रिहाई- भाग 3: अनवर मियां के जाल में फंसी अजीजा का क्या हुआ?

उस दिन खासतौर पर खाला बी ने शौहर के लिए बीवी के फर्ज का बयान करते हुए बताया कि इसलाम में शौहर को दूसरा दरजा दिया गया है. एक किस्सा सुनाते हुए यों बयान किया कि एक शौहर ने बीवी को पानी पिलाने का हुक्म दिया. बीवी के पानी लातेलाते शौहर को नींद आ गई. बीवी ने शौहर की नींद में खलल न डाल कर पूरी रात हाथ में पानी का गिलास लिए खड़ा रहना मुनासिब समझा. बीवी की खिदमत देख कर कुदरत ने उस को बेशकीमती इनाम दिया. यह सुन कर महिलाएं भावविभोर हो गईं. कुछ तो पल्लू से आंसू पोंछने लगीं.

बातबेबात, कसूरवार हों या न हों, आएदिन लातजूते, गालीगलौज खाने वाली औरतों ने भी शौहर की लंबी जिंदगी की दुआएं मांगीं और खुद को नेक बीवी बनाने की शपथ भी ली.

अजीजा की सुनहरी चूडि़यों की खनक में हलाला के जलालत भरे दौर से गुजरने का जरा सा भी मलाल नहीं था. कुरैशा ने हिकारत भरी निगाहों से अपनी बहन अजीजा पर उचटती नजर डाली और तमतमाया चेहरा लिए झटके से उठ कर कमरे से बाहर आ गई.

खाला बी 3 महीने बाद अपने छोटे बेटे की मंगनी के लड्डू ले कर अनवार मियां के घर पहुंचीं. घर में अजीब सा सन्नाटा खिंचा था. इतने बड़े घर में सिर्फ बैठकखाने में ही पीली रोशनी वाला एकमात्र बल्ब जल रहा था.

‘‘अम्मी कहां हैं?’’ खाला बी ने अजीजा की छोटी बेटी से पूछा.

‘‘जीजी, वे ललितपुर गई हैं फूफी के घर,’’ बेटी का खौफजदा चेहरा और आवाज की थरथराहट को खाला बी ने भांप लिया.

‘‘कब तक वापस लौटेंगी?’’

‘‘जी, कुछ पता नहीं है,’’ बेटी का स्वर हकला गया.

खाला बी को याद आ गया, एक बार अजीजा ने बताया था कि अनवार मियां और उन के बहनोई में पैसों को ले कर जबरदस्त झगड़ा हो गया था, इसलिए दोनों घरों में आनाजाना बिलकुल बंद है. फिर अचानक अजीजा का उन के घर जाना और घर में इतनी खामोशी. कुछ समझ में नहीं आया लेकिन जिंदगी

को नए सिरे से शुरू करने के मधुर एहसास को अजीजा के मुंह से सुनने की बेताबी खाला बी के अंतर्मन में कुलबुला रही थी. आखिर बचपन में मदरसे में अलिफ, बे, ते, से का सबक शुरू करने से ले कर बालों में चांदी चमकने तक का दोनों का पलपल साथ रहा. दोनों ने एकदूसरे से सुखदुख, प्यारमोहब्बत, अमीरीगरीबी के एहसासों को साथसाथ दिल खोल कर बांटा है.

‘‘बस दोचार दिन में वापस आ जाएंगी अम्मी,’’ अजीजा के बड़े बेटे ने छोटी बहन को आंखों ही आंखों में अंदर जाने का इशारा करते हुए तपाक से जवाब दिया.

‘‘अच्छाअच्छा, घर में और तो सब ठीक है न. मेरा मतलब अब्बूअम्मी के बीच अब कोई तकरार…’’ किसी के घर के अंदरूनी मामले की टोह लेने जैसा अपराधबोध खाला बी को छील गया.

‘‘जी, सब ठीक है,’’ बात को एक झटके में खत्म करने की कोशिश की बेटे ने.

‘‘शुक्र है कुदरत का. अच्छा, तो मैं चलती हूं. खुदाहाफिज,’’ कह कर इत्मीनान की सांस ले कर खाला बी सीढि़यों से उतरने लगीं तो जीने के नीचे के स्टोररूम का दरवाजा हिलता दिखाई दिया. खाला बी ने मोबाइल की रोशनी से देखा तो दरवाजे की सांकल में बड़ा सा ताला लटका दिखाई पड़ा. फिर अंदर से दरवाजा कौन हिला रहा है? कहीं कोई जानवर धोखे से बंद तो नहीं हो गया कमरे में. वापस मुड़ कर अजीजा के बच्चों को वे यह बताना ही चाहती थीं कि दरवाजे से मद्धिममद्धिम नारी स्वर में अपना नाम पुकारे जाने की आवाज सुनाई पड़ी. झट सीढि़यों से नीचे उतर कर स्टोररूम के दरवाजे पर कान रख कर सुनने लगीं. नारी स्वर फिर उभरा, ‘‘आपा बी, मैं अजीजा, मुझे बाहर निकालो,’’ अजीजा की सिसकियों भरी आवाज साफ सुनाई पड़ी.

ठीक उसी वक्त ऊपर से किसी के नीचे उतरने की आहट आने लगी. खाला बी काले नकाब और स्याह अंधेरे का फायदा उठा कर जीने की नीचे वाली दीवार से चिपक गईं सांस रोके हुए. धीरेधीरे अजीजा के बड़े बेटे के कदमों की आहट मेन गेट से बाहर चली गई तो खाला बी दबे कदमों से फिर स्टोररूम के दरवाजे की झिरी पर अपने कान रख कर सुनने लगीं :

‘‘आपा बी, मुझे 8 दिनों से इस कोठरी में बंद कर रखा है, भूखाप्यासा.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ खाला बी की बेचैनी बढ़ती चली गई और वे दम साधे सुनने लगीं.

‘‘लालची व दौलत के भूखे हैं मेरे शौहर और बेटे. मेरे नाम पर यह 10 कमरों का मकान है, 8 लाख की बीमा पौलिसी अगले महीने मैच्योर होने वाली है और 5 एकड़ आम के बगीचे वाली जमीन भी मेरे नाम पर है. केस हार जाने पर इन को मेरा खानाखर्चा, मेहर और दहेज वापस देना पड़ता और पूरी जायदाद पर सिर्फ मेरा हक होता. इन के सारे अधिकार खत्म हो जाते. सब कंगाल हो जाते. इसलिए मुझे बहलाफुसला कर दोबारा निकाह करने की साजिश रची गई. मुझ पर पूरी जायदाद अनवार मियां के नाम पर करने का दबाव डाला जा रहा है. मेरे इनकार करने पर मुझे जानवरों की तरह पीटा और यहां बंद कर दिया है.’’

‘‘क्या तुम्हारे बच्चों को ये सब मालूम है?’’ खाला बी ने फुसफुसा कर पूछा.

‘‘हां, बेटियों को छोड़ कर सभी बेटे इस षड्यंत्र में शामिल हैं. मुझे बहलानेफुसलाने और जज्बाती तौर पर धोखा देने में बेटों का पूरापूरा हाथ है और शौहर ने तो निकाह के बाद एक बार भी मुझ से बात नहीं की, यह कह कर कि मैं दूसरे की जूठन को खाना तो दूर देखना भी पसंद नहीं करता. आपा बी, मुझे इन शैतानों और निहायत गिरे हुए खुदगर्ज शौहर और बेटों से बचा लीजिए.’’

अजीजा की घुटीघुटी दम तोड़ती आवाज ने खाला बी को अंदर तक कंपकंपा दिया.

इतनी गंदी और भयानक सचाई ये नमाजीपरहेजगार अनवार मियां की शातिर दिमागी और ऐसी तुरुपचाल…अफसोस, चंद रुपयों और जायदाद के लिए पत्नी के साथ इतना बड़ा विश्वासघात और घिनौना अमानवीय व्यवहार?

अजीजा की कैदियों सी हालत देख कर खाला बी का कलेजा कांप गया, रोंगटे खड़े हो गए. बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुए कांटे उगे गले से बोलीं, ‘‘अजीजा, किसी भी कागज पर किसी भी सूरत में दस्तखत मत करना. बस, चंद घंटे की इस काली रात को और काट लो, हिम्मत से. मैं जल्द ही तुम्हारी रिहाई का इंतजाम करती हूं. हौसला रखना, बहन,’’

खाला बी अनवार मियां के घर की बाउंड्री से चिपकती हुई धीरेधीरे मेनगेट से बाहर निकल गईं.

दूसरे दिन तड़के ही खाला बी की रिपोर्ट पर पुलिस ने अनवार मियां की कोठी से अजीजा को जख्मी और मरणासन्न हालत में बाहर निकाला. अजीजा के बयान पर पुलिस ने अनवार मियां और उन के बेटों को हथकड़ी डाल कर पैदल ही महल्ले की गलियों से ले जाते हुए पुलिस हवालात तक पहुंचा दिया.

पूरे 1 महीने बाद कुरैशा ने अजीजा के सामने अनवार मियां के खिलाफ किए जाने वाले केस के कागजात रख दिए. अजीजा दस्तखत करते हुए खाला बी और कुरैशा को भीगी आंखों से देखते हुए भर्राए गले से बस इतना ही बोल पाई, ‘‘मेरी रिहाई और मेरा आत्मसम्मान लौटाने का शुक्रिया.’’

रिहाई- भाग 2: अनवर मियां के जाल में फंसी अजीजा का क्या हुआ?

घर आ कर कुरैशा छत पर जा कर बैठ गई. अभी भी गुस्से से उस के चेहरे की मांसपेशियां तनी हुई थीं. अपनी ही बहन अजीजा के प्रति उस का मन कड़वाहट से भरा था.

अभी पिछले बरस तक तो अजीजा का भरापूरा खुशियों से लहलहाता घरपरिवार था. 4 बेटे और 2 बेटियों के साथ जिंदगी मजे से कट रही थी. खिदमतगुजार अजीजा शौहर को हाकिम समझती रही. उन की हां और ना पर ही घर के फैसले लिए जाते. बहस की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती थी अजीजा कभी भी.

मगर दूसरी बेटी का रिश्ता एक धन्नासेठ के सजायाफ्ता बेटे से करने के फैसले को ले कर पतिपत्नी के बीच मनमुटाव हो गया. 22 साल की जिंदगी में पहली बार अनवार मियां ने अजीजा को अपने सामने मुंह खोल कर विरोध करते देखा. तिलमिला गए वह. मर्दाना गुरूर का सांप फन उठा कर खड़ा हो गया. 3-4 थप्पड़ जड़ दिए अजीजा के गाल पर. लेकिन बदन के निशान अजीजा को उस के फैसले से डिगा नहीं पाए. नतीजा तलाक, तलाक, तलाक. बरसों के रूहानी, जिस्मानी, सामाजिक और मजहबी रिश्ते की धज्जियां उड़ा दीं पुरुष प्रधान समाज के एक प्रतिनिधि ने अपने अहं को चूरचूर होते देख कर.

धार्मिक कानून को कट्टरता से मानते हुए अनवार मियां ने एक ही झटके में तिनकातिनका जोड़ कर घरगृहस्थी जमाने वाली, सुखदुख में बराबर शामिल रहने वाली अजीजा को घर से बेदखल कर दिया. उस दिन न आसमान कराहा, न जमीन सिसकी. सबकुछ वैसा ही चलता रहा जैसे मुसलमान औरत की यही नियति हो. तब कुरैशा ही रोतीबिलखती अजीजा की जिंदा लाश को कंधों का सहारा दे कर अपने घर ले गई थी.

महल्ले वालों व रिश्तेदारों ने सुना, लेकिन किसी ने भी सुलहसफाई की जरूरत नहीं समझी. एक तलाक का हथौड़ा और किरचियों में बदलते खुशहाल जिंदगी के शीशमहल से सपने. क्या गारंटी है रिश्तों के ताउम्र कायम रहने की? मतभेद का हलका सा जलजला आया और बहा ले गया बरसों की मेहनत के बाद खड़े किए गए आशियाने को. पानी उतरा तो दूरदूर तक, उस के अवशेष ढूंढ़ने पर भी न मिले. वक्त बहा ले गया रिश्तों की बुरादा हुई हड्डियों को.

अजीजा ने बचपन में मदरसे से उर्दू और अरबी का ज्ञान हासिल किया था. यही ज्ञान आड़े वक्त में उस के काम आया. महल्ले के बच्चों को ‘अलिफ बे पे’ पढ़ापढ़ा कर जीविका चलाने लगी.

अनवार मियां की जहालत और गुस्से की इंतेहा अखबार में पढ़ी गई, ‘तलाकनामे का हल्फिया बयान’.

‘‘अनवार मियां ने अजीजा के तलाक पर मजहबी मुहर भले ही लगा दी हो समाज के सामने, लेकिन कोर्ट का कानून अजीजा को उस के हक से महरूम न रखेगा. बहन के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ूंगी,’’ सीना ठोंक कर बोली कुरैशा.

रऊफ बीड़ी वालों ने अपने अजीज दोस्त वकील का पता दे दिया और अजीजा की तरफ से खानाखर्चा, महर और दहेज वापस लेने का दावा ठोंक दिया गया अनवार मियां पर. महल्ले के इज्जतदार और हकपसंद लोगों ने पैसे से साथ दिया. 4 महीने गुजर गए, बेटों ने मां को पलट कर नहीं देखा. हां, बेटियां जरूर चोरीछिपे आ कर मां से मिल लिया करतीं.

उस दिन कचहरी में अजीजा के सामने पड़ गए अनवार मियां. दोनों हाथ जोड़ कर भीगे स्वर में बोले, ‘‘घर आप का है. आप ही मालकिन हैं. तलाक दे कर मैं पछतावे की आग में झुलस रहा हूं. गलती हो गई मुझ से. गुस्सा हराम होता है. आप मुझे माफ कर दीजिए. इस से पहले कि हमारा आशियाना वक्त और हालात की आंधी में नेस्तनाबूद हो जाए,’’ सुन कर अजीजा चुप रही.

केस की तारीखों पर अकसर जानबूझ कर अजीजा के सामने पड़ जाते अनवार मियां और हर बार गिड़गिड़ाते हुए नई पेशकश करते, ‘‘आप जैसा चाहेंगी वैसा ही होगा घर में. मैं औफिस, महल्ले और कोर्ट में सिर उठा कर चल नहीं पा रहा हूं. हर सवालिया निगाह मुझे भीतर तक छीले जा रही है. बिना मां के जवान बेटियों को कब तक संभाल सकूंगा मैं?’’

बरसों से जिस घर से अजीजा पलपल जुड़ी रही, उसे इतनी आसानी से कैसे भुला देती. बच्चों की ममता उसे बारबार खयालों में अपने घर की चौखट पर ला कर खड़ा कर देती. स्वार्थपरता से कोसों दूर भोली अजीजा अनवार मियां की तिकड़मी और चालाकी भरी बातों के पीछे छिपी चाल को समझ कर ताड़ने का विवेक कहां से लाती?

अनवार मियां पर किए गए केसों का फैसला नजदीक ही था कि एक रात अजीजा ने कुरैशा को अपना फैसला सुना कर उसे आसमान से जमीन पर गिरा दिया. कुरैशा के कानों में जहरीले सांप रेंगने लगे और वह सन्न खड़ी अजीजा के भावहीन चेहरे को एकटक देखती रह गई. कुरैशा भीतर तक मर्माहत हुई.

कुर्बान कसाई ने अनवार मियां से 50 हजार रुपए लिए थे अजीजा से निकाह कर के उसे अपने साथ एक रात सुलाने और दूसरे दिन तलाक देने के लिए. सिर्फ सिर पर एक छत की सुरक्षा और बच्चों के मोह में औरत को अपना जिस्म नुचवाना पड़े अनचाहे गैर मर्द से, यह शरीअत का कैसा कानून है? यह सोच कर कुरैशा के दिलोदिमाग में भट्ठियां सुलगने लगी थीं.

कुछ दिन बाद कुरैशा ने अनवार मियां के साथ रेशमी लिबास में लदीफंदी अजीजा को स्कूटर पर बैठ कर जाते देखा. कलेजा पकड़ कर बैठ गई, ‘‘या मेरे मालिक, क्या इसलाम में औरत को इतना कमजोर कर देने के लिए बराबरी का दरजा दिया है?’’

इस घटना के बाद, हर हफ्ते शुक्रवार के दिन महिलाओं की बैठकी में अजीजा का जिक्र किसी न किसी बहाने से निकल ही आता. नमाजरोजे की पाबंद, इसलामी कानून पर चलने वाली खाला बी ने अजीजा का हलाला के बाद अनवार मियां से दोबारा निकाह करने को नियति का फैसला करार दिया. अजीजा का यह मजबूत और सार्थक कदम मजहबपरस्ती की बेमिसाल सनद बन गया. लेकिन कुरैशा अंदर तक धधक गई. मर्दों के जुल्म को, औरतों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाली साजिशें करार देती रही और औरतों को अपने अधिकारों की जानकारी रखते हुए अपने अस्तित्व को पहचानने का मशवरा देती रही.

मजहबी कानूनों की अधकचरी जानकारी रखने वाली कट्टरपंथी खाला बी और आधुनिक विचारों वाली कुरैशा के बीच अकसर बहस छिड़ जाती और बुरकों का लबादा ओढ़े मुसलिम औरतें खाला बी के बयानों से प्रभावित होतीं व कुरैशा को मजहब के प्रति बागी और नाफरमान घोषित कर देतीं.

उस दिन हाथों में कुहनी तक मेहंदी रचाए, आंखों में सुरमा डाले, इत्र में सराबोर, मुसकान भरा चेहरा लिए अजीजा महिला सम्मेलन में आई तो वहां पर मौजूद सभी औरतों की हैरत भरी निगाहें उस पर टिक गईं. रेशमी कपड़ों की सरसराहट, बारबार सिर से ढलक जाता कामदार शिफौन का दुपट्टा, भीनीभीनी उठती इत्र की खुशबू ने अजीजा की मौजूदगी को कुछ लमहों के लिए मजहबीरूहानी एहसास को दुनियाबी, भौतिकवादी, ऐशोआरामतलबी के जज्बे से भर दिया.

कैसे थमे बलात्कार

‘मैं एक घर से काम करके लौट रही थी. पराग चैराहे से थोडा आगे मंदिर के आगे पहुंची तो सामने से कार में सवार 4 लडके आये. उन लोगों ने मेरा मुंह बंद करके मुझे जबरदस्ती कार में चढा लिया. मुझे गाडी की पिछली सीट की गद्दी के नीचे लिटा दिया. मैने शोर मचाया तो उन लोगों ने जोर से बाजा बजा दिया. उनमें से एक गाडी चलाने लगा और 2 लडको ने मेरे साथ जोर जबरदस्ती करनी शुरू कर दी.

मुझे धमकी देकर कहा कि रोओगी तो गोली मार देगे. मैने जब उन से कहा कि भैया मुझे छोड दो तो उन लोगों ने मुझे और मारा. मेरे पैर में लाइटर से जलाया और बट से कमर पर मारा. उनमें से 3 लडको ने मेरे साथ उस समय गलत काम किया.’ 2 मई 2005 को उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ में घटी इस घटना को आशियाना बलात्कार कांड के नाम से जाना जाता है. इस लडकी को शाम के 6 बजे अगवा किया गया था और रात के 11 बजे हाथ में 20 रूपया देकर घायल अवस्था में सडक पर छोड कर युवक भाग गये.

लडकी गरीब परिवार की थी. घरों में मेहनत मजदूरी करके काम चलाती थी. उसके पिता रिक्शा चलाकर अपना परिवार चलाते थे. लडकी किसी तरह उस रात पहले घर फिर पिता के साथ थाने पहुंची, पुलिस ने मुकदमा लिखा. 6 आरोपियों को पुलिस ने पकडा, जिनमें से 4 खुद को नाबालिग बताने लगे. मुख्य आरोपी गौरव शुक्ला लखनऊ के एक बाहुबलि नेता का भतीजा था. बहुत सारी अदालतीय लडाई के बाद अदालत में यह साबित हो गया कि गौरव शुक्ला बालिग था.

5 सितम्बर 2005 को बालिग आरोपी अमन बक्शी और भारतेन्दु मिश्रा को सेशन कोर्ट ने 10 साल की सजा और 10-10 हजार रूपये जुर्माना की सजा दी. इस कांड में शामिल दो आरापियों आसिफ सिद्दकी और सौरभ जैन जमानत पर छूट कर बाहर आये. एक दुर्घटना में दोनो की मौत हो गई. एक आरोपी फैजान को अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई. गौरव शुक्ला ने पूरे मामले को भटकाने के जितने प्रयास कर सकता था किया. अदालत ने उसे 10 साल की सजा और 20 हजार रूपये का जुर्माना सुनाया. फास्ट ट्रैक अदालत के बाद यह मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जायेगा. न्याय का मूल सिद्वान्त है कि न्याय होना ही नहीं चाहिये न्याय होते दिखना भी चाहिये.

अदालत में पेशी पर जब भी गौरव शुक्ला आता था हमेशा सफेद लकदक कपडों में ही रहता था. उसको जेल में हर सुविध मिले इसके लिये पूरे गठजोड होते रहे. सजा सुनाये जाने के बाद भी उसे विशेष सुविध हासिल थी. यह राजनीतिक और नौकरशाही के गठजोड के बिना संभव नहीं हो सकती.

प्रदेश की राजनीति और नौकरशाही को मुंह चिढाने वाली यह घटना बताती है कि पीडित लडकी और उसके परिवार के साथ मीडिया, अदालत और महिला संगठनों का जोर नहीं होता, तो यह मामला कब का दबा दिया जाता. कई बार पीडित परिवार को केस वापस लेने के लिये लालच और धमकी दी गई. इससे पता चलता है कि हमारे देश में समाज बलात्कार के मामले में आज भी पीडित के बजाय दोषी के साथ खडा होता है. क्या इन परिवारों का समाज ने कोई बायकाट किया ?

रिहाई- भाग 1: अनवार मियां के जाल में फंसी अजीजा का क्या हुआ?

‘‘अस्सलाम अलैकुम,’’ कुरैशा ने नकाब उठा कर सलाम किया.

‘‘वालेकुम अस्सलाम,’’ कमरे में मौजूद कई औरतों ने एकसाथ जवाब दिया. वहां धार्मिक ज्ञान के आदानप्रदान के लिए औरतों की एक बैठकी होनी थी.

‘‘अजीजा नहीं आई?’’ खाला बी ने छूटते ही पूछा. सुन कर कुरैशा का चेहरा तमतमा गया. गुस्से से कुछ कहना चाहती थी लेकिन कमरे में बैठी 20-25 औरतों के चलते उस ने सख्ती से होंठ भींच कर चुप्पी साध ली.

इत्र और अगरबत्ती की खुशबू ने महिलाओं के नकाबों से उठती पसीने की बदबू को कुछ हद तक दबा दिया था.

महल्ले में सब से ज्यादा धार्मिक जानकारी रखने वाली खाला बी ने कुदरत की तारीफ करने के साथ बैठकी की शुरुआत की. रोजा व नमाज हर मर्द और औरत का फर्ज है, यह बता कर पाबंदी से उस की अदायगी के तरीके समझाए. कब और किन परिस्थितियों में औरत को नमाज नहीं पढ़नी है, यह भी बताया. किसी की बुराई करने, किसी का अधिकार छीनने पर कुदरत की मार पड़ने की जानकारी देते हुए वे देर तक मजहबी बातें बताती रहीं.

दोपहर और शाम के बीच की नमाज की अजान होते ही महिलाएं नमाज पढ़ने लगीं. उस के बाद खाला बी की तलाकशुदा बेटी ट्रे में चाय के कप ले कर हाजिर हो गई. बहुत देर से जबान बंद रखने की सजा पर सब्र किए बैठी, हमेशा बोलते रहने वाली कुदरत खाला ने बारबार फिसलते दुपट्टे को सिर पर ठीक से रखते हुए कुरैशा से पूछ ही लिया, ‘‘आप की बहन अजीजा दिखाई नहीं देती, तबीयत खराब है क्या? वह तो कभी गैरहाजिर नहीं रहती?’’

बारबार अपनी बड़ी बहन अजीजा के बारे में पूछे जाने पर कुरैशा की आंखों से चिनगारियां फूटने लगीं, तभी खाला बी बोल पड़ीं, ‘‘अल्लाह जाने, हमारे छोटे बेटे इदरीस मियां बता रहे थे कि अजीजा कल अपने शौहर अनवार मियां के साथ तांगे पर बैठ कर कहीं जा रही थी.’’

सुनते ही हलीमा खाला झनझना गईं, ‘‘तौबातौबा, जिस शौहर ने 6 महीने पहले तलाक दे कर घर से बेघर कर दिया, उसी के साथ फिर मिलनाजुलना? छीछीछी, गुनाह है गुनाह.’’

‘‘मौलाना साहब बता रहे थे कि अजीजा को तलाक दे कर अनवार मियां बहुत दुखी और शर्मिंदा हैं. अपनी बिखरी जिंदगी को फिर से संवारने के लिए…’’ कुरैशा की तरफ गहरी नजर डालते हुए बोलतेबोलते बीच में रुक गईं मौलाना साहब की बीवी.

‘‘हांहां, बताइए न, क्या चाह रहे हैं अनवार मियां? क्या बतला रहे थे मौलाना साहब?’’ नसरीन आपा की चटपटी खबर को जानने की उत्सुकता छिपाए न छिपी.

‘‘तो क्या अनवार मियां दोबारा अजीजा से निकाह करना चाहते हैं?’’ बहुत देर से चुप बैठी बिलकीस फूफी ने पान का बीड़ा मुंह में डालते हुए गंभीरता से पूछा.

मौलाना साहब की बीवी कुरता उठा कर अपने बच्चे को दूध पिलाती हुई बोलीं, ‘‘महल्ले में तो यही खबर गरम है.’’

‘‘जी, मैं ने भी कुछ ऐसा ही सुना है. फरहान के अब्बू बतला रहे थे कि अनवार मियां अपने दोस्त कुरबान कसाई से अजीजा का निकाह करवा कर दूसरे ही दिन तलाक करवा कर खुद अजीजा के साथ दोबारा निकाह कर लेंगे,’’ इशाक साइकिल वाले की बीवी ने जानकारी दी.

‘‘हलाला यानी कि  तलाक के बाद उसी औरत से दोबारा निकाह करना चाहते हैं अनवार मियां,’’ तभी हुसैना फूफी ऐसी बेफिक्री से बोलीं जैसे हलाला सिर्फ एक धार्मिक रस्म की अदायगी भर है.

‘‘तो क्या अजीजा भी अनवार मियां से दोबारा निकाह करने के लिए तैयार है?’’ सईद ठेकेदार की पत्नी ने कुरैशा की तरफ व्यंग्यात्मक नजर डालते हुए पूछा.

‘‘अगर न होती तो जाती ही क्यों तलाक देने वाले शौहर के साथ,’’ एक महिला ने कहा.

कुरैशा को लगा कि एक करारा थप्पड़ जड़ दिया किसी ने उस के गाल पर.

‘क्या हो गया अजीजा को? क्यों सरेआम अपनी और मेरी बेइज्जती करवा कर अपने ही हाथों अपनी खिल्ली उड़वा रही है,’ सोचती हुई बड़ी बहन के प्रति घृणा से भर गई कुरैशा.

‘‘बराबर के 6 बच्चों के सामने अजीजा के शौहर ने उसे तलाक दिया. कितनी बदनामी हुई समाज में, कितनी जिल्लत उठानी पड़ी. अब रहीसही इज्जत भी हलाला के तहत उसी शौहर से दोबारा निकाह करने पर मिट्टी में मिल जाएगी,’’ हिफाजत तांगे वाले की अम्मा ने चिंता जताई.

‘‘इस में इज्जत जाने वाली क्या बात है? दरअसल, यह शौहर को अपनी गलती पर पछतावा कर के फिर से नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करने का एक मौका है,’’ इकबाल टायर वाले की बीवी ने कहा.

‘‘अपनी गलती की सजा शौहर को खुद भुगतनी चाहिए, न कि दूसरे मर्द के पास बीवी को भेज कर जिंदगी भर अपनी ही नजर में गिर कर जलील होने की सजा देनी चाहिए?’’ कुरैशा भड़क उठी.

‘‘कुरैशा, जब हमारा मजहब ही मुसलमान मर्दों को अपनी गलती सुधारने का मौका देता है तो किसी को भला क्यों एतराज होगा,’’ खाला बी की दलीलों में इसलामी कानून का जिक्र आते ही सारी औरतें चुप हो गईं.

 

मजहब के इस कानून को औरतजात का शारीरिक व मानसिक शोषण मानने वाली आधुनिक सोच रखने वाली कुरैशा ने पूरी ताकत से अपनी आवाज बुलंद की, ‘‘बहनो, जरा सोचिए, छोटी सी बात को ले कर मर्द ने औरत को तलाक दे कर समाज की नजर से गिरा दिया, फिर औरत को ही अपने शौहर को दोबारा हासिल करने के लिए एक रात दूसरे मर्द के साथ जिस्मानी रिश्ते से गुजरना पड़े तो क्या यह औरतजात के डूब मरने के लिए काफी नहीं है?

मैं कहती हूं, यह जुल्म है, इंसानियत के नाम पर धब्बा है, मानवाधिकारों का हनन है, औरत के स्वाभिमान को कुचलने की साजिश है. कोई भी औरत कभी भी ऐसी शर्तों को मानने के लिए न तो दिल से तैयार होती है न ही जिस्मानी तौर पर,’’ गुस्से की उत्तेजना से कुरैशा का सांवला रंग तांबई हो गया.

‘‘लेकिन कुरैशा, मजहब के कानून में अगरमगर या बहस और शक की कोई गुंजाइश नहीं होती. इसलामी कायदेकानून में सूत बराबर भी फेरबदल करने वाला शख्स मुसलमान होने की शर्त से ही खारिज कर दिया जाता है,’’ खाला बी ने समझाने की कोशिश की.

‘‘लेकिन औरतें इस जलील समझौते के लिए तैयार क्यों हो जाती हैं? मेरी समझ में नहीं आता. क्या औरत की अपनी कोई इज्जत नहीं? उस की अपनी राय और फैसले की कोई अहमियत नहीं? क्या उस का जमीर खुद उसे झकझोरता नहीं कि वह अपने ही शौहर को हासिल करने के लिए दूसरे मर्द की बांहों में जाने के लिए मजबूर हो? भले ही एक रात के लिए. अपनी पाकीजगी पर धब्बे लगा कर औरतजात के पैदा होने को ही उस की बदनसीबी साबित कर दे.

‘‘पता नहीं अनवार मियां ने सीधीसादी, अनपढ़ अजीजा को ऐसी क्या उलटीसीधी पट्टी पढ़ा दी है कि वह उन के साथ दोबारा निकाह करने के लिए तैयार हो गई…बेवकूफ, बुजदिल कहीं की,’’ कुरैशा के अंदर का सुलगता ज्वालामुखी फट पड़ा, जिस की तपन में महफिल झुलस गई.

हत्यारी मां ने किया बेटी का कत्ल

24 वर्षीय प्रमोद यादव उत्तर प्रदेश के जिला संतकबीर नगर के गांव बगहिया का रहने वाला था. 4 भाई और 3 बहनों में वह सब से बड़ा था. उस के पिता के पास मात्र 4 बीघा खेती की जमीन थी, उस से बमुश्किल घर का गुजारा हो पाता था.

प्रमोद के गांव के कई लोग दिल्ली में रहते थे, जो उस के दोस्त भी थे. दिल्ली जाने के बाद उन लोगों के घर के आर्थिक हालात सुधर गए थे. इसलिए प्रमोद ने भी सोचा कि वह भी गांव के दोस्तों के साथ दिल्ली जा कर कोई काम देख लेगा.

एक बार होली के त्यौहार पर जब उस के यारदोस्त दिल्ली से गांव लौटे तो प्रमोद ने उन्हें अपने मन की बात बताई और त्यौहार के बाद वह भी उन के साथ दिल्ली चला गया. उस के यारदोस्त पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर क्षेत्र में रहते थे. वह भी उन के साथ रहने लगा. उन के सहयोग से वह नौकरी तलाशने लगा.

थोड़ी कोशिश के बाद गाजीपुर में ही स्थित अमरनाथ की पशु आहार की दुकान पर उस की नौकरी लग गई. नौकरी लगने के बाद भी वह गांव के 3 दोस्तों के साथ एक ही कमरे में रहता रहा. खानेपीने का खर्चा सभी आपस में मिल कर उठाते थे.

प्रमोद 2-3 महीने बाद 4-5 दिन की छुट्टी ले कर अपने गांव जाता रहता था. गांव में खर्च के बाद जो पैसे बचते, वह अपने मांबाप को दे आता. पास के गांव बगहिया के पड़ोसी रतिपाल से प्रमोद की अच्छी दोस्ती थी. सन 2004 के मई महीने में रतिपाल के भाई की शादी थी. उस ने प्रमोद को भाई की शादी में शामिल होने का निमंत्रण दिया. तब प्रमोद 5 दिन की छुट्टी ले कर शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली से चला गया था.

शादी समारोह में ही प्रमोद की मुलाकात मुन्नी से हुई. मुन्नी संतकबीर नगर के गांव भसेल की रहने वाली थी. मुन्नी 3 बच्चों में मंझले नंबर की थी. पहली ही मुलाकात में प्रमोद मुन्नी का दीवाना हो गया. बातचीत के दौरान ही दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए.

शादी कार्यक्रम के बाद प्रमोद अपने गांव चला गया पर मुन्नी 4 दिनों तक रतिपाल के यहां रही. प्रमोद भी जब तक अपने घर रहा, मुन्नी से फोन पर बात करता रहता था. फोन पर ही दोनों ने प्यार का इजहार कर दिया था.

पांचवें दिन मुन्नी अपने परिवार के साथ भसेल चली गई. उसी दिन प्रमोद भी दिल्ली चला आया. दोनों की फोन पर बातचीत होती रहती थी. रात को दोनों काफीकाफी देर तक अपने प्यार की बातें करते रहते थे. यहां तक कि दोनों ने शादी तक करने का वादा भी कर लिया.

मुन्नी की मां रामवती को भी इस बात का शक हो गया कि आखिर मुन्नी घंटोंघंटों तक किस से बातें करती है. एक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, जब से तुम शादी से लौट कर आई हो, तुम्हारे हावभाव बदल गए हैं. जब देखो कानों में फोन लगाए रहती हो. क्या है यह सब?’’

मुन्नी जानती थी मां की बगैर रजामंदी के प्रमोद का विवाह उस के साथ नहीं हो सकता, इसलिए उस ने मां को अपने प्यार की सच्चाई बताना उचित समझा. इस के बाद उस ने मां को सारी बात बता दी.

बेटी की बात सुन कर रामवती पहले तो नाराज हुई, फिर मुन्नी की बातों से उसे लग रहा था कि वे दोनों एकदूसरे को चाहते हैं और लड़का सजातीय है तो वह मन ही मन खुश हुई.

रामवती न तो प्रमोद को जानती थी और न ही उसे उस के घरबार के बारे में जानकारी थी. बिना कोई छानबीन किए बेटी की शादी उस के साथ करना समझदारी वाली बात नहीं थी, इसलिए रामवती ने मुन्नी से कहा, ‘‘बेटा, जब तक हम प्रमोद के बारे में छानबीन न कर लें, तब तक तुम उस से फोन पर ज्यादा बातें न करो.’’

मगर मुन्नी पर तो प्यार का भूत सवार था. उस ने मां की सलाह को गंभीरता से नहीं लिया और वह चोरीछिपे उस से फोन पर बातें करती रही.

एक दिन मुन्नी से रामवती ने कह दिया कि वह फोन कर के प्रमोद को यहां बुला ले, ताकि उस से कुछ बात की जा सके.

मां की यह बात सुन कर मुन्नी मारे खुशी के बल्लियों उछल पड़ी. उस ने प्रमोद को फोन कर के मां से मिलने के लिए अपने गांव बुला लिया. रामवती ने प्रमोद से विस्तार से बात की. उस से की गई बातचीत से रामवती को भरोसा हो गया कि वह मुन्नी को हर तरह से खुश रखेगा. बेटी की खुशी को देखते हुए रामवती ने भी उन के प्यार को हरी झंडी दे दी.

मां से हरी झंडी मिलने के बाद प्रमोद और मुन्नी ने आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली. इस के बाद वह मुन्नी को अपने गांव ले गया. मुन्नी को 2-4 महीने गांव में मांबाप के पास छोड़ने के बाद वह उसे दिल्ली ले आया. और गाजीपुर के ही रामअवतार के मकान में किराए का कमरा ले कर वह रहने लगा.

रामअवतार के उस मकान के भूतल पर कुछ दुकानें बनी थीं और पहली मंजिल पर 4 कमरे बने थे. उन में से एक कमरे में प्रमोद और 3 कमरों में दूसरे किराएदार रहते थे. मुन्नी प्रमोद के साथ पूरी तरह से खुश थी.

समय अपनी गति से गुजरता गया और एकएक कर वह 3 बच्चों की मां बन गई, जिस में 2 बेटे और एक बेटी काजल थी. बच्चे बड़े हुए तो उन का दाखिला पास के ही सरकारी स्कूल में करा दिया.

प्रमोद अपनी दुकान पर सुबह 6 बजे चला जाता और दोपहर के 2 बजे जब दुकान बंद हो जाती तो वह घर आ जाता था. दोपहर 2 बजे के बाद प्रमोद घर पर ही रहता. प्रमोद चाहता था कि उसे ऐसा कोई पार्टटाइम काम मिल जाए, जो वह 2 बजे के बाद कर सके. इस बारे में उस ने अपने दोस्तों के अलावा मकान मालिक से भी कह रखा था.

एक दिन मकान मालिक रामअवतार ने उस से कहा, ‘‘प्रमोद, तुम जो पार्टटाइम काम की बात कह रहे हो, मेरे पास इस का उपाय है. उपाय यह है कि मैं अपनी दुकान में जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दूंगा. 2 बजे से रात 10 बजे तक तुम संभालना. इस के बदले में तुम्हारा मकान का किराया नहीं लिया जाएगा. तुम यहां बिलकुल फ्री में रहना. अगर तुम्हें यह मंजूर है तब तो मैं दुकान में पैसे लगाऊं.’’

दुकान से मिलने वाली सैलरी से प्रमोद का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा था, इसलिए उस ने रामअवतार से हां कह दी. रामअवतार ने अपनी दुकान में अच्छेखासे पैसे लगा कर जनरल स्टोर खुलवा दिया. दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक प्रमोद ही उस जनरल स्टोर को संभालता था.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि 13 दिसंबर, 2017 की रात होते ही प्रमोद की 7 साल की बेटी काजल अचानक लापता हो गई. काफी ढूंढने के बाद भी जब काजल नहीं मिली तो प्रमोद ने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर के बेटी के गायब होने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर पीसीआर वैन प्रमोद के यहां पहुंच गई. मामला गाजीपुर थानाक्षेत्र का था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम की सूचना पा कर एसआई सोनू, एएसआई यशपाल प्रमोद के यहां पहुंच गए. पुलिस ने प्रमोद और उस की पत्नी मुन्नी से बात की. उसी दौरान थानाप्रभारी अमर सिंह भी एसआई नीरज के साथ प्रमोद के कमरे पर पहुंच गए.

प्रमोद की पत्नी मुन्नी ने यही बताया कि शाम के समय वह घर के बाहर ही खेल रही थी, तभी अचानक गायब हो गई. इस के बाद पुलिस ने रात में ही काजल को ढूंढना शुरू कर दिया. टौर्च की रोशनी में पुलिस वाले डीडीए कौंप्लेक्स के नजदीक के खाली पड़े प्लाटों के आसपास के सुनसान वाले इलाकों, गड्ढों, झाडि़यों आदि में काजल को तलाशते रहे, लेकिन वह वहां कहीं नहीं मिली तो थानाप्रभारी वापस प्रमोद के कमरे पर आ गए.

society

मकान का निरीक्षण करने के दौरान ही प्रमोद से थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘छत पर क्या है?’’

‘‘कुछ नहीं है, खुली छत है. वहां कोई नहीं जाता.’’ प्रमोद ने बताया.

थानाप्रभारी ने पास खड़े एसआई नीरज कुमार से कहा, ‘‘जरा ऊपर छत पर जा कर देखो.’’

एसआई नीरज कुमार ने टौर्च की रोशनी में पूरी छत छान मारी, पर वहां कोई भी संदिग्ध चीज नहीं मिली. पर पड़ोसी की छत पर उन्हें एक लड़की की रक्तरंजित लाश मिली. यह बात उन्होंने थानाप्रभारी को बताई तो वह भी छत पर पहुंच गए.

प्रमोद और उस की पत्नी को ले कर थानाप्रभारी अमर सिंह भी छत पर पहुंच गए. बच्ची की लाश देखते ही मुन्नी जोर से चीखी. इस के बाद वह बेहोश हो गई.

प्रमोद ने लाश की पहचान अपनी 7 वर्षीय बेटी काजल के रूप में की. पुलिस ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. फिर जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और प्रमोद की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस के पूछने पर प्रमोद ने किसी से दुश्मनी आदि होने की बात भी नकार दी. पुलिस यही मान कर चल रही थी कि किसी ने इस बच्ची के साथ दुष्कर्म करने के बाद उस की हत्या कर दी होगी. पर यह बात डाक्टरी जांच के बाद पता लग सकती थी.

हत्या के इस केस को सुलझाने के लिए डीसीपी रामवीर सिंह ने थानाप्रभारी अमर सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसआई नीरज कुमार, सोनू सिंह, एएसआई यशपाल आदि को शामिल किया गया.

थानाप्रभारी ने पूछताछ के लिए मकान मालिक को भी थाने बुला लिया. उस के यहां रहने वाले सभी किराएदारों को भी बुला कर पूछताछ की लेकिन सभी ने इस मामले में अनभिज्ञता व्यक्त की. पड़ोस में रहने वाला सुधीर नाम का एक किराएदार फरार था. पता चला कि वह बिहार के दरभंगा का रहने वाला है. करीब 2 साल से वह डीडीए कौंप्लेक्स स्थित प्लाईवुड फैक्ट्री में नौकरी कर रहा है.

अन्य किराएदारों ने बताया कि काजल के गायब होने के बाद से सुधीर गायब है. इस बात से पुलिस के शक की सुई सुधीर की तरफ मुड़ गई.

सुधीर जिस फैक्ट्री में काम करता था, वहां से पुलिस ने उस का फोटो और मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. इस के बाद पुलिस ने सुधीर, मुन्नी और प्रमोद के फोन नंबर की कालडिटेल्स निकलवाई तो कालडिटेल्स में चौंकाने वाली जानकारी मिली. पता चला कि मुन्नी और सुधीर की रोजाना ही लंबीलंबी बातें होती थीं. केवल घटना वाली रात 9 बजे के करीब दोनों की बात नाममात्र ही हुई थी.

थानाप्रभारी अमर सिंह ने सुधीर का नंबर मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. तब उन्होंने उसे सर्विलांस पर लगवा दिया. इस के बाद वह प्रमोद के घर गए. उस समय प्रमोद और उस की पत्नी दोनों ही कमरे पर मिल गए. उन्होंने प्रमोद से पूछा, ‘‘क्या आप सुधीर नाम के किसी आदमी को जानते हैं?’’

‘‘जी, सुधीर को बस इतना ही जानता हूं कि वह पड़ोस में रहता है और मेरे पास दुकान पर वह कुछ सामान खरीदने आता रहता था. उस से ज्यादा मैं उस के बारे में कुछ नहीं जानता.’’ उस ने कहा.

प्रमोद से बात करते हुए थानाप्रभारी मुन्नी पर नजर रखे हुए थे. उन्होंने मुन्नी के चेहरे के भाव पढ़ लिए थे. पर वह उस से कुछ नहीं बोले. प्रमोद से बात कर के वह थाने लौट आए.

कुछ समय के बाद ही थानाप्रभारी अमर सिंह को सर्विलांस सेल से सूचना मिली कि सुधीर के फोन की लोकेशन गाजीपुर थाना क्षेत्र में ही है. थानाप्रभारी ने एसआई नीरज और सोनू को सुधीर को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी सौंप दी.

एसआई नीरज और सोनू ने प्लाईवुड फैक्ट्री से एक ऐसे कर्मचारी को साथ लिया जो सुधीर को पहचानता था. इस के बाद वह गाजीपुर बसस्टैंड पर पहुंच गए, क्योंकि सुधीर के फोन की लोकेशन वहीं की आ रही थी. साथ गए व्यक्ति की शिनाख्त पर पुलिस ने सुधीर को बसस्टैंड से गिरफ्तार कर लिया. वहां से वह बिहार भागने की फिराक में था.

सुधीर को थाने ला कर पूछताछ की तो वह पहले इधरउधर की बातें करता रहा. फिर सख्ती करने पर उस ने सच्चाई बता दी. उस ने बताया कि काजल की हत्या में उस के साथ काजल की मां मुन्नी भी शामिल थी.

मासूम बेटी की हत्या में मां के शामिल होने की बात सुन कर पुलिस भी चौंक गई. फिर सुधीर ने उस बच्ची की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली-

प्रमोद सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक व्यस्त रहता था. काम के चक्कर में वह पत्नी को भी समय नहीं दे पाता था. लगातार 16 घंटे काम कर के वह थक कर जल्द ही सो जाता था. ऐसे में पड़ोस में रहने वाले सुधीर नाम के युवक से मुन्नी के अवैध संबंध हो गए.

दरअसल, पति की मरजी के बगैर मुन्नी ने डीडीए कौंप्लेक्स स्थित प्लाईवुड फैक्ट्री में नौकरी कर ली थी. उसी प्लाईवुड फैक्ट्री में सुधीर भी नौकरी करता था. साथसाथ काम करने पर उस की सुधीर से दोस्ती हो गई थी. 23 साल का सुधीर अविवाहित था. दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. इसी बीच उन के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

मुन्नी के नौकरी पर चले जाने पर घर अस्तव्यस्त रहता था और बच्चों की देखभाल भी ठीक से नहीं हो पाती थी. तब प्रमोद ने दबाव डाल कर पत्नी की नौकरी छुड़वा दी. उस ने वहां 3 माह नौकरी की थी.

नौकरी छूटने के बाद भी मुन्नी के सुधीर से संबंध कायम रहे. उस की फोन पर बातचीत होती रहती थी. पति तो रात 10 बजे तक दुकान पर रहता था, इसलिए जब मुन्नी का मन होता, वह सुधीर को अपने कमरे पर बुला लेती.

10 दिसंबर, 2017 को मुन्नी और सुधीर को आपत्तिजनक स्थिति में उस की बेटी काजल ने देख लिया था. काजल को देख कर दोनों अलग हो गए. दोनों ने काजल को पैसे, कपड़े, खिलौनों आदि का लालच दे कर कहा कि उस ने जो कुछ देखा है, वह किसी को नहीं बताए.

काजल उस समय तो चुप रही, पर उस के बाद उस ने अपनी मम्मी से कह दिया कि उस की गंदी हरकत वह पापा को जरूर बताएगी. काजल के जवाब से मुन्नी घबरा गई. मुन्नी को डर लगने लगा कि काजल की वजह से वह पति की नजरों में गिर जाएगी.

साथ ही बदनामी भी होगी, इसलिए उस ने सुधीर को फोन कर के कह दिया कि काजल बात नहीं मान रही, उसे ठिकाने लगा दो, ऐसा नहीं हुआ तो मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.

इस के बाद मुन्नी ने काजल की हत्या की योजना तैयार की. 13 दिसंबर, 2017 की रात 8 बजे के करीब पड़ोसी लालमन के कमरे में काजल टीवी देख रही थी. मुन्नी ने इशारे से काजल को बुलाया. उसे कोई अच्छी चीज दिखाने की बात कह कर वह उसे छत पर ले गई.

सुधीर चाकू लिए छत पर पहले से बैठा था. छत के किनारे पर मुन्नी ने काजल का मुंह दबा कर पटका और सुधीर ने चाकू से उस बच्ची का गला रेत दिया. कुछ ही देर में काजल की मौत हो गई.

दोनों ने मिल कर पड़ोस की छत पर लाश फेंक दी और जिस जगह उन्होंने काजल का गला रेता था, वहां पड़े खून के ऊपर उन्होंने बोरी डाल दी, ताकि खून किसी को न दिखे.

उन की योजना रात के अंधेरे में लाश को बोरी में भर कर ठिकाने लगाने की थी. पर वह लाश ठिकाने तो नहीं लगा सके, पुलिस के हत्थे जरूर चढ़ गए. इस के बाद पुलिस ने मुन्नी को भी गिरफ्तार कर लिया. सुधीर की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया.

पुलिस ने 15 दिसंबर को दोनों को कड़कड़डूमा कोर्ट में मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर जेल भेज दिया.

फर्जी फाइनैंस कंपनियों से रहें सावधान

मथुरा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला विश्वेंद्र सिंह पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश करतेकरते थक चुका था. आखिरकार उस ने हार मान कर अपना खुद का कारोबार शुरू करने की ठानी.

इस के लिए विश्वेंद्र सिंह को पैसों की जरूरत थी. इस वजह से उस ने कई बैंकों से लोन लेने के लिए बातचीत की. लेकिन उसे वहां भी निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि इस के लिए उसे बैंक में सिक्योरिटी के रूप में अचल संपत्ति या गारंटर की जरूरत थी, लेकिन उस की बेरोजगारी के चलते कोई भी उस का गारंटर बनने को तैयार नहीं था.

एक दिन विश्वेंद्र सिंह की अखबार पढ़ते हुए उस में छपे एक इश्तिहार पर नजर पड़ी. ‘गारैंटैड लोन, वह भी मात्र 2 घंटे में. नो फाइल चार्ज. नो गारंटर. खर्चा लोन पास होने के बाद.’

इसी तरह का एक इश्तिहार और था, जिस में मार्कशीट पर किसी भी कारोबार के लिए लोन देने की बात लिखी थी.

विश्वेंद्र सिंह को इसी तरह के तमाम इश्तिहार उस अखबार में दिखाई पड़े, जिन में 10 लाख से ले कर करोड़ रुपए तक लोन देने की बात की गई थी. उस ने उस अखबार में दी गई मेरठ की एक फाइनैंस कंपनी, जिस का नाम सिक्योर इंडिया सर्विसेज लिमिटेड और पता अबू प्लाजा लेन का था, को फोन किया.

वहां से फोन रिसीव करने वाले शख्स ने उसे बहुत आसान शर्तों पर लोन देने की बात कही. इस के लिए विश्वेंद्र सिंह को मेरठ बुलाया गया.

crime

विश्वेंद्र सिंह जब उस लोन कंपनी के दफ्तर में पहुंचा, तो उस से पहले से बताए गए डौक्यूमैंट की फोटोकौपी व उस का फोटो जमा करवा कर 5 लाख रुपए के लोन की फाइल तैयार की गई और उस लोन की कुल रकम की सिक्योरिटी मनी के रूप में उस से 30 हजार रुपए मांगे गए.

इस पर विश्वेंद्र सिंह चौंका और बोला कि इश्तिहार में तो किसी भी तरह की गारंटी या प्रोसैसिंग फीस लेने की बात नहीं की गई थी, तो फिर यह कैसी गारंटी मनी?

इस पर उस लोन कंपनी की तरफ से कहा गया कि वे उसे 5 लाख रुपए बिना किसी गारंटर के दे रहे हैं और वह 30 हजार रुपए सिक्योरिटी मनी के रूप में नहीं दे सकता.

इस के बाद विश्वेंद्र सिंह 30 हजार रुपए देने को तैयार हो गया और उस ने उस कंपनी के खाते में 10 हजार रुपए जमा करा दिए और बाकी के पैसे उस ने नकद जमा किए. इस के एवज में उसे बिना कंपनी का नामपता लिखी एक रसीद थमा दी गई.

इस के बाद सादा कागज पर एक एग्रीमैंट करवाया गया, जिस में यह लिखा गया था कि स्थानीय तहसीलदार से जांच कराने के बाद ही उसे लोन देने की बात की गई थी.

उस एग्रीमैंट में यह भी लिखा था कि तहसीलदार की रिपोर्ट अगर उस के पक्ष में होगी, तभी यह लोन दिया जाएगा.

इस एग्रीमैंट के बाद विश्वेंद्र सिंह घर चला आया और वह लोन की रकम मिलने का इंतजार करता रहा, लेकिन जब 3 महीने बीत जाने पर भी कंपनी के लोगों ने उस से संपर्क नहीं किया, तो वह सीधे कंपनी के दफ्तर गया और लोन न मिलने की बात कही.

इस पर कंपनी की तरफ से उसे यह कहा गया कि तहसीलदार ने उस के पक्ष में रिपोर्ट नहीं लगाई है, इसलिए अब उसे लोन नहीं दिया जा सकता है.

जब विश्वेंद्र सिंह ने तहसीलदार की रिपोर्ट देखने के लिए मांगी, तो उसे यह कर मना कर दिया गया कि यह गोपनीय रिपोर्ट होती है. हम इसे नहीं दिखा सकते.

इस के बाद विश्वेंद्र सिंह ने सिक्योरिटी मनी के अपने 30 हजार रुपए वापस मांगे, तो उसे भी कंपनी ने यह कर मना कर दिया वह रकम वापस नहीं की जा सकती है.

इस तरह की फर्जी लोन कंपनियों से ठगे जाने का मामला सिर्फ बेरोजगार विश्वेंद्र सिंह का नहीं है, बल्कि हर रोज आसान तरीके से ऐसे लोन लेने के चक्कर में हजारों बेरोजगार ठगी के शिकार होते हैं.

ऐसे पहचानें फर्जी कंपनी

आसान शर्तों पर लोन देने का झांसा देने वाली इश्तिहार कंपनियां ज्यादातर मामलों में फर्जी ही होती हैं, जो भोलेभाले बेरोजगार लोगों को लोन देने के नाम पर शिकार बनाती हैं.

ऐसे में अगर आप को आसान शर्तों पर लोन देने का दावा करता कोई इश्तिहार दिख जाए, तो यह समझ लेना चाहिए कि यह महज ठगी करने वाली कंपनी ही होगी, क्योंकि कोई भी कंपनी बिना अपने रुपए की वापसी की गारंटी जांच की पड़ताल किए किसी को भी लोन नहीं देती है.

crime

फर्जी लोन कंपनियों की पहचान के मसले पर पंजाब नैशनल बैंक में मार्केटिंग अफसर अभिषेक पांडेय का कहना है कि कोई भी फाइनैंस कंपनी शुरू करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक, सेबी व सिडबी जैसे वित्तीय संस्थानों से लाइसैंस लेना पड़ता है.

ये संस्थाएं लाइसैंस देने के पहले खुलने वाली फाइनैंस कंपनी की कई तरीके से जांचपड़ताल करती हैं.

मानकों पर खरी पाए जाने पर उस कंपनी के लोन कैटीगरी को तय किया जाता है कि वह किस तरह का लोन देना चाहती है. इस में  घर का लोन, गाड़ी के लिए लोन, कारोबार वगैरह की अलगअलग कैटीगरी तय की जाती है.

अभिषेक पांडेय के मुताबिक, कोई भी लोन देने वाली कंपनी एक फीसदी  सालाना के न्यूनतम ब्याज पर कर्ज दे कर नहीं चलाई जा सकती है, वह भी कर्ज वापसी के लिए बिना किसी छानबीन व गारंटी के तो यह एकदम मुश्किल है. अगर कोई कंपनी इस तरह के लोन देने का दावा करती है, तो वह धोखाधड़ी व ठगी के मकसद से ही ऐसा कर रही होती है.

इन से ही लें लोन

अगर आप बेरोजगार हैं और किसी तरह का लोन लेना चाहते हैं, तो इस के लिए बैंक व फाइनैंस कंपनी से ही आप का लोन लेना ज्यादा अच्छा होता है.

एक वित्तीय सलाहकार मनमोहन श्रीवास्तव के मुताबिक, लोन देने के पहले बैंकों द्वारा लोन लेने वाले के पते की छानबीन कर पूरी गारंटी के साथ ही लोन दिया जाता है.

बैंक द्वारा लोन के लिए सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइन के मुताबिक ही फीस ली जाती है. अगर आप किसी कारोबार के लिए लोन ले रहे हैं, तो बैंक उस के लिए उस कारोबार का प्रोजैक्ट मांगता है. उस प्रोजैक्ट रिपोर्ट के संतुष्ट होने के बाद ही लोन देने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है.

मनमोहन श्रीवास्तव का आगे कहना है कि बैंक द्वारा जो ब्याज की रकम ली जाती है, वह इश्तिहारी लोन कंपनियों के बजाय ज्यादा तो होती है, लेकिन यह भारतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइन के मुताबिक ही तय होती है, जिस में धोखाधड़ी का कोई डर नहीं होता है.

उन का कहना है कि अगर अखबारों में आसान शर्तों पर लोन देने के इश्तिहार दिखाई दें, तो उस पर ध्यान न दे कर बैंकों से लोन लेने की कोशिश करें. इस लोन को हासिल करने में भले ही समय लगे, लेकिन इस में आप की जेब का पैसा डूबने का डर नहीं रहता है.

बिचौलिए: क्यों मिला वंदना को धोखा

Story in Hindi

बहनों से छेड़छाड़, भाइयों की मुसीबत

साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाला राजा नामक नौजवान दिल्ली से लगे नोएडा के एक कार गैराज में नौकरी करता था. उसे घायल हालत में अस्पताल में भरती कराया गया. 3 दिन जिंदगी और मौत से जूझने के बाद राजा की सांसों की डोर हमेशा के लिए टूट गई. वह मारपीट में बुरी तरह से घायल हुआ था. उस के सिर व बदन के दूसरे हिस्सों पर चोटों के निशान थे. उस की मौत ने न सिर्फ उस के परिवार, बल्कि उस के जानकारों को भी हिला कर रख दिया. राजा की गलती महज इतनी थी कि वह अपनी बहन के साथ आएदिन होने वाली छेड़छाड़ का विरोध करता था. किसी ने सोचा भी नहीं था कि विरोध करने पर मनचला अपने साथियों के साथ उसे इस तरह निशाना बना लेगा.

एक भाई के लिए यह जरूरी भी हो जाता है कि जब कोई सिरफिरा शोहदा उस की बहन को छेड़े, तो वह विरोध करे, लेकिन मनचलों के हौसले बुलंद होते हैं. उन्हें लगता है कि ऐसे विरोध से उन की तौहीन हो गई है और वे सीनाजोरी कर के मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं.

दरअसल, राजा की बहन को एक शोहदा वसीम अकसर ही परेशान किया करता था. मौका लगने पर छेड़छाड़ और फब्तियां कसता था. राजा ने इस बात का कई बार विरोध किया, लेकिन उस की हरकतें बंद नहीं हुईं.

एक दिन वसीम ने अपने साथियों के साथ मिल कर राजा की जम कर पिटाई कर दी. गंभीर चोटों के बाद उस की मौत हो गई.

पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कानून ने अपना काम किया, लेकिन बात सिर्फ इतने पर खत्म नहीं हो जाती. सवाल है कि किसी सभ्य समाज में क्या एक भाई को यह सब सहना चाहिए?

समाज में इस तरह की वारदातों में इजाफा हो रहा है. हर छोटेबड़े शहर में शोहदे हैं. हर मिनट कोई लड़की आहत हो कर खून का घूंट पी रही होती है और शोहदे कौलर तान कर निकल जाते हैं. विरोध करने पर सिरफुटौव्वल होती है.

बहन के साथ होने वाली छेड़छाड़ के विरोध की कीमत चुकाने वाला राजा कोई एक अकेला नौजवान नहीं था. उत्तर प्रदेश के बरेली में तो बहन से छेड़छाड़ करने पर दबंगों ने एक भाई की सरेआम हत्या कर दी.

दरअसल, संजय नगर इलाके में एक लड़की सावित्री घर के बाहर खड़े हो कर अपने भाई नन्हे से बात कर रही थी. इसी बीच मोटरसाइकिल सवार एक लड़के ने उसे हलकी टक्कर मार दी.

सावित्री ने विरोध किया, तो उस ने दबंगई दिखा कर छेड़छाड़ कर दी. गुस्से में आए भाई ने उस लड़के को पीट दिया.

वह लड़का तब तो चला गया, लेकिन कुछ देर बाद वह अपने दोस्तों के साथ आया और भाई से मारपीट कर दी. उन्होंने उस के सिर पर फरसे से वार किए. तेज वार से नन्हे लहूलुहान हो कर गिर गया और उस की मौत हो गई.

मामला किसी छोटी जाति की लड़की का हो, तो दबंग उस पर अपना हक समझते हैं कि वह बिना नानुकर किए उन की बात मान ले.

सुलतानपुर का मामला कुछ ऐसा ही है. कादीपुर कोतवाली क्षेत्र में पिछड़ी जाति के निषाद की बेटी रीना (बदला नाम) खेत पर गई थी, तभी 3 दबंगों ने छेड़छाड़ करते हुए उसे दबोच लिया.

इसी बीच रीना का भाई उधर पहुंच गया. बहन की चीखपुकार सुन कर उस की आबरू बचाने के लिए वह दबंगों से भिड़ गया. उन्होंने उसे मारपीट कर अधमरा कर दिया. बाद में अस्पताल में उस की मौत हो गई.

गांवदेहात में कमजोर लोगों की बहूबेटियों पर दबंगों की गंदी नजरें मंडराती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है. विरोध करने पर उन्हें तरहतरह से सताया जाता है.

हापुड़ के हरसांव गांव का रहने वाला एक लड़का अपनी बहन के साथ जा रहा था, तभी रास्ते में एक मनचले ने उस की बहन का हाथ पकड़ लिया. भाई ने विरोध किया, तो उस के साथ मारपीट कर मनचला मौके से फरार हो गया.

छेड़छाड़ करने वाले सड़कों, महल्लों से ले कर स्कूलकालेजों के बाहर तक मंडराते हैं. गाजियाबाद शहर के एक कालेज के बाहर 10वीं जमात की एक छात्रा के साथ मनचले अकसर छेड़छाड़ किया करते थे. उस ने इस की शिकायत अपने भाई से की.

एक दिन उस छात्रा का भाई छुट्टी के वक्त पहुंच गया. मनचलों ने वही हरकत दोहराई, तो भाई ने विरोध किया. मनचलों को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने भाई को दौड़ादौड़ा कर इतना पीटा कि उसे आईसीयू में भरती कराना पड़ा. हालांकि बाद में पुलिस ने मनचलों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

इसी तरह कानपुर शहर में एक वारदात हुई. 12वीं जमात की एक छात्रा के साथ एक मनचला अकसर छेड़खानी किया करता था. एक दिन वह घर से कोचिंग क्लास के लिए निकली, तो मनचले ने रास्ता घेर कर उसे रोक लिया और उसे जबरन मोटरसाइकिल पर बैठाने की कोशिश की.

घर पहुंच कर उस लड़की ने अपने भाई को जानकारी दी. गुस्साया भाई अपने एक दोस्त के साथ मनचले के घर शिकायत करने पहुंचा. मनचले ने उलटा उन पर हमला बोल दिया. बैल्ट व डंडों से पीट कर उन दोनों को घायल कर दिया.

मेरठ शहर के सदर इलाके में भी एक नौजवान को अपनी बहन के साथ हुई छेड़छाड़ का विरोध करना भारी पड़ गया. हुआ यों कि एक लड़की अपने घर के बाहर खड़ी थी. इसी दौरान 2 दोस्तों के साथ जा रहे एक लड़के ने लड़की पर फब्तियां कसीं और उस का मोबाइल नंबर पूछा.

इसी बीच घर से बाहर निकले भाई ने उन लड़कों की इस हरकत का विरोध किया, तो उन्होंने उस के साथ मारपीट कर दी. मौके पर खड़ी भीड़ तमाशा देखती रही. पुलिस के पहुंचने तक हमलावर फरार हो गए.

छेड़छाड़ करने वाले ज्यादातर मनचले इस सोच के मारे होते हैं कि वे कुछ भी हासिल कर सकते हैं. जो लड़की के पक्ष में आता है, उसे गुंडई कर के सबक भी सिखाते हैं. ऐसे मनचले लड़कियों को गंदे इशारे करते हैं, उन्हें छू कर निकलते हैं, वासना भरी नजरों से घूरते हैं और सीटी बजाते हैं.

अमूमन हर रोज ऐसी हरकतों को सहा जाता है. जब कोई भाई अपनी बहन को छेड़छाड़ से बचाने की कोशिश करता है, तो उसे बहुतकुछ सहना पड़ता है. मामला मारपीट और पुलिस तक जाए, तो समाज कई बार लड़की को ही गलत नजर से देखता है. उस का घर से निकलना तक बंद हो जाता है. मनचलों को कानून का डर नहीं होता. छेड़छाड़ के मामले में शायद ही कभी किसी को सजा हुई हो.

वकील सुदेश त्यागी बताते हैं कि पुलिस ऐसे मामलों में छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ धारा-294 के तहत कार्यवाही करती है. इस में ज्यादा से ज्यादा 3 महीने की सजा या जुर्माने का प्रावधान है. ऐसे में अपराध अदालत के सामने साबित भी करना होता है.

समाज में बढ़ती छेड़छाड़ की बीमारी से उन भाइयों की हालत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, जो अपनी बहन की आबरू को ले कर फिक्रमंद रहते हैं. वे गलत हरकत का विरोध करते हैं, तो उन्हें तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है, रंजिशें पनपती हैं और हत्याएं तक हो जाती हैं.

पुलिस अफसर नरेंद्र प्रताप कहते हैं कि इस तरह के मामलों में तुरंत पुलिस को सूचित करना चाहिए. औरतों के लिए अलग से भी हैल्पलाइन नंबर हैं. उन पर भी सूचना दी जा सकती है.

दुखी हो कर बने कातिल

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले का रहने वाला संतराम भी ऐसा ही एक भाई है, जिसे छेड़छाड़ से तंग आ कर हत्या तक करनी पड़ गई. दरअसल, राजीव नामक दबंग लड़का संतराम की बहन पर बुरी नजर रखता था. वह अकसर उस के साथ छेड़छाड़ करता था. बारबार समझाने पर भी जब वह नहीं माना, तो संतराम ने दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया.

एक दिन संतराम ने अपने साथी के साथ मिल कर राजीव को बुलाया. पहले उसे शराब पिलाई, फिर डंडे से सिर पर वार कर के उस की हत्या कर दी. तफतीश में मामला खुला, तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

हरियाणा के करनाल शहर का मामला भी कुछ ऐसा ही रहा. 5 नौजवानों ने चाकुओं से गोद कर बसस्टैंड इलाके में एक लड़के विजय राणा की हत्या कर दी. गिरफ्तारी के बाद पता चला कि विजय राणा आरोपियों में से एक की बहन के साथ छेड़छाड़ व पीछा किया करता था. इसी बात से गुस्साए भाई ने अपने साथियों के साथ मिल कर उस की हत्या कर डाली.

शराबबंदी को ठेंगा दिखाता नाजायज मतलबी बंधन

प्रदेश में शराबबंदी के बावजूद शराब माफिया, अपराधियों और पुलिस वालों के बीच अनोखा महागठबंधन तैयार हो गया है और वह शराबबंदी कानून को ठेंगा दिखा रहा है. इस की एक छोटी सी बानगी 11 अक्तूबर, 2017 को देखने को मिली, जब अरवल पुलिस ने शराब का एक कंसाइनमैंट पकड़ा. मामले की जांच के लिए केस को आर्थिक अपराध इकाई यानी ईओयू को सौंप दिया गया. ईओयू ने अपना काम शुरू किया. उसे सूचना मिली थी कि 12 अक्तूबर को उसी कंसाइनमैंट की डिलीवरी सीतामढ़ी में होने वाली है. पुलिस ने छापा मारने की तैयारी की. सीतामढ़ी पुलिस को अलर्ट रहने को कहा गया.

इसी बीच रून्नीसैदपुर थाने के दारोगा अवनी भूषण सिंह ने शराब माफिया अजीत राय के मोबाइल फोन पर मैसेज भेजा, ‘अभी रेड होगी.’

उस के बाद दारोगा साहब ने फोन कर के अजीत राय को सावधान रहने की हिदायत भी दी.

अजीत राय पर शराबबंदी कानून तोड़ने समेत हत्या, रंगदारी वसूलने समेत कई केस पहले ही दर्ज हैं. तकरीबन आधा दर्जन मामलों में वह चार्जशीट किया जा चुका है.

दारोगा अवनी भूषण सिंह को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह पहले से ही ईओयू के रडार पर है.

crime

शराब माफिया को छापामारी की सूचना देने के कुछ ही देर बाद साल 2009 बैच के दारोगा अवनी भूषण सिंह समेत शराब माफिया को दबोच लिया गया.

बिहार में यह इस तरह का पहला मामला है जब ईओयू ने शराब माफिया और पुलिस के गिरोह का भंडाफोड़ किया है.

11 अक्तूबर को ही अरवल जिले के कलेर थाने के थानेदार को शराब के एक कंसाइनमैंट की जानकारी मिली. रात के 8 बज कर 35 मिनट पर थानेदार ने पुलिस टीम के साथ पटनाऔरंगाबाद हाईवे-98 पर एक मिनी ट्रक को रोका.

हरियाणा के रजिस्टे्रशन नंबर वाले उस ट्रक में शराब की 4320 बोतलें लदी हुई थीं. ट्रक पर सवार कुलदीप सिंह और केशव देव को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने बताया कि शराब से लदे इस मिनी ट्रक को हाजीपुर में डिलीवरी देनी थी.

ईओयू की टीम ट्रक के साथ हाजीपुर पहुंची. हाजीपुर पहुंचने के बाद शराब माफिया ने ट्रक को मुजफ्फरपुर चलने को कहा. मुजफ्फरपुर से पहले ही तुर्की ब्लौक के पास एक स्कौर्पियो गाड़ी ने ट्रक को रुकने के लिए कहा. ट्रक के रुकते ही उस में सवार ईओयू की टीम ने स्कौर्पियो में सवार 5 लोगों को दबोच लिया.

गिरफ्तार लोगों के नाम अजीत कुमार, अजय कुमार, सुजीत कुमार, संजीव कुमार और सुरेंद्र कुमार सिंह है. सुरेंद्र दिल्ली का रहने वाला है.

बिहार में शराबबंदी के बाद भी शराब का चोरीछिपे  गैरकानूनी धंधा चल रहा है. जो शराब पीना चाहता है, उस के घर पर शराब की डिलीवरी हो रही है. 500 रुपए की कीमत वाली शराब की बोतल के लिए पियक्कड़ों को डेढ़ से 2 हजार रुपए तक चुकाने पड़ते है. पुलिस ने अब तक शराब के जिन धंधेबाजों को पकड़ा है, उन लोगों ने कबूल किया है कि झारखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा से शराब बिहार पहुंचती रही है.

शराबबंदी कानून को ठेंगा दिखा कर अपना गैरकानूनी धंधा चलाने के लिए शराब माफिया हर तरह की तिकड़म लड़ा रहे हैं. जब शराब से लदे बड़े ट्रकों को पुलिस ने पकड़ना शुरू किया तो छोटी गाडि़यों में शराब की खेप लाने का काम शुरू कर दिया गया. मिनी ट्रक, कारें, आटोरिकशा यहां तक कि स्कूटी में भर कर भी शराब ढोई जाने लगी है.

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, शराब की खेप को बिहार की सीमा के बाहर बड़े पैमाने पर जमा कर के रखा गया है. वहीं से डिमांड के हिसाब से शराब की खेप की होम डिलीवरी की जा रही है.

पहले गोपालगंज जिले के रास्ते गैरकानूनी तरीके से शराब बिहार की सीमा में घुसाई जा रही थी. उस रूट पर जब पुलिस की धरपकड़ तेज हो गई

तो अब अरवलजहानाबाद रूट को शराब माफिया ने अपना सेफ जोन बना लिया है.पुलिस की आंखों में धूल झोंकने के लिए शराब की खेप को इधरउधर घुमाने के बाद तय अड्डे तक पहुंचाया जाता है. पुलिस की मिलीभगत के बगैर माफिया का काम आसान नहीं हो सकता है.

भोजपुर के एक शराब माफिया को गिरफ्तार करने के बाद जब ईओयू ने उस से पूछताछ की तो उस ने हैरान करने वाली बातें बताईं. उस ने बताया कि पटना से शराब की खेप को वह अपनी बोलेरो गाड़ी में रखता और पटना से भोजपुर के बीच पड़ने वाले हर पुलिस थाने में चढ़ावा चढ़ाता चला जाता था.

एक खेप ले जाने पर उसे थानों में तकरीबन 20 से 25 हजार रुपए चढ़ाने पड़ते थे और एक खेप से उस की कमाई 2 लाख रुपए से ज्यादा की हो जाती थी.

शराब की खेप के तय जगह पर पहुंचने के बाद तुरंत उस की डिलीवरी नहीं की जाती है. इस के लिए 10-15 घंटों का समय लगता है. खेप के पहुंचने के बाद धंधेबाज रेकी करते हैं. वे दूर रह कर उस पर नजर रखते हैं.

हर तरह से निश्चिंत होने के बाद ही शराब की खेप को ठिकाने लगाने का काम शुरू किया जाता है. अगर लोकल पुलिस को दानदक्षिणा दे दी गई होती है तो बेरोकटोक डिलीवरी हो जाती है.

पिछले दिनों अरवलपटना से सटे दानापुर ब्लौक में जब शराब से लदा एक ट्रक पहुंचा तो उसे लेने के लिए कोई भी नहीं पहुंचा. धंधेबाजों को पता चल गया था कि ईओयू ने शराब की खेप को पकड़ने के लिए वहां पहले से ही जाल बिछा रखा था. तकरीबन 12 घंटे के बाद शराब के धंधेबाज जब पूरी तरह से निश्चिंत हो गए कि अब कोई खतरा नहीं है तो वे गाड़ी के पास पहुंचे. पर इतनी सावधानी बरतने के बाद भी वे ईओयू के जाल में फंस गए, क्योंकि ईओयू ने अपनी टीम को बदल दिया था.

पिछले साल 1 अप्रैल से बिहार को पूरी तरह से ‘ड्राई स्टेट’ बनने के बाद ही राज्य के सीमा पार के इलाकों में शराब के कई बाजार सज चुके थे.

crime

बिहार से सटे नेपाल के इलाकों में तो शराब का धंधा कई गुना बढ़ चुका है, वहीं बिहार से सटे झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल वगैरह राज्यों के बौर्डर पर भी शराब का धंधा फलफूल रहा है.

शराबबंदी के बाद ही कई रिटायर्ड सरकारी अफसरों ने कहा था कि सरकार का यह फैसला तभी कामयाब होगा जब सरकारी अफसर और मुलाजिम पूरी ईमानदारी से सरकार का साथ देंगे. ज्यादातर राज्यों में सरकारी अफसरों और जनता की मदद नहीं मिलने की वजह से शराबबंदी नाकाम साबित हुई है.

रिटायर्ड मुख्य सचिव वीएस दुबे कई मौके पर कहते रहे हैं कि शराब पर पूरी तरह से रोक लगाना सरकार का काफी अच्छा फैसला है. पर यह तभी कामयाब हो सकेगी, जब पुलिस दारोगा और आबकारी दारोगा पर पूरी तरह जवाबदेही डाली जाएगी. गैरकानूनी शराब की तस्करी को रोकने के लिए पड़ोसी राज्यों की सीमा पर ठोस निगरानी तंत्र बनाने होंगे.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पता था कि उन के शराबबंदी के फैसले को सब से ज्यादा खतरा पुलिस से ही है, इसलिए उन्होंने हर थाने के थानेदारों से लिखित शपथपत्र ले लिया था कि उन के इलाके में चोरीछिपे शराब बिकते, खरीदते या पीते पाई जाती है तो सीधे थानेदार ही जवाबदेह होंगे.

इस के बावजूद भी पुलिस के कई लोग शराब माफिया और दूसरे अपराधियों के साथ मिल कर शराबबंदी कानून को तोड़ने में लगे हुए हैं.

देशी शराब है सब से बड़ी सिरदर्द

बिहार में शराबबंदी के बाद चोरीछिपे गैरकानूनी तरीके से देशी शराब बनाने और बेचने पर रोक लगाना सरकार के लिए हमेशा मुश्किल रहा है. पिछले अगस्त महीने में गोपालगंज जिले के खजूरबन्नी गांव में देशी शराब पीने की वजह से 17 लोगों की मौत हो गई थी.

शराब पर पाबंदी के बाद भी कोई तगड़ा नैटवर्क है, जो यह जहर बांट रहा है और कानून की धज्जियां उड़ा रहा है. इस गैरकानूनी काम को करने वालों की पीठ पर या तो किसी बड़े नेता का हाथ है या पुलिस के अफसरों मुलाजिमों की मिलीभगत है.

महुआ की चुलाई दारू को बनाने के लिए महुआ और गुड़ को मिला कर सड़ाया जाता है. उसे खुले आकाश के नीचे 2-3 दिनों तक रखा जाता है. उस के बाद से उस में बदबू आनी शुरू हो जाती है. उसे चूल्हे पर रख कर खौलाया जाता है. इस दौरान उस की भाप को ढक कर दूसरे बरतन में चुलाई यानी टपकाई जाती है. वही महुआ दारू का रूप ले लेता है. उस में ज्यादा नशा पैदा करने के लिए नौसादर मिला दिया जाता है. ज्यादा नौसादर मिला देने से महुआ की शराब अकसर जहरीली हो जाती है. वहीं देशी दारू बनाने के लिए चावल और गन्ने के छोआ को मिला कर 3-4 दिनों तक फूलनेसड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. जब उस में सड़न और बदबू पैदा हो जाती है, तो उसे गरम कर के छान लिया जाता है. उस के बाद उस में स्पिरिट मिला कर देशी दारू बना दी जाती है.

बिहार के उत्पाद मंत्री विजेंद्र यादव कहते हैं कि कुछ लोग शराबबंदी को नाकाम करने में लगे हुए हैं. पर इसे कामयाब बनाने के लिए गांवगांव में शराब के खिलाफ लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाई जा रही है.

ठगी का गिफ्ट : ऐसे फोन से रहें सावधान

आशा घर के कामकाज निपटा कर आराम करने के लिए बैडरूम की ओर जा रही थी, तभी उस के सेलफोन की घंटी बज उठी. उस ने काल रिसीव कर जैसे ही ‘हैलो’ कहा, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मुबारक हो जी, आप बनी हैं सर्वश्रेष्ठ विजेता.’’

यह सुन कर आशा ने हैरानी से पूछा, ‘‘सर्वश्रेष्ठ विजेता, किस चीज की?’’

जवाब में दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मैडम, पिछले दिनों हमारी कंपनी की ओर से कुछ सवाल पूछे गए थे. आप ने उन सभी सवालों के जवाब एकदम सही दिए थे, इसलिए आप विजेता बनी हैं.’’

फिर तो आशा खुश हो कर बोली, ‘‘थैंक्यू सर, थैंक्यू वेरी मच.’’

आशा कुछ और कहती, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मैडम, आप को हमारी कंपनी की ओर से एक शानदार गिफ्ट दिया जाएगा. वह भी कोई ऐसावैसा नहीं, बल्कि बहुत ज्यादा कीमती. आप जानना चाहेंगी उस गिफ्ट की कीमत?’’

आशा ही क्या, कोई भी होता, वह हां कह देता. आशा ने भी तुरंत हां कर दिया. इस के बाद फोन करने वाले ने बताया कि उसे दिए जाने वाले गिफ्ट की कीमत करोड़ों में है. गिफ्ट की कीमत सुनते ही आशा के मुंह से ‘अरे वाह, करोड़ों का गिफ्ट’ निकल गया.

करोड़ों की कीमत के गिफ्ट की बात सुन कर आशा कुछ सोच ही रही थी कि फोन करने वाले ने उस का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘मैडम, आप जानती ही होंगी कि विदेश से आए गिफ्ट को पाने के लिए कस्टम और इनकम टैक्स विभाग को टैक्स देना होता है. करोड़ों की कीमत वाले इस गिफ्ट को पाने के लिए भी आप को भी कस्टम ड्यूटी आदि जमा करानी होगी. यह सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही आप को गिफ्ट भेजा जाएगा.’’

बात करोड़ों रुपए के गिफ्ट की थी, इसलिए उस की बातों पर विश्वास कर के उस के द्वारा बताए गए बैंक खाते में आशा ने अलगअलग तारीखों पर करीब 3 लाख रुपए जमा करा दिए. काफी दिन बीत जाने के बाद भी जब कोई गिफ्ट नहीं आया तो आशा का माथा ठनका. उसे लगा कि उस के साथ ठगी हुई है.

उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के सुंदरपुर नेवादा की रहने वाली आशा एक समृद्ध परिवार की महिला थी. उस के पति उम्मेद सिंह सरकारी नौकरी में थे. उन के 2 बेटे हैं, जो दूसरे शहर में रह कर उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं. उस का अपना आलीशान मकान है, जिस में 4-5 किराएदार भी रहते हैं. इस तरह महीने की एक मोटी रकम उसे किराए से मिल जाती है.

crime

लेकिन इस घटना के बाद उस की नींद उड़ चुकी थी. उस ने कुछ दिनों तक यह बात अपने पति से छिपाए रखी. थोड़ेबहुत पैसों की बात होती तो शायद वह पति से छिपाए भी रखती, पर बात मोटी रकम की थी, इसलिए अपने साथ हुई ठगी की बात पति को बतानी ही पड़ी.

उम्मेद सिंह ने पत्नी की बेवकूफी पर पहले उसे डांटाफटकारा, उस के बाद उन्होंने घटना की सूचना पुलिस को देना उचित समझा. इस के बाद वह एसएसपी नितिन तिवारी से मिले और पत्नी के साथ हुई ठगी की बात विस्तार से बता बताई.

वह जहां रहते थे, वह इलाका थाना भेलूपुर के अंतर्गत आता था, इसलिए एसएसपी ने भेलूपुर के थानाप्रभारी को आशा के साथ हुई ठगी की रिपोर्ट दर्ज करने के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने आशा की तहरीर पर अज्ञात ठगों के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 467, 468, 471 व 66 आईटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. यह बात 22 मार्च, 2017 की है.

पिछले कुछ दिनों से वाराणसी जिले में इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी थीं. पुलिस एक मामले को सुलझा नहीं पा रही थी कि दूसरा मामला हो जाता था. आशा से बड़ी रकम ठगी गई थी. इन मामलों को गंभीरता से लेते हुए एसएसपी नितिन तिवारी ने जिले के पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुला कर सभी को इस तरह की ठगी करने वालों का पता लगाने के निर्देश दिए.

आशा के साथ हुई ठगी वाले मामले की जांच के लिए भेलूपुरा के थानाप्रभारी के नेतृत्व में एसएसपी ने जो पुलिस टीम बनाई थी, उस ने उस एकाउंट नंबर को आधार बनाते हुए जांच शुरू कर दी, जिस में आशा ने पैसे जमा कराए थे, साथ ही उस फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई, जिस से आशा को फोन किया गया था.

एसएसपी ने क्राइम ब्रांच और सर्विलांस सैल को भी इस मामले की जांच में लगा दिया था. एसएसपी जांच टीम के संपर्क में रह कर पलपल की रिपोर्ट ले रहे थे और समयसमय पर उचित दिशानिर्देश भी दे रहे थे. इस का नतीजा यह निकला कि पुलिस ने जालसाजों का पता लगा लिया.

इस के बाद पुलिस ने अलगअलग शहरों से 5 जालसाजों को उन के घरों से उठा लिया. जो लोग हिरासत में लिए गए थे, उन में दिल्ली के मसूदपुर का रहने वाला आशीष जानसन, फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश के रसूलपुर गांव का रहने वाला बहादुर सिंह, ग्वालियर के आदर्शनगर का रहने वाला संतोष शर्मा एवं सुरेश तोमर आदि थे.

इन सभी से पूछताछ की गई तो उन्होंने न केवल अपना अपराध स्वीकार कर लिया, बल्कि पुलिस को जालसाजी के तौरतरीके के बारे में भी विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि उन का अपना एक गिरोह है.

गिरोह का सरगना और खास सदस्य फेसबुक, वाट्सऐप, ईमेल जैसे सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों के जरिए लोगों से पहले जुड़ते हैं. जिस व्यक्ति को शिकार बनाना होता है, उस से दोस्ती कर के उसे विश्वास में लेते हैं. सोशल मीडिया के माध्यम से दोस्ती करने के बाद उस व्यक्ति का मोबाइल नंबर हासिल कर के उसे ईमेल द्वारा या फोन कर के गिफ्ट या बड़ी रकम जीतने की जानकारी दी जाती थी.

करोड़ों का गिफ्ट या इनाम मिलने के लालच में वह उस व्यक्ति से टैक्स आदि के नाम पर मोटी रकम एकाउंट में जमा करवा लेता है. आशीष ने पुलिस को बताया कि वह लोगों को सोशल मीडिया पर मदद के नाम पर भी ठगने का काम करता था. बच्चों और महिलाओं की मार्मिक फोटो का सहारा ले कर उन्हें किसी आपदा या बीमारी का शिकार बता कर उन के नाम पर रुपए ऐंठता था.

गिरफ्तार आरोपियों के पास से कई बैंक खातों की पासबुकें, चैकबुकें, अलगअलग फोटो से बनाए गए फरजी पैनकार्ड, मोबाइल और सिमकार्ड समेत अन्य सामान बरामद हुए हैं. पकड़े गए पांचों आरोपियों के बैंक खातों की जांच कराने पर पुलिस को पता चला कि वे अब तक करीब ढाई करोड़ रुपए से अधिक की ठगी कर चुके हैं.

सभी बैंक खातों को सीज करने के साथ पुलिस सभी के पारिवारिक सदस्यों के बैंक एकाउंटों की भी जांच कर रही है, ताकि यह पता चल सके कि उन के मामले में पारिवारिक सदस्यों की क्या भूमिका हो सकती है.

जालसाजों ने बताया कि किसी भी शिकार को फांसने से पहले वह उस की लोकेशन ले कर उस की रेकी करते थे, ताकि उस के रहनसहन से ले कर उस की आर्थिक स्थिति का भी पता लग सके. ऐसे ही उन्होंने आशा की भी रेकी की थी. आशा से पहले इस गिरोह ने वाराणसी सहित देश के कई शहरों में अब तक सैकड़ों लोगों को अपने झांसे में ले कर उन से लाखों रुपए ठगे हैं. उन्होंने बताया कि उन का नेटवर्क देश भर में फैला है.

ठगों के गिरफ्तार होने पर डीआईजी (वाराणसी जोन) ने पुलिस टीम की सराहना करते हुए 12 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है. एसएसपी ने भी टीम को 5 हजार रुपए का इनाम दिया है.

उन्होंने टीम में शामिल एसआई सुबोध कुमार तोमर, पंकज कुमार शाही, इमरान खान, सिपाही श्यामलाल गुप्ता, सर्विलांस सेल के भीष्म प्रताप सिंह, सुनील चौहान, हिमांशु शुक्ला, पंकज सिंह, अखिलेश सिंह की पीठ भी थपथपाई है.

पकडे़ गए पांचों आरोपियों से विस्तार से पूछताछ कर उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. पुलिस इस गिरोह के सरगना नाइजीरियन ओबाका को गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है. कथा लिखे जाने तक उस की गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी.

दूसरी ओर 7 जून, 2017 को वाराणसी जिला न्यायालय के विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण) श्री महंतलाल की अदालत ने बीएचयू की डा. नूतन सिंह से फेसबुक पर दोस्ती के बाद 10 लाख रुपए की ठगी के मामले में अंतरराष्ट्रीय गिरोह से जुड़े दिल्ली निवासी आरोपी आशीष जानसन की जमानत खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने 10 लाख रुपए की धोखाधड़ी की है. ठगी की इस वारदात में विदेशी आरोपी ओबाका भी शामिल है. इस की विवेचना जारी है. ऐसे में जमानत दिए जाने से विवेचना प्रभावित होगी.

वाराणसी पुलिस के हाथ लगे ठग कोई मामूली ठग नहीं हैं. इन का नेटवर्क अंतरराष्ट्रीय स्तर तक फैला हुआ है, जो लोगों को ठगने के लिए अंतरराष्ट्रीय काल का सहारा ले कर पहले दोस्ती करते हैं. उस के बाद बीमारी आदि के नाम पर मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाने की बात कर के पैसे वसूलते हैं. इन के झांसे में कम पढ़ेलिखे लोग ही नहीं, बल्कि समाज के प्रबुद्ध लोग जैसे कि डाक्टर, इंजीनियर आदि भी फंस जाते हैं.

वाराणसी के सुंदरपुर की रहने वाली डा. नूतन सिंह भी बड़ी आसानी से इन के झांसे में फंस गई थीं. उन्हें अंतरराष्ट्रीय काल के जरिए नाइजीरिया निवासी पीसीएस ओबाका ने पहले फेसबुक के माध्यम से दोस्ती की. उस ने डा. नूतन सिंह से संपर्क कर के पत्नी के लिए दवा लिखवाई.

2 महीने बाद उस ने नूतन से कहा कि उस की पत्नी को उन की बताई दवा से बहुत फायदा हुआ है. उस के द्वारा प्रशंसा किए जाने से डा. नूतन को भी न केवल गर्व महसूस हुआ, बल्कि वह उस से फेसबुक और वाट्सऐप के माध्यम से बातें करने लगीं.

इस के बाद डा. नूतन सिंह को अपने जाल में फांस कर उस ने एक बार फिर उन का धन्यवाद दिया. उस ने उन्हें एक बड़ा गिफ्ट देने की पेशकश की, जिसे लेने के लिए नूतन सिंह ने हां कह दिया. फिर बात को आगे बढ़ाते हुए ओबाका ने कहा, ‘‘मैडम, आप को तो पता ही होगा कि विदेशों से सामान मंगाने के लिए कुछ आवश्यक काररवाई पूरी करनी होती है. इसलिए बड़ा गिफ्ट प्राप्त करने से पहले आप को उस का टैक्स आदि अदा करना पड़ेगा.’’

इस के लिए ओबाका ने दिल्ली निवासी अपने साथी आशीष जानसन का एकाउंट नंबर दे दिया. इसी के साथ ओबाका ने डा. नूतन सिंह को पूरी तरह से विश्वास में लेते हुए आशीष जानसन के अलगअलग खातों में लगभग 10 लाख रुपए जमा करवा लिए. बाद में डा. नूतन को जो गिफ्ट पैकेट भेजा गया, उस में कपड़े निकले. जिस की शिकायत उन्होंने पुलिस से की थी.

इस तरह नाइजीरियन पीसीएस ओबाका भारत में रहने वाले अपने दोस्तों के साथ मिल कर ठगी की घटनाओं को अंजाम दे रहा था. कथा लिखे जाने तक ओबाका गिरफ्तार नहीं हो सका था.

– कथा पुलिस व मीडिया सूत्रों पर आधारित

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें