चिलचिलाती धूप में रिकशा एक झांके के साथ एक खूबसूरत मकान के सामने ठहर गया. लता रिकशे से उतर कर मकान के अंदर जाने लगी कि तभी रिकशे वाले ने पुकारा, ‘‘मेम साहब, आप ने अभी मेरे पैसे नहीं दिए.’’
लता ने पलट कर देखा और झोंपती सी बोली, ‘‘ओह सौरी, मैं जल्दी में थी,’’ और पर्स से कुछ पैसे निकाल कर रिकशे वाले को दिए.
रिकशे वाला उसे देखते हुए बोला, ‘‘मेम साहब, गरमी बहुत है. थोड़ा पानी मिल जाता तो…’’ लता ने कहा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं. अंदर आ जाओ.’’
वह रिकशे से उतर गया. लता आगेआगे और रिकशे वाला पीछेपीछे घर के भीतर चला गया. वह फ्रिज से पानी निकालने लगी.
रिकशे वाला बड़े ध्यान से घर देखता हुआ बोला, ‘‘मेम साहब, बड़ा सुंदर घर है आप का.’’
लता ने उसे पानी की एक बोतल पकड़ाई और गिलास थमाते हुए बोली, ‘‘यह लो और पानी लो.’’
रिकशे वाला पानी पी रहा था. लता उसे एकटक देख रही थी. वह तकरीबन 30-35 साल के आसपास का होगा. लंबीचौड़ी कदकाठी, चेहरे पर हलकी मूंछें और सिर पर घने बाल.
रिकशे वाले ने पानी पी कर लता को बोतल वापस की, तो लता बोली, ‘‘आओ, मैं तुम्हें अपना पूरा घर दिखाती हूं.’’
रिकशे वाला ‘जी’ कहते हुए लता के पीछेपीछे हो लिया.
‘‘यह देखो रसोईघर है.’’
रिकशे वाले ने कहा, ‘‘वाह…’’
लता बोली, ‘‘और यह बाथरूम.’’
इस के बाद लता ने शावर खोल कर दिखाया, तो वह मुसकरा उठा. शावर की बौछार से थोड़ा बदन लता का और थोड़ा बदन रिकशे वाले का भीग गया. वह सिहर कर पीछे हट गया.
लता ने अजीब नजरों से उसे देखा. कुछ पल के लिए वे दोनों ठिठक से गए, फिर लता ने खामोशी तोड़ी, ‘‘आओ, अब उधर चलें…’’ और वह उसे एक खूबसूरत हाल की ओर ले गई.
रिकशे वाला बड़े ध्यान से सब देख रहा था कि अचानक उस की नजर एक तसवीर पर टिक कर रह गई.
लता ने उस की ओर देखते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’
रिकशे वाले ने कहा, ‘‘आप का यह फोटो बड़ा वो है.’’
लता ने पूछा, ‘‘वो मतलब…?’’
वह थोड़ा शरमाते हुए बोला, ‘‘जिसे कहते हैं सक्सी.’’
लता ठहाका मार कर हंस पड़ी, फिर बोली, ‘‘सक्सी नहीं… सैक्सी.’’
रिकशे वाले ने कहा, ‘‘हां, वही बात मैडम. हम ज्यादा पढ़ेलिखे तो हैं नहीं.’’
तभी लता ने आंखों में खुमारी लाते हुए पूछा, ‘‘वैसे, तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘जी, मंगेश.’’
‘‘तो मंगेश, मैं सिर्फ फोटो में ही सैक्सी लगती हूं… ऐसे नहीं?’’ कहते हुए लता ने उस की बांहें थाम लीं.
मंगेश एकदम से हकलाने लगा,
‘‘म… मैडम…’’
‘‘बोलो मंगेश… क्या मैं ऐसे सैक्सी नहीं लगती?’’ कहते हुए लता ने अपनी साड़ी का आंचल नीचे गिरा दिया और उसे बिस्तर पर धकेल दिया.
मंगेश संभलते हुए बोला, ‘‘मेम साहब, मेरी सवारियां आती होंगी. मुझे जाने दीजिए अब.’’
लता ने रिकशे वाले के करीब बैठ कर अपनी बांहें उस की कमर के इर्दगिर्द कर लीं और बोली, ‘‘कितनी सवारियां आएंगी दिनभर में? कितना पैसा कमा लोगे तुम?’’
मंगेश बोला, ‘‘यही कोई 8 से 10 सवारियां. पूरे दिन में तकरीबन 500 रुपए कमा लूंगा.’’
‘‘मैं तुम्हें 1,000 रुपए दूंगी. तुम कहीं मत जाओ. आज तुम देखो कि मैं सैक्सी दिखती ही नहीं… सैक्सी हूं भी,’’ इतना कह कर लता ने मंगेश का हाथ मजबूती से पकड़ लिया.
मंगेश सहमा सा हाथ छुड़ाते हुए बोला, ‘‘नहीं मेम साहब…’’
लता दांत पीसते हुए बोली, ‘‘जैसा कह रही हूं वैसा करो, वरना अभी पुलिस बुलाती हूं कि तुम ने पानी पीने के बहाने घर में घुस कर मेरे साथ छेड़छाड़ की है.’’
यह सुन कर मंगेश सहम गया. लता ने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और बैडरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया.
आधा घंटे बाद मंगेश थकाथका सा बाहर निकला. उस की मुट्ठी में 1,000 रुपए थे. रास्ता सुनसान था. जेठ की गरमी के चलते लोग अपनेअपने घरों में दुबके पड़े थे. कुछ दूरी पर एक परचून की दुकान थी. उस पर भी जो लड़का बैठा था, वह अधसोया सा था.
मंगेश ने एक बार चोर निगाहों से हर तरफ देखा, फिर रिकशे पर बैठ कर वहां से निकल गया.
आते वक्त लता ने उस से कहा था, ‘तुम रोज यहीं आ जाया करो. तुम्हें दिनभर की कमाई भी मिल जाएगी और धूप में यहांवहां थकना भी नहीं पड़ेगा.’
अगले दिन मंगेश संकोच में कहीं बाहर नहीं गया. उस के दिमाग में पिछले दिन की सारी बातें चल रही थीं. एकएक सीन याद आ रहा था, जबकि पत्नी गुजरिया कई बार कह चुकी थी, ‘‘काम पर नहीं जाना हैं क्या? राशन भी खत्म हो गया है.’’
मंगेश अलसाते हुए बोला, ‘‘सब हो जाएगा, तुम चिंता न कर…’’ और फिर आंखें बंद कर के कुछ सोचने लगा.
अगले दिन मंगेश कुछ सहमा सा लता के पास गया. वह उसे देख कर खुश हो गई और बोली, ‘‘अरे, कहां चले गए थे? तुम कल क्यों नहीं आए? बैठो, मैं तुम्हें कुछ दिखाती हूं,’’ कहते हुए वह कमरे की तरफ जाने लगी.
मंगेश बैठने लगा कि तभी लता रुक कर बोली, ‘‘सुनो, तुम भी इधर ही चले आओ.’’
यह सुन कर मंगेश कांप गया. वह ठिठकते हुए उठा और लता के पीछेपीछे चला गया.
लता ने एक कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘बैठो.’’
मंगेश बैठ गया. इतने में लता ने अलमारी खोली. उस में से 2 पैकेट निकाले और उस की तरफ बढ़ा दिए.
मंगेश ने पैकेट ले लिए और उन्हें खोलने लगा, फिर हैरत से बोला, ‘‘अरे मेम साहब, इतने कीमती कपड़े…’’
लता बोली, ‘‘अरे कीमती क्या, बस ऐसे ही हैं…’’ फिर उस से कपड़े ले कर वह समेटते हुए बोली, ‘‘अब घर ले जा कर देखना अच्छी तरह से. चलो, अब कुछ काम कर लें…’’
इतना सुनते ही मंगेश का चेहरा उतर गया, मगर वह मजबूर सा बैठा रहा. लता ने आगे बढ़ कर दरवाजा बंद कर दिया.
अब यह रोज का काम हो गया था. मंगेश की रोजाना 1,000 रुपए की आमदनी हो जाती थी.
एक दिन मंगेश ने लता से पूछा, ‘‘मेम साहब, आप का परिवार और बच्चे कहां हैं?’’
लता ने एकदम सपाट सा जवाब दिया, ‘‘बच्चे नहीं हैं. पति सारा दिन औफिस में रहते हैं और शाम को वापस आते हैं. तुम ने क्यों पूछा वैसे?’’
मंगेश बोला, ‘‘बस, ऐसे ही.’’
लता ने कहा, ‘‘मेरा पति सिर्फ पैसे कमाने के लायक है… सुना तुम ने… औरत के लायक नहीं…’’
मंगेश ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, ‘‘आह… वे आप जैसी खूबसूरत पत्नी को भोग भी नहीं पा रहे हैं…’’ लता चुप रही.
गुजरिया कई दिनों से देख रही थी कि मंगेश सिर्फ 2-3 घंटे के लिए बाहर जाता है और अच्छाखासा पैसा कमा लाता है. वह कहीं कोई नंबर दो का काम तो नहीं करने लगा?
गुजरिया ने एक दिन पूछा, ‘‘मुनिया के बापू, तुम 2-4 घंटे में इतना पैसा कैसे कमा लाते हो… एकसाथ इतनी दिहाड़ी कैसे मिल जाती है?’’
मंगेश हंस कर पीढ़े पर बैठते हुए बोला, ‘‘सब तुम लोगों के भाग्य से आता है, इतना समझ लो.’’
गुजरिया ने आंखें तरेर कर उसे देखा, मगर बोली कुछ नहीं. यह बात उसे हजम नहीं हुई.
दूसरे दिन जब अपना रिकशा ले कर मंगेश घर से चला, तो गुजरिया भी दूसरे रिकशे वाले को बोल कर उस के पीछेपीछे चल दी. कई चौराहे और गलियां पार करते हुए आखिरकार मंगेश का रिकशा एक मकान के सामने ठहरा.
गुजरिया ने भी अपना रिकशा काफी दूरी पर रुकवा लिया, उसे पैसे दिए और वहीं खड़ी हो गई दीवार की ओट में.
गुजरिया ने देखा कि मकान का गेट खुला है और उस का पति अंदर दाखिल हो गया है. परचून की दुकान खुली थी. लड़का बैठा इधरउधर देख रहा था कि तभी गुजरिया वहां पहुंची और बोली, ‘‘भैया, यह घर किस का है?’’
दुकान वाला बोला, ‘‘रमेश बाबू का है. वे टैलीफोन दफ्तर में जेई हैं. वे बेचारे औफिस में खटते हैं और उन की बीवी यहां मजे करती है.’’
गुजरिया ने पूछा, ‘‘मतलब…?’’
दुकान वाला बोला, ‘‘दिख नहीं रहा सामने रिकशा. रिकशे वाले के हाथ मोती लग गया है. हम लोग तो वहां फटक भी नहीं पाते…’’
गुजरिया फौरन वापस हो ली और रिकशा कर के टैलीफोन दफ्तर पहुंची. वहां रमेश बाबू का केबिन पता किया और जल्दी से वहां पहुंची.
गुजरिया ने अंदर आने की इजाजत मांगी, तो रमेश बाबू ने शीशे से बाहर देखा और हुड़क दिया, ‘‘जाओ, अपना काम करो. ये भिखमंगे यहां भी पीछा नहीं छोड़ते.’’
लेकिन, गुजरिया दरवाजे पर ‘खटखट’ करती रही. आखिरकार वे झल्ला कर अपनी कुरसी से उठे और झटके से दरवाजा खोला.
गुजरिया ने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया, लेकिन उन्होंने उसे नजरअंदाज कर आवाज लगाई, ‘‘चौकीदार, ये किसकिस को आने देते हो यहां… ये भिखमंगों का अड्डा नहीं है, समझे…’’
चौकीदार गुजरिया की बांहें पकड़े खींच रहा था, तभी वह उस का हाथ झटकते हुए रमेश बाबू की ओर चिल्लाई, ‘‘बाबूजी, हमारे कपड़े गंदे हैं, लेकिन मन नहीं गंदा है…
‘‘जा कर अपने घर की गंदगी देखो एक बार. तुम को अपनी गंदगी का अंदाजा ही नहीं, जिसे गले से लगाए फिरते हो.’’
यह सुन कर रमेश बाबू सन्न रह गए. वे मुड़े और बोले, ‘‘चौकीदार, छोड़ दो इसे.’’
गुजरिया तीर की तरह केबिन में उन के पीछेपीछे आ गई और बोली, ‘‘साहब, इसी समय मेरे साथ चलिए.’’
रमेश बाबू कांपती सी आवाज में बोले, ‘‘कहां?’’
गुजरिया ने कहा, ‘‘आप के घर.’’
रमेश बाबू चिल्लाए, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? जाओ, अपना काम करो.’’
गुजरिया ने हाथ जोड़ दिए और बोली, ‘‘चलिए बाबूजी, बहुत जरूरी है. मेरे लिए न सही तो अपने लिए चलिए.’’
रमेश बाबू ने लता को फोन करना चाहा, तो गुजरिया बोली, ‘‘नहीं बाबूजी, बात खराब हो जाएगी. बिना बताए चलिए, देर मत कीजिए.’’
रमेश बाबू ने एक गहरी निगाह से उसे देखा, फिर उठ गए और पीछेपीछे गुजरिया. उन्होंने अपनी कार निकाली. पीछे गुजरिया बैठ गई.
कुछ ही देर में रमेश बाबू अपने घर के सामने थे. बाहरी गेट की एक चाभी उन के पास रहती थी. उन्होंने गेट खोला और दबे कदमों से बैडरूम की ओर गए.
बैडरूम का दरवाजा हलका सा बंद था. वे दोनों तेजी से अंदर घुसे. वहां का सीन देख कर गुजरिया तेजी से चीख ही पड़ी, ‘‘तू यहां अपना मुंह काला करा रहा है…’’
सैक्स में डूबे लता और मंगेश उन को देख कर हड़बड़ा गए. रमेश बाबू ने बढ़ कर लता को कई थप्पड़ जड़े. गुजरिया ने मंगेश को कई थप्पड़ लगाए.
मंगेश ने गुजरिया को धकेल दिया, तो वह चिल्लाई, ‘‘एक तो तू हम सब को हराम की कमाई खिलाता रहा, ऊपर से चिल्लाता है… बेहया,’’ फिर वह रमेश बाबू से बोली, ‘‘बाबूजी, पुलिस बुलाओ… इस को इस का अंजाम भुगतना पड़ेगा. अब इस का और हमारा साथ खत्म…’’
रमेश बाबू गुस्से से थरथरा रहे थे. वे फोन मिलाने लगे कि मंगेश ने उन का गला दबोच लिया. रमेश बाबू के गले से ‘गोंगों’ की आवाज निकलने लगी. गुजरिया उन्हें छुड़ा रही थी.
मंगेश ने लात मार कर गुजरिया को अलग किया. रमेश बाबू के गले पर उस की पकड़ कसती जा रही थी.
लता ने जल्दीजल्दी कपड़े पहन लिए थे. उस ने रमेश बाबू की हालत देखी, तो हड़बड़ाहट में बड़ा सा गुलदान उठा कर मंगेश के सिर पर दे मारा. वह चीख कर वहीं ढेर हो गया.
तब तक पड़ोसियों ने पुलिस बुला ली थी. लता को गिरफ्तार कर लिया गया. वह रमेश बाबू से हाथ जोड़ते हुए बोली, ‘‘रमेश… बचा लो मुझे…’’
रमेश बाबू ने नफरत से मुंह घुमा लिया और गुजरिया से बोले, ‘‘तुम ने सही कहा था. साफसुथरे कपड़ों में भी घिनौने और नीच लोग रहते हैं… माफ करना बहन. मुझे अच्छेबुरे की पहचान ही नहीं थी.’’