उत्तर प्रदेश में 53 दिनों के अंदर 2 बड़ी आपराधिक घटनाएं हुईं, जिन में बड़े माफिया का कत्ल छोटी उम्र के नौसिखिए अपराधियों ने कर दिया. पहली घटना 15 अप्रैल, 2023 को प्रयागराज में हुई, जिस में माफिया अतीक अहमद और उस के भाई अशरफ की हत्या 3 नौसिखिए अपराधियों मोहित उर्फ सनी, लवलेश तिवारी और अरुण कुमार मौर्य ने कर दी थी.
उसी अंदाज में 7 जून, 2023 को लखनऊ सिविल कोर्ट में विजय यादव उर्फ ‘आनंद’ नामक 25 साल के एक नौजवान ने माफिया संजीव माहेश्वरी उर्फ ‘जीवा’ की हत्या कर दी. यह हत्याकांड कोर्ट के भीतर पुलिस, जज, वकील और तमाम लोगों के सामने शूट हुआ था. दोनों ही वारदात में नौजवानों का इस्तेमाल शूटर के रूप में किया गया, जो समाज के लिए खतरनाक संकेत है.
अतीक अहमद और अशरफ की हत्या करने वाले तीनों नौजवान 20 से 23 साल की उम्र के थे. इस उम्र में जब उन्हें अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देना चाहिए था, वे हत्या कर के शोहरत हासिल करना चाहते थे.
मोहित उर्फ सनी नामक लड़के की उम्र 23 साल थी. उस ने ही अतीक अहमद पर पहली गोली चलाई थी. हमीरपुर जिले का रहने वाला मोहित शातिर अपराधी है. उस के खिलाफ इतनी कम उम्र में 14 मुकदमे दर्ज हैं. इन में हत्या के प्रयास और लूट जैसे मुकदमे भी शामिल हैं.
दूसरा लवलेश तिवारी नामक लड़का बांदा जिले का रहने वाला है. उस की उम्र महज 22 साल है. उस के संबंध बजरंग दल से बताए गए थे. हालांकि बजरंग दल ने इस बात से इनकार किया था.
सोशल मीडिया पर लवलेश तिवारी का एक फोटो भारतीय जनता पार्टी युवा मोरचा के अध्यक्ष रह चुके पुष्कर द्विवेदी के साथ देखा गया. इसी तरह पुष्कर द्विवेदी का फोटो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी देखा गया.
लवलेश तिवारी ने अपने फेसबुक पेज पर अपने परिचय में खुद को जिला सह सुरक्षा प्रमुख बजरंग दल के रूप में लिख रखा है. उस ने लिखा है कि ‘हम शास्त्र वाले ब्राह्मण नहीं शस्त्र ब्राह्मण हैं’.
अतीक अहमद और अशरफ की हत्या में शामिल तीसरा अपराधी अरुण कुमार मौर्य था, जिस की उम्र 18 साल थी. उस के मातापिता की मौत हो चुकी है. उस पर कासगंज में जीआरपी के एक सिपाही की हत्या करने का आरोप है.
अतीक अहमद और अशरफ की हत्या इन लोगों ने क्यों की, इस बात का खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है. जिन हथियारों से हत्या की गई, वे महंगे हैं और इन नौजवानों की माली हालत ऐसी नहीं है कि वे उन्हें खरीद सकें, जिस से साफ होता है कि इन माफियाओं की हत्या के पीछे कोई और है.
नौजवानों के सामने जब रोजीरोजगार का संकट होगा, तो वे किसी भी तरह से अपनी जिंदगी चलाने का काम करेंगे. ऐसे में अपराध की दुनिया उन्हें लुभाती है. छोटीमोटी घटनाओं में जेल जाने वाले नौजवान अपराधी जेल में सुधरने की जगह और बिगड़ कर बाहर आते हैं. इन दोनों घटनाओं में देखें, तो ये हत्यारे छोटीछोटी बातों में जेल गए और वहां से भाड़े के शूटर बन कर निकले.
अतीक अहमद और अशरफ की हत्या पुलिस और मीडिया के सामने हुई, तो लखनऊ में 7 जून, 2023 को सिविल कोर्ट में माफिया संजीव माहेश्वरी उर्फ ‘जीवा’ की हत्या 20 साल के विजय यादव ने कर दी.
अतीक अहमद और अशरफ हत्याकांड में हत्यारे मीडिया के वेश में आए थे. ‘जीवा’ हत्याकांड में हत्यारा वकील की ड्रैस में था. इन दोनों ही हत्याकांड में सब से खतरनाक और सोचने वाली समानता यह है कि हत्या करने वालों की कोई निजी दुश्मनी नहीं थी. वे भाड़े के हत्यारे थे.
एक खास बात यह भी है कि अपराध करने वाले ये नौजवान गांव या छोटे शहरों के रहने वाले हैं. इन के अपराध में शामिल होने की सब से बड़ी वजह रोजाना बढ़ती बेरोजगारी है. दूसरी वजह यह है कि नौजवानों के मन में कट्टरपन बढ़ता जा रहा है, जिस से वे बेखौफ होते जा रहे हैं.
जौनपुर का है विजय यादव लखनऊ के कैसरबाग में बने सिविल कोर्ट में 7 जून, 2023 की दोपहर को 48 साल का संजीव माहेश्वरी उर्फ ‘जीवा’ पेशी पर आया था. 3 बज कर 55 मिनट पर कुछ पुलिस वाले उसे ले कर पहुंचे थे. हत्या के एक मामले में उस की कोर्ट में सुनवाई होनी थी.
संजीव ‘जीवा’ एक कुरसी पर बैठा था. आसपास कई पुलिस वाले और वकील घूम रहे थे. तभी वकीलों की तरह काला कोट पहने एक नौजवान विजय यादव वहां आया और उस ने धड़ाधड़ गोलियां चलानी शुरू कर दीं. संजीव को 6 गोलियां लगीं. चारों तरफ अफरातफरी मच गई.
जैसे ही विजय की पिस्टल की गोलियां खत्म हुईं, वकीलों ने उसे पकड़ कर पीटना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर में पुलिस ने वहां आ कर विजय को धर लिया.
लखनऊ कोर्ट में माफिया संजीव माहेश्वरी उर्फ ‘जीवा’ की हत्या करने वाला विजय यादव उर्फ आनंद 25 साल का नौजवान है. वह जौनपुर जिले के केराकत कसबे के सुलतानपुर गांव का रहने वाला है. उस के हावभाव देख कर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि वह कितने खतरनाक इरादे वाला है.
विजय ने मैग्नम अल्फा .357 बोर पिस्टल से संजीव ‘जीवा’ को निशाने पर ले कर 6 राउंड फायरिंग की थी. उस का सीधा निशाना ‘जीवा’ पर था.
विजय यादव के घर का नाम आनंद है. इस के पिता का नाम श्याम यादव है. आनंद के 3 भाई स्वतंत्र, सत्यम और सुंदरम हैं. पिता श्याम यादव मिठाई की दुकान चलाते हैं.
विजय यादव उर्फ आनंद मार्च में गांव आया था. तब उस ने अपने घर वालों से कहा था कि मुंबई में पैसा कम मिल रहा है, इसलिए वह काम की तलाश में लखनऊ जा रहा है. 22 मार्च को वह लखनऊ आ गया. उस ने घर वालों को यह बताया था कि पानी के पाइप बनाने वाली एक कंपनी में वह काम कर रहा है.
विजय यादव उर्फ आनंद की शुरुआती पढ़ाई गांव में ही हुई. इस के बाद उस ने 9वीं से इंटर तक की पढ़ाई एक पब्लिक इंटर कालेज से की. साल 2016 में विजय ने मोहम्मद हसन डिगरी कालेज से बीए किया. इस के बाद से वह नौकरी तलाश रहा था.
10 जुलाई, 2016 को आजमगढ़ की एक लड़की अपने घर से भाग गई थी. आजमगढ़ पुलिस ने विजय पर लड़की भगाने का आरोप लगाया. उन दिनों वह मुंबई में था. पुलिस ने उसे वहां से पकड़ा, फिर आजमगढ़ जेल ले गई.
6 महीने बाद विजय की जमानत हो गई. पुलिस ने लड़की को किसी दूसरे लड़के के साथ बरामद कर लिया था. इस के बाद विजय उर्फ आनंद मुंबई में काम करने चला गया. वह तारीख पड़ने पर आता था.
मार्च, 2023 में यह केस खत्म हो गया था. लड़की के घर वालों ने सुलहनामा कर लिया था. केस खत्म होने के बाद विजय उर्फ आनंद ने मुंबई न जाने के बजाय घर के पास ही नौकरी तलाश करने की बात कही और फिर लखनऊ चला गया.
आजमगढ़ जेल में विजय यादव का अपराधियों से संपर्क हुआ. जिस जेल में वह बंद था, वहां पूर्वांचल के कई कुख्यात अपराधी बंद हैं. इन में बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के कई गुरगे शामिल हैं.
जिस तरह से विजय यादव ने संजीव ‘जीवा’ की हत्या की, उस से साफ है कि किसी के कहने पर उस ने इस घटना को अंजाम दिया है.
कौन था संजीव माहेश्वरी ‘जीवा’
संजीव ‘जीवा’ मुख्तार अंसारी का खास शूटर था. भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी और कृष्णानंद राय की हत्या में यह भी अभियुक्त था.
संजीव माहेश्वरी उर्फ संजीव ‘जीवा’ मूल रूप से शामली जिले का रहने वाला था. शुरुआती दिनों में वह एक दवाखाना संचालक के यहां कंपाउंडर की नौकरी करता था. इसी नौकरी के दौरान संजीव ‘जीवा’ ने अपने मालिक यानी दवाखाना संचालक को ही अगवा कर लिया था.
इस घटना के बाद संजीव ‘जीवा’ ने साल 1991 में कोलकाता के एक कारोबारी के बेटे का भी अपहरण किया और 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी थी. उस समय किसी से 2 करोड़ रुपए की फिरौती की मांग होना भी अपनेआप में बहुत बड़ी होती थी.
इस के बाद संजीव ‘जीवा’ हरिद्वार की नाजिम गैंग में घुसा और फिर सतेंद्र बरनाला के साथ जुड़ा. वह जल्द से जल्द अपना खुद का गिरोह बनाना चाहता था.
10 फरवरी, 1997 को हुई भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या में संजीव ‘जीवा’ का नाम आया. इस में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई. थोड़े दिनों बाद संजीव ‘जीवा’ पूर्वांचल के माफिया मुन्ना बजरंगी गैंग में शामिल हो गया. यहीं से वह मुख्तार अंसारी के संपर्क में आया.
मुख्तार अंसारी को नए हथियारों का शौक था, तो संजीव ‘जीवा’ के पास ऐसे हथियारों को जुटाने का नैटवर्क था. साल 2005 में संजीव ‘जीवा’ का नाम कृष्णानंद राय हत्याकांड में भी आया. वहां गवाह न होने के चलते मुकदमा खत्म हो गया था.
संजीव माहेश्वरी उर्फ ‘जीवा’ पर 2 दर्जन से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे. इन में से 17 मामलों में वह बरी हो चुका था, जबकि उस के गैंग में 35 से भी ज्यादा सदस्य हैं.
संजीव ‘जीवा’ जेल से भी गैंग औपरेट करता था. उस पर साल 2017 में कारोबारी अमित दीक्षित उर्फ गोल्डी हत्याकांड में भी आरोप लगे थे. इस में जांच के बाद अदालत ने ‘जीवा’ समेत
4 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. ‘जीवा’ लखनऊ की जेल में बंद था और वहीं से पेशी पर सुनवाई के लिए 7 जून, 2023 को सिविल कोर्ट पुलिस की सुरक्षा में गया था.
साल 2021 में संजीव ‘जीवा’ की पत्नी पायल ने चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिख कर कहा था कि ‘जीवा’ की जान को खतरा है. पायल साल 2017 में रालोद के टिकट पर विधानसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं, पर वे हार गई थीं.
संजीव ‘जीवा’ माफिया की लिस्ट में 15वें नंबर पर था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ले कर उत्तराखंड तक ‘जीवा’ का खौफ था. उस पर उत्तराखंड में 5, गाजीपुर, फर्रुखाबाद और लखनऊ में 1-1 केस मिला कर कुल 25 मामले दर्ज थे.
संजीव ‘जीवा’ पिछले 2 दशक से सलाखों के पीछे था. 10 जून, 2019 को उसे मैनपुरी से लखनऊ जेल में शिफ्ट किया गया था, तब से ही वह लखनऊ जेल में बंद था. उस को हाई सिक्योरिटी बैरक में रखा गया था, जहां सीसीटीवी कैमरों से लगातार निगरानी होती थी.
सरकार पर उठ रहे सवाल
आजाद अधिकार सेना चलाने वाले और पुलिस अफसर रह चुके अमिताभ ठाकुर ने घटनास्थल का दौरा करने के बाद कहा कि ‘इस घटना में कुछ बड़े लोग शामिल हो सकते हैं. यह राज्यपोषित अपराध है. पुलिस संरक्षण
में यह हुआ है, इसलिए संजीव ‘जीवा’ और अतीक अहमद मसले की जांच सीबीआई द्वारा कराई जाए, तभी इन का सच बाहर आ सकेगा.’
उत्तर प्रदेश पुलिस दावा कर रही है कि बुलडोजर के डर से अपराधी या तो जेल में बंद हैं या फरार हैं और वे कहीं और रहने लगे हैं. पर जिस तरह से बेखौफ अंदाज में यह घटना सिविल कोर्ट के अंदर घटी, उस से कानून व्यवस्था पर सवाल उठ गए हैं.
उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए यह शर्मनाक बात है कि 53 दिनों के अंदर पुलिस सुरक्षा में 3 अपराधियों को मार दिया जाता है. पुलिस यह नहीं बता पा रही है कि वे कौन बड़े अपराधी हैं, जो नौजवानों को शूटर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.
नौजवानों का इस तरह गलत इस्तेमाल समाज के हित में नहीं है. उत्तर प्रदेश की जिस कड़ी कानून व्यवस्था का ढोल पूरे देश में जोरशोर से पीटा जा रहा है, उस की पोल इन घटनाओं ने खोल कर रख दी है.