रतन की आवाज सुनते ही नैना बिछावन से उठ बैठी. रतन को देखते ही उस का मन किया कि उस के गले से लग जाए और रोरो कर अपना मन हलका कर ले, पर दूसरे ही पल उस का विचार बदल गया. उस के मन ने कहा कि रतन तो देशद्रोही है, किसी दुष्कर्मी से भी बड़ा अपराधी. जिस ने देश की एकता, अखंडता और अमन को भंग करने का संकल्प ले रखा हो, वैसे अपराधी से वह कैसे संबंध रख सकती है? यह सोच कर उस का मन नफरत से भर उठा. रतन को घूरते हुए उस की नजरें हिकारत से भर उठीं.
‘‘नैना हिम्मत से काम लो, हौसला बनाए रखो…’’
‘‘मत लो मेरा नाम, मुझे किसी की हमदर्दी की जरूरत नहीं. तुम सब एक ही थाली के चट्टेबट्टे हो. जिस थाली में खाते हो, उसी में छेद करते हो. तुम लोगों का एक ही धर्म है, इनसानियत को दागदार करना,’’ नैना गुस्से में रतन पर बरस पड़ी.
‘‘तुम गलत समझ रही हो, नैना. मैं वैसा आदमी नहीं हूं. मुझे कुछ लोगों ने एक साजिश के तहत फंसाया है. पुलिस के पास मेरे खिलाफ कोई सुबूत नहीं है. बम धमाके के मामले में मुझे नाहक ही घसीटा जा रहा है,’’ रतन ने अपनी सफाई देनी चाही.
‘‘फंसने के डर से कोई भी अपराधी अपना सुबूत वारदात वाली जगह पर नहीं छोड़ना चाहता, तो भला तुम क्यों छोड़ोगे? तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि नैना का बलात्कार हो गया, फिर भी वह किसी लाश की तरह जिंदा है. तुम पत्थरदिल हैवान, दिल की भाषा क्या जानो…?’’ अपने शब्दों के बाणों से रतन पर वार किया.
‘‘चुप रहो नैना, बहुत हो चुका…’’ गुस्से में रतन चीखा और बोला, ‘‘मैं एक इनसान हूं, बिलकुल तुम्हारी तरह. बस फर्क इतना है कि तुम अमीर बाप की बेटी हो और मैं गरीब का बेटा. तुम्हें क्या पता, इनसान कैसे अपराधी बनता है. जा कर उन मुसीबतों और हालात से पूछो.
‘‘जब मैं नौकरी के लिए दरदर की ठोकरें खा रहा था. काम नहीं मिलने पर भूख और प्यास से बिलबिलाता था. मेरे घर में न अनाज था, न पैसा. गरीब बेटे की मां एकएक पैसे के लिए उस की राह ताकती थी. अनजाने में एक दिन मैं नक्सलियों के हाथ लग गया. उन के दबाव में आ कर उन का काम करने लगा. उन के इशारे पर काम जरूर किया, लेकिन मौका मिलते ही एक दिन सब की पोल खोल कर रख दूंगा नैना, लेकिन क्या उन के खूनी पंजों से मुझे कानून बचा पाएगा…?’’
तभी नैना के मोबाइल की घंटी बज उठी. वह अपनी जगह से उठ कर बालकौनी में चली गई. उस ने काल रिसीव किया. कुछ पलों तक बात करने के बाद वह वापस आई और बोली, ‘‘आगे क्या हुआ…?’’
‘‘मेरे इस हालात के जिम्मेदार देश के भाग्यविधाता कहलाने वाले नेता हैं, जो अपने फायदे के लिए लोगों का इस्तेमाल करते हैं. कभी चुनाव के दौरान, तो कभी किसी दुश्मन को सबक सिखाने के लिए, तो कभी जनता में दहशत फैलाने के लिए. हर बार मेरे जैसे नौजवानों को गोली, बारूद जैस विस्फोटकों से जूझना पड़ता है. अपना सिर ऊंचा उठाने के लिए ये नेता लड़कों को गलत रास्ते पर धकलते हैं. देश के रक्षक ही भक्षक हो गए हैं.’’
तुम कहती हो कि मेरे पास दिल नहीं है. अगर दिल नहीं होता तो सड़क पर खून से लथपथ तुम को अपराधियों से क्यों बचाता. अगर हैवान होता तो तुम्हें मरने के लिए छोड़ नहीं देता. अस्पताल में भरती कराने के बाद कई बार तुम से मिलने गया, लेकिन डर था कि मुझे पहचानने के बाद तुम कोई नया हंगामा न खड़ा कर दो, इसलिए कभी तुम से बात करने की हिम्मत नहीं हुई. पर आज दिल ने कहा कि जो होगा देखा जाएगा, इसलिए तुम से मिलने आ गया…’’
‘‘क्या मुझे तू ने बचाया…?’’ हैरानी से नैना उसे देखते हुए बोल पड़ी और कहा, ‘‘अस्पताल के डाक्टरों का कहना है कि मंत्री सुरेश राय ने मुझे भरती कराया था.’’
‘‘हां, उन्होंने सही कहा था. मैं मंत्रीजी के लिए काम करता हूं. उस रात उन्हीं के साथ था. तभी सड़क पर एक लड़की को बेतहाशा दौड़ते हुए देखा था. जिस का कुछ लोग उस का पीछा कर रहे थे. अगर मैं गलत बोल रहा हूं तो लो मंत्रीजी का नंबर, उन्हीं से पूछ लो, क्योंकि बिना सुबूत के तुम्हें यकीन नहीं होगा.’’
‘‘नहीं रतन, अब मुझे सुबूत की जरूरत नहीं है. हो सके तो मुझे माफ कर दो…’’
‘‘अरे, इस में माफी की क्या बात है.’’
‘‘जरूरत है रतन, मैं ने मयंक के साथ मिल कर पुलिस को फोन कर बताया था कि तुम ओम सिनेमा घर के पास दोपहर का शो देखने जा रहे हो. तुम्हारी गिरफ्तारी के लिए मैं खुद गुनाहगार हूं.’’
‘‘खैर, तू ने जो कुछ किया, वह मयंक के बहकावे में आ कर किया. मैं तो कानून की नजरों में गुनाहगार हूं, पर तुम चाहो तो मैं बेकुसूर साबित हो सकता हूं.’’
‘‘मेरे रतन, मेरे अच्छे रतन,’’ अचानक नैना रतन के सीने से चिपक गई. देर तक दोनों एकदूसरे की बांहों में खोए रहे. जब मन का मैल धुल गया तो एकदूसरे से अलग हुए.
रतन ने उस से कहा, ‘‘नैना, अब कोई ऐसा काम नहीं करूंगा, जिस से तुम्हें शर्मिंदगी महसूस हो. आज ही मैं खुद को कानून के हवाले कर दूंगा. अगर उम्रभर के लिए कारावास भी हो जाए तो मेरी यादों के सहारे जेल की सलाखों के पीछे पूरी उम्र गुजार दूंगा…’’
‘‘रतन, मैं ने एक भूल और कर दी है…’’ नैना रतन से बोली,’’ तुम्हें इस के लिए कहीं जाना नहीं पड़ेगा. मेरे फ्लैट के बाहर पुलिस है. थोड़ी देर पहले इंसपैक्टर राजन छेत्री का फोन आया था.’’
‘‘नैना, मेरी अच्छी नैना, अब जेल में ही अपने किए का पछतावा करूंगा,’’ अचानक रतन ने उसे अपनी बांहों में समेट लिया और उस के होंठों को बेतहाशा चूमने लगा.