Story in Hindi
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ये लो संभालो अपना माल’’ कहते हुए पुलिस वाले ने सिबली को अन्ना की तरफ धकेल दिया, अन्ना और पुलिस इंस्पेक्टर एकदूसरे की तरफ देख कर मुसकराने लगे. ‘‘क्या इनाम चाहिए तुम्हें इंस्पेक्टर?’’ अन्ना ने पूछा. ‘‘बस इस माल को एक बार चखवा दो तो मजा आ जाए.’’ ‘‘तुम ने कुछ ज्यादा ही मांग लिया इंस्पेक्टर रमेश… अभी तो इसे और वीआईपी लोगों के पास जाना है उस के बाद ही जा कर तुम लोगों को नंबर आएगा,’’ एक भद्दी सी हंसी हंसते हुए अन्ना ने कहा. सिबली को एक कमरे में बंद कर दिया गया और शाम को अन्ना के गुर्गों ने सिबली को खूब मारा और रस्सी में बांध कर डाल दिया. ‘‘आगे से कभी भागने की कोशिश भी करी तो अंजाम ठीक नहीं होगा,’’ एक गुर्गे ने कहा सिबली के आसपास छोटी उम्र की लड़कियां भी थी. उन के खानेपीने का ध्यान रखने के लिए अन्ना के गुर्गे थे जो जबरदस्ती सभी लड़कियों को खाना खिलाते पर सिबली का मन खानेपीने में न लगता, पर सिबली का मन तो आजादी चाहता था इस दलदल से निकलना चाहती थी वह, सिबली लगातार इस कैद से निकलने के बारे में सोचती पर अन्ना के गुर्गों की कैद से निकलना संभव नहीं था.
एक दिन सिबली को अहसास हुआ कि वहां पर उस की जैसी और लड़कियां भी हैं, उन की देखभाल और उन पर निगरानी रखने के लिए विशाखा नाम की एक भद्दी सी दिखने वाली महिला भी है जिसे संस्था की सेक्रेटरी के नाम से जाना जाता?है लड़कियों को जिस्मफरोशी के लिए वहां रखा हुआ?है और बारीबारी उन्हें भी ग्राहकों के पास भेजा जाता है .सिबली कई बार सोचती कि इन लड़कियों से बात करी जाए पर गुर्गों की तैनाती में ऐसा नहीं हो सका. कुछ दिन तो ‘सीप के मोती’ में कोई बड़ी हलचल नहीं हुई .फिर एक दिन अचानक से अन्ना और उस के गुर्गों की गतिविधि तेज हो गई, अन्ना ने आ कर कहा. ‘‘कल यहां हमारे शहर के बड़े उद्योगपति ‘महाराजजी’ आ रहे हैं, विदेश तक उन की दवाइयों और अन्य उत्पादों का बिजनेस फैला हुआ है वे हमारी संस्था का रखरखाव देखेंगे ,याद रहे तुम सब के चेहरे पर खुशी और चमक दिखनी चाहिए और सब को साफसुथरे रूप में रहना होगा, वे महाराजजी बोलते कम हैं अधिकतर मौन में ही रहते है इसलिए उन्हें शिकायत का कोई मौका नहीं मिलना चाहिए… समझ गई न सब ‘‘अन्ना ने सब की तरफ देखते हुए कहा. ‘सीप के मोती’ की सफाई करी जाने लगी और सभी लड़कियों को साफसुथरे कपड़े भी दिए गए वैसे अन्ना दलाल तो था पर कुछ मामलों में उस के काम करने का अंदाज बिलकुल अलग था, वह अपने चंगुल में फसी लड़कियों से धंधा कराता पर उन की कई बातों का ध्यान भी रखता था मसलन उन के शरीर की साफसफाई, उन के खाने पीने का इंतजाम और उन का शरीर सही शेप में होना चाहिए भले ही ऐसा करने के पीछे उसे अपना धंधा सही तरीके से चलाने की नीति थी.
अगले दिन कमरों के बाहर फूलों से सजावट करी गई और रूम फ्रेशनर किया गया, आज ‘सीप के मोती’ को तो पहचानना मुश्किल हो रहा था. दोपहर में महाराजजी का आना हुआ, वे धोती और कुरता पहने हुए थे, उन का चेहरा भी उन के गंजे सिर की चमचमा रहा था, उन के साथ में उन के बौडीगार्ड भी थे, महाराजजी लड़कियों को देख कर मुसकरा रहे थे, और अपने हाथ से हर किसी को एक बंद लिफाफे में कुछ पैसे भेंट के तौर पर दे रहे थे. महाराजजी सिबली के पास पहुंचे, मुसकराती नजरों से उन्होंने उस की आंखों में झांका और फिर अन्ना की तरफ देखा, अन्ना उन का इशारा समझ गया था. कुछ देर बाद महाराजजी सब का अभिवादन कर के चले गए, अन्ना सीधा सिबली के पास आया और बोला. ‘‘सुन… महाराजजी ने अपनी सेवा के लिए तुझे चुना है… समझ गई न… अब अच्छे से तैयार हो जा …अगर महाराजजी को खुश कर दिया तो ढेर सारे पैसे मिलेंगे.’’ खुश हो रहा था अन्ना. सिबली ने अपने दुर्भाग्य को किसी हद तक स्वीकार भी कर लिया था भले ही उस के मन में अब भी यहां से मुक्ति पाने की आशा जीवित थी इसलिए वह भारी मन से तैयार होने लगी. शाम ढल चुकी थी, बीस लड़कियों के बीच में से महाराजजी ने सिबली को अपनी सेवा के लिए पसंद किया था, अन्ना खुद ही गाड़ी चला कर सिबली को महाराजजी की कोठी पर छोड़ आया था.
सिबली कमरे में चुपचाप बैठी हुई थी, कुछ देर बाद महाराजजी कमरे में आए, आज तो उन का पूरा रूप ही बदला हुआ था इस समय वे धोती कुरता की बजाय एक महंगे गाउन में नजर आ रहे थे, महाराजजी सिबली को गहरे जा रहे थे. ‘‘मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा… लेकिन मैं बहुत थका हुआ हूं… बस तुम पूरी रात मुझ से चिपक कर लेटोगी तो मेरी थमान अपने आप दूर हो जाएगी,’’ महाराजजी ने कहा और झटके से अपना गाउन नीचे गिरा हुआ. महाराजजी ने अपने नंगे बदन पर महिलाओं के अंत: वस्त्र पहने हुए थे वे किसी महिला की तरह ही बरताव लगे और सिबली को सीने से लगा लिया. ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरे साथ शराब पियो,’’ एक गिलास सिबली के होंठों से सटाते हुए महाराजजी ने कहा. अभी उन का गिलास पूरा भर भी नहीं पाया था कि उन का मोबाइल बज उठा. ‘‘कितनी बार कहा कि जब मैं आराम कर रहा हूं तो मुझे डिस्टर्ब मत किया करो.’’ ‘‘पर हमारे कारखाने पर एक मीडिया कर्मी ने स्टिंग आपरेशन किया है. जहां उस ने हमारी बिजनेस की आड़ में होने वाले नशीली दवाइयों का धंधा का पर्दाफाश कर दिया है और अब मीडिया वाले आप के घर के बाहर पहुंच चुके हैं.’’ सेक्रेटरी घबराया हुआ बोले जा रहा था. ‘‘ओह… सारे मूड का सत्यानाश कर दिया’’ ये कह कर महाराजजी अपने कपड़े पहन कर बाहर की ओर भागे. सिबली ने भी बाहर देखा, वहां अफरातफरी मची हुई थी, मीडिया वालों ने चारों तरफ से घेर रखा था, उसे लगने लगा था कि उस के पास अच्छा मौका है भागने का, वह नीचे की ओर भागी, महाराजजी अपने आप को संयत रख कर मीडिया वालों को शांत करने में लगा हुआ था. इस अफरातफरी का पूरा फायदा सिबली ने उठाया और सब की नजर से बचती हुई बाहर आ गई बहुत दिन बाद एक ताजी हवा के झोंके ने उस के बदन को छुआ था, वह तेजी से कदम बढ़ा रही थी उसे लगा कि अब वे अन्ना के चंगुल से आजाद हो गई है .पर उस का ये ख्याल गलत साबित हुआ क्योंकि अन्ना ठीक सिबली के सामने खड़ा हुआ था.
‘‘आज तू ने फिर भागने की कोशिश की तू ने कैसे सोच लिया कि मैं तुझ को अकेला छोड़ कर चला जाऊंगा अब इस का नतीजा तुझे भुगतना पड़ेगा,’’ अन्ना ने सिबली को पकड़ कर अपनी गाड़ी में बिठाया और गाड़ी थाने की ओर बढ़ा दी और अपने कान से फोन पर बात करने लगा. ‘‘इंस्पेक्टर साहब… मैं अपने साथ माल ले कर थाने के बाहर खड़ा हूं बाहर आ कर गाड़ी में ही अपनी प्यासबुझा लो फिर मत कहना कि अन्ना ने अपना वादा नहीं निभाया.’’ ‘‘इंस्पेक्टर सिबली को गाड़ी के अंदर रौंद रहा था सिबली के आंसू लगातार आंखों से झर रहे थे और अन्ना बाहर खड़ा हुआ मुसकराए जा रहा था, जब इंस्पेक्टर रमेश के अंदर का तूफान थमा तो अन्ना ने गाड़ी स्टार्ट करी और सिबली को ले कर संकरी गलियों वाली जगह पहुंचा और घसीटता हुआ एक मकान में ले गया कमरे में बैठी हुई एक औरत के पास सिबली को धकेलते हुए बोला. ‘‘अब इस को ले… एकदम नया आइटम है पर मेरे किसी काम का नहीं… वीआईपी लोगों ने इसे चख लिया है और वैसे भी साली ने नाक में दम कर रखा है और मुझे इस की कीमत दे दे.’’ उस औरत ने अन्ना को पैसे दिए और अन्ना वहां से चला गया. कई साल निकल गए पर सिबली यहां से न निकल सकी. चाय खत्म हो चुकी थी, मुमताज भी उठ कर जा चुकी थी. बाहर सड़कों पर कर्फ्यू में ढील दे दी गई है, लोग सड़कों पर आवाजाही कर रहे हैं और कोठे पर भी ग्राहक आने लगे हैं और इन आतेजाते लोगों के साथ सिबली की इस दुनिया के चंगुल से आजाद होने की सारी उम्मीदें खत्म हो गई हैं. अन्ना अक्सर ही यहां आता है किसी न किसी लड़की को साथ में ले कर…, हर एक आती हुई लड़की में सिबली अपनी झलक देखती है पर कुछ कर नहीं पाती सिर्फ आंसू बहा कर रह जाती है, उस की आंखों से आंसू ऐसे झरते है जैसे मोती झर रहे हो… ‘सीप के मोती.’
सिसक पड़ी थी सिबली. अन्ना की हरकतें बढ़ती गईं. वह सिबली के बदन से कपड़े उतारने लगा. सिबली रो पड़ी और अपने सीने को ढकने की कोशिश की, पर अन्ना ने बेदर्दी से उस के हाथों को मरोड़ते हुए उस के सीने को खोल दिया. सिबली ने बहुत विरोध किया, पर एक ताकतवर मर्द के सामने उस की एक न चली. अन्ना सिबली के नंगे बदन को गिद्ध जैसी आंखों से घूर रहा था. सिबली रोए जा रही थी. अचानक से अन्ना उस से दूर हट गया और अपने मोबाइल के कैमरे से सिबली के नंगे शरीर के फोटो लेने लगा. कभी आगे से तो कभी पीछे से, कभी सीने के फोटो उतारता, तो कभी उस की पीठ की. अन्ना ने सिबली के फोटो उतार कर उस से कपड़े पहनने को कहा और खुद एक कोने में बैठ कर वे तसवीरें किसी को ह्वाट्सएप पर भेज दीं और जवाब का इंतजार करने लगा. सिबली भी एक कोने में दुबक गई थी.
कुछ देर बाद अन्ना का मोबाइल बज उठा. ‘‘जी सर, बताइए… माल पसंद आ गया न?’’ शायद उधर से बात करने वाले ने माल की क्वालिटी पसंद कर ली थी, तभी अन्ना खुश हो गया था. ‘‘सुन… साहब को तेरा जिस्म पसंद आ गया है. मैं तुझे उन के पास ले जाने के लिए आधे घंटे में आऊंगा, तब तक तू अच्छी तरह से रगड़ कर नहा ले और ये नए कपड़े पहन लेना… याद रख… अगर तू ने साहब को खुश कर दिया, तो हम मालामाल हो जाएंगे,’’ अन्ना की आंखों में एक चमक थी. शहर में सत्ताधारी बड़े नेता, जो अपने पद, इज्जत और पहचान के चलते बाहर की औरतों से सैक्स करने के लिए कोठों पर नहीं जा सकते थे, उन के लिए ही अन्ना एक जादू के जिन्न की तरह काम करता था. अन्ना नाम का यह आदमी गरीब, अनाथ और पिछड़े तबके की औरतों के लिए ‘सीप के मोती’ नामक एक स्वयंसेवी संस्था चलाता था, पर असलियत कुछ और ही थी. अन्ना का काम था कसबों और गांवों से मजदूर, पिछड़ी और गरीब लड़कियां ला कर इन नेताओं के जिस्म की जरूरत पूरी करना. वह लड़कियां लाता और मोबाइल से उन के नंगी फोटो नेताओं को भेजता और पसंद आने पर बताए गए पते पर लड़कियों को पहुंचाता था. अन्ना लड़कियों की दलाली करता था. उस ने सिबली के साथ भी वही किया. वह सिबली को ले कर शहर से थोड़ा बाहर बने एक मकान में गया.
सफेद कुरतापाजामा पहने एक नेता सोफे में धंसा हुआ शराब की चुसकियां ले रहा था. उस ने सिबली की पीठ पर हाथ फेरा. ‘‘अरे, घबराओ नहीं… हम लड़कियों की भलाई के लिए काम करने वाले नेता हैं. हम तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं करेंगे… हमारा स्वाद कुछ दूसरा ही है,’’ एक जहरीली मुसकराहट नेता के चेहरे पर थिरक उठी थी. उस कमरे में सिबली और उस सत्ताधारी नेता के अलावा और कोई भी नहीं था. नेता ने शराब का एक घूंट अपने मुंह में भरा और सिबली के सीने पर उगल दिया और फिर अपनी जीभ निकाल कर कुत्ते की तरह चाटने लगा. सिबली ने अपनी मुट्ठियां गुस्से से भींच लीं. वह नेता के चंगुल से चाह कर भी आजाद नहीं हो पा रही थी, पर अचानक नेता ने सिबली को पलट कर एक सोफे पर टिका दिया और उस के हाथपैर बांध दिए. ‘‘देख लड़की, मैं तेरे जिस्म को हाथ तक न लगाऊंगा, बस तू अपने मुंह से सैक्सी आवाज निकालती रह, जैसी अंगरेजी फिल्मों में निकालते हैं,’’ इतना कहने के साथ नेता ने सिबली की सलवार को नीचे खींच दिया और उस के नंगे कूल्हों पर अपनी बैल्ट से एक के बाद एक प्रहार करने शुरू कर दिए. नेता सिबली से हर प्रहार के बाद वासनात्मक आवाज की उम्मीद कर रहा था, पर सिबली कोई वेश्या तो थी नहीं, जो ऐसा करती. वह 16 साल की लड़की उस के हर प्रहार पर रोने लगी. उस का रोना नेता को बुरा लग रहा था. सि‘‘साली… तू ऐसे नहीं मानेगी… मैं तो सोच रहा था कि तेरा बलात्कार न करूं पर तू ऐसे नहीं मानेगी,’’ नेता ने सिबली के बंधनों को आजाद तो कर दिया पर उस के कोमल शरीर को अपने भारी भरकम शरीर के नीचे दबा दिया और उस के शरीर में समा गया और उसे तब तक दबाए रखा जब तक उस नेता को यौन संतुष्टि नहीं मिल गई. नेता एक ओर लुढ़क गया था, कुछ देर बाद वह उठा और शराब के कई जाम अपनी हलक के नीचे उड़ेल लिए और कुछ देर बाद गहरी नींद में सोने लगा.
सिबली को जब होश आया तो पौ फटने को थी, उस ने देखा नेता बेसुध पड़ा हुआ है और बाहर उस के गुर्गे भी नहीं है, उसे मानो इसी द्रश्य की प्रतीक्षा थी, सिबली ने जल्दी से कपड़े पहने और दरवाजा खोला और सीधे किसी तीर की तरह सड़क पर भागने लगी. सिबली कितना पैदल चली, कितना दौड़ी उस का उसे अहसास भी नहीं था वह तो बस किसी मदद की तलाश में थी, सामने से पुलिस की पेट्रोलिंग जीप दिखाई दी तो सिबली के प्राण जाग उठे वह पूरी ताकत से उसे रुकने का इशारा करने लगी. ‘‘मुझे बचा लीजिए साहब… मुझे बचा लीजिए,’’’’ चीक पड़ी थी सिबली. ‘‘क्या हुआ… क्यों चीख रही है तू’’ इंस्पेक्टर ने पूछा. सिबली एक ही सांस में सब बताती चली गई. और पुलिस द्वारा दोषी का नाम पूछे जाने पर सिबली ने अन्ना का नाम बताया. ‘‘अन्ना की ये हिम्मत… बारबार समझाए जाने पर भी वे हरकत से बाज नहीं आता,’’ ये कह कर पुलिस ने सिबली को अपने साथ बिठा लिया और अन्ना के अड्डे की तरफ जीप बढ़ा दी. कुछ देर बाद जीप अन्ना के अड्डे के सामने थी, इंस्पेक्टर अपने साथ सिबली को ले कर अंदर गया. ‘‘तुम घबराओ नहीं… हम अभी अन्ना को सबक सिखाते हैं,’’ इंस्पेक्टर ने कहा. पुलिस वाले अन्ना के सामने खड़े थे. ‘‘सुना है तुम गरीबों को सताते हो और आजकल नेताओं को लड़कियां सप्लाई करने लगे हो’’ इंस्पेक्टर अन्ना से बोला, उस की इस बात पर अन्ना घबरा सा गया. ‘‘अपने आप को जिस्मों का दलाल कहते हो तुम्हारा धंधा यहां से ले कर अरब देशों तक फैला हुआ है पर एक लड़की तो तुम से संभाली नहीं जाती.
सिबली अपने कमरे में एक छोटी सी खिड़की से बाहर देख रही थी. ऐसी छोटी खिड़की जो पूरी तरह शीशे से बंद थी और उस से बाहर की ओर तो देखा जा सकता था, पर बाहर से अंदर की ओर नहीं देखा जा सकता था. वैसे भी बाहर देखने जैसा कुछ भी नहीं था. एक सन्नाटा सा छाया हुआ था. अंधेरे और सन्नाटे को पुलिस की गाड़ी का सायरन तेजी से चीर देता, क्योंकि आज शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था. सिबली के मन में थोड़ी खुशी भी थी. न जाने कितने दिनों के बाद उस के थके हुए शरीर को आराम मिलेगा, नहीं तो रोजाना 30-35 ग्राहक तो निबटाने ही पड़ते हैं.
मुमताज सिबली के लिए चाय बना कर लाई. सिबली ने मुसकरा कर शुक्रिया कहा और वे दोनों वहीं बैठ कर चाय पीने लगीं. ‘‘ऐ… सिबली… आजकल ये फिल्म वाले हम वेश्याओं की जिंदगी पर बहुत फिल्में बनाने लगे हैं,’’ खुश होते हुए मुमताज ने कहा. ‘‘बहुत कम फिल्मों में ही हमारी सचाई को दिखाया जाता है… बाकी फिल्मों में जैसा वे लोग हमारे बारे में दिखाते हैं न, असल जिंदगी में वैसा नहीं होता…’’ सिबली ने कहा. ‘‘अरे, वह सब छोड़… भला हमारी असली जिंदगी में फिल्में देखने के लिए समय कहां… यह मुआ कर्फ्यू हटे तो अपना कामधंधा जोर पकड़े तो मजा आए,’’ मुमताज ने कहा. ‘‘पर… मैं तो सोच रही थी कि कुछ और दिन यह कर्फ्यू लगा रहे तो इन दुखती रगों को थोड़ा आराम मिल जाता,’’ सिबली ने मुमताज से कहा. ‘‘पगला गई हो क्या… अगर कर्फ्यू लगा रहेगा तो हमारे पास ग्राहक नहीं आएंगे और अगर ग्राहक नहीं आएंगे, तो क्या खाएंगे हम? और तू क्या सोच रही है कि अन्ना हम लोगों को मुफ्त में बिठा कर खाना खिलाएगा,’’ मुमताज ने कहा. अन्ना का नाम सुनते ही सिबली का मुंह मानो कसैला सा हो गया. उस की आंखों में नफरत के भाव आ गए. सिबली अन्ना से बहुत नफरत करती थी. यही तो वह आदमी था, जो सिबली के इस हाल के लिए जिम्मेदार था. वैसे पूरी तरह से तो अन्ना भी जिम्मेदार नहीं था, सिबली की जिंदगी में कई ऐसे वाकिए थे, जो उस को यहां तक लाने की वजह बने. एक छोटे से कसबे में सिबली का घर था. घर में उस के मांबाप के अलावा उस के साथ 2 बहनें और रहती थीं. 3 बहनों में 16 साल की सिबली सब से बड़ी थी. सिबली का बाप एक हलवाई की दुकान पर मजदूरी करता था और मजदूरी से मिले हुए ज्यादातर पैसे वह शराब पीने में उड़ा देता था. इसलिए घर का खर्चा बामुश्किल ही चल पाता था.
कभीकभी तो सब को खाना खिलाने के बाद अम्मां और सिबली के लिए तो खाने के लिए कुछ भी नहीं बचता था. सिर्फ पानी पी कर ही सोना पड़ जाता था दोनों को. कसबे में कमला नाम की एक औरत रहती थी. वह हर समय पान का बीड़ा मुंह में दबाए रहती थी. कमला का शरीर लंबा तो था ही, साथ ही थोड़ा थुलथुला सा भी हो गया, जिस के चलते एक औरत होने के नाते उस का डीलडौल बहुत बड़ा लगने लगा था. कमला अकसर कसबे के मर्द लोगों से ही बात करती थी. कसबे में आनेजाने वाले सभी छोटेबड़े नेता भी कमला से ही मिलते थे और उस के घर पर ही चायपानी भी करते थे. शायद वह कोई चुनाव भी लड़ना चाहती थी. पिछले कई दिनों से कमला जब भी सिबली को देखती, तो उसे ऐसे घूरती जैसे उस के उभरते अंगों को टटोल रही हो. कमला वही रुक कर सिबली से कुछ बात भी करने की कोशिश करती, पर पता नहीं क्यों कमला को देख कर सिबली की त्योरियां चढ़ जातीं और वह कमला के पास न आती. उस दिन तो कमला सिबली के घर ही आ गई और बापू से पता नहीं क्या गुपचुप बात करने लगी. उस की बातों से सिबली का बापू पहले तो कुछ नाराज होता सा दिखा, पर फिर थोड़ा धीमा हो कर बात करने लगा. उस दिन के बाद से तो कमला हर दूसरे दिन सिबली के घर आती और उस के बापू के आने तक रुकती. इस बीच वह सिबली से अनेक तरह के सवाल किया करती. ज्यादातर तो उस के जवाब सिबली को पता ही नहीं होते थे. सिबली की मां भी कमला की लल्लोचप्पो में लगी रहती.
कमला ने यही कोई 20 दिन सिबली के घर के चक्कर लगाए. एक दिन सिबली के बापू उस से कहने लगे, ‘‘कमलाजी की लड़की शहर में नौकरी भी करती है और पढ़ाई भी… इसलिए हम लोग और कमलाजी भी चाहते हैं कि तू शहर जा कर नौकरी कर ले, तो हम लोगों के घर का खर्चा भी ठीक से चल जाएगा. और रही नौकरी और ठहरने की बात, तो वे सब इंतजाम कमलाजी खुद ही करा देंगी.’’ सिबली ने कभी सोचा भी नहीं था कि उस के अम्मां और बापू उस को किसी के हाथों बेच भी सकते हैं, पर यहां तो उस के मांबाप ने गरीबी के चलते और पैसों के लालच में अपनी ही बेटी को कमला के हाथों बेच दिया था. उसी दिन शाम की बस में कमला के साथ में सिबली को एक बैग में कपड़े दे कर बिठा दिया गया. कमला ने खिड़की से पीछे देखा तो उस के बापू के चेहरे पर खुशी और दुख दोनों ही भाव थे. कमला उसे ले कर ‘सीप के मोती’ नामक एक जगह पर पहुंची और अंदर आ कर कमला ने उसे एक कमरे में बिठा दिया और खुद बाहर से कुंडी चढ़ा कर चली गई.
थोड़ी देर बाद ही वहां पर एक लंबाचौड़ा और काला सा आदमी आया. यही अन्ना था. उस के साथ 2-3 गुरगे भी थे, जो उसे बातबात में बहुत इज्जत के साथ अन्नाजीअन्नाजी कह रहे थे. अन्ना सिबली को खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था. वह उस के पास आया और सिबली के सीने को मसलने लगा. सिसक पड़ी थी सिबली. अन्ना की हरकतें बढ़ती गईं. वह सिबली के बदन से कपड़े उतारने लगा. सिबली रो पड़ी और अपने सीने को ढकने की कोशिश की, पर अन्ना ने बेदर्दी से उस के हाथों को मरोड़ते हुए उस के सीने को खोल दिया.
सुबहसुबह रमेश की साली मीता का फोन आया. रमेश ने फोन पर जैसे ही ‘हैलो’ कहा तो उस की आवाज सुनते ही मीता झट से बोली, ‘‘जीजाजी, आप फौरन घर आ जाइए. बहुत जरूरी बात करनी है.’’
रमेश ने कारण जानना चाहा पर तब तक फोन कट चुका था. मीता का घर उन के घर से 15-20 कदम की दूरी पर ही था. रमेश को आज अपनी साली की आवाज कुछ घबराई हुई सी लगी. अनहोनी की आशंका से वे किसी से बिना कुछ बोले फौरन उस के घर पहुंच गए. जब वे उस के घर पहुंचे, तो देखा उन दोनों पतिपत्नी के अलावा मीता का देवर भी बैठा हुआ था. रमेश के घर में दाखिल होते ही मीता ने घर का दरवाजा बंद कर दिया. यह स्थिति उन के लिए बड़ी अजीब सी थी. रमेश ने सवालिया नजरों से सब की तरफ देखा और बोले, ‘‘क्या बात है? ऐसी क्या बात हो गई जो इतनी सुबहसुबह बुलाया?’’
मीता कुछ कहती, उस से पहले ही उस के पति ने अपना मोबाइल रमेश के आगे रख दिया और बोला, ‘‘जरा यह तो देखिए.’’
इस पर चिढ़ते हुए रमेश ने कहा, ‘‘यह क्या बेहूदा मजाक है? क्या वीडियो देखने के लिए बुलाया है?’’
मीता बोली, ‘‘नाराज न होएं. आप एक बार देखिए तो सही, आप को सब समझ आ जाएगा.’’
जैसे ही रमेश ने वह वीडियो देखा उस का पूरा जिस्म गुस्से से कांपने लगा और वह ज्यादा देर वहां रुक नहीं सका. बाहर आते ही रमेश ने दामिनी (सलेहज) को फोन लगाया.
दामिनी की आवाज सुनते ही रमेश की आवाज भर्रा गई, ‘‘तुम सही थी. मैं एक अच्छा पिता नहीं बन पाया. ननद तो तुम्हारी इस लायक थी ही नहीं. जिन बातों पर एक मां को गौर करना चाहिए था, पर तुम ने एक पल में ही गौर कर लिया. तुम ने तो मुझे होशियार भी किया और हम सबकुछ नहीं समझे. यहीं नहीं, दीपा पर अंधा विश्वास किया. मुझे अफसोस है कि मैं ने उस दिन तुम्हें इतने कड़वे शब्द कहे.’’
‘‘अरे जीजाजी, आप यह क्या बोले जा रहे हैं? मैं ने आप की किसी बात का बुरा नहीं माना था. अब आप बात बताएंगे या यों ही बेतुकी बातें करते रहेंगे. आखिर हुआ क्या है?’’
रमेश ने पूरी बात बताई और कहा, ‘‘अब आप ही बताओ मैं क्या करूं? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा.’’ और रमेश की आवाज भर्रा गई.
‘‘आप परेशान मत होइए. जो होना था हो गया. अब यह सोचने की जरूरत है कि आगे क्या करना है? ऐसा करिए आप सब से पहले घर पहुंचिए और दीपा को स्कूल जाने से रोकिए.’’
‘‘पर इस से क्या होगा?’’
‘‘क्यों नहीं होगा? आप ही बताओ, इस एकडेढ़ साल में आप ने क्या किसी भी दिन दीपा को कहते हुए सुना कि वह स्कूल नहीं जाना चाहती? चाहे घर में कितना ही जरूरी काम था या तबीयत खराब हुई, लेकिन वह स्कूल गई. मतलब कोई न कोई रहस्य तो है. स्कूल जाने का कुछ तो संबंध हैं इस बात से. वैसे भी यदि आप सीधासीदा सवाल करेंगे तो वह आप को कुछ नहीं बताएगी. देखना आप, स्कूल न जाने की बात से वह बिफर जाएगी और फिर आप से जाने की जिद करेगी. तब मौका होगा उस से सही सवाल करने का.’’
‘‘क्या आप मेरा साथ दोगी? आप आ सकती हो उस से बात करने के लिए?’’ रमेश ने पूछा.
‘‘नहीं, मेरे आने से कोई फायदा नहीं. दीदी को भी आप जानते हैं. उन्हें बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा. इस बात के लिए मेरा बीच में पड़ना सही नहीं होगा. आप मीता को ही बुला लीजिए.’’
घर जा कर रमेश ने मीता को फोन कर के घर बुला लिया और दीपा को स्कूल जाने से रोका,’’ आज तुम स्कूल नहीं जाओगी.’’
लेकिन उम्मीद के मुताबिक दीपा स्कूल जाने की जिद करने लगी,’’ आज मेरा प्रैक्टिकल है. आज तो जाना जरूरी है.’’
इस पर रमेश ने कहा,’’ वह मैं तुम्हारे स्कूल में जा कर बात कर लूंगा.’’
‘‘नहीं पापा, मैं रुक नहीं सकती आज, इट्स अर्जेंट.’’
‘‘एक बार में सुनाई नहीं देता क्या? कह दिया ना नहीं जाना.’’ पर दीपा बारबार जिद करती रही. इस बात पर रमेश को गुस्सा आ गया और उन्होंने दीपा के गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया. हालांकि? दीपा पर हाथ उठा कर वे मन ही मन दुखी हुए, क्योंकि उन्होंने आज तक दीपा पर हाथ नहीं उठाया था. वह उन की लाड़ली बेटी थी.
तब तक मीता अपने पति के साथ वहां पहुंच गई और स्थिति को संभालने के लिए दीपा को उस के कमरे में ले कर चली गई. वह दीपा से बोली, ‘‘यह सब क्या चल रहा है, दीपा? सचसच बता, क्या है यह सब फोटोज, यह एमएमएस?’’
दीपा उन फोटोज और एमएमएस को देख कर चौंक गई, ‘‘ये…य…यह सब क…क…ब …कै…से?’’ शब्द उस के गले में ही अटकने लगे. उसे खुद नहीं पता था इस एमएमएस के बारे में, वह घबरा कर रोने लगी.
इस पर मीता उस की पीठ सहलाती हुई बोली, ‘‘देख, सब बात खुल कर बता. जो हो गया सो हो गया. अगर अब भी नहीं समझी तो बहुत देर हो जाएगी. हां, यह तू ने सही नहीं किया. एक बार भी नहीं खयाल आया तुझे अपने बूढ़े अम्माबाबा का? यह कदम उठाने से पहले एक बार तो सोचा होता कि तेरे पापा को तुझ से कितना प्यार है. उन के विश्वास का खून कर दिया तू ने. तेरी इस करतूत की सजा पता है तेरे भाईबहनों को भुगतनी पड़ेगी. तेरा क्या गया?’’
अब दीपा पूरी तरह से टूट चुकी थी. ‘‘मुझे माफ कर दो. मैं ने जो भी किया, अपने प्यार के लिए, उस को पाने के लिए किया. मुझे नहीं मालूम यह एमएमएस कैसे बना? किस ने बनाया?’’
‘‘सारी बात शुरू से बता. कुछ छिपाने की जरूरत नहीं वरना हम कुछ नहीं कर पाएंगे. जिसे तू प्यार बोल रही है वह सिर्फ धोखा था तेरे साथ, तेरे शरीर के साथ, बेवकूफ लड़की.’’
अब दीपा पूरी तरह से टूट चुकी थी. ‘‘मुझे माफ कर दो. मैं ने जो भी किया, अपने प्यार के लिए, उस को पाने के लिए किया. मुझे नहीं मालूम यह एमएमएस कैसे बना? किस ने बनाया?’’
थाने के करीब आते ही उस की चाल में धीमापन आ गया. तेजतेज चलने से मेवा का कसा हुआ ब्लाउज पसीने से तरबतर हो कर गोलाइयों से चिपक गया था. सामने गेट पर बड़ीबड़ी मूंछों वाला संतरी खड़ा था. उस की कामुक नजरें मेवा के बदन से चिपके ब्लाउज पर फिसल रही थीं. उस ने सुलगती बीड़ी का गहरा कश भरा और धीरेधीरे चलता हुआ डरीसहमी मेवा के करीब आ गया. यह देख मेवा घबरा गई. उस की काली चमकती आंखों में दहशत भर उठी थी. उस ने कई जवान औरतों से सुना भी था कि पुलिस वाले बहुत बदमाश होते हैं. फिर भी डरते हुए वह थाने तक आ गई थी.
पुलिस वाले की प्यासी नजरें उस की गदराई जवानी पर फिसल रही थीं.
‘‘यहां क्यों आई है. मुझे बता.’’ वह वहीं चुपचाप खड़ी रही.
‘‘अरे, बोलती क्यों नहीं? गूंगी है क्या?’’ सामने खड़े पुलिस वाले ने कड़कती आवाज में पूछा, ‘‘किसी ने तंग किया है तुझ को? बता मुझे.’’
‘‘थानेदार साहब, ऐसा नहीं है,’’ मेवा ने कांपती आवाज में कहा.
‘‘फिर रास्ते में अकेली देख कर किसी ने पकड़ लिया होगा? तू डर मत, मुझे साफसाफ बता दे. एक घंटे बाद मेरी ड्यूटी खत्म हो रही है.’’
‘‘ऐसी बात नहीं है थानेदारजी, मैं तो दूसरी फरियाद ले कर आई हूं जी,’’ मेवा सहज आवाज में बोली.
पुलिस वाला अभी जाल फेंक ही रहा था कि अंदर से असली थानेदार राम सिंह जीप स्टार्ट कर के निकला. थानेदार राम सिंह जीप रोकते हुए बोला, ‘‘अरे नफे सिंह, यह लड़की कौन है?’’
‘‘साहबजी, यह… यह…’’ पहरे पर खड़ा संतरी कुछ बोलता, उस से पहले ही मेवा ने कहा, ‘‘साहबजी, मैं हरिया की घरवाली हूं. उसे पुलिस ने पकड़ रखा है. हुजूर, मेरे हरिया को छोड़ दो. वह बेकुसूर है.’’
‘‘ओह… तुम चरसगांजा और नकली नोटों की सप्लाई करने वाले हरिया की जोरू हो.’’
‘‘हां साहब… हां,’’ कहते हुए मेवा की आंखों में चमक उभरी.
थानेदार ने देखा कि मेवा के गोलगोल उभारों पर जवानी हिलोरें ले रही थी.
‘‘चल, अपनी झोंपड़ी की तलाशी लेने दे. जरूर तुम ने माल छिपा रखा होगा. चल बैठ गाड़ी में,’’ थानेदार ने रोब जमाया. ‘‘साहबजी… अगर झोंपड़ी से कुछ नहीं मिला, तो मेरे हरिया को छोड़ देंगे?’’ मेवा ने हाथ जोड़ते हुए पूछा.
‘‘हां, छोड़ देंगे…’’ थानेदार ने कहा, तो मेवा गाड़ी में बैठ गई.
संतरी ने मन ही मन थानेदार को भद्दी सी गाली दी. थानेदार राम सिंह ने अगले चौराहे पर ड्राइवर को उतार दिया. फिर वह अकेला ही मेवा को ले कर झोंपड़पट्टी की ओर चल दिया.दोपहरी में सभी अपनीअपनी झोंपड़ी में आराम कर रहे थे. एक मामूली सी झोंपड़ी के सामने जीप रुकी. थानेदार ने उतर कर सारी झोंपड़ी की तलाशी ली. वहां उसे कोई भी गलत चीज नहीं मिली. मेवा सोच रही थी कि अब थानेदार उस के हरिया को छोड़ देगा. वह हाथ जोड़ कर फरियाद करने लगी.
‘‘हां… हां, जरूर आ जाएगा,’’ कहते हुए राम सिंह आगे बढ़ा. थोड़ी देर बाद थानेदार अपने कपड़े दुरुस्त करता हुआ झोंपड़ी से बाहर आया, जीप स्टार्ट की और चला गया.मेवा बेचारी लुट गई थी, मगर करती भी क्या. उस की अपनी मजबूरी थी.
उस की बूढ़ी मां बीमार थी. घर में कोई इलाज कराने वाला नहीं था. उस का बड़ा भाई जहरीली शराब पीने से मर गया था. छोटा भाई नशीली चीजें बेचने के जुर्म में जेल में था. घर में कमाई करने वाला कोई नहीं था. हरिया ने उसे बीवी बनाने के एवज में मां के इलाज की जिम्मेदारी ली थी. मेवा ने जिंदगी से समझौता कर लिया था. मेवा ने कभी यह जानने की कोशिश ही नहीं की थी कि असल में हरिया क्या काम करता है. अब उस ने सोच लिया था कि हरिया एक बार घर लौट आए, तो उसे गलत काम करने से रोकेगी.
आज जोकुछ हुआ, मेवा उसे एक बुरा सपना समझ कर भूलना चाहती थी. मेवा भूखीप्यासी पति को छुड़ाने के लिए मारीमारी फिर रही थी. उस ने हाथ जोड़े, पैर पकड़े, फिर भी थानेदार ने उसे मजबूर कर दिया था.
मेवा अगली सुबह तड़के ही थाने के गेट पर पहुंच गई. उस समय पहरे पर दूसरा संतरी खड़ा था. मेवा ने महसूस किया कि उस की भी कामुक निगाहें उस के उभारों पर फिसल रही हैं. लेकिन वह बेपरवाह हो कर आगे बढ़ी. उस ने तो बड़े थानेदार से बात कर रखी थी. कल उस की झोंपड़ी में कैसे मिमिया रहा था…
‘‘अरे… रे… कौन है तू… अंदर कहां भागी जा रही है?’’ संतरी गुर्राते हुए आगे लपका. तब तक मेवा भाग कर थानेदार के दफ्तर तक पहुंच गई थी.
दफ्तर के बाहर शोर सुन कर थानेदार बाहर आ गया. वह मेवा को पहचान तो गया था, फिर भी अनजान बनते हुए दहाड़ा, ‘‘अरे धूल सिंह, यह औरत कौन है? इसे बाहर निकालो.’’
मेवा ने थानेदार की दहाड़ की तरफ ध्यान नहीं दिया. वह गिड़गिड़ाते हुए फरियाद करने लगी, ‘‘साहबजी, मेरे हरिया को छोड़ दो… 2 दिन से घर में चूल्हा नहीं जला. मां बीमार है. हमारा दूसरा कोई सहारा नहीं है. मुझ पर दया करो साहबजी. कल आप ने कहा भी था…’’ मेवा थानेदार के पैरों में झुक गई.
‘‘अरे भई… यहां शोर न करो… यह थाना है… मैं कोशिश कर के देखता हूं. मेरे ऊपर भी अफसर हैं,’’ थानेदार राम सिंह कहते हुए दफ्तर में घुसा, तभी फोन की घंटी घनघना उठी.
‘हैलो थानेदार राम सिंह…’
‘‘बोल रहा हूं सर… क्या हरिया को सीबीआई के हवाले कर दूं… कोई खास बात सर?’’ थानेदार ने पूछा.
वह तो हरिया के बारे में बात करना चाहता था, मगर यहां तो पासा ही पलट गया था.
‘‘राम सिंह, सीबीआई से सूचना मिली है कि हरिया माफिया सरगना इब्राहिम के गैंग से ताल्लुक रखता है. हरिया को छुड़ाने के लिए थाने पर हमला भी हो सकता है. तुम्हारे पास जवान भी कम हैं, इसलिए फौरन हरिया को थाने से निकाल लाओ,’’ दूसरी तरफ से सख्त आदेश था.
‘‘ठीक है सर,’’ कहते हुए राम सिंह तेजी से दफ्तर से बाहर निकला, तो मेवा एक बार फिर से गिड़गिड़ा उठी. शायद उसे पूरी उम्मीद थी कि उस का हरिया छूट जाएगा.फोन पर बातचीत के दौरान उस ने बारबार हरिया के नाम का जिक्र सुना था. साथ ही, कल उस ने साहब को खुश भी किया था.
‘‘अरे धूल सिंह, इसे धक्के मार कर गेट से बाहर निकाल दे. हम इस के बाप के नौकर थोड़े ही हैं. पहले तो अंडरवर्ल्ड के लिए काम करते हैं, फिर हाथपैर जोड़ते हैं,’’ राम सिंह ने सामने खड़े सिपाही से कहा.
‘‘नफे सिंह, जीप स्टार्ट करो… हरिया को सैंट्रल जेल ले जाना है. यह तो हमें भी मरवाएगा,’’ कहते हुए राम सिंह 3 जवानों के साथ हवालात की तरफ बढ़ गया.
रोतीचिल्लाती मेवा को पहरेदार ने गेट से बाहर धकिया दिया. उस ने मेवा को एकाध थप्पड़ मार कर चेतावनी दी, ‘‘अगर ज्यादा हंगामा करेगी, तो हरिया को उम्रकैद हो जाएगी. अगर चुपचाप चली जाएगी, तो 4-5 दिन बाद हरिया अपनेआप घर आ जाएगा. तुझे यहां आने की जरूरत नहीं.’’
बेचारी मेवा लुटीपिटी रोतेसिसकते हुए गेट से बाहर निकाल दी गई थी. पुलिस मददगार के बजाय दुश्मन बन गई थी. हरिया ने भी उसे धोखा दिया था. अगर उसे अपराध करना था, तो मेवा को जिंदगी के सपने दिखाने और उस की बीमार मां की जिम्मेदारी लेने की क्या जरूरत थी?
मेवा को थानेदार और हरिया में कोई फर्क नजर नहीं आ रहा था. दोनों ने उसे धोखा दिया था. दोनों ने उस की जवानी को लूटा और गुम हो गए.
खैर, कैरैक्टर तो मैं अपना बहुत पहले नीलाम कर चुका हूं. यह जो मेरे पास दोमंजिला मकान, आलीशान गाड़ी है, सब मैं ने अपना कैरैक्टर नीलाम करने के बाद ही हासिल की है. इनसान जिंदगी में चाहे कितनी ही मेहनत क्यों न करे, पर जब तक वह अपने कैरैक्टर को बंदरिया के मरे बच्चे सा अपने से चिपकाए रखता है, तब तक भूखा ही मरता है.
इधर बंदे ने अपना कैरैक्टर नीलाम किया, दूसरी ओर हर सुखसुविधा ने उसे सलाम किया. कहने वाले जो कहें सो कहते रहें, पर अपना तजरबा है कि जब तक बंदे के पास कैरैक्टर है, उस के पास केवल और केवल गरीबी है.
पर कैरैक्टर नीलाम करने के बाद कमबख्त फिर गरीबी आन पड़ी. जमापूंजी कितने दिन चलती है? अब मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अपना क्या नीलाम करूं? अनारकली होता, तो मीना बाजार जा पहुंचता.
जब मुझे पता चला कि उन के कपड़े डेढ़ करोड़ रुपए में बिके, तो अपना तो कलेजा ही मुंह को आ गया. लगा, मेरे लिए नीलामी का एक दरवाजा और खुल गया. जिस के कपड़े ही डेढ़ करोड़ के नीलाम हो रहे हों, वह बंदा आखिर कितना कीमती होगा?
बस, फिर क्या था. मुझे उन के कपड़ों की नीलामी की बोली के अंधेरे में उम्मीद की किरण नहीं, बल्कि दोपहर का चमकता सूरज दिखा और मैं ने आव देखा न ताव, अपने और बीवी के सारे कपड़ों के साथ पड़ोसी की बीवी के भी चार फटेपुराने कपड़ों की गठरी बांधी और लखपति होने के सपने लेता बाजार चलने को हुआ, तो बीवी ने टोका, ‘‘अब ये मेरे कपड़े कहां लिए जा रहे हो? पागलपन की भी हद होती है.’’
‘‘मैं बाजार जा रहा हूं… नीलाम करने,’’ मैं ने ऐसा कहा, तो बीवी चौंकी, ‘‘अपना सबकुछ नीलाम करने के बाद अब कपड़े भी नीलाम करने की नौबत आ गई क्या?’’
‘‘आई नहीं. नौबत क्रिएट कराई है उन्होंने. तेरेमेरे इन कपड़ों में मुझे लाखों रुपए की कमाई दिख रही है. चल फटाफट बंधी गांठ उठवा और शाम को मेरे आते ही लखटकिया की बीवी हो जा.’’
‘‘पर, इन कपड़ों को कौन गधा खरीदेगा?’’ कहते हुए वह परेशान हो गई.
‘‘अरी भागवान, ये कोई मामूली कपड़े नहीं हैं, बल्कि ये लैलामजनूं, हीररांझा, शीरींफरहाद के ऐतिहासिक कपड़े हैं.
‘‘तू भी न… सारा दिन टैलीविजन के पास बैठीबैठी बस सासबहू के सीरियल ही देखती रहती है. कभी समाचार सुनने नहीं, तो कम से कम देख ही लिया कर. उन के कपड़े की एक जोड़ी डेढ़ करोड़ रुपए में बिकी. हो सकता है कि लाखों रुपए में न सही, तो कम से कम हजारों रुपए में अपने ये कपड़े भी कोई खरीद ले.’’
‘‘घर में कोई जोड़ी बदलने के लिए भी छोड़ी है कि नहीं? कोई क्या पागल है, जो हमारे न पहनने लायक कपड़ों की बोली लगाएगा?’’
यह मेरी बीवी भी न, जब देखो शक में ही जीती रहती है.
‘‘क्यों न लगाएगा… मैं अपने कपड़ों को चमत्कारी रंग दे कर ऐसा प्रचार करूंगा कि… मसलन, ये कपड़े मेरी बीवी को हीर ने उसे तब दिए थे, जब वह पहली बार मुझ से मंदिर जाने के बहाने मिलने आई थी.
‘‘और ये कपड़े मेरी बीवी को लैला ने हमारी फर्स्ट मैरिज एनिवर्सरी पर दिए थे. यह वाला सूट हीर ने उसे उस की बर्थडे पर गिफ्ट किया था.
‘‘यह सूट तो तुम्हें महारानी विक्टोरिया ने खुद अपने हाथों से सिल कर दिया था. और मेरा कुरतापाजामा मजनूं ने मेरी शादी पर तब मुझे पहनाया था, जब मैं घोड़ी लायक पैसे न होने के चलते गधे पर शान से बैठ कर तुम्हें ब्याहने गया था.
‘‘यह तौलिया महात्मा गांधी का है, जिस से वे अपनी नाक पोंछा करते थे. यह उन्होंने मेरे दादाजी को भेंट में दिया था. यह रूमाल जवाहरलाल नेहरू का है. मेरे पिताजी जब 15 अगस्त को उन से मिलने गए थे, तो लालकिले पर झंडा फहराने के बाद इसे उन्होंने उन्हें उपहार के तौर पर दिया था.’’
‘‘और यह मफलर?’’
‘‘रहने दे. इसे बाद में देखेंगे. इसे कुछ काम तो करने दे,’’ जब मैं बोला, तो पहली बार उसे मुझ पर यकीन हुआ और उस ने कोई सवाल नहीं उठाया.
उलटे सुनहरे ख्वाब बुनते हुए मैं ने अपने सिर पर कपड़ों की बंधी गांठ रखी और मैं एक बार फिर अपने माल को नीलाम करने बाजार में जा खड़ा हुआ.
बाजार में पहुंचते ही खाली जगह देख कर दरी बिछाई और अपने और अपनी परीजादी को गिफ्ट में मिले सारे कपड़े उस पर बिखेर दिए.
पर यह क्या… एक घंटा बीता… 2 घंटे बीते… कोई कपड़ों के पास आ ही नहीं रहा था. उलटा, जो भी हमारे कपड़ों के पास से गुजर रहा था, नाक पर हाथ रख लेता. शाम तक मैं नीलामी करने वालों को टुकुरटुकुर ताकता रहा. अब समस्या यह कि गांठ जो बांध भी लूं, तो उठवाए कौन?
तभी एक पुलिस वाला आ धमका. वह डंडे से मेरी बीवी के कपड़ों को टटोलने लगा, तो मुझे उस की इस हरकत पर बेहद गुस्सा आया. पर बाजार की बात थी, सो चुप रहा.
‘‘अरे, यह सब क्या है? चोरी के कपड़े हैं क्या? यमुना के किस छोर से चिथड़े उठा लाया?’’
‘‘नहीं साहब, ये वाले हीर के हैं, ये वाले लैला के हैं. ये वाले मजनूं के हैं और ये वाले ओबामा की जवानी के दिनों के…
‘‘और ये…
‘‘फरहाद के…’’
‘‘छि:, इतने गंदे?’’
‘‘बरसों से धोए नहीं हैं न साहब. जस के तस संभाल कर रखे हैं.’’
‘‘मतलब, पुलिस वाले को उल्लू बना रहा है?’’
‘‘उल्लू… और आप को? मर जाए, जो आप को उल्लू बनाए,’’ कह कर मैं ने उस के दोनों पैरों को हाथ लगाया, तो वह आगे बोला, ‘‘म्यूजियम से चुरा कर लाया है क्या?’’ कह कर वह मुसकराता हुआ मेरी जेब में झांकने लगा, तो मैं ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘साहब, उन की देखादेखी मैं भी इन्हें नीलाम करने ले आया था.’’
‘‘पता है, वे किस के कपड़े थे? चल उठा जल्दी से इन गंदे कपड़ों को, वरना…’’
तभी सामने से पुराने कपड़े लेने वाली एक औरत आ धमकी और कमर नचाते हुए बोली, ‘‘ऐ, क्या लोगे इन सब पुराने कपड़ों का? 2 पतीले लेने हों, तो जल्दी बोलो…’’
हमारे गांवदेहात में एक कहावत मशहूर है कि ‘गरीब की लुगाई गांवभर की भौजाई’. कुछ यही हाल हमारे देश के मास्साबों का हो गया है. सरकार ने इन्हें भी गांवभर की भौजाई समझ लिया है. जनगणना से ले कर पशुगणना तक, ग्राम पंचायत के पंच से ले कर संसद सदस्य तक के चुनाव मास्साबों के जिम्मे है.
किस गांव में कितने कमउम्र बच्चों को पोलियो की खुराक देनी है, गांव के कितने मर्दऔरतों ने नसबंदी कराई है, कितने बच्चों के जाति प्रमाणपत्र कचहरी में धूल खा रहे हैं, कितनों की आईडी रोजगार सहायक के कंप्यूटर में कैद है, कितने परिवार गरीबी की रेखा के नीचे दब कर छटपटा रहे हैं और कितने गरीबी की रेखा को पीछे सरकाते हुए आगे निकल गए हैं, कितने परिवार घर में शौचालय न होने के चलते खुले में शौच करते हैं. कितने लोगों के आधार कार्ड नहीं बने हैं, कितनों के बैंक में लिंक नहीं हुए, बच्चों का वजीफा, साइकिल, खाता खोलने के लिए बैंकों के कितने चक्कर लगाने हैं, इन सब बातों की जानकारी भला मास्साबों से बेहतर कौन जान सकता है. सरकार ने मास्साबों के इसी हुनर को देख कर पढ़ाई को छोड़ कर बाकी सारे काम उन्हें दे रखे हैं. सरकार जानती है कि पढ़ाई का क्या है, वह तो बच्चे को जिंदगीभर करनी है. पढ़ाईलिखाई के महकमे की बैठकों में अफसर पढ़ाई को छोड़ कर बाकी सारी बातें करते हैं. किसी गांव को पूरी तरह पढ़ालिखा बनाना मास्साबों को बाएं हाथ का खेल लगता है.
मास्साब कहते हैं कि हम तो सरकारी आदेशों के गुलाम हैं. सरकार जो चाहे खुशीखुशी कर देते हैं. आखिर पगार काहे की लेते हैं. सरकार द्वारा दिए गए लोगों के भले के कामों की वजह से मास्साब की ईमानदारी पर शक किया जाने लगा है. जब सरकारी स्कूलों में मास्साब कभी किचन शैड, शौचालय या ऐक्स्ट्रा कमरा बनाने का काम कराते हैं, तो वे देश के लिए इंजीनियर और ठेकेदार का रोल भी निभाते हैं. यही बात गांव वालों को खलती है और वे मास्साब की ईमानदारी पर भी बेवजह शक करने लगते हैं. गांवों में अकसर ही लोगों को यह शिकायत रहती है कि मास्साब नियमित स्कूल नहीं आते, बच्चों को ठीक से नहीं पढ़ाते, घर में कोचिंग क्लास चलाते हैं.
अरे जनाब, आप को पता होना चाहिए कि बच्चे मास्साब के कंधों पर कितना बड़ा बोझ हैं. बच्चे भी क्या कम हैं, वे स्कूल पढ़ने नहीं रिसर्च करने आते हैं. बच्चे मास्साब के स्मार्टफोन का मजा लेते हैं. ह्वाट्सऐप पर भेजे वीडियो व फोटो को भी वे शेयर करते हैं. मास्साब की फेसबुक पर वे कमैंट करने में भी पीछे नहीं हैं. कभी मास्साब को समय मिलता है और वे लड़कों को भारत का इतिहास पढ़ाते हैं, तो भी क्लास की लड़कियों के इतिहास की जानकारी लेने में बिजी रहते हैं. लड़कियों के इतिहास पर लड़कों
की रिसर्च चलती रहती है. इस के लिए थीसिस, जिसे नासमझ प्रेमपत्र भी कहते हैं, लिखने का काम भी करते हैं, तभी उन्हें पीएचडी यानी शादी बतौर अवार्ड मिल पाती है. यह बात और है कि ज्यादातर लड़कों का इस काम में भूगोल बिगड़ने का खतरा रहता है. रिजल्ट भी खराब आता है, जिस की जिम्मेदारी मास्साबों पर थोपी जाती है. लड़कों की गलतियों की सजा मास्साबों की वेतन वृद्धि रोक कर वसूल की जाती है.
यही वजह है कि मास्साब कभीकभी नकल की खुली छूट दे देते हैं. इस से रिजल्ट भी अच्छा बन जाता है और छात्रों की नजर में मास्साब की इज्जत भी बढ़ जाती है. इस तरह मास्साब एक पंथ दो काज निबटा लेते हैं. मास्टरी के क्षेत्र में औरतों की चांदी है. मैडमजी सुबहसवेरे ही सजसंवर कर स्कूल चली जाती हैं और चूल्हाचौका सासूजी के मत्थे मढ़ जाती हैं.
कुमारियां तो स्कूल को किसी फैशन परेड का रैंप समझती हैं, तो श्रीमतियां अपने घर के काम निबटा लेती हैं. वे स्कूल समय में मटर छील लेती हैं, पालकमेथी के पत्तों को तोड़ कर सब्जी बनाने की पूरी तैयारी कर लेती हैं. कभीकभार जब समय नहीं रहता, तो स्कूल के मिड डे मील की बची हुई रेडीमेड सब्जीपूरी भी घर ले जाती हैं. ठंड के दिनों में स्वैटर बुनने की सब से अच्छी जगह सरकारी स्कूल ही होती है, जहां पर कुनकुनी धूप में बच्चों को मैदान में बिठा कर उन्हें जोड़घटाने के सवालों में उलझा कर मैडम अपने पति के स्वैटर के फंदों का जोड़घटाना कर ह्वाट्सऐप के मजे लेती हैं.
कुछ मैडमें अपने नन्हेमुन्ने बच्चों को भी साथ में स्कूल ले आती हैं, जिन के लालनपालन की जिम्मेदारी क्लास के गधा किस्म के बच्चों की होती है. उन की इस सेवा के बदले उन का प्रमोशन अगली क्लास में कर दिया जाता है. जब से सरकार ने मास्साबों की भरती में औरतों को 50 फीसदी रिजर्वेशन व उम्र की सीमा को खत्म किया है, तब से सास बनी बैठी औरतों ने भी मास्टरनी बनने की ठानी है. अब देखना यही है कि रसोई की कमान मर्दों के हाथों में आती है या नहीं?
देश के महामहिम राष्ट्रपति रह चुके डा. राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ मनाया जाता है. स्कूली बच्चे चंदा कर के मास्साब के लिए शाल और चायबिसकुट का इंतजाम करते हैं.
देश के राष्ट्रपति द्वारा इस दिन दिल्ली में होनहार मास्साबों को सम्मानित किया जाता है. कुछ मास्साब यहां भी अपने हुनर को दिखा कर टैलीविजन चैनलों पर अवार्ड लेते दिख जाते हैं. अवार्ड लेने के बाद मास्साबों को गांवगांव, गलीगली में सम्मानित किया जाता है. इसी चक्कर में मास्साब कईकई दिनों तक स्कूल नहीं पहुंच पाते. पर कभीकभार स्कूल के हाजिरी रजिस्टर पर दस्तखत कर उसे भी गौरवान्वित कर आते हैं.
ठीक ही तो है कि सारी ईमानदारी का बोझ अकेले मास्साबों के कंधों पर नहीं डाला जा सकता. जब से देश को बनाने की जिम्मेदारी अंगूठा लगाने वाले जनप्रतिनिधि निभाने लगे हैं, तब से मास्साबों को शर्म आने लगी है. इतनी पढ़ाई के बाद भी मास्साब अंगूठे की छाप नहीं बदल सके? काश, मास्साबों का यह दर्द कोई समझ पाता.
सुच्चामल हमारी कालोनी के दूसरे ब्लौक में रहते थे. हर रोज मौर्निंग वाक पर उन से मुलाकात होती थी. कई लोगों की मंडली बन गई थी. सुबह कई मुद्दों पर बातें होती थीं, लेकिन बातों के सरताज सुच्चामल ही होते थे. देशदुनिया का ऐसा कोई मुद्दा नहीं होता था जिस पर वे बात न कर सकें. उस पर किसी दूसरे की सहमतिअसहमति के कोई माने नहीं होते थे, क्योंकि वे अपनी बात ले कर अड़ जाते थे. उन की खुशी के लिए बाकी चुप हो जाते थे. बड़ी बात यह थी कि वे, सेहत के मामले में हमेशा फिक्रमंद रहते थे. एकदम सादे खानपान की वकालत करते थे. मोटापे से बचने के कई उपाय बताते थे. दूसरों को डाइट चार्ट समझा देते थे. इतना ही नहीं, अगले दिन चार्ट लिखित में पकड़ा देते थे. फिर रोज पूछना शुरू करते थे कि चार्ट के अनुसार खानपान शुरू किया कि नहीं. हालांकि वे खुद भी थोड़ा थुलथुल थे लेकिन वे तर्क देते थे कि यह मोटापा खानपान से नहीं, बल्कि उन के शरीर की बनावट ही ऐसी है.
एक दिन सुबह मुझे काम से कहीं जाना पड़ा. वापस आया, तो रास्ते में सुच्चामल मिल गए. मैं ने स्कूटर रोक दिया. उन के हाथ में लहराती प्लास्टिक की पारदर्शी थैली को देख कर मैं चौंका, चौंकाने का दायरा तब और बढ़ गया जब उस में ब्रैड व बड़े साइज में मक्खन के पैकेट पर मेरी नजर गई. मैं सोच में पड़ गया, क्योंकि सुच्चामल की बातें मुझे अच्छे से याद थीं. उन के मुताबिक वे खुद भी फैटी चीजों से हमेशा दूर रहते थे और अपने बच्चों को भी दूर रखते थे. इतना ही नहीं, पौलिथीन के प्रचलन पर कुछ रोज पहले ही उन की मेरे साथ हुई लंबीचौड़ी बहस भी मुझे याद थी.
वे पारखी इंसान थे. मेरे चेहरे के भावों को उन्होंने पलक झपकते ही जैसे परख लिया और हंसते हुए पिन्नी की तरफ इशारा कर के बोले, ‘‘क्या बताऊं भाईसाहब, बच्चे भी कभीकभी मेरी मानने से इनकार कर देते हैं. कई दिनों से पीछे पड़े हैं कि ब्रैडबटर ही खाना है. इसलिए आज ले जा रहा हूं. पिता हूं, बच्चों का मन रखना भी पड़ता है.’’
‘‘अच्छा किया आप ने, आखिर बच्चों का भी तो मन है,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.
‘‘नहीं बृजमोहन, आप को पता है मैं खिलाफ हूं इस के. अधिक वसा वाला खानपान कभीकभी मेरे हिसाब से तो बहुत गलत है. आखिर बढ़ते मोटापे से बचना चाहिए. वह तो श्रीमतीजी भी मुझे ताना देने लगी थीं कि आखिर बच्चों को कभी तो यह सब खाने दीजिए, तब जा कर लाया हूं.’’ थोड़ा रुक कर वे फिर बोले, ‘‘एक और बात.’’
‘‘क्या?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा, तो वे नाखुशी वाले अंदाज में बोले, ‘‘मुझे तो चिकनाईयुक्त चीजें हाथ में ले कर भी लगता है कि जैसे फैट बढ़ रहा है, चिकनाई तो दिल की भी दुश्मन होती है भाईसाहब.’’
‘‘आइए आप को घर तक छोड़ दूं,’’ मैं ने उन्हें अपने स्कूटर पर बैठने का इशारा किया, तो उन्होंने सख्त लहजे में इनकार कर दिया, ‘‘नहीं जी, मैं पैदल चला जाऊंगा, इस से फैट घटेगा.’’
आगे कुछ कहना बेकार था क्योंकि मैं जानता था कि वे मानेंगे ही नहीं. लिहाजा, मैं अपने रास्ते चला गया.
2 दिन सुच्चामल मौर्निंग वौक पर नहीं आए. एक दिन उन के पड़ोसी का फोन आया. उस ने बताया कि सुच्चामल को हार्टअटैक आया है. एक दिन अस्पताल में रह कर घर आए हैं. अब मामला ऐसा था कि टैलीफोन पर बात करने से बात नहीं बनने वाली थी. घर जाने के लिए मुझे उन की अनुमति की जरूरत नहीं थी. यह बात इसलिए क्योंकि वे कभी भी किसी को घर पर नहीं बुलाते थे बल्कि हमारे घर आ कर मेरी पत्नी और बच्चों को भी सादे खानपान की नसीहतें दे जाते थे.
मैं दोपहर के वक्त उन के घर पहुंच गया. घंटी बजाई तो उन की पत्नी ने दरवाजा खोला. मैं ने अपना परिचय दिया तो वे तपाक से बोलीं, ‘‘अच्छाअच्छा, आइए भाईसाहब. आप का एक बार जिक्र किया था इन्होंने. पौलिथीन इस्तेमाल करने वाले बृजमोहन हैं न आप?’’
‘‘ज…ज…जी भाभीजी.’’ मैं थोड़ा झेंप सा गया और समझ भी गया कि अपने घर में उन्होंने खूब हवा बांध रखी है हमारी. सुच्चामल के बारे में पूछा, तो वे मुझे अंदर ले गईं. सुच्चामल ड्राइंगरूम के कोने में एक दीवान पर पसरे थे. मैं ने नमस्कार किया, तो उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आई. चेहरे के भावों से लगा कि उन्हें मेरा आना अच्छा नहीं लगा था. हालचाल पूछा, ‘‘बहुत अफसोस हुआ सुन कर. आप तो इतना सादा खानपान रखते हैं, फिर भी यह सब कैसे हो गया?’’
‘‘चिकनाई की वजह से.’’ जवाब सुच्चामल के स्थान पर उन की पत्नी ने थोड़ा चिढ़ कर दिया, तो मुझे बिजली सा झटका लगा, ‘‘क्या?’’
‘‘कैसे रोकूं अब इन्हें भाईसाहब. ऐसा तो कोई दिन ही नहीं जाता जब चिकना न बनता हो. कड़ाही में रिफाइंड परमानैंट रहता है. कोई कमी न हो, इसलिए कनस्तर भी एडवांस में रखते हैं.’’ उन की बातों पर एकाएक मुझे विश्वास नहीं हुआ.
‘‘लेकिन भाभीजी, ये तो कहते हैं कि चिकने से दूर रहता हूं?’’
‘‘रहने दीजिए भाईसाहब. बस, हम ही जानते हैं. किचेन में दालों के अलावा आप को सब से ज्यादा डब्बे तलनेभूनने की चीजों से भरे मिलेंगे. बेसन का 10 किलो का पैकेट 15 दिन भी नहीं चलता. बच्चे खाएं या न खाएं, इन को जरूर चाहिए. बारिश की छोड़िए, आसमान में थोड़े बादल देखते ही पकौड़े बनाने का फरमान देते हैं.’’
यह सब सुन कर मैं हैरान था. सुच्चामल का चेहरा देखने लायक था. मन तो किया कि उन की हर रोज होने वाली बड़ीबड़ी बातों की पोल खोल दूं, लेकिन मौका ऐसा नहीं था. सुच्चामल हमेशा के लिए नाराज भी हो सकते थे. यह राज भी समझ आया कि सुच्चामल अपने घर हमें शायद पोल खुलने के डर से क्यों नहीं बुलाना चाहते थे. इस बीच, डाक्टर चैकअप के लिए वहां आया. डाक्टर ने सुच्चामल से उन का खानपान पूछा, तो वह चुप रहे. लेकिन पत्नी ने जो डाइट चार्ट बताया वह कम नहीं था. सुच्चामल सुबह मौर्निंग वाक से आ कर दबा कर नाश्ता करते थे.
हर शाम चाय के साथ भी उन्हें समोसे चाहिए होते थे. समोसे लेने कोई जाता नहीं था, बल्कि दुकानदार ठीक साढ़े 5 बजे अपने लड़के से 4 समोसे पैक करा कर भिजवा देता था. सुच्चामल महीने में उस का हिसाब करते थे. रात में भरपूर खाना खाते थे. खाने के बाद मीठे में आइसक्रीम खाते थे. आइसक्रीम के कई फ्लेवर वे फ्रिजर में रखते थे. मैं चलने को हुआ, तो मैं ने नजदीक जा कर समझाया, ‘‘चलता हूं सुच्चामल, अपना ध्यान रखना.’’
‘‘ठीक है.’’
‘‘चिकने से परहेज कर के सादा खानपान ही कीजिए.’’
‘‘मैं तो सादा ही…’’ उन्होंने सफाई देनी चाही, लेकिन मैं ने बीच में ही उन्हें टोक दिया, ‘‘रहने दीजिए, तारीफ सुन चुका हूं. डाक्टर साहब को भी भाभीजी ने आप की सेहत का सारा राज बता दिया है.’’ मेरी इस सलाह पर वे मुझे पुराने प्राइमरी स्कूल के उस बच्चे की तरह देख रहे थे जिस की मास्टरजी ने सब से ज्यादा धुनाई की हो. अगले दिन मौर्निंग वाक पर गया, तो हमारी मंडली के लोगों को मैं ने सुच्चामल की तबीयत के बारे में बताया, तो वे सब हैरान रह गए.
‘‘कैसे हुआ यह सब?’’ एक ने पूछा, तो मैं ने बताया, ‘‘अजी खानपान की वजह से.’’
एक सज्जन चौंक कर बोले, ‘‘क्या…? इतना सादा खानपान करते थे, ऐसा तो नहीं होना चाहिए.’’
‘‘अजी काहे का सादा.’’ मेरे अंदर का तूफान रुक न सका और सब को हकीकत बता दी. मेरी तरह वे भी सुन कर हैरान थे. सुच्चामल छिपे रुस्तम थे. कुछ दिनों बाद सुच्चामल मौर्निंग वाक पर आए, लेकिन उन्होंने खानपान को ले कर कोई बात नहीं की. 1-2 दिन वे बोझिल और शांत रहे. अचानक उन का आना बंद हो गया.
एक दिन पता चला कि वे दूसरे पार्क में टहल कर लोगों को अपनी सेहत का वही ज्ञान बांट रहे हैं जो कभी हमें दिया करते थे. हम समझ गए कि सुच्चामल जैसे लोग ज्ञान की गंगा बहाने के रास्ते बना ही लेते हैं. यह भी समझ आ गया कि कथनी और करनी में कितना फर्क होता है. सुच्चामल से कभीकभी मुलाकात हो जाती है, लेकिन वे अब सेहत के मामले पर नहीं बोलते.
उस दिन मिर्जा इस तरह से फुफकारते हुए चले आ रहे थे, जैसे जलेबी का खमीर उबाल खा रहा हो. बाल ऐसे बिखरे हुए थे, जैसे तूफान आने के बाद पेड़ गिरे होते हैं. जुमे का दिन और… दिन के 11 बजे मिर्जा मैलेकुचैले कपड़ों में? देखते ही मुझ पर तो जैसे आसमान की बिजली गिर पड़ी.
मैं ने अपनेआप को बड़ी मुश्किल से काबू में किया और मन ही मन कहा. ‘जलते जलाल तू, कुदरत कमाल तू, आई बला को टाल तू,’ फिर झपट कर मिर्जा का हाथ थामा और कहा, ‘‘मिर्जा, यह तुम ही हो…’’
ऐसा सुनना था कि मिर्जा गरजते हुए बोले, ‘‘तो क्या तुझे मोनिका लेवेंस्की दिखाई दे रही है?’’
मैं ने मौके की नजाकत को समझा और कहा, ‘‘यार, मैं ने तो यों ही कहा था. पहले अंदर आओ.’’
उन्हें सोफे पर बैठाते हुए मैं बोला, ‘‘देख मिर्जा, मैं तेरा लंगोटिया यार हूं. मुझे बता कि आज तू ने जुमे की तैयारी क्यों नहीं की? जुमे के दिन 11 बजे तक तो तुम दूल्हे की तरह सजसंवर कर जामा मसजिद में इमाम साहब के सामने खड़े हो कर अजान पढ़ा करते थे. लेकिन आज यहां पर, वह भी इस हालत में… कहीं भाभी ने…’’
मैं बात पूरी उगल भी न पाया था कि मिर्जा गरजते हुए बोले, ‘‘अगर तू वाकई मेरा सच्चा यार है, तो बता कि शादी पर औरत ही क्यों ब्याह कर लाई जाती है? मर्द को ब्याह कर ससुराल क्यों नहीं ले जाया जाता?’’
यह सुनते ही मेरा दिमाग घूम गया. मैं ने हंस कर कहा, ‘‘यार मिर्जा, तू यह बता कि पान की लत तो खैर तुम्हें विरासत में ही मिली है, अब कहीं भांग वगैरह तो नहीं लेनी शुरू कर दी?’’
मिर्जा तमतमा उठे और बोले, ‘‘एक मुसलमान पर इस तरह की तुहमत लगाते हो. क्या तू ने मुझे काफिर समझा है? मैं पक्का मुसलमान हूं और सात वक्त की नमाज पढ़ता हूं.’’
अब तो मेरा वहम यकीन में बदल चुका था. शायद खुदा ने दो वक्त अलग से मिर्जा को दिए हैं. तभी मिर्जा बोले, ‘‘मैं इशराक व तहज्जुद 12 महीने की पढ़ता हूं.’’ इस के बाद मिर्जा खड़े होते हुए बोले, ‘‘तू भी मेरा दुख बांटने वाला वह सच्चा यार नहीं रहा.’’
मिर्जा की आवाज भर्रा गई थी और गला रुंध गया था. मैं ने सोफे पर बैठाते हुए मिर्जा को समझाया, ‘‘तुम गलत समझ रहे हो. मुझे आज भी तुम से उतनी ही हमदर्दी है, जितनी कभी कुंआरेपन में भी नहीं रही होगी.’’
‘‘तो क्या औरतों के मायके जाने की धमकी जायज है?’’ मिर्जा बोले. मेरी समझ में अब सारा माजरा आ रहा था कि आज जरूर इन की बेगम ने मायके जाने की धमकी दी है और यह जोरू का परमानैंट गुलाम मिर्जा उसे बरदाश्त नहीं कर पा रहा है.
मैं ने कहा, ‘‘जायज तो नहीं है, पर मर्दों से लड़ने के वास्ते फर्स्ट क्वालिटी का हथियार तो यही है न?’’ इतना सुनते ही मिर्जा एकदम आपे से बाहर हो गए और बोले, ‘‘तो क्या दूसरा हथियार भी होता है?’’
मैं ने कहा, ‘‘हां मिर्जा, तुम तो खुशनसीब हो, जो भाभी ने अपना दूसरा हथियार यानी बेलन तुम्हें नहीं दिखाया.’’
मिर्जा गुस्से में भड़क कर चिल्लाए, ‘‘अरे बेवकूफ, मत पूछ कि आज तो उस ने अमेरिका इराक युद्ध की तरह अपने बड़े हथियार का भी इस्तेमाल कर लिया. यह तो अच्छा हुआ कि मैं किवाड़ के पास खड़ा था, फुरती से उस की आड़ ले ली, नहीं तो जुमे की नमाज के साथ आज तो अपनी भी नमाजे जनाजा अदा की जाती.’’
मैं ने मिर्जा से कहा, ‘‘चलो, अच्छा हुआ, लेकिन अभी तक तुम्हारी दूल्हा ब्याह कर ले जाने वाली बात समझ में नहीं आई.’’
यह सुन कर मिर्जा कुछ संजीदा हो कर बोले, ‘‘देख, ध्यान से सुन. घर में तकरार होने पर बीवी हमेशा मायके जाने की धमकी देती है और यह धमकी अच्छेअच्छे मर्द को मेमने की तरह मिमियाने को मजबूर कर देती है.
‘‘अगर दूल्हा ब्याह कर ससुराल ले जाया जाता, तो बेलन वगैरह का खतरा होने पर मायके जाने की धमकी को काम में ला सकता था और मर्द सीना तान कर ससुराल में शान से राज करता.’’
मैं ने मिर्जा की बात पर दिखावटी हमदर्दी दिखाते हुए कहा, ‘‘देखो, जैसे एक जीभ बत्तीस दांतों से घिरी हो कर काबू में नहीं रह सकती, उसी तरह औरत ससुराल में अकेली सभी पर भारी पड़ती है. ‘‘अगर तुम्हारे चालू फार्मूले पर समाज चलता, तो बच्चू मिर्जा, खोपड़ी का नटबोल्ट कस कर समझ ले कि अगर दूल्हा ससुराल में रहता, तो पता है क्या होता? होता यह कि पत्नी बेलन से तुम्हारा सिर तोड़ती.
‘‘अगर जीजा साले की बहन को घूर कर भी धमकाता, तो वे उसे लठिया देते. सासससुर के उपदेश अलग से दिमाग चाट कर रख देते.‘‘सालियां अमरबेल की तरह तुम्हारे जेबरूपी पेड़ को परजीवी बन कर सुखा देतीं. सालों के बच्चों को जिद करने पर न जाने महीने में कितनी बार फिल्म दिखाने ले जाना पड़ता और तब भी वे घर आ कर कहते, ‘पापापापा, फूफाजी ने फिल्म तो दिखाई, पर हमें वहां चाट नहीं खिलाई.’
‘‘इस तरह तुम्हें बेकार में ही कंजूस मक्खीचूस की उपाधि मिल जाती. भले ही तुम ने चाट पर मक्खियों का परमानैंट कब्जा होने के चलते न खिलाई हो, पर इसे कोई नहीं मानता.
‘‘अगर चाट खिलाने से बच्चे बीमार पड़ जाते, तो सास ऐसे लताड़ती जैसे कि पता नहीं क्या खिला लाया. बड़ी मनौतियां मान कर 2 पोते हुए, इन्हें तो मार कर ही इस का कलेजा ठंडा होगा.
‘‘इसलिए मिर्जा, जो कायदेकानून हमारे बड़ों ने बनाए हैं, वे जरूर सोचसमझ कर ही बनाए हैं, इसलिए तू अपना दिल छोटा न कर और भाभी को अपने मन की भड़ास निकाल लेने दिया कर… समझे हजरत मिर्जा?’’
अब मिर्जा धीरेधीरे मुसकराए और बोले, ‘‘यार, वाकई आज तो तू ने कमाल कर दिया. इतने काम की बात मेरे दिमाग में आज तक क्यों नहीं आई? मैं ने इतनी उम्र यों ही गंवाई.’’
मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, अब जा कर घर में जुमे की नमाज अदा कर. और हां, दुआ में मुझे मत भूल जाना और भाभी की अच्छी सेहत की दुआ जरूर मांगना.’’ यह सुन कर मिर्जा झेंपते हुए अपने घर की तरफ चल दिए.