किराए की कोख : कौए के घोंसले में कोयल के अंडे

पूरे महल्ले में सब से खराब माली हालत महेंद्र की ही थी. इस शहर से कोसों दूर एक गांव से 2 साल पहले ही महेंद्र अपनी बीवी सुनीता और 2 बच्चों के साथ इस जगह आ कर बसा था. वह गरीबी दूर करने के लिए गांव से शहर आया था, लेकिन यहां तो उन का खानापीना भी ठीक से नहीं हो पाता था.

महेंद्र एक फैक्टरी में काम करता था और सुनीता घर पर रह कर बच्चों की देखभाल करती थी. बड़ा बेटा 5 साल से ऊपर का हो गया था, लेकिन अभी स्कूल जाना शुरू नहीं हो पाया था.

सुनीता काफी सोचती थी कि बच्चे को किसी अगलबगल के छोटे स्कूल में पढ़ने भेजने लगे, लेकिन चाह कर भी न भेज सकती थी.

जिस महल्ले में सुनीता रहती थी, उस महल्ले में सब मजदूर और कामगार लोग ही रहते थे. ठीक बगल के मकान में रहने वाली एक औरत के साथ सुनीता का उठनाबैठना था.

जब उस को सुनीता की मजबूरी पता लगी, तो उस ने सुनीता को खुद भी काम करने की सलाह दे डाली. उस ने एक घर में उस के लिए काम भी ढूंढ़ दिया.

सुनीता ने जब यह बात महेंद्र को बताई, तो वह थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन सुनीता का सोचना ठीक था, इसलिए वह कुछ कह नहीं सका.

सुनीता उस औरत द्वारा बताए गए घर में काम करने जाने लगी. वह काफी बड़ा घर था. घर में केवल 2 लोग ममता और रमन पतिपत्नी ही थे, जो किसी बड़ी कंपनी में काम करते थे.

दोनों का स्वभाव सुनीता के प्रति बहुत नरम था. ममता तो आएदिन सुनीता को तनख्वाह के अलावा भी कुछ न कुछ चीजें देती ही रहती थी.

रमन और ममता के पास किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, लेकिन घर में एक भी बच्चा नहीं था.

रविवार के दिन ममता और रमन छुट्टी पर थे. काम खत्म कर सुनीता जाने को हुई, तो ममता ने उसे बुला कर अपने पास बिठा लिया. वह सुनीता से उस के परिवार के बारे में पूछती रही.

सुनीता को ममता की बातों में बड़ा अपनापन लगा, तो वह अचानक ही

उस से पूछ बैठी, ‘‘जीजी, आप के कोई बच्चा नहीं हुआ क्या?’’

ममता ने मुसकरा कर सुनीता की तरफ देखा और धीरे से बोली, ‘‘नहीं, लेकिन तुम यह क्यों पूछ रही हो?’’

सुनीता ने ममता की आवाज को भांप लिया था. वह बोली, ‘‘बस जीजी, ऐसे ही पूछ रही थी. घर में कोई बच्चा न हो, तो अच्छा नहीं लगता न. शायद आप को ऐसा महसूस होता हो.’’

ममता की आंखें उसी पर टिक गई थीं. वह भी शायद इस बात को शिद्दत से महसूस कर रही थी.

ममता बोली, ‘‘तुम सही कहती हो सुनीता. मैं भी इस बात को ले कर चिंता में रहती हूं, लेकिन कर भी क्या सकती हूं? मैं मां नहीं बन सकती, ऐसा डाक्टर कहते हैं…’’

यह कहतेकहते ममता का गला भर्रा गया था. सुनीता भी आगे कुछ कहने की हिम्मत न कर सकी थी. उस के पास शायद इस बात का कोई हल नहीं था.

ममता और रमन शादी से पहले एक ही कंपनी में काम करते थे, जहां दोनों में मुहब्बत हुई और उस के बाद दोनों ने शादी कर ली. कई साल तक दोनों ने बच्चा पैदा नहीं होने दिया, लेकिन बाद में ममता मां बनने के काबिल ही न रही. इस बात को ले कर दोनों परेशान थे.

सुनीता को ममता के घर काम करते हुए काफी दिन हो गए थे. ममता का मन जब भी होता, वह सुनीता को अपने पास बिठा कर बातें कर लेती थी. पर अब सुनीता ममता से बच्चा न होने या होने को ले कर कोई बात नहीं करती थी. दिन ऐसे ही गुजर रहे थे.

एक दिन ममता ने सुनीता को आवाज दी और उसे साथ ले कर अपने कमरे में पहुंच गई. उस ने सुनीता को अपने पास ही बिठा लिया.

सुनीता अपनी मालकिन ममता के बराबर में बैठने से हिचकती थी, लेकिन ममता ने उसे हाथ पकड़ कर जबरदस्ती बिठा ही लिया.

ममता ने सुनीता का हाथ अपने हाथ में लिया और बोली, ‘‘सुनीता, तुम से एक काम आ पड़ा है, अगर तुम कर सको तो कहूं?’’

ममता के लिए सुनीता के दिल में बहुत इज्जत थी, भला वह उस के किसी काम के लिए क्यों मना कर देती. वह बोली, ‘‘जीजी, कैसी बात करती हो? आप कहो तो सही, न करूं तो कहना.’’

ममता ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘‘सुनीता, डाक्टर कहता है कि मैं मां तो बन सकती हूं, लेकिन इस के लिए मुझे किसी दूसरी औरत का सहारा लेना पड़ेगा… अगर तुम चाहो, तो इस काम में मेरी मदद कर सकती हो.’’

ममता की बात सुन कर सुनीता का मुंह खुला का खुला रह गया. उस को यकीन न होता था कि ममता उस से इतने बड़े व्यभिचार के बारे में कह सकती है.

सुनीता साफ मना करते हुए बोली, ‘‘जीजी, मैं बेशक गरीब हूं, लेकिन अपने पति के होते किसी मर्द की परछाईं तक को न छुऊंगी. आप इस काम के लिए किसी और को देख लो.’’

ममता हैरत से बोली, ‘‘अरे बावली, तुम से पराया मर्द छूने को कौन कहता है… यह सब वैसा नहीं है, जैसा तुम सोच रही हो. इस में सिर्फ लेडी डाक्टर के अलावा तुम्हें कोई नहीं छुएगा. यह समझे कि तुम सिर्फ अपनी कोख में बच्चे को पालोगी, जबकि सबकुछ मैं और मेरे पति करेंगे.’’

सुनीता की समझ में कुछ न आया था. सोचा कि भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई आदमी औरत को छुए भी नहीं और वह मां बन जाए.

सुनीता को हैरान देख कर ममता बोल पड़ी, ‘‘क्या सोच रही हो सुनीता? तुम चाहो तो मैं सीधे डाक्टर से भी बात करा सकती हूं. जब तुम पूरी तरह संतुष्ट हो जाओ, तब ही तैयार होना.’’

सुनीता हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘जीजी, मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूं… अगर मैं तैयार हो भी जाऊं, तो मेरे पति इस बात के लिए नहीं मानेंगे.’’

ममता हार नहीं मानना चाहती थी. आखिर उस के मन में न जाने कब से मां बनने की चाहत पल रही थी. वह बोली, ‘‘तुम इस बात की चिंता बिलकुल मत करो. मैं खुद घर आ कर तुम्हारे पति से बात करूंगी और इस काम के लिए तुम्हें इतना पैसा दूंगी कि तुम 2 साल भी काम करोगी, तब भी कमा नहीं पाओगी.’’

सुनीता यह सब तो नहीं चाहती थी, लेकिन ममता से मना करने का मन भी नहीं हो रहा था.

काम से लौटने के बाद सुनीता ने अपने पति से सारी बात कह दी. महेंद्र इस बात को सिरे से खारिज करता हुआ बोला, ‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं है इन लोगों की बातों में आने की. कल से काम पर भी मत जाना ऐसे लोगों के यहां. ये अमीर लोग होते ही ऐसे हैं.

‘‘मैं तो पहले ही तुम्हें मना करने वाला था, लेकिन तुम ने जिद की तो कुछ न कह सका.’’

सुनीता को ऐसा नहीं लगता था कि ममता दूसरे अमीर लोगों की तरह है. वह उस के स्वभाव को पहले भी परख चुकी थी. वह बोली, ‘‘नहीं, मैं यह बात नहीं मान सकती. ऐसी मालकिन मिलना आज के समय में बहुत मुश्किल काम है. आप उन को सब लोगों की लाइन में खड़ा मत करो.’’

महेंद्र कुछ कहता, उस से पहले ही कमरे के दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई, फिर दरवाजा बजाया गया.

सुनीता को ममता के आने का एहसास था. उस ने झट से उठ कर दरवाजा खोला, तो देखा कि सामने ममता खड़ी थी.

सुनीता के हाथपैर फूल गए, खुशी के मारे मुंह से बात न निकली, वह अभी पागलों की तरह ममता को देख ही रही थी कि ममता मुसकराते हुए बोल पड़ी, ‘‘अंदर नहीं बुलाओगी सुनीता?’’ सुनीता तो जैसे नींद से जागी थी.

वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘हांहां जीजी, आओ…’’ यह कहते हुए वह दरवाजे से एक तरफ हटी और महेंद्र से बोली, ‘‘देखोजी, अपने घर आज कौन आया है… ये जीजी हैं, जिन के घर पर मैं काम करने जाती हूं.’’

महेंद्र ने ममता को पहले कभी देखा तो नहीं था, लेकिन अमीर पहनावे और शक्लसूरत को देख कर उसे समझते देर न लगी. उस ने ममता से दुआसलाम की और उठ कर बाहर चल दिया.

ममता ने उसे जाते देखा, तो बोल पड़ी, ‘‘भैया, आप कहां चल दिए? क्या मेरा आना आप को अच्छा नहीं लगा?’’

महेंद्र यह बात सुन कर हड़बड़ा गया. वह बोला, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो इसलिए जा रहा था कि आप दोनों आराम से बात कर सको.’’

ममता हंसते हुए बोली, ‘‘लेकिन भैया, मैं तो आप से ही बात करने आई हूं. आप भी हमारे साथ बैठो न.’’

महेंद्र न चाहते हुए भी बैठ गया. ममता का इतना मीठा लहजा देख वह उस का मुरीद हो गया था. उस के दिमाग में अमीरों को ले कर जो सोच थी, वह जाती रही.

सुनीता सामने खड़ी ममता को वहीं बिछी एक चारपाई पर बैठने का इशारा करते हुए बोली, ‘‘जीजी, मेरे घर में तो आप को बिठाने के लिए ठीक जगह भी नहीं, आप को आज इस चारपाई पर ही बैठना पड़ेगा.’’

ममता मुसकराते हुए बोली, ‘‘सुनीता, प्यार और आदर से बड़ा कोई सम्मान नहीं होता, फिर क्या चारपाई और क्या बैड. आज तो मैं तुम्हारे साथ जमीन पर ही बैठूंगी.’’

इतना कह कर ममता जमीन पर पड़ी एक टाट की बोरी पर ही बैठ गई.

सुनीता ने लाख कहा, लेकिन ममता चारपाई पर न बैठी. हार मान कर सुनीता और महेंद्र भी जमीन पर ही बैठ गए. सुनीता ने नजर तिरछी कर महेंद्र को देखा, फिर इशारों में बोली, ‘‘देख लो, तुम कहते थे कि हर अमीर एकजैसा होता है. अब देख लिया.’’

महेंद्र से आदमी पहचानने में गलती हुई थी. तभी ममता अचानक बोल पड़ी, ‘‘सुनीता, क्या तुम मुझे चाय नहीं पिलाओगी अपने घर की?’’

सुनीता के साथसाथ महेंद्र भी खुश हो गया. एक करोड़पति औरत गरीब के घर आ कर जमीन पर बैठ चाय पिलाने की गुजारिश कर रही थी.

सुनीता तो यह सोच कर चाय न बनाती थी कि ममता उस के घर की चाय पीना नहीं चाहेंगी. जब खुद ममता ने कहा, तो वह खुशी से पागल हो उठी,

महेंद्र और सुनीता की इस वक्त ऐसी हालत थी कि ममता इन दोनों से इन की जान भी मांग लेती, तो भी ये लोग मना न करते.

चाय बनी, तो सब लोग चाय पीने लगे. इतने में सुनीता का छोटा बेटा जाग गया. ममता ने उसे देखा तो खुशी से गोद में उठा लिया और उस से बातें करने में मशगूल हो गई.

महेंद्र और सुनीता यह सब देख कर बावले हुए जा रहे थे. उन्हें ममता में एक अमीर औरत की जगह अपने घर की कोई औरत नजर आ रही थी.

थोड़ी देर बाद ममता ने बच्चे को सुनीता के हाथों में दे दिया और महेंद्र की तरफ देख कर बोली, ‘‘भैया, मैं कुछ बात करने आई थी आप से. वैसे, सुनीता ने आप को सबकुछ बता दिया होगा.

‘‘भैया, मैं आप को यकीन दिलाती हूं कि सुनीता को सिर्फ लेडी डाक्टर के अलावा कोई और नहीं छुएगा. यह इस तरह होगा, जैसे कोयल अपने अंडे कौए के घोंसले में रख देती है और बच्चे अंडों से निकल कर फिर से कोयल के हो जाते हैं, अगर आप…’’

महेंद्र ममता की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा, ‘‘बहनजी, आप जैसा ठीक समझे वैसा करें. जब सुनीता को आप अपना समझती हैं, तो फिर मुझे किसी बात से कोई डर नहीं. इस का बुरा थोड़े ही न सोचेंगी आप.’’

ममता खुशी से उछल पड़ी. सुनीता महेंद्र को मुंह फाड़े देखे जा रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि महेंद्र इतनी जल्दी हां कह सकता है. लेकिन महेंद्र तो इस वक्त किसी और ही फिजा में घूम रहा था. कोई करोड़पति औरत उस के घर आ कर झोली फैला कर उस से कुछ मांग रही थी, फिर भला वह कैसे मना कर देता.

ममता हाथ जोड़ कर महेंद्र से बोली, ‘‘भैया, मैं आप का यह एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगी,’’ यह कहते हुए ममता ने अपने मिनी बैग से नोटों की एक बड़ी सी गड्डी निकाल कर सुनीता के हाथों में पकड़ा दी और बोली, ‘‘सुनीता, ये पैसे रख लो. अभी और दूंगी. जो इस वक्त मेरे पास थे, वे मैं ले आई.’’

सुनीता ने हाथ में पकड़े नोटों की तरफ देखा और फिर महेंद्र की तरफ देखा. महेंद्र पहले से ही सुनीता के हाथ में रखे नोटों को देख रहा था.

आज से पहले इन दोनों ने कभी इतने रुपए नहीं देखे थे, लेकिन महेंद्र कम से कम ममता से रुपए नहीं लेना चाहता था, वह बोला, ‘‘बहनजी, ये रुपए हम लोग नहीं ले सकते. जब आप हमें इतना मानती हैं, तो ये रुपए किस बात के लिए?’’

ममता ने सधा हुआ जवाब दिया, ‘‘नहीं भैया, ये तो आप को लेने ही पड़ेंगे. भला कोई और यह काम करता, तो वह भी तो रुपए लेता, फिर आप को क्यों न दूं?

‘‘और ये रुपए दे कर मैं कोई एहसान थोड़े ही न कर रही हूं.’’

इस के बाद ममता वहां से चली गई. महेंद्र ने ममता के जाने के बाद रुपए गिने. पूरे एक लाख रुपए थे. महेंद्र और सुनीता दोनों ही आज ममता के अच्छे बरताव से बहुत खुश थे. ऊपर से वे एक लाख रुपए भी दे गईं. ये इतने रुपए थे कि 2 साल तक दोनों काम करते, तो भी इतना पैसा जोड़ न पाते.

दोनों के अंदर आज एक नया जोश था. अब न किसी बात से एतराज था और न किसी बात पर कोई सवाल.

जल्द ही सुनीता को ममता ने डाक्टर के पास ले जा कर सारा काम निबटवा दिया. वह सुनीता के साथ उस के पति महेंद्र को भी ले गई थी, जिस से उस के मन में कोई शक न रहे.

ममता ने अब सुनीता से घर का काम कराना बंद कर दिया था. घर के काम के लिए उस ने एक दूसरी औरत को रख लिया था. सुनीता को खाने के लिए ममता ने मेवा से ले कर हर जरूरी चीज अपने पैसों से ला कर दे दी थी. साथ ही, एक लाख रुपए और भी नकद दे दिए थे.

ममता नियमित रूप से सुनीता को देखने भी आती थी. उस ने महेंद्र और सुनीता से उस के घर चल कर रहने के लिए भी कहा था, लेकिन महेंद्र ने वहां रहने के बजाय अपने घर में ही रहना ठीक सम?ा.

जिस समय सुनीता अपने पेट में बच्चे को महसूस करने लगी थी, तब से न जाने क्यों उसे वह अपना लगने लगा था. वह उसे सबकुछ जानते हुए भी अपना मान बैठी थी.

जब बच्चा होने को था, तब एक हफ्ता पहले ही सुनीता को अस्पताल में भरती करा दिया गया था. जिस दिन बच्चा हुआ, उस दिन तो ममता सुनीता को छोड़ कर कहीं गई ही न थी. सुनीता को बेटा हुआ था.

ममता ने सुनीता को खुशी से चूम लिया था. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. लेकिन सुनीता को मन में अजीब सा लग रहा था. उस का मन उस बच्चे को अपना मान रहा था.

अस्पताल से निकलने के बाद ममता ने सुनीता को कुछ दिन अपने पास भी रखा था. उस के बाद उस ने सुनीता को और 50 हजार रुपए भी दिए.

सुनीता अपने घर आ गई, लेकिन उस का मन न लगता था. जो बच्चा उस ने अपनी कोख में 9 महीने रखा, आज वह किसी और का हो चुका था. पैसा तो मिला था, लेकिन बच्चा चला गया था.

सुनीता का मन होता था कि बच्चा फिर से उस के पास आ जाए, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता था. उस की कोख किसी और के बच्चे के लिए किराए पर जो थी.

दिव्या भाभी : ललचाए देवर चिंटू ने चली गहरी चाल

दिव्या भाभी को देख कर मनचलों के दिल में धकधक होने लगती थी. देवर चिंटू भी अपनी भाभी का रसपान करने के लिए उतावला था. एक दिन वह ऐसी दवा लाया कि दिव्या भाभी पर सैक्स का भूत सवार हो गया. क्या चिंटू को अपने प्लान में कामयाबी मिली?

दिव्या भाभी को कौन नहीं जानता. पूरे गांव में चर्चे हैं उस के. यह भी अफवाह है कि गांव में अभी तक उस के जैसी सुंदर बहू नहीं आई है. बिना सिंगार किए भी लुभावनी और आकर्षक लगती है. चालढाल, नैननक्श, शरीर के किसी भी अंग में कोई कमी दिखाई देती ही नहीं.

सुंदर होने के साथ ही दिव्या भाभी बहुत हंसोड़, मजाकिया और गंदी शरारतें करने वाली है, इसलिए गलीमहल्ले का कौन सा लड़का है, जो उस से मिलने को उतावला नहीं रहता. गांव में अफवाह सी फैली हुई है कि लड़के उस की ओर चुंबक के समान खिंचे चले आते हैं.

14-15 साल वाले जिन लड़कों के जवानी के कीटाणु काटने शुरू करते हैं, वे दिन में कम से कम एक बार तो दिव्या भाभी के दरबार में हाजिरी देते ही हैं. नयानया जवान होने वाला कोई किशोर उस के दरबार में अगर एक ही दिन में 2-3 बार हाजिरी दे तो कोई हैरत की बात नहीं.

दिव्या भाभी भी इतनी शरारती है कि ऐसे लड़कों का कभी अंग पकड़ कर हिला देती है तो कभी उन की छातियों में पड़ी हुई गुठलियां भींच देती है. जब लड़के दर्द से कराहते हैं, तो उसे बड़ा मजा आता है.

दिव्या भाभी के देवर चिंटू ने अभी जवानी की दहलीज पर कदम रखा है. जवानी के कीटाणुओं ने आजकल उस के अंदर तहलका सा मचाया हुआ है. चिंटू का असली नाम अभिषेक है, लेकिन घर और आसपास के महल्ले वाले उसे चिंटू ही बुलाते हैं. स्कूल में भी उस ने यही नाम लिखवाया है.

10वीं जमात पास करते ही चिंटू ने 11वीं में दाखिला ले लिया है. उस का परिवार भी ज्यादा बड़ा नहीं है. भाईभाभी के अलावा एक दादा हैं, जो घर से दस कदम दूर घेर में पड़े रहते हैं. दादाजी की एक विधवा बहन है, जो अब यहीं रहती हैं. चिंटू और उस का बड़ा भाई मोहन, उसे फुआ के नाम से पुकारते हैं. बड़ेबूढ़ों के रूप में इन दोनों का ही चिंटू और मोहन को आशीर्वाद हासिल है, क्योंकि 2 साल पहले उन के मम्मीपापा की कार हादसे में मौत हो गई थी.

महल्ले के दूसरे लड़कों के समान ही चिंटू भी अपनी भाभी दिव्या के साथ बहुत शरारतें करता है. जब भी मौका मिलता है, उस के साथ छेड़खानी करने से नहीं चूकता. वह नहीं मानता, भाभी ‘मां’ समान होती है. उसे तो अपनी भाभी दोस्त के जैसी दिखाई देती है.

दिव्या भाभी भी जबतब मौका देख कर चिंटू के गाल पर चूंट कर निकल जाती. एक दिन जब चिंटू चारपाई पर बैठा खाना खा रहा था, तो पीछे से आ कर दिव्या ने उस के गाल पर काट भी लिया था. चिंटू के मुंह से चीख सी निकल गई थी.

देवरभाभी में अकसर ऐसी शरारतें और नोकझोंक होती ही रहती है, लेकिन उन दोनों में से बुरा कोई नहीं मानता. कुछ ही समय एकदूसरे से नाराज रहते हैं, फिर मान जाते हैं.

चिंटू अब 17वें साल में है. ऐसा उस की हाईस्कूल की मार्कशीट में लिखी गई जन्मतिथि के अनुसार है. उस का अंदाजा है कि वह 1-2 साल और भी बड़ा हो सकता है, क्योंकि पापा ने स्कूल में जन्मतिथि कम कर के लिखवाई थी.

चिंटू के अंदर विशेष कीटाणु कई साल पहले बन चुके थे. जिन्हें उस ने अनेकों बार निकाल कर देखा. वह केवल यही देखना चाहता था कि उन का रंग कैसा होता है. क्योंकि उस के किसी दोस्त ने बताया था कि पहले उन का रंग सफेद होता है, फिर पीला हो जाता है, इसलिए इस सिद्धांत पर उस ने कई बार प्रयोग कर के देखा.

जब भाभी चिंटू के साथ गंदी शरारतें करती है, तो कीटाणुओं को बारबार निकालने का मन करता है. मुसकरा कर देखने और मीठीमीठी बातें करने पर तो उस के अंदर कुलबुलाहट सी मच जाती है. एक दिन तो चिंटू को इतना जोश आया कि उस ने मौका तलाश कर भाभी का हाथ पकड़ लिया.

भाभी ने अपना हाथ यह कहते हुए छुड़ाया, ‘‘देवरजी, पहले इस लायक हो तो जाओ.’’

चिंटू नहीं समझ पाया इस का मतलब क्या है? उस ने खुद ही कई बार इस वाक्य का मतलब निकाल कर देखा, लेकिन उस का सही मतलब नहीं समझ पाया. इस वाक्य का मतलब हां है या न, इस बारे में वह बहुत भ्रमित रहा. फिर उस ने खुद ही मतलब निकाला कि प्यार के मामले में लड़कियों की न का मतलब हां ही होता है.

अक्तूबर का महीना था. सर्दियां आने को थीं. बेमौसमी बारिश ने मौसम को ज्यादा ठंडा बना दिया था. चिंटू के भैया आज घर पर नहीं थे. उन्हें जरूरी काम से एक रिश्तेदार के घर रुकना पड़ा था. इस की जानकारी उन्होंने फोन पर दिव्या को दे दी थी. दिन में तेज हवाएं चलने के चलते बिजली गुल थी. तार टूट जाने की वजह से बिजली के आने की भी उम्मीद नहीं थी.

भाभी ने शाम का खाना जल्दी ही बनाया और सब लोगों ने मिल कर खाया. रात के 9 बजे तक सब अपनेअपने कमरों में घुस गए. जिस को जो काम सही लगा, वही करने लगा.

चिंटू को अपना होमवर्क करते हुए अचानक सूझा, ‘भाभी के पास कई सारी कहानियों की किताबें हैं. कोर्स की किताबें तो पढ़ता ही रहता हूं. आज कोई अच्छी कहानी पढ़ूंगा.’’

चिंटू सीधा भाभी के कमरे में पहुंचा. बिना कुछ बोले ही दरवाजे पर खड़ा हो कर भाभी को निहारने लगा. उस समय भाभी बिस्तर पर औंधी लेटी हुई फोन को स्क्रौल कर रही थी. बगल में कोई पत्रिका रखी हुई थी. ऐसी हालत में वह एकदम हीरोइन के समान दिखाई देने लगी.

मोमबत्ती की धीमी रोशनी में उस का हर अंग मन में रोमांच पैदा करने वाला था. कौन सा अंग था भाभी का, जो नागिन के समान लहराता नहीं दिखाई दे रहा था. वाह, क्या नजारा था. उस समय दिव्या भाभी के प्रति होने वाले आकर्षण को चिंटू नहीं रोक पाया.

चिंटू ने अंदर आ कर दिव्या की कमर पर चूंटते हुए कहा, ‘‘भाभी, कोई पत्रिका दे दो. इस महीने कौनकौन सी नई आई हैं? आज कहानी पढ़ने का मन है.’’

‘‘रैक में से ले लो. वहां बहुत सी पत्रिकाएं रखी हुई हैं,’’ भाभी ने भर्राई आवाज में कहा, जैसे नशे में हो.

‘‘तुम ही उठा कर दो, मुझे क्या पता कौन सी मजेदार है,’’ चिंटू ने थोड़ा हक जताते और जिद करते हुए कहा.

नहीं चाहते हुए भी भाभी को उठ कर पत्रिका और किताबों की रैक के पास आना पड़ा. भाभी ने जैसे ही पत्रिका उठाने के लिए हाथ बढ़ाया. चिंटू ने दोनों हाथों से उसे पीछे से अपनी बांहों में कस लिया.

भाभी ने नाराजगी दिखाते हुए कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो… छोड़ दो, कोई आ जाएगा.’’

चिंटू और कस कर पकड़ते हुए बोला, ‘‘नहीं, आज नहीं. बरदाश्त नहीं हो रहा है. अब नहीं रहा जाता. बस एक बार.’’

छीनाझपटी सी शुरू हो गई. चिंटू कहता, ‘‘आजा.’’

भाभी कहती, ‘‘न… न…’’

तभी किसी के ‘ठपठप’ कदमों की आवाज सुनाई दी. चिंटू ने तुरंत भाभी को छोड़ कर उस का फोन उठाया और कान पर लगाते हुए झूठमूठ किसी से बतियाने का नाटक सा करने लगा, ‘‘हां ठीक है. अभी बात कर लूंगा… मैं 10 बजे तक पहुंच जाऊंगा… भाभी जल्दी ही नाश्ता बना देती है… कालेज में ही आ जाना… नहीं, अभी घर पर ही है, चाहो तो बात कर सकते हो…’’

तभी फुआ अंदर कमरे में आई. चिंटू और भाभी को शक की निगाह से देखा और बिना कुछ बोले ही लौट गई. गुस्से में फोन बिस्तर पर फेंक कर चिंटू भी अपने कमरे में आ कर सो गया.

इस घटना के बाद भाभी ने चिंटू के साथ बातचीत करना छोड़ दिया. जब कभी बोलती भी तो घुड़क कर. देखती तो घूर कर, जैसे अभी काट खाएगी. चिंटू को भाभी के इस बदले हुए बरताव की कुछ वजह पता भी थी और कुछ नहीं भी.

जब चिंटू ने भाभी से इस बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘अगर मैं तुम्हारे साथ मजाक कर लेती थी तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं गलत हूं. फुआ देख लेती तो क्या होता? अगर तुम्हारे भाई को पता चल गया तो फिर अंजाम जानते हो कि क्या होगा?’’

चिंटू को भाभी के ये शब्द कांटे के समान चुभे. उसे अपनी बेइज्जती सी महसूस हुई. पहले लुभाया, फिर धमकाया. उस ने सोच लिया, ‘भाभी तुम से तो बदला जरूर लेना है. अब चाहे अंजाम कुछ भी हो.’

चिंटू ने अपना सारा गुनाह अपने एक दोस्त को बताते हुए कहा, ‘‘भाभी का बरताव अब बिलकुल बदल गया है. छोटी सी बात पर वह खीज कर बोलती है. एकदो बार तो बिना किसी बात के ही मुझे घुड़क भी दिया.’’

दोस्त ने सलाह दी, ‘‘यार, तुम ने कच्ची छोड़ दी, पूरा काम हो जाता तो फिर न बोलती, बल्कि और खुश होती. अगर तुम्हें पूरा काम करना है तो इस का तरीका मैं बताता हूं,’’ उस ने चिंटू के कान में फुसफुसाते हुए सारा प्लान समझा दिया.

चिंटू को सुन कर शांति मिली और थोड़ी हैरानी भी हुई, ‘‘ऐसी दवा भी आती है…’’ उस ने खुशी से झूमते हुए कहा.

कालेज की छुट्टी होते ही चिंटू मामचंद बलबीर की दुकान पर पहुंचा और दुकानदार से बोला, ‘‘भैंस गाभिन करने की दवा चाहिए.’’

‘‘भैंस कैसी है?’’ दुकानदार ने कनखियों से उस की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘खारके की कटिया है. कभीकभार बोलती है, फिर चुप हो जाती है. हरी होने का नाम ही नहीं ले रही. बस गात फुलाए जा रही है.’’

‘‘यह लो एक पुडि़या, आधी शाम को दे देना, आधी सुबह को. रोटी या आटे के गोले में मिला कर देना. खाते ही बोलने लगेगी.’’

चिंटू ने बिल चुकाया और दवा ले कर घर आ गया. वह बहुत खुश था. आज तो होगा ही होगा. दिल में उमंग थी. जब भी भाभी के बारे में सोचता, शरीर में कामुक लहर सी दौड़ती. बारबार मन में यह भावना उठती, ‘सीधी उंगली से कभी घी नहीं निकलता, उसे टेढ़ा करना ही पड़ता है. अब देखता हूं कि भाभी कैसे बचेगी?’

शाम को खाना खाने के बाद जब सोने का समय हुआ, चिंटू ने बड़ी चालाकी से दिव्या भाभी के दूध में दवा की पुडि़या की एकचौथाई मात्रा मिला दी. घर में सोने से पहले दूध पीने का रिवाज था, इसलिए जब दिव्या सब के कमरे में एकएक गिलास दूध देने में बिजी थी, तब चिंटू को दूध में दवा मिलाने का मौका मिल गया था.

सब दूध पी कर सोने की तैयारी करने लगे. आधे घंटे के बाद ही दवा ने असर दिखाना शुरू कर दिया. पहले धीरेधीरे शरीर में कुछ हरारत सी हुई, फिर तेजी के साथ.

दिव्या ने खुद को कई बार रोकना चाहा, लेकिन सहवास की आग जो भड़की, फिर भड़कती ही चली गई.

जब उस का खुद पर से कंट्रोल खत्म हो गया तो उस ने मोहन का गरीबान पकड़ कर उस के ऊपर लेटते हुए जोश में कहा, ‘‘ओ पंडित, आज करता नहीं क्या?’’

मोहन को थोड़ी हैरानी हुई कि आज दिव्या खुद ही कह रही है, जबकि अकसर मोहन को ही बोलना पड़ता था. उस ने बिना कोई पल गंवाए दिव्या को अपनी बांहों में कसते हुए जलती आग में घी डालना शुरू कर दिया.

लेकिन आज उसे घी की नहीं पानी की जरूरत थी. और उस से भी कहीं ज्यादा बर्फ की. उस के ऊपर उन डब्बों को उलटने की जरूरत थी, जिन पर आग लिखा होता है, पर उन में रेत होता है.

मोहन से जब आग पूरी तरह शांत न हुई, तो दिव्या ने उसे अपने नीचे लिटा लिया और खुद ऊपर आ गई. आज खेत में फावड़े का काम करने के चलते मोहन काफी थका हुआ था, इसलिए केवल एक बार संबंध बना सका. वह कुछ ही मिनट में सो गया.

दिव्या सोते हुए मोहन की ओर देखने लगी और गुस्सा होने लगी. उसे अपने अंदर ज्वाला सी दहकती महसूस हो रही थी, इसलिए उस की आंखों में नींद  कहां थी. आंखें बंद करते ही मन में गंदे खयाल आने लगते. उस ने मोहन की ओर ललचाई नजरों से एक बार फिर देखा, लेकिन वह गहरी नींद में था.

जब दिव्या से बरदाश्त न हुआ तो वह धीरे से उठी और चिंटू के कमरे में चली गई. चिंटू आंख बंद किए लेटा हुआ था. लेकिन वह जाग रहा था.

चिंटू को पूरा यकीन था कि भाभी आएगी जरूर, चाहे किसी भी समय आए. दवा का असर खाली नहीं जा सकता. एक छोटी सी पुडि़या की आधी खुराक जब इतनी बड़ी भैंस को हीट पर ला सकती है, तो 50 किलो की औरत क्या चीज है.

आते ही दिव्या ने चिंटू के पास लेटते हुए कहा, ‘‘आज मैं तुम्हारे साथ सोना चाहती हूं. आओ, अपनी प्यास बुझा लो.’’

चिंटू तो ये शब्द सुनने के लिए महीनों से बेकरार था. वह लिपट गया. जी भर कर प्यार किया.

दिव्या फिर अपने कमरे में आई. कुछ देर आंखें बंद कर सोने की कोशिश की, लेकिन उसे नींद न आई. उस ने फिर ललचाई नजरों से मोहन की ओर देखा. जोश से भर कर उसे अपनी बांहों में कसना चाहा.

मोहन जाग गया और बोला, ‘‘दिव्या, क्या कर रही हो?’’ नींद टूटने से वह थोड़ा गुस्सा हो गया.

‘‘मैं नहीं जानती कि मुझे क्या हो गया है. मेरे शरीर में कोई ज्वालामुखी फट रहा है. मुझ से बरदाश्त नहीं हो रहा है,’’ वह तड़पते हुए बोली.

मोहन ने दिव्या की ओर ध्यान से देखा. उस की हालत वाकई खराब थी. शरीर उघड़ा हुआ और बहुत गरम था. वह बहुत बेचैन थी.

मोहन ने हालात को भांप कर गांव में ही अपने दोस्त डाक्टर प्रशांत को फोन मिलाया, ‘‘यार, तुम्हारी भाभी की हालत बहुत खराब है. जल्द ही आओ.’’

‘इस समय रात के 2 बजे हैं.’

‘‘हां यार, समस्या गंभीर है. आना ही पड़ेगा.’’

डाक्टर प्रशांत आधे घंटे में हाजिर हो गया. उस ने दिव्या को चौंक कर देखा. ‘‘इन्होंने कोई बहुत ज्यादा गरम चीज खाई है. इस से पूरे शरीर पर एलर्जी हो सकती है. मामला कंट्रोल करने की कोशिश करता हूं, वरना तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ेगा.’’

इस के बाद डाक्टर ने 2 इंजैक्शन दिव्या को लगाए और कुछ खाने की दवाएं दीं. उसे तुरंत ही शांति मिल गई और वह सो गई.

चिंटू खुश था. उसे लग रहा था कि उस ने अपना बदला ले लिया. भाभी कहां तो सतीसावित्री बनती थी. फिर ऐसा जादू चला कि खुद ही खिंची चली आई.

कुछ दिन बाद देवरभाभी में फिर वही हंसीमजाक, छेड़खानी और शरारतों का सिलसिला शुरू हो गया.

एक दिन भाभी ने चिंटू के साथ कोई गंदी शरारत की तो उस ने भाभी को सबकुछ बता दिया. साथ ही, बाकी बची दवा की पुडि़या भी उस के हाथ में सौंप दी.

दिव्या को पहले तो गुस्सा आया, लेकिन फिर उस की आंखें शर्म से झुक गईं. वह अपने दोनों हाथ मुंह पर रख कर शरमाती हुई तेजी से चल दी. शायद वह चिंटू के सामने पहली बार शरमाई थी.

अब जब भी दिव्या भाभी चिंटू के सामने आ जाती है, थोड़ा सा मुसकराती है और नीची निगाह कर के निकल जाती है.

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फर्क: इरा की कामयाबी या किसी का एहसान

इरा की स्कूल में नियुक्ति इसी शर्त पर हुई थी कि वह बच्चों को नाटक की तैयारी करवाएगी क्योंकि उसे नाटकों में काम करने का अनुभव था. इसीलिए अकसर उसे स्कूल में 2 घंटे रुकना पड़ता था.

इरा के पति पवन को कामकाजी पत्नी चाहिए थी जो उन की जिम्मेदारियां बांट सके. इरा शादी के बाद नौकरी कर अपना हर दायित्व निभाने लगी.

वह स्कूल में हरिशंकर परसाई की एक व्यंग्य रचना ‘मातादीन इंस्पेक्टर चांद पर’ का नाट्य रूपांतर कर बच्चों को उस की रिहर्सल करा रही थी. प्रधानाचार्य ने मुख्य पात्र के लिए 10वीं कक्षा के एक विद्यार्थी मुकुल का नाम सुझाया क्योंकि वह शहर के बड़े उद्योगपति का बेटा था और उस के सहारे पिता को खुश कर स्कूल अनुदान में खासी रकम पा सकता था.

मुकुल में प्रतिभा भी थी. इंस्पेक्टर मातादीन का अभिनय वह कुशलता से करने लगा था. उसी नाटक के पूर्वाभ्यास में इरा को घर जाने में देर हो जाती है. वह घर जाने के लिए स्टाप पर खड़ी थी कि तभी एक कार रुकती है. उस में मुकुल अपने पिता के साथ था. उस के पिता शरदजी को देख इरा चहक उठती है. शरदजी बताते हैं कि जब मुकुल ने नाटक के बारे में बताया तो मैं समझ गया था कि ‘इरा मैम’ तुम ही होंगी.

इरा उन के साथ गाड़ी में बैठ जाती है. तभी उसे याद आता है कि आज उस के बेटे का जन्मदिन है और उस के लिए तोहफा लेना है. शरदजी को पता चलता है तो वह आलीशान शापिंग कांप्लेक्स की तरफ गाड़ी घुमा देते हैं. वह इरा को कंप्यूटर गेम दिलवाने पर उतारू हो जाते हैं. इरा बेचैन थी क्योंकि पर्स में इतने रुपए नहीं थे. अब आगे…

एक महंगा केक और फूलों का बुके आदि तमाम चीजें शरदजी गाड़ी में रखवाते चले गए. वह अवाक और मौन रह गई.

शरदजी को घर में भीतर आने को कहना जरूरी लगा. बेटे सहित शरदजी भीतर आए तो अपने घर की हालत देख सहम ही गई इरा. कुर्सियों पर पड़े गंदे,  मुचड़े, पहने हुए वस्त्र हटाते हुए उस ने उन्हें बैठने को कहा तो जैसे वे सब समझ गए हों, ‘‘रहने दो, इरा… फिर किसी दिन आएंगे… जरा अपने बेटे को बुलाइए… उस से हाथ मिला लूं तब चलूं. मुझे देर हो रही है, जरूरी काम से जाना है.’’

इरा ने सुदेश और पति को आवाज दी. वे अपने कमरे में थे. दोनों बाहर निकल आए तो जैसे इरा शरम से गड़ गई हो. घर में एक अजनबी को बच्चे के साथ आया देख पवन भी अचकचा गए और सुदेश भी सहम सा गया पर उपहार में आई ढेरों चीजें देख उस की आंखें चमकने लगीं… स्नेह से शरदजी ने सुदेश के सिर पर हाथ फेरा. उसे आशीर्वाद दिया, उस से हाथ मिला उसे जन्मदिन की बधाई दी और बेटे मुकुल के साथ जाने लगे तो सकुचाई इरा उन्हें चाय तक के लिए रोकने का साहस नहीं बटोर पाई.

पवन से हाथ मिला कर शरदजी जब घर से बेटे मुकुल के साथ बाहर निकले तो उन्हें बाहर तक छोड़ने न केवल इरा ही गई, बल्कि पवन और सुदेश भी गए.

उन्होंने पवन से हाथ मिलाया और गाड़ी में बैठने से पहले अपना कार्ड दे कर बोले, ‘‘इरा, कभी पवनजी को ले कर आओ न हमारे झोंपड़े पर… तुम से बहुत सी बातें करनी हैं. अरसे बाद मिली हो भई, ऐसे थोड़े छोड़ देंगे तुम्हें… और फिर तुम तो मेरे बेटे की कैरियर निर्माता हो… तुम्हें अपना बेटा सौंप कर मैं सचमुच बहुत आश्वस्त हूं.’’

पवन और सुदेश के साथ घर वापस लौटती इरा एकदम चुप और खामोश थी. उस के भीतर एक तीव्र क्रोध दबे हुए ज्वालामुखी की तरह भभक रहा था पर किसी तरह वह अपने गुस्से पर काबू रखे रही. इस वक्त कुछ भी कहने का मतलब था, महाभारत छिड़ जाना. सुदेश के जन्मदिन को वह ठीक से मना लेना चाहती थी.

सुदेश के जन्मदिन का आयोजन देर रात तक चलता रहा था. इतना खुश सुदेश पहले शायद ही कभी हुआ हो. इरा भी उस की खुशी में पूरी तरह डूब कर खुश हो गई.

बिस्तर पर जब वह पवन के साथ आई तो बहुत संतुष्ट थी. पवन भी संतुष्ट थे, ‘‘अरसे बाद अपना सुदेश आज इतना खुश दिखाई दिया.’’

‘‘पर खानेपीने की चीजें मंगाने में काफी पैसा खर्च हो गया,’’ न चाहते हुए भी कह बैठी इरा.

‘‘घर वालों के ही खानेपीने पर तो खर्च हुआ है. कोई बाहर वालों पर तो हुआ नहीं. पैसा तो फिर कमा लिया जाएगा… खुशियां हमें कबकब मिलती हैं,’’ पवन अभी तक उस आयोजन में डूबे हुए थे.

‘‘सोया जाए… मुझे सुबह फिर जल्दी उठना है. सुदेश का कल अंगरेजी का टेस्ट है और मैं अंगरेजी की टीचर हूं अपने स्कूल में. मेरा बेटा ही इस विषय में पिछड़ जाए, यह मैं कैसे बरदाश्त कर सकती हूं? सुबह जल्दी उठ कर उस का पूरा कोर्स दोहरवाऊंगी…’’

‘‘आजकल की यह पढ़ाई भी हमारे बच्चों की जान लिए ले रही है,’’ पवन के चेहरे पर से प्रसन्नता गायब होने लगी, ‘‘हमारे जमाने में यह जानमारू प्रतियोगिता नहीं थी.’’

‘‘अब तो 90 प्रतिशत अंक, अंक नहीं माने जाते जनाब… मांबाप 99 और 100 प्रतिशत अंकों के लिए बच्चों पर इतना दबाव बनाते हैं कि बच्चों का स्वास्थ्य तक चौपट हुआ जा रहा है. क्यों दबा रहे हैं हम अपने बच्चों को… कभीकभी मैं भी बच्चों को पढ़ाती हुई इन सवालों पर सोचती हूं…’’

‘‘शायद इसलिए कि हम बच्चों के भविष्य को ले कर बेहद डरे हुए हैं, आशंकित हैं कि पता नहीं उन्हें जिंदगी में कुछ मिलेगा या नहीं… कहीं पांव टिकाने को जगह न मिली तो वे इस समाज में सम्मान के साथ जिएंगे कैसे?’’ पवन बोले, ‘‘हमारे जमाने में शायद यह गलाकाट प्रतियोगिता नहीं थी पर आजकल जब नौकरियां मिल नहीं रहीं, निजी कामधंधों में बड़ी पूंजी का खेल रह गया है. मामूली पैसे से अब कोई काम शुरू नहीं किया जा सकता, ऐसे में दो रोटियां कमाना बहुत टेढ़ी खीर हो गया है, तब बच्चों के कैरियर को ले कर सावधान हो जाने को मांबाप विवश हो गए हैं… अच्छे से अच्छा स्कूल, ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं, साधन, अच्छे से अच्छा ट्यूटर, ज्यादा से ज्यादा अंक, ज्यादा से ज्यादा कुशलता और दक्षता… दूसरा कोई बच्चा हमारे बच्चे से आगे न निकल पाए, यह भयानक प्रत्याशा… नतीजा तुम्हारे सामने है जो तुम कह रही हो…’’

‘‘मैं तो समझती थी कि तुम इन सब मसलों पर कुछ न सोचते होंगे, न समझते होंगे… पर आज पता चला कि तुम्हारी भी वही चिंताएं हैं जो मेरी हैं. जान कर सचमुच अच्छा लग रहा है, पवन,’’ कुछ अधिक ही प्यार उमड़ आया इरा के भीतर और उस ने पवन को एक गरमागरम चुंबन दे डाला.

पवन ने भी उसे बांहों में भर, एक बार प्यार से थपथपाया, ‘‘आदमी को तुम इतना मूर्ख क्यों मानती हो? अरे भई, हम भी इसी धरती के प्राणी हैं.’’

‘‘यह नाटक मैं ठीक से करा ले जाऊं और शरदजी को उन के बेटे के माध्यम से प्रसन्न कर पाऊं तो शायद उस एहसान से मुक्त हो सकूं जो उन्होंने मुझ पर किए हैं. जानते हो पवन, शरदजी ने अपने निर्देशन में मुझे 3 नाटकों में नायिका बनाया था. बहुत आलोचना हुई थी उन की पर उन्होंने किसी की परवा नहीं की थी. अगर तब उन्होंने मुझे उतना महत्त्व न दिया होता, मेरी प्रतिभा को न निखारा होता तो शायद मैं नाटकों की इतनी प्रसिद्ध नायिका न बनी होती. न ही यह नौकरी आज मुझे मिलती. यह सब शरदजी की ही कृपा से संभव हुआ.’’

नाटक उम्मीद से कहीं अधिक सफल रहा. मुकुल ने इंस्पेक्टर मातादीन के रूप में वह समां बांधा कि पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. स्कूल प्रबंधक और प्रधानाचार्या अपनेआप को रोक नहीं सके और दोनों उठ कर इरा के पास मंच के पीछे आए, ‘‘इरा, तुम तो कमाल की टीचर हो भई.’’

मुकुल के पिता शरदजी तो अपने बेटे की अभिनय क्षमता और इरा के कुशल निर्देशन से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने वहीं, मंच पर आ कर स्कूल के लिए एक वातानुकूलित कंप्यूटर कक्ष और 10 कंप्यूटर अत्यंत उच्च श्रेणी के देने की घोषणा कर प्रबंधक और प्रधानाचार्या के मन की मुराद ही पूरी कर दी.

जब वे आयोजन के बाद चायनाश्ते पर अन्य अतिथियों के साथ प्रबंधक के पास बैठे तो न जाने उन के कान में क्या कहते रहे. इरा ने 1-2 बार उन की ओर देखा भी पर वे उन से ही बातें करते रहे. बाद में इरा को धन्यवाद दे वे जातेजाते पवन और सुदेश की तरफ देख हाथ हिला कर बोले, ‘‘इरा…मुझे अभी तक उम्मीद है कि किसी दिन तुम आने के लिए मुझे दफ्तर में फोन करोगी…’’

‘‘1-2 दिन में ही तकलीफ दूंगी, सर, आप को,’’ इरा उत्साह से बोली थी.

‘‘जो आदमी खुश हो कर लाखों रुपए का दान स्कूल को दे सकता है, उस से हम बहुत लाभ उठा सकते हैं, इरा… और वह आदमी तुम से बहुत खुश और प्रभावित भी है,’’ अपना मंतव्य आखिर पवन ने घर लौटते वक्त रास्ते में प्रकट कर ही दिया.

परंतु इरा चुप रही. कुछ बोली नहीं. किसी तरह पुन: पवन ने ही फिर कहा, ‘‘क्या सोच रही हो? कब चलें हम लोग शरदजी के घर?’’

‘‘पवन, तुम्हारे सोचने और मेरे सोचने के ढंग में बहुत फर्क है,’’ कहते हुए बहुत नरम थी इरा की आवाज.

‘‘सोच के फर्क को गोली मारो, इरा. हमें अपने मतलब पर ध्यान देना चाहिए, अगर हम किसी से अपना कोई मतलब आसानी से निकाल सकते हैं तो इस में हमारे सोच को और हमारी हिचक व संकोच को आड़े नहीं आना चाहिए,’’ पवन की सूई वहीं अटकी हुई थी, ‘‘तुम अपने घरपरिवार की स्थितियों से भली प्रकार परिचित हो, अपने ऊपर कितनी जिम्मेदारियां हैं, यह भी तुम अच्छी तरह जानती हो. इसलिए हमें निसंकोच अपने लिए कुछ हासिल करने का प्रयास करना चाहिए.’’

‘‘मैं तुम्हें और सुदेश को ले कर उन के बंगले पर जरूर जाऊंगी, पर एक शर्त पर… तुम इस तरह की कोई घटिया बात वहां नहीं करोगे. शरदजी के साथ मैं ने नाटकों में काम किया है, मैं उन्हें बहुत अच्छी तरह जानती हूं. वह इस तरह से सोचने वाले व्यक्ति नहीं हैं. बहुत समझदार और संवेदनशील व्यक्ति हैं. उन से पहली बार ही उन के घर जा कर कुछ मांगना मुझे उन की नजरों में बहुत छोटा बना देगा, पवन. मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती.’’

दूसरे दिन इरा जब स्कूल में पहुंची तो प्रधानाचार्या ने उसे अपने दफ्तर में बुलाया, ‘‘हमारी कमेटी ने तय किया है कि यह पत्र तुम्हें दिया जाए,’’ कह कर एक पत्र इरा की तरफ बढ़ा दिया.

एक सांस में उस पत्र को धड़कते दिल से पढ़ गई इरा. चेहरा लाल हो गया, ‘‘थैंक्स, मेम…’’ अपनी आंतरिक प्रसन्नता को वह मुश्किल से वश में रख पाई. उसे प्रवक्ता का पद दिया गया था और स्कूल की सांस्कृतिक गतिविधियों की स्वतंत्र प्रभारी बनाई गई थी. साथ ही उस के बेटे सुदेश को स्कूल में दाखिला देना स्वीकार किया गया था और उस की इंटर तक फीस नहीं लगेगी, इस का पक्का आश्वासन कमेटी ने दिया था.

शाम को जब घर आ उस ने वह पत्र पवन, ससुरजी व घर के अन्य सदस्यों को पढ़वाया तो जैसे किसी को विश्वास ही न आया हो. एकदम जश्न जैसा माहौल हो गया, सुदेश देर तक समझ नहीं पाया कि सब इतने खुश क्यों हो गए हैं.

इरा ने नजदीकी पब्लिक फोन से शरदजी को दफ्तर में फोन किया, ‘‘आप को हार्दिक धन्यवाद देने आप के बंगले पर आज आना चाहती हूं, सर. अनुमति है?’’

सुन कर जोर से हंस पड़े शरदजी, ‘‘नाटक वालों से नाटक करोगी, इरा?’’

‘‘नाटक नहीं, सर. सचमुच मैं बहुत खुश हूं. आप के इस उपकार को कभी नहीं भूलूंगी,’’ वह एक सांस में कह गई, ‘‘कितने बजे तक घर पहुंचेंगे आप?’’

‘‘मेरा ड्राइवर तुम्हें लगभग 9 बजे घर से लिवा लाएगा… और हां, सुदेश व पवनजी भी साथ आएंगे,’’ उन्होंने फोन रख दिया था.

अपनी इरा मैम को अपने घर पर पा कर मुकुल बेहद खुश था. देर तक अपनी चीजें उन्हें दिखाता रहा. अगले नाटकों में भी इरा मैम उसे रखें, इस का वादा कराता रहा.

पूरे समय पवन कसमसाते रहे कि किसी तरह इरा मतलब की बात कहे शरदजी से. शरदजी जैसे बड़े आदमी के लिए यह सब करना मामूली सी बात है, पर इरा थी कि अपने विश्वविद्यालय के उन दिनों के किए नाटकों के बारे में ही उन से हंसहंस कर बातें करती रही.

जब वे लोग वापस चलने को उठे तो शरदजी ने अपने ड्राइवर से कहा, ‘‘साहब लोगों को इन के घर छोड़ कर आओ…’’ फिर बड़े प्रेम से उन्होंने पवन से हाथ मिलाया और उन की जेब में एक पत्र रखते हुए बोले, ‘‘घर जा कर देखना इसे.’’

रास्ते भर पवन का दिल धड़कता रहा, माथे पर पसीना आता रहा. पता नहीं, पत्र में क्या हो. जब घर आ कर पत्र पढ़ा तो अवाक रह गए पवन… उन की नियुक्ति शरदजी ने अपने दफ्तर में एक अच्छे पद पर की थी.

तितली: मांबाप के झगड़े में पिसती सियाली

रविवार के दिन की शुरुआत भी मम्मीपापा के  झगड़े की कड़वी आवाजों से हुई. सियाली अभी अपने कमरे में सो ही रही थी कि चिकचिक सुन कर उस ने चादर सिर तक ओढ़ ली, इस से आवाज पहले से कम तो हुई, पर अब भी उस के कानों से टकरा रही थी.

सियाली मन ही मन कुढ़ कर रह गई. पास पड़े मोबाइल को टटोल कर उस में ईयरफोन लगा कर उन्हें कानों में कस कर ठूंस लिया और आवाज को बहुत तेज कर दिया.

18 साल की सियाली के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. उस के मांबाप आएदिन ही झगड़ते रहते थे, जिस की सीधी वजह थी उन दोनों के संबंधों में खटास का होना… ऐसी खटास, जो एक बार जिंदगी में आ जाए, तो आपसी रिश्तों का खात्मा ही कर देती है.

सियाली के मांबाप प्रकाश और निहारिका के संबंधों में यह खटास कोई एक दिन में नहीं आई, बल्कि यह तो  एक मिडिल क्लास परिवार के कामकाजी जोड़े के आपसी तालमेल बिगड़ने के चलते धीरेधीरे आई एक आम समस्या थी.

सियाली के पिता प्रकाश अपनी पत्नी निहारिका पर शक करते थे. उन का शक करना भी एकदम जायज था, क्योंकि निहारिका का अपने औफिस के एक साथी के साथ संबंध चल रहा था. जितना शक गहरा हुआ, उतना ही प्रकाश की नाराजगी बढ़ती गई और निहारिका का नाजायज रिश्ता भी उसी हिसाब से  बढ़ता गया.

‘‘जब दोनों साथ नहीं रह सकते, तो तलाक क्यों नहीं दे देते… एकदूसरे को,’’ सियाली बिस्तर से उठते हुए  झुं झलाते  हुए बोली.

सियाली जब तक अपने कमरे से बाहर आई, तब तक वे दोनों काफी हद तक शांत हो चुके थे. शायद वे किसी फैसले तक पहुंच गए थे.

‘‘तो ठीक है, मैं कल ही वकील से बात कर लेता हूं, पर सियाली को अपने साथ कौन रखेगा?’’ प्रकाश ने निहारिका की ओर घूरते हुए पूछा.

‘‘मैं समझती हूं… सियाली को तुम मुझ से बेहतर संभाल सकते हो,’’ निहारिका ने कहा, तो उस की इस बात पर प्रकाश भड़क सा गया, ‘‘हां, तुम तो सियाली को मेरे पल्ले बांधना ही चाहती हो, ताकि तुम अपने उस औफिस वाले के साथ गुलछर्रे उड़ा सको और मैं एक जवान लड़की के चारों तरफ एक गार्ड बन कर घूमता रहूं.’’

प्रकाश की इस बात पर निहारिका ने भी तेवर दिखाते हुए कहा, ‘‘मर्दों के समाज में क्या सारी जिम्मेदारी एक मां की ही होती है?’’

निहारिका ने गहरी सांस ली और कुछ देर रुक कर बोली, ‘‘हां, वैसे सियाली कभीकभी मेरे पास भी आ सकती है…  1-2 दिन मेरे साथ रहेगी तो मु झे भी एतराज नहीं होगा,’’ निहारिका ने मानो फैसला सुना दिया था.

सियाली कभी मां की तरफ देख रही थी, तो कभी पिता की तरफ, उस से कुछ कहते न बना, पर वह इतना सम झ गई थी कि मांबाप ने अपनाअपना रास्ता अलग कर लिया है और उस का वजूद एक पैंडुलम से ज्यादा नहीं है जो उन दोनों के बीच एक सिरे से दूसरे सिरे तक डोल रही है.

शाम को जब सियाली कालेज से लौटी, तो घर में एक अलग सी शांति थी. पापा सोफे में धंसे हुए चाय पी रहे थे, जो उन्होंने खुद ही बनाई थी. उन के चेहरे पर कई महीनों से बनी रहने वाली तनाव की शिकन गायब थी.

सियाली को देख कर उन्होंने मुसकराने की कोशिश की और बोले, ‘‘देख ले… तेरे लिए चाय बची होगी… लेले और मेरे पास बैठ कर पी.’’

सियाली पापा के पास आ कर बैठी, तो पापा ने अपनी सफाई में काफीकुछ कहना शुरू किया, ‘‘मैं बुरा आदमी नहीं हूं, पर तेरी मम्मी ने भी तो गलत किया था. उस के काम ही ऐसे थे कि मु झे उसे देख कर गुस्सा आ ही जाता था और फिर तेरी मां ने भी तो रिश्तों को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.’’

पापा की बातें सुन कर सियाली से भी नहीं रहा गया और वह बोली, ‘‘मैं नहीं जानती कि आप दोनों में से कौन सही है और कौन गलत है, पर इतना जरूर जानती हूं कि शरीर में अगर नासूर हो जाए, तो आपरेशन ही सही रास्ता और ठीक इलाज होता है.’’

बापबेटी ने कई दिनों के बाद आज खुल कर बात की थी. पापा की बातों में मां के प्रति नफरत और गुस्सा ही छलक रहा था, जिसे सियाली चुपचाप सुनती रही थी.

अगले दिन ही सियाली के मोबाइल पर मां का फोन आया और उन्होंने सियाली को अपना पता देते हुए शाम को उसे अपने फ्लैट पर आने को कहा, जिसे सियाली ने खुशीखुशी मान भी लिया था और शाम को मां के पास जाने की सूचना भी उस ने अपने पापा को दे दी, जिस पर पापा को भी कोई एतराज नहीं हुआ.

शाम को सियाली मां के दिए पते पर पहुंच गई. पता नहीं क्या सोच कर उस ने लाल गुलाब का एक बुके खरीद लिया था और वह फ्लैट नंबर 111 में पहुंच गई.

सियाली ने डोरबैल बजाई. दरवाजा मां ने ही खोला था. अब चौंकने की बारी सियाली की थी. मां गहरे लाल रंग की साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थीं. उन की मांग में भरा हुआ सिंदूर और माथे पर बिंदी… सियाली को याद नहीं कि उस ने मां को कब इतनी अच्छी तरह से सिंगार किए हुए देखा था. हमेशा सादा वेश में ही रहती थीं मां और टोकने पर दलील देती थीं, ‘अरे, हम कोई ब्राह्मणठाकुर तो हैं नहीं, जो हमेशा सिंगार ओढ़े रहें… हम पिछड़ी जाति वालों के लिए साधारण रहना ही अच्छा है.’

तो फिर आज मां को ये क्या हो गया? बहरहाल, सियाली ने मां को बुके दे दिया. मां ने बड़े प्यार से कोने में रखी एक मेज पर उसे सजा दिया.

‘‘अरे, अंदर आने को नहीं कहोगी सियाली से,’’ मां के पीछे से आवाज आई.

सियाली ने आवाज की दिशा में नजर उठाई, तो देखा कि सफेद कुरतापाजामा पहने हुए एक आदमी खड़ा हुआ मुसकरा रहा था.

सियाली उसे पहचान गई. वह मां का औफिस का साथी देशवीर था. मां उसे पहले भी घर ला चुकी थीं.

मां ने बहुत खुशीखुशी देशवीर से सियाली का परिचय कराया, जिस  पर सियाली ने कहा, ‘‘जानती हूं मां… पहले भी आप इन से मुझ को मिलवा चुकी हो.’’

‘‘पर, पहले जब मिलवाया था तब ये सिर्फ मेरे अच्छे दोस्त थे, लेकिन आज मेरे सबकुछ हैं. हम लोग फिलहाल तो लिवइन में रह रहे हैं और तलाक का फैसला होते ही शादी भी कर लेंगे.’’

सियाली मुसकरा कर रह गई थी. सब ने एकसाथ खाना खाया. डाइनिंग टेबल पर भी माहौल सुखद ही था. मां के चेहरे की चमक देखते ही बनती थी.

सियाली रात को मां के साथ ही सो गई और सुबह वहीं से कालेज के लिए निकल गई. चलते समय मां ने उसे 2,000 रुपए देते हुए कहा, ‘‘रख ले, घर जा कर पिज्जा और्डर कर देना.’’

कल से ले कर आज तक मां ने सियाली के सामने एक आदर्श मां होने के कई उदाहरण पेश किए थे, पर सियाली को यह सब नहीं भा रहा था. फिलहाल तो वह अपनी जिंदगी खुल कर जीना चाहती थी, इसलिए मां के दिए गए पैसों से वह उसी दिन अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने चली गई.

‘‘सियाली, आज तू यह किस खुशी में पार्टी दे रही है?’’ महक ने पूछा.

‘‘बस यों समझो कि आजादी की पार्टी है,’’ कह कर सियाली मुसकरा दी थी.

सच तो यह था कि मांबाप के अलगाव के बाद सियाली भी बहुत रिलैक्स महसूस कर रही थी. रोजरोज की टोकाटाकी से अब उसे छुटकारा मिल चुका था और वह अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती थी, इसीलिए उस ने अपने दोस्तों से अपनी एक इच्छा बताई, ‘‘यार, मैं एक डांस ग्रुप जौइन करना चाहती हूं, ताकि मैं अपने

जज्बातों को डांस द्वारा दुनिया के सामने पेश कर सकूं.’’

इस पर उस के दोस्तों ने उसे और भी कई रास्ते बताए, जिन से वह अपनेआप को दुनिया के सामने पेश कर सकती थी, जैसे ड्राइंग, सिंगिंग, मिट्टी के बरतन बनाना, पर सियाली तो मौजमस्ती के लिए डांस ग्रुप जौइन करना चाहती थी, इसलिए उसे बाकी के औप्शन अच्छे  नहीं लगे.

सियाली ने अपने शहर के डांस ग्रुप इंटरनैट पर खंगाले, तो ‘डिवाइन डांसर’ नामक एक डांस ग्रुप ठीक लगा, जिस में 4 मैंबर लड़के थे और एक लड़की थी.

सियाली ने तुरंत ही वह ग्रुप जौइन कर लिया और अगले दिन से ही डांस प्रैक्टिस के लिए जाने लगी और इस नई चीज का मजा भी लेने लगी.

इस समय सियाली से ज्यादा खुश कोई नहीं था. वह तानाशाह हो चुकी थी. न मांबाप का डर और न ही कोई टोकने वाला. वह जब चाहती घर जाती और अगर नहीं भी जाती तो भी कोई पूछने वाला नहीं था. उस के मांबाप का तलाक क्या हुआ, सियाली तो एक ऐसी चिडि़या हो गई, जो कहीं भी उड़ान भरने के लिए आजाद थी.

एक दिन सियाली का फोन बज उठा. यह पापा का फोन था, ‘सियाली, तुम कई दिन से घर नहीं आई, क्या बात है? कहां हो तुम?’

‘‘पापा, मैं ठीक हूं और डांस सीख रही हूं.’’

‘पर तुम ने बताया नहीं कि तुम डांस सीख रही हो…’

‘‘जरूरी नहीं कि मैं आप लोगों को सब बातें बताऊं… आप लोग अपनी जिंदगी अपने ढंग से जी रहे हैं, इसलिए मैं भी अब अपने हिसाब से ही  जिऊंगी,’’ इतना कह कर सियाली ने फोन काट दिया था, पर उस का मन एक अजीब सी खटास से भर गया था.

डांस ग्रुप के सभी सदस्यों से सियाली की अच्छी दोस्ती हो गई थी, पर पराग नाम के लड़के से उस की कुछ ज्यादा ही पटने लगी थी.

पराग स्मार्ट था और पैसे वाला भी. वह सियाली को गाड़ी में घुमाता और खिलातापिलाता. उस की संगत में सियाली को भी सिक्योरिटी का अहसास होता था.

एक दिन पराग और सियाली एक रैस्टोरैंट में गए. पराग ने अपने लिए एक बीयर मंगवाई और सियाली से पूछा, ‘‘तुम तो कोल्ड ड्रिंक लोगी न सियाली?’’

‘‘खुद तो बीयर पीओगे और मु झे बच्चों वाली ड्रिंक… मैं भी बीयर पीऊंगी,’’ कहते हुए सियाली के चेहरे पर  एक अजीब सी शोखी उतर आई थी.

सियाली की इस अदा पर पराग भी मुसकराए बिना न रह सका और उस ने एक और बीयर और्डर कर दी.

सियाली ने बीयर से शुरुआत जरूर की थी, पर उस का यह शौक धीरेधीरे ह्विस्की तक पहुंच गया था.

अगले दिन डांस क्लास में जब वे दोनों मिले, तो पराग ने एक सुर्ख गुलाब सियाली की ओर बढ़ा दिया और बोला, ‘‘सियाली, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

यह सुन कर ग्रुप के सभी लड़केलड़कियां तालियां बजाने लगे.

सियाली ने भी मुसकरा कर पराग के हाथ से गुलाब ले लिया और कुछ सोचने के बाद बोली, ‘‘लेकिन, मैं शादी जैसी किसी बेहूदा चीज के बंधन में नहीं बंधना चाहती. शादी एक सामाजिक तरीका है 2 लोगों को एकदूसरे के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए जिंदगी बिताने का, पर क्या हम ईमानदार रह पाते हैं?’’ सियाली के मुंह से ऐसी बड़ीबड़ी बातें सुन कर डांस ग्रुप के लड़केलड़कियां शांत से हो गए थे.

सियाली ने थोड़ा रुक कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं ने अपने मांबाप को उन की शादीशुदा जिंदगी में हमेशा लड़ते ही देखा है, जिस का खात्मा तलाक के रूप में हुआ और अब मेरी मां अपने प्रेमी के साथ लिवइन में रह रही हैं और पहले से कहीं ज्यादा खुश हैं.’’

पराग यह बात सुन कर तपाक से बोला, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ लिवइन में रहने को तैयार हूं,’’ तो सियाली ने इसे झट से स्वीकार कर लिया.

कुछ दिन बाद ही पराग और सियाली लिवइन में रहने लगे, जहां वे जी भर कर जिंदगी का मजा ले रहे थे. पराग के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी.

कुछ दिनों के बाद उन के डांस ग्रुप की गायत्री नाम की एक लड़की ने सियाली से एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘सियाली, तुम्हारी तो अभी उम्र बहुत कम है… और इतनी जल्दी किसी के साथ लिवइन में रहना… कुछ अजीब सा नहीं लगता तुम्हें…’’

सियाली के चेहरे पर एक मीठी सी मुसकराहट आई और चेहरे पर कई रंग आतेजाते गए, फिर उस ने अपनेआप को संभालते हुए कहा, ‘‘जब मेरे मांबाप ने सिर्फ अपनी जिंदगी के बारे में सोचा और मेरी परवाह नहीं की, तो मैं अपने बारे में क्यों न सोचूं… और गायत्री, जिंदगी मस्ती करने के लिए बनी है, इसे न किसी रिश्ते में बांधने की जरूरत है और न ही रोरो कर गुजारने की…

‘‘मैं आज पराग के साथ लिवइन में हूं, और कल मन भरने के बाद किसी और के साथ रहूंगी और परसों किसी और के साथ, उम्र का तो सोचो ही मत… बस मस्ती करो.’’

सियाली यह कहते हुए वहां से चली गई, जबकि गायत्री अवाक सी खड़ी रह गई.

तितली कभी किसी एक फूल पर नहीं बैठती… वह कभी एक फूल पर, तो कभी दूसरे फूल पर, और तभी तो  इतनी चंचल होती है और इतनी खुश रहती है… रंगबिरंगी तितली, जिंदगी से भरपूर तितली.

शोर करती चुप्पी : कैसा थी मानसी की ससुराल

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और हीरो मर गया : कहानी स्ट्रगल के साथी की

जुनून इतना पुरजोर था कि उसे मुंबई खींच कर ले गया, पर यह तो उसे मुंबई पहुंच कर ही पता चला कि हर दिन मुंबई पहुंचने वाले लोगों में फिल्मी हीरोहीरोइन बनने की ख्वाहिश रखने वाले लड़केलड़कियों की भी बड़ी भारी तादाद होती है.

रोजरोज मुंबई आने वाले ये लोग फिल्म स्टार बनने की ख्वाहिश रखने वाले स्ट्रगलरों की भीड़ में इजाफा करते जाते हैं. विनय भी इस भीड़ का हिस्सा बन गया. इसी भीड़ की धक्कामुक्की और रेलमपेल ने एक दिन उसे एक फिल्म ऐक्टिंग इंस्टीट्यूट के दरवाजे पर पहुंचा दिया.

विनय ने घर से लाए अपने रुपएपैसों की गिनती की, फिर उस ने एक ऐक्टिंग इंस्टीट्यूट के एक साल के कोर्स में दाखिला ले लिया. वहां विनय की मुलाकात उदय नाम के एक लड़के से हुई. लंबाचौड़ा उदय बहुत हैंडसम था, पर महीनेभर में विनय अपनी ऐक्टिंग के दम पर सब के आकर्षण का केंद्र बन गया. विनय और उदय की दोस्ती धीरेधीरे इतनी गहरी हो गई कि वे रूम पार्टनर बन कर साथसाथ रहने लगे.

कोर्स पूरा हो जाने के बाद आत्मविश्वास से भरे इन दोनों नौजवानों की मेहनत रंग लाई. दोनों को ही 1-1 फिल्म मिल गई. मगर विनय की फिल्म 2 रील की शूटिंग के बाद ही अटक गई. उसे 2 और फिल्मों का भी औफर मिला, मगर वे दोनों फिल्में भी किसी न किसी वजह से बीच में ही दम तोड़ गईं. उधर, उदय की फिल्म न केवल पूरी हुई, साथ ही सुपरहिट भी हुई.

उदय की धूम मच गई. नतीजतन, उस के सामने बड़ेबड़े बजट की फिल्मों के प्रस्ताव वालों की कतार लगी थी, तो विनय स्ट्रगल करने वाले कलाकारों की कतार में धक्के खातेखाते पीछे होता जा रहा था.

उदय एक बड़े फिल्मकार द्वारा गिफ्ट किए गए शानदार फ्लैट में शिफ्ट हो गया. विनय अपने रूम में अकेला रह गया, तो उस ने अपना नया रूम पार्टनर बना लिया.

विनय को हार तो स्वीकार थी, मगर घुटने टेकना स्वीकार नहीं था. नाकामी का अंधेरा जितना ज्यादा गहराता जाता, उतना ही कामयाबी के उजालोें के लिए उस की जद्दोजेहद और मजबूती से बढ़ती जाती. हिम्मत की इसी चट्टान से उस के दिल का दर्द कविता और कहानी बन कर फूटने लगा.

मशहूर टैलीविजन की हस्ती और सीरियल बनाने वाली प्रीता नूरी की नजर विनय के लेखन पर पड़ी, तो उन्होंने उसे सीरियल लिखने वाले लेखकों की अपनी टीम में शामिल कर लिया.

प्रीता नूरी के लेखकों की टीम में लेखन करने के अलावा विनय एक फिल्म पत्रिका में पार्टटाइम न्यूज रिपोर्टर भी हो गया था. इस तरह उसे इतनी आमदनी होने लगी थी कि वह फिल्मी दुनिया में अपने बूते अपनी जद्दोजेहद जारी रख सकता था.

एक दिन एक पत्रिका में विनय ने पढ़ा, ‘फिल्म स्टार उदय अब सुपरस्टार के पायदान के नजदीक.’

विनय को खुशी हुई. इस बात का संतोष हुआ कि कम से कम उस के साथी कलाकार को तो कामयाबी मिली.

एक दूसरी फिल्म पत्रिका ने लिखा, ‘उदय एक दिन फिल्मी दुनिया का ध्रुव तारा साबित होगा,’ तीसरी पत्रिका ने लिखा, ‘सुपरस्टार उदय :

द हैंडसम हीरो: आंखें रोमांटिक और मुसकराहट जानलेवा.’

विनय जिस फिल्म पत्रिका में न्यूज रिपोर्टर था, उस के संपादक को जब पता चला कि फिल्म स्टार उदय कभी विनय का रूम पार्टनर रहा है, तो वह विनय के पीछे ही पड़ गया कि वह उदय का कोई धांसू इंटरव्यू तैयार करे. साथ ही, पत्रिका को चाहिए थे फिल्म स्टार उदय के रोमांस के किस्से. स्टार बनने से पहले और बाद के इश्क की रंगरंगीली दास्तान.

विनय उदय से मिलने शूटिंग पर गया, तो उदय ने बिजी कह कर मिलने में आनाकानी की.

कई बार तो विनय को लगा कि उदय उसे देख कर भी अनदेखा कर आगे बढ़ जाता है.

यह देख विनय हैरान था. क्या उदय वाकई इतना बिजी है कि उस के पास स्ट्रगल के दिनों के अपने दोस्त से बात करने की फुरसत भी नहीं थी? वह क्या इतना बड़ा स्टार बन गया है कि मुझ जैसे मामूली आदमी से मिलने में उसे अपनी तौहीन महसूस होती है? पर वह तो पत्रकार की हैसियत से मिलना चाहता है. तो क्या अब उदय इतना बड़ा हो गया है कि उसे मीडिया की दरकार भी नहीं रही?

विनय ने दूसरे दिन फिर से उदय से मिलने की कोशिश की, पर वह नाकाम रहा. तीसरे दिन फिर कोशिश की, फिर नाकाम रहा. आखिर एक दिन उस ने उदय के घर पर फोन किया, तो पीए ने जवाब दिया, ‘साहब के पास अभी बिलकुल भी टाइम नहीं है.’

उधर दूसरी ओर फिल्म पत्रिकाओं में उदय के चटपटे इंटरव्यू छप रहे थे.

विनय ने सिर थाम लिया. उस का संपादक उस के बारे में क्या सोच रहा होगा. दूसरी पत्रिकाओं में चटपटी खबर को पढ़ कर विनय ने उदय के पीए को मन ही मन कोसा, ‘देखो तो इसे… बोलता है कि साहब के पास अभी टाइम नहीं है. अच्छा, तो साहब के पास आजकल रोमांस के लिए टाइम है, दोस्तों से मिलने के लिए नहीं है’, विनय ने अपनेआप को भी कोसा, ‘तेरी तो किस्मत ही खराब है. फिल्मों में ऐक्टिंग करना तो दूर रहा, फिल्म पत्रकारिता भी तेरे बस की नहीं. छोड़ दे यह फिल्मी दुनिया…’

‘नहीं छोड़ूंगा,’ विनय के भीतर से आवाज आती रही और वह अपनी जिद पर डटा रहा कि वह फिल्मी दुनिया नहीं छोड़ेगा. वह इसी फिल्मी दुनिया में कामयाबी की अपनी एक अलग राह खोज कर रहेगा.

उधर, प्रीता नूरी विनय की काबिलीयत से काफी प्रभावित हो चुकी थीं. उन्होंने विनय को एक फिल्म की कहानी और पटकथा पर आयोजित एक मीटिंग में बतौर सलाहकार अपने साथ बिठाया. फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर लेखक प्रवीण तन्मय कहानी और पटकथा पेश कर रहे थे. उस मीटिंग में फिल्म के हीरो और हीरोइन भी शामिल थे.

वहां विनय ने महसूस किया कि फिल्म इंडस्ट्री में पहले की तुलना में लेखकों की इज्जत काफी बढ़ चुकी है. उस ने देखा कि केवल डायरैक्टर और फिल्मकार ही नहीं, बल्कि फिल्म के हीरोहीरोइन भी लेखक प्रवीण तन्मय को काफी इज्जत दे रहे थे.

विनय को लगा कि वह भी एक कामयाब फिल्म लेखक बन सकता है.

इधर लेखक प्रवीण तन्मय की कहानी से प्रीता नूरी इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उस का डायरैक्शन भी उन्हें ही सौंप दिया. प्रवीण तन्मय ने जब इस फिल्म के डायरैक्शन की बागडोर संभाली, तो विनय को अपना चीफ असिस्टैंट बनाया. कामयाबी के पायदान की तरफ विनय का यह पहला ठोस कदम था. उस का खोया हुआ आत्मविश्वास फिर से लौट आया था. भीतर के उजाले से उस की बाहर की दुनिया भी बदलनी शुरू हो गई थी.

एक दिन अचानक विनय के भीतर एक कहानी का आइडिया कौंध गया और कुछ समय चुरा कर उस ने कहानी पूरी कर ली, जिस का नाम था ‘और हीरो मर गया’.

इस कहानी ने खुद विनय को इतना रोमांचित कर दिया कि आननफानन उस ने उसे पटकथा और संवादों में भी ढाल दिया. फिल्म राइटर्स एसोसिएशन में रजिस्ट्रेशन कराने के बाद उस ने अपनी यह कहानी प्रवीण तन्मय को दिखाई. प्रवीण तन्मय खुशी से उछल पड़े. कहानी प्रीता नूरी को भी सुनाई गई, तो वे भी मुग्ध हो गईं.

इसी बीच लेखक प्रवीण तन्मय के डायरैक्शन में बनी फिल्म ‘युद्ध जारी है’ हिट हो चुकी थी. प्रवीण तन्मय को कुछ दूसरे प्रोड्यूसरों से भी लेखन और डायरैक्शन के प्रस्ताव मिल रहे थे, लिहाजा, वे काफी बिजी हो गए थे. इधर प्रीता नूरी ने विनय की कहानी ‘और हीरो मर गया’ के डायरैक्शन का भार विनय को ही सौंप दिया. कामयाबी के पायदान पर विनय का यह दूसरा ठोस कदम था.

फिल्म कम समय और कम लागत में बन कर तैयार हो गई. फिल्म में कोई बड़ा स्टार नहीं था. कहानी के मुताबिक, नए और छोटे कलाकारों को फिल्म में लिया गया था और तकरीबन सभी कलाकारों ने गजब की ऐक्टिंग की थी.

फिल्म ने लागत से कई गुना ज्यादा आमदनी की और इस तरह विनय का नाम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक जानामाना नाम बन गया. कामयाबी के पायदान पर विनय का यह तीसरा ठोस कदम था.

विनय की तीसरी फिल्म ने तो इतनी कमाई कर डाली कि खुश हो कर फिल्मकार ने विनय को एक शानदार फ्लैट गिफ्ट कर दिया. अब विनय से कहानी लिखवाने व डायरैक्शन के लिए फिल्मकारों की लंबी कतार लग गई. उधर, उदय की 5 फिल्में लगातार पिट गई थीं. उस की फिल्मों के शूटिंग शैड्यूल ही कैंसिल हो गए.

एक दिन विनय तब सुखद आश्चर्य से भर गया, जब उदय को अपने सामने खड़ा पाया. यह वही सुपरस्टार उदय था, जिस के पास स्ट्रगल के दिनों के अपने साथी को पहचानने और बात करने का समय नहीं था.

विनय ने हैरानी से उदय से पूछा, ‘‘सुपरस्टारजी, आप तो धांसू डायलौग डिलीवरी के लिए मशहूर हैं और मेरी कहानियों के डायलौग बहुत साधारण होते हैं. कहानी भी सीधेसादे पात्रों को ले कर होती है.

‘‘हर फिल्म में आप की ड्रैसें महंगे फैशन डिजाइनरों द्वारा तैयार की जाती हैं और मेरी कहानी के पात्र तो आम होते हैं, इसलिए उन्हें साधारण पोशाक ही सूट करती हैं.

‘‘आप तो जोखिम भरे स्टंट करने के लिए मशहूर हैं. फिल्म में एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग पर छलांग लगाते हुए आप को देख कर दर्शक रोमांचित हो जाते हैं, जबकि मेरी कहानियों के पात्र हवा में नहीं उड़ते, जमीन पर चलते हैं.

‘‘आप की अभी तक की रिकौर्डतोड़ फिल्मों की कामयाबी का क्रेडिट परदे पर आप के द्वारा गाए गए सुपरहिट गीतों को दिया जाता है, डांस को दिया जाता है, जबकि मेरी कहानी के किरदार तो जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराते हैं. भला आप ऐसे साधारण किरदारों को परदे पर करना क्यों पसंद करोगे?’’

सवाल का खुद जवाब न देते हुए उदय ने विनय से ही पूछ लिया, ‘‘हां, मैं जानता हूं कि आप की कहानियों के पात्र आम आदमी होते हैं, साधारण होते हैं. तो आप ही बताइए कि फिर दर्शक उन्हें पसंद क्यों कर रहे हैं?’’

उदय की बात सुन कर विनय बोला, ‘‘क्योंकि मेरी कहानियां मौलिक और असली होती हैं.’’

उदय ने विनय का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मैं उन उंगलियों को चूमना चाहता हूं, जो ऐसी कहानियों को लिख रही हैं. कामयाबी के घमंड ने मुझे अंधा बना दिया था, पर स्ट्रगल से मिली आप की कामयाबी के उजालों ने मेरी आंखें खोल दी हैं. मेरी पतंग तो हवा में उड़ रही थी. कामयाबी तो यह है, जो आप ने अपने खूनपसीने से हासिल की है. फिल्म इंडस्ट्री में आप ने अपना पैर अंगद के पैर की तरफ जमा दिया है. मैं आप को बधाई देता हूं. हो सके, तो मुझे माफ कर दो.’’

विनय ने उदय को अपनी छाती से लगा लिया. उदय बोला, ‘‘भाग्य के भरोसे पर टिकी बेतुकी फिल्मों की अपनी कामयाबी से मेरा मन ऊब गया है. मैं जमीन पर पैर रख कर अपनी मेहनत से अपने हुनर को तौलना चाहता हूं.

‘‘दोस्त, तुम तो स्ट्रगल के दिनों के मेरे साथी हो. मेरे लिए कोई ऐसी ही कहानी लिखो न, जिस का किरदार विलक्षण हो, पर धरती के आम इनसान की तरह हो.’’

विनय ने उदय के सादगी से दमकते चेहरे की ओर देखा तो देखता ही रह गया. अब वह फिर वही पहले जैसा कलाकार उदय हो गया था. उस के भीतर का हीरो मर चुका था.

कभी अलविदा न कहना : पिता से झूठ बोल कर फौज में जाने वाला लड़का

वरुण के बदन में इतनी जोर का दर्द हो रहा था कि उस का जी कर रहा था कि वह चीखे, पर वह चिल्लाता कैसे. वह था भारतीय सेना का फौजी अफसर. अगर वह चिल्लाएगा, तो उस के जवान उस के बारे में क्या सोचेंगे कि यह कैसा अफसर है, जो चंद गोलियों की मार नहीं सह सकता.

वरुण की आंखों के सामने उस की पूरी जिंदगी धीरेधीरे खुलने लगी. उसे अपना बचपन याद आने लगा. उस के 5वें जन्मदिन पर उसे फौजी वरदी भेंट में मिली थी, जिसे पहन कर वह आगेपीछे मार्च करता था और सेना में अफसर बनने के सपने देखता था.

‘पापा, मैं बड़ा हो कर फौज में भरती होऊंगा,’ जब वह ऐसा कहता, तो उस के पापा अपने बेटे की इस मासूमियत पर मुसकराते, लेकिन कहते कुछ नहीं थे.

वरुण के पापा एक बड़े कारोबारी थे. उन का इरादा था कि वरुण कालेज खत्म करने के बाद उन्हीं के साथ मिल कर खुद एक मशहूर कारोबारी बने. उन्होंने सोच रखा था कि वे वरुण को फौज में तो किसी हालत में नहीं जाने देंगे.

अचानक वरुण के बचपन की यादों में किसी ने बाधा डाली. उस के कंधे पर एक नाजुक सा हाथ आया और उस के साथ किसी की सिसकियां गूंज उठीं. तभी एक मधुर सी आवाज आई, ‘मेजर वरुण…’ और फिर एक सिसकी सुनाई दी. फिर सुनने में आया, ‘मेजर वरुण…’

वरुण ने सिर घुमा कर देखा कि एक हसीन लड़की उस के पास खड़ी थी. उस के हाथ में एक खूबसूरत सा लाल गुलाब भी था.

‘वाह हुजूर, अब आप मुझे पहचान नहीं रहे हैं…’

वरुण को हैरानी हुई. उस ने सोचा, ‘कमाल है यार, मैं फौजी अफसर हूं और यह जानते हुए भी यह मुझे बहलाफुसला कर अपने चुंगल में फंसाने के लिए मुझ से जानपहचान बनाना चाह रही है. मैं इस से बात नहीं करूंगा. अपना समय बरबाद नहीं होने दूंगा,’ और उस ने अपना सिर घुमा लिया.

वरुण की जिंदगी की कहानी फिर उस की आंखों के सामने से गुजरने लगी. जब वह सीनियर स्कूल में पहुंचा, तो एनसीसी में भरती हो गया. वह फौज में जाने की पूरी तैयारी कर रहा था.

स्कूल खत्म होने के बाद वरुण के पापा ने उसे कालेज भेजा. कालेज तो उसी शहर में था, पर उन्होंने वरुण का होस्टल में रहने का बंदोबस्त किया. वह इसलिए कि वरुण के पापा का खयाल था कि होस्टल में रह कर उन का बेटा खुद अपने पैरों पर खड़ा होना सीखेगा.

उस जमाने में मोबाइल फोन तो थे नहीं, इसलिए वरुण हफ्ते में एक बार घर पर फोन कर सकता था, अपना हालचाल बताने और घर की खबर लेने के लिए.

उस के पापा उस से हमेशा कहते, ‘बेटे, याद रखो कि कालेज खत्म करने के बाद तुम कारोबार में मेरा हाथ बंटाओगे. आखिर एक दिन यह सारा कारोबार तुम्हारा ही होगा.’

वरुण को अपनी आंखों के सामने फौजी अफसर बनने का सपना टूटता सा दिखने लगा. वह हिम्मत हारने लगा. फिर एक दिन अचानक एक अनोखी घटना घटी, जिस से उस की जिंदगी का मकसद ही बदल गया.

वरुण के होस्टल का वार्डन ईसाई था. उस के पिता फौज के एक रिटायर्ड कर्नल थे, जो पत्नी की मौत के चलते अपने बेटे के साथ रहते थे. एक दिन 90 साल की उम्र में उन की मौत हो गई.

वार्डन होस्टल के लड़कों की अच्छी देखभाल करता था. इस वजह से होस्टल के सारे लड़कों ने तय किया कि वे सब वार्डन के पिता की अंत्येष्टि में शामिल होंगे.

जब लड़के कब्रिस्तान पहुंचे, तो उन्होंने एक अजीब नजारा देखा. वार्डन के पिता का शव कफन के अंदर था, पर कफन के दोनों तरफ गोल छेद काटे गए थे, जिन में से उन के हाथ बाहर लटक रहे थे.

एक लड़के ने पास खड़े उन के एक रिश्तेदार से पूछा कि ऐसा क्यों किया गया है.

जवाब मिला, ‘यह उन की मरजी थी और उन की वसीयत में भी लिखा था कि उन को इस हालत में दफनाया जाए. लोग देखें कि वे इस दुनिया में खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जा रहे हैं.’

वरुण यह जवाब सुन कर हैरान हो गया. उस ने सोचा कि अगर खाली हाथ ही जाना है, तो क्या फर्क पड़ेगा कि वह अपने मन की मुराद पूरी कर के फौजी अफसर की तनख्वाह कमाए, बनिस्बत कि अपने पिता के साथ करोड़ों रुपए का मालिक बने. उस ने पक्का इरादा किया कि वह फौजी अफसर ही बनेगा.

वरुण जानता था कि उस के पापा उसे कभी अपनी रजामंदी से फौज में जाने नहीं देंगे.

काफी सोचविचार के बाद वरुण ने अपने पिता को राजी कराने के लिए एक तरकीब निकाली.

एक दिन जब देर शाम वरुण के पापा घर लौटे और उस के कमरे में गए, तो उन्होंने उस की टेबल पर एक चिट्ठी पाई. लिखा था:

‘पापा, मैं घर छोड़ कर अपनी प्रमिका के साथ जा रहा हूं. वैसे तो उम्र में वह मुझ से 10 साल बड़ी है, पर इतनी बूढ़ी लगती नहीं है. वह पेट से भी है, क्योंकि उस के एक दोस्त ने शादी का वादा कर के उसे धोखा दिया.

‘हम दोनों किसी मंदिर में शादी कर लेंगे और कहीं दूर जा कर रहेंगे. जब एक साल के बाद हम वापस आएंगे, तो आप अपनी पोती या पोते का स्वागत करने के लिए एक बड़ी पार्टी जरूर दीजिएगा.

‘आप का आज्ञाकारी बेटा,

‘वरुण.’

वरुण को पीछे पता चला कि उस की चिट्ठी पढ़ने के बाद उस के पापा की आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा. तब तक उस के कमरे में उस की मां आ गईं.

‘वरुण कहां है?’ मां ने पूछा, तो वरुण के पापा की आवाज बड़ी मुश्किल से उन के गले से निकली. ‘पता नहीं…’

वरुण की मां ने कहा, ‘तकरीबन एक घंटे पहले उस ने कहा था कि वह बाहर जा रहा है और शायद देर से लौटेगा. पर बात क्या है? आप की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है.’

वरुण के पापा ने बिना कुछ बोले जमीन पर गिरी चिट्ठी की ओर इशारा किया. उस की मां ने चिट्ठी उठाई और पढ़ने लगीं.

‘मेरे प्यारे पापा,

‘जो इस चिट्ठी के पिछली तरफ लिखा है, वह सरासर झूठ है. मेरी कोई प्रेमिका नहीं है और न ही मैं किसी के साथ आप से दूर जा रहा हूं. मैं अपने दोस्त मनोहर के घर पर हूं. हम देर रात तक टैलीविजन पर क्रिकेट मैच देखेंगे और फिर मैं वहीं सो जाऊंगा.

‘मैं ने मनोहर के मम्मीपापा को बताया है कि मुझे उन के यहां रात बिताने में कोई दिक्कत नहीं है. मैं आप लोगों से कल सुबह मिलूंगा.

‘मैं ने जो पिछली तरफ लिखा है, वह तो इसलिए, ताकि आप को महसूस हो कि मेरा फौज में जाना बेहतर होगा, इस से पहले कि मैं कोई गड़बड़ी वाला काम कर लूं.’

वरुण के पापा ने ठंडी सांस भरी और मन ही मन में बोले, ‘तू जीत गया मेरे बेटे, मैं हार गया.’

वरुण ने यूपीएससी का इम्तिहान आसानी से पास किया. सिलैक्शन बोर्ड के इंटरव्यू में भी उस के अच्छे नंबर आए. फिर देहरादून की मिलिटरी एकेडमी में उस ने 2 साल की तालीम पाई. उस के बाद उस के बचपन का सपना पूरा हुआ और वह फौजी अफसर बन गया.

कुछ साल बाद कारगिल की लड़ाई छिड़ी. वरुण की पलटन दूसरे फौजी बेड़ों के साथ वहां पहुंची. वरुण उस समय छुट्टी पर था… उस की छुट्टियां कैंसिल हो गईं. वह लौट कर अपनी पलटन में आ गया.

वरुण ने अपनी कंपनी के साथ दुश्मन पर धावा बोला. भारतीय अफसरों की परंपरा के मुताबिक, वरुण अपने सिपाहियों के आगे था. दुश्मन ने अपनी मशीनगनें चलानी शुरू कीं. वरुण को कई गोलियां लगीं और वह गिर गया…

फिर वही सिसकियों वाली आवाज वरुण के कानों में गूंज उठी, ‘वरुण, मैं आप का इंतजार कब तक करती रहूंगी? आप मुझे क्यों नहीं पहचान रहे हैं?’

वह लड़की घूम कर वरुण के सामने आ कर खड़ी हो गई. वरुण की सहने की ताकत खत्म हो गई.

‘हे सुंदरी….’ वरुण की आवाज में रोब भरा था, ‘मैं जानता नहीं कि तुम कौन हो और तुम्हारी मंशा क्या है. पर अगर तुम एक मिनट में यहां से दफा नहीं हुईं, तो मैं…’

‘आप मुझे कैसे भूल गए हैं? आप ने खुद मुझसे मिलने के लिए कदम उठाया था.’

वरुण ने सोचा, ‘अरे, एक बार मिलने पर क्या तुम्हें कोई अपना दिल दे सकता है,’ पर वह चुप रहा.

इस से पहले कि वह अपनी निगाहें सुंदरी से हटा लेता, वह फिर बोली, ‘अरे फौजी साहब, आप के पापा ने आप के मेजर बनने की खुशी में पार्टी दी थी. आप के दोस्त तो उस में आए ही, पर उन से बहुत ज्यादा आप के मम्मीपापा के ढेरों दोस्त आए हुए थे.

‘मेरे पापा आप के पापा के खास दोस्तों में हैं. वे मुझे भी साथ ले गए थे.

‘आप के पापा ने मेरे मम्मीपापा से आप को मिलवाया था. मैं भी उन के साथ थी. आप ने मुझे देखा और मुझे देखते ही रह गए. बाद में मुझे लगा कि आप की आंखें मेरा पीछा कर रही हैं. मुझे बड़ा अजीब लगा.’

वह कुछ देर चुप रही. वरुण उसे एकटक देखता ही रहा.

‘मैं ने देखा कि बहुत से लोग आप को फूलों के गुलदस्ते भेंट कर रहे थे. मैं दूर जा कर एक कोने में दुबक कर बैठ गई. जब आप शायद फारिग हुए होंगे, तो आप मुझे ढूंढ़ते हुए आए. मेरे सामने झुक कर एक लाल गुलाब आप ने मुझे भेंट किया.’

वरुण के मन में एक परदा सा उठा और उसे लगा कि वह लड़की सच ही कह रही थी. तभी उसे आगे की बातेंयाद आईं. उस की मम्मी ठीक उसी समय वहां पहुंच गईं. उन्होंने शायद सारा नजारा देख लिया था, इसलिए उन्होंने मुसकराते हुए वरुण की पीठ थपथपाई. वे काफी खुश लग रही थीं. वे शायद उस के पापा के पास चली गईं और उन्हें सारी बातें बता दी होंगी.

तभी वरुण के माइक पर सभी लोगों से कहा, ‘आज की पार्टी मेरे बेटे वरुण के मेजर बनने की खुशी में है,’ उन्होंने वरुण की ओर देख कर उसे बुलाया. जब वरुण स्टेज पर पहुंच गया, तब वे माइक पर आगे बोले, ‘और इस मौके पर उसे मैं एक भेंट देने जा रहा हूं.’

उन्होंने एक हाथ बढ़ा कर वरुण का हाथ थामा और दूसरे हाथ से अपने दोस्त राम कुमार की बेटी का हाथ पकड़ा और बोले, ‘वरुण को हमारी भेंट है… भेंट है उस की होने वाली दुलहन विनीता, जो मेरे दोस्त राम कुमार की बेटी है.’

उन्होंने वरुण को विनीता का हाथ थमा दिया. सारा माहौल खुशी की लहरों और तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

विनीता शरमा कर अपना हाथ वरुण के हाथ से छुड़ाने की कोशिश करने लगी. वरुण ने हाथ नहीं छोड़ा और विनीता के कान के पास कहा, ‘सगाई में मैं तुम्हारे लिए एक अंगूठी देख लूंगा. अभी मेरी छुट्टी के 45 दिन बाकी हैं.’

अफसोस, लड़ाई छिड़ने के चलते वरुण की छुट्टियां कैंसिल हो गईं…

फौजी डाक्टर ने वरुण के शरीर की पूरी जांचपड़ताल की. उस के पास ही वरुण के कमांडिंग अफसर खड़े थे, जिन के चेहरे पर भारी आशंका छाई हुई थी.

‘‘मुबारक हो सर,’’ डाक्टर ने उन को संबोधित कर के कहा, ‘‘आप के मेजर को 4 गोलियां लगी हैं, पर कोई भी जानलेवा नहीं है. खून काफी बह चुका है, पर वे जिंदा हैं. आप के ये अफसर बड़े मजबूत हैं. मैं इन्हें जल्द ही अस्पताल पहुंचा दूंगा. मुझे पक्का यकीन है कि चंद हफ्तों में ये बिलकुल ठीक हो जाएंगे.’’

‘‘मुझे भी यही लग रहा है,’’ वरुण के कमांडिंग अफसर ने जवाब दिया.

ईंट का जवाब पत्थर से : नंदन की हवस का अनोखा नतीजा

चित्रा सोने की चिड़िया थी. मातापिता की एकलौती लाड़ली. उस के पिता लाखों रुपए कमाने वाले एक वकील थे. मां पूजापाठ के लिए मंदिरों के चक्कर लगाती रहती थीं.

चित्रा पर किसी का कंट्रोल नहीं था. उस की मनमानी चलती थी.

चित्रा कालेज में बीए के फर्स्ट ईयर में पढ़ रही थी. वह बहुत खूबसूरत थी. उस के एकएक अंग से जवानी फूटती थी. वह अपने जिस्म को ढकने के बजाय दिखाने में ज्यादा यकीन करती थी.

चित्रा का बैग रुपयों से भरा रहता था, इसलिए उस की सहेलियां गुड़ की मक्खी की तरह उस से चिपकी रहती थीं. लड़के उस की जवानी का मजा लेने के लिए पीछे पड़े रहते थे.

इसी बात का फायदा उठा कर चित्रा कालेज में ग्रुप लीडर बन गई. इस से वह और भी ज्यादा घमंडी हो गई.

चित्रा के कालेज में सैकंड ईयर में नंदन नाम का एक लड़का पढ़ता था. वह उस इलाके के सांसद का बेटा था. रोजाना नई कार से कालेज आना उस का शौक था.

सच तो यह था कि नंदन कालेज नाम के लिए आता था. लड़कियों को अपने इश्क के जाल में फंसा कर उन से मन बहलाना उस का शौक था. वह एक नंबर का जुआरी था. शराब पीना उस का रोजमर्रा का काम था.

एक दिन नंदन की नजर चित्रा पर पड़ी. दरअसल, उस ने कालेज के इलैक्शन में हिस्सा लिया था. चित्रा भी उन्हीं के ग्रुप में शामिल थी. दोनों ने खूब प्रचार किया. नंदन ने पानी की तरह पैसा बहाया और जीत गया.

इसी जीत की खुशी में नंदन ने अपने फार्महाउस में शानदार पार्टी दी थी. चित्रा और उस के दोस्त भी वहां पहुंच गए थे. रातभर शराब पार्टी चली. सब ने खूब मौजमस्ती की.

तभी से नंदन और चित्रा ने क्लबों में घूमना शुरू कर दिया. फिर वे दोनों नंदन के फार्महाउस में मिलने लगे और उन्होंने हमबिस्तरी भी की. इसी तरह एक साल बीत गया. वे दोनों हवस के सागर में गोते लगाते रहे.

अचानक ही चित्रा को एहसास हुआ कि पिछले 3 महीने से उसे माहवारी नहीं आई है. वह डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने बताया कि वह 3 महीने के पेट से है. यह सुन कर चित्रा मानो मस्ती के आसमान से नीचे गिर पड़ी.

चित्रा ने नंदन से इस बारे में बात की और उस पर शादी करने का दबाव डाला. नंदन लड़कियों के साथ हमबिस्तरी तो करता था, पर चित्रा से शादी करने की उस ने कभी नहीं सोची थी. अपने नेता पिता की तरह वह लड़कियों से प्यार के वादे तो करता था, पर उन्हें निभाता नहीं था.

नंदन चित्रा की बात सुन कर सतर्क हो गया. उस ने चित्रा से मिलनाजुलना बंद कर दिया. जब वह फोन पर उस से बात करना चाहती, तो टाल देता.

लेकिन एक दिन चित्रा ने नंदन को पकड़ ही लिया. बहुत दिनों तक बातचीत न होने से नंदन भी थोड़ा नरम पड़ गया था. बातें करतेकरते वे दोनों नंदन के फार्महाउस जा पहुंचे.

वह फार्महाउस दोमंजिला था. वे दोनों दूसरी मंजिल पर गए. वहां एक खूबसूरत बैडरूम था. वे दोनों एक सोफे पर जा कर बैठ गए.

चित्रा बहुत खूबसूरत लग रही थी. उसे देख कर नंदन की हवस जाग गई. वह बोला, ‘‘डार्लिंग, शुरू हो जाएं क्या?’’ इतना कह कर उस ने चित्रा की कमर पर अपना हाथ रख दिया.

चित्रा ने नंदन के रंगढंग देख कर कहा, ‘‘नंदन, पहले मु झे तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं, बाकी काम बाद में,’’ इतना कह कर चित्रा ने नंदन का हाथ अपनी कमर से हटा दिया.

‘‘अच्छा कहो, क्या कहना चाहती हो तुम?’’ नंदन ने पूछा.

‘‘वही बात. शादी के बारे में क्या सोचा है तुम ने? मेरा पेट दिन ब दिन फूल रहा है. घर में पता चल गया, तो पता नहीं मेरा क्या होगा. मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है. ऊपर से तुम भी मु झ से बात नहीं करते हो,’’ कहते हुए चित्रा रोने लगी.

‘‘रोती क्यों हो… मेरे पापा विदेश गए हुए हैं. उन के आते ही हम शादी कर लेंगे,’’ नंदन ने इतना कह कर चित्रा को अपनी बांहों में भरना चाहा.

लेकिन चित्रा छिटक कर दूर हो गई और बोली, ‘‘नंदन, आज मु झे यह सब करने का मन नहीं है. पहले हमारी शादी का फैसला होना चाहिए. हम किसी मंदिर में जा कर शादी कर लेते हैं. हमारे घर चलते हैं. मेरे पापा बुरा नहीं मानेंगे. वे बहुत अमीर हैं. हम शानोशौकत में जीएंगे. हम कोई नया कामधंधा भी शुरू कर लेंगे.’’

‘‘डियर चित्रा, यों चोरीछिपे मंदिर में शादी करना मु झे पसंद नहीं है. हम सब के सामने शान से शादी करेंगे. मेरे पापा इस इलाके के सांसद हैं. हम उन की हैसियत की शादी करेंगे.

‘‘सब से पहले तो तुम यह बच्चा गिरवा लो. इतनी जल्दी बच्चे की क्या जरूरत है. अभी तो हम पढ़ रहे हैं. मैं पूरा इंतजाम करा दूंगा. थोड़े दिनों के बाद हम फिर से मस्ती मारेंगे.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ यह सुन कर चित्रा ने गुस्से में पूछा.

‘‘मतलब यह है कि अभी से शादी और बच्चे की बातें क्यों? अभी तो हमारे मस्ती के दिन हैं.’’

‘‘नंदन, शादी करने के बाद हम खुलेआम मस्ती करेंगे.’’

‘‘लेकिन, अभी मु झे शादी नहीं करनी है.’’

‘‘क्यों?’’ चित्रा ने जोर दे कर सख्ती से पूछा.

‘‘सच कहूं, तो मेरे पापा ने अपने एक सांसद दोस्त की बेटी से मेरी शादी तय कर रखी है.’’

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो? इतने दिनों तक मेरे तन के साथ खेल कर अब दूर जाना चाहते हो?’’

‘‘नहीं, हम पहले की तरह प्यार करते रहेंगे, पर शादी नहीं. वैसे भी मैं अकेला कुसूरवार नहीं हूं. तुम भी तो मेरा जिस्म पाना चाहती थी. हम ने एकदूसरे की जरूरत पूरी की. लेकिन अब तुम नहीं चाहती, तो मैं अपने रास्ते और तुम अपने रास्ते,’’ नंदन ने दोटूक कह दिया.

‘‘दिखा दी न अपनी औकात. लेकिन, मैं दूसरी लड़कियों की तरह नहीं हूं. हमारी शादी तो हो कर ही रहेगी, नहीं तो…’’

‘‘नहीं तो क्या… चुपचाप यहां से चली जाओ. तुम्हारी कुछ अश्लील वीडियो क्लिप मेरे पास हैं. मैं उन को मोबाइल फोन पर अपलोड कर के अपने दोस्तों में भेज दूंगा. तुम्हारी इज्जत को सरेआम नीलाम कर दूंगा.’’

‘‘तो यह है तुम्हारा असली चेहरा. लड़कियों को फूलों की तरह मसलना तुम्हारा शौक है. लेकिन अगर तुम मेरे पेट में पल रहे बच्चे के बाप नहीं बने, तो मैं तुम्हारी जिंदगी बेहाल कर दूंगी,’’ इतना कह कर चित्रा ने अपने बैग से एक लिफाफा निकाला और नंदन के मुंह पर फेंक दिया.

‘‘यह सब क्या ड्रामा है?’’ नंदन ने बौखलाहट में पूछा.

‘‘खुद देख लो,’’ चित्रा बोली.

नंदन ने लिफाफा खोला, तो उस में से निकल कर कुछ तसवीरें जमीन पर जा गिरीं. उन तसवीरों में नंदन और चित्रा हवस का खेल खेल रहे थे.

नंदन गुस्से से भर उठा और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘ये तसवीरें तुम्हारे पास कहां से आईं?’’

‘‘चिल्लाओ मत. अकेले तुम ही शातिर नहीं हो. अगर तुम मेरी बेहूदा वीडियो क्लिप बना सकते हो, तो मैं भी तुम्हारी ऐसी तसवीरें खींच सकती हूं.’’

यह सुन कर नंदन भड़क गया और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘बाजारू लड़की, मैं तुम्हारा रेप कर के यहीं बगीचे में जिंदा गाड़ दूंगा,’’ कह कर उस ने चित्रा को पकड़ना चाहा.

चित्रा उस की पकड़ में नहीं आई और गरजी, ‘‘अक्ल से काम लो और मेरे साथ शादी कर लो, नहीं तो मैं तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर दूंगी. तुम्हारे पापा भी तुम्हें बचा नहीं पाएंगे. मु झे ऐसीवैसी मत सम झना. मैं एक वकील की बेटी हूं.’’

‘‘वकील की बेटी हो, तो तुम मेरा क्या कर लोगी. मैं अभी तुम्हारा गला दबा कर इस कहानी को यहीं खत्म कर देता हूं,’’ इतना कह कर नंदन चित्रा पर  झपट पड़ा.

लेकिन चित्रा तेजी से खिड़की के पास चली गई और बोली, ‘‘जरा यहां से नीचे तो देखना.’’

झल्लाया नंदन खिड़की के पास गया और बाहर झांका. नीचे मेन गेट पर पुलिस की गाड़ी खड़ी थी. एक सबइंस्पैक्टर अपने 4 सिपाहियों के साथ ऊपर ही देख रहा था.

‘‘देख लिया… अगर मुझ पर हाथ डाला, तो तुम भी नहीं बचोगे. मैं यहां आने से पहले ही सारा इंतजाम कर के आई थी.

‘‘अब तुम ज्यादा मत सोचो और जल्दी से मेरे साथ शादी के दफ्तर में पहुंचो. मेरे पापा वहीं पर तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं,’’ इतना कह कर चित्रा अपना बैग और वे तसवीरें ले कर बाहर चली गई.

नंदन भीगी बिल्ली बना चित्रा के साथ शादी के दफ्तर पहुंच गया.

नायर साहब : सेना के सीक्रेट मिशन का अनोखा कोडवर्ड

टारगेट प्रैक्टिस कर रहे कमांडो सन्नी की गन से लगातार निकल रही गोलियां अचूक निशाने पर लग रही थीं. हर गोली कुछ एमएम इधरउधर हो रही थीं. रैपिड फायरिंग हो या लौंग रेंज या शौर्ट रेंज. गोलियों की आवाज कुछ देर के लिए रुकी. सामने लाल बत्ती जलबुझ रही थी. यह इमर्जैंसी का सिगनल था.

‘‘इमर्जैंसी?‘‘

इस के लिए ये कोई नई बात नहीं थी, चौबीसों घंटे वरदी पहने रहता था. पर बेस्ट कमांडो को प्रैक्टिस रोक कर बुलाने का मतलब…?

‘‘कोई हाईजैकिंग, टैररिस्ट अटैक हुआ क्या…?‘‘ सन्नी ने बाहर निकल कर घंटी बजाने वाले जवान से पूछा.

‘‘सर कुछ पता नहीं न्यूज चैनल में तो कुछ भी खास नहीं. वैसे तो वो लोग सभी न्यूज को ब्रेकिंग न्यूज बताते हैं. आप सर बेस्ट कमांडो अफसर हैं, वे लोग आप को बताएंगे, आप का मोबाइल नौनस्टौप बज रहा था, इसलिए आप को सिगनल दिया.‘‘

‘‘इडियट, जोकर है तुम… मोबाइल बज रहा था तो क्या…?‘‘ नाराज हो कर सन्नी लौटने वाला था.

तभी डरतेडरते जवान ने कहा, ‘‘सरजी, आप का स्पैशल मोबाइल बज रहा था और हैडक्वार्टर से आप का हालचाल कोई नायर साहब पूछ रहे थे कि आप की तबीयत कैसी है…?‘‘

‘‘ओह नायर साहब, वे तो मेरे दोस्त हैं…‘‘ सन्नी के तेवर नरम पड़े. प्रैक्टिस बीच में छोड़ना उसे पसंद नहीं था, पर बात जरूर खास थी.

‘‘मेरा प्रैक्टिस चैंबर बंद कर दो. अब मूड नहीं है,‘‘ सन्नी अपना सामान कप बोर्ड में रखता हुआ बोला.

सन्नी अपना बैग ले कर तुरंत गाड़ी में बैठा. ‘नायर साहब‘ कोड था कि कोई सीक्रेट मिशन है, जिस की चर्चा तक नहीं करनी है. स्पैशल हैक न होने वाले मोबाइल पर टैक्स्ट मैसेज था – आप का दिन शुभ हो, नायर साहब औफिस में आप का इंतजार कर रहे हैं.

औफिस पहुंच कर उस ने पूरे मिशन – ‘मिशन ग्रीन‘ की बारीकी से स्टडी की. 85 सीआरपीएफ जवानों की हत्या हुई थी और तमाम उपायों के बाद भी माओवादी हिंसा रुक नहीं रही थी. सन्नी जानता था कि उस का चयन बहुत ही सोचसमझ कर किया गया था. वह भी गांव का रहने वाला था और वहां की हर तरह के हालात को बेहतर तरीके से हैंडल कर सकता था.

सन्नी दूर तक फैले जंगल और ऊंची पहाड़ियों की ओर मुड़मुड़ कर देखता. आसपास के गांव की तलाश में आगे बढ़ा. जंगल अब खत्म हो गए थे और जंगल किनारे के खेत नजर आने लगे थे.

‘आपरेशन ग्रीन‘ सफल रहा था और उस ने उन के सुप्रीम कमांडर को मार गिराया था. किसी को पता नहीं था कि 2 गुटों की दबदबे की लड़ाई की आड़ में दोनों ओर के मारे गए लोग उस की अचूक निशानेबाजी के शिकार हुए थे. यह उस के पहले इंस्ट्रक्टर बुद्धन गुरु की सिखाई रणनीति थी, जो इसी इलाके के थे और अब रिटायर हो चुके थे.

अपनी सफलता की कहानी वह कमांडो ट्रेनिंग हैडक्वार्टर तक पहुंचा भी नहीं पाया था, क्योंकि कोई भी संचार उपकरण रखना खतरे से खाली नहीं था. अब वह निहत्था भी था. हथियार पहाड़ी झरने में फेंक आया था, ताकि कोई उसे पहचान न पाए.

पर उसे भी 2 गोलियां लगी थीं. वह बैस्ट कमांडो था और हर हालात में अपने को बचाने और जीवित रखने के तरीके जानता था, पर सीक्रेट मिशन के कारण वह ग्रामीण वेशभूषा में था और भयंकर गोलीबारी में अपने छापामार युद्ध के बाद बहुत खून बहने के कारण बुरी तरह थक चुका था. अब आपरेशन कर गोली निकालने में किसी अस्पताल या सरकारी एजेंसी की मदद भी नहीं ले सकता था.

नजदीकी थाना 20 किलोमीटर दूर था. दूसरे किसी और का मोबाइल इस्तेमाल करना बहुत हद तक खतरनाक था, क्योंकि वहां मोबाइल उन के ही लोगों के पास थे और कोई ऐसा समर्थक भी नहीं था तो किसी डाक्टर के आने पर उस से माओवादियों को शक हो जाता. अब उस के पास एक ही रास्ता था किसी रिटायर्ड फौजी या पुलिस वाले से मदद ले कर गोली बाहर निकलवाना.

‘‘पर, ऐसा फौजी इस जंगल के बीच मिलेगा कहां? अगर मिल भी गया तो इन माओवादियों के डर से उस की मदद कौन करेगा?‘‘

गांव में उस के खून सने कपड़े देख कर कोई मदद के लिए तैयार नहीं था. एक दयालु बुढ़िया ने उसे एक फौजी का घर दिखाया. दरवाजे की सांकल बजाते ही वह बुखार और कमजोरी से बेहोश हो कर गिर गया.

कई दिनों के बाद होश में आने पर उस ने अपने पहले इंस्ट्रक्टर हवलदार बुद्धन को देखा, जिस ने आज से 10 साल पहले उसे छापामार युद्ध की बारीकियां सिखाई थीं. वह अपने बारे में बताना चाह रहा था, पर गले में कांटे चुभ रहे थे और बोलना संभव नहीं था. वह अपने जमाने के बेस्ट इंस्ट्रक्टर के घर में था, इसलिए बच गया था. उसे हवलदार बुद्धन की दूर से आती आवाज सुनाई दी. वह स्थानीय भाषा में उस से उस का परिचय पूछ रहा था. फिर उस की आंखें मुंद गई थीं.

वह समझ गया था कि बुद्धन ने उसे नहीं पहचाना था. उस के जैसे सैकड़ों कमांडो को उस ने ट्रेनिंग दी होगी, कितनों को पहचानेगा? दूसरे, यहां एनएसजी के बेस्ट कमांडो का पाया जाना कल्पना से परे था. यहां तो पुलिस या पैरामिलिट्री फोर्स के जवान आते थे जो बाहरी होते थे और हावभाव, बोलीभाषा से पहचान लिए जाते थे.

पर, ये बात बुद्धन से छिपी नहीं रह सकती थी कि बहुत ही सफाई से दो खूंख्वार माओवादी गुटों को समाप्त करना किसी कमांडो के अलावा किसी से संभव नहीं था और वो भी जो यहां की भाषा, संस्कृति के साथ भूगोल से अच्छी तरह वाकिफ हो. ऐसे में अपने पुराने शिष्य को पहचान लेना मुश्किल नहीं था.

सन्नी ने अपना परिचय और उद्देश्य बता देना उचित समझा, क्योंकि वह जानता था कि बुद्धन एक देशभक्त फौजी रह चुका था और सच जानने के बाद यहां से सुरक्षित निकालने में उस की मदद कर सकता था.

एक दिन अकेले में जब बुद्धन उस की मरहमपट्टी कर रहा था, तो उस ने बुद्धन से पूछा, ‘‘सर, आप मिलिट्री में कहां थे?‘‘

बुद्धन चुप रहा और उसी दिन उसे अपने खेत के पास वाले घर में ले गया, जहां गांव वालों का आनाजाना नहीं था. वहां उस ने उसे उस के नाम से संबोधित कर कहा, ‘‘सन्नी, जब तक मैं न आऊं, किसी भी हाल में बाहर झांकना तक नहीं.‘‘

यह सुन कर सन्नी सन्न रह गया. उस का अनुमान सही था, तभी उसे याद आया कि उस की कोहनी के भीतरी तरफ दो निशान थे, जो हर बेस्ट कमांडो के हाथों में होते हैं. आम आदमी न समझ पाए, पर बुद्धन गुरु के लिए ये बहुत आसान था कि साधारण से दिखने वाले इस जवान के हाथ में ये निशान 2 छेद करने पर बने थे, जो खुद का खून पी कर जिंदा रहने की अंतिम ट्रेनिंग होती है. सन्नी किसी भी हालात के लिए तैयार था, जो उस की आदत थी.

उस सुनसान से घर में दिन में कुछ लोगों की आवाजें सुनाई पड़ती थीं, जो खेतों में काम करते थे. उन की बातें सुन कर उसे पता चला कि एक मारा गया सुप्रीम कमांडर उसी गांव का था और उस के बचेखुचे साथी दूसरे गुट और उस के सुप्रीमो से बहुत नाराज थे, जिस ने उस की हत्या की थी और खुद भी मारा गया था. अभी तक दूसरा गुट इस सदमे से उबर नहीं पाया था.

एक दिन एकदम मुंहअंधेरे बुद्धन गुरु उस के पास आया और बोला, ‘‘सन्नी, अब तुम बिलकुल ठीक हो. कुछ दिन मिलिट्री हौस्पिटल में रहोगे तो ड्यूटी के लिए फिट हो जाओगे. मैं ने पास के पुलिस कैंप से आगे जाने की व्यवस्था कर दी है. अभी चलो मेरे साथ…‘‘

सन्नी ने इतने दिनों तक रोज उसे दिनरात खिलानेपिलाने सेवा करने वाली बुद्धन की पत्नी से मिल कर आभार प्रकट करने की इच्छा व्यक्त की, ‘‘सर, मैं चाचीजी से मिल कर उन के पैर छूना चाहता हूं…‘‘

‘‘अभी उस की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उस को परेशान करना उचित नहीं,‘‘ बुद्धन ने कहा. दोनों तेजी से आगे बढ़ ही रहे थे कि बुद्धन की पत्नी सामने राइफल लिए खड़ी थी, ‘‘चलिए, मैं भी इसे छोड़ने चलती हूं और आप राइफल के बिना जंगल में निकलते कैसे हैं?‘‘

सन्नी ने 1-2 बार उन का आभार व्यक्त करने की कोशिश की, पर उन्होंने बात बदल दी, ‘‘यह जंगल है. यहां हर पल सावधान रहना पड़ता है, आगे देखो…” उन के उखड़े हुए स्वर से लगा कि वह अनचाहा मेहमान था. बुद्धन गुरु पहले की तरह भावहीन थे. सुबह होतेहोते तीनों जंगल के छोर पर पहुंच गए थे.

बुद्धन ने कहा, ‘‘यह रास्ता सीधा पुलिस कैंप तक जाएगा, कोई अगर पूछे तो बताना कि मेरे मेहमान हो, शहर जाना है.‘‘

सन्नी ने दोनों के पैर छुए, पर दोनों ने कुछ कहा नहीं. दो कदम आगे बढ़ते ही बुद्धन की पत्नी ने चिल्ला कर कहा, ‘‘अब हमारी सीमा समाप्त हो गई है और इसलिए ये हमारा मेहमान नहीं है. गोली मारो मेरे एकलौते बेटे के हत्यारे को…‘‘

सन्नी समझ गया था कि सुप्रीम कमांडर, जिस की उस ने हत्या की थी, बुद्धन सर का ही भटका हुआ बेटा था. राइफल कौक हुआ… सन्नी समझ चुका था कि अब एक बेटे का बाप उस के हत्यारे को सजा देने के लिए तैयार था, ठीक उस की तरह बुद्धन सर का निशाना कभी नहीं चूकता…

कुछ पल और बाकी थे और पीछे से गोली का एक धक्का उस के सिर के टुकड़े करने वाला था. उस ने अंतिम बार अपनी मां को याद किया…

गोली चली, पर यह हवाई फायर था. गोली पेड़ के ऊपर टहनियों से टकरा कर आगे निकल गई थी… वह समझ गया था कि एक रिटायर्ड फौजी भी फौजी ही होता है, जिस के लिए देश सब से पहले होता है. सन्नी ने उस दंपती को खड़े हो कर सैल्यूट किया और तेजी से आगे बढ़ गया.

हेलीकौप्टर के पायलट की बात सुन कर उस का पत्थरदिल भी पसीज गया, ‘‘सर, बुद्धन सर नहीं आए, उन्होंने ही हेडक्वार्टर फोन कर आप के लिए हेलीकौप्टर मंगवाया था.

‘‘सर, सच है, ‘‘वंस ए सोल्जर आल्वेज ए सोल्जर.‘‘

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