हवस : कैसे इस आग ने उसे जला दिया

कार्तिक पूरी तरह से टूट चुका था. हवस की आग ने उसे जला दिया था. अब उस की जिंदगी के अगले कई साल जेल की सलाखों के पीछे गुजरेंगे. हवस की इस आग में उस के सपने, मांबाप के अरमान सब भस्म हो गए. उस का दिल बारबार बस यही सोचता कि काश, वह अपने मन को हवस के दलदल में न फंसने देता और अपनी पढ़ाईलिखाई पर ध्यान देता…

6 महीने पहले की ही तो बात है. कल्पना गुमला से रांची आई थी. कार्तिक की उस से कालेज में जानपहचान हुई थी जो धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई थी.

कार्तिक कल्पना के साथ कभी फिल्म देखने जाता तो कभी पार्क में घूमने. कल्पना हर बात में, हर काम में उस का साथ देती थी.

गांव से आई कल्पना भोलीभाली लड़की थी. कार्तिक उस की हर इच्छा पूरी करता था. मोटरसाइकिल से घुमाना, सिनेमा दिखाना, होटल में खिलाना, गिफ्ट देना सबकुछ, पर उस के मन में कभी भी कल्पना के प्रति प्यार नहीं था. वह तो उस के गदराए बदन का मजा लेना चाहता था. पर शायद कल्पना इसे प्यार समझने लगी थी.

जब कार्तिक को लगा कि कल्पना उस के प्रेमजाल में फंस चुकी है तो उस ने धीरेधीरे अपने पर फैलाने शुरू किए. पहले हाथों से छूना, फिर चूमना, गले लगाना और धीरेधीरे सबकुछ. यहां तक कि पार्क के कोने में उस ने कल्पना के साथ हर तरह का शारीरिक सुख भोग लिया था. इसी तरह कभी सिनेमाघर में, तो कभी किसी होटल में वह अपनी ख्वाहिश को पूरा करता रहता था.

कार्तिक कल्पना के शरीर के बदले उस पर खर्च करता था और उस की नजर में हिसाब बराबर हो रहा था. पर कल्पना की बात अलग थी. वह कार्तिक को अपना प्रेमी मानती थी और उस से शादी करना चाहती थी.

एक बार कल्पना को महसूस हुआ कि कार्तिक के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाने से वह पेट से हो गई है. उस ने उसे बताया था, ‘कार्तिक, मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

यह सुन कर कार्तिक चौंका था, पर जल्दी ही सहज हो कर उस ने कहा था, ‘अभी हम दोनों को पढ़ाई पूरी करनी है. किसी लेडी डाक्टर से मिल कर इस समस्या से छुटकारा पा लेते हैं.’

‘मुझे कोई एतराज नहीं, पर आगे चल कर हमें शादी करनी ही है तो अगर हम अभी शादी कर बच्चे को आने दें तो इस में क्या हर्ज है?’ कल्पना ने प्रस्ताव रखा था.

‘शादी…’ कार्तिक चौंका था, पर यह सोच कर कि कहीं कल्पना का शरीर दोबारा न मिले इसलिए बोला था, ‘अभी पढ़ाई, फिर कैरियर, उस के बाद शादी.’

कल्पना ने इसे शादी की रजामंदी मान कर लेडी डाक्टर से मिल कर बच्चा गिरवा दिया था. कार्तिक और कल्पना पहले की तरह मजे से रहने लगे थे. पर अब कार्तिक सावधान था. बच्चा न ठहरे, इस के लिए वह उपाय कर लेता था.

इसी बीच कल्पना को भनक लग गई कि कार्तिक उस से नहीं बल्कि उस के शरीर से प्यार करता है. उस की शादी की बात कहीं और चल रही है. उस ने फोन कर कार्तिक को रेलवे स्टेशन बुलाया.

रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर एक सुनसान जगह थी जहां वे पहले भी कई बार मिले थे. कार्तिक ने वहां झाडि़यों के पीछे उस के साथ जिस्मानी रिश्ते भी बनाए थे. कार्तिक मन में जिस्मानी सुख पाने की उमंग लिए वहां जा पहुंचा.

कल्पना के चेहरे पर तनाव देख कर वह हंस कर बोला, ‘क्या हुआ, फिर लेडी डाक्टर के पास चलना पड़ेगा क्या? पर अब तो हम काफी संभल कर चल रहे हैं.’

‘सीरियस हो जाओ कार्तिक. तुम मुझ से शादी करोगे न?’ कल्पना ने उदास हो कर पूछा था.

‘पागल हो रही हो. अभी शादी की बात कैसे सोच सकते हैं हम?’ कार्तिक जोश में आ कर बोला था.

कहां वह जिस्मानी मजा लेने की बात सोच कर आया था, कहां कल्पना उसे दूसरी बातों में उलझाए हुए थी.

‘मैं अभी की बात नहीं कर रही… 4 साल बाद ही सही, पर शादी तुम मुझ से ही करोगे. मैं ने तुम्हें अपना सबकुछ इसीलिए सौंपा है,’ कल्पना बोली थी.

‘दोस्ती अलग चीज है, शादी अलग चीज है. मैं तुम्हारी दोस्ती की कीमत अदा करता रहा हूं. शादी की बात तो सोचो ही मत,’ कार्तिक ने बेरुखी से कहा था. उस का मन उचाट हो आया था. सारा जोश जाता रहा था.

‘मैं अपना सबकुछ तुम्हें तुम्हारी कीमत के चलते नहीं प्यार के चलते सौंपती रही, लेकिन मुझे नहीं पता था कि तुम मेरे प्यार को पैसे से तोल रहे हो. पर अगर तुम प्यार को पैसे से खरीद रहे थे तो मैं भी अपने प्यार को ताकत के बल पर पा लूंगी. मेरे चाचा और मामा नक्सली हैं. जब चाहें तुम्हें और तुम्हारे परिवार को मिटा सकते हैं,’ कहते हुए कल्पना को गुस्सा आ गया था.

कार्तिक कल्पना की बात सुन कर डर गया था. वह जानता था कि कल्पना जहां से आई है, वहां नक्सलियों का अड्डा है. वह आएदिन नक्सली वारदातों की खबरें अखबार में पढ़ता था.

कुछ दिन पहले ही कार्तिक के परिवार वालों ने किसी लड़की से उस की शादी की बात भी चला रखी थी. उसे लगा, अगर कल्पना जिंदा रहेगी तो रंग में भंग डालेगी. उस ने झपट कर कल्पना की गरदन पकड़ ली और उस पर तब तक दबाव बनाता गया जब तक कि उस ने शरीर ढीला नहीं छोड़ दिया.

कार्तिक को अभी भी यकीन नहीं हुआ कि कल्पना ने दम तोड़ दिया है तो उस ने अपनी बैल्ट से फिर उस का गला दबा दिया व चुपचाप अपने घर आ गया.

कार्तिक मन ही मन घबराया हुआ था पर जिस जगह पर उस ने कल्पना की लाश छोड़ी थी उधर किसी का आनाजाना न के बराबर होता था. कौएकुत्ते उसे नोंच कर खा जाएंगे यही सोच कर वह अपने मन को संतोष देता था. पर 2 दिनों के बाद एकाएक पुलिस ने उसे दबोच लिया. शायद किसी ने लाश की सूचना पुलिस को दे दी थी और पुलिस उस तक पहुंच गई.

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छोटे शहर की लड़की : जब पूजा ने दी दस्तक- भाग 4

‘‘आसमान से भी ऊंचे सपने व्यक्ति देख सकता है, परंतु न तो वह आसमान में उड़ सकता है, न आसमान में घर बना कर रहना उस के लिए संभव है. तो क्या तुम इस छोटे शहर से अलग हो गए?’’ ‘‘नहीं, परंतु यहां मेरे सपनों के लिए कोई जगह नहीं है,’’ उस ने साफ किया.

‘‘क्या प्यार के लिए भी नहीं…’’ ‘‘प्यार तो समय और परिस्थिति के अनुसार बदलता रहता है.’’

‘‘तुम बहुत कठोर हो.’’ ‘‘हो सकता है.’’

‘‘पहले तो ऐसे नहीं थे.’’ ‘‘पहले मैं छोटे शहर में रहता था और यहां की लड़कियां मुझे डराती थीं.’’

‘‘तो तुम ने डर कर मुझ से प्यार किया था? लेकिन अब तुम बड़े शहर में रहते हो. वहां की लड़कियां तो छोटे शहर की लड़कियों से भी अधिक तेज होती हैं. क्या वहां की लड़कियों से तुम्हें डर नहीं लगता?’’ ‘‘लड़कियों से मुझे डर नहीं लगता, बस उन के प्यार से डर लगता है.’’

‘‘तो तुम मुझे प्यार नहीं करते?’’ ‘‘शायद… मुझे संदेह है,’’ उस ने पूजा की भावनाओं की परवा न करते हुए स्पष्ट रूप से कहा.

‘‘तो क्या तुम मुझे छोड़ दोगे?’’ वह लगभग रोंआसी हो गई थी. ‘‘मुझे मेरा सपना पूरा करने दो. उस के बाद ही मैं कुछ कह पाऊंगा. अभी मेरे और मेरे सपनों के बीच में और कुछ नहीं है.’’

‘‘पूजा का दिल टूट गया. उसे लगा कि सबकुछ समाप्त हो गया है.’’ छुट्टियां भी एक दिन समाप्त होनी थीं. पूजा हताश और निराश हो गई थी. उस ने विनोद के घर आना बंद कर दिया था. उस से फोन पर भी बात नहीं करती थी और न उस से बाहर मिलने के लिए जिद करती थी.

दिल्ली जाने से एक दिन पहले विनोद ने पूजा को फोन किया, ‘‘क्या कर रही हो?’’ ‘‘कुछ नहीं… मेरे पास करने के लिए है भी क्या?’’

‘‘तो फिर वहीं आ जाओ. जहां हम मिलते हैं.’’ ‘‘क्या जरूरी है, मेरा मन नहीं कर रहा है,’’ उस ने उपेक्षा जाहिर की.

‘‘बहुत जरूरी है, नहीं आओगी तो जीवनभर पछताओगी.’’ ‘पता नहीं क्या बात है‘, सोच कर पूजा मिलने के लिए आ गई. वह उदास थी, अपने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए वह उसे देखने लगी. विनोद मुसकरा रहा था. पूजा को उस की मुसकराहट का भेद समझ में नहीं आया. विनोद ने बेझिझक उस के कंधों पर हाथ रख दिया और उसे लगभग अपनी तरफ खींचता हुआ बोला, ‘‘तुम बहुत दुखी हो.’’

वह कुछ नहीं बोली. उस ने अपना एक हाथ उस के सिर के पीछे रख उस का सिर अपने सीने पर दबा लिया और उस के बालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘स्वाभाविक है, मेरी तरफ से तुम्हारा मन उचट गया हो, परंतु मैं भी क्या करता? एक डरपोक लड़के को तुम ने प्यार किया. मैं तुम्हारे लायक नहीं था. मैं एक किताबी कीड़ा था और समझता था इन्हीं में मेरा जीवन है.

जीवन में सपने देखने के सिवा मैं ने और कुछ नहीं किया. जब तुम ने मुझे प्यार किया तो मैं इतना डर गया था कि समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं. तुम्हारे प्यार में पड़ कर कहीं मेरे सपने चकनाचूर न हो जाएं. इसी असमंजस में दिन गुजर रहे थे. दिल्ली गया तो लगा कि मेरा सपना मेरी पकड़ से बहुत दूर नहीं है, परंतु तुम्हारी यादें बीच में बाधा उत्पन्न कर रही थीं,’’ वह चुप हो कर अपनी सांसों को संयत करने लगा.

पूजा ने अपना सिर उठा कर उस के चेहरे की तरफ देखा. ‘‘परंतु इन छुट्टियों में मेरे प्रति तुम्हारी दीवानगी और प्यार ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. मैं नहीं समझता कि जीवन में बिना प्यार के कोई भी सपना पूरा हो सकता है. मैं अपने चाहे जितने सपने पूरे कर लूं, वे सभी अधूरे रहेंगे, अगर मेरे जीवन में किसी का प्यार नहीं है. तुम्हारा अपने प्रति अटूट प्यार देख कर मेरा आत्मबल और विश्वास दोगुना हो गया है. मुझे लगता है कि तुम्हारा प्यार पा कर मैं अपना सपना जल्दी ही पूरा कर लूंगा. इस में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे.’’

अब पूजा उस से अलग हो कर उस की तरफ तीखी नजरों से देखने लगी थी. विनोद की आंखों में प्रेम का गहरा समुद्र हिलोरें मार रहा था. पूजा का हृदय अनायास धड़क उठा, बिलकुल उसी तरह जिस प्रकार पहली बार विनोद के लिए धड़का था. ‘‘मैं ने तुम्हें बहुत सताया है,’’ उस ने भावुक हो कर कहा.

उस का सिर नीचे झुक गया. वह सुबकने लगी. ‘‘आशा है, तुम मेरी बात का मतलब समझ गई होगी. मैं अधिक कुछ नहीं कह सकता. बस, एक बात पूछना चाहता हूं, क्या मेरा सपना पूरा होने तक तुम मेरा इंतजार कर सकती हो?’’

पूजा ने अपना मुंह उस के सीने में छिपा लिया और उस की पीठ पर अपनी बांहें कसती हुई बोली, ‘‘आज तुम ने मुझे पूरी तरह से जीत लिया. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. मैं छोटे शहर की लड़की हूं और सच्चे मन से तुम्हें प्यार करती हूं, तुम अपना सपना पूरा कर के आओ, फिर हम दोनों घर वालों की सहमति से विवाह कर के अपना घर बसा लेंगे.’’ विनोद ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया, ‘‘ऐसा मत कहो कि तुम छोटे शहर की लड़की हो. तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है.’’

‘‘तुम ने एक दिन कहा था कि छोटे शहर की लड़कियों की सोच ऐसी ही होती है. यह तुम्हारी बात का जवाब था.’’ ‘‘लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल छोटे शहर की लड़कियां ही सच्चा प्यार करती हैं. बड़े शहर की लड़कियां भी अपने प्रेमियों का इंतजार करती हैं. प्रेम सच्चा हो, तो सब कुछ संभव है. हां, जीवन का बड़ा सपना केवल बड़े शहरों में ही पूरा होता है, परंतु प्यार का सपना तो कहीं भी, किसी भी जगह पूरा हो सकता है.’’

‘‘सचमुच… आज मैं इस बात को समझ गई हूं. तुम ने मेरे सारे भ्रम दूर कर दिए.’’ ‘‘और मेरे मन से भी सारी दुविधाएं दूर हो गई हैं. मुझे पूरी आशा है कि मेरे दोनों सपने… आईएएस बनने का और तुम से शादी करने का… जल्दी ही पूरे हो जाएंगे. फिर तुम्हें ज्यादा दिन तक विरह के आंसू नहीं बहाने होंगे.’’

…और उन के मन में हजारों दीपक जल कर मुसकराने लगे, जिन का प्रकाश चारों तरफ फैल गया.

कुआं ठाकुर का: आखिर झुमकी को क्यों अपराध करना पड़ा?

“तुम्हारे कष्टों का हल तब ही मिलेगा, जब तुम हमारे साथ भाग कर शहर चलोगी, वरना रोज़ रात की यही कहानी रहेगी तुम्हारे साथ,” कलुआ ने झुमकी को बांहों में लेते कहा.

“हां रे, मन तो हमारा भी यही कहता है कि अब हम वापस घर न जाएं लेकिन अगर न गए तो हमारा बाप हमारी मां को भूखा मार डालेगा,” झुमकी ने एक सर्द आह भरते हुए कहा.

“तेरा बाप, छी, मुझे तो घिन आती है तेरे बाप के नाम से. भला कोई बाप अपनी बीवी और बेटी से ऐसा काम भी करा सकता है? वह कम्बख्त मर जाए तो ही अच्छा है,” कलुआ ने गुस्से से कहा.

“ऐसा मत कहो. वह मेरा बाप है. मेरी मां उसी के नाम का सिंदूर लगाती है. और तुम क्या समझते हो, अगर अम्मा या मैं ने उस की बात मानने से इनकार किया तो, पहले तो वह गालीगलौच करता है और फिर कहता है कि हम लोग ने नीच जाति वाले घर में पैदा हो कर गलती कर दी है और अब ये सब करना तो हमारे करम में लिखा है. हम जब तक जिंदा रहेंगे तब तक हमें ये ही सब करना पड़ेगा,” सिसक उठी थी झुमकी.

झुमकी के बदन पर नोचनेखसोटने के निशान बने हुए थे. उन्हें प्यार से सहलाते हुए कलुआ  बोला, “हां, हम तुम्हारी इतनी मदद कर सकते हैं कि तुम्हें यहां  से खूब दूर अपने साथ शहर ले जाएं और वहां हम दोनों मजदूरी कर के अपना पेट पालें. तभी तुम इस नरक से मुक्ति पा सकती हो,” झुमकी को बांहों में समेट लिया  था कलुआ ने.

झुमकी की उम्र 20 बरस थी. छरहरी काया, पतली नाक और चेहरे का रंग ऐसा जैसे कि तांबा और सोना आपस में  घोल कर उस के चेहरे पर लगा दिया गया हो.

झुमकी के बाप को शराब की लत लग गई थी. गांव के पंडित और ठाकुर उसे शराब पिलाते और  बदले में वह अपनी पत्नी को इन लोगों का बिस्तर गरम करने के लिए भेज देता. दिनभर दूसरों के खेत और अपने घर के चूल्हेचौके में जान खपाने के बाद जब झुमकी की मां ज़रा आराम करने जा रही होती, तभी नशे में धुत हो कर झुमकी का बाप आता और झुमकी की अम्मा  को इन रसूखदार लोगों के यहां जाने को कहता. विरोध करने पर उन्हें उन की नीची जाति का हवाला देता और कहता कि ऐसा करना तो उन के समय में ही लिखा है. इसलिए उन्हें ये सब तो करना ही पड़ेगा. झुमकी की अम्मा समझ जाती कि उस की इज़्ज़त को तो पहले ही शराब पी कर  बेच आया है, इसलिए मन मार कर उन लोगों के बिस्तर पर रौंदी जाने के लिए चली जाती.

झुमकी जैसे ही 13 साल की हुई, तो ठाकुर ने तुरंत ही अपनी गिद्ध दृष्टि उस पर जमा दी और झुमकी के बाप से मांग करी कि आज के बाद वह अपनी पत्नी को नहीं, बल्कि झुमकी को उस के पास भेजा करेगा  और झुमकी को खुद ठाकुर के पास पहुंचा कर आया था झुमकी का बाप.

एक बार ऐसा हुआ, तो फिर तो मानो यह चलन हो गया. जब भी ठाकुरबाम्हन लोगों का मन होता, बुलवा भेजते झुमकी को और रातरातभर रौंदते उस के नाज़ुक जिस्म को.

वह तो उस दिन झुमकी ने गांव की नदी में डूब कर आत्महत्या ही कर ली   होती, अगर उस मल्लाह के लड़के कलुआ ने उसे सही समय पर बचाया न होता. कलुआ ने जान बचाने के बाद जब जरा डांट और जरा पुचकार से झुमकी से ऐसा करने का कारण पूछा तो कलुआ के प्यार के आगे उस की आंसू की धारा बह निकली और रोरो कर  सब बता दिया कलुआ को.

“हम नीच जात के हैं, तो भला इस में हमारा का दोष है. और अगर वे लोग बाम्हन और ठाकुर हैं तो वे हमारे साथ जो चाहे, कर सकते हैं का?” झुमकी के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कलुआ के पास.

झुमकी को कलुआ से थोड़ा  स्नेह मिला और इस स्नेह में उसे वासना के कीड़े नहीं दिखाई दिए. तो, मन ही मन वह उसे अपना सबकुछ मान बैठी थी. कलुआ भी तो झुमकी पर ही जान न्योछावर किए रहता था. पर उसे ऐसे झुमकी का बाह्मन और ठाकुर द्वारा शोषण किया जाना पसंद नहीं था और इसीलिए वह शहर जाने की ज़िद करता था पर हर बार झुमकी अपनी मां की दुहाई दे कर बात टाल जाती थी.

लेकिन, कल जब झुमकी दालान में बैठी अपने शरीर पर रात में आई खरोंचों पर कड़वा तेल का लेप लगा रही थी, तभी झुमकी की अम्मा आई और बोली, “बिटिया, हम तुम को जने हैं, इसलिए तुम्हारा दर्द सब से अच्छी तरह जानते हैं. और यह भी जानते हैं कि वह कलुआ तुम्हें पसंद करता है. तुम अगर यहां गांव में ही रह गई, तो इसी तरह  पिसती रहोगी. शायद, नीच जाति में पैदा होना ही हमारा कुसूर बन गया है. पर अगर सच में ही जीना चाहती तो यहां से कहीं और भाग जाओ और हमारी  चिंता मत करो. हम तो बस काट ही लेंगे अपना जीवन. पर तुम्हारे सामने अभी पूरा जीवन है, तू यहां रह गई तो ये मांस के भेड़िए तुझे रोज़ रात में नोचेंगे. इसलिए चली जा यहां से, चली जा…”

अभी  झुमकी की मां उसे समझा ही रही थी कि झुमकी का बाप अंदर आ गया. उस ने सारी बातें सुन ली थीं, बोला, “हां, झुमकी ज़रूर जाएगी पर कलुआ के साथ नहीं, बल्कि संजय कुमार के साथ. मैं ने  इस की शादी संजय कुमार के साथ तय कर दी है. चल री झुमकी, जल्दी तैयार हो जा. तेरा दूल्हा  बाहर बैठा हुआ है.”

यह कैसी  शादी थी, न बरात, न धूम, न नाच, न गाना.

झुमकी और उस की मां समझ गई थीं कि झुमकी का सौदा कर डाला गया है. पर झुमकी के लिए आगे कुंआ और पीछे खाई जैसी हालत थी. फिर भी उस के मन में एक दूल्हे के नाम से यह उम्म्मीद जगी कि यहां रोज़रोज़ इज़्ज़त नीलाम होने से तो कुछ सही ही रहेगा कि किसी एक मर्द से बंध कर रहे.

और इसी उम्मीद में झुमकी उस आदमी के साथ चली गई. जाते समय झुमकी का मन तो भारी  था पर इतनी खुशी ज़रूर थी कि उसे बेचने के बदले में उस के पिता को जो पैसे मिल जाएंगे उन के बदले वह कुछ दिन आराम से शराब पी सकेगा.

और इस तरह बिहार के एक गांव से चल कर झुमकी उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में पहुंच गई.

“यह रहा हमारा कमरा,” संजय ने एक छोटे से कमरे में घुसते हुए कहा.

उस कमरे में कोई भी बिस्तर नहीं था, सिर्फ एक गद्दे पर चादर डाल कर उसे लेटने की जगह में तबदील कर दिया गया था. और इस समय उस गददे पर  2 आदमी बैठे हुए झुमकी को फाड़खाने की नज़रों से देख रहे थे.

“अरे, इन से शरमाने की ज़रूरत नहीं है. ये दोनों हमारे बड़े भाई हैं- विजय भैया और मनोज भैया. हम लोग  मजदूरी करते हैं और ये दोनों भी हमारे साथ इसी कमरे में रहते हैं. और एक बात बता  दें तुम्हें कि तुम्हें हमारे साथसाथ इन का भी ध्यान रखना होगा,” संजय कुमार ने ज़मीन पर बैठते हुए कहा.

“हम भाइयों ने दिन बांट रखे हैं. हफ्ते के पहले 2 दिन तुम को बड़े भैया के साथ सोना होगा और उसके बाद के 2 दिन तुम  मझले भैया के साथ सोओगी और मैं सब से छोटा हूं, इसलिए सब से बाद में मेरा नंबर आएगा.  तुम को शर्म न आए, इस के लिए हम बीच में एक परदा डाल लेंगे,” संजय ने बड़ी सहजता से ये सारी बातें कह डाली थीं.

“क….क्या मतलब,” चौंक उठी थी झुमकी.

“यही कि हम 3 भाई हैं और हमारे आगेपीछे माईबाप कोई नहीं हैं जो हम लोगों का ब्याह करवा सके  और न ही हम लोगों के पास इतना पैसा है कि हम लोग अलगअलग रहें और अपने लिए अलगअलग बीवी रख सकें. इसीलिए हम ने 3 भाइयों के बीच में एक ही बीवी खरीद कर रखने का प्लान  बनाया.”

संजय कुमार की बात सुन कर जब झुमकी ने 3 पतियों की बीवी बनने से इनकार किया

तो तीनों ने उस के पिता को पूरे पैसे देने की बात कह कर बारीबारी से झुमकी के साथ मुंह काला किया और बाद में तृप्त हो कर गहरी नींद में सो गए और जब वे तीनों  आधी रात के बाद नींद की आगोश में थे, तब झुमकी दबेपांव वहां से भाग निकली और ढूंढतेढांढते पुलिस स्टेशन पहुंची और थानेदार को पूरी कहानी बताई.

“अरे, तो इस में बुराई ही क्या थी. और फिर, तुम्हें तो गांव में भी ऊंची जाति के लोगों के साथ सोने की आदत थी ही. यहां भी तीनों को खुश कर के रहतीं, तो वे सब रानी बना कर रख़ते. तुम छोटी जाति वालों के साथ यही समस्या है कि ज़रा सी बात में ही शोर मचाने लगते हो. अब रात के 3 बजे तू यहां आई है और मैं ने तेरी रिपोर्ट  भी लिख ली है. अब अगर बदले में तू मुझे थोड़ा खुश कर देगी, तो तेरा कुछ घिस थोड़े ही जाएगा,” यह कह कर थानेदार ने मेज़ पर ही झुमकी को लिटा दिया और उस का बलात्कार कर डाला.

रोती रही झुमकी. आज उसे कलुआ बहुत याद आ रहा था. उस ने एक नज़र थानेदार पर डाली

जो अपनी शर्ट और पैंट को संभालने की कोशिश कर रहा था.

सुबह हो रही थी. झुमकी भारी मन से उठी और बाहर निकल गई. कमज़ोरी, थकान और अपने ऊपर हुए जुल्मों के कारण उस से चला भी न जा रहा था. झुमकी किसी तरह सड़क तक पहुंची और सड़क पर ही गिर कर बेहोश हो गई.

झुमकी को होश आया, तो उस ने अपनेआप को बिस्तर पर पाया और उस की आंखों के सामने एक युवक खड़ा मुसकरा रहा था.

युवक की आंखों पर हलके लैंस का चश्मा और चेहरे पर घनी दाढ़ी थी.

“घबराओ नहीं, तुम सुरक्षित जगह हो. तुम सड़क पर बेहोश हो गई थीं. संयोग से मैं वहीं से गुज़र रहा था. तुम्हें देखा, तो यहां ले आया.” वह युवक इतना बोल कर चुप हो गया.

झुमकी अब भी उस को प्रश्नवाचक नज़रों से देख रही थी.

“मैं एक समाजसेवक हूं. मेरा नाम मलय है  और तुम जैसे गरीब व पिछड़े लोगों की मदद करना ही मेरा काम है. थोड़ा आराम कर लो और फिर मैं तुम से पूछूंगा कि तुम्हारी यह हालत किस ने कर दी है.”

वह मुसकराता हुआ वहां से चला गया और झुमकी की देखभाल के लिए एक नर्स वहां आ गई. कुछ घंटों बाद जब मलय वहां आया तो झुमकी अपनेआपको तरोताज़ा महसूस कर रही थी और पहली बार उसे ऐसा लग रहा था कि वह सुरक्षित हाथों में है.

झुमकी ने अपने साथ बीती हुई सारी बातें मलय को बता दीं. सुन कर मलय काफी दुखी हुआ और उस को न्याय दिलाने का वादा किया.

झुमकी की सेहत भी अब ठीक हो रही थी और अब भी वह मलय के सर्वेंटरूम में ही रह रही थी.

एक रात को 10 बजे मलय उस सर्वेंटरूम में आया. वह अपने साथ एक बाम ले कर आया था.

“मेरे सिर में बहुत दर्द है, ज़रा बाम तो लगा दो झुमकी, ” मलय ने झुमकी के बिस्तर पर लेटे हुए कहा.

झुमकी बाम लगाने लगी मलय के माथे पर. मलय उसे लगातार घूरे जा रहा था. अचानक कुछ अच्छा नहीं लगा  झुमकी को.

“मैं सोच रहा हूं कि भले ही तुम नीच जाति की हो, तुम्हारे साथ इतने लोगों ने बलात्कार किया, तो ज़रूर तुम में कोई कशिश रही होगी और मुझे लगता है कि उन्होंने कोई गलती नहीं करी,” कह कर मलय चुप हो गया.

झुमकी ने बाम लगाना बंद कर दिया और दूर जाने लगी.

तभी पीछे से उस ने अपनी पीठ पर मलय का हाथ महसूस किया. वह कुछ बोल पाती, इस से पहले ही मलय ने झुमकी को पकड़ कर बिस्तर पर गिरा दिया और उस का बलात्कार कर दिया.

झुमकी एक बार फिर उस नरक के अनुभव से गुज़र रही थी. लेकिन इस बार वह सहेगी नहीं,

वह बदला लेगी. पर कैसे?

गुस्से में झुमकी ने कोने में पड़ा हुआ एक छोटा सा चाकू उठाया और पूरी ताकत से मलय पर वार कर दिया. मलय के हाथ पर हलाकि सी खरोंच आई. मलय नशे में तो था ही, खरोंच लगने से उसे और क्रोध आ गया और उस ने अपने दोनों हाथ झुमकी के गरदन पर कस दिए और अपना दबाव बढ़ाता गया. एक समाजसेवक  बलात्कारी के साथसाथ खूनी भी बन गया था.

और झुमकी, जो एक गांव में जन्म ले कर शहर तक आई, पिता से ले कर उस के जीवन में जो भी आया उसे झुमकी में सिर्फ वासनापूर्ति का साधन दिखाई दिया. यह उस के एक औरत होने की सज़ा थी या एक गरीब होने की या एक दलित महिला होने की एक प्रश्नचिन्ह अब भी बाकी है???

पवित्र पापी: अमृता बाबा के गलत इरादों को क्यों बढ़ावा देती थी?

अमृता इसी आश्रम में ब्याह कर आई थी. आश्रम बहुत बड़ी जमीन पर फैला हुआ था. आश्रम के नाम पर बहुत बड़ी जमींदारी थी. गांवों में जमीनें थीं. खूब चढ़ावा आता था. कई जगह मंदिर थे जिन में पुजारियों को तनख्वाह मिलती थी. अमृता का ससुर पंडित मोहनराम आश्रम की जमींदारी संभालता था. यहीं पर ही वह रहता था. उस का अलग से मकान इसी आश्रम के पिछवाडे़ में बना हुआ था.

बडे़ महाराज का नाम दूरदूर के गांवों में था. उन्होंने कई किताबें लिखी थीं. बहुत बडे़बडे़ कार्यक्रम यहीं होते थे. तब स्वरूपानंदजी काशी से पढ़ कर आए थे. पहले वह ब्रह्मचारी ही रहे, बाद में बडे़ महाराज ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया था और मरने के  बाद स्वरूपानंद ने जब गद्दी संभाली तो आश्रम को नया होना ही था.

तब अमृता बाबा स्वरूपानंद की महिला शाखा की  कर्ताधर्ता थी. उसी ने हर बार स्वरूपानंद की शोभायात्रा भी निकाली थी. वसंत पंचमी पर जो फूल- डोल का कार्यक्रम होता था उस में अमृता सैकड़ों महिलाओं के साथ वसंती कपडे़ पहन कर बाबा स्वरूपानंद के साथ गुलाल उछलवाती थी. बाबा की गाड़ी हमेशा इत्र की खुशबू से महकती रहती.

अमृता का पति रामस्वरूप हमेशा या तो भांग पिए रहता या बाबा की जमींदारी में गया होता और अमृता मानो खुद ही आश्रम की हो कर रह गई हो. कभी मंदिर में कभी भंडार में, कभी अतिथिशाला में, भागतेदौड़ते अमृता को देख यही लगता था मानो आश्रम का सारा भार उसी पर हो.

कब बेटा हुआ, कब बड़ा हुआ, उसे पता नहीं. हां, बेटा होने पर बाबा ने उसे 20 तोला सोना दिया था. मकान पक्का कराया, फ्रिज दिया, उसे वह सबकुछ याद है.

उस रात जब वह मंदिर के पट बंद कर नीचे आ रही थी तब बाबा स्वरूपानंद ने अचानक उस का हाथ पकड़ा और उसे बांहों में भींच लिया. उसे तब लगा कि जैसे उस का रोमरोम जल रहा हो. बाबा की उंगलियां उस की पीठ पर रेंग रही थीं. उस की आंखें बंद होने लगीं. फिर क्या उसे याद नहीं. वह तो बाबा की बांहों में एक नशे में थी.

सुबह जब इत्र से भीगी बाबा की गद्दी पर उस की आंखें खुलीं तो वह खुद अपनी देह को देख कर लजा गई थी. लगा, पंखडि़यां अब खिल गई हैं. उस की आस पूरी हुई. पूरी औरत हो गई है वह. उस ने देखा स्वरूपानंद की धोती खुली पड़ी थी. उस ने ठीक की तो बाबा को मुसकराते देखा और चुपचाप नीचे उतर गई.

बाबा का अंश उस के गर्भ में था. वह अपनी साधना यात्रा पर गतिशील रही. उस का परिवार फलताफूलता रहा. रामस्वरूप अस्वस्थ हो गया. अधिक भांग का नशा और अस्तव्यस्त जीवन के चलते रोगों ने उसे जकड़ लिया था. बाबा ने उस का इलाज करवाया, अस्पताल में भरती भी कराया पर बिगड़ी तबीयत सुधरी ही नहीं और एक दिन वह भी चल बसा. तब उस का काम धर्मस्वरूप ने संभाला. बाबा ने उसे एक मोटरसाइकिल भी दिला दी थी. वह पढ़ालिखा था. उस का विवाह भी कर दिया.

बाबा ने जब से मंगला को अमृता के साथ देखा तभी से उन्हें लग रहा था मानो आंखों के सामने हजार बिजलियां कौंध गई हों. जब मंगला ब्याह कर आई थी तब पतलीदुबली थी. चेहरा भी मलीन हुआ रहता था पर अमृता का प्यार और उस की देखभाल तथा आश्रम के तर भोजन से उस की देह भर आई थी. जब उस के बेटा हुआ तो अमृता ने पूरे आश्रम वालों को भोजन पर बुलाया था.

उस रात बाबा ने अमृता का हाथ पकड़ कर कहा था, ‘‘मंगला तो गदरा गई है.’’

‘‘चुप, चुप करो, तुम्हारी बहू है.’’

‘‘मेरी,’’ बाबा हंसा, ‘‘जोगीअवधूत किसी के नहीं होते.’’

‘‘तुम यह किस से कह रहे हो?’’

‘‘तुझ से, तू ने मेरा बहुत माल खाया है.’’

‘‘मैं ने तुझे अपना शरीर भी तो दिया है. मुफ्त में कोई किसी को कुछ नहीं देता.’’

‘‘बहुत बोलने लग गई है.’’

‘‘याद रखना, मंगला मेरी ही नहीं तेरी भी बहू है. उस पर निगाह डाली तो आंखें नोच लूंगी.’’

‘‘यह तू कह रही है.’’

‘‘हांहां,’’ उस ने अपनी साड़ी को ठीक करते हुए कहा, ‘‘तेरा मुझ से मन भर गया है यह तो मुझे तभी पता लग गया था जब उस सेठ की लुगाई को मैं ने यहां देखा था, पर मैं तुझे यह बता देना चाहती हूं कि मेरा मुंह मत खुलवाना. सब धरा रह जाएगा…यह नाम, यह इज्जत, यह शोहरत. कइयों का बाप है तू, यह मैं जानती हूं,’’ इतना कह कर अमृता जोरों से हंसी. उस की उस हंसी में भय नहीं था एक उद्दाम अट्टहास था.

बाबा स्वरूपानंद अवाक्रह गया, फिर धीरे से बोला, ‘‘चुप कर, तेरा मुंह बंद कर दूंगा. बोल, क्या चाहिए तुझे? इतना दिया है पर तेरा मन नहीं भरा है.’’

‘‘सवाल मन का नहीं, मेरे घर का है. मंगला मेरी बहू है. शर्म कर…’’

उस रात जो तनातनी हुई थी वह बढ़ती ही जा रही थी. अमृता आश्रम में आती, अपना काम करती, मंदिर की पहले की तरह सफाई का पूरा ध्यान रखती और अपना सारा काम कर घर चली जाती.

अब फूलडोल का महोत्सव आ गया था. कई दिन से तैयारियां हो रही थीं. ठाकुरजी का शृंगार होता था. महात्मा लोग प्रवचन करने आते थे. भास्करानंद भी तभी वहां आए हुए थे. बडे़ महाराज के ये प्रिय शिष्य थे. बाद में जब स्वरूपानंदजी गद्दी पर बैठे तो वह उनियारा चले गए थे. वहां भी आश्रम था. वह वहां की गद्दी संभालते थे.

उन दिनों स्वामी मृगयानंद के आश्रम से 2 छोटे बालक भी आश्रम में आए हुए थे. कम उम्र में ही दोनों ने आश्रम में प्रवेश ले लिया था. भास्करानंद उन्हें धर्मशास्त्र पढ़ाया करते थे. उन की देखभाल अमृता के जिम्मे थी.

उस दिन जब वह रात को भंडारगृह में ताला लगवा कर लौट रही थी कि तभी रसोइया नानकचंद दूध का गिलास ले कर आ गया.

‘‘अरे, तू कहां जा रहा है?’’ वह बोली.

‘‘भास्करानंदजी ने दूध मंगवाया है.’’

‘‘वे दोनों छोटे महाराज कहां हैं?’’

‘‘एक तो कमरे में है, दूसरे को महाराज ने पढ़ने के लिए बुलाया था.’’

वह नानकचंद के साथ भास्करानंद के कक्ष की तरफ बढ़ गई.

उधर कक्ष में भास्करानंद ने बालक दीर्घायु को अपने बहुत पास बैठा लिया था और रजिस्टर पर कुछ संस्कृत में लिख कर उसे पढ़ने को दे रहे थे.

‘‘इधर देखो,’’ और उन्होंने बालक दीर्घायु का हाथ पकड़ कर अपनी दोनों जांघों के बीच खींच लिया था. वह लड़खड़ाया और तेजी से उस का मुंह उन की गोदी में आ गिरा था. जब तक बालक दीर्घायु संभलता उन्होंने उसे भींचते हुए चूमना शुरू कर दिया था.

उस के गले से निकली हलकी सी चीख को सुन कर अमृता उधर ही दौड़ी. पीछेपीछे नानकचंद भी दूध को संभालता हुआ दौड़ रहा था. अमृता दौड़ती हुई उस कक्ष के दरवाजे तक पहुंच गई और जोर का धक्का दे कर दरवाजा खोल दिया.

दरवाजा खुलने के साथ ही भास्करानंद सकपका कर दूर सरक गया था और बालक दीर्घायु घबराया हुआ अमृता के पास आ गया.

‘‘क्या कर रहा था नीच? अरे अधर्मी, तुझे शर्म नहीं आती. तेरा पुराना चिट््ठा सब को याद है. यहां ज्ञान चर्चा करने आया है…’’

‘‘तू चुप रह, तू कौन सी दूध की धुली है. यहां तुझे कौन नहीं जानता कि तू स्वरूपानंद की रखैल है.’’

‘‘चुप कर वरना मुंह नोच लूंगी.’’

तब तक स्वरूपानंद भी वहां पहुंच गया. उस ने भास्करानंद को चुप रहने का आदेश दिया और बालक दीर्घायु को ले कर वह उस के कक्ष की तरफ चला गया.

नानकचंद रसोई की तरफ और अमृता जीने से नीचे उतर कर अपने घर की तरफ बढ़ गई.

रास्ते में बाबा ने उस के कदमों की आवाज पहचान कर खंखारा. वह ठिठकी.

‘‘क्या है?’’

‘‘बहुत नाराज हो?’’

वह चुप रही.

‘‘धर्मस्वरूप को एक एसटीडी, पीसीओ खुलवा देते हैं. बाहर सड़क पर उस की दुकान बनवा देंगे.’’

सुन कर अमृता सकपकाई.

‘‘और बहू तो अपनी है, कुछ सोना उस के लिए खरीदा है, ले जाना.’’

अमृता ने सुना और आगे बढ़ गई.

धर्मस्वरूप खाना खा कर अपने कमरे में चला गया था. मंगला भी रसोई का काम पूरा कर सोने चली गई. अमृता नीचे के कमरे में पलंग पर लेटी रही पर आंखों में नींद नहीं थी. घंटे भर बाद जब अंधेरा और बढ़ गया तो वह पलंग से उठी तथा आंगन से होती हुई पीछे की गली में चल कर जीने से होती हुई सीधी आश्रम के पिछवाडे़ में पहुंच गई.

बाबा स्वरूपानंद के कमरे में हलकी रोशनी थी. यहीं पर मोगरे की टोकरी भी रखी हुई थी. चारों ओर खुशबू फैल रही थी.

‘‘आओ…’’ बाबा ने मुसकरा कर अमृता का स्वागत किया क्योंकि आज उस ने कुछ और ही सोच रखा था. बड़ा बोरा मंगवा रखा था. बंद गाड़ी की चाबी आज उसी के पास थी. तालाब के किनारे बडे़ पत्थर भी रखवा लिए थे. यानी अमृता की जल समाधि का पूरा इंतजाम हो चुका था. बाबा सोच रहा था कि अमृता बहुत बोलने लगी है, इस को भी मुक्ति मिल जाएगी.

‘‘तू तो अब पूरी पराई हो चली है,’’ बाबा ने उसे बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘ले, यह सोने का बड़ा सा हार बहू के लिए है.’’

‘‘बहू? यह तुम कह रहे हो?’’

‘‘हां,’’ बाबा का स्वर धीमा था.

बाबा उठे, बाहर का दरवाजा बंद कर दिया. हलकी सी रोशनी थी. अमृता उन के साथ बिस्तर पर थी. साड़ी मेज पर पड़ी थी. अचानक बाबा मुडे़ और तकिया उठा कर उस की गर्दन के ऊपर रख दिया.

अमृता का गला भिंच गया था. सांस नहीं ले पा रही थी. बाबा लगातार तकिए पर दबाव डालता रहा. वह उस के ऊपर आ कर बैठ गया.

वह निढाल हो गई थी. कुछ ही देर में उस की सांसें उखड़ जातीं, पर उस के पहले ही उस ने पूरी ताकत से बाबा को एक धक्का दिया. बाबा संभलता इस के पहले उस ने पास में रखा चिमटा पूरी ताकत से स्वरूपानंद के सिर पर दे मारा. वह तेजी से उठी और पास टंगी बाबा की तलवार उतार कर पूरी ताकत से बाबा की गरदन पर दे मारी. बाबा खून से लथपथ चीख रहा था.

शोर मच गया. वह तेजी से पिछवाडे़ के जीने से होती हुई नीचे उतर गई.

पुलिस आई. बाबा के बयान लिए गए. वह बोला, ‘‘मैं सो रहा था, तब किसी ने मुझ पर हमला किया. मेरे चीखने पर वह भाग गया.’’

अमृता के लिए वह कुछ नहीं बोला था. जानता था, एक शब्द भी बोला तो बदनामी उसी की होगी.

अमृता उस रात के बाद वहां नहीं दिखी. जब तक बाबा स्वरूपानंद अस्पताल से आश्रम लौटते वह उस के पहले बहुत दूर अपने परिवार के साथ जा चुकी थी. उस के घर के दरवाजे पर बहुत बड़ा ताला लटका हुआ था.

शोर करती चुप्पी : कैसा थी मानसी की ससुराल- भाग 4

वह पहले से जल्दी उठता. दोनों भागदौड़ कर तैयार होते. बैडरूम ठीक करते. अपनेअपने कपड़े प्रैस करते, उन्हें अलमारियों में लगाते. नाश्ते के लिए एक टोस्ट सेंकता तो दूसरा कोल्ड कौफी बनाता. एक कौर्नफ्लैक्स बाउल में डालता तो दूसरा दूध गिलास में. एक औमलेट बनाता तो दूसरा टोस्ट पर बटर लगाता. सुजाता खुद कामकाजी थीं. इसलिए उन की बहुत अधिक मदद नहीं कर सकती थीं. बस, घर की व्यवस्था उन्हें ठीकठाक मिल रही थी. राशनपानी, सब्जी कब कहां से आएगा, कामवाली कब काम करेगी, खाना कब बनेगा, इस का सिरदर्द न होना भी बहुत बड़ी मदद थी. इसलिए व्यक्तिगत स्तर पर मदद को ले कर वे चुप ही रहती थीं.

लेकिन परिमल को हर कदम पर अवनी का साथ व स्वतंत्रता देते देख, सुजाता को अपना जीवन व्यर्थ जाया जाने जैसा लगता. वे खुद तो कभी नौकरी व घर के बीच पूरी ही नहीं पड़ीं. ऊपर से सारे रिश्तेनाते. अवनी को तो रिश्तेनाते निभाने की कोई फिक्र ही नहीं थी. यहां तक तो उस की न तो सोच जाती न ही समय था. उस पर भी अब परिवार छोटे. एक टाइम की चाय भी नहीं पिलानी है. और फिर व्हाट्सऐप…चाय की प्याली भी गुडमौर्निंग के साथ व्हाट्सऐप पर भेज दो, और जरूरत पड़ने पर बर्थडे केक भी, यह सब सोच कर सुजाता मन ही मन मुसकराईं.

अवनी की पीढ़ी की लड़कियों ने जैसे एक युद्ध छेड़ रखा है. वर्षों से आ रही नारी की पारंपरिक छवि के विरुद्ध सुजाता सोचतीं, भले ही कितना कोस लो आजकल की लड़कियों को, सच तो यह है कि सही मानो में वे अपना जीवन जी रही हैं. मुखरित हो चुकी हैं, यह पीढ़ी ऐसा ही जीवन शायद उन की पीढ़ी या उन से पहले और उन से पहले की भी पीढ़ी की लड़कियों ने चाहा होगा पर कायदे और रीतिरिवाजों में बंध कर रह गईं. पुरुषों के बराबर समानता स्त्रियों को किसी ने नहीं दी. लेकिन यह पीढ़ी अपना वह अधिकार छीन कर ले रही है.

फिर विकास तो अपने साथ कुछ विनाश तो ले कर आता ही है. गेहूं के साथ घुन तो पिस ही जाता है. अवनी और परिमल दोनों आजकल अत्यधिक व्यस्त थे. रात में भी देर से लौट रहे थे. वर्कलोड बहुत था. दोनों के रिव्यू होने वाले थे. घर आ कर दोनों जैसातैसा खा कर दोचार बातें कर के औंधे मुंह सो जाते. छुट्टी के दिन भी दोनों लैपटौप पर आंखें गड़ाए रहते.

मानसी की बेचैनी सीमा पार कर रही थी. उस में सुजाता जैसा धैर्य नहीं था. न ही वह सुजाता की तरह व्यस्त थी. इसलिए नई पीढ़ी की अपनी बहू के क्रियाकलापों को भी सहजता से नहीं ले पाती और अपनी भड़ास निकालने के लिए बेटी के कान भी उपलब्ध नहीं थे. मां के दुखदर्द सुनना अवनी की पीढ़ी की लड़कियों की न आदत है न फुरसत. पर बेटी से मोह कम कर बहू से मोह बढ़ाना मानसी जैसी महिलाओं को भी नहीं आता.

यदि अवनी ससुराल में न रह कर कहीं अलग रह रही होती तो मानसी अब तक आ धमकती. पर नएनए समधियाने में जा कर रहने में पुराने संस्कार थोड़े आड़े आ ही जाते थे. बेटी तो 2-4 बातें कर के फोन रख देती पर जबतब सुजाता से बात कर वह अपनी भड़ास निकाल लेती.

उन का इस कदर पुत्रीमोह देख कर सुजाता को अजीब तरह का अपराधबोध सालने लगता. जैसे उन की बेटी को उन से अलग कर के उन्होंने कोई गुनाह कर दिया हो. उन्हें कभी मानसी की फोन पर कही अजीबोगरीब बातों से चिड़चिड़ाहट होती तो कभी खुद भी एक बेटी की मां होने के नाते द्रवित हो जातीं.

बेटी से प्यार तो सुजाता को भी बहुत था. पर उस की व्यस्तता उन्हें प्यार जताने तक का समय नहीं देती, मोह की कौन कहे. पर मानसी की हालत देख कर उन्हें लगता कि सच ही कहते हैं, ‘खाली दिमाग शैतान का घर.’ हर इंसान को कहीं न कहीं व्यस्त रहना चाहिए. नौकरी ही जरूरी नहीं है और भी कई तरीके हैं व्यस्त रहने के. उस का दिल करता किसी दिन इतमीनान से समझाए मानसी को कि बच्चों से मोह अब कुछ कम करे और खुद की जिंदगी से प्यार करे.

अभी 55-56 वर्ष की उम्र होगी उन की. बहुत कुछ है जिंदगी में करने के लिए अभी. हर समय बेटीबेटी कर के, उस के मोह में फंस कर, वह खुद की भी जिंदगी बोझ बना रही है और बेटी की जिंदगी में भी उलझन पैदा कर रही है. अवनी की पीढ़ी की लड़कियों की जिंदगी व्यस्तताभरी है. इस पीढ़ी को कहां फुरसत है कि वह मातापिता, सासससुर के भावनात्मक पक्ष को अंदर तक महसूस करे. लेकिन समझा न पाती, रिश्ता ही ऐसा था.

इसी बीच, कंपनी ने अवनी को 15 दिन की ट्रेनिंग के लिए चेन्नई भेज दिया. अवनी जाने की तैयारी करने लगी. घर में किसी के मन में दूसरा विचार ही न आया. एक आत्मनिर्भर लड़की को औफिस के काम से जाना है, तो बस जाना है. लेकिन अवनी की मम्मी बेचैन हो गई.

‘‘कैसे रहेगी तू वहां अकेली इतने दिन. कभी अकेली रही नहीं तू. दिल्ली में भी तू अपनी फ्रैंड के साथ रहती थी,’’ मानसी कह रही थी. सुजाता को भी मोबाइल की आवाज सुनाई दे रही थी.

‘‘अकेले का क्या मतलब मम्मी. नौकरी में तो यह सब चलता रहता है. कंपनी मुझे भेज रही है. आप हर समय चिंता में क्यों डूबी रहती हैं. ऐसा करो आप और पापा कुछ दिनों के लिए कहीं घूम आओ या ऐसा करो गरीब बच्चों को इकट्ठा कर के आप पढ़ाना शुरू कर दो,’’ अवनी भन्नाती हुई बोली. अवनी की बात सुन कर सुजाता की हंसी छूटने को हुई.

‘‘तू हर समय बात टाल देती है. मैं तुझे अकेले नहीं जाने दे सकती. मैं चलती हूं तेरे साथ.’’

‘‘ओफ्फो मम्मी, आप का वश चले तो मुझे वाशरूम भी अकेले न जाने दो. मेरी शादी हो गई है अब. जब यहां किसी को एतराज नहीं तो आप क्यों परेशान हो रही हैं. मेरे साथ जाने की कोई जरूरत नहीं.’’

‘‘मां की चिंता तू क्या जाने. जब मां बनेगी तब समझेगी,’’ मानसी की आवाज भर्रा गई.

‘‘मां, अगर इतनी चिंता करती हैं तो मुझे मां ही नहीं बनना. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. मैं फोन औफ कर रही हूं. मुझे औफिस का जरूरी काम खत्म करना है.’’

‘‘अच्छा, फोन औफ मत कर. जरा मम्मी से बात करा अपनी.’’

अवनी ने फोन सुजाता को पकड़ा दिया. आज मानसी की बातें सुन कर सुजाता का दिल किया कि बुरा ही मान जाए मानसी पर वे अब चुप नहीं रहेंगी, अपनी बात बोल कर रहेंगी. वे फोन पर बात करतेकरते अपने कमरे में आ कर बैठ गईं.

‘‘देख रही हैं आप. कैसे रहेगी वहां अकेली. मुझे भी मना कर रही है. आप परिमल से कहिए न कि छुट्टी ले कर उस के साथ जाए.’’ उस की बेसिरपैर की बात पर झुंझलाहट हो गई सुजाता को.

‘‘परिमल के पास इतनी छुट्टी कहां है मानसीजी. और फिर यह तो शुरुआत है. जैसेजैसे नौकरी में समय होता जाएगा, ऐसे मौके तो आते रहेंगे. आप चिंता क्यों कर रही हैं. आप ने उच्च शिक्षा दी है बेटी को तो कुछ अच्छा करने के लिए ही न. घर बैठने के लिए तो नहीं. समझदार व आत्मविश्वासी लड़कियां हैं आजकल की. इतनी चिंता करनी छोड़ दीजिए आप भी.’’

‘‘कैसी बात कर रही हैं आप. कैसे छोड़ दूं चिंता. आप नहीं करतीं अपनी बेटी की चिंता?’’

‘‘मैं चिंता करती हूं मानसीजी, पर अपनी चिंता बच्चों पर लादती नहीं हूं.’’ सुजाता का दिल किया, अगला वाक्य बोले, ‘और न बेटी की सास को जबतब कुछ ऐसावैसा बोल कर परेशान करती हूं,’ पर स्वर को संभाल कर बोलीं, ‘‘बच्चों की अपनी जिंदगी है. यदि बच्चे अपनी जिंदगी में खुश हैं तो बस मातापिता को चाहिए कि दर्शक बन कर उन की खुशी को निहारें और खुद को व्यस्त रखें. आज की पीढ़ी बहुत व्यस्त है, इन की तुलना अपनी पीढ़ी से मत कीजिए. इस का मतलब यह नहीं कि बच्चों को हम से प्यार नहीं, पर उन की दिनचर्या ही ऐसी है कि कई छोटीछोटी खुशियों के लिए उन के पास समय ही नहीं है या कहना चाहिए खुशियों के मापदंड ही बदल गए हैं उन की जिंदगी के.’’

मानसी एकाएक रो पड़ी फोन पर. सुजाता का दिल पसीज गया. लेकिन सोचा, आखिर बेटी से मोह भंग तो होना ही चाहिए मानसी का.

‘‘मानसीजी, क्यों दिल छोटा कर रही हैं. अवनी आप की बेटी है और जिंदगीभर आप की बेटी रहेगी. लेकिन एक बच्ची आप के पास भी है. उसे भी अवनी के नजरिए से देखेंगी तो वह भी उतनी ही अपनी लगेगी. प्यार कीजिए बच्चों से, पर अपना प्यार, अपना रिश्ता लाद कर उन की जिंदगी नियंत्रित मत कीजिए. बल्कि, अपनी जिंदगी खुशी से जीने के तरीके ढूंढि़ए. अभी हमारी ऐसी उम्र नहीं हुई है. खूबसूरत उम्र है यह तो. सब जिम्मेदारियों से अब जा कर फारिग हुए हैं. अपने छूटे हुए शौक पूरे कीजिए. अब वे दिन लद गए कि बच्चों की शादी की और बुढ़ापा आ गया. अब तो समय आया है एक नई शुरुआत करने का.’’

मानसी चुप हो गई. सुजाता को समझ नहीं आ रहा था कि मानसी उन की बात कितनी समझी, कितनी नहीं. उसे अच्छा लगा या बुरा. ‘‘आप सुन रही हैं न,’’ वे धीरे से बोलीं.

‘‘हूं…’’

‘‘मैं आप का दिल नहीं दुखाना चाहती, बल्कि बड़ी बहन की तरह आप का साथ देना चाहती हूं. अवनी खुश है अपनी जिंदगी में. व्यस्त है अपनी नौकरी में. आप के पास कम आ पाती है, कम बात कर पाती है तो क्या आप सोचती हैं कि वह हमारे पास रहती है, तो हमारी बहुत बातें हो जाती हैं. आप दूर हैं, फिर भी फोन पर बात कर लेती हैं, लेकिन मैं तो जब उसे अपने सामने थका हुआ देखती हूं तो खुद ही बातों में उलझाने का मन नहीं करता. छुट्टी के दिन बच्चे काफी देर से सो कर उठते हैं. फिर उन के हफ्ते में करने वाले कई काम होते हैं. शाम को थोड़ाबहुत इधरउधर घूमने या मूवी देखने चले जाते हैं.

‘‘यदि इस तरह से हम हर समय अपनी खुशियों के लिए बच्चों का मुंह देखते रहेंगे तो हमारी खुशियां रेत की तरह फिसल जाएंगी मुट्ठी से और हथेली में कुछ भी न बचेगा. इसीलिए कहा इतना कुछ. अगर मेरी बात का बुरा लगा हो तो क्षमा चाहती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, आप की बात का बुरा नहीं लगा मुझे. बल्कि आप की बात पर सोच रही हूं. बहुत सही कह रही हैं. अवनी भी जबतब कुछ ऐसा ही समझाती है मगर झल्ला कर. मैं भी कोई नई राह ढूंढ़ती हूं. आप नौकरी में व्यस्त हैं, इसीलिए जिंदगी को सही तरीके से समझ पा रही हैं शायद.’’

‘‘नौकरी के अलावा भी बहुत से रास्ते हैं जिंदगी में व्यस्त रहने के. मैं भी रिटायरमैंट के बाद कोई नया रास्ता ढूंढ़ूंगी. आप भी सोच कर ढूंढि़ए और ढूंढ़ कर सोचिए,’’ कह कर सुजाता हंस दी.

‘‘हां जी, आप बिलकुल ठीक कह रही हैं. कब जा रही है अवनी?’’

‘‘परसों सुबह की फ्लाइट से.’’

‘‘ठीक है. कल रात उसे ‘गुड विशेज’ का मैसेज कर दूंगी,’’ कह कर मानसी खिलखिला कर हंस पड़ी और साथ ही सुजाता भी.

वर्जित फल: जेठ को देख कर क्या फिसली मालती?

मालती ने जिस साल बीए का का इम्तिहान पास किया था, उसी साल से उस के बड़े भाई ने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया था.

इस सिलसिले में राकेश का पता चला, जो इंटर कालेज, चंपतपुर में अंगरेजी पढ़ाता है. वे 2 भाई हैं. उन के पास 8 एकड़ जमीन है, जिस पर राकेश का बड़ा भाई खेती करता है.

राकेश के घर वालों ने मालती को देखते ही शादी के लिए हां कह दी और शादी की तारीख तय करने के लिए कहा. उन की बात सुन कर मालती की मां ने कहा, ‘‘बहनजी,

अभी लड़के ने तो लड़की देखी नहीं है. उन्हें भी लड़की दिखा दी जाए. आखिर जिंदगी तो उन दोनों को ही एकसाथ गुजारनी है.’’

इस पर राकेश की मां ने जवाब दिया, ‘‘हमारा राकेश बहुत सीधा और संकोची स्वभाव का है. हम ने उस से लड़की देखने के लिए बारबार कहा, मगर

उस ने हर बार यही कहा, ‘‘आप लोग पहले लड़की देख लीजिए. जो लड़की आप को पसंद होगी, वही मुझे भी  पसंद होगी.’’

उन की बात सुन कर सभी लोग राकेश की तारीफ करने लगे, केवल मालती ही मन मसोस कर रह गई. उसे इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि  क्या केवल लड़के को ही हक है कि वह अपना जीवनसाथी पसंद करे, लड़की को इस का हक नहीं है? उसे इतना भी हक नहीं है कि उसे जिस  के साथ जिंदगी बितानी है, उसे शादी  के पहले एक झलक देख ले.

शादी की तारीख तय होने के साथ ही परिवार में त्योहार का सा माहौल बन गया और देखते ही देखते बरात मालती के दरवाजे पर आ गई.

मालती की सखियां उसे सजा कर जयमाल के लिए सजाए गए मंच की ओर ले कर पहुंचीं. मालती हाथों में वरमाला लिए सखियों के साथ जब मंच पर पहुंची, तो वर पर नजर पड़ते ही वह सन्न रह गई. हड्डियों का ढांचा सिर पर मौर धरे उस के सामने खड़ा था.

मालती का चेहरा अपने वर को देख कर उतर गया. उस की इच्छा हुई कि  वह जयमाल को तोड़  कर फेंक दे और वहां से भाग जाए.

कैसेकैसे सपने देखे थे उस ने अपने जीवनसाथी के बारे में और यह कैसा जोड़ मिला है.

मालती यह सब सोच ही रही थी, तभी उस की बड़ी बहन ने उस का हाथ कस कर दबा दिया. उस की चेतना लौटी और उस ने बुझे मन से राकेश के गले में जयमाल डाल दी.

वर को देख कर हर कोई उस पर टिप्पणी कर रहा था. उन की बात सुन कर कुछ जिम्मेदार औरतों ने हालात संभालते हुए कहा, ‘कुछ लोगों की सेहत शादी के बाद सुधर जाती है. जब पत्नी के हाथ का भोजन करेगा, तो उस की सेहत सुधर जाएगी.

शादी के बाद मालती जब ससुराल पहुंची, तो घर की अच्छी हालत देख कर उसे कुछ तसल्ली हुई. ससुराल में उस के रूपरंग की खूब तारीफ हुई. उस की ननद और जेठानी ने उस की सुहागरात के लिए फूलों की सेज तैयार कराई और रात के साढ़े 9 बजे वे दोनों मालती के साथ हंसीमजाक करते हुए उस के कमरे में छोड़ आईं.

रात 10 बजे राकेश ने कमरे में प्रवेश किया, तो उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. राकेश ने उस का घूंघट उठाया, तो मालती का खूबसूरत चेहरा देख कर उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह देर तक मालती का मुंह चूमता रहा और उस के शरीर को प्यार से सहलाता रहा.

जब राकेश ने पहली बार संबंध बनाया, तो वह एक मिनट भी नहीं टिक सका. इस के बाद उस रात को उस ने 2 बार संबंध बनाया, पर दोनों बार वह एक मिनट से आधे मिनट के अंदर ही पस्त हो गया. मालती सारी रात प्यासी मछली की तरह छटपटाती रही.

मालती 5 दिन तक ससुराल में रही और हर रात उसे ऐसे ही दुखदायी हालात से गुजरना पड़ा.

मालती जब अपने मायके पहुंची, तो अपनी मां और भाभी के गले लग कर खूब रोई. उस की भाभी द्वारा रोने की वजह बारबार पूछे जाने पर उस ने सारी बात उन्हें बता दी.

2 महीने बाद राकेश बड़े भाई सुरेश के साथ ससुराल गया और मालती को विदा करा कर ले आया.

घर में परदा प्रथा होने के चलते भयंकर गरमी में भी मालती को राकेश के साथ बंद कमरे में ही सोना पड़ता था. उस के कमरे के आगे बने बरामदे में उस के जेठजेठानी सोते थे और उस के सासससुर छत पर सोते थे.

एक रात जब राकेश एक मिनट में अपनी मर्दानगी दिखा कर खर्राटे भर रहा था और मालती काम की आग में जलते हुए सोने की कोशिश कर रही थी, तभी बरामदे में चारपाई के चरमराने और औरत के सीत्कार की आवाज उसे सुनाई दी. यह आवाज तकरीबन 20 मिनट तक उस के कानों में गूंजती हुई उस की तड़प को बढ़ाती रही.

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अगले दिन फुरसत के पलों में मालती ने अपनी जेठानी को बातों ही बातों में आभास करा दिया कि कल रात जब वह जेठजी के साथ धमाचौकड़ी मचा रही थी, तो वह जाग रही थी.

मालती की जेठानी यह सुन कर शर्म से पानीपानी हो गई, फिर सफाई देते हुए बोली, ‘‘क्या करूं, रात में भोजन करने के बाद उन्हें होश ही नहीं रहता है. मेरे शरीर को तो वे रूई की तरह धुन कर रख देते हैं. उस समय इन के शरीर में बिजली जैसी फुरती और घोड़े जैसी ताकत आ जाती है. घंटों छोड़ते ही नहीं. मैं तो बेदम हो जाती हूं और अगले दिन घर का काम निबटाने में भी मुश्किल हो जाती है.’’

जेठानी की बात सुन कर मालती का मन हुआ कि वह अपनी छाती पीट ले, मगर उस ने हंस कर कहा, ‘‘तुम जेठजी को मनमानी करने दो, घर का काम मैं संभाल लूंगी.’’

इस चर्चा का नतीजा यह हुआ कि उस रात मालती की जेठानी बरामदे में न लेट कर अपने कमरे में जा कर लेट गई. रात में जब उस के जेठ ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘वहां क्यों गरमी में सड़ रही हो. यहां बाहर ठंडी हवा में क्यों  नहीं लेटती?’’

‘‘आज मैं कमरे में ही लेटूंगी. तुम्हें वहां लेटना हो तो लेटो,’’ जेठानी ने कमरे से ही जवाब दिया.

मालती अपने कमरे में लेटी उन दोनों की बातचीत सुन रही थी. राकेश  मालती को कुछ क्षणों में अपनी मर्दानगी दिखा कर हांफता हुआ एक तरफ को लुढ़क गया और जल्दी ही गहरी नींद में सो गया. मगर मालती को आधी रात तक नींद ही नहीं आई. इस बीच वह अपने कमरे से बाहर निकली. बरामदे में उस के जेठ खर्राटे भर रहे थे.

बाथरूम से जब वह वापस लौटी,  तो जेठ की चारपाई के पास आ कर उस के पैर ठिठक गए. उस ने एक क्षण रुक कर पूरे घर का जायजा लिया. घोर सन्नाटा पसरा हुआ था. उसे इतमीनान हो गया कि सभी लोग गहरी नींद में सो रहे हैं. वह हिम्मत कर के सुरेश की चारपाई पर उस से चिपक कर लेट गई.

नशे में चूर सुरेश की नींद जल्दी ही खुल गई और उस ने मालती को दबोच कर संबंध बनाना शुरू कर दिया. जल्दी ही मालती की झिझक दूर हो गई और वह भी सुरेश का साथ देने लगी.

जब सुरेश की पकड़ धीमी पड़ी, तब तक मालती संतुष्ट हो चुकी थी. पसीने से लथपथ सुरेश ने जब उसे छोड़ा, तभी उस की नजर मालती के चेहरे पर पड़ी. उस ने चौंक कर कहा, ‘‘तुम…?’’

तभी मालती ने सुरेश के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘आप ने एक प्यासी की आज प्यास बुझाई है. आप के भाई तो किसी लायक हैं नहीं, मजबूरन मुझे अपनी प्यास बुझाने के लिए आप के पास आना पड़ा.’’

मालती चुपचाप अपने कमरे में आ कर सो गई.

इस के बाद से तो वह हर दूसरेतीसरे दिन रात को उठ कर सुरेश के पास जा कर अपनी प्यास बुझाने लगी.

सुरेश ने 2-3 बार तो संकोच का अनुभव किया, मगर फिर वह भी हर रात को मालती का इंतजार करने लगा. उस की अपनी पत्नी तो बच्चे पालने में ही परेशान रहती थी, फिर उम्र के साथ ही उस का जोश भी कम होता जा  रहा था.

सर्दियों में मालती ने सुरेश से नींद की गोलियां मंगवा लीं और रोजाना खाने में नींद की गोलियां डाल कर राकेश और अपनी जेठानी को देने लगी.

सुरेश अब दिनभर चौपाल में पड़ा सोता रहता और रात में राकेश के सोने के बाद उस के कमरे में घुस जाता और मालती के साथ मजे लेता.

मगर, एक रात सुरेश की मां जब आंगन में शौचालय जा रही थीं, तभी सुरेश को मालती के कमरे से निकल कर अपने कमरे में जाते हुए देख लिया. वे दबे पैर मालती के कमरे में गईं, राकेश खर्राटे भर रहा था.

उन्होंने मालती को बाल पकड़ कर उठाया और बोलीं, ‘‘वर्जित फल खाते हुए शर्म नहीं आई तु?ो कुलच्छिनी?’’

मालती चोरी पकड़े जाने पर पहले तो सकपकाई, मगर फिर संभल कर बोली, ‘‘भूख पर एक सीमा तक ही काबू रखा जा सकता है अम्मां. वर्जित फल स्वाद के लिए नहीं, मजबूरी में खाती हूं. तुम्हारे बेटे को तो औरत की जरूरत  ही नहीं है.  मैं उन के सहारे नहीं रह सकूंगी अम्मां.’’

उन दोनों की बातचीत सुन कर राकेश भी जाग गया था. उसे अपनी कमजोरी का अहसास तो था ही, इसीलिए वह चुपचाप सिर झुका कर कमरे के बाहर निकल गया.

पार्क वाली लड़की : यौवन वाली नवयौवना की कहानी

Story in Hindi

रिश्तेदार: अकेली सौम्या, अनजान शहर और अनदेखे चेहरे- भाग 4

अगले ही दिन नितिन की मां नेहा को देखने सौम्या के घर आ गईं. नेहा पहले से ही वहां तैयार हो कर पहुंच चुकी थी. नेहा का बातव्यवहार, उस की पढ़ाईलिखाई और खूबसूरती नितिन की मां को काफी पसंद आई. हर तरह से नेहा को परखने के बाद उन्होंने सौम्या से इस रिश्ते की सहमति देते हुए जल्द सगाई करने का वादा भी किया. एक बार वे नेहा को अपने पति और नितिन से भी मिलाना चाहती थीं.

सौम्या ने तुरंत बाजी अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं समधनजी. एकदो दिनों में मैं खुद ही अपनी बच्ची को आप के यहां भेज दूंगी. अब तो यह आप की बच्ची भी है. नितिन से मिलवा दीजिएगा. आप चाहें तो नितिन और उस के पापा यहां आ कर भी बच्ची को देख सकते हैं.’’

‘‘जी जरूर,’’ खुश होते हुए नितिन की मां ने कहा. इस बीच नितिन की मां ने यह कह कर नितिन को सौम्या के यहां भेजा कि अपनी आंखों से लड़की देख ले. नितिन और नेहा उस दिन सुबह से शाम तक सौम्या के यहां ही थे और जी भर कर इस बात का मजा ले रहे थे.

घर जा कर नितिन ने औपचारिक रूप से लड़की के लिए अपनी सहमति दे दी. अब तो नेहा 4-6 दिन में एक बार नितिन के यहां हो ही आती थी. इधर उन की सगाई का दिन एक महीने बाद का तय कर दिया गया था. नितिन चाहता था कि सगाई से पहले वह मां को हर बात सचसच बता दे. पर सौम्या ने उसे फिलहाल खामोश रहने की सलाह दी.

इस घटना के करीब 20-22 दिन बाद की बात है. उस दिन नितिन औफिस के काम से शहर के बाहर था. अचानक शाम के समय औफिस से लौटते ही नितिन के पिता के सीने में तेज दर्द होने लगा. नितिन की मां के हाथपैर फूल गए. उन्हें सम झ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. वे बहुत घबरा गई थीं. रोतेरोते उन्होंने नितिन को फोन किया. नितिन ने तुरंत नेहा से अपने घर पहुंचने की गुजारिश की. नेहा दौड़ीदौड़ी नितिन के घर पहुंची. रास्ते में ही उस ने एंबुलैंस वाले को फोन कर दिया था.

घर पहुंच कर उस ने एक तरफ नितिन की मां को संभाला तो दूसरी तरफ पिता को. उस ने पिता के टाइट कपड़े ढीले कर उन्हें आराम से बिस्तर पर लिटा दिया. पैर नीचे की तरफ और सिर थोड़ा ऊपर की ओर उठा कर रखा ताकि ब्लड की सप्लाई हार्ट तक होती रहे.

तब तक एंबुलैंस पहुंच गई. वह तुरंत उन्हें एंबुलैंस में ले कर अस्पताल पहुंची और आईसीयू में ऐडमिट करवाया. उन्हें हार्टअटैक आया था. नेहा सब से सीनियर डाक्टर से रिक्वैस्ट करने लगी कि वे ही इस केस को हैंडल करें. आननफानन  सारे इंतजाम हो गए. नितिन की मां एक कोने में बैठी नेहा की दौड़भाग देखती रहीं. नेहा नितिन के पिता की केयर अपने पिता जैसी कर रही थी. यह सब देख कर नितिन की मां की आंखें भर आई थीं.

नेहा रातभर जाग कर पिता का ध्यान रखती रही. हर तरह की दौड़भाग करती रही. अगले दिन उन की सर्जरी की बात उठी. नेहा ने रुपयों का इंतजाम किया. कुछ नितिन की मां से लिया और कुछ अपनी तरफ से मिला कर फटाफट रुपए जमा करा दिए. औपरेशन कामयाब रहा. शाम तक नितिन भी आ गया.

2 दिनों बाद जब नितिन के पिता थोड़े नौर्मल हुए तो उन्होंने रुंधे गले से नेहा की तारीफ की. उसे बेटी कह कर गले लगा लिया. 4-6  दिन में उन्हें छुट्टी दे दी गई. वे घर आ गए. अब तक सगाई का दिन भी नजदीक आ गया था. सगाई से 2 दिन पहले नितिन ने अपने पेरैंट्स को सचाई बताने की सोची.

नितिन ने कांपती जबान से कहा, ‘‘पापा, मां, मैं आप लोगों से  झूठ बोल कर शादी नहीं कर सकता. दरअसल,  नेहा हमारी जाति की नहीं है और वह सौम्या दीदी की बेटी भी नहीं है. नेहा तो वही लड़की है जिसे मैं… प्यार करता था.’’

नितिन ने सच बता कर निगाहें झुका लीं. वह डर रहा था कि शायद अब उस के पेरैंट्स नाराज हो उठेंगे. पर ऐसा नहीं हुआ. दोनों मुसकरा रहे थे.

नितिन के पिता ने कहा, ‘‘बेटा, इस बात का एहसास हमें हो गया था. जिस प्यार और अपनेपन से नेहा हमारी देखभाल कर रही थी और फिक्रमंद थी, उसी से पता चल रहा था कि वह तुम से कितना प्यार करती है. तुम दोनों के इस प्यार के बीच हम कतई नहीं आ सकते. वैसे भी, नेहा किसी भी जाति की हो, उसे हम ने बेटी तो मान ही लिया है न.’’

नितिन की आंखें खुशी से भर उठीं. उस की मां ने स्नेह के साथ कहा, ‘‘बेटे, तुम दोनों की जोड़ी बहुत खूबसूरत है और इस खूबसूरत रिश्ते को जोड़ने में मदद करने वाली सौम्याजी भी हमारी रिश्तेदार हैं. कल हम सब उन के घर मिठाई ले कर चलेंगे.’’

अगले दिन सौम्या का घर हंसी और ठहाकों से गूंज रहा था. खिलेखिले चेहरों के बीच बैठी सौम्या के पास अब रिश्तेदारों की कमी नहीं थी.

जवाब : अनसुलझे सवालों के घेरे में माधुरी- भाग 3

‘मम्मा, मेरा नाम सप्तक क्यों है?’

‘बेटा, सप्तक अर्थात सात सुर सा रे गा मा पा धा नी, तुम मेरे जीवनरूपी गीत के सुर हो.’

‘मां, आप गाती क्यों नहीं?’

‘वो बेटा, कभीकभी जीवन में कुछ फैसले मानने पड़ते हैं.’

‘मम्मा, आप कोई भी बात ऐसे ही मान लेती हो. ऐसा होता आया है, इसलिए हम बात क्यों मानें? हमें पहले यह जानना चाहिए की जो हो रहा है वह क्यों हो रहा है.’

‘पापा और दादी मुझे होस्टल भेजना चाहते हैं, पर मैं नहीं चाहता, उन्हें मेरा नाम भी पसंद नहीं है. वह भी बदल देंगे शायद. मम्मा, आप दादी से बात करोगी?’

सुमित ने मुझे इस विषय में कुछ नहीं बताया था. शादी के वचन आज कानों में तेज चिल्ला रहे थे, ‘आप अपने हर निर्णय में मुझे शामिल अवश्य करें.’

परंतु मैं फिर भी जाग नहीं पाई.

‘बेटा, दादी जो कहती हैं…’

‘मैं जानता था आप से नहीं होगा. मैं दादी से बात खुद कर लूंगा.’

फिर मुंह फेर कर सप्तक तो सो गया था, परंतु 13 साल से सोई अपनी मां को जगा दिया था उस ने. मेरा 10 साल का बेटा इतना बड़ा कब हो गया, मैं जान ही न पाई. शादी के जो वचन मेरे कानों में आ कर फुसफुसाते थे, आज वे पूरी तरह से आ कर सामने खड़े हो गए थे.

कितने पुरुष निभाते हैं ये सारे वचन? शायद एक भी नहीं, उन से तो निभाने की उम्मीद तक नहीं की जाती. मेरे अब तक के जीवन में समझौता केवल मैं ने किया है, वचन केवल मैं ने निभाए हैं. सुमित को तो शायद याद भी नहीं कि उन्होंने कोई वचन भी दिया था.

वह इसलिए क्योंकि पुरुष बड़ी चतुराई से इन वचनों को भूल जाता है परंतु स्त्री को ये वचन भूलने ही नहीं दिए जाते. अपने सासससुर की सेवा न करने पर क्या किसी दामाद को कभी कठघरे में खड़ा करता है यह समाज? उस की लाख बुराइयों को भी छिपा लिया जाता है. परंतु एक बहू जब ऐसा करती है तो बिना कारण जाने उसे अनगिनत गलत संबोधनों से नवाजा जाता है. तानेउलाहने सुन कर भी जो चुप रहे उसी स्त्री को अच्छी बहू का मैडल मिलता है. कभीकभी तो वह भी नहीं मिलता.

उस दिन समझ पाई थी मैं, शादी के इन वचनों को बनाया ही इसलिए गया था ताकि स्त्रियों को पुरुषों के ऊपर निर्भर रखा जा सके. यह पूरी प्रथा ही पितृसत्तात्मक सोच के अहं को संतुष्ट करने के लिए बनाई गई थी. स्त्री को अपने सुखों के लिए किसी पर निर्भर क्यों रहना पड़ता है?

पंडितों ने अपनी तथा पुरुष संप्रभुता को बनाए रखने के लिए ये सारे नियमकानून बनाए थे.

मैं अपने बेटे को पुरुष होने का दंभ भरते हुए नहीं देख सकती थी. मैं उसे इस सोच के साथ बड़ा होता नहीं देख सकती कि हर स्त्री को अपनी रक्षा अथवा अपने फैसले लेने के लिए पुरुष की आवश्यकता होती है. अपने लिए तो फैसला अब मैं खुद लूंगी.

अगले दिन सुबह ही मैं ने सुमित को बता दिया था कि मैं ने नोएडा में रहने का निर्णय लिया है. घर में तूफान आ गया था. सबकुछ बहुत कठिन था, परंतु मेरे ससुर, देवर और छोटी ननद इस बार चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े थे. अगर वे साथ न भी होते तो भी मैं पीछे हटने वाली नहीं थी.

मेरी सास ने मुझे इस के लिए कभी भी माफ नहीं किया था. परंतु पिछले 15 सालों से भी तो वे मुझे अकारण ही सजा दे रही थीं.

जया की शादी के अगले ही दिन हम नोएडा आ गए थे. सुमित का असहयोग आंदोलन यहां आ कर भी जारी था. मांबेटे की जुगलबंदी मुझे परेशान करने के तरीके निकालती रहती थी.

मैं ने कुछ दिनों बाद ही एक स्कूल में संगीत की शिक्षा देनी शुरू कर दी थी. धीरेधीरे सुमित भी समझने लगे थे कि अब मेरा पीछे लौटना नामुमकिन था.

समय अपनी रफ्तार से बढ़ता रहा. सप्तक जब फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने कनाडा गया, तो उसी दौरान मैं ने अपने संगीत स्कूल की नींव डाली थी.

सप्तक ने जब अलीना से विवाह का निर्णय लिया तब भी सारे परिवार के विरुद्ध खड़े हो कर मैं ने अपने बेटे के सही कदम का साथ दिया था. अलीना एक ईसाई परिवार की लड़की थी परंतु मेरे लिए यह बात कोई माने नहीं रखती थी.

धर्मजाति पर पता नहीं क्यों लोग इतना घमंड करते हैं. आप कहां पैदा होंगे, इस पर आप का क्या अधिकार? इसलिए कोई उच्च और कोई नीच कैसे हो सकता है?

सप्तक ने कोर्टमैरिज करने का निर्णय लिया था. इन झूठे कर्मकांडों और व्यर्थ के आडंबरों से मेरा भरोसा भी उठ चुका था. सुमित को भी सप्तक ने अपनी दलीलों से चुप करा दिया था. शादी के बाद हम ने एक छोटी सी पार्टी दे दी थी.

जब सारी उम्र मैं ने सप्तक को सही का साथ देना सिखाया, फिर आज जब वह अलीना का साथ दे रहा है तो मुझे बुरा क्यों लगा? हर प्रश्न का सही प्रतिवचन दिया था उस ने. मैं भी जानती थी कि अलीना और सप्तक  सही हैं.

क्या अपने बेटे को मुझे अलीना के साथ बांटना असहनीय लग रहा है? क्या मुझे उस का अलीना को सही और मुझे गलत कहना तकलीफ दे रहा है?

नहीं, शायद अपनी कल्पना को यथार्थरूप में देख कर मैं अभिभूत हो गई हूं. सप्तक मेरी कल्पना का ही तो मूर्तरूप है.

‘‘मम्मा, अंदर आ सकता हूं.’’

सप्तक की आवाज मुझे वर्तमान में खींच लाई थी.

‘‘हां बेटा, आ जाओ, अंदर आ जाओ.’’

‘‘आप मुझ से नाराज हैं न मां?’’

‘‘क्यों, क्या तुम ने कुछ गलत किया है?’’

‘‘नहीं, पर वो आज…’’

‘‘जो सत्य है वह अप्रिय हो सकता है परंतु वह गलत नहीं हो सकता. यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो उस के गलत को भी सही कहने के लिए बाध्य नहीं हैं. इसलिए मैं तुम से नाराज नहीं हूं बल्कि आज मुझे तुम पर गर्व हो रहा है.

‘‘मैं जैसे पुरुष की कल्पना किया करती थी, तुम ने उसे साकार कर के मेरे सामने खड़ा कर दिया है. मेरा बेटा एक ऐसा पुरुष है जो अपने पुरुष होने को मैडल की तरह नहीं पहनता.

‘‘जिस प्रकार वह सिर झुका कर अपनी मां का आदर करता है उसी प्रकार अपनी मां द्वारा लिए गए गलत निर्णय का विरोध भी करता है.’’

‘‘यह सब क्या कह रही हो तुम, मधु? क्या तुम्हें सप्तक की बात बिलकुल बुरी नहीं लगी?’’

‘‘सुमित, इस में बुरा लगने जैसा क्या है? मेरा बेटा किसी भी प्रश्न का प्रतिवचन देने से न स्वयं डरता है और न अपनी साथी, अपनी पत्नी को रोकता है.’’

‘‘हां, सही कह रही हो,’’ इतना कह कर सुमित चुप हो गए थे.

‘‘तो इस का मतलब है मैं ट्रेकिंग पर जा रही हूं,’’ अलीना भी मेरे कमरे में आ गई थी.

‘‘ट्रेकिंग पर बाद में जाना है, अभी तुम दोनों सोने जाओ. मुझे भी नींद आ रही है.’’

‘‘मम्मापापा, चलिए पहले आइसक्रीम पार्टी करते हैं,’’ सप्तक ने हंसते हुए कहा, ‘‘चलो, सब चलते हैं.’’

‘‘मैं फ्रिज से आइसक्रीम निकालती हूं, सप्तक तुम कोई अच्छी सी मूवी लगा लो,’’ यह कह कर अलीना चली गई.

हम सब भी उस के पीछे कमरे से निकल ही रहे थे कि अचानक सुमित मेरी तरफ मुड़ कर बोले, ‘‘वैसे तुम लिख क्या रही थी, मधु?’’

‘‘कुछ नहीं, एक समाज की कल्पना कर रही थी.’’

‘‘कैसे समाज की, मम्मा?’’

‘मैं तो बस, एक ऐसे समाज की कल्पना करती हूं जहां-

‘‘पुत्रजन्म पर अभिमान न हो

‘‘पुत्री का कहीं दान न हो

‘‘मानवता के धर्म का हो नमन

‘‘सत्यकथन पर न लगे ग्रहण

‘‘रिश्ते निभें बिना लिए वचन

‘‘हर प्रश्न को मिले प्रतिवचन.’’

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