अगर आप भी Sex Power बढ़ाने की दवा लेते हैं तो पढ़ें ये खबर

आप ने ऐसे कई विज्ञापन देखे होंगे जिन में सैक्स समस्याओं को खत्म करने और सैक्स पावर बढ़ाने की दवाओं के बारे में बताया जाता है. यों तो सैक्स पावर बढ़ाने का दावा कई दवा कंपनियां करती हैं, लेकिन सवाल है कि इन पर कितना विश्वास किया जाए. इस पर विचार करें. लेकिन आंखें बंद कर के भरोसा न करें. आप को ऐसे विज्ञापनों से सावधान रहने  की जरूरत है.

बौडी पर बुरा प्रभाव : ऐसी दवाएं किसी मान्यताप्राप्त लैब में नहीं, बल्कि झोलाछाप नीमहकीमों द्वारा बनाई जाती हैं, जिन्हें दवा बनाने की कोई साइंटिफिक जानकारी नहीं होती. इधरउधर, गांव के बुजुर्गों से मिले अधकचरे ज्ञान के आधार पर वे इन्हें तैयार करते हैं. दवा में किस चीज की मात्रा कितनी होनी चाहिए और कौन सी 2 चीजें एक ही दवाई में होने पर रिएैक्ट करेंगी, इस बारे में भी इन लोगों को कोई जानकारी नहीं होती है.

ये दवाएं सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त भी नहीं होती हैं. यही वजह है कि जब इन का सेवन किया जाता है तो ये शरीर पर गलत असर डालती हैं. कई बार तो इन के सेवन से धीरेधीरे शरीर के अंग भी काम करना बंद कर देते हैं. इसलिए वही दवाएं लें जो आप की समस्या के अनुसार मान्यताप्राप्त डाक्टर द्वारा दी गई हों.

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डोज का सही होना जरूरी

परेशानी चाहे तन से जुड़ी हो या मन से, उस का निवारण तभी हो सकता है जब उस की काट के लिए दवा सही मात्रा में ली जाए. इस के लिए जरूरी है कि सही डाक्टर से उचित देखरेख में ही यह काम किया जाए. लेकिन झोलाछाप, ओझा आदि पैसे बनाने के लिए और अधिक से अधिक दवा की बिक्री के लिए ज्यादा डोज लेने को कहते देते हैं. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि इस से मरीज की सेहत पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा. इन चक्करों में पड़ने से बचें.

दवा के साइड इफैक्ट्स

कामोत्तेजना बढ़ाने वाली वियाग्रा जैसी कई दवाओं के भ्रामक विज्ञापन अखबारों की सुर्खियां बनते रहते हैं और युवा पीढ़ी इस ओर जल्द आकर्षित होती है और इन दवाओं का सेवन शुरू करती है. थोड़ा सा असर दिखने पर युवाओं को यह एक नशे के जैसा लगने लगता है और वे खुद ही इस की मात्रा बढ़ा देते हैं ताकि और मजे लिए जा सकें. मजे का तो पता  नहीं लेकिन इन दवाओं का साइड इफैक्ट होने लगते हैं और मरीज को थकान व कमजोरी जैसी समस्याएं महसूस होने लगती हैं. ऐसी कोई भी दवा लेने से बचें और अगर ले रहे हैं तो उन दवाओं के बारे में इंटरनैट पर पूरी जानकारी लें और फिर सोचविचार के बाद ही उन्हें खरीदने के बारे में सोचें.

अति हर चीज की बुरी

सैक्स पावर बढ़ाने जैसी कई दवाओं के विज्ञापन आएदिन छपते रहते हैं, लेकिन ये सभी सही नहीं होते हैं. सैक्स की हर व्यक्ति की अपनी इच्छा और क्षमता होती है. इसे किसी दूसरे से कंपैरिजन नहीं किया जा सकता है. इसलिए कहीं  पढ़ कर ऐसा न सोचें कि आप भी ये दवाएं खा कर हृष्टपुष्ट हो जाएंगे.

यदि अगर वास्तव में कोई दिक्कत है तो अपने डाक्टर से कंसल्ट करें और अपने अच्छे खानपान और पूरी नींद जैसी बातों पर ध्यान दें. इन विज्ञापनों के बारे में सोच कर ज्यादा ऐक्साइटेड न हों क्योंकि अति हर चीज की बुरी होती है. अगर आप की सैक्सलाइफ बिना कुछ किए ही अच्छी चल रही है तो फिर इन दवाओं का सेवन करना बेकार है.

गर्भ निरोधक गोलियां

गर्भ रोकने वाली दवाओं को बारबार लेने के घातक परिणाम हो सकते हैं. स्त्रियों के प्रजन्न अंगों पर इन का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. उपयोग करने के इच्छुकों को चाहिए कि वे डाक्टर से दवाओं के साइड इफैक्ट, उन के असफल होने की आशंकाएं और गर्भाशय से बाहर गर्भधारण की संभावनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर लें. यदि अगला मासिकधर्म न आए या मासिकधर्म के समय बहुत अधिक खून बहने लगे, तो हकीमों के पास जाने के बजाय तुरंत डाक्टर से जांच करवाएं.

डाक्टर से जांच करवा कर यह सुनिश्चित कर लें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार महिला इस दवा को लेने के लिए सक्षम है या नहीं. आपात गर्भनिरोधक गोलियों का विज्ञापन जिस तरह से किया जा रहा है उस से समाज में और विशेषरूप से युवावर्ग में यह भ्रांति फैल रही है कि बिना किसी डर के यौन संबंध बनाओ, गोली है न. लेकिन ऐसा नहीं है. युवाओं को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि इन गोलियों की जरूरत ही न पड़े.

ऐसा न हो कि आपात गोली आफत की गोली बन जाए. इसलिए डाक्टर से मिलें और किसकिस तरह के प्रोटैक्शन होते हैं और आप दोनों में से कौन सा प्रोटैक्शन लेना ज्यादा बेहतर होगा, आदि के बारे में बात कर के ही कोई प्रोटैक्शन यूज करें. सिर्फ इन विज्ञापनों में दी गई गोली का नाम पढ़ कर ही लेना शुरू न करें.

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वियाग्रा का इस्तेमाल न करें

प्रिस्क्रिप्शन पर दी गई परफौर्मेंस बढ़ाने वाली दवाओं जैसे वियाग्रा का उपयोग कभी न करें, क्योंकि इन्हें पहले से ब्लडप्रैशर जैसी कंडीशन होने पर, लेना सुरक्षित नहीं होता, साथ ही, अगर आप शुगर की बीमारी से पीडि़त हैं तो भी यह दवा लेना सही नहीं है. यह आप के डाक्टर का काम है कि आप के लिए ऐसी दवा लिखें जो आप के लिए सुरक्षित हों और आप को बताएं कि आप को कितनी डोज से इन्हें लेने की शुरुआत करनी चाहिए. विशेषरूप से जब आप पहले से आप द्वारा ली जाने वाली दवाओं के साथ इन्हें लेने का प्लान बना रहे हों.

हर्ब्स और हर्बल मिश्रण से बनी दवाओं से सावधान

आप सैक्स की इच्छा बढ़ाने का दावा करने वाली हर्ब्स और हर्बल मिश्रण से बच कर रहें. इन में से कुछ के कारण असुविधाजनक इरैक्शन हो सकता है जो घंटों तक वापस नहीं आता और योहिम्बे जैसी हर्ब आप के हृदय की गति को बढ़ा कर कार्डियक अरैस्ट  की आशंका को बढ़ा देती है. इसलिए इन्हें लेने से पहले हमेशा अपने डाक्टर की सलाह लें.

स्टैरौयड न लें

गैरकानूनी स्टैरौयड आप की सैक्स इच्छा बढ़ा तो सकते हैं लेकिन बाद में आप को इस की महंगी कीमत चुकानी पड़ती है. ये आप के हृदय को नुकसान पहुंचा सकते हैं और शरीर में ऐसे अपरिविर्तनीय बदलाव ला सकते हैं जिन से आप कभी भी पूरी तरह से नहीं उबर नहीं सकते. बजाय इस के ऐसे प्राकृतिक और कानूनी रूप से वैध सप्लीमैंट का उपयोग करें जो स्टैरौयड के समान ही प्रभाव रखते हैं और आप को स्थायी रूप से कोई हानि भी नहीं पहुंचाते.

सेक्स न करने से होती हैं ये 8 समस्याएं

हमारे देश में सैक्स को ले कर इतनी हायतोबा मचाई जाती है मानो इस की बात करने पर प्रतिबंध हो. पोंगापंथी और धर्म के ठेकेदार सैक्स को गंदा काम बताते फिरते हैं. यह अलग बात है कि कई मुल्लामौलवी, बाबा और पादरी सैक्सुअल हैरासमैंट और रेप के मामलों में पकड़े जा चुके हैं.

सच यह है कि सैक्स एक शारीरिक जरूरत है, जो बेहद स्वाभाविक और प्राकृतिक है. लेकिन धर्म के ठेकेदारों द्वारा फैलाई गई भ्रांतियों और नकली बाबाओं द्वारा दिए गए उलटेसीधे प्रवचनों से प्रभावित हो कर भारतीय महिलाएं सैक्स को एक अधार्मिक क्रिया समझने लगती हैं और खुलेमन से इस का आनंद उठाने के बजाय इस से कतराने लगती हैं.

पति के लाख मनाने और समझाने के बावजूद वे उस का साथ देने और सैक्स का आनंद उठाने के लिए तैयार नहीं होतीं. कभी व्रतत्योहार का बहाना बना कर, तो कभी तबीयत खराब होने का बहाना बना कर ये महिलाएं ‘अपवित्र’ होने से बचती रहती हैं. लेकिन चिकित्सक, मनोविज्ञानी, व्यवहार विशेषज्ञ और समाजशास्त्री इस प्रवृत्ति को तन और मन की सेहत के लिए नुकसानदायक मानते हैं.

पीरियड्स में बढ़ सकता है दर्द :

आमतौर पर महिलाओं के मैन्सट्रुअल साइकिल के दौरान पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है. लेकिन जो महिलाएं सैक्सुअल लाइफ को एंजौय नहीं करतीं उन में यह दर्द ज्यादा हो सकता है.

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सेक्स ऐक्सपर्ट डा. लारेज स्ट्रीचर का कहना है कि पीरियड्स के दौरान सैक्स करने से मैन्स्ट्रुअल क्रैंप में काफी कमी आ सकती है. यूट्रस एक मांसपेशी है जिस में सैक्स और्गेज्म के दौरान सिकुड़न होती है. इस से रक्तस्राव बेहद आसानी से हो जाता है और स्राव के समय होने वाले दर्द से महिलाओं को काफी हद तक छुटकारा मिल सकता है. इस के साथ ही, यौन आनंद से एंडौर्फिन का स्राव होता है जो दर्द को कम करने में सहायक होता है.

वैजाइना की दीवार हो सकती है कमजोर :

सैक्स थेरैपिस्ट सारी कूपर बताती हैं, ‘‘खुद को सैक्स से वंचित रखने वाली महिलाओं में वैजाइना की वाल धीरेधीरे कमजोर यानी पतली होने लगती है. विशेषरूप से मीनोपौज की उम्र में पहुंच चुकी महिलाएं जब सैक्स से दूरी बढ़ाती हैं तो उन में यह समस्या अधिक होती है.’’

वे कहती हैं, ‘‘नियमित सैक्स करते रहने से वैजाइना की वाल लचीली रहती है और ज्यादा दर्द महसूस नहीं होता जबकि कभीकभी सैक्स करने में यह दर्द काफी ज्यादा महसूस हो सकता है. नौर्थ अमेरिकन मीनोपौज सोसायटी ने भी मीनोपौज के दौर से गुजरने वाली महिलाओं को नियमित पैनेट्रेटिव सैक्स करने की सलाह दी है.

बढ़ सकता है स्ट्रैस :

जगजाहिर है कि सैक्स से तन और मन में आनंद की अनुभूति होती है. इस से दिमाग में खुशी के हार्मोन एंडौर्फिन व औक्सीटोसीन उत्सर्जित होते हैं. स्कौटलैंड के शोधकर्ताओं ने पाया है कि  सैक्स से दूर रहने वाले लोेग पब्लिक स्पीकिंग या ऐसी दूसरी स्टै्रसफुल सिचुएशन को आसानी से हैंडल नहीं कर पाते, जबकि महीने में कम से कम 2 बार सैक्स करने वाले लोग इस में आसानी महसूस करते हैं. नियमित सैक्स करने की आदत को हैल्थ ऐक्सपर्ट स्ट्रैस बस्टर मानते हैं, सैक्स न करने वाले लोगों का ब्लडप्रैशर स्ट्रैस की सिचुएशन में काफी बढ़ जाता है.

पुरुषों में बढ़ सकती है प्रोस्टैट कैंसर की संभावना :

हैल्थ ऐक्सपर्ट का मानना है कि जो पुरुष नियमित रूप से सैक्स नहीं करते उन में प्रोस्टैट कैंसर की संभावना बढ़ सकती है. सैक्स करने से प्रोस्टैट को सुरक्षा देने वाले कैमिकल्स रिलीज होते हैं. अमेरिकन यूरोलौजिकल एसोसिएशन द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि नियमित रूप से यौनसंबंध बनाने वाले पुरुषों में प्रोस्टैट कैंसर होने की संभावना 20 फीसदी तक कम हो जाती है क्योंकि समयसमय पर वीर्य स्खलन होने से प्रोस्टैट में मौजूद हानिकारक तत्त्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं.

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संबंधों के प्रति आ सकता है असुरक्षा का भाव :

जिन पतिपत्नी में सैक्सुअल संबंध लगभग खत्म हो जाते हैं उन में आपसी नजदीकी, माधुर्य और अपनापन भी कम होने लगता है. साथ ही, पति और पत्नी के मन में एकदूसरे के प्रति अविश्वास की भावना भी आ सकती है जिस से रिलेशनशिप में इनसिक्योरिटी का भाव आता है.

‘सेविंग योर मैरिज बिफोर इट स्टार्ट्स’ की लेखिका एवं मनोविज्ञानी लेस पैरोट कहती हैं, ‘‘सैक्स न करने से शरीर में औक्सीटोसिन व दूसरे बौंडिंग हार्मोन का लैवल कम होने लगता है. पति और पत्नी के मन में अपराधबोध की भावना आती है, सैल्फ एस्टीम में कमी आती है. साथ ही, मन में हमेशा संदेह रहता है कि कहीं आप अपनी सैक्स की जरूरत के लिए किसी दूसरे के संपर्क में तो नहीं. हालांकि, इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि बिना सैक्स के पतिपत्नी खुश रह ही नहीं सकते. उन्हें आपस में चुंबन लेना, हाथ पकड़ना, एकदूसरे को सहलाना आदि जारी रखने चाहिए.

बढ़ता है सर्दीजुकाम का खतरा :

पैनसिलवानिया की विलकेस बौरे यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने अपने शोध में पाया कि जो लोग हफ्ते में एक या दो बार सैक्स करते हैं, उन में एंटीबौडीज का उत्पादन 30 फीसदी तक बढ़ जाता है. ये एंटीबौडीज तरहतरह के वायरस आदि के खिलाफ लड़ने में हमारे शरीर के डिफैंस सिस्टम की मदद करते हैं. सैक्स को इम्यूनिटी सिस्टम इंप्रूव करने वाला भी माना गया है.

यौनेच्छा में कमी आने लगती है :

जब आप सैक्स से कतराने लगते हैं या इस की आदत धीरेधीरे छूटती जाती है तो आप की यौनेच्छा खुदबखुद कम होने लगती है. सैक्स थेरैपिस्ट सारी कूपर कहती हैं, ‘‘एक वक्त ऐसा आता है जब आप सैक्स करना चाह कर भी सैक्स नहीं कर पाते. सैक्स शारीरिक प्रक्रिया से ज्यादा एक मानसिक प्रक्रिया है. आदत छूटने या नियमित इस का उपभोग न करने पर आप का मन सैक्स के लिए तैयार नहीं हो पाता. जब तक मन तैयार नहीं होता, तो तन का साथ देने का सवाल ही नही.

पुरुषों में इरैक्टाइल डिसफंक्शन :

उपरोक्त कारण की वजह से पुरुषों में यौनांग सैक्स के लिए तैयार नहीं हो पाता, यानी यौनांग में कठोरता नहीं आ पाती जिसे हैल्थ ऐक्सपर्ट इरैक्टाइल डिसफंक्शन कहते हैं.

अमेरिकी मैडिकल जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पुरुषों का यौनांग एक मांसपेशी है. जैसे हमारे शरीर की अन्य मांसपेशियों को नियमित ऐक्सरसाइज की जरूरत है, ठीक उसी तरह इस का भी नियमित इस्तेमाल जरूरी है, वरना इस में शिथिलता आने लगती है. कुछ वैज्ञानिकों ने सरल भाषा में इसे ‘यूज इट आर लूज इट’ कह कर समझाया है.

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आखिर कैसे होता है स्किन कैंसर, पहचानें लक्षण

धूप में ज्यादा रहने से या ज्यादा वक्त तक रेडियोएक्टिव तरंगों के संपर्क में रहने से स्किन कैंसर का खरता रहता है. दुनियाभर में स्किन कैंसर की शिकायतें बढ़ रही हैं और आने वाले समय में ये लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है. बढ़ते समय के साथ इसके नए नए प्रकार भी सामने आ रहे हैं.

क्या हैं संकेत

कैंसर का कोई भी प्राकर हो उसके संकेत आपको काफी पहले से दिखने लगेंगे. इसका सबसे पहले आपको अपने चेहरे, कान, गर्दन, होंठ व हाथों की त्वचा पर असर नजर आएंगे. इस खबर में हम आपको स्किन कैंसर के संकेतों के बारे में आपको बताएंगें जो कैंसर होने से ठीक पहले आपके शरीर पर होते हैं.

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  • शरीर पर लाल निशान

स्किन कैंसर का सबसे पहला संकेत है शरीर पर लाल निशानों का होना. ऐसा होने पर आप तुरंत किसी डाक्टर से संपर्क करें. ये निशान आपके सिर, गर्दन और हाथ पर होते हैं.

  • एग्जिमा

एग्जिमा एक तरह की त्वचा संबंधी बीमारी है. आम भाषा में इसे खाज भी कहते हैं. समान्य तौर पर ये समस्या कोहनी, हथेली या पैरों पर होती है. एग्जिमा होते ही आप स्किन स्पेशेलिस्ट से जांच कराएं.

  • ज्यादा मस्सों का होना

अगर आपके शरीर पर मस्सों की संख्या बढ़ने लगे तोसचेत हो जाइए. स्किन कैंसर वाले मस्सों में त्वचा से खून निकलने की शिकायतें भी होती हैं. अगर आपकी त्वचा पर मौजूद मस्से का आकार पांच या छह मिलीमीटर से अधिक है तो ये स्किन कैंसर का संकेत है.

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  • होठों पर बनने लगें निशान

होठों के सूखे पड़ने पर उसमें दरार का दिखना, इसके साथ ही उसपर पापड़ी वाले चकत्ते दिखने लगें तो ये कैंसर के संकेत हैं. आप तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.

  • मस्सों का रंग

अगर आपको काल, नीला, सफेद या लाल रंग का मस्सा हो रहा हो तो ये आपके लिए खतरे की घंटी है. आपको तुरंत डाक्टर से संपर्क करना चाहिए. वहीं भूरे या गुलाबी मस्से का होना एक समान्य बात है.

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इन 5 लक्षणों को ना करें अनदेखा, हो सकती है ये गंभीर बीमारी

फेफड़ों यानी लंग्स की बीमारी होना आज के टाइम में कोई नई बात नहीं हैं. इस प्रदूषित वातावरण में सांस संबंध परेशानियों से बचने के लिए लंग्स का खास ध्यान रखना जरुरी हैं. लाइफस्‍टाइल और खानपान के कारण फेफड़े के रोगियों की संख्‍या में लगातार इजाफा हो रहा है. हर साल लाखों लोग फेफड़े सम्‍बन्धित बीमारी से पीड़ित हो रहे हैं. लेकिन केवल ये दो कारण ही इस बीमारी के लिए जिम्‍मेदार नहीं हैं. कई ऐसे कारण है जिसके चलते आप लंग्स की बीमारी से परेशान हो सकते हैं. कई बार देखा जाता है की खांसी, सीने में दर्द, कफ, और बलगम को सामान्‍य बीमारी की तरह लेते हैं पर ऐसा करना खतरे की घंटी को अनदेखा करना हो सकता हैं क्योंकि ये टीबी और फेफड़ों के कैंसर का कारण भी हो सकता हैं.

सूजन की समस्‍या

अगर आपके हाथों, पैरों और एड़ी में सूजन हो जाती है तो इसको अनदेखा ना करें. हालांकि सूजन दिल की बीमारी के कारण होती है. अक्‍सर दिल और फेफड़े दोनों समस्‍याओं के लक्षण एक जैसे होते हैं क्‍योंकि ये दोनों बीमारियां एक-दूसरे अंगों को प्रभावित करती हैं.

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सांस लेने में दिक्कत आना

अगर सांस लेने के दौरान खरखराहट या जोर-जोर से आवाज आने लगे तो यह फेफड़ों की बीमारी के संकेत हैं. जब श्‍वसन मार्ग संकुचित होता है, टिशूज में सूजन या अत्‍यधिक म्‍यूकस के कारण सांस लेने में समस्‍या आती है तब यह स्थिति होती है. इसे वीजिंग भी कहते हैं.

खून वाली खासी आना

फेफड़ों की बीमारी होने पर खांसी के साथ खून भी आ सकता है. खून के थक्‍के, म्‍यूकस के साथ खून, या फिर सिर्फ खून आ सकता है. इसे हीमोपटाइसिस कहते हैं जो कि फेफड़े की गंभीर बीमारी के प्रमुख लक्षणों में से एक है.

खांसी आना

फेफड़ों की समस्‍या होने पर लगातार खांसी आती है. खांसी अधिक आना फेफड़ों की बीमारी के संकेत हैं. लगातार खांसी आने की वजह से बुखार, डिस्पिनिया, म्‍यूकस में खून की समस्‍या हो सकती है.

सांस लेने में समस्‍या होना

सांस लेने में समस्‍या को रेस्पिरेटरी फेल्‍योर भी कहते हैं, यह फेफड़ों की गंभीर बीमारी का एक महत्‍वपूर्ण संकेत है. एक्‍यूट रेस्पिरेटरी फेलियोर अत्‍यधिक संक्रमण, फेफड़ों की सूजन, धड़कन के ठहरने या फेफड़े की गंभीर बीमारी के कारण हो सकता है. फेफड़े जब खून को पर्याप्‍त मात्रा में औक्‍सीजन नहीं पहुंचा पाते और कार्बन डाइऔक्‍साइड को सामान्‍य तौर पर हटा नहीं पाते तो गंभीर समस्‍या होती है, जिसके परिणाम स्‍वरूप सांस लेने में समस्‍या होती है.

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तो ये थे कुछ ऐसे लक्षण जिसको आप कभी नजरअंदाज ना करें वरना ये आपकी जान का सबब बन सकता हैं.

दालचीनी और शहद की चाय से घटाएं अपना वजन, जाने कैसे

वजन को कंट्रोल में रखना आज सभी के लिए काफी जरुरी हो गया है. जंग फूड और तेल मसालेदार खाना जितना सेहत के लिए परेशानी पेदा करता है उतना ही ये शरीर में फेट को बढ़ाता है. इस बिजी लाइफ स्टाइल के चलते कुछ लोग तो कसरत के लिए भी टाइम नहीं निकाल पाते. जिसके कारण वो मोटापे के शिकार हो जाते है. बढ़ते वजन के कारण शरीर को कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा, फिटनेस के दिवाने और स्लिम-ट्रिम रहने की चाहत रखने वाले वजन कम करने के कई तरीके आजमाते हैं. कई बार सफलता, तो कई बार असफलता हाथ लगती है. पर अगर आप घरेलू नुस्खों पर यकीन रखते है तो अपको दालचीनी और शहद की चाय का सेवन करना चाहिए, ये आपके वजन को तेजी से कम करने में मदद करेगी. साथ ही ये चाय आपको कई रोगों से भी दूर रखेंगी. तो चलिए कुछ और भी जानते है इस चाय के बारे में…

दालचीनी और शहद की चाय

दालचीनी और शहद की चाय की बात की जाए तो ऐसा मान सकते हैं कि यह वजन को कम करने वाली जादुई चाय है. जिसे हर फिटनेस क्रेजी को लेना चाहिए क्‍योंकि आपके एक्‍सट्रा फैट को कम करने का एक प्राकृतिक तरीका है. दालचीनी और शहद की चाय एक नेचुरल हेल्‍थ टौनिक है.

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 कैसे बनाए ये चाय

सबसे पहले आप एक कप पानी उबालें.

अब गर्म पानी में 1/2 टी स्‍पून दालचीनी पाउडर मिलाएं और इसे थोड़ा ठंडा कर लें.

इसके बाद गुनगुने दालचीनी वाली चाय में 1 चम्मच कच्चा, और्गेनिक शहद को अच्छी तरह से मिलाएं.

इसके बाद आप इसका सेवन करें, रोजाना सुबह दालचीनी और शहद से बनी चाय आपको चुस्‍त-दुरूस्‍त और फिट रखेगी. आपके वजन को कम और बढ़ते वजन को कंट्रोल रखने के लिए यह एक जादुई चाय है.

 क्या है दालचीनी इसके फायदे

दालचीनी में एंटीमाइक्रोबियल और एंटीपैरासिटिक गुण होते हैं, जो कि शरीर में फैट को बढ़ने से रोकने और वजन को कम करते हैं. यह आपकी भूख को शांत और पेट को भरा हुआ महसूस कराने में मदद करती है, इसके अलावा दालचीनी आपके शरीर में इंसुलिन कार्य को बेहतर बनाता है, जो शरीर में मौजूद अनावश्यक वसा पर अंकुश लगाता है. दालचीनी आपके पेट को स्‍वस्‍थ रखने में मददगार है और यह फैटी एसिड को कम स्‍टोर करती है.

क्या है शहद के फायदे

शहद विटामिन्स और मिनरल्‍स से भरपूर होता है, जो कि खून को साफ करता है और शरीर में कैलोरी की जांच करता है. यह माना जाता है कि शहद शरीर में जमा फेट वसाको कम करने और शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों निकालने की क्षमता रखता है. शहद न केवल आपके मोटापे को कम करने में मदद करता है, बल्कि स्वस्थ, सुंदर बनाने में भी मदद करता है. शहद एंटीबैक्टीरियल और एंटीमाइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं. वजन कम करने के लिए शहद को रोजाना सुबह गुनगुने पानी या फिर दालचीनी और शहद से बनी चाय का सेवन फायदेमंद है.

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तो ये है दालचीनी और शहद की चाय के फायदें. तो अब से आप रेगुलर चाय की बजाये दालचीनी और शहद वाली चाय पीना शुरु किजिए जो आपको चुस्त दुरुस्त रखने में मदद करेंगी.

Dr Ak Jain: क्या करें जब पुरुषों में घटने लगे बच्चा पैदा करने की ताकत

बेऔलाद जोड़ों की तादाद में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है क्योंकि नामर्दी के चलते मर्द अपनी पत्नी को पेट से करने में नाकाम होते हैं. वैसे, अगर गर्भनिरोधक उपाय आजमाए बगैर एक साल तक हमबिस्तरी करने पर भी जब बच्चा नहीं ठहरता है तो इसे शुक्राणुओं की समस्या के चलते नामर्दी मान लिया जाता है.

आमतौर पर इस तरह की समस्या  कमजोर शुक्राणु के चलते होती है जबकि बच्चा ठहरने के लिए शुक्राणु

की ही जरूरत पड़ती है. ऐसे मामलों में औरतों की फैलोपियन ट्यूब तक शुक्राणु पहुंच ही नहीं पाते हैं और कई कोशिशों के बावजूद औरत पेट से होने में नाकाम रहती है.

इस समस्या के लिए कई बातें जिम्मेदार होती हैं. खास वजह धूम्रपान और ज्यादा मात्रा में शराब का सेवन करना है. ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि गठीला बदन बनाने के लिए लड़के कम उम्र से ही स्टेरौयड और दूसरी दवाओं का सेवन करने लग जाते हैं. इस वजह से बाद की उम्र में उन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ जाता है. बहुत ज्यादा कसरत और डायटिंग के लिए भूखे रहने जैसी आदतें भी इस की खास वजहें हैं.

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नौजवानों में तेजी से बढ़ते तनाव और डिप्रैशन के साथसाथ प्रदूषण और गलत लाइफस्टाइल के चलते एनीमिया की समस्या भी मर्दों में नामर्दी की वजह बनती है. इनफर्टिलिटी से जुड़े सब से बुरे हालात तब पैदा होते हैं जब मर्द के वीर्य में शुक्राणु नहीं बन पाते हैं. इस को एजूस्पर्मिया कहा जाता है. तकरीबन एक फीसदी मर्द आबादी भारत में इसी समस्या से पीडि़त है.

हमारे शरीर को रोज थोड़ी मात्रा में कसरत की जरूरत होती है, भले ही वह किसी भी रूप में क्यों न हो. इस से हमारे शारीरिक विकास को बढ़ावा मिलता है.

अगर आप भी ऐसी ही किसी समस्या से जूझ रहे हैं तो संपर्क करिए लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन से जो पिछले 40 सालों से इन समस्याओं का इलाज कर रहे हैं.

AK-JAIN

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हालांकि कसरत के कई अच्छे पहलू भी हैं. मगर इस के कुछ बुरे पहलुओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है जिन की तरफ कम ही लोगों का ध्यान जाता है. मसलन, औरतों का ज्यादा कसरत करना बांझपन की वजह भी बन सकता है. वैसे, कसरत करने के कुछ फायदे इस तरह से हैं:

दिल बने मजबूत : हमारे दिल की हालत सीधेतौर पर इस बात से जुड़ी होती है कि हम शारीरिक रूप से कितना काम करते हैं. जो लोग रोजाना शारीरिक रूप से ज्यादा ऐक्टिव नहीं रहते हैं, दिल से जुड़ी सब से ज्यादा बीमारियां भी उन्हीं लोगों को होती हैं खासतौर से उन लोगों के मुकाबले जो रोजाना कसरत करते हैं.

अच्छी नींद आना : यह साबित हो चुका है कि जो लोग रोजाना कसरत करते हैं, उन्हें रात को नींद भी अच्छी आती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कसरत करने की वजह से हमारे शरीर की सरकेडियन रिदम मजबूत होती है जो दिन में आप को ऐक्टिव बनाए रखने में मदद करती है और जिस की वजह से रात में आप को अच्छी नींद आती है.

शारीरिक ताकत में बढ़ोतरी : हम में से कई लोगों के मन में कसरत को ले कर कई तरह की गलतफहमियां होती हैं, जैसे कसरत हमारे शरीर की सारी ताकत को सोख लेती है और फिर आप पूरे दिन कुछ नहीं कर पाते हैं. मगर असल में होता इस का बिलकुल उलटा है. इस की वजह से आप दिनभर ऐक्टिव रहते हैं, क्योंकि कसरत करने के दौरान हमारे शरीर से कुछ खास तरह के हार्मोंस रिलीज होते हैं, जो हमें दिनभर ऐक्टिव बनाए रखने में मदद करते हैं.

आत्मविश्वास को मिले बढ़ावा : नियमित रूप से कसरत कर के अपने शरीर को उस परफैक्ट शेप में ला सकते हैं जो आप हमेशा से चाहते हैं. इस से आप के आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होती है.

रोजाना कसरत करने के कई सारे फायदे हैं इसलिए फिजिकल ऐक्टिविटी को नजरअंदाज करने का तो मतलब ही नहीं बनता, लेकिन बहुत ज्यादा कसरत करने का हमारे शरीर पर बुरा असर भी पड़ सकता है खासतौर से आप की फर्टिलिटी कम होती है, फिर चाहे वह कोई औरत हो या मर्द.

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ऐसा कहा जाता है कि बहुत ज्यादा अच्छाई भी बुरी साबित हो सकती है. अकसर औरतों में एक खास तरह के हालात पैदा हो जाते हैं जिन्हें एमेनोरिया कहते हैं. ऐसी हालत तब पैदा होती है, जब एक सामान्य औरत को लगातार 3 महीने से ज्यादा वक्त तक सही तरीके से माहवारी नहीं हो पाती है.

कई औरतों में ऐसी हालत इस वजह से पैदा होती है क्योंकि वे शरीर को नियमित रूप से ताकत देने के लिए जरूरी कैलोरी देने वाली चीजों का सेवन किए बिना ही जिम में नियमित रूप से किसी खास तरह की कसरत के 3 से 4 सैशन करती हैं.

शरीर में कैलोरी की कमी का सीधा असर न केवल फर्टिलिटी पर पड़ता है, बल्कि औरतों की सेक्स इच्छा पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही मोटापा भी इस में एक अहम रोल निभाता है क्योंकि ज्यादातर मोटी औरतें वजन घटाने के लिए कई बार काफी मुश्किल कसरतें भी करती हैं. इस वजह से भी उन की फर्टिलिटी पर बुरा असर पड़ता है.

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इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे जोड़े शारीरिक और मानसिक तनाव की हालत में पहुंच जाते हैं. अकसर देखा गया है कि ऐसे मामलों में या तो शुक्राणु की मात्रा कम होती है या स्पर्म की ऐक्टिविटी बहुत कम रहती है. लिहाजा ऐसे शुक्राणु औरत के अंडाणु को गर्भाधान करने में नाकाम रहते हैं.

वैसे अब इनफर्टिलिटी से नजात पाने के लिए कई उपयोगी इलाज मुहैया हैं. ओलिगोस्पर्मिया में स्पर्म की तादाद बहुत कम पाई जाती है और एजूस्पर्मिया में तो वीर्य के नमूने में स्पर्म होता ही नहीं है. एजूस्पर्मिया में मर्द के स्खलित वीर्य से स्पर्म नहीं निकलता है जिसे जीरो स्पर्म काउंट कहा जाता है. इस का पता वीर्य की जांच के बाद ही लग पाता है.

कुछ मामलों में जांच के दौरान तो स्पर्म नजर आता है लेकिन कुछ रुकावट होने के चलते वीर्य के जरीए यह स्खलित नहीं हो पाता है. स्पर्म न पनपने की एक और वजह है वैरिकोसिल. इस का इलाज सर्जरी से ही मुमकिन है.

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कुछ समय पहले तक पिता बनने के लिए या तो दाता के स्पर्म का इस्तेमाल करना पड़ता था या किसी बच्चे को गोद लेना पड़ता था, लेकिन अब चिकित्सा विज्ञान में स्टेम सैल्स टैक्नोलौजी की तरक्की ने लैबोरेटरी में स्पर्म बनाना मुमकिन कर दिया है.

लैबोरेटरी में  मरीज के स्टेम सैल्स का इस्तेमाल करते हुए स्पर्म को बनाया जाता है, फिर इसे विट्रो फर्टिलाइजेशन तरीके से औरत पार्टनर के अंडाशय में डाल कर अंडाणु में फर्टिलाइज किया जाता है. इस तरीके से वह औरत पेट से हो सकती है.

लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. जैन द्वारा. 

गंजापन पुरुषों में ही क्यों : सिर के बाल लगाएं चारचांद

इंसान के जिस्म का कोई भी बाहरी हिस्सा कम या खत्म होने लगे या हो जाए तो उस में हीनभावना का पैदा हो जाना स्वाभाविक है. सिर के बाल भी इंसानी जिस्म का हिस्सा होते हैं. गंजापन, केशाभाव या बालों का झड़ना हलके से ले कर सिर के पूरी तरह गंजा होने तक का हो सकता है. आमतौर पर 50 से 100 बाल हर दिन टूटतेझड़ते हैं. यह कुदरती प्रक्रिया है. यदि इस से ज्यादा बाल झड़ते हैं, तो यह गंजेपन यानी बाल्डनैस का विषय हो सकता है.

देशदुनिया के लोगों में गंजापन तेजी से बढ़ रहा है. इस का कारण है लोगों का गलत खानपान और जीवनशैली. गंजेपन को ले कर पुरुषों में अकसर ही काफी हीनभावना रहती है. एक उम्र के बाद जब उन के सिर पर से बाल उड़ने लगते हैं, तो उन का सैल्फ कौन्फिडैंस चोट खा जाता है. अपनी इमेज को ले कर वे शर्म महसूस करने लगते हैं. आजकल तो छोटी उम्र के बच्चों में भी बाल झड़ने की समस्या होने लगी है.

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वहीं, गंजेपन का शिकार आमतौर पर सिर्फ पुरुष ही होते हैं, ऐसा क्यों? महिलाओं में गंजापन बहुत ही कम दिखाई देता है या किसी बीमारी के कारण होने वाला गंजापन ही उन में होता है. जबकि, पुरुषों की उम्र 40 पार होतेहोते आधे से ज्यादा में गंजापन ज़ाहिर होने लगता है.

बाल्डनैस क्यों :

मैडिकल एक्सपर्ट्स के अनुसार, पुरुषों में बालों के झड़ने का सब से आम कारण एंड्रोजेनेटिक एलोपीशिया माना जाता है. इस को ‘पुरुष पैटर्न गंजापन’ के रूप में भी जाना जाता है. इस में पुरुषों के सिर के बाल झड़ने लग जाते हैं. माथे की तरफ से या सिर के ऊपर से पहले धीरेधीरे बाल झड़ने शुरू होते हैं. फिर पतले होतेहोते ख़त्म हो जाते हैं. जैसे हमारे शरीर में चमड़ी के ऊपर रोमछिद्र होते हैं वैसे ही सिर की चमड़ी के ऊपर हेयर फौलिकल्स होते हैं. इन्हीं में से बाल निकलते हैं. जब ये हेयर फौलिकल्स सिकुड़ने लगते हैं, तो बाल पतले होने शुरू हो जाते हैं. समय के साथ धीरेधीरे ये गायब भी हो जाते हैं.

गंजेपन का एक कारण यह भी. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, इंसान के जिस्म में टैस्टोस्टेरौन एक ऐसा हार्मोन होता है, जो पुरुषों और महिलाओं दोनों में पाया जाता है मगर पुरुषों में इस की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. पुरुषों के पुरुषत्व वाले शारीरिक बदलावों के लिए यही हार्मोन जिम्मेदार होता है. टैस्टोस्टेरौन पुरुषों में स्रावित होने वाले एंड्रोजन समूह का स्टेरौयड हार्मोन है, जिस के कारण पुरुषों में बाल झड़ने की समस्या पैदा होती है. दरअसल, इंसान के शरीर में कुछ एंजाइम ऐसे होते हैं जो टैस्टोस्टेरौन को डिहाइड्रो-टैस्टोस्टेरौन में बदल देते हैं. इसी डिहाइड्रो-टैस्टोस्टेरौन के कारण बाल पतले व कमजोर हो जाते हैं और फिर झड़ने लगते हैं. सामान्यतौर पर हार्मोंस में यह बदलाव करने वाले एंजाइम एक इंसान में उसे उस के जींस से प्राप्त हुए होते हैं. इसी कारण गंजेपन को आनुवंशिक यानी खानदानी भी माना जाता है.

स्किन स्पैशलिस्ट डाक्टर भावुक मित्तल का कहना है कि जेनेटिक्स (खानदानी कारण यानी पहले से घर के पुरुषों में यह दिक्कत चली आ रही हो), उम्र का बढ़ना, और हार्मोंस का ऊपरनीचे होना बाल्डनैस के सब से बड़े कारण हैं. दूसरे कारणों में विटामिन्स और मिनरल्स की कमी, न्यूट्रीशन वाला खाना न खाना, स्ट्रेस, लंबी बीमारी को गिना जाता है.

 बालों को झड़ने से रोकें :

अगर जेनेटिक कारणों से हेयर लौस हो रहा है, तो उसे धीमा किया जा सकता है. पूरी तरह से उस से छुटकारा नहीं पाया जा सकता. लेकिन अगर बीमारी या पोषण की कमी की वजह से बाल झड़ रहे हैं, तो उन के लिए उपाय किए जा सकते हैं. शरीर में आयरन की कमी की वजह से भी बाल झड़ते हैं. अगर इन में से कोई भी वजह नहीं है, तो आप को फुल बौडी टैस्ट करा कर अपने हार्मोंस की जांच भी करवा लेनी चाहिए. इस बाबत डाक्टर आप को बेहतर सलाह दे पाएंगे.

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महिलाओं में गंजापन नहीं :

महिलाओं में भी टैस्टोस्टेरौन पाया जाता है मगर उन में इस की मात्रा बहुत कम होती है. जब यह महिलाओं में अधिक स्रावित होता है तो महिलाओं में अनचाहे बालों की अधिक मात्रा में आने की समस्या पैदा होती है. महिलाओं के शरीर में मुख्यरूप से एस्ट्रोजन हार्मोन का स्राव होता है, जो महिलाओं के शरीर में टैस्टोस्टेरौन के डिहाइड्रो-टैस्टोस्टेरौन में बदलने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है. इसीलिए, महिलाओं में बाल झड़ने की समस्या तो होती है मगर गंजापन नहीं होता है.

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं. कई बार जब महिलाओं के शरीर में इस दौरान टैस्टोस्टेरौन हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है, तो बाल झड़ने की समस्या उत्पन्न होती है. इसलिए अकसर महिलाओं को गर्भावस्था और मेनोपौज में बाल झड़ने की समस्या होती है.

इस प्रकार साफ़ है कि मानव शरीर की संरचना में भिन्नता के चलते पुरुष के सिर के बाल झड़तेझड़ते उस पर गंजापन उभर आता है जबकि महिला के सिर के बाल झड़ते तो हैं लेकिन वे गंजापन की हद तक नहीं झड़ते. हां, उन में अनचाहे बालों के अधिक मात्रा में आने की समस्या पैदा हो सकती है. इस में शक नहीं है कि सिर के बाल इंसान की खूबसूरती में चारचांद लगाते हैं.

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मर्द को भी दर्द होता है : ऐसे करें लाइफ एंजौय

कहावत नहीं है, हां, लोग कहते हैं, मर्द को दर्द नहीं होता. लेकिन, ऐसा नहीं है. पुरुष बाहर से जितने कठोर, भीतर से उतने ही नर्मदिल होते हैं. आजकल की भागदौड़ में पुरुष न तो अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे पाते हैं न ही अपनी डाइट पर. इस वजह से उन्हें कई बार बीमार भी पड़ना पड़ता है. आज की अतिआधुनिक जीवनशैली में वे कुछ दर्दों से बच सकते हैं. पुरुषों से जुड़ी कई ऐसी चीजें भी हैं जिन्हें वे खुद भी नहीं जानते.  सो, तनावभरे व दर्दभरे मौजूदा दौर में जीवन को आनंदमय बनाने के लिए चौकन्ना व सेहतमंद रहना होगा.

डाक्टर के संपर्क में रहें :

किसी तरह का दर्द महसूस न करें और जीवन का भरपूर आनंद उठाएं, इस बाबत समयसमय पर डाक्टरी सलाह लेते रहें. लेकिन ऐसा देखा जाता है कि ज़्यादातर पुरुष अपनी तकलीफों को इग्नोर करते रहते हैं. हालांकि, अपनी गलती की वजह से उन्हें बाद में बीमारी या फिर किसी वायरस का शिकार होना पड़ता है. वहीं, बीमार होने के बाद डाक्टर के पास जाते भी हैं तो वे कई बार डाक्टर से कई बातें छिपा लेते हैं. इस वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है. सो, दिक्कत न आने पाए, इस के लिए डाक्टर से रूटीन चेकअप जरूर करवाते रहना चाहिए.

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खर्राटों को हलके में न लें :

रात में सोने के बाद ज्यादातर लोगों की खर्राटे लेने की आदत सी बन जाती है. आप इसे टालने के बजाय इस पर ध्यान दें. खर्राटों का दिल से कनैक्शन होता है. खर्राटे लेते समय कुछ सैकंड के लिए आप की सांसें रुक भी सकती हैं. सो, इसे आदत समझ कर हलके में न लें, बल्कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करें.

ज्यादा बार बाथरूम जाना : 

अगर आप दिन में करीब 8 बार और रात में करीब  2 बार टौयलेट जा रहे हैं तो आप के शरीर में किसी तरह की दिक्कत हो सकती है. लोग अकसर ज्यादा बार बाथरूम जाने की बात को नजरअंदाज करने की कोशिश करते हैं, लेकिन आप को इस के लिए चिकित्सक से संपर्क करने की जरूरत है. अगर आप इसे नजरअंदाज करेंगे तो हो सकता है आप किसी बीमारी का शिकार हो जाएं.

सब्जियों का सेवन ताकि दिक्कत न हो :

बहुत ही कम लोग होते हैं जो फल और हरी सब्जियों का सेवन ज्यादा करते हैं. डाक्टर कहते हैं कि फल औऱ हरी सब्जियों के खाने से दिल स्वस्थ रहता है. इस से आप का शुगर लैवल भी ठीक रहता है. अगर आप फल और हरी सब्जियों से दूर भागेंगे तो आप किसी बड़ी बीमारी का शिकार हो सकते हैं.

शराब है खराब :

कई लोगों को शौक होता है कि वे शराब पिएं और सिगरेट का सेवन करें. यह शौक आप के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकता है. इस लत से कोई भी जल्दी अस्वस्थ हो सकता है.

जीवनशैली से जुड़ी कुछ अहम बातें :

*  पुरुषों की औसत आयु महिलाओं से कम होती है. पुरुषों की औसतन आयु 64.52 वर्ष होती है जबकि स्त्रियों की 68.76 वर्ष होती है.

*  पुरुष के दिमाग का आकार महिलाओं से बड़ा होता है. पुरुषों के दिमाग़ का आकार स्त्रियों से 10 फीसदी ज़्यादा होता है. लेकिन यह निर्भर करता है कि वे दिमाग का कितना इस्‍तेमाल करते हैं.

*  एक शोध से यह पता चला है कि किसी भी काम को करने में पुरुष अपने दिमाग़ का सिर्फ़ आधा हिस्सा ही प्रयोग करते हैं, जबकि स्त्रियां पूरा दिमाग़ एक ही वक़्त में इस्तेमाल कर सकती हैं.

*  आमतौर पर पुरुषों को घर पर बैठ कर ड्रिंक करने से ज़्यादा लंबे रोमांटिक वौक पर जाना ज्यादा पसंद होता है.

*  पुरुष अपनी कुल उम्र के 6 महीने सिर्फ शेविंग करने में बिताते हैं.

*  इस बात से तो हर कोई वाकिफ़ होगा कि लड़कियां, लड़कों से ज्‍यादा बोलती हैं. अध्‍ययन के मुताबिक, एक महिला दिनभर में लगभग 7 हजार शब्द बोलती हैं, तो वहीं पुरुष सिर्फ 2 हजार शब्‍द ही बोलते हैं.

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*  पराई स्त्रियों को घूरने में पुरुष अपने जीवन का पूरा एक साल बरबाद कर देते हैं.

*  पुरुष स्त्रियों से ज़्यादा झूठ बोलते हैं. एक स्त्री दिन में औसतन 3 झूठ ही बोलती है, जबकि पुरुष दिनभर में कम से कम 6 झूठ बोलते हैं.

*  ब्रेकअप के बाद पुरुष ज्‍यादा दिन तक अवसाद व तनाव में रहते हैं जबकि महिलाएं रिश्‍तों में दरार आने के बाद जल्‍दी मूवऔन कर लेती हैं.

*  अकसर पुरुष डाक्टर के पास जाने से कतराते हैं, उन्‍हें लगता है कि डाक्‍टर के पास जाने से कहीं कोई बड़ी बीमारी न हो जाए.

एक रिसर्च का नतीजा है कि ब्रेकअप के बाद पुरुष ज्‍यादा दिन तक अवसाद व तनाव में रहते हैं जबकि महिलाएं रिश्‍तों में दरार आने के बाद जल्‍दी मूवऔन कर लेती हैं. इस का ज़िक्र ऊपर हो चुका है, यह, दरअसल, यह दर्शाता है कि मर्द को शारीरिक दर्द ही नहीं होता, बल्कि, संवेदनात्मक दर्द भी होता है वह भी महिलाओं से ज्यादा.

Dr Ak Jain: नामर्द नहीं हैं बांझ पुरुष, जानें उपाय

चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि देश में लगभग 4 करोड़ पुरुषों के बांझ होने का अनुमान है. संतान सुख से वंचित जोड़ों के पुरुष सदस्य शर्म के मारे इलाज के लिए आगे नहीं आते और अपनी निर्दोष पत्नियों को जीवन भर बांझ होने का उलाहना सुनने के लिए बाध्य कर देते हैं  यह जरूरी नहीं है कि जो पुरुष बांझ हो वह नपुंसक भी हो. किसी व्यक्ति का नपुंसक होना और बांझ होना 2 अलगअलग बातें हैं. संभोग न कर पाना नपुंसकता है, लेकिन संभोग शक्ति होते हुए भी स्त्री को गर्भवती न कर पाना बांझपन कहलाता है. कई व्यक्ति, जो ऊपर से स्वस्थ, हृष्टपुष्ट होते हैं और सफल संभोग करते हैं, वे भी संतान सुख से वंचित रहते हैं.

पुरुषों में बांझपन कई कारणों से हो सकता है. कई बार एकसाथ अनेक कारण मिल कर पुरुषों को बांझ कर देते हैं, तो कई बार एक ही कारण इतना सशक्त होता है कि पुरुष बांझ रह जाता है. पुरुषों में बांझपन का सब से बड़ा कारण वीर्य दोष होता है. यदि पुरुष स्वस्थ है तो वीर्य की 15 बूंदों में ही साढ़े 7 करोड़ शुक्राणु होने चाहिए. इन में अधिकांश शुक्राणु स्वस्थ और सक्रिय होने आवश्यक हैं. यदि इन शुक्राणुओं में अधिकांश अस्वस्थ या निष्क्रिय होंगे तो गर्भधारण नहीं होगा.

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शुक्राणु कमजोर होने की वजह से पुरुष अपनी पत्नी को गर्भवती करने में असमर्थ रहते हैं. पुरुषों में बांझपन का सब से बड़ा कारण वीर्य दोष ही होता है.

वीर्य दोष के कई कारण हो सकते हैं जैसे आहारविहार, चोट, मानसिक परेशानी, गलसुआ, बेरिकोसील और एक्सरे के कुप्रभाव की वजह से पुरुष का वीर्य दूषित हो जाता है और वह प्रजनन करने लायक नहीं रह जाता. कई बार यह भी होता है कि शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया बराबर चल रही होती है, लेकिन वीर्य में वे अनुपस्थित रहते हैं तो इस का मतलब यह है कि शुक्राणुओं के वीर्य में मिलने के मार्ग में कहीं अवरोध है. इस अवरोध को आपरेशन द्वारा ठीक कराया जा सकता है.

अगर आप भी ऐसी ही किसी समस्या से जूझ रहे हैं तो संपर्क करिए लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन से जो पिछले 40 सालों से इन समस्याओं का इलाज कर रहे हैं.

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मानसिक नपुंसकता

पुरुषों में बांझपन का एक कारण उन का नपुंसक होना भी हो सकता है. शारीरिक संरचना में कोई जन्मजात विकार हो तो व्यक्ति संबंध बनाने में सफल नहीं हो पाता. कई बार मानसिक नपुंसकता की वजह से भी वह बांझ रहता है. मानसिक नपुंसकता की वजह से वह संभोग ही नहीं कर पाता है और हर बार वह असफल रहता है. मानसिक नपुंसकता 2 प्रकार की हो सकती है. एक तो यह कि समय पर अंग उत्तेजित ही न हो, इस वजह से संभोग ही न कर पाए. दूसरी स्थिति में जैसेतैसे उत्तेजित तो हो जाता है, लेकिन संबंध बनाने से पूर्व ही वीर्य स्खलित हो जाता है. शीघ्रपतन भी बांझपन का एक कारण बनता है, क्योंकि इस में संबंध बनाने के प्रयास में ही वीर्यपात हो जाता है और ऐसे में शुक्राणु व अंडाणु का संपर्क ही नहीं हो पाता है.

कई बार तो यह भी देखा गया है कि पतिपत्नी दोनों संतानोत्पात्त के लिए पूर्णत: योग्य होते हैं और किसी में कोई दोष नहीं होता, फिर भी बच्चा नहीं होता. इस का सब से बड़ा कारण है कि वे सही समय पर संबंध नहीं बनाते. यह एक संयोग हो सकता है कि जब वे संबंध बनाते हों, उस समय स्त्री के अंडाणु नहीं बनते हों. मानसिक स्थिति और संबंध बनाने के बीच बड़ा नाजुक संबंध है. यदि आप किसी चिंता या तनाव को पालें अथवा व्यग्र या भयग्रस्त हो कर संबंध बनाएंगे, तो स्त्री को गर्भ ठहरना मुशकिल होगा.

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अत्यधिक तनाव

तंबाकू और सिगरेट के अत्यधिक सेवन से वीर्य में शुक्राणुओं की बनावट और संख्या पर दुष्प्रभाव से पुरुषों में बांझपन का खतरा बढ़ा है. पुरुष जननेंद्रिय को गरम कर देने वाले वातावरण में काम करने से भी पुरुष बांझ हो सकता है. यही कारण है कि जिन कारखानों में भट्टियों, जहरीले रसायन तथा एक्सरे जैसी किरणों का प्रयोग होता है, वहां के श्रमिकों के बांझ होने के आसार ज्यादा रहते हैं. लगातार नाइलोन का जांघिया पहनने से भी पुरुष बांझ हो सकते हैं. कई मामलों में पाया गया है कि घर और बाहर के झंझटों से महिलाएं और पुरुष इतने तनावग्रस्त रहते हैं कि शारीरिक क्षमताओं के बावजूद बेमेल मानसिक दशाओं के कारण गर्भधारण नहीं हो पाता. परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है कि ऐसे तनावग्रस्त दंपतियों को यदि एक माह घर से दूर खुशनुमा माहौल में रखा जाए, तो उन्हें संतान प्राप्त हो सकती है.

मधुमेह से भी पुरुषों में बांझपन आ सकता है. इसी प्रकार थायराइड जैसी बीमारी भी पुरुष बांझपन का कारण बन सकती है. जन्मजात शारीरिक नपुंसकता के लिए पुरुषों को चाहिए कि वे किसी कुशल चिकित्सक को बताएं. आजकल चिकित्सा विज्ञान काफी उन्नत है और आपरेशनों के जरिए जन्मजात विकृतियों को ठीक भी किया जा सकता है.

सफल संभोग जरूरी

मानसिक नपुंसकता केवल मनोवैज्ञानिक बीमारी है. शरीर स्वस्थ हो, लेकिन मन अशांत हो तो बात नहीं बन सकती. सफल संभोग के लिए शरीर एवं मन दोनों से व्यक्ति को स्वस्थ एवं प्रसन्न होना चाहिए. तभी वह कुछ कर सकता है. अत: अपने मन से पूर्व अनुभव को त्याग कर पूर्ण आत्मविश्वास के साथ संबंध बनाना चाहिए. फिर देखिए, सारी नपुंसकता छूमंतर. जब भी संबंध बनाएं, दोनों प्रसन्नचित्त हो कर और सारी चिंताओं से मुक्त हो कर भयरहित वातावरण में बनाएं. हो सकता है बात बन जाए. पुरुषों में नपुंसकता और बांझपन दूर करने और संतानसुख का शर्तिया दावा करने वाले अनेक बोगस किंतु आकर्षक विज्ञापन अखबारों में छपते हैं और दीवारों पर पोस्टर के रूप में भी लगते हैं. ये नीमहकीम आप का धन लूटते हैं. यदि आप में कोई कमजोरी है तो किसी योग्य, कुशल एवं अनुभवी चिकित्सक से परीक्षण एवं उपचार कराना चाहिए.

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वीर्य को पुष्ट बनाने तथा शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ समय के लिए उपचार किया जाता है. इन से शुक्राणु स्वस्थ व गतिशील हो जाते हैं तथा उन की संख्या बढ़ जाती है और वे गर्भधारण कराने में सक्षम हो जाते हैं.

टोनेटोटकों से परहेज

एक बात और जादूटोने से बांझपन दूर नहीं होता. कितने ही टोटके कर लिए जाएं, जब तक पतिपत्नी दोनों पूरी तरह सामान्य नहीं होते, संतान नहीं हो सकती. इसी प्रकार यज्ञ, हवन, व्रत, उपवास और सूर्य उपासना आदि से संतान नहीं हो सकती. यदि कोई खराबी है तो वह उचित उपचार से ही दूर हो सकती है. यदि व्रत और सूर्य उपासना से संतान होती तो आज विश्व में सभी औलाद वाले होते. यदि किसी दंपती को संभोगरत रहने के बावजूद संतान सुख नहीं मिल पा रहा है, तो सब से पहले पुरुष को अपनी जांच करानी चाहिए, क्योंकि पुरुष की जांच सब से सरल है व कम समय में पूरी हो जाती है. यदि जांच में सब कुछ ठीक निकले तो स्त्री की जांच करानी चाहिए.

बांझ दंपतियों के लिए टेस्ट ट्यूब द्वारा बच्चे को जन्म देने की पद्धति एक वरदान है, किंतु अत्यधिक खर्चीली होने के कारण गरीब और मध्यवर्गीय दंपतियों के लिए टेस्ट ट्यूब बेबी पाना एक सपना हो गया है. इस प्रणाली में लगभग 40 हजार रुपए लगभग खर्च आता है. चूंकि इस पद्धति में  20% मामलों में ही सफलता मिलती है इसलिए बेहतर है कि बांझ दंपती इस खर्चीली विधि को अपनाने के बजाय बच्चा गोद लेने की सामाजिक प्रथा को अपनाएं.

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लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. जैन द्वारा. 

Dr Ak Jain: जानें क्या है एजुस्पर्मिया और इसके लक्षण

अनुसंधान तथा सर्वेक्षण से यह ज्ञात हो गया है कि 5% पुरुष एजुस्पर्मिक होते हैं, यानी उन के वीर्य में शुक्राणु होते ही नहीं. इस स्थिति को एजुस्पर्मिया कहा जाता है. दूसरी ओर, जब शुक्राणु की संख्या सामान्य से कम होती है, तो उसे ओलिगोस्पर्मिया कहा जाता है. इन दोनों परिस्थितियों वाले पुरुषों के जरिए सामान्यतया प्रैग्नैंसी की संभावना नहीं होती, क्योंकि वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या 60-120 मिलियन प्रति मि.ली. के बीच होनी चाहिए.

यहां यह बता दें कि वीर्य परीक्षण में शुक्राणुओं के नहीं पाए जाने का यह अर्थ कदापि नहीं होता कि अंडकोष में स्पर्म का निर्माण हो ही नहीं रहा है या कभी होगा ही नहीं. वीर्य में स्पर्म की कमी या नहीं पाए जाने के कई कारण हो सकते हैं. अधिकतर स्थितियों में उन के कारणों का इलाज करा देने के बाद शुक्राणुओं की संख्या सामान्य हो जाती है और पुरुष पिता बनने की स्थिति में आ जाता है.

अगर आप भी ऐसी ही किसी समस्या से जूझ रहे हैं तो संपर्क करिए लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन से जो पिछले 40 सालों से इन समस्याओं का इलाज कर रहे हैं.

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शुक्राणुओं की कमी के कई कारण हो सकते हैं. जैसे, ऐसा हो सकता है कि अंडकोष की कोशिकाओं में शुक्राणु निर्माण की पर्याप्त क्षमता हो पर सहायक हारमोन के स्राव में कमी से निर्माण नहीं हो पा रहा हो या यह भी हो सकता है कि अंडकोष में इन का निर्माण पर्याप्त संख्या में हो रहा हो, पर संवहन नलिकाओं में गड़बड़ी या अवरोध के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहे हों और अंडकोष या संग्राहक थैली में ही जमा हो जाते हों. एक तीसरी संभावना यह भी हो सकती है कि सहवास के दौरान लिंग द्वारा स्खलन के बजाय वीर्य पीछे की ओर स्थित मूत्र थैली में चला जाता हो और शुक्राणु गर्भाशय में जाने से वंचित रह जाते हों.

ऐसा क्यों होता है

शुक्राणुओं के निर्माण में आने वाली इन बाधाओं के कई कारण हो सकते हैं, जिन में हारमोन के स्राव की समस्या, टेस्टिकुलर फेल्योर, टेस्टिस में सप्लाई करने वाली रक्त नलियों में सूजन तथा संक्रमण आदि प्रमुख हैं.

मस्तिष्क में स्थित एक विशेष ग्रंथि, जिसे पिट्यूटरी ग्लैंड कहते हैं, से एक विशेष हारमोन, जिसे फौलिकल स्टिमुलेटिंग हारमोन कहते हैं, का स्राव होता है जो रक्त के माध्यम से टेस्टिस में पहुंच कर उस की कोशिकाओं को शुक्राणुओं का निर्माण करने के लिए प्रेरित करता है. इस में किसी तरह की गड़बड़ी या इस के स्राव में कमी हो जाने की वजह से शुक्राणुओं का निर्माण प्रभावित होता है. अंडकोष को सप्लाई करने वाली रक्त नलियों में किसी कारणवश सूजन हो जाने की स्थिति में भी कई बार स्पर्म का निर्माण प्रभावित होता है.

जननांगों में संक्रामक रोग, जैसे मंप, टी.बी. गुप्त रोग की वजह से भी टेस्टिस की सामान्य क्रियाशीलता प्रभावित होती है. यह सिकुड़ कर छोटा हो जाता है, जिस से शुक्राणुओं का निर्माण बाधित हो जाता है. अत्यधिक धूम्रपान, खैनी, जरदा, सिगरेट, शराब, गुटका आदि का सेवन करने वालों में भी इस तरह की कमी आमतौर पर देखने को मिलती है. जननांगों में संक्रमण से भी प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. ई.कोलाई, टी.बी., विषाणु, गुप्त रोग के कारण भी प्रजनन तथा शुक्राणु निर्माण की क्षमता प्रभावित होती है.

पर्याप्त संख्या में शुक्राणुओं के निर्माण के लिए यह भी जरूरी है कि अंडकोष अपनी सही पोजिशन में हो तथा उस का तापमान शारीरिक तापमान से कम हो. इस में थोड़ी सी भी गड़बड़ी होने से इस से शुक्राणु निर्माण में बाधा होती है. वे पुरुष, जो गरम जगहों पर काम करते हैं, जैसे ब्लास्ट फर्नेस, फायर एरिया, अंडरग्राउंड खदान, जहां का तापमान ज्यादा होता है, उन में इस तरह की शिकायत आमतौर पर देखने को मिलती है. जो पुरुष टाइट अंडरपैंट पहनते हैं या जिन्हें रक्त नलियों में सूजन की बीमारी होती है, उन में भी इस तरह की शिकायत देखने को मिल सकती है. टेस्टिस में रचनागत खराबी, टी.बी., गुप्त रोग, चोट लगने, संक्रमण या फिर सूजन हो जाने की स्थिति में भी इस तरह की समस्या देखने को मिल सकती है. शुक्राणुओं को वहन करने वाली नालियों में अवरोध या विकृति आ जाने की स्थिति में, जैसे हर्निया के औपरेशन के बाद उस से बनने वाले निशान से भी कई बार इस तरह की दिक्कतें आ सकती हैं.

पुरानी बीमारियों के कारण अंडकोष में कई बार अवांछित विषैले पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, जिसे ऐंटीबौडी कहते हैं. यह शुक्राणुओं के साथ चिपक कर उन की गतिशीलता को प्रभावित करता है. इस की वजह से कई शुक्राणु आपस में चिपक कर बेकार हो जाते हैं.

कई बार ऐसा होता है कि टेस्टिस में कोई गड़बड़ी नहीं होती, फिर भी वीर्य में शुक्राणु नहीं पाए जाते. ऐसी स्थिति में यह पता लगाना जरूरी हो जाता है कि कहीं इस के संवहन के रास्ते में किसी तरह की गड़बड़ी तो नहीं है.

इस की मुख्यतया 2 वजहें होती हैं- डक्ट सिस्टम तथा इजेकुलेशन की प्रक्रिया में गड़बड़ी. स्पर्म कैरियर डक्ट नहीं होने या इस के ब्लाक होने के कारण स्पर्म आगे की ओर नहीं  बढ़ पाते हैं. ऐसा वास डिफरेंस नामक नली में जन्मजात खराबी होने या फिर इपिडिडाइमिस, प्रोस्टेट और सेमिनल वैजाइकल में संक्रमण के कारण होने वाली रुकावट की वजह से हो सकता है. कई बार हर्निया या फिर हाइड्रोसील के कारण भी इस में खराबी आ जाती है.

अब आइए जानें कि शुक्राणुओं के इजेकुलेशन की राह में कौनकौन सी समस्याएं हो सकती हैं? सहवास के दौरान इजेकुलेशन के पहले वीर्य को युरेथ्रा में जमा होना जरूरी है. लेकिन कई बार तंत्रिकातंत्र में गड़बड़ी होने के कारण ऐसा हो नहीं पाता. यह समस्या प्रजनन अंगों की सर्जरी, डायबिटीज या फिर रीढ़ की हड्डी में चोट लगने की वजह से हो सकती है. कई बार कई तरह की दूसरी समस्याएं आने के कारण वीर्य आगे की ओर न जा कर पीछे की राह पकड़ लेता है. वह मूत्र थैली में जमा होने लगता है और पेशाब के साथ बाहर निकल जाता है.

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एजुस्पर्मिक पुरुष भी बन सकते हैं पिता

आज जमाना बदल चुका है और विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है. बांझपन को भी दूर करने के ऐसेऐसे उपाय निकल गए हैं, जिन की पहले कल्पना नहीं की जा सकती थी. इसलिए ऐसे लोगों को घबराने या निराश होने की जरूरत नहीं है. ऐसे दंपती को सब से पहले किसी अच्छे अस्पताल में अपनी पूरी जांच करानी चाहिए. पूरी तहकीकात कर उन्हें ऐसे संस्थानों में जाना चाहिए, जहां इस तरह की समस्या की जांच और इलाज की उच्च स्तरीय व्यवस्था हो.

जांच के दौरान यदि हारमोन संबंधी किसी भी तरह की गड़बड़ी होती है, तो इस के लिए दवा दे कर इस के लेवल को बढ़ाया जाता है. यदि टेस्टिस में किसी तरह का ट्यूमर, सिस्ट या किसी तरह की रचनागत खराबी होती है, तो औपरेशन द्वारा इसे ठीक किया जाता है. कई बार इस में संक्रमण होने के कारण भी कई तरह के विकार उत्पन्न हो जाते हैं, जिस को ऐंटिबायोटिक्स या दूसरी दवाएं दे कर ठीक किया जाता है. शुक्राणुओं को संवहन करने वाली नलियों में विकार होने की स्थिति में उसे रिप्रोडक्टिव सर्जरी के द्वारा ठीक किया जाता है.

कई बार ऐसा होता है कि वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या अत्यधिक कम होती है और वह टेस्टिस में ही जमा होता है. ऐसी स्थिति में माइक्रो सर्जरी के द्वारा वहां से निकाल कर लैब में कृत्रिम विधि से ओवम में इंजेक्ट कर के फर्टिलाइजेशन कराया जाता है और फिर उसे फैलोपियन ट्यूब में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है. इस विधि को इंट्रा साइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंसेमिनेशन कहते हैं. कई बार वीर्य में अवांछित तत्त्व होने के कारण ट्यूब में फर्टिलाइजेशन की क्रिया संपन्न नहीं हो पाती है.ऐसी स्थिति में स्पर्मवाश कर इन विट्रो फर्टिलाइजेशन विधि से ट्यूब या यूटरस में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है.

यदि किसी कारणवश किसी मरीज में शुक्राणु एकदम से बनता ही नहीं हो, तो उस के भी उपाय चिकित्सा विज्ञान ने ढूंढ़ निकाले हैं, जिस में डोनर स्पर्म की सहायता से आर्टिफिशियल इंसेमिनेशन विधि या फिर आई.वी.एफ. की सहायता से कृत्रिम गर्भाधान कराया जा सकता है और संतान की कमी को दूर किया जा सकता है.

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