Story In Hindi: मन में दुख के घनघोर बादल उमड़घुमड़ कर मेरे सारे वजूद को अपनी लपेट में ले लेते हैं. नींद मेरी आंखों से कोसों दूर है. हर रात मेरे साथ ऐसा ही होता है. उफ, यह रात क्यों मेरे घावों को कुरेदती है? दिन के उजाले में जब घाव कुछ भरने लगते हैं, तो काली रात उसे हरा कर देती है. मैं क्या करूं? कैसे आसिफ से कहूं कि रात आते ही मेरे घाव हरे हो जाते हैं. और… और उन घावों में इतनी सड़न होती है कि मेरा दम घुटने लगता है. मुझे खुद ही नफरत होने लगती है. मन करता है कि खुद को अभी, इसी समय खत्म कर डालूं. मेरे दिलोदिमाग में एक हलचल सी मच जाती?है, पर मैं चाह कर भी खुद को नहीं मिटा पाती. वैसे, मैं मरने से नहीं डरती…
लेकिन क्या करूं मुझे जीना पड़ रहा है. अपने लिए नहीं, अपने मासूम फारान और अपनी नन्ही सी बेटी के लिए. और… और अरसलान के लिए. मैं चाह कर भी अरसलान से कुछ नहीं कह पाती? ‘क्या मैं बेवफा हूं?’ यह सवाल मेरा दिल मुझ से करता. ‘नहीं, हरगिज नहीं. मैं बेवफा नहीं हूं. फिर मैं…’ अरसलान को सबकुछ क्यों नहीं बता देती? काश, मैं अपने अंदर इतना हौसला पैदा कर पाती कि अरसलान के सीने में सिर छिपा कर उन से सबकुछ बता दूं, ताकि मेरे सीने पर रखा बोझ कुछ हलका हो जाए. मैं चैन की सांस ले सकूं. अरसलान मुझे बहुत प्यार करते हैं. मैं उन की बीवी हूं. वे जरूर मुझे माफ कर देंगे. और फिर इस में मेरा कुसूर ही क्या?है? मैं ने जानबूझ कर तो कोई गुनाह किया नहीं. तो क्या अरसलान मुझे माफ कर देंगे? क्या सबकुछ जानने के बाद भी वे मुझे पहले सा प्यार देंगे? क्या वे फारान को… हां, फारान मेरा मंझला बेटा है, पर सिर्फ मेरा ही, अरसलान का नहीं. नहीं, मैं अरसलान से कुछ भी नहीं कहूंगी. वे मर्द हैं… और मर्द… कभी यह बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस की पत्नी के साथ… मैं क्या करूं? बीते समय के जंगल से गुजरने लगो, तो काफी घनी झाडि़यां मिलती हैं. फिर भी रास्ता बनता चला जाता है.
एक के बाद एक सिलसिलेवार कडि़यां मिलती चली जाती हैं. रास्ते खुले नजर आने लगते हैं. सचमुच बीता समय कितना खूबसूरत होता है. यही समय तो इनसान की सब से बड़ी कमजोरी और सचाई है. ऐसे समय की खुशनुमा बातें जिंदगी की सब से खूबसूरत चीज होती हैं, जबकि बुरा समय सीने में दफन रह कर भी हर पल चुटकियां लेता रहता?है. मैं हर रात को अपना बीता समय दोहराती हूं, याद रखने के लिए या भूल जाने के लिए. मुझे हर पल अपने बीते समय की एकएक बात याद आती रहती?है. अगर न याद करूं, तो शायद जिंदा ही न रह सकूं. इन का एकएक पल मेरी सांसों की तरह मेरे अंदर महफूज है, जो हर वक्त मुझे तड़पाता है, रुलाता है, जलाता है और पलपल मुझे एहसास दिलाता है कि मैं एक बेदाग औरत नहीं हूं. मेरे अंदर कुछ टूट कर बिखर जाता है. एक हूक सी उठती?है. काश, मेरी जिंदगी में वे मनहूस पल आए ही नहीं होते. मेरी इज्जत दागदार नहीं हुई होती. आज सबकुछ होते हुए भी मेरे पास कुछ नहीं है, क्योंकि मैं अपनी इज्जत लुटा चुकी हूं.
अगर औरत के पास इज्जत नहीं तो कुछ भी नहीं. मैं ने उस कमजोर समय में औरत के बेदागपन को दागदार कर दिया. मेरे दागदार समय को कोई नहीं जानता, सिवा मेरे और उस के, जो अब दुनिया में नहीं है, इसलिए मेरा बीता समय मेरे पास अमानत के रूप में दिलोदिमाग में दफन है. आज मैं इस बोझ को अपने दिलोदिमाग से उतार फेंकना चाहती हूं. आसिफ, जो कभी मेरी जिंदगी था, के बगैर मेरा जीना मुश्किल था. मैं और आसिफ इतने आगे बढ़ चुके थे कि पलटना बहुत मुश्किल था. हमारे बीच न दौलत की दीवार खड़ी थी, न जातबिरादरी की और न ऊंचनीच की. हम मुहब्बत से बहुत खुश थे. जिंदगी बहुत मजे में कट रही थी. हम ने मिल कर ढेर सारे सपने संजोए थे.
उन दिनों जिंदगी काफी खूबसूरत लगती थी. मैं और आसिफ उस रैस्टोरैंट के बरामदे में लगे जूही के मंडवे तले घंटों बातें किया करते थे, वादे करते, कसमें खाते, साथसाथ जीने और मरने की बातें करते. एक दिन अब्बू ने मेरी शादी अरसलान से तय कर दी. उन दिनों आसिफ फौज की ट्रेनिंग पर गया हुआ था. मैं बुजदिल लड़की तब कुछ बोल नहीं सकी. मैं ने उसे मोबाइल पर फोन करने की कोशिश भी की, पर पता चला कि वह उस इलाके में है, जहां नैटवर्क भी नहीं चलता और सिर्फ सैटेलाइट फोन से सेना वाले काम करते हैं. मैं विरोध कैसे करती. जब तक आसिफ साथ न हो, मैं कैसे अब्बूअम्मां के सामने झोली फैला सकती थी. छिपछिप कर रोती रही. अपनी बरबादी का दुख मनाती रही. बस, एक उम्मीद थी कि शायद आसिफ ही आ कर कुछ करे. मैं ने आसिफ के पास चिट्ठी भी लिख दी. आसिफ का जवाब 2-3 महीने बाद आया, ‘मुहब्बत की आखिरी मंजिल शादी नहीं होती. मुहब्बत का मजा तो एकदूसरे को खोने में है, पाने में नहीं. हम ने एकदूसरे को चाहा जरूर है, मगर जरूरी नहीं कि जिस चीज को इनसान चाहे, वह उसे मिल ही जाए. ‘तुम सबकुछ भूल जाओ.
समझ लेना कि हम ने गुडि़यागुड्डे का खेल खेला था. तुम जानती हो कि तुम्हारे पिता कितने जिद्दी हैं. वह अपनी इज्जत पर आंच नहीं आने देंगे, बल्कि बेटी को इज्जत के लिए कुरबान कर देंगे. ‘यही समय की जरूरत है. कुछ भी सोचना या चिंता करना बेकार है. समय बहुत गुजर चुका है. तुम्हारे पिता अरसलान के बाप को जबान दे चुके हैं. मुझे भूल जाओ, इसी में तुम्हारी भलाई है.’ मैं रोती रही. मेरे आंसू पोंछने वाला कोई नहीं था. एक दिन मेरे सपनों का जनाजा डोली के रूप में निकला. मैं ने भी हालात से समझौता कर लिया. यहां तक कि मैं एक बच्चे की मां बन गई.
मैं अपने बेटे शायान के प्यार में धीरेधीरे अपने बीते समय को भूल बैठी. अरसलान ने मुझे इतना प्यार दिया कि कभीकभी मुझे अपने ऊपर गुस्सा आता कि मैं कैसी बीवी हूं. इतना अच्छा पति प्यार करने वाला मिला?है. उस पर भी मैं उसे याद करती हूं, जिस ने ‘गुडि़यागुड्डे का खेल’ कह कर मेरी भावनाओं को करारी चोट पहुंचाई?है. मैं सचमुच अपने घर, अपने शौहर और शायान में ऐसी खोई कि फिर पलट कर कभी उस रैस्टोरैंट को नहीं देखा, जहां जूही लगी थी. वक्त अपनी रफ्तार से दौड़ता रहा. अरसलान दफ्तर के काम से दौरे पर जाने वाले थे. मैं भी बहुत दिनों से नैहर नहीं गई थी. अरसलान मुझे मेरे मायके छोड़ कर दौरे पर चले गए. मैं बहुत दिनों बाद अपने अब्बू के घर आई थी. यहां मुझे आसिफ के साथ गुजारे गए समय की याद आने लगती, तो मैं परेशान हो उठती. तभी आसिफ वापस भी आ गया. वह फौजी वरदी में बहुत शानदार लग रहा था. उसे देखते ही मेरे मन में कड़वाहट भर आई. मैं हर समय उस से दूर रहने की कोशिश करती. मगर, मैं उस से जितना दूर भागती,
वह मेरे उतना ही करीब रहने की कोशिश करता. बारबार ह्वाट्सएप पर मैसेज भेजता, ‘एक बार तो मिल लो.’ एक दिन उसे मुझ से बातचीत करने का मौका मिल ही गया. मैं बाद में उसी जूही के मंडवे तले बैठी थी. शायान सो चुका था. अम्मी भी सोई हुई थीं. पिताजी मुकदमे की पेशी के सिलसिले में 2 दिनों के लिए बाहर गए हुए थे. शाम के 7 बजने वाले थे. अंदर कमरे में उमस थी. मैं चुपके से रैस्टोरैंट में चली गई. वहां जूही के पेड़ के नीचे बैठ गई. उस पर बेशुमार सफेदसफेद फूल खिले हुए थे, जिन की खुशबू आसपास फैली हुई थी. अजीब सा माहौल था. कुछ पुरानी यादें, कुछ फूलों की भीनीभीनी खुशबू. इन सब ने मेरे अंदर एक हलचल सी मचा दी थी. हवा ठहरठहर कर चल रही थी. जब हवा चलती, तो फूल जमीन पर बिखर जाते. जमीन जूही के फूलों से भरी पड़ी थी. मैं ने मुट्ठीभर फूलों की पंखुडि़यां उठा कर अपनी गोद में रख लीं, तभी अचानक आसिफ मेरे बिलकुल नजदीक आ कर खड़ा हो गया. उसे देखते ही मैं संभल कर बैठ गई. ‘‘मुझे मालूम था कि तुम यहीं होगी. नाराज हो क्या?’’
‘‘नहीं.’’ ‘‘तो फिर मुझ से कतराती क्यों हो? मेरे मैसेजों पर रिप्लाई क्यों नहीं करतीं?’’ ‘‘आसिफ, अब मेरी शादी हो चुकी है. अब तुम से मेरा क्या वास्ता?’’ ‘‘कहीं प्यार के पल भी भुलाए जा सकते हैं? उन्हें भुलाना इतना आसान नहीं होता.’’ ‘‘नहीं आसिफ, मैं ने अपने बीते समय को बिलकुल भुला दिया है. मैं अपनी दुनिया में बहुत खुश हूं. मैं एक वफादार बीवी हूं. मेरे पति ने मुझे सबकुछ दिया है. मैं ने सच्चे दिल से अपने पति को स्वीकार कर लिया है. मैं ने सबकुछ पीछे छोड़ दिया है आसिफ.’’ ‘‘राहेला, मैं तुम्हारा कुसूरवार हूं, पर मैं ने अपने दिल पर पत्थर रख कर तुम्हारे पिता की इज्जत के लिए कहा था, क्योंकि मैं उन्हें खूब जानता हूं. आखिर वे हैं मेरे चाचा ही न. उन से यह कहने की हिम्मत मुझ में नहीं थी कि मैं राहेला को अपनाना चाहता हूं. ‘‘मैं बुजदिल था राहेला. आज मुझे अपनी हार महसूस हो रही है. यह चुप्पी मेरा दम घोंटती है. मेरे अंदर कुछ टूट कर बिखर जाता है. अब मेरी हिम्मत जवाब दे गई है. ‘‘तुम ही बताओ, पानी नहीं मिल पाने के चलते सूख गईं जड़ों को उखड़ने में समय नहीं लगता है? मुझे माफ कर दो राहेला. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं.
‘‘राहेला, इतनी बेरुखी मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा. वैसे भी एक फौजी की जिंदगी का क्या भरोसा? अगली बार मोरचे पर से लौट पाऊंगा भी या शहीद हो जाऊंगा, कुछ मालूम नहीं. अगर तुम ने मुझे माफ नहीं किया, तो मैं बहुत शर्मिंदा होऊंगा.’’ आसिफ मेरे नजदीक बैठ कर जूही की टूटी पंखुडि़यों से खेल रहा था. उस के चेहरे पर अजीब सी उदासी छाई हुई थी. वह मेरे इतने करीब बैठा था कि मेरा दिल धकधक करने लगा. ‘‘राहेला, मुझे माफ नहीं करोगी?’’ उस की आवाज में दुनिया का दर्द समाया हुआ था. उस ने मेरा हाथ थाम लिया. मैं अरसलान को भूल गई. बेटे शायान को भी भूल बैठी. आसिफ मेरे बालों में धीरेधीरे अपनी उंगलियां फेर रहा था. उस की गरम सांसें मुझे पिघलाए दे रही थीं. जूही के मंडवे तले हम दुनिया से बेखबर बैठे थे. ‘‘राहेला,’’ उस ने मुझे धीरे से पुकारा. उस की आवाज मुझे बहुत दूर से आती महसूस हुई. ‘‘हां,’’ मैं ने भी धीरे से कहा. ‘‘मैं अगर मर गया तो…?’’ उस ने बात अधूरी छोड़ दी. मैं खामोश रही. हम दोनों पर शैतान हावी हो चुका था.
आसिफ ने मुझे अपनी बांहों के घेरे में कैद कर लिया. मैं छटपटाई, क्योंकि हम ने पहले कभी ऐसी हरकत नहीं की थी. हमारी मुहब्बत बेदाग थी. रात हो गई थी. रैस्टोरैंट का मालिक भी जा चुका था. उस ने हमें देखा ही नहीं. उसी जूही के मंडवे तले हम कहां से कहां निकल गए… हकीकत से दूर भावनाओं की दुनिया में हम बहते चले गए. जूही के फूलों की चादर हमारी बिछावन बनी थी. जब भावनाओं का बुखार उतरा, तो मैं घबरा गई. मुझे उन बिखरे फूलों की पंखुडि़यों की चादर औरत की इज्जत का कफन लगने लगी. मैं अपनी नजरों में गिर गई. मुझे खुद से नफरत हो गई. फिर मैं ने आसिफ का सामना नहीं किया. अरसलान के आने से पहले ही मैं पिता के साथ लखनऊ चली गई. उस नाजुक समय में मुझ से अनजाने में जो गलती हुई थी, उसे मैं अपने दिल में तो छिपाए रही,
पर मेरा मन घुटता रहता. हर समय मैं अपनी उस गलती की आग में जलती रहती. अरसलान करीब 15 रोज बाद लौटे. कुछ दिनों के बाद मुझे अपने अंदर एक पौधे के पनपने का एहसास हुआ. मैं घबरा उठी. ओह, यह कैसी सजा मुझे मिली है. मैं 2 महीने तक अरसलान से यह बात छिपाए रही, फिर जब मेरा जी मिचलाने लगा, तो घर में मेरी बूढ़ी सास की आंखों में चमक आ गई. मुझे ले कर ननद डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने नए मेहमान के आने की सूचना दे दी. सभी खुश थे. मेरी सास को बच्चों से बेहद प्यार था. वे चाहती थीं कि उन के बहुत सारे पोते हों. वक्त आने पर मैं ने अपने दूसरे बेटे फारान को जन्म दिया. फारान अरसलान की आंखों का तारा है.
आसिफ एक आतंकवादी मुठभेड़ में शहीद हो चुका है. वह जातेजाते अपनी निशानी दे गया और साथ में मुझे शर्मिंदा भी कर गया. मैं सोचती हूं कि अरसलान को अपना गुनाह बता कर कुछ बोझ हलका कर लूं… पर, क्या फिर अरसलान मुझे पहले जैसा प्यार देंगे? क्या वह मुझ से नफरत नहीं करने लगेंगे? शायद करेंगे… मैं औरत हूं न, इसी लिए. मेरा गुनाह माफ नहीं किया जाएगा. समय कितना आगे निकल गया और मैं कितनी पीछे रह गई. अपनी गलतियों से मेरे बीते समय के साथ. मैं हकीकत हूं या सपना? मैं सिर्फ औरत हूं, सिर्फ औरत. जिस की जिंदगी सिर्फ प्याज के समान है, जो कुतरतेकुतरते खत्म हो जाती है. जिन की आंखें गीली लकडि़यां सुलगाने के बहाने गीली होती रहती हैं. मैं सोचती हूं, क्या बता दूं? नहीं, क्योंकि मैं एक औरत हूं.
हम जिंदगी के किसी भी मैदान में चाहे कितनी ही बड़ी जीत हासिल कर लें, फिर भी कभी कोई बदलाव नहीं ला सकते. शायद मेरी जिंदगी में घुटन ही घुटन है, जो मेरी जिंदगी के साथ ही खत्म होगी. हर मोड़ पर, हर दोराहे पर औरतपन की दीवार हमारे आगे सीना तान कर खड़ी है. तो क्या मैं मौत को अपने गले लगा लूं? नहीं. मैं ने एक नजर अपने तीनों बच्चों पर डाली, जो बेखबर सोए हुए हैं. मेरी नजरें अरसलान पर जा टिकी हैं. वे सोते में भी मुसकरा रहे हैं. यह मेरा घर है. खुशियों, मुहब्बतों, उमंगों, चाहतों से भरपूर. इस नगरी में मासूम मुहब्बतें बिखरी पड़ी हैं. मुझे खुद ही सब सहना होगा, मुसकरा कर, हंस कर, खुशीखुशी. यह बात मेरा दिल खुशियों से भरे इस घर को देख कर कह रहा है. Story In Hindi