प्रेम की इबारत

बच्चे की चाह में : राजो क्या बचा पाई अपनी इज्जत

भौंरा की शादी हुए 5 साल हो गए थे. उस की पत्नी राजो सेहतमंद और खूबसूरत देह की मालकिन थी, लेकिन अब तक उन्हें कोई औलाद नहीं हुई थी. भौंरा अपने बड़े भाई के साथ खेतीबारी करता था. दिनभर काम कर के शाम को जब घर लौटता, सूनासूना सा घर काटने को दौड़ता. भौंरा के बगल में ही उस का बड़ा भाई रहता था. उस की पत्नी रूपा के 3-3 बच्चे दिनभर घर में गदर मचाए रखते थे. अपना अकेलापन दूर करने के लिए राजो रूपा के बच्चों को बुला लेती और उन के साथ खुद भी बच्चा बन कर खेलने लगती. वह उन्हीं से अपना मन बहला लेती थी.

एक दिन राजो बच्चों को बुला कर उन के साथ खेल रही थी कि रूपा ने न जाने क्यों बच्चों को तुरंत वापस बुला लिया और उन्हें मारनेपीटने लगी. उस की आवाज जोरजोर से आ रही थी, ‘‘तुम बारबार वहां मत जाया करो. वहां भूतप्रेत रहते हैं. उन्होंने उस की कोख उजाड़ दी है. वह बांझ है. तुम अपने घर में ही खेला करो.’’

राजो यह बात सुन कर उदास हो गई. कौन सी मनौती नहीं मानी थी… तमाम मंदिरों और पीरफकीरों के यहां माथा रगड़ आई, बीकमपुर वाली काली माई मंदिर की पुजारिन ने उस से कई टिन सरसों के तेल के दीए में मंदिर में जलवा दिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ. बीकमपुर वाला फकीर जबजब मंत्र फुंके हुए पानी में राख और पता नहीं कागज पर कुछ लिखा हुआ टुकड़ा घोल कर पीने को देता. बदले में उस से 100-100 के कई नोट ले लेता था. इतना सब करने के बाद भी उस की गोद सूनी ही रही… अब वह क्या करे?

राजो का जी चाहा कि वह खूब जोरजोर से रोए. उस में क्या कमी है जो उस की गोद खाली है? उस ने किसी का क्या बिगाड़ा है? रूपा जो कह रही थी, क्या सचमुच उस के घर में भूतप्रेत रहते हैं? लेकिन उस के साथ तो कभी ऐसी कोई अनहोनी घटना नहीं घटी, तो फिर कैसे वह यकीन करे? राजो फिर से सोच में डूब गई, ‘लेकिन रूपा तो कह रही थी कि भूतप्रेत ही मेरी गोद नहीं भरने दे रहे हैं. हो सकता है कि रूपा सच कह रही हो. इस घर में कोई ऊपरी साया है, जो मुझे फलनेफूलने नहीं दे रहा है. नहीं तो रूपा की शादी मेरे साथ हुई थी. अब तक उस के 3-3 बच्चे हो गए हैं और मेरा एक भी नहीं. कुछ तो वजह है.’

भौंरा जब खेत से लौटा तो राजो ने उसे अपने मन की बात बताई. सुन कर भौंरा ने उसे गोद में उठा लिया और मुसकराते हुए कहा, ‘‘राजो, ये सब वाहियात बातें हैं. भूतप्रेत कुछ नहीं होता. रूपा भाभी अनपढ़गंवार हैं. वे आंख मूंद कर ऐसी बातों पर यकीन कर लेती हैं. तुम चिंता मत करो. हम कल ही अस्पताल चल कर तुम्हारा और अपना भी चैकअप करा लेते हैं.’’

भौंरा भी बच्चा नहीं होने से परेशान था. दूसरे दिन अस्पताल जाने के लिए भाई के घर गाड़ी मांगने गया. भौंरा के बड़े भाई ने जब सुना कि भौंरा राजो को अस्पताल ले जा रहा है तो उस ने भौंरा को खूब डांटा. वह कहने लगा, ‘‘अब यही बचा है. तुम्हारी औरत के शरीर से डाक्टर हाथ लगाएगा. उसे शर्म नहीं आएगी पराए मर्द से शरीर छुआने में. तुम भी बेशर्म हो गए हो.’’ ‘‘अरे भैया, वहां लेडी डाक्टर भी होती हैं, जो केवल बच्चा जनने वाली औरतों को ही देखती हैं,’’ भौंरा ने समझाया.

‘‘चुप रहो. जैसा मैं कहता हूं वैसा करो. गांव के ओझा से झाड़फूंक कराओ. सब ठीक हो जाएगा.’’ भौंरा चुपचाप खड़ा रहा.

‘‘आज ही मैं ओझा से बात करता हूं. वह दोपहर तक आ जाएगा. गांव की ढेरों औरतों को उस ने झाड़ा है. वे ठीक हो गईं और उन के बच्चे भी हुए.’’ ‘‘भैया, ओझा भूतप्रेत के नाम पर लोगों को ठगता है. झाड़फूंक से बच्चा नहीं होता. जिस्मानी कमजोरी के चलते भी बच्चा नहीं होता है. इसे केवल डाक्टर ही ठीक कर सकता है,’’ भौंरा ने फिर समझाया.

बड़ा भाई नहीं माना. दोपहर के समय ओझा आया. भौंरा का बड़ा भाई भी साथ था. भौंरा उस समय खेत पर गया था. राजो अकेली थी. वह राजो को ऊपर से नीचे तक घूरघूर कर देखने लगा. राजो को ओझा मदारी की तरह लग रहा था. उस की आंखों में शैतानी चमक देख कर वह थोड़ी देर के लिए घबरा सी गई. साथ में बड़े भैया थे, इसलिए उस का डर कुछ कम हुआ.

ओझा ने ‘हुं..अ..अ’ की एक आवाज अपने मुंह से निकाली और बड़े भैया की ओर मुंह कर के बोला, ‘‘इस के ऊपर चुड़ैल का साया है. यह कभी बंसवारी में गई थी? पूछो इस से.‘‘ ‘‘हां बहू, तुम वहां गई थीं क्या?’’ बड़े भैया ने पूछा.

‘‘शाम के समय गई थी मैं,’’ राजो ने कहा.

‘‘वहीं इस ने एक लाल कपडे़ को लांघ दिया था. वह चुड़ैल का रूमाल था. वह चुड़ैल किसी जवान औरत को अपनी चेली बना कर चुड़ैल विद्या सिखाना चाहती है. इस ने लांघा है. अब वह इसे डायन विद्या सिखाना चाहती है. तभी से वह इस के पीछे पड़ी है. वह इस का बच्चा नहीं होने देगी.’’ राजो यह सुन कर थरथर कांपने लगी.

‘‘क्या करना होगा?’’ बड़े भैया ने हाथ जोड़ कर पूछा. ‘‘पैसा खर्च करना होगा. मंत्रजाप से चुड़ैल को भगाना होगा,’’ ओझा ने कहा.

मंत्रजाप के लिए ओझा ने दारू, मुरगा व हवन का सामान मंगवा लिया. दूसरे दिन से ही ओझा वहां आने लगा. जब वह राजो को झाड़ने के लिए आता, रूपा भी राजो के पास आ जाती.

एक दिन रूपा को कोई काम याद आ गया. वह आ न सकी. घर में राजो को अकेला देख ओझा ने पूछा, ‘‘रूपा नहीं आई?’’ राजो ने ‘न’ में गरदन हिला दी.

ओझा ने अपना काम शुरू कर दिया. राजो ओझा के सामने बैठी थी. ओझा मुंह में कुछ बुदबुदाता हुआ राजो के पूरे शरीर को ऊपर से नीचे तक हाथ से छू रहा था. ऐसा उस ने कई बार दोहराया, फिर वह उस के कोमल अंगों को बारबार दबाने की कोशिश करने लगा.

राजो को समझते देर नहीं लगी कि ओझा उस के बदन से खेल रहा है. उस ने आव देखा न ताव एक झटके से खड़ी हो गई. यह देख कर ओझा सकपका गया. वह कुछ बोलता, इस से पहले राजो ने दबी आवाज में उसे धमकाया, ‘‘तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, मैं समझ रही हूं. तुम्हारी भलाई अब इसी में है कि चुपचाप यहां से दफा हो जाओ, नहीं ंतो सचमुच मेरे ऊपर चुड़ैल सवार हो रही है.’’

ओझा ने चुपचाप अपना सामान उठाया और उलटे पैर भागा. उसी समय रूपा आ गई. उस ने सुन लिया कि राजो ने अभीअभी अपने ऊपर चुड़ैल सवार होने की बात कही है. वह नहीं चाहती थी कि राजो को बच्चा हो. रूपा के दिमाग में चल रहा था कि राजो और भौंरा के बच्चे नहीं होंगे तो सारी जमीनजायदाद के मालिक उस के बच्चे हो जाएंगे.

भौंरा के बड़े भाई के मन में खोट नहीं था. वह चाहता था कि भौंरा और राजो के बच्चे हों. राजो को चुड़ैल अपनी चेली बनाना चाहती है, यह बात गांव वालों से छिपा कर रखी थी लेकिन रूपा जानती थी. उस की जबान बहुत चलती थी. उस ने राज की यह बात गांव की औरतों के बीच खोल दी. धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैलने लगी कि राजो बच्चा होने के लिए रात के अंधेरे में चुड़ैल के पास जाती है. अब तो गांव की औरतें राजो से कतराने लगीं. उस के सामने आने से बचने लगीं. राजो उन से कुछ पूछती भी तो वे उस से

सीधे मुंह बात न कर के कन्नी काट कर निकल जातीं. पूरा गांव उसे शक की नजर से देखने लगा. राजो के बुलाने पर भी रूपा अपने बच्चों को उस के पास नहीं भेजती थी.

2-3 दिन से भौंरा का पड़ोसी रामदा का बेटा बीमार था. रामदा की पत्नी जानती थी कि राजो डायन विद्या सीख रही है. वह बेटे को गोद में उठा लाई और तेज आवाज में चिल्लाते हुए भौंरा के घर में घुसने लगी, ‘‘कहां है रे राजो डायन, तू डायन विद्या सीख रही है न… ले, मेरा बेटा बीमार हो गया है. इसे तू ने ही निशाना बनाया है. अगर अभी तू ने इसे ठीक नहीं किया तो मैं पूरे गांव में नंगा कर के नचाऊंगी.’’ शोर सुन कर लोगों की भीड़ जमा

हो गई. एक पड़ोसन फूलकली कह रही थी, ‘‘राजो ने ही बच्चे पर कुछ किया है, नहीं तो कल तक वह भलाचंगा खापी रहा था. यह सब इसी का कियाधरा है.’’

दूसरी पड़ोसन सुखिया कह रही थी, ‘‘राजो को सबक नहीं सिखाया गया तो वह गांव के सारे बच्चों को इसी तरह मार कर खा जाएगी.’’ राजो घर में अकेली थी. औरतों की बात सुन कर वह डर से रोने लगी. वह अपनेआप को कोसने लगी, ‘क्यों नहीं उन की बात मान कर अस्पताल चली गई. जेठजी के कहने में आ कर ओझा से इलाज कराना चाहा, मगर वह तो एक नंबर का घटिया इनसान था. अगर मैं उस की चाल में फंस गई होती तो भौंरा को मुंह दिखाने के लायक भी न रहती.’’

बाहर औरतें उसे घर से निकालने के लिए दरवाजा पीट रही थीं. तब तक भौंरा खेत से आ गया. अपने घर के बाहर जमा भीड़ देख कर वह डर गया, फिर हिम्मत कर के भौंरा ने पूछा, ‘‘क्या बात है भाभी, राजो को क्या हुआ है?’’ ‘‘तुम्हारी औरत डायन विद्या सीख रही है. ये देखो, किशुना को क्या हाल कर दिया है. 4 दिनों से कुछ खायापीया भी नहीं है इस ने,’’ रामधनी काकी

ने कहा. गुस्से से पागल भौंरा ने गांव वालों को ललकारा, ‘‘खबरदार, किसी ने राजो पर इलजाम लगाया तो… वह मेरी जीवनसंगिनी है. उसे बदनाम मत करो. मैं एकएक को सचमुच में मार डालूंगा. किसी में हिम्मत है तो राजो पर हाथ उठा करदेख ले,’’ इतना कह कर वह रूपा भाभी का हाथ पकड़ कर खींच लाया.

‘‘यह सब इसी का कियाधरा है. बोलो भाभी, तुम ने ही गांव की औरतों को यह सब बताया है… झूठ मत बोलना. सरोजन चाची ने मुझे सबकुछ बता दिया है.’’

सरोजन चाची भी वहां सामने ही खड़ी थीं. रूपा उन्हें देख कर अंदर तक कांप गई. उस ने अपनी गलती मान ली. भौंरा ओझा को भी पकड़ लाया, ‘‘मक्कार कहीं का, तुम्हारी सजा जेल में होगी.’’

दूर खड़े बड़े भैया की नजरें झुकी हुई थीं. वे अपनी भूल पर पछतावा कर रहे थे.

कांटों भरी राह पर नंगे पैर

नया सवेरा : आलोक की क्या कहानी थी

सावन का महीना, स्कूल-कालेज के बच्चे सुबह 8.30 बजे सड़क के किनारे चले जा रहे थे, इतने घमें नघोर घटाओं के साथ जोर से पानी बरसने लगा और सभी लड़के, लड़कियाँ पेड़ के नीचे, दुकानों के शेड के नीचे खड़े हो गये थे. उन्हें सबसे ज्यादा डर किताब, कापी भीगने का था. उन्हीं बच्चों में एक लड़की जिसका नाम व्याख्या था और वह कक्षा-6 में पढ़ती थी, वह एक मोटे आम के तने से सटकर खड़ी थी. पेड़ का तना थोड़ा झुका हुआ था जिससे वह पानी से बच भी रही थी. लगभग दस मिनट बाद पानी बन्द हो गया और धूप भी निकल आई.

एक लड़का जिसका नाम आलोक था, वह भी कक्षा-6 में ही व्याख्या के साथ पढ़ता था. वहाँ पर कोई कन्या पाठशाला न होने के कारण लड़के और लड़कियाँ उसी सर्वोदय काॅलेज में पढ़ते थे. आलोक बहुत गोरा व सुगठित शरीर का था लेकिन व्याख्या बहुत सांवली थी, व्याख्या संगीत विषय लेकर पढ़ रही थी, उसकी आवाज में एक जादू था, जो उसकी एक पहचान बन गयी थी. काॅलेज के कार्यक्रमों में वह अपने मधुर स्वर के कारण सभी की प्रिय थी. इसी तरह समय धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया और व्याख्या ने संगीत में कक्षा-10 तक काफी ख्याति प्राप्त कर ली थी.

आलोक उसी की कक्षा में था और वह व्याख्या को देखता रहता था. कभी भी कोई भी दिक्कत, परेशानी किसी भी प्रकार की होती थी, तो आलोक उसे हल कर देता था. दोपहर इन्टरवल में लड़कियों की महफिल अलग रहती और लड़कों की मंडली अलग रहती थी. लेकिन आलोक की नजर व्याख्या पर ही होती थी.

हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर व्याख्या कक्षा-11 में पहुंच गयी थी और आलोक भी कक्षा-10 उत्तीर्ण कर कक्षा-11 में पहुंच गया था. शाम 3 बजे से 4 बजे तक संगीत की क्लास चलती थी तथा सभी बच्चों में सबसे होशियार और मेहनती व्याख्या ही मानी जाती थी. कक्षा ग्यारह के बाद यानि कि छः वर्ष में व्याख्या ने संगीत प्रभाकर की डिग्री हासिल कर ली थी, जिससे शहर और अन्य शहरों में स्टेज कार्यक्रम के लिए आमंत्रित की जाने लगी. माँ वीणादायिनी ने व्याख्या को बहुत उम्दा स्वर प्रदान किये थे, जिसके कारण गायन में व्याख्या का नाम प्रथम पंक्ति में लिया जाना लगा. व्याख्या को कई सम्मानों से सम्मानित किया जाने लगा. अब तो जहाँ कहीं भी संगीत-सम्मेलन होता, सबसे पहले व्याख्या आहूत की जाती. यदि शहर में कार्यक्रम होता तो आलोक वहाँ व्याख्या को सुनने पहुँच जाता और व्याख्या कार्यक्रम देते समय एक नजर आलोक को जरूर देख लेती थी मगर उसका अधिक सांवलापन उसके जेहन को हमेशा झझकोरता रहता था.

धीरे-धीरे समय बीतता गया और व्याख्या ने संगीत की प्रवीण परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली, लेकिन इतना होने पर भी वह हर समय यही सोचती रहती थी कि मेरे माता-पिता इतने सुन्दर है फिर मैं काली कैसे पैदा हो गयी. उसका रूप-रंग ना जाने किस पर चला गया.

आज व्याख्या संगीत के चरम पर विराजमान थी. शास्त्रीय संगीत की दुनिया में लगातार सीढ़ियाँ चढ़ती चली जा रही थी और संगीत की दुनिया में राष्ट्रीय स्तर की एक जानी-मानी गायिका कहलाने लगी थी. उसे आज भी याद है कि…..

घर के बाहर खूबसूरत लाॅन में बैठी धीरे-धीरे ना जाने क्या सोचते-सोचते वह चाय का प्याला हाथ में लिए अपनी आरामवाली कुर्सी पर बैठी थी. ‘‘मेम साहब, आपका पत्र आया है ? ‘अरे आप ने तो चाय पी नहीं, अब तो यह बहुत ठंडी हो गयी होगी, लाइये दूसरी बना लाऊँ. ‘‘ बिना उत्तर की प्रतीक्षा करे हरि काका ने मेरे हाथ से प्याला लिया और पत्र मेज पर रखकर चले गये. मैंने देखा आलोक का पत्र था. ‘‘व्याख्या, तुम्हारे जाने के बाद मैं बहुत अकेला हो गया हूँ बहुत लड़ चुका हूँ मैं अपने अहं से. अब थक गया हूँ, हार चुका हूँ…….. मुझे नहीं मालूम कि मैं किसके लिए जी रहा हूँ,? मैं नहीं जानता कि मैं इस योग्य हूँ या नहीं, पर तुम्हारे वापस आने की उम्मीद ही मेरे जीवन का मकसद रह गया है, बस उसी क्षण का इन्तजार है, ना जाने क्यों…………….? आओगी न,…………..

पत्र पढ़ने के बाद व्याख्या की भाव शून्य आंखों में एक भाव लहरा कर रह गया. पत्र तहा कर उसने लिफाफे में रख दिया, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि आलोक जैसा जिद्दी, अभिमानी और कठोर दिल इंसान भी इस तरह की बातें कर सकता है. जरूर कोई मतलब होगा, मेज पर पड़ी किताब के पन्ने हवा के झोंके के कारण फड़फड़ाते हुये एक तरफ होने लगे. जिंदगी के पंद्रह वर्ष पीछे लौटना व्याख्या के लिए मुश्किल नहीं था क्योंकि उसके आज पर पन्द्रह वर्षों के यादों का अतीत कहीं न कहीं हावी हो जाता है.

सोचते-सोचते वह आज भी नहीं समझ पाई कि माँ-पापा तो खूबसूरत थे, पर उसकी शक्ल न जाने किस पर चली गयी, पर माँ उसे हमेशा हिम्मत बंधाती थी कि ‘‘कोई बात नहीं बेटी, ईश्वर ने तुझे रंग नहीं दिया तो क्या हुआ, तू अपने नाम को इतना विकसित कर ले कि सब तेरी व्याख्या करते ना थके.’’ बस व्याख्या ने सचमुच अपने नाम को एक पहचान देनी प्रारम्भ कर दी. उसने हुनर का कोई भी क्षेत्र नहीं छोड़ा, साथ ही ईश्वर की दी गयी वो नियामत जिसे व्याख्या ने पायी थी., ‘सुरीली आवाज’ जिसके कारण वह संगीत की दुनिया में लगातार सीढ़िया चढ़ती गयी और शास्त्रीय संगीत की दुनिया में राष्ट्रीय स्तर की एक जानी मानी गायिका कहलाने लगी.

उसे आज भी याद है कि अहमदाबाद का वो खचाखच भरा सभागार और सामने बैठे जादू संगीतज्ञ पं0 राम शरन पाठक जी. सितार पर उंगलिया थिरकते ही, सधी हुई आवाज का जादू लगातार डेढ़ घंटे तक दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर गया. दर्शकों की तालियाँ और पं0 जी के वो वचन कि ‘‘बेटी तुम बहुत दूर तक जाओगी. शायद आज उनकी वो बात सच हो गयी लेकिन उन दर्शकों में एक हस्ती, जो नामी-गिरामी लोगों में जानी जाती थी, देवाशीस जी, उनका खत एक दिन पिता के नाम पहुँचा कि ‘‘हमें अपने बेटे के लिए आपकी सुपुत्री चाहिए जो साक्षात सरस्वती का ही रूप है. ‘‘एक अंधा क्या मांगे दो आंखे. मेरे पिताजी ने बगैर कुछ सोचे समझे हाँ कर दी. शादी के समय मंडप पर बैठे उन्हें देखा था, एक संुदर राजकुमार की तरह लग रहे थे. सभी परिवार के लोग मुझे मेरी किस्मत पर बधाई दे रहे थे. पर खुदा को कुछ और मंजूर था. आलोक जिन्हें मैं बिल्कुल पसन्द नहीं थी. शादी के बाद क्या, उसी दिन ही अपने पिताजी से लड़ना कि ‘‘कहाँ फसा दिया’’ इस बदसूरत लड़की के साथ.

आलोक घर पर नहीं रूके और पूरे आग बबूला होकर घर छोड़कर चले गये. मेरे सास-ससुर ने सचमुच दिलासा दी. सुबह उठकर नहा धोकर बहू के सारे कर्तव्य निभाते हुये मैं भगवान भजन भी गाती रही. सास ससुर तो अपनी बहू की कोयल सी आवाज पर मंत्र मुग्ध थे, पर मैं कहीं न कहीं अपनी किस्मत को रो रही थी. आलोक पन्द्रह-बीस दिन में कभी-कभार आते थे, लेकिन मेरी तरफ रूख भी नहीं करते थे, बस अपनी जरूरत की चीजें लेकर तुरन्त निकल जाते थे, अब तो यह नियम सा बन गया था. मैं भी अपनी किस्मत को ही निर्णय मान लिया लेकिन कहीं न कही आलोक का इंतजार भी था.

एक दिन मुझे चुपचाप बैठे देख ससुर जी ने कहा-कि ‘‘मैं तो एक बढ़िया सी खुशखबरी लाया हूँ, वो यह कि एक संगीत आयोजन में विशेष  प्रस्तुति के लिए तुम्हारे नाम का आमंत्रण आया है, ‘‘पर बाबूजी मुझे तो दो साल हो गये हैं स्टेज शो किये हुए. अब डर लगता है, पता नहीं क्यों ? में आत्मविश्वास खो सा गया है. नहीं-नहीं मैं नहीं गा पाऊँगी‘‘व्याख्या ने कहा. तुम गा सकती हो, मेरी बेटी जरूर गायेगी और जायेगी, पिता जी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा. ‘‘बाबूजी के विश्वास से ही मैंने अपना रियाज शुरू कर दिया. बाबूजी घंटो मेरे साथ रियाज में मेरा साथ देते. वो दिन आ गया. खचाखच भरा वही सभागार, अचानक उसे याद आया कि उसी मंच से तो उसके जीवन में अंधेरा आया लेकिन आज इसी मंच से तो उसके जीवन का नया सवेरा होने वाला है. कार्यक्रम के बाद दर्शकों की बेजोड़ तालियों ने एक बार फिर मुझे वो आत्मविश्वास भर दिया जो सालों पहले कहीं खो गया था.

दूसरे दिन मैं अपनी तस्वीर अखबार में देख रहीं थी कि बाबूजी अचानक घबराते हुए आये और कहने लगे बेटी ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ, आलोक का एक्सीडंेट हो गया.’’ व्याख्या के चेहरे पर कोई शिकन न उभरी लेकिन अचानक हाथ सर की मांग में भरे सिंदूर पर गया कि यह तो आलोक के नाम का है.

मैं बाबूजी के साथ गाड़ी में बैठ गयी. अस्पताल में शरीर पर कई जगह पर गहरी चोटों को लिए आलोक बुरी हाल में डाक्टरों की निगरानी में था. पुलिस ने मुझसे आकर पूछा कि-‘‘आप जानती हैं, इसके साथ कार में कौन था ?‘‘मैं समझ नहीं पाई कि किसकी बात हो रही है, फिर थोड़ी देर में पता चला कि आलोक के गाड़ी में जो मैडम थी, उनको नहीं बचाया जा सका. पूरे एक हफ्ते बाद जब आलोक को होश आया तो आंखें खुलते ही उसने पूछा-‘‘मेघा कहाँ है’’? डाॅक्टर साहब, वह ठीक तो है न ? वह मेरी पत्नी है.‘‘ पुलिस की पूछ-ताछ से पता चला कि उन दोनों का एक पाँच महीने का बेटा भी है जो अभी नानी के यहां है ? व्याख्या के सब्र का बांध टूट गया और उसमें इससे ज्यादा कुछ सुनने की शक्ति न बची. 6-7 महीने का कम्पलीट बेड रेस्ट बताया था डाॅक्टर ने. आलोक घर आ चुका था. व्याख्या आलोक का पूरा ध्यान रखती, खाने-पीने का, दवाई का. पूरी दिनचर्या के हर काम वह एक पत्नी की अहमियत से नहीं, इंसानियत के रिश्ते से कर रही थी. चेहरे पर पूरा इत्मीनान, कोमल आवाज, सेवा-श्रद्धा, धैर्य, शालीनता ना जाने और कितने ही गुणों से परिपूर्ण व्याख्या का वह रूप देखकर खुद अपने व्यवहार के प्रति मन आलोक का मन आत्मग्लानि से भर जाता. इतना होने पर भी वही भावशून्य व्यवहार.

कितनी बार मन करा कि वो मेरे पास बैठे और मैं उससे बाते करूँ, लेकिन वह सिर्फ काम से काम रखती, सेवा करती और मेरे पास बोलने की हिम्मत न होने के कारण शब्द मुंह में रह जाते. व्याख्या अपने कार्यक्रम के लिए बाबूजी के साथ भोपाल गयी थी. आलोक ने सोचा लौटने पर अपने दिल की बात जरूर व्याख्या से कह देगा और मांफी मांग लेगा. भोपाल से लौटने पर बाबूजी ने खबर दी कि-‘‘मेरी बहू का दो साल तक विदेशों में कार्यक्रम का प्रस्ताव मिला है, अब मेरी बहू विदेशों में भी अपने स्वर से सबको आनन्दित करेगी. ‘‘एक दिन जब व्याख्या सुबह नहाकर निकली तो आलोक ने कहा-‘‘ मैं अपनी सारी गलतियों को स्वीकारता हूँ. मैं गुनहगार हूँ तुम्हारा………………….मुझे माफ कर दो………..’’ कितना आसान होता है न मांफी मांगना. पर सब कुछ इससे नहीं लौट सकता ना, जो मैंने खोया है, जितनी पीड़ा मैने महसूस की है, जितने आंसू मैनें बहाए हैं, जितने कटाक्ष मैनें झेले हैं. क्या सच है उसकी बिसात और फिर आलोक जो आपने किया यदि मैं करती तो क्या मुझे स्वीकारते ? नहीं, कभी नहीं बल्कि मुझे बदचलन होने का तमगा और तलाक का तोहफा मिलता. व्याख्या ने बिना कुछ कहे मन में सोचा. व्याख्या के कुछ न कहने पर उस समय तो आलोक को मानो काठ मार गया. वो अपनी जिंदगी की असलियत पर  पड़ा परदा हटते देख रहा था कि वह कैसा था…‘‘इतने दिनों तक मैनें आपकी सेवा की, आपका एहसान उतारने के लिए. मैं वास्तव में एहसान मंद हूँ. आपने जितना अपमानित किया उतना ही अधिक अपने लक्ष्य के प्रति मेरा निश्चय दृढ हुआ है.‘‘ अचानक व्याख्या की आवाज से आलोक अपनी सोच से बाहर आया. व्याख्या एक आर्कषक अनुबंध के अंतर्गत विदेश यात्रा पर निकल गयी और अब जब कभी वह लौटती तो, प्रायोजकों के द्वारा भेंट किये गये किराये के बंगले पर ठहरती, लेकिन कभी-कभार बाबूजी से मिलने जरूर आती. एक-एक दिन करके महीने और अब तो कई साल गुजर गये, सभी अपने आप में मस्त हैं. संगीत के अलावा कुछ नहीं सूझता व्याख्या को. अब तो वही उसके लिए प्यार, वही जीवनसाथी. कार्यक्रमों की धूम, प्रशंसकों की भीड़ पूरे दिन व्यस्त रहती, मगर फिर एक रिक्तता थी, जीवन में. रह रहकर आलोक का ख्याल आता, दुर्घटना के पहले और बाद में आलोक के साथ बिताए एक-एक पल उसकी स्मृति में उमड़ने-घूमड़ने लगे. लेकिन आज आलोक की यह छोटी सी चिट्ठी. पर इतने छोटे से कागज पर, कम मगर कितने स्पष्ट शब्दों में बरसों की पीड़ा को सहजता से उकेर कर रख दिया है उसने, आखिर कब तक अकेली रहेगी वह? सब कुछ है उसके पास, मगर वह तो नहीं है जिसकी ज़रूरत सबसे ज्यादा है. व्याख्या सोच में पड़ गयी. बाबूजी भी बीमार चल रहे हैं, मिलने जाना होगा.

अगले ही दिन व्याख्या ससुराल पहुँची, चेहरे पर टांको के निशानों के साथ आलोक बहुत दुबला प्रतीत हो रहा था. बाबूजी को देखने के पश्चात जैसे ही व्याख्या दरवाजे के बाहर निकली, आलोक ने उसका हाथ थाम लिया. बरसों पहले कहा गया वाक्य फिर से लड़खड़ाती जुबान से निकल पड़ा-‘‘व्याख्या, क्या हम नई जिंदगी की शुरूआत नहीं कर सकते? ‘‘क्या तुम मुझे माफ नहीं कर सकती? व्याख्या की निगाहें आलोक के चेहरे पर टिक गयी. घबरा कर आलोक व्याख्या का हाथ छोड़ने ही वाला था कि व्याख्या मुस्करा उठी. मजबूती से आलोक ने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए ‘‘अब मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगा. ‘‘व्याख्या शरमा कर आलोक के सीने से लग गयी. आज उसके दीप्तिमान तेजोमय मुखमंडल पर जो मुस्कान आई उसे लगा वास्तव में आज ही उसकी संगीत का रियाज पूरा हुआ और आत्म संगीत की वर्षा हुई है. क्योंकि कल उसके जीवन का नया सवेरा जो आने वाला था.

लेखिका- डाॅ0 अनीता सहगल ‘वसुन्धरा’

मरीचिका : मधु के साथ उस रात आखिर क्या हुआ

मधु अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में किसी अपराधी की तरह सिर झुकाए बुत बनी बैठी थी. पता ही नहीं चला कि वह कितनी देर से ऐसे ही बैठी थी. एकएक पल कईकई साल की तरह बीत रहा था. उसे रहरह कर पिछले कुछ महीनों की उथलपुथल भरी घटनाएं भुलाए नहीं भूल रही थीं.

मधु की नौकरी जब शहर की एक बड़ी कंपनी में लगी थी, तो घर में खुशी का माहौल था. लेकिन साथ ही मम्मीपापा को यह चिंता भी थी कि अपने शहर से दूर उस अनजान बड़े शहर में बेटी को कैसे भेजें? आखिर वह वहां कैसे रहेगी?

फिर उस ने ही मम्मीपापा का हौसला बढ़ाया था और कहा था कि शहर भेज रहे हैं या जंगल में? लाखों लोगों में आप की बेटी अकेले कैसे रहेगी? उस जैसी और भी बेटियां वहां होंगी या नहीं?

जब वे लोग शहर पहुंचे, तो मम्मीपापा उसे नौकरी जौइन करा कर और उस की ही जैसी 3 और लड़कियों के गु्रप में छोड़ कर घर लौट आए. थोड़े ही दिनों के बाद उन में से 2 लड़कियों के रहने का इंतजाम उन के साथियों ने कर दिया.

मधु और एक दूसरी लड़की, जिस का नाम प्रीति था, भी इसी कोशिश में लगी थीं कि रहने का कुछ ठीक से इंतजाम हो जाए, तो जिंदगी ढर्रे पर आ जाए.

एक दिन मधु और प्रीति कंपनी में कैंटीन से लौट रही थीं, तो स्मोकिंग जोन से एक लड़की ने मधु का नाम ले कर आवाज लगाई. वह ठिठक गई कि यहां कौन है, जो उसे नाम ले कर आवाज लगा रहा है?

मधु ने उधर देखा तो एक स्मार्ट सी दिखने वाली लड़की, जिस के हाथ में सिगरेट थी, उसे बुला रही थी. वे दोनों बिना कुछ सोचे उस के पास चली गईं.

‘‘मैं श्वेता हूं. सुना है कि तुम रहने की जगह देख रही हो? मेरे पास जगह है,’’ उस लड़की ने सिगरेट के धुएं का छल्ला छोड़ते हुए कहा.

‘‘हां, लेकिन आप…’’ मधु को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या बोले.

‘‘ऐसी ही हूं मैं. कल मैं इसी समय इधर ही मिलूंगी. सोचो और फैसला लो,’’ उस लड़की ने सिगरेट का आखिरी कश जोर से खींचा और वहां से चली गई.

वे दोनों उसे देखती रह गईं. उन्होंने श्वेता के बारे में पता किया, तो पता चला कि वह खुली सोच वाली लड़की है, पर है दिल की साफ. साथ ही यह भी कि वह तलाकशुदा मातापिता की एकलौती औलाद है, इसीलिए इतनी बिंदास है. उस के पास अपना फ्लैट भी है, जिसे वह नए आने वालों से शेयर करती है.

मधु और प्रीति को तो जैसे मनचाही मुराद मिल गई. उन्होंने फ्लैट देखा और पसंद आने पर उस के साथ रहने लगीं.

एक दिन श्वेता की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए वह उस दिन दफ्तर नहीं गई. जब शाम को मधु और प्रीति घर लौटीं, तो उन्होंने श्वेता के साथ एक लड़के को बैठे देखा.

श्वेता ने बताया कि वह लड़का उस का दूर का भाई है और अब उन के साथ ही रहेगा.

यह सुन कर मधु और प्रीति उस पर काफी नाराज हुईं, लेकिन श्वेता इस बात पर अड़ी रही कि वह उस के साथ ही रहेगा. उस ने तो यहां तक कह दिया कि वे चाहें तो अपने रहने का इंतजाम दूसरी जगह कर सकती हैं. यह सुन कर वे सन्न रह गईं.

इस के बाद मधु और प्रीति डरीसहमी उन के साथ रहने लगीं. उन्होंने देखा कि श्वेता का वह दूर का भाई कुछ दिन तो बालकनी में सोता था, लेकिन बाद में वह उस के बैडरूम में ही शिफ्ट हो गया.

जब उन्होंने एतराज किया, तो श्वेता बोली, ‘‘मेरा रिश्तेदार है और मेरा ही फ्लैट है. तुम्हें क्या दिक्कत है?’’

श्वेता का यह रूप देख कर मधु को उस से नफरत हो गई. वैसे, मधु के सीधेसहज स्वभाव के चलते श्वेता उस से उतनी नहीं खुली थी, लेकिन प्रीति से वह खुली हुई थी. वह उस को अपने दैहिक सुख के किस्से सुनाती रहती थी. कई बार मधु को भी यही सबकुछ दिखातीसुनाती, मधु थोड़ी असहज हो जाती.

एक दिन मधु प्रीति और श्वेता दोनों पर इन बातों के लिए खासा नाराज हुई. आखिर में किसी तरह प्रीति ने ही बात संभाली.

मधु ने उसी समय यह तय किया कि वह अब इन लोगों के साथ नहीं रहेगी. वह अगले दिन दफ्तर में पापा की तबीयत खराब होने का बहाना कर के अपने शहर चली गई थी.

घर के लोग मधु के तय समय से 15 दिन पहले ही अचानक आ जाने से खुश तो बहुत थे, पर समझ नहीं सके थे कि वह इतने दिन पहले कैसे आई थी. लेकिन उस ने उस समय घर वालों को यह नहीं बताया कि वह किस वजह से आई थी.

कुछ दिन वहां रुक कर मधु वापस आ गई. उस ने प्रीति को रेलवे स्टेशन से ही फोन लगाया. उस ने बताया, ‘तेरे जाने के बाद अगले दिन ही मैं भी अपने शहर चली गई थी, क्योंकि श्वेता और उस के भाई के साथ रहना मुझे बहुत भारी पड़ रहा था. मेरे घर वाले मुझे नौकरी पर नहीं जाने दे रहे हैं.’

यह सुन कर तो मधु के पैरों तले जमीन खिसक गई. उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि क्या करे, क्या न करे. एक मन कर रहा था कि ट्रेन में बैठ कर घर लौट जाए, लेकिन वह नहीं गई.

मधु ने असीम को फोन लगाया. वह उस के साथ दफ्तर में काम करता था. मधु ने रोंआसा होते हुए बात की, तो उस ने हिम्मत दी, फिर रेलवे स्टेशन आ गया.

असीम ने मधु को समझाबुझा कर श्वेता के फ्लैट पर रहने के लिए राजी किया. वह उसे वहां ले कर भी गया. श्वेता और उस का ‘भाई’, जिस का नाम कुणाल था, उन को देख कर हैरान रह गए. फिर सहज होते हुए श्वेता ने मधु को गले लगा लिया.

‘अरे वाह, तू भी. वैलडन,’  श्वेता ने असीम की ओर देख कर उसे एक आंख मारते हुए कहा.

‘‘तू जैसा समझ रही है, वैसा कुछ भी नहीं है,’’ मधु एकदम सकपका गई.

‘‘कोई बात नहीं यार. शुरू में थोड़ा अटपटा लगता है, फिर मजे ही मजे,’’ श्वेता बोली.

‘‘तू गलत समझ रही है,’’ मधु ने उसे फिर समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने उसे मुंह पर उंगली रख कर चुप रहने का इशारा किया और फ्रिज से कोल्डड्रिंक निकाल कर सब को देने लगी.

असीम कुछ समझ नहीं पा रहा था या समझ कर भी अनजान बन रहा था, कहना मुश्किल था. फिर बातों ही बातों में श्वेता ने अपने और कुणाल के बारे में सबकुछ बेबाकी से बताया. मधु की उम्मीद के उलट कुणाल ने उन सब को बड़ी सहजता से लिया. जब असीम वापस जाने लगा, तो उस ने कहा कि वह मधु के रहने का दूसरा इंतजाम करेगा और यह भी कि तब तक वह बारबार आता रहेगा. मधु किसी तरह मन मार कर वहीं रहने लगी.

‘हमारी कोई शादी नहीं हुई तो क्या फर्क पड़ता है, देखेंगे… जब जरूरत लगेगी, तब कर लेंगे. ऐसे रहने में क्या बुराई है?’

श्वेता अकसर मधु से बातें करते हुए कहती थी. मधु को कई बार यह भी लगता था कि वह सच ही तो कह रही है.

एक दिन मधु शाम को दफ्तर से घर लौटी, तो पाया कि श्वेता और कुणाल ब्लू फिल्म देख रहे थे.

मधु को लगा, जैसे वह उन दोनों का बैडरूम ही हो. उन के कपड़े यहांवहां बिखरे पड़े थे. शराब की बोतल मेज पर खुली रखी थी. वे दोनों उस फिल्म में पूरी तरह डूबे हुए थे.

अजीब सी आवाजों ने मधु को असहज कर दिया था. वह जल्दी से अपने कमरे की ओर बढ़ी, तो श्वेता ने उस से कहा, ‘‘हमारे साथ बैठो और जिंदगी का मजा लो.’’

मधु ने उसे अनसुना कर के खुद को कमरे में बंद कर लिया. फिर यह सिलसिला चलने लगा. असीम भी अकसर वहीं आ जाता था. मधु आखिर कब तक अपने को बचा पाती. उस पर भी उस माहौल का असर होने लगा था. अब वह भी यह सब देखनेसुनने में मजा लेने लगी थी.

एक शनिवार को असीम ने कहीं पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम बनाया, तो मधु मना नहीं कर सकी. वह सारा दिन मजे और मस्ती में बीत गया.

रात होतेहोते बादल घिरने लगे. थोड़ी ही देर में तेज बारिश होने लगी और वे अपने शहर की ओर चल दिए.

मधु के मना करने के बावजूद असीम उसे घर तक छोड़ने आया था और आते ही सोफे पर पसर गया था. थोड़ी ही देर में उसे गहरी नींद आ गई थी.

मधु ने असीम को थोड़ी देर सोने दिया, फिर उसे जगा कर वहां से जाने को कहा.

इतने में टैलीविजन पर उन के फ्लैट के पास वाले मौल में बम धमाका होने की खबर आई. पुलिस हरकत में आती, तब तक वहां दंगा शुरू हो गया था.

श्वेता और कुणाल खुश हो रहे थे कि दंगा होने से कंपनी से छुट्टी मिलेगी और वे मजे करेंगे. असीम वहां से न जा पाने के चलते बेचैन था और मधु  उस से भी ज्यादा परेशान थी कि आखिर रात को वह कहां रुकेगा?

असीम ने जाने की कोशिश की और मधु ने उसे भेजने की, पर पुलिस ने शहर के हालात का हवाला दे कर उस की एक नहीं सुनी. उसे वहीं रुकना पड़ा.

मधु न जाने क्यों मन ही मन डर रही थी. श्वेता और कुणाल सोने चले गए थे. मधु ने असीम को चादरतकिया दे कर सोफे पर सोने को कहा, फिर वह भी सोने चली गई.

अचानक मधु की नींद खुली, तो देखा कि असीम उस के जिस्म से खेल रहा था. वह चीख पड़ी और जोर से चिल्लाई. असीम ने उसे चुप रहने को कहा और उस से जबरदस्ती करने लगा.

मधु किसी कातर चिडि़या की तरह तड़पती ही रह गई और असीम एक कामयाब शिकारी जैसा लग रहा था.

मधु चिल्लाते हुए ड्राइंगरूम में और उस के बाद उस ने श्वेता के बैडरूम का दरवाजा जोर से बजाया.

श्वेता और कुणाल तकरीबन अधनंगे से बाहर आए. वह उन्हें देख कर असहज हो गई और सबकुछ बताया.

‘‘तुम जरा सी बात के लिए इतना चीख रही हो?’’ श्वेता बोली, फिर उस ने कुणाल के कंधे पर सिर रखा और बोली, ‘‘चलो, अपना अधूरा काम पूरा करते हैं.’’

वे दोनों अपने बैडरूम में चले गए.

मधु नीचे फर्श पर बैठी रो रही थी. वहां कोई नहीं था, जिस पर वह भरोसा करती और जो उसे दिलासा देता. फिर वह अपनेआप को किसी तरह संभालने की कोशिश कर रही थी कि उस ने  अपने माथे पर किसी का हाथ महसूस किया. देखा तो असीम था. उस ने उस का हाथ झटक दिया और उसे बेतहाशा पीटने लगी.

असीम उस की मार सहता हुआ थोड़ी देर तक खड़ा रहा. मधु थकहार कर निढाल हो कर बैठ गई.

‘‘लो, पानी पी लो,’’ असीम पानी का गिलास लिए खड़ा था.

मधु ने जोर से झटक कर गिलास फेंक दिया.

‘‘लो, पानी पी लो,’’ असीम फिर से गिलास में पानी भर कर लाया था.

मधु ने जलती आंखों से उसे देखा, तो एक पल के लिए वह सहम गया. फिर उस ने मधु के मुंह से गिलास

लगा दिया.

मधु ने पानी पी कर उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

असीम ने उसे बड़े प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘क्या मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘मुझे नहीं करनी किसी फरेबी से शादी. मैं पुलिस के पास जा रही हूं.’’

मधु हिम्मत कर के उठी.

‘‘शौक से जाओ,’’ कह कर असीम ने फ्लैट का दरवाजा खोल दिया.

मधु बिल्डिंग के बाहर आई. उसे देख कर दरबान चिल्लाया, ‘‘मेम साहब, अंदर जाइए. पुलिस को देखते ही गोली मार देने का आदेश है.’’

तब मधु को उस से पता चला कि शहर के हालात कितने खराब हो गए थे. वह थकहार कर वापस आ गई.

मधु कुछ दिनों तक गुमसुम रही, लेकिन श्वेता के कहने पर वह असीम के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

मधु ने एक दिन पूछा, तो पता चला कि श्वेता पेट से है और कुणाल, जो कल तक दिनरात शादी की बात करता था, शादी से मुकर रहा था.

जब श्वेता उस से शादी के लिए बारबार कहने लगी, तो वह उसे मारनेपीटने लगा.

यह देख कर मधु दौड़ी और उस ने कुणाल को रोका. उस ने उन दोनों को समझाने की कोशिश की, पर वे अपनीअपनी बात पर अड़े हुए थे.

जब श्वेता कुणाल पर ज्यादा दबाव डालने लगी, तो वह शादी करने से एकदम मुकर गया और कभी शादी न करने की बात कह कर वहां से चला गया.

मधु और श्वेता उसे रोकती रह गईं. श्वेता किसी घायल पक्षी की तरह तड़पती रह गई. मधु को उस की यह हालत देख कर दया भी आई और गुस्सा भी.

श्वेता की इस अनचाही खबर के कुछ दिन बाद ही मधु को भी यह एहसास हुआ कि वह भी पेट से है. तब उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. उस ने असीम से यह ‘खुशखबरी’ कही, तो उस ने लापरवाही से कहा, ‘‘ठीक है, देखते हैं कि क्या हो सकता है.’’

‘‘मतलब? हम जल्दी ही शादी कर लेते हैं,’’ मधु ने खुशी से कहा.

‘‘अभी हम शादी कैसे कर सकते हैं? अभी तो मेरा प्रोजैक्ट चल रहा है. वह पूरा होने में एकाध साल लगेगा, उस के बाद देखा जाएगा,’’ असीम बोला.

‘‘फिर हमारा बच्चा?’’ मधु ने पूछा.

‘‘हमारा नहीं तुम्हारा. वह तुम्हारा सिरदर्द है, मेरा नहीं,’’ असीम बेशर्मी से बोला, तो मधु उस के बदले रूप को देखती रह गई.

मधु जब असीम से शादी करने के लिए बारबार कहने लगी, तो एक दिन वह भाग गया. पता करने पर

मालूम हुआ कि वह तो कंपनी के एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में विदेश जा चुका है. साथ ही, यह भी कि उस का विदेश जाने का तो पहले से ही प्रोग्राम तय था, लेकिन उस ने मधु को इस बारे में हवा तक नहीं लगने दी.

मधु हाथ मलती रह गई. अब वह और श्वेता एक ही दुख की दुखियारी थीं. श्वेता और मधु ने बारीबारी से बच्चा गिराने का फैसला लिया. डाक्टर ने भी भरपूर फायदा उठाया और उन से मोटी रकम ऐंठी.

आज श्वेता की बच्चा गिराने की बारी थी और मधु उस की देखभाल के लिए साथ आई थी. कल को उसे भी तो इसी दौर से गुजरना है.

अचानक दरवाजे पर हुई हलचल ने मधु का ध्यान तोड़ा. नर्सिंग स्टाफ श्वेता को बेसुध हाल में बिस्तर पर लिटा गया.

मधु खुद को श्वेता की जगह रख कर ठगी सी बैठी थी. उन्होंने जिस सुख को अपनी जिंदगी मान लिया था, वह मरीचिका की तरह सिर्फ छलावा साबित हुआ था.

एक तीर से कई निशाने

सपना: कौनसे सपने में खो गई थी नेहा

सोने का घाव

लावारिस : क्यों प्रमोद का दिल बहलाती थी सुनयना

‘‘तुम्हें गोली लेने को कहा था,’’ प्रमोद ने शिकायत भरे लहजे में कहा. ‘‘मैं ने जानबूझ कर नहीं ली,’’ सुनयना ने कहा.

‘‘पागल हो गई हो,’’ अपने कपड़े पहन चुके और बालों में कंघी करते हुए प्रमोद ने कहा.

‘‘बच्चा जिंदगी में खुशियां लाता है, घर में चहलपहल हो जाती है और बुढ़ापे का सहारा भी बनता है,’’ सुनयना ने प्रमोद को समझाया. ‘‘बंद करो अपनी बकवास. मैं तुम से बच्चा कैसे चाह सकता हूं. मेरी तो सोशल लाइफ ही खत्म हो जाएगी,’’ गुस्से से चिल्लाते हुए प्रमोद ने कहा.

‘‘तो आप को खुद ध्यान रखना चाहिए था. मैं ने आप से कंडोम का इस्तेमाल करने को कहा था.’’ ‘‘मुझे मजा नहीं आता. आजकल तो औरतों के कंडोम भी आते हैं, तुम्हें इस्तेमाल करने चाहिए.’’

‘‘जो भी हो, इस बार मैं बच्चा नहीं गिरवाऊंगी,’’ सुनयना ने दोटूक कहा. ‘‘तो तुम पछताओगी,’’ धमकता हुआ प्रमोद बोला. फिर दरवाजा खोल वह बाहर चला गया.

प्रमोद कारोबारी था. उस के पास खूब दौलत थी. घर में खूबसूरत पत्नी थी और 3 बच्चे थे. प्रमोद ने अपना दिल बहलाने के लिए एक रखैल सुनयना रखी हुई थी. उस को फ्लैट ले कर दिया हुआ था. मिलने के लिए वह हफ्ते में 2-3 दफा वहां आता था. कभीकभी वह उसे बिजनैस टूर पर भी ले जाता था.

सुनयना तकरीबन 3 साल से प्रमोद के साथ थी. बीचबीच में 3-4 बार वह पेट से भी हुई थी, लेकिन चुपचाप पेट साफ करवा आई थी. एक रात मेकअप करते समय सुनयना की नजर अपने चेहरे पर उभरती झुर्रियों और सिर में 3-4 सफेद बालों पर पड़ी. उसे चिंता हो गई कि अगर उस का ग्लैमर खत्म हो गया, तब क्या होगा?

प्रमोद को कोई और जवान रखैल मिल जाएगी. ऐसी औरतों को बुढ़ापे में कौन पूछता है. सुनयना के पास प्रमोद द्वारा दिए गए जेवर काफी थे. बैंक के लौकर में जमापूंजी भी काफी थी. अपने मातापिता को पैसे भेजने के बाद भी उस के पास अच्छीखासी रकम बच जाती थी.

उसी रात सुनयना ने सोचा कि अगर उसे प्रमोद से एक बच्चा हो जाए, तो वह उस के बुढ़ापे का सहारा बन जाएगा. इस के बाद से सुनयना ने पेट से न होने वाली गोलियों को खाना बंद कर दिया था. प्रमोद भी कंडोम का इस्तेमाल कम ही करता था. नतीजतन, सुनयना पेट से हो गई.

प्रमोद गुस्से से लालपीला हो रहा था. कल को सुनयना उसे ब्लैकमेल कर सकती थी. 3-4 दिन बाद प्रमोद सुनयना से मिलने आया और उस से पूछा, ‘‘बच्चा गिरवाया कि नहीं?’’

‘‘मैं ने तुम से कहा था न कि मैं बच्चा चाहती हूं.’’ ‘‘तुम से मेरा बच्चा कैसे हो

सकता है?’’ ‘‘क्यों नहीं हो सकता? यह बच्चा मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा.’’

उस शाम को प्रमोद सुनयना के पास जैसे आया था, वैसे ही चला गया. उस के मन में एक ही सवाल उठ रहा था कि अगर सुनयना उस के बच्चे को जन्म देगी, तो क्या होगा? ‘‘मेरे पेट में पल रहे बच्चे के पीछे आप क्यों पड़े हैं? आप मुझे जवाब दे दें, तो कहीं और मैं चली जाती हूं,’’ अगली बार प्रमोद के आने पर सुनयना ने पूछा.

‘‘बच्चा मुझ से है. नाजायज है, मेरे लिए वह परेशानी खड़ी कर सकता है.’’ ‘‘क्या परेशानी खड़ी कर सकता

है वह?’’ ‘‘मेरा वारिस बनने का दावा कर सकता है.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? मैं बताऊंगी तभी न.’’ ‘‘बच्चा कल को पूछ भी तो सकता है कि उस का पिता कौन है?’’

‘‘लेकिन, मैं एक बच्चा चाहती हूं.’’ ‘‘इस को गिरवा कर तुम किसी और से बच्चा गोद ले लो.’’

‘‘फर्ज करो कि वह आप से नहीं किसी और से है तब?’’ ‘‘बकवास मत करो. मैं जानता हूं कि यह मुझ से है.’’

‘‘मैं आप की वफादार हूं और वफादारी का यह इनाम है.’’ यह सुन कर प्रमोद दनदनाता हुआ वहां से चला गया. वह कानूनी और सामाजिक पचड़े के बारे में सोच रहा था कि कल को अगर मैडिकल रिपोर्ट का सहारा ले कर सुनयना बच्चे को उस का बच्चा साबित कर के उस की जायदाद में से हिस्सा मांग सकती है.

प्रमोद की कशमकश को सुनयना बखूबी समझ रही थी. उस ने चुपचाप अपना सामान समेटना शुरू कर दिया. एक दिन वह फ्लैट छोड़ कर चली गई. 2 दिन बाद प्रमोद ने फ्लैट का चक्कर लगाया. उस को वहां सन्नाटा मिला. सुनयना कहां गई? धरती निगल गई या आसमान?

प्रमोद कुछ दिनों तक बेचैन रहा, फिर खाली फ्लैट को आबाद करने के लिए एक नई उम्र की कालगर्ल को ला कर बसा दिया. प्रमोद को यह डर बराबर सता रहा था कि सुनयना उस के सामने उस की नाजायज औलाद को वारिस के तौर पर न ले आए.

एक दिन कार से गुजरते समय प्रमोद की नजर एक नर्सिंगहोम के बाहर रिकशे से उतरती एक औरत पर पड़ी. उस का पेट फूला हुआ था. गौर से देखने पर पता चला कि वह तो सुनयना ही थी. वह जल्दी ही बच्चा जनने वाली थी. प्रमोद ने कार सड़क की एक तरफ रोक दी और सुनयना के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा. लेकिन वह काफी देर तक बाहर नहीं निकली.

तब प्रमोद ने अपना मोबाइल फोन निकाला और नर्सिंगहोम के बाहर लगे बोर्ड पर लिखा मोबाइल फोन नंबर पढ़ कर उस पर फोन किया. ‘‘हैलो, यह अस्पताल का रिसैप्शन है?’’ प्रमोद ने पूछा.

‘जी हां, बोलिए.’ ‘‘अभी थोड़ी देर पहले मिसिज सुनयना ने डिलीवरी के लिए विजिट किया था, क्या उन को एडमिट किया गया है?’’

‘जी हां, उन को मैटरनिटी वार्ड में एडमिट कर लिया गया है.’ ‘‘थैक्यू,’’ प्रमोद ने इतना कह कर फोन काट दिया.

अब प्रमोद को सुनयना और उस के बच्चे को खत्म करना था. वह अपनी फैक्टरी पहुंचा. अभी तक उस की जिंदगी बिना रुकावट वाली रही थी. उस का अब तक किसी से पंगे वाला वास्ता नहीं पड़ा था. प्रमोद की फैक्टरी का मैनेजर अरुण बड़ा ही धूर्त था. मालिक के कई उलझे मामले उस ने सुलझाए थे, लेकिन ऐसा पंगा कभी नहीं निबटाया था.

‘‘साहब, आप को सुनयना और उस का बच्चा क्या परेशानी दे सकता है?’’ अरुण ने पूछा. ‘‘कल को वह मेरा वारिस होने का दावा कर सकता है.’’

‘‘क्या सुनयना ने कभी ऐसा इरादा जाहिर किया है?’’ ‘‘नहीं. वह तो कहती है कि बच्चा बुढ़ापे का सहारा बनेगा. वह उस बच्चे को पैदा करना चाहती है.’’

‘‘तो इस में आप को क्या परेशानी है?’’ ‘‘अरे भाई, कल को वह बच्चा बड़ा हो कर मेरे सामने आ कर खड़ा हो सकता है. मेरी सोशल लाइफ खराब हो सकती है.’’

‘‘वह बच्चा आप से ही है, क्या यह बात सच है?’’ ‘‘वह तो यही कहती है. मेरा भी यही विश्वास है कि वह वफादार है.’’

‘‘आप क्या चाहते हैं?’’ ‘‘बच्चे और मां को खत्म करना है, खासकर बच्चे को.’’

‘‘ऐसा काम मैं ने कभी नहीं किया. फिर भी देखता हूं कि क्या हो सकता है,’’ अरुण ने कहा. अरुण सुनयना को पहचानता था. वह नर्सिंगहोम पहुंचा. जच्चाबच्चा वार्ड में सुनयना एक बिस्तर पर लेटी थी.

‘‘एक रिश्तेदार को देखना है. एक मिनट के लिए अंदर जाने दें,’’ अरुण ने वार्ड के बाहर बैठी एक औरत से कहा. इजाजत मिलने के बाद वह अंदर गया और कुछ ही पलों में लौट आया. सुभाष और अर्जुन सुपारी किलर थे. उन्हें सुनयना को खत्म करने की सुपारी दी गई थी. वे दोनों एक कार में बैठ कर बारीबारी से नर्सिंगहोम की निगरानी करने लगे थे.

‘‘आप यहां अकेली आई हैं? आप के साथ कोई नहीं है?’’ लेडी डाक्टर ने मुआयना करने के बाद सुनयना से पूछा. ‘‘जी, मेरी मजबूरी है,’’ इस पर लेडी डाक्टर समझ गईं.

सुनयना कुंआरी मां बनने वाली थी. ऐसे मामले नर्सिंगहोम में आते रहते थे, लेकिन कानूनी औपचारिकता अपनी जगह थी. इलाज, डिलीवरी या औपरेशन के दौरान मरीज की मौत हो सकती थी, इसलिए किसी जिम्मेदार आदमी के फार्म पर दस्तखत कराना जरूरी था. ‘‘आप की जिम्मेदारी के फार्म पर दस्तखत कौन करेगा?’’

‘‘मैं खुद ही करूंगी.’’ ‘‘ऐसा नहीं हो सकता.’’

तभी सुनयना को दर्द शुरू हो गया. चंद मिनटों के बाद उस ने एक खूबसूरत बच्चे को जन्म दिया. सारी औपचारिकताएं धरी की धरी रह गईं.

4 दिन बाद सुनयना को छुट्टी मिल गई. बच्चे को गोद में उठाए वह नर्सिंगहोम से बाहर आई. आटोरिकशे में बैठी. उस के पीछे किराए के हत्यारों की कार लग गई. इंस्पैक्टर मधुकर लोकल थाने के एसएचओ थे. वे चुस्त और मुस्तैद पुलिस अफसर थे. दोपहर का खाना खाने के बाद वे चंदू पनवाड़ी के यहां पान खाते थे. इस बहाने से वे इलाके का दौरा भी कर लेते थे.

नर्सिंगहोम से आटोरिकशे में बैठी सुनयना के पीछे किराए के हत्यारों की कार लगी थी. उन की यह हरकत जीप पर सवार एसएचओ मधुकर की निगाह में आ गई. उन के एक इशारे पर ड्राइवर ने जीप कार के पीछे लगा दी. आटोरिकशा एक बस्ती में पहुंचा. सुनयना उतरी, भाड़ा चुकाया और

अपने किराए के कमरे की तरफ बढ़ी. पीछे आ रही कार थमने लगी. तभी सुभाष की नजर पीछे से आ रही जीप पर पड़ी.

‘‘अर्जुन, कार मत रोकना. पीछे एसएचओ आ रहा है,’’ सुभाष ने कहा, तो अर्जुन ने कार की रफ्तार बढ़ा दी. एचएचओ मधुकर ने जीप में सादा कपड़ों में बैठे एक पुलिस वाले को इशारे से कुछ समझाया. वह पुलिस वाला सुनयना की निगरानी करने लगा. कार का नंबर नोट कर मधुरकर ने पुलिस कंट्रोल रूम को भेज दिया.

चंद मिनटों में शहर के खासखास इलाकों में तैनात पुलिस की गाडि़यों को उस कार के बारे में हिदायतें मिल गईं. एक चौराहा पार करते समय एक कार उस कार के पीछे लग गई. उस कार में सादा ड्रैस में मुखबिर थे. एसएचओ मधुकर थाने पहुंचे. थोड़ी देर में उन का मोबाइल फोन बजा, ‘सर, उस कार में 2 लोग हैं, जो अपराधी नहीं दिख रहे हैं,’ मुखबिर ने खबर दी.

‘‘ठीक है, तुम उन पर निगाह रखो,’’ इंस्पैक्टर मधुकर बोले. थोड़ी देर बाद एक बस्ती में

तैनात मुखबिर का फोन आया, ‘‘साहब, खतरा है.’’ ‘‘क्या खतरा है?’’

‘‘जान जाने का. और क्या खतरा हो सकता है?’’ ‘‘तू उन मवालियों को पहचानता

है क्या?’’ ‘‘नहीं. पर मेरा अंदाजा है कि इस इलाके का खबरिया राम सिंह भी नहीं पहचानता होगा.’’

‘‘तब हम क्या करें?’’ ‘‘इस बाई की हिफाजत और निगरानी.’’

‘‘खतरे की वजह?’’ ‘‘इस का बच्चा.’’

‘‘क्या…’’ ‘‘तेरी इस क्या का जवाब फिलहाल मेरे पास नहीं है.’’

सुनयना नहीं जानती थी कि वह पुलिस के जासूसों की नजर में आ चुकी है.

‘‘सेठ की माशूका और उस के बच्चे के ठिकाने का पता हम ने लगा लिया है. जल्दी ही वे दोनों को मार देंगे,’’ प्रमोद के मैनेजर अरुण को सुपारी लेने वाले ने बताया.

‘‘ठीक है. मेरा और सेठ का नाम नहीं आना चाहिए,’’ अरुण ने कहा. ‘‘आप तसल्ली रखें.’’

बच्चे के जन्म के बाद सुनयना ने अपनी एक सहेली मीरा को फोन किया, जो उस के बारे में सबकुछ जानती थी. ‘‘अरी, तेरे और तेरे बच्चे को मरवाने का ठेका दिया है सेठ ने,’’ उस की सहेली मीरा ने बताया.

‘‘क्या? उस को कैसे पता चला?’’ ‘‘वह तेरे पीछे शुरू से ही लगा है.’’

‘‘तुझे किस ने बताया?’’ ‘‘तेरी जगह फ्लैट में आई उस नई लड़की ने.’’

‘‘अब मैं क्या करूं?’’ सुनयना ने पूछा.

‘‘अपना ठिकाना बदल ले.’’ ‘‘ठीक है,’’ सुनयना बोली.

दोनों सुपारी किलर सुभाष और अर्जुन आपस में सलाह कर रहे थे. ‘‘बाई इस बस्ती में है. कल उस का घर ढूंढ़ कर उसे खत्म कर देते हैं,’’ सुभाष ने कहा.

सुबह सुनयना बच्चे को कुनकुने पानी से नहला कर साफ कपड़े में लपेट चुकी थी. वह सोच रही थी कि कहां जाए? तभी उस को अपनी पुरानी सहेली प्रेमलता का ध्यान आया. वह एक अनाथालय की मैनेजर थी.

सुनयना बच्चे को गोद में ले कर बाहर आई. उस ने एक आटोरिकशा किया. आटोरिकशे के चलते ही मवालियों की कार पीछे लगी. उस की खबर पुलिस कंट्रोल रूम को भी हो गई. आटोरिकशा अनाथालय के बाहर रुका.

‘‘थोड़ी देर इंतजार करो. मैं अभी आई,’’ सुनयना ने आटोरिकशे वाले से कहा. सुनयना को देखते ही प्रेमलता मुसकराई, ‘‘अरे सुनयना, तुम यहां

कैसे आई?’’ ‘‘मैं मुसीबत में फंस गई हूं. जरा यह बच्चा संभाल. मैं थोड़ा ठहर कर आऊंगी,’’ बच्चा देते हुए सुनयना ने कहा. ‘‘यह किस का बच्चा है?’’ प्रेमलता ने पूछा.

‘‘मेरा है,’’ सुनयना बोली. ‘‘तेरा है? तू ने शादी कर ली क्या?’’ प्रेमलता ने पूछा.

‘‘फिर बताऊंगी. शाम को आऊंगी. कुछ दिक्कत है.’’ प्रेमलता ने बच्चा थामा. सुनयना आटोरिकशे में बैठ रेलवे स्टेशन की ओर चली गई.

‘‘उस्ताद, बाई यतीमखाने में गई थी. वहां अपना बच्चा दे आई है, अब क्या करें?’’ सुभाष ने अर्जुन से पूछा. ‘‘सेठ कहता है कि बच्चे को पहले खत्म करना है. यतीम खाने में चलते हैं. बाई को फिर मारेंगे.’’

कार एक तरफ खड़ी कर वे दोनों सुपारी किलर अनाथालय में घुस गए. सुनयना के बच्चे को एक पालने में लिटा कर प्रेमलता मुड़ी ही थी कि 2 बदमाश नौजवानों को देख कर वह चौंकी, ‘‘क्या बात है?’’ ‘‘अभी एक बाई तुझे बच्चा दे कर गई है. वह कौन सा है?’’ सुभाष ने कमरे में नजर डालते हुए पूछा. दर्जनों पालनों में नवजात बच्चे अठखेलियां करते दूध पी रहे थे.

‘‘बाई, कौन बाई?’’ ‘‘जो अभीअभी यहां आई थी,’’ अर्जुन ने कहा.

‘‘यहां कोई बाई नहीं आई,’’ प्रेमलता बोली. ‘‘सीधी तरह मान जा. बता वह बच्चा कौन सा है,’’ अर्जुन ने चाकू निकालते हुए कहा.

तभी अनाथालय के दरवाजे पर एसएचओ मधुकर ने कदम रखा. प्रेमलता पुलिस को देखते ही चीखी, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, चोरबदमाश…’’

सिपाहियों ने घेरा डाल कर दोनों बदमाशों को पकड़ लिया. थाने में उन्होंने सब सचसच उगल दिया. मैनेजर अरुण के काबू में आते ही सेठ प्रमोद भी टूट गया.

‘‘आप या तो बच्चे और उस की मां को अपना लें, अन्यथा 10 साल की सजा भुगतें. बच्चा आप का वारिस फिर भी माना जाएगा,’’ इंस्पैक्टर मधुकर ने समझाते हुए कहा. मरता क्या न करता, सेठ प्रमोद ने सुनयना को अपनी पत्नी और बच्चे को वारिस मान लिया.

दरवाजा खोल दो मां : आखिर क्यों बीमार हो गई स्मिता?

10वीं क्लास तक स्मिता पढ़ने में बहुत तेज थी. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था, पर 10वीं के बाद उस के कदम लड़खड़ाने लगे थे. उस को पता नहीं क्यों पढ़ाईलिखाई के बजाय बाहर की दुनिया अपनी ओर खींचने लगी थी. इन्हीं सब वजहों के चलते वह पास में रहने वाली अपनी सहेली सीमा के भाई सपन के चक्कर में फंस

गई थी. वह अकसर सीमा से मिलने के बहाने वहां जाती और वे दोनों खूब हंसीमजाक करते थे. एक दिन सपन ने स्मिता से पूछा, ‘‘तुम ने कभी भूतों को देखा है?’’

‘‘तुम जो हो… तुम से भी बड़ा कोई भूत हो सकता है भला?’’ स्मिता ने हंसते हुए मजाकिया लहजे में जवाब दिया. सपन को ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी, इसलिए अपनी बात को आगे रखते हुए पूछा, ‘‘चुड़ैल से तो जरूर सामना हुआ होगा?’’

‘‘नहीं, ऐसा कभी नहीं हुआ है. तुम न जाने क्या बोले जा रहे हो,’’ स्मिता ने खीजते हुए कहा. तब सपन उसे एक कमरे में ले कर गया और कहा, ‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो…’’ कहते हुए स्मिता को कुरसी पर बैठा कर उस का हाथ उठा कर हथेली को चेहरे के सामने रखने को कहा, फिर बोला, ‘‘बीच की उंगली को गौर से देखो…’’ आगे कहा, ‘‘अब तुम्हारी उंगलियां फैल रही हैं और आंखें भारी हो रही हैं.’’

स्मिता वैसा ही करती गई और वही महसूस करने की कोशिश भी करती गई. थोड़ी देर में उस की आंखें बंद हो गईं. फिर स्मिता को एक जगह लेटने को बोला गया और वह उठ कर वहां लेट गई. सपन ने कहा, ‘‘तुम अपने घर पर हो. एक चुड़ैल तुम्हारे पीछे पड़ी है. वह तुम्हारा खून पीना चाहती है. देखो… देखो… वह तुम्हारे नजदीक आ रही है. स्मिता, तुम डर रही हो.’’

स्मिता को सच में चुड़ैल दिखने लगी. वह बुरी तरह कांप रही थी. तभी सपन बोला, ‘‘तुम्हें क्या दिख रहा है?’’ स्मिता ने जोकुछ भी देखा या समझने की कोशिश की, वह डरतेडरते बता दिया. वह यकीन कर चुकी थी कि चुड़ैल जैसा डरावना कुछ होता है, जो उस को मारना चाहता है.

‘‘प्लीज, मुझे बचाओ. मैं मरना नहीं चाहती,’’ कहते हुए वह जोरजोर से रोने लगी.

सपन मन ही मन बहुत खुश था. सबकुछ उस की सोच के मुताबिक चल रहा था. सपन ने बड़े ही प्यार से कहा, ‘‘डरो नहीं, मैं हूं न. मेरे एक जानने वाले पंडित हैं. उन से बात कर के बताता हूं. ऐसा करो कि तुम 2 घंटे में मुझे यहीं मिलना.’’

‘‘ठीक है,’’ कहते हुए जैसे ही स्मिता मुड़ी, सपन ने उसे टोका, ‘‘और हां, तुम को किसी से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है. मुझ पर यकीन रखना. सब सही होगा.’’ स्मिता घर तो आ गई, पर वे 2 घंटे बहुत ही मुश्किल से कटे. पर उसे सपन पर यकीन था कि वह कुछ न कुछ तो जरूर करेगा.

जैसे ही समय हुआ, स्मिता फौरन सपन के पास पहुंच गई. सपन तो जैसे इंतजार ही कर रहा था. उस को देखते ही बोला, ‘‘स्मिता, काम तो हो जाएगा, पर…’’

‘‘पर क्या सपन?’’ स्मिता ने डरते हुए पूछा. ‘‘यही कि इस काम के लिए कुछ रुपए और जेवर की जरूरत पड़ेगी. पंडितजी ने खर्चा बताया है. तकरीबन 5,000 रुपए मांगे हैं. पूजा करानी होगी.’’

‘‘5,000 रुपए? अरे, मेरे पास तो 500 रुपए भी नहीं हैं और मैं जेवर कहां से लाऊंगी?’’ स्मिता ने अपनी बात रखी. ‘‘मैं नहीं जानता. मेरे पास तुम्हें चुड़ैल से बचाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है,’’ थोड़ी देर कुछ सोचने का दिखावा करते हुए सपन बोला, ‘‘तुम्हारी मां के जेवर होंगे न? वे ले आओ.’’

‘‘पर… कैसे? वे तो मां के पास हैं,’’ स्मिता ने कहा. ‘‘तुम्हें अपनी मां के सब जेवर मुझे ला कर देने होंगे…’’ सपन ने जोर देते हुए कहा, ‘‘अरे, डरती क्यों हो? काम होने पर वापस ले लेना.’’

स्मिता बोली, ‘‘वे मैं कैसे ला सकती हूं? उन्हें तो मां हर वक्त अपनी तिजोरी में रखती हैं.’’ ‘‘मैं नहीं जानता कि तुम यह सब कैसे करोगी. लेकिन तुम को करना ही पड़ेगा. मुझे उस चुड़ैल से बचाने की पूजा करनी है, नहीं तो वह तुम्हें जान से मार देगी.

‘‘अगर तुम जेवर नहीं लाई तो बस समझ लो कि तब मैं तुम्हें जान से मार दूंगा, क्योंकि पंडित ने कहा है कि तुम्हारी जान के बदले वह चुड़ैल मेरी जान ले लेगी और मुझे अपनी जान थोड़े ही देनी है.’’ उसी शाम स्मिता ने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, आज मैं आप का हार पहन कर देखूंगी.’’

स्मिता की मां बोलीं, ‘‘चल हट पगली कहीं की. हार पहनेगी. बड़ी तो हो जा. तेरी शादी में तुझे दे दूंगी.’’ स्मिता को रातभर नींद नहीं आई. थोड़ा सोती भी तो अजीबअजीब से सपने दिखाई देते.

अगले दिन सीमा स्मिता के पास आ कर बोली, ‘‘भैया ने जो चीज तुझ से मंगवाई थी, अब उस की जरूरत नहीं रह गई है. वे सिर्फ तुम्हें बुला रहे हैं.’’ जब स्मिता ने यह सुना तो उसे बहुत खुशी हुई. वह भागती हुई गई तो सपन उसे एक छोटी सी कोठरी में ले गया और बोला, ‘‘अब जेवर की जरूरत नहीं रही. चुड़ैल को तो मैं ने काबू में कर लिया है. चल, तुझे दिखाऊं.’’

स्मिता ने कहा, ‘‘मैं नहीं देखना चाहती.’’ सपन बोला, ‘‘तू डरती क्यों है?’’

यह कह कर उस ने स्मिता का चुंबन ले लिया. स्मिता को उस का चुंबन लेना अच्छा लगा. थोड़ी देर बाद सपन बोला, ‘‘आज रात को जब सब सो जाएं तो बाहर के दरवाजे की कुंडी चुपचाप से खोल देना. समझ तो गई न कि मैं क्या कहना चाहता हूं? लेकिन किसी को पता न चले, नहीं तो तेरे पिताजी तेरी खाल उतार देंगे.’’

स्मिता ने एकदम से पूछा, ‘‘इस से क्या होगा?’’ सपन ने कहा, ‘‘जिस बात की तुम्हें समझ नहीं, उसे जानने से क्या होगा?’’

स्मिता ने सोचा, ‘जेवर लाने का काम बड़ा मुश्किल था. लेकिन यह काम तो फिर भी आसान है.’ ‘‘अगर तू ने यह काम नहीं किया तो चुड़ैल तेरा खून पी जाएगी,’’ सपन ने एक बार फिर डराया.

तब स्मिता ने कहा, ‘‘यह तो बताओ कि दरवाजा खोलने से होगा क्या?’’ ‘‘अभी नहीं कल बताऊंगा. बस तुम कुंडी खोल देना,’’ सपन ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा.

‘‘खोल दूंगी,’’ स्मिता ने चलते हुए कहा.

‘‘ठाकुरजी को हाथ में ले कर बोलो कि जैसा मैं बोल रहा हूं, तुम वही करोगी?’’ सपन ने जोर दे कर कहा. स्मिता ने ठाकुर की मूर्ति को हाथ में ले कर कहा, ‘‘मैं दरवाजा खोल दूंगी.’’

पर सपन को तो अभी भी यकीन नहीं था. पता नहीं क्यों वह फिर से बोला, ‘‘मां की कसम है तुम्हें.

कसम खा?’’ आज न जाने क्यों स्मिता बहुत मजबूर महसूस कर रही थी. वह धीरे से बोली, ‘‘मां की कसम.’’

जब स्मिता घर गई तो उस की मां ने पूछा, ‘‘तेरा मुंह इतना लाल क्यों हो रहा है?’’

जब मां ने स्मिता को छू कर देखा तो उसे तेज बुखार था. उन्होंने स्मिता को बिस्तर पर लिटा दिया. शाम के शायद 7 बजे थे.

स्मिता के पिता पलंग पर बैठे हुए खाना खा रहे थे. स्मिता पलंग पर पड़ीपड़ी बड़बड़ाए जा रही थी.

जब स्मिता को थर्मामीटर लगाया गया, उस को 102 डिगरी बुखार था. रात के 9 बजतेबजते स्मिता की हालत बहुत खराब हो गई. फौरन डाक्टर को बुलाया गया. स्मिता को दवा दी गई. स्मिता के पिताजी के दोस्त भी आ गए थे. स्मिता फिर भी बड़बड़ाए जा रही थी, पर उस पर किसी परिवार वाले का ध्यान नहीं जा रहा था.

स्मिता को बिस्तर पर लेटेलेटे, सिर्फ दरवाजा और उस की कुंडी ही दिखाई दे रही थी या उसे चुड़ैल का डर

दिखाई दे रहा था. कभीकभी उसे सपन का भी चेहरा दिखाई पड़ता था. उसे लग रहा था, जैसे चारों लोग उसी के आसपास घूम रहे हैं और तभी वह जोर से चीखी, ‘‘मां, मुझे बचाओ.’’ ‘‘क्या बात है बेटी?’’ मां ने घबरा कर पूछा.

‘‘दरवाजे की कुंडी खोल दो मां. मां, तुम्हें मेरी कसम. दरवाजे की कुंडी खोल दो, नहीं तो चुड़ैल मुझे मार देगी. ‘‘मां, तुम दरवाजे को खोल दो. मां, मैं अच्छी तो हो जाऊंगी न? मां तुम्हें मेरी कसम,’’ स्मिता बड़बड़ाए जा

रही थी. स्मिता के पिताजी ने कहा, ‘‘लगता है, लड़की बहुत डरी हुई है.’’

स्मिता की बत्तीसी भिंच गई थी. शरीर अकड़ने लगा था. यह सब स्मिता को नहीं पता चला. वह बारबार उठ कर भाग रही थी, जोरजोर से चीख रही थी, ‘‘मां, दरवाजा खोल दो. खोल दो, मां. दरवाजा खोल दो,’’ और उस के बाद वह जोरजोर से रोने लगी. मां ने कहा, ‘‘बेटी, बात क्या है? बता तो सही? क्या सपन ने कहा है ऐसा करने को?’’

‘‘हां मां, खोल दो नहीं तो एक चुड़ैल आ कर मेरा खून पी जाएगी,’’ स्मिता ने डरी हुई आवाज में कहा. अब उस के पिताजी के कान खड़े हो गए. उन्होंने फिर से पूछा, ‘‘साफसाफ बताओ, बात क्या है?’’

‘‘पिताजी, मुझे अपनी गोद में लिटा लीजिए, नहीं तो मैं… ‘‘पिताजी, सपन ने कहा है कि जब सब सो जाएं तो चुपके से दरवाजा खोल देना. अगर दरवाजा नहीं खोला तो चुड़ैल मेरा खून पी जाएगी.’’

वहीं ड्राइंगरूम में बैठेबैठे ही स्मिता के पिताजी ने किसी को फोन किया था. शायद पुलिस को. थोड़ी देर में कुछ पुलिस वाले सादा वरदी में एकएक कर के चुपचाप उस के मकान में आ कर दुबक गए और दरवाजे की कुंडी खोल दी गई. रात के तकरीबन 2 बजे जब स्मिता तकरीबन बेहोशी में थी तो उसे कुछ शोर सुनाई दे रहा था. पर तभी वह बेहोश हो गई. आगे क्या हुआ ठीक से उस को मालूम नहीं. पर जब उसे होश आया तो घर वालों ने बताया कि 5 लोग पकड़े गए हैं.

सब से ज्यादा चौंकाने वाली बात यह कि इन पकड़े गए लोगों में से एक सपन और एक चोरों के गैंग का आदमी भी था जिस के ऊपर सरकारी इनाम था. बाद में वह इनाम स्मिता को मिला. स्मिता 10 दिनों के बाद अच्छी हो गई.

अब स्मिता के अंदर इतना आत्मविश्वास पैदा हो गया था कि एक क्या वह तो कई चुड़ैलों की गरदन पकड़ कर तोड़ सकती थी.

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