
लेखक- पी.एल. कश्यप
चूंकि ज्ञान सिंह और रामकुमार के गांवों में महज 3 किलोमीटर की दूरी थी. ज्ञान सिंह का रामकुमार के घर भी आनाजाना हो गया और धीरेधीरे रामकुमार ज्ञान सिंह का विश्वासपात्र बन गया.
इसी दौरान ज्ञान सिंह की नजरें रामकुमार की पत्नी कमला पर जा टिकीं. रामकुमार दिन में जब दूध ले कर शहर को निकल जाता तो ज्ञान सिंह दोपहर के वक्त कमला के घर में बैठ कर उस से घंटों बतियाता. दरअसल वह उस के मन को टटोला करता था.
कमला की नजरों ने ज्ञान सिंह के मन को भांप लिया कि वह क्या चाहता है. ज्ञान सिंह कमला को भाभी कहता था. उम्र में वह कमला से काफी छोटा था. इसलिए दोनों में नजदीकियां काफी बढ़ गईं. वक्तजरूरत पर ज्ञान सिंह ने पैसे से मदद कर कमला का मन जीत लिया था. धीरेधीरे वह भी उस की तरफ आकर्षित होने लगी और कमला का झुकाव ज्ञान सिंह की तरफ हो गया था. फिर दोनों में करीबी रिश्ता बन गया.
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एक दिन कमला ने मौका देख कर ज्ञान सिंह से कहा, ‘‘तुम मेरे मकान के नजदीक खाली पड़े खंडहर में दूध की डेयरी का काम क्यों नहीं शुरू कर देते. तुम्हारे भाईसाहब को भी शिवपुरी मानपुर लाला से जा कर रोजाना दूध लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी और उन्हें भी आसानी हो जाएगी. समय निकाल कर मैं भी दूध की डेयरी पर हाथ बंटा दिया करूंगी. बच्चों का खर्च उठाने के लिए मुझे भी धंधा मिल जाएगा.’’
कमला की बात सुन कर ज्ञान सिंह हंसते हुए बोला, ‘‘अच्छा तो यह बात है. मैं अपने रिश्तेदार अंकित यादव से इस बारे में बात करूंगा.’’
ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अंकित यादव का रिश्तेदार था. उस के अंकित के परिवार से अच्छे संबंध थे. ज्ञान सिंह ने अंकित के सामने यह प्रस्ताव रखा कि वह शिवपुरी बरा खेमपुर में दूध की डेयरी खोलना चाहता है. अंकित ने ज्ञान सिंह के प्रस्ताव को सुन कर हामी भर ली और शिवपुरी बरा खेमपुर में रामकुमार के आवास के पास ही दूध की डेयरी खोल ली और दूध के कारोबार की जिम्मेदारी कमला के पति रामकुमार को सौंप दी. कमला ज्ञान सिंह की इस पहल से काफी खुश थी.
गांव में दूध की डेयरी खुल जाने के बाद कमला और ज्ञान सिंह की नजदीकियां बढ़ गईं तो दोनों ने इस का भरपूर फायदा उठाया. रामकुमार भी पहले से अधिक ज्ञान सिंह की डेयरी पर समय बिताने लगा. रामकुमार ज्ञान सिंह की काली करतूतों से अनजान था. धीरेधीरे ज्ञान सिंह और कमला की नजदीकियों की चर्चा रामकुमार के कानों तक पहुंच गई.
पहले तो रामकुमार ने इन चर्चाओं पर विश्वास नहीं किया. उस ने कहा कि जब तक वह आंखों से देख नहीं लेगा, विश्वास नहीं करेगा. लेकिन फिर एक दिन कमला और ज्ञान सिंह को रामकुमार ने अपने ही घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया.
उस समय रामकुमार कमला से कुछ नहीं बोला लेकिन रात का खाना खा कर रामकुमार ने फुरसत के क्षणों में कमला से पूछा, ‘‘क्यों, मैं जो कुछ सुन रहा हूं और जो कुछ मैं ने अपनी आंखों से देखा, वह सच है?’’
चतुर कमला ने दोटूक जवाब देते हुए ज्ञान सिंह से अपने संबंधों की बात नकार दी. लेकिन रामकुमार के मन में संदेह का बीज पनपते ही घर में कलह की नींव पड़ गई. धीरेधीरे उस का मन ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम करने को ले कर उचटने लगा.
मन में दरार पड़ते ही उस ने ज्ञान सिंह से साफ कह दिया कि उस की पत्नी और उस के बीच जो कुछ भी चल रहा है, वह उस के जीवन में जहर घोल रहा है. उस ने ज्ञान सिंह से उस की डेयरी पर काम करने के लिए न केवल इनकार कर दिया, बल्कि ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम भी छोड़ दिया. दोनों की दोस्ती कमला को ले कर दुश्मनी में बदल गई.
यह बात ज्ञान सिंह और कमला को अच्छी नहीं लगी. कमला ने पति से कहा कि उस ने ज्ञान सिंह का कारोबार छोड़ कर दुश्मनी मोल ले ली है, लेकिन रामकुमार ने उस की एक नहीं सुनी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी कमला पर दबाव बना कर पत्नी की तरफ से ज्ञान सिंह के खिलाफ थाना बख्शी का तालाब में एससी/एसटी एक्ट के तहत शिकायत दर्ज करवा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद ज्ञान सिंह की बदनामी हुई तो कुछ लोगों ने गांव में ही दोनों का फैसला करा दिया.
ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर काम बंद करने एवं थाने में शिकायत दर्ज कराने को ले कर ज्ञान सिंह के मन में काफी खटास पैदा हो गई थी. दूसरे, दूध की डेयरी की जिम्मेदारी भी ज्ञान सिंह पर स्वयं आ पड़ी. रामकुमार ने भी अपनी मेहनतमजदूरी के वास्ते शहर जा कर काम ढूंढ लिया.
पुलिस की जानकारी में आया कि एक बार ज्ञान सिंह ने शहर के एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा रामकुमार पर हमला करवा दिया था. उस दिन से रामकुमार और ज्ञान सिंह दोनों एकदूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए. उस दिन घर लौट कर रामकुमार ने कमला को खूब खरीखोटी सुनाई थी.
रामकुमार ने कमला को हिदायत देते हुए ज्ञान सिंह ने दूर रहने की चेतावनी दे दी. ऐसा न करने पर उस ने अंजाम भुगतने की धमकी भी दी. लेकिन दोनों में से कोई भी रामकुमार की हिदायतों को मानने के लिए तैयार नहीं था.
इधर कमला की भी मजबूरी थी. वह ज्ञान सिंह द्वारा वक्तवक्त पर आर्थिक मदद के कारण उस के दबाव और अहसानों से दबती चली गई. रामकुमार इस बात से बिलकुल अंजान था. कमला ने ज्ञान सिंह से ली हुई रकम को चुकता करने के लिए डेयरी पर आनेजाने का सिलसिला जारी रखा.
वह चाहती थी कि ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर अधिक से अधिक दिनों तक काम कर के उस की ली हुई आर्थिक मदद में उधार की रकम की देनदारी को चुकता कर दे.
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रामकुमार को कमला का उस की डेयरी पर आनाजाना बिलकुल नहीं भाता था. लेकिन कमला ने पति की चिंता नहीं की. वह पति से ज्यादा प्रेमी ज्ञान सिंह को चाहती थी. इस की एक वजह यह थी कि ज्ञान सिंह उच्च जाति का धनवान व्यक्ति था. रामकुमार से अनबन कर लेने पर उसे कोई नुकसान नहीं था, लेकिन ज्ञान सिंह से अलग हो जाने पर गृहस्थी का सारा खेल बिगड़ सकता था.
इसी वजह से कमला ने ज्ञान सिंह से मिलनाजुलना जारी रखा. रामकुमार मन ही मन कुढ़ता रहता और रोजाना घर में कलह होती रहती. पति के चाहते हुए भी कमला ज्ञान सिंह को अपनी जिंदगी से दूर करने का विकल्प नहीं ढूंढ पा रही थी.
ज्ञान सिंह ने एक दिन कमला से कहा, ‘‘भाभी, पानी सिर से ऊपर हो चुका है. अब एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं. तुम ही बताओ कुछ न कुछ तो करना होगा.’’
कमला ने कहा, ‘‘तुम ही बताओ, कौन सा रास्ता निकाला जाए.’’
ज्ञान सिंह ने कमला से मिल कर अपने मन की छिपी हुई बात बताते हुए कहा कि तुम्हारे पास मेरी जो 20 हजार रुपए की रकम है, वह तुम्हें वापस करनी थी. उन में से अब 13 हजार रुपए देने होंगे और रामकुमार को किराए के लोगों से बुला कर शाम के समय लखनऊ से गांव लौटते समय रास्ते से हटा देंगे.
इस प्रस्ताव को सुन कर कमला भी खुश हो गई. उस ने ज्ञान सिंह को रजामंदी दे दी, फिर ज्ञान सिंह ने कमला के साथ मिल कर षडयंत्रपूर्वक एक योजना बना ली. तब ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को रास्ते से हटाने के लिए अंकित यादव को इस वारदात के लिए राजी कर लिया. ज्ञान सिंह ने उस से और किराए के आदमी जुटाने को कहा.
तब अंकित यादव ने रामकुमार की हत्या के लिए 20 हजार रुपए में सौदेबाजी पक्की कर ली. इस काम के लिए उस ने राजा, निवासी बरगदी, के.डी. उर्फ कुलदीप सिंह निवासी बख्शी का तालाब, उत्तम कुमार निवासी अस्ती रोड, गांव मूसानगर को तैयार किया.
राजा के कहने पर कमला और ज्ञान सिंह ने 13 हजार रुपए अंकित यादव को सौंप दिए और 7 हजार रुपए काम हो जाने के बाद देने का वादा कर लिया गया.
सभी ने तय किया कि 25 दिसंबर, 2019 को लखनऊ से आते समय भखरामऊ गोलइया मोड़ पर रामकुमार की हत्या को अंजाम दिया जाएगा. योजना के अनुसार 25 दिसंबर, 2019 की शाम को के.डी. सिंह के साथ राजा और उस के साथी पहुंच गए. राजा ने रामकुमार पर बाइक से आते समय तमंचे से हमला कर दिया. उस समय बाइक रामकुमार स्वयं चला रहा था और उस का भतीजा मतोले पीछे बैठा हुआ था.
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पुलिस को अभी 2 अभियुक्तों राजा व कुलदीप सिंह की तलाश थी. पुलिस द्वारा मुखबिरों का जाल फैला दिया गया था. मुखबिर की सूचना पर 3 जनवरी, 2020 को राजा व कुलदीप दोनों को मय तमंचे और बाइक के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. राजा ने पुलिस के साथ जा कर हमले में उपयोग किया गया तमंचा बरामद करा दिया. पुलिस ने अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
लेखक- पी.एल. कश्यप
शाम के यही कोई 6 बजे थे. धुंधलका उतर आया था. लखनऊ से सीतापुर जाने वाले मार्ग पर एक कस्बा है बख्शी का तालाब. इसी कस्बे से शिवपुरी बराखेमपुर गांव को एक रोड जाती है. सायंकाल का वक्त होने के कारण वह रोड सुनसान थी.
अचानक गुडंबा की तरफ से आ रही एक बाइक गोलइया मोड़ पर आ कर रुकी. बाइक पर 3 व्यक्ति सवार थे. वे सड़क किनारे खड़े हो कर किसी के आने का इंतजार करने लगे. कुछ देर के बाद सामने से एक बाइक आती हुई दिखाई दी, जिस पर 2 लोग बैठे थे.
इस से पहले कि मामला कुछ समझ में आता कि सड़क किनारे खड़े उन तीनों व्यक्तियों में से एक ने सामने से आती हुई उस बाइक को रोका. उस बाइक पर रामकुमार और उस का भतीजा मतोले बैठे थे, जो शिवपुरी बराखेमपुर में रहते थे.
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जैसे ही रामकुमार ने बाइक की गति धीमी की, तभी उन तीनों में से एक व्यक्ति ने तमंचे से फायर कर दिया. गोली बाइक रामकुमार के लगी जिस से बाइक सहित वे दोनों लड़खड़ा कर गिर पड़े. उन के गिरते ही तीनों हमलावर घटनास्थल से फरार हो गए. यह घटना 25 दिसंबर, 2019 की है.
रात काफी हो गई थी. मतोले ने उसी समय फोन कर के यह सूचना रामकुमार की पत्नी कमला को देते हुए कहा, ‘‘चाची, ज्ञानू ने अपने 2 साथियों राजा व अंकित के साथ चाचा रामकुमार पर हमला कर दिया है. उन के पेट में गोली लगी है. चाचा गोलइया मोड़ के पास घायल पड़े हैं.’’
यह खबर सुनते ही कमला फफक कर रो पड़ी. उस ने अपने जेठ यानी मतोले के पिता जयकरण व देवर दिनेश व अन्य परिवारजनों को यह जानकारी दे दी.
घटनास्थल गांव से 4-5 सौ मीटर की दूरी पर था. इसलिए जल्द ही परिवार व मोहल्ले वाले घटनास्थल पर पहुंच गए. परिवारजन घायल रामकुमार कोे बाइक से बख्शी के तालाब तक ले आए, फिर वहां से वाहन द्वारा लखनऊ के केजीएमयू मैडिकल अस्पताल ले गए.
रामकुमार की हालत गंभीर थी. उस के पेट में गोली लगने से खून ज्यादा मात्रा में बह चुका था, डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी रामकुमार को बचाया नहीं जा सका. मैडिकल कालेज में उपचार के दौरान उस की मृत्यु हो गई.
चूंकि मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना स्थानीय थाना बख्शी का तालाब में दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी बृजेश सिंह, एसएसआई कुलदीप कुमार सिंह और एसआई योगेंद्र कुमार, अवनीश कुमार और सिपाही नितेश मिश्रा के साथ मैडिकल कालेज जा पहुंचे.
डाक्टरों से बातचीत करने के बाद उन्होंने मृतक के परिजनों से पूछताछ की तो मतोले ने थानाप्रभारी को हमलावरों के नाम भी बता दिए. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने रामकुमार का शव अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रात में ही घटनास्थल पर पहुंच गए. रोशनी की व्यवस्था कर उन्होंने घटनास्थल से खून आलूदा मिट्टी से सबूत एकत्र किए.
अगले दिन 26 दिसंबर, 2019 को पोस्टमार्टम होने के बाद रामकुमार का शव उस के परिजनों को सौंप दिया. अंतिम संस्कार के बाद थानाप्रभारी ने रामकुमार की पत्नी कमला की ओर से ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू और राजा के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी व एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. चूंकि मुकदमे में एससी/एसटी एक्ट की धारा भी लगी थी, इसलिए इस की जांच की जिम्मेदारी सीओ स्वतंत्र सिंह ने संभाली.
पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक की पत्नी कमला का चरित्र ठीक नहीं था, इसलिए पुलिस ने कमला का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और उस से ज्ञान सिंह यादव का फोन नंबर भी प्राप्त कर लिया. पुलिस ने उन के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.
घटना का चश्मदीद मृतक का भतीजा मतोले था, पूछताछ करने पर मतोले ने पुलिस को बताया कि पड़ोस की दूध की डेयरी पर काम करने वाले ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू ने उस से कई बार कहा कि तुम शहर में कामधंधे के लिए अपने चाचा रामकुमार के साथ न जाया करो, क्योंकि तुम्हारे चाचा से मेरी रंजिश चल रही है. उस ने अपने दोस्तों के साथ घेर कर चाचा को गोली मार दी.
उधर पुलिस ने कमला और ज्ञान सिंह के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो इस बात की पुष्टि हो गई कि कमला और ज्ञान सिंह के बीच दाल में कुछ काला अवश्य है.
एसएसआई कुलदीप सिंह ने इस बारे में मतोले से पूछा तो उस ने हां में सिर हिला दिया. ऐसे में कमला से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए 26 दिसंबर, 2019 की शाम एसएसआई कुलदीप सिंह अपने सहयोगियों एसआई अवनीश कुमार, हंसराज, महिला सिपाही श्रद्धा शंखधार, नेहा शर्मा को साथ ले कर कमला के घर पहुंचे. रात में पुलिस को अपने घर आया देख कर कमला सकपका गई. उस के चेहरे का रंग उतर गया. उस ने पूछा, ‘‘दरोगाजी, इतनी रात को घर आने का क्या मकसद है?’’
‘‘मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से तुम्हारे पति रामकुमार की कोई रंजिश थी? मुझे पता चला है कि तुम्हारे पति पर ज्ञान सिंह ने ही भाड़े के लोगों के साथ हमला कराया था. पुलिस उसी की तलाश में गांव आई है.’’ एसएसआई ने कहा.
यह कह कर एसएसआई ने कमला के दिमाग से शक का कीड़ा निकाल दिया, ताकि उसे लगे कि वह पुलिस के शक के दायरे में नहीं है. इस केस की जांच में सहयोग करने के लिए तुम्हें कल सुबह थाने आना होगा. इस पूछताछ में पुलिस को ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व अंकित यादव के खिलाफ कुछ और तथ्य मिल गए.
अगले दिन पुलिस टीम ज्ञान सिंह यादव उर्फ ज्ञानू, अंकित आदि की तलाश में उन के घर गई तो वे घरों पर नहीं मिले. पता चला कि कमला भी अपने घर से फरार हो गई है. इस से पुलिस को पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग इस अपराध से जुड़े हैं. इसलिए पुलिस ने तीनों के पीछे मुखबिर लगा दिए.
मुखबिरों द्वारा पुलिस को पता चला कि कमला अपने प्रेमी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व उस के दोस्त अंकित यादव के साथ फरार होने के लिए गांव से निकल कर भगतपुरवा तिराहा, भाखामऊ रोड पर खड़ी है. कुछ ही देर में थाना बख्शी का तालाब से एक पुलिस टीम वहां पहुंच गई. वहीं से पुलिस ने कमला, ज्ञान सिंह और अंकित को गिरफ्तार कर लिया.
एक मुखबिर की सूचना पर एक अन्य आरोपी उत्तम कुमार को भैसामऊ क्रौसिंग से एक तमंचे व 2 कारतूस सहित गिरफ्तार कर लिया गया.
थाने पहुंच कर कमला निडरता के साथ बोली, ‘‘दरोगाजी, हमें थाने बुला कर काहे बारबार परेशान कर रहे हैं.’’
इतना सुनते ही थानाप्रभारी बृजेश कुमार सिंह ने महिला सिपाही नेहा शर्मा और सिपाही शंखधार को बुला कर कहा, ‘‘इस औरत को हिरासत में ले लो. एक तो इस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर अपने पति की हत्या करने की साजिश रची और ऊपर से स्वयं पतिव्रता बनने का नाटक कर रही है.’’
थानाप्रभारी ने हंसते हुए कमला से कहा, ‘‘परेशान न हो शाम तक तुम्हें घर वापस भेज दिया जाएगा. कुछ अधिकारी यहां आ रहे हैं, तुम उन्हें सचसच बता देना.’’
सीओ स्वतंत्र सिंह भी जांच हेतु थाने पहुंच गए. सूचना पा कर एसपी (ग्रामीण) आदित्य लंगेह भी थाना बख्शी का तालाब आ पहुंचे. चारों आरोपियों को अधिकारियों के सामने पेश किया गया.
चारों आरोपियों ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि कमला के गांव के ही निवासी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से अवैध संबंध थे. उन्होंने ही रामकुमार को ठिकाने लगाया था. उन चारों से हुई पूछताछ के आधार पर रामकुमार हत्याकांड की गुत्थी सुलझ गई.
पूछताछ में कमला और ज्ञान सिंह के अवैध संबंधों की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार है—
लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर लखनऊ-सीतापुर राजमार्ग के किनारे तहसील बख्शी का तालाब है. इसी क्षेत्र में गांव शिवपुरी बरा खेमपुर है. रामकुमार रावत का परिवार इसी गांव में रहता था.
रामकुमार रावत अपने परिवार में सब से बड़ा था. उस के अन्य 2 भाई दिनेश (35 साल) व राजेश (30 साल) थे. रामकुमार का विवाह करीब 15 साल पहले मूसानगर के निकट कुरसी गांव की रहने वाले शिवचरण रावत की बेटी कमला के साथ हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. रामकुमार लखनऊ के आसपास कामधंधे की तलाश में जाता रहता था.
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उस के पड़ोस में ही ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू रहता था, जो मूलरूप से शिवपुरी मानपुर लाला, थाना बख्शी का तालाब का रहने वाला था. ज्ञान सिंह अविवाहित था. रामकुमार की पत्नी कमला की उम्र लगभग 40 वर्ष के आसपास रही होगी. कमला की एक बहन रामप्यारी शिवपुरी मानपुर लाला में रहती थी. निकटवर्ती रिश्तेदारी होने के कारण कमला का अपनी बहन के गांव शिवपुरी मानपुर लाला अकसर आनाजाना लगा रहता था.
ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अपने गांव में दूध की डेयरी का काम करता था. वह रोजाना अपने गांव से दूध इकट्ठा कर बाइक से बख्शी का तालाब कस्बे में बेचने के लिए आताजाता था. कमला की बहन रामप्यारी के कहने पर ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को अपने साथ दूध के काम पर लगा दिया.
इस के बाद दूध इकट्ठा करने का काम रामकुमार करने लगा. बाद में वह दूध बेचने के लिए लखनऊ व निकटवर्ती इलाकों में निकल जाता था और दूध बेच कर शाम तक अपने गांव शिवपुरी बराखेमपुर लौट आता था. रामकुमार की दिन भर की यही दिनचर्या थी. इस तरह कई सालों तक रामकुमार ज्ञान सिंह के साथ रह कर दूध बेचने का काम करता रहा.
अपराधी चाहे जितना शातिर हो, अपराध करते समय वह कितने ही हथकंडे अपना ले, कानून की नजरों से न बच सकता है न छिप सकता है.
हाल ही में एक ऐसी ही घटना घटी जिस पर यकीन करना एकबारगी कठिन लगता है.
जमीन संबंधी विवाद
घटना बिहार के बक्सर जिले की है, जहां रामधनी नाम का एक शख्स मठिया मोङ पर लिट्टी बेच कर घर चलाता था. जगह भीङभाङ वाली थी, इसलिए उसे दिनभर में अच्छी आमदनी हो जाती थी.
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वह अपने इस व्यवसाय को बढ़ाने की सोच रहा था और इसीलिए उस ने सोचा कि क्यों न वह जमीन का एक टुकड़ा बेच कर कारोबार बढ़ाने में लगा दे.
उस ने अपने जमीन के एक टुकङे को बेचा तो यह बात उस के विरोधियों को खटकने लगी. इस पर अच्छाखासा विवाद भी शुरू हो गया.
इस विवाद से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपने विरोधियों से बातचीत करनी चाही और एक सुबह उन से मिलने पहुंच गया.
हत्या कर कब्र में दफना दिया
मगर विरोधियों ने इस दौरान न सिर्फ उस की हत्या कर दी, बल्कि पेशेवर तरीके से लाश को जमीन में दफना दिया. लाश सङ कर जल्दी जमीन में जल्द मिल जाए इस के लिए अपराधियों ने कब्र में नमक भी डाल दिया.
उधर सुबह का निकला रामधनी घर नहीं लौटा तो घर वालों को इस बात की चिंता हुई.
घर वालों ने पुलिस को घटना के बारे में बताया और कहा कि रामधनी घर नहीं लौटा है. पुलिस को बताने के बाद वे जगहजगह उसे ढूंढ़ने भी निकल पङे लेकिन रामधनी जीवित हो तब तो मिलता.
ढूंढ़ने के दौरान ही घर वाले एक कब्रिस्तान पहुंचे तो वहां देखा कि एक मुरदे का पैर कब्र से बाहर है. घर वालों ने पैर को तुरंत पहचान लिया. कब्र में रामधनी की लाश पङी थी.
घटना की सूचना पुलिस को दी गई. पुलिस ने शव को कब्र से निकाला और जरूरी तफ्तीश शुरू कर दी.
ऐसे मिला सुराग
दरअसल, मौनसून के दिनों वहां तेज बारिश हो रही थी और इस बारिश में मिट्टी बही तो मुरदे का एक पैर कब्र से बाहर आ गया. घर वालों ने तुरंत उस की पहचान कर पुलिस में सूचना दी.
खबरों की मानें तो पुलिस को हत्या करने वालों का सुराग मिल गया है और जल्दी ही सभी अपराधी पुलिस गिरफ्त में होंगे.
रामधनी की हत्या से लोगों में गुस्सा तो है पर वे मानते हैं कि मर कर भी रामधनी ने अपनी मौत की गवाही दे दी और पुलिस को सुराग भी ताकि जल्द ही हत्यारों पर कानूनी काररवाई हो.
पहला मामला-
छत्तीसगढ़ के न्यायधानी बिलासपुर के तोरवा थाना क्षेत्र में एक महिला फांसी पर लटकी मिली. मामला थाने पहुंचा, जांच पड़ताल हुई तो यह पर्दाफाश हुआ कि उसके दो पुत्रों ने ही महिला की अवैध संबंधों से नाराज होकर हत्या की थी.
दूसरा मामला-
जिला दुर्ग के कोतवाली थाना क्षेत्र में छत से गिरकर एक शख्स की मौत हो गई. जांच पड़ताल में यह पुलिस ने पाया की उसे पुत्र ने ही धक्का देकर नीचे गिरा दिया था. जिसके कारण मौत हुई.
तीसरा मामला-
कोरबा जिला के बाल्को थाना क्षेत्र में एक लड़की की लाश मिली .प्रारंभ में यह तथ्य सामने आया कि लड़की ने जहर खा लिया है. मगर पुलिस विवेचना में यह बात सिद्ध हो गई कि उसे जहर देकर मारा गया था.
अपराध की दुनिया में अपराधी आगे आगे चलता है और पुलिस पीछे पीछे. मगर पुलिस कब आगे हो जाती है यह अपराधी को पता ही नहीं चलता. यह खेल अपराधियों और पुलिस के मध्य चलता रहता है. अक्सर हम किसी की मौत की खबर मिलने पर चकित हो जाते हैं कि यह कैसे आत्महत्या कर सकता है? मगर जब तथ्य से तथ्य मिलते हैं और कोई अफसर ईमानदारी से जांच करता है तो सच्चाई सामने आ जाती है. अक्सर जिसे ‘”आत्महत्या” माना जाता है या “दुर्घटना”, जांच के पश्चात यह तथ्य उजागर होता है की इसके पीछे कोई षड्यंत्र था. कोई काला नकाब ओढ़े हुए था, जिसे पुलिस पकड़ कर कानून के हवाले करती है.
कब तक छिपेगा हत्यारा
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की सच्ची घटना आपको बताते हैं- 2 जुलाई 2020को करीब ढाई बजे मुजगहन थाना इलाके के कांदुल में खेत के पास 21 वर्षीय केशव निषाद की लाश फांसी पर टंगी मिली थी. मुजगहन पुलिस ने मामले में मर्ग कायम किया . मगर अब मृतक के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि केशव निषाद की पहले गला दबाकर हत्या की गई. इसके बाद उसे फांसी पर लटकाया गया था.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर अब पुलिस अज्ञात आरोपी के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर जांच में जुट गई है. मृतक केशव ने पेशे से ड्राइवर था. पुलिस उसके परिवार के लोगों के साथ ही उसके जान पहचान वालों से पूछताछ कर रही है. यही इस घटनाक्रम की हकीकत है. यह आसानी से समझा जा सकता है कि केशव निषाद की हत्या क्यों और किस लिए की गई होगी. अपराधी ने बड़ी चतुराई से उसे मार कर फांसी पर लटका दिया मगर क्या अब वह बच जाएगा?
छोटे बड़े होते हैं स्वार्थ
इस तरह की हत्याओं के पीछे, कभी-कभी बहुत बड़े स्वार्थ होते हैं और कभी बहुत ही छोटे छोटे.पुलिस अधिकारियों, अपराधिक मामले न्यायालय में पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं से बातचीत में यह तथ्य सामने आता है कि अक्सर हत्या के पीछे अपराधी की कोई ना कोई छोटी बड़ी मंशा होती है. पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा बताते हैं कि ऐसे अनेक मामलों को उन्होंने जांच में लिया है और दोषियों को सजा भी हुई है. उन्होंने बताया कि एक ऐसे ही गंभीर मामले में परिजनों को न्यायालय से 10 वर्ष की सजा हुई अतः यह सोचना कि कोई कानून से बच सकता है, यह उसकी बहुत बड़ी भूल है.
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डॉ उत्पल अग्रवाल अधिवक्ता बताते हैं ऐसे 2 मामले उनके पास पैरवी के लिए आए और दोनों ही मामलों में अपराधियों को सजा मिली. दरअसल, लोग अपने आप को बेहद शातिर समझते हैं और कभी कभी क्रोध में आकर भी हत्या कर देते हैं और फिर जिंदगी भर पछताते हैं.
अपनी बातों के दरम्यान वह आमतौर पर हम का ही इस्तेमाल करती थी. अपनी उम्र से कहीं ज्यादा समझदार थी. कभी मूड में होती थी तो मजे की बातें करती थी, वरना आमतौर पर मेरे सामने आ कर बैठ जाती थी और बड़ीबड़ी आंखों से एकटक देखा करती थी. मेरे अलावा उस घर में कभीकभार एक लड़का दिखाई दिया करता था. उस का नाम नासिर था.
मुझे यह नहीं मालूम था कि उस का घर से क्या रिश्ता है मगर वह बड़ी बेतकल्लुफी से शाहीना से बात किया करता था. शाहीना ने बस सिर्फ इतना बताया था कि वो उन का रिश्तेदार है. कई बार मन होता कि उस से सवाल करूं कि रिश्ता क्या है? मगर यह सोच कर छोड़ दिया कि मुझे पेड़ गिनने से क्या मतलब?
शाहीना मुझ पर मरती थी. जेब कभी खाली नहीं रहती थी. तनख्वाह 2 सौ रुपए थी. 100 रुपए अब्बू ऐंठ लिया करते थे, 50 अम्माजी की भेंट चढ़ जाते थे. मेरे हिस्से में केवल 50 रुपए रह जाते थे. खुद सोच लें कि एक आवारागर्द लड़के को कितने दिन मजे से रख सकते थे.
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महीने के शुरू के दिनों में ही जेब खाली हो जाती थी. शाहीन को मैं ने अपनी आर्थिक स्थिति शुरू में ही बता दी थी कि मैं फोरेस्ट डिपार्टमैंट में काम करने वाले एक मामूली से नौकर की छठी औलाद हूं.
बाप अपनी 3 बहनों और 2 बेटियों की शादी करने के बाद बिलकुल कंगाल हो चुका है. इसलिए मेरी तालीम के खर्चे बड़ी मुश्किल से पूरे हो पाते हैं. अम्मी अकसर बीमार रहती हैं. उन का अच्छी तरह इलाज नहीं हो सका है. रिजल्ट के बाद प्राइवेट तौर पर इम्तिहान की तैयारी करूंगा. अच्छी नौकरी मेरी जिंदगी का मकसद है.
मौजूदा नौकरी टैंपरेरी है किसी भी समय जवाब मिल सकता है. जब तक तुम्हारे अब्बू मेहरबान हैं, हमारा गुजारा हो रहा है. जैसे ही उन्हें पता चलेगा कि उन की बेटी से इश्क फरमाने लगा हूं, वो मुझे नौकरी से निकाल बाहर करेंगे. इस से पहले कि यह स्थिति आ जाए मैं खुद यह नौकरी छोड़ना चाहता हूं.
शाहीना मेरी दर्द भरी कहानी सुन कर मेरी मोहब्बत पर और जोर से ईमान ले आई. वो चुपकेचुपके मेरी जेब में सौपचास के नोट डाल दिया करती थी. कभी सूट का कपड़ा खरीद लाती तो कभी पतलून, टाई तोहफे में दे देती.
3 महीने बाद मेरा रिजल्ट आ गया. मैं थर्ड डिविजन में पास हो गया था. औफिस में मिठाई बांटी. वहीद साहब ने बुलवा लिया. मुबारकबाद दी. कहने लगे, ‘‘मियां, माशा अल्लाह होनहार हो. इम्तिहान में निकल गए यहां मीटिंग होने वाली है, देखते हैं तुम्हारा मुकद्दर यहां भी चमकता है या नहीं. अगर तुक्का चल गया तो तनख्वाह भी बढ़ जाएगी और नौकरी भी पक्की हो जाएगी.’’
मुझ से मीठी बातें करने के बाद उन्होंने तोते की तरह आंखें फेर लीं. हुआ यह कि उन के रिश्तेदार ने भी इंटर पास किया था. वह सिफारिश के लिए उन के पास आ गया. वहीद साहब ने चुपकेचुपके उसे अपने पास रखने का फैसला कर लिया. मुझे पता ही नहीं चलने दिया. मेरी वह रिपोर्ट जो कुछ दिनों बाद मीटिंग में पेश करनी थी, रातोंरात बदल दी.
मुझे इस काम के लिए अयोग्य और गैरजिम्मेदार करार दे कर फौरी तौर पर नौकरी से अलग करने की सिफारिश के साथ दूसरी रिपोर्ट मीटिंग में पेश कर दी. औफिस में दूसरे लोग पहले से ही मुझ से जलते थे कि हर समय साहब के घर के चक्कर काटता रहता है. औफिस का काम करता ही कहां था.
वहीद साहब ने मुझे अपना पीए बना डाला और इस का बदला भी कुछ नहीं मिला. आखिरी समय तक उन्होंने मुझे धोखे में रखा. यही कहते रहे कि फिक्र न करो मियां तुम्हारी नौकरी पक्की करवा देंगे.
मीटिंग हुई. मुझे पूरी उम्मीद थी कि नौकरी भी पक्की होगी और पैसे भी बढ़ेंगे. अपने तौर पर सारी काररवाई बड़े ही खुफिया तरीके से हो रही थी. जैसे ही मीटिंग खत्म हुई, मैं वहीद साहब से मिलने के लिए बेचैन हो गया. वो नहीं मिले, सीधे घर चले गए. मैं घर पहुंचा. पता चला कि किसी काम से बाहर गए हुए हैं.
औफिस आया तो नक्शा ही बदला हुआ था. हर जुबान पर मेरी नौकरी खत्म होने का जिक्र था. जूनियर एकाउंटेट ने बुला कर मुझे सारी सच्चाई बता दी कि वहीद साहब ने तुम्हारे साथ ज्यादती की है.
मेरे तनबदन में आग लग गई. उन्होंने ए टू जैड तक मीटिंग की सारी काररवाई सुना दी. कहने लगे, ‘वह बड़े काइयां हैं. देखना, वो तुम से मिलना भी गवारा नहीं करेंगे. उन्होंने मीटिंग के बाद उस लड़के का अपौइंटमेंट लैटर भी टाइप करवा लिया है, जिसे वह तुम्हारी जगह रखना चाहते हैं. यह लड़का नासिर उन का रिश्तेदार है.’
मेरे कानों की लौएं गरम हो गईं. नासिर को मैं ने उन के घर भी देखा था. इस का मतलब यह हुआ कि दोनों बापबेटी मुझे उल्लू बना रहे थे. वहीद साहब ने उसे नौकरी दिलवाई है. बेटी उसे बहुत लिफ्ट देती है. अब मेरी जगह नासिर वहां जाया करेगा.
अगर इस समय शाहीना इस खेल में शरीक न थी तो क्या हुआ. चंद दिनों बाद वो भी जैनब की तरह पटरी बदल कर नए रास्ते पर चल निकलेगी. लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा. मुझे वहीद साहब को ऐसा मजा चखाना होगा कि वह भी याद रखें.
अगले दिन सूरज डूबने के वक्त वहीद साहब के घर पहुंचा, मुझे मालूम था कि इस वक्त बच्चों सहित वह सैर के लिए किसी छोटे पार्क में जाते हैं और घर पर शाहीना अकेली होती है.
मेरा पैगाम पहुंचते ही वह बेकरारी से बाहर निकल आई. कहने लगी, ‘कमाल के आदमी हैं आप, सुना है कल आए थे. बाहर से ही अब्बू को पूछा और चल दिए, हम इंतजार करते ही रह गए. हमें आप से बहुत जरूरी बात करनी थी.’
वह मुझे अंदर ले आई. घर में उस के सिवा और कोई न था. कहने लगी, ‘वो लोग अभी सैर के बाद लौट आएंगे. हम फिर शायद इतनी आजादी के साथ आप से न मिल सकें. अब्बू हमारी शादी नासिर से करना चाहते हैं. वह अब्बू का भांजा है. हमें इस रिश्ते पर कोई ऐतराज न होता अगर आप से पहले वादा न किया होता. हम वादा निभाने वालों में से हैं. बताइए, आप हम से शादी करेंगे या यों ही दिल्लगी कर रहे थे.’
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लड़की की इस साफगोई से पसीने छूट गए. मगर यह हिम्मत दिखाने का मौका था. मैं ने कहा, ‘मैं तुम्हें अपनी जिंदगी का साथी बनाना चाहता था, मगर तुम्हारे अब्बू साहब ने सब कुछ चौपट कर दिया. उन्होंने मुझे नौकरी से निकलवा दिया है और नासिर को मेरी जगह रख लिया है.’
वह बोली, ‘यह तो और भी अच्छा हुआ. अब्बू साहब हमारी यह ख्वाहिश कभी पूरी नहीं करेंगे. वह नासिर से भी कहते रहते हैं कि यह लड़की तुम्हारा सुकून बरबाद कर देगी. हम सचमुच उन का सुकून बरबाद कर के छोड़ेंगे, आप हमारे साथ चलने को तैयार हो जाइए.
‘हम दोनों यह शहर छोड़ कर मुंबई चले जाएंगे. आप वहां नौकरी तलाश कर के हमारे लिए छोटा सा घर बना दें, हम सारी उम्र आप के कदमों में बसर करेंगे. इस घर से अब हमें नफरत होने लगी है.’
ओह, तो साहबजादी मेरे साथ भागने के मंसूबे बना रही थीं. यानी कुदरत ने बदला लेने का मौका खुद ही हमारी झोली में डाल दिया था. वहीद साहब ने अपने भांजे को खुशियां देने के लिए मेरी नौकरी और अपनी बेटी के जज्बात की भेंट चढ़ाई थी. उन्हें सबक देना जरुरी हो गया था.
मैं ने फौरन शाहीना के मंसूबे पर हामी भर दी. वह कहने लगी, ‘आप खर्चे की फिक्र न करें. सारा इंतजाम हम करेंगे. आप पर आंच नहीं आने देंगे. जब तक आप की नौकरी नहीं लगेगी, घर का खर्च हम उठाएंगे.
इस हसीन पेशकश पर दिल झूम उठा. सोचा सब मुफ्त में हाथ आए तो बुरा क्या है. मेरे घर वाले खुद मेरी आवारागर्दी से तंग आए हुए हैं. उन से कह दूंगा कि मुंबई जा कर नौकरी ढूंढूंगा. अब्बू के बारे में मुझे पता था कि बहुत खुश होंगे.
वह बारबार कहते थे कि मंसूर मियां कोई दूसरी नौकरी ढूंढो. यह सौपचास वाली नौकरी दिल को कुछ जंचती नहीं. उन की यह हसरत भी पूरी हो जाएगी कि मैं दूसरे शहर जा कर भी नौकरी तलाशने की कोशिश करुंगा. अभी मैं ने उन्हें नौकरी छूटने के बारे में कुछ नहीं बताया था.
घर लौटा तो पूरी योजना मेरे दिमाग में तैयार हो चुकी थी. वहीद साहब से बदला ले कर अपने भविष्य तक के लिए ढेरों सपने देख डाले थे मैं ने. शाहीना एक अच्छी बीवी साबित हो सकती थी. इस से पहले जिन आधा दरजन लड़कियों से मेरा चक्कर चला था, जो खुद भी मेरे जैसी ही थीं. इसलिए मुझे शाहीना की मोहब्बत पर भी शक होने लगा था कि वह भी यूं ही वक्त गुजारी के तौर पर यह शगल अपनाए हुए है.
मगर जब उस ने मेरे साथ जिंदगी गुजारने का पूरा प्रोग्राम संजीदगी से सुना दिया, तब मुझे वो अच्छी लगी कि शादी कहीं न कहीं तो करनी ही होगी. यह लड़की इतनी कुरबानियां दे रही है, सारी उम्र वफादार रहेगी. वहीद साहब तिलमिला कर रह जाएंगे और उन का वो भांजा हाथ मलता रह जाएगा. उन्हें कभी दुश्मन का नाम तक मालूम हो नहीं सकेगा.
प्रोग्राम यह तय हुआ था कि वो अपनी खाला के घर जाने के बहाने घर से निकलेगी. और खुद स्टेशन पहुंच जाएगी. वहां मैं उस का इंतजार करूंगा और पहले से ही 2 टिकट खरीद लूंगा, वह ऐन वक्त पर आएगी. दोनों अलगअलग डिब्बों में सफर करेंगे.
अपनाअपना टिकट पास रखेंगे. ताकि किसी को शुबहा न हो. अगर खुदा न खास्ता पुलिस ने हम में से किसी एक को पकड़ लिया तो वह हरगिज दूसरे का नाम न लेगा और ऐसी सूरत में उस से पूरी तरह से अजनबी बन जाएगा. वैसे इस बात की संभावना बहुत कम थी, फिर भी इस तेज दिमाग की लड़की को मुझे बचाए रखने का पूरा ध्यान था.
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तय प्रोग्राम के मुताबिक मैं ने अब्बू को बता दिया कि मैं एक इंटरव्यू के लिए मुंबई जा रहा हूं. अगर नौकरी मिल गई तो अपना सामान लेने वापस आ जाऊंगा. न मिल सकी तो कुछ दिन ठहर कर एकदो जगह और कोशिश करूंगा.
हर औरत की तरह मेरी बीवी हूरा बेगम को भी जेवरात का बड़ा शौक है. मैं ने शादी पर जो जेवरात चढ़ाए थे, 20 साल गुजरने के बावजूद उन्हें यों सीने से लगाए रखती है जैसे बंदरिया अपने बच्चे को. मैं उस से कहता भी हूं, ‘हूरा बेगम इन्हें बेच कर नए फैशन के जेवरात खरीद लाओ. तुम्हारा दिल इन से अभी तक भरा नहीं?’
तो वो एकदम जज्बाती सी हो कर कहती है ‘मंसूर इंसान का उन चीजों से कभी दिल नहीं भरता जो उस के दिलोदिमाग में खुशगवार यादों की बस्ती आबाद कर देती हों. जब मैं आज की बोझिल जिम्मेदारियों से थक कर इन जेवरात की पिटारी खोलती हूं तो ऐसा लगता है कि मैं वही नई ब्याहता दुल्हन हूं और तुम अपने जज्बात से लरजते हाथों से मुझे ये जेवर पहना रहे हो.
तुम्हें याद है न, तुम ने चुपके से अपनी बहन सलमा से कहलवाया था कि हूरा से कह देना जब मैं आऊं तो वो फूलों का गहना पहने मिले, धातु के जेवरात उतार देना. मैं ने तुम्हारा हुक्म फौरन मान लिया था. मगर पता नहीं क्यों मुझे यह बदशगुनी सी लगी थी कि शादी की पहली रात ही दूल्हे को अपने रूप का जलवा दिखाए बगैर दुलहन जेवर उतार दे.
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मेरी आंखों में आंसू भर आए थे. तुम ने मेरे दुखी दिल को महसूस कर के पूछा था ‘हूरा क्या बात है तुम खुश नहीं लग रहीं. क्या मुझ से शादी तुम्हारी मरजी के बगैर हुई है?’ मैं ने तड़प कर तुम्हारे मुंह पर हाथ रख दिया था, याद है न. फिर तुम्हारे बहुत जोर देने पर मैं ने अपने दिल की बात बता दी थी.
तुम बहुत देर तक गुमसुम से बैठे रहे थे. फिर उठ कर मेरे पास आ गए थे और जेवरात का डिब्बा खोल कर सारे जेवर मुझे अपने हाथों से पहनाते हुए कहा था. लो बस अपना दिल मैला न करो.
आज की रात एकदूसरे के लिए हमारे दिल में मोहब्बत के सिवा और कोई जज्बा पैदा नहीं होना चाहिए. तुम्हें याद है न? और तुम ने मुंह दिखाई में मुझे यह सैट दिया था?’
मेरी बीवी यह वाकया कई बार मुझे सुना चुकी है. हर बार वह एक मजे के साथ इस वाकिए का एकएक लफ्ज सौसौ रंगों में डुबो कर सुनाती है. मगर बेवकूफ यह नहीं जानती कि यह वाकया सुनते हुए मेरा ब्लडप्रेशर हाई होने लगता है. उसे नहीं मालूम कि उस के शौहर को इन जेवरात से क्या एलर्जी होती है. उस ने शादी की पहली रात यह क्यों कहा था कि वो फूलों का गहना पहन ले. हर आदमी की जिंदगी में कुछ बातें ऐसी जरूर होती हैं जिन का राजदार वो खुद ही होता है.
सालोंसाल बल्कि सारी उम्र साथ रहने वाली बीवी भी नहीं जानती कि उस के शौहर के दिल के चंद खाने उस से छिपे हुए हैं. वह खुश कर देने वाले चंद जुमलों से अपने दिल को आबाद करती रहती है. खुद को धोखा देती रहती है कि उस की जिंदगी में दाखिल होने वाली मैं वो अकेली औरत हूं जो उस के दिलोदिमाग पर पूरी तरह कब्जा किए हुए है.
इस आत्ममुग्धता के सहारे वो खुशीखुशी अपने जिस्मोजान की कुर्बानी देती चली जाती है. अच्छा ही है कि वह इस आत्ममुग्धता में डूबी रहती है. अगर वह हर सच्चाई की तह में उतरने वाली अकल ले कर पैदा होती तो शिकारी फितरत वाला मर्द सारी उम्र शिकार से महरूम (वंचित) रह जाता.
हां, दूसरे मर्दों की तरह मैं भी शिकारी फितरत वाला मर्द था. जवानी के दौर में कई सारी लड़कियां मेरी मोहब्बत के जाल में फंस कर मुझ पर अपना तनमन और धन न्यौछावर करती रहीं. कुलसुम, जैनब, हमीदा, गुलफ्शां, साजिदा. कोई एक नाम हो तो याद भी करूं, बहुत से चेहरे तो वक्त ने धुंधला भी दिए हैं.
सिर्फ एक चेहरा ऐसा है जिसे मैं कोशिश के बावजूद अपनी नजरों से जुदा नहीं कर सका हूं. और वो है शाहीना का चेहरा. उस का बाप एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. उन दिनों मैं ने इंटर का इम्तिहान दिया था. वक्त ही वक्त था.
मेरे एक दोस्त ने मशविरा दिया कि जब तक रिजल्ट न आ जाए हम कहीं नौकरी कर लेते हैं. अगर कामयाब हो गए तो पढ़ाई जारी रखेंगे. कभी नौकरी पढ़ाई में रुकावट बनी तो उसे छोड़ देंगे. वह गुजराती लड़का था. हमेशा फायदे की बात सोचा करता था.
हम दोनों की गाढ़ी छनती थी. हम दोनों ने नौकरी की तलाश बड़ी लगन से शुरू कर दी. दोनों एक साथ कई औफिसों की धूल छानते फिरा करते थे. इस फाकामस्ती (दरिद्रता) की हालत में भी मोहब्बत का कारोबार जारी रहता था.
यहांवहां घूमतेभटकते शाहीना के अब्बा से मुलाकात हो गई. वो अकाउंटेंट थे. उन्होंने हमारी दरखास्तें बड़े गौर से पढ़ीं और दोनों को बुलवा लिया. कहने लगे हमारे यहां एक जगह खाली है. और वो भी टैंपरेरी है. संभव है कुछ महीनों बाद हम वो पद खत्म कर दें या स्थाई कर दें. यह बात अगले 3 महीने बाद मीटिंग में ही तय होगी, तुम में से एक को यह नौकरी दी जा सकती है. आपस में फैसला कर लो कि तुम दोनों में से ज्यादा जरूरत किस को है?
मेरा गुजराती दोस्त फौरन पीछे हट गया. कहने लगा, ‘जनाब मेरे इस दोस्त को रख लीजिए. मेरे अब्बा की दुकान है, मैं तो वैसे भी व्यस्त रहता हूं. यह बिलकुल बेकार फिरता रहता है. इसे बैठने का ठिकाना मिल जाएगा.’
इस तरह मुझे नौकरी मिल गई. इस पद के रहने न रहने का अधिकार वहीद साहब के हाथ में था. इसलिए मैं ज्यादातर उन्हीं के आसपास मंडराता रहता था. उन्होंने मुझे अपने निजी कामों के लिए घर भेजना शुरू कर दिया. घर में शाहीना से मुलाकात हो गई. गोरी रंगत वाली यह लड़की मेरी नजरों में आ गई.
उन दिनों मेरा चक्कर जैनब से चल रहा था, जो मेरे लगातार झूठ बोलने से तंग आ गई थी. वह चुपकेचुपके अपने रिश्ते के भाई को शीशे में उतार कर शादी की तैयारियां कर रही थी. मुझे उस की बहन ने सब कुछ बता दिया था.
इस से पहले कि वो मुझे दुत्कारती मैं खुद उसे छोड़ना चाहता था. मगर जब तक इस ध्ांधे के लिए कोई दूसरी लड़की नहीं मिलती, यह जरा मुश्किल काम लगता था. शाहीना पर नजर पड़ी तो दिल ने चुटकी ली कि लो मियां तुम्हारा बंदोबस्त हो गया. लड़की कम बोलती है, सूरतशक्ल अच्छी है. थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ेगी. यह कौन सा मुश्किल है, ज्यादा से ज्यादा एकदो हफ्ते लगातार अदाकारी करनी पड़ेगी.
सब से पहले मैं ने उस का बैकग्राउंड मालूम किया. पता चला कि शाहीना वहीद साहब की सगी औलाद नहीं है. वह उस की मां के पहले शौहर से है. मां का तलाक हो गया था. बच्ची उसी के पास रही. उस ने वहीद साहिब से शादी कर ली. उन की बीवी एक बच्चे को जन्म दे कर मर चुकी थी. बच्चा जिंदा था.
उस की परवरिश के लिए वह दूसरी शादी के इच्छुक थे. शाहीना की उम्र उस समय ढाई साल थी. किसी दोस्त के जरिए से यह रिश्ता तय हो गया था. शादी के बाद दोनों मियांबीवी ने अपने बच्चों की हिफाजत के लिए एक फैसला किया.
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बीवी अपने फैसले पर कायम रही, उस ने वहीद साहब के बेटे को अपनी औलाद से बढ़ कर प्यार दिया. मगर वहीद साहब अपनी सौतेली बच्ची से दिमागी तौर पर समझौता न कर सके. उन्होंने कभी उसे गोद तक में नहीं लिया. उस की जरूरतों का खयाल न रखा. ऊपर से 4 बच्चे और आ गए शाहीना बिलकुल बैकग्राउंड (नेपथ्य) में चली गई.
जैसेजैसे वह बड़ी होती गई उस पर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ता गया. मां को इतना समय नहीं मिलता था कि उस की परेशानियों को समझ सकती. वो अंदर ही अंदर अपने सारे बहनभाइयों से जलती थी, जिन्होंने मिल कर उस की मां को उस से छीन लिया था.
पढ़ाई में कमजोर थी या शायद उस ने अपना सारा दिमाग बहनभाइयों को जलाते रहने की तरकीबों पर लगा दिया था. बाप उस से नफरत करता था. हर गलती उसी के सिर पर थोप कर उस से पूछताछ करता था.
देखने में तो कम बोलने वाली और दूसरों की खिदमत करते रहने वाली लड़की नजर आती थी, मगर जैसेजैसे उस के भेद खुलते गए मुझे अंदाजा हो गया कि वह बहनभाइयों को आपस में लड़वा कर बड़ी खुश होती है.
19-20 बरस की लड़की, नन्ही बच्ची की तरह भागतीदौड़ती फिरा करती थी. कभी आंगन वाले पेड़ पर चढ़ जाती तो कभी दीवार पर जा बैठती. जुबान नहीं खोलती थी. मैं ने कुछ दिन उस की मनोस्थिति समझने में लगाए फिर बिल्ली की तरह पुचकार कर उसे अपने करीब कर लिया.
उस की गुर्राहटें आहिस्ताआहिस्ता कम होने लगीं. लहजे में नरमी आ गई. जज्बात की हल्की सी तपिश से उस के दिल की सख्त चट्टान मोम में बदल गई और इस से पहले कि जैनब मुझे अपनी शादी का कार्ड थमाती, मैं ने शाहीना से मोहब्बत का इकरार करवा लिया.
जैनब की छुट्टी कर के मैं जोरशोर से शाहीना पर मरने लगा. मुझे उस जमाने में हर लड़की फ्लर्ट लगती थी. शायद इसलिए कि मेरी पहले की सारी महबूबाओं में एक भी वफा वाली नहीं थी. वहीद साहब के हुक्म पर जब भी मैं उन के घर जाता था, मोहल्ले के किसी बच्चे के हाथ पहले ही शाहीना को इत्तला भिजवा दिया करता था.
वह किसी न किसी बहाने बैठक (उस जमाने में ड्राइंगरूम को बैठक कहते थे) में आ जाती. मुझ से मिलने के बाद उस के चेहरे पर काफी सुकून छा जाता. अकसर कहती थी मंसूर आप ने हमारे दिल में जीने की उमंग पैदा कर दी है. वरना हम सोचा करते थे किसी रोज अफीम खाकर मर जाएं. हम से यहां कोई प्यार नहीं करता. अब्बू कहते हैं कि हमारी रगों में उन का खून नहीं है, इसलिए हम बदतमीज हैं, चालाक हैं, बेहूदा हैं.
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उन्हें हमारे अंदर दुनिया भर की कमियां नजर आती हैं. अम्मी उन्हें और उन की औलाद को खुश करने के लिए हमें उन सब के सामने जलील करती रहती हैं. वो हम से इतना काम लेती हैं कि अगर हम कहीं नौकरी कर लें तो इस जगह से कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से जिंदगी गुजार सकते हैं.
शाहनवाज का पिता रशीद अहमद शौकत अली पार्क कर्नलगंज बजरिया में रहता था. शाहनवाज उस का सब से छोटा बेटा था. बड़ी बेटी फरजाना जाजमऊ सरैया बाजार निवासी आमिर खान को ब्याही थी. बड़ा बेटा रशीद अहमद चमड़े का व्यवसाय करता था. शाहनवाज उन के व्यवसाय में मदद करता था. शाहनवाज शादीशुदा था.
शाजिया उस की पत्नी थी, लेकिन वह फरेब कर सीता से शादी करना चाहता था. उस ने मन बना लिया था कि वह सीता उर्फ नेहा से शादी रचा कर उसे परिवार से अलग कमरा ले कर रहेगा.
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शाहनवाज निश्चित दिन तारीख व समय पर आजमगढ़ पहुंच गया और होटल गगन में ठहर गया. उस के लिए होटल का कमरा सीता ने बुक कराया था. शाहनवाज ने होटल रूम में ठहरने की जानकारी सीता को दी. कुछ देर बाद वह भी होटल रूम में पहुंच गई. रूम में दोनों का आमनासामना हुआ तो दोनों ही एकदूसरे से प्रभावित हुए. शाहनवाज जहां शरीर से हृष्टपुष्ट सजीला आकर्षक युवक था, तो सीता भी खूबसूरत व जवानी से भरपूर थी.
शाहनवाज से शादी पर अड़ी सीता
शाहनवाज से बातें करतेकरते सीता सोचने लगी कि उस ने भावी पति के रूप में जैसे सुंदर व सजीले युवक के सपने संजोए थे, शाहनवाज वैसा ही निकला. अगर शाहनवाज से उस की शादी हो जाए तो उस के जीवन में बहार आ जाएगी.
सीता अभी इसी सोच में डूबी थी कि शाहनवाज बोला, ‘‘मैं ने जितना सोचा था, तुम उस से कहीं ज्यादा हसीन हो. वैसे बुरा न मानो तो एक बात बोलूं?’’
‘‘बोलो, जो कहना चाहते हो बेहिचक कहो.’’ सीता की धड़कनें तेज हो गईं.
‘‘तुम्हें देखते ही दिल में प्यार का अहसास जाग उठा है.’’ कहते हुए शाहनवाज उस के हाथ पर हाथ रख कर बोला, ‘‘आई लव यू सीता.’’
प्रेम निवेदन सुन कर सीता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने अपना दूसरा हाथ उठा कर शाहनवाज के हाथ पर रख कर कह दिया, ‘‘आई लव यू टू.’’
दोनों तरफ से प्यार का इजहार हुआ तो चंद मिनटों में दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. कुछ देर बातचीत करने के बाद शाहनवाज वहां से चला गया. इस के बाद दोनों का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा. उन के बीच की दूरियां कम होती गईं. फिर शारीरिक संबंध भी बन गए.
शाहनवाज महीने में एकदो बार आजमगढ़ आता, होटल या लौज में ठहरता. सीता घर वालों को बिना कुछ बताए वहां आ जाती. दोनों में प्यारमोहब्बत की बातें होतीं. दोनों एकदूसरे के होने की कसमें खाते. उन के बीच शारीरिक मिलन होता फिर दोनों अपनेअपने घर लौट जाते.
शाहनवाज और सीता एकदूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करने लगे थे. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन शादी कर पाते उस के पहले ही उन के प्यार का भांडा फूट गया. हुआ यह कि एक रात सीता शाहनवाज से बातें कर रही थी, तभी उस की मां सरोज की आंखें खुल गईं. उस ने दोनों के बीच होने वाली प्यारमोहब्बत की बातें सुन लीं.
सरोज को समझते देर न लगी कि उस की बेटी के कदम बहक गए हैं. वह रात में तो कुछ नहीं बोली लेकिन सवेरा होते ही उस ने पूछा, ‘‘सीता, तू रात में किस से बहकीबहकी बातें कर रही थी? यह शाहनवाज कौन है?’’
शाहनवाज का नाम सुन कर सीता चौंकी. उसे समझते देर नहीं लगी कि उस के प्यार का भांडा फूट चुका है. अब सच्चाई बताने में ही भलाई है. वह बोली, ‘‘मां, मैं शाहनवाज से बात कर रही थी. शाहनवाज कानपुर में रहता है और हमारी दोस्ती फेसबुक पर हुई थी. हम दोनों एकदूसरे को बेहद प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’
सीता की बात सुन कर सरोज सन्न रह गई. वह उसे समझाते हुए बोली, ‘‘बेटी, हम हिंदू और वह मुसलमान. हम गैरधर्म के लड़के से तेरी शादी नहीं कर सकते, इसलिए अपने कदम वापस खींच ले, हम जल्द ही तेरा विवाह किसी हिंदू लड़के से कर देंगे.’’
‘‘मां, अब जमाना बदल गया है. अब हिंदूमुसलमान के बीच कोई मतभेद नहीं रहा है. शाहनवाज पढ़ालिखा कमाऊ लड़का है, इसलिए हम शादी उसी से करेंगे. आप लोग राजी न हुए तो मैं भाग कर शाहनवाज से शादी कर लूंगी.’’ उस ने समझाया.
सरोज ने बेटी की हरकतों की जानकारी पति को दी तो जवाहर को बहुत दुख हुआ. उस ने भी सीता को बहुत समझाया कि वह मुसलिम समाज के युवक से शादी न करे. लेकिन सीता ने मांबाप की बात नहीं मानी और अपनी जिद पर अड़ी रही. तब जवाहर ने बड़ी बेटी सुशीला को घर बुलाया और सीता को समझाने को कहा.
लेकिन सीता ने तकवितर्क से बड़ी बहन को शादी के लिए राजी कर लिया. उस के बाद सुशीला ने अपने मांबाप को भी मना लिया. जवाहर और उस की पत्नी सरोज सीता की शादी शाहनवाज से करने को राजी तो हो गए. लेकिन इज्जत के कारण अपने घर से बेटी को विदा करने को राजी नहीं हुए. तब सुशीला ने अपनी ससुराल मसखारी से दोनों का विवाह कराने का निश्चय किया.
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बढ़ने लगी विषबेल
21 अगस्त, 2019 को सुशीला ने अपनी ससुराल मसखारी अंबेडकर नगर में मौलवी को बुला कर सीता का निकाह शाहनवाज से करा दिया. इस के बाद सीता शाहनवाज की बीवी बन कर कानपुर आ गई. शाहनवाज ने निकाह से पहले ही जाजमऊ में किराए पर कमरा ले लिया था.
इसी कमरे में वह सीता उर्फ नेहा के साथ पतिपत्नी की तरह रहने लगा. शाहनवाज की बीवी को पता ही नहीं चला कि उस के शौहर ने दूसरा निकाह कर लिया.
सीता 3 माह तक शाहनवाज के साथ खुश रही. उस के बाद दोनों में तकरार होने लगी. तकरार का पहला कारण था ससुराल वालों से मिलवाने तथा ससुराल में रहने की जिद. दरअसल, सीता चाहती थी कि वह पति के घर वालों के साथ रहे लेकिन शाहनवाज पहली पत्नी का भेद खुलने के भय से उसे घर ले जाने को मना कर देता था.
दूसरा कारण यह था कि शाहनवाज कभी दिन में तो कभी रात को और कभीकभी 2 दिन तक घर से गायब हो जाता था. सीता पूछती तो लड़ने लगता था. इस से सीता को शक होने लगा था कि वह कोई राज छिपा रहा है. राज छिपाने की जानकारी उस ने अपनी बहन सुशीला तथा मां सरोज को भी फोन के माध्यम से दे दी थी.
सीता जब ससुराल जाने की ज्यादा जिद करने लगी तो शाहनवाज को भेद खुलने का डर सताने लगा, अत: इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए शाहनवाज जाजमऊ सरैया कानपुर निवासी अपने बहनोई आमिर खान के घर गया और उस से विचारविमर्श किया.
विचारविमर्श के बाद तय हुआ कि सीता को ठिकाने लगा दिया जाए. इस के बाद सीता को ठिकाने लगाने की योजना बनी. इस योजना में शाहनवाज ने अपने बहनोई आमिर खान के अलावा दोस्त शरीफ उर्फ सोनू तथा हसीब को भी शामिल कर लिया.
27 दिसंबर, 2019 को शाहनवाज ने सीता को बताया कि आज शाम वह उसे घुमाने ले जाएगा. इस के बाद वह उसे अपने घर ले जाएगा. यह सुन कर सीता खुशी से झूम उठी. उस ने साजशृंगार किया. आभूषण पहने फिर पति के साथ जाने का इंतजार करने लगी.
शाम 5 बजे शाहनवाज कार ले कर आया. कार में उस के साथ उस का बहनोई आमिर खान भी था. शाहनवाज कार अपने दोस्त जीशान से यह कह कर लाया था कि वह 2 रोज के लिए बाहर घूमने जा रहा है. किराए के तौर पर उस ने जीशान को 10 हजार रुपए दिए थे.
जहर भरी जिंदगी का अंत
जाजमऊ के किराए वाले घर से शाहनवाज सीता उर्फ नेहा को कार में बिठा कर निकला. रामादेवी चौराहे पर उस ने दोस्त शरीफ व हसीब को भी कार में बिठा लिया. फिर सभी कंपनी बाग चौराहा पहुंचे. वहां की शराब की एक दुकान से इन लोगों ने शराब खरीदी. इस के बाद वे गंगा बैराज पहुंचे.
सभी ने चलती गाड़ी में शराब पी और सीता उर्फ नेहा को भी शराब जबरदस्ती पिलाई. कुछ देर बाद सीता जब नशे में अर्धमूर्छित हो गई, तब शाहनवाज ने कार सिंहपुर बिठूर की ओर मुड़वा दी.
इस के बाद चलती कार में ही शाहनवाज ने अपने बहनोई आमिर खान तथा दोस्त शरीफ की मदद से सीता की गला घोंट कर हत्या कर दी.
हत्या करने के बाद उन लोगों ने सीता के शरीर से गहने उतारे, उस का मोबाइल कब्जे में किया फिर कार सुनसान स्थान पर रोक कर सीता के शव को सड़क किनारे झाडि़यों में फेंक दिया.
सीता के शरीर से उतारे गए गहने तथा मोबाइल फोन को भी वहीं झाड़ी में छिपा दिया. शाहनवाज ने अपना तमंचा भी झाड़ी में छिपा दिया था. इस के बाद वे कार से अपनेअपने घर चले गए.
दूसरे दिन 12 बजे के बाद थाना नवाबगंज पुलिस को महिला का शव पड़े होने की सूचना मिली. थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद घटनास्थल पहुंचे और शव कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.
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5 जनवरी, 2020 को थाना नवाबगंज पुलिस ने अभियुक्त शाहनवाज तथा आमिर खान को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट डी.के. राय की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. अन्य 2 अभियुक्त शरीफ व हसीब फरार थे. पुलिस उन्हें पकड़ने को प्रयासरत थी.