Story In Hindi: घुसपैठिए

Story In Hindi: सरहद पर पहुंचते ही सरगना ने कहा, ‘‘देखो, तुम सब घुसपैठिए हो. सामने हिंदुस्तान नाम की बहुत बड़ी सराय है. एक बार किसी तरह सीमा सुरक्षा बल से बच कर दाखिल हो जाएं, उस के बाद उस भीड़ भरे देश में कहीं भी समा जाओ. शासन और प्रशासन भ्रष्ट हैं ही. पैसा फेंको और अपने सारे कागजात बनवा लो.

राशनकार्ड, वोटरकार्ड और इस देश की नागरिकता हासिल.’’

एक घुसपैठिए ने पूछा, ‘‘आप तो कह रहे थे कि सरहद पार करवाने के लिए भारतीय सेना में हमारे कुछ मददगार हैं?’’

सरगना बोला, ‘‘हां हैं, लेकिन अभी उन की ड्यूटी नहीं है. मुझे दूसरी घुसपैठिया खेप भी भेजनी है. बहुत ज्यादा लोगों को एकसाथ नहीं भेज सकते. मेरा रोज का काम है. हर पड़ोसी देश से घुसपैठिए घुसते हैं.

कभी मीडिया वाले ज्यादा हल्ला मचाते हैं, तो कुछ सख्ती हो जाती है.’’

‘‘लेकिन अगर हम पकड़े गए तो?’’ घुसपैठिए ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम्हें वापस भेज दिया जाएगा. वैसे ऐसा होगा नहीं. कब, किस समय सरहद पार करनी है, मुझे सारी जानकारी है. एक बार घुस गए तो बात खत्म.

‘‘हां, अगर वहां पहुंच कर पहचानपत्र बनवाने में कोई समस्या हो तो फोन करना. अपने एजेंट हैं. सब हो जाएगा. चिंता करने की जरूरत नहीं.’’

यह नजारा भारतबंगलादेश की सरहद का है. यह नजारा भारत और पाकिस्तान की सरहद का भी हो सकता है. भारतश्रीलंका, भारतनेपाल की सरहद का भी. नेपालियों को तो वैसे भी खुली छूट है. इस देश में कोई भी कहीं से भी आ कर बस सकता है. घुसपैठिया बन कर घुसता है, फिर मूल निवासी बन कर अपने लोगों को बुलाता है, बसाता है और बसनेबसाने का यह सिलसिला लगातार जारी रहता है.

अचानक सरगना ने इशारा किया और घुसपैठिए भारत की सरहद में दाखिल हो गए. यहां काम दिलाने, बसाने के लिए उन के धर्म, जाति, भाषा वाले पहले से ही थे. फिर दलाल तो हैं ही. उन की आमदनी का जरीया है. उन का धंधा है.

न जाने कितने पाकिस्तानी, बंगलादेशी, नेपाली, श्रीलंकाई भारत के मूल निवासी बन कर यहां की आबादी बढ़ा रहे हैं. मूल निवासी की भूख और बेकारी पहले से ही है. उन की अपनी समस्याएं तो हैं ही, उस पर ये घुसपैठिए जो पूरा बैलेंस बिगाड़ कर रख देते हैं.

शरणार्थी आ ही रहे हैं. जो नियम से चलते हैं. कानून का पालन करते हैं, सो आज सालों बाद भी शरणार्थी बने हुए हैं. उन का अपना निजी कुछ भी नहीं है. जो गैरकानूनी तरीका अपनाते हैं वे मूल निवासी बन जाते हैं.

17 लाख शरणार्थी अकेले जम्मू में हैं. घुसपैठिए भी अपने देश की भूख बेकारी से दुखी हो कर रोटी, छत
की तलाश में घुसते हैं, वरना किसे पड़ी है अपनी जमीन, अपना देश छोड़ कर जाने की.

पूर्वोत्तर के इस राज्य में लाखों घुसपैठिए यहां की नागरिकता ले कर पूरे का पूरा शहर बसा चुके थे. इन्हें
20 सालों से ज्यादा हो गए यहां रहते हुए. इस धरती पर उन्होंने मकान बनाया. खेतीबारी की. जमीन खरीद कर किसान बने. उन के बच्चे यहीं की आबोहवा में पल कर बड़े हुए. यहीं उन की शादी हुई. उन के बच्चे हुए.

नेताओं को यह बात मालूम थी. वे इन्हें अपने वोट बैंक के रूप में भुनाते रहे और यह भरोसा देते रहे कि उन की सरकार बनी तो उन्हें यहीं का निवासी माना जाएगा. हर पार्टी यही कहती और सरकार बनने के बाद चुप्पी साध लेती.

40 साल के आसपास हो चुके थे, जब अहमद खान पूर्वोत्तर के इस राज्य में बसे थे. जब वे आए थे तो अपने कुछ रिश्तेदारों और साथियों के साथ यहां आ कर मजदूरी करना शुरू किया था. धीरेधीरे अपनी मेहनत से उन्होंने जमीन खरीदी. मकान खरीदा.

उस समय यहां के स्थानीय निवासियों ने भी उन की मदद की. यहीं उन की शादी हुई, फिर उन के बच्चों की शादियां हुईं. अब भरापूरा परिवार था. बंगलादेश को तो वे भूल चुके थे. उन का वहां कोई था भी नहीं.

जो थे उन्हें खोने में 40 साल का समय बहुत होता है. इसी धरती को वे अपना मानते थे. इसी को सलाम करते थे.

अब जबकि राजनीति दलों का दलदल बन चुकी थी. केंद्र और राज्य सरकार से ज्यादा क्षेत्रीय भाषा, जाति की राजनीति होने लगी थी. आबादी बढ़ने से क्षेत्रीय लोग पिछड़े और गरीब रह गए थे. उन के पास न जमीन थी, न रोजगार. वे दिल्ली में बैठी सरकार को कोसते रहते थे कि दूर पड़े किनारे के राज्यों के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया.

यह कोसना उन्हें वहां के स्थानीय नेताओं ने सिखाया था. स्थानीय नेताओं के पास पड़ोसी देश से हासिल हथियार थे और बेरोजगार की फौज उन के पास थी. जो असंतुष्ट हो कर हथियार भी उठा चुके थे. जो हथियार उठाने की हिम्मत नहीं कर पाए, वे उन हथियारधारियों के समर्थन में थे. अपना विरोध वे अहिंसक तरीके से करते थे. नारा था भूमिपुत्र का.

भूमिपुत्र वे जो इस प्रांत, क्षेत्र का स्थायी निवासी है. भाषा, बोली, संस्कार, उस का है. जो उस जाति, धर्म से संबंधित है. यह ठीक वैसा ही नारा था जो आंध प्रदेश और महाराष्ट्र में उठता रहा है. बाहरियों को खदेड़ो. जो इसी देश के दूसरे क्षेत्रों से आए थे. रोजगार के लिए वे तो चले गए. मजदूर बन कर आए थे.

लेकिन अहमद खान जैसे लोग कहा जाएं? उन के पास तो यही जमीन, यही मकान, दुकान उन का मुल्क था. फिर उन्हें क्या पता था कि 40 साल बाद स्थानीय लोग ही जो कभी उन के मददगार थे, भाषा, भूमिपुत्र आंदोलन के नाम पर उन के दुश्मन बन जाएंगे.

हत्याओं, बम, धमाकों की खबर पूरे राज्य में फैल रही थी. दहशत का माहौल छाया हुआ था. अहमद खान खुद को बेवतन महसूस कर रहे थे. न जाने कब वे इस हिंसक आंदोलन की बलि चढ़ जाएं. वे करें तो क्या करें. जाएं तो कहां जाएं. उन के पास कोई रास्ता भी नहीं था. आखिर उन के पास संदेशा आ ही गया. वे उल्फा के कमांडर के सामने हाथ जोड़े खड़े थे.

कमांडर ने कहा, ‘‘यह धरती भूमिपुत्रों की है. खाली करो.’’

‘‘मैं 40 साल से यहां रह रहा हूं. यह धरती मेरी भी है. मैं भी भूमिपुत्र हुआ.’’

‘‘नहीं, न तो तुम असमिया हो, न तुम्हारे पूर्वज यहां के हैं. तुम्हारे रहने से हमारे हितों पर असर पड़ता है. यहां केवल यहां के लोग रहेंगे.’’

‘‘मैं नहीं जाऊंगा. पूरी जिंदगी यहीं गुजर गई.’’

‘‘नहीं जाओगे तो मरोगे,’’ कमांडर ने अपनी बात खत्म कर दी.

अहमद खान सोचते रहे कि उन का मुल्क कौन सा है? कुछ सालों में तो किसी भी देश की नागरिकता मिल जाती है, फिर उन्हें तो पूरे 40 साल हो गए. इस जगह के अलावा उन का कहीं कुछ भी नहीं है. वे अपना घरद्वार छोड़ कर जाएं तो कहां जाएं? क्या करेंगे? कहां रहेंगे?

टैलीविजन, रेडियो पर सरकार की तसल्ली आती रही कि सब ठीक हो जाएगा. डरने की कोई बात नहीं. आपसी बातचीत जारी है. पर सरकार की तसल्ली हर बार की तरह झूठी और खोखली रही.

एक रात भूमिपुत्र, विद्रोही अपने लावलश्कर के साथ उन की बस्ती में घुस आए. गोलियों, बमों की आवाजों के साथ चीखों की आवाज भी माहौल में गूंजने लगी.

अहमद खान अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए. उन्होंने तय कर लिया था कि जहां 40 साल, सुख, परिवार के साथ गुजारे. वहां मौत आती है तो मौत ही सही. कोई माने या न माने, वे भी इस भूमि के पुत्र हैं. वे कहीं नहीं जाएंगे.

माहौल में बारूद की गंध फैलने लगी. मकान धूंधूं कर जलने लगे. औरतों और बच्चों की चीखें गूंजने लगीं.

चारों ओर खून ही खून बहने लगा. तभी 2-3 गोलियां अहमद खान के सीने में लगीं. एक लंबी कराह के साथ उन्होंने दम तोड़ दिया. Story In Hindi

Long Hindi Story: वे दो अनमोल दिन – आखिरी भाग

Long Hindi Story, लेखक – शकील प्रेम

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : विनय किराए की गाड़ी चलाता था. एक बार वह एक परिवार को मोतिहारी से पटना के रेलवे स्टेशन छोड़ने गया. उन में सुमन नाम की एक शादीशुदा औरत थी, जिस से परिवार वालों का रवैया बहुत गलत था. पटना रेलवे स्टेशन पर सुमन की ट्रेन छूट गई. उसे चेन्नई जाना था. फिर वह वापस विनय के साथ उस के घर चली गई, क्योंकि चेन्नई की गाड़ी 2 दिन बाद की थी. वहां सुमन और विनय में नजदीकियां बढ़ गईं. अब पढि़ए आगे…

घर पहुंच कर सभी ने साथ बैठ कर दोपहर का खाना खाया और खाना खाने के बाद विनय लता से बोला, ‘‘लता, तुम सुमन का खयाल रखना. मैं गाड़ी सर्विस करवाने जा रहा हूं. शाम तक वापस आ जाऊंगा.’’
विनय की बात सुन कर सुमन उदास हो गई. विनय भी सुमन की भावनाओं को समझ गया, लेकिन वह रुका नहीं.

शाम को 7 बजे विनय घर लौट आया. विनय को घर में देख कर सुमन के चेहरे पर ताजगी आ गई. सभी ने रात का खाना साथ खाया और काफी देर तक बातें करने के बाद सुमन को ले कर लता अपने कमरे में सोने चली गई और विनय अपने कमरे में बिस्तर पर लेट कर नींद आने का इंतजार करने लगा.

अगली सुबह नाश्ता करते वक्त विनय ने सुमन से कहा, ‘‘सुमन, तुम्हारी ट्रेन शाम 5 बजे की है, लेकिन हमें
10 बजे ही निकलना होगा. तुम जल्दी से तैयार हो जाओ.’’

सुमन इस घर से अलग कहीं नहीं जाना चाहती थी. विनय का छोटा सा परिवार उसे अपने परिवार जैसा लगने लगा था. चेन्नई के नाम से ही सुमन को नफरत थी, लेकिन वह जाती भी कहां?

4 बजे तक विनय पटना स्टेशन पर पहुंच चुका था. सुमन और विनय ने स्टेशन के पास वाले एक रैस्टोरैंट में खाना खाया और प्लेटफार्म नंबर एक पर आ कर ट्रेन का इंतजार करने लगे.

विनय सम?ा ही नहीं पा रहा था कि वह अपनी सब से कीमती चीज को ऐसी जगह क्यों भेज रहा है, जहां वह नहीं जाना चाहती. समय पर गाड़ी प्लेटफार्म पर लग गई और रिजर्वेशन के हिसाब से विनय ने सुमन को उस की सीट पर बिठा दिया.

सुमन ने विनय से कहा, ‘‘विनय, तुम मुझे अपने घर ले गए. तुम ने मेरी टिकट करवाई और फिर मुझे ट्रेन तक छोड़ने आए. तुम्हारा यह सारा कर्ज मैं जल्द तुम्हें लौटा दूंगी.’’

विनय ने कहा, ‘‘यह कर्ज नहीं, बल्कि मेरा फर्ज है. तुम पहुंच कर मुझे फोन कर देना.’’

ट्रेन खिसकनी शुरू हुई, तो विनय ने सुमन से विदा ली और सुमन का चेहरा देखे बिना ट्रेन से नीचे उतर गया. इस बीच वह सुमन का फोन नंबर भी नहीं ले पाया. यह पल विनय के लिए बेहद मुश्किल था.

ट्रेन खिसकनी शुरू हुई, लेकिन विनय काफी देर तक प्लेटफार्म पर ही बैठा रहा और उन पलों को याद करता रहा, जब सुमन उस के साथ थी.

विनय ट्रेन के पूरी तरह आंखों से ओझल हो जाने का इंतजार करता रहा कि तभी ट्रेन रुक गई. विनय प्लेटफार्म की बैंच से उठा और सुमन की एक झलक देखने के लिए उस के डब्बे की ओर दौड़ पड़ा, तभी उस ने देखा कि सुमन अपना सूटकेस लिए ट्रेन से नीचे उतर रही थी.

नजदीक पहुंच कर विनय ने हैरानी भरी आवाज में सुमन से पूछा, ‘‘सुमन, क्या हुआ? तुम ट्रेन से उतर क्यों गई?’’

सुमन ने विनय की ओर देखा और बोली, ‘‘मुजे चेन्नई नहीं जाना, इसलिए मैं ने ट्रेन की चेन खींच दी. मुझे घर ले चलो.’’

सुमन के मुंह से ‘मुझे घर ले चलो’ सुन कर विनय ने उसे गले से लगा लिया और उस का सूटकेस हाथों में थाम कर स्टेशन से बाहर निकल आया.

रात के 11 बजे विनय घर पहुंच गया. सुमन को दोबारा घर मे देख कर लता बेहद खुश थी. वह बोली, ‘‘मुझे पूरा यकीन था कि सुमनजी की ट्रेन फिर मिस हो जाएगी.’’

सुमन पहले से शादीशुदा थी. उसे विनय से शादी करने से पहले भगीरथ से तलाक लेना पड़ता, लेकिन एक औरत के लिए पति से तलाक हासिल करना इतना भी आसान नहीं था.

सुमन पढ़ीलिखी थी और कानून के बारे में उसे थोड़ीबहुत जानकारी थी. बिना शादी के सुमन और विनय एक छत के नीचे साथ भी नहीं रह सकते थे.

धीरेधीरे 15 दिन बीत गए. इस बीच भगीरथ ने सुमन को कई बार फोन किया. भगीरथ ने सुमन को डरायाधमकाया, लेकिन सुमन चेन्नई जाने को राजी नहीं हुई.

विनय सुमन से प्यार करता था और सुमन भी विनय को चाहने लगी थी, लेकिन बिना शादी के घर में साथ रहना मुश्किल था. एक शादीशुदा जवान औरत का घर में रहना विनय की मां को भी पसंद नहीं आ रहा था. विनय के जानने वाले भी तरहतरह की बातें बनाने लगे थे.

एक दिन सुमन ने विनय से कहा, ‘‘विनय, मेरे पास कुछ गहने हैं और कुछ कैश भी है. मुझे मोतिहारी मार्केट में किराए पर एक दुकान दिलवा दो. मैं लेडी गारमैंट्स की दुकान खोलना चाहती हूं. दुकान के आसपास ही मुझे एक कमरे का फ्लैट भी दिलवा देना, मैं वहीं रह लूंगी.’’

विनय को सुमन का यह आइडिया अच्छा लगा, लेकिन वह सुमन के गहने बेच कर उस की मदद नहीं करना चाहता था.

विनय अगले ही दिन बैंक गया. लता की शादी के लिए विनय ने बैंक में 10 लाख की एफडी करवाई थी, वह पूरी रकम निकलवा ली और अगले हफ्ते में ही मोतिहारी के जानपुल रोड पर सुमन की दुकान खुल चुकी थी. पास में ही सुमन के रहने के लिए एक फ्लैट भी मिल गया था.

सुमन बेहद खुश थी, लेकिन अब वह पूरी तरह विनय की कर्जदार हो चुकी थी.

लेडी गारमैंट्स की दुकान का फैसला सुमन के लिए बेहद अच्छा साबित हुआ. आमदनी होने लगी. हर महीने दुकान और फ्लैट का किराया देने के बाद भी सुमन के पास काफी रुपया बच जाता, जिसे वह अपने बिजनैस में लगा देती.

सुमन ने तय किया था कि लता की शादी के वक्त तक वह विनय के 10 लाख रुपए लौटा देगी. सुमन की तरक्की को देख कर विनय भी बेहद खुश था.

रविवार को सुमन की दुकान बंद रहती और उस दिन विनय भी छुट्टी कर लेता. दोनों पूरे दिन साथ रहते. पढ़ाई से वक्त निकाल कर लता भी सुमन की दुकान पर उस का हाथ बंटाती और कई बार सुमन अपनी दुकान बंद करने के बाद विनय के घर पहुंच जाती. सभी रात का खाना साथ खाते और खाना खा लेने के बाद विनय सुमन को उस के फ्लैट पर छोड़ आता.

धीरेधीरे 6 महीने बीत गए. एक दिन सुबह विनय अपने बिस्तर से उठा ही था कि घर के दरवाजे पर ‘खटखट’ की तेज आवाज उस के कानों तक आई.

विनय की मां ने दरवाजा खोला, तो सामने पुलिस को खड़ा देख वे डर गईं. तभी विनय दरवाजे पर आ गया. सामने खड़े पुलिस वाले ने पूछा, ‘‘सुमन कहां है?’’

विनय ने कहा, ‘‘सुमन तो अपने फ्लैट पर होगी. आखिर बात क्या है?’’

पुलिस वाले ने उस से कहा, ‘‘तुम्हारे खिलाफ मोतिहारी थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई गई है. तुम्हें अभी मेरे साथ थाने चलना होगा और सुमन को भी फोन करो. उसे भी थाने चलना होगा.’’

थोड़ी देर में विनय और सुमन थाने में महिला दारोगा अंजलि के सामने बैठे थे.

अंजलि ने सुमन से सवाल किया, ‘‘क्या तुम शादीशुदा हो?’’

सुमन ने कहा, ‘‘जी, हां.’’

अंजलि ने उस से कहा, ‘‘तुम पिछले 6 महीने से अपने पति भगीरथ को धोखा दे कर इस आदमी के साथ फरार हो.’’

सुमन ने कहा, ‘‘नहीं, मैं अपनी मरजी से यहां हूं और यहीं मेरी दुकान भी है.’’

अंजलि ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति भगीरथ ने तुम दोनों के खिलाफ थाने में एफआईआर लिखवाई है.’’

सुमन बोली, ‘‘मैडम, क्या आप मुझे यह बता सकती हैं कि भगीरथ ने जो रिपोर्ट दर्ज करवाई है, उस की बुनियाद क्या है?’’

‘‘एफआईआर के मुताबिक, तुम ने भगीरथ को धोखा दिया है. शादीशुदा होने के बावजूद तुम पिछले 6 महीने से पति को छोड़ कर इस आदमी के साथ यहां हो और भगीरथ के 5 लाख के गहने भी तुम चोरी कर के भागी हो.’’

‘‘हां, मैं शादीशुदा हूं और कानूनी रूप से भगीरथ मेरा पति है, लेकिन मैं भगीरथ के साथ न रहूं, यह कोई जुर्म तो नहीं है.

‘‘अगस्त, 2022 के सुप्रीम कोर्ट के एक जजमैंट के मुताबिक, शादीशुदा औरत अगर बिना तलाक के अपने पति से अलग रहती है, तो इस के लिए वह पूरी तरह आजाद है. ऐसे किसी औरत को कोई भी पति के साथ जबरदस्ती रहने को मजबूर नहीं कर सकता.

‘‘भगीरथ को मेरे अलग रहने से दिक्कत है, तो वह मुझे तलाक दे सकता है. मैं ने इस 6 महीने के दौरान भगीरथ से फोन पर तलाक की बात की, लेकिन वह ऐसा करने को राजी नहीं है. ऐसे में मैं क्या करूं बताइए?

‘‘मुझे भगीरथ के साथ नहीं रहना है और रही 5 लाख के गहनों की बात, तो ये गहने मेरे घर वालों ने मेरी शादी में मुझे दिए थे. इन गहनों पर भगीरथ का कोई हक नहीं है. अगर वह यह साबित कर दे कि मेरे पास जो गहने हैं, ये उस ने मुझे खरीद कर दिए हैं, तो मैं चोरी की सजा भुगतने को तैयार हूं.’’

सुमन की बात सुन कर थानेदार अंजलि समझ गई कि सुमन को कानून की अच्छी जानकारी है.

अंजलि ने कहा, ‘‘सुमन, विनय के साथ तुम्हारा क्या रिश्ता है? तुम पिछले 6 महीने से एक गैरमर्द के साथ हो… क्या यह सही है?’’

‘‘मैडम, विनय के साथ मेरा क्या रिश्ता है, यह बताने के लिए मुझे कोई भी कानून मजबूर नहीं कर सकता. मैं पिछले 6 महीने से अलग फ्लैट में रहती हूं और अगर मेरा विनय के साथ कोई रिश्ता है भी तो इस पर टिप्पणी करने का हक किसी को नहीं है.’’

अंजलि ने पूछा, ‘‘सुमन, कानून की बात छोड़ो. एक शादीशुदा औरत का किसी गैरमर्द के साथ रिलेशन बनाना क्या यह सामाजिक तौर पर सही है?’’

‘‘मैडम, हमारा समाज तो पुराने दकियानूसी रिवाजों पर चलता है. समाज औरत और मर्द को शादी के बंधन में बांध कर परंपरा की मुहर लगा देता है और शादी के बाद की जिम्मेदारियों और समस्याओं को दरकिनार कर देता है.

‘‘शादियों के नाम पर औरतों के साथ जो भी हो, समाज इस की परवाह नहीं करता. शादी के बाद औरत के साथ बुरा बरताव हो या शादी के बाद एक औरत के इनसान होने की गरिमा तारतार हो, समाज को कोई फर्क नहीं पड़ता.

‘‘ऐसे समाज में हर कदम पर औरतों के लिए कई लक्ष्मण रेखाएं खींची गई हैं. मर्दों के लिए कोई रुकावट नहीं. वह औरत पर जुल्म करे तो भी वह कुसूरवार नहीं, लेकिन औरत अगर अपना रास्ता खुद तय करे, तो समाज सामने खड़ा हो जाता है. समाज की साख डूबने लगती है.

‘‘मेरी जिंदगी में विनय की क्या अहमियत है, यह मैं जानती हूं. जब मैं दरदर की ठोकरें खा रही थी, तब समाज ने मेरा साथ नहीं दिया था, बल्कि यह विनय ही था जिस ने मुझ में एक इनसान को देखा और मेरे साथ इनसानियत का रिश्ता निभाया.

‘‘आज मेरे और विनय के बीच कौन सा रिलेशन है और यह रिलेशन सही है या गलत, यह तय करने का हक सिर्फ मुझे है, समाज को नहीं.’’

सुमन की बातों को सुनने के बाद थानेदार अंजलि अपनी कुरसी छोड़ कर उठ खड़ी हुई और सुमन के करीब जा कर उस के कंधों पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘सुमन, तुम बिलकुल सही हो. अब तुम दोनों जा सकते हो.’’ Long Hindi Story

Best Hindi Story: शक

Best Hindi Story: रोमा बचपन से ले कर जवानी तक कसबे में ही पलीबढ़ी थी. जब उस का ब्याह कमल से हुआ तब वह बेहद रोमांचित थी.

कमल एक होनहार नौजवान था. उस ने राजधानी दिल्ली में एक अच्छी नौकरी पा ली थी. शादी के बाद वह रोमा को अपने साथ दिल्ली ले गया.

रोमा को दिल्ली की यह नई जिंदगी अनोखी ही लगी. एक साल तो जैसे पलक ?ापकते ही गुजर गया.

कमल सुबह 7 बजे घर से निकल जाता था और शाम के 7 बजे के बाद ही वापस घर लौट कर आता था. रोमा का एक साल तो घर को सजाने और संभालने में ही बीत गया था. उस के बाद उसे अपनी दिनचर्या में बदलाव करने की इच्छा होने लगी थी.

वैसे, कमल उस से कभी भी कुछ नहीं कहता था. उस ने रोमा पर कभी भी कोई बंधन या दबाव नहीं डाला कि वह उस की मरजी से कुछ करे.

कमल जब 27 साल का था, तो रोमा महज 23 साल की थी. वह रोमा पर जबरदस्ती कोई विचार थोपना नहीं चाहता था.

रोमा को क्राफ्ट का काम बहुत अच्छी तरह आता था. कालेज में वह अपनी सहेलियों के लिए पर्स, हैंडबैग वगैरह तैयार कर के गिफ्ट में दिया करती थी.

रोमा अब अपनी इसी कला को निखारना चाहती थी. उस ने सब से पहले आसपास के क्लब वगैरह का बारीकी से मुआयना किया. जल्दी ही उस ने 1-2 जगह की सदस्यता भी ले ली. अब वह सब से खुल कर मिलनेजुलने लगी. औरों को भी रोमा का अच्छा बरताव बहुत पसंद आया था.

रोमा ने उन को अपनी क्राफ्ट कला के बारे में बताया. वह इस हुनर में बहुत अच्छी थी, ऐसा उस की बातों से साफ महसूस होता था.

रोमा एक समूह बना कर इस काम को आगे ले जाना चाहती थी. पर्स और हैंडबैग बनाने के नए तरीके सीखने के लिए सभी उतावली हो गईं. सीखनेसिखाने का मजा ही कुछ अलग था, इसलिए रोमा का समय शानदार तरीके से गुजरने लगा. कमल को भी खुशी हुई कि रोमा अपने समय का सही इस्तेमाल कर रही है.

इसी बीच कमल का प्रमोशन हो गया. कंपनी ने तनख्वाह बढ़ाई, तो एक कमरे का यह मकान छोड़ कर कुछ दूरी पर एक फ्लैट किराए पर ले लिया. यह 8 मंजिल की एक शानदार बिल्डिंग थी. तकरीबन सारे ही फ्लैट भरे हुए थे.

रोमा और कमल के पास कम सामान था, इसीलिए शिफ्ट करना बहुत आसान था. फटाफट सब हो गया. उन के ठीक सामने वाले फ्लैट में ताला लगा था. रोमा और कमल ने सोचा कि वे शायद कहीं बाहर गए होंगे.

2 दो दिन बाद घर सैट हो गया, इसलिए रोमा और कमल ने एक शानदार पार्टी दी. पार्टी में उस ने अपने समूह की सहेलियों को भी न्योता दिया.

फ्लैट के आसपास किसी से इतनी ज्यादा जानपहचान नहीं थी, इसलिए अभी उन में से किसी को नहीं बुलाया था. सामने वाले फ्लैट की कविता एक सुबह मिली थी. वह सिंगल थी. एयरलाइंस में नौकरी करती थी, इसलिए वह बाहर ही रहती थी. वह कम बोलती थी, इसलिए रोमा और कमल ने भी खुद को सीमित ही रखा.

इस बिल्डिंग में लिफ्ट भी थी. कुलमिला कर अच्छा था यह फ्लैट. सभी सहेलियों को रोमा ने अपने बनाए हैंडबैग गिफ्ट में दिए. रोमा सचमुच हैंडबैग बनाने में माहिर थी. खानापीना हुआ. मजा ही आ गया था.

कमल ने भी सब से मेलमुलाकात की. बहुत अच्छा लगा. पार्टी के बाद जब कमल और रोमा हंसतेहंसते बाहर निकल रहे थे, तो सीढ़ी चढ़ते हुए झरनाजी ने देख लिया. वे इन सब को शकभरी नजर से देखने लगीं. रोमा ने उन का चेहरा पढ़ लिया था.

हौलेहौले सब से जानपहचान होने लगी. अब रोमा को पता लगा कि झरनाजी इस बिल्डिंग में सब से पुरानी हैं और वे किराएदार नहीं हैं. वे इस चौथी मंजिल के एक फ्लैट की मालकिन हैं. बुजुर्ग हैं, इसलिए अपनी चलाती हैं.

झरनाजी रोमा और उस की सहेलियों की खूब जासूसी करती थीं. एक दिन तो लिफ्ट के लिए इंतजार करती रोमा और उस की सहेलियों को झरनाजी ने लिफ्ट में घुसने नहीं दिया. वे बोलीं, ‘‘मेरे पास बहुत सारा सामान है. जरा रुको. बाद में जाना.’’

मगर काफी देर बाद भी लिफ्ट आई ही नहीं. रोमा समझ गई कि झरनाजी लिफ्ट को रोके हुए हैं. खैर, तीसरी मंजिल पर जाना था. वे सब सीढि़यों से चली गईं.

रोमा झरनाजी की इस हरकत को भूल गई. दरअसल, रोमा को बहुत काम करना था. अब उन का समूह ‘एंजिल ग्रुप’ के नाम से हैंडबैग बना रहा था.

कुछ दिन बाद वे लोग झुग्गी बस्ती में जा कर हैंडबैग बनाने की वर्कशौप करने वाले थे. इसी सिलसिले में रोमा के घर पर अकसर बैठक होती थी.

झरनाजी की किटी में सदस्य कम हो रहे थे. रोमा उन के जाल में फंस ही नहीं रही थी, इसलिए झरनाजी उस से मन ही मन जलने लगी थीं.

एक दोपहर रोमा और उस की सभी सखियों की मीटिंग चल रही थी कि तभी घंटी बजी.

रोमा ने दरवाजा खोला. वह हैरान रह गई. महिला पुलिस का जत्था उस के फ्लैट के बाहर था.

‘‘हमें तलाशी लेनी है. शिकायत मिली है कि इस जगह गलतसलत काम हो रहा है,’’ एक पुलिस वाली ने धमकाते हुए कहा.

रोमा ने यह सुना तो उसे चक्कर से आने लगे. वह सदमे से एकदम खामोश हो गई.

महिला पुलिस ने रोमा के फ्लैट का मुआयना किया. वहां तो क्राफ्ट का सामान, होनहार और मेहनती औरतों के सिवा कुछ न मिला.

अब तक रोमा भी होश में आ चुकी थी. महिला पुलिस ने रोमा से माफी मांगी. तब तक कमल भी वहां पहुंच
गया था.

महिला पुलिस ने कमल से भी माफी मांगी, ‘‘ये सब तो इतनी मेहनती हैं. मगर इस फोन नंबर से हमें शिकायत मिली थी कि आप के फ्लैट में गलत काम किया जा रहा है. हम सचमुच शर्मिंदा हैं कि इतनी हुनरमंद महिलाओं पर छापा मारने आ गए.’’

इतना ही नहीं, महिला पुलिस ने रोमा के ‘एंजिल ग्रुप’ के बारे में जाना. उन सब के मोबाइल नंबर लिए. उन का काम देखा और सब ने मिल कर पूरे 50 हैंडबैग खरीद कर उसी समय उन को नकद भुगतान भी कर दिया.

यह सब देख कर कमल की खुशी का ठिकाना न था. रोमा ने तो अपने हुनर के दम पर नाम कर लिया था, वह भी इतनी जल्दी.

मेहनत की कमाई के इतने सारे रुपए देख कर रोमा की सभी सहेलियां भी खुशी से झूम उठीं. पुलिस की सभी महिला सदस्य उन की बारबार तारीफ करते हुए वापस लौट गईं.

अब कमल ने वह नंबर चैक किया, जिस नंबर से महिला पुलिस को शिकायत की गई थी. यह नंबर ?ारनाजी का था.

‘‘ओह, यानी झरनाजी की इतनी गिरी हुई हरकत,’’ कमल और रोमा हैरान थे.

कुछ देर बाद सभी सहेलियां चली गईं. शाम हो गई थी. कमल लौट कर दफ्तर नहीं गया. उस ने बाकी का सारा काम घर से ही किया.

रोमा का मन कुछ उदास था. वह सोच रही थी कि झरनाजी को आखिर ऐसा करने की क्या सूझा.

मगर कमल ने रोमा को दिलासा दिया और कहा, ‘‘इस में फायदा तो तुम को ही मिला. नाम का नाम हुआ, दाम भी हाथोंहाथ मिला. आगे का रास्ता भी बन गया.’’

‘‘ओह हां, सचमुच कमल. झरनाजी की चाल तो उलटी पड़ गई,’’ रोमा की आंखों में तो उस के हुनर का आत्मविश्वास झलक रहा था.

उधर झरनाजी शर्म के मारे बिल्डिंग में किसी को अपना मुंह तक नहीं दिखा पा रही थीं. Best Hindi Story

Romantic Story: तुम्हारी रोजी – क्यों पति को छोड़कर अमेरिका लौट गई वो?

Romantic Story: उस का नाम रोजी था. लंबा शरीर, नीली आंखें और सांचे में ढला हुआ शरीर. चेहरे का रंग तो ऐसा जैसे मैदे में सिंदूर मिला दिया गया हो.

रोजी को भारत की संस्कृति से बहुत प्यार था और इसलिए उस ने अमेरिका में रहते हुए भी हिंदी भाषा की पढ़ाई की थी और हिंदी बोलना भी सीखा.

उस ने किताबों में भारत के लोगों की शौर्यगाथाएं खूब सुनी थीं और इसलिए भारत को और नजदीक से जानने के लिए वह राजस्थान के एक छोटे से गांव में घूमने आई थी.

अभी उस की यात्रा ठीक से शुरू भी नहीं हो पाई थी कि कुछ लोगों ने एक विदेशी महिला को देख कर आदतानुसार अपनी लार गिरानी शुरू कर दी और रोजी को पकड़ कर उस का बलात्कार करने की कोशिश की. पर इस से पहले कि वे अपने इस मकसद में कामयाब हो पाते, एक सजीले से युवक रूप ने रोजी को उन लड़कों से बचाया और उस के तन को ढंकने के लिए अपनी शर्ट उतार कर दे दी.

रूप की मर्दानगी और उदारता से रोजी इतना मोहित हुई कि उस ने रूप से चंद मुलाकातों के बाद ही शादी का प्रस्ताव रख दिया.

रोजी पढ़ीलिखी थी व सुंदर युवती थी. पैसेवाली भी थी इसलिए रूप को उस से शादी करने के लिए हां कहने मे कोई परेशानी नहीं हुई पर थोड़ाबहुत प्रतिरोध आया भी तो वह रूप के रिश्तेदारों की तरफ से कि एक विदेशी क्रिस्चियन लड़की से शादी कैसे होगी? न जात की न पात की और न देशकोस की…इस से कैसे निभ पाएगी?

पर रूप अपना दिल और जबान तो रोजी को दे ही चुका था इसलिए उस की ठान को काटने की हिम्मत किसी में नहीं हुई पर पीठ पीछे सब ने बातें जरूर बनाईं.

अंगरेजन बहू की पूरे गांव में चर्चा थी.

“भाई देखने में तो सुंदर है. पतली नाक और लंबा शरीर,” एक ने कहा.

“पर भाई, दोनों लोगों में संबंध भारतीय तरीके से बनते होंगे या फिर अंगरेजी तरीके से? या फिर दोनों लोग इशारोंइशारों मे ही सब काम करते होंगे,” दूसरे ने चुटकी ली.

“कुछ भी कहो, यार पर मुझे तो सारी अंगरेजन लड़कियों को देख कर तो बस एक ही फीलिंग आती है कि ये सब वैसी वाली फिल्मों की ही हीरोइनें हैं.”

इस पर सभी जोर के ठहाके लगाते हुए हंसते.

उधर औरतों की जमात में भी आजकल बातचीत का मुद्दा रोजी ही थी.

“सुना है रूप की बहू मुंह उघाड़ कर घूमती है,” पहली औरत बोली.

“न जी न कोई झूठ न बुलवाए. अभी कल ही उस से मिल कर आई हूं, बड़ी गुणवान सी लगी मुझे और कल तो उस ने घाघराचोली पहना था और अपने सिर को भी ढंकने की कोशिश कर रही थी पर अभी नईनई है न इसलिए पल्लू बारबार खिसक जा रहा था,”दूसरी औरत ने कहा.

“पर जरा यह तो बताओ कि दोनों में बातचीत किस भाषा में होती होगी ? रूप इंग्लिश सीखे या फिर अंगरेजन बहू को हिंदी सीखनी पड़ेगी,” तीसरी औरत ने कहा.

और उन की बात सच ही साबित हुई. रोजी को नया काम सीखने का इतना चाव था कि काफी हद तक घर का कामकाज भी सीखने लगी थी.

रोजी के गांव में आने से जवान तो जवान बल्कि बूढ़े भी उस की खूबसूरती के दीवाने हो गए थे और आहें भरा करते थे. कुछ युवक तो रोजी की एक झलक पाने के लिए रूप से बहाने से मिलने भी आ धमकते.

गांव के पुरुषों को लगता था कि एक विलायती बहू के लिए तो किसी से भी शारीरिक संबंध बना लेना बहुत ही सहज होता है.

रोजी के सासससुर को शुरुआत में तो अपनी विलायती बहू के साथ आंकड़ा बैठाने में समस्या हुई पर मन से न सही ऊपर मन से ही सास रोजी को मानने का नाटक करने ही लगी थीं.
दूसरों की क्या कही जाए रूप का चचेरा भाई शेरू भी अपनी रिश्ते की भाभी पर बुरी नजर लगाए हुए था.

रूप और शेरू का घर एकदूसरे से कुछ ही दूरी पर था इसलिए शेरू दिन में कई बार आता और बहाने से रोजी के आसपास मंडराता. ऐसा करने के पीछे भी उस की यही मानसिकता थी कि अंगरेजन तो कई मर्दों से संबंध  बना लेती हैं और इन के लिए
पति बदलना माने चादर बदलना होता है.

क्या पता कब दांव लग जाए और अपने पति की गैरमौजूदगी में कब रोजी का मूड बन जाए और शेरू को उस के साथ अपने जिस्म की आग निकालने का मौका मिल जाए.

पर रोजी बेचारी इन सब बातों से अनजान भारत में ही रह कर यहां के लोगों को समझ रही थी और रीतिरिवाज सीख रही थी.

इस सीखने में एक बड़ी बाधा तब आई जब रोजी को शादी के बाद माहवारीचक्र से गुजरना था. रोजी ने पढ़ रखा था कि इन दिनों में गांव में बहुत ही नियमों का पालन किया जाता है इसलिए उस ने इस बारे में अपनी सास को बता दिया.

रोजी की सास ने उसे कुछ नसीहतें दीं और यह भी बताया कि अभी वे लोग पास के गांव में एक समारोह में जा रहे हैं और चूंकि उसे अभी किचन में प्रवेश नहीं करना है इसलिए सासूमां ने उसे बाहर ही नाश्ता भी दे दिया और घर के लोग चले गए.

रोजी घर में अकेली रह गई. उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. नाश्ता शुरू करने से पहले रोजी की चाय ठंडी हो गई थी और चाय को गरम करने के लिए उसे किचन में जाना था.

‘सासूमां तो किचन में जाने को मना कर गई हैं. कोई बात नहीं बाहर से किसी बच्चे को बुला कर उसे किचन में भेज कर चाय गरम करवा लेती हूं,’ ऐसा सोच कर रोजी ने दरवाजा खोल कर बाहर की ओर झांका तो सामने ही आसपड़ोस के कुछ किशोर लड़के बैठेबैठे गाना सुन रहे थे.

“भैयाजी, जरा इधर आना तो… मेरा एक छोटा सा काम कर देना,” रोजी ने एक लड़के को उंगली से इशारा कर के बुलाया और खुद अंदर चली गई.

रोजी घर में अकेली है, यह उन बाहर बैठे हुए लड़कों को पता था हालांकि रोजी की नजर में वे लड़के अभी बच्चे ही थे पर उसे क्या पता कि ये बच्चे उस के बारे में क्या सोचे बैठे हैं…

“अबे भाई तेरी तो लौटरी लग गई. विलायती माल घर में अकेली है और तुझे इशारे से बुला रही है. जा मजे लूट.”

“हां, एक काम जरूर करना दोस्त, उस की वीडियो जरूर बना लेना,” एक ने कहा.

मन में ढेर सारी कामुक कल्पनाएं ले कर वह किशोर लड़का अंदर आया तो रोजी ने निश्छल भाव से उस से चाय गरम कर देने को कहा.

लड़का मन ही मन खुश हुआ और उस ने सोचा कि य. तो हंसीनाओं के अंदाज होते हैं. उस ने चाय गरम कर के रोजी को प्याली पकड़ाई और उस की उंगलियों को छूने का उपक्रम करते हुए उस के सीने को जोर से भींच लिया.

इस बदतमीजी से रोजी चौंक उठी और गुस्से में भर उठी. एक जोरदार तमाचा उस ने उस लड़के के गाल पर रसीद दिए. गाल सहलाता रह गया वह लड़का मगर फिर भी रोजी से जबरदस्ती करने लगा. रोजी ने उसे
धक्का दे दिया. तभी इतने में रूप खेतों पर से वापस आ गया. रोजी जा कर उस से लिपट गई और कहने लगी कि यह लड़का उसे छेड़ रहा है.

इस से पहले कि सारा माजरा रूप की समझ में आ पाता नीचे गिरा हुआ लड़का जोर से रोजी की तरफ मुंह कर के चिल्लाने लगा,”पहले तो इशारे से बुलवाती हो और जब कोई पीछे से आ जाता है तो छेड़ने का आरोप लगाती हो. अरे वाह रे त्रियाचरित्र…” वह लड़का चीखते हुए बोला.

“रूप इस का भरोसा नहीं करना. यह गंदी नीयत डाल रहा था मुझ पर. मेरा भरोसा करो.”

रोजी की बात पर रूप को पूरा भरोसा था इसलिए उस ने तुरंत ही उस लड़के के कालर पकङे और धक्का देते हुए दरवाजे तक ले आया.

तब घर के बाहर उस के पड़ोसियों की भीड़ जमा होते देख कर उस ने खुद ही मामला रफादफा कर दिया और उस लड़के को डांट कर भगा दिया.

उस दिन की घटना के बारे में भले ही लोग पीठ पीछे बातें करते रहे पर सामने कोई कुछ नहीं कह सका.

यह पहली दफा था जब रोजी को गांव में शादी कर के आना खटक रहा था. वह इस घटना से अंदर तक हिल गई थी पर जब रात को रूप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और जीभर कर प्यार किया तो उस के मन का भारीपन थोड़ा कम हुआ.

एक दिन की बात है. रूप किसी काम से शहर गया हुआ था तब मौका देखकर शेरू रोजी की सास के पास आया और आवाज में लाचारी भर कर बोला,”ताईजी, दरअसल बात यह है कि आप की बहू की तबीयत अचानक खराब हो गई है और मुझे शाम होने से पहले शहर
जा कर दवाई लानी है और अब आनेजाने का कोई साधन नहीं है, जो मुझे शाम से पहले शहर पहुंचा दे.”

“हां तो उस में क्या है शेरू, तू रूप की गाड़ी ले कर चला जा. खाली ही तो खड़ी है,”रोज़ी की सासूमां ने कहा.

“हां सो तो है ताईजी, पर आप तो जानती हो कि मैं गाड़ी चलाना नहीं जानता. अगर आप इजाजत दो तो मैं भाभी को अपने साथ लिए जाऊं? वे तो विदेशी हैं और गाड़ी तो चला ही लेती हैं. हम बस यों जाएंगे और बस यों आएंगे.”

शेरू की बात सुन कर रोजी की सास हिचकी, पर उस ने इतनी लाचारी से यह बात कही थी कि वे चाह कर भी मना नहीं कर पाईं.

“अरे बहू, जरा गाड़ी निकाल कर शेरू के साथ चली जा. शहर से कोई दवा लानी है इसे,” रोजी की सास ने कहा.

“जी मांजी, चली जाती हूं.”

“और सुन, जरा धीरे गाड़ी चलाना. यह गांव है हमारा, तेरा विदेश नहीं,” सासूमां ने मुस्कराते हुए कहा.

रोजी को क्या पता था कि शेरू की नीयत में ही खोट है. उस ने गाड़ी निकाली और शेरू कृतज्ञता से हाथ जोड़ कर बैठ गया. रोजी ने गाड़ी बढ़ा दी.

गांव से कुछ दूर निकल आने के बाद एक सुनसान जगह पर शेरू दांत चियारते हुए बोला,”भाभी, थोडा गाड़ी रोको… जरा पेशाब कर आएं.”

गाड़ी रुकी तो शेरू झाड़ियों के पीछे चल गया और उस के जाते ही शेरू के 3 दोस्त कहीं से आ गए और शेरू से बातचीत करने लगे और बातें करतेकरते गाड़ी मैं बैठ गए.

इससे पहले कि रोजी कुछ समझ पाती शेरू ने उस का मुंह तेजी से दबा दिया और एक दोस्त ने रोजी के हाथों को रस्सी से बांध दिया और शेरू गाड़ी के अंदर ही रोजी के कपड़े फाड़ने लगा.

रोजी अब तक उन लोगों की गंदी नीयत समझ गई थी. उस के हाथ जरूर बंधे हुए थे पर पैर अभी मुक्त थे. उस ने एक जोर की लात शेरू के मरदाना अंग पर मारी.

दर्द से बिलबिला उठा था शेरू. अपना अंग अपने हाथों से पकड़ कर वहीं जमीन पर लौटने लगा.

इस दौरान उस के एक दोस्त ने रोजी के पैरों को भी रस्सी से बांध दिया और रोजी के नाजुक अंगों से खेलने लगा.

“रुक जाओ, पहले इस विदेशी कुतिया को मैं नोचूंगा. कमीनी ने बहुत तेज मार दिया है. अब इसे मैं बताता हूं कि दर्द क्या होता है.”

एक दरिंदा की तरह वह टूट पङा रोजी पर. रिश्ते की मर्यादा को भी उस ने तारतार कर दिया था. उस के बाद उस के तीनों दोस्तों ने रोजी के साथ बलात्कार किया. चीख भी नहीं सकी थी वह.

बलात्कार करने के बाद उस के हाथपैरों को खोल दिया उन लोगों ने.
जब रोजी की चेतना लौटी तो पोरपोर दर्द कर रहा था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? पुलिस में रिपोर्ट करे या अपना जीवन ही खत्म कर दे?

पर भला वह जीवन को क्यों खत्म करे? आखिर उस ने क्या गलत क्या किया है? बस इतना कि किसी झूठ बोल कर सहायता मांगने वाले की सहायता की है और फिर किसी के चेहरे को देख कर उस की
नीयत का अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता है न…

‘अगर मैं इसी तरह मर गई तो रूप क्या सोचेगा?’ परेशान रोजी ने पहले यह बात रूप को बताने के लिए सोची और उस के बाद ही कोई फैसला लेने का मन बनाया.

रोजी किसी तरह घर वापस पहुंची तो रूप वहां पहले से ही बैठा हुआ उस की राह देख रहा था. रोजी रूप से लिपट गई और रोने लगी.

“क्या हुआ रोजी? तुम्हारे बदन पर इतने निशान कैसे आए? क्या कोई दुर्घटना हुई है तुम्हारे साथ?” रूप ने रोजी के हाथों और चेहरे को देखते हुए कहा.

“हां, दुर्घटना ही तो हुई है. ऐसी दुर्घटना जिस के घाव मेरे जिस्म पर ही नहीं आत्मा पर भी पहुंचे हैं…”

“पर हुआ क्या है?” सब्र का बाँध टूट रहा था रूप का.

“शेरू ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर मेरे साथ बलात्कार किया है…” फफक पङी थी रोजी.

“क्या… उस ने तुम्हारे साथ ऐसा किया? मैं शेरू को ऐसी सजा दूंगा कि उस की पुश्तें भी कांप उठेंगी. मैं उस को जिंदा नहीं छोडूंगा.”

रूप ने रिवाल्वर पर मुट्ठी कसी, कुछ कदम तेजी से बढ़ाए और फिर अचानक रोजी की तरफ पलटा और बोला,”वैसे, एक बात मुझे समझ नहीं आती कि जब से मैं ने तुम्हें जाना है तब से तुम्हारे साथ कोई न कोई छेड़छाड़ होती ही रहती है. कहीं कोई तुम्हें देख कर घर में घुसता है और कहीं कोई तुम्हारे साथ गैंगरेप करता है. आखिर अपनी गाड़ी चला कर तुम
क्यों गई थीं शेरू को ले कर? सवाल तो तुम पर भी उठ सकते हैं न?”

शेरू के मुंह से निकले ये शब्द उसे बाणों की तरह लग रहे थे. कुछ भी न कह सकी रोजी. आंसुओं में टूट गई थी वह और अपने कमरे की तरफ भाग गई थी.

अगले दिन रोजी पूरे घर में कहीं नहीं थी. अलबत्ता, उस के बिस्तर पर एक कागज रखा जरूर मिला.

कागज में लिखा था-

मेरे रूप,

मैं जब से भारत आई, सब ने मेरी देह को ही देखा और सब ने मेरी देह को ही भोगना चाहा. कहीं किसी ने कुहनी मारी तो किसी ने पीछे से धक्का मारा. तुम्हारी आंखों में पहली बार मुझे सच्चा प्रेम दिखा तो मैं ने तुम से ब्याह रचाया पर अब मुझ पर तुम्हारा विश्वास भी डगमगा रहा है.

माना कि मैं यहां के लिए विदेशी हूं, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं सब के साथ सो सकती हूं. क्या सब लोग मुझे एक वेश्या भर समझते हैं?

मेरे जाने के बाद मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना, क्योंकि मैं अपने घर वापस जा रही हूं. मैं तो यहां की संस्कृति के बारे में जानने और समझने आई थी, पर अब मन भर गया है. अफसोस यह वह भारत नहीं जिस के बारे में मैं ने किताबों में पढ़ा था… Romantic Story

Romantic Story: एक झूठ – इकबाल से शादी करने के लिए क्या था निभा का झूठ?

Romantic Story: इकबाल जल्दीजल्दी निभा के लिए केक बना रहा था. दरअसल, आज निभा का बर्थडे था. इकबाल ने अपने औफिस से छुट्टी ले ली थी. वह निभा को सरप्राइज देना चाहता था.

उस ने निभा की पसंद का खाना बनाया था, पूरा घर सजाया था और निभा के लिए एक खूबसूरत सी ड्रैस भी खरीदी थी. आज की शाम वह निभा के लिए यादगार बना देना चाहता था.

शाम में जब निभा घर लौटी तो इकबाल ने दरवाजा खोला. निभा के अंदर कदम रखते ही इकबाल ने पंखा चला दिया और रंगबिरंगे फूल निभा के ऊपर गिरने लगे. निभा को बांहों में भर कर इकबाल ने धीरे से कहा,”जन्मदिन मुबारक हो मेरी जान.”

इकबाल का हाथ थाम कर निभा ने कहा,”सच इकबाल, तुम मेरी जिंदगी की सच्ची खुशी हो. कितना प्यार करते हो मुझे. ख्वाहिशों का आसमान छू लिया है मैं ने तुम्हारे दम पर… अब तमन्ना यही है मेरा दम निकले तुम्हारे दर पर…”

इकबाल ने उस के होंठों पर उंगली रख दी,”दम निकलने की बात दोबारा मत करना निभा. तुम ने मेरी जिंदगी हो. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.”

केक काट कर और गिफ्ट दे कर जब इकबाल ने अपने हाथों से तैयार किया हुआ खाना डाइनिंग टेबल फर सजाया तो निभा की आंखों में आंसू आ गए,”इतना प्यार मत करो मुझ से इकबाल. हम लिवइन में रहते हैं मगर तुम तो मुझे पत्नी से ज्यादा मान देते हो. हमारा धर्म एक नहीं पर तुम ने प्यार को ही धर्म बना दिया. मेरे त्योहार तुम मनाते हो. मेरे रिवाज तुम निभाते हो. मेरा दिल हर बार तुम चुराते हो. कब तक चलेगा ऐसा?”

“जब तक धरती पर मैं हूं और आसमान में चांद है…”

दोनों एकदूसरे की बांहों में खो गए थे. धर्म, जाति, ऊंचनीच, भाषा, संस्कृति जैसे हर बंधन से आजाद उन का प्यार पिछले 5 सालों से परवान चढ़ रहा था.

5 साल पहले एक कौमन फ्रैंड की पार्टी में दोनों मिले थे. उस वक्त दोनों ही दिल्ली में नए थे और जौब भी नईनई थी. समय के साथसाथ दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई. एकदूसरे के विचार और व्यवहार से प्रभावित इकबाल और निभा धीरेधीरे करीब आने लगे थे. दोनों के बीच दूरियां सिमटने लगीं और फिर दोनों अलगअलग घर छोड़ कर एक ही घर में शिफ्ट हो गए. किराया तो बचा ही जीवन को नई खुशियां भी मिलीं.

जल्दी ही दोनों ने मिल कर एक फ्लैट किस्तों पर ले लिया. दोनों मिल कर मकान की किस्त भी देते और घर के दूसरे खर्चे भी करते. दोनों के बीच प्यार गहरा होता गया. रिश्ता गहरा हुआ तो दोनों ने घर वालों को बताने की सोची.

इकबाल के घर वालों में केवल मां थीं जो बहुत सीधी थीं. वह तुरंत मान गई थीं. मगर निभा के यहां स्थिति विपरीत थी. उस के पिता इलाहाबाद के जानेमाने उद्योगपति थे. शहर में अपनी कोठी थी. 3-4 फैक्ट्रियां थीं. 100 से ज्यादा मजदूर काम करते थे. उन की शानोशौकत ही अलग थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी पर पतिपत्नी दोनों ही अव्वल दरजे के धार्मिक और कट्टरमिजाज थे. मां अकसर ही धार्मिक कार्यक्रमों में शरीक हुआ करती थीं.

धर्म की तो बात ही अलग है. यहां तो जाति के साथसाथ गोत्र, वर्ण, कुंडली सब कुछ देखा जाता था. ऐसे में निभा को हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह घर वालों से कुछ कहे.

एक बार दीवाली की छुट्टियों में जब वह घर गई तो उसे शादी के लिए योग्य लड़कों की तसवीरें दिखाई गईं. निभा ने तब पिता से सवाल किया,”पापा क्या मैं अपनी पसंद के लड़के से शादी नहीं कर सकती?”

पापा ने गुस्से से उस की तरफ देखा. तब तक मां ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया और बोलीं,” देख बेटा, तू अपनी पसंद की शादी करने को तो कर सकती है, पर इतना ध्यान रखना कि लड़का अपने धर्म, अपनी जाति और अपनी हैसियत का होना चाहिए. थोड़ा भी इधरउधर हम स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए प्यार करना भी है तो आंखें खोल कर. वरना तू तो जानती ही है गोलियां चल जाएंगी.”

“जी मां,” कह कर निभा खामोश हो गई.

उसे पता था कि इकबाल के बारे में बता कर वह खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी दे मारेगी. इसलिए उस ने रिश्ते का सच छिपाए रखना ही उचित समझा. वक्त इसी तरह बीतता रहा.

एक दिन सुबह निभा बड़ी परेशान सी बालकनी में खड़ी थी. इकबाल ने पीछे से उसे बांहों में भरते हुए पूछा,”हमारी बेगम के चेहरे पर उदासी के बादल क्यों छाए हुए हैं?”

निभा ने खुद को छुड़ाते हुए परेशान स्वर में कहा,”क्योंकि आप के शहजादे दुनिया में आने के लिए निकल चुके हैं.”

“क्या?”

“हां इकबाल. मैं मां बनने वाली हूं और यह जिम्मेदारी मैं अभी उठा नहीं सकती. एक तरफ घर वालों को कुछ पता नहीं और दूसरी तरफ मेरा कैरियर भी पीक पर है. मैं यह रिस्क अभी नहीं ले सकती.”

“तो ठीक है निभा गर्भपात करा लो. मुझे भी यही सही लग रहा है.”

“पर क्या यह इतना आसान होगा?”

“आसान तो नहीं होगा बट डोंट वरी, हम पतिपत्नी की तरह व्यवहार करेंगे और कहेंगे कि एक बच्चा पहले से है और इसलिए अभी दूसरा बच्चा इतनी जल्दी नहीं चाहते.”

“देखो क्या होता है. शाम को आ जाना मेरे औफिस में. वहीं से लैडी डाक्टर के पास चलेंगे. ”

और फिर निभा ने वह बच्चा गिरा दिया. इस के 5-6 महीने बाद एक बार फिर गर्भपात कराना पड़ा. निभा को काफी अपराधबोध हो रहा था. शरीर भी कमजोर हो गया था. पर वह करती क्या…. उसे कोई और रास्ता ही समझ नहीं आया था. पर अब इस बात को ले कर वह काफी सतर्क हो गई थी और जरूरी ऐहतियात भी लेने लगी थी.

एक दिन औफिस में ही उस के पास खबर आई कि उस के पिता का ऐक्सीडैंट हो गया है और वे काफी गंभीर अवस्था में हैं. निभा एकदम बदहवाश सी घर लौटी और जरूरी सामान बैग में डाल कर निकल पड़ी. अगली सुबह वह हौस्पिटल में थी. उस के पापा आखिरी सांसें ले रहे थे.

उसे देखते ही पापा ने कुछ बोलने की कोशिश की तो वह करीब खिसक आई और हाथ पकड़ कर कहने लगी,” बोलो पापा, आप क्या कहना चाहते हैं?”

“बेटा मैं चाहता हूं कि मेरा सारा काम तुम्हारा चचेरा भाई नहीं बल्कि तुम संभालो. वादा कर बेटा…”

निभा ने उन के हाथों पर अपना हाथ रख कर वादा किया. फिर कुछ ही देर बाद उन का देहांत हो गया. अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया कर वह 14 दिनों बाद दिल्ली लौटी. इकबाल भी औफिस से जल्दी आ गया था. निभा उस के गले लग कर बहुत रोई और फिर अपना सामान पैक करने लगी.

इकबाल चौंकता हुआ बोला,”यह क्या कर रही हो निभा?”

“मुझे हमेशा के लिए घर लौटना पड़ेगा इकबाल. पापा ने वादा लिया है मुझ से. उन का सारा कारोबार मुझे संभालना है.”

“वह तो ठीक है मगर एक बार मेरी तरफ भी तो देखो. मैं यहां अकेला तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा? मकान की किस्तें, अकेलापन और तुम्हारे बिना जीने का दर्द कैसे उठा पाऊंगा? नहीं निभा नहीं. मैं नहीं रह पाऊंगा ऐसे…”

“रहना तो पड़ेगा ही इकबाल. अब मैं क्या करूं?”

“मत जाओ निभा. यहीं से संभालो अपना काम. कोई मैनेजर नियुक्त कर लो जो तुम्हें जरूरी जानकारी देता रहेगा.”

“इकबाल लाखोंकरोड़ों का कारोबार ऐसे नहीं संभलता. पापा अपने कारोबार के प्रति बहुत जनूनी थे. उन्होंने कोई भी काम मातहतों पर नहीं छोड़ा. हर काम में खुद आगे रहते थे. तभी आज इस मुकाम तक पहुंचे. उन्हें मेरे चचेरे भाई पर भी यकीन नहीं. मेरे भरोसे छोड़ कर गए हैं सब कुछ और मैं उन को दिया गया अंतिम वचन कभी तोड़ नहीं सकती.”

“और मुझ से किए गए प्यार के वादे? उन का क्या? उन्हें ऐसे ही तोड़ दोगी? नहीं निभा, तुम्हारे बिना मैं यहां 2 दिन भी नहीं रह सकता.”

“तो फिर चले आओ न…” आंखों में चमक लिए निभा ने कहा.

“मतलब?”

“देखो इकबाल, तुम एक बार मेरे पास इलाहाबाद आ जाओ. हमें एकदूसरे की कंपनी मिल जाएगी और फिर देखेंगे…कोई न कोई रास्ता भी निकाल ही लेंगे.”

फिर क्या था 10 दिन के अंदर ही इकबाल इलाहाबाद पहुंच गया. दोनों ने एक होटल में मुलाकात कर आगे की योजना तैयार की.

अगली सुबह इकबाल मैनेजर बन कर निभा के घर में खड़ा था. निभा ने अपनी मां से इकबाल का परिचय कराया,” मां यह बाला हैं. हमारे नए मैनेजर.”

इकबाल ने बढ़ कर मां के पैर छू लिए तो मां एकदम से अलग होती हुई बोलीं,”अरे नहीं बेटा. तुम मैनेजर हो. मेरे पैर क्यों छू रहे हो?”

“क्योंकि बड़ों के आशीर्वाद से ही सफलता के रास्ते खुलते हैं मां.”

“बेटा अब तुम ने मुझे मां कहा है तो यही आशीष देती हूं कि तुम्हारी हर इच्छा पूरी हो.”

बाला यानी इकबाल ने हाथ जोड़ कर आशीर्वाद लिया और अपने काम में लग गया. निभा ने मां को बताया, “मां, दरअसल बाला कालेज में मेरा क्लासमैट था. इस ने एमबीए की पढ़ाई की हुई है. पढ़ाई के बाद कुछ समय से दिल्ली में काम कर रहा था. यहां मुझे अकेले इतना बड़ा कारोबार संभालना था तो मेरी हैल्प के लिए आया है. वैसे इस का घर तो जमशेदपुर में है. यहां बिलकुल अकेला है यह. मां, क्या हम इसे अपने बड़े से घर में रहने के लिए एक छोटा सा कमरा दे सकते हैं?”

“क्यों नहीं बेटा? इसे गैस्टरूम में ठहरा दो. कुछ दिनों में यह खुद अपने लिए कोई घर ढूंढ़ लेगा.”

“जी मां…” कह कर निभा अपने कैबिन में चली गई. योजना का पहला चरण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ था. इकबाल घर में आ भी गया था और मां को कोई शक भी नहीं हुआ था. मैनेजर के रूप इकबाल बाला बन कर निभा के साथ काम करने लगा.

धीरेधीरे समय बीतने लगा. इकबाल और निभा ने मिल कर कारोबार अच्छी तरह संभाल लिया था. मां भी खुश रहने लगी थीं. इकबाल समय के साथ मां के संग काफी घुलमिल गया. वह मां की हरसंभव सहायता करता. हर मुश्किल का हल निकालता. बेटे की तरह अपनी जिम्मेदारियां निभाता. यही नहीं, कई बार उस ने अपने हाथों से बना कर मां को स्वादिष्ठ खाना भी खिलाया. उस के बातव्यवहार से मां बहुत खुश रहती थीं.

इस बीच दीवाली आई तो इकबाल ने उन के साथ मिल कर त्योहार मनाया. किसी को कभी एहसास ही नहीं हुआ कि वह हिंदू नहीं है.

एक बार कारोबार के किसी काम के सिलसिले में निभा को दिल्ली जाना था. इकबाल भी साथ जा रहा था. तभी मां ने कहा कि वे भी दिल्ली घूमना चाहती हैं. बस फिर क्या था, तीनों ने काम के साथसाथ घूमने का भी कार्यक्रम बना लिया.

तीनों अपनी गाड़ी से दिल्ली के लिए निकले. लेकिन नोएडा के पास हाईवे पर अचानक निभा की गाड़ी का ऐक्सीडैंट हो गया. उस वक्त निभा गाड़ी चला रही थी और मां बगल में बैठी थीं. ऐक्सीडैंट इतना भयंकर हुआ कि गाड़ी पूरी तरह डैमेज हो गई. निभा को गहरी चोटें लगीं पर उतनी नहीं जितनी मां को लगीं. मां के सिर में कांच घुस गए थे और खून बह रहा था. वह बीचबीच में होश में आ रही थीं और फिर बेहोश हो जा रही थीं.

करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर एक बड़ा अस्पताल था. निभा ने मां को वहीं ऐडमिट करने का फैसला लिया.

रात का समय था. हाईवे का वह इलाका थोड़ा सुनसान था. हाथ देने पर भी कोई भी गाड़ी रुकने का नाम नहीं ले रही थी. कोई और उपाय न देख कर इकबाल ने मां को गोद में उठाया और तेजी से अस्पताल की तरफ भागा. पीछेपीछे निभा भी भाग रही थी.

निभा ने ऐंबुलैंस वाले को काल किया मगर ऐंबुलैंस को आने में वक्त लग रहा था. इतनी देर में इकबाल खुद ही मां को गोद में उठाए अस्पताल पहुंच गया.

मां को तुरंत आईसीयू में ऐडमिट किया गया. उन्हें खून की जरूरत थी. संयोग था कि इकबाल का ब्लड ग्रुप ओ पौजिटिव था. उस ने मां को अपना खून दे दिया. मां को बचा लिया गया था. इस दौरान इकबाल लगातार दौड़धूप करता रहा.

इस घटना ने मां के दिल में इकबाल की जगह बहुत ऊंची कर दी थी. वापस घर लौट कर एक दिन मां ने इकबाल को सामने बैठाया और प्यार से उस के बारे में सब कुछ पूछने लगीं. पास ही निभा भी बैठी हुई थी.

निभा ने मां का हाथ पकड़ कर कहा,”मां मैं आज आप से एक हकीकत बताना चाहती हूं.”

“वह क्या बेटा?”

“मां यह बाला नहीं इकबाल है. हम ने झूठ कहा था आप से.”

इतना कह कर वह खामोश हो गई और मां की तरफ देखने लगी. मां ने गौर से इकबाल की तरफ देखा और वहां से उठ कर अपने कमरे में चली गईं. दरवाजा बंद कर लिया. निभा और इकबाल का चेहरा फक्क पड़ गया. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब इस परिस्थिति से कैसे निबटें.

अगले दिन तक मां ने दरवाजा नहीं खोला तो निभा को बहुत चिंता हुई. वह दरवाजा पीटती हुई रोतीरोती बोली,”मां, माफ कर दो हमें. तुम नहीं चाहती हो तो मैं इकबाल को वापस भेज दूंगी. गलती मैं ने की है इकबाल ने नहीं. मैं ने ही उसे बाला बन कर आने को कहा था. प्लीज मां, माफ कर दो.”

मां ने दरवाजा खोल दिया और मुंह घुमा कर बोलीं,”गलती तुम्हारी नहीं. गलती बाला की भी नहीं. गलती तो मेरी है जो मैं उसे पहचान न सकी.”

निभा और इकबाल परेशान से एकदूसरे की तरफ देखने लगे. तभी पलटते हुए मां ने हंस कर कहा,”बेटा, मैं ही पहचान न सकी कि तुम दोनों के बीच कितना गहरा प्यार है. इकबाल कितना अच्छा इंसान है. धर्म या जाति से क्या होता है? यदि सोचो तो समझ आएगा. बेटा, पलभर में मेरा धर्म भी तो बदल गया न जब इकबाल ने मुझे अपना खून दिया. मेरे शरीर में उसी का खून तो बह रहा है. फिर क्या अंतर है हम में या उस में. इतने दिनों में जितना मैं ने समझा है इकबाल मुझे एक शरीफ, ईमानदार और साथ निभाने वाले लड़का लगा है. इस से बेहतर जीवनसाथी तुम्हें और कौन मिलेगा?”

“सच मां, आप मान गईं…” कह कर खुशी से निभा मां के गले लग गई. आज उसे जिंदगी की सब से बड़ी खुशी मिल गई थी. पास ही इकबाल भी मुसकराता हुआ अपने आंसू पोंछ रहा था. Romantic Story

Hindi Romantic Story: देह से परे – मोनिका ने आरव से कैसे बदला लिया?

Hindi Romantic Story, लेखिका- निहारिका

लिफ्ट बंद है फिर भी मोनिका उत्साह से पांचवीं मंजिल तक सीढि़यां चढ़ती चली गई. वह आज ही अभी अपने निर्धारित कार्यक्रम से 1 दिन पहले न्यूयार्क से लौटी है. बहुत ज्यादा उत्साह में है, इसीलिए तो उस ने आरव को बताया भी नहीं कि वह लौट रही है. उसे चौंका देगी. वह जानती है कि आरव उसे बांहों में उठा लेगा और गोलगोल चक्कर लगाता चिल्ला उठेगा, ‘इतनी जल्दी आ गईं तुम?’ उस की नीलीभूरी आंखें मारे प्रसन्नता के चमक उठेंगी.

इन्हीं आंखों की चमक में अपनेआप को डुबो देना चाहती है मोनिका और इसीलिए उस ने आरव को बताया नहीं कि वह लौट रही है. उसे मालूम है कि आरव की नाइट शिफ्ट चल रही है, इसलिए वह अभी घर पर ही होगा और इसीलिए वह एयरपोर्ट से सीधे उस के घर ही चली आई है. डुप्लीकेट चाबी उस के पास है ही. एकदम से अंदर जा कर चौंका देगी आरव को. मोनिका के होंठों पर मुसकराहट आ गई.

वह धीरे से लौक खोल कर अंदर घुसी तो घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. जरूर आरव सो रहा होगा. वह उस के बैडरूम की ओर बढ़ी. सचमुच ही आरव चादर ताने सो रहा था. मोनिका ने झुक कर उस का माथा चूम लिया.

‘‘ओ डियर अलीशा, आई लव यू,’’ कहते हुए आंखें बंद किए ही आरव ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अलीशा सुनते ही मोनिका को जैसे बिजली का करैंट सा लगा. वह छिटक पड़ी.

‘‘मैं हूं, मोनिका,’’ कहते हुए उस ने लाइट जला दी. लेकिन लाइट जलते हो वह स्तब्ध हो गई. आरव की सचाई बेहद घृणित रूप में उस के सामने थी. जिस रूप में आरव और अलीशा वहां थे, उस से यह समझना तनिक भी मुश्किल नहीं था कि उस कमरे में क्या हो रहा था. मोनिका भौचक्की रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे अपने जीवन में ऐसा दृश्य देखना पड़ेगा. आरव को दिलोजान से चाहा है उस ने. उस के साथ जीवन बिताने और एक सुंदर प्यारी सी गृहस्थी का सपना देखा है, जहां सिर्फ और सिर्फ खुशियां ही होंगी, प्यार ही होगा. लेकिन आरव ऐसा कुछ भी कर सकता है यह तो वह सपने में भी नहीं सोच पाई थी. पर सचाई उस के सामने थी.

इस आदमी से उस ने प्यार किया. इस गंदे आदमी से. घृणा से उस की देह कंपकंपा उठी. अपने नीचे गिरे पर्स को उठा कर और आरव के फ्लैट की चाबी वहीं पटक कर वह बाहर निकल आई. खुली हवा में आ कर उसे लगा कि बहुत देर से उस की सांस रुकी हुई थी. उस का सिर घूम रहा था, उसे मितली सी आ रही थी, लेकिन उस ने अपनेआप को संभाला. लंबीलंबी सांसें लीं. तभी आरव के फ्लैट का दरवाजा खुला और आरव की धीमी सी आवाज आई, ‘‘मोनिका, प्लीज मेरी बात सुनो. आई एम सौरी यार.’’

लेकिन जब तक वह मोनिका के पास पहुंचता वह लिफ्ट में अंदर जा चुकी थी. इत्तफाक से नीचे वही टैक्सी वाला खड़ा था जिस से वह एयरपोर्ट से यहां आई थी. टैक्सी में बैठ कर उस ने संयत होते हुए अपने घर का पता बता दिया. टैक्सी ड्राइवर बातूनी टाइप का था. पूछ बैठा, ‘‘क्या हुआ मैडम, आप इतनी जल्दी वापस आ गईं? मैं तो अभी अपनी गाड़ी साफ ही कर रहा था.’’

‘‘जिस से मिलना था वह घर पर नहीं था,’’ मोनिका ने कहा, लेकिन आवाज कहीं उस के गले में ही फंसी रह गई. ड्राइवर ने रियर व्यू मिरर से उस को देखा फिर खामोश रह गया. अच्छा हुआ कि वह खामोश रह गया वरना पता नहीं मोनिका कैसे रिऐक्ट करती. उस की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिमाग गुस्से से फटा जा रहा था. क्या करे, क्या करे वह?

आरव ने कई बार उस से कहा था कि आजकल सच्चा प्यार कहां होता है? प्यार की तो परिभाषा ही बदल चुकी है आज. सब कुछ  ‘फिजिकल’ हो चुका है. लेकिन मोनिका ने कभी स्वीकार नहीं किया इस बात को. वह कहती थी कि जो ‘फिजिकल’ होता है वह प्यार नहीं होता. कम से कम सच्चा प्यार तो नहीं ही होता. प्यार तो हर दुनियावी चीज से परे होता है. आरव उस की बातों पर ठहाका लगा कर हंस देता था और कहता था कि कम औन यार, किस जमाने की बातें कर रही हो तुम? अब शरतचंद के उपन्यास के देवदास टाइप का प्यार कहां होता है?

आरव के तर्कों को वह मजाक समझती थी, सोचती थी कि वह उसे चिढ़ा रहा है, छेड़ रहा है. लेकिन वह तो अपने दिल की बात बता रहा होता था. अपनी सोच को उस के सामने रख रहा होता था और वह समझी ही नहीं. उस की सोच, उस के सिद्धांत इस रूप में उस के सामने आएंगे इस की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी उस ने. लेकिन वास्तविकता तो यही है कि सचाई उस के सामने थी और अब हर हाल में उसे इस सचाई का सामना करना था.

मोनिका का यों गुमसुम रहना और सारे वक्त घर में ही पड़े रहना उस के डैडी शशिकांत से छिपा तो नहीं था. आज उन्होंने ठान लिया था कि मोनिका से सचाई जान ही लेनी है कि आखिर उसे हुआ क्या है और कुछ भी कर के उसे जीवन की रफ्तार में लाना ही है.

वे, ‘‘मोनिका, माई डार्लिंग चाइल्ड,’’ आवाज देते उस के कमरे में घुसे तो हमेशा की तरह गुडमौर्निंग डैडी कहते हुए मोनिका उन के गले से नहीं झूली. सिर्फ एक बुझी सी आवाज  में बोली, ‘‘गुडमौर्निंग डैडी.’’

‘‘गुडमौर्निंग डियर, कैसा है मेरा बच्चा?’’ शशिकांत बोले.

‘‘ओ.के डैडी,’’ मोनिका ने जवाब दिया. शशिकांत और उन की दुलारी बिटिया के बीच हमेशा ऐसी ही बातें नहीं होती थीं. जोश, उत्साह से बापबेटी खूब मस्ती करते थे, लेकिन आज वैसा कुछ भी नहीं है. शशिकांत जानबूझ कर हाथ में पकड़े सिगार से लंबा कश लगाते रहे, लेकिन मोनिका की ओर से कोई रिऐक्शन नहीं आया. हमेशा की तरह ‘डैडी, नो स्मोकिंग प्लीज,’ चिल्ला कर नहीं बोली वह. शशिकांत ने खुद ही सिगार बुझा कर साइड टेबल पर रख दिया. मोनिका अब भी चुप थी.

‘‘आर यू ओ.के. बेटा?’’ शशिकांत ने फिर पूछा.

‘‘यस डैडी,’’ कहती मोनिका उन के कंधे से लग गई. मन में कुछ तय करते शशिकांत बोले, ‘‘ठीक है, फिर तुझे एक असाइनमैंट के लिए परसों टोरैंटो जाना है. तैयारी कर ले.’’

‘‘लेकिन डैडी…,’’ मोनिका हकलाई.

‘‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं, जाना है तो जाना है. मैं यहां बिजी हूं. तू नहीं जाएगी तो कैसे चलेगा?’’ फिर दुलार से बोले, ‘‘जाएगा न मेरा बच्चा? मुझे नहीं मालूम तुझे क्या हुआ है. मैं पूछूंगा भी नहीं. जब ठीक समझना मुझे बता देना. लेकिन बेटा, वक्त से अच्छा डाक्टर कोई नहीं होता. न उस से बेहतर कोई मरहम होता है. सब ठीक हो जाएगा. बस तू हिम्मत नहीं छोड़ना. खुद से मत हारना. फिर तू दुनिया जीत लेगी. करेगी न तू ऐसा, मेरी बहादुर बेटी?’’

कुछ निश्चय सा कर मोनिका ने हां में सिर हिलाया. शशिकांत का लंबाचौड़ा रेडीमेड गारमैंट्स का बिजनैस है जो देशविदेश में फैला हुआ है. उस के लिए आएदिन ही उन्हें या मोनिका को विदेश जाना पड़ता है. मोनिका की उम्र अभी काफी कम है फिर भी अपने डैडी के काम को बखूबी संभालती है वह. इसलिए मोनिका के हां कहते ही शशिकांत निश्चिंत हो गए. वे जानते हैं कि उन की बेटी कितना भी बिखरी हो, लेकिन उस में खुद को संभालने की क्षमता है. वह खुद को और अपने डैड के बिजनैस को बखूबी संभाल लेगी.

निश्चित दिन मोनिका टोरैंटो रवाना हो गई. मन में दृढ़ निश्चय सा कर लिया उस ने कि आरव जैसे किसी के लिए भी वह अपना जीवन चौपट नहीं करेगी. अपने प्यारे डैड को निराश नहीं करेगी. सारा दिन खूब व्यस्त रही वह. आरव क्या, आरव की परछाईं भी याद नहीं आई. लेकिन शाम के गहरातेगहराते जब उस की व्यस्तता खत्म हो गई, तो आरव याद आने लगा. आदत सी पड़ी हुई है कि खाली होते ही आरव से बातें करती है वह. दिन भर का हालचाल बताना तो एक बहाना होता है. असली मकसद तो होता है आरव को अपने पास महसूस करना लेकिन आज? आज आरव की याद आते ही उस से अंतिम मुलाकात ही याद आई. थोड़ी देर बाद मोनिका जैसे अपने आपे में नहीं थी. वह कहां है, क्या कर रही है, उसे कुछ भी होश नहीं था. सिर्फ और सिर्फ आरव और अलीशा की तसवीर

उस की आंखों के सामने घूम रही थी. उसे अपनी हालत का तनिक भी भान नहीं था कि वह होटल के बार में बैठी क्या कर रही है और यह स्मार्ट सा कनाडाई लड़का उसी के बगल में बैठा उसे क्यों घूर रहा है? फिर अचानक ही उस ने मोनिका का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मे आई हैल्प यू? ऐनी प्रौब्लम?’’

मोनिका जैसे होश में आई. अरे, उस की आंखों से तो आंसू झर रहे हैं. शायद इसीलिए उस लड़के ने मदद की पेशकश कर दी होगी. फिर उस ने अपना गिलास मोनिका की ओर बढ़ा दिया जिसे बिना कुछ सोचेसमझे मोनिका पी गई.

बदला…बदला लेना है उसे आरव से. उस ने जो किया उस से सौ गुना बेवफाई कर के दिखा देगी वह. कनाडाई लड़का एक के बाद एक भरे गिलास उस की ओर बढ़ाता रहा और वह गटागट पीती रही और फिर उसे कोई होश नहीं रहा. थोड़ी देर बाद वह संभली तो अपने रूम में लौटी. फिर दिन गुजरते गए और  मोनिका जैसे विक्षिप्त सी होती गई. अपने डैडी के काम को वह जनून की तरह करती रही. आएदिन विदेश जाना फिर लौटना. इसी भागदौड़ भरी जिंदगी में 6-7 महीने पहले यहीं इंडिया में वह अदीप से मिली और न जाने क्यों धीरेधीरे अदीप बहुत अपना सा लगने लगा.

आरव के बाद वह किसी और से नहीं जुड़ना चाहती थी, लेकिन अदीप उस के दिल से जुड़ता ही जा रहा था. किसी के साथ न जुड़ने की अपनी जिद के ही कारण वह हर बार विदेश से लौट कर सीधेसपाट शब्दों में अपनी वहां बिताई दिनचर्या के बारे में अदीप को बताती रहती थी. कभी न्यूयार्क कभी टोरैंटो, कभी पेरिस तो कभी न्यूजर्सी.

नई जगह, नया पुरुष या वही जगह लेकिन नया पुरुष. ‘मैं किसी को रिपीट नहीं करती’ कहती मोनिका किस को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही थी, खुद को ही न? और ऐसे में अदीप के चेहरे पर आई दुख और पीड़ा की भावना को क्या सचमुच ही नहीं समझ पाती थी वह या समझना नहीं चाहती थी? लेकिन यह भी सच था कि दिन पर दिन अदीप के साथ उस का जुड़ाव बढ़ता ही जा रहा था.

उस की इस तरह की बातों पर अदीप कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता था, लेकिन एक दिन उस ने मोनिका से पूछा, ‘‘आरव से बदला लेने की बात करतेकरते कहीं तुम खुद भी आरव तो नहीं बन गईं मोनिका?’’

‘‘नहीं…’’ कह कर, चीख उठी मोनिका, ‘‘आरव का नाम भी न लेना मेरे सामने.’’

‘‘नाम न भी लूं, लेकिन तुम खुद से पूछो क्या तुम वही नहीं बनती जा रहीं, बल्कि शायद बन चुकी हो?’’ अदीप फिर बोला.

‘‘नहीं, मैं आरव से बदला लेना चाहती हूं. उसे बताना चाहती हूं कि फिजिकल रिलेशन सिर्फ वही नहीं बना सकता मैं भी बना सकती हूं और उस से कहीं ज्यादा. मैं उसे दिखा दूंगी.’’ मुट्ठियां भींचती वह बोली. लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें भीग गईं. अदीप की गोद में सिर रख कर वह यह कहते रो दी, ‘‘मैं सच्चा प्यार पाना चाहती थी. ऐसा प्यार जो देह से परे होता है और जिसे मन से महसूस किया जाता है. पर मुझे मिला क्या? मेरे साथ तो कुछ हुआ वह तुम काफी हद तक जानते हो. अगर ऐसा न होता तो मैं उस से कभी बेवफाई न करती.’’ मोनिका की हिचकियां बंध गई थीं. अदीप कुछ नहीं बोला सिर्फ उस के बालों में उंगलियां फिराता उसे सांत्वना देता रहा.

कुछ देर रो लेने के बाद मोनिका सामान्य हो गई. सीधी बैठ कर वह अदीप से बोली, ‘‘मुझे कल न्यूयार्क जाना है. 3 दिन वहां रुकंगी. फिर वहां से पेरिस चली जाऊंगी और 4 हफ्ते बाद लौटूंगी.’’ अदीप कुछ नहीं बोला. दोनों के बीच एक सन्नाटा सा पसरा रहा. कुछ देर बाद मोनिका उठी और बोली, ‘‘मैं चलूं.? मुझे तैयारी भी करनी है.’’

मोनिका आरव से बहुत प्यार करती थी. मगर उस ने ही उसे धोखा दिया. फिर आरव से बदला लेने के लिए मोनिका ने कौन सा रास्ता चुना…

‘‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ हर बार की तरह इस बार भी अदीप का छोटा सा जवाब था.

एकाएक तड़प उठी मोनिका, ‘‘क्यों मेरा इंतजार करते हो तुम अदीप? और सब कुछ जानने के बाद भी. हर बार विदेश से लौट कर मैं सब कुछ सचसच बता देती हूं. फिर भी तुम क्यों मेरा इंतजार करते हो?’’

अदीप सीधे उस की आंखों में झांकता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम सचमुच नहीं जानतीं मोनिका कि मैं तुम्हारा इंतजार क्यों करता हूं? मेरे इस प्रेम को जब तक तुम नहीं पहचान लेतीं, जब तक स्वीकार नहीं कर लेतीं, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

मोनिका की हिचकियां सी बंध गईं. अदीप के कंधे से लगी वह सुबक रही थी और अदीप उस की पीठ थपक रहा था. देह परे, मोनिका और अदीप का निश्छल प्रेम दोनों के मन को भिगो रहा था. Hindi Romantic Story

Romantic Story In Hindi: रिस्क – क्यों रवि ने मानसी को छोड़ने का रिस्क लिया

Romantic Story In Hindi: इस नए औफिस में काम करते हुए मुझे 3 महीने ही हुए हैं और अब तक मेरे सभी सहयोगी जान चुके हैं कि मैं औफिस की ब्यूटी क्वीन मानसी को बहुत चाहता हूं. मुझे इस बात की चिंता अकसर सताती है कि जहां मैं उस से शादी करने को मरा जा रहा हूं, वहीं वह मुझे सिर्फ अच्छा दोस्त ही बनाए रखना चाहती है.

मानसी और मेरे प्रेम संबंध में और ज्यादा जटिलता पैदा करने वाली शख्सीयत का नाम है, शिखा. साथ वाले औफिस में कार्यरत शोख, चंचल स्वभाव वाली शिखा अकेले में ही नहीं बल्कि सब के सामने भी मेरे साथ फ्लर्ट करने का कोई मौका नहीं चूकती है.

‘‘दुनिया की कोई लड़की तुम्हें उतनी खुशी नहीं दे सकती, जितनी मैं दूंगी. खासकर बैडरूम में तुम्हारे हर सपने को पूरा करने की गारंटी देती हूं,’’ शादी के लिए मेरी ‘हां’ सुनने को शिखा अकेले में मुझे अकसर ऐसे प्रलोभन देती.

‘‘तुम पागल हो क्या? अरे, किसी ने कभी तुम्हारी ऐसी बातों को सुन लिया, तो लोग तुम्हें बदनाम कर देंगे,’’ उस की बिंदास बातें सुन कर मैं सचमुच हैरान हो उठता.

‘‘मुझे लोगों की कतई परवा नहीं और यह साबित करना मेरे लिए बहुत आसान है कि मैं गलत लड़की नहीं हूं.’’

‘‘तुम यह कैसे साबित कर सकती हो?’’

‘‘तुम मुझ से शादी करो और अगर सुहागरात को तुम्हें मेरे वर्जिन होने का सुबूत न मिले तो अगले दिन ही मुझ से तलाक ले लेना.’’

‘‘ओ, पागलों की लीडर, तू मेरा पीछा छोड़ और कोई नया शिकार ढूंढ़,’’ मैं ने नाटकीय अंदाज में उस के सामने हाथ जोड़े, तो हंसतेहंसते उस के पेट में दर्द हो गया.

मानसी को शिखा फूटी आंख नहीं सुहाती है. मेरी उस पागल लड़की में कोई दिलचस्पी नहीं है, बारबार ऐसा समझाने पर भी मानसी आएदिन शिखा को ले कर मुझ से झगड़ा कर ही लेती.

उस ने पिछले हफ्ते से जिद पकड़ ली थी कि मैं शिखा को जोर से डांट कर सब के बीच एक बार अपमानित करूं, जिस से कि वह मेरे साथ बातचीत करना बिलकुल बंद कर दे.

‘‘मेरी समझ से वह हलकेफुलके मनोरंजन के लिए मेरे साथ फ्लर्ट करने का नाटक करती है. उसे सब के बीच अपमानित करना गलत होगा, क्योंकि वह दिल की बुरी नहीं है, मानसी,’’ मेरे इस जवाब को सुन मानसी ने 2 दिन तक मुझ से सीधे मुंह बात नहीं की थी.

मैं ने तंग आ कर दूसरे दिन शिखा को लंच टाइम में सख्ती से समझाया, ‘‘मैं बहुत सीरियसली कह रहा हूं कि तुम मुझ से दूर रहा करो.’’

‘‘क्यों,’’ उस ने आंखें मटकाते हुए कारण जानना चाहा.

‘‘क्योंकि तुम्हारा मेरे आगेपीछे घूमना मानसी को अच्छा नहीं लगता है.’’

‘‘उसे अच्छा नहीं लगता है तो मेरी बला से.’’

‘‘बेवकूफ, मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मुझ से बड़े बेवकूफ, मानसी मुझ से जरा सी ज्यादा सुंदर जरूर है, पर मैं दावे से कह रही हूं कि मेरी जैसी शानदार लड़की तुम्हें पूरे संसार में नहीं मिलेगी.’’

‘‘देवी, तू मेरे ऊपर लाइन मारना छोड़ दे.’’

‘‘मैं अपने पापी दिल के हाथों मजबूर होने के कारण तुम से दूर नहीं रह सकती हूं, लव.’’

‘‘मुहावरा तो कम से कम ठीक बोल, मेरी जान की दुश्मन. पापी पेट होता है, दिल नहीं.’’

‘‘तुम्हें क्या पता कि मेरा पापी दिल सपनों में तुम्हारे साथ कैसेकैसे गुल खिलाता है,’’ इस डायलौग को बोलते हुए उस के जो सैक्सी हावभाव थे, उन्हें देख कर मैं ऐसा शरमाया कि उस से आगे कुछ कहते नहीं बना.

पिछले हफ्ते मानसी ने अब तक मुझ से शादी के लिए ‘हां’ ‘ना’ कहने के पीछे छिपे कारण बता दिए, ‘‘मेरे मम्मीपापा की आपस में कभी नहीं बनी. पापा अभी भी मम्मी पर हाथ उठा देते हैं. भाभी घर में बहुत क्लेश करती हैं. मेरी बड़ी बहन अपने 3 साल के बेटे के साथ मायके आई हुई है, क्योंकि जीजाजी किसी दूसरी के चक्कर में पड़ गए हैं, समाज में नीचा दिखाने वाले इन कारणों के चलते मुझे लगता था कि अपनी शादी हो जाने के बाद मैं अपने पति और ससुराल वालों से कभी आंखें ऊंची कर के बात नहीं कर पाऊंगी. अब अगर तुम्हें इन बातों से फर्क न पड़ता हो तो मैं तुम से शादी करने के लिए ‘हां’  कह सकती हूं.’’

‘‘मुझे इन सब बातों से बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ता है. आई एम सो हैप्पी,’’ मानसी की ‘हां’ सुन कर मेरी खुशी का सचमुच कोई ठिकाना नहीं रहा था.

उस दिन के बाद मानसी ने बड़े हक के साथ मुझे शिखा से कोई संबंध न रखने की चेतावनी दिन में कईकई बार देनी शुरू कर दी थी. उसे किसी से भी खबर मिलती कि शिखा मुझ से कहीं बातें कर रही थी, तो वह मुझ से झगड़ा जरूर करती.

मैं ने परेशान हो कर एक दिन शिखा की सीट पर जा कर विनती की, ‘‘मानसी मुझ से शादी करने को राजी हो गई है और उसे हमारा ‘हैलोहाय’ करना तक पसंद नहीं है. तुम मुझ से दूर रहा करो, प्लीज.’’

‘‘जब तक मानसी के साथ तुम्हारी शादी के कार्ड नहीं छप जाते, मैं तो तुम से मिलती रहूंगी,’’ उस पागल लड़की ने मेरी विनती को तुरंत ठुकरा दिया था.

‘‘तुम मेरी प्रौब्लम को समझने की कोशिश करो, प्लीज.’’

‘‘और तुम मेरी प्रौब्लम को समझो. देखो, मैं तुम्हें प्यार करती हूं और इसीलिए आखिरी वक्त तक याद दिलाती रहूंगी कि मुझ से बेहतर पत्नी तुम्हें…’’ उस पर अपनी बात का कोई असर न होते देख मैं उस का डायलौग पूरा सुने बिना ही वहां से चला आया था.

किसी झंझट में न फंसने के लिए मैं ने अगले हफ्ते छोटे से बैंकटहौल में हुई अपने जन्मदिन की पार्टी में शिखा को नहीं बुलाया, पर उसे न बुलाने का मेरा फैसला उसे पार्टी से दूर रखने में सफल नहीं हुआ था. वह लाल गुलाब के फूलों का सुंदर गुलदस्ता ले कर बिना बुलाए ही पार्टी में शामिल होने आ गई थी.

‘‘रवि डियर, मुझे यहां देख कर टैंशन मत लो, मैं ने तुम्हें फूल भेंट कर दिए, शुभकामनाएं दे दीं और अब अगर तुम हुक्म दोगे, तो मैं उलटे पैर यहां से चली जाऊंगी,’’ अपनी बात कहते हुए वह बिलकुल भी टैंशन में नजर नहीं आ रही थी.

‘‘अब आ ही गई हो तो कुछ खापी कर जाओ,’’ मुझ से पार्टी में रुकने का निमंत्रण पा कर उस का चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा था.

अचानक मानसी हौल में आई उसी दौरान शिखा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे डांस फ्लोर की तरफ ले जाने की कोशिश कर रही थी.

मुझे उस के आने का तब पता चला जब उस ने पास आ कर शिखा को मेरे पास से दूर धकेला और अपमानित करते हुए बोली, ‘‘जब तुम्हें रवि ने पार्टी में बुलाया ही नहीं था, तो क्यों आई हो?’’

‘‘मेरी मरजी, वैसे तुम होती कौन हो मुझ से यह सवाल पूछने वाली,’’ शिखा उस से दबने को बिलकुल तैयार नहीं थी.

‘‘तुझे मालूम नहीं कि हमारी शादी होने वाली है, घटिया लड़की.’’

‘‘तुम मुझ से तमीज से बात करो,’’ शिखा को भी गुस्सा आ गया, ‘‘रवि से तुम्हारी शादी होने वाली बात मैं उसी दिन मानूंगी जिस दिन शादी का कार्ड अपनी आंखों से देख लूंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी जबरदस्ती गले पड़ने वाली बेशर्म लड़की मैं ने दूसरी नहीं देखी. कहीं तुम किसी वेश्या की बेटी तो नहीं हो?’’

‘‘मेरी मां के लिए अपशब्द निकालने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई,’’ वह मानसी की तरफ झपटने को तैयार हुई, तो मैं ने फौरन उस का हाथ मजबूती से पकड़ कर उसे रोका.

‘‘इसे इसी वक्त यहां से जाने को कहो, रवि,’’ मानसी ऊंची आवाज में कह कर उसे बेइज्जत कर रही थी.

‘‘तुम जरा चुप करो,’’ मैं ने मानसी को जोर से डांटा और फिर हाथ छुड़ाने को मचल रही शिखा से कहा, ‘‘तुम अपने गुस्से को काबू में करो. क्या तुम दोनों ही मेरी पार्टी का मजा खराब करना चाहती हो?’’

शिखा ने फौरन अपने गुस्से को पी कर कुछ शांत लहजे में जवाब दिया, ‘‘नहीं, और तभी मैं इस बेवकूफ को अपने साथ बदतमीजी करने के लिए माफ करती हूं.’’

मेरे द्वारा डांटे जाने से बेइज्जती महसूस कर रही मानसी ने मुझे अल्टीमेटम दे दिया, ‘‘रवि, तुम इसे अभी पार्टी से चले जाने को कहो, नहीं तो मैं इसी पल यहां से चली जाऊंगी.’’

‘‘मानसी, छोटे बच्चे की तरह जिद मत करो.’’

उस ने मुझे टोक कर अपनी धमकी दोहरा दी, ‘‘अगर तुम ने ऐसा नहीं किया, तो तुम मेरे साथ घर बसाने के सपने देखना भूल जाना.’’

‘‘तुम अपना घर बसने की फिक्र न करो, माई लव, क्योंकि मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं,’’ शिखा ने बीच में ही यह डायलौग बोल कर बात को और बिगाड़ दिया था.

‘‘तुझ जैसी कई थालियों में मुंह मारने की शौकीन लड़की से कोई इज्जतदार युवक शादी नहीं करेगा,’’ मानसी उसे अपमानित करने वाले लहजे में बोली, ‘‘तुम जैसी आवारा लड़कियों को आदमी अपनी रखैल बनाता है, पत्नी नहीं.’’

अपने गुस्से को काबू में रखने की कोशिश करते हुए शिखा ने मुझे सलाह दी, ‘‘रवि, तुम इस कमअक्ल से तो शादी मत ही करना. इस का चेहरा जरूर खूबसूरत है, पर मन के अंदर बहुत ज्यादा जहर भरा हुआ है.’’

‘‘तुम इसे फौरन पार्टी से चले जाने को कह रहे हो या नहीं,’’ मानसी ने चिल्ला कर अपना अल्टीमेटम एक बार फिर दोहराया, तो मेरी परेशानी व उलझन बहुत ज्यादा बढ़ गई.

मेरी समस्या सुलझाने की पहल शिखा ने की.

‘‘रवि, तुम टैंशन मत लो. पार्टी में हंसीखुशी का माहौल बना रहे, इस के लिए मैं यहां से चली जाती हूं. हैप्पी बर्थडे वन्स अगेन,’’ मेरे कंधे को दोस्ताना अंदाज में दबाने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ने को तैयार हो गई थी.

‘‘मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ने चलूंगा. जरा 2 मिनट के लिए रुक जाओ, प्लीज.’’

’’तुम इसे बिलकुल भी बाहर तक छोड़ने नहीं जाओगे,’’ मानसी के चहरे की खूबसूरती को गुस्से के हावभावों ने विकृत कर दिया था.

मैं ने गहरी सांस ली और मानसी के पास जा कर बोला, ’’मेरी जिंदगी से निकल जाने की तुम्हारी धमकी को नजरअंदाज करते हुए मैं अपने इस पल दिल में पैदा हुए ताजा भाव तुम से जरूर शेयर करूंगा. सच यही है कि आजकल मेरी जिंदगी में सारी टैंशन तुम्हारे और सारा हंसनामुसकराना शिखा के कारण हो  रहा है. तुम्हारी खूबसूरती के सम्मोहन से निकल कर अगर मैं निष्पक्ष भाव से देखूं, तो मुझे साफ महसूस होता है कि यह जिंदादिल लड़की मेरी जिंदगी की रौनक बन गई है.’’

’’गो, टू हैल,’’ मेरी बात सुन कर आगबबूला  हो उठी मानसी को जन्मदिन की बिना शुभकामनाएं दिए दरवाजे की तरफ जाता देख कर भी मैं ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की.

मैं शिखा का हाथ पकड़ कर मुसकराते हुए बोला, ’’ओ, पगली लड़की, मुझे साफ नजर आ रहा है कि अगर तुम मेरी जिंदगी से निकल गई, तो वह रसहीन हो जाएगी. तुम अगर मुझे आश्वासन दो कि तुम अपने जिंदादिल व्यक्तित्व को कभी नहीं मुरझाने दोगी, तो मैं तुम से एक महत्त्वपूर्ण सवाल पूछना चाहूंगा?’’

’’माई डियर रवि, मैं तुम्हारे प्यार में हमेशा ऐसी ही पागल बनी रहूंगी. प्लीज जल्दी से वह खास सवाल पूछो न,’’ वह उस छोटी बच्ची की तरह खुश नजर आ रही थी, जिसे अपना मनपसंद उपहार मिलने की आशा हो.

’’अपने बहुत से शुभचिंतकों की चेतावनी को नजरअंदाज कर मैं तुम्हारे जैसी बिंदास लड़की को अपनी जीवनसंगिनी बनाने का रिस्क लेने को तैयार हूं. क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

’’हुर्रे, मैं तुम से शादी करने को बिलकुल तैयार हूं, माई लव,’’ जीत का जोरदार नारा लगाते हुए उस ने सब के सामने मेरे होंठों पर चुंबन अंकित कर हमारे नए रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगा दी थी. Romantic Story In Hindi

Hindi Kahani: पाई को सलाम – एक सच्चे दोस्त की कहानी

Hindi Kahani: सऊदी अरब के एक अस्पताल में काम करते हुए मुझे अलगअलग देशों के लोगों के साथ काम करने का मौका मिला. मेरे महकमे में कुल 27 मुलाजिम थे, जिन में 13 सऊदी, 5 भारतीय, 6 फिलीपीनी और 3 पाकिस्तानी थे.

यों तो सभी आपस में अंगरेजी में ही बातें किया करते थे, लेकिन हम भारतीयों की इन तीनों पाकिस्तानियों से खूब जमती थी. एक तो भाषा भी तकरीबन एकजैसी थी और हम लोगों का खानापीना भी एकजैसा ही था.

हमारे महकमे का सब से नापसंद मुलाजिम एक पाकिस्तानी कामरान था, जिसे सभी ‘पाई’ के नाम से बुलाते थे.

क्या सऊदी, क्या फिलीपीनी, यहां तक कि बाकी दोनों पाकिस्तानी भी उस को पसंद नहीं करते थे.

वैसे तो ‘पाई’ हमारे साथ ही रहता और खातापीता था, लेकिन कोई भी उस की हरकतें पसंद नहीं करता था. काम में तो वह अच्छा था, लेकिन जानबूझ कर सब से आसान काम चुनता और मुश्किल काम को कम ही हाथ लगता.

अब मैडिकल ट्रांसक्रिप्शन है ही ऐसा काम, जिस में मुश्किल फाइल करना कोई भी पसंद नहीं करता, लेकिन चूंकि काम तो खत्म करना ही होता है, तो सभी लोग मिलबांट कर मुश्किल काम कर लेते. लेकिन मजाल है, जो ‘पाई’ किसी मुश्किल फाइल को हाथ में ले ले.

‘पाई’ कुरसी पर बैठ कर आसान फाइल का इंतजार करता रहता और जैसे ही कोई आसान फाइल आती, झट से उस को अपने नाम कर लेता. उस की इसी हरकत की वजह से सभी उस से चिढ़ने लगे थे.

भारतीय पवन हो या फिलीपीनी गुलिवर या फिर सऊदी लड़की सैनब, सभी उस की इस बात पर उस से नाराज रहते.

इस के अलावा ‘पाई’ एक नंबर का कंजूस था. कभीकभार सभी लोग मिल कर किसी साथी मुलाजिम को कोई पार्टी देते, तो ‘पाई’ एक पैसा भी न देता.

वह बोलता, ‘‘मैं यहां क्या इन लोगों के लिए कमाने आया हूं?’’

पार्टी के लिए एक पैसा भले ही न देता हो, पार्टी में खानेपीने में सब से आगे रहता. ‘पाई’ खुद भी जानता था कि कोई उस को पसंद नहीं करता, लेकिन इस से उस को कोई फर्क नहीं पड़ता था.

शुक्रवार को सऊदी अरब में छुट्टी रहती है. मैं भी उस दिन अपने घर में ही था कि पवन का फोन आया.

फोन पर उस के रोने की आवाज सुन कर मैं परेशान हो गया. उस की सिसकियां कुछ कम हुईं, तो उस ने बताया कि उस का 10 साल का बेटा घर से गायब है. पता नहीं, किसी ने उस को किडनैप कर लिया है या वह खुद ही कहीं चला गया है, किसी को भी नहीं पता था.

मैं तुरंत पवन के कमरे में पहुंचा. जल्दी ही सरफराज, गुलिवर और नावेद भी वहां पहुंच गए. सभी पवन को तसल्ली दे रहे थे.

तभी पवन के घर से फोन आया. किसी ने उस के घर खबर दी कि उस का बेटा कोचीन जाने वाली बस में देखा गया है. सभी की राय थी कि पवन को तुरंत भारत जाना चाहिए.

मैनेजर सुसान से बात की गई. उन्होंने तुरंत पवन के जाने के लिए वीजा का इंतजाम किया. सरफराज अपनी गाड़ी में पवन और मुझे ले कर हैड औफिस गए और वीजा ले आए.

अब बड़ा सवाल था भारत जाने के लिए टिकट का इंतजाम करना. महीने का आखिरी हफ्ता चल रहा था और हम सभी अपनीअपनी तनख्वाह अपनेअपने देश को भेज चुके थे. सभी के पास थोड़ेबहुत पैसे बचे हुए थे, जो कि टिकट की आधी रकम भी नहीं होती.

मैं और सरफराज अपनेअपने जानने वालों को फोन कर रहे थे कि तभी वहां ‘पाई’ आ गया. हम में से किसी ने भी उस को पवन के बारे में नहीं बताया था. एक तो शायद इसलिए कि ‘पाई’ और पवन की कुछ खास बनती नहीं थी, दूसरे, इसलिए भी कि उस से हमें किसी मदद की उम्मीद भी नहीं थी.

‘पाई’ पवन से उस के बेटे के बारे में पूछताछ कर रहा था. बातोंबातों में उस को पता चला कि भारत जाने के लिए टिकट के पैसे कम पड़ रहे हैं. हम लोग अपनेअपने फोन पर मसरूफ थे और पता ही नहीं चला कि कब ‘पाई’ उठ कर वहां से चला गया.

‘‘उस को लगा होगा कि उस से कोई पैसे न मांग ले,’’ फिलीपीनी गुलिवर ने अपने विचार रखे.

तकरीबन 10 मिनट बाद ‘पाई’ आया और पवन के हाथ में 5 हजार रियाल रख दिए और कहने लगा, ‘‘जाओ, जल्दी से टिकट ले लो, ताकि आज की ही फ्लाइट मिल जाए. अगर और पैसों की जरूरत हो, तो बेझिझक बता देना. मैं अपने पैसे इकट्ठा 2-3 महीने में ही भेजता हूं, इसलिए अभी मेरे पास और भी पैसे हैं.’’

यह सुन कर पवन भावुक हो गया और ‘पाई’ को गले लगा लिया, ‘‘शुक्रिया ‘पाई’, मुसीबत के समय में मेरी मदद कर के तुम ने मुझे जिंदगीभर का कर्जदार बना लिया है.’’

‘‘कर्ज कैसा, हम सब एक परिवार ही तो हैं. मुसीबत के समय अगर हम एकदूसरे की मदद नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?’’

‘पाई’ का यह रूप देख कर मेरे मन में उस के प्रति जितनी भी बुरी भावनाएं थीं, तुरंत दूर हो गईं.

किसी ने सच ही कहा है कि दोस्त की पहचान मुसीबत के समय में ही होती है. और मुसीबत की इस घड़ी में पवन की मदद कर के ‘पाई’ ने अपने सच्चे दोस्त होने का सुबूत दे दिया.

‘पाई’ के इस अच्छे काम से मेरा मन उस के लिए श्रद्धा से भर गया. Hindi Kahani

Romantic Story In Hindi: अंतिम मिलन – क्या जान्हवी को वह बचा पाया?

Romantic Story In Hindi: “मेरी एक तमन्ना है. वादा करो तुम पूरा करोगे उसे. ” जान्हवी ने मेरे चेहरे पर अपनी निगाहें टिका दी थी .

“बताओ न. कुछ भी हो जाए तुम्हारी हर तमन्ना पूरी करना मेरे जीवन का मकसद है. तुम बोल कर तो देखो.” मैं पूरे जोश में था .

” तो ठीक है मैं बताती हूं. वह मेरे करीब सरक आई थी. उस की आंखों में मेरे लिए प्यार का सागर लहरा रहा था. मैं देख सकता था उस की शांत, खुशनुमा और झील सी नीली आंखों में बस एक ही गूंज थी. मेरे प्यार की गूंज …  मेरी बाहों में समा कर हौले से उस ने मेरे लबों को छू लिया था.

वह पल अदितीय था. जिंदगी का सब से खूबसूरत और कीमती लम्हा जो कुछ देर तक यूं ही ठहरा रहा था हम दोनों की बाहों के दरमियां… और फिर वह खिलखिलाती हुई अलग हो गई और बोली,” बस यह जो लम्हा था न, यही लम्हा अपनी जिंदगी के अंतिम समय में महसूस करना चाहती हूं. वादा करो कभी मैं तुम्हें छोड़ कर जाने वाली होउ तो तुम मेरे करीब रहोगे. तुम्हारी बाहों में ही मेरा दम निकले इसी प्यार के साथ.”

उस की बातों ने मेरी रूह को छू लिया था. तड़प कर कहा था मैं ने,” वादा करता हूं. पर ऐसा समय आने ही नहीं दूंगा. तुम्हारे साथ में भी चलाई जाऊंगा न. अकेला जी कर क्या करूंगा.” मैं ने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया था.

उस के जाने के एहसास भर से मेरी रूह कांप उठी थी. बहुत प्यार करता हूं मैं उसे. मेरी जान है मेरी जान्हवी.

कॉलेज में पहले दिन पहली लड़की जिस पर मेरी नजरें गई थी वह जान्हवी ही थी. एक नजर देखा और देखता ही रह गया था. कहते हैं न पहली नजर का प्यार जो अब तक मैं ने फिल्मों में ही देखा था. पर इस बात को मैं हमेशा हंसीमजाक में लेता था . पर जब यह मेरे साथ हुआ तो पता लगा कि आंखोंआंखों में कैसे आप किसी के बन जाते हो हमेशा के लिए . जान्हवी और मेरी दोस्ती पूरे कॉलेज में मशहूर थी. मेरे घर वालों ने भी हमारे प्यार को सहजता से मंजूरी दे दी थी. मैं मेडिकल की पढ़ाई करने न्यूयौर्क चला गया और पीछे से जान्हवी यहीं रह गई दिल्ली में . हम कुछ साल एकदूसरे से दूर रहे थे पर दिल से एक दूसरे से जुड़े रहे थे.

मैं पढ़ाई कर के लौटा तो जल्दी ही एक अच्छे हॉस्पिटल में जॉब मिल गई. जान्हवी ने भी एक कंपनी ज्वाइन कर ली थी . अब हम ने देर नहीं की और शादी कर ली. बड़ी खुशहाल जिंदगी जी रहे थे हम .

एक दिन सुबहसुबह जान्हवी मेरी बाहों में समा गई और धीरे से बोली,” तो मिस्टर आप तैयार हो जाइए. जल्दी ही आप को घोड़ा बनना पड़ेगा.”

उस की ऐसी अजीब सी बात सुन कर मैं चौंक उठा,” ये क्या कह रही हो ? घोड़ा और मैं ? क्यों ?”

“अपने बेटे की जिद पूरी नहीं करोगे?” बोलते हुए शरमा गई थी जान्हवी. मुझे बात समझ में आ गई थी. खुशी से बावला हो कर मैं झूम उठा और उसे माथे पर एक प्यारा सा किस दिया. उस के हाथों को थाम कर मैं ने कहा,” आज तुम ने मुझे दुनिया की सब से बड़ी खुशी दे दी है. आई लव यू .”

इस के बाद तो हम दोनों एक अलग ही दुनिया में पहुंच गए. हमारे बीच अपनी बातें कम और बच्चे की बातें ज्यादा होने लगी थी. बच्चे के लिए क्या खरीदना है, कैसे रखना है, वह क्या बोलेगा, क्या करेगा जैसी बातों में हम घंटों गुजार देते. वैसे डॉक्टर होने की वजह से मेरे पास अधिक समय नहीं होता था फिर भी जब भी मौका मिलता तो मैं आने वाले बेबी के लिए कुछ न कुछ खरीद लाता था. बच्चे के सामानों से एक पूरा कमरा भर दिया था मैं ने . जान्हवी का पूरा ख्याल रखना, उसे सही डाइट और दवाइयां देना, उस के करीब बैठे रह कर भविष्य के सपने देखना, यही सब अच्छा लगने लगा था मुझे .

समय पंख लगा कर उड़ने लगा. जान्हवी की प्रेगनेंसी के 5 महीने बीत चुके थे. हम खुशियों के पल संजोय जा रहे थे. पर हमें कहां पता था कि हमारी खुशियों के सफर को एक बड़ा धक्का लगने वाला है. ऐसा समय आने वाला है जब तिनकेतिनके हमारी खुशियां बिखर जाएंगी.

वह मार्च 2020 का महीना था. सारा विश्व कोरोना के कहर से आक्रांत था . भारत में भी तेजी से कोरोना ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिए थे. मैं ने जान्हवी को घर से न निकलने की सख्त हिदायत दी थी. डॉक्टर होने के नाते मुझे हॉस्पिटल में काफी समय गुजारना पड़ रहा था. इसलिए मैं ने उस की मम्मी को अपने यहां बुला लिया था. ताकि वे मेरे पीछे से जान्हवी की देखभाल कर सकें.

इसी बीच एक दिन मुझे पता चला कि दोपहर में जानवी की एक सहेली उस से मिलने आई थी. जान्हवी उस दिन बहुत खुश थी, बचपन की सहेली प्रिया से मिल कर . जान्हवी ने जब बताया कि प्रिया 2 दिन पहले ही वाशिंगटन से लौटी है तो मैं चिंतित हो उठा और बोल पड़ा,” यह ठीक नहीं हुआ जान्हवी. तुम्हें पता है न विदेश से लौट रहे लोग ही बीमारी के सब से बड़े वाहक हैं. तुम्हें उस;के पास नहीं जाना चाहिए था जान्हवी.”

” अच्छा तो तुम यह कह रहे हो कि मेरी सहेली जो मेरी प्रेगनेंसी और शादी की बधाई देने मेरे घर आई उसे मैं दरवाजे पर ही रोक देती कि नहीं तुम अंदर नहीं आ सकती. मुझसे मिल नहीं सकती. ये क्या कह रहे हो अमन.”

“मैं ठीक ही कह रहा हूं जान्हवी.  तुम डॉक्टर की बीवी हो. तुम्हें पता है न हमारे देश में भी कोरोना के मरीज पाए जाने लगे हैं और भारत में यह बीमारी बाहर से ही आ रही है . पर वह वुहान से नहीं वाशिंगटन से आई थी. फिर मैं ने उस के हाथ भी धुलवाए थे.”

“जो भी हो जान्हवी मेरा दिल कह रहा है तुम ने ठीक नहीं किया. तुम प्रेगनेंट हो. तुम्हें ज्यादा खतरा है . वायरस केवल हाथ में ही नहीं कपड़ों में भी होते हैं . उस ने एक बार भी खांसा होगा तो भी वायरस तुम्हें मिलने का खतरा है . देखो आइंदा ऐसी गलती भूल कर भी मत करना मेरी खातिर. ” मैं ने उसे समझाया.

“ओके, अब कभी नहीं.”

उस दिन बात आई गई हो गई. इस बीच मेरा समय पर घर लौटना मुश्किल होने लगा क्यों कि ज्यादा से ज्यादा समय मुझे हॉस्पिटल में ही गुजारना पड़ रहा था.

और फिर अचानक देश में लॉकडाउन हो गया. मैं 5- 7 दिनों तक घर नहीं जा पाया. केवल फोन पर जान्हवी का हालचाल लेता रहा . कोरोना मरीजों के बीच रहने के कारण मैं खुद घर जाने से बच रहा था. क्यों कि मैं नहीं चाहता था कि मुझ से जान्हवी तक यह वायरस पहुंच जाए. इस बीच एक दिन मुझे फोन पर जान्हवी की तबीयत खराब लगी. मैं ने पूछा तो उस ने स्वीकार किया कि 2- 3 दिनों से उसे सूखी खांसी है और बुखार भी चल रहा है . वह बुखार की साधारण दवाईयां खा कर ठीक होने का प्रयास कर रही थी . अब उसे सांस लेने में भी थोड़ी दिक्कत होने लगी थी .

मैं बहुत घबरा गया. ये सारे लक्षण तो कोरोना के थे . मेरे हाथपैर फूल गए थे. एक तरफ जान्हवी प्रेग्नेंट थी और उस पर यह खौफनाक बीमारी. मैं ने उसे तुरंत इमरजेंसी में अस्पताल में एडमिट कराया. जांच कराई तो वह कोरोना पॉजिटिव निकली. 24 घंटे मैं उस पर नजर रख रहा था और उस की देखभाल में लगा हुआ था. मगर हालात बिगड़ते ही जा रहे थे. उस पर कोई भी दवा असर नहीं कर रही थी और फिर एक दिन हमारी मेडिकल टीम ने यह अनाउंस कर दिया कि जान्हवी को बचाना अब संभव नहीं है.

वह पल मेरे लिए इतना सदमा भरा था कि वहीं बैठा हुआ मैं फूटफूट कर रो पड़ा . जान्हवी जो मेरी जान मेरी जिंदगी है, मुझे छोड़ कर कैसे जा सकती है ? काफी देर तक मैं भीगी पलकों के साथ जुड़वत् बैठा रहा.

शुरू से ले कर अब तक की जान्हवी की हर एक बात मुझे याद आ रही थी और फिर अचानक मुझे वह वादा याद आया जो मुझ से जान्हवी ने लिया था. अंतिम समय में करीब रहने का वादा. बाहों में भर कर विदा करने का वादा.

मैं जानता था कोरोना के कारण मौत होने पर मरीज की बॉडी भी घरवालों को नहीं दी जाती. पेशेंट को मरने से पहले प्लास्टिक कवर से ढक दिया जाता है. मैं जानता था कि वह समय आ गया है जब जान्हवी को मैं कभी देख नहीं सकूंगा. छू नहीं सकूंगा. पर अपना वादा जरुर पूरा करूंगा . मैं ने फैसला कर लिया था.

मैं जान्हवी के बेड से थोड़ी दूरी पर दूसरे डॉक्टरों और नर्सों के साथ खड़ा था. सब परेशान थे . तभी मैं ने अपना गाउन उतारा, ग्लव्स हटाए , आंखों को आजाद किया और फिर मास्क भी हटाने लगा. मुझे ऐसा करने से सभी रोक रहे थे. एक डॉक्टर ने तो मुझे पकड़ भी लिया. मगर मैं रुका नहीं.

मैं जानता था अभी नहीं तो फिर कभी नहीं. मैं आगे बढ़ा . अपनी जान्हवी के करीब उस के बेड पर बैठ गया. मैं ने उस के हाथों को थामा . बड़ी मुश्किल से उस ने अपनी उनींदी आंखें खोली. 2-4 पल को मैं उसे निहारता रहा और वह मुझे निहारती रही. फिर मैं ने उस के लबों को छुआ और उसे अपनी बाहों का सहारा दिया. हम हम दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे.

तभी जान्हवी एकदम से अलग हो गई और अपनी कमजोर आवाज से इशारे से अपने होठों पर उंगली रख कर कहने लगी,” नो अमन नो . प्लीज गो . गो अमन गो… आई लव यू .”

“आई लव यू टू …” कह कर मैं ने एक बार फिर उसे छुआ और उस की जिद की वजह से उठ कर चला आया.

मेरे साथी डॉक्टरों ने तुरंत मुझे सैनिटाइजर दिया . हाथों के साथ मेरे होठों को भी सैनिटाइज कराया गया. मुझे तुरंत नहाने के लिए भेजा गया.

नहाते हुए मैं फूटफूट कर रो रहा था. क्योंकि मैं जानता था कि जान्हवी के साथ यह मेरा अंतिम मिलन था. Romantic Story In Hindi

Hindi Romantic Story: प्यार के काबिल – जूही और मुकुल के बीच क्या हुआ

Hindi Romantic Story: मुकुल और जूही दोनों सावित्री कालोनी में रहते थे. उन के घर एकदूसरे से सटे हुए थे. दोनों ही हमउम्र थे और साथसाथ खेलकूद कर बड़े हुए थे.

दोनों के परिवार भी संपन्न, आधुनिक और स्वच्छंद विचारों के थे, इसलिए उन के परिवार वालों ने कभी भी उन के मिलनेजुलने और खेलनेकूदने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया था. इस प्रकार मुकुल और जूही साथसाथ पढ़तेलिखते, खेलतेकूदते अच्छे अंकों के साथ हाईस्कूल पास कर गए थे.

इधर कुछ दिनों से मुकुल अजीब सी परेशानी महसूस कर रहा था. कई दिन से उसे ऐसा एहसास हो रहा था कि उस की नजरें अनायास ही जूही के विकसित होते शरीर के उभारों की तरफ उठ जाती हैं, चाहे वह अपनेआप को लाख रोके. बैडमिंटन खेलते समय तो उस के वक्षों के उभार को देख कर उस का ध्यान ही भंग हो जाता है. वह अपनेआप को कितना भी नियंत्रित क्यों न करे, लेकिन जूही के शरीर के उभार उसे सहज ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

जूही को भी यह एहसास हो गया था कि मुकुल की निगाहें बारबार उस के शरीर का अवलोकन करती हैं. कभीकभी तो उसे यह सब अच्छा लगता, लेकिन कभीकभी काफी बुरा लगता था.

यह सहज आकर्षण धीरेधीरे न जाने कब प्यार में बदल गया, इस का पता न तो मुकुल और जूही को चला और न ही उन के परिवार वालों को.

लेकिन यह बात निश्चित थी कि मुकुल को जूही अब कहीं अधिक खूबसूरत, आकर्षक और लाजवाब लगने लगी थी. दूसरी तरफ जूही को भी मुकुल अधिक स्मार्ट, होशियार और अच्छा लगने लगा था. दोनों एकदूसरे में किसी फिल्म के नायकनायिका की छवि देखते थे. बात यहां तक पहुंच गई कि

इस वर्ष वैलेंटाइन डे पर दोनों ने एकदूसरे को न सिर्फ ग्रीटिंग कार्ड दिए, बल्कि दोनों के बीच प्रेमभरे एसएमएस का भी आदानप्रदान हुआ.

इस के बाद तो एकदूसरे के प्रति उन की झिझक खुलने लगी. वे दोनों प्रेम का इजहार तो करने ही लगे साथ ही फिल्मी स्टाइल में एकदूसरे से प्रेमभरी नोकझोंक भी करने लगे. हालत यह हो गई कि पढ़ते समय भी दोनों एकदूसरे के खयालों में ही डूबे रहते. अब किताबों के पन्नों पर भी उन्हें एकदूसरे की तसवीर नजर आ रही थी.

इस के चलते उन की पढ़ाई पर असर पड़ना स्वाभाविक था. इंटर पास करतेकरते उन के आकर्षण और प्रेम की डोर तो मजबूत हो गई, लेकिन पढ़ाई का ग्राफ काफी नीचे गिर गया, जिस का असर उन के परीक्षाफल में नजर आया. नंबर कम आने पर दोनों के परिवार वाले चिंतित तो थे, लेकिन वे नंबर कम आने का असली कारण नहीं खोज पा रहे थे.

इंटर पास कर के मुकुल और जूही ने डिग्री कालेज में प्रवेश लिया तो उन के प्रेम को और विस्तार मिला. अब उन्हें मिलनेजुलने के लिए कोई जगह तलाशने की आवश्यकता नहीं थी. कालेज की लाइब्रेरी, कैंटीन और पार्क गपशप और उन के प्रेम इजहार के लिए उमदा स्थान थे.

इस प्रकार मुकुल और जूही का प्रेम परवान चढ़ता ही जा रहा था. किताबों में पढ़ कर और फिल्में देख कर वे प्रेम का इजहार करने के कई नायाब तरीके सीख गए थे.

इस बार वैलेंटाइन डे के अवसर पर मुकुल ने सोचा कि वह एक नए अंदाज में जूही से अपने प्रेम का इजहार करेगा. यह नया अंदाज उस ने एक पत्रिका में तो पढ़ा ही था, फिल्म में भी देखा था. उस ने पढ़ा था कि इस कलात्मक अंदाज से प्रेमिका काफी प्रभावित होती है और फिर वह अपने प्रेमी के खयालों में ही डूबी रहती है. इस कलात्मक अंदाज को उस ने इस वैलेंटाइन डे पर आजमाने का निश्चय किया. उस ने शीशे के सामने खड़े हो कर उस का खूब अभ्यास भी किया.

सुबहसुबह का समय था. मौसम भी अच्छा था. मुकुल का मन रोमानी था. उस ने हाथ में लिए गुलाब के खिले फूल को निहारा और फिर उसे अपने होंठों पर रख कर चूम लिया. अब उस से रहा न गया. उस ने अपने मोबाइल से जूही को छत पर आने के लिए एसएमएस किया.

जूही तो जैसे तैयार ही बैठी थी. मैसेज पाते ही वह चहकती हुई छत की तरफ दौड़ी. वह प्रेम की उमंग और तरंग में डूबी हुई थी और वैसे भी प्रेम कभी छिपाए नहीं छिपता.

जूही को इस प्रकार छत की ओर दौड़ते देख उस की मम्मी का मन शंका से भर उठा. वे सोचने लगीं, ‘इतनी सुबह जूही को छत पर क्या काम पड़ गया? अभी तो धूप भी अच्छी तरह से नहीं खिली.’ उन की शंका ने उन के मन में खलबली मचा दी. वे यह देखने के लिए कि जूही इतनी सुबह छत पर क्या करने गई है, उस के पीछेपीछे चुपके से छत पर पहुंच गईं.

वहां का दृश्य देख कर जूही की मम्मी हतप्रभ रह गईं. जूही के सामने मुकुल घुटने टेके गुलाब का फूल लिए प्रणय निवेदन की मुद्रा में था. वह बड़े ही प्रेम से बोला, ‘‘जूही डार्लिंग, आई लव यू.’’

जूही ने भी उस के द्वारा दिए गए गुलाब के फूल को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मुकुल, आई लव यू टू.’’

यह दृश्य देख कर जूही की मम्मी के पैरों तले जमीन खिसक गई, लेकिन छत पर कोई तमाशा न हो, इसलिए वे चुपचाप दबे कदमों से नीचे आ गईं. अब वे बहुत परेशान थीं.

थोड़ी देर बाद जूही भी उमंगतरंग में डूबी हुई, प्रेमरस में सराबोर गाना गुनगुनाती हुई नीचे आ गई. इस समय वह इतनी खुश थी, मानो सारा जहां उस के कदमों में आ गया हो. इस समय उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था.

उस की मम्मी को भी समझ नहीं आ रहा था कि वे उस के साथ कैसे पेश आएं? उन के मन में आ रहा था कि जूही के गाल पर थप्पड़ मारतेमारते उन्हें लाल कर दें. दूसरे ही पल उन के मन में आया कि नहीं,  इस मामले में उन्हें समझदारी से काम लेना चाहिए. उन्होंने शाम को जूही के पापा से ही बात कर के किसी निर्णय पर पहुंचने की सोची. उधर, आज दिनभर जूही अपने मोबाइल पर लव सौंग सुनती रही.

शाम को जब जूही की मम्मी ने जूही के पापा को सुबह की पूरी घटना बताई, तो वे भी सन्न रह गए. फिर भी उन्होंने धैर्य से काम लेते हुए कहा, ‘‘निशा, तुम चिंता मत करो. जूही युवावस्था से गुजर रही है और यह युवावस्था का सहज आकर्षण है. क्या हम ने भी ऐसा ही नहीं किया था?’’

‘‘राजेंद्र, तुम्हें तो हर वक्त मजाक ही सूझता है. यह जरूरी तो नहीं कि जो हम करें वही हमारी संतानें भी करें.’’

‘‘निशा, मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि बच्चों के भविष्य को ध्यान में रख कर कोई कदम ही न उठाया जाए. मैं आज ही मुकुल के पापा से बात करता हूं. बच्चों को समझाने से ही कोई हल निकलेगा.’’

जूही के पापा ने मुकुल के पापा से मिलने का समय लिया और फिर उन से मिलने उन के घर गए. फिर दोनों ने सौहार्दपूर्ण वातावरण में मुकुल और

जूही के प्रेम व्यवहार और उन के भविष्य पर चर्चा की, जिस से वे दोनों कहीं गलत रास्ते पर न चल पड़ें. दोनों ने बातों ही बातों में मुकुल और जूही को सही मार्ग पर आगे बढ़ाने की योजना और नीति बना ली थी.

तब एक दिन मुकुल के पापा ने सही अवसर पा कर मुकुल को अपने पास बुलाया और उस से इस प्रकार बातें शुरू कीं जैसे उन्हें उस के और जूही के बीच पनप रहे प्रेम संबंधों के बारे में कुछ पता ही न हो.

उन्होंने बड़े प्यार से मुकुल से पूछा, ‘‘बेटा मुकुल, आजकल तुम खोएखोए से रहते हो. इस बार तुम्हारे नंबर भी तुम्हारी योग्यता और क्षमता के अनुरूप नहीं आए. आखिर क्या समस्या है बेटा?‘‘

मुकुल के पास इस प्रश्न का कोई सटीक उत्तर नहीं था. कभी वह प्रश्नपत्रों के कठिन होने को दोष देता, तो कभी आंसर शीट के चैक होने में हुई लापरवाही को दोष देता.

‘‘बेटा मुकुल, मुझे तो ऐसा लग रहा है कि तुम अपना ध्यान पढ़ाई में सही से लगा नहीं पा रहे हो. कोई इश्कविश्क का मामला तो नहीं है?’’

यह सुनते ही मुकुल को करंट सा लगा. उस के मुंह से तुरंत निकला, ‘‘नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘बेटा, यह उम्र ही ऐसी होती है. यदि ऐसा है भी तो कोई बुरी बात नहीं. मुझे अपना दोस्त समझ कर तुम अपनी भावनाओं को मुझ से शेयर कर सकते हो. एक पिता कभी अपने बेटे को गलत सलाह नहीं देगा, विश्वास करो.’’

लेकिन मुकुल अब भी कुछ बताने से झिझक रहा था. उस के पापा उस के चेहरे को देख कर समझ गए कि उस के मन में कुछ है, जिसे वह बताने से झिझक रहा है. तब उन्होंने उस से कहा, ‘‘मुकुल, कुछ भी बताने से झिझको मत. तुम्हारे सपनों को पूरा करने में सब से बड़ा मददगार मैं ही हो सकता हूं. बताओ बेटा, क्या बात है?’’

अपने पापा को एक दोस्त की तरह बातें करते देख मुकुल की झिझक खुलने लगी. तब उस ने भी जूही के साथ चल रही अपनी प्रेम कहानी को सहज रूप से स्वीकार कर लिया.

इस पर उस के पापा ने कहा, ‘‘मुकुल, तुम एक समझदार बेटे हो जो तुम ने सचाई स्वीकार की. मुझे जूही से तुम्हारी

दोस्ती पर किसी भी तरह से कोई भी एतराज नहीं. बस, मैं तो सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि यदि तुम जूही को पाना चाहते हो तो पहले उस के लायक तो बनो.

‘‘तुम जूही को तभी पा सकते हो, जब अपने कैरियर को संवार लो और कोई अच्छी नौकरी व पद प्राप्त कर लो. बेटा, यदि तुम अपना और जूही का जीवन सुखमय बनाना चाहते हो, तो तुम्हें अपना कैरियर संवारना ही होगा अन्यथा जूही के पेरैंट्स भी तुम्हें स्वीकार नहीं करेंगे. इस दुनिया में असफल आदमी का साथ कोई नहीं देता.’’

यह सुन कर मुकुल ने भावावेश में कहा, ‘‘पापा, हम एकदूसरे से सच्चा प्यार करते हैं. कभी हम एकदूसरे से जुदा नहीं हो सकते.’’

‘‘बेटा, तुम दोनों को जुदा कौन कर रहा है? मैं तो बस इतना कह रहा हूं कि यदि तुम जूही से जुदा नहीं होना चाहते तो उस के लिए कुछ बन कर दिखाओ. अन्यथा कितने ही सच्चे प्रेम की दुहाई देने वाले रिश्ते हों, अनमेल होने पर टूट और बिखर जाते हैं. यदि तुम ऐसा नहीं चाहते तो जूही की जिंदगी में खुशबू महकाने के लिए तुम्हें कुछ बन कर दिखाना ही होगा.’’

‘‘पापा, आप की बात मुझे समझ आ गई है. हम जिस चीज को चाहते हैं, उस के लिए हमें उस के लायक बनना ही पड़ता है. नहीं तो वह चीज हमारे हाथ से निकल जाती है.

‘‘अभी तक मैं अपना बेशकीमती समय यों ही गाने सुनने और फिल्में देखने में गवां रहा था. अब मैं अपना पूरा समय अपना कैरियर संवारने में लगाऊंगा. मुझे अपने प्यार के काबिल बनना है.’’

‘‘शाबाश बेटा, अपने इस जज्बे को कायम रखो. अपनी पढ़ाई में पूरा मन लगाओ. अपना कैरियर संवारो. मात्र सपने देखने से कुछ नहीं होता, उन्हें हकीकत में बदलने के लिए प्रयास और परिश्रम करना ही पड़ता है. जूही को पाना चाहते हो तो जूही के काबिल बनो.’’

‘‘पापा, आप ने मेरी आंखें खोल दी हैं. मैं आप से वादा करता हूं कि मैं ऐसा ही करूंगा.’’

‘‘ठीक है बेटा, तुम्हें मेरी सलाह समझ में आ गई. मैं एक दोस्त और मार्गदर्शक के रूप मे तुम्हारे साथ हूं.’’

इसी प्रकार की बातें जूही के पेरैंट्स ने जूही को भी समझाईं. इस का असर जल्दी ही देखने को मिला. मुकुल और जूही एकदूसरे को पाने के लिए अपनाअपना कैरियर संवारने में लग गए. अब वे दोनों अपनी पढ़ाई ध्यान लगा कर करने लगे थे.

जूही और मुकुल के पेरैंट्स भी यह देख कर काफी खुश थे कि उन के बच्चे सही राह पर चल पड़े हैं और अपनाअपना भविष्य उज्ज्वल बनाने में लगे हैं. Hindi Romantic Story

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें