मुंहबोली बहनें- भाग 1 : रोहन ने अपनी पत्नी को क्यों दे डाली धमकी

आज अनाइका के मुंह से यह सुन कर कि कल रोहन भैया उस के घर गए थे, मेरा दिमाग खराब हो गया. मैं ने मन ही मन तय किया कि आज कालेज से सीधा ताईजी के घर जाऊंगी और रोहन भैया की अच्छी खबर लूंगी. नाक में दम कर रखा है भैया ने अपनी हरकतों से. लाख बार समझा चुकी हूं उन्हें, पर उन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती.

अपनी इज्जत का तो फालूदा बना ही रहे हैं साथ ही मेरी भी छीछालेदर करवा रहे हैं. कालेज में सारा दिन मैं तमतमाई सी ही रही और कालेज छूटते ही मैं ने अपनी स्कूटी ताईजी के घर की ओर मोड़ ली. ताईजी मुझे देख कर बहुत खुश हुईं, ‘‘अरे सोनाली, तू इस समय? लगता है सीधा कालेज से ही आ रही है, तब तो तुझे भी जोर की भूख लगी होगी. चल, फटाफट हाथमुंह धो कर आ जा, मैं रोहन का खाना ही लगाने जा रही थी, वह भी बस अभीअभी कालेज से आया है.’’

‘‘ताईजी, खाना तो आप रोहन भैया को ही खिलाइए, मैं तो आज उन का खून पी कर ही अपना पेट भरूंगी,’’ कह कर मैं धड़धड़ाती हुई रोहन भैया के कमरे में घुस गई. ‘‘अरे मम्मा, आप ने इस भूखी शेरनी को मेरे कमरे में क्यों भेज दिया? यह तो लगता है मुझे कच्चा ही चबाने आई है,’’ मेरे तेवर और हावभाव देख कर रोहन भैया पलंग और कुरसी लांघते हुए भाग कर किचन में ताईजी की बगल में आ खड़े हुए.

‘‘ताईजी, आप रोहन भैया को समझा दीजिए, मेरा दिमाग और खराब न करें वरना मैं या तो इन्हें जान से मार डालूंगी या खुद आत्महत्या कर लूंगी, पक गई हूं मैं इन की हरकतों से.’’ ‘‘बहन, तू मुझे मारने का आइडिया दिमाग से निकाल दे, उस में काफी प्लानिंग की जरूरत पड़ेगी, ऐसा कर तू ही आत्महत्या कर ले, वही तेरे लिए सरल और परिवार के लिए कम दुखद होगा. मेरे पीछे क्यों पड़ी है तू? और हां, तुझे रस्सी, चूहा मारने की दवा या रेल समयसारिणी जो भी चाहिए बता देना, मैं सब उपलब्ध करा दूंगा. मेरे होते हुए तू भागदौड़ न करना,’’ रोहन भैया ने ऐसा कह कर मेरे गुस्से की आग में 4 चम्मच घी और उड़ेल दिए.

‘‘देखा ताईजी, कैसा जी जलाते हैं, भैया. आप भी इन्हें कुछ नहीं कहतीं इसीलिए तो बिगड़ते जा रहे हैं.’’ ‘‘हुआ क्या है, पहले तू मुझे कुछ बताए, तब तो मैं समझूं. तू तो जब से आई है बस, खूनखराबे की ही बातें किए जा रही है. मैं कुछ समझूं तब तो कुछ बोलूं,’’ ताईजी हंसते हुए बोलीं.

‘‘ताईजी, आप इन्हें समझा दीजिए कि मेरी सहेलियों का पीछा करना छोड़ दें,’’ सोनाली गुस्से से बोली. ‘‘ओए कद्दू, कौन करता है तेरी सहेलियों का पीछा? वही मेरे पीछे पड़ी रहती हैं. कोई कहती है, ‘रोहनजी, प्लीज मेरा लाइब्रेरी कार्ड बनवा दीजिए, रोहन भैया काउंटर पर बड़ी लंबी कतार लगी है, आप प्लीज मेरी फीस जमा करा दीजिए,’ अब कोई इतने प्यार से विनती करे तो मैं कोई पत्थर दिल तो हूं नहीं, जो पिघलूं न? छोटेमोटे काम कर देता हूं. क्या करूं मेरा दिल ही कुछ ऐसा है, किसी को मना कर ही नहीं पाता हूं,’’ अपनी विवशता बताते हुए रोहन बोला.

 

बंधन टूट गए : भाग 2

पर कालिंदी उस की बात ही नहीं मान रही थी, मानो वह अपने बाड़े से निकलना ही नहीं चाह रही हो. सुहानी देवी कुछ देर तक यह सब देखती रही, पर जब उस से नहीं रहा गया तो खुद उस नौजवान के पास गई और बोली, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है और इसे क्यों घसीट रहे हो?’’ ‘‘मालकिन, मेरा नाम बातुल है. मालिक ने मुझे जानवरों की साफसफाई के लिए रखा है.’’ ‘‘यह क्या कर रहे हो?’’ उस नौजवान ने बड़े अदब से जवाब दिया, ‘‘दरअसल, कालिंदी ने इस रस्सी को अपने गले में उलझा लिया है. हम इसे बाहर ला कर इस के बंधन को सुलझाना चाहते हैं, पर यह है कि अपने फंदे में ही फंसी रहना चाह रही है. यह खुद भी परेशान है, पर फिर भी निकलना नहीं चाहती.’’ बातुल की बातें सुहानी देवी के कानों से टकराईं और सीधा उस के मन में उतरती चली गईं. ‘‘ठीक है, ठीक है… पर यह नाम बड़ा अजीब सा है, बातुल…’’ बोलते हुए हंस पड़ी थी सुहानी. बातुल ने बताया कि उसे बचपन से ही बहुत बोलने की आदत है,

इसलिए गांव में सब उसे ‘बातुल’ कह कर ही बुलाते हैं. बातोंबातों में बातुल ने यह भी बताया कि गांव वापस आने से पहले वह शहर में भी काम कर चुका है. बातुल के मुंह से शहर का नाम सुन कर सुहानी देवी के मन में जैसे कुछ जाग उठा था. बातुल के रूप में ठकुराइन को बात करने वाला कोई मिल गया था. ठाकुर भवानी सिंह के जाने के बाद सुहानी देवी अपनी सास से कुछ बहाना कर के हवेली की छत पर चली जाती और बातुल को काम करते देखती रहती और फिर खुद ही बातुल से कुछ न कुछ काम बताती. आज ठाकुर साहब सुबहसुबह ही शहर चले गए और बातुल को शाम के लिए मछली लाने को बोल गए. दोपहर में बातुल अपने कंधे पर मछली पकड़ने वाला जाल ले कर आता दिखा. उस में कई सारी मछलियां फंसी हुई थीं और तड़प रही थीं. बातुल ने जाल जमीन पर पटक दिया और सभी मछलियों को निकाल कर पास ही बने एक कच्चे गड्ढे में डाल दिया और उस में ऊपर तक पानी भर दिया, ताकि वे सब शाम तक जिंदा रहें और ठाकुर साहब के आने पर उन्हें पकाया जा सके.

सुहानी देवी ने देखा कि जो मछलियां अब तक पानी के बिना तड़प रही थीं, वे पानी पाते ही कितनी तेज तैर रही थीं मानो उन्होंने जिंदगी ही पा ली हो. सुहानी देवी अभी मछलियों को देख ही रही थी कि तेज बारिश शुरू हो गई. सुहानी देवी ने आवाज लगा कर बातुल को हवेली के अंदर आने को कहा और खुद बारिश का मजा लेने लगी. बारिश मूसलाधार हो रही थी. चारों तरफ पानी भर गया था और उस मछली वाले गड्ढे और बाहर आंगन में पानी का लैवल बराबर हो जाने के चलते गड्ढे की मछलियां जलधारा के साथ बाहर बह चली थी. यह सीन देख कर सुहानी देवी भूल गई थी कि वह एक ठकुराइन है. वह खुश हो कर ताली बजाने लगी और बातुल के कंधे पर हाथ रख दिया. एक ठकुराइन के छुए जाने के चलते एकसाथ कई सवाल बातुल की आंखों में तैर गए थे और उस की नसों में दौड़ते खून की तेजी में उतारचढ़ाव आने लगा था. बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.

सुहानी देवी का मन किया कि वह बाहर आंगन में जा कर भीगे, अपने सारे गहने उतार कर नहाए, पर ठकुराइन की मर्यादा ने उसे रोके रखा था. ठाकुर शहर से वापस नहीं लौटेंगे, क्योंकि बारिश तेज है और बातुल को भी इसी वजह से आज हवेली में ही रुकना होगा. सास सो गई थीं. बातुल खाना खा कर हवेली के नीचे वाले हिस्से में सोने चला गया था. सुहानी देवी ने सोने से पहले अपने कमरे का दरवाजा जानबूझ कर क्यों खुला छोड़ दिया था, इस का जवाब खुद उस के पास भी नहीं था. उसी दरवाजे से दबे पैर कोई आया और सीधा सुहानी देवी से लिपट गया. वह भी किसी लता की तरह लिपट गई और फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘कौन हो तुम?’’ ‘‘हां, जैसे तुम जानती नहीं…’’ उस की यह बात सुन कर सुहानी देवी ने बातुल का सिर अपने सीने के बीचोंबीच भींच लिया और दोनों सैक्स का मजा लेने लगे. एक बार, 2 बार… 3 बार… न जाने कितनी बार हवेली के उस कमरे में ज्वालामुखी का उबाल आया था. आज वहां ऊंचनीच और जातिधर्म की दीवार गिर गई थी. सुहानी देवी को बातुल से प्यार हो गया था. उस दिन के बाद से तो न जाने कितनी बार बातुल और सुहानी देवी ने अपने इस प्यार को भोगा था. अगले दिन सुहानी देवी फिर से भारी गहनों और कपड़ों में लदी हुई थी. बातुल आया, तो उस के एक हाथ में सांप की केंचुली थी.

‘‘यह क्या है?’’ सुहानी ने पूछा. ‘‘केंचुली है ठकुराइन… जब यह पुरानी हो जाती है, तो सांप इस में एक बंधन महसूस करता है और ठीक समय पर वह पुरानी केंचुली को उतार फेंक छुटकारे का अहसास करता है.’’ सुहानी देवी बातुल की बातों को सुन रही थी. उस के दिमाग में बंधन, मुक्ति जैसे शब्द लगातार गूंज रहे थे. 2 दिन बाद ठाकुर भवानी सिंह शहर से लौटे थे. वे सुहानी देवी के लिए सच्चे मोतियों का एक हार लाए थे. उन्होंने वह हार सुहानी देवी के गले में डाल दिया, पर उस के चेहरे को देखा तक नहीं. ठाकुर भवानी सिंह अपने चमचों के बीच बैठ कर रैडलाइट एरिया की बातें करते रहते. इस बार उन के मुंह से कुछ औरतों के नाम भी निकल रहे थे. एक अनजाने सौतिया डाह में जल उठी थी सुहानी देवी. ‘‘अगर गंदे एरिया में जा कर रासरंग ही करना था ठाकुर को तो फिर मुझ से ब्याह ही क्यों रचाया? मैं परंपरा निभाने और दिखावे के लिए मात्र एक गुडि़या की तरह हूं,’’ गुस्से की ज्वाला धधक उठी थी सुहानी देवी के मन में.

ठाकुर भवानी सिंह का शहर जा कर रैडलाइट एरिया में मजे करना बदस्तूर जारी रहा, पर अब सुहानी देवी को भी इस बात की कोई चिंता नहीं थी. उसे तो बातुल के रूप में एक प्यार करने वाला मिल गया था, जिस से वह अपने मन का हर दर्द कह सकती थी और उस की बांहों में अपने अंदर की औरत को महसूस कर सकती थी. पर, आज पूरे 3 दिन बीत गए थे, बातुल हवेली की दहलीज पर सलाम बजाने भी नहीं आया था. ‘कहीं कुछ गलत तो नहीं हो गया बातुल के साथ?’ सुहानी देवी का बेचैन मन बारबार हवेली के दरवाजे की तरफ देख रहा था. रात हो चली थी.

ठाकुर को तो आज आना नहीं था. बातुल से बात करने का मन कर रहा था, उस की खैरियत की भी चिंता हो रही थी. लिहाजा, सास के सो जाने के बाद सुहानी देवी पिछले दरवाजे से बाहर निकली और सीधा बातुल के घर के बाहर जा पहुंची. दरवाजा अंदर से बंद था, पर भीतर से बातुल की आवाज बाहर तक आ रही थी. सुहानी देवी ने दरवाजे की झिर्री से आंख सटा दी. अंदर का सीन देख कर वह दंग रह गई थी. बातुल किसी दूसरी औरत से मजे ले रहा था. ‘‘ठकुराइन ने मुझे बहुत मजा दिया, बहुत मस्त थी उस की जवानी… ठाकुर की रैडलाइट एरिया में मुंह मारने की आदत का मैं ने खूब फायदा उठाया…’’ ‘‘इस का मतलब… तुम नमकहराम हो. जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया,’’ बातुल की बांहों में लेटी औरत ने कहा. ‘‘नहीं, मैं एक व्यापारी हूं… जिसे जो चाहिए था, मैं ने उसे वह दिया और फिर ठाकुर भी तो शहर में जा कर मुंह मारता है, तो मैं नमकहराम कैसे?’’

 

करमवती- भाग 1 : राजपाल प्लंबर कहा गिरा था

15साल पहले… उस समय मैं ने उसे एक शाम एक गंदी नाली में औंधे मुंह पड़े देखा था. उस ने इतनी दारू पी ली थी कि उसे कुछ होश न था. शराबी से आदमी वैसे ही घबराता है, इसलिए कोई उसे गंदी नाली में से भी खींचने को तैयार न था. तब मैं ने उस पर तरस खा कर और इनसानियत का फर्ज निभाते हुए नाली में से खींच कर सड़क पर डाल दिया था. किसी ने पैर से उसे सीधा किया. उस का चेहरा कीचड़ से सना हुआ था, फिर भी भीड़ में से हर कोई उसे पहचानने की कोशिश करने लगा. ‘‘अरे, यह तो राजपाल प्लंबर है. गली नंबर 8 वाला,’’ भीड़ में से एक ने चौंकते हुए कहा.

तब किसी ने जा कर राजपाल के घर सूचना दी. राजपाल की पत्नी अपने बच्चे को गोद में लिए दौड़ी चली आई थी. महल्ले वालों ने उस के कहने पर राजपाल को एक रिकशा में डाल कर उस के घर पहुंचाया था. उस दिन भीड़ में कोई ऐसा न था, जिस ने राजपाल को उस की इस हालत पर कोसा न हो और उस की पत्नी पर तरस न खाया हो. 15 साल पहले घटी इस घटना को मैं तकरीबन भूल चुका था, लेकिन जब प्लंबरी का सामान बेचने वाले लालाजी से मैं ने किसी प्लंबर का नंबर देने को कहा,

तो उन्होंने खुद फोन पर बात कर के कहा, ‘‘आप के महल्ले का ही राजपाल प्लंबर है. रामदीन हलवाई की दुकान के सामने वह मिल जाएगा. मैं ने बोल दिया है और यह उस का नंबर है.’’ ‘राजपाल’ कुछ सुनासुना सा नाम लग रहा था. फिर यह सोच कर कि राजपाल नाम के न जाने कितने लोग हैं, मैं मोटरसाइकिल उठा कर चल दिया. रामदीन हलवाई की दुकान के सामने जैसे ही मैं ने मोटरसाइकिल रोकी, तो एक आदमी मुसकराता हुआ मेरी ओर आया. मैं ने अंदाजा लगाया कि यही राजपाल होगा. ‘‘तुम्हारा चेहरा कुछ जानापहचाना सा लग रहा है,’’ मैं ने उस के पास आने पर कहा.

‘‘बाबूजी, मैं राजपाल प्लंबर. आप मुझे पहचानें या न पहचानें, मैं आप को अच्छी तरह पहचानता हूं. आप ने तो मुझे एक ही बार देखा है, लेकिन मैं ने आप को कई बार देखा है.’’ उस को ऐसे बातें करते देख कर मैं मुसकरा पड़ा, फिर मैं ने उस से कहा, ‘‘कुछ याद तो दिलाओ?’’ ‘‘बाबूजी याद करो कि तकरीबन 15 साल पहले आप ने किसी शराबी को गंदी नाली में से बाहर निकाला था.’’ ‘‘हांहां, मुझे याद आ रहा है.’’ ‘‘बाबूजी, मैं नशे में चूर था. बाद में लोगों ने मुझे बताया था कि कोई मुझे नाली में से भी खींचने को तैयार न था. तब आप ने यह काम किया था.’’ मुझे याद आया कि हां, कभी किसी शराबी को मैं ने नाली से बाहर जरूर खींचा था, लेकिन मेरे लिए यह इतनी खास बात नहीं थी कि मैं यह याद रखता कि कब और कितने साल पहले मैं ने यह काम किया था. मैं ने तो उस शराबी की हालत देख कर यही सोचा था कि यह पियक्कड़ या तो किसी दिन ज्यादा शराब पी कर मर जाएगा या फिर किसी दिन नशे की हालत में किसी हादसे का शिकार हो जाएगा.

मेरी नजर में उस की जिंदगी के गिनेचुने दिन बचे थे. लेकिन उस महाशराबी को आज अपने सामने हट्टाकट्टा देख कर मुझे हैरानी जरूर हुई कि कोई टैंकर (महाशराबी) इतना सेहतमंद कैसे हो सकता है. खैर, उसे ले कर मैं अपने घर आ गया. राजपाल घर आते ही अपने काम में जुट गया. 2 घंटे बाद मैं ने उस से पूछा, ‘‘राजपाल चाय पीओगे?’’ ‘‘नहीं बाबूजी, मैं चाय नहीं पीता.’’ ‘‘हां भाई, तुम गरम चाय कहां पीओगे, तुम तो नमकीन के साथ ठंडी चाय पीने वालों में से हो,’’ मैं ने मजाक के लहजे में कहा. ‘‘नहीं बाबूजी, ऐसी बात नहीं है. ‘ठंडी चाय’ तो मैं ने कब की पीनी छोड़ दी.’’ मैं हैरानी से उसे देखने लगा कि एक टैंकर भी शराब पीनी छोड़ सकता है.

‘‘ऐसा कैसे हुआ राजपाल? दारू की लत वाले लोगों का तो दारू छोड़ना बड़ा मुश्किल होता है?’’ राजपाल ने काम करतेकरते अपनी कहानी शुरू की. मैं भी कुरसी डाल कर उसी के पास बैठ गया. ‘‘बाबूजी, उस रात मेरी घरवाली सोई नहीं. वह रातभर जागती रही और मुझे होश में लाने की कोशिश करती रही. उस दिन साथियों के साथ कुछ ज्यादा ही चढ़ा ली थी. भोर के समय जा कर कहीं मेरा नशा टूटा था. ‘‘तभी मकान मालिक आ धमका था. उस ने शाम तक कमरा खाली करने का फरमान सुना दिया. भला बाबूजी, मेरे जैसे शराबी को कौन अपने घर में किराए पर रखता.

मुंहबोली बहनें- भाग 3 : रोहन ने अपनी पत्नी को क्यों दे डाली धमकी

‘‘मेरे और अनाइका के बीच कुछ चल रहा है, यह बात अनाइका ने मुझे क्यों नहीं बताई? इतनी बड़ी बात मुझ से छिपा कर रखी? मुझे भी बता देती तो मैं थोड़ा अपने पर इतरा लेता,’’ रोहन भैया ने चिंतित मुद्रा में मुंह बना कर कहा, ‘‘सोनाली, कमी मुझ में नहीं उन लड़कियों की सोच में है. किसी से दो बातें कर लो तो सीधा ‘चक्कर चलना’ ही मान बैठती हैं.’’ रोहन भैया मेरी किसी बात को गंभीरता से लेने को तैयार ही नहीं थे. मैं झक मार कर वहां से उठ ही गई, ‘‘ठीक है रोहन भैया, आप के लिए तो हर बात बस, मजाक ही होती है, पर कालेज में होने वाली बातों का मुझ पर असर पड़ता है. कोई मेरे भाई के बारे में अनापशनाप कहे तो मैं बरदाश्त नहीं कर पाती हूं. अगले साल मैं अपना कालेज ही बदल लूंगी. न आप के कालेज में रहूंगी, न आप के बारे में कुछ सुनूंगी और न ही मेरा दिमाग खराब होगा,’’ कह कर मैं अपना बैग उठा कर वहां से निकल पड़ी.

‘‘ओए मधुमक्खी, कालेज बदलना तो अकेली ही जाना, अपनी सहेलियों को मत ले जाना वरना मेरे कालेज में तो पतझड़ आ जाएगा,’’ कह कर रोहन भैया फिर होहो कर के हंसने लगे. मुझे पता था कि रोहन भैया चिकने घड़े हैं. मेरी किसी बात का उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. फिर भी हर 10-15 दिन में मैं उन से इस बात को ले कर बहस कर ही बैठती थी.

12वीं के बाद बीकौम में जब मुझे दीनदयाल डिग्री कालेज में ऐडमिशन मिला था तो मैं फूली नहीं समाई थी. नामीगिरामी कालेज में ऐडमिशन पाने की खुशी के साथसाथ एक सुकून का एहसास यह सोचसोच कर भी हो रहा था कि रोहन भैया के होते हुए मुझे किसी काम के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी. मेरा सारा काम बैठेबिठाए हो जाएगा. रोहन भैया उसी कालेज से एमकौम कर रहे थे और कालेज में उन के रोब के किस्से उन के मुंह से सालों से सुनती चली आ रही थी.

कालेज पहुंची तो सचमुच रोहन भैया की कालेज में पहचान देख कर मैं दंग रह गई. छात्रसंघ के सक्रिय सदस्य होने के कारण सारे प्रोफैसर और विद्यार्थी न केवल उन्हें अच्छी तरह जानते थे बल्कि वाक्पटुता और आकर्षक व्यक्तित्व के कारण उन्हें पसंद भी बहुत करते थे. युवतियों के तो वे खासकर सर्वप्रिय नेता माने जाते थे. उन में वे किशन कन्हैया के नाम से मशहूर थे. लड़कियां उन के इर्दगिर्द मंडराने के अवसर तलाशती रहती थीं.

कालेज में उन के जलवे देख कर मैं भी अपना सिक्का जमाने के लिए सभी के सामने रोब जमाते हुए यह कहने लगी कि रोहन मेरे भैया हैं और मुझे बहुत प्यार करते हैं, लेकिन उस के बाद से ही मेरी मुसीबतों का सिलसिला शुरू हो गया. रोज कोई न कोई युवती अपना कोई न कोई काम ले कर मेरे पास

सिया के आंसू : भाग 1

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा  

22 साल की एक पढ़ीलिखी लड़की थी, जो बीटैक कर रही थी. वह एक कामयाब यूट्यूबर थी, जो अपनी कार खुद चलाना पसंद करती थी और देश के ज्वलंत मुद्दों पर भी अपनी राय बड़ी बेबाकी से सब के सामने रखती थी, पर किसी इनसान में इतनी अच्छाइयों का होना यह नहीं साबित करता है कि वह अंधविश्वासी नहीं होगा.

 

सिया के मन पर भी उस के बचपन से ही बताए गए रीतिरिवाजों और धर्मांधता का पूरा असर था. हां, पर जो उस का इन अंधविश्वासों में साथ नहीं देता था, वह था सिया के बचपन का दोस्त वीरेन. वीरेन से सिया की सगाई भी हो चुकी थी और शादी की तारीख भी दिसंबर महीने की थी, पर उस से पहले वीरेन और सिया अपने दोस्तों नताशा और तान्या के साथ एक धार्मिक जगह सिद्धनाथ के दर्शन करने जाना चाहते थे.

बाकी के दिन तो सफर की तैयारियों में कब निकल गए, सिया को पता ही नहीं चला और फिर वह दिन भी आ गया, जब वे चारों सफर पर निकल पड़े और रास्ते की सारी दिक्कतों को झेलते हुए वे सिद्धनाथ पहुंच गए. अभी उन लोगों की गाड़ी पूरी तरह से रुक भी नहीं पाई थी कि उन की गाड़ी के चारों तरफ अनजान लड़कों और आदमियों की भीड़ जमा हो गई.

‘‘हां जी मैडम… रुकने के लिए कमरा चाहिए… बहुत सस्ते में दिला देंगे… एसी वाला रूम… कम कीमत में…’’ उन में से कुछ लड़के साधुसंतों जैसे लग रहे थे. ‘‘बहनजी… हमारी धर्मशाला में कमरा ले लो… एकदम मुफ्त मिलेगा… और वह भी सारी सुविधाओं के साथ…’’ उन में से एक बोला.

‘‘मुफ्त… तुम लोग मुफ्त में कमरा क्यों दे रहे हो भाई?’’ वीरेन ने पूछा. ‘‘अरे भाई… यह सब तो धर्म को बढ़ावा देने के लिए है… हम आप को कमरा देते हैं और बदले में आप हमारे दानपात्र में कुछ पैसे डाल देना… मंदिर जाने के लिए प्रसाद हमारे यहां से ही लेना…’’ दूसरा लड़का बोला.

पता नहीं क्यों जहां पर भी धर्म और दानपात्र दोनों एकसाथ आते हैं, वहां पर वीरेन को एक अलग ही गंध आने लगती है, पर साधुसंतों द्वारा चलाई जा रही धर्मशाला में कमरा ले कर रहने में धर्म की सेवा होगी, ऐसा सोच कर सिया मचलने लगी, ‘‘वीरेन, सही तो कह रहे हैं ये लोग… आखिर धर्मशाला में कमरा ले कर रहने में बुराई ही क्या है?’’

‘‘हां, ठीक है, पर अगर कमरे हमारे रहने लायक नहीं होंगे, तो हम फिर किसी और होटल में चलेंगे,’’ वीरेन ने फैसला सुनाया और सिर हिला कर नताशा और तान्या ने उस पर अपनी मुहर लगा दी. आगेआगे वे लड़के चल रहे थे और पीछेपीछे ये चारों. कुछ देर पैदल चलने के बाद ही वे उस धर्मशाला के सामने खड़े थे, जिस में उन्हें रहना था. बाहर से तो एक एकदम साधारण सी बिल्डिंग लग रही थी, पर अंदर कदम रखते ही उन चारों की समझ में आ गया कि यह धर्मशाला किसी होटल से कम नहीं है.

उस धर्मशाला के एक तरफ जगमग करता हुआ मंदिर बना था और दूसरी तरफ कमरे बने हुए थे. मतलब साफ था कि वे लोग धर्मशाला का टैग लगा कर एक होटल चला रहे थे. चारों तरफ एक अलग सी सुगंध फैली हुई थी. सिया ने अपने लिए गए फैसले पर इठलाते हुए उन तीनों की तरफ देखा मानो यह कहना चाह रही हो कि देखा मेरा फैसला कितना सही था.

वीरेन अकेला एक कमरे में ठहर गया, जबकि बाकी तीनों लड़कियां दूसरे कमरे में. आज रातभर उन को आराम कर के कल सुबह ही उन लोगों को सिद्धनाथ बाबा के मंदिर के लिए निकलना था. अगली सुबह वे सभी जल्दी ही जाग गए और मंदिर दर्शन की तैयारी करने लगे. नताशा बाथरूम में नहाने गई थी, पर कुछ देर बाद ही वह बाथरूम से हड़बड़ाती हुई निकली और बाहर की ओर भागी. उसे इस तरह भागता देख कर कोई कुछ भी समझ नहीं पाया.

 

‘‘क्या हुआ नताशा…? तू इतनी परेशान क्यों है?’’ पीछे से आते हुए तान्या ने पूछा.‘‘पता है, जब मैं बाथरूम में नहा रही थी, तभी खिड़की से कोई मोबाइल के कैमरे से मेरी वीडियो शूट कर रहा था. मैं ने उसे देख कर जल्दी से कपड़े पहने  और पकड़ने के लिए बाहर लपकी, पर वहां पर कोई नहीं था. मैं इस बात की शिकायत यहां के मैनेजर से करने जा रही हूं,’’ कहने के साथ ही नताशा सीधे मैनेजर के पास पहुंची, जहां पर एक गंजा साधु बैठा हुआ था.

‘‘देखिए, यह एक तीर्थस्थल है… यहां आ कर तो सभी के मन का मैल अपनेआप धुल जाता है और फिर हमारे यहां ऐसा काम कौन करेगा भला… देखो बेटी, तुम से कोई भूल हुई है, फिर भी आप लोगों को कोई असुविधा हुई है, तो मैं आप लोगों का कमरा बदलवा देता हूं,’’ उस साधु ने कहा.

 

वह साधु मैनेजर ये बातें कहते हुए बारबार मंदिर की ओर देख कर हाथ जोड़ता और एक छोटी सी माला को हाथ में घुमा रहा था.

 

मुंहबोली बहनें- भाग 4 : रोहन ने अपनी पत्नी को क्यों दे डाली धमकी

भाभी सुंदर और समझदार थीं. शादी के बाद रोहन भैया के स्वभाव में भी बहुत परिवर्तन आ गया. अब वे काफी शांत और गंभीर रहने लगे थे. कालेज के समय वाली उच्छृंखलता अब कहीं उन के स्वभाव में नहीं दिखती थी. साल भर तक तो उन का दांपत्य जीवन बहुत अच्छी तरह चला पर अचानक न जाने क्या हुआ कि भैयाभाभी के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. उन के बीच अकसर बहस होने लगी. ताईजी के लाख पूछने पर भी दोनों में से कोई भी कुछ बताने को तैयार नहीं होता. उसी दौरान मैं मायके गई थी तो ताईजी के यहां भी सब से मिलने चली गई. ताईजी ने उन लोगों के बिगड़ते रिश्ते के बारे में बताते हुए मुझे भाभी से बात कर के कारण जानने को कहा. पहले तो भाभी ने बात को टालना चाहा किंतु मेरे हठ पकड़ लेने पर उन्होंने जो कहा उस पर यकीन करना मुश्किल था.

भाभी ने कहा, ‘‘रोहन का शक्की स्वभाव उन के वैवाहिक जीवन पर ग्रहण लगा रहा है. मेरे एक मुंहबोले भाई को ले कर इन के मन में शक का कीड़ा कुलबुला रहा है. मैं उन्हें हर तरह से समझा चुकी हूं कि उस के साथ मेरा भाईबहन के अलावा और किसी तरह का कोई संबंध नहीं है पर इन्हें मेरी किसी बात पर यकीन ही नहीं है. मेरी हर बात के जवाब में बस यही कहते हैं, ‘ये मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता क्या होता है मुझे न समझाओ. किसी अमर्यादित रिश्ते पर परदा डालने के लिए मुंहबोला भाई और मुंहबोली बहन का जन्म होता है.’ इन का कहना है कि या तो अपने मुंहबोले भाई से ही रिश्ता रख लो या मुझ से. अब तुम ही बताओ इतने सालों का रिश्ता क्या कह कर खत्म करूं? कितने अपमान की बात है मेरे लिए इतना बड़ा आरोप सहना.’’

मैं ने भाभी को आश्वस्त करते हुए कहा कि आप चिंता न करें मैं भैया से बात करती हूं. मैं जब रोहन भैया से इस बारे में बात करने गई तो बात शुरू करने से पहले ही उन्होंने मेरा मुंह यह कह कर बंद कर दिया, ‘‘सोनाली, अगर तुम मुझे कुछ समझाने आई हो तो बेहतर होगा कि वापस चली जाओ.’’ रोहन भैया के रूखे व्यवहार के आगे तो मेरी बात शुरू करने की हिम्मत ही नहीं हुई. बातबात पर उन से झगड़ने और बहस कर बैठने वाली मुझ सोनाली की बोलती ही बंद हो गई. पर बात चूंकि उन के वैवाहिक रिश्ते को बचाने की थी इसलिए हिम्मत कर के मैं उन के पास बैठ गई.

‘‘रोहन भैया, बात इतनी बड़ी नहीं है कि आप ने अपना और भाभी का रिश्ता दावं पर लगा दिया है. भाभी कह रही हैं कि उन का मुंहबोला भाई है तो उन की बात का आप यकीन क्यों नहीं करते? आखिर कालेज में आप की भी तो कई मुंहबोली बहनें थीं फिर…’’ मैं आगे कुछ और बोलूं उस से पहले ही रोहन भैया वहां से उठ खड़े हुए, ‘‘हां, सोनाली, मेरी कई मुंहबोली बहनें थीं और मैं कइयों का मुंहबोला भाई था इसीलिए इस रिश्ते की हकीकत मुझ से ज्यादा कोई नहीं जानता. कह दो अपनी भाभी से या तो मैं या वह मुंहबोला भाई, जिसे चुनना है चुन ले.’’ मैं अवाक सी भैया का मुंह देखती रह गई. कालेज वाले भैया तो वे थे ही नहीं जिन से मैं कुछ बहस कर सकती. ‘रोहन भैया, रोहन भैया’ कहने वाली कालेज की बहनों का उन्हें देख कर आहें भरना मैं भी कहां भूल पाई थी कि किसी तरह का तर्क दे कर उन की सोच को झुठलाने की कोशिश करने की हिम्मत जुटा पाती.

मेरे पास भाभी को समझाने के अलावा और कोई रास्ता शेष नहीं बचा था. रोहन भैया का शक उन के अपने अनुभव पर आधारित था. न जाने मुंहबोले भाईबहन के रिश्तों को उन्होंने किस तरह जिया था. दुनिया को तो वे अपने ही अनुभव के आधार पर देखेंगे. ‘‘रिश्ता बचाना है तो आप के सामने रोहन भैया की शर्त मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है भाभी, क्योंकि उन का शक उन के अनुभव पर आधारित है और अपने ही अनुभव को भला वे कैसे नकार सकते हैं. रिश्ता बचाने के लिए त्याग आप को ही करना पड़ेगा,’’ भारी मन से भाभी से यह सब कह कर मैं चुपचाप अपने घर की ओर चल दी.

 

सिया के आंसू : भाग 2

नताशा के पास और कोई चारा भी नहीं था, क्योंकि वह साधु मैनेजर यह मानने को तैयार ही नहीं था कि ऐसी कोई घटना उस की धर्मशाला में हो भी सकती है. उस की बातों से नताशा को लगा कि हो सकता है, उसे कोई गलतफहमी हो गई हो, क्योंकि आजकल ट्रायल रूम में कैमरा छिपे होने और कपड़े बदलती लड़कियों के वीडियो बना कर उन्हें बेचने और इंटरनैट पर अपलोड कर लड़कियों को ब्लैकमेल करने संबंधी जैसे कई केस सामने आ चुके थे.

 

वीरेन काफी गुस्से में था और पुलिस में रिपोर्ट करना चाह रहा था, पर यहां भी सिया ने उसे ऐसा करने से रोक लिया और बोली, ‘‘देखो, अब कुछ देर में ही हमें यहां से मंदिर के लिए निकलना है… प्लीज, कोई बखेड़ा मत खड़ा करो.’’वीरेन खून के कड़वे घूंट पी कर रह गया था, पर उस ने तत्काल ही वहां से निकलने की बात सोची और आननफानन में सारा सामान पैक कर वे लोग उस धर्मशाला से निकल कर एक अच्छे से होटल में आ गए थे.

होटल में अपना सामान रख कर वे सिद्धनाथ मंदिर की ओर चल पड़े. एक बैग में कुछ कपड़े और पैसे वगैरह उन के साथ में था. यहां से तकरीबन 12 किलोमीटर का सफर उन्हें पैदल ही तय करना था.

रास्ते में कई रैस्ट हाउस थे, जिन के बाहर एजेंट लोग ग्राहक लाने के लिए रखे गए थे और कई ऐसी भी दुकानें थीं, जो उन के यहां से प्रसाद खरीदने पर उन के जूतेचप्पलों की मुफ्त में ही रखवाली करते रहेंगे.

सिया का बस चलता तो इन सब दुकानों से कुछ न कुछ जरूर खरीदती, पर वीरेन का उखड़ा हुआ मूड देख कर वह भी सीधी चलती रही. रास्ते में उन्हें कई भिखारी मिल रहे थे, जो किसी भी तरह से पैसे मांग रहे थे.

सिद्धनाथ बाबा का मंदिर आ चुका था. सिया, नताशा और तान्या के चेहरे पर एक तरह का संतोष चमक उठा था और उन लोगों ने वहां के नजारों को अपने कैमरे में कैद करना शुरू कर दिया था.

तभी तान्या की नजर एक तरफ बैठे नागा साधुओं पर गई, जो चिलम पी रहे थे.‘‘पहना दे छल्ला, लेले लल्ला,’’ एक नागा साधु ने सिया की तरफ देखते हुए कहा और फिर से चीखा, ‘‘पहना दे छल्ला, लेले लल्ला…’’ और अपने अंग की तरफ इशारा किया.

इस भद्दे इशारे पर सिया को बहुत बुरा लगा. उस ने सोचा कि वह जा कर उस नागा का मुंह ही नोच ले, पर वह जानती थी कि यहां पर नागा लोगों की पूरी जमात है और इन्हें छेड़ना किसी भी सूरत में सही नहीं होगा, इसलिए उस ने उस नागा की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

‘‘मंदिर में प्रवेश से पहले अपने हाथमुंहपैर धो लें आप लोग,’’ एक लड़का उन लोगों के पास आ कर बोला.‘‘हांहां… पर यहां कहीं तो कोई पानी की टंकी या नलका दिखाई नहीं पड़ता,’’ वीरेन ने कहा.

‘‘श्रीमानजी, यहां सब है… वह जो सामने एक कमरा सा दिख रहा है, उस में कोई भी जा कर उसे इस्तेमाल में ले सकता है… बस, उस की कीमत देनी होगी,’’ उस लड़के ने कहा.‘कीमत… पर, ये तो आम सुविधाएं हैं, सरकार और मंदिर प्रशासन की तरफ से मुफ्त मिलती हैं,’’ वीरेन ने चौंकते हुए कहा.

‘‘जी मिलती होंगी, पर यहां पर आप को कीमत चुकानी होगी. एक आदमी मात्र 100 रुपए दे कर इस बाथरूम की सुविधा ले सकता है… आप 4 लोग हैं, इसलिए 400 रुपए दे दीजिए.’’‘‘बड़ी अजीब सी बात है…’’ वीरेन बुदबुदाया.

उस का माथा गरम होता देख कर सिया ने कहा, ‘‘हाथपैर धोना तो जरूरी ही होता है, इसलिए यह लो भाई 400 रुपए…’’ कह कर सिया ने उस लड़के को पैसे दिए और सभी लोग फ्रैश हो कर सिद्ध बाबा के दर्शन की तरफ बढ़ लिए.

आगे कुछ दुकानें लगी हुई थीं, जिन पर प्रसाद बिक रहा था और प्रसाद की थाली के उचित रेट के बदले में 20 गुना दाम वसूले जा रहे थे. कोई थाली 1,100 रुपए की थी, तो कोई 2,100 रुपए की.पर मरता क्या न करता… इन चारों ने भी 1,100-1,100 रुपए की 4 थालियां ले लीं.

दर्शन के लिए लंबी लाइन लगी हुई थी. ये लोग भी लाइन में जा कर लग गए. थोड़ी देर बाद तान्या को अपने सीने पर किसी की कुहनी लगने का अंदेशा हुआ और यह अंदेशा गलत नहीं था, बल्कि मंदिर की दीवार की सफाई का बहाना करता एक जवान पंडा तान्या के सीने पर बारबार अपनी कुहनी से दबाव बना रहा था.

 

सिया के आंसू : भाग 3

‘‘अरे भैया, क्या कर रहे हो… देख कर काम करो न,’’ तान्या ने उस की नीयत जानते हुए एतराज जताया, तो वह पंडा नाराज होते हुए बोला, ‘‘अब हमारा यही काम है और इस काम में कोई चमड़े की बनी देह बीच में आ गई तो भला इस में हमारा क्या दोष है,’’ और फिर वह पंडा संस्कृत में कुछ जोरजोर से पढ़ने लगा.

‘‘अरे, आप लोग कहां लाइन में लग कर धक्के खा रहे हैं… आप तो वीआईपी लोग हैं… आप चाहें तो मैं पीछे के गेट से आप को 10 मिनट में ही स्पैशल दर्शन करा सकता हूं…’’ एक पंडे ने वीरेन के पास आ कर धीरे से कहा.

वीरेन ने लंबी लाइन में लगने के बजाय स्पैशल दर्शन के लिए हामी भर दी, तो फौरन ही वह पंडा 5,000 रुपए मांगने लगा.

‘‘पर, ये तो बहुत ज्यादा हैं,’’ वीरेन ने कहा.

‘‘अरे, तो जैसा काम है वैसा दाम है. भाई, समझ में आए तो बताओ, नहीं तो मैं दूसरा कस्टमर देखता हूं,’’ पंडा अपना सब्र खोता हुआ सा बोला.

‘‘ठीक है भैया, ये लो पैसे और जल्दी से हमें दर्शन करा दो,’’ सिया ने उस पंडे को पैसे देते हुए कहा.

फिर क्या था, उस पंडे ने उन्हें पीछे के दरवाजे से मात्र 10 मिनट में मंदिर के अंदर पहुंचा दिया था.

सिया, नताशा और तान्या तो खुशी के मारे मानो झूम रही थीं.

‘‘ऐ लड़की… अंधी है क्या… सामने साफसाफ लिखा है कि मंदिर के अंदर कोई सैल्फी नहीं, कोई तसवीर नहीं ली जाएगी…’’ एक लंबी दाढ़ी वाले बाबा ने तान्या के गले में लटकते हुए कैमरे को देख कर कहा.

‘‘पर बाबाजी, मैं सैल्फी नहीं ले रही हूं और न ही कोई फोटो ले रही हूं. यह कैमरा तो बाहर के फोटो लेने के लिए गले में टंगा हुआ था और इसीलिए अब भी इसी तरह टंगा हुआ है,’’ तान्या ने जवाब दिया.

‘‘तुम लोग तो भगवान के साथ भी सैल्फी लेने से बाज नहीं आते,’’ वह पंडा बोला और फिर घंटी बजाने में मशगूल हो गया.

पूजा करने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते हुए ये चारों अभी हाथ जोड़े मंदिर के अंदर खड़े थे कि तभी गेरुए कपड़े पहने हुए एक और लड़का तान्या के पास आ कर बोला, ‘‘दीदी, अगर यहां मंदिर के अंदर सैल्फी लेनी है, तो आप को 500 रुपए देने होंगे… सैल्फी दिलवाना मेरी जिम्मेदारी होगी.’’

‘‘नहीं… मुझे कोई सैल्फीवैल्फी नहीं लेनी है… तुम जाओ यहां से,’’ तान्या चीख पड़ी.

उस के मना करने से वह पंडा भी चिढ़ गया और बोला, ‘‘अरे, हम कहां जाएंगे… हमारा तो घर यही है… और काम भी यही है.’’

उस की इस बात पर तान्या सिर्फ उसे घूरती रह गई.

मंदिर में ढोलनगाड़े बज रहे थे. लोगों की भीड़ को देख कर पंडों ने और तेजी से ढोल पीटने शुरू कर दिए थे.

‘‘कुछ देर बाद आप लोगों का नंबर आने वाला है… यह रेट लिस्ट देखिए और बताइए कि आप लोग कितने वाली पूजा कराने वाले हैं…’’ मंदिर के अंदर बैठे एक साधु ने इन लोगों से कहा.

‘‘कितने वाली पूजा का क्या मतलब है पंडितजी?’’ वीरेन ने पूछा.

‘‘वह सामने देखो, बोर्ड पर सारे रेट लिखे हुए हैं,’’ पंडित ने एक बोर्ड की तरफ इशारा करते हुए कहा.

इन चारों ने बोर्ड पर देखा, तो वहां पर हर तरह की पूजा के लिए अलगअलग रेट तय था और पूजा की अवधि के साथ उस की कीमत भी बढ़ती जा रही थी. उस में यह भी लिखा हुआ था कि कौन सी पूजा में कितने लोग कितनी कीमत चुका कर शामिल हो सकते हैं.

पूजा का भी कोई रेट होता है, यह इन चारों ने पहली बार जाना था. अब तो सिया को भी बात कुछ अखरने लगी थी.

‘‘अरे पंडितजी, टीका तो लगा दीजिए,’’ सिया ने पुजारी से कहा और अपनी प्रसाद की थाली आगे बढ़ाई.

‘‘प्रसाद के साथसाथ इस में कुछ दक्षिणा भी तो रख बच्ची,’’ पुजारी ने तिरछी नजर से देखा और सिया के माथे पर बेमन से टीका लगाते हुए कहा.

सिया ने 100 रुपए का नोट बढ़ाया, तो पुजारी नाराज हो गया और कहने लगा, ‘‘आप दक्षिणा इतनी तो दीजिए

कि एक आदमी के एक समय का भोजन तो हो ही जाए, इस 100 रुपए में भला क्या होगा…’’

हार कर सिया ने 500 रुपए दिए, तब जा कर उस पुजारी के चेहरे पर थोड़ी मुसकराहट आई.

इतना होतेहोते वीरेन का मन पूजा

से पूरी तरह हट चुका था. चारों तरफ लूटखसोट के माहौल से वह ऊब चुका था. भला कहीं पूजा करवाने का भी कोई रेट होता है. सामने ही रेट का बोर्ड

लगा हुआ था. वीरेन ने उस बोर्ड की तसवीर खींच ली, पर उसे रेट बोर्ड का फोटो लेते देख कर पुजारी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

‘‘पानी की एक बूंद से पैदा हुआ आदमी, तू एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा और यह तेरा अहंकार ही तुझे गर्त में ले जा रहा है. तू इस बोर्ड की तसवीर ले कर क्या कर लेगा… और देख लेते हैं कि तू क्या कर सकता है?’’

पुजारी की बातें सुन कर वीरेन मंदिर से बाहर आ गया. उस के पीछे से सिया, नताशा और तान्या भी बाहर आ गईं. उन चारों ने यहां चलने वाले गोरखधंधे को दुनिया के सामने लाने के लिए इस पूरे ठगी के मामले को सोशल मीडिया पर शेयर करने की गरज से मंदिर के बाहर ही एक वीडियो बनाया, जिस में पूजा के हर काम में पंडितों द्वारा पैसे उगाहने की बात कही गई थी.

अब पूजा से सब का मन हट चुका था और वे चारों वापस आने लगे थे.

रास्ते में कुछ लोकल लड़के बैठे हुए थे. वीरेन के साथ 3 लड़कियों को देख कर उन में से एक लड़का बोला, ‘‘अरे भाई, एक अकेले लड़के के साथ 3-3 लड़कियां… बड़ी नाइंसाफी है रे… हमें भी साथ ले लो…’’ यह बात इतने भद्दे ढंग से कही गई थी कि वीरेन का गुस्सा भड़कना लाजिमी था, पर सिया ने किसी तरह अपनी कसम दे कर उसे शांत किया.

उधर सोशल मीडिया पर इन चारों का रोष भरा वीडियो वायरल होते देर नहीं लगी, जहां पर एक बुद्धिजीवी वर्ग का पूरा साथ इन लोगों को मिल रहा था, वहीं दूसरी तरफ तथाकथित धार्मिक लोग सिया और वीरेन को गालियां भी दे रहे थे और कुछ धार्मिक संगठनों ने तो इन्हें जान से मार डालने की धमकी भी दे दी थी, क्योंकि इन लोगों ने सिद्धनाथ मंदिर के अंदर चलने वाले पुजारियों के गंदे खेल को उजागर करने की कोशिश की थी. नताशा और तान्या तो इस बात से डरी हुई थीं.

वे चारों जल्दी से जल्दी अपने होटल पहुंच कर आराम करना चाहते थे और होटल अब करीब ही था, पर सामने से कुछ पंडे चले आ रहे थे.

‘‘क्यों भाई, तुम लोग हमारी धर्मशाला में रुके और बिना कोई पैसे दिए, बिना कुछ दानपात्र में डाले ही वहां से चले आए… किस बात की जल्दी थी तुम लोगों को…’’ ये सब उस धर्मशाला के लोग थे, जहां ये चारों सब से पहले रुके थे.

‘‘जी देखिए, हमें वहां कुछ ऐसा महसूस हुआ, जो हमें सही नहीं लगा. वहां बाथरूम में कुछ गलत हो रहा था, इसीलिए हम ने उस धर्मशाला को छोड़ना ही सही समझा,’’ वीरेन ने शांत आवाज में कहा.

‘‘भेड़ जहां जाएगी वहीं मूड़ी जाएगी… कहां नहीं बनते हैं ये नंगे वीडियो… धर्मशाला छोड़ोगे तो होटल में भी बनेंगे… अच्छा बताओ कि इन में से किस लड़की को नंगा देखना चाहोगे तुम? मेरे इस मोबाइल में इन सब के वीडियो हैं,’’ एक पंडा अपना होंठ काटते हुए बोला.

अब तो वीरेन के गुस्से की सीमा नहीं रही. उस ने तुरंत ही उन पंडों पर अटैक कर दिया. पर वह अकेला था और वे 8-10 लोग थे. उन सब ने वीरेन को इतना मारा कि वह अधमरा हो गया और उसे उसी हालत में छोड़ कर वे पंडे, जो शायद पंडे न हो कर गुंडे थे, सब फरार हो गए.

वीरेन के सिर से खून बह रहा था. जल्द ही उसे अस्पताल ले जाना होगा, नहीं तो कुछ भी हो सकता था. वे तीनों लड़कियां मदद के लिए इधरउधर भाग रही थीं, पर कोई भी मदद करने को तैयार नहीं था.

तभी सिया को एक खाली एंबुलैंस आती दिखाई दी. उस ने हाथ दे कर उसे रुकवाया और ड्राइवर से घायल वीरेन को अस्पताल पहुंचाने की गुजारिश की. ड्राइवर ने भी मामले की गंभीरता

को समझते हुए वीरेन को तुरंत ही लिटाया और एंबुलैंस को सड़क पर दौड़ा दिया.

पर कुछ किलोमीटर चलने पर ड्राइवर को रुक जाना पड़ा, क्योंकि आगे कोई जुलूस जा रहा था. एंबुलैंस के बारबार हौर्न और हूटर बजाने का भी उन लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. इधर वीरेन की हालत उपचार नहीं मिल पाने के चलते बिगड़ती ही जा रही थी.

जुलूस की भीड़ को न हटता देख कर  सिया खुद नीचे उतर गई और हाथ जोड़ कर भीड़ से रास्ता देने की अपील करने लगी. वह बहुत देर तक सब से प्रार्थना करती रही, पर किसी पर कोई असर नहीं हुआ.

किसी ने बताया कि आज पीले मठ वाले बाबा का जन्मदिन है और उन की झांकी उसी उपलक्ष्य में निकाली जा रही है और अभी फिलहाल तो यह भीड़ नहीं हट सकती है. अच्छा होगा कि तुम कोई दूसरा रास्ता पकड़ लो.

पर कौन सा रास्ता पकड़ती सिया. यह एक पहाड़ी जगह थी और अस्पताल तक यही एक सड़क जाती थी. इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं था.

सिया भाग कर एंबुलैंस में आई, पर तब तक वीरेन मर चुका था. यह देख कर सिया की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

सपनों की राख तले : भाग 2

कई बार निवेदिता खुद से पूछती कि उस में उस का कुसूर क्या था कि वह सुंदर थी, स्मार्ट थी. लोगों के बीच जल्द ही आकर्षण का केंद्र बन जाती थी या उस की मित्रता सब से हो जाती थी. वरना पत्नी के प्रति दुराव की क्षुद्र मानसिकता के मूल कारण क्या हो सकते थे? शरीर के रोगों को दूर करने वाले तेजेश्वर यह क्यों नहीं समझ पाए कि इनसान अपने मृदु और सरल स्वभाव से ही तो लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बनता है.

दिनरात की नोकझोंक और चिड़- चिड़ाहट से दुखी हो उठी थी निवेदिता. सोचा, क्या रखा है इन घरगृहस्थी के झमेलों में?

एक दिन अपनी डिगरियां और सर्टिफिकेट निकाल कर तेज से बोली, ‘घर में बैठेबैठे मन नहीं लगता, क्यों न मैं कोई नौकरी कर लूं?’

‘और यह घरगृहस्थी कौन संभालेगा?’ तेज ने आंखें तरेरीं.

‘घर के काम तो चलतेफिरते हो जाते हैं,’ दृढ़ता से निवेदिता ने कहा तो तेजेश्वर का स्वर धीमा पड़ गया.

‘निवेदिता, घर से बाहर निकलोगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’

‘क्यों…’ लापरवाही से पूछा था उस ने.

‘लोग न जाने तुम्हें कैसीकैसी निगाहों से घूरेंगे.’

कितना प्यार करते हैं तेज उस से? यह सोच कर निवेदिता इतरा गई थी. पति की नजरों में, सर्वश्रेष्ठ बनने की धुन में वह तेजेश्वर की हर कही बात को पूरा करती चली गई थी, पर जब टांग पर टांग चढ़ा कर बैठने में, खिड़की से बाहर झांक कर देखने में, यहां तक कि किसी से हंसनेबोलने पर भी तेज को आपत्ति होने लगी तो निवेदिता को अपनी शुरुआती भावुकता पर अफसोस होने लगा था.

निरी भावुकता में अपने निजत्व को पूर्ण रूप से समाप्त कर, जितनी साधना और तप किया उतनी ही चतुराई से लासा डाल कर तेजेश्वर उस की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ही बाधित करते चले गए.

दर्द का गुबार सा उठा तो निवेदिता ने करवट बदल ली. यादों के साए पीछा कहां छोड़ रहे थे. विवाह की पहली सालगिरह पर मम्मीपापा 2 दिन पहले ही आ गए थे. मित्र, संबंधी और परिचितों को आमंत्रित कर उस का मन पुलक से भर उठा था लेकिन तेजेश्वर की भवें तनी हुई थीं. निवेदिता के लिए पति का यह रूप नया था. उस ने तो कल्पना भी नहीं की थी कि इस खुशी के अवसर को तेज अंधकार में डुबो देंगे और जरा सी बात को ले कर भड़क जाएंगे.

‘मटरमशरूम क्यों बनाया? शाही पनीर क्यों नहीं बनाया?’

छोटी सी बात को टाला भी जा सकता था पर तेजेश्वर ने महाभारत छेड़ दिया था. अकसर किसी एक बात की भड़ास दूसरी बात पर ही उतरती है. तेज का स्वभाव ही ऐसा था. दोस्ती किसी से करते नहीं थे, इसीलिए लोग उन से दूर ही छिटके रहते थे. आमंत्रित अतिथियों से सभ्यता और शिष्टता से पेश आने के बजाय, लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ही उन्होंने वह हंगामा खड़ा किया था. यह सबकुछ निवेदिता को अब समझ में आता है.

2 दिन तक मम्मीपापा और रहे थे. तेज इस बीच खूब हंसते रहे थे. निवेदिता इसी मुगालते में थी कि मम्मीपापा ने कुछ सुना नहीं था पर अनुभवी मां की नजरों से कुछ भी नहीं छिपा था.

घर लौटते समय तेज का अच्छा मूड देख कर उन्होंने मशविरा दिया था, ‘जिंदगी बहुत छोटी है. हंसतेखेलते बीत जाए तो अच्छा है. ज्यादा ‘वर्कोहोलिक’ होने से शरीर में कई बीमारियां घर कर लेती हैं. कुछ दिन कहीं बाहर जा कर तुम दोनों घूम आओ.’

इतना सुनते ही वह जोर से हंस दी थी और उस के मुंह से निकल गया था, ‘मां, कभी सोना लेक या बटकल लेक तक तो गए नहीं, आउट आफ स्टेशन ये क्या जाएंगे?’

मजाक में कही बात मजाक में ही रहने देते तो क्या बिगड़ जाता? लेकिन तेज का तो ऐसा ईगो हर्ट हुआ कि मारपीट पर ही उतर आए.

हतप्रभ रह गई थी वह तेज के उस व्यवहार को देख कर. उस दिन के बाद से हंसनाबोलना तो दूर, उन के पास बैठने तक से घबराने लगी थी निवेदिता. कई दिनों तक अबोला ठहर जाता उन दोनों के बीच.

सपनों की राख तले : भाग 1

दौड़भाग, उठापटक करते समय कब आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह गश खा कर गिर पड़ी, याद नहीं.

आंख खुली तो देखा कि श्वेता अपने दूसरे डाक्टर सहकर्मियों के साथ उस का निरीक्षण कर रही थी. तभी द्वार पर किसी ने दस्तक दी. श्वेता ने पलट कर देखा तो डा. तेजेश्वर का सहायक मधुसूदन था.

‘‘मैडम, आप के लिए दवा लाया हूं. वैसे डा. तेजेश्वर खुद चेक कर लेते तो ठीक रहता.’’

आंखों की झिरी से झांक कर निवेदिता ने देखा तो लगा कि पूरा कमरा ही घूम रहा है. श्वेता ने कुछ देर पहले ही उसे नींद का इंजेक्शन दिया था. पर डा. तेज का नाम सुन कर उस का मन, अंतर, झंकृत हो उठा था. सोचनेविचारने की जैसे सारी शक्ति ही चुक गई थी. ढलती आयु में भी मन आंदोलित हो उठा था. मन में विचार आया कि पूछे, आए क्यों नहीं? पर श्वेता के चेहरे पर उभरी आड़ीतिरछी रेखाओं को देख कर निवेदिता कुछ कह नहीं पाई थी.

‘‘तकदीर को आप कितना भी दोष दे लो, मां, पर सचाई यह है कि आप की इस दशा के लिए दोषी डा. तेज खुद हैं,’’ आज सुबह ही तो मांबेटी में बहस छिड़ गई थी.

‘‘वह तेरे पिता हैं.’’

‘‘मां, जिस के पास संतुलित आचरण का अपार संग्रह न हो, जो झूठ और सच, न्यायअन्याय में अंतर न कर सके वह व्यक्ति समाज में रह कर समाज का अंग नहीं बन सकता और न ही सम्माननीय बन सकता है,’’ क्रोधित श्वेता कुछ ही देर में कमरा छोड़ कर बाहर चली गई थी.

बेटी के जाने के बाद से उपजा एकांत और अकेलापन निवेदिता को उतना असहनीय नहीं लगा जितना हमेशा लगता था. एकांत में मौन पड़े रहना उन्हें सुविधाजनक लग रहा था.

खयालों में बरसों पुरानी वही तसवीर साकार हो उठी जिस के प्यार और सम्मोहन से बंधी, वह पिता की देहरी लांघ उस के साथ चली आई थी.

उन दिनों वह बी.ए. फाइनल में थी. कालिज का सालाना आयोजन था. म्यूजिकल चेयर प्रतियोगिता में निवेदिता और तेजेश्वर आखिरी 2 खिलाड़ी बचे थे. कुरसी 1 उम्मीदवार 2. कभी निवेदिता की हथेली पर तेजेश्वर का हाथ पड़ जाता, कभी उस की पीठ से तेज का चौड़ा वक्षस्थल टकरा जाता. जीत, तेजेश्वर की ही हुई थी लेकिन उस दिन के बाद से वे दोनों हर दिन मिलने लगे थे. इस मिलनेमिलाने के सिलसिले में दोनों अच्छे मित्र बन गए. धीरेधीरे प्रेम का बीज अंकुरित हुआ तो प्यार के आलोक ने दोनों के जीवन को उजास से भर दिया.

अंतर्जातीय विवाह के मुद्दे को ले कर परिवार में अच्छाखासा विवाद छिड़ गया था. लेकिन बिना अपना नफानुकसान सोचे निवेदिता भी अपनी ही जिद पर अड़ी रही. कोर्ट में रजिस्टर पर दस्तखत करते समय, सिर्फ मांपापा, तेजेश्वर और निवेदिता ही थे. इकलौती बेटी के ब्याह पर न बाजे बजे न शहनाई, न बंदनवार सजे न ही गीत गाए गए. विदाई की बेला में मां ने रुंधे गले से इतना भर कहा था, ‘सपने देखना बुरा नहीं होता पर उन सपनों की सच के धरातल पर कोई भूमिका नहीं होती, बेटी. तेरे भावी जीवन के लिए बस, यही दुआ कर सकती हूं कि जमीन की जिस सतह पर तू ने कदम रखा है वह ठोस साबित हो.’

विवाह के शुरुआती दिनों में सुंदर घर, सुंदर परिवार, प्रिय के मीठे बोल, यही पतिपत्नी की कामना थी और यही प्राप्ति. शुरू में तेज का साथ और उस के मीठे बोल अच्छे लगते थे. बाद में यही बोल किस्सा बन गए. निवि को बात करने का ढंग नहीं है, पहननाओढ़ना तो उसे आता ही नहीं है. सीनेपिरोने का सलीका नहीं. 2 कमरों के उस छोटे से फ्लैट को सजातेसंवारते समय मन हर पल पति के कदमों की आहट को सुनने के लिए तरसता. कुछ पकातेपरोसते समय पति के मुख से 1-2 प्रशंसा के शब्द सुनने के लिए मन मचलता, लेकिन तेजेश्वर बातबात पर खीजते, झल्लाते ही रहते थे.

निवेदिता आज तक समझ नहीं पाई कि ब्याह के तुरंत बाद ही तेज का व्यवहार उस के प्रति इतना शुष्क और कठोर क्यों हो गया. उस ने तो तेज को मन, वचन, कर्म से अपनाया था. तेज के प्रति निवेदिता को कोई गिलाशिकवा भी नहीं था.

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