story in hindi

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दिल्ली पहुंचने की घोषणा के साथ विमान परिचारिका ने बाहर का तापमान बता कर अपनी ड्यूटी खत्म की, लेकिन वीरा की ड्यूटी तो अब शुरू होने वाली थी. अंडमान निकोबार से आया जहाज जैसे ही एअरपोर्ट पर रुका, वीरा के दिल की धड़कनें यह सोच कर तेज होने लगीं कि उसे लेने क्या विजेंद्र आया होगा?
अपने ही सवालों में उलझी वीरा जैसे ही बाहर आई कि सामने से दौड़ कर आती विपाशा ‘मांमां’ कहती उस से आ कर लिपट गई.
वीरा ने भी बेटी को प्यार से गले लगा लिया.
‘5 साल में तू कितनी बड़ी हो गई,’ यह कहते समय वीरा की आंखें चारों ओर विजेंद्र को ढूंढ़ रही थीं. शायद आज भी विजेंद्र को कुछ जरूरी काम होगा. विपाशा मां को सामान के साथ एक जगह खड़ा कर गाड़ी लेने चली गई. वह सामान के पास खड़ी- खड़ी सोचने लगी.
5 साल पहले उस ने अचानक अंडमान निकोबार जाने का फैसला किया, तो महज इसलिए कि वह विजेंद्र के बेरुखी भरे व्यवहार से तिलतिल कर मर रही थी.
विजेंद्र ने भरपूर कोशिश की कि अपनी पत्नी वीरा से हमेशा के लिए पीछा छुड़ा ले. उस ने तो कलंक के इतने लेप उस पर चढ़ाए कि कितना ही पानी से धो लो पर लेप फिर भी दिखाई दे.
यही नहीं विजेंद्र ने वीरा के सामने परेशानियों के इतने पहाड़ खड़े कर दिए थे कि उन से घबरा कर वह स्वयं विजेंद्र के जीवन से चली जाए. लेकिन वीरा हर पहाड़ को धीरेधीरे चढ़ कर पार करने की कोशिश में लगी रही.
अचानक ही अंडमान में नौकरी का प्रस्ताव आने पर वह एक बदलाव और नए जीवन की तैयारी करते हुए वहां जाने को तैयार हो गई.
अंडमान पहुंच कर वीरा ने अपनी नई नौकरी की शुरुआत की. उसे वहां चारों ओर बांहों के हार स्वागत करते हुए मिले. कुछ दिन तो जानपहचान में निकल गए लेकिन धीरेधीरे अकेलेपन ने पांव पसारने शुरू कर दिए. इधर साथ काम करने वाले मनचलों में ज्यादातर के परिवार तो साथ थे नहीं, सो दिन भर नौकरी करते, रात आते ही बोतल पी कर सोने का सहारा ढूंढ़ लेते.
छुट्टी होने पर घर और घरवाली की याद आती तो फोन घुमा कर झूठासच्चा प्यार दिखा कर कुछ धर्मपत्नी को बेवकूफ बनाते और कुछ अपने को भी. ऐसी नाजुक स्थिति में वे हर जगह हर किसी महिला की ओर बढ़ने की कोशिश करते, पट गई तो ठीक वरना भाभीजी जिंदाबाद. अंडमान में वीरा अपने कमरे की खिड़की पर बैठ कर अकसर यह नजारे देखती. कई बार बाहर आने के लिए उसे भी न्योते मिलते पर उस का पहला जख्म ही इतना गहरा था कि दर्द से वह छटपटाती रहती.
कंपनी से वीरा को रहने के लिए जो फ्लैट मिला था, उस फ्लैट के ठीक सामने पुरुष कर्मचारियों के फ्लैट थे. बूढ़ा शिवराम शर्मा भी अकसर शराब पी कर नीचे की सीढि़यों पर पड़ा दिख जाता. कैंपस के होटलों में शिवराम खाना कम खाता रिश्ते ज्यादा बनाने की कोशिश करता. उस के दोस्ती करने के तरीके भी अलगअलग होते थे. कभी धर्म के नाते तो कभी एक ही गांव या शहर का कह कर वह महिलाओं की तलाश में रहता था. शिवराम टेलीफोन डायरेक्टरी से अपनी जाति के लोगों के नाम से घरों में भी फोन लगाता. हर रोज दफ्तर में उस के नएनए किस्से सुनने को मिलते. कभीकभी उस की इन हरकतों पर वीरा को गुस्सा भी आता कि आखिर औरत को वह क्या समझता है?
कभीकभी उस का साथी बासु दा मजाक में कह देता, ‘बाबू शिवराम, घर जाने की तैयारी करो वरना कहीं भाभीजी भी किसी और के साथ चल दीं तो घर में ताला लग जाएगा,’ और यह सुनते ही शिवराम उसे मारने को दौड़ता.
3 महीने पहले आए राधू के कारनामे देख कर तो लगता था कि वह सब का बाप है. आते ही उस ने एक पुरानी सी गाड़ी खरीदी, उसे ठीकठाक कर के 3-4 महिलाओं को सुबहशाम दफ्तर लाने और वापस ले जाने लगा था. शाम को भी वह बेमतलब गाड़ी मैं बैठ कर यहांवहां घूमता फिरता.
एक दिन अचानक एक जगह पर लोगों की भीड़ देख कर यह तो लगा कि कोई घटना घटी है लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा था. भीड़ छंटने पर पता चला कि राधू ने किसी लड़की को पटा कर अपनी कार में लिफ्ट दी और फिर उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी तो लड़की ने शोर मचा दिया. जब भीड़ जमा हो गई तो उस ने राधू को ढेरों जूते मारे.
वीरा अकसर सोचती कि आखिर यह मर्दों की दुनिया क्या है? क्यों औरत को बेवकूफ समझा जाता है. दफ्तर में भी वीरा अकसर सब के चेहरे पढ़ने की कोशिश करती. सिर्फ एकदो को छोड़ कर बाकी के सभी एक पल का सुख पाने के लिए भटकते नजर आते.
वीरा की रातें अकसर आकाश को देखतेदेखते कट जातीं. जीने की तलाश में अंडमान आई वीरा को अब धरती का यह हिस्सा भी बेगाना सा लग रहा था. बहुत उदास होने पर वह अपनी बेटी विपाशा से बात कर लेती. फोन पर अकसर विपाशा मां को समझाती रहती, उस को सांत्वना देती.
5 साल बाद विजेंद्र ने बेटी विपाशा के माध्यम से वीरा को वापस आने का न्योता भेजा, तो वह अकसर यही सोचती, ‘आखिर क्या करे? जाए या न जाए. पुरुषों की दुनिया तो हर जगह एक सी ही है.’ आखिरकार बेटी की ममता के आगे वीरा, विजेंद्र की उस भूल को भी भूल गई, जिस के लिए उस ने अलग रहने का फैसला किया था.
वीरा को याद आया कि घर छोड़ने से पहले उस ने विजेंद्र से कहा था कि मैं ने सिर्फ तुम्हें चाहा है, कभी अगर मेरे कदम डगमगाने लगें या मुझे जीवन में कभी किसी मर्द की जरूरत पड़ी तो वापस तुम्हारे पास लौट आऊंगी. आखिर हर जगह के आदमी तो एक जैसे ही हैं. इस राह पर सब एक पल के लिए भटकते हैं और वह भटका हुआ एक पल क्या से क्या कर देता है.
कभी वीरा सोचती कि बेटी के कहने का मान ही रख लूं. आज वह ममता की भूखी, मानसम्मान से बुला रही है, कहीं ऐसा न हो, कल को उसे भी मेरी जरूरत न रहे.
अचानक वीरा के कानों में विपाशा के स्वर उभरे, ‘‘मां, तुम कहां खोई हो जो तुम्हें गाड़ी का हार्न भी नहीं सुनाई पड़ रहा है.’’
वीरा हड़बड़ाती हुई गाड़ी की ओर बढ़ी. घर पहुंच कर विपाशा परी की तरह उछलने लगी. कमला से चाय बनवा कर ढेर सारी चीजों से मेज सजा दी.
सामने से आते हुए विजेंद्र ने एक पल को उसे देखा, उस की आंखों में उसे बेगानापन नजर आया. घर का भी एक अजीब सा माहौल लगा. हालांकि गीतांजलि अब विजेंद्र के जीवन से जा चुकी थी, फिर भी वीरा को जाने क्यों अपने लिए शून्यता नजर आ रही थी. हां, विपाशा की हंसी जरूर उस के दिल को कुछ तसल्ली दे देती.
वह कई बार अपनेआप से ही बातें करती कि ऊपरी तौर पर वह लोगों के लिए प्रतिभासंपन्न है लेकिन हकीकत में वह तिनकातिनका टूट चुकी थी. जीने के लिए विपाशा ही उस की एकमात्र आशा थी.
विजेंद्र की कुछ मीठी यादों के सहारे वीरा अपना दुख भूलने की कोशिश करती, वह तो बेटी के प्रति मां की ममता थी जिस की खुशी के लिए उस ने अपनी वापसी स्वीकार कर ली थी. वह सोेचती, जब जीना ही है तो क्यों न अपने इस घर के आंगन में ही जियूं, जहां दुलहन बन के आई थी.
वीरा की वापसी से विपाशा की खुशी में जो इजाफा हुआ उसे देख कर काम वाली दादी अकसर कहती, ‘‘बेटा, निराश मत हो. विजेंद्र एक बार फिर से वही विजेंद्र बन जाएगा, जो शादी के कुछ सालों तक था. मैं जानती हूं कि तुम्हें विजेंद्र की जरूरत है और विपाशा को तुम्हारी. क्या तुम विपाशा की खुशी के लिए विजेंद्र की वापसी का इंतजार नहीं कर सकतीं?
‘‘आखिर तुम विपाशा की मां हो और समाज ने जो अधिकार मां को दिए हैं वह बाप को नहीं दिए. तुम्हारी वापसी इस घर के बिखरे तिनकों को फिर से जोड़ कर घोंसले का आकार देगी. खुद पर भरोसा रखो, बेटी.’’
लेखक- बीना बुदकी
कैफे की गैलरी में एक कोने में बैठे अभय का मन उदास था. उस के भीतर विचारों का चक्रवात उठ रहा था. वह खुद की बनाई कैद से आजाद होना चाहता था. इसी कैद से मुक्ति के लिए वह किसी का इंतजार कर रहा था. मगर क्या हो यदि जिस का अभय इंतजार कर रहा था वह आए ही न? उस ने वादा तो किया था वह आएगी. वह वादे तोड़ती नहीं है…
3 साल पहले आकांक्षा और अभय एक ही इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ते थे. आकांक्षा भी अभय के साथ मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी, और यह बात असाधारण न हो कर भी असाधारण इसलिए थी क्योंकि वह उस बैच में इकलौती लड़की थी. हालांकि, अभय और आकांक्षा की आपस में कभी हायहैलो से ज्यादा बात नहीं हुई लेकिन अभय बात बढ़ाना चाहता था, बस, कभी हिम्मत नहीं कर पाया.
एक दिन किसी कार्यक्रम में औडिटोरियम में संयोगवश दोनों पासपास वाली चेयर पर बैठे. मानो कोई षड्यंत्र हो प्रकृति का, जो दोनों की उस मुलाकात को यादगार बनाने में लगी हो. दोनों ने आपस में कुछ देर बात की, थोड़ी क्लास के बारे में तो थोड़ी कालेज और कालेज के लोगों के बारे में.
फिर दोनों की मुलाकात सामान्य रूप से होने लगी थी. दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी. मगर फिर भी आकांक्षा की अपनी पढ़ाई को ले कर हमेशा चिंतित रहने और सिलेबस कम्पलीट करने के लिए हमेशा किताबों में घुसे रहने के चलते अभय को उस से मिलने के लिए समय निकालने या परिस्थितियां तैयार करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी. पर वह उस से थोड़ीबहुत बात कर के भी खुश था.
दोस्ती होते वक्त नारी सौंदर्य के प्रखर तेज पर अभय की दृष्टि ने भले गौर न किया हो पर अब आकांक्षा का सौंदर्य उसे दिखने लगा था. कैसी सुंदरसुंदर बड़ीबड़ी आंखें, सघन घुंघराले बाल और दिल लुभाती मुसकान थी उस की. वह उस पर मोहित होने लगा था.
शुरुआत में आकांक्षा की तारीफ करने में अभय को हिचक होती थी. उसे तारीफ करना ही नहीं आता था. मगर एक दिन बातों के दौरान उसे पता चला कि आकांक्षा स्वयं को सुंदर नहीं मानती. तब उसे आकांक्षा की तारीफ करने में कोई हिचक, डर नहीं रह गया.
आकांक्षा अकसर व्यस्त रहती, कभी किताबों में तो कभी लैब में पड़ी मशीनों में. हर समय कहीं न कहीं उलझी रहती थी. कभीकभी तो उसे उस के व्यवहार में ऐसी नजरअंदाजगी का भाव दिखता था कि अभय अपमानित सा महसूस करने लगता था. वह बातें भी ज्यादा नहीं करती थी, केवल सवालों के जवाब देती थी.
अपनी पढ़ाई के प्रति आकांक्षा की निष्ठा, समर्पण और प्रतिबद्धता देख कर अभय को उस पर गर्व होता था, पर वह यह भी चाहता था कि इस तकनीकी दुनिया से थोड़ा सा अवकाश ले कर प्रेम और सौहार्द के झरोखे में वह सुस्ता ले, तो दुनिया उस के लिए और सुंदर हो जाए. बहुत कम ऐसे मौके आए जब अभय को आकांक्षा में स्त्री चंचलता दिखी हो. वह स्त्रीसुलभ सब बातों, इठलाने, इतराने से कोसों दूर रहा करती थी. आकांक्षा कहती थी उसे मोह, प्रेम या आकर्षण जैसी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं. उसे बस अपने काम से प्यार है, वह शादी भी नहीं करेगी.
अचानक ही अभय अपनी खयालों की दुनिया से बाहर निकला. अपनेआप में खोया अभय इस बात पर गौर ही नहीं कर पाया कि आसपास ठहाकों और बातचीतों का शोर कैफे में अब कम हो गया है.
अभय ने घड़ी की ओर नजर घुमाई तो देखा उस के आने का समय तो कब का निकल चुका है, मगर वह नहीं आई. अभय अपनी कुरसी से उठ कैफे की सीढि़यां उतर कर नीचे जाने लगा. जैसे ही अभय दरवाजे की ओर तेज कदमों से बढ़ने लगा, उस की नजर पास वाली टेबल पर पड़ी. सामने एक कपल बैठा था. इस कपल की हंसीठिठोलियां अभय ने ऊपर गैलरी से भी देखी थीं, लेकिन चेहरा नहीं देख पाया था.
लड़कालड़की एकदूसरे के काफी करीब बैठे थे. दोनों में से कोई कुछ नहीं बोल रहा था. लड़की ने आंखें बंद कर रखी थीं मानो अपने मधुरस लिप्त होंठों को लड़के के होंठों की शुष्कता मिटा वहां मधुस्त्रोत प्रतिष्ठित करने की स्वीकृति दे रही हो.
अभय यह नजारा देख स्तब्ध रह गया. उसे काटो तो खून नहीं, जैसे उस के मस्तिष्क ने शून्य ओढ़ लिया हो. उसे ध्यान नहीं रहा कब वह पास वाली अलमारी से टकरा गया और उस पर करीने से सजे कुछ बेशकीमती कांच के मर्तबान टूट कर बिखर गए.
इस जोर की आवाज से वह कपल चौंक गया. वह लड़की जो उस लड़के के साथ थी कोई और नहीं बल्कि आकांक्षा ही थी. आकांक्षा ने अभय को देखा तो अचानक सकते में आ गई. एकदम खड़ी हो गई. उसे अभय के यहां होने की बिलकुल उम्मीद नहीं थी. उसे समझ नहीं आया क्या करे. सारी समझ बेवक्त की बारिश में मिट्टी की तरह बह गई. बहुत मुश्किलों से उस के मुंह से सिर्फ एक अधमरा सा हैलो ही निकल पाया.
अभय ने जवाब नहीं दिया. वह जवाब दे ही नहीं सका. माहौल की असहजता मिटाने के आशय से आकांक्षा ने उस लड़के से अभय का परिचय करवाने की कोशिश की. ‘‘साहिल, यह अभय है, मेरा कालेज फ्रैंड और अभय, यह साहिल है, मेरा… बौयफ्रैंड.’’ उस ने अंतिम शब्द इतनी धीमी आवाज में कहा कि स्वयं उस के कान अपनी श्रवण क्षमता पर शंका करने लगे. अभय ने क्रोधभरी आंखें आकांक्षा से फेर लीं और तेजी से दरवाजे से बाहर निकल गया.
आकांक्षा को कुछ समझ नहीं आया. उस ने भौचक्के से बैठे साहिल को देखा. फिर दरवाजे से निकलते अभय को देखा और अगले ही पल साहिल से बिना कुछ बोले दरवाजे की ओर दौड़ गई. बाहर आ कर अभय को आवाज लगाई. अभय न चाह कर भी पता नहीं क्यों रुक गया.
आधी रात को शहर की सुनसान सड़क पर हो रहे इस तमाशे के साक्षी सितारे थे. अभय पीछे मुड़ा और आकांक्षा के बोलने से पहले उस पर बरस पड़ा, ‘‘मैं ने हर पल तुम्हारी खुशियां चाहीं, आकांक्षा. दिनरात सिर्फ यही सोचता था कि क्या करूं कि तुम्हें हंसा सकूं. तमाम कोशिशें कीं कि गंभीरता, कठोरता, जिद्दीपन को कम कर के तुम्हारी जिंदगी में थोड़ी शरारतभरी मासूमियत के लिए जगह बना सकूं. तुम्हें मझधार के थपेड़ों से बचाने के लिए मैं खुद तुम्हारे लिए किनारा चाहता था. मगर, मैं हार गया. तुम दूसरों के साथ हंसती, खिलखिलाती हो, बातें करती हो, फिर मेरे साथ यह भेदभाव क्यों? तकलीफ तो इस बात की है कि जब तुम्हें किनारा मिल गया तो मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा तुम ने. क्यों आकांक्षा?’’
आकांक्षा अपराधी भाव से कहने लगी, ‘‘मैं तुम्हें सब बताने वाली थी. तुम्हें ढेर सारा थैंक्यू कहना चाहती थी. तुम्हारी वजह से मेरे जीवन में कई सारे सकारात्मक बदलावों की शुरुआत हुई. तुम मुझे कितने अजीज हो, कैसे बताऊं तुम्हें. तुम तो जानते ही हो कि मैं ऐसी ही हूं.’’
आकांक्षा का बोलना जारी था, ‘‘तुम ने कहा, मैं दूसरों के साथ हंसती, खिलखिलाती हूं. खूब बातें करती हूं. मतलब, छिप कर मेरी जासूसी बड़ी देर से चल रही है. हां, बदलाव हुआ है. दरअसल, कई बदलाव हुए हैं. अब मैं पहले की तरह खड़ ूस नहीं रही. जिंदगी के हर पल को मुसकरा कर जीना सीख लिया है मैं ने. तुम्हारा बढ़ा हाथ है इस में, थैंक्यू फौर दैट. और तुम भी यह महसूस करोगे मुझ से अब बात कर के, अगर मूड ठीक हो गया हो तो.’’ अब वह मुसकराने लगी.
अभय बिलकुल शांत खड़ा था. कुछ नहीं बोला. अभय को कुछ न कहते देख आकांक्षा गंभीर हो गई. कहने लगी, ‘‘तुम्हें तो खुश होना चाहिए. तुम मेरे नीरस जीवन में प्यार की मिठास घोलना चाहते थे तो अपनी ही इच्छा पूरी होने पर इतने परेशान क्यों हो गए? मुझे साहिल के साथ देख कर इतना असहज क्यों हो गए? मेरे खिलाफ खुद ही बेवजह की बेतुकी बातें बना लीं और मुझ से झगड़ रहे हो. कहीं…’’ आकांक्षा बोलतेबोलते चुप हो गई.
इतना सुन कर भी अभय चुप ही रहा. आकांक्षा ने अभय को चुप देख कर एक लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘तुम ने बहुत देर कर दी, अभय.’’
यह सुन कर उस के पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई. हृदय एक अजीब परंतु परिपूर्ण आनंद से भर गया. उस का मस्तिष्क सारे विपरीत खयालों की सफाई कर बिलकुल हलका हो गया. ‘तुम ने बहुत देर कर दी, अभय,’ इस बात से अब वह उम्मीद टूट चुकी थी जिसे उस ने कब से बांधे रखा था. लेकिन, जो आकांक्षा ने कहा वह सच भी तो था. वह न कभी कुछ साफसाफ बोल पाया न वह समझ पाई और अब जब उसे जो चाहिए था मिल ही गया है तो वह क्यों उस की खुशी के आड़े आए.
अभय ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कम से कम मुझ से समय से मिलने तो आ जातीं.’’ यह सुन कर आकांक्षा हंसने लगी और बोली, ‘‘बुद्धू, हम कल मिलने वाले थे, आज नहीं.’’ अभय ने जल्दी से आकांक्षा का मैसेज देखा और खुद पर ही जोरजोर से हंसने लगा.
एक झटके में सबकुछ साफ हो गया और रह गया दोस्ती का विस्तृत खूबसूरत मैदान. आकांक्षा को वह जितना समझता है वह उतनी ही संपूर्ण और सुंदर है उस के लिए. उसे अब आज शाम से ले कर अब तक की सारी नादानियों और बेवकूफीभरे विचारों पर हंसी आने लगी. उतावलापन देखिए, वह एक दिन पहले ही उस रैस्टोरैंट में पहुंच गया था जबकि उन का मिलना अगले दिन के लिए तय था.
अभय ने कुछ मिनट लिए और फिर मुसकरा कर कहा, ‘‘जानबूझ कर मैं एक दिन पहले आया था, माहौल जानने के लिए आकांक्षा, यू डिजर्व बैटर.’’
कहानी- संदीप कुमरावत
सरिता घर से निकलीं तो बाहर बादल घिर आए थे. लग रहा था कि बहुत जोर से बारिश होगी. काश, एक छाता साथ में ले लिया होता पर अपने साथ क्याक्या लातीं. अब लगता है बादलों से घिर गई हैं. कभी सुख के बादल तो कभी दुख के. पता नहीं वे इतना क्यों सोचती हैं? देखा जाए तो उन के पास सबकुछ तो है फिर भी इतनी अकेली. बेटा, बेटी, दामाद, बहन, भाई, बहू, पोतेपोतियां, नाते-रिश्तेदार…क्या नहीं है उन के पास… फिर भी इतनी अकेली. किसी दूसरे के पास इतना कुछ होता तो वह निहाल हो जाता, लेकिन उन को इतनी बेचैनी क्यों? पता नहीं क्या चाहती हैं अपनेआप से या शायद दूसरों से. एक भरापूरा परिवार होना तो किसी के लिए भी गर्व की बात है, ऊपर से पढ़ालिखा होना और फिर इतना आज्ञाकारी.
बहू बात करती है तो लगता है जैसे उस के मुंह से फूल झड़ रहे हों. हमेशा मांमां कह कर इज्जत करना. बेटा भी सिर्फ मांमां करता है. इधर सरिता खयालों में खो जाती हैं: बेटी कहती थी, ‘मां, तुम अपना ध्यान अब गृहस्थी से हटा लो. अब भाभी आ गई हैं, उन्हें देखने दो अपनी गृहस्थी. तुम्हें तो सिर्फ मस्त रहना चाहिए.’ ‘लेकिन रमा, घर में रह कर मैं अपने कामों से मुंह तो नहीं मोड़ सकती,’ वे कहतीं. ‘नहींनहीं, मां. तुम गलत समझ रही हो. मेरा मतलब सब काम भाभी को करने दो न…’
ब्याह कर जब वे इस घर में आई थीं तो एक भरापूरा परिवार था. सासससुर के साथ घर में ननद, देवर और प्यार करने वाले पति थे जो उन की सारी बातें मानते थे. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी पर बहुत पैसा भी नहीं था. घर का काम और बच्चों की देखभाल करते हुए समय कैसे बीत गया, वे जान ही न सकीं.
कमल शुरू से ही बहुत पैसा कमाना चाहते थे. वे चाहते थे कि उन के घर में सब सुखसुविधाएं हों. वे बहुत महत्त्वा- कांक्षी थे और पैसा कमाने के लिए उन्होंने हर हथकंडे का इस्तेमाल किया. पैसा सरिता को भी बुरा नहीं लगता था लेकिन पैसा कमाने के कमल के तरीके पर उन्हें एतराज था, वे एक सुकून भरी जिंदगी चाहती थीं. वे चाहती थीं कि कमल उन्हें पूरा समय दें लेकिन उन को सिर्फ पैसा कमाना था, कमल का मानना था कि पैसे से हर वस्तु खरीदी जा सकती है. उन्हें एक पल भी व्यर्थ गंवाना अच्छा नहीं लगता था. जैसेतैसे कमल के पास पैसा बढ़ता गया, उन (सरिता) से उन की दूरी भी बढ़ती गई.
‘पापा, आज आप मेरे स्कूल में आना ‘पेरैंटटीचर’ मीटिंग है. मां तो एक कोने में खड़ी रहती हैं, किसी से बात भी नहीं करतीं. मेरी मैडम तो कई बार कह चुकी हैं कि अपने पापा को ले कर आया करो, तुम्हारी मम्मी तो कुछ समझती ही नहीं,’ रमा अपनी मां से शर्मिंदा थी क्योंकि उन को अंगरेजी बोलनी नहीं आती थी.
कमल बेटी को डांटने के बजाय हंसने लगे, ‘कितनी बार तो तुम्हारी मां से कहा है कि अंगरेजी सीख ले पर उसे फुरसत ही कहां है अपने बेकार के कामों से.’ ‘कौन से बेकार के काम. घर के काम क्या बेकार के होते हैं,’ वे सोचतीं, ‘जब घर में कोई भी नौकर नहीं था और पूरा परिवार साथ रहता था तब तो एक बार भी कमल ने नहीं कहा कि घर के काम बेकार के होते हैं और अब जब वे रसोईघर में जा कर कुछ भी करती हैं तो वह बेकार का काम है,’ लेकिन प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कहा.
उस दिन के बाद कमल ही बेटी रमा के स्कूल जाने लगे. पैसा आने के बाद कमल के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया था. अब वे बड़ेबड़े लोेगों में उठनेबैठने लगे थे और चाहते थे कि पत्नी भी वैसा ही करे. पर उन को ऐसी महफिलों में जा कर अपनी और अपने कीमती वस्त्रों व गहनों की प्रदर्शनी करना अच्छा नहीं लगता था. एक दिन दोनों कार से कहीं जा रहे थे. एक गरीब आदमी, जिस की दोनों टांगें बेकार थीं फिर भी वह मेहनत कर के कुछ बेच रहा था, उन की गाड़ी के पास आ कर रुक गया और उन से अपनी वस्तु खरीदने का आग्रह करने लगा. सरिता अपना पर्स खोल कर पैसे निकालने लगीं लेकिन कमल ने उन्हें डांट दिया, ‘क्या करती हो, यह सब इन का रोज का काम है. तुम को तो बस पर्स खोलने का बहाना चाहिए. चलो, गाड़ी के शीशे चढ़ाओ.’
उन का दिल भर आया और उन्हें अपना एक जन्मदिन याद आ गया. शादी के बाद जब उन का पहला जन्मदिन आया था. उन दिनों उन के पास गाड़ी नहीं थी. वे दोनों एक पुराने स्कूटर पर चला करते थे. वे लोग एक बेकरी से केक लेने गए थे. कमल के पास ज्यादा पैसे नहीं थे पर फिर भी उन्होंने एक केक लिया और एक फूलों का गुलदस्ता लेना चाहते थे. बेकरी के बाहर एक छोटी बच्ची खड़ी थी. ठंड के दिन थे. बच्ची ने पैरों में कुछ भी नहीं पहना था. ठंड से वह कांप रही थी. उस की हालत देख कर वे रो पड़ी थीं. कमल ने उन को रोते देखा तो फूलों का गुलदस्ता लेने के बजाय उस बच्ची को चप्पलें खरीद कर दे दीं. उस दिन उन को कमल सचमुच सच्चे हमसफर लगे थे. आज के और उस दिन के कमल में कितना फर्क आ गया है, इसे सिर्फ वे ही महसूस कर सकती थीं.
तब उन की आंखें भर गई थीं. उन्होंने कमल से छिपा कर अपनी आंखें पोंछ ली थीं. सरिता की एक आदत थी कि वे ज्यादा बोलती नहीं थीं लेकिन मिलनसार थीं. उन के घर में जो भी आता था वे उस की खातिरदारी करने में भरोसा रखती थीं पर कमल को सिर्फ अपने स्तर वालों की खातिरदारी में ही विश्वास था. उन्हें लगता था कि एक पल या एक पैसा भी किसी के लिए व्यर्थ गंवाना नहीं चाहिए.
सरिता की वजह से दूरदूर के रिश्तेदार कमल के घर आते थे और उन की तारीफ भी करते थे. ‘सरिता भाभी तो खाना खिलाए बगैर कभी भी आने नहीं देती हैं’ या फिर ‘सरिता भाभी के घर जाओ तो लगता है जैसे वे हमारा ही इंतजार कर रही थीं’, ‘वे इतने अच्छे तरीके से सब से मिलती हैं’ आदि. लेकिन उन की बेटी ही उन्हें कुछ नहीं समझती है. रमा ने कभी भी मां को अपना हमराज नहीं बनाया. वह तो सिर्फ अपने पापा की बेटी थी. इस में उस का कोई दोष नहीं है. उस के पैदा होने से पहले कमल के पास बहुत पैसा नहीं था लेकिन जिस दिन वह पैदा हुई उसी दिन कमल को एक बहुत बड़ा और्डर मिला था और उस के बाद तो उन के घर में पैसों की रेलमपेल शुरू हो गई.
कमल समझते थे कि यह सब उस की बेटी की वजह से ही हुआ है. इसलिए वे रमा को बहुत मानते थे. उस के मुंह से निकली हर बात पूरा करना अपना धर्म समझते थे. जिस से रमा जिद्दी हो गई थी. सरिता उस की हर जिद पूरी नहीं करती थी, जिस के चलते वह अपने पापा के ज्यादा नजदीक हो गई थी. धीरेधीरे रमा अपनी ही मां से दूर होती गई. कमल हरदम रमा को सही और सरिता को गलत ठहराते थे. एक बार सरिता ने रमा को किसी गलत बात के लिए डांटा और समझाने की कोशिश की कि ससुराल में यह सब नहीं चलेगा तो कमल बोल पड़े, ‘हम रमा का ससुराल ही यहां ले आएंगे.’
उस के बाद तो सरिता ने रमा को कुछ भी कहना बंद कर दिया. कमल रमा की ससुराल अपने घर नहीं ला सके. हर लड़की की तरह उसे भी अपने घर जाना ही पड़ा. जब रमा ससुराल जा रही थी तो सब रो रहे थे. सरिता को भी दुख हो रहा था. बेटी ससुराल जा रही थी, रोना तो स्वाभाविक ही था. सरिता को मन के किसी कोने में थोड़ी सी खुशी भी थी क्योंकि अब उन का घर उन का अपना बनने वाला था. अब शायद सरिता अपनी तरह अपने घर को चला सकती थीं. जब से वे इस घर में आई थीं कोई न कोई उन पर अपना हुक्म चलाता था. पहले सास का, ननद का, फिर बेटी का घर पर राज हो गया था, लेकिन अब वे अपना घर अपनी इच्छा से चलाना चाहती थीं.
रमा अपने घर में खुश थी. उस ने अपनी ससुराल में सब के साथ सामंजस्य बना लिया था. जिस बात की सरिता को सब से ज्यादा फिक्र थी वैसी समस्या नहीं खड़ी हुई. सरिता भी खुश थीं, अपना घर अपनी इच्छा से चला कर, लेकिन उन की खुशी में फिर से बाधा पड़ गई. रमा घर आई और कहने लगी, ‘पापा, मां तो बिलकुल अकेली पड़ गई हैं. अब भैया की शादी कर दो.’ सरिता चीख कर कहना चाहती थीं कि अभी नहीं, कुछ दिन तो मुझे जी लेने दो. पर प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कह पाईं और कुछ समय बाद रमा माला को ढूंढ़ लाई. माला उस के ससुराल के किसी रिश्तेदार की बेटी थी.
माला बहुत अच्छी थी. बिलकुल आदर्श बहू, लेकिन ज्यादा मीठा भी सेहत को नुकसान देता है. इसलिए सरिता उस से भी कभीकभी कड़वी हो जाती थी. माला बहुत पढ़ीलिखी थी. वह सरिता की तरह घरघुस्सू नहीं थी. वह मोहित के साथ हर जगह जाती थी और बहुत अच्छी अंगरेजी भी बोल लेती थी, इसलिए मोहित को उसे अपने साथ हर जगह ले जाने में गर्व महसूस होता था. उस ने रमा को भी अपना बना लिया था. रमा उस की बहुत तारीफ करती थी, ‘मां, भाभी बहुत अच्छी हैं. मेरी पसंद की हैं इसलिए न.’
सरिता को हल्के रंग के कपड़े पसंद थे. आज तक वे सिर्फ कपड़ों के मामले में ही अपनी मालकिन थीं लेकिन यहां भी सेंध लग गई. माला सरिता को सलाह देने लगी, ‘मां, आप इतने फीके रंग मत पहना करें, शोख रंग पहनें. आप पर अच्छे लगेंगे.’ कमल कहते, ‘अपनी सास को कुछ मत कहो, वे सिर्फ हल्के रंग के कपड़े ही पहनती हैं. मैं ने कितनी बार कोशिश की थी इसे गहरे रंग के कपड़े पहनाने की पर इसे तो वे पसंद ही नहीं हैं.’
‘कब की थी कोशिश कमल,’ सरिता कहना चाहती थीं, ‘एक बार कह कर तो देखते. मैं कैसे आप के रंग में रंग जाती,’ पर बहू के सामने कुछ नहीं बोलीं.
आज सुबह रमा को घर आना था. उन्होंने रसोई में जा कर कुछ बनाना चाहा. पर माला आ गई, ‘मां, लाइए मैं बना देती हूं.’
‘नहीं, मैं बना लूंगी.’
‘ठीक है. मैं आप की मदद कर देती हूं.’
उन्होंने प्यार से बहू से कहा, ‘नहीं माला, आज मेरा मन कर रहा है तुम सब के लिए कुछ बनाने का. तुम जाओ, मैं बना लूंगी.’
माला चली गई. पता नहीं क्यों खाना बनाते समय उन्हें जोर से खांसी आ गई. मोहित वहां से गुजर रहा था. वह मां को अंदर ले कर आया और माला को डांटने के लिए अपने कमरे में चला गया. सरिता उस के पीछे जाने लगीं ताकि उसे समझा सकें कि इस में माला का कोई दोष नहीं है. वे कमरे के पास गईं तो देखा दोनों भाईबहन बैठे हुए हैं. रमा आ चुकी थी और उन से मिलने के बजाय पहले अपनी भाभी से मिलने चली गई थी.
उन्होंने जैसे ही अपने कदम आगे बढ़ाए, रमा की आवाज उन के कान में पड़ी, ‘मां को भी पता नहीं क्या जरूरत थी किचन में जाने की.’
तभी मोहित बोल पड़ा, ‘पता नहीं क्यों, मां समझती नहीं हैं, हर वक्त घर में कुछ न कुछ करती रहती हैं जिस से घर में कलह बढ़ती है, मेरे और माला के बीच जो खटपट होती है उस का कारण मां ही होती हैं.’
‘क्या मैं माला और मोहित के बीच कलह का कारण हूं,’ सरिता सोचती ही रह गईं.
तभी माला की अवाज सुनाई पड़ी, ‘मैं तो हर वक्त मां का खयाल रखती हूं पर पता नहीं क्यों, मां को तो जैसे मैं अच्छी ही नहीं लगती हूं. अभी भी तो मैं ने कितना कहा मां से कि मैं करती हूं पर वे मुझे करने दें तब न.’
‘मैं समझती हूं, भाभी. मां शुरू से ही ऐसी हैं,’ रमा की आवाज आई.
‘मां को तो बेटी समझ नहीं पाई, भाभी क्या समझेगी,’ सरिता चीखना चाहती थीं पर आवाज जैसे गले में ही दब गई.
‘अच्छा, तुम चिंता मत करो, मैं समझाऊंगा मां को,’ यह मोहित की आवाज थी.
‘कभी मां की भी इतनी चिंता करनी थी बेटे,’ कहना चाहा सरिता ने पर आदत के अनुसार फिर से चुप ही रहीं.
‘मैं देखती हूं मां को, कहीं ज्यादा तबीयत तो खराब नहीं है,’ माला बोली.
‘जब अपने ही मुझे नहीं समझ रहे तो तू क्या समझेगी जिसे इस घर में आए कुछ ही समय हुआ है,’ सरिता के मन ने कहा.
इधर, आसमान में बिजली के कड़कने की तेज आवाज आई तो वे खयालों की दुनिया से बाहर आ गईं. दरअसल, दोपहर का खाना खाने के बाद जब वे बाजार जाने के लिए घर से निकली थीं तो सिर्फ बादल थे पर जब जोर से बरसात होने लगी तो वे एक बारजे के नीचे खड़ी हो गई थीं. और अब फिर सोचने लगीं कि अगर वे भीग कर घर जाएंगी तो सब क्या कहेंगे? रमा अपनी आदत के अनुसार कहेगी, ‘मां को बस, भीगने का बहाना चाहिए.’
कमल कहेंगे, ‘कितनी बार कहा है कि गाड़ी से जाया करो पर नहीं’. मोहित कहेगा, ‘मां, मुझे कह दिया होता, मैं आप को लेने पहुंच जाता.’
बहू कहेगी, ‘मां, कम से कम छाता तो ले ही जातीं.’
सरिता ने सारे खयाल मन से अंतत: निकाल ही दिए और भीगते हुए अकेली ही घर की तरफ चल पड़ीं.
Story in Hindi
दिल्ली रेलवे स्टेशन से नंगलडैम शहर के लिए जैसे ही राहुल रेलगाड़ी के कंपार्टमैंट में चढ़ा, उस ने नजर खाली बर्थ की तरफ दौड़ाई, लेकिन स्लीपिंग कंपार्टमैंट में अधिकतर सीटें खाली पड़ी थीं. उस ने अपना सामान एक बर्थ पर रख कर देखा तो एक युवती खिड़की के पास वाली लंबी बर्थ पर अकेली बैठी थी. उस की उम्र यही कोई 22-23 के आसपास की रही होगी. वह गुलाबी रंग के सूट में थी. दिसंबर का महीना था. वह आकर्षण और रूपलावण्य से भरपूर इतनी सुंदर लग रही थी मानो जैसे कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो.
टिकट चैकर के पास जा कर राहुल ने उस लड़की के पास वाली सीट अपने लिए बुक करवा ली. राहुल एक कंपनी में जौइन करने के लिए नंगल जा रहा था. असिस्टैंट मैनेजर का पद था. गाड़ी रात को 10 बजे चल कर नंगल सवेरे 5 बजे पहुंचती थी. वह खुश था, ‘काफी समय के लिए यात्रा में इतनी सुंदर युवती का साथ रहेगा,’ ऐसा वह मन ही मन सोचने लगा.
राहुल लगभग 25 वर्ष के आसपास था. एक क्षण के लिए उस ने सोचा, ‘क्यों न वह अपना परिचय देते हुए, उस युवती के पास बैठ कर उस से नजदीकी बढ़ाए.’
‘‘मेरा नाम राहुल है. मैं नंगल जौब जौइन करने जा रहा हूं. आप का क्या नाम है? आप कहां जा रही हैं?’’ पूछते हुए उस की बेसब्री जाहिर थी. वह उस के चेहरे को गौर से देख रहा था.
‘‘हम दोनों हमउम्र हैं, पहले तो मैं यह कहूंगी कि आप की जगह तुम शब्द का इस्तेमाल कीजिए. मेरा नाम सपना है. मैं नंगल डैम शहर में सिविल अस्पताल में इंटर्नशिप के लिए जा रही हूं. 3 महीने मैं नंगल शहर में ही रहूंगी.’’
राहुल को सपना का अनौपचारिक होना अच्छा लगा. उसे भी लड़कियों को तुम कह कर संबोधित करना अच्छा लगता था. सपना की सीट पर बैठ कर उस से बातें करना उसे बहुत अच्छा लगा. सपना ने बताया उस का परिवार दिल्ली में रहता है. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने परिवार के बारे में विस्तार से बताते हुए बातचीत शुरू की. दोनों के ही परिवार दिल्ली में रहते थे.
राहुल के पिता पुस्तक प्रकाशक थे, उन का अच्छाखासा व्यापार था. मां हाउसवाइफ थीं. सपना के पिता तलाकशुदा थे, मां झगड़ालू और क्लेश करने वाली थीं इसलिए मां और पिता का तलाक कई वर्ष पहले ही हो चुका था. बचपन से यौवनावस्था तक सपना का जीवन संघर्षमय रहा था. वह पिता के साथ दिल्ली में रहती थी. डाक्टरी की पढ़ाई भी उस ने दिल्ली में ही की और अब इंटर्नशिप के लिए नंगल जा रही थी.
यह सब सुन कर राहुल का मन सपना के लिए सहानुभूति से भर उठा और भावविभोर हो कर उस ने कहा, ‘‘सपना, मुझे तुम्हारे संघर्षमय जीवन के बारे में जान कर बहुत दुख हुआ है. तुम बहुत बहादुर और सैल्फमेड लड़की हो. मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि तुम कैरियर बनाने के प्रति जागरूक और प्रयत्नशील हो. नंगल पहुंच कर अपनी इंटर्नशिप शुरू करो. मुझे तुम कभी भी किसी भी प्रकार की सहायता के लिए बगैर हिचकिचाहट के कह सकती हो. हम अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे देते हैं,’’ राहुल ने जेब से एक कागज निकाल कर उस पर अपना मोबाइल नंबर लिखा और सपना को दे दिया, ‘‘फील फ्री टू कौंटैक्ट मी.’’
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सपना ‘थैंक्स’ कहते समय बहुत खुश दिखाई दी. सोने से पहले कानों में हैडफोन लगा कर उस ने अपना मनपसंद संगीत सुना. राहुल ने देखा सपना उनींदी आंखों से उस की ओर मुसकरा कर निहार रही थी. मधुर आवाज में ‘गुडनाइट’ कहते हुए उस ने कंबल ओढ़ लिया.
यों तो एमबीए की पढ़ाई के दौरान कई युवतियों के संपर्क में रहने वाला राहुल आश्चर्यचकित था कि इतनी सुंदर युवती उस के जीवन में अब तक नहीं आई थी. अपनी बर्थ पर लेटे हुए टकटकी लगाए वह सपना को देख कर खुश हो रहा था. उसे इस बात की भी प्रसन्नता थी कि 3 महीने नंगल में सपना का साथ मिलेगा. भविष्य के विषय में सोचते हुए कब उसे नींद आ गई पता ही नहीं चला.
सवेरे 4 बजे गाड़ी आनंदपुर साहब स्टेशन पर 15 मिनट के लिए रुकी. सपना अभी सो ही रही थी. राहुल 2 कप चाय ले आया. सपना गहरी नींद में थी. राहुल ने उस के गाल पर हलके स्पर्श के साथ उसे जगाया. सपना को अच्छा लगा. ‘‘गुडमौर्निंग,’’ कहते हुए सपना ने चाय का गिलास राहुल से ले लिया. राहुल का बरसों के इंतजार के बाद इतनी सुंदर युवती से जो सामना हुआ था. उस ने मन में सोचा, ‘पापा को फोन पर बताएगा कि उन के लिए बहू तलाश ली है,’ दूसरी तरफ मन में यह बात भी आई कि अभी बहुत जल्दी होगी. सब्र करना ठीक होगा. अभी एकदूसरे को जानना बाकी है.
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नंगल स्टेशन पर पहुंचने के बाद राहुल कंपनी के गैस्ट हाउस की ओर चला गया.
‘‘सपना, तुम अपने वूमन होस्टल पहुंच कर फोन करना,’’ राहुल ने कहा.
‘‘ठीक है, लैटअस विश ईच अदर बैस्ट औफ लक’’ सपना ने मुसकराते हुए कहा और अस्पताल से आई हुई वैन में बैठ गई.
दोनों ने अपनीअपनी जौब जौइन कर ली. राहुल और सपना दोनों के लिए नए शहर में रहना एक अद्भुत अनुभव था. एकदूसरे से मिलना और साथसाथ समय बिताना उन्हें अच्छा लगने लगा. नंगल डैम पर एक रेस्तरां था. वहां से चारों ओर का बहुत ही सुहावना दृश्य दिखता था. रविवार के दिन इसी रेस्तरां में वे दोनों घंटों साथसाथ समय बिताते थे. लंच यहीं पर करते थे. कभीकभी सपना राहुल के साथ उस के गैस्ट हाउस में भी घंटों बैठी रहती थी. ज्योंज्यों नजदीकियां बढ़ रही थीं त्योंत्यों उन का रिश्ता स्वाभाविक रूप से गहरा होता जा रहा था.
एक दिन राहुल ने सपना से कहा, ‘‘तुम अपने पापा का पूरा पता मुझे दे दो ताकि मैं दिल्ली जा कर उन से मिल सकूं या फिर मैं अपने मातापिता को तुम्हारे पापा के पास भेज कर उन की जानपहचान करवा सकूं.’’
सपना बोली, ‘‘अभी पापा से मिलवाना या तुम्हारा दिल्ली जा कर उन से मिलना जल्दबाजी होगी. मैं अभी पता नहीं देना चाहती.’’
राहुल की समझ में नहीं आया कि ऐसी क्या बात है, जो वह अपने पापा का पता उसे नहीं दे रही है.
समयसमय पर जब कभी मौका मिलता, राहुल अपना प्रेम व्यक्त करता रहता. वह सपना से कहा करता कि जब हम दोनों एकदूसरे के इतने नजदीक आ चुके हैं, तो समझ में नहीं आता कि क्यों तुम उन बातों से परहेज करती हो जो इस उम्र में नौजवान युवकयुवतियां करते हैं. राहुल ने अपनी जेब से सोने की एक अंगूठी निकाली और सपना को पहनाते हुए कहा, ‘‘यह मेरा तुम्हारे लिए पहला गिफ्ट है. मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब तुम से प्यार करने लगा. मेरे जीवन में यह पहला अनुभव है,’’ उस ने भावुक हो कर सपना को गले लगाना चाहा, लेकिन सपना ने उसे मना करते हुए अनुरोध किया, ‘‘नहीं, राहुल अभी ऐसा कुछ मैं स्वीकार नहीं करूंगी. जब कभी हम विवाह के बंधन में बंध जाएंगे तो मैं प्रौमिस करती हूं कि तुम्हें जी भर कर प्यार करूंगी. अभी बस इतने से ही काम चलाना होगा,’’ कहते हुए उस ने राहुल का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाया और चूम लिया, ‘‘इन हाथों ने मुझे अंगूठी पहनानी चाही इसलिए इन्हें चूम कर मैं अपने प्यार का इजहार कर रही हूं.’’
एक दिन दोनों गैस्ट हाउस के लौन में बैठे चाय का आनंद ले रहे थे. दोनों एकदूसरे को अपने कालेज के दिनों के बारे में विस्तार से बता रहे थे. सपना ने बताया कि कैसे लड़के उस के करीब आने का प्रयत्न करते थे, लेकिन वह किसी के प्रति आकर्षित नहीं होती थी. अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर के अपना टौप करने का उद्देश्य वह पूरा करना चाहती है.
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‘‘सपना, मैं एक बार फिर तुम से कह रहा हूं कि मुझे अपने डैडी का ऐड्रैस और मोबाइल नंबर दे दो. जैसा तुम ने बताया था कि डैडी बिलकुल अकेले हैं, तुम्हारी मां उन्हें छोड़ कर जा चुकी हैं. मेरा उन से मिलना जरूरी है, कहीं ऐसा न हो कि वे कोई और लड़का तुम्हारे लिए देख लें,’’ राहुल ने सपना को समझाते हुए कहा.
‘‘मुझे भी पापा की चिंता है कि कैसे वे मेरी अनुपस्थिति में समय गुजारते होंगे. उन्हें खाना भी बाहर से मंगाना पड़ता होगा. पहली बार उन से दूर आ कर मैं यहां रह रही हूं,’’ सपना ने कहा.
राहुल बोला, ‘‘मुझे तुम से पूरी सहानुभूति है. मैं जानता हूं कि मां के बिना तुम्हारा जीवन कितना कष्टमय रहा होगा. सपना, मैं तो यही कामना करता हूं कि तुम्हारी मां वापस तुम्हारे घर आ जाए. तुम्हारी शादी का इंतजाम वे संभाल लें.’’
सपना का उदास चेहरा राहुल से देखा नहीं जाता था. अपना प्यार, अपने हावभाव उस पर उडे़लता हुआ वह यही कहता था, ‘‘मैं तुम्हारे जीवन को खुशियों से भर दूंगा. यह मेरी दिली तमन्ना है.’’
सपना की इंटर्नशिप का 2 महीने का समय बीत चुका था और वह 2-3 दिन की छुट्टी ले कर दिल्ली अपने पापा के पास जा रही थी. राहुल ने जोर दे कर सपना को बताया कि वह भी उस के साथ दिल्ली जाएगा. बेशक सपना ने आनाकानी की लेकिन वह नहीं माना और दोनों ने टिकट बुक करा लिए.
राहुल यह नहीं समझ पा रहा था कि हर बार सपना इस बात पर हिचकिचाती क्यों है कि राहुल उस के पापा से दिल्ली जा कर न मिलें. राहुल के दृढ़निश्चय का परिणाम यह हुआ कि दोनों दिल्ली सपना के पापा के पास पहुंच गए.
राहुल को इस बात का अनुमान था कि सपना अपने साथ राहुल को दिल्ली लाने के बारे में अपने पापा को फोन पर बता चुकी होगी. उस के घर पहुंचने पर राहुल आश्चर्यचकित था. सपना के पापा के साथ उस की मम्मी भी घर पर मौजूद थीं.
राहुल ने प्रश्न किया, ‘‘सपना, तुम ने तो बताया था कि तुम्हारे मम्मीपापा का तलाक हो चुका है. मम्मी साथ नहीं रहती हैं.’’
सपना ने कहा, ‘‘मुझे भी सरप्राइज हुआ था जब पापा ने फोन पर बताया था कि तलाक की प्रक्रिया पूरी होने से पहले उन का मम्मी से समझौता हो गया है और वे खुशीखुशी उन के साथ रहने के लिए चली आई हैं. मैं इस बात से बहुत खुश हूं,’’ वह अपनी मां के गले लग कर बहुत रोई. सपना के पापा की आंखें भी आंसुओं से भर आई थीं.
सब ने मिलबैठ कर एकसाथ नाश्ता किया. चाय पी कर माहौल को अनुकूल देख कर सपना ने शरारत भरी मुसकराहट के साथ राहुल से कहा, ‘‘मेरी पूरी बात धैर्य से सुन लो. प्रतिक्रिया बाद में देना. मम्मीपापा में कभी कोई मतभेद या तलाक हुआ ही नहीं था. मैं ने तुम से झूठ बोला था. तुम से सहानुभूति प्राप्त करने और प्यार पाने के लिए मैं ने ऐसा किया था. तुम से मिलते ही पहली नजर में ही मैं ने तुम्हें चुन लिया था. दुनिया में तुम से बेहतर जीवन साथी तो हो ही नहीं सकता,’’ क्षण भर को वह रुकी, फिर राहुल से पूछा, ‘‘क्या तुम मुझे माफ कर सकोगे. मेरा तरीका गलत हो सकता है पर मेरा मकसद अपने लिए योग्यप्रेमी को पाना था. यह मेरा आखिरी झूठ था. भविष्य में कभी झूठ का सहारा नहीं लूंगी.’’ सपना के मातापिता हक्केबक्के हो कर अपनी पुत्री को निहार रहे थे. सपना ने कहा, ‘‘पापा, आई एम सौरी.’’
राहुल की खुशी उस के चेहरे पर झलक रही थी. ‘‘तुम्हारे अब तक के मधुर व्यवहार और प्रगाढ़ प्रेम को देखते हुए यह गलती माफ करने योग्य है,’’ अपनी स्वीकृति व्यक्त करते हुए उस ने सपना के मातापिता के पैर छूकर आशीर्वाद लिया.
गंगा गांव की एक भोलीभाली और बेहद खूबसूरत लड़की थी. उस की मासूम खूबसूरती को वैसे तो शब्दों में ढालना बहुत ही मुश्किल है, पर यह समझ लीजिए कि गंगा को देख कर ऐसा लगता था, जैसे खेतों की हरियाली उसी पर छाई हुई है…
अल्हड़, मस्त गंगा पूरे गांव में घूमतीफिरती… कभी गन्ना चूसते हुए, तो कभी बकरी के बच्चे को पकड़ने के लिए… गांवभर के मुस्टंडे आंखें
भरभर कर उसे देखा करते और ठंडी आहें भरते थे, पर गंगा किसी को घास नहीं डालती थी.
गांव के सरपंच के बेटे की शादी का मौका था… सरपंच के घर खूब रौनक थी… दूरदराज के गांवों से भी ढेरों मेहमान आए थे.
गंगा के पिता लक्ष्मण सिंह और सरपंच में गहरी दोस्ती थी, सो गंगा का पूरा परिवार उस शादी में घराती के रोल में बिजी था. कई सारे इंतजाम लक्ष्मण सिंह के ही जिम्मे थे…
गंगा की मां पार्वती घर के कामों को निबटाने में सरपंच की पत्नी का हाथ बंटा रही थी. गंगा के लिए तो यह शादी जैसे कोई त्योहार, कोई उत्सव जैसी थी… नएनए कपड़े पहनना, सजनासंवरना और नाचगाने में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना…
‘‘अरी ओ गंगा… कुछ काम भी कर लिया कर… सारा दिन यहां से वहां मटकती फिरती है…’’ पार्वती ने कहा.
‘‘अरी अम्मां, काम करने के लिए तू तो है… अभी तो मेरी खेलनेकूदने की उम्र है,’’ गंगा खिलखिलाते हुए बोली.
‘‘देख तो… ताड़ जैसी हो गई है… कल हाथ पीले हो गए, तो अपनी ससुराल में खिलाएगी… पत्थर…’’ पार्वती गुस्सा दिखाते हुए बोली.
‘‘अम्मां… तू फिक्र मत कर… मेरी ससुराल में नौकरचाकर होंगे… मैं नहीं करूंगी कोई कामधाम,’’ गंगा ने तपाक से जवाब दिया.
‘‘तेरे मुंह में गुड़ की डली मेरी लाडो… तेरी खातिर ऐसी ही ससुराल देखेंगे…’’ बीच में गंगा के पिता लक्ष्मण सिंह बोले.
‘‘यह लो… सेर को सवा सेर. समझाने के बजाय उस की हां में हां मिला रहे हो… ओ गंगा के बापू… क्यों इतना सिर चढ़ा रहे हो… लड़की जात है… दोचार गुण सीख लेगी तो ससुराल में काम आएंगे…’’ गंगा की मां तुनक कर बोली.
‘‘क्यों इस के पीछे पड़ी रहती हो… जब ब्याह होएगा… तो सब अपनेआप सीख जाएगी…’’ लक्ष्मण सिंह ने कहा.
‘‘बापू… यह देखो… यह घाघरा और चोली सिलवाई है… अम्मां की बनारसी साड़ी से… कैसी है बापू?’’ गंगा ने पिता से पूछा.
‘‘बहुत बढि़या है… मेरी लाडो एकदम रानी लगती है रानी…’’ लक्ष्मण सिंह खुश होते हुए बोले.
गंगा लहंगाचोली को अपने तन से लगा कर हिलहिल कर खुद को निहार रही थी.
शाम को सरपंच के यहां से बरात निकलनी थी. गंगा के मांबापू पहले ही वहां पहुंच चुके थे. गंगा सजसंवर कर जब वहां पहुंची, तो सब के मुंह खुले के खुले रह गए…
हर कोई गंगा को ही देख रहा था… सब को अपनी तरफ देखते हुए देख कर गंगा शरमा गई. शर्म के मारे उस के गाल और गुलाबी हो गए…
दूसरे गांवों के सरपंच भी वहां आए हुए थे. सीमन गांव के सरपंच और उन का बेटा निहाल भी इस शादी में आए थे… निहाल बांका जवान था. गठा हुआ शरीर और रोबदार चेहरामोहरा… झबरीली मूंछें और गुलाबी होंठ.
गंगा और निहाल ने एकसाथ एकदूजे को देखा. निहाल से नजरें मिलते ही गंगा का दिल जोरजोर से धड़कने लगा और निहाल तो बस एकटक गंगा को ही देखे जा रहा था… मानो उस की आंखें गंगा के सिवा कुछ देखना ही नहीं चाहती हों.
‘‘चलो चलो… जल्दी करो… वर निकासी का समय हो गया,’’ किसी ने कहा.
गंगा और निहाल की तंद्रा टूटी. बरात गई और बरात वापस भी आ गई… लेकिन गंगा और निहाल तो जैसे एकदूसरे में ठहर गए थे… प्यार का बीज फूट चुका था.
‘‘गंगा…’’ किसी ने धीरे से गंगा को पुकारा.
गंगा ने देखा कि एक कोने में निहाल खड़ा था… उस ने गंगा को इशारा किया कि घर के पीछे आ जाओ.
गंगा का दिल जोर से धड़क रहा था, पर निहाल से मिलने की बेताबी भी थी… सब से नजरें बचा कर गंगा घर के पिछवाड़े में पहुंच गई, जहां निहाल बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था.
‘‘गंगा…’’ निहाल ने गंगा के कान
में कहा.
गंगा का पूरा शरीर सिहर गया… मानो निहाल की सांसें, खून के साथ उस की धमनियों में बहने लगी हों.
‘‘हम आज अपने गांव वापस जा रहे हैं,’’ निहाल ने गंगा से कहा.
यह सुन कर गंगा की आंखों में आंसू आ गए और उस ने पलकें उठा कर निहाल को देखा.
‘‘अरी पगली, रोती क्यों हो… अब मैं तुम्हें ब्याह कर हमेशा के लिए साथ ले जाऊंगा,’’ निहाल ने गंगा के आंसू पोंछते हुए कहा.
गंगा थरथर कांप रही थी. निहाल ने उस का माथा चूम लिया. गंगा को ऐसा एहसास पहले कभी नहीं हुआ था. वह लता की तरह निहाल से लिपट गई.
निहाल उसे उठा कर पिछवाड़े में मवेशियों के लिए बनी कोठरी में ले गया. गंगा सुधबुध खो बैठी थी और निहाल बेताब था. उस अंधेरी कोठरी में अचानक बिजलियां चमकीं… कई सारे जुगनू टिमटिमाने लगे… जज्बातों की बारिश जैसे थमने का नाम ही नहीं ले रही थी… बांध टूट गए…
कुछ ही पलों में सबकुछ शांत था, मानो एक भयंकर तूफान आया और
फिर थम गया, जो छोड़ गया कुछ निशानियां… जिन्हें अब गंगा समेट
रही थी.
‘‘गंगा, मैं जल्दी ही आऊंगा और तुम्हें अपनी दुलहन बना कर ले जाऊंगा,’’ निहाल बोला.
गंगा शांत थी. उसे कुछ कहनेसुनने का समय ही न मिला. निहाल फुरती से कोठरी से बाहर निकल गया.
गंगा पिघली जा रही थी. निहाल के प्यार और इस अनोखे एहसास से घिरी गंगा कोठरी से बाहर निकली. निहाल अपने पिता के साथ वापस गांव के लिए निकल चुका था.
गंगा नहीं जानती थी कि जिस पर उस ने अपना सबकुछ लुटा दिया है, वह कौन है, किस गांव का है और उसे लेने कब आएगा.
मदमस्त लहराती चंचल गंगा एकाएक शांत और गंभीर हो गई थी. रातदिन आहट रहती कि अब निहाल आए या उस की कोई खबर ही आ जाए… कई महीने बीत गए, पर निहाल नहीं आया.
पार्वती और लक्ष्मण सिंह समझ नहीं पा रहे थे कि खिलीखिली सी उन की बेटी क्यों पलपल मुरझा रही है.
नदी किनारे बैठ आंसू बहाती गंगा हताश हो गई… उस का धीरज अब जवाब दे चुका था. अम्मांबापू का ब्याह के लिए जोर देना… जैसे गंगा को भीतर ही भीतर मार रहा था.
एक दिन नदी की आतीजाती लहरों को देखतेदेखते जाने कौन सा तूफान गंगा के दिल में उठा कि उस ने नदी में छलांग लगा दी. गंगा डूबने लगी. उस का दम घुटने लगा. सांसें उखड़ने लगीं. एकाएक हाथपैर मारती गंगा के हाथ में लकड़ी का एक भारी लट्ठा आ गया. गंगा उस के सहारे तैर कर नदी के किनारे आ गई.
पानी में कूदने, डूबने और मौत का सामना कर लौटी गंगा के मन में एक ही विचार बारबार कौंध रहा था कि जानबूझ कर पानी में कूदने या अनजाने में पानी में गिरने पर इनसान कितना छटपटाता होगा… कितनी तकलीफदेह मौत होती होगी… उस समय उसे अगर एक लकड़ी मिल जाए… तो कितनों की जान बच सकती है… बस, उस ने कुछ सोच कर जंगल से लकडि़यां तोड़ीं और उन से एक नाव तैयार की और उतार दी नदी में.
अब गंगा ने तय किया कि उस की जिंदगी का एक यही मकसद होगा… वह इस नाव से सब को पार लगाएगी और डूबतों के प्राण बचाएगी…
गंगा अब ‘नाव वाली गंगा’ कहलाने लगी. गरीब जरूरतमंदों को नदी पार कराने वाली गंगा… डूबतों की जान बचाने वाली गंगा…
अम्मांबापू की उस के आगे एक न चली. गंगा ने शादी करने से साफ मना कर दिया. कह दिया कि ब्याह की बात की तो वह नदी में कूद कर अपनी जान दे देगी. अम्मांबापू ने हार मान ली.
महीने बीते… साल गुजरे… नाव वाली गंगा नहीं बदली. वह डटी रही नदी किनारे… पार करवाती रही नदी… न जाने कितनी जानें बचाईं उस की नाव ने.
इस बार बारिश बहुत हुई. कई गांव के खेतखलिहान, घरजमीन सब बाढ़ की भेंट चढ़ गए. गंगा के गांव में भी बाढ़ ने तहलका मचाया, लेकिन गंगा औरों की तरह गांव छोड़ कर भागी नहीं, बल्कि बाढ़ में डूबे लोगों को बचा कर उन की देखरेख करती रही.
बाढ़ का पानी अब उतार पर था. गंगा अपनी नाव के साथ नदी किनारे बैठी थी कि तभी किसी ने नदी में छलांग लगा दी. गंगा ने लपक कर अपनी नाव उस तरफ चला दी. उस ने देखा कि एक नौजवान डूब रहा था, घबरा कर हाथपैर मार रहा था.
गंगा ने पास पहुंच कर उसे बड़ी मुश्किल से अपनी नाव पर चढ़ा लिया और उस की पीठ दबा कर पानी निकाला.
‘‘क्यों कूदे…?’’ गंगा ने औंधे पड़े उस नौजवान से पूछा.
‘‘मेरा तो सबकुछ लूट गया है. खेतखलिहान, घरजायदाद सब बरबाद हो गया और परिवार भी… सब बह गए. अब मैं
जी कर भी
क्या करूंगा… क्यों बचाया तुम ने?’’ उस नौजवान ने उलटा लेटे हुए ही जवाब दिया.
‘‘तूफान तो आते हैं और चले जाते हैं… पर इस का यह मतलब तो नहीं है कि जिंदगी खत्म हो गई. एक तूफान से क्या घबराना. हिम्मत करो और फिर जीना शुरू करो. हो सकता?है कि कुछ बहुत अच्छा हो जाए…’’ गंगा ने कहा.
इतना सुन कर वह नौजवान पलटा. गंगा का मुंह खुला का खुला रह गया.
‘‘निहाल…’’ गंगा बुदबुदाई.
‘‘गंगा…’’ निहाल गंगा को देख कर हैरान रह गया.
‘‘मैं ने तुम्हें धोखा दिया. उसी
की सजा मुझे मिली है,’’ निहाल रोते
हुए बोला.
गंगा की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे.
‘‘गंगा, क्या तुम मुझे एक मौका और नहीं दोगी?’’ निहाल ने गंगा की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.
गंगा अवाक थी. उस ने निहाल पर एक तीक्ष्ण निगाह डाली और बोली, ‘‘तुम ने पश्चाताप कर लिया. इस से तुम्हारे तनमन का मैल धुल गया है, लेकिन तुम्हारा और मेरा मेल मुमकिन नहीं है. आओ, तुम्हें नदी किनारे लगा दूं, क्योंकि बीच मंझधार में छोड़ना मेरी फितरत नहीं है.’’
निहाल को नदी किनारे पर उतार कर गंगा की नाव चल पड़ी. निहाल देखता रहा दूर तक, उथली लहरों पर गंगा को चप्पू चलाते हुए.
नदी की कलकल से मानो यही आवाज सुनाई दे रही थी :
‘सागर से मुझ को मिलना नहीं है,
सागर से मिल कर मैं खारी हो जाऊंगी.’
story in Hindi
प्रदीप को पति के रूप में पा कर मंजू के सारे सपने चूरचूर हो गए. प्रदीप का रंग सांवला और कद नाटा था. वह मंजू से उम्र में भी काफी बड़ा था.
मंजू ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, मगर थी बहुत खूबसूरत. उस ने खूबसूरत फिल्मी हीरो जैसे पति की कल्पना की थी.
प्रदीप सीधासादा और नेक इनसान था. वह मंजू से बहुत प्यार करता था और उसे खुश करने के लिए अच्छेअच्छे तोहफे लाता था. मगर मंजू मुंह बिचका कर तोहफे एक ओर रख देती. वह हमेशा तनाव में रहती. उसे पति के साथ घूमनेफिरने में भी शर्म महसूस होती. मंजू तो अपने देवर संदीप पर फिदा थी. पहली नजर में ही वह उस की दीवानी हो गई थी.
संदीप मंजू का हमउम्र भी था और खूबसूरत भी. मंजू को लगा कि उस के सपनों का राजकुमार तो संदीप ही है. प्रदीप की नईनई नौकरी थी. उसे बहुत कम फुरसत मिलती थी. अकसर वह घर से बाहर ही रहता. ऐसे में मंजू को देवर का साथ बेहद भाता. वह उस के साथ खूब हंसीमजाक करती.
संदीप को रिझाने के लिए मंजू उस के इर्दगिर्द मंडराती रहती. जानबूझ कर वह साड़ी का पल्लू सरका कर रखती. उस के गोरे खूबसूरत बदन को संदीप जब चोर निगाहों से घूरता तो मंजू के दिल में शहनाइयां बज उठतीं.
वह चाहती कि संदीप उस के साथ छेड़छाड़ करे मगर लोकलाज के डर और घबराहट के चलते संदीप ऐसा कुछ नहीं कर पाता था.
संदीप की तरफ से कोई पहल न होते देख मंजू उस के और भी करीब आने लगी. वह उस का खूब खयाल रखती. बातोंबातों में वह संदीप को छेड़ने लगती. कभी उस के बालों में हाथ फिराती तो कभी उस के बदन को सहलाती. कभी चिकोटी काट कर वह खिलखिलाने लगती तो कभी उस के हाथों को अपने सीने पर रख कर कहती, ‘‘देवरजी, देखो मेरा दिल कैसे धकधक कर रहा है…’’
जवान औैर खूबसूरत भाभी की मोहक अदाओं से संदीप के मन के तार झनझना उठते. उस के तनबदन में आग सी लग जाती. वह भला कब तक खुद को रोके रखता. धीरेधीरे वह भी खुलने लगा.
देवरभाभी एकदूसरे से चिपके रहने लगे. दोनों खूब हंसीठिठोली करते व एकदूसरे की चुहलबाजियों से खूब खुश होते. अपने हाथों से एकदूसरे को खाना खिलाते. साथसाथ घूमने जाते. कभी पार्क में समय बिताते तो कभी सिनेमा देखने चले जाते. एकदूसरे का साथ उन्हें अपार सुख से भर देता.
दोनों की नजदीकियां बढ़ने लगीं. संदीप के प्यार से मंजू को बेहद खुशी मिलती. हंसतीखिलखिलाती मंजू को संदीप बांहों में भर कर चूम लेता तो कभी गोद में उठा लेता. कभी उस के सीने पर सिर रख कर संदीप कहता, ‘‘इस दिल में अपने लिए जगह ढूंढ़ रहा हूं. मिलेगी क्या?’’
‘‘चलो देवरजी, फिल्म देखने चलते हैं,’’ एक दिन मंजू बोली.
‘‘हां भाभी, चलो. अजंता टौकीज में नई फिल्म लगी है,’’ संदीप खुश हो कर बोला और कपड़े बदलने के लिए अपने कमरे में चला गया.
मंजू कपड़े बदलने के बाद आईने के सामने खड़ी हो कर बाल संवारने लगी. अपना चेहरा देख कर वह खुद से ही शरमा गई. बनठन कर जब वह निकली तो संदीप उसे देखता ही रह गया.
‘‘तुम इस तरह क्या देख रहे हो देवरजी?’’ तभी मंजू इठलाते हुए हंस कर बोली.
अचानक संदीप ने मंजू को पीछे से बांहों में भर लिया और उस के कंधे को चूम कर बोला, ‘‘बहुत खूबसूरत लग रही हो, भाभी. काश, हमारे बीच यह रिश्ता न होता तो कितना अच्छा होता?’’
‘‘अच्छा, तो तुम क्या करते?’’ मंजू शरारत से बोली.
‘‘मैं झटपट शादी कर लेता,’’ संदीप ने कहा.
‘‘धत…’’ मंजू शरमा गई. लेकिन उस के होंठों पर मादक मुसकान बिखर गई. देवर का प्यार जताना उसे बेहद अच्छा लगा.
खैर, वे दोनों फिल्म देखने चल पड़े. फिल्म देख कर जब वे बाहर निकले तो अंधेरा हो चुका था. वे अपनी ही धुन में बातें करते हुए घर लौट पड़े. उन्हें क्या पता था कि 2 बदमाश उन का पीछा कर रहे हैं. रास्ता सुनसान होते ही बदमाशों ने उन्हें घेर लिया और बदतमीजी करने लगे. यह देख कर संदीप डर के मारे कांपने लगा.
‘‘जान प्यारी है तो तू भाग जा यहां से वरना यह चाकू पेट में उतार दूंगा,’’
एक बदमाश दांत पीसता हुआ संदीप के आगे गुर्राया.
‘‘मुझे मत मारो. मैं मरना नहीं चाहता,’’ संदीप गिड़गिड़ाने लगा.
‘‘जा, तुझे छोड़ दिया. अब फूट ले यहां से वरना…’’
‘‘मुझे छोड़ कर मत जाओ संदीप. मुझे बचा लो…’’ तभी मंजू घबराए लहजे में बोली.
लेकिन संदीप ने जैसे कुछ सुना ही नहीं. वह वहां से भाग खड़ा हुआ. सारे बदमाश हो… हो… कर हंसने लगे.
मंजू उन की कैद से छूटने के लिए छटपटा रही थी पर उस का विरोध काम नहीं आ रहा था. बदमाश मंजू को अपने चंगुल में देख उसे छेड़ते हुए जबरदस्ती खींचने लगे. वे उस के कपड़े उतारने की फिराक में थे.
‘‘बचाओ…बचाओ…’’ मंजू चीखने लगी.
‘‘चीखो मत मेरी रानी, गला खराब हो जाएगा. तुम्हें बचाने वाला यहां कोई नहीं है. तुम्हें हमारी प्यास बुझानी होगी,’’ एक बदमाश बोला.
‘‘हाय, कितनी सुंदर हो? मजा आ जाएगा. तुम्हें पाने के लिए हम कब से तड़प रहे थे?’’ दूसरे बदमाश ने हंसते हुए कहा.
बदमाशों ने मंजू का मुंह दबोच लिया और उसे घसीटते हुए ले जाने लगे. मंजू की घुटीघुटी चीख निकल रही थी. वह बेबस हो गई थी. इत्तिफाक से प्रदीप अपने दोस्त अजय के साथ उसी रास्ते से गुजर रहा था. चीख सुन कर उस के कान खड़़े हो गए.
‘‘यह तो मंजू की आवाज लगती है. जल्दी चलो,’’ प्रदीप अपने दोस्त अजय से बोला.
दोनों तेजी से घटनास्थल पर पहुंचे. अजय ने टौर्च जलाई तो बदमाश रोशनी में नहा गए. बदमाश मंजू के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहे थे. मंजू लाचार हिरनी सी छटपटा रही थी.
प्रदीप और अजय फौरन बदमाशों पर टूट पड़े. उन दोनों ने हिम्मत दिखाते हुए उन की पिटाई करनी शुरू कर दी. मामला बिगड़ता देख बदमाश भाग खडे़ हुए, लेकिन जातेजाते उन्होंने प्रदीप को जख्मी कर दिया.
मंजू ने देखा कि प्रदीप घायल हो गया है. वह जैसेतैसे खड़ी हुई और सीने से लग कर फूटफूट कर रो पड़ी. उस ने अपने आंसुओं से प्रदीप के सीने को तर कर दिया.
‘‘चलो, घर चलें,’’ प्रदीप ने मंजू को सहारा दिया.
उन्हें घर पहुंचा कर अजय वापस चला गया. मंजू अभी भी घबराई हुई थी. पर धीरेधीरे वह ठीक हुई.
‘‘यह क्या… आप के हाथ से तो खून बह रहा है. मैं पट्टी बांध देती हूं,’’ प्रदीप का जख्म देख कर मंजू ने कहा.
‘‘मामूली सा जख्म है, जल्दी ठीक हो जाएगा,’’ प्रदीप प्यार से मंजू को देखते हुए बोला.
मंजू के दिल में पति का प्यार बस चुका था. प्रदीप से नजर मिलते ही वह शरमा गई. वह मासूम लग रही थी. उस का प्यार देख कर प्रदीप की आंखें छलछला आईं.
बीवी का सच्चा प्यार पा कर प्रदीप के वीरान दिल में हरियाली छा गई. वह मंजू को अपनी बांहों में भरने के लिए मचल उठा.
इतने में मंजू का देवर संदीप सामने आ गया. वह अभी भी घबराया हुआ था. बड़े भाई के वहां से जाने के बाद संदीप ने अपनी भाभी का हालचाल पूछना चाहा तो मंजू ने उसे दूर रहने का इशारा किया.
‘‘तुम ने तो मुझे बदमाशों के हवाले कर ही दिया था. अगर मेरे पति समय पर न पहुंचते तो मैं लुट ही गई थी. कैसे देवर हो तुम?’’ जब मंजू ने कहा तो संदीप का सिर शर्म से झुक गया.
इस एक घटना ने मंजू की आंखें खोल दी थीं. अब उसे अपना पति ही सच्चा हमदर्द लग रहा था. वह अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया.
वह बीते हुए पलों की यादों को भूल जाना चाहता था. और दिनों के बजाय वह आज ज्यादा गुमसुम था. वह सविता सिनेमा के सामने वाले मैदान में अकेला बैठा था. उस के दोस्त उसे अकेला छोड़ कर जा चुके थे. उस ने घंटों से कुछ खाया तक नहीं था, ताकि भूख से उस लड़की की यादों को भूल जाए. पर यादें जाती ही नहीं दिल से, क्या करे. कैसे भुलाए, उस की समझ में नहीं आया.
उस ने उठने की कोशिश की, तो कमजोरी से पैर लड़खड़ा रहे थे. अगलबगल वाले लोग आपस में बतिया रहे थे, ‘भले घर का लगता है. जरूर किसी से प्यार का चक्कर होगा. लड़की ने इसे धोखा दिया होगा या लड़की के मांबाप ने उस की शादी कहीं और कर दी होगी…
‘प्यार में अकसर ऐसा हो जाता है, बेचारा…’ फिर एक चुप्पी छा गई थी. लोग फिर आपसी बातों में मशगूल हो गए. वह वहां से उठ कर कहीं दूर जा चुका था.
उस ने उस लड़की को अपने मकान के सामने वाली सड़क से गुजरते देखा था. उसे देख कर वह लड़की भी एक हलकी सी मुसकान छोड़ जाती थी. वह यहीं के कालेज में पढ़ती थी.
धीरेधीरे उस लड़की की मुसकान ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. जब वे आपस में मिले, तो उस ने लड़की से कहा था, ‘‘तुम हर पल आंखों में छाई रहती हो. क्यों न हम हमेशा के लिए एकदूजे के हो जाएं?’’
उस लड़की ने कुछ नहीं कहा था. वह कैमिस्ट से दवा खरीद कर चली गई थी. उस का चेहरा उदासी में डूबा था.
उस लड़की का नाम नीलू था. नीलू के मातापिता उस के उदास चेहरे को देख कर चिंतित हो उठे थे.
पिता ने कहा था, ‘‘पहले तो नीलू के चेहरे पर मुसकराहट तैरती थी. लेकिन कई दिनों से उस के चेहरे पर गुलाब के फूल की तरह रंगत नहीं, वह चिडि़यों की तरह फुदकती नहीं, बल्कि किसी बासी फूल की तरह उस के चेहरे पर पीलापन छाया रहता है.’’
नीलू की मां बोली, ‘‘लड़की सयानी हो गई है. कुछ सोचती होगी.’’
नीलू के पिता बोले, ‘‘क्यों नहीं इस के हाथ पीले कर दिए जाएं?’’
मां ने कहा, ‘‘कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस से तो यही अच्छा रहेगा.’’
नीलू की यादों को न भूल पाने वाले लड़के का नाम प्रकाश था. वह खुद इस कशिश के बारे में नहीं जानता था. वह अपनेआप को संभाल नहीं सका था. उसे अकेलापन खलने लगा था. उस की आंखों के सामने हर घड़ी नीलू का चेहरा तैरता रहता था.
एक दिन प्रकाश नीलू से बोला, ‘‘नीलू, क्यों न हम अपनेअपने मम्मीडैडी से इस बारे में बात करें?’’
‘‘मेरे मम्मीडैडी पुराने विचारों के हैं. वे इस संबंध को कभी नहीं स्वीकारेंगे,’’ नीलू ने कहा.
‘‘क्यों?’’ प्रकाश ने पूछा था.
‘‘क्योंकि जाति आड़े आ सकती है प्रकाश. उन के विचार हम लोगों के विचारों से अलग हैं. उन की सोच को कोई बदल नहीं सकता.’’
‘‘कोई रास्ता निकालो नीलू. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’
नीलू कुछ जवाब नहीं दे पाई थी. एक खामोशी उस के चेहरे पर घिर गई थी. दोनों निराश मन लिए अलग हो गए. पूरे महल्ले में उन दोनों के प्यार की चर्चा होने लगी थी.
‘‘जानती हो फूलमती, आजकल प्रकाश और नीलू का चक्कर चल रहा है. दोनों आपस में मिल रहे हैं.’’
‘‘हां दीदी, मैं ने भी स्कूल के पास उन्हें मिलते देखा है. आपस में दोनों हौलेहौले बतिया रहे थे. मुझ पर नजर पड़ते ही दोनों वहां से खिसक लिए थे.’’
‘‘हां, मैं ने भी दोनों को बैंक्वेट हाल के पास देखा है.’’
‘‘ऐसा न हो कि बबीता की कहानी दोहरा दी जाए.’’
‘‘यह प्यारव्यार का चक्कर बहुत ही बेहूदा है. प्यार की आंधी में बह कर लोग अपनी जिंदगी खराब कर लेते हैं.’’
‘‘आज का प्यार वासना से भरा है, प्यार में गंभीरता नहीं है.’’
‘‘देखो, इन दोनों की प्रेम कहानी का नतीजा क्या होता है.’’
प्रकाश के पिता उदय बा अपने महल्ले के इज्जतदार लोगों में शुमार थे. किसी भी शख्स के साथ कोई समस्या होती, तो वे ही समाधान किया करते थे.
धीरेधीरे यह चर्चा उन के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने घर आ कर अपनी पत्नी से कहा था, ‘‘सुनती हो…’’
पत्नी निशा ने रसोईघर से आ कर पूछा, ‘‘क्या है जी?’’
‘‘महल्ले में प्रकाश और नीलू के प्यार की चर्चा फैली हुई है,’’ उदय बाबू ने कहा.
‘‘तभी तो मैं मन ही मन सोचूं कि आजकल वह उखड़ाउखड़ा सा क्यों रहता है? वह खुल कर किसी से बात भी नहीं करता है.’’
‘‘मैं प्रोफैसर साहब के यहां से आ रहा था. गली में 2-4 औरतें उसी के बारे में बातें कर रही थीं.’’
‘‘मैं प्रकाश को समझाऊंगी कि हमें यह रिश्ता कबूल नहीं है,’’ निशा ने कहा.
उधर नीलू के मम्मीडैडी ने सोचा कि जितना जल्दी हो सके, इस के हाथ पीले करवा दें और वे इस जुगाड़ में जुट गए. नीलू को जब इस बारे में मालूम हुआ था, तो उस ने प्रकाश से कहा, ‘‘प्रकाश, अब हम कभी नहीं मिल सकेंगे.’’
‘‘क्यों?’’ उस ने पूछा था.
‘‘डैडी मेरा रिश्ता करने की बात चला रहे हैं. हो सकता है कि कुछ ही दिनों में ऐसा हो जाए,’’ इतना कह कर नीलू की आंखों में आंसू डबडबा गए थे.
‘‘क्या तुम ने…?’’
‘‘नहीं प्रकाश, मैं उन के विचारों का विरोध नहीं कर सकती.’’
‘‘तो तुम ने मुझे इतना प्यार क्यों किया था?’’ प्रकाश ने पूछा.
‘‘हम एकदूसरे के हो जाएं, क्या इसे प्यार कहते हैं? क्या जिस्मानी संबंध को ही तुम प्यार का नाम देते हो?’’ यह सुन कर प्रकाश चुप था.
‘‘क्या अलग रह कर हम एकदूसरे को प्यार नहीं करते रहेंगे?’’ कुछ देर चुप रह कर नीलू बोली, ‘‘मुझे गलत मत समझना. मेरे मम्मीडैडी मुझे बहुत प्यार करते हैं. मैं उन के प्यार को ठेस नहीं पहुंचा सकती.’’
‘‘क्या तुम उन का विरोध नहीं कर सकती?’’ प्रकाश ने पूछा.
‘‘जिस ने हमें यह रूप दिया है, हमें बचपन से ले कर आज तक लाड़प्यार दिया है, क्या उन का विरोध करना ठीक होगा?’’ नीलू ने समझाया.
‘‘तो फिर क्या होगा हमारे प्यार का?’’ प्रकाश ने पूछा.
‘‘अपनी चाहत को पाने के लिए मैं उन के अरमानों को नहीं तोड़ सकती. उन की सोच हम से बेहतर है.’’
इस के बाद वे दोनों अलग हो गए थे, क्योंकि लोगों की नजरें उन्हें घूर रही थीं. नीलू के मम्मीडैडी की आंखों के सामने बरसों पुराना एक मंजर घूम गया था. उसी महल्ले के गिरधारी बाबू की लड़की बबीता को भी पड़ोस के लड़के से प्यार हो गया था.
उस लड़के ने बबीता को खूब सब्जबाग दिखाए थे और जब उस का मकसद पूरा हो गया था, तो वह दिल्ली भाग गया था. कुछ दिनों तक बबीता ने इंतजार भी किया था. गिरधारी बाबू की बड़ी बेइज्जती हुई थी. कई दिनों तक तो वे घर से बाहर निकले नहीं थे. इतना बोले थे, ‘यह तुम ने क्या किया बेटी?’
बबीता मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह गई थी. एक दिन चुपके से मुंहअंधेरे घर से निकल पड़ी और हमेशाहमेशा के लिए नदी की गोद में समा गई.
गिरधारी बाबू को जब पता चला, तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया था. नीलू की शादी उमाकांत बाबू के यहां तय हो गई थी. जब प्रकाश को शादी की जानकारी हुई, तो उस की आंखों में आंसू डबडबा आए थे. वह अपनेआप को संभाल नहीं पा रहा था.
प्रकाश का एक मन कहता, ‘महल्ले को छोड़ दूं, खुदकुशी कर लूं…’ दूसरा मन कहता, ‘ऐसा कर के अपने प्यार को बदनाम करना चाहते हो तुम? नीलू के दिल को ठेस पहुंचाना चाहते हो तुम?’
कुछ पल तक यही हालत रही, फिर प्रकाश ने सोचा कि यह बेवकूफी होगी, बुजदिली होगी. उस ने उम्रभर नीलू की यादों के सहारे जीने की कमस खाई. नीलू की शादी हो रही थी. खूब चहलपहल थी. मेहमानों के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया था. गाजेबाजे के साथ लड़के की बरात निकल चुकी थी.
प्रकाश के घर के सामने वाली सड़क से बरात गुजर रही थी. वह अपनी छत पर खड़ा देख रहा था. वह अपनेआप से बोल रहा था, ‘मैं तुम्हें बदनाम नहीं करूंगा नीलू. इस में मेरे प्यार की रुसवाई होगी. तुम खुश रहो. मैं तुम्हारी यादों के सहारे ही अपनी जिंदगी गुजार दूंगा…’
प्रकाश ने देखा कि बरात बहुत दूर जा चुकी थी. प्रकाश छत से नीचे उतर आया था. वह अपने कमरे में आ कर कागज के पन्नों पर दूधिया रोशनी में लिख रहा था:
‘प्यारी नीलू,
‘वे पल कितने मधुर थे, जब बाग में शुरूशुरू में हमतुम मिले थे. तुम्हारा साथ पा कर मैं निहाल हो उठा था.
‘मैं रातभर यही सोचता था कि वे पल, जो हम दोनों ने एकसाथ बिताए थे, वे कभी खत्म न हों, पर मेरी चाहत के टीले को जमीन से उखाड़ कर टुकड़ेटुकड़े कर दिया गया.
‘मैं चाहता तो जमाने से रूबरू हो कर लड़ता, पर ऐसा कर के मैं अपनी मुहब्बत को बदनाम नहीं करना चाहता था. मेरे मन में हमेशा यही बात आती रही कि वे पल हमारी जिंदगी में क्यों आए?
‘तुम मेरी जिंदगी से दूर हो गई हो. मैं बेजान हो गया हूं. एक अजीब सा खालीपन पूरे शरीर में पसर गया है. संभाल कर रखूंगा उन मधुर पलों को, जो हम दोनों ने साथ बिताए थे.
‘तुम्हारा प्रकाश…’
प्रकाश की आंखें आंसुओं से टिमटिमा रही थीं. धीरेधीरे नीलू की यादों में खोया वह सो गया था.