देखतेदेखते 2 वर्ष बीत गए और अदिति अपनी टीचर की भूमिका में अच्छी तरह ढल गई थी. जब कभी वह सुबहसुबह दौड़ लगाती अपनी बस की तरफ तो सोसाइटी में चलतेफिरते लोग पूछ ही लेते ‘‘आप टीचर हैं क्या किसी स्कूल में?’’
पर अब अदिति मुसकरा कर बोलती, ‘‘जी, तभी तो सुबहसवेरे का सूर्य देखना का मु झे समय नहीं मिलता है.’’
स्कूल अब स्कूल नहीं है उस का दूसरा घर हो गया है. उस की परी भी उस के साथ ही स्कूल जाती है और आती है. औरों की तरह उसे परी की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं रहती है. जब उस के पढ़ाई हुए विद्यार्थी उस से मिलने आते हैं तो वह गर्व से भर उठती है. वह टीचर ही तो है, जिंदगी से भरपूर क्योंकि हर वर्ष नए विद्यार्थियों के साथ उस की उम्र साल दर साल बढ़ती नहीं घटती जाती है.
उधर अनुराग भी बहुत खुश था, परी के जन्म के समय से ही उस की प्रोमोशन लगभग निश्चित थी पर किसी न किसी कारण से वह टलती ही जा रही थी. आज उस के हाथ में प्रोमोशन लैटर था. पूरे 20 हजार की बढ़ोतरी और औफिस की तरफ से कार भी मिल गई. इधर अदिति के साथ परी के आनेजाने से डे केयर का खर्चा भी बच रहा था.
अनुराग ने मन ही मन निश्चिय कर लिया कि इस बार विवाह की वर्षगांठ पर वह और अदिति गोवा जाएंगे. वह सबकुछ पता कर चुका था, पूरे 60 हजार में पूरा पैकेज हो रहा था. अनुराग ने घर पहुंच कर ऐलान किया कि वे आज डिनर बाहर करेंगे और वह अदिति को उस की मनपसंद शौपिंग भी कराना चाहता है.
अदिति आज बहुत दिनों बाद खिलखिला रही थी और परी भी एकदम आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी. अदिति की वर्षों से एक प्योर शिफौन साड़ी की तम्मना थी. जब दुकानदार ने साड़ी दिखानी शुरू कीं, तो अदिति मूल्य सुन कर बोली, ‘‘अनुराग कहीं और से लेते हैं.’’
तब अनुराग ने अपना प्रोमोशन लैटर दिखाया और बोला, ‘‘इतना तो मैं अब कर सकता हूं.’’
डिनर के समय अनुराग अदिति का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘अदिति बस 1-2 साल की तपस्या और है, फिर मैं अपनी कंपनी में डाइरैक्टर के ओहदे पर पहुंच जाऊंगा.’’
दोनों शायद आज काफी समय बाद घोड़े बेच कर सोए थे. दोनों ने ही आज छुट्टी कर रखी थी. दोनों ही इन लमहों को जी भर कर जीना चाहते थे.
आज अदिति अनुराग से कुछ और भी बात करना चाहती थी. वह अब परी के लिए एक भाई या बहन लाना चाहती थी. इस से पहले कि वह अनुराग से इस बारे में बात करती, उस ने उस के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘जानता हूं पर इस के लिए प्यार भी जरूरी है,’’ और फिर दोनों प्यार में सराबोर हो गए.’’
1 माह पश्चात अदिति के हाथ में अपनी प्रैगनैंसी रिपोर्ट थी जो पौजिटिव थी. वे बहुत खुश थे. उस ने तय कर लिया था, इस बार वे अपने बच्चे के साथ पूरा समय बिताएगी और जब दोनों ही बच्चे थोड़े सम झदार हो जाएंगे तभी अपने काम के बारे में सोचेगी. अनुराग भी उस की बात से सहमत था. अब अनुराग भी थोड़ा निश्चित हो गया था क्योंकि अब उस की अगले वर्ष प्रोमोशन तय थी.
रविवार की ऐसी ही कुनकुनी दोपहरी में दोनों पक्षियों की तरह गुटरगूं कर रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उधर से अनुराग की मां घबराई सी बोल रही थीं, ‘‘अनुराग के ?झ को हार्ट अटैक आ गया है और उन्हें हौस्पिटल में एडमिट कर लिया गया है.’’
वहां पहुंच कर पता चला 20 लाख का पूरा खर्च है. अनुराग ने दफ्तर से अपनी तनख्वाह से एडवांस लिया, हिसाब लगाने पर उसे अनुमान हो गया था कि उस की पूरी तनख्वाह बस अब इन किस्तों में ही निकल जाएगी, फिर से कुछ वर्षों तक.
घर पहुंच कर जब उस ने अदिति को सारी बात से अवगत कराया तो वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं अनुराग, मैं हूं न, हम मिल कर सब संभाल लेंगे.’’
हालांकि मन ही मन वह खुद भी परेशान थी. पर यह दोनों को ही सम झ आ गया था कि यही जीवन है, फिर चाहे हंस कर गुजारो या रो कर आप की मरजी है.
अनुराग अपनी मां के साथ हौस्पिटल के गलियारे में चहलकदमी कर रहा था. अदिति को प्रसवपीड़ा शुरू हो गई थी. आधे घंटे पश्चात नर्स उन के बेटे को ले कर आई. उसे हाथों में ले कर अनुराग की आंखों में आंसू आ गए.
फिर से 3 माह पश्चात अदिति अपने युवराज को घर छोड़ कर स्कूल जा रही हैं, पर आज वह घबरा नहीं रही है क्योंकि अब अनुराग के मां और पापा उन के साथ ही रह रहे हैं. उधर अदिति के मांपापा ने बच्चों की देखभाल और घर की देखरेख के लिए कुछ समय के लिए अपनी नौकरानी उन के घर भेज दी. जिंदगी बहुत आसान नहीं थी पर मुश्किल भी नहीं थी.
इस बार विवाह की वर्षगांठ पर अनुराग फिर से अदिति को गोवा ले जाना चाहता था और उसे पूरी उम्मीद थी कि इस बार अदिति का वह सपना पूरा कर पाएगा. रास्तों पर चलते हुए वे जीवन के इस सफर को शायद हंसतेखिलखिलाते पूरा कर ही लेंगे.