अश्लीलता पर प्रतिबंध के बहाने

अश्लीलता परोसने वाली लगभग 850 पोर्न वैबसाइट्स पर प्रतिबंध लगाया गया है. हजारों वैबसाइट्स में से सिर्फ 850 ही क्यों चुनी गईं? इन्हें चुनने का क्या पैमाना है? इस के पीछे सरकार की क्या मंशा है? यदि इन सभी सवालों के जवाब तलाशने की जगह क्या हम यह मान कर निश्चिंत हो सकते हैं कि पोर्नोग्राफी पर नियंत्रण से समाज में स्वस्थ मानसिकता फलीभूत होगी. फलस्वरूप क्राइम रेट घटेगा. यह कोई गारंटी नहीं है क्योंकि यौन अपराध तो साइबर क्रांति से पहले भी हो रहे थे. हां, इस बहाने सरकार को अपना छिपा एजेंडा लागू करने का मौका मिल रहा है और विरोधियों पर नियंत्रण करने का भी. कुछ लोगों का सही मानना है कि यह पाबंदी उन के अधिकारों का हनन है.

यह ठीक है कि यौन शोषण को रोकने के लिए सरकार को कड़े कानून बनाने चाहिए. नियमों के साथ उस के पालन पर भी पैनी नजर सरकार की होनी चाहिए. अगर इस ओर सख्ती नहीं बरती गई तो मासूम बच्चों को जिस्मफरोशी से ले कर पोर्नोग्राफी जैसे गंदे व्यवसाय में धकेला जा सकता है.

बेबुनियाद तर्क

मोबाइल पर पोर्न  देखने के मामले पर भारत चौथे स्थान पर है. कुछ ही दिनों में इंटरनैट के सब से अधिक उपभोक्ता भारत में होंगे. ऐसे में यह कहना कि पोर्न पर नियत्रंण की यह पहल समाज से हिंसा, रेप, शोषण, वेश्यावृत्ति आदि के नामोनिशान मिटाने में कारगर होगी, बेबुनियाद है.

इस प्रतिबंध से कुछ हासिल नहीं होगा. समाज में हिंसा, रेप, शोषण, वेश्यावृत्ति आदि घिनौनी हरकतों का अस्तित्व रहेगा. इंसान को जिस चीज के लिए रोका जाता है वह उसी के पीछे दौड़ता है. यह इंसान की फितरत है.

चीनी सरकार अपने नागरिकों पर नकेल कसने के लिए अनापशनाप पैसा खर्च करती है. वहां इस के लिए कई लोग नियुक्त किए गए हैं. और तो और इंटरनैट सरकारी नियंत्रण में है. फिर भी उसे आंशिक कामयाबी मिलती है. ऐसे में भारत की नीतियां व संसाधन मजबूत नहीं हैं.

चीन के मुकाबले भारत की नीतियां कमजोर हैं. हमारे यहां जिस गति से नियमकानून बनते हैं उसी गति से उन का उल्लंघन भी होता है. नियमों का पालन सख्ती से नहीं किया जाता. आपराधिक मामले लंबे अरसे तक कोट में चलते रहते हैं.

पोर्नोग्राफी मानसिक प्रदूषण फैला रहा है, जिस का सीधा प्रभाव मनुष्य के मस्तिष्क पर पड़ता है. यह नकारात्मक प्रभाव उस के व्यक्तित्व में इस कदर शुमार हो जाती है कि अमानवीय विकारों से समाज प्रदूषित होने में देर नहीं लगती.

सामाजिक स्तर पर पोर्नोग्राफी स्वस्थ समाज वाले संस्कारों जैसे नैतिकता शिष्टाचार आदि को नष्ट कर देती है. पोर्न  वैबसाइट्स पर प्रतिबंध तभी समाज में गहरी छाप छोड़ेगा जब प्रतिबंध के उल्लंघन को अपराध माना जाए.

इंटरनैट से पोर्न  वैबसाइट्स पर रोक के लिए सख्ती बहुत जरूरी है. हमारे यहां नियम बनते हैं. कुछ दिनों तक उस उस का बिगुल दुनिया भर में बजता है. फिर नियम किताबों में कैद हो जाते हैं. ऐसे में नियमों से समाज का कल्याण असंभव है.

माना हमारा संविधान भारतीय नागरिकों को इच्छानुसार जीने का अधिकार देता है, ऐसे में इस के खिलाफ आवाज उठाना गलत है. अगर कोई वयस्क चारदीवारी में पोर्न  देखता है और इस से समाज को कोई नुकसान नहीं. ऐसे में पोर्न वैबसाइट्स पर प्रतिबंध व्यक्ति का हनन है.

वहीं दूसरी ओर पोर्न वैबसाइट्स समाज के सामने हो तो वह सरासर गलत है. सरकार ने प्रतिबंध तो लगा दिया लेकिन इस के लिए सख्ती नहीं बरती तो ऐसे नियमों का कोई फायदा नहीं है. रोक लगाने के बाद भी इस की उपलब्धता को नष्ट करना होगा अन्यथा मानसिक रूप से विकृत इंसान के लिए सोशल मीडिया पर पोर्न  परोसा जा रहा है.

पैसों के लालच में दोस्ती का कत्ल

5 जून की रात के 10 बजने को थे. ग्वालियर के कंपू थाना इलाके के टोटा की बजरिया में रहने वाले जिला विशेष शाखा के आरक्षक समीर ढींगरा ने अपने पड़ोसी मनोज श्रीवास्तव के बेटे संजू की बाइक अपने घर के सामने खड़ी देखी तो वह बुदबुदाने लगे, ‘सारी जगह छोड़ कर इस लड़के को सिर्फ मेरे ही दरवाजे पर बाइक खड़ी करने को जगह मिलती है.’

बाइक को हटवाने के लिए पहले उन्होंने संजू को आवाज दी, लेकिन जब उस ने कोई रिस्पौंस नहीं दिया तो उन्होंने संजू के मोबाइल पर फोन किया. स्क्रीन पर समीर अंकल का नंबर देख संजू समझ गया कि उन्हें सड़क किनारे खड़ी अपनी स्कौर्पियो घर के भीतर रखनी होगी, इसीलिए बाहर खड़ी बाइक को हटाने के लिए फोन किया है.

समीर को हालांकि पुलिस की नौकरी में 20 साल हो गए थे, लेकिन पुलिस महकमे में आरक्षक को इतनी पगार नहीं मिलती कि वह स्कौर्पियो जैसी लग्जरी कार खरीद सके. लेकिन समीर की बात और थी, उस की महत्त्वाकांक्षाएं ऊंची थीं. उस का अपना शानदार मकान था, साथ ही 2 लग्जरी कारें भी.

दरअसल, समीर के आर्थिक दृष्टि से मजबूत होने की वजह यह थी कि वह पिछले कई सालों से प्रौपर्टी के कारोबार में जुड़ा था. इस कारोबार में उस ने अपने साझेदारों के साथ मिल कर करोड़ों रुपए कमाए थे. बस दुख की बात यह थी कि उस ने दौलत तो खूब कमाई थी, लेकिन उसे पारिवारिक सुख नहीं मिला था.

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पिता के निधन के बाद तमाम कठिनाइयों से जूझते हुए समीर को पुलिस महकमे में आरक्षक की नौकरी मिल गई थी. इस के साथ ही उस ने साझेदारी में प्रौपर्टी का कारोबार भी कर लिया था.

इसी बीच उस के बहनोई का सड़क हादसे में निधन हो गया था. पति की मौत के बाद उस की बहन गीता आहूजा और भांजी को अकेलेपन का बोझ न सहना पड़े, इसलिए समीर बहन और भांजी को अपने साथ ले आया था और उन दोनों को अपने साथ घर में ही रख लिया था. भांजी पढ़लिख कर कुछ बन जाए, इसलिए उस ने उस का दाखिला बनारस के एक अच्छे स्कूल में करवा दिया था.

समीर के बारे में अच्छी बात यह थी कि वह सभी से सौहार्दपूर्ण संबंध रखता था, साथ ही दूसरों की मदद के लिए भी तैयार रहता था. धार्मिक मामलों में भी उस की काफी रुचि थी. वह ऐसे किसी भी आयोजन के लिए पैसे देता रहता था.

5 साल पहले समीर की दोनों किडनी खराब हो चुकी थी. डाक्टरों ने उसे इस बात के संकेत दे दिए थे कि उस का जीवन ज्यादा लंबा चलने वाला नहीं है. यह जान कर उसे तगड़ा झटका लगा था. उसे यह चिंता सताने लगी थी कि दुनिया से जाने के बाद उस की मां, बहन और भांजी का क्या होगा. समीर को इस बात का कतई आभास नहीं था कि इस से पहले ही कोई उस की जान लेने के लिए तैयार बैठा है.

बहरहाल, समीर अंकल का फोन आने पर संजू अपनी बाइक हटाने के लिए जैसे ही घर के बाहर आया, वह यह देख कर हक्काबक्का रह गया कि समीर पर 2 युवक गोलियां चला रहे हैं. गोली चलने की आवाज सुन कर आसपास के लोग भी घर से बाहर निकल आए.

लोगों ने देखा कि समीर खून से लथपथ सड़क पर पड़ा छटपटा रहा है. जब तक पड़ोसी कुछ समझ पाते, तब तक हमलावर अंधेरे का लाभ उठा कर सफेद रंग की गाड़ी से भाग खड़े हुए थे.  पड़ोस में रहने वाले लोगों ने फोन कर के इस घटना की सूचना कंपू थाने को दे दी.

संयोग से थानाप्रभारी महेश शर्मा थाने में ही मौजूद थे. उन्होंने मामला दर्ज करवा कर इस की सूचना एसपी डा. आशीष, एएसपी अभिषेक तिवारी और सीएसपी शैलेंद्र जादौन को दे दी. इस के साथ ही वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थोड़ी देर बाद एसपी डा. आशीष, एएसपी अभिषेक तिवारी और सीएसपी शैलेंद्र जादौन भी वहां आ गए.

फोरैंसिक टीम को भी मौकाएवारदात पर बुला लिया गया था. समीर को 315 बोर के कट्टे से काफी नजदीक से गोली मारी गई थी. समीर की मां और बहन भी घर से बाहर आ गई थीं और बिलखबिलख कर रो रही थीं.

इस बीच डा. आशीष ने समीर की मां को पहचान लिया. उन्हें याद आया कि 1 जून को जब वह अपने औफिस में बैठे थे, तब यह वृद्ध महिला उन के पास शिकायत ले कर आई थी, जिस में लिखा था कि उस के बेटे के साझीदार बेईमानी पर उतर आए हैं. उन्होंने उस का काफी पैसा हड़प लिया है. इस मामले में एसपी ने उचित काररवाई की थी.

घटनास्थल से सारे साक्ष्य एकत्र करने के बाद पुलिस ने समीर की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. सीएसपी श्री जादौन और टीआई श्री शर्मा ने समीर के पड़ोस में रहने वालों से पूछताछ की तो पता चला कि उस की दोनों किडनी खराब हो चुकी थीं. डाक्टरों ने उसे बता दिया था कि इस स्थिति में वह ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाएगा. तभी से वह काफी मायूस रहने लगा था.

पुलिस के लिए हैरानी की बात यह थी कि जब समीर की जिंदगी चंद दिनों की बची थी तो फिर ऐसी कौन सी वजह थी कि उस की हत्या कर दी गई. पूछताछ में पुलिस को पता चला कि हत्यारे ने समीर को काफी करीब से गोली मारी थी. इस से यह बात साफ हो गई कि समीर की हत्या रेकी करने के बाद किराए के बदमाशों से कराई गई थी.

छानबीन में पुलिस को पता चला कि समीर पुलिस की नौकरी के साथ प्रौपर्टी का कारोबार भी करता था. उस ने अपनी मां गंगादेवी के नाम से गंगादेवी बिल्डर प्राइवेट लिमिटेड नाम से फर्म बना रखी थी. इस फर्म में उस की मां गंगादेवी, बहन गीता आहूआ और परिवार के एक सदस्य पंकज गुगनानी 51 प्रतिशत के साझेदार थे. शेष में उस के जिगरी दोस्त महेश जाट की पत्नी सुनीता जाट, पिता प्रीतम जाट और मोहम्मद फारुख सहित कुछ अन्य लोग साझेदार थे.

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पुलिस ने हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए समीर के आधा दरजन साझेदारों से गहन पूछताछ की. लेकिन हत्या की हकीकत सामने नहीं आई. क्राइम ब्रांच में तैनात कांस्टेबल महेश जाट समीर का खास दोस्त था. जब उस के बारे में समीर की मां से पूछा गया तो उन्होंने दो टूक कहा कि महेश ऐसा काम नहीं कर सकता.

पुलिस इस हत्या की गुत्थी सुलझाने में लग गई. उस ने कई बिंदुओं पर गौर किया और गंगादेवी के इनकार करने के बावजूद टीआई महेश शर्मा ने महेश जाट को थाने बुला कर सीधे सवाल किया कि फुटेज में जो जीप दिख रही है, वह किस की है? महेश ने देख कर बताया, ‘‘यह तो दीपक जाट के भाई जगमोहन किरार की है.’’

इसी क्लू से तेजतर्रार थानाप्रभारी ने सारा मामला सुलझा लिया. सुपारी किलिंग कराने वाले महेश जाट ने ही 2 लाख रुपए में समीर को ठिकाने लगाने की सुपारी दी थी. इस में बोनस औफर यह था कि जिस की गोली समीर को लगेगी, उसे पैसे के साथ एक बुलेट मोटरसाइकिल भी तोहफे में दी जाएगी. पुलिस को पूछताछ में यह भी पता चला कि समीर की हत्या करने के बाद घटनास्थल से भागते सतवीर उर्फ जग्गू किरार ने महेश जाट को फोन कर के कहा था, ‘‘मामा काम हो गया.’’

इसी वजह से पुलिस का ध्यान समीर के सब से करीबी लोगों पर जा रहा था. पुलिस ने समीर के साझेदारों को बुला कर उन से फिर पूछताछ की. लेकिन कुछ खास पता नहीं चला तो सभी को घर भेज दिया गया. 10 जून की रात में क्राइम ब्रांच की टीम ने बिरलानगर से बेताल किरार, सतवीर किरार और शिवम जाट को उठा लिया.

इन तीनों को हिरासत में ले कर जब सख्ती से पूछताछ की गई तो तीनों टूट गए. उन्होंने मान लिया कि समीर ढींगरा की हत्या का मास्टरमाइंड समीर का जिगरी दोस्त महेश जाट है. उस ने ही गैंगस्टर हरेंद्र राणा के साथी दीपक जाट के भाई सतवीर को सुपारी दी थी. इस अहम जानकारी के बाद पुलिस ने महेश जाट को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में समीर ढींगरा की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

महेश और समीर ढींगरा एक ही महकमे में कार्यरत होने की वजह से पिछले 22 सालों से जिगरी दोस्त थे और दोनों मिल कर पिछले 10 सालों से प्रौपर्टी खरीदने और बेचने का काम कर रहे थे. इन दोनों ने अशोक गोयल की 42 बीघा जमीन खरीद कर उस में 300 प्लौट काट कर बेचे थे. इस कारोबार में महेश का शातिर दिमाग और समीर का पैसा चल रहा था. महेश ने वहां बड़ेबड़े 20 प्लौट बेच दिए थे. लेकिन उस ने समीर के हिस्से का पैसा नहीं दिया था. अलबत्ता उस ने डेढ़ करोड़ में से कुछ रकम अशोक गोयल को जरूर दे दी थी.

इस जमीन में पौवर औफ अटार्नी में समीर की मां गंगादेवी के हस्ताक्षर थे. जिस की वजह से उन की मरजी से ही रजिस्ट्री हो सकती थी. दरअसल, जब समीर को लगा कि महेश की नीयत में खोट आ गया है तो उस ने उस जमीन की बिक्री के लिए ऐसी व्यवस्था करा दी थी कि उस की मां के बगैर जमीन की बिक्री न हो सके. इसी वजह से महेश उन प्लौटों की रजिस्ट्री उन के नाम नहीं करवा पा रहा था, जिन से उस ने एडवांस लिया था. एडवांस देने वाली पार्टी उस पर रजिस्ट्री के लिए दबाव बना रही थी.

दूसरी ओर अशोक गोयल भी समीर के व्यवहार और लेनदेन से काफी खुश थे, इसलिए वह उस के पक्ष में ही बोलते थे. मां के नाम से पंजीकृत फर्म का 12 करोड़ रुपए का चैक समीर अशोक गोयल को दे चुका था, लेकिन समीर के साझेदार महेश ने अपने हिस्से में 2 करोड़ की हेराफेरी कर दी थी. इस बात को ले कर दोनों जिगरी दोस्तों में जम कर तकरार हुई. यहां तक कि दोनों ने एकदूसरे को कानूनी नोटिस तक दे दिए थे.

महेश जाट ने बिना समीर को बताए सिटी सैंटर में 85 लाख रुपए की एक आलीशान कोठी खरीद ली थी. महेश की इस हरकत से समीर के दिल में महेश के लिए प्यार कम और नफरत ज्यादा हो गई. इसी के चलते महेश ने टेकनपुर प्रौपर्टी में पार्टनर जगमोहन किरार उर्फ जग्गू को प्रलोभन दिया कि जिस प्लौट का उस ने उसे एडवांस दिया है, उस की रजिस्ट्री मुफ्त में कर देगा लेकिन इस के एवज में उस के साझीदार समीर ढींगरा को निपटाना होगा.

जगमोहन की बहन बिरलानगर में रहती थी. आरोपी बेताल किरार भी वहीं पास में रहता था. जगमोहन ने बेताल से कहा कि कट्टे से अचूक गोली मारने वाले लड़के ढूंढो. बेताल ने शुभम जाट और सतबीर जाट को तलाश कर के सुपारी के रूप में 1-1 लाख तय किए.

जगमोहन ने पूछताछ में बताया कि महेश पिछले एक पखवाड़े से समीर को निपटाने की जुगत में लगा था. कुछ दिनों पहले भी उस ने रेलवे स्टेशन के नजदीक समीर को ठिकाने लगाने की योजना बनाई थी. लेकिन संयोग से समीर बच निकला था. समीर की हत्या के बाद पुलिस को 2 बदमाशों को भागते देखने की बात बताने वाले संजू श्रीवास्तव के पिता मनोज श्रीवास्तव ने समीर की रेकी की थी और सतबीर को फोन कर के बता दिया था कि वह अपनी स्कौर्पियो उठाने आ गया है.

मनोज के फोन के बाद ही सतबीर और शुभम समीर को गोली मारने पहुंचे. वहां पहुंच कर गोली सतबीर ने चलाई. समीर को मौत के घाट उतारने के बाद वे जगमोहन की बोलेरो में बैठ कर वहां से फरार हो गए. पुलिस पड़ताल में यह भी पता चला कि जिस वक्त सतबीर और शुभम समीर ढींगरा को जान से मारने गए, उस वक्त महेश जाट घटनास्थल के करीब ही मौजूद था और सारे घटनाक्रम पर नजर रख रहा था.

समीर ढींगरा को मौत के घाट उतारने के बाद जगमोहन उर्फ जग्गू किरार अलीगढ़ भाग गया था. वहां जा कर उस ने बड़े ही सुनियोजित ढंग से खुद को अवैध कट्टा और कारतूस रखने के जुर्म में गिरफ्तार करवा दिया था. पुलिस उसे जेल भेज चुकी थी. उस की मंशा थी कि किसी भी तरह पुलिस उस तक न पहुंच पाए.

महेश जाट कितना बड़ा मास्टरमाइंड था, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि समीर की हत्या सतबीर जाट और शुभम जाट के हाथों करवाने के बाद वह मृतक की मां गंगादेवी और बड़ी बहन को दिलासा देने उन के घर पहुंच गया, क्योंकि उसे लगता था कि इस मामले में उस का नाम नहीं आएगा. वह एक हफ्ते तक बेखटके समीर के घर आताजाता रहा. लेकिन उसे यह मालूम नहीं था कि अपराध चाहे कितनी भी चालाकी से क्यों न किया गया हो, एक न एक दिन उस का राज खुल ही जाता है.

कथा लिखे जाने तक समीर ढींगरा की हत्या के आरोप में पुलिस ने महेश जाट सहित सतबीर, शुभम जाट, बेताल किरार, मनोज श्रीवास्तव और जगमोहन किरार को गिरफ्तार कर के मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर दिया था, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया था.

बहरहाल, समीर नहीं रहा. उस के न रहने से जहां उस की बूढ़ी मां गंगादेवी की दुनिया उजड़ गई, वहीं विधवा बहन गीता आहूजा का सहारा भी छिन गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ठग बिल्डरों को बचाने वाले कानून के रखवाले

जमीनों पर जबरन कब्जा करने वाले दबंगों, अपराधियों और धोखेबाज बिल्डरों का साथ देने वाले पुलिस वालों के सिर पर कानून की तलवार लटक गई है. पटना के सभी ठग बिल्डरों, प्रोपर्टी डीलरों और जमीन माफिया का कच्चाचिट्ठा तैयार किया जा रहा है.

पटना के थानों में दर्ज जमीनों पर जबरन कब्जा करने वाले बिल्डरों, अपराधियों और उन का साथ देने वाले भ्रष्ट पुलिस वालों की फाइल तैयार करने की कवायद शुरू की गई है.

पुलिस के पास लगातार ऐसी शिकायतें आ रही थीं कि कुछ पुलिस वाले दबंगों के साथ मिल कर कीमती जमीनों पर गैरकानूनी तरीके से कब्जा कर रहे हैं.

दबंग अपराधी किसी भी जमीन पर अपना खूंटा गाड़ देते हैं और जमीन मालिक को औनेपौने भाव में जमीन बेचने का दबाव बनाते हैं. कई बिल्डर और प्रोपर्टी डीलर तो ग्राहकों के लाखों रुपए ठग कर फ्लैट देने में भी आनाकानी कर रहे हैं.

जब कोई पीडि़त ग्राहक या जमीन मालिक पुलिस से गुहार लगाता है, तो दबंगों पर कार्यवाही करने के बजाय भ्रष्ट पुलिस वाले उलटे जमीन मालिक को ही समझातेधमकाते हैं कि जो पैसा मिल रहा है, उतने में ही जमीन बेच दो, वरना अपराधी जबरन कब्जा कर लेंगे और जमीन के एवज में कुछ भी नहीं मिलेगा.

डीआईजी शालीन के आदेश पर सभी थानों के दागी पुलिस वालों की पहचान शुरू कर दी गई है.

मिसाल के तौर पर कंकड़बाग महल्ले के एक रिटायर्ड अफसर ने मकान बनवाया था और उन के बच्चे बिहार से बाहर नौकरी करते थे. एक दबंग ने उन से मकान बेचने को कहा. जब उन्होंने मकान नहीं बेचा, तो उस दबंग ने अपने गुरगों के साथ उन के घर पर धावा बोल दिया और घर में रखा सामान उठा कर बाहर फेंकने लगा.

उस रिटायर्ड अफसर ने पुलिस के पास गुहार लगाई, पर एफआईआर दर्ज करने के बजाय पुलिस वालों ने उन से कहा कि जितना रुपया मिल रहा है, उतने में मकान बेच दो. ज्यादा जिद और थानाकचहरी करोगे, तो आप को कुछ भी नहीं मिलेगा.

पिछले साल ऐसे मामलों में शामिल तकरीबन 6 पुलिस वालों को सस्पैंड किया गया था, इस के बाद भी पुलिस वालों ने कोई सबक नहीं सीखा है.  राजीव नगर थाना, सचिवालय थाना, गांधी मैदान थाना समेत कई थानों के पुलिस वाले ऐसे केसों में शामिल पाए गए हैं.

पिछले साल राजीव नगर थाने के तब के थाना इंचार्ज सिंधुशेखर पर कानूनी कार्यवाही की गई थी. इसी तरह दीदारगंज थाने के इंस्पैक्टर मुखलाल पासवान को सस्पैंड किया गया था. दोनों पर आरोप था कि उन्होंने जबरन जमीन बिकवाने के लिए दबंगों का साथ दिया था.

मोकामा के विधायक के बौडीगार्ड रह चुके विपिन सिंह को अपहरण के मामले में शामिल रहने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. वहीं सचिवालय थाने के सिपाही दीपक कुमार को अपहरण के मामले में शामिल रहने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. जक्कनपुर थाने के एक सिपाही को खुलेआम रंगदारी मांगने के आरोप में सस्पैंड किया गया था.

पुलिस सूत्रों की मानें, तो पटना और दूसरे कई शहरों में कई धोखेबाज और ठग बिल्डरों पर नकेल कसने के लिए बिल्डरों के केसों की समीक्षा, वारंट जारी होने, गिरफ्तारी के हालात पैदा होने, बेल बौंड का सत्यापन कराए जाने को ले कर बिल्डरों में हड़कंप मचा हुआ है. इन से बचने के लिए कई बिल्डर पुलिस वालों की मदद ले रहे हैं.

इन केसों की समीक्षा में डीआईजी शालीन को थाना लैवल पर ही मामलों को दबाने, जमीन माफिया और ठग बिल्डरों से मिलीभगत के संकेत मिल थे.

ठग बिल्डरों के बेल बौंड के सत्यापन का काम शुरू कर दिया गया है. जांच में यह पता करने की कोशिश की जा रही है कि किनकिन लोगों ने झूठे कागजात लगा कर कोर्ट को गुमराह कर जमानत हासिल की थी. पता चलने पर ऐसे लोगों पर केस दर्ज होगा.

बिल्डर अनिल सिंह के केस में फर्जी कागजात सामने आने पर डीआईजी ने कुल 30 केसों में आरोपित पटना के बिल्डरों के बेल बौंड की समीक्षा करने का आदेश जारी किया है.

जमीन पर जबरन कब्जे को ले कर रक्सौल में हुई गोलीबारी के तार पटना के बेऊर जेल से जुड़ने लगे हैं. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, गोलीबारी करने वाले गिरोह का सरगना कई मामलों में जेल में बंद है. उस के इशारे पर ही रक्सौल में जमीन कब्जाने की कोशिश की गई थी. इस मामले में फिलहाल 12 लोगों को पकड़ा गया है. गिरफ्तार अपराधियों ने ही बेऊर जेल में बंद सरगना का नाम लिया है.

पुलिस सूत्रों की मानें, तो अपराधियों के लिए रक्सौल में एक होटल बुक कराने का काम पटना पुलिस के ही एक सिपाही ने किया था. उस सिपाही ने अपने आई कार्ड की फोटोकौपी होटल में जमा करा कर 3 कमरे बुक किए थे. पुलिस इस मामले में सिपाही के शामिल होने की जांच कर रही है.

पटना सैंट्रल के डीआईजी शालीन ने बताया कि सभी थानों से ऐसे पुलिस वालों की लिस्ट मांगी गई है, जो माफिआ से सांठगांठ कर उन की मदद करते रहे हैं. आरोप साबित होने पर उन पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी. अगर किसी जमीन मालिक को जमीन के मामले में कोई पुलिस वाला धमकी दे या किसी के खिलाफ एफआईआर न लिखे, तो सीधे डीआईजी से शिकायत की जा सकती है.

पुलिस ने उन बिल्डरों, प्रोपर्टी डीलरों और जमीन माफिया पर नकेल कसने की कवायद शुरू की है, जो फ्लैट, मकान या जमीन देने के नाम पर ग्राहकों से मोटी रकम वसूल चुके हैं, इस के बाद भी ग्राहकों को फ्लैट या जमीन नहीं दे रहे हैं.

कई बिल्डर तो ग्राहकों के साथ मारपीट कर रहे हैं और धमका रहे हैं. ग्राहक जब पुलिस थाने में केस करता है, तो बिल्डर मामले की जांच कर रहे अफसर की मुट्ठी गरम कर केस दबा रहे हैं.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, हर थाने में ऐसे 10-12 मामले हैं, जिन पर पुलिस ने कार्यवाही नहीं की है. अब हर थाने से रिपोर्ट मांगी गई है कि किसकिस बिल्डर, प्रोपर्टी डीलर और जमीन माफिया पर केस दर्ज हैं? किसकिस के खिलाफ अदालत से वारंट जारी हुआ है? किसकिस थाने में कितनों के खिलाफ मामले दर्ज हैं और उस का केस नंबर क्या है? किस तारीख को किनकिन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है?

एक ताजा मामले में बिल्डर अब्दुल खालिद के खिलाफ कोर्ट से जारी गिरफ्तारी वारंट को 6 महीने तक दबा कर रखने के आरोप में पटना के शास्त्री नगर थाने में तैनात दारोगा पर पुलिस महकमे ने कार्यवाही शुरू कर दी है. डीआईजी शालीन ने एसएसपी को आदेश दिया है कि उस दारोगा पर तुरंत कार्यवाही की जाए.

इस मामले का खुलासा तब हुआ, जब 2 औरतें दारोगा के खिलाफ शिकायत ले कर डीआईजी के पास पहुंची थीं. उन औरतों ने कहा कि फ्लैट देने के नाम पर बिल्डर अब्दुल खालिद ने उस से लाखों रुपए ले लिए हैं, पर पिछले कई महीनों से वह फ्लैट देने में टालमटोल कर रहा है.

पुलिस ने जांच की, तो पता चला कि उस बिल्डर के खिलाफ पिछले 6 महीने से कोर्ट से वारंट निकला हुआ था, पर दारोगा उसे दबा कर बैठा रहा.

पटना में जिन बिल्डरों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, उन की समीक्षा की गई. दर्ज मामलों में अगर कोई बिल्डर जमानत पर है, तो उस के बेलर की जांच की जाएगी. बिल्डर अनिल सिंह का मामला सामने आने के बाद सभी बिल्डरों पर दर्ज मामलों की लिस्ट तैयार की जा रही है.

29 मामले ऐसे सामने आए हैं, जिन की पड़ताल की जा रही है. जांच में अगर पाया गया कि किसी ने फर्जी बेलर के जरीए जमानत ली है, तो बिल्डर के खिलाफ धोखाधड़ी का नया केस भी दर्ज किया जाएगा. बेलर के खिलाफ भी गलत जानकारी देने का केस दर्ज होगा.

28 अप्रैल, 2016 को एक्जिबिशन रोड पर एक जमीन को ले कर पैदा हुए विवाद में अनिल सिंह और लोकल लोगों के खिलाफ जम कर मारपीट और आगजनी हुई थी. वारदात के बाद बिल्डर और उस के गुरगों के खिलाफ गांधी मैदान थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी. वारदात के बाद ही अनिल सिंह फरार हो गया था, पर उस के पिछले रिकौर्ड की जांच में पुलिस ने पाया कि पिछले 2 मामलों में उस के बेलर ने गलत जानकारी दी थी.

गांधी मैदान थाने में दर्ज केस नंबर 331/2014 में जमानत पर चल रहे अनिल सिंह के बेलर नरेंद्र उर्फ नरेश कुमार चौधरी की खोज शुरू हुई. बेल बौंड में नरेश का पता आकाशवाणी रोड, आशियाना मोड़, राजीव नगर, पटना लिखा हुआ है. पुलिस ने जब उस पते पर नरेश कुमार की खोज की, तो उस नाम का कोई आदमी ही नहीं मिला.

इसी तरह आलमगंज थाने में दर्ज केस नंबर 211/2013 के मामले में भी अनिल सिंह ने फर्जी तरीके से जमानत ली है. कोर्ट को गुमराह करने और फर्जी तरीके से जमानत लेने के मामले में अनिल सिंह पर स्पीडी ट्रायल चलेगा.

यह केस हत्या की कोशिश, मारपीट और आर्म्स ऐक्ट के तहत दर्ज किया गया था.

सांसद मनोज तिवारी भी फंसे?

भारतीय जनता पार्टी के सांसद और भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार मनोज तिवारी पर रियल ऐस्टेट कंपनी का गलत प्रचार करने के आरोप में पटना के गांधी मैदान थाने में केस दर्ज किया गया है. मनोज तिवारी समेत रियल ऐस्टेट कंपनी के मैनेजिंग डायरैक्टर और डायरैक्टर समेत 9 लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज हुआ है.

मनोज तिवारी इस कंपनी के ब्रांड अंबैसडर हैं. यह केस पटना हाईकोर्ट के वकील चंद्रभूषण वर्मा की बीवी मीना रानी सिन्हा ने दर्ज कराया है. उन्होंने बताया कि कंपनी ने बिना खरीदे ही जमीन बेच डाली. जब वे अपनी जमीन पर कब्जा करने मनेर गईं, तो पता चला कि वह जमीन कंपनी की नहीं है. कंपनी ने वादा किया था कि जमीन नहीं देने की हालत में वह सूद के साथ पूरी रकम वापस करेगी. वे कंपनी से पिछले कई महीनों से अपनी मूल रकम 6 लाख, 58 हजार वापस मांग रही हैं, पर कंपनी रकम नहीं दे रही है.

इस बारे में मनोज तिवारी ने बताया कि वे पिछले 10 सालों से इस कंपनी के ब्रांड अंबैसडर हैं. अगर किसी की शिकायत सही है, तो वे समस्या का निबटारा करते हैं. एक शिकायतकर्ता का पैसा वापस करने के लिए चैक तैयार किया गया है और किसी की कोई शिकायत होगी, तो उस का भी निबटारा किया जाएगा

जुनूनी इश्क में पागलपन

वह गांव की सीधीसादी लड़की थी. नाम था उस का लाडो. वह आगरा के थानातहसील शमसाबाद के गांव सूरजभान के रहने वाले किसान सुरेंद्र सिंह की बेटी थी. घर वाले उसे पढ़ालिखा कर कुछ बनाना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

इस की वजह यह थी कि 2 साल पहले उस के कदम बहक गए. उसे साथ पढ़ने वाले देवेंद्र से प्यार हो गया. वह आगरा के थाना डौकी के गांव सलेमपुर का रहने वाला था. शमसाबाद में वह किराए पर कमरा ले कर रहता था.

अचानक ही लाडो को देवेंद्र अच्छा लगने लगा था. जब उसे पता चला कि देवेंद्र ही उसे अच्छा नहीं लगता, बल्कि देवेंद्र भी उसे पसंद करता है तो वह बहुत खुश हुई.

एक दिन लाडो अकेली जा रही थी तो रास्ते में देवेंद्र मिल गया. वह मोटरसाइकिल से था. उस ने लाडो से मोटरसाइकिल पर बैठने को कहा तो वह बिना कुछ कहे देवेंद्र के कंधे पर हाथ रख कर उस के पीछे बैठ गई. देवेंद्र ने मोटरसाइकिल आगरा शहर की ओर मोड़ दी तो लाडो ने कहा, ‘‘इधर कहां जा रहे हो?’’

‘‘यहां हम दोनों को तमाम लोग पहचानते हैं. अगर उन्होंने हमें एक साथ देख लिया तो बवाल हो सकता है. इसलिए हम आगरा चलते हैं.’’ देवेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं, आगरा से लौटने में देर हो गई तो मेरा जीना मुहाल हो जाएगा,’’ लाडो ने कहा, ‘‘इस के अलावा कालेज का भी नुकसान होगा.’’

‘‘हम समय से पहले वापस आ जाएंगे. रही बात कालेज की तो एक दिन नहीं जाएंगे तो क्या फर्क पड़ेगा.’’ देवेंद्र ने समझाया.

लाडो कशमकश में फंस गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह देवेंद्र के साथ जाए या नहीं? जाने का मतलब था उस के प्यार को स्वीकार करना. वह उसे चाहती तो थी ही, आखिर उस का मन नहीं माना और वह उस के साथ आगरा चली गई.

देवेंद्र उसे सीधे ताजमहल ले गया. क्योंकि वह प्रेम करने वालों की निशानी है. लाडो ने प्रेम की उस निशानी को देख कर तय कर लिया कि वह भी देवेंद्र को मुमताज की तरह ही टूट कर प्यार करेगी और अपना यह जीवन उसी के साथ बिताएगी.

प्यार के जोश में शायद लाडो भूल गई थी कि उस के घर वाले इतने आधुनिक नहीं हैं कि उस के प्यार को स्वीकार कर लेंगे. लेकिन प्यार करने वालों ने कभी इस बारे में सोचा है कि लाडो ही सोचती. उस ने ताजमहल पर ही साथ जीने और मरने की कसमें खाईं और फिर मिलने का वादा कर के घर आ गई.

इस के बाद लाडो और देवेंद्र की मुलाकातें होने लगीं. देवेंद्र की बांहों में लाडो को अजीब सा सुख मिलता था. दोनों जब भी मिलते, भविष्य के सपने बुनते. उन्हें लगता था, वे जो चाहते हैं आसानी से पूरा हो जाएगा. कोई उन के प्यार का विरोध नहीं करेगा. वे चोरीचोरी मिलते थे.

लेकिन जल्दी ही लोगों की नजर उन के प्यार को लग गई. किसी ने दोनों को एक साथ देख लिया तो यह बात सुरेंद्र सिंह को बता दी. बेटी के बारे में यह बात सुन कर वह हैरान रह गया. वह तो बेटी को पढ़ने भेजता था और बेटी वहां प्यार का पाठ पढ़ रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि लाडो ऐसा कैसे कर सकती है. वह तो भोलीभाली और मासूम है.

घर आ कर उस ने लाडो से सवाल किए तो उस ने कहा, ‘‘पापा, देवेंद्र मेरे साथ पढ़ता है, इसलिए कभीकभार उस से बातचीत कर लेती हूं. अगर आप को यह पसंद नहीं है तो मैं उस से बातचीत नहीं करूंगी.’’

सुरेंद्र सिंह ने सोचा, लोगों ने बातचीत करते देख कर गलत सोच लिया है. वह चुप रह गया. इस तरह लाडो ने अपनी मासूमियत से पिता से असलियत छिपा ली. लेकिन आगे की चिंता हो गई. इसलिए वह देवेंद्र से मिलने में काफी सतर्कता बरतने लगी.

लाडो भले ही सतर्क हो गई थी, लेकिन लोगों की नजरें उस पर पड़ ही जाती थीं. जब कई लोगों ने सुरेंद्र सिंह से उस की शिकायत की तो उस ने लाडो पर अंकुश लगाया. पत्नी से उस ने बेटी पर नजर रखने को कहा.

टोकाटाकी बढ़ी तो लाडो को समझते देर नहीं लगी कि मांबाप को उस पर शक हो गया है. वह परेशान रहने लगी. देवेंद्र मिला तो उस ने कहा, ‘‘मम्मीपापा को शक हो गया है. निश्चित है, अब वे मेरे लिए रिश्ते की तलाश शुरू कर देंगे.’’

‘‘कोई कुछ भी कर ले लाडो, अब तुम्हें मुझ से कोई अलग नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, इसलिए तुम्हें पाने के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ देवेंद्र ने कहा.

प्रेमी की इस बात से लाडो को पूरा विश्वास हो गया कि देवेंद्र हर तरह से उस का साथ देगा. लेकिन बेटी के बारे में लगातार मिलने वाली खबरों से चिंतित सुरेंद्र सिंह उस के लिए लड़का देखने लगा. उस ने उस की पढ़ाई पूरी होने का भी इंतजार नहीं किया.

जब लाडो के प्यार की जानकारी उस के भाई सुधीर को हुई तो उस ने देवेंद्र को धमकाया कि वह उस की बहन का पीछा करना छोड़ दे, वरना वह कुछ भी कर सकता है. तब देवेंद्र ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘भाई सुधीर, मैं लाडो से प्यार करता हूं और उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारी यह हिम्मत?’’ सुधीर ने कहा, ‘‘फिर कभी इस तरह की बात की तो यह कहने लायक नहीं रहोगे.’’

देवेंद्र परेशान हो उठा. लेकिन वह लाडो को छोड़ने को राजी नहीं था. इसी बीच परीक्षा की घोषणा हो गई तो दोनों पढ़ाई में व्यस्त हो गए. लेकिन इस बात को ले कर दोनों परेशान थे कि परीक्षा के बाद क्या होगा? उस के बाद वे कैसे मिलेंगे? यही सोच कर एक दिन लाडो ने कहा, ‘‘देवेंद्र, परीक्षा के बाद तो कालेज आनाजाना बंद हो जाएगा. उस के बाद हम कैसे मिलेंगे?’’

‘‘प्यार करने वाले कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं, इसलिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. हम भी कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे.’’ देवेंद्र ने कहा.

सुरेंद्र सिंह के घर से कुछ दूरी पर मनोज सिंह रहते थे. उन के 4 बच्चे थे, जिन में सब से बड़ी बेटी पिंकी थी, जो 8वीं में पढ़ती थी. पिंकी थी तो 12 साल की, लेकिन कदकाठी से ठीकठाक थी, इसलिए अपनी उम्र से काफी बड़ी लगती थी.

सुरेंद्र सिंह और मनोज सिंह के बीच अच्छे संबंध थे, इसलिए बड़ी होने के बावजूद लाडो की दोस्ती पिंकी से थी. लेकिन लाडो ने कभी पिंकी से अपने प्यार के बारे में नहीं बताया था. फिर भी पिंकी को पता था कि लाडो को अपने साथ पढ़ने वाले किसी लड़के से प्यार हो गया है.

गांव के पास ही केला देवी मंदिर पर मेला लगता था. इस बार भी 5 मार्च, 2017 को मेला लगा तो गांव के तमाम लोग मेला देखने गए. लाडो ने देवेंद्र को भी फोन कर के मेला देखने के लिए बुला लिया था. क्योंकि उस का सोचना था कि वह मेला देखने जाएगी तो मौका मिलने पर दोनों की मुलाकात हो जाएगी. प्रेमिका से मिलने के चक्कर में देवेंद्र ने हामी भर ली थी.

लाडो ने घर वालों से मेला देखने की इच्छा जाहिर की तो घर वालों ने मना कर दिया. लेकिन जब उस ने कहा कि उस के साथ पिंकी भी जा रही है तो घर वालों ने उसे जाने की अनुमति दे दी. क्योंकि गांव के और लोग भी मेला देखने जा रहे थे, इसलिए किसी तरह का कोई डर नहीं था.

लाडो और पिंकी साथसाथ मेला देखने गईं. कुछ लोगों ने उन्हें मेले में देखा भी था, लेकिन वे घर लौट कर नहीं आईं. दोनों मेले से ही न जाने कहां गायब हो गईं? शाम को छेदीलाल के घर से धुआं उठते देख लोगों ने शोर मचाया. छेदीलाल उस घर में अकेला ही रहता था और वह रिश्ते में सुरेंद्र सिंह का ताऊ लगता था. आननफानन में लोग इकट्ठा हो गए.

दरवाजा खोल कर लोग अंदर पहुंचे तो आंगन में लपटें उठती दिखाई दीं. ध्यान से देखा गया तो उन लपटों के बीच एक मानव शरीर जलता दिखाई दिया. लोगों ने किसी तरह से आग बुझाई. लेकिन इस बात की सूचना पुलिस को नहीं दी गई. मरने वाला इतना जल चुका था कि उस का चेहरा आसानी से पहचाना नहीं जा सकता था.

लोगों ने यही माना कि घर छेदीलाल का है, इसलिए लाश उसी की होगी. लेकिन लोगों को हैरानी तब हुई, जब किसी ने कहा कि छेदीलाल तो मेले में घूम रहा है. तभी किसी ने लाश देख कर कहा कि यह लाश तो लड़की की है. लगता है, लाडो ने आत्महत्या कर ली है. गांव वालों को उस के प्यार के बारे में पता ही था, इसलिए सभी ने मान लिया कि लाश लाडो की ही है.

लेकिन तभी इस मामले में एक नया रहस्य उजागर हुआ. मनोज सिंह ने कहा कि लाडो के साथ तो पिंकी भी मेला देखने गई थी, वह अभी तक घर नहीं आई है. कहीं यह लाश पिंकी की तो नहीं है. लेकिन गांव वालों ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और कहा कि पिंकी मेला देखने गई है तो थोड़ी देर में आ जाएगी. उसे कोई क्यों जलाएगा. इस बात को छोड़ो और पहले इस मामले से निपटाओ.

लोगों का कहना था कि लाडो ने आत्महत्या की है. अगर इस बात की सूचना पुलिस तक पहुंच गई तो गांव के सभी लोग मुसीबत में फंस जाएंगे, इसलिए पहले इसे ठिकाने लगाओ. मुसीबत से बचने के लिए गांव वालों की मदद से सुरेंद्र सिंह ने आननफानन में उस लाश का दाहसंस्कार कर दिया. लेकिन सवेरा होते ही गांव में इस बात को ले कर हंगामा मच गया कि पिंकी कहां गई? क्योंकि लाडो के साथ मेला देखने गई पिंकी अब तक लौट कर नहीं आई थी.

मनोज सिंह ने पिंकी को चारों ओर खोज लिया. जब उस का कहीं कुछ पता नहीं चला तो घर वालों के कहने पर वह थाना शमसाबाद गए और थानाप्रभारी विजय सिंह को सारी बात बता कर आशंका व्यक्त की कि लाडो और उस के घर वालों ने पिंकी की हत्या कर उस की लाश जला दी है और लाडो को कहीं छिपा दिया है.

लाडो की लाश का बिना पुलिस को सूचना दिए अंतिम संस्कार कर दिया गया था, इसलिए जब सुरेंद्र सिंह को पता चला कि मनोज सिंह थाने गए हैं तो डर के मारे वह घर वालों के साथ घर छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. लेकिन पुलिस ने भी मान लिया था कि लाडो ने आत्महत्या की है, क्योंकि उस का देवेंद्र से प्रेमसंबंध था और घर वाले उस के प्रेमसंबंध का विरोध कर रहे थे. लेकिन पिंकी का न मिलना भी चिंता की बात थी. तभी अचानक थाना शमसाबाद पुलिस को मुखबिरों से सूचना मिली कि लाडो आगरा के बिजलीघर इलाके में मौजूद है. इस बात की जानकारी लाडो के घर वालों को भी हो गई थी. लेकिन बेटी के जिंदा होने की बात जान कर वे खुशी भी नहीं मना सकते थे.

आखिर वे आगरा पहुंचे और लाडो को ला कर पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस ने लाडो से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह जली हुई लाश पिंकी की थी. उसी ने उस की हत्या कर के लाश को कंबल में लपेट कर जलाने की कोशिश की थी, ताकि लोग समझें कि वह मर गई है. इस के बाद वह अपने प्रेमी के साथ कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसाना चाहती थी.

पिंकी के पिता मनोज की ओर से अपराध संख्या 88/2017 पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत सुरेंद्र सिंह, सुधीर सिंह और लाडो के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी गई. पुलिस को लग रहा था कि लाडो पिंकी की हत्या अकेली नहीं कर सकती, इसलिए पुलिस ने शक के आधार पर 24 अप्रैल, 2017 को देवेंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

देवेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने लाडो के साथ मिल कर पिंकी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पिंकी की हत्या की जो सनसनीखेज कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली कहानी कुछ इस प्रकार थी.

घर वालों की बंदिशों से परेशान लाडो और उस के प्रेमी देवेंद्र को अपने प्यार का महल ढहता नजर आ रहा था, इसलिए वे एक होने का उपाय खोजने लगे. इसी खोज में उन्होंने पिंकी की हत्या की योजना बना कर उसे लाडो की लाश के रूप में दिखा कर जलाने की योजना बना डाली. उन्होंने दिन भी तय कर लिया.

पिंकी और लाडो की उम्र में भले ही काफी अंतर था, लेकिन उन की कदकाठी एक जैसी थी. लाडो को पता था कि उस के दादा छेदीलाल मेला देखने जाएंगे, इसलिए मेला देखने के बहाने वह पिंकी को छेदीलाल के घर ले गई. कुछ ही देर में देवेंद्र भी आ गया, जिसे देख कर पिंकी हैरान रह गई. वह यह कह कर वहां से जाने लगी कि इस बात को वह सब से बता देगी.

लेकिन प्यार में अंधी लाडो ने उसे बाहर जाने का मौका ही नहीं दिया. उस ने वहीं पड़ा डंडा उठाया और पिंकी के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा. पिंकी जमीन पर गिर पड़ी. इस के बाद लाडो ने उस के गले में अपना दुपट्टा लपेटा और देवेंद्र की मदद से कस कर उसे मार डाला.

लाश की पहचान न हो सके, इस के लिए लाश को छेदीलाल के घर में रखे कंबल में लपेटा और उस पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी. आग ने तेजी पकड़ी तो दोनों भाग खड़े हुए, पर योजना के अनुसार दोनों आगरा में मिल नहीं पाए. दरअसल, देवेंद्र काफी डर गया था. डर के मारे वह लाडो से मिलने नहीं आया. जबकि लाडो ने सोचा था कि वह देवेंद्र के साथ रात आगरा के किसी होटल में बिताएगी. लेकिन देवेंद्र के न आने से उस का यह सपना पूरा नहीं हुआ. लाडो के पास पैसे नहीं थे, इसलिए रात उस ने बिजलीघर बसस्टैंड पर बिताई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. चूंकि लाडो और देवेंद्र से पूछताछ में सुरेंद्र सिंह और उस के घर वाले निर्दोष पाए गए थे, इसलिए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया.

लाडो ने जो सोचा था, वह पूरा नहीं हुआ. वह एक हत्या की अपराधिन भी बन गई. उस के साथ उस का प्रेमी भी फंसा. जो सोच कर उस ने पिंकी की हत्या की, वह अब शायद ही पूरा हो. क्योंकि निश्चित है उसे पिंकी की हत्या के अपराध में सजा होगी.

प्रेमी ही था मां बेटी का हत्यारा

इसी साल 15 मार्च को रोजाना की तरह कुछ चरवाहे जब अपने पशुओं के साथ गोमती नदी के राजघाट से सटे देवगांव के जंगल में पहुंचे तो एक चरवाहे कि नजर जंगली झाडि़यों के बीच लहूलुहान पड़ी एक महिला और एक बच्ची पर चली गई. देखने से ही लग रहा था कि वे मर चुकी हैं. लाश देखते ही चरवाहा चीख पड़ा. उस ने आवाज दे कर अपने साथियों को बुलाया और उन्हें भी लाशें दिखाईं. लाशें देख कर सभी चरवाहे जंगल से बाहर आ गए और यह बात अन्य लोगों को बताई. उन्हीं में से किसी ने थाना कुमारगंज पुलिस को फोन कर के जंगल में लाशें पड़ी होने की सूचना दे दी.

उधर झाडि़यों में 2 लाशें पड़ी होने की खबर पा कर गांव के भी तमाम लोग पहुंच गए. जंगल में 2 लाशें पड़ी होने की सूचना मिलते ही थाना कुमारगंज के थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लाशों के निरीक्षण में उन्होंने देखा कि महिला और बच्ची को चाकुओं से बुरी तरह गोद कर मारा गया था. जिस की वजह से दोनों लाशें बुरी तरह से लहूलुहान थीं. लाशों के आसपास भी काफी खून फैला था. महिला की उम्र 35 साल के आसपास थी, जबकि बच्ची करीब 5 साल की थी.

मौके के निरीक्षण में सुनील कुमार सिंह के हाथ ऐसा कुछ लहीं लगा, जिस से यह पता चलता कि मृतका और बच्ची कौन थीं, उन की हत्या किस ने और क्यों की?

उन्होंने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी, साथ ही दोनों लाशों के फोटोग्राफ कराने के बाद उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी शुरू कर दी. अब तक मौके पर एसएसपी अनंतदेव सहित अन्य पुलिस अधिकारी भी आ गए थे. उन्होंने मौके का निरीक्षण कर के इस मामले का जल्दी खुलासा करने का निर्देश दिया.

उच्चाधिकारियों के जाने के बाद लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर सुनील कुमार सिंह भी थाने लौट आए. उन के लिए सब से बड़ी चुनौती थी दोनों लाशों की पहचान कराना. इस के लिए उन्होंने अपने खास मुखबिरों को मदद ली, साथ ही खुद भी अपने स्तर से जानकारी जुटाने लगे. उन का ध्यान बारबार बच्ची पर जा रहा था. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस मासूम से हत्यारे की क्या दुश्मनी थी, जिस ने उसे भी नहीं छोड़ा.

सुनील कुमार सिंह दोनों लाशों की शिनाख्त को ले कर उलझे थे कि तभी एक बुजुर्ग थाने आया. उस ने अपना नाम मूसा खां बताते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं ही वह अभागा हूं, जिस की बेटी इशरत जहां की लाश देवगांव के जंगल में पड़ी मिली थी.’’

इतना कह कर वह फफकफफक कर रोने लगा. थानाप्रभारी ने उसे ढांढस बंधाया तो उस ने सिसकते हुए कहा, ‘‘साहब, मेरी बेटी इशरत और उस की मासूम बच्ची को मुन्ना ने मारा है, उस ने उस की जिंदगी खराब कर दी थी. अल्लाह उसे कभी माफ नहीं करेगा…’’

सुनील कुमार सिंह ने उसे ढांढस बंधाते हुए कुर्सी पर बैठने का इशारा किया. इस के बाद पानी मंगा कर पिलाया. फिर उस की पूरी बात सुनने के बाद साफ हो गया कि देवगांव के जंगल में महिला और बच्ची की जो लाशें मिली थीं, वे मूसा खां की बेटी और नातिन की थीं, साथ यह भी कि उन्हें मारने वाला इशरत जहां का प्रेमी मुन्ना था.

दोनों लाशों की शिनाख्त हो जाने के बाद सुनील कुमार सिंह ने मूसा खां से विस्तार से पूछताछ की. इस के बाद मूसा खां से तहरीर ले कर मुन्ना के खिलाफ मांबेटी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच की जिम्मेदारी खुद संभाल ली.

सुनील कुमार सिंह ने इस मामले की जांच शुरू की तो पता चला कि इशरत की हत्या प्रेमसंबंधों के चलते हुई थी. जिस मुन्ना से वह प्रेम करती थी, वह उसी के पड़ोस में रहता था. लेकिन घटना के बाद से वह नजर नहीं आ रहा था. सुनील कुमार सिंह का सारा ध्यान मुन्ना पर था, क्योंकि उसी के पकड़े जाने पर इस अपराध से परदा उठ सकता था.

16 अप्रैल, 2017 को मुन्ना पुलिस के हाथ लग गया. मुखबिर ने थानाप्रभारी को सूचना दी थी कि इशरत और उस की बेटी का हत्यारा मुन्ना भेलसर में मौजूद है. यह जानकारी मिलते ही सुनील कुमार सिंह बिना देर किए अपनी टीम के साथ भेलसर पहुंच गए और मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया.

भेलसर इलाका फैजाबाद जिले के रुदौली कोतवाली के अंतर्गत आता था. पुलिस टीम मुन्ना को गिरफ्तार कर थाना कुमारगंज ले आई. पूछताछ में पहले तो मुन्ना खुद को पाकसाफ बताता रहा. उस ने इशरत की हत्या पर दुखी होने का नाटक भी किया. लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे उस का यह नाटक ज्यादा देर तक नहीं चल सका.

कुछ ही देर में सवालोंजवाबों में वह इस कदर उलझ गया कि उस के पास इशरत की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा. अपना अपराध स्वीकार कर के उस ने इशरत जहां और उस की मासूम बेटी की हत्या की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर सभी का कलेजा दहल उठा.

उत्तर प्रदेश के जनपद अमेठी के थाना शुक्ला बाजार का एक गांव है किशनी. सभी जातियों की मिश्रित आबादी वाले इस गांव में मुसलिमों की आबादी कुछ ज्यादा है. इसी गांव के रहने वाले मूसा खां के परिवार में पत्नी सहित 5 लोग थे. जैसेतैसे उन्होंने सभी बच्चों का घर बसा दिया था. केवल इशरत जहां ही बची थी, जिस के लिए वह रिश्ता ढूंढ रहा था.

मूसा खां के पड़ोस में ही मुन्ना का घर था. पड़ोसी होने के नाते दोनों परिवारों का एकदूसरे के घरों में आनाजाना था. मुन्ना दरी बुनाई का काम करता था. इशरत भी दरी बुनाई करने जाती थी. इसी के चलते दोनों के बीच प्रेम का बीज अंकुरित हुआ.

पहले दोनों एकदूसरे को देख कर केवल हंस कर रह जाया करते थे. लेकिन धीरेधीरे यही हंसी प्यार में बदलने लगी. संयोग से एक दिन मुन्ना काम से घर लौट रहा था तो पीछेपीछे इशरत भी आ रही थी.

सुनसान जगह देख कर मुन्ना ने अपने कदमों की रफ्तार कम कर दी. फिर जैसे ही इशरत उस के करीब आई, उस ने इधरउधर देख कर इशरत का हाथ पकड़ लिया और बिना कुछ सोचेसमझे कहा, ‘‘इशरत, मैं तुम से प्यार करता हूं. अगर तुम मुझे नहीं मिली तो मैं अपनी जान दे दूंगा. बोलो, क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

मुन्ना के मुंह से ये बातें सुन कर इशरत कुछ कहने के बजाय अपना हाथ छुड़ा कर ‘हां’ में सिर हिला कर तेजी से अपने घर की ओर चली गई. मुन्ना इतने से ही उस के मन की बात समझ गया. वह समझ गया कि इशरत भी उसे चाहती है. लेकिन जुबान नहीं खोलना चाह रही.

उस दिन शाम ढले मुन्ना किसी बहाने से इशरत के घर पहुंच गया और मौका देख कर उस ने इशरत को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया. मुन्ना के अचानक इस व्यवहार से इशरत सहमी तो जरूर, मगर हिली नहीं. वह बस इतना ही बोली, ‘‘धत, कोई देख लेगा तो कयामत आ जाएगी.’’

यह सुन कर मुन्ना ने इशरत को बांहों से आजाद कर दिया और अपने घर चला गया. उस दिन दोनों की आंखों से नींद कोसों दूर थी. किसी तरह रात कटी और सुबह हुई तो मुन्ना उस दिन काम पर रोज से पहले ही पहुंच गया. उस की नजरें इशरत को ही ढूंढ रही थीं. इशरत आई तो वह खुशी से झूम उठा. उस दिन दोनों का ही मन काम में नहीं लग रहा था.

जल्दीजल्दी काम निपटा कर जब इशरत घर जाने को तैयार हुई तो मुन्ना भी उस के पीछेपीछे चल पड़ा. कुछ दूर जाने के बाद एकांत मिलने पर मुन्ना ने इशरत का हाथ पकड़ कर बैठा लिया. वहां बैठ कर दोनों काफी देर तक बातें करते रहे. मुन्ना बारबार अपने प्रेम की दुहाई देते हुए एक साथ जीनेमरने की कसमें खाता रहा.

मुन्ना की बातें सुन कर इशरत खुद को रोक नहीं पाई. उस ने कहा, ‘‘मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. अब तुम्हारे बगैर एक भी पल काटना मुश्किल होने लगा है. तुम जल्दी से अपने घर वालों से बात कर के उन्हें मेरे अब्बू के पास मेरा हाथ मांगने के लिए भेजो, ताकि जल्दी से हमारा निकाह हो सके.’’

उस दिन के बाद दोनों का मिलनाजुलना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. शादी की बात आने पर मुन्ना आजकल कह कर टाल जाता. इशरत मुन्ना के फरेब को भांप नहीं पा रही थी और अपने भावी खुशनुमा जीवन के तानाबाना बुनने में लगी थी. दोनों में प्रेम बढ़ा तो शारीरिक संबंध भी बन गए.

यह इस घटना से 6-7 साल पहले की बात है. पहले तो प्यार समझ कर इशरत मुन्ना को अपना तन समर्पित करती रही. लेकिन धीरेधीरे उसे लगने लगा कि मुन्ना उस से नहीं, बल्कि उस के शरीर से प्यार करता है, वह उस से निकाह नहीं करना चाहता. वह मुन्ना पर निकाह के लिए जोर देने लगी.

लेकिन मुन्ना का तो इशरत से मन भर चुका था. उस ने चुपके से संजीदा खातून से निकाह कर लिया और रुदौली में जा कर रहने लगा. संयोग से सन 2012 में इशरत गर्भवती हो गई. उस के घर वालों को इस बात का पता चला तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

बहरहाल, कोई चारा न देख इशरत के घर वालों ने मुन्ना पर शादी के लिए दबाव बनाना शुरू किया. लेकिन वह अपने और इशरत के संबंधों से साफ मुकर गया. ऐसे में कोई चारा न देख इशरत के अब्बा मूसा खां ने मुन्ना के खिलाफ 3 सितंबर, 2012 को भादंवि की धारा 376, 504, 506 के तहत थाना शुक्ला बाजार में मुकदमा दर्ज करा दिया, जिस में मुन्ना को जेल हो गई.

इधर मुन्ना जेल गया, उधर इशरत जहां ने एक बच्ची को जन्म दिया. मुन्ना जमानत पर जेल से बाहर आ गया. उस का मुकदमा चल रहा था. उस की अगली तारीख 23 मार्च, 2017 को थी. फिर से जेल जाने के डर से पहले तो मुन्ना ने इशरत के अब्बा के सामने पैसा ले कर सुलह कर लेने का प्रस्ताव रखा. लेकिन मूसा खां ने उस के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए कहा, ‘‘तुम इशरत और अपने बीच के संबंधों को स्वीकार करते हुए बच्ची महलका को अपनी औलाद के रूप में स्वीकार करो, तभी हम मुकदमे में सुलह करने पर विचार कर सकते हैं.’

लेकिन मुन्ना संजीदा खातून से शादी कर चुका था, इसलिए उस ने मूसा की शर्त को स्वीकार तो नहीं किया, विचार करने की बात कह कर टाल गया और इशरत को झांसे में ले कर उस से पुन: संबंध बना लिए. इशरत मुन्ना के इस फरेब को समझ नहीं पाई और उसे विश्वास था कि मुन्ना उसे अपना लेगा.

इधर मुकदमे की तारीख करीब आती जा रही थी. उसी दिन फैसला होना था. ऐसे में एक सोचीसमझी साजिश के तहत 15 मार्च को मुन्ना इशरत को यह कह कर अपने साथ ले गया कि चलो हम सुलह कर लेते हैं और दिल्ली चल कर निकाह कर वहीं कमरा ले कर रहते हैं. मुन्ना के मुंह से सुलह की बात सुन कर इशरत खुशी से झूम उठी और तपाक से बोली, ‘‘चलो, कहां चलें?’’

इशरत की हां से खुश हो कर मुन्ना बोला, ‘‘पहले हम दोनों किसी सुनसान स्थान पर चल कर बैठ कर बातें करेंगे, उस के बाद आगे की सोचेेंगे.’’

मुन्ना इशरत को साथ ले कर गोमती नदी के राजघाट होते हुए देवगांव की ओर चल पड़ा. थोड़ी दूर चलने के बाद उस ने इशरत से कहा, ‘‘इशरत, तुम इस जंगल के रास्ते चलो, मैं गाड़ी ले कर रोड के रास्ते से आ रहा हूं.’’

इशरत अपनी 5 साल की बेटी महलका को साथ ले कर पूरी तरह से बेपरवाह हो कर जंगल के रास्ते से चल पड़ी. वह तेजी से कदम बढ़ाते हुए चली जा रही थी कि तभी कुछ दूरी पर मुन्ना बाइक खड़ी कर के हाथ में चाकू लिए इशरत जहां के करीब आया और पीछे से उस की गर्दन पर धड़ाधड़ वार करने शुरू कर दिए.

चाकू के वार से इशरत निढाल हो कर गिर पड़ी. अचानक हुए हमले से उसे कुछ सोचनेसमझने का समय तक नहीं मिल पाया. उस की मासूम बेटी महलका ने मां को जमीन पर गिरते देखा तो मुन्ना के पैर पकड़ कर रोने लगी.

इंसान से हैवान बन चुके मुन्ना को उस मासूम पर भी रहम नहीं आया. उस ने सोचा कि इसे ले कर कहां जाऊंगा. उस ने उस मासूम का भी गला काट कर उसे मौत की नींद सुला दिया. फिर दोनों लाशों को वहीं झाडि़यों में छिपा कर खून से सनी अपनी शर्ट और चाकू को भी वहीं छिपा दिया.

इस के बाद अपनी मोटरसाइकिल यूपी 44 एस 9123 से वहां से भाग निकला. यह तो संयोग था कि घटना के कुछ ही देर बाद चरवाहों की नजर मांबेटी की लाशों पर पड़ गई और उन्होंने पुलिस को सूचना दे दी अन्यथा वे दोनों जंगली जानवरों का निवाला बन जातीं तो शायद यह राज ही दफन हो कर रह जाता.

पुलिस के अनुसार, घटना के एक दिन पहले ही मुन्ना की बीवी संजीदा खातून ने एक बच्ची को जन्म दिया था. इधर इस मामले में जब उस का नाम प्रकाश में आया तो पुलिस उस के पीछे पड़ गई. यह देख कर वह अपने घर से फरार हो गया. पुलिस ने उस के घर सहित अन्य संभावित स्थानों पर कई बार दबिश दी, लेकिन वह पुलिस को चमका देता रहा.

16 अप्रैल को मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे रुदौली कोतवाली के भेलसर स्थित एक प्राइवेट नर्सिंगहोम के पास की एक चाय की दुकान से गिरफ्तार कर लिया था, जहां उस की बीवी संजीदा खातून भरती थी. पुलिस को देख कर मुन्ना भागने लगा था, लेकिन पुलिस टीम ने उसे घेराबंदी कर के पकड़ लिया था.

उस की तलाशी ली गई तो उस के पास से आधार कार्ड और 250 रुपए नकद मिले थे. बाद में पुलिस ने उस की निशानदेही पर घटनास्थल के पास से खून से सनी उस की शर्ट और चाकू बरामद कर लिया था. उसे मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जहां उस ने मांबेटी की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए पूरी कहानी सुनाई थी. इस के बाद उसे सक्षम न्यायालय में पेश किया गया,जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कार सवार महिला की गोली मारकर हत्या

राजधानी की सड़कों पर लगातार तीसरे दिन सरेआम गोली मारकर हत्या करने की घटना सामने आयी है. ब्रहमपुरी, कृष्णापुरी और भजनपुरा में हत्याओं के बाद शालीमार बाग में बुधवार तड़के बदमाशों ने कार सवार दंपति पर गोलियां चला दीं. इसमें 34 वर्षीय प्रिया मेहरा की मौत हो गई, जबकि उनके पति पंकज मेहरा और दो वर्षीय बच्च बाल-बाल बच गए.

सूदखोर पर शक जताया

पंकज ने 40 लाख रुपयों के कर्ज की वसूली के लिए सूदखोर द्वारा हत्या कराने का आरोप लगाया है. शालीमार बाग पुलिस हत्या का मामला दर्ज करके छानबीन कर रही है. पुलिस उपायुक्त मिलिंद डुमरे के अनुसार, पंकज मेहरा रोहिणी सेक्टर 15 में परिवार सहित रहते हैं. पहाड़गंज इलाके में उनका रेस्तरां हैं. मंगलवार रात वह हडसन लेन स्थित अपने भाई के रेस्तरां में गए थे. वहां से देर रात वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ गुरुद्वारा बंगला साहिब गए. इसके बाद परिवार तड़के अपनी रिट्ज कार में सवार होकर घर लौट रहा था.

पीड़ित की कार को रुकवाकर वारदात की

तड़के 4.20 बजे बादली लालबत्ती के निकट स्विफ्ट कार ने ओवरटेक कर उनकी कार को रुकवा लिया. स्विफ्ट से निकले युवक ने उनकी कार का शीशा तोड़ दिया. पंकज जब अपनी कार से उतरे तो युवक पिस्तौल दिखाकर उन्हें धमकाने लगा. इसे लेकर उनके बीच हाथापाई भी हुई. इसी बीच युवक ने पिस्तौल से दो गोलियां चलाईं.

दो गोलियां लगने से मौत हुई

एक गोली प्रिया के गले और दूसरी चेहरे पर जा लगी. इसके बाद पिस्तौल में गोली फंस गई. यह देख हमलावर युवक अपनी कार से दूसरा हथियार लाने के लिए दौड़ा. इसी बीच मौका पाकर पंकज कार लेकर वहां से भाग निकले और सीधे पास के एक अस्पताल पहुंचे.

डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया

अस्पताल में डॉक्टरों ने प्रिया को मृत घोषित कर दिया. इसके बाद पुलिस को मामले की सूचना दी गई. हत्या की सूचना से पुलिस में हड़कंप मच गया.सूचना मिलते ही तत्काल पुलिस मौके पर पहुंच गईऔर छानबीन शुरू की. थोड़ी ही देर में जिले के आला अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस की कईटीमों और अधिकारियों ने अस्पताल में पहुंचकर पीड़ित पति से भी बातचीत की.

शव पोस्टमार्टम के लिए भेजा

पुलिस ने प्रिया के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है. पंकज ने जिस शख्स पर शक जताया है, वह फिलहाल फरार है. कई पुलिस टीमें उसकी तलाश में छापेमारी कर रही हैं. उसके मिलने के बाद ही हमलावरों की पहचान हो पाएगी. पुलिस का कहना है कि आरोपी की तलाश में कईटीमों को लगाया गया है. यह भी पता लगाया जा रहा है कि कई उसका कोईआपराधिक इतिहास तो नहीं है. इसके साथ ही पुलिस टीमें इलाके के बदमाशों के बारे में भी पता लगा रही है, कहीं किसी का इस वारदात से संबंध तो नहीं है. घटना के समय वहां पर सक्रिय मोबाइल नंबरों के बारे में भी पुलिस छानबीन कर जानकारी जुटा रही है. पुलिस ने कईसंदिग्ध नंबरों के बारे में जानकारी भी जुटाई है.

रेस्तरां भी दो माह से बंद कर रखा था

पंकज को बीते कई माह से कर्ज देने वाला शख्स धमका रहा था. धमकियों से पंकज का पूरा परिवार काफी डरा हुआ था. इसी वजह से पंकज ने पहाड़गंज स्थित अपने रेस्तरां को भी बीते दो माह से बंद कर रखा था. पंकज का कहना हैकि वह घर से निकलने से भी कतराता था. आरोपी उसे कई बार धमकी दे चुका था.

बच्चे के सामने ही मां ने दम तोड़ा

बच्चे को माता-पिता के साथ कार में घूमना बेहद पसंद था, इसलिए पंकज पत्नी और बेटे को रात के समय घूमाने ले गए थे. वापसी में जब बदमाशों ने प्रिया को गोली मारी तो बच्च भी उनकी गोद में ही था. बच्चे के सामने ही उसकी मां तड़पड़ी रही और अस्पताल जाने के बाद उसने दम तोड़ दिया. परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल है.

रुपये लौटाने को सूदखोर धमकी दे रहा था

मामले को लेकर की गई पूछताछके दौरान पीड़ित पति पंकज मेहरा ने पुलिस को बताया कि उसने सोनीपत निवासी एक युवक से 5 लाख रुपये उधार लिए थे. वह इसका मोटा ब्याज वसूलता था. ब्याज और मूलधन मिलाकर अब सूदखोर उससे 40 लाख रुपये मांग रहा था. आरोप है कि सूदखोर युवक रकम की वसूली के लिए पिछले कुछ दिनों से लगातार उसे धमकी दे रहा था. पंकज ने उसी शख्स द्वारा हत्या करवाने की आशंका जताई है. इस मामले में पुलिस पीड़ित के बयान के आधार पर जांच कर रही है.

दिल्ली 55 घंटे में छह हत्याओं से दहली

गैंगवार और आपसी रंजिश में बीते 55 घंटों में ब्रहमपुरी, भजनपुरा, जैतपुर, उस्मानपुर, कृष्णा नगर और शालीमार बाग में हुई एक के बाद एक ताबड़तोड़ छह हत्याओं से राजधानी दहल उठी. हैरानी की बात है कि दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए बेखौफ बदमाश सरेआम छह हत्याएं करके आसानी से फरार हो गए. 55 घंटे में पुलिस इनमें से महज एक ही मामला सुलझा सकी है.

कई वारदातों के बाद भी पुलिस नहीं चेती

बीते रविवार को भजनपुरा में आरिफ हुसैन रजा और ब्रह्मपुरी में हुई वाजिद की हत्याओं को पुलिस यमुनापार में चल रही गैंगवार का नतीजा मान रही है. इस गैंगवार में पहले भी कई हत्याएं को चुकी हैं, फिर भी पुलिस इन पर लगाम लगाने में पूरी तरह से नाकाम रही है. वहीं, मंगलवार सुबह उस्मानपुर में हुई रोहित की हत्या को भी पुलिस गैंगवार से जोड़कर देख रही है. जांच अधिकारियों का कहना है कि करीब ढाई माह पूर्व नासिर गैंग से जुड़े बदमाशों ने छेनू के करीबी इमरान और कमर की हत्या कर दी थी. माना जा रहा है कि उसी का बदला लेने के लिए छेनू के इशारे पर वाजिद और आरिफ को मौत के घाट उतार दिया गया. स्थानीय पुलिस का कहना है कि इरफान उर्फ छेनू पहलवान जेल में बंद है.

वाजिद के नासिर गैंग से नजदीकी रिश्ते

इन दोनों गैंग पर नजर रखने वाले पुलिस अधिकारियों की मानें तो वाजिद को नासिर गैंग का फाइनेंसर माना जाता था. वह गैंग के सदस्यों और उनके मुकदमों की पैरवी के लिए नगदी उपलब्ध कराता था. वह गैंग को हथियार खरीदने के लिए रुपये भी देता था. पुलिस के अनुसार, वाजिद और आरिफ का कोई सीधा संबंध नहीं था. आरिफ का नासिर गैंग के लड़कों के साथ उठने-बैठने की बात सामने आ रही है. इस बारे में भी पुलिस की कईटीमों को छानबीन के लिए लगाया गया है.इस मामले में पुलिस को कुछ अहम सुराग हाथ लगे हैं.

तंत्र मंत्र के नाम पर मासूमों की बलि

पंजाब के बठिंडा जिले के कोटफत्ता का एक इलाका है वड्डा खूह (बड़ा कुआं) यहीं के वार्ड नंबर- 3 के एक घर में 8 मार्च, 2017 को शाम करीब 5 बजे बड़ा ही भयावह और दिल दहला देने वाला मंजर था. मंजर भी ऐसा, जिसे देख कर पत्थरदिल इंसान की भी आत्मा कांप उठे. घर के एक कमरे का दृश्य बड़ा ही रहस्यमय और डरावना था. उस समय उस कमरे में कई लोग थे, उन के अलावा वहां पर 2 मासूम बच्चे भी बैठे थे. कमरे के बीचोंबीच एक धूना (हवनकुंड) था, जिस में आग जल रही थी. कमरे के दरवाजे और खिड़कियां सब बंद थे.

एक अधेड़ औरत जिस की उम्र करीब 55 साल थी, वह हवनकुंड के पास की एक गद्दी पर बैठी थी. वह शायद अंदर बैठे लोगों की मुखिया थी. वह औरत अपने सिर को इधरउधर झुलाते हुए जोरजोर से कोई मंत्र पढ़ कर उस हवनकुंड में सामग्री डाल रही थी. वहां मौजूद अन्य लोग भी उस का अनुसरण करते हुए मंत्रों के साथ धूने में हवन सामग्री डाल रहे थे. इस क्रिया के बीचबीच में वह औरत जोरजोर से ऊपर की ओर देखते हुए अट्टहास करने लगती.

उस के पास बैठा लगभग 30 वर्षीय पुरुष भी अपनी गरदन ऊंची कर के अपने मुंह से जोरजोर से सांप के फुफकारने जैसी शू..शू.. की आवाज निकालता.

धूनी में एक चिमटा रखा हुआ था जो आग से काफी गरम हो गया था. वह अधेड़ उम्र की महिला इस क्रिया के बीचबीच में उस गरम चिमटे से वहां बैठे 2 मासूम बच्चों को मारने लगती थी. उन दोनों बच्चों में एक की उम्र 5 साल और दूसरे की करीब 2 साल थी. गरम चिमटा लगते ही दोनों बच्चे पीड़ा से बिलबिला उठते थे.

दोनों बच्चों की पीड़ा पर वह औरत दुखी होने के बजाय खुश होती. वहां जो और लोग बैठे थे, वे जोश के साथ तांत्रिक क्रिया पूरी करने में लगे हुए थे इसलिए बच्चों के चिल्लाने की तरफ उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया.

वे लोग आगे क्या करने वाले थे, यह कहना मुश्किल था लेकिन उन के चेहरे के भाव और उन के क्रियाकलाप देख कर इतना अनुमान तो लगाया जा सकता था कि उन के इरादे नेक नहीं थे.

खिड़की की झिर्री से यह भयानक दृश्य देख कर 65 वर्षीय मुख्तियार सिंह की आत्मा सिहर उठी. कुछ देर तक वह खिड़की के पास गुमसुम सा खड़ा सोचता रहा कि उसे क्या करना चाहिए. 2 मासूम बच्चों की जिंदगी का सवाल था.

आखिर उस ने जोरजोर से कमरे का दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया. काफी देर दरवाजा पीटने पर भी कमरे में बैठे लोग अपनीअपनी जगह से नहीं हिले तो उस ने अपनी बहू रोजी के कमरे की ओर देखा. पर उस के कमरे पर ताला लगा हुआ था.

मुख्तियार रोजी के बंद कमरे की खिड़की के पास गया तो उसे कमरे में रोजी बैठी दिखाई दी. रोजी उस के बेटे की पत्नी थी. वह उस से बोला, ‘‘तुम्हें यहां किस ने बंद किया है? ताले की चाबी कहां है?’’

‘‘मैं कमरे में लेटी थी तो पता नहीं कौन बंद कर के चला गया. बच्चे भी पता नहीं कहां हैं. उन के रोने और चीखने की आवाजें आ रही हैं. पता नहीं वे क्यों रो रहे हैं.’’ कहते हुए उस की आंखों में आंसू छलक आए.

रोजी को पता था कि उस की सास निर्मल कौर व परिवार के अन्य लोग उस के दोनों बच्चों के साथ 2 दिन से तांत्रिक क्रियाएं कर रहे थे. उसे डर था कि वे लोग कहीं आज भी बच्चों पर तांत्रिक क्रियाएं तो नहीं कर रहे.

दरअसल, जिस बंद कमरे में यह तांत्रिक अनुष्ठान हो रहा था, उस कमरे में रोजी की सास निर्मल कौर, पति कुलविंदर सिंह, देवर जसप्रीत, ननद गगन कौर तथा बठिंडा के ही गांव दयोन से 3-4 तांत्रिक आए हुए थे जोकि निर्मल कौर की तांत्रिक क्रियाएं संपन्न करवाने में मदद कर रहे थे.

निर्मल कौर पिछले 5-6 सालों से अपने घर पर तंत्रमंत्र द्वारा समस्याओं का समाधान करने के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रही थी. गांव के अंधविश्वासी और भोलेभाले लोगों के अलावा शहर के पढ़ेलिखे लोग भी उस के पास आया करते थे. निर्मल कौर से पहले उस का पति मुख्तियार सिंह यह काम करता था. वैसे मुख्तियार सिंह बठिंडा की फौजी छावनी में नौकरी करता था.

लगभग 4-5 साल पहले वह अपने घर पर ही तंत्रमंत्र की क्रियाएं करता था. धीरेधीरे लोग अपनी समस्याएं ले कर उस के पास आने लगे. उन में से कुछ को फायदा हुआ तो वे उसे प्रसाद के लिए पैसे देने लगे थे. उन पैसों से उस के घर की कुछ जरूरतें पूरी हो जाया करती थीं.

पता नहीं मुख्तियार सिंह को क्या सूझी कि उस ने झाड़फूंक सब बंद कर दिया. इस के बाद उस की पत्नी निर्मल कौर ने उस की गद्दी संभाल कर झाड़फूंक करना शुरू कर दिया. वह बाकायदा व्यापारिक तरीके से काम करने लगी.

निर्मल कौर को 2 साल में ही बहुत अच्छा तजुर्बा हो गया. इस के बाद उस ने यह प्रचारित करना शुरू कर दिया कि उस की आत्मा परमात्मा से मिल कर एकाकार हो गई है. अब उस ने खुद को देवी घोषित कर दिया था.

निर्मल कौर अपने बड़े बेटे कुलविंदर सिंह उर्फ विक्की को भी अपने साथ रखती थी. वह भी मां के साथ अलग गद्दी पर बैठने लगा था. एक साल बाद उस ने खुद के बारे में यह प्रचारित करना शुरू कर दिया कि पूजापाठ से खुश हो कर भगवान विष्णु ने उसे अपने शेषनाग की आत्मा दे दी है.

अंधविश्वासी लोगों की वजह से मांबेटे का धंधा खूब फलफूल रहा था. जबकि वास्तविकता यह थी कि उन के पास न तो कोई सिद्धि थी और न ही उन्हें किसी तंत्रमंत्र के कखग का पता था.

बठिंडा के रहने वाले मल्ल सिंह बेहद गरीब इंसान थे. उन के 7 बेटे थे. जैसेतैसे मजदूरी कर के वह अपने परिवार को पाल रहे थे. गरीबी की वजह से वह बच्चों को पढ़ालिखा नहीं सके पर समय के साथ जैसेजैसे बच्चे बड़े होते गए, वह उन से भी मजदूरी कराने लगे. वह 2-3 बेटों की शादी कर पाए थे कि उन की मृत्यु हो गई. बाकी की शादी बाद में हो गई थी. उन का सब से बड़ा बेटा लाभ सिंह था और छोटा मुख्तियार सिंह. मुख्तियार की उम्र इस समय करीब 65 साल है.

लाभ सिंह और मुख्तियार सिंह दोनों के मकान सटे हुए थे. मुख्तियार के परिवार में पत्नी निर्मल कौर के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. बड़े बेटे कुलविंदर उर्फ विक्की की शादी रोजी से हो गई थी. बाद में रोजी 2 बच्चों की मां बनी, जिस में 5 साल का बेटा रंजीत सिंह और 3 साल की बेटी अनामिका थी.

मुख्तियार सीधासादा आदमी था, इसलिए घर को निर्मल कौर ही संभाले हुए थी. उस ने अपनी दोनों बेटियों गगन कौर और अमन कौर की भी शादी कर दी थी. निर्मल कौर एक जिद्दी और दबंग प्रवृत्ति की महिला थी. दूसरे जब वह गद्दी पर बैठती तो खुद को देवी ही समझती थी, इसलिए लोग उसे बहुत सम्मान देते थे. निर्मल कौर का जेठ जोकि उस के एकदम बराबर में ही रहता था, वह निर्मल के क्रियाकलापों को ढोंग मानता था. इसी वजह से वह उस से कोई खास वास्ता नहीं रखता था.

निर्मल कौर की छोटी बहन प्रेमलता लुधियाना में दर्शन सिंह के साथ ब्याही थी. पिछले साल से वह लगातार बीमार चल रही थी. उस ने पीजीआई चंडीगढ़ में भी अपना इलाज करवाया था पर कोई फायदा नहीं हुआ था. डाक्टरों ने बताया था कि उसे कोई बीमारी नहीं है. वह एकदम फिट है. जबकि प्रेमलता का कहना था कि वह बीमार है.

दूसरे निर्मल कौर की बेटी गगन कौर शादी के 6 साल बाद भी मां नहीं बन सकी थी. डाक्टरों ने उस की व उस के पति की कई जांच करने के बाद पाया कि गगन और उसके पति शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं. स्वस्थ होने के बावजूद उन के आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं गूंज रही थी.

तमाम लोग गगन की मां निर्मल कौर के पास अपनी समस्याएं ले कर आते थे. वे उसे देवी समझते थे. निर्मल कौर अपनी बहन और बेटी की समस्या भी दूर करना चाहती थी. एक दिन अपनी गद्दी पर बैठ कर निर्मल कुछ देर के लिए ध्यानमग्न हो गई.

कमरे में बहन प्रेमलता और बेटी गगन कौर बैठी थीं. कुछ देर बाद निर्मल ने अपनी आंखें खोल कर बताया, ‘‘मुझे सब साफसाफ दिखाई दे रहा है कि तुम्हारी दोनों की समस्या कैसे पैदा हुई और वह कैसे दूर होगी.’’

इतना सुनते ही गगन कौर और प्रेमलता उसे गौर से देखते हुए बोलीं, ‘‘अब क्या करना होगा बाबाजी?’’

जिस समय निर्मल कौर अपनी गद्दी पर बैठी होती थी, उस समय सभी उसे बाबाजी कह कर संबोधित करते थे. वह बोली, ‘‘बच्चा, तुम्हें कुछ नहीं करना है. अगले हफ्ते से हम खुद सभी काम संपूर्ण करेंगे. इस एक हफ्ते में हम पूरा इंतजाम कर लेंगे. दोनों के जीवन में खुशियां ही खुशियां होंगी. उस ने गगन कौर से भी कहा कि उस के 5 बेटे होंगे.’’

अगले दिन निर्मला अपने बेटे कुलविंदर को साथ ले कर हरियाणा के सिरसा जिले के गांव कालांवाली मंडी चली गई. वहां पर एक तथाकथित तांत्रिक लखविंदर सिंह उर्फ लक्की बाबा रहता था. पूरे दिन निर्मल कौर और लक्की बाबा की आपस में मंत्रणा चलती रही.

अगले दिन लक्की बाबा निर्मल कौर के घर आ गया. लक्की बाबा, निर्मल कौर और कुलविंदर उर्फ विक्की दिन भर गद्दी वाले कमरे में बैठ कर न जाने क्या पूजापाठ करते थे. यह बात 2 मार्च, 2017 की है.

पूजापाठ समाप्त कर के शाम को लक्की बाबा अपने गांव चला गया. इस के 2 दिन बाद निर्मल कौर ने पास के गांव दयोन से 4 अन्य तथाकथित तांत्रिकों को अपने घर बुलवाया और 2 दिनों तक उन के साथ पूजापाठ करती रही. सभी पूजापाठ की क्रियाओं में केवल निर्मल का बेटा कुलविंदर ही शामिल होता था. उस के अलावा घर के किसी अन्य सदस्य को गद्दी वाले कमरे में जाने की इजाजत नहीं थी.

6 मार्च को निर्मल ने अपनी बहन प्रेमलता और बेटी गगन को भी बुलवा लिया था. अगले दिन उस ने प्रेमलता को कुछ समझा कर वापस उस की ससुराल लुधियाना भेज दिया. जबकि गगन कौर अपनी मां के पास ही रुक गई थी.

इन सब से पहले 5 मार्च को निर्मल ने अपने दोनों पोतेपोती को अपने कमरे में कैद कर लिया था. पूजापाठ के दौरान ये लोग सभी बच्चों की झाड़फूंक करते और उत्तेजित हो कर कभी उन्हें थप्पड़ मारते, कभी बाल नोचते तो कभी चिमटे मारते थे. बच्चे जोरजोर से चीखते चिल्लाते थे.

निर्मल कौर के पड़ोसियों सहित बच्चों की मां रोजी भी जानती थी कि बंद कमरे में झाड़फूंक के नाम पर बच्चों के साथ अत्याचार हो रहा है पर किसी की इतनी हिम्मत नहीं थी कि कोई इस अत्याचार को रोक सके. बड़ी बात तो यह थी कि खुद बच्चों का पिता कुलविंदर सिंह भी इस अत्याचार में शामिल था. यहां तक कि बच्चों के चाचा जसप्रीत, बुआ गगन कौर, अमन कौर और दादा मुख्तियार सिंह भी अच्छी तरह जानते थे कि बंद कमरे में दोनों मासूमों पर कैसेकैसे अत्याचार हो रहे हैं. लेकिन वे कुछ नहीं कर सकते थे.

8 मार्च को मुख्तियार सिंह ने जब खिड़की की झिर्री से कमरे के भीतर का दृश्य देखा तो उस की अंतरात्मा कांप उठी. हिम्मत कर के वह अपने बडे़ भाई लाभ सिंह के पास पहुंचा और उसे सारी बातें विस्तार से सुनाते हुए कहा, ‘‘वीरजी, मेरे को ऐसा लगता है कि कमरे में बैठे सभी लोग कोई नशा किए हुए हैं. उन के होशहवास कायम नहीं हैं. मैं तो दरवाजा बजाबजा कर हार गया हूं.’’

मुख्तियार सिंह और लाभ सिंह घर के बाहर खड़े आपस में बातें कर ही रहे थे कि तभी वहां कुछ पड़ोसी और गांव वाले भी जमा हो गए. अब उस बंद कमरे से दोनों बच्चों के चीखने की तेजतेज आवाजें आनी शुरू हो गई थीं. तभी लाभ सिंह व गांव के कुछ लोग उस बंद कमरे की ओर दौड़े.

जोर से धक्के मारमार कर उन्होंने खिड़की का एक पल्ला खोल लिया था. जब उन्होंने खिड़की से भीतर देखा तो उन के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई और सांसें जहां की तहां रुक सी गईं. अंदर का दृश्य दिल को दहला देने वाला था.

सब ने देखा कि मंत्रोच्चारण करते हुए निर्मल कौर और कुलविंदर सिंह दोनों बच्चों को गर्म चिमटे से बुरी तरह पीट रहे थे. अपने बचाव में दोनों बच्चे कमरे में इधरउधर भागने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन बारबार नीचे गिर पड़ते थे. अचानक मंत्र पढ़ते हुए निर्मल ने एक मुट्ठी सामग्री भर कर धूने में जोर से फेंकते हुए ‘फट्ट स्वाहा’ कहा और साथ ही बच्चों की ओर अपनी अंगुली उठा दी.

निर्मल कौर का संकेत मिलते ही कुलविंदर ने बारीबारी दोनों बच्चों को पकड़ कर जमीन पर औंधे मुंह लेटा दिया. दोनों मासूम बुरी तरह तड़प रहे थे और छूटने का असफल प्रयास कर रहे थे. एकाएक मंत्र पढ़ते हुए निर्मल कौर अपनी गद्दी से उठी और झूमते हुए किसी मस्त हाथी की तरह झूमते हुए औंधे मुंह जमीन पर पड़े मासूम की पीठ पर सवार हो कर जोरजोर से अट्टहास करने लगी. साथ ही उस ने बच्चे के सिर के बालों को पकड़ कर खींचते हुए उस का चेहरा जमीन पर जोरजोर से पटकना शुरू कर दिया. फिर उस ने कुलविंदर की ओर देखते हुए जोर से कहा, ‘‘शेषनाग… सवारी करो.’’

मां का आदेश मिलते ही कुलविंदर उलटा लेट गया और अपनी गरदन ऊंची कर सांप की तरह ही जमीन पर रेंगते हुए धीरेधीरे अपनी 3 वर्षीय बेटी अनामिका की ओर बढ़ने लगा. अनामिका के निकट पहुंच कर उस ने सांप की ही तरह जोर से फुफकारा और औंधे मुंह लेटी अपनी मासूम बच्ची की पीठ पर सवार हो कर जोरजोर से उछलने लगा.

यह सब देख कर लाभ सिंह और मुख्तियार सिंह सिहर उठे. कमरे के अंदर मौजूद लोग आवाज देने पर भी दरवाजा नहीं खोल रहे थे, इसलिए दोनों भाई गांव के कुछ लोगों के साथ थाना कोटफत्ता की ओर दौड़े. थाने पहुंच कर उन्होंने थानाप्रभारी कृष्णकुमार को सब कुछ बता दिया.

तंत्रमंत्र के नाम पर वे लोग बच्चों के साथ कुछ अनर्थ न कर दें, इसलिए थानाप्रभारी अपने साथ एएसआई दर्शन सिंह, गुरप्रीत सिंह, हैडकांस्टेबल राजवंत सिंह, अजैब सिंह, कांस्टेबल लखविंदर सिंह, लेडी कांस्टेबल अमनदीप कौर और मनप्रीत कौर को साथ ले कर तुरंत घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. पर पुलिस टीम के पहुंचने के पहले ही दोनों मासूमों ने उन दरिंदों के अत्याचार न झेल पाने के कारण तड़पतड़प कर अपने प्राण त्याग दिए.

जिस समय लाभ सिंह और मुख्तियार सिंह पुलिस के साथ अपने घर पहुंचे, तब तक देर हो चुकी थी. निर्मल कौर और उस का बेटा कुलविंदर सिंह दोनों मृत मासूमों के मुंह में ट्यूबलाइट का कांच ठूंस रहे थे. थानाप्रभारी कृष्ण कुमार ने जब निर्मल को रोकना चाहा तो वह दहाड़ते हुए बोली, ‘‘खबरदार, नजदीक आने की कोशिश की तो मैं तेरा सर्वनाश कर दूंगी. मैं देवी हूं. अभी मैं इन दोनों को जिंदा कर दूंगी. इस के बाद न प्रेमलता कभी बीमार होगी और न ही गगन कौर संतानहीन रहेगी.’’

पुलिस के पहुंचने पर गांव के तमाम लोगों के अलावा महिलाएं भी इकट्ठी हो गई थीं. थानाप्रभारी के आदेश पर लेडी पुलिस ने गांव की ही कुछ महिलाओं की मदद से निर्मल कौर को काबू किया. पुलिस ने तुरंत दोनों बच्चों की लाशें अपने कब्जे में ले लीं. एएसआई दर्शन सिंह ने निर्मल कौर, कुलविंदर सिंह और अन्य लोगों को गाड़ी में बिठा लिया. तब तक यह खबर पूरे कोटफत्ते में फैल गई थी.

इस के बाद लोगों की भीड़ ने पुलिस की गाड़ी को घेर लिया. लोग उन दोनों मांबेटे को अपने हाथों से सजा देना चाहते थे. वास्तव में उस समय भीड़ इतनी आक्रोशित थी कि यदि वे दोनों भीड़ के हत्थे चढ़ जाते तो पीटपीट कर उन की हत्या कर दी जाती. थानाप्रभारी ने लोगों को समझाना चाहा पर लोग उन की कोई बात सुनने को तैयार नहीं थे. लोगों की पुलिस से झड़प तक हो गई.

अतिरिक्त पुलिस बल मंगवा कर बड़ी मुश्किल से उन्हें निकाल कर थाने पहुंचाया तो पब्लिक ने थाने को घेर लिया. हालात बेकाबू होता देख थानाप्रभारी ने एसएसपी स्वप्न शर्मा को हालात से अवगत करा दिया. इस के बाद कुछ ही देर में कई थानों की पुलिस वहां पहुंच गई. एसएसपी स्वप्न शर्मा, एसपी विनोद कुमार, डीएसपी कुलदीप सिंह सोही सहित कई आला अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के काफी समझानेबुझाने के बाद करीब आधी रात को मामला शांत हुआ. पुलिस कुलविंदर की बीवी रोजी को भी पूछताछ के लिए अपने साथ ले गई.

तमाशा 8 तारीख की आधी रात तक चलता रहा. रात लगभग सवा 12 बजे इंसपेक्टर कृष्ण कुमार ने लाभ सिंह द्वारा पहले दी गई तहरीर के आधार पर भादंवि की धारा 302, 34 के अंतर्गत दोनों मासूम बच्चों रंजीत सिंह और अनामिका की बेरहमी से की गई हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

निर्मल कौर और कुलविंदर सिंह उर्फ विक्की तथा उस की पत्नी रोजी कौर को उसी समय गिरफ्तार कर के पूछताछ के लिए जिला मुख्यालय औफिस ले जाया गया. अगले दिन पूछताछ के बाद दोनों मांबेटे को तलवंडी साबो की जिला अदालत में पेश किया.

पुलिस ने निर्मल कौर के कमरे से तंत्रमंत्र का सामान, चिमटा आदि बरामद कर लिया. साथ ही कमरे से काफी मात्रा में नशीला पदार्थ भी बरामद किया.

अकाल गुरमति प्रचार कमेटी के मंजीत सिंह खालसा, सिख फेडरेशन के परणजीत सिंह जग्गी, भारतीय किसान क्रांतिकारी यूनियन के अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के पंजाब प्रभारी तथा तर्कशील सोसायटी भूरा सिंह महमा व जीरक सिंह सहित शहर के अन्य लोगों ने एसपी कार्यालय का घेराव कर मांग की कि बच्चों की मां रोजी कौर को इस मामले से बाहर रखा जाए, क्योंकि वह निर्दोष है.

जबकि एसपी विनोद कुमार और डीएसपी कुलदीप सिंह सोही का कहना था कि पिछले 4 दिनों से यह सब तमाशा उस की आंखों के सामने चल रहा था. यदि वह चाहती तो पहले ही पुलिस की सहायता ले सकती थी. इस से दोनों बच्चों की जान बच जाती.

रोजी को उस के पति और सास ने 8 मार्च को शाम के समय कमरे में बंद किया था. बंद के दौरान भी उस के पास मोबाइल फोन था. यदि वह चाहती तो पुलिस को या दूसरे लोगों को सूचित कर सकती थी. पर उस ने ऐसा नहीं किया. पुलिस को अंदेशा है कि शायद वह भी इस साजिश में शामिल थी.

पुलिस इस बात की भी छानबीन कर रही है कि मृतक बच्चों के दादा मुख्तियार सिंह की इस मामले में कितनी संलिप्तता है. 2 निर्दोष मासूमों की तंत्रमंत्र के नाम पर हुई हत्या से शहर भर में तनाव जैसा माहौल हो गया. लोगों ने बाजार बंद कर विरोध प्रकट किया तथा शहर के अन्य तांत्रिकों व बाबाओं के खिलाफ काररवाई की मांग की. पुलिस ने भी जरूरी काररवाई करते हुए तांत्रिकों की धरपकड़ शुरू कर दी.

शहर की तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए चप्पेचप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई. पोस्टमार्टम के बाद भारी पुलिस बल की मौजूदगी में दोनों बच्चों का अंतिम संस्कार किया गया. अंतिम संस्कार के बाद पुन: भीड़ ने उग्र रूप धारण कर मांग उठाई कि सिरसा के तांत्रिक लक्की बाबा उर्फ लखविंदर को भी गिरफ्तार किया जाए.

हालांकि इस घटना के समय वह वहां नहीं था पर 2 दिन पहले वहां आया था. अत: पुलिस ने लक्की बाबा की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी. वह कहीं छिप गया था. अंत में पुलिस का दबाव बढ़ता देख कर उस ने खुद ही 19 मार्च, 2017 को थाना कोटफत्ता में आत्मसमर्पण कर दिया.

थानाप्रभारी लक्की बाबा को अदालत में पेश कर पूछताछ के लिए एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पूछताछ के बाद उसे अगले दिन पुन: अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

निर्मल कौर, कुलविंदर सिंह, रोजी कौर, प्रेमलता, गगन कौर, मुख्तियार सिंह, लक्की बाबा से की गई पूछताछ से निर्मल कौर के स्वयंभू देवी बनने की जो कहानी सामने आई, उस से पता चलता है कि लोगों के अनपढ़ और अंधविश्वासी होने का फायदा उठाते हुए वह समाज में अपना वर्चस्व कायम करना चाहती थी.

लगभग 6 साल पहले मुख्तियार सिंह पूजापाठ और झाड़फूंक करता था. वह यह काम बिना किसी लालच के करता था. कुछ लोगों को फायदा होने लगा तो उस के पास आने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई. उस की पत्नी निर्मल कौर उस से इस काम के बदले पैसे लेने की बात कहती. पति के मना करने पर वह उस से झगड़ती और आने वाले लोगों से पैसे देने के लिए खुद कहती.

मुख्तियार ने उस की एक न सुनी. तब मुख्तियार ने झाड़फूंक का काम बंद कर दिया. इस के बाद उस की पत्नी निर्मल ने गद्दी पर बैठना शुरू किया. उस ने अपने बेटे कुलविंदर सिंह को भी अपने साथ लगा लिया. फिर दोनों ने तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों को लूटना शुरू कर दिया.

वह खुद तो नशा करती ही थी, साथ ही आने वाले लोगों को भी प्रसाद में नशा मिला कर देती थी. नशे की जद में आ कर खुद को शक्तिशाली दिखाने के चक्कर में वह खुद के ही पोतेपोती का कत्ल कर बैठी. जेल पहुंचने के बाद अपने ही हाथों अपना वंश उजाड़ने वाली निर्मल कौर और उस के बेटे कुलविंदर सिंह को अपने किए पर बहुत पछतावा है.

रहस्यमय हत्या की कहानी

छोटे शहरों से बड़े सपने ले कर सैकड़ों लड़कियां आए दिन सपनों की नगरी मुंबई पहुंचती हैं. लेकिन इन में से गिनीचुनी लड़कियों को ही कामयाबी मिलती है. दरअसल, फिल्म इंडस्ट्री भूलभुलैया की तरह है, जहां प्रवेश करना तो आसान है, लेकिन बाहर निकलना बहुत मुश्किल. क्योंकि यहां कदमकदम पर दिगभ्रमित करने वाले मोड़ों पर गलत राह बताने वाले मौजूद रहते हैं, जिन के अपनेअपने स्वार्थ होते हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में एक तरफ जहां श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, हेमामालिनी, काजोल, जैसी अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय का परचम लहराया, वहीं दूसरी ओर दिव्या भारती, स्मिता पाटिल, जिया खान, नफीसा जोसेफ, शिखा जोशी, विवेका बाबा, मीनाक्षी थापा और प्रत्यूषा बनर्जी जैसी सुंदर व प्रतिभावान छोटे व बड़े परदे की अभिनेत्रियों ने भावनाओं में बह कर अथवा अपनी नाकामयाबी की वजह से जान गंवाई.

सच तो यह है कि प्राण गंवाने वाली किसी भी अभिनेत्री की मौत का सच कभी सामने नहीं आया. अब ऐसी अभिनेत्रियों में एक और नाम जुड़ गया है कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी का.

घटना 12 जून, 2017 की है. सुबह के करीब 10 बजे का समय था. मुंबई के उपनगर अंधेरी (वेस्ट) स्थित अंबोली पुलिस थाने के चार्जरूम में तैनात ड्यूटी अधिकारी को फोन पर खबर मिली कि चारबंगला स्थित एसआरए भैरवनाथ हाउसिंग सोसाइटी की 5वीं मंजिल के फ्लैट नंबर 503 में से दुर्गंध आ रही है.

ड्यूटी पर तैनात अधिकारी ने मामले की डायरी बना कर इस की जानकारी सीनियर क्राइम इंसपेक्टर दयानायक को दी. इंसपेक्टर दयानायक मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत अपने साथ पुलिस टीम ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने इस मामले की जानकारी थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ और वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी थी.

जब पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंची, तब तक वहां काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. भीड़ को हटा कर पुलिस टीम कमरे के सामने पहुंची. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि उस फ्लैट में 2-3 सालों से फिल्म और टीवी अभिनेत्री कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी किराए पर रह रही थी. लेकिन वह अपने फ्लैट में कब आती थी और जाती थी, इस की जानकारी किसी को नहीं थी. चूंकि उस का काम ही ऐसा था, इसलिए किसी ने उस के आनेजाने पर ध्यान नहीं दिया था. पासपड़ोस के लोगों से भी उस का संबंध नाममात्र का था. पता चला कि कई बार तो वह शूटिंग पर चली जाती थी तो कईकई दिन नहीं लौटती थी.

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फ्लैट की चाबी किसी के पास नहीं थी. जबकि फ्लैट बंद था. इंसपेक्टर दया नायक ने वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर के फ्लैट का दरवाजा तोड़वा दिया. दरवाजा टूटते ही अंदर से बदबू का ऐसा झोंका आया कि वहां खड़े लोगों को सांस लेना कठिन हो गया. नाक पर रूमाल रख कर जब पुलिस टीम फ्लैट के अंदर दाखिल हुई तो कमरे का एसी 19 डिग्री टंप्रेचर पर चल रहा था. संभवत: हत्यारा काफी चालाक और शातिर था. लाश लंबे समय तक सुरक्षित रहे और सड़न की बदबू बाहर न जाए, यह सोच कर उस ने एसी चालू छोड़ दिया था. लाश की स्थिति से लग रहा था कि कृतिका की 3-4 दिनों पहले ही मौत हो गई थी.

इंसपेक्टर दया नायक अभी अपनी टीम के साथ घटनास्थल का निरीक्षण और मृतका कृतिका के पड़ोसियों से पूछताछ कर रहे थे कि अंबोली पुलिस थाने के थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़, डीसीपी परमजीत सिंह दहिया, एसीपी अरुण चव्हाण, क्राइम ब्रांच सीआईडी यूनिट-9 के अधिकारी और फौरेंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई. फौरेंसिक टीम का काम खत्म हो जाने के बाद पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने घटनास्थल का सरसरी निगाह से निरीक्षण किया. थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ से जरूरी बातें कर के अधिकारी अपने औफिस लौट गए.

अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ ने इंसपेक्टर दया नायक और सहयोगियों के साथ मिल कर घटनास्थल और मृतका कृतिका के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. कृतिका का शव उस के बैडरूम में बैड पर चित पड़ा था. शव के पास ही उस का मोबाइल फोन और ड्रग्स जैसा दिखने वाले पाउडर का एक पैकेट पड़ा था. पुलिस ने कृतिका का मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया और पाउडर के पैकेट को जांच के लिए सांताकु्रज के कालिया लैब भेज दिया. फोन से कृतिका के घर वालों का नंबर निकाल कर उन्हें इस मामले की जानकारी दे दी गई.

घटनास्थल की जांच में कृतिका के बर्थडे का एक नया फोटो भी मिला, जिस में वह 2 युवकों और 3 युवतियों के बीच पीले रंग की ड्रेस में खड़ी थी और काफी खुश नजर आ रही थी. वह फोटो संभवत: 5 और 8 जून, 2017 के बीच खींची गई थी. कृतिका की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था, साथ ही उस की हत्या में अंगुलियों में पहने जाने वाले नुकीले पंजों का इस्तेमाल किया गया था. कृतिका के शरीर पर कई तरह के जख्मों के निशान थे, जिस से लगता था कि हत्या के पूर्व कृतिका के और हत्यारों के बीच काफी मारपीट हुई थी. हत्या में इस्तेमाल चीजों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

बैड पर कृतिका का खून बह कर बिस्तर पर सूख गया था और उसकी लाश धीरेधीरे सड़नी शुरू हो गई थी. घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस टीम ने कृतिका के शव को पोस्टमार्टम के लिए विलेपार्ले स्थित कूपर अस्पताल भेज दिया. घटनास्थल की प्राथमिक काररवाई पूरी कर

के पुलिस टीम थाने लौट आई. थाने आ कर थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ ने इस मामले पर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विचारविमर्श किया और तफ्तीश का काम इंसपेक्टर दया नायक को सौंप दिया.

उधर कृतिका की मौत का समाचार मिलते ही उस के परिवार वाले मुंबई के लिए रवाना हो गए. कृतिका की हत्या हो सकती है, यह वे लोग सोच भी नहीं सकते थे. मुंबई पहुंच कर उन्होंने कृतिका का शव देखा तो दहाड़ें मार कर रोने लगे. पुलिस की जांच टीम ने उन्हें बड़ी मुश्किल से संभाला. पोस्टमार्टम के बाद कृतिका का शव उन्हें सौंप दिया गया.

इंसपेक्टर दया नायक ने कृतिका के परिवार वालों के बयान लेने के बाद थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ के दिशानिर्देशन में अपनी जांच की रूपरेखा तैयार की, ताकि उस के हत्यारे तक पहुंचा जा सके. एक तरफ इंसपेक्टर दया नायक अपनी तफ्तीश का तानाबाना तैयार कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय पड़सलगीकर और जौइंट पुलिस कमिश्नर देवेन भारती के निर्देश पर क्राइम ब्रांच सीआईडी यूनिट-9 के इंसपेक्टर महेश देसाई भी इस मामले की छानबीन में जुट गए थे.

फिल्मों, सीरियल अथवा मौडलिंग करने वाली लड़कियों पर पासपड़ोस के लोगों, सोसायटी में काम करने वालों, ड्राइवरों और गार्डों वगैरह की नजर रहती है. उदाहरणस्वरूप वडाला की रहने वाली पल्लवी पुरकायस्थ को ले सकते हैं, जिस की हत्या इमारत के कश्मीरी सिक्योरिटी गार्ड ने उस की सुंदरता पर फिदा हो कर दी थी.

ऐसी ही एक और घटना अक्तूबर, 2016 में गोवा के पणजी में घटी थी. वहां सुप्रसिद्ध ब्यूटी फोटोग्राफर और जानी मानी परफ्यूमर मोनिका घुर्डे का शव सांगोल्डा विलेज की सपना राजवैली इमारत की दूसरी मंजिल पर मिला था.

उस की हत्या में भी इमारत के सिक्योरिटी गार्ड राजकुमार का हाथ था. इसी थ्योरी के आधार पर इंसपेक्टर दया नायक ने अपनी टीम के साथ तफ्तीश उसी इमारत से शुरू की, जिस में कृतिका रहती थी. उन्होंने इमारत के आसपास रहने वालों से पूछताछ की, वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले, वहां के सिक्योरिटी गार्डों से पूछताछ की और संदेह के आधार पर उसे हिरासत में भी लिया. उस इमारत का दूसरा सिक्योरिटी गार्ड लखनऊ गया हुआ था. उस की तलाश में पुलिस की एक टीम लखनऊ भी भेजी गई. लेकिन वहां से उसे खाली हाथ लौटना पड़ा.

27 वर्षीया मौडल और अभिनेत्री कृतिका उत्तराखंड के हरिद्वार की रहने वाली थी. उस के पिता हरिद्वार के सम्मानित व्यक्ति थे. ऐशोआराम में पलीबढ़ी कृतिका खूबसूरत भी थी और महत्वाकांक्षी भी. वह ग्लैमर की लाइन में जाना चाहती थी. जबकि उस का परिवार चाहता था कि वह पढ़लिख कर कोई अच्छी नौकरी करे. कृतिका के सिर पर अभिनय और बौलीवुड का भूत कुछ इस तरह सवार था कि उसे मांबाप की कोई भी सलाह अच्छी नहीं लगती थी. वह बौलीवुड में जाने के लिए स्कूल और कालेजों के हर प्रोग्राम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. इसी के चलते उसे अनेक पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र मिल चुके थे.

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अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कृतिका बौलीवुड की रंगीन दुनिया में काम पाने के लिए प्रयास करने लगी. इस के लिए उस ने अपना फोटो प्रोफाइल तैयार करा लिया था, जिसे वह विभिन्न विज्ञापन एजेंसियों को भेजती रहती थी. कुछ एक एजेंसियों ने उसे रिस्पौंस भी दिया और उसे औडिशन के लिए भी बुलाया. मौडलिंग की दुनिया में वह कुछ हद तक कामयाब भी हो गई थी. इस से उस का हौसला काफी हद तक बढ़ गया. उसे मौडलिंग के औफर मिलने लगे थे.

वैसे बता दें कि कृतिका मौडल नहीं बनना चाहती थी, क्योंकि शरीर के कपड़े उतार कर देह की नुमाइश करना उसे अच्छा नहीं लगता था. पर फिल्मों में काम करने की ललक उसे ऐसे विज्ञापनों में काम करने को मजबूर करती रही और इन्हीं के सहारे वह मुंबई जा पहुंची.

सन 2009 में कृतिका मायानगरी मुंबई आ गई और मौडलिंग करने लगी. मौडलिंग के साथसाथ वह बौलीवुड की दुनिया में भी अपनी किस्मत आजमाती रही. इसी चक्कर में उस ने मौडलिंग एजेंसियों के कई औफर भी ठुकराए. परिणाम यह हुआ कि उस के पास मौडलिंग एजेसियों के औफर आने बंद हो गए. इस बीच वह कई फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों से भी मिली. लेकिन उन से उसे आश्वासन तो मिले, पर काम नहीं.

इस सब के चलते एक तरह से वह निराशा से घिर गई थी. तभी एक पार्टी में उस की मुलाकात दिल्ली के बिजनैसमैन राज त्रिवेदी से हुई. जल्दी ही राज त्रिवेदी और कृतिका ने शादी कर ली. शादी के बाद दोनों दिल्ली आ गए. लेकिन कृतिका अपनी शादीशुदा जिंदगी में अधिक दिनों तक खुश नहीं रह पाई और एक साल में ही राज त्रिवेदी से तलाक ले कर आजाद हो गई. अपनी शादी की असफलता से कृतिका टूट सी गई थी, लेकिन उस ने अपने सपनों को नहीं टूटने दिया था.

दिल्ली में रहते हुए कृतिका की मुलाकात शातिर ठग विजय द्विवेदी से हुई. विजय द्विवेदी मुंबई के कई बड़े फिल्मी सितारों और राजनेताओं को चूना लगा चुका था. जिन में फिल्म जगत के जानेमाने अभिनेता गोविंदा, टीवी और भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री श्वेता तिवारी तथा बालाजी टेलीफिल्म्स की मालिक एकता कपूर और कांग्रेस के कद्दावर नेता अमरीश पटेल शामिल थे.

30 वर्षीय विजय द्विवेदी मूलरूप से दिल्ली का रहने वाला था. वह मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखता था, साथ ही सुंदर और आकर्षण व्यक्तित्व का मालिक था. खुद को वह कांग्रेस के कद्दावर नेता जनार्दन द्विवेदी का भतीजा बता कर लोगों को अपना परिचय बड़े ही रौब रुतबे वाले अंदाज में देता था. इस से लोग उस के प्रभाव में आ जाते थे. उस ने कृतिका को भी अपना परिचय इसी तरह दिया था. महत्वाकांक्षी कृतिका उस के प्रभाव में आ गई.

विजय द्विवेदी ने कृतिका को जब दिल्ली के एक मौल में शौपिंग करते देखा था, तभी उस ने सोच लिया था कि उसे किसी भी कीमत पर पाना है. वह कृतिका की सुंदरता पर कुछ इस तरह रीझा था कि जबतब कृतिका के आसपास शिकारी चील की तरह चक्कर लगाने लगा. आखिर एक दिन उसे कृतिका के करीब आने का मौका मिल ही गया.

कृतिका के करीब आते ही वह उस की तारीफों के पुल बांधने लगा, साथ ही उस ने उस की दुखती रगों पर हाथ भी रख दिया.उस ने कहा कि उस के जैसी युवती को मौडल, टीवी एक्ट्रेस या फिर फिल्म अभिनेत्री होना चाहिए. उस का यह तीर निशाने पर लगा. नतीजा यह हुआ कि शादी और फिर तलाक होने के बाद भी कृतिका के दिल में बौलीवुड के जो सपने बरकरार थे, उन्हें हवा मिल गई.

आखिरकार विजय द्विवेदी ने कृतिका को अपनी झूठी बातों से अपने प्रेमजाल में फांस लिया. कृतिका की नजदीकियां पाने के लिए उस ने उस की कमजोरी पकड़ी थी. उसे करीब लाने के लिए ही उस ने हाईप्रोफाइल अभिनेताओं और राजनीतिक रसूखदारों के नाम लिए थे. बात बढ़ी तो दोनों की मुलाकातें भी बढ़ गईं. कृतिका को भी विजय द्विवेदी से प्यार हो गया. कृतिका को अपनी मुट्ठी में करने के बाद विजय द्विवेदी ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया और कृतिका से शादी कर ली.

सन 2011 में कृतिका विजय द्विवेदी के साथ अपनी किस्मत आजमाने वापस मुंबई आ गई. दोनों अंधेरी वेस्ट के लोखंडवाला कौंपलेक्स इलाके में किराए के एक फ्लैट में साथसाथ रहने लगे. मुंबई आने के बाद कृतिका फिर से बौलीवुड की गलियों में संघर्ष करने लगी. दूसरी ओर विजय द्विवेदी अपने शिकार ढूंढने लगा था. बहरहाल, इस बार एक तरफ कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी की किस्मत रंग लाई, वही दूसरी ओर विजय द्विवेदी की किस्मत के सितारे गर्दिश में आ गए.

कृतिका को जल्द ही फिल्म ‘रज्जो’ में कंगना रनौत के साथ एक बड़ा मौका मिल गया. यह फिल्म सन 2013 में बन कर रिलीज हुई तो दर्शकों को कृतिका का अभिनय पसंद आया. इस के बाद कृतिका के सितारे चमकने लगे. फिल्म ‘रज्जो’ के बाद टीवी धारावाहिक ‘परिचय’ से उस की एंट्री एकता कपूर की कंपनी में हो गई.

इस के साथ ही उसे क्राइम धारावाहिक ‘सावधान इंडिया’ में भी काम मिलने लगा. जहां सन 2013 से कृतिका का कैरियर संवरना शुरू हुआ, वहीं विजय द्विवेदी के कैरियर का सितारा सन 2012 डूब गया था. कांग्रेस नेता अमरीश पटेल को ठगने के बाद उस के कैरियर की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी.

कांग्रेस नेता अमरीश पटेल के ठगे जाने की खबर जब उन की पार्टी के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी को मिली तो वह सन्न रह गए थे. उन्होंने इस मामले का संज्ञान लेते हुए इस की शिकायत तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण से कर दी कि कोई उन्हें अपना चाचा बता कर उन की छवि खराब करने की कोशिश कर रहा है. मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया.

क्राइम ब्रांच विजय द्विवेदी के पीछे लग गई. फलस्वरूप सन 2012 के शुरुआती दौर में उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उस वक्त वह कांग्रेसी नेता सुरेश कलमाड़ी को अपना शिकार बनाने की कोशिश कर रहा था. कलमाड़ी से भी उस ने खुद को जनार्दन द्विवेदी का भतीजा बताया था. क्राइम ब्रांच ने उसे अपनी कस्डटी में ले कर पूछताछ की तो सारा मामला सामने आ गया.

यह बात जब कृतिका को पता चली तो वह स्तब्ध रह गई. विजय द्विवेदी के संपर्क और एक साल तक उस के साथ रहने के बावजूद भी वह उस की हकीकत नहीं जान पाई थी. दरअसल, वह उस से भी बड़ा ऐक्टर था. बहरहाल, विजय द्विवेदी के ठगी का परदा उठा नहीं कि कृतिका ने उस से तलाक ले लिया. उस का साथ छोड़ कर वह अलग रहने लगी. वह अपनी जिंदगी अपनी तरह से बिता रही थी. छोटे पर्दे पर उस के लिए काम की कोई कमी नहीं थी. हत्या के पहले उस ने खुशीखुशी अपना बर्थडे मनाया था. उस के 2-3 दिनों बाद ही उस की हत्या हो गई थी.

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धीरेधीरे इस घटना को घटे लगभग एक माह के करीब हो गया. लेकिन अभी तक अभियुक्तों के बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिली थी. पुलिस अपनी तफ्तीश की कोई दिशा तय करती, तभी सांताकु्रज के कालिया लैब की रिपोर्ट देख कर उन का ध्यान एमडी ड्रग्स की तरफ गया. इसी बीच कृतिका के परिवार वालों ने बताया कि अपनी पहली शादी और तलाक के बाद वह काफी दुखी थी, जिस के चलते वह ड्रग्स लेने लगी थी.

जांच अधिकारियों ने उन के इसी बयान को आधार बना कर जांच करने का फैसला किया. एसीपी अरुण चव्हाण ने एक नई टीम का गठन किया. इस टीम में उन्होंने क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर उदय राजशिर्के, नंदकुमार गोपाल, खार पुलिस थाने के असिस्टैंट इंसपेक्टर जोगदंड, वैशाली चव्हाण, दयानायक और सावले आदि को शामिल किया. टीम के लोगों को अलगअलग जिम्मेदारी सौंपी गई.

सीनियर इंसपेक्टर सी.एस. गायकवाड़ के निर्देशन में जांच टीम ने पुन: घटनास्थल का निरीक्षण किया और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. इस कोशिश में पुलिस को एक फुटेज में 2 संदिग्ध युवकों की परछाइयां नजर आईं. लेकिन उन का चेहरा स्पष्ट नहीं था. इस के अलावा पुलिस ने करीब 200 लोगों से पूछताछ करने के अलावा कृतिका के फोन की 2-3 सालों की काल डिटेल्स और डाटा निकलवाया. इस के बाद पुलिस को तफ्तीश की एक हल्की सी किरण नजर आई. इसी के सहारे पुलिस कृतिका के हत्यारे ड्रग्स सप्लायर तक पहुंचने में कामयाब हो गई.

दरअसल, कृतिका को ड्रग्स लेने की आदत पड़ गई थी. उसे ड्रग्स आसिफ अली उर्फ सन्नी सप्लाई करता था. वह सिर्फ कृतिका को ही नहीं, बल्कि और भी कई फिल्मी हस्तियों को ड्रग्स सप्लाई किया करता था. इस चक्कर में वह जेल भी गया था. पूछताछ में उस ने बताया कि वह जेल जाने के पहले कृतिका को ड्रग्स सप्लाई करता था, लेकिन उस के जेल जाने के बाद कृतिका उस के दोस्त शकील उर्फ बौडी बिल्डर से ड्रग्स लेने लगी थी.

शकील उर्फ बौडी बिल्डर थाणे पालघर जनपद के उपनगर नालासोपारा (वेस्ट) की एक इमारत में किराए की काफी मोटी रकम दे कर रहता था. ड्रग्स सप्लाई के दौरान कृतिका और शकील खान की अच्छी दोस्ती हो गई थी. इसी के चलते वह कई बार कृतिका को उधारी में ड्रग्स दे देता था. फलस्वरूप कृतिका पर उस के 6 हजार रुपए बकाया रह गए थे. कृतिका उस का पैसा दे पाती, उस के पहले ही वह अगस्त, 2016 के पहले हफ्ते में जेल चला गया था.

शकील नसीम खान के अपने गिनेचुने ग्राहक थे. उन लोगों को ड्रग्स सप्लाई करने के लिए शकील खान बादशाह उर्फ साधवी लालदास से ड्रग्स लेता था. दोनों के बीच उधारी चलती रहती थी. नवंबर, 2016 में जब शकील जेल से बाहर आया तो उस के दोस्त बादशाह ने उस से अपने पैसों की मांग की. कृतिका पर उस के 6 हजार रुपए बाकी थे. दरअसल, एक ही धंधे में होने के कारण शकील खान ने बादशाह से ड्रग्स ले कर कृतिका को सप्लाई किया था. बादशाह ने जब शकील खान पर दबाव बनाया तो उस ने कृतिका से अपने बकाया  पैसों की मांग शुरू कर दी. लेकिन कृतिका उस का पैसा देने में आनाकानी कर रही थी. इस बीच करीब 6 महीने का समय निकल गया.

घटना के दिन शकील खान अपने दोस्त बादशाह को यह कह कर कृतिका के घर ले गया कि पैसा वह कृतिका के घर पर देगा. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. रात का खानापीना करने के बाद चलते समय जब शकील खान ने कृतिका से अपने पैसे मांगे तो उस ने पैसे देने में मजबूरी जताई. इस की वजह से दोनों में विवाद बढ़ गया.

कृतिका ने चिल्ला कर लोगों को एकत्र करने की धमकी दी तो शकील खान को गुस्सा आ गया. उस ने कृतिका के साथ मारपीट शुरू कर दी. शकील खान के पास लोहे का पंच था, जिस से उस ने कृतिका पर कई वार किए. इस के अलावा उस ने पास पड़ी किसी भारी चीज से भी उस के सिर पर वार कर दिया, जिस से उस की मौत हो गई. इस बीच उस का दोस्त बादशाह उन दोनों का बीच बचाव करता रहा. लेकिन कृतिका की जान नहीं बच सकी.

कृतिका की हत्या करने के बाद शकील खान ने कमरे का एसी चालू कर दिया. उस के बाद कृतिका के बदन के सारे जेवर और 22 सौ रुपए नकद ले कर बादशाह के साथ वहां से चला गया. बहरहाल, इन दोनों अभियुक्तों को पुलिस टीम ने 8 जुलाई को रात को नालासोपारा और पनवेल से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में दोनों ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया है.

विस्तृत पूछताछ के बाद उन के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उन्हें अदालत पर पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में आर्थर जेल भेज दिया गया. दोनों अभियुक्त अभी जेल में हैं. लेकिन जांच अधिकारियों के सामने अभी भी एक प्रश्न मुंह बाए खड़ा है कि क्या मात्र 6 हजार रुपए के लिए कृतिका की हत्या की गई. ऐसा लगता तो नहीं है. क्योंकि 6 हजार रुपए न तो ड्रग्स सप्लायरों के लिए बड़ी रकम थी और न ही कृतिका के लिए. बहरहाल मामले की जांच अभी जारी है.

चोरी छिपे शादी, बनी बरबादी

भरेपूरे परिवार की 28 साला प्रीति रघुवंशी को अपने ही कसबे उदयपुरा के 30 साला गिरजेश प्रताप सिंह से तकरीबन 6 साल पहले प्यार हो गया था. उन के घर भी आमने सामने थे.

प्रीति के पिता चंदन सिंह रघुवंशी खातेपीते किसान हैं और उदयपुरा में उन की अच्छी पूछपरख है. गिरजेश के पिता ठाकुर रामपाल सिंह मध्य प्रदेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री हैं.

कर ली शादी

दोनों को मालूम था कि घर वाले आसानी से उन की शादी के लिए तैयार नहीं होंगे, लिहाजा उन्होंने पिछले साल 20 जून, 2017 की चिलचिलाती गरमी में भोपाल आ कर नेहरू नगर के आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली. मंदिर के कर्ताधर्ता प्रमोद वर्मा ने शादी कराई और गिरजेश को शादी का सर्टिफिकेट भी दे दिया.

प्रीति घर वालों से इलाज की कह कर भोपाल आई थी. उस के साथ उस का छोटा भाई नीरज सिंह भी था जो शादी में भी शामिल हुआ था.

नीरज को प्रीति ने भरोसे में ले कर सारी बात बता दी थी. गिरजेश की तरफ से शादी में उस के कुछ नजदीकी दोस्त शामिल हुए थे.

शादी के बाद प्रीति घर वापस आ गई और उस दिन का इंतजार करने लगी जब गिरजेश और उस के घर वाले उसे लेने आएंगे.

नीरज ज्यादा देर तक अपनी बहन की शादी की बात पचा नहीं पाया और उस ने घर में यह बात बता दी. इस पर पूरा घर सनाके में आ गया. पर वे सभी मुनासिब वक्त का इंतजार करने लगे.

बेवफाई बनी फंदा

उदयपुरा में प्रीति का एकएक दिन एकएक साल के बराबर गुजर रहा था. कभीकभार गिरजेश से फोन पर बात होती थी तो वह खुश और बेचैन भी हो उठती थी. गिरजेश हमेशा की तरह उसे हिम्मत बंधाता था कि बस कुछ दिन की बात और है, फिर सबकुछ ठीक हो जाएगा.

लेकिन वह दिन कभी नहीं आया. अलबत्ता, होली के बाद कहीं से प्रीति को खबर लगी कि गिरजेश की सगाई उस के घर वालों ने कहीं और कर दी है. खबर गलत नहीं थी. वाकई गिरजेश की सगाई टीकमगढ़ जिले में हो चुकी थी और फलदान भी हो चुका था.

16 मार्च, 2018 की रात गिरजेश उदयपुरा आया तो प्रीति की बांछें खिल उठीं. रात में ही उस ने गिरजेश से फोन पर बात की जो ठीक उस के घर के सामने रुका था. क्या बातें हुईं थीं, यह बताने के लिए प्रीति तो अब जिंदा नहीं है और गिरजेश मुंह छिपाता फिर रहा है. सुबह 5 बजे प्रीति ने अपने गले में फांसी का फंदा डाल कर खुदकुशी कर ली.

सियासत तले मुहब्बत

सुबह के तकरीबन 10 बजे सोशल मीडिया पर यह मैसेज वायरल हुआ कि उदयपुरा में प्रीति रघुवंशी नाम की लड़की ने खुदकुशी कर ली है और वह राज्य के रसूखदार मंत्री ठाकुर रामपाल सिंह की बहू है, तो हड़कंप मच गया.

जल्द ही सारी कहानी सामने आ गई. प्रीति का लिखा सुसाइड नोट भी वायरल हुआ जिस में उस ने अपनी गलती के बाबत बारबार मम्मीपापा से माफी मांगते हुए किसी को परेशान न किए जाने की बात लिखी थी. अपने आशिक या शौहर गिरजेश का उस ने अपने सुसाइड नोट में जिक्र तक नहीं किया था.

8 महीने से सब्र कर रहे प्रीति के घर वाले भी अब खामोश नहीं रह पाए और उन्होंने ठाकुर रामपाल सिंह और गिरजेश पर इलजाम लगाया कि ये दोनों प्रीति को दिमागी तौर पर परेशान कर रहे थे, इसलिए प्रीति ने खुदकुशी कर ली.

बात चूंकि ठाकुर रामपाल सिंह सरीखे रसूखदार और दिग्गज मंत्री के बेटे की थी, इसलिए कांग्रेसियों ने मौका भुनाने की भूल नहीं की और गिरजेश की गिरफ्तारी और रामपाल सिंह को मंत्रिमंडल से बरखास्त करने की मांग पर वे अड़ गए.

चौतरफा समर्थन मिलता देख कर प्रीति के पिता चंदन सिंह रघुवंशी इस जिद पर अड़ गए कि ठाकुर रामपाल सिंह प्रीति को बहू का दर्जा दें और गिरजेश उस का अंतिम संस्कार करे तभी वे प्रीति की लाश लेंगे नहीं तो प्रीति की लाश नैशनल हाईवे पर रख कर प्रदर्शन किया जाएगा.

चंदन सिंह रघुवंशी ने ठाकुर रामपाल सिंह और गिरजेश के खिलाफ उदयपुरा थाने में शिकायत भी दर्ज कराई.

उधर ठाकुर रामपाल सिंह ने दोटूक कह दिया कि उन के बेटे गिरजेश को फंसाया जा रहा है और प्रीति उन की बहू नहीं है तो पूरा रघुवंशी समाज उदयपुरा में इकट्ठा हो कर विरोध करने लगा.

बात इतनी बिगड़ी कि उदयपुरा छावनी में तबदील हो गया और रायसेन की कलक्टर और एसपी समेत दूसरे आला अफसर मामला सुलझाने की कोशिश में जुट गए.

जैसेतैसे बड़ेबूढ़ों के समझाने पर प्रीति के घर वालों ने उस का दाह संस्कार किया लेकिन जांच की मांग नहीं छोड़ी तो पाला बदलते ठाकुर रामपाल सिंह प्रीति को बहू का दर्जा देने के लिए तैयार हो गए.

इस से बात सुलझती नजर आई लेकिन फिर जल्द ही बिगड़ भी गई क्योंकि जांच के नाम पर पुलिस प्रीति के घर वालों को ही परेशान करने लगी थी और गिरजेश के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिख रही थी.

25 मार्च, 2018 को जैसेतैसे प्रीति के पिता चंदन सिंह रघुवंशी के बयान दर्ज हुए, पर तब तक भी पुलिस ने गिरजेश के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की थी.

जातपांत का फेर

गिरजेश ने सरासर बुजदिली दिखाई और भोलीभाली प्रीति को धोखा दिया. उस की शादी की खबर ठाकुर रामपाल सिंह को थी लेकिन वे जातिगत ठसक और जिद के चलते बेटे की चोरीछिपे की शादी को मंजूरी नहीं दे पाए.

प्रीति की गलती यह थी कि उस ने गिरजेश पर आंखें मूंद कर भरोसा किया और चोरी से शादी भी कर ली. लेकिन गिरजेश वादे से मुकर गया तो वह घबरा उठी.

प्रीति अगर मरने के बजाय दिलेरी से अपनी शादी का राज खोल कर अपना हक मांगती तो नजारा कुछ और होता.

प्रीति की मौत एक सबक है कि आशिक पर भरोसा कर उस से चोरीछिपे शादी करना जिंदगी दांव पर लगाने जैसी बात है. वजह, जो शख्स चोरी से शादी कर रहा हो उस के पास मुकरने और धोखा देने का पूरा मौका रहता है.

कई लड़कियां तो चोरी से शादी कर पेट से हो आती हैं और दोहरी परेशानी और जिल्लत झेलती हैं. वे शादी का सुबूत दें तो भी उस पर कोई तवज्जुह नहीं देता.

यह भी साफ दिख रहा है कि जातपांत में जकड़ा समाज कहने भर को मौडर्न हुआ है, नहीं तो हकीकत प्रीति के मामले से सामने है कि बदला कुछ खास नहीं है.

बेवफाई का सिला कुछ ऐसा मिला

26 जनवरी, 2017 को इलाहाबाद के यमुनानगर इलाके के थाना नैनी में गणतंत्र दिवस के ध्वजारोहण की तैयारी चल रही थी. इंसपेक्टर अवधेश प्रताप सिंह एवं अन्य पुलिसकर्मी सीओ अलका भटनागर के आने का इंतजार कर रहे थे. उसी समय एक दुबलापतला युवक आया और एक सिपाही के पास जा कर बोला, ‘‘स…स… साहब, बड़े साहब कहां हैं, मुझे उन से कुछ कहना है.’’

इंसपेक्टर अवधेश प्रताप सिंह वहीं मौजूद थे. उस युवक की आवाज उन के कानों तक पहुंची तो उन्होंने उसे अपने पास बुला कर पूछा, ‘‘कहो, क्या बात है?’’

‘‘साहब, मेरा नाम इंद्रकुमार साहू है. मैं चक गरीबदास मोहल्ले में मामाभांजा तालाब के पास रहता हूं. मैं ने अपनी पत्नी और उस के प्रेमी को मार डाला है.’’

इंद्रकुमार के मुंह से 2 हत्याओं की बात सुन कर अवधेश प्रताप सिंह दंग रह गए. उन्होंने उस के ऊपर एक नजर डाली, उस के उलझे बाल, लाललाल आंखों से वह पागल जैसा नजर आ रहा था. चेहरे के हावभाव देख लग रहा था कि वह रात भर नहीं सोया था.

वहां मौजूद सभी पुलिसकर्मी इंद्रकुमार को हैरानी से देख रहे थे. थाना पुलिस कुछ करने का सोच रही थी, तभी सीओ अलका भटनागर भी थाना आ पहुंचीं. इंद्रकुमार द्वारा दो हत्याएं करने की बात सुन वह भी दंग रह गईं. सीओ के इशारे पर अवधेश प्रताप सिंह ने उसे हिरासत में ले लिया.

ध्वजारोहण की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अवधेश प्रताप सिंह इंद्रकुमार को अपनी जीप में बैठा कर उस के घर ले गए. अलका भटनागर भी साथ गईं. इंद्रकुमार पुलिस को उस कमरे में ले गया, जहां पत्नी गीता साहू और उस के प्रेमी रीतेश सोनी की लाशें पड़ी थीं.

पुलिस के पहुंचने पर इस दोहरे हत्याकांड की खबर पासपड़ोस वालों को मिली तो सभी इकट्ठा हो गए. पुलिस दोनों लाशों का बारीकी से निरीक्षण करने लगी. पुलिस अधिकारी यह देख कर हतप्रभ थे कि दोनों लाशों पर नोचखसोट या चोट के कोई निशान नहीं थे. गीता के गले पर लाल धारियां जरूर पड़ी थीं. रीतेश के गले पर भी वैसे ही निशान देख कर लग रह था कि उन की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

मोहल्ले वालों से खबर पा कर उस के घर वाले रोतेबिलखते घटनास्थल पर आ गए थे. मौके की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद इंद्रकुमार को थाने ला कर उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ की तो उस ने पत्नी की बेवफाई की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

इंद्रकुमार साहू उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना नैनी के मोहल्ला गरीबदास में अपनी 32 साल की पत्नी गीता और 4 बच्चों के साथ रहता था. उस की बड़ी बेटी 15 साल की थी. इंद्रकुमार ने अपने मकान के आगे वाले हिस्से में किराना और चायनाश्ता की दुकान खोल रखी थी. उस का काम अच्छा चल रहा था. घर के काम से फारिग होने के बाद गीता भी दुकानदारी के काम में उस का हाथ बंटाती थी.

इंद्रकुमार के घर से कुछ दूरी पर बनारसीलाल सोनी रहता था. उस का बेटा रीतेश सोनी सिगरेट और गुटखा का शौकीन था. इसी वजह से उस का इंद्रकुमार की दुकान पर आनाजाना लगा रहता था. मोहल्ले के रिश्ते से गीता उस की भाभी लगती थी. इसी नाते वह अकसर उस से इंद्रकुमार के सामने ही हंसीमजाक कर लिया करता था.

अपने से 9 साल छोटे रीतेश की बातों का गीता भी हंस कर जवाब दे दिया करती थी. स्वभाव से सीधा और सरल इंद्रकुमार इस का कतई बुरा नहीं मानता था. इंद्रकुमार दुकान का सामान लेने अकसर इलाहाबाद शहर जाता रहता था. ऐसे में गीता ही दुकान संभालती थी.

इस बीच रीतेश गीता को रिझाने के लिए उस की तारीफ किया करता था. एक बार उस ने कहा, ‘‘भाभी, तुम्हें देख कर कोई नहीं कह सकता कि तुम 4 बच्चों की मां हो. तुम तो अभी भी जवान दिखती हो.’’

अपनी तारीफ सुन कर गीता गदगद हो गई थी. इस के बाद एक दिन उस ने कहा, ‘‘भाभी, तुम में गजब का आकर्षण है. कहां तुम और कहां इंदर भाई. दोनों की कदकाठी, रंगरूप और उम्र में जमीनआसमान का अंतर है. तुम्हारे सामने तो वह कुछ भी नहीं है.’’

अपनी तारीफ सुन कर गीता अंदर ही अंदर जहां एक ओर फूली नहीं समाई, वहीं दिखावे के लिए उस ने मंदमंद मुसकराते हुए रीतेश की ओर देखते हुए कहा, ‘‘झूठे कहीं के, तुम जरूरत से ज्यादा तारीफ कर रहे हो? मुझे तुम्हारी इस तारीफ में दाल में कुछ काला नजर आ रहा है, तुम्हारे भैया जो मरियल से दिखते हैं, आने दो बताती हूं उन से.’’

इतना कह कर वह जोरजोर से हंसने लगी. हकीकत यह थी कि गीता रीतेश को मन ही मन चाहती थी. उस ने केवल दिखावे के लिए यह बात कही थी. रीतेश हर हाल में उसे पाना चाहता था. गीता के हावभाव से वह समझ चुका था कि गीता भी उसे पसंद करती है. लेकिन वह इजहार नहीं कर पा रही है.

एक दिन दोपहर को गीता के बच्चे स्कूल गए थे. इंद्रकुमार बाजार गया हुआ था. गरमी के दिन थे. दुकान पर सन्नाटा था. रीतेश ऐसे ही मौके की तलाश में था. वह गीता की दुकान पर पहुंच गया. इधरउधर की बातों और हंसीमजाक के बीच रीतेश ने गीता का हाथ अपने हाथ में ले लिया.

गीता ने इस का विरोध नहीं किया. चेहरेमोहरे से गोरेचिट्टे गबरू जवान रीतेश के हाथों का स्पर्श कुछ अलग था. गीता का हाथ अपने हाथ में ले कर रीतेश सुधबुध खो कर एकटक उस के चेहरे पर निगाहें टिकाए रहा. अचानक रीतेश की तंद्रा भंग करते हुए गीता ने कहा, ‘‘अरे ओ देवरजी, किस दुनिया में सो गए. छोड़ो मेरा हाथ. अगर किसी ने देख लिया तो जानते हो कितनी बड़ी बेइज्जती होगी?’’

गीता की बात सुन कर रीतेश ने कहा, ‘‘यहां बाहर कोई देख लेगा तो अंदर कमरे में चलें?’’

‘‘नहीं…नहीं… आज नहीं, अभी उन के आने का समय हो गया है. वह किसी भी समय आ सकते हैं. फिर कभी अंदर चलेंगे.’’ गीता ने कहा तो रीतेश ने उस का हाथ छोड़ दिया.

लेकिन वह मन ही मन बहुत खुश था, क्योंकि उसे गीता की तरफ से हरी झंडी मिल गई थी. इस के बाद मौका मिलते ही दोनों ने मर्यादा की दीवार तोड़ डाली. इस के बाद इंद्रकुमार की आंखों में धूल झोंक कर गीता रीतेश के साथ मौजमस्ती करने लगी. अवैधसंबंधों का यह सिलसिला करीब 3 सालों तक चलता रहा.

अवैध संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, लेकिन वह छिप नहीं पाते. किसी तरह पड़ोसियों को गीता और रीतेश के अवैध संबंधों की भनक लग गई. इंद्रकुमार के दोस्तों ने कई बार उसे उस की पत्नी और रीतेश के संबंधों की बात बताई, लेकिन वह इतना सीधासादा था कि उस ने दोस्तों की बातों पर ध्यान नहीं दिया. क्योंकि उसे पत्नी पर पूरा विश्वास था. जबकि सच्चाई यह थी कि वह उस के साथ लगातार विश्वासघात कर रही थी. सही बात तो यह थी कि गीता पति को कुछ समझती ही नहीं थी. आखिर 6 महीने पहले एक दिन इंद्रकुमार ने अपनी पत्नी और रीतेश को अपने ही घर में आपत्तिजनक स्थिति में रंगेहाथों पकड़ लिया. रीतेश ने जब इंद्रकुमार को देखा तो वह फुरती से वहां से भाग गया. उस ने भी उस से कुछ नहीं कहा. पर उस ने गीता को खूब खरीखोटी सुनाई और दोबारा ऐसी हरकत न करने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

उस दिन के बाद से कुछ दिनों तक रीतेश का गीता के यहां आनाजाना लगभग बंद रहा. पर यह पाबंदी ज्यादा दिनों तक कायम न रह सकी. मौका मिलने पर दोनों फिर से इंद्रकुमार की आंखों में धूल झोंकने लगे. पर अब वे काफी सावधानी बरत रहे थे. गीता ने अपने दोनों बड़े बच्चों बेटी और बेटे को पूरी तरह से अपने पक्ष में कर लिया था.

रीतेश भी बच्चों को पैसे और खानेपीने की चीजें ला कर देता रहता था, जिस से बच्चे रीतेश के घर में आने की बात अपने पिता को नहीं बताते थे. इस के बावजूद इंद्रकुमार ने दोनों की चोरी दोबारा पकड़ ली. इस बार उस ने गीता की जम कर धुनाई की और बच्चों को भी डांटाफटकारा.

अब वह गीता पर और ज्यादा निगाह रखने लगा. मगर गीता पर इस का विपरीत असर हुआ. वैसे भी वह पहले ही पति की परवाह नहीं करती थी. अब उस का डर बिलकुल मन से निकल गया था. वह पूरी तरह बेशर्मी पर उतर आई. पति की मौजूदगी में ही वह प्रेमी रीतेश से खुलेआम मिलने लगी.

इंद्रकुमार दुकान पर बैठा रहता तो रीतेश उस के सामने ही घर के अंदर उस की पत्नी के पास चला जाता. वह जानता था कि रीतेश और गीता उस से ज्यादा ताकतवर हैं, इसलिए वह चाह कर भी कुछ नहीं कह पाता था. लाचार सा वह दुकान पर ही बैठा रहता था.

पत्नी पर अब उस का कोई वश नहीं रह गया था. वह 15 साल की बड़ी बेटी की दुहाई देते हुए पत्नी को समझाता, पर पत्नी पर उस के समझाने का कोई फर्क नहीं पड़ता था. बल्कि वह और भी ज्यादा मनमानी करने लगी थी.

अपनी आंखों के सामने अपनी इज्जत का जनाजा उठते देख उस का धैर्य जवाब देने लगा. अब उस से पत्नी की बेवफाई और बेहयाई बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसी सब का नतीजा था कि उस ने मन ही मन एक खतरनाक मंसूबा पाल लिया. वह मंसूबा था रीतेश और बेवफा पत्नी की हत्या का.

घटना से 8-10 दिन पहले से ही वह अपने मंसूबे को अमलीजामा पहनाने में लग गया था. मसलन दोनों को मौत के आगोश में सुलाने की उस ने एक खतरनाक योजना बना ली थी. अपनी इस योजना के तहत वह खुद भी पत्नी के प्रेमी रीतेश से ऐसे बातें करने लगा, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो.

योजना के अनुसार, 25 जनवरी, 2017 को वह एक मैडिकल स्टोर से नींद की 20 गोलियां खरीद लाया. दोनों बड़े बच्चों को वह उन की मौसी के घर छोड़ आया. जबकि छोटे दोनों बच्चे घर में ही थे.

रात 9 बजे के आसपास उस ने दुकान बंद की. घर के भीतर गया तो देखा गीता खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. उस का प्रेमी रीतेश कमरे में बैठा टीवी देख रहा था. उसे देख कर अंदर ही अंदर उस का खून खौल रहा था. हत्या के इरादे से इंद्रकुमार ने खुद ही चाय बनाई और पत्नी तथा रीतेश की चाय में नींद की दवा मिला कर चाय उन्हें दे दी. एक कप में ले कर वह खुद भी चाय पीने लगा.

चाय पीने के बाद भी दोनों बेहोश नहीं हुए तो इंद्रकुमार अवाक रह गया. क्योंकि उस दिन उस ने दोनों को मौत के घाट उतारने की पूरी तैयारी कर ली थी. जब उन दोनों पर नींद की गोलियों का कोई असर नहीं हुआ तो उस ने रीतेश से कहा, ‘‘भाई रितेश कल 26 जनवरी है. कल शराब की सारी दुकानें बंद रहेंगी. आज मेरा मन शराब पीने का कर रहा है. क्यों न आज हम 3-3 पैग लगा लें.’’

इंद्रकुमार की बात पर रीतेश खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं. जब तक गीता भाभी खाना बना रही हैं, तब तक हम दोनों अपना काम कर लेते हैं.’’ इस के बाद दोनों शराब की दुकान पर गए और वहां से एक बोतल खरीद कर लौट आए. उन के बीच शराब का दौर शुरू हुआ. अब तक गीता और रीतेश पर गोलियों का असर होने लगा था.

बातोंबातों में इंद्रकुमार ने रीतेश को ज्यादा शराब पिला दी. बिना खाएपिए दोनों आधी रात तक शराब पीते रहे. इस बीच गीता को नींद आने लगी. दोनों बच्चों के साथ गीता ने खाना खा लिया. उस ने रीतेश और पति को कई बार खाने को कहा. लेकिन जब उस ने देखा कि दोनों पीने में मस्त हैं तो वह बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई. थोड़ी देर बाद नशा हावी होते ही रीतेश भी वहीं पसर गया.

इंद्रकुमार को इसी मौके का इंतजार था. वह रीतेश को खींच कर दुकान के पीछे वाले कमरे में ले गया और पूरी ताकत से उस का गला दबा दिया. थोड़ी देर में उस का शरीर हमेशाहमेशा के लिए शांत हो गया.

इस के बाद वह गीता को भी उसी कमरे में खींच लाया. लेकिन गीता पूरी तरह बेहोश नहीं थी. उस ने इंद्रकुमार से बचने की भरपूर कोशिश की, विरोध भी किया, लेकिन इंद्रकुमार ने दुपट्टे से उस का गला कस दिया. जिस के चलते उस के भी त्रियाचरित्र का अध्याय हमेशा के लिए समाप्त हो गया.

इंद्रकुमार साहू से विस्तार से पूछताछ कर के पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 308 के तहत गिरफ्तार कर उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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