उधर बबिता के भाइयों नंद कुमार और नवल कुमार तथा उन की पत्नियों को दूसरी चिंता ने घेर लिया कि बबिता यदि उन के घर में आ कर रहने लगी तो भविष्य में वह पापामम्मी की संपत्ति में दावेदार हो जाएगी और उसे उस का हिस्सा भी देना पडे़गा. इसलिए दोनों भाइयों ने आपस में सुलह कर बबिता से कहा कि दिनेश ने तलाक की बात कही है तो तुम उसे तलाक के लिए आवेदन करने दो. अपनी तरफ से बिलकुल आवेदन मत करना.
‘भैया, मेरा भी उस घर में दम घुट रहा है,’ बबिता बोली, ‘मैं खुद तलाक लेना चाहती हूं और अपनी मरजी का जीवन जीना चाहती हूं. इस अपमान के बाद तो मैं हरगिज वहां नहीं रह सकती.’
नंद कुमार ने कठोर स्वर में कहा, ‘ऐसी गलती कभी मत करना. तुम खुद तलाक लेने जाओगी तो ससुराल से कुछ भी नहीं मिलेगा. दिनेश तलाक लेना चाहेगा तो उसे तुम्हें गुजाराभत्ता देना पडे़गा.’
‘गुजाराभत्ता की मुझे जरूरत नहीं,’ बबिता बोली, ‘मैं पढ़ीलिखी हूं, कोई नौकरी ढूंढ़ लूंगी और अपना खर्च चला लूंगी पर दोबारा उस घर में वापस नहीं जाऊंगी.’
‘नहीं, अभी तुम्हें वहीं जाना होगा और वहीं रहना भी होगा,’ इस बार नवल कुमार ने कहा.
बबिता ने आश्चर्य से छोटे भाई की ओर देखा. फिर बारीबारी से मम्मीपापा व भाभियों की ओर देख कर अपने स्वर में दृढ़ता लाते हुए वह बोली, ‘दिनेश ने तलाक की बात कह कर मेरा अपमान किया है. इस अपमान के बाद मैं उस घर में किसी कीमत पर वापस नहीं जाऊंगी.’
समझाने के अंदाज में पर कठोर स्वर में नंद कुमार ने कहा, ‘तुम अभी वहीं उसी घर में रहोगी, जब तक कि तुम्हारे तलाक का फैसला नहीं हो जाता. तुम डरती क्यों हो? सभी तुम्हारे साथ हैं. शादी के बाद से कानूनन वही तुम्हारा घर है. देखता हूं, तुम्हें वहां से कौन निकालता है.’
बडे़ भैया की बातों में छिपी धमकी से आहत बबिता ने अपनी मम्मी की ओर इस उम्मीद से देखा कि वही उस की मदद करें. मम्मी ने बेटी की आंखों में व्याप्त करुणा और दया की याचना को महसूस करते हुए नंद कुमार से कहा, ‘बबिता यहीं रहे तो क्या हर्ज है?’
‘हर्ज है,’ इस बार दोनों भाइयों के साथ उन की पत्नियां भी बोलीं, ‘ब्याही हुई बेटी का घर ससुराल होता है, मायका नहीं. बबिता को अपने पति या ससुराल वालों से कोई हक हासिल करना है तो वहीं रह कर यह काम करे. मायके में रह कर हम लोगों की मुसीबत न बने.’
मां ने सिर नीचे कर लिया तो बबिता ने अपने पापा की ओर देखा. बेटी को अपनी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देख कर उन्हें मुंह खोलना ही पड़ा. उन्होेंने कहा, ‘तुम्हारे भाई लोग ठीक ही कह रहे हैं बबिता. बेटी का विवाह करने के बाद पिता समझता है कि उस ने एक बड़ी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली. पर इस के बाद भी उसे बेटी की चिंता ढोनी पडे़ तो उस के लिए इस से बड़ी दूसरी पीड़ा नहीं हो सकती.’
बबिता पढ़ीलिखी थी. उस में स्वाभिमान था तो अहंकार भी था. उस ने अपने भाइयों और मम्मीपापा की बातों का अर्थ समझ लिया था. इस के पश्चात उस ने किसी से कुछ नहीं कहा. वह उठी और चली गई. उस को जाते हुए किसी ने नहीं रोका.
अचानक फोन की घंटी फिर बजने लगी तो रामगोपालजी चौंके और लपक कर फोन उठा लिया.
दिनेश की घबराहट भरी आवाज थी, ‘‘पापा, आप लोग जल्दी आ जाइए न. बबिता ने अपने शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा ली है.’’
रामगोपाल का सिर घूमने लगा. फिर भी उन्होंने फोन पर पूछा, ‘‘कैसे हुआ यह सब? अभी तो कुछ समय पहले ही वह यहां से गई है.’’
‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ दिनेश की आवाज आई, ‘‘वह हमेशा की तरह आप के घर से लौट कर अपने कमरे में चली गई थी और उस ने भीतर से दरवाजा बंद कर लिया था. अंदर से धुआं निकलता देख कर हमें संदेह हुआ. दरवाजा तोड़ कर हम अंदर घुसे तो देखा, वह जल रही थी. क्या वहां कुछ हुआ था?’’
इस सवाल का जवाब न दे कर रामगोपाल ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘हम लोग तुरंत आ रहे हैं.’’
लक्ष्मी ने बिस्तर पर लेटेलेटे ही पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’
‘‘दिनेश का,’’ रामगोपाल ने घबराहट भरे स्वर में कहा, ‘‘बबिता ने आग लगा ली है.’’
इतना सुनते ही लक्ष्मी की चीख निकल गई. मम्मी की चीख सुन कर नंद कुमार और नवल कुमार भी वहां पहुंच गए.
नंद कुमार ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है?’’
रामगोपाल ने जवाब दिया, ‘‘बबिता ने यहां से लौटने के बाद शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा ली है, दिनेश का फोन आया था,’’ इतना कह कर रामगोपाल सिर थाम कर बैठ गए, फिर बेटों की तरफ देख कर बोले, ‘‘ससुराल से अपमानित बेटी ने मायके में रहने की इजाजत मांगी थी. तुम लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उसे यहां रहने नहीं दिया. यहां से भी अपमानित होने के बाद उस ने आत्महत्या कर ली.’’
‘‘चुप कीजिए,’’ बडे़ बेटे नंद कुमार ने जोर से अपने पिता को डांटा, ‘‘आप ऐसा बोल कर खुद भी फंसेंगे और साथ में हम सब को भी फंसा देंगे. बबिता ने खुदकुशी नहीं की है, उसे मार डाला गया है. बबिता के ससुराल वालों ने दहेज के खातिर मिट्टी का तेल उडे़ल कर उसे जला डाला है.’’
रामगोपाल ने आशा की डोर पर झूलते हुए कहा, ‘‘चलो, पहले देख लें, शायद बबिता जीवित हो.’’
‘‘पहले आप थाने चलिए,’’ नंद कुमार ने फैसले के स्वर मेंकहा, ‘‘और तुम भी चलो, मम्मी.’’
रामगोपाल का परिवार जिस समय गिरधारी लाल के मकान के सामने पहुंचा, वहां एक एंबुलेंस और पुलिस की एक गाड़ी खड़ी थी. मकान के सामने लोगों की भीड़ जमा थी. जली हुई बबिता को स्ट्रेचर पर डाल कर बाहर निकाला जा रहा था. गाड़ी रोक कर रामगोपाल, लक्ष्मी, नंद कुमार तथा नवल कुमार नीचे उतरे. सफेद कपडे़ में ढंकी बबिता के चेहरे की एक झलक देखने के लिए रामगोपाल लपके पर नंद कुमार ने उन्हें रोक लिया.
थोड़ी देर बाद ही पुलिस के 4 सिपाही और एक दारोगा गिरधारी लाल, दिनेश, सुलोचना और राजेश को ले कर बाहर निकले. उन चारों के हाथों में हथकडि़यां पड़ी हुई थीं. दिनेश, बबिता को बचाने की कोशिश में थोड़ा जल गया था. रामगोपाल की नजर दामाद पर पड़ी तो जाने क्यों उन की नजर नीची हो गई.