पार्क वाली लड़की : यौवन वाली नवयौवना की कहानी

Story in Hindi

जवाब : अनसुलझे सवालों के घेरे में माधुरी- भाग 3

‘मम्मा, मेरा नाम सप्तक क्यों है?’

‘बेटा, सप्तक अर्थात सात सुर सा रे गा मा पा धा नी, तुम मेरे जीवनरूपी गीत के सुर हो.’

‘मां, आप गाती क्यों नहीं?’

‘वो बेटा, कभीकभी जीवन में कुछ फैसले मानने पड़ते हैं.’

‘मम्मा, आप कोई भी बात ऐसे ही मान लेती हो. ऐसा होता आया है, इसलिए हम बात क्यों मानें? हमें पहले यह जानना चाहिए की जो हो रहा है वह क्यों हो रहा है.’

‘पापा और दादी मुझे होस्टल भेजना चाहते हैं, पर मैं नहीं चाहता, उन्हें मेरा नाम भी पसंद नहीं है. वह भी बदल देंगे शायद. मम्मा, आप दादी से बात करोगी?’

सुमित ने मुझे इस विषय में कुछ नहीं बताया था. शादी के वचन आज कानों में तेज चिल्ला रहे थे, ‘आप अपने हर निर्णय में मुझे शामिल अवश्य करें.’

परंतु मैं फिर भी जाग नहीं पाई.

‘बेटा, दादी जो कहती हैं…’

‘मैं जानता था आप से नहीं होगा. मैं दादी से बात खुद कर लूंगा.’

फिर मुंह फेर कर सप्तक तो सो गया था, परंतु 13 साल से सोई अपनी मां को जगा दिया था उस ने. मेरा 10 साल का बेटा इतना बड़ा कब हो गया, मैं जान ही न पाई. शादी के जो वचन मेरे कानों में आ कर फुसफुसाते थे, आज वे पूरी तरह से आ कर सामने खड़े हो गए थे.

कितने पुरुष निभाते हैं ये सारे वचन? शायद एक भी नहीं, उन से तो निभाने की उम्मीद तक नहीं की जाती. मेरे अब तक के जीवन में समझौता केवल मैं ने किया है, वचन केवल मैं ने निभाए हैं. सुमित को तो शायद याद भी नहीं कि उन्होंने कोई वचन भी दिया था.

वह इसलिए क्योंकि पुरुष बड़ी चतुराई से इन वचनों को भूल जाता है परंतु स्त्री को ये वचन भूलने ही नहीं दिए जाते. अपने सासससुर की सेवा न करने पर क्या किसी दामाद को कभी कठघरे में खड़ा करता है यह समाज? उस की लाख बुराइयों को भी छिपा लिया जाता है. परंतु एक बहू जब ऐसा करती है तो बिना कारण जाने उसे अनगिनत गलत संबोधनों से नवाजा जाता है. तानेउलाहने सुन कर भी जो चुप रहे उसी स्त्री को अच्छी बहू का मैडल मिलता है. कभीकभी तो वह भी नहीं मिलता.

उस दिन समझ पाई थी मैं, शादी के इन वचनों को बनाया ही इसलिए गया था ताकि स्त्रियों को पुरुषों के ऊपर निर्भर रखा जा सके. यह पूरी प्रथा ही पितृसत्तात्मक सोच के अहं को संतुष्ट करने के लिए बनाई गई थी. स्त्री को अपने सुखों के लिए किसी पर निर्भर क्यों रहना पड़ता है?

पंडितों ने अपनी तथा पुरुष संप्रभुता को बनाए रखने के लिए ये सारे नियमकानून बनाए थे.

मैं अपने बेटे को पुरुष होने का दंभ भरते हुए नहीं देख सकती थी. मैं उसे इस सोच के साथ बड़ा होता नहीं देख सकती कि हर स्त्री को अपनी रक्षा अथवा अपने फैसले लेने के लिए पुरुष की आवश्यकता होती है. अपने लिए तो फैसला अब मैं खुद लूंगी.

अगले दिन सुबह ही मैं ने सुमित को बता दिया था कि मैं ने नोएडा में रहने का निर्णय लिया है. घर में तूफान आ गया था. सबकुछ बहुत कठिन था, परंतु मेरे ससुर, देवर और छोटी ननद इस बार चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े थे. अगर वे साथ न भी होते तो भी मैं पीछे हटने वाली नहीं थी.

मेरी सास ने मुझे इस के लिए कभी भी माफ नहीं किया था. परंतु पिछले 15 सालों से भी तो वे मुझे अकारण ही सजा दे रही थीं.

जया की शादी के अगले ही दिन हम नोएडा आ गए थे. सुमित का असहयोग आंदोलन यहां आ कर भी जारी था. मांबेटे की जुगलबंदी मुझे परेशान करने के तरीके निकालती रहती थी.

मैं ने कुछ दिनों बाद ही एक स्कूल में संगीत की शिक्षा देनी शुरू कर दी थी. धीरेधीरे सुमित भी समझने लगे थे कि अब मेरा पीछे लौटना नामुमकिन था.

समय अपनी रफ्तार से बढ़ता रहा. सप्तक जब फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने कनाडा गया, तो उसी दौरान मैं ने अपने संगीत स्कूल की नींव डाली थी.

सप्तक ने जब अलीना से विवाह का निर्णय लिया तब भी सारे परिवार के विरुद्ध खड़े हो कर मैं ने अपने बेटे के सही कदम का साथ दिया था. अलीना एक ईसाई परिवार की लड़की थी परंतु मेरे लिए यह बात कोई माने नहीं रखती थी.

धर्मजाति पर पता नहीं क्यों लोग इतना घमंड करते हैं. आप कहां पैदा होंगे, इस पर आप का क्या अधिकार? इसलिए कोई उच्च और कोई नीच कैसे हो सकता है?

सप्तक ने कोर्टमैरिज करने का निर्णय लिया था. इन झूठे कर्मकांडों और व्यर्थ के आडंबरों से मेरा भरोसा भी उठ चुका था. सुमित को भी सप्तक ने अपनी दलीलों से चुप करा दिया था. शादी के बाद हम ने एक छोटी सी पार्टी दे दी थी.

जब सारी उम्र मैं ने सप्तक को सही का साथ देना सिखाया, फिर आज जब वह अलीना का साथ दे रहा है तो मुझे बुरा क्यों लगा? हर प्रश्न का सही प्रतिवचन दिया था उस ने. मैं भी जानती थी कि अलीना और सप्तक  सही हैं.

क्या अपने बेटे को मुझे अलीना के साथ बांटना असहनीय लग रहा है? क्या मुझे उस का अलीना को सही और मुझे गलत कहना तकलीफ दे रहा है?

नहीं, शायद अपनी कल्पना को यथार्थरूप में देख कर मैं अभिभूत हो गई हूं. सप्तक मेरी कल्पना का ही तो मूर्तरूप है.

‘‘मम्मा, अंदर आ सकता हूं.’’

सप्तक की आवाज मुझे वर्तमान में खींच लाई थी.

‘‘हां बेटा, आ जाओ, अंदर आ जाओ.’’

‘‘आप मुझ से नाराज हैं न मां?’’

‘‘क्यों, क्या तुम ने कुछ गलत किया है?’’

‘‘नहीं, पर वो आज…’’

‘‘जो सत्य है वह अप्रिय हो सकता है परंतु वह गलत नहीं हो सकता. यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो उस के गलत को भी सही कहने के लिए बाध्य नहीं हैं. इसलिए मैं तुम से नाराज नहीं हूं बल्कि आज मुझे तुम पर गर्व हो रहा है.

‘‘मैं जैसे पुरुष की कल्पना किया करती थी, तुम ने उसे साकार कर के मेरे सामने खड़ा कर दिया है. मेरा बेटा एक ऐसा पुरुष है जो अपने पुरुष होने को मैडल की तरह नहीं पहनता.

‘‘जिस प्रकार वह सिर झुका कर अपनी मां का आदर करता है उसी प्रकार अपनी मां द्वारा लिए गए गलत निर्णय का विरोध भी करता है.’’

‘‘यह सब क्या कह रही हो तुम, मधु? क्या तुम्हें सप्तक की बात बिलकुल बुरी नहीं लगी?’’

‘‘सुमित, इस में बुरा लगने जैसा क्या है? मेरा बेटा किसी भी प्रश्न का प्रतिवचन देने से न स्वयं डरता है और न अपनी साथी, अपनी पत्नी को रोकता है.’’

‘‘हां, सही कह रही हो,’’ इतना कह कर सुमित चुप हो गए थे.

‘‘तो इस का मतलब है मैं ट्रेकिंग पर जा रही हूं,’’ अलीना भी मेरे कमरे में आ गई थी.

‘‘ट्रेकिंग पर बाद में जाना है, अभी तुम दोनों सोने जाओ. मुझे भी नींद आ रही है.’’

‘‘मम्मापापा, चलिए पहले आइसक्रीम पार्टी करते हैं,’’ सप्तक ने हंसते हुए कहा, ‘‘चलो, सब चलते हैं.’’

‘‘मैं फ्रिज से आइसक्रीम निकालती हूं, सप्तक तुम कोई अच्छी सी मूवी लगा लो,’’ यह कह कर अलीना चली गई.

हम सब भी उस के पीछे कमरे से निकल ही रहे थे कि अचानक सुमित मेरी तरफ मुड़ कर बोले, ‘‘वैसे तुम लिख क्या रही थी, मधु?’’

‘‘कुछ नहीं, एक समाज की कल्पना कर रही थी.’’

‘‘कैसे समाज की, मम्मा?’’

‘मैं तो बस, एक ऐसे समाज की कल्पना करती हूं जहां-

‘‘पुत्रजन्म पर अभिमान न हो

‘‘पुत्री का कहीं दान न हो

‘‘मानवता के धर्म का हो नमन

‘‘सत्यकथन पर न लगे ग्रहण

‘‘रिश्ते निभें बिना लिए वचन

‘‘हर प्रश्न को मिले प्रतिवचन.’’

बैग पर लटका राजू : लौकडाउन ने जड़े पैरों में ताले- भाग 3

सरिता ने राजू को गोदी में उठा लिया था और उस के पति ने बैग ले रखा था. सेठ जी के पास मोहन और सरिता के पति दोनों ही गए थे. सेठ जी ने सौ-सौ रुपया दे कर चलता कर दिया था.

सरिता ने सौ रुपयों में राजू के लिए जूतेमोजे और कुछ बिस्कुट के पैकेट ले लिया था. वे लोग ज्यादा दूर नहीं चल पाए थे, बीच में ही पुलिस ने उन्हें रोक लिया था. बहुत सारे लोग तो पुलिस वालों को चकमा दे कर आगे निकल गए पर सरिता और उस के पति के साथ तकरीबन 50 मजदूर नहीं निकल पाए. पुलिस उन्हें अपनी गाड़ी में बिठा कर एक स्कूल में ले गई थी, ‘अभी तुम लोगों को यहीं रुकना है, तुम्हारी जांच होगी, फिर आगे जाने दिया जाएगा.

कोई कुछ नहीं बोला. स्कूल में महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था बनाई गई थी और पुरुषों के लिए अलग. सरिता अपने सीने से राजू को चिपकाए दूर दरी पर सो रही थी.

‘चल, तू मेरे साथ मेरे औफिस में सोना…’

रात के करीब 2 बजे होंगे, सरिता की झपकी लगी ही थी कि उस पुलिस वाले ने उसे झिंझोड़ कर उठा दिया था. सरिता घबरा गई, ‘क्यों? मैं यहीं ठीक हूं.’

‘चलती है कि मैं ही तुझे उठाऊं.’

सरिता की नाक में शराब की बदबू दौड़ गई.

पुलिस वाले ने उसे जबरन उठाने का प्रयास किया. सरिता ने पूरी ताकत लगा कर उसे गिरा दिया. उस ने जोरजोर से चिल्लाना शुरू कर दिया था.

‘चुप हो जा, नहीं तो तेरी ऐसी दुर्गति कर दूंगा कि तू कहीं की नहीं रहेगी,’ पुलिस वाला बौखला गया था.

सरिता को अपनेआप को बचाना था, इस कारण वह जोरजोर से चिल्ला रही थी. उस की आवाज सुन कर कुछ लोग जाग गए थे. पुलिस वाला तो

लोगों को जागते देख भाग चुका था पर सरिता अभी भी डर के मारे कांप रही थी.

आखिरकार, सभी लोगों की जांच की गई और सभी को आगे जाने की अनुमति दे दी गई. केवल सरिता के पति को रोक लिया, ‘इस में बीमारी के लक्षण हैं,

इसे अभी नहीं जाने दिया जाएगा.’ कुटिल मुसकान थी उस कर्मचारी के चेहरे पर जिसे सरिता ने तो समझ लिया पर और कोई नहीं समझ पाया.

‘कितने दिन रहना पड़ेगा?’

‘कम से कम 14 दिन तक. हो सकता है कि इस के बाद भी रहना पड़े.’

दोनों चुप थे.

‘यदि तुम कल रात में बात मान लेतीं तो यह स्थिति नहीं आती.’

सरिता चुप ही बनी रही. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या उत्तर दे.

‘अभी भी बात मान लो, तो घंटेभर में छोड़ देंगे.’

‘नासपीटे, तू मुझे समझता क्या है? तेरी शिकायत करती हूं, फिर समझ में आएगा,’ सरिता बिफर पड़ी.

‘कर दो शिकायत, जिस से करोगी, पहले वह भी तुम्हें…’ और हंस पड़ा वह. उस के साथ ही और पुलिस वाले भी हंसे थे. सरिता बेबस थी. उस के साथ रुके सारे लोग जा चुके थे. मोहन भी जा चुका था. उस ने पति की ओर देखा और उसे वैसे ही छोड़ कर एक हाथ में बैग और गोद में राजू को ले कर अकेले ही चल पड़ी थी.

सरिता के कदम अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे. वह कभी राजू को गोदी से उतार देती तो कभी गोद में ले लेती. कहीं छांव मिलती, तो रुक जाती.

उस ने राजू के माथे को सहलाया, ‘‘अब चलें, रात होने वाली है. यह सुनसान जगह है.”

राजू का मन बिलकुल भी नहीं हो रहा था, पर अपनी मां की परेशानी को भी वह समझ रहा था, इसलिए अलसाए हुए उठ खड़ा हुआ.

‘‘अच्छा देखो, तुम इस बैग पर बैठ जाओ, इस में चके लगे हैं न. मैं दोनों हाथों से खींचती रहूंगी,” सरिता राजू के मनोभावों और उस की थकान को समझ रही थी. उस के पास और कोई उपाय नहीं था.

राजू ट्रौलीबैग के पहियों पर चढ़ गया और अपना सिर बैग के ऊपर रख लिया. सरिता के लिए अब बैग को खींचना आसान नहीं था. वह अपनी पूरी ताकत लगा कर उसे खींच रही थी. राजू की आंखें तो बैग में लटके-लटके ही लग गई थीं, पर सरिता के पैर अब जवाब देने लगे थे.

मजदूरों के यों पैदल अपने घर लौटने का मजमा दिनप्रतिदिन बढ़ता जा रहा था. इस मजमे में राजू और सरिता भी शामिल थीं. बैग में सो रहे राजू की तसवीरें कैमरे में कैद हो रही थीं. जो भी सरिता और राजू को इस हालत में देखता, उस का मन विषाद से भर जाता.

‘‘कहां जाना है?” एक ट्रक वाले को शायद उस पर दया आ गई थी.

‘‘मढ़ई गांव.”

‘‘आओ, बैठ जाओ, गांव से थोड़ी दूर उतार दूंगा.”

अपने गांव तक सरिता को पैदल ही जाना पड़ा. राजू को गोद से उतार कर वह अपन बूढ़ी सास के गले लग कर रोती रही थी बहुत देर तक.

सरिता का पति 15 दिनों बाद लौट पाया. उसे तो जबरन मरीज बता कर रखा गया था. आते ही वह फूटफूट कर रोने लगा. सरिता का सारा गुस्सा उस पर उतारा गया था.

‘‘दिनभर काम कराते थे और 2 सूखी रोटी खाने को दे देते थे,” पति की आंखों में आंसू थे.

‘‘तो तुम ने शिकायत क्यों नहीं की,”  सरिता पति की दारुण कथा सुन कर द्रवित हो रही थी.

‘‘सुनाई थी. उस दिन कोई बड़े नेता आए थे. उन के सामने मैं बिफरबिफर कर रो पड़ा था और सारी बातें चीखचीख कर बोल दी थीं. पर वे केवल हंसते रहे थे. उन्होंने एक शब्द भी किसी से कुछ नहीं बोला. साले झूठे…” और उस ने जोर से अपने आंगन में थूक दिया, “बताएं सरिता, वे कह रहे थे कि सरकार ने गरीबों के लिए बहुत सारे पैसे दिए हैं और राशन भी दिया है. तुम को मिला कुछ?” प्रश्नवाचक निगाहों से उस ने सरिता की ओर देखा.

‘‘कछु नई मिलो. राशन वालो कहत है कि वाके पास राशन आओ ही नहीं है तो वो कहां से देगा और बैंक जाओ तो वे अंदर घुसवे के पहिले ही बता देते हैं कि कोई पैसा नहीं आया. नेता लोग तो केवल गपें मारत हैं,” सरिता के चेहरे पर घृणा के भाव उभर आए थे.

‘‘जा सरकार तो केवल गपें मारवे के काजे ही आई है. अब आने दो, कोई भी नेता को वोट मांगवे, उन से पूछ ले हैं कि तब वे कहां थे जब वह अपने छोटे से बेटे के साथ पैदल चल कर गांव आ रही थी. पूरे पांव में ऐसे छाले पड़ गए थे कि अभी तक ठीक नहीं हुए और राजू भी बेचारा भूखाप्यासा मारामारा ही पैदल चला न,” सरिता के पति ने दुखीमन से कहा.

दुखों की मारी सरिता ने अपने पैरों को सहलाया. पैरों में अभी दर्द होता था.

गांव में थाली बजने और शंख बजने की आवाज गूंज रही थी. सरिता ने आसमान की ओर देखा और जोर से जमीन पर थूका. ‘‘सालो, अब सब तो बरबाद कर दिया है…’ वह बड़बड़ाती हुई मकान के अंदर जा चुकी थी.

उसे किस ने मारा : दीपाली की नासमझी का नतीजा- भाग 3

आकाश पिताजी को ले कर अपोलो अस्पताल गया. आपरेशन के पूर्व के टेस्ट चल रहे थे कि उन्हें दूसरा अटैक आया और उन्हें बचाया नहीं जा सका. डाक्टरों ने सिर्फ इतना ही कहा कि इन्हें लाने में देर हो गई.

मां पिताजी से बिछड़ने का दुख सह नहीं पाईं और कुछ ही महीनों के अंतर पर उन की भी मृत्यु हो गई.

आकाश टूट गया था. उसे इस बात का ज्यादा दर्द था कि पैसों के अभाव में वह अपने पिता का उचित उपचार नहीं करा पाया. जबजब इस बात से उस का मन उद्वेलित होता, पिताजी की सीख उस के इरादों को और मजबूत कर देती. अंगरेजी की एक कहावत है ‘ग्रिन एंड बियर’ यानी सहो और मुसकराओ, यही उस के जीने का संबल बन गई थी.

मां-पिताजी को तो वह खो चुका था. पल्लव तो अभी छोटा था पर अब बड़ी होती अपनी बेटी की ठीक से परवरिश न कर पाने का दोष भी उस पर लगने लगा था. डोनेशन की मोटी मांग के लिए रकम वह न जुटा पाने के कारण उस स्कूल में बेटी स्मिता का दाखिला नहीं करा पाया जिस में कि दीपाली चाहती थी.

जिस राह पर आकाश चल रहा था उस पर चलने के लिए उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही थी, दुख तो इस बात का था कि उस के अपने ही उसे नहीं समझ पा रहे थे. तनाव के साथ संबंधों में आती दूरी ने उसे तोड़ कर रख दिया. मन ही मन आदर्श और व्यावहारिकता में इतना संघर्ष होने लगा कि वह हाई ब्लडप्रेशर का मरीज बन गया.

अपने ही अंत:कवच में आकाश ने खुद को कैद कर लिया पर दीपाली ने उस की न कोई परवा की और न ही पति को समझना चाहा. उसे तो बस, अपने आकांक्षाओं के आकाश को सजाने के लिए धन चाहिए था. वह रोकताटोकता तो दीपाली सीधे कह देती, ‘अगर तुम अपने वेतन से नहीं कर पाते हो तो लोन ले लो. जिस समाज में रहते हैं उस समाज के अनुसार तो रहना ही होगा. आखिर हमारा भी कोई स्टेटस है या नहीं, तुम्हारे जूनियर भी तुम से अच्छी तरह रहते हैं पर तुम तो स्वयं को बदलना ही नहीं चाहते.’

यह वही दीपाली थी जिस ने मधुयामिनी की रात साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं, सुखदुख में साथ निभाने का वादा किया था. पर जमाने की कू्रर आंधी ने उन्हें इतना दूर कर दिया कि जब मिलते तो लगता अपरिचित हैं. बस, एहसास भर ही रह गया था. बच्चे भी सदा मां का ही पक्ष लेते. मानो वह अपने ही घर में परित्यक्त सा हो गया था.

अपनी लड़ाई आकाश स्वयं लड़ रहा था. प्रमोशन के लिए इंटरव्यू काल आया. इंटरव्यू भी अच्छा ही रहा. पैनल में उस का नाम है, यह पता चलते ही कुछ लोगों ने बधाई देनी भी शुरू कर दी पर जब प्रमोशन लिस्ट निकली तो उस में उस का नाम नहीं था, देख कर वह तो क्या पहले से बधाई देने वाले भी चौंक गए. पता चला कि उस का नाम विजीलेंस से क्लीयर नहीं हुआ है.

उस पर एक सप्लायर कंपनी को फेवर करने का आरोप लगा है, इस के लिए चार्जशीट दायर कर दी गई है. वैसे तो आकाश फाइल पूरी तरह पढ़ कर साइन किया करता था पर यहां न जाने कैसे चूक हो गई. रेट और क्वालिटी आदि की स्कू्रटनी वह अपने जूनियर से करवाया करता था. उन के द्वारा पेश फाइल पर जब वह साइन करता तभी आर्डर प्लेस होता था.

इस फाइल में कम रेट की उपेक्षा कर अधिक रेट वाले को सामान की गुणवत्ता के आधार पर उचित ठहराते हुए आर्डर प्लेस करने की सिफारिश की गई थी. साइन करते हुए आकाश यह भूल गया था कि वह किसी प्राइवेट कंपनी में नहीं एक सरकारी कंपनी में काम करता है जहां सामान की क्वालिटी पर नहीं सामान के रेट पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है.

नियम तो नियम है. इसी बात को आधार बना कर कम रेट वाले कांटे्रक्टर ने आकाश को दोषी ठहराते हुए एक शिकायती पत्र विजीलेंस को भेज दिया था.

नियमों के अनुसार तो गलती उन से हुई थी क्योंकि उन्होंने नियमों की अनदेखी की थी पर उस में उन का अपना कोई स्वार्थ नहीं था वह तो सिर्फ बनने वाले सामान की क्वालिटी में सुधार लाना चाहता था.

आफिस में कानाफूसी प्रारंभ हो गई, ‘बड़े ईमानदार बनते थे. आखिर दूध का दूध पानी का पानी हो ही गया न.’

‘अरे, भाई ऐसे ही लोगों के कारण हमारा विभाग बदनाम है. करता कोई है, भरता कोई है.’

दीपाली के कानों तक जब यह बात पहुंची तो वह तिलमिला कर बोली, ‘तुम तो कहते थे कि मैं किसी का फेवर नहीं करता. जो ठीक होता है वही करता हूं, फिर यह गलती कैसे हो गई. कहीं ऐसा तो नहीं है कि तुम मुझ से छिपा कर पैसा कहीं और रख रहे हो.’

उस के बाद उस से कुछ सुना नहीं गया, उसी रात उसे जो हार्ट अटैक आया. हफ्ते भर जीवनमृत्यु से जूझने के बाद आखिर उस ने दम तोड़ ही दिया.

खबर सुन कर वसुधा एवं सुभाष, आकाश के साथ बिताए खुशनुमा पलों को आंखों में संजोए आ गए. सदा शिकायतों का पुलिंदा पकड़े दीपाली को इस तरह रोते देख कर, आंखें नम हो आई थीं. पर बारबार मन में यही आ रहा था कि सबकुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया?

मां को रोते देख कर मासूम बच्चे अलग एक कोने में सहमे से दुबके खड़े थे, शायद उन की समझ में नहीं आ रहा कि मां रो क्यों रही हैं तथा पापा को हुआ क्या है. मां को रोता देख कर बीचबीच में बच्चे भी रोने लगते. उन्हें ऐसे सहमा देख कर, दीपाली स्वयं को रोक नहीं पाई तथा उन्हें सीने से चिपका कर रो पड़ी. उसे रोता देख कर नन्हा पल्लव बोला, ‘आंटी, ममा भी रो रही हैं और आप भी लेकिन क्यों. पापा को हुआ क्या है, वह चुपचाप क्यों लेटे हैं, बोलते क्यों नहीं हैं?’

उस की मासूमियत भरे प्रश्न का मैं क्या जवाब देती पर इतना अवश्य सोचने को मजबूर हो गई थी कि बच्चों से उन की मासूमियत छीनने का जिम्मेदार कौन है?

आधी तस्वीर : कैसा था मनशा का शक- भाग 3

मनशा ने सिर्फ भैया को देखा, बोली कुछ नहीं. तुषार ही आगे बोलता रहा, ‘व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर जीवन के सारे पहलुओं पर जरा ठंडे दिल से सोचने की जरूरत है, मनशा. जल्दी में कुछ भी निर्णय ठीक से नहीं लिया जा सकता. फिर सभी महापुरुषों ने यही कहा है कि प्रेम अमर होता है, किसी ने ब्याह अमर होने की बात नहीं कही, क्योंकि उस का महत्त्व नहीं है.’ अपने अंतिम शब्दों पर जोर दे कर वह कमरे से बाहर चला गया. मनशा सबकुछ सोच कर भी भैया की बात नहीं मान सकती थी. किसी और से ब्याह करने की कल्पना तक उस के मस्तिष्क में नहीं आ पाती थी. घर के वातावरण में उसे एक अजीब सा खिंचाव और उपेक्षा का भाव महसूस होता जा रहा था जो यह एहसास करा रहा था मानो उस ने घर की इच्छा के विरुद्ध बहुत बड़ा अपराध कर डाला हो. भैया से अगली बहस में उस ने जीवन का अंत करना अधिक उपयुक्त मान लिया था. उसे इस सीमा तक हठी देख तुषार को बहुत क्रोध आया था, पर उस ने हंस कर इतना ही कहा, ‘नहीं, मनशा, तुम्हें जान देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.’

घर के तनाव में थोड़ी ढील महसूस होने लगी, जैसे प्रसंग टल गया हो. तुषार भी पहले की अपेक्षा कम खिंचा हुआ सा रहने लगा. पर न अब रवि आता और न मनशा ही बाहर जाती थी. मनशा कोई जिद कर के तनाव बढ़ाना नहीं चाहती थी. तभी सहसा एक दिन शाम को समाचार मिला कि रवि सख्त बीमार है और उसे अस्पताल में भरती किया गया है. मांबाप के मना करने पर भी मनशा सीधे अस्पताल पहुंच गई. देखा इमरजैंसी वार्ड में रवि को औक्सीजन और ग्लूकोज दिया जा रहा है. उस का सारा चेहरा स्याह हो रहा था. चारों ओर भीड़ में विचित्र सी चर्चा थी. मामला जहर का माना जा रहा था. रवि किसी डिनर पार्टी में गया था.

नाखूनों का रंग बदल गया था. डाक्टरों ने पुलिस को इत्तला करनी चाही पर तुषार ने समय पर पहुंच कर अपने मित्र विक्टर की सहायता से केस बनाने का मामला रुकवा दिया. यह पता नहीं चल पा रहा था कि जहर उसे किसी दूसरे ने दिया या उस ने स्वयं लिया था. रवि बेहोश था और उस की हालत नाजुक थी.

मनशा के पांव तले से धरती खिसकती जा रही थी. एकएक क्षण काटे नहीं कट रहा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्यों और कैसे हो गया. फिर सहसा बिजली की तरह मस्तिष्क में विचार कौंधा. कल शाम को भैया भी तो उस पार्टी में गए थे. फिर तबीयत इन्हीं की क्यों खराब हुई? बहुत रात गए वह लौट आई. डाक्टर पूरी रात रवि को बचाने का प्रयत्न करते रहे पर सुबह होतेहोते वे हार गए. दाहसंस्कार बिना किसी विलंब के तुरंत कर दिया गया. मनशा गुमसुम सी कमरे में बैठी रही. न बोल सकी और न रो सकी. रहरह कर कुछ बातें मस्तिष्क की सूनी दीवारों से टकरा जातीं और उन के केंद्र में तुषार भैया आ जाते.

‘तुम्हें जान देने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’ कोई महीनेभर पहले उन्होंने कहा था, फिर पार्टी में तुषार के साथ रवि का होना उस की उलझन बढ़ा रहा था. वहां क्या हुआ? क्या भैया से कोई बहस हुई? क्या भैया ने उसे मेरा खयाल छोड़ने की धमकी दी? क्या इसीलिए उस ने आत्महत्या कर ली कि मुझे नहीं पा सकता था? एक बार उस ने कहा भी था, ‘तुम्हारे बिना मैं नहीं जी सकता, मनशा.’ क्या यह स्थिति उस ने मान ली थी कि बिना उस से पूछे? या…उसे… नहीं…नहीं…कौन कर सकता है यह काम…क्या भैया… ‘नहीं…नहीं…’ वह जोर से चीखी. मां हड़बड़ा कर कमरे

में आईं. देखा वह बेहोश हो गई है. थोड़ीथोड़ी देर में होश आता तो वह कुछ बड़बड़ाने लगती. धीरेधीरे वह सामान्य होने लगी. उस ने महसूस किया, भैया उस से कतरा रहे हैं और इसी आधार पर उन के प्रति संदेह का जो सांप कुंडली मार कर उस के मन में बैठा वह भैया के जीवनपर्यंत वैसा ही रहा. उन की मृत्यु के बाद भी मन की अदालत में वह उन्हें निर्दोष घोषित नहीं कर सकी.

दुनिया और जीवन का चक्र जैसा चलना था चला. प्रभात से ही उस का ब्याह हुआ. बच्चे हुए और अब उन का भी ब्याह होने जा रहा था. न जाने आंखों से कितने आंसू बह गए. रीता दरवाजे पर ही खड़ी रही. मनशा ने ही मुड़ कर देखा तो उस के गले लग कर फिर रो पड़ी. रवि की मृत्यु के बाद वह आज पहली बार रोई है. रीता कुछ समझ नहीं पा रही थी. हम सचमुच जीवन में कितना कुछ बोझ लिए जीते हैं और उसे लिए ही मर भी जाते हैं. यह रहस्य कोई कभी नहीं जान पाता है, केवल उस की झलक मात्र ही कोई घटना कभी दे जाती है.

वे दोनों ड्राइंगरूम में आ कर बैठ गईं. मनशा ने स्थिर हो कौफी पी और अपने बेटे की शादी का कार्ड रीता की ओर बढ़ा दिया. वह बेहद प्रसन्न हुई यह देख कर कि लड़की दूसरी जाति की है. रीता की जिज्ञासा फूट पड़ी, ‘दीदी, जो आप जीवन में नहीं कर सकीं उसे बेटे के जीवन में करते समय कोईर् दिक्कत तो नहीं हो रही है?’ ‘हुई थी…भैया ने जैसे सामाजिक स्तर की बातचीत की थी वैसा तो आज भी पूरी तरह नहीं, फिर भी हम इतना आगे तो बढ़े ही हैं कि इतना कर सकें…प्रभात नहीं चाहते थे. बड़ेबुजुर्ग भी नाराज हैं, पर मैं ने मनीष और दीपा के संबंध में संतोषजनक ढंग से सब जाना तो फिर अड़ गई. मैं बेटा नहीं खोना चाहती थी. किसी तरह का खतरा नहीं उठाने की ठान ली. सोच लिया अपनी जान दे दूंगी पर इस को बचा लूंगी, मन का बोझ इस से हलका हो जाएगा.’ उस के चेहरे पर हंसी की रेखा उभर कर विलीन हो गई.

घरपरिवार की कितनी ही बातें कर मनशा चलने को उद्यत हुई तो बैग से एक कागज का पैकेट सा रीता के हाथ में थमा कर कहा, ‘इसे भी रख लो.’ ‘यह क्या है दीदी?’

‘आधी तसवीर, जिसे तुम्हारे रवि भैया जोड़ना चाहते थे. जब कभी तुम सुनो कि मनशा दीदी नहीं रहीं तो उस तसवीर से इसे जोड़ देना ताकि वह पूरी हो जाए. यह जिम्मेदारी तुम्हें ही सौंप सकती हूं, रीता.’ वह डबडबाती आंखों के साथ दरवाजे से बाहर निकल गई. अतीत को मुड़ कर दोबारा देखने की हिम्मत उस में नहीं बची थी.

इश्क के चक्कर में : किस ने रची थी वह खतरनाक साजिश- भाग 2

अगली पेशी के पहले मैं ने रियाज और नादिर के घर जा कर पूरी जानकारी हासिल  कर ली थी. रियाज का बाप नौकरी पर था. मां नगीना से बात की. वह बेटे के लिए बहुत दुखी थी. मैं ने उसे दिलासा देते हुए पूछा, ‘‘क्या आप को पूरा यकीन है कि आप के बेटे ने नादिर का कत्ल नहीं किया?’’

‘‘हां, मेरा बेटा कत्ल नहीं कर सकता. वह बेगुनाह है.’’

‘‘फिर आप खुदा पर भरोसा रखें. उस ने कत्ल नहीं किया है तो वह छूट जाएगा. अभी तो उस पर सिर्फ आरोप है.’’

नगीना से मुझे कुछ काम की बातें पता चलीं, जो आगे जिरह में पता चलेंगी. मैं रियाज के घर से निकल रहा था तो सामने के फ्लैट से कोई मुझे ताक रहा था. हर फ्लैट में 2 कमरे और एक हौल था. इमारत का एक ही मुख्य दरवाजा था. हर मंजिल पर आमनेसामने 2 फ्लैट्स थे. एक तरफ जीना था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, 17 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब नादिर की हत्या हुई थी. उसे इसी बिल्डिंग की छत पर मारा गया था. उस की लाश पानी की टंकी के करीब एक ब्लौक पर पड़ी थी. उस की हत्या बोल्ट खोलने वाले भारी रेंच से की गई थी.

अगली पेशी पर अभियोजन पक्ष की ओर से कादिर खान को पेश किया गया. कादिर खान भी उसी बिल्डिंग में रहता था. बिल्डिंग के 5 फ्लैट्स में किराएदार रहते थे और एक फ्लैट में खुद मकान मालिक रहता था. अभियोजन के वकील ने कादिर खान से सवालजवाब शुरू किए.

लाश सब से पहले उसी ने देखी थी. उस की गवाही में कोई खास बात नहीं थी, सिवाय इस के कि उस ने भी रियाज को झगड़ालू और गुस्सैल बताया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप ने मुलाजिम रियाज को गुस्सैल और लड़ाकू कहा है, इस की वजह क्या है?’’

‘‘वह है ही झगड़ालू, इसलिए कहा है.’’

‘‘आप किस फ्लैट में कब से रह रहे हैं?’’

‘‘मैं 4 नंबर फ्लैट में 4 सालों से रह रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब दूसरी मंजिल पर आप अकेले ही रहते हैं?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ बीवीबच्चे भी रहते हैं.’’

‘‘जब आप बिल्डिंग में रहने आए थे तो रियाज आप से पहले से वहां रह रहा था?’’

‘‘जी हां, वह वहां पहले से रह रहा था.’’

‘‘कादिर खान, जिस आदमी से आप का 4 सालों में एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ, इस के बावजूद आप उसे झगड़ालू कह रहे हैं, ऐसा क्यों?’’

‘‘मुझ से झगड़ा नहीं हुआ तो क्या हुआ, वह झगड़ालू है. मैं ने खुद उसे नादिर से लड़ते देखा है. दोनों में जोरजोर से झगड़ा हो रहा था. बाद में पता चला कि उस ने नादिर का कत्ल कर दिया.’’

‘‘क्या आप बताएंगे कि दोनों किस बात पर लड़ रहे थे?’’

‘‘नादिर का कहना था कि रियाज उस के घर के सामने से गुजरते हुए गंदेगंदे गाने गाता था. जबकि रियाज इस बात को मना कर रहा था. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. लोगों ने बीचबचाव कराया था.’’

‘‘और अगले दिन बिल्डिंग की छत पर नादिर की लाश मिली थी. उस की लाश आप ने सब से पहले देखी थी.’’

एक पल सोच कर उस ने कहा, ‘‘हां, करीब 9 बजे सुबह मैं ने ही देखी थी.’’

‘‘क्या आप रोज सवेरे छत पर जाते हैं?’’

‘‘नहीं, मैं रोज नहीं जाता. उस दिन टीवी साफ नहीं आ रहा था. मुझे लगा कि केबल कट गया है, यही देखने गया था.’’

‘‘आप ने छत पर क्या देखा?’’

‘‘जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, मेरी नजर सीधे लाश पर पड़ी. मैं घबरा कर नीचे आ गया.’’

‘‘कादिर खान, दरवाजा और लाश के बीच कितना अंतर रहा था?’’

‘‘यही कोई 20-25 फुट का. ब्लौक पर नादिर की लाश पड़ी थी. उस की खोपड़ी फटी हुई थी.’’

‘‘नादिर की लाश के बारे में सब से पहले आप ने किसे बताया?’’

‘‘दाऊद साहब को बताया था. वह उस बिल्डिंग के मालिक हैं.’’

‘‘बिल्डिंग के मालिक, जो 5 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘जी, मैं ने उन से छत की चाबी ली थी, छत की चाबी उन के पास ही रहती है.’’

‘‘उस दिन छत का दरवाजा तुम्हीं ने खोला था?’’

‘‘जी साहब, ताला मैं ने ही खोला था?’’

‘‘ताला खोला तो ब्लौक पर लाश पड़ी दिखाई दी. जरा छत के बारे में विस्तार से बताइए?’’

‘‘पानी की टंकी छत के बीच में है. टंकी के करीब छत पर 15-20 ब्लौक लगे हैं, जिन पर बैठ कर कुछ लोग गपशप कर सकते हैं.’’

‘‘अगर ताला तुम ने खोला तो मृतक आधी रात को छत पर कैसे पहुंचा?’’

‘‘जी, यह मैं नहीं बता सकता. दाऊद साहब को जब मैं ने लाश के बारे में बताया तो वह भी हैरान रह गए.’’

‘‘बात नादिर के छत पर पहुंचने भर की नहीं है, बल्कि वहां उस का बेदर्दी से कत्ल भी कर दिया गया. नादिर के अलावा भी कोई वहां पहुंचा होगा. जबकि चाबी दाऊद साहब के पास थी.’’

‘‘दाऊद साहब भी सुन कर हैरान हो गए थे. वह भी मेरे साथ छत पर गए. इस के बाद उन्होंने ही पुलिस को फोन किया.’’

इसी के बाद जिरह और अदालत का वक्त खत्म हो गया.

मुझे तारीख मिल गई. अगली पेशी पर माजिद की गवाही शुरू हुई. वह सीधासादा 40-42 साल का आदमी था. कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था. फ्लैट नंबर 2 में रहता था. उस ने कहा कि नादिर और रियाज के बीच काफी तनाव था. दोनों में झगड़ा भी हुआ था. यह कत्ल उसी का नतीजा है.

अभियोजन के वकील ने सवाल कर लिए तो मैं ने पूछा, ‘‘आप का भाई कब से कब तक अपनी नौकरी पर रहता था?’’

‘‘सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक. वह 9 बजे तक घर आ जाता था.’’

‘‘कत्ल वाले दिन वह कितने बजे घर आया था?’’

‘‘उस दिन मैं घर आया तो वह घर पर ही मौजूद था.’’

‘‘माजिद साहब, पिछली पेशी पर एक गवाह ने कहा था कि उस दिन शाम को उस ने नादिर और रियाज को झगड़ा करते देखा था. क्या उस दिन वह नौकरी पर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं, उस दिन वह नौकरी पर गया था, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से जल्दी घर आ गया था.’’

‘‘घर आते ही उस ने लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. घर आ कर वह आराम कर रहा था, तभी रियाज खिड़की के पास खड़े हो कर बेहूदा गाने गाने लगा था. मना करने पर भी वह चुप नहीं हुआ. पहले भी इस बात को ले कर नादिर और उस में मारपीट हो चुकी थी. नादिर नाराज हो कर बाहर निकला और दोनों में झगड़ा और गालीगलौज होने लगी.’’

‘‘झगड़ा सिर्फ इतनी बात पर हुआ था या कोई और वजह थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह आप रियाज से ही पूछ लीजिए. मेरा भाई सीधासादा था, बेमौत मारा गया.’’ जवाब में माजिद ने कहा.

‘‘आप को लगता है कि रियाज ने धमकी के अनुसार बदला लेने के लिए तुम्हारे भाई का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘जी हां, मुझे लगता नहीं, पूरा यकीन है.’’

‘‘जिस दिन कत्ल हुआ था, सुबह आप सो कर उठे तो आप का भाई घर पर नहीं था?’’

‘‘जब मैं सो कर उठा तो मेरी बीवी ने बताया कि नादिर घर पर नहीं है.’’

‘‘यह जान कर आप ने क्या किया?’’

‘‘हाथमुंह धो कर मैं उस की तलाश में निकला तो पता चला कि छत पर नादिर की लाश पड़ी है.’’

‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नादिर का कत्ल रात 1 से 2 बजे के बीच हुआ था. क्या आप बता सकते हैं कि नादिर एक बजे रात को छत पर क्या करने गया था? आप ने जो बताया है, उस के अनुसार नादिर बीमार था. छत पर ताला भी लगा था. इस हालत में छत पर कैसे और क्यों गया?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? मुझे खुद नहीं पता. अगर वह जिंदा होता तो उसी से पूछता.’’

‘‘वह जिंदा नहीं है, इसलिए आप को बताना पड़ेगा, वह ऊपर कैसे गया? क्या उस के पास डुप्लीकेट चाबी थी? उस ने मकान मालिक से चाबी नहीं ली तो क्या पीछे से छत पर पहुंचा?’’

‘‘नादिर के पास डुप्लीकेट चाबी नहीं थी. वह छत पर क्यों और कैसे गया, मुझे नहीं पता.’’

‘‘आप कह रहे हैं कि आप का भाई सीधासादा काम से काम रखने वाला था. इस के बावजूद उस ने गुस्से में 2-3 बार रियाज से मारपीट की. ताज्जुब की बात तो यह है कि रियाज की लड़ाई सिर्फ नादिर से ही होती थी. इस की एक खास वजह है, जो आप बता नहीं रहे हैं.’’

‘‘कौन सी वजह? मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं.’’

‘‘अपने भाई की रंगीनमिजाजी. नादिर सालिक खान की छोटी बेटी फौजिया को चाहता था. वह फौजिया को रियाज के खिलाफ भड़काता रहता था. उस ने उस के लिए शादी का रिश्ता भी भेजा था, जबकि फौजिया नादिर को इस बात के लिए डांट चुकी थी. जब उस पर उस की डांट का असर नहीं हुआ तो फौजिया ने सारी बात रियाज को बता दी थी. उसी के बाद रियाज और नादिर में लड़ाईझगड़ा होने लगा था.’’

‘‘मुझे ऐसी किसी बात की जानकारी नहीं है. मैं ने रिश्ता नहीं भिजवाया था.’’

‘‘खैर, यह बताइए कि 2 साल पहले आप के फ्लैट के समने एक बेवा औरत सकीरा बेगम रहती थीं, आप को याद हैं?’’

माजिद हड़बड़ा कर बोला, ‘‘जी, याद है.’’

‘‘उस की एक जवान बेटी थी रजिया, याद आया?’’

‘‘जी, उस की जवान बेटी रजिया थी.’’

‘‘अब यह बताइए कि सकीरा बेगम बिल्डिंग छोड़ कर क्यों चली गई?’’

‘‘उस की मरजी, यहां मन नहीं लगा होगा इसलिए छोड़ कर चली गई.’’

सच्चाई सामने आती है पर देर से – भाग 3

उस के हाथ में सुनहरे रंग की नक्काशीदार धुआं खींचने वाली पाइप थी, जिस का दूसरा सिरा एक नक्काशीदार सुनहरे हुक्के से जुड़ा था.

उस के पास अरबी चुस्त पोशाक पायजामा और चोली पहने एक लड़की बैठी थी, जिस के हाथ में एक सुराही थी और एक प्याला. जनानखाने के नाम पर एक पुरुष का कमरा और औरत के स्थान पर एक पुरुष.

‘‘तशरीफ रखिए मोहतरमा.’’ महल के शेख मोहम्मद बिन अब्दुल्ला बिन अब्दुल्ला ने कहा.

तभी चुस्त पायजामा और चुस्त चोली पहने एक किशोर उम्र की लड़की एक ट्रे ले कर अंदर आई. उस में शरबत के 2 गिलास और कटे फल रखे थे.

‘‘नोश फरमाइए.’’ अरब शेख ने कहा.

गुलबदन और शाहिदा बानो ने एकदूसरे की तरफ देखा. पहली बार की होम सर्विस का वाकया शाहिदा बानो को याद था. क्या पता इन शरबत के गिलासों में भी नशीला पदार्थ हो.

सकुचातेसकुचाते दोनों ने मेज पर रखी ट्रे से गिलास उठाया और चुस्कियां लेने लगीं.

‘‘शरबते बनफशा  शरीर को ठंडक पहुंचाता है.’’ हुक्के की नली से धुआं खींचते हुए मोहम्मद बिन अब्दुल्ला ने कहा.

सोफे पर बैठी उन दोनों ने शरबत का गिलास खत्म कर के मेज पर रखा ही था कि अरबी वेशभूषा में 4 अधेड़ावस्था के पुरुष कमरे में दाखिल हुए.

इतने पुरुषों को एक साथ देख कर दोनों चौंकीं.

‘‘मोहतरमा, आप के ब्यूटीपार्लर की मैडम कहती हैं कि आप वापस जाना चाहती हैं. बिना पासपोर्ट आप की वापसी संभव नहीं है. आप हमारी एक शर्त पूरी कर दें, आप का पासपोर्ट प्लेन की टिकट सहित वापस हो जाएगा.’’ हुक्के का कश ले कर धुआं छोड़ते हुए अब्दुल्ला बिन अब्दुल्ला ने कहा.

‘‘क्या शर्त है?’’ दोनों ने एक साथ पूछा.

‘‘आप दोनों अपनेअपने जिस्मों का दीदार करवा दें.’’ कुटिल मुसकराहट के साथ अब्दुल्ला ने कहा. उस के साथ बैठे चारों साथी कहकहा लगा कर हंसे.

गुलबदन की अस्मत कई बार लुट चुकी थी. शाहिदा बानो भी खुद को लुटापिटा समझती थी. वापस जा कर अपने शौहर से कैसे नजर मिला सकेगी.

 

‘‘इस बात की क्या तसल्ली है कि आप अपना कहा पूरा करोगे?’’ गुलबदन ने पूछा.

‘‘मैं अपनी शर्त पूरी हो जाने पर अपना कहा पूरा करता हूं. मैं चाहूं तो अभी थाने से पुलिस दारोगा को बुला कर तुम दोनों को बदकारी के इलजाम में जेल भिजवा सकता हूं.’’  कहते हुए मोहम्मद बिन अब्दुल्ला ने टेलीफोन का चोंगा उठाया.

दोनों सहम कर सोफे पर सिमट गईं. फिर गुदबदन उठी, उस ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए. शाहिदा बानो उसका अनुसरण करने लगी. पूर्णतया… दोनों अपना वक्षस्थल दोनों बांहों से ढांप कर खड़ी हो गईं.

‘‘वल्लाह! सुभान अल्लाह! क्या जिस्म है…’’ शराब का जाम पीते हुए अरब शेखों ने सीत्कारी भरते हुए कहा.

‘‘तुम दोनों मेरी इस बांदी के साथ थोड़ी देर के लिए अरबी डांस कर के दिखा दो फिर तुम दोनों आजाद कर दी जाओगी.’’

साकी बन कर शराब के प्याले भरती किशोर बाला उठ खड़ी हुई और लयबद्ध हो ठुमके लगाती हुई अरब शैली का नृत्य करने लगी. विवशता थी, सो वे दोनों भी उस के साथ नाचने लगीं.

थोड़ी देर बाद शराब पीते 2 अरब शेख उठे और उन्होंने उन दोनों को अपने बाहुपाश में दबोच लिया.

शाम तक उन 5 अरब शेखों ने उन को बारबार रौंदा. लुटीपिटी दोनों चुपचाप ब्यूटीपार्लर लौट आईं. मैडम ने उन को करेंसी से भरे लिफाफे दे कर घर रवाना कर दिया. अपनेअपने फ्लैट में बिस्तर पर लेटी दोनों न रो पा रही थीं और बोल सकती थीं.

‘‘पापा, अम्मी फोन काल का कोई जवाब नहीं दे रही.’’ शाहिदा बानो की बेटी ने अपने पापा को फोन काल का जवाब न मिलने पर कहा.

अहमद सिराज चौंका. मिडल ईस्ट के अरब देशों में नौकरानियों या हाउस मेड के साथ दुर्व्यवहार की खबरें आम थीं. उन्हें कहीं संपर्क करने से भी रोका जाता था. मगर सऊदी अरब के ब्यूटीपार्लर में इस तरह यौनशोषण हो सकता है, इस की उसे कल्पना भी नहीं थी.

‘‘तुम दोनों को आज फिर होम सर्विस के लिए जाना है.’’ मैडम ने फरमान सुनाया.

‘‘ना जाएं तो?’’ शाहिदा बानो ने पलट कर कहा.

‘‘अभी पता चल जाएगा.’’ मैडम ने अपना फोन टच किया. कुछ खुसरफुसर की. थोड़ी देर में गहरे हरे रंग की एक बड़ी जीप ब्यूटीपार्लर के बाहर आ कर रुकी.

हरे रंग की वरदी, पी-कैप पहने कमर में पिस्तौल, चुस्त शरीर का पुलिस इंसपेक्टर.

‘‘सर, ये दोनों बदकारी करती हैं. दूसरी औरतों को भी गलत काम के लिए उकसाती हैं.’’

नक्कारखाने में तूती की आवाज? दोनों चुपचाप जीप में पिछवाड़े बैठ गईं.

डेविड आर्थर एक स्वीडिश नागरिक था. वह फ्रीलांस फोटोग्राफर था. दुनिया भर में घूमताफिरता था. अनेक समाचारपत्रों, टीवी चैनल्स के साथ उस का अनुबंध था.

अपनी साथी सोफिया वारेन के साथ इन दिनों वह सऊदी अरब के भ्रमण पर था. मक्कामदीना में हज करने आए मुसलमानों के फोटो खींचने के बाद वापस लौटते समय दम्माम शहर से गुजर रहा था. उस की गाड़ी के सामने से आ रही एक अन्य गाड़ी ने टक्कर मार दी.

गाड़ी एक शेख की थी. मामला थाने तक पहुंच गया. डेविड आर्थर अपनी साथी के साथ थाने बैठा था. तभी पुलिस जीप दोनों को थाने में ले आई.

2 एशियाई स्त्रियों को थाने आया देख डेविड आर्थर चौंका. हर अलग स्थिति की फोटो खींच कर समाचारपत्रों और टीवी चैनल्स को प्रेषित करने में वह नहीं चूकता था.

‘‘सर, ये दोनों बदकारी करती हैं.’’ ब्यूटीपार्लर से पकड़ कर लाए नौजवान पुलिस अधिकारी ने थाना इंचार्ज के सामने दोनों को पेश करते हुए कहा.

अरबी भाषा का थोड़ाथोड़ा ज्ञान रखने वाली पत्रकार सोफिया वारेन चौंकी. उस ने उन दोनों औरतों की तरफ देखा. विवशता और बेबसी के भाव उन दोनों के चेहरों से साफ दिखते थे.

दोनों को हवालात में बंद कर दिया गया. अरब देशों में मेड, होम हैल्पर से यौनशोषण की खबरें आम थीं. घरेलू दिखती अपने देश से आई अधेड़ावस्था को छू रही दोनों औरतें भला इतनी दूर आ कर बदकारी कैसे कर सकती हैं?

डेविड आर्थर ने अपनी साथी सोफिया वारेन की तरफ देखा. सोफिया वारेन ने नजर बचा कर अपने स्मार्टफोन से हवालात में बंद दोनों की फोटो खींच ली.

‘‘मिस्टर आर्थर, आप राजीनामा कर लें. अगर हम केस दर्ज कर चालान काटते हैं तब आप को अदालत में पेशियां भुगतने आना पड़ेगा.’’ थाना इंचार्ज ने कहा.

‘‘मगर गलती हमारी नहीं है.’’

‘‘मिस्टर आर्थर यह सऊदी अरब है. आप बाहर से आए हैं. केस दर्ज हो जाने पर आप के खिलाफ दर्जनों गवाह गवाही देने के लिए हाजिर हो जाएंगे. तब आप पर उलटा मामला बनेगा, आप को सजा भी हो सकती है.’’

इस धक्केशाही पर दोनों तिलमिलाए.

‘‘मिस्टर आर्थर, हम चाहें तो आप की इस साथी को बदकारी करने के लिए उकसाने के इलजाम में अंदर कर सकते हैं. दरजन भर गवाह कह देंगे कि आप की यह साथी अश्लील इशारे कर के आतेजाते राहगीरों को फुसला रही थी.’’ थाना इंचार्ज कुटिलता से मुसकराया.

यह सुन कर मिस्टर डेविड आर्थर ने अपनी साथी की तरफ देखा. सोफिया वारेन ने सहमति से सिर हिलाया.

‘‘ओके सर.’’

सादे कागज पर राजीनामा लिखवाने के बाद दोनों थाने से बाहर की ओर चल दिए. एक नजर हवालात में बंद दोनों बेबस स्त्रियों की तरफ देख कर उन्हें आश्वासन देने का मूक इशारा किया. शहिदा बानो ने अपने दोनों हाथ मिला कर सजदा किया.

कार थाने से बाहर निकाल कर डेविड आर्थर ने थोड़ी दूर खड़ी कर दी और फिर अपने शक्तिशाली कैमरे से थाने की इमारत की कुछ फोटो खींचीं.

‘‘इन एशियाई देशों में सब पुलिस वाले एक जैसे हैं. हवालात में बंद दोनों औरतें यौनशोषण के लिए इनकार करने पर बदकारी के झूठे इलजाम में बंद हैं.’’ सोफिया वारेन ने कहा.

‘‘अब हम क्या करें?’’

‘‘आप अपना दिमाग इस्तेमाल करो, मैं अपना. मैं ने अपने स्मार्टफोन के वायस रिकौर्डर में थाने में हुई सारी बातचीत रिकौर्ड कर ली है, साथ ही काफी फोटो भी हैं.’’

शाम होतेहोते विश्व भर के अनेक टीवी चैनलों पर सऊदी अरब के दम्माम शहर के थाने में बंद 2 औरतों की फोटो दिखाई जाने लगीं. साथ ही दुर्घटनाग्रस्त कार की फोटो.

फोटोग्राफर और पत्रकार जोड़ी की स्टेटमेंट और लाइव बयान भी दिखाया जाने लगा. एमनेस्टी इंटरनेशनल के अरेबियन संभाग के अधिकारियों ने तुरंत सऊदी सरकार से संपर्क साधा. भारतीय दूतावास भी सक्रिय हुआ. मात्र 24 घंटे के अंदर गुलबदन और शाहिदा बानो थाने से मुक्त हो गईं. साथ ही ब्यूटीपार्लर में कार्यरत सभी लड़कियों को भी मुक्त कराया गया.

सऊदी अरब से वापस लौटी शाहिदा बानो हवाईअड्डे पर अपने पति के कंधे से लग कर सुबकसुबक रो रही थी. सब कुछ समझने वाला अहमद सिराज खामोश था.

कोशिशें जारी हैं : सास – बहू का निराला रिश्ता – भाग 3

‘‘अच्छा अब तू फ्रैश हो जा बेटा. चेंज कर ले. सुकरानी भी आ गई. मनपसंद कुछ बनवा ले उस से.’’

‘‘ममा, सुकरानी के हाथ का खा कर तो ऊब गई हूं. आप एकदम ठीक हो जाओ. कुछ ढंग का खाना तो मिलेगा,’’ वह शिवानी की गोद में सिर रख कर लेट गई और शिवानी उस के बालों को सहलाती रही.

जब सुयश शिप पर होता था तो निया शिवानी के साथ ही सो जाती थी. खाना खा कर दिन भर की थकी हुई निया लेटते ही गहरी नींद सो गई. उस का चेहरा ममता से निहारती शिवानी फिर खयालों में डूब गई. ‘कौन कहता है कि इस रिश्ते में प्यार नहीं पनप सकता… उन दोनों का जुड़ाव तो ऐसा है कि प्यार में मांबेटी जैसा, समझदारी में सहेलियों जैसा और मानसम्मान में सासबहू जैसा.’

छत को घूरतेघूरते शिवानी अपने अतीत में उतर गई. पति की असमय मृत्यु के बाद छोटे से सुयश के साथ जिंदगी फूलों की सेज नहीं थी उस के लिए. कांटों से अपना दामन बचाते, संभालते जिंदगी अत्यंत दुष्कर लगती थी कभीकभी. वह ओएनजीसी में नौकरी करती थी. पति के रहते कई बार घर और सुयश के कारण नौकरी छोड़ देने का विचार आया. पर अब वही नौकरी उस के लिए सहारा बन गई थी. सुयश बड़ा हुआ. वह उसे मर्चेंट नेवी में नहीं भेजना चाहती थी पर सुयश को यह जौब बहुत रोमांचक लगता था. सुयश लंबे समय के लिए शिप पर चला जाता और वह अकेले दिन बिताती.

इसलिए वह सुयश पर शादी के लिए दबाव डालने लगी. तब सुयश ने निया के बारे में बताया. निया उस के दोस्त की बहन थी. निया मराठी परिवार से थी और वह हिमाचल के पहाड़ी परिवार से. सुन कर ही दिल टूट गया उस का. पता नहीं कैसी होगी? पर विद्रोह करने का मतलब इस रिश्ते में वैमनस्य का पहला बीज बोना.

उस ने कुछ भी बोलने से पहले लड़की से मिलने का मन बना लिया पर जब निया से मिली तो सारे पूर्वाग्रह जैसे समाप्त हो गए. लंबी, गोरी, छरहरी, खूबसूरत, सौम्य, चेहरे पर दिलकश मुसकान लिए निया को देख कर विवाह की जल्दी मचा डाली. निया अपने मम्मीपापा की इकलौती लाडली बेटी थी. अच्छे संस्कारों में पली लाडली बेटी को प्यार लेना और देना तो आता था पर जिम्मेदारी जैसी कोई चीज लेना आजकल की बच्चियों को नहीं आता. बिंदास तरह से पलती हैं और बिंदास तरह से रहती हैं.

और इस बात को बेटी न होते हुए भी, बेटी की मां जैसा अनुभव कर शिवानी ने निया के गृहप्रवेश करते समय ही गांठ बांध लिया. दोनों बांहों से उस ने ऐसा समेटा निया को कि उस का माइनस तो कुछ दिखा ही नहीं, बल्कि सबकुछ प्लसप्लस होता चला गया. निया देर से सो कर उठती, तो घर में काम करने वाली के पेट में भी मरोड़ होने लगती पर शिवानी के चेहरे पर शिकन न आती.

निया के कुछ कपड़े संस्कारी मन को पसंद न आते पर पड़ोसियों से ज्यादा परवाह बहूबेटे की खुशियों की रहती. उन दोनों को पसंद है, पड़ोसी दुखी होते हैं तो हो लें. कुछ महीने रह कर सुयश 6 महीने के लिए शिप पर चला गया. निया अपनी जौब छोड़ कर आई थी इसलिए वह अपने लिए नई जौब ढूंढ़ने में लगी थी. शिवानी ने सुयश के जौब में आने के बाद रिटायरमैंट ले लिया था. वह अब दौड़तीभागती जिंदगी से विराम चाहती थी. फिलहाल जो एक कोमल पौधा उस के आंगन में रोपा गया था, उसे मजबूती देना ही उस का मकसद था.

पर सुयश के शिप पर जाने के बाद निया मायके जाने के लिए कसमसाने लगी थी. शिवानी इसी सोच में थी कि अब उसे अकेले नहीं रहना पड़ेगा. पर जब निया ने कहा, ‘‘ममा, जब तक सुयश शिप में है, मैं मुंबई चली जाऊं? सुयश के आने से पहले आ जाऊंगी?’’

न चाहते हुए भी उस ने खुशीखुशी निया को मुंबई भेज दिया. यह महसूस कर कि अभी वह बिना पति के इतना लंबा वक्त उस के साथ कैसे बिताएगी. नए रिश्ते को, नए घर को अपना समझने में समय लगता है. सुयश के आने से कुछ दिन पहले ही निया वापस आई. हां, वह मुंबई से उसे फोन करती रहती और वह खुद भी उसी की तरह बिंदास हो कर बात करती. अपने जीवन में उस की खूबी को महसूस कराती. घर में उस की कमी को महसूस कराती पर अपनी तरफ से आने के लिए कभी नहीं कहती.

सुयश ने भी कुछ नहीं कहा. निया वापस आई तो शिवानी ने उसे बिछड़ी बेटी की तरह गले लगा लिया. सुयश कुछ महीने रह कर फिर शिप पर चला गया. पर इस बार निया में परिवर्तन अपनेआप ही आने लगा था. स्वभाव तो उस का प्यारा पहले से ही था पर अब वह उस के प्रति जिम्मेदारी भी महसूस करने लगी थी. इसी बीच निया को जौब मिल गई.

शिवानी खुद ही निया के रंग में रंग गई. निया ने जब पहली बार उस के लिए जींस खरीदने की पेशकश की तो उस ने ऐतराज किया, ‘‘ममा पहनिए, आप पर बहुत अच्छी लगेगी.’’

और उस के जोर देने पर वह मान गई कि बेटी भी होती तो ऐसा ही कर सकती थी. समय बीततेबीतते उन दोनों के बीच रिश्ता मजबूत होता चला गया. औपचारिकता के लिए कोई जगह ही नहीं रह गई. कोशिश तो किसी भी रिश्ते में सतत करनी पड़ती है. फिर एक समय ऐसा आता है जब उन कोशिशों को मुकाम हासिल हो जाता है.

जितना खुलापन, प्यार, अपनापन, विश्वास, उस ने शुरू में निया को दिया और उसे उसी की तरह जीने, रहने व पहनने की आजादी दी, उतना ही वह अब उस का खयाल रखने लगी थी. बेटी की तरह उस की छोटीछोटी बातें अकसर उस की आंखों में आंसू भर देती. कभी वह उस को शाल यह कह कर ओढ़ा देती, ‘‘ममा ठंड लग जाएगी.’’ कभी उस की ड्रैस बदला देती, ‘‘ममा यह पहनो. इस में आप बहुत सुंदर लगती हैं. मेरी फ्रैंड्स कहती हैं तेरी ममा तो बहुत सुंदर और स्मार्ट है.’’

निया ने ही उसे ड्राइविंग सिखाई. हर नई चीज सीखने का उत्साह जगाया. वह खुद ही पूरी तरह निया के रंग में रंग गई और अब ऐसी स्थिति आ गई थी कि दोनों एकदूसरे को पूछे बिना न कुछ करतीं, न पहनतीं. हर बात एकदूसरे को बतातीं. इतना अटूट रिश्ता तो मांबेटी के बीच भी नहीं बन पाता होगा. सोच कर शिवानी मुसकरा दी.

सोचतेसोचते शिवानी ने निया की तरफ देखा. वह गहरी नींद में थी. उस ने उस की चादर ठीक की और लाइट बंद कर खुद भी सोने का प्रयास करने लगी. दूसरे दिन रविवार था. दोनों देर से सो कर उठीं.

दैनिक कार्यक्रम से निबट कर दोनों बैडरूम में ही बैठ कर नाश्ता कर रही थीं कि उन की पड़ोसिनें मिथिला, वैशाली, मधु व सुमित्रा आ धमकीं. निया सब को नमस्ते कर के उठ गई.

‘‘अरे वाह, आओआओ… आज तो सुबहसुबह दर्शन हो गए. कहां जा रही हो चारों तैयार हो कर?’’ शिवानी मुसकरा कर नाश्ता खत्म करती हुई बोली.

‘‘हम सोच रहे थे शिवानी कि कालोनी का एक ग्रुप बनाया जाए, जिस से साल में आने वाले त्योहार साथ में मनाएं मिलजुल कर,’’ मिथिला बोली.

‘‘इस से आपस में मिलनाजुलना होगा और जीवन की एकरसता भी दूर होगी,’’ वैशाली बात को आगे बढ़ाते हुए बोली.

‘‘हां और क्या… बेटेबहू तो चाहे साथ में रहें या दूर अपनेआप में ही मस्त रहते हैं. उन की जिंदगी में तो हमारे लिए कोई जगह है ही नहीं… बहू तो दूध में पड़ी मक्खी की तरह फेंकना चाहती है सासससुर को,’’ मधु खुद के दिल की भड़ास उगलती हुई बोली.

‘‘ऐसा नहीं है मधु… बहुएं भी आखिर बेटियां ही होती हैं. बेटियां अच्छी होती हैं फिर बहुएं होते ही वे बुरी कैसे बन जातीं हैं, मां अच्छी होती हैं फिर सास बनते ही खराब कैसे हो जाती हैं? जाहिर सी बात है कि यह रिश्ता नुक्ताचीनी से ही शुरू होता है. एकदूसरे की बुराइयों, कमियों और गलतियों पर उंगली रखने से ही शुरुआत होती है.

‘‘मांबेटी तो एकदूसरे की अच्छीबुरी आदतें व स्वभाव जानती हैं और उन्हें इस की आदत हो जाती है. वे एकदूसरे के स्वभाव को ले कर चलती हैं पर सासबहू के रूप में दोनों कुछ भी गलत सहन नहीं कर पाती हैं. आखिर इस रिश्ते को भी तो पनपने में, विकसित होने में समय लगता है. बेटी के साथ 25 साल रहे और बहू 25 साल की आई, तो कैसे बन पाएगा एक दिन में वैसा रिश्ता.’ उस रिश्ते को भी तो उतना ही समय देना पड़ेगा. कोशिशें निरंतर जारी रहनी चाहिए. एकदूसरे को सराहने की, प्यार करने की, खूबसूरत पहलुओं को देखने की,’’ शिवानी ने अपनी बात रखी.

‘‘तुम्हें अच्छी बहू मिल गई न… इसलिए कह रही हो. हमारे जैसी मिलती तो पता चलता,’’ सुमित्रा बोली.

‘‘लेकिन बेटे की पत्नी व बहू के रूप में देखने से पहले उसे उस के स्वतंत्र व्यक्तित्व के साथ क्यों नहीं स्वीकार करते? उस की पहचान को प्राथमिकता क्यों नहीं देते? उस पर अपने सपने थोपने के बजाए उस के सपनों को क्यों नहीं समझते? उस के उड़ने के लिए दायरे का निर्धारण तुम मत करो. उसे खुला आकाश दो जैसे अपनी खुद की बेटी के लिए चाहते हो, उस के लिए नियम बनाने के बजाए उसे अपने जीवन के नियम खुद बनाने दो, उसे अपने रंग में रंगने के बजाए उस के रंग में रंगने की कोशिश तो करो, तुम्हें पता नहीं चलेगा, कब वह तुम्हारे रंग में रंग गई.

‘‘आखिर सभी को अपना जीवन अपने हिसाब से जीने का पूरा हक है. फिर बहू से ही शिकायतें व अपेक्षा क्यों?’’ बड़े होने के नाते आज उस की गलतसही आदतों को समाओ तो सही, कल इस रिश्ते का सुख भी मिलेगा. कोशिश तो करो. हालांकि, देर हो गई है पर कोशिश तो की जा सकती है. रिश्तों को कमाने की कोशिशें सतत जारी रहनी चाहिए सभी की तरफ से,’’ शिवानी मुसकरा कर बोली.

‘‘मैं यह नहीं कहती कि इस से हर सासबहू का रिश्ता अच्छा हो जाएगा पर हां, इतना जरूर कह सकती हूं कि हर सासबहू का रिश्ता बिगड़ेगा नहीं,’’ उस ने आगे कहा.

चारों सहेलियां विचारमग्न सी शिवानी को देख रही थीं और बाहर से उन की बातें सुनती निया मुसकराती हुई अपने कमरे की तरफ चली गई.

मालती का बदला: दिलावर सिंह की दहशत – भाग 3

‘‘इस की क्या जरूरत थी डाक्टर, यह मालती मेरी ज्यादा ही फिक्र करने लगी है,’’ दिलावर डाक्टर से बोला.

प्रयोगशाला से टैक्नीशियन रक्त का सैंपल लेने आया. उस ने आते ही दिलावर के पैर छुए. फिर इस तरह की भावना दिखाते हुए खून लिया जैसे स्वयं को दर्द हो रहा हो.

कुछ देर बाद प्रयोगशाला में मालती का फोन आया, ‘‘हैलो डाक्टर, मैं मालती बोल रही हूं, दिलावर सर की पीए. साहब के कलेक्टेड ब्लड सैंपल का एचआईवी टैस्ट और करना है, वे डाक्टर साहब उन के डर के कारण परची में नहीं लिख पाए. पर उस की रिपोर्ट मुझ को भेजनी है.’’

मालती सामान्य ब्लड रिपोर्ट ले कर डाक्टर के पास पहुंची. डाक्टर ने कहा, ‘‘थोडे़ प्लेटलेट्स कम हैं. पर ओवरआल रिपोर्ट सामान्य ही है.’’

एचआईवी टैस्ट की रिपोर्ट मालती खुद ले आई थी. रिपोर्ट पौजिटिव निकलने पर मालती बहुत खुश हुई. यानी उस का मकसद पूरा हो गया था. फिर वह उसी दिन मालती दिलावर के पास से गायब हो गई.

7 दिन बाद दिलावर को मुंबई से एक पत्र प्राप्त हुआ. उस में लिखा था कि कमीने, मैं इस समय मुंबई में हूं. चिट्ठी के साथ ही तेरी एचआईवी की रिपोर्ट है, जो पौजिटिव है. तू मुझ से बदला लेने यहां आ जा. हम दोनों साथ ही साथ मरेंगे. तुझे संक्रमित करने के लिए मुझे खुद संक्रमित होना पड़ा था.

तेरी जान की दुश्मन

मालती.

पत्र पढ़ कर दिलावर कांपने लगा, उस ने प्रयोगशाला के डाक्टर को बुलाया और उस के गाल पर चांटा मार कर दहाड़ा, ‘‘बेवकूफ के बच्चे, तू ने मुझे क्यों नहीं बताया कि मैं एचआईवी पौजिटिव हो गया हूं?’’

डाक्टर ने कांपते हुए कहा, ‘‘आप की पीए मालती मैडम ने कहा था.’’

‘‘निकल यहां से. किसी को यदि मालूम हुआ कि मैं एचआईवी पौजिटिव हूं तो ये देखी है इसे पिस्तौल कहते हैं. इस में से गोली घूमती हुई निकलती है.’’

डाक्टर डरता हुआ चुपचाप बाहर निकल गया.

जब दिलावर का राज सब को मालूम हुआ तो उस के गनमैन उसे छोड़ कर चले गए. दिलावर जब कमजोर हो गया तो शहर में कई नए डौन बन गए.

दिलावर मुंबई पहुंचा पर मालती नहीं मिली. लौट कर जब वह घर आया तो उस पर दूसरे गुंडे ने कब्जा कर रखा था. उस ने दिलावर को चिट्ठी दी जो सूरत से आई थी. उस में सूरत का सुंदर वर्णन था. अब दिलावर को टीबी हो गई थी. चिट्ठी के साथ में 2 साधारण क्लास के टिकट थे.

6 महीने में दिलावर हांफने लगा था. उस के साथ कोई नहीं था. उसी के साथी उस के पैसे लूट कर भाग गए थे. उसे चक्कर आने लगा था. वह भारतीय स्टेट बैंक में अपना एकाउंट बंद कराने गया तो उस के आगे एक हृष्टपुष्ट आदमी खड़ा था. जब दिलावर आगे जाने लगा तो उस ने दिलावर को एक थप्पड़ जड़ दिया. दिलावर करुणा से उन कर्मचारियों को देखने लगा जो पहले उसे देखते ही खड़े हो जाते थे. सब मुसकराने लगे.

काउंटर पर जब वह गया तो सामने एक युवती बैठी थी. उसे लगा कि वह मालती जैसी थी.

दिलावर ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘मैडम, मुझे अपना एकाउंट बंद करवाना है. कृपया मेरी एप्लीकेशन ले लीजिए.’’

वह मालती नहीं थी. बोली, ‘‘सर बैठिए.’’

दिलावर सिर नीचे किए बैठा रहा. वह बोली, ‘‘कहिए, मैं आप के किस काम आ सकती हूं? आप क्यों अपना एकाउंट बंद कराना चाहते हैं? आप को इस के लिए मैनेजर साहब से मिलना पड़ेगा.’’

दिलावर जब मैनेजर से मिलने गया तब उसे बाहर चपरासी ने रोक दिया. उस ने कहा, ‘‘पहले परची दो. उस पर अपना नाम लिखो और मिलने का कारण लिखो.’’

दिलावर ने परची भिजवा दी.

मैनेजर ने उसे अंदर बुला लिया. दिलावर ने सोचा कि मैनेजर देखते ही उसे बैठने को कहेगा. पर मैनेजर ने उसे बैठने को नहीं कहा और उपेक्षा से पूछा, ‘‘क्यों दिलावर, तुम्हें एकाउंट क्यों बंद कराना है?’’

दिलावर ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हुजूर उस में मात्र 2 हजार रुपए ही बचे हैं. मैं भुखमरी के कगार पर हूं.’’

उस के अनुरोध पर मैनेजर ने उस का एकाउंट बंद करा दिया.

रात को दिलावर जब सो रहा था तो अचानक गाल पर पड़े एक जोरदार थप्पड़ ने उसे जगा दिया. वह हड़बड़ा कर उठा तो सामने मालती खड़ी थी उस के हाथ में एक देशी कट्टा था. वह गुस्से में बोली, ‘‘कमीने, पहले पूरा होश में आ जा.’’

दिलावर कांपता हुआ बोला, ‘‘मैडम, मैं होश में आ गया हूं. आप ने मुझे जगा दिया है.’’

‘‘तो सुन…’’ मालती बोली, ‘‘तू इस काबिल नहीं कि पिस्टल की गोली से मारा जाए. देशी कट्टे से मारना भी तेरी इज्जत करना है.’’

ऐसा कह कर मालती ने दोनों हाथों में कट्टे ताने और 2 गोलियां उस के सीने में एक साथ दाग दीं. दिलावर की करनी उस के सामने आ गई.

सच्चाई सामने आती है पर देर से – भाग 2

इस को सुन कर शाहिदा बानो का खून खौलने लगा. मगर वह विवश थी. उस ने अपना पर्स कंधे पर लटकाया और उठ कर बाहर की तरफ बढ़ी, ‘‘तुम्हारा लिफाफा.’’ फोन सुनने वाली अमीना ने मेज पर रखा लिफाफा उठा कर उस की तरफ बढ़ाया.

शाहिदा बानो ने कशमकश भरी नजरों से लिफाफे की ओर देखा. उस की अस्मत लुटने की कीमत. क्या करे? उस की मन:स्थिति समझ कर अमीना ने उस का पर्स खोला और लिफाफा उस में डाल दिया.

हलकेहलके लड़खड़ाती सी चलती शाहिदा बानो ब्यूटीपार्लर से बाहर चली आई. सारे सपने सारी उम्मीदें एक झटके में खत्म हो गई थीं. ब्यूटीपार्लर द्वारा दिया स्कूटर छूते हुए उसे हाथ में आग सी लग रही थी.

जैसेतैसे फ्लैट में पहुंची. रोजाना उत्साह से खाना बनाती थी. मगर आज पानी भी नहीं पिया जा रहा था. बत्ती बुझा कर बिस्तर पर लेटी. काफी देर बाद पता नहीं कब उस की आंख लग गई.

काफी दिन चढ़े जब उस का सेलफोन थरथराया तो उस की नींद टूटी. उस ने स्क्रीन पर नजर डाली. ब्यूटीपार्लर की संचालिका का फोन था. स्विच औन करते ही मैडम का रौबीला स्वर गूंजा.

‘‘क्या हुआ, अभी तक नहीं आई?’’

‘‘मेरी तबीयत खराब है.’’

‘‘जब अपने शौहर के साथ हमबिस्तर होती हो तब तबीयत खराब नहीं होती?’’

शाहिदा बानो खामोश रही.

‘‘जल्द से जल्द हाजिर होओ वरना…’’ मैडम ने फोन काट दिया.

मैडम के स्वर में धमकी साफ थी. शाहिदा बानो फटाफट तैयार हो कर ब्यूटीपार्लर पहुंची.

‘‘आज दूसरी लड़कियां होम सर्विस को गई हैं. यहां कई क्लाइंट बैठी हैं, उन को अटेंड करो.’’ वेटिंग हाल में बहुत सी खातूनें मौजूद थीं.

शाहिदा बानो सब को बारीबारी से निपटाने लगी. सभी क्लाइंट्स निपट गईं तो शाहिदा बानो कैश काउंटर पर बैठी मैडम के पास पहुंची.

‘‘मेरा पासपोर्ट दे दीजिए और मेरा हिसाब कर दीजिए. मुझे वापस जाना है.’’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा.

मैडम की भौंहें तन गईं. ‘‘तुम्हारा कौन्ट्रैक्ट 3 साल का है. मियाद से पहले तुम वापस नहीं जा सकती. चुपचाप काम करो वरना…’’

‘‘आप मेरी तनख्वाह जब्त कर लो, मगर मेरा पासपोर्ट दे दो.’’

‘‘मैं एक फोन करूंगी, 5 मिनट में पुलिस आ जाएगी. तुम्हें बदकारी के इल्जाम में अंदर कर देगी.’’ मैडम के स्वर में साफसाफ धमकी थी.

‘‘बदकारी..? मेरी अस्मत लुटवा कर मुझे बदकार कहती हैं.’’ शाहिदा बानो चिल्लाई.

‘‘यह सऊदी अरब है, तुम्हारा इंडिया नहीं. यहां जिस्मफरोशी सख्त अपराध है. इस की सख्त सजा है, चौराहे पर कोड़े लगाए जाएंगे. कम से कम 3 साल जेल की सजा काटनी पड़ेगी.’’ मैडम किसी वकील की तरह बोल रही थी.

शाहिदा बानो सहम गई. 5 हजार रियाल यानी 90 हजार रुपए महीना. सारे सपने, सारी उमंगें एकदम खत्म हो गईं. ब्यूटीपार्लर की आड़ में जिस्मफरोशी का एक रैकेट था. इस दलदल से, दुष्चक्र से क्या छुटकारा पा सकेगी?

वह खामोश हो कर सर्विस रूम में चली गई. होम सर्विस के लिए गई लड़कियां लौटने लगीं. सब के चेहरे खामोश थे. भुक्तभोगी शाहिदा बानो उन के चेहरे से उन की मन:स्थिति समझ रही थी. सब ने किस्मत और हालात से समझौता कर लिया था. स्टाफरूम में सब खामोश थीं. सब के चेहरे उन की मजबूरी बयान कर रहे थे.

सब अलगअलग देशों से, अलगअलग इलाकों से आई थीं. कई शादीशुदा थीं, कई कुंवारी. बड़ी रकम वाली तनख्वाह के बदले उन को अपना शरीर सौंपना पड़ा था.

आमतौर पर सब में हलकाफुलका वार्तालाप होता था. घरपरिवार की बातें होती थीं. सब के पासपोर्ट और कागजात ब्यूटीपार्लर की संचालिका के पास जमा थे. इकरारनामे की मियाद पूरी होने से पहले किसी को वापस नहीं भेजा जा सकता था.

इस का मतलब था मियाद खत्म होने तक सब को बारबार होम सर्विस के बहाने अपनी अस्मत लुटवानी थी.

सब के दिमाग में एक ही सवाल था, मगर अनजाने भय से सब खामोश थीं. क्या पता स्टाफरूम में कोई टेपरिकौर्डर लगा हो. क्या पता कोई सीसीटीवी कैमरा उन पर नजर रख रहा हो.

वास्तव में ब्यूटीपार्लर के हर कक्ष में गुप्त कैमरे फिट थे. ब्यूटीपार्लर की संचालिका या मैडम अपनी सीट पर बैठी सामने रखी स्क्रीन पर नजर डाल हर जगह की खबर रखती थी.

शाम का अंधेरा छाया. ब्यूटीपार्लर बंद हुआ. सब अपनीअपनी स्कूटी, स्कूटर पर सवार हो अपने घर चलीं.

होम सर्विस की ड्यूटी भुगते शाहिदा बानो को 4 दिन बीत गए. ब्यूटीपार्लर की असलियत सामने आने पर काम के प्रति सारा उत्साह ठंडा पड़ गया. पार्लर में आने वाले ग्राहकों को अब वह बड़ी फुरती से निपटाती थी.

‘‘गुलबदन…’’ इंटरकौम पर मैडम की आवाज गूंजी.

‘‘जी, फरमाइए.’’

‘‘तुम्हें और शाहिदा बानो को होम सर्विस पर जाना है.’’

‘‘इकट्ठे?’’

‘‘शेख अब्दुल्ला बिन मोहम्मद अब्दुल्ला के यहां बड़ा प्रोग्राम है. कई खातूनें मसाज करवाना चाहती हैं. उन की कार अभी थोड़ी देर में आ रही है.’’

मैडम का फरमान सुन कर गुलबदन खामोश रही. शाहिदा बानो सहम गई. एक दरिंदे को 4 दिन पहले सह चुकी थी. अब पता नहीं क्या होगा.

‘‘अगर मैं ना जाऊं तो?’’ शाहिदा बानो के इस सवाल का जवाब गुलबदन क्या देती. इस से पहले इंटरकौम का बजर बजा. मैडम का स्वर गूंजा, ‘‘इनकार करने की सूरत में थाने से लेडी पुलिस के साथ पुलिस इंसपेक्टर आएगा और तुम्हें बदकारी के इलजाम में हवालात में बंद कर देगा. थाने में भी होम सर्विस करनी पड़ेगी.’’

स्टाफरूम में बैठी सब सहम गईं. ब्यूटीपार्लर के बाहर कार लगते ही शाहिदा बानो और गुलबदन चुपचाप पिछली सीट पर बैठ गईं.

अरब शेख अब्दुल्ला बिन मोहम्मद अब्दुल्ला का विला या महल काफी आलीशान था. एक बुरकाधारी खातून उन को लिवा कर जनानखाना में ले गई.

अधेड़ और नौजवान लड़कियों का समूह उन का इंतजार कर रहा था. किसी पुरुष की जगह औरतों को देख कर दोनों आश्वस्त हुईं.

विला में सभी सुविधाओं से युक्त ब्यूटीपार्लर था. सब औरतें बारीबारी से अपनी सर्विस करवाने लगीं. सब निपट गईं तो दोनों ने राहत की सांस ली. मगर क्या उन की ड्यूटी समाप्त हो गई थी?

सब औरतें चली गईं तब उन को अंदर लिवा लाने वाली खातून ने कहा, ‘‘आप दोनों को अंदर जनानखाने में भी सर्विस करनी है.’’

जनानखाना महल के काफी अंदर एक लंबा गलियारा पार कर के था.

पुराने जमाने के मुसलिम शासकों के महलों की साजसज्जा. बड़ा हाल कमरा सजा था. फर्श पर धवल सफेद गद्दा बिछा था. गावतकिए के सहारे एक अधेड़ अरब शेख जिस के चेहरे पर खिचड़ी दाढ़ी थी, बैठा था.

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