Hindi Story: हवा का झोंका

Hindi Story: ‘‘सौमित्र, मजे हैं यार तेरे…’’

‘‘क्यों निनाद, ऐसा क्या हो गया?’’

‘‘प्यारे से 2 बच्चे, अब खुद का घर भी हो गया और कार भी है. कस्तूरी जैसी समझदार बीवी है. और क्या चाहिए जिंदगी में यार…’’

गाड़ी औफिस की ओर जा रही थी. सौमित्र गाड़ी चला रहा था, तभी उन्हें अपने औफिस की ही 2 लड़कियां बस स्टौप पर खड़ी दिखीं.

‘‘निनाद, इन्हें औफिस तक छोड़ें?’’

सौमित्र ने निनाद को आगे बोलने का मौका ही नहीं दिया और सीधे जा कर उन लड़कियों के पास गाड़ी रोक दी.

‘‘शाल्मली मैडम, छोड़ दूं क्या दोनों को औफिस तक?’’

‘‘हां… हां, बिलकुल छोड़ दो,’’ दूसरी लड़की मनवा ने जल्दी से कहा और दरवाजा खोल कर गाड़ी में जा बैठी. इस के बाद शाल्मली भी बैठ गई.

‘‘आप दोनों रोज इसी बस स्टौप से बस लेती हो न?’’ सौमित्र ने पूछा.

‘‘हां,’’ मनवा ने जवाब दिया.

‘‘हम भी रोज इसी रास्ते से गुजरते हैं. आप को भी छोड़ दिया करेंगे. क्यों निनाद?’’

‘‘हां… हां, क्या हर्ज है. शाम को भी रुकना, हम साथ ही वापस जाएंगे. बस, 20-25 मिनट का रास्ता है.’’

सौमित्र को सांवले रंग की शाल्मली उस की गाड़ी में चाहिए थी. उस का मकसद कामयाब हो रहा था.

सौमित्र हैंडसम था. औफिस में उस की पोस्ट भी अच्छी थी. औफिस की सब लड़कियां उस के आगेपीछे मंडराती रहती थीं.

शाल्मली को भी वह अच्छा लगने लगा था. वह हरदम सब को हंसाता था. पार्टी करता था. नएनए रंग की शर्ट और जींस पहनता था. उस के गोरे चेहरे पर काला चश्मा जंचता था.

धीरेधीरे सौमित्र शाल्मली से नजदीकियां बढ़ाने लगा. वह बोला, ‘‘काफी छोटी उम्र में नौकरी कर रही हो तुम. सौरी, मैं बहुत जल्दी आप को तुम कह रहा हूं. तुम्हें अपनी कालेज की पढ़ाई जारी रखनी चाहिए थी.’’

‘‘मेरे पिताजी अफसर बीमार रहते हैं, इसलिए पढ़ाई बीच में रोक देनी पड़ी. घर में पैसों की तंगी है.’’

‘‘एक बात कहूं… तुम्हारा रंग सांवला है, फिर भी तुम मेरी नजर में बहुत ज्यादा खूबसूरत हो. इस औफिस में तुम्हारे जितनी अक्लमंद लड़की कोई नहीं है.’’

‘‘शुक्रिया सर.’’

‘‘शुक्रिया किसलिए. चलो, बाहर चल कर कौफी पीते हैं. थोड़ा आराम से बात कर सकेंगे,’’ सौमित्र बोला.

‘‘नहीं सर, यह थोड़ा ज्यादा ही हो जाएगा.’’

‘‘क्या ज्यादा होगा? मैं कह रहा हूं न, चलो चुपचाप.’’

शाल्मली भी चुपचाप चली गई.

इस के बाद औफिस में उन दोनों के बारे में बातें होने लगीं कि ‘सौमित्र शाल्मली के आगेपीछे घूमता है’, ‘दोनों की आज मैचिंग…’ ऐसी बातें औफिस में चलती थीं.

शाल्मली सब जानती थी, मगर उस के लिए सौमित्र यानी सुख की बौछार थी, इसलिए बदनाम होते हुए भी वह बेधड़क उस के साथ घूमती थी.

शाल्मली और सौमित्र के संबंधों को अब 6 महीने बीत चुके थे. सौमित्र अकसर शाल्मली को खुश रखने की कोशिश करता था. उस के और उस के परिवार वालों के लिए अकसर नई चीजें लाता था.

एक दिन सौमित्र शाल्मली को एक होटल पर ले गया. दोपहर के 12 बजे थे. शाल्मली को लगा कि वह हमेशा की तरह कहीं से खाना खाने ले कर आया है, इसलिए वह बेफिक्र थी.

सौमित्र द्वारा बुक किए कमरे पर वे दोनों आए.

‘‘क्या खाओगी मेरी शामू?’’

‘‘कुछ भी मंगा लो, हमेशा आप ही और्डर देते हो.’’

‘‘शाल्मली, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं हमेशा तुम्हें देखता रहता हूं. बस, तुम एक बार मेरी बांहों में आ जाओ.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो सौमित्र, हम केवल अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘कुछ भी मत कहो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं, इसलिए तो अकसर तुम्हारे साथ घूमता हूं.’’

‘‘सौमित्र, एक मिनट… आप को कुछ गलतफहमी हो रही है. आप शादीशुदा हैं. मेरे मन में आप के बारे में ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘कुछ भी नहीं है, तो फिर मेरे साथ क्यों हंसतीबोलती हो?’’

‘‘क्या हमारे बीच साफसुथरी दोस्ती नहीं हो सकती? मेरी समस्याएं आप समझते हो. पारिवारिक दिक्कतों को नजरअंदाज कर जिंदगी में मजा करना आप ने मुझे सिखाया है.

शुक्रिया सर. लेकिन शायद आप मुझे कुछ अलग ही समझने लगे हैं. मुझ से बड़ी गलती हो गई,’’ इतना कह कर शाल्मली

कमरे से बाहर जाने लगी, तभी सौमित्र ने दरवाजा बंद कर उस का रास्ता रोका.

‘‘रुको शाल्मली, क्यों इतना इतरा रही हो? सांवली तो हो तुम. तुम से कई ज्यादा खूबसूरत लड़कियां पटा सकता हूं मैं.’’

‘‘सर, मेरा तो रंग काला है, पर आप का तो मन काला है. आप शादीशुदा हैं. आप के 2 बच्चे हैं, फिर भी आप मुझ जैसी कुंआरी लड़की से शरीर सुख की चाहत कर रहे हो? चलती हूं मैं. काश, मैं आप के साथ 6 महीने औफिस के बाहर न घूमती तो यह दिन न आता. मैं आप से माफी मांगती हूं.

‘‘सर, आप मन से बहुत अच्छे हो, तो क्यों एक पल के मोह की खातिर खुद के चरित्र पर कलंक लगा रहे हो? आप की बीवी जिंदगीभर आप के साथ रहेंगी. कम से कम उस के बारे में तो सोचिए. मैं भी कल किसी के साथ ब्याह रचाऊंगी. जाने दीजिए मुझे.’’

सौमित्र दरवाजे से दूर हट गया. शाल्मली रोतेरोते होटल से बाहर निकल गई.

दूसरे दिन वे दोनों औफिस में मिले.

‘‘सौमित्र, मुझे आप से कुछ कहना है. आप एक हवा का झोंका बन कर मेरी जिंदगी में आए. आप ने मुझ पर प्यार की बौछार की. मगर इस के बाद फिर किसी लड़की की जिंदगी में प्यार की बौछार मत करना, क्योंकि औरतें काफी भावुक होती हैं. किसी पराए मर्द द्वारा जब उन की बेइज्जती होती है, तो वह पल उन के बरदाश्त के बाहर होता है.

‘‘मैं आप को अच्छी लगती हूं. मुझे भी आप का साथ अच्छा लगता है, पर इस के लिए हम नैतिकता के नियम मिट्टी में नहीं मिला सकते.’’

‘‘शाल्मली, मुझे माफ कर दो. मैं अब नए नजरिए से तुम से दोस्ती की शुरुआत करना चाहता हूं.’’

‘‘सौरी सर, अब मैं सारी जिंदगी किसी भी मर्द के साथ दोस्ती नहीं करना चाहती. मैं अपनी गलती सुधारना चाहती हूं. इन 6 महीने में आप ने मुझे जो मानसिक सहारा दिया, उस के लिए मैं आप की सारी उम्र कर्जदार रहूंगी.’’

Hindi Kahani: रज्जो – क्या था सुरेंद्र और माधवी का प्लान

Hindi Kahani: रज्जो रसोईघर का काम निबटा कर निकली, तो रात के 10 बज रहे थे. वह अपने कमरे में जाने से पहले सुरेंद्र के कमरे में पहुंची. वह उस समय बिस्तर पर आंखें बंद किए लेटा था.

‘‘साहबजी, मैं कमरे पर सोने जा रही हूं. कुछ लाना है तो बताइए?’’ रज्जो ने सुरेंद्र की ओर देखते हुए पूछा.

सुरेंद्र ने आंखें खोलीं और अपने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘रज्जो, आज सिर में बहुत दर्द हो रहा है.’’

‘‘मैं आप के माथे पर बाम लगा कर दबा देती हूं,’’ रज्जो ने कहा और अलमारी में रखी बाम की शीशी ले आई. वह सुरेंद्र के माथे पर बाम लगा कर सिर दबाने लगी.

कुछ देर बाद रज्जो ने पूछा, ‘‘अब कुछ आराम पड़ा?’’

‘‘बहुत आराम हुआ है रज्जो, तेरे हाथों में तो जादू है,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने अपना सिर रज्जो की गोद में रख दिया.

रज्जो सिर दबाने लगी. वह महसूस कर रही थी कि एक हाथ उस की कमर पर रेंग रहा है. उस ने सुरेंद्र की ओर देखा. सुरेंद्र बोला, ‘‘रज्जो, यहां रहते हुए तू किसी बात की चिंता मत करना. तुझे किसी चीज की कमी नहीं रहेगी. जब कभी जितने रुपए की जरूरत पड़े, तो बता देना.’’

‘‘जी साहब.’’

‘‘आज तेरी मैडम लखनऊ गई हैं. वहां जरूरी मीटिंग है. 4 दिन बाद वापस आएंगी,’’ कह कर सुरेंद्र ने उसे अपनी ओर खींच लिया.

रज्जो समझ गई कि सुरेंद्र की क्या इच्छा है. वह बोली, ‘‘नहीं साहबजी, ऐसा न करो. मुझे तो मां काका ने आप की सेवा करने के लिए भेजा है.’’

‘‘रज्जो, यह भी तो सेवा ही है. पता नहीं, आज क्यों मैं अपनेआप पर काबू नहीं रख पा रहा हूं?’’ सुरेंद्र ने रज्जो की ओर देखते हुए कहा.

‘‘साहबजी, अगर मैडम को पता चल गया तो?’’ रज्जो घबरा कर बोली.

‘‘उस की चिंता मत करो. वह कुछ नहीं कहेगी.’’

रज्जो मना नहीं कर सकी और न चाहते हुए भी सुरेंद्र की बांहों समा गई.

कुछ देर बाद जब रज्जो अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर लेटी, तो उस की आंखों से नींद भाग चुकी थी. उस की आंखों के सामने मांकाका, 2 छोटी बहनों व भाई के चेहरे नाचने लगे.

यहां से 3 सौ किलोमीटर दूर रज्जो का गांव चमनपुर है. काका राजमिस्त्री का काम करता है. महीने में 10-15 दिन मजदूरी पर जाता है, क्योंकि रोजाना काम नहीं मिलता.

रज्जो तो 5 साल पहले 10वीं जमात पास कर के स्कूल छोड़ चुकी थी. उस की 2 छोटी बहनें व भाई पढ़ रहे थे. मां ने उस का नाम रजनी रखा था, पर पता नहीं, कब वह रजनी से रज्जो बन गई.

एक दिन गांव की प्रधान गोमती देवी ने मां को बुला कर कहा था, ‘मुझे पता चला है कि तेरी बेटी रज्जो तेरी तरह बहुत बढि़या खाना बनाती है. तू उसे सुबह से शाम तक के लिए मेरे घर भेज दे.’

‘ठीक है प्रधानजी, मैं रज्जो को भेज दूंगी,’ मां ने कहा था.

2 दिन बाद रज्जो ने गोमती प्रधान के घर की रसोई संभाल ली थी. एक दिन एक बड़ी सी कार गोमती प्रधान के घर के सामने रुकी. कार से सुरेंद्र व उस की पत्नी माधवी मैडम उतरे. कार पर लाल बत्ती लगी थी. गोमती प्रधान की दूर की रिश्तेदारी में माधवी मैडम बहन लगती थीं.

दोपहर का खाना खा कर सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को बुला कर कहा, ‘तुम बहुत अच्छा खाना बनाती हो. हमें तुम जैसी लड़की की जरूरत है. क्या तुम हमारे साथ चलोगी? जैसे तुम यहां खाना बनाती हो, वैसा ही तुम्हें वहां भी रसोई में काम करना है.’

रज्जो चुप रही.

गोमती प्रधान बोल उठी थीं. ‘यह क्या कहेगी? इस के मांकाका को कहना पड़ेगा.’

कुछ देर बाद ही रज्जो के मांकाका वहां आ गए थे.

गोमती प्रधान बोलीं, ‘रामदीन, यह मेरी बहन है. सरकार में एक मंत्री की तरह हैं. इस को रज्जो के हाथ का बना खाना बहुत पसंद आया, तो ये लोग इसे अपने घर ले जाना चाहते हैं रसोई के काम के लिए.’

‘रामदीन, बेटी रज्जो को भेज कर बिलकुल चिंता न करना. हम इसे पूरा लाड़प्यार देंगे. रुपएपैसे हर महीने या जब तुम चाहोगे भेज देंगे,’ माधवी मैडम ने कहा था.

‘साहबजी, आप जैसे बड़े आदमी के यहां पहुंच कर तो इस की किस्मत ही खुल जाएगी. यह आप की सेवा खूब मन लगा कर करेगी. यह कभी शिकायत का मौका नहीं देगी,’ काका ने कहा था.

सुरेंद्र ने जेब से कुछ नोट निकाले और काका को देते हुए कहा, ‘लो, फिलहाल ये पैसे रख लो. हम लोग हर तरह  से तुम्हारी मदद करेंगे. यहां से लखनऊ तक कोई भी सरकारी या गैरसरकारी काम हो, पूरा करा देंगे. अपनी सरकार है, तो फिर चिंता किस बात की.’

रज्जो उसी दिन सुरेंद्र व माधवी के साथ इस कसबे में आ गई थी.

सुरेंद्र की बहुत बड़ी कोठी थी, जिस में कई कमरे थे. एक कमरा उसे भी दे दिया गया था. माधवी मैडम ने उस को कई सूट खरीद कर दिए थे. उसे एक मोबाइल फोन भी दिया था, ताकि वह अपने घरपरिवार से बात कर सके.

रज्जो को पता चला था कि सुरेंद्र की काफी जमीनजायदाद है. एक ही बेटा है, जो बेंगलुरु में पढ़ाई कर रहा है. माधवी मैडम बहुत बिजी रहती हैं. कभी पार्टी मीटिंग में, तो कभी इधरउधर दूसरे शहरों में और कभी लखनऊ में. इन्हीं विचारों में डूबतेतैरते रज्जो को नींद आ गई थी.

अगले दिन सुरेंद्र ने रज्जो को कमरे में बुला कर कुछ गोलियां देते हुए कहा, ‘‘रज्जो, ये गोलियां तुझे खानी हैं. रात जो हुआ है, उस से तेरी सेहत को नुकसान नहीं होगा.’’ ‘‘जी…’’ रज्जो ने वे गोलियां देखीं. वह जान गई कि ये तो पेट गिराने वाली गोलियां हैं.

‘‘और हां रज्जो, कल अपने घर ये रुपए मनीऔर्डर से भेज देना,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने 5 हजार रुपए रज्जो को दिए.

‘‘इतने रुपए साहबजी…?’’ रज्जो ने रुपए लेते हुए कहा.

‘‘अरे रज्जो, ये रुपए तो कुछ भी नहीं हैं. तू हम लोगों की सेवा कर रही है न, इसलिए मैं तेरी मदद करना चाहता हूं.’’

रज्जो सिर झुका कर चुप रही.

सुरेंद्र ने ज्जो का चेहरा हाथ से ऊपर उठाते हुए कहा, ‘‘तुझे कभी अपने गांव जाना हो, तो बता देना. ड्राइवर और गाड़ी भेज दूंगा.’’

सुन कर रज्जो बहुत खुश हुई.

‘‘रज्जो, तू मुझे इतनी अच्छी लगती है कि अगर मैडम की जगह मैं मंत्री होता, तो तुझे अपना पीए बना लेता,’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘रहने दो साहबजी, मुझे ऐेसे सपने न दिखाओ, जो मैं रोटी बनाना ही भूल जाऊं.’’

‘‘रज्जो, तू नहीं जानती कि मैं तेरे लिए क्या करना चाहता हूं,’’ सुरेंद्र ने कहा.

खुशी के चलते रज्जो की आंखों की चमक बढ़ गई.

4 दिन बाद माधवी मैडम घर लौटीं. इस बीच हर रात को सुरेंद्र रज्जो को अपने कमरे में बुला लेता और रज्जो भी पहुंच जाती, उसे खुश करने के लिए.

अगले दिन रज्जो एक कमरे के बराबर से निकल रही थी, तो सुरेंद्र व माधवी की बातचीत की आवाज आ रही थी. वह रुक कर सुनने लगी.

‘‘कैसी लगी रज्जो?’’ माधवी ने पूछा.

‘‘ठीक है, बढि़या खाना बनाती है,’’ सुरेंद्र का जवाब था.

‘‘मैं रसोई की नहीं, बैडरूम की बात कर रही हूं. मैं जानती हूं कि रज्जो ने इन रातों में कोई नाराजगी का मौका नहीं दिया होगा.’’

‘‘तुम्हें क्या रज्जो ने कुछ बताया है?’’

‘‘उस ने कुछ नहीं बताया. मैं उस के चेहरे व आंखों से सच जान चुकी हूं.

‘‘खैर, मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं. तुम कहा करते थे कि मैं बाहर चली जाती हूं, तो अकेले रात नहीं कटती, इसलिए ही तो रज्जो को इतनी दूर से यहां लाई हूं, ताकि जल्दी से वापस घर न जा सके.’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो माधवी…’’ सुरेंद्र ने कहा, ‘‘लखनऊ में तुम्हारे नेताजी के क्या हाल हैं? वह तो बस तुम्हारा पक्का आशिक है, इसलिए ही तो उस ने तुम्हें लाल बत्ती दिला दी है.’’

‘‘इस लाल बत्ती के चलते हम लोगों का कितना रोब है. पुलिस या प्रशासन में भला किस अफसर की इतनी हिम्मत है, जो हमारे किसी भी ठीक या गलत काम को मना कर दे.’’

‘‘नेताजी का बस चले तो वह तुम्हें लखनऊ में ही हमेशा के लिए बुला लें.’’

‘‘अगले हफ्ते नेताजी जनपद में आ रहे हैं. रात को हमारे यहां खाना होगा. मैं ने सोचा है कि नेताजी की सेवा में रात को रज्जो को उन के पास भेज दूंगी.

‘‘जब नेताजी हमारा इतना खयाल रखते हैं, तो हमारा भी तो फर्ज बनता है कि नेताजी को खुश रखें. अगले महीने रज्जो को लखनऊ ले जाऊंगी, वहां 2-3 दूसरे नेता हैं, उन को भी खुश करना है,’’ माधवी ने कहा.

सुनते ही रज्जो के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. वह चुपचाप रसोई में जा पहुंची. उस ने तो साहब को ही खुश करना चाहा था, पर ये लोग तो उसे नेताओं के पास भेजने की सोच बैठे हैं. वह ऐसा नहीं करेगी. 1-2 दिन बाद ही वह अपने गांव चली जाएगी.

तभी मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. वह बोली, ‘‘हैलो…’’

‘‘हां रज्जो बेटी, कैसी है तू?’’ उधर से काका की आवाज सुनाई दी.

काका की आवाज सुन कर रज्जो का दिल भर आया. उस के मुंह से आवाज नहीं निकली और वह सुबकने लगी.

‘‘क्या हुआ बेटी? बता न? लगता है कि तू वहां बहुत दुखी है. पहले तो तू साहब व मैडम की बहुत तारीफ किया करती थी. फिर क्या हो गया, जो तू रो रही है?’’

‘‘काका, मैं गांव आना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है रज्जो, मेरा 2 दिन का काम और है. उस के बाद मैं तुझे लेने आ जाऊंगा. मैं जानता हूं कि मैडम व साहब बहुत अच्छे लोग हैं. तुझे भेजने को मना नहीं करेंगे. तू हमारी चिंता न करना. यहां सब ठीक है. तेरी मां, भाईबहनें सब मजे में हैं,’’ काका ने कहा.

रज्जो चुप रही. अगले दिन सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को कमरे में बुलाया. सुरेंद्र ने कहा, ‘‘रज्जो, 4-5 दिन बाद लखनऊ से बहुत बड़े नेताजी आ रहे हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि वे हमारे यहां खाना खाएंगे और रात को आराम भी यहीं करेंगे.’’

‘‘जी…’’ रज्जो के मुंह से निकला.

‘‘रात को तुम्हें नेताजी की सेवा करनी है. उन को खुश करना है. देखना रज्जो, अगर नेताजी खुश हो गए तो…’’ माधवी की बात बीच में ही अधूरी रह गई.

रज्जो एकदम बोल उठी, ‘‘नहीं मैडमजी, यह मुझ से नहीं होगा. यह गलत काम मैं नहीं करूंगी.’’

‘‘और मेरे पीठ पीछे साहबजी के साथ रात को जो करती रही, क्या वह गलत काम नहीं था?’’

रज्जो सिर झुकाए बैठी रही, उस से कोई जवाब नहीं बन पा रहा था.

‘‘रज्जो, तू हमारी बात मान जा. तू मना मत कर,’’ सुरेंद्र बोला.

‘‘साहबजी, ये नेताजी आएंगे, इन को खुश करना है. फिर कुछ नेताओं को खुश करने के लिए मुझे मैडमजी लखनऊ ले कर जाएंगी. मैं ने आप लोगों की बातें सुन ली हैं. मैं अब यह गलत काम नहीं करूंगी. मैं अपने घर जाना चाहती हूं. 2 दिन बाद मेरे काका आ रहे हैं,’ रज्जो ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा.

‘‘अगर हम तुझे गांव न जाने दें तो…?’’ माधवी ने कहा.

‘‘तो मैं थाने जा कर पुलिस को और अखबार के दफ्तर में जा कर बता दूंगी कि आप लोग मुझ से जबरदस्ती गलत काम कराना चाहते हैं,’’ रज्जो ने कड़े शब्दों में कहा.

रज्जो के बदले तेवर देख कर सुरेंद्र ने कहा, ‘‘ठीक है रज्जो, हम तुझ से कोई काम जबरदस्ती नहीं कराएंगे. तू अपने काका के साथ गांव जा सकती है,’’ यह कह कर सुरेंद्र ने माधवी की ओर देखा. उसी रात सुरेंद्र ने रज्जो की गला दबा कर हत्या कर दी और ड्राइवर से कह कर रज्जो की लाश को नदी में फिंकवा दिया. दिन निकलने पर इंस्पैक्टर को फोन कर के कोठी पर बुला लिया.

‘‘कहिए हुजूर, कैसे याद किया?’’ इंस्पैक्टर ने आते ही कहा.

‘‘हमारी नौकरानी रजनी उर्फ रज्जो घर से एक लाख रुपए व कुछ जेवरात चुरा कर भाग गई है.’’

‘‘सरकार, भाग कर जाएगी कहां वह? हम जल्द ही उसे पकड़ लेंगे,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और कुछ देर बाद चला गया.

दोपहर बाद रज्जो का काका रामदीन आया. सुरेंद्र ने उसे देखते ही कहा, ‘‘अरे ओ रामदीन, तेरी रज्जो तो बहुत गलत लड़की निकली. उस ने हम लोगों से धोखा किया है. वह हमारे एक लाख रुपए व जेवरात ले कर कल रात कहीं भाग गई है.’’

‘‘नहीं हुजूर, ऐसा नहीं हो सकता. मेरी रज्जो ऐसा नहीं कर सकती,’’ घबरा कर रामदीन बोला.

‘‘ऐसा ही हुआ है. वह यहां से चोरी कर के भाग गई है. जब वह गांव में अपने घर पहुंचे तो बता देना. थाने  मेंरिपोर्ट लिखा दी है. पुलिस तेरे घर भी पहुंचेगी.

‘‘अगर तू ने रज्जो के बारे में न बताया, तो पुलिस तुम सब को उठा कर जेल भेज देगी.

‘‘और सुन, तू चुपचाप यहां से भाग जा. अगर पुलिस को पता चल गया कि तू यहां आया है, तो पकड़ लिया जाएगा.’’

यह सुन कर रामदीन की आंखों में आंसू आ गए. रज्जो के लिए उस के दिल में नफरत बढ़ने लगी. वह रोता हुआ बोला, ‘‘रज्जो, यह तू ने अच्छा नहीं  किया. हम ने तो तुझे यहां सेवा करने के लिए भेजा था और तू चोर बन गई.’’

रामदीन रोतेरोते थके कदमों से कोठी से बाहर निकल गया.

Hindi Story: यह कैसा प्यार – प्यार में नाकामी का परिणाम

Hindi Story: ‘‘अब आप का बेटा खतरे से बाहर है,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘4-5 घंटे और आब्जर्वेशन में रखने के बाद उसे वार्ड में शिफ्ट कर देंगे. हां, ये कुछ दवाइयां हैं… एक्स्ट्रा आ गई हैं…इन्हें आप वापस कर सकते हैं.’’

24 घंटे के बाद डाक्टर की यह बात सुन कर मन को राहत सी मिली, वरना आई.सी.यू. के सामने चहलकदमी करते हुए किसी अनहोनी की आशंका से मैं और पत्नी दोनों ही परेशान थे. मैं ने दवाइयां उठाईं और अस्पताल के ही मेडिकल स्टोर में उन्हें वापस करने के लिए चल पड़ा.

दवाइयां वापस कर मैं जैसे ही मेडिकल स्टोर से बाहर निकला, एक अपरिचित सज्जन अपने एक साथी के साथ मिल गए और मुझे देखते ही बोले, ‘‘अब आप के बेटे की तबीयत कैसी है?’’

‘‘अब ठीक है, खतरे से बाहर है,’’ मैं ने कहा.

‘‘चलिए, यह तो बहुत अच्छी खबर है, वरना कल आप लोगों की परेशानी देखते नहीं बन रही थी. जवान बेटे की ऐसी दशा तो किसी दुश्मन की भी न हो.’’

यह सुन कर उन के दोस्त बोले, ‘‘क्या हुआ था बेटे को?’’

मैं ने इस विषय को टालने के लिए उस अपरिचित से ही प्रश्न कर दिया, ‘‘आप का यहां कौन भरती है?’’

‘‘बेटी है, आज सुबह ही उसे बेटा पैदा हुआ है.’’

‘‘बधाई हो,’’ कह कर मैं चल पड़ा.

अभी मैं कुछ ही कदम आगे चला था कि देखा मेडिकल स्टोर वाले ने मुझे 400 रुपए अधिक दे दिए हैं. उस ने शायद जल्दी में 500 के नोट को 100 का नोट समझ लिया था.

मैं उस के रुपए वापस लौटाने के लिए मुड़ा और पुन: मेडिकल स्टोर पर आ गया. वहां वे दोनों मेरी मौजूदगी से अनजान मेरे बेटे के बारे में बातें कर रहे थे.

‘‘क्या हुआ था उन के बेटे को?’’

‘‘अरे, नींद की गोलियां खा ली थीं. कुछ प्यारव्यार का चक्कर था. कल बिलकुल मरणासन्न हालत में उसे अस्पताल लाया गया था.’’

‘‘भैया, इस में तो मांबाप की गलती रहती है. नए जमाने के बच्चे हैं…जहां कहें शादी कर दो, अब मैं ने तो अपने सभी बच्चों की उन की इच्छा के अनुसार शादियां कर दीं. जिद करता तो इन्हीं की तरह भुगतता.’’

शायद उन की चर्चा कुछ और देर तक चलती पर उन दोनों में से किसी एक को मेरी मौजूदगी का एहसास हो गया और वे चुप हो गए. मैं ने भी ज्यादा मिले पैसे मेडिकल स्टोर वाले को लौटाए और वहां से चल पड़ा पर मन अजीब सा कसैला हो गया. संतान के पीछे मांबाप को जो न सुनना पडे़ कम है. ये लोग मांबाप की गलती बता रहे हैं, हमें रूढि़वादी बता रहे हैं, पर इन्हें क्या पता कि मैं ने खुद अंतर्जातीय विवाह किया था.

मेरी पत्नी बंगाली है और मैं हिंदू कायस्थ. समाज और नातेरिश्तेदारों ने घोर विरोध किया तो रजिस्ट्रार आफिस में शादी कर के कुछ दिन घर वालों से अलग रहना पड़ा, फिर सबकुछ सामान्य हो गया. बच्चों से भी मैं ने हमेशा यही कहा कि तुम जहां कहोगे वहां मैं तुम्हारी शादी कर दूंगा, फिर भी मुझे रूढि़वादी पिता की संज्ञा दी जा रही है.

मेरा बेटा प्यार में असफल हो कर नींद की गोलियां खा कर आत्म- हत्या करने जा रहा था. आज के बच्चे यह कदम उठाते हुए न तो आगा- पीछा सोचते हैं और न मातापिता का ही उन्हें खयाल रहता है. हर काम में जल्दबाजी, प्यार करने में जल्दबाजी, प्यार में असफल होने पर जान देने की जल्दबाजी.

हमारे कुलदीपक ने 3 बार प्यार किया और हर बार इतनी गंभीरता से कि असफल होने पर तीनों ही बार जान देने की कोशिश की. पहला प्यार इसे तब हुआ था जब यह 11वीं में पढ़ता था. हुआ यों कि इस के गणित के अध्यापक की पत्नी की मृत्यु हो गई. तब उस अध्यापक ने प्रिंसिपल से अनुरोध कर के अपनी बेटी का सुरक्षा की दृष्टि से उसी कालिज में एडमिशन करवा लिया जिस में वह पढ़ाते थे, ताकि बेटी आंखों के सामने बनी रहे.

वह कालिज लड़कों का था. अकेली लड़की होने के नाते वह कालिज में पढ़ने वाले सभी लड़कों का केंद्रबिंदु थी, पर मेरा बेटा उस में कुछ अधिक ही दिलचस्पी लेने लगा.

वह लड़की मेरे बेटे पर आकर्षित थी कि नहीं यह तो वही जाने, पर मेरा बेटा अपने दिल का हाल लिखलिख कर उसे देने लगा और उसी में एक दिन वह पकड़ा भी गया. बात लड़की के पिता तक पहुंची…फिर प्रिंसिपल तक. मुझे बुलाया गया. सोचिए, कैसी शर्मनाक स्थिति रही होगी.

प्रिंसिपल ने चेतावनी देते हुए मुझ से कहा, ‘आप का बेटा पढ़ाई में अच्छा है और मैं नहीं चाहता कि एक होनहार छात्र का भविष्य बरबाद हो, अत: इसे समझा दीजिए कि भविष्य में ऐसी गलती न करे.’

घर आ कर मैं ने बेटे को डांटते हुए कहा, ‘मैं ने तुम्हें कालिज में पढ़ने  के लिए भेजा था कि प्यार करने के लिए? आज तुम ने अपनी हरकतों से मेरा सिर नीचा कर दिया.’

‘प्यार करने से किसी का सिर नीचा नहीं होता,’ बेटे का जवाब था, ‘मैं उस के साथ हर हाल में खुश रह लूंगा और जरूरत पड़ी तो उस के लिए समाज, आप लोगों को, यहां तक कि अपने जीवन का भी त्याग कर सकता हूं.’

मैं ने कहा, ‘बेटा, माना कि तुम उस के लिए सबकुछ कर सकते हो, पर क्या लड़की भी तुम से प्यार करती है?’

‘हां, करती है,’ बेटे का जवाब था.

मैं ने कहा, ‘ठीक है. चलो, उस के घर चलते हैं. अगर वह भी तुम से प्यार करती होगी तो मैं उस के पिता को मना कर तुम दोनों की मंगनी कर दूंगा, पर शर्त यह रहेगी कि तुम दोनों अपनी पढ़ाई पूरी करोगे तभी शादी होगी.’

बेटे की इच्छा रखने के लिए मैं लड़की के घर गया और उस के पिता को समझाने की कोशिश की तो वह बडे़ असहाय से दिखे, पर मान गए कि  अगर बच्चों की यही इच्छा है तो आप जैसा कहते हैं कर लेंगे.

लेकिन जब उन की बेटी को बुला कर यही बात पूछी गई तो वह क्रोध में तमतमा उठी, ‘किस ने कहा कि मैं इस से प्यार करती हूं… अपनी कल्पना से कैसे इस ने यह सोच लिया. आप लोग कृपा कर के मेरे घर से चले जाइए, वैसे ही व्यर्थ में मेरी काफी बदनामी हो चुकी है.’

मैं अपमानित हो कर बेटे को साथ ले कर वहां से चला आया और घर आते ही गुस्से में मैं ने उसे कस कर एक थप्पड़ मारा और बोला, ‘ऐसी औलाद से तो बेऔलाद होना ही भला है.’

रात के करीब 12 बजे होंगे, जब बेटे ने जा कर अपनी मां को जगाया और बोला, ‘मां, मैं मरना नहीं चाहता हूं. मुझे बचा लो.’

उस की मां ने नींद से जग कर देखा तो बेटे ने अपने हाथ की नस काटी हुई थी और उस से तेजी से खून बह रहा था. पत्नी ने रोतेरोते मुझे जगाया. हम लोग तुरंत उसे ले कर नर्सिंग होम गए. वहां पता चला कि हाथ की नस कटी नहीं थी. खैर, मरहम पट्टी कर के उसे घर भेज दिया गया.

पत्नी का सारा गुस्सा मुझ पर फूट पड़ा, ‘जवान बेटे को ऐसे मारते हैं क्या? आज उसे सही में कुछ हो जाता तो हम लोग क्या करते?’

खैर, अब हम दोनों बेटे के साथ साए की तरह बने रहते. मनोचिकित्सक को भी दिखाया. किसी तरह उस ने परीक्षा दी और 12वीं में 62 प्रतिशत अंक प्राप्त किए. अब समय आया इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की कोचिंग का. प्यार का भूत सिर पर से उतर चुका था. बेटा सामान्य हो गया था. पढ़ाई में मन लगा रहा था. हम लोग भी खुश थे कि इंजीनियरिंग में प्रवेश परीक्षाओं के पेपर ठीकठाक हो गए थे. तभी मेरे सुपुत्र दूसरा प्यार कर बैठे. हुआ यों कि पड़ोस में एक पुलिस के सब- इंस्पेक्टर ट्रांसफर हो कर किराएदार के रूप में रहने को आ गए. उन की 10वीं में पढ़ने वाली बेटी से कब मेरे बेटे के नयन मिल गए हमें पता नहीं चला.

कुल 3 हफ्ते के प्यार में बात यहां तक बढ़ गई कि एक दिन दोनों ने घर से भागने का प्लान बना लिया, क्योंकि लड़की को देखने के लिए दूसरे दिन कुछ लोग आने वाले थे, पर उन का भागने का प्लान असफल रहा और वे पकड़े गए. लड़की के पिता ने बेटी की तो लानत- मलामत की ही दोचार पुलिसिया हाथ मेरे कुलदीपक को भी जड़ दिए और पकड़ कर मेरे पास ले आए.

‘समझा लीजिए अपने बेटे को. अगर अब यह मेरे घर के आसपास भी दिखा तो समझ लीजिए…बिना जुर्म के ही इसे ऐसा अंदर करूंगा कि इस की जिंदगी चौपट हो कर रह जाएगी.’

मैं कुछ बोला तो नहीं पर उसे बड़ी हिकारत की दृष्टि से देखा. वह भी चुपचाप नजरें झुकाए अपने कमरे में चला गया.

रात को बेटी और दामाद अचानक आ गए. उन लोगों ने हमें सरप्राइज देने के लिए कोई सूचना न दी थी. थोड़ी देर तक इधरउधर की बातों के बाद मेरी बेटी बोली, ‘पापा, राहुल कहां है…सो गया क्या?’

राहुल की मां बोली, ‘शायद, अपने कमरे में बैठा पढ़ रहा होगा. जा कर बुला लाती हूं.’

‘रहने दो मां, मैं ही जा रही हूं उसे बुलाने,’ बेटी ने कहा.

ऊपर जा कर जब उस ने उस के कमरे का दरवाजा धकेला तो वह खुल गया और राहुल अचकचा कर बोला, ‘दीदी, तुम कैसे अंदर आ गईं, सिटकनी तो बंद थी.’

बेटी ने बिना कुछ बोले राहुल के गाल पर कस कर चांटा मारा और राहुल को स्टूल से नीचे उतार कर रोने लगी. दरअसल, राहुल कमरा बंद कर पंखे से लटक कर अपनी जान देने जा रहा था.

‘मुझे मर जाने दो, दीदी. मेरी वजह से पापा को बारबार शर्मिंदगी उठानी पड़ती है.’

‘तुम्हारे मरने से क्या उन का सिर गर्व से ऊंचा उठ जाएगा. अरे, अपना व्यवहार बदलो और जीवन में कुछ बन कर दिखाओ ताकि उन का सिर वास्तव में गर्व से ऊंचा हो सके.’

प्रवेश परीक्षाएं अच्छी हुई थीं.

इंजीनियरिंग कालिज में राहुल को प्रवेश मिल गया क्योंकि अच्छे नंबरों से उस ने परीक्षाएं पास की थीं. मित्रमंडली का समूह, जिन में लड़केलड़कियां सभी थे, अच्छा था. हम लोग निश्ंिचत हो चले थे. वह खुद भी जबतब अपने प्रेमप्रसंगों की खिल्ली उड़ाता था.

इंजीनियरिंग का तीसरा वर्ष शुरू होते ही उस मित्रमंडली में से एक लड़की से राहुल की अधिक मित्रता हो गई. वे दोनों अब अकसर ग्रुप के बाहर अकेले भी देखे जाते. मैं एकआध बार इन की पढ़ाई को ले कर सशंकित भी हुआ, पर लड़की बहुत प्यारी थी. वह हमेशा पढ़ाई और कैरियर की ही बात करती, साथ ही साथ मेरे बेटे को भी प्रोत्साहित करती और जबतब वे दोनों विदेश साथ जाने की बात करते थे.

विदेश जाने के लिए दोनों ने साथ मेहनत की, साथ परीक्षा दी, पर लड़की क्वालीफाई कर गई और राहुल नहीं कर सका. लड़की को 3 साल की पढ़ाई के लिए विदेश जाने की खबर से राहुल बहुत टूट गया. हालांकि लड़की ने उसे बहुत समझाया कि कोई बात नहीं, अगली बार क्वालीफाई कर लेना.

धीरेधीरे लड़की के विदेश जाने का समय नजदीक आने लगा और राहुल को उसे खोने का भय सताने लगा. वह बारबार उस से विवाह की जिद करने लगा. लड़की ने कहा, ‘देखो, राहुल, हम लोगों में बात हुई थी कि शादी हम पढ़ाई के बाद करेंगे, तो इस प्रकार हड़बड़ा कर शादी करने से क्या फायदा? 3 साल बीतते समय थोड़ी न लगेगा.’

राहुल जब उसे न समझा सका तो हम लोगों से कहने लगा कि विधि के पापा से बोलिए न. शादी नहीं तो उस के जाने के पहले मंगनी ही कर दें.

बच्चों के पीछे तो मातापिता को सबकुछ करना पड़ता है. मैं विधि के घर गया और उस के मातापिता से बात की तो वे बोले, ‘हम लोग तो खुद यही चाहते हैं.’

यह सुन कर विधि बोली, ‘पर मैं तो नहीं चाहती हूं…क्यों आप लोग मंगेतर या पत्नी का ठप्पा लगा कर मुझे भेजना चाहते हैं या आप लोगों को और राहुल को मुझ पर विश्वास नहीं है? और अगर ऐसा है तो मैं कहती हूं कि यह संबंध अभी ही खत्म हो जाने चाहिए, क्योंकि वास्तव में 3 साल की अवधि बहुत होती है. उस के बाद घटनाक्रम किस प्रकार बदले कोई कह नहीं सकता. क्या पता मेरी विदेश में नौकरी ही लग जाए और मैं वापस आ ही न सकूं. इसलिए मैं सब बंधनों से मुक्त रहना चाहती हूं.’

मैं और पत्नी अपना सा मुंह ले कर लौट आए. भारी मन से सारी बातें राहुल को बताईं…साथ में यह भी कहा कि वह ठीक कहती है. तुम लोगों का प्यार सच्चा होगा तो तुम लोग जरूर मिलोगे.

‘मैं सब समझ रहा हूं,’ राहुल बोला, ‘जब से उस के विदेश जाने की खबर आई है वह मुझे अपने से कमतर समझने लगी है. जाने दो, मैं कोई उस के पीछे मरा जाता हूं. बहुत लड़कियां मिलेंगी मुझे.’

परसों रात को विधि का प्लेन गया और परसों ही रात को राहुल ने नींद की गोलियां खा लीं. मैं और राहुल की मां एक शादी में गए हुए थे. कल शाम को लौट कर आए तो बेटे की यह हालत देखी. तुरंत अस्पताल ले कर आए. तभी कानों में शब्द सुनाई पड़े, ‘‘पापा, चाय पी लीजिए.’’

सामने देखा तो बेटी चाय का कप लिए खड़ी थी. मैं ने उस के हाथों से कप ले लिया.

बेटी बोली, ‘‘पापा, क्या सोच रहे हैं. राहुल अब ठीक है. इतना सोचेंगे तो खुद बीमार पड़ जाएंगे.’’

मैं ने चाय की चुस्की ली तो विचारों ने फिर पलटा खाया. यह कोई सिर्फ मेरे बेटे की ही बात नहीं है. आज की युवा पीढ़ी हो ही ऐसी गई है. हर कुछ जल्दी पाने की ललक और न पाने पर हताशा. समाचारपत्र उठा कर देखो तो ऐसी ही खबरों से पटा रहता है. प्यार शब्द भी इन लोगों के लिए एक मजाक बन कर रह गया है. अभी हमारे एक हिंदू परिचित हैं. उन की बेटी ने मुसलमान से शादी कर ली. दोनों ही पक्षों में काफी विरोध हुआ. अंतर्जातीय विवाह तो फिर भी पचने लगे हैं पर अंतर्धर्मीय नहीं. मैं ने अपने परिचित को समझाया.

‘जब बच्चों ने विवाह कर ही लिया है तब आप क्यों फालतू में सोचसोच कर हलकान हो रहे हैं. खुशीखुशी आशीर्वाद दे दीजिए.’

एक साल में उन के यहां बेटा भी पैदा हो गया. पर नाम को ले कर दोनों पतिपत्नी में जो तकरार शुरू हुई तो तलाक पर आ कर खत्म हुई. बात सिर्फ इतनी थी कि पिता बेटे का नाम अमन रखना चाहता था और मां शांतनु. दोनों के मातापिता ने समझाया…दोनों शब्दों का अर्थ एक होता है, चाहे जो नाम रखो, पर वे लोग न समझ पाए और आजकल बच्चा किस के पास रहे इस को ले कर दोनों के बीच मुकदमा चल रहा है.

‘‘नानू, नानू, यह आयुषी है,’’ मेरा 6 वर्षीय नाती एक प्यारी सी गोलमटोल लड़की से मेरा परिचय कराते हुए कहता है.

मैं अपने विचारों की दुनिया से बाहर आ कर थोड़ा सहज हो कर पूछता हूं, ‘‘आप की फ्रेंड है?’’

‘‘नो नानू, गर्लफे्रंड,’’ मेरा नाती कहता है.

मैं कहना चाहता हूं कि गर्लफ्रेंड के माने जानते हो? पर देखता हूं कि गर्लफ्रेंड कह कर परिचय देने पर उस बच्ची के गाल आरक्त हो उठे हैं और मैं खुद ही इस भूलभुलैया में फंस कर चुप रह जाता हूं.

Funny Story: अर्थशास्त्री की पहली ससुराली होली

Funny Story: तिवारीजी को होली के एक हफ्ते पहले से ही ससुराल आने का लगातार फोन आ रहा था. बारबार फोन आए भी क्यों न, आखिर टौकटाइम और डाटा फ्री जो है.

तिवारीजी के लिए खुशकिस्मती की बात यह थी कि शादी के बाद उन्हें पहली बार गांवमहल्ले की सालियों और सलहजों के साथ ससुराली होली खेलने का मौका मिल रहा था.

पेशे से शिक्षक तिवारीजी उच्च विद्यालय में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक थे. शिक्षक और विषय विशेषज्ञ होने के चलते उन का सारा हिसाबकिताब भारतीय अर्थव्यवस्था की तरह संतुलित होता था. ससुराल जाने में आर्थिक समस्या लोकतांत्रिक मुद्दों की तरह आड़े आ रही थी.

महंगाई और जीएसटी की मार से जब पूरा देश जूझ रहा है, तो भला हमारे तिवारीजी कैसे महफूज रहते. कैशलैस तिवारीजी काफी होपलैस नजर आ रहे थे, क्योंकि फरवरी महीने की तनख्वाह इनकम टैक्स में जा चुकी थी और ऊपर से दुकानदार, धोबी, दूध वाले का बकाया उधार अलग.

तिवारीजी गजब धर्मसंकट में फंसे हुए थे. बड़ी, छोटी, मं?ाली हर साइज की सालियां बारबार फोन कर के न्योता दे रही थीं, साथ ही देशी घी की मिठाई और रंग, गुलाल, पिचकारी लेते आने का इमोशनल दबाव भी बनाया जा रहा था.

भारतीय बैंकिंग सिस्टम में लंदन बसने वाले को अरबों रुपए का सरकारी लोन मिल जाता है, पर ससुराल जाने वाले को 1,000 रुपए का कर्ज मिलना भी काफी मुश्किल है.

काफी मशक्कत के बाद ‘ससुराल से लौटते ही उधार चुका देने’ की शर्त पर एक दोस्त ने उन्हें 1,000 रुपए का उधार दे कर दोस्ती और इनसानियत की दोहरी जिम्मेदारी निभाई.

तिवारीजी मन ही मन सोच रहे थे, ‘सासससुर के पैर लगाई में आशीर्वाद के साथ शगुन के रूप में कुछ न कुछ नकद नारायण तो मिलेगा ही, उसी से उधार चुका दूंगा… कम से कम ससुराल जाने और आने में हुए खर्च में लगी पूंजी तो वसूल हो ही जाएगी’.

उस 1,000 रुपए में से संदेश मिठाई खरीदने के नाम पर तिवारीजी ने 500 रुपए अलग निकाल लिए. 300 रुपए किराया और बाकी बचे 200 रुपए में होली मना कर ससुराल जाने और वापसी की रूपरेखा तैयार कर ली.

‘खाली हाथ बिना संदेश मिठाई के भी कोई ससुराल जाता है भला, वह भी पहली बार, उस पर होली का मौका,’ यह सोच कर तिवारीजी मिठाई की दुकान पर पहुंच गए और मिठाई वाले से मिठाई का मोलभाव करने लगे.

‘‘रसगुल्ला 700, पेड़ा 750, चमचम 650, बरफी 700, काजू कतली 1,200, मुरब्बा 350, रसकदम 850 रुपए प्रति किलो…’’ दुकानदार भी सीडी की तरह बजते हुए अपनी मिठाइयों की कीमत बताने लगा.

तिवारीजी थोड़ा सकुचाते हुए बोले, ‘‘भैया, आप की दुकान में सब से सस्ती मिठाई कौन सी है?’’
हलवाई बोला, ‘‘जलेबी ले लो सरजी… डेढ़ सौ रुपए किलो लगेगी.’’

तिवारीजी उधेड़बुन में पड़ गए कि ‘महज 500 रुपए में क्या लूं? जलेबी तो ससुराल ले जा नहीं सकता… अगर रसगुल्ला भी लेता हूं, तो 3 पाव ही होंगे… काजू कतली आधा किलो भी नहीं आ पाएगी… देशी घी की दूसरी मिठाइयां भी ढाई सौ ग्राम से ज्यादा नहीं आ पाएंगी…’

‘‘क्या पैक कर दूं सर?’’ तिवारीजी मन में गुणाभाग कर ही रहे थे कि हलवाई के सवाल ने उन का सारा कैलकुलेशन बिगाड़ दिया.

‘‘नहीं कुछ… बस यों ही दाम का आइडिया ले रहा था…’’ बोलते हुए तिवारीजी दुकान से बाहर निकल आए.

तिवारीजी ने चारों तरफ नजर दौड़ाई. उन्हें कुछ सम?ा नहीं आ रहा था कि तभी एक फल का ठेला दिखाई दिया. फिर वहां पहुंच कर वे सभी फलों के दाम जानने लगे. अनार 200, नारंगी 80, सेब 240 रुपए किलो थे. ड्राई फ्रूट की कीमत पूछने की तिवारीजी में न ऊर्जा थी और न ही खरीदने की औकात.

काफी मोलभाव के बाद 2 किलो सेब तुलवाए और दुकानदार को 500 रुपए का नोट थमा दिया. दुकानदार ने तय कीमत काट कर 20 रुपए का नोट तिवारीजी को लौटा दिया.

तिवारीजी मन ही मन संतुष्ट थे, ‘चलो, संदेश मिठाई के बदले 2 किलो सेब से थैला भराभरा सा लगेगा… रही बात साली की, तो सेहत के नुकसान का हवाला देते हुए मिठाई और चर्म रोग, प्रदूषण, स्वच्छ भारत का हवाला देते हुए रंग पिचकारी नहीं लेने की बात कह दूंगा.

‘सेब भी अपने बजट में आ गए… और तो और, बीवीसाली के गुलाबी गालों को लालहरा करने के लिए गुलाल के 60 रुपए भी बच गए… अब होगी जानदारशानदार डिजिटल होली.’

ऐसा लग रहा था कि तिवारीजी का अर्थशास्त्र पढ़ना व पढ़ाना आज कामयाब हो गया. वे खुश मन से बसस्टैंड पहुंच कर ससुराल जाने वाली बस में सवार हो गए.

ससुराल में कदम रखते ही तिवारीजी को पता चला कि उन के ससुरजी सुबह ही सासू मां के साथ अपनी ससुराल होली मनाने निकल गए हैं. तिवारीजी को मानो 440 वोल्ट का झटका लग गया. शेयर बाजार की तरह उन का मनोबल और अर्थबल धड़ाम से नीचे गिर गया.

शगुन के रूप में पैसा वापसी का एकमात्र साधन सासससुर के वहां न होने से तिवारीजी के चेहरे का रंग लालपीला पड़ने लगा. दोस्त की उधार वापसी का उन का सारा गणित फेल जो हो चुका था.

तिवारीजी अगला कैलकुलेशन करने के लिए कुछ नया सोचते, इस से पहले एक साली ने उन के हाथ से गिफ्ट झपट लिया और दूसरी साली ने उन के ऊपर रंग का गुब्बारा मार कर ‘हैप्पी होली’ बोल कर उन का ध्यान भंग कर डाला.

Hindi Story: मेहनत का फल

Hindi Story, लेखक – एम. मुबीन

घर आते ही सलीम सिर पकड़ कर पलंग पर बैठ गया. उस के चेहरे की हालत देख कर सईदा का माथा ठनका. उस की हालत बता रही थी कि कोई ऐसी बात जरूर हुई है, जिस ने उसे परेशान कर दिया है.

‘‘क्या बात है, बहुत परेशान दिखाई दे रहे हो?’’ सईदा सलीम की बगल में जा बैठी और धीरे से बोली.

बीवी की आवाज सुन कर सलीम चौंका. उस ने उसे देखा और बोला, ‘‘ऐसा लगता है, परेशानियां हमारा पीछा नहीं छोड़ेंगी.’’

‘‘क्या मतलब? बात क्या है? आप बताते क्यों नहीं?’’ यह सुन कर सईदा भी परेशान हो गई.

‘‘और क्या हो सकता है… काम से निकाल दिया गया हूं,’’ सलीम ने कहा, तो निकाले जाने की वजह पूछने की सईदा की हिम्मत ही नहीं हुई.

साल में यह तीसरा मौका था, जब सलीम काम से निकाला गया था. दरअसल, सईदा को लगता था कि अगर सलीम ऐसे ही नौकरी में रहा तो उम्रभर उस के साथ यही होता रहेगा.

सलीम शादी से पहले ही छोटीबड़ी दुकानों में काम करता था. वह अपने काम में होशियार था. मालिक भी उस के काम से बहुत खुश रहता था, पर इस के बावजूद किसी भी छोटीमोटी भूल पर कभीकभी बिना वजह ही उसे काम से निकाल दिया जाता था. इस में सलीम का कोई कुसूर नहीं होता था, कुसूर होता था मालिक की नीयत का.

मालिकों को यह डर रहता था कि एक खास मुद्दत तक काम करने के बाद सलीम पक्का मुलाजिम बन जाएगा और फिर उसे पक्की नौकरी की सारी सहूलियतें देनी पड़ेंगी, इसलिए इस मुसीबत को गले बांधने से पहले ही उसे काम से निकाल दिया जाता था.

मालिकों के दिल में यह डर सलीम की लियाकत और पढ़ाई को देख कर पैदा होता था. उन्हें लगता था कि कम पढ़ेलिखे आदमी को अगर वे 10 साल तक अपने यहां नौकर रखें और सारी सहूलियतें न भी दें, तब भी वह उन का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा. पर सलीम के मामले में ऐसा मुमकिन नहीं था, यह सोच कर वे उसे पक्का होने से पहले ही निकाल देते थे.

‘‘ठीक है…’’ सईदा ने प्यार से सलीम के बालों में हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘अब चिंता छोडि़ए… जो होना है, वही होगा. हर बार जो हुआ, इस बार भी वही होगा, इसलिए चिंता करने की क्या जरूरत है. चलिए, खाना खा लीजिए.’’

बीवी सईदा की बात सुन कर सलीम उठा और हाथ धोने के लिए चला गया.

हर बार कोई अलग बात नहीं होती थी. हफ्ता 10 दिन या कभीकभी एकाध महीना सलीम को बेकार रहना पड़ता था, फिर नया काम ढूंढ़ना पड़ता था. काम मिल ही जाता था.

इस बात को एक हफ्ता हो गया था. रोज सवेरे नौकरी की तलाश में सलीम बाहर जाता और शाम को थकहार कर वापस आ जाता.

‘‘एक बात कहूं,’’ एक दिन सईदा सलीम से बोली.

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘ऐसा कब तक चलता रहेगा? जोकुछ आप के साथ होता है, लगता है कि उम्रभर होता रहेगा. आखिर इस नौकरीनुमा गुलामी से क्या फायदा, जिस में हर पल नौकरी जाने का डर बना रहता है. आप ऐसा कोई काम क्यों नहीं करते, जो गुलामी की जंजीरों को हमेशा के लिए तोड़ दे और हमारे मन से ऐसा डर भी निकाल दे?’’

‘‘ऐसा क्या काम हो सकता है?’’

‘‘आप अपना ही कोई छोटामोटा कारोबार शुरू कर दो.’’

‘‘कारोबार शुरू करने के लिए हमारे पास पैसे कहां हैं?’’ सलीम सईदा की आंखों में झांकने लगा.

‘‘पैसे तो नहीं हैं, पर 15-20 हजार रुपए में भी तो काम शुरू किया जा सकता है.’’

‘‘ऐसा कौन सा धंधा हो सकता है?’’

‘‘आप कपड़ों की दुकानों पर काम कर चुके हैं. आप को तो यह अच्छी तरह मालूम है.’’

‘‘हां,’’ सलीम ने कुछ सोचते हुए सईदा से कहा.

‘‘अगर आप कटपीस कपड़े ला कर बेचें, तो उस में हमें इतने पैसे मिल जाया करेंगे कि हमारी गुजरबसर हो जाए…’’

‘‘खयाल बुरा नहीं है. पर कपड़े बेचेंगे कहां? कोई दुकान तो नहीं है…’’

‘‘धंधा फुटपाथ से भी शुरू किया जा सकता है.’’

सईदा की बात सुन कर सलीम सोच में डूब गया.

दूसरे दिन सलीम एक ऐसी दुकान पर पहुंचा, जहां कमीजों के कटपीस मिलते थे. 10,000 रुपयों में अच्छाखासा कपड़ा आ गया. उसे 60 रुपया प्रति टुकड़ा पड़ा था. शाम को एक भीड़ भरे रास्ते के किनारे वह दुकान लगा कर बैठ गया.

‘‘100 रुपए में कमीज का कपड़ा है भाई, 100 रुपए में,’’ सलीम आवाज लगाता रहा.

सलीम की आवाज सुन कर आनेजाने वाले रुकते और कपड़े देखते. पसंद नहीं आता तो आगे बढ़ जाते. पसंद आता तो मोलभाव करने लगते. पर वह अपनी कीमत पर अड़ा रहता, तो ग्राहक पैसा दे कर कपड़ा ले लेते.

रात को जब सलीम कपड़ों की गठरी उठा कर आया, तो सईदा उसे देख कर हैरान रह गई, ‘‘यह सब क्या है?’’

‘‘तुम ने जो रास्ता बताया था, उसी पर चल रहा हूं. अपना छोटा सा धंधा शुरू कर दिया है… और यह आज की कमाई,’’ कहते हुए उस ने 500 रुपए सईदा के हाथ में रख दिए.

‘‘500 रुपए,’’ सईदा हैरानी से बोली.

‘‘जी हां…’’ सलीम हंस कर बोला, ‘‘शुरुआत तो अच्छी है, आगे देखो…’’

दूसरे दिन जब सलीम उसी जगह पर दुकान लगाने लगा, तो एक आदमी ने रोक दिया, ‘‘तू इधर दुकान नहीं लगा सकता.’’

‘‘क्यों?’’ सलीम ने पूछा.

‘‘इधर मेरी दुकान लगती है.’’

‘‘तुम्हारी दुकान यहां नहीं, सामने लगती है.’’

‘‘मतलब वही है. एक जगह 2 दुकानें नहीं लग सकतीं.’’

‘‘एक जगह 10 दुकानें भी लग सकती हैं… ग्राहक माल उसी दुकान से खरीदेगा, जहां उसे पसंद आएगा या सस्ता मिलेगा.’’

‘‘तू जाता है यहां से या मजा चखाऊं,’’ वह आदमी हाथापाई पर उतर आया. सलीम को भी गुस्सा आ गया. मारपीट में दोनों को चोंटें लगीं. राह चलते लोगों ने बीचबचाव किया. सामने वाला कमजोर पड़ रहा था, इसलिए यह कहता हुआ चला गया, ‘‘मैं तुझे देख लूंगा.’’

उस दिन भी सलीम ने 400 रुपए कमाए. पर उसे यह अच्छा नहीं लगा कि उसे इस काम के लिए किसी से झगड़ा करना पड़ा.

दूसरे दिन जब सलीम दुकान लगाने लगा, तो एक दादा किस्म के आदमी ने उसे रोक दिया, ‘‘तू यहां दुकान नहीं लगाएगा.’’

‘‘क्यों, आप को क्या परेशानी है?’’

‘‘बोल दिया न… यहां दुकान नहीं लगाएगा का मतलब है… नहीं लगाएगा. यह मंगल दादा का हुक्म है. यहां पहले से अपना एक आदमी दुकान लगाता है. तू बहुत दादा बनता है क्या? हमारे आदमी को धमकी देता है… इस शहर में रहना है या नहीं?’’

‘‘लेकिन मंगल दादा, मेरी दुकान लगाने से उस के धंधे पर कोई…’’

‘‘फिर होशियारी बताई,’’ कहते हुए मंगल ने उसे एक घूंसा लगाया, तो उसे भी गुस्सा आ गया. उस ने भी मंगल दादा को घूंसा लगा दिया. मार खा कर मंगल दादा को गुस्सा आ गया. वह उस पर टूट पड़ा.

सलीम ने भी बराबरी का जवाब दिया. मंगल दादा कमजोर पड़ जाता, लेकिन उस के 4-5 साथी आ गए और वे सब उस से उलझ गए.

सलीम को बुरी तरह चोटें आईं.

‘‘जा, आज तुझे माफ कर दिया… अब जिंदगी में मंगल के मुंह नहीं लगना,’’ कहता हुआ वह चला गया.
सलीम कराहता हुआ घर आया. उस की हालत देख कर सईदा रोने लगी, ‘‘इस सब की जिम्मेदार मैं ही हूं. मैं ने ही आप को यह धंधा शुरू करने की सलाह दी थी.’’

2 दिन तक सलीम घर से बाहर नहीं निकल सका. दोस्त, रिश्तेदार मिलने आते तो सलीम को सारी कहानी सुनानी पड़ती.

‘‘क्या मंगल दादा और उस के साथियों ने आप को मारा?’’ सलीम के साले फारुख ने सुना, तो गुस्से से बोला,’’ मैं उसे देखता हूं… जो हुआ, भूल जाइए. आप फिर दुकान लगाइए. कोई भी आप को नहीं रोकेगा.’’

तीसरे दिन सलीम फिर वहां पहुंच गया और दुकान लगा दी.

थोड़ी देर बाद मंगल दादा आया और बोला, ‘‘अरे सलीम भाई, आप ने पहले क्यों नहीं बताया कि आप फारुख के जीजा हैं, वरना बात यहां तक पहुंचती ही नहीं. मैं ने जोकुछ किया, उस की माफी चाहता हूं.

‘‘फारुख मेरा बचपन का दोस्त है. मेरी वजह से फारुख के जीजा को दुख हुआ, मेरे लिए यह बड़े शर्म की बात है. आज के बाद कोई भी आप की ओर आंख उठा कर नहीं देखेगा. मैं ने उस आदमी को भी भगा दिया है, जो पहले वहां दुकान लगाता था.’’

‘‘नहीं दादा, उसे मत भगाइए… उसे भी धंधा करने दीजिए.’’ सलीम बोला.

अब सलीम का धंधा खूब चलने लगा. उसे अच्छी आमदनी होने लगी. जितनी तनख्वाह उसे नौकरी से मिलती थी, उतनी तो वह कभीकभी 7-8 दिन में ही कमा लेता था.

एक दिन नगरपालिका की गाड़ी आई और सलीम का सामान उठा कर ले गई.

फुटपाथ पर दुकान लगाने का जुर्माना भी अदा करना पड़ा और उस का आधा माल ही वापस मिल सका.

उस के बाद तो हफ्ते में एकाध बार नगरपालिका की गाड़ी जरूर आती और सड़क के किनारे लगी दुकानों को उठा ले जाती. गाड़ी के आते ही जो दुकानदार अपनी दुकानें ले कर भाग जाते, वे बच जाते, वरना सारा माल नगरपालिका वाले उठा ले जाते.

कभी सलीम गाड़ी के आते ही अपनी दुकान का माल उठा कर भाग जाता और कभी उस का माल पकड़ा जाता, जिस से उसे काफी नुकसान उठाना पड़ता.

इस नई मुसीबत से वह काफी परेशान हो गया था. डर यहां भी बना हुआ था. पूरी हिफाजत तो उसे दुकान ही दे सकती थी और दुकान किराए पर लेने और पगड़ी वगैरह देने के लिए उस के पास 40-50 हजार रुपए नहीं थे.

सलीम जहां दुकान लगाता था, उस के पास ही एक पान की दुकान थी, जो अशोक नामक एक आदमी की थी. आसपास और भी पान की दुकानें थीं, इसलिए उस का धंधा नहीं होता था.

अशोक अकसर ही सलीम से कहता था, ‘‘बस, अब बहुत हो गया सलीम भाई, मैं यह दुकान किसी और को किराए पर दे देता हूं और कोई धंधा शुरू करता हूं… यह तो चलती ही नहीं.’’

अशोक की बात सुन कर एक बात सलीम के दिमाग में आई. अगर वह इस दुकान को किराए कर ले ले, तो छोटी सी ही सही, वह यहां भी कपड़े की दुकान डाल सकता है. इस तरह नगरपालिका वालों की ओर से जो डर बना रहता है, उस से भी छुटकारा मिल जाएगा.

सलीम ने अशोक से बात की, तो वह 20,000 रुपए पगड़ी और 1,000 रुपए महीना किराए पर दुकान देने को तैयार हो गया.

सलीम के पास इतने पैसे तो नहीं थे, पर जब यह बात सईदा को मालूम हुई, तो उस ने अपने जेवर उसे दे दिए, ‘‘आप इन्हें बैंक में रख कर कर्ज उठा लीजिए और किसी भी तरह उस दुकान को किराए पर ले लीजिए.’’

आखिर सलीम ने वह दुकान किराए पर ले ही ली. थोड़ी सी रद्दोबदल के बाद उस ने कपड़े की अपनी छोटी सी दुकान शुरू कर दी.

दुकान के बाहर सलीम कटपीस रखता था और अंदर थान. वह वाजिब दाम लेता था. जब लोगों को मालूम हुआ कि उस के पास दूसरी दुकानों से काफी सस्ते कपड़े मिलते हैं, तो लोग उसी से कपड़े खरीदने लगे. इस तरह उस का धंधा खूब चल निकला. दुकान पर हमेशा भीड़ सी लगी रहती.

शहर में कपड़े सस्ते दामों पर कहां मिलते हैं, सलीम को यह बखूबी पता था. पर साथ ही साथ वह सीधे मिलों से भी कपड़ा मंगवाने लगा.

थोक दुकानदारों से भी सलीम की अच्छीखासी जानपहचान हो गई थी, इसलिए कभीकभी वे उसे उधारी पर भी माल दे देते थे. धंधा अच्छा होता था, इसलिए उसे पैसों की कमी भी महसूस नहीं होती थी. जितने का धंधा होता था, वह उतने ही पैसों का और माल ले आता था.

सलीम का धंधा बढ़ता जा रहा था. मिलने वाला मुनाफा भी धंधे में लग रहा था, इसलिए पैसा भी बढ़ता जा रहा था. अब उसे इस बात का अहसास हो रहा था कि अब उसे बड़ी दुकान ले लेनी चाहिए. उस का नाम भी हो गया था और लोग उस पर इतना यकीन भी करने लगे थे.

सलीम की दुकान के पास ही एक दुकान खाली हुई थी, पर मालिक 50,000 रुपए पगड़ी के मांग रहा था. सलीम के पास इतने पैसे नहीं थे. पर उतने पैसों से ज्यादा का माल उस के पास था. वह सोचने लगा कि अगर वह माल बेच कर उन पैसों से पगड़ी दे दे, तो दुकान में माल नहीं रहेगा, वह खालीखाली दिखाई देगी.

आखिर में सलीम ने यही फैसला किया कि माल तो बाद में भी भरा जा सकता है. पर इस वक्त जो दुकान मिल रही है, वह बाद में नहीं मिल सकती. उस ने नया माल खरीदना बंद कर दिया और पैसे जमा करने शुरू कर दिए. जब 50,000 रुपए जमा हो गए, तो उस ने दुकान किराए पर ले ली.

दुकान को सजाने में भी 10,000 रुपए लग गए, पर उस का धंधा पहले की तरह चल रहा था, इसलिए उसे पैसों की कमी महसूस नहीं हो रही थी.

नई दुकान इतनी बड़ी थी कि कई लाख रुपए का माल भरने के बाद वह खालीखाली दिखाई दे, जबकि सलीम चाहता था कि जब वह यह दुकान शुरू करे तो वह भरी हुई हो, इसलिए वह दुकान शुरू करने में हिचकिचा रहा था. पर ऐसे मौके पर थोक दुकानदारों ने उस का साथ दिया, उस की खूब मदद की.
अब सलीम अकेले नहीं संभाल सकता था, इसलिए उस ने 2 नौकर भी रख लिए.

आखिर वह दिन भी आ ही गया, जिस दिन सलीम की दुकान का उद्घाटन था. उस के पुराने ग्राहकों ने भी साथ दिया. उन्हें सलीम पर यकीन था कि वह सस्ता और अच्छा कपड़ा ही बेचेगा, इसलिए उसी की दुकान से कपड़ा खरीदने लगे.

सलीम ने भी उन के यकीन को कायम रखा था. उस की दुकान उसी तरह से चलने लगी, जैसे शहर की दूसरी बड़ीबड़ी दुकानें चलती थीं.

काउंटर पर बैठा सलीम कभी ग्राहकों को देखता तो कभी अपने नौकरों को, जो ग्राहकों को कपड़े दिखा रहे होते थे. तब उसे बीते दिन याद आते थे, जब वह भी उन्हीं की तरह एक नौकर था और हर 3-4 महीनों के बाद काम से निकाल दिया जाता था.

पर सईदा ने सलीम को एक राह दिखाई. उस ने भी उस राह पर चलने की ठानी और उस के लिए मेहनत करनी शुरू कर दी. उस की मेहनत का ही यह फल था कि वह मालिक के रूप में उस दुकान में बैठा था.

Hindi Story: मरियम बनी मरजीना

Hindi Story: आज मरियम ने नहाते समय अपने बालों को अच्छी तरह धोया और बालों को खुला छोड़ने के बाद उस ने आसमानी रंग का सूट पहना. वह आईने में अपना चेहरा निहारने लगी.

सामने से आती हुई रोशनी जब मरियम के चेहरे पर पड़ी, तो उस के चेहरे की चमक और बढ़ गई. अपनी सूरत पर खुद ही फिदा हो गई थी मरियम.

भले ही मरियम की उम्र 30 साल की हो गई थी, मगर वह अब भी दिखने में एकदम जवान, सैक्सी और खूबसूरत थी.

मरियम का लंबा कद, गोरा रंग और तीखी नाक उसे एक अफगानी औरत का सा लुक देते थे. उस की छाती सुडौल और कसावट लिए हुए थी और पतली कमर वाली मरियम जब चलती थी, तो कसबे के लोग उस के उभरे हुए अंगों को आगेपीछे से ताड़ते नजर आते थे.

पर इतना होने के बाद भी मरियम की खूबसूरती भोगने वाला कोई नहीं था. वह रात को तनहा बिस्तर पर लेटती, तो अकेलेपन के चलते उसे देर तक नींद नहीं आती थी. उस का मन चाहता था कि कोई मर्द उसे अपनी बांहों में जकड़ ले और बेतहाशा चूमे, पर उसे करवटों से ही संतोष करना पड़ता था.

मरियम की जिंदगी में यह सुख आया जरूर था, पर ठहर न सका था. दरअसल, मरियम महज 20 साल की थी, तभी उसे पास के ही एक गांव के 30 साल के रईस नाम के लड़के के साथ ब्याह दिया गया था.

रईस सिर्फ नाम से ही रईस था, पैसों के नाम पर उस के पास ज्यादा कुछ न था. वह पास के शहर में मजदूरी करने जाता था, पर कभी भी उस का मन शहर में नहीं लगा. वह कभी दूसरे दिन तो कभी तीसरे दिन गांव वापस आ जाता था.

पहलेपहल तो मरियम ने रईस को दबी जबान में सम?ाने वाले लहजे में कहा कि माना कि उन दोनों का निकाह हुआ है और उसे मरियम से मुहब्बत है, पर शहर से इतनी जल्दी आना ठीक नहीं, क्योंकि आनेजाने में खर्चा होता है, उसे छुट्टी लेनी पड़ती है और फिर शहर के काम और मजदूरी का भी नुकसान होता है. इस के अलावा अम्मीअब्बू भी क्या कहते होंगे कि निकाह के बाद तो रईस एकदम जोरू का गुलाम ही हो गया है.

पर रईस पर मरियम की बातों का कोई असर नहीं होता था. वह मरियम को दोपहर में ही पकड़ लेता था और उस के नाजुक अंगों से तब तक खेलता था, जब तक उस का मन भर नहीं जाता था.

जिस्म की भूख पूरी हो जाने के बाद रईस हाथमुंह धो कर गांव घूमने निकल जाता था और फिर देर रात को ही वापस आता था. अम्मीअब्बू की डांट का तो उस पर कोई असर होता ही नहीं था.

बेचारी भोलीभाली मरियम तो सम?ाती थी कि रईस उस की मुहब्बत के चलते गांव में आता है, पर उसे तो आसपड़ोस की औरतों ने बताया था कि रईस का एक दूसरी औरत से चक्कर चल रहा है, इसलिए मरियम थोड़ा सचेत रहे. मरियम को भला रईस के खिलाफ कही गई बातों पर कब यकीन होने वाला था?

पर, उस दिन जब मरियम रईस की कमीज साफ करने से पहले जेबें टटोल रही थी, तब उसे कागजनुमा टुकड़ा मिला, जो असल में एक औरत की तसवीर थी. अब तो मरियम परेशान हो गई थी.

बड़ी बेशर्मी से रईस ने पूछताछ में कबूल भी कर लिया था कि गांव की एक औरत से उस का नाजायज रिश्ता है और ऐसा कहते हुए रईस के चेहरे पर मर्दाना ऐंठन थी.

रईस ने मरियम से यह भी कहा कि उस का यह रिश्ता कई सालों से है और वह उस औरत को किसी भी हाल में छोड़ नहीं पाएगा.

उस दिन तो मरियम ने यह बात बरदाश्त कर ली थी, पर समय बीतने के साथ रईस अपने नाजायज रिश्ते में कुछ ज्यादा ही बिजी रहने लगा और शहर की मजदूरी भी छोड़ दी. तब मरियम ने अम्मीअब्बू और रईस के सामने एतराज जताया.

रईस अपनी जोरू के इस तरह के विरोध के लिए तैयार नहीं था. उस ने गुस्से में मरियम को खूब मारा और बाद में ‘तलाक, तलाक, तलाक’ बोल कर उसे घर से निकाल दिया.

बेचारी मरियम उस समय पेट से हो चुकी थी. उस ने रईस और उस के अम्मीअब्बू से गुहार भी लगाई, पर कोई फायदा नहीं हुआ.

अब मरियम के पास मायके वापस आने के अलावा कोई चारा नहीं था. मरियम के मायके में सिर्फ उस की अम्मी ही थीं. अब्बू की मौत तो पहले ही हो चुकी थी.

एक औरत के लिए उस के मायके के दरवाजे हमेशा ही खुले रहते हैं. मरियम के साथ भी ऐसा ही हुआ. वह अब अपने मायके में ही रहने लगी थी और समय आने पर उस ने एक बेटे को जन्म दिया.

घर का खर्चा बढ़ गया था. मरियम की मां सिलाई का काम कर के घर का खर्चा चलाती थीं. मरियम भी उन का हाथ बंटाने लगी. अम्मी ने उसे सिलाई और रेशमी कपड़े पर महीन कढ़ाई के खूब गुर सिखाए. मरियम भी कढ़ाई के काम में खूब मन लगाती थी. रंगीन फूलबूटे तो ऐसा काढ़ती कि देखते ही बनते थे.

कामधाम थोड़ा ठीक चलने लगा तो अचानक ही मरियम की अम्मी का इंतकाल हो गया. बेचारी मरियम और उस का 5 साल का बेटा आदिल अब इस घर में अकेले रह गए थे.

‘‘न जाने कितने इम्तिहान बाकी हैं मेरे,’’ मरियम मन ही मन बुदबुदाती और आंसू ढुलकाती.

वह छोटा बच्चा ही मरियम की जिंदगी की एकमात्र उम्मीद था, जिस के सहारे वह समय काट देती, पर यह सब इतना आसान नहीं होने वाला था.

धीरेधीरे मरियम की दूसरी शादी के लिए उस पर आसपास के लोगों और उम्रदराज मर्दों का दबाव बनने लगा, पर मरियम ने शादी की हर बात को सिरे से खारिज कर दिया था.

‘‘जब एक बार मेरे मर्द ने मुझ से बेवफाई की है, तो दूसरी बार ऐसा नहीं होगा, इस का क्या भरोसा है?’’ मरियम की आवाज में दर्द झलकता था.

घर का खर्च चलाने के लिए मरियम ने सिलाईकढ़ाई का काम शुरू कर दिया था. वह बाजार से थोक रेट वाली दुकान से कपड़ा खरीद कर लाती और उन पर रंगबिरंगे व सुनहरे धागों से कढ़ाई करती और ऐसा कर के उस ने कई मेजपोश, आईने के कवर और चुनरी तैयार कर ली थीं.

ये सारे सामान अगर बिक जाते, तो मरियम को कुछ पैसे जरूर मिल जाते और आमदनी का एक सिलसिला भी चल निकलता.

इस काम के लिए मरियम कसबे के एक दुकानदार रफीक के पास पहुंची.

रफीक के साथ उस गांव काएक पंडित भी बैठा था, जिसे कसबे के लोग ‘बड़े पंडितजी’ कहते थे.

बड़े पंडितजी थे बड़े एक नंबर के औरतखोर. कसबे की गरीब और जरूरतमंद औरतों को घूरना और नाजायज रिश्ते बनाना उन का पसंदीदा काम था.

रफीक से बड़े पंडितजी की अच्छी बनती थी. उस ने मरियम को बैठाया और उस के आने का सबब पूछने लगा. उस की नजरें बातोंबातों में ही मरियम के जिस्म को टटोलने लगी थीं.

मरियम के उभरे सीने को देख कर रफीक के मुंह में पानी आ गया था और वह मन ही मन मरियम के जिस्म को भोगने के सपने देखने लगा था.

रफीक समझ गया था कि मरियम एक जरूरतमंद औरत है और उसे अपने कब्जे में कर पाना बहुत आसान होगा, इसलिए उस ने मरियम से कहा, ‘‘आप चिंता बिलकुल मत करो. अपना बनाया हुआ सारा सामान हमारी दुकान पर छोड़ जाया करो. हम उसे बेच कर वाजिब दाम दे दिया करेंगे.’’

बड़े पंडितजी भी चुपचाप बैठे हुए मरियम के जिस्म के उतारचढ़ाव का मुआयना कर रहे थे.

रफीक की बात सुन कर मरियम मन ही मन बहुत खुश हो गई थी. उस ने रफीक को शुक्रिया कहा और घर आ कर कढ़ाई का काम और भी तेजी से करने लगी.

कुछ ही दिनों में मरियम ने बाजार से खरीदी हुई एक सादा चुनरी पर कढ़ाई कर के उसे और भी खूबसूरत बना दिया था.

अपना काढ़ा हुआ सामान ले कर मरियम रफीक के पास गई. रफीक मरियम को देख कर फिर से खूब मीठी बातें करने लगा और बातोंबातों में मरियम के जिस्म को छूने की कोशिश भी कर लेता था.

रफीक की ऐसी हरकतों से मरियम परेशान तो महसूस कर रही थी, पर इस समय उस की मजबूरी थी, क्योंकि कसबे में रफीक की ही ऐसी दुकान थी, जो खूब चलती थी और फिर शहर में कई बड़े दुकानदारों से रफीक की अच्छी पहचान थी.

रफीक चाहे तो मरियम का धंधा चुटकियों में पनपा सकता है, ऐसा सोच कर मरियम खामोश थी, पर उस ने अपने जिस्म को समेटते हुए दुपट्टे को अपने जिस्म पर कस कर लपेट लिया था.

रफीक ने मरियम को एक हफ्ते के बाद आने को कहा, पर मरियम को तो यह एक हफ्ता बहुत लग रहा था, इसलिए वह 5वें दिन ही रफीक के पास पहुंच गई थी.

रफीक उस समय अपनी दुकान पर बैठा हुआ कुछ काम कर रहा था. पास ही बड़े पंडितजी भी बैठे हुए मोबाइल में रील देख रहे थे. मरियम को देख कर रफीक खुश हो गया. ऐसा लगा कि आज वह उस का पहले से इंतजार कर रहा था.

रफीक ने मरियम को एक स्टूल पर बिठाया. मरियम ने कुछ कहना चाहा, पर रफीक ने अनसुना कर दिया और दुकान के अंदर चला गया. वापसी में उस के हाथ में चाय के 2 गिलास थे.

‘‘लो, पहले तुम चाय पियो मरियम,’’ रफीक ने चाय आगे बढ़ाई.

पहले तो मरियम थोड़ा हिचकी, पर रफीक के बारबार कहने पर मरियम ने चाय ले ली और छोटेछोटे घूंट भरने लगी.

बड़े पंडितजी मरियम को चाय पीते देख रहे थे. चाय पीने के बाद मरियम बात शुरू करने जा ही रही थी कि उस का सिर भारी होने लगा और आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा.

मरियम अपनेआप पर काबू न रख सकी और बेहोश हो कर एक ओर लुढ़क गई. रफीक को तो इसी पल का इंतजार था. उस ने तुरंत अपनी दुकान का शटर अंदर से बंद कर लिया.

बेहोश मरियम को निहारते हुए रफीक ने मरियम की सलवार का नाड़ा खोल कर एक ओर फेंक दिया और फिर कुरता भी उतार फेंका.

रफीक मरियम के नंगे जिस्म को देख कर पागल हो उठा था. वह कभी मरियम के निढाल जिस्म को अपनी बांहों में कसता, तो कभी मरियम के अंगों पर अपने होंठ रगड़ने लगता.

रफीक पर हवस का भूत बहुत हावी हो चुका था और फिर जल्दी से उस ने अपने भी कपड़े उतार फेंके और फिर मरियम के कोमल जिस्म पर हावी हो गया.

उस दौरान बड़े पंडितजी अपने मोबाइल में यह सारा गंदा काम कैद करते रहे.

रफीक के हटने के बाद बड़े पंडितजी ने भी अपने कपड़े उतार फेंके और मरियम के जिस्म का मजा लेने लगे.

मरियम के साथ कई बार सैक्स करने के बाद उस के नंगे बदन को रफीक अपने मोबाइल में कैद करना नहीं भूला था.

जब मरियम को होश आया, तब रफीक उस के पैरों के पास बैठा हुआ था और अपने मोबाइल पर वही वीडियो देख रहा था. मरियम को सम?ाते देर नहीं लगी कि उस की इज्जत लुट चुकी है.

रफीक और बड़े पंडितजी की निगाहें मरियम को पहले से ही ठीक नहीं लग रही थीं, पर उस की मजबूरी और गरीबी उसे आज इस हाल में ले आई थी कि इन दोनों भेडि़यों ने उस के साथ मुंह काला कर के कहीं का नहीं छोड़ा था.

मरियम ने भारी मन से अपने कपड़े पहने. उस के मन में तूफान सा चल रहा था. उस की आबरू लुट चुकी थी. अब उसे दुनिया में सिर्फ खुदकुशी कर लेने के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था. दरिंदों ने इस तरह उस के जिस्म को नोचा था कि उस की हर नस दर्द हो रही थी.

‘पर, अगर मैं मर गई तो मेरे बच्चे का क्या होगा? वह किस के सहारे रहेगा?’ अपने 5 साल के बच्चे आदिल का खयाल आते ही मरियम ने तुरंत अपना फैसला बदल लिया. वह गुस्से में अपने घर पहुंची और बालटी भरभर कर नहाने लगी.

मरियम के मासूम बच्चे को भला क्या पता था कि उस की अम्मी पर क्या गुजरी है.

इस घटना को 3 दिन ही गुजरे थे कि मरियम के पास रफीक आया और अपने मोबाइल की तरफ इशारा कर के उस से आज फिर हमबिस्तर होने की मांग की और ऐसा न करने पर उसे पूरे कसबे में बदनाम कर देने की धमकी दे डाली. साथ ही, उस के धंधे को भी खत्म कर देने की बात कही.

मरियम आंसुओं में डूब गई, क्योंकि अब तो रफीक और बड़े पंडितजी उसे उस की वीडियो का डर दिखा कर न जाने कितने दिनों तक हमबिस्तरी की मांग करते रहेंगे… यह सोच कर वह परेशान हो उठी, पर अगले पल ही उसे उम्मीद की एक किरण दिखाई दी और वह उम्मीद की किरण थी कानून और पुलिस.

मरियम ने कोठरी में ताला लगाया और पुलिस चौकी पहुंच गई. वह पुलिस को आपबीती सुनाते हुए रफीक और बड़े पंडितजी को गिरफ्तार करने की मांग करने लगी.

पुलिस वालों ने चटकारे ले कर मरियम की कहानी को एक नहीं, बल्कि कई बार सुना, पर रिपोर्ट नहीं लिखी. और तो और, मरियम से यह भी कहा कि वे कैसे भरोसा करें कि उस का रेप हुआ है और मरियम से सुबूत दिखाने को कहा गया.

बेचारी मरियम शर्म से गड़ गई और बिना कुछ कहे वापस आने लगी.

मरियम पुलिस चौकी से बाहर निकली, तो उसे पीछे से किसी ने आवाज दी. वह एक 35 साल का नौजवान था. उस नौजवान ने बताया कि वह इसी कसबे का एक दलित जाति का नौजवान घामू है, जो बचपन से ही फिल्मों में जाना चाहता था और शौक के चलते कसबे में होने वाले ड्रामा और नाटकों में भाग लिया करता था, पर बड़े पंडितजी को यह कतई मंजूर नहीं था कि कोई पिछड़ी जाति का ऊंची जाति के बनाए मंच पर आए और उन के साथ उठेबैठे, इसलिए बड़े पंडितजी ने घामू को बुला कर नाटक में भाग लेने से
मना किया.

पर घामू को तो ऐक्टिंग का शौक था और कसबे के लोग भी उसे पसंद करते थे, इसलिए उस ने ऐक्टिंग को जारी रखा. उस की इस बात से बड़े पंडितजी चिढ़ गए और अपने गुरगों द्वारा घामू की 16 साल की बहन को उठवा लिया, उस के साथ रेप किया और उस की वीडियो बना कर घामू की बहन को ब्लैकमेल करने लगे. बाद में परेशान हो कर घामू की बहन ने नदी में कूद कर अपनी जान दे दी.

मरियम और घामू चलते हुए पुलिस चौकी से काफी दूर निकल आए थे.

मरियम घामू की बात तो सुन रही थी, पर यह सम?ा नहीं पाई थी कि वह उसे यह सब क्यों बता रहा है?

घामू ने मरियम को आगे बताया कि उसे एक ऐसी औरत की तलाश है, जो थोड़ी सी हिम्मत दिखाते हुए रफीक और बड़े पंडितजी के खिलाफ पुख्ता सुबूत जमा कर सके.

‘‘पर, मुझे तो सिलाईकढ़ाई और खाना बनाने के अलावा कुछ नहीं आता. ऐसे में बदला लेने जैसी बात तो मैं सोच भी नहीं सकती,’’ मरियम ने कहा,

जिस के बदले में घामू ने उसे अपना मोबाइल दिखाते हुए कहा कि मरियम, तुम बिलकुल मत घबराओ. वह उसे सबकुछ सिखा देगा, बस उसे एक नाटक खेलना होगा.

मरियम ने उन खतरनाक और गंदे किरदार वाले लोगों से किसी भी तरह का बदला लेने से इनकार कर दिया, तो घामू ने उस की हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि तब तो वे लोग उसे जिंदगीभर यों ही परेशान करते रहेंगे और उस के जिस्म से खिलवाड़ भी करते रहेंगे. यह बात मरियम की समझ में आ गई थी, इसलिए उस ने हां में सिर हिला दिया.

2-3 दिन बीतने के बाद घामू मरियम के घर पहुंचा. घामू ने मरियम से कहा, ‘‘देखो मरियम, तुम्हारे पास खोने को कुछ नहीं है, क्योंकि उन के पास तुम्हारी वीडियो और फोटो हैं, इसलिए अब तुम्हें मोबाइल की कुछ तकनीक सीखनी होगी और तुम अब वह करो, जो मैं तुम्हें बताता हूं.’’

घामू ने मरियम को एक प्लान बताया, जिसे सुन कर मरियम की आंखें हैरत से फैलती चली गईं.

उस दिन दोपहर में जब मरियम बाजार से आ रही थी, तब रफीक ने उसे फिर से घेर लिया और आज उस की दुकान पर आ कर शाम को रंगीन बनाने की बात कहने लगा, जिस के बदले में मरियम ने सकुचाते हुए हां कर दी.

शाम को 7 बजे मरियम रफीक की दुकान पर पहुंच गई. रफीक ने मरियम के आते ही दुकान का शटर बंद कर दिया और मरियम को दुकान के अंदर बने एक कमरे में ले गया.

यह कमरा साफसुथरा था. वहां कोने में एक दीवान पड़ा हुआ था, जिस पर बड़े पंडितजी पहले से बैठे थे और शराब पी रहे थे.

रफीक ने मरियम को अपनी बांहों में भरना चाहा, तो वह तुरंत छिटक गई और बोल्ड अंदाज दिखाते हुए बोली कि आज वह उन लोगों को मरजीना वाला डांस दिखाएगी और फिर उन का मूड बनाएगी.

‘यह मरजीना वाला डांस कौन सा होता है भाई?’ वे दोनों एक आवाज में बोले, तो मरियम ने उन्हें बताया कि मरजीना वाला डांस यानी वह डांस, जो ‘अलीबाबा और चालीस चोर’ नाम की फिल्म में मरजीना करती है.

ऐसा कहने के साथ ही मरियम ने अपना कुरता अपने बदन से अलग कर दिया, पर अंदर वह एक छोटी कुरती पहने हुए थी, जिसे देख कर रफीक और बड़े पंडितजी मूड में आ गए और पागल से होने लगे.

मरियम अपने साथ एक मिनी स्पीकर लाई थी और उस पर ‘महबूबा ओ महबूबा’ वाला गाना बजा दिया और अपनी कमर को सैक्सी अंदाज में लचकाने लगी. बीचबीच में वह किसी साकी की तरह उन दोनों को शराब भी पिला देती थी.

मरियम का सैक्सी डांस देख कर रफीक से रहा नहीं गया और उस ने मरियम को पकड़ लिया और कुछ कहने लगा, पर मरियम ने उसे पहले स्पीकर की ओर इशारा कर के गाना बंद करने को कहा और फिर अपना कुरता पहन कर वापस रफीक के सामने आ कर बैठ गई.

‘‘अब बताओ कि क्या कहना चाह रहे हो?’’ मरियम ने शांत लहजे में पूछा, तो रफीक और बड़े पंडितजी ने मरियम से कहा, ‘‘नाच बहुत हुआ, अब तुम हमारा बिस्तर गरम कर दो.’’

मरियम ने उन से पूछा, ‘‘तुम लोग किसी औरत की गंदी वीडियो क्यों बनाते हो?’’

‘‘अरे, तुम जैसी सैक्सी औरतों और लड़कियों को बेहोश कर के हम पहले तो उन का रेप करते हैं और उस के बाद उन की गंदी वीडियो अपने पास रख लेते हैं, जिस के बल पर हम बारबार उन औरतों का रेप करते हैं,’’ शराब के नशे में बड़े पंडितजी सबकुछ बोले जा रहे थे.

‘‘तो क्या मेरे अलावा और कोई भी आप के जाल में फंस चुकी है,’’ मरियम के इस सवाल के जवाब में रफीक ने कई लड़कियों के नाम गिना दिए.

‘‘लेकिन, सब से ज्यादा मजा उस नाटक करने वाले घामू की बहन के साथ आया था. बहुत कसावट भरी थी वह,’’ बड़े पंडितजी अपनी आंखों को सिकोड़ते हुए बोले.

मरियम अचानक उठी. उस ने अपना स्पीकर भी उठा लिया और उस के पीछे छिपे मोबाइल को उठा कर चल दी.

रफीक और बड़े पंडितजी उसे रोकने लगे, तो मरियम ने गुस्से से घूरते हुए कहा, ‘‘तुम लोगों के खिलाफ सारे सुबूत इस मोबाइल में आ चुके हैं. अब पुलिस ही तुम लोगों से बात करेगी,’’ और इस के बाद मरियम ने अंदर से बंद शटर को खोलने की कोशिश की, पर उस से भारी शटर नहीं खुला.

पर अचानक किसी ने बाहर से हाथ लगाते हुए शटर खोल दिया. वह और कोई नहीं, बल्कि घामू ही था और उस के साथ थी पुलिस और न्यूज चैनल के पत्रकार.

पुलिस ने पूरे हालात का जायजा लिया. मरियम ने रफीक और बड़े पंडितजी पर ब्लैकमेलिंग और यौन शोषण का आरोप लगाते हुए चोरी से बनाए गए उस वीडियो को मीडिया और पुलिस को सौंप दिया, जिस में वे दोनों शराब के नशे में अपने गलत कामों की शेखी बघार रहे थे.

पुलिस को मीडिया के दबाव में उन दोनों को गिरफ्तार करना पड़ गया था.

घामू और मरियम का बदला पूरा हो गया था. भले ही मरियम के साथ हुए रेप की बात फैल गई थी, पर कम से कम रफीक और बड़े पंडितजी अब किसी और लड़की की जिंदगी तो बरबाद नहीं कर सकेंगे.

कुछ दिन बीतने के बाद घामू मरियम के घर पहुंचा, तो मरियम उसे देख कर सहज भाव से मुसकरा दी और उस का बेटा आदिल घामू के गले लग गया.

घामू ने मरियम से उस की तारीफ करते हुए कहा कि कितनी जल्दी उस ने डांस करना और मोबाइल से चोरी से वीडियो बनाना और दूसरी बातों को सीख लिया, जिस के बदले में मरियम के गोरे गालों पर शर्म की लाली दौड़ गई थी.

मरियम को मुसकराते देख फौरन ही घामू ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया, पर मरियम चुप थी.

घामू मरियम के चेहरे पर छाई खामोशी का मतलब नहीं सम?ा पा रहा था. उस ने बेसब्री से कहा, ‘‘तुम खामोश क्यों हो मरियम?’’

‘‘पगले इतना भी नहीं जानते कि औरत की खामोशी का मतलब ही उस का इकरार होता है,’’ शरमाते हुए मरियम ने कहा, तो घामू ने भी खुशी से मरियम के माथे को चूम लिया.

ठीक उसी समय आदिल ने मोबाइल से उन दोनों की तसवीर खींच ली.

Family Story: मोहरा

Family Story: ‘काम का न काज का दुश्मन अनाज का. दूसरों के घरों की जूठन उठा कर, ?ाड़ूपोंछा कर के इस निकम्मे को पढ़ानालिखाना चाहा… सोचा कि अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा, चार पैसे कमाने लगेगा तो बुढ़ापा थोड़ा आराम से कटेगा, लेकिन नहीं, मेरी ऐसी किस्मत कहां…

‘जवानीभर इस के शराबी बाप के लिए कमाती रही, मरती, खटती, खपती रही और अब इस उम्र में इस निठल्ले, नालायक बेटे के लिए अपनी हड्डियां तोड़नी पड़ रही हैं. जब अपना ही सिक्का खोटा हो, तो किसी को क्या दोष देना…’

शक्कू बाई अपनी झोपड़ी के सामने बह रहे गंदे नाले से कुछ ही दूर पर बैठी अपने घर के बरतन मांजते हुए, बरतनों पर अपनी बेबसी व भड़ास निकालते हुए बड़बड़ा रही थी और शायद अपने एकलौते बेटे, जो 3 बेटियों के बाद जनमा था… जगेश्वर, जिसे बस्ती में जग्गू के नाम से जाना जाता है, को सुना रही थी.

शक्कू बाई जहां बैठी थी, वहां से कुछ ही दूर नगरपालिका के नल पर भारी भीड़ लगी हुई थी, चिल्लपों मची हुई थी. वैसे तो इस बस्ती का यह सीन कोई नया नहीं था, हर सुबह यह देखने को मिलता ही है.

ऐसा इसलिए है, क्योंकि तकरीबन 1,000 घरों और तकरीबन 6,000 लोगों की आबादी वाली इस बस्ती में केवल यही एकलौता नल है, जिस में हर रोज सुबह महज 2 घंटे के लिए ही पानी आता है. उस के बाद अगर किसी को पानी चाहिए, तो वह अगली सुबह तक का इंतजार करे या फिर बस्ती से तकरीबन
5 किलोमीटर दूर जा कर पानी लाए.

इस बस्ती में केवल पानी की ही किल्लत है, ऐसा नहीं है और भी कई छोटीबड़ी समस्याएं किसी दानव की तरह इस बस्ती में तब से हैं, जब से यह बस्ती वजूद में आई है.

चमचमाते हाईटैक महानगर में यह गंदी बस्ती कब से है, किसी को कुछ पता नहीं. कितनी सरकारें बदल गई हैं, पर इस बस्ती के हालात में कोई सुधार नहीं आया है. यहां रहने वाले कुछ बड़ेबूढ़े कहते हैं कि उन का जन्म ही इस बस्ती में हुआ है.

बुनियादी सहूलियतों की कमी में यहां जिंदगी हर सुबह कुरुक्षेत्र बन जाती है और यहां के रहवासी योद्धा. पेट की आग बुझाने के लिए, दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए बस्ती के लोग सुबह होते ही अपनेअपने घरों से मेहनतमजदूरी के लिए निकल पड़ते हैं.

घर से निकलते समय बस्ती के ज्यादातर मर्दों को इस बात की कोई चिंता नहीं होती है कि उन के पीछे घर में जो बूढ़ेबुजुर्ग, बीमार, लाचार व छोटे बच्चे छूट जाते हैं, उन के लिए दिनभर के खानेपीने का क्या इंतजाम होगा… उन्हें तो बस इस बात की फिक्र होती है कि शाम को दारू की बोतल का जुगाड़ कैसे होगा…

लेकिन औरतें रूखेसूखे बासी खाने के इंतजाम के साथ बड़ी जद्दोजेहद के बाद पानी भर कर ही घर से बाहर अपने काम के लिए निकलती हैं.

बस्ती के ज्यादातर लोगों के पास पक्का रोजगार नहीं है. रोज कमाना, रोज खाना. जिस दिन काम न मिला, उस दिन भूखे ही सो जाना, यही उन की नियति बन चुकी है.

इतने उलट हालात में भी शक्कू बाई अपने बेटे जग्गू को पढ़ालिखा कर कुछ बनाना चाहती थी, उसे इस नरक से निकाल कर एक अच्छी जिंदगी देने का सपना अपनी आंखों में संजोए हुए थी.

जब तक जग्गू छोटा था, तब तक उसे भी स्कूल जाना अच्छा लगता था, क्योंकि वहां उसे मिड डे मील मिलता था, पर जैसेजैसे वह बड़ा होने लगा, वैसेवैसे हर दिन उस का सामना जिंदगी की कड़वी हकीकत के साथ होने लगा.

जग्गू जिस सरकारी स्कूल में पढ़ता था, वहां उस के साथ स्कूल में कुछ ऐसे ओबीसी बच्चे भी पढ़ते थे, जिन के मातापिता के पास थोड़े रुपएपैसे ज्यादा थे या यों समझ लें कि उन बच्चों के हालात जग्गू के हालात से थोड़े बेहतर थे. वे बच्चे जग्गू को परेशान करते थे. उसे उस की जाति के नाम से चिढ़ाते थे, उसे शर्मिंदा करते थे. उस के साथ न तो खेलते थे और न ही खाना खाते थे.

जग्गू अपने स्कूल व अपनी क्लास में खुद को अलगथलग पा कर अनदेखा महसूस करने लगा, उस के कोमल बाल मन में विद्रोह की भावना और कुंठा पनपने लगी. जग्गू को यह सम?ाने में ज्यादा समय भी नहीं लगा कि जिंदगी की राहें चुनौती से भरी हुई हैं, जहां रुपया ही सबकुछ है. रुपयों के बगैर न तो दो वक्त की रोटी मिलती है और न ही इज्जत.

जग्गू अपनी पढ़ाई छोड़ कर किसी कामधंधे में लग जाना चाहता था, लेकिन शक्कू बाई अपने बेटे को मेहनतमजदूरी के दलदल में धकेलना नहीं चाहती थी.

वह चाहती थी कि जग्गू पढ़लिख कर छोटीमोटी नौकरी कर ले, ताकि उस की आगे की जिंदगी बेहतर हो जाए और वह गरीबी, भुखमरी, बेइज्जती जैसे दानव के मुंह में जाने से बच जाए, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं था.

जग्गू हर दिन अपना, अपनी जाति और अपने हालात का एक नए रूप में मजाक झेलता था. उस का मन लहूलुहान होने लगा था और फिर एक दिन उन बदमाश लड़कों ने मिल कर जग्गू से जबरदस्ती अपनी जूठन साफ करने के लिए मजबूर कर दिया. उस दिन के बाद से जग्गू ने स्कूल जाना ही छोड़ दिया.

स्कूल छोड़ने के बाद जग्गू काम की तलाश में सारा दिन यहांवहां भटकता रहता. नौकरी तो मिली नहीं, पर वर्तमान सरकार व कुछ जाति विशेष लोगों के प्रति गुस्से और विद्रोह की भावना जग्गू के भीतर जो सुलग रही थी, उस ने प्रचंड रूप ले लिया, जिस पर राजनीतिक दल व विपक्ष पार्टी के एक ओबीसी नेता ने जम कर घी डालने का काम किया. जग्गू गुमराह हो कर बरबाद होने की राह पर निकल पड़ा.

अब नौकरी तलाशना और कामधंधा ढूंढ़ने का विचार छोड़ कर जग्गू उन नेताजी के कहने पर अपने हक के लिए लड़नेमरने और मरनेमारने को तैयार था. जहां नेताजी कहते, चल पड़ता. कभी रैली, कभी धरना और कभी आम सभा. कभी चक्का जाम तो कभी शहर बंद कराने की मुहिम में.

जग्गू अपना कीमती समय और योगदान अपनी तरक्की में देने के बजाय इन्हीं सब कामों में देने लगा.

नेताजी भी अपना फायदा देखने और साधने में लगे रहे. कभी जग्गू से खुश हो कर नेताजी उसे कुछ रुपए दे देते, तो कभी शराब की बोतल थमा देते, जिसे पा कर जग्गू का सीना यह सोच कर चौड़ा हो जाता कि उस पर नेताजी का हाथ है.

ऊर्जावान नौजवानों को राह से भटकाना व उन की ऊर्जा का गलत इस्तेमाल अपनी पार्टी के फायदे के लिए कैसे करना है, यह हर पार्टी का नेता बखूबी जानता है. कभी आरक्षण, तो कभी जाति, कभी धर्म तो कभी बेरोजगारी के नाम पर जग्गू जैसे भोलेभाले नौजवानों को छला जाता है, उन्हें आसानी से निशाना बना लिया जाता है.

अब जग्गू भी एक राजनीतिक पार्टी के नेता के शिकंजे में था. जब से जग्गू ने यह रास्ता चुना है, शक्कू बाई उखड़ीउखड़ी व जग्गू से नाराज रहती है, क्योंकि यह उस का सपना नहीं है. वह तो अपने बेटे को इज्जत से छोटीमोटी नौकरी करते हुए देखना चाहती है, न कि किसी राजनीतिक पार्टी का मोहरा बने हुए.

आज सुबह जब से शक्कू बाई ने जग्गू को फोन पर यह कहते सुना है कि सरकार के प्रति विरोध प्रदर्शन करने के लिए शहर के मध्य नगरी चौक पर चक्का जाम करना है, तब से शक्कू बाई का पारा चढ़ा हुआ है और वह सुबह से ही जग्गू पर अपना गुस्सा दिखाते हुए बड़बड़ा रही है.

शक्कू बाई को बरतन साफ करते हुए यों बड़बड़ाता सुन कर जग्गू बोला, ‘‘अरे अम्मां, क्या तू सुबह से ही चिकचिक शुरू कर देती है. आज पढ़लिख कर भी हर नौजवान बेरोजगार, निठल्ला बैठा है.

‘‘मेरे पास कोई कामधंधा नहीं है, इस के लिए मैं नहीं, बल्कि यह सरकार जिम्मेदार है. वह चाहती है कि हमें नौकरी न मिले और हम यों ही सड़ते रहें. सरकार हमें अपने वोट बैंक के अलावा कुछ नहीं समझती.’’

इतना कह कर जग्गू गुस्से में वहां से चला गया. शक्कू बाई उसे समझाना चाहती थी कि धरना देने, चक्का जाम करने, दंगा करने या प्रदर्शन करने से उसे नौकरी नहीं मिलेगी, बल्कि उस के लिए कड़ी मेहनत व सब्र की जरूरत पड़ती है. इतनी साधारण सी बात अनपढ़ शक्कू बाई समझ रही थी, लेकिन जग्गू नहीं, क्योंकि उस की आंखों में विरोधी पार्टी के नेताजी ने काला चश्मा पहना रखा था.

आज शहर के सब से ज्यादा भीड़भाड़ वाले चौक में चक्का जाम व प्रदर्शन जग्गू की अगुआई में होने वाला था. जग्गू अपने दोस्तों, बस्ती व शहर के बेरोजगार नौजवानों के साथ और नेताजी द्वारा बहकाए गए सभी लड़कों को इकट्ठा कर शहर के मध्य नगरी चौक पर पहुंच गया. ?

नारेबाजी के साथ चक्का जाम व प्रदर्शन शुरू हुआ. इस दौरान वहां पुलिस का जत्था आ पहुंचा और उन्हें रोकने की कोशिश करने लगा. देखते ही देखते प्रदर्शन विकराल व विनाशक रूप में बदल गया. आगजनी, लूटपाट व तोड़फोड़ तेजी से बढ़ने लगी और फिर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज और गिरफ्तारी का सिलसिला शुरू हो गया.

जग्गू के माथे पर चोट लग गई और वह घायल हो गया. पुलिस ने उसे शहर की शांति भंग करने, दंगा करने और बिना इजाजत प्रदर्शन करने के आरोप में हिरासत में ले लिया.

जब यह खबर शक्कू बाई तक पहुंची, तो वह दौड़ती हुई पहले अस्पताल, फिर पुलिस स्टेशन और आखिर में उन नेताजी के पास पहुंची, जिन के इशारे पर जग्गू यह सब कर रहा था.

शक्कू बाई जब मदद की गुहार ले कर नेताजी के बंगले पर पहुंची, तो नेताजी ने शक्कू बाई से मिलने से साफ इनकार कर दिया और अपने नौकर से यह कहलवा भेजा कि वह किसी जग्गू या जगेश्वर को नहीं जानते और न ही उन्होंने चक्का जाम या कोई प्रदर्शन के लिए किसी को कहा है.

शक्कू बाई यहांवहां मदद के लिए भटकती रही, लेकिन कोई सामने नहीं आया और जग्गू को जेल हो गई.

जग्गू के जेल जाने के साथ ही शक्कू बाई का अपने बेटे को कुछ अच्छा करते हुए, नौकरी करते हुए देखने का सपना भी आंखों से पानी बन कर बह गया.

एक राजनीतिक पार्टी का मोहरा बन चुका जग्गू जेल जाने और शक्कू बाई के द्वारा उसे सारी हकीकत से रूबरू कराने के बावजूद इसी उम्मीद में है कि नेताजी उसे बहुत जल्दी इस मुसीबत से बाहर निकल लेंगे.

Hindi Story : डांस बार पर्यटन

Hindi Story : जीवन बीमा निगम में काम करते हुए गुप्ताजी अब रिटायरमैंट के नजदीक थे. एक बेहतरीन मैनेजर के रूप में उन्होंने अपने सेवाकाल के पूरे 34 साल गुजार दिए थे. 2 बेटों की शादी कर अपनी बड़ी पारिवारिक जिम्मेदारी पूरी कर वे संतोष के भाव से अपनी नौकरी कर रहे थे. अब तक मशीन की तरह की दिनचर्या में खास रंगों की कमी, जिसे काफी हद तक बोरिंग लाइफ कहा जा सकता है, में ही उन के दिन कट रहे थे. न पर्यटन, न तीर्थाटन, बस किसी तरह उन्होंने इतने साल बिता दिए थे.

पूजापाठी धर्मपत्नी भी बाहर घूमने की इच्छा रखने वाली कभी न रही, तो पत्नी के साथ घर छोड़ कर साथ में कभी न घूमना तय हो पाया, न कभी देवालय दर्शन की योजना पूरी हो पाई.

औफिस के 3-4 नौजवान शिरडी के सांईं बाबा के दर्शन का प्रोग्राम बना रहे थे, तो गुप्ताजी से भी चलने के लिए पूछा गया. पहले तो उन्होंने आदतन मना कर दिया, पर शाम तक विचार करने और पत्नी से मोबाइल पर सलाह करने के बाद साथ चलने की रजामंदी दे दी.

सबकुछ तय होने के बाद 3-4 दिन का कार्यक्रम राजस्थान, गुजरात के रास्ते पड़ने वाली जगहों को बहुत कम समय देते हुए दिल्ली से एक गाड़ी में 5 लोग 2 दिन में शिरडी पहुंच गए.

आस्था का सैलाब भक्तों की भीड़ के साथ दर्शन करने के बाद पूरी तरह शांत हो चुका था. गुप्ताजी अपनेआप को बहुत हलका महसूस कर रहे थे. ऐसा कि जो उन्होंने कई सालों में महसूस नहीं किया था.

एक जगह भोजन करते हुए अब आगे के प्रोग्राम के लिए चर्चा होने लगी, तो गुप्ताजी हैरान हो कर बोले, ‘‘तो यहां से वापस घर लौटने का अभी कोई प्रोग्राम नहीं है न?’’

एक साथी मजाकिया अंदाज में बोला, ‘‘हम ने पुराने पाप तो धो लिए हैं, अब कुछ नए पाप कर लेते हैं.’’

एक जोर का ठहाका लगा और दूसरे साथी ने सु?ाया, ‘‘अब यहां से गोवा चलते हैं. खूब बीयर पिएंगे और बीच पर मस्ती करेंगे.’’

सब ने गुप्ताजी की तरफ देखा, जैसे वे सब तो तय कर ही चुके हैं, अब उन को भी अपनी रजामंदी दे देनी चाहिए.

गुप्ताजी 5 मिनट तक कुछ न बोले, तो एक साथी फिर से बोला, ‘‘क्या बात है गुप्ताजी, मन क्या कह रहा है? हमारे साथ चलिए गोवा. आप की बरसों की थकान वहां मसाज करा कर मिटा देंगे.’’

गुप्ताजी ने पूरा कौर चबाया, फिर धीरे से बोले, ‘‘हमारी जवानी में मनोरंजन के नाम पर सिर्फ सिनेमाघर में मूवी देखना होता था. उन मूवीज में कैबरे और बार में डांस देख कर मन बड़ा खुश हो जाता था. कब से मेरी इच्छा रूबरू ऐसा बार डांस देखने की है.’’

गुप्ताजी की यह बात सुन कर कुछ समय के लिए बाकी लोगों की चुप्पी आंखों ही आंखों में बात करती रही. किसी को भी गुप्ताजी की मनतरंग के ऐसे धमाके की कतई उम्मीद नहीं थी.

एक साथी बोला, ‘‘डांस बार तो मुंबई में थे, जो अब बंद हो चुके हैं. यह कैसे मुमकिन है…’’

सब से पहले एक और नौजवान साथी बोला, ‘‘पहली बार तो गुप्ताजी ने कोई इच्छा जाहिर की है. हम इसे पूरा करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं. मेरा एक दोस्त मुंबई के एक होटल में मैनेजर है. उस से बात करता हूं,’’

और उस ने तुरंत मुंबई फोन लगाया, तो छूटते ही सामने से जवाब आया, ‘अब कौन से डांस बार… वे तो कब के बंद हो चुके हैं…’

‘‘भाई, कैसे भी यह इंतजाम करना ही है. कहीं से भी पता करो, पर यह इंतजाम कराओ.’’

‘ठीक है, मैं पता करने की कोशिश करता हूं कि कहीं पर चोरीछिपे चल रहे हैं क्या…’ उधर से आवाज आई.

आधे घंटे बाद ही उस मैनेजर का फोन आया और उन्हें अंधेरी में एक बार का नाम बताते हुए वहां पहुंचने की जरूरी जानकारी दे दी गई.

दिल्ली का दल फटाफट पूरी ऊर्जा के साथ मुंबई पंहुच गया. ट्रैफिक की भीड़भाड़ को देखते हुए गाड़ी को छोड़ अंधेरी तक का सफर लोकल ट्रेन से किया गया.

अंधेरी स्टेशन के बाहर खड़ी टैक्सी को जब बार का नाम ले कर चलने के लिए कहा गया, तो 3 लोगों ने तो मना कर दिया, फिर चौथे टैक्सी वाले की जेब में चुपचाप 500 का नोट डाल कर उस से बार का नाम ले कर छोड़ने को कहा गया.

ड्राइवर बोला, ‘‘मैं चुपचाप थोड़ी दूरी पर छोड़ कर चला आऊंगा. वहां से अपनेआप चले जाना.’’

‘‘क्यों भाई, ऐसा क्या है वहां, जो तुम इतना बिदक रहे हो?’’ एक साथी ने टैक्सी ड्राइवर से पूछा.

‘‘भाई, तुम जगह ही ऐसी जा रहे हो. वहां पहुंचोगे तो पता चल जाएगा,’’ वह टैक्सी ड्राइवर बोला.

इतना सुनते ही सब लोग फुरती से गाड़ी में बैठे और तकरीबन 20 मिनट में टैक्सी ड्राइवर उन्हें बार से कुछ ही दूर उतार कर रफूचक्कर हो गया.

थोड़ी देर के बाद वे लोग उस दबेछिपे डांस बार को खोजने में कामयाब हो गए. आगे से बेकरी की दुकान से एक छोटा सा दरवाजा उन्हें एक बड़े से कमरे में ले आया, जहां उन का सामना 3 लंबेचौड़े बाउंसर से हुआ.

परखने के बाद उन्हें भीतर बने स्टेज के पास रखी गोल मेज के चारों तरफ रखी कुरसियों पर बैठा दिया गया. बीयर भी उन की मांग के मुताबिक परोस दी गई.

10 मिनट तक कोई हलचल नहीं हुई, फिर हिम्मत कर के एक नौजवान साथी बाउंसर से पूछने गया कि डांस कब और कैसे शुरू होगा.

बाउंसर ने पास आ कर धीरे से कहा, ‘‘वह देखो लड़कियां स्टेज पर आ कर खड़ी हो गई हैं. अब उन में से पसंद कर जिस भी लड़की को टिप दोगे, वह आप की पसंद के गाने पर डांस कर के दिखाएगी.’’

उस साथी ने लौट कर सब को बात बताई और गुप्ताजी की पसंद पूछी, जिन पर बीयर का नशा अब कुछकुछ चढ़ने लगा था. शादी के बाद यह उन का पहला सुरासेवन हो रहा था.

गुप्ताजी ने हौले से अपनी पसंद की लड़की की ओर इशारा किया, तो नौजवान साथी ने दौड़ कर 500 रुपए लड़की को थमाए और 1,000 के छुट्टे 10-20 रुपए के नोट में ले आया और टेबल पर जमा दिए.

‘तू चीज बड़ी है मस्तमस्त…’ गाने पर गुप्ताजी की पसंद वाली लड़की ने 5-6 मिनट तक अपने डांस से उन पांचों का मनोरंजन करने की कोशिश की. नोट भी खूब बरसाए, पर अभी मजा नहीं आया था.

फिर उस नौजवान साथी ने माहौल को गरमाने का भार अपने कंधे पर ले लिया. अपनी पैनी नजर से उस ने एक और लड़की को 500 के 2 नोट दिए और गुप्ताजी की ओर इशारा कर ‘टिपटिप बरसा पानी…’ गाने पर मदमस्त डांस करने को कहा. पैसे की मिठास ने बार डांसर को गाने की पहली बीट से ही जोश में ला दिया.

अपनी घनी जुल्फों को उस लड़की ने पूरी तरह खोल दिया और अगले 10 मिनट में मस्त हो कर वह ऐसे नाचने लगी कि गुप्ताजी भी सबकुछ भुला कर उस के साथ ठुमके लगाने लगे.

सभी लोग मजे ले रहे थे, पर एक साथी उस समूह में ऐसा था, जो सुरापान से परहेज रखता था और अब सब को लौटने के लिए कहने लगा. गुप्ताजी अभी और समय वहां बिताना चाहते थे, पर थोड़ी देर में बिल चुकता कर सब वहां से निकल गए.

गुप्ताजी नशे में चूर बारबार गा रहे थे, ‘‘टिपटिप बरसा पानी…’’ जिंदगी में पहली बार इस तरह का मजा उन्होंने लिया था, जिस ने उन्हें अपनी बरसों से दबी फैंटेसी को पूरा होने से खुद को खुद से भुला दिया था.

वे बारबार अपने सफर के साथियों के गले लग कर बस एक ही लाइन दोहराते, ‘‘टिपटिप बरसा पानी…’’ जैसे उस शाम के लिए वे बारबार धन्यवाद कह रहे हों.

रात की मस्ती होटल पहुंच कर पूरी हो गई. हावी हो रही थकान और नशे के सुरूर ने जल्दी सब को नींद के आगोश में ले लिया. अगली सुबह सब ने एकमत हो कर घर लौटने का फैसला कर लिया.

घर लौटे गुप्ताजी की चुस्ती और फुरती को देख कर घर वाले हैरान थे. सांईं बाबा की कृपा मान कर बाकी घर वाले भी जल्द ही शिरडी दर्शन जाने का विचार करने लग गए थे.

लेकिन असलियत तो गुप्ताजी ही जानते थे, जिन पर अभी तक डांस बार की लड़कियों की खुमारी नहीं
उतरी थी.

Hindi Story: उतावली – क्या कमी थी सारंगी के जीवन में

Hindi Story : ‘‘मैं क्या करती, उन से मेरा दुख देखा नहीं गया तो उन्होंने मेरी मांग में सिंदूर भर दिया.’’

सारंगी का यह संवाद सुन कर हतप्रभ सौम्या उस का मुंह ताकती रह गई. महीनेभर पहले विधवा हुई सारंगी उस की सहपाठिन थी.

सारंगी के पति की असामयिक मृत्यु एक रेल दुर्घटना में हुई थी.

सौम्या तो बड़ी मुश्किल से सारंगी का सामना करने का साहस जुटाती दुखी मन से उस के प्रति संवेदना और सहानुभूति व्यक्त करने आई थी. उलझन में थी कि कैसे उस का सामना करेगी और सांत्वना देगी. सारंगी की उम्र है ही कितनी और ऊपर से 3 अवयस्क बच्चों का दायित्व. लेकिन सारंगी को देख कर वह भौचक्की रह गई थी. सारंगी की मांग में चटख सिंदूर था, हथेलियों से कलाइयों तक रची मेहंदी, कलाइयों में ढेर सारी लाल चूडि़यां और गले में चमकता मंगलसूत्र. उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ.

विश्वास होता भी कैसे. तीजत्योहार पर व्रतउपवास रखने वाली, हर मंदिरमूर्ति के सामने सिर झुकाने वाली व अंधभक्ति में लीन रहने वाली सारंगी को इस रूप में देखने की कल्पना उस के मन में नहीं थी. वह तो सोचती आई थी कि सारंगी सूनी मांग लिए, निपट उदास मिलेगी.

सारंगी की आंखों में जरा भी तरलता नहीं थी और न ही कोई चिंता. वह सदा सुहागन की तरह थी और उस के चेहरे पर दिग्विजयी खुशी फूट सी रही थी. सब कुछ अप्रत्याशित.

एक ही बस्ती की होने से सारंगी और सौम्या साथसाथ पढ़ने जाती थीं. दोनों का मन कुछ ऐसा मिला कि आपस में सहेलियों सा जुड़ाव हो गया था. सौम्या की तुलना में सारंगी अधिक यौवनभरी और सुंदर थी. उम्र में उस से एक साल बड़ी सारंगी, पढ़ाई में कमजोर होने के कारण वह परीक्षाओं में पास होने के लिए मंदिरों और देवस्थानों पर प्रसाद चढ़ाने की मनौती मानती रहती थी. सौम्या उस की मान्यताओं पर कभीकभी मखौल उड़ा देती थी. सारंगी किसी तरह इंटर पास कर सकी और बीए करतेकरते उस की शादी हो गई. दूर के एक कसबे में उस के पति का कबाड़ खरीदनेबेचने का कारोबार था.

शुरूशुरू में सारंगी का मायके आनाजाना ज्यादा रहा. जब आती तो गहनों से लद के सजीसंवरी रहती थी. खुशखुश सी दिखती थी.

एक दिन सौम्या ने पूछा था, ‘बहुत खुश हो?’

‘लगती हूं, बस’ असंतोष सा जाहिर करती हुई सारंगी ने कहा.

‘कोई कमी है क्या?’ सौम्या ने एकाएक तरल हो आई उस की आंखों में झांकते हुए पूछा.

‘पूछो मत,’ कह कर सारंगी ने निगाहें झुका लीं.

‘तुम्हारे गहने, कपड़े और शृंगार देख कर तो कोई भी समझेगा कि तुम सुखी हो, तुम्हारा पति तुम्हें बहुत प्यार करता है.’

‘बस, गहनों और कपड़ों का सुख.’

‘क्या?’

‘सच कहती हूं, सौम्या. उन्हें अपने कारोबार से फुरसत नहीं. बस, पैसा कमाने की धुन. अपने कबाड़खाने से देररात थके हुए लौटते हैं, खाएपिए और नशे में. 2 तरह का नशा उन पर रहता है, एक शराब का और दूसरा दौलत का. अकसर रात का खाना घर में नहीं खाते. घर में उन्हें बिस्तर दिखाई देता है और बिस्तर पर मैं, बस.’ सौम्या आश्चर्य से उस का मुंह देखती रही.

‘रोज की कहानी है यह. बिस्तर पर प्यार नहीं, नोट दिखाते हैं, मुड़ेतुड़े, गंदेशंदे. मुट्ठियों में भरभर कर. वे समझते हैं, प्यार जताने का शायद यही सब से अच्छा तरीका है. अपनी कमजोरी छिपाते हैं, लुंजपुंज से बने रहते हैं. मेरी भावनाओं से उन्हें कोई मतलब नहीं. मैं क्या चाहती हूं, इस से उन्हें कुछ लेनादेना नहीं.

‘मैं चाहती हूं, वे थोड़े जोशीले बनें और मुझे भरपूर प्यार करें. लेकिन यह उन के स्वभाव में नहीं या यह कह लो, उन में ऐसी कोईर् ताकत नहीं है. जल्दी खर्राटे ले कर सो जाना, सुबह देर से उठना और हड़बड़ी में अपने काम के ठिकाने पर चले जाना. घर जल्दी नहीं लौटना. यही उन की दिनचर्या है. उन का रोज नहानाधोना भी नहीं होता. कबाड़खाने की गंध उन के बदन में समाई रहती है.’

सारंगी ने एक और रहस्य खोला, ‘जानती हो, मेरे  मांबाप ने मेरी शादी उन्हें मुझे से 7-8 साल ही बड़ा समझ कर की थी लेकिन वे मुझ से 15 साल बड़े हैं. जल्दी ही बच्चे चाहते हैं, इसलिए कि बूढ़ा होने से पहले बच्चे सयाने हो जाएं और उन का कामधंधा संभाल लें. लेकिन अब क्या, जीवन तो उन्हीं के साथ काटना है. हंस कर काटो या रो कर.’

चेहरे पर अतृप्ति का भाव लिए सारंगी ने ठंडी सांस भरते हुए मजबूरी सी जाहिर की.

सौम्या उस समय वैवाहिक संबंधों की गूढ़ता से अनभिज्ञ थी. बस, सुनती रही. कोई सलाह या प्रतिक्रिया नहीं दे सकी थी.

समय बीता. सौम्या बीएड करने दूसरे शहर चली गई और बाहर ही नौकरी कर ली. उस का अपना शहर लगभग छूट सा गया. सारंगी से उस का कोई सीधा संबंध नहीं रहा. कुछ वर्षों बाद सारंगी से मुलाकात हुई तो वह 2 बच्चों की मां हो चुकी थी. बच्चों का नाम सौरभ और गौरव बताया, तीसरा होने को था परंतु उस के सजनेधजने में कोई कमी नहीं थी. बहुत खुश हो कर मिली थी. उस ने कहा था, ‘कभी हमारे यहां आओ. तुम जब यहां आती हो तो तुम्हारी बस हमारे घर के पास से गुजरती है. बसस्टैंड पर किसी से भी पूछ लो, कल्लू कबाड़ी को सब जानते हैं.’

‘कल्लू कबाड़ी?’

‘हां, कल्लू कबाड़ी, तेरे जीजा इसी नाम से जाने जाते हैं.’ ठट्ठा मार कर हंसते हुए उस ने बताया था.

सौम्या को लगा था कि वह अब सचमुच बहुत खुश है. कुछ समय बाद आतेजाते सौम्या को पता चला कि सारंगी के पति लकवा की बीमारी के शिकार हो गए हैं. लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी थीं कि वह चाहते हुए भी उस से मिल न सकी.

लेकिन इस बार सौम्या अपनेआप को रोक न पाई थी. सारंगी के पति की अचानक मृत्यु के समाचार ने उसे बेचैन कर दिया था. वह चली आई. सोचा, उस से मिलते हुए दूसरी बस से अपने शहर को रवाना हो जाएगी.

बसस्टैंड पर पता करने पर एक दुकानदार ने एक बालक को ही साथ भेज दिया, जो उसे सारंगी के घर तक पहुंचा गया था. और यहां पहुंच कर उसे अलग ही नजारा देखने को मिला.

‘कौन है वह, जिस से सारंगी का वैधव्य देखा नहीं गया. कोई सच्चा हितैषी है या स्वार्थी?’ सनसनाता सा सवाल, सौम्या के मन में कौंध रहा था.

‘‘सब जान रहे हैं कि कल्लू कबाड़ी की मौत रेल दुर्घटना में हुई है लेकिन मैं स्वीकार करती हूं कि उन्होंने आत्महत्या की है. सुइसाइड नोट न लिखने के पीछे उन की जो भी मंशा रही हो, मैं नहीं जानती,’’ सारंगी की सपाट बयानी से अचंभित सौम्या को लगा कि उस की जिंदगी में बहुत उथलपुथलभरी है और वह बहुतकुछ कहना चाहती है.

सौम्या अपने आश्चर्य और उत्सुकता को छिपा न सकी. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘ऐसा क्या?’’

‘‘हां सौम्या, ऐसा ही. तुम से मैं कुछ नहीं छिपाऊंगी. वे तो इस दुनिया में हैं नहीं और उन की बुराई भी मैं करना नहीं चाहती, लेकिन अगर सचाई तुम को न बताऊं तो तुम भी मुझे गलत समझोगी. विनय से मेरे विवाहेतर संबंध थे, यह मेरे पति जानते थे.’’

‘‘विनय कौन है?’’ सौम्या अपने को रोक न सकी.

‘‘विनय, उन के दोस्त थे और बिजनैसपार्टनर भी. जब उन्हें पैरालिसिस का अटैक हुआ तो विनय ने बहुत मदद की, डाक्टर के यहां ले जाना, दवादारू का इंतजाम करना, सब तरह से. विनय उन के बिजनैस को संभाले रहे. और मुझे भी. जब पति बीमार हुए थे, उस समय और उस के पहले से भी.’’

सौम्या टकटकी लगाए उस की बातें सुन रही थी.

‘‘जब सौरभ के पापा की शराबखोरी बढ़ने लगी तो वे धंधे पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाते थे और स्वास्थ्य भी डगमगाने लगा. मैं ने उन्हें आगाह किया लेकिन कोई असर नहीं हुआ. एक दिन टोकने पर गालीगलौज करते हुए मारपीट पर उतारू हो गए तो मैं ने गुस्से में कह दिया कि अगर अपने को नहीं सुधार सकते तो मैं घर छोड़ कर चली जाऊंगी.’’

‘‘फिर भी कोई असर नहीं?’’ सौम्या ने सवाल कर दिया.

‘‘असर हुआ. असर यह हुआ कि वे डर गए कि सचमुच मैं कहीं उन्हें छोड़ कर न चली जाऊं. वे अपनी शारीरिक कमजोरी भी जानते थे. उन्होंने विनय को घर बुलाना शुरू कर दिया और हम दोनों को एकांत देने लगे. फिसलन भरी राह हो तो फिसलने का पूरा मौका रहता है. मैं फिसल गई. कुछ अनजाने में, कुछ जानबूझ कर. और फिसलती चली गई.’’

‘‘विनय को एतराज नहीं था?’’

‘‘उन की निगाहों में शुरू से ही मेरे लिए चाहत थी.’’

‘‘कितनी उम्र है विनय की?’’

‘‘उन से 2 साल छोटे हैं, परंतु देखने में उम्र का पता नहीं चलता.’’

‘‘और उन के बालबच्चे?’’

‘‘विधुर हैं. उन का एक बेटा है, शादीशुदा है और बाहर नौकरी करता है.’’

सौम्या ने ‘‘हूं’’ करते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारे पति ने आत्महत्या क्यों की?’’

‘‘यह तो वे ही जानें. जहां तक मैं समझती हूं, उन में सहनशक्ति खत्म सी हो गई थी. पैरालिसिस के अटैक के बाद वे कुछ ठीक हुए और धीमेधीमे चलनेफिरने लगे थे. अपने काम पर भी जाने लगे लेकिन परेशान से रहने लगे थे. मुझे कुछ बताते नहीं थे. उन्हें डर सताने लगा था कि विनय ने बीवी पर तो कब्जा कर लिया है, कहीं बिजनैस भी पूरी तरह से न हथिया ले. एक बार विनय से उन की इसी बात पर कहासुनी भी हुई.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या, मुझे विनय ने बताया तो मैं ने उन से पूछा. अब मैं तुम्हें क्या बताऊं, सौम्या. कूवत कम, गुस्सा ज्यादा वाली बात. वे हत्थे से उखड़ गए और लगे मुझ पर लांछन लगाने कि मैं दुश्चरित्र हूं, कुल्टा हूं. मुझे भी गुस्सा आ गया. मैं ने भी कह दिया कि तुम्हारे में ताकत नहीं है कि तुम औरत को रख सको. अपने पौरुष पर की गई

चोट शायद वे सह न सके. बस, लज्जित हो कर घर से निकल गए. दोपहर में पता चला कि रेललाइन पर कटे हुए पड़े हैं.’’

बात खत्म करतेकरते सारंगी रो पड़ी. सौम्या ने उसे रोने दिया.

थोड़ी देर बाद पूछा, ‘‘और तुम ने शादी कब की?’’

‘‘विनय से मेरा दुख देखा नहीं जाता था, इसलिए एक दिन मेरी मांग…’’ इतना कह कर सारंगी चुप हो गई और मेहंदी लगी अपनी हथेलियों को फैला कर देखने लगी.

‘‘तुम्हारी मरजी से?’’

‘‘हां, सौम्या, मुझे और मेरे बच्चों को सहारे की जरूरत थी. मैं ने मौका नहीं जाने दिया. अब कोई भला कहे या बुरा. असल में वे बच्चे तीनों विनय के ही हैं.’’

कुछ क्षण को सौम्या चुप रह गई और सोचविचार करती सी लगी. ‘‘तुम ने जल्दबाजी की, मैं तुम्हें उतावली ही कहूंगी. अगर थोड़े समय के लिए धैर्य रखतीं तो शायद, कोई कुछ न कह पाता. जो बात इतने साल छिपा कर रखी थी, साल 2 साल और छिपा लेतीं,’’ कहते हुए सौम्या ने अपनी बायीं कलाई घुमाते हुए घड़ी देखी और उठ जाने को तत्पर हो गई. सारंगी से और कुछ कहने का कोई फायदा न था.

Funny Story : चला गब्बर बब्बर होने

Funny Story : अगर आप के पास चुनाव पर चर्चा करने से जरा सी भी फुरसत हो तो एक बात तो बताना कि आदमी बूढ़ा क्यों होता है? जब वह जवान होता है, तो उस की जवानी वहीं क्यों नहीं रुक जाती?

बस, मजबूरी का चिंतक हुआ इसी उधेड़बुन में चुनावी बुखार से सने अखबार का वासंती धूप में कभी इस टांग के दर्द को दबाता, तो कभी उस टांग के दर्द को सहलाते हुए चुनावी खबरों का रसपान करता पड़ोसी के दरवाजे की ओर अपनी लातें किए मजे ले रहा था कि अचानक सामने से गब्बर सिंह आ गया. मु झे उसे पहचानते देर न लगी.

अब आप पूछोगे कि मैं ने गब्बर सिंह को कैसे पहचान लिया? तो सच यह है कि अपनी इमेज वालों को सज्जन से सज्जन भी आंखें मूंद कर पहचान लेते हैं. अपनी इमेज वालों के बदन से एक खास किस्म की बदबू आती है, जो उन्हें कभी न मिलने के बाद भी मु झ जैसों को अपनी ओर खींच लेती है, लाख नाक बंद करने के बाद भी.

सच कहूं तो अपने समय में मैं भी अपने औफिस में किसी गब्बर सिंह से कम न था. तब पूरे औफिस में साहब के होते हुए भी मेरा ही लौ ऐंड और्डर चलता था. होली हो या दीवाली. अहा, क्या दिन थे वे भी.

‘‘और चचाजान, कैसे हो?’’ गब्बर ने मेरी कुरसी के साथ अपने कंधे से अपनी बंदूक उतार खड़ी करते हुए मेरी दाढ़ी को हाथ लगाया, तो मु झे अपने औफिस के दिन याद आ गए. काश, मैं लाइफटाइम औफिस में ही रहता लाइफटाइम सिम की तरह.

‘‘बस, बुढ़ापे की दया से ठीक ही हूं भतीजे. अरे, जमीन पर नहीं, कुरसी पर बैठो. अब गए दिन डाकूलुटेरों के जमीन पर बैठने के. व्यवस्थागत कुरसियां अब तुम जैसों से ही सार्थकता को प्राप्त होती हैं. बुढ़ापा इस उम्र में जो दिन न दिखाए वही सही.’’

‘‘और अब तुम्हारे घुटनों का दर्द कैसा है?’’ गब्बर सिंह ने मेरे दाएं घुटने पर जोरों से हाथ रखा, तो मैं चिल्लातेचिल्लाते बचा.

‘‘खा रहा हूं डाक्टर की कमीशन वाली दवाएं, जिन में दवा कम डाक्टर का कमीशन ज्यादा होता है. पर एक घुटनों का दर्द है कि न कम हो रहा है, न बढ़ रहा है.’’

‘‘तो चचाजान, इस का मतलब साफ है कि दवा काम कर रही है. काश, इसी तरह तुम्हारी जवानी की दवाएं भी काम करतीं तो आज…’’ गब्बर सिंह ने कुरसी पर बैठते कामदेव से मेरे बुढ़ापे में जवानी बरकरार रहने की दुआ मांगी, तो मन किया कि उसे अपनी गोद में बिठा कर गोदी डाकू बना लूं.

मैं ने उसे सामने की खाली कुरसी पर जबरदस्ती बैठाते हुए कहा, तो वह थोड़ा झेंपा. पता नहीं क्यों?
‘‘आराम से कुरसी पर बैठो गब्बर. बड़े दिनों बाद आए हो?’’

मेरी गुजारिश पर गब्बर सिंह िझ झकते हुए कुरसी पर बैठा. इस का मतलब उसे इस बात का कतई इल्म न था कि आजकल कुरसियां उस की बिरादरी की बांदी चल रही हैं.

‘‘हां चचाजान, जंगल में कौवों, गिद्धों, सियारों से पता चला था कि लोकतंत्र का महापर्व मनाया जा रहा है, तो सोचा कि लोकतंत्र के महापर्व में जरा घूमघाम आऊं. जंगल में रहतेरहते बहुत बोर हो रहा था.’’

‘‘गुड… अच्छा नहीं, बहुत अच्छा किया मेरे भतीजे. हवापानी बदलने के लिए बीचबीच में जंगली गुंडों को मौडर्न गुंडों के बीच आ जाना चाहिए. इस से न केवल कुलीन गुंडों से मधुर संबंध बनते रहते हैं, बल्कि सुरक्षित गुंडई की नई तकनीकों का पता भी चलता रहता है.’’

‘‘सो तो ठीक है चचाजान, पर अब मैं भी सोच रहा हूं कि चुनाव में खड़ा हो जाऊं, पर…’’

‘‘तो इस में पर वाली बात ही क्या है? चुनाव की गंगा बह रही है, तुम भी डुबकी लगा लो,’’ मैं ने उसे सलाह दी, तो वह तनिक चिंतित लगा, तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘परेशान क्यों हो गए?’’

‘‘यही चचा कि मैं ठहरा आपराधिक इमेज का और…’’ कह कर उसे डिप्रैशन ने घेर लिया.

‘‘अरे, तो क्या हो गया… यहां चुनाव होते ही अपराधियों को चुनने के लिए हैं. तुम तो केवल आपराधिक इमेज वाले हो. इस पर्व का बेसब्री से इंतजार गंभीर आपराधिक इमेज वाले तक करते हैं, ताकि इस में डुबकी लगा कर वे अपना चरित्र धो सकें और जैसे ही आपराधिक छवियों को माननीय छवियों में बदलने का यह महापर्व आता है, वे सब अपराधी से माननीय, सम्माननीय सज्जनता को प्राप्त हो कर कानून व्यवस्था को मजबूत करने में जुट जाते हैं.

‘‘यह देखो, आज के अपराधियों को मिले टिकटों की लिस्ट. हर पार्टी ने तुम से छोटे दागियोंबागियों को टिकट पर टिकट दिए हैं. तुम एक बार किसी भी पार्टी में टिकट के लिए आवेदन करना तो छोड़ो, उन के पार्टी प्रमुख से जरा मेरे फोन से बात भर कर के तो देखो, वे उसी वक्त तुम्हें टिकट औफर न करें, तो मु झे कल से अपना चचा मत कहना.

‘‘मुझे तो ताज्जुब इस बात का हो रहा है कि अब तक किसी पार्टी की इतने ख्यातिप्राप्त पर अपना उम्मीदवार बनाने की नजर क्यों नहीं पड़ी, जबकि… भतीजे, यह समय तुम्हारा जंगल में लेटे रहने का नहीं, सांसद बन कर संसद में खानेकमाने का है,’’ मैं ने गब्बर सिंह को अखबार में गंभीर से गंभीर अपराधियों को मिले टिकटों की लिस्ट दिखाई, तो उस के मुंह में पानी आ गया.वह अपने मुंह से बहता पानी पोंछता हुआ बोला, ‘‘तो चचाजान, इस का मतलब है कि मैं सही समय पर जंगल से बाहर आया हूं?’’

‘‘बिलकुल सही समय पर आए हो मेरे गब्बर,’’ मैं ने उस की पीठ थपथपाते हुए कहा.

‘‘तो मुझे टिकट के लिए अब क्या करना होगा?’’

‘‘यह लो मेरा फोन और जिस पार्टी को चाहो बस एक फोन भर कर दो. तुम्हारा फोन सुन कर वे खुशी से झूम उठेंगे. बस, सम झ लो फिर तुम्हारा टिकट पक्का.’’

‘‘तुम जैसे लोकतंत्र रक्षकों को तो आज पार्टियां हाथोंहाथ ले रही हैं, क्योंकि अब तुम जैसों के हाथों में आधुनिक लोकतंत्र जितना महफूज है, उतना ईमानदारों के हाथों में नहीं. फिर मजे से अपराधी से माननीय बन कर पुलिस की सलामी लेते रहना. पुलिस को कानून व्यवस्था बनाने के जब चाहे और्डर देते रहना…’’

मेरे इतना भर कहने की देर थी कि गब्बर सिंह ने मेरी जेब से मोबाइल निकाला और मिला दिया. पता नहीं, पार्टी मुख्यालय में… और 2 मिनट बाद ही गब्बर का चेहरा सांसदी के टिकट से गुलाल हो उठा. तय है, अगली दफा अब मैं ही उस से मिलने दिल्ली जाऊंगा.

पता नहीं, तब उस के पास अपने चचा से मिलने का वक्त भी होगा या नहीं? पर चलो, किसी के धंधे का तरीका इज्जतदार हो जाए, मैं तो बस इसी में खुश हूं.

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