5 जून की रात के 10 बजने को थे. ग्वालियर के कंपू थाना इलाके के टोटा की बजरिया में रहने वाले जिला विशेष शाखा के आरक्षक समीर ढींगरा ने अपने पड़ोसी मनोज श्रीवास्तव के बेटे संजू की बाइक अपने घर के सामने खड़ी देखी तो वह बुदबुदाने लगे, ‘सारी जगह छोड़ कर इस लड़के को सिर्फ मेरे ही दरवाजे पर बाइक खड़ी करने को जगह मिलती है.’

बाइक को हटवाने के लिए पहले उन्होंने संजू को आवाज दी, लेकिन जब उस ने कोई रिस्पौंस नहीं दिया तो उन्होंने संजू के मोबाइल पर फोन किया. स्क्रीन पर समीर अंकल का नंबर देख संजू समझ गया कि उन्हें सड़क किनारे खड़ी अपनी स्कौर्पियो घर के भीतर रखनी होगी, इसीलिए बाहर खड़ी बाइक को हटाने के लिए फोन किया है.

समीर को हालांकि पुलिस की नौकरी में 20 साल हो गए थे, लेकिन पुलिस महकमे में आरक्षक को इतनी पगार नहीं मिलती कि वह स्कौर्पियो जैसी लग्जरी कार खरीद सके. लेकिन समीर की बात और थी, उस की महत्त्वाकांक्षाएं ऊंची थीं. उस का अपना शानदार मकान था, साथ ही 2 लग्जरी कारें भी.

दरअसल, समीर के आर्थिक दृष्टि से मजबूत होने की वजह यह थी कि वह पिछले कई सालों से प्रौपर्टी के कारोबार में जुड़ा था. इस कारोबार में उस ने अपने साझेदारों के साथ मिल कर करोड़ों रुपए कमाए थे. बस दुख की बात यह थी कि उस ने दौलत तो खूब कमाई थी, लेकिन उसे पारिवारिक सुख नहीं मिला था.

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पिता के निधन के बाद तमाम कठिनाइयों से जूझते हुए समीर को पुलिस महकमे में आरक्षक की नौकरी मिल गई थी. इस के साथ ही उस ने साझेदारी में प्रौपर्टी का कारोबार भी कर लिया था.

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