राम सिंह फौजी के घर से चिट्ठी आई थी. इतनी दूर रहते हुए आदमी के लिए चिट्ठी या खबर ही तो केवल एक सहारा होती है. ये चिट्ठियां भी अजीब होती हैं, कभी खुशी देती हैं, तो कभी दुख भी बढ़ा देती हैं.
राम सिंह फौजी के घर वालों की यह चिट्ठी भी अलग तरह की थी. उस में एक फौजी के घर वालों की सभी दिक्कतें लिखी थीं. बेटे ने लिखा था, ‘पापा, आप कैसे हैं? घर की दीवार गिरने लगी है और दादा भी आजकल बीमार रहते हैं. कोने वाली कोठरी की छत कभी भी गिर सकती है. परसों हुई मूसलाधार बारिश से उस में से बहुत पानी चू रहा था.
‘मां की हालत ठीक है. मैं अब रोजाना स्कूल जाता हूं. मेरी ड्रैस पुरानी हो गई है. पैंट भी मेरी घुटनों पर से फट गई है.
‘पापा, इस बार घर आते समय आप मेरी नई पैंट लेते आना. चप्पल जरूर लाना. छोटू के लिए आप खिलौने वाली टैंक और बंदूक लेते आना. आप जल्दी घर आना पापा.
‘आप का बेटा, राजू.’
राम सिंह सोचने लगा, ‘यह राजू भी होशियार हो गया है. केवल 10 साल का है, लेकिन चिट्ठी भी लिख लेता है. इस बार पैंट और चप्पल जरूर लेता जाऊंगा. छोटू के लिए खिलौने वाला टैंक और बंदूक भी लेता जाऊंगा. मैं इस बार जरूर छुट्टी लूंगा.’
‘‘राम सिंह, खाना खा लिया क्या?’’ पास ही से आवाज आई.
‘‘नहीं यार, खाया नहीं है. अभी थोड़ी देर में खा लूंगा.’’
‘‘कब खा लेगा? 8 बजे आपरेशन पर जाना है और साढ़े 7 बज चुके हैं,’’ राम सिंह का साथी फौजी रंजीत सिंह उस से बोला.
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