकि यह रास्ता सिर्फ उस के गांव की ओर जाता था.

‘बैठिए, आप को घर तक छोड़ देता हूं,’ दीपक उसे ऊपर से नीचे तक देख कर बोला था. दीपक की उस के ब्लाउज से झांकते उभारों पर नजर पड़ी, तो उस का जोश बढ़ने लगा था. वह उसे एकटक देखने लगा था.

दीपक ने थैले को पीछे बाइक पर बांध दिया था, इसलिए सीट पर थोड़ी सी जगह बच पाई थी. यही वजह थी कि नैना को दीपक से चिपक कर बैठना पड़ा था, इसलिए दीपक को उस के उभारों का दबाव महसूस हो रहा था.

वैसे, नैना को भी अच्छा लग रहा था कि इतनी दूर भारी थैले के साथ पैदल चलने से वह बच गई थी.

बाइक से उतारने के बाद दीपक ने नैना का मोबाइल नंबर मांग लिया था. वह न चाहते हुए भी अपना मोबाइल नंबर देने से इनकार नहीं कर सकी थी.

दीपक ने 1-2 बार हालचाल के बहाने नैना से बातचीत शुरू की और कुछ दिन में ही हंसीमजाक पर भी उतर आया था. धीरेधीरे मोबाइल फोन से बातचीत होने के चलते उन दोनों में खुल कर बातें होने लगी थीं.

थोड़े दिनों के बाद उन दोनों के बीच बातचीत इतनी हद तक बढ़ गई थी कि जब नैना की सास गहरी नींद में सो जाती थीं, तो वह दीपक को चुपके से बुला कर कई बार मजे ले चुकी थी. अब वह दीपक के बगैर नहीं रह पा रही थी.

लेकिन कोरोना काल के दौरान नैना का पति मुकेश काम छोड़ कर घर वापस आ गया था. तब से वह नौकरी पर लौटने का नाम ही नहीं ले रहा था, जबकि दीपक नैना से नहीं मिलने के चलते काफी बेताब था और कई बार फोन कर चुका था.

अभी नैना रसोईघर में खाना बनाने की तैयारी कर रही थी और मुकेश अपने कमरे में टैलीविजन पर पुराना क्रिकेट मैच शो देखने में बिजी था, इसलिए उसे दीपक का काल उठाने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई थी. वह मोबाइल कानों से लगा कर धीरे से बोली, ‘‘हैलो…’’

दूसरी तरफ से दीपक बोला, ‘नैना डार्लिंग, क्या हालचाल है?’

‘‘सब ठीकठाक है. तुम अपना हाल बताओ…’’

‘तुम मुझ से बात भी नहीं कर रही हो. जब से तुम्हारा पति आया है, तुम एक बार भी नहीं मिली हो. कब तक तुम्हारा पति घर पर कुंडली मार कर बैठा रहेगा?

‘मैं तुम से मिलने के लिए बेचैन हो रहा हूं. अब मेरा मन नहीं मान रहा है. मैं तुम्हारे सुंदर हुस्न का दीदार करना चाहता हूं. तुम मिलने का कोई इंतजाम करो, वरना मैं तुम्हारे घर पहुंच जाऊंगा.’

‘‘ऐसा बिलकुल भी मत करना, वरना हम दोनों कहीं के नहीं रहेंगे. मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं 1-2 दिन के लिए अपने पति को कहीं भेजने का उपाय सोचती हूं, फिर तुम्हें बुला लूंगी. तब सारे अरमान पूरे कर लेना,’’ नैना ने इतना कह कर फोन काट दिया.

नैना का शातिर दिमाग काम नहीं कर पा रहा था कि आखिर वह अपने पति को कहां भेजे? उसे कोई तरकीब नजर नहीं आ रही थी.

आज जब नैना बिस्तर पर सोने गई, तो मुकेश से बोली, ‘‘आप कब तक घर में बैठे रहेंगे? कोरोना महामारी धीरेधीरे कम हो रही है. अब कमाने के लिए बाहर जाइए. आखिर घर का खर्चा कैसे चलेगा?

‘‘आप तकरीबन 3 महीने से घर बैठे हुए हैं. घर के सारे रुपए और सामान खत्म हो गया है. ऐसे बैठे रहेंगे, तो भोजन का इंतजाम कहां से होगा?’’

मुकेश तुनक कर बोला, ‘‘देखो, मैं ने बहुत दिनों तक बाहर नौकरी कर ली. अब मैं सोचता हूं कि क्यों न घर पर ही कोई धंधा कर लूं. इस से तुम्हारे और बच्चों के साथ रहने का भरपूर मौका भी मिलेगा. बाहर प्राइवेट नौकरी करने में कितनी परेशानी है, यह मैं ही जानता हूं.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, लेकिन घर पर कौन सा धंधा करने वाले हो? धंधा करने के लिए मोटी रकम की जरूरत होती है. बिना पैसे के तो धंधा हो नहीं सकता है. क्या उस धंधे से हम लोगों का गुजारा हो जाएगा? यह सब विचार कर लेना भी जरूरी है.’’

‘‘हां, वह सब तो ठीक है, उसी पर तो मैं सोचविचार कर रहा हूं,’’ मुकेश ने चिंता जाहिर करते हुए जवाब दिया.

‘‘और दूसरी बात यह है कि आप बाहर रहते हो, तो मैं अपनी बिरादरी की औरतों में गर्व से कहती हूं कि मेरा आदमी बाहर नौकरी करता है. आप जब घर में रहने लगोगे, तो दूसरे पतियों की तरह घर की मुरगी दाल बराबर हो जाओगे.

‘‘आप की गांव में इज्जत कम हो जाएगी और यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा,’’ कहते हुए नैना मुकेश के सीने से चिपक गई.

मुकेश नैना को अपनी बांहों में कसते हुए सोचने लगा कि यह सही कह रही है. वह अपना धंधा करने के लिए सोच तो जरूर रहा था, लेकिन अभी तय नहीं कर पा रहा था कि किस धंधे को किया जाए? कोई भी धंधा करने में काफी रुपए की जरूरत होती है और उस के पास जमापूंजी भी नहीं थी.

इसी बीच नैना नकली गुस्सा जाहिर करते हुए बोली, ‘‘आप को जो करना है, वही कीजिए,’’ फिर उस ने मुंह फेरा और चादर ओढ़ कर सो गई.

अगले दिन मुकेश बाहर से घूमघाम कर आया, तो उस ने नैना को बताया, ‘‘मैं दोबारा गुजरात जा रहा हूं. आज मैं ने अपने फैक्टरी मालिक से बात की थी. वह मुझे काम देने को तैयार हो गया है. वह कह रहा था कि काम शुरू हो गया है.

‘‘सभी कामगारों को फोन कर के बुलाया जा रहा है. इतना ही नहीं, मेरा मालिक मुझे कुछ पैसे बढ़ा कर भी देने के लिए राजी हो गया है.’’

‘‘यह तो अच्छी बात है… लेकिन जाना कब है?’’

‘‘मुझे आज ही निकलना पड़ेगा, वरना फिर ट्रेन 2 दिन बाद ही मिलेगी…’’

यह सब सुन कर नैना मन ही मन बहुत खुश हुई. अब वह अपने पति को गुजरात भेजने की तैयारी करने लगी. वह खुशीखुशी रसोईघर में जा कर रास्ते के लिए भोजन तैयार कर देना चाहती थी.

जब नैना रसोईघर की तरफ जाने के लिए मुड़ी, तो मुकेश ने प्यार से उस की कलाई पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया और मनुहार करते हुए बोला, ‘‘छोड़ो खानापीना. वह तो रास्ते में मिल ही जाएगा, लेकिन तुम्हारा साथ तो नहीं मिलेगा न, इसलिए जाने से पहले मैं कुछ घंटे तुम्हारे साथ बिता लेना चाहता हूं…’’

यह कहते हुए मुकेश ने नैना को बिस्तर पर लिटा दिया. वह भी उस के आगोश में समा गई. आज उसे अपने पति पर काफी प्यार आ रहा था. वह अंदर से बहुत खुश थी. खुशी से उस की आंखों से आंसू छलक पड़े.

मुकेश उस के आंसुओं को पोंछते हुए बोला, ‘‘तुम तो अभी से ही दुखी होने लगी. कहो तो मैं नहीं जाता हूं…’’

नैना ने अपने हाथों को मुकेश के होंठों पर रख दिया और प्यार से बोली, ‘‘आप भले ही मुझ से दूर जा रहे हो, लेकिन आप का दिल मेरे पास रहेगा…’’ फिर वे दोनों एकदूसरे से कस कर लिपट गए.

नैना के दिमाग में अपने आशिक दीपक की मर्दानगी का खेल भी चल रहा था.

दर्द का एहसास : क्या हुआ मृणाल की बेवफाई का अंजाम

‘‘हैलो, एम आई टौकिंग टु मिस्टर मृणाल?’’ एक मीठी सी आवाज ने मृणाल के कानों में जैसे रस घोल दिया.

‘‘यस स्पीकिंग,’’ मृणाल ने भी उतनी ही विनम्रता से जवाब दिया.

‘‘सर, दिस इज निशा फ्रौम होटल सन स्टार… वी फाउंड वालेट हैविंग सम मनी, एटीएम कार्ड ऐंड अदर इंपौर्टैंट कार्ड्स विद योर आईडैंटिटी इन अवर कौन्फ्रैंस हौल. यू आर रिक्वैस्टेड टु कलैक्ट इट फ्रौम रिसैप्शन, थैंक यू.’’

सुनते ही मृणाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह कल अपनी कंपनी की तरफ से एक सेमिनार अटैंड करने इस होटल में गया था. आज सुबह से ही अपने पर्स को ढूंढ़ढूंढ़ कर परेशान हो चुका था. निशा की इस कौल ने उस के चेहरे पर सुकून भरी मुसकान ला दी.

‘‘थैंक यू सो मच निशाजी…’’ मृणाल ने कहा, मगर शायद निशा ने सुना नहीं, क्योंकि फोन कट चुका था. लंच टाइम में मृणाल होटल सन स्टार के सामने था. रिसैप्शन पर बैठी खूबसूरत लड़की को देखते ही उस के चेहरे पर एक बार फिर मुसकान आ गई.

‘‘ऐक्सक्यूज मी, माइसैल्फ मृणाल… आप शायद निशाजी हैं…’’ मृणाल ने कहा तो निशा ने आंखें उठा कर देखा.

‘‘ओ या…’’ कहते हुए निशा ने काउंटर के नीचे से मृणाल का पर्स निकाल कर उस का फोटो देखा. तसल्ली करने के बाद मुसकराते हुए उसे सौंप दिया.

‘‘थैंक्स अगेन निशाजी… इफ यू डोंटमाइंड, कैन वी हैव ए कप औफ कौफी प्लीज…’’ मृणाल निशा का यह एहसान उतारना चाह रहा था.

‘‘सौरी, इट्स ड्यूटी टाइम… कैच यू लेटर,’’ कहते हुए निशा ने जैसे मृणाल को भविष्य की संभावना का हिंट दे दिया.

‘‘ऐज यू विश. बाय द वे, क्या मुझे आप का कौंटैक्ट नंबर मिलेगा? ताकि मैं आप को कौफी के लिए इन्वाइट कर सकूं?’’ मृणाल ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा तो निशा ने अपना विजिटिंग कार्ड उस की तरफ बढ़ा दिया. मृणाल ने थैंक्स कहते हुए निशा से हाथ मिलाया और कार्ड को पर्स में डालते हुए होटल से बाहर आ गया.

‘‘कोई मिल गया… मेरा दिल गया… क्या बताऊं यारो… मैं तो हिल गया…’’ गुनगुनाते हुए मृणाल ने घर में प्रवेश किया तो उषा को बड़ा आश्चर्य हुआ. रहा नहीं गया तो आखिर पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है, बड़ा रोमांटिक गीत गुनगुना रहे हैं? ऐसा कौन मिल गया?’’

‘‘लो, अब गुनगुनाना भी गुनाह हो गया?’’ मृणाल ने खीजते हुए कहा.

‘‘गुनगुनाना नहीं, बल्कि आप से तो आजकल कुछ भी पूछना गुनाह हो गया,’’ उषा ने भी झल्ला कर कहा.

‘‘जब तक घर से बाहर रहते हैं, चेहरा 1000 वाट के बल्ब सा चमकता रहता है, घर में घुसते ही पता नहीं क्यों फ्यूज उड़ जाता है,’’ मन ही मन बड़बड़ाते हुए उषा चाय बनाने चल दी.

चाय पी कर मृणाल ने निशा का कार्ड जेब से निकाल कर उस का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया. फिर उसे व्हाट्सऐप पर एक मैसेज भेजा, ‘हाय दिस इज मृणाल…

हम सुबह मिले थे… आई होप कि आगे भी मिलते रहेंगे…’

रातभर इंतजार करने के बाद अगली सुबह रिप्लाई में गुड मौर्निंग के साथ निशा की एक स्माइली देख कर मृणाल खुश हो गया.

औफिस में फ्री होते ही मृणाल ने निशा को फोन लगाया. थोड़ी देर हलकीफुलकी औपचारिक बातें करने के बाद उस ने फोन रख दिया. मगर यह कहने से नहीं चूका कि फुरसत हो तो कौल कर लेना.

शाम होतेहोते निशा का फोन आ ही गया. मृणाल ने मुसकराते हुए कौल रिसीव की, ‘‘कहिए हुजूर कैसे मिजाज हैं जनाब के?’’ मृणाल की आवाज में रोमांस घुला था.

निशा ने भी बातों ही बातों में अपनी अदाओं के जलवे बिखेरे जिन में एक बार फिर मृणाल खो गया. लगभग 10 दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा. दोनों एकदूसरे से अब एक हद तक खुल चुके थे.

आज मृणाल ने हिम्मत कर के निशा के सामने एक बार फिर कौफी पीने का प्रस्ताव रखा जिसे निशा ने स्वीकार लिया. हालांकि मन ही मन वह खुद भी उस का सान्निध्य चाहने लगी थी. अब तो हर 3-4 दिन में कभी निशा मृणाल के औफिस में तो कभी मृणाल निशा के होटल में नजर आने लगा था.

2 महीने हो चले थे. निशा मृणाल की बोरिंग जिंदगी में एक ताजा हवा के झौंके की तरह आई और देखते ही देखते अपनी खुशबू से उस के सारे वजूद को अपनी गिरफ्त में ले लिया. मृणाल हर वक्त महकामहका सा घूमने लगा. पहले तो सप्ताह या 10 दिन में वह अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए उषा के नखरे भी उठाया करता था, मगर जब से निशा उस की जिंदगी में आई है उसे उषा से वितृष्णा सी होने लगी थी. वह खयालों में ही निशा के साथ अपनी जरूरतें पूरी करने लगा था. बस उस दिन का इंतजार कर रहा था जब ये खयाल हकीकत में ढलेंगे.

दिनभर पसीने से लथपथ, मुड़ेतुड़े कपड़ों और बिखरे बालों में दिखाई देती उषा उसे अपने मखमल से सपनों में टाट के पैबंद सी लगने लगी. उषा भी उस के उपेक्षापूर्ण रवैए से तमतमाई सी रहने लगी. कुल मिला कर घर में हर वक्त शीतयुद्ध से हालात रहने लगे. उषा और मृणाल एक बिस्तर पर सोते हुए भी अपने बीच मीलों का फासला महसूस करने लगे थे. मृणाल का तो घर में जैसे दम ही घुटने लगा था.

अब मृणाल और निशा को डेटिंग करते हुए लगभग 3 महीने हो चले थे. आजकल मृणाल कभीकभी उस के मैसेज बौक्स में रोमांटिक शायरीचुटकुले आदि भी भेजने लगा था. जवाब में निशा भी कुछ इसी तरह के मैसेज भेज देती थी, जिन्हें पढ़ कर मृणाल अकेले में मुसकराता रहता. कहते हैं कि इश्क और मुश्क यानी प्यार और खुशबू छिपाए नहीं छिपते. उषा को भी मृणाल का यह बदला रूप देख कर उस पर कुछकुछ शक सा होने लगा था. एक दिन जब मृणाल बाथरूम में था, उषा ने उस का मोबाइल चैक किया तो निशा के मैसेज पढ़ कर दंग रह गई.

गुस्से में तमतमाई उषा ने फौरन उसे आड़े हाथों लेने की सोची, मगर फिर कुछ दिन और इंतजार करने और पुख्ता जानकारी जुटाने का खयाल कर के अपना इरादा बदल दिया और फोन वापस रख कर सामान्य बने रहने का दिखावा करने लगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

एक दिन मृणाल के औफिस की सालाना गैटटुगैदर पार्टी में उस की सहकर्मी रजनी ने उषा से कहा, ‘‘क्या बात है उषा आजकल पति को ज्यादा ही छूट दे रखी है क्या? हर वक्त आसमान में उड़ेउड़े से रहते हैं.’’

‘‘क्या बात हुई? मुझे कुछ भी आइडिया नहीं है… तुम बताओ न आखिर क्या चल रहा है यहां?’’ उषा ने रजनी को कुरेदने की कोशिश की.

‘‘कुछ ज्यादा तो पता नहीं, मगर लंच टाइम में अकसर किसी का फोन आते ही मृणाल औफिस से बाहर चला जाता है. एक दिन मैं ने देखा था… वह एक खूबसूरत लड़की थी,’’ रजनी ने उषा के मन में जलते शोलों को हवा दी.

उषा का मन फिर पार्टी से उचट गया. घर पहुंचते ही उषा ने मृणाल से सीधा सवाल किया, ‘‘रजनी किसी लड़की के बारे में बता रही थी… कौन है वह?’’

‘‘है मेरी एक दोस्त… क्यों, तुम्हें कोई परेशानी है क्या?’’ मृणाल ने प्रश्न के बदले प्रश्न उछाला.

‘‘मुझे भला क्या परेशानी होगी? जिस का पति बाहर गुलछर्रे उड़ाए, उस पत्नी के लिए तो यह बड़े गर्व की बात होगी न…’’ उषा ने मृणाल पर ताना कसा.

‘‘कभी तुम ने अपनेआप को शीशे में देखा है? अरे अच्छेभले आदमी का मूड खराब करने के लिए तुम्हारा हुलिया काफी है. अब अगर मैं निशा के साथ थोड़ा हंसबोल लेता हूं तो तुम्हारे हिस्से का क्या जाता है?’’ मृणाल अब आपे से बाहर हो चुका था.

‘‘मेरे हिस्से में था ही क्या जो जाएगा… जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो किसी और को क्या दोष दिया जाए…’’ उषा ने बात आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा और कमरे की लाइट बंद कर के सो गई.

इस शनिवार को निशा का जन्मदिन था. मृणाल ने उस से खास अपने लिए 2-3 घंटे का टाइम मांगा था जिसे निशा ने इठलाते हुए मान लिया था. सुबह 11 बजे होटल सन स्टार में ही उन का मिलना तय हुआ. उत्साह और उत्तेजना से भरा मृणाल निर्धारित समय से पहले ही होटल पहुंच गया था. निशा उसे एक वीआईपी रूम में ले कर गई. बुके के साथ मृणाल ने उसे ‘हैप्पी बर्थडे’ विश किया और एक हलका सा चुंबन उस के गालों पर जड़ दिया. मृणाल के लिए यह पहला अवसर था जब उस ने निशा को टच किया था. निशा ने कोई विरोध नहीं किया तो मृणाल की हिम्मत कुछ और बढ़ी. उस ने निशा को बांहों के घेरे में कस कर होंठों को चूम लिया. निशा भी शायद आज पूरी तरह समर्पण के मूड में थी. थोड़ी ही देर में दोनों पूरी तरह एकदूसरे में समा गए.

होटल के इंटरकौम पर रिंग आई तो दोनों सपनों की दुनिया से बाहर आए. यह रूम शाम को किसी के लिए बुक था, इसलिए अब उन्हें जाना होगा. हालांकि मृणाल निशा की जुल्फों की कैद से आजाद नहीं होना चाह रहा था, क्योंकि आज जो आनंद उस ने निशा के समागम से पाया था वह शायद उसे अपने 10 साल के शादीशुदा जीवन में कभी नहीं मिला था. जातेजाते उस ने निशा की उंगली में अपने प्यार की निशानीस्वरूप एक गोल्ड रिंग पहनाई. एक बार फिर उसे किस किया और पूरी तरह संतुष्ट हो दोनों रूम से बाहर निकल आए.

अब तो दिनरात कौल, मैसेज, व्हाट्ऐप, चैटिंग… यही सब चलने लगा. बेकरारी हद से ज्यादा बढ़ जाती थी तो दोनों बाहर भी मिल लेते थे. इतने पर भी चैन न मिले तो महीने में 1-2 बार होटल सन स्टार के किसी खाली कमरे का उपयोग भी कर लेते थे.

निशा के लिए मृणाल की दीवानगी बढ़ती ही जा रही थी. हर महीने उस की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा निशा पर खर्च होने लगा था. नतीजतन घर में हर वक्त आर्थिक तंगी रहने लगी. उषा ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, समाज में रहने के कायदे भी बताए, मगर मृणाल तो जैसे निशा के लिए हर रस्मरिवाज तोड़ने पर आमादा था. ज्यादा विरोध करने पर कहीं बात तलाक तक न पहुंच जाए, यही सोच कर पति पर पूरी तरह से आश्रित उषा ने इसे अपनी नियति मान कर सबकुछ वक्त पर छोड़ दिया और मृणाल की हरकतों पर चुप्पी साध ली.

सालभर होने को आया. मृणाल अपनी दोस्ती की सालगिरह मनाने की प्लानिंग करने लगा. मगर इन दिनों न जाने क्यों मृणाल को महसूस होने लगा था कि निशा का ध्यान उस की तरफ से कुछ हटने सा लगा है. आजकल उस के व्यवहार में पहले जैसी गर्मजोशी नहीं रही थी. कई बार तो वह उस का फोन भी काट देती. अकसर उस का फोन बिजी भी रहने लगा है. उस ने निशा से इस बारे में बात करने की सोची, मगर निशा ने अभी जरा बिजी हूं, कह कर उस का मिलने का प्रस्ताव टाल दिया तो मृणाल को कुछ शक हुआ.

एक दिन वह उसे बिना बताए उस के होटल पहुंच गया. निशा रिसैप्शन पर नहीं थी. वेटर से पूछने पर पता चला कि मैडम अपने किसी मेहमान के साथ डाइनिंगहौल में हैं. मृणाल उधर चल दिया. उस ने जो देखा वह उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसकाने के लिए काफी था. निशा वहां सोफे पर अपने किसी पुरुष मित्र के कंधे पर सिर टिकाए बैठी थी. उस की पीठ हौल के दरवाजे की तरफ होने के कारण वह मृणाल को देख नहीं पाई.

मृणाल चुपचाप आ कर रिसैप्शन पर बने विजिटर सोफे पर बैठ कर निशा का इंतजार करने लगा. लगभग आधे घंटे बाद निशा अपने दोस्त का हाथ थामे नीचे आई तो मृणाल को यों अचानक सामने देख कर सकपका गई. फिर अपने दोस्त को विदा कर के मृणाल के पास आई.

‘‘मैं ये सब क्या देख रहा हूं?’’ मृणाल ने अपने गुस्से को पीने की भरपूर कोशिश की.

‘‘क्या हुआ? ऐसा कौन सा तुम ने दुनिया का 8वां आश्चर्य देख लिया जो इतना उबल रहे हो?’’ निशा ने लापरवाही से अपने बाल झटकते हुए कहा.

‘‘देखो निशा, मुझे यह पसंद नहीं… बाय द वे, कौन था यह लड़का? उस ने तुम्हारा हाथ क्यों थाम रखा था?’’ मृणाल अब अपने गुस्से को काबू नहीं रख पा रहा था.

‘‘यह मेरा दोस्त है और हाथ थामने से क्या मतलब है तुम्हारा? मैं क्या तुम्हारी निजी प्रौपर्टी हूं जो मुझ पर अपना अधिकार जता रहे हो?’’ अब निशा का भी पारा चढ़ने लगा था.

‘‘मगर तुम तो मुझे प्यार करती हो न? तुम्हीं ने तो कहा था कि मैं तुम्हारा पहला प्यार हूं…’’ मृणाल का गुस्सा अब निराशा में बदलने लगा था.

‘‘हां कहा था… मगर यह किस किताब में लिखा है कि प्यार दूसरी या तीसरी बार नहीं किया जा सकता? देखो मृणाल, यह मेरा निजी मामला है, तुम इस में दखल न ही दो तो बेहतर है. तुम मेरे अच्छे दोस्त हो और वही बने रहो तो तुम्हारा स्वागत है मेरी दुनिया में अन्यथा तुम कहीं भी जाने के लिए आजाद हो,’’ निशा ने उसे टका सा जवाब दे कर उस की बोलती बंद कर दी.

‘‘लेकिन वह हमारा रिश्ता… वे ढेरों बातें… वह मिलनाजुलना… ये तुम्हारे हाथ में मेरी अंगूठी… ये सब क्या इतनी आसानी से एक ही झटके में खत्म कर दोगी तुम? तुम्हारा जमीर तुम्हें धिक्कारेगा नहीं?’’ मृणाल अब भी हकीकत को स्वीकार नहीं कर पा रहा था.

‘‘क्यों, जमीर क्या सिर्फ मुझे ही धिक्कारेगा? जब तुम उषा को छोड़ कर मेरे पास आए थे तब क्या तुम्हारे जमीर ने तुम्हें धिक्कारा था? वाह, तुम करो तो प्यार… मैं करूं तो बेवफाई… अजीब दोहरे मानदंड हैं तुम्हारे… क्या अपनी खुशी ढूंढ़ने का अधिकार सिर्फ तुम पुरुषों के ही पास है? हम महिलाओं को अपने हिस्से की खुशी पाने का कोई हक नहीं?’’ निशा ने मृणाल को जैसे उस की औकात दिखा दी.

आज उसे उषा के दिल के दर्द का एहसास हो रहा था. वह महसूस कर पा रहा था उस की पीड़ा को. क्योंकि आज वह खुद भी दर्द के उसी काफिले से गुजर रहा था. मृणाल भारी कदमों से उठ कर घर की तरफ चल दिया जहां उषा गुस्से में ही सही, शायद अब भी उस के लौटने का इंतजार कर रही थी.

पहला प्यार चौथी बार : पहले प्यार की महिमा

मेरा भारत महान. और भी बड़ेबड़े देश हैं जो हम से ज्यादा विकसित, धनी, सुखी और समृद्ध हैं मगर फिर भी महान नहीं हैं. महान तो सिर्फ और सिर्फ मेरा भारत है.

प्राचीनकाल में तो मेरा भारत और ज्यादा महान था. गौरवशाली साम्राज्य, ईमानदार इतिहास, सच्ची वीर परंपराएं, समृद्ध शासक, विशाल नागरिक, सोने की चिडि़या और घीदूध की नदियां… लगता है कुछ घालमेल हो गया लेकिन ऐसा ही कुछकुछ हुआ करता था. मगर आज के समय में, टूटीफूटी परंपराएं, सड़ा हुआ देश, भ्रष्ट जनता, गरीब नेता, गड़बड़ भूगोल और इतिहास का पता नहीं. कुल मिला कर जोजो अच्छा है वह पुराने जमाने में हो चुका, अभी तो जो भी नया है सब सत्यानाश.

मुझे तो सख्त अफसोस होता है कि मैं आज के समय में क्यों हूं, भूतकाल में क्यों न हुआ? बस, यही सोच कर संतोष होता है कि अभी जोजो बुरा है वह भी प्राचीन होने के बाद अच्छा हो जाएगा. ऐसे में जबकि जिंदगी जिल्लत ही जिल्लत है और हर चीज की किल्लत ही किल्लत है, एक चीज यहां ऐसी है जो पहले बड़ी दुर्लभ हुआ करती थी मगर आज उस की भरमार है और वह है प्रेम.

जी हां, आज हमारे पास प्रेम हमेशा हाजिर स्टाक में उपलब्ध रहता है. उस जमाने में कभी 100-50 साल में कोई एक मजनूं और एकाध लैला भूलेभटके ही होती थी, जो आपस में प्यार करते थे और बाकी लोग अजूबे की तरह उन्हें देखते थे कि ये लोग कर क्या रहे हैं और आखिर कब तक ऐसा करते रहेंगे? जिन की समझ में नहीं आता था वे उन्हें पत्थर उठा कर मारने लगते थे और जो अहिंसावादी थे वे बैठ कर उन के प्रेम की कहानियां लिखते थे. मगर आज गलीकूचों में प्रेम की ब्रह्मपुत्र बह रही है. यहां की हर छोरी लैला हर छोरा मजनूं. गांवगांव, शहरशहर, यहां, वहां, जहां, तहां, मत पूछो कहांकहां हीररांझा छितरे पड़े हैं. डालडाल रोमियो हैं तो पातपात जूलियट. बिजली के खंभों पर, टेलीफोन के तारों पर, जगहजगह लैला और मजनूं उलटे लटके पड़े हैं जितने जी चाहे गुलेल मार कर तोड़ लो.

किसी से भी यह सवाल पूछो कि आजकल क्या कर रहे हो? तो जवाब मिलता है, ‘‘प्यार कर रहा हूं.’’ कोई कालिज की कैंटीन में तो कोई हवाई झूले में, कोई गली के पिछवाड़े तो कोई कंप्यूटर पर ही. इंटरनेट पर तो प्यार करना बड़ा आसान है. एक मेल, फीमेल को ई मेल करता है, बदले में फीमेल भी मेल को ई मेल करती है और दोनों का मेल हो जाता है. शादियां भी इंटरनेट पर ही तय हो जाती हैं. कुछ दिनों बाद तो उन दोनों को मिलने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, कंप्यूटर पर ही डब्लूडब्लूडब्लू डाट मुन्नामुन्नी डाट काम हो जाएगा.

पहले एक शीरीं हुआ करती थी जो एक फरहाद से प्यार किया करती थी और वह कमअक्ल मरते दम तक उसी से प्यार करती थी. मुगल साम्राज्य के पतन के बाद से ले कर जितेंद्र, श्रीदेवी की फिल्मों तक प्रेम के त्रिकोण बनने लगे थे, जिस में एक जूलियट के पीछे 2 रोमियो एकसाथ बरबाद हो जाते थे या फिर 2 महीवाल एक ही सोहणी को गलत रास्ते पर ले जाने की कोशिश किया करते थे, मगर अब तो त्रिकोण भी बीती बात हो गई, आजकल तो प्रेम के षट्कोण बनते हैं यानी 1 लैला, अकेली 5-5 मजनुओं को अपने घर के चक्कर कटवाती है और अंत में उन सब को ठेंगा दिखा कर किसी फरहाद से शादी कर लेती है.

उस जमाने में एक पहली नजर का प्यार होता था जो वाकई पहली नजर में हो जाया करता था लेकिन अब किसे उस की फिक्र है. अब तो हर नजर, प्यार की नजर है. इसी तरह एक होता था ‘पहला प्यार’, जो जीवन में किसी एक से एक ही बार होता था और भुलाए नहीं भूलता था, मगर आजकल तो पहला प्यार ही कई बार हो जाता है. राज की बात यह है कि मुझे भी यह कमबख्त ‘पहला प्यार’ 4 बार हो चुका है और पिछले सीजन में जब यह मुझे चौथी बार हुआ तभी मैं समझ गया था कि यह भी आखिरी बार नहीं है. मतलब अभी तो यह अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है.

जिधर नजर डालो प्यार ही प्यार, नफरत का तो कहीं नामोनिशान नहीं. मुंबई की पूरी फिल्म इंडस्ट्री पिछले 100 साल से इसी प्रेम के दम पर दारूमुर्गा उड़ा रही है. हर फिल्म में और कुछ चाहे हो न हो, मगर 1 लड़का और 1 लड़की जरूर होते हैं जो अंत में कभी मिल पाते हैं कभी बिछड़ जाते हैं पर प्यार जरूर करते हैं.

100 साल से यही विचार चलता चला आ रहा है कि जिसे हम प्यार समझ रहे हैं क्या यही प्यार है? या फिर प्यार वह है जिसे हम प्यार नहीं समझ रहे हैं? जवान लड़का चाय की पत्ती लेने घर से निकला और कुत्तों के क्लीनिक में घुस गया, यह इश्क नहीं तो और क्या है? जवान लड़की, लड़के से शिकायत करती है, ‘‘दिल में दर्द रहता है, मुझे भूख नहीं लगती, प्यास नहीं लगती, सारा दिन तड़पती हूं, सारी रात जगती हूं, जाने क्या हुआ मुझ को…?’’

किसी पत्नी ने पति से कहा होता तो डाक्टर और अस्पताल के खर्च के बारे में सोच कर बेचारे का दिल बैठ जाता लेकिन प्रेमी का दिल खड़ा हो कर उछलने लगता है कि चलो, अपना जुगाड़ बैठ गया. उधर दर्शक भी समझ जाते हैं कि इसे ‘फाल इन लव’ कहते हैं. लड़का और लड़की प्यार में गिर गए, अब ये दोनों गिरी हुई हरकतें करेंगे. लड़की 16 साल और 1 दिन की हुई नहीं कि उसे मोहब्बत हो जाती है, कोईकोई तो साढ़े 15 साल में ही उंगली में दुपट्टा लपेटना शुरू कर देती है.

खुदा न खास्ता अगर किसी लड़के या लड़की की 17 साल उम्र हो जाने पर भी कोई लफड़ा नहीं हुआ तो फिल्मी मांबाप चिंतित हो जाते हैं कि ‘बच्चा’ कहीं असामान्य तो नहीं है और किसी अच्छे डाक्टर से चेकअप करवाने की जरूरत महसूस करने लगते हैं. लड़का जब अपने बाप को यह खबर सुनाता है कि उस का किसी पर दिल आ गया है तो बाप यों खुशी से उछल पड़ता है मानो उसे विदेश में पढ़ाई के लिए स्कालरशिप मिली हो. फिर वह उसे लड़की को भगाने के लिए प्रेरित करता है और जब लड़का, लड़की को ले भागता है तो वह गर्व से अपना सीना फुला कर कहता है, ‘आखिर बेटा किस का है?’

प्रेम के मामले में हो रही तरक्की के मद्देनजर आने वाले समय में हमारे घरों के अंदर के दृश्य बड़े मजेदार होंगे. आइए, जरा एकदो काल्पनिक दृश्यों का वास्तविक आनंद लें.

दृश्य : एक

कमरा वास्तुशास्त्र के अनुसार बना हुआ है. दक्षिणमुखी कमरे के बीचोबीच, वाममुखी सोफे पर चंद्रमुखी लड़की की सूरजमुखी मां और ज्वालामुखी बाप बैठे हैं. बाप परेशान है, ‘‘बात क्या है? तुम दोनों मांबेटी आखिर मुझ से क्या छिपा रही हो?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? आप ही के लाड़प्यार ने इसे बिगाड़ा है और अब पूछते हो कि हुआ क्या, जब इस ने हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

‘‘पहेलियां मत बुझाओ, साफसाफ बताओ कि इस ने क्या किया है?’’

‘‘और क्या करेगी? आज जब पड़ोस वाली मिसेज भटनागर ने मुझे ताना मारा तब मुझे पता चला कि इस कलमुंही का एक भी ब्वायफ्रेंड नहीं है. नाक कटा दी इस ने हमारी. शहर के लोग क्या सोचते होंगे हमारे बारे में कि कितने बैकवर्ड हैं हम लोग.

‘‘ऊपर से मिसेज भटनागर मुझे जलाने के लिए अपनी दोनों बेटियों को ले कर आई थीं और वह इतराएं भी क्यों न, आखिर उन की दोनों बेटियां अब तक 2-2 ब्वायफ्रेंड बदल चुकी हैं और इस करमजली के कारण आज मैं 40 प्रतिशत जली हूं.’’

‘‘क्यों बेटी, जो मैं सुन रहा हूं क्या यह सच है?’’

‘‘नहीं, डैड…हां, डैड…पता नहीं, डैड.’’

‘‘देखो, मुझे हां या ना में सीधा जवाब चाहिए. क्या बात है बेटी, क्या तुम्हें कोई लाइन नहीं मारता?’’

‘‘म…म…मारता है मगर उस के पास सेलफोन और बाइक नहीं है.’’

‘‘बस, इतनी सी बात. तुम उसे लाइन देना शुरू कर दो. सेलफोन मैं उसे प्रजेंट कर दूंगा और तुम उसे प्यार से समझाना कि वह एक बाइक आसान किश्तों में खरीद ले.’’

‘‘ल…लेकिन डैड…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. मैं कोई बहाना सुनना नहीं चाहता. अगली बार जब तुम मेरे सामने आओ तो अपने ब्वायफ्रेंड के साथ ही आना, अगर ऐसा नहीं हुआ तो आइंदा तुम घर के बाहर ही रहोगी. तुम्हारा खाना, पीना और कमरे के अंदर घुसना बिलकुल बंद.’’

दृश्य : दो

कमरे की स्थिति तनावपूर्ण पर नियंत्रण में है. बाप बेटे पर गरम हो रहा है. मां दोनों में बीचबचाव कराती है, ‘‘अजी, मैं कहती हूं जब देखो आप मेरे लाडले के पीछे ही पड़े रहते हैं, अब इस ने ऐसा क्या कर दिया?’’

‘‘अरे, मुझ से क्या पूछती हो, पूछो अपने इस लाडले से, 2 साल से कालिज में है पर आज तक एक लड़की नहीं पटा सका, ऊपर से जबान लड़ाता है कि मुझे पढ़ाई से फुर्सत नहीं. सुना तुम ने? मैं ही जानता हूं कि कैसे मैं अपना पेट काट- काट कर इस के लिए फीस जुटाता हूं. इसी की उम्र के और लड़के रात में 2-2 बजे लौटते हैं अपनी ‘डेट’ के साथ और यह महाशय, इन्हें पढ़ाई से फुर्सत नहीं है.’’

‘‘हाय राम, बेटा, मैं यह क्या सुन रही हूं. देखो, तुम तो खुद समझदार हो, यह पढ़ाईवढ़ाई की जिद छोड़ दो, उस के लिए तो सारी उम्र पड़ी है. यही समय है जब तुम लड़कियों पर ध्यान दे कर अपना भविष्य संवार सकते हो.’’

‘‘इस तरह प्यार से समझाने पर यह नहीं समझने वाला. इस कमबख्त के सिर पर तो कैरियर बनाने का भूत सवार है. यह क्या समझेगा मांबाप के अरमानों को. पिछले हफ्ते जानती हो इस ने क्या किया? इसे किताबों के लिए मैं ने पैसे भेजे तो ये उन से सचमुच में किताबें खरीद लाया, किताबी कीड़ा कहीं का.’’

किताबी कीड़ा क्या करता? बेचारा चुपचाप सिर झुकाए सुनता रहा. प्रेम की ऐसी मारामारी, प्यार की ऐसी भरमार, इश्क, मोहब्बत का ऐसा जनून, न भूतो न भविष्यति. साल में एक पूरा दिन तो अब प्यार के नाम रिजर्व है ‘वेलेंटाइन डे’ के नाम से. अब वह रूखासूखा जमाना नहीं रहा जब प्रेम की उन्हीं घिसीपिटी 10-5 कहानियों को सारे लेखक अपनीअपनी शैली में घुमाफिरा कर लिखते थे…अब तो मैं :

‘‘सब धरती कागद करौं,

लेखनी सब बनराय,

सात समुंदर मसि करौं,

हरि गुन लिखा न जाय.’’

सारी धरती को कागज बना लूं, वन के सभी वृक्षों को कलम और सारे समुद्रों को स्याही में बदल दूं फिर भी जितनी प्रेम की कहानियां हैं पूरी नहीं लिख पाऊंगा. इस से तो बेहतर होगा कि इतना सारा कागज, कलम और स्याही बेच कर मैं करोड़पति हो जाऊं और मल्लिका शेरावत से पूछूं, ‘‘मेरे साथ डेट पर चलोगी?’’

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